पति-पत्नी में अगर तनाव बढ़ने लगे तो करें ये काम

आज हर पुरुष और महिला अपनेअपने जीवन की प्राथमिकताओं को ले कर व्यस्त है और यही सब से बड़ा कारण है, जिस की वजह से शादी के बाद लोग तनाव के शिकार हो जाते हैं. वैसे जब 2 अनजान या एकदूसरे को जानने वाले व्यक्ति रिश्तों में बंध जाने का निर्णय लेते हैं, तो उन के इस फैसले के बाद उन की शादी उन के लिए असीम खुशियां ले कर आ सकती है तो निराशा, समस्या, गुस्सा और तनाव भरी जिंदगी में भी धकेल सकती है.

जाहिर है कि ऐसा अपने साथी द्वारा लगातार सताए जाने, आलोचना करने और नीचा दिखाने की भावना की वजह से होता है.

होता क्या है दरअसल, शादी के बाद आप के साथी की उम्मीदें आप से बढ़ने लग जाती हैं और आप अपने व्यस्त कार्यक्रमों की वजह से उन की ख्वाहिशें पूरी कर पाने में असमर्थ होती हैं. यह सिलसिला जारी रहता है और बाद में तब तनाव की वजह बन जाता है, जब कोई शादी की वजह से उपजी इन समस्याओं से निबटने के लिए शराब की मदद लेने लग जाता है, एकदूसरे से दूरी बनाने लगता है, एकदूसरे को नजरअंदाज करने लगता है या भड़ास निकालने के लिए गुस्सा करता है.

शादी 2 व्यक्तियों का मिलन है, जिस में दोनों एकदूसरे के पूरक होते हैं. हो सकता है कि दोनों में एक व्यक्ति अधिक खर्चीला हो, तो दूसरा खर्च करने से पहले सोचने की सलाह दे सकता है. या एक अंतर्मुखी हो तो दूसरा बहिर्मुखी हो सकता है. अगर ऐसा नहीं होगा तो पतिपत्नी दोनों ही जम कर खर्च करेंगे और वे कभी बचत या पूंजी निवेश नहीं कर पाएंगे.

इसी प्रकार एक व्यक्ति दूसरे की तुलना में भावनात्मक तौर पर ज्यादा जरूरतमंद हो सकता है और अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी भावनाओं को इस्तेमाल करने के ढंग से उस का अंदाजा लगाया जा सकता है. कुछ रिश्तों के मामले में यह सीखा हुआ व्यवहार हो सकता है जिस में बिना भावनात्मक दबाव के व्यक्ति की कोई इच्छा पूरी ही नहीं होती. ऐसा व्यक्ति शादी के बाद जल्दी ही इस का उपयोग करने लग जाता है.

इस का हल यह है कि दोनों लोग कुछ अच्छा समय मिल कर व्यतीत करें. ध्यान से एकदूसरे की बात सुनें और विचारों को महत्त्व दें. इस के अलावा घरेलू मुद्दों के प्रबंधन, बच्चों के भविष्य व वित्तीय मामलों की जिम्मेदारी मिल कर उठाएं.

इन बातों पर ध्यान नहीं दिए जाने की स्थिति में पतिपत्नी के बीच की खाई बढ़ती चली जाती है और धीरेधीरे यह शुरुआती चिड़चिड़ेपन की स्थिति से अलगाव में परिवर्तित हो जाती है. इस से चिंता, अवसाद, तनाव और नींद में कमी जैसे मानसिक विकार उभरने लगते हैं. इस का असर घर के माहौल पर भी पड़ता है और बच्चों में भी चिड़चिड़ापन, पढ़ाई के दौरान एकाग्रता में कमी, स्कूल से शिकायतें जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं.

देखने में यह भी आता है कि जैसेजैसे बच्चे आत्मनिर्भर होते चले जाते हैं तो जो मां पूरे वक्त उन बच्चों का खयाल रखने में व्यस्त रहती थी, अब उस के पास अचानक ही बहुत अधिक खाली वक्त हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसे अपने पति से अधिक मदद व समय की जरूरत होती है. ऐसा संभव नहीं हो पाने की स्थिति में निराशा और चिड़चिड़ापन बढ़ने लग जाता है, परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन में कलह की शुरुआत हो जाती है.

ऐसी स्थिति में यह फिर से जरूरी हो जाता है कि दोनों कुछ समय मिल कर बिताएं और परेशानियों पर गौर करें. इस के अलावा महिला टहलना, व्यायाम या अध्ययन जैसी तनाव से राहत दिलाने वाली गतिविधियों में हिस्सा ले. यह भी जरूरी है कि अगर दूसरा साथी यदि किसी नई परियोजना या अपनी शौक की शुरुआत करना चाह रहा हो तो उस में मददगार बने.

संबंध सुधारने के सरल नुसखे

आगे बताए जा रहे हैं दांपत्य जीवन में आने वाले कुछ ऐसे हालात और उन के समाधान जिन का अनुसरण कर दांपत्य जीवन को तनावग्रस्त होने से बचाया जा सकता है और एकदूसरे के प्रति अपने लगाव को बढ़ाया जा सकता है.

खुद को दबा हुआ पाना

जब आप के मन में अपने सामने खड़े व्यक्ति से छोटा या कम ताकतवर होने की भावना उपजती है, तो तनाव उभर सकता है. ऐसा न हो इस के लिए आप को यह समझना चाहिए कि 2 वयस्कों के बीच प्यार के रिश्ते में साझा शक्ति ज्यादा बढि़या होती है. कार्यों को साथ मिल कर निबटाने के लिए हफ्ते में समय निश्चित करें. ऐसा भी हो सकता है कि 1 हफ्ता एक साथी अपनी पसंद का काम करे तो दूसरे हफ्ते दूसरा साथी अपनी पसंद का.

खुद की आलोचना महसूस होना

‘तुम्हारा बालों को इस तरह रखना मुझे पसंद नहीं.’, ‘तुम्हें यह स्वैटर नहीं खरीदना चाहिए था.’ जैसी आलोचनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने के बजाय उस वक्त उन मुद्दों पर बातचीत करें जब दोनों का मन शांत हो. लेकिन ऐसी बातों को नजरअंदाज न करें.

साथी का आदेशात्मक रवैया

ऐसा रवैया हतोत्साहित करने वाला होता है. यहां तक कि सौम्य आदेश जैसे, ‘जाओ, मेरे लिए अखबार ला दो, हनी’ भी चिड़चिड़ेपन या तनाव को जाग्रत कर सकता है, क्योंकि हमें क्या करना है यह कोई दूसरा बताए, यह किसी को पसंद नहीं होता. इस से बेहतर पूछ लेना या अनुरोध करना होता है. अनुरोध का जवाब हां या नहीं में दिया जा सकता है, इसलिए घरेलू मुद्दों व वित्तीय मामलों जैसी जिम्मेदारियों व कर्तव्यों को आपस में बांटना भी किया जा सकता है. जैसे एक साथी सुबह की चाय तैयार करे तो दूसरा शाम की.

साथी द्वारा नियंत्रित करने की कोशिश

किस समय क्या करना है, खर्च पर नियंत्रण, दोस्ती किस से करो किस से नहीं और यहां तक कि अपने परिवार के पास कितनी बार जा सकती हो, ऐसे व्यवहार तनाव को आमंत्रित करने वाले होते हैं. जब आप का साथी आप के व्यक्तिगत फैसला लेने की ताकत छीन लेता है या आप के फैसले में भागीदार बनता है, तो तनाव उत्पन्न होना लाजिम है. ऐसे में रोजाना साथसाथ टहलने या व्यायाम करने साथ जा कर ऐसा बेहतर समय साथ मिल कर बिताएं और अपने साथी से अपने मन की बात करें.

अगर साथी न करे कोई काम

एक ऐसा साथी, जो रोजाना जीवन में प्यार से साथ मिल कर रहने के दौरान सक्रिय भूमिका निभाता है, वह दूसरे साथी को अच्छा लगता है. चाहे वह काम सुबहसुबह दोनों के लिए अंडे तलना हो या मेहमानों के आने से पहले फटाफट आसपास की सफाई करना. इन बातों से प्यार बढ़ता है. इस के विपरीत अगर कोई साथी अपनी तरफ से सक्रियता नहीं दिखाता या कोई काम नहीं करता तो यह भड़काने वाली स्थिति होती है. इस से आप के मन में उस के प्रति चिड़चिड़ापन और गुस्सा पनपता है.

नियंत्रण से बाहर होती ऐसी स्थिति में, जीवन में बढ़ते तनाव को कम करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कुछ राहत पहुंचाने वाली गतिविधियों का सहारा लें. इस के लिए अपने पार्टनर से साथ इस पर विचार करें. परंतु ऐसा करते वक्त सावधानी बरतें. शिकायत या आलोचना जैसी हरकत आप के साथी में या तो तनाव पैदा कर सकती है या फिर आप के बीच लड़ाई की स्थिति पैदा कर सकती है. इसलिए साझा जीवन में नए नियमों के पालन हेतु साथी को राजी करने के लिए सब से अच्छे व विनम्र संचार माध्यम यानी मोबाइल वगैरह का सहारा लें और उस पर बातें ऐसी करें, जो आप के जीवन की निराशावादी तथ्यों को भगाने वाली व जीवन में खुशियां लाने वाली हों.

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ब्रैस्ट कैंसर और ब्रैस्ट फीडिंग से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

स्तन कैंसर के क्या कारण हैं?

जवाब-

स्तन कैंसर एक घातक ट्यूमर है, जिस की शुरुआत स्तन कोशिकाओं में होती है. दुनिया भर में महिलाओं को होने वाले कैंसर में यह सब से आम है. महिलाओं को होने वाले सभी कैंसरों में स्तन कैंसर का हिस्सा 25 से 32% है. महिलाओं में बाहरी कारणों से होने वाले कैंसर में यह 22.9% है. स्तन कैंसर के मुख्य कारणों में महिला होना, आयु, स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास, मोटापा, व्यायाम न करना, शराब पीना, रैडिएशन के संपर्क में रहना आदि हैं. बहुत सारी महिलाएं अपने बच्चे को शुरू के समय में स्तनपान नहीं कराती हैं. ऐसा कर के वे न सिर्फ खुद को, बल्कि अपने बच्चे के स्वास्थ्य को भी जोखिम में डालती हैं. अध्ययन से पता चला है कि अपने बच्चों को स्तनपान न कराने वाली महिलाएं स्तन कैंसर के लिहाज से ज्यादा जोखिम में रहती हैं. स्तन कैंसर होने का जोखिम महिलाओं की उम्र के साथ बढ़ता जाता है. उम्र बढ़ना और किसी करीबी रक्त संबंधी के कैंसर वाले जीन से जेनेटिकली प्रभावित होना भी स्तन कैंसर के संभावित कारणों में है. सच तो यह भी है कि एक स्तन में कैंसर वाली महिलाओं के दूसरे स्तन में भी कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

सवाल-

स्तनपान कराने से स्तन कैंसर की आशंका कम कैसे होती है?

जवाब-

वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनैशनल ने अपने अध्ययन में कहा है कि जो महिलाएं कम से कम 1 साल स्तनपान कराती हैं, ऐसा नहीं है कि उन्हें स्तन कैंसर होने की संभावना 5% कम होती है. स्तनपान कराने की किसी महिला की अवधि जितनी ज्यादा होगी उस का हारमोन स्तर उतना ज्यादा होगा. इस की आवश्यकता दूध बनाने के लिए होती है. इस से सैल का विकास प्रभावित होता है और स्तन को उन बदलावों से सुरक्षा मिलती है जो ऐसा नहीं होने पर संबंधित महिला को स्तन कैंसर के जोखिम में डाल देते. स्तनपान कराने के दौरान महिला की डिंबग्रंथि काम नहीं करती है. इस से भी स्तन या डिंबग्रंथि के कैंसर से बचाव होता है.

सवाल-

स्तनपान न कराने से कैसे स्तन कैंसर की आशंका बढ़ती है?

जवाब-

कई अध्ययनों से पता चला है कि स्तनपान कराने से स्तन कैंसर का जोखिम कम हो जाता है. खासकर स्तनपान अगर डेढ़दो साल चले. यानी स्तनपान से महिला को कैंसर से सुरक्षा मिलती है. एक अध्ययन के नतीजे से तो यह पता चला है कि महिला के जितने ज्यादा बच्चे हों और वह उन्हें जितनी लंबी अवधि तक स्तनपान कराती हो, उसे स्तन कैंसर होने का जोखिम उतना ही कम रहता है. अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि शिशु जन्म के बाद जिन माताओं ने अपने शिशु को स्तनपान कराया, वे स्तनपान नहीं कराने वाली महिलाओं से स्तन कैंसर के मामले में ज्यादा सुरक्षित रहीं.

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सवाल-

मां और बच्चे को स्तनपान कराने के क्या लाभ हैं?

जवाब-

स्तनपान कराने के लाभ बहुत हैं. प्रसव के बाद का पहला दूध बच्चे का पहला टीका कहा जाता है. मां का दूध बच्चे में ऐंटीबौडीज और रोगाणुओं से लड़ने वाली कोशिकाओं के स्थानांतरण के लिए पैसेज का भी काम करता है. यह हर तरह के संक्रमण और ऐलर्जी से सुरक्षा देता है. मां को स्तनपान के जरीए गर्भावस्था के दौरान बढ़ा अपना वजन कम करने में भी सहायता मिलती है. इस के अलावा इस प्रक्रिया के दौरान औक्सीटोसिन हारमोन निकलता है, जो गर्भावस्था से पहले का स्वास्थ्य और स्थितियां हासिल करने में मदद करता है.

सवाल-

1 दिन में कितनी बार या कितने समय तक बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए?

जवाब-

नवजात को 3 घंटे के अंतराल पर स्तनपान कराया जा सकता है. वैसे जब तक वह बड़ा हो रहा हो और मां को दिक्कत नहीं हो, तो बच्चे को दूध पिलाने का समय निश्चित करने की जरूरत नहीं है. हालांकि ऐसा भी देखा गया है कि कुछ सप्ताह बाद बच्चे खुद ही स्तनपान का अपना समय तय कर लेते हैं. रात में स्तनपान कराना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि रात में दूध बनाने वाले हारमोन ज्यादा बनते हैं और इस से ज्यादा दूध बनता है.

सवाल-

क्या भारतीय महिलाओं के बीच स्तनपान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है?

जवाब-

स्तनपान बच्चे के जन्म की तरह ही स्वाभाविक या प्राकृतिक है. इस के जानेमाने लाभ के बावजूद बहुत कम महिलाएं ज्यादा समय तक स्तनपान कराती हैं. कामकाजी महिलाएं अकसर स्तनपान की जगह दूसरे विकल्प आजमाती हैं ताकि अपना कामकाज और मां होने की जिम्मेदारी दोनों संभाल सकें. स्तनपान कम कराने के कारणों में खास कारण एक यह है कि मां के दूध के प्रचारित विकल्पों की भरमार है, जबकि विशेषज्ञों ने बारबार कहा है कि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है. मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर इस बात की आवश्यकता है कि स्तनपान की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए और इस के लिए कामकाजी महिलाओं को भी ऐसी सुविधाएं दी जानी चाहिए, जिन से वे अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वाह अपनी कामकाजी जिम्मेदारियों के साथ सहजता से कर सकें.

– डा. सच्ची बावेजा बी.एल. कपूर सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, दिल्ली

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

14 Tips: तो नहीं बढ़ेगा वजन

बढ़ता वजन आप के माथे पर सिकुड़नों को बढ़ाता होगा, तो दिनबदिन बढ़ती चरबी आप को लोगों के सामने नहीं खुद अपनी नजरों में भी शर्मिंदा करती होगी. ऐसा चाहे डिलिवरी के बाद हुआ हो या अचानक यों ही, आप ने अपने वजन को घटाने के लिए व्यायाम, जिम, कार्डियो ऐक्सरसाइज वगैरह क्या कुछ नहीं किया लेकिन याद रखिए कि वजन घटाने का मतलब यह नहीं कि आप क्रैश डाइटिंग कर के एकदम से छरहरे बदन की हो जाएं. ध्यान रहे कि ऐसा करने से स्टैमिना कमजोर हो जाता है, तो न काम में मन लगता है और न दैनिक कार्यों के लिए ऐनर्जी रहती है. आप हैल्दी फूड के साथसाथ नियमित ऐक्सरसाइज व व्यायाम से ही अपना वजन मैंटेन कर सकती हैं.

आप का नाश्ता बिलकुल सही हो और थोड़ीथोड़ी देर बाद आप कुछ न कुछ खाती रहें. लेकिन डाइट में कैलोरी की मात्रा कम होनी चाहिए. तलेभुने और फास्ट फूड से दूर रहें. रात का खाना 8 बजे तक कर लें ताकि खाने को पचने का पर्याप्त समय मिल जाए और रात का खाना आप के पूरे दिन के खाने में सब से हलका होना चाहिए.

कुल मिला कर डाइट संतुलित मात्रा में लेनी चाहिए और डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. एक आम इनसान को प्रतिदिन 2,500 कैलोरी की डाइट लेनी चाहिए. तभी हमारा शरीर स्वस्थ व छरहरा रह सकता है. आप अपने लिए डाइट प्लान इस तरह करें:

1. दिन में 3 बार की जगह 5 बार मील्स लें. इस में साबूत अनाज (ब्राउन राइस, व्हीट ब्रैड, बाजरा, ज्वार आदि) अवश्य शामिल करें. नौनरिफाइंड व्हाइट प्रोडक्ट्स (व्हाइट ब्रैड, व्हाइट राइस, मैदा आदि) को डाइट से पूरी तरह हटा दें.

2. डाइट में टोंड दूध से बना दही, पनीर व दाल, मछली आदि शामिल करें.

3. कब्ज व पेट की मरोड़ से बचने के लिए खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं. इस के लिए सप्लिमैंट्स के बजाय प्राकृतिक फाइबर लें. फाइबर के प्रमुख स्रोत हैं, साबूत अनाज, होम मेड सूप, दलिया, फल आदि. इन से फाइबर के साथसाथ कई मिनरल्स व विटामिंस भी मिलेंगे.

4. हड्डियों की मजबूती के लिए डाइट में कैल्सियम की मात्रा बढ़ाएं. इस के प्रमुख स्रोत हैं- दूध, मछली, मेवा, खरबूज के बीज, सफेद तिल आदि. याद रहे कि पतले होने के फेर में कैल्सियम को डाइट से नदारद किया तो गठिया आप को जकड़ सकता है.

5. वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक (वसा की मात्रा) कम करना चाहते हैं, तो डाइट से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं. डाइटिशियन के अनुसार, ऐनर्जी लैवल को बनाए रखने, टिशू रिपेयर और विटामिंस को बौडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए खाने में पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं. इसलिए डाइट से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवौइड करें और इस की जगह औलिव औयल इस्तेमाल में लाएं.

6. दिन की शुरुआत जीरा वाटर, अजवाइन वाटर, मेथी वाटर या आंवला जूस से करनी चाहिए. इस से मैटाबोलिक रेट बढ़ता है.

7. बहुत ज्यादा देर तक खाली पेट न रहें. इस से आप एक बार में अधिक भोजन करेंगी. बेहतर होगा कि आप बीचबीच में कम वसा वाले स्नैक्स या फिर फल, सूप जैसी चीजें लेती रहें.

8. रामदायक लाइफस्टाइल अपनाने के बजाय कुछ परिश्रम भी करें. याद रहे कि वजन तभी बढ़ता है, जब खाने से मिलने वाली कैलोरी पूरी तरह बर्न नहीं होती.

9. वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है क्रैश डाइटिंग. इस से न सिर्फ वजन कम होता है, बल्कि मसल्स व टिशूज पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.

10. दिन में 8-10 गिलास पानी पीएं.

11. आप के खाने में सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए. सोडियम शरीर से पानी सोखता है और ब्लडप्रैशर बढ़ाता है, इसलिए दिन भर में नमक बस 1 या 11/2 चम्मच ही लें.

12. कोलैस्ट्रौल लैवल कंट्रोल करने के लिए फैट की मात्रा पर ध्यान दें.

13. पानी वाले फलसब्जी (मौसंबी, अंगूर, तरबूज, खरबूजा, खीरा, प्याज, बंदगोभी आदि) रैग्युलर लें.

14. कम से कम चीनी व नमक का प्रयोग करें.

कामकाजी लोग क्या करें

कामकाजी लोगों का ज्यादातर समय औफिस की कुरसी पर बैठेबैठे ही बीत जाता है. ऐसे में वजन बढ़ाना तो आसान होता है पर एक बार बढ़ जाए तो घटाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे लोगों को अपने खाने के प्रति काफी सतर्क रहना चाहिए. वे कुछ निश्चित नियमों का पालन कर के ही अपने वजन को काबू में रख सकते हैं. औफिस में कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें बाहर निकाल कर या कैंटीन में खाना आम बात होती है और उन्हें खा कर बैठे रहना वजन ही बढ़ाता है. ऐसा न हो, इस के लिए घर का बना टिफिन आप की काफी मदद करेगा.

जब उम्र कम हो

बेवजह का खानपान और असमय भोजन लेने की आदत ऐसे लोगों के वजन को बढ़ाने का काम करती है. फास्ट फूड पर निर्भरता भी इस उम्र के लोगों में औरों की अपेक्षा ज्यादा ही होती है. इसलिए दिन भर में 2 बार का भोजन और सुबह का प्रोटीनयुक्त नाश्ता दिन भर आप को चुस्त रखेगा और आप का वजन भी नियंत्रित करेगा. साथ ही खाने में सलाद का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें तो बेहतर होगा. कम उम्र में वजन बढ़ जाने से बुरा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा न हो इस के लिए जरूरी है कि पहले फास्ट फूड से बचें. इस उम्र में सब से ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, इसलिए प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. कार्बोहाइड्रेट को नाश्ते में जरूर शामिल करें.

बुजुर्गों की डाइट

अगर आप 60 की उम्र पार कर चुके हैं, तो सेहत के प्रति ज्यादा सजग होंगे. इस उम्र में पाचन क्रिया के साथसाथ हड्डियां और मांसपेशियां दोनों ही कमजोर हो जाती हैं. बुजुर्गों के लिए बेहतर है कि कम खाएं पर कई बार खाएं. साथ ही व्यायाम को भी अपने दिन के प्लान में जरूर शामिल करें. दिन में 1 बार 20 मिनट टहलने से आप खुद को काफी तरोताजा रख पाएंगे. -दीप्ति अंगरीश डाइटिशियन, शिखा शर्मा से की गई बातचीत पर आधारित

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स्मिता तुम फिक्र मत करो- भाग 1: क्या वापस लौटी खुशियां

दिल्ली की ऐसी पौश आवासीय सोसाइटी जहां लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते. पड़ोसियों का कभी एकदूसरे से सामना हो जाता है तो आधुनिकता का लबादा ओढ़े लेडीज, ‘हाय, हाऊ आर यू’ कहती हुई आगे निकल जाती हैं. जैंट्स को तो वैसे भी आसपड़ोस से ज्यादा कुछ लेनादेना नहीं होता. सुबह घर से काम के लिए निकलते हैं तो शाम तक, यदि बिजनैसमैन हुए तो रात तक, घर लौटते हैं. घर की जिम्मेदारी उन की पत्नियां उठाती हैं. मतलब, घर उन्हीं की देखरेख में चल रहा होता है.

10 साल बीत चुके थे स्मिता को शादी कर दिल्ली की इस हाई सोसाइटी में रहते हुए. आज सुबह से सोसाइटी में सुगबुगाहट थी. सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में स्मिता के पति सुमित की मौत की खबर सब को मिल चुकी थी. ज्यादातर लोग सुमित और स्मिता को जानते थे.
वक्त की किताब के पन्ने उलटें, तो अभी की बात लगती है.

स्मार्ट, पढ़ीलिखी, सुंदर स्मिता चंड़ीगढ़ में पैदा हुई. वहीं उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की. फैशन के मामले में चंड़ीगढ़ की लड़कियां दिल्ली की लड़कियों से पीछे नहीं हैं. छोटे शहरों में लड़कियां खूब स्कूटी चलाती हैं क्योंकि वहां दिल्ली की तरह यातायात के साधन खास नहीं होते. एक तरह से वे पूरी तरह सैल्फ इंडिपैंडैंट होती हैं, इतनी तो दिल्ली की लड़कियां भी तेज नहीं होतीं. मतलब इस सब का यही है कि स्मिता आत्मविश्वास से भरी, लोगों से मेलमिलाप रखने वाली, खुशमिजाज लड़की थी जब उस की शादी सुमित से हुई थी.

सुमित तो जैसे दीवाना ही हो गया था स्मिता को देख कर जब पहली बार उन की मुलाकात हुई थी. हुआ यों था कि सुमित के दोस्तों के ग्रुप में उदय की शादी सब से पहले तय हुई थी. सब के लिए बरात में जाने, डांस करने, मस्ती मारने का अच्छा मौका था. और बरात जा रही थी चंड़ीगढ़.

एकदूसरे से सुमित और स्मिता वहीं मिले थे. शीना स्मिता की बैस्ट फ्रैंड थी. शीना ने स्मिता से पहले ही बोल दिया था कि शादी के एक हफ्ते पहले ही वह अपना ताम झाम ले कर उस के घर आ जाएगी और शादी होने के बाद ही घर वापस जाएगी. स्मिता भी कम उत्साहित नहीं थी शीना के विवाह को ले कर. स्मिता शीना का पूरा हाथ बंटा रही थी शादी की खरीदारी करने में. शीना की बात मानते हुए वह एक हफ्ते पहले ही शीना के घर रहने आ गई थी. दोनों सहेलियां रात में शादी के बाद हनीमून और उदय को ले कर खूब मस्ती, छेड़छाड़भरी बातें करतीं.

वह दिन भी आ गया जब बरात द्वार पर खड़ी थी. स्मिता कई सहेलियों के साथ द्वार पर दूल्हे से रिबन कटवाने के लिए खड़ी थी.

‘जीजाजी, इतनी भी क्या जल्दी है, फटाफट से 10 हजार रुपए का नेग दीजिए, रिबन काटिए, और फिर अंदर आइए. और हां, शीना से मिलने की इतनी जल्दी है तो नेग डबल कर दीजिए. हम हैं न, शौर्टकट से सब मामला सैट कर देंगे.’
‘उस की कोई जरूरत नहीं, वो देखिए, सामने से अंकलआंटी और सब आ रहे हैं. खुद ही हमें प्यार से अंदर ले जाएंगे,’ उस तरफ से सुमित बोला.
और वाकई अंकलआंटी ने आते ही कहा, ‘अरे बेटा, क्यों रोक रखा है दूल्हेराजा को?’
‘अंकलजी, बिना नेग लिए ये अंदर कैसे आ सकते हैं?’ स्मिता इठलाते हुए बोली.
‘बेटा, नेग क्या कहीं भागा जा रहा है. पहले ही बहुत देर हो गई. सब को आने दो. चलो, सब साइड हो जाओ. तुम्हारी आंटी को दूल्हे का तिलक करना है.’
दूल्हा और उस के दोस्त बड़ी शान से अंदर आए और सुमित ने साइड में खड़ी स्मिता को आंख मार दी. इस से स्मिता और भी  झल्ला गई.
इस के बाद तो पूरी शादी और विदाई होने तक स्मिता और सुमित की नोक झोंक चलती रही. बरात दुलहन को ले कर वापस दिल्ली लौट रही थी, तो सारे दोस्त सुमित को छेड़ रहे थे, ‘भई, लगता है जल्दी ही दोबारा चंड़ीगढ़ बराती बन कर आना पड़ेगा.’

वाकई सुमित अपना दिल चंड़ीगढ़ में स्मिता के पास ही छोड़ आया था. मम्मी के पीछे पड़ कर उस ने स्मिता से शादी के लिए इतना जोर दिया कि एक महीने बाद स्मिता दुलहन बन कर सुमित के घर आ गई थी.
‘चट मंगनी पट ब्याह, मैं तो इसी में विश्वास रखता हूं,’ हनीमून पर सुमित स्मिता से अकसर यह बात कह उसे अपने प्यार की दीवानगी दिखाता रहा था.
खुशी के दिन पंख लगा कर उड़ जाते हैं और बुरे दिन कुछ ही दिनों के लिए आते हैं लेकिन लगता है हम मानो वर्षों से उसी में जी रहे हैं.
स्मिता 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. जिंदगी का हर लमहा खुशगवार गुजर रहा था. कोई चिंता नहीं थी उसे. सुमित का अच्छाखासा बिजनैस था. पैसे की कमी का सवाल ही नहीं था.

सोमा काकी बरसों से उन के घर पर काम कर रही थीं. एक तरह से वे घर में खानेपीने की व्यवस्था, रखरखाव, घर में आनेजाने वालों पर अपनी पूरी नजर रखती थीं. इसलिए, स्मिता घर की तरफ से बेफिक्र थी और घर के ड्राइवर शामू काका ने तो अपनी पूरी जवानी ही इस घर में गुजार दी थी. सुमित के पापा के समय के ड्राइवर थे शामू काका. पापा के गुजर जाने के बाद भी पूरी निष्ठा से इस घर की सेवा की. मम्मी को शामू पर पूरा भरोसा था. रातबेरात कहीं आनाजाना हो तो शामू के साथ कार में जाने में उन्हें पूरी तरह सुरक्षित महसूस होता था. सुमित ने बचपन से शामू काका को देखा था. स्कूल से लाना ले जाना, ट्यूशन से घर ले जाना, घर का सारा राशनपानी लाना, यहां तक कि फैक्ट्री के सामान को पूरी तरह से सुरक्षित रूप से क्लाइंट तक पहुंचाने का काम भी शामू काका बहुत निपुणता से करते.

स्मिता बहुत खुश थी अपनी जिंदगी से. शायद अपनी खुशियों पर उस की खुद की नजर लग गई थी. सुबह के 8 बज गए थे, लेकिन मम्मीजी के कमरे का दरवाजा अभी तक बंद था. ऐसा तो कभी नहीं होता. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के जब वह ऊपर अपने बैडरूम से नीचे आती थी तो मम्मीजी अकसर गार्डन में चेयर पर बैठी अखबार पढ़ती दिखतीं या फिर गार्डन में चहलकदमी करती बच्चों को बायबाय कर उन्हें प्यार से निहारती थीं. लेकिन आज क्या हुआ. बच्चों को शामू काका के साथ कार में बैठा कर स्मिता ने अंदर मम्मी के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया. सामने बैड पर मम्मी औंधेमुंह लेटी थीं और हाथ नीचे लटका हुआ था. यह देख कर स्मिता की घुटी चीख निकल गई.
‘सुमित….सुमित…,’ चिल्लाने लगी, ‘सुमित, देखो मम्मीजी को क्या हो गया.’
रात में मम्मीजी को दिल का दौरा पड़ा था. उठने की कोशिश की होगी शायद लेकिन औंधेमुंह पलंग पर गिर गईं.

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स्मिता तुम फिक्र मत करो- भाग 2: क्या वापस लौटी खुशियां

मम्मीजी की जीवनडोर टूट चुकी थी. उन का इस तरह अचानक से चले जाना स्मिता और सुमित के लिए  झटके से कम नहीं था. सुमित तो जैसे पूरी तरह से टूट गया था. मां से बहुत ज्यादा लगाव था. वैसे भी, जब वह 10वीं में गया ही था, पापा की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी. मम्मीजी ने अकेले उसे पालापोसा था, फैक्ट्री का काम संभाला था और इतने बड़े घर को संजो कर रखा था.

एक तरह से आज वह जो भी था, मम्मी के हाथों गड़ा मजबूत व्यक्तित्व था. उन के जाने से वह भीतर से टूट गया था.

फैक्ट्री का काम तो उस ने बीबीए की पढ़ाई के बाद ही संभाल लिया था लेकिन मम्मी के होते बिजनैस की ओर से वह ब्रेफिक्र था क्योंकि इंपौर्टेंट डिसीजन तो वही लेती थीं.

खैर, वक्त के साथसाथ सब सामान्य हो जाएगा, यह सोच कर स्मिता सुमित को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती. सुमित एक शाम फैक्ट्री से आया तो हलका बुखार महसूस कर रहा था.

स्मिता घबरा सी गई. पिछले महीने से पूरे देश में मंडराती कोरोना वायरस की महामारी ने सभी को दहशत में डाल दिया था.

सरकार द्वारा लोगों को पूरी एहतियात बरतने की सलाह दी जा रही थी. टीवी चैनलों में यही न्यूज छाई हुई थी. मानव से मानव में होने वाली इस बीमारी की चपेट में पूरा विश्व आ गया था.

बच्चों के स्कूल तो बंद हो गए थे. स्मिता ने सुमित को फैक्ट्री जाने से मना किया था. लेकिन सुमित का कहना था कि हो सकता है देशभर में लौकडाउन की स्थिति बन जाए, इसलिए वह फैक्ट्री का काम काफी हद तक समेटना चाहता है ताकि आगे दिक्कत न हो, लेकिन इंसान अपनेआप को कितना ही बचा ले, प्रकृति के आगे उस की एक नहीं चलती.

दिल्ली में जैसे ही लौकडाउन का ऐलान हुआ, उस से एक दिन पहले सुमित कोरोना वायरस की चपेट में आ चुका था.

स्मिता ने बच्चों को ऊपर के फ्लोर में ही रहने की हिदायत दे दी थी. सोमा काकी थीं, तो स्मिता को बच्चों की फिक्र करने की जरूरत नहीं थी. सुमित की बिगड़ती हालत देखते हुए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया.

अस्पताल जाने से पहले सुमित बोला था, ‘सुमि, लगता है अब तुम्हें, बच्चों को, इस घर को दोबारा नहीं देख पाऊंगा. सुमि, मैं तुम से, बच्चों से, इस घर से बहुत प्यार करता हूं. मु झे मरना नहीं है, प्लीज, मु झे बचा लो. मैं तुम सब को छोड़ कर जाना नहीं चाहता. सुमि, मु झे लग रहा है मौत मु झे बुला रही है. नहीं सुमि, नहीं, मु झे नहीं छोड़ना तुम्हारा साथ.’

स्मिता का रोरो कर बुरा हाल था. सुमित की यह हालत उस से भी नहीं देखी जा रही थी. लेकिन करती भी क्या वह, उस के हाथ में हो तो अपनी जिंदगी उस के नाम लिख देती.

अस्पताल में एक बार मरीज को भरती कराने के बाद उस से मिलना मुश्किल था. सुमित के साथ वहां अस्पताल में क्या हो रहा है, कुछ दिनों तक तो पता ही नहीं चला. टीवी पर अस्पताल के बुरे हालात, मरीज के साथ बरती जाने वाली लापरवाही और मरीजों की मौत के बाद उन के शरीर के साथ अमानवीयता देख स्मिता सिहर उठती थी. फोन की हर घंटी किसी आशंका का संकेत देती थी और वाकई उस की आशंका सच में बदल गई. सुमित नहीं बच पाया था.
यह सुनते ही स्मिता जैसे पत्थर हो गई थी. सोमा काकी न होतीं तो शायद आज वह भी जिंदा न होती.

मम्मीजी की मौत को 2 महीने भी नहीं हुए थे, और सुमित का उसे यों अचानक छोड़ कर चले जाना. ऊपर से लौकडाउन की वजह से कोई घर नहीं आ सकता था. कोई पास आ कर उसे गले नहीं लगा सकता था. कोई पास नहीं था कि वह उस के कंधे पर सिर रख कर रो सके. बस, एक सोमा चाची थीं जिन की गोद में वह सिर रख सकती थी. वे ममता की मूरत बन स्मिता को संभाले हुए थीं. बच्चे तो कुछ सम झ नहीं पा रहे थे कि सब क्या हो रहा है. 8 साल का अवि कुछकुछ सम झ रहा था लेकिन 2 साल की परी तो अभी नादान थी.
अस्पताल से सुमित के पार्थिव शरीर को ले कर अंतिम संस्कार करना था. शामू काका स्मिता के साथ थे, वरना अभी तक तो स्मिता की हिम्मत टूट चुकी थी. कोई अपना सगासंबंधी नहीं था. लौकडाउन की हालत में चंड़ीगढ़ से किसी का आना मुश्किल था. अड़ोसीपड़ोसी फोन पर ही अफसोस जता रहे थे. सुमित का दोस्त उदय जरूर काफी मदद कर रहा था. सुमित उस का बचपन का दोस्त था, वह स्मिता को क्या दिलासा देता, उस के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
स्मिता असहाय महसूस कर रही थी अपने को. सामान्य दाहसंस्कार तो दूर की बात थी, स्मिता सुमित के शरीर को छू भी नहीं सकती थी, वह सुमित जिस के बिना वह जीने की कल्पना नहीं कर सकती थी. कितनी बेबस थी वह, चीखचीख कर रोना चाहती थी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था.
किसी तरह शवदाहगृह में क्रियाकर्म हुआ. अचानक सब क्या हो गया था. स्मिता की तो दुनिया ही बदल गई थी.
3 महीने गुजर गए थे सुमित को गुजरे हुए लेकिन स्मिता सदमे से उबरी नहीं थी. अवि और परी उस के पास आते और कहते, ‘मम्मी, खेलो न हमारे साथ,’ तो स्मिता खोईखोई आंखों से, बस, उन्हें देख कर सिर पर हाथ फेर फिर न जाने कहां खो जाती.
कोशिश कर रही वह खुद को संभालने की, लेकिन हो नहीं पा रहा था. ऐसे में सोमा काकी ही एक मां की तरह उसे संभाल रही थीं. गांव से तो उन का नाता कब का टूट गया था. पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने उन्हें एक तरह से घर से निकाल दिया था. आस न आलौद. शहर आईं तो इस घर में उन्हें ऐसा आसरा मिला, कि यहीं की हो कर रह गईं.

रोज चंड़ीगढ़ से मम्मीपापा का फोन आता था. मम्मी रोतीं उसे तसल्ली देतीं. मम्मी के पैरों में दर्द रहता था और पापा की हार्टसर्जरी हो चुकी थी, इसलिए स्मिता ने उन्हें सख्त मना कर दिया कि कोई जरूरत नहीं दिल्ली आने की. अपनी सेहत का खयाल रखो. आ कर भी अब क्या हो जाएगा, सुमित वापस तो नहीं आ जाएगा.

स्मिता ने अब कभीकभी फैक्ट्री जाना शुरू कर दिया था. अनलौक की प्रक्रिया काफी हद तक शुरू हो गई थी. उन का टेप का बिजनैस था. छोटी से ले कर बड़ी हर तरह की टेप बनती थी उन की फैक्ट्री में. कोरोनाकाल में पीपीई किट के लिए टेप का इस्तेमाल होता है. फैक्टी का मैनेजर विशाल बिजनैस माइंडेड इंसान था.

टेप तो फैक्ट्री में बन ही रही है क्यों न पीपीई किट खुद ही अपनी फैक्ट्री में बनाई जाए. बस, काम चल पड़ा था. विशाल ने स्मिता को सजेशन दिया कि मार्केटिंग के लिए कोई नया व्यक्ति चुन लिया जाए, क्योंकि यह काम पहले सुमित देखता था.

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स्मिता तुम फिक्र मत करो- भाग 3: क्या वापस लौटी खुशियां

स्मिता ने यह काम विशाल को सौंप दिया और सबकुछ देखभाल कर रजत को मार्केटिंग हैड नियुक्त किया गया. रजत ने काफी अच्छी तरह से काम संभाल लिया था. स्मिता कभीकभी फैक्ट्री जाती थी पैसों का हिसाबकिताब देखने. स्मिता ने कौमर्स पढ़ा था इसलिए अकाउंट्स वह देख लेती थी.
स्मिता नोट कर रही थी कि जब भी वह फैक्ट्री जाती रजत किसी न किसी बहाने से उस के नजदीक आने की कोशिश करता. वैसे रजत बुरा इंसान नहीं था लेकिन इस का ऐसा बरताव स्मिता को कुछ अटपटा लगता.

रात के 8 बज रहे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो सोमा काकी ने दरवाजा खोला.
‘‘स्मिता मैडम हैं?’’ रजत 2-3 फाइल हाथ में पकड़े खड़ा था.
‘‘हां, लेकिन आप?’’ सोमा काकी ने पूछा.

‘‘मैं रजत, फैक्ट्री का न्यू मार्केटिंग हैड’’ रजत अपना परिचय दे ही रहा था तब तक स्मिता दरवाजे तक आ गई.
‘‘आप, इस वक्त, क्या बात है?’’ स्मिता ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मैडम, जरूरी कागज पर साइन चाहिए थे. क्लाइंट से बात हो चुकी है. बस आप के अप्रूवल की जरूरत थी.’’

‘‘आइए, बैठिए, लाइए पेपर दीजिए,’’ स्मिता ने रजत से पेपर ले लिए.
रजत की आंखें घर का मुआयना कर  रही थीं. साइड टेबल पर फ्रेम में अवि और परी की फोटो देख कर बोला, ‘‘बहुत प्यारे बच्चे हैं आप के मैडम.’’

‘‘हूं,’’ स्मिता बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. पेपर साइन कर के रजत की ओर बढ़ा दिए.

सोमा काकी को रजत की आंखों में लालच नजर आया था. शामू काका से सोमा काकी को पता तो चला था कि फैक्ट्री में नया आदमी आया है और काफी अच्छा काम कर रहा है. आज देख भी लिया, लेकिन रजत सोमा को कुछ ठीक सा नहीं लगा. इंसान को देख कर पहचान लेती थीं वे. जिंदगी ने इतनी ठोकरें दी थीं कि अच्छेबुरे की पहचान कर सकती थीं.

‘‘नहींनहीं, स्मिता बिटिया को इस से बचाना होगा,’’ सोमा काकी के दिमाग में एक उपाय सू झा.
घर के पीछे बने गैराज में गईं. शामू काका वहीं रहते थे. खानापीना, नहानाधोना सब इंतजाम कर रखे थे उन के लिए.
‘‘क्या बात है, इस वक्त यहां?’’ शामू काका दूध गरम कर रहे थे. खाना तो उन्हें घर से मिल ही जाता था.
‘‘शामू, तु झे फैक्ट्री में आए नए आदमी… क्या नाम है… हां, रजत उस पर नजर रखनी है. मु झे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’

‘‘हूं… कभीकभी मु झे भी ऐसा लगता है. जिस तरह से वह स्मिता बिटिया को देखता है मु झे बुरा लगता है. फैक्ट्री में कितने आदमी हैं लेकिन यह बिटिया के आसपास मंडराता रहता है.’’
अगले दिन जब रजत फैक्ट्री से निकला, शामू काका ने गाड़ी उस के गाड़ी के पीछे लगा दी. उस ने गाड़ी मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. शामू काका भी गाड़ी पार्क कर उस के पीछे हो लिए. शामू काका ने अपना हुलिया बदला हुआ था. रजत उन्हें आसानी से पहचान नहीं सकता था.
रजत मौल के फूड कोर्ट में पहुंचा. वहां कोने की टेबल पर एक लड़की उस का इंतजार कर रही थी.
‘‘मिल आए अपनी स्मिता मैडम से?’’ लड़की ने ताना देते हुए कहा.
‘‘यार, तुम भी न. सब अपने और तुम्हारे लिए तो कर रहा हूं. हाथ में आ गई तो वारेन्यारे हो जाएंगे. तुम बस मेरा कमाल देखती जाओ.’’
शामू काका एक टेबल छोड़ कर बैठे थे. लेकिन उन के कान पीछे लगे थे. अब रजत की असलियत सामने थी.
शामू ने सोमा के सामने घर पहुंचते ही रजत का फरेब सामने रख दिया.
सोमा काकी ने भी स्मिता को रजत का कमीनापन बताने में देर नहीं लगाई.
स्मिता को रजत की हरकतों पर पहले ही शक था. शामू काका की बात पर यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था.

अगले ही दिन स्मिता ने मैनेजर विशाल से बात कर के एक प्लान के तहत रजत का फैक्ट्री से हिसाब ऐसे किया कि उसे यह पता नहीं चला कि स्मिता को उस की सचाई पता चल चुकी है.
स्मिता जान चुकी थी कि अब उसे कदमकदम पर फरेब करने वाले,  झूठी हमदर्दी दिखा कर अपनेपन का दिखावा करने वाले और प्यार करने का दावा करने वाले लोग मिलेंगे. उसे हर कदम फूंकफूंक कर उठाना है.

शामू काका और सोमा काकी ने भी यह ठान लिया था कि स्मिता की, इस घर की और बच्चों की हर हाल में रखवाली करेंगे. खून का न सही, दिल का रिश्ता जुड़ा था उन का इन सब से.

रजत की तरह ही स्मिता को काम के सिलसिले में ऐसे लोग मिल जाते थे जिन्हें स्मिता की धनदौलत से बेशक मतलब न था लेकिन उस जैसी सुंदर, स्मार्ट, अकेली औरत को देख कर उसे पाने की उन्होंने कोशिशें कीं कि शायद दांव लग जाए. लेकिन स्मिता ने अपने दिल में सुमित को बैठा रखा था. कोई दूसरा उस में घुस नहीं सकता था.

स्मिता की मम्मी का आएदिन फोन आता और दबी जबान में उन की यही ख्वाहिश होती थी कि बेटी अपनी जिंदगी के बारे में एक बार फिर से सोचे. अभी उम्र ही क्या थी उस की. महज 34 साल की थी. लेकिन स्मिता बात को दूसरी तरफ मोड़ देती थी.

स्मिता के पीछे पड़ने वाले भौंरों की कमी न थी. एक बड़े होलसेल डीलर, जो लाखों का और्डर देते थे, स्मिता से मिलने के बाद 2 करोड़ रुपए के माल खरीदने का और्डर दे गए और कच्चा माल उधार में दिलवा दिया अलग. वे अब हर दूसरेतीसरे दिन आने लगे, तो शामू काका को शक हुआ. उन्होंने बाहर खड़ी डीलर की गाड़ी के ड्राइवर को बुला कर चाय पिलाना शुरू कर दिया. ड्राइवर ने बताया कि साहब की पत्नी कई साल से अलग रह रही है क्योंकि ये इधरउधर मुंह मारते रहते हैं.

एक बार फिर शामू काका ने स्मिता को संकट से निकाला. शामू काका ने कहा था कि बड़े मालिक ने उन्हें 10 साल की उम्र से रखा हुआ है और अब भी उन का अपना कोई नहीं है. वे बचपन में कब अनाथ हो गए थे, उन्हें नहीं मालूम. बस, इतना मालूम है कि उन के गांव के चाचा बड़े मालिक के पास किसी पुराने कर्मचारी की सिफारिश पर छोड़ गए थे.

सोमा काकी अकसर स्मिता को अकेले में बैठी आंसू बहाते देखती थीं. वे भी चाहती थीं कि स्मिता को अपने जीवन की खुशियां मिलें, लेकिन वे क्या कर सकती थीं अपनी इस बिटिया के लिए.

‘‘मम्मी, संडे को मेरी क्लास में चिराग का बर्थडे है. उस के पापा ने पार्टी रखी है. उस ने मु झे भी इन्वाइट किया है,’’ अवि बोला.
‘‘ठीक है, शामू काका तुम्हें ले जाएंगे.’’

संडे को अवि तैयार हो कर शामू काका के साथ चिराग के घर चला गया. उसे कार में बैठा स्मिता जब घर के अंदर आई तो टीवी खोल कर बैठ गई. अचानक साइड टेबल पर नजर गई तो गिफ्ट तो वहीं रखा हुआ था. वैसे तो शामू काका को फोन कर के वापस बुला सकती थी लेकिन काफी देर हो चुकी थी और वह नहीं चाहती कि शामू काका अवि को वहां अकेला छोड़ कर आएं.

स्मिता ने सोचा, क्यों न वह ही दे आए, लौटते हुए बुटीक से अपने कपड़े भी लेती आएगी. कई बार फोन आ चुका था कि उस के सूट सिल कर रेडी हैं.

स्मिता ने फटाफट कपड़े बदले और दूसरी गाड़ी निकाल कर चिराग के घर पहुंच गई. चिराग के घर का पता उस ने शामू काका को लिख कर दिया था, इसलिए उसे याद था.

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बैकुंठ- भाग 1: क्या हुआ था श्यामचरण के साथ

दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, इस से उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो.

‘‘लो ब्लडप्रैशर रहता है न तुम्हारा, व्रत का क्या मतलब,’’ रैमचो भैया ने मालती को समझाया.

चेहरा

20 वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति के उतारचढ़ाव की देन है लेकिन 50 वर्ष की आयु का चहेरा व्यक्ति की अपनी कमाई है.

सरिता बाथरूम में नहाते हुए लगातार श्यामाचरण की कंपकंपाती स्वरलहरी गूंज रही थी. उन की पत्नी मालती उन के कोर्ट जाने की तैयारी में जुटी कभी इधर तो कभी उधर आजा रही थी. श्यामाचरण अपनी दीवानी कचहरी में भगत वकील नाम से मशहूर थे. मालती ने पूजा के बरतन धोपोंछ कर आसन के पास रख दिए, प्रैस किए कपड़े बैड पर रख दिए, टेबल पर जल्दीजल्दी नाश्ता लगा रही थी. मंत्रपाठ खत्म होते ही श्यामाचरण का, ‘देर हो रही है’ का चिल्लाना शुरू हो जाता. मुहूर्त पर ही उन्हें कोर्ट भी निकलना होता. आज 9 बज कर 36 मिनट का मुहूर्त पंडितजी ने बतलाया था. श्यामाचरण जब तक कोर्ट नहीं जाते, घर में तब तक अफरातफरी मची रहती. लौटने पर वे पंडित की बतलाई घड़ी पर ही घर में कदम रखते.

बड़ा बेटा क्षितिज और बहू पल्लवी, बेटी सोनम और छोटा बेटा दक्ष सभी उन की इस पुरानी दकियानूसी आदत से परेशान रहते, पर उन का यह मानना था कि वे ऐसा कर के बैकुंठधाम जाने के लिए अपने सारे दरवाजे खोलते जा

रहे हैं.

यों तो श्यामाचरण चारों धाम की यात्रा भी कर आए थे और आसपास के सारे मंदिरों के दर्शन भी कर चुके थे, फिर भी सारे काम ठीकठाक होते रहें और कहीं कोई अनर्थ न हो जाए, इस आशंका से वे हर कदम फूंकफूंक कर रखते और घर वालों को भी डांटतेडपटते रहते कि वे भी उन के जैसे विधिविधानों का पालन किया करें.

‘‘अम्मा, अब तो हद ही हो गई, आज भी पापाजी की वजह से मेरा पेपर छूटतेछूटते बचा. अब से मैं उन के साथ नहीं जाऊंगा, बड़ी मुश्किल से मुझे परीक्षा में बैठने दिया गया, पिं्रसिपल से माफी मांगनी पड़ी कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा,’’ दक्ष पैंसिलबौक्स बिस्तर पर पटक कर गुस्से में जूते के फीते खोलने लगा और बोलता रहा, ‘‘फिर मुझे राधे महाराज वाले मंदिर ले गए, शुभमुहूर्त के चक्कर में उन्होंने जबरदस्ती 10 मिनट तक मुझे बिठाए रखा कि परीक्षा अच्छी होगी. जब परीक्षा ही नहीं दे पाता तो क्या खाक अच्छी होती. उस राधे महाराज का तो किसी दिन, दोस्तों से घेर कर बैंड बजा दूंगा.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते दक्ष,’’ मालती ने उसे रोका, उसे दक्ष के कहने के ढंग पर हंसी भी आ रही थी. श्यामाचरण के अंधभक्ति आचरण और पंडित राधे महाराज की लोलुप पंडिताई ने, जो थोड़ीबहुत पूजा वह पहले करती थी, उस से भी उसे विमुख कर दिया. लेकिन चूंकि पत्नी थी, इसलिए वह उन का सीधा विरोध नहीं कर पा रही थी. मन तो बच्चों के साथ उस का भी कुछ यही करता इस महाराज के लिए जो बस अपना उल्लू सीधा कर पैसे बटोरे जा रहा है.

सोनाक्षी, क्षितिज और पल्लवी सब अपनीअपनी जगह इन मुहूर्त व कर्मकांड के ढकोसलों से परेशान थे. सोनाक्षी को महाराज के कहने पर अच्छा वर पाने के लिए जबरदस्ती 72 सोमवार के व्रत रखने पड़ रहे थे. पता नहीं कौन सा ग्रहदोष बता कर पूजा व उपवास करवाए जा रहे थे. सोमवार के दिन कालेज में उस की अच्छी खिंचाई होती.

‘अरे भई, सोनाक्षी को पढ़ाई के लिए अब क्यों मेहनत करनी है, इस की लाइफ तो इस के व्रतों को सैट करनी है. पढ़लिख कर भी क्या करना है, बढि़या मुंडा मिलेगा इसे. अपन लोगों का तो कोई चांस ही नहीं,’ सब ठिठोली करते, ठठा कर हंस पड़ते.

बड़ा बेटा क्षितिज भी धार्मिक ढकोसलों से परेशान था. एक दिन उस ने छत की टंकी में गिरी बिल्ली को जब तक निकाला तब तक वह मर ही गई. श्यामाचरण ने सारा घर सिर पर उठा लिया, ‘‘अनर्थ, घोर अनर्थ, बड़ा पाप हो गया. नरक में जाएंगे सब इस के कारण,’’ उन्होंने फौरन राधे महाराज को फोन खड़खड़ा दिया. राधे पंडित को तो लूटने का मौका मिलना चाहिए, वे तुरंत सेवा में हाजिर हो गए.

‘‘मैं यह क्या सुन रहा हूं. यजमान से ऐसा पाप कैसे हो गया, मंदिर में अब कम से कम सवा किलो चांदी की बिल्ली चढ़ानी पड़ेगी. 12 पंडितों को बुला कर 7 दिनों तक लगातार मंत्रोच्चारहवन तथा भोजन कराना पड़ेगा, फिर घर के सभी सदस्य गंगास्नान कर के आएंगे, तभी जा कर शुद्धि हो पाएगी. बैकुंठ धाम जाना है तो यजमान, यह सब करना ही पड़ेगा,’’ राधे महाराज ने पूजाहवन के लिए सामग्री की अपनी लंबी लिस्ट थमा दी. उस में सारे पंडितों को वे कपड़ेलत्ते शामिल करने से भी नहीं चूके थे. क्षितिज को बड़ा क्रोध आ रहा था. एक तो पैसे की बरबादी, उस पर औफिस से जबरदस्ती छुट्टी लेने का चक्कर. औफिस में कारण बताए भी तो क्या. जिस को बताएगा, वह मजाक बनाएगा.

‘‘मैं तो इतनी छुट्टी नहीं ले सकता. आज रविवार है, फिर पूरा एक हफ्ते का चक्कर. हवन के बाद सब के साथ एक दिन भले ही चांदी की बिल्ली मंदिर में चढ़ा कर गंगास्नान कर आऊं, वह भी सवा किलो की नहीं, केवल नाम की, पापाजी की तसल्ली के लिए,’’ क्षितिज खीझ कर बोला.

‘‘पापाजी इस के लिए मानेंगे कैसे? सब की बोलती तो उन के सामने बंद हो जाती है. अम्माजी ही चाहें तो कुछ कर सकती हैं,’’ पल्लवी अपने बेटे किशमिश को साबुन लगाती हुई बोली. 4 साल का शरारती किशमिश श्यामाचरण की नकल करते हुए खुश हो, कूदकूद कर अपने ऊपर पानी डालने लगा.

‘‘तिपतिप, हलहल दंदे…हलहल दंदे,’’ वह उछलकूद मचा रहा था, पल्लवी भी गीली हो गई.

‘‘ठहर जा बदमाश, दादाजी की नकल करता है, अम्माजी देखो, आप ही नहला सकती हो इसे,’’ पल्लवी ने आवाज लगाई.

‘‘अम्माजी, आप ही इस शैतान को नहला सकती हैं और इन के पापा की समस्या भी आप ही सुलझा सकेंगी, देखिए, कल से मुंह लटकाए खड़े हैं,’’ मालती के आने पर पल्लवी मुसकराई और कार्यभार उन्हें सौंप कर अलग

हट गई.

‘‘सीधी सी बात है, पंडित पैसों के लालच में यह सब पाखंड करते हैं. कुछ पैसे उन्हें अलग से थमा दो, कुछ नए उपाय ये झट निकाल लेंगे. न तुम्हें छुट्टी लेनी पड़ेगी, न कुछ. तुम्हारी जगह तुम्हारे रूमाल से भी वे काम चला लेंगे. इतने लालची होते हैं ये पंडित.

मैं सब जानती हूं पर सवा किलो की चांदी की बिल्ली की तो बात पापाजी के मन में बचपन से ही धंसी है, मानेंगे नहीं, दान करेंगे ही वरना उन के लिए बैकुंठ धाम के कपाट बंद नहीं हो जाएंगे?’’ वह हंसी, फिर बोली, ‘‘मैं तो 30 सालों से इन का फुतूर देख रही हूं. मांजी थीं, सो पहले वे कुछ जोर न दे सकीं वरना उस वक्त की मैं संस्कृत में एमए हूं, क्या इतना भी नहीं जानती थी कि ये पंडित क्या और कितना सही मंत्र पढ़ते हैं, अर्थ का अनर्थ और अर्थ भी क्या, देवताओं के काल्पनिक रूप, शक्ति, कार्यों का गुणगान. फिर हमें यह दे दो, वह दे दो. हमारा कल्याण करो. बस, खुद कुछ न करो. खाली ईश्वर से डिमांड. बस, यही सब बकवास. अच्छा हुआ जो संस्कृत पढ़ ली, आंखें खुल गईं मेरी, वरना धर्म से डर कर इन व्यर्थ के ढकोसलों में ही पड़ी रहती,’’ मालती किशमिश को नहला कर उसे तौलिये से पोंछती मुसकरा रही थी.

बैकुंठ- भाग 3: क्या हुआ था श्यामचरण के साथ

श्यामाचरण उठे तो सरगई को वैसे ही पड़ा देख कर बड़बड़ाए थे. खाया नहीं महारानी ने, बेहोश होंगी तो यही होगा, मैं ने ही जबरदस्ती व्रत रखवाया है. भैया तो मुझे छोड़ेंगे नहीं. जब तक यहां थे, मालती की  हिमायत, वकालत करते थे हमेशा. मांबाबूजी और दादी से कई बार बहस होती रहती धर्म संस्कारों, रीतिरिवाजों को ले कर कि आप लोग तो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते. तभी तो एक दिन अपने परिवार को ले कर भाग लिए आस्टे्रलिया, वहीं बस गए और रामचरण से रैमचो बन गए. अपनी धरती, अपने परिवार को छोड़ कर, उन के बारे में सोचते हुए श्यामाचरण नहाधो कर जल्दीजल्दी नित्य पूजा समाप्त करने में जुट गए.

सुबहसुबह खाली सड़क मिलने की

वजह से रैमचो की टैक्सी घंटे से

पहले ही घर पहुंच गई. रैमचो गाड़ी से उतरे, साथ में उन का छोटा बेटा संकल्प उर्फ सैम भी था. मालती ने दरवाजा खोला था.

‘‘अरे भैया, बताया नहीं कि सैम भी साथ है,’’ वह पैर छूने को झुकी.

‘‘नीचे झुक सैम, तेरे सिर तक तो चाची का हाथ भी नहीं जा रहा, कितना लंबा हो गया तू, दाढ़ीमूंछ वाला, चाची के बगैर शादी भी कर डाली. हिंदी समझ आ रही है कि भूल गया. फोर्थ स्टैंडर्ड में था जब तू विदेश गया था.’’ रैमचो की मुसकराते हुए बात सुनती हुई मालती प्यार से उन्हें अंदर ले आई.

‘‘कहां है श्याम, अभी सो ही रहा है?’’ तभी पूजा की घंटी सुनाई दी, ‘‘ओह, तो यह अभी तक बिलकुल वैसा ही है. सुबहशाम डेढ़ घंटे पूजापाठ, जरा भी नहीं बदला,’’ वे सोफे पर आराम से बैठ गए. सैम भी उन के पास ही बैठ कर अचरज से घर में जगहजगह सजे देवीदेवताओं के पोस्टर, कलैंडर देख रहा था.

‘‘स्टें्रज पा, आई रिमैंबर अ लिटिल सैम एज बिफोर,’’ संकल्प बोला.

‘‘वाह भैया, इतने सालों बाद दर्शन दिए,’’ श्यामाचरण पैर छूने को झुके तो रैमचो ने उन्हें बीच में ही रोक लिया, ‘‘इतनी पूजापाठ के बाद आया है, कहांकहां से घूम कर आ रहे इन जूतों को हाथ लगा कर तू अपवित्र नहीं हो जाएगा,’’ कह कर वे मुसकराए.

‘‘बदल जा श्याम, अपना जीवन तो यों ही पूजापाठ में निकाल दिया, अब बच्चों की तो सोच, उन्हें जमाने के साथ बढ़ने दे. इतने सालों बाद भी न घर में कोई चेंज देख रहा हूं न तुझ में,’’ उन्होंने उस के पीले कुरते व पीले टीके की ओर इशारा किया, ‘‘इन सब में दिमाग व समय खपाने से अच्छा है अपने काम में दिमाग लगा और किताबें पढ़, नौलेज बढ़ा. आज की टैक्नोलौजी समझ, सिविल कोर्ट का लौयर है तो हाईकोर्ट का लौयर बनने की सोच. कैसे रहता है तू, मेरा तो दम घुटता है यहां.’’

भतीजे संकल्प के गले लग कर श्यामाचरण नीची निगाहें किए हुए बैठ गए. चुपचाप बड़े भाई की बातें सुनने के अलावा उन के पास चारा न था. संकल्प अंदर सब देखता, याद करता. सब को सोता देख, उठ कर चाची के पास किचन में पहुंच गया और उन के साथ नाश्ता उठा कर बाहर

ले आया.

‘‘अरे, बच्चों को उठा दिया होता. क्षितिज और पल्लवी तो उठ गए होंगे. बहू को इतना तो होश रहना चाहिए कि घर में कोई आया हुआ है, यह क्या तरीका है,’’ पांचों उंगलियों में अंगूठी पहने हाथ को सोफे पर मारा था श्यामाचरण ने.

‘‘और तुम्हारा क्या तरीका है, बेटी या बहू के लिए कोई सभ्य व्यक्ति ऐसे बात करता है?’’ उन्होंने चाय का कप उठाते, श्याम को देखते हुए पूछा. आज बड़े दिनों बाद बडे़ भैया श्याम की क्लास ले रहे थे, मालती मन ही मन मुसकराईर्.

‘‘कोई नहीं, अभी संकल्प ने ही सब को उठा दिया और सब से मिल भी लिया, सभी आ ही रहे हैं, रात को देर में सोए थे. उन को मालूम कहां भैया लोगों के आने का. उठ गए हैं, आते ही होंगे, सब को जाना भी है,’’ मालती ने बताया.

रैमचो को 2 बजे कौन्फ्रैंस में पहुंचना था. सो, सब के साथ मनपसंद नाश्ता करने लगे, ‘‘अब तुम भी आ जाओ, मालती बेटा.’’

‘‘आप लोग नाश्ता कीजिए, भैया, मेरा तो आज करवाचौथ का व्रत है,’’ वह भैया की लाई पेस्ट्री प्लेट में लगा कर ले आई थी.

‘‘लो बीपी रहता है न तुम्हारा, व्रत का क्या मतलब? पहले भी मना कर चुका हूं, जो हालत इस ने तुम्हारी कर रखी है, इस से पहले चली जाओगी.’’ दक्ष, मम्मी के लिए प्लेट ला…श्याम, घबरा मत, तेरी हैल्थ की केयर रखना इस का काम है और वह बखूबी करती है. तू खुद अपना भी खयाल रख और इस का भी. शशि ने तो व्रत कभी नहीं रखा, फिर भी सुहागन मरी न, मैं जिंदा हूं अभी भी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, तू वहीं अटका हुआ है और सब को अटका रखा है. भगवान को मानता है तो कुछ उस पर भी छोड़ दे. अपनी कारगुजारी क्यों करने लगता है.’’

दक्ष प्लेट ले आया तो रैमचो ने खुद

लगा कर प्लेट मालती को थमा

दी. ‘‘जी भैया,’’ उस ने श्याम को देखा जो सिर झुकाए अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप खाए जा रहे थे. भैया को टालने का साहस उस में भी न था, वह खाने लगी.

‘‘पेस्ट्री कैसी लगी बच्चो? श्याम तू तो लेगा नहीं, धर्म भ्रष्ट हो जाएगा तेरा, पर सोनाक्षीपल्लवी तुम लोग तो लो या फिर तुम्हारा भी धर्म…कौन सी पढ़ाई की है. आज के जमाने में. चलो, उठाओ जल्दीजल्दी. इन सब बातों से कुछ नहीं होता. गूगल कैसे यूज करते हो तुम सब, मैडिसन कैसेकैसे बनती हैं, कभी पढ़ा है? कुछ करना है अपने भगवान के लिए तो अच्छे आदमी बनो जो अपने साथ दूसरों का भी भला करें, बिना लौजिक के ढकोसले वाले हिपोक्रेट पाखंडी नहीं. अब जल्दी सब अपनी प्लेट खत्म करो, फिर तुम्हारे गिफ्ट दिखाता हूं,’’ वे मुसकराए.

‘‘मेरे लिए क्या लाए, बड़े पापा,’’ दक्ष ने अपनी प्लेट सब से पहले साफ कर संकल्प से धीरे से पूछा था, तो उस ने भी मुसकरा कर धीरे से कहा, ‘‘सरप्राइज.’’

नाश्ते के बाद रैमचो ने अपना बैग खोला, सब के लिए कोई न कोई गिफ्ट था. ‘‘श्याम इस बार अपना यह पुराना टाइपराइटर मेरे सामने फेंकेगा, लैपटौप तेरे लिए है. अब की बार किसी और को नहीं देगा. दक्ष बेटे के लिए टैबलेट. सोनाक्षी बेटा, इधर आओ, तुम्हारे लिए यह नोटबुक. पल्लवी और मालती के लिए स्मार्टफोन हैं. अब बच गया क्षितिज, तो यह लेटैस्ट म्यूजिकप्लेयर विद वायरलैस हैडफोन फौर यू, माय बौय.’’

‘‘अरे, ग्रेट बड़े पापा, मैं सोच ही रहा था नया लेने की, थैंक्यू.’’

‘‘थैंक्यूवैंक्यू छोड़ो, अब लैपटौप को कैसे इस्तेमाल करना है, यह पापा को सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी है. श्याम, अभी संकल्प तुम्हें सब बता देगा, बैठो उस के साथ, देखो, कितना ईजी है. और हां, अब तुम लोग अपनेअपने काम

पर जाने की तैयारी करो, शाम को

फिर मिलेंगे.’’

सुबह की पूजा जल्दी के मारे अधूरी रह गई तो श्यामाचरण ने राधे महाराज को शुद्धि का उपाय करने के लिए बुलाया. रैमचो ने यह सब सुन लिया था. महाराज का चक्कर अभी भी चल रहा है, अगली जेनरेशन में भी सुपर्स्टिशन का वायरस डालेगा, कुछ करता हूं. उस ने ठान लिया.

10 बजे राधे महाराज आ गए.

‘‘नमस्ते महाराज, पहचाना,’’ रैमचो ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘काहे नहीं, बड़े यजमान, कई वर्षों बाद देख रहा हूं.’’

‘‘यह बताइए कि लोगों को बेवकूफ बना कर कब तक अपना परिवार पालोगे. अपने बच्चों को यही सब सिखाएंगे तो वे औरों की तरह कैसे आगे बढ़ेंगे, पढ़ेंगे? क्या आप नहीं चाहते कि वे बढ़ें?’’  रैमचो ने स्पष्टतौर पर कह दिया.

पंडितजी सकपका गए, ‘‘मतबल?’’

‘‘महाराजजी, मतलब तो सही बोल नहीं रहे. मंत्र कितना सही बोलते होंगे. कुछ मंत्रों के अर्थ मैं मालती बहू से पहले ही जान चुका हूं. आप जानते हैं, जो हम ऐसे कह सकते हैं उस से क्या अलग है मंत्रों में? पुण्य मिलते बैकुंठ जाते आप में से या आप के पूर्वजों में से किसी ने किसी को देखा है या बस, सुना ही सुना है?’’

‘‘नहीं, यजमान, पुरखों से सुनते आ रहे हैं. पूजा, हवन, दोष निवारण की हम तो बस परिपाटी चलाए जा रहे हैं. सच कहूं तो यजमानों के डर और खुशी का लाभ उठाते हैं हम पंडित लोग. बुरा लगता है, भगवान से क्षमा भी मांगते हैं इस के लिए. परिवार का पेट भी तो पालना है, यजमान. हम और कुछ तो जानते नहीं, और ज्यादा पढ़ेलिखे भी नहीं.’’ राधे महाराज यह सब बोलने के बाद पछताने लगे कि गलती से मुंह से सच ?निकल गया.

बैकुंठ- भाग 2: क्या हुआ था श्यामचरण के साथ

पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी. सोच रही थी कि आज की पीढ़ी का होने पर भी अपने धर्म के विरोध में कुछ कहने का इतना साहस उस में नहीं था जितना अम्माजी बेधड़क कह गईं. मैं ने एमबीए किया हुआ है, जौब भी करती हूं पर धर्म का एक डर मेरे अंदर भी कहीं बैठा हुआ है. सोनाक्षी भी कालेज में है. उस ने 72 सोमवार के व्रत केवल पापाजी के डर से नहीं रखे, बल्कि खुद अपने भविष्य के डर से भी, अपने विश्वास से रखे हैं.

‘‘अम्मा, आप ही राधे महाराज से बात कर लीजिए,’’ क्षितिज बोला.

‘‘मैं करूंगी तो उन्हें शर्म आएगी लेने में, उन से उम्र में मैं काफी बड़ी हूं. क्षितिज, तुम ही अपनी तरफ से बात कर लेना, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘ठीक है अम्मा, आज ही शाम को बात कर लूंगा वरना हफ्तेभर की छुट्टी की अरजी दी तो औफिस वाले मुझे सीधा ही बैकुंठ भेज देंगे,’’ कह कर क्षितिज मुसकराया.

एक नहीं, ऐसी अनेक घटनाएं व पूजा आएदिन घर में होती रहतीं, जिन में श्यामाचरण के अनुसार राधे महाराज की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती. राधे महाराज से पहले उन के पिता किशन महाराज, श्यामाचरण के पिता विद्याचरण के जमाने से घर के पुरोहित हुआ करते थे. जरा भी कहीं धर्म के कामों में ऊंचनीच न हो जाए, विवाह, बच्चे का जन्म, अन्नप्राशन, मुंडन कुछ भी हो, वे ही संपन्न करवाते, आशीष देते और थैले भरभर कर दक्षिणा ले जाते.

इधर, राधे महाराज ने शुभमुहूर्त और शुभघड़ी के चक्कर में श्यामाचरण को कुछ ज्यादा ही उलझा लिया था. कारण मालती को साफ पता था, बढ़ते खर्च के साथ बढ़ता उन का लालच, जिसे श्यामाचरण अंधभक्ति में देख नहीं पाते. कभी समझाने का प्रयत्न भी करती तो यही जवाब मिलता, ‘‘तुम तो निरी नास्तिक हो मालती, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी तुम को, मैं कहे दे रहा हूं. पूजापाठ कुछ करना नहीं, न व्रतउपवास, न नियमधरम से मंदिरों में दर्शन करना. घर में जो मुसीबत आती है वह तुम्हारी वजह से. चार अक्षर ज्यादा पढ़लिख गई तो धर्मकर्म को कुछ समझना ही नहीं.

‘‘तुम्हारी देखादेखी बच्चे भी उलटापुलटा सीख गए. घबराओ मत, बैकुंठ कभी नहीं मिलेगा तुम्हें. घर की सेवा, समाजसेवा करने का स्वांग बेकार है. अपने से ईश्वर की सेवा करते मैं ने तुम्हें कभी देखा नहीं, कड़ाहे में तली जाओगी, तब पता चलेगा,’’ कहते हुए आधे दर्जन कलावे वाले हाथ से गुरुवार हुआ तो गुरुवार के पीले कपड़ों में सजेधजे श्यामाचरण, हलदीचंदन का टीका माथे पर सजा लेते. उन के हर दिन का नियम से पालन उन के कपड़ों और टीके के रंग में झलकता.

‘‘नरक भी नहीं मिलेगा, कभी कहते हो कड़ाहे में तली जाऊंगी, कभी बैकुंठ नहीं मिलेगा, फिर पाताल लोेक में जाऊंगी क्या? जहां सीता मैया समा गई थीं. अब मेरे लिए वही बचा रह गया…’’ उस की हंसी छूट जाती. मुंह में आंचल दबा कर वह हंसी रोकने की कोशिश करती. कभीकभी उसे गुस्सा भी आता कि दिमाग है तो तर्क के साथ क्यों नहीं मानते कुछ भी. कौआ कान ले गया, सब दौड़ पडे़, अपने कानों को किसी ने हाथ ही नहीं लगा कर देखना चाहा, वही वाली बात हो गई. अब कुछ तो करना चाहिए कि यह सब बंद हो सके. पर कैसे?

वह सोचने लगी कि क्षितिज का सीडीएस का इंटरव्यू भी तो उन के इसी शुभमुहूर्त के चक्कर में छूट गया था. उस की बरात ले कर ट्रेन से पटना के लिए निकलने वाले थे हम सब, तब भी घर से मुहूर्त के कारण इतनी देर से स्टेशन पहुंचे कि गाड़ी ही छूट गई. किस तरह फिर बस का इंतजाम किया गया था. सब उसी में लदेफंदे हाईस्पीड में समय से पटना पहुंचे थे, पर श्यामजी की तो लीला निराली है, तब भी यही समझ आया कि सही मुहूर्त में चले थे, इसलिए कोई हादसा होने से बच गया. फिर पूजा भी इस के लिए करवाई, कमाल है.

नया केस लेंगे तो पूजा, जीते तो सत्यनारायण कथा, हारे तो दोष निवारण, शांतिपाठ हवन. पता नहीं वह कौन सी आस्था है. या तो सब अपने उस देवता पर छोड़ दो या फिर सपोर्ट ही करना है उसे, तो धार्मिक कर्मकांडों की चमचागीरी से नहीं, बल्कि उसे ध्यान में रख कर अपने प्रयास से कर सकते हो. तो वही क्यों न करो. पर अब कौन समझाए इन्हें कितनी बार तो कह चुकी.

करवाचौथ की पूजा के लिए मेरी जगह वे उत्साहित रहते हैं. मांजी के कारण यह व्रत रखे जा रही हूं. पिछले वर्ष ही तो उन का निधन हो गया, पर श्यामजी को कैसे समझाऊं कि मुझे इस में भी विश्वास नहीं. कह दूं तो बहुत बुरा मान जाएंगे. औरत के व्रत से आदमी की उम्र का क्या संबंध? हां, स्वादिष्ठ, पौष्टिक व संतुलित भोजन खिलाने, साफसफाई रखने और घर को व्यवस्थित व खुशहाल रखने से अवश्य हो सकता है, जिस का मैं जीजान से खयाल रखती हूं. बस, अंधविश्वास में उन का साथ दे कर खुश नहीं कर पाती, न स्वयं खुश हो पाती.

‘‘चलो, कोई तो पूजा करती हो अपने से, साल में एक बार. घर की औरत के पूजाव्रत से पूरे घर को पुण्य मिलता है, सुहागन मरोगी तो सीधा बैकुंठ जाओगी.’’ दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो, इस समझ का मैं क्या करूं? रात की पूजा करवाने के लिए राधे पंडित को खास निमंत्रण भी दे आए होंगे.

सरगई के लिए 3 बजे उठा दिया श्यामाचरण ने.

‘‘खापी लो अच्छी तरह से मालती, पूजा से पहले व्रत भंग नहीं होना चाहिए.’’ वह सोते से अनमनी सी घबरा कर उठ बैठी थी कि क्या हो गया. उस ने देखा श्यामजी उसे जगा कर, फिर चैन से खर्राटे भरने लगे. यह प्यार है या बैकुंठ का डर? पागलों की तरह इतनी सुबह तो मुझ से कभी खाया न गया, भूखा रहना है तो पूरे दिन का खाना मिस करो न.

हिंदुओं का करवा, मुसलमानों का रोजा सब यही कि दो समय का भोजन एकसाथ ही ठूंस लो कि फिर पूजा से पहले न भूख लगेगी न प्यास, यह भी क्या बात हुई अकलमंदी की. नींद तो उचट चुकी थी, वह सोचे जा रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है? श्यामजी की नाक अभी भी बज रही थी, सो, फोन उसी ने उठा लिया.

‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘ओ मालती, मैं रैमचो, तुम्हारा डाक्टर भैया, अभी आस्ट्रेलिया से इंडिया पहुंचा हूं.’’

‘‘नमस्ते भैया, इतने सालों बाद, अचानक,’’ मालती खुशी से बोली, ससुराल में यही जेठ थे जिन से उन के विचार मेल खाते थे.

‘‘हां, कौन्फ्रैंस है यहां, सब से मिलना भी हो जाएगा और सब ठीक हैं न?

1 घंटे में घर पहुंच रहा हूं.’’

‘आज 5 सालों बाद डाक्टर भैया घर आ रहे हैं. अम्मा के निधन पर भी नहीं आ सके थे. भाभी का लास्ट स्टेज का कैंसर ट्रीटमैंट चल रहा था, उसी में वे चल भी बसीं. 3 लड़के ही हैं भैया के, तीनों शादीशुदा, वैल सैटल्ड. कोई चिंता नहीं अब, डाक्टरी और समाजसेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर रखा है उन्होंने. वह बच्चों को प्रेरणा के लिए उन का अकसर उदाहरण देती है,’ यह सब सोचते हुए मालती फटाफट नहाधो कर आई. फिर श्यामजी को उठा कर भैया के आने के बारे में बताया.

‘‘रामचरण भैया, अचानक…’’

‘‘नहीं, रैमचो भैया. मैं उन की पसंद का नाश्ता तैयार करने जा रही हूं, आप भी जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ उस ने हंसते हुए कहा और किचन की ओर बढ़ गई.

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