7 लेटेस्ट फ्लोरिंग ट्रैंड्स

फर्श आप के घर के सौंदर्य को तय करने में बड़ी भूमिका निभाता है. आज तमाम मार्केट्स अनेक प्रकार की सुंदर टाइल्स से भरी पड़ी हैं. लेकिन जिस जगह आप हैं वहां का मौसम, तापमान और नमी को ध्यान में रख कर फर्श का चुनाव करने में ही समझदारी है. इस के अलावा फ्लोरिंग टाइल्स, किचन टाइल्स,

वाल टाइल्स का चुनाव भी सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए.

जब आप अपने घर के पुनर्निर्माण के लिए पैसा खर्च कर रहे हैं तो निश्चित ही हर कमरे में एक जैसी टाइल्स देखना आप को अच्छा नहीं लगेगा. आप हर कमरे में कुछ अलग, कुछ नया देखना पसंद करेंगे ताकि हर कमरे के साथ कुछ अलग फीलिंग आए.

अकसर गृहिणियां अपने घर के लिए सर्वोत्तम टाइल्स खरीदने के लिए इंटरनैट सर्च करती हैं. कई बार इंटरनैट पर भ्रमित होने के बाद वे कुछ. दुकानों का दौरा करने निकल पड़ती हैं और वहां दुकानदार आप को कन्फ्यूज कर देता है. फिर परेशान हो कर आप ऐसी टाइल्स पसंद कर आती हैं जो कुछ ही दिनों में आप को बोर लगने लगती हैं. ऐसे में कुछ सुझव हैं जिन्हें अगर आप घर की फ्लोरिंग डिसाइड करने से पहले ध्यान में रखें तो आप के घर की फ्लोरिंग देख कर आप की पड़ोसिनों और सहेलियां चौंक उठेंगी.

टाइल्स खरीदने से पहले

सब से पहले आप उस कमरे के बारे में सोचें, जिस का फर्श बनना है. उस कमरे में जो फर्नीचर है और जो अलमारियां हैं, उन पर क्या रंग है? दीवारों का रंग क्या है? उस कमरे में आप किस रंग के परदे लगाने वाली हैं? इन सब सवालों के जवाब तलाशने के बाद ही टाइल्स की दुकान पर जाएं. वहां आप दुकानदार से सारी बातें शेयर करें. इस से उसे भी कमरे की अन्य चीजों से मेल खाती टाइल्स या फ्लोरिंग दिखाने में मदद मिलेगी और आप को भी ज्यादा कन्फ्यूजन नहीं होगी.

एक बार जब आप का कमरा टाइल्स लगाने के लिए तैयार हो, तो आप गणना कर लीजिए कि आप को कितनी टाइल की आवश्यकता होगी. एक बार में टाइल्स खरीदने और आप को जितनी भी जरूरत है उस से अधिक लेना हमेशा अच्छा होता है क्योंकि लगाने के दौरान अगर कुछ टाइल्स खराब हो या टूट जाएं तो दोबारा वैसी ही टाइल्स आप को मिले या न मिले, कहना मुश्किल है. इसलिए कुछ ज्यादा ले लेना ठीक होता है.

टाइल्स या फ्लोरिंग के लिए बेहतर होगा कि आप डिजाइनर या ठेकेदार को साथ ले जाएं. टाइल्स के साइज बगैरा को देख कर वह आप को बता सकेगा कि कौन सी टाइल्स अधिकांश कमरों के रंगों से मेल खाएंगी और आप को एक विशेष कमरे जैसे बैडरूम या ड्राइंगरूम के लिए कितनी टाइल्स की आवश्यकता है.

यदि आप की फर्श टाइल्स अच्छी स्थिति में हैं तो आप अपने कमरे के लुक को बदलने के लिए उस पर पीवीसी पौलीविनाइल क्लोराइड या विनाइल फ्लोरिंग करवा सकते हैं. यह काम कम बजट में हो जाएगा.

कुछ बातें जो ध्यान देने की हैं वे यह कि छोटे आकार के कमरे के लिए कभी बड़े आकार की टाइल्स नहीं लेनी चाहिए. ये सुंदर नहीं दिखती हैं. एक छोटे कमरे पर खर्च को कम करने के लिए आप को छोटी साइज की टाइल्स लेनी चाहिए.

टाइल्स खरीदने के लिए कभी शाम या रात को दुकान पर न जाएं. हमेशा दिन के उजाले में जाएं और विभिन्न कमरों की आवश्यकता के अनुरूप सूर्य के प्रकाश में टाइल्स के रंग और डिजाइन का चयन करें.

विट्रिफाइड टाइल्स

यह मार्बल और ग्रेनाइट के लिए एक बढि़या विकल्प है. सिलिका और मिट्टी की बनी विट्रिफाइड टाइल्स टिकाऊपन के मामले में सर्वश्रेष्ठ होती हैं. बरामदे, आंगन या बाहरी फर्श के लिए यह एक अच्छा विकल्प है. खरोंचों और दाग प्रतिरोधी होने के कारण, विट्रिफाइड टाइल्स रसोई जैसे फुट ट्रैफिक वाले स्थानों के लिए भी अच्छी हैं. चमकदार फिनिश या मैट फिनिश के साथ ये कई डिजाइनों और पैटर्न्स में उपलब्ध हैं.

संगमरमर का फर्श

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि संगमरमर भारत में घरों में उपयोग किया जाने वाला सब से प्रिय और शाही लुक प्रदान करने वाला मैटीरियल है. उच्च गुणवत्ता वाला भारतीय संगमरमर सस्ता भी है और लंबे समय तक टिकाऊ भी है. यह सभी प्रकार के रंगों और डिजाइनों में भी उपलब्ध है. इस की बढि़या चमक और नाजुक लुक आप के घर को ग्लैमरस बना देता है. इस के कारण कुछ शाहीपन का सा अंदाज झलकता है.

विनाइल

विनाइल फर्श का विचार उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है जो अपने घर के फर्श को वुडन फ्लोरिंग का लुक देना चाहते हैं. विनाइल कई अलगअलग लुक, रंगों, चमक और डिजाइन में आता है. आप बाजार में सोम्ब्रे वुडन लुक या चमकदार मार्बल जैसी सतह वाला विनाइल फर्श पा सकते हैं. लकड़ी या संगमरमर के फर्श के विपरीत विनाइल फर्श कम बजट में आ जाता है और ज्यादा समय तक टिकता है. इसलिए आप निश्चिंत हो सकते हैं कि आप का निवेश बेकार नहीं जाएगा.

ग्राफिक चीनीमिट्टी की बरतन टाइल्स

यदि आप बोल्ड और ब्राइट पसंद करते हैं, तो ग्राफिक टाइलें सिर्फ आप के लिए बनाई गई हैं. यह उदार, चमकदार टाइल्स ध्यान आकर्षित करने का एक शानदार तरीका है. ये कमरे का स्टेटमैंट पीस बनाती हैं. ये टाइलें आप के कमरे को एक पल में रोशन कर देती हैं. पानी और अन्य कठोर दागों को झेलने की क्षमता के कारण ये ज्यादातर रसोई, बाथरूम अथवा दीवारों में उपयोग की जाती हैं.

लकड़ी का फर्श

लकड़ी का फर्श कमरे में गरमी और खुलेपन का अहसास दिलाता है. यह कमरे को और अधिक स्वागत योग्य बनाने के लिए आधार भी देता है. यदि लकड़ी के फर्श की सही देखभाल हो तो यह बेहद टिकाऊ होता है, और हर तरह की सजावट के साथ आता है.

लैमिनेट

लैमिनेट लकड़ी के फर्श के विचार के लिए एक अच्छा वैकल्पिक विकल्प है. कम लागत में इस का बिना लकड़ी के फर्श का सा आनंद ले सकते हैं. यह सिंथैटिक मिश्रण, लैमिनेट्स सामग्री की भारी दबाव वाली परतों से बना होता है और इस के ऊपर सुरक्षा के लिए एक उच्च प्रतिरोधी सैल्यूलोजरल कोट कवर होता है.

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एक साथी की तलाश- भाग 1: कैसी जिंदगी जी रही थी श्यामला

शाम गहरा रही थी. सर्दी बढ़ रही थी. पर मधुप बाहर कुरसी पर बैठे  शून्य में टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रहे थे. सूरज डूबने को था. डूबते सूरज की रक्तिम रश्मियों की लालिमा में रंगे बादलों के छितरे हुए टुकड़े नीले आकाश में तैर रहे थे.

उन की स्मृति में भी अच्छीबुरी यादों के टुकड़े कुछ इसी प्रकार तैर रहे थे. 2 दिन पहले ही वे रिटायर हुए थे. 35 सालों की आपाधापी व भागदौड़ के बाद का आराम या विराम, पता नहीं, पर अब, अब क्या…’ विदाई समारोह के बाद घर आते हुए वे यही सोच रहे थे. जीवन की धारा अब रास्ता बदल कर जिस रास्ते पर बहने वाली थी, उस में वे अकेले कैसे तैरेंगे.

‘‘साहब, सर्दी बढ़ रही है, अंदर चलिए’’, बिरुवा कह रहा था.

‘‘हूं,’’ अपनेआप में खोए मधुप चौंक गए, ‘‘हां चलो.’’ और वे उठ खड़े हुए.

‘‘इस वर्ष सर्दी बहुत पड़ रही है साहब,’’ बिरुवा कुरसी उठा कर उन के साथ चलते हुए बोला, ‘‘ओस भी बहुत पड़ती है. सुबह सब भीगाभीगा रहता है, जैसे रातभर बारिश हुई हो,’’ बिरुवा बोलते जा रहा था.

मधुप अंदर आ गए. बिरुवा उन के अकेलेपन का साथी था. अकेलेपन का दुख उन्हें मिला था पर भुगता बिरुवा ने भी था. खाली घर में बिरुवा कई बार अकेला ही बातें करता रहता. उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत थी. उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर, बड़बड़ाता हुआ वह स्वयं ही खिसिया कर चुप हो जाता.

पर श्यामला खिसिया कर चुप न होती थी, बल्कि झल्ला जाती थी, ‘मैं क्या दीवारों से बातें कर रही हूं. हूं हां भी नहीं बोल पाते, चेहरे पर कोई भाव ही नहीं रहते, किस से बातें करूं,’ कह कर कभीकभी उस की आंखों में आंसू आ जाते.

उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत श्यामला के लिए इस कदर परेशानी का सबब बन गई थी कि वह दुखी हो जाती थी. उन की संवेदनहीनता, स्पंदनहीनता की ठंडक बर्फ की तरह उस के पूरे व्यक्तित्व को झुलसा रही थी. नाराजगी में तो मधुप और भी अभेद हो जाते थे. मधुप ने कमरे में आ कर टीवी चला दिया.

तभी बिरुवा गरम सूप ले कर आ गया, ‘‘साहब, सूप पी लीजिए.’’

बिरुवा के हाथ से ले कर वे सूप पीने लगे. बिरुवा वहीं जमीन पर बैठ गया. कुछ बोलने के लिए वह हिम्मत जुटा रहा था, फिर किसी तरह बोला, ‘‘साहब, घर वाले बहुत बुला रहे हैं, कहते हैं अब घर आ कर आराम करो, बहुत कर लिया कामधाम, दोनों बेटे कमाने लगे हैं. अब जरूरत नहीं है काम करने की.’’

मधुप कुछ बोल न पाए, छन्न से दिल के अंदर कुछ टूट कर बिखर गया. बिरुवा का भी कोई है जो उसे बुला रहा है. 2 बेटे हैं जो उसे आराम देना चाहते हैं. उस के बुढ़ापे की और अशक्त होती उम्र की फिक्रहै उन्हें. लेकिन सबकुछ होते हुए भी यह सुख उन के नसीब में नहीं है.

बिरुवा के बिना रहने की वे कल्पना भी नहीं कर पाते. अकेले में इस घर की दीवारों से भी उन्हें डर लगता है, जैसे कोनों से बहुत सारे साए निकल कर उन्हें निगल जाएंगे. उन्हें अपनी यादों से भी डर लगता है और अकेले में यादें बहुत सताती हैं.

‘सारा दिन आप व्यस्त रहते हैं, रात को भी देर से आते हैं, मैं सारा दिन अकेले घर में बोर हो जाती हूं,’ श्यामला कहती थी.

‘तो, और औरतें क्या करती हैं और क्या करती थीं, बोर होना तो एक बहाना भर होता है काम से भागने का. घर में सौ काम होते हैं करने को.’

‘पर घर के काम में कितना मन लगाऊं. घर के काम तो मैं कर ही लेती हूं. आप कहो तो बच्चों के स्कूल में एप्लीकेशन दे दूं नौकरी के लिए, कुछ ही घंटों की तो बात होती है, दोपहर में बच्चों के साथ घर आ जाया करूंगी,’ श्यामला ने अनुनय किया.

‘कोई जरूरत नहीं. कोई कमी है तुम्हें?’ अपना निर्णय सुना कर जो मधुप चुप हुए तो कुछ नहीं बोले. उन से कुछ बोलना या उन को मनाना टेढ़ी खीर था. हार कर श्यामला चुप हो गई, जबरदस्ती भी करे तो किस के साथ, और मनाए भी तो किस को.

‘नौवल्टी में अच्छी पिक्चर लगी है, चलिए न किसी दिन देख आएं, कहीं भी तो नहीं जाते हैं हम?’

‘मुझे टाइम नहीं, और वैसे भी, 3 घंटे हौल में मैं नहीं बैठ सकता.’

‘तो फिर आप कहें तो मैं किसी सहेली के साथ हो आऊं?’

‘कोई जरूरत नहीं भीड़ में जाने की, सीडी ला कर घर पर देख लो.’

‘सीडी में हौल जैसा मजा कहां

आता है?’

लेकिन अपना निर्णय सुना कर चुप्पी साधने की उन की आदत थी. श्यामला थोड़ी देर बोलती रही, फिर चुप हो गई. तब नहीं सोच पाते थे मधुप, कि पौधे को भी पल्लवित होने के लिए धूप, छांव, पानी व हवा सभी चीजों की जरूरत होती है. किसी एक चीज के भी न होने पर पौधा मर जाता है. फिर, श्यामला तो इंसान थी, उसे भी खुश रहने के लिए हर तरह के मानवीय भावों की जरूरत थी. वह उन का एक ही रूप देखती थी, आखिर कैसे खुश रह पाती वह.

‘थोड़े दिन पूना हो आऊं मां के

पास, भैयाभाभी भी आए हैं आजकल, मुलाकात हो जाएगी.’

‘कैसे जाओगी इस समय?’ मधुप आश्चर्य से बोले, ‘किस के साथ जाओगी?’

‘अरे, अकेले जाने में क्या हुआ, 2 बच्चों के साथ सभी जाते हैं.’

‘जो जाते हैं, उन्हें जाने दो, पर मैं तुम लोगों को अकेले नहीं भेज सकता.’

फिर श्यामला लाख तर्क करती, मिन्नतें करती. पर मधुप के मुंह पर जैसे टेप लग जाता. ऐसी अनेक बातों से शायद श्यामला का अंतर्मन विरोध करता रहा होगा. पहली बार विरोध की चिनगारी कब सुलगी और कब भड़की, याद नहीं पड़ता मधुप को.

‘‘साहब, खाना लगा दूं?’’ बिरुवा कह रहा था.

‘‘भूख नहीं है बिरुवा, अभी तो सूप पिया.’’

‘‘थोड़ा सा खा लीजिए साहब, आप रात का खाना अकसर छोड़ने लगे हैं.’’

‘‘ठीक है, थोड़ा सा यहीं ला दे,’’ मधुप बाथरूम से हाथ धो कर बैठ गए.

इस एकरस दिनचर्या से वे दो ही दिन में घबरा गए थे, तो श्यामला कैसे बिताती पूरी जिंदगी. वे बिलकुल भी शौकीन तबीयत के नहीं थे. न उन्हें संगीत का शौक था, न किताबें पढ़ने का, न पिक्चरों का, न घूमने का, न बातें करने का. श्यामला की जीवंतता, मधुप की निर्जीवता से अकसर घबरा जाती. कई बार चिढ़ कर कहती, ‘ठूंठ के साथ आखिर कैसे जिंदगी बिताई जा सकती है.’

उन्होंने चौंक कर श्यामला की तरफ देखा, एक हफ्ते बाद सीधेसीधे श्यामला का चेहरा देखा था उन्होंने. एक हफ्ते में जैसे उस की उम्र 7 साल बढ़ गई थी. रोतेरोते आंखें लाल, और चारों तरफ कालेस्याह घेरे.

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मजबूरियां- भाग 1: प्रकाश को क्या मिला निशा का प्यार

‘‘अब सिर दर्द कैसा है आप का?’’ थोड़ी देर बड़े प्रेम से सिर दबाने के बाद ज्योति ने प्रकाश से पूछा.

‘‘तुम्हारे हाथों में जादू है, ज्योति,’’ प्रकाश उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया, ‘‘दर्द उड़नछू हो गया. अब मैं खुद को बिलकुल तरोताजा महसूस कर रहा हूं, पर यह कमाल हर बार तुम कैसे कर देती हो?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘कौन सा कमाल?’’ ज्योति बोली.

‘‘मेरे थकेहारे शरीर और दिलोदिमाग में जीवन के प्रति उमंग और उत्साह भरने का कमाल,’’ प्रकाश ने जवाब दिया.

‘‘मैं कोई कमाल नहीं करती जनाब, उलटा मैं जब आप के साथ होती हूं तब मेरी जीवन बगिया के फूल खिल उठते हैं,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘और जरूर उन्हीं खूबसूरत फूलों की शानदार महक मु झे यों मस्त और तरोताजा कर जाती है, डार्लिंग,’’ अपनी गरदन घुमा कर प्रकाश ने एक छोटा चुंबन ज्योति के गुलाबी होंठों पर अंकित कर दिया.

‘‘बड़ी जल्दी शरारत सू झने लगी है, साहब,’’ कहते हुए ज्योति के गोरे गाल शर्म से गुलाबी हो उठे.

‘‘तुम कितनी सुंदर हो,’’ अपना मुंह उस के कान के पास ला कर प्रकाश ने कोमल स्वर में कहा, ‘‘एक बात मु झे अभी भी बहुत हैरान कर जाती है.’’

‘‘कौन सी बात?’’ ज्योति ने पूछा.

‘‘हमारी जानपहचान अब 5 साल पुरानी हो गई है. सैकड़ों बार मैं तुम्हें प्रेम कर चुका हूं. पर अब भी मेरा छोटा सा चुंबन तुम्हारे रोमरोम को पुलकित कर जाता है. यही बात मु झे हैरान करती है.’’

‘‘है न कमाल की बात. अब जवाब दो कि जादूगर मैं हुई कि आप?’’ ज्योति शरारती अदा से मुसकराई तो प्रकाश ने इस बार एक लंबा चुंबन उस के होंठों पर अंकित कर दिया.

अपनी सांसें व्यवस्थित करने के बाद प्रकाश ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘जादूगरनी तो तुम हो ही ज्योति. पहली मुलाकात के दिन से ही तुम्हारा जादू मेरे सिर चढ़चढ़ कर बोलने लगा था.’’

‘‘याद है आप को हमारी वह पहली मुलाकात?’’ ज्योति ने पूछा.

‘‘बिलकुल याद है, मीठे खरबूजे चुनने में तुम ने मेरी खुद आगे बढ़ कर मदद की थी,’’ प्रकाश बोला.

‘‘और मैं ने जब अपने खरीदे खरबूजे प्लास्टिक के थैले में डाले तो थैला ही फट गया और थैले में रखे आलूप्याज भी चारों तरफ बिखर गए थे. कितनी चुस्ती दिखाई थी आप ने उन्हें समेटने में. भला 3-4 आलूप्याज निकालने को खरबूजे वाले के ठेले के नीचे घुसने की क्या जरूरत थी आप को?’’ पुराना दृश्य याद कर के ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘अरे, अगर ठेले के नीचे न घुसता तो कील में अटक कर मेरी कमीज न फटती. अगर कमीज न फटती तो तुम अफसोस प्रकट करने की मु झ से ढेरों बातें न करतीं. तब हमारा आपस में न परिचय होता, न हम साथसाथ थोड़ी देर पैदल चलते. उस 15 मिनट के साथसाथ चलने में ही तो हमारे दिलों में एकदूसरे के लिए प्रेम का बीज पड़ा था, मैडम. इसलिए मेरा ठेले के नीचे घुसना बड़ा जरूरी था. यदि मैं ऐसा न करता तो दुनिया की सब से खूबसूरत, सब से प्यारी सर्वगुणसंपन्न युवती के प्यार से वंचित रह जाता या नहीं?’’ प्रकाश का बोलने का नाटकीय अंदाज ज्योति को हंसाहंसा कर उस के पेट में बल डाल गया.

‘‘तुम से उस दिन मिल कर पहली नजर में ही मु झे ऐसा लगा था जैसे मु झे अपने सपनों का राजकुमार मिल गया हो,’’  प्रकाश की गोद में सिर रख कर लेटते हुए ज्योति ने भावुक स्वर में कहा.

‘‘और जब बाद में तुम्हें यह मालूम चल गया कि तुम्हारे सपनों का राजकुमार शादीशुदा है, 2 बच्चों का पिता है तब तुम ने उस की तसवीर को अपने दिल से क्यों नहीं निकाल फेंका?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘बुद्धू, इतने सोचविचार में ‘प्रेम’ कहां पड़ता है. प्रेम को अंधा कहा जाता है, जनाब. जिस से हो गया, हो गया. जिस से नहीं, तो नहीं. कोई जोरजबरदस्ती नहीं चलती प्रेम में.’’

‘‘ठीक कहती हो तुम, निशा के साथ मेरी शादी हुए 18 साल से ज्यादा समय बीत चुका है. हमारे बीच प्रेम का अंकुर कभी जड़ ही नहीं पकड़ सका. एकदूसरे के दिलों में जगह नहीं बना पाए

कभी हम. तुम्हारे मेरे साथ संबंधों  की जानकारी होने के बाद उस से मेरे संबंध बहुत बिगड़ गए हैं, ज्योति,’’ प्रकाश बोला.

‘‘मेरे कारण आप उन से मत उल झा करें, प्लीज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मैं आप के जीवन में समस्याएं पैदा करूं. मेरा प्रेम आप की सुखशांति और खुशियों के अलावा और कुछ भी नहीं मांगता,’’ कहते हुए ज्योति की आंखों में आंसू  िझलमिला उठे.

‘‘तुम कुछ मांगती नहीं. और मैं जो तुम्हें देना चाहता हूं वह दे नहीं सकता. अपनी मजबूरियां देख कर कभीकभी मु झे लगता है, मैं ने तुम से प्रेमसंबंध जोड़ कर तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है,’’  कहता हुआ प्रकाश उदास हो उठा.

‘‘बिलकुल गलत,’’ ज्योति फौरन हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारा प्रेम मेरे लिए अनमोल है. प्रेम से मिलने वाला सुख सात फेरों का मुहताज नहीं होता. बस, मु झे तुम्हारे होंठों पर हंसी नजर आती रहे तो मैं अपने जीवन से, अपने हालात से कभी शादी न करने के अपने फैसले से, तुम्हारे प्रेम से पूरी तरह संतुष्ट हूं.’’

‘‘आई लव यू टू, ज्योति,’’ प्रकाश ने उस की आंखों को चूम कर कहा.

‘‘आई लव यू, प्रकाश,’’ ज्योति उस के कान में फुसफुसा उठी.

‘‘तुम मु झ से कभी दूर न होना, प्लीज,’’ प्रकाश बोला.

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ यह कह कर ज्योति प्रकाश की आगोश में समा गई थी.

निशा ने शयनकक्ष में घुसते ही प्रकाश से  झगड़ने के अंदाज में पूछा, ‘‘लंच के बाद औफिस से कहां गए थे आप?’’

‘‘क्यों जानना चाहती हो?’’ प्रकाश ने भावहीन लहजे में उलटा सवाल किया.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने के नाते मु झे यह सवाल पूछने का अधिकार है.’’

‘पत्नी के अधिकार तुम कभी नहीं भूलीं और अपने कर्तव्यों के बारे में कभी प्रेम से सोचा ही नहीं तुम ने,’ प्रकाश बहुत धीमे स्वर में बुदबुदाया.

‘‘मुंह ही मुंह में क्या बड़बड़ा रहे हो, अगर गालियां देनी हैं तो सामने जोर से दो,’’ निशा चिढ़ उठी.

‘‘मैं गाली नहीं दे रहा हूं तुम्हें,’’ प्रकाश ने गहरी सांस छोड़ कर कहा.

‘‘कहां गए थे आप लंच के बाद?’’ निशा ने अपना सवाल दोहराया.

‘‘तुम्हें अच्छी तरह पता है मैं कहां गया था,’’ प्रकाश बोला.

‘‘उसी चुड़ैल ज्योति के पास?’’ निशा ने विषैले अंदाज में पूछा.

शायद- भाग 1: क्या हुआ था सुवीरा के साथ

पदचाप और दरवाजे के हर खटके पर सुवीरा की तेजहीन आंखों में चमक लौट आती थी. दूर तक भटकती निगाहें किसी को देखतीं और फिर पलकें बंद हो जातीं. सिरहाने बैठे गिरीशजी से उन की बहू सीमा ने एक बार फिर जिद करते हुए कहा था,  ‘‘पापा, आप समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे? जब तक नानीजी और सोहन मामा यहां नहीं आएंगे, मां के प्राण यों ही अधर में लटके रहेंगे. इन की यह पीड़ा अब मुझ से देखी नहीं जाती,’’ कहतेकहते सीमा सिसक उठी थी.

बरसों पहले का वह दृश्य गिरीशजी की आंखों के सामने सजीव हो उठा जब मां और भाई के प्रति आत्मीयता दर्शाती पत्नी को हर बार बदले में अपमान और तिरस्कार के दंश सहते उन्होंने ऐसी कसम दिलवा दी थी जिस की सुवीरा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘आज के बाद अगर इन लोगों से कोई रिश्ता रखोगी तो तुम मेरा मरा मुंह देखोगी.’’

बरसों पुराना बीता हुआ वह लम्हा धुल-पुंछ कर उन के सामने आ गया था. अतीत के गर्भ में बसी उन यादों को भुला पाना इतना सहज नहीं था. वैसे भी उन रिश्तों को कैसे झुठलाया जा सकता था जो उन के जीवन से गहरे जुड़े थे.

आंखें बंद कीं तो मन न जाने कब आमेर क्लार्क होटल की लौबी में जा पहुंचा और सामने आ कर खड़ी हो गई सुंदर, सुशील सुवीरा. एकदम अनजान जगह में किसी आत्मीय जन का होना मरुस्थल में झील के समान लगा था उन्हें. मंदमंद हास्य से युक्त, उस प्रभावशाली व्यक्तित्व को बहुत देर तक निहारते रहे थे. फिर धीरे से बोले, ‘आप का प्रस्तुतिकरण सर्वश्रेष्ठ था.’

‘धन्यवाद,’ प्रत्युत्तर में सुवीरा बोली तो गिरीश अपलक उसे देखते ही रह गए थे. इस पहली भेंट में ही सुवीरा उन के हृदय की साम्राज्ञी बन गई थी. फिर तो उसी के दायरे में बंधे, उस के इर्दगिर्द घूमते हुए हर पल उस की छोटीछोटी गतिविधियों का अवलोकन करते हुए इतना तो वह समझ ही गए थे कि उन का यह आकर्षण एकतरफा नहीं था. सुवीरा भी उन्हें दिल की अतल गहराइयों से चाहने लगी थी, पर कह नहीं पा रही थी. अपने चारों तरफ सुवीरा ने कर्तव्यनिष्ठा की ऐसी सीमा बांध रखी थी जिसे तोड़ना तो दूर लांघना भी उस के लिए मुश्किल था.

लगभग 1 माह बाद दफ्तर के काम से गिरीश दिल्ली पहुंचे तो सीधे सुवीरा से मिलने उस के घर चले गए थे. बातोंबातों में उन्होंने अपने प्रेम प्रसंग की चर्चा सुवीरा की मां से की तो अलाव सी सुलग उठी थीं वह.

‘बड़ी सतीसावित्री बनी फिरती थी. यही गुल खिलाने थे?’ मां के शब्दों से सहमीसकुची सुवीरा कभी उन का चेहरा देखती तो कभी गिरीश के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयास करती पर अम्मां शांत नहीं हुई थीं.

अगले दिन कोर्टमैरिज के बाद सुवीरा हठ कर के अम्मांबाबूजी के पास आशीर्वाद लेने पहुंची तो अपनी कुटिल दृष्टि बिखेरती अम्मां ने ऐसा गर्जन किया कि रोनेरोने को हो उठी थी सुवीरा.

‘अपनी बिरादरी में लड़कों की कोई कमी थी जो दूसरी जाति के लड़के से ब्याह कर के आ गई?’

‘फोन तो किया था तुम्हें, अम्मां… अभी भी तुम्हारा आशीर्वाद ही तो लेने आए हैं हम,’ सुवीरा के सधे हुए आग्रह को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां ने हुंकार लगाई.

‘तू क्या समझती है, तू चली जाएगी तो हम जी नहीं पाएंगे…भूखे मरेंगे? डंके की चोट पर जिएंगे…लेकिन याद रखना, जिस तरह तू ने इस कुल का अपमान किया है, हम आशीर्वाद तो क्या कोई रिश्ता भी नहीं रखना चाहते तुझ से.’

व्यावहारिकता के धरातल पर खड़े गिरीश, सास के इस अनर्गल प्रलाप का अर्थ भली प्रकार समझ गए थे. नौकरीपेशा लड़की देहरी लांघ गई तो रोटीपानी भी नसीब नहीं होगा इन्हें. झूठे दंभ की आड़ में जातीयता का रोना तो बेवजह अम्मां रोए जा रही थीं.

बिना कुछ कहेसुने, कांपते कदमों से सुवीरा सीधे बाबूजी के कमरे में चली गई थी. वह बरसों से पक्षाघात से पीडि़त थे. ब्याहता बेटी देख कर उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी थी. सुवीरा भी उन के सीने से लग कर बड़ी देर तक सिसकती रही थी. रुंधे स्वर से वह इतना ही कह पाई थी, ‘बाबूजी, अम्मां चाहे मुझ से कोई रिश्ता रखें या न रखें, पर मैं जब तक जिंदा रहूंगी, मायके के हर सुखदुख में सहभागिता ही दिखाऊंगी, ये मेरा वादा है आप से.’

बेटी की संवेदनाओं का मतलब समझ रहे थे दीनदयालजी. आशीर्वाद- स्वरूप सिर पर हाथ फेरा तो अम्मां बिफर उठी थीं, ‘हम किसी का एहसान नहीं लेंगे. जरूरत पड़ी तो किसी आश्रम में चाहे रह लें लेकिन तेरे आगे हाथ नहीं फैलाएंगे.’

अम्मां चाहे कितना चीखती- चिल्लाती रहीं, सुवीरा महीने की हर पहली तारीख को नोटों से भरा लिफाफा अम्मां के पास जरूर पहुंचा आती थी और बदले में बटोर लाती थी अपमान, तिरस्कार के कठोर, कड़वे अपदंश. गिरीश ने कभी अम्मां के व्यवहार का विश्लेषण करना भी चाहा तो बड़ी सहजता से टाल जाती सुवीरा, पर मन ही मन दुखी बहुत होती थी.

‘जो कुछ कहना था, मुझे कहतीं. दामाद के सामने अनापशनाप कहने की क्या जरूरत थी?’ ऐसे में अपंग पिता का प्यार और पति का सौहार्द ठंडे फाहे सा काम करता.

दौड़भाग करते कब सुबह होती, कब शाम, पता ही नहीं चलता था. गिरीश ने कई बार रोकना चाहा तो सुवीरा हंस  कर कहती, ‘समझने की कोशिश करो, गिरीश. मेरे ऊपर अम्मां, बीमार पिता और सोहन का दायित्व है. जब तक सोहन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, मुझे नौकरी करनी ही पड़ेगी.’

‘सुवीरा, मैं ने अपने मातापिता को कभी नहीं देखा. अनाथालय में पलाबढ़ा लेकिन इतना जानता हूं कि सात फेरे लेने के बाद पतिपत्नी का हर सुखदुख साझा होता है. उसी अधिकार से पूछ रहा हूं, क्या तुम्हारे कुछ दायित्व मैं नहीं बांट सकता?’

गिरीश के प्रेम से सराबोर कोमल शब्द जब सुवीरा के ऊपर भीनी फुहार बन कर बरसते तो उस का मन करता कि पति के मादक प्रणयालिंगन से निकल कर, भाग कर सारे खिड़कीझरोखे खोल दे और कहे, देखो, गिरीश मुझे कितना प्यार करते हैं.

2 बरस बाद सुवीरा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया. गिरीश खुद ससुराल सूचना देने गए पर कोई नहीं आया था. बाबूजी तो वैसे ही बिस्तर पर थे पर मां और सोहन…इतने समय बाद संतान के सुख से तृप्त बेटी के सुखद संसार को देखने इस बार भी नहीं आए थे. मन ही मन कलपती रही थी सुवीरा.

गिरीश ने जरा सी आत्मीयता दर्शायी तो पानी से भरे पात्र की तरह छलक उठी थी सुवीरा, ‘क्या कुसूर किया था मैं ने? उस घर को सजाया, संवारा अपने स्नेह से सींचा, पर मेरे अस्तित्व को ही नकार दिया. कम से कम इतना तो देखते कि बेटी कहां है, किस हाल में है. मात्र यही कुसूर है न मेरा कि मैं ने प्रेम विवाह किया है.’

इतना सुनते ही गिरीश के चेहरे पर दर्द का दरिया लरज उठा था. बोले, ‘इस समय तुम्हारा ज्यादा बोलना ठीक नहीं है. आराम करो.’

सुवीरा चुप नहीं हुई. प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत बरसों से सहेजी संवेदनाएं सारी सीमाएं तोड़ कर बाहर निकलने लगीं.

‘मैं उस समय 5 साल की बच्ची ही तो थी जब अम्मां दुधमुंहे सोहन को मेरे हवाले छोड़ पड़ोस की औरतों के बीच गप मारने में मशगूल हो जाती थीं. लौट कर आतीं तो किसी थानेदार की तरह ढेरों प्रश्न कर डालतीं.

Anupama के मालकिन होने की बात से ‘अनुज की भाभी’ को लगेगा झटका, देखें वीडियो

सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी में इन दिनों नए-नए ट्विस्ट आते दिख रहे हैं. जहां अनु को गोद लेने के लिए अनुज (Gaurav Khanna) और अनुपमा (Rupali Ganguly) तैयार हैं तो वहीं पाखी और समर की जिंदगी में प्यार की एंट्री होने वाली है, जिसका अपकमिंग एपिसोड  (Anupamaa Serial Update) में खुलासा होगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुज की भाभी से मिली अनुपमा

 

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अब तक आपने देखा कि अनुपमा और अनुज अपनी हनीमून से वापस घर लौटते हैं. जहां बरखा दोनों का स्वागत करती है. वहीं अपनी भाभी से मिलकर अनुज बेहद खुश होता है. दूसरी तरफ, बा, किंजल को कॉन्सर्ट में जाने से रोकती है. हालांकि पाखी, परितोष और समर, बा को मनाने की कोशिश करते हैं. लेकिन वह किंजल को नहीं जाने देती.

पाखी-समर के जिंदगी में आएंगे दो नए शख्स

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज के भैया भाभी, अनुपमा को देखकर बेहद खुश होंगे. और बैठकर बातें करेंगे. वहीं पाखी की जहां एक नए लड़के से मुलाकात होगी तो वहीं समर भी एक लड़की से मिलेगा और सभी कॉसर्ट में मस्ती करेंगे. वहीं अरुण, बरखा को अनुज-अनुपमा के प्यार को देखकर ताना मारेगा, जिसे सुनकर वह गुस्सा होती दिखेगा.

बरखा को लगेगा झटका

 

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इसी के साथ आप देखेंगे कि बरखा, अनुज को उसका नया घर डेकोरेट करने के लिए कहेगी, जिसका जवाब देते हुए वह कहेगा कि उन्हें घर की मालकिन से पूछना पड़ेगा. वहीं अनुपमा के मालकिन होने की बात सुनकर बरखा का चेहरा देखने लायक होगा. दूसरी तरफ, तोषू को गलतफहमी होगी कि एक लड़का उसे छेड़ रहा है और वह उसे पीटेगा. लेकिन पाखी लड़के का बचाव करते हुए कहेगी कि उसने कुछ नहीं किया. वहीं जाते वक्त दोनों आंखों ही आखों में एक दूसरे को देखते हुए नजर आएंगे.

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GHKKPM: सई को घर से निकालेगी पाखी, वारिस के लिए भवानी करेगी ये काम

सीरियल ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ की कहानी दिलचस्प मोड़ लेती नजर आ रही है. जहां सम्राट की मौत के बाद पाखी का दिल टूट गया है तो वहीं सई की प्रैग्नेंसी ने भवानी के अरमान जगा दिए हैं. इसी बीच सीरियल में पाखी औऱ भवानी के बीच जंग होते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा सीरियल में आगे…

सम्राट की मौत से टूटा परिवार

अब तक आपने देखा कि चौह्वाण परिवार, सम्राट के अंतिम संस्कार करता है. जहां भवानी और पूरा परिवार टूटता हुआ नजर आथा है. वहीं सम्राट की मां की हालत बिगड़ जाती है, जिसके चलते सई उसका इलाज करने की कोशिश करती है. लेकिन पाखी की तरह मानसी भी सई को सम्राट की मौत का जिम्मेदार मानती है और उसे जाने के लिए कहती है. हालांकि सई, सम्राट से किए वादे के चलते उनका ख्याल रखती हुई दिखती है.

सई को दोषी मानेगी पाखी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सम्राट की शांति सभा में पाखी, सम्राट से आखिरी मुलाकात याद करेगी, जिसके चलते वह सई पर भड़क जाएगी और उसे सम्राट की फोटो पर हार चढ़ाने से रोकेगी और उसे घर से निकल जाने के लिए कहेगी. वहीं उसे धक्का भी देगी. हालांकि विराट उसे रोक लेगा. हालांकि पाखी पूरे को पूरा परिवार समझाएगा. लेकिन वह सई को कसूरवार ठहराएगी. इसी बीच भवानी, विराट और परिवार को सई का समर्थन करना बंद करने के लिए कहेगी और पाखी की तरह वह भी सई को सम्राट की मौत का दोषी ठहराएगी.

 

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भवानी के कारण बढ़ेगा पाखी का गुस्सा

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि पाखी, सई को घसीटते हुए दरवाजे की ओर ले जाएगी. जहां भवानी, सई का हाथ पकड़कर उसे रोकेगी और कहती है कि सई चव्हाण परिवार के वारिस को जन्म देने वाली है और इसलिए वह सई को घर से बाहर नहीं जाने देगी. भवानी की ये बात सुनकर पाखी का गुस्सा और ज्यादा बढ़ जाएगा.

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नाराजगी- भाग 2: बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. संध्या का नाम सुनते ही आशा फोन काट देतीं.शाम को सुमित ने मम्मी को फोन मिलाया.‘‘हैलो मम्मी, क्या कर रही हो?’’‘‘कुछ नहीं. अब करने को रह ही क्या गया है बेटा?’’ आशा बु झी हुई आवाज में बोलीं.‘‘आप के मुंह से ऐसे निराशाजनक शब्द अच्छे नहीं लगते. आप ने जीवन में इतना संघर्ष किया है, आप हमेशा मेरी आदर्श रही हैं.’’‘‘तो तुम ही बताओ मैं क्या कहूं?’’‘‘आप मेरी बात क्यों नहीं सम झती हैं? शादी मु झे करनी है. मैं अपना भलाबुरा खुद सोच सकता हूं.’’‘‘तुम्हें भी तो मेरी बात सम झ में नहीं आती. मैं तो इतना जानती हूं कि संध्या तुम्हारे लायक नहीं है.’’‘‘आप उस से मिली ही कहां हो जो आप ने उस के बारे में ऐसी राय बना ली? एक बार मिल तो लीजिए. वह बहू के रूप में आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं देगी.’’‘

‘जिस के कारण शादी से पहले मांबेटे में इतनी तकरार हो रही हो उस से मैं और क्या अपेक्षा कर सकती हूं. तुम्हें कुछ नहीं दिख रहा लेकिन मु झे सबकुछ दिखाई दे रहा है कि आगे चल कर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’‘‘प्लीज मम्मी, यह बात मु झ पर छोड़ दें. आप को अपने बेटे पर विश्वास होना चाहिए. मैं हमेशा से आप का बेटा था और रहूंगा. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनी पसंद आप के सामने व्यक्त की है.’’‘‘वह मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है. तुम इस बात को छोड़ क्यों नहीं  देते बेटे.’’‘‘नहीं मम्मी, मैं संध्या को ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. मु झे उस के साथ ही जिंदगी बितानी है. मैं जानता हूं मु झे इस से अच्छी और कोई नहीं मिल सकती.’’

आशा में अब और बात सुनने का सब्र नहीं था. उस ने फोन कट कर दिया. सुमित प्यार और ममता की 2 नावों पर सवार हो कर परेशान हो गया था. वह इस द्वंद्व से जल्दी छुटकारा पाना चाहता था. उस ने कुछ सोच कर कागजपेन उठाया और मम्मी के नाम चिट्ठी लिखने लगा.‘मम्मी, ‘आप मु झे नहीं सम झना चाहतीं, तो कोई बात नहीं पर यह पत्र जरूर पढ़ लीजिएगा. पता नहीं क्यों संध्या में मु झे आप की जवानी की छवि दिखाई देती है.‘आप ने जिस तरीके से जिंदगी बिताई है वह मु झे याद है. उस समय मैं बहुत छोटा था और यह बात नहीं सम झ सकता था लेकिन अब वे सब बातें मेरी सम झ में आ रही हैं. परिवार की बंदिशों के कारण आप की जिंदगी घर और मु झ तक सिमट कर रह गई थी.

आप का एकमात्र सहारा मैं ही तो था जिस के कारण आप को नौकरी करनी पड़ रही थी और लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. यह बात मु झे बहुत बाद में सम झ  में आई.‘जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मु झे लगता मेरी मम्मी इतनी सुंदर हैं फिर भी वे इतनी साधारण बन कर क्यों रहती हैं? पता नहीं, उस समय आप ने अपनी भावनाओं को कैसे काबू में किया होगा और कैसे अपनी जवानी बिताई होगी? समाज का डर और मेरे कारण आप  ने अपनेआप को बहुत संकुचित कर  लिया था. संध्या बहुत अच्छी है. वह मु झे पसंद है. मैं उसे एक और आशा नहीं बनने देना चाहता.

मैं उस के जीवन में फिर से खुशी लाना चाहता हूं. जो कसर आप के जीवन में रह गई थी मैं उसे दूर करना चाहता हूं. हो सके आप मेरी बात पर जरूर ध्यान दें.‘आप का बेटा, सुमित.’पत्र लिखने के बाद सुमित ने उसे पढ़ा और फिर पोस्ट कर दिया. आशा ने वह पत्र पढ़ा तो उन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने तो कभी ऐसा सोचा तक न था जो कुछ सुमित के दिमाग में चल रहा था. उसे याद आ रहा था कि सुमित की दादी जरा सा किसी से बात करने पर उन्हें कितना जलील करती थीं. किसी तरह सुमित से लिपट कर वे अपना दर्द कम करने की कोशिश करती थीं.आज पत्र पढ़ कर रोरो कर उन की आंखें सूज गई थीं. उन्हें अच्छा लगा कि उन का बेटा आज भी उन के बारे में इतना सबकुछ सोचता है. बहुत सोच कर उन्होंने सुमित को फोन मिलाया.

‘‘हैलो बेटा.’’उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो मम्मी?’’मां की आंसुओं में डूबी आवाज सुन कर वह सम झ गया कि उस की चिट्ठी मम्मी को मिल गई है.‘‘बेटा. मैं मुंबई आ रही हूं तुम से मिलने…’’ इतना कहतेकहते उन  की आवाज भर्रा गई और उन्होंने फोन रख दिया. यह सुन कर सुमित की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने यह बात संध्या को बताई तो वह भी खुश हो गई. एक हफ्ते बाद वे मुंबई पहुंच गई. आशा ने संध्या से मुलाकात की. दोनों के चेहरे देख कर उस का मन अंदर से दुखी था. उम्र की रेखाएं संध्या के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं और उस के मुकाबले सुमित एकदम मासूम सा लग रहा था. दिल पर पत्थर रख कर आशा ने शादी की इजाजत दे दी.

यह जान कर संध्या के परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे. उस के बड़े भैया अशोक ने संध्या से पहले भी कहा था कि संध्या तू कब तक ऐसी जिंदगी काटेगी. कोई अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर ले. अर्श की खातिर तब उस ने दूसरी शादी करने का खयाल भी अपने जेहन में नहीं आने दिया था. इधर सुमित की बातों और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित हो गई थी. आशा की स्वीकृति मिलने पर उस ने शादी के लिए हां कर दी.संध्या की मम्मी सीमा ने जब यह बात सुनी तो उन्हें भी बड़ा संतोष हुआ, बोलीं, ‘‘संध्या, तुम ने समय रहते बहुत अच्छा निर्णय लिया है.’’‘‘मम्मी, मेरा दिल तो अभी भी घबरा रहा है.’’‘‘तुम खुश हो कर नए जीवन में प्रवेश करो बेटा. अभी कुछ समय अर्श को मेरे पास रहने दो.’’ ‘‘यह क्या कह रही हो मम्मी?’’‘‘मैं ठीक कह रही हूं बेटा. तुम्हारी दूसरी शादी है, सुमित की नहीं. उस के भी कुछ अरमान होंगे. पहले उन्हें पूरा कर लो, उस के बाद बेटे को अपने साथ ले जाना.’’ बहुत ही सादे तरीके से संध्या और सुमित की शादी संपन्न हो गई थी. आशा एक हफ्ते मुंबई में रह कर वापस लौट गई थीं.

अभी उन के रिटायरमैंट में 4 महीने का समय बाकी था. संध्या ने उन से अनुरोध किया था, ‘मम्मीजी, आप यहीं रुक जाइए.’ तो उन्होंने कहा था कि वे 4 महीने बाद आ जाएंगी जब तक वे लोग भी अच्छे से व्यवस्थित हो जाएंगे. वे अभी तक इस रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पाई थीं. इकलौते बेटे की खातिर उन्होंने उस की इच्छा का मान रख लिया था. 4 महीने यों ही बीत गए थे. सुमित बहुत खुश था और संध्या भी. वह शाम को रोज अर्श से मिलने चली जाती और देर तक अपनी मम्मी व बेटे से बातें करती. अर्श मम्मी को मिस करता था. सुमित के जोर देने पर वह कुछ दिनों के लिए मम्मी के पास आ गई थी ताकि अर्श को पूरा समय दे सके.रिटायरमैंट के बाद आशा के मुंबई आ जाने से संध्या की घर की जिम्मेदारियां कम हो गई थीं. उस ने अपना घर पूरी तरह से आशा पर छोड़ दिया था.

मोटा होने के लिए क्या करुं?

सवाल-

मैं 17 साल की युवती हूं. मेरा शरीर बहुत दुबलापतला है, जिस कारण मुझ पर कोई भी ड्रैस सुंदर नहीं लगती. अगले महीने मेरी बहन का विवाह है. कुछ ऐसे उपाय बताएं जिन से शादी तक मेरा वजन 5-6 किलोग्राम बढ़ जाए?

जवाब-

आप की यह इच्छा कि आप बहन के विवाह पर सुंदर दिखें बिलकुल प्रासंगिक है, किंतु इतने कम समय में इतना वजन बढ़ाने की चाहत ठीक नहीं है. हालांकि कुछ दवाएं जैसे स्टेराइड, ऐपेटाइट स्टीम्यूलैंट और विटामिन दे कर इसे पूरा करने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन कोई भी डाक्टर इस का पक्षधर नहीं हो सकता. आप की उम्र में बहुत से किशोर शरीर से दुबलेपतले होते हैं, लेकिन उन की पर्सनैलिटी फिर भी मनमोहक और अतिआकर्षक होती है. इस उम्र में त्वचा का लावण्य तो सुंदर और लुभावना होता ही है, मन और तन जिस रचनात्मक ऊर्जा से खिले रहते हैं उस की कोई तुलना ही नहीं हो सकती. अत: आप मन में आ रही हीनभावना को दरकिनार कर दें और किसी क्रिएटिव ड्रैस डिजाइनर से अपनी कदकाठी के अनुरूप उपयुक्त पोशाकें तैयार करवा लें. यकीनन आप अपनी बहन के विवाह में बहुत सुंदर दिखेंगी. इस के अलावा संतुलित आहार जिस में प्रोटीन, विटामिन और खनिज पर्याप्त मात्रा में हों जैसे दाल, दूध, दही, पनीर, अंडे, मांस, हरी तरकारियां और ताजे फल प्रचुर मात्रा में लें. नियमित व्यायाम करें. समय से सोएं और जागें. स्वस्थ दिनचर्या रखें. इस से आप का स्वास्थ्य ठीक रहेगा.

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वजन आज हर उम्र की एक बड़ी समस्या बन गया है. इसी का फायदा उठा कर वजन घटाने का दावा करने वाली हर तरह की आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक दवाओं का बाजार गरम हो गया है. लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि ब्लड ग्रुप आधारित डाइट भी आप का वजन घटाने में मदद कर सकती है?

चौंक गए न? दरअसल, यह मामला ब्लड ग्रुप के हिसाब से डाइटिंग के जरीए अपनी काया को छरहरा बनाने का है. यह खास तरह की डाइट ‘ब्लड ग्रुप डाइट’ कहलाती है. क्या है यह ब्लड ग्रुप डाइट? आइए, जानते हैं कोलकाता, यादवपुर स्थित केपीसी मैडिकल कालेज व हौस्पिटल की  न्यूट्रिशनिस्ट और डाइटिशियन, रंजिनी दत्त से.

रंजिनी दत्त का इस संबंध में कहना है कि मैडिकल साइंस में ब्लड ग्रुप डाइट एक अवधारणा है. हालांकि अभी इस अवधारणा को पुख्ता वैज्ञानिक आधार नहीं मिला है, लेकिन ब्लड ग्रुप आधारित डाइट से बहुतों को फायदा भी हुआ है, यह भी सच है. पश्चिमी देशों में इस अवधारणा को मान कर डाइट चार्ट बहुत चलन में है.

रंजिनी दत्त का यह भी कहना है कि वजन कम करने के इस नुसखे को ‘टेलर मेड ट्रीटमैंट’ कहा जाता है. अब सवाल यह उठता है कि यह काम तो पर्सनलाइज्ड डाईट चार्ट या रूटीन कर ही सकता है. फिर ब्लड ग्रुप डाइट क्यों?

हर व्यक्ति की पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता उस के ब्लड ग्रुप पर निर्भर करती है. बाकायदा जांच में यह पाया गया है कि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप के व्यक्ति आमतौर पर एग्जिमा, ऐलर्जी, बुखार आदि से ज्यादा पीडि़त होते हैं.

‘बी’ ब्लड गु्रप वालों में रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इस ब्लड ग्रुप वाले ज्यादातर थकेथके से रहते हैं. कोई गलत फूड खाने से इन्हें ऐलर्जी हो जाती है, तो ‘एबी’ ब्लड ग्रुप वालों की समस्या अलग किस्म की होती है. इन्हें छोटीछोटी बीमारियां लगभग नहीं के बराबर होती हैं. लेकिन इस ब्लड ग्रुप के लोगों को कैंसर, ऐनीमिया या फिर दिल की बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है.

खुशी का गम: क्या परिवार को दोबारा पा सका वह

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