विदाई: भाग 1- पत्नी और सास को सबक सिखाने का क्या था नरेश का फैसला

विदाई की रस्म पूरी हो रही थी. नीता का रोरो कर बुरा हाल था. आंसुओं की झड़ी के बीच वह बारबार नजरें उठा कर बेटी को देखती तो उस का कलेजा मुंह को आ जाता.

सारी औपचारिकताएं खत्म हो चुकी थीं. टीना धीरेधीरे गाड़ी की ओर बढ़ रही थी. बड़ी बूआ भीगी पलकों के साथ ढेर सारी नसीहतें दे रही थीं, ‘‘टीना, अब तेरे लिए ससुराल ही तेरा अपना घर है. वहां सब का खयाल रखना. सासससुर की सेवा करना…’’ कहतेकहते उन की रुलाई फूट पड़ी.

नीता बड़ी मुश्किल से इतना भर कह पाई, ‘‘अपना खयाल रखना टीना,’’ आगे मां की जबान साथ न दे पाई और वह बड़ी जीजी के कंधे का सहारा ले कर जोरजोर से रोने लगीं.

टीना और नरेश गाड़ी में बैठ गए. दुलहन के लिबास में लिपटी टीना की हालत पर नरेश भावुक हो उठा. उस ने धीरे से टीना का हाथ पकड़ कर उसे ढांढस बंधाने का प्रयास किया. पति का स्पर्श पा कर टीना को कुछ राहत मिली, वरना उसे लग रहा था कि उस के सारे परिचित पीछे छूट गए हैं.

1 घंटे में टीना अपनी ससुराल की दहलीज पर खड़ी थी. नरेश का परिवार उस के लिए अपरिचित न था. दूर की रिश्तेदारी के कारण अकसर उन की मुलाकातें हो जाया करती थीं. ऐसे ही एक विवाह समारोह में नरेश की मां सुधा ने टीना को देखा था. उस का चुलबुलापन उन्हें बहुत अच्छा लगा. बिना समय गंवाए उन्होंने बात चलाई और 6 महीने के अंदर टीना उन की बहू बन कर उन के घर आ गई.

2 दिन तक विवाह की रम्में पूरी होती रहीं. तीसरे दिन नरेश व टीना हनीमून के लिए शिमला आ गए. दोनों बहुत खुश थे. नरेश के प्यार में खो कर टीना, मम्मी से बिछुड़ने का गम भूल  सी गई.

हनीमून के 2 दिन बहुत ही सुखद बीते. तीसरे दिन टीना को सर्दीबुखार ने घेर लिया. नरेश चिंतित था, ‘‘टीना, तुम आराम करो, लगता है यहां के मौसम में आए बदलाव के चलते तुम्हें सर्दी लग गई है.’’

‘‘मेरा बदन बहुत दुख रहा है नरेश.’’

‘‘तुम चिंता न करो, मैं डाक्टर को ले कर आता हूं.’’

‘‘डाक्टर की जरूरत नहीं है. एंटी कोल्ड दवाई से ही बुखार ठीक हो जाएगा, क्योंकि जब मुझे सर्दीबुखार होता था तो मम्मी मुझे यही दिया करती थीं.’’

ये भी पढ़ें- मुझे तो कुछ नहीं चाहिए: क्या हुआ था उसके साथ

‘‘मम्मी की बहुत याद आ रही है,’’ टीना को बांहों में भर कर नरेश बोला तो उस ने सिर हिला दिया.

‘‘तो इस में कीमती आंसू बहाने की क्या जरूरत है. अभी मम्मी से बात कर लो,’’ टीना की ओर मोबाइल बढ़ाते हुए नरेश बोला.

‘‘मुझे मम्मी से ढेर सारी बातें करनी हैं, अभी घर पर बहुत सारे मेहमान होंगे.’’

‘‘पगली, बाकी बातें बाद में कर लेना, अभी तो अपना हालचाल बता दो उन्हें.’’

‘‘प्लीज, उन्हें मेरी तबीयत के बारे में कुछ न बताना, वरना वे मुझे देखने यहीं आ जाएंगी. मैं मम्मी को जानती हूं,’’ टीना चहक कर बोली.

मम्मी के बारे में बात कर वह अपना दुखदर्द भूल गई. नरेश ने महसूस किया कि टीना सब से ज्यादा खुश मम्मी की बातों से होती है. अब टीना का दिल बहलाने के लिए वह बहुत देर तक मम्मी के बारे में बात करता रहा.

हनीमून के दौरान पूरे 7 दिनों में टीना ने एक बार भी अपनी ससुराल के बारे में कुछ नहीं पूछा. वह बस, अपनी मम्मी की और सहेलियों की बातें करती रही. हनीमून से वापस लौटते हुए टीना बोली, ‘‘नरेश, मुझे लखनऊ कितने दिन रुकना होगा.’’

‘‘तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? अभी हमारी शादी को 8-10 दिन ही हुए हैं. जिस में हम घर पर 3 दिन ही रहे हैं. कम से कम 2 हफ्ते तो रुक ही जाना.’’

‘‘2 हफ्ते तक घर में बहू बन कर रहना मेरे बस की बात नहीं है.’’

‘‘मेरी मम्मी तुम्हें बहू नहीं बेटी की तरह रखेंगी. तुम खुद देख लेना. बहुत अच्छी मां हैं वह.’’

‘‘तुम्हारी बहन को देख कर मुझे अंदाजा लग गया है कि वह बेटी को किस तरह रखती हैं,’’ मुंह बना कर टीना बोली.

‘‘हम यहां से चल कर 2 दिन लखनऊ रुकेंगे. उस के बाद दिल्ली चलेंगे तुम्हारे मम्मीपापा के पास. वहां से जब तुम चाहोगी तब ही वापस आएंगे,’’ न चाहते हुए भी मजबूरी में टीना ने नरेश की यह बात मान ली.

लखनऊ में नरेश के परिवार वालों ने टीना की खूब खातिरदारी की. नरेश को लगा वह टीना को कुछ दिन और यहां रोक लेगा पर दूसरे दिन ही टीना ने अपने मन की बात कह डाली.

‘‘नरेश, हम कल दिल्ली चल रहे हैं न. मैं ने मम्मी को फोन से बता दिया है,’’ टीना बोली तो नरेश चुप हो गया. उस ने यह बात अभी तक अपने मम्मीपापा से नहीं कही थी. वह तुरंत पानी पीने के बहाने वहां से हट कर किचन में आ गया और धीरे से मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, टीना कल अपने मायके जाना चाहती है. आप की इजाजत हो तो…’’

‘‘ठीक ही तो कह रही है बहू. इतने दिन हो गए हैं उसे ससुराल आए हुए. इकलौती बेटी है वह अपने मां बाप की. घर की याद आनी तो स्वाभाविक है बेटा,’’ बेटे की दुविधा दूर करते हुए सुधा बोलीं.

कमरे में नरेश पहुंचा तो टीना बोली, ‘‘आप मेरी बात अधूरी छोड़ कर कहां चले गए थे?’’

‘‘पानी पीने चला गया था. तुम पैकिंग में व्यस्त थीं सो मैं खुद ही चला गया किचन तक.’’

‘‘कल का प्रोग्राम पक्का है न?’’

‘‘बिलकुल पक्का,’’ नरेश चहक कर बोला तो टीना ने राहत की सांस ली.

मायके पहुंच कर टीना मम्मी से लिपट कर खूब रोई. नीता, टीना को बड़ी देर तक सहलाती रही.

‘‘कितनी दुबली हो गई हैं मम्मी आप,’’ टीना बोली.

नरेश, मांबेटी को छोड़ कर अपने ससुर के पास आ गया.

‘‘पापा, बेटी के बिना घर खालीखाली लग रहा होगा आप को.’’

‘‘बेटी का असली घर तो उस की ससुराल ही होता है बेटा, यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए. टीना अपनी मां के लाड़प्यार के कारण थोड़ी लापरवाह है. उस की नादानियों को नजरअंदाज कर दिया करना.’’

‘‘आप चिंता न करें पापाजी, धीरेधीरे टीना मेरे परिवार के साथ घुलमिल जाएगी.’’

एक ही दिन में नरेश समझ गया कि इस घर में टीना के पापा की उपस्थिति केवल नाम लेने भर की है. घर में सारे फैसले नीता के कहे अनुसार ही होते हैं.

एक हफ्ता बीत गया. टीना का मन लखनऊ जाने का न था, वह तो नरेश के साथ सीधे मुंबई जाना चाहती थी पर नरेश से कहने का वह साहस न जुटा सकी.

बेटी को विदा करते हुए नीता ने ढेरों हिदायतें दे डालीं. नरेश साथ खड़ा सबकुछ सुन रहा था पर बोला कुछ नहीं. उसे ताज्जुब हो रहा था कि उस की सास ने एक बार भी टीना को अपने सासससुर की सेवा से संबंधित नसीहत न दी. चलते वक्त वह नरेश से बोलीं, ‘‘बेटा, टीना का खयाल रखना, मैं ने जिंदगी की अमानत तुम्हें सौंप दी है.’’

ये भी पढ़ें- स्नेह के सहारे: पति के जाने के बाद सरला का कौन बना सहारा

शादी के 3 हफ्तों में ही नरेश को सबकुछ समझ में आने लगा था कि मम्मी के लाड़प्यार के कारण टीना की परवरिश एक आम लड़की की तरह नहीं हुई थी. घूमनाफिरना, मौजमस्ती करना और गप्पबाजी उस के खास शौक थे. घर के किसी काम में उस की रुचि न थी. सामान्य शिष्टाचार में उस का विश्वास न था.

छुट्टियां खत्म हुईं तो नरेश के साथ टीना भी मुंबई आ गई.

नरेश, टीना से जितना सामंजस्य बिठाता, टीना अपनी हद आगे सरका देती.

टीना की गुडमार्निंग मम्मी को फोन से होती, और फिर तो बातों में टीना यह भी भूल जाती कि उस के पति को दफ्तर जाना है, महीने का टेलीफोन का बिल हजारों में आया तो नरेश बोला, ‘‘टीना, मेरी आमदनी इतनी नहीं है कि मैं 5 हजार रुपए महीना टेलीफोन के बिल पर खर्च कर सकूं. हमें अपनी जरूरतें सीमित करनी होंगी.’’

‘‘नरेश, आप के पास रुपए की कमी है तो मैं मम्मी से मांग लेती हूं. मेरे एक फोन पर वह तुरंत रुपए आप के खाते में ट्रांसफर करवा देंगी.’’

‘‘शादी के बाद बेटी को मां पर नहीं पति पर आश्रित रहना चाहिए.’’

‘‘मैं अपनी मम्मीपापा की इकलौती संतान हूं,’’ टीना बोली, ‘‘उन का सबकुछ मेरा ही तो है. पता नहीं किस जमाने की बात कर रहे हो तुम.’’

‘‘छोटीछोटी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना ठीक नहीं होता.’’

‘‘मम्मी, दूसरी नहीं मेरी अपनी हैं.’’

‘‘यही बातें तुम्हें मेरे लिए भी सोचनी चाहिए. मेरे मांबाप का मुझ पर कुछ हक है और हमारा उन के प्रति कुछ फर्ज भी है,’’ पहली बार अपने परिवार की पैरवी की नरेश ने.

दूसरे दिन नरेश के आफिस जाते ही टीना ने सारी बातें अपनी मम्मी को बताईं तो वह बोलीं, ‘‘ठीक किया तू ने टीना. तुम्हारी ससुराल में जरा सी भी दिलचस्पी नरेश को उन की ओर मोड़ देगी. तुम्हें अपना भला देखना है कि ससुराल का.’’

आगे पढ़ें- होली से 2 दिन पहले वे…

ये भी पढ़ें- असंभव: क्या पति को छोड़ने वाली सुप्रिया को मिला परिवार का साथ

उसका अंदाज: भाग 1- क्या थी नेहल की कहानी

फोन की घंटी सुनते ही नेहल ने फोन कान से लगाया था, ‘‘हैलो.’’

‘‘कहिए, ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म कैसी लगी? फिल्म पुरानी हो गई है, पर आप का उस के प्रति आकर्षण खत्म नहीं हुआ. कितनी बार देख चुकी हैं?’’ हलकी हंसी के साथ दूसरी ओर से आवाज आई थी.

‘‘हैलो, आप कौन?’’ नेहल को आवाज अपरिचित लगी थी.

‘‘समझ लीजिए एक इडियट ही पूछ रहा है,’’ फिर वही हंसी.

‘‘देखिए, या तो अपना नाम बताइए वरना इस दुनिया में इडियट्स की कमी नहीं है, उन में से आप को पहचान पाना कैसे संभव होगा. मैं फोन रखती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा गजब मत कीजिएगा. वैसे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला.’’

‘‘तुम्हारे सवाल का जवाब देने को मेरे पास फालतू टाइम नहीं है, इडियट कहीं का.’’

नेहल फोन पटकने ही वाली थी कि उधर से आवाज आई, ‘‘सौरी, गलती कर रही हैं, जीनियस इडियट कहिए. देखिए, किस आसानी से आप का मोबाइल नंबर मालूम कर लिया.’’

‘‘इस में कौन सी खास बात है, तुम जैसे बेकार लड़कों का काम ही क्या होता है. दोस्तों पर रोब जमाने के लिए लड़कियों के नामपते जान कर उन्हें फोन कर के परेशान करते हो. पर एक बात जान लो, अगर फिर फोन किया तो पुलिस ऐक्शन लेगी, सारी मस्ती धरी रह जाएगी,’’ गुस्से से नेहल ने फोन लगभग पटक सा दिया.

एमए फाइनल की छात्रा, नेहल सौंदर्य और मेधा दोनों की धनी थी. ऐसा नहीं कि उसे देख लड़कों ने फब्तियां न कसी हों या उस के घर तक उस का पीछा न किया हो, पर नेहल की गंभीरता का कवच उन्हें आगे बढ़ने से रोक देता. उसे पाने और उस के साथ समय बिताने की आकांक्षा लिए न जाने कितने युवक आहें भरते थे. लेकिन आज तक किसी ने उसे इस तरह का फोन नहीं किया था.

ये भी पढ़ें- नींव: क्या थी रितू की जेठानी की असलियत

मांबाप की इकलौती लाड़ली बेटी नेहल, अपने मन की बातें बस अपनी प्रिय सहेली पूजा के साथ ही शेयर करती थी. आज भी तमतमाए चेहरे के साथ जब वह यूनिवर्सिटी पहुंची तो पूजा देखते ही समझ गई कि नेहल का पारा हाई है. उस ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है नेहल, आज तेरा गुलाबी चेहरा तमतमा क्यों रहा है?’’

‘‘मैं उसे ठीक कर दूंगी. अपने को हीरो समझता है. कहता है वह ‘जीनियस इडियट’ है. सामने आ जाए तो दिमाग ठिकाने न लगा दूं तो मेरा नाम नेहल नहीं.’’

‘‘किस की बात कर रही है, किसे ठीक करेगी?’’ पूजा कुछ समझी नहीं थी.

‘‘था कोई, नाम बताने के लिए हिम्मत चाहिए. न जाने उसे कैसे पता लग गया, हम ‘थ्री इडियट्स’ देखने गए थे. पूछ रहा था, फिल्म हमें कैसी लगी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात पर इतना गुस्सा? अरे, बता देती तुझे फिल्म अच्छी लगी. रही बात उसे कैसे पता लगा, तो भई होगा कोई तेरा चाहने वाला. तुझे पिक्चर हौल में देखा होगा. इतना गुस्सा तेरी सेहत के लिए अच्छा नहीं, मेरी सखी. काश, कोई मुझे भी फोन करता, पर क्या करें कुदरत ने सारी सुंदरता तुझे ही दे डाली,’’ पूजा के चेहरे पर शरारतभरी मुसकराहट थी.

‘‘अच्छी बात है, अगली बार कोई फोन आया तो तेरा नंबर दे दूंगी. अब क्लास में चलना है या आज भी कौफी के लिए क्लास बंक करेगी?’’

‘‘मेरा ऐसा समय कहां, तू भला उस नेक काम में साथ देगी, नेहल? फिर उसी बोरिंग लैक्चर को सहन करना होगा. यार, यह हिस्ट्री सब्जैक्ट क्यों लिया हम ने. रोज गड़े मुर्दे उखाड़ते रहो.’’

पूजा के चेहरे के भाव देख नेहल हंस पड़ी.

‘‘तेरी सोच ही गलत है, पूजा. अगर रुचि ले तो इस विषय में न जाने कितना रोमांच और थ्रिल है. चल, वरना हम लेट हो जाएंगे.’’

बेमन से पूजा नेहल के साथ चल दी.

रात में मोबाइल की घंटी ने नेहल की नींद तोड़ दी. दिल में घबराहट सी हुई, कहीं  घर से तो फोन नहीं आया है. जब से नेहल पढ़ने के लिए इस शहर में आई थी, उस का मन घर के लिए चिंतित रहता था. शुरूशुरू में होस्टल में रहना उसे अच्छा नहीं लगा था. पूजा से मित्रता के बाद उसे घर की उतनी याद नहीं आती थी.

‘‘हैलो.’’

‘‘जरा अपनी खिड़की का परदा उठा कर देखिए, मान जाएंगी क्या नजारा है. प्लीज इसे मिस मत कीजिए, मेरी रिक्वैस्ट है,’’ फिर वही परिचित आवाज.

ये भी पढ़ें- एक और सच: क्या बदल गया था जीतेंद्र

‘‘दिमाग खराब है क्या मेरा जो रात के 2 बजे बाहर का नजारा देखूं? रात में जागना तुम जैसे उल्लू के लिए ही संभव है. लगता है तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे, अब कोई ऐक्शन लेना ही होगा.’’

फोन तो नेहल ने बंद कर दिया, पर सोच में पड़ गई, आखिर वह उसे ऐसा क्या दिखाना चाहता है जिस के लिए आधी रात को उसे जगाया है. बिस्तर से सिर उठा कर जाली वाले झीने परदे से बाहर के नजारे को देखने का लोभ, वह संवरण नहीं कर सकी. बाहर पूर्णिमा का चांद अपने पूरे वैभव में साकार था. सारे पेड़पौधे चांदनी में नहाए खड़े थे. नेहल मुग्ध हो उठी. बिस्तर से उठ खिड़की के पास आ खड़ी हुई. उस के अंतर की कवयित्री जाग उठी. कविता की कुछ पंक्तियां मन में आई ही थीं कि मोबाइल फिर बजा.

‘‘मान गईं, क्या तिलिस्मी नजारा है. जरूर कोई कविता लिख डालेंगी, पर उस का क्रैडिट तो मुझे मिलेगा न?’’ फिर वही हंसी.

‘‘अब तक कितनों की नींद खराब कर चुके हो? तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया है, अब अपनी खैर मनाओ.’’

‘‘कमाल करती हैं, मैं ने बताया है न मैं जीनियस हूं. अगर मुझे पकड़ सकीं तो जो सजा देंगी, मंजूर है. वैसे कल आसमानी सलवारसूट में आप का चेहरा देख कर ऐसा लगा, नीले आकाश में चांद चमक रहा है. बाई द वे, आप का पसंदीदा रंग कौन सा है? नहीं बताएंगी तो भी मैं पता कर लूंगा. इतनी देर बरदाश्त करने के लिए थैंक्स ऐंड गुडनाइट.’’

फोन काट दिया गया.

बिस्तर पर लेटी नेहल की आंखों से नींद उड़ गई. उस से ऐसी गलती कैसे हो गई, किसी अजनबी के फोन को तुरंत काट क्यों नहीं दिया, क्यों उस की बातें सुनती रही, जवाब देती रही. वह उस के कपड़ों को भी नोटिस करता है. जरूर उस के होस्टल के आसपास रहने वाला कोई आवारा है. कल उस के नंबर से पता करना होगा. काफी देर बाद ही वह सो सकी. सुबहसुबह मां के फोन से नींद टूटी थी.

‘‘क्या हुआ, मां, घर में सब ठीक तो हैं?’’ नेहल डर गई थी.

‘‘सब ठीक हैं, तुझ से एक जरूरी बात करनी थी. देख, कुछ दिनों में एक इंद्रनील नाम का लड़का तुझ से मिलने आएगा. तू उस से अच्छी तरह से बात करेगी. उस के बारे में जो जानना चाहे, पूछ लेना. अपना रोब जमाने की कोशिश मत करना.’’

‘‘क्यों मां, क्या मैं किसी से ठीक से बात नहीं करती? वैसे वह मुझ से मिलने क्यों आ रहा है, कहीं तुम ने फिर मेरी शादी का सपना देखना तो शुरू नहीं कर दिया? मुझे अभी शादी नहीं करनी है.’’

‘‘बस नेहल, बहुत हो गया. तू ने कहा था, पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी करेगी. तेरा एमए फाइनल 2 महीने बाद पूरा हो जाएगा. अब अगर तू ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुझ से कभी बात नहीं करूंगी.’’

‘‘ठीक है मां, पर इंद्रनील हैं क्या चीज?’’

‘‘अरे, वह तो हीरा है. ऐसा प्यारा लड़का कि क्या बताऊं. हम से ऐसे मिला मानो बरसों से परिचित है. सब को हंसाना ही जानता है. आस्ट्रेलिया की एक बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी पर जा रहा है. जाने से पहले उस की मां उस की शादी कर देना चाहती हैं. जब तू उस से मिलेगी तब मेरी बातों की सचाई जान सकेगी, बेटी.’’

‘‘इस का मतलब है कि उस की मां को डर है कहीं वह आस्ट्रेलियन बहू न ले आए.’’

‘‘फिर तू ने अपनी बकवास शुरू कर दी. बस, इतना जान ले अगर तू ने मेरा कहा नहीं माना तो मैं भी तेरी कोई बात नहीं सुनूंगी,’’ इस बार मां का स्वर तीखा था.

‘‘ओके मां, मैं तुम्हारे इंद्रनीलजी से जरूर मिल लूंगी और कोई गलती भी नहीं करूंगी. अब तो खुश? हां, इतने लंबे नाम की जगह उसे कोई छोटा नाम नहीं मिला?’’

‘‘शादी के बाद तू उसे चाहे जिस नाम से पुकार, मुझे कोई लेनादेना नहीं है. अब तेरे कालेज का टाइम हो रहा है, बस, मेरी बातें याद रखना.’’

ये भी पढ़ें- अपने पराए: बबली और उसकी जेठानी के बीच कैसे थे रिश्ते

‘‘भला तुम्हारी बातें कभी भूली हूं मां, बाबा को प्रणाम कहना,’’ फोन रख, नेहल तैयार होने बाथरूम में घुस गई. कौन है यह इंद्रनील जिस ने मां को इस तरह मोह लिया है. वैसे उस को शादी की कोई जल्दी नहीं है, पर मां की बातों ने उस के मन में उत्सुकता जगा दी, जरा देखें तो कौन हैं यह इंद्रनील. पूजा से बातें करने का निर्णय ले नेहल चल दी. मां के फोन की वजह से वह पूजा से कैंटीन में भी नहीं मिल सकी थी. पूजा नेहल का इंतजार कर रही थी.

आगे पढ़ें- नेहल ने पूजा को छेड़ा….

भोर की एक नई किरण: भाग 3- क्यों भटक गई थी स्वाति

लेखिका- रेनू मंडल

फ्स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में आप की राय ही मानी जाएगी. मातापिता बच्चों से अधिक अनुभवी और समझदार होते हैं. उन का निर्णय गलत नहीं होता है, स्वाति ने विनम्रता से उत्तर दिया. मम्मी और मनीष कुछ आश्चर्यचकित हो कर स्वाति की ओर देखने लगे. शाम को वे चारों लड़का देखने चले गए थे.

अगले दिन रात में पायल स्वाति से कहानी सुनाने की जिद कर रही थी. स्वाति उस से बोली, फ्बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनते हैं. मैं छोटी थी, तब मुझे भी मेरी दादी अच्छीअच्छी कहानियां सुनाती थीं.

फ्मैं भी दादीमां के पास जाऊं? पायल उठ कर खडी़ हो गई.

फ्हां जाओ, स्वाति ने कहा.

पायल दादी के पास जा कर बोली, फ्दादीमां, आप मुझे कहानी सुनाओ.

दादी उस समय सोने की तैयारी कर रही थीं, अतः बेरुखी से बोलीं, फ्अपनी मम्मी से सुनो कहानी.

फ्मैं तो आप से सुनूंगी. मम्मी कहती हैं, आप को बहुत सी कहानियां आती हैं, पायल मचल कर बोली.

फ्मुझे नहीं आती कोई कहानी. जाओ जा कर अपने कमरे में सो जाओ, दादी की डांट सुन कर पायल रोते हुए कमरे में आ गई और बिना दूध पिए सो गई.

ये भी पढ़ें- एक प्रश्न लगातार: क्या कमला कर देगी खुलासा?

अगली रात को स्वाति ने बहलाफुसला कर पायल को फिर से दादी के पास कहानी सुनने भेज दिया, कितु अंजाम फिर वही हुआ. उस दिन भी वह रोते हुए भूखी सो गई. सुबह उसे हलका सा बुखार था. मनीष आफिस जाते हुए मम्मी से बोला, फ्मम्मी, पायल को यदि आप कहानी सुना देतीं, तो कुछ बिगड़ नहीं जाता. पिछले 2 दिनों से वह बिना दूध पिए सो रही है, मेरे बच्चों से तुम्हें जरा भी लगाव नहीं है.

मनीष की बात सुन कर वह चौंक पडीं़. आज पहली बार उन्हें बेटे ने किसी बात के लिए टोका था. वह नहीं चाहती थीं, यह बात पुनः दोहराई जाए. इसलिए रात होने पर उन्होंने स्वयं पायल को बुला कर अपने पास लिटा लिया और कहानी सुनाने लगीं.

पायल की भोलीभाली बातों से धीरेधीेरे मम्मी की सोई हुई ममता जगने लगी. अब वह अकसर पायल को अपने पास सुला लेती थीं. धीरेधीरे वह उन से खूब हिलमिल गई.घ्आखिर एक दिन मम्मी ने कह ही दिया कि अब पायल बडी़ हो रही है. अब से वह उन्हीं के पास सोया करेगी.

बच्चों के करीब आने के कारण धीरेधीरे घर का माहौल बदल रहा था. मम्मी और स्वाति के बीच की दूरी कम हो रही थी. अब वह उस के साथ पहले की तरह कठोरता से पेश नहीं आती थीं. स्वाति को अब पछतावा हो रहा था कि जो प्रयास उस ने भैया के कहने पर इतने सालों बाद किया था, उसे पहले करना चाहिए था. यदि मम्मी ने उसे अपने निकट नहीं बुलाया था, तो उस ने भी कभी उन के पास जाने का प्रयत्न नहीं किया था. दोनों ही शायद अपनेअपने अहं के दायरे में कैद थे.

अकसर मनीष स्वाति के इस बदलाव पर आश्चर्य व्यक्त करता. इस पर स्वाति हंस पड़ती और मन ही मन भैया के प्रति श्रúा से भर उठती, जिन्होंने अपनी सूझबूझ से उस के बिखरते घर को बचा लिया था.

इस के बाद मम्मी का पथरी का आपरेशन हुआ. सप्ताह भर तक स्वाति अस्पताल और घर के बीच दौड़ती रही. मम्मी की सेवा में उस ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी. एक सप्ताह बाद जब मम्मी घर वापस आईं तो अगले दिन शाम के समय मनीष के एक मित्र परिवार सहित उन्हें देखने आए. बातों के दौरान मम्मी ने बताया कि वह और मनीष के पापा अपने बडे़ बेटे केघ्पास कानपुर जाने की सोच रहे हैं. यह सुन कर स्वाति और मनीष दोनों चौंक उठे. मेहमानों के जाने के बाद स्वाति उदास स्वर में बोली, फ्ऐसा लगता है मम्मी, आप की सेवा करने में मुझ से जरूर कोई कमी रह गई, तभी तो आप यहां से जाने की सोच रही हैं.

फ्नहीं स्वाति, ऐसी बात नहीं है. जितनी सेवा तुम ने मेरी की है, मेरी बेटी होती तो शायद वह भी नहीं करती, मम्मी स्नेह भरे स्वर में बोलीं.

ये भी पढ़ें- नींव: क्या थी रितू की जेठानी की असलियत

फ्तब फिर आप ने कैसे सोच लिया कि हम आप को जाने देंगे. सनी और पायल क्या आप के बगैर रह सकेंगे? कहते हुए स्वाति अंदर चली गई.

डैडी और मम्मी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, फ्स्वाति, हम चाहते हैं कि यह मकान तुम्हारे नाम कर दें. साथ ही 50-50 हजार रुपए पायल और सनी के नाम जमा कर दें.

स्वाति आश्चर्यचकित हो कर बोली, फ्यह सब क्यों मम्मी, आज आप लोग मुझ से कैसी बातें कर रहे हैं.

फ्देखो बेटे, जिदगी का कोई भरोसा नहीं. हमारे बाद भी सबकुछ तुम्हीं लोगों का है, इसलिए अपने सामने थोडा़थोडा़ तीनों बेटों के नाम कर दें तो अच्छा है, डैडी बोले.

फ्नहीं डैडी, मुझे आप लोगों का मकान और पैसा नहीं चाहिए. अपना प्यार दे कर आप लोगों ने मुझे सबकुछ दे दिया है. इस के बाद और किसी दौलत की मुझे जरूरत नहीं, कहते हुए स्वाति कमरे से बाहर आ गई. बाहर आते हुए उस ने सुना, डैडी मम्मी से कह रहे थे, फ्तुम ने व्यर्थ ही कठोरता का आवरण ओढ़ कर इतनी अच्छी लड़की को स्वयं से दूर कर रखा था.

फ्इस बात का पछतावा तो मुझे भी है, यह मम्मी की आवाज थी. स्वाति की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए और वह वहां से हट गई.

अगले सप्ताह अचानक श्रीकांत बडौ़दा आ गए. भैया को देख स्वाति अचंभित हो उठी. उसे तो पता ही नहीं चला था कि भैया को गए 6 माह व्यतीत हो चुके हैं. गृहस्थी का सुख पाने में उस ने जिस आस्था का परिचय दिया था, उस में तो वैसे भी समय का पता नहीं चलना था. कमरे में अटैची रखते हुए श्रीकांत ने हंसते हुए कहा, फ्वादे के मुताबिक ठीक 6 माह बाद तुम्हें लेने आया हूं, बताओ चलोगी?

स्वाति ने सजल आंखों से मुसकराते हुए भाई की ओर देखा ओर कहा, फ्आप की दी हुई शिक्षा की वजह से प्रबलतम अंधकार के बाद भोर की एक नई किरण मेरे आंगन में दिखाई दी है, अब इस के प्रकाश को छोड़ कर कहां जाऊं?

श्रीकांत के चेहरे पर संतोष की आभा छा गई और उन्होंने स्वाति को प्यार से गले लगा लिया.

ये भी पढ़ें- एक और सच: क्या बदल गया था जीतेंद्र

भोर की एक नई किरण: भाग 2- क्यों भटक गई थी स्वाति

लेखिका- रेनू मंडल

एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर जा कर बैठ गए थे. छत पर ठंडी हवा चल रही थी कितु स्वाति बहुत अधीर थी. अब तक श्रीकांत ने उस से चलने के बारे में कुछ नहीं कहा था. श्रीकांत के बैठते ही स्वाति ने उस का हाथ पकड़ लिया और रुंधे गले से बोली, फ्भैया, मुझे यहां से ले चलो. मैं अब और यहां नहीं रह सकती.

जब से मैं यहां आया हूं स्वाति, तुम्हारी ही स्थिति को जानने और समझने का प्रयास कर रहा हूं.

फिर तो आप ने देखा होगा भैया कि मेरा घर में कोई महत्त्व नहीं. किसी को मुझ से तनिक भी लगाव नहीं. यहां तक कि मनीष को भी नहीं. तब मैं क्यों जबरन यहां पडी़ रहूं?

प्रश्न जबरन पडे़ रहने का नहीं है, स्वाति. प्रश्न यह है, क्या यहां से चले जाने से संबंध अच्छे बन जाएंगे?

जब संबंध ही नहीं रखने, तो उन के अच्छे या बुरे होने का क्या अर्थ है?

पगली, क्या ऐसे संबंध इतनी सरलता से टूट जाते हैं, कह कर श्रीकांत कुछ क्षण बहन के चेहरे को देखते रहे फिर बोले, याद रखो, स्वाति, संबंध तोड़ना सरल है. क्षण भर में हम कोई भी संबंध बिगाड़ सकते हैं कितु असली कला है, उन्हें जीवन भर निभाना.

एक पल रुक कर श्रीकांत गंभीर स्वर में बोले, फ्स्वाति, तुम्हें मुझ पर पूरा विश्वास है न कि मैं जो कुछ भी करूंगा वह तुम्हारी भलाई के लिए होगा.

यह भी कोई पूछने की बात है, भैया आप से अधिक तो मुझे खुद पर भी भरोसा नहीं.

तब सुनो स्वाति, पिछले कई दिनों से मैं यहां की स्थिति को देख और समझ रहा हूं. वास्तव में तुम लोगों के संबंधों में टकराव नहीं, वरन उदासीनता है और इस के लिए मैं समझता हूं, तुम भी कम दोषी नहीं हो.

यह क्या कह रहे हैं आप, भैया ?

ये भी पढ़ें- नैपकिंस का चक्कर: मधुश ने क्यों किया सास का शुक्रिया

मैं ठीक कह रहा हूं, यदि तुम्हारी सास ने तुम्हें नहीं अपनाया तो तुम ने भी कभी उन के निकट जाने का प्रयास नहीं किया जबकि तुम्हें पता था कि यह विवाह मनीष के हठ के कारण हुआ है.

भैया, मैं आप से बहस नहीं कर रही हूं, कितु जब बहू अपने प्रियजनों को छोड़ कर अनजाने लोगों के बीच आती है, तब ससुराल वालों का फर्ज बनता है, उसे अपनाएं और भरपूर प्यार दें ताकि वह उस घर को अपना समझ कर नया जीवन प्रारंभ कर सके.

श्रीकांत ने सिर हिलाते हुए स्वाति की बात का समर्थन किया, फिर उसे समझाते हुए बोले, फ्जीवन में सदैव सबकुछ सरलता से प्राप्त नहीं होता है. कभीकभी उस के लिए अथक प्रयास भी करना पड़ता है. याद रखो स्वाति, किसी से कुछ पा लेना व्यक्ति की अपनी क्षमता पर निर्भर करता है.

अब इन बातों से क्या लाभ, स्वाति बोली, फ्अब तो सबकुछ समाप्त हो चुका है. इन लोगों के व्यवहार ने मेरा मन मार दिया है. अब कुछ भी करने का उत्साह शेष नहीं है.

स्वाती, जब हमें ऐसा लगे कि अंधकार अब कभी समाप्त नहीं होगा, तभी प्रकाश की किरण दिखाई देने की संभावना प्रबलतम होती है. इन टिमटिमाती हुई बत्तियों को देखो, इतना कह कर श्रीकांत ने हाथ से एक ओर इशारा किया. स्वाति ने उस ओर देखा, पूरी तरह अंधकार में किसी फैक्टरी की वह जलती हुई 3-4 बत्तियां बडी़ भली लग रही थीं.

अपनी जिदगी के अंधकार में हमें इसी तरह के बिदुओं से अपना आगे का रास्ता चुनना चाहिए, श्रीकांत ने कहा.

फ ने इतनी अच्छी बातें करनी कहां से सीखी भैया, स्वाति श्रीकांत की बातों से प्रभावित हो कर बोली.

फ्मां से, स्वाति. तुम उस समय बहुत छोटी थी. मां को मैं ने कभी भी निराश होते नहीं देखा था. कितनी भी कठिन स्थिति क्यों न हो, वह कोई न कोई आशा की किरण अवश्य खोज लेती थीं, श्रीकांत ने कुछ पल रुक कर स्वाति की ओर देखा. स्वाति सिर झुकाए कुछ सोच रही थी. श्रीकांत ने फिर कहा, फ्मैं चाहता हूं, एक बार तुम सच्चे मन से उस दूरी को समाप्त करने का प्रयत्न करो जो तुम्हारे और तुम्हारी सास के बीच हुई है. यदि तुम ने उन की ओर एक कदम भी बढा़या तो दूरी कुछ कम ही होगी, स्वाति ने सहमति में सिर हिलाया.

ये भी पढ़ें- जीवन लीला: क्या हुआ था अनिता के साथ

इस के पश्चात श्रीकांत स्वाति को धीरेधीरे कुछ समझाते रहे और अंत में बोले, फ्मैं आज से ठीक 6 माह बाद पुनः यहां आऊंगा. यदि स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ तो अपने भाई पर विश्वास रखो, तुम्हें अवश्य ही यहां से ले जाऊंगा. इस के बाद वे दोनों नीचे आ गए. अगले दिन श्रीकांत बडौ़दा से अपने घर वापस लौट आए.

कुछ दिनों तक स्वाति भैया की बातों पर विचार करती रही और अपने मन को तैयार करती रही, उस युú के लिए जिस में वह खुद अर्जुन थी और भैया के वाक्य उस के लिए गीता के उपदेशों के समान थे.

2-3 दिन बाद स्वाति के मामाजी का पत्र आया. उन की लड़की की बडौ़दा में रह रहे एक इंजीनियर लड़के से रिश्ते की बात चल रही थी. उन्होंने पत्र में स्वाति और मनीष से लड़का देखने का आग्रह किया था.

सुबह का समय था. मनीष आफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे. तौलिए से हाथ पोंछते हुए वह रसोई घर में आए और स्वाति से बोले, फ्शाम को लड़का देखने जाना है, तैयार रहना.

स्वाति ने मुड़ कर देखा. मम्मी फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल रही थीं. उस ने कहा, फ्मम्मी, शाम को आप को और पापा को हमारे साथ लड़का देखने जाना है.

फ्हम लोग जा कर क्या करेंगे? तुम दोनों देख आओ, मम्मी ने पानी गिलास में डालते हुए कहा.

फ्जितनी अच्छी तरह आप लड़के और उस के परिवार की जांचपरख कर लेंगी, हम दोनों नहीं कर पाएंगे.

फ्और यदि हमारी राय भिन्नभिन्न हुई तब? मम्मी ने पूछा.

आगे पढ़ें- अगले दिन रात में पायल…

ये भी पढ़ें- एक रिक्त कोना: क्या सुशांत का अकेलापन दूर हो पाया

भोर की एक नई किरण: भाग 1- क्यों भटक गई थी स्वाति

लेखिका- रेनू मंडल

देहरादून एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी. कितु इस से भी तेज भाग रहा था, श्रीकांत का मन. भागती ट्रेन के शोर से भी अधिक स्वाति के पत्र के शब्द उन के दिमाग पर हथौडे़ बरसा रहे थे और चोट से बचने के लिए उन्होंने अपना चेहरा खिड़की से सटा लिया और प्रकृति के विस्तार में अपनी आंखें गडा़ दीं. कितु दूरदूर तक फैले हुए खेतखलिहान और भागते हुए वृक्ष भी उन के मन को न बांध सके. मन बारबार वर्तमान से अतीत की ओर भाग रहा था.

उन की बहन स्वाति ने मनोविज्ञान में एम.ए- किया था. उस का इरादा पीएच.डी- करने का था. वह शुरू से ही पढ़ने में बेहद तेज थी. मेहनत एवं लगन की उस में कमी नहीं थी. लेक्चरर बन कर अपना एक अलग स्थान बनाने के लिए वह जीजान से जुटी हुई थी. लेकिन स्वाति कहां जानती थी कि कभीकभी एक छोटा सा अनुरोध भी जीवन को नया मोड़ दे देता है.

मनीष ने उसे एक विवाह समारोह में देखा था और वहीं उसे उस ने पसंद कर लिया. उस की ओर से जब विवाह का प्रस्ताव आया तो स्वाति ने तुरंत इनकार कर दिया. विवाह के लिए वह अपने कैरियर को दांव पर नहीं लगा सकती थी. विवाह तो बाद में भी किया जा सकता था. उस के भाई श्रीकांत जो मित्र और पथप्रदर्शक भी थे, उन की भी यही इच्छा थी कि पहले कैरियर फिर विवाह.घ्भाभी सुधा ने दोनों को समझाया था कि जीवन में ऐसे मौके बारबार नहीं आते, स्वाति ऐसे मौकों की कभी अवहेलना मत करो.

ये भी पढ़ें- टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

स्वाति ने प्रतिरोध करते हुए कहा, ‘भाभी, तुम भलीभांति जानती हो कि मैं ने वर्षों से एक ही सपना देखा है कि मैं जीवन में कुछ बनूं और तुम लोग मेरा यह स्वप्न तोड़ देना चाहते हो.’

बहुत सोचने के बाद श्रीकांत को सुधा की बात अधिक उचित जान पडी़. उन्होंने सुझाया, ‘क्यों न ऐसा रास्ता अपनाया जाए जिस से लड़का भी हाथ से न जाए और स्वाति की इच्छा भी रह जाए. मनीष से पत्रव्यवहार कर के यह स्पष्ट कर लेते हैं कि उसे विवाह के बाद स्वाति के पीएच-डी- करने पर कोई आपत्ति तो नहीं.’

इस के बाद श्रीकांत और मनीष के बीच पत्रव्यवहार हुआ, जिस से पता चला कि मनीष को इस पर कोई आपत्ति न थी. तब खुशीखुशी स्वाति और मनीष का विवाह हो गया.घ्स्वाति को विदा करते हुए जहां श्रीकांत को उस के दूर चले जाने का गम था, वहीं यह संतोष भी था कि उन्होंने बहन के प्रति कर्तव्यों को पूरा कर के मां को दिया हुआ वचन निभाया है. इस के लिए वह सुधा के भी आभारी थे, जिस ने भाभी के रूप में स्वाति को मां जैसा स्नेह दिया था.

विवाह के बाद स्वाति जब पहली बार मनीष के साथ मायके आई तो श्रीकांत को उस की खुशी देख कर सुखद अनुभूति हुई. समय का पंछी आगे उड़ता रहा और देखतेदेखते 6 वर्ष बीत गए. इस बीच स्वाति 2 बच्चों की मां भी बन गई. शादी के बाद जब कभी श्रीकांत और सुधा ने उस से पीएच-डी- पूरी करने के विषय में पूछा तो वह हंस कर टाल गई. श्रीकांत समझते, स्वाति अपने विवाहित जीवन के सुख में इतना खो गई है कि अब वह पीएच-डी- करने की बात भूल बैठी है. उन का स्वाति के बारे में यह भ्रम न जाने कब तक बना रहता, यदि अचानक उन्हें उस का भेजा पत्र न मिलता. पत्र देखते ही वह स्वाति से मिलने केघ्लिए चल पडे़ थे.घ्अचानक टेªन का झटका लगा और श्रीकांत अतीत से वर्तमान में लौट आए.

ये भी पढ़ें- सबकुछ है पर कुछ नहीं: राधिका को किस चीज की कमी थी

उन्होंने जेब से पत्र निकाला और फिर एक बार उन की नजरें इन पंक्तियों पर अटक गईं:

फ्पिछले 6 सालों से अपने ही घर में अपने वजूद को तलाश करतेकरते थक चुकी हूं. इस से पहले कि पूरी तरह टूट कर बिखर जाऊं, मुझे यहां से ले जाओ.

पत्र पढ़ते ही श्रीकांत बेचैन हो उठे. उन का शेष सफर बहुत कठिनाई से बीता.

बडौ़दा स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने टैक्सी पकडी़ और स्वाति के घर जा पहुंचे. बडे़ भाई को देखते ही स्वाति उन से लिपट गई और सुबकने लगी. मनीष आश्चर्यचकित हो कर बोला, फ्अरे, भैया आप आने की खबर कर देते तो मैं स्टेशन पहुंच जाता, कहते हुए उस ने श्रीकांत के पैर छुए.

फ्अचानक आफिस का कुछ विशेष काम निकल आया. इसलिए खबर देने का समय ही नहीं मिला.

फ्चलो, अच्छा हुआ. इसी बहाने आप आए तो, स्वाति के ससुर ने श्रीकांत को सोफे पर बैठाते हुए कहा.

फ्पायल कहां है? श्रीकांत ने चारों तरफ निगाहें दौडा़ते हुए पूछा.

फ्पायल स्कूल गई है, स्वाति बोली और बेटे सनी को अपने भाई की गोद में दे कर चाय का प्रबंध करने चली गई.

दोपहर में श्रीकांत जब आराम करने के लिए स्वाति के कमरे में आए तो स्नेहपूर्वक उसे पास बैठाते हुए बोले, फ्तुझे किस बात का दुख है, स्वाति?

भाई का स्नेहिल स्पर्श पाते ही स्वाति फफक पडी़, फ्मुझे यहां से ले चलो भैया वरना मैं मर जाऊंगी, और उस के बाद स्वाति ने धीरेधीरे श्रीकांत को सब बता दिया.

मनीष की मम्मी बेटे का विवाह कहीं और करना चाहती थीं परंतु मनीष ने स्वाति को पसंद कर लिया. बेटे के हठ के आगे मां को झुकना पडा़, पर उन्होंने कभी दिल से बहू को स्वीकार नहीं किया. वह पहले दिन से ही स्वाति का विरोध करती रहीं. स्वाति जब कभी उन का कोई काम करती, वह उस में कमी अवश्य निकालतीं. स्वाति के ससुर जब भी उस का पक्ष लेते वह उन्हें भी डांट देती थीं.

ये भी पढ़ें- सबसे बड़ा रुपय्या: शेखर व सरिता को किस बात का हुआ एहसास

विवाह के 2-3 दिन बाद उन्होंने सारे काम का दायित्व स्वाति को सौंप दिया था. धीरेधीरे स्वाति ने चुप्पी साध ली. इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी फिर भी घर में उस का कोई महत्त्व नहीं था. मनीष स्वाति के साथ होते हुए अन्याय को देख कर भी अनदेखा कर देता था.

मनीष की उदासीनता ने स्वाति को इस घर से चले जाने के लिए प्रेरित किया. वह सोचती, जहां रह कर उस का खुद का व्यक्तित्व कुुंठित हो रहा हो, वहां वह किस प्रकार अपने बच्चों की उचित परवरिश कर सकती है. इसलिए उस ने श्रीकांत को पत्र लिखा ताकि उस के पास रह कर वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे. श्रीकांत ने स्वाति को बताया, फिलहाल, वह 7-8 दिन बडौ़दा में रुकने वाला था.

आगे पढ़ें- एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर..

सौत से सहेली: भाग 3- क्या शिखा अपनी गृहस्थी बचा पाई

लेखिका-दिव्या साहनी

इस रविवार को अंजु ने लंच पर उन सब को अपने घर बुला लिया था. वहां चारों बच्चों ने उस को पूरा समय अपने साथ खेल में लगाए रखा. ज्यादा देर तक सोने व राजीव के साथ कुछ मौजमस्ती करने की अपनी दोनों इच्छाओं को पूरा करने का कोई मौका शिखा को नहीं मिला.

उस रात काफी थके होने के बाद भी शिखा सो नहीं सकी थी. नीरजा की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां पूरा करने के चक्कर में वह अब

खुद को अजीब से जाल में बहुत फंसा महसूस कर रही थी. वह अपनी पुरानी दिनचर्या में

लौटना चाहती थी, पर नीरजा का दिल दुखाए बिना ऐसा करने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ

रहा था.

उस का न औफिस के काम में दिल लगता, न नीरजा के घर के कामों में. किसी से हंसनेबोलने का मन नहीं करता. नीरजा जितना ज्यादा उस के प्रति अपना आभार व प्रेम प्रकट करती, वह खुद को उतना ही ज्यादा चिड़ा व परेशान महसूस करती.

ऐसा भी हुआ कि राजीव ने मौका पा कर उसे अपनी बांहों में भर कर प्यार करने की कोशिश करी थी. परेशान शिखा को उस के स्पर्श से किसी तरह से उत्तेजना या सुख महसूस नहीं हुआ था. बगल के कमरे में नीरजा की मौजूदगी ने शायद उस की भावनाओं को खिलने व पनपने की स्वतंत्रता छीन ली थी.

सोनू और मोनू के साथ खेलने और बातें करने से वह बचती. अंजु के बच्चों को तो वह थोड़ी देर के बाद ही उन के घर भेज देती थी. नीरजा के मुंह से अपनी तारीफ सुनना उसे कोई खुशी नहीं देता. राजीव के प्रति जो खिंचाव वह सदा महसूस करती थी, उस में भी कमी आ

गईर् थी.

शिखा एकाएक नीरजा के प्लस्तर कटने का बड़ी बेसग्री से इंतजार करने लगी थी.

नीरजा उस की बदलती मनोस्थिति से पूरी तरह से अनजान थी, ‘‘मेरे पैर पर प्लस्तर चढ़ने का एक फायदा तो हुआ कि तुम जैसी नेकदिल, खुशमिजाज लड़की मेरी सब से अच्छी सहेली बनी है,’’ इस वाक्य को नीरजा शिखा के सामने ही नहीं, बल्कि हर आएगए के सामने कईकई बार भावुक लहजे में दोहराती थी.

नीरजा कईकई बार उसे औफिस में फोन करती. बेहिचक उसे जरूरी चीजें बाजार से लाने की हिदायत देती. जल्दी से जल्दी घर पहुंचने का प्यार से आग्रह करती. एक बार जो बोलना शुरू करती, तो रुकने का नाम ही न लेती.

ये भी पढ़ें- तितली: जूनी के दिल में क्यों थी कसमसाहट

धीरेधीरे ऐसी नौबत आ गई कि शिखा अपने मोबाइल पर नीरजा का

नंबर देखते ही घबरा उठती. बड़े अनमने भाव से ही उस से बातें करती. कई बार सोचती कि राजीव से अपने मन का हाल कह कर उन के घर जाने से इनकार कर दे, पर ऐसी रुखाई दिखाने की हिम्मत अपने अंदर पैदा नहीं कर पाई. अपने प्रेमी की नजरों में अपनी छवि बिगाड़ने की इच्छुक नहीं थी.

वक्त कैसा भी चल रहा हो, वह बीत ही जाता है. आखिरकार 3 सप्ताह बीत गए और नीरजा के पैर का प्लस्तर कट गया.

नीरजा ने सब से पहले शिखा को आंखों में आंसू ला कर गले से लगाया और भावुक लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे सारे एहसानों का बदला मैं कभी नहीं चुका सकूंगी, पर फिर भी तुम्हें मेरी एक बात तो माननी ही पड़ेगी.’’

‘‘कौन सी बात नीरज?’’ अपनी जबरदस्ती ओढ़ी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा जाने की खुशी शिखा के चेहरे पर साफ झलक रही थी.

‘‘हम सब नैनीताल घूमने चलेंगे. कितना मजा आएगा… सोनू और मोनू कितना खुश होंगे. तुम्हारा साथ पा कर… खूब ऐश रहेगी… जीभर कर सथ घूमेंगे, खाएंगेपीएंगे और गप्पें मारेंगे… उन की और मेरी तरफ  से यह ‘ट्रिप’ तुम्हारे लिए गिफ्ट होगा, शिखा,’’ बेहद प्रसन्न नजर आ रही नीरजा ने जोर से शिखा को फिर से अपनी छाती से लगा लिया.

राजीव को भी नीरजा के इस प्रोग्राम की भनक नहीं थी. अपनी प्रेमिका के साथ नैनीताल घूम आने की बात उस के मन को गुदगुदा

रही थी.

‘‘श्योर… श्योर… जरूर चलेंगे हम सब नैनीताल,’’ शिखा जवाब में मुसकराई, पर

उसे अचानक अपनी सांस घुटती हुई सी

महसूस हुई.

जब घंटे भर बाद वह सब से विदा ले कर अपने घर चली, तो राजीव व नीरजा के

घर में दोबारा जल्दी से कदम न रखने का

संकल्प उस के मन में बेहद मजबूत जड़ें जमा चुका था.

‘मुझे नीरजा की दोस्ती नहीं चाहिए. उस

से दूरी बनाने को मैं राजीव से भी संबंध तोड़ लूंगी. मेरे किसी दुश्मन ने मेरा इतना खून कभी नहीं फूंका होगा जितना इस नई सहेली के प्यार और अपनेपन ने फूंका है,’ ऐसे विचारों में

उलझी परेशान शिखा नीरजा की जिंदगी से

निकल गई.

नीरजा ने कई बार शिखा को उस दिन फोन मिलाया पर दोनों की बात नहीं हो पाई. शिखा ने अपना फोन बंद कर रखा था.

अगले दिन रविवार दोपहर को वह डाक्टर राजेश की फिजियोथेरैपिस्ट अनुराधा से रेस्तरां के बाहर मिली. नीरजा ने ही उसे लंच साथसाथ करने के लिए बुलाया था.

‘‘समस्या अंडर कंट्रोल है न?’’ अनुराधा

ने शरारती चमक आंखों में भर कर नीरजा से सवाल किया.

‘‘पूरी तरह और मुझे ज्यादा झेलना बेचारी शिखा के लिए अब संभव नहीं,’’ नीरजा ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘हम ने ठीक रास्ता चुना, सहेली. तुम राजीव और उसे दूर करने के लिए अपने पति

या शिखा से उलझती, तो मामला बिगड़ता ही. उस स्थिति में राजीव और तुम्हारे बीच की दूरी बढ़ जाती.’’

‘‘शिखा के साथ दोस्ती बढ़ा कर उस की जान के लिए मुसीबत बन जाने का तुम्हारा सुझाव बड़ा कारगर साबित हुआ.’’

‘‘डाक्टर राजेश, लगभग रोज ही तुम्हारे बारे  में मुझ से पूछ लेते थे. शिखा की परेशानियां को सुन कर खूब हंसते थे.’’

‘‘मैं उन के बच्चों के लिए आज मिठाई और चौकलेट भिजवाऊंगी तुम्हारे हाथ. वह झूठा प्लस्तर चढ़ाने को तैयार न होते, तो हमारी योजना में जान न पड़ती.’’

‘‘अपनी प्यारी सहेली की खातिर मुझे उन्हें मनाना ही था.’’

‘‘थैंक यू, माई फ्रैंड.’’ नीरजा ने अनुराधा का कंधा दबा कर फिर से आभार प्रकट किया.

अनुराधा से नीरजा ने ही पूछा था कि क्या वह किसी स्वामी या वकील के पास जाए? तो अनुराधा ने ही मना किया था. उसी ने बताया था कि असल में ये दोनों ही औरतों को लूटते हैं. उस के पास बहुत से मामले आते हैं जिन में औरततों को शारीरिक दर्द असल में मानसिक व्यथाओं के कारण होते है और स्वामी वकील दोनों ही मन और तन का दर्द बढ़ाते हैं. उसी ने सारी प्लानिंग की थी.

‘‘वैसे शिखा का हाल कैसा है?’’ अनुराधा ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘कल शाम और रात को उस ने अपना फोन बंद रखा. अभी तुम्हारे सामने ट्राई करती हूं,’’ कह नीरजा ने अपना मोबाइल निकाल कर शिखा का नंबर मिलाया.

शिखा ने इस बार उस का फोन रिसीव कर लिया तो नीरजा आंखों में हैरानी के

भाव ला कर उस से बातें करने लगी.

ये भी पढ़ें- नशा: क्या रेखा अपना जीवन संवार पाई

‘‘कैसी हो शिखा?’’ नीरजा ने अपनी आवाज में बहुत ज्यादा मिठास घोल कर प्रश्न किया.

‘‘मैं ठीक हूं,’’ शिखा की आवाज में किसी तरह का उत्साह या खुशी के भाव मौजूद नहीं थे.

‘‘सोनू और मानू तुम्हें बहुत याद करते हैं. कल फोन क्यों बंद कर रखा था?’’

‘‘उस की बैटरी खत्म हो गईर् थी. मैं आऊंगी उन से मिलाने’’

‘‘कब?’’

‘‘जल्द ही.’’

‘‘नैनीताल चलने का पक्का कार्यक्रम बना लेना. इस शुक्रवार की रात को निकलेंगे.’’

‘‘मैं तो नहीं जा पाऊंगी, नीरजा.’’

‘‘ऐसा मत कहो, शिखा.’’

‘‘मुझे अपनी मौसी के पास लखनऊ जाना है. उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही है.’’

‘‘वहां बाद में चली…’’

‘‘नहीं, लखनऊ तो मुझे जाना ही पड़ेगा. अभी कोई घर में आया हुआ है. बाद में बात करते हैं.’’

‘‘अरे, सुनो तो नैनीताल में बहुत मजे… हैलो… हैलो…’’

शिखा ने संबंधविच्छेद कर दिया था. नीरजा और अनुराधा की नजरें मिलीं और दोनों परेशान शिखा की मनोस्थिति की कल्पना कर एकसाथ जोरदार ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

‘‘चल, अपने पति की भूतपूर्व प्रेमिका

को सही सबक सिखाने की खुशी में पार्टी करते हैं,’’ नीरजा ने मुसकराते हुए अनुराधा का हाथ थामा और दोनों शान से चलती हुईं रेस्तरां में प्रवेश कर गईं.

ये भी पढ़ें- कमाऊ बीवी: आखिर क्यों वसंत ने की बीवी की तारीफ?

सूरजमुखी सी वह: भाग 3- क्यों बहक गई थी मनाली

मनाली कभी उन लोगों से नहीं मिली थी इसलिए वहां जाने में हिचकिचा रही थी, मगर उस का संकोच जल्द ही दूर हो गया. आंटी, अंकल बहुत ही मिलनसार थे. उन की इकलौती संतान विशाल बीटैक करने के बाद कुछ दिन पहले ही नौकरी पर लगा था. घर की चकाचौंध देख मनाली आश्चर्यचकित हो गई. बंगले सदृश्य दिखने वाले मकान में सब प्रकार की सुविधाएं थीं. विशाल का कमरा किसी होटल के कमरे से कम नहीं लग रहा था. नक्काशीदार डबलबैड, कमरे में बिछा मोटा गद्देदार कालीन और दीवार पर लगी सुंदर पेंटिंग अपनी कीमत जैसे स्वयं ही बता रहे थे.

मनाली को अगले ही दिन जब विशाल एक रेस्टोरैंट में ले गया गया तो मैन्यू कार्ड में दाम देख मनाली की आंखें फटी रह गईं. विशाल ने कई प्रकार की डिशेज मंगवाई थीं. मनाली को समझते देर न लगी कि विशाल को मनमाना पैसा खर्च करने की छूट मिली हुई है.

खाना खाने के बाद जब वे लौटे तो विशाल के मातापिता दोनों को घुलतेमिलते देख बहुत प्रसन्न हुए. कुछ दिनों से विशाल अकेलेपन को झेल रहा था. उस का अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रैकअप हुए 2-3 महीने ही बीते थे.

मनाली विशाल के कमरे में बैठी देर रात तक बातें करती रही. विशाल ने मनाली को सोने की वह चेन दिखाई जो उस ने अपनी गर्लफ्रैंड के लिए बनवाई थी. चेन का पेंडैंट ‘एम’ लैटर से था।

“उस का नाम मुसकान था,” विशाल बताने लगा, “इस से पहले कि मैं मुसकान को चेन गिफ्ट करता मुझे पता लगा कि वह एक और लड़के के चक्कर में पड़ी हुई है. मैं ने बिना देरी किए रिश्ता तोड़ लिया.”

चेन हाथों में ले मनाली ने विशाल की पसंद को सराहा तो विशाल ने तपाक से चेन उस के ही गले में पहना दी. मनाली की खुशी का ठिकाना न था.
मनाली का बिस्तर दूसरे कमरे में लगाया गया था, लेकिन विशाल से बातें करतेकरते ही उसे नींद आ गई और वहीं सो गई.

अगले दिन जब वह यूनिवर्सिटी से लौटी तो विशाल स्वागत में पलकें बिछाए बैठा था. अपने मम्मीपापा के सो जाने पर विशाल ने मोबाइल में मुसकान की अपने साथ ली हुईं कुछ तसवीरें मनाली को दिखाईं. दोनों को हाथों में हाथ डाले घूमते देख मनाली का मन विशाल के करीब जाने को बेताब होने लगा. विशाल को इसी पल की प्रतीक्षा थी. उस ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. 2 प्यासे तन एकदूसरे की बांहों के घेरे में तृप्त हो रहे थे.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Day: परिंदा- क्या भाग्या का उठाया कदम सही था

सोमवार को अपने घर जा कर मनाली को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. होमवर्क में मिली असाइनमैंट करने बैठती तो विशाल का चेहरा सामने आ जाता.

‘कितनी ठंडक है विशाल के स्पर्श में। ऐसी शीतलता क्या मुझे अभिषेक से मिली थी? बिलकुल नहीं. अब किसी सूरज की तलाश नहीं है मुझे, चांद मिल गया है न. क्यों बनूं मैं सूरजमुखी का फूल? नहींनहीं मुझे नहीं चाहिए सूरज की रोशनी. मैं तो वह जूही का फूल हूं जिसे सूरज की रोशनी बरदाश्त ही नहीं होती. जूही का फूल रात की रानी भी तो कहलाता है और चांदनी भी तो कहते हैं न उसे, क्योंकि वह चांद के प्रकाश में खिलता है. तो अब विशाल मेरा चांद होगा और सप्ताह में 3 रातें तो बिताऊंगी ही मैं उस के साथ,’ अपनेआप से कहते हुए खयालों में ही वह विशाल को चूमने लगी.

मनाली को सप्ताह के अंत की प्रतीक्षा व्याकुलता से रहती थी. वह सचमुच विशाल की रानी बन गई थी. उस की रातों को महकाने वाली रात की रानी।
कक्षा में वह न तो कुछ सुनती थी और न ही समझ पाती, क्योंकि अकसर पूरी रात विशाल के साथ जागतेजागते ही बीतती थी. कुछ अधूरी नींद तो कुछ मदहोशी के कारण मनाली को कक्षा में नींद के झोंके आते रहते, लेकिन विशाल से रिश्ते के आगे उसे कुछ भी नहीं सूझता था.

दिन पंख लगाए उड़ रहे थे. प्रत्येक सप्ताह इम्पोर्टेड परफ्यूम, ब्रैंडेड कपड़े, मोबाइल, कैमरा व पर्स जैसी महंगी वस्तुएं विशाल उसे गिफ्ट के तौर पर देता तो रात में उस के जिस्म को निचोड़ कर रख देता.

ये भी पढ़ें- रिवाजों का दलदल: श्री के दिल में क्यों रह गई थी टीस

इधर कुछ दिनों से मनाली को यूरिन पास करते समय तेज दर्द होने लगा. खुजली और जलन भी होती. बारबार टौयलेट जाने की इच्छा होती, लेकिन यूरिन बहुत ही कम होता. बुखार और थकावट भी रहने लगी थी. जब विशाल को उस ने इस विषय में बताया तो वह सांत्वना देने या मदद करने के स्थान पर कन्नी काटने लगा. सप्ताहांत में जब मनाली उस के घर आती तो वह बहाने से कहीं और चला जाता.

जब मनाली की तकलीफ बढ़ने लगी तो उस ने अपनी एक पुरानी सहेली को सब कुछ विस्तार से बताते हुए अपने साथ डौक्टर के पास चलने को कहा. यहां भी मनाली के हाथ निराशा लगी. सहेली ने न सिर्फ साफ शब्दों में इनकार कर दिया, बल्कि यह भी कहा, “तेरी करनी है, तू ही भुगत…”
जब दर्द बरदाश्त के बाहर हो गया तो मनाली मम्मी से पुस्तकें खरीदने के बहाने कुछ पैसे ले कर यूनिवर्सिटी के निकट एक नर्सिंगहोम में चली गई. डाक्टर ने कुछ दवाएं और टैस्ट लिख दिए. मनाली तब बेहद चिंतित हुई जब टैस्ट की रिपोर्ट आने पर उसे पता लगा कि उसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हुआ है. इलाज व कुछ अन्य टैस्ट करवाने के खर्च की जानकारी सुन उस के होश उड़ गए.

इन दिनों उस की एक नई मित्र बनी थी, सुमेधा. इस समय उसे सुमेधा का सहारा ही दिखाई पड़ रहा था. मनाली ने उसे अपनी शारीरिक व मानसिक पीड़ा खुल कर बता दी. सुमेधा ने कहा कि वह उस के साथ डाक्टर के पास तो नहीं जाएगी, हां उस की एक मदद अवश्य कर सकती है. सुमेधा के पिता पुरानी वस्तुओं का व्यापार करते हैं. उन से कह कर वह मनाली को उपहार में मिली वस्तुओं की अच्छी कीमत दिलवा सकती है. अंततः मनाली को अपने सभी गिफ्ट बेचने पड़े. उन से मिले रुपयों से वह इलाज करवाने लगी.

उस दिन नर्सिंगहोम में अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में बैठी मनाली स्वयं को लुटा सा महसूस कर रही थी. परीक्षा शुरू होने वाली थी. मनाली धीरेधीरे स्वस्थ तो हो रही थी मगर यह सोच कर बहुत दुखी थी कि इस बार भी वह परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी. पूरे साल तो उस का मन पढ़ाई में लगा नहीं था और अब यह मुसीबत… मनाली का जी चाह रहा था कि वह चिल्ला कर जोरजोर से रोने लगे.

“तुम्हारे घर वाले इतनी जल्दी क्यों कर देते हैं तुम्हारी शादी?” डाक्टर के कमरे से आवाज आई तो मनाली जैसे अपने में लौट आई. कुछ देर पहले एक महिला अंदर गई थी जिस के माथे पर पट्टी बंधी हुई थी. डाक्टर उस से ही मुख़ातिब थीं. महिला के शराबी पति ने नशे में उस के सिर पर कुरसी दे मारी थी. वह महिला पति के साथ रहना तो नहीं चाहती थी, लेकिन बच्चों को ले कर जाती भी कहां?

कुछ देर की चुप्पी के बाद डाक्टर की आवाज़ सुनाई पड़ी, “पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने की जगह न जाने क्यों तुम्हारे मातापिता पति के पल्ले बांध लेते हैं? क्यों तुम्हें यह नहीं बताया जाता कि तुम्हारी भी अपनी एक पहचान है. शादी, ब्याह, बच्चे तो जिंदगी में आ ही जाएंगे पहले खुद की खुद से पहचान तो होने दें वे. अपने बल पर खड़ी हो जाएगी तो लड़की क्यों चाहेगी किसी का सहारा? अपने दम पर जीना कब सीखोगी?”

ये भी पढ़ें- ढाई आखर प्रेम का: क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

मनाली को अकस्मात जैसे नई दिशा मिल गई. शायद मैं सहारा ढूंढ़ते हुए ही अपने से दूर हो गई थी. नहीं बनूंगी अब मैं सूरजमुखी, रात की रानी भी नहीं. तो क्या चंपा का फूल बन जाऊं जिस पर भंवरे नहीं बैठते कभी? चंपा के फूल में पराग नहीं होता. तो क्या मैं मन की गुनगुनी चाह, इच्छाओं और भावनाओं को निकाल बाहर करूं? नहीं मैं अपने मन से दूर तो नहीं होने दूंगी ये एहसास, लेकिन अभी मन के कोने में छिपा कर रखूंगी और पूरा तनमन एक उद्देश्य में रमा दूंगी. अपने पैरों पर खड़े होने का उद्देश्य, किसी पर निर्भर न रहने का उद्देश्य. क्यों बनूं मैं कोई फूल? शायद कोमल समझ कर यह समाज मुझ जैसी लड़कियों के कानों में सदा किसी पर निर्भर रहने का मंत्र फूंकता रहता है. क्यों प्रतीक्षा हो मुझे अपने जीवन के आकाश में किसी चांद या सूरज की? मैं तो बनूंगी खुद सूरज भी चांद भी. छू लूंगी किसी दिन छलांग लगा कर अरमानों के आसमान को.

सूरजमुखी सी वह: भाग 2- क्यों बहक गई थी मनाली

कहते हैं कि कच्ची उम्र कच्ची मिट्टी के समान होती है, उसे जो भी आकार मिल जाए उस में ही ढलने लगती है. मातापिता कुम्हार के समान होते हैं उसे सही रूप में ढालने वाले. मनाली का मन किस ओर भाग रहा है इस बात की चिंता से दूर उस के मातापिता मंदिरों में दर्शन का कार्यक्रम बना व आएदिन घर में पूजापाठ रखवा कर व्यस्त रहते. इस के अतिरिक्त उन की नजरों में संतान पर किशोर अवस्था में अंकुश लगाना ही उन को सही दिशा दिखाना था.

मनाली की मां रोजरोज सत्संग में भाग ले कर जीवन दर्शन समझने का प्रयास तो करतीं, लेकिन इस बात को समझने का प्रयास उन्होंने कभी नहीं किया कि नाजुक उम्र के इस दौर में मनाली के मनमस्तिष्क में अनेक जिज्ञासाएं जन्म ले रही हैं. स्त्रीपुरुष संबंधों के विषय में जानने की उस की दबीछिपी उत्सुकता कौतुहल जगाने के साथ ही उस की कामभावना को भड़का सकती है और ऐसे प्रश्नों के उत्तर पाने की उत्कंठा उसे अनुचित राह का राही भी बना सकती है.

मनाली प्रतिदिन सायंकाल छत पर जा गमलों में पानी देती थी. उस दिन साथ वाले घर की छत पर बने कमरे से एक लड़के को निकलते देख मनाली को उस के विषय में जानने की उत्सुकता हुई. जानबूझ कर वह ऐसे स्थान पर खड़ी हो गई जहां से लड़के का कमरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था. अपनी दृष्टि वहां गड़ा वह कुछ समझने का प्रयास कर ही रही थी कि लड़का कमरे से बाहर आ गया. औपचारिकता से भरी मुसकराहट के बाद उस ने मनाली को अपना परिचय दिया. अभिषेक नाम था उस का. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के साथ ही वह बीए कर रहा था. पड़ोस की छत पर बना कमरा उस ने किराए पर लिया था.

दोनों छतों की दीवारें जुड़ी हुई थीं इसलिए वे न केवल धीरे से बातचीत कर पा रहे थे बल्कि एकदूसरे की निकटता को भी महसूस कर रहे थे. दोनों ने कुछ देर में ही एकदूसरे के विषय में काफी कुछ जान लिया. अभिषेक फिल्में देखने का बहुत शौकीन था.

ये भी पढ़ें- आलिया: क्या हुआ था आलिया को एहसास

अपने लैपटौप पर अकसर रात में वह इंग्लिश फिल्में व वेब सीरीज देखा करता था. मनाली से उस ने एक विशेष वेब सीरीज का जिक्र किया जो टीनएजर्स के लिए बनी थी. अभिषेक की बातें सुन मनाली का दिल भी उस सीरीज को देखने के लिए मचल उठा. अभिषेक ने उसे यह कहते हुए कि कल उस का औफ डे है, उसे अपने कमरे में अगले दिन आने का निमंत्रण दे दिया.

अभिषेक से हुई उस छोटी सी भेंट ने मनाली को अंदर तक हिला दिया. बारबार उसे वह पल गुदगुदा रहा था जब अभिषेक से बातें करते हुए दीवार पर रखे उस के हाथ अभिषेक के हाथों को छू रहे थे.

अगले दिन मम्मी के मंदिर जाते ही वह छत पर चली गई. अभिषेक तो इंतजार में पहले से ही खड़ा था. पहली बार दीवार फांदने में मनाली को थोड़ी कठिनाई हो रही थी. अभिषेक ने अपने एक हाथ से उस की बाजू को कस कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से पीठ को सहारा दे अपनी छत पर उतार लिया.

अभिषेक के साथ सीरीज देखते हुए मौजमस्ती करना मनाली को बहुत भा रहा था. बारबार अभिषेक उसे किसी बहाने हौले से छू लेता. वह अभिषेक की बातों का रस ले रही थी तो अभिषेक की नजरें उस की देह का. जाने का समय आया तो अभिषेक ने एक बड़ी सी चौकलेट मनाली को उपहारस्वरूप देने के लिए निकाली और पैकेट खोल एक टुकड़ा तोड़ कर मनाली के होंठों से लगा दिया.

मनाली अब सारा दिन छत पर आने की फिराक में रहती. कभी पढ़ने के बहाने तो कभी मां की निगाहों से बच कर बिना कोई बहाना बनाए. जानती थी कि मम्मी तो सीढ़ियां चढ़ कर आएंगी नहीं. अभिषेक अकसर कमरे में ही होता था. लगभग हर मुलाकात में कोई न कोई गिफ्ट पा कर मनाली स्वयं पर ही इतराने लगी थी.

अभिषेक से मिली छूअन में मनाली को ऊष्मा का एहसास होता. सर्द मन को थोड़ी राहत अवश्य मिल गई थी, लेकिन उस का जी अकुला उठा और पाने को. रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए सुबह होने का इंतजार रहता उसे. अभिषेक उस के जीवन का सूरज बन रहा था. उस से मिला चुंबन और आलिंगन उसे धूप के एक टुकड़े सा लगता था.

वह अब सूरजमुखी बन जाना चाहती थी, अपने सूर्य का प्रकाश पा कर खिल जाना चाहती थी. उसे अब ऐसी धूप की चाह थी जो खिला दे उस का अंगअंग. सहला दे उस का तन, खिल जाए उस की पंखुड़ीपंखुड़ी. अभिषेक भी तो यही चाहता था.

2 दिन में ही मन का संबंध तन का रिश्ता बन गया. अपने मन में घुमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर खोजने मनाली रिश्ते में डूबती चली गई, लेकिन दोनों के बीच अब संवाद केवल शरीर की भाषा में होने लगे. मनाली कुछ संतुष्ट थी तो कहीं असंतुष्ट भी. उसे लगने लगा था कि अभिषेक भी वही पुरुष है जो अपनी शारीरिक भूख शांत कर रहा है. वह कभी कुछ पूछना भी चाहती तो अभिषेक उत्तर ही नहीं देता था. धीरेधीरे नौबत यहां तक पहुंच गई कि कभीकभी उस की इच्छा ही नहीं होती थी अभिषेक के पास जाने की, मगर उपहारों के लोभ में वह फंसती ही गई. कभी महंगे कौस्मेटिक्स, कभी कमरा सजाने का सामान तो कभी ब्लूटूथ ईयरफोन जैसी वस्तुएं… मनाली की अलमारी भरती जा रही थी.

ये भी पढ़ें- दर्द: जोया ने क्यों किया रिश्ते से इनकार

एक दिन वह छत पर आई तो अभिषेक के कमरे में कोई हलचल दिखाई न दी. उस ने ध्यान से देखा तो समझ में आया कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है, यह देख वह हक्कीबक्की रह गई. ‘न जाने क्या हुआ होगा’ वह छत पर खड़ेखड़े ही चिंता में घुली जा रही थी. तभी मकानमालिक एक व्यक्ति के साथ आया और कमरे का ताला खोल उस से बोला, “आप कल से ही आ सकते हैं यहां. वह लड़का कुछ महीनों से किराया नहीं दे रहा था. कल रात ही यहां से चुपचाप चला गया. सामान के नाम पर एक सूटकेस ही तो था. मुझे तो उस के कमरे में एक लैटर रखा हुआ मिला जिस पर लिखा था कि वह अपने गांव वापस जा रहा है, किराया न देने के लिए माफी भी मांगी थी,” सब सुन कर मनाली को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ‘बेनाम रिश्तों का अंजाम शायद यही होता है,’ वह बुदबुदाई.

इस घटना के 2 माह बाद एक दिन बाजार में अभिषेक को एक लड़की के साथ देख मनाली आश्चर्यचकित रह गई. अभिषेक उसे देख कर सकपका गया और मुंह फेर कर चुपचाप चल दिया. मनाली भी उसे अनदेखा कर घर आ गई. अपने उदास मन को समझाते हुए सोच रही थी, ‘मैं क्यों बन गई थी सूरजमुखी, जबकि वह सूरज था ही नहीं. वह तो कमरे में जलते घासफूस के ढेर सा था जिस ने मुझे कुछ देर गरमी दी और उजाला भी, लेकिन अंत तो निश्चित ही था.’

कुछ देर बाद जब मन शांत हुआ तो हार में जीत ढूंढ़ते हुए बोली, ‘सौदा बुरा भी नहीं रहा, कितने सारे गिफ़्ट तो दिए हैं उस ने मुझे,’ अलमारी खोल कर एक दृष्टि अभिषेक द्वारा दिए उपहारों पर डाल वह मुसकरा दी.

12वीं का परीक्षा परिणाम आया तो मनाली को बहुत कम अंक प्राप्त हुए. किसी कौलेज में प्रवेश न मिल पाने के कारण उसे ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना पड़ा. वहां प्रत्येक शनिवार और रविवार को सुबह से शाम तक कक्षाएं होती थीं. मनाली का घर यूनिवर्सिटी से दूर था. सुबह 8 बजे प्रारंभ होने वाली कक्षा में उस का जाना लगभग असंभव था. उन के दूर के एक रिश्तेदार यूनिवर्सिटी के पास रहते थे. मनाली पर सौ पाबंदियां लगाने वाले मातापिता को आखिर फैसला करना पड़ा कि मनाली शुक्रवार की शाम उन के घर चली जाएगी और 2 दिन क्लास करने के बाद सोमवार सुबह घर वापस आ जाया करेगी.

आगे पढ़ें- विशाल का कमरा किसी…

ये भी पढ़ें- स्वयं के साथ एक दिन: खुद को अकेला क्यों महसूस कर रही थी वह

सूरजमुखी सी वह: भाग 1- क्यों बहक गई थी मनाली

“लगता है विकास जीजू आए हैं. वाह, मजा आ गया. बाद में आ कर पढ़ लूंगी. 12वीं कक्षा है तो क्या हुआ? बोर्ड के ऐग्जाम का मतलब यह तो नहीं कि किसी से बात करना ही गुनाह है,” हाथों में पकड़ी किताब को बंद करते हुए मनाली मंदमंद मुसकरा कर अपने कमरे से निकल ड्राइंगरूम की ओर चल दी.

रिश्ते की दीदी कुमुद का विवाह लगभग 6 माह पहले हुआ था. विवाह से पहले कुमुद जब कभी उन से मिलने आती थी तो मनाली खूब नाकभौं सिकोड़ा करती. उस का साथ मनाली को कुछ देर के लिए भी नहीं सुहाता था, लेकिन कुमुद का विवाह हुआ तो विकास जीजू की कदकाठी और रंगयौवन देख मनाली के दिल में कुलबुलाहट सी होने लगी. अब कुमुद के साथ विकास के घर आते ही मनाली का मुखमंडल दमक उठता.
रात का अंधेरा भी उसे दीदी, जीजू के संबंधों की कल्पना से चकाचौंध करने लगा था.

‘जीजू की बगल में लेटी दीदी को कैसा लगता होगा? उन के प्रेम प्रदर्शित करने पर दीदी की प्रतिक्रिया क्या होती होगी…’ मन ही मन दीदी के स्थान पर स्वयं को कल्पना में रख वह अपनी सोच पर लजा जाती. दीदीजीजू के बीच हो रहे संवादों के सांकेतिक अर्थ जानने में उस की रुचि बढ़ रही थी.

‘क्या महत्त्व है जीवन में ऐसे संबंधों का? क्या अंतर होता होगा दोस्ती और ऐसे रिश्तों में…’ मन में घुमड़ते ऐसे सवालों का जवाब पाने को बेचैन वह अपनी सहेलियों से इस विषय पर चर्चा करना चाहती थी, मगर मातापिता के कठोर नियमों के कारण वह घर से निकल नहीं पाती थी. सहेलियों के घर आने पर भी वे क्षुब्ध हो जाते. मनाली स्वयं में खोई अंतर्मन में सब छिपाए व्याकुल सा जीवन जी रही थी.

मनाली के हावभाव देख मां को समझते देर न लगी कि उम्र की हलचल उस पर हावी हो रही है. अपनी संकीर्ण मानसिकता से इस का हल निकालते हुए मनाली को वे शाम को अपने साथ मंदिर ले जाने लगीं ताकि आचार्यजी से प्रवचन सुन कर मन में पल रही असामयिक इच्छाओं से मनाली का पीछा छूट जाए.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: बसंत का नीलाभ आसमान- क्या पूरा हुआ नैना का प्यार

सत्संग भवन में मां जब आंखें मूंदें भक्तिभाव में लीन होतीं तो मनाली आचार्यजी की लालसा में डूबी निगाहों को यहांवहां ताकते स्पष्ट रूप से देखती थी. बीमारी दूर करने व आशीर्वाद के नाम पर स्त्रियों के अंगों को स्पर्श करते हुए उन के चेहरे के भाव भी मनाली की आंखों से छिप न सके.

अपनी मां से पढ़ाई का बहाना बना उस ने वहां जाना तो बंद कर दिया, लेकिन इस घटना के बाद शारीरिक भूख जैसे शब्द उसे उलझाने लगे. ‘शायद जिस्म की प्यास सब को बेचैन करती है, चाहे कोई इस से दूर होने का कितना भी ढोंग कर ले. कभीकभी मेरा मन भी करता है कि कोई प्यार से सहलाता रहे. क्या यह वही भूख है? इसे शांत कैसे किया जाता होगा…’ ऐसे प्रश्न उसे लगातार झिंझोड़ रहे थे.

इस बीच पड़ोस की एक आंटी के किसी पुरुष के साथ संबंध होने की चर्चा ने उस के मन की उथलपुथल को और बढ़ा दिया. आंटी के पति विदेश में रह कर नौकरी कर रहे थे. उन की बेटी आयु में मनाली से थोड़ी ही छोटी थी. मनाली ने भी कई बार किसी अंकल को रात में कार से उतरते और सुबह वापस जाते देखा था. एक ओर इस रिश्ते के विषय में सोच कर मनाली के दिल में हलचल सी जाग रही थी, तो दूसरी ओर वह प्रेम का अर्थ खोज रही थी.

वह जानती थी कि पड़ोस में रहने वाली आंटी के पति 2 साल में 1 बार आते हैं, ऐसे में आंटी अकेलापन महसूस करती होंगी. लेकिन वह अंकल? सुना है, उन के विवाह को 3-4 वर्ष ही हुए हैं. वे खुश हैं अपने परिवार से. 2 वर्षीय बेटा भी है उन का, तो फिर यह सब क्यों? क्या वे दोनों केवल मित्र बन कर नहीं रह सकते? क्या सैक्स इतना जरूरी है कि नए संबंध बनने लगें?

ये भी पढ़ें- औक्टोपस कैद में: सुभांगी ने क्या लिया था फैसला

मां से मनाली ने पड़ोस वाली आंटी की बात शुरू की तो उन्होंने उसे झिड़कते हुए कहा, “खबरदार जो आइंदा ऐसी गंदी बातें की मुझ से. छोटी हो अभी बहुत, बच्चे की तरह रहो,” मनाली सहम कर चुप हो गई.

एक दिन अपने घर मिलने आए मामा को वह चाय देने कमरे में पहुंची तो मोबाइल पर उन को किसी से मीठी आवाज़ में बातें करते पाया. दरवाजे की ओर मामा की पीठ थी, इसलिए उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ मामा नटखट अंदाज में द्विअर्थी संवाद बोलते हुए खिलखिला कर हंस रहे थे. मनाली के सामने जाते ही अचकचा कर “अभी करता हूं फोन,” कह कर उन्होंने काल काट दी. मोबाइल सामने टेबल पर रख वे निगाहें बचाते हुए हड़बड़ा कर वाशरूम में घुस गए.

‘कुछ देर पहले तो मामाजी मां से मामीजी की शिकायत कर रहे थे और अब इतनी प्यार भारी बातें? कहीं वे भी पड़ोसी आंटी की तरह…” मनाली ने झट से मोबाइल उठा कर ताजा काल का नंबर देखना चाहा. मोबाइल को टच करते ही वाट्सऐप खुल गया. शायद मामा की बातचीत वाट्सऐप काल के माध्यम से हो रही थी. सब से ऊपर की चैट में किसी महिला की डीपी लगी थी. मनाली ने झटपट चैट खोली तो इश्क में रंगी हुई बातचीत पढ़ते हुए उस का दिल धड़क उठा. मामा द्वारा ली गई एक सैल्फी भी दिखी जिस में मामा किसी होटल के बिस्तर पर उस महिला के साथ लेटे हुए थे. हैरत में पड़ी मनाली मोबाइल टेबल पर रख चुपचाप अपने कमरे में चली गई. अपनी मम्मी से इस बारे में बात करने का बहुत मन था मनाली का, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी.

ये भी पढ़ें- अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

उस रात मनाली को नींद नहीं आ रही थी. ‘शालिनी मामी सी खूबसूरत पत्नी के होते हुए उस महिला के चक्कर में क्यों हैं मामा? डीपी में दिखने वाली महिला तो मामी के सामने कहीं ठहरती ही नहीं. कहीं उस ने ही फुसला कर मामा को अपनी ओर तो नहीं कर लिया? लेकिन मामा क्यों मान गए? क्या शारीरिक सुख इतना अहम है कि सभी आंखें मूंदे उस रास्ते पर चलना चाहते हैं? या फिर ऐसा तो नहीं कि मामी अपने पति की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकीं कि उन्हें किसी और से प्रेम की चाहत है? पुरुष की क्या अपेक्षाएं होती होंगी एक पार्टनर से? क्या मैं अपने साथी को वह सब दे सकूंगी जो उसे चाहिए ताकि वह भटक न पाए? कौन बताएगा यह सब? किसी पुरुष से नजदीकी हो तो शायद इस विषय में जान पाऊं…’ सोचते हुए मनाली को नींद आ गई.

आगे पढ़ें- मनाली का मन किस ओर भाग रहा है इस…

12 साल के संघर्ष के बाद पंकज त्रिपाठी को मिली मंजिल, पढ़ें खबर

बिहार के गोपालगंज के बेलसंड गांव में जन्में अभिनेता पंकज त्रिपाठी हिंदी सिनेमा जगत के एक जाना-माना नाम है और आज हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहते है, लेकिन कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचना पंकज के लिए आसान नहीं था. उनके पिता का नाम पंडित बनारस त्रिपाठी और माँ का नाम हेम्वंती त्रिपाठी है. पिता किसान होने के साथ-साथ पंडिताई भी करते थे. चार बच्चों में सबसे छोटे पंकज को बचपन से ही अभिनय का शौक था. छोटी उम्र में ही उन्होंने लड़की की वेशभूषा धारण कर किसी भी उत्सव या अवसर पर अभिनय किया करते थे, इससे उनके अंदर अभिनय की इच्छा जगी और वे इसे ही अपना प्रोफेशन मान लिए थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने पटना भेज दिए.

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पकज ने होटल मनेजमेंट की पढाई की और पटना के एक पांच सितारा होटल में किचन सुपरवाईजर का काम करने लगे, क्योंकि उन्हें कुछ पैसा कमा लेना था. पंकज के आदर्श मनोज बाजपेयी है, एक बार जब मनोज पटना होटल में आये और अपना स्लीपर छोड़कर चले गए थे तो पंकज ने उन स्लीपर्स को सम्हाल कर अपने पास रखा, ताकि अभिनय के प्रति उनकी शौक बनी रहे. करीब 7 साल होटल में काम करने के बाद वे दिल्ली एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए शिफ्ट हो गए और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएशन कर अभिनय के लिए मुंबई आ गए. मुंबई वे अपनी पत्नी मृदुला और बेटी आशी के साथ आये थे. अभी उनकी बेटी दसवीं कक्षा में है और पढाई पर ध्यान दे रही है.

पंकज को लगा नहीं था कि उनकी संघर्ष इतनी लम्बी होगी, लेकिन उन्होंने धीरज नहीं हारी. शुरू में पंकज ने कई विज्ञापनों और एक दो सीन्स में काम किये,उस दौरान उनकी पत्नी, मृदुला,जो एक स्कूल टीचर थी, पूरे परिवार का खर्चा चलाया और पंकज को उनके सपनों को पूरा करने की आज़ादी दी. कुछ दिनों बाद पंकज को फिल्म ‘रन’ मिली, लेकिन फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ उनके अभिनय कैरियर की माइलस्टोन बनी, जिसके बाद से उन्हें मुड़कर पीछे देखना नहीं पड़ा. इस फिल्म की ऑडिशन पंकज ने करीब 8 घंटे तक दिया था. व्यस्त जीवन शैली के बीच पंकज त्रिपाठी ने मुंबई स्थित अपने आवास से टेलीफोन पर गृहशोभा के लिए खास बात की, जो रोचक थी, पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – अभिनय की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

जवाब –जब गाँव में था तो वह किसी भी अवसर पर नाटक करता था. पटना जाने के बाद भी मैं वहां थिएटर करने लगा था, फिर महसूस हुआ कि ये फील्ड अच्छी है, इसमें काम कर जीवन चलाना आसान होगा. इसके बाद पटना से दिल्ली आ गया और एनएसडी में ज्वाइन किया. आज यहं तक पहुंचा हूँ. 12 साल की संघर्ष के बाद मुझे लोग थोडा जानने लगे थे. काम मिलने लगा था.

सवाल- 12 साल की संघर्ष में किसका सहयोग रहा?

जवाब – मेरी पत्नी मृदुला का जो उस समय मुंबई में टीचर थी और उनके पैसे से ही घर चल जाता था. उस दौरान मैं काम खोज रहा था और अपने क्राफ्ट पर काम कर रहा था. उन्होंने उनका काम मेरे स्टाब्लिश होने के बाद छोड़ दिया और अपने मनपसंद शूटिंग की कंपनी चलाती है.

ये भी पढ़ें- आशिक बनकर करण पहुंचे तेजस्वी के घर, #tejran का Cute Video Viral

सवाल –पत्नी से आप कैसे मिले थे?

जवाब – मैं उनसे एक शादी में मिला था, मुझे मृदुला बहुत अच्छी लगी थी. इसके बाद प्यार और प्रेमविवाह किया है.

सवाल – मुंबई आने पर काम के लिए कितनी समस्याएं आई? क्या आउटसाइडर होने की वजह से आपको अधिक मेहनत करनी पड़ी?

जवाब –हमारे देश में हर काम के लिए भीड़-भाड होती है और एक्टर बनना तो सबसे कठिन काम होता है. उसमें जो मेहनत करते है, उनके लिए रास्ते बन जाने है, मैंने भी मेहनत कर अपना रास्ता बनाया. इतना ही नहीं कई बार काम होते-होते पता चलता था कि नहीं हुआ किसी दूसरे को ले लिया है, ये पार्ट ऑफ़ ऑडिशन होता है.

सवाल – आपकी अधिकतर फिल्मों या वेब सीरीज में आपके काम को सराहा जाता है, इसकीवजह क्या मानते है?

जवाब – इसके लिए मैं उन कहानियों में काम करना पसंद करता हूँ, जो मुझे अच्छी लगती है. उसे सजीव करने के लिए पूरी मेहनत करता हूँ और उससे जुड़ जाता हूँ. ये अच्छी बात है कि मेरे काम की प्रसंशा दर्शक करते है, जिससे मुझे हर फिल्म में अधिक अच्छा करने की इच्छा होती है.

सवाल – आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है, क्या कोई रिग्रेट रह गया है?

जवाब – मैं अपने जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ, क्योंकि जितना मैंने सोचा, उससे अधिक मुझे मिला है, इसलिए किसी प्रकार की रिग्रेट मुझमे नहीं है. इसके अलावा मैं सुकून गति का व्यक्ति हूँ और जिस गति से मेरा काम चल रहा है,उसे मैं वैसे ही चलने देना चाहता हूँ. मेरे जीवन में ठहराव है औरजब समय मिलने पर दार्शनिक किताबे पढना पसंद करता हूँ.

सवाल – आपके मुंबई एक्टिंग के लिए आने पर परिवार की प्रतिक्रियां कैसी थी?

जवाब – परिवार वालों को मुझपर भरोसा था, वे जानते थे कि मैं कुछ न कुछ अच्छा अवश्य कर लूँगा, इसलिए उन्होंने सफल होने का आशीर्वाद दिया. गांव मैं हर तीन से चार महीने बाद 2 दिन के लिए जाता हूँ. मेरे जाते ही कई लोग मुझसे मिलने आ जाते है.

सवाल –मुंबई में सभी यूथ हीरो बनने के लिए आते है,आपकी इच्छा क्या थी?

जवाब –मेरी इच्छा एक्टिंग करने की थी, इसलिए जो भी काम मिला मैं करता गया. इसमें मैंने केवल गैंग्स्टर ही नहीं, वकील, कॉमेडियन, आम आदमी आदि सबकी भूमिका निभा रहा हूँ.

सवाल – आगे आपकी कौन-कौन सी फिल्में रिलीज पर है?

जवाब – आगे फिल्म ‘ओह माय गॉड 2’ और  ‘शेरदिल’ है, जिसपर काम चल रही है.

सवाल – अभिनय से पहले और अब एक सफल एक्टर बनने की जर्नी में आप वजह क्या मानते है?

जवाब –मेरा धीरज, निरंतर प्रयास करते रहना, अपने क्राफ्ट को सवांरते रहना आदि कई बातें है, जिसे मैंने अपने जीवन में शामिल किया है.

सवाल – रियल लाइफ में पंकज कैसे है?

जवाब – रियल लाइफ में पंकज एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का बेटा है, जिन्हें बाज़ार जाकर सब्जियां खरीदना, ट्रेन के स्लीपर कोच में सफ़र करना, परिवार के साथ समय बिताना, गांव और खेती को देखना, खाना बनाना आदि सब पसंद है.

सवाल – अगर आपको कोई सुपर पॉवर मिले तो आप देश में क्या बदलना चाहेंगे?

जवाब – मैं बहुत सारे पौधे लगाना चाहता हूँ, ताकि बहुत हरियाली रहे. ऑक्सिजन की कमी न रहे, नदियाँ साफ़ रहे, वातावरण सुंदर रहे, पशु पक्षी का समागम हो और सभी सुखी रहे. सुपर पॉवर से मैं पूरी दुनिया को सुखी बनाना चाहता हूँ.

सवाल – आपने अधिकतर फिल्मों में बाहुबली की भूमिका निभाई है, क्या आपको राजनीति में जाने की कभी इच्छा है?

जवाब –अभी तो बताना मुश्किल है, क्योंकि इस बारें में मैंने सोचा नहीं है, लेकिन आगे क्या होगा उसे आज समझ पाना बहुत मुश्किल है. राजनीति डेमोक्रेटिक देश में बहुत जरुरी होती है, क्योंकि इससे सामाजिक क्षमता बढ़ जाती है. हाथ में पॉवर होता है और आप कुछ सही काम करना चाहते है तो कर सकते है. देश का संविधान भी एक महत्व पूर्ण अंग है, जिसके आधार पर हम सब चलते है. इसके द्वारा हमें अपने अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता आदि कई मूलभूत बातों का पता चलता है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15 की विनर बनीं Tejasswi तो गौहर समेत सेलेब्स ने मारा ताना, पढ़ें खबर

सवाल – बिहार का विकास बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है, क्या आप अपने राज्य के विकास के बारें में कभी सोचा है?

जवाब – सोचते है कि गांव और राज्य का विकास हो. अपने हिसाब से करने का प्रयास भी करते है. इसके अलावा कई सामाजिक कार्य से जुड़ा हूँ, पर उस बारें में बात करना नहीं चाहता.

सवाल – कोविड और लॉकडाउन ने बता दिया है कि हमारे देश में लोग कितने गरीब है और कितनी संख्या में वे माइग्रेट करते है, खासकर मुंबई से बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – देश में माइग्रेशन सालों से होता आया है, मुंबई में अधिक होने की वजह काम का मिलना है, जिससे वे अपने गांव और शहर से आकर अपनी रोजी -रोटी कमाते है. विस्थापन एक बड़ी समस्या है और इसपर लगाम तभी लग सकेगा, जब उन राज्यों का समुचित विकास हो. अगर मेरे गाँव में एक फैक्ट्री लग जाती है, तो कोई मुंबई या कल्याण की फैक्ट्री में काम करने क्यों आएगा? हर राज्य में उद्योग – धंधे और काम के मौके का सही विकास हो तो कोई भी व्यक्ति अपने शहर और परिवार को छोड़कर दूसरी जगह नहीं जायेगा.

ये भी पढ़ें- आखिर श्वेता तिवारी ने क्यों मांगी माफी, जानें मामला

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें