Short Story : तीसरे दर्जे के दोस्तों के हितार्थ

Short Story : मेरी बात से आप भले ही सहमत हों या न हों, पर इस बात से तो सौ फीसदी सहमत होंगे कि पहली श्रेणी के दोस्तों का मिलना आज की तारीख में वैसे ही कठिन है जैसे आप शताब्दी की करंट बुकिंग के लिए 5 बजे भी सीट मिलने की उम्मीद में बदहवास दौड़ते रहते हैं, जबकि ट्रेन छूटने का वक्त सवा 5 बजे का है.

पर हां, दूसरे दर्जे के दोस्त जरूर मिल जाते हैं. ये कुछ ऐसेवैसे दोस्त होते हैं जो अच्छा न करें तो बुरा भी नहीं करते. जब इन के दिमाग में बुरा करने का खयाल आए तो ये उस जैसे दोस्त को फटकारते दिमाग से बाहर कर ही देते हैं. इन दूसरे दर्जे के दोस्तों की सब से बड़ी खासीयत यही होती है कि ये कम से कम अच्छा न कर सकें तो बुरा भी नहीं करते. जो उन्हें लगे कि दोस्त का कुछ बुरा करने के लिए उन का मन ललचा रहा है तो वे मन के ललचाने के बाद भी जैसेतैसे अपने बेकाबू मन पर काबू पा ही लेते हैं.

पर ये तीसरे दर्जे के दोस्त जब तक दोस्त को नीचा न दिखा लें, तब तक इन को चैन नहीं मिलता.

वैसे तो मेरे आप की तरह कहने को बहुत से दोस्त हैं, पर मेरे परम आदरणीय भाईसाहब रामजी लाल मेरे खास दोस्त हैं. बेकायदे से भी जो उन का दर्जा तय करूं तो वे मेरे तीसरे दर्जे के दोस्त हैं. हैं तो वे इस से भी नीचे के दोस्त, पर इस से नीचे जो मैं उन का दर्जा निर्धारित करूं तो यह मुझ पर सितम और उन पर करम करने जैसा होगा.

अगर मैं तीसरे दर्जे में यात्रा न भी करना चाहूं तो भी वे असूहलियतों का पूरा ध्यान रख मेरी तीसरे दर्जे की यात्रा का टिकट हवा में लहराते आगे नाचने का हर मौका तलाशते रहेंगे और मौका मिलते ही मु?ो फुटपाथ पर बैठा कर हवा हो लेंगे. सच कहूं तो हैं तो वे मेरे दोस्त, पर जो सुबहसुबह वे दिख जाएं तो सारा दिन मन यों रहता है कि मानो मन में नीम घुल गया हो.

मेरे इन परम आदरणीय मित्रों में नीचता इस कदर कूटकूट कर भरी है कि वे अपने कद को ऊंचा दिखाने के चक्कर में अपने बाप तक को भी नीचा दिखाने से न चूकें, उन के अहंकार को देख मैं ऐसा मानता हूं. अपने को बनाए रखने के लिए वे बाप की पगड़ी से भी हंसते हुए जाएं. उन का बस चले तो मोमबत्ती को हाथ में ले कर सूरज के आगे चौड़े हो अड़ जाएं.

असल में इस दर्जे के दोस्तों में हीनता का बोध इस कदर भरा होता है कि ये बेचारे अपने थूक को ऊंचाई देने के लिए चांद पर भी थूकने से गुरेज नहीं करते. इन के लिए हर जगह अपना कद महत्त्वपूर्ण होता है, मूल्य नहीं. वे भालू और 2 दोस्तों की कहानी से आगे के चरित्र होते हैं.

इस श्रेणी के दोस्त बहुधा जिस थाली में खाते हैं या तो खाने के बाद उस थाली को ही उठा कर साथ ले जाते हैं या फिर… जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने वाली कहावत इन के लिए आउटडेटेड होती है. इसलिए ऐसे भाईसाहब अपना कद ऊंचा करने के लिए अपने नीचे औरों के नीचे की सीढ़ी सरकाने से तो परहेज करते ही नहीं, मौका मिलते ही किसी के भी कंधे पर छलांग मार बैठने के बाद उस के सिर के सफेद बाल तक नोचने से परहेज नहीं करते.

पर मैं फिर भी हर बार ऐसों को चांस दे देता रहता हूं, उन्हें अपने कंधे पर बैठा अपने सिर के सफेद बाल नुचवाने का, पता नहीं क्यों? हर बार अपने तीसरे दर्जे के दोस्तों की बदतमीजी को भुनाने का नैसर्गिक अवगुण मु?ा में पता नहीं क्यों है, जबकि मैं यह भी जानता हूं कि आदमी सबकुछ बदल सकता है पर दोस्ती के संदर्भ में अपनी औकात नहीं.

इन्हें देख कर कई बार तो लगता है कि इन में जरूर कोई हीनता इतनी गहरे तक है कि मैं इसे निकालने में हर बार असमर्थ हो जाता हूं. अपनी इस असफलता पर हे मेरे तीसरे दर्जे के दोस्तो, मैं तुम से दोनों हाथ जोड़ क्षमा मांगता हूं.

इन की एक विशेषता यह भी होती है कि पहले तो ये आप के सामने गर्व से मिमियाते हैं और फिर मौका पा कर आप के बाप बन बैठते हैं. इन को अपने दोस्तों का अपमान करने में वह आनंद मिलता है जैसा बड़ेबड़े तपस्वियों को मनवांछित फल पाने के बाद भी क्या ही मिलता होगा.

तीसरे दर्जे के इन सम्मानियों को हम आस्तीन का वह सांप कह सकते हैं, जिसे हम पता नहीं क्यों संवेदनशील हो कर अपनी आस्तीन में लिए फिरते रहते हैं. ये ऐसे होते हैं कि दांव मिलते ही हमारी कमर में डंक मार हमारे शुभचिंतक होने के परम धर्म को पूरी ईमानदारी से निभाते हैं.

पहली श्रेणी के दोस्तों के साथ सब से बड़ी तंगी यह होती है कि ये दोस्ती का दिखावा कभी नहीं करते. आप को इन्हें सहायता करने को कहने की भी जरूरत नहीं होती. ये अपनेआप ही आप को परेशानी में देख आप की सहायता करने चले आएंगे, मुंह का कौर मुंह में और थाली का कौर थाली में छोड़.

लेकिन ये जो आप के तीसरे दर्जे के दोस्त होते हैं न, इन के बारे में आप तो क्या, तथाकथित भगवान तक कोई भी सटीक तो छोडि़ए भविष्यवाणी तक नहीं कर सकते. इन्हें बस, पता चलना चाहिए कि दोस्त कहीं दिक्कत में है. फिर देखिए इन का प्यार कि ये किस तरह गले लगाते हैं. किस तरह अपने जूते तक खोल बरसाते हैं. भले ही बाद में उन के पांव में कांटे चुभ जाएं.

असल में, ये उस लैवल के दोस्त होते हैं जो किसी भी कद के सामने अपने को उस से ऊंचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. इन्हें अपने अहंकारी कद के आगे हिमालय तक चींटी दिखे तो मोक्ष प्राप्त हो.

इन्हें दोस्ती की नहीं, अपने कद की चिंता होती है. ये किसी के साथ दोस्ती तब तक ही रखते हैं जब तक इन के अहम के कद पर कोई आंच न आए. जैसे ही इन्हें लगता है कि इन के सामने इन से कद्दावर आ गया है तो ये सबकुछ हाशिए पर डाल सड़े दिमाग से आरी निकाल उस के कद को तहसनहस करने में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं.

पहली श्रेणी और इस तीसरे दर्जे के दोस्त में बेसिक अंतर यह होता है कि पहली श्रेणी का दोस्त आप के कद के साथ ईमानदारी से अपने कद को बढ़ाने की कोशिश करता है जबकि तीसरे दर्जे के दोस्त इस फिराक में रहते हैं कि कब व कैसे आप के कद को गिरा तथाकथित मित्रता के धर्म को निभा कृतार्थ हों.

जब तक इस दर्जे के मित्र किसी को किसी रोज नीचा नहीं दिखा लेते, इन को खाना हजम नहीं होता. इसलिए मेरी आप से दोनों हाथ जोड़ विनती है कि अपने इन तीसरे दर्जे के मित्रों के पेट का खयाल मेरी तरह आप भी रखिए. अपने लिए न सही तो न सही, पर इन की जिंदगी के लिए यह बेहद जरूरी है. इन के झूठे, लिजलिजे अहं की हर हाल में रक्षा कीजिए. भले ही आप की इज्जत का फलूदा बन जाए, तो बन जाए.

Stories HIndi : मुखबिर – नीलकंठ और अरुंधती क्या हो गए उग्रवादियों का शिकार

Stories HIndi : शहर भर में यह अफवाह फैल गई कि मुखबिरों को मौत के घाट उतारा जा रहा है. हालांकि पिछले 50 सालों से घाटी में हत्या की एक भी वारदात सुनने में नहीं आई थी पर अब आएदिन 5-10 आदमी गोलियों के शिकार हो रहे थे. हर व्यक्ति के चेहरे पर आतंक और भय के चलते मुर्दनी छाई हुई थी. अपनेआप पर विश्वास करना कठिन हो रहा था. हर कोई अपनेआप से प्रश्न पूछता:

‘कहीं मुखबिरों की सूची में मेरा नाम तो नहीं? किसी पुलिस वाले से मेरी जानपहचान तो नहीं? या फिर मुझे किसी सिपाही से बातें करते हुए किसी ने देखा तो नहीं?’ उस की चिंता बढ़ जाती.

‘मेरे राजनीतिक संबंधों के बारे में किसी को पता तो नहीं?’ यह सोचसोच कर दिल की धड़कनें और भी तेज हो जातीं. ‘किसी उग्रवादी से मेरी दुश्मनी तो नहीं?’ यह सोच कर कइयों का रक्तचाप बढ़ने लगता और वे अगले दिन आंख खुलते ही स्थानीय अखबारों के दफ्तर में जा कर विज्ञापन के माध्यम से स्पष्ट करते कि वे किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित नहीं हैं और न ही सूचनाओं के आदान- प्रदान से उन का कोई लेनादेना है. इन सब कोशिशों के बावजूद उन्हें मानसिक संतोष हासिल नहीं होता था. सारे वातावरण में बेचैनी और अस्थिरता फैली हुई थी.

मौत इतनी भयानक नहीं होती जितनी उस की आहट. हर कोई मौत के इस जाल से बच निकलने के रास्ते तलाश रहा था.

किसी का माफीनामा प्रकाशित करवाना, किसी का अपनी सफाई में बयान छपवाना तो चल ही रहा था मगर कुछ तो घाटी छोड़ कर ही जा चुके थे. नीलकंठ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. उन्होंने अपने जीवन के 65 साल संतोष और संयम से व्यतीत किए थे. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वे अपनी ही धुन में जिए जा रहे थे.

नीलकंठ का पुराना सा मकान था जिस की दीवारें मिट्टी से लिपीपुती थीं और मकान हब्बाकदल में झेलम नदी के किनारे स्थित था. सारे नगर में हब्बाकदल ही एक ऐसी जगह थी जहां मुरगे की पहली बांग के साथ ही जिंदगी चहक उठती. इधर मंदिरों की घंटियां बजतीं और उधर मसजिदों से अजानें गूंजतीं. पुल के दोनों ओर जहांतहां खोमचे वालों की कतारें लग जातीं. चीखतेचिल्लाते सब्जी बेचने वाले, मछली बेचने वाले और मोलभाव करते हुए खरीदार.

एक ओर नानबाइयों के चंगेरों (चंगेरनान रखने का विशेष प्रकार का बरतन) से सोंधीसोंधी खुशबू उठती और दूसरी तरफ हलवाई के कड़ाहों से दूध की महक. फिर दिन भर घोड़ों की टापों की आवाजें, साइकिल की ट्रिनट्रिन और आटोरिकशा की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल गरम रहता. यह कोलाहल आधी रात तक भी थमने का नाम नहीं लेता. स्कूल और कालेज टाइम पर इस स्थान की रौनक ही कुछ और होती. सफेद कुरते और सलवार से सुसज्जित अप्सराओं के झुंड के झुंड और उन का पीछा करते हुए छैलछबीले नौजवान हर पल छेड़छाड़ की ताक में लगे रहते. मौका मिला नहीं कि उन्होंने फब्तियां कसनी शुरू कीं और आगे चलती हुई लड़कियों के चेहरों पर पसीने की बूंदें उभर आतीं.

आज नीलकंठ न जाने क्यों गहरी सोच में डूबे हुए थे. उन की बूढ़ी पत्नी अरुंधती ने हुक्के में नल का ताजा पानी भर दिया था. नीलकंठ ने चिलम में तंबाकू डाला और फिर अपनी कांगड़ी (गरमी पाने के लिए छोटी सी अंगीठी) में से 2-3 अंगारे निकाल कर उस पर रख दिए. उन के मुंह से धुएं के बादल छूटने लगे और वे शीघ्र ही विचारमग्न हो गए.

अपने विवाह के दिन नीलकंठ को केवल पुल पार करने की जरूरत पड़ी थी. अरुंधती का मकान दरिया के उस पार था. खिड़की से वे अपनी होने वाली पत्नी का मकान साफतौर पर देख सकते थे. दोनों मकानों के बीच झेलम नदी अपनी चिरपरिचित आवाज से बहती चली जा रही थी. छोटेमोटे घरेलू काम निबटा कर अरुंधती भी पास ही आ कर बैठ गई.

‘‘समय कैसे बीतता चला जाता है, मालूम भी नहीं होता. देखतेदेखते हमारे विवाह को 45 साल बीत गए,’’ नीलकंठ अरुंधती के चेहरे के उतारचढ़ाव को देखते हुए बोले. ‘‘आप को तो मजाक सूझ रहा है. भला आज विवाह की याद कैसे आ गई?’’ अरुंधती को आश्चर्य हुआ.

‘‘बस, यों ही. तुम्हें याद है आज कौन सी तारीख है?’’ ‘‘इस उम्र में तारीख कौन याद रखता है जी. मुझे तो अपना वजूद भी गत साल के कैलेंडर सा लगता है, जो दीवार पर इसलिए टंगा रहता है क्योंकि उस पर किसी की तसवीर होती है जबकि वर्ष बीतते ही कैलेंडर कागज के टुकड़े से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता. आप को नहीं लगता कि हम ऐसे ही कागजी कैलेंडर बन कर रह गए हैं?’’

‘‘तुम सच कह रही हो, अरु. हम भी दीवार पर टंगे हुए उन फटेपुराने कैलेंडरों की भांति अपने अंत की ही प्रतीक्षा तो कर रहे हैं.’’ दुबलीपतली अरुंधती को याद आया कि उस ने हीटर पर कहवा चढ़ा रखा है. शायद अब तक उबल गया होगा. वह सोचने लगी और दीवार का सहारा ले कर उठ खड़ी हुई. फिर 2 खासू (कांसे के प्याले) और उबलती चाय की केतली उठा कर ले आई. नीलकंठ ने हुक्के की नली जमीन पर रख दी और अपने हाथ से खासू पकड़ लिया. अरुंधती ने खासू में गरम चाय उड़ेल दी.

‘‘अरु, याद है जब शादी से पहले मैं अपनी छत पर चढ़ कर तुम्हें घंटों निहारता रहता था.’’ ‘‘आज आप को क्या हो गया है. कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हैं आप,’’ पति को टोक कर अरुंधती स्वयं भी यौवन की उस भूलभुलैया में खो गई.

आयु में अरुंधती अपने पति से केवल 5 साल छोटी थी मगर पिछले 10 साल से गठिया ने आ दबोचा था. इसी कारण उस के हाथों की उंगलियों में टेढ़ापन आ चुका था और सूजन भी पैदा हो गई थी. जाड़े में हालत बद से बदतर हो जाती. उठनेबैठने में भी तकलीफ होती मगर लाचार थी. आखिर घर का काम कौन करता. ‘‘बहुत दिनों से मेरी दाहिनी आंख फड़क रही है. मालूम नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?’’ अरुंधती ने चटाई से घास का एक तिनका तोड़ा फिर उसे जीभ से छुआ कर अपनी दाहिनी आंख पर इस विश्वास के साथ चिपका दिया कि आंख का फड़कना शीघ्र बंद हो जाएगा.

‘‘अरे अरु, बेकार में परेशान हो रही हो. होनी तो हो कर ही रहेगी,’’ नीलकंठ के स्वर में उदासी थी. अरुंधती ने इस से पहले कभी अपने पति को इतना चिंतित नहीं देखा था. बारबार पूछने के बावजूद उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. वह मन ही मन कुढ़ती रही. बहुत दिनों से वह महसूस कर रही थी कि नीलकंठ शाम होते ही अपने मकान की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लेते हैं और बारबार इस बात की पुष्टि करते हैं कि वे ठीक तरह से बंद हो गए हैं या नहीं. कभीकभी उठ कर खिड़की के परदों को सावधानी से हटाते और बाहर हो रही हलचल की टोह लेते. वहां फौजी गाडि़यों और जीपों की आवाजाही या फिर गश्ती दस्तों की पदचाप के अलावा और कुछ भी सुनाई न देता.

‘‘आप इतना क्यों घबरा रहे हैं? सब ठीक हो जाएगा,’’ अरुंधती अपने पति को ढाढ़स बंधाने का प्रयत्न करती. ‘‘मैं घबरा नहीं रहा हूं मगर अरु, तुम्हें नहीं मालूम, हालात बहुत बिगड़ चुके हैं. हर जगह मौत का तांडव हो रहा है.’’

अरुंधती को अपनी जवानी के वे दिन याद आए जब कश्मीर की वादी पर कबायलियों ने आक्रमण किया था. उस समय वह सिर्फ 18 साल की थी. आएदिन लूटपाट, हिंसा और बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटनाएं घट रही थीं.

एक दिन श्रीनगर शहर में सूचना मिली कि कबायलियों ने बारामुला में हजारों निहत्थे मासूम लोगों को मौत के घाट उतार दिया है. स्थानीय कानवेंट में घुस कर उन्होंने ईसाई औरतों को अपनी वासना का शिकार बनाया और अब वे श्रीनगर की ओर चले आ रहे हैं. शहर की महिलाओं, खासकर लड़कियों ने निश्चय कर लिया कि अपनी इज्जत खोने से बेहतर है कि बिजली की नंगी तारों से लटक कर जान दी जाए. मगर नियति का खेल देखिए, ठीक उसी दिन सारे नगर में बिजली गुल हो गई और मौत उन की पहुंच से बहुत दूर चली गई.

फिर एक दिन सूचना मिली कि भारतीय फौज ने कबायली आक्रमण- कारियों को खदेड़ दिया और वे दुम दबा कर भाग गए. सभी ने चैन की सांस ली. अरुंधती ने उन दिनों काफी साहस और धैर्य से काम लिया था. इस पर वह आज भी गर्व करती है. वह बातबात पर अपनी हिम्मत का दम भरती थी मगर अब फिर वैसा ही समय आ गया था, वह अपने पति को ढाढ़स बंधाते हुए बोली, ‘‘घबराने से कोई लाभ नहीं जी. जैसेतैसे झेल लेंगे इस दौर को भी. आप दिल छोटा न करें.’’ नीलकंठ ने अपनी पत्नी का साहसपूर्ण उत्तर सुन कर चैन की सांस ली. परंतु दूसरे ही पल उन्हें अपनी पत्नी के भोलेपन और सादगी पर दया आई. वे प्रतिदिन सुबह उठ कर समाचारपत्रों की एकएक पंक्ति चाट लेते. पत्रपत्रिकाएं ही ऐसा माध्यम थीं जो बाहर की दुनिया से उन का संपर्क जोड़े रखती थीं. अखबारों के पन्ने दिल दहलाने वाले समाचारों से रंगे रहते. दोनों पिंजरे में परकटे पक्षियों की भांति छटपटाते रहते.

‘‘यह सब आप ही का कियाधरा है. वीरू ने कितनी बार अमेरिका बुलाया. हर बार आप ने मना कर दिया. जाने ऐसा कौन सा सरेस लगा है जिस ने आप को इस जगह से चिपकाए रखा है. माना उस की पत्नी अमेरिकन है तो क्या हुआ. हमें उस से क्या लेनादेना है. आखिर घर से निकाल तो न देती. किसी कोने में हम भी पड़े रहते,’’ अरुंधती ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी. ‘‘प्रश्न वीरू की पत्नी का नहीं. तुम नहीं समझोगी. इस उम्र में इतनी दूर जा कर रहने से दिल घबराता है. सारी उम्र बनिहाल से आगे कभी कदम भी न रखा, अब इस बुढ़ापे में समुद्र के उस पार कहां जाएं. क्या मालूम कैसा देश होगा? कैसे लोग होंगे? वहां का रहनसहन कैसा होगा? वहां मौत आई तो जाने कैसा क्रियाकर्म होगा? यहां अपनी धरती की धूल ही मिल जाए तो सौभाग्य की बात है…और फिर तुम सारा दोष मुझ पर ही क्यों मढ़ रही हो. तुम्हारी भी तो जाने की इच्छा न थी.’’

‘‘अच्छा जी, वीरू और अमेरिका की बात छोड़ो. काकी ने मुंबई भी तो बुलाया था. आप ने तो उस को भी मना कर दिया. कहा, बेटी के घर का खाना गोमांस के बराबर होता है. भूल गए क्या?’’ ‘‘अरे, तुम नहीं समझोगी. अगर उन्हें वास्तव में हम से प्यार होता तो आ कर हमें ले जाते. हम मना थोड़े ही करते.’’

‘‘वे बेचारे तो दोनों आने को तैयार थे पर आप से डरते हैं. आप की बात तो पत्थर की लकीर होती है. आप ने तो अपने पत्रों में साफ तौर पर मना कर दिया था.’’

उधर वीरू और काकी दोनों अपनेअपने परिवार की देखरेख में जुट गए थे और यहां बुड्ढा और बुढि़या कैलेंडर की तारीख गिनते हुए जीवन का एकएक पल बिता रहे थे. ‘‘आज श्रावण कृष्ण पक्ष की 7 तारीख है. वीरू के बेटे का जन्मदिन है. उठ कर पीले चावल बना लो,’’ नीलकंठ ने अपनी पत्नी को आदेश दिया.

‘‘आज जन्माष्टमी है. काकी की बेटी आज के दिन ही पैदा हुई थी. उसे तार भेज दिया या नहीं?’’ अरुंधती ने पति को याद दिलाया. दोनों को वीरू, काकी और उन के बच्चों की याद बहुत सताती थी. कई दिन से कोई सूचना भी तो नहीं मिली थी.

बुढ़ापा और उस पर यह दूरी कितनी कष्टप्रद होती है. आंखें तरस जाती हैं बच्चों को देखने के लिए और वे समझते हैं कि इस में हमारा स्वार्थ है. ‘‘कल सुबह बेटे को पत्र लिखना. कह देना कि हमें टिकट भेज दो. हम आने के लिए तैयार हैं,’’ अरुंधती ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं. काकी से भी टेलीफोन पर बात कर के देख लूंगा. कुछ दिन मुंबई में रहेंगे और फिर वहीं से वीरू के पास अमेरिका चले जाएंगे.’’ ‘‘जैसा उचित समझो, अब रात हो गई है, सो जाओ,’’ अरुंधती ने नाइट लैंप जला कर ट्यूबलाइट बुझा दी.

नीलकंठ की बेचैनी बरकरार थी. वे फिर उठ खड़े हुए. सभी दरवाजों और खिड़कियों का निरीक्षण किया. जब तक उन्हें यह तसल्ली न हुई कि कहीं से कोई खतरा नहीं है तब तक वे कमरे में इधर- उधर टहलते रहे. फिर उन्होंने अपनी सुलगती कांगड़ी अरुंधती को थमा दी और स्वयं अपने बिस्तर में घुस गए.

नींद आंखों से कोसों दूर थी. वे करवटें बदलते रहे. इतने में बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई. दोनों कांप उठे. सिमटे सिमटाए वे अपने बिस्तरों में दुबक गए. उन्होंने अपनी सांसों के उतारचढ़ाव को भी रोक लिया. तभी धड़ाम से मुख्य दरवाजे के टूटने की आवाज आई. फिर कमरे के दरवाजे पर किसी ने जोर से लात मारी. दरवाजा भड़ाक की आवाज के साथ खुल गया. 2 नौजवान मुंह पर काले मफलर बांधे हाथों में स्टेनगन लिए कमरे में घुस गए. उन्होंने आव देखा न ताव, अंधाधुंध कई फायर किए. मगर उस से पहले ही दोनों आत्माएं डर और भय के कारण नश्वर शरीर से मुक्त हो चुकी थीं. बहते हुए खून से दोनों बिस्तर लहूलुहान हो गए.

हथियारबंद नौजवान मुड़े और अपने पीछे सन्नाटा छोड़ कर वापस चले गए. दूसरे दिन स्थानीय समाचारपत्रों में सुर्खियां बन कर यह समाचार इस तरह प्रकाशित हुआ : ‘हब्बाकदल में मुजाहिदों ने नीलकंठ और अरुंधती नाम के 2 मुखबिरों को हलाक कर दिया. उग्रवादियों को उन पर संदेह था कि वे फौज की गुप्तचर एजेंसी के लिए काम कर रहे थे.’

White Clothes : सफेद कपड़ो की चमक बरकरार रखने के लिए अपनाएं ये साइंटिफिक तरीके

White Clothes : सफेद कपड़े पहनना हर किसी को पसंद होता है – चाहे वो डेली वियर हो, किसी गेट-टुगेदर की बात हो या फिर आप आउटिंग पर निकले हों. सफेद कपड़े हर मौके पर एलीगेंस और क्लास का तड़का लगाते हैं. ये एफर्टलेस स्टाइलिंग का बेहतरीन विकल्प होते हैं. कहते हैं न – “You can never go wrong with white!” लेकिन एक जगह जरूर आप गलत हो सकते हैं – और वो है सफेद कपड़ों को सही तरीके से धोना.

सफेद की सफेदी बनाए रखना बच्चों का खेल नहीं है. कभी कोई छोटा सा दाग, या फिर गलती से मशीन वॉश करते हुए अगर किसी दूसरे कपड़े का रंग सफेद पर लग गया तो भद्दा लगता है. और अगर दो-तीन बार पहनने के बाद अगर वह पीला पड़ जाए, तो वो कपड़ा आपकी पर्सनैलिटी को भी मटमैला कर देता है.

ऐसे में जरूरी है कि आप जानें कैसे साइंटिफिक तरीके से सफेद कपड़ों की सफेदी को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है. इस आर्टिकल में आपको मिलेंगे ट्रिक्स जो आपकी वॉर्डरोब की व्हाइटनेस और ब्राइटनेस लौटाएंगे.

क्या पोटेशियम परमैंगनेट और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड सच में करते हैं कमाल?

सफेद कपड़े पहनना हमेशा से ही एक स्टाइल स्टेटमेंट रहा है. लेकिन मुसीबत तब होती है जब ये चमकदार सफेद कपड़े कुछ ही वॉश के बाद पीले, मटमैले या दागदार नजर आने लगते हैं. चाहे वो स्कूल यूनिफॉर्म हो, ऑफिस की शर्ट, या फिर आपकी सफेद साड़ी या कुर्ती, हर कोई चाहता है कि उनके कपड़े सालों साल नए जैसे चमचमाते रहें. कई सारे वॉशिंग पाउडर भी आपको कपड़ो की चमक लौटाने का वादा करते हैं लेकिन उसमें अक्सर ब्लीच मिली होती है जो आपके सफेद कपड़ो को कुछ वक्त के लिए जरुर सफेद बनाए रखेगी, लेकिन लगातार ब्लीच के कारण रंगीन कपड़ो की रंगत भी खराब हो जाती है और सफेद कपड़े भी कुछ वॉश के बाद पीले नजर आने लगते हैं. तो चलिए जानते हैं, कैसे हम आसानी से सफेद कपड़ों की चमक को बरकरार रख सकते हैं, और क्या सचमुच पोटेशियम परमैंगनेट और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड से सफेदी लौटाई जा सकती है?

क्या है पोटेशियम परमैंगनेट और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड?

ये दोनों केमिकल घरों में आमतौर पर नहीं दिखते, लेकिन लॉन्ड्री में बड़े काम के हैं. इनको आप किफायती दामों में फार्मेसी से आसानी से खरीद सकते हैं. पोटेशियम परमैंगनेट सॉल्ट 50 रुपये और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड लिक्विड की बोतल आपको आसानी से 150-200 रूपये में मिल जाएगी.

1. पोटेशियम परमैंगनेट (Potassium Permanganate)

यह एक गहरे बैंगनी रंग का ऑक्सीडाइज़र होता है जो पानी में मिलते ही रिएक्शन करने लगता है. इसकी खासियत यह है कि यह ऑर्गेनिक मैटर (जैसे कपड़ों पर लगे तेल, पसीने, फफूंदी आदि) को ब्रैकडाउन यानी तोड़ता है.

हालांकि, इसे सीधे सफेद कपड़ों पर इस्तेमाल करने से वे हल्के ब्राउनिश या मटमैले नजर आ सकते हैं – लेकिन डरे नहीं, यही तो इसकी trick है.

2. हाइड्रोजन पेरॉक्साइड (Hydrogen Peroxide)

ये एक ब्लीचिंग एजेंट होता है, लेकिन क्लोरीन ब्लीच की तरह नुकसानदायक नहीं. जब कपड़े पोटेशियम परमैंगनेट से थोड़े मटमैले हो जाते हैं, तो उन्हें हाइड्रोजन पेरॉक्साइड में डुबाने से एक “chemical reaction” होती है – जो ऑक्सिडेशन के जरिए रंग को हटाती है और कपड़े सफेद करने लगती है. नहीं समझे? चलिए थोड़ा और डीप में चलते हैं.

हाइड्रोजन पेरॉक्साइड जब पोटेशियम परमैंगनेट के अवशेषों के साथ मिलती है, तब वह मैंगनीज़ डाइऑक्साइड (MnO2) बनाता है जो कलर को तोड़ देता है और कपड़े का ओरिजिनल सफेद फाइबर वापस लाता है.

इसे “redox reaction” कहा जाता है, जहां एक केमिकल oxidize करता है और दूसरा reduce – जिससे सफेदी उभरकर सामने आती है. यानी आपका सफेद कपड़ा चकाचक हो जाता है.

बरतें कुछ सावधानियां

चूंकि हम केमिकल्स का बात कर रहे हैं तो जरूरी है कि वो केमिकल्स कपड़ों पर अपना रिएक्शन दिखाएं न कि आपके हाथों में ग्लव्स जरूर पहनें. और बच्चों से इन केमिकल्स को दूर रखें. और कोशिश करें इस ट्रिक को आप हवादार जगह ट्राई करें जिससे जो गैस निकलेगी वो सीधे घर से बाहर जाए.

कैसे करें?

एक बाल्टी पानी में थोड़ा सा पोटेशियम परमैंगनेट मिलाएं.

कपड़े को 5-10 मिनट इसमें डुबोएं.

जब रंग हल्का मटमैला होने लगे, तो निकाल लें. दूसरी बाल्टी में 3% हाइड्रोजन पेरॉक्साइड मिलाएं और उसी कपड़े को उसमें 10-15 मिनट के लिए डालकर सोक करने के लिए छोड़ दें. हां ध्यान ये रखना है कि पोटेशियम परमैंगनेट के बाद कपड़े को सीधे हाइड्रोजन पेरॉक्साइड के पानी में ही डालें, उसे साफ पानी से बीच में धोना नहीं है.

आखिर में कपड़े को सादे पानी से धोकर सुखा लें. और देखें साइंस का चमकता सफेद जादू.

सफेदी के और देसी नुस्खे

ये तो हुई साइंस की बात. अगर आपके पास पोटेशियम परमैंगनेट या हाइड्रोजन पेरॉक्साइड नहीं है, तो घबराने की ज़रूरत नहीं. आपके किचन और घर में ही कई ऐसे नुस्खे मौजूद हैं जो कपड़ों की सफेदी वापस ला सकते हैं.

1. बेकिंग सोडा और नींबू का रस

एक बाल्टी गरम पानी में बेकिंग सोडा और नींबू का रस मिलाएं. कपड़े भिगोकर एक घंटे रखें. नींबू में मौजूद सिट्रिक एसिड और बेकिंग सोडा का अल्कलाइन नेचर मिलकर दाग हटाते हैं. हालांकि हो सकता है कि आपको ज्यादा रंगीन या गहरे दाग वाले कपड़ों में ये प्रोसेस कई बार दोहरानी पड़े.

2. विनेगर (सिरका)

सफेद सिरका की कुछ बूंदें वॉशिंग मशीन या बाल्टी में डालें. यह ना सिर्फ दाग हटाता है बल्कि गंध भी निकालता है. इस ट्रिक को आप चद्दर और तकियों पर भी आजमा सकते हैं. इससे लंबे इस्तेमाल किए कपड़ों की गंध से आप पीछा छुड़ा सकते हैं.

3. नीलगिरी (Indigo) पाउडर या लिक्विड

दादी-नानी के जमाने का फेवरेट तरीका, नील का प्रयोग. हल्की पीली या ग्रे शेड वाले सफेद कपड़ों पर नील लगाने से वे एकदम चमकदार दिखते हैं. यह असल में एक ऑप्टिकल ब्राइटनर की तरह काम करता है. लेकिन ध्यान रखें ये उजाला कुछ ही दिन काम करता है. अगर आपने गलती से नील पाउडर को अच्छे से मिक्स नहीं किया या फिर ज्यादा नील डाल तो कपड़े सफेद की बजाए दागदार और नीले नजर आएंगे.

क्या क्लोरीन ब्लीच से कपड़े ज्यादा सफेद होते हैं?

क्लोरीन ब्लीच (जैसे हाइपो – sodium hypochlorite) का इस्तेमाल पहले बहुत किया जाता था. इससे आपको सफेद प्लेन कपड़ों में कुछ वक्त तो सफेदी मिलेगी लेकिन इसके लॉंग टर्म यूज से कपड़े के फाइबर कमजोर हो जाते हैं. लंबे समय तक इस्तेमाल करने से कपड़ा पीला पड़ सकता है और इससे एलर्जी या स्किन रिएक्शन भी हो सकता है. इसलिए हल्के ब्लीच या नैचुरल ऑप्शन्स को ही प्राथमिकता देना बेहतर है.

कपड़ों पर लगे रंग के दाग कैसे छुड़ाएं?

कई बार रंगीन कपड़ों के साथ धोने से सफेद कपड़ों में रंग चढ़ जाता है. ऐसे में ऑक्सीजन ब्लीच यह बिना क्लोरीन वाला विकल्प है जो रंग को बिना नुकसान पहुंचाए हटा देता है.

– अमोनिया और वॉटर मिक्स

हल्के रंग वाले दाग हटाने में काम आता है. लेकिन इसे कभी ब्लीच के साथ ना मिलाएं.

– रंग छुड़ाने वाला पाउडर

मार्केट में “colour run remover” के नाम से उपलब्ध होता है. यह खासतौर पर रंग चढ़े कपड़ों के लिए होता है.

सफेद कपड़े को सफेद बनाए रखना जितना मुश्किल दिखता है, उतना है नहीं – बस थोड़ी सी केयर, कुछ साइंस की समझ और घरेलू उपाय आपको फैशनेबल और साफ-सुथरा बनाए रख सकते हैं. पोटेशियम परमैंगनेट और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की जोड़ी सही रेशियो में और सावधानी से इस्तेमाल करें, तो पुराना कपड़ा भी नया सा चमकने लगेगा.

तो अगली बार जब आपकी सफेद शर्ट पीली नजर आए, एक बार इन ट्रिक्स को आजमाकर जरूर देखें!

Workload से बढ़ रही हैं रिश्तों में दूरियां? तो करें एक नई शुरुआत

Relationship Tips : रीमा और आदित्य, कभी एक-दूजे की आंखों में सुबह ढूंढ़ते थे, अब काम के मेलबौक्स में खो गए थे. मीटिंग्स, डेडलाइन और मोबाइल स्क्रीन ने रिश्ते में सन्नाटा भर दिया था. एक दिन आदित्य ने रीमा को बिना वजह कौफी पर बुलाया. दोनों अचकचाए, मुस्कुराए, और बातों में पुराने किस्से लौट आए. रीमा बोली, “हम थक गए थे… साथ चलना भूल गए थे.”

आदित्य ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “तो क्या हुआ? फिर से चलना शुरू कर लेते हैं.”

कभी-कभी दूरी नहीं, एक कौफी और इरादा ही कौफी होता है… एक नई शुरुआत के लिए.

आजकल की ज़िंदगी में काम और करियर की रेस इतनी तेज हो गई है कि हम अक्सर वो लोग पीछे छोड़ देते हैं जिनके साथ ये सफर शुरू किया था. सुबह की नींद औफिस कौल्स से टूटती है और रातें लैपटौप की नीली रोशनी में बीत जाती हैं. ऐसे में ना जाने कब रिश्तों के बीच एक खामोशी आकर बैठ जाती है — जो बोलती कुछ नहीं, पर बहुत कुछ कह जाती है.

कभी जिनसे घंटों बात करते थे, अब उनसे हफ्तों तक सिर्फ “ठीक हूं” या “बिज़ी हूं” में बातचीत सिमट जाती है. क्या ये सच में बिज़ीनेस है या हम खुद ही अपने रिश्तों से दूरी बना बैठे हैं? लेकिन अच्छी बात ये है कि रिश्ते टूटते नहीं, बस थम जाते हैं. और हर थमे रिश्ते को फिर से चलाने के लिए बस एक छोटी-सी कोशिश काफी होती है.

  1. रिश्तों में भी रिचार्ज ज़रूरी है

जैसे मोबाइल बिना चार्ज के काम नहीं करता, वैसे ही रिश्ते भी बिना समय और संवाद के फीके पड़ जाते हैं. रोज नहीं तो हफ्ते में एक बार, बस 10 मिनट भी साथ बैठकर मुस्कुरा लेना रिश्तों की बैटरी को दोबारा जिंदा कर सकता है.

2. टेक्नोलौजी से नहीं, अपनी मौजूदगी से जुड़िए

वीडियो कॉल्स, वॉट्सऐप और ईमेल से भरे इस दौर में “असली” मौजूदगी की अहमियत और भी बढ़ गई है. एक कॉल के बजाय कभी-कभी एक चाय साथ पीना, या ऑफिस से लौटते हुए फूल ले आना — ये छोटे कदम दिलों को फिर से पास ला सकते हैं.

3. अपने रिश्ते को भी ‘डेडलाइन’ दीजिए

काम की डेडलाइन पर हम जान लगाते हैं, पर क्या अपने रिश्तों के लिए कभी टाइम फिक्स किया है? हफ्ते में एक दिन, एक तय समय जब सिर्फ आप और आपका रिश्ता — ना कोई फोन, ना लैपटॉप — सिर्फ साथ.

4. शिकायतें कम, यादें ज़्यादा बांटिए

हर रिश्ता कभी न कभी थकता है. ऐसे समय में एक-दूसरे को सुनना, बीती अच्छी बातों को याद करना और बिना जज किए सामने वाले की बात समझना बेहद जरूरी होता है. रिश्ते तब नहीं बिगड़ते जब लड़ाई हो, बल्कि तब जब बात ही बंद हो जाए.

5. नई शुरुआत के लिए बड़े प्लान की ज़रूरत नहीं

कभी-कभी एक कप कॉफी, एक वॉक, या बस “चलो बात करते हैं” कह देना भी नई शुरुआत बन सकता है. प्यार दिखाने के लिए बड़े जेस्चर नहीं, बस सच्चा इरादा चाहिए.

Salman Khan को प्यार और शादी से नहीं एली मनी और तलाक से लगता है डर ….

Salman Khan : कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर कर पीता है, ऐसा ही कुछ हाल सलमान खान का भी है , जिन्होंने शादी तो नहीं की लेकिन शादीशुदा लोगों की बर्बादी बहुत देखी है. उनके खुद के घर में ही दो दो तलाक हो चुके हैं, दोनों भाई अरबाज खान और सोहेल खान का. जिसके चलते हाल ही में जब सलमान को फिर से शादी को लेकर सवाल किया गया, तो सलमान ने जोर से हंसते हुए कहा अरे भाई शादी से तो मुझे बहुत डर लगता है , आज के समय में शादी करना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि आजकल की कुछ बीवियां तलाक दे के दिल तो तोड़ती ही है, लेकिन एलीमनी के नाम पर आधी जायदाद भी साथ ले जाती हैं.

मुझे बच्चे बहुत पसंद है लेकिन उनकी मां से डर लगता है क्योंकि मां पति को तो छोड़ती ही है, साथ ही बच्चों के नाम पर एली मनी के साथ-साथ बच्चों को पालने का खर्चा भी बाप से ही वसूल करती है , इस हिसाब से आज के समय में शादी करने से अच्छा कुंवारे रहना ही ठीक है. गौरतलब है जिस तरह से आजकल खबरों में पति नीले ड्रम में टुकड़ों में और पहाड़ से गिरा कर मारे जा रहे है , यह सब खबरों के बाद सलमान खान तो क्या बाकी लड़के भी शादी के नाम से डरने लगे हैं.

सलमान खान के अगर वर्कफ्रंट की बात करे तो आज कल सलमान अपने नए प्रोजेक्ट की तैयारी में लगे हैं. जल्दी ही वो वॉर ड्रामा पर आधारित अनाम फिल्म में नजर आएंगे, जिसका डायरेक्शन अपूर्व लाखिया कर रहे हैं. इस फिल्म के लिए सलमान स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं लेटेस्ट खबरों के मुताबिक इस फिल्म के लिए सलमान कम ऑक्सीजन वाले माहौल में ट्रेनिंग ले रहे हैं , ताकि शूटिंग के दौरान उन्हें परेशानी ना हो. सलमान की इस फिल्म की कहानी 2020 के गलवान घाटी संघर्ष को पर्दे पर लाने की कहानी है.

इस फिल्म में वह सीनियर आर्मी ऑफिसर करनल बीकू मल्ला संतोष बाबू का किरदार निभा रहे हैं. एक सूत्र के मुताबिक सलमान खान लेह जैसे हाई एल्टीट्यूड वाले इलाके में शूटिंग करने वाले हैं. जिसके लिए सलमान शारीरिक और मानसिक फिटनेस पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. और अपने आप को पूरी तरह तैयार कर रहे है.

TMKOC की बबीता जी दाल चावल खाकर रखती हैं खुद को फिट एंड फाइन

TMKOC : सब चैनल का अति लोकप्रिय धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा कई सालों से दर्शकों के दिल पर राज कर रहा है , इस सीरियल की सबसे खूबसूरत अदाकारा बबीता जी जिस पर इस शो के मुख्य किरदार जेठालाल पूरी तरह फिदा है, वही बबीता का किरदार निभाने वाली मुनमुन दत्ता 37 की उम्र में आज भी बला की खूबसूरत है.

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बबीता अर्थात मुनमुन दत्ता ने अपनी फिटनेस का राज बताते हुए कहा कि मैंने कभी भी बहुत ज्यादा डाइटिंग नहीं की मैं वह सब खाती हूं जो एक आम इंसान खाता है, जैसे कि मुझे दाल और चावल बहुत पसंद है क्योंकि मैं बंगाली हूं इसलिए मैं रोटी से ज्यादा चावल खाना पसंद करती हूं. क्योंकि चावल के बिना मुझे खाना अधूरा लगता है.

अपनी दिनचर्या बताते हुए मुनमुन दत्ता ने कहा कि वह सुबह 5:30 तक उठ जाती है , सुबह उठते ही वह सबसे पहले दो-तीन गिलास पानी पीती है. उसके बाद जिम जाने से पहले वह भीगे हुए बादाम और केला खाती है. उसके बाद नाश्ते में वह दौसा , पोहा उपमा जैसी आयल फ्री चीज खाते हैं , वही दोपहर के खाने में वह दाल चावल रोटी सब्जी सलाद सब कुछ खाती है . कई बार जब नाश्ता खाने के लिए टाइम नहीं होता तो नाश्ता स्किप कर देती है उसकी जगह मैं दूध पी लेती हैं.

मुनमुन दत्ता के अनुसार मैं डाइटिंग में विश्वास नहीं करती लेकिन बहुत ज्यादा खाना भी गलत है, मेरा मानना है कोई भी चीज की अति बुरी है , फिर चाहे वह खाना हो शराब हो या कोई और चीज . मैं कभी अपने मन को नहीं मारती लेकिन सब कुछ खा पी कर भी मैं अपनी सेहत का भी पूरा ख्याल रखती हूं , और 37 वर्ष की उम्र में फिट रहती है .

Monsoon 2025 : बरसात में किचन को रखना चाहती हैं स्मैल फ्री, तो बड़े काम के हैं ये टिप्स

Monsoon 2025 : मौनसून में नमी बहुत बढ़ जाती है. यह नमी सीधे असर डालती है आप की किचन की चीजों दालें, मसाले, आटा, सब्जियां और यहां तक कि लकड़ी की अलमारियां भी.

अगर इन का ध्यान न रखा जाए तो चीजें खराब हो जाती हैं और फंगस व बैक्टीरिया घर कर लेते हैं, जिस से किचन से बदबू से आने लगती है साथ ही बीमारियां और चीजें खराब होने से ऐक्स्ट्रा खर्च भी आप की जेब पर बढ़ जाता है. तो इसलिए जरूरी है कि आप थोड़ा पहले से ही किचन को तैयार कर लें.

मसाले और दालें फ्रैश रखने के देसी जुगाड़ जानिए :

एअरटाइट डब्बे का करें इस्तेमाल : सभी मसाले और दालों को प्लास्टिक की थैलियों से निकाल कर एअरटाइट कंटेनर में डालें. इस से नमी से बचाव होगा और खुशबू भी बनी रहेगी.

तेजपत्ता और लौंग का कमाल : चावल, आटा और दालों में 1-2 तेजपत्ते या लौंग डाल दें. इस से कीड़े नहीं लगते और एक हलकी सी नैचुरल खुशबू भी बनी रहती है. कोशिश करें कि ज्यादा दालचावल स्टोर कर के न रखें. हफ्ते या 10 दिन के हिसाब से चीजें खरीदें.

दालों को धूप दिखाएं : अगर 1-2 दिन धूप निकलती है तो दालों को प्लेट में निकाल कर छांव में सुखा लें. इस से अंदर की सीलन निकल जाती है.

ड्रायर्स या सिलिका जैल का उपयोग : मसालों के डब्बों में एक छोटा सा ड्रायर पैकेट रखें (जैसे जो जूतों या दवाइयों में आते हैं ), नमी सोखने में मदद करेगा. यह सस्ता और सफल तरीका है चीजों को सीलन से बचाने का.

प्याज व आलू को स्टोर करें स्मार्टली, इस तरह : कपड़े की बोरियों या टोकरी में रखें : प्लास्टिक की थैली में प्याज व आलू जल्दी गलते हैं. इन्हें खुले जूट बैग या बांस की टोकरी में रखें. हर 2 से 3 दिन में इन को उलटपलट दें ताकि हवा पास होती रहे और ये सड़ें नहीं.

एकसाथ न रखें : प्याज और आलू को कभी एकसाथ न रखें. दोनों से निकलने वाली गैसें एकदूसरे को जल्दी सड़ा देती हैं.

सूखे व हवादार स्थान पर रखें : किसी ऐसी जगह रखें जहां थोड़ी हवा आती रहे. बिलकुल बंद जगह में न रखें वरना नमी से सड़न बढ़ती है.

नीचे पेपर या अखबार बिछाएं : इस से नमी सोखने में मदद मिलेगी और सड़ने पर साफ करना भी आसान रहेगा.

किचन क्लीनिंग

बेकिंग सोडा + विनेगर = मैजिक क्लीनर : यह कौंबो न केवल चिकनाई हटाता है, बल्कि बदबू को भी भगाता है. टाइल्स, गैस चूल्हा, सिंक आदि सब के लिए एकदम सही.

नीबू और नमक से चमकाएं स्टील के बर्तन : यह पुराना नुसखा आज भी सब से असरदार है. साथ ही हाथों को नुकसान भी नहीं पहुंचाता.

हैवी ड्यूटी क्लीनर इस्तेमाल करें : मार्केट में कोलीन हैवी ड्यूटी, लाइजोल किचन डीग्रेसर, मि. मसल व डी-40 (Colin Heavy Duty, Lizol Kitchen Degreaser, Mr Muscle, D40) जैसे बजट फ्रैंडली क्लीनर आते हैं जो बिना ज्यादा मेहनत के तेल की परतें हटा देते हैं.

चिमनी की टाइम टू टाइम सफाई जरूरी है : हर 15 दिन में चिमनी के फिल्टर को निकाल कर गरम पानी, बेकिंग सोडा और डिशवौशिंग लिक्विड में भिगो कर साफ करें, वरना तेल जमने से बदबू और कीड़े पनप सकते हैं. आप मार्केट में उपलब्ध ग्रीस क्लीनर भी यूज कर सकते हैं.

स्मार्ट स्टोरेज से नहीं होगी सीलन और गंदगी, इस तरह :

● किचन कैबिनेट्स में नैफ्थलीन बौल्स या कपूर रखें, ताकि फफूंदी न पनपे.

● डस्टबिन में अखबार बिछाएं और रोज खाली करें, नहीं तो नमी और कीड़े पैदा होंगे.

● खाली जगहों में विनेगर और नीम की पत्तियां रखें. यह एक नैचुरल फंगस रिमूवर है.

Skin Care : स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

Skin Care : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजा, ऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी है, लेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

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गोरी काया हर स्त्री की चाहत होती है. पहले महिलाएं अपने कामकाज से समय निकाल कर बेसन, चंदन, हलदी व मुलतानी मिट्टी के लेप बना कर अपनी त्वचा पर लगाती थीं, परंतु आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में इतना समय कहां. शरीर में चेहरे की त्वचा सब से ज्यादा संवेदनशील होती है और भागमभाग से भरपूर दिनचर्या का सब से ज्यादा बुरा असर इसी पर पड़ता है. यदि सही देखभाल न की जाए तो हवा के थपेड़ों व धूप की तपिश से चेहरे की त्वचा अपनी आभा खोने लगती है.

त्वचा के प्रकार

यदि 2 से 4 घंटों के अंतराल पर आप को अपनी त्वचा चिपचिपी प्रतीत होती है तो त्वचा का स्वभाव तैलीय है और इस प्रकार की त्वचा के रखरखाव की ज्यादा जरूरत होती है.

घर से बाहर निकलने के कुछ समय बाद ही यदि आप त्वचा में खिंचाव महसूस करती हैं तो आप की त्वचा रूखी है.

यदि धूप और हवा का असर त्वचा पर तुरंत नजर आने लगे तो आप की त्वचा अति संवेदनशील है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Short Story : अधिक्रमण – क्या सही था प्रिया का शक

Short Story : ‘‘देखो प्रिया, मैं ने तो हां कर दी,’’ सुनील ने कौफी में चीनी डाल कर चम्मच से हिलाते हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारी हां का इंतजार है. कह दो न.’’

‘‘इस में कहना क्या है, मेरी भी हां है,’’ बिना ध्यान दिए सुनील का प्याला उठाते हुए प्रिया ने कहा, ‘‘तुम मेरी मजबूरी जानते तो हो.’’

‘‘भई वाह, पत्नी हो तो ऐसी,’’ सुनील ने हंस कर कहा, ‘‘मैडम, अभी तो आप ने मेरे प्याले पर अधिकार किया है, कल को मेरी जेब पर अधिकार जमा लेंगी और फिर मेरे समूचे जीवन पर तो होगा ही.’’

‘‘क्या मैं ने तुम्हारा प्याला उठा लिया,’’ प्रिया ने आश्चर्य से कहा, ‘‘ओह हां, पता नहीं क्या सोच रही थी.  लो, तुम्हारा प्याला वापस किया.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुनील मुसकराया, ‘‘तो हम तुम्हारी समस्या के बारे में सोच रहे थे.’’

‘‘अब समस्या मेरी है. कुछ मुझे ही सोचना पड़ेगा,’’ प्रिया ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘बहनजी,’’ सुनील चिढ़ाने के लिए अकसर प्रिया को बहनजी कहता था, ‘‘हर समस्या का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है.’’

‘‘तो मां का क्या करूं? पिताजी की असमय मौत के बाद वह मेरे ऊपर पूरी तरह निर्भर हैं,’’ प्रिया ने मेज पर कोहनी टिका कर कहा, ‘‘मैं उन्हें छोड़ नहीं सकती, सुनील.’’

‘‘तो मां को साथ ले आओ,’’ सुनील हंसा, ‘‘इस से बढ़ कर और दहेज क्या हो सकता है.’’

‘‘यह हंसी की बात नहीं है,’’ प्रिया ने गंभीरता से कहा, ‘‘उस घर के साथ मां की इतनी यादें जुड़ी हैं कि वह कभी भी घर छोड़ने को तैयार नहीं होंगी. दूसरी बात, अगर मां हमारे साथ रहने को तैयार हो भी गईं तो क्या तुम्हारे घर वाले इसे कभी स्वीकार करेंगे?’’

‘‘मेरे लिए तो कोई समस्या ही नहीं है,’’ सुनील ने कहा, ‘‘मातापिता तो सांसारिक दुनिया को त्याग कर ऋषिकेश के एक आश्रम में रहते हैं. एक बड़ा भाई है जो शादी कर के चेन्नई में रहने लगा है. मैं अपनी मरजी का मालिक हूं.’’

अचानक प्रिया की आंखों में चमक आ गई, ‘‘तुम मेरी मां से मिलोगे? शायद उन्हें समझा पाओ.’’

सुनील ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘बताओ, उन्हें पटाने का कोई नुस्खा है क्या?’’

‘‘शरम करो, अपनी सास के लिए क्या कोई ऐसे कहता है,’’ प्रिया को हंसी आ गई.

‘‘तो फिर कब आना है?’’ सुनील ने पूछा.

‘‘पहले मां से बात कर लूं फिर तुम्हें बता दूंगी.’’

घंटी बजने पर जब दरवाजा खुला तो सुनील चौंक गया. प्रिया ने आज तक उसे यह नहीं बताया था कि घर में बड़ी बहन भी है. बिलकुल प्रिया की शक्ल की.

‘‘नमस्ते, दीदी,’’ सुनील ने कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

‘‘हांहां, आओ न, तुम्हारा ही तो इंतजार था,’’ मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं प्रिया की मां हूं.’’

बिलकुल कल्पना से परे, वह एकदम चुस्तदुरुस्त और स्मार्ट लग रही थीं. सुनील ने सोचा था कि मां तो वृद्धा होती हैं. उन के चेहरे पर बुढ़ापा झलक रहा होगा. पर यहां तो सबकुछ उलटा था. मां ने आधुनिक स्टाइल के कपड़े पहने हुए थे. और उन की आंखों में हंसी नाच रही थी.

प्रिया उन के पीछे खड़ी हो शरारत से मुसकरा रही थी, ‘‘जब भी हम दोनों बाजार जाते हैं तो सब हमें बहनें ही समझते हैं. तुम भी धोखा खा गए.’’

सोफे पर बैठते हुए सुनील ने शिकायत की, ‘‘प्रिया, तुम्हें मुझे सतर्क कर देना चाहिए था.’’

‘‘तो फिर क्या करते?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘अरे, मांजी के लिए विदेशी परफ्यूम लाता. साथ में कोई और अच्छा सा उपहार लाता.’’

‘‘ठीक है, तुम मां से बातें करो,’’ प्रिया ने कहा, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

कुछ ही देर में सुनील मां से घुलमिल गया. अपने बारे में पूरी जानकारी दी और प्रिया से शादी करने की इच्छा भी जता दी.

‘‘मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है,’’ मां ने सहजता से कहा, ‘‘प्रिया ने तुम्हारे बारे में इतना कुछ बता दिया है कि तुम बिलकुल अजनबी नहीं लगे.’’

‘‘तो आप ने मुझे पसंद कर लिया?’’ सुनील ने द्विअर्थी संवाद का सहारा लिया.

‘‘प्रिया की पसंद मेरी पसंद,’’ मां ने भी नहले पर दहला मारा.

सुनील ने प्रिया से आते ही कहा, ‘‘मांजी तो राजी हैं.’’

मां के गले में बांहें डाल कर प्रिया ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘मां, तुम हमारे साथ आ कर रहोगी न?’’

‘‘तुम्हारे साथ?’’ मां ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हारे साथ क्यों रहूंगी?’’

‘‘क्यों, सुनील ने कहा नहीं कि दहेज में मुझे मां चाहिए,’’ प्रिया ने हंसते हुए कहा.

‘‘ऐसी तो हमारे बीच कोई बात नहीं हुई,’’ मां ने कहा.

आत्मीयता से मां का हाथ अपने हाथों में लेते हुए सुनील बोला, ‘‘अरे मां, शादी के बाद आप अकेली थोड़े ही रहेंगी. आप साथ रहेंगी तो प्रिया को भी तसल्ली रहेगी.’’

‘‘साथ रहने में मुझे कोई एतराज नहीं,’’ मां ने थोड़ा हिचकिचा कर कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारे घर में…’’

‘‘ओह मां, एक ही बात है,’’ सुनील ने समझाया, ‘‘हम तीनों एकसाथ मेरे घर में रहें या इस घर में, क्या फर्क पड़ता है?’’

तुम्हारे घर में रहना अच्छा नहीं लगेगा,’’ मां ने कहा, ‘‘लोग क्या कहेंगे?’’

थोड़ी देर की बहस के बाद सुनील ने मां को इतना राजी कर लिया कि वह शादी के बाद सुनील के घर कुछ समय रह कर देखेंगी अगर मन नहीं लगा तो सब यहां आ जाएंगे.

बिना धूमधाम के कोर्ट में शादी हो गई. सुनील का घर व कमरा मां ने खुद सजाया था. लगता था सजावट करने में उन्हें विशेष रुचि थी. घर पूरी तरह से मां ने संभाल लिया था.

एक सप्ताह बाद सुनील और प्रिया को अपनेअपने कार्यालय जाना था. प्रिया का दफ्तर सुनील के दफ्तर से अधिक दूर नहीं था. बीच में एक दक्षिण भारतीय रेस्तरां था जहां दोनों का परिचय, दोस्ती व प्रणयलीला का आरंभ हुआ था. उन के जीवन में इस रेस्तरां का विशेष स्थान था.

नाश्ता करने के बाद मां ने दोनों को अपनाअपना टिफनबाक्स पकड़ा दिया.

‘‘आप जितनी अच्छी हैं उतनी ही पाक कला में भी निपुण हैं,’’ सुनील ने टिफनबाक्स लेते हुए कहा, ‘‘मुझे अगर पहले पता होता तो शादी के मामले में इतनी देर न लगाता. यह सारी गलती आप की बेटी की है.’’

प्रिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम तो शादी करने को ही राजी नहीं थे. कहते थे न कि ऐसे ही साथ क्यों नहीं रहते?’’

मां ने हंस कर कहा, ‘‘अरेअरे, लड़ो मत. जो कुछ इतने दिनों में तुम ने खोया है वह सब मैं पूरा कर दूंगी.’’

‘‘बहुत चटोरे हैं मां, इन्हें ज्यादा मुंह न लगाओ,’’ प्रिया ने इठला कर कहा, ‘‘अब चलो भी.’’

मां उन्हें जाते हुए देखती रहीं. कहां गए वे दिन जब वह इसी तरह अपने पति को विदा करती थीं. उन के जाने के बाद वह घर की सफाई में लग गईं.

दिन में 2 बार फोन कर के सुनील ने मां से बात कर ली. मां को अच्छा लगा. प्रिया को तो अकसर समय ही नहीं मिलता था और अगर फोन करती भी थी तो केवल अपने मतलब से.

मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही मां ने दरवाजा खोला और दोनों का हंस कर स्वागत किया.

सुनील ने देखा कि मां भी एकदम तरोताजा लग रही थीं. अच्छी साड़ी के साथ हलका सा शृंगार कर लिया था. प्रिया की ओर देखा तो वह दफ्तर से हारीथकी आई थी. बालों की लटें बिखर रही थीं. चेहरे का रंग किसी बरतन की कलई की तरह उतर रहा था.

एक दिन सुनील मां से कह बैठा, ‘‘मां, आप प्रिया को अपनी तरह स्मार्ट रहना क्यों नहीं सिखातीं?’’

प्रिया चिढ़ गई और नाराज हो कर अपने कमरे में चली गई.

थोड़ी देर तक कमरे में से सुनील और प्रिया के बीच झगड़ने की आवाजें आती रहीं.

मां ने आवाज लगाई, ‘‘अरे भई, जल्दी से बाहर आओ. मैं गरमागरम पालक की पकौडि़यां बना रही हूं. बैगन की पकौड़ी भी तो तुम्हें अच्छी लगती हैं. वह भी काट रखा है.’’

सुनील उत्साह से बाहर आया, ‘‘लो, मैं आ गया. मांजी, आप ने तो मेरी कमजोरी पकड़ ली है. वाहवाह, साथ में धनिए की चटनी भी है.’’

हाथमुंह धो कर प्रिया भी बाहर आ गई. उस का क्रोध ठंडा हो गया था लेकिन मुंह फूला हुआ था.

‘‘खाओखाओ,’’ सुनील ने कहा, ‘‘प्रिया, तुम भी मांजी के कुछ गुण सीख लो.’’

‘‘मुझे आता है. वह तो मां ही किचन में नहीं घुसने देतीं.’’

‘‘अरे, अभी बच्ची है,’’ मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘और जब तक मैं हूं उसे कुछ करने की जरूरत क्या है?’’

‘‘मां, मुझे क्षमा करो. मैं भूल गया था. नजरें कमजोर हो गईं लगता है,’’ सुनील ने विनोद से प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, ‘‘सच ही तो, प्रिया अभी बच्ची है.’’

सुनील रोज सुबहशाम मां की प्रशंसा करते नहीं थकता था. लेकिन इस बीच परिस्थिति कुछ ऐसी हो गई कि प्रिया को अंदर से बुरा लगने लगा. फिर भी वह चुप रह कर झगड़ा अधिक न बढ़े इस की चेष्टा करती थी.

एक दिन जब प्रिया नहा कर बाथरूम से बाहर आई तो देखा सुनील मां की गोद में सिर रख कर लेटा हुआ था और मां उस के ललाट पर बाम लगा रही थीं. यह देख कर वह चकित रह गई.

इस बीच मां ने मुसकरा कर सुनील से पूछा, ‘‘कैसा लग रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ सुनील ने उठने की चेष्टा की.

‘‘लेटे रहो. आराम करो,’’ मां ने उठते हुए कहा, ‘‘प्रिया, एक प्याला गरम चाय बना दे. थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा.’’

‘‘सिर में दर्द था तो मुझ से क्यों नहीं कहा?’’ प्रिया ने शिकायत की, ‘‘मां को नाहक कष्ट दिया. मां, आप ही चाय बना दो. मैं यहां बैठी हूं.’’

कुछ दिनों से प्रिया महसूस कर रही थी कि मां अब छोटेमोटे कामों के लिए उसे ही दौड़ा देती थीं जबकि पहले सारे काम खुद ही करती थीं, उसे हाथ तक नहीं लगाने देती थीं. कहीं मां से ईर्ष्या तो नहीं होने लगी उसे?

एक दिन उत्साह से सुनील ने कहा, ‘‘चलो, आज दिल्ली हाट चलते हैं. दक्षिण की हस्तकला की प्रदर्शनी है और विशेष व्यंजनों के स्टाल भी लगे हैं.’’

मां ने खुश हो कर कहा, ‘‘हांहां चलो. मेरी तो बहुत इच्छा थी ऐसी प्रदर्शनियां देखने की पर क्या करूं, अकेली जा नहीं सकती और कोई अवसर भी नहीं मिलता.’’

‘‘चलो, प्रिया, झटपट तैयार हो जाओ,’’ सुनील ने आग्रह किया.

प्रिया ने सोचा कि अगर वह नहीं जाएगी तो कोई नहीं जाएगा. इसलिए उस ने कह दिया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं नहीं जाऊंगी.

‘‘अरे, चल भी,’’ मां ने कहा, ‘‘बाहर चलेगी तो तबीयत ठीक हो जाएगी.’’

‘‘नहीं मां, सारे बदन में दर्द हो रहा है. मैं तो कुछ देर सोऊंगी,’’ प्रिया ने सोचा दर्द की बात सुन कर सुनील कोई गोली खिलाएगा या डाक्टर के पास चलने को कहेगा.

‘‘तो ऐसा करो,’’ सुनील ने कहा, ‘‘तुम आराम करो. मैं मां को ले जाता हूं. वैसे भी मोटरसाइकिल पर 2 ही लोग बैठ सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, प्रिया. तू आराम कर,’’ मां ने कहा और तैयार होने चली गईं. प्रिया आश्चर्य से उन्हें देखती रह गई. मां को क्या हो गया है?

कुछ देर बाद मां और सुनील अपनेअपने कमरों से तैयार हो कर बाहर आ गए. आश्चर्य से आंखें फाड़ कर वह दोनों को देख रही थी. मां ने सुनील की दी हुई साड़ी पहन रखी थी. गले और कानों में आभूषण भी थे. लिपस्टिक व पाउडर का भी इस्तेमाल किया था. बगल में छिड़के मादक परफ्यूम से कमरा महक रहा था.

‘‘हाय, हम चलते हैं, अपना खयाल रखना,’’ सुनील ने चलते हुए कहा.

‘‘ठीक है प्रिया, फ्रिज में खिचड़ी रखी है. उसे गरम कर के जरूर खा लेना और आराम करना,’’ मां ने बिना मुड़े कहा.

उन के जाने के बाद प्रिया बहुत देर तक सूनी आंखों से छत को देखती रही और फिर जब अपने पर नियंत्रण न कर पाई तो सिसकसिसक कर रोने लगी. लगता है मां और सुनील के बीच चक्कर चल रहा है. मां कोई इतनी बूढ़ी तो हुई नहीं हैं…इस के आगे प्रिया बस, यही सोच सकी कि क्या यह उस के अधिकारों पर अधिक्रमण है? प्रिया ने सोचा, चलो, मां के व्यवहार का कोई कारण था तो सुनील को क्या हो गया? शादी उस से और प्यार मां से? नहीं, समस्या और परिस्थिति दोनों पर अंकुश लगाना पड़ेगा.

वे लौट कर आए तो बहुत खुश थे. सुनील मां का बारबार हाथ पकड़ लेता था और मां की ओर से कोई आपत्ति भी उसे नजर नहीं आई. इस खुलेआम प्रेम प्रदर्शन को देख कर उस का मन और भी दुखी हो उठा.

‘‘सच प्रिया, बहुत मजा आया. अच्छा होता तुम भी साथ चलतीं. दक्षिण भारतीय खाना तो बड़ा ही स्वादिष्ठ था,’’ सुनील ने हंस कर कहा, ‘‘चलो, फिर सही.’’

मां स्वयं विस्तार से मौजमस्ती का बखान कर रही थीं.

सब अपनीअपनी हांक रहे थे. किसी ने उस से यह तक नहीं पूछा कि उस की तबीयत कैसी है. उस ने कुछ खाया भी या नहीं. क्रोध से प्रिया अंदर ही अंदर उबल रही थी. सोचा, नहीं, यह तमाशा वह और नहीं चलने देगी.

बहुत रात हो गई थी. प्रिया मुंह ढक कर लेटी जरूर थी पर उसे नींद नहीं आ रही थी.

‘‘क्या बात है, प्रिया,’’ सुनील ने पूछा, ‘‘कोई तकलीफ है क्या?’’

‘‘हां, है,’’ प्रिया बिफर पड़ी, ‘‘मां को अपने घर जाना होगा. तुम दोनों का नाटक अब और अधिक बरदाश्त नहीं होता.’’

‘‘यह अचानक तुम्हें क्या हो गया,’’ सुनील ने पूछा. वैसे वह सब समझ रहा था. मां के प्रति वह आकर्षित तो हो गया था, लेकिन कुछ अपराधबोध भी था. इस संकट से उबरना होगा.

‘‘तुम सब समझ रहे हो, इतने मूर्ख नहीं हो,’’ प्रिया ने क्रोध से कहा, ‘‘मां को किसी भी तरह उन के घर छोड़ आओ.’’

‘‘लेकिन साथ रखने की शर्त तो तुम्हारी थी,’’ सुनील ने कहा.

‘‘वह मेरी भूल थी,’’ प्रिया ने कटुता से पूछा, ‘‘तुम मेरे साथ क्या खेल खेल रहे हो? मां को क्यों बहका रहे हो?’’

सुनील उठ कर बैठ गया, ‘‘सुनना चाहती हो तो सुनो. मैं ने मां को हमेशा मां की नजरों से ही देखा है. अगर मेरी मां यहां होतीं तो भी मैं ऐसा ही करता. अभी तक मैं ने कोई अनुचित सोच उन के प्रति मन में कायम ही नहीं की है.’’

‘‘यह तुम कह रहे हो? निर्लज्जता की भी कोई हद होती है,’’ प्रिया ने क्रोध से कहा.

‘‘मैं चाहता था कि तुम अच्छे कपड़े पहनो, ठीक शृंगार करो, स्मार्ट दिखो, लेकिन दिन पर दिन तुम लापरवाह होती गईं, मानो शादी कर ली तो जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया. अरे, शादी के पहले भी तो तुम अच्छीखासी थीं,’’ सुनील ने कहा.

‘‘नहीं करता मेरा मन तो…’’ प्रिया का वाक्य अधूरा रह गया.

‘‘वही तो. मेरी कितनी तमन्ना थी कि साथ चलो तो नईनवेली पत्नी लगो, कोई नौकरानी नहीं,’’ सुनील ने कहा, ‘‘और इसीलिए मैं ने यह नाटक किया कि ईर्ष्या के मारे तुम सही दिखने की कोशिश करो, लेकिन तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आया.’’

प्रिया काफी देर तक चुप रही. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुनील, तुम सच बोल रहे हो या मुझे बेवकूफ बना रहे हो.’’

‘‘सच, एकदम सच,’’ सुनील ने प्रिया को पास खींचा. मां पानी पीने कमरे से बाहर आई थीं. बेटी और दामाद की बातें कानों में पड़ीं. सुना और चुपचाप दबेपांव अपने कमरे में चली गईं. अगले दिन बहुत स्वादिष्ठ नाश्ता परोसते हुए मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यहां रहते बहुत दिन हो गए हैं. अब मुझे जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों, मां?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी?’’

‘‘आदत तो डालनी पड़ेगी न बेटी,’’ मां ने कहा, ‘‘और फिर तुम लोग तो आतेजाते रहोगे. है न बेटे?’’ प्रिया ने सुना. आज मां ने पहली बार सुनील को बेटा कह कर संबोधन किया था.

Stories In Hindi Love : इजहार – सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

Stories In Hindi Love : मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

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