लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर
राघव एकदम से उछल कर बैठ गया जैसे प्रसन्नता का कोई करंट उसे लग गया हो लेकिन तुरंत ही कुछ सोच कर उस के चेहरे पर उदासी छा गई और मेरी बगल में धीरे से फिर लेटते हुए बोला, ‘‘लेकिन पैरों के बारे जान कर वे शायद ही राजी हों?’’
राघव ने यह कहा तो मैं ने सारी परिस्थितियों पर विचार करते हुए कहा, ‘‘राघव, कल तुम बस, इतना करो कि शोभा के जितने भी फोटो तुम्हारे मोबाइल में हैं उन्हें किसी बहाने भाईसाहब को दिखाओ. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.’’
राघव किसी सोच में डूब गया. उसे सोच में डूबा देख कर मैं ने उठ कर कमरेदरवाजे की सांकल को चैक किया. वे बंद थीं. फिर कमरे की सारी बत्तियां बुझा कर राघव की आगोश में आ कर लेट गई. राघव ने मुझे चूमना शुरू कर दिया.
सवेरे मेरी आंख जल्दी ही खुल गई थी. सास ने कहा था कि कल जल्दी उठ जाना क्योंकि लेडीज संगीत में महल्ले की सभी आमंत्रित महिलाएं आएंगी तो घर थोड़ा व्यवस्थित और सजासंवरा दिखना चाहिए.
इसलिए मैं राघव को सोता छोड़ कर नहाईधोई, फिर तैयार हो कर नीचे पहुंच गई. जेठजी के कमरे का दरवाजा बंद था. मैं ने अनुमान लगा लिया कि वे अभी उठे नहीं थे.
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दीदी के साथ मिल कर घर को खूब सुसज्जित कर के जब खाली हुई तो सास ने अपने कमरे में ले जा कर मुझे एक बहुत ही सुंदर जौर्जेट की साड़ी ब्लाउज पेटीकोट के साथ देते हुए कहा, ‘‘लेडीज संगीत में तुम्हें यह नई साड़ी ही पहन कर बैठना है. ब्लाउज मैं ने तुम्हारे पुराने नाप से थोड़ा बीस सिलवा लिया था. मुझे उम्मीद है ठीक आएगा.’’
सास द्वारा प्यार से दी गई उस लाल बौर्डर वाली सुनहरी साड़ी पहन कर मैं बहुत खुश थी तथा सुंदर और आकर्षक दिख रही थी और अब मेरे पास भाईसाहब की उस साड़ी को न पहनने का ठोस बहाना था.
नीचे दीदी के कमरे में ही मैं सास वाली साड़ी पहन कर तैयार हो गई थी. खूब जम कर लेडीज संगीत हुआ. ढोलक पर खूब बन्ने गाए गए. ढोलक बजाने में सास को महारत हासिल थी. मुझ से भी विवाह के गीत सुने गए.
जलपान के साथ मिठाई का डब्बा दे कर सब मेहमानों को जब हम ने विदा कर दिया तब मैं ऊपर आई.
राघव भाईसाहब के कमरे में बैठ अपने मोबाइल से उन्हें शोभा की उन तसवीरों को दिखा रहा था जो शोभा की अकेले की भी थीं और राघव के साथ की भी.
मैं राघव को उस कमरे में देख कर दरवाजे पर ही ठिठक कर रुक गई तो राघव बोला, ‘‘आओ, अंदर आओ प्रशोभा. खत्म हो गया तुम लोगों का संगीत कार्यक्रम?’’
भाईसाहब, जो मोबाइल की फोटोज देखने में मशगूल थे, मुझे सुंदर सी साड़ी पहने देख कर देखते ही रह गए, फिर बोल पड़े, ‘‘राघव, वास्तव में बहुत खुश हो क्योंकि प्रशोभा जितनी सुंदर प्रत्यक्ष दिखती है, उस से ज्यादा इन फोटोज में. वास्तव में तुम दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लगती है.’’
मुझे भी दीदी ने मिठाई का डब्बा पकड़ा दिया था जिसे हाथ में लिए हुए मैं राघव के पास रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई और मिठाई भाईसाहब की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप मिठाई खाइए. फिर मुझ से आप अपनी कसम तोड़ने का वादा करें तो मैं आप की भी अपने से बढि़या जोड़ी बनवा सकती हूं.’’
‘‘ऐसा नहीं हो सकता प्रशोभा, क्योंकि मुझे अपने जीवन में कंचन के बाद कोई अच्छा लगा तो वह तुम और तुम मेरे प्रिय भाई राघव की जीवनसंगिनी हो. तो अब मेरा जीवन ऐसे ही बीत जाएगा,’’ यह कह कर भाईसाहब फिर मोबाइल की फोटोज को देखने लगे.
मैं ने राघव की तरफ देख कर इशारे से उन फोटोज की सचाई बताने की इजाजत ली. फिर भाईसाहब से पूछा, ‘‘अच्छा भाईसाहब, एक बात बताइए, राघव के साथ जिस की फोटोज आप देख रहे हैं, यह आप को मिल जाए तो आप अपनी शादी न करने वाली हठ छोड़ देंगे?’’
‘‘राघव देख रहे हो प्रशोभा को. मजाक करने के लिए ये जेठ ही मिले थे.’’
‘‘भाईसाहब, प्रशोभा सच कह रही है, मेरे साथ इन फोटो में जो लड़की है, वह आप को मिल सकती है. बस, आप को अपनी हठ छोड़नी होगी.’’
‘‘तो क्या तुम मेरे लिए इस को छोड़ दोगे?’’
‘‘मैं अपनी प्यारी प्रशोभा को क्यों छोड़ दूंगा, यह मुझे ब्याही है और मेरी ही रहेगी.’’
‘‘तो फिर कैसे?’’ भाईसाहब परेशान थे और मुझे तथा राघव को मजा आ रहा था. मैं ने उन से कहा, ‘‘भाईसाहब, आप पहले मुझ से वादा तो करें. मैं आप की बात इस फोटो वाली लड़की से व्हाट्सऐप वीडियो कौल के जरिए अभी करा सकती हूं लेकिन उस से पहले आप को स्पष्ट रूप से मेरे और राघव के सामने कहना होगा कि हां, मैं इस लड़की से शादी करने को राजी हूं.’’
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‘‘ठीक है, मैं इस लड़की से शादी करने को राजी हूं.’’
‘‘पक्का?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां भई, बिलकुल पक्का.’’
‘‘तो भाईसाहब, सचाई यह है कि यह मेरी हमशक्ल बड़ी बहन है शोभा. राघव की साली. और सही मानो में मुझ से भी ज्यादा सुंदर है. यह पढ़ने में बहुत मेधावी रही है. बीए, बीएड कर के केंद्रीय विद्यालय में टीचर है.’’
‘‘भाईसाहब, प्रशोभा सच कह रही है. यह शोभा है, प्रशोभा की बड़ी बहन. बहुत ही सुशील और सुंदर. लेकिन मेरा रिश्ता होने से पहले जरा सी बात के कारण कई लड़कों ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया और इस ने भी आप की तरह कसम खा ली कि आजीवन शादी नहीं करेगी.’’
‘‘किस बात के कारण?’’
‘‘भाईसाहब, आप अगर 1-2 फोटो में गौर से उस के पैरों को देखेंगे तो एक जूते का तल्ला 2 इंच मोटा है क्योंकि उस का एक पैर दूसरे से 2 इंच छोटा है. साड़ी पहनती है तो छिप जाता है.’’
‘‘ओह, आश्चर्य…’’ भाईसाहब के मुंह से निकला. तभी मैं ने अपने मोबाइल में शोभा को व्हाट्सऐप की वीडियो कौल लगा दी और कमरे से बाहर आ कर पहले उस को सब बता कर जेठजी से बात करने को राजी कर लिया. फिर उन के पास आ कर मोबाइल पकड़ाती हुई बोली, ‘‘लीजिए भाईसाहब, आप शोभा से बात कर लीजिए.’’
भाईसाहब कुछ सैकंड तक तो मोबाइल में लाइव शोभा को देख कर उस के चेहरे से मेरे चेहरे का मिलान करते रहे, फिर कमरे से निकल कर 15 मिनट तक उस से बतियाते रहे.
जब कमरे में आए तो मोबाइल राघव को पकड़ा दिया और बोले, ‘‘वास्तव में प्रशोभा से कितनी शक्ल मिलतीजुलती है, मैं तो समझ रहा था तुम दोनों मजाक कर रहे हो.’’
राघव अपनी जगह पर बैठे हुए ही मोबाइल अपने हाथ में ले कर स्क्रीन पर शोभा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘‘शोभा, ये मेरे बड़े भाई हैं, कैसे लगे?’’
उधर से शोभा ने बिना बोले शायद राघव से कुछ इशारों में कहा होगा क्योंकि मैं ने गौर किया कि राघव ने हाथ हिला कर मुसकराते हुए मोबाइल डिस्कनैक्ट कर दिया.
तभी भाईसाहब हम दोनों को देखते हुए बोल पड़े, ‘‘मैं अपनी जिद छोड़ता हूं और माधव की शादी के बाद तुम दोनों के साथ अपनी कार से इलाहाबाद चलता हूं. अब मैं शोभा से कोर्ट मैरिज करूंगा. बरात लाने व ले जाने के चोंचले में नहीं पड़ूंगा. पिताजी को सीधे अपनी बहू ला कर दिखा दूंगा. तब तक तुम दोनों किसी को कुछ न बताना.’’
माधव की शादी बड़े धूमधाम से संपन्न हुई. दिव्या खुशमिजाज थी और उस के व्यवहार से मैं समझ गई थी कि वह माधव के साथ खुश रहेगी.
राघव की छुट्टियां भी खत्म हो रही थीं लेकिन जब भाईसाहब ने अपनी कार से हमारे साथ चलने का मन बनाया तो राघव ने फोन कर के 3 दिनों की छुट्टी बढ़ा ली.
मैं ने और राघव ने इस बीच शोभा से मोबाइल पर बात कर ली थी. वह भी शादी के लिए राजी थी. मेरे मम्मीपापा तो यह बात सुन कर ही खुश हो गए थे और भाई ने हमारे स्वागत की सारी व्यवस्थाएं कर रखी थीं.
जैसा जेठ भाईसाहब ने सोचा हुआ था, इलाहाबाद की कोर्ट में उन की मैरिज संपन्न हुई. एक होटल में हम सब ने डिनर किया. मेरे मम्मीपापा उसी रात वापस भैया के साथ सिराथू चले गए. मेरे 2 कमरों वाले नैनी कैमिकल फैक्ट्री के क्वार्टर के एक कमरे में जेठजी की सुहागरात मनी और अगले सवेरे भाईसाहब अपनी दुलहन को उसी साड़ी में हमारे पास से विदा करा, कार में बिठा कर कानपुर चले गए.
चलते समय मैं ने जेठजी को भाईसाहब न कह कर कहा, ‘‘जीजाजी, अब तो मेरे और आप के 2 पक्के रिश्ते हो गए. अब आप मेरे जेठ भी हुए और जीजाजी भी. आप इस में किस रिश्ते को ज्यादा पसंद करेंगे?’’ मैं ने चुहुल करते हुए पूछा.
‘‘तुम जिसे अच्छा समझो?’’ वे हंसते हुए बोले तो मैं ने भी खिलखिलाते हुए कहा, ‘‘आप मुझे जो भी पुकारें पर मैं तो आज और अभी से आप का नामकरण करती हूं, जेठ-जीजाजी.’’
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मैं ने यह कहा तो राघव, शोभा और भाईसाहब के साथ मैं भी हंस पड़ी. कार फैक्ट्री कैंपस से बाहर जा चुकी थी.
मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था. राघव से मेरी खुशी छिपी न थी. उसे मुझ पर गुमान भी हो रहा था और प्यार भी आ रहा था. आखिरकार मैं ने वह कर दिखाया था जिस के लिए सब ने हार मान ली थी.