Hindi Love Story: प्यार के मायने

Hindi Love Story: उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे.

एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया.

अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं.

अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही. Hindi Love Story

Female Relatives: रिश्ते को दिल से निभाती हैं

Female Relatives: आज के दौर में जहां परिवार छोटे होते जा रहे हैं, वहीं अकेलापन और तनाव बढ़ता जा रहा है. रिश्तेदारों से अपनापन बनाए रखना केवल सामाजिक कर्तव्य नहीं, एक भावनात्मक निवेश है खासकर महिला रिश्तेदारों से अच्छा संबंध बच्चों के लिए सुरक्षाकवच का काम कर सकता है. जीवन का भरोसा नहीं लेकिन रिश्तों की मजबूती आप के बच्चों को अकेलेपन और असुरक्षा से जरूर बचा सकती है.

 

रिश्तों का दायरा सीमित न रखें

अकसर महिलाएं ससुराल और मायके के बीच बंटी रहती हैं और अपने रिश्तों को केवल औपचारिकता तक सीमित कर लेती हैं. मगर अगर हम अपने रिश्तेदारों से दिल से जुड़ें, त्योहारों में मिलें, आम दिनों में बात करें, बच्चों को उन के पास भेजें तो ये रिश्ते गहराते हैं. ताई, चाची, मामी, मौसी ये सिर्फ रिश्ते नहीं, एक नैटवर्क है. ये रिश्तेदार हमारे बच्चों के लिए ‘मां जैसी’ दूसरी छाया बन सकते हैं. अगर हम उन के साथ आज प्रेम, सम्मान और समझदारी का रिश्ता बनाएंगे तो कल वे बिना झिझक हमारे बच्चों की मदद करेंगी.

 

अपने व्यवहार से दिल जीतें, अधिकार जता कर नहीं

रिश्तों में अधिकार से ज्यादा अपनापन और समझ जरूरी होती है. ताई या मामी अगर किसी बात पर सलाह दें तो उसे तुरंत टालने के बजाय सुनें. जब हम दूसरों की इज्जत करते हैं तो वही इज्जत हमारे बच्चों को भी मिलती है.

बच्चों को भी इन रिश्तों से जोड़ें

बच्चों को सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रखें. उन्हें मौसी के घर भेजिए, मामी के हाथ का खाना खिलाइए, चाची की कहानियां सुनाई ताकि एक भावनात्मक जुड़ाव बने.

 

मतभेद हों तो भी संवाद बना रहे

हर रिश्ते में खटास आ सकती है लेकिन संवाद का दरवाजा कभी बंद न करें. कभीकभी एक फोन कौल, एक त्योहार पर बुलाना या कैसी हो? पूछ लेना बहुत गहराई से रिश्ता बचा सकता है.

 

अपने बच्चों के भविष्य के लिए यह निवेश जरूरी है

मकान, जेवर और पैसे छोड़ना एक तरह की विरासत है लेकिन रिश्ते सहेज कर जाना उस से कहीं बड़ी अमानत है. आप के जाने के बाद वही रिश्ते आप के बच्चों की परछाईं बन सकते हैं.

 

बच्चों के लिए पारिवारिक जाल की जरूरत

अगर आप अपने बच्चों को अकेलेपन से बचाना चाहती हैं तो जरूरी है कि वे सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रहें. उन्हें अपने बाकी रिश्तेदारों से जोडि़ए ताकि उन्हें लगे कि वे एक बड़े और मजबूत परिवार का हिस्सा हैं जो हर हाल में उन के साथ है.

 

बूआ और फूफाजी से जुड़े रिश्ते को भी बनाएं बच्चों के लिए सहारा

अकसर बूआ को घर से दूर मान लिया जाता है लेकिन अगर उन से प्यार और अपनापन बना रहे तो वे बच्चों के लिए दूसरी मां जैसी भूमिका निभा सकती हैं. त्योहारों, पारिवारिक मेलों और बातचीत के जरीए बूआ से रिश्ता गहरा किया जा सकता है. उन के अनुभव और भावनाएं बच्चों को आत्मिक सुरक्षा दे सकती हैं.                  Female Relatives:

Hindi Drama Story: नई बहू

Hindi Drama story: ‘‘दुलहन आ गई. नई बहू आ  गई,’’ कार के दरवाजे पर  रुकते ही शोर सा मच गया.

‘‘अजय की मां, जल्दी आओ,’’ किसी ने आवाज लगाई, ‘‘बहू का स्वागत करो, अरे भई, गीत गाओ.’’

अजय की मां राधा देवी ने बेटेबहू की अगवानी की. अजय जैसे ही आगे बढ़ने लगा कि घर का दरवाजा उस की बहन रेखा ने रोक लिया, ‘‘अरे भैया, आज भी क्या ऐसे ही अंदर चले जाओगे. पहले मेरा नेग दो.’’

‘‘एक चवन्नी से काम चल जाएगा,’’ अजय ने छेड़ा.

भाईबहन की नोकझोंक शुरू हो गई. सब औरतें भी रेखा की तरफदारी करती जा रही थीं.

केतकी ने धीरे से नजर उठा कर ससुराल के मकान का जायजा लिया. पुराने तरीके का मकान था. केतकी ने देखा, ऊपर की मंजिल पर कोने में खड़ी एक औरत और उस के साथ खड़े 2 बच्चे हसरत भरी निगाह से उस को ही देख रहे थे. आंख मिलते ही बड़ा लड़का मुसकरा दिया. वह औरत भी जैसे कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन जबरन अपनेआप को रोक रखा था. तभी छोटी बच्ची ने कुछ कहा कि वह अपने दोनों बच्चों को ले कर अंदर चली गई.

तभी रेखा ने कहा, ‘‘अरे भाभी, अंदर चलो, भैया को जितनी जल्दी लग रही है, आप उतनी ही देर लगा रही हैं.’’ केतकी अजय के पीछेपीछे घर में प्रवेश कर गई.

करीब 15 दिन बीत गए. केतकी ने आतेजाते कई बार उस औरत को देखा जो देखते ही मुसकरा देती, पर बात नहीं करती थी. कभी केतकी बात करने की कोशिश करती तो वह जल्दीजल्दी ‘हां’, ‘ना’ में जवाब दे कर या हंस कर टाल जाती. केतकी की समझ में न आता कि माजरा क्या है.

लेकिन धीरेधीरे टुकड़ोंटुकड़ों में उसे जानकारी मिली कि वह औरत उस के पति अजय की चाची हैं, लेकिन जायदाद के झगड़े को ले कर उन में अब कोई संबंध नहीं है. जायदाद का बंटवारा देख कर केतकी को लगा कि उस के ससुर के हिस्से में एक कमरा ज्यादा ही है. फिर क्या चाचीजी इस कारण शादी में शामिल नहीं हुईं या उस के सासससुर ने ही उन को शादी में निमंत्रण नहीं दिया, ‘पता नहीं कौन कितना गलत है,’ उस ने सोचा.

एक दिन केतकी जब अपनी सास राधा के पास फुरसत में बैठी थी  तो उन्होंने पुरानी बातें बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है, मैं इसी तरह चाव से एक दिन कमला को अपनी देवरानी नहीं, बहू बना कर लाई थी. मेरी सास तो बिस्तर से ही नहीं उठ सकती थीं. वे तो जैसे अपने छोटे बेटे की शादी देखने के लिए ही जिंदा थीं. शादी के बाद सिर्फ 1 माह ही तो निकाल पाईं. मैं ने सास की तरह ही इस की देखभाल की और देखा जाए तो देवर प्रकाश को मैं ने अपने बेटे की तरह ही पाला है. तुम्हारे पति अजय और प्रकाश में सिर्फ 7 साल का अंतर है. उस की पढ़ाईलिखाई, कामधंधा, शादीब्याह आदि सबकुछ मेरे प्रयासों से ही तो हुआ…फिर बेटे जैसा ही तो हुआ,’’ राधा ने केतकी की ओर समर्थन की आशा में देखते हुए कहा.

‘‘हां, बिलकुल,’’ केतकी ने आगे उत्सुकता दिखाई.

‘‘वैसे शुरू में तो कमला ने भी मुझे सास के बराबर आदरसम्मान दिया और प्रकाश ने तो कभी मुझे किसी बात का पलट कर जवाब नहीं दिया…’’ वे जैसे अतीत को अपनी आंखों के सामने देखने लगीं, ‘‘लेकिन बुरा हो इन महल्लेवालियों का, किसी का बनता घर किसी से नहीं देखा जाता न…और यह नादान कमला भी उन की बातों में आ कर बंटवारे की मांग कर बैठी,’’ राधा ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘क्या बात हुई थी?’’ केतकी उत्सुकता दबा न पाई.

‘‘इस की शादी के बाद 3 साल तक तो ठीकठाक चलता रहा, लेकिन पता नहीं लोगों ने इस के मन में क्याक्या भर दिया कि धीरेधीरे इस ने घर के कामकाज से हाथ खींचना शुरू कर दिया. हर बात में हमारी उपेक्षा करने लगी. फिर एक दिन प्रकाश ने तुम्हारे ससुर से कहा, ‘भैया, मैं सोचता हूं कि अब मां और पिताजी तो रहे नहीं, हमें मकान का बंटवारा कर लेना चाहिए जिस से हम अपनी जरूरत के मुताबिक जो रद्दोबदल करवाना चाहें, करवा कर अपनेअपने तरीके से रह सकें.’

‘‘‘यह आज तुझे क्या सूझी? तुझे कोई कमी है क्या?’ प्रकाश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए तुम्हारे ससुर ने कहा.

‘‘‘नहीं, यह बात नहीं, लेकिन बंटवारा आज नहीं तो कल होगा ही, होता आया है. अभी कर लेंगे तो आप भी निश्ंिचत हो कर अजय, विजय के लिए कमरे तैयार करवा पाएंगे. मैं अपना गोदाम और दफ्तर भी यहीं बनवाना चाहता हूं. इसलिए यदि ढंग से हिस्सा हो जाए तो…’

‘‘‘अच्छा, शायद तू अजय, विजय को अपने से अलग मानता है? लेकिन मैं तो नहीं मानता, मैं तो तुम तीनों का बराबर बंटवारा करूंगा और वह भी अभी नहीं…’

‘‘‘यह आप अन्याय कर रहे हैं, भैया,’ प्रकाश की आंखें भर आईं और वह चला गया.

‘‘बाद में काफी देर तक उन के कमरे से जोरजोर से बहस की आवाजें आती रहीं.

‘‘खैर, कुछ दिन बीते और फिर वही बात. अब बातबात में कमला भी कुछ कह देती. कामकाज में भी बराबरी करती. घर में तनाव रहने लगा. बात मरदों की बैठक से निकल कर औरतों में आ गई. घर में चैन से खानापीना मुश्किल होने लगा तो महल्ले और रिश्ते के 5 बुजुर्गों को बैठा कर फैसला करवाने की सोची. प्रकाश कहता कि मुझे आधा हिस्सा दो. हम कहते थे कि हम ने तुम्हें बेटे की तरह पाला है, तुम्हारी पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह सभी किया, हम 3 हिस्से करेंगे.’’

‘‘लेकिन जब बंटवारा हो गया तो अब इस तरह संबंध न रखने की क्या तुक है?’’ केतकी ने पूछ ही लिया.

‘‘रोजरोज की किटकिट से मन खट्टा हो गया हमारा, इसलिए जब बंटवारा हो गया तो हम ने तय कर लिया कि उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखेंगे,’’ राधा ने बात साफ करते हुए कहा.

‘‘लेकिन शादीब्याह, जन्म, मृत्यु में आनाजाना भी…?’’

‘‘अब यह उन की मरजी. अच्छा बताओ, तुम्हारी शादी में कामकाज के बाबत पूछना, शामिल होना क्या उन का कर्र्तव्य नहीं था, लेकिन प्रकाश तो शादी के 3 दिन पहले अपने धंधे के सिलसिले में बाहर चला गया था…जैसे उस के बिना काम ही नहीं चलेगा,’’ राधा ने अपने मन की भड़ास निकाली.

‘‘आप ने उन से आने को कहा तो होगा न?’’

‘‘अच्छा,’’ राधा ने मुंह बिचकाया, ‘‘जिसे मैं घर में लाई, उसे न्योता देने जाऊंगी? कल विजय की शादी में तुम को न्योता दूंगी, तब तुम आओगी?’’

केतकी को लगा, अब पुरानी बातों पर आया गुस्सा कहीं उस पर न निकले. वह धीरे से बोली, ‘‘मैं चाय का इंतजाम करती हूं.’’

केतकी सोचने लगी कि कभी चाची से बात कर के ही वास्तविक बात पता चलेगी. उस ने चाची व उन के बच्चों से संपर्क बढ़ाना शुरू किया. जब भी उन को देखती, 1-2 मिनट बात कर लेती. एक दिन तो कमला ने कहा भी, ‘‘तुम हम से बात करती हो, भैयाभाभी कहीं नाराज हो गए तो?’’

‘‘आप भी कैसी बात करती हैं, वे भला क्यों नाराज होंगे?’’ केतकी ने हंसते हुए कहा.

अब केतकी ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि एकदूसरे के मन पर जमा मैल हटाना है. इसलिए एक दिन सास से बोली, ‘‘चाचीजी कह रही थीं कि आप कढ़ी बहुत बढि़या बनाती हैं. कभी मुझे भी खिलाइए न.’’

इसी तरह केतकी कमला से बात करती तो कहती, ‘‘मांजी कह रही थीं कि आप भरवां बैगन बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

कहने की जरूरत नहीं कि ये बातें वह किसी और के मुंह से सुनती, पर सास को कहती तो चाची का नाम बताती और चाची से कहती तो सास का नाम बताती. वह जानती थी कि अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. फिर अगर वह अपने दुश्मन के मुंह से हो तो दुश्मनी भी कम हो जाती है.

इस तरह बातों के जरिए केतकी एकदूसरे के मन में बैठी गलतफहमी और वैमनस्य को दूर करने लगी. एक दिन तो उस को लगा कि उस ने गढ़ जीत लिया. हुआ क्या कि केतकी के नाम की चिट्ठी पिंकी ले कर आई और गैलरी से उस ने आवाज लगाई, ‘‘भाभीजी.’’

केतकी उस समय रसोई में थी. वहीं से बोली, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप की चिट्ठी.’’

केतकी जैसे ही बाहर आने लगी, पिंकी गैलरी से चिट्ठी फेंक कर भाग गई. जब उस की सास ने यह देखा तो बरबस पुकार बैठी, ‘‘पिंकी…अंदर तो आ…’’

तब केतकी को आशा की किरण ही नजर नहीं आई, उसे विश्वास हो गया कि अब दिल्ली दूर नहीं है.  तभी राधा को बेटी की बातचीत के सिलसिले में पति और बेटी के साथ एक हफ्ते के लिए बनारस जाना था. केतकी को दिन चढ़े हुए थे. इसलिए उन्हें चिंता थी कि क्या करें. पहला बच्चा है, घर में कोई बुजुर्ग औरत होनी ही चाहिए. आखिरकार केतकी को सब तरह की हिदायतें दे कर वह रवाना हो गईं.

3-4 दिन आराम से निकले. एक दिन दोपहर के समय घर में अजय और विजय भी नहीं थे. ऐसे में केतकी परेशान सी कमला के पास आई. उस की हैरानपरेशान हालत देख कर कमला को कुछ खटका हुआ, ‘‘क्या बात है, ठीक तो हो…?’’

‘‘पता नहीं, बड़ी बेचैनी हो रही है. सिर घूम रहा है,’’ बड़ी मुश्किल से केतकी बोली.

‘‘लेट जाओ तुरंत, बिलकुल आराम से,’’ कहती हुई कमला नीचे पति को बुलाने चली गई.

कमला और प्रकाश उसे अस्पताल ले गए और भरती करा दिया. फिर अजय के दफ्तर फोन किया.

अजय ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ वह बदहवास सा हो रहा था.

‘‘शायद चिंता से रक्तचाप बहुत बढ़ गया है,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘मैं इस के पीहर से किसी को बुला लेता हूं. आप को बहुत तकलीफ होगी,’’ अजय ने कहा.

‘‘ऐसा है बेटे, तकलीफ के दिन हैं तो तकलीफ होगी ही…घबराने की कोई बात नहीं…सब ठीक हो जाएगा,’’ प्रकाश ने अजय के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बाकी जैसा तुम उचित समझो.’’

‘‘वैसे डाक्टर ने क्या कहा है?’’ अजय ने चाचा से पूछा.

‘‘रक्तचाप सामान्य हो रहा है. कोई विशेष बात नहीं है.’’

केतकी को 2 दिन अस्पताल में रहना पड़ा. फिर छुट्टी मिल गई, पर डाक्टर ने आराम करने की सख्त हिदायत दे दी.

घर आने पर सारा काम कमला ने संभाल लिया. केतकी इस बीच कमला का व्यवहार देख कर सोच रही थी कि गलती कहां है? कमला कभी भी उस के सासससुर के लिए कोई टिप्पणी नहीं करती थी.  लेकिन एक दिन केतकी ने बातोंबातों में कमला को उकसा ही दिया. उन्होंने बताया, ‘‘मैं ने बंटवारा कराया, यह सब कहते हैं, लेकिन क्या गलत कराया? माना उम्र में वे मेरे सासससुर के बराबर हैं. इन को पढ़ायालिखाया भी, लेकिन सासससुर तो नहीं हैं न? यदि ऐसा ही होता तो क्या तुम्हारी शादी में हम इतने बेगाने समझे जाते. फिर यदि मैं लड़ाकी ही होती तो क्या बंटवारे के समय लड़ती नहीं?

‘‘सब यही कहते हैं कि मैं ने तनाव पैदा किया, पर मैं ने यह तो नहीं कहा कि संबंध ही तोड़ दो. एकदूसरे के दुश्मन ही बन जाओ. अपनेअपने परिवार में हम आराम से रहें, एकदूसरे के काम आएं, लेकिन भैयाभाभी तो उस दिन के बाद से आज तक हम से क्या, इन बच्चों से भी नहीं बोले. यदि वे किसी बात पर अजय से नाराज हो जाएं तो क्या विजय की शादी में तुम्हें बुलाएंगे नहीं? ऐसे बेगानों जैसा व्यवहार करेंगे क्या? बस, यही फर्क होता है और होता आया है…उस के लिए मैं किसी को दोष नहीं देती. खैर, छोड़ो इस बात को…जो होना था, हो गया. बस, मैं तो यह चाहती हूं कि दोनों परिवारों में सदा मधुर संबंध बने रहें.’’

‘‘मांजी भी यही कहती हैं,’’ केतकी ने अपनेपन से कहा.

‘‘सच?’’ कमला ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां.’’

‘‘फिर वे हम से बेगानों जैसा व्यवहार क्यों करती हैं?’’

‘‘वे बड़ी हैं न, अपना बड़प्पन बनाए रखना चाहती हैं. आप जानती ही हैं, वे उस दौर की हैं कि टूट जाएंगी, पर झुक नहीं सकतीं.’’

केतकी की बात सुन कर कमला कुछ सोचने लगी.  शाम तक राधा, रेखा और दुर्गाचरण आ गए. आ कर जब देखा कि केतकी बिस्तर पर पड़ी है तो राधा के हाथपांव फूल गए.

राधा ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘कुछ नहीं, अब तो बिलकुल ठीक हूं, पर चाचीजी मुझे उठने ही नहीं देतीं,’’ केतकी ने कहा.

‘‘ठीक है…ठीक है…तुम आराम करो. अब सब मैं कर लूंगी,’’ राधा ने केतकी की बात अनसुनी करते हुए अपने सफर की बातें बतानी शुरू कर दीं.

तभी कमला ने कहा, ‘‘आप थक कर आए हैं. शाम का खाना मैं ही बना दूंगी.’’

‘‘रोज खाना कौन बनाती थी?’’ राधा ने जानना चाहा.

‘‘चाचीजी ने ही सब संभाल रखा था अभी तक तो…’’ अजय ने बताया.

‘‘अस्पताल में भी ये ही रहीं. एक मिनट भी भाभीजी को अकेला नहीं छोड़ा,’’ विजय ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘तो फिर अब क्या पूछ रही हो?’’ दुर्गाचरण ने राधा की ओर सहमति की मुद्रा में देखते हुए कहा.

‘‘हां, और क्या, हम क्या पराए हैं जो अब हम को खाना नहीं खिलाओगी?’’ राधा ने कमला की ओर देख कर कहा.

‘‘जी…अच्छा,’’ कमला जाने लगी.

दुर्गाचरण और राधा ने एकदूसरे की   ओर देखा, फिर दुर्गाचरण ने    कहा, ‘‘अपना आखिर अपना ही होता है.’’

‘‘हम यह बात भूल गए थे.’’

तभी कमला कुछ पूछने आई तो राधा ने कहा, ‘‘हमें माफ करना बहू…’’

‘‘छि: भाभीजी…आप बड़ी हैं. कैसी बात करती हैं…’’

‘‘यह सही कह रही है, बहू, बड़े भी कभीकभी गलती करते हैं,’’ दुर्गाचरण बोले तो केतकी के होंठों पर मुसकान खिल उठी.  Hindi Drama Story

Family Story: मोहब्बत में कोई छोटा नहीं होता

Family Story: शाम ढलने लगी थी. तालाब के हिलते पानी में पेड़ों की लंबी छाया भी नाचने लगी थी. तालाब के किनारे बैठी विनीता अपनी सोच में गुम थी. वह 2 दिन पहले ही लखनऊ से वाराणसी अपनी मां से मिलने आई थी, तो आज शाम होते ही अपनी इस प्रिय जगह की ओर पैर अपनेआप बढ़ गए थे.

‘‘अरे, वीनू…’’ इस आवाज कोे विनीता पीछे मुड़ कर देखे बिना पहचान सकती थी कि कौन है. वह एक झटके से उठ खड़ी हुई. पलटी तो सामने आशीष ही था.

आशीष बोला, ‘‘कैसी हो? कब आईं?’’

‘‘2 दिन पहले,’’ वह स्वयं को संभालती हुई बोली, ‘‘तुम कैसे हो?’’

आशीष ने अपनी चिरपरिचित मुसकराहट के साथ पूछा, ‘‘कैसा दिख रहा हूं?’’

विनीता मुसकरा दी.

‘‘अभी रहोगी न?’’

‘‘परसों जाना है, अब चलती हूं.’’

‘‘थोड़ा रुको.’’

‘‘मां इंतजार कर रही होंगी.’’

‘‘कल इसी समय आओगी यहां?’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

‘‘तो फिर कल मिलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर विनीता घर चल दी.

घर आते समय विनीता का मन उत्साह से भर उठा. वही एहसास, वही चाहत, वही आकर्षण… यह सब सालों बाद महसूस किया था उस ने. रात को सोने लेटी तो पहला प्यार, जो आशीष के रूप में जीवन में आया था,

याद आ गया. याद आया वह दिन जिस दिन आशीष के दहेजलोभी पिता के कारण उन का पहला प्यार खो गया था. इस के बिना विनीता ने एक लंबा सफर तय कर लिया था. कैसे जी लिया जाता है पहले प्यार के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब  झेला हो.

विनीता का मन अतीत में कुलांचें भरने लगा… आशीष के पिता ने एक धनी परिवार की एकमात्र संतान दिव्या से आशीष का विवाह करा कर अपनी जिद पूरी कर ली थी और फिर अपने मातापिता की इच्छा के आगे विनीता ने भी एक आज्ञाकारी बेटी की तरह सिर झुका दिया था.

विवाह की रात विनीता ने जितने आंसू थे आशीष की याद में बहा दिए थे, फिर वह पूरी ईमानदारी के साथ पति नवीन के जीवन में शामिल हो गई थी और आज विवाह के 8 सालों के बाद भी पूरी तरह नवीन और बेटी सिद्धि के साथ गृहस्थी के लिए समर्पित थी. इतने सालों में मायके आने पर 1-2 बार ही आशीष से सामना हुआ था और बात बस औपचारिक हालचाल पर ही खत्म हो गई थी.

कई दिनों से विनीता बहुत उदास थी. घर, पति, बेटी, रिश्तेनाते इन सब में उलझा खुद समय के किस फंदे में उलझ, जान नहीं सकी. अब जान सकी है कि दिलदिमाग के स्तर में समानता न हो तो प्यार की बेल जल्दी सूख जाती है… उसे लगता है दिन ब दिन तरक्की की सीढि़यां चढ़ता नवीन घर में भी अपने को अधिकारी समझने लगा है और पत्नी को अधीनस्थ कर्मचारी… उस की हर बात आदेशात्मक लहजा लिए होती है, फिर चाहे वे अंतरंग पल ही क्यों न हों. आज तक उस के और नवीन के बीच भावनात्मक तालमेल नहीं बैठा था.

नवीन के साथ तो तसल्ली से बैठ कर 2 बातें करने के लिए भी तरस जाती है वह. उसे लगता है जैसे उन का ढीला पड़ गया प्रेमसूत्र बस औपचारिकताओं पर ही टिका रह गया है. नवीन मन की कोमल भावनाओं को व्यक्त करना नहीं जानता. पत्नी की तारीफ करना शायद उस के अहं को चोट पहुंचाता है. विनीता को अब नवीन की हृदयहीनता की आदत सी हो गई थी. अतीत और वर्तमान में विचरते हुए विनीता की कब आंख लग गई, पता ही न चला.

कुछ दिन पहले विनीता के पिता का देहांत हो गया था. अगले दिन सिद्धि को मां के पास छोड़ कर विनीता ‘थोड़ी देर में आती हूं’ कह कर तालाब के किनारे पहुंच गई. आशीष वहां पहले से ही उस की प्रतीक्षा कर रहा था. उस के हाथ में विनीता का मनपसंद नाश्ता था.

विनीता हैरान रह गई, पूछ बैठी, ‘‘तुम्हें आज भी याद है?’’

आशीष कुछ नहीं बोला, बस मुसकरा कर रह गया.

विनीता चुपचाप गंभीर मुद्रा में एक पत्थर पर बैठ गई. आशीष ने विनीता को गंभीर मुद्रा में देखा, तो सोच में पड़ गया कि वह तो हर समय, हर जगह हंसी की फुहार में भीगती रहती थी, सपनों की तितलियां, चाहतों के जुगनू उस के साथ होते थे, फिर आज वह इतनी गंभीर क्यों लग रही है? क्या इन सालों में उस की हंसी, वे सपने, वे तितलियां, सब कहीं उड़ गए हैं? फिर आशीष ने उसे नाश्ता पकड़ाते हुए पूछा, ‘‘लाइफ कैसी चल रही है?’’

‘‘ठीक ही है,’’ कह कर विनीता ने गहरी सांस ली.

‘‘ठीक ही है या ठीक है? दोनों में

फर्क होता है, जानती हो न? उदास क्यों लग रही हो?’’

विनीता ने आशीष की आंखों में  झंका, कितनी सचाई है, कोई छल नहीं, कितनी सहजता से वह उस के मन के भावों को पढ़ उस की उदासी को समझ कर बांटने की कोशिश कर रहा है. अचानक विनीता को लगा कि वह एक घने, मजबूत बरगद के साए में निश्चिंत और सुरक्षित बैठी है.

‘‘तुम बताओ, तुम्हारी पत्नी और बच्चे कैसे हैं?’’

‘‘दिव्या ठीक है, क्लब, पार्टियों में व्यस्त रहती है, बेटा सार्थक 6 साल का है. तुम्हारे पति और बच्चे नहीं आए?’’

‘‘नवीन को काम से छुट्टी लेना अच्छा नहीं लगता और सिद्धि को मां के पास छोड़ कर आई हूं.’’

‘‘तो क्या नवीन बहुत व्यस्त रहते हैं?’’

विनीता ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘क्या सोच रही हो वीनू?’’

विनीता को आशीष के मुंह से ‘वीनू’

सुन कर अच्छा लगा. फिर बोली, ‘‘यही, बंद मुट्ठी की फिसलती रेत की तरह तुम जीवन

से निकल गए थे और फिर न जाने कैसे आज हम दोनों यों बैठे हैं.’’

‘‘तुम खुश तो हो न वीनू?’’

‘‘जिस के साथ मन जुड़ा होता है उस का साथ हमेशा के लिए क्यों नहीं मिलता आशू?’’ कहतेकहते विनीता ने आशीष को अपलक देखा, अभी भी कुछ था, जो उसे अतीत से जोड़ रहा था… वही सम्मोहक मुसकराहट, आंखों में वही स्नेहिल, विश्वसनीय भाव.

‘‘तुम आज भी बहुत भावुक हो वीनू.’’

‘‘हम कितनी ही ईमानदार कोशिश क्यों न करें पर फिर भी कभीकभी बहुत गहरी चोट लग ही जाती है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा और नवीन का रिश्ता दुनिया का सब से मजबूत रिश्ता है, यह क्यों भूल रही हो?’’

‘‘रिश्ते मन के होते हैं पर नवीन के मामले में न जाने कहां सब चुक सा रहा है,’’ आज विनीता आशीष से मिल कर स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी. उस ने अपने मन की पीड़ा आशीष के सामने व्यक्त कर ही दी, ‘‘आशू, नवीन बहुत प्रैक्टिकल इंसान है. हमारे घर में सुखसुविधाओं का कोई अभाव नहीं है, लेकिन नवीन भावनाओं के प्रदर्शन में एकदम अनुदार है… एक रूटीन सा नीरस जीवन है हमारा.

‘‘हम दोनों के साथ बैठे होने पर भी कभीकभी दोनों के बीच कोई बात नहीं होती. वैसे जीवन में साथ रहना, सोना, खाना पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर हमारे रिश्ते की गरमी न जाने कहां खो गई है. मैं नवीन को अपने मन से बहुत दूर महसूस करती हूं. अब तो लगता है नवीन और मैं नदी के 2 किनारे हैं, जो अपने बीच के फासले को समेट नहीं पाएंगे… आज पता नहीं क्यों तुम से कुछ छिपा नहीं पाई.’’

‘‘पर हमें फिर भी उस फासले को पाट कर उन के पास जाने की कोशिश करनी होगी वीनू. मुझे अब तकलीफ नहीं होती, क्योंकि दिव्या के अहं के आगे मैं ने हथियार डाल दिए हैं. उसे अपने पिता के पैसों का बहुत घमंड है और उस की नजरों में मेरी कोई हैसियत नहीं है, लेकिन इस में मैं कुछ नहीं कर सकता. इन स्थितियों को बदला नहीं जा सकता. हमारा विवाह, जिस से हुआ है, इस सच को हम नकार नहीं सकते… नवीन और दिव्या जैसे हैं हमें उन्हें वैसे ही स्वीकार करना होगा. उन्हें बदलने की कोशिश करना मूर्खता है… बेहतर होगा कि हम उन के अनुसार स्वयं को ढाल लें वरना सारा जीवन कुढ़ते, खीजते और बहस में ही गुजर जाएगा.’’

‘‘लेकिन क्या यह समझौता करने जैसा नहीं हुआ? समझौते में खुशी व प्यार कहां होता है?’’

आशीष से विनीता की उदासी देखी नहीं जा रही थी. अत: उसे समझते हुए बोला, ‘‘समझौता हम कहां नहीं करते वीनू? औफिस से ले कर अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों के साथ हर जगह, हर मोड़ पर हम ऐडजस्ट करने के लिए तैयार रहते हैं और वह भी खुशीखुशी, तो फिर इस रिश्ते में समझौता करने में कैसी तकलीफ जिसे जीवन भर जीना है?’’

आशीष की बात सुनतेसुनते विनीता इसी सोच में डूब गई कि सुना था पहला प्यार ऐसी महक लिए आता है, जो संजीवनी और विष दोनों का काम करता है, मगर उन्हें अमृत नहीं विष मिला जिस के घूंट वे आज तक पी रहे हैं. निर्मल प्रेम का सागर दोनों के दिलों में हिलोरें ले रहा था. आशीष भी शायद ऐसी ही मनोस्थिति से गुजर रहा था.

विनीता ने आशीष को अपनी तरफ देखते पाया तो मुसकराने का भरसक प्रयत्न करती हुई बोली, ‘‘क्या हुआ, एकदम चुप्पी क्यों साध ली? क्या तुम भी ऐडजस्ट करतेकरते मानसिक रूप से थक चुके हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं आज भी यही सोचता हूं कि विवाह जीवन का बेहद खूबसूरत मोड़ है, जहां संयम और धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है. केवल समझौतावादी स्वभाव से ही इस मोड़ के सुंदर दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है. मेरी बात पर यकीन कर के देखो वीनू, जीना कुछ आसान हो जाएगा… तुम स्वयं को संभालो, हम दोनों कहीं भी रहें, मन से हमेशा साथ रहेंगे. भला मन से जुड़े रिश्ते को कौन तोड़ सकता है? हमें तो एकदूसरे को विश्वास का वह आधार देना है, जिस से हमारे वैवाहिक जीवन की नींव खोखली न हो. हम अगली बार मिलें तो तुम्हारे चेहरे पर वही हंसी हो, जिसे इस बार तुम लखनऊ में छोड़ आई हो,’’ कहतेकहते आशीष के होंठों पर हंसी फैल गई, तो विनीता भी मुसकरा दी.

‘‘अब चलें, तुम्हारी बेटी इंतजार कर रही होगी? अगली बार आओ तो बिना मिले मत जाना,’’ आशीष हंसा.

दोनों अपनेअपने घर लौट गए. आशीष के निश्छल, निर्मल प्रेम के प्रति विनीता का मन श्रद्धा से भर उठा.

घर लौटते विनीता ने फैसला कर लिया कि वह नए सिरे से नवीन को अपनाएगी, वह जैसा है वैसा ही. प्रेम करने, समर्पण करने से कोई छोटा नहीं हो जाता. वह एक बार फिर से अप?ने बिखरे सपनों को इकट्ठा करने की कोशिश करेगी… मन में नवीन के प्रति जो रोष था, वह अब खत्म हो गया था. Family Story

Job vs Household Chores: जॉब जरूरी या घर के अनप्रोडक्टिव काम

Job vs Household Chores: चीन की एक अदालत ने कुछ समय पहले तलाक से जुड़े एक मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया. कोर्ट ने एक व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह 5 साल तक चली अपनी शादी के दौरान पत्नी द्वारा किए गए घरेलू काम के बदले में उसे मुआवजा दे. इस मामले में महिला को 5.65 लाख दिए जाने का फैसला हुआ. इस फैसले ने चीन समेत दुनियाभर में बड़ी बहस को जन्म दिया.

कुछ लोगों का मानना था कि महिला घर के काम के बदले में मुआवजे के रूप में कुछ भी लेने की हकदार नहीं है. वहीं कुछ लोगों के अनुसार जब महिला अपने कैरियर से जुड़े अवसरों को त्याग कर रोज घंटों घरेलू काम करती है तो उसे मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए.

इस से कुछ समय पहले भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में लिखा था कि घर का काम परिवार की आर्थिक स्थिति में वास्तविक रूप से योगदान करता है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी योगदान करता है.

दरअसल, चीन से ले कर भारत और पश्चिमी दुनिया के देशों में भी अदालतें बारबार महिलाओं द्वारा की गई अनपेड लेबर को आर्थिक उत्पादन के रूप में स्थापित करने वाले फैसले देती रही हैं. लेकिन इस के बावजूद घर के काम को जीडीपी में योगदान के रूप में नहीं देखा जाता है. यही नहीं समाज घर के काम को वह अहमियत नहीं देता है जितनी नौकरी या व्यवसाय में किए गए काम को देता है.

सवाल अहम है

ऐसे में सवाल उठता है कि महिलाएं घर के अनप्रोडक्टिव काम छोड़ कर नौकरी या व्यवसाय क्यों न शुरू करें? जब उन के पास स्किल है, काबिलीयत है तो वे क्यों न ऐसे काम करें जिन में वे अपनी स्किल दिखा कर अच्छी कमाई कर आत्मनिर्भर बन सकें? घर के कामों में पूरे दिन समय बरबाद कर के जब उन्हें कुछ हासिल नहीं हो रहा तो वे इन कामों को हाउस हैल्प के द्वारा करा कर अपने समय का सदुपयोग कर सकती हैं, पैसे कमा सकती हैं और अपनी कमाई के कुछ रुपए हाउस हैल्प को दे कर अपने काम का बोझ हलका कर सकती हैं.

उधर जिन कामों के लिए उन्हें सैलरी नहीं मिल रही थी वही काम जब हाउस हैल्प यानी कामवाली करती है तो उसे भी कमाई का अवसर मिलता है. यानी वही काम एक स्त्री अपने घर पर करे तो वह प्रोडक्टिव काम नहीं जबकि कामवाली करे तो वह प्रोडक्टिव हो जाता है.

घरेलू काम की अहमियत नहीं

दुनिया की अधिकांश महिलाएं इस सवाल से जूझती हैं कि समाज एक गृहिणी के रूप में उन के द्वारा किए गए घर के कामों को वह सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जो पुरुषों द्वारा किए गए कामों को दिया जाता है, जबकि एक गृहिणी के रूप में महिलाओं के काम के घंटे पुरुषों के किए गए काम के घंटों की तुलना में कहीं अधिक होते हैं? नौकरी की तरह उन्हें कभी संडे नहीं मिलता. वे सातों दिन सुबह से रात तक काम में जुटी होती हैं.

भले ही वे बीमार क्यों न हों पर वे छुट्टी नहीं ले पातीं क्योंकि ये बहुत जिम्मेदारी वाले काम होते हैं. मसलन, घर पर अगर किसी को तय समय पर दवा देनी है तो वह काम छोड़ा नहीं जा सकता है. खाना तय समय पर बनना है तो वह भी बनना जरूरी है. सब को भूखा नहीं छोड़ा जा सकता.

घर के काम करने वाली महिला को ‘अलादीन का चिराग’ समझा जाता है. अगर कभी सहयोग की मांग की भी जाए तो कहा जाता है कि करती ही क्या हो. आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि भारत में घर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा काम करती हैं.

ताजा टाइम यूज सर्वे के मुताबिक महिलाएं हर दिन घर के कामों, जिन के लिए उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलती, में 299 मिनट लगाती हैं. वहीं भारतीय पुरुष दिन में सिर्फ 97 मिनट घर के कामों में लगाते हैं. इस सर्वे में येहभी सामने आया है कि महिलाएं घर के सदस्यों का खयाल रखने में रोज 134 मिनट लगाती हैं, वहीं पुरुष इस काम में सिर्फ 76 मिनट खर्च करते हैं. महिलाओं के किए गए बिना सैलरी वाले घर के काम का मूल्य 3 तरह से निकाला जा सकता है:

अपौर्च्युनिटी कौस्ट मैथड, रिप्लेसमैंट कौस्ट मैथड, इनपुट/आउटपुट कास्ट मेथड.

पहले फौर्मूले के मुताबिक अगर कोई महिला बाहर जा कर 50 हजार रुपए कमा सकती है और इस के बावजूद वह घर के काम करती है तो उस के काम की कीमत 50 हजार रुपए मानी जानी चाहिए.

दूसरे फौर्मूले के मुताबिक एक महिला द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य उन सेवाओं के लिए किए किए जाने वाले खर्च के आधार पर तय होता है. सरल शब्दों में कहें तो अगर एक महिला की जगह घर पर कोई और काम करता है तो जो खर्च उस की सेवाएं लेने के बदले में होगा, वही उस महिला के द्वारा किए गए काम का मूल्य होगा. इसी तरह तीसरे फौर्मूले में एक महिला द्वारा घर पर किए गए काम की मार्केट वैल्यू निकाली जाती है.

अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान

अंतर्राष्ट्रीय संस्था औक्सफेम के एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था का 3.1 फीसदी है. 2019 में महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ की कीमत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर से भी ज्यादा थी. ये फौर्च्यून ग्लोबल 500 लिस्ट की 50 सब से बड़ी कंपनियों जैसे वालमार्ट, ऐप्पल और अमेजन आदि की कुल आमदनी से भी ज्यादा थी.

सरल शब्दों में कहें तो एक महिला अपने पति के कपड़े धोने, प्रैस करने से ले कर उन के खानेपीने, शारीरिक एवं मानसिक सेहत आदि का खयाल रखती है ताकि औफिस जा कर काम कर सके. वह बच्चों को पढ़ाती है ताकि वे बाद में देश के मानव संसाधन का हिस्सा बन सकें. वह अपने मातापिता और सासससुर की सेहत का ध्यान रखती है जो देश की आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दे चुके होते हैं. अब अगर इस पूरे समीकरण में से गृहिणी को निकाल दिया जाए तो सरकार को बच्चों का ध्यान रखने के लिए बाल कल्याण सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों का ध्यान रखने के वृद्धाश्रम, केयर गिवर आदि पर बेतहाशा खर्च करना पड़ेगा. यदि महिलाएं घर के काम ही बंद कर दें तो यह सिस्टम पूरी तरह ठप हो जाएगा.

हमें समझना होगा कि विकास तब होगा जब सभी लोग अपने मन का काम कर सकें. जो महिला डाक्टर बनना चाहे वह डाक्टर बन सके, जो महिला इंजीनियर बनना चाहे वह इंजीनियर बन सके. लेकिन पुरुषप्रधान समाज ने महिलाओं पर घर के काम थोप दिए हैं. इस से उन के पैरों में एक तरह की बेडि़यां पड़ गई हैं. उन पर ये दबाव होता है कि वे पहले घर के काम करें फिर कोई अन्य काम.

घरेलू कामों के बोझ के चलते भारतीय शहरों में भी लगभग आधी महिलाएं दिन में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पातीं. यह चौंकाने वाला तथ्य है ‘ट्रैवल बिहेवियर ऐंड सोसायटी’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र का.

काम का बोझ बनाता है बीमार

जो महिलाएं नौकरी या कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर निकलती हैं उन्हें नौकरी से घर लौट कर दूसरी ‘कामकाजी शिफ्ट’ में जुटना पड़ता है. भारत सरकार के नैशनल सैंपल सर्वे औफिस ने 2019 में दैनिक जीवन को ले कर कई आंकड़े जुटाए थे. आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफैसर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के बताया कि 15 से 60 साल की स्त्रियां रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू काम करती हैं. पुरुषों का योगदान इस का आधा भी नहीं है. यही नहीं कमाने वाली महिलाएं भी कमाऊ पुरुषों की तुलना में घर के कामों को दोगुना वक्त देती हैं.

यह सिर्फ काम के घंटों की बात नहीं है क्योंकि ये महज काम होते तो इन के पूरे हो जाने के बाद आराम भी मिल जाता. परंतु ये तो जिम्मेदारियां हैं जिन में से कुछ स्त्री को विरासत में मिली हैं और कुछ उस ने खुद ओढ़ रखी हैं. मसलन, रात तक सारे काम निबटा कर सोते समय भी महिला के दिमाग में यह चल रहा होता है कि सुबह जल्दी उठ कर बच्चे को तैयार कर के टिफिन बनाएगी. घर में हफ्तेभर बाद मेहमान आने वाले हों तो उस के मन में तैयारी उसी समय से शुरू हो जाती है.

देखा जाए तो कामवाली या औफिस वालों को भी छुट्टी मिल जाती है परंतु घरेलू महिला के लिए हर दिन कामकाजी होता है. इस का असर शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के साथसाथ उस के व्यवहार और रिश्तों पर भी पड़ता है. काम का तनाव अवसाद या ऐंग्जाइटी की तरफ भी ले जा सकता है. व्यवहार में नकारात्मकता आ सकती है. कामों का बो?ा स्वयं को अन्याय का शिकार मानने की मानसिकता बना सकता है. महिला चिड़चिड़ी हो सकती है. छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ सकता है. इस तरह के व्यवहार से पारिवारिक सदस्यों से रिश्ते खराब होने की आशंका बढ़ती है.

काम के चक्कर में महिलाएं न तो समय पर खाती हैं और न ही पौष्टिक आहार लेती हैं. सैर, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों के लिए समय निकालने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. ये सारी बातें कुछ समय बाद शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह बिगाड़ देती हैं.

क्या है उपाय

कामों का बंटवारा करें: सभी को घर के कामों में मदद करनी है ऐसा नियम बनाएं. जब सब हाथ बंटाएंगे तो हर काम समय पर होगा और सब की आप पर छोटीछोटी बातों के लिए निर्भरता कम होगी. बेटी के साथ बेटे को भी बराबर काम सौंपें. वैसे भी अब खाना बनाना जैसे घरेलू काम लाइफ स्किल बन चुके हैं जो सब को आने ही चाहिए. जब बच्चे बड़े होते हैं तो उन्हें जौब के लिए कई दफा दूसरे शहर में अकेले रहना होता है. पति के साथ भी ऐसा मौका आ सकता है. एकल परिवारों में पत्नी कभी बीमार है या कहीं गई है तब खाना बनाना आता हो तो सबकुछ आसान हो जाता है.

परफैक्शन की चाह छोड़ें: परफैक्शन अच्छी चीज है परंतु हर काम में नहीं. कुछ छोटेमोटे कामों में हर किसी से परफैक्शन की उम्मीद न रखें. आप को लगता है कि हर चीज जगह पर होनी चाहिए इसलिए धीरेधीरे आप को सब की अव्यवस्था सुधारने की आदत हो जाती है. बच्चे स्कूल से आने के बाद कपड़े इधरउधर फेंक देते हैं तो उन्हें आप उठाती हैं. आप को लगता है कि जितनी देर में उन्हें कहेंगी आप खुद बेहतर ढंग से काम कर देंगी. मगर इस आदत से बाहर निकालिए. आप ऐसे काम मत करीए फिर देखिए कभी न कभी वे खुद सब संभालना सीख जाएंगे.

गैजेट्स खरीदें: जिन घरों में तरहतरह के घरेलू काम निबटाने वाले गैजेट्स होते हैं वहां महिलाओं का काफी समय बचता है. घरेलू कामकाज में सहायक गैजेट्स खरीदना अपनी प्राथमिकता बनाएं. उदाहरण के लिए डिशवाशर, रोटी मेकर, प्रैशर कुकर, राइस कुकर, स्टीमर, एअर फ्रायर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर, रोबोटिक स्वीपर, वौशिंग मशीन आदि कुछ ऐसे गैजेट हैं जो घर के काम को आसान और अधिक कुशल बना सकते हैं. अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार गैजेट चुन सकते हैं. इन से आप का बहुत सा समय और मेहनत बचेगी और तनाव घटेगा.

वाशिंग मशीन घर में हो तो आप को घंटों कपड़े धो कर निकालने की मेहनत नहीं करनी होगी. बस मशीन में डाले और सही समय पर निकाल लिए. यह काम घर का कोई भी सदस्य कर सकता है. इसी तरह डिशवाशर में बरतनों को धोने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी. कोई भी यह काम कर सकता है. इसी तरह रोटी मेकर से रोटियां पकाना या जूसर से जूस निकालना, कुकर में चावल पकाना जैसे काम कोई भी कर सकता है. स्त्री खुद भी करती है तो उस का बहुत सारा समय बचता है.

अपना ध्यान रखें: औफिस जाने और घर संभालने के साथसाथ अपने शौक, मनोरंजन और नींद के लिए समय अवश्य निकालें. यह समय की बरबादी नहीं है. इन से सुकून और आराम मिलता है, जिस के बाद आप कम समय में बेहतर काम कर सकती हैं. समय की कमी लगे तो घर के काम घटाएं पर अपना आराम नहीं.

हाल में ही एक ऐसा शोध आया है जिस में यह बात सामने आईं है कि कई लोग खासतौर पर महिलाएं घर से ज्यादा औफिस में रिलैक्स फील करती हैं. उन्हें औफिस में कम तनाव महसूस होता है.

वैज्ञानिकों ने स्टडी में शामिल 122 प्रतिभागियों का पूरा सप्ताह कार्टिसोल यानी स्ट्रैस हारमोन के लैवल की जांच की और साथ ही उन्हें दिन के अलगअलग समय पर अपने मूड को रेट करने के लिए भी कहा. इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि अपनी वर्कप्लेस पर घर की तुलना में लोग कम तनाव में दिखे. जांच की गई तो रिसर्चर्स ने पाया कि महिलाएं घर की तुलना में औफिस में ज्यादा खुश रहती हैं तो वहीं पुरुष औफिस से ज्यादा घर पर खुश रहते हैं.

एक महिला घर से औफिस आनेजाने के लिए रोज करती है फ्लाइट का इस्तेमाल

हर महिला के लिए घर और औफिस दोनों को संभालना एक बड़ी चुनौती होती है. कुछ महिलाएं इस से थक कर हार मान लेती हैं तो कुछ सभी कठिनाइयों का सामना कर अपनी जिम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाती हैं. ऐसी ही एक महिला है मलयेशिया में रहने वाली भारतीय मूल की रेशेल कौर जिन के बारे में सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे गए. वे अपने अद्भुत संघर्ष और अनुशासन के कारण सुर्खियों में आईं. रेशेल कौर एअर एशिया के फाइनैंस औपरेशन डिपार्टमैंट में असिस्टैंट मैनेजर हैं. उन का डेली रूटीन इतना कठिन है कि लोग उसे देख कर हैरान रह जाते हैं.

रेशेल रोजाना सुबह 4 बजे उठती हैं और तैयार हो कर अपने काम के लिए निकल जाती हैं. वे हफ्ते में 5 दिन मलयेशिया से सिंगापुर फ्लाइट से सफर करती हैं. पूरा दिन औफिस में काम करने के बाद शाम को वापस अपने घर लौट आती हैं. इस पूरी दिनचर्या के बावजूद वे अपने बच्चों के साथ समय बिताने को प्राथमिकता देती हैं. उन के अनुसार, यह तरीका न केवल किफायती है बल्कि उन्हें अपने बच्चों के साथ समय बिताने का मौका भी मिलता है.

पहले के कुआलालंपुर में औफिस के पास ही रहती थीं लेकिन वहां रहना बहुत महंगा था और वे घर में सिर्फ एक बार अपने बच्चों से मिल पाती थीं. इसलिए, उन्होंने रोजाना अपडाउन करने का फैसला किया ताकि वे घर और औफिस दोनों को अच्छे से मैनेज कर सकें.

सुबह 4 बजे उठना और तैयार होना. इस के बाद 5.55 बजे की फ्लाइट से सिंगापुर के लिए रवाना होना. फिर पूरा दिन औफिस में काम करना और शाम को दूसरी फ्लाइट से वापस मलयेशिया लौटना. फिर रात 8 बजे तक घर पहुंच कर बच्चों के साथ समय बिताना. यानी स्त्री चाहे तो कुछ भी कर सकती है. औफिस की डगर कितनी भी कठिन हो, वर्किंग वूमन बनने का रास्ता कितना भी चुनौती भरा क्यों न हो, अपने स्वाभिमान से कभी समझता नहीं करना चाहिए.

एक स्त्री को कुछ भी हो जाए अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि यही काम उस के वजूद को स्थापित करता है. वह कमाती है तो अपनेआप पर भरोसा कर पाती है.

महिलाएं औफिस के घरेलू काम ज्यादा करती हैं

रिसर्च बताती हैं कि महिलाएं कार्यालय के घरेलू कामों के लिए भी अधिक जिम्मेदार होती हैं. पार्टियों की योजना बनाना, भोजन का और्डर देना और बैठकों में नोट्स लेना कुछ ऐसे काम हैं जो महिलाओं को अकसर काम पर करने पड़ते हैं. अकसर ‘औफिस हाउस वर्क’ कहे जाने वाले ये काम कार्यस्थल के सुचारु संचालन में योगदान करते हैं लेकिन जब पदोन्नति या वेतन वृद्धि की बात आती है तो इन पर ध्यान नहीं दिया जाता.

कार्यालय के घरेलू काम में आप के कार्यस्थल को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक सभी प्रशासनिक कार्य, छोटेमोटे काम और कम मूल्य वाले असाइनमैंट शामिल हैं.

हालांकि वे समय और ऊर्जा लेते हैं और उन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है लेकिन उन्हें आमतौर पर कार्यस्थल में तुच्छ या महत्त्वहीन योगदान माना जाता है. यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाएं श्वेत पुरुषों की तुलना में 29% अधिक कार्यालय घरेलू काम करती हैं.

अध्ययनों से पता चलता है कि इन कार्यों को पूरा करने के लिए महिलाओं से संपर्क किए जाने की संभावना अधिक होती है और पुरुषों की तुलना में उन के द्वारा स्वयंसेवा करने के लिए सीधे अनुरोध स्वीकार करने की संभावना अधिक होती है. महिलाएं स्वयंसेवा इसलिए नहीं करती हैं क्योंकि वे इन कार्यों में बेहतर हैं या उन्हें करने में उन्हें मजा आता है. इस के बजाय गहराई से स्थापित लैंगिक रूढि़वादिता ही इस की वजह है. Job vs Household Chores

Youth Travel Trends: यूथ की खास पसंद रिजोर्ट

Youth Travel Trends: अगर आप पहले कभी किसी रिजोर्ट में नहीं गए हैं तो आप को अपनी अगली छुट्टियों में इसे आजमाना चाहिए. ऐसे कई कारण हैं, जिन की वजह से लोग दूसरे तरह के आवासों की तुलना में रिजोर्ट को प्राथमिकता देने लगे हैं और हाल के वर्षों में रिजोर्ट में परिवार के साथ जाना तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. इस के अलावा रिजोर्ट में रहने का खर्च होटल में रहने के खर्च से कम ही होता है. शहरों से निकल कर शांत वातावरण में प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेना ही रिजोर्ट की खूबी होती है. इसलिए आजकल अधिकतर यूथ छुट्टियों का आनंद लेने के लिए रिजोर्ट जाने का प्लान बनाते हैं जिसे कई बार परिवार या दोस्तों के संग बनाते हैं.

किसी रिजोर्ट में ठहरने का सब से बड़ा लाभ वहां का एक अलग अनुभव प्राप्त करना होता है. किसी सामान्य होटल में ठहर कर ऐसा अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सकते जैसा रिजोर्ट में जाने से होता है. रिजोर्ट का वातावरण और डिजाइन होटल से अलग और साफसुथरा व अलग होता है, जहां कई प्रकार के मनोरंजन के साधन होते हैं. हर रिजोर्ट की अपनी एक अलग खूबी होती है मसलन, पहाडि़यों में स्थित रिजोर्ट हो या समुद्र तट पर, हर स्थान का अनुभव शानदार और अनोखा होता है.

इस बारे में तपोला के ओंकार ‘एग्रो टूरिज्म ऐंड रिजोर्ट’ के गणेश उतेनकर कहते हैं कि आजकल छुट्टियों में 2-3 दिन के लिए रिजार्ट में जाना एक ट्रैंड बन चुका है, जिस में यूथ और कौरपोरेट वालों की संख्या सब से अधिक होती है क्योंकि मुंबई जैसे बड़े, भीड़भाड़ वाले शहर में काम करने वाले शहर से दूर लोग एकांत की तलाश करते हैं. ऐसे में उन्हें 2-3 दिन रिजोर्ट में रहना पसंद होता है. यही वजह है कि मुंबई के आसपास कई रिजोर्ट हैं, जहां कुछ समय आराम से बिताया जा सकता है.

समय के साथ बदली है सोच

रिजोर्ट की पौपुलैरिटी के बारे में गणेश का कहना है कि सालों पहले लोग एकदूसरे के रिश्तेदार के पास जाते थे, समय के साथसाथ इस में बदलाव आया है. लोग अब किसी के घर पर जाना पसंद नहीं करते. इस की वजह से मोटेल और होटल प्रचलित हुए. लेकिन अब बड़ेबड़े हाइवे बनने से रिजोर्ट का निर्माण होने लगा. रिजोर्ट में होटल जैसे अनुभव के साथसाथ गांव के परिवेश को भी लोग पसंद करने लगे हैं. रिजोर्ट बनाने में काफी जगह लगती है, इसलिए ये मुंबई से दूर लोनावाला, सातारा, खंडाला आदि स्थानों पर अधिक हैं, जहां व्यक्ति सड़क परिवहन से जा सकता है.

सभी विकल्प एक स्थान पर

रिजोर्ट में आजकल एकसाथ सभी विकल्प मुहैया कराए जाते हैं, जिन में कई प्रकार के ऐडवैंचर के साथसाथ कई ऐक्टिविटीज का चलन होने लगा है. मसलन, एक अच्छा गार्डन, स्विमिंग पूल, खेल की कई सुविधाएं, लंच, डिनर की सुविधा, बच्चों के लिए आकर्षक स्पोर्ट्स, अच्छे रूम आदि होते हैं, जिन में व्यक्ति अपने बजट के अनुसार रह सकता है.

आराम और सुविधा

रिजोर्ट्स आप के आराम और सुविधा के लिए सिंगल रूम, डबल रूम और फैमिली रूम प्रदान करते हैं. इस के अलावा आप एक विला किराए पर ले सकते हैं, जिस में आकार के आधार पर 6 या उस से अधिक लोग ठहर सकते हैं. कई बार इन जगहों पर रसोईघर भी शामिल होता है, जहां आप अपनी पसंद का कुछ भी बना कर खा सकते हैं.

अच्छी वैलनैस और ऐडवैंचर फैसिलिटी

रिजोर्ट में रहने का एक और मजेदार लाभ यह भी है कि यहां कई तरह की ऐक्टिविटीज आम जनजीवन से अलग हो देखने को मिलती हैं, जिस में आप स्पा में आराम करते हुए दिन बिता सकते हैं. इस के अलावा किसी खूबसूरत   झील में मछली पकड़ सकते हैं, वाटर स्पोर्ट्स में कायाकिंग कर सकते हैं या पहाड़ों पर ट्रैकिंग भी कर सकते हैं जो आप की छुट्टियों को अधिक यादगार बना सकता है.

एग्रो बेस्ड फूड की है खास डिमांड

रिजोर्ट में खाने पर भी काफी फोकस देखा गया है, जिस में वे उस स्थान की ट्रैडिशनल और औथेंटिक फूड को खाना अधिक पसंद करते हैं जो कैमिकल फ्री उगाया जाता है. गणेश कहते है कि अधितर एग्रो बेस्ड रिजोर्ट में आसपास में उगाए गए फलों और सब्जियों के प्रयोग से व्यंजन बनाए जाते हैं जो अधिकतर महाराष्ट्रीयन व्यंजन होते हैं. इस से पर्यटकों को एक औरिजिनल स्वाद के साथसाथ वहां के कल्चर का भी अनुभव होता है जो उन्हें शहरी वातावरण से अच्छा फील कराता है.

बाहर जाने की जरूरत नहीं

वहां कोई टैक्सी, बस या सवारी की आवश्यकता नहीं पड़ती. जरूरत की सारी चीजें आप को रिजोर्ट में ही मिल जाती हैं, जिस से आप शांति से हौलिडेज को ऐंजौय कर सकते हैं.

सभी के लिए मनोरंजन

चूंकि ये रिजोर्ट परिवारों और कौरपोरेट सभी के लिए हैं, इसलिए यहां बच्चों, यूथ और वयस्कों सभी के लिए कई तरह की ऐक्टिविटीज होती हैं. पूरी यात्रा के दौरान रिजोर्ट में रहते हुए व्यक्ति कभी बोर नहीं होता.

सुरक्षा और गोपनीयता

कुछ लोग अपनी छुट्टियां रिजोर्ट में बिताना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे जहां भी जाएंगे, सुरक्षित रहेंगे. सभी रिजोर्ट सभी प्रकार के आपराधिक व्यवहार को रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं. छुट्टियां मनाने वालों को रिजोर्ट इसलिए पसंद आते हैं क्योंकि वे पर्याप्त एकांत प्रदान करते हैं.

सुविधाएं

इस के अलावा कुछ रिजोर्ट के भीतर रिजोर्ट या सभी उम्र के बच्चों के लिए विभिन्न गतिविधियों के साथ डे कैंप सेवाएं मौजूद होती हैं, जिस से उन के पेरैंट्स को आराम और तनावमुक्त होने का एक शानदार अवसर मिलता है.

इस प्रकार रिजोर्ट कल्चर आजकल काफी पौपुलर है लेकिन वहां के परिवेश का आनंद आप तभी उठा सकते हैं. जब आप वहां पर खाने या रहने की कुछ कमियों को नजरअंदाज करें और अपने परिवार या दोस्तों के साथ उस अनमोल समय का आनंद उठाएं.  Youth Travel Trends

Aamir Khan Interview: नई गर्लफ्रेंड गौरी के रिश्ते को लेकर खास बातचीत

Aamir Khan Interview: आमिर खान उन ऐक्टरों में से एक हैं जो अपनेआप को स्टार नहीं बल्कि आम इंसान मानते हैं. वे दिल की सुनते हैं, बौक्स औफिस आंकड़ों के पीछे नहीं भागते. फिल्म की कहानी उन के लिए सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. फिर वह कहानी किसी फिल्म की रीमेक ही क्यों न हो. करीब 3 साल के बाद आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ चर्चा में है जो उन की पिछली फिल्म ‘तारे जमीन पर’ की सीक्वल है. फिल्म की कहानी 10 ऐसे बच्चों पर केंद्रित है जो इंटलैक्चुअल डिसेबल्ड, न्यूरो औप्टिकल बच्चे हैं.

फिल्म में आमिर खान ने फुटबाल कोच का किरदार निभाया है. ‘लाल सिंह चड्ढा’ की असफलता के 3 साल बाद आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ चर्चा में है. इस फिल्म को ले कर उन की क्या सोच है? इस फिल्म में काम करने का अनुभव कैसा रहा, ऐसे कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए आमिर खान ने अपने खास अंदाज में:

आप की हालिया रिलीज फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ में आप का काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही मजेदार, शूटिंग के दौरान हर दिन अपने साथी कलाकारों से जो 10 बच्चे हैं, मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. सैट का माहौल भी एकदम कूल और पौजिटिव होता था. फिल्म की शूटिंग कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला.

क्या आप को लगता है आज के समय में फिल्म बनाना जितना मुश्किल है उस से कहीं ज्यादा फिल्म रिलीज करना है? कई सारी बातों का टैंशन रहती है, फिल्म का सैंसर के तहत अटकना, विवादों में घिरने की टैंशन, बात का बतंगड़ होने का डर, फिल्म को ले कर नकारात्मक लोगों की नैगेटिव प्रतिक्रिया और आखिरी में फिल्म पायरेसी की टैंशन आदि?

हां यह सब तो होता है क्योंकि यह फिल्म प्रकिया का एक हिस्सा ही है, जिस से मुझे ही नहीं सब को गुजरना पड़ता है. मगर एक बात यह भी है कि ऐक्सीडैंट के डर से रास्ते पर चलना तो नहीं छोड़ सकते न. अगर हमारे ऊपर कोई इल्जाम लगता है या फिल्म को ले कर कोई अफवाह उड़ती है तो उस के लिए हमारा जवाब देना भी जरूरी होता है और अगर आप सच्चे हैं तो आप किसी बात से नहीं घबराएंगे.

मेरे साथ ऐसा ही कुछ है. मैं किसी बात से नहीं घबराता क्योंकि मुझे पर्सनली पता है कि मैं ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं बस इतना जानता हूं कि मैं ने अपना काम ईमानदारी से किया है. अगर मेरा काम दर्शकों को अच्छा लगा,तो वे मेरी फिल्म को पसंद करेंगे और अगर अच्छा नहीं लगा तो फिल्म को नकार देंगे. दोनों ही सूरत में मुझे दर्शकों का फैसला मंजूर है क्योंकि अगर उन्होंने मुझे इतना प्यार किया है तो उन की पसंद मेरे लिए सब से ज्यादा माने रखती है.

आप की फिल्म का नाम ‘सितारे जमीन पर’. आप की नजर में असल में सितारा कौन है क्योंकि आप को ज्यादातर ऐसे लोगों के साथ जुड़ते और काम करते देखा है जिन्हें समाज ने नहीं अपनाया जैसे ऐबनौर्मल बच्चों पर आप की फिल्में ‘तारे जमीन पर’ और ‘सितारे जमीन पर’ के अलावा आप काफी समय से महाराष्ट्र के गांव के लिए पानी योजना पर भी कई सालों से काम कर रहे हैं?

सितारे या सुपरस्टारों का चलन बौलीवुड में एक ट्रैंड है लेकिन अगर मैं अपनी बात करूं तो मेरी नजर में हरकोई सितारा है, मेरी नजर में हरकोई अपना है हम सभी के तार एकदूसरे से जुड़े हैं भले ही हमारे प्रोफैशन अलग हैं. कोई दूसरा नहीं होता सब अपने होते हैं, यही मेरी असली सोच है.

मेरी नजर में सब स्टार हैं क्योंकि वे हमारे अपने हैं हम से अलग नहीं हैं. यह जो कौंसैप्ट है अद्वैता का, नौनडीवैलिटी का, मैं उस पर स्ट्रौंग्ली बिलीव करता हूं. हम सब कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं. इंडियन फिलौसफी में हमें यह बताया जाता है कि हम सब एक हैं और हम में कोई फर्क नहीं है. मेरी सोच भी बिलकुल ऐसी ही है इसलिए मेरी नजर में हरकोई स्टार है.

आप अपनी हर फिल्म में कुछ नया पेश करने की कोशिश करते रहते हैं फिर चाहे फिल्म हिट हो या फ्लौप लेकिन आप का नजरिया जागरूकता से भरा होता है. ‘सितारे जमीन पर’ अपनी नई फिल्म में आप ने 10 स्पैशली ऐबल्ड ऐक्टर्स को इंट्रोड्यूस किया है. इस के पीछे क्या कोई खास वजह है?

मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि मैं अपनी जिंदगी से या अपने से जुड़े लोगों की जिंदगी से कुछ न कुछ सबक लूं, ‘सितारे जमीन पर’ में मैं ने ऐसे बच्चों के साथ काम किया है जिन से मैं ने बहुत कुछ सीखा है. शायद यह पहली बार होगा जब इतनी बड़ी फिल्म के मुख्य किरदार इंटलैक्चुअल डिसैबल्ड 10 बच्चे हैं. इन के साथ काम करना मेरे लिए जहां एक तरफ ऐक्साइटमेंट और चैलेंज था, वहीं दूसरी तरफ उन के साथ काम करना एक अलग अनुभव भी था.

क्या फिल्म की सफलता को ले कर आप पूरी तरह संतुष्ट हैं?

इस बारे में कोई भी कमैंट करना आज के समय में बहुत मुश्किल है. कोशिश तो यही है कि दर्शकों को हमारी फिल्म पसंद आए. फिल्म पूरी तरह कौमेडी और मनोरंजन से भरपूर है, लेकिन कई बार मेरे साथ गड़बड़ हो जाती है. जब मैं ने ‘लाल सिंह चड्ढा’ कौमेडी फिल्म बनाई तो ऐक्शन फिल्मों का दौर था, जब मेरी फिल्म ‘गजनी’ रिलीज हुई तो कौमेडी फिल्मों का दौर था तो कई बार मैं खुद ही कन्फ्यूज हो जाता हूं कि दर्शकों का मूड किस ओर है. लिहाजा, मैं हिट और फ्लौप के चक्कर में न पड़ कर अपने काम पर ध्यान देता हूं और बाकी सब दर्शकों की पसंद पर छोड़ देता हूं.

आप की फिल्म में हमेशा सोशल मैसेज होता है, क्या आप की पहली पसंद सोशल मैसेज की कहानी है?

दर्शकों की तरह अगर फिल्म की कहानी मुझे हर भावना का एहसास कराती है तो मेरे लिए वह अच्छी है. अगर वह सोशल मैसेज देती है तो अच्छी बात है, लेकिन मैं सिर्फ इसलिए फिल्म साइन करूं कि उस फिल्म में सोशल मैसेज है तो ऐसा नहीं है क्योंकि मैं एक ऐंटरटेनर हूं और मेरी जिम्मेदारी है कि मेरी फिल्में दर्शकों को अच्छी लगें और मैं दर्शकों का मनोरंजन कर सकूं.

आप की ज्यादातर फिल्में रीमेक होती हैं जैसे ‘लाल सिंह चड्ढा,’ ‘गजनी’ और ‘अब ‘सितारे जमीन पर’ की कहानी भी स्पेनिश फिल्म केपिओंस की रीमेक है इस के अलावा यही फिल्म हौलीवुड में भी ‘चैंपियंस’ नाम से बनी थी. अब यही फिल्म हिंदी में ‘सितारे जमीन पर’ के नाम से बन रही है, इस बारे में आप क्या कहेंगे?

मुझे पर्सनली रीमेक से कोई प्रौब्लम नहीं है. मुझे नहीं लगता कि रीमेक फिल्मों में काम करना गलत है, मैं इस से पहले भी कई रीमेक फिल्मों में काम कर चुका हूं. अगर इस फिल्म की कहानी स्पेनिश या हौलीवुड से प्रेरित है तो इस में बुराई क्या है. कितने लोगों ने स्पेनिश, हौलीवुड फिल्म देखी होंगी, मेरा मकसद अच्छी कहानियों पर काम करना है फिर वह रीमेक हो या औरिजनल इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

ज्यादातर लोग एक उम्र के बाद खुले तौर पर समाज के डर से अपना प्यार स्वीकारने से डरते हैं, लेकिन आप ने अपने प्यार गौरी से मीडिया को मिलाया और खुले तौर पर अपना प्यार स्वीकार भी किया जो एक औरत को सम्मान देने जैसी बात है, साथ ही आप ने यह भी साबित कर दिया कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती, वह कभी भी हो सकता है. इस बारे में आप क्या कहेंगे?

हां यह सच है, मुझे भी नहीं पता चला कब मैं गौरी के प्यार में पड़ गया, लेकिन मैं गौरी के साथ अपनेआप को पूरा महसूस करता हूं. मुझे उस का साथ अच्छा लगता है यह स्वीकारने में मुझे कोई झिझाक नहीं है. शुरुआत में हम दोनों पहले अच्छे दोस्त थे और हम दोनों एकदम अलग हैं. वह जितनी शांत है मैं उतना ही उद्यमी हूं.

मेरे दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता है जबकि वह बहुत सुलझा हुई है. उस के साथ रहने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं उस के बगैर अधूरा था और आज मैं अपनेआप को पूरा और संतुष्ट महसूस करता हूं. मेरा लेडीज के साथ हमेशा पौजिटिव अप्रोच रहा है. पूर्व पत्नी रीना और किरण के साथ भी मेरे आज अच्छे संबंध हैं. शायद इस की वजह यह है कि मैं रिश्ते थोपने में नहीं बल्कि निभाने में विश्वास रखता हूं. Aamir Khan Interview:

Language Skill: भाषाओं का ज्ञान क्यों है एक स्किल

Language Skill: साउथ सुपरस्टार कमल हासन कन्नड़ पर दिए गए बयान से विवादों में हैं. उन्होंने कहा था कि कन्नड़ तमिल से जन्मी है. विवाद बढ़ने पर कर्नाटक में उन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ रिलीज नहीं होने दी गई. वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी उन्हें बयान के लिए फटकार लगाई. अब कमल हासन का हिंदी पर एक बयान सामने आया है, जिस में उन्होंने कहा है कि हिंदी को अचानक थोपा नहीं जाना चाहिए क्योंकि अचानक हुए भाषा के बदलाव से हम कई लोगों को अनपढ़ बना देंगे.

भाषा को सीखें बिना झिझक

एक इंटरव्यू में कमल हासन से भाषा विवाद पर सवाल किए जाने पर उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि मैं पंजाब के साथ खड़ा हूं. हालांकि आगे उन्होंने संजीदगी से कहा कि मैं कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के साथ खड़ा हूं. सिर्फ यही वे जगहें नहीं हैं, जहां भाषा थोपी जा रही है. मैं फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ का ऐक्टर था. बिना थोपे मैं ने भाषा सीखी. थोपो मत क्योंकि एक तरह से यह शिक्षा है.

आप को शिक्षा के लिए सब से आसान रास्ता अपनाना चाहिए न कि बाधाएं डालनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर आप को वाकई इंटरनैशनली सफलता चाहिए तो आप को एक भाषा सीखनी चाहिए और मुझे इंग्लिश काफी उचित लगती है. आप स्पेनिश या चीनी भी सीख सकते हैं, लेकिन सब से आसान रास्ता यह है कि हमारे पास 350 साल पुरानी इंग्लिश ऐजुकेशन है जो धीरेधीरे लेकिन लगातार चली आ रही है. जब आप अचानक इसे बदलते हैं तो आप बेवजह कई लोगों को अनपढ़ बना सकते हैं.

भाषा है एक ऐक्स्प्रैशन

यहां यह समझना होगा कि हर व्यक्ति की शारीरिक ऊंचाई, वजन, स्वभाव एकजैसा नहीं होता जैसाकि सैन्य रैजीमैंट में होता है, जहां आप को पता चल जाता है कि फलां व्यक्ति किस रैजीमैंट में किस पद पर काम कर रहा है क्योंकि वहां काम करने वाले का एकजैसा सीना, वजन, शारीरिक बनावट आदि की रिक्वायरमैंट होती है और वहां रैजीमैंट के आधार पर सब को चलना पड़ता है.

भाषा सीखना है गर्व

असल में भाषा एक ऐक्स्प्रैशन है, जिस के द्वारा आप अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, फिर इसे ले कर आपसी तनातनी क्यों? क्या आप बता सकते हैं कि आप किस भाषा में हंसते या रोते है? इंसान की ये भावनाएं पूरे विश्व में एकजैसी ही होती हैं. भाषा न जानने पर भी आप सामने वाले व्यक्ति को हंसता या रोता हुआ देख कर उस की मनोदशा को समझ लेते हैं यानी किसी की भावना को समझने के लिए भाषा की जरूरत नहीं पड़ती. भावनाएं चेहरे पर अनायास ही आ जाती हैं.

हर भाषा का अपना सौंदर्य होता है और उसे किसी के द्वारा सीख लेना गर्व की बात होती है. जो व्यक्ति जितना अधिक भाषा का ज्ञान रखता है वह उतना अधिक विद्वान माना जाता है. पड़ोस में कोल्हापुरी चप्पल बेचने वाले को 5 भाषाएं आती हैं, जबकि वह बहुत कम पढ़ालिखा है. उस ने मराठी में 5वीं तक पढ़ाई की, लेकिन उस की दुकान पर कोल्हापुरी चप्पलें खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है क्योंकि वह जिस किसी भी भाषा में संवाद छोटा सही पर कर लेता है. बड़ी हैरानी तब हुई, जब उस ने बंगला, पंजाबी, गुजराती, इंग्लिश सभी भाषाओं में अपनी चप्पलों की तारीफ ग्राहकों से की. भाषा के इस ज्ञान का विकास उस ने अपने व्यवसाय में कामयाबी के लिए किया है जो बहुत जरूरी है.

है एक स्किल

माथेरान में घुमाने वाला घोड़े वाला व्यक्ति भी मराठी, गुजराती, हिंदी के अलावा इंग्लिश और फ्रैंच जानता है क्योंकि उसे वहां की वादियों के बारे में पर्यटकों को बताना पड़ता है ताकि उस के घोड़े पर सवार हो कर व्यक्ति वहां के दृश्यों का आनंद उठा सकें. उस ने फ्रैंच और इंग्लिश पर्यटकों से सुनसुन कर सीख ली है. यही वजह है कि कोई भी उस के घोड़े को सवारी के लिए ले जाना पसंद करता है, जबकि उस के घोड़े की सवारी महंगी है, लेकिन भाषा ज्ञान उसे सब से अलग और कामयाबी की श्रेणी में रखता है. दिल्ली प्रैस समूह ने भी गृहशोभा मैगजीन को कई भाषाओं में प्रकाशित कर यह सिद्ध कर दिया है कि भाषा कोई भी हो, आप इस मैगजीन के लेखों से खुद को ऐन्हैंस कर सकते हैं.

मूल रूप से गृहशोभा हिंदी में शुरू हुई थी, लेकिन बाद में बंगला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु भाषाओं में भी उपलब्ध होने लगी. इस से इस पत्रिका से अलगअलग भाषा जानने वाले हर वर्ग के पाठक को रुचिकर और उपयोगी सामग्री मिलने लगी. इसे पूरे देश में सभी तक पहुंचाना आसान नहीं था क्योंकि पाठकों की रुचि को देखते हुए लेखों को अनुवाद किया जाने लगा. आज देश का हर नागरिक इस के लेखों, कहानियों को पढ़ सकता है. यहां यह साबित हुआ कि किसी भाषा को सीखना कोई बड़ी बात नहीं, जिस की राजनीति आज देखने को मिल रही है.

राजनेता भाषा के माध्यम से अपने वोटबैंक की रोटियां सेंक रहे हैं और चाहते हैं कि हिंदी के जानकार को दक्षिण में हिंदी पढ़ाने की जौब मिल जाए, जिसे ये अपनी कामयाबी कहेंगे. कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी भाषा को सीख सकता है. असल में यह एक अच्छी स्किल है, जिसे सभी को सीख लेना चाहिए, जितनी भाषाएं व्यक्ति बोल सकता है, उतना ही उस की पहचान का दायरा बढ़ता जाता है.

सिखाएं एकदूसरे को

बड़ेबड़े शहरों में हाई राइज बिल्डिंग्स में जहां हर भाषा के लोग आज एकसाथ रहते हैं, वहां भी सोसाइटी के किसी गैटटूगैदर में सब अपनीअपनी भाषा के साथ गु्रप बना लेते हैं. ऐसे स्थानों पर दूसरी भाषा बोलने वाले लोग जाने से परहेज करते हैं क्योंकि उन्हें उन के संवाद समझ में नहीं आते. ऐसे में अगर हर सोसाइटी आपस में एकदूसरे की भाषा की फ्री में एक क्लास चला दे तो कोई भी उसे सीख सकता है और ग्रुप में होने वाली दूरियां भी मिट सकती हैं.

धारावाहिक ‘सपनों की छलांग’ फेन अभिनेत्री मेघा रे कहती हैं कि भाषा पर विवाद कभी सही नहीं होता, भाषा खुद की भावनाओं को व्यक्त करने का एक जरीया मात्र है. जानवरों की भी अपनी भाषा होती है, जिसे हम समझ नहीं पाते, लेकिन उन की मनोदशा को समझ सकते हैं. आज हम किसी भी भाषा की फिल्में और वैब सीरीज सबटाइटल के साथ देखते और ऐंजौय करते हैं. मैं ओडिसा की हूं, लेकिन मराठी, हिंदी, इंग्लिश और गुजराती अच्छी तरह से बोल लेती हूं. भाषा ज्ञान से ही हम उस स्थान की कला और संस्कृति से परिचित होते हैं जो अच्छी बात है. मुझे भाषा सीखना पसंद है और इंडस्ट्री में अच्छा काम करने के लिए कई भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है ताकि किसी संवाद को अच्छी तरह से परदे पर उतारा जाए.

इस प्रकार भाषा विवाद का समाधान टकराव में नहीं बल्कि समावेशी दृष्टिकोण अपनाने में है. यूथ को मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि वे जहां भी पढ़ाई करने या जौब के लिए जाएं तो उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या न हो. वहां से भागे नहीं. वे जहां भी जाएं वहां की भाषा पहले से सीख लेने की कोशिश करें ताकि वे खुद को अकेले नहीं बल्कि उसी परिवेश का हिस्सा समझें.

Hindi Family Story: यह घर मेरा भी है

Hindi Family Story: मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया. Hindi Family Story

Romantic Story: एक प्यार ऐसा भी

Romantic Story: इंटर कॉलेज वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम सुनते ही कॉलेज के सभी छात्र खुशी से तालियां पीटने लगे. जैसे ही मैं स्टेज से टॉफी ले कर नीचे उतरा मेरे दोस्तों ने मुझे कंधों पर बिठा लिया. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया हूं. हर किसी की निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं.

चमचमाती ट्रॉफी को चूमते हुए मैं ने चीयर करते छात्रछात्राओं की तरफ देखा. सहसा ही मेरी नजरें सामने की रो में बैठी एक लड़की की नजरों से टकराईं. कुछ पलों के लिए हमारी नजरें उलझ कर रह गईं. तब तक नीचे उतारते हुए मेरे दोस्त मुझे गले लगाने लगे और मेरी तारीफें करने लगे.

“यार तूने तो कमाल ही कर दिया. पिछले 2 साल से हमारा कॉलेज तेरी वजह से ही जीत रहा है.”

“अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं. मैं तो शुक्रगुजार हूं तुम सबों का जो मुझे इतना प्यार देते हो और विनोद सर का भी जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है.”

“पर आप हो कमाल के. वाकई कितनी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हो. मैं श्वेता मिश्रा… न्यू एडमिशन.”

सामने वही लड़की मुस्कुराती हुई हाथ बढ़ाए खड़ी थी जिस से कुछ वक्त पहले मेरी नजरें टकराई थीं. उस की मुस्कुराती हुई आंखों में अजीब सी कशिश थी. चेहरे पर नूर और आवाज में संगीत की स्वर लहरी थी. हल्के गुलाबी रंग के फ्रॉक सूट और नेट के दुपट्टे में वह आसमान से उतरी परी जैसी खूबसूरत लग रही थी. मैं उस से हाथ मिलाने का लोभ छोड़ न सका और तुरंत उस के हाथों को थाम लिया.

उस पल लगा जैसे मेरी धड़कनें रुक जाएंगी. मगर मैं ने मन के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए और दूर होता हुआ बोला,”श्वेता मिश्रा यानी एक ऊंची जाति की कन्या. आई गेस ब्राह्मण हो न तुम.”

“हां वह तो मैं हूं वैसे तुम भी कम नहीं लगते.”

“अरे कहां मैडम, मैं तो किसान का छोरा, पूरा जाट हूं. वैसे कोई नहीं. आप से मिल कर दिल खुश हो गया. अब चलता हूं.” कह कर मैं आगे बढ़ गया.

पीछेपीछे मेरे दोस्त भी आ गये और मुझे छेड़ने लगे. तभी मेरा जिगरी दोस्त वासु बोला,” यह क्या यार, तेरे पिता नगर पार्षद हैं न फिर तुम ने उस से झूठ क्यों कहा?”

“वह इसलिए मेरे भाई … क्योंकि हमारे घर के लड़कों को लड़कियों से दोस्ती करने की इजाजत नहीं है. जानता है मां ने कॉलेज के पहले दिन मुझ से क्या कहा था?”

“क्या कहा था ?”

“यही कि कभी भी किसी लड़की के प्यार में मत पड़ना. हमारे खानदान में प्यार के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. सख्त हिदायत दी थी उन्होंने मुझे.”

“अच्छा तो यही वजह है कि तू लड़कियों से दूर भागता है.”

“हां यार पर यह लड़की तो बिल्कुल ही अलग है. एक नजर में ही मन को भा गई. इसलिए इस से और भी ज्यादा दूर भागना पड़ेगा.”

श्वेता के साथ यह थी मेरी पहली मुलाकात. उस दिन के बाद से श्वेता अक्सर मुझ से टकरा जाती.

कभीकभी लगता कि वह मेरा पीछा करती है. पर मन का भ्रम मान कर मैं इग्नोर कर देता. यह बात अलग थी कि आजकल मन के गलियारे में उसी के ख्याल चक्कर लगाते रहते थे. वह कैसे हंसती है, कैसे चोर नजरों से मेरी तरफ देखती है, कैसे चलती है, वगैरह वगैरह .

धीरेधीरे मैं ने उस के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू कीं तो पता चला कि वह अपने कॉलेज की टॉपर है और गाने बहुत अच्छे गाती है. उस के पिता ज्यादा अमीर तो नहीं मगर शहर में एक कोठी जरूर बना रखी है. वह अकेली बहन है और 2 बड़े भाई हैं.

न चाहते हुए भी मेरी नजरें उस से टकरा ही जातीं. मैं हौले से मुस्कुरा कर दूसरी तरफ देखने लगता. कई बार वह मुझे लाइब्रेरी में भी मिली. किसी न किसी बहाने बातें करने का प्रयास करती. कभी कोई सवाल पूछती तो कभी टीचर्स के बारे में बातें करने के नाम पर मेरे पास आ कर बैठ जाती.

वह जैसे ही पास आती मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगतीं और मैं उसे इग्नोर कर के उठ जाता.

एक दिन उस ने मुझ से पूछ ही लिया,”तुम्हें किसी और से प्यार है क्या?”

उस का सवाल सुन कर मैं चौंक उठा. मुस्कुराते हुए उस की तरफ देखा और फिर नज़रें नीचे कर बाहर की तरफ देखने लगा. श्वेता ने शायद इस का मतलब हां समझा था. उसे विश्वास हो गया था कि मैं उस में इंटरेस्टेड नहीं हूं और मेरे जीवन में कोई और है.

अब वह मुझ से कटीकटी रहने लगी. दो माह बाद ही सुनने में आया कि उस की शादी कहीं और हो गई है. उस ने पिता की मर्जी से शादी कर ली थी. अब उस का कॉलेज आना भी बंद हो गया.

इस तरह मेरे जीवन का एक खूबसूरत अध्याय अचानक ही बंद हो गया. मैं अंदर से खालीपन महसूस करने लगा.

इस बीच पिताजी ने मेरी शादी निभा नाम की लड़की से करा दी. वह हमारी जाति की थी और काफी पढ़ीलिखी भी थी. उस के पिता काफी अमीर बिजनेसमैन थे. हमारी शुरू में तो ठीक ही निभ गई मगर धीरेधीरे विवाद होने लगे. छोटीछोटी बातों पर हम झगड़ पड़ते. हम दोनों का ही ईगो आड़े आ जाता. वैसे भी निभा के लिए मैं कभी वैसा आकर्षण महसूस नहीं कर पाया जैसा श्वेता के लिए महसूस करता था. निभा अब अक्सर मायके में ही रहने लगी.

इधर मैं राजनीति में सक्रिय हो गया. पहले कार्यकर्ता फिर एमएलए और फिर राज्य का मुख्यमंत्री भी बन गया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कभीकभी मैं भी यकीन नहीं कर पाता था. राजनीतिक गलियारे में मेरा अच्छाखासा नाम था. लोग मुझे होशियार, शरीफ और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले युवा नेता के रूप में पहचानते थे. विदेश तक में मेरी धाक थी. मैं कई पत्रिकाओं के कवर पेज पर आने लगा था. जनता मुझे प्यार करती. मेरे काम की तारीफ होती. मैं हर काम में अपनी नई सोच और युवा कार्यशैली को अपनाता था. पीएम भी मेरी कद्र करते. अक्सर देश की छोटीबड़ी समस्याओं पर मुझ से विचारविमर्श करते.

इसी दरम्यान निभा और मैं ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया. वह अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती थी. मैं ने भी तुरंत सहमति दे दी. क्योंकि मैं भी यही चाहता था.

मैं अभी तक श्वेता को भूल नहीं पाया था. जब भी कोई दूसरी शादी की बात करता तो श्वेता का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता. जब कोई रोमांटिक मूवी देखता तो भी श्वेता का ख्याल आ जाता. जब बादलों के पीछे चांद छिपता देखता तो भी श्वेता का ही ख्याल आता.

एक दिन मेरे जिगरी यार वासु ने मुझे खबर दी कि मेरा पहला प्यार यानी श्वेता इसी शहर में है.

मैं ने उत्साहित हो कर पूछा,” श्वेता कहां है? कैसी है वह ? किस के साथ है?”

“अरे यार अपने पति के साथ है. पति का काम सही नहीं चल रहा है इसलिए इधर ट्रांसफर करवा लिया है.”

“ओके तू पता दे. मैं मिल कर आता हूं.”

“यह क्या कह रहा है? अब तू साधारण आदमी नहीं एक सीएम है.”

“तो क्या हुआ? उस के लिए तो वही हूं न जो 15 साल पहले था.”

मैं ने वासु से पता लिया और अगले ही दिन उस के घर पहुंच गया. निभा मुझे पहचान नहीं पाई मगर उस के पति ने मुझे पहचान लिया और पैर छूता हुआ बोला,”सीएम साहब आप इस गरीब की कुटिया में ? मैं तो धन्य हो गया ”

“मैं श्वेता से यानी अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने आया हूं.”

श्वेता ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा. अब तक वह भी मुझे पहचान गई थी. नजरें झुका कर बोली,” आप कॉलेज के सुपर हीरो मतलब कुशल राज हैं न?”

“हां मैं वही कुशल हूं. तुम बताओ कैसी हो?”

“मैं ठीक हूं मगर आप मेरे घर?”

वह चकित भी थी और खुश भी. तभी उस के पति ने मुझे बैठाते हुए श्वेता से चायनाश्ता लगाने को कहा और हाथ जोड़ कर पास में ही बैठ गया.

मैं ने उस के बारे में पूछा तो वह कहने लगा कि हाल ही में उस की नौकरी छूट गई है. अब वह यहां नौकरी की तलाश में आया है.

मैं ने तुरंत अपने एक दोस्त को फोन किया और श्वेता के पति को उस के यहां अकाउंटेंट का काम दिलवा दिया. श्वेता का पति मेरे आगे नतमस्तक हो गया. बारबार धन्यवाद कहने लगा.

तबतक श्वेता चायनाश्ता ले आई. श्वेता अब भी थोड़ी ज्यादा कांशस हो रही थी. वह खुल कर बात नहीं कर पा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमदोनों के बीच एक अजीब सी दूरी आ गई है.

दोचार दिन बाद मैं फिर से श्वेता के यहां पहुंचा. आज श्वेता घर में अकेली थी. मुझे खुल कर बात करने का मौका मिल गया.

मैं ने उस के करीब बैठते हुए कहा,” श्वेता क्या तुम जानती हो तुम ही मेरा पहला प्यार हो. तुम ही एकमात्र ऐसी लड़की हो जिसे मेरे दिल ने चाहा है. आज से 15 साल पहले जब पहली दफा तुम्हें देखा था उसी दिन तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तभी तो जब मैं ने किसी और से शादी की तो उसे प्यार कर ही नहीं पाया. मेरा दिल तो मेरे पास था ही नहीं न. ये धड़कनें तो बस तुम्हें देख कर ही बढ़ती हैं.”

श्वेता एकटक मेरी तरफ देख रही थी. जैसे मेरी नजरों से मेरी रूह तक झांक लेना चाहती हो.

थोड़े शिकायत भरे स्वर में उस ने कहा,” यदि ऐसा था तो फिर मुझ से दूर क्यों भागते थे? कभी भी मेरे प्यार को स्वीकार क्यों नहीं किया तुम ने ?”

“…क्योंकि हमारी जाति अलग थी. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ पाता. प्यार में जान गंवाना आसान है. मगर प्यार दिल में रख कर दूर रहना कठिन है. मैं तुम से दूर भले ही रहा पर दिल तुम्हारे पास ही था. आज मुझ में हिम्मत है कि मैं तुम से खुल कर कह सकूं कि बस तुम ही हो जिस से मैं ने प्यार किया है. मेरी पत्नी निभा के साथ रह कर भी मैं उस से दूर था. अब तो हम ने  आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया है.”

श्वेता ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों में आंसू और धड़कनें तेज थीं. हम एकदूसरे के दिल में अपने हिस्से की मोहब्बत महसूस कर रहे थे.

अब हम दोनों ही 40 साल के करीब थे. लोग कहते हैं कि प्यार तो युवावस्था में होता है. हमें भी तो प्यार युवावस्था में ही हुआ था. मगर इस प्यार को जीने का वक्त हमें अब मिला था. श्वेता को कहीं न कहीं समाज और पति का डर अब भी था. मगर हमारा प्यार पवित्र था. यह रिश्ता ऐसा था जिसे हम बंद आंखों से भी महसूस कर सकते थे.

धीरेधीरे हमारा रिश्ता गहरा होता गया. अब हम साथ होते तो कॉलेज जैसी मस्ती करते. कहीं घूमने निकल जाते. आजाद पंछियों की तरह गीत गुनगुनाते. हंसीमजाक करते. कभी आइसक्रीम खाते तो कभी गोलगप्पे. कभी श्वेता कुछ खास बना कर मुझे बुलाती तो कभी मैं श्वेता को अपना एस्टेट दिखाने ले जाता.

ऐसा नहीं था कि हम यह सब लोगों से या श्वेता के पति से छुपा कर करते. हमारे मन में मैल नहीं था. एक परिवार के सदस्य की तरह मैं उस के घर में दाखिल होता. उस के लिए तोहफे खरीदता.

एक दिन मैं शाम के समय श्वेता के घर पहुंचा. इस वक्त उस का पति ऑफिस में होता है. हम खुल कर बातें कर रहे थे. तभी श्वेता का पति दाखिल हुआ. वह आज जल्दी आ गया था.

श्वेता उठ कर चाय बनाने चली गई.  श्वेता के पति ने मुझ से कहा,”जानते हैं आज मेरा एक दोस्त क्या पूछ रहा था?”

“क्या पूछ रहा था ?”

“यही कि तुम्हारी बीवी और सीएम साहब के बीच क्या चल रहा है ?”

अब तक श्वेता भी चाय ले कर आ गई थी. वह अवाक पति का मुंह देखने लगी.

“फिर क्या कहा आप ने ?” मैं ने पूछा .

कहीं न कहीं मेरे दिल में एक अपराधबोध पैदा हो गया था. श्वेता के पति के लिए तो आखिर मैं एक दूसरा पुरुष ही हूं न.

मगर श्वेता के पति ने मेरी सोच से अलग जवाब दिया. हंसता हुआ बोला,” मैं ने उसे कह दिया कि सीएम साहब श्वेता के दोस्त हैं. उन के प्यार में कोई मैल नहीं. उन के प्यार में कोई धोखा नहीं. मेरा और श्वेता का रिश्ता अलग है. जबकि कुशल जी वह एहसास बन कर श्वेता की जिंदगी में आए हैं जिस की वजह से श्वेता के मन में जो एक खालीपन था वह भर गया है. मैं उन दोनों के रिश्ते का सम्मान करता हूं.”

श्वेता अपने पति के कंधे पर सर रखती हुई बोली,” दुनिया में प्यार तो बहुतों ने किया है मगर इस प्यार पर जो विश्वास आपने किया वह शायद ही किसी ने किया हो. मैं वादा करती हूं आप का यह विश्वास कभी नहीं टूटने दूंगी.”

उस पर मुझे लगा जैसे आज हमारे प्यार को एक नया आयाम मिल गया था. Romantic Story

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