गर्मियों में होने वाली Skin Problems

Skin Problems: गर्मियों में फिजिकल हेल्थ के साथ-साथ शरीर के सबसे सेंसेटिव हिस्से यानी त्वचा का ध्यान रखना भी जरूरी है. ज्यादा गर्मी की वजह से स्किन प्रॉब्लम्स का खतरा भी बढ़ जाता है. तेज धूप की वजह से काफी पसीना आता है जो कई स्किन प्रॉब्लम्स की वजह बन सकता है. इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसी ही स्किन प्रोब्लम्स के बारे में बताने जा रहे हैं ताकि आपको उनके बारे में जानकारी हो और उनसे बचने के लिए सही तरीके अपनाएं जा सकें. आइये जाने ऐसे कौन सी समस्याएं हैं जो गर्मी शुरू होने के साथ ही होने लगती हैं और हम उनसे कैसे बचकर रहें.

ऑयली स्किन है बड़ी समस्या-

गर्मियों में पसीने के साथ धूल और मिट्टी चेहरे पर चिपक जाती है जिससे चेहरे के रोमछिद्र ब्लॉक हो जाते हैं. इससे स्किन ऑयली हो जाती हैं. चेहरे पर बार बार आयल आता है जो देखने में बहुत बुरा लगता है और साथ ही इससे दाने भी निकल आते हैं.

ऑयली त्वचा को नियमित रूप से मॉइश्चराइजिंग और हाइड्रेशन की आवश्यकता होती है. सलिए अपनी त्वचा पर नियमित रूप से ऑयल फ्री, नॉन-कॉमेडोजेनिक, वॉटर बेस मॉइश्चराइजर लगाएं.

गर्मियों में महिलाएं फाउंडेशन के बजाय पाउडर बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन कई बार अधिक पसीना और ऑयल की वजह से चेहरे पर ब्रेकआउट बनने लगते हैं. इसलिए फाउंडेशन या फिर पाउडर बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल न करें.

वे लोग जिनकी त्वचा ऑयली है, उन्हें जेल बेस्ड क्लींजर का प्रयोग करना चाहिए. इससे स्किन इरिटेशन, बर्निग और सीबम सिक्रीशन से मुक्ति मिल जाती है. दरअसल, आयल और अल्कोहल बेस्ड क्लींजर में फैटी एसिड पाए जाते हैं. इससे स्किन पर ऑयली की समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है.

गर्मियों में खीरे का सेवन जितना हो सके उतना करें. दरअसल, इस सब्जी में पानी की अधिकतम मात्रा होती है. यही नहीं इसमें एंटीऑक्सीडेंट के भी गुण हैं, जो कोलेजन को बूस्ट करने में मदद करते हैं. इसके कूलिंग इफेक्ट आपकी त्वचा को अंदर से हाइड्रेट करने में मदद करेंगे.

ब्रोकली, पालक जैसी कई हरी सब्जियां हैं, जिसमें ऑयल या फिर फैट नहीं होता. गर्मियों में ऑयली स्किन वाले लोगों को अपनी डाइट में फैट या फिर ऑयल का इस्तेमाल कम करना चाहिए. इसकी जगह आप फाइबर रिच फूड को शामिल करें.

सनबर्न की समस्या-

गर्मियों में तेज धूप के कारण स्किन झुलस कर डैमेज हो जाती है. जिसकी वजह से चेहरे पर लाल चकते पड़ना काफी आम बात है. इसमें खुजली भी हो जाती है. इसलिए इससे बचाव जरुरी है आइये जाने कैसे.

धूप में निकलने से बचें. कोशिश करें कि शाम के समय ही घर से बहार निकले.

घर से बाहर निकलने से पहले लाइट, नॉन स्टिकी, SPF 50+ वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें.

ढीले, हवादार कपड़े पहनें. संभव हो तो गर्मियों में कॉटन के कपडे ही पहने. इससे त्वचा को ठंडक मिलेगी.

त्वचा को हेल्दी रखने के लिए हाइड्रेटेड रहना सबसे ज्यादा जरूरी है. ऐसे में कोशिश करें कि आप खूब पानी पिएं और खुद को हाइड्रेटेड रखें. पर्याप्त पानी पीने से आपको त्वचा भी हेल्दी बनी रहेगी.

टोपी और धूप का चश्मा पहनें, जो आँखों और चेहरे को धूप से बचाए.

एक्ने और पिंपल्स की समस्या-

गर्मी के मौसम में पसीना धूल धूप मिट्टी और प्रदूषण एक्ने और पिंपल्स की वजह बनते हैं. साथ ही मास्क पहनने से यह समस्या और बढ़ जाती है. साथ ही चेहरे पर लाल से दिखने वाले पिम्पल की कई और भी वजहें होती है. जैसे कि, शरीर की गर्मी. शरीर की गर्मी से निकलने वाले पिम्पल्स को हीट पिम्पल्स भी कहा जाता है. गाल और माथा इसका सबसे आसान निशाना है.

कैस्टर ऑयल में रिसिनोलेइक एसिड होते हैं. जो एंटीबेक्टीरिया के रूप में काम करता है. इससे हीट पिम्पल्स को दूर करने के साथ सूजन कम करने में मदद मिलती है.

अगर आपने कोई एक्सरसाइज की है तो चेहरे के पसीने को तुरंत साफ़ करें. चेहरे को वाश कर लें इससे वहां गंदगी जमा नहीं हो पाएगी और पिम्पल नहीं होगा.

गर्मी में चेहरे पर फाउंडेशन लगाना और मेकअप की कई लेयर लगाना सही नहीं रहता है. गर्मियों में त्वचा को फ्रेश और नेचुरल रखने की कोशिश करें. आजकल सनस्क्रीन मॉइश्चराइजर युक्त आ रहे हैं, जिसका उपयोग करना काफी होगा. इसके अलावा लाइट वेट प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें.

समय-समय पर अपने चेहरे को किसी सौम्य क्लेंज़र से धोते रहें. चेहरे पर पानी के छींटों से त्वचा में नई ताज़गी आती है और हाइड्रेशन की वजह से मुंहासे व पिंपल दूर होते हैं.

गर्मी के मौसम में सही तरीके से पेट साफ न होने की वजह से भी पिंपल्स और एक्ने की समस्या होती है. ऐसे में पेट साफ करने के लिए रोजाना एक गिलास सौंफ के बीज का पानी पिएं. सौंफ के बीज के पानी में पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो इसे त्वचा के लिए फायदेमंद बनाते हैं.

चेहरे पर कठोर स्क्रब का कभी इस्तेमाल न करें क्योंकि इससे रूखापन और जलन जैसी समस्या शुरू हो सकती है.

फोम युक्त फेस क्लेंज़र का दिन में दो बार इस्तेमाल करें. अपनी स्किन टाइप के अनुसार, आप क्लेंज़र चुन सकते हैं. ध्यान रहे कि गर्मी के मौसम में भी ज़्यादा चेहरे को क्लेंज़र से धोने से भी दिक्कतें हो सकती हैं. स्किन ज़्यादा ड्राई हो सकती हैं और एक्ने की दिक्कत भी बढ़ सकती है

गर्मियों में फंगल इन्फेक्शन की समस्या-

गर्मी के मौसम में फंगल इन्फेक्शन धूप और ज्यादा पसीने की वजह से होता है. गर्मी में जब ज्यादा पसीने निकलते हैं तो कपड़े बॉडी में चिपक जाते हैं. जिससे बॉडी में वेंटिलेशन सही तरीके से नहीं हो पता है. जिस वजह से हमारे शरीर के अंडर आर्मस और थाई जैसे जगह पर फंगल इन्फेक्शन होता है. साथ ही गर्मियों में साफ-सफाई का ध्यान न रखने की वजह से भी स्किन फंगल इंफेक्शन का खतरा बना रहता है. एक्सपर्ट की मानें तो फंगल इंफेक्शन की प्रॉब्लम गंदे मौजे और पीसने वाले कपड़े रिपीट करने की वजह से ज्यादा होती है. इसके अलावा ज्यादा टाइट कपड़े पहनने से पसीना आ सकता है, जो फंगस को बढ़ाता है और इंफेक्शन का कारण बनता है. आइये जाने इससे कैसे बचें.

अगर फंगल इन्फेक्शन हो गया है तो एक दूसरे का तौलिया और यहाँ तक की साबुन भी इस्तेमाल न करें.

अगर शरीर में लाल रंग के बड़े चकते हो गए हो, तो स्किन के डॉक्टर से मिलें.

त्वचा को लंबे समय तक नमी के संपर्क में रहने से बचाने के लिए पसीना आने पर तुरंत कपड़े बदल लें.
गर्मी में कॉटन के कपडे ही पहनने चाहिए वो पसीने को सोखते हैं इससे फंगल इन्फेक्शन भी नहीं होता. इसलिए सूती और लिनेन जैसे हल्के, ढीलें-ढालें कपड़ों का चुनाव करें ताकि हवा का संचार हो सके और पसीना जमा न हो.

हर रोज नहाएं और और साफ़ कपडे पहने खासतौर पर अंडरगारमेंट्स और जुराबे रोज बदलें.

गर्मी में कपड़ों को धोते समय माइल्ड डिटर्जेंट का इस्तेमाल करें. कपड़ों को धोते समय ध्यान दें कि साबुन और सर्फ अच्छे से निकल जाए क्योंकि यदि साबुन रहा कपड़े में तो इससे एलर्जी की संभावना बन जाती है.

पसीने को कम करने और एथलीट फुट के जोखिम से बचाव के लिए अच्छे हवादार जूते और नमी सोखने वाले मोज़ों का चुनाव करें.

बिना डॉक्टरी सलाह के बाहर बाजार या मेडिकल से दवाई खरीदकर उपयोग नहीं करना चाहिए. क्योंकि बिना डॉक्टरी सलाह के दवाइयों का सेवन करने से हमारी स्किन और खराब हो सकती है.

फंगल इंफेक्शन से बचाव या उसे जल्दी ठीक करने के लिए दही का सेवन भी फायदेमंद माना जाता है. दही में मौजूद प्रोबायोटिक फैक्टर यानी गुड बैक्टीरिया, जो आपके पेट को स्वस्थ रखने के साथ दूसरे इंफेक्शन से भी लड़ने में मदद मदद करते हैं. गुड बैक्टीरिया आपकी इम्यूनिटी को स्ट्रांग बनाते हैं.

नारियल तेल में मौजूद फैटी एसिड किसी भी तरह के इंफेक्शन को खत्म या कम करने में कारगर हैं. इसे दो से तीन बार इंफेक्शन वाली जगह पर लगाएं.

तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण शामिल हैं, जो इंफेक्शन को जल्दी ठीक करने में मदद करते हैं. इसके लिए तुलसी की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाएं और संक्रमित क्षेत्र पर लगाएं.

Hindi Story : सहचारिणी – क्या सुरुचि उस परदे को हटाने में कामयाब हो पाई

Hindi Story : आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से खास दिन है. मेरा एक लंबा इंतजार समाप्त हुआ. तुम मेरी जिंदगी में आए. या यों कहूं कि तुम्हारी जिंदगी में मैं आ गई. तुम्हारी नजर जैसे ही मुझ पर पड़ी, मेरा मन पुलकित हो उठा. लेकिन मुझे डर लगा कि कहीं तुम मेरा तिरस्कार न कर दो, क्योंकि पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है. लोग आते, मुझे देखते, नाकभौं सिकोड़ते और बिना कुछ कहे चले जाते. मैं लोगों से तिरस्कृत हो कर अपमानित महसूस करती. जीवन के सीलन भरे अंधेरों में भटकतेभटकते कभी यहां टकराती कभी वहां. कभी यहां चोट लगती तो कभी वहां. चोट खातेखाते हृदय क्षतविक्षत हो गया था. दम घुटने लगा था मेरा. जीने की चाह ही नहीं रह गई थी. मैं ऐसी जिंदगी से छुटकारा पाना चाहती थी. धीरेधीरे मेरा आत्मविश्वास खोता जा रहा था.

वैसे मुझ में आत्मविश्वास था ही कहां? वह तो मेरी मां के जाने पर उन के साथ चला गया था. वे बहुत प्यार करती थीं मुझे. उन की मीठी आवाज में लोरी सुने बिना मुझे नींद नहीं आती थी. मैं परी थी, राजकुमारी थी उन के लिए. पता नहीं वे मुझ जैसी साधारण रूपरंग वाली सामान्य सी लड़की में कहां से खूबियां ढूंढ़ लेती थीं.

मगर मेरे पास यह सुख बहुत कम समय रहा. मैं जब 5 वर्ष की थी, मेरी मां मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चली गईं. फिर अगले बरस ही घर में मेरी छोटी मां आ गईं. उन्हें पा कर मैं बहुत खुश हो गई थी कि चलो मुझे फिर से मां मिल गईं.

वे बहुत सुंदर थीं. शायद इसी सुंदरता के वश में आ गए थे मेरे बाबूजी. मगर सुंदरता में बसा था विकराल स्वभाव. अपनी शादी के दौरान पूरे समय छोटी मां मुझे अपने साथ चिपकाए रहीं तो मैं बहुत खुश हो गई थी कि छोटी मां भी मुझे मेरी अपनी मां की तरह प्यार करेंगी. लेकिन धीरेधीरे असलियत सामने आई. बरस की छोटी सी उम्र में ही मेरे दिल ने मुझे चेता दिया कि खबरदार खतरा. मगर यह खतरा क्या था, यह मेरी समझ में नहीं आया.

सब के सामने तो छोटी मां दिखाती थीं कि वे मुझे बहुत प्यार करती हैं. मुझे अच्छे कपड़े और वे सारी चीजें मिलती थीं, जो हर छोटे बच्चे को मिलती हैं. पर केवल लोगों को दिखाने के लिए. यह कोई नहीं समझ पा रहा था कि मैं प्यार के लिए तरस रही हूं और छोटी मां के दोगले व्यवहार से सहमी हुई हूं.

सुंदर दिखने वाली छोटी मां जब दिल दहलाने वाली बातें कहतीं तो मैं कांप जाती. वे दूसरों के सामने तो शहद में घुली बातें करतीं पर अकेले में उतनी ही कड़वाहट होती थी उन की बातों में. उन की हर बात में यही बात दोहराई जाती थी कि मैं इतनी बदनसीब हूं कि बचपन में ही मां को खा गई. और मैं इतनी बदसूरत हूं कि किसी को भी अच्छी नहीं लग सकती.

उस समय उन की बात और कुटिल मुसकान का मुझे अर्थ समझ में नहीं आता था. मगर जैसेजैसे मैं बड़ी होती गई वैसेवैसे मुझे समझ में आने लगा. मगर मेरा दुख बांटने वाला कोई न था. मैं किस से कहूं और क्या कहूं? मेरे पिता भी अब मेरे नहीं रह गए थे. वे पहले भी मुझ से बहुत जुड़े हुए नहीं थे पर अब तो उन से जैसे नाता ही टूट गया था.

मैं जब युवा हुई तो मैं ने देखा कि दुनिया बड़ी रंगीन है. चारों तरफ सुंदरता है, खुशियां हैं, आजादी है और मौजमस्ती है. पर मेरे लिए कुछ भी नहीं था. मैं लड़कों से दूर रहती. अड़ोसपड़ोस के लोग घर में आते तो मुझ से नौकरानी सा व्यवहार करते. मेरी हंसी उड़ाते. अब आगे मैं कुछ न कहूंगी. कहने के लिए है ही क्या? मैं पूरी तरह अंतर्मुखी, डरपोक और कायर बन चुकी थी.

लेकिन कहते हैं न हर अंधेरी रात की एक सुनहरी सुबह होती है. सुनहरी सुबह मेरी जिंदगी में भी तब आई जब तुम बहार बन कर मेरी वीरान जिंदगी में आए.

तुम्हारी वह नजर… मैं कैसे भूल जाऊं उसे. मुझे देखते ही तुम्हारी आंखों में जो चमक आ गई थी वह जैसे मुझे एक नई जिंदगी दे गई. याद है मुझे वह दिन जब तुम किसी काम से मेरे घर आए थे. काम तुरंत पूरा न होने के कारण तुम्हें अगले दिन भी हमारे घर रुक जाना पड़ा था.

उन 2 दिनों में जब कभी हमारी नजरें टकरा जातीं या पानी या चाय देते समय जरा भी उंगलियां छू जातीं तो मेरा तनमन रोमांचित हो उठता. मेरी जिंदगी में उत्साह की नई लहर दौड़ गई थी.

फिर सब कुछ बहुत जल्दीजल्दी घट गया और तुम हमेशा के लिए मेरी जिंदगी में आ गए. एक लंबी तपस्या जैसे सफल हो गई. छोटी मां ने अनजाने में ही मुझ पर बहुत बड़ा उपकार कर दिया. उन्हें लगा होगा बिना दहेज के इतना अच्छा रिश्ता मिल रहा है और यह अनचाही बला जितनी जल्दी घर से निकल जाए उतना अच्छा.

तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर ही मुझे पता चला कि तुम दफ्तर जा कर कलम घिसने वाले व्यक्ति नहीं, बल्कि फैशन डिजाइनिंग क्षेत्र के बहुत बड़ी हस्ती हो. तुम्हारा आलीशान मकान तो किसी फिल्म के सैट से कम नहीं था. नौकरचाकर, ऐशोआराम की कमी नहीं थी. मैं तो जैसे सातवें आसमान में पहुंच गई थी. फिर भी मेरे दिमाग में वही संदेह. इतने बड़े आदमी हो कर तुम ने मुझे क्यों चुना?

मेरी जिंदगी में कई अविस्मरणीय घटनाएं घटीं. अलौकिक आनंद के पल भी आए. जब भी तुम्हें कोई सफलता मिलती तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेते और सीने से लगा लेते. उस स्पर्श की सुकोमलता तथा तुम्हारी आंखों में लहराता प्यार का सागर और तुम्हारे नम होंठों की नरमी को मैं कैसे भूल सकती हूं? ऐसे मधुर क्षणों में मुझे अपने पर गर्व होता. पर दूसरे ही पल मन में यह शंका शूल सी चुभती कि क्या मैं इस सुख के काबिल हूं? तुम मुझ पर इतने मेहरबान क्यों? जब कभी मैं ने अपने इन विचारों को तुम्हारे सामने प्रकट किया, तुम्हारे होंठों पर वही निश्छल हंसी आ जाती जिस ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. फिर मैं सब कुछ भूल कर तुम्हारे प्यार में खो जाती.

मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए तुम कहते, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या हो. अब रही सुंदरता की बात, तो मुझे रैंप पर कैटवाक करती विश्व सुंदरी नहीं चाहिए. मुझे जो सुंदरता चाहिए वह तुम में है.’’

‘‘एक बात कहूं, तुम ने मुझे अपना कर मुझे वह सम्मान दिया है, जो किसी को विरले ही मिलता है. मगर एक प्रश्न है मेरा…’’

‘‘हां मुझे मालूम है. अब तुम यह पूछोगी न कि तुम तो दावा करते हो कि मैं तुम्हें पहली ही नजर में भा गई. मगर पहली ही नजर में तुम्हें मेरे बारे में सब कुछ कैसे पता चला? यही है न तुम्हारा प्रश्न?’’ तुम ने मेरी आंखों में झांकते हुए शरारत भरी हंसी के साथ कहा तो मुझे मानना ही पड़ा कि तुम सुंदरता ही नहीं लोगों के दिलों के भी पारखी हो.

तुम ने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तो सुनो. तुम ने यह प्रश्न कई बार मुझ से कहे अनकहे शब्दों में पूछा. मगर हर बार मैं हंस कर टाल गया. आज जैसा मैं तुम्हें दिख रहा हूं मूलतया मैं वैसा नहीं हूं. मुझे डर था कि कहीं एक अनाथ जान कर तुम मुझ से दूर न हो जाओ. मैं ने जब से होश संभाला अपनेआप को एक अनाथाश्रम में पाया. सभी अनाथाश्रम फिल्मों या कहानियों जैसे नहीं होते. इस अनाथाश्रम की स्थापना एक ऐसे दंपती ने की थी जिन्हें ढलती उम्र में एक पुत्र पैदा हुआ था और वह बेशुमार दौलत और ऐशोआराम पा कर बुरी संगत में पड़ गया था. वह जिस तरह दोनों हाथों से रुपया लुटाता था और ऐश करता था, उसी तरह उसे दोनों हाथों से ढेरों बीमारियां भी बटोरनी पड़ीं. शादीब्याह कर अपना घर बसाने की उम्र में वह इन का घर उजाड़ कर चल बसा.

‘‘वे कुछ समय तक तो इस झटके को सह नहीं पाए और गहरे अवसाद में चले गए. पर अचानक एक दिन उन के घर के आंगन में मैं उन्हें मिल गया तो मेरी देखभाल करते हुए उन्हें जैसे अचानक यह बोध हुआ कि इस दुनिया में ऐसे कई बच्चे हैं, जो मातापिता के प्यार और सही मार्गदर्शन के अभाव में या तो सड़कों पर भीख मांगते हैं या गलत राह पर चल पड़ते हैं. उन्होंने निश्चय किया कि उन के पास जो अपार धनदौलत है उस का सदुपयोग होना चाहिए.

‘‘फिर उन्होंने एक ऐसे आदर्श अनाथाश्रम की स्थापना की जहां मुझ जैसे अनाथ बच्चों को घर की शीतल छाया ही नहीं, मांबाप का प्यार भी मिलता है.

‘‘मैं ने डै्रस डिजाइनिंग में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की. उस के बाद एक दोस्त के आग्रह पर उस के काम से जुड़ गया. दोस्त पैसा लगाता है और मैं उस के व्यापार को कार्यान्वित करता हूं. तुम तो जानती ही हो कि इस क्षेत्र में कितनी होड़ लगी रहती है. इस के लिए पैसे तो चाहिए ही. पर पैसों से ज्यादा अहमियत है एक क्रिएटिव माइंड की और मेरे मित्र को इस के लिए मुझ पर भरोसा ही नहीं गर्व भी है. और मेरी इस खूबी का खादपानी यानी जान तुम ही हो,’’ तुम ने मेरी नाक को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा तो मुझे अपने आप पर गर्व ही नहीं हुआ मानसिक शांति भी मिली. तुम ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘मगर तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो मुझे बहुत खटकता है.’’

‘‘क्या?’’ मेरा गला सूख गया.

‘‘आत्मविश्वास की कमी. तुम जो हो, अपनेआप को उस से कम समझती हो. मैं ने लाख कोशिश की पर तुम मन के इस भाव से उबर नहीं पा रही हो.’’

यह सब सुन कर मैं अपनेआप पर इतराने लगी थी. मुझे लग रहा था कि मैं दुनिया की ऐसी खुशकिस्मत पत्नी हूं जिस का पति उसे बहुत प्यार करता है और मानसम्मान देता है. मैं और भी लगन से तुम्हारे प्रति समर्पित हो गई.

तुम रातरात भर जागते तो मैं भी तुम्हारे रंगीन कल्पनालोक में तुम्हारे साथसाथ विचरण करती. तुम जब अपने सपनों को स्कैचेज के रूप में कागज पर रखते तो मुझे दिखाते और मेरे सुझाव मांगते तो मुझे बहुत खुशी होती और मैं अपनी बुद्धि को पैनी बनाते हुए सुझाव भी देती.

लेकिन जैसा हर कलाकार होता है, तुम भी बड़े संवेदनशील हो. अपनी छोटी सी असफलता भी तुम से बरदाश्त नहीं होती. तुम्हारी आंखों की उदासी मुझ से देखी नहीं जाती. मैं जी जान से तुम्हें खुश करने की कोशिश करती और तुम सचमुच छोटे बच्चे की तरह मेरे आगोश में आ कर अपना हर गम भूल जाते. फिर नए उत्साह और जोश के साथ नए सिरे से उस काम को करते और सफलता प्राप्त कर के ही दम लेते. तब मुझे बड़ी खुशी होती और गर्व होता अपनेआप पर. धीरेधीरे मेरा यह गर्व घमंड में बदलने लगा. मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे मैं एक अभिमानी और सिरफिरी नारी बनती गई.

मुझे लगने लगा था कि ये सारी औरतें, जो धनदौलत, रूपयौवन आदि सब कुछ रखती हैं. वे सब मेरे सामने तुच्छ हैं. उन्हें अपने पतियों का प्यार पाना या उन्हें अपने वश में रखना आता ही नहीं है. मेरा यह घमंड मेरे हावभाव और बातचीत में भी छलकने लगा था. जो लोग मुझ से बड़े प्यार और अपनेपन से मिलते थे, वे अब औपचारिकता निभाने लगे थे. उन की बातचीत में शुष्कता और बनावटीपन साफ दिखता था. मुझे गुस्सा आता. मुझे लगता कि ये औरतें जलती हैं मुझ से. खुद तो नाकाम हैं पति का प्यार पाने में और मेरी सफलता इन्हें चुभती है. इन के धनदौलत और रूपयौवन का क्या फायदा?

उसी समय हमारी जिंदगी में अनुराग आ गया, हमारे प्यार की निशानी. तब जिंदगी में जैसे एक संपूर्णता आ गई. मैं बहुत खुश तो थी पर दिल के किसी एक कोने में एक बात चुभ रही थी. कहीं प्रसव के बाद मेरा शरीर बेडौल हो गया तो? मैं सुंदरी तो नहीं थी पर मुझ में जो थोड़ाबहुत आकर्षण है, वह भी खो गया तो? पता नहीं कहां से एक असुरक्षा की भावना मेरे मन में कुलबुलाने लगी. एक बार शक या डर का बीज मन में पड़ जाता है तो वह महावृक्ष बन कर मानता है. मेरे मन में बारबार यह विचार आता कि तुम्हारा वास्ता तो सुंदरसुंदर लड़कियों से पड़ता है. तुम रोज नएनए लोगों से मिलते हो. कहीं तुम मुझ से ऊब कर दूर न हो जाओ. मैं तुम्हारे बिना अपने बारे में कुछ सोच भी नहीं सकती थी.

अब मैं तुम्हारी हर हरकत पर नजर रखने लगी. तुम कहांकहां जाते हो, किसकिस से मिलते हो, क्याक्या करते हो… यानी तुम्हारी छोटी से छोटी बात मुझे पता होती थी. इस के लिए मुझे कई पापड़ बेलने पड़े, क्योंकि यह काम इतना आसान नहीं था.

अब मैं दिनरात अपनेआप में कुढ़ती रहती. जब भी सुंदर और कामयाब स्त्रियां तुम्हारे आसपास होतीं, तो मैं ईर्ष्या की आग में जलती. तब कोई न कोई कड़वी बात मेरे मुंह से निकलती, जो सारे माहौल को खराब कर देती.

यहां तक कि घर में भी छिटपुट वादविवाद और चिड़चिड़ापन वातावरण को गरमा देता. मेरे अंदर जलती आग की आंच तुम तक पहुंच तो गई पर तुम नहीं समझ पाए कि इस का असली कारण क्या था. तुम्हारी भलमानसी को मैं क्या कहूं कि तुम अपनी तरफ से घर में शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करते रहे. तुम समझते रहे कि घर में छोटे बच्चे का आना ही मेरे चिड़चिड़ेपन का कारण है. उसे मैं संभाल नहीं पा रही हूं. उस की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी के कारण मैं थक जाती हूं, इसीलिए मेरा व्यवहार इतना रूखा और चिड़चिड़ा हो गया है. तुम्हें अपने पर ग्लानि होने लगी कि तुम मुझे और बच्चे को इतना समय नहीं दे पा रहे हो, जितना देना चाहिए.

आज तुम्हारे सामने एक बात स्वीकारने में मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं होगी. भले ही मेरी नादानी पर तुम जी खोल कर हंस लो या नाराज हो जाओ. अगर तुम नाराज भी हो गए तो मैं तुम से क्षमा मांग कर तुम्हें मना लूंगी. मैं जानती हूं कि तुम मुझ से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकते. सच कहूं? मेरी आंखें खोलने का सारा श्रेय मेरी सहेली सुरुचि को जाता है. जानते हो कल क्या हुआ था? मुझे अचानक तेज सिरदर्द हो गया था. लेकिन वास्तव में मुझे कोई सिरदर्द विरदर्द नहीं था. मैं अंदर ही अंदर जलन की ज्वाला में जल रही थी. यह बीमारी तो मुझे कई दिनों से हो गई थी जिस का तुम्हें आभास तक नहीं है. हो भी कैसे? तुम्हें उलटासीधा सोचना जो आता नहीं है. मगर सुरुचि को बहुत पहले ही अंदाजा हो गया था.

कल शाम मुझे अकेली माथे पर बल डाले बैठी देख वह मेरे पास आ कर बैठते हुए बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम यहां अकेली बैठ कर क्या कर रही हो. मैं कई दिनों से तुम से कहना चाह रही थी मगर मैं जानती हूं कि तुम बहुत संवेदनशील हो और दूसरी बात मुझे आशा थी कि तुम समझदार हो और अपने परिवार का बुराभला देरसवेर स्वयं समझ जाओगी. मगर अब मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. तुम जो कुछ भी कर रही हो न वह बिलकुल गलत है. अपने मन को वश में रखना सीखो. लोगों को सही पहचानना सीखो. तुम्हारा सारा ध्यान अपने पति के इर्दगिर्द घूमती चकाचौंध कर देने वाली लड़कियों पर है. उन की भड़कीली चमक के कारण तुम्हें अपने पति का असली रूप भी नजर नहीं आ रहा है. अरे एक बार स्वच्छ मन से उन की आंखों में झांक कर देखो, वहां तुम्हारे लिए हिलोरें लेता प्यार नजर आएगा.

‘‘तुम पुरु भाईसाहब को तो जानती ही हो. वे इतने रंगीन मिजाज हैं कि रंगरेलियों का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते. वही क्यों? इस ग्लैमर की दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं. ऐसे माहौल में तुम्हारे पति ऐसे लोगों से बिलकुल अलग हैं. पुरु भाई साहब की बीवी, बेचारी मीना कितनी दुखी होगी अपने पति के इस रंगीन मिजाज को ले कर. सब के बीच कितनी अपमानित महसूस करती होगी. किस से कहे वह अपना दुख? तुम जानती नहीं हो कि कितने लोग तुम्हारी जिंदगी से जलते हैं.

‘‘पुरु भाईसाहब जैसे लोग जब उन्हें गलत कामों के लिए उकसाते हैं. तब जानती हो वे क्या कहते हैं? देखो, घर के स्वादिष्ठ भोजन को छोड़ कर मैं सड़क की जूठी पत्तलों पर मुंह मारना पसंद नहीं करता. मेरी पत्नी मेरी सर्वस्व है. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर मेरे साथ आई है और अपना सर्वस्व मुझ पर निछावर करती है. उस की खुशी मेरी खुशी में है. वह मेरे दुख से दुखी हो कर आंसू बहाती है. ऐसी पत्नी को मैं धोखा नहीं दे सकता. वह मेरी प्रेरणा है. मेरी और मेरे परिवार की खुशहाली उसी के हाथों में है.’’

फिर सुरुचि ने मुझे डांटते हुए कहा ‘‘तुम्हें तो ऐसे पति को पा कर निहाल हो जाना चाहिए और अपनेआप को धन्य समझना चाहिए.’’

उस की इन बातों से मुझे अपनेआप पर ग्लानि हुई. उस के गले लग कर मैं इतनी रोई कि मेरे मन का सारा मैल धुल गया और मुझे असीम शांति मिली. मुझे ऐसा लगा जैसे धूप में भटकते राही को ठंडी छांव मिल गई. मैं तुम से माफी मांगना चाहती हूं और तुम्हारे सामने समर्पण करना चाहती हूं. अब ये तुम्हारे हाथ में है कि तुम अपनी इस भटकी हुई पुजारिन को अपनाते हो या ठुकरा देते हो.

फिल्म Krrish 4 से ऋतिक रोशन एक्टर से बने डायरेक्टर, दो हीरोइन भी हुई फाइनल

बोलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन जो ग्रीक गॉड के नाम से जाने जाते हैं और बॉलीवुड के हैंडसम हीरोज में उनका नाम दर्ज है वह अब नई फिल्म Krrish 4 से डायरेक्शन का कार्यभार संभालने जा रहे हैं. इससे पहले बनी कृष की फ्रेंचाइजी अन्य कृष फिल्मे पहले से चर्चा में रही है. यही वजह है कि आदित्य चोपड़ा, ने यशराज के बैनर तले राकेश रोशन के साथ मिलकर कृष 4 बनाने का निर्णय लिया. जिस फिल्म को पहली बार रितिक रोशन डायरेक्शन करने जा रहे हैं.

हालांकि इससे पहले बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर रितिक रोशन फिल्म कोयला और भी कई फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुके है . लिहाजा इस बार ऋतिक रोशन ने ऑफीशियली बतौर डायरेक्टरफिल्म कृष 4 का डायरेक्शन करने का फैसला लिया है.

गौरतलब है इससे पहले राकेश रोशन भी बतौर एक्टर सफल थे , और अच्छी फिल्में दे रहे थे, लेकिन अचानक उन्होंने भी डायरेक्टर बनने का फैसला किया. और एक्टिंग को पूरी तरह से छोड़ दिया. लेकिन खबरों के अनुसार रितिक ने एक्टिंग को अलविदा नहीं कहा है वह अपना अभिनय भी जारी रखेंगे.

अब खबर है कि कृष 4 के लिए दो मशहूर हीरोइन को भी साइन किया जा रहा है जो कि एक्ट्रेस नोरा फतेही और प्रीति जिंटा है. गौरतलब है प्रीति जिंटा पहले भी कृष फिल्म की फ्रेंचाइजी में बतौर हीरोइन काम कर चुकी है. नोरा फतेही के लिए यह पहली बार होगा यशराज फिल्म्स में बतौर हीरोइन काम करना. कृष 4 की रिलीज 2026 में होने वाली है.

गर्मियों में न करें इंटिमेट हाइजीन को ईग्नोर

मौसम बदलने के साथ ही शरीर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गरमियों में पसीना, रेशेज आदि समस्याएं पर्सनल हाइजीन से संबंध रखती हैं. इसलिए इस दौरान यह जरूरी हो जाता है कि आप अपने इंटिमेट हाइजीन पर खास ध्यान दें खासकर महिलाएं जिन्हें बहुत सारी बीमारियां पर्सनल हाइजीन को नजरअंदाज करने के कारण होती हैं.

किचन से ले कर औफिस मीटिंग तक महिलाएं दिनभर में न जाने कितने कामों को अंजाम देती हैं. ऐसे में वे अपने पर्सनल हाइजीन पर ध्यान नहीं दे पातीं. इंटिमेट हाइजीन पर ध्यान न दिए जाने के कारण महिलाओं को यूटीआई (यूरिन करते समय जलन और दर्द महसूस होना) जैसे कई तरह के इन्फैक्शन व अन्य समस्याएं हो जाती हैं. गरमी में तो यह समस्याएं पसीने के कारण और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं.

क्यों जरूरी है इंटिमेट हाइजीन

मासिकधर्म की तरह आज भी लोग पसर्नल हाइजीन के बारे में खुल कर बात करने से बचते हैं. इंटिमेट हाइजीन का ठीक तरह से ध्यान न रखने के कारण यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन (यूटीआई) और ड्राइनैस जैसी दिक्कतें होती हैं, बैक्टीरियल इन्फैक्शन भी बढ़ सकता है, जिस से रैशेज व खुजली होती है और कई मामलों में निमोनिया या ब्लड डिजीज भी हो सकते हैं.

अकसर लोग हाइजीन का खयाल नहीं रखते, जिस के कारण वे मानसिक और शारीरिक दोनों ही तनावों का शिकार होते हैं. यहां तक कि वे डिप्रेशन के शिकार भी हो जाते हैं.

गरमियों में इंटिमेट हाइजीन का रखें ध्यान

चूंकि ये समस्याएं गरमियों में ज्यादा बढ़ जाती हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रख कर आप इन समस्याओं से बच सकते हैं:

काम और ट्रैवल करते समय हमें अकसर पसीना आता है. गरमियों में तो कुछ दूरी का सफर भी आप को पसीने से नहला देता है. पसीना सूखने के बाद हमारे शरीर पर जर्म्स रह जाते हैं, जिन्हें हमें तुरंत साफ करने की जरूरत होती है. आप इंटिमेट एरिया से उन्हें सूखे कपडे़ से साफ कर सकते हैं. इस मौसम में त्वचा को साफसुथरा रखना बहुत जरूरी है. इसलिए दिन में 2 बार जरूर नहाएं. ऐसा करना आप की बौडी को साफ और स्वस्थ रखता है.

पसीने से होने वाली ऐलजी से बचने के लिए महिला हो या पुरुष अपने इंटिमेट एरिया को साफसुथरा रखें. नहाते वक्त रोजाना इंटिमेट वाश का ध्यान रखें. गरमियों में इंटिमेट एरिया की सफाई बहुत जरूरी हो जाती है. इस के लिए आप मार्केट में आने वाले कई तरह के इंटिमेट वाश प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जो इंटिमेट एरिया का पीएच बैलेंस बनाए रखते हैं और इन्फैक्शन होने की संभावनाओं को कम करते हैं.

टौयलेट इस्तेमाल करते समय भी इस बात का ध्यान रखें कि वह साफसुथरा हो. हो सके तो टौयलेट सीट के डाइरैक्ट टच से बचें. खासकर महिलाएं टौयलेट यूज करते समय उसे पेपर से साफ कर लें.

भीगे अंडरगार्मैंट्स कभी न पहनें क्योंकि इन से रैशेज व इन्फैक्शन हो सकता है और टाइट अंडरवेयर या स्किन फिट जींस को भी अवौइड करें. टाइट कपडों से पसीना बाहर नहीं निकल पाता और बैक्टीरिया पनपने लगता है.

पीरियड्स में रखें खास ध्यान

पीरियड्स में इंटिमेट हाइजीन का ध्यान बाकी दिनों से ज्यादा जरूरी हो जाता है. पीरियड्स के वक्त प्राइवेट पार्ट अच्छी तरह क्लीन रखें. पीरियड्स के समय कंफर्टेबल अंडरवियर पहनें. हो सके तो कौटन अंडरवियर का उपयोग करें जो पसीने को आसानी से सोख लेता है.

अच्छे सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करें जो कौटन से बना हो. हर 4 से 6 घंटे में उसे चेंज कर लें. पीरियड्स के वक्त हाइजीन की अनदेखी इन्फैक्शन कर सकती है. इस दौरान पनपने वाले बैक्टीरिया शरीर में जा कर यूटीआई, योनि संक्रमण, त्वचा में जलन आदि परेशानियां पैदा करते हैं. इसलिए अपने हाइजीन का खास खयाल रखना जरूरी हो जाता है. अत: खुद को साफसुथरा रखना आप के शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचा सकता है.

 

इंटरनेट यूजर्स के बीच ट्रैंडिंग करता ChatGPT पर Ghibli Style Image

 Ghibli Style Image : आजकल ChatGPT पर Ghibli Style image बनाने की होड़ सी लग गई. छोटे बच्चों से लेकर बड़े हर कोई इसका दीवाना बना फिर रहा है. लोग डिफरेंट  तरह के फोटोज अपलोड कर उनके इंटरेस्टिंग Ghibli वर्जन बना रहे हैं.

स्टूडियो Ghibli सर्च ट्रेंड

हाल ही में OpenAI के सीईओ सैम अल्टमैन ने अपनी घिबली इमेज अपलोड करके इस ट्रेंड को वायरल किया. फिर तो भारत समेत दुनियाभर में “Studio Ghibli” सर्च ट्रेंड करने लगा.

क्या है स्टूडियो घिबली

स्टूडियो घिबली एक जापानी एनीमेशन फिल्म स्टूडियो है. जिसकी स्थापना 1985 में मियाजाकी हयाओ, ताकाहाता इसाओ और सुजुकी तोशियो ने की थी. ये कंपनी हाथ से बनाई गई पेंटिंग्स की मदद से हाई-क्वालिटी एनीमेशन फिल्में क्रिएट करने के लिए जानी जाती है. पिछले 40 सालों से कंपनी ने कार्टून एनिमेंशन बनाने के तौर तरीकों में बदलाव नहीं किया है. कंपनी की कुछ सबसे उल्लेखनीय एनिमेटेड फिल्मों में नेबर टोटोरो, स्पिरिटेड अवे, हाउल्स मूविंग कैसल, किकी की डिलीवरी सर्विस और प्रिंसेस मोनोनोके शामिल हैं.

ट्रैंडिंग स्टूडियो घिबली

आपको बता दें कुछ घंटो से भारत में “स्टूडियो घिबली” ट्रैंडिंग पर आ गया है. ये गूगल पर खूब ट्रेंड कर रहा है. वहीं इंटरनेट पर इसे लगभग 1 लाख से ज्यादा लोग सर्च कर चुके हैं. इससे पता चलता है कि घिबली में इमेज बनाने को लेकर इंटरनेट यूजर्स के बीच जबरदस्त क्रेज है.

घिबली वर्जन इमेज चैटजीपीटी के प्रीमियम वर्जन में

कुछ यूजर्स ने पहले एक्स (X) पर ट्विट कर बताया था कि घिबली वर्जन इमेज चैटजीपीटी के प्रीमियम वर्जन में बनाया जा सकता है. लेकिन बाद में कई यूजर्स ने पाया कि यह फ्री वर्जन में भी काम कर रहा है. इसके बाद चैटजीपीटी यूजर्स के बीच फोटोज को घिबली में कन्वर्ट करने की बाढ़ सी आ गई.

ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट का इस्तेमाल

OpenAI के सीईओ सैम अल्टमैन ने X पर ट्वीट कर बताया कि उनके जीपीयू ‘पिघल’ रहे हैं. दरअसल, चैटजीपीटी जैसे चैटबॉट कमांड से फोटोज को क्रिएट करने के लिए ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट, यानी GPU का इस्तेमाल करते हैं. ट्रेंड के बढ़ने से इनके GPU में दबाव बढ़ता है और ये ओवरहीट होने लगते हैं, जिससे प्रोसेसिंग धीमी हो जाती है. ऐसे में GPU को नुकसान से बचाने के लिए कुछ प्रोसेसिंग को रोकना या सीमित करना पड़ता है.

हमारे जीपीयू पिघल रहे हैं

सैम अल्टमैन ने ट्वीट किया कि, “यह देखना बहुत मजेदार है कि लोग चैटजीपीटी की बनाई फोटोज को खूब पसंद कर रहे हैं. लेकिन हमारे जीपीयू पिघल रहे हैं. हम इसे और अधिक कुशल बनाने पर काम करते हुए अस्थायी रूप से कुछ दर सीमाएं लागू करने जा रहे हैं. उम्मीद है कि इसमें ज्यादा  समय नहीं लगेगा! चैटजीपीटी फ्री टियर को जल्द ही प्रतिदिन 3 जनरेशन मिलेंगी.”

इसके साथ ही OpenAI के सीईओ ने कहा कि हम चैटजीपीटी पर इमेज क्रिएशन को तेज बनाने के लिए कुछ जनरेशन रिक्वेस्ट को रिफ्यूज कर रहे हैं. हम बहुत जल्द इसे ठीक कर लेंगे.

सेलिब्रिटीज के घिबली स्टाइल इमेज-

इस इमेज से प्रभावित हो कर लोग अमेरिकी प्रेजिडेंड डोनॉल्ड ट्रंप से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी, सचिन तेंदुलकर तक के घिबली स्टाइल कार्टून इमेज बना रहे हैं. इसके साथ ही इंटरनेट पर कई वायरल मीम्स के भी कार्टून बनाए जा रहे हैं.

कैसे बनाएं Ghibli Image

घिबली इमेज बनाने के लिए चैटजीपीटी अपने लेटेस्ट मॉडल GPT-4o का इस्तेमाल कर रहा है। घिबली इमेज जनरेशन इसी मॉडल से संभव हो पाया है। इसका सबसे इंटेरस्टिंग पहलू यह है कि यह Studio Ghibli के फेमस  कार्टून स्टाइल को दोहरा सकता है. आप भी आसानी के घिबली इमेज जनरेट कर सकते हैं.

1.सबसे पहले फोटोज गैलरीज में जा कर अपनी मनपसंद किसी भी इमेज को ChatGPT पर अपलोड करें जिसे आप Ghibli-स्टाइल में बदलना चाहते हैं.

2.GPT-4o मॉडल को प्रॉम्प्ट दें “इस इमेज का स्टूडियो Ghibli वर्जन बनाओ.”

3.अब आपकी Ghibli-स्टाइल इमेज रेडी  हो जाएगी. अब इसे सोशल मीडिया पर शेयर करके आप भी ट्रेंड में आ सकते हैं.

जब कौमेडियन Johny Lever को उनके फैन ने जून में बनाया अप्रैल फूल

Johny Lever : प्रसिद्ध कौमेडियन जौनी लीवर अपनी कौमेडी और हंसने की कला से प्रसिद्ध की चरम सीमा पर है. आज इतने सालों बाद भी जौनी लीवर को हिंदुस्तान में हर कोई जानता है उनकी कौमेडी से भरी फिल्में आज भी दर्शक देखना पसंद करते हैं. फिर चाहे वह तेजाब बाजीगर हो या दीवाना मस्ताना हो, यह हाउसफुल 4 ही क्यों ना हो.

सुनील दत्त अभिनीत फिल्म दर्द का रिश्ता से लाइमलाइट में आने वाले जौनी लीवर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनके लाखों प्रशंसक हैं. इन्हीं सारे प्रशंसकों में जौनी लीवर के एक फैन अर्थात प्रशंसक ने जून के महीने में जौनी को अप्रैल फूल बनाया. हाल ही में जौनी लीवर ने इस मजेदार वाकया को एक इंटरव्यू के दौरान शेयर किया.

जौनी लीवर के अनुसार मेरे तो ऐसे कई फैन है, लेकिन मेरे एक ने एक बार मेरी नाक में दम कर दिया. मेरा यह फैन बाकी लोगों से थोड़ा अलग था, एक दिन मुझे फोन आया कि मैं अनाम फिल्म के प्रोडक्शन हाउस से बोल रहा हूं फिल्म सिटी में शूटिंग है आप 3 बजे पहुंच जाना. मैं ठीक 3:00 बजे फिल्म सिटी पहुंचा तो वहां पर कोई शूटिंग नहीं थी और कौवे बोल रहे थे, कुछ दिन बाद फिर से फोन आया और होटल में मिलने के लिए उसने कहा विदेश में शो करने को लेकर आप से डील फाइनल करना है और यह कहकर मुझे एक होटल में मिलने के लिए बुलाया. क्योंकि मैं देशविदेश में शोज करता रहता हूं.

मुझे लगा के सचमुच शो के लिए ही बात करने के लिए बुला रहे हैं. वहां भी जब मैं गया तो वहां पर ऐसा कुछ नहीं था. ऐसे में मुझे बहुत गुस्सा आया ये सोच कर कि कौन मुझे बार बार परेशान कर रहा है. जब मैं घर पहुंचा तो इस बंदे का फोन फिर से आया और बोला कि मैं ही था जो आपको दो बार आने को बोला. अभी मैं कुछ बोलता कि उसने आगे बोला एक्चुअली मैं आपको अप्रैल फूल बना रहा था.

मैंने उसको कहा अरे भाई मेरे अभी जून का महीना है तो अप्रैल फूल क्यों बना रहे हो? तो वह भोलेपन के साथ जोर से हंसते हुए बोला क्या है ना जौनी भाई अप्रैल में मैं गांव गया हुआ था इसलिए मैं जून में आपको अप्रैल फूल बना रहा हूं . यह सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया. लेकिन साथ ही मुझे उसकी बेवकूफी और भोलेपन पर हंसी भी बहुत आई .

Love Life : बौयफ्रेंड फिजिकल रिलेशनशिप की डिमांड कर रहा है… क्या यह जायज है ?

Love Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 1 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा? इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को ले कर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.

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अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

TMKOC : नई दया बेन का किरदार निभाएंगी काजल पिसल? जानें क्या है सच्चाई

TMKOC :  टीवी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) दर्शकों का फेवरेट शो है. इस शो के हर किरदार को लोग पसंद करते हैं, लेकिन जेठालाल और दया बेन की जोड़ी की बात ही अलग है, हालांकि अब यह शो बिना दया बेन का कई सालों से चल रहा है. इस शो के पुराने एपिसोड में जेठा और दया की जोड़ी देखते बनती है.

क्या यह ऐक्ट्रैस निभाएगी नई दयाबेन का किरदार?

दया बेन यानी दिशा वकानी ने इस किरदार को बखूबी निभाया है. साल 2017 में दिशा वकानी मैटरनिटी लीव पर चल गईं. तब से दर्शक इस शो में उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन रिपोर्ट के अनुसार तारक मेहता के निर्माता असित मोदी कन्फर्म कर चुके हैं कि दिशा वकानी अब इस शो में वापस नहीं आएंगी.

अब खबरें आ रही है कि शो के मेकर्स को दिशा वकानी का रिप्लेसमेंट मिल गया है. जी हां खबरों के मुताबिक ऐक्ट्रैस काजल पिसल नई दया बेन के किरदार में नजर आएंगी. लेकिन क्या वाकई काजल दया बेन के किरदार को निभाएंगी?

काजल पिसल ने बताया सच

इस तरह के कयासों पर काजल ने खुद रिएक्ट किया है. उन्होंने इस खबर को फेक बताया है. काजल ने स्पष्ट किया है कि वह ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दया बेन की भूमिका नहीं अदा कर रही हैं.

हालांकि, काजल ने आगे यह भी खुलासा किया कि उन्होंने ताारक मेहता शो के लिए औडिशन दिया था. काजल ने इस बारे में जूम से बातचीत में इस बात को स्पष्ट किया. काजल ने कहा कि उनके पास इस खबर को लेकर कई कौल और मैसेज आ रहे हैं, लेकिन इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है. काजल ने कहा, ‘मैं पहले से ही ‘झनक’ में काम कर रही हूं. ऐसे में यह खबर झूठ है. बता दें कि काजल झनक में निगेटिव किरदार में नजर आती हैं. उनकी ऐक्टिंग कमाल की है. वह सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं. अक्सर फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती हैं.

दिशा वकानी फैमिली टाइम को कर रही हैं एंजौय

साल 2015 में दिशा वकानी ने शादी रचाई. 2017 में वह मां बनने वाली थी इसलिए मैटरनिटी लीव पर चली गईं. कई तारक मेहता में दिशा की वापसी की खबर आती रही, लेकिन शो में वह नजर नहीं आईं. 2022 में दिशा ने दूसरे बच्चे का स्वागत किया. रिपोर्ट के मुताबिक दिशा वकानी ने अभिनय छोड़ने का फैसला किया है.

Famous Hindi Stories : मेरी सास – कैसी थी उसकी सास

Famous Hindi Stories : कहानियों व उपन्यासों का मुझे बहुत शौक था. सो, कुछ उन का असर था, कुछ गलीमहल्ले में सुनी चर्चाओं का. मैं ने अपने दिमाग में सास की एक तसवीर खींच रखी थी. अपने घर में अपनी मां की सास के दर्शन तो हुए नहीं थे क्योंकि मेरे इस दुनिया में आने से पहले ही वे गुजर चुकी थीं.

सास की जो खयाली प्रतिमा मैं ने गढ़ी थी वह कुछ इस प्रकार की थी. बूढ़ी या अधेड़, दुबली या मोटी, रोबदार. जिसे सिर्फ लड़ना, डांटना, ताने सुनाना व गलतियां ढूंढ़ना ही आता हो और जो अपनी सास के बुरे व्यवहार का बदला अपनी बहू से बुरा व्यवहार कर के लेने को कमर कसे बैठी हो. सास के इस हुलिए से, जो मेरे दिमाग की ही उपज थी, मैं इतनी आतंकित रहती कि अकसर सोचती कि अगर मेरी सास ही न हो तो बेहतर है. न होगा बांस न बजेगी बांसुरी.

बड़ी दीदी का तो क्या कहना, उन की ससुराल में सिर्फ ससुरजी थे, सास नहीं थीं. मैं ने सोचा, उन की तो जिंदगी बन गई. देखें, हम बाकी दोनों बहनों को कैसे घर मिलते हैं. लेकिन सब से ज्यादा चकित तो मैं तब हुई जब दीदी कुछ ही सालों में सास की कमी बुरी तरह महसूस करने लगीं. वे अकसर कहतीं, ‘‘सास का लाड़प्यार ससुर कैसे कर सकते हैं? घर में सुखदुख सभीकुछ लगा रहता है, जी की बात सास से ही कही जा सकती है.’’

मैं ने सोचा, ‘भई वाह, सास नहीं है, इसीलिए सास का बखान हो रहा है, सास होती तो लड़ाईझगड़े भी होते, तब यही मनातीं कि इस से अच्छा तो सास ही न होती.’

दूसरी दीदी की शादी तय हो गई थी. भरापूरा परिवार था उन का. घर में सासससुर, देवरननद सभी थे. मैं ने सोचा, यह गई काम से. देखें, ससुराल से लौट कर ये क्या भाषण देती हैं. दीदी पति के साथ दूसरे शहर में रहती थीं, यों भी उन का परिवार आधुनिक विचारधारा का हिमायती था. उन की सास दीदी से परदा भी नहीं कराती थीं. सब तरह की आजादी थी, यानी शादी से पहले से भी कहीं अधिक आजादी. सही है, सास जब खुद मौडर्न होगी तो बहू भी उसी के नक्शेकदमों पर चलेगी.

दीदी बेहद खुश थीं, पति व उन की मां के बखान करते अघाती न थीं. मैं ने सोचा, ‘मैडम को भारतीय रंग में रंगी सास व परिवार मिलता तो पता चलता. फिर, ये तो पति के साथ रहती हैं. सास के साथ रहतीं तब देखती तारीफों के

पुल कैसे बांधतीं. अभी तो बस आईं

और मेहमानदारी करा कर चल दीं.

चार दिन में वे तुम से और तुम उन से क्या कहोगी?’

बड़ी दीदी से सास की अनिवार्यता और मंझली दीदी से सास के बखान सुनसुन कर भी, मैं अपने मस्तिष्क में बनाई सास की तसवीर पूरी तरह मिटा न सकी.

अब मेरी मां स्वयं सास बनने जा रही थीं. भैया की शादी हुई, मेरी भाभी की मां नहीं थी. सो, न तो वे कामकाज सीख सकीं, न ही मां का प्यार पा सकीं. पर मां को क्या हो गया? बातबात पर हमें व भैया को डांट देती हैं. भाभी को हम से बढ़ कर प्यार करतीं?. मां कहतीं, ‘‘बहू हमारे घर अपना सबकुछ छोड़ कर आई है, घर में आए मेहमान से सभी अच्छा व्यवहार करते हैं.’’

मां का तर्क सुन कर लगता, काश, सभी सासें ऐसी हों तो सासबहू का झगड़ा ही न हो. कई बार सोचती, ‘मां जैसी सासें इस दुनिया में और भी होंगी. देखते हैं, मुझे कैसी सास मिलती है.’

इसी बीच, एक बार अपनी बचपन की सहेली रमा से मुलाकात हुई. मैं उस के मेजर पति से मिल कर बड़ी प्रभावित हुई, उस की सास भी काफी आधुनिक लगीं, पर बाद में जब रमा से बातें हुईं तो पता लगा उन का असली रंग क्या है.

रमा कहने लगी, ‘‘मैं तो उन्हें घर के सदस्या की तरह रखना चाहती हूं पर वे तो मेहमानों को भी मात कर देती हैं. शादी के इतने सालों बाद भी मुझे पराया समझती हैं. मेरे दुखसुख से उन्हें कोई मतलब नहीं. बस, समय पर सजधज कर खाने की मेज पर आ बैठती हैं. कभीकभी बड़ा गुस्सा आता है. ननद के आते ही सासजी की फरमाइशें शुरू हो जाती हैं, ‘ननद को कंगन बनवा कर दो, इतनी साडि़यां दो.’ अकेले रमेश कमाने वाले, घर का खर्च तो पूरा नहीं पड़ता, आखिर किस बूते पर करें.

‘‘रमेश परेशान हो जाते हैं तो उन का सारा गुस्सा मुझ पर उतरता है. घर का सुखचैन सब खत्म हो गया है. रमेश अपनी मां के अकेले बेटे हैं, इसलिए उन का और किसी के पास रहने का सवाल ही नहीं है. पोतेपोतियों से यों बचती हैं गोया उन के बेटे के बच्चे नहीं, किसी गैर के हैं. कहीं जाना हुआ तो सब से पहले तैयार, जिस से बच्चों को न संभालना पड़े.’’

रमा की बातें सुन कर मैं बुरी तरह सहम गई. ‘‘अरे, यह तो हूबहू वही तसवीर साक्षात रमा की सास के रूप में विद्यमान है. अब तो मैं ने पक्का निश्चय कर लिया कि नहीं, मेरी सास नहीं होनी चाहिए. लेकिन होनी, तो हो कर रहती है. मैं ने सुना तो दिल मसोस कर रह गई. अब मां से कैसे कहूं कि यहां शादी नहीं करूंगी. कारण पूछेंगी तो क्या कहूंगी कि मुझे सास नहीं चाहिए. वाह, यह भी कोई बात है.

मन ही मन उलझतीसुलझती आखिर एक दिन मैं डोली में बैठ विदा हो ही गई. नौकरीपेशा पिता ने हम भाईबहनों को अच्छी तरह पढ़ायालिखाया, पालापोसा, यही क्या कम है.

मेरी देवरानियांजेठानियां सभी अच्छे खातेपीते घरों की हैं, मैं ने कभी यह आशा नहीं की कि ससुराल में मेरा भव्य स्वागत होगा. ज्यादातर मैं डरीसिमटी सी बैठी रहती. कोई कुछ पूछता तो जवाब दे देती. अपनी तरफ से कम ही बोलती. रिश्तेदारों की बातचीत से पता चला कि सास पति की शादी कहीं ऊंचे घराने में करना चाहती थीं. लेकिन पति को पता नहीं मुझ में क्या दिखा, मुझ से ही शादी करने को अड़ गए. लेनदेन से सास खुश तो नजर नहीं आईं, पर तानेबाने कभी नहीं दिए, यह क्या कम है.

मैं ने मां की सीख गांठ बांध ली थी कि उलट कर जवाब कभी नहीं दूंगी. पति नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में रहते थे. मैं उन्हीं के साथ रहती. बीचबीच में हम कभी आते. मेरी सास ने कभी भी किसी बात के लिए नहीं टोका. मुझ से बिछिया नहीं पहनी गई, मुझे उलटी मांग में सिंदूर भरना कभी अच्छा नहीं लगा, गले में चेन पहनना कभी बरदाश्त न हुआ, हाथों में कांच की चूडि़यां ज्यादा देर कभी न पहन पाईं. मतलब सुहाग की सभी बातों से किसी न किसी प्रकार का परहेज था. पर सासजी ने कभी जोर दे कर इस के लिए मजबूर नहीं किया.

दुबलीपतली, गोरीचिट्टी सी मेरी सास हमेशा काम में व्यस्त रहतीं. दूसरों को आदेश देने के बजाय वे सारे काम खुद निबटाना पसंद करती थीं. बेटियों से ज्यादा उन्हें अपनी बहुओं के आराम का खयाल था.

इस बीच, मैं 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. समयसमय पर बच्चों को उन के पास छोड़ जाना पड़ता तो कभी उन के माथे पर बल नहीं पड़ा. मेरे सामने तो नहीं, पर मेरे पीछे उन्होंने हमेशा सब से मेरी तारीफ ही की. मेरी बेटियां तो मुझ से बढ़ कर उन्हें चाहने लगी थीं. मेरी असली सास के सामने मेरी खयाली सास की तसवीर एकदम धुंधली पड़ती जा रही थी.

इसी बीच, मेरे पति का अपने ही शहर में तबादला हो गया. मैं ने सोचा, ‘चलो, अब आजाद जिंदगी के मजे भी गए. कभीकभार मेहमान बन कर गए तो सास ने जी खोल कर खातिरदारी की. अब हमेशा के लिए उन के पास रहने जा रहे हैं. असली रंगढंग का तो अब पता चलेगा. पर उन्होंने खुद ही मुझे सुझाव दिया कि 3 कमरों वाले उस छोटे से घर में देवरननदों के साथ रहना हमारे लिए मुश्किल होगा. फिर अलग रहने से क्या, हैं तो हम सब साथ ही.

मेरी मां मुझ से मिलतीं तो उलाहना दिया करतीं. ‘‘तुझे तो सास से इतना प्यार मिला कि तू ने अपनी मां को भी भुला दिया.’’

शायद इस दुनिया में मुझ से ज्यादा खुश कोई नहीं. मेरे मस्तिष्क की पहली वाली तसवीर पता नहीं कहां गुम हो गई. अब सोचती हूं कि टीवी सीरियल व फिल्मों वगैरा में गढ़ी हुई सास की लड़ाकू व झगड़ालू औरत का किरदार बना कर, युवतियां अकारण ही भयभीत हो उठती हैं. जैसी अपनी मां, वैसी ही पति की मां, वे भला बहूबेटे का अहित क्यों चाहेंगी या उन का जीवन कलहमय क्यों बनाएंगी. शायद अधिकारों के साथसाथ कर्तव्यों की ओर भी ध्यान दिया जाए तो गलतफहमियां जन्म न लें. एकदूसरे को दुश्मन न समझ कर मित्र समझना ही उचित है. यों भी, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती.

मेरी सास मुझ से कितनी प्रसन्न हैं, इस के लिए मैं लिख कर अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनना चाहती, इस के लिए तो मेरी सास को ही एक लेख लिखना पड़ेगा. पर उन की बहू अपनी सास से कितनी खुश है, यह तो आप को पता चल ही गया है.

Hindi Moral Tales : शोखियों की कारगुजारियां

Hindi Moral Tales : मेरा नाम है तियाना. वैसे मेरे बारे में आप जान ही जाएंगे, पहले मैं अभिलाष के बारे में बताऊं. मैं अभिलाष को तब से जानती हूं जब वह राजनीति में कदम जमाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था और लगातार सालदरसाल इसी में लगा पड़ा था. यहां तक कि कालोनी वाले भी उस के भविष्य को ले कर तरस खा कर कहते, ‘‘4 साल से ऊपर तो हो गए बेचारा और कब तक एडि़यां घिसेगा. इस हिस्से में नहीं लिखा राजनीति तो जाने दे न.’’

मगर सालों की जी तोड़ कोशिश के बाद 5वें साल उस ने आखिर जंग जीत ही ली. होगी तब उस की उम्र कोई 27 या 28 साल की. जब मैं थी कोई 36 साल से कुछ महीने ऊपर ही. हमारी कालोनी नूतन नगर एक बहुत ही सभ्य सुंदर कालोनी है, तब भी थी. बड़ेबड़े अमीर लोगों का वास था, पर हां यह कालोनी और भी सुविधासंपन्न और साफ होती अगर इसे कोई योग्य लीडर मिलता.

मैं अपनी स्कूटी से कालेज जाते हुए अकसर अभिलाष से रूबरू होती क्योंकि वह कालोनी के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ सफाई या व्यवस्था के काम में जुटा होता. जाने कितने सालों से वह पार्षद बनने की खाक छानता फिर रहा था और कालोनी का विकास बहुत हद तक इसी योजना का हिस्सा था.

खैर, अभिलाष के प्रयास से साल दर साल कालोनी की रंगत सुधरती रही, सुंदर बगीचे बने, रास्ते बने, गंदगी साफ होने की पुख्ता व्यवस्था हुई, पानी का इंतजाम इतना पुख्ता हुआ कि लोग लगभग भूल ही गए कि गरमी आने पर किस तरह कालोनी की पड़ोसिनें प्राइवेट पंप चला कर अपनेअपने घर में पानी खींच लेने को ले कर आपस में लड़ाइयां करती थीं.

लगभग 31 साल के होने तक उस के कामधाम और नाम की वजह से अभिलाष की फैन फौलोइंग काफी बढ़ गई थी और इन में मोटी, ताजी, लंबी, नाटी, गोरी, काली, गेहुआं, सुडौल, बेडौल, चपटी, पतली हर तरह की कालोनी वाली सार्वजनिक भाभियां मौजूद थीं, जिन की असली उम्र 40 के पार थी, लेकिन लगातार हर महीने वह घटघट कर अमावस्या के चांद की तरह पतली डोरनुमा बनी जाती थीं.

खैर, इन सब के बीच बात कुछ गंभीर भी थी. क्यों पता नहीं, (अब तो खैर पता है) अपनी उस 27 या 28 की उम्र से ही अभिलाष मु?ो कुछ अजीब सी नजरों से देखता. यों जैसेकि मैं कोई 21-22 की कमसिन लड़की हूं और जब देखो तब ऐसे देखते रहने से मु?ा में उस के प्रति शर्म की अनुभूति होने लगी थी. उस पर नजर पड़ते ही मैं सिर झुका कर आगे देखते हुए स्कूटी की स्पीड बढ़ा कर निकल जाया करती. बाद में मन में सोचती कि मुझ से इतना तो छोटा है, फिर उस के देखने भर से मुझे शर्म सी क्यों महसूस हो रही है? क्यों मैं खुद के व्यक्तित्व के प्रति सचेत सी हो जाती?

वैसे मुझे पता है, मैं खूबसूरत और स्मार्ट हूं, कालेज में लैक्चरर हूं और 36 की उम्र में मुश्किल से 30 की लगती. लेकिन उस से क्या होता है, मेरा एक दबंग पति है जिस की तब उम्र 42 साल, एक 13 साल की बेटी और एक 10 साल का बेटा. जबकि अभिलाष की तब तक शादी भी नहीं हुई थी. वह तो राजनीति में डुबकी लगालगा कर तैरने का ही अभ्यास कर रहा था. तैरना तो दूर की बात है.

मेरे दबंग पति जो वैसे तो वकील हैं लेकिन कालोनी भर में अपनी नेतागिरी के कारण अच्छी पैठ रखते हैं. कालोनी के हर आयोजन में, हरेक निर्णय में भागीदार रहते हैं और अभी तक पार्षद के चुनाव के लिए एडि़यां घिसता अभिलाष मेरे दबंग पति को दादा कह कर इज्जत देने को भी मजबूर था.

लिहाजा, अभी तक ऐसी कोई सूरत नहीं  थी कि अभिलाष से मेरी कोई बात होती या

उस का फोन नंबर ही मेरे पास रहता और अब इन 5 सालों तक राजनीति में लाख आजमाइश के बाद अचानक एक दिन चुनाव से पहले बीसियों भाभियों की सजीधजी भीड़ ले कर अभिलाष मेरे दरवाजे पर पहुंचा और पहली बार मुझ से मुखातिब हुआ, ‘‘भाभी, मुझे जिता दीजिएगा, पार्षद बन गया तो…’’

इतने में ढेर सारी भाभियों के कलरव ने अभिलाष की बाकी बातें लगभग छीन सी

लीं, ‘‘अभिलाष को जिताना है, कालोनी को सजाना है.’’

होहल्ले के बीच मेरी नजर अभिलाष पर गई. उस की नजर मुझ पर एकटक टिकी थी. अभी वह अपनी उम्र के 31वें पड़ाव पर एक शादीशुदा परिपक्व राजनीतिज्ञ बन चुका था.

मैं ने आश्वासन दिया और सभी चले गए लेकिन एक कुछ रह गया, जो मुझे अच्छा तो नहीं लगा लेकिन पता नहीं कुछकुछ सा होता रहा.

नियत समय पर अभिलाष की मनोकामना पूर्ण हुई. इतने दिनों का संभावित फल उस की ?ाली में गिर चुका था. अभिलाष पार्षद बन चुका था.

अब तो उस के जलवे थे. विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री के साथ तक उस का उठनाबैठना शुरू हो गया था. साल बीत रहे थे, वह व्यस्त दर व्यस्त हो रहा था.

अब तो कालोनी की जान था वह. मुझे भी अब तरहतरह के सरकारी कागजातों के सुधार के लिए उस के पास जाना पड़ता और इसी दौरान उस ने मुझ से मेरा फोन नंबर ले लिया. न कहने की मेरी ओर से गुंजाइश नहीं थी क्योंकि आधार कार्ड हो या कोई सरकारी योजना मुझे पार्षद अभिलाष को साथ ले कर चलना था जैसे अन्य चलते हैं.

एक दिन अचानक उस ने अपना एक जबरदस्त फोटो मेरे व्हाट्सएप नंबर पर भेजा वह भी मुख्यमंत्री के साथ किसी राजनीतिक आयोजन में उस की उपस्थिति वाला. मु?ो यह कुछ ठीक नहीं लगा. उस की नजर याद आई, गोलमाल सी महसूस हुई.

यह और बात थी कि वह स्मार्ट था, हैंडसम था, यंग था और मैं उस की प्रशंसा भी खुले दिल से कर सकती हूं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं बचकाना हरकत करूं या अपनी जिंदगी के साथ खेल जाऊं. भाई कुछ नहीं तो मेरे दबंग पति के रहते मैं उन के पीठ पीछे किसी और को आंख उठा कर भी देख लूं. जहन्नुम इस से भली होगी मेरे लिए.

तुरंत एक हिमाकत भरा फौरवर्डेड जोक भी पहुंच गया उस तसवीर के पीछेपीछे. अब मैं निश्चिंत हो गई थी कि अभिलाष मुझे कुछ प्राइवेट संदेश दे रहा है, जिस का मुझे किसी तरकीब से विरोध करना पड़ेगा.

मैं दरअसल डर गई थी. यह नया क्या शुरू हो रहा था, वैसे अभिलाष मुझे बुरा नहीं लगता था लेकिन मैं झंझट में नहीं पड़ सकती थी.

दूसरी मुसीबत यह थी कि मेरे मातापिता इसी साल दूसरे राज्य से मेरे ही शहर में शिफ्ट हो कर आए थे वह भी हमारी ही कालोनी में एक नए किराए के मकान में. अब मेरे पापा की पैंशन और आधार कार्ड को ले कर मैं बुरी तरह फंसी हुई थी और यह काम पार्षद अभिलाष की मदद से ही होने को रुका था.

काम खत्म होने के बाद अगर यह सब आया होता, तो मैं ज्यादा सोचने को विवश नहीं होती, लेकिन अभी सीधे कोई खरी बात सुनाना जरा पेचीदा था. तिस पर करेले पर नीम चढ़ा यह कि मेरे वकील महोदय पति, पता नहीं पेशे की वजह से शक्की थे या शक्की होने की वजह से वकील थे हमेशा हर बात पर उन की शक की सूई घूम कर मुझ पर ही टिक जाती थी.

करूं तो क्या. सामने वाला औनलाइन मेरे जवाब के लिए रुका लग रहा था. मेरा दिमाग गड्डमड्ड हो रहा था. मैं उस के फोटो पर थम्सअप की इमोजी दे कर गायब हो गई.

डरते हुए आधे घंटे बाद फोन चैक किया कि उस ने मुझे बख्श दिया हो, अगला मैसेज आया था, ‘‘आप के घर के पास के गार्डन में आया हूं, आइए.’’

बड़ी कोफ्त हुई. भाई यह क्या है. गार्डन में मिलने की बात तो कुछ गलत हिसाब की ओर ही इशारा करती है. पर मना कैसे करूं. इस से काम भी बहुत कराना है, कहीं खफा न हो जाए और अगर इस की बातों में आती हूं तो भी खाई में गिरना ही लिखा है. इसे ?ांसे में रख कर काम करवाने तक लपेटे रखती हूं. मेरे मन में हिसाब का खाता खुला था. जब तक मांपापा का आधार कार्ड बन जाए. मेरा आधार कार्ड नया सुधरे और सरकारी मैडिकल कार्ड बने तब तक इसे अपनी तरफ से सीधा मना न ही करूं. मतलब हां, न के बीच लटका कर रखूं. मगर तब तक मेरे पति

कहीं यह खेल तो नहीं रहा मेरे साथ या कहीं पति ने ही मेरे चरित्र के प्रमाणपत्र के लिए इसे मेरे पीछे लगाया हो. दिमाग तो कम नहीं चलता मेरे पति का.

हाय. क्या करूं. किस मुसीबत में फंसी रे मैं.

उसी वक्त फिर उधर से संदेश आ गया, ‘‘दादा कहां हैं? क्या कर रहे हैं?’’

मैं ने लिखा, ‘‘घर पर हैं,’’ सोचा ऐसा बताने से वह शायद अब चुप हो जाए.

उस ने पलट कर लिखा, ‘‘दादा से डर लगता है, दादा आप का फोन तो नहीं देखते?’’

मैं ने सोचा. यह ठीक है. उसे लिखा, ‘‘देखते भी हैं कभीकभी,’’ अनजान बनने का नाटक करते पूछा, ‘‘क्यों?’’

उस ने बिना कुछ बताए झटपट सारा संदेश डिलीट कर दिया.

मैं ने फोन रख दिया. सोचा अब दौड़धूप कल से ही मांपापा के आधार कार्ड के लिए

लगती हूं, मुसीबत भी कम नहीं थी न. मेरे दबंग पति को बड़ी चिढ़ थी, मेरे मातापिता और मेरे विदेश में जा बसे मेरे छोटे भाई को ले कर.

भाई के रहते मेरे मातापिता अपनी बीमारी की वजह से मेरे सहारे मेरे पास रहने आ गए थे, यद्धपि मेरे पति को कभी मेरे मातापिता की सहायता नहीं करनी पड़ी, चाहे आर्थिक हो या अन्य कुछ. लेकिन मेरा उन के प्रति सहज सहृदय रहना मेरे पति को फूटी आंख नहीं सुहाता. इसलिए दिक्कत कुछ ज्यादा ही थी. मेरी नौकरी के कारण इन कामों में देरी होना स्वाभाविक था और तब जब सरकारी काम के नखरे भी हजार हों.

खैर, मैं अपने कालेज में कुछ एडजस्टमैंट बैठा कर पार्षद औफिस गई. अभिलाष नहीं था. मैं आज कालेज नहीं गई थी, पार्षद के साइन आज ही होने जरूरी थे, मैं ने उसे मजबूरन फोन किया. उस ने तुरंत फोन उठाया और 10 मिनट में औफिस आ गया. मैं ने गौर किया

उस ने सलीके से कुरतापाजामा

और जैकेट पहन रखी थी, वह फब रहा था.

इरादतन वह मेरे बिलकुल करीब आ गया और मु?ा से फार्म ले कर जो मेरे भरने का हिस्सा था, उस ने भर दिया. आराम से सभी जगह पर उस ने साइन किए और जो उस के भरने की जगह थी और जिसे उस के कर्मचारी भरा करते थे, वह भी उस ने भर दी. फिर मुहर लगा कर वह फार्म मेरी ओर बढ़ाया ताकि आगे की कार्यवाही के लिए मैं उसे ले जाऊं. मैं औफिस से निकल गई थी. वह मेरे पीछे आया. मैं अब बहुत हद तक आजाद थी, यद्धपि अपने बहुत से काम अभी भी उस से कराने थे लेकिन सोचा देखा जाएगा, इस के इरादों के आगे ?ाकूंगी नहीं.

उस ने पास आ कर कहा, ‘‘घर छोड़ दूं?’’

मैं ने कहा, ‘‘मेरी गाड़ी है न शुक्रिया,’’ मैं विनम्रता से उस की ओर देख मुसकराई और गाड़ी तक चली.

वह मेरे पीछे था, पीछे से ही कहा, ‘‘मैं आप के लिए ही औफिस आया था, आज मुझे नहीं आना था.’’

मैं पीछे मुड़ी, उसे एक बार और धन्यवाद कहा. स्कूटी में चाबी लगाई तो पाया स्कूटी की टायर पंक्चर है.

यह कैसे हुआ. मान नहीं सकती. अभी 2 दिन पहले ही हवा डलवाई थी मैं. वह मेरे पीछे खड़ा मुसकरा रहा था, बोला, ‘‘आप के लिए ही आया मैं. बोला न मैं ने आइए चलिए,’’ वह अपनी गाड़ी मेरे बिलकुल पास ले आया. फिर मेरी स्कूटी की चाबी मांगते हुए बोला, ‘‘यहां के कर्मचारी शेखर को मैं कह दूंगा वह आप की गाड़ी का पंक्चर ठीक करवा कर मेरे घर छोड़ देगा, आप शाम को ले जाना.’’

कुछ हक्कीबक्की सी हो मैं ने चाबी उस की ओर बढ़ा दी. यह हवाहवाई का चक्कर अभिलाष का किया धरा ही था, मैं समझ गई लेकिन इतनी दूर यहां से पैदल जाना नामुमकिन था और यह कालोनी के अंदर की सड़क थी, किराए के वाहन नहीं चलते थे.

‘‘अरे बैठिए न,’’ उस ने जोर दिया.

अब करती क्या, उस की गाड़ी में बैठना पड़ा. लगभग चिपक कर और वह गाड़ी भी कितनी धीरे चलाता रहा कि हर पल मझे यही लगता कि मेरे वकील पति मेरी पीठ पीछे बैठे मेरे संग चल रहे हैं.

मेरे घर से कुछ दूरी पर वह मुझे उतार कर बोला, ‘‘शाम को मैं आप की गाड़ी बनवा कर रखता हूं, मैं शाम को घर पर ही रहूंगा, गाड़ी आ कर ले लीजिएगा.’’

‘‘कल मुझेऔफिस जाना है, प्लीज

बन जाए.’’

मजबूरन एक और कृपा लेनी पड़ रही थी, जिस का उस ने खुले दिल से स्वागत किया.

सोचा था, शाम को उस की बीवी तो होगी ही, ज्यादा क्या होगा, चाबी लेनी है और गाड़ी स्टार्ट कर के सीधे घर.

घर पर किसी काम से व्हाट्सऐप चैक कर रही थी, देखा अभिलाष का संदेश.

‘‘आप की गाड़ी तैयार है, जाइए.’’

शाम के 5 बज रहे थे. मेरे पति लगभग रात के 8 बजे आते हैं, दोनों बच्चों को मैं नहीं पढ़ाती क्योंकि नौकरी और मातापिता के काम की भागादौड़ के बाद मेरी हिम्मत नहीं होती कि बच्चों के पीछे सिर पटकु. ऐसे भी बेटी 12वीं कक्षा में है तो उस की पढ़ाई कुछ अलग ही है. बच्चे अभी ट्यूशन में होते हैं, जिन्हें मेरे पति कोर्ट और उस के बाद अपने निजी औफिस से लौटते वक्त साथ ले आते.

मुझे अभिलाष से पीछा छुड़ाना था, मुझे अभिलाष के हिसाब से चलना नहीं था. मुझे उस से फोन पर भी संवाद बंद करना था, बावजूद इस के मैं उस के घर जाते वक्त खुद की ही नजर बचा कर खुद को थोड़ा ज्यादा सुंदर दिखाने का प्रयास करती रही.

वैसे मैं खुद को जानती हूं, यह उस से ज्यादा उस की बीवी के लिए था. स्त्री मनोविज्ञान. एक अपरिचित स्त्री जिस के पति की मैं परिचित हूं, कदाचित असुंदर दिख कर खुद को कुंठित नहीं करना चाहती थी.

मैं ने हलकी नीबू पीली जौर्जेट की लंबी कुरती के साथ सफेद स्ट्रैचेबल जींस पेयर की, ऊपर से सफेद डैनिम शौर्ट जैकेट.

मेरे घर से उस का घर पास ही था. दरवाजे पर पहुंचते ही बैल बजाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. वह तुरंत दरवाजा खोल कर मुझे अंदर बैठक में ले गया. वह एक पीले कुरते और सफेद चूड़ीदार में अच्छा लग रहा था.

तभी उस ने कहा, ‘‘अरे आप भी पीला सा ही पहनी हैं,’’ फिर मेरी तरफ प्रशंसा से देख कहा, ‘‘बहुत अच्छी लग रही हैं.’’

मैं भी क्या कहती, ‘‘थैंक्स मेरी चाबी…’’

‘‘हां जरूर देते हैं. साथ 1 कप कौफी पी कर जाइए.’’

‘‘अपनी बीवी से मिलाइए,’’ मैं ने प्रश्नसूचक नजर उस की ओर रखी.

उस ने हलकी सी मुसकान के साथ कहा, ‘‘मेरी बीबी मायके गई है. तभी तो बुलाया है.

वह रहती तो संभव नहीं था. बिलकुल पसंद नहीं उसे, समझती ही नहीं. काम के सिलसिले… जरूरतें… कुछ नहीं सम?ाती. खैर, क्या करें. आया 1 मिनट.’’

1 मिनट की जगह 15 मिनट बाद आया 2 कौफी और कुछ बिसकुट के साथ. जितना डरी थी वैसा कुछ भी नहीं हुआ, इस की तसल्ली थी मुझे वापस आ कर.

जरा सी हंसी, थोड़ी मेरी कहानी, थोड़ी उस की बातें और एक सामान्य सी दोस्ती जैसा कुछ मैं ले कर वापस आई थी. अब नए सिरे से कुछ शुरू न हो, इस उम्मीद के साथ मैं अपने में व्यस्त हो गई.

याद तो ठीक से नहीं लेकिन फिर भी 4-5 महीने से मुझे अभिलाषा की ज्यादा खबर नहीं मिली क्योंकि उस के थोड़ेबहुत संदेश का मैं ने कोई जवाब नहीं दिया था और इसी वजह वह भी कटा सा ही रहा.

पार्षद वाली उस की गाड़ी बड़ी धूम से चल रही थी और मैं ने भी फालतू बातों से मन को दूर रखने की ठान ली थी. अचानक लगभग साल भर बाद पार्षद कार्यालय के क्लर्क शेखर

का एक व्हाट्सऐप संदेश मेरे फोन पर आया. मैं अचंभित.

मैं ने खोला संदेश. लिखा था, ‘‘नमस्ते भाभी. भैया ने मुझे आप को यह संदेश लिखने को कहा है, भैया की तबीयत बहुत खराब है, वे किसी से बता नहीं पा रहे हैं. दरअसल, उन्हें डिप्रैशन हो गया है, आप को अपने घर बुलाया है, कब आएंगी बताइएगा?’’

मैं तो खजूर के पेड़ पर जा अटकी.

शेखर को ही संदेश लिखा, ‘‘अभिलाषजी की बीवी कहां हैं?’’

‘‘भैया से अनबन कर के मायके में जा बैठी हैं, 2 महीने हो गए.’’

‘‘तो आप ने उन्हें क्यों नहीं लिखा संदेश?’’ मैं ने फिर सवाल किया.

‘‘भैया तो आप को बुला रहे हैं, किसी से बिना कुछ कहे एक बार आ कर मिल लीजिए भैया से, आप लैक्चरर हैं, समझदार हैं. भैया से बात करेंगी तो उन का मन थोड़ा हलका  हो सकता है… पार्षद हैं, किसी को पता चला तो कैरियर खराब हो जाएगा, सब हंसेंगे और बात बनाएंगे.’’

‘‘देखती हूं,’’ मेरा जरा भी इस झमेले में पड़ने का मन नहीं था लेकिन मेरे स्त्री मन पर खुद के महत्त्वपूर्ण होने का भाव हावी हो गया और मैं चली गई अभिलाष के घर.

घर में उजाले और अंधेरे का कुछ अजीब सा मिश्रण था जो मुझे दुविधा में डाल रहा था.

आवाज लगाई धीरे से और अभिलाष बाहर निकला. मुझे तो ऐसा लगा नहीं कि वह बहुत दिनों से किसी मानसिक कष्ट में हो, लेकिन बुझ सा लगा, ‘‘आओ तिया अंदर आओ, आज तुम मेरे बुलाने पर आईं, तुम्हारे लिए बाहर का कमरा नहीं, तुम अंदर आओ.’’

शुरुआती तौर पर यह इज्जत अफजाई थी या करीबी होने की तस्दीक, मैं जांच नहीं पाई. नाम भी उस ने छोटा कर के लिया था, लेकिन स्त्री मन की अनुभूति ने जैसे मु?ो जकड़ लिया. मैं बात को अनसुना कर गई. भरोसा यह था कि अब तक उस ने मेरे साथ ऐसा कुछ भी किया नहीं था कि उस पर बिना बात शक करूं, सिवा इस वक्त उस के मेरे नाम को छोटा कर देने के. उस के साथ बैडरूम में आई, वह एक किनारे और मैं दूसरे किनारे बैठ गई.

मैं पूछती उस से पहले ही जरा मुंह लटका कर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘बहुत दबाव में हूं तिया. इधर विधायकजी मुझे साइड करने के लिए मुझ पर 2 लाख के घपले का आरोप रहे हैं, दूसरी ओर मेरी बीवी देखो एन वक्त पर मुझ पर ही शक कर के मायके चली गई. किसी को कुछ भी कहा तो लोग मुझे ही बदनाम करेंगे और अगले चुनाव में मैं पिछड़ जाऊंगा.’’

‘‘आप अपनी बीवी का नंबर दो मैं समझाऊंगी उन्हें.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. देखो एक चीज दिखाता

हूं तुम्हें फोन पर,’’ ऐसा कहते हुए वह मेरे बिलकुल पास आ कर बैठ गया और मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर रोंआसा सा कहने लगा,’’ तिया मुझे तुम से बहुत उम्मीदें हैं, मुझे दुत्कारो मत, मैं पता नहीं कब से तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, तुम्हें पाना, मतलब तुम्हे चाहता हूं,’’ उस ने मेरे हाथों को अपने हाथों में ले कर धीरेधीरे यों दबाते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों के कब्जे में ऐसे ले लिया कि मैं उस के वश में आने लगी.

एक तरफ मन और दिमाग मुझे यहां से उठ कर भागने के लिए दुत्कारने लगा,

दूसरी ओर न जाने क्या इतना रूमानी सा मुझे मजबूर करने लगा कि मैं अभिलाष के अंधकार में खुद को ढीला छोड़ने पर विवश होने लगी. वह धीरे से मेरे पैरों को बिस्तर पर चढ़ा कर पूरी तरह मेरे ऊपर झुक गया. एक झटके में उस ने अपना कुरता निकाल फेंका और उस की सुगंधित देह मेरे ऊपर पसरने लगी.

मेरा शरीर अब उस के इतने काबू में था कि पल में सबकुछ बदलने वाला था. बेहोशी के आलम में न जाने क्या हो जाने वाला था. अचानक मैं झटके से उसे दूर ठेल सीधे जमीन पर खड़ी हो गई.

‘‘क्या था यह?’’ मैं एकदम अचंभित सी बोल पड़ी. फिर खुद को संभाला और दरवाजे की ओर भागी.

अभिलाष पीछे आया, ‘‘तिया, प्लीज यह मेरेतुम्हारे प्यार की बात है, किसी से कुछ नहीं कहना, मैं तुम्हारा फिर भी इंतजार करूंगा.’’

मैं कालोनी के अंदर थी. आसपास के पहचान वालों की नजर में न चढ़ूं, बहुत ही सामान्य कदमों से मन पर सौ मन का बो?ा उठाए घर पहुंची.

 

मन बहुत भारी हो उठा था और अब मुझे एहसास हो रहा था कि अभिलाष के प्रति मेरे मन में जो उठापटक थी, वह और कुछ नहीं, बस किसी का मुझे महत्त्व देना और चाहना मुझे भा रहा था क्योंकि जो भी हो, पति की बेखयाली ने मन को अभाव में डुबो तो रखा ही था. सच पूछा जाए तो यह अभिलाष के प्रति मेरी संवेदना या आकर्षण की बात ही नहीं थी वरना विवश होती कामना की नकेल पकड़ एक ?ाटके में उसे  बिस्तर से जमीन पर सीधा खड़ा करना आसान नहीं होता. शायद सालों से स्त्री

मन में जमी चाहना ने अभाव बन कर मुझे डस लिया था.

शुक्र है शाम के 6 बज रहे थे और सब के घर आने में लगभग 2 घंटे बचे थे.

मैं अच्छी तरह नहा कर एक कप कौफी के साथ अपना फोन ले कर बिस्तर पर बैठी ही थी कि अभिलाष का संदेश, ‘‘क्यों चली गईं… मैं कितने सालों से तुम्हें पाना चाहता था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘डिप्रैशन?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं लेकिन तुम्हें पा न सका.’’

‘‘पत्नी क्यों गई?’’

‘‘बेबी बर्थ के लिए.’’

‘‘अभिलाष, शेखर से तुम ने झूठ बुलवाया.’’

‘‘प्यार में सब जायज है,’’ अभिलाष की बेशर्मी अब मुझे बेहद बुरी लग रही थी.

‘‘अपनी जिंदगी और कैरियर से मत खेलो अभिलाष और अपनी बीवी की जिंदगी से भी. मेरे इस लास्ट मैसेज के बाद भी तुम ने मुझ से और कभी कोई संपर्क करने की कोशिश की तो हम दोनों की बातचीत के सारे स्क्रीन शौट मैं अपने पति को दिखा दूंगी.’’

अभिलाष इस मैसेज को देख कर ऐसे रफूचक्कर हुआ मेरी जिंदगी से जैसे गधे के सिर से सींग.

जान छूटे तो लाखों पाए. शोखियों की कारगुजारियों ने तो मेरी नींद ही खराब कर रखी थी. दिल पर से बोझ मैं ने उतार फेंका. अब से नींद वाकई सुहानी होगी.

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