जैसे को तैसा: भाग 1- भावना लड़को को अपने जाल में क्यों फंसाती थी

‘‘अमन,कहां हो तुम? बाय द वे जहां भी हो, मुझे आ कर मिलो अभी, इसी वक्त,’’ फोन पर और्डर देते हुए भावना बोली.

मगर अमन ने यह कहते हुए आने से मना कर दिया कि उस के घर पर कुछ मेहमान आने वाले हैं, तो वह अभी उस से मिलने नहीं आ सकता है.

‘‘ओके… फिर मैं ही आ जाती हूं तुम्हारे घर.’’

‘‘नहीं… तुम यहां मत आना, प्लीज,’’

अमन ने रिक्वैस्ट की, ‘‘ठीक है मैं ही आता हूं.’’

‘‘यह हुई न बात,’’ अपना मुंह गोल कर भावना ने फोन पर ही अमन को बड़ा सा चुम्मा दिया और यह कह कर फोन रख दिया कि उसे इंतजार करना जरा भी नहीं पसंद, इसलिए वह जल्दी आ जाए.

अब अमन को सम   झ नहीं आ रहा था कि वह घर से निकले तो कैसे क्योंकि अगर उस की मां छाया पूछेंगी कि वह कहां जा रहा है तो क्या बहाना बनाएगा? लेकिन जाना तो पड़ेगा वरना उस भावना का कोई भरोसा नहीं कि यहां पहुंच जाए. अपने मन में सोच अमन उठ खड़ा हुआ.

‘‘मां, एक जरूरी काम है, बस थोड़ी देर में आता हूं,’’ बोल कर अमित घर से निकलने ही लगा कि छाया ने उसे रोका, ‘‘पर जा कहां रहा है? अरे, घर पर मेहमान आने वाले हैं और तुम…’’

‘‘हां मां, पता है मु   झे. लेकिन मैं बस थोड़ी देर में आता हूं,’’    झल्लाता सा अमन घर से निकल गया. छाया कुछ और पूछतीं उस से पहले वह गाड़ी स्टार्ट कर पलभर में ओ   झल हो गया.

दरअसल, आज शाम रागिनी अमन की मंगेतर के भैयाभाभी अमन से मिलने उस के घर आने वाले हैं. वे लोग चाहते हैं कि अगर हफ्ता 10 दिनों में ही अमन और रागिनी की शादी हो जाए, तो बहुत अच्छा रहेगा. रागिनी का भाई राकेश गूगल कंपनी में सीओओ है और वे अपने परिवार सहित यहां इंडिया आए हुए हैं. राकेश की सास की हार्ट सर्जरी हुई है इसलिए वे लोग उन्हें देखने आए थे. चूंकि राकेश की पत्नी अपने मातापिता की एकलौती संतान है, इसलिए अपने मातापिता की सारी जिम्मेदारी उन की ही है. इंडिया आने के लिए राकेश को बड़ी मुश्किल से महीनेभर की छुट्टी मिल पाई थी, इसलिए अब वह सोच रहा है कि अगर रागिनी और अमन की शादी इधर ही हो जाए, तो फिर उन्हें तुरंत छुट्टी ले कर यहां नहीं आना पड़ेगा और उन का समय और पैसा दोनों बच जाएंगे.

वैसे सोच तो वे ठीक ही रहे थे क्योंकि उतनी दूर 7 समंदर पार से जल्दीजल्दी छुट्टी ले कर आना कोई बच्चों का खेल थोड़े ही है. आनेजाने में पैसे भी बहुत खर्च हो जाते हैं और बच्चों की पढ़ाई भी रुकती है. लेकिन राकेश का आना व्यर्थ ही गया क्योंकि अमन से उस की भेंट ही नहीं हो पाई. छाया ने कई बार उसे फोन भी लगाया यह पूछने के लिए कि वह कब आ रहा है. लेकिन अमन का फोन नहीं लग रहा था, इसलिए हार कर वे लोग वापस चले गए. रागिनी छाया की सब से प्रिय सहेली की बेटी है. 2 साल पहले ही वह अमेरिका से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स कर के लौटी है. अभी वह दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में बहुत ही अच्छे पैकेज पर जौब कर रही है.

पिछले साल ही एक शादी समारोह में रागिनी और अमन की मुलाकात हुई थी जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. लड़की जानीपहचानी, पढ़ीलिखी और सुंदर है और सब से बड़ी बात कि दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं, यह सोच कर दोनों परिवारों ने भी इस रिश्ते को मंजूरी दे दी और कुछ मेहमानों की मौजूदगी में दोनों की सगाई कर दी गई. लेकिन शादी की डेट 6 महीने बाद का पड़ा क्योंकि अमन ऐसा चाहता था. इसलिए राकेश अमन से बात करना चाह रहा था. मगर बात ही नहीं हो पाई.

मेहमानों के जाने के बाद भी छाया ने अमन को कई बार फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन ‘आउट औफ कवरेज’ ही बता रहा था. छाया को परेशान देख कर ब्रजकिशोर अमन के पापा ने कहा भी कि हो सकता उस का फोन डिस्चार्ज हो गया होगा, इसलिए नहीं लग रहा होगा. लेकिन छाया इस बात से परेशान थी कि थोड़ी देर का बोल कर गया यह लड़का घंटों से कहां गायब है? कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया.

छाया को काफी परेशान देख कर ब्रजकिशोर ने फिर सम   झाया कि बेकार में चिंता करने से क्या होगा? होगा कोई जरूरी काम. आ जाएगा न.  लेकिन छाया कैसे कहे अपने पति से कि ऐसा अकसर ही हो रहा है. रात देखता है न दिन… किसी का फोन आते ही दौड़ पड़ता है एकदम से. और फोन आने पर वह इतना घबरा क्यों जाता है? एक मां अपने बच्चे की हर सांस को पहचानती है, तो क्या अमन की आंखों का डर उसे नहीं सम   झ में आएगा? लेकिन पूछने पर वह कुछ बताता भी तो नहीं है न. या हो सकता है

उस के औफिस में कोई टैंशन हो और उस के बौस का फोन आया हो? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि अभी परसों ही तो उस के बौस से छाया की मुलाकात हुई थी. वे तो अमन की कितनी बढ़ाई करने लगे कि अमन बहुत ही मेहनती लड़का है. फिर किस बात की टैंशन है उसे? खुद से ही सवालजवाब करती हुई छाया ने अभी अपनी आंखें    झपकाई ही कि कौल बज उठी. अमन ही था.

रात के करीब साढ़े 11 बजे अमन को घर आया देख कर छाया का पारा 7वें आसमान पर चढ़ गया. अब गुस्सा तो आएगा ही न, मेहमान आ कर चले गए और यह लड़का अब आ रहा है. क्या सोच रहे होंगे वे लोग कि कितना लापरवाह लड़का है. छाया ने तो किसी तरह कोई बहाना बना कर उन्हें सम   झा दिया कि अचानक से अमन के औफिस से फोन आ गया इसलिए जाना पड़ा, आता ही होगा बस. मगर इस लड़के ने तो हद ही कर दी. बस आता हूं, कह कर घंटों बाद लौटा है. आखिर गया कहां था? कुछ बताता भी तो नहीं है.

‘‘आखिर चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में?’’ गुस्से से नाक फुलाती जब छाया ने सवाल किया तो अमन यह बोल कर अपने कमरे में

चला गया कि वह बहुत थक गया है, सुबह बात करेगा. यह भी नहीं पूछा उस ने कि रागिनी के भाईभाभी आए थे तो क्या बातें हुईं या उस के बारे में क्या कुछ पूछ रहे थे वे लोग? बस आया और सीधे अपने कमरे में चला गया. खाना भी तो नहीं खाया उस ने.

‘‘देख, अगर तेरे दिल में कोई बात है तो अभी बता दे. मेरे कहने का मतलब है अगर

तुम्हें कोई और लड़की पसंद आ गई हो तो बोल दे, मैं मना कर दूंगी उन्हें,’’ छाया ने स्पष्ट शब्दों में बोला.

‘‘आप बेकार में क्यों मेरा दिमाग खा रही हो मां,’’ अमन    झल्लाया सा बोला, ‘‘क्या चाहती हैं आप बोलिए न? अरे, कोई जरूरी काम आ पड़ा था इसलिए चला गया न तो इस में कौन सी बड़ी आफत आ गई जो आप इतना सुना रही हैं?’’

अमन के तेवर देख छाया हैरान रह गई क्योंकि पहले कभी उस ने अपनी मां से इस तरह से बात नहीं की थी.

‘‘प्लीज, आप जाइए यहां से, मु   झे सोने दीजिए,’’ कह कर अमन ने लाइट औफ कर दी. छाया कुछ पल वहीं खड़ी रही, फिर कमरे से बाहर निकल कर सोचने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अमन को कोई दूसरी लड़की पसंद आ गई हो और अब वह रागिनी से शादी नहीं करना चाहता है? नहींनहीं, अगर ऐसा होता, तो वह सगाई ही क्यों करता रागिनी के साथ. मैं भी न बेकार में उलटासीधा सोचने लगती हूं. हो सकता है इसे औफिस की ही कोई टैंशन हो. अपने खुले बालों को मुट्ठी में लपेट कर जूड़ा बनाते हुए छाया ने पलट कर देखा, तो अमन दीवार की तरफ मुंह किए सो रहा था. इसलिए वह धीरे से दरवाजा बंद कर वहां से चली आई.

अपनी मां से इस तरह बात करना अमन को जरा भी अच्छा नहीं लगा. लेकिन वह भी क्या करे क्योंकि वह अपनी मां से    झूठ नहीं बोल सकता था और छाया सच सुन नहीं पाती. इसलिए उसे अपनी मां से ऐसे रूखे स्वर में बात करनी पड़ी ताकि वह बारबार उस से सवाल न करे. रागिनी को भी उस ने फोन पर ऐसे ही दोटूक शब्दों में जवाब दे कर चुप करा दिया था कि अभी उन की शादी नहीं हुई है, जो वह उस पर इतना हक जता रही है. रागिनी को अमन की बात का बुरा तो लगा था पर उस ने जताया नहीं. लेकिन अमन को यह भी नहीं हुआ कि वापस फोन कर उसे एक बार सौरी बोल दें. उलटे रागिनी ने ही उसे फोन कर हालचाल पूछा था.

रागिनी भले ही अमेरिका से पढ़लिख कर लौटी है और इतनी बड़ी कंपनी में जौब कर रही है, लेकिन उस में घमंड नाममात्र का भी नहीं है. ‘डाउन टू अर्थ’ है वह. उस की इसी अदा पर तो अमन फिदा हो गया था. रागिनी अमीरीगरीबी, जातिधर्म में कोई भेद नहीं करती है. वह तो सड़क पर भीख मांग रहे बच्चे को भी गोद में उठा कर दुलार करने लगती है. जब भी समय मिलता है वह अपनी मेड के बच्चों को बैठा कर पढ़ाती है. हर संडे वह ब्लाइंड्स बच्चों को भी पढ़ाने जाती है. जब उस की मेड का पति शराब पी कर उसे मारतापीटता था, तब रागिनी ने उसे ऐसी डांट लगाई थी कि उस ने अपनी पत्नी के साथ बदसलूकी करना छोड़ दिया.

रागिनी जबतब अपनी मेड की पैसों से

भी मदद करती रहती है. हालांकि उस की यह मदद सामान्य बात है. पर उसे यह सामाजिक सरोकार की भावना अपनी मां और दादी से विरासत में मिली है. वैसे बेतरतीब इंसान तो अमन भी नहीं है. वह भी लोगों की मदद करने में विश्वास रखता है और उस के इसी विश्वास का नतीजा है कि आज वह इतनी बड़ी मुसीबत में फंस चुका है.

भेडि़या: भाग 1- मीना और सीमा की खूबसूरती पर किसकी नजर थी

‘‘अरे, सुन. क्या नाम है तेरा?’’

‘‘चमेली,’’ पास से गुजरती स्त्री ने पलट कर देखा.

‘‘तेरा नाम जसोदा है न?’’ चमेली ने भी उसे पहचान लिया था.

दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराईं.  जसोदा मतलब की बात पर आ गई, ‘‘वह मैं इसी हफ्ते 2 महीने के लिए गांव जाऊंगी. मेरे पास 3 कोठियों का काम है. तीनों में बरतन,    झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने का काम करती हूं. पूरे 10 हजार का काम है. एक कोठी की डस्टिंग भी है. उस के 3 हजार अलग से हैं. बोल, काम पकड़ेगी?’’

‘‘यानी 13 हजार,’’ चमेली हिसाब लगा

रही थी.

‘‘सुन, 2 महीने बाद आ कर काम वापस ले लूंगी,’’ जसोदा बोली.

‘‘ठीक है, अपना नंबर दे दे. घर पहुंच कर बताती हूं. हां, कोठी वाली से कल बात करा देना.’’

दोनो ने नंबरों का आदानप्रदान किया. मोबाइल अपनेअपने ब्लाउज में घुसेड़े और उसी तरह मुसकराती हुई विपरीत दिशा में मुंड़ गईं.

चमेली सोचने लगी कि पिछली 2 कोठियां छोड़ कर नई कोठियां पकड़ने की बात तो वह  पहले से ही सोच रही थी. जिन कोठियों में काम कर रही है वे सभी घर से दूर पड़ती हैं. काफी पैदल चलना पड़ता है.

चमेली का गणित फिर चालू हो गया. कोठियों के काम से मिली तनखा में से 3 हजार का राशनपानी, 1 हजार    झुग्गी का किराया. अगले महीने गांव में देवर की शादी है. हजार तो भेजने ही पड़ेंगे. गांव वाले घर की छत भी पक्की करानी है. इस के लिए भी 3 हजार महीने का जमा करती हूं. यहां भी कौन से महल में रह रही है. यह तो ठेकेदार के हाथपैर जोड़े तो 15?15 की जगह दे दी. मीना और सीमा 2 बेटियां हैं. लड़कियां बड़ी हो रही हैं. कोने की    झुग्गी है डर लगा रहता है… फिर भी कुछ तो है.

कैसा नसीब ले कर पैदा हुई है, चमेली… 15 साल पहले बसेसर का हाथ पकड़ कर यहां मुंबई आउटर पर आ गई थी. तब यह हाईवे के दोनों ओर जंगल ही जंगल था. जंगल काट कर कोई बहुत बड़ी बिल्डिंग बननी थी. बिल्डर ने 3-4 और भी ठेके ले लिए थे. सो बसेसर 10-12 साल ठेकेदार से जुड़ा रहा.

एक रोज बसेसर की टांग पर पत्थर गिर गया. पैर की हड्डी टूट गई. उस का काम छूट गया.

बेटे ने साफ कह दिया, ‘‘मैं ईंटगारे का काम कतई नहीं करूंगा.’’

पहले तो चमेली कुली का काम करती थी. पर तब बात और थी. बसेसर का काम छूटने पर  चमेली को भी काम छोड़ना पड़ा. ठेकेदार की नियत खराब थी.

चमेली जिन कोठियों में काम करने जाती है ज्यादातर कोठियों की छत बसेसर ने ही डाली है. पर खुद वह    झुग्गी में रहता है, जिस की दीवारें तो हैं पर छत बल्लियों पर टिके तिरपाल की है. तेज आंधी में कई बार तिरपाल उड़ चुका है. जानती है यहां लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. पर क्या करे? यहां सिर्फ एक ही लालच है लड़कियां पढ़ जाएंगी तो अच्छा घरवार मिल जाएगा. गांव चली गई तो रोटी के लाले पड़ जाएंगे. लड़कियां भी किसी काने, कुबड़े या बूढ़े के साथ बैठा दी जाएंगी. 10वीं कर लेंगी तो कोई न कोई कोठी वाली मेमसाब या साहब के औफिस में लग जाएंगी. लड़का भी ढंग का मिल जाएगा. बस इसी लालच में यहां पड़ी है.

अल सुबह बेटियों के साथ निकल जाती है. स्कूल में लड़कियों को छोड़ती हुई कोठियों की तरफ मुड़ जाती है. कोठियों कहें या कंकरीट का जंगल कहें. कभी मीलों तक घना जंगल था. जहां अब कोठियों है वहां कभी जंगली जानवरों का वास था. लेकिन प्रकृति की खूबसूरत संपदा को बड़ी बेरहमी से उखाड़ फेंका इन भूखे बिल्डरों ने. सिर्फ कुछ रुपयों की खातिर.

आज भी ऊंची इमारतों के पीछे खेत हैं और उन के पीछे घना जंगल है, जिस में आज भी जंगली जानवर खेत पार कर के कोठियों के पीछे लगे कंटीले तारों के पास या सर्विस लेन के आसपास देखे जाते हैं.

ये जानवर, पता नहीं क्या सोचते होंगे हम मनुष्यों के बारे में?

संभवतया सोचते होंगे कि कितना दुस्साहसी और निर्दयी है रे मनुष्य. किसी का रैनबसेरा उजाड़ कर अपने लिए घर बना लिया? लानत है ऐसी मानवता पर.

इन्हीं ऊंची इमारतों के पास लेबर बस्ती है. बस्ती में रहने वाले लोगों की संख्या जानते हैं कितनी होगी?

खेत पार बसे घने जंगल के जानवर जमा कोठियों और फ्लैटों में रहने वाले लोगों की संख्या में जोड़ लो और उस का 4 गुना कर दो. इतनी जनसंख्या है लेबर बस्ती की.

ज्यादातर फ्लैट और कोठियों खाली पड़ी हैं. जंगल में भी जानवर नहीं के बराबर रह गए हैं.

लेबर बस्ती में रहने वाले वही लोग हैं जिन्होंने अपने अन्नदाता के एक इशारे पर पूरी की पूरी प्राकृतिक संपदा को काटने में जरा देर नहीं लगाई और देखतेदेखते जमीन पर ऊंचेऊंचे टावर और कोठियों खड़ी कर दीं.

और अपने लिए? एक कमरे का मकान भी न जुटा सके. बस कच्ची सी    झुग्गी है जिस पर छत तो है नहीं. इसी में गरमी, सर्दी व बरसात सब बिताते हैं. छोडि़ए ये सब.

जरा इन कोठियों में    झांक कर देखें. कौन रहता है? क्या होता है यहां और कैसेकैसे लोग रहते हैं. कोठी नं 25. इस में वृद्ध पतिपत्नी रहते हैं. दोनों सारी सर्दी बालकनी में धूप सेंकते हैं.

घर के गेट पर नेम प्लेट लगी है ब्रिगेडियर अमन. इस जोड़े को धूप में बैठ कर चिल्ड बियर पीने का बहुत शौक है. कई बार पड़ोसी भी साथ देने और ठहाके लगाने आ जाते हैं. गरमियों में यही महफिल देर शाम को शुरू हो कर देर रात तक चलती है. कभीकभी 40 नंबर वाले कर्नल रमन भी साथ देने आ जाते हैं.

कर्नल और ब्रिगेडियर दोनों कई साल तक एक ही यूनिट में साथसाथ थे. हां, रिटायर भी एकसाथ हुए. दोनों के बच्चे कैलिफोर्निया में रहते हैं. बच्चे 2-3 सालों में बूढ़े मांबाप पर    झूठे प्यार की बारिश करने चले आते हैं.

ब्रिगेडियर के घर में 2 आया, 1 खानसामा, 2 लैब्रेडोर कुत्ते और एक भूरी आंखों वाली बिल्ली है. सब के ऊपर लंबी नुकीली मूंछों वाला मुस्तैद नेपाली चौकीदार है यानी घर में 2 लोगों की देखभाल के लिए 6 जीव?

26 नंबर कोठी खाली है. 27 नंबर में सान्याल रहतीं. तलाकशुदा है. घर में इवेंट्स और्गेनाइज करती है.

28 नंबर की शीला सान्याल के साथ बियर पीती है. साथ में दोनों मिल कर किट्टी पार्टी, ताश पार्टी बगैरा भी और्गेनाइज करती हैं. दोनों का गुजारा चल जाता है.

चमेली अब तक इन घरों में काम नहीं करती. हां जसोदा जा रही है तो 2 महीनों के लिए तो ये घर उसे मिलेंगे ही.

चमेली को सान्याल का काम इसलिए भी आकृष्ट कर रहा है क्योंकि सान्याल हर शनिवार को पार्टी रखती है. पार्टी बेशक देर रात तक चलती हो पर जानती है कमाई अच्छीखासी होती है. हर हफ्ते हजार रुपए कमाई.

चमेली खुश है. हिसाब बराबर है. जसोदा की दोनों कोठियों के काम को हां कर देगी. घर पहुंचते ही जसोदा को ‘हां’ कह दी.

दोराहा: पति ने की पत्नी के साथ की बेवफाई

‘‘सौरीमैडम, उपमा मिक्स का एक ही पैकेट था, जो इन्होंने ले लिया. नया स्टौक 3-4 दिनों में आएगा,’’ सेल्समैन की आवाज सुन कर रोहित ने मुड़ कर देखा. एक गौरवर्ण की अमेरिकन नवयुवती उस की तरफ देख रही थी.

उस के देखने में कुछ ऐसी कशिश थी कि रोहित ने उपमा मिक्स का पैकेट सेल्समैन को थमाते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट इन्हें दे दो. मैं फिर ले लूंगा.’’ उस युवती ने रोहित को आभारयुक्त नजरों से देखा और फिर डिपार्टमैंटल स्टोर से चली गई.

मैट्रो टे्रन लेट थी. ठंड बढ़ने के साथसाथ घना कुहरा भी छाया था. रोहित प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. तभी वह वहां एक लड़की से टकराया. दोनों की नजरें मिलीं और दोनों मुसकरा पड़े. वह वही डिपार्टमैंटल स्टोर में मिलने वाली लड़की थी.

तभी मैट्रो आ गई और दोनों एक ही डब्बे में चढ़ गए. रोहित उस के रेशम से लंबे केशों और गौरवर्ण से बहुत प्रभावित हुआ. उस का नाम जेनिथ था. उन में बातचीत शुरू हो गई. ‘‘आप कहां काम करते हैं?’’ ‘‘पार्क एवेन्यू की एक कंपनी में.’’

‘‘मैं भी वहीं काम करती हूं. आप की बिल्डिंग के साथ वाली बड़ी बिल्डिंग में मेरा दफ्तर है.’’ इस मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ी. फिर दोनों में दूरियां समाप्त हो गईं. कभी रोहित जेनिथ के यहां चला जाता तो कभी जेनिथ उस के यहां आ जाती.

विवाह किए बिना रहने वाले स्त्रीपुरुषों को अमेरिका में सामान्य रूप से ही देखा जाता था. अमेरिका और पाश्चात्य देशों में तलाक लेने पर काफी खर्चा पड़ता था, इसलिए असंख्य जोड़े विवाह किए बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहने को प्राथमिकता देते थे.

ऐसे जोड़ों में आपस में वफा या बेवफा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था. लेकिन इतना जरूर सम झा जाता था कि जब तक साथ रहें तब तक साथी वफादारी निभाए. एक रोचक बात यह थी कि कुछ समय के लिए साथसाथ रहने को रजामंद हुए जोड़ों में सारी उम्र का साथ बन जाता था, जबकि कानूनी तौर से विवाह कर पतिपत्नी बने जोड़ों का विवाह टूट जाता था.

यानी पक्की डोर से बंधा बंधन टूट जाता था तो कच्ची डोर से बंधा बंधन सारी उम्र चलता था. अमेरिका में युवकयुवतियों के लिए डेटिंग को जरूरी काम सम झा जाता था. जो डेटिंग पर नहीं जाता था उसे मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता था.

कौमार्य एक बेमानी बात सम झी जाती थी. जेनिथ ने रोहित से संबंध बनाए, साथ ही उस का और अपना एचआईवी टैस्ट भी करवाया कि कहीं उन में से कोई एड्स से ग्रस्त तो नहीं. दोनों इस बात से सहमत थे कि सैक्स संबंधों के दौरान कंडोम का प्रयोग कुदरती मजे को कम करता है.

एक रात सैक्स के दौरान रोहित ने कहा, ‘‘जेनिथ, तुम न कंडोम इस्तेमाल करने देती हो न ही और कोई गर्भनिरोधक अपनाती हो. अगर प्रैगनैंट हो गईं तो? ‘‘तो क्या? तब या तो गर्भपात करा लूंगी या फिर बच्चे को जन्म दे कर मां बन जाऊंगी,’’ जेनिथ ने सहजता से कहा. ‘‘गर्भपात तो ठीक है, मगर बच्चा…’’ ‘‘क्यों क्या आप को बच्चा अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘यह बात नहीं है.

मगर बिना विवाह किए बच्चे को जन्म देना तो नाजायज है?’’ ‘‘यह सब पुरातनपंथी बातें हैं. आजकल के जमाने में कोई इन बातों को नहीं मानता… छोड़ो इसे. यह बताओ आप अपनी पत्नी को यहां कब बुला रहे हो?’’ जेनिथ ने बात में उपजे तनाव को देखते विषय बदलते हुए पूछा. ‘‘मेरा हाल ही में ग्रीन कार्ड बना है. अब मैं अपनी पत्नी को यहां बुला सकता हूं.

मुझे अब बारबार अपना वीजा और वर्क परमिट बढ़वाने की जरूरत नहीं है.’’ रोहित की बात सुन कर जेनिथ गंभीर हो गई. आखिर ब्याहता पत्नी का कानूनी हक अपनी जगह था. वह तो एक साथी के तौर पर लिव इन रिलेशनशिप में उस के साथ रह रही थी. आखिरकार रोहित की पत्नी सुषमा का अमेरिका आना हो ही गया. जेनिथ ने हकीकत को सम झते हुए उस के आने से पहले ही अपना सामान रोहित के फ्लैट से उठा लिया और अपने फ्लैट में चली गई. रोहित की पत्नी सुषमा भी स्नातकोत्तर तक पढ़ीलिखी थी. साथ में कंप्यूटर में डिप्लोमा होल्डर थी. जेनिथ के मुकाबले वह थोड़े छोटे कद की थी. उस का रंग भी गेहुआं था. पर भारतीय नारी के दृष्टिकोण से वह भी सुंदर थी.

थोड़े दिनों तक घूमनाफिरना होता रहा. फिर रोहित सुषमा के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. थोड़े समय में ही उस के लिए कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. सुषमा के सहयोगियों में कई देशों के युवक थे. उस के साथ की सीट पर बैठने वाला एडवर्ड नील, अमेरिकन था. वह पुरानी सोच रखने वाला रोमन कैथोलिक ईसाई था. वह हर रविवार को चर्च जाता था.

अपने मातापिता की कब्रों पर मोमबत्तियां भी जलाता था. सुषमा उस के इस स्वभाव के कारण उस की तरफ आकर्षित होने लगी. एडवर्ड नील भी सुषमा के भारतीय पहनावे साड़ी और पंजाबी सलवारकमीज को बहुत पसंद करता था. वह भी सुषमा के प्रति स्नेह रखने लगा. एडवर्ड नील को भारतीय व्यंजन बहुत पसंद थे. सुषमा उस के लिए अपने टिफिन बौक्स में खाना लाने लगी.

एडवर्ड नील खाना लेते समय संकोच से भर उठता, क्योंकि वह बदले में खाना औफर नहीं कर पाता था. एक दिन उस के मनोभावों को सम झ सुषमा हंस कर बोली, ‘‘नील, कोई बात नहीं… टेक इट ईजी.’’ तब एडवर्ड नील ने हंस कर कहा, ‘‘क्या आप मु झे भारतीय खाना बनाना सिखाएंगी?’’ ‘‘श्योर… जब आप चाहो.’’ उस दिन रविवार था.

एडवर्ड नील सुषमा के यहां आया. सुषमा ने उस का रोहित से परिचय करवाया. परिचय करते समय रोहित कुछ असहज था जबकि एडवर्ड नील सहज था. एडवर्ड नील नीली जींस और सादी कमीज पर हलकी जैकेट पहने था जबकि रोहित पिकनिक का प्रोग्राम होने के कारण सूटेडबूटेड था. ‘‘रोहित, क्या आप कहीं बाहर जा रहे हैं?’’

‘‘हां, पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम था.’’ ‘‘आप तो सूटकोट में हो. मैं तो उस के बजाय कैजुअल वियर ही पसंद करता हूं. मु झे आप का भारतीय पहनावा कुरतापाजामा बहुत पसंद है.’’ ‘‘यानी आप भारतीय बन रहे हैं और हम अमेरिकन,’’ सुषमा की इस टिप्पणी पर सभी हंस पड़े. एडवर्ड नील ने मनोयोग से सुषमा के साथ रसोईघर में काम किया.

आलू छीले, टिकियां बनाईं, खीर बनाई और कई व्यंजन बनाए. फिर सभी पिकनिक पर चले गए. कार में बैठते समय सुषमा ने एडवर्ड नील से कहा, ‘‘आप अगली सीट पर बैठ जाएं.’’ ‘‘नहीं मैडम, मैं आप का स्थान नहीं ले सकता,’’ एडवर्ड नील ने अदा के साथ सिर नवा कर कहा और पिछली सीट पर बैठ गया. उस की इस अदा पर रोहित भी मुसकरा पड़ा.

पिकनिक स्पौट समुद्री तट था. कई स्त्रीपुरुष अधोवस्त्रों में रेतीले तट पर लेटे धूप सेंक रहे थे. कई समुद्र में नहा रहे थे. एडवर्ड नील कपड़े उतार जांघिया पहने समुद्र में उतर गया. सुषमा तैरना जानती थी मगर इस तरह अधोवस्त्रों में वह समुद्र या नदी में नहीं जाती थी. पिकनिक का दिन काफी अच्छा बीता. फिर एडवर्ड नील थोड़ेथोड़े अंतराल पर सुषमा के घर आता रहा.

थोड़े समय में ही वह अनेक भारतीय व्यंजन बनाना सीख गया. फिर वह भी सुषमा और अन्य साथियों के लिए भारतीय व्यंजन लाने लगा. एडवर्ड नील और सुषमा के मेलजोल को रोहित शंकित नजरों से देखने लगा. वह स्वयं एक गोरी मेम को कई महीनों तक अपने यहां एक साथी के तौर पर रख चुका था, इसलिए शंकित था कि एडवर्ड नील भी उस की पत्नी से गलत संबंध बनाएगा.

अत: अब वह बारबार सुषमा पर तुनक पड़ता. पहले सुषमा को वीकऐंड पर बाहर घुमाने ले जाता था. मगर अब अकेला जाता था. एडवर्ड नील का अपनी पत्नी से हाल ही में तलाक हुआ था. वह आम अमेरिकन लड़कियों के समान ही उच्छृंखल विचारों की थी.

उस की नजरों में उस का पति एक मिस फिट पर्सन था. कमोबेश ऐसे ही विचार सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अन्य सहयोगियों के थे. उन के विपरीत सुषमा एडवर्ड नील को एक फिलौस्फर और जीनियस मानती थी. दोनों में धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ने लगी. सुषमा का आकर्षण रोहित के लिए काफी कम हो गया. तब उसे जेनिथ की याद आई. 2-3 माह से उस ने उस की खबर न ली थी.

उस ने जेनिथ का फोन नंबर मिलाया. ‘‘अरे, आज आप को मेरी याद कैसे आ गई?’’ ‘‘कभी तो आनी ही थी. कैसी हो?’’ ‘‘फाइन… आप कैसे हैं? आप की पत्नी का क्या हाल है?’’ ‘‘अच्छा है, मिलने आ जाऊं?’’ ‘‘आ जाओ.’’ जेनिथ रोहित का फ्लैट छोड़ते समय प्रैगनैंट थी.

प्रैगनैंसी का पता उसे थोड़े समय बाद ही चला था. वह इस कशमकश में थी कि गर्भपात करवाए या नहीं. वह जानती थी कि बढ़ती उम्र में सहारे के लिए एक साथी के साथसाथ बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर जीवनसाथी को पाना भी आसान था तो छोड़ना भी. मगर जो भावनात्मक सुरक्षा विवाह नामक बंधन या संस्था में थी

वह लिव इन रिलेशनशिप में नहीं थी. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर साथसाथ रहने वाले साथियों में हर समय डर सा रहता कि कहीं उस का साथी उस से नाराज हो या अन्य बैटर साथी पा कर उसे छोड़ न जाए. जबकि विवाह की डोर से बंधे पतिपत्नी निश्चिंत रहते. उन्हें डर नहीं रहता कि साथी छोड़ कर चला जाएगा. फिर यदि तलाक भी लेगा तो नोटिस देगा और इस में समय लगेगा. रोहित जेनिथ के फ्लैट पर पहुंचा. उस को उस के प्रैगनैंट होने की खबर नहीं थी.

जेनिथ गर्भपात कराऊं या नहीं करवाऊं इसी कशमकश के कारण निर्धारित समय निकाल चुकी थी. अब गर्भपात नहीं हो सकता था. गर्भावस्था के कारण उस का शरीर फूल गया था. उस ने ढीलेढाले वस्त्र पहने हुए थे. रोहित उस के बेडौल शरीर को देख कर हैरान रह गया. बोला, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ ‘‘आप स्त्री होते तो ऐसा न कहते.’’

‘‘गर्भपात करवा लेतीं.’’ ‘‘सोचा तो था. बाद में विचार बना बड़ी उम्र में एक जीवनसाथी और बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. आखिर सारी उम्र तो कोई जवान नहीं रहता,’’ जेनिथ के स्वर में वेदना थी. रोहित थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘अच्छा मैं चलता हूं,’’ और फ्लैट से बाहर निकल गया. जेनिथ को रोहित के इस व्यवहार से धक्का लगा.

अमेरिकन या अंगरेज पुरुष स्वार्थी या मतलबी होते हैं, मगर क्या एक भारतीय भी इतना निर्मोही हो सकता है? अब उसे अपने प्यार या वासना का नतीजा भुगतना था. लिव इन रिलेशनशिप की पोल खुल चुकी थी. विवाह आखिर विवाह ही होता है. फिर उस ने अपनी देखभाल के लिए एक नर्सिंगहोम से संपर्क बना लिया. सुषमा का परिचय सामने के फ्लैट में रहने वाली पड़ोसिन मार्था डोरिन से हो गया.

वह उस के साथ फुरसत में गपशप मारने लगी. एक दिन मार्था डोरिन ने उस से कहा, ‘‘आप तो बहुत मिलनसार हो. आप से पहले वाली तो बहुत रिजर्व्ड थी. आखिर वह अमेरिकन थी न.’’ सुषमा सम झ गई कि रोहित ने उस के आने से पहले किसी लड़की को लिव इन रिलेशनशिप में रखा हुआ था. आखिर वह क्या करता? 3 साल से पत्नी से दूर था.

उसे भी स्त्रीसंसर्ग की जरूरत थी. मगर अब रोहित की उच्छृंखलताएं बढ़ गई थीं. वह रोज पीए घर लौटता था. सारी तनख्वाह पबों, बारों में और लड़कियों पर उड़ाने लगा था. घर का खर्चा सुषमा ही चलाती थी. कितनी विडंबना की बात थी कि जब तक पत्नी नहीं आई थी, जेनिथ से उस का संबंध जरूर था, लेकिन उस में संयम था. मगर अब उस की कामवासना विकृत हो चुकी थी. एडवर्ड नील तनहाई भरा जीवन गुजार रहा था. एक दिन सुषमा ने उस से हमदर्दी से पूछा, ‘‘नील, क्या आप को अकेलापन महसूस नहीं होता?’’ ‘‘यह तनहाई और अकेलापन क्या होता है?’’

‘‘क्या आप नहीं सम झते?’’ ‘‘देखिए, सुषमाजी, विवाह होने या जीवनसाथी के होने का मतलब यह नहीं है कि आप अकेलेपन का शिकार नहीं हैं. अगर पतिपत्नी की भी नहीं बनती हो तो सम झो ऐसे विवाह का कोई अर्थ नहीं.’’ ‘‘आप के यहां तो लिव इन रिलेशनशिप का चलन है. आप कोई साथी क्यों नहीं ढूंढ़ते?’’ ‘‘मेरा इस सिस्टम में विश्वास नहीं है.

इस का चलन उन पुरुषों में है, जो एक से ज्यादा स्त्रियों को शादी किए बिना साथ रखना चाहते हैं. आम आदमी तो विवाह के बंधन में ही विश्वास रखता है.’’ सुषमा अपने कार्यस्थल और घर आने के लिए कभी मैट्रो तो कभी लोकल बस का उपयोग करती थी. एक दिन डबलडैकर बस की खिड़की से उस ने रोहित को एक अमेरिकन युवती के साथ बगलगीर हो जाते देखा तो उसे धक्का लगा. उस रात भी रोहित नशे में धुत्त घर आया. उस रात सुषमा ने उसे सहारा न दिया.

गिरतापड़ता रोहित बिस्तर पर जा लेटा. सुबह नींद खुलने पर उस ने सुषमा को आवाज दी. मगर सुषमा नहीं आई. रोजाना उस की आवाज पर वह उसे चाय की प्याली थमा देती थी. ‘‘आज बैड टी नहीं बनाई?’’ उस ने पूछा. ‘‘खुद बना लीजिए,’’ उस की तरफ देखे बिना सुषमा ने कहा. ‘‘क्या आज मूड खराब है?’’ कहते हुए उस ने सुषमा को बांहों में लेना चाहा.

‘‘मु झे मत छुओ. अपनी उसी के पास जाओ जिस के साथ आप सरेआम घूमते हो.’’ इस पर रोहित ने तैश में आ कर कहा, ‘‘तुम उस दाढ़ी वाले फिलौसफर नील के साथ मस्ती करती हो और इलजाम मु झ पर लगाती हो?’’ ‘‘मैं इलजाम नहीं लगा रही… कल मैं ने खुद देखा था.’’ इस पर रोहित गुस्से में आ कर बाहर चला गया. दोनों अकेले हो गए. धीरेधीरे रुखाई बढ़ती गई. ‘‘तुम भारत वापस चली जाओ,’’ एक दिन रोहित ने कहा. ‘‘क्यों चली जाऊं?’’ ‘‘मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो आप यहां भी दे सकते हैं. भारत में एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है, क्या मु झे पता नहीं है.’’ आखिरकार सुषमा का रोहित से तलाक हो ही गया. वह अपने साथी एडवर्ड नील के साथ चली गई. रोहित अपनी नई मित्र मारिया के यहां गया मगर उस ने नया प्रेमी कर लिया था. तब वह जेनिथ के यहां गया. पर वह भी एक नए प्रेमी संग घर बसा चुकी थी. खाली हाथ मलता रोहित अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा उस दोराहे को देख रहा था, जिस के एक रास्ते से उस की 7 फेरों की ब्याहता चली गई तो दूसरे से लिव इन रिलेशनशिप की साथी. उस का घर उजड़ चुका था.

राशनकार्ड: क्या हुआ नरेश की बेटियों के साथ

‘‘पापा, सब लोग हम को घर में घुस कर देख क्यों रहे हैं? ऐसा लग रहा है, जैसे वे कोई अजूबा देख रहे हों,’’ नरेश की 22 साला बेटी नेहा बेटी ने पूछा.

‘‘वह… दरअसल, आज हम लोग शहर से आने के बाद क्वारंटीन सैंटर में 14 दिन रहने के बाद अपने घर जा रहे हैं न, इसीलिए सब लोग हमें अजीब नजरों से देख रहे हैं,’’ गांव में नरेश ने अपनी बेटी नेहा को बताया.

नरेश पिछले 20 साल से दिल्ली शहर में रह रहा था. अपनी शादी के कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी के साथ शहर चला गया था.

शहर में कोई काम शुरू करने के लिए नरेश के पास रकम तो थी नहीं, बस थोड़ाबहुत पैसा अपने बड़े भाई से मांग कर ले गया था, जो वहां सामान खरीदने में ही खर्च हो गया.

पर नरेश ने हिम्मत नहीं हारी और महल्ले के लोगों की गाडि़यां साफ करने का काम ले लिया. बस एक बालटी, एक पुराना कपड़ा, कार शैंपू और पानी तो कार वालों के यहां मिल ही जाता था.

जैसेजैसे लोगों के पास गाडि़यां  बढ़ीं, वैसेवैसे नरेश का काम भी बढ़ता चला गया और वह ठीकठाक पैसे कमाने लगा.

शहर में ही नरेश की पत्नी ने 2 बेटियों को जन्म दिया और अब तो बड़ी बेटी नेहा 22 साल की हो चली थी और छोटी बेटी 16 साल की.

नेहा के लिए तो लड़के वालों से बातचीत भी हो गई थी और रिश्ता भी पक्का हो गया था, पर इस लौकडाउन ने तो सभी के सपनों पर पानी ही फेर दिया. बहुत सारे मजदूरों को शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.

माना कि यह संकट कुछ महीनों में चला जाएगा, पर तब तक नरेश के पास इतनी जमापूंजी तो थी नहीं कि वह हालात सामान्य होने का इंतजार कर ले और वैसे भी बहुत से कार मालिकों ने अब नरेश को काम से हटा दिया था.

इस कोरोना काल में नरेश और उस का परिवार जितना सामान साथ ले सकते थे उतना ले आए और बाकी का सामान उन्हें मजबूरी के चलते शहर में ही छोड़ना पड़ गया था. पर मरता क्या न करता, जान बचाने के आगे भला सामान की चिंता कौन करता.

गांव में नरेश के बड़े भाई राजू का परिवार था. जब नरेश का परिवार गांव में अपने घर के दरवाजे पर पहुंचा तो सिर्फ राजू ही दरवाजे पर खड़ा था. उस ने उंगली के इशारे से ही नरेश और उस के परिवार को वहीं बाहर वाले कमरे में रुक जाने को कहा. उस कमरे में बरसात के दिनों में जानवरों को बांधा जाता था.

नरेश को पहले तो बहुत बुरा लगा, पर बाद में मन मार कर उस ने उसी कमरे को अपना घर बना लिया.

‘‘मैं ने पहले से ही कुछ दिनों का राशनपानी, एक चूल्हा और ईंधन इसी कमरे में रखवा दिया था, ताकि जब तुम लोग आओ तो दिक्कत का सामना न करना पड़े,’’ राजू ने नरेश से कहा.

‘‘हां भैया, बहुत अच्छा किया आप ने,’’ नरेश ने कहा और मन ही मन सोचने लगा, ‘भैया ने तो पानी भी नहीं पूछा और उलटा हम से अछूतों जैसा बरताव कर रहे हैं.’

नरेश रोज सुबह राजू को बैलों की जोड़ी को हांक कर खेत ले जाते देखता, तो उस का भी मन हो आता कि वह भी इस तरह ही खेती करे.

‘‘हां… तो जाते क्यों नहीं… खेती और मकान में हम लोगों का भी तो हिस्सा होगा न,’’ नरेश की पत्नी संध्या  ने कहा.

‘‘हां… होना तो चाहिए… पर इतने बरसों से इस जमीन की देखभाल भैया ही कर रहे हैं, इसलिए पूछने की हिम्मत नहीं हो रही है,’’ नरेश ने संध्या से कहा.

‘‘पर नहीं पूछोगे, तो यहां गांव में क्या करोगे… किस के सहारे 2 बेटियों को ब्याहोगे… और खुद भी क्या  खाओगे भला,’’ संध्या ने नरेश को समझाते हुए कहा.

जब नरेश को उस कमरे में रहते हुए 15 दिन हो गए, तो एक दिन जब राजू खेत की ओर जा रहा, तो नरेश भी वहां पहुंच गया और बोला. ‘‘भैया वहां गांव के बाहर भी हम सैंटर में 14 दिन रुके थे और अब अपने घर के बाहर भी हम 15 दिन तक पड़े रहे हैं… तो क्या अब हम घर के अंदर आ जाएं?’’

‘‘हां… कोई जरूरत हो तो आ जाना. वैसे, उस कमरे में भी कोई दिक्कत तो होगी नहीं तुम को…’’ राजू ने पूछा.

‘‘नहीं भैया… दिक्कत तो कोई नहीं है… साथ ही, मैं यह बात जानना चाह रहा था कि खेती में हमारा भी तो हिस्सा होगा, तो वह भी बता दीजिए, तो हम

भी अपना धंधापानी शुरू कर दें,’’ नरेश ने कहा.

इतना सुनते ही राजू के तेवर बदल गए. वह घर के अंदर गया. थोड़ी ही देर में वापस आ गया और एक कागज नरेश को दिखाते हुए बोला, ‘‘लो… पहचानो इस कागज को… शहर जाते समय जब तुम्हें पैसे की जरूरत थी, तब तुम्हीं ने तो अपने हिस्से का मकान और खेत सब मेरे नाम कर दिया था. देखो, तुम्हारा ही तो अंगूठा लगा है न?’’

यह सुन कर सन्न रह गया था नरेश… उसे आज भी अच्छी तरह याद था कि शहर जाने के लिए जब उसे कुछ पैसे की जरूरत थी, तब उस ने अपने बड़े भाई से पैसे मांगे थे. तब राजू ने यह कह कर उसे पैसे दिए थे कि वह ये पैसे गांव के चौधरी से ले कर आया है और उसे इस पैसे पर एक निश्चित ब्याज हर महीने देना होगा. इसी बात के इकरारनामे पर अंगूठा लगाया था नरेश ने… अपने ही सगे भाई ने लूट लिया था उसे.

‘‘अरे, यह तो मैं बड़ा भाई होने का फर्ज निभा रहा हूं जो तुम्हें घर में आने भी दिया है, वरना तो तुम लोग बीमारी फैलाने वाले बम से कम नहीं हो इस समय. देख लो गांव में जा कर, कोई पास भी खड़ा हो जाए तो नाम बदल देना मेरा,’’ राजू बोला.

नरेश चुपचाप वहां से लौट गया. नरेश के पास राशन अब खत्म होने को आया था. पत्नी के साथ बातचीत के बाद उस ने सोचा कि क्यों न गांव में बनी दुकान से कुछ राशन उधार ले आऊं, बाद में कुछ काम जम जाएगा, तो लाला का उधार चुकता कर देगा.

‘‘लालाजी, कुछ राशन चाहिए… पर पैसा अभी नहीं दे पाऊंगा… कुछ दिनों बाद काम जमते ही मैं आप को पूरे पैसे दे दूंगा,’’ नरेश ने लाला के पास जा

कर कहा.

‘‘अरे भैया… खुद हमारे पास ही सामान ज्यादा नहीं बचा है और पीछे से भी आवक बंद है. ऐसे में अगर तुम उधार की बात करोगे, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी… उधार तो नहीं दे पाऊंगा अब. जब तुम्हारे पास पैसे हों… तब गल्ला ले जाना आ कर,’’ लाला की बात सुन कर अपना सा मुंह ले कर रह गया था नरेश.

नरेश अब उलझन में पड़ गया  था. बच्चों का पेट तो भरना ही होगा,  पर कैसे?

अब नरेश के पास आखिरी चारा था कि कुछ सामान गिरवी रख दिया जाए, जिस के बदले में जो पैसे मिलें उस से राशन खरीद लिया जाए.

जब नरेश ने यह बात संध्या को बताई, तो वह अपने कान की बालियां ले आई और बोली, ‘‘आप इन्हीं को गिरवी रख दीजिए और जो पैसे मिलें उस से सामान खरीद लाइए.’’

कोई चारा न देख नरेश बालियां ले कर गांव के एक पैसे वाले आदमी के पास पहुंचा, जो गांठगिरवी का काम करता था.

‘‘अरे भैया… ये सारे काम तो हम ने बहुत पहले से ही बंद कर रखे हैं. और अब तो सरकार का भी इतना दबाव है, फिर तुम तो शहर से आए हो… तुम्हारे पास से ली हुई किसी भी चीज से बीमारी लगने का ज्यादा खतरा है…

‘‘भाई, तुम से तो हम चाह कर भी कुछ नहीं ले सकते… हमें माफ करना भाई… हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगे,’’ उस आदमी के दोटूक शब्द थे.

इधर नरेश गल्ला और पैसे के लिए परेशान हो रहा था, तो उधर उस की पत्नी संध्या और बेटियां एक दूसरी ही तरह की समस्या से जूझ रही थीं.

दरअसल, गांव की लड़कियों के पहनावे और शहर की लड़कियों के पहनावे में बहुत फर्क होता है. शहरों में किसी भी तबके की लड़की के लिए लोअर, टीशर्ट और जींस पहनना आम बात है, पर गांवों में अभी भी लड़कियां सलवारसूट पहनती हैं और ऊपर से दुपट्टा भी डालती हैं. यही फर्क नरेश की बेटियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा था. गांव के लड़के तो लड़के, बड़ी उम्र के लोग भी उन्हें अजीब ललचाई नजरों से देखते थे.

एक दिन की बात है. गांव के नजदीक बहने वाली नदी के पानी में एक निठल्ले गैंग के 5 लड़के पैर डाल कर बैठे हुए थे.

‘‘यार, वह जो परिवार दिल्ली से आया है, उस में माल बहुत मस्त है…’’ पहले लड़के ने कहा.

‘‘लड़कियां तो लड़कियां… उन की मां भी बहुत मस्त है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘अरे यार, उन लड़कियों से दोस्ती करवा दो मेरी… मैं हमेशा से ही जींस वाली लड़कियों से दोस्ती करना चाहता था…’’ तीसरा लड़का बोला.

‘‘ठीक है भाई… तू उन लड़कियों  से दोस्ती करना और हम लोग… तो करेंगे प्रोग्राम…’’

‘‘नहींनहीं… भाई ऐसी बात भी मन में मत लाना… वे लोग शहर से आए हैं और अगर उन लड़कियों के साथ प्रोग्राम किया, तो हम लोगों को भी कोरोना हो जाएगा,’’ थोड़ी समझदारी दिखाते हुए एक लड़का बोला, जो मोबाइल और इंटरनैट की कुछ जानकारी रखता था.

‘‘वह तो सब हो जाएगा… सरकार का कहना है कि अगर हम रबड़ के दस्ताने इस्तेमाल करेंगे, तो इंफैक्शन  का खतरा नहीं होगा,’’ पहले वाले ने ज्ञान बघारा.

‘‘अबे तो फिर क्या तू पूरे शरीर में रबड़ पहनेगा?’’ ठहाका मारते हुए एक लड़का बोला.

उस के बाद सब आपस में प्लान बनाने में बिजी हो गए.

नरेश अपनी उधेड़बुन में परेशान चला आ रहा था… उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब शहर से गांव आ कर कैसे गुजारा करेगा, शहर में होता तो कुछ भी काम कर लेता, पर यहां गांव में न तो काम है और न ही कोई किसी भी तरह से मदद करने को तैयार है.

‘‘चाचाजी, नमस्ते.’’

नरेश ने आवाज की दिशा में सिर घुमाया, तो सामने निठल्ले गैंग का हैड खड़ा था.

नरेश जब से गांव में आया था, तब से सब लोगों की अनदेखी ही झेल रहा था, ऐसे में अपने लिए चाचाजी के संबोधन ने उसे बड़ा अच्छा महसूस कराया.

नरेश के होंठों पर एक मुसकराहट दौड़ गई, ‘‘भैया नमस्ते.’’

‘‘अरे चाचा… क्यों परेशान दिख  रहे हैं… कोई समस्या है क्या?’’ वह लड़का बोला.

‘‘भैया… अब क्या बताऊं… वहां की सारी समस्याएं झेल कर परिवार के साथ अपने गांव में पहुंचा हूं, पर यहां भी राशन खत्म हो गया है. न ही कोई पैसे उधार दे रहा है और न ही कोई गल्ला देने को तैयार है,’’ नरेश ने अपनी लाचारी दिखाते हुए कहा.

‘‘अरे तो इस में क्या दिक्कत है चाचा… सरकार की तरफ से सब लोगों को मुफ्त राशन दिया तो जा रहा है,’’ वह लड़का बोला.

‘‘पर भैया… उस के लिए तो राशनकार्ड होना चाहिए… और हमारे पास राशनकार्ड तो है नहीं,’’ नरेश  ने कहा.

‘‘अरे चाचा तो इस में कौन सी बड़ी बात है… रोज दोपहर यहां स्कूल में राशनकार्ड वाले बाबूजी बैठते हैं, जो गांव आए हुए लोगों का राशनकार्ड बनाते हैं… बस, आप को इतना करना है कि पूरे परिवार समेत कल दोपहर स्कूल पर पहुंच जाना. मेरी बाबूजी से अच्छी पहचान है… मैं उन से कह कर आप का कार्ड बनवा दूंगा, और फिर जितना चाहो उतना राशन भी दिलवा दूंगा आप को,’’ निठल्ले गैंग के हैड ने कहा.

अचानक से अपनी समस्याओं का अंत होते देख कर नरेश बहुत खुश हो गया और घर आ कर कल दोपहर होने का इंतजार करने लगा. वह सोचने लगा, ‘एक बार पेट भरने की समस्या का अंत हो जाए, फिर यही गांव के बाजार में कुछ कामधंधा जमाऊंगा. कुछ पैसा बैंक से लोन ले कर, शहर से सामान ले कर बाजार में बेचा करूंगा और फिर भैया का यह कमरा भी छोड़ दूंगा. फिर आराम से अपनी बेटियों का ब्याह करूंगा,’ बस इसी तरह के भविष्य के सपनों में नरेश की आंख लग गई.

अगले दिन 12 बजने से पहले ही नरेश अपनी दोनों बेटियों और पत्नी  को ले कर स्कूल में बाबू से मिलने चलने लगा.

अचानक से रास्ते में निठल्ले गैंग का हैड नरेश के सामने आ गया और नरेश की पत्नी और लड़कियों को घूरते हुए बोला, ‘‘अरे चाचा, वे राशनकार्ड वाले बाबूजी कह रहे थे कि आप सब लोगों का एक पहचानपत्र भी जरूरी है. क्या उस की कौपी लाए हैं आप लोग?’’

‘‘नहीं भैया… आप ने तो कल ऐसा कुछ बताया ही नहीं था…’’ अपनी नासमझी पर परेशान हो उठा था नरेश.

‘‘अरे चाचा… आप परेशान हो रहे हो… वे देखो सामने मेरी झोंपड़ी है. उस में इन बच्चों को आराम से बिठा देते हैं. और हम और आप चल कर पहचानपत्र ले आते हैं,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, ठीक?है… ऐसा है संध्या… जब तक हम लोग अपना पहचानपत्र नहीं ले कर आते, तुम वहीं झोंपड़ी में बैठ जाओ,’’ नरेश ने अपनी पत्नी से कहा.

नरेश उस लड़के के साथ वापस हो लिया, जबकि उस की पत्नी संध्या अपनी दोनों बेटियों के साथ झोंपड़ी में चारपाई पर जा बैठीं.

रास्ते में जब नरेश उस लड़के के साथ आ रहा था, तब एक जगह वह लड़का रुका और बोला, ‘‘चाचा, बड़ी गरमी है. सामने ही मेरे दोस्त का घर है. पहले एक गिलास पानी पी लें, फिर चलते हैं.’’

दोनों के सामने बिसकुट और शरबत आया. शरबत पीते ही नरेश का अपने शरीर पर कोई जोर नहीं रहा और उसे बेहोशी आने लगी. वह वहीं गिर गया.

उधर जिस झोंपड़ी में नरेश अपने परिवार को छोड़ कर आया था, वहां पर 3-4 लड़के एकसाथ आ गए.

‘‘वाह भाई… आज तो हम शहरी माल के साथ सटासट करेंगे… चलो पहले कौन है लाइन में,’’ बेशर्मी से निठल्ले गैंग का एक लड़का बोल रहा था.

संध्या को उन लड़कों की नीयत पर शक हो गया और वह बचाव का रास्ता खोजने लगी.

अचानक एक लड़के ने संध्या के सीने को हाथों से भींच लिया, जिसे देख कर दूसरा लड़का हंसने लगा.

‘‘अरे, जब बछिया पास में हो तो… गाय को काहे को परेशान करना…’’

‘‘अरे, तुझे बछिया के साथ मजे लेने हैं, तो उस के साथ ले… मुझे तो यह गाय ही पसंद आ गई है.’’

दूसरे लड़के ने संध्या को चारपाई पर बांध दिया और इसी तरह जबरदस्ती  उस की दोनों बेटियों के भी हाथमुंह बांध दिए गए.

पूरा निठल्ला गैंग इस परिवार पर टूट पड़ा और लड़के बलात्कार करने में जुट गए, इतने में वहां गैंग का हैड भी आ गया.

‘‘अरे, अकेले ही सब माल मत खा जाना… मेरे लिए भी छोड़ देना.’’

‘‘अरे, लो यार… आज तो 3-3 हैं. जिस के साथ चाहो, उस के साथ  मजे करो.’’

और उस निठल्ले गैंग के पांचों लड़कों ने बारीबारी से और बारबार संध्या और उस की बेटियों का बलात्कार किया और इतना ही नहीं, बल्कि जो लड़का इंटरनैट की जानकारी रखता था, उस ने अपने मोबाइल से अश्लील वीडियो भी शूट किया और जी भर जाने के बाद वहां से भाग गए.

कुछ ही देर में संध्या का सबकुछ लुट चुका था. आज उस के ही सामने उस की बेटियों और उस का बलात्कार हो गया. उसे और कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह पागल सी हो रही थी. अचानक उस ने अपनी दोनों बेटियों को साथ लिया और गांव के नजदीक बहने वाली नदी में छलांग लगा दी.

इधर जब नरेश होश में आया, तो दौड़ कर उस झोंपड़ी में पहुंचा. पर, वहां के हालात तो कुछ और ही बयान कर रहे थे. अब भी उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक उस का परिवार कहां चला गया.

तभी नरेश की नजर अंदर बैठे हुए निठल्ले गैंग के लड़कों पर पड़ी, जिन पर मस्ती का नशा अब भी चढ़ा हुआ था. वह उन की ओर लपका.

‘‘ऐ भैया… हम अपनी पत्नी और बेटियों को यहीं छोड़ कर गए थे… अब कहां हैं वे सब… कुछ समझ नहीं आ रहा है हम को.’’

‘‘ओह… तो तू होश में आ गया… ले यह मोबाइल में देख ले और समझ ले कि तेरे बच्चे कहां हैं,’’ उस मोबाइल वाले लड़के ने मोबाइल पर बलात्कार का वीडियो नरेश की आंखों के सामने कर दिया.

अपनी बेटियों और पत्नी का एकसाथ बलात्कार होते देख नरेश का खून खौल गया. उस ने कोने में रखी लाठी उठाई और उन लड़कों पर हमला कर दिया. एक तो नरेश पर नशे का असर अब भी था, ऊपर से वे जवान  5 लड़के.

उन लड़कों ने नरेश के हाथों से लाठी छीन ली और तब तक मारा जब तक वह मर नहीं गया.

इस कोरोना संकट और गांव पलायन ने नरेश की मेहनत से बनाए हुए सपनों के छोटेमोटे घोंसले को बरबाद कर दिया था.

नरेश और उस का पूरा परिवार अब खत्म हो चुका था. अब उसे न तो घर की जरूरत थी, न पैसे की, न नौकरी की, न ही राशन की और न ही राशनकार्ड की…

इंतकाम : सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

Crime story in hindi

इंतकाम: भाग 3- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

तभी दरवाजे की घंटी बजी. हैरानपरेशान और अपने हालात से चिड़ा हुआ सा सुजय दरवाजे पर था. उस ने नेहा के चेहरे की तरफ देखा. ऐसा लग रहा था मानो नेहा कई घंटों से रो रही हो. उस की आंखें भी सूजी हुई थीं.

सुजय ने नेहा के मन की थाह लेने के मकसद से पूछा, ‘‘क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘जी बस सिर में दर्द हो रहा था,’’ कह कर वह पानी ले आई और फिर जा कर बाथरूम में अपना चेहरा धोने लगी.

सुजय को लगा जैसे नेहा सच बात बताना नहीं चाहती. वैसे भी उस ने आज तक कोई सचाई बताई कहां है, यह सोचते हुए उस ने अपने पौकेट में पड़े एक बेकार कागज को फेंकने के लिए जूते से डस्टबिन का ढक्कन खोला तो उसे ऊपर ही किसी तसवीर के टुकड़े दिखाई दिए. उस ने कुछ बड़े टुकड़ों को मिला कर देखा तो उसे सम झ आ गया कि यह तो संजय की तसवीर थी.

अचानक उस की आंखों में यह सोच कर चमक आ गई कि लगता है संजय के साथ नेहा का तगड़ा वाला ब्रेकअप हो गया है. वह खुश हो गया मगर अपनी खुशी होंठों के बीच दबाते हुआ उस ने नेहा से चाय की फरमाइश की और खुद कपड़े बदल कर अपने कमरे में घुस गया.

नेहा चाय ले आई. आज चाय रख कर वह तुरंत मोबाइल में आंखें घुसाए अपने कमरे की तरफ नहीं गई बल्कि सुजय के कमरे को व्यवस्थित करने लगी. टेबल पर रखे कागज और पत्रिकाएं करीने से लगाने के बाद उस की अलमारी के कपड़ ठीक से लगाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह सुजय को समय देना चाहती है. उस के काम कर के अपनी गिल्ट कम करने की कोशिश कर रही हो.

सुजय को बहुत समय बाद नेहा पर पहले की तरह प्यार आ रहा था. वह नेहा के करीब गया और बिना कुछ कहे उसे सीने से लगा लिया. नेहा भी खुशी से उस के गले लगी रही. दोनों के बीच की तमाम शिकायतें जैसे खामोशियों के बीच बहने लगीं. उस रात नेहा ने अपनी तरफ से पहल की और दोनों ने एक खूबसूरत साथ का अनुभव किया.

अगले कुछ दिनों तक सुजय ने वाच किया कि नेहा क्या सच में संजय से अलग हो चुकी है. नेहा के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उस के इस विश्वास को पुख्ता किया कि अब नेहा के दिल में संजय नहीं है. नेहा का समय अब उस के लिए होता था. भले ही वह अभी भी काफी खोईखोई सी रहती थी, मगर अब मोबाइल में लगे रहना और हर दूसरे दिन किसी न किसी बहाने से बाहर जाना बंद हो चुका था.

इस तरह 2-3 महीने बीत गए. सुजय ने अपनी तरफ से पता कराया तो उसे खबर मिली कि संजय शादी करने वाला है. उसे तब इस ब्रेकअप की वजह सम झ आ गई लेकिन फिर भी वह इस मामले को ले कर मन से पूरी तरह निश्चित नहीं हो सका था. उसे लगता था कि कहीं नेहा संजय के पास वापस न चली जाए या कहीं नेहा के मन में अभी भी संजय है तो नहीं. ये बातें उसे बेचैन करती थीं. पिछले कुछ दिनों में नेहा को पा लेने के बाद अब वह उसे वापस कतई खोना नहीं चाहता था. उसे नेहा से बहुत प्यार था और एक दिन उस ने एक बड़ा फैसला ले लिया.

यह फैसला था संजय से बदला लेने का, नेहा के जीवन से संजय को हमेशा निकालने का और नेहा के दिल में  झांक कर यह तसल्ली कर लेने का कि नेहा वाकई पूरी तरह उस की बन चुकी है. वह एक अच्छे मौके की तलाश में था. वह अकसर गाड़ी ले कर संजय के घर के आसपास चक्कर लगाता ताकि उसे कोई मौका मिले और वह अपने प्लान को अंजाम दे सके.

उस दिन संडे था. रात में सुजय गाड़ी ले कर बाहर निकला. बहुत देर तक संजय के घर से कुछ दूर गाड़ी पार्क कर के संजय के निकलने का इंतजार करने लगा.

सुजय ने अपनी गाड़ी की प्लेट बदल ली थी. उस ने देखा कि संजय किसी से फोन पर बात करते हुए बाइक ले कर बाहर निकला. सुजय उस का पीछा करने लगा. संजय पुल के पास से गुजर रहा था. सुजय ने अपनी कार से उसे टक्कर मारी. संजय जमीन पर गिर पड़ा. सुजय ने कार रिवर्स की और उसे कुचलता हुआ निकल गया.

काफी दूर आने के बाद एक सुनसान जगह पर सुजय ने फिर से गाड़ी की प्लेट बदली और अपने घर लौट आया.

सुबहसुबह उस ने टीवी पर न्यूज चैनल लगाया. एक चैनल पर संजय की मौत की खबर आ रही थी. उसी समय उस ने चाय के लिए आवाज लगाई, ‘‘नेहा 2 कप चाय ले आना. मतलब मेरे साथ अपने लिए भी.’’

नेहा चाय ले कर आई और वहीं बैठ गई. उस की आंखों के आगे संजय की मौत का समाचार था मगर वह नौर्मल रही. उस ने आराम से चाय खत्म की और सुजय से पूछ कर नाश्ते की तैयारी करने लगी. नाश्ते के साथ उस ने खीर भी बनाई और सुजय को परोस दी. उस के चेहरे पर तड़प या तकलीफ नहीं थी.

नेहा को इस तरह देख कर सुजय का दिल खिल उठा. आज उस ने न केवल संजय से इंतकाम ले लिया था बल्कि नेहा को पूरी तरह हासिल भी कर लिया था. अब उसे कोई डर नहीं था नेहा के कहीं जाने का.

इंतकाम: भाग 2- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

मन की शांति की तलाश में सुजय अपने एक दोस्त के कहने पर बाबा सेवकानंद के आश्रम पहुंचा. 2-3 घंटे बाबा का प्रवचन सुनने के बाद उस ने तय किया कि यहां हर सप्ताह आया करेगा. उस ने यही किया. हर सप्ताह वह बाबा के दर्शन के लिए पहुंचने लगा. बाबा की तेज नजर सुजय पर पड़ी तो उन्हें सम झ आ गया कि एक मोटा मुरगा फंसा है. मुरगे को हलाल करने के लिए थोड़ी तैयारी की जरूरत होती है. बाबा ने अपना पासा फेंकने की सोची और सुजय को पास बुलाया.

सुजय ने अपनी समस्या बताई. उस के समाधान के लिए बाबा ने उसे एक अनुष्ठान कराने की सलाह दी. यह अनुष्ठान आश्रम में होना तय हुआ और इस की तैयारी के लिए सुजय को क्व20 हजार की रकम लाने को कहा गया. सुजय ने रुपए दिए तो काम शुरू हुआ. हवन की सामग्री के साथ कुछ और चीजें मंगाई गईं. अनुष्ठान के दौरान भी उस से काफी रुपए खर्च कराए गए और फिर दानदक्षिणा के नाम पर भी बाबा ने काफी रुपए ऐंठे.

तय दिन हवन और अनुष्ठान संपन्न हुआ. बाबा ने बताया था कि अनुष्ठान वाली रात उसे सफेद कपड़े पहन कर एक कमरे में आश्रम में ही ठहरना होगा.

सुजय ने ऐसा ही किया. आधी रात को उस के कमरे में बाबा की 2 दासियों ने प्रवेश किया. उन्होंने अपनेअपने तरीके से सुजय को लुभाने और हमबिस्तर होने की कोशिश की तो सुजय का दिमाग चकरा गया. वह सम झ नहीं पा रहा था कि आश्रम की औरतें उस से इस तरह का व्यवहार करेंगी. वह रात में ही अपना सामान और बची इज्जत ले कर दफा हो गया.

इस घटना के कुछ दिन बाद एक बार जब सुजय औफिशियल मीटिंग के लिए शहर से बाहर गया हुआ था तो नेहा संजय के पास पहुंच गई. संजय को तो ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता था. उस ने नेहा को बांहों में भर लिया.

तब नेहा शिकायती लहजे में बोली, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा संजय. तुम मु झे प्यार करते हो तो अपना बनाते क्यों नहीं? इस तरह छिपछिप कर कब तक मिलते रहेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारे बेवकूफ पति को पता न चले,’’ संजय ने कहा.

‘‘वह बेवकूफ नहीं और उसे सब पता चल चुका है.’’

‘‘तो ठीक है उस ने कुछ कहा तो नहीं न,’’ संजय ने पूछा.

‘‘कहा नहीं मगर मु झे लगता है जैसे वह बच्चे को ले कर इस शक में है कि वह उस का है या नहीं,’’ नेहा कुछ सोचती हुई बोली.

‘‘वह पति है तो बच्चा तो उसी का होगा न,’’ कह कर संजय बेशर्मी से हंसने लगा.

नेहा खुद को उस की गिरफ्त से आजाद करती हुई बोली, ‘‘दिल के हाथों मजबूर नहीं होती न, तो कभी तेरे पास नहीं आती. तु झे पता है वह बच्चा तेरा है मगर तू जिम्मेदारियां लेना ही नहीं चाहता. कहीं तू मेरे जज्बातों के साथ खेल तो नहीं रहा?’’

‘‘नहीं माई डियर. सैटल होते ही तु झ से शादी करूंगा और अपने बच्चे को अपना नाम भी दूंगा. अब तो खुश है,’’ कह कर संजय ने नेहा की आंखों में  झांका तो वह फिर से उस के सीने से लग गई.

‘‘इसी आस में तो सबकुछ सह रही हूं. तू बस एक बार कह दे मैं सब कुछ छोड़ कर हमेशा के लिए तेरे पास आ जाऊंगी,’’ नेहा ने भावुक होते हुए कहा.

इसी तरह समय गुजरता रहा. नेहा के पेट में एक बार फिर संजय का बच्चा था. नेहा फिर से सुजय के ज्यादा करीब आने लगी ताकि बच्चे को ले कर उसे कोई शक न हो. इधर सुजय अपने दिल के हाथों मजबूर था. वह नेहा का सामीप्य पा कर उस से नाराज नहीं रह पाता था. दूसरी बार नेहा को बेटी हुई. फूल सी बच्ची को गोद में ले कर सुजय संजय का चैप्टर भूल गया और अपने परिवार के कंपलीट होने की खुशी मनाने लगा.

नेहा के बच्चे अब थोड़े बड़े हो गए थे. दोनों स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेज कर नेहा संजय से बातें करने में मशगूल हो जाती.

पीछे से जब सुजय फोन करता तो उसे नेहा का फोन व्यस्त मिलता. सुजय जब इस बात को ले कर टोकता तो नेहा बहाने बना देती कि वह मायके वालों से बातें कर रही थी. कई बार नेहा मायके जाने की बात कह कर संजय के साथ कहीं भी निकल जाती.

एक दिन नेहा ने संडे को ऐसा ही बहाना बनाया और चली गई. इधर सुजय ने अपना शक दूर करने के लिए नेहा के मायके फोन लगाया तो उसे पता चला कि नेहा वहां नहीं है. सुजय सम झ गया कि नेहा उस से अभी भी चीट कर रही है. वह फिर से परेशान रहने लगा.

इधर एक दिन जब नेहा सजधज कर संजय से मिलने पहुंची तो देखा कि संजय के घर से कोई और खूबसूरत लड़की निकल रही है.

यह देख कर नेहा संजय पर भड़क उठी, ‘‘यह क्या था संजय. अब मैं सम झी कि तुम मु झे आजकल इग्नोर क्यों करने लगे हो. तुम मेरे पीछे किसी और के साथ…’’

‘‘तो इस में कौन सी बड़ी बात हो गई नेहा. तुम भी तो किसी और मर्द के साथ रहती हो. मैं ने तो कभी कुछ नहीं कहा,’’ संजय बोला.

‘‘मैं मजबूरी में रहती हूं क्योंकि तुम ने मु झ से अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘अब तक क्या नेहा. तुम भी पता नहीं किस मुगालते में जीती हो. 2 बच्चे की शादीशुदा महिला से मैं एक अविवाहित, हैंडसम, वैल सैटल लड़का शादी क्यों करेगा. उस पर तुम्हारी जाति अलग होने का पंगा भी है.’’

‘‘मगर तुम मु झ से प्यार करते हो न. शादी करने के लिए क्या यही एक वजह काफी नहीं?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं माई डियर बिलकुल नहीं और फिर प्यार खत्म कहां हो रहा है. तुम जब चाहो आ सकती हो मेरा प्यार पाने के लिए.’’

‘‘डिसगस्टिंग संजय. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतना गिर सकते हो. मौम ने मु झे पहले ही आगाह किया था मगर मैं तुम्हारे प्यार में पागल बनी रही,’’ नेहा अपने किए पर पछता रही थी.

‘‘तो फिर एक बात और सुन लो डार्लिंग, मैं अगले महीने हिना से शादी करने वाला हूं,’’ संजय ने उसे हकीकत से अवगत कराया तो वह तड़प उठी.

‘‘शादी के वादे मु झ से और शादी किसी और से. तुम इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो संजय?’’ नेहा की आंखों में आंसू आ गए.

संजय हंसता हुआ बोला, ‘‘क्या यार तुम इतने सालों में यह नहीं सम झ सकी कि मेरी तुम से शादी करने में रुचि नहीं है. अब तो मैच्योर बनो और इस मामले को अच्छे से हैंडल करो.’’

‘‘बिलकुल अब मैं सबकुछ अच्छे से हैंडल करूंगी. तुम्हारे लिए मैं ने अपने पति से चीट किया, तुम्हारी हर गलती इग्नोर की, तुम्हारे धोखे को महसूस ही नहीं कर सकी. मगर अब सब क्लीयर हो गया,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा खोला और जोर से बंद करती हुई बाहर निकल गई.

घर आ कर नेहा काफी देर तक रोती रही. संजय की तरफ से उस का मन पूरी तरह से खट्टा हो चुका था. उसे महसूस हो रहा था जैसे संजय ने उस के प्यार को मजाक बना दिया हो. उस के साथ संजय ने विश्वासघात किया था. उसे धोखा दिया था.

2-3 घंटे वह इस धोखे को याद कर सुबकती रही. पुरानी यादें जेहन में तीखे तीर बन कर चुभ रही थीं. उस ने संजय का फोटो निकाला जिसे उस ने कालेज के समय से संभल कर रखा था. फिर उस के छोटेछोटे टुकड़े कर डस्टबिन में फेंक दिए. अपने मोबाइल से संजय की सभी तसवीरें डिलीट कर दीं. इतने में भी सुकून नहीं मिला तो उस का नंबर भी ब्लौक कर दिया.

इंतकाम: भाग 1- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

‘‘नेहा इधर तो आ,’’ मां ने आवाज लगाई तो मोबाइल पर आंखें टिकाए नेहा सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘इस बार तु झे पीरियड्स नहीं आए?’’

‘‘हां, आई गैस 20 डेज ऐक्स्ट्रा हो चुके हैं,’’ नेहा ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘कल तेरा जी भी मिचला रहा था?’’

नेहा ने मोबाइल उठा कर रख दिया. मां जिस तरफ इशारा कर रही थी वह बात सम झते ही वह चौकन्नी हो गई. फिर कौन्फिडैंस के साथ बोली, ‘‘अरे, ये आप कैसी बात कह रही हैं मौम?’’

‘‘तु झे जानती हूं इसलिए कह रही हूं. आजकल वैसे भी तेरा ज्यादा समय किस के साथ गुजरता है इस की भी खबर है मु झे. बेटी इस मामले में शायद तू नादान है, लेकिन मेरी बात सम झ. मैं अभी जानना चाहती हूं कि सब ठीक है या नहीं. ऐसा कर अभी जा कर प्रैगनैंसी टैस्ट कर. ये मैं कल ले कर आई थी. मु झे तु झ पर कई दिनों से शक है,’’  मां ने उसे प्रैगनैंसी टैस्ट किट देते हुए कहा.

‘‘मौम आप अपनी बेटी पर शक कैसे कर सकते हो?’’

‘‘क्योंकि तेरी संगत गलत है. अब जा,’’ मां ने थोड़े नाराज स्वर में कहा.

नेहा टैस्ट करने चली गई. थोड़ी देर में ही मुंह लटका कर लौटी. वह सच में प्रैगनैंट थी.

‘‘अभी मेरे आगे संजय को फोन लगा और सारी बात बता कर पूछ कि क्या वह तु झ से शादी करेगा और इस बच्चे को अपनाएगा?’’ मां ने और्डर दिया.

‘‘पर मां उसे अभी अचानक फोन कैसे करूं. पता नहीं कहां होगा. मैं बाद में कर के बताती हूं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘बेटा अभी मेरे सामने कर. इन मामलों में देर नहीं की जा सकती. मैं जानती हूं वह शादी करने को तैयार नहीं होगा. फिर भी तू पूछ कर तसल्ली कर ले,’’ मां ने सम झाते हुए कहा.

नेहा ने जब संजय को सब बता कर शादी के लिए पूछा तो वह हंस पड़ा, ‘‘क्या यार अभी हमारी उम्र है इन  झं झटों में पड़ने की? एक बार मिस्टेक हो गई. साफ करवा ले. फिर सोचेंगे क्या करना है. वैसे भी मु झे बहुत बड़ा आदमी बनना है.

‘‘सो तू अभी शादीवादी के बारे में मत सोच. मेरे प्यार में कमी आए तो कहना. शादी के लफड़े को अभी किनारे रख.’’

‘‘नेहा ने मां को सारी बात बताई तो मां तुरंत उसे नर्सिंगहोम ले गई और गर्भपात करवा कर वापस आ गई. मां को बेटी की प्रैगनैंसी की टैंशन से तो मुक्ति मिली मगर अब उस का घर बसाने की जल्दी होने लगी.

‘‘देख नेहा यह लड़का तु झ से कभी शादी नहीं करेगा यह बात लिख कर रख ले. जब उसे ऐसे ही सारी चीजें मिल रही हैं तो भला वह रिश्तों के चक्कर में क्यों पड़ेगा. सम झदारी इसी में है हम तेरी अच्छी जगह शादी करा दें. मैं तेरे पापा से बात करती हूं,’’ मां ने कहा.

‘‘मौम प्लीज ऐसा मत करो. मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती,’’ नेहा गिड़गिड़ाई.

‘‘तो क्या तेरे पिता को सारी बात बता दूं?’’ मां ने डराया.

‘‘नहीं मम्मी प्लीज.’’

‘‘तो मैं जैसा कह रही हूं वैसा कर. मैं तेरा इन गलत कामों में और साथ नहीं दे सकती,’’ मौम ने सख्त आवाज में कहा.

नेहा 2-4 दिन बहुत परेशान रही. कई बार संजय को फोन कर के रिक्वैस्ट की. शादी के लिए मनाने की कोशिश की मगर संजय हर बार बहाने बना देता.

कभी कहता कि अभी शादी नहीं करनी है, कभी कहता कि जाति अलग है घर वाले नहीं मानेंगे और कभी कहता कि कुछ बड़ा बनने के बाद ही सोचूंगा.

एक दिन फिर नेहा संजय से मिली तो. उस से वही बात करनी चाही और

साफसाफ बोली, ‘‘यार मेरे घर वाले अब जल्द से जल्द मेरी शादी कराना चाहते. हैं. तु झे मेरी जरा भी फिक्र है तो शादी के लिए हां कह दे.’’

संजय उस की आंखों में  झांकता हुआ बोला, ‘‘देख नेहा मैं तु झे प्यार बहुत करता हूं और शादी भी कर लूंगा, मगर अभी नहीं. तू ऐसा कर अभी अपने मांबाप के कहे अनुसार शादी कर ले. हम पहले की तरह मिलते रहेंगे. तेरे मांबाप भी तु झे ले कर फ्रिक हो जाएंगे. बाद में जब मैं कुछ बन जाऊंगा और अपने सपने पूरे कर लूंगा तब तु झ से शादी भी कर लूंगा. तेरी शादी के बाद भी हमारे बीच प्यार कम नहीं होगा यह मेरा वादा है.’’

काफी मानसिक द्वंद और तनाव के बाद आखिर एक दिन नेहा ने मौम के आगे किसी दूसरे से शादी के लिए हामी भर दी. आननफानन में पिता ने उस की शादी एक मिडल क्लास फैमिली के सब से बड़े बेटे से करा दी जो दिल्ली में जौब करता था. उस के पेरैंट्स पुणे में रहते थे.

शादी के बाद नेहा कुछ दिन पुणे में रही और फिर वापस दिल्ली अपने पति के पास आ गई. उस का पति सुजय उस से काफी प्यार करता था और नेहा भी यही दर्शाती थी कि वह भी उस से गहरा प्यार करती है. मगर नेहा कहीं न कहीं 2 नावों की सवारी कर रही थी. एक तरफ तो पति को यह दिखाती कि वह उस की बहुत केयर करती है और दूसरी तरफ वह अपने पूर्व प्रेमी यानी संजय के साथ पहले की तरह रिश्ते में थी.

बहुत जल्द सुजय को यह एहसास हो गया कि नेहा उस से चीट कर रही है और किसी दूसरे लड़के के संपर्क में है. दरअसल, वह पूरा समय मोबाइल में लगी रहती और कई बार इस चक्कर में जरूरी काम भी भूल जाती. मगर सुजय नेहा पर ऐसे ही कोई इलजाम नहीं लगाना चाहता था. इसलिए वह कोई पुख्ता सुबूत मिलने का इंतजार कर रहा था.

एक दिन सुजय को वह सुबूत भी मिल गया जब उस ने नेहा को एक मौल में अपने प्रेमी के साथ देखा.

उस दिन वह औफिस से आया तो बहुत गुस्से में था. आते ही नेहा से सवाल किया, ‘‘आज तुम मौल में किस के साथ थी.’’

अचानक किए गए इस सवाल से नेहा थोड़ी सहमी फिर चालाकी से

बोली, ‘‘मेरा दोस्त मतलब स्कूल फ्रैंड था?’’

‘‘यह दोस्त तुम्हारे ज्यादा ही करीब नहीं था?’’

‘‘अरे आप भी न क्या सोचने लगे. बस दोस्त है रास्ते में मिल गया. आप की भी तो कोई दोस्त होगी ऐसी?’’

‘‘मैं ऐसी कोई दोस्त नहीं रखता,’’ कह कर सुजय हाथमुंह धो कर अपने कमरे में चला गया.

अब सुजय का प्यार डांवांडोल हो चुका था. वह सम झ गया था कि उस की पत्नी का एक यार भी है जो अब भी उस के करीब है.

इस बात को काफी दिन बीत चुके थे मगर सुजय ने नेहा से दूरी बना ली थी. इसी बीच नेहा संजय की वजह से एक बार फिर प्रैगनैंट हो गई. जैसे ही उसे एहसास हुआ कि वह प्रैगनैंट है उस ने जल्दी से अपना दिमाग चलाना शुरू किया. आजकल सुजय दूर रहता था. ऐसे में प्रैगनैंसी के बारे में जान कर वह बच्चे को अपना नहीं मानेगा. इस बात का खयाल आते ही उस ने तय किया कि वह सुजय को मनाएगी और करीब जाएगी. उस ने ऐसा ही किया और पूरी तैयारी के साथ हौट ऐंड सैक्सी नाइटी पहन कर सुजय के पास पहुंची.

उसे सौरी कहने के बाद अपने जलवे दिखा कर काबू में कर लिया और उस की बांहों में आ गई. सुजय को पता नहीं था कि नेहा की चाल क्या है. एक खूबसूरत स्त्री का साथ पा कर पुरुष खुद पर कंट्रोल नहीं रख पाते और ऐसा ही कुछ सुजय के साथ हुआ. कुछ दिनों के बाद नेहा ने बेफिक्र हो कर अपनी प्रैगनैंसी की खबर सुजय को दे दी.

सुजय को शक तो हुआ पर वह दावे से नहीं कह सकता था कि बच्चा उस का नहीं है. इसलिए उस ने बच्चे के आने की तैयारियां शुरू कर दीं. सुजय के घर वाले बहुत खुश हो गए. बस सुजय का दिल ही पूरी तरह खुशी नहीं मना पा रहा था. सही समय पर नेहा ने बेटे को जन्म दिया. बच्चे का चेहरा देख कर सुजय का दिल खिल उठा. नेहा के प्रति उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया और वह फिर से नेहा और बच्चे के साथ अपनी खूबसूरत जिंदगी की कल्पना करने लगा. इस बीच वैसे भी नेहा का संपर्क संजय से काफी कम हो चुका था जिस का एहसास सुजय को था. वह अपने मन को दिलासा देने लगा कि अब बच्चे के आने के बाद नेहा वापस संजय के पास नहीं जाएगी बल्कि उस के साथ प्यार से गृहस्थी चलाएगी.

कुछ समय तक ऐसा हुआ भी. नेहा अपने बच्चे के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी. उस का बाहर जाना या घंटों फोन में बिजी रहना काफी हद तक कम हो गया.

सुजय ने दिल से नेहा को माफ कर दिया था. मगर जल्द ही उसे एक कड़वी हकीकत का सामना करना पड़ा जब उस ने फिर से नेहा और संजय को साथ देखा. एक बार फिर से उस के मन की शांति चली गई.

सुजय चाह कर भी नेहा से अलग नहीं हो सकता था क्योंकि वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करता था और कहीं न कहीं नेहा की खूबसूरती उस की कमजोरी थी. वह नेहा से भी अलग नहीं होना चाहता था. इसलिए वह घुटघुट कर जीने को विवश हो गया.

विरासत: नाजायज संबंध के चलते जब कठघरे में खड़ा हुआ शादीशुदा विनय

कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था.

पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में

पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा

क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

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