प्रकाश स्तंभ: भाग 3- क्या पारिवारिक झगड़ों को सुलझा पाया वह

नंदिनी के व्यवहार में अब अजीब परिवर्तन देखा था रचना ने. वह कुछ खिंचीखिंची सी रहने लगी थी और बहुत जरूरी होने पर ही उन से बात करती. ज्यादातर अपने कमरे में बैठी, स्वयं में ही व्यस्त रहने लगी थी.

एक दिन रचना बेटी के कमरे में जा बैठीं और बोलीं, ‘‘क्या बात है नंदिनी, आजकल बहुत चुप रहने लगी हो?’’

‘‘मां, आप के पास भी कहां समय है मेरे लिए? आप तो कामक ाजी महिला हैं. मेरे जैसी निठल्ली थोड़े ही हैं…फिर अब तो आप विदेश जा रही हैं,’’ नंदिनी के स्वर का व्यंग्य उन से छिप नहीं सका था.

‘‘भविष्य संवारने के लिए एक से दूसरे स्थान जाने का सिलसिला तो सालों से चल रहा है बेटी. वैसे मैं तुम लोगों का पूरा प्रबंध कर के जा रही हूं. तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होगी. यदि कभी अचानक कोई जरूरत आ पड़े तो तुम्हारे मामा हैं न यहां. वह कह भी रहे थे कि तुम दोनों बहनों का वह पूरा खयाल रखेंगे.’’

‘‘ठीक है, मां,’’ नंदिनी ने निश्वास लेते हुए कहा और बात आईगई हो गई थी.

1 माह का समय कैसे बीत गया रचना को पता भी नहीं चला. इस दौरान दफ्तर और घर दोनों ही जगहों पर उन की व्यस्तता बढ़ गई थी. जब जाने का समय आया तो रचना रो पड़ी थीं. नीरज बाबू का मन भी बोझिल हो उठा था पर वह पत्नी को ढाढ़स बंधाते रहे थे.

उधर मातापिता को विदा कर लौटी नंदिनी घर पहुंचते ही फूटफूट कर रो पड़ी थी. जब बहुत देर तक उस का रोना बंद नहीं हुआ तो रम्या के संयम का बांध टूट गया.

‘‘अब कब तक यों रोनेपीटने का कार्यक्रम चलेगा, दीदी,’’ वह बेहाल स्वर में बोली थी.?

‘‘मांपापा चले गए हैं, यह पता है मुझे. मैं तो इसलिए रो रही हूं कि मां ने एक बार भी मुझ से साथ चलने को नहीं कहा,’’ नंदिनी सुबकते हुए बोली थी.

‘‘लो और सुनो, तुम्हारे कारण ही तो मांपापा घर क्या देश भी छोड़ कर चले गए. फिर तुम्हें साथ चलने को कहने का क्या औचित्य था?’’ रम्या खिलखिला कर हंसी थी.

‘‘वे मेरे कारण नहीं तुम्हारे कारण गए हैं. जब देखो तब पैसा चाहिए. मैं पूछती हूं कि जब पूंजी नहीं है तो व्यापार करना जरूरी है क्या? प्रतीक नौकरी नहीं कर सकते?’’ नंदिनी क्रोध में आ गई थी.

‘‘दीदी, मुझे कुछ भी कहो पर प्रतीक को बीच में न ही लाओ तो अच्छा है. पूंजी के लिए मां से मैं ने कहा था प्रतीक ने नहीं,’’ रम्या ने विरोध प्रकट किया था.

सुनते ही नंदिनी भड़क उठी थी और आरोपप्रत्यारोपों का सिलसिला कुछ इस तरह चला कि प्रतीक को हस्तक्षेप करना पड़ा.

‘‘यदि आप दोनों बहनों का झगड़ा शांत हो गया हो तो हम भोजन कर लें. मुझे जोर की भूख लगी है. मैं ने मेज पर खाना लगा दिया है,’’ प्रतीक ने अनुनयपूर्ण स्वर में पूछा था.

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उस के नाटकीय अंदाज को देख कर रम्या शांत हो गई और नंदिनी रूठ कर अपने कमरे में चली गई थी.

‘‘दीदी को भी बुला लो नहीं तो वह भूखी ही सो जाएंगी,’’ प्रतीक बोला था.

‘‘मैं न कभी रूठती हूं और न रूठे हुए को मनाती हूं,’’ रम्या ने उत्तर दिया था.

‘‘ठीक है तो मैं बुला लाता हूं उन्हें,’’ प्रतीक उठ खड़ा हुआ था.

‘‘अरे, वाह, आज दीदी के लिए बड़ा प्यार उमड़ रहा है?’’

‘‘रम्या, समझ से काम लो. मम्मीपापा अब नहीं हैं यहां जो तुम्हारी दीदी को मना कर खिलापिला देंगे. तुम दोनों एकदूसरे की चिंता नहीं करोगी तो कौन करेगा?’’ प्रतीक ने समझाना चाहा था.

‘‘बड़ी वह हैं मैं नहीं. यों बातबात पर रूठना, उन्हें शोभा देता है क्या? मैं नहीं जाने वाली उन्हें मनाने,’’ रम्या ने दोटूक उत्तर दे दिया था.

प्रतीक नंदिनी को बुलाने चला गया था. वह प्रतीक के साथ आई तो तीनों भोजन करने बैठे पर दोनों बहनें बातचीत करना तो दूर एकदूसरे से नजरें मिलाने से भी कतरा रही थीं.

नंदिनी ने चुपचाप भोजन किया और फिर अपने कमरे में जा बैठी थी.

‘‘देखा तुम ने? ऐसा कितने दिन चलेगा, आईं, खाना खाया और फिर अपने कमरे में जा बैठीं. हम दोनों क्या उन के सेवक हैं जो सारा काम करते रहें.’’

‘‘वह तुम्हारी बड़ी बहन हैं, रम्या. लोग तो अनजान लोगों की भी सेवा कर देते हैं. मन शांत रखोगी तो स्वयं भी चैन से रहोगी और दूसरे भी आनंदित रहेंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कुछ रिक्त स्थानों के विज्ञापन देखे थे, उन्हें भेजने के लिए प्रार्थनापत्र टाइप करने हैं,’’ वह उठ खड़ी हुई थी.

‘‘रम्या, तुम अपनी पुरानी कंपनी में पुन: प्रयत्न क्यों नहीं करतीं. शायद बात बन जाए,’’ प्रतीक ने सलाह दी थी.

‘‘क्या कह रहे हो? जब मैं ने अचानक नौकरी छोड़ी थी तो हमारे प्रबंध निदेशक आगबबूला हो गए थे. विवाह के लिए 2 माह का वेतन अग्रिम लिया था. उसे चुकाए बिना ही मैं छोड़ आई थी. अब क्या मुंह ले कर वहां जाऊंगी?’’ रम्या रोंआसी हो उठी थी.

‘‘तुम ने ऐसा किया ही क्यों? तुम्हारे नए नियोक्ता अवश्य उन से पूछताछ करेंगे.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कंपनी का नाम तक नहीं ले रही.’’

‘‘ऐसा करने से कर्मचारी की साख को बट्टा लगता है. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘क्या पता था, फिर से नौकरी करनी पड़ेगी,’’ रम्या बोली, ‘‘विवाह से पहले कितने सपने देखे थे, सब मिट्टी में मिल गए.’’

‘‘यों मन छोटा नहीं करते, मैं नौकरी और व्यापार दोनों के लिए प्रयत्न कर रहा हूं. कुछ मित्रों से बात की है. कुछ न कुछ हो जाएगा,’’ प्रतीक ने आश्वासन दिया था.

अगले दिन रम्या और प्रतीक सो कर उठे तो नंदिनी चाय बना रही थी. आशा के विपरीत वह टे्र में 3 प्याली चाय ले कर आई और प्रतीक और रम्या को उन की चाय थमा कर अपनी चाय पीने लगी थी.

‘‘धन्यवाद, दीदी, चाय बहुत अच्छी बनी थी,’’ प्रतीक आखिरी घूंट लेते हुए बोला था.

‘‘धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए. रात्रि के भोजन के लिए तुम नहीं बुलाते तो शायद मैं भूखी ही सो जाती. इस घर में तो मेरे खाने न खाने से किसी को अंतर ही नहीं पड़ता,’’ नंदिनी भरे गले से बोली थी.

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रम्या ने चौंक कर नंदिनी को देखा था.

‘‘आप क्यों चिंता करती हैं, दीदी, हम हैं न. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,’’ प्रतीक ने ढाढ़स बंधाया था.

समय अपनी गति से बढ़ता रहा. रम्या ने अनेक प्रयत्न किए पर कहीं सफलता नहीं मिली. आखिर उस ने अपनी पुरानी कंपनी में जाने का निर्णय लिया.

‘‘नमस्ते, सर,’’ रम्या ने प्रबंध निदेशक अस्थाना के कमरे में घुसते ही अभिवादन किया था.

‘‘ओह रम्या, कहो कैसी हो, तुम विवाह करते ही ऐसी गायब हुईं जैसे गधे के सिर से सींग. तुम तो यह भी भूल गईं कि तुम ने कंपनी से 2 माह का अग्रिम वेतन लिया हुआ था.’’

‘‘यह मैं कैसे भूल सकती हूं सर. सच पूछिए तो कुछ व्यक्तिगत समस्याओं में ऐसी उलझ गई कि आ ही नहीं सकी. उस के लिए क्षमा प्रार्थी हूं.’’

‘‘ओह, तो काम करने आई हो तुम? पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता. मेरे ऊपर भी कुछ अफसर हैं और उन से आज्ञा लिए बिना तुम्हें फिर काम पर रखना संभव नहीं हो सकेगा.’’

‘‘लेकिन सर, यदि आप ने मुझे काम पर नहीं रखा तो 2 माह का वेतन चुकाने की सामर्थ्य मुझ में कहां है?’’

‘‘ठीक है, तुम अपना प्रार्थनापत्र छोड़ जाओ. कोई निर्णय लेते ही सूचित करेंगे,’’ अस्थाना साहब ने दोटूक शब्दों में कह दिया था.

थकीहारी रम्या घर पहुंची तो वह चौंक गई. घर में तीव्र स्वर लहरियां गूंज रही थीं. अंदर पहुंची तो पाया कि नंदिनी दीदी एक लोकप्रिय गीत की धुन पर थिरक रही थीं. कुछ देर तो रम्या ठगी सी उन्हें देखती रही थी.

‘‘दीदी, तुम तो छिपी रुस्तम निकलीं. इतना अच्छा नृत्य करती हो तुम और मुझे पता तक नहीं,’’ वह बोली थी.

‘‘जब मन प्रसन्न हो तो पांव स्वयं ही थिरक उठते हैं,’’ नंदिनी भावविभोर स्वर में बोली थी और फिर एक पत्र उस की ओर बढ़ा दिया था.

‘‘ओह दीदी, एंजल कानवेंट स्कूल की ओर से भेजा गया यह तो तुम्हारा नियुक्तिपत्र है.’’

‘‘वही तो, यह मेरा पहला नियुक्ति- पत्र है. शायद मुझ अभागी का भाग्य भी करवट ले रहा है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते दीदी. मैं जानती थी कि एक न एक दिन तुम अवश्य अपनी योग्यता के झंडे गाड़ोगी.’’

‘‘रम्या, मुझे कल से ही काम पर जाना है पर तुम चिंता मत करना. मैं सारा काम कर लूंगी,’’ नंदिनी ने रम्या का मुंह मीठा करवाया था.

‘‘रम्या, कहां हो? देखो तो, बड़ा ही सुखद समाचार है,’’ कुछ ही देर में प्रतीक ने प्रवेश किया था.

‘‘कहो न, क्या बात है?’’

‘‘मैं ने अपने 3 दोस्तों के साथ मिल कर सौफ्टवेयर कंपनी बना ली है. बैंक ने कर्ज देने की बात भी मान ली है. मेरे एक हिस्सेदार के पिता बैंक में कार्यरत हैं. उन्होंने हमारी बड़ी सहायता की. अब तुम्हें कहीं नौकरी करने की जरूरत नहीं है.’’

रचना और नीरज बाबू को फोन पर जब नंदिनी और प्रतीक ने अपनी सफलता की बात बताई तो उन की प्रसन्नता की सीमा न रही. रचना तो अपनी बेटियों को याद कर सिसक उठी थीं.

‘‘मन हो रहा है कि मैं उड़ कर अपने घर पहुंच जाऊं और दोनों बेटियों को गले से लगा लूं,’’ रचना बोली थीं.

‘‘मैं तो अगले सप्ताह ही उड़ कर अपनी बेटियों के पास जा रहा हूं, कई अधूरे काम पूरे करने हैं,’’ वह बोले थे.

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‘‘मैं भी छुट्टी ले कर चलती हूं. नंदिनी और रम्या से मिलने को बड़ा मन हो रहा है,’’ रचना ने कहा तो नीरज बाबू प्रसन्नता से झूम उठे थे.

‘‘मैं ने कई जगह नंदिनी के विवाह की बात चलाई है. 2-3 जगह से कुछ आशा बंधी है. इस बार भारत जा कर नंदिनी का विवाह कर के ही लौटेंगे,’’ रचना पुलकित स्वर में बोलीं और नंदिनी के लिए आए विवाह प्रस्तावों की पतिपत्नी मिल कर कंप्यूटर पर विवेचना करने लगे थे.

‘‘क्यों न यह विवरण और फोटो नंदिनी को भेज दें. उस की राय भी तो जान लें,’’ नीरज बाबू बोले.

‘‘नहीं, यह सुखद समाचार तो वहां पहुंच कर हम स्वयं सुनाएंगे. नंदिनी के चेहरे पर आने वाले भाव मैं स्वयं देखना चाहती हूं,’’ रचना मुसकरा दी थीं. उस प्रकाश स्तंभ की भांति जो स्वयं निश्चल खड़ा रह कर भी दूरदूर तक लोगों को राह दिखाता है.

सौतेली: भाग 2- क्या धोखे से उभर पाई शेफाली

जानकी बूआ ने शेफाली पर घर जाने और पापा से फोन पर बात करने का दबाव बनाने की कोशिश की तो उस ने बूआ को सीधी धमकी दे डाली, ‘‘बूआ, अगर आप किसी बात के लिए मुझे ज्यादा परेशान करोगी तो सच कहती हूं, मैं इस घर को भी छोड़ कर कहीं चली जाऊंगी और फिर कभी किसी को नजर नहीं आऊंगी.’’

शेफाली की इस धमकी से बूआ थोड़ा डर गई थीं. इस के बाद उन्होंने शेफाली पर किसी बात के लिए जोर देना ही बंद कर दिया था.

शेफाली को यह भी पता था कि वह हमेशा के लिए बूआ के घर में नहीं रह सकती थी. 5-6 महीने के बाद जब उस की बी.एड. की पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो उस के पास बूआ के यहां रहने का कोई बहाना नहीं रहेगा.

तब क्या होगा?

आने वाले कल के बारे में जितना सोचती उतना ही अनिश्चितता के धुंधलके में घिर जाती. बगावत पर आमादा शेफाली का मन उस के काबू में नहीं रहा था.

फूफा से शेफाली कम ही बात करती थी. बूआ से तो उस का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन उस घर में शेफाली जिस से अपने दुखसुख की बात करती थी वह थी रंजना, जानकी बूआ की बेटी.

रंजना लगभग उसी की हमउम्र थी और एम.ए. कर रही थी.

रंजना उस के दिल के हाल को समझती थी और मानती थी कि उस के पापा ने उस की गैरमौजूदगी में शादी कर के गलत किया था. इस के साथ वह शेफाली को हालात के साथ समझौता करने की सलाह भी देती थी.

सौतेली मां के लिए शेफाली की नफरत को भी रंजना ठीक नहीं समझती थी.

वह कहती थी, ‘‘बहन, तुम ने अभी उस को देखा नहीं, जाना नहीं. फिर उस से इतनी नफरत क्यों? अगर किसी औरत ने तुम्हारी मां की जगह ले ली है तो इस में उस का क्या कुसूर है. कुसूर तो उस को उस जगह पर बिठाने वाले का है,’’ ऐसा कह कर रंजना एक तरह से सीधे शेफाली के पापा को कुसूरवार ठहराती थी.

कुसूर किसी का भी हो पर शेफाली किसी भी तरह न तो किसी अनजान औरत को मां के रूप में स्वीकार करने को तैयार थी और न ही पापा को माफ करने के लिए. वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि पढ़ाई पूरी होने पर उस को जानकी बूआ का घर भले ही छोड़ना पडे़ लेकिन वह अपने घर नहीं जाएगी. नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होगी और अकेली किसी दूसरी जगह रह लेगी.

2 बार मना करने के बाद पापा ने फिर शेफाली से फोन पर बात करने की कोशिश नहीं की थी. हालांकि जानकी बूआ से पापा की बात होती रहती थी.

मानसी और अंकुर से शेफाली ने फोन पर जरूर 2-3 बार बात की थी, लेकिन जब भी मानसी ने उस से नई मम्मी के बारे में चर्चा करने की कोशिश की तो शेफाली ने उस को टोक दिया था, ‘‘मुझ से इस बारे में बात मत करो. बस, तुम अपना और अंकुर का खयाल रखना,’’ इतना कहतेकहते शेफाली की आवाज भीग जाती थी. अपना घर, अपने लोग एक दिन ऐसे बेगाने बन जाएंगे शेफाली ने कभी सोचा नहीं था.

पहले तो शेफाली सोचती थी कि शायद पापा खुद उस को मनाने जानकी बूआ के यहां आएंगे पर एकएक कर कई दिन बीत जाने के बाद शेफाली के अंदर की यह आशा धूमिल पड़ गई.

इस से शेफाली ने यह अनुमान लगाया कि उस की मम्मी की जगह लेने वाली औरत (सौतेली मां) ने पापा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है. इस सोच में उस के अंदर की नफरत को और गहरा कर दिया.

अचानक एक दिन बूआ ने नौकरानी से कह कर ड्राइंगरूम के पिछले वाले हिस्से में खाली पड़े कमरे की सफाई करवा कर उस पर कीमती और नई चादर बिछवा दी थी तो शेफाली को लगा कि बूआ के घर कोई मेहमान आने वाला है.

शेफाली ने इस बारे में रंजना से पूछा तो वह बोली, ‘‘मम्मी की एक पुरानी सहेली की लड़की कुछ दिनों के लिए इस शहर में घूमने आ रही है. वह हमारे घर में ही ठहरेगी.’’

‘‘क्या तुम ने उस को पहले देखा है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ रंजना का जवाब था.

शेफाली को घर में आने वाले मेहमान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही उस से कुछ लेनादेना ही था. फिर भी वह जिन हालात में बूआ के यहां रह रही थी उस के मद्देनजर किसी अजनबी के आने के खयाल से उस को बेचैनी महसूस हो रही थी.

वह न तो किसी सवाल का सामना करना चाहती थी और न ही सवालिया नजरों का.

जानकी बूआ की मेहमान जब आई तो शेफाली उसे देख कर ठगी सी रह गई.

चेहरा दमदमाता हुआ सौम्य, शांत और ऐसा मोहक कि नजर हटाने को दिल न करे. होंठों पर ऐसी मुसकान जो बरबस अपनी तरफ सामने वाले को खींचे. आंखें झील की मानिंद गहरी और खामोश. उम्र का ठीक से अनुमान लगाना मुश्किल था फिर भी 30 और 35 के बीच की रही होगी. देखने से शादीशुदा लगती थी मगर अकेली आई थी.

जानकी बूआ ने अपनी सहेली की बेटी को वंदना कह कर बुलाया था इसलिए उस के नाम को जानने के लिए किसी को कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी थी.

मेहमान को घर के लोगों से मिलवाने की औपचारिकता पूरी करते हुए जानकी बूआ ने अपनी भतीजी के रूप में शेफाली का परिचय वंदना से करवाया था तो उस ने एक मधुर मुसकान लिए बड़ी गहरी नजरों से उस को देखा था. वह नजरें बडे़ गहरे तक शेफाली के अंदर उतर गई थीं.

शेफाली समझ नहीं सकी थी कि उस के अंदर गहरे में उतर जाने वाली नजरों में कुछ अलग क्या था.

‘‘तुम सचमुच एक बहुत ही प्यारी लड़की हो,’’ हाथ से शेफाली के गाल को हलके से थपथपाते हुए वंदना ने कहा था.

उस के व्यवहार के अपनत्व और स्पर्श की कोमलता ने शेफाली को रोमांच से भर दिया था.

शेफाली तब कुछ बोल नहीं सकी थी.

जानकी बूआ वंदना की जिस प्रकार से आवभगत कर रही थीं वह भी कोई कम हैरानी की बात नहीं थी.

एक ही घर में रहते हुए कोई कितना भी अलगअलग और अकेला रहने की कोशिश करे मगर ऐसा मुमकिन नहीं क्योंकि कहीं न कहीं एकदूसरे का सामना हो ही जाता है.

शेफाली और वंदना के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दोनों अकेले में कई बार आमनेसामने पड़ जाती थीं. वंदना शायद उस से बात करना चाहती थी लेकिन शेफाली ही उस को इस का मौका नहीं देती थी और केवल एक हलकी सी मुसकान अधरों पर बिखेरती हुई वह तेजी से कतरा कर निकल जाती थी.

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Winter Special: बचे ऊन से बनाएं कुछ नया

आप ने स्वैटर के लिए ऊन खरीदा तो थोड़ा ज्यादा ही लिया, क्योंकि आप यह जानती हैं कि बाद में ऊन खरीदने पर अकसर रंग में फर्क आ जाता है. ऐसा कई बार होने से ऊन के बहुत सारे छोटेबड़े गोले आप के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जिन्हें संभालना एक मुसीबत है, क्योंकि गोले आपस में बुरी तरह उलझ भी जाते हैं. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए क्यों न बचे ऊन का सुंदर प्रयोग कर इस सीजन में कुछ नया बना लिया जाए. आइए जानिए कि आप क्याक्या बना सकती हैं:

मोबाइल कवर

सामग्री: थोड़ा सा सफेद और लाल रंग का ऊन, लाल रंग के मोती, 10 नं. का क्रोशिया.

विधि: सफेद ऊन से 25 चे. बना लें. दूसरी ला. में 5 चे. बुनें, चा. से 3 चे. के बाद जोड़ दें. इसी कम्र में पूरी ला. बुनें. तीसरी ला. में 5 चे. बुनें, 2 चे. छोड़ कर तीसरी चे. में चा. से जोड़ें.

इसी तरह 15 ला. बुनें. दूसरा भाग भी इसी तरह बना कर सूई से सिल लें. लाल ऊन से कवर के चा. से किनारा और हैंडिल बुनें. नीचे की ओर 20 चे. बना कर गोले में जोड़ें. इसी तरह दूसरा भी बुनें. लाल मोतियों से सजाएं.

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ज्वैलरी सैट

सामग्री: लाल, पीले, हरे रंग के ऊन, सफेद और लाल रंग के मोती, 4 पीस सजावट के लिए लटकन, 3 हुक, थोड़ा सा टुकड़ा बकरम का, 12 नं. का क्रोशिया, पतली सूई.

विधि: तीनों रंगों के ऊन से मनचाही लंबाई की चे. बनाएं. पीले ऊन को बीच में रख कर 8 चे. लाल और 8 चे. हरे ऊन की ले कर गोल शेप दें. बीच में सूईधागे से मोती लगाएं. इसी क्रम को ऊपर तक दोहराएं. दूसरी लड़ी भी इसी प्रकार बनेगी.

पेंडिन बनाने के लिए: ओवल शेप में बकरम काट कर हरे, लाल, पीले रंगों के ऊन से लंबी चेन बुन कर चिपका दें. मोती लगाएं. बीच में ओवल शेप का शीशा लगाएं. नीचे की ओर लटकन लगाएं.

झुमके बनाने के लिए पेंडिन की तरह बकरम पर चे. बुन कर लगाएं. ऊपर हुक लगाएं, नीचे की तरफ लटकन लगाएं.

फूलों वाली टोकरी

सफेद ऊन से 12 चे. बनाएं. स्लिप स्टिच से 2 ला. बुनें. 6 ला.चा. बुनें. राउंड शेप में पूरी टोकरी बुनें. लाल और सफेद ऊन से किनारा और हैंडिल बनाएं. लेजीडेजी स्टिच से लाल फूल और हरी पत्तियां बनाएं.

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टैडी बीयर

सफेद ऊन से 10 चे. बना कर जोड़ें. ड.क्रो. में 4 ला. बुनें. अगली ला. में 6 चा. की 4 ला., 4 चा. सफेद ऊ. से, 6 चा. ब्राउन, 4 ला., 4 चा. सफेद से बुनें. सफेद ऊन से आउटलाइन बुनें. टैडी बीयर का चेहरा बनाने के लिए 6 चे. का घेरा बनाएं. 2 ला.चा. बुनें. ब्राउन ऊन से 1 ला.चा. की बुनें. कान के लिए 6-6 चा. की 4 ला. बुनें. इसी तरह दूसरा भाग बुना जाएगा. मोटी सूई से दोनों भागों को सिल लें. साइड में थोड़ा सा खुला रहने दें. वहां से टैडी में रुई भर दें. काले ऊन से आंख, मुंह, नाक की शेप बना दें. गले में लाल ऊन से बो बना कर बांध दें.

काले धब्बे वाला केला है हेल्थ के लिए फायदेमंद

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

कई लोग हाइजीन को ध्यान में रखते हुए काले धब्बे वाले केले नहीं खाते, जबकि कुछ लोग इसे सड़ा गला समझकर फेंक देते हैं. अगर आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं, तो जरा रूक जाएं. क्योंकि इस तरह के केले साफ सुथरे केले के मुकाबले  न केवल ज्यादा पौष्टिक होते हैं, बल्कि यह प्राकृतिक तरह से पके हुए भी होते हैं. जब केले ज्यादा पक जाते हैं, तब इनके गुण आठ गुना ज्यादा बढ़ जाते हैं. इस तरह से आप पके केले के जरिए भरपूर पोषण तत्व प्राप्त कर सकते हैं. एक रिसर्च के अनुसार, ऐसे केलों में कैंसर से लड़ने की ताकत बहुत होती  है. इनमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा और व्हाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने की क्षमता में भी इजाफा होता है. इसके अलावा आप केवल एक केला खाकर भी घंटों तक आप बिना कुछ खाए बहुत देर तक एनर्जेटिक रह सकते हैं. तो चलिए आज के हमारे इस आर्टिकल में जानते हैं काले धब्बे वाले केले खाने के अन्य लाभों के बारे में.

काले धब्बे वाले केले खाने के लाभ-

केला कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, मिनरल, कैल्शियम, फाइबर आदि से भ्रपूर हारेता है. ये सभी तत्व मिलकर इसे सुपरफूड बनाते हैं. दुनिया में केले की 300 से ज्यादा किस्मे हैं. कच्चे केले या अधपके केले को खाने से बेहतर है कि काले धब्बे वाले केले को खाया जाए. यहां आप जान सकते हैं काले धब्बे वाले केले कैसे आपके लिए फायदेमंद हैं.

शरीर में ठंडक बनाए रखें-

गर्मी के दिनों में ज्यादा पके या काले धब्बे वाले केले खाने से शरीर को ठंडक मिलती है. इसे आप चाहें, तो बुखार में भी खा सकते हैं. अच्छा परिणाम मिलेगा.

तनाव दूर करे- 

महिलाओं में मासिक चक्र धर्म के दौरान तनाव होना आम है. ऐसे में कई उपाय भी उनकी मदद नहीं कर पाते. लेकिन एक बार काले धब्बे वाले केले खाकर देखें. इससे आपका खराब मूड सही हो जाएगा.

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खून की कमी दूर करे- 

खून की कमी को दूर करने के लिए काले धब्बे वाले केले बहुत अच्छे होते हैं. महिलाओं में खासतौर से एनीमिया की बहुत कमी पाई जाती है, ऐसे में अक्सर डॉक्टर्स काले धब्बे वाले केले खाने के लिए कहते हैं. वहीं ऐसे केले कमजोर हड्डियों को मजूबती प्रदान करने का काम  करते हैं.

एसिडिटी से राहत दिलाए- 

केला वैसे तो एसिडिटी से छुटकारा दिलाने के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन काले धब्बे वाला केले में एंटीएसिड गुण होने से एसिडिटी से तुरंत राहत  दिलाने की क्षमता अच्छी होती है. इससे सीने की जलन से भी राहत मिलती है. इसके लिए केले को चीनी के साथ मिलाकर खाना चाहिए. मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा के कारण केले को आसानी से पचाया जा सकता है.

बीपी करे कंट्रोल-

काले धब्बे वाला केला खाने से बीपी कंट्रोल में रहता है. दरअसल, इसमें पोटेशियम ज्यादा होता है, जबकि सोडियम की मात्रा न के बराबर होती है. लेकिन दाग रहित केलों में पोटेशियम की मात्रा कम और सोडियम की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिए बीपी कंट्रोल करने के लिए हमेशा काले धब्बे वाला केला ही खाएं.

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वजन बढ़ाए- 

चित्तेदार केला वजन बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है. जिन लोगों का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बढ़ रहा, उन्हें रोज सुबह दूध के साथ एक केला खाना चाहिए. कुछ ही दिनों में वजन तेजी से बढ़ जाएगा.

प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करें-

जैसे-जैसे केला पकता है, इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट का स्तर भी बढ़ता जाता है. इसके साथ ही यह आपके प्रतिरक्षा तंत्र को मजूबत कर सफेद रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है.

अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 1- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

किचन में जूठे बरतनों का ढेर लगा था तो बाथरूम में कपड़ों का. घर भी एकदम अस्तव्यस्त था. आभा की समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कहां से करें. कितनी बार कहा नवल से कि वाशिंग मशीन ठीक करा दो, पर सुनते ही नहीं हैं. बाई भी जबतब छुट्टी मार जाती है. लगता है जैसे मुफ्त में काम कर रही हो. निकालती इसलिए नहीं उसे, क्योंकि फिर दूसरी जल्दी मिलती नहीं है और मिलती भी है तो उस के हजार नखरे होते हैं. बाईर् आज भी न आने को कह गई है.

रिनी से तो कुछ कहना ही बेकार है. जब भी आभा कहती है कि अब बच्ची नहीं रही. कम से कम कुछ खाना बनाना तो सीख ले, तो नवल बीच में ही बोल पड़ते कि पुराने जमाने सी बात मत करो. अरे, आज लड़कियां चांद पर पहुंच गई हैं और तुम अभी भी चूल्हेचौके में ही अटकी हुई हो. मेरी बेटी कोईर् बड़ा काम करेगी. तुम्हारी तरह यह घर के कामों में थोड़े उलझी रहेगी. आभा चुप लगा जाती. इस से रिनी और ढीठ बनती गई.

उस की सास निर्मला से तो वैसे भी घर का कोई काम नहीं होता. नहींनहीं, ऐसी बात नहीं कि अब उन का शरीर काम करना बंद कर चुका है. एकदम स्वस्थ हैं अभी भी, परंतु अपने पूजापाठ, धर्मकर्म और हमउम्र सहेलियों से उन्हें वक्त ही कहां मिलता है, जो वे आभा के कामों में हाथ बटाएंगी. साफ कह दिया है कि बहुत संभाल चुकीं वे घरगृहस्थी.

आभा भी उन से मदद नहीं मांगती, क्योंकि बारबार वही बातों को दोहराना, शिकायतें करना और वे भी तब जब कोई सुनने वाला ही न हो, तो इस से अच्छा तो यही लगा आभा को कि खामोश रहा जाए. इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ कर घरबाहर की सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले लीं. लेकिन उस पर भी घर के लोगों को उस से कोई न कोई शिकायत रहती ही. खासकर निर्मला को. वे तो हमेशा बकबक करती रहतीं. पासपड़ोस से आभा की शिकायतें करतीं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है.

यहीं पास के ही शिव मंदिर से सटी अरविंद बाबा की कुटिया है, जहां वे अपने चेलेचपाटों के साथ निवास करते हैं. अच्छेअच्छे घरों की महिलाएं उन के चरणों में लोट कर खुद को धन्य मानती हैं और निर्मला भी. बाबा से पूछे बिना वे एक भी काम नहीं करतीं. बाबा का वचन मतलब सत्य वचन होता उन के लिए.

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आएदिन मंदिर में कोई न कोई उत्सव होता ही रहता. कभी ठाकुरजी का जन्म उत्सव, कभी ब्याह, कभी यज्ञोपवीत, कभी झूला, कभी जलविहार, कभी कुछ तो कभी कुछ लगा ही रहता. और इन अवसरों पर निर्मला भी खूब चढ़ावा चढ़ातीं. बाबा के बहाने ही तो आखिर उन्हें घर के कामों से फुरसत मिलती और दूसरी औरतों की कहानियां सुनने को मिलतीं. बाबा न होता तो जिम्मदारियों से जूझना पड़ता.

मेहनत की कमाई यों लूटे, अच्छा तो नहीं लगता पर धर्म के मामले में कौन मुंह खोले. इसलिए आभा और नवल चुप ही रहते थे. वैसे भी धर्मसंकट सब से बड़ा संकट होता है. लेकिन आभा इन कर्मकांडों का हिस्सा कभी नहीं बनी और इसीलिए निर्मला उस से क्षुब्ध रहतीं. गुस्सा तो आभा को तब आता, जब निर्मला उस अरविंद बाबा को अपने घर पर प्रवचन, भजन, कीर्तन करवाने बुला लेती थीं. महीने में यह

2-3 बार होता ही होता था. लेकिन इन सब ढकोसलों से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता और यही बात आभा को बरदाश्त नहीं होती. इसलिए एक दिन आभा ने इस बात का पुरजोर विरोध किया और कहा कि जरूरत नहीं इन बाबाओं को घर बुलाने की, क्योंकि वह इन सब ढकोसलों में बिलकुल विश्वास नहीं करती है, उसे तो बस कर्म पर भरोसा है.

नवल ने कुछ कहा तो नहीं, पर लगा आभा सही कह रही है और वैसे भी घर में जवान लड़की है, तो क्या जरूरत है मां को इन्हें घर पर बुलाने की? समझ गई निर्मला कि बेटा भी बहू की बात से सहमत है. कुछ कहा तो नहीं, पर मन ही मन बड़बड़ाईं कि यहां लोग दूरदूर से बाबा के दर्शन करने आते हैं, पर इन अभागों को कौन समझाए यह बात?

इधर कुछ दिनों से आभा की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. बहुत थकान महसूस हो रही थी. सिर भी भारीभारी लग रहा था. हलका बुखार भी रहने लगा था. खाने की इच्छा तो होती ही नहीं थी. जबरदस्ती अगर कुछ खा भी लेती, तो पेट में दर्द होने लगता और उलटी हो जाती. समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसे हो क्या गया है? जब नवल से कहती, तो वे चिढ़ कर कहते डाक्टर को दिखा लो. बहुत होता तो मैडिकल स्टोर से दवा ला कर पकड़ा देते और साथ में

10 बातें भी सुना देते कि उस सुमन से गप्पें मारने का समय होता है, घंटों सासबहू के सीरियल देख सकती, पर डाक्टर के पास नहीं जा सकती. घर में काम ही कितना होता है जो हर वक्त काम की दुहाईर् देती रहती है? ऐसी बातें बोल कर नवल आभा को चुप करा देता और वह बेचारी सोचती कि जाने दो ठीक हो जाएगा अपनेआप, पर मर्र्ज था कि दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था.

हमारे समाज में सदियों से औरतें खुद को इगनोर करती आई हैं. आज भी औरतों के लिए पहले पति, बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य सर्वोपरि होता है. आभा का भी यही हाल था. अगर घर में किसी को एक छींक भी आ जाए, तो परेशान हो उठती थी, लेकिन अपनी परेशानी ठीक हो जाएगी सोच कर टाल जाती थी.

उस दिन आभा का जी बहुत मिचला रहा था. सिर में दर्द तो इतना कि लग रहा था फट

ही जाएगा. सोचा नवल औफिस जा ही रहे हैं तो उसे डाक्टर के पास छोड़ देंगे और फिर वह दिखा कर वापस आ जाएगी. अत: बोली, ‘‘सुनिएजी, आप सिर्फ मुझे अस्पताल छोड़ दीजिए, मैं डाक्टर से दिखा कर वापस आ जाऊंगी.’’

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नवल जो गाना गुनगुनाते हुए अपनी टाई ठीक कर रहा था आभा की बात सुनते ही फूट पड़ा, ‘‘पागल हो क्या? खुद मुझे देर हो रही है और तुम और देर करवाने की फिराक में लगी हो? जाओ न खुद दिखा लो डाक्टर को. वैसे भी जब देखो, कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है तुम्हें… एक तो कमा कर खिलाओ और फिर ये सब लफड़े… नहीं होगा इतना मुझ से,’’ भुनभुनाते हुए नवल औफिस निकल गया और आभा हैरान सी उसे जाते देखती रह गई. लगा सब की सेवा करे तो ठीक, लेकिन अपने बारे में कुछ बोले, तो कैसे नवल खीज उठते हैं.

औरत की तो यही दशा है. सब के लिए सोचती है, लेकिन जब किसी को उस के लिए करना पड़ जाए, तो वह उकताने लगता है. बेचारी आभा, अपने दर्द को दरकिनार कर फिर घर के कामों में जुट गई.

रात में आभा को बड़ी बेचैनी होने लगी. गरम पानी के सेंक से और बाम लगा लेने से पेट दर्द और सिरदर्द तो कुछ ठीक हुआ, लेकिन सूखी खांसी बड़ी परेशान करने लगी. बुखार था सो अलग. कमजोरी से उठने का मन नहीं कर रहा था. लग रहा था कोई पानी पिला दे. इसलिए नवल को उठाया, लेकिन कैसे झल्लाते हुए उस ने उसे पानी दिया वही जानती है. बेचैनी के मारे फिर पूरी रात उसे नींद नहीं आई. सारा बदन दर्द के मारे टूट रहा था, मगर कहे तो किस से?

सुबह किसी तरह उठ चायनाश्ता बनाया. नवल को औफिस भेज कर किचन का बाकी काम अभी समेट ही रही थी कि एकदम से चक्कर आ गया और वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. वह तो वक्त पर सुमन वहां पहुंच गईर् और उसे डाक्टर के पास ले गई वरना जाने क्या अनर्थ हो जाता. अस्पताल से ही रिनी ने पापा को फोन कर के बताया कि मां बेहोश हो गई हैं. जल्दी अस्पताल पहुंचें.

नवल आननफानन में वहां पहुंच गया. जांच कर डाक्टर ने बताया कि आभा को हैपेटाइटिस बी हुआ है और उसे अस्पताल में भरती करना पड़ेगा. सुन कर तो जैसे नवल को चक्कर ही आ गया. लगा अब घर कैसे चलेगा? आभा इतनी बीमार है इस की उसे जरा भी परवाह नहीं. चिंता होने लगी कि घर कैसे चलेगा?

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Valentine’s Special: घर पर बनें पनीर से बनाएं ये टेस्टी डिश

पनीर अधिकांश लोंगों को प्रिय होता है. कोई खास अवसर हो या किसी को भी कुछ खास महसूस कराना हो तो अक्सर पनीर की डिश बनाई जाती है. पनीर बनाने के लिए दूध को वेनेगर, नीबू का रस या फिर खट्टे दही से फाड़कर बनाया जाता है. स्टार्टर, स्नैक से लेकर सब्जियां और डेजर्ट तक पनीर से बनाये जाते हैं. पनीर में प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन और ओमेगा 3 भरपूर मात्रा में पाया जाता है. दूध से बने पनीर के अतिरिक्त सोयाबीन के दूध से भी पनीर बनाया जाता है जिसे टोफू कहा जाता है यह प्रोटीन का प्रचुर स्रोत होता है परन्तु सोया पनीर की अपेक्षा दूध से बने पनीर को आम लोंगों द्वारा अधिक पसन्द किया जाता है.

घर पर कैसे बनाएं पनीर

घर पर आप बड़ी आसानी से पनीर बना सकतीं हैं. घर पर पनीर बनाने से यह बाजार की अपेक्षा काफी सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही बहुत हाइजीनिक भी रहता है. घर पर पनीर बनाने के लिए आप एक लीटर फुल क्रीम दूध को गैस पर उबलने रख दें. एक छोटी कटोरी में 2 टेबलस्पून सफेद सिरका या नीबू के रस में एक टीस्पून पानी मिलाकर रख लें. जब दूध लगभग उबलने वाला हो तो गैस को धीमा करें और धीरे धीरे तीन बार में सिरका डालें, एक चम्मच से चलाती रहें. कुछ ही देर में दूध फट जाएगा. जैसे ही दूध फटने लगे आप गैस बंद कर दें. अब साफ सूती कपड़े को एक छलनी में रखें और फटे दूध को डालकर ठंडा पानी डाल दें ताकि दूध का कुकिंग प्रोसेस बंद हो जाये. अब सूती कपड़े में गांठ लगाकर एक प्लेट में रखकर भारी चकले से दबा दें. 20 मिनट बाद चकला हटाकर पनीर निकाल लें. तैयार पनीर से अब आप अपनी मनचाही डिश तैयार कर सकतीं हैं.

ऐसे करें पनीर को स्टोर

तैयार पनीर को आप एयरटाइट जार में रखकर इतना पानी डालें कि वह पूरा पानी में डूब जाए. अब जार का ढक्कन लगाकर आप इसे फ्रिज में रखकर सप्ताह भर तक आराम से प्रयोग कर सकतीं हैं. बिना पानी के फ्रिज में रखने से पनीर की ऊपरी सतह कड़ी हो जाती है जो प्रयोग के लायक भी नहीं रहती.

रेस्टोरेंट जैसा पनीर बटर मसाला

कितने लोगों के लिए          4

बनने में लगने वाला समय      30मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री (ग्रेवी के लिए)

पनीर                   250  ग्राम

बटर                    1 टेबलस्पून

तेल                     1 टेबलस्पून

प्याज                   4

टमाटर(मीडियम)     3

लहसुन                  4 कली

अदरक                 1 इंच

हरी मिर्च                  3

साबुत लाल मिर्च        3

दालचीनी                 1 इंच टुकड़ा

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साबुत बड़ी इलायची      2

कश्मीरी लाल मिर्च       1 टीस्पून

दही                            2 टेबलस्पून

काजू                         10

धनिया पाउडर              1 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर         1 टीस्पून

गरम मसाला पाउडर        1 टीस्पून

हल्दी पाउडर                   1/2 टीस्पून

पानी                               1 टेबलस्पून

सामग्री(बघार के लिए)

बटर                             1 टेबलस्पून

तेल                              1 टेबलस्पून

कसूरी मैथी                    1 टेबलस्पून

बारीक कटा प्याज            1

बारीक कटे टमाटर            2

नमक                              स्वादानुसार

पानी                               1/2 कप

कश्मीरी लाल मिर्च           1 टीस्पून

विधि(ग्रेवी बनाने की)

दही में धनिया, कश्मीरी लाल मिर्च, गरम मसाला, और हल्दी पाउडर को अच्छी तरह मिक्स कर लें. एक  पैन में बटर और तेल गरम करके धीमी आंच पर प्याज को सौते करें फिर हरी मिर्च, साबुत लाल मिर्च, अदरक, लहसुन, दालचीनी और बड़ी इलायची को भूनकर मसाले वाला दही डालकर 1 से 2 मिनट तक  चलाते हुए भूनें. काजू डालकर टमाटर काट कर डाल दें. नमक और 1 टीस्पून कश्मीरी लाल मिर्च डालकर 1/2 कप पानी डालकर ढककर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर इसे मिक्सी में पेस्ट फॉर्म में पीसकर छलनी से छान लें.

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बघार के लिए एक पैन में गर्म बटर और तेल में प्याज, टमाटर, कसूरी मैथी, कश्मीरी लाल मिर्च भूनकर पिसी ग्रेवी डालकर एक उबाल ले लें. कटे पनीर के टुकड़े, पानी और नमक डालकर धीमी आंच पर ढककर 5 मिनट तक पकाकर गैस बंद कर दें. फ्रेश क्रीम और कटे हरे धनिए से सजाकर परांठा या रोटी के साथ सर्व करें.

प्यार की जीत: भाग 1- निशा ने कैसे जीता सोमनाथ का दिल

‘‘मैं बिलाल से बेइंतहा मोहब्बत करती हूं. चाहे कुछ भी हो जाए मैं उसी से शादी करूंगी. आप मुझे कुछ भी कर के रोक नहीं सकते. मेरे जन्म से आज तक इन 21 सालों में आप ने सिर उठा कर भी मेरी ओर नहीं देखा क्योंकि मैं एक बेटी हूं. ऐसे में आप अब क्यों मेरी जिंदगी में दखल दे रहे हैं? यह मेरी जिंदगी है. अगर इस मामले में भी मैं आप की बात सुनूंगी तो मेरी पूरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकती हूं. गलत क्या है और सही क्या है, यह मैं जानती हूं. इस के अलावा मैं अब नाबालिग नहीं हूं. अपना जीवनसाथी  चुनने का अधिकार है मुझे.’’ अपने समक्ष खड़ी अपनी बेटी निशा की बातें सुन कर सोमनाथ आश्चर्यचकित रह गए.

सोमनाथ को यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने बोल रही है वह उन की बेटी निशा है. निशा ने इस घर में आए इन 2 सालों में अपने पिता के सामने कभी इतनी हिम्मत से बात नहीं की.

निशा को अपने पिता से इस तरह बात करते हुए देख कर उस की मां लक्ष्मी भी हैरान थी. उसे भी निशा के इस नए रूप को देख कर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह उस की बेटी निशा ही है. अगर एक सलवारकमीज खरीदनी होती तो भी वह अपने पापा से पूछने के लिए घबराती. अपनी मां के पास आ कर ‘मां, आप ही पापा से पूछिए और खरीद दीजिए न प्लीज, प्लीज मां’ बोलने वाली निशा आज अपने पापा के सामने अचानक शेरनी कैसे बन गई? अपने पापा के सामने इस तरह खड़े हो कर बेधड़क बातें कर रही निशा को देख कर लक्ष्मी सन्न रह गई.

उस से भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि निशा का यह कहना कि वह एक मुसलमान युवक से प्यार करती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. इस प्रस्ताव को सोमनाथ के सामने रखने के लिए भी हिम्मत चाहिए, क्योंकि सोमनाथ एक कट्टर हिंदू हैं. उन के सामने उन की बेटी कह रही है कि वह एक मुसलमान युवक से शादी करना चाहती है. लक्ष्मी ने मन में सोचा कि जो भी हो, निशा की हिम्मत की दाद देनी चाहिए.

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एक कड़वा सच यह है कि लक्ष्मी कभी अपने पति के सामने ऐसी बातें नहीं कर सकती थी. शादी हुए इन 30 सालों में लक्ष्मी ने पति के सामने कभी अपनी राय जाहिर नहीं की. उन के परिवार की प्रथा है कि औरतों को आजादी न दी जाए. उन का मानना है कि स्त्री का दर्जा हमेशा पुरुष से कम होता है.

मगर लक्ष्मी के मायके की बात अलग थी. लक्ष्मी के पिता ने उसे एक महारानी की तरह पालपोस कर बड़ा किया. उस के पिता की 3 बेटियां थीं और वे इस से बहुत खुश थे. वे अपनी लड़कियों को घर की महालक्ष्मी मानते थे और उन्हें भरपूर स्नेह व इज्जत देते. उन्हें अपनी तीनों बेटियों पर गरूर था खासकर अपनी बड़ी बेटी लक्ष्मी पर. लक्ष्मी की बातों को वे सिरआंखों पर रखते थे. लक्ष्मी की ख्वाहिश का मान करते हुए उन्होंने उसे अंगरेजी साहित्य में बीए करने की इजाजत दी.

लक्ष्मी के पिता ने अपनी बेटी की शादी के मामले में एक गलत फैसला ले लिया. सोमनाथ के परिवार के बारे में अच्छी तरह पूछताछ किए बगैर उस परिवार की शानोशौकत को देख कर अपनी बेटी की शादी सोमनाथ से करवाई. शादी के दूसरे दिन ही लक्ष्मी को ससुराल में एक झटका सा लगा. लक्ष्मी को अंगरेजी अखबार पढ़ते देख कर उस के ससुर ने उसे फटकारा, ‘इस तरह सुबह अंगरेजी अखबार पढ़ना एक बहू को शोभा देता है क्या? तुम्हारी मां ने तुम्हें यही सिखाया है क्या? मर्दों की तरह औरतों का अखबार पढ़ना अच्छे संस्कार नहीं हैं. दुनिया के बारे में जान कर तुम क्या करोगी? तुम्हारा काम है रसोई में खाना पकाना और बच्चे पैदा कर के उन का पालनपोषण करना, समझी तुम?’ ससुरजी की बातें सुन कर लक्ष्मी को ताज्जुब हुआ.

ससुराल में आए कुछ ही दिनों में लक्ष्मी को पता चल गया कि औरतों को मर्दों का गुलाम बना कर रहना ही इस घर की परंपरा है. न चाहते हुए भी लक्ष्मी ने अपनेआप को बदलने की कोशिश की.

समय आया जब लक्ष्मी अपने पहले बच्चे की मां बनने वाली थी. जब डाक्टर ने यह खबर सुनाई तो लक्ष्मी बेहद खुश हुई. उस ने खुशी से अपने पति सोमनाथ को यह समाचार सुनाया तो उन्होंने कहा, ‘‘सुनो, अगर लड़का पैदा हुआ तो उसे ले कर इस घर में आना. लड़की पैदा हुई तो उसे अपने मायके में छोड़ कर आना, समझी. खानदान को आगे बढ़ाने के लिए मुझे लड़का ही चाहिए.’’ यह सुनते ही लक्ष्मी सन्न रह गई. वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई आदमी अपनी पहली संतान के बारे में ऐसा भी सोच सकता है.

बहरहाल, लक्ष्मी ने एक लड़के को जन्म दिया और उस के बाद लक्ष्मी की इज्जत उस घर में बढ़ गई. इस का कारण यह था कि लक्ष्मी की दोनों जेठानियां अपनी पहली संतान लड़की होने केकारण उन्हें अपने मायकों में ही छोड़ कर आईर् थीं. लक्ष्मी के ससुर ने उसे एक कीमती गहना तोहफे में दिया. उस के 2 वर्षों बाद जब लक्ष्मी का दूसरा लड़का पैदा हुआ तब से सोमनाथ अपना सीना चौड़ा करते हुए घूमते थे.

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लक्ष्मी के कई बार मना करने के बावजूद उस के दोनों बेटों संदीप और सुदीप को उस के पति और ससुर ने लाड़प्यार दे कर बिगाड़ दिया. अगर लक्ष्मी बीच में बोले तो, ‘ये दोनों लड़के हैं, शेर हैं मेरे बच्चे. उन्हें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं. कुछ भी कर के जिंदगी में सफल हो जाएंगे,’ कह कर लक्ष्मी के दोनों बेटों को पूरी तरह बिगाड़ दिया सोमनाथ ने. लक्ष्मी बेबस हो कर देखती रह गई.

इतने में लक्ष्मी तीसरी बार गर्भवती हुई. सोमनाथ तो बड़े गरूर से कहता रहा, ‘यह भी बेटा ही होगा.’ सोमनाथ की इस बेवकूफी को देख कर लक्ष्मी को समझ में ही नहीं आया कि वह रोए या हंसे.

मगर इस बार लक्ष्मी के एक खूबसूरत बेटी पैदा हुई. लक्ष्मी ने अपनी नन्ही सी परी को अपने सीने से लगा लिया. जब सोमनाथ को यह खबर मिली कि लक्ष्मी ने एक लड़की को जन्म दिया है तो वे गुस्से से पागल हो गए. बच्ची को देखने के लिए भी नहीं आए और ऊपर से उन्होंने चिट्ठी लिखी कि घर वापस आते समय बेटी को मायके में छोड़ कर आना. अगर वहां भी बच्ची को पालना नहीं चाहें तो उसे किसी अनाथ आश्रम में दाखिल करवा देना.

लक्ष्मी अपनी बच्ची को अपनी छोटी बहन के हवाले कर अपने पति के घर वापस आ गई. लक्ष्मी की बहन के 2 बेटे थे, इसलिए उस ने खुशीखुशी लक्ष्मी की बेटी की परवरिश करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. लक्ष्मी की छोटी बहन ने उस प्यारी सी बच्ची का नाम निशा रखा.

लक्ष्मी के बेटे संदीप और सुदीप दोनों अव्वल नंबर के निकम्मे, बदतमीज और बदचलन बने. 10वीं कक्षा में दोनों फेल हो गए और लफंगों की तरह इधरउधर घूमने लगे. लाख कोशिशों के बावजूद लक्ष्मी अपने बेटों को अच्छे संस्कार नहीं दे पाई. संदीप और सुदीप दोनों गैरकानूनी काम कर के 2 बार जेल भी जा चुके थे.

लक्ष्मी ने अपनी बहन की चिट्ठी से यह जान लिया कि निशा पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहती है और अच्छे संस्कारों से आगे बढ़ रही है. लक्ष्मी को इतनी कठिनाइयों के बीच इसी समाचार ने खुश रखा. मगर वह खुशी बहुत दिनों तक नहीं टिकी. लक्ष्मी की छोटी बहन, जिसे कोई बीमारी नहीं थी, अचानक दिल का दौरा पड़ा और 4 दिन अस्पताल में रहने के बाद चल बसी. उस के पति ने सोचा कि एक 21 साल की लड़की को बिन मां के पालना खुद से नहीं होगा, इसलिए निशा को लक्ष्मी के पास छोड़ने का फैसला लिया. उस वक्त निशा फैशन टैक्नोलौजी का कोर्स कर रही थी और वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी.

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अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 2- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

रिनी को घर भेज कर वह आभा के पास ही रुक गया. सोचने लगा कि बैठेबैठाए यह कौन सी मुसीबत आन पड़ी? अब घरबाहर के काम कौन करेगा? आभा पर ही गुस्सा आने लगा उसे कि अगर खुद पर ध्यान देती तो यह मुसीबत न आती. अब क्या करेगा वह? घर, औफिस और अस्पताल के चक्कर में तो मर ही जाएगा.

‘‘पहले वहां जा कर पैसे जमा कर आइए,’’ जब नर्स ने कहा, तो नवल का ध्यान टूटा. लगा अब 4-6 हफ्तों का चक्कर तो लग ही गया, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि इलाज में वक्त लगेगा. सोचसोच कर नवल का माथा घूम रहा था, जो आभा से छिपा न रह सका. वह समझ रही थी कि नवल पर कैसी मुसीबत आन पड़ी. घरबाहर सब कैसे मैनेज होगा? अगर जल्दी अस्पताल से छुट्टी मिल जाए तो अच्छा है. बेचारी को अब भी नवल की ही फिक्र हो रही थी और वह मन ही मन आभा को ही कोसे जा रहा था जैसे उस ने खुद बीमारी को बुलावा दिया हो. वह बेचारी तो खुद दर्द से तड़प रही थी, लेकिन फिर भी नवल का मुंह देखे जा रही थी. अब भी उसे घर की ही चिंता लगी थी कि वहां सब कैसे होगा.

‘‘सुनिएजी, सुमन है मेरे पास, तो आप घर जाइए. वहां भी सब परेशान हो रहे होंगे. जल्द ही ठीक हो जाऊंगी. आप चिंता मत कीजिए,’’ दर्द से कहराते हुए आभा ने कहा.

मगर नवल उस की बातों पर ऐसा झल्ला उठा कि पूछो मत. मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘क्या चिंता न करूं? अगर तुम खुद का ध्यान रखती, तो आज यह दिन न आता?’’

मगर वह भूल गया कि एक वही है जो घर में सब का ध्यान रखती है. घरबाहर के कामों से ले कर सब की छोटीबड़ी जरूरतों तक की जिम्मेदारी उसी की है, तो कहां बेचारी को समय मिलता है जो अपना ध्यान रखे.

आभा के अस्पताल में रहने से हफ्तेभर में ही घर की हालत बिगड़ने लगी. इधर नवल औफिस और अस्पताल के चक्कर में पिस रहा था और उधर रिनी और निर्मला घर के कामों को ले कर उलझ पड़तीं. सोनू भी अपनी मनमानी करने लगा था. आभा थी तो डांटडपट कर उसे पढ़ने बैठा दिया करती थी, लेकिन उस के न रहने से वह एकदम लापरवाह हो गया था. दिनभर दोस्तों के साथ घूमताफिरता. जब पूछो, तो सोनू घर पर नहीं है, सुनने को मिलता और नवल का माथा गरम हो जाता. लेकिन किसेकिसे देखे वह?

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तभी सुमन आ कर बोली कि उस का पति 14 दिनों के लिए औफिस के काम से बाहर जा रहा है, तो आज रात से वह आभा के पास रुक जाया करेगी. सुन कर नवल ने राहत की सांस ली, क्योंकि वह कई दिनों से ठीक से सो भी नहीं पा रहा था. लगा, जिस सुमन को वह चुगलखोर औरत कह कर संबोधित करता रहा, जिसे देखते ही उसे चिढ़ होने लगती थी आज वही सुमन उस के काम आ रही है. एक वही थी जो आभा के पास जा कर बैठती थी, जब नवल औफिस में होता तब.

आभा के लिए सुबह का चायनाश्ता, दोपहर का खाना ज्यादातर वही तो बना कर ले जाती थी. अपनी करनी पर पछतावा कर मन ही मन वह सुमन का शुक्रगुजार होने लगा. नवल को अब आभा की चिंता सताने लगी थी, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि अगर हैपेटाइटिस बीमारी लंबे समय तक रहे तो लिवर काम करना बंद कर सकता है या फिर कैंसर अथवा घाव हो सकते हैं. कहीं आभा को ऐसा कुछ हो गया तो बिस्तर पर पड़ेपड़े ही वह सोचने लगा. चिंता के मारे उसे नींद नहीं आ रही थी.

नवल जैसे ही अस्पताल पहुंचा तो आभा का मृत शरीर बैड पर पड़ा दिखा.

दोनों बच्चे बिलख रहे थे. निर्मला भी एक कोने में दुबकी यह कहकह कर सिसक रही थीं कि उस के मरने की उम्र न थी. फिर आभा क्यों चली गई? उधर सुमन उसे धिक्कार रही थी कि वही आभा की मौत का जिम्मेदार है. उसी ने उस की जान ली. कहती रही तबीयत ठीक नहीं है दिखा दो डाक्टर को पर नहीं दिखाया. लो देखो मर गई न… मौज करो अब. तभी अचानक हवा का झोंका आया और खिड़की का पल्ला धड़ाम से बंद हुआ तो नवल घबरा कर उठ बैठा. देखा, वहां कोई न था सिवा उस के.

‘उफ, तो यह सपना था?’ अपने दिल पर हाथ रख नवल ने एक गहरी सांस ली और फिर आभा की याद सताने लगी. मन हुआ फोन कर ले, पर लगा नहीं, अस्पताल है. लेकिन आभा को ले कर उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. ऐसा ही होता है, मुसीबत के वक्त नकारात्मक बातें दिमाग पर ज्यादा हावी हो जाती है. चाह कर भी इंसान अच्छी बातें सोच नहीं पाता. घबराहट के मारे वह पसीने से तरबतर हो गया. प्यास के मारे गला भी सूखने लगा. देखा, तो जग खाली पड़ा था. आभा थी तो रोज पानी भर कर रख दिया करती थी.

जैसे ही नवल पानी लेने किचन की तरफ जाने लगा, देखा, रिनी के कमरे की लाइट औन है. लगा भूल गई होगी, लेकिन जब कमरे से फुसफुसाने की आवाज आई, तो वह उस ओर बढ़ गया.

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वह फोन पर किसी से कह रही थी, ‘‘अरे, समझो, पापा घर पर ही हैं तो कैसे आऊं?’’

उधर से फिर उस ने कुछ बोला, तो रिनी कहने लगी, ‘‘कहा न नहीं आ सकती, अब फोन रखो कोई सुन लेगा… हांहां कल देखती हूं.’’

‘‘रिनी…’’ नवल जोर से चीखा. उस के हाथ से फोन खींच कर अभी कुछ बोलता कि तभी उधर से उस ने फोन काट दिया. दोबारा

फोन मिलाया, पर स्विच औफ आने लगा. जाहिर सी बात थी उस ने अपना फोन स्विचऔफ कर दिया था. लेकिन इतना तो पता चल गया नवल को कि रिनी किसी लड़के से बात कर रही थी. गुस्से से पापा को लाल होते देख रिनी डर के मारे थरथराने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी? कौन था यह लड़का?’’ नवल ने गुस्से में पूछा.

‘‘क… क कौन लड़का… कोई तो नहीं पापा,’’ रिनी साफ झूठ बोल गई.

‘‘चुप, झूठ मत बोल… अभी मैं ने सुना तुम किसी लड़के से मिलने की बात कर रही थी, पर पापा घर पर हैं इसलिए नहीं आ सकती… यही कहा न तुम ने उस लड़के से? बोलो कौन है वह?’’ नवल चीखते हुए बोला.

‘‘कोई तो न था पापा,’’ रिनी बोली.

नवल ने एक जोर का चांटा रिनी के मुंह पर मारते हुए कहा, ‘‘खबरदार जो आज के बाद बिना मेरे पूछे घर से बाहर कदम भी निकाला.’’

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Pregnancy रोकने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

सवाल

मैं 24 साल की हूं. मेरे विवाह को 2 महीने हुए हैं. प्रैगनैंसी से बचे रहने के लिए कौपर टी, कंडोम और डायाफ्राम में से कौन सा गर्भनिरोधक मेरे लिए सब से अच्छा रहेगा और ये गर्भनिरोधक कितनेकितने साल तक प्रैगनैंसी रोकने के लिए अपनाए जा सकते हैं, कृपया विस्तार से जानकारी दें?

जवाब-

प्रत्येक गर्भनिरोधक विधि के अपने लाभ और अपनी सीमाएं हैं, जिन के बारे में पूरी जानकारी पा कर आप सही फैसला ले सकती हैं. कौपर टी उन स्त्रियों के लिए उपयुक्त गर्भनिरोधक है, जो कम से कम 1 बार संतान धारण कर चुकी होती हैं. नवविवाहिताओं के लिए कौपर टी ठीक नहीं, क्योंकि इसे लगाने पर पैल्विस में सूजन होने का डर रहता है और आगे चल कर प्रैगनैंट होने में भी परेशानी हो सकती है. इस का इस्तेमाल 2 बच्चों के बीच फासला रखने के लिए ही किया जाना चाहिए.

नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी स्त्रियां, जिन्हें पहले से पैल्विस का इन्फैक्शन हो, मासिकस्राव ज्यादा या अनियमित हो, पेड़ू में दर्द रहता हो, गर्भाशय की रसौली हो, गर्भाशयग्रीवा की सूजन हो, ऐनीमिया हो या पहले कभी ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी हुई हो, उन के लिए भी कौपर टी का इस्तेमाल ठीक नहीं. कंडोम गर्भनिरोध का आसान और सुलभ तरीका है. इस के इस्तेमाल से पहले डाक्टर की सलाह लेना भी जरूरी नहीं. इस के कामयाब बने रहने के लिए सिर्फ इस का सही इस्तेमाल आना जरूरी है. असावधानी बरतने पर सैक्स के दौरान कंडोम के फिसल जाने या फट जाने पर परेशानी खड़ी हो सकती है. डायाफ्राम के साथ भी कंडोम जैसी ही समस्याएं हैं और इस का फेल्यर रेट भी काफी है.

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नवविवाहिताओं के लिए सुरक्षा का एक और अच्छा उपाय ओरल कौंट्रासैप्टिक पिल्स हैं. इन्हें लेने से कामसुख में किसी तरह का विघ्न नहीं पड़ता और पूरीपूरी सुरक्षा भी मिलती है. लेकिन इन्हें शुरू करने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. यदि डाक्टर इजाजत दे, तो इन्हें लगातार 3 साल तक ले सकती हैं. रोज 1 गोली लेनी होती है. प्रैगनैंसी का मन बने तो गोली लेना बंद करने के 1 से 3 महीनों के बाद दोबारा प्रजनन क्षमता पहले जैसी हो जाती है और प्रैगनैंसी में कोई दिक्कत नहीं आती.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

नए रिश्ते: भाग 1- क्या हुआ था रानो के साथ

लेखिका- शशि जैन

रानो घर में दौड़ती हुई घुसी. बस्ता एक तरफ पटक कर वह सरला से लिपट गई. ‘‘दादी बूआ, दादी बूआ, आज हमें मम्मी मिली थीं. हमें मम्मी मिली थीं, दादी बूआ.’’

रानो बड़े उत्तेजित स्वर में बताती जा रही थी कि मम्मी ने उसे क्याक्या खिलाया, क्याक्या कहा.

सरला उस की बातें सुनती रही, उस के सिर और शरीर को सहलाती रही. न रानो के स्वर की उत्तेजना कम हुई थी और न ही सरला के शरीर पर उस के नन्हे हाथों की पकड़ ढीली पड़ी थी. वह अपनी समस्त शक्ति से दादी बूआ के शरीर से चिपटी रही जैसे वही एकमात्र उस का सहारा थी. कुछ ही देर में रानो की उत्तेजना आंसू बन कर टपकने लगी.

‘‘मम्मी घर क्यों नहीं आतीं, दादी बूआ? वे दूसरे घर में क्यों रहती हैं? सब की मम्मी घर में रहती हैं, मेरी मम्मी क्यों नहीं रहतीं? मैं भी यहां नहीं रहूंगी, मैं भी मम्मी के पास जाऊंगी, दादी बूआ.’’

रानो का रोना बढ़ता ही जा रहा था. सरला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे चुप कराए. वह उसे चिपटाए हुए उस का शरीर सहलाती रही. रानो की व्यथा उस की स्वयं की व्यथा बनती जा रही थी. उस की आंखें रहरह कर भरी आ रही थीं. रानो की मम्मी घर पर क्यों नहीं रहतीं, यह क्या वह स्वयं ही समझ सकी थी?

जब वह बूढ़ी होने पर यह बात नहीं जान पाई थी कि रानो की मम्मी उस के साथ क्यों नहीं रहती तो बेचारी रानो ही कैसे समझ सकती थी. वह और रानो तो अल्पबुद्धि थे, यह सब नहीं समझ सकते थे, परंतु प्रदीप तो अपने को बड़ा बुद्धिमान समझता था. क्या उस के पास ही इस बात का कोई उत्तर था और नंदा ही क्या इस का उत्तर जानती थी? वे दोनों समझते हैं कि वे जानते हैं, पर शायद वे भी नहीं जानते कि वे दोनों मिल कर क्यों नहीं रह सके.

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वह रानो को कस कर छाती में दबाए रही, जैसे इसी से वह उसे दुनिया के सारे दुखों से बचा लेगी. उस के हाथों के नीचे नन्हा सा शरीर सुबकता हुआ हिचकोले ले रहा था. वह मन ही मन अपना सारा स्नेह और ममता रानो पर उड़ेल रही थी. धीरेधीरे रानो शांत होने लगी और कुछ ही देर में वह बचपन की शांत गहरी नींद में खो गई. उस का आंसुओं की लकीरों से भरा मासूम चेहरा वेदना की साकार मूर्ति लग रहा था.

जिस नन्ही सी कोमल कली को मां की छाया में पलना चाहिए था, उसे मांविहीना कर के कड़ी धूप में झुलसने को छोड़ दिया गया था.

सरला किचन की टेबल पर सब्जी काटने लगी. मन बहुत सी उलझी हुई गुत्थियों में उलझने लगा.

सत्य क्या है, कौन जान सकता है? वह जीवन में बहुत सी कमियों को झेलती रही थी. उस ने विवाह नहीं किया था. एक छोटी नौकरी के चक्कर में कितने ही लड़कों को न कर दिया था. बाद में मातापिता की मृत्यु के बाद वह इन अभावों को सहती हुई अकेली जीवन व्यतीत करती रही थी. परंतु नंदा को तो सबकुछ मिला था – एक स्वस्थ, सुंदर पति तथा फूल सी प्यारी बिटिया. उस ने किस तरह, कैसे उन्हें हाथ से निकल जाने दिया, क्या उस के लिए पति तथा पुत्री का कोई महत्त्व नहीं था? कुछ तो होगा बहुत ही बड़ा, बहुत ही महत्त्वपूर्ण, जो इन अभावों की पूर्ति कर सका होगा.

वह तो अपने पतिविहीन तथा संतानहीन जीवन को एक यातना समझ कर जी रही थी, परंतु नंदा के लिए इन दोनों का होना ही शायद यातना बन गया था, तभी वह अपने खून और जिगर के टुकड़े को छोड़ कर जा सकी थी. अन्य दिनों की तरह वह आज भी इस प्रश्न को टटोलती रही, पर कोई उत्तर न पा सकी.

प्रदीप आ गया था.

‘‘रानो कहां है, बूआ? दिखाई नहीं दे रही, क्या बाहर खेलने गई है?’’

‘‘सो रही है.’’

‘‘इस समय? तबीयत तो ठीक है?’’ प्रदीप चिंतातुर हो उठा.

‘‘तबीयत तो ठीक है पर उस का मन ठीक नहीं है,’’ बूआ की बात सुन कर प्रदीप प्रश्नचिह्न बना उसे देखता रहा.

‘‘आज उसे उस की मम्मी मिली थी.’’

‘‘क्या नंदा यहां आई थी?’’

‘‘नहीं. वह स्कूल के बाद उसे मिली थी. रानो लौटी तो बेहद उत्तेजित थी. घर आ कर मम्मी को याद करती रोतेरोते सो गई.’’

‘‘कैसी नादानी है नंदा की. बच्ची से मिल कर उसे इस तरह हिला देने का क्या मतलब है? यह तय हो चुका है कि बिना मेरी अनुमति के वह रानो से मिलने की चेष्टा नहीं करेगी. उस ने ऐसा क्यों किया?’’ क्रोध के मारे प्रदीप की कनपटी की नसें फड़क रही थीं.

सरला चुपचाप बैठी सब्जी काटती रही. वह क्या उत्तर दे इन प्रश्नों का. या तो वह पागल है या ये लोग, प्रदीप और नंदा, जो प्राकृतिक सत्य को झुठला कर कोई दूसरा सत्य स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं. मां अपनी कोखजायी बेटी से बिना अनुमति नहीं मिल सकती? यह कैसा और कहां का नियम है? क्या खून के रिश्तों को कानून के दायरे से घेरा जा सकता है?

प्रदीप दनदनाता हुआ बाहर जाने लगा.

बूआ ने रोका, ‘‘प्रदीप, कहां जा रहा है? चाय तो पी ले, सुबह का भूखाप्यासा है.’’

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‘‘नहीं, बूआ, भूख नहीं है. जरा काम से जा रहा हूं.’’

‘‘मुझे पता है तू कहां जा रहा है. क्रोध कर के मत जा, प्रदीप. सब संबंध तोड़ देने के बाद तुझे क्रोध करने का हक भी कहां रह गया है?’’

‘‘नहीं बूआ, अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा. वह एकदो बार पहले भी ऐसा कर चुकी है. खुशी से रह रही रानो से मिल कर वह उसे कितने दिनों के लिए तोड़ जाती है, रानो अपनी जिंदगी से दूर जा कर अलग हो जाती है. रानो के दिमाग पर इस का कितना गहरा और स्थायी असर पड़ सकता है. मैं ऐसा नहीं होने दे सकता.’’

सरला बड़ी अनमनी सी हो उठी.

‘‘तुम लोग पढ़ेलिखे हो और होशियार, पर मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि रानो की जिंदगी आज नहीं, तुम और नंदा दोनों मिल कर बहुत पहले ही तोड़ चुके हो. जिस पौधे को कुशल माली की देखरेख में यत्नपूर्वक सुरक्षित रख कर पाला जाना चाहिए था उसे तो तुम झंझावात में अकेला छोड़ चुके हो. मां से मिलने पर कुछ नया घटित नहीं होता, केवल उस के अंदर दबाढंका विद्रोह ही उभरता है. बच्चा चाहे कुछ और न समझे, पर मां से गहरे लगाव की बात उसे समझनी नहीं पड़ती. इस बेचारी की तो मां है, यह कैसे भूल सकती है? तेरी मां तो तुझे 10-12 साल का छोड़ कर इस लोक से चली गई थी, क्या तुझे कभी उस की याद नहीं आई?’’

आगे पढें- सरला चुप हो गई. बहस…

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