Raksha bandhan Special: यूं बनाएं पनीर तवा मसाला

पनीर तो सभी को खाना पसंद होता है चाहे वह जिस तरह भी खाई गई हो. पनीर से कई तरह के पकवान और मिठाई बनाई जाती है जिसे हम बड़े चाव से खाते हैं, लेकिन आज हम आपको पनीर की बनी डिश के बारे में बता रहें है जो खाने में बहुत टेस्टी और हेल्दी है.

सामग्री

1. 300 ग्राम छोटे टुकडों में कटा हुआ पनीर

2. चार टमाटर का पेस्ट

3. एक बारीक काटा शिमला मिर्च

4. पांच चम्मच दही

5. एक बारीक कटा प्याज

6. तीन चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट

7. एक चम्मच हल्दी पाउडर

8. दो चम्मच लाल मिर्च पाउडर

9. एक चम्मच जीरा

10. एक चम्मच गरम मसाला

11. एक चम्मच चाट मसाला

12. आधा चम्मच मेथी

13. स्वादानुसार नमक

14. अवश्यकतानुसार तेल

15. हरा धनिया पत्ता

ऐसे बनाएं पनीर तवा मसाला

– सबसे पहलें एक बड़ा बाउल लें और उसमें पनीर, दही, थोड़ा-थोड़ा नमक, गरम मसाला, मेथी, हल्दी डाल कर अच्छी तरह मिलाए 30 मिनट के लिए रख दें, फिर एक तवा में थोड़ा सा तेल डाल कर इस मिश्रण को ब्राउन होने तक तलें. इसके बाद इसे एक बाउल में निकाल लें.

– अब एक कढ़ाई में तेल डालकर गर्म करें और जब गर्म हो जाए तो थोड़ा जीरा,प्याज और हरी मिर्च डालें. इसके बाद लहसुन-अदरक पेस्ट, शिमला मिर्च, थोड़ा नमक, थोड़ी हल्दी डाल कर 1 मिनट तक फ्राई करें.

– इसके बाद टमाटर का पेस्ट आधा कप पानी में मिलाकर इसमें डालें और तीन से चार मिनट पकाएं.

– इसके बाद इसमें थोड़ी-थोड़ी मात्रा में  लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला पाउडर, चाट मसाला पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिलाए फिर पनीर को डाले और थोड़ा पकाने के बाद गैस बंद कर दें. अब इसे सर्विंग बाउल में निकालकर हरा धनिया डालकर गरमा-गरम सर्व करें.

’ महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है जरूरी’- स्मिता मिश्रा, शिक्षाविद्

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले देवरिया की रहने वाली स्मिता मिश्रा के पिता पेशे से टीचर थे. वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढलिख कर आगे बढे. स्मिता बचपन से ही बेहद समझदार थी. उन्हें बचपन से ही ज़रूरतमंद और बेसहारा लोगों की सहायता करना अच्छा लगता है. बचपन में जो भी पैसा मिलता था उसे गुल्लक में रखती थी और दीपावली के त्यौहार मॆ इकट्ठा किए गए पैसों को गरीब बच्चों में बांट देती थी. 12 वीं की पढाई के बाद स्मिता मिश्रा ने वाराणसी और इलाहाबाद से आगे की पढाई पूरी की. वह अपने पिता की तरह ही टीचर बनकर समाज की सेवा करना चाहती थी. अपनी शिक्षा पूर्ण कर प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उच्च शिक्षा में अर्थशास्त्र विषय मे असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित होकर वर्तमान में आजमगढ जिले के श्री अग्रसेन महिला महाविद्यालय में लडकियों को पढाने का काम कर रही है. लडकियों की शिक्षा और समाज की हालत पर पेश  है स्मिता मिश्रा के साथ एक खास बातचीत:-

सवाल- आमतौर पर लडकियां अर्थशास्त्र जैसे विषय में पढाई कम ही करती है. आपको यह शौक़ कैसे हुआ ?

0 – मेरे पिता टीचर से रिटायर हुये है. उनका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव रहा है. उनका मानना था कि लडकियों को अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ ही साथ आत्मनिर्भर होना चाहिये. लडकियां जब खुद आत्मनिर्भर होगी तो उनको कोई आगे बढने से रोक नहीं पायेगा. वह अपने पसंद के फैसले खुद कर सकती है।मेरा भी यही मानना है.हर लड़की को शिक्षित होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना बहुत आवश्यक है.

सवाल- लड़कियों को अर्थशास्त्र विषय पढ़ने के क्या फ़ायदे हैं ?

0 – लड़कियाँ बीए (ऑनर्स) इकनॉमिक्स के बाद इसी विषय में मास्टर्स भी करती हैं तो बैंकिंग, फाइनैंशल और इन्वेस्टमेंट सेक्टर, इंश्योरेंस, टीचिंग, मैनेजमेंट, आदि क्षेत्रों में जॉब के अवसर हो सकते हैं। इसके अलावा

घर को चलाने का सबसे बडा जिम्मा महिलाओं पर ही होता है. बैंक के काम हो या होम लोन या और भी जरूरी काम. जब फाइनेंस में महिलाओं की रूचि होगी तो वह बेहतर तरह से अपनी जिम्मेदारी संभाल सकती है. इससे पति की भी मदद हो सकेगी. गणित विषय में रूचि कम होने के कारण महिलाओं को फाइनेंस और अर्थशास्त्र जैसे विषय पसंद नहीं आते है. पर महिलाओं को इनमें रूचि लेनी चाहिये।

सवाल- गांव और पिछडे जिलों में लडकियों की शिक्षा की क्या स्थिति है ?

0 – पहले के मुकाबले आज लडकियों की शिक्षा काफी बेहतर हालत में है.लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में हायर एजूकेशन में लडकियां पीछे है. इसके लिये सरकार बेहतर प्रयास कर रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार में लडकियों की पढाई को प्रोत्साहित करने के लिये अनेकों योजनाएँ चलाई हैं.लडकियों को टैबलेट, स्मार्टफोन और लैपटाप देने का काम किया है ताकि उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई करने में मदद मिल सके. उन्हें कॉलेज आने में किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिये कानून व्यवस्था का मजबूत किया गया है. इसका प्रभाव दिख रहा है. स्कूल कालेज में लडकियों की तादाद बढती दिखने लगी है.

सवाल- सोशल मीडिया का लडकियों पर क्या प्रभाव पड रहा है ?

0 – सोशल मीडिया ने लडकियो को आजादी दी है. इसके जरीये वह तमाम जानकारियां घर बैठे हासिल कर सकती है. जो उनके कैरियर को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है. साथ ही वह अपने हुनर को लोगो तक पहुँचा सकती है

जिन लडकियां की रूचि गाना और डांस में होती है उनको भी सोशल मीडिया से मदद मिलती है. जरूरी यह है कि लडकियां इसका सही तरह से प्रयोग करें.

सवाल- – आपकी हौबीज क्या है ?

0 – मुझे गाडर्निग, फ़ोटोग्राफ़ी , गजल सुनने और किताबे पढने का शौक है. मैं लडकियों से कहती हॅू कि वह अपने कोर्स की किताबों के साथ ही साथ समाचारपत्र और पत्रिकाएं ज़रूर पढे.बाग़वानी करें.

सवाल- आप कालेज में पढाती है, दो छोटे बच्चे है एक साथ घर परिवार सब कैसे मैनेज कर लेती है. ?

0 – पौजिटिव सोच और टाइम मैनेजमेंट के जरीये ही यह सब मैनेज हो रहा है. मेरा मानना है कि महिलाएँ अत्यंत क्षमतावान एवं ऊर्जावान होती हैं जिसका सदुपयोग करके वह कठिन से कठिन राह को भी सरल बना सकतीं हैं.

छितराया प्रतिबिंब- भाग 2: क्या हुआ था मलय के साथ

रात के 11 बज रहे होते, मैं मां की इन गपोरी सहेलियों के बीच कहीं अकेला पड़ा मां के इंतजार में थका सा, ऊबा सा सो गया होता. तब अचानक किसी के झ्ंिझोड़ने से मेरी नींद खुलती तो उन्हीं में से किसी एक सहेली को कहते सुनता, ‘जाओजाओ, मां दरवाजे पर है.’ मैं गिरतापड़ता मां का आंचल पकड़ता. साथ चल देता, नींद से बोझिल आंखों को मसलते. घर पहुंच कर मेरे न खाने और उन की खिलाने की जिद के बीच कब मैं नींद की गुमनामी में ढुलक जाता, मुझे पता न चलता. नींद अचानक खुलती कुछ शोरशराबे से.

भोर के 3 बज रहे होते, मेरी मां पिताजी पर चीखतीं, अपना सिर पीटतीं और पिताजी चुपचाप अपना बिस्तर ले कर बाहर वाले कमरे में चले जाते. मां बड़बड़ाती, रोती मेरे पास सोई मेरी नींद के उचट जाने की फिक्र किए बिना अपनी नींद खराब करती रहतीं.

मैं जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, दोस्तों की एक अलग दुनिया गढ़ रहा था. विद्रोह का बीज मन के कोने में पेड़ बन रहा था. हर छोटीबड़ी बातों के बीच अहं का टकराव उन के हर पल झगड़े का मुख्य कारण था. धीरेधीरे सारी बूआओं की शादी के बाद मेरी दादी भी अपने दूसरे बेटे के पास रहने चली गईं. मां का अकेलापन हाहाकार बन कर प्रतिपल अहंतुष्टि का रूप लेता गया. पिताजी भी पुरुष अहं को इतना पस्त होते देख गुस्सैल और जिद्दी होते गए. तीनों भाइयों की दुनिया में उन का घर यथावत था, लेकिन मुझे हर पल अपना घर ग्लेशियर सा पिघलता नजर आता था.

मैं एक ऐसा प्यारभरा कोना चाहता था जहां मैं निश्ंिचत हो कर सुख की नींद ले सकूं, अपनी बातें अपनों के साथ साझा करने का समय पा सकूं. मैं खो रहा था विद्रोह के बीहड़ में.
मैं इस वक्त 10वीं की परीक्षा देने वाला था और अब जल्दी ही इस माहौल से मुक्त होना चाहता था. सभी बड़े भाई अपनीअपनी पढ़ाई के साथ दूसरे शहरों में चले गए थे. मैं ने भी होस्टल में रहने की ठानी. उन दोनों की जिद भले ही पत्थर की लकीर थी लेकिन मेरी जिद के आगे बेबस हो ही गए वे. मेरे मन की करने की यह पहली शुरुआत थी जिस ने अचानक मेरे विद्रोही मन को काफी सुकून दिया. मुझे यह एहसास हुआ कि मैं इसी तरह अपने को खुश करने की कोशिश कर सकता हूं.

बस, जिस मां को मैं इतना चाहता था, जिसे अपनी पलकों में बिठाए रखना चाहता था, जिस की गोद में हर पल दुबक कर उन की लटों से खेलना चाहता था, उन की नासमझी की वजह से दिल पर पत्थर रख कर मारे गुस्से और नफरत के मैं उन से दूर भाग आया.

मेरी जिंदगी में अकेलेपन का सफर काफी लंबा हो गया था. होस्टल की पढ़ाई के बीच दोस्तों के साथ मनमानी मौज अकेलेपन को भुलाने की या उस दर्द को फटेचिथड़ों में लपेट कर दबा देने की नाकाम कोशिश भले ही रही लेकिन मेरा नया मैं, हर वक्त मेरे पुरातन मैं से नजरें चुराए ही रहना पसंद करता था.

जीवनयुद्ध में अब कामयाब होने की बारी थी क्योंकि मैं अकेले जीतेजीते इतना परिपक्व हो गया था कि समझ सकता था कि इस के बिना मैं डूब जाऊंगा. मैं अपनेआप को खुश रखने वाली स्थायी चीजों की तलाश में था. मैं ने अपनी पढ़ाई पूरी की और पिताजी की कृपा से मुक्त होने को एक अदद नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाएं देने लगा. ऐसा नहीं था कि इस उम्र में लड़कियों ने मेरी जिंदगी में आने की कोशिश न की हो. मैं रूप की दृष्टि से अपनी मां पर गया था, इसलिए भी दूसरों की नजरों में जल्दी पड़ जाना या विपरीत सैक्स का मेरे प्रति सहज मोह स्वाभाविक ही था. और इस मामले में मुझ में गजब का आत्मविश्वास था जिस के चलते मैं स्वयं कभी सम्मोहित नहीं होता था. इन सब के बावजूद शादी को ले कर जो धारणाएं मेरे दिल में थीं उस लिहाज से वे मात्र शरीर सुख के अलावा कुछ नहीं थीं. मगर क्या कहूं इन अच्छे घरों की मासूम लड़कियों को. आएदिन लड़के दिखे नहीं कि थाल में दिल सजा कर आ गईं समर्पण करने.

इस मामले में लड़के भी कम दिलदार नहीं थे. लेकिन मैं इस मामले में पक्का था. जवानी की दहलीज पर दहकती कामनाओं को दिल में पल रहे रोष और विद्रोह का रूप दे कर बस तत्पर था स्थायी सुख की तलाश में.

समय की धार में बह कर एक दिन मैं सरकारी नौकरी के ऊंचे ओहदे की बदौलत क्वार्टर, औफिस सबकुछ पा गया. एक खोखली सी, जैसा कि मेरा पुरातन मैं सोचता, जिंदगी बाहरी दुनिया के लिए बहारों सी खिल गई थी.
कुछ साल और गुजरे. मांपिताजी कभीकभी मेरे बंगले में आ कर रहते. लेकिन बदलते हुए भी बदलना जैसे मुझे आता ही नहीं था.

अब भी मां हर वक्त पिताजी को लगातार कुछ न कुछ सुनाती रहती थीं. शायद अब यह फोबिया की शक्ल ले चुका था. पिताजी ने सोचसमझ कर अपने होंठ सिल रखे थे. ‘हर बात अनसुनी कर दो ताकि सामने वाले को यह एहसास हो कि वह दीवारों से बातें कर रहा है’ की मानसिकता के बूते पर रिश्ते घिसट रहे थे. इन सब के बीच मैं दिनोंदिन ऊबा सा, चिढ़ा सा महसूस करता था, जिस से अब भी उन दोनों को कोई लेनादेना नहीं था.

आखिर मैं ने इस अकेलेपन से उबरने का और थोड़ा मनोरंजन का तरीका ढूंढ़ निकाला, जैसे कि यह कोई जड़ीबूटी या जादू हो. मैं ने दूर प्रदेश की एक रूमानी सूरत वाली गेहुंए रंग की धीर, स्थिर, उच्च शिक्षिता से विवाह कर लिया. तरहतरह की कलाओं में पारंगत, सुंदर, रूमानी और विदुषी बिलकुल मेरी मां की तरह.

नौकरी के शुरुआती साल थे. सुंदर और समझदार पत्नी पा कर मैं घर की ओर से बेफिक्र हो गया था. मैं उसे चाहता था और मेरे चाहने भर से ही वह मुझ पर बिछबिछ जाती थी और यह एहसास जब मेरे लिए काफी था तो उसे पाने की जद्दोजहद कहीं बाकी ही नहीं रही.

इधर, नौकरी में मैं ऊंचे ओहदे पर था. अधीनस्थ मानते थे, सलाह लेते थे, मैं अपने अधिकार का भरपूर प्रयोग कर रहा था. अब तक का जीवन जो अकेलेपन की मायूसी में डूबा था, मेरे काम और तकनीकी बुद्धि की प्रखरता से प्रतिष्ठा की रोशनी से भर गया था. मेरा शारीरिक आकर्षण 30 की उम्र में उफान पर था, आत्मविश्वास चरम पर था, इसलिए मेरा सारा ध्यान बाहरी दुनिया पर केंद्रित था.

मैं एक रौबभरी दमदार जिंदगी का मालिक था, जिस में धीरेधीरे अतीत की हताशाओं पर जीत हासिल करने का दंभ भर रहा था. अतीत का एकांत मेरे पुरातन ‘मैं’ के साथ चमकदमक वाली दुनिया के किसी एक अंधेरे कोने में दुबक कर शिद्दत के साथ मेरा इंतजार कर रहा होता, लेकिन मैं उसे अनदेखा कर के अपनी दुनिया में व्यस्त होता जा रहा था. इसी बीच हमारी जिंदगी में बेटी कुक्कू आ गई. उस के आने के बाद मेरे अंतस्थल में ऐसी और कई परतें उभरीं जिन्हें अब तक मैं नहीं जानता था.

मेरे पिता ने हम बच्चों से दूरी बना कर हमारी नजरों में अपनेआप को जितना बुरा बनाया था और मेरी मां के पिताजी पर चीखनेचिल्लाने से उन की जो छवि हमारी नजरों में बनी थी, मैं अपनी कुक्कू के लिए कतई वह नहीं बनना चाहता था. मैं कुक्कू को पूरी तरह हासिल करने और उस की मां की तरफ झुकाव को बरदाश्त न कर पाने की ज्वाला से कब भरता जा रहा था, न तो मुझे ही पता चला और न ही कुक्कू को.

जब भी मुझे फुरसत मिलती, हम आपस में खेलते, बातें करते, लेकिन प्रतीति हमारे बीच आ जाती तो मैं मायूस हो जाता, कहीं कुक्कू का झुकाव उस की मां की तरफ हो जाए तो मैं अकेला रह जाऊंगा, मैं अपने पिता की तरह परिवार से दूर हो जाऊंगा. यह मेरे परिवार की बेटी है, मेरी बेटी है, मेरी अमानत. आखिर कुछ तो हो जो पूरी तरह से मेरा हो.

मैं अपनी मां को चाह कर भी हरदम अपने करीब न पा सका, जब देखो तब वे बस पिताजी को ले कर व्यस्त रहतीं. नहीं, मुझे सख्ती से प्रतीति को कुक्कू से दूर रखना होगा, उस का हर वक्त मेरे बच्चे को सहीगलत बताना, निर्देश देना मैं बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

आगाज- भाग 3: क्या हुआ था नव्या के साथ

कुछ ही देर में नव्या और नैवेद्य रिवर वौक जाने के लिए घर से निकल पड़े. शाम का धुंधलका गहराता जा रहा था.

दोनों नदी किनारे उगी घास  पर लगी

कुरसियों को एक कोने में खींच उन पर बैठ गए.

नदी के सामने आसमान छूती अट्टालिकाओं पर जलतीबुझती इंद्रधनुषी

लाइटें, नीले पानी में तैरते पानी के जहाज, सामने आकाश में ढलता हुआ सिंदूरी सूरज, समां बेहद खूबसूरत थी.

तभी नव्या ने कहना शुरू किया, ‘‘नैवेद्य,

मैं एक

विधवा हूं. मेरे पिता ने मेरी शादी महज

16 साल की उम्र में कर दी थी. शादी के मात्र एक साल बाद मेरे पति की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, आई ऐम सो सौरी.

बसबस नव्या, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तुम्हें शिद्दत से चाहता हूं और मेरी चाहत में ऐसी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.’’

‘‘उफ नैवेद्य,

पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो. मैं एक बेहद गरीब परिवार से हूं. मेरे फादर यूपी के एक छोटे से कसबे में रिकशा चलाते हैं. मेरी 2 छोटी बहनें और 1 भाई है. दोनों

बहनें एमबीबीएस के दूसरे ईयर में और भाई फर्स्ट ईयर में है. पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. तीनों की मोटी फीस और घर खर्चे में मेरी आधी से ज्यादा तनख्वाह खर्च हो जाती है. तो अपने पास्ट और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं ताजिंदगी किसी रिलेशनशिप में बंधना नहीं चाहती. मैं नहीं सोचती कि कोई भी लड़का इन

सब के साथ मुझ से रिश्ता बनाना चाहेगा.

‘‘साथ ही मेरी और तुम्हारी दुनिया में जमीनआसमान का फासला है. तुम एक रईस खानदान से हो और मैं महज एक गरीब रिकशा चलाने वाले की बेटी. हम दोनों का कोई साझा भविष्य नहीं.’’

‘‘तुम गलत हो नव्या. प्यार में ये बातें कोई माने नहीं रखतीं.’’

‘‘बहुत माने रखती

हैं नैवेद्य. क्या तुम्हारे पेरैंट्स एक रिकशे वाले की विधवा बेटी को अपनी बहू के रूप में ऐक्सैप्ट कर लेंगे? कभी नहीं.’’

तभी नैवेद्य ने मंदमंद मुसकराते हुए नव्या

के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘नव्या, मेरे पापा नहीं है. वे आर्मी में ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए थे. पिछले साल ही उन की डैथ हुई. बस मम्मा

हैं. मम्मा बेहद ब्रौड माइंडेड हैं. वे मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं. एक बार बस तुम्हें देखने भर की देर है, वे तुम्हें भी पूरे मन से अपना लेंगी.’’

‘ ‘नहींनहीं नैवेद्य मेरातुम्हारा कोई मेल नहीं. कहां ब्रिगेडियर कहां एक गरीब रिकशा चलाने वाला.’’

‘‘अरे नव्या मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं? मैं अब तुम्हें छोड़

कर किसी और लड़की के बारे में सोच तक नहीं सकता. प्लीज नव्या, माई लव, मान जाओ, प्लीज…’’ और यह कहतेकहते नैवेद्य ने उस का हाथ अपने हाथ में

लेते हुए उस की हथेली चूम भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘नव्या प्लीज, प्लीज मेरी जिंदगी को पूरा कर दो. तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरा हूं.’’

मगर नव्या पर उस की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और वह आखिर तक उस के इस प्रस्ताव को न… न… करती रही.’’

ये सब बातें करतेकराते एक रेस्तरां में खाते हुए रात

का 1 बजने को आया था. नैवेद्य उसे उस के अपार्टमैंट के दरवाजे तक छोड़ने आया.

‘‘नव्या यार, मेरा तो घर जाने का बिलकुल मन नहीं कर रहा. तुम से चिटचैट

करने का मन कर रहा है.’’

‘‘आर यू क्रेजी नैवेद्य? 1 बज रहा है. चलो, अब तुम जाओ.’’

नव्या ने उस के सामने ही दरवाजा बंद कर दिया और फिर अंदर से

बोली, ‘‘बस नैवेद्य आज के लिए बहुत हुआ. गुड नाइट.’’

विवश हो उसे घर जाना ही पड़ा. वह पूरी तरह से नव्या के प्यार मैं दिल के हाथों हार गया था. जब भी वह उस के घर आता वह उसे लाख समझाता, न तो उस का पास्ट, न ही उस की जिम्मेदारियों से उस के लिए उस के प्यार में कोई कमी आएगी, लेकिन अपनी

जमीनी हकीकत से जुड़ी नव्या कुछ ज्यादा ही समझदार थी.

नैवेद्य के लाख इसरार करने पर भी उस ने उस का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.

तभी उन्हीं दिनों

नैवेद्य औफिस से एक पखवाड़े की छुट्टी ले कर अपनी मां से मिलने इंडिया गया.

उस अवधि में नव्या को नैवेद्य और अपने रिश्ते के बारे में सोचने का मौका

मिला.

पिछले कुछ महीनों में वह नैवेद्य के बेहद करीब आ गई थी. अब उस से जुदा हो कर उस की मासूमियत भरी बातें, उस की शैतानी भरी छेड़छाड़, नौनस्टौप

गपियाना उसे रहरह कर याद आता. कभीकभी कमजोर क्षणों में वह सोचती

कि उसे नैवेद्य का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए. उस के साथ जिंदगी कितनी खुशनुमा

हो जाएगी, लेकिन अगले ही पल उस की वास्तविकता उसे डराने लगती और वह वापस अपने खोल में सिमट जाती.

उस दिन शनिवार था. घर के काम निबटा कर वह

आराम कर रही थी कि तभी इंडिया से नैवेद्य की वीडियो कौल आ गई. उस ने पूछा, ‘‘नव्या कुछ सोचा मेरे बारे में?’’

‘‘क्या सोचना है नैवेद्य? कितनी बार

तुम्हें कह चुकी हूं, मेरीतुम्हारी दुनिया बिलकुल अलग है. मेरे पीछे टाइम जाया मत करो नैवेद्य. इस पर वह उस से बोला ‘‘लो मम्मा से बात करो. तुम्हारी दुविधा

खत्म हो जाएगी.’’

स्क्रीन पर नैवेद्य की मां आ गईं, ‘‘हैलो नव्या बेटा. यह तुम क्या कह रही हो.

हमारीतुम्हारी दुनिया में कोई फर्क नहीं बेटा. तुम मेरे बेटे से

किसी माने में कमतर नहीं. तुम ने मेरे बेटे का दिल चुरा लिया है, मेरे लिए बस यही अहम है. खुशीखुशी मेरे बेटे की जिंदगी में आ जाओ बेटा, उसे ऐक्सैप्ट कर लो.

प्लीज बेटा

मान जाओ.’’

इस के बाद और कुछ बोलनेसुनने को शेष न रहा था.

उस दिन औफिस की छुट्टी थी. वैलेंटाइनडे भी था. नव्या ने वह पूरा दिन अलकसाते

हुए, आराम करते हुए घर पर ही बिताया. शाम को वह रिवर वौक पर 1 घंटा जौगिंग करने के बाद नदी के सामने घास पर बेमनी सी बैठी हुई पानी में तैरते जहाजों

को देख रही थी. सामने मिशीगन नदी के पार स्काई स्क्रैपर्स पर रंगबिरंगी जलतीबुझती लाइटिंग, नीले पानी में तैरते लाललाल दिलों, गुब्बारों और रंगीन रोशनी से

सजे जहाज, अपने इर्दगिर्द हर ओर प्रेमी जोड़ों की खुशनुमा चहक से रिवर वौक गुलजार था.

उस के सामने नदी में तैरते जहाजों पर तेज म्यूजिक बज रहा था और

कई जहाजों के डैक पर संगीत की धुन पर कई जोड़े थिरक रहे थे.

तभी एक जहाज उस के सामने किनारे के बेहद नजदीक आ गया. उस ने देखा,

उस जहाज पर एक

जोड़ा बांहों में बांहें डाले मदहोश हो नृत्य कर रहा था.

बेहद खूबसूरत पिंक गाउन में सजीधजी युवती की आंखों में आंखें डाले उस युवक को देख नजरों के सामने

नैवेद्य का मुसकराता भोलाभाला चेहरा कौंध उठा.

कलेजे में हूक सी उठी कि तभी अचानक उस के कानों में नैवेद्य के अल्फाज पड़े.

उस ने चौंक कर नजरें घुमाईं,

उस के सामने नैवेद्य अपने एक घुटने पर बैठा मुसकराता हुआ भावविह्वल स्वरों में बुदबुदा रहा था, ‘‘लव यू नव्या, विल यू बी माई वैलेंटाइन?’’

वह सोच नहीं पा रही थी कि यह सपना या हकीकत. तभी अनायास अपूर्व खुशी से खिलखिला पड़ी और उस ने नैवेद्य का हाथ अपने हाथ में ले उसे हौले से चूम लिया.

एक और मुहब्बत की मीठी दास्तान का आगाज हो गया था.

Dia Mirza ने भतीजी के निधन पर शेयर किया ये इमोशनल पोस्ट

बीते दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को सुर्खियों में रहने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस दीया मिर्जा (Dia Mirza) मां बन गई हैं, जिसकी अपडेट वह फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हालांकि कुछ दिनों से वह सोशलमीडिया से दूर थीं. लेकिन अब एक्ट्रेस ने अपनी एक अपडेट शेयर की है, जिसके बाद फैंस पोस्ट पर अपना रिएक्शन देते दिख रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

भतीजी की फोटो की शेयर

 

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एक्ट्रेस दीया मिर्जा ने सोशलमीडिया पोस्ट के जरिए फैंस को बताया है कि उनकी भतीजी का निधन हो गया है. दरअसल, एक्ट्रेस ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘मेरी भतीजी.. मेरी बच्ची.. मेरी जान…अब इस दुनिया में नहीं हो. मेरी कामना है कि तुम जहां भी रहो, तुम्हें शांति और प्यार मिले. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी ओम शांति.’ वहीं इस पोस्ट के साथ एक्ट्रेस दिया मिर्जा ने अपनी भतीजी की फोटो भी शेयर की है, जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह उम्र में काफी कम थीं.

फैंस और सेलेब्स ने किया कमेंट

 

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एक्ट्रेस दीया मिर्जा का ये इमोशनल पोस्ट देखने के बाद जहां फैंस भी इमोशनल हो गए हैं तो वहीं सेलेब्स एक्ट्रेस की पोस्ट पर कमेंट करते हुए उन्हें सांत्वना दे रहे हैं. वहीं इन सितारों में ईशा गुप्ता जैसे कई सेलेब्स का नाम शामिल है.

बता दें, एक्ट्रेस दिया मिर्जा अपनी शादी और प्रैग्नेंसी को लेकर काफी सुर्खियों में रही हैं. दरअसल, शादी के कुछ महीने बाद ही एक्ट्रेस ने अपनी प्रैग्नेंसी की खबर सुनाकर फैंस को हैरान कर दिया था. हालांकि कई लोगों ने उन्हें सपोर्ट भी किया था. वहीं फिल्मी करियर की बात करें तो एक्ट्रेस दिया मिर्जा काफी समय से सिल्वर स्क्रीन से दूर हैं. हालांकि वह सोशलमीडिया के जरिए फैंस के साथ जुड़ी हुई रहती हैं.

GHKKPM: सई की प्रैग्नेंसी ट्रेक पर फूटा फैंस का गुस्सा, मेकर्स हुए ट्रोलिंग के शिकार

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के मेकर्स अपनी कहानी के चलते कई बार ट्रोलर्स के निशाने पर आए हैं. हालांकि मेकर्स सीरियल को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसी बीच हाल ही में सई की प्रैग्नेंसी की खबर से एक बार फिर मेकर्स ट्रोल हो रहे हैं और मेकर्स की क्लास लगाते दिख रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

प्रैग्नेंसी ट्रैक हुआ वायरल

हाल ही में सीरियल के अपकमिंग प्रोमो में सई के प्रैग्नेंसी की तरफ इशारे होते हुए दिख रहे थे. दरअसल, पाखी का ख्याल रखते हुए सई को चक्कर और उल्टी हो रही थी, जिसके चलते चौह्वाण परिवार के सदस्य सई को प्रैग्नेंसी टेस्ट के लिए कहते दिखे थे. हालांकि पाखी इस बात पर गुस्से में नजर आई थी. इसी के चलते अब फैंस का भी इस प्रोमो के देखकर रिएक्शन सामने आया है.

ट्रोलर्स ने किया सवाल

सरोगेसी के ट्रैक के बाद सई की प्रैग्नेंसी पर फैंस मेकर्स को ट्रोल करते दिख रहे हैं. प्रोमो और लेटेस्ट एपिसोड देखने के बाद फैंस को यकीन ही गया है कि सई मां बनने वाली है, जिसके बाद फैंस मेकर्स से सवाल करते दिखाई दे रहे हैं. दरअसल, फैंस का कहना है कि कुछ वक्त पहले ही डॉक्टर का सई को प्रैग्नेंट ना होने का सीन दिखाया गया था और अब अचानक सई का बनना ट्रोलर्स को रास नहीं आ रहा है. इतना ही नहीं फैंस सई के मां नहीं बल्कि कैंसर होने की बात कहते हुए दिख रहे हैं.

मां बनेगी पाखी

 

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सीरियल की बात करें तो अपकमिंग एपिसोड में सीरियल में कुछ महीने बाद पाखी की प्रैग्नेंसी के नोवें महीने की बात दिखाई जाएगी. जहां पर पाखी, विराट को फोन करके कहेगी कि उसकी डिलीवरी का समय आ गया है. हालांकि विराट उसे कहेगा कि सई उसके पास पहुंचती ही होगी.

मैं और तुम गर हम हो जाएं…

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो पुरुष घर के कामों में सहयोग करते हैं, वे अन्य पुरुषों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं. यह रिपोर्ट उन मर्दों के लिए खुशखबरी भरी है, जो घरेलू काम करने को अपनी तौहीन समझते हैं. ऐसे पुरुष यह मानते हैं कि घरेलू काम सिर्फ औरतों को ही करना चाहिए.

शुरू से ही एक औरत न सिर्फ घर का, बल्कि बाहर का कामकाज भी करती आ रही है. वह दोनों भूमिकाएं बखूबी निभाती है. एक समय था जब वह घर से निकल कर खेत भी जाती थी. पशुओं को चराना, नहलाना, बोझा ढोना, लकडि़यां इकट्ठा करना और फिर घर आ कर गृहस्थी के कामों में जुट जाना. बच्चों को दूध पिलाना, खाना बनाना व परोसना सहित घर के तमाम काम उस के ही सिर पर थे. पुरुष केवल तब तक ही हाथपैर चलाता था जब तक घर से बाहर होता था. घर की चौखट के भीतर आते ही वह पानी पी कर गिलास भी स्वयं नहीं रखता था. घर में उस का काम केवल आराम करना व पत्नी को गर्भवती बनाना मात्र ही था.

आज भी यों तो अधिकांश घरों में इसी परंपरा का पालन होता आ रहा है, मगर बदलते जमाने में जब नई जैनरेशन के पति यह देख रहे हैं कि पत्नियां घर से बाहर निकल कर घर की आर्थिक स्थिति में सहयोग दे रही है, तो वे घर के कामकाज में हाथ बटाने लगे हैं. यह एक अच्छी शुरुआत है.

औरत नहीं मशीन

ऐसा देखा गया है कि पतिपत्नी अथवा सासबहू के बीच होने वाले ज्यादातर कलह घरेलू कामों को ले कर ही होते हैं. यह तो अच्छा है कि किचन व अन्य इलैक्ट्रौनिक होम ऐप्लायंसेज की वजह से महिलाओं के लिए काम करना थोड़ा सुलभ हुआ है. इस से उन के काम कुछ जल्दी निबट जाते हैं.

मगर कपड़े धोने की मशीन, वैक्यूम क्लीनर, मिक्सर, ग्राइंडर आदि अपनेआप काम नहीं करते. इन्हें चलाने के लिए एक आदमी की जरूरत तो पड़ती ही है. क्या कोई ऐसी मशीन है, जो बच्चों के डायपर्स बदल सकती है? बच्चों को होमवर्क करा सकती है? क्या कोई ऐसी मशीन है, जो सुबह उठे और बच्चों को जगाए, उन्हें नहलाए, यूनिफौर्म, जूतेमोजे, टाईबैल्ट पहनाए और फिर नाश्ता करा कर उन का लंच बौक्स पैक कर के उन्हें स्कूल छोड़ आए? फिर दोपहर में बच्चों को ले कर आए. बरतन धोए और पोंछा लगाए, लंच व डिनर बनाए और फिर सब को परोसने का काम भी करे?

निश्चित तौर पर ऐसी मशीन सिर्फ एक औरत ही हो सकती है. अगर इन अनगिनत घरेलू कामों में से कुछ काम पति अपने कंधों पर ले ले तो औरत को थोड़ी राहत तो अवश्य मिलेगी.

ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि आजकल की व्यस्त लाइफ में घर का काम पतिपत्नी को मिल कर ही करना चाहिए. इस से न सिर्फ तनाव दूर रहता है, पार्टनर के सहयोग करने पर मन व शरीर में ऊर्जा भी बनी रहती है. एकदूसरे को लगता है कि कोई है, जो जरूरत के समय उस के साथ काम करने को तैयार रहता है. इस से घर में हर रोज होने वाली किचकिच भी नहीं होती.

इस पुरुष प्रधान समाज में लोगों की मानसिकता ऐसी बनी हुई है कि केवल औफिस जाते हुए व हाथ में सिगरेट थामे हुए लोग ही मर्द कहलाते हैं. किचन में ऐप्रिन पहने आटा गूंधता कोई व्यक्ति मर्द की श्रेणी में नहीं गिना जाता. यही वजह है कि जो पति घर के कामों में पत्नी का सहयोग करते हैं वे दोस्तों व रिश्तेदारों से इसे छिपा कर रखना चाहते हैं.

60-70 के दशक में आई एक फिल्म में नायक संजीव कुमार ने नायिका मौसमी चटर्जी के पति की भूमिका निभाई थी. दोनों ही एकदूसरे के कामों को बेहद महत्त्वहीन व आसान समझते थे. ऐसे में दोनों ने अपनी भूमिकाएं बदलने का फैसला किया. यानी जो भूमिका नायिका निभा रही थी उसे नायक को निभाना था और नायक वाली भूमिका नायिका को निभानी थी. फिल्म का संदेश यह था कि एक औरत घर संभालने के अलावा बाहर जा कर कमा भी सकती है, मगर घर में गृहस्थी व बच्चे संभालने की जिम्मेदारी जितनी आसान दिखती है, उतनी होती नहीं.

हाउस हसबैंड

आज ढेरों पति ऐसे हैं, जो हाउस हसबैंड हैं. बैंकर से लेखक बने चेतन भगत उस का उदाहरण हैं. उन की पत्नी भी बैंकर हैं. वे तो औफिस चली जाती हैं, चेतन अपना लेखन का सारा काम घर से ही करते हैं और अपने 2 जुड़वां बेटों की देखभाल भी. हां यह बात जरूर है कि वे घर बैठ कर अच्छी कमाई भी करते हैं.

वहीं कई टीवी कलाकार ऐसे हैं, जो पतिपत्नी हैं. दोनों ही ऐक्टिंग करते हैं, तो कई बार ऐसे मौके आते हैं जब कोई एक धारावाहिक अथवा किसी शो में काम कर रहा होता है और दूसरा घर बैठा होता है. ऐसे में क्या होता है? टीवी कलाकार वरुण वडोला साफसाफ कहते हैं, ‘‘जब मेरे पास काम नहीं होता और पत्नी राजेश्वरी के पास ढेर सारा काम होता है तो घर मैं संभाल रहा होता हूं और वह बाहर.’’

और भी कई कवि, लेखक और साहित्यकार हाउस हसबैंड हैं. हालांकि अभी यह बदलाव इतना कौमन नहीं हुआ है, पर इस की शुरुआत हो गई है. इस से दोनों एकदूसरे के कामों की कद्र करना सीख गए हैं, मगर यह बदलाव केवल शहरों अथवा शिक्षित तबके में ही देखा जा सकता है. अगर हम सिक्के के दूसरे पहलू को देखें तो भारतीय गांवों में जहां देश की कुल आबादी का 70% हिस्सा बसता है, वहां मर्दों को शान से हुक्का गुड़गुड़ाते या फिर खेती करते ही देखा जा सकता है. फिलहाल वहां की परंपराएं बदलने में शायद थोड़ा वक्त लगेगा.

शादीशुदा डिप्रैशन फ्री

घर में हाथ बंटाने का यह अर्थ नहीं कि आप हाउस हसबैंड बन गए हैं. आखिर घरपरिवार, बच्चों की देखभाल आदि पतिपत्नी दोनों की साझा जिम्मेदारी है, तो इस में शर्म कैसी? अगर आप ऐसे हैं तो बच्चों की नैपी बदलने की बात को दोस्तों को बता कर उन्हें शर्मिंदा करें कि वे बैठेबिठाए खाने के आदी हो चुके हैं. उन्हें बताएं कि अब उन का वह दौर खत्म हो चुका है, जिस में औरत को भोग्या और पुरुष को भोगी कहा जाता था.

यदि आप संयुक्त परिवार में हैं तो आप की मां उस समय आपत्ति जता सकती हैं, जब आप पत्नी द्वारा धोए कपड़ों की बालटी ले कर छत पर कपड़े सुखाने जाएं अथवा फ्रिज में गिरे दूध अथवा जैम को साफ करें. दरअसल, सास अपनी बहू के साथ अपने बेटे को घरेलू काम करते नहीं देखना चाहती. पुरानी सोच के चलते उसे लगता है कि उस के बेटे की छवि खराब होगी या उस का पुरुषत्व कम होगा. ऐसा होने पर मां को यह समझाएं कि बदले जमाने में यह सब कितना जरूरी हो गया है.

वैसे शादी व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव डालती है. एक स्टडी के अनुसार, शादीशुदा लोग कुंआरों के मुकाबले टैंशन और डिप्रैशनफ्री रहते हैं. इस स्टडी में 15 देशों के 34,493 लोगों से बात की गई और पूछा गया कि शादी और मानसिक शांति का क्या संबंध है.

पहले की गई स्टडीज में यह माना गया था कि शादी से सिर्फ महिलाओं को ही मानसिक शांति मिलती है, लेकिन इस स्टडी ने इसे दोनों के लिए फायदेमंद बताया गया. शादी के बाद खुश रहने के लिए दोनों के बीच कम्युनिकेशन और समझदारी होना बेहद जरूरी है. इस के लिए सिर्फ शादी करना ही काफी नहीं, बल्कि मैं और तुम छोड़ कर हम बनना पड़ेगा और हर खुशी, गम व काम की जिम्मेदारी हम बन कर उठानी होगी.

4 Tips: सही खानपान से कंट्रोल करें Thyroid

मोटापे के कई कारण हो सकते हैं. खानपान की आदतें, जीवनशैली, देर रात तक जागना और कई बार अनुवांशि‍क कारणों के चलते मोटापे की शि‍कायत हो जाती है. लेकिन कुछ ऐसे कारण भी होते हैं जिन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता और ये समस्या भयानक रूप ले लेती है.

थायरॉइड एक ऐसी ही बीमारी है जिसमें वजन तेजी से बढ़ने लगता है और अगर समय रहते इसे कंट्रोल न किया जाए तो यह शुगर जैसी कई बीमारियों की वजह भी बन सकता है. इस बीमारी को थोड़ी सी सजगता और खानपान की सही आदतों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है.

1. आयोडीन युक्त भोजन

रोगी को उन पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो क्‍योंकि इसकी मात्रा थायरॉइड फंक्शन को प्रभावित करती है. सी फूड खासकर मछलियों में आयोडीन की मात्रा भरपूर होती है इसलिए इन्हें डाइट में शामिल करना न भूलें.

2. कॉपर और आयरन युक्त भोजन

कॉपर और आयरन युक्‍त आहार लें क्योंकि यह भी थायरॉइड फंक्‍शन को प्रभावित करते हैं. कॉपर की सबसे ज्‍यादा मात्रा काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में होती है और हरे पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

3. विटामिन और मिनरल्स

विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त चीजों को डाइट का हिस्सा बनाएं. यह थायरॉइड की अनियमितता में फायदेमंद होता है. पनीर, हरी मिर्च, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, मशरूम में पर्याप्त मात्रा में विटामिन और लवण पाए जाते हैं.

4. कम वसा युक्त भोजन

कम वसा युक्‍त आहार का सेवन करें. इसके साथ ही गाय का दूध भी थायरॉइड के रोगी के लिए फायदेमंद होता है. खाना बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा.

थायरॉइड के रोगी क्या न खाएं?

1. सोया और उससे बनीं चीजों के सेवन से बचें.

2. जंक और फास्ट फूड का सेवन कम से कम करें.

3. ब्रोकली, गोभी जैसे सब्जियों के सेवन से बचें.

थायरॉइड के मरीजों को उचित आहार के साथ ही नियमित रूप से योग और व्यायाम भी करना चाहिए. थायरॉइड की समस्‍या होने पर रोगी को चिकित्‍सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए और उसी के अनुसार जीवशैली अपनानी चाहिए.

क्या स्पाइनल स्ट्रोक का इलाज सर्जरी के बिना हो सकता है?

सवाल-

मेरे ससुर की उम्र 58 साल है, उन्हें कुछ दिन पहले स्पाइनल स्ट्रोक आया था. डाक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी है. क्या सर्जरी के बिना भी इस का उपचार संभव है?

जवाब-

स्पाइनल स्ट्रोक में स्पाइनल कार्ड की ओर रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है. स्पाइनल स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है और इस के लिए तुरंत उपचार की जरूरत होती है. अगर समस्या अधिक गंभीर नहीं है तो सूजन को कम करने, रक्त को पतला करने, रक्तदाब को कम करने और कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करने वाली दवा से आराम मिल जाता है. आप के ससुर की स्थिति गंभीर होगी, इसलिए डाक्टर ने सर्जरी की सलाह दी है. सर्जरी से डरने की जरूरत नहीं है. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमईएस) तकनीक ने सर्जरी को बहुत आसान बना दिया है. इस में पारंपरिक सर्जरी की तुलना में परेशानियां कम होती हैं और अस्पताल में ज्यादा रुकने की जरूरत भी नहीं होती है.

GHKKPM: सई की प्रैग्नेंसी की खबरों के बीच Ayesha Singh के ये लुक हुए वायरल

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में हाल ही के ट्रैक में पाखी की सरोगेसी के चलते बवाल देखने को मिला था. वहीं इन दिनों शो में सई के प्रैग्नेंट (Sai Pregnancy) होने के कयास लगाए जा रहे हैं. वहीं प्रैग्नेंसी की तरफ उठते इन सवालों के बीच सई यानी एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh Photoshoot) का बदला लुक फैंस को हैरान कर रहा है. आइए आपको दिखाते हैं आयशा सिंह के फोटोशूट की झलक…

मौर्डर्न बनीं सई

 

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हाल ही में अपने नए-नए लुक्स फैंस के साथ शेयर कर चुकीं एक्ट्रेस आयशा सिंह ने नया लुक शेयर किया है, जिसमें वह संस्कारी बहू नहीं बल्कि बोल्ड मौर्डर्न लुक में पोज देती हुई नजर आ रही हैं. ब्लू कलर के कोट पैंट में बिजनेस वूमन की तरह एक्ट्रेस आयशा सिंह कातिलाना पोज देती दिख रही हैं. वहीं फैंस उनके लुक्स की तारीफें कर रहे हैं.

वेस्टर्न लुक में दिखाईं अदाएं

 

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सीरियल में देसी अवतार में नजर आने वाली सई जोशी यानी एक्ट्रेस आयशा सिंह रियल लाइफ में काफी बोल्ड हैं, जिसका अंदाजा हाल ही में उनके फोटोशूट को देखकर लगाया जा सकता है. वेस्टर्न ड्रैस में एक्ट्रेस आयशा सिंह का फैशन और अदाएं देखकर फैंस दिवाने हो गए हैं और सोशलमीडिया पर तेजी से फोटोज वायरल हो रही हैं.

 

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देसी अवतार को भी बनाया हौट

 

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वेस्टर्न लुक के अलावा एक्ट्रेस आयशा सिंह ने अपने फोटोशूट में देसी लुक भी ट्राय किए थे. जहां एक लुक में वह ब्राइडल लहंगा कैरी करते दिखीं थीं तो वहीं एक में वह लहंगा कैरी करते हुए नजर आईं थीं. हालांकि इन लुक्स में भी वह हौटनेस का तड़का लगाते हुए दिखीं. दरअसल, अपने इन इंडियन लुक्स में मेकअप और डीपनेक ब्लाउज के साथ आयशा सिंह अदाए दिखाती नजर आईं थीं. फैंस को सई चौह्वाण का ये अंदाज काफी हैरान कर रहा है, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.

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