Stories : मन का बंधन

Stories : कनक हिंदी में पीएचडी कर रही थी. वह विभाग के प्रमुख डा. अमन के अधीन शोध कर रही थी. डा. अमन कुछ दिनों के लिए बाहर गए थे. उन्होंने अपने कक्ष की चाबी कनक को दे दी थी ताकि वह उन की पुस्तकों को पढ़ सके. इसी बीच एक प्रोफैसर भी 2 महीनों की छुट्टी पर चले गए. उन की जगह कनक को अस्थाई तौर पर नियुक्त किया गया.  कनक हमेशा सफेद साड़ी व ब्लाउज पहनती थी. उस का गेहुआं रंग, तीखे नैननक्श, हंसमुख एवं आकर्षक चेहरा सभी को उसे देखने को मजबूर कर देता था. इस के अलावा कुदरत ने उसे मधुर वाणी भी दी थी.

कनक अपनी पहली क्लास लेने स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष की कक्षा में गई. उस ने विद्यार्थियों को संबोधित कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘आप सभी विद्यार्थी मुझे अपना मित्र ही समझें. इन 2 महीनों में मैं आप की पूरीपूरी मदद करने की कोशिश करूंगी और हो सकता है मुझे भी आप से कुछ सीखने को मिले जिस से मुझे अपनी शोध पुस्तिका पूरी करने में मदद मिले.’’

इस के बाद कनक ने सभी छात्रछात्राओं का भी परिचय लिया. उस कक्षा में नवीन नामक छात्र भी था जो मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता का देहांत हो चुका था. मां गृहिणी थीं. पिता द्वारा रखे रुपयों और पैंशन से मांबेटे का गुजारा होता था. नवीन पढ़ने में बहुत होशियार था और स्मार्ट पर्सनैलिटी का भी स्वामी था. एक पेपर ठीक न होने की वजह से उस ने पिछले साल परीक्षा ड्रौप कर दी थी. वह हंसमुख और मजाकिया स्वभाव का भी था. कनक पहले दिन क्लास ले कर दोपहर में जब कालेज से निकली तो काफी बारिश हो रही थी. वह गेट के बाहर रिकशे के लिए खड़ी थी. बारिश कम हो गई थी. आमतौर पर वह औटो से घर जाती थी.

औटो उसे मेन रोड पर छोड़ देता. फिर कुछ दूर गली में जाने पर उस का घर पड़ता था.   तभी नवीन अपने स्कूटर से वहां से गुजरने लगा तो कनक को देख कर रुक गया.  बोला, ‘‘मैडम, कहां जाना है आप को? चलिए आप को घर तक छोड़ देता हूं.’’ ‘‘नहीं, मैं रिकशे में चली जाऊंगी.’’ ‘‘बारिश के चलते अभी रिकशा जल्दी नहीं मिलेगा. चलिए, किराया मुझे दे देना.’’ इस पर दोनों हंस पड़े और फिर कनक हंसते हुए स्कूटर पर बैठते हुए बोली, ‘‘सब्जी मंडी जाऊंगी. कितना किराया लोगे?’’ ‘‘आप अपनी मरजी से जो भी दे दें. वैसे मैं भी उधर से ही जाता हूं. आप के साथ को ही किराया समझ लूंगा.’’ सब्जी मंडी पहुंचने पर कनक बोली, ‘‘बस मुझे यहीं ड्रौप कर दो.

बगल वाली गली में ही मेरा घर है.’’ नवीन ने स्कूटर न रोक कर गली में मुड़ते हुए कहा, ‘‘अभी बारिश हो रही है… आप को घर तक छोड़ देता हूं.’’ थोड़ी दूर चलने पर कनक ने स्कूटर रोकने को कहा. स्कूटर से उतर कर उस ने नवीन को धन्यवाद दिया. फिर बाय में हाथ हिला कर घर के अंदर चली गई. नवीन सोचने लगा कि इस के घर तक आया और इस ने औपचारिकतावश भी अंदर आने को नहीं कहा और कहां मैं चाय की सोच रहा था. दूसरे दिन कनक ने क्लास में कहा, ‘‘आप लोगों को कल मैं सूरदास द्वारा लिखित सौंदर्य वर्णन के विषय में बता रही थी. मुझे आशा है आप सभी इसे भलीभांति समझ गए होंगे. किसी को कोई संदेह हो तो पूछ सकता है.’’

नवीन ने पूछा, ‘‘मुझे सूरदास की इन पंक्तियों के अर्थ बताएं? अद्भुत एक अनुपम बाग, जुगल कमल पर गजवर क्रीड़त, तापर सिंह करत अनुराग…’’ ‘‘इस का मतलब और जिन्हें पता नहीं है कृपया अपना हाथ उठाएं,’’ कनक ने कहा. पूरी क्लास में किसी ने हाथ नहीं उठाया. तब कनक बोली, ‘‘मुझे पता है आप सभी यह बीए औनर्स में पढ़ चुके हैं. फिर भी नवीन मुझ से डा. अमन के कक्ष में मिले तो उन्हें समझा दूंगी.’’ इस पर सभी लड़के धीरेधीरे मुसकराने लगे जबकि लड़कियां गंभीर मुद्रा में थीं. नवीन जब कनक से मिला तब कनक ने पूछा, ‘‘मैं क्लास को तो आप कह कर संबोधित करती हूं, पर मैं अकेले में तुम्हारे साथ ज्यादा सहज महसूस करती हूं. तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?’’ ‘‘नहीं, मुझे जरा भी बुरा नहीं लगेगा, बल्कि खुशी ही होगी.’’ ‘‘क्या तुम सही में उन पंक्तियों का अर्थ नहीं जानते हो?’’  ‘‘मैडम, सर ने बताया था पर यह भी कहा था कि वर्तमान में इस का  और अर्थ भी हो सकता है.’’

‘‘तो तुम यह और अर्थ मेरे मुंह से सुनना चाहते हो?’’ ‘‘मैडम, आप बुरा मान गईं तो रहने दीजिए.’’ ‘‘नहीं, मैं बताने जा रही हूं, आजकल तो स्त्री के विभिन्न अंग पुरुष कवियों के प्रिय विषय हैं. नारी की सुंदरता का वर्णन करने के लिए उस के अंगों के और अन्य उतारचढ़ाव की उपमाएं दी जाती हैं. आजकल तो फिल्मों में, फिल्मी गीतों और विज्ञापनों में स्त्री सुलभ अंगों को दिखाया जाता है. तुम कदाचित इसी संदर्भ में मेरे मुख से सुनना चाहते थे.’’

नवीन चुपचाप उठ कर कनक के रूम से निकल गया. अगले सप्ताह फिर कनक को उस की क्लास में पढ़ाना था. कनक ने कहा, ‘‘आज हम लोग अलंकार के विषय में चर्चा करेंगे. अलंकार एक प्रकार है संदेह अलंकार जैसे-  सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है. सारी ही की नारी है की नारी ही की सारी है. यहां सारी और नारी के बीच में संशय दिखाया गया है. आप में से कोई दूसरे प्रकार के अलंकार का उदाहरण दे सकता है? नवीन बोला- ‘‘एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहां अपर है, उस ने कहा अपर कैसा वह तो उड़ गया सपर है.’’ कनक उत्साहित हो कर बोली, ‘‘बहुत अच्छा उदाहरण दिया नवीन ने. धन्यवाद नवीन. ‘‘यह वक्रोक्ति अलंकार का उदाहरण है. कहा जाता है कि जब जहांगीर ने नूरजहां से पूछा कि तुम्हारे पास एक ही कबूतर है दूसरा (अपर) कहां है तो उस ने दूसरे कबूतर को भी उड़ा कर कहा कि अपर (बे पर) कैसा वह तो इसी की तरह सपर (पर वाला) था.’’

उस दिन फिर दोपहर बाद बारिश होने लगी. कनक रिकशे का इंतजार कर रही थी.  नवीन ने सामने आ कर स्कूटर रोक कर कहा, ‘‘चलिए, मैं भी घर ही जा रहा हूं.’’ कनक आज तुरंत बैठने को तैयार हो गई. नवीन उसे घर ड्रौप कर मुड़ने वाला था तो कनक बोली, ‘‘अंदर आओ, चाय पी कर जाना.’’ नवीन कुछ पल कनक को देखता रहा. इसी बीच कनक ने दोबारा कहा, ‘‘स्कूटर बंद करो और अंदर चलो. उस दिन मां घर में नहीं थीं, इसलिए तुम्हें बिना चाय को पूछे जाने दिया था. अंदर आ जाओ.’’ थोड़ी देर में कनक खुद चाय बना लाई और फिर दोनों चाय पीने लगे. कनक की मां बगल के कमरे में सिलाई कर रही थीं. जब तक वे बाहर आईं नवीन जाने के लिए तैयार था. वह मां को प्रणाम और कनक को बाय कर चला गया. उस के जाने पर मां ने पूछा, ‘‘अच्छा लड़का है, तुझे पसंद है?’’ ‘‘मां, तुम भी न… वह मेरा स्टूडैंट नवीन था.’’ ‘‘आजकल तो तुम लोग जिंदगी भर पढ़ते रहते हो.

आखिर शादी कब करोगी?’’  कुछ दिनों बाद कनक अपनी मां के साथ एक रैस्टोरैंट में बैठी थी. संयोगवश  नवीन भी अपनी मां के साथ वहां पहुंचा. कनक ने उन्हें देखा तो अपनी टेबल पर ही बुला लिया. एकदूसरे का परिचय हुआ. कनक ने बताया कि अगले सप्ताह उस की नियुक्ति का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और साथ में उस का शोधकार्य भी. नवीन की मां ने कनक से कहा कि नवीन उस की बढ़ाई करते नहीं थकता. कनक की मां ने भी नवीन की तारीफ की और कहा कि बीचबीच में आते रहा करो, अब तो कनक भी घर पर ही मिलेगी. नवीन और कनक कुछ देर तक एकदूसरे को देखते रहे. कनक ने अपना शोध सौंप दिया था. एक दिन नवीन सब्जी मंडी गया तो वहां से कनक के घर जा पहुंचा. उस समय कनक अकेली थी. बोली, ‘‘आओ, आज इधर की याद कैसे आई?’’ सच कहूं या झूठ? ‘‘मुझे सच बोलने वाले अच्छे लगते हैं.’’ ‘‘तो सुनिए, आप की याद तो हर पल मेरे दिल में रहती है. आप की पर्सनैलिटी ही कुछ ऐसी है.’’ ‘‘बातें भी अच्छी बना लेते हो.’’

‘‘नहीं मैडम, मैं आप को अच्छी तरह परख कर आप का मूल्यांकन कर सकता हूं.’’ ‘‘तो क्या देखा मुझ में?’’ ‘‘आप श्वेत वस्त्रों में बहुत निर्मल, अभिजात और सुसंस्कृत लगती हैं.’’ अब तक मां आई गई थीं. तीनों ने चाय पी. फिर नवीन चला गया. कुछ महीने बाद नवीन सैकंड क्लास से एमए कर गया तो कनक डा. कनक बन चुकी थी. कनक नवीन के घर बधाई देने गई, तो नवीन बोला, ‘‘मैं ने लास्ट ईयर ड्रौप किया था यह सोच कर कि इस साल फर्स्ट क्लास लाऊंगा.’’ कनक बोली, ‘‘भाषा में फर्स्ट क्लास लाना कठिन है. वैसे भी इस साल कोई फर्स्ट नहीं आया है और तुम सैकंड क्लास में टौप पर हो, तो मुंह मीठा करो.’’ नवीन को उस ने अपने हाथों से मिठाई खिलाई. नवीन ने भी मिठाई का एक पीस कनक के मुंह में डाला. फिर कहा, ‘‘उस दिन आप ने पूछा था कि आप में क्या देखा है मैं ने? तो मैं यही कहूंगा कि कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय… वा पाय बौराय…’’ ‘‘बसबस, क्या मतलब?’’ ‘‘नहीं मैडम, बोलने दें. मैं इस कनक को पा कर बौरा गया हूं. आप के खयालों में मदहोश रहता हूं.’’ ‘‘पागल मत बनो. जो जी में आए बक देते हो. मत भूलो तुम मेरे स्टूडैंट रहे हो.’’

घर लौटने पर कनक भी कुछ देर तक नवीन के बारे में सोचती रही. थोड़ी देर तक वह भी दुविधा में थी. कनक और नवीन दोनों नौकरी के लिए कोशिश कर रहे थे. कनक ने अपने ही शहर में सरकारी संस्था में राजभाषा विभाग में प्रबंधक के पद पर जौइन किया. नवीन ने दूसरे शहर में नौकरी जौइन की. जाने के पहले नवीन कनक से एक पार्क में मिला.  कनक बोली, ‘‘अब तो तुम दूर जा रहे हो, पर संपर्क में रहना.’’ ‘‘दूर भले रहूं पर आप की याद दिल में लिए जा रहा हूं. पता नहीं आप को मेरी याद आएगी या नहीं?’’ कह उस ने कनक का हाथ पकड़ चूमते हुए आगे कहा, ‘‘मैं नहीं जानता सही है या गलत पर मेरा आप से दूर जाने का मन नहीं कर रहा है.’’ ‘‘तुम क्या पागलों जैसी हरकतें कर रहे हो… यहां पब्लिक प्लेस में अपनी और मेरी इज्जत का कुछ खयाल करो. तुम तो चले जाओगे, पर मैं यहीं रहूंगी. जानबूझ कर क्यों एकतरफा प्यार में पागल हो रहे हो? हम दोनों के बीच फासले हैं, समझो?’’ ‘‘क्या फासले हैं? बस उम्र का फासला है और वह भी 1-2 साल का होगा.’’

‘‘कभीकभी छोटे फासले तय करने में ही उम्र गुजर जाती है…चलो घर चलते हैं.’’ नवीन दूर शहर में नौकरी करने लगा. कनक से उस का संपर्क बना हुआ था. कनक भी उस के बारे में अकसर सोचती थी. उस की शादी भी हो गई. नवीन शादी में आया था. कनक को गिफ्ट देते समय उस की आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदें कनक के मेहंदी लगे हाथों पर जा गिरी थीं. उस ने किसी की गजल भीगी आंखें बंद कर सुनाई- ‘‘होंठों को सी के उन को न जीना पड़े कभी, मेहंदी रचे ये हाथ न फीके पड़ें कभी.’’ वह चला गया पर इस बार कनक की आंखें भी नम हो गई थीं. कनक की शादी अपनी ही कंपनी के एक इंजीनियर से हुई थी. 1 साल के अंदर ही वह एक सुंदर कन्या की मां बन गईं. शुरू में सब ठीक चल रहा था, पर 2 सालों के बाद उस का पति अमेरिका चला गया. उस ने जाते समय कनक से कहा था कि वहां ठीक से सैटल होने पर उन्हें भी ले जाऊंगा.   शुरू में तो कनक का पति अकसर उस से बातें करता था, पर फिर धीरेधीरे यह  सिलसिला कम होने लगा और बाद में बिलकुल बंद हो गया.

एक दिन कनक ने पति के नंबर पर फोन किया तो पता चला कि यह नंबर मौजूद नहीं है. कनक ने पति के करीबी दोस्त से बात की तो उस ने कहा, ‘‘भाभीजी, मैं नहीं बताना चाहता था, पर उस का तो अमेरिका में भारतीय मूल की एक अमेरिकी लड़की से चक्कर चल रहा है. काफी दिनों से उसी के साथ रह रहा है. उसे तो ग्रीन कार्ड भी मिल गया है, अब तो उस के लौटने की उम्मीद न के बराबर है.’’ नवीन और कनक संपर्क में तो थे पर कनक ने अपने पति के बारे में उसे या उस की मां को कुछ नहीं बताया था. एक दिन कनक अपनी बेटी को ले कर नवीन की मां से मिलने गई थी. मां ने जब उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने अपनी कहानी सुना दी. मां को सुन कर बहुत दुख हुआ.

उसी दिन अचानक नवीन बिना पूर्व सूचना के आ पहुंचा. कनक और उस की बेटी  को देख कर बहुत खुश हुआ. कनक पहले की अपेक्षा दुबली हो गई थी और पुराने स्टाइल में सफेद साड़ी में थी. नवीन श्वेता को गोद में ले कर उस के साथ खेलते हुए बोला, ‘‘यह तो आप से भी सुंदर है.’’ कनक के चहेरे पर एक बनावटी हंसी थी. मां ने जब कनक की कहानी सुनाई तो उसे बहुत दुख हुआ. कुछ इधरउधर की बातों के बाद कनक ने कहा, ‘‘नवीन की शादी जल्दी कर दो मांजी.’’ मां बोलीं, ‘‘अब तुम्हीं समझाओ बेटी.’’ ‘‘मैं तो बस किसी के इंतजार में ही रह गया.’’ ‘‘किस का इंतजार नवीन?’’ ‘‘कनक का.’’ ‘‘यह नामुमकिन है. तुम समझते क्यों नहीं?’’ कह कनक रोने लगी. ‘‘अरे, मैं ने कुछ बुरा कहा क्या?’’ कनक ने नवीन का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘नहीं तुम्हारी सोच में कोई बुराई नहीं है, बल्कि तुम मेरा भला ही सोच रहे हो, पर हम जैसा सोचते हैं, वैसा हमेशा तो हो नहीं पाता.

मैं ने कहा था न कि हमारे बीच जो फासले हैं उन्हें मैं पाट सकती हूं.’’ ‘‘मुझे तो कोई फासला नहीं दिखता है. किस फासले की बात कर रही हैं आप?’’ ‘‘एक हो तो बताऊं?’’ ‘‘मैं नहीं मानता.’’ ‘‘तो सुनो, एक तो उम्र का फासला तुम खुद मानते हो, दूसरा मैं परित्यक्ता हूं, तीसरा मैं एक बच्ची की मां हूं, चौथा अपने बेटी का सौतेला पिता मुझे मंजूर नहीं है और अंत में तुम्हारेमेरे बीच गुरुशिष्य का भी रिश्ता रहा है और शायद इसीलिए तुम मुझे अभी तक आप ही कहते आए हो, मैं अपने जीवन में इस की गरिमा बनाए रखना चाहती हूं.’’ ‘‘इस का मतलब मैं क्या समझूं? आप क्या दोबारा विवाह नहीं करेंगी?’’ ‘‘नहीं.’’ ‘‘आप में अदम्य साहस देख रहा हूं. कुदरत आप की सहायता करेगी,’’ कह कुछ देर तक नवीन खामोश रहा. उस के चेहरे पर निराशा झलक रही थी. वह चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. तभी कनक ने पूछा ‘‘क्या तुम मुझे मन से चाहते हो?’’ ‘‘आप को इस में कोई संदेह है क्या?’’

.‘‘नहीं, संदेह नहीं, इसीलिए कह रही हूं कि मां और मेरी बात मान कर शादी कर लो. रिश्ते वही सच्चे होते हैं जो मन से बंधे हों. मन का रिश्ता दिलोंको मन की गहराइयों तक बांधे रहता है. दुखी नहीं होना. तन का बंधन इस जन्म में नहीं संभव है, पर विश्वास करो मन से मैं तुम से जुड़ी रहूंगी.’’  नवीन ने भी अपने दोनों हाथों से उस के हाथों को पकड़ लिया. दोनों की  आंखों से आंसू की बूंदें एकदूसरे के हाथों पर टपक रही थीं. दोनों के मन की पीड़ा आंखों में उतर आई थी. नवीन बोला, ‘‘आप भी एक वादा करें कि जीवन के किसी भी मोड़ पर मेरी जरूरत पड़े तो मुझे अवश्य याद करेंगी, तभी मैं समझूंगा कि मन की डोरी से बंधे हैं हम दोनों.’’ मां काफी देर से चुप खड़ी उन दोनों की बातें सुन रही थीं. वे कनक को संबोधित करते हुए बोलीं, ‘‘कनक, तुम मुझे अपनी मां जैसी ही समझना.’’ ‘‘निस्संदेह,’’ कह कनक बेटी को गोद में ले घर से निकल गई.

Hindi Kahani : इमोशनल अत्याचार – रक्षिता की जिंदगी उसे किस मोड़ पर ले गई

Hindi Kahani : रक्षिता का सामाजिक बहिष्कार तो मानो हो ही चुका था. रहीसही कसर उस के दोस्त वरुण ने पूरी कर दी थी. रक्षिता को ऐसा लग रहा था कि वह जैसे कोई सपना देख रही हो. 20 दिनों में उस की जिंदगी तहसनहस हो चुकी थी.

20 दिनों पहले रक्षिता के पापा की हार्टअटैक से मौत हो चुकी थी. पापा की मौत के बाद भाई ने अपना असली रंग दिखा दिया. कहते हैं सफलता मिलने के बाद इंसान अपना असली रंग दिखाता है, लेकिन यहां तो दुख की घड़ी में भाई ने रक्षिता को अपना असली चेहरा दिखा दिया था. अब क्या किया जाए. मां पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी.

दादी की भी एक साल पहले मृत्यु हो गई थी. रक्षिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे. रिश्तेदारों के सामने भाई ने हाथ नचा कर पुष्टि कर दी थी कि रक्षिता की वजह से ही पापा की मृत्यु हुई. बूआ, जो उसे बहुत मानती थीं, ने भी साफ कह दिया था, ‘ऐसी लड़की से वे कोई नाता नहीं रखना चाहतीं.’ उस के भाई ने उस से साफतौर पर कह दिया था, ‘अब घर वापस आने की जरूरत नहीं है. तुम्हारी शादी पर खर्च करने की मेरी कोई मंशा नहीं है.’ उस ने दिल्ली जाने का टिकट उस के हाथ में थमा दिया. ‘कोई बात नहीं, कम से कम वरुण तो साथ देगा ही. अब जब समस्या आ ही गई है तो समाधान भी ढूंढ़ना ही पड़ेगा,’ अपनी आंखें पोंछते हुए रक्षिता ने मन ही मन सोचा. दिल्ली आ कर उस ने दोबारा औफिस जौइन कर लिया.

रक्षिता ने वरुण से मिलने की काफी कोशिश की पर वरुण ने उस से दोबारा मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. रक्षिता ने सोचा कि हो सकता है वरुण औफिस के काम में बिजी हो. एक दिन जब कैंटीन में रक्षिता की सपना से मुलाकात हुई तब उसे हकीकत मालूम हुई. सपना ने बताया, ‘‘रक्षिता, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं. उम्मीद है कि तुम इसे हलके में नहीं लोगी.’’ ‘‘पर बताओ तो सही बात क्या है,’’ रक्षिता परेशान होते हुए बोली. ‘‘वरुण कह रहा था कि तुम्हारे रोनेधोने की कहानियां सुनने का स्टेमिना उस में नहीं है.’’ यह सुनते ही रक्षिता के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं. अब उसे मालूम हो गया था कि वरुण उस से कटाकटा सा क्यों रहता है. उस के प्यार ने ही तो उसे हिम्मत बंधाई थी. उसी के बलबूते उस ने अपने भाई की बातों का बहिष्कार किया था. उस से लड़ी थी, लेकिन अब तो सारी उम्मीदें चकनाचूर होती नजर आ रही थीं. वरुण के प्यार में वह काफी आगे बढ़ चुकी थी. पापा की मृत्यु ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था. उस के बाद भाई ने और अब वरुण की बेवफाई ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया था. उस के मन में अब तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

अब क्या होगा. कौन शादी करेगा उस से. पापा की मृत्यु के बाद उन की नौकरी उस के भाई को मिल चुकी थी. घर और थोड़ीबहुत प्रौपर्टी पर भाई ने पहले ही अपना कब्जा जमा लिया था. रिश्तेदारों ने भी भाई का ही साथ दिया था. अब रक्षिता को पता चल गया था कि वह दुनिया में अकेली है. उस का संघर्ष सही माने में अब शुरू हुआ है.  पहली बार पता चला कि लड़के सामाजिक सुरक्षा, भावनात्मक सुरक्षा, रिश्तों की सुरक्षा के साथ पैदा होते हैं. खाली हाथ तो सिर्फ लड़कियां ही पैदा होती हैं. लोग रक्षिता को लैक्चर देते कि तुम खुद सफल हो कर दिखाओ ताकि वरुण तुम्हें छोड़ने के निर्णय को ले कर पछताए. पर वह किसकिस को समझाए. ऐसा तो फिल्मों में ही संभव है. और रिश्तों की सुरक्षा के बिना वह कितना व क्या कर लेगी. धीरेधीरे समय बीतने लगा और रक्षिता ने अब किसी प्राइवेट इंस्टिट्यूट में इवनिंग क्लासेस ले कर एलएलबी की पढ़ाई शुरू कर दी.

उस ने सोचा कि एक डिगरी भी हो जाएगी और खाली समय भी आराम से कट जाएगा. नीलेश से उस की वहीं मुलाकात हुई थी. लेकिन वह अब लड़कों से इतना उकता चुकी थी कि उन से बातें करने में भी कतराती थी. नीलेश एक अंगरेजी अखबार में काम करता था. एमबीए करने के बाद उस ने एक दैनिक न्यूजपेपर के विज्ञापन विभाग में नौकरी जौइन की थी. अब एलएलबी की पढ़ाई रक्षिता के साथ कर रहा था. अब तक बेवकूफ बनी रक्षिता को इतनी समझ आ चुकी थी कि जिंदगी बिताने के लिए एक साथी की अहम जरूरत होती है और इस के लिए जरूरी नहीं कि उसे प्यार किया जाए. प्यार का दिखावा भी किया जा सकता है लेकिन फिर से दिल लगा बैठी तो पता नहीं कितनी तकलीफ होगी. नीलेश से उस का मेलजोल इस कदर बढ़ा कि धीरेधीरे बात शादी तक पहुंच गई.

दिखावा ही सही, पर रक्षिता ने शादी करने में देरी नहीं की. नीलेश की मां ने भी खुलेदिल से रक्षिता को स्वीकार किया. सब ने प्रेमविवाह होने के बावजूद उस का खूब स्वागत किया था और भरपूर प्यार दिया था. पर रक्षिता ने मन की गांठें नहीं खोलीं. उसे लगता था कि एक बार भावनात्मक रूप से जुड़ गई तो गई काम से. उस के व्यवहार से ससुराल में सभी खुश थे. गलती से भी उस ने कोई कटु शब्द नहीं बोला था. उसे गुस्सा आता ही नहीं था. बातचीत वह बहुत ज्यादा नहीं करती थी. जब भी कोई किसी की बुराई शुरू करता तो वह वहां से खिसक जाती थी. लेकिन उस की आंखें उस दिन खुलीं जब नीलेश की मां अपनी बहन को बता रही थी, ‘‘बड़ा शौक था मुझे अपनी बहू में बेटी ढूंढ़ने का. वह तो बिलकुल मशीन है. आज तक मैं उस की सास ही हूं, मां नहीं बन पाई.’’ यह सुन कर रक्षिता अपने इमोशंस रोक न सकी और उस पर हुए इमोशनल अत्याचार आंसू बन कर बहने लगे. आंसुओं के साथ बहुतकुछ बह रहा था.

होम लोन लेने से पहले ध्यान रखें ये बातें

खुद का घर होना हर व्यक्ति का सपना होता है परंतु इस महंगाई के दौर में यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है1 ऐसे में होम लोन हमारे इस सपने को साकार करता है. अगर आप घर खरीदने की प्लानिंग कर रहे हैं और उस के लिए होम लोन लेने की सोच रहे हैं तो आप को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है.

होम लोन लेना आज की तारीख में बड़ी बात नहीं क्योंकि कई प्राइवेट और सरकारी बैंकों से अपने बजट के अनुसार होम लोन लिया जा सकता है, लेकिन इसे लेते समय यह चैक करना चाहिए कि आप के पास घर की डाउनपेमैंट करने के लिए कैश हो. पूरी तरह से होम लोन पर डिपैंड होने पर यह आप को कर्ज की ओर धकेल सकता है. जितना अधिक कैश व्यक्ति दे सकता है, उतना ही लोन कम लेना पड़ता है और ईएमआई का भार भी कम पड़ता है.

इस बारे में मुंबई के स्टेट बैंक औफ इंडिया के सेल्स औफिसर दिनेश गुप्ता बताते हैं कि होम लोन लेने के लिए व्यक्ति का क्रैडिट स्कोर अच्छा होना चाहिए. कोई भी बैंक या वित्तीय संस्था लोन तब देती है जब आप का क्रैडिट स्कोर अच्छा होता है. अगर आप का क्रैडिट स्कोर अच्छा नहीं होता है, तो आप को लोन मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. क्रैडिट स्कोर 700 से अधिक होने पर आम ब्याज दर से कम ब्याज दर पर लोन मिलता है.

आइए जानते हैं क्रैडिट स्कोर है क्या

क्रैडिट स्कोर को सिविल स्कोर भी कहा जाता है. यह किसी व्यक्ति की वित्तीय साख को दर्शाता है यानी वह लोन लेने के लिए कितना उचित है. इस में अगर व्यक्ति ने पहले किसी प्रकार का पर्सनल या व्हीकल लोन लिया हो और उसे बिना देरी किए समय से चुकाया हो, साथ ही क्रैडिट कार्ड हो, जिस की कोई रकम बकाया न हो, तो उस व्यक्ति का क्रैडिट स्कोर अच्छा होता है, जिसे बैंक लोन देने से पहले कैलकुलेट करता है.

होम लोन के प्रकार

फ्लोटिंग होम लोन में ब्याज की दर रिजर्व बैंक औफ इंडिया से की गई ब्याज दर से जुड़ी होती है. इस में अगर कोई बदलाव होता है तो ब्याज दर भी उसी अनुपात में बदल जाती है. फिक्स्ड रेट होम लोन अभी बंद है क्योंकि इसे अधिकतर ग्राहक पसंद नहीं करते.

कौंबिनेशन लोन में लोन का एक हिस्सा फिक्स्ड ब्याज दर पर और बाकी का हिस्सा एडजस्टेबल या फ्लोटिंग ब्याज दर पर मिलता है. इस के अलावा रिजर्ब बैंक द्वारा दिए गए रैपो रेट के आधार पर किसी भी बैंक की ब्याज दर निश्चित होती है. इस में घटने पर ब्याज घटाया और बढ़ने पर बढ़ाया जाता है. सरकारी बैंकों में ब्याज दर के घटने पर औटोमैटिक ब्याज दर घटाई जाती है, जबकि प्राइवेट बैंकों में ब्याज दर घटाई के लिए कुछ पैसे देने पड़ते है.

प्रोसैसिंग फीस

हर बैंक की प्रोसैसिंग फीस अलगअलग होती है. प्रोसैसिंग फीस के साथसाथ लीगल फीस और वैल्यूएशन फीस भी देनी पड़ती है. इस की रकम की जानकारी पहले से ले लेनी चाहिए.

जरूरी दस्तावेजों की रखें जानकारी. लोन लेने से पहले कम से कम 10त्न कैश डाउनपेमैंट के लिए तैयार रखें ताकि आप का काम जल्दी हो सके. इस के अलावा डौक्यूमैंट्स की जानकारी पहले से ही कर लेनी चाहिए, कुछ जरूरी डौक्यूमैंट्स निम्न हैं:

वेतनभोगी के लिए जरूरी कागजात

3 महीने की सैलरी स्लिप.

पिछले 2 सालों के फौर्म 16 (पार्ट ए ऐंड बी).

अपौइंटमैंट लैटर.

कंपनी की इंप्लोई आई कार्ड.

पिछले 6 महीनों की बैंक अकाउंट स्टेटमैंट.

अगर आप ने कंपनी में 2 साल से कम काम किया है तो पिछली जौब का रिलीविंग लैटर.

पासपोर्ट साइज फोटो स्वरोजगार के लिए जरूरी दस्तावेज.

स्वरोजगार आवेदकों को अपनी आय के स्रोत को प्रमाणित करने वाले कुछ अतिरिक्त डौक्यूमैंट्स उपलब्ध कराने होते हैं. मसलन,

व्यावसायिक पते का प्रमाण.

पिछले 3 साल की आई टी रिटर्न.

पिछले 3 साल की औडिट की हुई बैलेंस शीट, लाभ और हानि विवरण, चार्टर्ड अकाउंटैंट द्वारा विधिवत औडिट किया हुआ.

उन के व्यवसाय लाइसैंस या पेशेवर प्रैक्टिस (डाक्टरों, वकीलों आदि के लिए) के कागजात, जिस में इलैक्ट्रिसिटी बिल, जीएसटी रजिस्ट्रेशन आदि.

दुकानों, कारखानों, क्लीनिकों, कार्यालयों आदि जैसे प्रतिष्ठानों के लिए पंजीकरण प्रमाणन की प्रतियां.

व्यवसाय का खाता विवरण और प्रोफैशनल प्रैक्टिस का सर्टिफिकेट.

पासपोर्ट साइज फोटो.

एनआरआई के लिए जरूरी डाक्यूमैंट्स

वीजा कौपी के साथ पासपोर्ट.

अपौइंटमैंट लैटर.

वैलिड ओवरसीज रेजिडैंट पू्रफ.

6 महीने की बैंक अकाउंट स्टेटमैंट.

3 महीने की सैलरी स्लिप.

2 साल तक ओवरसीज इनकम टैक्स फाइल किए हुए दस्तावेज.

ओवरसीज क्रैडिट रिपोर्ट.

बैंक के फौर्मेट में पावर औफ अटौर्नी.

पासपोर्ट साइज फोटो.

प्रौपर्टी से जुड़े आवश्यक दस्तावेज

लोन देने से पहले बैंक प्रौपर्टी से जुड़े सभी डौक्यूमैंट्स की जांच करता है ताकि प्रौपर्टी सही हो और ग्राहक को किसी प्रकार की समस्या न हो, मसलन,

रजिस्टर्ड सेल डीड, अलौटमैंट लैटर या बिल्डर के बिक्री के साथ का स्टांप्ड ऐग्रीमैंट.

अगर मकान रैडी टू मूव है तो औक्यूपैंसी सर्टिफिकेट होना चाहिए.

प्रौपर्टी टैक्स की रसीद, मैंटेनैंस बिल और बिजली बिल.

सोसायटी या बिल्डर से एनओसी.

समझदारी से करें प्री पेमैंट

होम लोन को समय से पहले चुकाने का एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि आप ब्याज के रूप में चुकाने वाली रकम बचा लें. इस से आप के होम लोन की कुल राशि घट जाती है. होम लोन लेने पर अगर आप को कहीं से कुछ रकम मिलती है तो उसे होम लोन में प्री पेमैंट अवश्य कर देना चाहिए. इस से मूल धन से वह भाग निकल जाता है. इस से ब्याज दर उन पैसों पर नहीं लगती. इस से मासिक किस्त में कमी हो सकती है या चुकाने की अवधि में कमी आती है. कई बार बैंक की ब्याज दरें बीच में ही बढ़ा दी जाती हैं. ऐसे में होम लोन के प्रीपेमैंट के बारे में जरूर सोचना चाहिए. इस की वजह यह है कि एक बार ब्याज दरें बढ़ने के बाद आप की मासिक किस्त की रकम में बदलाव नहीं हुआ, तो आप के होम लोन की अवधि बढ़ जाएगी.

हाल ही में बैंकिंग नियामक आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि अगर कोई ग्राहक होम लोन की प्रीपेमैंट करना चाहता है, तो उस से कोई भी प्रीपेमैंट पेनल्टी न ली जाए और कोई भी बैंक किसी प्रकार की पेनल्टी नहीं ले सकता. यह आप के होम लोन लेने के शुरुआती दिनों में करने से काफी फायदा होता है क्योंकि होम लोन के शुरुआती सालों में काफी ब्याज चुकाना पड़ता है. बाद के साल में अधिकतर हिस्सा मूलधन का ही चुकाते हैं. ऐसे में प्रीपेमैंट करना सम झदारी का फैसला नहीं होता. यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि सरकारी बैंकों में प्रीपेमैंट के तुरंत बाद होम लोन की मात्रा में उसी दिन कमी आ जाती है, जबकि प्राइवेट बैंकों में 1 महीने के बाद ही करैक्शन किया जाता है. इस से ब्याज दर में फर्क आता है.

होम लोन लेने से पहले लें जानकारी

द्य औनलाइन या पत्रपत्रिकाओ से होम लोन की जानकारी लें और पता करें कि कौन सा बैंक आप को सही होम लोन दे रहा है.

किसी हिडेन कास्ट की जानकारी पहले से ले लें.

एकसाथ कई लोन न लें. इस से आप का बजट गड़बड़ा सकता है.

Kahaniyan : अपाहिज – आखिर कौन था स्वाति की पूरी दुनिया?

Kahaniyan : एअरइंडिया का विमान मुंबई एअरपोर्ट पर था. यह मुंबई से दिल्ली की उड़ान थी. वर्किंग डे होने की वजह से अधिकांश सीटें फुल थीं. विमान की रवानगी के कुछ समय पूर्व ही स्वाति ने गौरव के साथ विमान में प्रवेश किया. विमान परिचारिका व्हीलचेयर धकेल रही थी, स्वाति उस का साथ दे रही थी. गौरव व्हीलचेयर पर बैठा था. हैंडसम, गोरेचिट्टे गौरव के चेहरे पर परेशानी के भाव थे. साफ लग रहा था कि वह तनाव में है.

स्वाति ने परिचारिका की सहायता से गौरव को विमान की सीट पर बैठाया और धन्यवाद दिया. उस ने अपने हाथ में थमा सामान रैक में रखा. जैसे ही उस की नजरें अपने से 2 सीट पीछे गई, वह चौंक पड़ी.

उस सीट पर अनंत बैठा था. अकेला नहीं बैठा था. उस की बगल में एक नवविवाहित लगने वाली युवती भी थी. वह अनंत से बातें कर रही थी. उसे देख अवाक रह गई स्वाति.

यह कैसे हुआ? अनंत की बगल में युवती यानी अनंत की शादी हो गई? अनेक सवाल कौंध गए उस के मनमस्तिष्क में. वह धम्म से अपनी सीट पर बैठ गई. माथा चकरा गया उस का.

‘‘क्या हुआ स्वाति?’’ गौरव ने परेशान भाव से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ स्वाति की अचानक ऐसी हालत देख गौरव ने पूछा.

वह कुछ नहीं बोली, तो गौरव ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ, ठीक तो हो?’’

‘‘हांहां ठीक हूं. बस थोड़ा सिर चकरा गया था,’’ स्वाति ने सामान्य होते हुए कहा.

स्वाति की अनंत से शादी हुई थी. यह उन दिनों की बात है, जब उस ने कालेज से बीए किया ही था. गजब की खूबसूरत स्वाति न केवल आकर्षक तीखे नैननक्श वाली थी, बल्कि कुशाग्रबुद्धि भी थी.

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी स्वाति 5 बहनों में सब से छोटी थी. चंचल स्वभाव की स्वाति परिवार में सब की लाड़ली थी. बीए अंतिम वर्ष में थी कि उस के पापा का देहांत हो गया. उस की उम्र यही कोई 21 वर्ष के करीब थी. 4 बेटियों की शादी करतेकरते स्वाति के पापा वक्त से पहले ही बूढ़े हो गए थे. इधरउधर से कर्ज ले कर बेटियों को ब्याहा तो स्वाति की शादी से पहले ही चल बसे.

पति का साथ देती आ रही स्वाति की मां ने अपने पति की मौत के बाद चारपाई पकड़ ली. अब चारों बहनों को इस बात की चिंता हुई कि मां भी साथ छोड़ गईं तो स्वाति का क्या होगा? उसे कौन संभालेगा? अत: बहनों ने मिल कर तय किया कि मां के रहते हुए स्वाति के हाथ पीले कर दिए जाएं. पर अच्छे घरपरिवार का लड़का मिले तब न.

कई रिश्ते आए, लेकिन भाई कितने हैं, बाप…? के सवाल पर लड़के वाले खिसक जाते. अगर कोई इन सब हालात से भी समझौता कर लेता तो सवाल आता कि शादी में कितना पैसा खर्च करोगे?

खर्च के नाम पर तो कुछ था ही नहीं, उन के पास.

बहनों की ससुराल में भी ऐसा कुछ नहीं था कि सब मिल कर शादी में खर्च लायक मदद कर सकें.

स्वाति कहती, ‘‘दीदी, आप लोग मेरी टैंशन न लो. अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है?’’

एक दिन स्वाति के लिए मुंबई से बहुत बड़े उद्योगपति घराने से रिश्ता आया. स्वाति के रिश्ते की मौसी का लड़का सुशांत मुंबई से यह रिश्ता ले कर दिल्ली आया.

‘‘मौसी, बहुत बड़ा घराना है. यों समझो राज करेगी स्वाति. घर में कितने नौकरचाकर, रुपया, धनदौलत, ऐशोआराम है कि आप सोच भी नहीं सकतीं,’’ सुशांत ने स्वाति की मां से कहा तो उन की आंखों में चमक आ गई.

‘‘हां, मौसी, बिलकुल सच.’’

‘‘तो बेटा इतने बड़े घर का रिश्ता… हमारे घर…’’ मां ने सुशांत से पूछा.

‘‘सब बहुत अच्छा है मौसी, बस एक छोटी सी कमी है…’’

सुशांत अपनी बात पूरी करता उस से पहले ही स्वाति की मां ने उत्सुकतापूर्वक पूछा, ‘‘वह क्या बेटा? कोई बीमारी है लड़के को या कोई ऐब…’’ मां ने पूछा.

‘‘नहीं मौसी, ऐसी कोई खास बीमारी नहीं. बचपन में लड़के के एक पांव में तकलीफ हो गई थी. पर मौसी इस का इलाज जल्दी होने लगेगा अमेरिका में,’’ सुशांत ने एक स्वर में अपनी बात कही.

‘‘पर बेटा अगर ठीक नहीं हुआ तो?’’ मां ने पूछा.

‘‘अरे मौसी, अरबों रुपए हैं उन के पास. कोई छोटामोटा घर नहीं है. इलाज पर पानी की तरह पैसा बहा देंगे. उन की अमेरिका के किसी बड़े डाक्टर से बात चल रही है,’’ सुशांत ने कहा.

‘‘वह तो ठीक है बेटा पर…’’

‘‘मौसी आप बिलकुल चिंता न करें. स्वाति मेरी बहन है. मैं इस का रिश्ता गलत घर या गलत लड़के से कराऊंगा क्या? मेरी नाक नहीं कट जाएगी?’’ सुशांत ने अपनापन दिखाते हुए कहा, तो मां के मन में बात जमती नजर आई.

आखिर सुशांत ने अपने तर्क दे कर मां और बड़ी बहनों को स्वाति की शादी के लिए राजी कर लिया.

स्वाति ने कुछ दिन विरोध किया. लेकिन सब बहनों और मां ने अपनी गरीबी और हालात का वास्ता दे कर उसे मना लिया और फिर एक दिन स्वाति की अनंत से शादी हो गई.

स्वाति मुंबई आ गई. जैसे सुशांत ने बताया था वैसे ही सब शाही ठाटबाट थे अनंत के घर. पता नहीं कितने नौकरचाकर, गाडि़यां, बहुत बड़ा महल सा घर, सासससुर. बस, अनंत इकलौता था अपने मांबाप का. सब का दुलार और प्यार मिला स्वाति को.

अनंत का एक पैर बचपन में पोलियोग्रस्त हो गया था. वह बेसाखी के सहारे चलता. बड़ा अजीब लगता जब वह स्वाति जैसी नवयौवना के साथ चलता. स्वाति को शुरू में बड़ी शर्म महसूस होती जब लोग उन्हें देखते. किसी प्रोग्राम में जाते या मार्केट, लोग घूरने वाले अंदाज से दोनों को देखने. लेकिन स्वाति ने खुद को समझाया. अनंत का प्यार देख कर उस ने निर्णय लिया कि वह अनंत का सहारा बनेगी. उस को दुनिया दिखाएगी और सच में स्वाति ने यही किया. अनंत के कारोबार को समझा और संभाल लिया. देश भर में अनंत को ले कर घूमी स्वाति. वह मुंबई में होने वाले हर कार्यक्रम में जाती. स्वाति हाथ थाम कर चलती अनंत का. खूब ऐंजौय करती.

एक दिन एक क्लब के बहुत बड़े प्रोग्राम के बाद स्वाति अपने पति अनंत का हाथ थामे बाहर आ रही थी कि उसे सामने से गौरव आता नजर आया. वही गौरव जिस ने स्वाति के साथ बीए की थी. बहुत ही स्मार्ट और आकर्षक युवक था वह.

‘‘हैलो गौरव,’’ स्वाति की नजर जैसे ही गौरव पर पड़ी तो उस ने कहा.

‘‘हाय स्वाति, कैसी हो भई? कहां हो आजकल?’’ गौरव ने करीब आते हुए उस से पूछा.

‘‘यहीं हूं मुंबई में. शादी हो गई मेरी…

2 साल हो गए,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘अच्छा 2 साल भी हो गए,’’ गौरव ने आंखें फाड़ कर आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, 2 साल और ये हैं मेरे पति अनंत,’’ स्वाति ने परिचय कराया.

‘‘हैलो, माई सैल्फ गौरव.’’

गौरव ने अनंत की ओर मुखातिब होते हुए कहा और अपना हाथ अनंत की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अनंत, ये मेरे कालेज का फ्रैंड है गौरव,’’ स्वाति ने कहा.

जब अनंत लंगड़ाते हुए आगे बढ़ा और अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो गौरव कुछ समझ नहीं पाया.

‘‘हैलो, गौरव मैं अनंत शर्मा.’’

गौरव प्रश्नवाचक नजरों से स्वाति की ओर देख रहा था. गौरव ने बताया कि वह दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो गया है. यहां एक कंपनी में उच्च पद पर है और अभी तक शादी नहीं की है. स्वाति और गौरव ने फिर मिलने और एकदूसरे को घर आने का न्योता दिया. दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी दिए और विदा हो गए.

गौरव उस रात सो नहीं पाया. वह कालेज टाइम से ही स्वाति से प्यार करता था. लेकिन कभी अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाया. उस के दिमाग में कई सवाल चल रहे थे. स्वाति ने एक अपाहिज से शादी क्यों की? सोचतेसोचते वह सो गया.

गौरव ने फैसला किया कि वह कभी स्वाति से पूरी बात पूछेगा. उस ने एक दिन स्वाति को फोन किया. स्वाति ने कहा कि वह शाम को जरूरी काम से मार्केट जाएगी तब मिलते हैं. दोनों ने एक कौफी शौप पर मिलना तय किया.

स्वाति ने गौरव को सब बातें बताईं. शादी से पूर्व और शादी के बाद से अब तक की. 1-1 बात उस से सांझा की. उस ने यह भी कहा कि वह अनंत और उस के परिवार के साथ खुश है. अनंत के करोड़ों रुपए के टर्नओवर वाला कारोबार भी संभाल रही है.

गौरव को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ कि किस तरह की मजबूरियों में स्वाति ने सब स्वीकार किया और अब इन हालात में भी खुश है.

गौरव ने अपनी बातें भी बताईं. उस शाम स्वाति को घर पहुंचने में थोड़ी देर हो गई. अकेली ही थी और गाड़ी खुद ड्राइव कर के लाई थी, तो अनंत को काफी चिंता हुई.

घर आने पर उस ने अनंत से कहा, ‘‘आप मेरी टैंशन मत लिया कीजिए. आप की स्वाति अब मुंबई में नई नहीं है.’’

गौरव से स्वाति का मेलमिलाप बढ़ने लगा. गौरव कई बार स्वाति के घर भी आया. गौरव और अनंत भी मित्रवत मिलते. स्वाति और गौरव की निकटता बढ़ती जा रही थी.

दोनों ने एकसाथ कई बार मूवी देखी. गौरव को अच्छा लगा. स्वाति को गौरव में एक नई दुनिया नजर आने लगी. स्वाति गौरव की तरफ आकर्षित होती जा रही थी, तो अनंत से दूर.

स्वाति और अनंत की शादी को करीब 5 साल होने जा रहे थे. लेकिन दोनों के अभी तक कोई संतान नहीं हुई. अब उसे गौरव में अपनी दुनिया और सुनहरा भविष्य नजर आने लगा था. धनदौलत, ऐशोआराम और नर्म बिछौने उस के लिए कांटों की सेज लगने लगे.

अनंत भले ही अपाहिज था, लेकिन वह पूरी कोशिश करता कि वह स्वाति को खुश रखे. उसे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने  देता. अनंत अकसर स्वाति से कहता, ‘‘स्वाति  तुम ने जितना मेरा साथ दिया है, उस का कर्ज मैं कभी नहीं चुका पाऊंगा. शीघ्र ही मेरे पैर  का इलाज होगा तो तुम्हें अपने बूते पर दुनिया की सैर कराऊंगा.’’

गौरव से मिलने के बाद स्वाति का बदला रुख अनंत महसूस करने लगा था. लेकिन वह स्वाति से कुछ बोल नहीं पाता. बस बच्चों की तरह बिलख कर रह जाता. उसे एहसास होने लगा था कि स्वाति और गौरव की निकटता कुछ नया गुल खिलाएगी. स्वाति का देरसवेर घर आना, औफिस से भी गायब रहना शक पैदा करता था.

अनंत के मम्मीपापा तक भी ये बातें पहुंचने लगीं कि स्वाति का ध्यान अनंत और कारोबार में न हो कर कहीं और है. उन्होंने स्वाति से बात की. लेकिन बड़ी सफाई से स्वाति बहाना बना कर टाल गई. कभी कारोबार तो कभी किट्टी फ्रैंड्स के साथ जाने की बात वह कहती.

अनंत के पापा ने एक दिन तय किया कि वह स्वाति पर नजर रखेंगे. उन्होंने एक प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी से संपर्क कर स्वाति पर नजर रखने का अनुबंध किया. एजेंसी ने जो रिपोर्ट दी, चौंकाने वाली थी. स्वाति का समय गौरव के साथ व्यतीत हो रहा था. उस ने पांचसितारा होटल में रूम भी बुक करा रखा था, जिस में गौरव और स्वाति मिलते.

एक दिन डिटैक्टिव एजेंसी ने सूचना दी कि स्वाति और गौरव होटल में हैं. अनंत के मम्मीपापा बिना वक्त गंवाए होटल जा पहुंचे.

अनंत के पापा ने होटल के रूम की डोरबैल बजाई. स्वाति और गौरव रूम में ही थे. उन्होंने सोचा वेटर होगा. गौरव ने दरवाजा खोला. सामने अनंत के मम्मीपापा को देख उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो.

‘‘अ… अ… आप…’’ उस के मुंह से निकला.

‘‘हां…हम… बेशर्म इनसान…’’ अनंत के पापा ने गौरव को अंदर धकेलते हुए कहा. स्वाति बैड पर लेटी हुई थी. उस के वस्त्र अस्तव्यस्त हो रहे थे. रूम के अंदर का दृश्य सारी प्रेमलीला को बयान कर रहा था. स्वाति अपने गुस्से से भरे सासससुर को यों अचानक सामने देख बैड से उठी.

‘‘स्वाति, क्या है यह सब..?’’ सास ने चीखते हुए पूछा.

नजरें गड़ाए खड़ी रही स्वाति.

‘‘हमारी छूट और लाड़प्यार का यह सिला दिया तुम ने?’’ ससुर भी चीख पड़े.

‘‘हां, यही सच है… आप क्या समझते हैं सारी उम्र मैं यों ही गुजार दूं? एक अपाहिज के साथ? मेरे भी अरमान हैं. आखिर कब तक…’’ स्वाति अचानक घायल शेरनी की तरह चीख पड़ी.

‘‘तो रहो इस के साथ ही. हमारे घर के रास्ते अब बंद हैं तुम्हारे लिए,’’ सास ने स्वाति की बात का जवाब देते हुए कहा.

ज्यादा बहस करने का मतलब था गौरव और स्वाति से झगड़ा करना. ज्यादा उचित यही था. दोनों को वहीं छोड़ सासससुर गुस्से में भरे होटल से चले आए.

उस दिन शाम को स्वाति घर आई… वह चुपचाप अपने रूम में चली गई. अनंत को मम्मीपापा से होटल में जो कुछ हुआ उस की जानकारी मिल चुकी थी. रात को दोनों का झगड़ा भी हुआ.

‘‘अब मेरी लाइफ में तुम्हारा कोई काम नहीं स्वाति,’’ अनंत ने दोटूक बात कही.

और एक दिन गौरव के मोहपाश में बंधी स्वाति चुपचाप घर से चली गई. बस एक खत लिखा अनंत के नाम.

‘गौरव के साथ जा रही हूं. आप ने मुझे बहुत अपनापन दिया. आप की आभारी हूं. मुझे खोजने की कोशिश मत करना.’

स्वाति घर छोड़ कर जा चुकी थी. वह जो कामकाज देख रही थी, अनंत के पापा ने उसे फिर से संभाला. उन्होंने बैंक, लेनदारों और समस्त लेनदेन की जानकारी ली. उन के सामने चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. होटल के लाखों रुपए के बिलों का भुगतान किया गया था. 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की नक्दी और 50 लाख के जेवर गायब थे. अनंत के परिवार के लिए यह बहुत बड़ा विश्वासघात था. परिवार की ही बहू घर से करोड़ों की नक्दी व जेवर ले कर अपने प्रेमी के साथ चली गई. किसी सदमे से कम न था ये सब.

वक्त धीरेधीरे बड़ेबड़े जख्म भर देता है. 1 साल गुजर चुका था. अनंत का परिवार बहू से मिले जख्म को नियति मान कर सामान्य हो रहा था कि एक दिन वकील का नोटिस मिला. स्वाति ने तलाक का नोटिस भेजा. अनंत के परिवार वाले अवाक रह गए. अब भी कोई कसर बाकी थी. ऐसी कौन सी दुश्मनी थी, जो स्वाति निकाल रही थी. उस ने 10 करोड़ के भरणपोषण राशि की मांग भी की. स्वाति का यह नया रूप किसी वज्रपात से कम न था. आखिर परिवार की इज्जत का सवाल था. फजीहत होते नहीं देख सकते थे. अनंत के मम्मीपापा ने तय किया कि आपसी सहमति से तलाक और भरणपोषण की राशि दे कर स्वाति से छुटकारा पा लिया जाए.

अनंत और स्वाति का तलाक हो गया. 8 करोड़ स्वाति को बतौर भरणपोषण दिए गए.

स्वाति ने गौरव से शादी कर ली. वह खुश थी. नई दुनिया में आ कर, अनापशनाप खर्च, स्वाति को तलाक में मिले करोड़ों रुपए पा कर गौरव भी ऐय्याश हो चला था. उस ने पांचसितारा होटलों में पार्टियों, क्रिकेट सट्टे में रुपए फूंक डाले. गौरव इस कदर ऐय्याश और शराब का आदी हो चुका था कि पैसे के लिए स्वाति से मारपीट करने लगा.

एक दिन अचानक घटना घटी. गौरव बाइक पर जा रहा था कि बस ने उस की बाइक में टक्कर मार दी. वह सड़क पर जा गिरा. पीछे से आ रही दूसरी बस से गौरव के पैर बुरी तरह कुचल गए.

स्वाति को जैसे ही सूचना मिली, वह बदहवास दौड़ी चली आई हौस्पिटल. गौरव को औपरेशन थिएटर ले जाया जा चुका था. गौरव के कुछ अन्य मित्र भी आ चुके थे.

डाक्टर्स की टीम ने स्वाति को बताया कि गौरव की टांगें बुरी तरह कुचली जा चुकी हैं. उन्हें काटना पड़ेगा, क्योंकि वह अब ठीक होने योग्य नहीं है.

स्वाति की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उसे अपनी दुनिया लुटती नजर आई. गौरव के दोनों पैर घुटने के ऊपर तक काटे जा चुके थे.

दुर्घटना में टांगें खो चुके गौरव के लिए यह संभव नहीं था कि मुंबई जैसे महानगर में रह पाए. अपाहिज हो चुका गौरव चिड़चिड़ा हो गया. वह चाहता था कि 24 घंटे स्वाति उस की सेवा में लगी रहे. 1 पल भी दूर न हो. उसे अपनी गुजरी जिंदगी के दिन याद हो जाते. जब स्वाति अनंत को छोड़ कर उस के पास चोरीछिपे दौड़ी चली आती थी. उसे लगने लगा कि स्वाति ने जैसे अनंत के साथ बेवफाई की वैसे उस के साथ भी कर सकती है. वह जरा भी इधरउधर होती, तो झल्ला पड़ता गौरव, ‘‘कहां गई थी? किस से मिलने गई थी? कौन है वह?’’

स्वाति को लगता उस के कानों में किसी ने पिघलता शीशा डाल दिया है. ऐसे शब्दभेदी बाणों से चीत्कार उठता उस का मन. पर करती भी क्या? उस का अतीत ही उस की सजा बन रहा था. उसे अनंत की बड़ी याद आती, पर अब कर भी क्या सकती थी?

धीरेधीरे उन के समक्ष आर्थिक संकट भी खड़ा हो रहा था. गौरव के इलाज पर काफी पैसा खर्च हो चुका था. आखिर दोनों ने तय किया कि दिल्ली लौट जाएंगे. वहीं अपने शहर में कोई कामकाज करेंगे.

गौरव और स्वाति ने दिल्ली जाने का फैसला किया. मुंबई एअरपोर्ट पर दिल्ली के लिए एअर इंडिया की फ्लाइट में  गौरव को व्हीलचेयर पर ले कर आई थी.

वह अपने अतीत को तो खो चुकी थी, अब जो उस के हाथ में था, उस को नहीं खोना चाहती थी.

‘‘ऐक्सक्यूज मी मैडम, आप शायद अपनी बैल्ट बांधना भूल गईं,’’ एअर होस्टेस ने स्वाति से कहा.

‘‘थैंक्स,’’ स्वाति ने इतना ही कहा. उस ने पीछ मुड़ कर देखा अनंत अभी भी बड़े शांत भाव से बैठा था. बगल में बैठी युवती उस के कंधे पर सिर टिका सो रही थी.

स्वाति महसूस कर रही थी जैसे वह आज अपाहिज हो गई है.

Hindi Kahani : कोई नहीं – क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

Hindi Kahani : दूसरी ओर से दिनेश की घबराहट भरी आवाज आई, ‘‘पापा, आप लोग जल्द चले आइए. बबिता ने शरीर पर मिट्टी का तेल उडे़ल कर आग लगा ली है.’’

‘‘क्या?’’ रामगोपाल को काठ मार गया. शंका और अविश्वास से वह चीख पडे़, ‘‘वह ठीक तो है?’’ और इसी के साथ उन की आंखों के सामने वे घटनाएं उभरने लगीं जिन की वजह से आज यह स्थिति बनी है.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का विवाह 6 साल पहले अपने ही शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में किया था. उन के समधी गिरधारी लाल भी व्यवसायी थे और मुख्य बाजार में उन की कपडे़ की दुकान थी, जिस पर वह और उन का छोटा बेटा राजेश बैठते थे.

बड़ा बेटा दिनेश एक फर्म में चार्टर्ड एकाउंटेंट था और अच्छी तनख्वाह पाता था. रामगोपाल की बेटी, बबिता भी कामर्स से गे्रजुएट थी अत: दोनों परिवारों में देखसुन कर शादी हुई थी.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का धूमधाम से विवाह किया. 2 बेटों के बीच वही एकमात्र बेटी थी इसलिए अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया जबकि समधी गिरधारी लाल की कोई मांग नहीं थी. दिनेश की सिर्फ एक मांग फोरव्हीलर की थी, सो रामगोपाल ने उन की वह मांग भी पूरी कर दी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही ससुराल में बबिता के आचरण और व्यवहार पर आपत्तियां उठनी शुरू हो गईं. इसे ले कर दोनों परिवारों में तनाव बढ़ने लगा. गिरधारी लाल के परिवार में बबिता समेत कुल 5 लोग थे. गिरधारी लाल, उन की पत्नी सुलोचना, दिनेश और राजेश तथा नई बहू बबिता.

सुलोचना पारंपरिक संस्कारयुक्त और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. वह सुबह उठतीं, स्नान करतीं और घरेलू कामों में जुट जातीं. वह चाहती थीं कि उन की बहू भी उन्हीं संस्कारों को ग्रहण करे पर बबिता के लिए यह कठिन ही नहीं, दुष्कर काम था. वास्तविकता यह थी कि वह ऐसे संस्कारों को पोंगापंथी और ढोंग समझती थी और इस के खिलाफ थी.

बबिता आधुनिक विचारों की थी तथा स्वाधीन रहना चाहती थी. रात में देर तक टेलीविजन के कार्यक्रम देखती, तो सुबह साढे़ 9 बजे से पहले उठ नहीं पाती. और जब तक वह उठती थी गिरधारी लाल और राजेश नाश्ता कर के दुकान पर जा चुके होते थे. दिनेश भी या तो आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा होता या जा चुका होता.

सास सुलोचना को अपनी बहू के इस आचरण से बहुत तकलीफ होती. शुरू में तो उन्होंने बहू को घर के रीतिरिवाजों को अपनाने के लिए बहुत समझाया, पर बाद में उस की हठवादिता देख कर उस से बोलना ही छोड़ दिया. इस तरह एक घर में रहते हुए भी सासबहू के बीच बोलचाल बंद हो गई.

घर में काम के लिए नौकर थे, खाना नौकरानी बनाती थी. वही जूठे बरतनों को मांजती थी और कपडे़ भी धो देती. बबिता के लिए टेलीविजन देखने और समय बिताने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं था. उस की सास सुलोचना कुछ न कुछ करती ही रहती थीं. कोई काम नहीं होने पर पुस्तकें ले कर पढ़ने बैठ जातीं. वह इस स्थिति की अभ्यस्त थीं पर बबिता को यह भार लगने लगा. एक दिन हालात से ऊब कर बबिता अपने मायके फोन मिला कर अपनी मम्मी से बोली, ‘मम्मी, आप ने कहां, कैसे घर में मेरा विवाह कर दिया? यह घर है या जेलखाना? मर्द तो काम पर चले जाते हैं, यहां दिन भर बुढि़या गिद्ध जैसी आंखें गड़ाए मेरी पहरेदारी करती रहती है. न कोई बोलने के लिए है न कुछ करने के लिए. ऐसे में तो मेरा दम घुट जाएगा, मैं खुदकुशी कर लूंगी.’

‘अरे नहीं, ऐसी बातें नहीं बोलते बेटी,’ उस तरफ से बबिता की मम्मी लक्ष्मी ने कहा, ‘यदि तुम्हारी सास तुम से बातें नहीं करती हैं तो अपने पति के आफिस जाने के बाद तुम यहां चली आया करो. दिन भर रह कर शाम को पति के लौटने के समय वापस चली जाना. ससुराल से मायका कौन सा दूर है. बस या टैक्सी से चली आओ. वे लोग कुछ कहेंगे तो हम उन्हें समझा लेंगे.’

यह सुनते ही बबिता की बाछें खिल गईं. उस ने झटपट कपडे़ बदले, पर्स लिया और अपनी सास से कहा, ‘मम्मी का फोन आया था, मैं मायके जा रही हूं. शाम को आ जाऊंगी,’ और सास के कुछ कहने का भी इंतजार नहीं किया, कदम बढ़ाती वह घर से निकल पड़ी.

इस के बाद तो यह उस की रोज की दिनचर्या हो गई. शुरू में दिनेश ने यह सोच कर इस की अनदेखी की कि घर में अकेली बोर होने से बेहतर है वह अपनी मां के घर घूम आया करे पर बाद में मां और पिताजी की टोकाटाकी से उसे भी कोफ्त होने लगी.

एक दिन बबिता ने उसे बताया कि वह गाड़ी चलाना सीखने के लिए ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन ले कर आ रही है. उस ने दिनेश को एडमिशन का फार्म भी दिखाया. हुआ यह कि बबिता के बडे़ भाई नंद कुमार ने उस से कहा कि रोजरोज बस या टैक्सी से आनाजाना न कर के वह अपनी कार से आए और इस के लिए ड्राइविंग सीख ले. आखिर पापा ने दहेज में कार किसलिए दी है.

बबिता को यह बात जंच गई. पर दिनेश इस पर आगबबूला हो गया. अपनी नाराजगी और गुस्से को वह रोक भी नहीं पाया और बोल पड़ा, ‘तुम्हारे पापा ने कार मुझे दी है.’

‘हां, पर वह मेरी कार है, मेरे लिए पापा ने दी है.’

दिनेश बबिता का जवाब सुन कर दंग रह गया. उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए विवाद को तूल न देने के लिए समझौते का रुख अपनाते हुए कहा, ‘ठीक है पर ड्राइविंग सीखने की क्या जरूरत है. गाड़ी पर ड्राइवर तो है?’

‘मुझे किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं. मैं खुद चलाना सीखूंगी और मुझे कोई भी रोक नहीं सकेगा. मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं हूं.’

दिनेश ने इस के बाद एक शब्द भी नहीं कहा. बबिता को कुछ कहने के बजाय उस ने अपने पिता को ये बातें बता दीं. गिरधारी लाल ने तुरंत रामगोपाल को फोन मिलाया और उस से बबिता के व्यवहार की शिकायत की तो उधर से उन की समधिन लक्ष्मी का जवाब आया, ‘भाईसाहब, आप के लड़के से बेटी ब्याही है, कोई बेच नहीं दिया है जो उस पर हजार पाबंदियां लगा रखी हैं आप ने. यह मत करो, वह मत करो, पापामम्मी से बातें मत करो, उन के घर मत जाओ, क्या है यह सब? हम ने तो अपने ही शहर में इसीलिए बेटी की शादी की थी कि वह हमारे पास आतीजाती रहेगी, हमारी नजरों के सामने रहेगी.’

‘पर समधिनजी,’ फोन पर गिरधारी लाल ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘यदि आप की बेटी बराबर आप के घर का ही रुख किए रहेगी तो वह अपना घर कब पहचानेगी? संसार का तो यही नियम है कि बेटी जब तक कुंआरी है अपने बाप की, विवाह के बाद वह ससुराल की हो जाती है.’

‘यह पुरानी पोंगापंथी बातें हैं. मैं इसे नहीं मानती. रही बात बबिता की तो वह जब चाहेगी यहां आ सकती है और वह गाड़ी चलाना सीखना चाहती है तो जरूर सीखे. इस से तो आप लोगों के परिवार को ही फायदा होगा.’

गिरधारी लाल ने इस के बाद फोन रख दिया. उन के चेहरे पर चिंता की गहरी रेखा खिंच आई थीं. परिवार वाले चिंतित थे कि इस स्थिति का परिणाम क्या होगा?

दिनेश ने भी इस घटना के बाद चुप्पी साध ली थी. सास सुलोचना ने सब से पहले बहू से बोलना बंद किया था, उस के बाद गिरधारी लाल भी बबिता से सामना होने से बचने का प्रयत्न करते. राजेश को भाभी से बातें करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. उस की जरूरतें मां, नौकर और नौकरानी से पूरी हो जाती थीं.

दिनेश और बबिता के बीच सिर्फ कभीकभार औपचारिक शब्दों का संबंध रह गया था. आफिस से छुट्टी के बाद वह ज्यादा समय बाहर ही गुजारता, देर रात में घर लौटता और खाना खा कर सो जाता.

इस बीच बबिता ने गाड़ी चलाना सीख लिया था. वह सुबह ही गाड़ी ले कर मायके चली जाती और रात में देर से लौटती. कभी उस का फोन आता, ‘आज मैं आ नहीं सकूंगी.’ बाद में इस तरह का फोन आना भी बंद हो गया.

कानूनी और सामाजिक तौर पर बबिता गिरधारी लाल के परिवार की सदस्य होने के बावजूद जैसे उस परिवार की ‘कोई नहीं’ रह गई थी. यह एहसास अंदर ही अंदर गिरधारी लाल और उन की पत्नी सुलोचना को खाए जा रहा था कि उन के बेटे का दांपत्य जीवन बबिता के निरंकुश एवं दायित्वहीन आचरण तथा उस के ससुराल वालों की हठवादिता से नष्ट हो रहा है.

आखिर एक दिन दिनेश ने दृढ़ स्वर में बबिता से कहा, ‘हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं. इस से बेहतर है तलाक ले कर अलग हो जाएं.’

दिनेश को तलाक लेने की सलाह उस के पिता गिरधारी लाल ने दी थी. वह अपने बेटे के बिखरते वैवाहिक जीवन से दुखी थे. उन्होंने यह सलाह भी दी थी कि यदि बबिता उस के साथ अलग रह कर अपनी अलग गृहस्थी में सुखी रह सकती है तो वह ऐसा ही करे. पर दिनेश को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह अपने मातापिता को छोड़ कर अलग हो जाए.

दिनेश के मुंह से तलाक की बात सुन कर बबिता सन्न रह गई. उसे जैसे इस प्रकार के किसी प्रस्ताव की अपेक्षा नहीं थी. इस में उसे अपना घोर अपमान महसूस हुआ.

मायके आ कर बबिता ने अपने मम्मीपापा और भाइयों को दिनेश का प्रस्ताव सुनाया तो सभी भड़क उठे. रामगोपाल को जहां इस चिंता ने घेर लिया कि इतना अच्छा घरवर देख कर और काफी दानदहेज दे कर बेटी की शादी की, वहां इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गई. समाज और बिरादरी में उन की क्या इज्जत रहेगी? पर लक्ष्मी काफी उत्तेजित थीं. वह चीखचीख कर बारबार एक ही वाक्य बोल रही थीं, ‘उन की ऐसी हिम्मत…उन्हें इस का मजा चखा कर रहूंगी.’

उधर बबिता के भाइयों नंद कुमार और नवल कुमार तथा उन की पत्नियों को दूसरी चिंता ने घेर लिया कि बबिता यदि उन के घर में आ कर रहने लगी तो भविष्य में वह पापामम्मी की संपत्ति में दावेदार हो जाएगी और उसे उस का हिस्सा भी देना पडे़गा. इसलिए दोनों भाइयों ने आपस में सुलह कर बबिता से कहा कि दिनेश ने तलाक की बात कही है तो तुम उसे तलाक के लिए आवेदन करने दो. अपनी तरफ से बिलकुल आवेदन मत करना.

‘भैया, मेरा भी उस घर में दम घुट रहा है,’ बबिता बोली, ‘मैं खुद तलाक लेना चाहती हूं और अपनी मरजी का जीवन जीना चाहती हूं. इस अपमान के बाद तो मैं हरगिज वहां नहीं रह सकती.’

नंद कुमार ने कठोर स्वर में कहा, ‘ऐसी गलती कभी मत करना. तुम खुद तलाक लेने जाओगी तो ससुराल से कुछ भी नहीं मिलेगा. दिनेश तलाक लेना चाहेगा तो उसे तुम्हें गुजाराभत्ता देना पडे़गा.’

‘गुजाराभत्ता की मुझे जरूरत नहीं,’ बबिता बोली, ‘मैं पढ़ीलिखी हूं, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी और अपना खर्च चला लूंगी पर दोबारा उस घर में वापस नहीं जाऊंगी.’

‘नहीं, अभी तुम्हें वहीं जाना होगा और वहीं रहना भी होगा,’ इस बार नवल कुमार ने कहा.

बबिता ने आश्चर्य से छोटे भाई की ओर देखा. फिर बारीबारी से मम्मीपापा व भाभियों की ओर देख कर अपने स्वर में दृढ़ता लाते हुए वह बोली, ‘दिनेश ने तलाक की बात कह कर मेरा अपमान किया है. इस अपमान के बाद मैं उस घर में किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊंगी.’

समझाने के अंदाज में पर कठोर स्वर में नंद कुमार ने कहा, ‘तुम अभी वहीं उसी घर में रहोगी, जब तक  कि तुम्हारे तलाक का फैसला नहीं हो जाता. तुम डरती क्यों हो? सभी तुम्हारे साथ हैं. शादी के बाद से कानूनन वही तुम्हारा घर है. देखता हूं, तुम्हें वहां से कौन निकालता है.’

बडे़ भैया की बातों में छिपी धमकी से आहत बबिता ने अपनी मम्मी की ओर इस उम्मीद से देखा कि वही उस की मदद करें. मम्मी ने बेटी की आंखों में व्याप्त करुणा और दया की याचना को महसूस करते हुए नंद कुमार से कहा, ‘बबिता यहीं रहे तो क्या हर्ज है?’

‘हर्ज है,’ इस बार दोनों भाइयों के साथ उन की पत्नियां भी बोलीं, ‘ब्याही हुई बेटी का घर ससुराल होता है, मायका नहीं. बबिता को अपने पति या ससुराल वालों से कोई हक हासिल करना है तो वहीं रह कर यह काम करे. मायके में रह कर हम लोगों की मुसीबत न बने.’

मां ने सिर नीचे कर लिया तो बबिता ने अपने पापा की ओर देखा. बेटी को अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख कर उन्हें मुंह खोलना ही पड़ा. उन्होेंने कहा, ‘तुम्हारे भाई लोग ठीक ही कह रहे हैं बबिता. बेटी का विवाह करने के बाद पिता समझता है कि उस ने एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली. पर इस के बाद भी उसे बेटी की चिंता ढोनी पडे़ तो उस के लिए इस से बड़ी दूसरी पीड़ा नहीं हो सकती.’

बबिता पढ़ीलिखी थी. उस में स्वाभिमान था तो अहंकार भी था. उस ने अपने भाइयों और मम्मीपापा की बातों का अर्थ समझ लिया था. इस के पश्चात उस ने किसी से कुछ नहीं कहा. वह उठी और चली गई. उस को जाते हुए किसी ने नहीं रोका.

अचानक फोन की घंटी फिर बजने लगी तो रामगोपालजी चौंके और लपक कर फोन उठा लिया.

दिनेश की घबराहट भरी आवाज थी, ‘‘पापा, आप लोग जल्दी आ जाइए न. बबिता ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है.’’

रामगोपाल का सिर घूमने लगा. फिर भी उन्होंने फोन पर पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब? अभी तो कुछ समय पहले ही वह यहां से गई है.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ दिनेश की आवाज आई, ‘‘वह हमेशा की तरह आप के घर से लौट कर अपने कमरे में चली गई थी और उस ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था. अंदर से धुआं निकलता देख कर हमें संदेह हुआ. दरवाजा तोड़ कर हम अंदर घुसे तो देखा, वह जल रही थी. क्या वहां कुछ हुआ था?’’

इस सवाल का जवाब न दे कर रामगोपाल ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हम लोग तुरंत आ रहे हैं.’’

लक्ष्मी ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘दिनेश का,’’ रामगोपाल ने घबराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘बबिता ने आग लगा ली है.’’

इतना सुनते ही लक्ष्मी की चीख निकल गई. मम्मी की चीख सुन कर नंद कुमार और नवल कुमार भी वहां पहुंच गए.

नंद कुमार ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

रामगोपाल ने जवाब दिया, ‘‘बबिता ने यहां से लौटने के बाद शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है, दिनेश का फोन आया था,’’ इतना कह कर रामगोपाल सिर थाम कर बैठ गए, फिर बेटों की तरफ देख कर बोले, ‘‘ससुराल से अपमानित बेटी ने मायके में रहने की इजाजत मांगी थी. तुम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे यहां रहने नहीं दिया. यहां से भी अपमानित होने के बाद उस ने आत्महत्या कर ली.’’

‘‘चुप कीजिए,’’ बडे़ बेटे नंद कुमार ने जोर से अपने पिता को डांटा, ‘‘आप ऐसा बोल कर खुद भी फंसेंगे और साथ में हम सब को भी फंसा देंगे. बबिता ने खुदकुशी नहीं की है, उसे मार डाला गया है. बबिता के ससुराल वालों ने दहेज के खातिर मिट्टी का तेल उडे़ल कर उसे जला डाला है.’’

रामगोपाल ने आशा की डोर पर झूलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले देख लें, शायद बबिता जीवित हो.’’

‘‘पहले आप थाने चलिए,’’ नंद कुमार ने फैसले के स्वर मेंकहा, ‘‘और तुम भी चलो, मम्मी.’’

रामगोपाल का परिवार जिस समय गिरधारी लाल के मकान के सामने पहुंचा, वहां एक एंबुलेंस और पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी. मकान के सामने लोगों की भीड़ जमा थी. जली हुई बबिता को स्ट्रेचर पर डाल कर बाहर निकाला जा रहा था. गाड़ी रोक कर रामगोपाल, लक्ष्मी, नंद कुमार तथा नवल कुमार नीचे उतरे. सफेद कपडे़ में ढंकी बबिता के चेहरे की एक झलक देखने के लिए रामगोपाल लपके पर नंद कुमार ने उन्हें रोक लिया.

थोड़ी देर बाद ही पुलिस के 4 सिपाही और एक दारोगा गिरधारी लाल, दिनेश, सुलोचना और राजेश को ले कर बाहर निकले. उन चारों के हाथों में हथकडि़यां पड़ी हुई थीं. दिनेश, बबिता को बचाने की कोशिश में थोड़ा जल गया था. रामगोपाल की नजर दामाद पर पड़ी तो जाने क्यों उन की नजर नीची हो गई.

Online Hindi Stories : मैं जरा रो लूं

Online Hindi Stories : सुबह जैसे ही वह सो कर उठी, उसे लगा कि आज वह जरूर रोएगी. रोने के बहुत से कारण हो सकते हैं या निकाले जा सकते हैं. ब्रश मुंह में डाल कर वह घर से बाहर निकली तो देखा पति कुछ सूखी पत्तियां तोड़ कर क्यारियों में डाल रहे थे.

‘‘मुझे लगता है आज मेरा ब्लडप्रैशर बढ़ने लगा है.’’

पत्तियां तोड़ कर क्यारी में डालते हुए पति ने एक उड़ती सी निगाह अपनी पत्नी पर डाली. उसे लगा कि उस निगाह में कोई खास प्यार, दिलचस्पी या घबराहट नहीं है.

‘‘ठीक है दफ्तर जा कर कार भेज दूंगा, अपने डाक्टर के पास चली जाना.’’

‘‘नहीं, कार भेजने की जरूरत नहीं है. अभी ब्लडप्रैशर कोई खास नहीं बढ़ा है. अभी तक मेरे कानों से कोई सूंसूं की आवाज नहीं आ रही है, जैसे अकसर ब्लडप्रैशर बढ़ने से पहले आती है.’’

‘‘पर डाक्टर ने तुम से कहा है कि तबीयत जरा भी खराब हो तो तुम उसे दिखा दिया करो या फोन कर के उसे

घर पर बुलवा लो, चाहे आधी रात ही क्यों न हो. पिछली बार सिर्फ अपनी लापरवाहियों के कारण ही तुम मरतेमरते बची हो. लापरवाह लोगों के प्रति मुझे कोई हमदर्दी नहीं है.’’

‘‘अच्छा होता मैं मर जाती. आप बाकी जिंदगी मेरे बिना आराम से तो काट लेते.’’ यह कहने के साथ उसे रोना आना चाहिए था पर नहीं आया.

‘‘डाक्टर के पास अकेली जाऊं?’’

‘‘तुम कहो तो मैं दफ्तर से आ जाऊंगा. पर तुम अपने डाक्टर के पास तो अकेली भी जा सकती हो. कितनी बार जा भी चुकी हो. आज क्या खास बात है?’’

‘‘कोई खास बात नहीं है,’’ उस ने चिढ़ कर कहा.

‘‘सो कर उठने के बाद दिमाग शांत होना चाहिए पर, मधु, तुम्हें सवेरेसवेरे क्या हो जाता है.’’

‘‘आप का दिमाग ज्यादा शांत होना चाहिए क्योंकि  आप तो रोज सवेरे सैर पर जाते हो.’’

‘‘तुम्हें ये सब कैसे मालूम क्योंकि तुम तो तब तक सोई रहती हो?’’

‘‘अब आप को मेरे सोने पर भी एतराज होने लगा है. सवेरे 4 बजे आप को उठने को कौन कहता है?’’

‘‘यह मेरी आदत है. तुम्हें तो परेशान नहीं कर रहा. तुम अपना कमरा बंद किए 8 बजे तक सोती रहती हो. क्या मैं ने तुम्हें कभी जगाया? 7 बजे या साढ़े 7 बजे तक तुम्हारी नौकरानी सोती रहती है.’’

‘‘जगा भी कैसे सकते हैं? सो कर उठने के बाद से इस घर में बैल की तरह काम में जुटी रहती हूं.’’

खाना बनाने वाली नौकरानी 2 दिनों की छुट्टी ले कर गई थी पर आज भी नहीं आई. दूसरी नौकरानी आ कर बाकी काम निबटा गई.

नाश्ते के समय उस ने पति से पूछा, ‘‘अंडा कैसा लेंगे?’’

‘‘आमलेट.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ उस ने चिढ़ कर कहा.’’

पति ने जल्दीजल्दी आमलेट और

2 परांठे खा लिए. डबलरोटी वे नहीं खा सकते, शायद गले में अटक जाती है.

उस ने पहला कौर उठाया ही था कि पति की आवाज आई, ‘‘जरा 10,000 रुपए दे दो, इंश्योरैंस की किस्त जमा करानी है.’’ चुपचाप कौर नीचे रख कर वह उठ कर खड़ी हो गई. अलमारी से 10,000 रुपए निकाल कर उन के  सामने रख दिए. अभी 2 कौर ही खा पाई थी कि फिर पति की आवाज आई, ‘‘जरा बैंक के कागजात वाली फाइल भी निकाल दो, कुछ जरूरी काम करने हैं.’’ परांठे में लिपटा आमलेट उस ने प्लेट में गुस्से में रखा और उठ कर खड़ी हो गई. फिर दोबारा अलमारी खोली और फाइल उन के हाथ में पकड़ा दी और नौकरानी को आवाज दे कर अपनी प्लेट ले जाने के लिए कहा.

‘‘तुम नहीं खाओगी?’’

‘‘खा चुकी हूं. अब भूख नहीं है. आप खाने पर बैठने से पहले भी तो सब हिसाब कर सकते थे. कोई जरूरी नहीं है कि नाश्ता करते समय मुझे दस दफा उठाया जाए.’’

‘‘आज तुम्हारी तबीयत वाकई ठीक नहीं है, तुम्हें डाक्टर के पास जरूर जाना चाहिए.’’

11 बजे तक खाना बनाने वाली नौकरानी का इंतजार करने के बाद वह खाना बनाने के लिए उठ गई. देर तक आग के पास खड़े होने पर उसे छींकें आनी शुरू हो गईं जो बहुत सी एलर्जी की गोलियां खाने पर बंद हो गईं.

उस ने अपने इकलौते बेटे को याद किया. इटली से साल में एक बार, एक महीने के लिए घर आता है. अब तो उसे वहां रहते सालों हो गए हैं. क्या जरूरत थी उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की? अब उसे वहां नौकरी करते भी कई साल हो गए हैं. एक महीना मां के पास रह कर वह हमेशा यही वादा कर जाता है, ‘अब की बार आऊंगा तो शादी जरूरी कर लूंगा, पक्का वादा रहा मां.’

झूठा कहीं का. हां, हफ्ते में एक बार फोन पर बात जरूर कर लेता है. उस की जिंदगी में बहुत खालीपन आ गया है. बेटे को याद कर के उसे हमेशा रोना आ जाता है पर आज नहीं आया.

लखनऊ से कितने दिन हो गए, कोई फोन नहीं आया. उस ने भी नहीं किया. पता नहीं अम्माजी की तबीयत कैसी है. वह अपने मांबाप को बहुत प्यार करती है. वह कितनी मजबूर है कि अपनी मां की सेवा नहीं कर पाती. बस, साल में एक बार जा कर देख आती है, ज्यादा दिन रह भी नहीं सकती है. क्या यही बच्चों का फर्ज है?

उस ने तो शायद अपनी जिंदगी में किसी के प्रति कोई फर्ज नहीं निभाया. अपनी निगाहों में वह खुद ही गिरती जा रही थी. सहसा उम्र की बहुत सी सीढि़यां उतर कर अतीत में खो गई और बचपन में जा पहुंची. मुंह बना कर वह घर की आखिरी सीढ़ी पर आ कर बैठ गई थी, बगल में अपनी 2 सब से अच्छी फ्राकें दबाए हुए. बराबर में ही अब्दुल्ला सब्जी वाले की दुकान थी.

‘कहो, बिटिया, आज क्या हुआ जो फिर पोटलियां बांध कर सीढ़ी पर आ बैठी हो?’

‘हम से बात मत करो, अब्दुल्ला, अब हम ऊपर कभी नहीं जाएंगे.’

अब्दुल्ला हंसने लगा, ‘अभी बाबूजी आएंगे और गोद में उठा कर ले जाएंगे. तुम्हें बहुत सिर चढ़ा रखा है, तभी जरा सी डांट पड़ने पर घर से भाग पड़ती हो.’

‘नहीं, अब हम ऊपर कभी नहीं जाएंगे.’

‘नहीं जाओगी तो तुम्हारे कुछ खाने का इंतजाम करें?’

‘नहीं, हम कुछ नहीं खाएंगे,’ और वह कैथ के ढेर की ओर ललचाई आंखों से देखने लगी.

‘कैथ नहीं मिलेगा, बिटिया, खा कर खांसोगी और फिर बाबूजी परेशान होंगे.’

‘हम ने तुम से मांगा? मत दो, हम स्कूल में रोज खाते हैं.’

‘कितनी दफा कहा है कि कैथ मत खाया करो, बाबूजी को मालूम पड़ गया तो बहुत डांट पड़ेगी.’

‘तुम इतनी खराब चीज क्यों बेचते हो?’ अब्दुल्ला चुपचाप पास खड़े ग्राहक के लिए आलू तौलने लगा. सामने से उस के पिताजी आ रहे थे. लाड़ली बेटी को सीढ़ी पर बैठा देखा और गोद में उठा लिया.

‘अम्माजी ने डांटा हमारी बेटी को?’

बहुत डांटा, और उस ने पिता की गरदन में अपनी नन्हीनन्ही बांहें डाल दी.

बचपन के अतीत से निकल कर उम्र की कई सीढि़यां वह तेजी से चढ़ गई. जवान हो गई थी. याद आया वह दिन जब अचानक ही मजबूत हाथों का एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर आ पड़ा था. वह चौंक कर उठ बैठी थी. उस के हाथ अपने गाल को सहलाने लगे थे. बापबेटी दोनों जलती हुई आंखों से एकदूसरे को घूर रहे थे.

पिता ने नजरें झुका लीं और थके से पास में पड़ी कुरसी पर बैठ गए. उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी को जिंदगी में पहला और आखिरी थप्पड़ मारा था. सामने खड़े हो कर अंगारे उगलती आंखों से

उस ने पिता से सिर्फ इतना ही पूछा, ‘क्यों मारा आप ने मुझे?’

‘तुम शादी में आए मेहमानों से लड़ रही थी. मौसी ने तुम्हारी शिकायत की है,’ बहुत थके हुए स्वर में पिता ने जवाब दिया.

‘झूठी शिकायत की है, उन के बच्चों ने मेरा इसराज तोड़ दिया है. आप को मालूम है वह इसराज मुझे कितना प्यारा है. उस से मेरी भावनाएं जुड़ी हुई हैं.’

‘कुछ भी हो, वे लोग हमारे मेहमान हैं.’

‘लेकिन आप ने क्यों मारा?’ वह उन के सामने जमीन पर बैठ गई और पिता के घुटनों पर अपना सिर रख दिया. अपमान, वेदना और क्रोध से उस का सारा शरीर कांप रहा था. पिता उस के सिर पर हाथ फेर रहे थे. यादों से निकल कर वह अपने आज में लौट आई.

कमाल है इतनी बातें याद कर ली पर आंखों में एक कतरा आंसू भी न आया. दोपहर को पति घर आए और पूछा, ‘‘क्या खाना बना है?’’

‘‘दाल और रोटी.’’

‘‘दाल भी अरहर की होगी?’’

‘‘हां’’

वे एकदम से बौखला उठे, ‘‘मैं क्या सिर्फ अरहर की दाल और रोटी के लिए ही नौकरी करता हूं?’’

‘‘शायद,’’ उस ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘जो बनाऊंगी, खाना पड़ेगा. वरना होटल में अपना इंतजाम कर लीजिए. इतना तो कमाते ही हैं कि किसी भी बढि़या होटल में खाना खा सकते हैं. मुझे जो बनाना है वही बनाऊंगी, आप को मालूम है कि नौकरानी आज भी नहीं आई.’’

‘‘मैं पूछता हूं, तुम सारा दिन क्या करती हो?’’

‘‘सोती हूं,’’ उस ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मैं कोईर् आप की बंधुआ मजदूर नहीं हूं.’’

पति हंसने लगे, ‘‘आजकल की खबरें सुन कर कम से कम तुम्हें एक नया शब्द तो मालूम पड़ा.’’

खाने की मेज पर सारी चीजें पति की पसंद की ही थीं – उड़द की दाल, गोश्त के कबाब, साथ में हरे धनिए की चटनी, दही की लस्सी और सलाद. दाल में देसी घी का छौंक लगा था.

शर्मिंदा से हो कर पति ने पूछा, ‘‘इतनी चीजें बना लीं, तुम इन में से एक चीज भी नहीं खाती हो. अब तुम किस के साथ खाओगी?’’

‘‘मेरा क्या है, रात की मटरआलू की सब्जी रखी है और वैसे भी अब समय ने मुझे सबकुछ खाना सिखला दिया है. वरना शादी से पहले तो कभी खाना खाया ही नहीं था, सिर्फ कंधारी अनार, चमन के अंगूर और संतरों का रस ही पिया था.’’

‘‘संतरे कहां के थे?’’

‘‘जंगल के,’’ उस ने जोर से कहा.

उन दिनों को याद कर के रोना आना चाहिए था पर नहीं आया. अब उसे यकीन हो गया था कि वह आज नहीं रोएगी. जब इतनी बातें सोचने और सुनने पर भी रोना नहीं आया तो अब क्या आएगा.

हाथ धो कर वह रसोई से बाहर निकल ही रही थी कि उस ने देखा, सामने से उस के पति चले आ रहे हैं. उन के हाथ में कमीज है और दूसरे हाथ में एक टूटा हुआ बटन. सहसा ही उस के दिल के भीतर बहुत तेजी से कोई बात घूमने लगी. आंखें भर आईं और वह रोने लगी.

Snacks Recipes : शाम के नाश्ते में बनाएं ये 3 डिशेज

Snacks Recipes : अगर आप शाम या सुबह के नाश्ते में टेस्टी और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

सैमोलीना वैजी ट्विस्ट

सामग्री

– 1 कप सूजी

– 1 बड़ा चम्मच घिसी गाजर

– 1 छोटा चम्मच लाल शिमलामिर्च बारीक कटी

– 1 छोटा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच हरीमिर्च बारीक कटी

– 1 छोटा चम्मच राईदाना

– 1 छोटा चम्मच पुदीनापत्ती कटी

– 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड

– 11/2 कप पानी

– थोड़ा सा चीज पाउडर

– थोड़े से चिली फ्लैक्स

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पैन गरम कर के रिफाइंड डालें. धीमी आंच कर के राईदाना, नमक, प्याज, गाजर, हरीमिर्च, शिमलामिर्च व आखिर में पुदीनापत्ती डालें. अब पानी डाल कर उबलने दें. सूजी मिलाएं व धीमी आंच कर के पानी सोखने तक पकाएं. अब चौड़े बरतन में निकाल कर ठंडा होने दें. 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड मिला कर आटे की तरह गूंध कर चिकना कर लें. अब इस की छोटीछोटी बौल्स बना कर स्टीमर में स्टीम करें. 1 प्लेट में चीज पाउडर और चिली फ्लैक्स मिला कर बौल्स को रोल कर लें. शेजवान चटनी या हरी चटनी के साथ वैजी ट्विस्ट का लुत्फ उठाएं.

 

चना भभरा

सामग्री

– 1 कप चने उबले

– 3/4 कप चावल का आटा

– 1/4 कप बेसन

– 1/2 छोटा चम्मच हींग

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

– 1 छोटा चम्मच जिंजर व गार्लिक पेस्ट

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला पाउडर

– तेल तलने के लिए – नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में आटा, बेसन, नमक, लालमिर्च पाउडर, हींग, हलदी व गरममसाला पाउडर डाल कर मिलाएं. आवश्यकतानुसार पानी डालें. घोल ज्यादा पतला नहीं रखना है. अब चना डाल कर इस मिश्रण में मिला दें. गरम तेल में कलछी की सहायता से घोल डालें. एक तरफ से सुनहरा हो जाने पर दूसरी तरफ पलटें. गरमगरम भभरा प्याज के लच्छों और चटनी के साथ परोसें.

कोकोनट फ्रिटर्स

सामग्री

– 1 कच्चा नारियल

– 1 उबला आलू

– 1 छोटा चम्मच कौर्नफ्लोर

– 1 छोटा चम्मच बेसन

– 2 छोटे चम्मच जिंजर व गार्लिक पेस्ट

– 10-12 करीपत्ते

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

– 3-4 हरीमिर्चें

– 1 छोटा चम्मच चिली फ्लैक्स

– रिफाइंड तलने के लिए

– नमक स्वादानुसार.

विधि

नारियल को एक गहरे बरतन में घिस लें. अब इस में आलू को मैश कर के डालें. करीपत्तों और हरीमिर्चों को बारीक काट कर डालें. रिफाइंड छोड़ कर बाकी सारी सामग्री को नारियल व आलू के तैयार मिश्रण में डालें. मिश्रण को अच्छी तरह मिला लें. अब 2 बड़े चम्मच रिफाइंड डाल कर मिक्स करते हुए हथेली को चिकना कर के फ्रिटर्स बनाएं. गरम रिफाइंड में मध्यम आंच पर फ्रिटर्स को सुनहरा तल लें. गरमगरम फ्रिटर्स को शेजवान चटनी के साथ परोसें.

Health Tips : क्या लिवर को स्वस्थ रखने के लिए घरेलू उपाय किए जा सकते हैं?

Health Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 32 वर्षीय शिक्षिका हूं. मुझे लिवर में सूजन की परेशानी है. मैं जानना चाहती हूं कि लिवर को स्वस्थ रखने के लिए कौन से घरेलू उपाय किए जा सकते हैं?

जवाब

अपना भार औसत रखें विशेष कर शरीर के मध्य भाग में चरबी न बढ़ने दें. इस के लिए पोषक भोजन का सेवन करें जिस में फाइबर, विटामिन, ऐंटीऔक्सीडैंट और मिनरल की मात्रा अधिक और वसा की मात्रा कम हो. नियमित रूप से ब्लड टैस्ट कराती रहें ताकि आप अपने रक्त में वसा, कोलैस्ट्रौल और ग्लूकोस के स्तर पर नजर रख सकें. नमक, चाय और कौफी का सेवन कम करें. दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पीएं. तनाव को नियंत्रित रखें क्योंकि इस से पाचन प्रक्रिया प्रभावित होती है जिस का सीधा असर लिवर की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट ऐक्सरसाइज या योग करें. अगर धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो इसे तुरंत बंद कर दें.

सवाल

मैं 46 वर्षीय एक घरेलू महिला हूं. मेरे भाई को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. मैं उसे अपना लिवर दान करना चाहती हूं. ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य और जीवन पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

जवाब

लिवर ट्रांसप्लांट के लिए जीवित दाता से लिवर का केवल एक भाग ही लिया जाता है पूरा लिवर नहीं. किसी भी इंसान को जीवित रहने के लिए 25त्न लिवर ही काफी है. हम 75त्न लिवर निकाल सकते हैं. लिवर का जितना भाग निकाला जाता है वह 6 सप्ताह में फिर से विकसित हो कर सामान्य आकार ले लेता है. लिवर दान करने के लिए दाता का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होना बहुत जरूरी है. दाता से लिवर लेने के पहले सारे टैस्ट किए जाते हैं कि लिवर लेने के बाद वह फिर से विकसित होगा या नहीं. सारे टेस्ट पौजिटिव आने के बाद ही दाता से लिवर लिया जाता है.

डा. विशाल खुराना

डाइरैक्टर, गैस्ट्रोएंटरोलौजी, मैट्रो हौस्पिटल, फरीदाबाद. 

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Health Tips : मल्टीविटामिंस, बायोटिन स्ट्रिप्स, गट हैल्थ पैचेस का जमाना

Health Tips : पिछले कुछ सालों में हैल्थ और न्यूट्रिशन इंडस्ट्री में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. पहले विटामिन कैप्सूल्स का दौर था फिर विटामिन गमीज ने बाजार में दस्तक दी और अब स्ट्रिप्स ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. मल्टीविटामिन और बायोटिन स्ट्रिप्स के साथ गट हैल्थ पैचेस तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और सोशल मीडिया पर इन का ट्रैंड भी खूब चल रहा है.

मगर सवाल यह उठता है कि क्या ये वास्तव में सेहत के लिए फायदेमंद हैं या फिर सिर्फ एक नया मार्केटिंग ट्रैंड है? क्या इन्हें डाक्टर की सलाह के बिना लेना सही है? और अगर इनका गलत इस्तेमाल किया जाए, तो क्या ये हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं? आइए, इस नए हैल्थ ट्रैंड को गहराई से समझते हैं :

कैसे काम करती हैं विटामिन स्ट्रिप्स

मल्टीविटामिन और बायोटिन स्ट्रिप्स पतली, घुलनशील फिल्म्स होती हैं, जिन्हें जीभ पर रख कर तुरंत खाया जा सकता है. ये मुंह में रखते ही घुल जाती हैं और सीधे ब्लडस्ट्रीम में जा कर असर दिखाने लगती हैं. ऐसा दावा किया जाता है कि ये स्ट्रिप्स सामान्य कैप्सूल्स और टैबलेट्स की तुलना में तेजी से असर करती हैं और इन्हें लेने में भी आसानी होती है. दावा यस भी है कि ये शुगरफ्री हैं तो हैल्थ को सजग रहने वाले लोगों के लिए भी अच्छी है. चूंकि गमीज में उन का स्वाद बढ़ाने के लिए काफी मात्रा में ऐडिड शुगर होती है, जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. अगर बाकी मल्टीविटामिंस की तुलना में स्ट्रिप्स या पैचेस पर चर्चा करें, तो ये कैप्सूल्स और टैबलेट्स के मुकाबले आसानी से पच जाती हैं, शरीर में तेजी से अवशोषित होती हैं, कैरी करना और खाना आसान होता और अलगअलग फ्लैवर्स में उपलब्ध हैं.

नुकसान (गलत तरीके से इस्तेमाल करने पर)

* शरीर में विटामिन की अधिकता हो सकती है, जिस से दुष्प्रभाव हो सकते हैं.

* पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

* शरीर की नैचुरल प्रोसेस को बाधित कर सकती हैं.

अब इसी तरह गट हैल्थ पैचेस भी लोगों की दिलचस्पी का नया विषय बन रहे हैं. आइए, जानते हैं कि ये क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं :

क्या होते हैं गट हैल्थ पैचेस और कैसे काम करते हैं

गट हैल्थ पैचेस एक प्रकार के ट्रांसडर्मल पैच होते हैं, जिन्हें त्वचा पर लगाया जाता है. ये त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स और अन्य जरूरी पोषक तत्त्वों को पहुंचाने का दावा करते हैं.

इन का उद्देश्य पाचनतंत्र यानी गट हैल्थ को स्वस्थ रखना है. कहा जाता है कि ये सीधे रक्त प्रवाह में अवशोषित हो कर गट हैल्थ को सुधारते हैं और पाचन में सुधार, सूजन को कम करने और माइक्रोबायोम को संतुलित करने में मदद करते हैं.

इस के फायदे बताए जाते हैं कि :

* पेट की समस्याओं को कम करने में मदद कर सकते हैं.

* प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स की पूर्ति कर सकते हैं.

* पाचन प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं.

नुकसान (अगर बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किया जाए) :

* शरीर की नैचुरल गट बैक्टीरिया बैलेंस को प्रभावित कर सकते हैं.

* लंबे समय तक उपयोग करने से शरीर प्राकृतिक रूप से प्रोबायोटिक्स बनाने में कमी कर सकता है.

* हर किसी की बौडी को एकजैसा फायदा नहीं होता.

लेकिन, क्या वास्तव में ये शरीर के लिए जरूरी हैं? सोशल मीडिया इन्फ्लुऐंसर्स और फिटनैस ट्रैनर्स मल्टीविटामिंस खाने पर अत्यधिक जोर देते हैं. लोगों के मन में यह डर पैदा किया जाता है कि अगर वे इन का सेवन नहीं करेंगे तो हैल्थ की दौड़ में कहीं पीछे रह जाएंगे. इसलिए ये कभी कैप्सूल्स तो स्ट्रीप्स को प्रमोट करते हैं. इंस्टाग्राम, यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर यह ट्रैंड खूब देखने को मिल रहा है. आकर्षक पैकेजिंग, चमकदार ऐडवरटाइजिंग और ‘इंस्टैंट रिजल्ट’ का दावा लोगों को इन की तरफ आकर्षित कर रहा है.

विशेषरूप से महिलाओं में बायोटिन स्ट्रिप्स का क्रेज अधिक बढ़ा है क्योंकि यह बालों और त्वचा के लिए फायदेमंद बताई जाती हैं. इसी तरह, जिम जाने वालों में मल्टीविटामिंस स्ट्रिप्स का ट्रैंड तेजी से बढ़ रहा है.

लेकिन क्या इन स्ट्रीप्स का सेवन बिना डाक्टर की सलाह के करना ठीक है

बहुत से लोग बिना ब्लड टेस्ट कराए या डाक्टर से संपर्क किए बिना ही इन स्ट्रिप्स का सेवन करने लगते हैं. वे यह भी नहीं जानते कि उन के शरीर को इस की जरुरत है भी नहीं. हो सकता है कि आप की बौडी नीड आप के खाने से ही पूरी हो रही हो. ऐसे में बिना अपने शरीर की कंडीशन को समझे इन का सेवन एक गंभीर गलती हो सकती है. हमारे शरीर को किन विटामिंस की कमी है, यह सिर्फ एक हैल्थ चैकअप से ही पता चल सकता है. अगर शरीर में पहले से ही पर्याप्त विटामिंस मौजूद हैं और फिर भी आप इन का सेवन कर रहे हैं, तो यह नुकसान भी पहुंचा सकता है. उदाहरण के लिए :

* विटामिन डी की अधिकता : हड्डियों और किडनी पर असर डाल सकती है.

* विटामिन सी की अधिकता : ज्यादा मात्रा में लेने से पेट में गैस, डायरिया और किडनी स्टोंस की समस्या हो सकती है.

* गट हैल्थ पैचेस का बेवजह उपयोग करने से प्राकृतिक गट बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ सकता है, जिस से पाचन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं.

* बायोटिन स्ट्रिप्स का अधिक सेवन स्किन ऐलर्जी, पेट खराब और हारमोनल असंतुलन का कारण बन सकता है.

* मल्टीविटामिंस स्ट्रिप्स बिना जरूरत के लेने से शरीर में कुछ विटामिंस की अधिकता हो सकती है, जो लिवर और किडनी पर असर डाल सकती है.

इसलिए, केवल किसी जिम ट्रैनर, सोशल मीडिया इन्फ्लुऐंसर या दोस्तों की देखादेखी इन का सेवन करना खतरनाक हो सकता है.

सोशल मीडिया ट्रैंड्स के जाल में न फंसें

आज की आधी आबादी सिर्फ सोशल मीडिया ट्रैंड्स को देख कर सप्लीमेंट्स का सेवन कर रही है. कई कंपनियां इन उत्पादों को बड़ेबड़े दावों के साथ बेच रही हैं. लोग बिना रिसर्च किए इन का सेवन शुरू कर देते हैं, जिस से बाद में दुष्प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं. आजकल बच्चों को ले कर भी बहुत सारी ऐसी मल्टीविटामिंस गमीज मार्केट में आ रही हैं जिन्हें सैलिब्रिटीज प्रोमोट करते दिखते हैं, लेकिन क्या वास्तव में वे अपने बच्चों को ये खाने के लिए देते हैं यह कोई नहीं जानता. इस बात को ऐसे भी समझें कि बड़ेबड़े फिल्मी सितारे चीनी से भरपूर ड्रिंक्स बेचने के लिए स्क्रीन पर दिखते हैं लेकिन खुद और अपने बच्चों को चीनी का एक कण खाने से परहेज करते हैं, उसे जहर बताते हैं. इसलिए आप भी आंखें खोल कर सोचसमझ कर ही किसी को फौलो करें.

सोशल मीडिया पर ट्रैंडिंग होने का मतलब यह नहीं कि वह आप के लिए सही है. हर इंसान का शरीर अलग होता है, जरूरतें अलग होती हैं. डाक्टर या न्यूट्रिशन ऐक्सपर्ट की सलाह लें, न कि इन्फ्लुऐंसर्स की.

क्या वास्तव में स्ट्रिप्स फायदेमंद हैं

अगर सही व्यक्ति की सलाह से और सही मात्रा में लिया जाए, तो मल्टीविटामिंस या बायोटिन स्ट्रिप्स फायदेमंद हो सकती हैं. लेकिन याद रखें, इन का सेवन तभी करें जब आप के शरीर को वास्तव में इन की जरूरत हो. इन का सेवन तभी करें अगर आपके शरीर में विटामिंस की कमी पाई गई हो और डाक्टर ने इन्हें लेने की सलाह दी हो या फिर किन्ही कारणों से आप की डाइट से पूरे न्यूट्रिऐंट्स की पूरी नहीं हो पा रही हो.

सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है

गट हैल्थ पैचेस, मल्टीविटामिंस और बायोटिन स्ट्रिप्स आप के शरीर की जरूरतों को पूरा करने की प्रभावशाली तकनीक हो सकती है, लेकिन इन्हें केवल जरूरत के अनुसार ही इस्तेमाल करना चाहिए है. इन्हें आंख मूंद कर नहीं लेना चाहिए. बिना डाक्टर की सलाह के, बिना जरूरत के इन का सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है. सही जानकारी लें, सही व्यक्ति से सलाह लें और अपने शरीर की वास्तविक जरूरतों को समझें. फिटनैस और हैल्थ सोशल मीडिया ट्रैंड्स से नहीं, बल्कि सही खानपान और स्वस्थ जीवनशैली से आती है.

तो अगली बार जब कोई नया हैल्थ ट्रैंड आए, तो पहले सोचें, जांचें और फिर ही कोई फैसला लें.

Parenting Tips : ऐग्जाम का भूत पेरैंट्स पर न हो सवार, पहले से रहें मातापिता तैयार

Parenting Tips : परीक्षाओं का वक्त करीब है, ऐसे में पेरैंट्स के आपस में बातचीत करने के लिए ऐग्जाम के अलावा कुछ नहीं बचा है. बच्चा चाहे दूसरी कक्षा का विद्यार्थी हो या 10वीं के बोर्ड ऐग्जाम हर एज ग्रुप के पेरैंट्स पर ऐग्जाम का एकजैसा स्ट्रैस ही दिखता है. सच है कि बच्चों की परीक्षाएं सिर्फ उन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए भी एक चुनौती होती है. मातापिता जिस में खासकर मांएं इस दौरान तनाव में आ जाती हैं, क्योंकि उन्हें बाकी जिम्मेदारियों के साथ बच्चे के ऐग्जाम स्ट्रैस का बर्डन अकसर अकेले ही झेलना पड़ता है.

बदलते जमाने के साथ अब पिता को वक्त के साथ बच्चे के ऐग्जाम की बराबर जिम्मेदारियां लेनी जरूरी हैं ताकि एक पर सारा भार न पड़े और वे इस के चक्कर में बीमार न पड़ जाएं. बच्चे की परवरिश मातापिता की साझा जिम्मेदारी है, ऐसे में जब परिक्षा की घड़ी हो तो एक के सिर बोझ डालना गलत है, पिता को चाहिए कि वे जितना हो सके उनता ही लोड शेयर करें क्योंकि जब एक पर दबाव ज्यादा पड़ता है तो वह दबाव न चाहते हुए भी बच्चे तक पहुंचता है जो उस के लिए सही नहीं.

इसलिए जैसे इनवेस्टमैंट के लिए आप प्लान करते हैं ठीक वैसे ही बच्चे के ऐग्जाम में किसे क्या काम करना है प्लान करें.

जिम्मेदारियां मिल कर निभाएं

मातापिता दोनों को अपने काम आपस में बांटने चाहिए ताकि किसी एक पर सारा भार न आ जाए. अगर पिता खाना बनाने में मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम ग्रोसरी खरीदने जैसे काम कर सकते हैं. घर की सफाई और बाकी जरूरी कामों में हाथ बंटाना चाहिए, ताकि मां को बच्चे की पढ़ाई में मदद करने का समय मिल सके. बच्चों के लिए एक अच्छा माहौल तैयार करें, जिस से उन्हें पढ़ाई में ध्यान लगाने में मदद मिलें. आप चाहें तो सब्जैक्ट्स बांटें, कुछ सब्जैक्ट्स की तैयारी की जिम्मेदारी आप लें कुछ आप की पत्नी ले.

परीक्षा के दौरान पिता की भूमिका

पिता की भूमिका सिर्फ कमाई करने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. पिता परीक्षाओं के वक्त मां और बच्चे का बड़ा सपोर्ट सिस्टम बन कर खड़े हो सकते हैं. कई लोग घर की स्थिति को नहीं समझते, उन्हें बस अपने 8 घंटों के काम के बाद सिर्फ अपना आराम दिखता है और वे सिर्फ अपनी जरूरतों और आराम तक सीमित रहते हैं. लेकिन यह ऐटिट्यूड हो सकता है आम दिनों में किसी को परेशान न करे, लेकिन जब मां पर पहले ही ऐक्स्ट्रा ऐग्जाम का लोड हो तो यह घर में परेशानी खड़ी कर सकती है. इसलिए अगर कुछ दिन आप को खाने के लिए गैस से उतरी गरम रोटियां न मिल कर, कैसरोल से रोटियां खुद ले कर खानी पड़ें तो आप को बिना शिकायत किए ऐडजस्ट करना सीखना चाहिए. साथ ही आप बच्चे को पढ़ाई के लिए प्रेरित करें और उन का हौसला बढ़ाएं.

अगर बच्चे को किसी विषय में दिक्कत हो रही है, तो उस की मदद करें या टीचर से बात करें. परीक्षा के डर को कम करने के लिए बच्चों से पौजिटिव बातें करें. आप की पत्नी अपनी सीमाओं से आगे बढ़ कर काम कर रही हैं तो उन को भी क्रेडिट जरूर दें.

खाना पहले से तैयार रखें

परीक्षा के समय खाने की टैंशन न हो, इस के लिए पहले से प्लानिंग कर लेना अच्छा रहेगा. पूरे हफ्ते का खाना का प्लान बना लें, ताकि आखिरी समय में परेशानी न हो. कुछ खाना पहले से बना कर रख सकते हैं, ताकि परीक्षा के दौरान ज्यादा मेहनत न करनी पड़े. अच्छे प्रोटीनयुक्त खाने की प्रीप्लानिंग कर के उन्हें डीप फ्रीज कर सकते हैं जिस से खाने के वक्त कुछ ही मिनटों में वह तैयार हो जाए और उस की प्रीपरेशन में आप को ज्यादा वक्त न लगे. बच्चों को हलका और हैल्दी खाना दें, जिस से उन्हें थकान न हो और दिमाग तेज चलें.

बच्चे और मां की नींद का ध्यान रखें

बच्चे अकसर परीक्षा के समय देर रात तक जाग कर पढ़ाई करते हैं, जिस से उन की नींद पूरी नहीं हो पाती. मां भी उन के साथ जागती रहती हैं, जो सही नहीं है. बच्चों को समझाएं कि अच्छी नींद जरूरी है, क्योंकि इस से दिमाग बेहतर काम करता है. मां को भी अपनी नींद का ध्यान रखना चाहिए, ताकि वह शांत और खुश रहें. इस में पिता को चाहिए कि वह आगे बढ़ कर दोनों की मदद करे. अगर मां ने रात को देररात तक बच्चे को समय दिया है तो सुबह उठ कर पिता नाश्ता बना दे, बच्चे को रैडी कर दे जिस से मां को कुछ वक्त की ऐक्सट्रा नींद मिल सके. बच्चों और पेरैंट्स के सोने और जागने का समय तय करें और कोशिश करें कि उस रूटीन को फौलो करें.

बच्चों को मानसिक सपोर्ट दें

मातापिता का नैतिक समर्थन बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने में बहुत मदद करता है. परीक्षा को जिंदगीमौत का सवाल न बनाएं, बल्कि इसे सीखने का एक मौका समझें. बच्चों को डांटने के बजाय उन का हौसला बढ़ाएं और उन के प्रयासों की सराहना करें. अगर बच्चा किसी विषय में कमजोर है, तो उसे डांटने की बजाय उस की मदद करें.

पढ़ाई के लिए सही माहौल बनाएं

बच्चों की पढ़ाई सही से हो, इस के लिए मातापिता को माहौल ठीक रखना चाहिए. घर में शांति बनाए रखें और टीवी या मोबाइल का शोरगुल कम करें. बच्चे का ध्यान सोशल मीडिया से हटा कर पढ़ाई पर केंद्रित करने में मदद करें. पढ़ाई का एक टाइम टेबल बनाएं और उस पर चलने की आदत डालें. किसी एक विषय में सारा वक्त खपाने की बजाए हर विषय को सही वक्त दें. अगर किसी विषय में बच्चे को दिक्कत हो तो उस के लिए अतिरिक्त समय जरूर निकालें.

परीक्षा के बाद भी सपोर्ट करें

अकसर मातापिता परीक्षा के नतीजों को ले कर ज्यादा चिंता करने लगते हैं, जिस से बच्चों पर और दबाव आ जाता है. परीक्षा के बाद भी बच्चों का हौसला बढ़ाएं, चाहे रिजल्ट जैसा भी हो. अगर परिणाम उम्मीद के मुताबिक न आए, तो बच्चे को डांटने के बजाय सुधार करने के लिए प्रेरित करें. परीक्षा के बाद परिवार के साथ कुछ अच्छा समय बिताएं, जिस से बच्चे का स्ट्रैस कम हो. अगर रिजल्ट आप के मुताबिक न हो तो परिजन एकदूसरे पर भी दोष निकालना शुरू कर देते हैं, ऐसा न करें. एकदूसरे का साथ दें और अगली बार के लिए बेहतर तैयारी करें.

परीक्षा जिंदगी का सिर्फ एक हिस्सा है, न कि सबकुछ. मातापिता को चाहिए कि वे परीक्षा के समय बच्चों का साथ दें, उन का हौसला बढ़ाएं और एक पौजिटिव माहौल बनाए रखें. जब परिवार मिल कर काम करता है, तो परीक्षा का तनाव कम हो जाता है और बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है.

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