चक्रव्यूह प्रेम का : क्या मनोज कुमार अपनी बेटी की लव मैरिज से खुश थे?

‘‘भैया सादर प्रणाम, तुम कैसे हो?’’ लखन ने दिल्ली से अपने बड़े भाई राम को फोन कर उस का हालचाल जानना चाहा.

‘‘प्रणाम भाई प्रणाम, यहां सभी कुशल हैं. अपना सुनाओ?’’ राम ने अपने पैतृक शहर छपरा से उत्तर दिया. वह जयपुर में नौकरी करता था. वहां से अपने घर मतापिता से मिलने आया हुआ था.

‘‘मैं भी ठीक हूं भैया. लेकिन दूर संचार के इस युग में कोई मोबाइल फोन रिसीव नहीं करे, यह कितनी अनहोनी बात है, तुम उन्हें क्यों नहीं समझते हो? मैं चाह कर भी उन से अपने मन की बात नहीं कह पाता, यह क्या गंवारपन और मजाक है,’’ मन ही मन खीझते हुए लखन ने राम से शिकायत की.

‘‘तुम किस की बात कर रहे हो लखन, मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?’’ राम ने उत्सुकता जताते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें पता नहीं है कि कौन मोबाइल सैट का उपयोग नहीं करता है? क्यों जानते हुए अनजान बनते हो भैया?’’ लखन ने नाराजगी जताते हुए कहा.

‘‘सचमुच मुझे याद नहीं आ रहा है. तू पहेलियां नहीं बुझ मेरे भाई, जो भी कहना है साफसाफ कहो,’’ इस बार राम ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

‘‘खाक साफसाफ कहूं…’’ उत्तेजित हो कर लखन ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हीं ने मेरी कौल मातापिता को उठाने से मना कर दिया है इसलिए मैं परेशान हूं. घर में 2-2 स्मार्टफोन हैं. रिंग बजती रहती है लेकिन कोई रिसीव तक नहीं करता है, जबकि घर में 2-2 नौकरानियां भी हैं. मेरे साथ अनाथों जैसा बरताव क्या शोभा देता है?’’

‘‘बकबास बंद करो… फुजूल की बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है… ऐसे बोल रहे हो जैसे वे मेरे मातापिता नहीं कोई नौकर हों… हां, नौकर को मना किया जा सकता है लेकिन देवतुल्य मातापिता को नहीं… वे तो अपनी मरजी के मालिक हैं… किस से बातें करनी हैं किस से नहीं वही जानें. अवश्य तुम उन के साथ कोई बचपना हरकत की होगी… इसलिए वे तुम से नाराज होंगे…’’ इतनी फटकार लगा कर राम ने फोन काट दिया.

फोन कट जाने से लखन काफी नाराज हुआ. वह सोचने लगा कि नौकरी से अच्छा तो घर पर बैठना ही था. नाहक घर छोड़ कर दिल्ली में ?ाक मार रहा हूं. इसी तरह 1 सप्ताह बीत गया. एक दिन लखन का मन नहीं माना, उस ने फिर राम को फोन किया, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं भैया? उन की चिंता लगी रहती है. उन की सेहत ठीक तो है न? उन से जरा बात करा दो न,’’ लखन ने सहजता के साथ अपने मन की बात रखी.

जवाब में तुनकमिजाज राम ने उत्तर दिया, ‘‘वे तो ठीक हैं पर तुम्हें किस बात की चिंता लगी रहती है, मु?ो बताओ तो सही? तूने रोजरोज यह क्या तमाशा लगा रखा है. कभी मम्मी से बात करा दो तो कभी पिताजी से. अब तू कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं. तेरे पास सब्र नाम की कोई चीज है कि नहीं? तू रोज फोन पर मुझे डिस्टर्ब न किया कर.’’

‘‘मम्मीपापा का हालचाल पूछना डिस्टर्ब करना है? क्या मैं डिस्टर्ब करता हूं? तो तुम ही बताओ उन से कैसे बात करूं. भैया तुम तो किसी विक्षिप्त की तरह बातें कर रहे हो, जैसे मैं छोटा भाई नहीं कसाई हूं.’’

‘‘हां, बिलकुल कसाई हो, तभी तो किसी निर्दयी की तरह व्यवहार करते हो. मुझे विक्षिप्त बोला. पागल कहा… बोलने की तमीज है कि नहीं? जो मन में आया बके जा रहे हो. मांबाप से उतना ही प्यार है तो सादगी से बात करो.’’

‘‘सौरी भैया, आई एम वैरी सारी.’’

‘‘ओके, लो पहले मां से बात करो,’’ कह कर राम ने अपने फोन का विजुअल वीडियो औन कर दिया, जिस के अंदर अपनी मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख कर लखन आह्लादित हो गया और पूछा, ‘‘कैसी हो मां? तेरी बहुत याद आती है.’’

‘‘मैं तो ठीक हूं लखन बेटा लेकिन तू कितना दुबलापतला हो गया है. समय पर खाना नहीं खाता है क्या?’’

‘‘खाना खाता हूं मां, मगर तेरे हाथ का खाना कहां मिलता. आप दोनों के साथ रहने के लिए मम्मीपापा के नाम से दिल्ली में एक फ्लैट खरीद लिया है. अब आप लोगों को यहीं रहना होगा.’’

‘‘अरे बेटा फ्लैट क्यों खरीद लिया, यहीं मजे में दिन कट रहे हैं. लो थोड़ा अपने पिताजी से बात कर लो,’’ पार्वती ने मोबाइल अपने पति महादेव के हाथों में थमा दिया.

‘‘हैलो लखन बेटा, मांबेटे की बातें ध्यान से सुन रहा था. तुम हमें दिल्ली में रखना चाहते हो और राम हमें जयपुर में. दोनों के जज्बात और प्यार की कद्र करता हूं बेटा पर तुम्हारी मां और मैं यहीं ठीक हूं. तुम लोग खुश रहो, यही हमारी दिली तमन्ना है,’’ महादेव ने हर्षित मुद्रा में कहा.

‘‘मगर पिताजी आप के आशीर्वाद से आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं. मातापिता के प्रति मेरा भी कुछ कर्तव्य और अधिकार है, जिसे निभाना चाहता हूं. आप मेरी इच्छाओं का दमन नहीं कीजिए,’’ लखन ने व्यग्र होते हुए विनती की.

‘‘लखन बेटा, जब ऐसी बात है तो कुछ दिनों के लिए हम अवश्य तुम्हारे पास रहेंगे. अच्छा ठीक है, फिर बातें होंगी.’’

राम ने मोबाइल वापस लेने के बाद डिस्कनैक्ट कर दिया.

राम और लखन दोनों भाई किसान महादेव और पार्वती के पुत्र थे. उन के दोनों लाड़ले बचपन से ही बड़े नटखट और शरारती थे. वे बातबात पर लड़ते और झगड़ते रहते थे. उन की शरारतों की वजह से मातापिता को पड़ोसियों के उलाहने सुनने पड़ते थे.

खेलखेल में राम और लखन ने अपने शहर के ही हाई स्कूल से मैट्रिक व इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की. उस के बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया. दोनों भाइयों ने दिल्ली के एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से एमबीए किया. प्रौद्योगिकी विज्ञान में एमबीए करने के बाद दोनों भाई नौकरी की तलाश में जुट गए.

इधर बड़े भाई राम ने सीईओ बनने के लिए अकाउंटिंग मैंनेजमैंट में डिगरी प्राप्त की. उस के बाद उसे जयपुर में अमेरिकी कंपनी में सीईओ की नौकरी मिल गई. उस का सालाना पैकेज 40 लाख रुपए था.

वहीं लखन की नौकरी दिल्ली के एक बैंक में पर्सनल औफिसर के रूप में लग गई. वह बैंक की ह्यूमन रिसोर्स एक्टिविटीज को संभालने लगा. दोनों भाइयों की नौकरी लग जाने के बाद से उन के घर में खुशियों का माहौल था. उन की माता पार्वती और पिता महादेव बेहद प्रसन्न थे. उन के मन की मुरादें पूरी हो गई थीं.

महादेव की अब एक ही इच्छा शेष थी कि दोनों बेटों का विवाह किसी अच्छे घराने की शिक्षित, सुंदर और सुशील लड़की से हो जाए ताकि बहुओं के आ जाने से उन के बेटों का दांपत्य जीवन सुखमय हो सके. अब उन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे थे.

एक दिन मांझ के विधायक मनोज कुमार अपनी बेटी का रिश्ता ले कर महादेव के घर पहुंचे. महादेव और पार्वती ने उन के स्वागतसत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी बीच विधायक ने राम के साथ अपनी बेटी के शादी का प्रस्ताव रखा.

महादेव कुछ जवाब दे पाते उस के पहले ही पार्वती ने विधायक से पूछा, ‘‘विधायकजी आप की सुपुत्री क्या करती है?’’

‘‘मेरे बेटी का नाम सत्या है. उस ने कंप्यूटर साइंस में एमबीए किया है. फिलहाल वह जयपुर में एक विदेशी कंपनी में काम करती है. वह देखने में सुंदर और होनहार लड़की है.’’

‘‘अति उत्तम, उस की मां को यहां क्यों नहीं लाए?’’ पार्वती ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सत्या की मां इस दुनिया में नहीं है. वह सत्या को बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थी. सत्या का लालनपालन मैं ने ही किया है,’’ विधायक ने दुखी मन से कहा.

‘‘उफ, कुदरत की जो मरजी. उस के आगे तो सब बौने हैं. बहरहाल आप लोग बात करें. जलपान के बाद अभी तक पान, सुपारी, सौंप वगैरह नहीं आया, देखती हूं क्या बात है,’’ कह पार्वती घर के अंदर चली गई.

‘‘हां, महादेव बाबू. अपनी बेटी की शादी राम से करने का प्रस्ताव लाया हूं. क्या हमारे यहां रिश्ता जोड़ेंगे?’’ विधायक मनोज कुमार ने आग्रह किया.

‘‘शादीविवाह तो विधाता की एक रचना है. बिना उस की मरजी के हम रिश्ता जोड़ने वाले होते कौन हैं? इस मामले में राम की पसंद ही सर्वोपरि होगी. हम ने पढ़ालिखा कर इतना योग्य बना दिया है कि वह अपनी जिंदगी के बारे में स्वयं निर्णय ले सके. अपनी जीवनसंगिनी खुद चुन सके. इस मामले में आप चाहें तो राम से वीडियो कौलिंग कर सकते हैं.’’

‘‘जी नहीं, हम जनता के बीच रहते हैं. हमें अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कारों से ज्यादा लगाव है. गार्जियन की रजामंदी से जो लड़केलड़कियां शादीविवाह करते हैं, वे हमें खूब पसंद हैं. देखिए महादेव बाबू, अभी हम इतने एडवांस नहीं हुए हैं कि पाश्चात्य संस्कृति को अपना सकें. अच्छा, अब हम चलते हैं…’’ अपनी कुरसी से उठते हुए विधायक ने कहा.

‘‘विधायकजी, एक बार राम से बात कर के तो देखिए. शायद बात बन जाए,’’ महादेव ने आग्रह किया.

‘‘जी नहीं, जब वे आप की बात नहीं मानेंगे तो बात करने का क्या मतलब? धन्यवाद.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरी बात नहीं मानेगा. यह तो गलत आरोप है विधायकजी,’’ परेशान होते हुए महादेव ने कहा.

‘‘अभी से बेटों को बेलगाम छोड़ देना आप दोनों के लिए ठीक नहीं होगा. आने वाला वक्त आप लोगों पर भारी पड़ सकता है. शादीविवाह के बाद दोनों बेटे बिगड़ जाएंगे. बुढ़ापे में न बहुएं पूछेंगी न बेटे इसलिए सोचसम?ा कर निर्णय लें महादेव बाबू.’’

‘‘मैं ने तन, मन, धन लगा कर अपने नवजात पौधों को सींचा है. मुझे पूरा भरोसा है कि पौधे बड़े होकर अच्छे फूल और फल देंगे. हमें उन के बारे में न कुछ सोचना है न समझना है,’’ महादेव ने गर्व के साथ विधायकजी को जवाब दिया.

आखिर में महादेव के दोनों बेटों की शादी उन की मनपसंद लड़की से हो गई. जयपुर में बड़े भाई राम ने सत्या से लव मैरिज कर ली, जबकि दिल्ली में शोभा से लखन ने प्रेमविवाह किया. दोनों युवतियां उन के औफिस में काम करती थीं. इसी क्रम में उन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ. 2 वर्षों में उन का प्रेम ऐसे परवान चढ़ा कि उन्होंने एकदूसरे से कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के मौके पर उन्होंने अपने मातापिता को आशीर्वाद लेने के लिए बुलाया भी था, लेकिन अस्वस्थता के कारण पार्वती और महादेव नहीं जा सके.

राम और लखन शादी के बाद हनीमुन मनाने के लिए नैनीताल चले गए, जहां पहाड़ों की हरी भरी वादियों में जमकर मौज मस्ती लूटी. 1 माह हवा खोरी के पश्चात पूरे परिवार को 2 सप्ताह के लिए पैतृक शहर छपरा जाना था. इसी बीच लखन को कंपनी का इमरजैंसी कौल आ गई, जिस की वजह से उसे दिल्ली लौट जाना पड़ा, जबकि राम दोनों बहुओं को ले कर अपने मातापिता के पास छपरा पहुंच गया.

एकसाथ घर पर आए अपने बेटे राम और 2 पुत्र वधुओं को देख कर पार्वती और महादेव फूले नहीं समाए. वे समझ नहीं पाए कि उन का स्वागत कैसे करें. मारे खुशी के पार्वती उन की आरती उतारने लगी, जबकि महादेव अपने नौकर और नौकरानियों को बहुओं का कमरा सुसज्जित करने और उन की पसंद का खानपान तैयार करने की बात सम?ाने लगे.

पार्वती की बहुओं के घर आने की खबर महल्ले में चंदन की सुगंध की तरह फैल गई. पासपड़ोस की महिलाएं उन्हें देखने के लिए पहुंच गईं. वे बारीबारी से सत्या और शोभा की मुंहदिखाई की रस्मअदायगी में जुट गईं.

दोनों बहुओं के पास उपहारों का ढेर लग गया, जिसे देख कर सत्या और शोभा अपने प्रेम विवाह को भूल गई. उन्हें लगा कि वे अपनी ससुराल में अरेंज्ड मैरिज कर लाई गई हों. ससुराल में उन के दिनरात सुकून से कटने लगे.

एक दिन राम अपनी पत्नी सत्या और भाभी शोभा के साथ गौतम ऋषि और त्रिलोक सुंदरी अहिल्या का पौराणिक मंदिर देखने के लिए गोदना सेमरिया ले कर गया. वे मंदिर के पुजारी से अहिल्या के श्राप व उद्धार की कहानी सुन रहे थे, तभी उस की मां पार्वती ने राम को फोन किया, ‘‘किसी मामले में पुलिस तुम्हारे पिताजी को पकड़ कर थाने ले गई है. तुम लोग जल्दी भगवानपुर थाना पहुंचे.’’

‘‘पिताजी को पुलिस पकड़ कर ले गई… बिलकुल असंभव बात है मां,’’ राम ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए आशंका जताई.

‘‘राम देर न करो… जल्दी थाना पहुंचो…’’

‘‘आप चिंता न करें, तुरंत पहुंच रहा हूं,’’ राम ने जवाब दिया और सभी वहां से थाने के लिए चल दिए.

राम जैसे ही सत्या के साथ भगवानपुर थाना पहुंचा पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अंदर बैठा दिया, जहां पहले से महादेव बैठे हुए थे.

‘‘सर, हमें किस जुर्म में बैठाया गया है उस की जानकारी हमें होनी चाहिए?’’ राम ने थानेदार संजय सिंह से पूछा.

‘‘तुम पर सत्या नाम की लड़की का जबरन अपहरण करने, उस की इच्छा के विरुद्ध शादी रचाने और शारीरिक संबंध बनाने का आरोप है. तुम्हारे विरुद्ध जयपुर थाना में लड़की के पिता मनोज कुमार ने लिखित आवेदन दिया है. जयपुर कोर्ट के आदेश पर तुम दोनों की बरामदी के लिए जयपुर पुलिस छपरा पहुंची है. औपचारिक पुलिसिया काररवाई के बाद थोड़ी देर में तुम लोगों को अपने साथ ले जाएगी. मेरी बात कुछ समझ में आई?’’ थानेदार संजय सिंह ने रोबदार आवाज में राम पर धौंस जमाई.

‘‘यह तो कानून का खुला उल्लंघन है सर… किसी ने हम पर ?ाठा आरोप लगा दिया… और पुलिस काररवाई के नाम पर हमें परेशान करेगी,’’ महादेव थोड़ा उत्तेजित होते हुए बोले.

‘‘अपहृत लड़की आप के सामने बैठी है, फिर भी आरोप झूठा लगता है? इस मामले में पूरे परिवार को जेल जाना पड़ेगा, तब सारी हेकड़ी निकल जाएगी,’’ थानेदार ने महादेव को धमकाया.

तभी जयपुर पुलिस ने राम, सत्या, महादेव को एक वाहन में बैठाया और जयपुर ले कर चली गई. निराश और हताश शोभा और उस की सास पार्वती दोनों थाने से अपने घर वापस आ गईं. शोभा ने अपने पति लखन को फोन पर सारे घटनाक्रम के बारे में बताया और कहा, ‘‘पता नहीं, किस की बुरी नजर हमारे परिवार को लग गई है. लखन, ट्रेन से हम दोनों आज जयपुर निकल जाएंगे. तुम भी वहीं पहुंचो… उन की जमानत कराने की जिम्मेदारी हमारी होगी.’’

‘‘ओके शोभा, मां का खयाल रखना मैं भी कल पहुंच जाऊंगा,’’ लखन ने जवाब दिया.

जयपुर पुलिस ने अपहृत सत्या के आरोपी राम को अपने घर में छिपा कर रखने के दोषी महादेव को भी जेल भेज दिया. बापबेटा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने सत्या को सदर अस्पताल में मैडिकल जांच कराई. उस के बाद सत्या का फर्द बयान अदालत में दर्ज कराने के लिए पेश किया गया.

वहां मजिस्ट्रेट बीबी केस की सुनवाई कर रहे थे. उन के समक्ष मुखातिब होते हुए सत्या बोली, ‘‘जज साहब, मैं 25 वर्ष की बालिग युवती हूं. अपने होशोहवास और अपनी इच्छा के अनुसार भगवानपुर छपरा, बिहार निवासी राम वल्द महादेव से जयपुर कोर्ट में कोर्ट मैरिज की है. यहीं एक मल्टी इंटर नैशनल कंपनी में कार्यरत हूं. मां?ा, जिला सारण, बिहार निवासी सह विधायक मनोज कुमार का मेरे पिता राम पर लगाया गया आरोप निराधार है. आप जानते हैं कि भादवि की धारा 98 ए के तहत कोई भी युवती अपने मनपसंद साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती है. उस पर जबरन कोई केस थोपा नहीं जा सकता है. बावजूद मेरे पिता ने मेरे पति राम पर अपहरण, शारीरिक शोषण आदि का मामला दर्ज किया है. जज साहब, मेरे और जेल में बंद मेरे पति के साथ इंसाफ किया जाए. यह तो कानून और नारी सशक्तीकरण का खुला उल्लंघन है.’’

कठघरे में खड़ी सत्या अपना फर्द बयान देने के बाद तनावमुक्तलग रही थी.उसे लगा कि उस के माथे का भार कम हो गया हो. उस ने अदालत में खड़ी अपनी सास पार्वती, देवर लखन और शोभा के मायूस चेहरों को देखा, जो काफी उदास और गमगीन लग रहे थे. उस ने आंखों के इशारे से सब्र रखने का भरोसा दिलाया.

उसी समय विधायक मनोज कुमार के अधिवक्ता बीएन राम ने कहा, ‘‘हुजुर, सत्या पर प्रेम का नशा सवार है इसलिए वह अपने प्रेमी का सहयोग कर रही है. उसे उस के पिता के साथ घर जाने की इजाजत दी जाए ताकि वह अपने बीमार पिता की सेवा कर सके. सत्या के अलावा उस के पिता के घर में सेवा करने वाली कोई दूसरी औरत नहीं है.’’

अधिवक्ता के बयान पर कोर्ट में उपस्थित लोग तरह तरह की चर्चा करने लगे.

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर हथौड़ा ठकठकाया और काया और सत्या से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता अकेला रहते हैं? क्या तुम उन के साथ रहना पसंद करोगी?’’

‘‘नहीं सर, पिताजी के साथ नहीं जा सकती. राम और उस के परिवार के सदस्य कोर्ट में मौजूद हैं, मैं उन के साथ ही रहूंगी. अब मेरा यही परिवार है.’’

‘‘अरे बेटी, इतना गुस्सा ठीक नहीं. तुम्हारे पिता ने जो भी केस किया है वह तेरी भलाई के लिए किया है. अब वे तेरी शादी शानोशौकत के साथ करना चाहते हैं, जिसे दुनिया वर्षों तक याद रखे. राम के परिवार के साथ नहीं जाओ, जब प्रेम का नशा उतरेगा तो बहुत पछताओगी.’’

‘‘मर गई उन की बेटी. उन की झूठी शान और राजनीति उन्हीं को मुबारक. एक विधायक की जवान व कुंआरी लड़की दूसरे प्रदेश में नौकरी करती है. उन से फोन पर बारबार जयपुर आने का आग्रह करती है, लेकिन विधायक को राजनीतिक बैठकों और चुनाव से फुरसत नहीं है. लेकिन वहीं लड़की जब कोर्ट मैरिज कर लेती है तो बाप की कुंभकर्णी नींद टूट जाती है. सीधे प्रेमी और प्रेमिका पर केस दर्ज करा देते हैं, माई लार्ड आप से जानना चाहती हूं कि क्या यही बेटी के प्रति एक बाप का अपनापन, स्नेह और प्यार है?’’

अदालत में उपस्थित लोगों में एक बार फिर सत्या के फर्द बयान पर तरहतरह की चर्चा होने लगी. कोई कहता, ‘‘लड़की अपनी जगह पर ठीक है,’’ दूसरा कहता, ‘‘जो एक बार राजनीति की चक्रव्यूह में फंस जाता, उस के लिए सारे रिश्तेनाते अक्षुण्ण हो जाते हैं…’’ तीसरा बोला, ‘‘बाप बेटी की जंग में प्रेमी क्यों पिसेगा, उसे जेल से रिहा करो….’’

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर पुन: हथौड़ा ठकठकाया और बोले, ‘‘सत्या और उस के प्रेमी राम के साथ काफी नाइंसाफी हुई है. सत्या ने अगर कोर्ट मैरिज कर भी ली तो समाज के प्रति जिम्मेदार उस के विधायक बाप को 1-2 बार मिल कर समझना चाहिए न कि केस करना चाहिए. अगर विधायक ने सू?ाबू?ा से काम लिया होता तो यह मामला कोर्ट नहीं पहुंचता. बहरहाल, यह अदालत सत्या व उस के प्रेमी राम को बाइज्जत बरी करती है. राम को जेल से बाहर आने तक सत्या अपनी इच्छा के अनुसार सुरक्षित जगह पर रह सकती है. अगर प्रतिवादी इन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो अदालत की अवहेलना के आरोप में उसे सजा भी हो सकती है,’’ इस आदेश के बाद मजिस्ट्रेट बीबी अपनी कुरसी से उठ कर अंदर चले गए.

सत्या कठघरे से निकल कर शोभा के पास पहुंची, जहां पार्वती ने उसे अपनी बाजुओं में भर लिया. तत्पश्चात् अपने पिता महादेव और भाई राम की जमानत कराने के लिए लखन सभी को ले कर अधिवक्ता पीएन के पास पहुंचा.

तब उस के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट बीबी का आदेश होते ही मैं ने दोनों को जेल से रिहा करने के लिए बेल पिटिशन भर कर कोर्ट में जमा कर दी. मंजूरी मिलते ही जज साहब के इजलास में बेलरों को हाजिर कराना होगा. आप लोग बेलर तैयार रखें.’’

‘‘वकील साहब, मेरे साथ नौकरी पेशाधारी, वाहन चालक, बिल्डर आदि लोग मौजूद हैं. उन से बेलर का काम हो जाएगा न?’’

‘‘बिलकुल हो जाएगा. देखिए, आप पहले 4 बेलरों को जज साहब के सामने कठघरे में खड़ा कराइए,’’ कह कर अधिवक्ता पीएन इजलास की ओर बढ़ गए.

लखन और शोभा के प्रयास से महादेव और राम जेल से बाहर आ गए. उन्हें देख कर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे.

‘‘मेरी गैरहाजिरी और विपरीत परिस्थितियों में शोभा बेटी और लखन ने अपनी मां और घर को बखूबी संभाला. अब लगता है कि सारी जिम्मेदारियां सौंप कर पार्वती के साथ देशाटन पर निकल जाऊं. तुम लोगों की जिम्मेदारियां देखकर मेरी उम्र और कद दोनों काफी बढ़ गए हैं. क्यों, सत्या बेटी सही कहा न?’’

‘‘हां पिताजी, आप हमारे गार्जियन हैं. आप का आशीर्वाद और मां की ममता तो हमारे साथ है.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन एक गार्जियन छूट रहा है. विधायकजी के आशीर्वाद के बिना सबकुछ अधूरा लग रहा है. चलो, वे रहे विधायकजी,’’ महादेव इतना बोल कर आगे बढ़ गए.

विधायक मनोज कुमार अपने समर्थकों के साथ जाने के लिए अपनी गाड़ी की ओर जैसे ही बढ़े, वैसे ही उन के सामने से शोभा और लखन ने उन का पैर स्पर्श कर लिया. उन का हाथ आशीष देने के लिए उठा ही था कि सत्या और राम ने भी झुक कर चरण स्पर्श करना चाहे,

तभी विधायक ने अपने पैर पीछे खींच लिए और गुस्से में बोल पड़े, ‘‘तू मेरी बेटी नहीं है…’’ दूर हटो मेरी नजरों से… इज्जत को तारतार कर दिया, अब क्या लेने आई हो, आज से मैं नहीं रहा तेरा बाप.’’

विधायक की बात सुन कर सत्या की आंखें भर आईं. वह किसी अपराधी की तरह सिर ?ाका कर राम के साथ ठगी सी खड़ी रही.

तभी महादेव ने बात को संभालते हुए नम्रता के साथ कहा, ‘‘विधायकजी गुस्सा थक दीजिए और मेरी बातों पर ध्यान दीजिए. सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर आप खुद मेरे घर आए थे.’’

‘‘हां आया था तो क्या हुआ. आप ने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था?’’ विधायक ने व्यंग्य कसा.

‘‘उस दिन कहा था कि  राम अपनी शादी खुद तय करेगा, एक बार उस से बात कर लें, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया. आज कोर्ट मैरिज कर दोनों आप के सामने हैं, उन्हें आशीर्वाद दे कर विदा कीजिए विधायकजी.’’

महादेव की तार्किक बातें सुन कर विधायक मनोज कुमार के साथ खड़े उन के वकील बीएन राम ने आश्चर्य प्रकट किया और कहा, ‘‘विधायकजी, आप सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर राम के घर गए थे, फिर यह ड्रामाबाजी क्यों? आप यह न भूलिए कि आप एक जनप्रतिनिधि भी हैं. समाज की सेवा करना आप का फर्ज है. दूसरों की बेटियों का आप घर बसाते रहे हैं, वहीं आप की पुत्री आशीष के लिए खड़ी है, यह कैसी विडंबना है?’’

वकील बीएन राम की बातें सुन कर महादेव ने प्रसन्नता जाहिर की और कहा, ‘‘वकील बीएन रामजी, आप ने बात कही है. विधायकजी को तो सत्या व राम पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने युवा पीढ़ी में एक नई चेतना, ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है, समाज को नई दिशा दी है. बेटीदामाद को घर ले जाइए और उन के सम्मान में एक समारोह कीजिए, जहां आप के रिश्तेदारों का स्नेह, दुलार और प्यार पा कर सत्या का आंचल खुशियों से भर जाएगा.’’

यह बात विधायक मनोज कुमार के दिल को छू गई. उन का आक्रोश जाता रहा. फिर अपने स्वाभिमान के विरुद्ध सादगी से बोले, ‘‘वाह महादेवजी वाह, सचमुच आप महादेव हैं,’’ इतना कह कर विधायक मनोज कुमार ने महादेव को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मेरी आंखों पर पुरातन परांपराओं और दकियानूसी बातों का चश्मा चढ़ा हुआ था. जिस से आधुनिक बातें अच्छी नहीं लगती थीं. हमेशा उन का वहिष्कार किया करता था. आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने केस कर दोनों कुल का सर्वनाश करना चाहा. आप सभी हमें माफ करें.’’

‘‘अरे नहींनहीं विधायकजी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते हैं.’’

प्रसन्नता जाहिर करते हुए विधायक ने अपनी बेटी व दामाद को अपने से लगा लिया. यह देख कर बीएन राम, महादेव, लखन और शोभा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.

एक खूबसूरत मोड़ : शेखर और मीना को क्यों अलग होना पड़ा?

‘‘कुछ भी नहीं बदला न इन 12 सालों में.’’

‘‘हां सचमुच. क्या तुम मुझे माफ कर पाए शेखर?’’  यह पूछती मीना की पनीली आंखें भर आईं पर मन हर्षित था. अनायास हुई यह मुलाकात अप्रत्याशित सही पर उसे क्षमा मांगने का अवसर मिल ही गया था. होंठों पर मुसकान ऐसे आ चिपकी जैसे बड़ी जिद्द के बाद भी जो खिलौना न मिला हो और वही बर्थडे गिफ्ट के रैपर खोलते ही अनायास हाथों में आ गया हो.

‘‘तुम से नाराज नहीं था यह कहना गलत होगा. मुझे ऐसा लगा था कि तुम से कभी बात नहीं कर सकूंगा मगर देख तुझे देखते ही सब भूल गया,’’ शेखर एक ही सांस में बोलता चला गया फिर उस ने अपनी शिकायत रखी, ‘‘तू तो ऐसे गई कि मुड़ कर भी नहीं देखा. हमारे जीवन से जुड़े फैसले अकेले कैसे ले लिए?’’

‘‘मैं ने कब लिए. तुम्हारे लिए ही तुम से दूर हुई. मैं तुम्हें सफलता के शिखर पर देखना चाहती थी शेखर. मेरे पीछे तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो रही थी. आज तुम इतने बड़े औफिसर हो. मैं साथ होती तो यह संभव होता? बोलो, जवाब दो?’’

मीना बस मुसकराए जा रही थी. लंबी जुदाई के बाद मिली थी सो वह 1-1 क्षण जी लेना चाहती थी.

‘‘क्यों नहीं होता? तुम्हारा साथ मिलता तो सब हो जाता.’’

‘‘क्लासेज छोड़ कर दीवानों की तरह घूमते थे तुम. मैं तुम्हारी सफलता का कारण बनना चाहती थी, असफलता का नहीं,’’ मीना ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘पता नहीं यार पर ऐसा क्या चाह लिया था. कोई ताजमहल तो नहीं मांग लिया था. एक तू मिल जाती और मैं आईएएस बन जाता इतना ही न. मगर नहीं. मैं जो चाहता हूं वह मुझे कभी नहीं मिलता,’’ कह कर आसमान की ओर देखने लगा जैसे उस की एक नाराजगी प्रकृति से भी हो.

‘‘तुम सुखी गृहस्थी जी रहे हो, अच्छे पद पर हो. आखिर तुम्हारे पापा तो तुम्हें ऐसे ही तो देखना चाहते थे,’’ कह मीना शेखर की आंखों मे देखने लगी. वही आंखें जिन में अपना प्रतिबिंब देख कभी शर्म से दोहरी हो जाती थी. जिन होंठों की मुसकान पर सदा वारी जाती पर न जाने क्यों वे सभी सूने पड़े थे जो कभी उस के प्रेम से लबरेज रहा करते थे.

सालों बाद दोनों यों मिलेंगे यह सोचा न था. मीना मायके से अकेली लौट रही थी और शेखर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. बड़ी मुश्किल से एकदूसरे को भुला कर अपनीअपनी जिंदगी जीना शुरू ही किया था कि नियति ने उन्हें फिर से मिला दिया. बिना कुदरत की मरजी के पत्ता भी नहीं खड़कता. आज उस की ही हरी ?ांडी रही होगी जो बरसों के बिछड़े प्रेमियों का एअरपोर्ट पर अचानक आमनासामना हो गया और फिर वे अतीत के पन्नों में ऐसे उल?ो कि उन की फ्लाइट मिस हो गई.

‘‘कुछ खाएगी?’’

‘‘हूं… चिली चिकन विद गार्लिक सौस.’’

इस डिश का नाम सुनते ही शेखर के होंठों पर मुसकान आ गई जिसे देख कर मीना को भी तसल्ली हुई. प्यार के कुछ निशां अब भी बाकी थे. यही उन की फैवरिट डिश थी जिसे वे हर रविवार खाया करते थे. आज एअरपोर्ट पर मेनलैंड चाइना में साथ बैठ कर खाने लगे.

‘‘तू अब भी वैसी ही प्यारी दिखती है.’’

‘‘यह तुम्हारा प्यार है शेखर. जब तक तुम्हारा प्यार मुझ में रहेगा मैं प्यारी ही रहूंगी.’’

इस बार मन भावुक था. आंखें छलक आईं. जज्बात ही थे आखिर कब तक काबू में

रहते. कभी उन नयनयुग्मों ने एक होने के सपने सजाए थे. मीना के नयनों की नमी शेखर को न भिगो पाई. उस ने सूखी आंखों से उस की ओर देखा जैसे इस मीना को वह पहचानता ही न हो. उस के चेहरे पर आए बदलाव ने मीना को सहमा दिया.

पल दो पल की खामोशी के बाद शेखर ने पूछा, ‘‘सब ठीक है न तेरे साथ?’’

‘‘बस कुछ ही देर का साथ है और फिर तुम्हें देखने को तरस जाऊंगी इसलिए ही…’’ अवरुद्ध कंठ से इतना ही निकला.

‘‘इतना ही चाहती थी तो तब कहां थी जब मुझे तेरी जरूरत थी? मैं ने आईएएस परीक्षा निकाल ली थी. इंटरव्यू की तैयारी के दौरान बस एक ही खयाल कि मुझे तू मिलेगी या नहीं. बस इन्हीं सवालों से जंग लड़ते न जाने कितनी ही रातें आंखों में कटीं. स्ट्रैस लैवल कितना हाई था कि जब इंटरव्यू देने गया था. ऊपर से जितने मुंह उतनी बातें. सब कहते थे कि तुम ने मुझे बरबाद कर दिया है.’’

उस की सीधी बातें सीने को चीरती थीं. एक नाराजगी थी शायद या उस का आहत स्वाभिमान. बातों में एक तीखापन जैसे प्यार पर से विश्वास ही उठ चुका हो.

‘‘सब कौन और तुम भी यही सोचते हो?’’

‘‘नहीं, पर बाकी सब यही कहते हैं.’’

‘‘तुम्हारे दोस्त तो पहले भी मेरे दुश्मन थे. तुम क्या सोचते हो, मेरे लिए यह माने रखता है.’’

‘‘तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी. मैं ने तुम्हें कभी गलत नहीं समझ. इसी बात का तो दुख है मेरी पत्नी को.’’

‘‘पत्नी? पर तुम ने तो कहा था आजीवन मेरी प्रतीक्षा करोगे?’’

‘‘कर ही रहा था. मेरा चयन फौरेन सर्विस में हो गया था. ट्रेनिंग के दौरान तुम्हारे घर वालों से बारबार कौंटैक्ट करता रहा, तुम्हें याद करता रहा पर तुम्हारी शादी हो गई थी. तुम्हारी ही बातें करतेकरते मेरी बैचमेट सपना मेरे नजदीक आई और मेरे जीवन की हकीकत बन गई. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ?’’

‘‘मेरी शादी मेरी मरजी के विरुद्ध राजेश के साथ हुई. मैं ने उसे अपनी पूरी कहानी बता दी ताकि वह मुझे छोड़ दे पर वह पारंपरिक इंसान निकला. शादी को सिरियसली निभाने लगा.’’

‘‘तू खुश है?’’

‘‘मैं दोहरी जिंदगी जी रही हूं. तुम्हें भुला न सकी शेखर. सुखदुख में, तनहाइयों में बस तुम ही याद आते रहे. कभी बादलों में तुम्हारा अक्स ढूंढ़ा करती तो कभी पुरानी बातों को याद कर खुश हो जाया करती.’’

‘‘मैं भी कहां भुला सका. अपने गम कम करने के लिए शराब का सहारा भी लिया पर इस का भी कोई लाभ नहीं हुआ. जिंदगी जीने के लिए सही फलसफा जरूरी है, जिसे मैं भी देर से ही सम?ा पाया.

‘‘अव्वल तो यह कि जब अकेली थी तभी मेरे पास आती तो जैसे भी होता मैं संभाल लेता. दूसरा यह कि जब अपने ही घर वालों को मना न सकी तब कोई कदम उठा न सकी तो अब अपनी जिंदगी जिस में और लोग भी शामिल हैं, उसे खुशी से न जीना गलत है.’’

कितनी हिम्मत से उस ने मीना की बेवफाई को निभाया था. वह उसे एकटक देखे जा रही थी. हमेशा उस के लिए स्नेह के भाव रखने वाला शेखर पहली बार उसे प्रश्नों के कठघरे में रख रहा था. क्या सचमुच उस ने उस के प्रति इतना अन्याय किया है जितना उसे इलजाम मिल रहा है? क्या उस की कोशिशों में कमी रह गई? उस ने तो आखिर तक शादी के लिए हां नहीं कही थी तो क्या उसे भाग कर उस के पास जाना चाहिए था? मगर वह भागना नहीं चाहती थी. उसे शेखर और अपना परिवार सब एकसाथ चाहिए और वह भी पूरे सम्मान के साथ.

‘‘तुम नहीं समझोगे एक स्त्री का दिल, प्यार होता है तो होता है और नहीं होता तो नहीं होता है. इस के लिए खूबसूरती, महानता या आदर्शों की कसौटी नहीं होती. मसलन, ज्यादा महान, खूबसूरत या आदर्श व्यक्ति से प्यार हो ही जाएगा, यह नहीं कह सकते. न ही इस में कोई प्रतिदान होता है. हां, तुम्हें तब भूलना संभव था जब तुम गलत होते. एक बहाने से मन को समझ लेती कि किसी गलत इंसान के लिए एक सही इंसान को क्यों दुखी करूं मगर तुम ने तो कभी कुछ गलत किया ही नहीं था.’’

‘‘गलतसही की कसौटी पर मत तोलो. जो हो गया है उसे स्वीकार करो और जिंदगी का एहसान उतारते हुई नहीं बल्कि खुश हो कर जीयो. तमाम कोशिश कर के भी हम मिल न सके तो शायद इसे ऐसे घटना ही था. अब हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने परिवार के साथ खुश रहें. मैं ने भी यह सब अपने अनुभव से ही सीखा. बड़ी मुश्किल से संभला हूं. अब अपनी उस पत्नी को जिस ने हम दोनों के बारे में सब जानते हुए भी मु?ा से प्यार किया और मेरा साथ दिया है, उस से बेवफाई नहीं कर सकता. और फिर यह सोचो न हम एकदूसरे के जीवन में प्यार बन कर आए. यह क्या कम है. उन की सोचो जिन का पूरा जीवन निकल जाता है मगर प्यार नाम के पंछी से कोई परिचय तक नहीं होता.’’

सही तो कह रहा था शेखर. पत्नी के प्रति उस की निष्ठा देख कर दिल भर आया. ऐसे इंसान का किसी के जीवन में होना ही बड़ी बात थी. उस से मिलना ही तो उस के जीवन का सब से खूबसूरत मोड़ था. वहीं से उस का सबकुछ बदल गया था. बचपन छूट गया था. सम?ादार हो गई थी. शेखर न आता तो क्या वह इतनी बदलती? नहीं न? इस का मतलब उन्हें ऐसे ही मिलना था. एकदूसरे को संवारने के लिए, यह सोच कर आंसू थमने लगे.

तभी शेखर ने कहा, ‘‘चल, अब वापसी के टिकट देखते हैं, घर पहुंचना है न.’’

शेखर की आवाज पर हंसी आ गई. घर तो पहुंचना ही होगा. टिकट ले कर दोनों ने एक बार फिर से एकदूसरे की आंखों में देखा. बस 1 मिनट के लिए ही उन में अपनी छवि देख पाई फिर एक चिंतित पति व व्याकुल पिता दिखा. उसे भी राजेश और बेटे अमन की याद आई. उन की जिंदगियां अलग मोड़ ले चुकी थीं. खुश थे या नहीं यह कहना वाकई मुश्किल था पर दोनों ही जिम्मेदार इंसान अपनीअपनी मंजिल यानी गेट की ओर चल पड़े. यह विश्वास और भी गहरा हो गया कि कुछ रिश्ते कभी नहीं बदलते, बस प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

शेखर और मीना जो कभी गहरे प्यार में थे पर उन्होंने बड़ी वफा से बेवफाई को भी स्वीकार कर लिया. प्यार जरूरत के अनुसार कुरबान होना होता है.

किट्टी पार्टी का मजाकिया महासंग्राम

लेखक- नृपेंद्र अभिषेक नृप

भोपाल के पंजाबी बाग में दीवा गर्ल्स जागृति की महिलाओं ने आज फिर से अपने चिरपरिचित अंदाज में किट्टी पार्टी का आयोजन किया. यह कोई साधारण पार्टी नहीं थी, यह तो मानो महिलाओं का महासंग्राम था जहां नोक?ांक, हंसीमजाक, डांस और गीतगानेबजाने का रंगारंग प्रदर्शन होना तय था. जैसे ही घड़ी ने 4 बजाए सजीधजी महिलाएं सजावट की भव्यता को चार चांद लगाती हुई आ पहुंचीं.

मीनाजी सब से पहले आईं. उन के हाथ में बड़ा सा गुलदस्ता था जो उन की मर्मस्पर्शी मुसकान के साथ दमक रहा था.

‘‘वाह मीनाजी, आप तो हमेशा फूलों की तरह खिला करती हैं,’’ सविताजी ने मुसकराते हुए कहा.

मीनाजी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘क्या करें सविताजी, हमें तो हर महीने यह किट्टी का बहाना चाहिए मिलने के लिए.’’

जल्द ही सभी महिलाएं वहां उपस्थित हो गईं और पार्टी का उद्घाटन हुआ. सब से पहले रीताजी ने जोरदार आवाज में कहा, ‘‘चलिए बहनो, आज की इस खास किट्टी पार्टी का आगाज करते हैं एक छोटे से खेल से.’’

खेल का नाम सुनते ही सुमनजी तपाक से बोलीं, ‘‘खेल के साथसाथ थोड़ा नाचगाना भी हो जाए, आखिर हमारी भी तो एक ख्वाहिश है क्योंकि हम भी किसी डांसिंग क्वीन से कम नहीं हैं.’’

रीताजी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘बिलकुल सुमनजी, आज तो पूरा मैदान आप का है, लेकिन पहले खेल. इस खेल का नाम है ‘सत्य और चुनौती.’’’

सत्य और चुनौती सुनते ही सभी के चेहरों पर शरारती मुसकान फैल गई.

खेल का आरंभ हुआ और सब से पहले बारी आई रजनीजी की. रजनीजी को चुनौती दी गई कि वे गीत गा कर दिखाएं. रजनीजी ने बिना किसी झिझक के तुरंत ‘चुरा लिया है तुम ने…’ गीत शुरू कर दिया. उन की मधुर आवाज ने सब को मंत्रमुग्ध कर दिया.

तभी भावनाजी ठिठोली करते हुए बोलीं, ‘‘रजनीजी, अगर आप ऐसे गाती रहीं तो हमें अगली किट्टी के लिए फुजूलखर्ची की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी, बस आप का लाइव कंसर्ट ही काफी होगा.’’

गीत के बाद सभी ने ठहाके लगाए और डांस का दौर शुरू हो गया. सविताजी ने डांस फ्लोर पर कदम रखते ही मानो आग लगा दी. उन्होंने अपने नृत्य में ऐसे स्टैप्स दिखाए कि सभी का मन मोह लिया.

उन के अनूठे ‘नागिन डांस’ को देख कर प्रीतिजी ने मजाक में कहा, ‘‘सविताजी, आप की ये नागिन वाली अदाएं तो घर के ड्राइंगरूम में शोभा देती हैं, कहीं पार्क में कर देतीं तो वाइल्डलाइफ डिपार्टमैंट को बुलाना पड़ जाता.’’

सभी महिलाएं हंसी से लोटपोट हो गईं. तभी अचानक ज्योतिजी ने घोषणा की, ‘‘हम करेंगे ‘नारी सशक्तीकरण डांस’ हर महिला अपनी पसंद का नृत्य कर के दिखाएगी, जिस में उस का आत्मविश्वास झलकना चाहिए.’’

यह सुनते ही सब ने अपनीअपनी डांसिंग शैलियों का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.

मीनाजी ने अपनी अदाओं से भरपूर कत्थक की प्रस्तुति दी, जिसे देख कर सब ने तालियां बजाईं.

तभी शीलाजी ने माइक थामते हुए कहा, ‘‘वाह मीनाजी, अगर आप का डांस देखे बिना हमारा किट्टी क्लब कोई मिस यूनिवर्स भेजता तो हम यकीनन जीत जाते.’’

डांस के बाद मजाकमस्ती का दौर शुरू हुआ. रीताजी ने माइक उठाया और बोलीं, ‘‘अब वक्त है कुछ दिलचस्प सवालों का. आप सभी को 1-1 कर के अपने जीवन का सब से मजेदार किस्सा सुनाना है.’’

सब से पहले बारी आई मंजूजी की. उन्होंने कहा, ‘‘अरे, हमारे जीवन में सब से मजेदार किस्सा तो तब हुआ जब हम ने पहली बार पति को किचन में भेजा था. कुछ देर बाद मैं ने जा कर देखा तो वे कुकिंग विद सुप्रिया सत्यार्थी यूट्यूब चैनल देख कर खाना बनाने की कोशिश कर रहे थे. मगर उन से बताए अनुसार कुछ भी नहीं हो पा रहा था. मुझे यह देख जोर की हंसी आ गई. मैं ने कहा कि क्यों सुप्रिया के यूट्यूब चैनल की शिकायत कर रहे हो? वे कितना अच्छा खाना बनाना सिखाती हैं पर आप से नहीं बन फिर क्या था? साहब ने आधे घंटे में ही हार मान ली और बाहर से खाना और्डर कर दिया. तब से आज तक हम ने किचन की चाबी संभाल कर रखी है.’’

मंजूजी की बात सुन कर सब की हंसी छूट गई.

तभी भावनाजी ने कहा, ‘‘मंजूजी, आप भी कमाल करती हैं. हमारी तो हर बार कोशिश यही रहती है कि पति महोदय को किचन में भेज कर खुद आराम फरमाएं. अब देखिए, हम हैं ‘आधुनिक नारी’ जो केवल बाहरी काम ही नहीं बल्कि ‘वर्क फ्रौम होम’ भी सम?ाते हैं.’’

सभी महिलाएं इस पर खिलखिला कर हंस पड़ीं. मीनाजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘भावनाजी, लगता है आप की सोच से हमें प्रेरणा लेनी पड़ेगी.’’

खेल और मजाकमस्ती के इस दौर के बाद अब वक्त था खानेपीने का. एक लंबी मेज पर भांतिभांति के व्यंजन सजे हुए थे- चाट, पकौड़े, पावभाजी और मीठे में गुलाबजामुन और रसमलाई. जैसे ही खाने की घोषणा हुई सभी महिलाएं अपनीअपनी कुरसी से उठीं और मेज की ओर बढ़ीं.

रीताजी ने एक बार फिर माइक संभाला और कहा, ‘‘अरे रुकिए, पहले हम मीनाजी से उन के स्पैशल मौकटेल का राज पूछें, फिर कुछ खाया जाएगा.’’

मीनाजी ने हंसते हुए बताया, ‘‘इस मौकटेल का राज तो सीधासादा है- बस थोड़ी सी मस्ती, थोड़ा सा प्यार और बाकी सब बाजार.’’

खानेपीने के साथसाथ हंसीमजाक का दौर भी जारी रहा. सविताजी ने एक मजेदार चुटकुला सुनाया, ‘‘अरे, यह शादी भी क्या चीज है- पति को हर दिन यही लगता है कि वे बौस हैं और पत्नी को हर दिन यह साबित करना पड़ता है कि असल बौस कौन है.’’

यह सुन कर सभी महिलाएं जोर से हंस पड़ीं.

शालिनीजी ने कहा, ‘‘सविताजी, आप की यह बात सुन कर तो हमारे भी कान खड़े हो गए हैं. अब हमें भी कुछ नया सोचना पड़ेगा.’’

अंत में शीलाजी ने सब का धन्यवाद किया और कहा, ‘‘बहनो, आज की इस किट्टी पार्टी में हम ने खूब मस्ती की, हंसीमजाक किया. आशा है कि आप सभी ने आनंद लिया होगा. अब अगले महीने फिर मिलेंगे और कुछ नई यादें बनाएंगे.’’

सभी महिलाओं ने मिल कर ‘पंजाबी बाग’ की इस किट्टी पार्टी को सफल बनाने के लिए तहे दिल से सराहना की और एकदूसरे से विदा ली. एक अद्भुत दिन का समापन हुआ, जिस में हंसी, मजाक और अपार आनंद के साथसाथ दोस्ती की मिठास भी घुली हुई थी. यह किट्टी पार्टी हमेशा सभी के दिलों में एक सुखद स्मृति बन कर रहेगी.

रश्मि : बलविंदर के लालच ने ली रश्मि की जान

लेखक- मुन्ना कुमार सिंह

सुबह के 7 बजे थे. गाडि़यां सड़क पर सरपट दौड़ रही थीं. ट्रैफिक इंस्पैक्टर बलविंदर सिंह सड़क के किनारे एक फुटओवर ब्रिज के नीचे अपने साथी हवलदार मनीष के साथ कुरसी पर बैठा हुआ था. उस की नाइट ड्यूटी खत्म होने वाली थी और वह अपनी जगह नए इंस्पैक्टर के आने का इंतजार कर रहा था.

बलविंदर सिंह ने हाथमुंह धोया और मनीष से बोला, ‘‘भाई, चाय पिलवा दो.’’

मनीष उठा और सड़क किनारे एक रेहड़ी वाले को चाय की बोल कर वापस आ गया. तुरंत ही चाय भी आ गई. दोनों चाय पीते हुए बातें करने लगे.

बलविंदर सिंह ने कहा, ‘‘अरे भाई, रातभर गाडि़यों के जितने चालान हुए हैं, जरा उस का हिसाब मिला लेते.’’

मनीष बोला, ‘‘जनाब, मैं ने पूरा हिसाब पहले ही मिला लिया है.’’

इसी बीच बलविंदर सिंह के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह बड़े मजाकिया अंदाज में फोन उठा कर बोला, ‘‘बस, निकल रहा हूं. मैडम, सुबहसुबह बड़ी फिक्र हो रही है…’’

अचानक बलविंदर सिंह के चेहरे का रंग उड़ गया. वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मनीष… जल्दी चल. रश्मि का ऐक्सिडैंट हो गया है.’’

दोनों अपनाअपना हैलमैट पहन तेजी से मोटरसाइकिल से चल दिए.

दरअसल, रश्मि बलविंदर सिंह की 6 साल की एकलौती बेटी थी. उस के ऐक्सिडैंट की बात सुन कर वह परेशान हो गया था. उस के दिमाग में बुरे खयाल आ रहे थे और सामने रश्मि की तसवीर घूम रही थी.

बीच रास्ते में एक ट्रक खराब हो गया था, जिस के पीछे काफी लंबा ट्रैफिक जाम लगा हुआ था. बलविंदर सिंह में इतना सब्र कहां… मोटरसाइकिल का सायरन चालू किया, फुटपाथ पर मोटरसाइकिल चढ़ाई और तेजी से जाम से आगे निकल गया.

अगले 5 मिनट में वे दोनों उस जगह पर पहुंच गए, जहां ऐक्सिडैंट हुआ था.

बलविंदर सिंह ने जब वहां का सीन देखा, तो वह किसी अनजान डर से कांप उठा. एक सफेद रंग की गाड़ी आधी फुटपाथ पर चढ़ी हुई थी. गाड़ी के आगे के शीशे टूटे हुए थे. एक पैर का छोटा सा जूता और पानी की लाल रंग की बोतल नीचे पड़ी थी. बोतल पिचक गई थी. ऐसा लग रहा था कि कुछ लोगों के पैरों से कुचल गई हो. वहां जमीन पर खून की कुछ बूंदें गिरी हुई थीं. कुछ राहगीरों ने उसे घेरा हुआ था.

बलविंदर सिंह भीड़ को चीरता हुआ अंदर पहुंचा और वहां के हालात देख सन्न रह गया. रश्मि जमीन पर खून से लथपथ बेसुध पड़ी हुई थी. उस की पत्नी नम्रता चुपचाप रश्मि को देख रही थी. नम्रता की आंखों में आंसू की एक बूंद नहीं थी.

बलविंदर सिंह के पैर नहीं संभले और वह वहीं रश्मि के पास लड़खड़ा कर घुटने के बल गिर गया. उस ने रश्मि को गोद में उठाने की कोशिश की, लेकिन रश्मि का शरीर तो बिलकुल ढीला पड़ चुका था.

बलविंदर सिंह को यह बात समझ में आ गई कि उस की लाड़ली इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी है. उसे ऐसा लगा, जैसे किसी ने उस का कलेजा निकाल लिया हो.

बलविंदर सिंह की आंखों के सामने रश्मि की पुरानी यादें घूमने लगीं. अगर वह रात के 2 बजे भी घर आता, तो रश्मि उठ बैठती, पापा के साथ उसे रोटी के दो निवाले जो खाने होते थे. वह तोतली जबान में कविताएं सुनाती, दिनभर की धमाचौकड़ी और मम्मी के साथ झगड़ों की बातें बताती, लेकिन अब वह शायद कभी नहीं बोलेगी. वह किस के साथ खेलेगा? किस को छेड़ेगा?

बलविंदर सिंह बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा. कोई है भी तो नहीं, जो उसे चुप करा सके. नम्रता वैसे ही पत्थर की तरह बुत बनी बैठी हुई थी.

हलवदार मनीष ने डरते हुए बलविंदर सिंह को आवाज लगाई, ‘‘सरजी, गाड़ी के ड्राइवर को लोगों ने पकड़ रखा है… वह उधर सामने है.’’

बलविंदर सिंह पागलों की तरह उस की तरफ झपटा, ‘‘कहां है?’’

बलविंदर सिंह की आंखों में खून उतर आया था. ऐसा लगा, जैसे वह ड्राइवर का खून कर देगा. ड्राइवर एक कोने में दुबका बैठा हुआ था. लोगों ने शायद उसे बुरी तरह से पीटा था. उस के चेहरे पर कई जगह चोट के निशान थे.

बलविंदर सिंह तकरीबन भागते हुए ड्राइवर की तरफ बढ़ा, लेकिन जैसेजैसे वह ड्राइवर के पास आया, उस की चाल और त्योरियां धीमी होती गईं. हवलदार मनीष वहीं पास खड़ा था, लेकिन वह ड्राइवर को कुछ नहीं बोला.

बलविंदर सिंह ने बेदम हाथों से ड्राइवर का कौलर पकड़ा, ऐसा लग रहा था, जैसे वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा हो.

दरअसल, कुछ समय पहले ही बलविंदर सिंह का सामना इस शराबी ड्राइवर से हुआ था.

सुबह के 6 बजे थे. बलविंदर सिंह सड़क के किनारे उसी फुटओवर ब्रिज के नीचे कुरसी पर बैठा हुआ था. थोड़ी देर में मनीष एक ड्राइवर का हाथ पकड़ कर ले आया. ड्राइवर ने शराब पी रखी थी और अभी एक मोटरसाइकिल वाले को टक्कर मार दी थी.

मोटरसाइकिल वाले की पैंट घुटने के पास फटी हुई थी और वहां से थोड़ा खून भी निकल रहा था.

बलविंदर सिंह ने ड्राइवर को एक जोरदार थप्पड़ मारा था और चिल्लाया, ‘सुबहसुबह चढ़ा ली तू ने… दूर से ही बदबू मार रहा है.’

ड्राइवर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘साहब, गलती हो गई. कल इतवार था. रात को दोस्तों के साथ थोड़ी पार्टी कर ली. ड्यूटी पर जाना है, घर जा रहा हूं. मेरी गलती नहीं है. यह एकाएक सामने आ गया.’

बलविंदर सिंह ने फिर थप्पड़ उठाया था, लेकिन मारा नहीं और जोर से चिल्लाया, ‘क्यों अभी इस की जान चली जाती और तू कहता है कि यह खुद से सामने आ गया. दारू तू ने पी रखी है, लेकिन गलती इस की है… सही है…मनीष, इस की गाड़ी जब्त करो और थाने ले चलो.’

ड्राइवर हाथ जोड़ते हुए बोला था, ‘साहब, मैं मानता हूं कि मेरी गलती है. मैं इस के इलाज का खर्चा देता हूं.’

ड्राइवर ने 5 सौ रुपए निकाल कर उस आदमी को दे दिए. बलविंदर सिंह ने फिर से उसे घमकाया भी, ‘बेटा, चालान तो तेरा होगा ही और लाइसैंस कैंसिल होगा… चल, लाइसैंस और गाड़ी के कागज दे.’

ड्राइवर फिर गिड़गिड़ाया था, ‘साहब, गरीब आदमी हूं. जाने दो,’ कहते हुए ड्राइवर ने 5 सौ के 2 नोट मोड़ कर धीरे से बलविंदर सिंह के हाथ पर रख दिए.

बलविंदर सिंह ने उस के हाथ में ही नोट गिन लिए और उस की त्योरियां थोड़ी कम हो गईं.

वह झूठमूठ का गुस्सा करते हुए बोला था, ‘इस बार तो छोड़ रहा हूं, लेकिन अगली बार ऐसे मिला, तो तेरा पक्का चालान होगा.’

ड्राइवर और मोटरसाइकिल सवार दोनों चले गए. बलविंदर सिंह और मनीष एकदूसरे को देख कर हंसने लगे. बलविंदर बोला, ‘सुबहसुबह चढ़ा कर आ गया.’

मनीष ने कहा, ‘जनाब, कोई बात नहीं. वह कुछ दे कर ही गया है.’

वे दोनों जोरजोर से हंसे थे.

अब बलविंदर सिंह को अपनी ही हंसी अपने कानों में गूंजती हुई सुनाई दे रही थी और उस ने ड्राइवर का कौलर छोड़ दिया. उस का सिर शर्म से झुका हुआ था.

बलविंदर और मनीष एकदूसरे की तरफ नहीं देख पा रहे थे. वहां खड़े लोगों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ है, क्यों इन्होंने ड्राइवर को छोड़ दिया.

मनीष ने पुलिस कंट्रोल रूम में एंबुलैंस को फोन कर दिया. थोड़ी देर में पीसीआर वैन और एंबुलैंस आ कर वहां खड़ी हो गई.

पुलिस वालों ने ड्राइवर को पकड़ कर पीसीआर वैन में बिठाया. ड्राइवर एकटक बलविंदर सिंह की तरफ देख रहा था, पर बलविंदर सिंह चुपचाप गरदन नीचे किए रश्मि की लाश के पास आ कर बैठ गया. उस के चेहरे से गुस्से का भाव गायब था और आत्मग्लानि से भरे हुए मन में तरहतरह के विचारों का बवंडर उठा, ‘काश, मैं ने ड्राइवर को रिश्वत ले कर छोड़ने के बजाय तत्काल जेल भेजा होता, तो इतना बड़ा नुकसान नहीं होता.’

जरूरत : उस दिन कौनसी घटना घटी?

औफिस से लौट कर ऊर्जा की नजर लगातार घड़ी पर थी. उसे लग रहा था जैसे आज उस की गति बहुत धीमी है. वह चाहती थी समय जल्दी कट जाए लेकिन इस के विपरीत आज विचारों के घोड़े तेज गति से दौड़ रहे थे और घड़ी की सुइयां आगे सरकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस ने जल्दी से खाना बनाया और जय का इंतजार करने लगी. उस ने आज आने में देर कर दी थी. इंतजार का समय लंबा होता जा रहा था और उस के साथ ऊर्जा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

9 बजे जय औफिस से आ कर सीधे बाथरूम में घुस गया. इतनी देर में उस ने खाना लगा दिया.

फ्रैश हो कर जय सीधे खाने की मेज पर आ गया और बोला, ‘‘खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. लगता जल्दी घर आ कर मेरे लिए फुरसत से खाना बनाया है.’’

‘‘घर तो जल्दी आ गई थी लेकिन खाना बनाने के लिए नहीं किसी और परेशानी की वजह से आई थी.’’

‘‘क्या हुआ औफिस में सब ठीक तो है?’’

‘‘वहां ठीक है लेकिन यहां कुछ ठीक

नहीं है.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ. सीधे और साफ लफ्जों में बताओ बात क्या है ऊर्जा?’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं जय.’’

ऊर्जा सोच रही थी यह सुनते ही उस के

हाथ खाना छोड़ कर रुक जाएंगे लेकिन ऐसा

कुछ भी नहीं हुआ और वह इत्मीनान से खाना खाता रहा.

‘‘कोई नई बात नहीं है ऊर्जा. डाक्टर से मिल कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लेना.’’

जय की बात से ऊर्जा अंदर तक तिलमिला गई लेकिन इस समय कुछ कह कर माहौल खराब नहीं करना चाहते थी. वह सधे हुए शब्दों में बोली, ‘‘हम शादी कब कर रहे हैं जय?’’

यह सुन कर उस का हाथ मुंह तक जातेजाते रुक गया. उस ने एक गहरी नजर ऊर्जा पर डाली और बोला, ‘‘हमारे बीच में यह झंझट कहां से आ गया ऊर्जा?’’

‘‘सम?ाने की कोशिश करो जय. हम 3 साल से एकदूसरे के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझते  हैं. तो फिर शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘मुझे शादी का कोई शौक नहीं है. यह बात मैं ने तुम्हें साथ रहने से पहले भी बता दी थी.’’

‘‘शौक मुझे भी नहीं है लेकिन अब जरूरत बन गई है. मैं बारबार इस तरह अर्बोशन नहीं करा सकती. तकलीफ होती है मुझे अपने शरीर का एक हिस्सा काट कर फेंकने में. जो बीतती है उसे वही बता सकता है जो भुक्तभोगी होता है.’’

‘‘यह मेरी गलती से नहीं तुम्हारी लापरवाही से हुआ है.’’

‘‘अच्छा यह जिम्मेदारी भी केवल मेरी

ही है.’’

‘‘इस बार गलती तुम्हारी थी ऊर्जा. याद करो अपने जन्मदिन पर तुम इतनी खुश थीं कि सबकुछ भूल गईं.’’

जय तीखे लहजे में बोला तो अजय चुप हो गई. जय की बात अपनी जगह सही थी. बर्थडे वाले दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी.

जय उसे किसी तरह होटल से घर ले आया. नशे की हालत में उसे कुछ होश नहीं रहा. उस का परिणाम आज उसे भुगतना पड़ रहा था.

‘‘जो हो गया उसे छोड़ो और आने वाली समस्या के बारे में सोचो. समझने की कोशिश करो मैं बारबार ऐसा नहीं कर सकती. सच पूछो मुझे बच्चा चाहिए. मैं उस की परवरिश करना चाहती हूं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो ऊर्जा? जब हम ने एकसाथ रहना शुरू किया था तब हमारे बीच में शादी और बच्चा जैसे लफ्ज नहीं थे. बस हमतुम और हमारी जरूरत थी. यही सोच कर मैं ने तुम्हारे साथ रहना शुरू किया था.’’

‘‘बीती बातें भूल जाओ प्लीज. 3 साल का समय गुजर गया है. अब हम एकदूसरे को इतना समझने लगे हैं कि एकदूसरे के बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यह तुम समझती होंगी ऊर्जा मैं नहीं. तुम अब दिल से काम ले रही हो और मैं दिमाग से. ऐसे रिश्तों में दिल को बहुत दूर रखना चाहिए वरना यह जी का जंजाल बन जाता है.’’

‘‘कभी न कभी तुम शादी का फैसला करोगे ही जय. मुझ में क्या कमी है जो तुम मुझे अपना लाइफपार्टनर नहीं बना सकते?’’

ऊर्जा ने तीखे शब्दों में पूछा.

‘‘एक कमी हो तो बताऊं. हमारे इस रिश्ते में जवानी की उमंग और इच्छाएं हैं जिन्हें हम मिल कर ऐंजौय करते हैं अपेक्षाएं नहीं कि दूसरा हमारे लिए क्या करेगा. हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय सोचसम?ा कर लिया था. मैं शादी का फंदा जीवनभर के लिए अपने गले नहीं डाल सकता. यह तुम पहले दिन से जानती थीं और आज भी मेरा फैसला अटल है.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी निर्णय है?’’

‘‘यही समझ लो. तुम मुझे अच्छी लगती हो लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर न तुम समझौता करती हो और न मैं.अच्छा होगा कि हम इसी तरह अपनी जिंदगी गुजारें और एकदूसरे से कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘मेरा निर्णय भी सुन लो. इस बार में कोई गलत काम नहीं करूंगी और इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा फैसला है मेरा नहीं. मेरी सलाह मानो और इस परेशानी से जल्दी छुटकारा पा लो. इस के कारण हमें अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहिए.’’

‘‘अगर तुम ठंडे दिमाग से सोचो तो यही बच्चा हमारे रिश्ते को और मजबूत बना सकता है जय,’’ ऊर्जा बोली.

ऊर्जा तर्क कर के थकने लगी थी और जय रुकने का नाम नहीं ले रहा था. ऊर्जा उसे किसी तरह मना नहीं पाई थी.बहस की समाप्ति ऊर्जा के आंसुओं पर हुई  लेकिन जय पर उस का भी कोई असर नहीं पड़ा. खाना खा कर वह चुपचाप बैड पर आ गया और लैपटौप खोल कर अपने काम पर लग गया. उस ने इस बारे में आगे उस से कोई बात नहीं की. ऊर्जा ने भी ठान लिया था कि इस बार वह कमजोर नहीं पड़ेगी और अपनी बात मनवा कर रहेगी.

जय शादी के लिए तैयार नहीं तो क्या हुआ? बहुत सी ऐसी औरतें हैं जिन्होंने अविवाहित रह कर बच्चे को जन्म दिया है.

वह भी ऐसा कर के दिखाएगी. आज आंखों से उस की नींद गायब थी. वह सोच रही थी शायद रात के अंधेरे में अपनी जरूरत पूरा करने के लिए जय उस की ओर रुख करेगा लेकिन

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सारी रात आंखों में कट गई.

सुबह ऊर्जा देर से उठी. जय बोला, ‘‘उठो ऊर्जा टाइम काफी हो गया है. तुम्हें औफिस के लिए देर हो जाएगी.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रही हूं.’’

‘‘छोटी सी बात के लिए तुम इतनी सीरियस कैसे हो सकती हो? तुम एक आजाद ख्यालात महिला हो. इन सब बातों में तुम्हारा कभी

विश्वास नहीं था. अचानक तुम्हारा दिमाग कैसे पलट गया?’’

जय की बात का उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने अपने लिए ब्रैड सेंकी और मक्खन के साथ खा कर निकल गया. उस के चेहरे पर उस की परेशानी का लेस मात्र भी असर नहीं था. वह सोचने लगी कि कोई व्यक्ति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?

हकीकत सामने थी उस से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता था. वह जानती थी जय जो कुछ सोच रहा है वह अपनी जगह ठीक है.

उन दोनों की दोस्ती इसी वजह से हुई थी. ऊर्जा को दुनिया की कोई परवाह नहीं थी. जय को उस की यह बात बहुत अच्छी लगी थी. वह खुद भी रिश्तों में विश्वास नहीं करता था. वे दोनों साथ उठते, बैठते और इधरउधर घूमते. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता था.

एक दिन जय ने हंसीमजाक में यों ही कह दिया था, ‘‘सड़कों पर घूमने से अच्छा है ऊर्जा

हम दोनों एकसाथ एक ही छत के नीचे रहें. इस से खर्चे भी बचेंगे और अपने लिए अधिक समय भी मिलेगा.’’

जय की मजाक में कही बात ऊर्जा को जंच गई. वह झट से उस के साथ रहने के लिए तैयार हो गई और बोली, ‘‘मु?ा से कोई उम्मीद मत रखना जय. मैं तुम्हारे साथ एक ही घर में लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती हूं. मु?ो पत्नी सम?ाने की भूल मत करना.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसे रिश्तों में

आपसी विश्वास ही सब से बड़ा होता है. अगर तुम्हें मु?ा पर विश्वास न रहे तो कभी भी छोड़ कर जा सकती हो और यही बात मुझ पर भी लागू होती है.’’

खुले विचारों के ऊर्जा और जय जल्द ही एकसाथ रहने लगे. ऊर्जा के इस निर्णय पर औफिस में बहुत कानाफूसी हुई लेकिन उस ने उन की बातों को हवा में उड़ा दिया. दोनों के औफिस अलगअलग थे इसीलिए उन के बीच का आकर्षण ज्यादा था. एक छत के नीचे दोनों की बहुत अच्छी निभ रही थी. 6 महीने की दोस्ती में ही वे एकदूसरे की पसंदनापसंद को अच्छी तरह समझने लगे. अब बाहर इधरउधर भटकने की ज्यादा जरूरत न थी. छुट्टी के दिन वे लौंग ड्राइव पर निकल जाते और सारा दिन बाहर बिता कर रात में घर लौट आते.

जिंदगी का मजा साथ रहने में था यह बात उन दोनों को अच्छे से सम?ा में आ गई थी. जब पहली बार ऊर्जा के प्रैगनैंट होने का जय को पता लगा तो बहुत चौंक गया था.

बात संभालते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘पता नहीं कैसे यह सब हो गया? अगली बार से तुम भी इस बात का खयाल रखना.’’

ऊर्जा ने डाक्टर को अपनी समस्या बता कर उस से छुटकारा पा लिया. 2 दिन की परेशानी के बाद सबकुछ सामान्य हो गया. उन का जीवन पहले की तरह बंधनमुक्त हो कर बहुत अच्छे से कट रहा था. जय के साथ रहते हुए उसे कभी घर की याद तक न आती. वैसे भी ऊर्जा को अपने घर से कोई लगाव न था. होता भी कैसे उस की अपनी मम्मी छुटपन मैं गुजर गई थी जब वह 8 साल की थी. पापा ने घर की जरूरत को देखते हुए अपनी सहकर्मी वीरा से शादी कर ली थी. उस का पहले से घर में आनाजाना था.

ऊर्जा ने उसे मम्मी के रूप में कभी नहीं अपनाया. वीरा ने अपनी ओर से बहुत कोशिश लेकिन उसे देख कर ऊर्जा का खून खौल उठता. सबकुछ जान कर ओजस ने उसे होस्टल भेज दिया. घर पर पैसे की कमी नहीं थी. उसे भी होस्टल रास आने लगा था.

स्वभाव से उग्र होने के कारण उस के फ्रैंड्स की लिस्ट भी छोटी ही थी. देखते ही देखते उस ने इंटर पास कर लिया और इंजीनियरिंग कालेज में आ गई. छुट्टियों में घर आने के बजाय वह इधरउधर घूमना ज्यादा पसंद करती. उसे अकेले घूमने में भी कोई एतराज न था.

बीटैक करते ही उस ने एक कंपनी जौइन कर ली. औफिस के काम से उसे इधरउधर जाना पड़ता. उस के कई पुरुष मित्र थे लेकिन उस ने कभी किसी को अपने इतने नजदीक नहीं आने दिया कि वह उस के लिए अपने दिल में कुछ महसूस कर सके.

जय में कुछ बात थी. वह उस के व्यक्तित्व से ज्यादा बातों और खुलेपन से प्रभावित हो गई थी और उस के मजाक में दिए एक प्रस्ताव पर उस के साथ रहने लगी थी. ओजस यह बात जानते थे. ऊर्जा ने फोन पर पापा को यह बात बता दी थी. सुन कर उन्हें अच्छा नहीं लगा था. उन्होंने उसे समाज की दुहाइयां दीं और इस रिश्ते को शादी में बदलने के लिए दबाव डाला था लेकिन वह नहीं मानी.

पापा को दुखी देख कर दिल के किसी कोने में उसे सुकून मिल रहा था. जिस ने उस की परवाह नहीं की वह उन की भावनाओं की परवाह क्यों करे? यह बात उस का रोमरोम

चीख कर कह रहा था. पिछले साल पापा चले गए. उन के गुजरने पर वह घर आई थी. वीरा को विधवा के भेष में देख कर उसे जरा भी बुरा नहीं लगा. उसे मम्मी से पहले भी कोई उम्मीद नहीं थी. अब बीच का वह पुल भी टूट गया था जिस से वे दोनों जुड़े थे. तब से उस ने घर आना लगभग बंद ही कर दिया था. वीरा अकसर फोन करती लेकिन वह उसे उठाना तक भी जरूरी न समझती. कभी मन आया तो हैलोहाय कर देती वरना फोन पर वीरा का चेहरा देख कर उस की नफरत भड़क जाती.

आज जय के रूखे व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया था. उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसी हालत में वह कहां जाए? खून के रिश्तों से उस ने पहले ही किनारा कर लिया था. अपना कहने के लिए उस के पास कोई भी नहीं था. दोस्त भी ऐसे थे जिन से यह बात शेयर कर वह उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी. बहुत सोच कर उस ने घर जाने का मन बना लिया. दोपहर में जय के नाम एक नोट छोड़ कर वह अपना सामान समेट  घर चली आई. औफिस में भी उस ने मेल से सिक लीव ले ली थी. सामान के साथ निकलते हुए उस ने एक नजर घर पर डाली और उसे अलविदा कह चली गई.

अचानक ऊर्जा को घर आया देख कर वीरा चौंक गई. उस की शक्ल से लग रहा था कुछ तो हुआ है जिस से ऊर्जा ने घर का रुख कर लिया वरना उस ने इस घर को कभी अपना समझ ही नहीं था. वीरा ने खुले दिल से उस का स्वागत किया. बदले में ऊर्जा ने भी एक फीकी मुसकान दे दी.

वीरा ने आते ही उस से कुछ पूछना ठीक नहीं सम?ा. बड़ी मुश्किल से वह लंबे अरसे बाद घर आई थी. कुछ पूछ कर वह उस का मूड खराब नहीं करना चाहती थी.

वीरा उस की हर जरूरत का खयाल रख रही थी. उस की अपनी कोई औलाद नहीं थी. लेदे कर उस के दिवंगत पति ओजस की एकमात्र निशानी ऊर्जा ही थी. 2 दिन तक उन के बीच मौन पसरा रहा. आखिर ऊर्जा की हालत देख कर वीरा ने चुप्पी तोड़ कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘कितने दिन की छुट्टी ली है ऊर्जा?’’

‘‘अभी सोचा नहीं. जब तक मन लगेगा तब तक रहूंगी. उस के बाद चली जाऊंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा अपना घर है. मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी ऊर्जा. मेरा भी तुम्हारे अलावा कोई नहीं है,’’ वीरा बोली तो ऊर्जा ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया. पहली बार उस की बात सुन कर वह ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में नहीं गई. वरना ओजस के रहते  मम्मीपापा के कुछ कहते ही वह उठ कर वहां से चली जाती थी.

इस से वीरा का हौसला कुछ और बढ़ गया. उसी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘कोई परेशानी हो तो कह दो. बता देने से मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं,’’ ऊर्जा निर्विकार भाव से बोली.

यह सुन कर वीरा के मन में कई सवाल उठ रहे थे लेकिन उस ने कुछ पूछना उचित नहीं सम?ा. उसे अच्छा लगा कि ऊर्जा ने उसे इस लायक तो सम?ा और अपनी स्थिति बता दी.

‘‘तुम्हें आराम करना चाहिए. तनाव बच्चे के लिए अच्छा नहीं होता.’’

‘‘इसी वजह से घर आई हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगी ऊर्जा. तुम्हें पता भी नहीं लगेगा यह समय कब बीत गया.’’

ऊर्जा को यह सुन कर तसल्ली हुई कि उस के यहां आने से वीरा को कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा साहस कर वह बोली, ‘‘मैं ने अभी तक शादी नहीं की है.’’

यह सुन कर वीरा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. ओजस ने उसे बता दिया था कि ऊर्जा किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. वह सम?ा गई यह बच्चा उसी का होगा. वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं है. जब मरजी हो तब शादी कर लेना. अभी अपना ध्यान सेहत पर दो. अब पहले वाले जमाने नहीं रह गए पहले शादी फिर बच्चा.’’

‘‘जानती हूं तभी इतना बड़ा फैसला ले सकी वरना…’’ कहतेकहते वह रुक गई.

वीरा ने उसे कुरेद कर कुछ नहीं पूछा. इतना वह सम?ा गई कि अपने मन की बात वह धीरेधीरे उसे बता देगी. उसे बस ऊर्जा का विश्वास जीतना था. वीरा के बरताव ने ऊर्जा का दिल काफी हद तक जीत लिया था और उस ने थोड़ाथोड़ा कर सारी बात उसे बता दी.

‘‘तुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी.’’

‘‘मैं अभी छुट्टी पर हूं.’’

‘‘परिस्थितियों से भाग कर समस्या का समाधान नहीं निकलता ऊर्जा. 10 तरह की नकारात्मक बातें मन में आती हैं.’’

‘‘आप जानती हैं मैं ने कभी किसी के जज्बातों की परवाह नहीं की न ही मेरा रिश्तों

में कोई विश्वास रहा. मैं इतना ही सम?ा पाई हूं अपने  शरीर के किसी हिस्से को बारबार काट

कर फेंकना कहां की बुद्धिमानी है? विचारों की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता तभी तक सुकून देती है जब तक वह दिल पर असर न डाले. एक ही घटना के बारबार होने से मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा है. मैं अब यह काम नहीं करना चाहती.’’

‘‘तुम ने जो सोचा वह अपने हिसाब से बिलकुल ठीक है. इस समय ऐसी बातें सोचने से तुम्हारी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. तुम खुश रहो मैं इतना ही चाहती हूं,’’ वीरा ने उसे सांत्वना दी तो ऊर्जा को अच्छा लगा.

जब वह छोटी थी तब भी वीरा ने उस के पास आने की बहुत कोशिश की लेकिन उस ने उस की भावनाओं को कभी कोई महत्त्व नहीं दिया था. पापा के साथ किसी और औरत को देखने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. वीरा को देख कर उसे बड़ा अटपटा लगता था. वह पापा की पत्नी जरूर थी लेकिन उस की मम्मी नहीं. उस ने अपने व्यवहार से कभी उसे मम्मी बनने का मौका ही नहीं दिया.

पापा के चले जाने के बाद ऊर्जा पहली बार वीरा के इतने नजदीक आई थी. उसे लगा वह एक भली औरत है. उसी की भूल थी जो वह उसे गलत सम?ाती रही. ऊर्जा के फैसले के खिलाफ उस ने एक शब्द भी नहीं कहा और उस की हर बात को जायज ठहराते हुए ऐसी हालत में उस का साथ दे रही थी.

घर पर ऊर्जा को पापा की बहुत याद आ रही थी. वह एक अच्छे इंसान थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए वीरा को उन्होंने अपना जीवनसाथी बनाया था. इस में कोई बुराई भी नहीं थी. वे चाहते तो किसी से भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकते थे. उन के मन में स्त्री

के लिए सम्मान था इसीलिए उन्होंने अपनी सहकर्मी वीरा को घर की इज्जत बना कर उसे अपनाया था. दोनों खुश थे. ऊर्जा को ही यह सब पसंद नहीं था और यहीं से उस के विचारों में बगावत शुरू हो गई. तब उसे लग रहा था शायद पापा को दुखी करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था.

ऊर्जा बड़ी देर से पापा की तसवीर देख रही थी. वीरा उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘बीती बातें याद करने से कोई फायदा नहीं. आने वाले भविष्य की ओर देखो ऊर्जा. जो बीत गया उसे लौटाया नहीं जा सकता. ओजस तुम्हें बहुत याद करते थे. वे हर समय तुम्हारी चिंता करते थे और तुम्हें अपने पास रखना चाहते थे.’’

उस के पास कहने के लिए कुछ बचा भी नहीं था. वीरा उसे हर समय चिंता में डूबे देखती. एक दिन उस ने साहस कर के पूछ लिया, ‘‘तुम अपने इस फैसले से खुश तो हो ऊर्जा? अभी भी समय है तुम इस बारे में एक बार फिर सोच सकती हो.’’

‘‘मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला लिया है. मैं सिंगल मदर बनूंगी और बच्चे को पालपोस कर बड़ा करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे विचार बहुत अच्छे हैं लेकिन कभी उस बच्चे की नजरिए से भी सोचना जिस के मन में दुनिया देखने के बाद कई प्रश्न खड़े होंगे,’’ वीरा बोली.

उस की बात सुन कर ऊर्जा चौंक गई. उस ने अभी इस दृष्टिकोण से कुछ सोचा ही नहीं था. वीरा ने यह कह कर उसे ?ाक?ार दिया.

ऊर्जा सोचने लगी अपनी मम्मी के चले जाने के बाद वह पापा के साथ वीरा को देख तक न सकी थी. कितना बुरा लगता था पापा के साथ उन्हें हंसतेबोलते देख कर. भविष्य में अगर कभी उस ने शादी करने का फैसला लिया तो क्या आने वाला मेहमान उस के नए जीवनसाथी को स्वीकार कर पाएगा. यह यक्ष प्रश्न उस के सामने खड़ा था जिसे चाह कर भी अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी.

3 महीने पूरे होने में अभी 1 हफ्ता बाकी था और वह अपनेआप से लड़ रही थी कि अपने या बच्चे में से किस के दृष्टिकोण से जिंदगी को देखे.

ऊर्जा के इस तरह घर से चले जाने पर जय को घर में खालीपन लगने लगा था. वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था कि एक न एक दिन ऊर्जा उसे छोड़ कर चली जाएगी. वह अपनेआप को ऊर्जा के बगैर रहने के लिए तैयार करने लगा. जीवन का जो सुख उसे चाहिए था वह उस ने ऊर्जा के साथ भरपूर भोगा था. वह किसी नए रिश्ते में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करना चाहता था. उस ने 1-2 बार ऊर्जा से बात करने की कोशिश की लेकिन उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था .वह स्क्रीन पर भी उस के संपर्क में नहीं आना चाहती थी.

3 साल में क्या कुछ नहीं किया था उसने जय के लिए. उस की हर इच्छा का मान किया लेकिन उस ने उसे एक मशीन समझ लिया था जिस में आधुनिकता और खुलेपन के नाम पर भावनाएं नहीं रह गई थीं. यह चौथी बार था जब जय उसे अबौर्शन कराने के लिए कह रहा था. ऐसी परिस्थिति आने पर हर बार वह उसे दोषी करार कर देता और खुद जिम्मेदारी लेने से बच जाता.

कुछ हफ्तों बाद जय को उस की कमी खलने लगी.

वह कई मामलों में जिद्दी थी लेकिन उस की हर इच्छा का बहुत खयाल रखती थी. वह अब उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया था. उसे घर के हर हिस्से में ऊर्जा की उपस्थिति महसूस होती. उसे लगने लगा कि ऊर्जा ही नहीं वह भी दिल की गहराइयों से उसे चाहने लगा.

यह बात उस का दिमाग उस वक्त स्वीकार नहीं कर सका था. आंखों के आगे से भौतिकवाद और आधुनिकता का परदा हटते ही जय को बहुत कुछ दिखाई देने लगा. वह उस से मिलने के लिए बेचैन था.

एक दिन वह हिम्मत कर ऊर्जा से मिलने उस के घर आ गया. उस समय ऊर्जा डाक्टर के पास अपनी दुविधा ले कर गई हुई थी. अचानक जय को घर पर देख कर वीरा चौंक गई. ऊर्जा ने उसे काफी कुछ उस के बारे में बता दिया था.

‘‘ऊर्जा कहां है आंटी? मैं उस से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘वह घर पर नहीं है कुछ देर बाद आ जाएगी,’’ सही बात छिपा कर वीरा बोली.

‘‘मैं ने ऊर्जा को बहुत हर्ट किया है. उसी की माफी मांगने आया हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? आजकल के नौजवान इसी तरह के रिश्तों को तवज्जो दे रहे

हैं. इस में माफी जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती.’’

‘‘मानता हूं हम ने नए रिश्ते की शुरुआत अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने के लिए

की थी. ऊर्जा कब मु?ा से प्यार करने लगी कह नहीं सकता. वह अब इस जरूरत को एक पवित्र रिश्ते का नाम देना चाहती थी. मैं ही इस के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा था. रिश्ते में हम बड़ी उम्र में भी बंध सकते हैं. अगर हमें जवानी अपनी शर्तों पर खुशीखुशी

जीने के लिए मिलती है तो हम बेकार के पचड़े

में क्यों पड़े? यही सोच कर मैं ने उस की बात नहीं मानी.’’

‘‘नए जमाने की हवा ही कुछ ऐसी है. उस में जज्बातों के लिए जगह ही नहीं रही. तुम दोनों  अपनीअपनी जगह सही हो. जिसे जो ठीक लगे वही करो. इस में बड़ों की रजामंदी कोई माने नहीं रखती,’’ वीरा बोली.

तभी ऊर्जा घर लौट आई. जय को ड्राइंगरूम में देख कर उस से कुछ पूछते नहीं बना.

‘‘कैसी हो ऊर्जा?’’

‘‘अच्छीभली हूं. तुम कैसे हो जय?’’

‘‘तुम्हारे बिना कैसा हो सकता हूं?’’ जय बोला तो ऊर्जा चौंक गई. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि शरीर के स्तर पर जीने वाला इंसान कभी दिल की बात भी सुन सकता है.

‘‘मैं ने तुम से कई बार बात करने की कोशिश की. तुम ने मुझे मोबाइल के साथसाथ अपनी जिंदगी से भी डिलीट कर दिया.’’

‘‘जब तुम्हें मेरी जरूरत ही नहीं रही तो फोन पर नंबर रख कर क्या करती. तुम्हारे लिए मैं एक औरत होने के अलावा और कोई माने नहीं रखती जो तुम्हारी शारीरिक जरूरत पूरी कर सके.’’

‘‘ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.

मुझे अपनी गलती का एहसास है. जानता हूं हमारे रिश्ते की शुरुआत चाहे जैसे भी हुई लेकिन अब हम एकदूसरे को प्यार करते हैं और एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते,’’ जय बोला तो ऊर्जा की आंखों की कोरों पर आंसू की 2 बूंदें आ कर टिक गईं.

जय ने बड़ी सावधानी से अपनी उंगलियों की पोरों से उन्हें पोंछ कर उसे अपने आलिंगन में ले लिया. ऊर्जा ने भी उस का विरोध नहीं किया. उन्हें बातें करते देख वीरा रसोई में आ गई थी. आवाज की तीव्रता धीरेधीरे कम हो कर मौन में बदल गई थी. वह समझ गई दोनों के बीच समझौता हो गया है. वे बड़ी देर तक एकदूसरे के आगोश में खोए रहे. दिल की बात आंखों से बहते आंसू बयां कर रहे थे.

तभी वीरा के आने की आहट पा कर वे दोनों एकदूसरे से अलग हो गए.

जय बोला, ‘‘आंटी मैं ऊर्जा से शादी करना चाहता हूं. आप को कोई आपत्ति तो नहीं है?’’

‘‘यह कह कर तुम ने मु?ो जो खुशी दी है उसे मैं बयां नहीं कर सकती लेकिन इस के लिए तुम्हें ऊर्जा से अनुमति लेनी होगी.’’

‘‘ऊर्जा तुम मुझ से शादी के लिए तैयार हो?’’ घुटने के बल जमीन पर बैठ कर जय उसे प्रपोज करते हुए बोला.

उस ने सिर झुका कर अपनी सहमति दे दी.

‘‘मैं आज ही कोर्ट में शादी के लिए ऐप्लिकेशन दे दूंगा. तुम मेरे साथ चलने की तैयारी करो ऊर्जा.’’

ऊर्जा ने यह सुन कर वीरा की ओर देखा.

‘‘अब तो दुलहन की विदाई शादी के बाद ही होगी जय. तब तक तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

यह सुन कर ऊर्जा के चेहरे पर मुसकान खिल गई और गाल शर्म से लाल हो गए.

खुशी के इस मौके पर आज पहली बार ऊर्जा अपनत्व से भर कर वीरा के गले लग गई. यह देख कर उस की आंखें भर आईं. वीरा को इतने वर्षों बाद आज बेटी के साथ दामाद भी मिल गया था.

चिराग : स्वप्निल के संदेश का क्या था राज?

लेखक-  डा. अखिलेश पालरिया

पोती ने दादी के लिए खाने की थाली लगाई तो दादी रोटी का एक टुकड़ा निकाल कर बोलीं, ‘‘पहले खाने के साथ ही गौरैया भी फुदक कर पास आ जाती थी और मेरे पास ही खापी कर उड़ जाती थी जैसे मेरा और उस का कोई पुराना नाता रहा हो.’’

पोती शालिनी ने पूछा, ‘‘दादी, आज अचानक आप को गौरैया कैसे याद आ गई?’’

‘‘अरी, आज सुबह ही तो मैं ने एक गौरैया को छत की मुंडेर पर फुदकते देखा था तो मैं तुरंत स्टोर से एक कटोरी बाजरे की ले आई लेकिन वह तो न जाने कहां उड़ गई.’’

‘‘दादी, अब तो गौरैया कम ही दिखाई देती है.’’

‘‘हां, रूठ गई है वह हम मनुष्यों से… अब वह हमें अपना नहीं मानती क्योंकि हम ने उसे अपने यहां शरण देना जो बंद कर दिया है. सारे मकान पैक कर दिए हैं न. शायद लुप्त होने की कगार पर हैं हमारी ये घरेलू चिडि़यां.’’

‘‘दादी, मु?ो ही अपनी गौरैया मान लो न.’’

दादी खिलखिलाईं फिर बोलीं, ‘‘हां, है तो तू मेरी गौरैया.’’

रागिनी भीतर रसोई में दादीपोती की बातें सुन रही थी. प्लेट में गरम फुलका ला कर सासूजी की थाली में परोसा फिर बड़े क्षोभ के साथ कहा, ‘‘मां, गौरैया तो बीती बातें हो गई, आजकल तो परिवार वाले भी टांग खिंचाई में लगे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही है बहू?’’

‘‘आज स्वप्निल जूते पहनते हुए शिकायती लहजे में कह रहा था कि मम्मी, मैं ने पारिवारिक वाट्सऐप गु्रप- ‘अपने लोग’ में अपने दोहरे शतक की जानकारी शेयर की तो कोई कुछ न बोला सिवा सुजाता मौसी के.’’

‘‘हां मम्मी,’’ शालिनी तपाक से बोली, ‘‘स्वप्निल का मजाक उड़ाने वालों को अब सांप सूंघ गया है. कोई प्रतिक्रिया तक नहीं देते मानो कुछ हुआ ही न हो.’’

‘‘वे भी तो सब अपने ही हैं बहू.’’

‘‘एक सुजाता ही है जो खुश हो कर हर बार बधाई व शुभकामनाएं देती है.’’

रागिनी के कथन पर दादी ने पूछा, ‘‘कौन सुजाता?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘आप भूल गई मां, सुजाता को? मेरी छोटी बहन, जो सूरत में रहती है.’’

‘‘अरे हां, याद आया. बहुत अच्छी है वह. मैं तो नाम भूल जाती हूं बहू आजकल.’’

रागिनी कहती रही, ‘‘एक वह दौर था जब क्रिकेट का जनूनी स्वप्निल 10वीं में फेल हो गया था तो सब रिश्तेदार व्यंग्य करते कि देखो हमारे खानदान का चिराग, जिस ने हम सब का नाम रोशन कर दिया है. जहां परिवार के लोग इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस बन गए हैं, वहीं एक यह स्वप्निल है जो 10वीं में ही लुढ़क गया. वह तो इस के पापा, दादी और मैं ने इस को संभाला नहीं तो यह आत्महत्या कर चुका होता,’’ स्वप्निल की बड़ी बहन शालिनी ने जोड़ा, ‘‘मेरी सुजाता मौसी ने तो ग्रुप में स्वप्निल का बचाव करते हुए कहा था कि देखना, एक दिन वह क्रिकेट का स्टार खिलाड़ी बन कर सब को पीछे छोड़ देगा और परिवार का चिराग बनेगा. मौसी की इस बात पर 1-2 ने तालियां बजाईं तो बाकी ने मजाक उड़ाया.’’

‘‘मां, ऐसे होते हैं परिवार वाले जो कुछ अच्छा करने पर आंखें मूंद लेते हैं और अच्छा न करने पर उंगलियां उठाने से भी बाज नहीं आते. अरे, तुम्हें किसी का टेलैंट नजर क्यों नहीं आता जो अपने भीतर की नकारात्मकता को दफन करना तो दूर, उसे दूसरों पर थोपते रहने का कोई अवसर नहीं गंवाते,’’ रागिनी के मन की भड़ास आज रहरह कर स्वर में घुलती जा रही थी.

‘‘बहू, स्वप्निल जैसे जनूनी विरले ही मिलते हैं जो काम को पूजा समझ कर किसी दिन अजूबा कर देते हैं. और रही बात परिवार वालों की तो वे सब एक दिन अपने कृत्य पर शर्मिंदा हो कर उस के गुणगान गाएंगे.’’

इधर इस लंबेचौड़े परिवार में एक हादसा हो गया. आईआईटी कोचिंग सैंटर कोटा में पढ़ने वाले बच्चे सुयोग्य ने चौथी मंजिल से कूद कर अपनी जान दे दी क्योंकि वह बहुत दबाव में था और मांबाप की इच्छानुसार वहां पढ़ने में अपना मन नहीं लगा पाया. वह आर्टिस्ट बनना चाहता था और घर वाले उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे.

परिवार में कुहराम मच गया था और मांबाप ने अपने इकलौते भावुक बेटे को खो दिया था जो नाम से तो सुयोग्य था ही, सद्गुणों में भी सब पर भारी पड़ता था.

मांबाप का रोरो कर बुरा हाल था पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.

सुयोग्य के मम्मीपापा अब उस पल को कोस रहे थे जब वे उसे कोटा में कोचिंग के लिए जबरन भेजने पर आमादा थे. उस का कमरा जिस में एक से बढ़ कर एक सुंदर पेंटिंग्स थीं, जिन में से एक को तो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था और स्कूल वाले भी उस की इस प्रतिभा के कायल थे. अब उन के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ न बचा था.

स्वप्निल दादी के पास आ कर बोला, ‘‘दादी, मैं तो शुरू से ही सुयोग्य के साथ था लेकिन इतने सुशिक्षित लोगों के बीच मेरी कौन सुनता? सुयोग्य ने कई बार पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ में अपनी पेंटिंग्स पोस्ट की थीं लेकिन उस के कद्रदान वहां कौन थे उलटे मेरे द्वारा सुयोग्य की प्रशंसा पर वे मुझ पर ही हंसे थे.’’

दादी ने स्वप्निल का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मेरे बच्चे, कभी भी लोगों के व्यवहार व असफलता से घबराना नहीं, मैं और तुम्हारे मम्मीपापा तुम्हारी प्रगति की राह में तुम्हारे साथ खड़े हैं.’’

‘‘जानता हूं दादी लेकिन सुयोग्य को यह सपोर्ट नहीं थी’’

सुयोग्य चला गया और पीछे छोड़ गया अपने मम्मीपापा की अधूरी महत्त्वाकांक्षाएं जो अब पूर्ण न हो सकती थीं. वह उस टीस को भी छोड़ गया था जिस की पीड़ा उन्हें आजीवन ही भुगतनी थी, मरते दम तक.

इस बीच 1 साल पूरा होने को आया. स्वप्निल रणजी फर्स्ट क्लास मैचेज में शतक और दोहरे शतकों की बदौलत संपूर्ण वर्ष अपनी धाक जमाता रहा इसीलिए उसे आईपीएल मैचों के इस सीजन के लिए 5 करोड़ में खरीद लिया गया. इन मैचों में भी उस की उच्च स्तरीय तकनीक व मारक क्षमता के कारण सारे धुरंधर गेंदबाज भी बौने साबित हुए. अब वह क्रिकेट का तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गया था.

स्वप्निल को अपने शानदार रिकौर्ड के कारण वर्ल्ड कप में भारतीय टीम में बतौर ओपनर शामिल कर लिया गया. यह उस के लिए सर्वाधिक खुशी के पल थे.

वर्ल्ड कप के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मैच में जो चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध था. स्वप्निल पर सब की आंखें गड़ी हुई थीं. एक टीवी ऐंकर ने साक्षात्कार में उस से पूछा भी, ‘‘विश्व कप का पहला मैच और वह भी पाक के विरुद्ध… क्या नर्वस हैं आप?’’

स्वप्निल ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘क्या आप को मेरे चेहरे से ऐसा लगता है? मैं खेलने और गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने को बेताब हूं.’’

जब भारत ने बल्लेबाजी शुरू की तो पहले ही ओवर में विकेट गिर गया था लेकिन स्वप्निल फिर भी दूसरे छोर पर निर्भीक खड़ा था. भारतीय फैंस जरूर नर्वस हो गए थे लेकिन उन की निराशा को शीघ्र ही स्वप्निल ने अपने चौकोंछक्कों से दूर कर दिया. यद्यपि विकेट भी निरंतर गिर रहे थे लेकिन स्वप्निल का बल्ला रनों की बारिश करता रहा.

हजारों की संख्या में प्रत्यक्ष मैच देख रहे दर्शकों के बीच आगे की लाइन में स्वप्निल की सुजाता मौसी भी बैठी थीं साथ में करोड़ों प्रशंसक अपने घरों में स्वप्निल की बल्लेबाजी का आनंद लेते हुए ?ाम रहे थे.

विजयश्री जब सामने खड़ी थी तो इस बार तो स्वप्निल ने छक्का अपनी मौसी की ओर ही उछाल दिया और यह एक तरह से उन के प्रति कृतज्ञता थी. इस खूबसूरत शौट के साथ ही भारत जीत गया.

चारों ओर विजय का उत्सव आरंभ हो गया. पैवेलियन की ओर लौटते हुए स्वप्निल का सभी खड़े हो कर अभिनंदन कर रहे थे और हाथों में उन के लहराता हुआ तिरंगा था. मौसी भी खड़े हो कर तालियां बजा रही थीं.

स्वप्निल अपनी मौसी की ओर बढ़ा. उन के पैर छुए तो उन्होंने उसे गले लगा लिया. मौसीभानजे के बीच कुछ पल खुशियों की फुल?ाडि़यां छूटती रहीं जो टीवी पर सीधे प्रसारित हो रही थीं.

अंतत: स्वप्निल ड्रैसिंगरूम में लौट आया. सोने से पहले स्वप्निल ने अपने लगभग 100 व्यक्तियों के पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ पर एक नजर डाली जहां आज बधाइयों की होड़ मची थी. उस से रहा नहीं गया. अत: उस ने लिखा-

‘‘आज भाई सुयोग्य की पहली पुण्यतिथि है. मेरा आज का अंतर्राष्ट्रीस एकदिवसीय शतक जो मेरा डेब्यू मैच भी था, दिवंगत सुयोग्य को समर्पित करता हूं.

‘‘हां, वह एक शानदार आर्टिस्ट बनना चाहता था. उस में एक बेहतरीन आर्टिस्ट बनने की सब से बड़ी योग्यता थी, उस का जनून. बिना जनून के आदमी कुछ हासिल नहीं कर सकता.

‘‘मेरे अंदर पढ़ने की योग्यता न थी क्योंकि मेरा फोकस केवल और केवल क्रिकेट पर था. पापा ने मु?ा 3 साल के बच्चे को जब बर्थडे की खिलौनों की दुकान में कोई गिफ्ट चुनने के लिए कहा था तो मैं ने न जाने क्यों क्रिकेट का बल्ला और टेनिस की बौल को चुना. लेकिन बाद में यह मेरे हाथ से कभी छूट ही नहीं पाया और मैं सब कुछ छोड़ कर क्रिकेट का फैन बन गया. थोड़ा सा बड़ा होने पर आश्चर्यजनक रूप से टीवी पर क्रिकेट मैचेज को ध्यान से देखता और जब खुद बड़े शौट मारने लगा तो मेरे साथी खिलाड़ी दांतों तले अंगुली दबाने लगते. तब मु?ो इस खेल में पसीना बहाने में भी मजा आने लगा.

‘‘अधिकतर मांबाप अपने बच्चों को बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं देते और उन्हें डाक्टर, विशेषज्ञ चिकित्सक, इंजीनियर, सीए, प्रोफैसर या अधिक से अधिक आईएएस बनाना चाहते हैं लेकिन मेरे पापा ने मेरी क्रिकेट के प्रति दीवानगी की हदें पार करते देख मु?ो अच्छा क्रिकेटर बनने की सारी सुविधाएं व प्रशिक्षण दिलाया हालांकि मैं 10वीं की परीक्षा में भी पास न हो सका जबकि मेरे सभी रिश्तेदारों की संतानें अपनी पढ़ाई में धाक जमाती रहीं.

‘‘मैं हंसी का पात्र भी खूब बना किंतु मैं ने हिम्मत नहीं हारी. मेरा लक्ष्य असाधारण व कठिन था अत: लोगों की कल्पना से परे था.

‘‘आज सोचता हूं कि मु?ो भारत की ओर से खेलने का अवसर मिला तो इस के पीछे मेरा जनून और पापा का समर्थन था.

‘‘मेरे परिवार में कोई डी.एम. कार्डियोलौजिस्ट था तो कोई इंजीनियर, कोई सीए तो कोई प्रोफैसर था या फिर आईएएस, ऐसे में एक 10वीं कक्षा में फेल हुए बालक पर हंसेंगे नहीं तो क्या गर्व करेंगे?

‘‘वे अपनी जगह सही थे लेकिन मेरी नजर में डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफैसर और आईएएस कोई बड़े लक्ष्य नहीं थे क्योंकि मैं और भी बड़ा लक्ष्य अर्जित करना चाहता था और धीरेधीरे अपने लक्ष्य की ओर कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ आगे बढ़ रहा था. मेरा और मेरे अपनों के पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था.

‘‘यद्यपि कोई भी क्षेत्र हो, उस में वांछित सफलता के लिए जनून होना चाहिए किंतु मेरे अंदर क्रिकेट के लिए 100त्न जुनून था और शेष के लिए शून्य.

‘‘वैसे तो कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. जिस को करने में मन को सुकून मिले और वह पूरी शिद्दत से किया जाए तो बड़ा बन जाता है. हर काम को मन के संतोष की दृष्टि से देखा जाए तो जीवन को अच्छे से जीने की गारंटी मिल जाती है.

‘‘मैं मानता हूं कि बड़ा नाम कमाने के लिए पैसा नहीं, सम्मान ही बड़ा होता है. आज करोड़ों लोगों ने मु?ो खेलते हुए देखा लेकिन जब मैं ने अपने देश के लिए मुश्किल परिस्थितियों में शतक लगा कर हार को जीत में बदल दिया तो देश का सम्मान सब से बड़ा और पैसा गौण हो गया.

‘‘कुछ कामों में पैसा नहीं होता लेकिन नाम बड़ा माना जाता है जैसे लता मंगेशकर को देश का सर्वोच्च पुरस्कार- भारत रत्न मिला तो वहां पैसा नहीं, केवल सम्मान ही था. क्या प्रेमचंद और शैक्सपीयर के नाम छोटे हैं? हां, उन के पास मरते दम तक पैसा नहीं था पर नाम आसमान को छू गया. यही सच्ची दौलत होती है. क्या पैसा होने पर भी हम साथ ले जा सकते हैं?

‘‘मुझ से दूर निवास करने वाली सुजाता मौसी के प्रोत्साहन ने मुझे कभी टूटने नहीं दिया और आज के मैच में दर्शकदीर्घा में उन्हें देख कर मेरा हौसला आकाश जितना बड़ा हो गया. घर आ कर जब मैं ने उन के साथ के टीवी रिप्ले नैशनल न्यूज पर देखे तो ये मेरे लिए अमूल्य क्षण थे.

‘‘मेरा कजिन ब्रदर आर्टिस्ट बनना चाहता था जिस के लिए मैं उस की पेंटिंग्स व जनून देख चुका था और मैं सचमुच अचंभित होता था. लेकिन उस की इच्छा के विरुद्ध उसे आईआईटी कोचिंग सैंटर में भेज दिया गया तो निराश हो कर उसे आत्महत्या करनी पड़ी. यह हम सब के लिए बहुत दुखद घटना थी. मु?ो पक्का विश्वास है कि वह जिंदा रहता तो बहुत ऊंचाइयां छू कर दिखाता.

‘‘हवा के विपरीत दिशा में तो पतंग भी नहीं उड़ती फिर कोई मन के विरुद्ध कैरियर जैसा बड़ा काम कैसे करेगा? क्या इच्छाओं के विरुद्ध डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस बनाना ही सबकुछ है? सच कहूं तो इन का फलक तो सीमित ही होता है. यह बन कर भी अधिक ऊंचा नहीं उड़ा जा सकता. बड़े सपनों के लिए साहित्य, अभिनय, खेल, राजनीति, गीतसंगीत जैसे क्षेत्र चुनने पड़ते हैं और ऊंची उड़ान भरनी पड़ती है. अत: असंभव से दिखने वाले लक्ष्य की शुरुआत में अपने निकट परिचितों, संबंधियों द्वारा हंसी उड़ती है, उस की टांग खींच कर उसे आगे बढ़ने से जबरन रोका जाता है या तो जगहंसाई के बाद भी वह बुलंदियों पर पहुंच जाता है या फिर हिम्मत हार जाता है. विस्तृत फलक वाली कठिन उपलब्धियों के साथ ही देशविदेश में नाम कमाया जा सकता है. यद्यपि बड़ा बनने के लिए अंगारों पर चलना और दीपक की तरह जलना पड़ता है.

‘‘आज हम एक दीपक अपने होनहार सुयोग्य की स्मृति में भी जलाएं. भाई सुयोग्य, तुम अपने घर के चिराग थे. तुम ने नादानी की जो चले गए. क्या तुम नहीं जानते थे कि कोई भी मांबाप अपने बेटे को खोना नहीं चाहते, किसी भी परिस्थिति में नहीं. मरना किसी के लिए जरूरी नहीं होता, हरगिज नहीं. हर समस्या का कोई समाधान अवश्य होता है लेकिन मरना किसी समस्या का समाधान नहीं होता. तुम नहीं जानते, किसी भी मांबाप को यह बात सहन नहीं होती कि उस की संतान उन से पहले चली जाए.

‘‘तुम्हें वापस इस दुनिया में आना पड़ेगा दोस्त, एक आर्टिस्ट बनने के लिए, अपना रूप बदल कर ही सही. तो आओगे न तुम?

-स्वप्निल.’’

स्वप्निल के इस संदेश को पहली बार आज समूह में सब ने खूब सराहा. बाद में इसे किसी ने वायरल कर दिया तो यह देश के सभी समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर छपा.

वास्तव में यह संदेश उन सब के लिए था जो बड़े लक्ष्य अर्जित करना चाहते थे और उन के लिए भी जो उन के मार्ग में रोड़ा अटका सकते थे.

सिंगल वूमन: क्या सुमित अपनी पड़ोसिन का पा सका

सुमित औफिस से लौटा तो सुधा किचन में व्यस्त दिखी. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज तो बाहर तक खुशबू आ रही है?’’

सुधा मुसकराई, ‘‘जल्दी से फ्रैश हो जाओ, गैस्ट आ रहे हैं.’’

‘‘कौन?’’

‘‘बराबर वाले फ्लैट में जो किराएदार आए हैं, मैं ने उन्हें डिनर पर बुलाया है.’’

‘‘अच्छा, कौन हैं?’’

‘‘एक सिंगल वूमन है और उस की 10 साल की 1 बेटी

भी है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुमित फ्रैश होने लगा. दोनों की 20 वर्षीय बेटी तनु और 17 वर्षीय बेटा राहुल भी अपनी बुक्स समेट कर डिनर के लिए तैयार थे.

सुधा ने तनु के साथ मिल कर डिनर टेबल पर लगाया. तभी घंटी की आवाज सुनाई दी. सुधा ने दरवाजा खोला और फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आओ अनीता, हैलो बेटा, अंदर आओ.’’

अनीता अपनी बेटी रिनी के साथ अंदर आई. सुधा ने अपने परिवार से उन का परिचय करवाया. सुमित उसे देखता ही रह गया. जींसटौप, कंधों तक लहराते बाल, सलीके से किया गया मेकअप… बहुत स्मार्ट थी अनीता. रिनी तनु और राहुल को हैलो दीदी, हैलो भैया कहती उन से बातें करने लगी. तनु और राहुल उस की बातों का आनंद उठाने लगे. सुमित अनीता के रूपसौंदर्य में घिर बैठा रहा. उस का अनीता के चेहरे से नजरें हटाने का मन नहीं कर रहा था. अनीता और सुधा बातों में व्यस्त थीं. सुमित कनखियों से अनीता को निहार रहा था. सुंदर गोरा चेहरा, खूबसूरत हाथपैर, उन पर लगी आकर्षक नेलपौलिश, हाथ में महंगा फोन, कान व गले में डायमंड सैट. वाह, क्या बात है, सुमित ने उसे मन ही मन खूब सराहा. फिर उन की बातों की तरफ कान लगा दिए. वह दवाओं की एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर थी. यहां मुंबई में इस फ्लैट में वह अपनी बेटी के साथ रहेगी. औफिस के कुछ सहकर्मियों ने उसे यह फ्लैट दिलवाया है. इस सोसाइटी में उस का अच्छा फ्रैंड सर्कल है.

खाने की तारीफ करते हुए अनीता और रिनी ने सब के साथ डिनर किया और फिर थैंक्स बोल कर चली गईं.

उन के जाने के बाद तनु ने कहा, ‘‘मम्मी, आंटी तो बहुत स्मार्ट हैं.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मुझे भी यह अच्छी लगी. इस से आतेजाते जितनी भी बातचीत हुई वह मुझे अच्छी लगी. अकेली है इसलिए आज बुला लिया था. वैसे भी इस फ्लोर पर दोनों फ्लैट बंद पड़े थे. खालीखाली सा लगता था. अब कोई तो दिखेगा.’’

सुमित मन ही मन सोच रहा था कि सिंगल वूमन, वाह, अकेली औरत मतलब आसान शिकार. अकेली है सौ काम पड़ेंगे इसे हम लोगों से. चलो, खूब टाइमपास होगा. और फिर मन ही मन अपनी सोच पर मुसकराया. फिर सुधा से बोला, ‘‘चलो, अब तुम्हारा मन लगा रहा करेगा.’’

‘‘हां, यह तो है,’’ सुधा ने कहा.

कुछ दिन और बीत गए. अनीता का घर सैट हो गया था. इस बिल्डिंग में 2 टू बैडरूम फ्लैट थे, तो 2 वन बैडरूम फ्लैट थे. सुमित का टू बैडरूम फ्लैट था और अनीता का वन बैडरूम. सुधा बड़ी उत्सुकता से अनीता की दिनचर्या नोट कर रही थी. उस ने सुधा की मेड को ही रख लिया था. सुबह उस से काम करवा कर अनीता रिनी को अपनी कार से स्कूल छोड़ती, फिर लंचटाइम में स्कूल से ले कर सोसाइटी में ही स्थित डे केयर सैंटर में छोड़ देती. वहां से शाम को ले कर लौटती. रिनी बहुत ही प्यारी और सम?ादार बच्ची थी. अनीता ने उसे बहुत मैनर्स सिखा रखे थे. अनीता दिन में व्यस्त रहती थी. शाम को खाली होती तो सुधा से मिलती. कभी उसे अपने यहां कौफी के लिए बुला लेती तो कभी खुद सुधा के पास आ जाती. अनीता की आत्मनिर्भरता सुधा को काफी अच्छी लगती.

शनिवार को अनीता और रिनी की छुट्टी रहती थी. दोनों मांबेटी मार्केट जातीं. कभी रिनी की फ्रैंड्स आ जातीं तो कभी अनीता की अपनी फ्रैंड्स. कुछ महीनों की दोस्ती के बाद अनीता सुधा से काफी घुलमिल गई थी. एकदिन उस ने अपने बारे में सुधा को इतना ही बताया था, ‘‘सुधाजी, मैं ने अपने पति और ससुराल वालों से निभाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन सब व्यर्थ गया. तलाक लेने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था. अब मैं रिनी के साथ अपनी लाइफ से बहुत खुश हूं.’’

सुधा मन ही मन अनीता की हिम्मत की दाद देती रहती थी. दोनों के संबंध काफी

अच्छे हो गए थे. सुमित अनीता से बात करने का मौका ढूंढ़ता रहता था, लेकिन सुमित के औफिस से आने के बाद अनीता कभी सुधा के घर नहीं जाती थी. सुमित यहांवहां देखता रहता. अनीता से तो उस का आमनासामना ही नहीं हो पा रहा था. कहां वह अनीता के साथ टाइमपास के सपने देख रहा था और कहां अब अनीता की शक्ल ही नहीं दिखती थी. एक दिन सुमित ने घुमाफिरा कर बातोंबातों में सुधा से कहा, ‘‘और तुम्हारी पड़ोसिन का क्या हाल है?’’

‘‘ठीक है.’’

सुमित थोड़ा ?ाल्लाया, यह सुधा तो उस की कोई बात बताती ही नहीं, फिर दोबारा पूछा, ‘‘मिलती है या नाम की पड़ोसिन है?’’

‘‘जब उसे टाइम मिलता है, मिलती है?’’

सुमित मन ही मन झंझलाया कि कब अनीता से मिलना होगा, कुछ तो करना पड़ेगा. क्या करे वह और फिर पता नहीं क्याक्या सोचता रहा.

संडे को जैसे सुमित के मन की मुराद पूरी हो गई. अनीता ने सुबह ही घंटी बजा दी. सुधा ने दरवाजा खोला तो परेशान सी कहने लगी, ‘‘रिनी को बहुत तेज बुखार है, कोई डाक्टर है, जो घर आ जाए?’’

सुधा ने कहा, ‘‘हांहां, अंदर आ जाओ, मैं नंबर देती हूं.’’

सुमित ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ रहा था. फौरन उठ कर खड़ा हो गया. अनीता को देख कर उस का चेहरा खिल उठा. नाइटसूट में अनीता उसे बहुत ही आकर्षक लगी फिर मन ही मन वह उस की सुंदरता की तारीफ करता रहा. प्रत्यक्षत: चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मैं डाक्टर को फोन करता हूं.’’

‘‘नहीं, थैंक्स, आप मुझे नंबर दे दें, मैं कर लूंगी.’’

सुधा ने नंबर लिख कर दे दिया. अनीता चली गई तो सुधा ने सुमित से कहा, ‘‘मैं जरा रिनी को देख आती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’

सुधा के साथ सुमित पहली बार अनीता के फ्लैट में गया. अनीता के घर में चारों ओर नजर दौड़ाई. घर पूरी तरह से आधुनिक साजसज्जा से सुसज्जित था. वाह, घर भी सुंदर सजाया है अपनी तरह. सुमित मन ही मन अनीता की हर बात पर फिदा हो रहा था.

सुधा ने रिनी का माथा छुआ. बोली, ‘‘हां, तेज बुखार है.’’

अनीता डाक्टर को फोन कर रही थी. लेकिन उधर से फोन उठाया नहीं गया तो कहने लगी, ‘‘संडे है, शायद सो रहे हों. ऐसा करती हूं अस्पताल ही ले जाती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं चलता हूं, आप रिनी को उठा लें. मैं कपड़े चेंज कर के गाड़ी निकालता हूं, आप नीचे आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मैं भी चलती हूं.’’

सुमित ने कहा, ‘‘नहीं, तुम क्या करोगी, बच्चों को क्लास के लिए उठाना है. मेड भी आने वाली होगी. मैं दिखा लाता हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुधा अपने घर

आ गई.

सुमित कपड़े चेंज कर के बोला, ‘‘बेचारी सिंगल वूमन है, परेशानी तो होती ही है.’’

सुमित कार की चाबी उठा कर नीचे उतर गया. अनीता भी रिनी को उठा कर कार तक पहुंची. सुमित ने एक नजर उस पर डाली,

टीशर्ट और जींस में अनीता का फिगर देख

कर एक आह भरी और फिर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.

अनीता ने कहा, ‘‘अगर आप को बुरा न लगे तो मैं रिनी के साथ पीछे बैठना चाहूंगी.’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ कह कर सुमित ने मन में सोचा, चलो फिर कभी आगे बैठेगी, फिर कोई काम तो पड़ेगा ही, साथ में तो है, पीछे ही सही. शीशे में सुमित उसे कई बार देखता रहा, वह पूरी तरह से रिनी में खोई थी. उसे बहुत तेज बुखार था. वह लगभग बेसुध थी.

डाक्टर ने चैकअप के बाद उसे तुरंत ऐडमिट कर लिया. अनीता ने एक फोन किया. आधे घंटे में उस की कई सहेलियां और दोस्त पहुंच गए. सब औफिस के लोग थे. लेकिन उस के शुभचिंतक हैं यह बात सुमित ने साफसाफ महसूस की. अनीता ने सुमित का परिचय पड़ोसी कह कर करवा दिया. सब के आने से सुमित असहज हो गया और फिर बोला, ‘‘मैं चलता हूं. कोई जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ और सुमित घर आ गया और सुधा को सारी बात बता दी.

सुधा सारे काम निबटा कर और अनीता के लिए खाना बना कर अस्पताल जाने के लिए तैयार हुई तो सुमित ने कहा, ‘‘वहां उस के कई जानपहचान वाले हैं, मैं ही जा कर दे आता हूं खाना,’’ सुमित ने मन ही मन सोचा ऐसा करने से अनीता के दिल में मेरे लिए खास जगह बनेगी. कुछ नजदीकी बढ़ेगी, मजा आएगा.

सुधा ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं शाम को चली जाऊंगी.’’

सुमित अच्छी तरह तैयार हो कर अनीता के लिए खाना ले कर अस्पताल पहुंचा तो उसे अकेली देख कर खुश हुआ. वह रिनी के पास अकेली बैठी थी. सब दोस्त जा चुके थे. अनीता ने खाने के लिए कई बार थैंक्स कहा. सुमित अनीता के साथ कुछ समय रह कर खुश था. वह थोड़ी देर रिनी की तबीयत के बारे में बात करता रहा. वह अपनी तरफ से अनीता को प्रभावित करने

का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था. तभी अनीता की एक सहेली भी खाना ले आई, तो अनीता हंस पड़ी. बोली, ‘‘मेरा ध्यान रखने वाले कितने लोग हैं.’’

थोड़ीबहुत बातों के बाद सुमित घर लौट आया. शाम को सुधा अनीता के लिए डिनर ले कर गई. अनीता ने प्यार से सुधा का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आप मेरे लिए कितना कर रही हैं… थैंक्यू वैरी मच.’’

‘‘तो क्या हुआ अनीता, हम दोस्त हैं, पड़ोसी हैं, इतना तो हमारा फर्ज बनता ही है, तुम बेकार की औपचारिकता में न पड़ कर बस रिनी की देखभाल करो. और हां, सुबह तो तुम ऐसे ही उठ कर आ गई थीं, रात को रुकने के लिए तुम्हें कपड़े चाहिए होंगे न. ऐसा करो मैं यहां बैठी हूं, जो चाहिए जा कर ले आओ.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं अपना कुछ सामान ले आती हूं.’’

सुमित फौरन खड़ा हो गया, ‘‘आइए, मैं ले चलता हूं.’’

अनीता ने हां में सिर हिलाया तो सुमित का मन खिल उठा कि कार में बस वह और अनीता, वाह.

बराबर की सीट पर बैठी अनीता को सुमित ने कनखियों से कितनी बार देखा, अपने मन के चोर को उस ने किसी भी हावभाव से बाहर नहीं आने दिया. बाहर से वह एकदम शिष्ट, सभ्य पुरुष बना हुआ था, लेकिन अंदर ही अंदर मन में कुटिलता लिए एक अकेली औरत को प्रभावित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था.

रास्ते भर दोनों की कोई खास बात नहीं हुई, लेकिन सुमित खुश था. अनीता के कई दोस्त आ गए तो सुधा और सुमित घर लौट आए. रात को बैड पर सुमित की आंखों के आगे अनीता का चेहरा आता रहा.

सुधा ने प्यार से कहा, ‘‘आज तो संडे को काफी व्यस्त रहे तुम, आराम नहीं कर पाए.’’

‘‘तो क्या हुआ? सिंगल वूमन है पड़ोस

में, इतना तो करना ही पड़ता है… बेचारी

अकेली औरत…’’

‘‘हां, यह तो है. लेकिन काफी हिम्मती है, घबराती नहीं है बिलकुल भी. मु?ो उस की यह बात बहुत अच्छी लगती है.’’

अगले दिन सोमवार को सुमित ने औफिस जाते हुए कार अस्पताल के बाहर रोकी, अनीता उसे सुबहसुबह देख कुछ हैरान हुई. रिनी ठीक थी. जब अनीता ने बताया कि शाम तक छुट्टी मिल जाएगी तो सुमित ने कहा, ‘‘ठीक है, औफिस से सीधा इधर ही आ जाऊंगा, साथ ही चलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी फ्रैंड आ जाएगी कार ले कर.’’

‘‘अरे, एक ही जगह जाना है, उन्हें क्यों परेशान करेंगी?’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं उन्हें फोन कर के मना कर दूंगी.’’

सुमित औफिस चला गया और दिन भर अनीता के खयालों में डूबा रहा. शाम को अनीता और रिनी को ले कर घर आ गया.

अनीता घर आ कर भी बारबार सुधा और सुमित को थैंक्स बोलती रही. सुधा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा खाना ले कर आती हूं, रिनी के लिए मैं ने सूप और खिचड़ी बना दी है.’’

‘‘आप मेरा कितना ध्यान रखती हैं सुधाजी.’’

सुधा ने अनीता का कंधा प्यार से थपथपा दिया. अगले दिन अनीता ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस की फ्रैंड्स आतीजाती रहीं. फिर पुराना रूटीन शुरू हो गया. कुछ दिन और बीत गए. अब अनीता और रिनी सुधा से और खुल चुकी थीं. कभीकभी सुमित टूर पर होता तो तीनों मूवी देखने जातीं. बाहर खातीपीतीं. तनु और राहुल तो अनीता आंटी के फैन थे. कुल मिला कर सब सामान्य था. बस सुमित के मन में अनीता को ले कर क्या चलता रहता था, यह वही जानता था. अब उसे इस बात का विश्वास हो गया था कि अनीता भी उस से इंप्रैस्ड है और अगर वह कोई हरकत करता है तो वह पक्का आपत्ति नहीं करेगी. किसी पुरुष के साथ की उसे भी तो जरूरत होती होगी. सुधा के प्यार और विश्वास की एक बार भी चिंता न करते हुए वह अनीता से नजदीकी के सपनों में डूबा रहता.

एक दिन अचानक सुधा के मायके से फोन आया. दिल्ली में उस की मम्मी की तबीयत खराब थी.

सुमित ने फौरन दिल्ली के लिए उस की फ्लाइट बुक की. मेड को खाना बनाने के कई निर्देश दे कर सुधा दिल्ली के लिए फौरन तैयारी करने लगी. सुधा को एअरपोर्ट छोड़ कर आते हुए सुमित कई तरह की योजनाएं बनाता रहा. तनु और राहुल कालेज चले जाते, सुमित अनीता से बात करने के मौके ढूंढ़ता रहता. लेकिन सुधा के जाने के बाद अनीता बच्चों से तभी मिलती जब सुमित औफिस में होता. सुमित सोचता रहा और 6 दिन बीत गए थे. सुमित सोच रहा था आज तनु और राहुल को एक बर्थडे पार्टी में जाना है, सुधा कल सुबह आ जाएगी, उस की मम्मी अब ठीक है, रिनी 8 बजे तक सो ही जाती है. आज ही मौका है, आज ही वह अनीता के और करीब जाने की कोशिश करेगा. वह मन ही मन कई योजनाएं बनाता रहा.

शाम को तनु और राहुल पार्टी में चले गए. कह कर गए थे 11 तो बज ही जाएंगे. सुमित ने नहाधो कर बढि़या कुरतापाजामा पहना, परफ्यूम लगाया, घर में बढि़या रूमस्प्रे किया, बैडरूम ठीक किया. मेड जो खाना गरम कर के रख गई थी, गरम कर के खाया. समय देखा, 9 बज रहे थे. सुधा से भी फोन पर बात कर ली थी. तनु व राहुल से भी बात कर ली थी. उन्हें आने में अभी काफी समय था. रिनी सो ही चुकी होगी. सब मन ही मन हिसाब लगा कर सुमित ने अनीता के घर की घंटी बजाई. उस ने दरवाजा खोला तो सुमित ने कहा, ‘‘एक तकलीफ देनी है आप को.’’

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘प्लीज, 1 कप कौफी बना देंगी? पता नहीं सुधा ने कहां रखी है, मिल नहीं रही है. सिर में बहुत दर्द हो रहा है, आप को कोई प्रौब्लम तो नहीं होगी न?’’

‘‘अरे नहीं, आप चलिए, मैं लाती हूं.’’

‘‘आप को भी इस समय कौफी पीने की आदत है न, अपनी भी ले आइए, साथ ही पी लेंगे,’’ कह कर सुमित अपने घर आ गया.

10 मिनट बाद घंटी बजी. अनीता ट्रे में 1 कप कौफी लिए आई. उस ने अनीता को हाथ से अंदर आने का इशारा किया. अनीता जैसे ही अंदर आई, सुमित ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. पूछा, ‘‘आप अपने लिए

नहीं लाईं?’’

ट्रे टेबल पर रख कर अनीता जैसे ही सीधी हुई, सुमित ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बैठो न, कब से तुम से कुछ कहना चाह रहा था,’’ फिर अचानक अनीता की बगल में दबे बैग को देखते हुए बोला, ‘‘इस में क्या है?’’

अनीता ने एक व्यंग्यभरी मुसकान उस पर डाली, बैग की चेन खोल कर स्प्रे निकाला. बोली, ‘‘यह खास स्प्रे है. क्या आप देखेंगे कि कैसे काम करता है?’’ सुमित ने सोचा कि कोई मादक स्प्रे होगा. वह और निकट खिसका तो अनीता ने उस पर स्पे्र कर दिया.

अनीता गुर्राई, ‘‘उन लंपट पुरुषों का इलाज हमेशा मेरे पास रहता है, जो सिंगल वूमन को आसान शिकार सम?ाते हैं,’’ फिर सुमित का चेहरा देख कर बोली, ‘‘उफ सौरी यह तो आप पर स्प्रे हो गया.’’

सुमित बुरी तरह कराह रहा था. अनीता बोली, ‘‘आप मुंह धो लो. शायद रात भर में उतर जाए और कोई गलतफहमी हो तो वह भी दूर हो जाएगी,’’ और फिर अनीता बड़े आराम से सुमित के घर से निकल कर चली गई.

सुमित छटपटाता हुआ जल्दी से बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा हो गया, आंखें बुरी तरह जल रही थीं, वह अनीता को गालियां दे रहा था. आंखों की जलन कम हुई तो जल्दी से गीले कपड़े मशीन में डाले, कपड़े बदले. तनु, राहुल आए तो सुमित की लाल आंखें देख कर परेशान हो उठे.

‘‘बस, आई इन्फैक्शन है, तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ कह कर सुमित जल्दी सोने चला गया.

सुबह सुधा खुद ही टैक्सी ले कर आ गई थी. आ कर सब से बातें करती रही, फिर दिल्ली से लाई मिठाई अनीता को देने गई. फिर लौट कर बोली, ‘‘कितनी तेज बारिश हो रही है… देखो पहले रिनी को स्कूल छोड़ेगी, फिर औफिस जाएगी, बेचारी सिंगल वूमन, कितनी परेशानियां होती हैं इन की लाइफ में.’’

‘‘कोई बेचारीवेचारी नहीं होती हैं सिंगल वूमन,’’ सुमित ने कहा तो सुधा कुछ सम?ा तो नहीं, बस उस का मुंह देखती रह गई जो अभी तक लाल था.

वह चमकता सितारा : मशहूर होने के बाद भी क्यों वह गुमनाम जिंदगी जीने लगा

 Writer- सबा नूरी

सोने और हीरों की चकाचौंध वाली लाइट्स, छत से ले कर दीवारों तक अनेक कैमरे और कांच जैसे फर्श वाला विशाल मंच. मंच के एक ओर अनेक वाद्ययंत्र संभाले हुए वादक मंडली. मंच के बिलकुल सामने विराजमान 4 जजेस और उन के पीछे मौजूद दर्शकों का हुजूम.

यह दृश्य था एक सिंगिंग शो के सैट का. नाम की उद्घोषणा के साथ ही प्रियांश ने एक मीठी मुसकान लिए मंच पर प्रवेश किया. एक कर्णप्रिय धुन के साथ उस ने माइक के सामने खड़े हो कर अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरना शुरू किया. उस की आवाज औडिटोरियम में खुशबू की तरह फैलने लगी थी. कुरसियों पर बैठे जज कानों में हैडफोन लगाए आंखे मूंदे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो उस के गायन को अपनी रूह में  उतार लेना चाहते हों और दर्शक भी जैसे सांस रोक कर गीत को महसूस कर रहे थे.

गाना खत्म हुआ और हाल तालियों से गूंज उठा. ऐंकर्स ने दौड़ कर मंच संभाला और एक ने तो उसे कंधे पर उठा लिया. दर्शक ‘वंस मोर’ ‘वंस मोर’ के नारे लगाने लगे. जजेस ने स्कोर कार्ड से पूरेपूरे नंबर देने का इशारा किया. प्रियांश ने सभी का अभिवादन किया और फिर

अगले प्रतिभागी की बारी आई.

दरअसल, यहां ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज कार्यक्रम में देशभर से चुनिंदा गायकों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए बुलाया गया था. अनेक युवकयुवतियां यहां मौजूद थीं.

प्रियांश भी अपने गांव से ‘सिंगिंग स्टार’ बनने का सपना लिए यहां मुंबई आया था. हां वह अलग बात थी कि कुछ समय पहले तक उस का लक्ष्य एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना ही था और उस की जीतोड़ मेहनत और उस के पिता की कोशिश से उसे ग्राम पंचायत में सहायक के तौर पर चयन होने का चयनपत्र मिल चुका था.

इसी बीच सिंगिंग स्टार वाले टेलैंट की खोज में गांव आए और उन्हें प्रियांश की आवाज इतनी भा गई कि उन्होंने उसे मुंबई बुला लिया और बचपन से गाने के शौकीन रहे प्रियांश को जैसे सपनो का जहान मिल गया. अब उसे सहायक पद की सरकारी नौकरी में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था.

प्रियांश एक मृदुभाषी, होनहार और आज्ञाकारी युवक था. लेकिन न जाने इस ग्लैमर की दुनिया में क्या आकर्षण था कि मातापिता के न चाहते हुए भी वह गायकी की दुनिया में नाम कमाने मुंबई आ गया.

फिल्मसिटी की चकाचौंध ने उसे आसमान में उड़ने के पंख दे दिए थे. अपने गांव में रहते हुए वह कभी इस ग्लैमरस दुनिया का हिस्सा नहीं बन सकता था. बड़ीबड़ी गाडि़यों से उतरती छोटेछोटे कपड़े पहने हाई हील्स पर चलती हसीनाएं. महंगे जूतोंकपड़ों में इठला कर चलते आदमी. सबकुछ इतने नजदीक से देख और महसूस कर पाना कोई मामूली बात न थी. उसे भी स्टेज पर गाना गाने का और टीवी पर आने का मौका मिलने वाला था. कुछ ही समय बाद ये ऐपिसोड्स टीवी पर आएंगे यह सोच कर ही वह रोमांचित हो उठता.

आयोजकों की ओर से सभी प्रतिभागियों को फाइवस्टार होटल में ठहरने का अच्छा प्रबंध किया गया था. सैपरेट कमरों में सभी को रहनेखाने की उच्च स्तरीय सुविधाएं दी गई थीं. ऐसी भव्य इमारतों में एक दिन भी रहने को मिल जाए तो लगता है कि कहीं स्वर्ग में आ गए हों. ऐसे में यह अनुभव तो दुनिया बदलने वाला था.

होटल से शूटिंग साइट पर प्रतिभागियों को लाने ले जाने के लिए शो की तरफ से गाडि़यां उपलब्ध थीं. इस के अलावा कहीं और आनेजाने की अनुमति इन लोगों को नहीं थी. बस सप्ताह में एक बार प्रबंधक से अनुमति ले कर ये प्रतिभागी कहीं बाहर जा सकते थे.

उस दिन प्रियांश ने अपने साथियों रेहान, कुणाल और अमन के साथ मुंबई घूमने की योजना बनाई. रेहान बीटैक प्रथम वर्ष का छात्र था, जोकि पुणे में रह कर पढ़ाई कर रहा था, वहीं कुणाल के पिता का रामपुर में कपड़े का व्यापार था. चौकलेटी लुक वाले कुणाल को उस का सिंगिंग का शौक यहां खींच लाया था तो अमन ने बीकौम अंतिम वर्ष की परीक्षा दी थी और अपने घर जयपुर से ही मैनेजमैंट के कोर्स की तैयारी करना चाह रहा था. संगीत के साथसाथ शौहरत, ग्लैमर और वाहवाही किसे नहीं अच्छी लगती. बस इसी आकर्षण ने इन सब को यहां पहुंचा दिया था.

मैनेजर से अनुमति ले कर ये लोग निकल पड़े. दिनभर घूमफिर कर शाम को डूबते सूरज को निहारने के इरादे से ये सब जुहू चौपाटी पहुंच गए. समुद्र की चंचल लहरों और ठंडी हवा के साथ शाम कब रात में तबदील हो गई पता ही न चला. रंगबिरंगी रोशनियों में जुहू बीच और सुंदर लग रहा था. थोड़ी भूख लग आई थी  तो इन्होंने ने बीच पर ही स्थित एक रैस्टोरैंट का रुख किया. समुद्र के रेत पर आकर्षक रंगीन छतरियों के नीचे कुरसीमेज, हलका पार्श्व म्यूजिक इस स्पौट को और अधिक लुभावना बना रहा था.

‘‘क्या और्डर किया जाए?’’ प्रियांश ने पूछा.

‘‘कुछ हलका ही लेंगे डिनर तो होटल में ही करना है,’’ अमन ने उत्तर दिया तो रेहान ने भी हां में सिर हिला कर उस का साथ दिया.

‘‘ओके. 1-1 वड़ा पाव और चाय?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रियांश के प्रस्ताव पर तीनों ने अंगूठे के इशारे से सहमति दी.

प्रियांश ने वहां इशारे से एक युवक को पास बुलाया और और्डर बता दिया. कुछ ही देर में वह युवक ट्रे में चाय और नाश्ता ले कर आता हुआ नजर आया और बहुत धीमेधीमे चाय और नाश्ते की प्लेटो को मेज पर रखने लगा. प्रियांश ने देखा कि उस युवकों के हाथ कांप रहे हैं. कांपते हाथों को देख कर उस ने उस युवक की ओर ध्यान दिया और बड़े गौर से उस के चेहरे की ओर देखा और फिर तो उछल ही पड़ा प्रियांश और उस युवक का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया. इस हरकत से युवक घबरा गया और हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा और प्रियांश उसे देखते हुए कहता जा रहा था कि तुम. तुम तो अभि हो. तुम तो अभि हो न…

इसी बीच किसी तरह अपना हाथ छुड़ा कर वह युवक तेजी से रैस्टोरैंट में अंदर की ओर भाग खड़ा हुआ. प्रियांश भी खुद को उस के पीछे भागने से रोक न पाया और अंदर काउंटर तक पहुंच गया.

‘‘क्या हुआ क्या चाहिए?’’ एक भारी आवाज सुन कर वह पलटा. सफेद मलमल का कुरता, सफेद पाजामा, वजनदार काया, बालों और दाढ़ी में बराबर की सफेदी और सिर पर टोपी रजा साहब उसे वहां देख कर पूछ रहे थे.

‘‘सर वह जो अभी अंदर गया है वह.’’

‘‘कोई नहीं है वह जाओ यहां से…

‘‘सर वह मेरे गांव का ही है और मैं…’’

‘‘अरे कहा न जाओ यहां से.’’

रैस्टोरैंट के मालिक रजा साहब बात के पक्के थे और बड़े भले आदमी थे. कैसे बता देते जब मना किया गया था तो. किसी का भरोसा तोड़ना उन की फितरत न थी.

प्रियांश भारी कदमों से वापस आ गया. इधर रेहान और कुणाल प्रियांश की इस हरकत पर हंस हंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे.

‘‘यार कोई आशिक भी लड़की के पीछे ऐसे नहीं भागता जैसे तू उस लड़के के पीछे भागा है,’’ कुणाल जोरों से हंस रहा था.

‘‘हंस मत यार तू नहीं जानता वह कौन है.’’

‘‘होगा तेरे गांव का कोई लड़का और तू बेचारे की पोलपट्टी खोल देगा गांव में इसीलिए छिप रहा है तु?ा से,’’ अब रेहान की बात पर कुणाल ने भी हामी भरी.

‘‘ऐसा नहीं है,’’ प्रियांश ने जोर दे कर कहा.

‘‘ऐसा है हम लेट हो गए हैं, टाइम पर वापस होटल पहुंचना है,’’ अमन अपनी कुसी से उठ खड़ा हुआ और इन सब ने वापसी की राह पकड़ी.

 

रात के 2 बज गए थे मगर प्रियांश को नींद नहीं आ रही थी. उसे रहरह कर अभिलाष

का चेहरा याद आ जाता. हां अभिलाष ही था वह. कितना स्मार्ट दिखता था पहले वह और अब तो दुबला, शरीर सांवली पड़ चुकी रंगत, आंखों में सूनापन. कैसे सब गांव में मिसाल दिया करते थे अभिलाष की. फिर कहां गया वह कुछ पता न चला. रातोंरात मिली शोहरत तो नजर आती है लेकिन बाद में उस मशहूर शख्स के साथ क्या हुआ यह नहीं पता चलता.

अगली ही सुबह प्रियांश ने प्रबंधक से बाहर जाने देने का अनुरोध किया पर उसे अगले सप्ताह ही जाने की अनुमति मिल पाई. किसी तरह एक सप्ताह बीता और वह सीधा रैस्टोरैंट मालिक रजा साहब के पास जा पहुंचा. उसे भरोसा था कि वही उस की मदद कर सकते हैं. प्रियांश ने उन्हें अपने बारे में सबकुछ बताया. रजा साहब को अपनी नेक नीयत का यकीन दिलाना आसान नहीं था. प्रियांश ने अपने घर पर फोन कर के अपने पिता से उन की बात कराई और बताया कि वह उस युवक का भला चाहता है. तब वे प्रियांश को अंदर कमरे में ले गए और एक ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘हां, चला गया वह यहां से,’’ और फिर जो कुछ उन्होंने बताया उस के बाद तो प्रियांश के पैरों तले जमीन खिसक गई.

उन्होंने बताया, ‘‘ऐसे न जाने कितने लोग आते हैं मुंबई, वह भी आया था. अपनी पहचान छिपाए यहां काम कर रहा था. अब दिक्कत यह है कि कहीं छोटामोटा काम मिल जाता है तो तुम जैसे लोग पहचान लेते हो. फिर वही लोगों के सवालजवाब पिछली बातों को याद दिला देते हैं. पिछले 1 महीने से यहां काम कर रहा था वह, किसी तरह अवसाद से निकलने की कोशिश में. रीहैब सैंटर में कई माह बिताने के बाद इस लायक हुआ था कि अपने पैरों पर खड़ा हो सके.’’

प्रयांश ने अपना सिर पकड़ लिया. रजा साहब ने उस के कंधे थपथपाए और पानी पिलाया. फिर एक कपड़े का बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह कुछ सामान उस का यहीं रह गया है. तुम कभी गांव जाओ तो उस के घर पर दे देना.’’

प्रियांश दुखी मन से होटल के कमरे पर वापस आ गया. वह रहरह कर अपराधी सा महसूस कर रहा था. उस ने उस थैले को दोनों हाथों में उठाया और सीने से लगा कर रो पड़ा. कुछ शांत हुआ तो उसे उस थैले में कुछ कागज जैसे रखे मालूम हुए. उस ने बैग को खोला कुछ पुराने कपड़े, दवाइयों के अतिरिक्त उस में एक लिफाफा भी था. लिफाफा खोलने पर मिली एक चिट्ठी आज के जमाने में चिट्ठी और उस पर भी कोई पता नहीं लिखा था. उस ने उस चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया:

‘‘मेरे प्यारे साथियो,

‘‘यह चिट्ठी मैं तब लिख रहा हूं जब मेरे सभी चाहने वाले मु?ो भूल चुके हैं. नाम भी बता दूं तब भी शायद ही किसी को याद आऊं क्योंकि ऐसे न जाने कितने नाम रोशन हुए और खो गए. किसकिस को याद रखा जाए.

 

‘‘एक वक्त था जब मेरा सितारा बुलंदियों पर था. मैं था

‘सिंगिंग स्टार औफ इंडिया.’ चारों ओर मेरे सिंगिंग टेलैंट की धूम मची हुई थी. मु?ो चैनल्स से इंटरव्यू के लिए कौल आ रहे थे. सोशल मीडिया पर मैं ही छाया हुआ था. मु?ो जैसे रातोंरात किसी ने आसमान पर बिठा दिया था.

‘‘दरअसल, मैं बिहार के छोटे से गांव माधोपुर का आम सा लड़का. मु?ो बचपन से ही गाने का शौक था और लोकगीत मंडलियों में मैं गाया करता था. मेरे गांव में आए ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज वालों को मेरी आवाज भा गई और उन्होंने मु?ो शो के लिए मुंबई आने का औफर टिकट के साथ दे दिया.

‘‘बस फिर क्या था? मैं मुंबई पहुंच गया. एक सुपरहिट सिंगिंग शो में कंटैस्टैंट के तौर पर मेरी ऐंट्री हुई. हर ऐपिसोड में अन्य प्रतिभागियों के साथ मेरा कंपीटिशन होता और मैं एक के बाद एक लैवल पार करता गया.

‘‘वहां कुरसी पर बैठे जजेस मेरे गाने और आवाज की भरपूर तारीफें करते, मेरी हरेक परफौर्मैंस पर फिदा हो जाते, अदाएं दिखाते और नएनए तरीकों से मेरे टेलैंट का बखान करते.

‘‘तब वहां ऐपिसोड की शूटिंग के दौरान मु?ो एक नई चीज पता चली जिसे ‘टीआरपी’ कहते हैं. चैनल को और अधिक टीआरपी चाहिए थी.

‘‘फिर एक दिन उन्होंने मु?ा से कहा कि मैं अपनी मां और बहन को मुंबई बुला लूं. वे मु?ो यहां स्टेज पर देख कर बहुत खुश होंगी. बस फिर तो मेरी मां और मेरी नेत्रहीन बहन भी अब शो के हर ऐपिसोड का हिस्सा बनने लगी. मेरी मां की गरीबी और बहन की नेत्रहीनता ने चैनल की ‘टीआरपी’ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मैं बहुत खुश था. खुश तो मां भी बहुत थी.

‘‘अब जैसे ही मेरा गाना पूरा होता तो वहां बैठे दर्शक मेरी कहानी पर आंसू बहाते. मेरी मां और बहन की बेबसी टीवी पर हाथोंहाथ बिक रही थी. एक अच्छी बात यह थी कि उन में से कई जजेस ने मु?ा से शो के दौरान वादा किया कि वे मु?ो अपने आने वाले म्यूजिक अलबम्स में काम देंगे और मेरी आर्थिक मदद करेंगे.

‘‘दर्शकों के प्यार और जजेस की भरपूर प्रशंसा ने जैसे मु?ो पंख लगा दिए थे. लगभग हर ऐपिसोड में मेरी गरीबी और लाचारी की चर्चा होती. उन्होंने मेरे गांव के घर का वीडियो भी बनाया था, जिस में घर के परदों पर लगे पैबंदों को बड़ी बारीकी से दिखाया गया था. मेरे दोस्तों, रिश्तेदारों से बात भी कराई थी. सब ने भरभर कर मेरी तारीफें की थीं. सबकुछ किसी सपने जैसा लग रहा था. मु?ा जैसे आम से व्यक्ति को आज इन बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए मैं इन शो वालों का बेहद एहसानमंद था.

‘‘और फिर वह दिन भी आया जब शो का फाइनल ऐपिसोड हुआ और ये वह खूबसूरत दिन था जब मैं ‘सिंगिंग स्टार औफ द इंडिया’ चुन लिया गया.

‘‘मु?ो शो जीतने के एवज में आयोजकों की ओर से एक अच्छी रकम का चैक दिया गया. खिताब जीतने के बाद तो मेरी दुनिया ही बदल गई.

‘‘सोशल मीडिया चैनल्स पर मेरे फोटो, वीडियो फ्लैश होते रहते. मेरी गरीबी और कामयाबी की कहानियां सुनाई जातीं. मु?ा से टीवी ऐंकर मेरी सुरीली आवाज के राज पूछते. लगभग रोज ही किसी न किसी शो में शामिल होने के लिए मेरे पास फोन आते रहते. इसी बीच मु?ो मेरे गांव की ओर से स्वागत निमंत्रण मिला.

‘‘गांव पहुंचने पर मेरा जोरदार स्वागत हुआ. फूलमालाओं से लाद कर मु?ो खुली जीप में घुमाया गया. अपने पीछे भीड़ चलती देख मैं खुशी से गदगद हो जाता.

‘‘मैं बहुत खुश था. अब हमने गांव में अपना पक्का मकान बना लिया और नए परदे भी लगा लिए थे. दोस्त, रिश्तेदार सभी बहुत इज्जत दे रहे थे. लेकिन अब काम के सिलसिले में मु?ो मुंबई में ही रहना था तो हम ने एक फर्नीश्ड फ्लैट किराए पर ले लिया. किराया काफी ज्यादा तो था लेकिन यह फ्लैट जरूरी था हमारे लिए. कई महीने हंसीखुशी में बीत गए. लेकिन वह कहते हैं न कि रातोंरात मिली कामयाबी ज्यादा देर तक नहीं टिकती, तो वही हुआ.

‘‘इनाम की धनराशि अब खत्म होने लगी थी. मु?ो चिंता होने लगी थी क्योंकि अभी तक मेरे पास कोई काम नहीं था. मुंबई जैसे बड़े शहर में रहनसहन के लिए अच्छी आमदनी का होना बहुत जरूरी था.

‘‘मैं ने 1-1 कर उन सभी म्यूजिक डाइरैक्टर्स को कौंटैक्ट किया जिन्होंने शो के दौरान मु?ो अपने फोन नंबर दिए थे और काम देने का वादा किया था. मगर फिर जो हुआ उस की मु?ो उम्मीद नहीं थी क्योंकि कोई भी मेरा फोन नहीं उठा रहा था.

‘‘किसी प्रोड्यूसर की पीए से बात हुई भी तो उस ने ‘सर बिजी हैं’ कह कर फोन काट दिया और बाद में तो वे सभी नंबर बंद ही आने लगे. मु?ो काम देने के जो कौंट्रैक्ट कैमरे के सामने साइन किए गए थे वे कागज मेरे सामने पड़े मुंह चिढ़ा रहे थे.

 

‘‘धीरेधीरे मेरी ख्याति कम होने लगी और साल खत्म होतेहोते मेरा

क्रेज बिलकुल खत्म हो गया. मैं बहुत परेशान रहने लगा. थक कर मैं अपने गांव वापस आ गया और फिर से अपनी मंडलियों का रुख किया. लेकिन वहां तो पहले ही बड़ा कंपीटिशन था. जो लोग गाने के लिए चयनित हो चुके थे वो किसी और को अपनी जगह नहीं दे रहे थे. कुल मिला कर मेरे पास कोई काम नहीं था. मेरी मां को वापस अपना सिलाई का काम शुरू करना पड़ा.

‘‘मैं अवसाद का शिकार हो चुका था. एक दिन मैं ने नींद की गोलियां खा कर अपनी जान देने की कोशिश की. मगर बचा लिया गया. मेरे कुछ साथियों ने मु?ो शहर ले जा कर मानसिक चिकित्सक को दिखाया. यहां से मु?ो रिहैबिलिटेशन सैंटर भेज दिया गया. कई महीने रिहैब में गुजारने के बाद मेरी स्थिति पहले से बेहतर तो हो गई, मगर पिछली जिंदगी में लौटने के भी सारे दरवाजे बंद हो चुके थे.लोग मु?ो पहचान जाते और हंसते मु?ा से तरहतरह के सवाल पूछते और आगे बढ़ जाते.

‘‘यह दुनिया सिर्फ उगते सूरज को सलाम करती है. मु?ो किसी से कोई शिकायत नहीं. अब मु?ो सम?ा आ चुका था कि यह कामयाबी यह शोर मेरा नहीं था. यह तो बस चैनल वालों का था. शो खत्म मैं भी खत्म. फिर किसी अगले शो के अगले सीजन में किसी मु?ा जैसे गरीब छोटे गायक को शिकार बनाया जाएगा. हां. मैं एक दिन इस अंधेरे से बाहर जरूर निकल आऊंगा. इंतजार में एक गुमनाम गायक ‘‘अभिलाष.’’

पत्र पढ़ कर प्रियांश की आंखों से आंसू बह निकले. जैसे अपना ही आने वाला कल उस की आंखों के सामने आ गया. साल दर साल कितने ही गायक ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेते हैं मगर कुछेक के अलावा बाकी सब न जाने कहां गुम हो जाते हैं. क्या वह खुद भी कल ऐसे ही… नहीं. ऐसा नहीं होगा. अपने मातापिता का चेहरा उस की नजरों के सामने घूम गया. तो फिर किया क्या जाए? क्या हाथ आए अवसर को ऐसे ही ठुकरा दे? उस के माथे पर पसीने को बूंदें उभर आईं.

तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजा खोलने पर सामने अमन और रेहान तैयार खड़े थे, ‘‘क्या हुआ? रियाज करने नहीं चलना,’’ पूछते हुए अमन ने उस के हाथ से वह पत्र ?ाटक लिया और पढ़ने लगा. पत्र देख रेहान भी उस के साथ शामिल हो गया. तभी कुणाल भी वहीं आ गया और पत्र देख सारी बात सम?ाते उन्हें देर न लगी.

‘‘यार, तो उस दिन वह युवक अभिलाष था?’’ अमन ने पत्र रखते हुए अचरज से पूछा.

‘‘हां,’’ प्रियांश सोफे पर निढाल हो गया.

विशाल,कीर्ति, सिद्धार्थ… फिर तो कितने ही नाम याद आ गए जो किसी न किसी सीजन में विनर रहे थे मगर आज किसी को याद तक नहीं.

‘‘गाइज सब के साथ बुरा नहीं होता. आई एम श्योर वह और बाकी सब भी कहीं न कहीं सैटल हो ही गए होंगे लाइफ में,’’ अमन बोला.

‘‘औफकोर्स,’’ रेहान ने कहा.

‘‘लेकिन सवाल तो उन का है जो कहीं के नहीं रहे.’’

‘‘हां,’’ तीनों ने एक सुर में कहा, ‘‘और सवाल यह भी है कि हम क्या कर सकते हैं.’’

‘‘यार अभिलाष को अवसाद से निकालने की कोशिश तो हमें करनी चाहिए,’’ अमन ने कहा और फिर उन्होंने अगली शूटिंग के सैट पर आयोजकों से मिलने की योजना बनाई.

 

प्रोडक्शन टीम को लड़कों की कोशिश अच्छी लगी. इसीलिए उन्होंने

प्रोड्यूसर आदित्य सर के साथ मीटिंग कर के तय किया कि वे 2 ऐपिसोड्स इस शो के भूलेबिछड़े लेजैंड्स गायकों को केंद्र में रख कर प्लान कर लेंगे. लेकिन अभिलाष या उस जैसे और भी किसी लेजैंड को प्रोडक्शन टीम के पास लाने की जिम्मेदारी ये लोग लें तो. इन लड़कों ने इस के लिए हामी भर दी.

अगले ही दिन ये चारों रजा साहब के पास रैस्टोरैंट पहुंचे और पूरी बात बताई. उन्होंने यहां काम करने वाले सभी लड़कों को बुलाया और इन लोगों से मिलवाया उन में से एक ने उन्हें एक ‘एनजीओ’ का पता दिया. शहर के कोलाहल से कुछ दूर स्थित इस बिल्डिंग को खोजने में कोई खास दिक्कत न हुई. लेकिन असल दिक्कत तो अभी बाकी थी और वह थी और्गेनाइजेशन की निरीक्षक और डाक्टर माहिरा आलम जो किसी भी अपरिचित को अपने किसी पेशैंट से मिलने नहीं देती थीं. उन का कहना था कि अनजान लोग सिर्फ दिल्लगी के लिए ही इन अवसादग्रस्त लोगों के पास आते हैं और इन के जख्मों को छेड़ कर फिर से ताजा कर देते हैं.

कोई घंटे भर के इंतजार के बाद आखिरकार एक वार्ड बौय ने आ कर खबर दी कि डाक्टर अब फ्री हैं. अब वे उन से मिल सकते हैं. लंबे कद की उजली रंगत वाली डाक्टर माहिरा अपने सवालिया अंदाज में रूबरू थीं.

‘‘आज अचानक कैसे याद आ गई आप सब को? अभिलाष करीब 1 साल से यहां हैं और इतने अरसे में मैं ने आप में से किसी को नहीं देखा न ही आप के बारे में कुछ सुना. तो फिर अब कैसे? और जब वह अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने बाहर की दुनिया में गया भी तो कुछ लोगों की मेहरबानी से वापस यहीं आ गया.’’

‘‘वे लोग हम ही थे,’’ प्रियांश, रेहान, अमन और कुणाल की चोर नजरों ने जैसे एकदूसरे से यही कहा.

डाक्टर का सवाल जायज था. लेकिन अब कैसे वे इन्हें सम?ाएं कि अभिलाष में खुद को देख रहे थे वे. इस आम से लड़के को जब शोहरत की बुलंदियों पर देखा था उस दिन के बाद वे और न जाने कितने लड़के उस जैसा बनने के सपने देखने लगे थे, जिसे आज तक टीवी पर गाते देखासुना उस की ऐसी दुर्दशा की कल्पना भी करना मुश्किल था और ऐसे में जब वह सामने आया तो उस की यह हालत देख कर यों ही छोड़ दें. यह इन से हो न सका और फिर यह कुदरत का करिश्मा है जो लोगों को एकदूसरे से मिला देती है.

मगर डाक्टर को इस से क्या. उन्हें थोड़े ही इस तरह तसल्ली हो जानी थी. उन के अनुसार तो लोग सिर्फ स्टोरी के लिए ही यहां आते हैं.

मगर ‘जहां चाह वहां राह’ तो लड़कों ने भी ठान ली थी कि ऐसे हार नहीं मानेंगे. उन्होंने सीधा प्रोडक्शन हाउस के ओनर आदित्य सर से संपर्क किया और डाक्टर माहिरा से उन की बात करा दी. बस फिर क्या था डाक्टर के पास इन की बात पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा न था. इसीलिए कुछ जरूरी हिदायतें दे कर उन्होंने इन्हें मिलने की इजाजत दे दी.

थोड़ी औपचारिकताओं के बाद एक वार्ड बौय ने इन लोगों को एक हालनुमा कमरे पर पहुंचा दिया और वहां से चला गया. अंदर पहुंचने पर इन्होंने देखा कि वह दीवार की ओर मुंह किए बैठा था.

‘‘अभिलाष,’’ नाम पुकारने पर उस ने पलट कर देखा वही चेहरा, वही आंखें, वही अभिलाष.

‘‘हम तुम्हें लेने आए हैं. हमें पता है तुम इस अंधेरे से निकलना चाहते हो.’’

उस ने उन की बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया. शायद ऐसी बातों से भरोसा टूट चुका था उस का.

‘‘अभिलाष मैं, मैं प्रियांश, पहचाना? मैं भी माधोपुर से हूं. हम जानते हैं तुम ने बहुत दुख देखे हैं लेकिन अब मुश्किल समय बीत चुका है और एक नई दुनिया तुम्हारा इंतजार कर रही है. हमारा विश्वास करो. कहो तो ‘सिंगिंग स्टार की खोज’ के प्रोडक्शन हाउस से बात करा दें?’’ अमन ने अभिलाष का हाथ पकड़ कर कहा.

 

वह अपनी जगह से उठा और बाहर की ओर जाने लगा. तभी रेहान ने अपना फोन उस

की तरफ घुमा दिया. दूसरी तरफ मां और बहन को देख कर यह टूटा दिल भी अपने जज्बात काबू में न रख सका और बिखर गया.

‘‘‘बेटा, ये लोग कई दिनों से मेरे से संपर्क में हैं. इन्होंने तेरे लिए अच्छा सोचा है. तू कोशिश कर और आगे बढ़ आगे सब अच्छा होगा. मेरा अच्छा बेटा,’’ मां ने विश्वास दिलाया.

उस के साथियों ने अभिलाष को उस का पत्र मिलने से ले कर प्रोडक्शन टीम से बात कर लेने तक की सारी कहानी सुनाई. उन्होंने बताया कि वे और पूरी टीम उसे गुमनामी के अंधेरे से निकालना चाहती है. सच्ची बात सच्चे दिल तक पहुंच ही जाती है और जब कोई खुद ही अंधेरे से निकलने की कोशिश में हो तो मदद के लिए मिला हाथ ठुकराने की हिम्मत नहीं होती.

उन्होंने अभिलाष का विश्वास जीत लिया था. उन की बातों से उस की आंखों में चमक नजर आई. साथ ही उन्होंने अभिलाष को खुशखबरी सुनाई कि डाइरैक्टर आदित्य सर ने एक स्कूल में भी संगीत शिक्षक के तौर पर तुम्हें काम दिलाने के लिए आवेदन करवा दिया है.

‘‘और तुम्हारा क्या? कहीं कल तुम भी मेरी तरह…’’ अभिलाष ने प्रियांश से सीधा सवाल किया.

‘‘दरअसल, हम चारों को ही सम?ा आ

गया है कि चाहे यहां से जीत के जाएं या बीच

में ही शो से बाहर हो जाएं हम अपनी जड़ों

को नहीं छोड़ेंगे. मैं यहां से जा कर अपनी

सहायक की नौकरी जौइन करूंगा और यह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा और ये दोनों अपने पापा का बिजनैस देखेंगे.’’

‘‘मतलब लौट के बुद्धू …’’

‘‘न… न… लौट के सम?ादार अनुभव ले कर आए,’’ अमन के मुंह से निकले अनोखे मुहावरे पर वे सब हंस पड़े. यहां अब उम्मीद की एक नई किरण का उदय हो चुका था.

ढाई अक्षर प्रेम के : धर्म के नशे में चूर तरन्नुम के साथ क्या हुआ

मुंबई की मल्टीकल्चरल कही जाने वाली किनारा हाउसिंग सोसाइटी आज अचानक कुछ दबंग टाइप लड़कों के चीखनेचिल्लाने से दहल उठी थी. आमतौर पर एकदूसरे की निजी जिंदगी में न झांकने वाले यहां के लोग आज अपनेअपने घर की बालकनियों से ?ांकने पर मजबूर हो गए थे.

लगभग 10-15 लड़कों की भीड़ एक युवक को जिस की उम्र शायद 25 साल रही होगी, को जबरदस्ती उस के कमरे से खींचते हुए बाहर ले आए थे. उस युवक के पीछेपीछे दौड़ती हुई एक लड़की जिस की उम्र भी शायद उस युवक की उम्र जितनी ही रही होगी, भीड़ से उस लड़के को छोड़ देने की याचना कर रही थी.

लड़के को भीड़ से छुड़ाने की गुहार लगाती हुई लड़की की तरफ इशारा करते हुए भीड़ में से एक लड़का जिस का नाम प्रताप था चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘यह लड़की तुम्हें मुसलमान बना देगी. अरे तुम्हारा खतना करवा देगी. हम यह नहीं होने देंगे. अरे इस लड़के की तो मति मारी गई है जो एक मुसलिम लड़की के बहकावे में आ कर अपना धर्म भ्रष्ट करने चला है.’’

‘‘बिल्कुल सही कह रहे हो. यह तो अच्छा हुआ कि हमें वक्त रहते मालूम हो गया और तुम लोगों को खबर कर दी वरना अनर्थ हो जाता,’’ पुनीत ने भी उन सबों की हां में हां मिलाई.

‘‘मैं किस के साथ रहता हूं. किस से शादी करता हूं, यह मेरी मरजी है, मेरी निजी जिंदगी है. धर्म के नाम पर तुम लोगों को दखल देने का हक किस ने दे दिया?’’ वह युवक जिस का नाम जीवन था, उन लड़कों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करते हुए बोला.

‘‘कल को यह लड़की तुम्हें गाय का मांस खिलाएगी, तुम्हारा खतना कराएगी इस से क्या

हमें फर्क नहीं पड़ेगा? प्रताप ने एक जोरदार थप्पड़ जीवन के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘इस से तो अच्छा है कि मैं तुम्हारी जीवनलीला ही खत्म कर दू,’’ कहते हुए प्रताप ने क्रोध में तलवार निकाल ली.

क्रोध ने इन लड़कों को पागल कर दिया था. क्रोध और आवेश में ये लड़के कुछ भी अनर्गल अपशब्द कहे जा रहे थे.

क्रोध और उन्माद में डूबी भीड़ से शांति की अपेक्षा करना व्यर्थ है. मगर क्रोध और उन्माद की यह अवस्था जब किसी धार्मिक अहंकार के वशीभूत हो तो व्यक्ति और भी विवेकहीन हो जाता है.

प्रताप के हाथ में तलवार देख कर तरन्नुम बुरी तरह से घबरा गई. वह जीवन की जिंदगी की भीख मांगते हुए उन के आगे विनती करने लगती है, ‘‘प्लीज. इसे छोड़ दो… अगर किसी की जान लेने से आप लोगों का सिर ऊंचा होता है तो इस की जगह मेरी जान ले लो, मु?ो मार दो लेकिन इसे छोड़ दो, प्लीज.’’

मगर धर्म के नशे में चूर उन्माद में डूबी भीड़ के पास हृदय कहां होता है जो तरन्नुम की इस करुण पुकार को सुन पाती.

‘‘ऐ लड़की, तुम बीच में मत आओ, मैं लड़कियों पर हाथ नहीं उठाता,’’ कहते हुए प्रताप ने उसे धक्का दे दिया. तरन्नुम कुछ दूर जा गिरी.

तरन्नुम को जमीन पर गिरता देख जीवन गुस्से से कांप उठा. वह भीड़ को धक्का देते हुए तरन्नुम की ओर जाने की कोशिश करता है. लेकिन जीवन को ऐसा करता देख प्रताप और भी गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी तलवार जीवन की ओर लक्ष्य कर देता है. तभी दौड़ती हुई तरन्नुम अचानक वहां पहुंच जाती है. वह भीड़ को चीरती हुई जीवन से जा कर लिपट जाती है. जीवन को लक्ष्य कर के उठी तलवार तरन्नुम को लग जाती है और वह जख्मी हो जाती है. बेहोश हो कर जमीन पर गिर जाती है.

उन्मादी लड़कों की भीड़ तरन्नुम को घायल देख कर घबरा जाती है और 1-1 कर के वे लड़के वहां से खिसकने लगते हैं.

‘‘यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे? मैं तो सिर्फ…’’ प्रताप जैसे खुद से ही बातें कर रहा था.

‘‘तरन्नुम को घायल देख कर जीवन अपना आपा खो देता है. वह क्रोध में चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘जो भी कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिए.’’

‘‘अ… अ… मेरा मतलब है हम बस तुम लोगों को ड… डरा…’’ पुनीत हकलाने लगा.

‘‘तुम तो चुप ही रहो पुनीत… यह मु?ो मुसलमान बनाती या नहीं या मेरा खतना करवाती या नहीं लेकिन फिर भी मैं इंसान ही रहता, इंसान ही कहलाता. मगर तुम दोनों खुद को देखो धर्म ने तुम्हें किस तरह जानवर बना दिया है. धिक्कार है तुम लोगों पर, धर्म के नशे ने तुम लोगों को जानवर बना दिया है.’’

जीवन और तरन्नुम मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी मे करीब 2 साल से साथ काम कर रहे थे. साथसाथ काम करते हुए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी लेकिन इस सामान्य सी दिखने वाली जानपहचान और दोस्ती की मखमली जमीन पर प्रेमरूपी बीज कब अंकुरित हो गया इस का एहसास उन्हें बहुत बाद में हुआ. प्रेम की इस निर्मल धारा में बहते हुए उन दोनों को एक पल के लिए भी कभी यह एहसास न हुआ कि वे दोनों 2 अलगअलग धर्मों के जत्थेबंदी के कैदी हैं. यह धार्मिक जत्थेबंदी अलगअलग धर्मों में शादी करने की इजाजत नहीं देती लेकिन एकदूसरे के लिए प्रेम तो जीवन और तरन्नुम के रोमरोम में समा चुका था और उन के अगाड़  प्रेम के इस प्रवाह के सामने इन धार्मिक गुटबंदियों के कोई माने नहीं थे. उन दोनों के लिए प्रेम ही उन का सब से बड़ा धर्म था.

दोनों अकसर औफिस से छुट्टी के बाद मरीन ड्राइव पर पहुंच जाते, एकदूसरे के बांहों में बांहें डाले हुए घंटों समुद्र की लहरों को निहारा करते, भविष्य के लिए सुनहरे सपने बुनते हुए उन्हें वक्त का भी अंदाजा न होता. तरन्नुम को मरीन ड्राइव के क्वीन नैकलैस कही जाने वाली उस रंगबिरंगी आकृति को देर तक निहारना काफी अच्छा लगता था. रात के अंधेरे में ?िलमिलाती आकृति रंगबिरंगे प्रकाश में छोटेछोटे रंगीन मोतियों सी प्रतीत होती, जिसे देख न जाने क्यों उस के मन को एक सुखद सी अनुभूति होती. जीवन का साथ पा कर उस की जिंदगी भी तो इन्हीं रंगबिरंगे मोतियों सी चमक उठी थी.

 

जब 2 साल पहले जीवन पुणे से मुंबई आया था तो उसे मुंबई जैसे शहर में अपने लिए

फ्लैट ढूंढ़ने में काफी मुश्किलें हुई थीं. पुणे में तो उस ने अपने चाचा के घर रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी. जौब लगने के बाद वह मुंबई आ गया था. लेकिन मुंबई जैसी जगह पर अपने रहने के लिए फ्लैट ढूंढ़ पाना उस के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा था. अत: कुछ दिनों तक तो वह होटल के कमरे में रहा. लेकिन होटल में रहना जब उस की जेब पर भारी पड़ने लगा तब उसी के औफिस में साथ काम करने वाली तरन्नुम ने जब उस की इस समस्या को जाना तो फौरन अपनी फूफी का फ्लैट उसे किराए पर दिलवा दिया. तरन्नुम द्वारा उस के लिए की गई यह निस्वार्थ सहायता उन दोनों की दोस्ती की आधारशिला बनी थी. माहिम में तरन्नुम की फूफी का वह फ्लैट खाली पड़ा था.

‘‘जानते हो जीवन मेरी फूफी जान मु?ो अपनी सगी औलाद से भी बढ़ कर मानती हैं. शादी के कुछ ही साल बाद जब अब्बू मेरी अम्मी को छोड़ कर सऊदी अरब चले गए थे तो वह मेरी फूफी जान ही थीं, जिस ने मु?ो और मेरी अम्मी को सहारा दिया था,’’ बातोंबातों में ही एक दिन तरन्नुम ने जीवन को यह बात बताई, ‘‘अब्बू के जाने के बाद से ही अम्मी काफी बीमार रहने लगी थीं. उन की बीमारी की खबर सुन कर भी अब्बू एक बार भी उन्हें देखने नहीं आए और फिर एक दिन अम्मी हमें हमेशा के लिए अलविदा कह गईं. उन के इंतकाल के बाद मेरी फूफी जान ने ही मेरी परवरिश की, उन की अपनी कोई औलाद नहीं है. फूफी को तो मरे हुए कितने साल हो गए,  मु?ो तो उन का चेहरा भी याद नहीं. मैं और मेरी फूफी जान, यही मेरा छोटा सा संसार और मेरा छोटे से संसार में जीवन आप का स्वागत है,’’ यह कह कर तरन्नुम खिलखिला पड़ी और अपनी हंसी के पीछे अपने बड़े गम को भी छिपा लिया.

तब जीवन चुपचाप तरन्नुम के चेहरे को देखता रह गया और उस के मस्तिष्क में न जाने क्यों किसी शायर की ये पंक्तियां गूंज उठीं, ‘‘गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां जिंदगी को उस मुकाम पर लाता चला गया. हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.’’

ऐसी ही है उस की तरन्नुम बिंदास, जिंदादिल, बड़े से बड़े गम को भी हंसी में उड़ा देने वाली. उस की आवाज में तो ऐसी जादूगरी कि किसी भी सुनने वाले को सम्मोहित कर दे. तरन्नुम के इसी बिंदास अंदाज और जिंदादिली ने जीवन को उस का दीवाना बना दिया था. धीरेधीरे जीवन उस के प्रेम में गिरफ्तार होता चला गया. वह रातदिन, उठतेबैठते, सोतेजागते, बस तरन्नुम के खयालों में ही खोया रहता.

 

ठीक यही हाल तरन्नुम का भी था. तरन्नुम के

लिए जीवन उस के सपनों के राजकुमार से भी कहीं ज्यादा बढ़ कर था. एक जीवनसाथी को ले कर उस ने अपने दिलोदिमाग में जो रेखाएं खींची थीं जीवन बिलकुल उन के अनुकूल था. जीवन की स्पष्टवादिता उस की ईमानदारी तरन्नुम को अपनी ओर खींचने के लिए काफी थी और एक दिन दोनों ने अपने दिल की बात एकदूसरे से कह दी. एकदूसरे के प्रति प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने के वादे किए.

‘‘तरन्नुम, महीनाभर पहले हम ने शादी के लिए कोर्ट में जो अर्जी दी थी, कोर्ट ने हमारी शादी की डेट दे दी है. हमें इसी हफ्ते बुधवार को मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाना है,’’ तरन्नुम को यह खबर सुनाते हुए जीवन की खुशी का कोई ठिकाना न था.

‘‘हमारे सपने जो हम दोनों ने साथ मिल

कर देखे थे वे सच होने जा रहे हैं. सच में मैं

बहुत खुश हूं. हमारी अपनी छोटी सी दुनिया

होगी. ऐसी दुनिया जहां इस ?ाठमूठ के धर्म, जातपात, रीतिरिवाजों के लिए कोई जगह नहीं होगी. कोई दीवाली नहीं, कोई ईद नहीं, कोई जातधर्म का दिखावा नहीं, हम खुशियां मनाएंगे लेकिन अपनी तरह से,’’ तरन्नुम ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘हां सही कह रही हो हम ईददीवाली की जगह सिर्फ राष्ट्रीय त्योहार मनाएंगे और अपने बच्चों के नाम भी कुछ ऐसे रखेंगे जिन में उन के हिंदू या मुसलिम होने की पहचान न छिपी हो, उन के नाम के साथ किसी भी धर्म की पहचान न जुड़ी हो,’’ जीवन ने भी खुश होते हुए तरन्नुम के इन खयालातों का समर्थन किया.

आज वे दोनों आने वाली इस मुसीबत से बेखबर अपनी शादी के सपने को साकार करने की तैयारी में सुबह से ही जुटे हुए थे. कोर्ट ने उन्हें आज का ही दिन दिया था. वे दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाने के लिए उत्साहित थे. खुशी ने तो जैसे उन के रोमरोम को पुलकित कर दिया था.

तरन्नुम ने तो अपनी दोनों सहेलियां रवीना और फिजा को सुबह से न जाने कितनी बार कौल कर के उन्हें रजिस्ट्रार के औफिस वक्त पर पहुंच जाने की याद दिलाई थी.

जीवन काफी देर से किसी को कौल करने की कोशिश कर रहा था लेकिन जिसे वह फोन लगा रहा था उस का मोबाइल शायद स्विच्ड औफ आ रहा था, जिस के कारण वह थोड़ा चिंतित हो उठा था, ‘‘पुनीत का डाउट है, कब से फोन ट्राई कर रहा हूं, स्विच्ड औफ बता रहा है, न जाने कल से कहां गायब है,’’ जीवन ने अपनी चिंता व्यक्त की, ‘‘अगर वह नहीं पहुंच सका तो विटनेस के लिए तीसरा व्यक्ति इतनी जल्दी कहां से लाएंगे?’’

‘‘तुम परेशान मत हो मैं अपनी फूफी जान को कह दूंगी विटनैस के लिए वे आ जाएंगी.’’

‘‘मगर हां तुम उन्हें हमारे यहां से निकलने के 1 घंटा पहले बुला लेना, उन्हें इतना वक्त तो लग ही जाएगा यहां आने में.’’

‘‘चिंता मत करो अभी तो सुबह के सिर्फ 9 ही बजे हैं, हमारे पास काफी वक्त है,’’ तरन्नुम अपनी ड्रैस की मैचिंग ज्वैलरी सैट करने में व्यस्त हो गई.

‘‘इतनी तेजतेज डोरबैल कौन बजा रहा है?’’

‘‘मैं देखती हूं,’’ तरन्नुम दरवाजा खोलने चली.

‘‘नहीं तुम रहने दो, मैं देखता हूं, न जाने कौन है जिसे सब्र नहीं.’’

जीवन के दरवाजा खोलते ही लड़कों का एक ?ांड दनदनाता हुआ घर के अंदर घुस आया.

‘‘पुनीत, प्रताप भाई आप दोनों?’’ भीड़ के साथ खड़े उन दोनों लड़कों को देख कर जीवन चौंक उठा.

‘‘हां हम दोनों, तुम जो करने जा रहे हो उसे रोकने आए है. यह तो अच्छा हुआ कि पुनीत ने हमें वक्त पर आ कर सब कुछ बता दिया. अगर सीधेसीधे हम लोगों के साथ नहीं चलोगे तो जबरदस्ती यहां से उठा कर ले जाएंगे भले तुम्हारी टांगें ही क्यों न तोड़नी पड़ें,’’ प्रताप ने क्रोध में फुफकारते हुए कहा.

‘‘किसी से शादी करना अपराध है क्या जो आप इसे रोकने के लिए अपने दलबल के साथ आ गए. आप अपने बजरंग दल की धौंस कहीं और दिखाइए. मैं आप लोगों से डरने वाला नहीं.’’

‘‘लगता है ऐसे नहीं मानेगा, चलो आ

जाओ सब,’’ और तभी अचानक जय श्रीराम के नारे से पूरी सोसाइटी गूंजने और देखते ही देखते लड़कों का वह ?ांड जीवन को जबरदस्ती उस के घर से खींचता हुआ बाहर ले गया. उन के पीछेपीछे बदहवास सी भागती हुई तरन्नुम भी बाहर आ गई.

धर्म के नशे में चूर, जो लड़के कुछ देर पहले दहाड़ रहे थे, तरन्नुम को जख्मी और

बेहोश हो कर जमीन पर गिरता देख उन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. सारे लड़के वहां से धीरेधीरे खिसक लिए, रह गए सिर्फ पुनीत और प्रताप जो अब अपने कृत्य पर पश्चाताप कर रहे थे.

प्रताप के मन में जीवन द्वारा कही गई ये बाते कि धर्म के नशे ने उसे जानवर बना दिया है, रहरह कर उस के मन को झकझोर रही थीं. आज अगर तरन्नुम बीच में नहीं आई होती तो उस के हाथों कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. तरन्नुम के बीच में आ जाने से उस के हाथों से तलवार की पकड़ ढीली पड़ गई. जख्म ज्यादा गहरा नहीं था, घबराहट के कारण तरन्नुम बेहोश हो गई थी. डाक्टर ने हलकी मरहमपट्टी करने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया.

प्रताप और पुनीत अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थे. दोनों बारबार हाथ जोड़ कर जीवन और तरन्नुम से माफी मांग रहे थे.

कुछ घंटों बाद जब जीवन और तरन्नुम मैरिज रजिस्ट्रार औफिस जाने के लिए निकले तो रवीना और फिजा के साथसाथ प्रताप और पुनीत भी विटनैस के लिए वहां पहुंच गए और वापस आ कर नए जोड़े के स्वागत के लिए पूरे घर की सजावट फूलों से इन्हीं दोनों ने की.

यह बात सच है प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं. संसार में जितने भी धर्म हैं उन सब का उद्देश्य किसी न किसी स्वार्थसिद्धि के लिए होता है किंतु प्रेम कभी किसी स्वार्थ की सिद्धि के लिए नहीं होता. मात्र प्रेम ही एक ऐसी चीज है जहां स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं. संसार में जब तक प्रेम कायम रहेगा, जब तक इस का विस्तार होता रहेगा और तब तक मानव का जीवन भी सुख और शांति से परिपूर्ण रहेगा.

वक्त का पहिया: सेजल को अपनी सोच क्यों छोटी लगने लगी?

‘‘आज फिर कालेज में सेजल के साथ थी?’’ मां ने तीखी आवाज में निधि से पूछा.

‘‘ओ हो, मां, एक ही क्लास में तो हैं, बातचीत तो हो ही जाती है, अच्छी लड़की है.’’

‘‘बसबस,’’ मां ने वहीं टोक दिया, ‘‘मैं सब जानती हूं कितनी अच्छी है. कल भी एक लड़का उसे घर छोड़ने आया था, उस की मां भी उस लड़के से हंसहंस के बातें कर रही थी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निधि बोली.

‘‘अब तू हमें सिखाएगी सही क्या है?’’ मां गुस्से से बोलीं, ’’घर वालों ने इतनी छूट दे रखी है, एक दिन सिर पकड़ कर रोएंगे.’’

निधि चुपचाप अपने कमरे में चली गई. मां से बहस करने का मतलब था घर में छोटेमोटे तूफान का आना. पिताजी के आने का समय भी हो गया था. निधि ने चुप रहना ही ठीक समझा.

सेजल हमारी कालोनी में रहती है. स्मार्ट और कौन्फिडैंट.

‘‘मुझे तो अच्छी लगती है, पता नहीं मां उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हैं,’’ निधि अपनी छोटी बहन निकिता से धीरेधीरे बात कर रही थी. परीक्षाएं सिर पर थीं. सब पढ़ाई में व्यस्त हो गए. कुछ दिनों के लिए सेजल का टौपिक भी बंद हुआ.

घरवालों द्वारा निधि के लिए लड़के की तलाश भी शुरू हो गई थी पर किसी न किसी वजह से बात बन नहीं पा रही थी. वक्त अपनी गति से चलता रहा, रिजल्ट का दिन भी आ गया. निधि 90 प्रतिशत लाई थी. घर में सब खुश थे. निधि के मातापिता सुबह की सैर करते हुए लोगों से बधाइयां बटोर रहे थे.

‘‘मैं ने कहा था न सेजल का ध्यान पढ़ाई में नहीं है, सिर्फ 70 प्रतिशत लाई है,’’ निधि की मां निधि के पापा को बता रही थीं. निधि के मन में आया कि कह दे ‘मां, 70 प्रतिशत भी अच्छे नंबर हैं’ पर फिर कुछ सोच कर चुप रही.

सेजल और निधि ने एक ही कालेज में एमए में दाखिला ले लिया और दोनों एक बार फिर साथ हो गईं. एक दिन निधि के पिता आलोकनाथ बोले, ‘‘बेटी का फाइनल हो जाए फिर इस की शादी करवा देंगे.’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पर सोचनेभर से कुछ न होगा,’’ मां बोलीं.

‘‘कोशिश तो कर ही रहा हूं. अच्छे लड़कों को तो दहेज भी अच्छा चाहिए. कितने भी कानून बन जाएं पर यह दहेज का रिवाज कभी नहीं बदलेगा.’’

निधि फाइनल ईयर में आ गई थी. अब उस के मातापिता को चिंता होने लगी थी कि इस साल निकिता भी बीए में आ जाएगी और अब तो दोनों बराबर की लगने लगी हैं. इस सोचविचार के बीच ही दरवाजे की घंटी घनघना उठी.

दरवाजा खोला तो सामने सेजल की मां खड़ी थीं, बेटी के विवाह का निमंत्रण पत्र ले कर.

निधि की मां ने अनमने ढंग से बधाई दी और घर के भीतर आने को कहा, लेकिन जरा जल्दी में हूं कह कर वे बाहर से ही चली गईं. कार्ड ले कर निधि की मां अंदर आईं और पति को कार्ड दिखाते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो कहती ही थी, लड़की के रंगढंग ठीक नहीं, पहले से ही लड़के के साथ घूमतीफिरती थी. लड़का भी घर आताजाता था.’’

‘‘कौन लड़का?’’ निधि के पिता ने पूछा.

‘‘अरे, वही रेहान, उसी से तो हो रही है शादी.’’

निधि भी कालेज से आ गई थी. बोली, ‘‘अच्छा है मां, जोड़ी खूब जंचेगी.’’ मां भुनभुनाती हुई रसोई की तरफ चल पड़ीं.

सेजल का विवाह हो गया. निधि ने आगे पढ़ाई जारी रखी. अब तो निकिता भी कालेज में आ गई थी. ‘निधि के पापा कुछ सोचिए,’ पत्नी आएदिन आलोकनाथजी को उलाहना देतीं.

‘‘चिंता मत करो निधि की मां, कल ही दीनानाथजी से बात हुई है. एक अच्छे घर का रिश्ता बता रहे हैं, आज ही उन से बात करता हूं.’’

लड़के वालों से मिल के उन के आने का दिन तय हुआ. निधि के मातापिता आज खुश नजर आ रहे थे. मेहमानों के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. दीनानाथजी ठीक समय पर लड़के और उस के मातापिता को ले कर पहुंच गए. दोनों परिवारों में अच्छे से बातचीत हुई, उन की कोई डिमांड भी नहीं थी. लड़का भी स्मार्ट था, सब खुश थे. जाते हुए लड़के की मां कहने लगीं, ‘‘हम घर जा कर आपस में विचारविमर्श कर फिर आप को बताते हैं.’’

‘‘ठीक है जी,’’ निधि के मातापिता ने हाथ जोड़ कर कहा. शाम से ही फोन का इंतजार होने लगा. रात करीब 8 बजे फोन की घंटी बजी. आलोकनाथजी ने लपक कर फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘नमस्तेजी, आप की बेटी अच्छी है और समझदार भी लेकिन कौन्फिडैंट नहीं है, हमारा बेटा एक कौन्फिडैंट लड़की चाहता है, इसलिए हम माफी चाहते हैं.’’

आलोकनाथजी के हाथ से फोन का रिसीवर छूट गया.

‘‘क्या कहा जी?’’ पत्नी भागते हुए आईं और इस से पहले कि आलोकनाथजी कुछ बताते दरवाजे की घंटी बज उठी. निधि ने दरवाजा खोला. सामने सेजल की मां हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए खड़ी थीं और बोलीं, ’’मुंह मीठा कीजिए, सेजल के बेटा हुआ है.’’

अब सोचने की बारी निधि के मातापिता की थी. ‘वक्त के साथ हमें भी बदलना चाहिए था शायद.’ दोनों पतिपत्नी एकदूसरे को देखते हुए मन ही मन शायद यही समझा रहे थे. वैसे काफी वक्त हाथ से निकल गया था लेकिन कोशिश तो की जा सकती थी.

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