Serial Story: दो बहनें (भाग-3)

‘‘तुम इतनी घबरा क्यों रही हो? तुम कांप रही थीं, इसलिए मैं ने तुम्हें पकड़ा था,’’ सिड बोला.

‘सिड, वह पहले ही तुम पर शक करती है, अब तो बात और भी बिगड़ जाएगी,’ वह बुदबुदाई, ‘क्या शीला कहीं से देख रही है?’

‘‘पार्टी कैंसिल करनी पड़ेगी, सिड. मेरा मन नहीं है,’’ प्रीति अब शीला की बात से डर रही थी. कहीं वह सचमुच न आ जाए. कहीं रहस्य खुल न जाए.

साल का आखिरी दिन था. शाम के 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी थी. पीछे मंद स्वर में म्यूजिक औन था. सिड किचन काउंटर के बगल में एक ऊंचे स्टूल पर बैठा मार्टीनी की छोटीछोटी चुस्कियां ले रहा था और पिछले 15 मिनटों से प्रीति की किचन में आगेपीछे चलने की कदमताल सुन रहा था. लेकिन उस की नजरें बाहर फाटक पर टिकी हुई थीं. प्रीति घड़ीघड़ी रुकती, आह भरती और उस के कंधे पर अपना सिर रख देती. सिड तब हलके से उस का सिर थपथपाता, दिलासा देता.

‘‘ओह, कितना अनप्लेजेंट लग रहा है,’’ वह कहती, ‘‘उसे हमारे मजे वाले दिन को खराब कर के क्या मिला? हाऊ सैल्फिश.’’

सिड की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है?

‘‘तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं, बेबी. ऊपर रखा है, बैडरूम में,’’ कह कर सिड ने उस का माथा चूम लिया.

प्रीति अपनी धुन में बोले जा रही थी, ‘‘फिर भी, मेरा 16वां जन्मदिन ही बैस्ट था. शुरू से अंत तक शीला का प्लान किया हुआ.’’

घड़ी ने 8 बजे का घंटा बजाया और उस ने सोचा, ‘मुझे नहीं लगता कि अब वह आएगी.’

‘‘चलो, किसी की नई साल की पार्टी में ही चलते हैं,’’ कह कर वह ऊपर कपड़े बदलने चली गई. कमरे में जब उसे ज्यादा ठंड महसूस हुई, उसे लगा कि सामने वाली खिड़की खुली है. सिड की लापरवाही पर सिर हिलाते हुए वह उसे बंद करने के लिए बढ़ी तो देखा कि खिड़की बंद थी. इधर उस के नथुने फड़फड़ाने लगे.

‘यह क्या? शैनल नंबर फाइव, तो यह था मेरा सरप्राइज?’

वह इसी विचार में डूबी हुई थी जब उस की नजर सामने रखी आरामकुरसी पर पड़ी. शीला उस में धंस के बैठी  सिगरेट फूंक रही थी और प्रीति को देख कर मुसकरा रही थी.

‘‘मैं ने सुना, तुम बता रही थीं सिड को अपने 16वें जन्मदिन के बारे में. तुम्हें याद रहा. दैट वाज स्वीट.’’

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प्रीति उसे फटी आंखों से देख रही थी, ‘‘मैं ने तुम्हें अंदर आते हुए नहीं देखा. तुम अंदर कब आईं?’’

‘‘काफी देर हो गई आए हुए. आंख भी लग गई थी. जगी तब जब तुम ने नौकरों को दफा करना शुरू किया.’’

सिगरेट का धुआं हवा में सांप की भांति उठ रहा था, ‘‘ओह यस, इट इज योर बर्थडे टुडे. तुम जियो हजारों साल साल के दिन हों पचास हजार.’’

‘‘यह तुम किस से बातें कर रही हो, डार्लिंग?’’ आवाज सुन कर सिड भी आ गया. शीला को देखते ही उस का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘तुम?’’

‘‘क्यों? चौंक गए.’’

सिड कुछ बुदबुदा रहा था, मगर आवाज गले में फंस सी गई थी.

शीला का चेहरा भी कुछ पीला सा हो गया था.

‘‘सिड, तुम ने मुझे मारना क्यों चाहा?’’ शीला बोली, ‘‘मैं ने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था.’’

‘‘सिड ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि मैं चुपचाप खड़े हो कर तुम्हारी यह बकवास सुन रही हूं. तुम को अपने सब से प्यारे पति से ऐसे बोलने दे रही हूं,’’ शीला पर नजर गड़ाते हुए प्रीति बोली.

‘‘और तुम कर भी क्या सकती हो?’’ फिर सिड को देखते हुए जोरदार आवाज में बोली, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी,’’ शीला उसी आरामकुरसी पर वैसे ही बैठी रही थी.

सिड अब नौर्मल हो गया था. वह प्रीति के कंधों को पकड़े खड़ा था.

‘‘नो बेबी, माई हाउस, माई रूल्स, माई वे. यहां बस मेरी चलती है. मुझे किसी बात का जवाब देने की जरूरत नहीं और तुम तो अब खुशीखुशी वापस जाओगी,’’ यह कह कर प्रीति ने पर्स से रिवाल्वर निकाल कर शीला पर तान दिया और कहा, ‘‘और मेरे पास तुम्हें वापस भेजने का बड़ा अच्छा रास्ता भी है.’’

सिड भौचक्का सा देख रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है. क्या बोल रही है?

वह घबरा गया और दो कदम पीछे हट गया. फिर बुदबुदाया, ‘शीला को मारने का प्लान मैं ने और प्रीति ने खुद बनाया था पर क्या किसी को पता चल गया? प्रीति बारबार शीलाशीला क्यों कर रही है. क्यों उस कुरसी की ओर नजरें गड़ाए हुए है.’

‘‘जल्दी खत्म करो, प्रीति. प्लीज,’’ सिड कह रहा था.

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’ अपनी घनी बरौनियों के पीछे से शीला उन दोनों को देख रही थी और धीमेधीमे मुसकरा रही थी, ‘‘तुम मुझे, अपनी बहन को मारोगी?’’ यह कह कर उस ने फिर अपनी सिगरेट का कश लिया. उस की सिगरेट की आदत काफी बढ़ गई थी. पहले वह सिर्फ स्टाइलिश लगने के लिए कभीकभार ही सिगरेट फूंकती थी. अब, एक सिगरेट खत्म होती नहीं थी कि दूसरी जल जाती थी.

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प्रीति ने अपनी उंगली रिवाल्वर के घोड़े पर घुमाई और अगले क्षण जोर से धमाका हुआ. शीला के मुंह से निकला हुआ आखिरी शब्द था, ‘‘बाय.’’

धूल और धुएं के बादलों में लिपटी हुई, वह चली गई. न कोई चीख निकली, न कोई पुकार, लेकिन प्रीति को लगा कि धमाके के बाद उस ने उस की खिंचती हुई आवाज यह कहते हुए सुनी, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’

धूल थम गई. धुआं खिड़की से बाहर चला गया. न जाने फिर लाश क्यों नहीं मिली?

प्रीति ने देखा कुरसी पर खून के निशान भी न थे. हां, सीट पर गोली फंसी थी. सिड जोरजोर से चीख रहा था, ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें प्रीति. प्रीति होश में आओ. प्रीति, यू स्वीट गर्ल. प्रीति, यू आर बिग बिच.’’

बड़ा अजीब है यह मियाबीवी का जोड़ा, कैसे तुनकमिजाज हो गए हैं ये. बातबात में लोगों को काटने को दौड़ते हैं. बेवजह बहस करते हैं. खरगोश की तरह अचानक चौंक जाते हैं, बौराए से घूमते हैं. दोस्त हों या दुश्मन, अब सब इन से कतराते हैं.

हर साल प्रीति की हालत बद से बदतर होती जा रही है. सोना भी कम हो गया है. एक और अजीब आदत है प्रीति की कि वह किसी को ढूंढ़ती रहती है. उस को लगता है कि उस के आसपास कोई बैठा है, आरामकुरसी में लेटे हुए या बारस्टूल पर बैठे हुए या किचन के काउंटर पर टिके हुए कोई औरत, ऐंठती, सिगरेट फूंकती, टांग हिलाती, देख रही है, मुसकरा रही है, किसी सवाल के जवाब का इंतजार कर रही है.

प्रीति का यह बदला रुख देख कर सिड भी परेशान है. वह भी आपा खोता सा दिख रहा है.

सिड शीला के नाम पर फिल्म बनाना चाहता था पर प्रीति और सिड दोनों ने ही उस प्रसिद्ध अभिनेत्री को भगा दिया था, चिल्लाचिल्ला कर. प्रीति चीखी थी, ‘‘शीला पर फिल्म उस के मरने के बाद बनेगी. अभी वह काम बाकी है.’’

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Serial Story: दो बहनें (भाग-2)

‘‘कितनी भली लग रही हो, मेरी जान,’’ ऐसा कह कर वह एक लंबी हंसी हंसी. फिर उस ने अपनी सिगरेट का कश लिया. इस बीच, उस ने अपनी नजर प्रीति के चेहरे से नहीं हटाई.

‘‘क्या हुआ माई स्वीटनैस,’’ अपनी खनकती आवाज में वह बोलती रही, ‘‘मुझे देख कर खुश नहीं हुई?’’

प्रीति शीला को विस्फारित नेत्रों से देख रही थी. उस का मुंह एकदम सूख गया था. एक शब्द भी निकालना मुश्किल हो गया था.

‘‘नहीं,’’ आखिर एक शब्द निकल ही आया, ‘‘हमें तो लगा था कि ऐक्सिडैंट.

शीला ने धुएं का छल्ला बनाते हुए कहा, ‘‘ऐक्सिडैंट? कैसा ऐक्सिडैंट? कोई ऐक्सिडैंट नहीं हुआ था. वह तो मुझे मारने की कोशिश की गई थी जो नाकामयाब रही. हूं न तुम्हारे सामने, माई डार्लिंग,’’ वह फिर हंस दी.

लेकिन जब प्रीति उस से गले मिलने उस की तरफ बढ़ी, तो उस ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया, ‘‘नहीं, वहीं रहो. तुम्हें क्या लगता है, मैं भूल गई हूं, कैसी एलर्जी हो जाती है तुम्हें, मेरी सिगरेट के धुएं से. लेकिन फिर भी,’’ मुंह से धुएं का बड़ा सा बादल निकालते हुए वह बोली, ‘‘फिर भी तुम्हारा हर आशिक चेन स्मोकर था. हाऊ आइरौनिक.’’ फिर वह जोरजोर से हंसने लगी और हंसतेहंसते उस ने अपनी सिगरेट बुझा दी.

प्रीति की नजरें शीला पर से अब जा कर हट पाई थीं. गरमियों की छुट्टियों में दोनों बहनें किसी नई जगह जाती थीं, शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि. इन की मम्मी को असल में हिलस्टेशन बहुत पसंद थे. जहां भी ये बहनें जातीं, हालात कुछ ऐसे बनते कि ये हमेशा अपने चारों तरफ अपने हमउम्र नौजवानों को पातीं. शीला से तो इन नौजवानों को डर लगता था. वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी. मगर प्रीति का हर गरमी में एक नया अफसाना हो ही जाता था.

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‘‘मुझे तुम्हारे सभी आशिक पसंद थे, लेकिन पिन्का सब से अच्छा था. याद है?’’

खयालों में खोई प्रीति मुसकरा रही थी.

अब भी उसे याद था वह दृश्य. ऊंचाई इतनी थी कि बादल जमीन पर आ गए थे. मोटरसाइकिलों पर सवार कई सारे नौजवान दूर से आतेआते, उन तक पहुंच कर आगे निकल गए थे. बस, एक रुक कर देर तक दोनों बहनों को घूरघूर कर देख रहा था. उस के घूरने में कोई छिछोरापन नहीं था. ‘ऐसी होती हैं दिल्ली की लड़कियां,’ वह यह सोच रहा था, बाद में उस ने खुद ही यह बात प्रीति को बताई थी. वह था पिन्का. उस गरमी की छुट्टियों में पूरा शिमला प्रीति ने उस की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ कर देखा.

प्रीति ने आखिर कह ही दिया, ‘‘हां, मुझे अपने सभी आशिक पसंद थे, सिर्फ आखिरी वाला कभी नहीं अच्छा लगा. लेकिन मजेदार बात यह है कि बस, एक वही स्मोक नहीं करता था. जस्ट नौट माई टाइप. काश, तुम ने उस से शादी नहीं की होती,’’ सूखते गले और होंठों को गीला करने की असफल कोशिश करने लगी वह.

शीला ने एक और सिगरेट जला ली थी और बड़े ध्यान से प्रीति को देख रही थी.

‘‘सिड में बहुत सी अच्छी क्वालिटीज हैं. तुम ने उसे ठीक से नहीं समझा,’’ प्रीति बोली.

गहरी सांस लेते हुए वह बोली, ‘‘शायद, तुम ठीक कह रही हो. लेकिन उस ने मेरी कार क्यों टैंपर की?’’

प्रीति का मुंह फक् पड़ गया. बड़ी मुश्किल से वह बस इतना ही कह पाई, ‘‘ऐसा मत कहो. यह सच नहीं है. सिड तुम्हें बहुत चाहता है.’’

‘‘मैं तुम्हें बहुत कंट्रोल करती हूं, यही कह कर वह तुम्हें ले गया था न? अब वह तुम्हें कंट्रोल करता है. मुझे लगता है तुम्हें शौक है किसी न किसी के कंट्रोल में रहने का. गड़बड़ तुम में है, प्रीति.’’

वह फिर जोर से हंसने लगी. प्रीति को फिक्र हो रही थी कि आसपास वाले कहीं शिकायत न करने लगें. लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा. सब या तो खा रहे थे या बस उसे ही देख रहे थे. शीला की तरफ किसी का ध्यान न था. उस को लगा कि उस की आवाज ही नहीं निकलेगी. बड़ी मुश्किल से वह हिम्मत जुटा पाई, ‘‘शीला, यह सच नहीं है कि सिड ने तुम्हारी कार के साथ टैंपर किया था.’’

‘‘सच?’’ कुरसी से उठते हुए शीला बोली, ‘‘देखो तो. यहां मैं बातों में उलझ गई, वहां मेरा इंतजार हो रहा है. पता नहीं वह वेटर मेरा दोसा ले कर क्यों नहीं आया. बैठा होगा कहीं, इधरउधर, अपने प्यारे नेपाल के खयालों में खोया हुआ. खैर, कोई बात नहीं. आज बिना खाने के ही काम चलाना पड़ेगा. तुम से मैं बाद में मिलूंगी.’’

‘‘रुको, शीला, तुम यों नहीं जा सकतीं.’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में आऊंगी. परसों है न? योर बर्थडे बैश.’’

प्रीति ने हौले से अपना सिर हिला दिया.

एक सुंदर हंसिनी की भांति इठलाती हुई शीला दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. प्रीति ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘सुनो, क्या तुम वाकई सोचती हो…मेरा मतलब है, सिड और तुम्हारी कार…तुम बिना बात के शक कर रही हो…सोचो, कोई तुम्हें क्यों मारना चाहेगा?’’

यह सुनते ही शीला अपनी हील की नोक पर घूम गई. उस ने सिगरेट का गहरा कश लिया और प्रीति की ओर देखते हुए उसे आंख मारी और फिर बोली, ‘‘कई वजहें हो सकती हैं, माई इनोसैंट सिस्टर. पैसा, यश, रौब वगैरह सब काम की चीजें हैं, चाहे वे अपनी मेहनत की हों. या किसी और की,’’ यह कहने के साथ ही उस ने प्रीति को एक फ्लाइंग किस दिया.

‘‘सच, अब और नहीं रुक सकती. काम है. तुम्हें मैं कल 10 बजे फोन करूं?’’ जवाब का इंतजार किए बिना शीला वहां से चली गई. वापस मुड़ने पर प्रीति ने देखा कि उस का खाना कब का आ कर ठंडा भी हो गया था.

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‘‘क्या बात है, मेम साब? खाना अच्छा नहीं लगा? छुआ तक नहीं. कुछ और लाऊं?’’ वेटर ने बड़े अदब से कहा.

जो लोग बैठे थे वे प्रीति को घूर रहे थे. उन की चहेती शीला की बड़ी बहन है. कुछकुछ तो शीला जैसी ही है पर शीला वाली बात कहां है उस में, हर आंख में यही कथन था. यही बात प्रीति को वर्षों से सालती रही है.

अगले दिन औफिस में प्रीति बड़ी कसमसाहट महसूस कर रही थी. वैसे उस का मोबाइल नंबर नया था इसलिए शीला के फोन के आने की संभावना थी ही नहीं. फिर भी, मन बेचैन था. अभी 10 बजे ही थे कि फोन की घंटी बज उठी. बहुत सहम कर उस ने फोन उठाया.

‘‘हैलो.’’

उधर से जानीपहचानी सी आवाज सुनाई दी. इस से पहले कि वह आगे कुछ कह पाती, पीछे से 2 हाथों ने उस के कंधे पकड़ लिए. जब तक वह यह देखने के लिए मुड़ी कि कौन है, फोन ही कट गया. वह कोई और नहीं, सिड था.

आगे पढ़ें- साल का आखिरी दिन था. शाम के 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने…

Serial Story: दो बहनें ( भाग-1)

उस का नाम प्रीति नहीं था. उस की मां ने उस का नाम प्रतिमा रखा था. मगर प्रीति नाम में कुछ अलग ही खनक थी. जब लोग उसे इस नाम से पुकारते थे तो उसे लगता था कि वह खूबसूरत है. इसीलिए उस ने अपना नाम प्रीति कर लिया था. वह साल के आखिरी दिन पैदा हुई थी, उसे इस में तारों की साजिश लगती थी. उस के पैदा होने का कोई न कोई खास मतलब जरूर है, ऐसा उसे लगता था.

उस के परिवार की असली हीरोइन शीला थी. उम्र में उस से 1 साल छोटी उस की बहन शीला और कोई नहीं ‘सिल्क शीला’ के नाम से मशहूर अभिनेत्री थी. देश का चमकता तारा थी वह. शान, शोहरत तो उस के पांव पर पड़े थे. ओह, क्या नहीं था उस में.

शीला हवा में उड़ती, आसमान को छूती, बादल जैसी थी और खुद प्रीति जमीन पर पड़ी हुई, उस बादल की स्लेटी परछाईं के नीचे दबी हुई, अपनी नीरस जिंदगी जी रही थी. यह थी उस की हकीकत और यह बात प्रीति को काफी सताती थी.

एक दिन प्रीति के लिए अचानक धूप निकल आई. शीला एक कार ऐक्सिडैंट में मारी गई. एक अजीब हादसा था. लाश घाटी में कहीं गिर गई थी. शीला के लाखों फैंस की दुनिया में मातम की लहर छा गई. मायूसी ने उन्हें उस की इकलौती जीवित बहन प्रीति की तरफ मोड़ दिया. प्रीति के चेहरे में उन्हें अपनी परमप्रिय शीला की झलक दिखाई दी. उस से वे शीला के बारे में जानना चाहते थे. कैसी थी वह, उस के बचपन के किस्से, उस की छोटीमोटी आदतें, उस की पसंदनापसंद, सब कुछ जानना चाहते थे वे.

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आने वाले दिनों और महीनों में प्रीति को लोगों ने अपने सिरआंखों पर बिठा लिया और वह उन के विस्मित ध्यान में लोटने लगी. दोनों बहनों का बचपन कैसे व्यतीत हुआ, इस पर एक नामी लेखक के साथ किताब लिखने का प्लान भी बनने लगा. और केक के ऊपर लगे हुए लाल चैरी के बारे में तो पति सिड हरदम याद दिलाता था. तमाम कानूनी कागजात पूरे हो जाने के बाद प्रीति को इंश्योरैंस कंपनी में नौकरी मिल गई थी और कंपनी की तरफ से जो पैकेज मिला था वह भी कम भारी नहीं था.

प्रीति अब संपूर्ण स्वतंत्रता के साथ एक मिड लेवल कौर्पोरेट औरत की जिंदगी व्यतीत कर रही थी. उस ने अपना कैरियर बड़े धीरज और मेहनत के साथ बनाया था. लेकिन अपनी मशहूर बहन के सामने उसे अपनी सब सफलताएं फीकी लगती थीं. अब उस की छोटी बहन इस दुनिया में नहीं रही. बस, उस की यादें ही बची थीं और उन यादों की हिफाजत करना उस के जिम्मे था. और क्या चाहिए था उसे. अवसर का पासा खुदबखुद गिर कर सही दाने दिखा रहा था. सही कहा गया है, दुनिया में देर है लेकिन अंधेर नहीं.

एक दिन प्रीति दफ्तर में बहुत व्यस्त थी. उसे अपनी असिस्टैंट लतिका से कोई जरूरी काम था इसलिए वह उसे ढूंढ़ रही थी. डैस्क पर उसे न पा कर उस ने अनुमान लगाया कि हो न हो वह प्रोग्राम मैनेजर रैंबो के औफिस में गई है. वह रैंबो के औफिस में गई. औफिस का दरवाजा अंदर से बंद था. परदे भी गिरे हुए थे.

‘तो यह बात है. कितना मजा आएगा उस की रोंदी सूरत देखने में जब वह उस रिपोर्ट को पढ़ेगी जो इस वक्त मैं अपने मन में लिख रही हूं. ‘आई जस्ट कांट वेट,’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए पैर घसीट कर वह वापस अपने औफिस में आ गई. यह काम बेशक उसे ध्यान से करना पड़ेगा, क्योंकि जहां औफिस की टीम का हर सदस्य उस के अंडर में था और वे सभी इस बात से डरते थे कि प्रीति मैडम उन की रिपोर्ट में क्या लिखेंगी, उस की अपनी रिपोर्ट की इंक रैंबो के पैन से निकलती थी.

‘थोड़ी ताजी हवा ले ली जाए,’ यह सोचते हुए वह औफिस से बाहर आ गई. उस के पास अकसर औफिस वालों के साथ शेयर करने के लिए कई सारी रसदार बातें हुआ करती थीं, लेकिन उस दिन वह अलग मूड में थी.

‘मैं अब काफी आगे बढ़ गई हूं. वे सब कैम्पेनशैम्पेन जो चलते रहते हैं अंदर, अब मुझे उन में शामिल होना शोभा नहीं देता,’ वह सोच रही थी.

उस के लिए पदोन्नति अकस्मात, अनचाहे ट्रांसफर की चिंताएं, ये सब पुरानी बातें हो गई थीं. औरों को बस काटना, उन का मजाक उड़ाना, बौस के कान में औरों की एकाएक पदावनति का कीड़ा डालना, या फिर मिल कर किसी एक के चक्कर दिलाने वाले पतन की कल्पना करना, ये सब बातें अब उसे थका देने वाली लगने लगी थीं.

आज बाहर निकल कर उस ने चैन की सांस ली थी. उसे बड़ा अच्छा लग रहा था. पास के एक कैफे में अर्ली लंच के लिए घुस गई. वेटर गोरखा था. उस के मुसकराते चेहरे की हर शिकन से गरमाहट रिस रही थी. और्डर लेने के बाद वह चला गया, बड़े हिचकिचाते हुए वह चारों ओर देखने लगी. लोगों की उस पर टिकी हुई नजरों को खोजना, यह उस का नया शौक बन गया था. वह सैलिब्रिटी जो बन गई थी शीला के कारण. लेकिन उस वक्त कैफे खाली था.

अचानक उसे पीछे से सरसराहट की आवाज आई, सिल्क साड़ी की सरसराहट, लेकिन उस ने उसे नजरअंदाज कर दिया. पर जब सिगरेट की हलकी, मिंट वाली बू उस तक पहुंची उस के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ पड़ी. एक जानीपहचानी सी महक उस के नथुनों ने महसूस की. उस ने एक गहरी सांस ली. इस में कोई शक नहीं था कि जो सिगरेट फूंकने वाली महिला उस के पीछे बैठी थी, उस ने वही फरफ्यूम लगाया था जो उस की बहन का फेवरिट हुआ करता था.

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रोज सुबह तैयार होने के बाद, शीला शनैल नंबर फाइव की 5 बूंदें ठीक उनउन जगहों पर लगाती थी जहांजहां वह अपने चहेतों से चुंबन चाहती थी. प्रीति खयालों में खो गई. तभी किसी औरत के पहले जोर से हंसने और फिर बोलने की आवाज आई, ‘‘चाहे मेरे हजार टुकड़े कर के चारों तरफ बिखेर दिए जाएं, लेकिन मेरी बहन मुझे इगनोर करे, ऐसा कदापि न हो.’’

प्रीति से न रहा गया. उस ने  तेजी से पलट कर देखा. सामने बैठी थी सर्वांग सुंदर, मूर्तिनुमा, हवा में उठी 2 तिरछी उंगलियों में सिगरेट दबाए, रेशमी साड़ी पहने मुसकराती उस की बहन शीला. बड़े अंदाज से उस ने अपना सिर एक तरफ टेढ़ा किया हुआ था. वह (शीला) उसे अजीब नजरों से घूर रही थी. प्रीति को लगा मानो 2 छुरियों ने उसे पकड़ रखा है.

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फीनिक्स: सोनाली को अपनी दोस्त के बारे में क्या पता चल गया था?

क्या वह सच था: प्यार गंवाने के बाद भी बहन की नफरत का शिकार क्यों हो रही थी श्रेया?

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-3)

‘‘उस दिन हौस्पिटल से निकलते वक्त मैं बेतहाशा रो रही थी. संयोग से उस दिन विपुल भी अपनी नियमित जांच के लिए अस्पताल आए हुए थे. मैं उस दिन पक्का जहर खा चुकी होती. मगर विपुल ने आप का वास्ता दे कर मुझ से सारी बात जान ली. मैं बहुत भयभीत थी कि मेरी वजह से पापा और आप की इज्जत धूल में मिल जाएगी. हार्टपेशैंट पापा को कुछ हो गया तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.

‘‘मगर विपुल ने दिलासा दिया कि वे मुझ से शादी कर बच्चे को अपना नाम देंगे. इसीलिए उन्होंने दूसरे शहर में अपना स्थानांतरण करा लिया ताकि मेरे शादी से पहले गर्भवती होने की बात कोई न जान सके.

‘‘मैं ने सोचा था कि सब ठीक हो जाने पर आप के पास लौट आऊंगी और सब सचसच बता दूंगी. मगर विपुल ने यह कह कर मुझे रोक दिया कि फिर आप शादी नहीं करोगी और विपुल की खातिर अकेली रह जाओगी. आप की शादी का समाचार मिला था हमें और हम आना भी चाहते थे, मगर मेरी तबीयत खराब रहने लगी थी. फिर आप का सामना करने की भी हिम्मत नहीं थी.

‘‘प्लीज दीदी, अब अपनी बहन को माफ कर देना. मैं ने आप की जिंदगी से उसे

दूर कर दिया, जो आप की जिंदगी का सब कुछ था. पर यकीन मानिए विपुल ने आज तक मुझे छुआ भी नहीं. वे आज भी केवल  आप के हैं.’’

‘‘आप की बहन.’’

पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी. अब तक दग्ध पड़ा

उस का मन विपुल के प्रेम की छांव महसूस कर शीतल हो गया था. पर बहन का दर्द आंखों से आंसुओं के सैलाब के रूप में उमड़ पड़ा था.

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श्रेया बदहवास सी गेट की तरफ भागी कि शायद विपुल बाहर रुका हो. पर विपुल जा चुका था. श्रेया अचानक फूटफूट कर रोने लगी. उस का पता भी तो नहीं था. कहां गया होगा वह? आ कर बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गई. पुरानी बातें सोचतीसोचती नींद के आगोश में चली गई. फिर जब होश आया तो देखा, ज्ञान औफिस से आ चुका था और स्वयं चाय बना रहा था. श्रेया को खुद में ग्लानि महसूस हुई कि उसे कैसे ज्ञान के आने का आभास भी नहीं हुआ. वह हड़बड़ा कर उठने लगी कि चक्कर आने लगा. फिर बिस्तर पर लेट गई.

तभी चाय ले कर ज्ञान आ गया. श्रेया के लिए भी चाय बनाई थी. चाय देते हुए बोला, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ श्रेया, हमें चलना है.’’

श्रेया ने उदास नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं कहीं नहीं जा सकती, प्लीज, आप

चले जाओ.’’

‘‘नहीं श्रेया, तुम्हें चलना होगा,’’ ज्ञान के स्वर में दबाव था.

श्रेया सोच रही थी कैसे मना करूं ज्ञान को और क्या कह कर? पता नहीं, वह क्या सोचेगा. फिर बिना मन के भी श्रेया को ज्ञान से साथ जाने को तैयार होना पड़ा. बड़े बेमन से कार में बैठ गई. कार सीधी एक अस्पताल के आगे जा कर रुकी. प्रश्नवाचक नजरों से श्रेया ने पति की ओर देखा.

‘‘जाओ श्रेया, अपनी बहन से मिल लो.’’

ज्ञान का गंभीर स्वर गूंजा, तो श्रेया चौंक उठी, ‘‘क्या सचमुच ज्ञान?’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ी.

ज्ञान ने सहारा देते हुए कहा, ‘‘कुछ सोचो या बोलो मत, बस जल्दी चलो. समय कम है, नेहा के पास.’’

श्रेया और ज्ञान लगभग दौड़ते हुए अंदर पहुंचे. नेहा बैड पर पड़ी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी. दरअसल, सालों जिस अपराधबोध का बोझ लिए वह जीती रही थी, वह दर्द आज कैंसर बन कर उस की जिंदगी पर हावी हो गया था.

श्रेया का स्वर गले में ही रह गया. पर उस के हाथों का स्पर्श पाते ही नेहा ने आंखें खोलीं. श्रेया को देखते ही, ‘‘दीदी’’, कह उस की आंखें बरस पड़ीं, ‘‘मुझे माफ कर दो दीदी… मैं आप की कुसूरवार हूं.’’

‘‘नहीं नेहा, तू कुछ न बोल. तेरा कोई दोष नहीं. जो होना था, वही हुआ. इस के लिए स्वयं को दोष क्यों दे रही है?

‘‘अब मैं अच्छी नहीं हो सकती दीदी, तुम्हारे लिए ही सांसें अटकी थीं. बस एकबार विपुल को माफ कर दो, ‘‘कहते उस ने विपुल का हाथ पकड़ उस के हाथों में दे दिया.

विपुल की आंखों से आंसू बहने लगे. श्रेया रुंधे गले से बोली, ‘‘नेहा, विपुल ने तो कोई गलती की ही नहीं. उस ने तो कुरबानी दी है. मैं माफी देने वाली कौन होती हूं?’’

श्रेया की बात सुन कर नेहा का चेहरा खिल उठा जैसे वह एक गहरे अपराधबोध से मुक्त हो गई हो. बहुत देर तक श्रेया नेहा का हाथ पकड़े सुबकती रही.

डाक्टरों ने जवाब दे दिया था. उस रात श्रेया नेहा के पास ही रुकना चाहती थी पर ज्ञान के कहने पर घर चलने को तैयार हो गई. रास्ते भर श्रेया सोचती रही. वर्षों बाद अपनी प्यारी बहन को गले लगा कर कितना सुकून मिला था उसे. फिर विपुल का निश्छल प्रेम महसूस कर उस का दिल फिर से विपुल की ओर झुकने लगा था. आज उसे किसी से कोई शिकवाशिकायत नहीं थी. सिर्फ प्यार था विपुल के लिए, नेहा के लिए.

तभी सहसा उस के मन से आवाज आई, ‘कहीं वह ज्ञान के साथ नाइनसाफी तो नहीं करने जा रही?’

‘‘ज्ञान तुम्हें कैसे पता चला कि नेहा यहां है?’’ श्रेया ने पूछा.

ज्ञान ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम रोतीरोती सो गई थीं, तो मैं घर में दाखिल हुआ था. मैं ने पत्र पढ़ा और सारी हकीकत समझ गया. मैं सोच रहा था कि नेहा से तुम्हें कैसे मिलाऊं? तभी

मुझे विपुल की मां का खयाल आया. जब पार्टी में वे तुम से मिली थीं, तो मैं ने वहां उन से फोन नंबर ले लिया था. आज आंटी को फोन कर के ही मुझे जानकारी मिली कि नेहा यहां ऐडमिट है. तभी मैं ने…’’

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श्रेया विपुल के कंधे पर सिर रखती हुई बोली, ‘‘आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’

‘‘मेरा नहीं, विपुल का शुक्रिया अदा करो श्रेया. यदि नेहा को कुछ हो जाता है तो मुझे लगता है तुम्हें विपुल को अपने घर या हमारे बगल के घर में रहने के लिए मना लेना चाहिए. ताकि तुम विपुल को बिलकुल अकेला होने से बचा सको. फिर नेहा के बच्चे को भी तुम्हारा साथ मिल जाएगा.’’

अपने पति के सुलझे विचार जान कर श्रेया का मन और भी हलका हो गया. वह निश्चिंत हो कर ज्ञान के कंधे पर सिर रख कर सो गई, क्योंकि अब वह विपुल के प्रति अपने कर्तव्य बिना किसी हिचकिचाहट निभा सकेगी. उस का पति उस के रिश्तों को पूरी अहमियत जो दे रहा था. शायद वह विपुल के साथ अपने रिश्ते को जितने बेहतर ढंग से नहीं समझ सकी, उस से कहीं अधिक ज्ञान ने उन दोनों को समझा.

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-2)

श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वह शाम जब नेहा थकीहारी और परेशान सी कालेज से घर लौटी थी और फिर सहसा श्रेया के गले लग कर रोने लगी थी. पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को बैठने का इशारा किया और फिर श्रेया से मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘श्रेया, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो ठीक है विपुल, मगर पहले नेहा को तो देख लूं… यह रो क्यों रही है?’’

‘‘मैं ही हूं, इस की वजह,’’ विपुल श्रेया के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मतलब?’’

श्रेया चौंक उठी.

‘‘मतलब यह कि नेहा मेरी वजह से रो रही है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ श्रेया कुछ समझ नहीं पाई.

‘‘मैं जानता हूं श्रेया, तुम्हारे लिए समझना कठिन होगा. मगर मैं मजबूर हूं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं नेहा से प्रेम करने लगा हूं और इसी से शादी करूंगा.’’

‘‘क्या? तुम नेहा से प्रेम करते हो? और मैं? मैं क्या थी? तुम्हारे मन बहलाव का जरीया? टाइमपास? नहीं विपुल मैं तुम्हारी इस बात पर कभी यकीन नहीं करूंगी.’’

फिर श्रेया ने तुरंत नेहा के पास जा कर पूछा, ‘‘विपुल क्या कह रहे हैं नेहा? यह सब क्या है? यह सब झूठ है न नेहा? तू सच बता नेहा…’’

‘‘दीदी, मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरी जिंदगी में क्या लिखा है. फिर मैं आप को क्या बताऊं?’’

‘‘सिर्फ इतना बता कि क्या तू और विपुल एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं? क्या विपुल ने जो कहा वह सच है?’’

झुकी नजरों से नेहा ने हां में सिर हिलाया तो श्रेया के पास कुछ कहने या सुनने को

नहीं रह गया. एक धक्का सा लगा उस के दिल को. वह बिलकुल अलग जा कर खड़ी हो गई, दिल की सारी हसरतें आंसुओं में बहने लगीं.

इस घटना के बाद विपुल में श्रेया से नजरें मिलाने का भी हौसला नहीं रहा. दबी जबान में जब उस ने श्रेया के पापा से नेहा के साथ शादी की इच्छा जताई तो पूरे घर में कुहराम मच गया. कहां तो श्रेया और विपुल की शादी की तैयारी थी और कहां मामला ही उलट गया. तूफान के बाद जैसे पूरे माहौल में शांति छा जाती वैसे ही घर में नीरवता पसर गई.

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उधर श्रेया का मन अभी भी इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. घर वालों के तैयार न होने पर विपुल नेहा को ले कर बहुत दूर निकल गया. उस ने जानबूझ कर ऐसी जगह अपनी पोस्टिंग करा ली जहां जानपहचान वाले आसपास न हों. उस ने अपना नया पता भी बहुत कम लोगों को दिया.

विपुल और नेहा से श्रेया और उस के घर वालों ने हर तरह के संबंध तोड़ लिए थे. विपुल ने भी लौट कर बात करने की कोशिश नहीं की और इस तरह श्रेया की यह प्रेम कहानी उस की बरबादी का सबब बन कर रह गई.

उसी दौरान श्रेया की जिंदगी में प्रेम का सागर बन कर ज्ञान आया. उस के साथ शादी घर वालों ने ही तय की. पर इस के लिए स्वयं को तैयार करना श्रेया के लिए बहुत कठिन था. खुद को काफी समझाना पड़ा उसे. ज्ञान को अपना तो लिया था उस ने, मगर प्यार के प्रति उस के मन में विपुल की वजह से एक तरह की उदासी व दर्द का साम्राज्य कायम था. वह लाख कोशिश करती, मगर दिल का सूनापन जाता नहीं. वर्षों बीत गए थे. अब तो नन्हा सौरभ ही श्रेया के जीवन का आधार बन गया था.

श्रेया सुबह उठी तो मन भारी था. पूरी रात पुरानी बातें याद करते जो गुजरी थी.

सोचा, ज्ञान औफिस और सौरभ स्कूल चला जाएगा, तो थोड़ी देर सो लेगी. काम करतेकरते 12 बज गए थे. वह थक कर लेटने गई ही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी. अनमने से दरवाजा खोला तो दंग रह गई.

सामने विपुल खड़ा था. परेशान, थका हुआ, बीमार सा. एकबारगी तो श्रेया उसे पहचान ही नहीं पाई. काले बालों पर अब सफेदी चढ़ चुकी थी. आंखों के नीचे गहरी कालिमा और चेहरे का रंग भी फक्क पड़ा चुका था.

श्रेया असहज होती हुई बोली, ‘‘तुम यहां? तुम वापस क्यों आए हो विपुल? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी.’’

‘‘ठीक है श्रेया, मैं दोबारा लौट कर नहीं आऊंगा. बस यह पत्र देने आया था,’’ कहतेकहते विपुल की आंखें डबडबा आईं. पत्र थमा कर वह तेज कदमों से लौट गया.

श्रेया काफी देर तक विक्षिप्त सी खड़ी रही. जिस शख्स को वह एक पल को भी याद करना पसंद नहीं करती थी, आज वही शख्स उस के सामने खड़ा था. यों तो वह अनजाने ही चाहती रही थी कि उस के जीवन में आंसू भरने वाला शख्स कभी खुश न रहे, मगर आज अपनी नजरों के आगे उस की आंखों में आंसू देख कर एक बार फिर वह तड़प क्यों रही है? 1-2 घंटे वह यों ही परेशान सी रही. फिर न चाहते हुए भी हिम्मत कर के उस ने वह पत्र खोला. उस के हाथ कांप रहे थे. बहन की हैंडराइटिंग देख मन किया कि पत्र को चूम ले. मगर फिर पुरानी कड़वाहट जेहन में ताजा हो गई. अनमने से उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया. लिखा था:

‘‘दीदी, मैं आप की क्षमा की हकदार तो नहीं हूं, फिर भी क्षमा मांग रही हूं. शायद जब तक यह पत्र आप के हाथों में पहुंचे तब तक मैं इस दुनिया से जा चुकी होऊं . इतने दिनों तक आप से बहुत राज छिपाए है हम ने, पर अब और नहीं. हकीकत बता कर चैन से अलविदा कह सकूंगी.’’

‘‘दीदी, मैं आप के विपुल से प्यार नहीं करती थी. वह तो सदा से आप के ही रहे. आप से बेहद प्यार करते हैं. तभी आप की प्रिय बहन की जिंदगी बचाने के लिए उन्होंने यह कुरबानी दी, यानी मुझ से शादी की.

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‘‘दीदी, किसी लड़के ने धोखे से मेरा इस्तेमाल किया. उस से धोखा खा कर मैं पूरी तरह टूट गई थी. फिर भी हौसला रखा और सोचा कि प्रयास करूंगी, वह शादी के लिए मान जाए. इस से पहले ही वह इस दुनिया से रुखसत हो गया. 2-3 माह बाद जब मुझे अपने अंदर हलचल महसूस हुईर् तो मैं सकते में आ गई. मेरे पेट में उस धोखेबाज का अंश था. डाक्टर ने जांच कर बताया कि अब गर्भपात कराना जिंदगी पर भारी पड़ सकता है.

आगे पढ़ें- पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की…

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-1)

सफाई करते सहसा ही श्रेया के हाथ विपुल की दी वही चमचमाती रिंग आ गई जिसे उस ने वर्षों पूर्व किसी डब्बे में बंद कर एक कोने में पटक दिया था. वह विपुल को बुरे सपने की तरह भुला देना चाहती थी. मगर ऐसा कहां हो पाया. मन के किसी कोने में आज भी उस की यादों का कारवां ठहरा सा था. आज भी एक कसक रहरह कर उसे तड़पाती कि जिसे सब से ज्यादा चाहा था वही उस के सब से बड़े दुख की वजह बन गया.

कैसे भूल सकती है श्रेया अपने 27वें जन्मदिन से एक दिन पहले की उस शाम को जब विपुल के साथसाथ उस ने अपनी बहन को भी सदा के लिए खो दिया था.

वह बहन, जिस के लिए श्रेया हर मोड़ पर खड़ी रही थी, उसी ने विपुल को छीन लिया उस से. मां के गुजरने के बाद अपनी बच्ची की तरह खयाल रखा था उस ने छोटी बहन नेहा का. विपुल से भी तो अकसर जिक्र करती थी वह कि नेहा उस की बहन से कहीं ज्यादा उस की संतान है. बहुत प्यार करती है उस से. तकलीफ में नहीं देख सकती उसे. पर कब सोचा था उस ने कि उसी बहन को जरीया बना कर विपुल उसे ऐसी तकलीफ देगा कि जिंदगी में संभलना तक मुश्किल हो जाएगा.

एक अजीब से कड़वाहट श्रेया के मन में भर गई. हमेशा ऐसा ही होता है. विपुल और नेहा को याद करते ही उस के जेहन में पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं.

‘‘श्रेया… श्रेया… कहां हो तुम?’’

पीछे से आती ज्ञान की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ दी. वह वर्तमान में लौट आई. वर्तमान जहां उस का पति ज्ञान और बेटा सौरभ बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘तुम भूल गईं श्रेया कि आज हमें नमन के यहां जाना है,’’ ज्ञान ने कहा.

‘‘अरे हां, मुझे याद नहीं रहा. ठीक है मैं अभी तैयार हो कर आती हूं,’’ कह श्रेया कमरे में तैयार होने चली आई. फिर तैयार होते हुए खुद को कोसने लगी कि आज फिर क्यों उस ने पुरानी यादों के साए को खुद पर हावी होने दिया? क्यों नहीं वह विपुल को पूरी तरह भूल पाती है? वह विपुल, जिस ने उस के जज्बातों की परवाह नहीं की. उस की बहन को शिकार बना कर चलता बना. फिर दोबारा देखा भी नहीं. वह तो ज्ञान था, जिस की वजह से वह स्वयं को संभाल सकी.

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श्रेया जब भी विपुल की बेवफाई याद करती बरबस ही उस के दिल में ज्ञान के लिए प्रेम उमड़ पड़ता. आज भी वही हुआ. उस ने ज्ञान की पसंद की हलकी नीली साड़ी पहनी. फिर उसी रंग की चूडि़यां, फुटवियर वगैरह पहन कर जल्दी से तैयार हो गई.

ज्ञान ने देखा तो उस के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान खेल गई. तीनों बहुत दिनों बाद एकसाथ बाहर जा रहे थे. रास्ते भर सौरभ की शैतानियां और ज्ञान की मजेदार बातों ने श्रेया के मन से पुरानी यादों की कड़वाहट दूर कर दी. नमनजी के बेटे की सगाई थी. उस जश्न के माहौल में श्रेया पूरी तरह रंग गई. उस ने ज्ञान के साथ जम कर डांस भी किया.

तभी पीछे से किसी महिला ने श्रेया के कंधे पर हाथ रखा. वह पलटी तो सामने खड़ी उम्रदराज महिला पर नजर पड़ते ही श्रेया के चेहरे का रंग बदल गया. वह हैरान नजरों से उस महिला की तरफ देखती रह गई.

वह महिला कोई और नहीं, विपुल की मां थीं. पहले की ही तरह उन की आंखों से वात्सल्य फूट रहा था. उन्हें सामने पा कर सहसा श्रेया से कुछ कहते न बना. फिर अचानक वर्षों पुराना दबा गुस्सा लावा बन कर आंखों से फूट पड़ा. श्रेया की बड़ीबड़ी आंखें आंसुओं से भर गईं. वह स्वयं को रोक नहीं सकी और विपुल की मां के सीने से लग कर फफकफफक कर रोने लगी.

पहली दफा किसी के आगे खुल कर रो रही थी. मां के स्नेह से भरे हाथ हौलेहौले उस के कंधों को सहलाने लगे थे मानो वे उस का सारा दर्द समझ रही हों. आखिर श्रेया ने ही तो उन से दूरी बनाई थी. सिर्फ उन से ही नहीं, विपुल से जुड़े हर शख्स, हर वस्तु और हर याद से. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे विपुल की याद भी दिलाए. मगर आज जैसे वह उस याद में पूरी तरह डूबी जा रही थी.

सहसा जैसे श्रेया को होश आया. यह क्या कर रही है वह? नहीं. वह किसी के आगे कमजोर नहीं पड़ सकती… पुरानी यादों से दोबारा नहीं जुड़ सकती.

फिर एक झटके से वह अलग खड़ी हो गई. सामने ज्ञान खड़ा उसे ही देख रहा था. आंसू छिपाती श्रेया तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई. ज्ञान विपुल की मां से बातें करने लगा.

वापस घर लौटते वक्त श्रेया रास्ते भर न चाहते हुए भी विपुल के बारे में ही सोचती रही. उस का दिल अंदर ही अंदर तड़प रहा था. जिस इनसान के लिए वह दुनिया छोड़ने को तैयार थी, उसी को जिंदगी से निकाल कर जी रही थी वह. जब दिल में जज्बा ही न रहे तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कोई इनसान जिंदगी में है या नहीं.

रात भर श्रेया चाह कर भी उन पुरानी यादों से स्वयं को आजाद नहीं कर पाई. पुराने लमहे उस की आंखों के आगे से गुजरते रहे. कैसे विपुल और वह एकदूसरे का हाथ थामे पूरी दुनिया की सैर करते, भविष्य के सुनहरे सपने. देखते, विपुल मितभाषी और संकोची प्रवृत्ति का इनसान था.

आजतक श्रेया समझ नहीं पाई कि उस ने नेहा के साथ कब इतनी नजदीकियां बढ़ा लीं कि वह उस की जिंदगी बन गई और श्रेया को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका.

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श्रेया को तो विपुल पर पूरापूरा भरोसा था. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि कभी वह उस के साथ कुछ गलत करेगा या फिर उस की दुलारी बहन नेहा ही ऐसा दिल तोड़ने वाला कदम उठाएगी. तब नेहा की ग्रैजुएशन की परीक्षा थी और श्रेया ने ही विपुल से कहा था कि नेहा को पढ़ा दिया करें. पर उसे कहां पता था कि वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.

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नया अध्याय: क्या धोखेबाज पति को भूल पाई प्राची?

Serial Story: नया अध्याय (भाग-1)

लेखिका- सुधा थपलियाल

एयरोप्लेन से बाहर आते ही बेंगलुरु की ठंडी हवा ने जैसे ही प्राची के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. पीहू को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए उसे अपने पास खींच लिया.

“मम्मी, मौसी आएंगी न, हमें पिकअप करने?” उत्सुकता से 7 साल की पीहू ने पूछा.

“नहीं, हम औफिस के गैस्टहाउस जाएंगे.” यह सुनते ही पीहू का चेहरा लटक गया.

प्राची ने पीहू को एक बैग पकड़ाया और ट्रौली लेने चली गई. दोनों मांबेटी घूमती पेटी पर अपने सामान का इंतजार करने लगीं. प्राची का बहुत बार आना होता रहा है बेंगलुरु में, कभी औफिस के काम से, तो कभी दीदी के पास. लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. अपना लैपटौप ट्राली में रख प्राची ने पेटी से सामान उठा कर रखा. एयरपोर्ट से बाहर औफिस की कार प्राची का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में दोनों गैस्टहाउस पहुंच गए. प्राची ने अपने लिए कौफी और पीहू के लिए जूस, सैंडविच और्डर किया कमरे में ही. कौफी पीतेपीते प्राची ने एक नजर पीहू पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, देखा, दीदी का फोन था.

“कहां है तू, तेरे जीजाजी तुझे लेने एयरपोर्ट गए थे. तेरा मोबाइल औफ आ रहा था,” प्राची की दीदी चिंतित स्वर में कह रही थी.

“दीदी, कहीं जाने का मन नहीं था,” धीमे स्वर में प्राची बोली.

“मैं और तेरे जीजाजी आ रहे हैं तुझे लेने.”

“प्लीज, आज नहीं. मैं कल आऊंगी,” यह कह प्राची ने फोन बंद कर दिया.

नहाने के बाद प्राची थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. पीहू टीवी देखने लगी और प्राची लैपटौप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी प्राची कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी. कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा उस के साथ चिपका रहा. आज यह टैग उसे खोखला सा प्रतीत हो रहा था. छोटी सी उम्र में कितनाकुछ उस ने हासिल किया. एक अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग की डिग्री. एमबीए कालेज की टौपर. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन. पर क्या ये सब एक सुखी जीवन की गारंटी दे सकते हैं?

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लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर देखा, पीहू टीवी देखतेदेखते सोफे पर ही सो गई थी. उस का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. लैपटौप बंद कर, हलकीफुलकी पीहू को उठा कर बिस्तर पर ले आई. उस का सिर अपनी गोदी में रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.

क्या दोष था इस बच्चे का? कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करो, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए.

‘प्राची, पीहू, दरवाजा खोलो,’ मनीष रात के 9 बजे दरवाजा जोरजोर से पीट रहा था.

‘मम्मी, खोला न, देखो, पापा आए हैं,’ पापा से मिलने को बेताब, 3 साल की पीहू मम्मी की बांहों में कसमताते हुए कह रही थी.

प्राची कठोर बनी, पीहू को बांहों में भींच कर, बैडरूम से मनीष को दरवाजा पीटते सुनती रही.

‘देख लूंगा,’ बगल के फ्लैट से जब किसी ने टोका, तो मनीष धमकाते हुए चला गया.

‘कल मनीष फिर आया था रात को, काफी ज्यादा पिए हुए लग रहा था,’ लंच के समय प्राची ने अपनी सहकर्ता सहेली स्नेहा से कहा.

‘फिर से, उस की हिम्मत कैसे हुई?’ दांत भींचती हुई स्नेहा बोली, ‘पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’

‘मुझे बारबार तमाशा नहीं करना.’

‘तमाशा तो उस ने बना दिया तुम्हारी जिंदगी का,’ गुस्से से स्नेहा बोली.

‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,’ परेशान सी प्राची सिर पकड़ते हुए बोली.

बहुत देर तक प्राची सिर पकड़ कर बैठी रही. पहले तो स्नेहा उसे चुपचाप देखती रही, फिर अपनी जगह से उठी और एक मूक आश्वासन देती उस की पीठ सहलाने लगी. 3 भाईबहनों में प्राची सब से छोटी थी. शुरू से ही मेधावी रही प्राची पर सभी को फ़ख्र था. उस की उपलब्धियां पूरे परिवार को गौरवांवित कर रही थीं. बड़ी बहन का विवाह भी अच्छी जगह हो गया था. पढ़ाई में साधारण भाई ने बहुत हाथपांव मारे. कहीं ढंग की नौकरी ना मिलने पर, पिता ने उसे एक व्यवसाय में लगा दिया. उसे भी वह ठीक से चला नहीं पा रहा था.

जब बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर मनीष का रिश्ता प्राची के लिए आया तो मातापिता की खुशी का ठिकाना न रहा. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी मनीष से प्राची प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई. विवाह के बाद दोनों हैदराबाद आ गए. अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद दोनों बहुत खुश थे. 2 साल बाद पीहू के आने से जीवन और गुलजार हो गया था. बस, प्राची को यह ही दुख रहता कि पापा एक बार भी उस के घर आए बिना दुनिया से चले गए.

प्राची की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथसाथ बढ़ती जा रही थी. कई बार दूसरे शहर ही नहीं, विदेश भी जाना पड़ता था. पीहू भी नैनी अनिता के भरोसे ही पल रही थी. कई बार पीहू को देख कर उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन घर और गाड़ी के लोन उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर मनीष का अपना नर्सिंग होम खोलने का सपना. मां भाई के परिवार के साथ उलझी हुई रहती थी. सासससुरजी भी अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाते थे.

उस दिन रात के एक बजने वाले थे, मनीष घर नहीं पहुंचा. फोन भी नहीं उठा रहा था जबकि रिंग जा रही थी. चिंतित, परेशान प्राची इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. रात के 2 बजे मनीष की गाड़ी की आवाज सुन प्राची ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘कहां थे?’

‘एक इमरजैंसी केस आ गया था,’ कह कर मनीष बाथरूम चला गया.

फिर तो इमरजैंसी केस का सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ. प्राची को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और मनीष पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. आखिर, एक दिन प्राची ने निर्णय लिया कि वह देखने जाएगी कि कौन से इमरजैंसी केस आते हैं हर दूसरे दिन. उस रात प्राची ने अनिता को घर पर रोक लिया और चली गई मनीष को देखने नर्सिंग होम रात के 11 बजे. मनीष का चैंबर बंद था.

रिसैप्शन पर बैठी लड़की से मनीष के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘मैम, डाक्टर साहब 7 बजे चले गए थे.’

‘7 बजे, तुम्हारी डूयटी कब से लगी रात की?’ प्राची का मन शंका से भर गया.

‘मैडम, 3 हफ्ते हो गए. डाक्टर साहब शायद…’ बोलतेबोलते वह रुक गई.

‘बोलो,’ धड़कनों को काबू करते हुए प्राची बोली.

‘मैम, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, रीना नर्स से चक्कर चल रहा है,’ धीरे से रिसैप्शनिस्ट ने कहा.

‘क्या?’ प्राची कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या तुम मुझे उस का पता दे सकती हो?’

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‘मैम,’ घबराती हुई वह बोली.

‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ प्राची के आश्वासन पर उस ने एक पेपर पर रीना का पता लिख कर दे दिया.

रात के 12 बजे अकेले कैब में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब रीना के घर के पास पहुंच गई, पता ही न चला. मनीष की कार सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी. विक्षिप्त सी वह तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.

एक बड़ी उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘आप,’ आंखें मलती हुई वह महिला बोली.

‘मैं, उस आदमी की पत्नी हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई प्राची बोली.

‘यहां तो कोई नहीं है,’ वह औरत ढीठता से बोली.

‘यह बैग किस का है?’ सोफे पर मनीष के बैग की ओर इशारा करती प्राची ने तल्खी से पूछा.

‘मुझे नहीं पता,’ वह औरत अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.

‘झूठ बोलती हो?’ प्राची चिल्लाती हुई बोली.

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