family story in hindi
family story in hindi
लेखिका–रिजवाना बानो ‘इकरा’
चंचल को अपनी इन खयालों की दुनिया से बाहर ले कर आई शिशिर की आवाज, “चंचल, मां बुला रही है, ड्राइंगरूम में, जल्दी आओ.“
यह सुन कर चंचल का दिल जोरों से धड़कने लगा कि अब खैर नहीं. डिनर का वक्त तो टल गया, लेकिन अब पक्की तरह से क्लास लगेगी.
ड्राइंगरूम में पहुंच कर देखा तो सब शांत था यानी कि कोई और बात है, चलो अच्छा हुआ.
मिसेज रस्तोगी ने बिठाया दोनों बहुओं को और अपने फौरेन टूर के बारे में बताने लगीं. इस बार रक्षाबंधन पर उन का यूरोप घूमने का प्लान है, अपनी दोनों बेटियों और दोनों बेटों के साथ. दोनों बहुओं को इस के एवज में छूट दी गई थी कि वो एक हफ्ता अपने पीहर रह कर आ सकती हैं, चाहें तो…
चंचल की आंखों में चमक आ गई, जैसे कि मांगी मुराद मिल गई हो, बल्कि उस से ज्यादा. अब वो आकांक्षा के साथ कितना सारा वक्त बिता पाएगी. बाकी घर वालों को उस की खुशी का राज समझ नहीं आ रहा था, लेकिन चंचल बहुत खुश थी.
आखिरकार रक्षाबंधन का समय भी आ गया. इधर, सुहाना और आशु खुश थे कि एक सप्ताह ननिहाल में धमाल मचाएंगे. तो उधर, चंचल के मन में भाई के साथसाथ आकांक्षा से मिलने की बेचैनी. चंचल के मातापिता तो तब से अपने नातीनातिन को खिलाने को बेताब थे. सालभर में, एक रक्षाबंधन पर ही चंचल घर आती थी और वो भी सिर्फ एक दिन के लिए, आज पूरे सप्ताह के लिए आ रही थी.
शनिवार का दिन त्योहार में गुजर गया, अगला दिन इतवार था, आकांक्षा को भी औफिस से फुरसत थी और चंचल को भी, अपने ससुराल की ड्यूटी से. आकांक्षा के घर मिलना तय हुआ. सुबहसुबह, 11 बजे ही चंचल को भाई आकांक्षा के यहां छोड़ आया.
घंटी बजाते ही उस की आवाज गूंज गई, चारों तरफ.
‘‘आ रही हूं…‘‘
दरवाजा खुलते ही चंचल का मानो सपना टूट गया, इतनी कमजोर सी, बीमार सी आकांक्षा. गले लगाते ही आंसू आ गए उस के, ‘‘क्या हाल बना लिया है अपना तू ने, ये हड्डियांहड्डियां क्यों निकाल रखी हैं? बीमार है क्या?‘‘
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आकांक्षा हंसते हुए बोली, ‘‘जैसे, तू खुद बड़ी मुटा गई हो. किधर से दो बच्चों की मां लग रही हो तुम? चल अब अंदर भी आ… सारी चिंता चैखट पर ही कर लोगी क्या?‘‘
घर छोटा सा था आकांक्षा का, लेकिन एकदम रौयल सजा हुआ था. ‘‘तो मैडम को अब महंगी चीजों का शौक भी हो चला है…हम्म…‘‘
‘‘ये सब तो पंकज की पसंद है, शादी के बाद कहां अपना कुछ बच ही जाता है. जो पतिदेव चाहें, बस वही सत्य है.‘‘
आकांक्षा की आंखों में उदासी देख, चंचल ने बात पलटी, ‘‘और बच्चे? बच्चे कहां हैं? वो तो पतिदेव को पसंद हैं या वो भी नहीं?‘‘
‘‘चल तू भी न, देख तेरे फेवरेट वाले दालपकौड़े बनाए हैं. चाय बस बन ही रही है.‘‘
‘‘बन क्या रही है चाय? 8 साल बाद मिलेंगे तो तू मेहमान की तरह चाय पिलाएगी मुझे? तू तो वैसे भी मेरे हाथ की चाय की दीवानी है.‘‘
अब दोनों सहेलियां किचन में हैं और चंचल चाय बना रही है.
‘‘चंचल, तुझे याद है वो मीनाक्षी…?‘‘
‘‘हां, वही मौडल मीनाक्षी न, जिस को सजनेसंवरने से फुरसत नहीं होती थी. हां याद है. हमारी तो कभी बनी ही नहीं थी उस से. वो कहां मिल गई तुझे?‘‘
‘‘मैड़म, सच में मौडलिंग कर रही है. पिछले महीने मैगजीन में उस का फोटो देखा तो आंखें खुली रह गईं. उस ने जो चाहा पा लिया. एक बड़ा नाम है मौडलिंग की दुनिया में वो आज.‘‘
‘‘वाअव… अच्छा है, किसी को तो कुछ मिला.‘‘
‘‘तुम्हें भी तो शिशिर मिल ही गया, क्यों? नहीं मिला क्या?‘‘ आकांक्षा की शरारत शुरू हो चुकी थी.
शिशिर के नाम पर चंचल आज भी झेंप सी गई. चायपकौड़े ले कर दोनों रौयल बैठक में आ कर बैठ गए. चाय पीते हुए चंचल ने फिर आकांक्षा से पूछा, ‘‘अब बता भी… बच्चे कहां हैं? दिख ही नहीं रहे. दादादादी के पास हैं? या सुबहसुबह खेलने निकल लिए.‘‘
इतनी देर से इधरउधर की बातें करते हुए आखिरकार आकांक्षा की आंख में आसूं आ गए.
‘‘आकांक्षा… अक्कू… क्या हुआ बच्चे? बता… सब ठीक है न? तेरी आंख में आंसू, मतलब बहुत बड़ी बात है.‘‘
गले लगा कर चंचल ने फिर से कहा, ‘‘अच्छा सब छोड़, पहले शांत हो जा तू. मेरी अक्कू रोते हुए बिलकुल अच्छी नहीं लगती.‘‘
चंचल ने नाक खींची, तो आकांक्षा के चेहरे पर भी मुसकान आ गई. अब दोनों सहेलियां बिना कुछ बोले, चाय पीने लगीं. चंचल ने अब कुछ नहीं पूछा. वो आकांक्षा को जानती है. कुछ समय ले कर वो खुद बता देगी कि क्या बात है.
‘‘बच्चे नहीं हैं चंचल, नहीं हैं बच्चे,‘‘ फिर से रो पड़ी आकांक्षा.
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‘‘ठीक है बाबा, नहीं हैं तो आ जाएंगे. वादा, अब दोबारा नहीं पूछूंगी. तू रो मत बस यार.‘‘
‘‘पंकज को अपना स्टेटस बनाना है. वो हमारी मिडिल क्लास वाली जिंदगी से बिलकुल खुश नहीं हैं. 8 साल हो गए शादी को, इन्हें लगता है, जिंदगी बस महंगी चीजों के पीछे भागने का नाम है.‘‘
एक गहरी सांस ले कर आकांक्षा ने कहा, ‘‘पता नहीं किस की बराबरी करना चाहते हैं. यह घर मुझे अपना घर लगता ही नहीं है. ब्रांडेड और महंगी चीजें बस, मेरी सादगी कहीं पीछे छूट गई है. पहननाओढ़ना, सब उन्हीं के हिसाब से होना चाहिए.‘‘
‘‘अब जब घर में लगभग हर सामान अपनी मरजी का खरीद चुके हैं तो अब इन्हें एक विला खरीदना है. जब तक इतना पैसा जमा नहीं कर लेंगे, विला खरीद नहीं लेंगे, तब तक कुछ और सुध नहीं लेनी.‘‘
‘‘आज संडे भी औफिस गए हैं. मेरी सरकारी नौकरी है. सो, मुझ पर बस नहीं चलता इन का, नहीं तो संडे भी औफिस भेज दें मुझे ये.‘‘
‘‘तुम्हारी बातों से ऐसा लग रहा है अक्कू, मानो मशीन हो तुम दोनों. और इसीलिए पंकजजी बच्चे नहीं चाहते हैं? एम आई राइट?‘‘
आगे पढ़ें- चंचल की आंखों का शून्य, लेकिन …
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लेखिका–रिजवाना बानो ‘इकरा’
‘‘हैलो चंचल, मैं… आकांक्षा बोल रही हूं.‘‘
‘‘आकांक्षा… व्हाट ए बिग सरप्राइज… कैसी है तू? तुझे मेरा नंबर कहां से मिला? और कहां है तू आजकल?‘‘
‘‘अरे बस… बस, एक ही सांस में सारे सवाल पूछ लेगी क्या? थमो थोड़ा, और यह बताओ कि रक्षाबंधन पर घर आ रही हो न इस बार? ससुराल से एक दिन की एक्स्ट्रा छुट्टी ले कर आइएगा मैडम… कितनी सारी बातें करनी हैं…‘‘
एक्स्ट्रा छुट्टी के नाम पर थोड़ा सकपकाते और तुरंत ही खुद को संभालते हुए चंचल बोली, ‘‘बड़ी आई छुट्टी वाली… मैडम, आप हैं नौकरी वालीं… हम तो खाली लोग हैं… ये बताइए, आप को कैसे इतनी फुरसत मिल जाएगी. आखिरी बार ज्वाइन करते समय काल की थी. तब से मैडम बस नौकरी की ही हो कर रह गई हैं.‘‘
‘‘चल झूठी, तेरे घर शादी का कार्ड भिजवाया था, तुझे ही फुरसत नहीं मिली.‘‘
‘‘हम्म… तब नहीं आ पाई थी मैं. ये बता कि अभी कहां है?‘‘
‘‘पिछले हफ्ते ही नासिक ज्वाइन किया है और फ्लैट भी तेरी कालोनी में ही मिल गया है. कल शाम को ही अंकलआंटी से मिल कर आई हूं और नंबर लिया तेरा. मुझ से नंबर मिस हो गया था तेरा और तुझ से तो उम्मीद रखना भी बेकार है.‘‘
कभी एकदूसरे की जान के नाम से फेमस लड़कियां 8 साल बाद एकदूसरे से बात कर रही हैं.
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चंचल की शादी के बाद आकांक्षा ने सरकारी नौकरी की तैयारी की. सालभर बाद ही नौकरी लग गई और उस के सालभर बाद शादी.
आकांक्षा की शादी का कार्ड तो मिला था चंचल को, लेकिन शादी में जाने की परमिशन नहीं मिल पाई थी, ससुराल से.
‘‘अच्छा अब सेंटी मत हो, औफिस वाले हंसेंगे मेरी बोल्ड आकांक्षा को ऐसे देखेंगे तो.‘‘
‘‘हां यार, चल रखती हूं फोन. मिलते हैं… हां… छुट्टी ले लियो ससुराल से देवी मां, नहीं तो पिटाई होगी तुम्हारी, बता दे रही हूं. चल बाय… आ गया खड़ूस बौस‘‘
‘‘बाय… बाय,‘‘ हंसते हुए फोन कटा, तो चंचल ने देखा कि सासू मां पीछे खड़ी हैं और उन के चेहरे पर सवालिया निशान हैं. कपूर की तरह जिस गति से हंसी चेहरे से गायब हुई, उस से अधिक गति से चंचल रसोई में चली गई. सासू मां की चाय का वक्त था ये और चाय में 5 मिनट की देरी हो चुकी थी.
‘मांजी को ये लापरवाही बिलकुल भी पसंद नहीं. पता नहीं, अब क्याक्या सुनना पड़ेगा? मुझे भी न, ध्यान रखना चाहिए था, ऐसा भी क्या बातों में खो जाना,‘ खुद को मन ही मन डांटते हुए चंचल फिर से आकांक्षा की बात याद करने लगी, ‘‘पिटाई होगी तुम्हारी… बता दे रही हूं.‘‘
‘‘बिलकुल नहीं बदली है ये लड़की,‘‘ आखिर मुसकराहट आ ही गई चंचल के चेहरे पर.
चंचल को पता है कि आकांक्षा न तो एक दिन की एक्स्ट्रा छुट्टी ले सकती है, न ही मिलनामिलाना होगा. लेकिन फिर भी वो बहुत खुश है, 10 साल साथ गुजारे हैं चंचल और आकांक्षा ने, स्कूलकालेज, होमवर्क, ट्यूशन, क्लास बंक, लड़कों से लड़नाझगड़ना, क्याक्या नहीं किया है दोनों ने साथ? सारी यादें एकदम ताजा हो गई हैं.
यही सब सोचतेसोचते चंचल सासू मां को चाय पकड़ा आई.
डिनर का समय आसानी से कट गया, बिना किसी शिकवाशिकायत के. चंचल को उम्मीद थी कि बहुत जबरदस्त डांट पड़ेगी और शिशिर भी गुस्सा करेगा. पिछली बार जब छोटे बेटे आशु ने सोफा गीला कर दिया था तो कितनी आफत आ गई थी, याद कर के ही रूह कांप गई चंचल की.
देखा जाए तो चंचल की शादी आकांक्षा के मुकाबले बड़े खानदान में हुई थी. साउथ दिल्ली की बड़ी सी कोठी, हीरों के व्यापारी रस्तोगीजी, सारे शहर में उन का बड़ा नाम, रस्तोगीजी के छोटे और स्मार्ट बेटे शिशिर ने जब चंचल को पसंद किया तो बधाइयों का तांता लग गया था चंचल के घर.
चंचल के भी अरमान पंख लगा कर उड़ने लगे थे. उम्र ही ऐसी थी वो और शिशिर चंचल को भी पहली ही नजर में पसंद आ गए थे. इधर शिशिर के घरपरिवार में भी चंचल की खूब चर्चा थी. चंचल की सुंदरता भी कालेज की सारी लड़कियों को मात देती थी. साथ ही साथ पढ़नेलिखने में इतनी तेज, फाइनेंस से एमबीए किया है. और क्या चाहिए था, रस्तोगियों को अपनी बहू में.
शादी की तैयारियां और इतना अच्छा रिश्ता मिलने की खुशी के बीच, चंचल को भी अपनी जौब का खयाल नहीं आया. उसे शिशिर से बात कर के लगा नहीं कि उन्हें कभी कोई इशू होगा इस से. आकांक्षा ने 1-2 बार कहा कि उसे बात करनी चाहिए शिशिर से, तो चंचल ने बात भी की.
शिशिर ने उसे पूरा विश्वास दिलाया कि किसी को कोई समस्या नहीं है, वो जो चाहे करे.
शादी के 3-4 महीने बाद वहीं दिल्ली में कर लेना जौब एप्लाई. और तुम हो भी इतनी क्वालीफाइड… तुम्हें कौन मना करने वाला है जौब के लिए? मेरी चंचल को तो यों ही मिल जाएगी जौब, चुटकी में,” सुन कर शर्म से चेहरा लाल हो गया था चंचल का इस तारीफ पर.
रस्मोरिवाज और घूमनेफिरने में दिन पंख लगा कर उड़ गए. शादी के 3 महीने बाद चंचल ने अपनी सासू मां से बहुत आराम से बात की, ‘‘मांजी, अब तो सारी रस्में, घूमनाफिरना, सब हो चुका आराम से. मैं जौब के लिए एप्लाई कर देती हूं.‘‘
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सासू मां ने बड़ी कुटिल मुसकान के साथ जवाब दिया, ‘‘आराम से तो होगा ही बहूरानी… शिशिर के पापा ने इतना बड़ा बिजनेस किस के लिए खड़ा किया है? अपने बच्चों की खुशियों के लिए ही न.”
जौब के लिए उत्तर न मिलता देख चंचल ने आगे कहा, ‘‘जी, मांजी, मैं जौब के लिए अब एप्लाई कर ही देती हूं. मन नहीं लगता मेरा भी सारा दिन घर में.‘‘
इस बार, सासू मां का पारा सातवें आसमान पर था, लगभग चिल्लाते हुए शिशिर को आवाज लगाई, ‘‘शिशिर… ओ शिशिर, मैं ने मना किया था न इतनी ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए. तुझे ही पसंद थी न, ले अब, जौब करनी है इसे… संभाल ले इसे और न मन लगे इस का तो छोड़ आ उसी 2 बीएचके में. वहीं मन लगता है इस का.‘‘
शिशिर सिर झुकाए खड़ा रहा और चंचल को अंदर जाने का इशारा किया.
चंचल के जाने के बाद शिशिर बोला, ‘‘मां, समझा दूंगा मैं उसे, आप नाराज न होइए. दोबारा जबान नहीं खोलेगी वह आप के सामने.‘‘
अंदर जाते ही अब शिशिर को चंचल पर चिल्लाना था, ‘‘क्या जरूरत है तुम्हें जौब करने की? क्या कमी है इस घर में? इतनी बड़ी कोठी की रानी हो तुम, रानी बन कर रहो. क्या तकलीफ है तुम्हें?
‘‘और मां… उन के सामने किसे जबान खोलते हुए देखा तुम ने, जो इतना बोलती हो? मिडिल क्लास से हो कर भी संस्कार नाम की कोई चीज नहीं है तुम में.‘‘
शिशिर को इतना गुस्से में देख, अपनी पढ़ाई पर गर्व करने वाली, अपने चुनाव पर गर्व करने वाली चंचल सहम गई. उस दिन के बाद से उस ने जौब का दोबारा नाम नहीं लिया.
मां ने शिशिर को समझा दिया था, ‘‘जल्दी बच्चेवच्चे कर लो. ज्यादा फैमिली प्लानिंग के चक्कर में न पड़ना. बहू का मन घरगृहस्थी में उलझना भी जरूरी है.‘‘
देखते ही देखते चंचल एक प्यारी सी बेटी सुहाना और एक शैतान से बेटे आशु की जिम्मेदार मां बन गई.
अब चंचल के पास इतना भी समय नहीं होता कि वो खुद पर या खुद से जुड़ी किसी भी बात पर ध्यान दे सके. धीरेधीरे हालात ऐसे हो गए कि चंचल को अपने लिए चप्पल खरीदनी हो या बच्चों के लिए डाइपर, सासू मां से पूछे बिना नहीं ले सकती थी. घर में आने वाली सूई से ले कर सैनिटरी पैड्स तक पर उन की नजर रहती हमेशा. कुछ अपने मांबाप की इज्जत, कुछ अब बच्चों की चिंता, चंचल ने अपनी इस नियति को स्वीकार कर लिया है.
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लेखिका- उर्मिला वर्मा
‘‘शालू की ससुराल वाले बोल रहे हैं कि रमेश की पढ़ाई का अभी एक साल और है इसलिए वे लोग नहीं ले जाएंगे. अभी हमारी शालू एक साल हमारे पास और रहेगी,’’ रामबरन मूंछों पर ताव देते हुए मुसकरा कर बोले.
रामबरन की बातें सुन कर दीपा बूआ के हाथ से गिलास छूट कर गिर गया.
रामबरन चौंक कर दीपा की तरफ देखने लगे. इस से पहले कोई कुछ बोलता, दरवाजे के पास खड़ी शालू बेहोश हो कर गिर पड़ी.
वे दोनों दौड़ कर शालू के पास गए और उसे उठा कर उस के कमरे में ले गए. डाक्टर को बुलाया गया.
डाक्टर ने शालू का चैकअप किया और बोला कि परेशानी की कोई बात नहीं है. कमजोरी की वजह से इन को चक्कर आ गया था. दवा पिला दीजिए और इन का ध्यान रखिए. ये मां बनने वाली हैं और ऐसी हालत में लापरवाही ठीक नहीं है.’’
डाक्टर के मुंह से मां बनने की बात सुन कर रामबरन हक्केबक्के रह गए. डाक्टर के जाते ही सब से सवालों की झड़ी लगा दी.
दीपा बूआ ने पूरी बात रामबरन को बताई और बोलीं, ‘‘भैया, गौने की तारीख जल्दी से पक्की कर के आइए. अभी कुछ नहीं बिगड़ा है. सब ठीक हो जाएगा.’’
उधर होश में आते ही शालू रोने लग गई. रोतेरोते वह बोली, ‘‘बाबूजी, मुझे माफ कर दीजिए. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई.’’
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रामबरन शालू के सिर पर हाथ रख कर लंबी सांस ले कर बाहर चले गए.
अगले दिन वे फिर शालू की ससुराल गए. घर पर दीपा और शालू बेचैन घूम रही थीं कि न जाने क्या खबर आएगी.
रामबरन दिन ढले थकेहारे घर आए और आते ही सिर पर हाथ रख कर बैठ गए. उन को इस तरह बैठे देख सब का दिल बैठा जा रहा था. सब सांस रोक कर उन के बोलने का इंतजार कर रहे थे.
रामबरन रुंधे गले से बोले, ‘‘मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. उन लोगों ने गौना कराने से साफ मना कर दिया. रमेश बोल रहा था कि वह कभी मिलने नहीं आता था. दीपा, वे लोग मेरी बेटी पर कीचड़ उछाल रहे हैं. तू ही बता कि अब क्या करूं मैं?’’
दीपा बूआ और शालू दोनों रोने लगीं. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस रात किसी ने कुछ नहीं खाया और सब ने अपनेअपने कमरे में करवटें बदलबदल कर रात बिताई.
सुबह हुई. शालू ने उठ कर मुंह धोया और बहुत देर तक खुद को आईने में देखती रही. मन ही मन एक फैसला लिया और बाहर आई.
रामबरन बरामदे में बैठे थे और शालू उन के पैरों के पास जमीन पर बैठ गई और बोली, ‘‘बाबूजी, मुझ से एक गलती हो गई है. लेकिन इस बच्चे को मारने का पाप मुझ से नहीं होगा. मुझ से यह पाप मत करवाइए.’’
रामबरन ने शालू का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘बेटी, क्या चाहती है बोल? मैं तेरे साथ हूं. मैं तेरे लिए सारी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार हूं.’’
रामबरन की बात सुन कर शालू बोली, ‘‘बाबूजी, इस नन्ही सी जान को मैं सारी दुनिया से लड़ कर इस दुनिया में लाऊंगी और उस रमेश को नहीं छोडं़ूगी. अपने बच्चे को उस के बाप का नाम और हक दोनों दिलाऊंगी. रमेश बुजदिल हो सकता?है लेकिन मैं नहीं हूं. मैं आप की बेटी हूं, हार मानना नहीं सीखा है.’’
अपनी बेटी की बातें सुन कर रामबरन की आंखें भर आईं. वे आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘हां बेटी, मैं हर पल हर कदम पर तेरी लड़ाई में साथ हूं.’’
अगले दिन शालू और रामबरन दोनों जा कर वकील से मिले और उन को सारी बातें समझाईं. वकील ने शालू को इतना बड़ा कदम उठाने के लिए सब से पहले शाबाशी दी और बोले, ‘‘बेटी, तुम परेशान न हो. हम यह लड़ाई लड़ेंगे और जरूर जीतेंगे.’’
धीरेधीरे समय बीतने लगा. रमेश पर केस दर्ज हो गया था. शालू हर पेशी पर अपने बाबूजी के साथ अदालत में अपने बच्चे के हक के लिए लड़ रही थी तो बाहर दुनिया से अपनी इज्जत के लिए. उस का बढ़ता पेट देख कर गांव वालों में कानाफूसी शुरू हो गई थी.
लोग कई बार उस के मुंह पर बोल देते थे, ‘देखो, कितनी बेशर्म है. पहले मुंह काला किया, अब बच्चा जनेगी और केस लड़ेगी.’
शालू सारी बातें सुन कर अनसुना कर देती थी. समय बीतता गया और शालू ने समय पूरा होने पर एक खूबसूरत से बेटे को जन्म दिया.
अदालत की तारीखें बढ़ रही थीं और रामबरन का बैंक बैलैंस खत्म हो रहा था. खेत बेचने तक की नौबत आ गई थी. लेकिन बापबेटी ने हिम्मत नहीं हारी, लड़ाई जारी रखी.
वे कई सालों तक लड़ाई लड़ते रहे. एक दिन रामबरन को एक रिश्तेदार ने एक रिश्ता बताया. वे लोग शालू की सारी सचाई जानते थे. लेकिन जब तक केस खत्म नहीं हो जाता, तब तक शालू अपनी जिंदगी के लिए कोई भी फैसला लेने को तैयार नहीं थी.
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इधर रमेश और उस के घर वाले अदालत के चक्कर लगालगा कर परेशान हो चुके थे. वे लोग चाहते थे कि समझौता हो जाए. शालू उन के घर आ जाए और वे बच्चे को भी अपना खून मानने के लिए तैयार थे, लेकिन शालू ने सख्ती से मना कर दिया और लड़ाई जारी रखी.
आखिरकार शालू की जीत हुई. अदालत ने रमेश को सजा सुनाई और उसे जेल भेज दिया गया. वहीं उसे और उस के बेटे को रमेश की जायदाद में हिस्सेदारी भी दी गई.
शालू ने हिम्मत दिखा कर अपना खोया हुआ मानसम्मान व अपने बेटे का हक सब वापस जीत लिया था. शालू इस जीत पर बेहद खुश थी. इधर शालू की शादी के लिए भी वे लोग जोर देने लग गए थे.
एक दिन रामबरन ने शालू और योगेश की शादी करा दी. योगेश शालू को ले कर मुंबई चला गया. डेढ़ साल बाद शालू और योगेश मुंबई से वापस आए तो शालू की गोद में 6 महीने की एक प्यारी सी बच्ची भी थी.
शाम को रामबरन जब घर आए तो देखा कि आंगन में शालू और योगेश अपने दोनों बच्चों के साथ खेलने में मगन थे. वे अपनी बेटी के उचित फैसले पर मुसकरा कर अंदर चले गए.
लेखिका- उर्मिला वर्मा
शालू को रमेश के साथ बिताए ये चंद पल जिंदगी के सब से हसीन पल लग रहे थे. उसे इस नई छुअन का एहसास बारबार हो रहा था जो उस के साथ पहली बार था.
उस दिन की मुलाकात के बाद शालू और रमेश अकसर रोजाना मिलने लगे. कभी घंटों तो कभी मिनटों की मुलाकातों ने सारी हदें पार कर दीं. प्यार की आंधी इतनी जोर से चली कि सारे बंधन टूट गए और वे दोनों रीतिरिवाज के सारे बंधन तोड़ कर उन में बह गए.
छुट्टियां खत्म होते ही रमेश वापस होस्टल चला गया. इधर शालू उस के खयालों में दिनरात खोई रहती थी. शालू की रातें अब नींद से दूर थीं. उसे भी तकिए की जरूरत और रमेश की यादें सताने लगी थीं.
कुछ दिनों से शालू को कमजोरी महसूस होने लगी थी. पूरे बदन में हलकाहलका दर्द रहता था.
एक दिन शालू सुबह सो कर उठी तो चक्कर आ गया और उबकाई आने लगी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. वह आ कर अपने कमरे में चुपचाप लेट गई.
शालू को इतनी देर तक सोता देख दीपा बूआ उस के कमरे में चाय ले कर आईं और बोलीं, ‘‘तबीयत ज्यादा खराब हो तो डाक्टर के पास चलते हैं.’’
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शालू ने मना कर दिया और बोली, ‘‘नहीं बूआ, बस जरा सी थकावट लग रही है. बाकी मैं ठीक हूं.’’
दीपा बूआ बोलीं, ‘‘ठीक है, फिर चाय पी लो. आराम कर लो, फिर बाजार चलते हैं. कुछ सामान ले कर आना?है.’’
शालू चाय पीने लगी तो उसे फिर से उबकाई आने लगी. वह भाग कर बाहर गई और उसे उलटियां आनी शुरू हो गईं. दीपा बूआ उसे उलटी करती करते देख परेशान हो गईं और शालू से पूछने लगीं, ‘‘शालू, सच बता, तुझे यह सब कब से हो रहा है? कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’
शालू बोली, ‘‘अरे नहीं बूआ. पेट में गैस बनी होगी इसलिए उलटी हो रही है. ऐसा कुछ नहीं है.’’
दीपा बूआ का दिल नहीं माना. वे शालू को ले कर नजदीक के सरकारी अस्पताल में गईं तो पता चला कि शालू सच में पेट से थी. यह सुन कर दीपा बूआ सन्न रह गईं.
घर आ कर दीपा बूआ शालू को झकझोरते हुए पूछने लगीं, ‘‘यह क्या किया शालू तू ने? कहा था कि तेरा अभी गौना नहीं हुआ है. रमेश से मिलने मत जाया कर. कुछ ऊंचनीच हो गई तो क्या होगा. लेकिन तेरी अक्ल पर तो पत्थर पड़े थे. अब बता कि हम क्या करें?’’
शालू सिर्फ रोए जा रही थी क्योंकि गलती तो उस से हुई ही थी, लेकिन अभी भी सुधर सकती थी. उस ने दीपा बूआ से कहा, ‘‘बूआ, आप बाबूजी से बात करो कि वे मेरा गौना करा दें और मैं रमेश से बात करती हूं. मैं उसे बताती हूं. वह जरूर कुछ करेगा.’’
सुबह सब लोग चाय पी रहे थे तब दीपा बूआ ने रामबरन से शालू के गौने की बात छेड़ी तो रामबरन बोले, ‘‘हां, मुझे भी पता है कि अब गौना निबटा देना चाहिए. बेटी राजीखुशी अपनी ससुराल में रहे. मैं उन लोगों से कल ही बात करता हूं.’’
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यह सुन कर दीपा और शालू दोनों ने चैन की सांस ली. शालू जब सिलाई सैंटर गई तो सब से पहले जा कर उस ने पीसीओ से रमेश को फोन किया और सारी बात बताई जिसे सुन कर रमेश शालू पर बुरी तरह बरस पड़ा, ‘‘यह क्या बेवकूफों वाली हरकत की तुम ने, अभी तो मैं पढ़ रहा हूं और इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहिए मुझे. जा कर डाक्टर से इस को गिराने की दवा ले आओ.
‘‘मैं अभी इस की जिम्मेदारी नहीं उठाऊंगा. और लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे. पूरे गांव में मेरी बदनामी होगी.
‘‘सब मेरा मजाक उड़ाएंगे कि गौने से पहले बाप बन गया. नहींनहीं शालू, यह बच्चा नहीं चाहिए मुझे,’’ यह बोल कर रमेश ने फोन रख दिया और शालू ‘हैलोहैलो’ कहती रह गई.
उस दिन शालू का मन सिलाई सैंटर में भी नहीं लगा. वह जल्दी घर वापस आ गई और अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा बंद कर औंधे मुंह बिस्तर पर गिर गई. उस के कानों में रमेश की बातें गूंज रही थीं, ‘दवा खा लो, बच्चा गिरा दो…’ उस ने दोनों हाथों से कान बंद कर लिए और जोर चीख पड़ी, ‘नहीं…’
शालू की चीख सुन कर दीपा बूआ दौड़ कर आईं और दरवाजा जोरजोर से पीटने लगीं.
दरवाजा खोलते ही शालू दीपा बूआ के गले लग कर जोरजोर से रो पड़ी. काफी देर तक रो लेने के बाद जब उस का जी हलका हुआ तब दीपा ने उस के आंसू पोंछते हुए प्यार से पूछा, ‘‘क्या हुआ, क्यों रो रही है? रमेश से बात हुई? क्या बोला उस ने?’’
दीपा ने पुचकार कर पूछा तो शालू फिर बिलख पड़ी और बोली, ‘‘बूआ, रमेश ने कहा है कि उसे यह बच्चा अभी नहीं चाहिए. वह बोल रहा है कि मैं दवा खा लूं और इस बच्चे को गिरा दूं.’’
‘‘तू ने क्या जवाब दिया? तू क्या करने वाली है?’’ दीपा बूआ ने उस का कंधा पकड़ कर पूछा.
शालू बोली, ‘‘बूआ, उस ने मेरी बात ही नहीं सुनी. उस ने फोन काट दिया.
‘‘बूआ, अब आप ही बताओ कि मैं क्या करूं?’’
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दीपा बूआ ने शालू को अपनी छाती से लगा लिया और उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘तू परेशान मत हो. आज तेरी ससुराल बात करने भैया गए हैं. एक बार तेरा गौना हो गया तो सब ठीक हो जाएगा. और देखना, रमेश भी इस बच्चे को अपना लेगा.’’
दीपा बूआ की बातें सुन कर शालू को थोड़ी राहत मिली. उस का मन थोड़ा शांत हो गया.
शाम को रामबरन घर आए तो शालू का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. वह सुनने के लिए परेशान थी कि उस की ससुराल वालों ने कब की तारीख पक्की की है.
दीपा बूआ पानी ले कर रामबरन के पास गईं और पानी दे कर उन से पूछने लगीं, ‘‘शालू की ससुराल वाले क्या बोल रहे हैं?’’
शालू भी दरवाजे के पीछे खड़ी हो कर दिल थाम कर सारी बातें सुन रही थी.
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लेखिका- उर्मिला वर्मा
शालू बड़ी सावधानी से घर में दाखिल हुई. इधरउधर देख कर वह दबे पैर अपने कमरे के तरफ बढ़ी, लेकिन दरवाजे पर पहुंचने से पहले ही दीपा बूआ ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया.
दीपा बूआ तकरीबन धकेलते हुए दीपा को कमरे के अंदर ले गईं और अंदर जाते ही सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘कहां गई थी? इतनी देर कहां थी? तू आज फिर रमेश से मिलने गई थी?’’
‘‘हां, मैं रमेश से मिलने गई थी,’’ शालू खाऐखोए अंदाज में बोली.
दीपा बूआ शालू की हालत और उस के हावभाव देख कर परेशान हो कर समझाने लगीं, ‘‘देख शालू, तू रमेश के प्यार में पागल हो गई है, लेकिन तेरा इस तरह उस से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. अगर कुछ ऊंचनीच हो गई तो गांव में भैया की क्या इज्जत रह जाएगी…’
दीपा बूआ काफी देर तक समझाने की नाकाम कोशिश करती रहीं लेकिन शालू तो जैसे रमेश के प्यार में बावली हो गई थी. उस को ऊंचनीच, सहीगलत कुछ नजर नहीं आ रहा था.
शालू के पिता रामबरन गांव के रसूखदार किसान माने जाते थे. 2 जोड़ी बैल, 4-5 भैंसें, ट्रैक्टरट्रौली, पचासों बीघा खेत, सभी सुखसुविधाओं से भरा बड़ा सा पक्का मकान. सबकुछ उन्होंने अपनी मेहनत से बनाया था.
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रामबरन के घर में उन की पत्नी, एक बेटा और बेटी थी. पति से अनबन होने की वजह से उन की छोटी बहन भी उन के साथ ही रहती थी. बड़ा बेटा अजय अभी पढ़ रहा था जबकि बेटी शालू सिर्फ 8वीं जमात तक पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ कर घर पर मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थी.
शालू जब 8वीं जमात में पढ़ रही थी तभी बगल के गांव में ही उस की शादी कर के रामबरन ने बेटी की जिम्मेदारी से छुटकारा पा लिया था.
शादी के समय शालू का होने वाला पति 10वीं जमात में पढ़ता था. दोनों शादी के समय छोटे थे इसलिए शादी के बाद गौने में विदाई तय थी.
शालू और रमेश का गांव अगलबगल में ही था इसलिए बाजार में या किसी दूसरे काम से आनेजाने पर कभीकभार दोनों का सामना हो ही जाता था.
समय बीतता गया. रमेश और शालू दोनों बड़े हो गए थे. रमेश 10वीं जमात पास करने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए शहर में अपने चाचा के पास चला गया था और उस के बाद होस्टल में रहने लगा था. वह घर पर बहुत कम आता था और अब उस को शहर और होस्टल की हवा लग गई थी.
शालू घर के कामों में बेहद माहिर हो गई थी. यह देख कर रामबरन ने उसे सिलाई सीखने की इजाजत दे दी थी इसलिए अपनी कुछ सहेलियों के साथ वह सिलाई सीखने जाती थी.
शालू को ऊपर वाले ने बड़ी ही फुरसत से बनाया था. साफ चमकता हुआ बेदाग चेहरा, दूध और गुलाब की पंखुड़ी जैसे गुलाबी गालों का रंग, बड़ीबड़ी कजरारी झील जैसी गहरी आंखें, तोते सी नाक, गुलाबी होंठ, कमर तक लहराते काले घने रेशमी बाल, भरा हुआ बदन, आंखों पर काजल ऐसा लगता था जैसे किसी ने चांद पर कालिख की बिंदी लगा दी हो.
सुबह जब शालू तैयार हो कर सिलाई सीखने के लिए साइकिल ले कर सिलाई सैंटर जाती थी तो उस को देख कर गांव के न जाने कितने मनचलों की नीयत खराब हो जाती थी.
शालू को देखते ही तरहतरह की बातें करते हुए लड़के अपने होंठों पर जीभ फेरने लगते थे, जिस का अंदाजा शालू को भी होता था लेकिन वह किसी को भी घास नहीं डालती थी क्योंकि उसे अपने और रमेश के रिश्ते का मतलब पता था.
दीवाली आ रही थी. कालेज बंद हो रहे थे. रमेश के साथ होस्टल में रहने वाले सभी लड़के घर चले गए थे और रमेश की मां ने भी इस बार घर आने के लिए बहुत दबाव बनाया था इसलिए वह इस दीवाली पर अपने?घर आया था.
अगले दिन रमेश गांव के दोस्तों के साथ एक पान की दुकान पर खड़ा था तभी बगल से शालू साइकिल ले कर निकली. रमेश ने जब उसे देखा तो उसे देखता ही रह गया. एक पल को तो उसे लगा जैसे आसमान से कोई परी जमीन पर आ गई है लेकिन थोड़ी ही देर बाद उसे लगा कि यह चेहरा जानापहचाना सा है. वह उसे याद करने की कोशिश करने लगा कि इसे कहां देखा है, लेकिन काफी दिन बीत जाने व कोई मेलजोल न होने की वजह से याद नहीं आ रहा था.
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शालू की तरफ एकटक निहारते देख उस के दोस्त ने कुहनी मारी और बोला, ‘‘क्या रमेश भाई, भाभी को देख कर कहां खो गए?’’
रमेश अचकचा कर बोला, ‘‘अरे कहीं नहीं यार, कौन भाभी, किस की भाभी?’’
तब रमेश के दोस्त ने उसे बताया कि वह जिस हसीना को इतने गौर से देख रहा था वह उस की ही बीवी शालू है.
दोस्त के मुंह से यह सुन कर रमेश का मुंह खुला का खुला रह गया. वह शालू की खूबसूरती व गदराया बदन देख कर हैरान रह गया था. अब उस को एकएक पल काटना भारी पड़ने लगा था.
जैसेतैसे रात कटी तो सुबहसुबह रमेश ने किसी तरह जुगाड़ लगा कर शालू को मिलने के लिए संदेशा भिजवाया.
संदेशा सुनकर शालू सोच में पड़ गई थी क्योंकि इस संदेशे में रमेश ने मिलने को कहा था लेकिन वह सोच रही थी कि अगर रमेश से मिलते हुए किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी और अगर न मिलने गई तो रमेश के नाराज होने का डर था.
शालू का मन भी रमेश से मिलने के लिए बेताब था. डरतेडरते शालू ने आने का वादा कर लिया. शाम को दिन ढलने के बाद वह सब से छिप कर दबे पैर गांव के बाहर आम के बगीचे में गई जहां पर रमेश पहले से आ कर उस का इंतजार कर रहा था.
गांव वाले बगीचे में गन्ने की सूखी पत्तियों व पुआल का ढेर लगा कर रखते थे. दोनों उसी की ओट में बैठ कर बांहों में बांहें डाले बातें करने लगे.
थोड़ी देर रमेश के साथ गुजार कर शालू घर आ गई. घर आ कर अपने कमरे में बिस्तर पर गिर गई. उस के हाथपैरों में कंपन हो रही थी. उसे अपने हाथों में रमेश के हाथों की गरमाहट अब तक महसूस हो रही थी.
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पहले जब वह अमेरिका पढ़ने गई थी तो इस लड़के से प्रेम हुआ. लड़के के
पिता जब बाद में चल बसे और लड़के की मां ने उसे यहां बुलावा भेजा तो लड़की ने भी लड़के के साथ आने का मन बनाया.
इस रशियन लड़की सेल्विना दास्तावस्की की मां नहीं रही. सौतेले पिता हैं, अब उस का यह ब्रौयफ्रैंड ही सबकुछ है. सेल्विना की आंखों में एक मधुर संभाषण और बालसुलभ कुतूहल देखा मैं ने. वाकई वह बहुत प्यारी और निश्चल थी. मुझे भा गई थी.
रात को जीजी घर आई तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘अचानक कैसे वहां ड्राइंग सीखने जाने लगी? कैसे पहचान हुई सेल्विना से तुम्हारी?’’
‘‘फेसबुक के मेरे नए प्रोफाइल पर.’’
‘‘तुम ने भेजी थी रिकवैस्ट?’’
‘‘तुझे क्या करना किस ने भेजी?’’
‘‘जीजी तुम सारी चीजों में उलझ कर रह गई, लेकिन जीजू के बारे में बिलकुल नहीं सोच रही. आखिर चाहती क्या हो? जीजू अकेले
क्यों रहें?’’
‘‘मैं ने उन से कहा तो है कोलकाता ट्रांसफर करा लें. नहीं, अपनी पैत्रिक संपत्ति छोड़ कर किराए के मकान में आना नहीं चाहते. मैं क्यों नहीं बड़े शहर में रहूं. पर तू यह बता तुझे क्यों इतनी फिक्र हो रही जीजू की?
‘‘जीजी.’’
‘‘चुप कर. ढीलेढाले पाजामे को मेरे गले बांध दिया. सभी ने मिल कर.. बैंक की नौकरी है… वह कोई मर्द है?’’
जीजी की बातें बड़ी चकित करने वाली थीं. मैं रात तक बेचैन रही.
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वे मुझ से स्नेह रखते थे. जीजू की लाचारी मुझे खलने लगी. मैं ने उन्हें एक के बाद एक कई संदेश भेजे ताकि उन की खैरियत पता चल सके. कोई उत्तर न मिला मुझे तो मैं ने फोन मिला दिया. फोन उठाया गया, लेकिन कुछ पल कानाफूसी सी आवाजें आने के बाद फोन कट गया.
मुझे ऐसा क्यों लगा कि उस वक्त ऐसा कुछ था जो न होता तो अच्छा था. कल की सुबह शनिवार की थी. जीजी अपना भलाबुरा समझ नहीं पा रही थी, मैं तो समझती थी. औफिस से
2 दिन की छुट्टी लेने की ठान मैं
सो गई.
कोलकाता से बस में 4-5 घंटे लगते थे जीजू के शहर पहुंचने में. रात को पहुंची तो मेन गेट खुला था.
बरामदे में पहुंच मैं ने दरवाजे पर हाथ रखा तो अंदर से बंद था. मुझे लग रहा था कोई दिक्कत जरूर है. मेरी छठी इंद्री ने काम शुरू किया और मैं ने बगीचे की तरफ खुल रही बैडरूम की खिड़की से हाथ अंदर कर धीरे से परदा हटा कर झंका.
दृश्य ने मुझे सदमे में डाल दिया. जीजू और उन की रसोई बनाने वाली रीना बिस्तर
पर साथ. यह क्या किया जीजू तुम ने. मुझे बहुत दुख हुआ. अभिमान और व्यथा से मैं तड़पने लगी. पर क्यों? क्या जीजी के लिए या और कुछ? मैं बरामदे में आ कर बैठ गई. क्या मैं माफ कर दूं जीजू को? करना ही पड़ेगा. ठगा गया इंसान जीने की सूरत ढूंढ़ रहा है, थोड़ी देर में दरवाजा खोल रीना निकली. मुझे देख उस का चेहरा सफेद पड़ गया. किसी तरह नमस्ते किया और सरपट निकल गई.
मुझे देख जीजू सकपका गए. अपना सिर नीचे कर लिया. मैं अभी कुछ कहती कि वे
बोल पड़े, ‘‘ईशा, मैं तुम्हारे परिवार का गुनहगार हूं. प्रभा को कितने संदेश भेजे… न ही जवाब दिया, न ही आई. मुझ से अकेलापन बरदाश्त नहीं हो रहा था. रीना के पति का शराब पीपी कर लिवर खराब हो गया है, उसे पैसों की जरूरत
थी. सच तो यह है कि हम दोनों ही कंगाली में थे. वह गरीब है, दुखी है, मैं ने उसे संभाला, उस ने मुझे.’’
यथासंभव खुद के साथ लड़ते हुए मैं ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया, ‘‘क्या फिर भी आप ने यह ठीक किया? जीजी को छोड़ो, कभी भी आप ने मुझे जानने की कोशिश नहीं की.’’
जीजू उम्मीद भरी आंखों से मुझे देखने लगे.
‘‘क्या कोई 10 बार यों ही किसी को संदेश भेजता है? आप के लिए शरीर ही सबकुछ है? मेरा संदेश आप की खैरियत के बारे में होता है, लेकिन इस के पीछे की कोई बात…’’
जीजू ने मेरे होंठ अपने होंठों से सिल दिए.
‘‘मैं कल्पना कैसे करूं कि आसमान का सूरज आ कर कहे कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूं,’’
जीजू ने कहा मैं अपने आप को रोक नहीं पाई.
उन के गले लग पड़ी. और हम भावनाओं में, अनुभूतियों में, प्रेम के आकंठ अणृतवर्षा में डूब चुके थे.
‘‘ईशा. क्या सच ऐसा कभी हो सकेगा कि तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओ?’’
‘‘और रीना?’’ मैं ने छेड़ा.
‘‘कभी नहीं, विदा कर दूंगा उसे, माफ कर दो मुझे.’’
‘‘फिर तो यह आप पर है. लेकिन मैं मोटा जो हूं? तुम इतनी स्लिम और सुंदर?’’
‘‘उफ्फ. आप का यह भोलापन, सादगी, मेरी जान लेगा. कौन कहता है आप मोटे हो. बस इतने मोटे हो कि तीन महीने की जिम ट्रेनिंग और डायट सही कर आप बिलकुल फिट लगोगे. और वो सारा कुछ मैं इंतजाम करवा दूंगी.’’
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‘‘शुक्रिया मेरे तनमनधन से तुम्हारा शुक्रिया. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि कंगाल को राजपाट मिल गया है.’’
आज जीजू और मैं दोनों हवा से हल्के और समुद्र से भी गहरे हो गये थे.
जब लोटी तो देखा कि चार दिनों में ही जीजी में और भी बदलाव दिखे. अब वह बिलकुल मौर्डन स्टाइलिश लड़की थी, साड़ी से तो अब दूरदूर का नाता नहीं था. उस का घर आते ही अपने स्मार्टफोन में बिजी हो जाती. उस के बदलाव में कुछ और भी बात थी.
मैं ने जीजू यानी निहार से बात की और अपने मम्मीपापा को कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ आई. तीनों को आपस में साथ रह कर एकदूसरे को समझने समझने का मौका मिले और इधर जीजी के दिमाग में शतरंज के प्यादे किसकरवट बैठ रहे हैं उस का भी मैं पता लगा पाऊं.
मम्मीपापा को निहार के पास छोड़ने जा रही थी तो जीजी से अपनी वापसी का जो दिन बताया था, उस के एक दिन पहले ही पहुंच गई मैं घर. घर की चाबी मेरे पास भी थी. मैं अंदर पहुंची तो आशा के मुताबिक जीजी फोन पर किसी से लगी पड़ी थी, ‘‘आज ही मिलो, तुम्हारी सेल्विना के साथ मैं लगभग गृहस्थी ही बसा चुकी. तुम जानते हो पेंटिंग्स की वजह से मैं तुम से जुड़ी, तुम पेंटिंग्स ग्राफिक्स का काम करते हो, और कहा भी था तुम ने कि तुम मेरे लिए वे सबकुछ करोगे जिस से मेरी पेंटिंग्स को पहचान मिले. लेकिन तुम ने तो मुझे गर्लफ्रैंड के हवाले कर दिया और भूल गये. क्या मैं तुम्हारी कुछ
भी नहीं.
‘‘कुछ भी नहीं सुनूंगी आज. मैं तुम्हें बुरी तरह मिस कर रही हूं, कल ईशा आ जाएगी वापस. आज रात सेल्विना को कोई बहाना बता कर मेरे पास आओ.’’
सारी बातें सुन कर फिर मेन दरवाजा बंद कर मैं बाहर आ गई.
आगे पढें- हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में …
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-“देश को आजादी भीख में मिली है.” ऐसा दुस्साहस पुर्ण वक्तव्य देकर फिल्मी दुनिया में अपना एक वजूद बनाने के बाद कंगना राणावत क्या इतनी बड़ी शक्ति हो चुकी है कि देश का प्रधानमंत्री कार्यालय अर्थात पीएमओ, केंद्र सरकार और कानून, उच्चतम न्यायालय असहाय हो गया है?
क्या कंगना राणावत को कोई अदृश्य संरक्षण मिला हुआ है? साफ साफ ये कहना कि 1947 में मिली हुई आजादी हमें भीख में मिली है और इसके बाद यह कहना कि आजादी तो 2014 के बाद मिली है यानी नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार आने के बाद.
इस कथन में यह साफ दिखाई देता है कि इस सोच के पीछे कौन सी शक्ति काम कर रही है और देश को कहां ले जाना चाहती है.
दरअसल, कंगना राणावत को जिस तरीके से “पद्मश्री” मिला है जिस तरीके से उसकी हर गलत नाजायज बातों को हवा दी जा रही है वह देश हित में तो नहीं है. मगर एक विशेष विचारधारा और राजनीतिक दल को यह सब सुखद लगता है. परिणाम स्वरूप कंगना राणावत देश में आज चर्चा का विषय बन गई है और कानून के लिए एक चुनौती भी.
आज देश की आम जनता को यह सोचने समझने का गंभीर समय है. जब ऐसे समय में देश की महान विभूतियां स्वतंत्रता सेनानियों पर कोई एक महिला प्रश्न खड़ा कर रही है, जब किसी एक महिला कि यह हिमाकत हो सकती है कि आजादी को भीख कह दे, तो यह समय चिंता करने का है और अपनी धरोहर को समझने का और संभालने का भी है.
क्योंकि एक प्रवक्ता की तरह जिस तरह कंगना राणावत ने मोर्चा संभाला है, यह जगजाहिर कर चुका है कि आने वाले समय में कंगना कन्हैया कुमार की तरह जेल नहीं जाएंगी. बल्कि उनके पक्ष में हो सकता है कुछ और बड़े नामचीन लोग आकर खड़े हो जाएं और बातों को ट्विस्ट करने लगें. आज का समय ऐसा ही है आजकल पुराने ऐतिहासिक तथ्यों को समाप्त करने का और एक नए युग का निर्माण का भ्रम पालने वाले लोगों का है.
शायद यही कारण है कि रातों-रात यह निश्चय कर लिया गया कि एक नया संसद भवन बनाना चाहिए गांधी जी की, और नेहरू के इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के उन ऐतिहासिक चिन्हों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर हमें अच्छा करना है!
यह अच्छा करने का भ्रम पैदा करके महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य और स्थानों को नष्ट करने का प्रयास जारी है.
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इसी क्रम में हमने देखी है नोटबंदी,ताकि नोट से गांधी जी को हटा दिया जाए. हालांकि यह हो नहीं सका. मगर लोगों के दिलों दिमाग से देश के महान विभूतियों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को खत्म करने कि यह जो सोच है यह अपना काम आज तेजी से कर रही है. क्योंकि वह आज पावरफुल है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि यह देश यह धरोहर आज की पीढ़ी की हाथों में है वह इसे कैसे संभाल पाएगी या फिर नष्ट होने देगी यह उन्हीं के कांधे पर है.
जैल भेजें, कानून के रखवाले
छोटी-छोटी बातों पर देश की बात करने वाले, देशभक्ति की बात करने वाले आज कसौटी पर हैं. क्योंकि आज कंगना राणावत ने देश की आजादी को भी हमें भीख में मिलने का कथन कह कर इन सारे देश भक्ति की हिमायत करने वालों को कटघरे में खड़ा कर दिया है.सवाल है अगर कोई अपना गलत बोलता है तो उसे छूट मिल सकती है क्या? यह प्रश्न भी आज उन लोगों के सामने खड़ा है जो देश और देश भक्ति का राग अक्सर बिला वजह अलापते रहते हैं, और जब आज समय कुछ करने का है, तो मौन है.
आज महाभारत के पात्र समय के उद्घोष का है यानी “समय” चेहरे देखने का है और चेहरे से नकाब उतरते हुए देखने का भी.
सचमुच सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए दोहरे चरित्र के लोगों का सच आज धीरे-धीरे देश की जनता के सामने आता चला जा रहा है.
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बिग बॉस 15 में इन दिनों फैंस को कंटेस्टेंट करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश की जोड़ी काफी पसंद आ रही है, जिसके चलते सोशलमीडिया पर आए दिन #Tejran ट्रैंड करता रहता है. हालांकि इस बीच खबरे थीं कि करण कुंद्रा के दिल में तेजस्वी प्रकाश के लिए कोई फिलींग्स नही है. वहीं शो से बाहर करण की गर्लफ्रैंड हैं, जिसके बाद फैंस को काफी निराशा हुई थी. लेकिन अब करण कुंद्रा की दोस्त ने इस खबर पर अपना रिएक्शन दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
दोस्त ने किया खुलासा
Just to clear the air Karan is very vocal about his relationships and she is just a really good friend. It’s technically no one’s business but to bring someone else’s name in the picture is wrong. Please be kind.
— MissRoshni (@MissRoshni) November 14, 2021
दरअसल, बीते दिनों खबरें थीं कि करण कुंद्रा, तेजस्वी प्रकाश के साथ शो के लिए प्यार का ड्रामा रच रहे हैं. जबकि शो से बाहर उनकी एक गर्लफ्रैंड है, जिसका नाम योगिता बिहानी है. हालांकि अब करण कुंद्रा की एक करीबी दोस्त रोहिणी ने सोशल मीडिया पर इन खबरों को अफवाह बताया है. दोस्त रोहिणी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मैं सबको बता देना चाहती हूं कि करण अपने रिश्तों को लेकर हमेशा से ही बहुत वोकल रहा है. वो और योगिता बस अच्छे दोस्त हैं. सच कहूं तो इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए कि करण की जिंदगी में कौन है. बिना बात किसी का नाम घसीटना बहुत गलत है. कृपया इन चीजों का ध्यान रखें.’
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शो में आएगा नया ट्विस्ट
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शो की बात करें तो हाल ही में खबरे हैं कि शमिता शेट्टी मेडिकल लीव के कारण शो से बाहर हो गई हैं. हालांकि कहा जा रहाहै कि वह दो तीन दिन में वापस आ जाएंगी. इसी बीच शो का नया प्रोमो सामने आ गया है, जिसमें शो के वीआईपी कंटेस्टेंट को घर चलाने की पावर दी गई है, जिसके चलते शो में एक बार फिर हंगामा होता नजर आ रहा है.
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Star Plus के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में बा और वनराज की नाराजगी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसके चलते सीरियल में जमकर फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ अनुपमा ने अनुज के साथ अपने रिश्ते को दोस्ती का नाम दे दिया है तो वहीं बापूजी का अनुपमा का साथ देना बा को खल रहा है. वहं अपकमिंग एपिसोड में बा, बापूजी पर भड़कती नजर आने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…
बा ने पार की हदें
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अब तक आपने देखा कि अनुज और अनुपमा ने अपनी दोस्ती को बरकरार रखने का फैसला किया है, जिससे समर और बापूजी खुश नजर आते हैं. वहीं सभी दीवाली सेलिब्रेशन मनाते हैं. लेकिन बा आकर एक बार फिर अनुपमा पर इल्जाम लगाना शुरु कर देती है. दरअसल, बा अनुज के पास सिंदूर लेकर कहती है कि उसे अब अपने रिश्ते का नाम देना होगा ताकि समाज में उनका भी सम्मान हो सके, जिसके चलते बा के उकसाने पर अनुज सिंदूर उठा तो लेता है लेकिन वह अनुपमा की मांग में भरने की बजाय उसके माथे पर टीका लगा देता है, जिसके चलते बा फिर भड़क जाती है.
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बा ने दिखाई बापूजी की औकात
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अपकमिंग एपिसोड में आप देखें कि अनुज जहां बा की बातों का करारा जवाब देगा तो वहीं अनुपमा बा से कहेगी कि वो अनुज का प्यार स्वीकार नहीं कर सकती लेकिन वो उनके प्यार का सम्मान करती है और बा को उन्हें शांति से जीने के लिए कहेगी. वहीं बा भड़क जाएंगी और दोनों से कहेंगी कि उनके कारण शाह परिवार की खुशियों को बर्बाद हो गई हैं. इसी कारण बा पर बापूजी गुस्सा करेंगे. लेकिन अब बा किसी चीज की परवाह न करते हुए कहेगी कि वो कौन होते हैं उसे कारखाने से निकालने वाले. बा, बापूजी को बेइज्जत करते हुए कहेगी कि उन्होंने आजतक कोई जिम्मेदारियां नहीं निभाई.
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अनुपमा करेगी ये काम
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दूसरी तरफ हद तो तब हो जाएगी जब बा, बापूजी की औकात पर सवाल उठाते हुए कहेगी कि जब आपकी हैसियत नहीं थी तो आपने शादी क्यों की. आपने अपनी जिंदगी में किया ही क्या है. जहां छोटी उम्र में वनराज को काम करना पड़ा क्योंकि उसका बाप घर का भार उठाने के लायक नहीं था. वरना अगर मेरा बेटा नहीं होता तो आज हम वृद्धाश्रम में बरतन मांज रहे होते और अगर मेरा बेटा न होता तो वह आज कुंवारी होती. वहीं गुस्से में बा, बापूजी को फैसला सुनाएगी कि अब शाह हाउस और कारखाने पर उनका राज होगा, जिसे सुनकर बापूजी टूट जाएंगे. हलांकि अनुपमा उन्हें अपने घर ले जाएगी और पिता के सम्मान को वापस लाने का फैसला करेगी. इसी के साथ बा का रुप देखकर काव्या , वनराज के लौटने से पहले बापूजी को घर वापस लाने की बात कहती नजर आएगी.