जेल में बच्चे को जन्म देगी प्रथा, सामने आया Naagin 6 का नया प्रोमो

एकता कपूर के हिट टीवी सीरियल नागिन का सीजन 6 इन दिनों सुर्खियों में है. जहां सीरियल की टीआरपी बढ़ रही है तो वहीं मेकर्स ने कहानी में नए ट्विस्ट एंड टर्न्स लाने का फैसला कर लिया है. हाल ही में सामने आए प्रोमो को देखकर फैंस नई कहानी देखने के लिए बेताब हैं. आइए आपको बताते हैं कि नागिन 6 की क्या होगी आगे कि कहानी….

मां बनेगी शेष नागिन

हाल ही में सीरियल का नया प्रोमो सामने आया है, जिसमें ऋषभ, प्रथा से बदला लेता हुआ दिख रहा है. वहीं उसे जेल भेज देता है. जहां प्रथा प्रैग्नेंट नजर आती है. प्रोमो को देखकर फैंस अपना रिएक्शन दे रहे हैं तो वहीं अपकमिंग ट्विस्ट का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

 

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ऋषभ को पता चला प्रथा का सच

अब तक आपने देखा कि प्रथा अमृत कलश को ढूंढ लेती है, जिसके बाद वह अपने दुश्मनों सीमा, भानो और रेनाक्ष के खिलाफ एक जाल बुनती है ताकि उन्हें वह रोक सके. वहीं इस काम में शेष नागिन का राज प्रथा, ऋषभ के सामने खोल देती है, जिसका उसे झटका लगता है. वहीं नया प्रोमो देखने के बाद फैंस अपकमिंग एपिसोड का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

बता दें, प्रथा के रोल में एक्ट्रेस तेजस्वी प्रकाश को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं ऋषभ यानी सिंबा नागपाल के साथ उनकी कैमेस्ट्री को काफी पसंद कर रहे हैं. इसी के चलते सीरियल की टीआरपी भी टौप 5 का हिस्सा बनी हुई है. हालांकि देखना होगा कि सीरियल में आने वाला नया ट्विस्ट नागिन 6 की कहानी में नया मोड़ लेकर आता है.

 

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REVIEW: जानें कैसी है Ayushmann Khurrana की फिल्म Anek

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः टीसीरीज और अनुभव सिन्हा

निर्देशकः अनुभव सिन्हा

कलाकारः आयुश्मान खुराना,एंड्यिा केवीचूसा,शोवोन जमन,अभिनव राज सिंह,मनोज पाहवा,जे डी चक्रवर्ती, शारिक खान,कुमुद मिश्रा

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

जब हिंदुत्व की बयानबाजी पूरे देश में क्रूर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है,उस दौर में फिल्मकार अनुभव सिन्हा एक फिल्म ‘‘अनेक’’ लेकर आए हैं,जो कि युद्ध,शंाति, नक्सलवाद, नस्लीय भेदभाव आदि को लेकर अनेक सवाल उठाते हुए इस बात पर भी सवाल उठाती है कि भारतीय होने के असली मायने क्या हैं?उपदेशात्मक शैली की यह फिल्म ऐसी उपदेशात्मक फिल्म है,जो राजनीतिक अखंडता को बिना रीढ़ की हड्डी वाले सिनेमाई परिदृश्य में पेश करती है. फिल्म पूर्वोत्तर भारतीयों के दिलों की कहानी सुनाती है.  फिल्म इस कटु सत्य को भी रेखांकित करती है कि सिर्फ 24 किमी चैड़े गलियारे से बाकी देश से जुड़े उत्तर पूर्व के राज्यों के किसानों की पूरी फसल हाईवे पर खड़े ट्रकों में सड़ जाती है,क्योंकि उन्हें दूसरी तरफ से आती फौज की गाड़ियों के लिए जगह बनानी होती है. फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि कोई तो है जो चाहता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में अशांति ही बनी रहे. फिल्म में एक किरदार का संवाद-‘‘शांति एक व्यक्तिपरक परिकल्पना है. ‘‘बहुत कुछ कह जाता है.

1947 में भारत को आजादी मिलने के साथ ही हमसे ही अलग होकर पाकिस्तान बना था. उस वक्त कई छोटे छोटे राज्य भारत का हिस्सा बन गए थे. जम्मू व कश्मीर धारा 370 के साथ भारत से जुड़े थे और पूर्वोत्तर के सात राज्य धारा 371 के तहत भारत के साथ जुड़े. पर आजादी के ेबाद से ही कश्मीर में आतंकवादी व अलगाव वादी संगठन हावी रहे हैं,जिन्हे पाकिस्तान का साथ भी मिलता आ रहा है. कश्मीर में जो कुछ होता रहता है,उसकी खबरें हिंदू मुस्लिम के नाम पर काफी प्रचारित की जाती रही हंै. अब कश्मीर से धारा 370 खत्म हो गयी है. तो वही आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों मंे भी अलगाव वादी सक्रिय हैं. वहां पर आए दिन हिंसा होती रहती है. कश्मीर के मुकाबले पूर्वोत्तर राज्यांे की जनता की समस्याएं अलग हैं. उन्हे अलगाव वादियों की यातनाएं तो सहन करनी ही पड़ती ै,साथ में उन्हे हर दिन नस्लीय भेदभाव का भी सामना करना पड़ता. भारत के ेदूसरे राज्यों के लोग उन्हे भारतीय की बजाय चीनी कह कर ज्यादा संबोधित करते हैं. इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों की जमीन हकीकत क्या है,वहा कौन सा अलगाव वादी गुट ड्ग्स व अन्य अवैध ध्ंाधों से जुड़ा हुआ है,इसकी भी खबरें पूरे देश के लोगों तक नही पहुॅच पाती है. यदि यह कहा जाए कि पूर्वाेत्तर के सात राज्य वास्तव में भारत से अलग थलग पड़े हुए हंै,तो शायद गलत नहीं होगा. कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्य सदैव मीडिया की सूर्खियांे में नही रहते.  अनुभव सिन्हा ने अपनी फिल्म ‘अनेक’ में पूर्वोत्तर राज्यों की जमीनी सच्चाई को उजागर करने का एक प्रयास किया है.  यह फिल्म पढ़े लिखे व राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों के दिलों को झकझोरती है,मगर ना समझ व पूर्वोत्तर राज्यों से पूरी तरह से अनभिज्ञ दर्शकों को यह फिल्म बोर लग सकती है.

कहानी

पूर्वोत्तर भारतीय मुक्केबाज एडो ( एंड्रिया केविचुसा) राष्ट्रीय टीम में एक स्थान अर्जित करने का सपना देख रही है,मगर वह देश के उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है,जहां  उसके अपने लोग हर दिन नस्लीय दुव्र्यवहार सहते हैं. भारतीय अधिकारी ऐडोे की बजाय हरियाणा की लड़की के पक्ष मे हैं,क्योकि एडो ‘चीनी या चिंकी नजर आती ैहै, जबकि हरियाणवी लड़की भारतीय नजर आती है. पर एडो का कोच हार नही मान राह.  एडो के स्कूल शिक्षक पिता वांगनाओ (मिफाम ओत्सल) सरकारी बलों के खिलाफ एक विद्रोही समूह जॉनसन का गुप्त रूप से नेतृत्व कर रहे हैं,जो अपनी सांस्कृतिक पहचान को छीनने से बचाना चाहते हैंपर पिता की इस सच्चाई से एडो अनभिज्ञ है. . इनके बीच भारत सरकार का एक अंडरकवर एजेंट अमन उर्फ जोशुआ (आयुष्मान खुराना) खड़ा होता है,जो अपनी वफादारी की परीक्षा देता है.  वह गांव वालों के बीच घुलमिल जाता है. उसका वांगनाआके केघर आना जाना है. मुक्केबाज एडो उससे प्यार करने लगती है, जिसका जोशुआ फायदा उठाता रहता है.

जोशुआ पूर्वोत्तर के अलगाववादी जनजातियों के दो युद्धरत गुटों के बीच शांति समझौता करने की कोशिश कर रहा है. जोशुआ ने वांगनाओं पर नजर रखने के लिए ही युवा महिला मुक्केबाज ऐडो से प्यार @दोस्ती का नाटक कर रहा है.  जोशुआ की योजना वांगनाओं को बड़ी मछली टाइगर सांगा के खिलाफ खड़ा करना है.  टाइगर और जॉनसन दोनों आतंकवादी गुट हैं और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त हैं. यह दोनों अवैध रूप से टोल एकत्र करने,हथियार के कारोबार,हिंसा से लेकर ड्ग्स के ध्ंाधे में लिप्त हैं. जोशुआ भी ड्रग्स और बंदूकों की आपूर्ति करने के लिए मैदान में उतरकर उन्ही के बीच का होने की बात साबित करने में सफल हो जाता है.

इधर टाइगर सांगा एक लंबा टीवी साक्षात्कार देता है. जिसकी वजह से भारत सरकार,मंत्री व दिल्ली पुलिस सक्रिय होती है. भारत सरकार की तरफ से मध्यस्थता करने की जिम्मेदारी कश्मीर निवासी अबरार बट्ट (मनोज पाहवा ) को दी जाती है. टाइगर सांगा से बात होती है. अब्रारर इस बात वर अडिग है कि भारतीय ंसंविधान व भारतीय झंडा रहेगा. टाइगर सांगा उन्हें 1940 के दशक में किए गए कुछ वादों की याद दिलाते हुए भारत सरकार पर उन पर मुकरने का आरोप लगाते हैं. तब अब्ररार ‘जॉनसन’ के नाम को मोहरा के तौर पर उपयोग करते है. लोग इस बात से अनजान हैं कि ‘जॉनसन‘ एक छद्म नाम है, जिसे भारत ने टाइगर सांगा की ताकत पर लगाम लाने के लिए प्रेरित किया है.

उधर अबरार बट्ट ने अमन उर्फ जोशुआ के खिलाफ भी कुछ लोगों को लगा रखा है,जो उन्हे खबर करते हंै कि अमन तो एडो के प्यार में है. तब उसके हर कदम पर निगरानी की जाने लगती है. अमन के फोन टेप किए जाने लगते हैं. इस बीच वांगनाओं मैम्यार जा चुका है. उसे हमेशा के लिए खत्म करने के लिए सैनिक कमांडो की टुकड़ी के साथ अमन को भेजा जाता है. अमन अपने एक अन्य साथी की मदद से अबरार की इच्छा के विपरीत वांगनाओं को गिरफ्तार कर दिल्ली ले आता है. और भारत सरकार को टाइगर सांगा के आपराधिक होने के ढेर सारे सबूत भी देता है.

लेखन व निर्देशन

अनुभव सिन्हा इससे पहले ‘आर्टिकल 15’ व ‘मुल्क’ सहित कई बेहतरीन फिल्में बना चुके हैं. मगर ‘अनेक’ कई जगहों पर राजनीतिक व्याख्यान या भारत में अलगाववादी आंदोलनों पर प्रवचन की तरह लगती है. फिल्म एक साथ उन दो प्रश्नों से निपटता है,जिन्होंने कई समावेशी भारतीय विचारकों को परेशान किया हैः एक भारतीय कौन है? और दूसरा क्या राज्यों को उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर पहचानना सही है, जब उन्हें मध्य भारत या उत्तर भारत की स्थिति से देखा जाए? फिल्म में हिंसा व खूनखराबा कुछ ज्यादा ही भर दिया गया है. बेवजह दो गुटों या पुलिस बल व अलगाव वादियों के बीच मुठभेड़ के लंबे लंबे दृश्य ठूॅंसकर फिल्म की लंबायी बढ़ा दी गयी है. फिल्म को एडिट टेबल पर कसे जाने की जरुरत है. कहानी के स्तर पर नयापन इतना ही है कि लोग समझ सकेंगे कि पूर्वाेत्तर राज्यों की समस्या कितनी विकराल रूप ले चुकी है. फिल्म में मुक्केबाजी की प्रतियोगिता के दौरान जब हरियाणा की बॉक्सर एडा से कहती हैं कि इंडिया तेरे बाप का है तो एडा  उसे पंच मारकर कहती हैं कि इंडिया किसी के बाप का नहीं हैं.  इंडिया सबका है. यही वह बात है,जिसे हर भारतीय को समझाने के लिए फिल्मकार ने यह फिल्म बनायी है. मगर फिल्म की गति धीमी और सब कुछ बहुत नीरस है.

बतौर निर्देशक अनुभव सिन्हा ने बेहतरीन काम किया है. वह एक ऐसे विषय पर फिल्म लेकर आए हैं,जिस पर ज्यादा से ज्यादा काम किया जाना चाहिए. उन्होने फिल्म के लिए कलाकारों का चयन भी एकदम सटीक ही किया है. लेकिन अनुभव सिन्हा ने फिल्म की शुरूआत बहुत गलत ढंग से की है. फिल्म की शुरूआत होती है,एक नाइट क्लब से जहां से नायिका एडो को गिरफ्तार किया जाता है.  जबकि उसकी कोई गलती नही है. ऐसा महज नाइट क्लब चलाने वाले व पुलिस के बीच आपसी मतभेद के कारण किया जाता है. इसके अलावा

बतौंर फिल्म सर्जक अनुभव सिन्हा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपनी फिल्म में सवाल उठाते हैं,मगर किसी भी बात का स्पष्ट कारण नही बताते. जब आप पूर्वोत्तर राज्यों के गुरिल्ला लड़ाकों के खिलाफ खुलकर नहीं हैं, तो एक वैध स्पष्टीकरण जरूरी है. ृृयह फिल्म राष्ट्र और उत्तर पूर्व के नेताओं के बीच संघर्ष के पीछे के कारण को उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहती है. क्या विचारधाराएं हैं, क्या मांगें हैं, किससे लड़ रहे हैं?

भारत सरकार द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के साथ तिस तरह का छलावा किया जाता रहता है,उसी छलावे के प्रतीक स्वरूप फिल्मकार ने एडा और जोशवा की प्रेम कहानी को छलावा के रूप में पेश किया है.

फिल्म का नाम भी भ्रामक ही है.  फिल्म के नाम से फिल्म का विषय स्पष्ट नही होता.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो लीक से हटकर फिल्में करते आ रहे अभिनेता आयुश्मान खुराना ने इस फिल्म में अमन उर्फ जोशुआ का किरदार निभाया है. मगर  वह एक्शन दृश्यों में बुरी तरह से मात खा गए हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों का दर्द अवश्य आयुश्मान ख्ुाराना की झुंझलाहट से साफ तौर पर उजागर होती है. वह गंभीर दृश्यों मेंं ज्यादा जमते हैं. फिल्म के अबरार बट्ट के किरदार में मनोज पाहवा में काफी संजीदा व सधा हुआ अभिनय किया है. कई दृश्यों में वह भारत के सुरक्षा सलाहकर अजीत दोवाल की याद दिलाते हैं. जबकि मंत्री के किरदार में कुमुद मिश्रा का अभिनय जानदार है. उनकी मुस्कान बहुत कुछ कह जाती है. अबरार के निर्देश पर जोशोआ उर्फ अमन की राह में रोड़ा बनने वाले तेलंगाना राज्य से आने वाले एजेंट के किरदार में जेडी चक्रवर्ती  का अभिनय ठीक ठाक है. भारत के लिए मुक्केबाजी करने के लिए आतुर उत्त्र पूर्व राज्य की एडा के किरदार में एंड्रिया केविचुसा का अभिनय शानदार है. उसके चेहरे से नस्लीय भेदभाव के दर्द को समझा जा सकता है. पवलीना हजारिका के किरदार में दीप्लिना डेका ने कमाल का अभिनय किया है. वह दर्शकों को अंत तक याद रह जाती हैं. शोवन जमान,राज सिंह, अजी बगरिया, शारिक खान, हनी यादव, मुबाशीर बशीर बेग, अमीर हुसैन आशिक और लोइटोंगबाम दोरेंद्र का अभिनय ठीक ठाक है.

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Sidhu Moose Wala की हत्या पर सेलेब्स ने जताया दुख, कही ये बात

बीते दिन पंजाबी सिंगर और रैपर सिद्धू मूसेवाला (Sidhu Moose Wala) की हत्या ने फैंस और सेलेब्स को हैरान कर दिया है. जहां फैंस दोषी को सजा दिलवाने की मांग करते दिख रहे हैं तो वहीं सेलेब्स सिंगर की फैमिली को ढांढस बंधाते नजर आ रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया के जरिए शहनाज गिल से लेकर कपिल शर्मा तक सभी उन्हें श्रद्धांजलि देते नजर आ रहे हैं.

गोली मारकर हुई हत्या

 

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दरअसल, बीती शाम यानी 29 मई रविवार को सिंगर सिद्धू मूसेवाला की गोली मारकर हत्या  (Sidhu Moose Wala Murder) कर दी गई. खबरों की मानें तो एक दिन पहले ही उनकी पंजाब सरकार द्वारा सिक्योरिटी हटाई गई थी, जिसके बाद वह अपन दो दोस्तों के साथ गाड़ी से जा रहे थे तभी एक गाड़ी सवार दो लोंगो ने सिंगर पर गोलियां चलाई, जिसमें सिंगर सिद्धू घायल हो गए और  उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां उनकी मौत हो गई. सिंगर की मौत की खबर सुनते ही फैंस सोशलमीडिया पर फैंस और सेलेब्स ने अपना दुख जताया है.

 

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सेलेब्स ने जताया दुख

 

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सिद्धू मूसेवाला की हत्या पर जहां फैंस दोषियों को सजा दिलाने की बात कह रहे हैं तो वहीं पंजाबी कलाकार समेत बौलीवुड और टीवी स्टार्स कपिल शर्मा, शहनाज गिल, अली गोनी जैसे सितारे सिंगर के परिवार को सांत्वना देने के साथ-साथ अपना दुख बयां कर रहे हैं. बता दें, 28 साल के शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ ​​सिद्धू मूसेवाला की पंजाब ही नहीं देश में भी अच्छी फैन फॉलोइंग हैं. हालांकि वह कई विवादों का भी हिस्सा रह चुके हैं. दरअसल, सिंगर पर खुलेआम गन कल्चर को बढ़ावा देने का भी इल्जाम है. वहीं वह हाल ही में वह कांग्रेस पार्टी का भी हिस्सा बने थे, जिसके चलते उन्होंने चुनाव भी लड़ा था. लेकिन वह चुनाव हार गए थे.

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बर्बाद होता युवाओं का भविष्य

35 वर्षकी आयु में युवा अब बचत कम कर रहे हैं और अपनी सारी कमाई आज ही शौकों में पूरा कर रहे हैं. कोविड से यह खर्चीलापन बड़ गया है क्योंकि अकेले रहने वाला अब आज की सोचते हैं, कल का न जाने क्या होगा? जिस के निकट संबंधी कोविड की मौत के शिकार हो गए हैं, उन में तो नेगेटिविजन भर गया कि कल का क्या करूं, कल की बचत क्यों करें.

यह खतरनाक स्थिति है. बिमारी को तो असल में बचत की आदत डालनी चाहिए क्योंकि महामारी के दिनों में जब कमाई बंद हो जाए और इलाज पर खर्च बढ़ जाए तो अपनी बचत ही काम आएगी, कोविड के दिनों में तो बहुत सी जानें इसलिए गई कि इलाज, औक्सीजन, वैंटीलेटर, हास्पिटल के लायक पैसे बचे  नहीं थे.

दिक्कत यह है कि कोविड की आइसोलेशन ने लोगों को मोबाइल, लैपटौप का गुलाम बना दिया जो बारबार नया खरीदने को उकसाते रहते हैं. मोबाइल और लैपटौप पर औन लाइन जानकारी में विज्ञापन भरे ही नहीं हैं, वे पढऩे के दौरान बारबार बीच में आते हैं और अब जब तक एड फ्री साइट का पैसा न दिया गया हो, वे उन चीजों को बेचते हैं जो जरूरत की नहीं है जिन के दामों के बारे में कहीं से चैक नहीं किया जा सकता.

औफ लाइन बाजार में खरीदी का एक फायदा है कि दुकानदार अपनेआप में एक फिल्टर होता है. वह वही सामान रखता है जो ठीक है और जिसकी शिकायत करने के लिए अलग दिन ग्राहक फिर घर आ कर खड़ा न हो जाए. औफ लाइन बाजार में खरीदारी करने के लिए आनेजाने में लगने वाले समय और पैसे का एक फिल्टर होता है जो बेकार की खरीदी को रोकता है. दुकान से सामान ढो कर घर तक ले जाने के डर का एक और फिल्टर लग जाता है. अगर सामान अच्छा ओर लोकप्रिय हो तो आसपास की कई दुकानों पर वही सामान मिलने लगता है और दुकानदार मुनाफा कम कर के कंपीटिशन में सस्ता बेचते हैं.

औन लाइन खरीद में कार्ड से पेमेंट करते समय लोग भूल जाते है कि इस माह वे कितने का सामान खरीद चुके हैं. उन को छोटी चीजें याद ही नहीं रहती. पेमेंट करने के बाद डिलिवरी का समय देर से होता है तो नौंटकी दिया राम भूल जाना बड़ी बात नहीं होती. जब सामान मिलता है तो वह एक तरह से गिफ्ट लगता है और पैकेंट उसी तरह खोला जाता है मानो किसी ने गिफ्ट दिया हो.

इस मैंटिलिटी का नतीजा है कि आज के युवाओं के पास पैसा नहीं बना रहे. यूरोप, अमेरिका में सैकड़ों युवा बड़े शहरों से अब मातापिता के पास फिर शिफ्ट हो रहे हैं जहां रहना खाना मुफ्त मिलता है. जेनरेशन गैप के विवाह तो होते हैं पर अकेले मातापिता भी खुश रहते है. उन्हें दिक्कत तब होती है जब खाली हाथ बच्चे शादी के बाद आ धमकते हैं और फिर ससुरदामाद या सासबहू का विवाद शुरू हो जाता है. यदि समय रहते बचत की जाती तो यह नौबत नहीं आती.

युवाओं की पढऩे की तेज से कम होती आदत और बेबात में पिंगपिग करते मैसेज उन्हें किसी भी बात को गंभीरता से करने का समय नहीं देते. हर वह व्यक्ति जो खाली है, जब मर्जी किसी को हाई का मैसेज डाल देता है, कोई चीज फौरवर्ड कर देता है. मोबाइल हाथ में आते ही विज्ञापन भी टपकने लगते हैं और लाख कोशिश करो वे हटते नहीं है.

खर्चीले युवा न केवल एक पूरी पीढ़ी को भूखा मारेंगे, वे डैल्लेपमैंट को रोक लगा देंगे. दुनिया का विकास बचत पर हुआ. रोमन युग में सडक़ें और पानी लाने के एक्वाडक्ट बने थे ये आम लोगों की बचत के कारण. युवाओं की प्रौडक्टिविटी जब ज्यादा होती है तब वे ज्यादा खर्चा कर बचत नहीं करेंगे तो पूरी वल्र्ड इकौनौमी का कचरा बैठ जाएगा. यह कोविड और रूसी हमले की तरह है जो खतरनाक नतीजे दे सकता है.

अपना समय बचत बेकार का सामान खरीदने में न लगाएं. कुछ बनाए और उसे बनाने के लिए पढ़ कर कुछ जानकारी लें. सुखी आज और कल के लिए बचत ही सब से ज्यादा जरूरी है.

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बच्चों को सिखाएं ये 15 सोसाइटी एटिकेट्स

एक सोसाइटी में रहने वाली रवीना के बेटे को स्वीमिंग पूल में किसी बच्चे ने इतनी जोर से मारा कि उसके कान से खून ही निकलने लगा. मेरे बगल के फ्लैट में रहने वाली मेरी सहेली का 13 वर्षीय बेटा अक्सर बिना कॉलबेल बजाए ही घर के अंदर तक घुसा चला आता है. फ्लैट कल्चर के इस युग में एक कैम्पस में सैकड़ों परिवार एक साथ एक परिवार की भांति रहते हैं. यहां पर कैम्पस में ही सभी सुविधाएं होती हैं ऐसे में बच्चों को सोसाइटी में रहने के एटिकेट्स सिखाना अत्यंत आवश्यक है यूं भी  कोरोना के कारण लंबे समय तक घर में रहने के कारण आजकल बच्चे जरूरी एटिकेट्स तक भूल गए हैं ऐसे में उन्हें कैम्पस में रहने के तौर तरीके सिखाना अत्यंत आवश्यक है  क्योंकि  बच्चों की आदतें, स्वभाव और गतिविधियां उनके माता पिता की  परवरिश को ही परिलक्षित करते हैं इसलिए सोसाइटी में निवास करते समय उन्हें निम्न जरूरी एटिकेट्स सिखाना अत्यंत आवश्यक है-

1. किसी के भी घर में जाकर यहां वहां ताका झांकी न करें साथ ही भले ही दरवाजा खुला हो कॉलबेल बजाकर ही घर में प्रवेश करें.

2. सोसाइटी में निवास करने वाले बच्चे  खेल खेल में अपने आसपास के फ्लैट्स की कालबेल बजाकर भाग जाते हैं, आप उन्हें ऐसा न करने की सख्त हिदायत दें.

3. सोसाइटी की एमिनिटीज को सभ्यतापूर्वक प्रयोग करने की हिदायत दें.

4. सोसाइटी के बच्चों के साथ मित्रतापूर्वक व्यवहार करने और परस्पर लड़ाई झगड़ा न करने को कहें.

5. सोसाइटी की लिफ्ट, वेटिंग एरिया आदि में स्कैच पेन से चित्रकारी करके गन्दा न करने की हिदायत दें.

6. अक्सर बच्चे सोसाइटी की पार्किंग में खड़ी गाड़ियों के कांच तोड़ देते हैं या फिर स्क्रैच कर देते हैं उन्हें इस प्रकार की हरकतें न करने को कहें.

7. लिफ्ट और पैसेज एरिया में जोर जोर से न चीखें चिल्लाएं.

8. सोसायटी में सभी परिवार एक परिवार के समान रहते हैं इसलिए बच्चों को भी बड़ों के साथ सम्मान और छोटों के साथ प्यार से पेश आने की समझाइश दें.

9. सोसाइटी के जिम की मशीनों को अनावश्यक रूप से चलाने या वेट को उठाकर इधर उधर न पटकें.

10. सोसाइटी के गार्ड और अन्य कर्मचारियों के साथ सम्मान के साथ पेश आएं.

11. कई बार स्वीमिंग पूल में नहाते समय आपस मारपीट कर बैठते हैं ऐसे में उन्हें परस्पर झगड़ने की जगह किसी बड़े को सूचित करने को कहें.

12. अक्सर खेलते समय बच्चे बड़े पत्थर या ईंट को मार्क के तौर पर प्रयोग करते हैं फिर उसे वहीं छोड़कर भाग जाते हैं जिससे मार्ग अवरुद्ध हो जाता है आप उन्हें चीजों को प्रयोग करने के बाद यथास्थान रखने की हिदायत दें.

13. घर से बाहर निकलते समय आसपड़ोस के फ्लैट्स में ताका झांकी न करें.

14. गार्डन के पेड़ पौधों से फूल पत्ती न तोड़े और न ही बेवजह उन्हें रौंदे.

15. जिम, स्वीमिंग पूल आदि के निर्धारित समय सीमा का पालन करने को कहें.

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तो समझिए कि वह आप से दूर हो रहे हैं

प्यार कितना भी गहरा हो पर कोई भी कपल हर समय एकदूसरे के प्यार में डूबे नहीं रहते. उन्हें अपनी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है. कामकाज पर जाना पड़ता है. जिंदगी के उतारचढ़ाव सहने पड़ते हैं. मगर इन वजहों से प्यार का एहसास नहीं घटता. जब भी मिलते हैं उतनी ही शिद्दत से प्यार महसूस करते हैं.

मगर कभीकभी ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब अपने प्रेमी या पति के करीब हो कर भी आप को प्यार महसूस न हो. करीब हो कर भी वे आप को दूर लगें. अगर ऐसा है तो समझ जाइए कि वह  वाकई आप से दूर जा रहे हैं यानी आप का ब्रेकअप होने वाला है.

पहले से इस बात का आभास रहे तो इस दर्द को सहना थोड़ा आसान हो जाता है. ध्यान दीजिए आप के करीब रहने पर उन की कुछ खास शारीरिक गतिविधियों पर.

बौडी लैंग्वेज में परिवर्तन

जब आप किसी के साथ रिलेशन में होते हैं या प्यार करते हैं तो रातदिन उसे ही देखना और महसूस करना चाहते हैं. मगर जब कोई आप का दिल तोड़ जाता है या उस के लिए आप के मन में प्यार नहीं रह जाता तो उस का सामना करने या उस की तरफ देखने से भी कतराने लगते हैं.

प्यार में इंसान करीब जाने और बातें करने के बहाने ढूंढता है मगर दूरी बढ़ने पर एकदूसरे से दूर जाने के बहाने ढूंढने लगता है. कपल्स जो इमोशनली जुड़े होते हैं उन की बौडी लैंग्वेज ही अलग होती है. जैसे कि अनजाने ही एकदूसरे की ओर सर झुकाना, गीत गुनगुनाना, केयर करना और एकदूसरे की बातें ध्यान दे कर सुनना आदि.

मगर जब रिश्ता बैकअप के कगार पर पहुंच चुका होता है तो वे बातें कम और बहस ज्यादा करने लगते हैं. एकदूसरे के बगल में बैठने के बजाय आमनेसामने बैठते हैं और केयर करने के बजाए इग्नोर करने लगते हैं.

आई कांटेक्ट का घट जाना

आप उन चीजों को देखना पसंद करते हैं जो आप को पसंद होती हैं. जाहिर है मोहब्बत में नजरों का मिलना और मिला रह जाना अक्सर होता है. मगर जब आप दोनों एकदूसरे की तरफ देखते ही नजरें हटा लें, आंखों में देख कर बातें करना छोड़ दें तो समझिए आप दोनों  ब्रेकअप की ओर बढ़ रहे हैं.

इस संदर्भ में 1970 में सोशल साइकोलौजिस्ट जिक रुबिन ने कपल्स के बीच आई कांटेक्ट के आधार पर उन के रिश्ते की गहराई नापने का प्रयास किया. कपल्स को कमरे में अकेले छोड़ दिया गया. वैसे कपल्स जिन के बीच गहरा प्यार था, अधिक समय तक अपने पार्टनर को देखते पाए गए. जब कि कम प्यार रखने वाले कपल्स में ऐसी बौन्डिंग नहीं देखी गई.

विश्वास की कमी

साइकोलौजिस्ट जौन गौटमैन ने करीब 4 दशकों तक किए गए अपने अध्ययन में पाया कि जो कपल्स लंबे समय तक रिश्ते में हैं वह करीब 86 प्रतिशत समय एकदूसरे की ओर मुड़े होते हैं. ऐसा न सिर्फ अफेक्शन  की वजह से वरन एकदूसरे पर विश्वास के कारण भी होता है. वे गंभीर मुद्दों पर एकदूसरे का ओपिनियन जानने और मदद लेने का प्रयास भी करते हैं. मगर रिश्ता कमजोर हो तो विश्वास भी टूटने लगता है.

आधा अधूरा मुस्कुराना

यदि आप लंबे समय तक एकदूसरे की ओर देख कर मुस्कुराना या चुहलबाजिया करना भूल चुके हैं तो समझिये रिश्ता टूटने वाला है. सरल और अपनत्व भरी मुस्कान रिश्ते की प्रगाढ़ता का सबूत होती है. एकदूसरे से बिना किसी शर्त मोहब्बत करने वालों के चेहरे पर मुस्कान स्वाभाविक रूप से खिली होती है.

मतभेद जब बहस का रूप लेने लगे

अपने पार्टनर के साथ किसी बात पर मतभेद का होना स्वभाविक है. पर यह बहस यदि  स्वस्थ न रह कर अक्सर लड़ाई झगड़े पर खत्म होने लगे और  दोनों में से कोई भी कप्रोमाइज करने को तैयार न हो तो समझिए रिश्ता ज्यादा टिक नहीं सकता.

संवाद की कमी

किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए सहज और ईमानदार संवाद जरूरी है. पर जब आप दोनों में से किसी एक या दोनों ने आपस में संवाद कायम करना छोड़ दिया है और बहुत मुश्किल से ही कभी बातचीत हो पाती है तो रिश्ता जल्द ही दम तोड़ने लगता है. क्यों कि ऐसे में गलतफहमियां दूर करना कठिन हो जाता है.

जब दोनों ने प्रयास करना छोड़ दिया हो

आप का रिश्ता कितना भी कंफर्टेबल क्यों न रहे आप को हमेशा इस में सुधार लाने का प्रयास करते रहना चाहिए. गलती करने पर तुरंत माफी मांगना, पार्टनर को सरप्राइज देना, अपने अच्छे पक्ष सामने लाना और छोटीछोटी बातों से पार्टनर का दिल जीतने का प्रयास करना जैसी बातें रिश्ते को टूटने से बचाती है.

तारीफ बंद कर देना

मजबूत रिश्ते के लिए समयसमय पर एकदूसरे की तारीफ करना अहम होता है. जब आप दोनों एकदूसरे को ग्रांटेड लेने लगते हैं, तारीफ करना छोड़ देते हैं तो धीरेधीरे दोनों के बीच शिकायतों का दौर बढ़ने लगता है जो आप को ब्रेकअप की ओर ले जाता है.

ब्लैक कॉफी पीने से होंगे ये 9 फायदे

अगर आप भी एक कॉफी पर्सन हैं और आपको कॉफी पीना बहुत पसंद है तो आपको ये जानकर खुशी होगी कि कॉफी पीने से आपकी सेहत को भी फायदा होता है. कई लेख और रिपोर्ट में कहा गया है ब्लैक कॉफी पीना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दो से तीन कप कॉफी बिना दूध या चीनी मिलाए पीने से लिवर से जुड़ी बीमारियों के होने की आशंका कम हो जाती है. विशेषज्ञों की मानें तो कॉफी के प्यालों से लि‍वर का कैंसर होने की आशंका भी कम हो जाती है.

ब्लैक कॉफी पीने के ये हैं फायदे-

1. एक्सट्रा फैट होता है कम

कैफीन से आपके कमर के आस पास के एक्स्ट्रा फैट को कम करने में सहायक है. पर अगर आप ज्यादा कॉफी पीती हैं तो शायद कैफीन आपकी वेस्ट घटाने में मदद न कर पाए.

2. कॉफी में हैं एशेंशियल न्युट्रीऐंट्स

एक कप कड़वे घोल के अलावा भी कॉफी में बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं. नियमित कॉफी पीने से आप एनर्जाइज्ड फील करेंगी.

3. कैंसर के खतरे को करे कम

रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी कैंसर सेल्स को ग्रो करने से रोकता है. कॉफी पीने से पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में एंडोमेट्रीयल कैंसर के चांसेस कम हो जाते हैं.

4. स्ट्रोक का रिस्क करे कम

स्ट्रोक आना आज एक कॉमन सिंपटम है. पर कॉफी स्ट्रोक के रिस्क को भी कम कर देता है.

5. शरीर में लाए स्फूर्ति

एक कप कॉफी आपको ऊर्जा से भर देती है. वर्क आउट करने से पहले भी आप एक कप कॉफी पी सकती हैं.

6. डीप्रेशन में सहायक

कई बार हम अकेलेपन के अंधेरों में डूबने लगते हैं. कॉफी आपको अवसादग्रस्त होने से भी बचाता है.

7. उम्र बढ़ाए, बस एक कप कॉफी

रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी पीने वाले लोगों कि उम्र लंबी होती है. क्योंकि कॉफी पीने से हृदय रोग के खतरे कम हो जाते हैं.

8. दांतों की सुरक्षा

ब्लैक कॉफी आपके दांतों की भी सुरक्षा करता है. अगर आप 2 बार ब्रश करने में आलस करती हैं, तो ब्लैक कॉफी को अपनी रोजाना जिंदगी में शामिल करें.

9. लिवर को रखें स्वस्थ

अगर किसी को पहले से ही लिवर से जुड़ी कोई बीमारी है तो उनके लिए भी ब्लैक कॉफी पीना फायदेमंद है. कॉफी में पाए जानेवाले विभिन्न तत्व लिवर पर अच्छा असर डालते हैं.

कहीं ना लगे कॉफी की लत

सुबह की शुरुआत अकसर लोग कॉफी के साथ करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कॉफी अगर अधिक मात्रा में ली जाए तो आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

सूत्रों की मानें तो कॉफी अधिक पीने से अलग-अलग लोगों के शरीर पर इसका अलग-अलग असर पड़ता है. कहते हैं अगर कैफीन की 1000 mg से अधिक मात्रा ली जाए तो उस इंसान को इसकी लत पड़ जाती है. कैफीन को अधिक मात्रा में लेने से नर्वसनेस, नींद ना आना, उत्तेजित होना, हार्टबीट बढ़ना, ज्यादा यूरीन आना जैसी परेशानी हो सकती हैं.

यही नहीं अगर 10 ग्राम से ज्यादा कैफीन ली जाए तो सांस लेने में दिक्कत आ सकती और मौत भी हो सकती है. अधिक कॉफी पीने से लोगों को सिरदर्द, नकसीर, उल्टी आना जैसी परेशानियों से हमेशा शिकायत रहती है.

कॉफी की लत अगर आप छोड़ना चाहते हैं तो जितना हो सके पानी खूब पिएं. मन ना माने तो कॉफी की जगह गर्म पानी में मिंट या दालचीनी डालकर पिएं.

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मेरा पति सिर्फ मेरा है: भाग-3

रोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो सास ने दबी आवाज मे कहा,” मैं समझती हूं तुम्हारा दर्द. देखो मैं एक बाबा को जानती हूं. बहुत पहुंचे हुए हैं. वे भभूत दे देंगे या कोई उपाय बता देंगे. सब ठीक हो जाएगा. तुम चलो कल मेरे साथ.”

अनुषा को बाबाओं और पंडितों पर कोई विश्वास नहीं था. मगर सास समझाबुझा कर जबरन उसे बाबा के पास ले गई. शहर से दूर वीराने में उस बाबा का आश्रम काफी लंबाचौड़ा था. आंगन में भक्तों की भीड़ बैठी हुई थी. बाबा की आंखें अनुषा को शराब जैसी जहरीली लग रही थी. उस पर बारबार बाबा का भक्तों पर झाड़ू फिराना फिर अजीब सी आवाजें निकालना. अनुषा को बहुत कोफ्त हो रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि टीना को उस की जिंदगी से दूर करने में भला बाबा की क्या भूमिका हो सकती है? इस के लिए तो उसे ही कुछ सोचना होगा. वह चुपचाप बैठ कर आगे का प्लान अपने दिमाग में बनाने लगी.

इधर कुछ समय में उस का नंबर आ गया. बाबा ने वासना पूरित नजरों से उस की तरफ देखा और फिर उस के हाथों को पकड़ कर पास बैठने का इशारा किया. अनुषा को यह छुअन बहुत घिनौनी लगी. वह मुंह बना कर बैठी रही. सास ने समस्या बताई. बाबा ने झाड़ू से उस की समस्या झाड़ देने का उपक्रम किया.

फिर बाबा ने उपाय बताते हुए कहा, “बच्ची तुम्हें 18 दिन केवल एक वक्त खा कर रहना होगा और वह भी नमकीन नहीं बल्कि केवल मीठा. इस के साथ ही 18 दिन का गुप्त अनुष्ठान भी चलेगा. काली बाड़ी के पास वाले मंदिर में रोजाना 11बजे मैं एक पूजा करवाउंगा. इस में करीब ₹90,000 का खर्च आएगा.”

“जी बाबा जी जैसा आप कहें,” सास ने हाथ जोड़ कर कहा.

अनुषा उस वक्त तो चुप रही मगर घर आते ही बिफर पड़ी,” मांजी, मुझे ऐसे उलजलूल उपायों पर विश्वास नहीं. मैं कुछ नहीं करने वाली. अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं ताकि कोई बेहतर ढूंढ़ सकूं.”

अनुषा का गुस्सा देख कर सास चुप रह गईं. इधर अनुषा देर रात तक सोचती रही. वह इतनी जल्दी अपनी परिस्थितियों से हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने काफी सोचविचार किया और फिर उसे रास्ता नजर आ ही गया.

अनुषा ने पहले टीना के बारे में अच्छे से खोजखबर ली ताकि उस की कमजोर नस पकड़ सके. सारी जानकारियां एकत्र की. जल्द ही उसे पता लग गया कि टीना का पति रैडीमेड कपड़ों का व्यापारी है और पास के मार्केट में उस की काफी बड़ी शौप भी है. बस फिर क्या था अनुषा ने अपनी योजना के हिसाब से चलना शुरू किया.

सब से पहले एक ड्रैस खरीदने के बहाने वह उस दुकान में गई. दुकान का मालिक यानी टीना का पति विराज करीब 40 साल का एक सीधासादा सा आदमी था, जिस के सिर पर बाल काफी कम थे. वैसे पर्सनैलिटी अच्छी थी. अनुषा ने बातों ही बातों में बता दिया कि वह भी विराज के शहर की है. फिर क्या था विराज उस पर अधिक ध्यान देने लगा.

अनुषा ने एक महंगा सूट खरीदा और घर चली आई. 2-3 दिन बाद वह फिर उसी दुकान में पहुंची और कुछ कपड़े खरीद लिए. विराज ने उस के लिए स्पैशल चाय मंगवाई तो अनुषा भी बैठ कर उस से ढेर सारी बातें करने लगी. धीरेधीरे उस ने यह भी बता दिया कि उस का पति भुवन टीना के औफिस में काम करता है. विराज टीना और भुवन के रिश्ते के बारे में पहले से जानता था. इसलिए अनुषा से और भी ज्यादा जुङाव महसूस करने लगा.

अनुषा अब अकसर विराज की शॉप पर जाने लगी और उसे देर तक बातें भी करती. जल्द ही विराज से उस की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि विराज ने उसे घर आने को भी आमंत्रित कर दिया.

अगले ही दिन अनुषा टीना की गैरमौजूदगी में विराज और टीना के घर पहुंच गई. विराज ने उस की काफी आवभगत की और दोनों ने दोस्त की तरह साथ समय व्यतीत किया. चलते समय अनुषा ने जानबूझ कर टीना के बैड पर कोने में अपना हेयर पिन रख दिया. रात में जब टीना ने वह हेयर पिन देखा तो बौखला गई और विराज से सवाल करने लगी. विराज ने किसी तरह बात को टाल दिया.

मगर 2 दिन बाद ही अनुषा फिर विराज के घर पहुंच गई. इस बार वह बाथरूम में अपना दुपट्टा लटका आई थी.

टीना ने जब लैडीज दुपट्टा बाथरूम में देखा तो आपे से बाहर हो गई और विराज पर उंगली उठाने लगी,” यह दुपट्टा किस का है विराज, बताओ किस के साथ रंगरेलियां मना रहे थे तुम?”

“पागल मत बनो टीना. मैं तुम्हारी तरह किसी के साथ रंगरेलियां नहीं मनाता,” विराज का गुस्सा भी फूट पड़ा.

“तुम्हारी तरह? क्या कहना चाहते हो तुम? भूलो मत मेरे पिता के पैसों पर पल रहे हो. मुझ को धोखा देने की बात सोचना भी मत.”

“देखो टीना मैं मानता हूं एक महिला से मेरी दोस्ती हुई है. अनुषा नाम है उस का. मगर वह घर पर सिर्फ चाय पीने आई थी. यकीन जानो हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम रंगरेलियां मनाना कह सको. ”

अब टीना थोड़ी सावधान हो गई थी. उसे महसूस होने लगा था कि बदला लेने के लिए अनुषा उस के पति पर डोरे डाल रही है. टीना ने अब भुवन के घर आनाजाना कम कर दिया मगर उस के साथ वक्त बिताना नहीं छोड़ा.

इधर अनुषा फिर से विराज के घर पहुंची. इस बार वह विराज के लिए खूबसूरत सा गिफ्ट ले कर आई थी. यह एक खूबसूरत कविताओं का संग्रह था. विराज को कविताओं का बहुत शौक था. 2-3 घंटे दोनों कविताओं पर चर्चा करते रहे. इस बीच योजनानुसार अनुषा ने अपनी इस्तेमाल की हुई एक सैनिटरी नैपकिन टीना के बाथरूम के डस्टबिन में डाल दिया. फिर विराज से इजाजत ले कर वह घर लौट आई.

अनुषा को अंदेशा हो गया था कि आज रात या कल सुबह टीना कोई न कोई ड्रामा जरूर करेगी. हुआ भी यही. सुबहसुबह टीना अनुषा के घर धमक आई.

वह बाहर से ही चिल्लाती आ रही थी,” मेरे पति पर डोरे डाले तो अच्छा नहीं होगा अनुषा. मेरा पति सिर्फ मेरा है.”

हंसती हुई अनुषा किचन से बाहर निकली और बोल पड़ी,” मान लो मैं तुम्हारे पति पर डोरे डाल रही हूं. तो अब बताओ क्या करोगी तुम? मेरे पति पर डोरे डालोगी? वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो. आगे बताओ और क्या करोगी?”

अनुषा का सवाल सुन कर वह बिफर पड़ी. चीखती हुई बोली,” खबरदार अनुषा मेरे पति की तरफ आंख उठा कर भी मत देखना. वरना तुम्हारे पति को नौकरी से निकाल दूंगी.”

“तो निकाल दो न टीना. मैं भी यही चाहती हूं कि वह तुम्हारे चंगुल से आजाद हो जाए. हंसी आती है तुम पर. मेरे पति के साथ गलत रिश्ता रखने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं. मगर तुम्हारे पति की और कोई देख भी ले तो तुम्हें समस्या हो जाती है. कैसी औरत हो तुम जो औरत का दर्द ही नहीं समझ सकतीं? दर्द तुम नहीं सह सकतीं वह दूसरों को क्यों देती हो?”

दूर खड़ा भुवन दोनों की बातें सुन रहा था. उस की आंखें खुल गई थीं. मन ही मन अनुषा की तारीफ कर रहा था. कितनी सचाई से उस ने गलत के खिलाफ आवाज उठाई थी.

अब तक टीना भी सब के आगे अपना मजाक बनता देख संभल चुकी थी. अनुषा की बातों का असर हुआ था या फिर खुद पर जब बीती तो उस जलन के एहसास ने टीना को सोचने पर विवश कर दिया था. उस के पास कोई जवाब नहीं था.

घर लौटते समय वह फैसला कर चुकी थी कि आज के बाद भुवन पर वह अपना कोई हक नहीं रखेगी.

सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता- समीक्षा भटनागर

मशहूर बौलीवुड अदाकारा समीक्षा भटनागर मूलत: देहरादून, उत्तराखंड की रहने वाली हैं. उन्हें बचपन से ही नृत्य व संगीत का शौक रहा. उन के इस शौक को बढ़ावा देने के मकसद से उन के पिता कृष्ण प्रताप भटनागर और मां कुसुम भटनागर देहरादून से दिल्ली रहने आ गए. यहां समीक्षा भटनागर ने अपनी कत्थक डांस अकादमी खोली. फिर 2 साल बाद अपनी प्रतिभा को पूरे विश्व तक पहुंचाने के मकसद से वे मुंबई आ गईं. सीरियल ‘एक वीर की अरदास वीरा’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में वे अभिनय कर चुकी हैं.

बतौर निर्माता कुछ म्यूजिक वीडियो और एक लघु फिल्म ‘भ्रामक’ भी समीक्षा ने बनाई, जिसे नैटफ्लिक्स पर काफी सराहा गया. इन दिनों वे ‘धूपछांव’ सहित करीबन पांच फिल्में कर रही हैं.

प्रस्तुत हैं समीक्षा भटनागर से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

देहरादून जैसे छोटे शहर से मुंबई आ कर फिल्म अभिनेत्री बनने की यात्रा कैसी रही?

मेरी राय में हर लड़की को बड़ेबड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करने का हक है. सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता. मेरे सपनों को पूरा करने में, मेरे पैशन को आगे बढ़ाने में मेरे पिता कृष्ण प्रताप भटनागर व मां कुसुम भटनागर ने मेरा पूरा सहयोग किया. मैं ने अपनी मां से ही कत्थक नृत्य सीखा है. वे बचपन से कत्थक नृत्य करती रही हैं. उन की इच्छा थी कि मैं भी कत्थक नृत्य सीखते हुए आगे बढ़ूं. मैं गाती भी हूं. मैं भी अपने पैशन के प्रति पूरी लगन से जुड़ी रही.

देहरादून से दिल्ली आने के बाद मैं ने काफी कुछ सीखा. कुछ समय बाद मैं ने महसूस किया कि यदि मुझे रचनात्मक क्षेत्र में कुछ बेहतरीन काम करना है, तो दिल्ली से मुंबई जाना होगा. इसलिए मुंबई आ गई. मुंबई पहुंचते ही मुझे अच्छा रिस्पौंस मिला. मुझे पहला टीवी सीरियल ‘एक वीर की अरदास वीरा’ करने का अवसर मिला.

अकसर देखा जाता है कि टीवी सीरियल में शोहरत पाने के बाद कलाकार थिएटर की तरफ मुड़ कर नहीं देखते. आप के सीरियल लोकप्रिय थे. फिर भी आपने थिएटर किया?

मुझे टीवी सीरियल में अभिनय करते देख लोग प्रशंसा कर रहे थे.लेकिन मैं अपने अभिनय से संतुष्ट नहीं हो रही थी. एक कलाकार के तौर पर मुझे लग रहा था कि मेरे अंदर इस से अधिक बेहतर परफौर्म करने की क्षमता है.

पर कहीं न कहीं गाइडैंस की जरुरत मुझे महसूस हुई. यह थिएटर में ही संभव था. थिएटर में मेरे निर्देशक मुझे डांटते थे. वे कहते थे कि एक ही लाइन को हर बार कुछ अलग तरह से बोलो. थिएटर करते हुए मेरे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ा. वैसे भी मैं अपनेआप को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करती रहती हूं. मैं अपने स्किल पर काम करती रहती हूं. मैं खुद अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं होती. थिएटर पर मैं ने ‘रोशोमन ब्लूज’ नामक नाटक के 70 से अधिक शो में अभिनय किया. उस के बाद मुझे फिल्में मिलीं.

आप की पहली फिल्म तो ‘कलेंडर गर्ल’ थी?

मैं अपनी पहली फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ को मानती हूं. वैसे मैं ने औडिशन देने के बाद फिल्म ‘कलैंडर गर्ल’ में बिजनैस ओमन का छोटा सा कैमियो किया था. मेरा सपना तो सिल्वर स्क्रीन ही है. मगर मैं ने शुरू में टीवी पर काम किया क्योंकि फिल्म नगरी में मैं किसी को जानती नहीं थी. जैसे ही मुझे अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर मिला, मैं ने रुकना उचित नहीं समझ. टीवी एक ऐसा माध्यम है, जहां आप जल्दी सीखते हैं. टीवी पर काम करने से आप की परफौर्मैंस को ले कर तुरंत लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, जिसे समझ कर आप अपने अंदर सुधार ला सकते हैं. टीवी पर काम करते हुए हम संवाद को जल्द से जल्द याद करना सीख जाते हैं. हमारी संवाद अदायगी सुधर जाती है.

फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ में आप को पहली बार सनी देओल, बौबी देओल, श्रेयश तलपड़े सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला था. उस वक्त आप के मन में किसी तरह का डर था या नहीं?

जब मैं टीवी सीरियल कर रही थी, उस वक्त एक सहायक निर्देशक ने मुझ से कहा था कि मैडम आप खूबसूरत हैं और अभिनय में माहिर हैं. आप को फिल्में करनी चाहिए. उस वक्तमैं ने उन से कहा था कि मौका मिलने पर वे भी कर लूंगी.

फिर एक दिन उसी ने मुझे फोन कर के ‘पोस्टर बौयज’ के लिए औडीशन कर के भेजने के लिए कहा कि मेरे पास आडिशन की स्क्रिप्ट आई और मैं ने भी आडिशन कर के भेज दिया. जिस दिन मेरे पास आडिशन की स्क्रिप्ट आई, उस के तीसरे दिन मैं इस फिल्म की शूटिंग कर रही थी. तो मैं ने सोच लिया था कि अब मुझे आगे बढ़ते जाना है. मैं ने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की थी. पहले ही दिन मेरा 4 पन्ने का दृश्य था. इस सीन में मैं फिल्म के अंदर बौबी को डांटती हूं.

इस के मास्टर सीन के फिल्मांकन में तालियां बज गईं और मेरा आत्मविश्वास अचानक बढ़ गया. बौबी सर ने काफी सपोर्ट किया. श्रेयश तलपड़े से अच्छी सलाह मिली. मुझे कभी इस बात का एहसास ही नही हुआ कि मैं बड़े कलाकारों के साथ काम कर रही हूं. फिल्म के प्रदर्शन के बाद मेरे व बौबी सर के अभिनय की काफी तारीफ हुई. लेकिन इस फिल्म को बौक्स औफिस पर जिस तरह की सफलता मिलनी चाहिए थी उस तरह की नहीं मिली. अब मुझे फिल्म ‘धूपछांव’ के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार है.

फिल्म ‘धूप छांव’ किस तरह की फिल्म है. इस फिल्म में आप को क्या खास बात नजर आई?

मैं हमेशा एक कलाकार के तौर पर खुद को ऐक्सप्लोर करती हूं. मैं इस बात में यकीन नहीं करती कि आप ऐसा कर लोगे तो आप को किरदार मिलने लगेंगे.एक दिन निर्देशक हेमंत सरन ने मुझे इस फिल्म का औफर दिया, जिस में पारिवारिक मूल्यों की बात की गई है. रिश्तों की जो अहमियत खत्म हो गई है, उस पर यह फिल्म बात करती है.

जब आप संयुक्त परिवार या अपने परिवार के साथ रहते हैं तब आप को एहसास होता है कि परिवार कितनी अहमियत रखता है. आप बेवजह बाहर खुशियां तलाश रहे थे. फिल्म ‘धूपछांव’ में भाई, पतिपत्नी के रिश्तों की बात की गई है. यदि पति नहीं है, तो पत्नी किस तरह जिंदगी जी रही है, उस की बात की गई है. इस में जीवनमूल्यों को अहमियत दी गई है. इस में भावनाओं का सैलाब है. फिल्म ‘धूपछांव’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी.

इस के अलावा और कौन सी फिल्में कर रही हैं?

‘धूपछांव’ के अलावा मैं ने एक फिल्म ‘जागीपुर’ की है. इसे हम ने भारतबंगलादेश की सीमा पर फिल्माया है. इस में कुछ राजनीतिक बातों के अलावा रिश्तों पर बात की गई है. मैं ने इस में वकील का किरदार निभाया है, जोकि अपने भाई के लिए लड़ती है. इस में मेरे साथ जावेद जाफरी भी हैं. वे भी वकील हैं.

एक फिल्म ‘द एंड’ की है, जोकि हिंदी व पंजाबी 2 भाषाओं में बनी है. इस फिल्म में मेरे साथ देव शर्मा, दिव्या दत्ता, दीप सिंह राणा भी हैं. इस के अलावा एक हास्यप्रधान वैब सीरीज ‘जो मेरे आका,’ की जिस में मेरे साथ श्रेयश तलपड़े व कृष्णा अभिषेक भी हैं.

आप ने अपने गायन स्किल के ही चलते म्यूजिक वीडियो बनाए. पर कत्थक डांस के लिए कुछ करने वाली हैं?

सोशल मीडिया पर मैं अपने कत्थक नृत्य के वीडियो डालती रहती हूं. इस के अलावा मेरी एक फिल्म ‘धड़के दिल बारबार’ है, जिस में मेरा किरदार एक क्लासिक डांस टीचर का है, जोकि बच्चों को क्लासिकल डांस सिखाती है. फिल्म की शुरुआत ही मेरे कत्थक डांस के साथ होती है. इस के अलावा मैं कत्थक पर कुछ खास वीडियो भी बनाने वाली हूं.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहती हों?

मैं हमेशा अलग तरह के किरदार निभाती आई हूं. मैं प्रियंका चोपड़ा की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं. मैं ने उन की फिल्म ‘बर्फी’ देखी थी. इस में उन का अभिनय सामान्य अभिनय नहीं था. इसी तरह मुझे ‘मर्दानी’ पसंद है. मैं ने भी जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट में ट्रेनिंग ले रखी है. बाइक चला लेती हूं. मुझे मेरी आर्मी पृष्ठभूमि वाला किरदार निभाने की इच्छा है. देशभक्ति वाला किरदार निभाना है.

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‘हर परिवार एक रोजगार ‘ के लक्ष्य को साधेगी यूपी सरकार

“हर परिवार एक रोजगार ” प्रदेश की भाजपा सरकार का संकल्प है. विधानसभा चुनाव-2022 के पहले पार्टी की ओर से जारी लोक कल्याण संकल्पपत्र-2022 में भी इसका जिक्र है.

योगी-2.0 में इस लक्ष्य के प्रति सरकार मजबूती से कदम भी बढ़ा रही है. हर परिवार के एक युवा सदस्य को रोजगार मिले यह सुनिश्चित कराने के लिए सरकार परिवार कार्ड भी बनाने जा रही है.

बजट में भी एमएसएमई सेक्टर पर खास फोकस है. युवा स्थानीय स्तर पर लगने वाली इकाइयों के लिए दक्ष हों इसके लिए विश्वकर्मा श्रम सम्मान के बजट में करीब 6 गुना की वृद्धि की गई है. 2021-2022 में इस मद में 2040 लाख रुपये का प्रावधान था जबकि मौजूदा बजट में 11250 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है. कलस्टर में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से इनकी संभावना बढ़ जाती है. चूंकि ऐसी जगहों पर बल्क में उत्पादन होता है.

लिहाजा खरीदने वाले आसानी के चलते खुद यहां आते हैं. सरकार ने लघु उद्योग क्लस्टर विकास योजना के मद में बजट बढ़ाकर 3200 लाख रुपए से 6500 लाख रुपये कर दिया है. जिला स्तर पर स्थापित इंडस्ट्रियल स्टेट में बेहतर बुनियादी सुविधाएं और परिवेश हों इसके लिए इस बजट में पिछले बजट की तुलना में करीब दोगुने 500 लाख का प्रावधान किया गया है.

औद्योगिक क्षेत्रों में महिलाओं एवं लड़कियों की सुरक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए बजट में 1200 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है.यही नहीं बजट में छह जिलों में नए इंडस्ट्रियल स्टेट की स्थापना का भी बजट में प्रावधान है. इसके लिए बजट में 5000 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है. इंडस्ट्रियल स्टेट में अवस्थापना सुविधाओं के उच्चीकरण के लिए बजट को 560 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2000 लाख रुपए कर दिया गया है. अयोध्या में सीपेट केंद्र के लिए 3000 लाख और वाराणसी के सीपेट केंद्र में वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए 1000 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है.

उल्लेखनीय है कि एमएसएमइ स्थानीय स्तर पर रोजगार और स्वरोजगार के लिहाज से असीम संभावनाओं का क्षेत्र है. वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान भी इस सेक्टर ने इसे साबित किया है. पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में एमएसएमई सेक्टर के निर्यात में 30 फीसद की वृद्धि इसका सबूत है. इस निर्यात में भी 70 फीसद से अधिक  योगदान ओडीओपी का है. योगी-1.0 में अकेले ओडीओपी से 25 लाख लोगों को रोजगार और स्वरोजगार मिला था. सरकार का लक्ष्य ओडीओपी के जरिए अगले पांच साल में निर्यात एवं रोजगार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है. इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर बजट 2022-2023 में सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के लिए उदारता से बजट का प्राविधान भी किया है.

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