डिलीवरी के बाद एंग्जाइटी अटैक का शिकार हुईं थीं Charu Asopa, पढ़ें खबर

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) की भाभी और एक्ट्रेस चारू असोपा (Charu Asopa Sen) आए दिन अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां कई लोग उन्हें ट्रोल करते हैं तो वहीं फैंस उनकी लाइफ से जुड़ी नई बात जानने के लिए बेताबा रहते हैं. इसी बीच एक्ट्रेस ने डिलीवरी के बाद आने वाली परेशानियों का खुलासा किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ननद ने की मदद

 

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बीते दिनों चारू असोपा अपने पति राजीव सेन और बेटी जियाना सेन के साथ समय बिताती नजर आईं थीं, जिसके बाद वह ट्रोलिंग का शिकार भी हुईं थीं. वहीं अब अपनी प्रैग्नेंसी और डिलीवरी के बारे में बात करते हुए एक्ट्रेस ने एक इंटरव्यू में बताया कि बेटी जियाना के जन्म के बाद पहले महीने में वह एंग्जाइटी से जूझ रही थीं, जिसके कारण वह बेटी जियाना को 6-7 दिन तक ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाई थीं. हालांकि एक्ट्रेस की ननद यानी एक्ट्रेस सुष्मिता सेन ने उनकी काफी मदद की.

 

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शादी को लेकर सुर्खियों में रहती हैं एक्ट्रेस

 

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सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन (Rajeev Sen) से जून 2019 में शादी करने वाली एक्ट्रेस चारू असोपा के बीच शादी के कुछ ही महीने बाद मनमुटाव होने लगा था. वहीं खबरें थीं कि वह पति से अलग भी रहने लगी थीं. हालांकि बाद में सब ठीक हो गया था. वहीं कई बार दोनों के बीच अनबन की खबरें आती रही हैं. लेकिन सोशलमीडिया पर शेयर की गई फोटोज से एक्ट्रेस अफवाहों का खारीज कर देती है, जिसके चलते कई बार वह ट्रोलिंग की शिकार भी हो जाती हैं.

बेटी के साथ बिता रही हैं वक्त

 

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एक्ट्रेस चारू असोपा भले ही एक्टिंग करियर से दूर हैं. लेकिन वह अपनी लाइफ को पूरी तरह एन्जौय कर रही हैं. एक्ट्रेस अपनी बेटी और परिवार के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता रही हैं, जिसकी फोटोज और वीडियोज वह सोशलमीडिया के जरिए फैंस के साथ शेयर कर रही हैं.

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अनुुपमा-अनुज की शादी में दोबारा आएगी अड़चन! मालविका होगी कारण

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) की कहानी इन दिनों फैंस का दिल जीत रही है. जहां अनुपमा-अनुज (Anuj-Anupama Romance) का रोमांस फैंस को पसंद आ रहा है तो वहीं बा और वनराज की जलन दर्शकों को अच्छी लग रही है. हालांकि शादी में एक के बाद एक मुसीबत आती हुई नजर आ रही है. जहां बीते दिनों बापूजी के कारण शादी रुकने की नौबत आ गई थी तो वहीं अब मालविका के कारण अनुज शादी रोकने का फैसला करने वाला है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

देविका मारेगी ताना

 

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अब तक आपने देखा कि हल्दी की रस्मों में अनुज और अनुपमा रोमांटिक होते हुए नजर आते हैं, जिसे देखकर वनराज औऱ बा का चेहरा उतर जाता है. वहीं अनुपमा-अनुज की हल्दी में किन्नर आकर दोनों को दुआएं देते हुए नजर आते हैं, जिसके बाद देविका, बा और वनराज को ताना मारते हुए नजर आती है.

काव्या देगी अनुपमा का साथ

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि लीला रसोई में हल्दी वाला दूध बनाएगी और चिल्लाते हुए कहेगी कि शादी जल्द से जल्द खत्म हो जाए और अनुपमा जल्द ही अपने घर से निकल जाए. इसी बीच अनुपमा उनसे टकरा जाएगी और हल्दी उस पर गिर जाएगी, जिसके चलते अनुपमा, बा को हल्दी लगाने के लिए शुक्रिया कहेगी और गले लगा लेगी. वहीं बा शांत रहेगी. दूसरी तरफ, वनराज, काव्या को सौतन की शादी में खुश होने का कारण पूछेगा, जिसका जवाब देते हुए काव्या कहेगी कि अनुपमा कभी उनकी दुश्मन नहीं थीं और हमेशा उनकी मदद करती थीं, जिसे सुनकर वनराज हैरान होगा.

मालविका के कारण अनुज लेगा फैसला

 

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इसके अलावा आप सीरियल में देखेंगे कि अनुपमा, बच्चों को भरोसा दिलाते हुए कहेगी कि वह शादी के बाद भी अपने बच्चों के लिए कभी नहीं बदलेगी. वहीं मालविका, अनुज को शादी के दिन ही यूएसए लौटने की बात कहेगी, जिसे सुनकर अनुज उसकी मौजूदगी के बिना शादी नहीं करने का फैसला लेगा.

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Summer Special: नाश्ते में परोसें एप्पल हनी श्रीखंड

अगर आप नाश्ते में हैल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो एप्पल हनी श्रीखंड आपके लिए बेस्ट औप्शन साबित होगा. आइए आपको बताते हैं एप्पल हनी श्रीखंड की खास रेसिपी.

सामग्री

– 2 कप हंग कर्ड

– 1 सेब

– 1 बड़ा चम्मच शहद

– 2 बड़े चम्मच चीनी

– 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

– 25 ग्राम पनीर.

विधि

सेब के छोटेछोटे टुकड़े काट लें. हंग कर्ड में पनीर व चीनी पाउडर अच्छी तरह मैश कर फेंट लें. इस में शहद, सेब व दालचीनी पाउडर डाल कर ठंडा कर तुरंत सर्व करें.

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घोंसले का तिनका- भाग 2: क्या टोनी के मन में जागा देश प्रेम

मिशैल ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं ने कोई गलत बात कह दी हो. वह धीरे से मुझ से कहने लगी, ‘‘तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. क्या तुम्हें अपने देश से कोई प्रेम नहीं रहा?’’

मैं उस की बातों का अर्थ ढूंढ़ने का प्रयास करता रहा. शायद वह ठीक ही कह रही थी. हाल में दूर हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में राजस्थानी लोकगीत की धुन के साथसाथ मिशैल के पांव भी थिरकने लगे. वह वहां से उठ कर चली गई.

मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद भारतीय सामान से सजे स्टैंड की तरफ चला गया. मेरे हैंडीक्राफ्ट के स्टैंड पर पहुंचते ही एक व्यक्ति उठ कर खड़ा हो गया और बोला,  ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

‘‘नो थैंक्स, मैं तो बस, यों ही,’’ मैं हिंदी में बोलने लगा.

‘‘कोई बात नहीं, भीतर आ जाइए और आराम से देखिए,’’ वह मुसकरा कर हिंदी में बोला.

तब तक पास के दूसरे स्टैंड से एक सरदारजी आ कर उस व्यक्ति से पूछने लगे, ‘‘यार, खाने का यहां क्या इंतजाम है?’’

‘‘पता नहीं सिंह साहब, लगता है यहां कोई इंडियन रेस्तरां नहीं है. शायद यहीं की सख्त बै्रड और हाट डाग खाने पड़ेंगे और पीने के लिए काली कौफी.’’

जिस के स्टैंड पर मैं खड़ा था वह मेरी तरफ देख कर बोले, ‘‘सर, आप तो यहीं रहते हैं. कोई भारतीय रेस्तरां है यहां? ’’

‘‘भारतीय रेस्तरां तो कई हैं, पर यहां कुछ दे पाएंगे…यह पूछना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनत्व की भावना से कहा.

मैं ने एक रेस्तरां में फोन कर के उस से पूछा. पहले तो वह यहां तक पहुंचाने में आनाकानी करता रहा. फिर जब मैं ने उसे जरमन भाषा में थोड़ा सख्ती से डांट कर और इन की मजबूरी तथा कई लोगों के बारे में बताया तो वह तैयार हो गया. देखते ही देखते कई लोगों ने उसे आर्डर दे दिया. सब लोग मुझे बेहद आत्मीयता से धन्यवाद देने लगे कि मेरे कारण उन्हें यहां खाना तो नसीब होगा.

अगले 3 दिन मैं लगातार यहां आता रहा. मैं अब उन में अपनापन महसूस कर रहा था. मैं जरमन भाषा अच्छी तरह जानता हूं यह जान कर अकसर मुझे कई लोगों के लिए द्विभाषिए का काम करना पड़ता. कई तो मुझ से यहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में पूछते तो कई यहां की मैट्रो के बारे में. मैं ने उन को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं, जिस से पहले दिन ही उन के लिए सफर आसान हो गया.

आखिरी दिन मैं उन सब से विदा लेने गया. हाल में विदाई पार्टी चल रही थी. सभी ने मुझे उस में शामिल होने की प्रार्थना की. हम ने आपस में अपने फोन नंबर दिए, कइयों ने मुझे अपने हिसाब से गिफ्ट दिए. भारतीय मेला प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुझे मेरे सहयोग के लिए सराहा और भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों में समर्थन देने को कहा. मिशैल मेरे साथ थी जो इन सब बातों को बड़े ध्यान से देख रही थी.

अगले कई दिन तक मैं निरंतर अपनों की याद में खोया रहा. मन का एक कोना लगातार मुझे कोसता रहा, न चाहते हुए भी रहरह कर यह विचार आता रहा कि किस तरह अपने मातापिता से झूठ बोल कर विदेश चला आया. उस समय यह भी नहीं सोचा कि मेरे पीछे उन्होंने कैसे यह सब सहा होगा.

एक दिन मिशैल और मैं टेलीविजन पर कोई भारतीय प्रोग्राम देख रहे थे. कौफी की चुस्कियों के साथसाथ वह बोली, ‘‘तुम्हें याद है टोनी, उस दिन इंडियन कौफी बोर्ड की कौफी पी थी. सचमुच बहुत ही अच्छी थी. सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगा और वह कठपुतलियों का नाच भी…कभीकभी मेरा मन करता है कुछ दिन के लिए भारत चली जाऊं. सुना है कला और संस्कृति में भारत ही विश्व की राजधानी है.’’

‘‘क्या करोगी वहां जा कर. जैसा भारत तुम्हें यहां लगा असल में ऐसा है नहीं. यहां की सुविधाओं और समय की पाबंदियों के सामने तुम वहां एक दिन भी नहीं रह सकतीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मैं जाना जरूर चाहूंगी. तुम वहां नहीं जाना चाहते क्या? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि तुम अपने देश जाओ?’’

‘‘मन तो करता है पर तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ सकोगी,’’ मैं ने बड़े बेमन से कहा.

‘‘चलो, अपने लोगों से तुम न मिलना चाहो तो न सही पर हम कहीं और तो घूम ही सकते हैं.’’

मैं चुप रहा. मैं नहीं जानता कि मेरे भीतर क्या चल रहा है. दरअसल, जिन हालात में मैं यहां आया था उन का सामना करने का मुझ में साहस नहीं था.

सबकुछ जानते हुए भी मैं ने अपनेआप को आने वाले समय पर छोड़ दिया और मिशैल के साथ भारत रवाना हो गया.

हमारा प्रोग्राम 3 दिन दिल्ली रुकने के बाद आगरा, जयपुर और हरिद्वार होते हुए वापस जाने का तय हो गया था. मिशैल के मन में जो कुछ देखने का था वह इसी प्रोग्राम से पूरा हो जाता था.

जैसे ही मैं एअरपोर्ट से बाहर निकला कि एक वातानुकूलित बस लुधियाना होते हुए अमृतसर के लिए तैयार खड़ी थी. मेरा मन कुछ क्षण के लिए विचलित सा हो गया और थोड़ा कसैला भी. मेरा अतीत इन शहरों के आसपास गुजरा था. इन 5 वर्षों में भारत में कितना बदलाव आ गया था. आज सबकुछ ठीक होता तो सीधा अपने घर चला जाता. मैं ने बड़े बेमन से एक टैक्सी की और मिशैल को साथ ले कर सीधा पहाड़गंज के एक होटल में चला गया. इस होटल की बुकिंग भी मिशैल ने की थी.

मैं जिन वस्तुओं और कारणों से भागता था, मिशैल को वही पसंद आने लगे. यहां के भीड़भाड़ वाले इलाके, दुकानों में जा कर मोलभाव करना, लोगों का तेजतेज बोलना, अपने अहं के लिए लड़ पड़ना और टै्रफिक की अनियमितताएं. हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा के तट पर बैठना, मंदिरों में जा कर घंटियां बजाना उस के लिए एक सपनों की दुनिया में जाने जैसा था.

जैसेजैसे हमारे जाने के दिन करीब आते गए मेरा मन विचलित होने लगा. एक बार घर चला जाता तो अच्छा होता. हर सांस के साथ ऐसा लगता कि कुछ सांसें अपने घर के लिए भी तैर रही हैं. अतीत छाया की तरह भरमाता रहा. पर मैं ने ऐसा कोई दरवाजा खुला नहीं छोड़ा था जहां से प्रवेश कर सकूं. अपने सारे रास्ते स्वयं ही बंद कर के विदेश आया था. विदेश आने के लिए मैं इतना हद दर्जे तक गिर गया था कि बाबूजी के मना करने के बावजूद उन की अलमारी से फसल के सारे पैसे, बहन के विवाह के लिए बनाए गहने तक मैं ने नहीं छोड़े थे. तब मन में यही विश्वास था कि जैसे ही कुछ कमा लूंगा, उन्हें पैसे भेज दूंगा. उन के सारे गिलेशिक वे भी दूर हो जाएंगे और मैं भी ठीक से सैटल हो जाऊंगा. पर ऐसा हो न सका और धीरेधीरे अपने संबंधों और कर्तव्यों से इतिश्री मान ली.

शाम को मैं मिशैल के साथ करोल बाग घूम रहा था. सामने एक दंपती एक बच्चे को गोद में उठाए और दूसरे का हाथ पकड़ कर सड़क पार कर रहे थे. मिशैल ने उन की तरफ इशारा कर के मुझ से कहा, ‘‘टोनी, उन को देखो, कैसे खुशीखुशी बच्चों के साथ घूम रहे हैं,’’ फिर मेरी तरफ कनखियों से देख कर बोली, ‘‘कभी हम भी ऐसे होंगे क्या?’’

किसी और समय पर वह यह बात करती तो मैं उसे बांहों में कस कर भींच लेता और उसे चूम लेता पर इस समय शायद मैं बेगानी नजरों से उसे देखते हुए बोला, ‘‘शायद कभी नहीं.’’

‘‘ठीक भी है. बड़े जतन से उन के मातापिता उन्हें बड़ा कर रहे हैं और जब बडे़ हो जाएंगे तो पूछेंगे भी नहीं कि उन के मातापिता कैसे हैं…क्या कर रहे हैं… कभी उन को हमारी याद आती है या…’’ कहतेकहते मिशैल का गला भर गया.

मैं उस के कहने का इशारा समझ गया था, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’ मेरी आवाज भारी थी.

‘‘कुछ नहीं, डार्लिंग. मैं ने तो यों ही कह दिया था. मेरी बातों का गलत अर्थ मत लगाओ,’’ कह कर उस ने मेरी तरफ बड़ी संजीदगी से देखा और फिर हम वापस अपने होटल चले आए.

उस पूरी रात नींद पलकों पर टहल कर चली गई थी. सूरज की पहली किरणों के साथ मैं उठा और 2 कौफी का आर्डर दिया. मिशैल मेरी अलसाई आंखों को देखते हुए बोली, ‘‘रात भर नींद नहीं आई क्या. चलो, अब कौफी के साथसाथ तुम भी तैयार हो जाओ. नीचे बे्रकफास्ट तैयार हो गया होगा,’’ इतना कह कर वह बाथरूम चली गई.

दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने मिशैल को बाथरूम में ही रहने को कहा क्योंकि वह ऐसी अवस्था में नहीं थी  कि किसी के सामने जा सके.

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6 Tips: नेल पॉलिश लगाते समय रखें ध्यान

नेल पॉलिश आपके हाथों को और भी खूबसूरत बनाती है, लेकिन नाखूनों पर नेल पॉलिश लगते समय नेल पेंट खराब तरीके से लग जाए, तो उससे आपके नाखून और हाथ भद्दे दिखने लगते हैं, इसलिए हम आपको बताएंगे वह 6 बातें जिन्हें आप नेल पॉलिश लगाते समय जरूर ध्यान रखें.

1. नेल पॉलिश लगते समय ध्यान रखें कि जब आपके नाखून पूरी तरह सूखे हों, तब ही नेल पॉलिश लगाएं, अगर आप गीले नाखूनों पर नेल पेंट लगाएंगी तो वह छूट सकती है, नेल पॉलिश लगाने से पहले अपने नाखूनों को शेप देना न भूलें, सबसे पहले आप अपने नाखूनों को एक अच्छा और सही शेप जरूर दें.

2. नाखूनों को अच्छा और सही शेप देने के बाद सबसे पहले नेल पेंट का एक ट्रांसपेरैंट बेस कोट लगाएं, ट्रांसपेरैंट नेल पेंट को ब्रश से नाखूनों के बीच से लगाना शुरू करें और एक बार फिर ब्रश को ट्रांसपेरैंट नेल पेंट में डुबोकर ब्रश से नाखूनों के दो अलग हिस्सों में भी एक-एक कोट लगाएं.

3. ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट अच्छी तरह सूख जाए उसके बाद अपनी पसंद का नेल पॉलिश का रंग लें और जिस तरह ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट नाखूनों पर लगाया है, उसी तरह अपने पसंदीदा नेल पॉलिश के रंग को भी नाखूनों पर बेस कोट के ऊपर लगाएं अगर रंग हल्का दिख रहा है, तो पहला कोट सूखने के बाद नेल पॉलिश के रंग का दूसरा कोट भी लगाएं.

4. हमेशा अच्छी नेल पॉलिश लगाएं, अगर आपकी नेल पॉलिश अच्छी नहीं है, तो नेल पॉलिश लगाने के बाद अपनी उंगलियों को बर्फ के पानी में डुबाएं इससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी तरह सेट हो जाएगी और चमकेगी.

5. अगर आपकी नेल पॉलिश नाखूनों से बाहर किनारों पर लग गई है तो उसे ध्यान से और अच्छी तरह नेल पॉलिश रिमूवर से साफ कर लें जिससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी और साफ दिखे.

6. नाखूनों पर नेल पॉलिश लगने के बाद अपने हाथ ठण्डे पानी में डुबाएं इससे आपकी नेल पॉलिश और पक्की हो जाएगी साथ ही साथ साफ दिखेगी, नेल पॉलिश पूरी तरह सूखने के बाद ही कोई काम करें.

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रिश्ते में जरुरी है थोड़ा प्यार, थोड़ी छेड़छाड़

नेहा ने कुहनी मार कर समर को फ्रिज से दूध निकालने को कहा तो, वह चिढ़ गया, ‘‘क्या है? नजर नहीं आता, मैं कपड़े पहन रहा हूं?’’

लेकिन नेहा ने तो ऐसा प्यारवश किया था. और बदले में उसे भी इसी तरह के स्पर्श, छेड़छाड़ की चाहत थी. मगर समर को इस तरह का स्पर्श पसंद नहीं आया.

नेहा का मूड अचानक बिगड़ गया. वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आकर्षित करने के लिए कुहनी मारी थी. इस के बदले में तुम से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया चाहिए थी, पर तुम तो गुस्सा हो गए.’’

समर यह सुन कर कुछ पल सहमा खड़ा रहा, फ्रिज से दूध निकाल कर देते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें समझ नहीं सका. मैं ने तुम्हारे इमोशंस को नहीं समझा. मैं शर्मिंदा हूं. इस मामले में शायद अभी अनाड़ी हूं.’’

शब्द को कई खास नहीं थे पर दिल की गहराइयों से निकले थे. बोलते समय समर के चेहरे पर शर्मिंदगी की झलक भी थी.

नेहा का गुस्सा काफूर हो गया. वह समर के पास आई और उस के कालर को छूते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरी नाराजगी को महसूस किया, इतना ही मेरे लिए काफी है. तुम ने अपनी गलती मान ली यह भी एक स्पर्श ही है. मेरे दिल को तुम्हारे शब्द सहला गए हैं… मेरे तनमन को पुलकित कर गए हैं,’’ और फिर वह उस के गले लग गई.

समर के हाथ सहसा ही नेहा की पीठ पर चले गए औैर फिर नेहा की कमर को छूते हुए बोला, ‘‘कितनी पतली है तुम्हारी कमर.’’

समर का यह कहना था कि नेहा ने समर के पेट में धीरे से उंगली चुभा दी. वह मचल कर पलंग पर गिर पड़ा तो नेहा भी हंसते हुए उस के ऊपर गिर पड़ी. फिर कुछ पल तक वे यों ही हंसतेखिलखिलाते रहे.

इस तरह बढ़ेगा प्यार

ऐसे ही जीवन में रोमांस बढ़ता है. तीखीमीठी दोनों ही तरह की अनुभूतियां जीवन में रस घोलती हैं और रिलेशन को आसान एवं जीने लायक बनाती हैं. आजकल वैसे भी कई तरह के तनाव औैर जिम्मेदारियां दिमाग में चक्कर लगाती रहती हैं. पास हो कर भी पतिपत्नी हंसबोल नहीं पाते. बस दूरदूर से ही एकदूसरे को देखते रह जाते हैं. ऐसे बोर कर देने वाले पलों में साथी को छेड़ना किसी औषधि से कम मूल्यवान नहीं हो सकता. अधिकतर पतिपत्नी तनाव के पलों में चाह कर भी आपस में बोलबतिया नहीं पाते. ऐसे ही क्षणों में पहल करने की जरूरत होती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या सहलाएं. शुरू में तो वह आप को अनदेखा करेगा पर अधिक देर तक नहीं कर सकेगा, क्योंकि छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव रिस्पौंस मिलता है. आप पत्नी हैं यह सोच कर न डरें. यह सोच कर अबोलापन न पसरने दें कि न जाने पति आप की पहल को किस रूप में लेगा. इस तरह के डर के साथ जीने वालों की लाइफ में कभी रोमांस नहीं आ पाता और उम्र यों ही निकल जाती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या गले लगें अथवा कमर पर हाथ रख कर स्पर्श करें, शुरू में तो साथी आप की छेड़खानी नजरअंदाज करने लगेगा, पर अधिक देर तक वह आप की छेड़खानी को अनदेखा नहीं कर सकेगा, क्योंकि छूने या छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव संदेश मिलता है और इस संदेश के पहुंचते ही धीरेधीरे दिमाग से तनाव की काली छाया हट जाती है. आप उसे अच्छे लगने लगते हैं. वह गुड फील करने लगता है. यह फीलिंग ही रोमांस के पलों को आप के बीच विकसित करने में मदद करती है.

सुखद पहलू

नेहा ने चुपचाप खड़े समर को अचानक कुहनी मार कर फ्रिज से दूध निकालने को कहा था, उस पर वह चिढ़ गया. लेकिन नेहा डरीसहमी नहीं, बल्कि उस ने अपनी फीलिंग्स और अंदर के प्यार व इमोशंस को बताने की पूरी कोशिश की. समर का गुस्सा छूमंतर हो गया और वह शर्मिंदा भी हुआ. फिर उस ने भी नेहा के प्रति अपनी फीलिंग्स जाहिर करनी शुरू कर दीं. दोनों अगले ही पल रोमांस के रंगों में रंग गए. उन का मूड आशिकाना हो गया. एकदूसरे को अच्छे लगने लगे.

यही है रोमांस और रोमांच को वैवाहिक जीवन में लाने की तकनीक, जिस का हम में से अधिकांश दंपतियों को पता ही नहीं होता. बस साथ रहते हैं. मन करता है तो बोल लेते हैं या बहस कर लेते हैं. ज्यादा ही तनाव में होते हैं, तो एकदूसरे के आगे रो लेते हैं. लेकिन यह मैरिड लाइफ का नैगेटिव पक्ष है इस से पतिपत्नी कभी रोमांटिक कपल नहीं बन सकते. उन के जीवन में जो भी घटता है, वह स्वाभाविक या नैचुरल रूप से नहीं, बल्कि जबरदस्ती, यौन संबंध हो या प्यार अथवा हंसीमजाक, जिसे इन चीजों की जरूरत होती है, वह खुद शादी के करीब आ कर कोशिश करता है. अब सब सामने वाले साथी के मूड पर निर्भर करता है. वह अपने पार्टनर की इच्छा की पूर्ति करना चाहता है या नहीं. यही मैरिड लाइफ का सुखद पहलू है, रोमांटिक पहलू है. ऐसा कब तक एक साथी दूसरे के साथ जोरजबरदस्ती करेगा? एक दिन थकहार कर कोशिश करना ही छोड़ देगा.

कैसे बनें रोमांटिक

आज की मैरिड लाइफ में जिम्मेदारियों के बोझ के कारण एकदूसरे को देख कर कोई भी प्यारअनुराग मन में पैदा नहीं हो पाता. ये सिर्फ और सिर्फ मन से ही उत्पन्न हो सकती हैं और आप दोनों में से किसी एक को ही इस के लिए आगे आना होगा. अब आगे आए कौन? इस दुविधा में ही जोड़ी रोमांस के पल हाथ से जाने देती है, मेरी राय में पत्नी से बेहतर जीवन को समझने वाला कोई हो ही नहीं सकता. एक औरत होने के नाते वह स्नेही हृदय की होती है, दिल वाली होती है. प्रेम का अर्थ वह जानती है. फिर जो प्यार को जानता है वही पुरुष को रोमांटिक बना सकता है. नेहा ने कोशिश की तो उसे बदले में रोमांस के पल मिले. आप भी इस मामले में हठी न बनें. मन में इगो न पालें कि जब पति को मेरी कोई जरूरत नहीं है, वह मुझ से बात करने को राजी नहीं है, तो मैं क्यों फालतू में उस के साथ जबरदस्ती जा कर बात करूं. ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए. इस  से दांपत्य जीवन बंजर बन जाता है. आप औरत हैं, आप में पैदाइशी प्यार, रोमांस सैक्स के भाव हैं. आप जब चाहें जैसे चाहें पति को रोमांटिक बना सकती हैं. रोमांस आप से पैदा होता है और आप के भीतर हमेशा ही होता है. जरूरत है बस उसे जीवन में लाने की. फिर देखिए, तनाव और जिम्मेदारियों पर कैसे रोमांस भारी पड़ने लगता है.

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नव वर्ष का प्रकाश: कैसे घटी मनीष और निधि की दूरियां

उस के मन में आने वाले नव वर्ष के लिए बेचैनी होने लगी.प्रकाश ने फोन पर इतना ही कहा था कि वह दीया को ले कर पहुंच रहा है. अंधेरा घिर आया था लेकिन निधि ने अभी तक घर की बत्तियां नहीं जलाई थीं. जला कर वह करती भी क्या. जिस के जीवन से ही प्रकाश चला गया हो उस के घर के कमरों में प्रकाश हो न हो, क्या फर्क पड़ता है.

प्रकाश, जिसे पिछले 31 सालों से उन्होंने अपने खूनपसीने से सींचा था, जिस के पलपल का खयाल रखा था, जिस की पसंदनापसंद बड़ी माने रखती थी, उसी ने आज उन्हें बंजर, बेसहारा बना दिया था.

ममता भरे स्नेहिल आंचल की छांव में जो प्रकाश खेला था आज एकाएक अपने तक ही सीमित हो गया था. उस ने अपने मातापिता को बुढ़ापे में यों निकाल फेंका था मानो पैर में चुभा कांटा निकाल कर फेंक दिया हो. बेचारे मातापिता अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचा भी नहीं पाए थे. सोचा था प्रकाश पढ़लिख जाएगा तो कमा लेगा, हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा. यह एहसास निधि के लिए जानलेवा था. सारे दिन वह व्यथित रहती. उस पर पति का कठोर जीवन उसे और भी सालता. पति को जीतोड़ मेहनत करते देख उसे बहुत दुख होता. अपने जिगर के टुकड़े से उसे ऐसी उम्मीद न थी.

निधि को वह दिन याद आया जब प्रकाश का नामकरण किया गया था. सब उसे राज…राजकुमार नाम से पुकारने लगे थे किंतु उस ने प्रकाश नाम रखा. शायद यह सोच कर कि प्रकाश नाम से उसे सदैव जीवन में प्रकाश मिलता रहेगा और दूसरों को भी वह अपने प्रकाश से प्रकाशित करेगा.

परंतु आज जब जीवन इतना गुजर गया तो अनुभव हुआ कि प्रकाश का अपना कोई वजूद ही नहीं है, उस का ऐसा कोई अस्तित्व नहीं है कि जैसा दीपक के साथ या बल्ब, ट्यूबलाइट के साथ जुड़ा होता है. प्रकाश के साथ जुड़ी चीजें भले ही उस के प्रकाश के साथ जुड़ी हों लेकिन उन से प्रकाश का कोई लेनदेन या सरोकार नहीं होता. बिना किसी आग्रह के वह वहीं चला जाता है जहां बल्ब, ट्यूब- लाइट या दीपक जल रहा होता है.

वह खुद भी इस बात को सोचने की जरूरत भी नहीं समझता कि उस के चले जाने के बाद किसी का जीवन प्रकाशहीन हो कर अंधेरे में डूब जाएगा.

बड़ी नौकरी मिलते ही प्रकाश का रुख बदल गया था. घर, कार, पैसा उस के पास होते ही उस ने अपने तेवर बदल लिए थे. जब तक उस को जरूरत थी मातापिता को एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करता रहा.

अपनी इच्छा से उस ने शादी भी बाहर ही कर ली. शादी के एक साल तक अपने शहर भी नहीं आया था. आज  आएगा, वह भी केवल 4 घंटे के लिए, क्योंकि बहू के गले में खानदान का पुश्तैनी हार जो डलवाना चाहता है. इस के लिए उसे घर फोन कर के सूचना देने की पूरी याद रही. फोन पर उस ने मां से पूछा, ‘मां, कैसी हो?’

‘अच्छी हूं,’ कहते ही कितना दिल भर आया था. क्या कहती कि तेरे बिना घर सूना लग रहा है. तू भूल गया है लेकिन हम नहीं भूले. तेरी शादी के अरमान ऐसे ही धरे के धरे रह गए. परंतु कहा कुछ भी नहीं था.

‘पिताजी कैसे हैं?’ प्रकाश ने पूछा.

‘ठीक हैं, मजे में हैं?’ सोचा, क्यों बताऊं कैसे जी रहे हैं. बेटा हो कर जब तुझे दायित्व का बोध नहीं रहा, केवल अपना अधिकार याद है. पुश्तैनी हार…बहू के नाम पर रखे गहने तो याद हैं किंतु कर्तव्य नहीं.

वह सोच में पड़ी थी, बेटे ने यह भी नहीं सोचा कि मांपिताजी कैसे थोड़ी सी रकम से गुजारा कर रहे होंगे. सारा जीवन तो कमाकमा कर उसे पढ़ाते रहे. होनहार निकले…कितनेकितने घंटे पढ़ाती रही और तुझे पढ़ाने के लिए खुद पढ़पढ़ कर समझती रही. उस का ऐसा परिणाम?

‘हम दोनों आप से आशीर्वाद लेने आ रहे हैं.’

निधि के मन की तटस्थता बनी रही थी. प्रकाश की बातें सुनती रही. वह कह रहा था, ‘शाम को आएंगे. रात में भोजन साथ करेंगे.’ निधि ने किसी प्रकार का कोई आश्वासन नहीं दिया था. और फोन पर वार्तालाप बंद हो गया था.

निधि ने पति मनीष को प्रकाश और बहू दीया के आने की तथा बहू की मुंह दिखाई की रस्म में पुश्तैनी हार व अन्य गहने, जो उस के लिए कभी बनवाए थे, देने की मंशा जाहिर की साथ ही वह सारी बातें बता दीं जो प्रकाश ने उस से फोन पर कही थीं.

मनीष ने गहरी नजरों से निधि की ओर देखा. वह आश्वस्त हो गए कि निधि के चेहरे पर ममता का भाव तो है साथ ही पति के प्रति पूर्ण निष्ठा भी.

‘तुम क्या चाहती हो?’

पति के दिल को पढ़ते हुए निधि ने उत्तर दिया था, ‘जैसा आप कहें.’

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. दोनों के मन में एक जैसी भावनाएं चल रही थीं. मनीष वहीं से उठ कर आराम करने चले गए थे.

घर के खर्चे के लिए उन्होंने एक सेठ के यहां 2,500 रुपए की नौकरी कर ली थी. सुबह 6 बजे घर से निकलते और शाम 7 बजे घर आते. बसों में आनेजाने के कारण थकान बहुत ज्यादा हो जाती. अत: थोड़ी देर आराम करने के लिए भीतर के कमरे में चले गए.

बाहर घने बादलों के कारण कुछ ज्यादा ही अंधकार हो गया था. थोड़ी देर में टिपटिप बूंदाबांदी होने लगी. निधि उसी तरह बरामदे में बैठी रही. प्रकाश और दीया अभी तक नहीं आए थे. मन अनेक खट्टीमीठी घटनाओं को याद करता और भूलता रहा.

तभी एक टैक्सी गेट के पास आ कर रुकी. निधि उसी तरह बैठी खिड़की से देखती रही. वे दोनों उस के बहूबेटा ही थे, किंतु अंधकार के कारण कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी प्रकाश का स्वर सुनाई दिया, ‘‘लगता है, घर में रोशनी नहीं है.’’

आवाज सुन निधि की ममता उमड़ आई. मन में सोचा, ‘हां, ठीक कहा, घर में बेटा न हो तो प्रकाश कैसे होगा. तू आ गया है तो उजाला हो जाएगा.’ किंतु प्रकाश ने मां के भावों को नहीं समझा.

निधि ने उठ कर बत्ती जलाई. आवाज सुन कर मनीष भी उठ बैठे. मुख्यद्वार खोला. प्रकाश और दीया ने दोनों को प्रणाम किया. उन्होंने आशीर्वाद दिया, ‘‘सदा सुखी रहो.’’

मां और पिताजी ने बहू के आगमन की कोई तैयारी नहीं की थी, यह देख प्रकाश मन ही मन अपने को अपमानित महसूस करने लगा. न तो मां ने उठ कर कोई खातिरदारी का उपक्रम किया और न ही पिताजी ने.

कुछ देर तक निस्तब्धता छाई रही. मां और पिताजी के ठंडे स्वभाव को देख कर प्रकाश का तनमन क्रोधित हो उठा. वह सोचने लगा कि पुश्तैनी हार ले कर अब उसे चलना चाहिए. उस ने मां से कहा था, ‘‘अपनी बहू की मुंह दिखाई की रस्म पूरी करो, मां. हमारी टे्रन का समय हो रहा है.’’

मुंह दिखाई की रस्म की बात सुन कर मनीष ने कहा, ‘‘हां…हां…क्यों नहीं.’’ और जा कर अपने पर्स से 11 रुपए ला कर निधि को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘निधि, बहू की मुंह दिखाई की रस्म पूरी करो.’’

निधि ने पति की आज्ञानुसार वैसा ही किया. सगन देते हुए निधि ने कहा, ‘‘बहू, मुंह दिखाई की रस्म के बाद हम बहू से रसोई करवाते हैं. तुम जा कर रसोई में हलवापूरी बना दो. सारा सामान वहीं रखा हुआ है.’’

मां के मुंह से रस्म अदायगी की बात सुन कर प्रकाश ने अपने गुस्से को काबू में रखते हुए कहा, ‘‘वाह मां, क्या खूब. आप ने बहू को कुछ दिया तो नहीं पर काम करवा रही हैं…काम अगली बार करवाइएगा.’’

प्रकाश की बात सुन कर पिता ने कहा, ‘‘बेटा, अगली बार जब आएगी काम करेगी, घर के प्रति कर्तव्य निभाएगी तो फल भी पाएगी…यह सब तुम्हारा ही तो है…’’

‘‘दीया अभी खाना नहीं बनाएगी,’’ उस ने धीरे से कहा.

दीया चुपचाप सोफे पर बैठी थी. उस ने कलाई घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 8 बज रहे थे. उस ने उठते हुए कहा, ‘‘प्रकाश, ट्रेन का समय हो रहा है.’’

‘‘हां, हां, हमें चलना चाहिए. खाना हम ट्रेन में खा लेंगे,’’ प्रकाश ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘जैसा तुम दोनों चाहो,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

दोनों ने प्रणाम किया. मातापिता ने उन्हें गले लगा कर प्यार किया और विदा कर दिया.

दोनों के चले जाने के बाद निधि रसोई में आ कर सब्जी काटने लगी. मनीष भी रसोई में आ गए.

‘‘आप को 11 रुपए देने की क्या जरूरत थी?’’ निधि ने कहा.

‘‘अपने उस पढ़ेलिखे बेटे को समझाने के लिए कि हम ने सदा अपने बेटे के प्रति कर्तव्य निभाया है लेकिन तुम ने क्या सीखा? मुंह दिखाई के लिए बहू को लाया था…वह भी एक साल बाद.’’

‘‘इसलिए कह रही हूं कि सवा रुपया देना चाहिए था,’’ निधि की बात सुन मनीष ठहाका मार कर हंसने लगे.

बहुत देर तक हंसते रहे. हमारा ही बेटा हमारे ही कान काटने पर तुला है. वह भूल गया है कि वह हमारा बेटा है,  बाप नहीं. वह दोनों पहली बार भावुक नहीं हुए थे.

पतिपत्नी ने मिल कर खाना खाया. एकसाथ एक ही थाली में खाया. मनीष खूब मजेदार बातें निधि को सुनाते रहे और वह मनीष को.

आज एक लंबे अरसे के बाद पतिपत्नी अत्यंत प्रफुल्लित एवं संतुष्ट थे मानो खोया हुआ खजाना मिल गया हो. आज मन में समझदारी का प्रकाश हुआ हो. इसी तरह 4 घंटे बीत गए. मनीष ने निधि को कहा, ‘‘नव वर्ष की बहुतबहुत बधाई हो.’’

‘‘आप को भी आज प्रकाश के आने पर मन में समझदारी का प्रकाश हुआ है. नव वर्ष सब को शुभ हो,’’ कहते हुए वे दोनों घर की छत पर आ गए और वहां से गली में आनेजाने वालों को नव वर्ष की मुबारकबाद देने लगे.

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Summer Special: खूबसूरती का सतरंगा अहसास है सापूतारा

गुजरात का सापूतारा एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां ट्रैकिंग,एडवेंचर के साथ वाटरफॉल और दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देता है. यह गुजरात का एकमात्र हिल स्टेशन है. भीड़भाड़ से दूर एक ऐसी जगह, जहां गांव और शहर दोनों का मजा साथ-साथ है. शहर की आपाधापी से दूर आदिवासियों के बीच एक दूसरी ही दुनिया है.

फैमिली के साथ करें एंज्वॉय

छुट्टियों पर जाने का मकसद तो बस इतना ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा एंज्वॉय कर सकें. जगह इतनी खूबसूरत हो कि सारी परेशानियां और पूरे साल की आपाधापी की थकावट दूर कर सकें. वादियां इतनी खूबसूरत हों कि साल भर मन गुदगुदाता रहे. कुछ ऐसा ही है सापूतारा.

बादल कब आपको भिगो दें, पता ही नहीं चलता. थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाली रिमझिम से पूरी वादी हरी-भरी, चंचल-सी लगने लगती है. जिधर नजर दौड़ाइए, वादियां, पहाडिय़ां, उमड़ते-घुमड़ते बादल, तपती गरमी में मन को शांति देते हैं, जबकि ठंड में पहाडिय़ों पर सफेद बर्फ की चादर हर किसी को लुभाती है.

एडवेंचर के साथ मस्ती भी

एक पर्यटक को चंद दिन गुजारने के लिए जो सुकून, मस्ती चाहिए सापूतारा में वह सब एक साथ मौजूद है. घने जंगलों के बीच से गुजरते इस छोटे से टूरिस्ट स्पॉट पर एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए जिप राइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माउंटेन बाइकिंग के साथ साथ माउंटेनियरिंग की सुविधाएं भी मौजूद हैं. घने जंगलों से होकर इस गुजराती आदिवासी प्रदेश से गुजरना काफी रोमांचक है. पहाडिय़ों के बीच से जब आप गुजरेंगे, तो जगह- जगह छोटे-छोटे वाटरफॉल रोमांचित करते जाएंगे. झील, फॉल, ट्रैकिंग और एडवेंचर को एंज्वॉय करने का कंपलीट डेस्टिनेशन होने की वजह से युवाओं का फेवरेट टूरिस्ट स्पॉट भी है.

आदिवासियों का जनजीवन

गुजरात पर्यटन सापूतारा को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की तैयारी कर रहा है. आदिवासियों के घरों का चयन कर टूरिस्ट फ्रेंडली और उनके घरों में शौचालयों की व्यवस्था कर रही है. पर्यटक अधिक से अधिक आदिवासियों के जनजीवन को समझ सकें, इसके लिए आदिवासियों को भी खास तरह का प्रशिक्षण दिया गया है. आदिवासियों के साथ एक रात गुजारने की कीमत 2500 से तीन हजार रुपये है.

सापूतारा महाराष्ट्र और गुजरात के बॉर्डर पर है. सापूतारा नासिक और शिरडी से महज 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहां देशभर के पर्यटक आते हैं. दो-दो धार्मिक स्थल के बीच में होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र शाकाहारी है. बहुत ढूंढऩे के बाद कहीं एक-आध नानवेज की दुकान मिलती है. इसलिए इसे शाकाहारी शहर भी कहते हैं.

बारिशों का लुत्फ

रिमझिम बारिश के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि यहां कभी-भी बारिश होती है और छतरी की जरूरत नहीं पड़ती है. ये बारिश आपको गुदगुदाती हैं. पहाड़ियों पर उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी भी पहाड़ियों को अपने आगोश में ले लेते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच जिप ट्रैकिंग भी है.

अन्य आकर्षण

सापूतारा नाम के हिसाब से यहां सांप का झुंड या बसेरा होना चाहिए था. शायद वह घने जंगलों में हो. हां, यहां सांप का मंदिर जरूर है, जो पर्यटकों और बच्चों में खासा पॉपुलर है. यहां एक झील भी है, जो कपल्स के लिए मोस्ट रोमांटिक डेटिंग प्लेस की तरह दिखाई देता है. बोटिंग करते लोग और बारिश पूरे वातावरण को रोमांचक बना देता है. यहां पर जगह-जगह छल्ली मिलती है-नमक, मिर्च और नींबू के साथ,चाय और उबली हुई मूंगफली. अलग ही मजा है उबली मूंगफली का भी. यहां से ही कुछ दूरी पर है गिरा फॉल, जिसे नियाग्रा फॉल के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुचने का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है. मध्यमवर्गीय परिवारों का भी यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, क्योंकि यहां 1100 रुपये से लेकर 5500 रुपये तक के कमरे मौजूद हैं.

कैसे पहुंचें

सापूतारा सूरत, नासिक या शिरडी से भी पहुंचा जा सकता है. नजदीकी हवाई अड्डा सूरत है, जो करीब 170 किमी. की दूरी पर है. छोटी लाइन की ट्रेन से बाघई फिर वहां से सापूतारा पहुंच सकते हैं.

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पटाक्षेप- भाग 1: क्या पूरी हुई शरद और सुरभी की प्रेम कहानी

‘‘मां, मैं नेहा से विवाह करना चाहता हूं,’’ अनंत ने सिडनी से फोन पर सुरभि को सूचना दी. ‘‘कौन नेहा?’’ सुरभि चौंक उठी, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था. अनंत तो अभी

25 वर्ष का ही था. उस ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. सुरभि के दिमाग में तो उस का अनंत अभी वही निर्झर हंसी से उस के वात्सल्य को भिगोने वाला, दौड़ कर उस के आंचल में छिपने वाला, नन्हामुन्ना बेटा ही था. अब देखते ही देखते इतना बड़ा हो गया कि विवाह करने का मन ही नहीं बनाया, बल्कि लड़की भी पसंद कर ली.

पति अवलंब की मृत्यु के बाद उस ने कई कठिनाइयों को झेल कर ही उस की परवरिश की और जब अनंत को अपने प्रोजैक्ट के लिए सिडनी की फैलोशिप मिली तब उस ने अपने दिल पर पत्थर रख कर ही अपने जिगर के टुकड़े को खुद से जुदा किया. वह समझती थी कि बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी ममता का त्याग करना ही होगा. आखिर कब तक वह उसे अपने आंचल से बांध कर रख सकती थी. अब तो उस के पंखों में भी उड़ान भरने की क्षमता आ गई थी. अब वह भी अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले लेने में समर्थ था. उस ने अपने बेटे की पसंद को वरीयता दी और फौरन हां कर दी.

अनंत को अपनी मां पर पूरा यकीन था कि वे उस की पसंद को नापसंद नहीं करेंगी. नेहा भी सिडनी में उसी के प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. वहीं दोनों की मुलाकात हुई जो बाद में प्यार में बदल गई और दोनों ने विवाह करने का मन बना लिया. नेहा के पेरैंट्स ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

सुरभि ने अनंत से नेहा की फोटो

भेजने को कहा जो उसे जल्द ही

मिल गई. फोटो देख कर वह निहाल हो गई, कितनी प्यारी बच्ची है, भंवरें सी कालीकाली आंखें, आत्मविश्वास से भरी हुई, कद 5 फुट 5 इंच, होंठों पर किसी को भी जीत लेने वाली हंसी, सभीकुछ तो मनभावन था.

नेहा की हंसी ने सुरभि के बिसरे हुए अतीत को जीवंत कर दिया था, कितनी प्यारी पहचानी हुई हंसी  है. यह हंसी तो उस के खयालों से कभी उतरी ही नहीं. इसी हंसी ने तो उस के दिन का चैन, रातों की नींद छीन ली थी. इसी हंसी पर तो वह कुरबान थी. तो क्या नेहा शरद की बेटी है? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. हो सकता है यह मेरा भ्रम हो. उस ने फोटो पलट कर देखा, नेहा कोठारी लिखा था, उस का शक यकीन में बदल गया.

वह अचंभित थी. नियति ने उसे कहां से कहां ला कर खड़ा कर दिया. किस प्रकार वह प्रतिदिन नेहा के रूप में शरद को देखा करेगी? लेकिन वह अनंत को मना भी तो नहीं कर सकती थी क्योंकि नेहा शरद का प्यार है जिसे छीनने का उसे कोई हक भी नहीं है. सो, इस शादी को मना करने का कोई समुचित आधार भी तो नहीं था. वह बेटे को क्या कारण बताती. धोखा तो शरद ने उसे दिया था. उस का बदला नेहा से लेने का कोई औचित्य भी नहीं बनता था. आखिर उस का अपराध भी क्या है? नहींनहीं. अनंत और नेहा एकदूसरे के लिए तड़पें, यह उसे मंजूर नहीं था.

शादी के बाद पता ही न चला कि शरद कहां है और उस ने कभी जानने का प्रयास भी नहीं किया. अब उस का मन उस से छलावा कर रहा था. नेहा की फोटो देखते ही लगता मानो शरद ही सामने खड़े मुसकरा रहे हों.

शरद ने न जाने कब चुपके से उस के जीवन में प्रवेश किया था. शरद जिस ने उस की कुंआरी रातों को चाहत के कई रंगीन सपने दिखाए थे. कैसे भूल सकती थी वह दिन जब उस ने विश्वविद्यालय में बीए (प्रथम वर्ष) में ऐडमिशन लिया था.

भीरु प्रवृत्ति की सहमीसहमी सी लड़की जब पहले दिन क्लास अटैंड करने पहुंची तो बड़ी ही घबराई हुई थी. जगहजगह लड़केलड़कियां झुंड बना कर बातें कर रहे थे. वह अचकचाई सी कौरिडोर में इधरउधर देख रही थी. उसे अपने क्लासरूम का भी पता नहीं था. कोई भी ऐसा नहीं दिख रहा था, जिस से वह पूछ सके. तभी एक सौम्य, दर्शनीय व्यक्तित्व वाला युवक आता दिखा.

उस ने तनिक हकलाते हुए पूछा, रूम नंबर 40 किधर पड़ेगा? उस लड़के ने उसे अचंभे से देखा, फिर तनिक मुसकराते हुए बोला, ‘आप रूम नंबर 40 के सामने ही खड़ी हैं.’ ‘ओह,’ वह झेंप गई और क्लास में जा कर बैठ गई.

‘हाय, आई एम नीमा कोठारी.’ उस ने पलट कर देखा. उस की बगल में एक प्यारी सी उसी की समवयस्क लड़की आ कर बैठ गई. उस ने सुरभि की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया. कुछ ही देर में दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

क्लास समाप्त होते ही दोनों एकसाथ बाहर आ गईं. ‘दादा,’ नीमा चिल्ला उठी. सुरभि ने चौंक कर देखा, वही युवक उन की ओर बढ़ा चला आ रहा था. ‘क्यों रे, क्लास ओवर हो गईर् थी या यों ही बंक कर के भाग रही है?’ उस ने नीमा को छेड़ा.

‘नहीं दादा, क्लास ओवर हो गई थी. और आप ने यह कैसे सोच लिया कि हम क्लास बंक कर के भाग रहे हैं?’

उस के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी.

‘सौरी बाबा, अब नहीं कहूंगा,’ उस ने अपने कान पकड़ने का नाटक किया. नीमा मुसकरा उठी. फिर उस ने पलट कर सुरभि से उसे मिलवाया, ‘दादा, इन से मिलो, ये हैं सुरभि टंडन, मेरी क्लासमेट. और सुरभि, ये हैं मेरे दादा, शरद कोठारी, सौफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में पोस्टेड हैं.’ उस ने दोनों का परिचय कराया.

सुरभि संकोच से दोहरी हुई जा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े.

‘मैं इन से मिल चुका हूं. क्यों, है न?’ उस ने दृष्टता से मुसकराते हुए सुरभि की ओर देखा. ‘अच्छा,’ नीमा ने शोखी से कहा.

घर आ कर सुरभि उस पूरे दिन के घटनाक्रम में उलझी रही. ‘यह क्या हो रहा है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, न जाने कितने लोगों से प्रतिदिन मुलाकात होती रहती थी लेकिन इतनी बेचैनी तो पहले कभी नहीं हुई.’ मन में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे.

 

घोंसले का तिनका- भाग 3: क्या टोनी के मन में जागा देश प्रेम

दरवाजा खोलते ही मैं ने एक दंपती को देखा तो देखता ही रह गया. 5 साल पहले मैं ने जिस बहन को देखा था वह इतनी बड़ी हो गई होगी, मैं ने सोचा भी न था. साथ में एक पुरुष और मांग में सिंदूर की रेखा को देख कर मैं समझ गया कि उस की शादी हो चुकी है. मेरे कदम वहीं रुक गए और शब्द गले में ही अटक कर रह गए. वह तेजी से मेरी तरफ आई और मुझ से लिपट गई…बिना कुछ कहे.

मैं उसे यों ही लिपटाए पता नहीं कितनी देर तक खड़ा रहा. मिशैल ने मुझे संकेत किया और हम सब भीतर आ गए.

‘‘भैया, आप को मेरी जरा भी याद नहीं आई. कभी सोचा भी नहीं कि आप की छोटी कैसी है…कहां है…आप के सिवा और कौन था मेरा,’’ यह कह कर वह सुबकने लगी.

मेरे सारे शब्द बर्फ बन चुके थे. मेरे भीतर का कठोर मन और देर तक न रह सका और बड़े यत्न से दबाया गया रुदन फूट कर सामने आ गया. भरे गले से मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिशैल के कारण. उन्होंने ही यहां का पता बताया था,’’ छोटी सुबकियां लेती हुई बोली.

तब तक मिशैल भी मेरे पास आ चुकी थी. वह कहने लगी, ‘‘टोनी, सच बात यह है कि तुम्हारे एक दोस्त से ही मैं ने तुम्हारे घर का पता लिया था. मैं सोचती रही कि शायद तुम एक बार अपने घर जरूर जाओगे. मैं तुम्हारे भीतर का दर्द भी समझती थी और बाहर का भी. तुम ने कभी भी अपने मन की पीड़ा और वेदना को किसी से नहीं बांटा, मेरे से भी नहीं. मैं कहती तो शायद तुम्हें बुरा लगता और तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचती. मुझ से कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना पर अपनों से इस तरह नाराज नहीं होना चाहिए.’’

‘‘मां कैसी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मां तो रही नहीं…तुम्हें बताते भी तो कहां?’’ कहतेकहते छोटी की आंखें नम हो गईं.

‘‘कब और कैसे?’’

‘‘एक साल पहले. हर पल तुम्हारा इंतजार करती रहती थीं. मां तुम्हारे गम में बुरी तरह टूट चुकी थीं. दिन में सौ बार जीतीं सौ बार मरतीं. वह शायद कुछ और साल जीवित भी रहतीं पर उन में जीने की इच्छा ही मर चुकी थी और आखिरी पलों में तो मेरी गोद में तुम्हारा ही नाम ले कर दरवाजे पर टकटकी बांधे देखती रहीं और जब वह मरीं तो आंखें खुली ही रहीं.’’

यह सब सुनना और सहना मेरे लिए इतना कष्टप्रद था कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. मैं दीवार का सहारा ले कर बैठ गया. मां की भोली आकृति मेरी आंखों के सामने तैरने लगी. मुझे एकएक कर के वे क्षण याद आते रहे जब मां मुझे स्कूल के लिए तैयार कर के भेजती थीं, जब मैं पास होता तो महल्ले भर में मिठाइयां बांटती फिरतीं, जब होलीदीवाली होती तो बाजार चल कर नए कपड़े सिलवातीं, जब नौकरी न मिली तो मुझे सांत्वना देतीं, जब राखी और भैया दूज का टीका होता तो इन त्योहारों का महत्त्व समझातीं और वह मां आज नहीं थीं.

‘‘उन के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन भी शायद मेरी तकदीर में नहीं थे,’’ कह कर मैं फूटफूट कर रोने लगा. छोटी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे इस अपमान और संवेदना से निकालने का प्रयत्न किया.

छोटी ने ही मेरे पूछने पर मुझे बताया था कि मेरे घर से निकलने के अगले दिन ही पता लग चुका था कि मैं विदेश के लिए रवाना हो चुका हूं. शुरू के कुछ दिन तो वह मुझे कोसने में लगे रहे पर बाद में सबकुछ सहज होने लगा. छोटी ही उन दिनों मां को सांत्वना देती रहती और कई बार झूठ ही कह देती कि मेरा फोन आया है और मैं कुशलता से हूं.

छोटी का पति उस की ही पसंद का था. दूसरी जाति का होने के बावजूद मांबाबूजी ने चुपचाप उसे शादी की सहमति दे दी. मेरे विदेश जाने में मेरी बातों का समर्थन न देने का अंजाम तो वे देख ही चुके थे.

अपने पति के साथ छोटी ने मुझे ढूंढ़ने की कोशिश भी की थी पर सब पुराने संपर्क टूट चुके थे. अब अचानक मिशैल के पत्र से वह खुश हो गई और बाबूजी को बताए बिना यहां तक आ पहुंची थी.

‘‘बाबूजी कैसे हैं?’’ मैं ने बड़ी धीमी और सहमी आवाज में पूछा.

‘‘ठीक हैं. बस, जी रहे हैं. मां के मरने के बाद मैं ने कई बार अपने साथ रहने को कहा था पर शायद वह बेटी के घर रहने के खिलाफ थे.’’

इस से पहले कि मैं कुछ कहता, मिशैल बोली, ‘‘टोनी, यह देश तो तुम्हारे लिए पराया हो गया है पर मांबाप तो तुम्हारे अपने हैं. तुम अपने फादर को मिल लोगे तो उन्हें भी अच्छा लगेगा और तुम्हारे बेचैन मन को शांति मिलेगी…फिर न जाने तुम्हारा आना कब हो,’’  उस के स्वर की आर्द्रता ने मुझे छू लिया.

मिशैल ठीक ही कह रही थी. मेरे पास समय बहुत कम था. मैं बिना कोई समय गंवाए उन से मिलने चला गया.

बाबूजी को देखते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी. पर वह ठहरे हुए पानी की तरह एकदम शांत थे. पहले वाली मुसकराहट उन के चेहरे पर अब नहीं थी. उन्होंने अपनी बूढ़ी पनीली आंखों से मुझे देखा तो मैं टूटी टहनी की तरह उन की गोद में जा गिरा और उन के कदमों में अपना सिर सटा दिया. बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए बाबूजी. मां की असामयिक मौत का मैं ही जिम्मेदार हूं.’’

मैं ने नजर उठा कर घर के चारों तरफ देखा. एकदम रहस्यमय वातावरण व्याप्त था. बीता समय बारबार याद आता रहा. बाबूजी ने मुझे उठा कर सीने से लगा लिया. आज पहली बार महसूस हुआ कि शांति तो अपनी जड़ों से मिल कर ही मिलती है. मैं उन्हें साथ ले जाने की जिद करता रहा पर वह तो जैसे वहां से कहीं जाना ही नहीं चाहते थे.

‘‘तू आ गया है बस, अब तेरी मां को भी शांति मिल जाएगी,’’ कह कर वह भीतर मेरे साथ अपने कमरे में आ गए और मां की तसवीर के पीछे से लाल कपड़ों में बंधी मां की अस्थियों को मुझे दे कर कहने लगे, ‘‘देख, मैं ने कितना संभाल कर रखा है तेरी मां को. जातेजाते कुरुक्षेत्र में प्रवाहित कर देना. बस, यही छोटी सी तेरी मां की इच्छा थी,’’ बाबूजी की सरल बातें मेरे अंतर्मन को छू गईं.

मां की अस्थियां हाथ में आते ही मेरे हाथ कांपने लगे. मां कितनी छोटी हो चुकी थीं. मैं ने उन्हें कस कर सीने में भींच लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो, मां.’’

2 दिन बाद ही मैं, छोटी, उस के पति और पापा के साथ दिल्ली एअरपोर्र्ट रवाना हुआ. मिशैल बड़ी ही भावुक हो कर सब से विदा ले रही थी. भाषा न जानते हुए भी उस में अपनी भावनाओं को जाहिर करने की अभूतपूर्व क्षमता थी. बिछुड़ते समय वह बोली, ‘‘आप सब लोग एक बार हमारे पास जरूर आएं. मेरा आप के साथ कोई रिश्ता तो नहीं है पर मेरी मां कहती थीं कि कुछ रिश्ते इन सब से कहीं ऊपर होते हैं जिन्हें हम समझ नहीं सकते.’’

‘‘अब कब आओगे, भैया?’’ छोटी के पूछने पर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. मैं कोई भी उत्तर न दे सका और तेजी से भीतर आ गया. उस का सवाल अनुत्तरित ही रहा. मैं ने भीतर आते ही मिशैल से भरे हृदय से कहा, ‘‘मिशैल, आज तुम न होतीं तो शायद मैं…’’

सच तो यह था कि मेरा पूरा शरीर ही मर चुका था. मैं फूटफूट कर रोने लगा. मिशैल ने फिर से मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे पास ही बिठा दिया और बड़े दार्शनिक स्वर में बोली, ‘‘सच, दुनिया तो यही है जो तुम्हारा तिलतिल कर इंतजार करती रही और करती रहेगी, और तुम अपनी ही झूठी दुनिया में खोए रहना चाहते हो. तुम यहां से जाना चाहते हो तो जाओ पर कितनी भी ऊंचाइयां छू लो जब भी नीचे देखोगे स्वयं को अकेला ही पाओगे.

‘‘मेरी मानो तो अपनी दुनिया में लौट जाओ. चले जाओ…अब भी वक्त है…लौट जाओ टोनी, अपनी दुनिया में.’’

मिशैल ने बड़ा ही मासूम सा अनुरोध किया. मेरे सोए हुए जख्म भीतर से रिसने लगे. मेरे सोचने के सभी रास्ते थोड़ी दूर जा कर बंद हो जाते थे. मैं ने इशारे से उस से सहमति जतलाई.

मैं उस से कस कर लिपट गया और वह भी मुझ से चिपक गई.

‘‘बहुत याद आओगे तुम मुझे,’’ कह कर वह रोने लगी, ‘‘पर मुझे भूल जाना, पता नहीं मैं पुन: तुम्हें देख भी पाऊंगी या नहीं,’’ कह कर वह तेज कदमों से जहाज की ओर चली गई.

आज सोचता हूं और सोचता ही रह जाता हूं कि वह कौन थी…अपना सर्वस्व मुझे दे कर, मुझे रास्ता दिखा कर वह न जाने अब वहां कैसे रह रही होगी.

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