जिद और जनून ने दिलाया मुकाम: रेणु भाटिया

‘‘मैं ने दिल्ली प्रैस के लिए मौडलिंग की है…’’ जब हरियाणा महिला आयोग की नई अध्यक्षा बनी रेणु भाटिया ने इतना कहा तो मैं खुश हो उठा. कुछकुछ वैसा ही सुकून भी मिला जैसा रेणु भाटिया को अपने गृहराज्य कश्मीर के बारे में सोच और सुन कर मिलता होगा. पर 10वीं क्लास करते हुए ही हरियाणा के फरीदाबाद में ब्याही गई रेणु भाटिया का अब तक का सफर आसान भी नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने अपने बचपन में ही मातापिता को खो दिया था.

फिल्म ‘वक्त’ और वह  हादसा

बात तब की है जब हिंदी की सुपरहिट फिल्म ‘वक्त’ ने खूबसूरत कश्मीर के सिनेमाघरों पर पहले दिन दस्तक दी थी. उस फिल्म में सुनील दत्त ने एक बड़ी गाड़ी चलाई थी, जो रेणु भाटिया के पिता की थी. पूरा परिवार इस बात से खुश था और सिनेमाघर में जा कर अपनी उस कार को बड़ी स्क्रीन पर देखना चाहता था.

ऐसा हुआ भी और जब परिवार फिल्म देख कर घर लौटा तो फिल्म ‘वक्त’ का एक खास सीन असलियत में इस परिवार पर कहर बरपा गया. जैसे फिल्म में जलजला आने पर बलराज साहनी का हंसताखेलता परिवार बिखर जाता है, कुछ वैसा ही रेणु भाटिया के घर पर भी हुआ. घर की छत गिरी और उन के मातापिता उस टूटे आशियाने में घायल हो कर हमेशा के लिए खामोश हो गए.

उस समय रेणु भटिया तीसरी क्लास में पढ़ती थीं. इस हादसे के बाद उन का लालनपालन ताऊजी ने किया और 10वीं क्लास का इम्तिहान देतेदेते उन की शादी फरीदाबाद के ओमप्रकाश भाटिया से हो गई. पर रेणु भाटिया की सोच थी कि किसी महिला का शादी कर लेना और फिर बच्चे पैदा करना ही मकसद नहीं होना चाहिए. वे अपना एक अलग मुकाम बनाना चाहती थीं, जिस में उन के पति और सास ने भरपूर सहयोग दिया खासकर उन की सास शांति देवी ने.

दिल्ली प्रैस, दूरदर्शन और मौडलिंग

रेणु भाटिया ने बताया, ‘‘एक पत्रकार के जरीए मुझे दिल्ली प्रैस के बारे में पता चला और वहां बतौर मौडल मेरे कुछ फोटो खींचे गए, जिन्हें दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं में इस्तेमाल किया गया. सच कहूं तो उस से पहले मुझे पता ही नहीं था कि मौडलिंग किस बला का नाम है.

‘‘इस के बाद मैं ने शौकिया मौडलिंग शुरू कर दी, पर इसे कैरियर नहीं बनाया. हां, मैं बचपन में जब दूरदर्शन देखती थी, तो न्यूज रीडर सलमा सुलतान की बहुत बड़ी फैन थी. मैं भी उन की तरह न्यूज रीडर बनना चाहती थी. पर ऐसा करने के लिए ग्रैजुएट होना जरूरी था. जब घर पर इस बारे में चर्चा की तो मेरे पति ने कहा कि दिक्कत क्या है, तुम आगे पढ़ाई करो.

‘‘फिर तो मुझ में जोश जाग गया और आगे की पढ़ाई मेरठ से पूरी की. इस के बाद मैं दूरदर्शन गई जहां सलमा सुलतानजी के अलावा कुछ और लोगों ने मेरा इंटरव्यू लिया, पर मैं रिजैक्ट हो गई, क्योंकि टैलीविजन के लिहाज से मैं खूबसूरत नहीं थी. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा 6 महीने बाद इंटरव्यू दिया और सलैक्ट हो गई. उस समय कोई और चैनल नहीं था, तो मैं मशहूर भी हो गई थी. तब मैं ने हरियाणा सरकार के लिए 30-40 डौक्यूमैंटरी फिल्में भी बनाई थीं.’’

राजनीति और बेनजीर भुट्टो

1994 में भारतीय जनता पार्टी ने रेणु भाटिया से संपर्क किया और नए बन रहे फरीदाबाद नगर निगम का चुनाव लड़ने का औफर दिया.

इस सिलसिले में रेणु भाटिया ने बताया, ‘‘चूंकि मैं उस समय मीडिया जगत में काफी मशहूर हो गई थी, तो मुझे लगा कि वह साड़ी बांधना, चूड़ी पहनना, बिंदी लगाना मेरे बस की बात नहीं है, तो मैं ने उस समय चुनाव नहीं लड़ा.

‘‘मगर जब 2000 में दोबारा चुनाव आया, तो मैं ने चुनाव लड़ने का मन बनाया और सब से ज्यादा वोटों से जीती. फिर 2005 में केवल एक महिला मेरे खिलाफ खड़ी हुई थीं, जिन की जमानत जब्त हुई थी. मैं फरीदाबाद की डिप्टी मेयर भी बनी थी.’’

रेणु भाटिया ने ‘भारतीय बेनजीर भुट्टो’ होने का गौरव भी हासिल किया है. इस रोचक किस्से के बारे में उन्होंने बताया, ‘‘यह वह समय था जब दूरदर्शन पर ‘तमस’ आया था और उसे ले कर कुछ राजनीतिक कंट्रोवर्सी भी हो गई थी. उसी समय किसी प्रोड्यूसर ने मेरे साथ एक फिल्म बनानी शुरू की थी, जिस में राजीव गांधी और बेनजीर भुट्टो का पुराना रिश्ता दिखाया जाना था. वे शायद कुछ ऐसा जाहिर करना चाहते थे कि अगर उन दोनों का रिश्ता हो जाता तो भारत के हालात कुछ और होते.

‘‘पर वह प्रोजैक्ट पूरा नहीं हुआ और इस बाद को शायद 2 दशक बीत गए. फिर अचानक मुझे एक दिन ‘अमर उजाला’ से फोन आया और कहा कि वे लोग अभी मुझ से मिलना चाहते हैं. उस समय मुझे बुखार था और मैं ने उन्हें अगले दिन आने को कहा. पर वे बोले कि आप पहले टीवी देखिए. मैं ने टीवी खोला तो खबरों में बेनजीर भुट्टो की हत्या का मामला दिखाया जा रहा था. तब अमर उजाला वालों ने कहा कि पाकिस्तान की बेनजीर की हत्या हुई है, हिंदुस्तान में एक बेनजीर अब भी है.

‘‘फिर वे बोले लोग कि हम आप के घर आ रहे हैं, आप सफेद सूट में बेनजीर के लुक में तैयार रहिए. हम आप का फोटो लेना चाहते हैं. अगले दिन अमर उजाला के कवर पेज की हैडलाइन थी कि एक बेनजीर हिंदुस्तान में भी है.

‘‘3-4 दिन के बाद स्टार न्यूज वालों ने मुझे ले कर बेनजीर भुट्टो पर 40 मिनट की फिल्म बनाने की पेशकश की और उस की शूटिंग भी वे पाकिस्तान के लाहौर में करना चाहते थे, पर कागजी कार्यवाही में किसी ने हमें चेताया कि असली बेनजीर मार दी गईं, नकली भी मार देंगे, तो हम ने अरावली की पहाडि़यों के आसपास ही सारी शूटिंग पूरी की.’’

महिला आयोग और बड़ी जिम्मेदारी

अब जब रेणु भाटिया हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्षा बनी हैं और उन्हें नई जिम्मेदारी दी गई है, तो उन से उम्मीदें भी काफी बढ़ गई हैं.

जब देश में महिला पुलिस थाने हैं, तो महिला आयोग जैसी संस्था की जरूरत ही क्या है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि जब हम सब लोग अपने फर्ज को समझेंगे तो हक हमें अपनेआप मिलेंगे. सच कहूं तो मैं निजी तौर पर महिला आरक्षण के खिलाफ हूं क्योंकि जो महिला खुद में सक्षम है उसे आरक्षण की कोई जरूरत नहीं है. महिला आयोग की जरूरत यहीं पर खास हो जाती है क्योंकि वह महिलाओं को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करता है.

‘‘अमूमन आम लोगों के दिमाग में थाने का एक हौआ बना हुआ है कि वहां तो ‘एसएचओ साहब’ मिलेंगे जिस की कोई समस्या होती है, वह पहले से डरा होता है. लेकिन अगर आप को कानून की थोड़ीबहुत जानकारी है, आप बेखौफ हैं तो मुझे लगता है कि आप अपनी बात आसानी से कह सकते हैं.

‘‘महिला आयोग महिलाओं को मजबूत बनाने की प्रेरणा देता है और चूंकि महिला आयोग में महिला ही आप की फरियाद सुनती है तो थाने में किसी मर्द के सामने अपनी बात कहने से ज्यादा महिला आयोग को बताना आसान होता है.

‘‘वैसे महिला थाने भी इसी बात को ध्यान में रख कर खोले गए हैं, जहां पीडि़ताएं अपनी बात रखती भी हैं. महिला आयोग इन से सुप्रीम होता है जहां फैसले भी कराए जाते हैं और वह थानों पर निगरानी रखने का काम भी करता है.

‘‘जब आप किसी पीडि़ता को इंसाफ दिलवाते हैं, तो बहुत संतुष्टि मिलती है. हम ने दूसरे राज्यों से जबरदस्ती लाई गई महिलाओं को छुड़ा कर उन्हें वापस घर भेजा तो बड़ा सुकून मिला. एनआरआई बेटियों को इंसाफ दिलाने में बड़ी राहत मिलती है क्योंकि उन के केस बड़े पेचीदा होते हैं.

‘‘यहां मैं एक और बात कहूंगी कि महिलाओं को अपनी बात दमदार तरीके से रखनी चाहिए, फिर चाहे वे कोई भी भाषा बोलती हों. मेरा मानना है कि भले ही आप किसी वंचित परिवार से हैं और हिंदी मीडियम से पढ़ी हैं तो भी अपने को कमतर न समझें.

‘‘हाल ही में मैं ने पंजाब यूनिवर्सिटी में कानून का एक सैशन अटैंड किया था, जिस में पंजाब की एक महिला वकील ने अपनी दलील पंजाबी और हिंदी भाषा में पेश की थी और सब से बेहतर तरीके से पेश की थी.

‘‘याद रखिए किसी महिला की तरक्की में सब से बड़ी बाधा उस की खुद की कमजोरी होती है. उसे अपने पर आए कष्टों को लांघना सीखना होगा. महिला आयोग इसी बात की सीख महिलाओं को देता है. हम स्कूलकालेज में वर्कशौप चलाते हैं, लड़कियों को साइबर क्राइम के प्रति जागरूक करते हैं.

‘‘आखिर में एक बात जरूर कहूंगी कि मैं अपने युवा समय में एथलीट रही हूं तो लड़कियों और महिलाओं से भी यही उम्मीद करना चाहूंगी कि वे किसी खिलाड़ी की तरह कसरत और खेल को अपने जीवन में थोड़ी जगह जरूर दें क्योंकि ये दोनों हमें जिंदगी की दूसरी जिम्मेदारियों से तालमेल करना सिखाते हैं.’’

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ऐसे बनाएं टीनएजर्स को जिम्मेदार

इकलौती संतान 13 वर्षीय नीलिमा जिस भी चीज की मांग करती वह मातापिता को देनी पड़ती थी वरना नीलिमा पहले तो आसपास की चीजों को पटकने लगती थी और फिर बेहोश होने लगती. परेशान हो कर मातापिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर को पता नहीं चल पा रहा था कि वह बेहोश क्यों होती है, क्योंकि सारी जांचें करने पर भी कुछ नहीं निकला. फिर कुछ लोगों की सलाह पर मातापिता नीलिमा को मुंबई के 7 हिल्स हौस्पिटल के मनोरोग चिकित्सक डा. श्याम मिथिया के पास ले गए. पहले दिन तो उन्हें भी नीलिमा के बेहोश होने का कारण पता नहीं चल पाया, पर 1-2 दिन बाद पता चला कि उसे अगर किसी चीज के लिए मना करो तो वह बेहोश हो जाती है. लेकिन वह वास्तव में बेहोश नहीं होती, बल्कि घर वालों को डराने के लिए बेहोश होने का ड्रामा करती है ताकि उसे अपनी मनचाही चीज मिल जाए.

तब डाक्टर ने नीलिमा को बिहैवियर थेरैपी से 2 महीनों में ठीक किया. फिर मातापिता को सख्त हिदायत दी कि आइंदा यह बेहोश होने लगे तो कतई परवाह न करना. तब जा कर उस की यह आदत छूटी. 14 साल के उमेश को अगर कुछ करने को कहा जाता मसलन बिजली का बिल जमा करने, बाजार से कुछ लाने को तो वह कोई न कोई बहना बना देता. ऐसी समस्या करीबकरीब हर घर में देखने को मिल जाएगी. दरअसल, आज के युवा कोई जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वे अपने मातापिता की, औफिस की, समाज की जिम्मेदारियों आदि से खुद को दूर कर लेते हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि बचपन से ही उन में जिम्मेदारियां उठाने की आदत डाली जाए. डा. श्याम कहते हैं कि बच्चे को थोड़ा बड़े होते ही जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर देनी चाहिए. आजकल एकल परिवार और कम बच्चे होने की वजह से मातापिता अपने बच्चों को जरूरत से अधिक पैंपर करते हैं. जैसेकि अगर बच्चा कुछ मांगे, रोए तो मातापिता दुखी हो कर भी उस चीज को ला देते हैं.

4-5 साल की उम्र स बच्चा अपने आसपास की चीजों को औब्जर्व करना शुरू कर देता है. जैसे कि मातापिता के बात करने के तरीके को, उन के हावभाव आदि को. इसलिए बच्चे के इस उम्र में आने से पहले मातापिता अपनी आदतें सुधारें ताकि बच्चे पर उन का गलत असर न पड़े. जरूरत से अधिक प्यार और दुलार भी बच्चे को बिगाड़ता है.

पेश हैं, इस संबंध में कुछ टिप्स:

बच्चा जब स्कूल जाने लगता है, तो उसे जिम्मेदारियों का एहसास वहीं से करवाएं. जैसे अपनी कौपीकिताबों को ठीक से रखना, उन्हें गंदा न करना, क्लास में पढ़ाई गई चीजों को ठीक से नोट करना आदि. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे अपने पास बैठा कर समझाएं.

जब बच्चा टीनएज में आता है तो उस में शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक बदलाव भी शुरू हो जाते हैं. उस के मन में कई जिज्ञासाएं भी उत्पन्न होती हैं. उस समय मातापिता को उस के साथ बैठ कर उस के प्रश्नों के तार्किक रूप से उत्तर देने चाहिए. ध्यान रहे कि उस के किसी भी प्रश्न का उत्तर समझदारी से दें, हवा में न उड़ा दें, हंसे नहीं, मजाक न बनाएं, क्योंकि इस उम्र में बच्चे में ईगो आना शुरू हो जाता है. अगर आप ने उस के ईगो को हर्ट किया तो वह अपनी बात आप से शेयर करना पसंद नहीं करेगा. दोस्ती के साथ उसे उस की सीमाएं भी बताते जाएं. इस उम्र में बच्चे को अपनी यूनिफौर्म, शूज, किताबें आदि संभालने की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए.

डा. श्याम कहते हैं कि बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए मातापिता को भी जिम्मेदार होना पड़ता है. कुछ टीनएज बच्चे कई बार बुरी संगत में पड़ कर नशा करने लगते हैं. अत: मातापिता को हमेशा बच्चे के हावभाव नोट करते रहना चाहिए ताकि कुछ गलत होने पर समय रहते उसे सुधारा जा सके. यह सही है कि आज के टीनएजर्स का जिम्मेदारी से परिचय कराना आसान नहीं होता. हर बात के पीछे उन के तर्क हाजिर होते हैं, लेकिन आप का प्रयास ही उन्हें बेहतर नागरिक बनने में मदद करता है. इस की शुरुआत मातापिता को बच्चे के बचपन से ही कर देनी चाहिए, ताकि जिम्मेदारियां उठाना उन की आदत बन जाए. जरूरत पड़े तो इमोशन का भी सहारा लें. अगर फिर भी आप सफल नहीं हो पाते हैं, तो ऐक्सपर्ट की राय लें.

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Back to Office : ऐसे बैठाएं तालमेल

कोरोना वायरस के कारण औफिस क्या बंद हुए औफिस फ्रैंड्स की आपसी बातचीत ही कम हो गई. अब सिर्फ काम के सिलसिले में ही बात होती थी. औफिस में जो ग्रुप मस्ती होती थी वह अब न तो जूम मीटिंग में थी और न ही मैसेज में वह बात थी. ऐसा एहसास हो रहा था जैसे हम अपनों से काफी दूर हो गए थे. घर से काम होने के कारण वर्कलोड भी काफी बढ़ गया था, जिस कारण औफिस फ्रैंड्स से दिन में कई बार बात जरूर होती थी, लेकिन वह बात सिर्फ काम तक ही सीमित रहती थी. न घूमनाफिरना और न वह मस्ती, हम सभी उसे मिस कर रहे थे. मन ही मन यही सोच रहे थे कि काश फिर से औफिस खुल जाएं ताकि हम वही पुरानी मस्ती फिर से कर सकें.

आखिर फिर से धीरेधीरे जीवन पटरी पर आने लगा और औफिस भी खुलने लगे. एक दिन जूम मीटिंग के जरीए बौस से पता चला कि अगले हफ्ते से औफिस खुल रहे हैं. यह खबर सुन कर ऐसा लगा कि फिर से हमें खुली हवा में सांस लेना का मौका मिल रहा है.

काम के साथसाथ हम अब अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ मस्ती भरे पल भी बिता पाएंगे, जोकि वर्क फ्रौम होम में संभव नहीं था. ऐसे में जब फिर लौट रहे हैं औफिस के पुराने दिन तो आपस में ट्यूनिंग बैठाने के लिए फिर से दोहराएं कुछ चीजों को ताकि कुछ सालों की दूरी कुछ ही समय में फिर दूर हो सके. तो जानिए इस के लिए क्या करें:

एकदूसरे को गिफ्ट्स दें

गिफ्ट लेना किसे पसंद नहीं होता है. ऐसे में जब आप इतने लंबे समय के बाद औफिस जा रहे हैं तो मन में ऐक्साइटमैंट तो बहुत होगी ही क्योंकि इतने दिनों बाद औफिस को देखेंगे, औफिस फ्रैंड्स से मिलेंगे, उन के साथ बातें करेंगे. ऐसे में जब आप उन से मिलें तो उन्हें यह कह कर गिफ्ट दें कि यह तेरे बर्थडे का गिफ्ट है, जो मैं तुम्हें दूर रहने के कारण दे नहीं पाई थी.

इस से आप की औफिस दोस्त को एहसास होगा कि अभी भी आप को उस का खयाल है. इस से फिर दोबारा से ट्यूनिंग बैठाने में आसानी होगी या फिर आप उस की पसंद की चीज गिफ्ट में दे कर पुराने दिनों की याद को फिर से ताजा कर सकते हैं.

टी टाइम में करें मस्ती

वर्क फ्रौम होम के दौरान जिस टी टाइम को आप मिस कर रहे थे, अब उसे फिर से जी लेने का समय आ गया है क्योंकि औफिस जो खुल गया है. रामू चाय की दुकान पर औफिस वर्क से ले कर पर्सनल टौपिक्स जो शेयर होते थे. ऐसे में अब जब आप औफिस लौट रहे हैं, तो टी टाइम को ऐंजौय करना न भूलें. यह सोच कर टी टाइम को न छोड़ें कि घर में तो हम ने टी टाइम लेना ही छोड़ दिया था.

जान लें कि टी टाइम से न सिर्फ आप खुद को फ्रैश फील करेंगे बल्कि इस के बहाने औफिस दोस्तों के साथ फिर खुल कर बातचीत होगी, हंसीमजाक होगा, पुराने दिन फिर लौट आएंगे और यह टी टाइम आपस में बौंडिंग को स्ट्रौंग बनाने में मदद करेगा.

लंच टाइम में लंच भी मस्ती भी

घर में तो जब मन करा तब लंच कर लिया और यह लंच भी काम के साथसाथ एक टेबल पर या बैड पर अकेले बैठ कर कर लिया. जो न तो खाने का आनंद लेने दे रहा था और न ही इस ब्रेक में हम मस्ती कर पा रहे थे. अगर थोड़ा रिलैक्स करने का सोचा भी तो भी हाथ में फोन पर या तो फेसबुक देख रहे होते थे या फिर व्हाट्सऐप अथवा कुछ और खंगालने में लगे रहते थे जो औफिस के लंच टाइम से बिलकुल अलग था, जिसे हम घर में मिस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.

लेकिन अब जब आप का औफिस खुल गया है तो लंच टाइम में पहले की तरह दोस्तों के साथ कुछ ही मिनटों में लंच कर के मस्ती के लिए कभी पास की मार्केट में निकल जाओ या फिर लंच ब्रेक में मस्ती भरे पल स्पैंड करो, पुरानी यादों को बातों से ताजा करो. इस मस्ती से आप फिर से पहले की तरह एकदूसरे से जुड़ पाएंगे.

औफिस के बाद आउटिंग

पहले जब आप का औफिस खत्म हो जाता था और उस के बाद आप कभी औफिस के दोस्तों के साथ खाने के लिए कभी पास की लोकल मार्केट या फिर शौपिंग करने चले जाते थे. याद है न आप को वे दिन. लेकिन बीच में वर्क फ्रौम होम के कारण इस सब पर ब्रेक सा लग गया था.

लेकिन अब जब दोबारा औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो औफिस वर्क के साथसाथ औफिस के बाद आउटिंग या फिर मस्ती जरूर करें. इस से एक तो औफिस के स्ट्रैस से छुटकारा मिलेगा, दूसरा आप अपने औफिस के फ्रैंड्स के साथ दिल खोल कर मस्ती भी कर पाएंगे.

बीचबीच में गौसिप

घर से जब हम काम कर रहे थे तो न तो काम का वह मजा आ रहा था क्योंकि बीचबीच में ऐंटरटेन करने वाले औफिस के दोस्त जो नहीं थे. साथ में बोरियत अलग थी. ऐसे में बैक टू औफिस आप को इस बोरियत से छुटकारा दिलाएगा क्योंकि अब काम के साथसाथ गौसिप, मस्ती, एकदूसरे की टांगखिंचाई जो होगी.

इसलिए खुद को रिफ्रैश करने के लिए काम के बीच में छोटेछोटे ब्रैक जरूर लें ताकि इस से काम के न्यू आइडियाज मिलने के साथसाथ आप थोड़ीथोड़ी देर में खुद को तरोताजा कर सकें क्योंकि सिर्फ और सिर्फ काम करते रहने से बोरियत होने के साथसाथ काम से इंटरैस्ट भी हटता है.

चटपटी बातों के लिए भी समय

वर्क फ्रौम होम जितना शुरू में अच्छा लग रहा था, उतना बाद में उस से ऊबने लगे. ऐसे में बैक टु औफिस इस बोरियत से तो आप को बाहर निकालेगा ही, साथ ही आप को औफिस के दोस्तों के साथ चटपटी बातों के लिए भी समय मिल जाएगा जैसे यार प्रिया छोटी ड्रैस में कितनी हौट लग रही है, देखो रोहन नेहा को इंप्रैस करने के लिए उस के आगेपीछे ही घूमता रहता है.

लग रहा है कि इस बार स्नेहा टारगेट को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चली जाएगी, वगैरावगैरा. ऐसी बातें भले ही हमें शोभा नहीं देती हैं, लेकिन ऐसी बातें कर के मजा बहुत आता है.

रोमांस का भी मिलेगा मौका

अरे घर में बैठ कर काम करने से हम औफिस में रोमांस को काफी मिस करते थे. अब जब किसी को देख या मिलजुल ही नहीं रहे थे तो किसी पर क्रश होना तो बहुत दूर की बात थी. ऐसे में अब जब औफिस दोबारा से खुल गए हैं तो काम, मस्ती के साथसाथ रोमांस का भी फुल मजा ले सकेंगे जो आप में नई ऊर्जा का संचार करने का काम करेगा. आप जिसे पसंद कर रहे हैं उसे देख कर काम करने का मजा ही अलग होगा. भले ही यह मस्ती के लिए हो, लेकिन आप को ऐसा कर के खुशी बहुत मिलेगी.

नए लोगों को जानने का मौका

इस दौरान बहुत से लोगों ने औफिस छोड़ा होगा व उन के बदले बहुत से नए लोगों ने औफिस जौइन किया होगा, लेकिन वर्क फ्रौम होम के कारण आप की उन नए लोगों से बौंडिंग उतनी स्ट्रौंग नहीं बन पाई होगी, जितनी दूसरे लोगों से. ऐसे में बैक टू औफिस में आप को नए लोगों को जानने, उन्हें सम झने, उन से कुछ नया सीखने का भी मौका मिलेगा, साथ ही आप भी उन्हें काम के बेहतर टिप्स दे पाएंगे जो आप लोगों को एकदूसरे के करीब लाने का काम करेगा.

मोटिवेट करें

भले ही वर्क फ्रौम होम के कारण आप सभी काफी समय तक एकदूसरे से दूर रहे हैं, लेकिन अब जब दोबारा से औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो एकदूसरे को पहले की तरह मोटिवेट करना न भूलें. उन्हें काम में हैल्प भी करें, उन्हें गुड वर्क के लिए मोटिवेट भी करें. इस से आप सब के बीच दोबारा से स्ट्रौंग बौंडिंग बनेगी. यह आप के स्ट्रैस को भी कम करने का काम करेगा क्योंकि जब आप किसी को मोटिवेट करेंगे तो वह भी आप को प्रोत्साहित किए बिना नहीं रहेगा, जो आप की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में मददगार साबित होगा. इस तरह आप फिर से बैक टु औफिस में ट्यूनिंग बैठा सकते हैं.

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Bigg Boss OTT फेम मिलिंद गाबा ने की गर्लफ्रैंड से सगाई, फोटोज वायरल

करण जौहर के रियलिटी शो ‘बिग बॉस ओटीटी’ कंटेस्टेंट  रह चुके सिंगर मिलिंद गाबा (Millind Gaba) ने हाल ही में अपनी गर्लफ्रेंड प्रिया बेनिवाल (Pria Beniwal) के साथ सगाई की है, जिसकी वीडियो और फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. वहीं खबरे हैं कि दोनों इसी महीने की 16 तारीख को शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. शादी से पहले आइए आपको दिखाते हैं गैंड सगाई की वायरल फोटोज और वीडियो…

सगाई में शामिल हुए कई सेलेब्स

 

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हाल ही में दिल्ली में मिलिंद गाबा और उनकी मंगेतर की इंगेजमेंट सेरेमनी हुई थी, जिसमें पंजाबी इंडस्ट्री के अलावा कई बड़े सितारे देखने को मिले हैं. वहीं इन सेलेब्स की लिस्ट में सपना चौधरी (Sapna Choudhary), सुयश राय, प्रिंस नरुला (Prince Narula) से लेकर गुरु रंधावा जैसे सितारों का नाम शामिल है.

 

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डांस करते नजर आए सेलेब्स

 

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मिलिंद गाबा और प्रिया बेनिवाल की सगाई में सेलेब्स जमकर डांस और गाना गाते नजर आएगा. दरअसल, सोशलमीडिया में वायरल वीडियो में मिलिंद गाबा ‘माय नेम इज लखन’ गाने पर दोस्तों के साथ डांस करते नजर आए तो वहीं मंगेत्तर प्रिया भी समा बांधती नजर आईं. इसके अलावा सोशलमीडिया पर मिलिंद गाबा ने अपनी सगाई की फोटोज भी फैंस के साथ शेयर की हैं, जिसमें वह मंगेत्तर प्रिया संग रोमांटक पोज देते हुए नजर आ रहे हैं. ब्लैक कलर के कोट और पैंट में जहां मिलिंद गाबा डैशिंग लग रहे हैं तो वहीं क्रीम कलर के हैवी लहंगे में प्रिया बेनिवाल बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 

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बता दें, मिलिंद गाबा पंजाबी इंडस्ट्री और बौलीवुड के जाने माने सिंगर हैं. वहीं वह करण जौहर के बिग बौस ओटीटी में नजर आ चुके हैं. हालांकि उनके अचानक शो से एलिमनेट होने के चलते करण जौहर भी काफी ट्रोलिंग का शिकार हुए थे. इसके अलावा शो में ही वह अपनी गर्लफ्रेंड संग रिश्ते और शादी के बारे में भी जिक्र कर चुके हैं.

 

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सई से दोबारा शादी करेगा विराट! पाखी को लगेगा झटका

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein) की कहानी इन दिनों दिलचस्प मोड़ लेती नजर आ रही है. जहां सई  (Aishwarya Sharma) और विराट (Neil Bhatt) के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं तो वहीं पाखी और सम्राट का रिश्ता बिगड़ता नजर आ रहा है. वहीं सीरियल में राजीव की एंट्री के बाद सीरियल की कहानी में बदलाव देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगी सीरियल की आगे की कहानी…

विराट को पता चला सच

 

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अब तक आपने देखा कि जहां शिवानी, राजीव को माफ करने का फैसला करती है तो वहीं सई दोनों की शादी कराने की कोशिश करती है. लेकिन विराट उसे जेल पहुचाने का प्लान बनाता है. हालांकि राजीव के मनाने पर विराट मान जाता है और सई का साथ देते हुए नजर आता है. इसी के चलते दोनों शिवानी और राजीव की शादी के बारे में चौह्वाण परिवार को बताते हुए नजर आने वाले हैं.

विराट से दोबारा शादी करेगी सई

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि राजीव और शिवानी की दोबारा शादी के चलते विराट भंडारे का आयोजन करेगा. जहां वह पूरे परिवार को बुलाएगा ताकि शादी में पूरा परिवार हिस्सा ले, इसी के साथ राजीव भी सई और विराट को एक करने की कोशिश करेगा और दोनों की दोबारा शादी करवाता हुआ नजर आएगा. हालांकि सई और विराट की शादी से चौह्वाण परिवार को झटका लगेगा.

सई से सवाल पूछेगा विराट

इसके अलावा आप देखेंगे कि सई, विराट को उनकी शादी के कपड़े दिखाएगी, जिसे देखकर विराट निराश हो जाएगा और पूछेगा कि क्या वह फिर से उनकी शादी की प्लानिंग कर रही है. लेकिन सई कहेगी कि वह उनके जैसे 2 टूटे हुए दिलों को फिर से मिलाने और उनकी शादी कराने में विराट की मदद चाहती है, जिसे सुनकर विराट मुस्कुराएगा.

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जरूरत देश को सुधारने की है

जब भी कोई भारतीय मूल का जब पश्चिमी देशों में किसी ऊंची पोस्ट पर पहुंचता है, हमारा मीडिया जोरशोर से नगाड़ बजाता है मानो भारत ने कोई कमाल कर दिया सपूत पैदा कर के. असल में विदेशों में भारतीय मूल के लोगों को भारत से कोई खास प्रेम नहीं होता. वे भारतीय खाना खाते हों, कभीकभार भारतीय पोशाक पहन लेते हों, कोई भारतीय त्यौहार मना लेते हों वर्ना इन का प्रेम तो अपने नए देश के प्रति ही रहता है और गंदे, गर्म, बदबूदार, गरीब देश से उन का प्यार सिर्फ तीर्थों से रहता है. यह जरूर मानने वाली बात है कि भारतीय नेता तो नहीं पर धर्म बेचने वाले लगातार इन के संपर्क में रहते हैं और पौराणिक विधि से दान दक्षिणा झटक ले आते हैं.

ब्रिटेन के वित्तमंत्री रिथी सुचक की चर्चा होती रहती है पर उस का प्रेम कहां है यह उस का 1 लाख पौंड विचस्टर कालेज को दान देने से साफ है जहां वह पढ़ा था. रिथी के मातापिता ने उसे अमीरों के स्कूलों में भेजा था जहां अब फीस लगभग 50 लाख रुपए सालाना है.

यह क्या जताता है. यही कि इन भारतीय मूल के लोगों को अपनी जन्मभूमि से कोई प्रेम नहीं है. वे इंग्लैंड में पैदा हुए, वहीं पले और वहीं की सोच है. स्किन कलर से कोई फर्क नहीं पड़ता. धर्म का असर भी सिर्फ रिचुअल पूरे करने में होता है क्योंकि गोरे उन्हें खुशीखुशी ईसाई भी नहीं बनाते. हिंदू कट्टरों की तरह ईसाई कट्टरों की भी कमी नहीं है क्योंकि हिंदू मंदिरों की तरह ईसाई चर्चों के पास भी अथाह पैसा है और धर्म के नाम पर पैसा वसूलना एक आसान काम है. भगवा कपड़े पहन कर मनमाने काम कर के आलीशान मकानों में रहना भारत में भी संभम है, ब्रिटेन में भी, अमेरिका में भी. रिथी का इन अंधविश्वासों का कितना साया है पता नहीं भारत प्रेम न के बराबर है, यह साफ है. उसी मंत्रिमंडल में गृहमंत्री प्रीति पटेल भी इसी गिनती में आती है और अमेरिका की कमला हैरिस व निक्की हैली भी.

अपने भारतीय होने की श्रेष्ठता का ढिंढ़ोरा ज्यादा न पीटें जरूरत तो देश को सुधारने की है ताकि चीन जापान की तरह लोग अपनेआप आदर दें पर यहां तो हम सब कुछ मंदिर के नाम पर नष्ट करने में  लगे हैं.

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नमक कितना ज्यादा चीनी कितनी कम

जरा सी बारिश होते ही हमारा मन गरमगरम चाय के साथ तले व मसाला बुरके हुए पकौड़ों के लिए ललचा उठता है. नमकीन पकौड़ों पर बुरके मसाले का तीखापन जब चाय के मीठे से टकराता है, तो मीठी चाय भी तीखी, मगर फीकी लगने लगती है और हम बिना सोचेसमझे चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए चाय में एक शुगर क्यूब या फिर 1 चम्मच चीनी और डाल देते हैं. यही नहीं, गरमी के मौसम में पता नहीं कितनी बार मीठीनमकीन मसालेदार शिकंजी पी लेते हैं. कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम में तो जैसे हम सब की जान बसती है.

इस तरह हमें पता ही नहीं चलता कि वक्तबेवक्त खानेपीने की उठती तलब को शांत करने और अपनी जीभ का स्वाद बढ़ाने के लिए हम अनजाने में अपने खानपान में नमक, मिर्चमसालों और चीनी की मात्रा बेवजह ही बढ़ाते रहते हैं. चीनी, नमक और मसाले डालने से उस समय तो व्यंजन का स्वाद निश्चित रूप से कई गुना बढ़ जाता है, लेकिन इन के दुष्प्रभाव बाद में पता चलते हैं, जो बहुत ही कष्टप्रद होते हैं, क्योंकि ये गंभीर शारीरिक और मानसिक रोगों का कारण बनते हैं. वैसे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए चीनी, नमक और मसालों का विशेष महत्त्व है. लेकिन एक सीमित मात्रा तक प्रयोग करने पर ही ये लाभ पहुंचाते हैं. इन का जरूरत से ज्यादा प्रयोग हमारे शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाता है. अध्ययन बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से हमारे खानपान में चीनी, नमक और मसालों का सेवन कई गुना बढ़ा है.

आज हमारी दिनचर्या ही कुछ ऐसी हो गई है कि अपने खानपान में इन तीनों को कम करना सचमुच एक कठिन काम बन चुका है. इस का एक कारण डब्बाबंद खानपान है. 3-4 दशक पहले तक डब्बाबंद खानपान का चलन न के बराबर था, इसलिए समस्याएं इतनी नहीं थीं. दरअसल, डब्बाबंद खाने को लंबे समय तक सुरक्षित और फ्रैश रखने के लिए उस में सोडियम और चीनी अधिक मात्रा में डाली जाती है. पर आजकल डब्बाबंद खानपान का चलन जिस तरह से बढ़ा है, उसी का परिणाम हैं- उच्च रक्तचाप, अस्थमा, बढ़ता मोटापा और फैलती कमर जैसी परेशानियां.

आइए, हम आप को बताते हैं कि हमें नमक, चीनी और मसाले कितने और कैसे खाने चाहिए :

ज्यादा चीनी खतरे की घंटी

मीठा हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है. इस से हमें शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होती है. लेकिन जरूरत से ज्यादा मीठा खाने से वजन बढ़ सकता है. चीनी में कैलोरी की मात्रा अधिक होती है. वैसे चीनी में कोई विटामिन, मिनरल या  पौष्टिक तत्त्व नहीं होता. यह मानव शरीर को सिर्फ ऊर्जा व शक्ति प्रदान करती है और वह भी 1 ग्राम में 4 कैलोरी की दर से. इस तरह अधिक मिठाइयां, ठंडे पेय, बिस्कुट व चाकलेट लेने से आहार का संतुलन बिगड़ जाता है और आहार की पौष्टिकता नष्ट हो जाती है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिदिन 1,600 कैलोरीयुक्त आहार लेने वाला युवा व स्वस्थ व्यक्ति प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त होने वाली चीनी के अतिरिक्त 6 छोटे चम्मच यानी 24 ग्राम चीनी बिना किसी जोखिम के ले सकता है. इसी तरह 2,200 कैलोरीयुक्त आहार लेने वाला व्यक्ति 12 चम्मच यानी 48 ग्राम चीनी ले सकता है. मीठे के नाम पर हम ज्यादा कोल्ड ड्रिंक्स और आइसक्रीम आदि लेते हैं, जो सिर्फ कैलोरीज बढ़ाते हैं, शरीर को किसी भी प्रकार का पोषण नहीं देते. कोल्ड ड्रिंक्स की जगह सादा ठंडा पानी, डब्बाबंद फू्रट जूस की जगह आधा कप 100% ताजे फलों का रस और खाने के बाद मीठे की जरूरत महसूस हो तो खीर या हलवे की जगह ताजे फल लेने चाहिए.

शरीर में जरूरत से कम या ज्यादा चीनी होने पर आप के शरीर में खतरे की घंटी बजने लगती है. रक्त में चीनी की मात्रा बढ़ने पर प्यास और भूख बहुत लगती है और पेशाब भी बारबार आता है. दूसरी तरफ अगर आप खाने के समय में जरूरत से ज्यादा गैप रखते हैं, कम खाते हैं, व्यायाम ज्यादा करते हैं या फिर खाली पेट अलकोहल का सेवन करते हैं, तो रक्त में चीनी का स्तर गिरने से आप बेजान सा महसूस करते हैं.

नमक का प्रयोग

नमक हमारे आहार का एक अनिवार्य हिस्सा है. भारत में प्रति व्यक्ति नमक का खर्च 15 ग्राम प्रतिदिन है. ‘द साइंटिफिक कमेटी औन न्यूट्रीशियंस’ हर व्यक्ति को प्रतिदिन 4 ग्राम नमक लेने की सलाह देती है. सोडियम हमारे शरीर के विकास के लिए अत्यंत जरूरी तत्त्व है, लेकिन सोडियम का जरूरत से ज्यादा प्रयोग एक नहीं अनेक समस्याओं को जन्म देता है. जैसे, अस्थमा, छाती में जलन, अस्थि रोग, सूजन, उच्च रक्तचाप आदि. इन सब रोगों से बचने के लिए हमें नमक का प्रयोग बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. शरीर में नमक की कमी की वजह से मांसपेशियों में ऐंठन, सिर चकराना और पैरों आदि में सूजन जैसी परेशानियां हो सकती हैं, जो आगे चल कर गंभीर स्नायु रोग का रूप धारण कर सकती हैं. आहार विशेषज्ञा शायस्ता आरजू बताती हैं कि कम नमक खाने वाला व्यक्ति बहुत ज्यादा पानी पी लेता है, तो वह वाटर इंटौक्सिकेशन का शिकार हो सकता है. नमक कई प्रकार का होता है, लेकिन आमतौर पर घरों में पैक्ड आयोडाइज्ड नमक ही प्रयोग होता है. बाजार में कई प्रकार के नमक उपलब्ध हैं, लेकिन किसी भी प्रकार के नमक के प्रयोग से पहले उस की विशेषताओं के बारे में जान लेना चाहिए.

नमक नमक में अंतर

समुद्री नमक : यह आम नमक की तरह ही पोषक होता है. इस नमक में पोटैशियम, मैग्नीशियम और आयोडीन जैसे तत्त्व प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं. यह देखने और स्वाद में दूसरे नमक से भिन्न होता है. समुद्री नमक में आम नमक के मुकाबले खनिजों की मात्रा अधिक होती है और इस में समुद्र की महक महसूस की जा सकती है. 

अपरिष्कृत पहाड़ी नमक : इस नमक में विभिन्न प्रकार के 84 से अधिक खनिज पाए जाते हैं, लेकिन इस का प्रयोग खाद्यपदार्थों में स्वाद या महक के लिए नहीं किया जाता. आमतौर पर भुने आलू, मीट, सी फूड या पोल्ट्री फूड से बने व्यंजनों में इस का प्रयोग किया जाता है.

काला नमक : इस का प्रयोग विशेष रूप से स्वाद और महक के लिए किया जाता है, लेकिन ध्यान रहे इस के अधिक प्रयोग से जोड़ों में दर्द, खून की कमी, थकान और रक्त नलिकाओं में अवरोध की शिकायत हो सकती है. एक अध्ययन से पता चला है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान काले नमक का प्रयोग अधिक करती हैं, उन के बच्चे कमजोर पैदा होते हैं और बीमारियों से लड़ने की उन की क्षमता दूसरे बच्चों के मुकाबले कम होती है.

मसालों का प्रयोग

मसाले भोजन को सुगंधित और स्वादिष्ठ बनाने के साथसाथ खाने को रिच लुक प्रदान करते हैं. चीनी, नमक और फैट का आदर्श विकल्प हैं- जड़ीबूटियां और मसाले. मसालों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए आहार विशेषज्ञा विजयलक्ष्मी आयंगर बताती हैं, ‘‘मसालों में फाइटो न्यूट्रीऐंट्स होते हैं, जो हमारे शरीर के हैल्दी सैल्स को कैंसर सैल्स में परिवर्तित होने से रोकते हैं.’’ नमक की तरह ही कोई भी पैमाना मसालों के सुरक्षित प्रयोग और विषाक्त तत्त्वों के बारे में सही और पूरी जानकारी नहीं देता. यह बात 100% सही है कि कम मात्रा में और नियमित अंतराल से उपयोग किए गए मसाले हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं. मसाले हमें छाती में जलन, आंखों में चुभन, बढ़ते कोलैस्ट्रौल, कैंसर, मधुमेह, जोड़ों के दर्द और अलसर जैसी बीमारियों से राहत पहुंचाते हैं. कई वर्षों से मसालों का प्रयोग बुखार, पेट दर्द, त्वचा रोग, बदहजमी, गले के संक्रमण, सर्दीजुकाम आदि के उपचार के लिए होता आ रहा है. आहार विशेषज्ञा कंचन सग्गी का कहना है, ‘‘मसाले किसी भी बीमारी को पूरी तरह से ठीक तो नहीं कर सकते, लेकिन उस बीमारी की गंभीरता को काफी हद तक कम कर सकते हैं और अस्थाई रूप से आराम भी पहुंचाते हैं.’’

मसालों की खूबियां

लौंग : दांत दर्द से लौंग तुरंत राहत प्रदान करती है. यह एक बहुत अच्छे माउथ फ्रैशनर का काम भी करती है.

अदरक या सोंठ : कोलैस्ट्रौल कम करने से ले कर रक्तचाप नियंत्रित करने और थकान दूर करने तक में सहायक है.

हलदी : हलदी स्वाद में कड़वी और प्रभाव में गरम होती है. यह कफ और पित्त के दोषों को दूर करती है. कटने, छिलने और जलने पर हलदी का प्रयोग ऐंटीसेप्टिक की तरह भी किया जाता है. इसी गुण के कारण हलदी का प्रयोग स्वास्थ्य और सौंदर्यवर्धन के लिए भी होता है.

दालचीनी : यह एक पेड़ की छाल होती है. यह बलगम, गैस, खुजली, हृदय रोग, मूत्राशय रोग, बवासीर, पेट के कीड़े, सायनस दूर करने और वीर्य बढ़ाने में सहायक है.

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Summer Special: ऐसे बनाएं टेस्टी छेने की खीर

नाम से ही पता चल रह है कि यह छेने से बनेगी. आपने छेने से बने हुए रसगुल्ले और मिठाई तो खाई होगी, लेकिन कभी खीर ट्राई की. जो खाने में बहुत ही टेस्टी होती है. आमतौर पर खीर भी कई तरह की बनती है जैसे कि चावल, सूतफेनी, ड्राई फ्रूट्स की लेकिन इस बार ट्राई करें छेने से बनी हुई रेसिपी.

सामग्री

1. आधा कप छेना

2. आधा लीटर फुल क्रीम दूध

3. बारीक कटे और उबले 10 बादाम और पिस्ता

4. 1 छोटी इलायची

5. एक चौथाई चम्मच सिट्रिक एसिड

6. स्वादानुसार चीनी

7. 5-6 किशमिश

ऐसे बनाएं खीर

सबसे पहले एक नॉन स्टिक पैन में दूध डालकर गर्म करें फिर इसमें छेना डालें और अच्छी तरह से मिलाएं. जब दूध में उबाल आए तब इसमें चीनी डालकर चलाते रहें और इसके बाद इसमें पिस्‍ते, किशमिश, छोटी इलायची और बादाम डालकर अच्छी तरह से धीमे से मिला लें.

और फिर सिट्रिक एसिड मिलाएं और इसे गैस से उतार लें. और ठंडा होने दें. थोड़ा ठंडा होने पर इसे आधा घंटे के लिए फ्रिज में रखें. दें. इसे बाद ठंडी-ठंडी टेस्टी खीर सर्व करें.

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मैरिड लाइफ में क्यों आ रही दूरियां

सैक्सलैस विवाह के 70% केस युवा जोड़ों के हैं और यह समस्या तेजी से बढ़ रही है. इस के लिए एक ही उपाय है कि दूसरी चीजों की तरह सैक्स के लिए भी समय निकालें, क्योंकि जब आप इस का स्वाद जानेंगे तभी इसे करेंगे. कुछ समय एकदूसरे के साथ जरूर बिताएं. कन्फ्यूशियस ने कहा था कि खाना व यौन इच्छा दोनों मानव की प्राकृतिक जरूरतें हैं.

मनोविज्ञानी और मनोचिकित्सक डा. पुलकित शर्मा इस बढ़ते रोग के संबंध में कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं:

सैक्सलैस विवाह सामान्य होने का कोई सूचक है?

हां, है. विवाहित लोग कैरियर के तनाव से घिरे हैं और अब उन के पास अंतरंगता के लिए बिलकुल भी समय नहीं है. दूसरा, अब चिड़चिड़ाहट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. विवादों को सुलझाने के बजाय स्त्री तथा पुरुष सैक्स की इच्छापूर्ति को बाहर ढूंढ़ रहे हैं.

क्यों कोई विवाह सैक्सलैस होता है?

यदि हम इन बातों को छोड़ दें कि किसी साथी को सैक्स संबंधी या मानसिक समस्या हो तो भी विवाह की शुरुआत सैक्सलैस नहीं होती, लेकिन बाद में हो जाती है. शुरुआत में अपनी यौन क्षमता को ले कर पुरुषों में विशेष घबराहट होती है. उन्हें डर रहता है कि वे अपने साथी को संतुष्ट कर पाएंगे या नहीं और यह डर इतना ज्यादा होता है कि वे अपनी यौन क्रिया को सही अंजाम नहीं दे पाते. शुरुआत में जोड़े सैक्स तथा अपने संबंधों को अच्छा बताते हैं, लेकिन समय के साथ प्यार तो बढ़ता है, परंतु विवाह सैक्सलैस हो जाता है.

तनाव से डिपे्रशन बढ़ता है, जिस से सैक्सुल इच्छा घटती है व प्रदर्शन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है. तीसरा कारण है पोर्नोग्राफी. यह लोगों की कल्पनाओं को रंग देती है, जिस से वे जो रील में देखते हैं वैसा ही रियल में करने की कोशिश करते हैं.

क्या सैक्सलैस विवाह वाले जोड़े कम खुश रहते हैं?

भले ही रिश्ता अच्छा हो, परंतु सैक्सहीन विवाहित जोड़े नाखुश रहते हैं, क्योंकि सैक्स प्यार व आत्मीयता का जरूरी हिस्सा है. इस विवाह को कोई एक साथी इच्छाहीन व बेकार महसूस करता है.

क्या सैक्स को दोबारा सक्रिय किया जा सकता है?

हां. बस पहले यह जानने की जरूरत है कि समस्या कहां है? क्या यह समस्या बाह्य है जैसे तनाव, पारिवारिक माहौल आदि. इस बारे में खुल कर बात करें व बिना साथी की इच्छा से कोई फैसला न करें ताकि दूसरा साथी बुरा न महसूस करे. काम का तनाव घटा कर एकदूसरे के साथ ज्यादा समय बिताएं, आपसी विवाद सुलझाएं, यौन क्रियाओं को बढ़ाएं, एकदूसरे की जरूरतों को समझें व इच्छापूर्ति की कल्पना करें, साथी को आराम दें, उसे उत्साहित करें. मनोवैज्ञानिक से सलाह भी ले सकते हैं.

क्या सैक्सहीन विवाह वाले तलाक की ओर बढ़ रहे हैं?

हां, ऐसा हो रहा है, क्योंकि एक साथी अपनेआप को उत्तेजित महसूस करने लगता है या वह महसूस करने लगता है कि उसे धोखा दिया जा रहा है. इसलिए वह भी सैक्स का विकल्प बाहर खोजने लगता है, जिस से बंधेबंधाए रिश्ते में समस्या आने लगती है.

यौन संतुष्टि दर में कमी

भारत में हुए सैक्स सर्वे दर्शाते हैं कि पिछले दशक में यौन संतुष्टि की दर मात्र 29% रह गई. सैक्स से बचने के लिए पत्नियों की पुरानी आदत है कि आज नहीं हनी. आज मुझे सिरदर्द है. 50% पुरुष भी अपनी पत्नी से सैक्स न करने के लिए सिरदर्द का झूठा बहाना बनाते हैं. 43% पति मानते हैं कि उन की आदर्श बिस्तर साथी उन की पत्नी नहीं है. 33% के करीब पत्नियां मानती हैं कि विवाह के कुछ सालों बाद सैक्स अनावश्यक हो जाता है. 14% स्त्रीपुरुषों को नहीं पता कि वे बैडरूम में किस चीज से उत्तेजित होते हैं जबकि 18% के पास कोई जवाब नहीं है कि वे सैक्स के बाद भी संतुष्ट हुए हैं. 60% जोड़े यौन आसन के बारे में कल्पना करते हैं. फिर भी आधे से ज्यादा जोड़े नए आसन के बजाय नियमित आसन ही अपनाते हैं. 39% जोड़े ही यौन संतुष्टि पाते हैं.

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