लेखिका- रेनू मंडल
फ्स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में आप की राय ही मानी जाएगी. मातापिता बच्चों से अधिक अनुभवी और समझदार होते हैं. उन का निर्णय गलत नहीं होता है, स्वाति ने विनम्रता से उत्तर दिया. मम्मी और मनीष कुछ आश्चर्यचकित हो कर स्वाति की ओर देखने लगे. शाम को वे चारों लड़का देखने चले गए थे.
अगले दिन रात में पायल स्वाति से कहानी सुनाने की जिद कर रही थी. स्वाति उस से बोली, फ्बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनते हैं. मैं छोटी थी, तब मुझे भी मेरी दादी अच्छीअच्छी कहानियां सुनाती थीं.
फ्मैं भी दादीमां के पास जाऊं? पायल उठ कर खडी़ हो गई.
फ्हां जाओ, स्वाति ने कहा.
पायल दादी के पास जा कर बोली, फ्दादीमां, आप मुझे कहानी सुनाओ.
दादी उस समय सोने की तैयारी कर रही थीं, अतः बेरुखी से बोलीं, फ्अपनी मम्मी से सुनो कहानी.
फ्मैं तो आप से सुनूंगी. मम्मी कहती हैं, आप को बहुत सी कहानियां आती हैं, पायल मचल कर बोली.
फ्मुझे नहीं आती कोई कहानी. जाओ जा कर अपने कमरे में सो जाओ, दादी की डांट सुन कर पायल रोते हुए कमरे में आ गई और बिना दूध पिए सो गई.
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अगली रात को स्वाति ने बहलाफुसला कर पायल को फिर से दादी के पास कहानी सुनने भेज दिया, कितु अंजाम फिर वही हुआ. उस दिन भी वह रोते हुए भूखी सो गई. सुबह उसे हलका सा बुखार था. मनीष आफिस जाते हुए मम्मी से बोला, फ्मम्मी, पायल को यदि आप कहानी सुना देतीं, तो कुछ बिगड़ नहीं जाता. पिछले 2 दिनों से वह बिना दूध पिए सो रही है, मेरे बच्चों से तुम्हें जरा भी लगाव नहीं है.
मनीष की बात सुन कर वह चौंक पडीं़. आज पहली बार उन्हें बेटे ने किसी बात के लिए टोका था. वह नहीं चाहती थीं, यह बात पुनः दोहराई जाए. इसलिए रात होने पर उन्होंने स्वयं पायल को बुला कर अपने पास लिटा लिया और कहानी सुनाने लगीं.
पायल की भोलीभाली बातों से धीरेधीेरे मम्मी की सोई हुई ममता जगने लगी. अब वह अकसर पायल को अपने पास सुला लेती थीं. धीरेधीरे वह उन से खूब हिलमिल गई.घ्आखिर एक दिन मम्मी ने कह ही दिया कि अब पायल बडी़ हो रही है. अब से वह उन्हीं के पास सोया करेगी.
बच्चों के करीब आने के कारण धीरेधीरे घर का माहौल बदल रहा था. मम्मी और स्वाति के बीच की दूरी कम हो रही थी. अब वह उस के साथ पहले की तरह कठोरता से पेश नहीं आती थीं. स्वाति को अब पछतावा हो रहा था कि जो प्रयास उस ने भैया के कहने पर इतने सालों बाद किया था, उसे पहले करना चाहिए था. यदि मम्मी ने उसे अपने निकट नहीं बुलाया था, तो उस ने भी कभी उन के पास जाने का प्रयत्न नहीं किया था. दोनों ही शायद अपनेअपने अहं के दायरे में कैद थे.
अकसर मनीष स्वाति के इस बदलाव पर आश्चर्य व्यक्त करता. इस पर स्वाति हंस पड़ती और मन ही मन भैया के प्रति श्रúा से भर उठती, जिन्होंने अपनी सूझबूझ से उस के बिखरते घर को बचा लिया था.
इस के बाद मम्मी का पथरी का आपरेशन हुआ. सप्ताह भर तक स्वाति अस्पताल और घर के बीच दौड़ती रही. मम्मी की सेवा में उस ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी. एक सप्ताह बाद जब मम्मी घर वापस आईं तो अगले दिन शाम के समय मनीष के एक मित्र परिवार सहित उन्हें देखने आए. बातों के दौरान मम्मी ने बताया कि वह और मनीष के पापा अपने बडे़ बेटे केघ्पास कानपुर जाने की सोच रहे हैं. यह सुन कर स्वाति और मनीष दोनों चौंक उठे. मेहमानों के जाने के बाद स्वाति उदास स्वर में बोली, फ्ऐसा लगता है मम्मी, आप की सेवा करने में मुझ से जरूर कोई कमी रह गई, तभी तो आप यहां से जाने की सोच रही हैं.
फ्नहीं स्वाति, ऐसी बात नहीं है. जितनी सेवा तुम ने मेरी की है, मेरी बेटी होती तो शायद वह भी नहीं करती, मम्मी स्नेह भरे स्वर में बोलीं.
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फ्तब फिर आप ने कैसे सोच लिया कि हम आप को जाने देंगे. सनी और पायल क्या आप के बगैर रह सकेंगे? कहते हुए स्वाति अंदर चली गई.
डैडी और मम्मी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, फ्स्वाति, हम चाहते हैं कि यह मकान तुम्हारे नाम कर दें. साथ ही 50-50 हजार रुपए पायल और सनी के नाम जमा कर दें.
स्वाति आश्चर्यचकित हो कर बोली, फ्यह सब क्यों मम्मी, आज आप लोग मुझ से कैसी बातें कर रहे हैं.
फ्देखो बेटे, जिदगी का कोई भरोसा नहीं. हमारे बाद भी सबकुछ तुम्हीं लोगों का है, इसलिए अपने सामने थोडा़थोडा़ तीनों बेटों के नाम कर दें तो अच्छा है, डैडी बोले.
फ्नहीं डैडी, मुझे आप लोगों का मकान और पैसा नहीं चाहिए. अपना प्यार दे कर आप लोगों ने मुझे सबकुछ दे दिया है. इस के बाद और किसी दौलत की मुझे जरूरत नहीं, कहते हुए स्वाति कमरे से बाहर आ गई. बाहर आते हुए उस ने सुना, डैडी मम्मी से कह रहे थे, फ्तुम ने व्यर्थ ही कठोरता का आवरण ओढ़ कर इतनी अच्छी लड़की को स्वयं से दूर कर रखा था.
फ्इस बात का पछतावा तो मुझे भी है, यह मम्मी की आवाज थी. स्वाति की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए और वह वहां से हट गई.
अगले सप्ताह अचानक श्रीकांत बडौ़दा आ गए. भैया को देख स्वाति अचंभित हो उठी. उसे तो पता ही नहीं चला था कि भैया को गए 6 माह व्यतीत हो चुके हैं. गृहस्थी का सुख पाने में उस ने जिस आस्था का परिचय दिया था, उस में तो वैसे भी समय का पता नहीं चलना था. कमरे में अटैची रखते हुए श्रीकांत ने हंसते हुए कहा, फ्वादे के मुताबिक ठीक 6 माह बाद तुम्हें लेने आया हूं, बताओ चलोगी?
स्वाति ने सजल आंखों से मुसकराते हुए भाई की ओर देखा ओर कहा, फ्आप की दी हुई शिक्षा की वजह से प्रबलतम अंधकार के बाद भोर की एक नई किरण मेरे आंगन में दिखाई दी है, अब इस के प्रकाश को छोड़ कर कहां जाऊं?
श्रीकांत के चेहरे पर संतोष की आभा छा गई और उन्होंने स्वाति को प्यार से गले लगा लिया.