Bigg Boss 18 विनर करणवीर मेहरा को नहीं मिली प्राइज मनी, इस चैनल को लेकर कही ये बड़ी बात

Bigg Boss 18 :  बिग बौस 18 विनर करणवीर मेहरा इन दिनों सुर्खियों में छाए हुए हैं. कभी वह अपने लवलाइफ के चलते लाइमलाइट में बने रहते हैं, तो कभी वह अपने प्रोफेशनल लाइफ के कारण चर्चे में रहते हैं. हाल ही में करणवीर मेहरा भारती सिंह के पौडकास्ट में नजर आए. उन्होंने बिग बौस में जीतने वाले प्राइज मनी के बारे में ताजा अपडेट दिया.

खतरों के खिलाड़ी 14 के विनर थे करणवीर

करणवीर मेहरा ने कहा कि बिग बौस 18 से पहले मैंने खतरों के खिलाड़ी 14 जीता था. इस शो के लिए उन्हें पहले ही पुरस्करा राशि मिल चुकी थी. इसके अलावा उन्हें जो कार मिली थी, उसे पहले ही बुक करवा लिया गया था.

करणवीर मेहरा ने कहा,  ‘कलर्स चैनल आपको नाम देता है’

करणवीर ने आगे ये भी बताया कि ‘खतरों के खिलाड़ी 14’ कलर्स के साथ उनके लिए पहला शो था. अब मेरा इस चैनल को छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. करणवीर ने कलर्स की तारिफ की और कहा कि यह आपको नाम देता है. लेकिन करणवीर ने ये भी कहा कि बिग बौस 18 के लिए मेरा 50 लाख रुपए विनिंग अमाउंट है पर यह अभी आना बाकी है.

मेरी जीत में हर किसी ने योगदान दिया है

पौडकास्ट में जब करणवीर से पूछा गया कि क्या उनकी ‘बिग बौस 18’ की जीत स्क्रिप्टेड थी? तो करणवीर ने हंसते हुए कहा कि ट्रौफी जीतने के लिए उन्हें अपनी कार और घर की कीमत चुकानी पड़ी.
हर किसी ने मेरी जीत में किसी न किसी तरह से योगदान दिया है.मैं अंदर ही अंदर मजे कर रहा था और जीतने के बारे मैं कुछ नहीं सोच रहा था.मेरा वीकली अलग-थलग सा रहा इसलिए जीतना या हारना ज्यादा मायने नहीं रखता था.

आपको बता दें कि करणवीर और चुम दरांग के अफेयर के चर्चे बिग बौस हाउस से शुरू हुआ. इनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया. अक्सर दोनों को साथ में स्पौट किया जाता है. कुछ दिनों पहले ही करणवीर ने एक फोटो शेयर कर चुम के लिए अपने प्यार को इजहार किया था.

नुसरत भरूचा स्टारर ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ ने पूरे किए 7 साल

Nushrratt Bharuccha : सात साल पहले, कार्तिक आर्यन, नुसरत भरूचा और सनी सिंह की फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ (2018) ने दोस्ती, प्यार और धोखे की अनोखी कहानी पेश करते हुए रोमांटिक कौमेडी को नया रूप दिया. इस ब्लौकबस्टर फिल्म में नुसरत भरूचा ने स्वीटी का किरदार निभाया, जो चालाक, आकर्षक और यादगार था.

करियर की शुरुआत 

नुसरत भरूचा ने अपने करियर की शुरुआत छोटे परदे यानि टीवी से की थी. एक्ट्रेस ने बहुत ही कम समय में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में सुर्खियां बटोर ली थी. नुशरत साल 2022 में ‘किट्टी पार्टी’ सीरियल में नजर आईं थी और आज अपनी मेहनत और टैलेंट के दम पर बॉलीवुड स्टार बनी हैं. सीरियल ‘किट्टी पार्टी’ के बाद वह दूसरे शो ‘सेवन’ में नजर आईं. छोटे पर्दे से करियर की शुरुआत करने वाली नुसरत ‘लव सेक्स और धोखा’, ‘प्यार का पंचनामा’, ‘कल किसने देखा’, ‘आकाश वाणी’, ‘डर @द मौल ‘, ‘मेरुठिया गैंगस्टर’ और ‘प्यार का पंचनामा 2’ जैसे शानदार फिल्मों में बेस्ट अभिनय किया.

लोकप्रियता की नई ऊंचाई

नुसरत भरूचा ने टीवी दुनिया को छोड़ फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म ‘जय संतोषी मां’ से की जो साल 2006 में रिलीज हुई थी. शुरुआत में उनकी फिल्में बौक्स औफिस पर धूम नहीं मचा पाईं. साल 2011 में कार्तिक आर्यन के साथ लव रंजन की फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ में काम करने का मौका मिला और इस फिल्म से एक्ट्रेस की किस्मत बदल गई. उनका किरदार सिर्फ एक आम प्रेमिका नहीं था—वह स्मार्ट, समझदार और अपने फैसलों में मजबूत थी, जिससे दर्शकों को उनसे प्यार और नफरत दोनों हुई

गजब का ट्रांसफौर्मेशन

छोटे पर्दे पर अपनी शानदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाली नुसरत भरूचा ने जैसे ही बॉलीवुड में एंट्री ली उनका लुक पूरी तरह से बदल गया। बॉलीवुड स्टार बनने के बाद एक्ट्रेस और भी ज्यादा ग्लैमरस दिखने लगी हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को नुसरत भरूचा का टीवी सीरियल के दौर का लुक याद होगा. सिंपल सी दिखने वाली ये एक्ट्रेस रियल लाइफ में बेहद खूबसूरत लगती हैं. सोशल मीडिया पर उनकी लेटेस्ट और पुरानी फोटोज देख आप भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे. एक्ट्रेस का गजब का ट्रांसफॉर्मेशन आपको भी इंस्पॉयर करेंगा। कुछ ही सालों में एक्ट्रेस का लुक इतना बदल गया!

बौलीवुड में एक खास पहचान

फिल्म की जबरदस्त सफलता और दर्शकों की सराहना ने नुसरत को बौलीवुड में एक खास पहचान दिलाई. उनकी और कार्तिक आर्यन की औनस्क्रीन केमिस्ट्री, मजेदार तकरार और दोस्ती को खूब पसंद किया गया.

दमदार अवतार में दिखेंगी

वर्कफ्रंट की बात करें तो नुसरत भरूचा जल्द ही ‘छोरी 2’ में नजर आएंगी. यह बहुचर्चित हौरर-थ्रिलर फिल्म की अगली कड़ी होगी, जिसमें नुसरत एक दमदार अवतार में दिखेंगी. फिल्म इस साल अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज होगी.

Sandwich Generation : फैमिली को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए लौंग टर्म फाइनैंशियल संघर्ष

Sandwich Generation : भारत में सैंडविच जैनरेशन के लोग अपने पेरैंट्स और बच्चों की जिंदगी को हर संभव तरीके से सब से बेहतर बनाने पर ध्यान देते हैं, फिर भी उन्हें ऐसा लगता है कि वे अपने भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं. ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस की एक स्टडी के अनुसार 60% उत्तरदाता इस बात से सहमत हैं कि चाहे वे कितनी भी सेविंग या इन्वैस्ट कर लें, पर ऐसा लगता है कि यह भविष्य के लिए काफी नहीं हैं.”

सैंडविच जैनरेशन

सामान्यतौर पर 35 से 54 साल की उम्र के लोगों को सैंडविच जैनरेशन कहा जाता है, जिन के कंधों पर 2 पीढ़ियों यानी अपने बुजुर्ग मातापिता और बढ़ते बच्चों की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी होती है. जीवन बीमा कंपनी ने YouGov के साथ मिल कर देश के 12 शहरों में इस जैनरेशन के 4,005 लोगों का एक सर्वे किया, ताकि उन के नजरिए, उन की धारणा और वित्तीय तैयारी के स्तर को समझा जा सके.

फंसे हैं अपनी फैमिली की देखभाल के बीच

ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस के एमडी एवं सीईओ, सुमित राय का कहना है, “पिछले कुछ सालों में अपने ग्राहकों के साथ बातचीत के आधार पर हम ने इस बात को करीब से जाना है कि सैंडविच जैनरेशन के लोग किस तरह अपने मांबाप और बच्चों की देखभाल के बीच फंसे हुए हैं. वे स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहते हैं, साथ ही वे अरमानों भरी जिंदगी भी देना चाहते हैं, जिस में ‘जरूरतों’ को पूरा करने के लिए ‘ख्वाहिशों’ की कुर्बानी नहीं देनी पड़े. यही सब से बड़ी वजह है, जो उन्हें वित्तीय फैसले लेने के लिए प्रेरित करती है. और इन सब के बीच वे अकसर अपने सपनों को पीछे छोड़ देते हैं, जिस से उन्हें यह महसूस होता है कि वे भविष्य के लिए तैयार नहीं हैं.”

मनी डिस्मौर्फिया

सरल शब्दों में कहें तो मनी डिस्मौर्फिया का मतलब है अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में दुखी महसूस करना है. स्टडी के नतीजे बताते हैं कि इस जैनरेशन के लोगों में आर्थिक रूप से तालमेल का अभाव या मनी डिस्मौर्फिया है. 50% से अधिक लोग अलगअलग बातों से अपनी सहमति जताते हैं, जिस में पैसे खत्म होने की चिंता, हमेशा पीछे रह जाने और जिंदगी में कुछ अच्छा नहीं कर पाने का एहसास शामिल है. उन के वित्तीय फैसले परिवार के लिए अपनी जिम्मेदारी और प्यार पर आधारित होते हैं.

सुमित राय ने आगे कहा, “इस जैनरेशन के लोग अपनी ख्वाहिशों के बारे में जानते हैं और मानते हैं कि अपनी पसंद की प्रोडक्ट कैटिगरी में निवेश कर के भविष्य की अच्छी तरह से योजना बनाना बेहद जरूरी है. लेकिन हमारी इस स्टडी से कुछ दिलचस्प बातें भी सामने आई हैं. उन में इस तरह के ऐक्टिव इन्वेस्टमैंट को अगले 1-2 सालों तक बरकरार रखने में काफी कम रुचि दिखाई देती है. इस के अलावा उन्हें पहले से तय किए गए लक्ष्यों के लिए इन्वेस्टमैंट का भी समय से पहले उपयोग करना पड़ा है. उन्हें लगता है कि वे कमजोर जमीन पर खड़े हैं, जिस में कोई हैरानी की बात नहीं है.”

पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी

अगर उन के 5 सब से पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी यानी लाइफ़ इंश्योरैंस, हैल्थ इंश्योरैंस, इक्विटी और बैंक एफडी की बात की जाए, तो इन सभी कैटिगरी में 60% से भी कम लोगों ने अपने इन्वेस्टमैंट को बरकरार रखा है और इस से भी कम लोग अगले 1-2 सालों तक इसे बरकरार रख पाने की उम्मीद करते हैं. इस स्टडी में आगे की जांच करने पर पता चला कि इन सभी प्रोडक्ट कैटिगरी को समय से पहले समाप्त कर दिया गया है, जिस का सीधा मतलब यह है कि उन्होंने पहले से तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करने से पहले ही इन का उपयोग कर लिया था. पैसों की सख्त जरूरत की वजह से उन्हें समय से पहले अपने इन्वेस्टमैट का उपयोग करना पड़ा, जबकि छुट्टियां, त्यौहारों के दौरान खर्च जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतें भी इस के गैर महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में उभर कर सामने आईं.

फाइनैंशियल प्लानिंग पर भरोसा

इस जैनरेशन के लोगों की ख्वाहिशें मुख्य रूप से अपने बच्चों के भविष्य (उन की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे जुटाना), अपने मातापिता की सेहत से जुड़ी जरूरतों और परिवार के जीवनस्तर को बेहतर बनाने पर केंद्रित हैं. उन्हें फाइनैंशियल प्लानिंग पर काफी भरोसा है. 94% लोग बताते हैं कि उन्होंने या तो हर पहलू को ध्यान में रख कर फाइनैंशियल प्लानिंग की है या कुछ हद तक इस की योजना बना रखी है. इन में से ज्यादातर, यानी 72% लोग यह भी मानते हैं कि उन्होंने कुछ खास अरमानों को पूरा करने के लिए इन्वेस्टमैंट किया है.

क्रैडिट की मदद से जरूरतों को पूरा

इस के बावजूद, 64% लोगों ने बताया कि वे अपनी कम समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी न किसी तरह के क्रैडिट का उपयोग करते हैं, जबकि 49% लोग बचत का सहारा लेते हैं. इस स्टडी से पता चलता है कि वे नकद रकम/ इनकम के साथसाथ क्रैडिट की मदद से स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करते हैं, साथ ही उन के लिए छुट्टियां बिताने, घर की मरम्मत जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करना भी सुविधाजनक हो जाता है.

रिटायरमैंट सब से बड़े अरमानों में से एक

लंबे समय के अरमानों की बात की जाए, तो 79% लोगों को यह उम्मीद होती है कि वे वित्तीय साधनों से मिलने वाले रिटर्न या मुनाफे से इन्हें पूरा करेंगे, जबकि 71% भविष्य में मिलने वाले रैगुलर इनकम से इसे पूरा करना चाहते हैं. यह जानकारी भी बड़ी दिलचस्प है कि इस जैनरेशन के लोगों के लिए रिटायरमैंट भी लंबे समय के 3 सब से बड़े अरमानों में से एक है, क्योंकि सामान्यतौर पर इस उम्र तक व्यक्ति को रैगुलर इनकम मिलना बंद हो जाता है.

Health Tips : सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है चाय ?

Health Tips :  भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक संस्कार या कहें हमारे कल्चर का हिस्सा बन चुका है. बहुत से लोगों को तो जब तक सुबह बिस्तर पर हाथ में चाय की प्याली न थमाई जाए उन की सुबह नहीं होती. फिर काम की थकन उतारनी हो, शाम की हलकी भूख या मौसम सुहाना हो, तो सब को बस चाय की याद आती है. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि चाय, चाय नहीं एक फीलिंग है जिस के बिना उन का गुजारा नहीं.

मजेदार बात तो यह भी है कि यह पेय हमारे पुरखों की देन नहीं है, बल्कि हमें अंगरेजों की दी गई एक लत है, जिसे हम ने खुद ही अमृत बना लिया है. आज समाज में चाय को ले कर हालात यस है कि अगर किसी मेहमान को चाय न दी जाए, तो इसे अपमान समझा जाता है. लेकिन क्या यह हमारी असली संस्कृति थी? क्या हमारे पूर्वज भी दिन में 5-6 कप चाय पीते थे? और अगर यह हमारे स्वास्थ्य के लिए इतनी ही अच्छी है तो डाक्टर कुछ भी बीमारी होने पर चाय पर लगाम क्यों लगाने की सलाह देते हैं?

चाय का आगमन और हमारी बदलती संस्कृति

चाय ने कैसे हमारे रसोई पर कब्जा किया उस से पहले बात करते हैं कि चाय का बीज हमारे अंदर आखिर आया कैसे? अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पाएंगे कि चाय भारतीय संस्कृति का मूल हिस्सा नहीं थी. भारत में चाय की लोकप्रियता ब्रिटिश शासन के दौरान बढ़ी. अंगरेजों को अपने चाय के व्यापार को बढ़ावा देना था, इसलिए उन्होंने भारतीयों को इसे पीने के लिए प्रेरित किया.

1610 में डच व्यापारी चाय को चीन से यूरोप ले गए और धीरेधीरे यह पूरी दुनिया की प्रिय पेय पदार्थ बन गई. भारत के तत्कालिक गर्वनर जनरल लौर्ड बैंटिक ने भारत में चाय की परंपरा शुरू करने और उस के उत्पादन की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया और 1835 में अंगरेजों ने असम में पहली बार चाय के बागान लगाए और धीरेधीरे भारतीयों को चाय का स्वाद लगाने लगे.

लेकिन इस से पहले हमारा समाज मेहमानों का स्वागत कैसे करता था क्योंकि चाय तो थी नहीं तो क्या हमारे मेहमान पानी पी कर ही उलटे पांव हो लेते थे, नहीं. पारंपरिक रूप से हमारे पूर्वज दूध, लस्सी, छाछ, नीबू पानी और मसाला दूध जैसे प्राकृतिक और पोषक पेय पर जोर देते थे. घर आए मेहमानों को ताजगी देने के लिए दही से बनी ठंडी लस्सी या फिर औषधीय गुणों से भरपूर गरम दूध दिया जाता था. गरमी के दिनों में बेल का शरबत और सत्तू का शरबत भी आम था. लेकिन आज? अगर आप किसी को लस्सी औफर कर दें, तो वह आप को घूरने लगेंगे और कुछ लोग तो कह भी दें कि अरे भई, चाय नहीं है क्या?

हर मौके पर चाय

हमारी संस्कृति या कहें हमारे खून में चाय को इस हद तक घोल दिया गया है कि यह अब मात्र एक ड्रिंक नहीं, बल्कि हर स्थिति का हल बन चुकी है.

• सर्दी हो तो चाय, गरमी हो तो चाय.

• खांसी हो तो चाय, पेट दर्द हो तो चाय.

• थकान लगे तो चाय, गप्पे लड़ानी हों तो चाय.

• मेहमान आए तो चाय, किसी से दोस्ती करनी हो तो चाय.

कभी सोचा है कि जो चाय हम बिना सोचेसमझे पी रहे हैं, वह वास्तव में कितनी फायदेमंद है? या फिर यह सिर्फ हमारी आदत बन चुकी है, जिसे हम ने आवश्यकता का नाम दे दिया है?

मिठास से भरी चाय, शरीर के लिए है नुकसानदेह

आज के समय में अगर किसी घर में मेहमान आएं और उन्हें चाय न दी जाए, तो यह असभ्यता मानी जाती है. कई जगहों पर तो इसे अपमान तक समझ लिया जाता है. यह हमारे समाज की मानसिकता को दर्शाता है कि हम किस हद तक एक विदेशी पेय के गुलाम बन चुके हैं.

जरा सोचिए, अगर किसी के घर जा कर आप कहें, “भई, लस्सी पिलाओ,” तो शायद वह अजीब नजरों से देखने लगेंगे. लेकिन अगर कोई कहे, “भई, एक कप चाय मिलेगी?” तो मेजबान खुद को अपराधी महसूस करने लगेगा कि कहीं उस ने चाय औफर करने में देर तो नहीं कर दी.

यह मानसिकता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हम ने चाय को इतना महत्त्व क्यों दे दिया?

चाय के नुकसान जिन पर कोई ध्यान नहीं देता

चाय का अति सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन हम ने तो इस के नुकसान पर ध्यान देना कब का छोड़ दिया है.

कैफीन की लत : चाय में मौजूद कैफीन शरीर को धीरेधीरे इस का आदी बना देता है. अगर किसी दिन चाय न मिले तो सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और सुस्ती होने लगती है. इस का अधिक सेवन करने से बेचैनी और नींद न आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

आयरन की कमी : चाय में मौजूद टैनिन आयरन को शरीर में अवशोषित होने से रोकता है, जिस से ऐनिमिया हो सकता है.

पाचन संबंधी दिक्कतें : खाली पेट चाय पीने से ऐसिडिटी, गैस और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ज्यादा गरम चाय पीने से मुंह और पेट में छाले भी हो सकते हैं.

हड्डियों पर असर : चाय में मौजूद फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों को कमजोर बना सकती है.

दांतों का पीलापन : ज्यादा चाय पीने से दांतों पर दाग पड़ सकते हैं और ओरल हैल्थ पर बुरा असर पड़ सकता है.

चाय का असल प्रभाव समझने के लिए जरूरी है कि हम इसे संतुलित मात्रा में पीएं, न कि हर समय चाय के बहाने ढूंढ़ें.

बहरहाल, चाय को ले कर लोगों में दीवानगी इस कदर है कि लोग छोटे बच्चों को ही चाय पिलाना शुरू कर देते हैं. अगर उन्हें खांसी, जुखाम हो जाए तो परिवार के बड़े सब से पहले थोड़ी से चाय पिलाने की सलाह देते हैं और अनजाने में मातापिता बच्चों को ही चाय की लत डाल देते हैं. बच्चों में चाय पीने के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

गट लाइनिंग को नुकसान : चाय में मौजूद टैनिन और कैफीन बच्चे की नाजुक गट लाइनिंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिस से पेट में जलन और अल्सर हो सकता है.

आयरन की कमी : टैनिन शरीर में आयरन के अवशोषण को कम कर सकता है, जिस से एनिमिया और कमजोरी की समस्या हो सकती है.

पाचन तंत्र पर असर : छोटे बच्चों का पाचनतंत्र बहुत नाजुक होता है और चाय उन के पेट में ऐसिडिटी, अपच और गैस कर सकती है.

क्या हम चाय की लत छोड़ सकते हैं

अगर हम अपनी पुरानी परंपराओं की ओर लौटें, तो हमें चाय की जगह कई बेहतर विकल्प मिल सकते हैं. हमारे पूर्वज बिना चाय के भी स्वस्थ और ऊर्जावान रहते थे, क्योंकि वे प्राकृतिक और पोषण से भरपूर पेय का सेवन करते थे.

कुछ बेहतर विकल्पों पर ध्यान दें :

दूध या हलदी दूध : रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए

लस्सी या छाछ. गरमियों में ठंडक और पाचन के लिए नीबू पानी या बेल शरबत. डिटौक्स और हाइड्रेशन के लिए सौंफ और अदरक का काढ़ा. इम्यूनिटी और पाचन सुधारने के लिए.

अगर हम धीरेधीरे इन विकल्पों को अपनाएं और दिन में 5-6 बार चाय पीने की आदत छोड़ें, तो यह हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होगा. कई लोग चाय को पकापका कर कड़क चाय पीने का शौक भी रखते हैं या 1 कब चाय में 5 कब चाय जितनी चायपत्ती का इस्तेमाल करते हैं.

अब आप ही बताइए कि किसी भी चीज की अति तो आप को नुकसान ही देगी. तो अगर चाय पीनी ही है तो कम चाय पत्ती इस्तेमाल करें, जितनी जरूरत है उतना ही उबालें और बची हुई चाय को दोबारा गरम कर के न पीएं.

अब आप ही बताइए, क्या चाय जरूरी है

हम चाय को छोड़ने की बात नहीं कर रहे, बल्कि यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हम ने इसे जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे दिया है. यह सोच कर देखिए कि अगर अंगरेज हमें चाय न पिलाते, तो क्या आज हम इसे इतना पसंद करते? अगर हम ने इसे अपने कल्चर में जबरदस्ती शामिल कर लिया है, तो क्या हम इसे कम नहीं कर सकते?

यह समय है कि हम अपनी परंपराओं को फिर से अपनाएं और समझें कि चाय केवल एक पेय है, न कि अमृत. इसे सीमित मात्रा में लें और इस के स्वाद को अपनी सेहत पर हावी न होने दें. अगली बार जब मेहमान आएं, तो चाय के बजाय कुछ और परोसें और देखें कि क्या होता है.

इकलौती बेटियां और जिम्मेदारियों का बोझ

अकेली लड़कियां जहां अपने मांबाप की लाड़लियां होती हैं, वहीं उन का प्यार बांटने वाला उन का कोई सिबलिंग नहीं होता. मातापिता अपना सारा प्यार बेटी पर ही लुटाते हैं. लेकिन फिर भी इकलौती लड़कियां जिम्मेदारी के पहाड़ के नीचे दबने लगती हैं. जानें कैसे :

जन्म से ही इकलौती बेटी घर की दुलारी और मम्मीपापा की नन्ही राजकुमारी होती है. नतीजतन, उस के मातापिता ओवर प्रोटेक्टिव हो जाते हैं. वे उस की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं और कोशिश करते हैं कि अपनी बेटी की हर मांग पूरी करें, क्योंकि वह उन के जीवन की सब से कीमती चीज होती है.

यह स्थिति बचपन तक तो ठीक है लेकिन जैसे जैसे वह लड़की बड़ी होती है तो भाई या बहनों के नहीं होने से, इकलौती बेटियां अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ लिए होती हैं। एक बार जब वे बड़ी हो जाती हैं, तो उन्हें लगता है मातापिता ने पूरी जिंदगी मेरे लिए इतना किया है तो अब बढ़ती उम्र में उन का सहारा बनना मेरा ही फर्ज है.

लड़की के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ काफी बढ़ जाती हैं जिस का उसे धीरेधीरे पता चलता है. हालांकि आजकल 1 बेटी वाले घर बहुत होने लगे हैं. लेकिन जहां लड़की 20 साल की होती है उस पर बहुत सारे बोझ आ जाते हैं. 15 साल तक तो उसे लड़की की तरह पाला जाता है. लेकिन 15 से 20 के बीच में उसे घर का बेटा बनाने की कोशिश की जाती है. इस उम्र तक आतेआते उसे बेटा बनना पड़ता है. क्योंकि मांबाप न चाहते हुए भी बेटी में अपना बेटा कहीं न कहीं तलाश करने लगते हैं जो उन्हें बढ़ती उम्र में से संभाल लें.

मां को कोई बीमारी हो गई हो, घर में सफाई आदि का काम करना है, चौकीदार, घर की बाई को हैंडल करना है, ग्रोसरी लेनी है इन सब में उस की जरूरत पड़ने लगती है। खासतौर पर जब वह स्कूटी चलने लगती है तो उस से बहुत सारी चीजे ऐक्सपैक्ट की जाने लगती हैं.

तुम मोबाइल का बिल भर दो, पानी बिजली का बिल भर दो, क्रैडिट कार्ड बना दो, इस वजह से लड़कियों को मैच्योरिटी आ जाती है. ये लड़कियां उन लड़कियों से कुछ अलग हो जाती हैं जिन के यहां कई सिबलिंग हैं या भाई हैं. सिबलिंग वाली लड़कियों और बिना सिबलिंग वाली लड़कियों में बहुत अंतर होता है. 2 बच्चे हों तो घर में भाईबहनों के साथ जिम्मेदारियां बंट जाती हैं लेकिन अकेली लड़की हो तो जिम्मेदारियों का पहाड़ आ जाता है. उसे कई लड़कियां हैंडल नहीं कर पाती हैं.

उन की पहरेदारी भी ज्यादा हो जाती है। अगर 4 बजे कालेज खत्म हुआ तो 5 बजे से मां के कौल आने शुरू हो जाते हैं कि अब तक घर क्यों नहीं आई? तू कितनी देर में आ रही है? वहीं लड़के 8 बजे तक भी बाहर रह सकते हैं लेकिन लड़कियां ज्यादा लंबे समय तक बाहर नहीं रह पातीं। मैट्रो में जाती हैं या खुद ड्राइव करती हैं तो मांबाप बारबार फोन करते हैं कि तुम अभी तक घर नहीं आईं जबकि लड़कों के साथ ऐसी दिक्कत नहीं आती.

मातापिता का पूरा फोकस उस एक लड़की पर ही हो जाता है. यहां भी लड़कियां परेशान हो जाती हैं.

दूसरा, अगर लड़की की शादी हो जाए तो अकेले बेटी का पति ध्यान रखेगा या नहीं कह नहीं सकते इसलिए लड़कियों की जिम्मेदारी 50-60 साल का होने तक बनी रहती है. अगर मांबाप की संपत्ति न हो या वे पैसे वाले न हों तो दामाद बिलकुल धयान नहीं रखता. बल्कि दामाद को लगता है कि बेकार की मुसीबत गले पङ गई. उसे लगता है कि हर समय ही तुम मायके में पड़ी रहती हो.

इकलौती बेटी के मांबाप को अकसर यह चिंता सताती है कि बेटी की शादी के बाद वे किसके सहारे रहेंगे. इसलिए अकेली लड़कियों पर क्याक्या जिम्मेदारियां आ जाती हैं और वे उनके साथ कैसे डील करें.

ग्रोसरी शौपिंग

ये लड़कियां घर का काम करने में इतनी सक्षम हो जाती हैं कि हर महीने किचन का सारा सामान लाने की जिम्मेदारी इन की हो जाती है क्योंकि मां को लगता है कि आजकल आने वाले नए नई कंपनी के सामानों को लड़की अच्छी तरह देख कर ले लेगी क्योंकि बच्चों को इस बारे में ज्यादा जानकारी होती है हमे इतनी समझ कहां.

बिल जमा करने की जिम्मेदारी

बेटियों को खुद भी लगता है कि पापा कहां इतनी लंबीलंबी लाइनों में लग कर बिल पे करेंगे. यह काम तो मैं कर ही सकती हूं. कई बार दोस्तों के जुगाड़ से बिल जल्दी जमा भी हो जाता है या फिर कोई दोस्त अपना बिल पे कर रहा हो तो साथ ही मेरा भी करा देगा. मैं तो कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लूंगी. ऐसे करते करते यह जिम्मेदारी भी बेटी ही संभालने लगती है.

रिश्तेदारों को जवाब देना

यह भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मातापिता जब शादी के लिए कहते हैं तो बेटी मना कर देती है लेकिन फिर वही सवाल रिश्तेदार पूछपूछ कर घर वालों को तंग करते हैं तो जवाब देने के लिए बेटी को सामने आना ही पड़ता है. घर वाले तो साइड हो जाते हैं कि आप खुद ही बात कर लो. तुनक कर बेटियां कहती हैं कि यह हमारा पर्सनल मामला है हम देख लेंगे. बस, इसी बात का बतंगङ बन जाता है और बेटी पर बद्ततमीज होने का तमगा भी लग जाता है.

अब कोई भाई या बड़ी बहन होती तो वह मामला संभाल लेते लेकिन यहां तो खुद ही मैदान में उतरना पड़ता है.

घर की साफसफाई और किचन के कामकाज में हाथ बंटाना

बड़ी होती बेटी को मां का हाथ भी बंटाना पड़ता है और बंटाना भी चाहिए यह कोई बुरी बात नहीं है. मां अगर बीमार हो तो भी किचन लड़की ही संभालने लग जाती है. छुट्टी वाले दिन या फिर 1 टाइम के खाने की जिम्मेदारी तो उस की होती ही है. इस के आलावा घर में जाले झाड़ना, ऊपर से कुछ सामान उतारना, सिलेंडर लगाना ये सब काम भी बेटी के जिम्मे आते हैं.

इंटरनैट बैंकिंग या औनलाइन शौपिंग बेटी ही करेगी

पापा इतने टैक्नोलौजी फ्रैंडली नहीं हैं कि वह यह सब काम करें. दूसरे, अब वे सीखना भी नहीं चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि बेटी सब संभाल लेगी. इस तरह बैंक का पूरा हिसाबकिताब बेटी के हाथ में आ जाता है. किसी मेहमान के आने पर सेल आदि में डिस्काउंट में कुछ सामन लेना हो blinkit, jamato हो या अमेजौन से शौपिंग करना हो सब बेटी ही करेगी.

मातापिता की हैल्थ का खयाल रखना

मातापिता का हैल्थ चैकअप कब कराना है, कहां करना है, कौन सा पैकेज इस के लिए अच्छा रहेगा यह सब भी बेटी ही देखती है. उन की बीमारियों से संबंधित किस स्पैशलिस्ट डाक्टर को देखना है वह भी बेटी ही अपने फ्रैंड सर्कल में पूछ कर पता करती है.

शादी के बाद जिम्मेदारी की ओर बढ़ जाती है

शादी के बाद तो बेटी पर डबल जिम्मेदारी हो जाती है कि यह घर भी देखो और मायके का भी पूरा खयाल रखो. सिबलिंग होते तो जिम्मेदारी बंट जाती लेकिन अब तो सब खुद ही देखना है. उस पर अगर दामाद सपोर्टिव न हो तो उस से डील करना भी मुश्किल हो जाता है. उसे लगता है कि हर वक्त तुम्हारा दिमाग मायके में लगा रहता है. अब उसे कौन बताए कि जब वहां मेरे आलावा कोई और काम करने वाले नहीं हैं तो उसे कैसे मैनेज करना है, यह सोचना भी तो लड़की का ही काम है.

इन सब चीजों से कैसे डील करें

जरूरी नहीं है कि सब काम आप खुद ही करें. घर के काम अगर अब मां से नहीं होते तो एक अच्छी से मेड ढूंढ़ें और काम में मदद लें. हां, उस नजर रखना और ढंग से काम करना यह सब आप देख सकती हैं.

औनलाइन चीजों का यूज करें

आज के समय में बैंक का काम हो या बिल जमा करना हो या फिर ग्रोसरी शौपिंग करना हो सब काम फोन पर बैठेबैठे ही हो सकते हैं इसलिए औनलाइन सब करने की आदत डालें. इस से समय और मेहनत दोनों ही बचते हैं.

जीवनसाथी से पहले ही अपनी जिम्मेदारियों के बारे में डिस्कस कर लें

जिस से भी शादी करने जा रही हैं पहले उस से बात कर के तय कर लें कि अपने मायके की देखरेख करना आप की ही जिम्मेदारी है। अगर कोई प्रौब्लम है तो पहले ही बता दें। इस से सामने वाले बंदे का पहले ही माइंड मेकअप होगा कि यह तो सब करेगी ही. इस से रोजरोज की लङाईयां भी नहीं होंगी. उसे यह समझा दें कि मातापिता के बाद उन का घर आदि सब कुछ हमारा है तो जिम्मेदारी भी हमारी दोनों की ही होगी.

ड्राइवर रखें या कैब की सुविधा का लाभ लें

आप को गाड़ी चलानी आ गई है लाइसेंस भी मिल गया है, अच्छी बात है. लेकिन अगर आर्थिक स्तिथि अच्छी है तो सारा बोझ खुद पर क्यों लेना. घर के छोटे बड़े कामों के लिए ड्राइवर रख लें। जब जरूरत हो तब बुला लें जैसेकि मातापिता को कहीं जाना है और आप बिजी हों तो ड्राइवर के साथ भी भेज दें.

अपने कजिंस की मदद लेने में न हिचकिचाएं

अगर आप के कोई रिश्तेदार भाईबहन आप की कामों में मदद करना चाहें तो उन्हें मना न करें। अगर आप हर बार ऐसा करेंगी तो वे आप से पूछना ही बंद कर देंगे. आखिर सब रिश्तेदार एकदूसरे के काम आते ही हैं. आज वे आप की मदद कर रहें हैं तो कल उन्हें भी आप की मदद की जरूरत हो सकती है. इस बात को समझें. अपने रिलेशन लोगों से ऐसे बनाएं कि एक आवाज पर कई लोग आ कर खड़े हो जाएं.

Relationship Tips : मैं एक लड़की से एकतरफा प्यार करता हूं, उसे प्रपोज क्या करूं या नहीं?

Relationship Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक युवती से पिछले 2 साल से प्यार करता हूं, लेकिन मेरा प्यार एकतरफा है, क्योंकि हम सिर्फ दोस्त की तरह बात करते हैं. मैं ने अभी तक उसे अपने दिल की बात नहीं बताई. मैं उसे कैसे प्रपोज करूं?

जवाब

आप की दोस्ती 2 साल पुरानी है, तो आप यह समझते ही होंगे कि उस का मिजाज कैसा है, उस की पसंद क्या है. उस का जन्मदिन आदि भी आप को पता होगा. तो बस, सही मूड देख कर उस की पसंद का उसे कुछ खिलाएं या दें. उन के जन्मदिन को सैलिब्रेट करें और इसी दौरान अपने दिल की बात भी उसे बताएं. इस के अलावा आजकल व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसे साधन भी हैं, जो मन की बात उस तक पहुंचा सकते हैं. नहीं तो मिलते रहिए और बातोंबातों में प्यार हो जाने का इंतजार कीजिए.

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शादी से पहले अपने पार्टनर को ऐसे करें प्रपोज

अरेंज मैरिज हो या लव मैरिज. आप पहलें अपने पार्टनर को पूरा तरह जानने की कोशिश करते हैं जिससे कि शादी के बाद उसे समझनें में ही आधा वक्त न निकल जाए. अरेंज मैरिज की बात करे तो आप और आपकी पार्टनर दोनों ही अनजानें सफर में चल पडते है. पहलें जमाने की बात करें तो शादी से पहले मिलना भी बड़ी मुश्किल का काम था लेकिन इस जमानें में इस सफर को आसान बनानें के लिए सगाई का दौर शुरू हो गया जिससे की आप एक-दूसरें के ठीक ढंग से पहचान सकें, एक-दूसरें की आदतो, पसंद-नापसंद के बारें में जान सके. माना जाता है कि अरेंज शादी में प्यार शादी के बाद और लव मैरिज में शादी से पहले प्यार होता है.

अगर आप चाहें तो अरेंज मैरिज के शादी सें पहलें ही दोनों के बीच प्यार ला सकते है लेकिन आपकी हिचकिचाहट और ठीक ढंग आइडिया न हो पाने के कारण ज्यादा समय लग जाता है. लेकिन हम अपनी खबर में ऐसी आइडिया के बारें में बताएगें जिन्हें अपनाकर अरेंज मैरिज को भी लव में बदला जा सकता है.

फैमली और दोस्तों की सहायता लें

अपनें पार्टनर की पसंद-नापसंद को जानने के लिए आपकी सहायता फैमली और दोस्त ही सबसे ज्यादा कर सकते हैं. अपनें दोस्तों की मदद से अपने पार्टनर को बाहर घूमने के लिए भेजिए और आप घर के एक अच्छें से कमरें को चुन कर अपने पार्टनर की पसंद की चीजों जैसे की उसकी पसंद के फूल, कैंडल आजि से सजाए और उसके वापस आने पर उसे  डेकोरेटेड रूम में वेडिंग रिंग के साथ प्रपोज करें. जो जरुर आपसे इंप्रेस हो जाएगी.

पिक्चर हॅाल में

प्रपोज करने का यह तरीका अच्छा साबित हो सकता है. यह तरीका थोड़ा फिल्मी है लेकिन इससे आपकी लाइफ पार्टनर इंप्रेस हो सकती है इसके लिए आपको सही समय को चुनें और इसके लिए सही समय है कि हॅाल खाली है या फिर इंटरवल का वक्त हो या फिर आप चाहें तो थियेटर बुक करा लें. इसके बाद सबसे सामने अपनी पार्टनर से पूछें “विल यू मैरी मी”.

सगाई होने से पहलें करें प्रपोज

सगाई वालें दिन आपनी पार्टनर के पास जाकर उसके सामनें घुटनें के बल बैठ कर उसे प्रपोज करें यद बहुत ही रोमांटिक होगा.

पार्टनर के जन्मदिन पर

अगर आप लकी हुए औऱ शादी और सगाई से पहलें उसका बर्थडे पड़ रहा हा तो यह आपके लिए प्रपोज करने का अच्छा मौका है. इसके लिए उसे डेट में ले जाए या फिर उनके रूम  में बड़ा से गिफ्ट रखें और साथ में अपने हाथ से लिखा हुआ कार्ड भी रखें. जिसमें अपने हाथों से ‘हैप्पी बर्थडे माय लव, विल यू मैरी मी’ लिखकर उन्हें प्रपोज करें.

फैमिली डिनर पर करें प्रपोज

शादी से पहले दोनों परिवार मिलकर किसी डिनर या लंच का प्लान कर सकते हैं. खाने की टेबल पर सबको अटेंशन करते हुए पेरेंट्स को थैंक्यू कहें कि उन्होंने आपके लिए खूबसूरत और अंडरस्टैडिंग पार्टनर चुना और फिर पार्टनर के सामने शादी का प्रपोजल रखें. ये इमोशनल आइडिया केवल पार्टनर का ही नहीं, बल्कि पेरेंट्स के दिल को भी छू जाएगा.

वीडियो बनाकर अपनी पार्टनर को करें इंप्रेस

आजकल समय कम होने के कारण सगाई और शादी के बीच के बहुत कम समय मिलता है एक-दूसरें को जाननें का लेकिन आप इस  थोड़े से समय का सही इस्तेमाल कर सकते है. इसके लइए आप अपने पार्टनर की आदतों, नेचर, स्टाइल, जिस भी चीज के आफ दीवाने हैं इऩ बातों को लेकर उसकी तारीफ करते हुए एक वीडियों बना कर उसे एक्सप्रेस करें और साथ ही उन्हें इस वीडियो के जरिए प्रपोज करें. इस वीडियो को उनके साथ अपने फ्रेंड्स को भी शेयर करें. पार्टनर को इम्प्रेस और प्रपोज करने का ये बेहतरीन आइडिया उन्हें जरूर पसंद आएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

शूटिंग के दौरान Hina Khan ने कैंसर के लक्षणों को किया था इग्नोर, रोजलिन खान ने बीमारी को बताया फेक

Hina Khan : हिना खान अकसर अपने फैंस के साथ हेल्थ अपडेट शेयर करती हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, हिना खान ने बताया कि शूटिंग के दौरान ही उन्हें कैंसर के शुरुआती लक्षण नजर आ गए थे. लेकिन उन्होंने इसे इग्नोर किया. कई बार हमारे शरीर में बदलाव नजर आते हैं, लेकिन हम उन्हें समान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं… हिना खान के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.. और बाद में पता चला कि हिना को जानलेवा बीमारी कैंसर है.

जब आपको अपने शरीर कुछ अलग बदलाव देखने को मिले तो अनदेखा न करें और अपने डौक्टर से जरूर संपर्क करें.

सेट पर महसूसर हुआ हिना खान को कैंसर का लक्षण

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिना खान ने बताया कि कैंसर के शुरुआती लक्षण में मुझे ऐसा फिल हो रहा था कि कुछ गड़बड़ है. लेकिन मैं शूटिंग छोड़कर अपनी जांच नहीं करवाना चाहती थी क्योंकि मुझे नहीं लगा कि यह गंभीर है.. मैंने मान लिया कि यह बस एक मामूली इंफेक्शन है और मैंने टेस्ट करवाने से मना कर दिया.

जिंदगी को दें महत्व

हिना ने आगे कहा कि कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के चक्कर में ऐसे लक्षणों को अनदेखा कर देते हैं. लेकिन यह बहुत जरूरी है कि आप खुद की जिंदगी को ज्यादा महत्व दे.
ऐसे लक्षणों को अनदेखा करना या मेडिकल टेस्ट में देरी करना गंभीर परिणाम दे सकता है. खास तौर पर कैंसर जैसी बीमारियों में बिलकुल लापरवाही न करें.

रोजलिन खान ने हिना पर साधा निशाना

हाल ही में फेमस सेलिब्रिटी रोजलिन खान ने हिना पर निशाना साधा था, ब्रेस्ट कैंसर को लेकर सवाल खड़े किए थे. रोजलिन ने तो हिना की मेडिकल रिपोर्ट्स सोशल मीडिया पर शेयर कर हंगामा खड़ा किया था.
हिना खान ने इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ी. हिना खान ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया. वीडियो में हिना बाथरोब में नजर आईं. हिना खान ने अपने सिर को टौवल से ढ़का था. हिना खान एक ड्रिंक भी पीते नजर आईं.

इस वीडियो पर हिना खान ने कैप्शन में लिखा, फिलहाल मुझे फर्क नहीं पड़ता. अपने समय को एंजौय कर रही हूं. बिना किसी का नाम लिए हिना खान ने रोजलिन को मुंहतोड़ जवाब दिया.

Short Story : कहां हो तुम

Short Story : ऋतु अपने कालेज के गेट के बाहर निकली तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. ‘ओ नो, अब मैं घर कैसे जाऊंगी?’ उस ने परेशान होते हुए अपनेआप से कहा. इतनी तेज बारिश में तो छाता भी नाकामयाब हो जाता है और ऊपर से यह तेज हवा व पानी की बौछारें जो उसे लगातार गीला कर रही थीं. सड़क पर इतने बड़ेबड़े गड्ढे थे कि संभलसंभल कर चलना पड़ रहा था. जरा सा चूके नहीं कि सड़क पर नीचे गिर जाओ. लाख संभालने की कोशिश करने पर भी हवा का आवेग छाते को बारबार उस के हाथों से छुड़ा ले जा रहा था. ऐसे में अगर औटोरिक्शा मिल जाता तो कितना अच्छा होता पर जितने भी औटोरिक्शा दिखे, सब सवारियों से लदे हुए थे.

उस ने एक ठंडी सी आह भरी और पैदल ही रवाना हो गई, उसे लगा जैसे मौसम ने उस के खिलाफ कोई साजिश रची हो. झुंझलाहट से भरी धीरेधीरे वह अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कि अचानक किसी ने उस के आगे स्कूटर रोका. उस ने छाता हटा कर देखा तो यह पिनाकी था.

‘‘हैलो ऋतु, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?’’

‘‘यार, कालेज से घर जा रही हूं और कहां जाऊंगी.’’

‘‘इस तरह भीगते हुए क्यों जा रही है?’’

‘‘तू खुद भी तो भीग रहा है, देख.’’

‘‘ओके, अब तुम छाते को बंद करो और जल्दी से मेरे स्कूटर पर बैठो, यह बारिश रुकने वाली नहीं, समझी.’’

ऋतु ने छाता बंद किया और किसी यंत्रचालित गुडि़या की तरह चुपचाप उस के स्कूटर पर बैठ गई. आज उसे पिनाकी बहुत भला लग रहा था, जैसे डूबते को कोई तिनका मिल गया हो. हालांकि दोनों भीगते हुए घर पहुंचे पर ऋतु खुश थी. घर पहुंची तो देखा मां ने चाय के साथ गरमागरम पकौड़े बनाए हैं. उन की खुशबू से ही वह खिंचती हुई सीधी रसोई में पहुंच गई और प्लेट में रखे पकौड़ों पर हाथ साफ करने लगी तो मां ने उस का हाथ बीच में ही रोक लिया और बोली, ‘‘न न ऋ तु, ऐसे नहीं, पहले हाथमुंह धो कर आ और अपने कपड़े देख, पूरे गीले हैं, जुकाम हो जाएगा, जा पहले कपड़े बदल ले. पापा और भैया बालकनी में बैठे हैं, तुम भी वहीं आ जाना.’’

‘भूख के मारे तो मेरी जान निकली जा रही है और मां हैं कि…’ यह बुदबुदाती सी वह अपने कमरे में गई और जल्दी से फ्रैश हो कर अपने दोनों भाइयों के बीच आ कर बैठ गई. छोटे वाले मुकेश भैया ने उस के सिर पर चपत लगाते हुए कहा, ‘‘पगली, इतनी बारिश में भीगती हुई आई है, एक फोन कर दिया होता तो मैं तुझे लेने आ जाता.’’

‘‘हां भैया, मैं इतनी परेशान हुई और कोई औटोरिक्शा भी नहीं मिला, वह तो भला हो पिनाकी का जो मुझे आधे रास्ते में मिल गया वरना पता नहीं आज क्या होता.’’ इतना कह कर वह किसी भूखी शेरनी की तरह पकौड़ों पर टूट पड़ी.

अब बारिश कुछ कम हो गई थी और ढलते हुए सूरज के साथ आकाश में रेनबो धीरेधीरे आकार ले रहा था. कितना मनोरम दृश्य था, बालकनी की दीवार पर हाथ रख कर मैं कुदरत के इस अद्भुत नजारे को निहार रही थी कि मां ने पकौड़े की प्लेट देते हुए कहा, ‘‘ले ऋ तु, ये मिसेज मुखर्जी को दे आ.’’ उस ने प्लेट पकड़ी और पड़ोस में पहुंच गई. घर के अंदर घुसते ही उसे हीक सी आने लगी, उस ने अपनी नाक सिकोड़ ली. उस की ऐसी मुखमुद्रा देख कर पिनाकी की हंसी छूट गई.

वह ठहाका लगाते हुए बोला, ‘‘भीगी बिल्ली की नाक तो देखो कैसी सिकुड़ गई है,’’ यह सुन कर ऋ तु गुस्से में उस के पीछे भागी और उस की पीठ पर एक धौल जमाई.

पिनाकी उहआह करता हुआ बोला, ‘‘तुम लड़कियां कितनी कठोर होती हो, किसी के दर्द का तुम्हें एहसास तक नहीं होता.’’

‘‘हा…हा…हा… बड़ा आया दर्द का एहसास नहीं होता, मुझे चिढ़ाएगा तो ऐसे ही मार खाएगा.’’

मिसेज मुखर्जी रसोई में मछली तल रही थीं, जिस की बदबू से ऋ तु की हालत खराब हो रही थी. उस ने पकौड़ों की प्लेट उन्हें पकड़ाई और बाहर की ओर लपकते हुए बोली, ‘‘मैं तो जा रही हूं बाबा, वरना इस बदबू से मैं बेहोश हो जाऊंगी.’’

मिसेज मुखर्जी ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम को मछली की बदबू आती है लेकिन ऋ तु अगर तुम्हारी शादी किसी बंगाली घर में हो गई, तब क्या करेगी.’’

बंगाली लोग प्यारी लड़की को लाली कह कर बुलाते हैं. पिनाकी की मां को ऋ तु के लाललाल गालों पर मुसकान बहुत पसंद थी. वह अकसर उसे कालेज जाते हुए देख कर छेड़ा करती थी.

‘‘ऋ तु तुमी खूब शुंदर लागछी, देखो कोई तुमा के उठा कर न ले जाए.’’

पिनाकी ने सच ही तो कहा था ऋ तु को उस के दर्द का एहसास कहां था. वह जब भी उसे देखता उस के दिल में दर्द होता था. ऋ तु अपनी लंबीलंबी 2 चोटियों को पीठ के पीछे फेंकते हुए अपनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें कुछ यों घूमाती है कि उन्हें देख कर पिनाकी के होश उड़ जाते हैं और जब बात करतेकरते वह अपना निचला होंठ दांतों के नीचे दबाती है तो उस की हर अदा पर फिदा पिनाकी उस की अदाओं पर मरमिटना चाहता है.

पर ऋतु से वह इस बात को कहे तो कैसे कहे. कहीं ऐसा न हो कि ऋतु यह बात जानने के बाद उस से दोस्ती ही तोड़ दे. फिर उसे देखे बिना, उस से बात किए बिना वह जी ही नहीं पाएगा न, बस यही सोच कर मन की बात मन में लिए अपने प्यार को किसी कीमती हीरे की तरह मन में छिपाए उसे छिपछिप कर देखता है. आमनेसामने घर होने की वजह से उस की यह ख्वाहिश तो पूरी हो ही जाती है. कभी बाहर जाते हुए तो कभी बालकनी में खड़ी ऋतु उसे दिख ही जाती है पर वह उसे छिप कर देखता है अपने कमरे की खिड़की से.

‘‘पिनाकी, क्या सोच रहा है?’’ ऋतु उस के पास खड़ी चिल्ला रही थी इस बात से बेखबर कि वह उसी के खयालों में खोया हुआ है. कितना फासला होता है ख्वाब और उस की ताबीर में. ख्वाब में वह उस के जितनी नजदीक थी असल में उतनी ही दूर. जितना खूबसूरत उस का खयाल था, क्या उस की ताबीर भी उतनी ही खूबसूरत थी. हां, मगर ख्वाब और उस की ताबीर के बीच का फासला मिटाना उस के वश की बात नहीं थी. ‘‘तू चल मेरे साथ,’’ ऋतु उसे खींचती हुई स्टडी टेबल तक ले गई.

‘‘कल सर ने मैथ्स का यह नया चैप्टर सौल्व करवाया, लेकिन मेरे तो भेजे में कुछ नहीं बैठा, अब तू ही कुछ समझा दे न.’’

ऋ तु को पता था कि पिनाकी मैथ्स का मास्टर है, इसलिए जब भी उसे कोई सवाल समझ नहीं आता तो वह पिनाकी की मदद लेती है, ‘‘कितनी बार कहा था मां से यह मैथ्स मेरे बस का रोग नहीं, लेकिन वे सुनती ही नहीं, अब निशा को ही देख आर्ट्स लिया है उस ने, कितनी फ्री रहती है. कोई पढ़ाई का बोझ नहीं और यहां तो बस, कलम घिसते रहो, फिर भी कुछ हासिल नहीं होता.’’

‘‘इतनी बकबक में दिमाग लगाने के बजाय थोड़ा पढ़ाई में लगाया होता तो सब समझ आ जाता.’’

‘‘मेरा और मैथ्स का तो शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है, पिनाकी.’’

पिनाकी एक घंटे तक उसे समझाने की कोशिश करता रहा पर ऋ तु के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था.

‘‘तुम सही कहती हो ऋ तु, यह मैथ्स तुम्हारे बस की नहीं है, तुम्हारा तो इस में पास होना भी मुश्किल है यार.’’

पिनाकी ने अपना सिर धुनते हुए कहा तो ऋ तु को हंसी आ गई. वह जोरजोर से हंसे जा रही थी और पिनाकी उसे अपलक निहारे जा रहा था. उस के जाने के बाद पिनाकी तकिए को सीने से चिपटाए ऋ तु के ख्वाब देखने में मगन हो गया. जब वह उस के पास बैठी थी तो उस के लंबे खुले बाल पंखे की हवा से उड़ कर बारबार उस के कंधे को छू रहे थे और इत्र में घुली मदहोश करती उस की सांसों की खुशबू ने पिनाकी के होश उड़ा दिए थे. पर अपने मन की इन कोमल संवेदनशील भावनाओं को दिल में छिपा कर रखने में, इस दबीछिपी सी चाहत में, शायद उस के दिल को ज्यादा सुकून मिलता था.

कहते हैं अगर प्यार हो जाए तो उस का इजहार कर देना चाहिए. मगर क्या यह इतना आसान होता है और फिर दोस्ती में यह और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह जो दिल है,  शीशे सा नाजुक होता है. जरा सी ठेस लगी नहीं, कि छन्न से टूट कर बिखर जाता है. इसीलिए अपने नाजुक दिल को मनामना कर दिल में प्रीत का ख्वाब संजोए पिनाकी ऋ तु की दोस्ती में ही खुश था, क्योंकि इस तरह वे दोनों जिंदादिली से मिलतेजुलते और हंसतेखेलते थे.

ऋतु भले ही पिनाकी के दिल की बात न समझ पाई हो पर उस की सहेली उमा ने यह बात भांप ली थी कि पिनाकी के लिए ऋ तु दोस्त से कहीं बढ़ कर है. उस ने ऋतु से कहा भी था, ‘‘तुझे पता है ऋतु, पिनाकी दीवाना है तेरा.’’

और यह सुन कर खूब हंसी थी वह और कहा था, ‘‘धत्त पगली, वह मेरा अच्छा दोस्त है. एक ऐसा दोस्त जो हर मुश्किल घड़ी में न जाने कैसे किसी सुपरमैन की तरह मेरी मदद के लिए पहुंच जाता है और फिर यह कहां लिखा है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त नहीं हो सकते, इस बात को दिल से निकाल दे, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘पर मैं ने कई बार उस की आंखों में तेरे लिए उमड़ते प्यार को देखा है, पगली चाहता है वह तुझे.’’

‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया लगता है. उस की आंखें ही पढ़ती रहती है, कहीं तुझे ही तो उस से प्यार नहीं हो गया. कहे तो तेरी बात चलाएं.’’

‘‘तुझे तो समझाना ही बेकार है.’’

‘‘उमा, सच कहूं तो मुझे ये बातें बकवास लगती हैं. मुझे लगता है हमारे मातापिता हमारे लिए जो जीवनसाथी चुनते हैं, वही सही होता है. मैं तो अरेंज मैरिज में ज्यादा विश्वास रखती हूं, सात फेरों के बाद जीवनसाथी से जो प्यार होता है वही सच्चा प्यार है और वह प्यार कभी उम्र के साथ कम नहीं होता बल्कि और बढ़ता ही है.’’

उमा आंखें फाड़े ऋ तु को देख रही थी, ‘‘मैं ने सोचा नहीं था कि तू इतनी ज्ञानी है. धन्य हो, आप के चरण कहां हैं देवी.’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

इस के बाद फिर कभी उमा ने यह बात नहीं छेड़ी, पर उसे इस बात का एहसास जरूर था कि एक न एक दिन यह एकतरफा प्यार पिनाकी को तोड़ कर रख देगा. पर कुछ हालात होते ही ऐसे हैं जिन पर इंसान का बस नहीं चलता. और अब घर में भी ऋ तु की शादी के चर्चे चलने लगे थे, जिन्हें सुन कर वह मन ही मन बड़ी खुश होती थी कि चलो, अब कम से कम पढ़ाई से तो छुटकारा मिलेगा. सुंदर तो थी ही वह, इसीलिए रिश्तों की लाइन सी लग गई थी.

उस के दोनों भाई हंसते हुए चुटकी लेते थे, ‘‘तेरी तो लौटरी लग गई ऋ तु, लड़कों की लाइन लगी है तेरे रिश्ते के लिए. यह तो वही बात हुई, ‘एक अनार और सौ बीमार’?’’

‘‘मम्मी, देखो न भैया को,’’ यह कह कर वह शरमा जाती थी.

ऋतु और उमा बड़े गौर से कुछ तसवीरें देखने में मग्न थीं. ऋ तु तसवीरों को देखदेख कर टेबल पर रखती जा रही थी, फिर अचानक एक तसवीर पर उन दोनों सहेलियों को निगाहें थम गईं. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. ऋतु की आंखों की चमक साफसाफ बता रही थी कि उसे यह लड़का पसंद आ गया था. गोरा रंग, अच्छी कदकाठी और पहनावा ये सारी चीजें उस के शानदार व्यक्तित्व की झलकियां लग रही थीं. उमा ने भौंहें उचका कर इशारा किया तो ऋतु ने पलक झपका दी. उमा बोली, ‘‘तो ये हैं हमारे होने वाले जीजाजी,’’ उस ने तसवीर ऋ तु के हाथ से खींच ली और भागने लगी.

‘‘उमा की बच्ची, दे मुझे,’’ कहती ऋ तु उस के पीछे भागी.

पर उमा ने एक न सुनी, तसवीर ले जा कर ऋतु की मम्मी को दे दी और बोली, ‘‘यह लो आंटी, आप का होने वाला दामाद.’’

मां ने पहले तसवीर को, फिर ऋतु को देखा तो वह शरमा कर वहां से भाग गई. लड़का डाक्टर था और उस का परिवार भी काफी संपन्न व उच्च विचारों वाला था. एक लड़की जो भी गुण अपने पति में चाहती है वे सारे गुण उस के होने वाले पति कार्तिक में थे. और क्या चाहिए था उसे. उस की जिंदगी तो संवरने जा रही थी और वह यह सोच कर भी खुश थी कि अब शादी हो जाएगी तो पढ़ाई से पीछा छूटेगा.

उस ने जितना पढ़ लिया, काफी था. पर लड़के वालों ने कहा कि उस का ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद ही वे शादी करेंगे. ऋ तु की सहमति से रिश्ता तय हुआ और आननफानन सगाई की तारीख भी पक्की हो गई.

सगाई के दिन पिनाकी और उस का परिवार वहां मौजूद नहीं था. उस की दादी की बीमारी की खबर सुन कर वे लोग गांव चले गए थे. गांव से लौटने में उन्हें 15 दिन लग गए. वापस लौटा तो सब से पहले ऋ तु को ही देखना चाहता था पिनाकी. और ऋ तु भी उतावली थी अपने सब से प्यारे दोस्त को सगाई की अंगूठी दिखाने के लिए. जैसे ही उसे पता चला कि पिनाकी लौट आया है वह दौड़ीदौड़ी चली आई पिनाकी के घर. पिनाकी की नजर खिड़की के बाहर उस के घर की ओर ही लगी थी. जब उस ने ऋ तु को अपने घर की ओर आते देखा तो वह सोच रहा था आज कुछ भी हो जाए वह उसे अपने दिल की बात बता कर ही रहेगा. उसे क्या पता था कि उस की पीठ पीछे उस की दुनिया उजाड़ने की तैयारी हो चुकी है.

‘‘पिनाकी बाबू, किधर हो,’’ ऋतु शोर मचाती हुई अंदर दाखिल हुई.

‘‘हैलो ऋतु, आज खूब खुश लागछी तुमी?’’ पिनाकी की मां ने उस के चेहरे पर इतनी खुशी और चमक देख कर पूछा.

‘‘बात ही कुछ ऐसी है आंटी, ये देखो,’’ ऐसा कह कर उस ने अपनी अंगूठी वाला हाथ आगे कर दिया और चहकते हुए अपनी सगाई का किस्सा सुनाने लगी.

पिनाकी पास खड़ा सब सुन रहा था. उसे देख कर ऋ तु उस के पास जा कर अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहने लगी, ‘‘देख ना, कैसी है, है न सुंदर. अब ऐसा मुंह बना कर क्यों खड़ा है, अरे यार, तुम लोग गांव गए थे और मुहूर्त तो किसी का इंतजार नहीं करता न, बस इसीलिए, पर तू चिंता मत कर, तुझे पार्टी जरूर दूंगी.’’

पिनाकी मुंह फेर कर खड़ा था, शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था. फिर वह वहां से चला गया. ऋ तु उसे आवाज लगाती रह गई.

‘‘अरे पिनाकी, सुन तो क्या हुआ,’’ ऋ तु उस की तरफ बढ़ते हुए बोली.

पर वह वापस नहीं आया और दोबारा उसे कभी नहीं मिला क्योंकि अगले दिन ही वह शहर छोड़ कर गांव चला गया. ऋ तु सोचती रह गई. ‘‘आखिर क्या गलती हुई उस से जो उस का प्यारा दोस्त उस से रूठ गया. उस की शादी हो गई और वह अपनी गृहस्थी में रम गई पर पिनाकी जैसे दोस्त को खो कर कई बार उस का दुखी मन पुकारा करता, ‘‘कहां हो तुम?’’

Best Story : प्रेम परिसीमा – कैसा था उन दोनों का वैवाहिक जीवन?

Best Story :  अस्पताल के एक कमरे में पलंग पर लेटेलेटे करुणानिधि ने करवट बदली और प्रेम से अपनी 50 वर्षीया पत्नी मधुमति को देखते हुए कहा, ‘‘जा रही हो?’’

मधुमति समझी थी कि करुणानिधि सो रहा है. आवाज सुन कर पास आई, उस के माथे पर हाथ रखा, बाल सहलाए और मंद मुसकान भर कर धीमे स्वर में बोली, ‘‘जाग गए, अब तबीयत कैसी है, बुखार तो नहीं लगता.’’

करुणानिधि ने किंचित मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ रखने से तबीयत तो ठीक हो गई है, पर दिल की धड़कन बढ़ गई है.’’

घबरा कर मधुमति ने उस की छाती पर हाथ रखा. करुणानिधि ने उस के हाथ पर अपना हाथ रख कर दबा दिया. मधुमति समझ गई, और बोली, ‘‘फिर वही हरकत, अस्पताल में बिस्तर पर लेटेलेटे भी वही सूझता है. कोई देख लेगा तो क्या कहेगा?’’

करुणानिधि ने बिना हाथ छोड़े कहा, ‘‘देख लेगा तो क्या कहेगा? यही न कि पति ने पत्नी का हाथ पकड़ रखा है या पत्नी ने पति का. इस में डरने या घबराने की क्या बात है? अब तो उम्र बीत गई. अब भी सब से, दुनिया से डर लगता है?’’

मधुमति ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और बोली, ‘‘डाक्टर ने आप को आराम करने को कहा है, आवेश में आना मना है. दिल का दौरा पड़ चुका है, कुछ तो खयाल करिए.’’

‘‘दिल का दौरा तो बहुत पहले ही पड़ चुका है. शादी से भी पहले. अब तो उस दौरे का अंतिम पड़ाव आने वाला है.’’

मधुमति ने उंगली रख कर उस का मुंह बंद किया और फिर सामान उठा कर घर चलने लगी. वह चलते हुए बोली, ‘‘दोपहर को आऊंगी. जरा घर की व्यवस्था देख आऊं.’’

करुणानिधि ने उस की पीठ देखते हुए फिकरा कसा, ‘‘हांहां, घर को तो कोई उठा ले जाएगा. बस, घर ही घर, तुम्हारा तो वही सबकुछ रहा है.’’

मधुमति बिना कोई उत्तर दिए कमरे से बाहर चली गई. डाक्टर ने कह दिया था कि करुणानिधि से बहस नहीं करनी है.

उस के जाते ही करुणानिधि थोड़ी देर छत की ओर देखता रहा. चारों तरफ शांति थी. धीरेधीरे उस की आंखें मुंदने लगीं. पिछला सारा जीवन उस की आंखों के सामने आ गया, प्रेमभरा, मदभरा जीवन…

शादी से पहले ही मधुमति से उसे प्रेम हो गया था. शादी के बाद के शुरुआती वर्ष तो खूब मस्ती से बीते. बस, प्रेम ही प्रेम, सुख ही सुख, चैन ही चैन. वे दोनों अकेले रहते थे. मधुमति प्रेमकला से अनभिज्ञ सी थी. पर धीरेधीरे वह विकसित होने लगी. मौसम उन का अभिन्न मित्र और प्रेरक बन गया. वर्षा, शरद और बसंत जैसी ऋतुएं उन्हें आलोडित करने लगीं.

होली तो वे दोनों सब से खेलते, पर पहले एकदूसरे के अंगप्रत्यंग में रंग लगाना, पानी की बौछार डालना, जैसे कृष्ण और राधा होली खेल रहे हों. दीवाली में साथसाथ दीए लगाना और जलाना, मिठाई खाना और खिलाना. दीवाली के दिन विशेषकर एक बंधी हुई रीति थी. मधुमति, करुणानिधि के सामने अपनी मांग भरवाने खड़ी हो जाती थी. कितने प्रेम से हर वर्ष वह उस की मांग भरता था. याद कर करुणानिधि की आंखों से आंसू ढलक गए, प्रेम के आंसू.

वे दिन थे जब प्रेम, प्रेम था, जब प्रेम चरमकोटि पर था. एक दिन की जुदाई भी असहनीय थी. कैसे फिर साथ हो, वियोग जल्दी से कैसे दूर हो, इस के मनसूबे बनाने में ही जुदाई का समय कटता था.

वे अविस्मरणीय दिन बीतते गए. अनंतकाल तक कैसे इस उच्चस्तर पर प्रेमालाप चल सकता था? फिर बच्चे हुए. मधुमति का ध्यान बच्चों को पालने में बंटा. बच्चों के साथ ही सामाजिक मेलजोल बढ़ने लगा. बच्चे बड़े होने लगे. मधुमति उन की पढ़ाई में व्यस्त, उन को स्कूल के लिए तैयार करने में, स्कूल के बाद खाना खिलाने, पढ़ाने में व्यस्त, घर सजाने का उसे बहुत शौक था. सो, घंटों सफाई, सजावट में बीत जाते. उद्यान लगाने का भी शौक चढ़ गया था. कभी किसी से मिलने चली गई. कभी कोई मिलने आ गया और कभी किसी पार्टी में जाना पड़ता. रिश्तेदारों से भी मिलनामिलाना जरूरी था.

मधुमति के पास करुणानिधि के लिए बहुत कम समय रह गया. इन सब कामों में व्यस्त रहने से वह थक भी जाती. उन की प्रेमलीला शिखर से उतर कर एकदम ठोस जमीन पर आ कर थम सी गई. जीवन की वास्तविकता ने उस पर अंकुश लगा दिए.

यह बात नहीं थी कि करुणानिधि व्यस्त नहीं था, वह भी काम में लगा रहता. आमतौर पर रात को देर से भी आता. पर उस की प्रबल इच्छा यही रहती कि मधुमति से प्रेम की दो बातें हो जाएं. पर अकसर यही होता कि बिस्तर पर लेटते ही मधुमति निद्रा में मग्न और करुणानिधि करवटें बदलता रहता, झुंझलाता रहता. ऐसा नहीं था कि प्रेम का अंत हो गया था. महीने में 2-3 बार सुस्त वासना फिर तीव्रता से जागृत हो उठती. थोड़े समय के लिए दोनों अतीत जैसे सुहावने आनंद में पहुंच जाते, पर कभीकभी ही, थोड़ी देर के लिए ही.

करुणानिधि मधुमति की मजबूरी  समझता था, पर पूरी तरह नहीं. पूरे जीवन में उसे यह अच्छी तरह समझ नहीं आया कि व्यस्त रहते हुए भी उस की तरह मधुमति प्रेमालाप के लिए कोई समय क्यों नहीं निकाल सकी. उसे तिरछी, मधुर दृष्टि से देखने में, कभी स्पर्शसुख देने में, कभीकभी आलिंगन करने में कितना समय लगता था? कभीकभी उसे ऐसा लगता जैसे उस में कोई कमी है. वह मधुमति को पूरी तरह जागृत करने में असफल रहा है. पर उसे कोई तसल्लीबख्श उत्तर कभी न मिला.

समय बीतता गया. बच्चे बड़े हो गए, उन की शादियां हो गईं. वे अपनेअपने घर चले गए, लड़के भी लड़कियां भी. घर में दोनों अकेले रह गए. तब करुणानिधि को लगा कि अब समय बदलेगा. अब मधुमति उस की ज्यादा परवा करेगी. उस के पास ज्यादा समय होगा. अब शादी के शुरू के वर्षों की पुनरावृत्ति होगी. पर उस की यह इच्छा, इच्छा ही बन कर रह गई. स्थिति और भी खराब हो गई, क्योंकि मधुमति दामादों, बहुओं व अन्य संबंधियों में और भी व्यस्त हो गई.

बेचारा करुणानिधि अतृप्त प्रेम के कारण क्षुब्ध, दुखी रहने लगा. मधुमति उस के क्रोध, दुख को फौरन समझ जाती, कभीकभी उन्हें दूर करने का प्रयत्न भी करती, पर करुणानिधि को लगता यह प्रेम वास्तविक नहीं है.

पिछले 20 वर्षों में कई बार करुणानिधि ने मधुमति से इस बारे में बात की. बातचीत कुछ ऐसे चलती…

करुणानिधि कहता, ‘मधुमति, तुम्हारे प्रेम में अब कमी आ गई है.’

‘वह कैसे? मुझे तो नहीं लगता, प्रेम कम हो गया है. आप का प्रेम कम हो गया होगा. मेरा तो और भी बढ़ गया है.’

‘यह तुम कैसे कह सकती हो? शादी के बाद के शुरुआती वर्ष याद नहीं हैं… कैसेकैसे, कहांकहां, कबकब, क्याक्या होता था.’

इस पर मधुमति कहती, ‘वैसा हमेशा कैसे चल सकता है? उम्र का तकाजा तो होगा ही. तुम्हारी दी हुई किताबों में ही लिखा है कि उम्र के साथसाथ रतिक्रीड़ा कम हो जाती है. फिर क्या रतिक्रीड़ा ही प्रेम है? उम्र के साथसाथ पतिपत्नी साथी, मित्र बनते जाते हैं. एकदूसरे को ज्यादा समझने लगते हैं. समय बीतने पर, पासपास चुप बैठे रहना भी, बात करना भी, प्रेम को समझनेसमझाने के लिए काफी होता है.’

‘किताबों में यह भी तो लिखा है कि इस के अपवाद भी होते हैं और हो सकते हैं. मैं उस का अपवाद हूं. इस उम्र में भी मेरे लिए, सिर्फ पासपास गुमसुम बैठना काफी नहीं है. तुम अपवाद क्यों नहीं बन सकती हो?’

ऐसे में मधुमिता कुछ नाराज हो कर  कहती, ‘तो आप समझते हैं, मैं  आप से प्रेम नहीं करती? दिनभर तो आप के काम में लगी रहती हूं. आप को अकेला छोड़ कर, मांबाप, बेटों, लड़कियों के पास बहुत कम जाती हूं. किसी परपुरुष पर कभी नजर नहीं डाली. आप से प्रेम न होता तो यह सब कैसे होता?’

‘बस, यही तो तुम्हारी गलती है. तुम समझती हो, प्रेमी के जीवन के लिए यही सबकुछ काफी है. पारस्परिक आकर्षण कायम रखने के लिए इन सब की जरूरत है. इन के बिना प्रेम का पौधा शायद फलेफूले नहीं, शायद शुष्क हो जाए. पर इन का अपना स्थान है. ये वास्तविक प्रेम, शारीरिक सन्निकटता का स्थान नहीं ले सकते. मैं ने भी कभी परस्त्री का ध्यान नहीं किया. कभी भी किसी अन्य स्त्री को प्रेम या वासना की दृष्टि से नहीं देखा. मैं तो तुम्हारी नजर, तुम्हारे स्पर्श के लिए ही तरसता रहा हूं. और तुम, इस पर कभी गौर ही नहीं करती. किताबों में लिखा है या नहीं कि पति के लिए स्त्री को वेश्या का रूप भी धारण करना चाहिए.’

करुणानिधि की इस तरह की बात सुन मधुमति तुनक कर जवाब देती, ‘मैं, और वेश्या? इस अधेड़ उम्र में? आप का दिमाग प्रेम की बातें सोचतेसोचते सही नहीं रहा. उम्र के साथ संतुलन भी तो रखना ही चाहिए. आप मेरी नजर को तरसते रहते हैं, मैं तो आप की नजर का ही इंतजार करती रहती हूं. आप के मुंह के रंग से, भावभंगिमा से, इशारे से समझ जाती हूं कि आप के मन में क्या है.’

‘मधुमति, यही अंतर तो तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा. नजर ‘को’ मत देखो, नजर ‘में’ देखो. कितना समय हो गया है आंखें मिला कर एकदूसरे को देखे हुए? तुम्हारे पास तो उस के लिए भी समय नहीं है. आतेजाते, कभी देखो तो फौरन पहचान जाओगी कि मेरा मन तुम्हें चाहने को, तुम्हें पाने को कैसे उतावला रहता है, अधीर रहता है. पर तुम तो शायद समझ कर भी नजर फेर लेती हो. पता कैसे लगे? बताऊं कैसे?’

‘जैसे पहले बताते थे. पहले रोक कर, कभी आप मेरी आंखों में नहीं देखते थे? कभी हाथ नहीं पकड़ते थे? अब वह सब क्यों नहीं करते?

‘वह भी तो कर के देख लिया, पर सब बेकार है. हाथ पकड़ता हूं तो झट से जवाब आता है, ‘मुझे काम करना है या कोई देख लेगा,’ झट हाथ खींच लेती हो या करवट बदल कर सो जाती हो. मैं भी आखिर स्वाभिमानी हूं. जब वर्षों पहले तय कर लिया कि किसी स्त्री के साथ, पत्नी के साथ भी जोरजबरदस्ती नहीं करूंगा, क्योंकि उस से प्रेम नहीं पनपता, उस से प्रेम की कब्र खुदती है, तो फिर सिवा चुप रहने के, प्रेम को दबा देने के, अपना मुंह फेर लेने के और क्या शेष रह जाता है?

‘तुम साल दर साल और भी बदलती जा रही हो. हमारे पलंग साथसाथ हैं…2 फुट की दूरी पर हम लेटते हैं. पर ऐसा लगता है जैसे मीलों दूर हों. मीलों दूर रहना फिर भी अच्छा है. उस से विरह की आग तो नहीं भड़केगी. उस के बाद पुनर्मिलन तो प्रेम को चरमसीमा तक पहुंचा देगा. पर पासपास लेटें और फिर भी बहुत दूर. इस से तो पीड़ा और भी बढ़ती है. कभीकभी, लेटेलेटे, यदि सोई न हो, तो मुझे आशा बंधती कि शायद आज कुछ परिवर्तन हो. पर तुम घर की, बच्चों की बात शुरू कर देती हो.’

ऐसी बातें कई बार हुईं. कुछ समय तक कुछ परिवर्तन होता. पुराने दिनों, पुरानी रातों की फिर पुनरावृत्ति होती. पर कुछ समय बाद करुणानिधि फिर उदास हो जाता. जब से मधुमति ने 50 वर्ष पार किए थे, तब से वह और भी अलगथलग रहने लगी थी. करुणानिधि ने बहुत समझाया, पर वह कहती, ‘आप तो कभी बूढ़े नहीं होंगे. पर मैं तो हो रही हूं. अब वानप्रस्थ, संन्यास का समय आ गया है. बच्चों की शादी हो चुकी है. अब तो कुछ और सोचो. मुझे तो अब शर्म आती है.’

‘पतिपत्नी के बीच शर्म किस बात की?’ करुणानिधि झुंझला कर कहता, ‘मुझे पता है, तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियां पड़ रही हैं. मेरे भी कुछ दांत निकल गए हैं. तुम मोटी भी हो रही हो. मैं भी बीमार रहता हूं. पर इस से क्या होता है? मेरे मन में तो तुम वही और वैसी ही मधुमति हो, जिस के साथ मेरा विवाह हुआ था. मुझे तो अब भी तुम वही नई दुलहन लगती हो. अब भी तुम्हारी नजर से, स्पर्श से, आवाज से मैं रोमांचित हो उठता हूं. फिर तुम्हें क्या कठिनाई है, किस बात की शर्म है?

‘हम दोनों के बारे में कौन सोच रहा है, क्या सोच रहा है, इस से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? अधिक से अधिक बच्चे और उन के बच्चे, मित्र, संबंधी यही तो कहेंगे कि हम दोनों इस उम्र में भी एकदूसरे से प्रेम करते हैं, एकदूसरे का साथ चाहते हैं, शायद सहवास भी करते हैं…तो कहने दो. हमारा जीवन, अपना जीवन है. यह तो दोबारा नहीं आएगा. क्यों न प्रेम की चरमसीमा पर रहतेरहते ही जीवन समाप्त किया जाए.’

मधुमति यह सब समझती थी. आखिर वर्षों से पति की प्रेमिका थी, पर पता नहीं क्यों, उतना नहीं समझती थी, जितना करुणानिधि चाहता था. उस के मन के किसी कोने में कोई रुकावट थी, जिसे वह पूर्णतया दूर न कर सकी. शायद भारतीय नारी के संस्कारों की रुकावट थी.

अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा, यह सब सोचता हुआ, करुणानिधि चौंका, मधुमति घर से वापस आ गई थी. वह खाने का सामान मेज पर रख रही थी. वैसा ही सुंदर चेहरा जैसा विवाह के समय था…मुख पर अभी भी तेज और चमक. बाल अभी भी काफी काले थे. कुछ सफेद बाल भी उस की सुंदरता को बढ़ा रहे थे.

बरतनों की आवाज सुन कर करुणानिधि ने मधुमति की ओर देखा तो उसे दिखाई दीं, वही बड़ीबड़ी, कालीकाली आंखें, वही सुंदर, मधुर मुसकान, वही गठा हुआ बदन कसी हुई साड़ी में लिपटा हुआ. करुणानिधि को उस के चेहरे, गले, गरदन पर झुर्रियां तो दिख ही नहीं रही थीं. उसे प्रेम से देखता करुणानिधि बुदबुदाया, ‘तेरे इश्क की इंतिहा चाहता हूं.’

छोटे से कमरे में गूंजता यह वाक्य मधुमति तक पहुंच गया. सब समझते हुए वह मुसकराई और पास आ कर उस के माथे पर हाथ रख कर बोली, ‘‘फिर वही विचार, वही भावनाएं. दिल के दौरे के बाद कुछ दिन तो आराम कर लो.’’

करुणानिधि ने निराशा में एक लंबी, ठंडी सांस ली और करवट बदल कर दीवार की ओर मुंह कर लिया.

लेकिन कुछ समय बाद ही मधुमति को भी करुणानिधि की तरह लंबी, ठंडी सांस भरनी पड़ी और करवट बदल कर दीवार की ओर मुंह करना पड़ा.

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद करुणानिधि घर आ गया. अच्छी तरह स्वास्थ्य लाभ करने में कुछ महीने लग गए. तब तक मधुमति उस से परे ही रही. उसे डर था कि समीप आने पर उसे दोबारा दिल का दौरा न पड़ जाए. उस ने इस डर के बारे में करुणानिधि को समझाने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ. जब भी इस के बारे में बातें होतीं, करुणानिधि कहता कि वह उसे केवल टालने की कोशिश कर रही है.

कुछ महीने बाद करुणानिधि 61 वर्ष का हो गया और लगभग पूर्णतया स्वस्थ भी. इस कारण विवाह की सालगिरह की रात जब उस ने मधुमति की ओर हाथ बढ़ाया तो उस ने इनकार न किया, पर उस के बाद करुणानिधि स्तब्ध रह गया. पहली बार उसे अंगरेजी कहावत ‘माइंड इज विलिंग, बट द फ्लैश इज वीक’ (मन तो चाहता है, पर शरीर जवाब देता है.) का अर्थ ठीक से समझ में आया और वह दुखी हो गया.

मधुमति ने उसे समझाने की कोशिश की. उस रात तो कुछ समझ न आया, पर जब फिर कई बार वैसा ही हुआ तो उसे उस स्थिति को स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि डाक्टरों ने उसे बता दिया था कि उच्च रक्तचाव और मधुमेह के कारण ही ऐसी स्थिति आ गई थी.

अब मधुमति दीवार की ओर मुंह मोड़ने लगी, पर मुसकरा कर. एक बार जब करुणानिधि ने इस निराशा पर खेद व्यक्त किया तो उस ने कहा, ‘‘खेद प्रकट करने जैसी कोई बात ही नहीं है. प्रकृति के नियमों के विरुद्ध कोई कैसे जा सकता है. जब बच्चों की देखभाल के कारण या घर के कामकाज के कारण मेरा ध्यान आप की ओर से कुछ खिंचा, तो वह भी प्रकृति के नियमों के अनुसार ही था. आप को उसे स्वीकार करना चाहिए था. जैसे आज मैं स्वीकार कर रही हूं.

आप के प्रति मेरे प्रेम में तब भी कोई अंतर नहीं आया था और न अब आएगा. प्रेम, वासना का दूसरा नाम नहीं है. प्रेम अलग श्रेणी में है, जो समय के साथ बढ़ता है, परिपक्व होता है. उस में ऐसी बातों से, किसी भी उम्र में कमी नहीं आ सकती. यही प्रेम की परिसीमा है.’’

करुणानिधि को एकदम तो नहीं, पर समय बीतने के साथ मधुमति की बातों की सत्यता समझ में आने लगी और फिर धीरेधीरे उन का जीवन फिर से मधुर प्रेम की निश्छल धारा में बहने लगा.

Emotional Story : अपने लोग – दूर हो गई थी आनंद की खुशियां

Emotional Story : ‘‘आखिर ऐसा कितने दिन चलेगा? तुम्हारी इस आमदनी में तो जिंदगी पार होने से रही. मैं ने डाक्टरी इसलिए तो नहीं पढ़ी थी, न इसलिए तुम से शादी की थी कि यहां बैठ कर किचन संभालूं,’’ रानी ने दूसरे कमरे से कहा तो कुछ आवाज आनंद तक भी पहुंची. सच तो यह था कि उस ने कुछ ही शब्द सुने थे लेकिन उन का पूरा अर्थ अपनेआप ही समझ गया था.

आनंद और रानी दोनों ने ही अच्छे व संपन्न माहौल में रह कर पढ़ाई पूरी की थी. परेशानी क्या होती है, दोनों में से किसी को पता ही नहीं था. इस के बावजूद आनंद व्यावहारिक आदमी था. वह जानता था कि व्यक्ति की जिंदगी में सभी तरह के दिन आते हैं. दूसरी ओर रानी किसी भी तरह ये दिन बिताने को तैयार नहीं थी. वह बातबात में बिगड़ती, आनंद को ताने देती और जोर देती कि वह विदेश चले. यहां कुछ भी तो नहीं धरा है.

आनंद को शायद ये दिन कभी न देखने पड़ते, पर जब उस ने रानी से शादी की तो अचानक उसे अपने मातापिता से अलग हो कर घर बसाना पड़ा. दोनों के घर वालों ने इस संबंध में उन की कोई मदद तो क्या करनी थी, हां, दोनों को तुरंत अपने से दूर हो जाने का आदेश अवश्य दे दिया था. फिर आनंद अपने कुछ दोस्तों के साथ रानी को ब्याह लाया था.

तब वह रानी नहीं, आयशा थी, शुरूशुरू में तो आयशा के ब्याह को हिंदूमुसलिम रंग देने की कोशिश हुई थी, पर कुछ डरानेधमकाने के बाद बात आईगई हो गई. फिर भी उन की जिंदगी में अकेलापन पैठ चुका था और दोनों हर तरह से खुश रहने की कोशिशों के बावजूद कभी न कभी, कहीं न कहीं निकटवर्तियों का, संपन्नता का और निश्चिंतता का अभाव महसूस कर रहे थे.

आनंद जानता था कि घर का यह दमघोंटू माहौल रानी को अच्छा नहीं लगता. ऊपर से घरगृहस्थी की एकसाथ आई परेशानियों ने रानी को और भी चिड़चिड़ा बना दिया था. अभी कुछ माह पहले तक वह तितली सी सहेलियों के बीच इतराया करती थी. कभी कोईर् टोकता भी तो रानी कह देती, ‘‘अपनी फिक्र करो, मुझे कौन यहां रहना है. मास्टर औफ सर्जरी (एमएस) किया और यह चिडि़या फुर्र…’’ फिर वह सचमुच चिडि़यों की तरह फुदक उठती और सारी सहेलियां हंसी में खो जातीं.

यहां तक कि वह आनंद को भी अकसर चिढ़ाया करती. आनंद की जिंदगी में इस से पहले कभी कोई लड़की नहीं आई थी. वह उन क्षणों में पूरी तरह डूब जाता और रानी के प्यार, सुंदरता और कहकहों को एकसाथ ही महसूस करने की कोशिश करने लगता था.

आनंद मास्टर औफ मैडिसिन (एमडी) करने के बाद जब सरकारी नौकरी में लगा, तब भी उन दोनों को शादी की जल्दी नहीं थी. अचानक कुछ ऐसी परिस्थितियां आईं कि शादी करना जरूरी हो गया. रानी के पिता उस के लिए कहीं और लड़का देख आए थे. अगर दोनों समय पर यह कदम न उठाते तो निश्चित था कि रानी एक दिन किसी और की हो जाती.

फिर वही हुआ, जिस का दोनों बरसों से सपना देख रहे थे. दोनों एकदूसरे की जिंदगी में डूब गए. शादी के बाद भी इस में कोई फर्क नहीं आया. फिर भी क्षणक्षण की जिंदगी में ऐसे जीना संभव नहीं था और रानी की बड़बड़ाहट भी इसी की प्रतिक्रिया थी.

आनंद ने यह सब सुना और रानी की बातें उस के मन में कहीं गहरे उतरती गईं. रानी के अलावा अब उस का इतने निकट था ही कौन? हर दुखदर्द की वह अकेली साथी थी. वह सोचने लगा, ‘चाहे जैसे भी हो, विदेश निकलना जरूरी है. जो यहां बरसों नहीं कमा सकूंगा, वहां एक साल में ही कमा लूंगा. ऊपर से रानी भी खुश हो जाएगी.’

आखिर वह दिन भी आया जब आनंद का विदेश जाना लगभग तय हो गया. डाक्टर के रूप में उस की नियुक्ति इंगलैंड में हो गई थी और अब उन के निकलने में केवल उतने ही दिन बाकी थे जितने दिन उन की तैयारी के लिए जरूरी थे. जाने कितने दिन वहां लग जाएं? जाने कब लौटना हो? हो भी या नहीं? तैयारी के छोटे से छोटे काम से ले कर मिलनेजुलने वालों को अलविदा कहने तक, सभी काम उन्हें इस समय में निबटाने थे.

रानी की कड़वाहट अब गायब हो चुकी थी. आनंद अब देर से लौटता तो भी वह कुछ न कहती, जबकि कुछ महीनों पहले आनंद के देर से लौटने पर वह उस की खूब खिंचाई करती थी.

अब रात को सोने से पहले अधिकतर समय इंगलैंड की चर्चा में ही बीतता, कैसा होगा इंगलैंड? चर्चा करतेकरते दोनों की आंखों में एकदूसरे के चेहरे की जगह ढेर सारे पैसे और उस से जुड़े वैभव की चमक तैरने लगती और फिर न जाने दोनों कब सो जाते.

चाहे आनंद के मित्र हों या रानी की सहेलियां, सभी उन का अभाव अभी से महसूस करने लगे थे. एक ऐसा अभाव, जो उन के दूर जाने की कल्पना से जुड़ा हुआ था. आनंद का तो अजीब हाल था. आनंद को घर के फाटक पर बैठा रहने वाला चौकीदार तक गहरा नजदीकी लगता. नुक्कड़ पर बैठने वाली कुंजडि़न लाख झगड़ने के बावजूद कल्पना में अकसर उसे याद दिलाती, ‘लड़ लो, जितना चाहे लड़ लो. अब यह साथ कुछ ही दिनों का है.’

और फिर वह दिन भी आया जब उन्हें अपना महल्ला, अपना शहर, अपना देश छोड़ना था. जैसेजैसे दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ने का समय नजदीक आ रहा था, आनंद की तो जैसे जान ही निकली जा रही थी. किसी तरह से उस ने दिल को कड़ा किया और फिर वह अपने महल्ले, शहर और देश को एक के बाद एक छोड़ता हुआ उस धरती पर जा पहुंचा जो बरसों से रानी के लिए ही सही, उस के जीने का लक्ष्य बनी हुई थी.

लंदन का हीथ्रो हवाईअड्डा, यांत्रिक जिंदगी का दूर से परिचय देता विशाल शहर. जिंदगी कुछ इस कदर तेज कि हर 2 मिनट बाद कोई हवाईजहाज फुर्र से उड़ जाता. चारों ओर चकमदमक, उसी के मुकाबले लोगों के उतरे या फिर कृत्रिम मुसकराहटभरे चेहरे.

जहाज से उतरते ही आनंद को लगा कि उस ने बाहर का कुछ पाया जरूर है, पर साथ ही अंदर का कुछ ऐसा अपनापन खो दिया है, जो जीने की पहली शर्त हुआ करती है. रानी उस से बेखबर इंगलैंड की धरती पर अपने कदमों को तोलती हुई सी लग रही थी और उस की खुशी का ठिकाना न था. कई बार चहक कर उस ने आनंद का भी ध्यान बंटाना चाहा, पर फिर उस के चेहरे को देख अकेले ही उस नई जिंदगी को महसूस करने में खो जाती.

अब उन्हें इंगलैंड आए एक महीने से ऊपर हो रहा था. दिनभर जानवरों की सी भागदौड़. हर जगह बनावटी संबंध. कोई भी ऐसा नहीं, जिस से दो पल बैठ कर वे अपना दुखदर्द बांट सकें. खानेपीने की कोई कमी नहीं थी, पर अपनेपन का काफी अभाव था. यहां तक कि वे भारतीय भी दोएक बार लंच पर बुलाने के अलावा अधिक नहीं मिलतेजुलते जिन के ऐड्रैस वह अपने साथ लाया था. जब भारतीयों की यह हालत थी, तो अंगरेजों से क्या अपेक्षा की जा सकती थी. ये भारतीय भी अंगरेजों की ही तरह हो रहे थे. सारे व्यवहार में वे उन्हीं की नकल करते.

ऐसे में आनंद अपने शहर की उन गलियों की कल्पना करता जहां कहकहों के बीच घडि़यों का अस्तित्व खत्म हो जाया करता था. वे लंबीचौड़ी बहसें अब उसे काल्पनिक सी लगतीं. यहां तो सबकुछ बंधाबंधा सा था. ठहाकों का सवाल ही नहीं, हंसना भी हौले से होता, गोया उस की भी राशनिंग हो. बातबात में अंगरेजी शिष्टाचार हावी. आनंद लगातार इस से आजिज आता जा रहा था. रानी कुछ पलों को तो यह महसूस करती, पर थोड़ी देर बाद ही अंगरेजी चमकदमक में खो जाती. आखिर जो इतनी मुश्किल से मिला है, उस में रुचि न लेने का उसे कोई कारण ही समझ में न आता.

कुछ दिनों से वह भी परेशान थी. बंटी यहां आने के कुछ दिनों बाद तक चौकीदार के लड़के रामू को याद कर के काफी परेशान रहा था. यहां नए बच्चों से उस की दोस्ती आगे नहीं बढ़ सकी थी. बंटी कुछ कहता तो वे कुछ कहते और फिर वे एकदूसरे का मुंह ताकते. फिर बंटी अकेला और गुमसुम रहने लगा था. रानी ने उस के लिए कई तरह के खिलौने ला दिए, लेकिन वे भी उसे अच्छे न लगते. आखिर बंटी कितनी देर उन से मन बहलाता.

और आज तो बंटी बुखार में तप रहा था. आनंद अभी तक अस्पताल से नहीं लौटा था. आसपास याद करने से रानी को कोई ऐसा नजर नहीं आया, जिसे वह बुला ले और जो उसे ढाढ़स बंधाए. अचानक इस सूनेपन में उसे लखनऊ में फाटक पर बैठने वाले रग्घू चौकीदार की याद आई, जो कई बार ऐसे मौकों पर डाक्टर को बुला लाता था. उसे ताज्जुब हुआ कि उसे उस की याद क्यों आई. उसे कुंजडि़न की याद भी आई, जो अकसर आनंद के न होने पर घर में सब्जी पहुंचा जाती थी. उसे उन पड़ोसियों की भी याद आई जो ऐसे अवसरों पर चारपाई घेरे बैठे रहते थे और इस तरह उदास हो उठते थे जैसे उन का ही अपना सगासंबंधी हो.

आज पहली बार रानी को उन की कमी अखरी. पहली बार उसे लगा कि वह यहां हजारों आदमियों के होने के बावजूद किसी जंगल में पहुंच गई है, जहां कोई भी उन्हें पूछने वाला नहीं है. आनंद अभी तक नहीं लौटा था. उसे रोना आ गया.

तभी बाहर कार का हौर्न बजा. रानी ने नजर उठा कर देखा, आनंद ही था. वह लगभग दौड़ सी पड़ी, बिना कुछ कहे आनंद से जा चिपटी और फफक पड़ी. तभी उस ने सुबकते हुए कहा, ‘‘कितने अकेले हैं हम लोग यहां, मर भी जाएं तो कोई पूछने वाला नहीं. बंटी की तबीयत ठीक नहीं है और एकएक पल मुझे काटने को दौड़ रहा था.’’

आनंद ने धीरे से बिना कुछ कहे उसे अलग किया और अंदर के कमरे की ओर बढ़ा, जहां बंटी आंखें बंद किए लेटा था. उस ने उस के माथे पर हाथ रखा, वह तप रहा था. उस ने कुछ दवाएं बंटी को पिलाईं. बंटी थोड़ा आराम पा कर सो गया.

थका हुआ आनंद एक सोफे पर लुढ़क गया. दूसरी ओर, आरामकुरसी पर रानी निढाल पड़ी थी. आनंद ने देखा, उस की आंखों में एक गलती का एहसास था, गोया वह कह रही हो, ‘यहां सबकुछ तो है पर लखनऊ जैसा, अपने देश जैसा अपनापन नहीं है. चाहे वस्तुएं हों या आदमी, यहां केवल ऊपरी चमक है. कार, टैलीविजन और बंगले की चमक मुझे नहीं चाहिए.’

तभी रानी थके कदमों से उठी. एक बार फिर बंटी को देखा. उस का बुखार कुछ कम हो गया था. आनंद वैसे ही आंखें बंद किए हजारों मील पीछे छूट गए अपने लोगों की याद में खोया हुआ था. रानी निकट आई और चुपचाप उस के कंधों पर अपना सिर टिका दिया, जैसे अपनी गलती स्वीकार रही हो.

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