पटाक्षेप- भाग 2: क्या पूरी हुई शरद और सुरभी की प्रेम कहानी

नीमा तो कह रही थी कि शरद बेंगलुरु में है तो फिर यहां क्या कर रहा है, फौरन ही उस का मन जवाब देता, हो सकता है आजकल यहीं हो और अपनी बहन को पहले दिन यूनिवर्सिटी छोड़ने आया हो. रहरह कर शरद का मुसकराता चेहरा उस की आंखों के सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता था, क्यों, झकझोर दिया न मैं ने तुम को, हो रही हो न मुझ से मिलने को बेचैन?

‘हांहां, मैं बेचैन हो रही हूं तुम से मिलने के लिए, क्या तुम भी?’ वह अनायास ही बुदबुदा उठी.

‘क्या हुआ दीदी, तुम नींद में क्या बुदबुदा रही हो?’ बगल में सोई हुई उस की छोटी बहन ऋ तु ने पूछा.

‘क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. तूने कोई सपना देखा होगा,’ सुरभि ने खिसिया कर चादर में अपना मुंह ढांप लिया और सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन हजारों मनौतियां मनाते हुए वह घर से निकली, काश कि आज भी शरद से मुलाकात हो जाए तो कितना अच्छा होगा. पूरे दिन दोनों सहेलियां साथ ही रहीं किंतु वह नहीं आया. चाह कर भी वह  नीमा से कुछ भी नहीं पूछ सकी, शर्म ने उसे जकड़ रखा था. उस का मन शरद से मिलने को बेचैन हो रहा था पर संस्कारों के चाबुक की मार से उस ने खुद को साधे रखा था. इन्हीं विचारों में डूबउतर रही थी कि तभी शरद आता दिखा.

‘क्या बात है दादा, आज आप फिर यहां. आज तो मेरा दूसरा दिन है और मैं कोई अकेली भी नहीं हूं,’ नीमा ने शरद को छेड़ा.

‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस चला जाऊंगा, सोचा आज तुझे थोड़ा घुमाफिरा दूं, इत्मीनान से बातें करते हैं, तुझे कोई प्रौब्लम तो नहीं. फिर तो अरसे बाद ही मुलाकात होगी,’ शरद ने सुरभि की ओर देखते हुए कहा.

नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था. ‘अच्छा दादा, आप सुरभि से बातें करिए, मैं अभी कौमन हौल से हो कर आती हूं.’ नीमा यह कहने के साथ सुरभि की ओर देख कर मुसकराती हुई चली गई.

सुरभि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले, तभी शरद बोल उठा, ‘तुम्हें कुछ कहना तो नहीं है, मैं कल सुबह चला जाऊंगा.’

‘नहीं, मुझे क्या कहना है,’ सुरभि नर्वस हो रही थी.

‘ठीक है, फिर यह न कहना कि मैं ने तुम्हें कुछ कहने का मौका नहीं दिया,’ शरद ने तनिक ढिठाई से कहा. तभी नीमा आते हुए दिखी. नीमा ने आ कर बताया, ‘आज क्लासेज सस्पैंड हो गई हैं.’ यह कहने के साथ उस ने आगे कहा, ‘चलो न दादा, कहीं घूमफिर आएं, तू चलेगी न सुरभि?’

सुरभि पसोपेश में पड़ गई, क्या करे, जाने का मन तो है पर यदि घर में यह बात पता चली, तब? मांपापा कुछ गलत न समझ बैठें. वैसे भी जब उस के दाखिले की बात हुई, तभी मामाजी ने टोका था, ‘जीजाजी, लड़की को विश्वविद्यालय भेज कर आप गलती कर रहे हैं, कहीं हाथ से निकल न जाए.’ लेकिन उस का मन चंचल हो रहा था, क्या हुआ यदि थोड़ी देर और शरद का साथ मिल जाए…और वह तैयार हो गई. तीनों ने खूब घुमाईफिराई की. शाम को नीमा और शरद ने अपनी कार से उसे उस के घर छोड़ा. उस के मांपापा भी उन दोनों से मिल कर बहुत प्रभावित हुए.

दूसरे दिन उस का मन बहुत अशांत

था. आज शरद चला जाएगा, न

जाने अब कब मुलाकात हो. वह बड़े ही अनमने ढंग से क्लासेज के लिए तैयार हो कर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई. सामने से नीमा आते दिखी. सुरभि को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘पता है, दादा आज भी नहीं गए. एक माह के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा ली हैं. असल मे दादा के जाने के नाम से ही मम्मी परेशान होने लगती हैं. बस, दादा को रुकने का बहाना मिल गया. उन्होंने अपना जाना कैंसिल कर दिया.’ लेकिन सुरभि अच्छी तरह समझती थी कि वह क्यों नहीं गया.

अब अकसर ही दोनों की मुलाकातें होने लगीं और उस ने अपना दिल शरद के हवाले कर दिया बिना यह जाने कि शरद भी उस को प्यार करता है या नहीं. लेकिन जब शरद ने बिना किसी लागलपेट के सीधेसादे शब्दों में अपने प्यार का इजहार कर दिया तो वह झूम उठी. ऐसा लग रहा था मानो पूरा सतरंगी आसमान ही उस की मुट्ठी में सिमट आया हो. वह अरमानों के पंखों पर झूला झूलने लगी.

एक रविवार को शरद अपने पेरैंट्स और नीमा को ले कर उस के घर आ धमका. उस ने अपने कमरे की खिड़की से देखा. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हा रहा था. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. ‘चलो दीदी, मां ने तुम्हें ड्राइंगरूम में बुलाया है,’ ऋ तु ने आ कर उसे चौंका दिया. वह अचकचाई सी मां के बुलाने पर सब के बीच पहुंच गई. शरद के पेरैंट्स उस के पेरैंट्स से बातों में मग्न थे. उसे देखते ही शरद की मां ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया, ‘हमें आप की बेटी बहुत ही पसंद है. हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं अगर आप को एतराज न हो.’

वह शर्म से लाल हो रही थी. मांपापा इसी बात पर निहाल थे कि उन्हें घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता मिल गया. उन्होंने फौरन हां कर दी. उस की भावी सास ने पर्स से अंगूठी निकाली और शरद से उसे पहनाने के लिए कहा. शरद ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और उस की अनामिका में अंगूठी पहना कर अपने प्यार की मुहर लगा दी. उस ने भी मां द्वारा दी गई अंगूठी शरद को पहना कर अपनी स्वीकृति दे दी.

उसे यह सब स्वप्न सा महसूस हो रहा था. आखिर इतनी जल्दी उस का प्यार उसे मिलने वाला था. वह इस अप्रत्याशित सगाई के लिए तैयार न थी. क्या सच में जो प्यार उस के दिल के दरवाजे पर अब तक दस्तक दे रहा था, वह उस की झोली में आ गिरा. तभी, ‘भाभी’, कह कर नीमा उस से लिपट गई. लज्जा के मारे उस से वहां बैठा भी नहीं जा रहा था. वह नीमा को ले कर अपने कमरे में आ गई.

 

REVIEW: ऊंची दुकान फीका पकवान है ‘मॉडर्न लव मुंबई’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः प्रीतीश नंदी कम्यूनीकेशन

निर्देशकःहंसल मेहता, विशाल भारद्वाज, अलंकृता श्रीवास्तव, शोनाली बोस, ध्रुव सहगल और नुपूर अस्थाना

कलाकारः प्रतीक गांधी, प्रतीक बब्बर, मेयांग चैंग, रणवीर ब्रार, वामिका गब्बी, मसाबा गुप्ता, अरशद वारसी और फातिमा सना शेख आदि

अवधिः 37 से 43 मिनट की छह लघु कहानियां, कुल अवधि चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम पर 13 मई से स्ट्ीमिंग

अमरीका के दैनिक अखबार ‘न्यू यार्क टाइम्स ’’ में प्रकाशित एक स्तम्भ पर आधारित वेब सीरीज ‘‘मॉडर्न लव न्यूयार्क’’ के दो सीजन प्रसारित हो चुके हैं, जिन्हे वहां काफी पसंद किया गया. अब प्रीतीशनंदी कम्यूनीकेशन उसी को मुंबई की पृष्ठभूमि में  ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपे कॉलम की छह कहानियों या यॅू कहें कि एंथेलॉजी के तहत छह लघु फिल्मों को एक साथ वेब सीरीज ‘मॉडर्न लव मुंबई’’ के नाम से लेकर आया है. जो कि 13 मई से ‘‘अमेजॉन प्राइम वीडियो’ पर स्ट्रीम हो रही है. इन्हें देखकर घोर निराशा हुई. मुंबई शहर सपनों का शहर. जहां हर दिन हजारों लोग देश के हर कोने से अपने सपनों को पूरा करने के लिए पहुॅचता है और फिर मुंबई शहर की तेज गति से भागती जिंदगी में वह खो जाता है. मुंबई की जिंदगी में काफी विविधताएं हैं. देश के हर कोने से ही नहीं बल्कि कई दूसरे देशों के लोग भी यहां आते हैं, तो उनकी जिंदगी क्या हो सकती है, यह सभी समझ सकते हैं. जिंदगी जीने के संघर्ष के साथ प्यार का होना भी स्वाभाविक है. उसी प्यार को छह भिन्न भिन्न निर्देशकों ने अलग अलग कहानियों के माध्यम से उकेरा है.  मगर इन सभी छह लघु फिल्मों में कुछ भी नयापन नही है. चार घ्ंाटे का समय बर्बाद करने के बाद दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.  यह कहानियां मुंबई की जीवनशैली, मुंबई में जीवन की आपा धापी, संघर्ष आदि को लेकर कोई बात नहीं करती. इस वेब सीरीज से मुंबई की धड़कन पूरी तरह से गायब है.

कहानी व समीक्षाः

अलंकृता श्रीवास्तव निर्देशित कहानी ‘‘माई ब्यूटीफुल रिंकल्स‘ में बोल्ड और खुर्राट दिलबर सोढ़ी (सारिका) की कहानी है. जो 25 वर्षीय बिजनेस एनालिस्ट कुणाल (दानेश रजवी) को अंग्रेजी बोलना सिखाती हैं. कुणाल एक दिन दिलबर को उनकी एक अजीब सी तस्वीर बना कर देता है और कहता है कि वह रात रात भर उनके साथ रहने का सपना देखता रहता है. वह कह जाता है कि वह उनके साथ सेक्स भी करना चाहता है. दिलबर तुरंत उसे युवा लड़कियों के सपने देखने की सलाह देेते हुए घर से निकाल देती हैं. मगर फिर अपनी सहेलियों के साथ गपशप करने के बाद दिलबर, कुणाल को बुलाकर दोस्ताना संबंध रखती है, इस शर्त पर कि उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं होगा.

‘‘लिपस्टिक अंडर बुर्खा’’से जबरदस्त शोहरत हासिल कर चुकी अलंकृता श्रीवास्तव इस फिल्म में बुरी तरह से मात खा गयी हैं. वह प्रेम कथा को भी उभार नहीं पायी. पूरी फिल्म अति धीमी गति से ही आगे बढ़ती हैै. जिसे देखते हुए दर्शक सोचने लगता है कि कि यह कब खत्म होगी.

इसमें सारिका और दानेश रजवी का अभिनय भी आकर्षणहीन है.

दूसरी कहानी ‘‘मार्गरीटा विथ स्ट्पि’’ फेम निर्देशक शोनाली बोस की ‘‘रात रानी ’’है. इस कहानी कें केंद्र में शादीशुदा कश्मीरी लड़की  लाली (फातिमा सना शेख) है, जो पिछले दस साल से अपने बोरिंग व वाचमैन की नौकरी कर रहे पति लुत्फी (भूपेंद्र जदावत) के साथ मुंबई में रह रही है. लाली भी एक घर में काम करती है. लाली दस साल पहले  अपने पिता का विरोध कर अपने से नीची जाति के लुत्फी संग शादी कर कश्मीर छोड़कर मुंबई आ गयी थी. उसने पति के लिए स्कूटर खरीदकर दिया. मगर एक दिन अचानक लुत्फी उसे छोड़कर चला जाता है. कुछ दिन लाली, लुत्फी को बार बार फोन कर वापस आने की बात करती है. पर एक दिन वह अकेले ही जिंदगी जीने का निर्णय लेकर सायकल चलाते हुए दिन व रात में काम कर अपने टूटे मकान को बनाने के साथ ही एक नई जिंदगी जीना शुरू कर देती है, जिसमें लुत्फी के लिए कोई जगह नहीं है.

शोनाली बोस बेहतरीन कथा वाचक और निर्देशक हैं, इसमें कोई दो राय नही है. इस फिल्म से उन्होने साबित कर दिखाया कि उन्हे नारी मन की बेहतरीन समझ हैं. वह सामाजिक बंधनों को तोड़ने की भी वकालत करते हुए नजर आती हैं. फिल्म में ट्पिल तलाक का मुद्दा भी हैं. लगभग 41 मिनट की इस लघु फिल्म में शोनाली बोस ने नारी उत्थान का मुद्दा भी खूबसूरती से उठाया है. सभी छह कहानियों में से एक मात्र यह ऐसी काहनी लघु फिल्म है, जो दर्शकों को कुछ हद तक बांध कर रखती है.

लेकिन  ‘‘रात रानी’’ की कमजोर कड़ी इसके कलाकार फातिमा सना शेख व भूपेंद्र जतावत हैं. भूपेंद्र के हिस्से कुछ खास करने को आया ही नही. मगर फातिमा सना शेख ने अपनी ‘ओवर एक्टिंग’ से सब कुछ बर्बाद कर डाला.

हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘‘बाई’’ की कहानी काफी बिखरी हुई है. अति धीमी गति से बागे बढ़ने वाली इस कहानी में यही नहीं समझ में आता कि यह ‘बाई’ यानी कि नायक मंजर अली उर्फ मंजू (प्रतीक गांधी) की दादी (तनुजा) की कहानी है अथवा होमोसेक्सुअल समलैंगिक मंजर अली की कहानी है. फिल्म की शुरूआत दंगों से की जाती है. खैर, मंजर के माता पिता को लगता है कि बाई यह बर्दाश्त नही कर पाएंगी कि उनका पोता समलैंगिक है. वह एक अच्छी लड़की से मंजर का निकाह करवाने की बात करते हैं. मगर मंजर मुंबई छोड़कर गोवा जाकर समलैंगी राजवीर (रणवीर ब्रार  ) से विवाह कर लेता है.

हंसल मेहता बेहतरीन निर्देशक हैं. मैं उनकी कई फिल्मों का प्रशंसक हॅूं. मगर इस बार हंसल मेहता ने निराश किया है. वह समलैगिकता पर ‘अलीगढ़’जैसी फिल्म दे चुके हैं. उसके बाद ‘बाई’ तो मलमल में ताट का पैबंद ही है. इस फिल्म में समलैंगिक प्यार को लेकर उनका ताना-बाना हास्यास्पद है. मंजर व राजवीर के  बीच किसिंग सीन से लेकर बिस्तर के दृश्य अजीब ढंग से फिल्माए हैं. यह हंसल मेहता की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है.

जहां तक अभिनय की बात है तो प्रतीक गांधी और रणवीर ब्रार दोनो ही निराश करते हैं.

नूपुर अस्थाना की फिल्म ‘कटिंग चाई‘ में उपन्यास लिख रही लतिका(चित्रांगदा सिंह) और उनके पति डैनी(अरशद वारसी) के रिश्ते की कहानी है. डैनी कभी भी सही समय पर कहीं नहीं पहुंचते.

‘‘कटिंग चाय’’ प्रेम कहानी की बजाय पति पत्नी के बीच रिश्ते की कहानी बयां करने वाली अति धीमी गति की फिल्महै. इस तरह के विषय पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि दर्शक इसे देखना चाहे.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अरशद वारसी का अभिनय बेहतरीन है. वह अपने सदाबहार वाले अंदाज में नजर आते हैं.  मगर चित्रांगदा सिंह निराश करती हैं. लगता है कि वह अभिनय भूलती जा रही हैं.

ध्रुव सहगल निर्देशित कहानी लघु फिल्म ‘‘आई लव थाणे’’ की कहानी के केंद्र में बांदरा में रहने वाली आर्किटेक्ट व लैंडस्केप डिजायनर साईबा (मासाबा गुप्ता) हैं, जो रिश्ते में बंधने के लिए परेशान हैं. इसी बीच उन्हें ठाणे म्यूनीशिपल कारपोरेशन की तरफ से एक हरा भरा पार्क बनाने का काम मिलता है. यहां उन्हें अपनी उम्र से कम उम्र के ठाणे में रहने वाले पार्थ (ऋत्विक भौमिक) के साथ काम करना है. धीरे धीरे साईबा, पार्थ की ओर आकर्षित होती है.

ध्रुव सहगल बतौर लेखक व निर्देशक बुरी तरह से असफल रहे हैं. कहानी की गति धीमी तो है ही, वहीं एडीटिंग व मिक्सिंग भी गड़बड़ है. दृश्य आने से पहले ही संवाद शुरू हो जाते हैं. कहानी में ऐसा कुछ नही है कि लोग देखना चाहें. यह फिल्म बोर ही करती हैं.

जहंा तक अभिनय का सवाल है तो जब कहानी व पटकथा मंे दम न हो तो कलाकार कुछ नही कर सकता. वैसे अभिनय उनके वश की बात नही है, इस बात को मासाबा गुप्ता जितनी जल्दी समझ जाएं, उतना ही उनके हित में होगा. ऋत्विक भौमिक भी नही जमे.

विशाल भारद्वाज निर्देशित ‘‘मुंबई ड्ैगन’’ की कहानी के केंद्र में सुई (येओ यान यान) हैं, जो कि युद्ध के वक्त अपने पिता के साथ चीन से भारत आ गयी थी. अपने पिता की तरह सुई भी अति स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं. उनके पति का देहंात हो चुका है. बेटा मिंग(मियांग चांग) डाक्टर बनते बनते गायक बनने के लिए संघर्ष करने के साथ ही एक गुजराती लड़की मेघा के प्यार में पड़ा हुआ है. वह मेघा(वामिका गब्बी ) के साथ मेघा के पिता के घर मंे पेइंग गेस्ट है. सुई अपने बेटे मिंग का विवाह चीनी लड़की से ही करना चाहती है. इसी बात को लेकर मां बेटे के बीच टकराव है.

विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘‘मुंबई डै्गन’’ चुं चुं का मुरब्बा के अलावा कुछ नही है. इस कहानी के साथ दर्शक जुड़ नही पाता.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो मां सुई के किरदार में येओ यान यान का अभिनय ठीक ठाक है. मगर मियांग चांग और वामिका गब्बी निराश करती हैं.

डिलीवरी के बाद एंग्जाइटी अटैक का शिकार हुईं थीं Charu Asopa, पढ़ें खबर

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) की भाभी और एक्ट्रेस चारू असोपा (Charu Asopa Sen) आए दिन अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां कई लोग उन्हें ट्रोल करते हैं तो वहीं फैंस उनकी लाइफ से जुड़ी नई बात जानने के लिए बेताबा रहते हैं. इसी बीच एक्ट्रेस ने डिलीवरी के बाद आने वाली परेशानियों का खुलासा किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ननद ने की मदद

 

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बीते दिनों चारू असोपा अपने पति राजीव सेन और बेटी जियाना सेन के साथ समय बिताती नजर आईं थीं, जिसके बाद वह ट्रोलिंग का शिकार भी हुईं थीं. वहीं अब अपनी प्रैग्नेंसी और डिलीवरी के बारे में बात करते हुए एक्ट्रेस ने एक इंटरव्यू में बताया कि बेटी जियाना के जन्म के बाद पहले महीने में वह एंग्जाइटी से जूझ रही थीं, जिसके कारण वह बेटी जियाना को 6-7 दिन तक ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाई थीं. हालांकि एक्ट्रेस की ननद यानी एक्ट्रेस सुष्मिता सेन ने उनकी काफी मदद की.

 

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शादी को लेकर सुर्खियों में रहती हैं एक्ट्रेस

 

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सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन (Rajeev Sen) से जून 2019 में शादी करने वाली एक्ट्रेस चारू असोपा के बीच शादी के कुछ ही महीने बाद मनमुटाव होने लगा था. वहीं खबरें थीं कि वह पति से अलग भी रहने लगी थीं. हालांकि बाद में सब ठीक हो गया था. वहीं कई बार दोनों के बीच अनबन की खबरें आती रही हैं. लेकिन सोशलमीडिया पर शेयर की गई फोटोज से एक्ट्रेस अफवाहों का खारीज कर देती है, जिसके चलते कई बार वह ट्रोलिंग की शिकार भी हो जाती हैं.

बेटी के साथ बिता रही हैं वक्त

 

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एक्ट्रेस चारू असोपा भले ही एक्टिंग करियर से दूर हैं. लेकिन वह अपनी लाइफ को पूरी तरह एन्जौय कर रही हैं. एक्ट्रेस अपनी बेटी और परिवार के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता रही हैं, जिसकी फोटोज और वीडियोज वह सोशलमीडिया के जरिए फैंस के साथ शेयर कर रही हैं.

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अनुुपमा-अनुज की शादी में दोबारा आएगी अड़चन! मालविका होगी कारण

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) की कहानी इन दिनों फैंस का दिल जीत रही है. जहां अनुपमा-अनुज (Anuj-Anupama Romance) का रोमांस फैंस को पसंद आ रहा है तो वहीं बा और वनराज की जलन दर्शकों को अच्छी लग रही है. हालांकि शादी में एक के बाद एक मुसीबत आती हुई नजर आ रही है. जहां बीते दिनों बापूजी के कारण शादी रुकने की नौबत आ गई थी तो वहीं अब मालविका के कारण अनुज शादी रोकने का फैसला करने वाला है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

देविका मारेगी ताना

 

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अब तक आपने देखा कि हल्दी की रस्मों में अनुज और अनुपमा रोमांटिक होते हुए नजर आते हैं, जिसे देखकर वनराज औऱ बा का चेहरा उतर जाता है. वहीं अनुपमा-अनुज की हल्दी में किन्नर आकर दोनों को दुआएं देते हुए नजर आते हैं, जिसके बाद देविका, बा और वनराज को ताना मारते हुए नजर आती है.

काव्या देगी अनुपमा का साथ

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि लीला रसोई में हल्दी वाला दूध बनाएगी और चिल्लाते हुए कहेगी कि शादी जल्द से जल्द खत्म हो जाए और अनुपमा जल्द ही अपने घर से निकल जाए. इसी बीच अनुपमा उनसे टकरा जाएगी और हल्दी उस पर गिर जाएगी, जिसके चलते अनुपमा, बा को हल्दी लगाने के लिए शुक्रिया कहेगी और गले लगा लेगी. वहीं बा शांत रहेगी. दूसरी तरफ, वनराज, काव्या को सौतन की शादी में खुश होने का कारण पूछेगा, जिसका जवाब देते हुए काव्या कहेगी कि अनुपमा कभी उनकी दुश्मन नहीं थीं और हमेशा उनकी मदद करती थीं, जिसे सुनकर वनराज हैरान होगा.

मालविका के कारण अनुज लेगा फैसला

 

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इसके अलावा आप सीरियल में देखेंगे कि अनुपमा, बच्चों को भरोसा दिलाते हुए कहेगी कि वह शादी के बाद भी अपने बच्चों के लिए कभी नहीं बदलेगी. वहीं मालविका, अनुज को शादी के दिन ही यूएसए लौटने की बात कहेगी, जिसे सुनकर अनुज उसकी मौजूदगी के बिना शादी नहीं करने का फैसला लेगा.

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Summer Special: नाश्ते में परोसें एप्पल हनी श्रीखंड

अगर आप नाश्ते में हैल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो एप्पल हनी श्रीखंड आपके लिए बेस्ट औप्शन साबित होगा. आइए आपको बताते हैं एप्पल हनी श्रीखंड की खास रेसिपी.

सामग्री

– 2 कप हंग कर्ड

– 1 सेब

– 1 बड़ा चम्मच शहद

– 2 बड़े चम्मच चीनी

– 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

– 25 ग्राम पनीर.

विधि

सेब के छोटेछोटे टुकड़े काट लें. हंग कर्ड में पनीर व चीनी पाउडर अच्छी तरह मैश कर फेंट लें. इस में शहद, सेब व दालचीनी पाउडर डाल कर ठंडा कर तुरंत सर्व करें.

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घोंसले का तिनका- भाग 2: क्या टोनी के मन में जागा देश प्रेम

मिशैल ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं ने कोई गलत बात कह दी हो. वह धीरे से मुझ से कहने लगी, ‘‘तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. क्या तुम्हें अपने देश से कोई प्रेम नहीं रहा?’’

मैं उस की बातों का अर्थ ढूंढ़ने का प्रयास करता रहा. शायद वह ठीक ही कह रही थी. हाल में दूर हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में राजस्थानी लोकगीत की धुन के साथसाथ मिशैल के पांव भी थिरकने लगे. वह वहां से उठ कर चली गई.

मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद भारतीय सामान से सजे स्टैंड की तरफ चला गया. मेरे हैंडीक्राफ्ट के स्टैंड पर पहुंचते ही एक व्यक्ति उठ कर खड़ा हो गया और बोला,  ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

‘‘नो थैंक्स, मैं तो बस, यों ही,’’ मैं हिंदी में बोलने लगा.

‘‘कोई बात नहीं, भीतर आ जाइए और आराम से देखिए,’’ वह मुसकरा कर हिंदी में बोला.

तब तक पास के दूसरे स्टैंड से एक सरदारजी आ कर उस व्यक्ति से पूछने लगे, ‘‘यार, खाने का यहां क्या इंतजाम है?’’

‘‘पता नहीं सिंह साहब, लगता है यहां कोई इंडियन रेस्तरां नहीं है. शायद यहीं की सख्त बै्रड और हाट डाग खाने पड़ेंगे और पीने के लिए काली कौफी.’’

जिस के स्टैंड पर मैं खड़ा था वह मेरी तरफ देख कर बोले, ‘‘सर, आप तो यहीं रहते हैं. कोई भारतीय रेस्तरां है यहां? ’’

‘‘भारतीय रेस्तरां तो कई हैं, पर यहां कुछ दे पाएंगे…यह पूछना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनत्व की भावना से कहा.

मैं ने एक रेस्तरां में फोन कर के उस से पूछा. पहले तो वह यहां तक पहुंचाने में आनाकानी करता रहा. फिर जब मैं ने उसे जरमन भाषा में थोड़ा सख्ती से डांट कर और इन की मजबूरी तथा कई लोगों के बारे में बताया तो वह तैयार हो गया. देखते ही देखते कई लोगों ने उसे आर्डर दे दिया. सब लोग मुझे बेहद आत्मीयता से धन्यवाद देने लगे कि मेरे कारण उन्हें यहां खाना तो नसीब होगा.

अगले 3 दिन मैं लगातार यहां आता रहा. मैं अब उन में अपनापन महसूस कर रहा था. मैं जरमन भाषा अच्छी तरह जानता हूं यह जान कर अकसर मुझे कई लोगों के लिए द्विभाषिए का काम करना पड़ता. कई तो मुझ से यहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में पूछते तो कई यहां की मैट्रो के बारे में. मैं ने उन को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं, जिस से पहले दिन ही उन के लिए सफर आसान हो गया.

आखिरी दिन मैं उन सब से विदा लेने गया. हाल में विदाई पार्टी चल रही थी. सभी ने मुझे उस में शामिल होने की प्रार्थना की. हम ने आपस में अपने फोन नंबर दिए, कइयों ने मुझे अपने हिसाब से गिफ्ट दिए. भारतीय मेला प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुझे मेरे सहयोग के लिए सराहा और भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों में समर्थन देने को कहा. मिशैल मेरे साथ थी जो इन सब बातों को बड़े ध्यान से देख रही थी.

अगले कई दिन तक मैं निरंतर अपनों की याद में खोया रहा. मन का एक कोना लगातार मुझे कोसता रहा, न चाहते हुए भी रहरह कर यह विचार आता रहा कि किस तरह अपने मातापिता से झूठ बोल कर विदेश चला आया. उस समय यह भी नहीं सोचा कि मेरे पीछे उन्होंने कैसे यह सब सहा होगा.

एक दिन मिशैल और मैं टेलीविजन पर कोई भारतीय प्रोग्राम देख रहे थे. कौफी की चुस्कियों के साथसाथ वह बोली, ‘‘तुम्हें याद है टोनी, उस दिन इंडियन कौफी बोर्ड की कौफी पी थी. सचमुच बहुत ही अच्छी थी. सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगा और वह कठपुतलियों का नाच भी…कभीकभी मेरा मन करता है कुछ दिन के लिए भारत चली जाऊं. सुना है कला और संस्कृति में भारत ही विश्व की राजधानी है.’’

‘‘क्या करोगी वहां जा कर. जैसा भारत तुम्हें यहां लगा असल में ऐसा है नहीं. यहां की सुविधाओं और समय की पाबंदियों के सामने तुम वहां एक दिन भी नहीं रह सकतीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मैं जाना जरूर चाहूंगी. तुम वहां नहीं जाना चाहते क्या? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि तुम अपने देश जाओ?’’

‘‘मन तो करता है पर तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ सकोगी,’’ मैं ने बड़े बेमन से कहा.

‘‘चलो, अपने लोगों से तुम न मिलना चाहो तो न सही पर हम कहीं और तो घूम ही सकते हैं.’’

मैं चुप रहा. मैं नहीं जानता कि मेरे भीतर क्या चल रहा है. दरअसल, जिन हालात में मैं यहां आया था उन का सामना करने का मुझ में साहस नहीं था.

सबकुछ जानते हुए भी मैं ने अपनेआप को आने वाले समय पर छोड़ दिया और मिशैल के साथ भारत रवाना हो गया.

हमारा प्रोग्राम 3 दिन दिल्ली रुकने के बाद आगरा, जयपुर और हरिद्वार होते हुए वापस जाने का तय हो गया था. मिशैल के मन में जो कुछ देखने का था वह इसी प्रोग्राम से पूरा हो जाता था.

जैसे ही मैं एअरपोर्ट से बाहर निकला कि एक वातानुकूलित बस लुधियाना होते हुए अमृतसर के लिए तैयार खड़ी थी. मेरा मन कुछ क्षण के लिए विचलित सा हो गया और थोड़ा कसैला भी. मेरा अतीत इन शहरों के आसपास गुजरा था. इन 5 वर्षों में भारत में कितना बदलाव आ गया था. आज सबकुछ ठीक होता तो सीधा अपने घर चला जाता. मैं ने बड़े बेमन से एक टैक्सी की और मिशैल को साथ ले कर सीधा पहाड़गंज के एक होटल में चला गया. इस होटल की बुकिंग भी मिशैल ने की थी.

मैं जिन वस्तुओं और कारणों से भागता था, मिशैल को वही पसंद आने लगे. यहां के भीड़भाड़ वाले इलाके, दुकानों में जा कर मोलभाव करना, लोगों का तेजतेज बोलना, अपने अहं के लिए लड़ पड़ना और टै्रफिक की अनियमितताएं. हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा के तट पर बैठना, मंदिरों में जा कर घंटियां बजाना उस के लिए एक सपनों की दुनिया में जाने जैसा था.

जैसेजैसे हमारे जाने के दिन करीब आते गए मेरा मन विचलित होने लगा. एक बार घर चला जाता तो अच्छा होता. हर सांस के साथ ऐसा लगता कि कुछ सांसें अपने घर के लिए भी तैर रही हैं. अतीत छाया की तरह भरमाता रहा. पर मैं ने ऐसा कोई दरवाजा खुला नहीं छोड़ा था जहां से प्रवेश कर सकूं. अपने सारे रास्ते स्वयं ही बंद कर के विदेश आया था. विदेश आने के लिए मैं इतना हद दर्जे तक गिर गया था कि बाबूजी के मना करने के बावजूद उन की अलमारी से फसल के सारे पैसे, बहन के विवाह के लिए बनाए गहने तक मैं ने नहीं छोड़े थे. तब मन में यही विश्वास था कि जैसे ही कुछ कमा लूंगा, उन्हें पैसे भेज दूंगा. उन के सारे गिलेशिक वे भी दूर हो जाएंगे और मैं भी ठीक से सैटल हो जाऊंगा. पर ऐसा हो न सका और धीरेधीरे अपने संबंधों और कर्तव्यों से इतिश्री मान ली.

शाम को मैं मिशैल के साथ करोल बाग घूम रहा था. सामने एक दंपती एक बच्चे को गोद में उठाए और दूसरे का हाथ पकड़ कर सड़क पार कर रहे थे. मिशैल ने उन की तरफ इशारा कर के मुझ से कहा, ‘‘टोनी, उन को देखो, कैसे खुशीखुशी बच्चों के साथ घूम रहे हैं,’’ फिर मेरी तरफ कनखियों से देख कर बोली, ‘‘कभी हम भी ऐसे होंगे क्या?’’

किसी और समय पर वह यह बात करती तो मैं उसे बांहों में कस कर भींच लेता और उसे चूम लेता पर इस समय शायद मैं बेगानी नजरों से उसे देखते हुए बोला, ‘‘शायद कभी नहीं.’’

‘‘ठीक भी है. बड़े जतन से उन के मातापिता उन्हें बड़ा कर रहे हैं और जब बडे़ हो जाएंगे तो पूछेंगे भी नहीं कि उन के मातापिता कैसे हैं…क्या कर रहे हैं… कभी उन को हमारी याद आती है या…’’ कहतेकहते मिशैल का गला भर गया.

मैं उस के कहने का इशारा समझ गया था, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’ मेरी आवाज भारी थी.

‘‘कुछ नहीं, डार्लिंग. मैं ने तो यों ही कह दिया था. मेरी बातों का गलत अर्थ मत लगाओ,’’ कह कर उस ने मेरी तरफ बड़ी संजीदगी से देखा और फिर हम वापस अपने होटल चले आए.

उस पूरी रात नींद पलकों पर टहल कर चली गई थी. सूरज की पहली किरणों के साथ मैं उठा और 2 कौफी का आर्डर दिया. मिशैल मेरी अलसाई आंखों को देखते हुए बोली, ‘‘रात भर नींद नहीं आई क्या. चलो, अब कौफी के साथसाथ तुम भी तैयार हो जाओ. नीचे बे्रकफास्ट तैयार हो गया होगा,’’ इतना कह कर वह बाथरूम चली गई.

दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने मिशैल को बाथरूम में ही रहने को कहा क्योंकि वह ऐसी अवस्था में नहीं थी  कि किसी के सामने जा सके.

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6 Tips: नेल पॉलिश लगाते समय रखें ध्यान

नेल पॉलिश आपके हाथों को और भी खूबसूरत बनाती है, लेकिन नाखूनों पर नेल पॉलिश लगते समय नेल पेंट खराब तरीके से लग जाए, तो उससे आपके नाखून और हाथ भद्दे दिखने लगते हैं, इसलिए हम आपको बताएंगे वह 6 बातें जिन्हें आप नेल पॉलिश लगाते समय जरूर ध्यान रखें.

1. नेल पॉलिश लगते समय ध्यान रखें कि जब आपके नाखून पूरी तरह सूखे हों, तब ही नेल पॉलिश लगाएं, अगर आप गीले नाखूनों पर नेल पेंट लगाएंगी तो वह छूट सकती है, नेल पॉलिश लगाने से पहले अपने नाखूनों को शेप देना न भूलें, सबसे पहले आप अपने नाखूनों को एक अच्छा और सही शेप जरूर दें.

2. नाखूनों को अच्छा और सही शेप देने के बाद सबसे पहले नेल पेंट का एक ट्रांसपेरैंट बेस कोट लगाएं, ट्रांसपेरैंट नेल पेंट को ब्रश से नाखूनों के बीच से लगाना शुरू करें और एक बार फिर ब्रश को ट्रांसपेरैंट नेल पेंट में डुबोकर ब्रश से नाखूनों के दो अलग हिस्सों में भी एक-एक कोट लगाएं.

3. ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट अच्छी तरह सूख जाए उसके बाद अपनी पसंद का नेल पॉलिश का रंग लें और जिस तरह ट्रांसपेरैंट नेल पेंट बेस कोट नाखूनों पर लगाया है, उसी तरह अपने पसंदीदा नेल पॉलिश के रंग को भी नाखूनों पर बेस कोट के ऊपर लगाएं अगर रंग हल्का दिख रहा है, तो पहला कोट सूखने के बाद नेल पॉलिश के रंग का दूसरा कोट भी लगाएं.

4. हमेशा अच्छी नेल पॉलिश लगाएं, अगर आपकी नेल पॉलिश अच्छी नहीं है, तो नेल पॉलिश लगाने के बाद अपनी उंगलियों को बर्फ के पानी में डुबाएं इससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी तरह सेट हो जाएगी और चमकेगी.

5. अगर आपकी नेल पॉलिश नाखूनों से बाहर किनारों पर लग गई है तो उसे ध्यान से और अच्छी तरह नेल पॉलिश रिमूवर से साफ कर लें जिससे आपके नाखूनों पर नेल पॉलिश अच्छी और साफ दिखे.

6. नाखूनों पर नेल पॉलिश लगने के बाद अपने हाथ ठण्डे पानी में डुबाएं इससे आपकी नेल पॉलिश और पक्की हो जाएगी साथ ही साथ साफ दिखेगी, नेल पॉलिश पूरी तरह सूखने के बाद ही कोई काम करें.

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रिश्ते में जरुरी है थोड़ा प्यार, थोड़ी छेड़छाड़

नेहा ने कुहनी मार कर समर को फ्रिज से दूध निकालने को कहा तो, वह चिढ़ गया, ‘‘क्या है? नजर नहीं आता, मैं कपड़े पहन रहा हूं?’’

लेकिन नेहा ने तो ऐसा प्यारवश किया था. और बदले में उसे भी इसी तरह के स्पर्श, छेड़छाड़ की चाहत थी. मगर समर को इस तरह का स्पर्श पसंद नहीं आया.

नेहा का मूड अचानक बिगड़ गया. वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आकर्षित करने के लिए कुहनी मारी थी. इस के बदले में तुम से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया चाहिए थी, पर तुम तो गुस्सा हो गए.’’

समर यह सुन कर कुछ पल सहमा खड़ा रहा, फ्रिज से दूध निकाल कर देते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें समझ नहीं सका. मैं ने तुम्हारे इमोशंस को नहीं समझा. मैं शर्मिंदा हूं. इस मामले में शायद अभी अनाड़ी हूं.’’

शब्द को कई खास नहीं थे पर दिल की गहराइयों से निकले थे. बोलते समय समर के चेहरे पर शर्मिंदगी की झलक भी थी.

नेहा का गुस्सा काफूर हो गया. वह समर के पास आई और उस के कालर को छूते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरी नाराजगी को महसूस किया, इतना ही मेरे लिए काफी है. तुम ने अपनी गलती मान ली यह भी एक स्पर्श ही है. मेरे दिल को तुम्हारे शब्द सहला गए हैं… मेरे तनमन को पुलकित कर गए हैं,’’ और फिर वह उस के गले लग गई.

समर के हाथ सहसा ही नेहा की पीठ पर चले गए औैर फिर नेहा की कमर को छूते हुए बोला, ‘‘कितनी पतली है तुम्हारी कमर.’’

समर का यह कहना था कि नेहा ने समर के पेट में धीरे से उंगली चुभा दी. वह मचल कर पलंग पर गिर पड़ा तो नेहा भी हंसते हुए उस के ऊपर गिर पड़ी. फिर कुछ पल तक वे यों ही हंसतेखिलखिलाते रहे.

इस तरह बढ़ेगा प्यार

ऐसे ही जीवन में रोमांस बढ़ता है. तीखीमीठी दोनों ही तरह की अनुभूतियां जीवन में रस घोलती हैं और रिलेशन को आसान एवं जीने लायक बनाती हैं. आजकल वैसे भी कई तरह के तनाव औैर जिम्मेदारियां दिमाग में चक्कर लगाती रहती हैं. पास हो कर भी पतिपत्नी हंसबोल नहीं पाते. बस दूरदूर से ही एकदूसरे को देखते रह जाते हैं. ऐसे बोर कर देने वाले पलों में साथी को छेड़ना किसी औषधि से कम मूल्यवान नहीं हो सकता. अधिकतर पतिपत्नी तनाव के पलों में चाह कर भी आपस में बोलबतिया नहीं पाते. ऐसे ही क्षणों में पहल करने की जरूरत होती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या सहलाएं. शुरू में तो वह आप को अनदेखा करेगा पर अधिक देर तक नहीं कर सकेगा, क्योंकि छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव रिस्पौंस मिलता है. आप पत्नी हैं यह सोच कर न डरें. यह सोच कर अबोलापन न पसरने दें कि न जाने पति आप की पहल को किस रूप में लेगा. इस तरह के डर के साथ जीने वालों की लाइफ में कभी रोमांस नहीं आ पाता और उम्र यों ही निकल जाती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या गले लगें अथवा कमर पर हाथ रख कर स्पर्श करें, शुरू में तो साथी आप की छेड़खानी नजरअंदाज करने लगेगा, पर अधिक देर तक वह आप की छेड़खानी को अनदेखा नहीं कर सकेगा, क्योंकि छूने या छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव संदेश मिलता है और इस संदेश के पहुंचते ही धीरेधीरे दिमाग से तनाव की काली छाया हट जाती है. आप उसे अच्छे लगने लगते हैं. वह गुड फील करने लगता है. यह फीलिंग ही रोमांस के पलों को आप के बीच विकसित करने में मदद करती है.

सुखद पहलू

नेहा ने चुपचाप खड़े समर को अचानक कुहनी मार कर फ्रिज से दूध निकालने को कहा था, उस पर वह चिढ़ गया. लेकिन नेहा डरीसहमी नहीं, बल्कि उस ने अपनी फीलिंग्स और अंदर के प्यार व इमोशंस को बताने की पूरी कोशिश की. समर का गुस्सा छूमंतर हो गया और वह शर्मिंदा भी हुआ. फिर उस ने भी नेहा के प्रति अपनी फीलिंग्स जाहिर करनी शुरू कर दीं. दोनों अगले ही पल रोमांस के रंगों में रंग गए. उन का मूड आशिकाना हो गया. एकदूसरे को अच्छे लगने लगे.

यही है रोमांस और रोमांच को वैवाहिक जीवन में लाने की तकनीक, जिस का हम में से अधिकांश दंपतियों को पता ही नहीं होता. बस साथ रहते हैं. मन करता है तो बोल लेते हैं या बहस कर लेते हैं. ज्यादा ही तनाव में होते हैं, तो एकदूसरे के आगे रो लेते हैं. लेकिन यह मैरिड लाइफ का नैगेटिव पक्ष है इस से पतिपत्नी कभी रोमांटिक कपल नहीं बन सकते. उन के जीवन में जो भी घटता है, वह स्वाभाविक या नैचुरल रूप से नहीं, बल्कि जबरदस्ती, यौन संबंध हो या प्यार अथवा हंसीमजाक, जिसे इन चीजों की जरूरत होती है, वह खुद शादी के करीब आ कर कोशिश करता है. अब सब सामने वाले साथी के मूड पर निर्भर करता है. वह अपने पार्टनर की इच्छा की पूर्ति करना चाहता है या नहीं. यही मैरिड लाइफ का सुखद पहलू है, रोमांटिक पहलू है. ऐसा कब तक एक साथी दूसरे के साथ जोरजबरदस्ती करेगा? एक दिन थकहार कर कोशिश करना ही छोड़ देगा.

कैसे बनें रोमांटिक

आज की मैरिड लाइफ में जिम्मेदारियों के बोझ के कारण एकदूसरे को देख कर कोई भी प्यारअनुराग मन में पैदा नहीं हो पाता. ये सिर्फ और सिर्फ मन से ही उत्पन्न हो सकती हैं और आप दोनों में से किसी एक को ही इस के लिए आगे आना होगा. अब आगे आए कौन? इस दुविधा में ही जोड़ी रोमांस के पल हाथ से जाने देती है, मेरी राय में पत्नी से बेहतर जीवन को समझने वाला कोई हो ही नहीं सकता. एक औरत होने के नाते वह स्नेही हृदय की होती है, दिल वाली होती है. प्रेम का अर्थ वह जानती है. फिर जो प्यार को जानता है वही पुरुष को रोमांटिक बना सकता है. नेहा ने कोशिश की तो उसे बदले में रोमांस के पल मिले. आप भी इस मामले में हठी न बनें. मन में इगो न पालें कि जब पति को मेरी कोई जरूरत नहीं है, वह मुझ से बात करने को राजी नहीं है, तो मैं क्यों फालतू में उस के साथ जबरदस्ती जा कर बात करूं. ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए. इस  से दांपत्य जीवन बंजर बन जाता है. आप औरत हैं, आप में पैदाइशी प्यार, रोमांस सैक्स के भाव हैं. आप जब चाहें जैसे चाहें पति को रोमांटिक बना सकती हैं. रोमांस आप से पैदा होता है और आप के भीतर हमेशा ही होता है. जरूरत है बस उसे जीवन में लाने की. फिर देखिए, तनाव और जिम्मेदारियों पर कैसे रोमांस भारी पड़ने लगता है.

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नव वर्ष का प्रकाश: कैसे घटी मनीष और निधि की दूरियां

उस के मन में आने वाले नव वर्ष के लिए बेचैनी होने लगी.प्रकाश ने फोन पर इतना ही कहा था कि वह दीया को ले कर पहुंच रहा है. अंधेरा घिर आया था लेकिन निधि ने अभी तक घर की बत्तियां नहीं जलाई थीं. जला कर वह करती भी क्या. जिस के जीवन से ही प्रकाश चला गया हो उस के घर के कमरों में प्रकाश हो न हो, क्या फर्क पड़ता है.

प्रकाश, जिसे पिछले 31 सालों से उन्होंने अपने खूनपसीने से सींचा था, जिस के पलपल का खयाल रखा था, जिस की पसंदनापसंद बड़ी माने रखती थी, उसी ने आज उन्हें बंजर, बेसहारा बना दिया था.

ममता भरे स्नेहिल आंचल की छांव में जो प्रकाश खेला था आज एकाएक अपने तक ही सीमित हो गया था. उस ने अपने मातापिता को बुढ़ापे में यों निकाल फेंका था मानो पैर में चुभा कांटा निकाल कर फेंक दिया हो. बेचारे मातापिता अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचा भी नहीं पाए थे. सोचा था प्रकाश पढ़लिख जाएगा तो कमा लेगा, हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा. यह एहसास निधि के लिए जानलेवा था. सारे दिन वह व्यथित रहती. उस पर पति का कठोर जीवन उसे और भी सालता. पति को जीतोड़ मेहनत करते देख उसे बहुत दुख होता. अपने जिगर के टुकड़े से उसे ऐसी उम्मीद न थी.

निधि को वह दिन याद आया जब प्रकाश का नामकरण किया गया था. सब उसे राज…राजकुमार नाम से पुकारने लगे थे किंतु उस ने प्रकाश नाम रखा. शायद यह सोच कर कि प्रकाश नाम से उसे सदैव जीवन में प्रकाश मिलता रहेगा और दूसरों को भी वह अपने प्रकाश से प्रकाशित करेगा.

परंतु आज जब जीवन इतना गुजर गया तो अनुभव हुआ कि प्रकाश का अपना कोई वजूद ही नहीं है, उस का ऐसा कोई अस्तित्व नहीं है कि जैसा दीपक के साथ या बल्ब, ट्यूबलाइट के साथ जुड़ा होता है. प्रकाश के साथ जुड़ी चीजें भले ही उस के प्रकाश के साथ जुड़ी हों लेकिन उन से प्रकाश का कोई लेनदेन या सरोकार नहीं होता. बिना किसी आग्रह के वह वहीं चला जाता है जहां बल्ब, ट्यूब- लाइट या दीपक जल रहा होता है.

वह खुद भी इस बात को सोचने की जरूरत भी नहीं समझता कि उस के चले जाने के बाद किसी का जीवन प्रकाशहीन हो कर अंधेरे में डूब जाएगा.

बड़ी नौकरी मिलते ही प्रकाश का रुख बदल गया था. घर, कार, पैसा उस के पास होते ही उस ने अपने तेवर बदल लिए थे. जब तक उस को जरूरत थी मातापिता को एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करता रहा.

अपनी इच्छा से उस ने शादी भी बाहर ही कर ली. शादी के एक साल तक अपने शहर भी नहीं आया था. आज  आएगा, वह भी केवल 4 घंटे के लिए, क्योंकि बहू के गले में खानदान का पुश्तैनी हार जो डलवाना चाहता है. इस के लिए उसे घर फोन कर के सूचना देने की पूरी याद रही. फोन पर उस ने मां से पूछा, ‘मां, कैसी हो?’

‘अच्छी हूं,’ कहते ही कितना दिल भर आया था. क्या कहती कि तेरे बिना घर सूना लग रहा है. तू भूल गया है लेकिन हम नहीं भूले. तेरी शादी के अरमान ऐसे ही धरे के धरे रह गए. परंतु कहा कुछ भी नहीं था.

‘पिताजी कैसे हैं?’ प्रकाश ने पूछा.

‘ठीक हैं, मजे में हैं?’ सोचा, क्यों बताऊं कैसे जी रहे हैं. बेटा हो कर जब तुझे दायित्व का बोध नहीं रहा, केवल अपना अधिकार याद है. पुश्तैनी हार…बहू के नाम पर रखे गहने तो याद हैं किंतु कर्तव्य नहीं.

वह सोच में पड़ी थी, बेटे ने यह भी नहीं सोचा कि मांपिताजी कैसे थोड़ी सी रकम से गुजारा कर रहे होंगे. सारा जीवन तो कमाकमा कर उसे पढ़ाते रहे. होनहार निकले…कितनेकितने घंटे पढ़ाती रही और तुझे पढ़ाने के लिए खुद पढ़पढ़ कर समझती रही. उस का ऐसा परिणाम?

‘हम दोनों आप से आशीर्वाद लेने आ रहे हैं.’

निधि के मन की तटस्थता बनी रही थी. प्रकाश की बातें सुनती रही. वह कह रहा था, ‘शाम को आएंगे. रात में भोजन साथ करेंगे.’ निधि ने किसी प्रकार का कोई आश्वासन नहीं दिया था. और फोन पर वार्तालाप बंद हो गया था.

निधि ने पति मनीष को प्रकाश और बहू दीया के आने की तथा बहू की मुंह दिखाई की रस्म में पुश्तैनी हार व अन्य गहने, जो उस के लिए कभी बनवाए थे, देने की मंशा जाहिर की साथ ही वह सारी बातें बता दीं जो प्रकाश ने उस से फोन पर कही थीं.

मनीष ने गहरी नजरों से निधि की ओर देखा. वह आश्वस्त हो गए कि निधि के चेहरे पर ममता का भाव तो है साथ ही पति के प्रति पूर्ण निष्ठा भी.

‘तुम क्या चाहती हो?’

पति के दिल को पढ़ते हुए निधि ने उत्तर दिया था, ‘जैसा आप कहें.’

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. दोनों के मन में एक जैसी भावनाएं चल रही थीं. मनीष वहीं से उठ कर आराम करने चले गए थे.

घर के खर्चे के लिए उन्होंने एक सेठ के यहां 2,500 रुपए की नौकरी कर ली थी. सुबह 6 बजे घर से निकलते और शाम 7 बजे घर आते. बसों में आनेजाने के कारण थकान बहुत ज्यादा हो जाती. अत: थोड़ी देर आराम करने के लिए भीतर के कमरे में चले गए.

बाहर घने बादलों के कारण कुछ ज्यादा ही अंधकार हो गया था. थोड़ी देर में टिपटिप बूंदाबांदी होने लगी. निधि उसी तरह बरामदे में बैठी रही. प्रकाश और दीया अभी तक नहीं आए थे. मन अनेक खट्टीमीठी घटनाओं को याद करता और भूलता रहा.

तभी एक टैक्सी गेट के पास आ कर रुकी. निधि उसी तरह बैठी खिड़की से देखती रही. वे दोनों उस के बहूबेटा ही थे, किंतु अंधकार के कारण कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी प्रकाश का स्वर सुनाई दिया, ‘‘लगता है, घर में रोशनी नहीं है.’’

आवाज सुन निधि की ममता उमड़ आई. मन में सोचा, ‘हां, ठीक कहा, घर में बेटा न हो तो प्रकाश कैसे होगा. तू आ गया है तो उजाला हो जाएगा.’ किंतु प्रकाश ने मां के भावों को नहीं समझा.

निधि ने उठ कर बत्ती जलाई. आवाज सुन कर मनीष भी उठ बैठे. मुख्यद्वार खोला. प्रकाश और दीया ने दोनों को प्रणाम किया. उन्होंने आशीर्वाद दिया, ‘‘सदा सुखी रहो.’’

मां और पिताजी ने बहू के आगमन की कोई तैयारी नहीं की थी, यह देख प्रकाश मन ही मन अपने को अपमानित महसूस करने लगा. न तो मां ने उठ कर कोई खातिरदारी का उपक्रम किया और न ही पिताजी ने.

कुछ देर तक निस्तब्धता छाई रही. मां और पिताजी के ठंडे स्वभाव को देख कर प्रकाश का तनमन क्रोधित हो उठा. वह सोचने लगा कि पुश्तैनी हार ले कर अब उसे चलना चाहिए. उस ने मां से कहा था, ‘‘अपनी बहू की मुंह दिखाई की रस्म पूरी करो, मां. हमारी टे्रन का समय हो रहा है.’’

मुंह दिखाई की रस्म की बात सुन कर मनीष ने कहा, ‘‘हां…हां…क्यों नहीं.’’ और जा कर अपने पर्स से 11 रुपए ला कर निधि को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘निधि, बहू की मुंह दिखाई की रस्म पूरी करो.’’

निधि ने पति की आज्ञानुसार वैसा ही किया. सगन देते हुए निधि ने कहा, ‘‘बहू, मुंह दिखाई की रस्म के बाद हम बहू से रसोई करवाते हैं. तुम जा कर रसोई में हलवापूरी बना दो. सारा सामान वहीं रखा हुआ है.’’

मां के मुंह से रस्म अदायगी की बात सुन कर प्रकाश ने अपने गुस्से को काबू में रखते हुए कहा, ‘‘वाह मां, क्या खूब. आप ने बहू को कुछ दिया तो नहीं पर काम करवा रही हैं…काम अगली बार करवाइएगा.’’

प्रकाश की बात सुन कर पिता ने कहा, ‘‘बेटा, अगली बार जब आएगी काम करेगी, घर के प्रति कर्तव्य निभाएगी तो फल भी पाएगी…यह सब तुम्हारा ही तो है…’’

‘‘दीया अभी खाना नहीं बनाएगी,’’ उस ने धीरे से कहा.

दीया चुपचाप सोफे पर बैठी थी. उस ने कलाई घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 8 बज रहे थे. उस ने उठते हुए कहा, ‘‘प्रकाश, ट्रेन का समय हो रहा है.’’

‘‘हां, हां, हमें चलना चाहिए. खाना हम ट्रेन में खा लेंगे,’’ प्रकाश ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘जैसा तुम दोनों चाहो,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

दोनों ने प्रणाम किया. मातापिता ने उन्हें गले लगा कर प्यार किया और विदा कर दिया.

दोनों के चले जाने के बाद निधि रसोई में आ कर सब्जी काटने लगी. मनीष भी रसोई में आ गए.

‘‘आप को 11 रुपए देने की क्या जरूरत थी?’’ निधि ने कहा.

‘‘अपने उस पढ़ेलिखे बेटे को समझाने के लिए कि हम ने सदा अपने बेटे के प्रति कर्तव्य निभाया है लेकिन तुम ने क्या सीखा? मुंह दिखाई के लिए बहू को लाया था…वह भी एक साल बाद.’’

‘‘इसलिए कह रही हूं कि सवा रुपया देना चाहिए था,’’ निधि की बात सुन मनीष ठहाका मार कर हंसने लगे.

बहुत देर तक हंसते रहे. हमारा ही बेटा हमारे ही कान काटने पर तुला है. वह भूल गया है कि वह हमारा बेटा है,  बाप नहीं. वह दोनों पहली बार भावुक नहीं हुए थे.

पतिपत्नी ने मिल कर खाना खाया. एकसाथ एक ही थाली में खाया. मनीष खूब मजेदार बातें निधि को सुनाते रहे और वह मनीष को.

आज एक लंबे अरसे के बाद पतिपत्नी अत्यंत प्रफुल्लित एवं संतुष्ट थे मानो खोया हुआ खजाना मिल गया हो. आज मन में समझदारी का प्रकाश हुआ हो. इसी तरह 4 घंटे बीत गए. मनीष ने निधि को कहा, ‘‘नव वर्ष की बहुतबहुत बधाई हो.’’

‘‘आप को भी आज प्रकाश के आने पर मन में समझदारी का प्रकाश हुआ है. नव वर्ष सब को शुभ हो,’’ कहते हुए वे दोनों घर की छत पर आ गए और वहां से गली में आनेजाने वालों को नव वर्ष की मुबारकबाद देने लगे.

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Summer Special: खूबसूरती का सतरंगा अहसास है सापूतारा

गुजरात का सापूतारा एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां ट्रैकिंग,एडवेंचर के साथ वाटरफॉल और दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देता है. यह गुजरात का एकमात्र हिल स्टेशन है. भीड़भाड़ से दूर एक ऐसी जगह, जहां गांव और शहर दोनों का मजा साथ-साथ है. शहर की आपाधापी से दूर आदिवासियों के बीच एक दूसरी ही दुनिया है.

फैमिली के साथ करें एंज्वॉय

छुट्टियों पर जाने का मकसद तो बस इतना ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा एंज्वॉय कर सकें. जगह इतनी खूबसूरत हो कि सारी परेशानियां और पूरे साल की आपाधापी की थकावट दूर कर सकें. वादियां इतनी खूबसूरत हों कि साल भर मन गुदगुदाता रहे. कुछ ऐसा ही है सापूतारा.

बादल कब आपको भिगो दें, पता ही नहीं चलता. थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाली रिमझिम से पूरी वादी हरी-भरी, चंचल-सी लगने लगती है. जिधर नजर दौड़ाइए, वादियां, पहाडिय़ां, उमड़ते-घुमड़ते बादल, तपती गरमी में मन को शांति देते हैं, जबकि ठंड में पहाडिय़ों पर सफेद बर्फ की चादर हर किसी को लुभाती है.

एडवेंचर के साथ मस्ती भी

एक पर्यटक को चंद दिन गुजारने के लिए जो सुकून, मस्ती चाहिए सापूतारा में वह सब एक साथ मौजूद है. घने जंगलों के बीच से गुजरते इस छोटे से टूरिस्ट स्पॉट पर एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए जिप राइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माउंटेन बाइकिंग के साथ साथ माउंटेनियरिंग की सुविधाएं भी मौजूद हैं. घने जंगलों से होकर इस गुजराती आदिवासी प्रदेश से गुजरना काफी रोमांचक है. पहाडिय़ों के बीच से जब आप गुजरेंगे, तो जगह- जगह छोटे-छोटे वाटरफॉल रोमांचित करते जाएंगे. झील, फॉल, ट्रैकिंग और एडवेंचर को एंज्वॉय करने का कंपलीट डेस्टिनेशन होने की वजह से युवाओं का फेवरेट टूरिस्ट स्पॉट भी है.

आदिवासियों का जनजीवन

गुजरात पर्यटन सापूतारा को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की तैयारी कर रहा है. आदिवासियों के घरों का चयन कर टूरिस्ट फ्रेंडली और उनके घरों में शौचालयों की व्यवस्था कर रही है. पर्यटक अधिक से अधिक आदिवासियों के जनजीवन को समझ सकें, इसके लिए आदिवासियों को भी खास तरह का प्रशिक्षण दिया गया है. आदिवासियों के साथ एक रात गुजारने की कीमत 2500 से तीन हजार रुपये है.

सापूतारा महाराष्ट्र और गुजरात के बॉर्डर पर है. सापूतारा नासिक और शिरडी से महज 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहां देशभर के पर्यटक आते हैं. दो-दो धार्मिक स्थल के बीच में होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र शाकाहारी है. बहुत ढूंढऩे के बाद कहीं एक-आध नानवेज की दुकान मिलती है. इसलिए इसे शाकाहारी शहर भी कहते हैं.

बारिशों का लुत्फ

रिमझिम बारिश के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि यहां कभी-भी बारिश होती है और छतरी की जरूरत नहीं पड़ती है. ये बारिश आपको गुदगुदाती हैं. पहाड़ियों पर उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी भी पहाड़ियों को अपने आगोश में ले लेते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच जिप ट्रैकिंग भी है.

अन्य आकर्षण

सापूतारा नाम के हिसाब से यहां सांप का झुंड या बसेरा होना चाहिए था. शायद वह घने जंगलों में हो. हां, यहां सांप का मंदिर जरूर है, जो पर्यटकों और बच्चों में खासा पॉपुलर है. यहां एक झील भी है, जो कपल्स के लिए मोस्ट रोमांटिक डेटिंग प्लेस की तरह दिखाई देता है. बोटिंग करते लोग और बारिश पूरे वातावरण को रोमांचक बना देता है. यहां पर जगह-जगह छल्ली मिलती है-नमक, मिर्च और नींबू के साथ,चाय और उबली हुई मूंगफली. अलग ही मजा है उबली मूंगफली का भी. यहां से ही कुछ दूरी पर है गिरा फॉल, जिसे नियाग्रा फॉल के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुचने का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है. मध्यमवर्गीय परिवारों का भी यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, क्योंकि यहां 1100 रुपये से लेकर 5500 रुपये तक के कमरे मौजूद हैं.

कैसे पहुंचें

सापूतारा सूरत, नासिक या शिरडी से भी पहुंचा जा सकता है. नजदीकी हवाई अड्डा सूरत है, जो करीब 170 किमी. की दूरी पर है. छोटी लाइन की ट्रेन से बाघई फिर वहां से सापूतारा पहुंच सकते हैं.

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