Short Story : जलन

Short Story : प्रिया बहुत खुश थी. उस ने कंफर्म कर लिया था कि वह मां बनने वाली है. इस खुशी के समाचार को अपने पति और घरवालों के साथ शेयर करने के बाद सब से पहले उस ने अपनी पक्की सहेली नेहा को फोन लगाया. नेहा और प्रिया बचपन से अपनी सारी खुशियां एकदूसरे से बांटती आई थीं. आज भी नेहा से बात कर वह इस खुशी को शेयर करना चाहती थी.

प्रिया ने फोन कर के नेहा को बताया, “यार नेहा, तू मौसी बनने वाली है.”

“मौसी?” अनजान बनते हुए नेहा ने पूछा.

“हां मौसी. अरे पगली, मैं मां बनने वाली हूं,” प्रिया ने उत्साहित स्वर में कहा.

मगर अपेक्षा के विपरीत नेहा ने बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया, “ओ रियली, ग्रेट यार. मगर तेरी शादी को तो अभी चारपांच महीने भी नहीं हुए और तू …? ”

“हां यार, शायद फर्स्ट अटैम्प्ट में ही…,” कहते हुए वह शरमा गई.

“अच्छा है, तुझे मेरी तरह इंतजार नहीं करना पड़ेगा. मैं तो पिछले 4 साल से इंतजार में थी कि कब तुझे यह खुशखबरी सुनाऊं पर तू ने बाजी मार ली. वेरी गुड यार. अच्छा सुन, मैं बाद में फोन करती हूं तुझे. अभी जाना पड़ेगा. सासुमां बुला रही है,” बहाना बना कर नेहा ने फोन काट दिया.

नेहा के व्यवहार से प्रिया थोड़ी अचंभित हुई. फिर अपने मन को समझाया कि वाकई कोई जरूरी काम आ गया होगा, बाद में बात कर लेगी.

सहेली के बाद प्रिया ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया. अपनी बहन के साथ भी प्रिया बहुत अटैच्ड थी. मगर बहन ने भी बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया. उलटा, वह तो उसे डांटने ही लगी, “इतनी जल्दी करने की क्या जरूरत थी? अभी शादी को दिन ही कितने हुए हैं? थोड़ी जिंदगी जी कर तो देखती, घूमतीफिरती, ससुराल में ठीक से एडजस्ट हो जाती, वहां के तौरतरीके सीखती, तब जा कर बेबी प्लान करना था. मुझे देख, 3 साल हो गए, फिर भी बेबी नहीं किया. थोड़ी प्लानिंग से चलना पड़ता है और एक तू है कि अकल ही नहीं तुझे.”

“पर दीदी, बेबी तो जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है न. और फिर, जहां तक बात ससुराल में एडजस्ट करने की है, तो वह तो ऐसे भी प्रैग्नैंसी के इन महीनों में सब सीख ही जाऊंगी. वैसे भी सासुमां बहुत प्यार करती हैं. मुझे जो भी समझ नहीं आता, उन से पूछ लेती हूं.”

“मैं तो तेरे भले के लिए ही समझा रही थी पर बात तुझे समझ आती नहीं. अच्छा चल, मैं रखती हूं फोन. अब अपना ज्यादा ख़याल रखना होगा तुझे. अभी खुद को संभालना तो आया नहीं था, अब बच्चे की जिम्मेदारी और सिर पर ले ली,” कह कर बहन ने फोन काट दिया.

न कोई बधाई, न शुभकामना. बस, उलाहने मारना. बहन का यह रवैया महसूस कर वह बहुत देर तक गुमसुम बैठी रही. इस बातचीत के बाद तो उसे ऐसा लगने लगा था जैसे उस ने वाकई कोई गलती कर दी हो.

तब तक दूध का गिलास लिए सास कमरे में दाखिल हुईं और प्यार से बोलीं, “चल बहू, दूध पी ले. हमारा वारिस आने वाला है. उस का खयाल रख,” कह कर मुसकराती हुई वे चली गईं.

कुछ देर तक प्रिया दूध के गिलास की तरफ एकटक देखती रही. उस के दिमाग में बहन की बातें घूम रही थीं. तभी भाभी का फोन आ गया.

“बधाई हो प्रिया, मम्मीजी का फोन आया था. वे कह रही थीं कि तुम मां बनने वाली हो.”

“जी दीदी.”

“चल अच्छा है. मैं अब तक यह खुशी नहीं दे सकी. अब तू ही दे ले,” उदास स्वर में भाभी ने कहा.

प्रिया जल्दी से बोली, “दीदी, उदास क्यों होती हो? आप का ही बच्चा है यह भी.”

“अरे नहीं प्रिया, अपना तो अपना ही होता है. और फिर, मैं बड़ी बहू हूं. शादी के 4 साल होने वाले हैं. सब इस खुशी की बाट जोहते रह गए. पर मैं उन की यह इच्छा पूरी नहीं कर सकी. बच्चे के लिए कहांकहां नहीं गई. मंदिरों में जा कर मत्था टेका, बाबाओं के चरण पकड़े, मगर नतीजा कुछ भी नहीं निकला.”

भाभी की आवाज से ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी रो देंगी. प्रिया कुछ कह नहीं पा रही थी. उस की खुशी किसी के दुख का कारण बन गई थी.

वह भाभी को सांत्वना देने लगी, “भाभी, आप दिल छोटा न करो. अभी समय ही कितना हुआ है? 4 साल कोई लंबा वक्त नहीं होता. आप बहुत जल्द मां बनोगी.”

” यह सब मन बहलाने की बातें होती हैं प्रिया. अच्छा चल, मैं फोन रखती हूं.”

प्रिया फोन की तरफ देखती हुई कुछ देर तक सोचती रही. उस के चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी की रेखाएं घनीभूत हो गईं.

प्रिया की प्रैग्नैंसी का 8वां महीना चढ़ चुका था. इतने दिनों में भाभी, बहन या सहेली ने उसे बहुत कम फोन किया. कोई मिलने भी नहीं आई. कोविड का बहाना बना दिया. प्रिया फोन करती, तो तीनों का रिऐक्शन अलग होता. बहन उलाहने के रूप में बातें सुना देती. सहेली काम का बहाना बना कर जल्दी से फोन काट देती और भाभी अपना ही रोना ले कर बैठ जातीं. न तो किसी ने उस से मां बनने के पहलेपहले एहसास के बारे में पूछा और न ही उसे क्या खाना चाहिए या क्या करना चाहिए, इस पर ढंग से डिस्कशन किया या टिप्स दिए.

वह बहन या सहेली से कोई सवाल पूछती, तो वे सपाट सा जवाब दे देती, “मुझे क्या पता, मैं ने कौन से कई बच्चे पैदा कर लिए. डाक्टर से पूछ ले.”

प्रिया की इच्छा होती कि वह बच्चे के सुनहरे, प्यारे सपने उन के साथ शेयर करे. पर कुछ सोच कर ठहर जाती. प्रैग्नैंट होने की उस की खुशियां भी आधीअधूरी सी रह गई थीं.

उस दिन सुबहसुबह वह बालकनी पर खड़ी थी कि तभी उस के घर के आगे एक कैब आ कर रुकी. कैब में से मां को निकलता देख वह ख़ुशी से चीख पड़ी. मां के गले लग कर देर तक रोती रही.

मां ने उसे चुप कराते हुए पूछा, “इतने खुशी के पलों में रो क्यों रही है पगली?”

प्रिया कुछ कह नहीं सकी. उस के अंदर जो तकलीफ थी उसे कैसे बयां करती.

अगले 20- 25 दिन मां का साथ पा कर वह काफी खुश रही और फिर वह दिन भी आ गया जब डिलीवरी की मर्मांतक पीड़ा सहने के बाद नर्स ने उस की बांहों में उस का अंश थमाया. उस पल वह अपना सारा दर्द भूल गई थी. उस के हाथों में नन्हामुन्ना राजकुमार खिलखिला रहा था, किलकारियां मार रहा था. बेटे को गोद में उठाए जब उस ने अपने घर में प्रवेश किया तो उसे लगा जैसे सारा जहां उस की बांहों में सिमट आया हो.

बच्चे को देखने के लिए सब से पहले उस की बहन आई. मां के आगे बहन ने पहले की तरह कोई कड़वे वचन नहीं कहे. बस, देर तक बेबी को हाथों में लिए देखती रही. फिर मुसकरा कर बोली, “बिलकुल मुझ पर गया है.”

उस की बात सुन कर घर में सब हंसने लगे. प्रिया को भी यह बात बहुत प्यारी लगी. बहन ज्यादा देर तक रुकी नहीं. सुबह आई और शाम को निकल गई. करीब 10 दिन बच्चे और प्रिया की देखभाल कर मां भी अपने घर चली गई. इस बीच प्रिया की भाभी भी आ कर बच्चे को आशीर्वाद दे गई.

मां के जाने के बाद सासुमां उस का और बच्चे का पूरा खयाल रखने लगी. प्रैग्नैंसी और डिलीवरी के बाद वह काफी कमजोरी महसूस कर रही थी. उसे इस बात का भी दुख था कि उस की प्यारी सहेली बच्चे को देखने नहीं आई थी. उस ने तबीयत सही न होने का बहाना बना दिया था. वीडियो कौल पर ही उस ने बेबी को देख लिया था.

प्रिया का अकसर दिल करता कि बच्चे की प्यारीप्यारी हरकतों को अपनी सहेली या बहन से शेयर करे. उस के मन में ढेर सारी बातें थीं जिन्हें वह उन से डिस्कस करना चाहती थी. मगर उन की उदासीनता महसूस कर वह खामोश रह जाती. एक दिन हालचाल जानने के लिए प्रिया ने सहेली को फोन किया. थोड़ी देर दोनों के बीच नौर्मल बातचीत होती रही.

फिर जैसे ही उस ने बच्चे की बातें बतानी शुरू कीं, नेहा ने तुरंत बहाना बनाया, “यार, बहुत सिरदर्द हो रहा है मुझे. बाद में करती हूं तुझ से बात.”

इस एक छोटे से वाक्य ने प्रिया के दिल की उमंग और खुशियों पर फिर से पानी उड़ेल दिया. वह सोचने लगी कि यदि नेहा को अब तक बेबी नहीं हुआ तो भला इस में उस की क्या गलती है? वह क्यों अपनी खुशियों को एंजौय नहीं कर पा रही है? सच कहते हैं कि खुशियां तभी बढ़ती हैं जब उन्हें बांटा जाए, पर वह क्या करे जब कोई उस की खुशियों को बांटना ही नहीं चाहता. बहन भी तो अकसर ऐसे ही उस का दिल तोड़ देती है.

अभी 2 दिन पहले की बात थी. उस दिन प्रिया ने फोन कर के अपनी बहन को बताया था, “दीदी, पता है, आज मुझे मुन्ने ने पहली दफा मां कह कर पुकारा. बहुत खुश हूं मैं.”

“मां शब्द का मतलब समझती हो? मां सुन कर खुश होने के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियों के लिए भी तैयार होना पड़ता है. एक मां को बहुत सारे पापड़ बेलने पड़ते हैं, तब जा कर बच्चा बड़ा होता है. चल रखती हूं फोन.”

बहन का रिऐक्शन देख कर उस का सारा जोश ठंडा पड़ गया था. प्रिया की बहन वैसे तो पहले भी उस पर रोब झाड़ती थी मगर कभीकभी और साथ में बहनों के बीच मीठी चुहलबाजियां भी होती थीं. मगर जब से बच्चा हुआ था, प्रिया को लगने लगा था कि बहन उस से हमेशा तेवर में ही बात करती है. ऐसा जताती है जैसे उस ने बहुत बड़ी गलती कर दी हो. प्रिया समझती है कि साइकोलौजिकली बहन के दिल में बच्चा न होने की वजह से तकलीफ है और इसी तकलीफ को वह इस तरह प्रकट करती रहती है. मगर बहन इस बात को नहीं समझती थी कि ऐसे व्यवहार से प्रिया पर क्या गुजरती होगी.

धीरेधीरे बच्चा एक साल का हो गया. प्रिया के मन की कसक नहीं गई. उस की सब से प्यारी सहेली, सगी बहन और भाभी, तीनों ने एक बार मिलने आ कर, फिर न अपनी तरफ से कौल किया और न ही दोबारा मिलने आई थीं. आने की बात कहने पर बड़ी सहजता से तीनों कोविड-19 मुद्दा बना देतीं जबकि ऐसा नहीं था कि वे दूसरों के घर जाती नहीं थीं.

जब प्रिया का मन नहीं लगता था तो वह फोन लगा लेती थी. मगर उन का रिस्पौंस इतना ठंडा होता कि वह अंदर से टूट जाती. धीरेधीरे प्रिया ने भी उन्हें फोन करना छोड़ दिया.

कई दफा उसे ऐसा महसूस होता जैसे अपनों को ही उस की खुशी से जलन हो गई हो और वह इस जलन का उपचार भी नहीं जानती थी. न चाहते हुए भी इस का असर प्रिया के मन पर पड़ता जा रहा था और वह अकसर दुखी रहने लगी थी. पति और सास सवाल करते, तो वह सहज होने का नाटक करती और मुसकरा कर कहती कि ऐसी कोई बात नहीं. वह तो बहुत खुश है. वह ऊपर से मुसकरा रही होती मगर उस के दिल के अंदर गम का सागर लहरा रहा होता. अंदर ही अंदर यह गम उसे तकलीफ दे रहा था.

फिर एक दिन सुबहसुबह उस की बड़ी बहन की कौल आई. वह बहुत खुश थी, चहकती हुई बोली, “जानती है प्रिया, तू भी मौसी बनने वाली है. आज मुझे लग रहा है जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूं. यह एहसास कितना खूबसूरत है, मैं बता नहीं सकती.”

“दीदी, मैं बहुत खुश हूं आप के लिए. कौंग्रैट्स,” प्रिया ने खुश हो कर कहा.

इस के बाद तो सुबहशाम हर रोज बहन का फोन आता. वह उस से अपनी खुशियां शेयर करती. धीरेधीरे प्रिया, जिसे अपनी खुशियां खुद तक सीमित रखना पड़ा था, भी खुलने लगी. उसे भी बहन के रूप में एक साथी मिल गया जिस से वह अपनी खुशियां शेयर कर सकती थी. दोनों एकदूसरे से बच्चे की बातें करतीं, भविष्य के सुनहरे सपने संजोतीं. प्रिया समझ गई थी कि वाकई खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, मगर बांटने का मौका तब मिलता है जब सामने वाला भी उसी मैंटल स्टेटस में हो.

Kahaniyan : मीत मेरा मनमीत तुम्हारा

Kahaniyan :  ‘‘प्रेरणाभाभी, कहां हो आप?’’ अंबुज ने अपना हैल्मेट एक ओर रख दिया और दूसरे हाथ का पैकेट डाइनिंगटेबल पर रख दिया. बारिश की बूंदों को शर्ट से हटाते हुए वह फिर बोला, ‘‘अब कुछ नहीं बनाना भाभी… अली की शौप खुली थी अभी… बिरयानी मिल गई,’’ और फिर किचन से प्लेटें लेने चला गया.

प्रेरणा रूम से बाहर आ गई. वह नौकरी के लिए इंटरव्यू दे कर कानपुर से अभीअभी लौटी थी. रात के 8 बज रहे थे. पति पंकज अपने काम के सिलसिले में 1 सप्ताह से बाहर था. इसीलिए वह अंबुज की मदद से आराम से इंटरव्यू दे कर लौट आई वरना पंकज उसे जाने ही नहीं देता. गुस्सा करता. अंबुज ने ही विज्ञापन देखा, फार्म भरवाया, टिकट कराया और ट्रेन में बैठा कर भी आया. सुबहशाम हाल भी पूछता रहा. तभी तो नौकरी पक्की हो गई तो उसे बता कर प्रेरणा को कितनी खुशी हुई थी. पंकज से तो शेयर भी नहीं कर सकती.

‘‘अरे तुम बारिश में नाहक परेशान हुए अंबुज. मैं इतनी भी नहीं थकी हूं. अभी बना लेती फट से कुछ. मालूम है 3-4 दिनों से तुम सूपब्रैड, टोस्ट से ही काम चला रहे होंगे. बाहर का खाना भी तुम्हें सूट नहीं करता,’’ प्रेरणा उस के गीले कपड़ों को देखते हुए बोली.

‘‘कपड़े बदल आओ अंबुज. तब तक मैं अदरक वाली चाय बना लेती हूं.

पीनी है या नहीं?’’ वह उसे छेड़ते हुए बोली. उसे मालूम था उस के हाथ की अदरक वाली चाय अंबुज को पसंद है.

‘‘हां भाभी… चाय मुझ से सही नहीं बनती, इसलिए बनाई ही नहीं,’’ कह वह सिर खुजलाते हुए चेंज करने चला गया.

‘‘वाह मजा आ गया भाभी. लग रहा है बरसों बाद चाय पी रहा हूं,’’ अंबुज कपड़े बदल कर आ गया था.

‘‘हां, मुझे लग रहा है देवरानी का इंतजाम जल्दी करना पड़ेगा,’’ प्रेरणा मुसकराई, ‘‘इतने सारे फोटो दे कर गई थी कोई पसंद की?’’

‘‘छोडि़ए भाभी वह सब… ऐपौइंटमैंट लैटर कब मिल रहा है यह बताइए.’’

‘‘बस अगले हफ्ते. पर पहले यह सोचो कि तुम्हारे भैया को कैसे मनाएंगे. नौकरी तक पहुंचने में तुम ने ही सब कुछ किया है. इस में भी तुम्हारी ही मदद चाहिए. अंबुज बेटाजी मुझ से तो वे मानने से रहे. तुम्हें ही कुछ करना होगा वरना सारी मेहनत बेकार,’’ प्रेरणा हंसते हुए बोली.

‘‘अरे मैं उन्हें समझा लूंगा भाभी. आप चिंता क्यों करती हैं? फिर इस में बुराई भी क्या है?’’

‘‘हां, पता नहीं क्या सोच, क्या ईगो ले कर बैठे हैं. कभी तो मेरी भी पढ़ाईर् काम आए. उन्हें दूसरी नौकरी जबतक मिलेगी या इन का काम जबतक बनेगा मैं थोड़ा तो सहयोग कर ही सकती हूं. शुरू में कंपनी 30 हजार सैलरी दे रही है. घर आराम से चल जाएगा. अभी हम 3 ही तो हैं. शिफ्ट हो जाएंगे वहीं.’’

‘‘सो तो है पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं देवरजी. समझाओ उन्हें, वहां पापा का छोटा ही सही पर एक प्लाट भी है, जिसे वे मेरे नाम कर गए हैं. बेकार ही पड़ा है. इस्तेमाल हो जाएगा. वहीं कोई बिजनैस कर लेंगे अपने पैसों से, घर की चिंता छोड़ दें. तुम भी उन के साथ लग जाओ. दोनों ही औटोमोबाइल इंजीनियर हो, साथ में जम कर काम करो… अपना काम सब से बढि़या. नौकरी तो ये दिल से करना भी नहीं चाहते हैं. बेकार ही पीछे पड़े हैं… तुम्हारे कहने पर शायद मान जाएं.’’

‘‘हां सही कह रही हैं आप. पहले क्यों नहीं आया खयाल इस बात का?’’

‘‘कहा था एक बार, मगर वही ईगो की बात है न.’’

‘‘ठीक है, मैं बात करता हूं भैया से.’’

‘‘आते ही मत कहना. घर रात 12 बजे पहुंचेंगे. सुबह का इंतजार कर लेना,’’ अंबुज का उतावलापन देख कर प्रेरणा ने कहा.

‘‘हांहां, भाभी पर कल पहले आप ट्रीट तो दीजिए, इंटरव्यू सफल होने की खुशी में एक मूवी तो बनती है.’’

‘‘डन,’’ कहते हुए प्रेरणा मुसकरा दी.

जब से प्रेरणा ब्याह कर घर आई थी अंबुज उस का देवर कम दोस्त अधिक बन गया था. घर में और कोई तो था नहीं. पंकज की मां पहले ही चल बसी थीं. प्रेरणा केवल 1 साल अंबुज से बड़ी थी और पंकज प्रेरणा से 8 साल बड़ा. उम्र का फासला तो था ही पर अपने पिता के निधन के बाद उन की सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए पंकज और भी धीरगंभीर व्यक्तित्व का बन गया था. अपने मरने से पहले मां ने अपने पति के मित्र की लड़की प्रेरणा से शादी करने को राजी कर लिया था.

‘‘देख पंकज, अब बहुत जिम्मेदारी हो ली… बहन विदा कर दी. पापा का इलाज करवाया… अंबुज को भी पढ़ालिखा रहा है. अगले साल उस की भी नौकरी लग जाएगी. तुझे शादी करनी ही पड़ेगी अब वरना मेरा म…’’

‘‘अम्मां,’’ पंकज ने मां को आगे नहीं बोलने दिया.

‘‘तू हामी भर दे. मैं अभी फोन कर देती हूं घनश्यामजी को.’’

इस तरह प्ररेणा पंकज की दुलहन बन घर आ गई थी. पंकज के धीरगंभीर व्यक्तित्व में प्रेरणा सहज न रह पाती, जबकि उस के उलट अंबुज का हंसमुख स्वभाव उस से मैच करता. दोनों की पसंद भी मिलतीजुलती थी. अकसर पंकज के पास समय ही नहीं रहता न ही काम के अलावा उस का कहीं मन लगता. प्रेरणा ‘धमाल’ मूवी देखना चाहती थी. अंबुज 3 टिकट ले आया. पंकज को ये सब बातें बचकानी लगतीं, ‘‘ऐसी फिल्मों में मेरी कोई रुचि नहीं. तुम दोनों ही देख आओ.’’

पंकज जानता था कि उस की बोर कंपनी में वे भी ऐंजौय नहीं कर पाएंगे. प्रेरणा को अधिक साथ अंबुज का ही मिला. वह उस से काफी घुलमिल गई थी. दोनों की पसंद भी एक. मूवी हो या टीवी के प्रोग्राम अकसर समय मिलता तो साथ देखते. महिने की शौपिंग भी दोनों साथ कर आते.

मजाक में कभीकभी प्रेरणा कहती थी, ‘‘जरा सी चूक हो गई अम्मांजी से. बड़े से नहीं छोटे से मेरा ब्याह कराना चाहिए था. पसंद भी एकजैसी और स्वभाव भी. अंबुज हैल्पिंग भी है वरना मैं तो यहां गृहस्थी अकेले संभाल न पाती.’’

दोनों ने मिल कर पंकज को किसी तरह कानपुर शिफ्ट होने के लिए मना लिया.

‘‘इंडस्ट्रियल एरिया है भैया. चलो वहीं चल कर कुछ साथ करते हैं. यहां हर कोने में अम्मा की यादें बसी हैं… बड़ा खालीखाली सा लगता है… आप का भी मन नहीं लगता है. इसीलिए बाहर रहते हो. चलते हैं भैया,’’ अंबुज बोला.

सभी कानपुर शिफ्ट हो गए थे. प्रेरणा अपनी नौकरी पर जाने लगी. 2-3 सालों में भाइयों की मेहनत रंग लाई. वहां ‘कार ऐवरी सौल्यूशन पौइंट’ नाम से वे नामी गैराज के मालिक बन गए. मोटर पार्ट्स की फैक्टरी लगाई. फिर ‘ग्रीन कैब’ और कार डैकोर का बिजनैस भी चालू किया.

‘‘काम तो अच्छा चल पड़ा भाभी… आप महान हो. आप सही में प्रेरणा हो. बस अब आप काम छोड़ दो… बहुत हुआ. अब तो चाचा कहने वाली गुडि़या ला दो,’’  एक दिन प्रेरणा को सोफे पर बैठा कर अंबुज बोला.

‘‘क्यों नहीं अंबुज पर पहले मेरी देवरानी का इंतजाम करो. फिर आराम ही आराम करूंगी. तब चाचा कहने वाली गुडि़या भी आ जाएगी और पापा कहने वाला गुड्डा भी,’’ कह प्रेरणा जोर से हंस पड़ी थी.

‘‘सच घर इतना बड़ा हो गया पर रहने वाले वही 3… रहने वालों की संख्या बढ़नी ही चाहिए और उत्सव भी मनने चाहिए. अब शादी के लिए और मना नही करोगे आप देवरजी. रिश्ते के लिए आए फोटो में सुरुचि का फोटो बारबार उठा कर देख रहे थे. वह पसंद है न? शरमाने से काम नहीं चलेगा,’’ प्रेरणा न उस की कमर में चिकोटी काटी, तो उस का चेहरा गुलाबी हो गया.

प्रेरणा के आने के 5 साल बाद घर में 2 बंदों का इजाफा हुआ. एक प्रेरणा  ने बेटी को जन्म दिया और दूसरे अंबुज से शादी के बाद सुरुचि का घर में प्रवेश हुआ. शुरूशुरू में सब ठीक था, पर धीरेधीरे सुरुचि पैसों का हिसाब रखने लगी. प्रेरणा के प्रबंध में भी कोई न कोई नुक्स निकाली रहती. अंबुज का प्रेरणा से पूछपूछ कर काम करना भी उसे न भाता और न ही वह चाहती कि उस का अंबुज प्रेरणा के कहे पर चले. उसे साथ ले कर घूमनाफिरना, मूवी, मार्केट जाना, बिस्तर में बैठ कर साथ टीवी देखना, हंसीमजाक करना उस के कलुषित मन को और कसैला बना देता.

उस ने अंबुज से कई बार कहने की कोशिश की पर वह डपट देता कि कूड़ा दिमाग है तुम्हारा. साफ करो, मां के बाद भाभी मेरी मां समान हैं, बड़ी बहन भी हैं और दोस्त भी.

अंबुज के सामने तो वह चुप हो जाती पर प्रेरणा को रहरह कर ताने देने से बाज न आती. प्रेरणा का खून खौल उठता पर कलह बचाने के उद्देश्य से उस ने उसे कुछ न कहना ही उचित समझा. अंबुज से वह थोड़ी दूरी भी रखने लगी, जिस से सुरुचि को बुरा न लगे. उसे इस बात का ध्यान रहता. सुरुचि को तब भी चैन नहीं आया.

एक दिन उस ने मौका पा कर पंकज के कान भरने चाहे, ‘‘भैया आप तो बड़े भोले हो… काम में इतने व्यस्त रहे हैं… कुछ जानते ही नहीं कि घर में क्या हो रहा है.’’

‘‘क्या हो रहा है का मतलब?’’

तब सुरुचि ने अपने मन का सारा जहर उगल दिया. सुन कर पंकज उसी पर आपे से बाहर हो गया. बोला, ‘‘छि: ऐसी घटिया बातें सोची भी कैसे तुम ने? अंबुज को वह अपना देवर नहीं छोटा भाई मानती है… अंबुज ने भी उसे बड़ी बहन का दर्जा दिया… मैं अधिक व्यस्त रहता हूं तो वह उस के साथ मिल कर घर की हर जरूरत का खयाल रखता है तो इस का यह मतलब है?’’

इसी बीच प्रेरणा वहां आ गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ पंकज?’’ पंकज को गुस्से में देख वह घबरा गई थी.

अंबुज भी वहां आ पहुंचा. वह समझ रहा था जो कड़वाहट सुरुचि ने उस के मन में घोलनी चाही थी वही जहर भैया के सामने उगल दिया होगा.

‘‘ऐसे शादी नहीं चल सकती. तुम्हें भाभी से माफी मांगनी होगी. फिर तुम चाहे जहां जाओ,’’ कह अंबुज ने वहां से खिसक रही सुरुचि को पकड़ लिया.

बीचबचाव करती प्रेरणा पास आ गई, ‘‘यह क्या तरीका है अंबुज पत्नी से बात करने का… छोड़ो इसे.’’

अंबुज ने पकड़ ढीली की तो सुरुचि एक ओर हट गई.

‘‘इस में गलत क्या है? किसी भी नवविवाहिता को बुरा लगेगा कि उस का पति उस से अधिक दूसरे को महत्त्व दे रहा है. यह तुम्हारे साथ अकेले कुछ समय बिताना चाहती है तो इस में हरज क्या है? हर जगह मुझे साथ ले चलो या हर बात में मैं घुसी रहूं यह भी ठीक नहीं. मैं ने पंकज से पहले ही कहा था… अंबुज अब तुम शादीशुदा हो. तुम दोनों की अपनी लाइफ, अपनी प्राइवेसी होनी चाहिए,’’ प्रेरणा बोली.

‘‘हां, प्रेरणा ने मुझ से पहले ही कहा था… मैं इसे नाहक ही गलत समझ रहा था. इस ने जिद कर के तुम्हें शादी की सालगिरह पर फ्लैट गिफ्ट करने के लिए खरीदवाया… यह तुम दोनों को सुखी देखना चाहती है. इस ने 2 बिजनैस भी अंबुज के नाम से अलग करवा दिए,’’ कह पंकज अलमारी से सारे पेपर्स निकाल लाया था, ‘‘तुम अगले हफ्ते क्या आज ही यह सब अपने पास रखो… जाओ तैयारी करो और खुश रहो.’’

‘‘भैयाभाभी, मुझे माफ कर दीजिए मैं ने आप को गलत समझा,’’ सुरुचि चरणों में गिर पड़ी.

अंबुज गुडि़या को गोद में उठाए उस के गाल पर प्यार करने के बहाने अपनी नम आंखों को पौंछ रहा था.

प्रेरणा समझ गई कि सब से अलग जाने की कल्पना से अंबुज का दिल कितना आहत हो उठा.

बोली, ‘‘कोई नहीं देवरजी पास ही तो हैं. दोनों जब चाहो आतेजाते रहना,’’ और फिर वह सुरुचि को प्यार से गले लगाते हुए बोली, ‘‘यह मीत मेरा पर मनमीत तुम्हारा ही है,’’ कह मुसकरा उठी.

Valentine’s Special : एक थी इवा

Valentine’s Special :  फ्रांस का बीच टाउन नीस, फ्रैंच रिवेरिया की राजधानी है, जहां रोचक संग्रहालय हैं, खूबसूरत चर्च हैं, रशियन और्थोडौक्स कैथिड्रल है, वहीं पास स्थित होटल नीग्रेस्को के कैफेटेरिया में बैठे इवा और जावेद कौफी पी रहे थे. इवा ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘जावेद, तुम मुझ से प्रौमिस करो कि तुम कोई भी गलत कदम नहीं उठाओगे.’’

‘‘इवा, मैं बहुत परेशान हो गया हूं… मेरे अंदर एक आग सी लगी रहती है. मैं ने अपना बहुत अपमान सहा है. ये लोग मुझे ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे मैं बहुत छोटी चीज हूं. मैं अब बहुत आगे बढ़ चुका हूं… मेरे कदम अब पीछे नहीं लौट सकते.’’

‘‘नहीं जावेद, तुम जानते हो न… मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती… तुम अगर कभी पकड़े गए तो पता है न क्या हश्र होगा तुम्हारा? तुम्हें उसी पल भून दिया जाएगा.’’

‘‘हां, ठीक है… मुझे मंजूर है. क्यों ये लोग मुझे मेरी शक्लसूरत के कारण नीचे नजरों से देखते हैं?’’

इवा ने जावेद को समझाने की बहुत कोशिश की, अपने प्यार का, अपने साथ भविष्य में देखे गए सुनहरे सपनों का वास्ता दिया पर जावेद आतंक की राह पर बहुत आगे निकल चुका था.

जावेद ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘इवा, मुझे जाना है, एक जरूरी मीटिंग है, मुझे पहली बार कोई काम दिया गया है जिसे मुझे हर हाल में पूरा करना है… शाम को मौका मिला तो मिलूंगा,’’ औरवोर (बाय), कह कर जावेद उस के गाल पर किस कर के निकल गया.

इवा ने ठंडी सांस लेते हुए जाते हुए जावेद को भीगी आंखों से देखा. उस की सुंदर आंखें आंसुओं की नमी से धुंधली हो गई थीं.

इवा होटल नीग्रेस्को में ही हौस्पिटैलिटी इंचार्ज थी. जावेद की बातों से उदास हो कर उस का मन फिर अपनी ड्यूटी में नहीं लग रहा था. वह अपनी दोस्त केरा को बता कर थोड़ी देर के लिए बाहर आ गई. उसे घुटन सी हो रही थी. फार्मूला वन का एक बहुत अच्छा सर्र्किट नीस है, जो होटल के बिलकुल पीछे से जाता है. उस रास्ते से वह बीच पर पहुंच गई. क्वैदे एतादयूनिस बीच पर एक किनारे बैठ कर वह वहां खेलते बच्चों को देखने लगी. बच्चे अपनी दुनिया में मस्त थे. कभी गुब्बारों के पीछे दौड़ रहे थे, तो कभी रेत में लेट रहे थे.

इवा जावेद के बारे में सोच रही थी. उसे जावेद से अपनी पहली मुलाकात याद आई…

2 साल पहले वह एलियांज रिवेरिया स्टेडियम में फुटबौल का मैच देखते हुए जावेद से मिली थी. दोनों पासपास बैठे थे. दोनों ही लिवरपूल टीम के फैन थे. दोनों ही अपनी टीम को चीयर कर रहे थे. हर गोल पर दोनों जम कर खुश हो रहे थे. जब भी दोनों की आंखें मिलतीं, दोनों मुसकरा देते थे और जब उन की टीम जीत गई तो दोनों खुशी और उत्साह से एकदूसरे के गले लग गए. दोनों को अपनी इस हरकत पर हंसी आ गई. पल भर में ही दोस्ती हो गई. फिर प्यार हो गया. दोनों जैसे एकदूसरे के लिए बने थे.

जावेद बंगलादेश से एमबीए करने आया था. जावेद को फुटबौल मैच देखने का नशा था. वह कई बार हंस कर इवा से कहता था, ‘‘मैं यहां पढ़ने थोड़े ही आया हूं, मैं तो मैच देखने आया हूं.’’

अपने स्कूल और फिर कालेज की टीम का कैप्टन रहा था जावेद. पढ़ने में होशियार, सभ्य, आकर्षक व्यक्तित्व वाले जावेद को इवा दिलोजान से चाहने लगी थी. जावेद की पढ़ाई के बाद नौकरी मिलने पर वे दोनों विवाह का मन भी बना चुके थे.

जावेद ने बताया था, ‘‘मेरे परिवार वाले बहुत कट्टर हैं… एक फ्रैंच लड़की को कभी बहू नहीं बनाएंगे, पर मैं तुम्हारे प्यार के लिए उन की नाराजगी सहन कर लूंगा.’’

यह बात सुन कर इवा ने उसे चूम लिया था. दोनों शारीरिक रूप से भी एकदूसरे के बहुत करीब आ चुके थे. जावेद फ्रैंच क्लास में अच्छी तरह फ्रैंच सीख चुका था. इवा ने जावेद से हिंदी में कुछ बातें करना सीख लिया था. प्यार वैसे भी कोई देश, भाषा, जाति, रंग नहीं जानता. हो गया तो बस प्यार ही रहता है और कुछ नहीं. एकदूसरे की भाषा, सभ्यता अपना कर दोनों प्यार में आगे बढ़ते जा रहे थे पर अब जावेद के अंदर आया परिवर्तन इवा को चिंतित किए जा रहा था. वह बहुत परेशान थी. किसी को अपनी चिंता बता भी नहीं सकती थी. वह वैसे ही दुनिया में अकेली थी. जो उस की दोस्त थीं, यह परेशानी वह उन्हें भी नहीं बता सकती थी.

कालेज में कई बार रेसिज्म का शिकार होने पर जावेद के अंदर एक विद्रोह की भावना पनपने लगी थी, जो इवा के समझाने पर भी समय के साथ कम न हो कर बढ़ती ही जा रही थी. आज इवा को जावेद की 1-1 बात याद आ रही थी. जावेद सीधासादा, शांतिप्रिय, अपने काम से काम रखने वाला लड़का था. वह यहां कुछ बनने ही आया था. अच्छा भविष्य और फुटबौल, बस इन्हीं 2 चीजों में रुचि थी उस की, पर जातिवाद की 1-2 घटनाओं ने उस के अंदर दुख सा भर दिया था. कालेज में कोच मार्टिन ने हमेशा उस के खेलने की बहुत तारीफ की थी, पर जब कालेज टीम के चुनाव का समय आया तो जावेद का कहीं नाम ही नहीं था. उस ने कारण पूछा तो जवाब वहां उपस्थित लड़कों ने दिया, ‘‘तुम हमारी टीम में खेलने का सपना भी कैसे देख सकते हो?’’

इस बात पर सब की समवेत हंसी उस का दिल तोड़ती चली गई थी. उस के बाद कई बार कालेज में किसी भी गतिविधि में अपने विचार देने पर उस का मजाक उड़ाया जाने लगा था कि अब बंगलादेश से आए स्टूडैंट्स हमें अपने विचार बताएंगे.

वह धीरेधीरे रेसिज्म का शिकार होता जा रहा था. अब वह फेसबुक पर सीरियस स्टेटस डालने लगा था. जैसे लाइफ इज नौट ईजी या यहां आप की पहचान आप के गुणों से नहीं, आप की जाति से होती है या मैं थकने लगा हूं. इसी तरह के कई स्टेटस जिन्हें पढ़ कर साफसाफ समझ आ जाता था कि उस के अंदर दुख भरे विद्रोह की भावना पनपने लगी है.

ऐसे ही कभी इस तरह का स्टेटस पढ़ कर कुछ लोगों ने उस से संपर्क स्थापित कर लिया और वह धीरेधीरे आतंक की उस दुनिया में घुसता चला गया जहां से निकलना असंभव था.

इवा उस की हर बात जानती थी, उसे डर लगने लगा था. उस ने एक दिन जावेद से कहा था, ‘‘जावेद, मुझे बस तुम्हारे साथ रहना है. अगर तुम यहां कंफर्टेबल नहीं हो तो हम तुम्हारे गांव चलेंगे. मैं वहां तुम्हारे परिवार के साथ रहने के लिए तैयार हूं. मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती.’’

‘‘नहीं इवा, मेरा परिवार तुम्हें नहीं अपनाएगा. मैं तुम्हें दुखी नहीं देख पाऊंगा… मुझे अब यहीं अच्छा लगता है.’’

‘‘पर जावेद, तुम्हें गलत रास्ते पर जाते देख दुखी तो मैं यहां भी हूं?’’

‘‘यह गलत रास्ता नहीं है… ये लोग मेरी जाति के लिए मुझे नीचा नहीं दिखाते, इन के लिए कुछ करूंगा तो इज्जत मिलेगी.’’

‘‘इस रास्ते पर चल कर तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा जावेद. हम खत्म हो जाएंगे. अभी तो हमारा जीवन शुरू भी नहीं हुआ… अभी तो हमें बहुत प्यार करना है… घर बसाना है, कितने मैच एकसाथ देखने हैं, जीवन जीना है, अभी तो हम ने कुछ भी नहीं किया.’’

पर इवा की सारी बातों को नजरअंदाज कर पूरी तरह से जावेद का ब्रेनवाश हो चुका दिलोदिमाग अब एक ही बात समझता था- आतंक और बरबादी की बात. वह बात जिस से न कभी किसी का भला हुआ है, न होगा. वह अब ऐसी दुनिया का इनसान था जहां सिर्फ चीखें थीं, खून था, लाशें थीं.

जावेद जब शाम को इवा से मिलने आया तो इवा घबरा कर जावेद की बांहों में सिमट कर जोरजोर से रोने लगी. इवा का मन अनिष्ट की आशंका से कांप रहा था.

जावेद ने कहा, ‘‘इवा, मुझे गुडलक बोलो, आज पहले काम पर जा रहा हूं.’’

‘‘कौन सा काम? कहां?’’

‘‘आज बेस्टिल डे की परेड में एक ट्रक ले कर जाना है.’’

‘‘क्यों? क्या करना है?’’

‘‘कुछ नहीं, बस भीड़ में चलते चले जाना है.’’

रो पड़ी इवा, ‘‘जावेद, पागल हो गए हो क्या? किसी की जान चली गई तो? नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे.’’

वैसे इवा को विश्वास नहीं था कि जावेद ऐसा कुछ करेगा. वह पहले भी कई बार मरने की धमकी दे चुका था. कभी कहता कि वह आत्मघाती बन जाएगा. कभी कि गोली से खुद को मार लेगा. पर अगले दिन सामान्य हो जाता.

‘‘सौरी इवा, जिंदा रहा तो जरूर मिलेंगे.’’

‘‘नहीं जावेद, मत जाओ. ज्यादा नाटक मत करो.’’

इवा के होंठों पर किस कर के जावेद ने उसे गले लगाया. साथ बिताए कितने ही पल

दोनों की आंखों के आगे घूम गए. फिर एक झटके में इवा को अलग कर जावेद तेज कदमों से चला गया.

इवा आवाज देती रह गई, ‘‘जावेद, रुक जाओ, जावेद, रात को कमरे में इंतजार करूंगी.’’

जावेद चला गया.

इवा का इस बार बुरा हाल था. वह रो रही थी. फिर अगले ही पल अपने को संभाल सोचने लगी कि जावेद को रोकना होगा. क्या वह मेरे प्यार के आगे किसी की जान ले सकता है? नहीं मैं ऐसे नहीं बैठ सकती. कुछ करना होगा. मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि जावेद को बरबादी के रास्ते से वापस न ला सके… वह मुझे मार कर आगे नहीं बढ़ पाएगा… वह वहां से भागी. जावेद का कहना था कि वह एक ट्रक भीड़ में ले कर घुस जाएगा.

अगले दिन 14 जुलाई को बैस्टिल डे, फ्रैंच नैशनल डे मनाया जाता है. इस दिन यूरोप में सब से बड़ी मिलिटरी परेड होती है. सड़कें भीड़ से भरी थीं, जवान, बूढ़े, बच्चे सब आतिशबाजी देख रहे थे.

रात को जावेद इवा के पास नहीं आया था. इवा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह

पुलिस को बताए. यह पक्का था कि बताने पर उसे खुद भी महीनों जेल में रहना पड़ेगा. शायद जावेद डरा रहा है. करेगा कुछ नहीं. फिर भी इवा जावेद की बताई जगह पहुंच गई. जावेद का फोन बंद था. इवा को उम्मीद थी कि शायद वह भीड़ में मिल जाए.

तभी भीड़ की तरफ बढ़ते ट्रक को देख कर एक बाइक सवार ने जावेद को रोकने की कोशिश की, लेकिन ट्रक नहीं रुका. इवा ने देख लिया कि ट्रक को जावेद चला रहा है. उसे और कुछ नहीं सूझा तो स्वयं ट्रक के आगे खड़ी हो गई.

जावेद के हाथ तब एक बार कांप गए जब उस ने इवा को ट्रक के आगे हाथ फैलाए खड़ी देखा. इवा रो रही थी. उस की टांगें कांप रही थीं, पर जावेद पर इतना जनून सवार था कि उस ने ट्रक की स्पीड कम न की. ट्रक इवा को कुचलता हुआ, साथ ही अनगिनत लोगों को भी कुचलता हुआ आगे बढ़ रहा था. पल भर में ही पुलिस की गोलियों ने जावेद को भून डाला. चारों तरफ चीखपुकार, सड़क पर पड़ी खून में डूबी लाशें, छोटे बच्चों को गोद में उठा कर इधरउधर भागते मातापिता, गिरतेपड़ते लोग, हर तरफ अफरातफरी का माहौल था.

इवा और जावेद दोनों इस दुनिया से जा चुके थे. एक बार फिर प्यार हार गया था, आतंक के खूनी खेल में. हर तरफ बिखरे सपने, टूटती सांसें, तड़पती जिंदगियां थीं, मातम था, खौफ था. अपने प्यार पर टूटा भरोसा लिए इवा जा चुकी थी और आतंक के रास्ते पर चलने के अंजाम के रूप में जावेद का रक्तरंजित शव पड़ा था.

Valentine’s Day : इसे धर्म का झंडा न पकड़ाएं

Valentine’s Day :  जरा ठहरो, सांस लो और अपनी बुद्धि जो भले ही मोटी हो उस पर जोर डाल कर समझने की कोशिश करो. यह दिन प्यार का है, किसी धर्म, जाति, देश या वैलेंटाइन का ठेका नहीं है. यह दिन सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं जो प्रेमीप्रेमिका हैं, बल्कि यह मातापिता, भाईबहन, दोस्त और हर उस इंसान के लिए है, जिस से हम सच्चा प्यार करते हैं.

अब जरा सोचो, वैलेंटाइन डे से इतनी दिक्कत क्यों है? सिर्फ इसलिए कि इस दिन से सेंट शब्द जुड़ा है या यह अंगरेजी कैलेंडर के हिसाब से आता है? अगर ऐसा है, तो शायद आप अपने जन्मदिन को भी हिंदी कैलेंडर के हिसाब से मनाते होगें? केक के लिए बेकरी के चक्कर काटने के बजाए घर में ही हलवापूड़ी बनाते होंगे या हो सकता है कि अपने बच्चों का जन्मदिन विक्रम संवत में गिनते हो? नहीं न, तो फिर प्यार का यह दिन आते ही देशभक्ति और आप के अंदर का भक्त क्यों जाग जाता है?

अंगरेजी वैलेंटाइन डे से परेशानी पर अंगरेजी न्यू ईयर का जश्न

31 दिसंबर की रात को जब पूरी दुनिया नाचगा रही होती है, तो कोई नहीं कहता कि यह विदेशी नया साल है, इसे मत मनाओ, तब तो पटाखे भी फूटते हैं, पार्टियां भी होती हैं और जश्न भी मनता है. और 25 दिसंबर को तो बच्चे ‘सांता क्लौज’ बन कर मिठाइयां तक बांटते हैं. पर जैसे ही 14 फरवरी आता है, कुछ लोगों को संस्कृति की याद आ जाती है. जब विदेशी चीजों से इतनी दिक्कत है तो अंगरेजी महीनों में क्यों जी रहे हो? हिंदी कैलेंडर अपनाओ, सब अपनेआप ठीक हो जाएगा.

प्यार को अनैतिकता से जोड़ना कब बंद करो

कुछ लोग तो जैसे ‘प्यार’ शब्द सुनते ही आगबबूला हो जाते हैं. लगता है जैसे प्यार कोई गुनाह है. क्या मातापिता से प्यार करना गलत है? भाईबहन से प्यार करना अनैतिक है? दोस्तों को प्यार देना पाप है? नहीं न, तो फिर एक दिन अगर खासतौर पर प्यार के नाम कर दिया जाए, तो इस में बुराई क्या है? कोई जबरदस्ती थोड़ी न कर रहा कि गिफ्ट दो, पार्क जाओ. लेकिन अगर कोई इस दिन को प्यार को समर्पित करना चाहता है तो उस से भी आप को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

वैसे भी, जब मदर्स डे, फादर्स डे और फ्रैंडशिप डे धूमधाम से मनाते हो, तो वैलेंटाइन डे में क्या बुराई है? क्या मांबाप के लिए प्यार दिखाने का एक दिन गलत हो सकता है? नहीं न, तो फिर वैलेंटाइन डे पर इतना बवाल क्यों?

असली संस्कृति की याद सिर्फ 14 फरवरी को आती है

जब कोई विदेशी ब्रैंड के कपड़े पहनता है, विदेशी गाड़ियों में घूमता है, इंग्लिश गाने सुनता है, विदेशी बर्गर और पिज्जा खाता है, तब तो कोई संस्कृति की दुहाई नहीं देता. मगर जब प्यार की बात आती है, तब अचानक से सभी ‘संस्कृति के रक्षक’ बन जाते हैं. वैलेंटाइन डे का विरोध करने वालों से पूछो, क्या वे अपने जन्मदिन पर हलवापूरी बांटते हैं? केक काटते समय तो संस्कृति नहीं याद आती?

प्यार कोई अपराध नहीं, बल्कि एक भावना है

प्यार का कोई रंग नहीं, कोई धर्म नहीं, कोई सरहद नहीं. यह सिर्फ दिल से दिल का रिश्ता है. इस में राजनीति क्यों घुसेड़ रहे हो? अगर वैलेंटाइन डे का विरोध करना ही है तो फिर सारे ‘डे’ का विरोध करो. फिर कोई फ्रैंडशिप डे न मनाए, कोई मदर्स डे न मनाए, कोई फादर्स डे न मनाए. फिर तो सिर्फ एक ही दिन रह जाएगा,विरोध दिवस और त्याग दिवस. फिर तो बस ईद, दीवाली या होली आने का इंतजार कीजिए, खादी के धोती पहनिए, पांव में जूती, यह जींस या क्रौक्स के चक्कर में काहे पड़ते हैं?

प्यार को सम्मान दो, इसे बदनाम मत करो

अगर किसी दिन प्यार को सैलिब्रेट करने का मौका मिल रहा है, तो उसे बेवजह बदनाम न किया जाए तो बेहतर होगा. यह मत सोचो कि यह किसी विदेशी संत का दिन है. इसे इस नजर से देखो कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें अपने अपनों से प्यार जताना चाहिए. हम अपने मातापिता से कह सकते हैं कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, अपने भाईबहनों को गले लगा सकते हैं, दोस्तों को शुक्रिया कह सकते हैं.
इस दिन को गलत मत समझो, इसे अपनाओ. प्यार करने से डरने की जरूरत नहीं, नफरत से डरने की जरूरत है.

Family Strength : संयुक्त परिवार में रहने के कारण मैं काफी परेशान हूं, मैं क्या करूं?

Family Strength :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 29 वर्षीय विवाहिता हूं. हमारा संयुक्त परिवार है. शादी से पहले ही हमें यह बता दिया गया था कि मुझे संयुक्त परिवार में रहना है. वैसे तो यहां किसी चीज की दिक्कत नहीं है पर ससुराल के अधिकतर लोग खुले विचारों के नहीं हैं, जबकि मैं काफी खुले विचार रखती हूं. इस वजह से मुझे कभीकभी उन की नाराजगी भी सहनी पड़ती है और खुलेपन की वजह से मेरी ननदें व जेठानियां मुझे अजीब नजरों से भी देखती हैं. पति को कहीं और फ्लैट लेने को नहीं कह सकती. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

घरपरिवार में कभीकभी कलह, वादविवाद, झगड़ा आम बात है. मगर परिवार फेसबुक अथवा व्हाट्सऐप की तरह नहीं है जिस में आप ने सैकड़ों लोगों को जोड़ कर तो रखा है, मगर आप को कोई पसंद नहीं है तो आप उसे एक ही क्लिक में एक झटके में बाहर कर दें.

इस बात की कतई परवाह न करें कि परिवार के कुछ सदस्य आप को किन नजरों से देखते हैं और कैसा व्यवहार करते हैं. अच्छा यही होगा कि अपनेआप को इस तरीके से व्यवस्थित करें कि आप हमेशा खूबसूरत इंसान बनी रहें. कोई कैसे देखता है यह उस पर है.

आजकल जहां ज्यादातर लोग एकल परिवारों में रहते हुए तमाम वर्जनाओं के दौर से गुजरते हैं, वहीं आज के समय में आप को संयुक्त परिवार में रहने का मौका मिला है, जिस में अगर थोड़ी सी सूझबूझ दिखाई जाए तो आगे चल कर यह आप के लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

बेहतर यही होगा कि छोटीछोटी बातों को नजरअंदाज करें और सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें. धीरेधीरे ही सही पर वक्त पर घर के लोग आप को हर स्थिति में स्वीकार कर लेंगे और आप सभी की चहेती बन जाएंगी.

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‘‘यह रिश्ता मुझे हर तरह से ठीक लग रहा है. बस अब तनु आ जाए तो इसे ही फाइनल करेंगे,’’ गिरीश ने अपनी पत्नी सुधा से कहा.

‘‘पहले तनु हां तो करे, परेशान कर रखा है उस ने, अच्छेभले रिश्ते में कमी निकाल देती है…संयुक्त परिवार सुन कर ही भड़क जाती है. अब की बार मैं उस की बिलकुल नहीं सुनूंगी और फिर यह रिश्ता उस की शर्तों पर खरा ही तो उतर रहा है. पता नहीं अचानक क्या जिद चढ़ी है कि बड़े परिवार में विवाह नहीं करेगी, क्या हो गया है इन लड़कियों को,’’ सुधा ने कहा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Oscar 2025 की दौड़ में भारतीय फिल्म ‘बैंड औफ महाराजा’ फेम ऐक्ट्रैस अलंकृता सहाय

Oscar 2025 : अभिनेत्री अलंकृता सहाय भारतीय मनोरंजन उद्योग में सबसे दुर्जेय और सम्मानित युवा नामों में से एक हैं. एक पेशेवर कलाकार के रूप में, वह अपनी शर्तों पर रहती हैं और आज, वह और उनके प्रशंसक गर्व से इस तथ्य की पुष्टि कर सकते हैं कि वह एक स्व-निर्मित स्टार हैं. मिस इंडिया होने से लेकर कई भाषाओं में संगीत वीडियो स्पेस पर हावी होने और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों में विश्वसनीय काम करने तक, अलंकृता ने निश्चित रूप से दिल जीतने के लिए अपने ए गेम को आगे रखा है.

देर से, वह खबरों में रही हैं क्योंकि वह समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्म ‘बैंड औफ महाराजा’ की मुख्य अभिनेत्री हैं जो अब आधिकारिक तौर पर औस्कर 2025 की दौड़ में है. अलंकृता, फिल्म की पूरी टीम के साथ वैश्विक स्तर पर देश को गौरवान्वित करने में कामयाब रही हैं और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें सभी कोनों के लिए अपार प्यार और सम्मान दिया गया है. जब से ‘बैंड औफ महाराजा’ ने औस्कर 2025 की दौड़ में जगह बनाई है, तब से नेटिजन्स सेट और फिल्म की विशेष झलकियों के लिए अनुरोध कर रहे हैं क्योंकि वे पहले कभी रिलीज नहीं हुए हैं.

खैर, लोगों के व्यक्ति की तरह, अलंकृता ने इस अनुरोध को सबसे मधुर तरीके से पूरा किया है. उन्होंने फिल्म की शूटिंग के दौरान सेट की तस्वीरों से कुछ बीटीएस क्षण और अपने अनदेखे अवतार को साझा किया और हर कोई इसे वास्तव में पसंद कर रहा है.यह ध्यान रखना चाहिए कि फिल्म में अलंकृता का चरित्र वास्तविक जीवन में जो है, उसके बिल्कुल विपरीत है और जिस चतुराई के साथ वह चरित्र की त्वचा में प्रवेश करने में कामयाब रही और जिस रूप ने दर्शकों को इन चित्रों के बारे में सबसे अधिक आकर्षित किया है.

यदि आपने उन्हें पहले नहीं देखा है, तो यहां जाएं – बहुत शानदार और अद्भुत, है ना? अलंकृता और पूरी टीम को शुभकामनाएं और कामना है कि वह व्यक्तिगत और पेशेवर रूप से अपने जीवन में देश को गौरवान्वित और उत्कृष्ट बनाना जारी रखे. काम के मोर्चे पर, अभिनेत्री के पास कुछ दिलचस्प कार्य विकास हो रहे हैं, जिनकी आधिकारिक घोषणा बहुत जल्द आदर्श समयसीमा के अनुसार की जाएगी.अधिक अपडेट के लिए बने रहें.

Family Goals : शादी के कुछ सालों में बहू मोनिका से बनी कोमोलिका, कहीं सास ही तो नहीं इस बदलाव की वजह

Family Goals : शादी के वक्त जब एक लड़की अपना आंगन छोड़ कर दूसरे घर में प्रवेश करती है, तो क्या वह यह सोच कर पहला कदम रखती है कि मैं इस घर में रहने वाले सभी लोगों का जीना दुश्वार कर दूंगी? हर बात को सुनने से पहले पलट जवाब दूंगी या परिवार से कोई मतलब न रख कर सिर्फ पति की हमसफर बन कर रहूंगी? जवाब होगा नहीं क्योंकि सास भी तो कभी बहू थी, तो आप एक कोमल सी लड़की से खूंख्वार सास कैसे बनीं, यह सोचा है आप ने?

आप के बरताव में कैसे बदलाव आया, कैसे जो बहू सास की एक आवाज पर सहम जाती थी, वह अब खुद सास बनने के बाद शेरनी बन कर दहाड़ती है? इतने बदलाव का कारण है बहू के साथ ससुराल में हुआ व्यवहार.

सास खुद के अंदर झांक कर देखें

अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को कोई भी लड़की शुरुआती कुछ वक्त तो बरदाश्त करती है लेकिन वक्त के साथ वह उस से डील करना सीख जाती है. जिसे कहते हैं न ईंट का जवाब पत्थर से देने का उस का भी दिल चाहता है और उस के मन में भी ससुराल के लोगों के प्रति खटास पैदा हो जाती है.

इसलिए बहू के स्वभाव पर दोष देने से पहले सास को चाहिए कि वह खुद के बरताव पर नजर डाले. सास न बन कर पहले घर की एक सदस्य बन कर बहू के दिल में घर करे, बातबात पर टोकने, ‘हमारे घर में ऐसा ही होता है’ का पुरातन डायलौग छोड़ कर मिल कर काम करने, दूसरे के अच्छे काम पर उस की तारीफ करने से झिझके नहीं. अगर गलत बात या काम पर टोकना आप का अधिकार है तो सही काम की तारीफ करना अपना कर्तव्य है.

बहू को नए परिवेश में ढलने का मौका दें

एक लड़की के लिए शादी सिर्फ अपना परिवार या घर छोड़ना नहीं होता, बल्कि उस को अपना पूरा लाइफस्टाइल बदलना पड़ता है. अपने मायके में जहां लड़की बिस्तर में बिना आंखों को खोले चिल्ला कर चाय की प्याली मांगती थी वह अब सब से पहले उठ कर परिवार में सब के लिए नाश्ते की तैयारी में लग जाती है. जो अपने घर में मनमरजी का खाना न मिलने पर फूड डिलिवरी कराती थी या अपनी मां से झगड़ती थी वह अब चुपचाप नापसंद सब्जियां बना रही है.

अचानक आए ये बदलाव किसी के लिए भी स्ट्रैस की वजह बन सकते हैं. इसलिए अपनी बहू को वक्त दें, जितना वह आप के परिवार में ढलने की कोशिश में लगी है उतना ही आप भी उस को खुला दिल कर के अपनाने की कोशिश करें. वह जैसी है स्वीकारें और अगर आप को कुछ अपनी दिनचर्या में बदलाव करने की जरूरत पड़े तो उस पर अड़ें नहीं, नर्म स्वभाव रखें.

हर छोटी बात पर टोकने से बचें

बहू के घर में कदम रखते ही सास को अपने दिनों की याद ताजा हो जाती हैं. कैसे वह घर में 10-12 लोगों का खाना बनाती, बच्चों व बड़ों की देखभाल, बिना हाउसहैल्प सारा काम खुद करना, बड़े से आंगन को सूरज चढ़ने से पहले लीपनापोतना और फिर वह उस की तुलना बहू के काम से करती है.

‘हम ने तो इतना काम किया, आजकल की बहुएं तो 5 लोगों की रोटियां गिन कर बनाती हैं’ जैसे तानें देने लगती हैं. लेकिन उन्हें समझना होगा कि अब वक्त बदला है, काम करने के तरीकों और संसाधनों में बढ़ोत्तरी हुई है. बच्चे की परवरिश के तरीके बदले हैं. तो ऐसे में हर काम में कंपेरिजन आप के और आप की बहू के बीच सिर्फ दूरियां बढ़ाता है. जरूरी है कि अब आप साथ मिल कर कैसे घर को संभालें उस पर ध्यान दें, न कि बहू ने आज क्या नहीं किया उस पर ध्यान दें.

बेटे को अच्छा हमसफर बनना सिखाएं

माना कि आप ने अपने बच्चे को नाजों से राजा बेटा बना कर पाला है. पानी का गिलास भी उस ने कभी खुद उठ कर नहीं लिया. लेकिन शादी के बाद अब वह आप का राजा बेटा नहीं बल्कि एक परिवार का कर्ताधर्ता है. उस के जीवन में बदलाव आया है और अगर ऐसे में अगर वह अपनी पत्नी की मदद करना चाहे तो उस की सराहना करें, नकि उसे तानें दें कि बहुरिया के आते ही कैसे बेचारा काम में लग गया, हम ने तो कभी काम नहीं कराया. बेटे को बहू का अच्छा हमसफर बनने के लिए उस की मदद के लिए प्रोत्साहित करें.

बहू की स्मार्टनैस का फायदा लें

कई बार बहू उस के ससुराल में परिवार से ज्यादा समझदार हो सकती है. ऐसे में बहू को भी चाहिए कि वह अपनी नीड और परिवार के लिए क्या सही है वह सोचसमझ कर काम करे. अपनी नालेज से दूसरों को नीचा दिखाने या खुद को बैटर साबित करने की कोशिश न करे. ऐसे में सास को भी चाहिए कि वह उस की स्मार्टनैस का फायदा उठाए. अगर वह किसी काम में बहू से सुझाव लेती है तो उस से बहू को भी अच्छा लगता है वह खुद को परिवार में इनक्लूडिड महसूस करती है और सास को बेहतर सुझाव भी मिल जाएगा.

पेरैंट्स के साथ आप की सोच का न हो टकराव

शादी के बाद आप अगर अपनी लाइफ में सासससुर की ज्यादा दखलंदाजी पसंद नहीं करती तो फिर आप के पेरैंट्स आप की लाइफ में शादी के बाद किस हद तक डिसिजन ले सकते हैं उस की भी लाइन खींच कर रखें. मातापिता को भी चाहिए कि वे अपनी बेटी को नए परिवार में सैटल होने मौका दें और बातबात पर उसे डिफैंड करने से पहले स्थिति को समझें.

दखलंदाजी परिवार में चाहे मातापिता की हो या सासससुर की, उस से डिफरैंस पैदा होते ही हैं. इसलिए सब को कैसे संभालना है ताकि कोई किसी पर हावी न हो पाए यह एक समझदार लड़की को पहले से अपने दिमाग में तय कर लेना चाहिए.

Live In Relationship बम है या बर्फ

Live In Relationship : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि समाज में ‘लिव इन’ संबंधों को स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन युवा पीढ़ी इन संबंधों की ओर आकर्षित हो रही है. अदालत के मुताबिक, अब समय आ गया है कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें कुछ रूपरेखा तैयार करनी चाहिए और समाधान निकालना चाहिए.

न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने कहा,”हम बदलते समाज में रहते हैं जहां परिवार, समाज या कार्यस्थल पर युवा पीढ़ी का नैतिक मूल्य और सामान्य आचरण बदल रहा है.”

अदालत ने इस टिप्पणी के साथ वाराणसी जिले के आकाश केशरी को जमानत दे दी. आकाश के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत सारनाथ थाने में मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने कहा कि जहां तक ‘लिव-इन संबंध’ का सवाल है, इसे कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन युवा लोग ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं क्योंकि वे अपने साथी के प्रति अपने उत्तरदायित्व से आसानी से बच सकते हैं.

लिव इन रिलेशनशिप एक प्रकार का संबंध है, जहां 2 व्यक्ति एकसाथ रहते हैं और एकदूसरे के साथ भावनात्मक और शारीरिक संबंध बनाते हैं, लेकिन वे विवाहित नहीं होते हैं या किसी भी प्रकार के औपचारिक संबंध में नहीं होते हैं.

क्या है लिव इन रिलेशनशिप

इस में 2 व्यक्ति एकसाथ रहते हैं. वे एकदूसरे के साथ भावनात्मक और शारीरिक संबंध बनाते हैं. वे विवाहित नहीं होते हैं या किसी भी प्रकार के औपचारिक संबंध में नहीं होते हैं. वे अपने संबंध को अपने तरीके से चलाते हैं और अपने निर्णय लेते हैं.

लिव इन रिलेशनशिप के फायदे

यह दोनों व्यक्तियों को अपने संबंध को अपने तरीके से चलाने की आजादी देता है. यह दोनों व्यक्तियों को एकदूसरे के साथ समय बिताने और एकदूसरे के साथ भावनात्मक और शारीरिक संबंध बनाने का अवसर देता है.

यह दोनों व्यक्तियों को अपने संबंध को अपने तरीके से समाप्त करने की आजादी देता है.

लिव इन रिलेशनशिप की हानियां

यह दोनों व्यक्तियों को समाज में अलगथलग महसूस करा सकता है. यह दोनों व्यक्तियों को अपने संबंध को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दिला सकता है. यह दोनों व्यक्तियों को अपने संबंध को समाप्त करने के लिए कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है.

आइए, देखिए समझिए कई चर्चित लोगों के लव इन रिलेशनशिप रहे हैं :

सैफ अली खान और रोसा कैटरीना : सैफ अली खान और रोसा कैटरीना ने 2011 में लिव इन रिलेशनशिप शुरू किया था, लेकिन बाद में अलग हो गए.

करीना कपूर और सैफ अली खान : करीना कपूर और सैफ अली खान ने 2007 में लिव इन रिलेशनशिप शुरू किया था और 2012 में शादी की.

कोंकणा सेन शर्मा और रणवीर शौरी : कोंकणा सेन शर्मा और रणवीर शौरी ने 2007 में लिव इन रिलेशनशिप शुरू किया था और 2010 में शादी की.

नेहा धूपिया और रितिक रोशन के भाई रोहन रोशन : नेहा धूपिया और रोहन रोशन ने 2008 में लिव इन रिलेशनशिप शुरू किया था, लेकिन बाद में अलग हो गए.

अनुराग कश्यप और कल्कि कोचलिन : अनुराग कश्यप और कल्कि कोचलिन ने 2011 में लिव इन रिलेशनशिप शुरू किया था और 2015 में तलाक लिया.

दरअसल, यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और इन लोगों ने अपने रिश्तों के बारे में खुल कर बात की है.

Stories : उलटी धारा

यह बात आग की तरह पूरी बस्ती में फैल चुकी थी. सारा महल्ला गुस्से में था और हामिद शाह को खरीखोटी सुना रहा था.  बाय यह थी कि हामिद शाह अपनी बेटी कुलसुम को संभाल नहीं सके और कैसे उस ने एक हिंदू लड़के के साथ शादी कर ली. मौलवीमुल्ला सभी इकट्ठा हो कर एकसाथ मिल कर उन पर हमला बोल रहे थे. एक हिंदू लड़के से शादी कर के मजहब को बदनाम किया.

हामिद शाह का पूरा परिवार आंगन में खड़ा हो कर सब की जलीकटी बातें सुन रहा था. उन के खिलाफ जबान से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था. मगर बस्ती के कुछ मुसलिम समझदार भी थे, जो इसे गलत नहीं बता रहे थे, मगर ऐसे लोगों की तादाद न के बराबर थी.

भीड़ बड़ी गुस्से में थी खासकर नौजवान. वे कुलसुम को वापस लाने की योजना बनाने लगे. मगर हामिद शाह इस की इजाजत नहीं दे रहे थे, इसीलिए उन से सारी भीड़ नाराज थी. वे किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे थे.

धीरेधीरे सारी भीड़ अपने घरों में चली गई. हामिद शाह भी अपनी बैठक में आ गए. साथ में उन की बेगम नासिरा बी, दोनों बेटेबहुएं बैठे हुए थे.

नासिरा बी सन्नाटे को तोड़ते हुए बोलीं, ‘‘करमजली कुलसुम मर क्यों न गई. इस कलमुंही की वजह से ये दिन देखने पड़े. यह सब आप की वजह से हुआ. न उसे इतनी छूट देते, न वह एक हिंदू लड़के से शादी करती. नाक कटा दी उस ने जातबिरादरी में. देखो, पूरा महल्ला बिफर पड़ा. कैसीकैसी बातें कह रहे थे और आप कानों में तेल डाल कर चुपचाप गूंगे बन कर सुनते रहे.

‘‘अरे, अब भी जबान तालू में क्यों चिपक गई,’’ मगर हामिद शाह ने कोई जवाब नहीं दिया. उन की आंखें बता रही थीं कि उन्हें भी अफसोस है.

‘‘अब्बा, अगर आप कहें तो उस कुलसुम को उस से छुड़ा कर लाता हूं. आग लगा दूंगा उस घर में,’’ छोटा बेटा उस्मान अली गुस्सा हो कर बोला.

‘‘नहीं उस्मान, ऐसी भूल कभी मत करना,’’ आखिर हामिद शाह अपनी जबान खोलते हुए बोले. पलभर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘इस में मेरी भी रजामंदी थी. कुलसुम को मैं ने बहुत समझाया था. मगर वह जिद पर अड़ी रही, इसलिए मैं ने फिर इजाजत दे दी थी.’’

‘‘यह आप ने क्या किया अब्बा?’’ नाराज हो कर उस्मान अली बोला.

‘‘उस्मान, अगर मैं इजाजत नहीं देता, तो कुलसुम खुदकुशी कर लेती. यह सारा राज मैं ने छिपा कर रखा था.’’

‘‘आप ने मुझे नहीं बताया,’’ नासिरा बी चिल्ला कर बोलीं, ‘‘सारा राज छिपा कर रखा. अरे, बस्ती के लड़कों को ले जाते उस के घर में और आग लगा देते. कैसे अब्बा हो आप, जो अपनी बेगम को भी नहीं बताया.’’

‘‘कैसी बात करती हो बेगम, ऐसा कर के शहर में दंगा करवाना चाहती थी क्या?’’ हामिद शाह बोले.

‘‘अरे, इतनी बड़ी बात तुम ने छिपा कर रखी. मुझे हवा भी नहीं लगने दी. अगर मुझ से कह देते न तो उस की टांग तोड़ कर रख देती. यह सब ज्यादा पढ़ाने का नतीजा है. मैं ने पहले ही कहा था, बेटी को इतना मत पढ़ाओ. मगर तुम ने मेरी कहां चलने दी. चलो, पढ़ाने तक तो ठीक था. नौकरी भी लग गई,’’ गुस्से से उफन पड़ीं नासिरा बी, ‘‘आखिर ऐसा क्यों किया आप ने? क्यों छूट दी उस को?’’

‘‘देखो बेगम, तुम चुप हो तो मैं तुम्हें सारा किस्सा सुनाऊं,’’ कह कर पलभर को हामिद शाह रुके, फिर बोले, ‘‘तुम तो आग की तरह सुलगती जा रही हो.’’

‘‘हां कहो, अब नहीं सुलगूंगी,’’ कह कर नासिरा बी खामोश हो गईं. तब हामिद शाह ने सिलसिलेवार कहानी सुनानी शुरू की, लेकिन उस से पहले उन के घर के हालात से आप को रूबरू करा दें.

हामिद शाह एक सरकारी मुलाजिम थे. वे 10 साल पहले ही रिटायर हुए थे. कुलसुम से बड़े 2 भाई थे. दोनों की साइकिल की दुकान थी. सब से बड़े का नाम मोहम्मद अली था, जिस के 5 बच्चे थे. छोटे भाई का नाम उस्मान अली था, जिस के 3 बच्चे थे.

कुलसुम से बड़ी 3 बहनें थीं, जिन की शादी दूसरे शहरों में हो चुकी थी. कुलसुम सब से छोटी थी और सरकारी टीचर थी.

कुलसुम जब नौकरी पर लग गई थी, तब उस के लिए जातबिरादरी में लड़के देखना शुरू किया था. शाकिर मियां के लड़के अब्दुल रहमान से बात तकरीबन तय हो चुकी थी. लड़का भी कुलसुम को आ कर देख गया था और उसे पसंद भी कर गया था. मगर कुलसुम ने न ‘हां’ में और न ‘न’ में जवाब दिया था.

एक दिन घर में कोई नहीं था, तब हामिद शाह ने कुलसुम से पूछा, ‘‘कुलसुम, तुम ने जवाब नहीं दिया कि तुम्हें अब्दुल रहमान पसंद है कि नहीं. अगर तुम्हें पसंद है तो यह रिश्ता पक्का कर दूं?’’

मगर 25 साल की कुलसुम अपने अब्बा के सामने चुपचाप खड़ी रही. उस के मन के भीतर तो न जाने कैसी खिचड़ी पक रही थी. उसे चुप देख हामिद शाह फिर बोले थे, ‘‘बेटी, तुम ने जवाब नहीं दिया?

‘‘अब्बा, मुझे अब्दुल रहमान पसंद नहीं है,’’ इनकार करते हुए कुलसुम बोली थी.

‘‘क्यों मंजूर नहीं है, क्या ऐब है उस में, जो तू इनकार कर रही है?’’

‘‘क्योंकि, मैं किसी और को चाहती हूं,’’ आखिर कुलसुम मन कड़ा करते हुए बोली थी.

‘‘किसी और का मतलब…?’’ नाराज हो कर हामिद शाह बोले थे, ‘‘कौन है वह, जिस से तू निकाह करना चाहती है?’’

‘‘निकाह नहीं, मैं उस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर, किस से?’’

‘‘मेरे स्कूल में सुरेश है. मैं उस से शादी कर रही हूं. अब्बा, आप अब्दुल रहमान क्या किसी भी खान को ले आएं, मैं सुरेश के अलावा किसी से शादी नहीं करूंगी,’’ कह कर कुलसुम ने हामिद शाह के भीतर हलचल मचा दी थी.

हामिद शाह गुस्से से बोले थे, ‘‘क्या कहा, तू एक हिंदू से शादी करेगी? शर्म नहीं आती तुझे. पढ़ालिखा कर तुझे नौकरी पर लगाया, इस का यही सिला दिया कि मेरी जातबिरादरी में नाक कटवाना चाहती है.’’

‘‘अब्बा, आप मुझे कितना ही समझा लें, चिल्ला लें, मगर मैं जरा भी टस से मस नहीं होऊंगी.’’

‘‘देख कुलसुम, तेरी शादी उस हिंदू लड़के के साथ कभी नहीं होने दूंगा,’’ हामिद शाह फिर गुस्से से बोले, ‘‘जानती नहीं कि हमारा और उस का मजहब अलगअलग है. फिर हमारा मजहब किसी हिंदू लड़के से शादी करने की इजाजत नहीं देता है.

‘‘कब तक मजहब के नाम पर आप जैसे सुधारवादी लोग भी कठमुल्लाओं के हाथ का खिलौना बनते रहेंगे? कब तक हिंदुओं को अपने से अलग मानते रहेंगे,’’ इस समय कुलसुम को भी न जाने कहां से जोश आ गया. उस ने अपनी रोबीली आवाज में कहा, ‘‘अरे अब्बा, 5-6 पीढ़ी पीछे जाओ. इस देश के मुसलमान भी हिंदू ही थे. फिर हिंदू मुसलमान को 2 खानों में क्यों बांट रहे हैं. मुसलमानों को इन कठमुल्लाओं ने अपने कब्जे में कर लिया है.’’

‘‘अरे, चंद किताबें क्या पढ़ गई, मुझे पाठ पढ़ा रही है. कान खोल कर सुन ले, तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं चाहूंगा,’’ हामिद शाह उसी गुस्से से बोले थे.

‘‘अब्बा, मैं भी शादी करूंगी तो सुरेश से ही, सुरेश के अलावा किसी से नहीं,’’ उसी तरह कुलसुम भी जवाब देते हुए बोली थी.

इतना सुनते ही हामिद शाह आगबबूला हो उठे, मगर जवाब नहीं दे पाए थे. अपनी जवान लड़की का फैसला सुन कर वे भीतर ही भीतर तिलमिला उठे थे. फिर ठंडे पड़ कर वे समझाते हुए बोले थे, ‘‘देखो बेटी, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो. जो फैसला तुम ने लिया है, वह भावुकता में लिया है. फिर निकाह जातबिरादरी में होता है. तुम तो जातबिरादरी छोड़ कर दूसरी कौम में शादी कर रही हो.

‘‘बेटी, मेरा कहना मानो, तुम अपना फैसला बदल लो और बदनामी से बचा लो. तुम्हारी मां, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बहनों को जातबिरादरी का पता चलेगा तो कितना हंगामा होगा, इस बात को समझो बेटी, मैं कहीं भी मुंह देखाने लायक नहीं रहूंगा.’’

‘‘देखिए अब्बा, आप की कोई भी बात मुझे नहीं पिघला सकती,’’ थोड़ी नरम पड़ते हुए कुलसुम बोली, ‘‘सुरेश और मैं ने शादी करने का फैसला कर लिया है. अगर आप मुझ पर दबाव डालेंगे, तब मैं अपने प्यार की खातिर खुदकुशी कर लूंगी.’’

कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह ऊपर से नीचे तक कांप उठे, फिर वे बोले थे, ‘‘नहीं बेटी, खुदकुशी मत करना.’’

‘‘तब आप मुझे मजबूर नहीं करेंगे, बल्कि इस शादी में आप मेरा साथ देंगे,’’ कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह सोच में पड़ गए. एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई. कुलसुम का साथ दें, तो समाज नाराज. अगर जबरदस्ती कुलसुम की शादी बिरादरी में कर भी दी, तब कुलसुम सुखी नहीं रहेगी, बल्कि खुदकुशी कर लेगी.

अपने अब्बा को चुप देख कुलसुम बोली, ‘‘अब्बा, अब सोचो मत. इजाजत दीजिए.’’

‘‘मैं ने कहा न कि बेटी घर में बहुत बड़ा हंगामा होगा. सचमुच में तुम सुरेश से ही शादी करना चाहती हो?’’

‘‘हां अब्बा,’’ कुलसुम हां में गरदन हिला कर बोली.

‘‘बीच में धोखा तो नहीं देगा वह?’’

‘‘नहीं अब्बा, वे लोग तो बहुत

अच्छे हैं.’’

‘‘तुम एक मुसलमान हो, तो क्या वे तुम्हें अपना लेंगे?’’

‘‘हां अब्बा, वे मुझे अपनाने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘देख बेटी, हमारा कट्टर समाज इस शादी की इजाजत तो नहीं देगा, मगर मैं इस की इजाजत देता हूं.’’

‘‘सच अब्बा,’’ खुशी से झूम कर कुलसुम बोली.

‘‘हां बेटी, तुझे एक काम करना होगा, सुरेश से तुम गुपचुप शादी कर लो. किसी को कानोंकान हवा न लगे. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी…’’ सलाह देते हुए अब्बा हामिद शाह बोले, ‘‘जब तुम दोनों शादी कर लोगे, तब फिर कुछ नहीं होगा. थोड़े दिन चिल्ला कर लोग चुप हो जाएंगे.’’

इस घटना को 8 दिन भी नहीं गुजरे थे कि कुलसुम ने सुरेश के साथ कोर्ट में शादी कर ली. इस घटना की खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई.

‘‘देखिएजी, इस शादी को मैं शादी नहीं मानती,’’ नासिरा बी झल्लाते हुए बोलीं, ‘‘मुझे कुलसुम चाहिए. कैसे भी कर के उस को उस हिंदू लड़के से छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘बेगम, जिसे तुम हिंदू कह रही हो, वही तुम्हारा दामाद बन चुका है. कोर्ट में मैं खुद मौजूद था गवाह के तौर पर और तभी जज ने शादी बिना रोकटोक के होने दी थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती उसे दामाद,’’ उसी तरह नासिरा बी गुस्से से बोलीं, ‘‘पुलिस को ले जाओ और उसे छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘पुलिस भी कानून से बंधी हुई है बेगम. दोनों बालिग हैं और कुलसुम बयान देगी कि उस ने अपनी मरजी से शादी की है और बाप की गवाही है, तब पुलिस भी कुछ नहीं कर पाएगी. उसे अपना दामाद मान कर भूल जाओ,’’ समझाते हुए हामिद शाह बोले.

‘‘तुम बाप हो न, इसलिए तुम्हारे दिल में पीड़ा नहीं है. एक मां की पीड़ा को तुम क्या जानो?’’ गुस्से से नासिरा बी बोलीं, ‘‘मैं सब समझती हूं तुम बापबेटी की यह चाल है. खानदान में मेरी नाक कटा दी,’’ कह कर नासिरा बी गुस्से से बड़बड़ाती हुई चली गईं.

हामिद शाह मुसकराते हुए रह गए. नासिरा बी अब भी अंदर से बड़बड़ा रही थीं. इधर दोनों बेटे भी दुकान पर चले गए.

Best Stories : न इधर की, न उधर की

Best Stories : किचन के एक साफ कोने में फर्श पर बिछाए अपने बिस्तर पर मधुवंती करवटें बदल रही थी. क्यों न करवटें बदले, युवा सपनों में डूबी आंखों में कैसे नींद आए जब बैडरूम से ऐसी आवाज़ें आ रही हों कि अच्छाभला इंसान सोते से जग जाए. वह दम साधे लेटी थी. उसे पता था कि अभी  नशे में डूबी नायशा फ्रिज से ठंडा पानी लेने आएगी या उस से उठा नहीं  गया तो मधुमधु चिल्लाएगी या नायशा का बौयफ्रैंड देवांश ही पानी लेने आएगा. अब एक साल में  मधुवंती इतना तो समझ गयी थी कि नायशा जम कर शराब पीने के बाद बौयफ्रैंड के साथ जीभर वह सबकुछ करती है जिसे न करने देने के लिए नायशा के गांव में रहने वाले पेरैंट्स ने उसे अपनी बेटी के साथ भेज दिया था. पर मधुवंती कैसे नायशा की लाइफस्टाइल में दखल दे सकती थी, वह है तो एक नौकर ही. क्या उस की इतनी हैसियत है कि नायशा को ज्ञान दे? इतने में उसे क़दमों की आहट सुनाई दी. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. किचन में अंधेरा था. पर मधुवंती की आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं. देवांश था. उस के डिओ की खुशबू मधुवंती को बहुत पसंद थी. मधुवंती का मन इस खुशबू से खिल उठा था. उस ने धीरे से आंखों को ज़रा सा खोल कर देखा. देवांश फ्रिज से पानी की बोतल निकाल रहा था. उस के  सुगठित शरीर पर मधुवंती की नज़रें टिकी रह गईं. देवांश चला गया. इतने में नायशा के खिलखिलाने की आवाज़ से मधुवंती फिर देर तक सो न सकी. फिर रोज़ की तरह नायशा के बैडरूम की तरफ ध्यान लगाएलगाए उस की आंख लग ही गई.

यह वाशी, मुंबई की एक बिल्डिंग का वन बैडरूम फ्लैट है. नायशा ने इस फ्लैट को मुंबई आते ही अपने कलीग्स की हैल्प से किराए पर  लिया है. वह मालेगांव की रहने वाली है और इस समय एक अच्छे पद पर काम करती है. उस के पेरैंट्स ने अपने घर में काम कर रही मेड की किसी दूर की रिश्तेदार मधुवंती को नायशा की देखभाल के लिए मुंबई साथ भेज दिया है. मुंबई में नायशा कैसे जीती है, इस की भनक उस के सीधेसादे पेरैंट्स को लग ही नहीं सकती. नायशा ने अपनी पढाई पुणे में रह कर की थी जहां उस के काफी बौयफ्रैंड्स रहे. अपनी आज़ाद लाइफ में जो सब से बुरी आदत उसे लगी है, वह है बेहिसाब शराब पीने की. दिन में औफिस, शाम होते ही कोई न कोई बौयफ्रैंड और शराब. बस, यही है नायशा की लाइफ.

मधुवंती हैरान होती है कि गांव की नायशा मुंबई में पहचान में भी नहीं आती. वहां वह इतनी सुशील, संस्कारी बन कर रहती कि लोग कहते कि लड़की हो तो ऐसी, अपने घर से बाहर रहने पर भी कोई बुरी आदत नहीं. वाह. अब मधुवंती मन ही मन हंसती है, उस ने तो अब तक लड़कों के ही ऐसे काम सुने थे, मूवीज में देखे थे लेकिन अब तो नायशा के रंगढंग उसे इतना हैरान कर चुके थे कि पता नहीं उस की भी कौन सी सुप्त इच्छाएं जागने को तैयार थीं.

सुबह मधुवंती ही सब से पहले उठी. फ्रैश हो कर नाश्ता और नायशा के टिफ़िन की तैयारी करने लगी. जब तक नायशा और देवांश सो कर उठे, वह काफी काम निबटा चुकी थी. उस ने दोनों को चाय का कप पकड़ा कर नायशा का टिफ़िन पैक कर के टेबल पर रखा. देवांश ने कहा, “यार नायशा, तुम्हारी बड़ी ऐश है. मधु सब काम संभाल  लेती है. मुझे तो सब काम करना पड़ता है. मधु, यार, तुम मेरे घर चलो,” कह कर देवांश मधु को देख कर मुसकराया तो मधु ने भी बड़ी अदा से उसे देखा और मुसकरा दी. नायशा ने देवांश को बनावटी डांट लगाई, “खबरदार, मधु पर नज़र डाली. वह कहीं चली गई, तो मैं तो मर ही जाऊंगी. अपने काम मुझ से होते नहीं, यह सच है. यार मधु, तुम इस पर ध्यान मत दो. इसे बढ़ावा  न दो. देवांश, मधु मेरी है, मेरी ही रहेगी.”

हंसीमज़ाक, छेड़छाड़ के साथ सुबह की चाय पी गई और देवांश अपने घर चला गया. वह थोड़ी दूर की ही बिल्डिंग में रहता था. नायशा भी औफिस के लिए तैयार होने लगी. नाश्ता करते हुए वह बोली, ”मधु, तुम्हारे साथ से मेरी लाइफ बहुत इजी रहती है, कोई काम नहीं करना पड़ता, थैंक यू, यार. तुम तो मेरी हमराज़ भी हो. मेरे घरवाले भी यही सोच कर खुश हैं कि मैं अकेली नहीं हूं. और सुनो, अगर रात देवांश मुझ से पहले आ जाए तो उस से खाना खाने को पूछ लेना. मेरी एक मीटिंग है, मुझे टाइम लग सकता है.”

मधु नायशा से 4 साल ही छोटी थी. गांव में उस के मातापिता उस की बड़ी 2 बहनों के विवाह के लिए परेशान थे. सो, वे लोग यही सोच कर तसल्ली कर लेते थे कि मधु फिलहाल जहां रह रही है, आराम से रह रही है. नायशा उसे  अपने घर भेजने के लिए अच्छेखासे पैसे भी दे देती थी.

मधु इस रोमांच से भर उठी थी कि देवांश नायशा से पहले आ सकता है. वह मन ही मन देवांश पर आसक्त थी. पर अपनी हैसियत याद कर के कोई भी गलत हरकत नहीं करना चाहती थी. देवांश को देखना उस के युवामन को खूब भाता. 7 बजे ही देवांश ने डोरबैल बजा दी. मधुवंती शाम से ही नहाधो कर साफ़सुथरे कपड़ों में सजी सी मन ही मन उस का इंतज़ार कर रही थी. सुंदर तो वह थी ही. देवांश आते ही सोफे पर ढह सा गया, बोला, ”नैश तो लेट आएगी न?”

”जी.”

मधुवंती हैरान हुई, जब वह जानता है कि नायशा लेट आएगी तो इतनी जल्दी क्यों आ गया. देवांश ने फिर उठ कर किचन में जा कर एक गिलास में थोड़ी शराब ली, बर्फ डाली और कहा, ”मधु, तुम ने कभी शराब पी है?”

”नहीं.”

”आओ, आज टैस्ट कर लो.”

”नहींनहीं, बिलकुल नहीं.”

”अरे, आओ न,” कहतेकहते देवांश ने अपना गिलास उस के मुंह से लगा दिया. घूंट भरते ही मधुवंती पीछे हटने लगी. देवांश उस के साथ थोड़ी नजदीकी बढ़ाते हुए आगे बढ़ने लगा. जैसे ही मधुवंती की कमर में देवांश ने हाथ डाला, डोरबैल हुई. देवांश तुरंत सोफे पर जा कर बैठ गया. नायशा आई थी, हैरान हो कर बोली, ”तुम जल्दी आ गए?”

”हां, मन नहीं लगता अब अकेले,” कहते हुए उस ने उठ कर नायशा के गाल पर किस कर दिया और मधु को देख कर शरारत से मुसकरा दिया. नायशा ने उस के रोमांस का आनंद उठाते हुए कहा, ”अरेअरे, मुझे हाथ तो सैनिटाइज़ करने दो. कोरोना के केस फिर बढ़ने लगे हैं.”

”अरे, अब क्या चिंता, हमारे  पास तो मधु है, लौकडाउन में लोग मेड के लिए रोते रह गए पर तुम ने तो आराम ही किया.”

”फ्रैश हो कर आती हूं. मेरे लिए भी एक पैग तैयार रखना, लाओ, एक घूंट पी ही लूं,” कह कर नायशा देवांश का पूरा गिलास खाली कर नहाने चली गई. वह हंसता हुआ किचन की तरफ जाने लगा. जातेजाते उस ने मधुवंती को जिन निगाहों से देखा, मधु रोमांचित हो उठी. वह डिनर की तैयारी करने लगी. अचानक देवांश से बोली, ”कुछ चीजें ख़त्म हो गई हैं, दीदी से कहना, अभी ले कर आई.”

नायशा का फ्लैट चौथी फ्लोर पर था. नीचे जा कर मधु ने थोड़ी सब्जी खरीदी. उस के पास इतना पैसा रहता था कि वह घर के सामान ला सके. वापस लौटते हुए वह बिल्डिंग के वौचमैन सुधीर से बातें करने लगी. वह भी उसी की उम्र का था और दोनों में 3 महीने से काफी नजदीकी आ चुकी थी.

मुंबई की सोसाइटी में जो वौचमैन ड्यूटी करते हैं, ज़्यादातर वे सब दूर राज्यों के छोटे गांवों से अकेले, बिना परिवार के आए होते हैं. एकएक रूम को कई लोग शेयर कर लेते हैं. सुधीर यहां दिन की ड्यूटी करता था और विमल रात की. दोनों ही वौचमैन से मधुवंती के नजदीकी संबंध बन चुके थे. आजकल इस सोसाइटी में अकेले रहने वाले बैचलर्स को फ्लैट किराए पर नहीं दिए जा रहे थे पर नायशा और मधुवंती को सब लोग बहुत शरीफ समझते थे, ये किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थीं. नायशा के बौयफ्रैंड भी हमेशा चुपचाप आते, चुपचाप चले जाते. ये लोग साथ में कभी नहीं आतेजाते थे, इसलिए किसी की नज़रों में लड़कों का फ्लैट में आनाजाना ज़्यादा नहीं आ पाया था. नायशा के फ्लोर पर रहने वाले एक परिवार में बुजुर्ग दंपती ही थे. बाकी दोनों फ्लैट्स बंद रहते. सुधीर ने मधुवंती से कहा, ”कल दिन में आ जाऊं, तेरी मैडम औफिस जाएगी न?”

”आ जाना,” मधु ने शरारत से कहा, “और हां, आएगा तो थोड़ी मस्ती करेंगे, काफी सामान मैडम ने ला कर रखा है.”

”वाह, आता हूं,” सुधीर हंसा. आजकल नायशा के रंगढंग देख कर मधु भी  पूरी तरह वही सब करने लगी थी जो नायशा करती. ऊपर आने पर मधु ने देखा, देवांश और नायशा बैडरूम में बंद हो चुके थे. वह भी लाया हुआ सामान संभालने लगी. डिनर के समय ही दोनों बैडरूम से निकले. देवांश की आंखों की खुमारी देख मधु का मन उस की तरफ खिंचा. वह भी उसे ही देखता रहा. दोनों डिनर कर के, थोड़ी देर टी वी देख कर सोने चले गए. रात फिर वैसी ही थी, जैसी रोज़ होती थी.

देररात मधु की आंख एक झटके से खुली. उस के पास देवांश बैठा, उसे छू रहा था. वह झटके से उठ कर बैठी तो देवांश फुसफुसाया, “वह सो रही है. मधु, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं.”

नींद में डूबी मधु इस बात पर पूरी चौकन्नी हो गई, बोली, ”नहीं साब, आप अभी जाओ.”

”ठीक है, दिन में मिलता हूं.”

मधु को फिर नींद नहीं आई. उसे लगा, देवांश जैसा लड़का उस के पास आया है. वह अगर उसे थोड़ी ढील दे दे तो वह अपना जीवन बदल सकती है. सुधीर और विमल जैसे वौचमेन उसे जीवन में क्या देंगे. सब अपना टाइम पास ही तो कर रहे हैं, वह भी उन के साथ कौन सा सीरियस हो कर जीवन में आगे बढ़ने वाली है. ऐश तो देवांश के साथ ज़्यादा हो सकती है. उस ने बाकी की रात अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बिताई.

नायशा रोज़ की तरह शराब पी कर नशे में धुत सोई थी. वह सीधे सुबह ही उठती थी. अगली सुबह दोनों निकल गए तो मधु ने इंटरकौम से सुधीर को जल्दी आने के लिए कहा, सुधीर ने दूसरी बिल्डिंग के वौचमैन से कहा, ”मैं अभी आता हूं, तू इधर का भी ध्यान रखना.”

सब वौचमेन की आपस में खूब बनती थी.

सुधीर के साथ बैठ कर मधुवंती ने पहले थोड़ीथोड़ी शराब पी, फिर नायशा के बैड पर ही सारी दूरियां ख़त्म कर उसी के साथ बैठ कर खाना खाया. ऐसा वे कई बार करते. नायशा के बैड पर आज लेटते हुए वह कल्पना कर रही थी कि बहुत जल्दी देवांश भी उस के साथ यहां होगा. कई बार किसी वीकैंड पर नायशा और देवांश लोनावला या माथेरान चले जाते तो नायशा रात के वौचमैन विमल को भी ऐसे ही अपने पास बुला लेती. दोनों उस पर बुरी तरह मरते. अब मधुवंती गांव जल्दी जाना न चाहती. उसे शहरी आबोहवा, ये रंगढंग खूब अच्छे लगते. इस के कुछ ही दिनों बाद नायशा को एक रात के लिए पुणे जाना था, क्लाइंट मीटिंग थी. नायशा उसे सब निर्देश दे कर चली गई. रात 8 बजे देवांश आया. वह चौंकी नहीं. वह तो मन ही मन इस बात के लिए सजसंवर कर  तैयार थी. देवांश दीवाना सा उस का हाथ पकड़  कर प्रेम निवेदन करने लगा. वह सुंदर सपनों में डूबतीउतराती रही. फिर वही सब हुआ, जो होना ही था. देवांश वही था, वही बैडरूम, वही बैड, वही शराब के पैग. बस, नायशा की जगह मधुवंती थी जो इस समय खुद को नायशा की जगह पा कर अपनेआप को धन्य मान रही थी. धीरेधीरे यही रूटीन शुरू हो गया. दोनों बहुत जल्दी एकदूसरे में इतना डूबे रहने लगे कि अब तो कई बार मधुवंती ही नायशा के औफिस जाने के बाद देवांश के फ्लैट पर चली जाती. उस के घर की हर चीज की देखभाल अपने हाथों से करती. ऐसी बातें कब तक छिपतीं. एक रात नायशा की आंख खुल गई, देखा, देवांश बैड पर नहीं था. वह नशे में लड़खड़ाती लिविंगरूम में आई. सोफे पर देवांश और मधुवंती को जिस हालत में देखा, उस का नशा हिरन हो गया. ज़ोरज़ोर से चिल्लाने लगी. देवांश ‘सौरी नायशा’ कहता हुआ, अपने कपड़े ठीक करता हुआ, अपना सामान तुरंत ले कर फ्लैट से निकल गया. नायशा मधुवंती पर चिल्लाए जा रही थी. थोड़ी देर तो वह सुनती रही, फिर खुल कर मैदान में आ गई, बोली, ”मुझे जाने को कहोगी, दीदी, मैं चली जाऊंगी. कोई बात नहीं. करना फिर खुद सारे काम.  गांव जा कर आप की बोतलों का हिसाब सब को बताऊंगी न, तो देखना, कैसे आप के घरवाले आप को सुधारते हैं. खुद नशे में डूबी रहती हो, अपने घरवालों से इतने झूठ बोलती हो. मुझे रहना ही नहीं आप के साथ. मैं देवांश साब के घर में जा कर रह लूंगी. सोसाइटी वाले भी आप को ज़्यादा  दिन अकेले यहां रहने नहीं देंगे. आप की सारी बुरी आदतें सब को पता चल जाएंगी. मैं तो कल सुबह ही देवांश साब के घर चली जाऊंगी.”

नायशा सिर पकड़ कर बैठ गई, जिसे कम पढ़ीलिखी समझ कर अपने साथ नौकर की ही तरह रखा हुआ था, वह अब शेरनी की तरह गुर्रा रही थी. मधुवंती किचन में अपनी जगह जा कर लेट गई. नायशा सोफे पर सिर पकड़ कर बैठी थी. बुरी आदतों ने कहीं का न छोड़ा था उसे. इस से पहले जितने भी बौयफ्रैंड्स से रिश्ता ख़त्म हुआ था, उन का कारण कहीं  न कहीं आज़ादी के नाम पर कई बौयफ्रैंड्स से रिश्ते रखना और खूब शराब पीना था. लाइफ को बिलकुल फ्री हो कर जीने में यकीन रखने वाली नायशा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मधु का क्या करे. उसे पास रखने में भी नुकसान थे, निकाल देने में भी. वह गांव जा कर उस के रहनसहन की सारी पोल खोल सकती थी. बहुत बुरी फंसी थी वह. मधु जाती, तो मधु से मिलने वाले आराम ख़त्म होने वाले थे. देवांश का साथ भी छूट गया था. नुकसान ही नुकसान हुआ था.

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