अनन्या चुपचाप औफिस चली गई. उस की शादी को 6 महीने होने वाले थे. वह देखती कि अर्णव और मम्मीजी टीवी चला कर धार्मिक चैनल देखते और उन में बताए गए ऊटपटांग कर्मकांड करते. ये सब देख कर उसे उन लोगों की बेवकूफी पर हंसी भी आती और गुस्सा भी. उन दोनों का दिन टोनेटोटकों और गंडेताबीजों में बीतता.
एक दिन मम्मीजी ने उसे थोड़ा डपटते हुए एक कागज
दिया, ‘‘ध्यान रखा करो. सोम को सफेद, मंगल को लालनारंगी, बुद्ध को हरे, बृहस्पतिवार को पीले, शुक्रवार को प्रिंटेड, शनिवार को काले, नीले और रविवार को सुनहरे गुलाबी कपड़े पहना करो.’’
अनन्या ने कागज हाथ में ले कर सरसरी निगाह डाली और फिर बोली, ‘‘इस से कुछ नहीं होता.’’
अब उस ने मन ही मन सोचना शुरू कर दिया था कि वह इस घर में जड़ जमाए अंधविश्वास को यहां से निकाल कर ही दम लेगी.
जब अनन्या अर्णव से बात करने की कोशिश की तो वह भी मम्मीजी की भाषा बोलने लगा. नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम जिद क्यों करती हो? मम्मीजी के बताए रंग के कपड़े पहनने में तुम्हें भला क्या परेशानी है?’’
उसे समझ में आ गया कि मर्ज ने मांबेटे दोनों के दिल और दिमाग को दूषित कर रखा है. इन लोगों का ब्रेन वाश करना बहुत आवश्यक है.
अर्णव की उंगलियों में रंगबिरंगे पत्थरों की अंगूठियों की संख्या बढ़ती जा रही थी.
वह देख रही थी कि अब सुबह 5 बजे से ही मम्मीजी की पूजा की घंटी बजने लगी है. घंटों चालीसा पढ़तीं, माला जपतीं. कभी मंगलवार का व्रत तो कभी एकादशी तो कभी शनिवार का व्रत. कभी गाय को रोटी खिलानी है तो कभी ब्राह्मणों को भोजन कराना है, कभी कन्या पूजन… वह मम्मीजी के दिनरात के पूजापाठ और भूखा रहने व व्रतउपवास देखदेख कर परेशान हो गई थी.
अर्णव भी बिना पूजा किए नाश्ता नहीं करता और घंटों लंबी पूजा चलती. अखंड ज्योति 24 घंटे जलती रहती.
मम्मीजी और अर्णव उस पर अपना प्यार तो बहुत लुटाते थे, लेकिन धीरेधीरे उन्होंने अपने अंधविश्वास और कर्मकांड की बेडि़यां उस पर भी डालने का प्रयास शुरू कर दिया, ‘‘अनन्या, गाय को यह चने की दाल और गुड़ खिला कर ही औफिस जाना… तुम से कहा था कि तुम्हें 5 बृहस्पतिवार का व्रत करना है… पंडितजी ने बताया है. इसलिए आज तुम्हारे लिए नाश्ता नहीं बनाया है.’’
‘‘मम्मीजी, मुझ से भूखा नहीं रहा जाता. भूखे रहने पर मुझे ऐसिडिटी हो जाती है. सिरदर्द और उलटियां होने लगती हैं,’’ और फिर उस ने टोस्टर में ब्रैड डाली और बटर लगा कर जल्दीजल्दी खा कर औफिस निकल गई.
अनन्या ने अब मुखर होना शुरू कर दिया था, ‘‘मम्मीजी, इस तरह भूखे रह कर यदि भगवान खुश हो जाएं तो गरीब जिन्हें अन्न का दाना मुहैया नहीं होता है, वे सब से अधिक संपन्न हो जाएं.’’
मम्मीजी का मुंह उतर गया.
जब वह शाम को लौटी तो मांबेटे के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था. उस ने देखा कि पंडितजी को मम्मीजी क्व2-2 हजार के कई नोट दे रही थीं.
अनन्या नाराज हो कर बोली, ‘‘मम्मीजी, ये पंडितजी आप का भला नहीं कर रहे हैं वरन अपना भला कर रहे हैं. यह तो उन का व्यवसाय है. लोगों को अपनी बातों में उलझाना, ग्रहों का डर दिखा कर उन से पैसे वसूलना… यह उन का धंधा है और आप जैसे लोगों को ठग कर इसे चमकाते हैं.’’
‘‘रामराम, कैसी नास्तिक बहू आई है. पूजापाठ के बलबूते ही सब काम होते हैं. माफ करना प्रभू, बेचारी भोली है.’’
शनिवार का दिन था. अनन्या की छुट्टी थी. काले लिबास में एक
तांत्रिक, जो अपने गले में बड़ीबड़ी मोतियों की माला पहने हुए थे, मम्मीजी ने उन्हें बुला कर उन से आशीर्वाद लेने को कहा तो अनन्या ने आंखें तरेर कर अर्णव की ओर देखा. उस ने उस का हाथ पकड़ कर उसे प्रणाम करने को मजबूर कर दिया. उसे अपने सिर पर तांत्रिक के हाथ का स्पर्श बहुत नगवार गुजरा.
अपना क्रोध प्रदर्शित करते हुए वह वहां से अंदर चली गई ताकि वहां से वह उन लोगों का वार्त्तालाप ध्यान से सुन सके.
‘‘माताजी महालक्ष्मी को सिद्ध करने के लिए श्मशान पर जा कर मंत्र सिद्ध करना होगा. उस महापूजा के बाद वहां की भस्म को ताबीज में रख कर पहनने से आप के सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे और आप के आंगन में नन्हा मेहमान भी किलकारियां भरेगा.
‘‘यह पूजा दीवाली की रात 12 बजे की जाएगी. इस पूजा में आप की बहू को ही बैठना होगा, क्योंकि लाल साड़ी में सुहागन के द्वारा पूजा करने से महालक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होंगी.’’
अनन्या कूपमंडूक अर्णव का उत्तर सुनने को उत्सुक थी.
तभी मम्मीजी ने फुसफुसा कर उस तांत्रिक से कहा जिसे वह समझ नहीं पाई. लेकिन आज अर्णव से दोटूक बात करनी होगी.
वह तांत्रिक अपनी मुट्ठी में दक्षिणा के रुपए दबा कर जा चुका था.
आज वह मन ही मन सुलग उठी, ‘‘मम्मीजी, आप यह बताइए कि इस
पूजापाठ, तंत्रमंत्र से यदि महालक्ष्मी प्रसन्न होने वाली हैं, तो सब से पहले इन्हीं तांत्रिक महाशय के घर में धन की वर्षा हो रही होती. बेचारे क्यों घरघर भटकते फिरते.
‘‘मैं जब से आई हूं, देख रही हूं कि अर्णव का ध्यान अपने बिजनैस पर तो है नहीं… सारा दिन इन्हीं कर्मकांडों में लगा रहता है.
‘‘यदि कोई समस्या है तो उसे सुलझाने का प्रयास करिए. इस तरह की पूजापाठ से कुछ नहीं होगा.’’
मम्मीजी आ कर धीरे से बोलीं, ‘‘अनन्या, हम लोग बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं. हमारी दुकान के अकाउंटैंट ने क्व20 लाख का गबन कर लिया. वह हेराफेरी कर के रुपए इधरउधर गायब करता रहा. अर्णव ने ध्यान ही नहीं दिया. अब बैंक ने हमारी लिमिट भी कैंसिल कर दी है. इसलिए हम लोग बहुत परेशानी में हैं.’’
‘‘अर्णव, यह बताइए कि ये पंडित लोग क्या सारे अनुष्ठान मुफ्त में कर देंगे? एक ओर तो आर्थिक संकट बता रहे हैं दूसरी ओर फुजूलखर्ची करते जा रहे हैं. आप लोग फालतू बातों में अपने दिमाग को लगाए हैं.
‘‘आप वकील से मिलें. वह आप को रास्ता बताएगा. आप ने पुलिस में शिकायत दर्ज की?
‘‘आप का किस बैंक में खाता है, मुझे बताएं? मैं बैंक के मैनेजर से बात कर के आप की लिमिट को फिर से करवाने की कोशिश करूंगी.
‘‘लेकिन आप दोनों को प्रौमिस करना होगा कि अब घर में इस तरह के कर्मकांड और अंधविश्वासों से भरी बातें नहीं की जाएंगी.
‘‘यदि आप का पूजापाठ, व्रतउपवास से ठीक होना होता तो रमेश क्यों गबन कर लेता? गबन इसलिए हुआ क्योंकि आप दोनों दिनरात हवन, व्रत, रंगीन कपड़ों, रंगीन पत्थरों में ही मगन रहे और वह आप की लापरवाही का फायदा उठा कर अपना घर भरता रहा, आप को खोखला करता रहा.
‘‘मैं सालभर से आप दोनों के ऊलजुलूल अंधविश्वास भरे कर्मकांडों को देखदेख कर घुटती रही. यदि आप का यही रवैया रहा तो मैं अपने भविष्य के निर्णय के लिए स्वतंत्र हूं.’’
आज पहली बार इस लहजे में इतना बोलने के बाद जहां वे एक ओर हांफ उठी थी वहीं दूसरी ओर आंखों से आंसू भी निकल पड़े थे. फिर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई.
घर में सन्नाटा छाया था. काफी देर बाद मम्मीजी आईं, ‘‘बेटी तुम सही कह रही
हो. हम दोनों की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी थी. रमेश ने गबन करने के बाद अर्णव को मार डालने की भी धमकी दे दी… हम दोनों मांबेटे डर के मारे चुप रहे और इसी पूजापाठ के द्वारा समाधान पाने के लिए इसी पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया.
‘‘इसी संकट से निबटने के लिए तुम्हें बहू बना कर लाए ताकि हर महीने घर खर्च चलता रहे.
‘‘लेकिन अब मैं स्वयं शोरूम में बैठा करूंगी, अर्णव बाहर का काम देखा करेगा.
‘‘अनन्या मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं कि तुम ने हम लोगों को सही राह दिखाई,’’ उन्होंने उस का माथा चूम कर गले से लगा लिया.
अनन्या का मन हलका हो गया था. वह बहुत खुश थी कि अंतत: अंधविश्वास के दलदल में फंसे अपने परिवार को उस ने निकाल लिया.