Monsoon Fashion Tips : बरसात में फौलो करें ये वॉटरप्रूफ फैशन एक्सेसरीज ताकि दिखें खास

Monsoon Fashion Tips :  बरसात का मौसम जितना सुकून देने वाला होता है, उतनी ही परेशानी लेकर आता है स्टाइलिश दिखने की चाहत में. गीले कपड़े, फिसलन भरी सड़कें और छतरी संभालने की मशक्कत के बीच भी फैशनेबल दिखना एक चुनौती से कम नहीं. लेकिन कुछ वॉटरप्रूफ फैशन एक्सेसरीज ऐसी हैं, जो न केवल आपको बारिश से बचाएंगी, बल्कि आपको एक स्टाइलिश लुक भी देंगी. आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ जरूरी और ट्रेंडी एक्सेसरीज के बारे में:

  1. वॉटरप्रूफ जैकेट्स और रेनकोट्स

अब रेनकोट्स का मतलब केवल प्लास्टिक की सादे परतें नहीं रह गया है. आजकल मार्केट में ट्रेंडी, हल्के और रंग-बिरंगे वॉटरप्रूफ जैकेट्स उपलब्ध हैं, जो आपको बारिश से बचाते हैं और फैशन स्टेटमेंट भी बनते हैं.

  1. ट्रांसपेरेंट या प्रिंटेड अम्ब्रेला

छाते अब स्टाइल एक्सप्रेशन का हिस्सा बन चुके हैं. फूलों वाले प्रिंट, पोल्का डॉट्स, या ट्रांसपेरेंट अम्ब्रेला – आपके लुक में चार चांद लगा सकते हैं. इन्हें अपने आउटफिट के साथ मैच करके पहनना एक नया ट्रेंड बन गया है.

  1. वॉटरप्रूफ बैग्स और बैकपैक्स

चाहे ऑफिस जा रही हों या कॉलेज, आपका बैग अगर वॉटरप्रूफ नहीं है तो बारिश में आपकी सारी चीज़ें खराब हो सकती हैं. इसीलिए अब ऐसे बैग्स का चलन है जो वॉटरप्रूफ भी हैं और डिजाइनर भी. इन पर रंगीन ज़िप, लेदर फिनिश और क्वर्की प्रिंट इन्हें खास बनाते हैं.

  1. रबर गमबूट्स और वॉटरप्रूफ फुटवियर

बारिश में स्लिपर पहनना परेशानी का सबब बन सकता है, ऐसे में रबर गमबूट्स या वॉटरप्रूफ सैंडल्स बहुत उपयोगी होते हैं. आजकल फ्लोरल प्रिंटेड, ट्रांसपेरेंट और नेऑन रंगों में ये बूट्स आ रहे हैं जो बेहद आकर्षक लगते हैं.

  1. वॉटरप्रूफ स्मार्ट वॉच और एक्सेसरीज

जो लोग टेक-सेवी हैं, उनके लिए वॉटरप्रूफ स्मार्ट वॉच एक बेस्ट चॉइस है. इसके अलावा रबर या सिलिकॉन ब्रेसलेट, वॉटरप्रूफ हेयरबैंड्स और क्लिप्स भी बरसात में स्टाइल को बरकरार रखते हैं.

  1. वॉटर-रेसिस्टेंट मेकअप

बरसात में अगर आप खूबसूरत दिखना चाहती हैं तो वॉटरप्रूफ मेकअप प्रोडक्ट्स जैसे मस्कारा, काजल और लिपस्टिक का उपयोग करें. ये बहते नहीं हैं और लंबे समय तक टिकते हैं.

बारिश के मौसम में स्टाइल को बरकरार रखना कोई मुश्किल काम नहीं, बस सही एक्सेसरीज का चुनाव जरूरी है. ये वॉटरप्रूफ फैशन आइटम्स न सिर्फ आपको बारिश से बचाएंगे, बल्कि आपको सबसे अलग और ट्रेंडी भी बनाएंगे. तो इस मानसून खुद को दें एक नया वॉटरप्रूफ फैशन ट्विस्ट!

How To Sleep Better : आखिर क्या है सोने की सही पोजीशन, जानें बिस्तर पर सोने के स्किल्स

How To Sleep Better : जिंदगी जीने के लिए सभी स्किल्स का होना जरूरी है. इन्हीं में से एक स्किल है बिस्तर पर सोना. जी हां हम मजाक नहीं कर रहें हैं. यह भी एक स्किल है जिसके बारे में सबको पता होना चाहिए. वैसे भी दिन भर में 7-8 घंटे की नींद जरुरी है. लेकिन लोगों को नींद ना आने की परेशानी होती है. आधी आधी रात तक जागने की आदत होती है. जब तक आप अकेले हैं यह आदतें तब तक तो ठीक हैं लेकिन क्या आपको कभी किसी ने बताया है कि अगर आप किसी के साथ रूम शेयर कर रहें हैं तो इससे सामने वाले को कितनी परेशानी हो सकती हैं. इसलिए जानें बिस्तर पर सोने के क्या स्किल्स हैं.

लाइट बंद करके सोएं

अगर आपको खुली लाइट में सोने की आदत है तो हम आपको बता दें कि अकेले कमरे में सोने के लिए ये आदत ठीक हो सकती हैं लेकिन अगर आप किसी के साथ रूम शेयर कर रहें हैं तो आइडियल सिचुएशन लाइट बंद करके सोना होता है. हर किसी को रौशनी में नींद नहीं आती. रिसर्च में भी पता चला है कि अंधेरे कमरे में सोने से नींद अच्छी आती है.

फोन और आईपेड को बिस्तर पर न लें जाएं

फोन और आईपेड से जो ब्लू लाइट निकलती है वह नींद को कम कर देती हैं. इसलिए अगर पार्टनर या कोई और रूम में हैं तो ये चीजें बिस्तर तक ना लाएं वार्ना आपका तो पता नहीं लेकिन साथ वाले को उलझन जरूर होगी.

शराब पीकर सोने ना आएं

बहुत से लोगों के मन में ये भ्रम होता है कि शराब पीने से नींद अच्छी आती है. ऐसा करके वे पार्टनर को भी परेशान करते हैं. हालांकि शराब शुरू में आपको नींद का एहसास करा सकती है, लेकिन यह आपकी स्लीप साइकिल को रिस्ट्रिक्ट कर सकती है, जिससे खराब क्वालिटी वाली नींद आ सकती है. इसके बजाय नॉन-अल्कोहल ड्रिंक या हर्बल चाय का विकल्प चुनें और खुद भी चैन से सोएं और अपने पार्टनर की भी नींद ख़राब न करें.

खाने पीने पर भी धयान दें

आप जो खाते हैं उससे नींद और सामान्य स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि रात में सोने में परेशानी होने से आपको अगले दिन जंक फूड और अनहेल्दी स्नैक्स खाने की ज्यादा इच्छा हो सकती है. इसलिए सोने से पहले अपना भोजन सावधानी से चुनें क्योंकि यह आपकी क्लीप क्वालिटी को प्रभावित कर सकता है. सोने से पहले हैवी या ज्यादा भोजन करने से असुविधा हो सकती है और आपकी नींद में खलल पड़ सकता है. इसके बजाय सोने से कुछ घंटे पहले हल्का स्नैक्स या छोटा भोजन करें. इसके आलावा कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, हाई प्रोटीन फूड्स, मीठा खाना को भी अवॉयड करें.

नींद नहीं आती तो वाक पर जाएं

कई लोगों की आदत होती है कि उन्हें नींद आती नहीं है. और उसके चलते वे पूरी रत बेचैन रहते हैं और अपने पार्टनर की भी नींद खराब करते हैं. ऐसे में चाहिए कि सोने से पहले वाक पर जाएं. ताकि नींद ठीक से आएं और पार्टनर को भी असुविधा न हो.

कमरा और बिस्तर साफ होना चाहिए

एक साफ और व्यवस्थित कमरा आरामदायक नींद के लिए एक शांत वातावरण बनाता है. इसलिए अगर आप किसी के साथ रूम शेयर कर रहें हो तो उस कमरे में कबाड़खाना ना बनायें. वह आपके सोने की जगह है और उस जगह को आरामदायक बनाना आपका ही फर्ज है. अपने बिस्तर को आरामदायक बनाने के लिए, एक अच्छी गुणवत्ता वाला गद्दा, तकिया और चादरें चुनें.

रोज सोने का एक समय तय करें

अगर आप रात की उल्लू हैं तो दूसरे बन्दे को क्यों अपनी उस आदत से परेशान कर रही हैं. आपको अपने सोने की आदतों को बदलने की जरुरत है ताकि आपके साथ रूम शेयर करने वाले बन्दे को कोई असुविधा ना हो. हर रात एक ही समय पर बिस्तर पर जाएं और सुबह एक ही समय पर जागें.

पेट के बल सोना सही नहीं है

काफी लोगों को बिस्तर पर पेट के बल सोने की आदत होती है. अगर आप भी इसी तरह सोते हैं तो आपको अपना तरीका बदलने की जरूरत है. दरअसल, पेट के बल सोना शरीर के लिए अच्छा नहीं होता है. इससे रीढ़ की हड्डी सही पोजिशन में नहीं रहती है. वहीं, शरीर का पूरा वजन बौडी के बीच में रहता है. इससे पेट से संबंधित बीमारियों के अलावा शरीर के अलग-अलग हिस्सों में दर्द हो सकता है.

किसी ने कभी आपको बताया है कि सोने की सही पोजीशन आखिर क्या है

बाईं करवट लेकर सोना सबसे सही पोजिशन है, जिससे शरीर फिट रहता है. इससे पाचन क्रिया भी बेहतर होती है. साथ ही, दिल की बीमारियों से संबंधित समस्याओं का खतरा भी कम होता है. प्रेग्नेंट महिलाओं को तो खासतौर पर बाईं करवट ही सोना चाहिए, क्योंकि दाईं करवट सोने से लिवर पर ज्यादा प्रेशर पड़ता है.

सीधा लेटकर सोना अच्छा रहता है

पीठ के बल सोना कई मायने में फायदेमंद है. सिर ,पीठ ,गर्दन और कमर में दर्द से राहत मिलती है और पाचन भी सही रहता है. पीठ के बल सोने से गर्दन की मांसपेशियां पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ती है . जिससे सुबह उठने के बाद सर में दर्द भारीपन की समस्या गर्दन दर्द की शिकायत से निजात मिलती है.”

इन बातों का भी धयान रखें-

हर रात एक ही समय पर सोएं और हर सुबह एक ही समय पर उठें.

सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल सीमित करें.

सोने से पहले आराम करें.

दिन के अंत में शराब और कैफीन जैसे उत्तेजक पदार्थों से बचें.

कमर को सपोर्ट करने वाला गद्दा होना चाहिए

फिर बाएं करवट लेट जाएं और सोएं.

Maternity Benefits : ग्रुप मेडिक्लेम पौलिसी तहत आम तौर पर किस तरह के नवजात शिशु और मैटरनिटी बेनिफिट शामिल होते हैं?

Maternity Benefits : ग्रुप यानि समूह मेडिक्लेम पॉलिसी में, नवजात शिशु और मैटरनिटी बेनिफिट में आमतौर पर प्रेगनेंसी, चाइल्डबर्थ और पोस्टपेर्टम केयर से संबंधित खर्च शामिल होते हैं. इसमें नवजात शिशु की देखभाल, अस्पताल में भर्ती होने का खर्च, और कुछ मामलों में, जन्मजात दोषों के लिए कवरेज भी शामिल हो सकता है.

सज्जा प्रवीण चौधरी, डायरेक्टर, पॉलिसीबाजार फॉर बिजनेस के बता रहें हैं की ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत आम तौर पर किस तरह के नवजात शिशु और मैटरनिटी बेनिफिट शामिल होते हैं?

मैटरनिटी बेनिफिट शामिल-

एम्पलॉयर्स द्वारा पेश की जाने वाली ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी में आम तौर पर मैटरनिटी बेनिफिट शामिल होते हैं जो नॉर्मल और सिजेरियन (सी-सेक्शन) दोनों तरह के डिलिवरी को कवर करते हैं. इसके अतिरिक्त, डिलिवरी के पहले और डिलिवरी के बाद की देखभाल के लिए किए गए खर्च आम तौर पर कवर किए जाते हैं. इसमें डायग्नोस्टिक टेस्ट, अल्ट्रासाउंड स्कैन, डॉक्टर कंसल्टेशन और दवाइयां शामिल हैं. कुछ मामलों में, सीमित अवधि (जैसे, 90 दिनों तक) के लिए नवजात शिशु को भी कवरेज प्रदान किया जाता है.

भारत में कॉर्पोरेट पॉलिसी के तहत औसत मैटरनिटी कवरेज-

भारत में कॉर्पोरेट हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत औसत मैटरनिटी कवरेज आम तौर पर नॉर्मल डिलिवरी के लिए ₹50,000 और सिजेरियन डिलिवरी के लिए ₹75,000 के बीच होता है। हालांकि, यह ओर्गेनाइजेशन की पॉलिसी शर्तों और इंश्योरेसं प्रोवाइडर के आधार पर अलग हो सकता है.

कॉरपोरेट ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत कवर होने के योग्य-

किसी ओर्गेनाइजेशन के सभी कर्मचारी कॉरपोरेट ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत कवरेज के लिए योग्य हैं, बशर्ते एम्पलॉयर ने इसे चुना हो. कई कंपनियां इस कवरेज को पति/पत्नी, बच्चों और कुछ मामलों में माता-पिता जैसे आश्रितों तक भी बढ़ाती हैं.

जीएमसी पॉलिसी के तहत आमतौर पर अस्पताल में भर्ती होने के दौरान इन खर्चों को कवर किया जाता है?

जीएमसी पॉलिसी आमतौर पर अस्पताल में भर्ती होने के कई तरह के खर्चों को कवर करती है, जिनमें शामिल हैं:

-कमरे का किराया और नर्सिंग शुल्क

– डॉक्टर की फीस और एक्सपर्ट कंसल्टेशन

– डायग्नोस्टिक टेस्ट और इमेजिंग

– अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के खर्च

-सर्जिकल प्रक्रियाएं

-मैटरनिटी और डिलिवरी से संबंधित खर्च (नॉर्मल और सी-सेक्शन डिलीवरी)

– डेकेयर उपचार और प्रक्रियाएं

Fashion Tips : गर्ल्स के बीच बढ़ता सिगरेट पैंट का क्रेज, अब स्टाइल के साथ कम्फर्टेबल भी…

Fashion Tips : फैशन के बदलते दौर के साथ कुर्ते को स्टाइलिश लुक देने के लिए अब सिंपल पैंट, प्लाजो, सलवार लेगिंग की जगह, सिगरेट पैंट इन दिनों काफी पौपुलर हो रही हैं. अगर आप भी कुछ हटके और स्टाइलिश दिखना चाहती है तो आपको सिगरेट पैंट जरूर ट्राई करनी चाहिए.

सिगरेट पैंट

ये पैंट बिलकुल सिगरेट की तरह नजर आती हैं. सिगरेट पैंट फिटेड होती हैं और इनकी मोहरी काफी ऊंची होती है. इस वजह से ये देखने में काफी ट्रेंडी लगती हैं. इस पैंट की खासियत ये हैं कि ये इतनी कम्फर्टेबल होती हैं जिससे ये डेली वियर में भी इजी तरीके से पहनी जा सकती हैं. इसके अलावा ये एथनिक और वेस्टर्न दोनों ही ड्रेस को ट्रेंडी लुक देती हैं. इसे आप लौन्ग कुर्ते या टौप के साथ भी कैरी कर सकती हैं. इसका स्लीक लुक, फिट और बौटम कट आपके सूट को सेमी फौर्मल टच देता हैं. जिसे पहनकर कोई भी स्टाइलिश दिख सकता हैं. फिटेड और स्टाइलिश डिज़ाइन की ये पैंट्स हर मौके के लिए परफेक्ट हैं. ऑफिस वियर से लेकर कैजुअल आउटिंग तक, सिगरेट पैंट्स हर स्टाइल के साथ परफैक्ट हैं. इसके साथ ही मोबाइल रखने के लिए गहरी पौकेट की सुविधा भी गर्ल्स की की पहली पसंद हैं.

कलरफुल और डिजाइनर सिगरेट पैंट

आपको मार्केट मे हर कलर की डिजाइनर सिगरेट पैंट मिल जाएगी लेकिन स्टाइलिश दिखने के लिए आप सिगरेट पैंट को डिफरेंट तरह की डिजाइन से बनवा सकती हैं. हम आपको सिगरेट पैंट के कुछ ट्रेंडिंग स्टाइल बता रहें हैं जो गर्ल्स के बीच बहुत पॉपुलर हैं और जिसे पहन कर आप भी फैशन की रेस में शामिल हो सकती हैं.

1.ट्रांसपेरेंट सिगरेट पैंट

इस स्टाइल की पैंट में आपको बॉटम में पैंट के कलर की नेट लगी हुई मिलेगी जो आपकी पैंट को अलग ही स्टाइल देगी. आप इसे अपने चॉइस के अनुसार कम या ज्यादा नेट लगवा भी सकती हैं. बॉटम से इसका ट्रांसपेरेंट लुक दिखने में बहुत शानदार लगता हैं और किसी भी कुर्ते के साथ इस पैंट को पहन कर आप स्टाइल दिखा सकती हैं.

2.पर्ल और कटवर्क स्टाइल पैंट

इसमें बॉटम की ओर पर्ल और कटवर्क का डिजाइन होता है. सिगरेट पैंट का ये डिज़ाइन बेहद स्टाइलिश, एलिगेंट और अट्रैक्टिव दिखता हैं इसमें कट वर्क के साथ पर्ल की डिटेलिंग परफेक्ट फिनिशिंग देती है. इसे एथनिक या सेमी-फॉर्मल सूट्स के साथ पहन कर ग्रेसफुल लुक पा सकती है. इसमें आप डायमंड शेप, ओवल शेप, हार्ट शेप या कोई भी अपना मनपसंद डिजाइन बनवा सकती हैं. इस तरह के कट वर्क आपकी पैंट को काफी स्टाइलिश और ट्रेंडी लुक भी देते है.

3. क्रौस डिजाइन पैंट

आप अपनी चॉइस के अनुसार क्रॉस डिजाइन वाले पैंट्स भी बनवा सकती हैं इसमें मोहरी पर फ्रंट की तरफ से ओवर लैप करते हुए डिजाइन बना होता हैं इसमें पैंट के ही कलर की सेम लेस और एंकल लेंथ वाली इस डिजाइनर पैंट्स को आप लॉन्‍ग कुर्तियों के साथ पेयर कर सकती हैं. यह डिज़ाइन एक एलीगेंट और फेमिनिन लुक देता है.

4. लेस डिटेलिंग वाला पैंट 

अगर आप अपने लुक में एलिगेंस और ट्रेंड का सही बैलेंस बनाना चाहती हैं तो वाइट थ्रेड की कढ़ाई और लेस डिटेलिंग वाली पैंट पहने इस में निचले हिस्से में स्लीक लाइनिंग पैटर्न इसे क्लासी और मॉडर्न टच देता है. इसे आप एथनिक और कैज़ुअल दोनों प्रकार के सूट के साथ पहन सकती है. लेस की फाइन डेकोरेशन और कंट्रास्टिंग डिज़ाइन पैंट को अलग और अट्रैक्टिव बनाते हैं.

5.स्लिट्स डिजाइन पैंट

इस तरह की सिगरेट पैंट में सिंपल सा साइड स्लिट वर्क होता हैं. अपने सूट या कुर्ती के साथ आप इस तरह की सिंपल सिगरेट पैंट पेयर कर सकती हैं। ये डेली वियर के लिए एकदम परफेक्ट है। देखने में भी काफी स्टाइलिश लगती है और काफी कंफर्टेबल भी होती हैं

6.गोटा पट्टी सिगरेट पैंट 

आप अपनी पैंट में गोटा पट्टी वाली लैस लगवा कर उसे हैवी और फैंसी लुक दें सकती हैं सिंपल कुर्ते के साथ गोटा पट्टी या गोल्डन लैस लगी वाली सिगरेट पैंट का मेल खूबसूरत दिखता हैं. इसके अलावा मैचिंग लैस का जादू अलग ही दिखता हैं.

7.ट्रेंडी धोती स्टाइल पैंट

अगर आप शार्ट टॉप या कुर्ती पहनना चाहती हैं तो आप धोती स्टाइल सिगरेट पैंट जरूर ट्रॉय करें ये देखने में काफी ट्रेंडी लगेगी. ये बॉटम में आगे से वी कट में होती हैं इसके बॉर्डर में पर्ल और लैस का काम कमाल का दिखता है.

8. बो वाली सिगरेट पैंट

आप अपनी सिगरेट पैंट में कुछ एक्सपेरिमेंट कर के उसे स्टाइलिश बना सकती हैं बस आपको उसकी मोहरी में मैचिंग बो लगाना होगा ये पैंट कॉलेज जाने वाली गर्ल्स के लिए काफी ट्रेंडी और यूनिक पैटर्न है.

9. टैसल्स वाली सिगरेट पैंट 

टीनऐज गर्ल्स फंकी लुक के लिए आप अपनी सिगरेट पैंट की मोहरी पर फ्रंट से मैचिंग या कंट्रास्टिंग शेड वाले टैसल्स अटैच करा कर होने लुक को और परफेक्ट बना सकती है.

10.जिगजैक सिगरेट पैंट

आप अपनी पैंट्स की मोहरी पर जिग जैग पैटर्न भी बनवा सकती हैं। ये भी देखने में काफी ज्यादा यूनिक लगता है डेली वियर के सूटों के साथ तो इस तरह का पैटर्न एकदम बेस्ट रहेगा। देखने में भी स्टाइलिश और पहनने में भी काफी कंफर्टेबल.

कैसे करें कैरी-

सिगरेट पैंट इंडियन फैशन की दुनिया में सबसे ज़्यादा पौपुलर स्टाइल में से एक है. इन सिगरेट पैंट को कई तरह के टौप और कुर्ते के साथ पहना जा सकता है ताकि अलगअलग मौकों पर अलगअलग लुक तैयार किया जा सके. शादी की पार्टियों, त्यौहारों या फिर दफ्तरों में एथनिक लुक के लिए इस सिगरेट पैंट कौटन फ़ैब्रिक के साथ शौर्ट या लौन्ग फेस्टिव कुर्ता चुनें. वहीं, कंटेम्पररी वेस्टर्न लुक के लिए इन पैंट को बटन-डाउन शर्ट या क्रौप टौप के साथ पहना जा सकता है. इसके अलावा, अपने ट्रेंडी सिगरेट पैंट लुक को पूरा करने के लिए जूती या अपने पसंदीदा स्टिलेटो या ब्लैक हील्स की एक जोड़ी चुनें.

सिगरेट पैंट की कीमत और फैब्रिक-

मार्केट में 500 रूपये की शुरूआती कीमत से शुरू होने वाली सिगरेट पैंट आपको कौटन, लाइकरा, लेनिन, खादी और सिल्क फैब्रिक में आसानी से मिल जाएगी अगर आपको ब्रांड की डिजाइनर सिगरेट पैंट चाहिए तो फैब इंडिया, बिबा, वेस्ट साइड के स्टोर में 1000 से ऊपर की कीमत मे मिल जाएगी.

दो बार ब्रेस्ट कैंसर का शिकार हो चुकी हैं 80 साल की Aruna Irani, लेकिन नहीं ली कीमोथेरेपी

Aruna Irani : 80 वर्षीय एक्ट्रेस अरुणा ईरानी ने हाल ही में खुलासा किया कि उनको 60 साल की उम्र तक दो बार ब्रेस्ट कैंसर हो चुका है, लेकिन कीमोथेरेपी में बाल जाने के डर से और चेहरा खराब होने के डर से उन्होंने किमोथेरेपी लेने से इनकार कर दिया था. तो डौक्टर ने मुझे सलाह दी कि मैं किमो की गोली ले लूं तो मैंने डौक्टर की ये सलाह मान ली, मैंने गोली लेना ही सही समझा ,लेकिन बाद में मुझे दूसरी बार भी ब्रेस्ट कैंसर हुआ लेकिन मैने उसको भी हरा दिया .

अब तक 500 फिल्मों में काम कर चुकी अरुणा ईरानी उन दिनों अपने सशक्त अभिनय को लेकर इतनी प्रसिद्ध थी कि असुरक्षा की भावना के चलते रेखा ने अरुणा ईरानी को फिल्म ‘औरत औरत औरत’ में अच्छा रोल होने के बावजूद एडिट कर के कट करवा दिया था , फिल्म को बनने में 6 साल लग गए इसलिए फिल्म रिलीज होने तक मेरे रोल पर काफी कैंची चल गई थी. क्योंकि मेरा कोई गाडफादर नहीं था और मैंने जो भी सफलता प्राप्त की थी संघर्ष करके की थी, उस दौरान भी गलत अफवाहों का भी मेरे करियर पर बुरा असर पड़ा था , उन दिनों किसी ने खबर उड़ा दी थी मैंने कौमेडियन महमूद से शादी कर ली है , इस अफवाह को लोगों ने इतना सच माना कि मुझे कुछ सालों के लिए फिल्मों में काम मिलना ही बंद हो गया था.

फिर फाइनली ऋषि कपूर डिंपल कापड़िया की पहली फिल्म बॉबी में मुझे राज कपूर ने एक बार फिर से एक्टिंग करने का मौका दिया.उस वक्त काफी समय बाद चेहरे पर मेकअप लगाते वक्त मेरी आंखों में आंसू आ गए थे.

बचपन से ही अभिनय से जुड़ी अरुणा ईरानी आज भी फिल्मों में और टीवी पर सक्रिय हैं. अमिताभ बच्चन के साथ बॉम्बे टू गोवा और जितेंद्र के साथ कारवा फिल्म के जरिए चर्चा में रहने वाली अरुणा रानी ने कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारी के बावजूद कभी भी जिंदगी में हार नहीं मानी और आज भी बड़े पर्दे और छोटे पर्दे पर वह सक्रिय है. कई सारी बड़ी बीमारियों को झेलने के बाद भी वह आज 80 साल की उम्र में भी पूरी तरह जोश में है.

Elder Care : मैं अपने बूढ़े पिता की देखभाल नहीं कर सकता, क्या उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं?

Elder Careअगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 42 वर्षीय हूं. 1 बेटा है जो होस्टल में रह कर पढ़ाई करता है. मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं. समस्या वृद्ध पिता को ले कर है. वे चलनेफिरने में लाचार हैं और उन की विशेष देखभाल करनी पड़ती है. समय की कमी की वजह से हम उन की उचित देखभाल नहीं कर पा रहे. क्या उन्हें किसी वृद्धाश्रम में रख सकते हैं? किसी वृद्धाश्रम की जानकारी मिले तो हमारा काम आसान हो जाएगा?

जवाब

बेहतर यही होगा कि आप अपने वृद्ध पिता की देखभाल के लिए दिन में कोई केयर टेकर रख लें. इस अवस्था में वृद्धों को सिर्फ आर्थिक ही नहीं शारीरिक व मानसिक रूप से भी अपनों का साथ पसंद होता है. फिर सुबहशाम और छुट्टी के दिन तो उन्हें आप का साथ मिल ही रहा है. इस से वे बोर भी नहीं होंगे और उचित देखभाल की वजह से स्वस्थ भी रहेंगे.

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सवाल
मैं 26 साल की हूं. विवाह को डेढ़ साल हुए हैं. परिवार संयुक्त और बड़ा है. यों तो सभी एकदूसरे का खयाल रखते हैं पर बड़ी समस्या वैवाहिक जीवन जीने को ले कर है. सासससुर पुराने खयालात वाले हैं, जिस वजह से घर में इतना परदा है कि 9-10 दिन में पति से सिर्फ हांहूं में भी बात हो जाए तो काफी है. रात को भी हम खुल कर सैक्स का आनंद नहीं उठा पाते. कभीकभी मन बहुत बेचैन हो जाता है. दूसरी जगह घर भी नहीं ले सकते. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

सैक्स संबंध हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है. स्वस्थ व जोशीली सैक्स लाइफ हमारे संबंधों को मजबूत बनाती है एवं जीवन को खुशियों से भरती है. संयुक्त परिवारों में जानबूझ कर औरतों को दबाने के लिए उन्हें पति से दूर रखा जाता है और वे पति के साथ खुल कर सैक्स ऐंजौय नहीं कर पातीं. इस के लिए आप को पति से खुल कर बात करनी होगी. सिर्फ आप ही नहीं आप के पति भी आप की चाह रखते होंगे.

बेहतर होगा कि इस के लिए कभी किसी रिश्तेदार के या कभी मायके जाने के बहाने पति के साथ बाहर घूमने जाएं. इस तरह के संबंधों को तो झेलना ही होता है. कोई उपाय नहीं मिलता.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8, रानी झांसी  मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें. 

Social Stories : पंडों का चक्रव्यूह – पूजा के नाम पर ठगी

Social Stories : आज मैं जब अपने चाचाजी को देखने उन के घर गई तो उन्हें देख कर बहुत दुख हुआ. चाचाजी की हालत बहुत गंभीर थी. मैं ने चाचीजी से पूछा कि डाक्टर क्या कह रहा है? किस डाक्टर को दिखाया? अचानक क्या हुआ? 5 महीने पहले तो चाचाजी ठीक थे? तो चाचीजी ने बताया, ‘‘बिटिया, 4 महीने पहले तुम्हारे चाचाजी को बुखार आया था. डाक्टर की दवा से फायदा नहीं हुआ तो पड़ोसिन पंडिताइन ने एक अच्छे हकीम की दवा दिलवाई. ये कुछ दिन तो ठीक रहे फिर हालत बिगड़ती गई. फिर डाक्टर को दिखाया, पर ये ठीक नहीं हुए. बहुत दिनों तक दवा खाते रहे पर कोई फायदा नहीं हुआ. तभी एक दिन पंडिताइन ने चाचाजी की जन्मपत्री एक बहुत बड़े पंडित को दिखाई तो मालूम चला कि तुम्हारे चाचाजी ठीक कैसे होंगे. इन की तो घोर शनि और केतु की दशा चल रही है. तब से हम ने डाक्टर की दवा कम कर दी और इन के लिए जाप वगैरह करा रहे हैं.’’

सुन कर मेरा माथा ठनका. मैं ने कहा, ‘‘चाचीजी, जाप वगैरह से कुछ नहीं होगा. डाक्टर को ठीक से दिखा कर टैस्ट वगैरह कराइए. आप जो पैसा जाप में खर्च कर रही हैं, इन के खाने और दवा पर खर्च करिए.’’

चाचीजी ने कहा, ‘‘बिटिया, डाक्टर क्या पंडित से ज्यादा जाने हैं? जब पंडितजी ने बता दिया कि क्यों बीमार हैं, तो डाक्टर के पास जाने से क्या फायदा? अब हम किसी डाक्टर को नहीं दिखाएंगे,’’ और वे तमतमा कर अंदर चली गईं.

मैं ने अपनी भाभी यानी उन की बहू को सम?ाया. पर वे तो चाचीजी से भी ज्यादा अंधविश्वासी थीं. मैं चाचाजी से मिल कर दुखी मन से घर लौट आई. मैं सम?ा गई कि उस पंडित ने चाचीजी को अपने जाल में फांस लिया है.

मेरी चाचीजी को हमेशा पंडितों की बातों और उन के अंधविश्वासों पर विश्वास रहा. मैं पहले जब भी चाचीजी से मिलने जाती तो अकसर किसी पंडे या पंडित को उन के पास बैठा देखती. वे उस से घर की सुखशांति व निरोग होने के लिए उपाय पूछती दिखतीं और वह पंडा या पंडित जन्म और अगले जन्म के विषय में इस तरह से बताता जैसे सब कुछ उस के सामने घटित हो रहा हो. वह अकसर कौन सा दान करना जरूरी है, किस दान से क्या फल मिलेगा और अगर फलां दान नहीं किया तो अगले जन्म में क्या नुकसान होगा वगैरह बातें कर के चाचीजी के मस्तिष्क को अंधविश्वासों में जकड़ता जा रहा था और चाचीजी बिना किसी विरोध के उस का कहना मानती थीं.

चाचाजी उम्र बढ़ने के साथ व्याधियों से भी घिरते जा रहे थे. चाचीजी उस का कारण चाचाजी का पंडितों पर विश्वास न होना मानती थीं. चाचीजी और चाचाजी की उम्र में 12 साल का अंतर था पर चाचीजी का कहना था कि मैं इसलिए स्वस्थ हूं क्योंकि मैं पंडितजी के कहे अनुसार सारे धर्मकर्म करती हूं और चाचाजी चूंकि पंडितजी की बात नहीं मानते, इसलिए रोगों से ग्रस्त रहते हैं.

उन की इस तरह की बात बारबार सुन कर उन की बहू भी अंधविश्वासी हो गई थी.

एक घर में जब 2 महिलाएं पंडितों और पंडों के चक्कर में फंस जाएं तो वे रोज नए

तरह के किस्सों और कर्मकांडों द्वारा दानपुण्य से लूटने की भूमिका तैयार करते रहते हैं. वही चाचीजी के घर में हो रहा था.

मैं हर दूसरे दिन फोन पर चाचाजी की खबर लेती रहती. कभी उन की तबीयत ठीक होती तो कभी ज्यादा खराब होती. 3 हफ्ते बाद मैं जब चाचाजी से मिलने गई तो पंडितजी बैठे थे और चाचीजी की बहू को कुछ सामग्री लिखा रहे थे.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हो रहा है, चाचीजी?’’

चाचीजी बोलीं, ‘‘बिटिया, पंडितजी कह रहे हैं अगर चाचाजी का तुलादान कर दिया तो ये ठीक हो जाएंगे. तुलादान व्यक्ति के वजन के बराबर अनाज वगैरह दान करने को कहते हैं और ये उसी का सामान लिखा रहे हैं.’’

फिर वे पंडितजी से बात करने में मशगूल हो गईं. पंडितजी चाचीजी की उदारता और पतिभक्ति की भूरिभूरि प्रशंसा कर रहे थे और मैं खड़ीखड़ी पंडित के ठगने के तरीके और अंधविश्वास में लिपटे इन लोगों को देख रही थी.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत बिगड़ गई है. घर में मेरे भाई का डाक्टर दोस्त आया हुआ था. उसे खाना खिला कर मैं ने चाचाजी को देखने का प्रोग्राम बनाया. जब उसे मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो वह बोला, ‘‘दीदी, मैं आप को चाचाजी के घर छोड़ता चला जाऊंगा. हम घर से निकले और चाचाजी के घर पहुंचे तो मैं ने क्षितिज से कहा, ‘‘जब तुम यहां तक आ गए हो तो एक बार चाचाजी को देख लो.’’

‘‘ठीक है दीदी, मैं देख लेता हूं,’’ क्षितिज ने कहा. हम अंदर गए तो पंडितजी मंत्र का जाप कर रहे थे. पास में एक गाय खड़ी थी. चाचाजी बेसुध से पास की चारपाई पर लेटे थे और उन के हाथ को पकड़ कर चाचीजी ने उस में फूल, पानी, अक्षत, रोली वगैरह रखे हुए थे.

पूछने पर उन की बहू ने बताया, ‘‘दीदी, गौदान हो रहा है. पंडितजी कह रहे थे कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता रहते हैं. इस का दान करने से बाबूजी तुरंत ठीक हो जाएंगे.’’

ये बातें सुन कर मेरा माथा ठनका. मुझे लगा इन पंडितों का जाल इन्हीं अज्ञानी लोगों की वजह से दिन पर दिन समाज में फैलता जा रहा है. मैं अपनी सोचों में ही डूबउतरा रही थी कि पंडितजी की पूजा समाप्त हुई. उन्हें दक्षिणा का लिफाफा चाचीजी ने थमाया तो वह गाय और साथ का सामान ले कर चलने लगे. धूप, अगरबत्ती के धुएं से चाचाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही थी और खांसतेखांसते उन का बुरा हाल था.

पंडितजी चाचीजी से बोले, ‘‘देखिए माताजी, बाबूजी का रोग कैसे

बाहर निकलने के लिए लालायित है. अब ये कल तक ठीक हो जाएंगे.’’

चाचीजी बड़े आग्रह के साथ पंडितजी को खाना खिलाने ले गईं. उन्होंने चाचाजी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया.

जब पंडितजी चले गए तो मैं चाचाजी के पास गई. उन के सिर पर हाथ रखा, सीने को सहलाया तो उन्हें कुछ आराम मिला. उन्होंने आंखें खोल कर मुझे देखा. मैं ने तभी क्षितिज को उन से मिलाया, ‘‘चाचाजी, आप ठीक हो जाएंगे, ये डाक्टर क्षितिज हैं.’’

चाचाजी की दर्द और कातरता से भरी आंखें आशा के साथ क्षितिज को देखने लगीं. क्षितिज ने चाचाजी का चैकअप किया और कुछ दवाएं लिखीं. उस ने चाचाजी को ढाढ़स बंधाया और दवा लेने चला गया.

क्षितिज ने दवा की एक खुराक उसी समय दी और अपनी क्लीनिक चला गया. मैं शाम तक वहीं रही. रात को खाना खा कर जब मैं वहां से अपने पति के साथ वापस आ रही थी, तो चाचाजी दवा की 2 डोज ले चुके थे और कुछ स्वस्थ से लग रहे थे. इधर चाचीजी और उन की बहू इस बात से आश्वस्त थीं कि गौदान करने से बाबूजी ठीक हो रहे हैं.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत खराब है. मैं जल्दीजल्दी जब वहां पहुंची तो चाचाजी अंतिम सांसें ले रहे थे और वही पंडितजी मंत्र पढ़पढ़ कर न जाने कौन से दान और कर्मकांड करवा रहे थे. मालूम चला कि चाचीजी ने चाचाजी की दवा बंद करवा दी थी. सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं क्या कर सकती थी?

मेरे देखतेदेखते चाचाजी ने अंतिम सांस ली. चाचाजी की मृत्यु को रोका जा सकता था, अगर उन की दवा बंद न की गई होती. पर चाचीजी तो पंडित के चक्कर में इतनी फंसीं कि उन्हें कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

फिर शुरू हुआ पंडित द्वारा भगवान की मरजी आदि बातों को बताना. थोड़ी देर बाद चाचाजी का लड़का सब को फोन कर रहा था तो चाचीजी चाचाजी के पास बैठी सुबकसुबक कर रो रही थीं. उन की बहू अगरबत्ती जलाने, बैठने का प्रबंध करने आदि में लगी थी. पंडितजी एक सज्जन के साथ सामान की लिस्ट बनवाने में व्यस्त थे. पंडितजी ने चाचाजी के जीतेजी जितनी लंबी लिस्ट बनवाई थी, यह लिस्ट उस से और लंबी हो गई थी और वे न करने या कम करने पर मरने वाले की आत्मा को कष्ट होगा, यह दुहाई देते जा रहे थे.शाम को जब चाचाजी का शरीर अंतिम यात्रा के लिए ले जाया गया तो घाट पर फिर वही सब पंडों के आदेश और उन पर चलता व्यक्ति. न खत्म होने वाली रस्में और उन में उलझते घर के लोग.

जब दाह संस्कार कर के लोग वापस आए तो सब थक कर भरे मन से अपनेअपने घर चले गए. पर पंडितजी एक कोने में बैठ कर अगले दिन की तैयारी व लिस्ट बनवाने में व्यस्त हो गए. उन का असली किरदार तो अब शुरू हुआ था. अब 10 दिन की कड़ी तपस्या, खानपान में परहेज, जमीन में सोना, अलग रहना, अपने प्रिय की जुदाई का दुख. फिर भी पंडितजी की लिस्ट में किसी तरह की कमी नहीं थी. बल्कि ऐसे भावुक समय को भुनाने की तो पंडों की पूरी कोशिश रहती है. ऐसे समय में कुटुंब और समाज के लोग भी पंडे की बातों का समर्थन कर के, ऊंचनीच सम?ा कर, दुख से पीडि़त व्यक्ति के घाव को हरा ही करते हैं.

एक तो व्यक्ति दुखी वैसे ही होता है. ऐसे में अगर यह कह दिया जाए कि अगर आप इतना सब नहीं करेंगे तो आप के पिता भूखे रहेंगे, दुखी रहेंगे, तो वह उधार कर के भी उस पंडे की हर बात मानने को मजबूर हो जाता है.

9 दिन इसी तरह लूटने के बाद 10वें दिन पंडित ने एक बड़ी लिस्ट थमाई जिस में दानपुण्य की सामग्री लिखी थी. जब चाचाजी के बेटे ने प्रश्नवाचक नजरों से पंडितजी को देखा तो पंडितजी सम?ाने लगे, ‘‘बेटा, इस समय जो दान जाएगा, वह तो शमशान के पंडित को ही जाएगा. यह सारी सामग्री इसलिए आवश्यक है, क्योंकि

9 दिन से तुम्हारे पिता प्रेतयोनि में ही हैं और प्रेम को कोई लगाव नहीं होता. अगर प्रेत असंतुष्ट रह गया तो वह तुम्हारा, तुम्हारे बच्चों या परिवार का अहित करने से नहीं चूकेगा. इसलिए 10वें के दिन वह सभी दान करना पड़ता है जो 13वीं के दिन किया जाता है. वरना प्रेत से छुटकारा पाना बहुत कठिन हो जाता है.

अपने भविष्य व अपने बच्चों के प्रति हम इतने सशंकित रहते हैं कि पंडों या पंडितों के चक्रव्यूह में बेबस हो कर फंस जाते हैं. इस पंडित ने जिस तरह से अपराधबोध और भय की सुरंग चारों तरफ फैला दी थी, उस से निकलने का कोई रास्ता चाचाजी के बेटे को नजर नहीं आ रहा था. इसलिए जैसाजैसा पंडित कहते जा रहे थे, वह बुरे मन से ही सही सब कर रहा था.

13वीं के लिए पंडितजी ने पुन: एक बार लंबी पूजा व दान की लिस्ट चाचाजी

के बेटे को पकड़ाई और सम?ाया, ‘‘जजमान, 13वीं को आप के पिता आप के द्वारा दिए गए दान व तर्पण से प्रसन्न हो कर प्रेतयोनि से मुक्त हो कर पितरों के साथ मिलेंगे. अत: आप इन को वस्त्र, आभूषण, बरतन और अन्य सामग्री से प्रसन्न कर के पितरों के साथ मिलने में इन की सहायता करें.’’

चाचाजी का बेटा यह सब करतेकरते थक गया था. उसे तो इन सब पर विश्वास ही नहीं था, पर मां और पत्नी के डर से कुछ कह नहीं पा रहा था. पर जब 10वां हो गया और पंडित की मांगें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गईं तो वह बिफर गया और 13वीं के दिन का सामान देने के लिए राजी नहीं हुआ.

पंडित का कहना था कि अगर यह सब दान नहीं किया तो मृतात्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी. और भी कई भावुक बातें उस ने कहीं. चाचाजी के बेटे का सब्र का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘मैं अगर आप के कहे अनुसार चलता रहा तो यह सच है कि मैं इस जन्म में तो कर्ज से मुक्त नहीं हो पाऊंगा और जीतेजी मर जाऊंगा. अब बहुत हो गया. कृपया लूटने का नाटक बंद करें,’’ और उस की आंखों से आंसू बहने लगे. पता नहीं ये आंसू दुख के थे या पश्चात्ताप के.

उसी समय चाचीजी बेटे को दिलासा देने आईं और बोलीं, ‘‘बेटा, इतना सब अच्छे से किया है, तो अब आखिरी काम क्यों नहीं अच्छे से कर देता है? मेरे पास जो भी है, उन का दिया है. ले मेरे हाथ की चूडि़यों को. उन्हें बेच कर तू उन की गति संवार दें. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं,’’ और चाचीजी सुबकने लगीं.

उस ने चूडि़यां मां को वापस कीं. निर्लिप्त भाव से वह सब करने लगा, जो पंडित उस से कह रहा था पर चिंता की लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट दिख रही थीं, क्योंकि अभी 11 पंडितों का खाना, दक्षिणा और संबंधियों का भोज बाकी था. पर वह इन के भंवर में इतना फंस गया था कि कुछ कहना व्यर्थ था.

घर के किसी भी व्यक्ति के जाने के बाद पीछे रहा व्यक्ति दोहरी पीड़ा ?ोलता है. एक तो अपने प्रियजन के विछोह की तो दूसरी व्यर्थ के कर्मकांडों की. पर अंधविश्वास व पंडों द्वारा फैलाए डर तथा अनर्थ की आशंका के कारण व्यक्ति इन का अतिक्रमण नहीं कर पाता.

हम सब एकसाथ 2 तरह की दुनिया में रहते हैं. एक भौतिक साधनों से संपन्न आधुनिकता से भरी दुनिया, तो दूसरी पाखंड और पंडों के द्वारा बनाई गई भयभीत करने वाली दुनिया, जिस में सत्य का या वास्तविकता का कोई अंश नहीं होता. भगवान के नाम पर, मृतात्मा के नाम पर ये पंडे, जिस तरह से व्यक्ति को लूटते हैं उस के बारे में सब को पता है कि यह सब शायद सत्य नहीं है पर फिर भी कभी डर से, कभी मृतात्मा के प्रति उपजे प्यार और आदर से, हम सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं और इन पंडों की कुटिल चाल में फंस जाते हैं.

खैर पंडितजी ने अपना सामान बांधा, चाचाजी के बेटे को पता दिया और सामान घर पहुंचाने का आदेश दे कर चलते बने.

Family Story : माटी का प्यार – सरहदों को तोड़ता मां-बेटी का रिश्ता

Family Story : फोन की घंटी की आवाज सुन कर मिथिला ने हाथ का काम छोड़ कर चोगा कान से लगाया.

‘मम्मा’ शब्द सुनते ही समझ गईं कि भूमि का फोन है. वह कुछ प्यार से, कुछ खीज से बोलीं, ‘‘हां, बता, अब और क्या चाहिए?’’

‘‘मम्मा, पहले हालचाल तो पूछ लिया करो, इतनी दूर से फोन कर रही हूं. आप की आवाज सुनने की इच्छा थी. आप घंटी की आवाज सुनते ही मेरे मन की बात समझ जाती हैं. कितनी अच्छी मम्मा हैं आप.’’

‘‘अब मक्खनबाजी छोड़, मतलब की बात बता.’’

‘‘मम्मा, ललित के यहां से थोड़ी मूंगफली मंगवा लेना,’’ कह कर भूमि ने फोन काट दिया.

मिथिला ने अपने माथे पर हाथ मारा. सामने होती तो कान खींच कर एक चपत जरूर लगा देतीं. यह लड़की फ्लाइट पकड़तेपकड़ते भी फरमाइश खत्म नहीं करेगी. फरमाइश करते समय भूल जाती है कि मां की उम्र क्या है. मां तो बस, अलादीन का चिराग है, जो चाहे मांग लो. भैयाभाभी दोनों नौकरी करते हैं. कोई और बाजार दौड़ नहीं सकता. अकेली मां कहांकहां दौडे़? गोकुल की गजक चाहिए, प्यारेलाल का सोहनहलवा, सिकंदराबाद की रेवड़ी, जवे, कचरी, कूटू का आटा, मूंग की बडि़यां, पापड़, कटहल का अचार और अब मूंगफली भी. कभी कहती, ‘मम्मा, आप बाजरे की खिचड़ी बनाती हैं गुड़ वाली?’

सुन कर उन की आंखें भर आतीं, ‘तू अभी तक स्वाद नहीं भूली?’

‘मम्मा, जिस दिन स्वाद भूल जाऊंगी अपनी मम्मा को और अपने देश को भूल जाऊंगी. ये यादें ही तो मेरा जीवन हैं,’ भूमि कहती.

‘ठीक है, ज्यादा भावुक न बन. अब आऊंगी तो बाजरागुड़ भी साथ लेती आऊंगी. वहीं खिचड़ी बना कर खिला दूंगी.’

और इस बार आधा किलोग्राम बाजरा भी मिथिला ने कूटछान कर पैक कर लिया है.

कई बार रेवड़ीगजक खाते समय भूमि खयालों में सामने आ खड़ी होती.

‘मम्मी, सबकुछ अकेलेअकेले ही खाओगी, मुझे नहीं खिलाओगी?’

‘हांहां, क्यों नहीं, ले पहले तू खा ले,’ और हाथ में पकड़ी गजक हाथ में ही रह जाती. खयालों से बाहर निकलतीं तो खुद को अकेला पातीं. झट भूमि को फोन मिलातीं.

‘भूमि, तू हमेशा मेरी यादों में रहती है और तेरी याद में मैं. बहुत हो चुका बेटी, अब अपने देश लौट आ. तेरी बूढ़ी मां कब तक तेरे पास आती रहेगी,’ कहतेकहते वह सुबक उठतीं.

‘मम्मा, आप जानती हैं कि मैं वहां नहीं आ सकती, फिर क्यों याद दिला कर अपने साथ मुझे भी दुखी करती हो.’

‘अच्छा बाबा, अब नहीं कहूंगी. ले, कान पकड़ती हूं. अब अपने आंसू पोंछ ले.’

‘मम्मा, आप को मेरी आंखें दिखाई दीं?’

‘बेटी के आंसू ही तो मां की आंखों में आते हैं. तेरी आवाज सब कह देती है.’

‘मम्मा, आंसू पोंछ लिए मैं ने, लेकिन इस बार जब तुम आओगी तो जाने नहीं दूंगी. यहीं मेरे पास रहना. बहुत रह लीं वहां.’

‘ठीक है, पर तेरे देश की सौगातें तुझे कैसे मिलेंगी?’

‘हां, यह तो सोचना पडे़गा. अब आप को तंग नहीं होना पडे़गा. हम भारत से आनलाइन खरीदारी करेंगे. थोड़ा महंगा जरूर पडे़गा पर कोई बात नहीं. आप की बेटी कमा किस के लिए रही है. पता है मम्मा, यहां एक इंडियन रेस्तरां है, करीब 150 किलोमीटर दूर. जिस दिन भारतीय खाना खाने का मन होता है वहीं चली जाती हूं और वहीं एक भारतीय शाप से महीने भर का सामान भी ले आती हूं.’

बेटी की बातें सुन कर मिथिला की आंखें छलछला आईं. उन्हें लगा कि बिटिया भारतीय व्यंजनों के लिए कितना तरसती है. पिज्जाबर्गर की संस्कृति में उसे आलू और मूली का परांठा याद आता है. काश, वह उस के पास रह पातीं और रोज अपने हाथ से बनाबना कर खिला पातीं.

5 साल हो गए यहां से गए हुए, लौट कर नहीं आई. वह ही 2 बार हो आई हैं और अब फिर जा रही हैं. भूमि के विदेश जाने में वह कहीं न कहीं स्वयं को अपराधी मानती हैं. यदि भूमि के विवाह को ले कर वह इतनी जल्दबाजी न करतीं तो ये सब न होता. भूमि ने दबे स्वर में कहा भी था कि मम्मा, थोड़ा सोचने का वक्त दो.

वह तब उबल पड़ी थीं कि तू सोचती रहना, वक्त हाथ से निकल जाएगा. सोचतेसोचते तेरे पापा चले गए. मैं भी चली जाऊंगी. अब नौकरी करते भी 2 साल निकल गए. रिश्ता खुद चल कर आया है. लड़का स्वयं साफ्टवेयर इंजीनियर है. तुम दोनों पढ़ाई में समान हो और परिवार भी ठीकठाक है, अब और क्या चाहिए?

उत्तर में मां की इच्छा के आगे भूमि ने हथियार डाल दिए क्योंकि  वह हमेशा यही कहती थीं कि तू ने किसी को पसंद कर रखा हो तो बता, हम वहीं बात चलाते हैं. भूमि बारबार यही कहती कि मम्मा, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप जहां कहोगी चुपचाप शादी कर लूंगी.

भूमि ने मां की इच्छा को सिरआंखों पर रख, जो दरवाजा दिखाया उसी में प्रवेश कर गई, लेकिन विवाह को अभी 2 महीने भी ठीक से नहीं गुजरे थे कि भूमि पर नौकरी छोड़ कर घर बैठने का दबाव बनने लगा और जब भूमि ने नौकरी छोड़ने से इनकार कर दिया तो उस का चारित्रिक हनन कर मानसिक रूप से उसे प्रताडि़त करना शुरू कर दिया गया.

6 महीने मुश्किल से निकल पाए. भूमि ने बहुत कोशिश की शादी को बचाए रखने की, पर नहीं बचा सकी. इसी बीच कंपनी की ओर से उसे 6 माह के लिए टोरंटो (कनाडा) जाने का अवसर मिला. वह टोरंटो क्या गई बस, वहीं की हो कर रह गई और उस ने तलाक के पेपर हस्ताक्षर कर के भेज दिए.

‘मम्मा, अब कोई प्रयास मत करना,’ भूमि ने कहा था,  ‘इस मृत रिश्ते को व्यर्थ ढोने से उतार कर एक तरफ रख देना ज्यादा ठीक लगा. बहुत जगहंसाई हो ली. मैं यहां आराम से हूं. सारा दिन काम में व्यस्त रह कर रात को बिस्तर पर पड़ कर होश ही नहीं रहता. मैं ने सबकुछ एक दुस्वप्न की तरह भुला दिया है. आप भी भूल जाओ.’

कुछ नहीं कह पाईं बेटी से वह क्योंकि उस की मानसिक यंत्रणा की वह स्वयं गवाह रही थीं. सोचा कि थोडे़ दिन बाद घाव भर जाएंगे, फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा. इसी उम्मीद को ले कर वह 2 बार भूमि के पास गईं. प्यार से समझाया भी, ‘सब मर्द एक से नहीं होते बेटी. अपनी पसंद का कोई यहीं देख ले. जीवन में एक साथी तो चाहिए ही, जिस से अपना सुखदुख बांटा जा सके. यहां विदेश में तू अकेली पड़ी है. मुझे हरदम तेरी चिंता लगी रहती है.’

‘मम्मा, अब मुझे इस रिश्ते से घृणा हो गई है. आप मुझ से इस बारे में कुछ न कहें.’

विचारों को झटक कर मिथिला ने घड़ी की ओर देखा. 6 बजने वाले हैं. कल की फ्लाइट है. पैकिंग थोड़ी देर बाद कर लेगी. घर को बाहर से ताला लगा और झट रिकशा पकड़ कर ललित की दुकान से 1 किलो मूंगफली, मूंगफली की गजक, गुड़धानी और गोलगप्पे का मसाला भी पैक करा लाईं.

बहू और विनय के आने में अभी 1 घंटा बाकी है. तब तक रसोई में जा सब्जी काट कर और आटा गूंध कर रख दिया. थकान होने लगी. मन हुआ पहले 1 कप चाय बना कर पी लें, फिर ध्यान आया कि विनय और बहू ये सामान देखेंगे तो हंसेंगे. पहले उस सामान को बैग में सब से नीचे रख लें. चाय उन दोनों के साथ पी लेंगी.

बहूबेटे खा पी कर सो गए. उन की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह बेटी के लिए ले जाने वाले सामान को रखने लगीं. ज्यादातर सामान उन्होंने किलो, आधा किलो के पारदर्शी प्लास्टिक बैगों में पैक कराए हैं ताकि कस्टम में परेशानी न हो और वह आराम से सामान चैक करा सकें. भूमि के लिए कुछ ड्रेस और आर्टी- फिशियल ज्वैलरी भी खरीदी थी. उसे बड़ा शौक है.

सारा सामान 2 बैगों में आया. अपना सूटकेस अलग. मन में संकोच हुआ कि विनय और बहू क्या कहेंगे? इतना सारा सामान कैसे जाएगा. जब से आतंक- वादियों ने धमकी दी है चैकिंग भी सख्त हो गई है. भूमि ने तो कह दिया है कि मम्मा, चिंता न करना. अतिरिक्त भार का पेमेंट कर देना. और यदि खोल कर देखा तो…?

उन की इस सोच को अचानक ब्रेक लगा जब विनय ने पूछा, ‘‘मम्मा, आप की पैकिंग पूरी है, कुछ छूटा तो नहीं, वीजा, टिकट और फौरेन करेंसी सहेज कर रख ली?’’

संकोचवश नीची निगाह किए उन्होंने हां में गरदन हिलाई.

अगले दिन गाड़ी में सामान रख सब शाम 5 बजे ही एअरपोर्ट की ओर चल पड़े. रात 8 बजे की फ्लाइट है. डेढ़ घंटा एअरपोर्ट पहुंचने में ही लग जाएगा. फिर काफी समय सामान की चैकिंग और औपचारिकताएं पूरी करने में निकल जाता है. मिथिला रास्ते भर दुआ करती रहीं कि उन के सामान की गहन तलाशी न हो.

लेकिन सोचने के अनुसार सबकुछ कहां होता है. वही हुआ जिस का मिथिला को डर था. बैग खोले गए और रेवड़ी, गजक व दलिए के पैकेट देख कर कस्टम अधिकारी ने पूछा,  ‘‘मैडम, यह सब क्या है?’’

अचानक मिथिला के मुंह से निकला, ‘‘ये जो आप देख रहे हैं, इस देश का प्यार है, यादें हैं, सौगातें हैं. कोई इन के बिना विदेश में कैसे जी सकता है. मेरी बेटी 5 साल में भी इन का स्वाद नहीं भूली है. यदि मेरे सामान का वजन ज्यादा है तो आप कस्टम ड्यूटी ले सकते हैं.’’

मिथिला का उत्तर सुन कर कस्टम अधिकारी ने आंखों से इशारा किया और वह अपने बैगों को ले कर बाहर निकलने लगीं. तभी मन में विचार कौंधा कि कस्टम अधिकारी भी मेरी बेटी की तरह अपने देश को प्यार करता है, तभी मुझे यों जाने दिया.

हालांकि न तो भार अधिक था और न उन के पास ऐसा कोई आपत्तिजनक सामान था जिस पर कस्टम अधिकारी को एतराज होता. उन्होंने स्वयं सारा सामान माप के अनुसार पैक किया था. बैग खोल कर एक रेवड़ी का पैकेट निकाला और दरवाजे से ही अंदर मुड़ीं. बोलीं, ‘‘सर, एक मां का प्यार आप के लिए भी. इनकार मत करिएगा,’’ कहते हुए पैकेट कस्टम अधिकारी की ओर बढ़ाया.

‘‘थैंक्यू, मैडम,’’ कह कर अधिकारी ने पैकेट पकड़ा, आंखों से लगाया और चूम लिया. मिथिला मुसकरा पड़ीं.

Hindi Kahani : बहादुर लड़की बनी मिसाल

Hindi Kahani : आदिवासियों के जीने का एकमात्र साधन और बेहद खूबसूरत वादियों वाले हरेभरे पहाड़ी जंगलों को स्थानीय और बाहरी नक्सलियों ने छीन कर अपना अड्डा बना लिया था. उन्हें अपने ही गांवघर, जमीन से बेदखल कर दिया था. यहां के जंगलों में अनेक जड़ीबूटियां मिलती हैं. जंगल कीमती पेड़पौधों से भरे हुए हैं.

3 राज्यों से हो कर गुजरने वाला यह पहाड़ी जंगल आगे जा कर एक चौथे राज्य में दाखिल हो जाता था. जंगल के ऊंचेनीचे पठारी रास्तों से वे बेधड़क एक राज्य से दूसरे राज्य में चले जाते थे.

दूसरे राज्यों से भाग कर आए नक्सली चोरीचुपके यहां के पहाड़ी जंगलों में पनाह लेते और अपराध कर के दूसरे राज्यों के जंगल में घुस जाते थे.

कोई उन के खिलाफ मुंह खोलता तो उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला देते. यहां वे अपनी सरकारें चलाते थे. गांव वाले उन के डर से सांझ होने से पहले ही घरों में दुबक जाते. उन्हें जिस से बदला लेना होता था, उस के घर के बाहर पोस्टर चिपका देते और मुखबिरी का आरोप लगा कर हत्या कर देते थे.

नक्सलियों के डर से गांव वाले अपना घरद्वार, खेतखलिहान छोड़ कर शहरों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए थे.

डुमरिया एक ऐसा ही गांव था, जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ था. पहाड़ी जंगल के कच्चे रास्ते को पार कर के ही यहां आया जा सकता था. यहां एक विशाल मैदान था. कभी यहां फुटबाल टूर्नामैंट भी होता था जो अब नक्सलियों के कब्जे में था. एक उच्च माध्यमिक स्कूल भी था जहां ढेर सारे लड़केलड़कियां पढ़ते थे.

पिछले दिनों नक्सलियों ने अपने दस्ते में नए रंगरूटों को भरती करने के लिए जबरदस्ती स्कूल पर हमला कर दिया और अपने मनपसंद स्कूली बच्चों को उठा ले गए. गांव वाले रोनेपीटने के सिवा कुछ न कर सके.

नक्सली उन बच्चों की आंखों पर पट्टी बांध कर ले गए थे. बच्चे उन्हें छोड़ देने के लिए रोतेचिल्लाते रहे, दया की भीख मांगते रहे, लेकिन उन्हें उन मासूमों पर दया नहीं आई. जंगल में ले जा कर उन्हें अलगअलग दस्तों में गुलामों की तरह बांट दिया गया. सभी लड़केलड़कियां अपनेअपने संगीसाथियों से बिछुड़ गए.

अगवा की गई एक छात्रा सालबनी को संजय पाहन नाम के नक्सली ने अपने पास रख लिया. वह रोरो कर उस दरिंदे से छोड़ देने की गुहार करती रही, लेकिन उस का दिल नहीं पसीजा. पहले तो सालबनी को उस ने बहलाफुसला कर मनाने की कोशिश की, लेकिन सालबनी ने अपने घर जाने की रट लगाए रखी तो उस ने उसे खूब मारा. बाद में सालबनी को एक कोने में बिठाए रखा.

सोने से पहले उन के बीच खुसुरफुसुर हो रही थी. वे लोग अगवा किए गए बच्चों की बात कर

रहे थे.

एक नक्सली कह रहा था, ‘‘पुलिस हमारे पीछे पड़ गई है.’’

‘‘तो ठीक है, इस बार हम सारा हिसाबकिताब बराबर कर लेते हैं,’’ दूसरा नक्सली कह रहा था.

‘‘पूरे रास्ते में बारूदी सुरंग बिछा दी जाएंगी. उन के साथ जितने भी जवान होंगे, सभी मारे जाएंगे और अपना बदला भी पूरा हो जाएगा.’’

इस गुप्त योजना पर नक्सलियों की सहमति हो गई.

सालबनी आंखें बंद किए ऐसे बैठी थी जैसे उन की बातों पर उस का ध्यान नहीं है लेकिन वह उन की बातों को गौर से सुन रही थी. फिर बैठेबैठे वह न जाने कब सो गई. सुबह जब उस की नींद खुली तो देखा कि संजय पाहन उस के बगल में सो रहा था. वह हड़बड़ा कर उठ गई.

तब तक संजय पाहन की भी नींद खुल गई. उस ने हंसते हुए सालबनी को अपनी बांहों में जकड़ना चाहा. उस के पीले दांत भद्दे लग रहे थे जिन्हें देख कर सालबनी अंदर तक कांप गई.

सुबह संजय पाहन ने सालबनी से जल्दी खाना बनाने को कहा. खाना खाने के बाद वे लोग तैयार हो कर निकल गए. सालबनी भी उन के साथ थी.

उस दिन जंगल में घुसने वाले मुख्य रास्ते पर बारूदी सुरंग बिछा कर वे लोग अपने अड्डे पर लौट आए.

मौत के सौदागरों का खतरनाक खेल देख कर सालबनी की रूह कांप गई. उस ने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो हो जाए, वह इन्हें छोड़ेगी नहीं. वह मौका तलाशने लगी.

खाना बनाने का काम सालबनी का था. रात के समय वह खाना बनाने के साथ ही साथ भागने का जुगाड़ भी बिठा रही थी. खाना खा कर जब सभी सोने की तैयारी करने लगे तो उन के सामने सवाल खड़ा हो गया कि आज रात सालबनी किस के साथ सोएगी. संजय पाहन ने सब से पहले सालबनी का हाथ पकड़ लिया.

‘‘इस लड़की को मैं लाया हूं, इसे मैं ही अपने साथ रखूंगा.’’

‘‘क्या यह तुम्हारी जोरू है, जो रोज रात को तुम्हारे साथ ही सोएगी? आज की रात यह मेरे साथ रहेगी,’’ दूसरा बोला और इतना कह कर वह सालबनी का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगा.

संजय पाहन ने फुरती से सालबनी का हाथ उस से छुड़ा लिया. इस के बाद सभी नक्सली सालबनी को अपने साथ सुलाने को ले कर आपस में ही एकदूसरे पर पिल पड़े, वे मरनेमारने पर उतारू हो गए.

इसी बीच मौका देख कर सालबनी अंधेरे का फायदा उठा कर भाग निकली.

वह पूरी रात तेज रफ्तार से भागती रही. भौर का उजाला फैलने लगा था. दम साधने के लिए वह एक ऊंचे

टीले की ओट में छिप कर खड़ी हो गई और आसपास के हालात का जायजा लेने लगी.

सालबनी को जल्दी ही यह महसूस हो गया कि वह जहां खड़ी है, उस का गांव अब वहां से महज 2-3 किलोमीटर की दूरी पर रह गया है. मारे खुशी के उस की आंखों में आंसू आ गए.

सालबनी डर भी रही थी कि अगर गांव में गई तो कोई फिर से उस की मुखबिरी कर के पकड़वा देगा. वह समझदार और तेजतर्रार थी. पूछतेपाछते सीधे सुंदरपुर थाने पहुंच गई.

जैसे ही सालबनी थाने पहुंची, रातभर भागते रहने के चलते थक कर चूर हो गई और बेहोश हो कर गिर पड़ी.

सुंदरपुर थाने के प्रभारी बहुत ही नेक पुलिस अफसर थे. यहां के नक्सलियों का जायजा लेने के लिए कुछ दिन पहले ही वे यहां ट्रांसफर हुए थे. उन्होंने उस अनजान लड़की को थाने में घुसते देख लिया था. पानी मंगा कर मुंह पर छींटे मारे. वे उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे.

सालबनी को जैसे ही होश आया, पहले पानी पिलाया. वह थोड़ा ठीक हुई, फिर एक ही सांस में सारी बात बता दी.

थाना प्रभारी यह सुन कर सकते में आ गए. उन्हें इस बात की गुप्त जानकारी अपने बड़े अफसरों से मिली थी कि डुमरिया स्कूल के अगवा किए गए छात्रछात्राओं का पता लगाने के लिए गांव से सटे पहाड़ी जंगलों में आज रात 10 बजे से पुलिस आपरेशन होने वाला है. लेकिन पुलिस को मारने के लिए नक्सलियों ने बारूदी सुरंग बिछाई है, यह जानकारी नहीं थी.

उन्होंने सालबनी से थोड़ा सख्त लहजे में पूछा, ‘‘सचसच बताओ लड़की, तुम कोई साजिश तो नहीं

कर रही, नहीं तो मैं तुम्हें जेल में बंद

कर दूंगा?’’

‘‘आप मेरे साथ चलिए, उन लोगों

ने कहांकहां पर क्याक्या किया है, वह सब मैं आप को दिखा दूंगी,’’ सालबनी ने कहा.

थाना प्रभारी ने तुरंत ही अपने से बड़े अफसरों को फोन लगाया. मामला गंभीर था. देखते ही देखते पूरी फौज सुंदरपुर थाने में जमा हो गई. बारूदी सुरंग नाकाम करने वाले लोग भी आ गए थे.

सालबनी ने वह जगह दिखा दी, जहां बारूदी सुरंग बिछाई गई थी. सब से पहले उसे डिफ्यूज किया गया.

सालबनी ने नक्सलियों का गुप्त ठिकाना भी दिखा दिया. वहां पर पुलिस ने रेड डाली, पर इस से पहले ही नक्सली वहां से फरार हो गए थे. वहां से अगवा किए गए छात्रछात्राएं तो नहीं मिले, मगर उन के असलहे, तार, हथियार और नक्सली साहित्य की किताबें जरूर बरामद हुईं.

इस तरह सालबनी की बहादुरी और समझदारी से एक बहुत बड़ा हादसा होतेहोते टल गया.

Story : राजन भैया – आखिर राजन को किस बात का पछतावा हुआ

Story : शीबा आज भैया के व्यवहार में काफी बदलाव महसूस कर रही थी. फिर भी वह यह बात अपने मन में बारबार दोहरा रही थी कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. वह पिछले 4 वर्षों से राजन भैया के साथ एक ही छत के नीचे रहती आई है. राजन एक आदर्श एवं गरिमामय व्यक्तित्व वाला शख्स है. फिर शीबा दिमाग में चल रहे द्वंद्व को  झटक उस खुशनुमा माहौल को याद करने लगी. राजन ने कहा था, ‘‘मां राह देख रही होगीं. रात के 11 बज रहे हैं. चलो घर चलते हैं.’’

शीबा भैया के पीछे हो ली थी. शीबा के साथी उसे छोड़ने गेट तक आए. राजन स्टैंड से अपनी बाइक लेने चला गया. जब तक राजन आता शीबा के साथी उस की जीत की खुशी में बधाई देते रहे. राजन के आते ही शीबा बाइक पर भैया के पीछे बैठ गई. फिर जातेजाते अपने साथियों को देख हाथ हिलाती रही.

फिर शीबा प्रतियोगिता से जुड़ी बातों में खो गई. उसे याद आया कि प्रतियोगिता में भाग लेने आईं बहुत सी लड़कियां तो उसे देख बगलें  झांकने लगी थीं. फिर प्रतियोगिता की घोषणा के बाद तो वह अपनी धड़कनों पर काबू नहीं रख पा रही थी. वह सीधे मेकअप रूम की तरफ भागी थी और आईने में खुद को निहारती रह गई थी.

एक गर्वीली मुसकान उस के चेहरे पर अनायास ही आ गई थी. वह मिस यूनिवर्सिटी चुनी गई थी. उस ने पहन रखा था एक कंपनी द्वारा उपहार में मिला लिबास एवं सलीके से बनाया गया अमेरिकन डायमंड जड़ा ताज.

वह आईना देख कर खुद पर ही मुग्ध हुई जा रही थी. अब मां उसे देख कर क्या कहेंगी, वह यह सुनना चाहती थी, इसीलिए वह उसी लिबास में घर की ओर चल पड़ी थी.

शीबा ने अपने सिर पर रखा ताज छू कर देखा तो बाइक कुछ डगमगा गई. वह

राजन से थोड़ी टकराई तो संभल कर बैठ गई.

थोड़ी देर बाद वह एक बार फिर आयोजन के खयालों में खो गई. आयोजन एक मशहूर गारमैंट कंपनी द्वारा करवाया गया था. शीबा वहां का ताम झाम देख कर डर गई थी. वह अनायास ही मुड़ कर भागी थी तो राजन से टकरा गई थी. राजन ने पूछा था, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘नहीं भैया, मु झ से नहीं होगा. मैं प्रतियोगिता में भाग नहीं लूंगी.’’

राजन ने कहा था, ‘‘अरी पगली, इस में घबराना कैसा? कहीं वक्त पर तुम पीछे मुड़ कर न भागो यही सोच कर मैं ने तुम्हें प्रोफैशनल मौडल के पास भेज कर ट्रेनिंग दिलाई थी. तुम अच्छी तरह जानती हो कि किस चरण में कैसा हावभाव व चालढाल होगी.’’

राजन शीबा को सम झा कर अंदर ले आया. हौल का दृश्य तो और उत्साहवर्धक था. मंच और दर्शक दीर्घा के बीच कुछ फासला रखा गया था, जिस में आगे की 2 कतारें निर्णायकों, कंपनी के मुख्य अधिकारियों और शहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए थीं. प्रैस वालों के लिए मंच के करीब खास इंतजाम रखा गया था ताकि अच्छाखासा कवरेज मिले. हौल में काफी भीड़ थी. दर्शकों के बीच बैठे थे शीबा के सहपाठी. वे शीबा को देख कर उत्साहित हो गए थे.

शीबा को मेकअप रूम में छोड़ राजन दर्शकों के बीच जा बैठा था. मेकअप रूम में कुछ युवतियां मेकअप करा रही थीं, तो कुछ बैठ कर आयोजकों द्वारा पूछे जाने वाले संभावित प्रश्नों के उपयुक्त जवाबों के विषय में चर्चा कर रही थीं. शीबा ने महसूस किया उन की बातों में दम नहीं है. अपनेआप से इन युवतियों की तुलना करती शीबा अब आत्मविश्वास से भर गई थी.

आयोजन स्थल से 25 कि.मी. दूरी पर शहर के कोने में है राजन का घर, जिस में शीबा और उस की मां पिछले 4 वर्षों से रह रही हैं. शीबा के पिता की मृत्यु के बाद उन के परिवार के लोगों ने शीबा और उस की मां से पीछा छुड़ा लिया था. तब बेसहारा शीबा और उस की मां अपना घर छोड़ राजन के घर आ गई थीं.

 

राजन जब छोटा था. उस के मातापिता की मृत्यु हो गई थी. राजन का

पालनपोषण उस की दादी ने किया था. बूढ़ी दादी से घर का काम नहीं संभलता था इसलिए शीबा की मां ने राजन और उस की दादी की सेवा एवं घर का सारा काम संभाल लिया था. बदले में उन्हें रहने के लिए कमरा मिला था और काम के लिए जो तनख्वाह मिलती थी वह मांबेटी के जीवन निर्वाह के लिए काफी थी. राजन की दादी की मृत्यु के बाद शीबा की मां ही राजन का सहारा बनीं, तो राजन, शीबा और उस की मां का एक परिवार जैसा बन गया था.

शीबा उन दिनों 13 वर्ष की थी. लेकिन वह बहुत दुबलीपतली थी. इसलिए राजन उसे बंदरिया कह कर पुकारा करता था. याद आते ही शीबा

हंस पड़ी. फिर उस को चुहल सू झा तो राजन के कानों के पास मुंह ला कर धीरे से बोली, ‘‘भैया, मैं जीत गई.’’

राजन ने अचानक ब्रेक मारा तो शीबा उस से तेजी से टकराई. राजन ने कुछ कहा तो नहीं, हां सीट का काफी हिस्सा इस बार घेर कर बैठ गया. शीबा बची थोड़ी सी जगह पर सिमट कर बैठ गई.

शीबा फिर अपने खयालों में खो गई. बाइक की रफ्तार से भी तेज शीबा का दिमाग चल रहा था. शीबा को उम्मीद थी कि हमेशा की तरह भैया उस की हंसी उड़ा देंगे या जीत का श्रेय खुद लेते हुए कौलर उठा कर हंस पड़ेंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. शीबा ने घड़ी देखी, रात के 12 बज चुके थे. सड़क दूरदूर तक वीरान थी. बाइक बारबार डगमगा जाती, शीबा बारबार भैया से टकरा जाती. ऐसा आज पहली बार हो रहा था. साफसुथरी नई बनी सड़क, उस पर आखिर भैया गाड़ी इस तरह क्यों चला रहे हैं? राजन शीबा के लिए सीट में काफी जगह छोड़ कर बैठा करता था. पर आज…

राजन को याद आया, प्रदर्शन के समय सर्चलाइट की रोशनी जब शीबा पर ला कर फ्रीज की गई थी तब शीबा मुसकरा रही थी. उस के मोतियों जैसे सफेद दांत, पतले अधखुले गुलाबी होंठ और आंखों में चमक थी. उस ने टाइट स्लैक्स व टौप पहना हुआ था. उस पर ढीला निटेड गाउन था. सारे अंग ढके होने के बावजूद शारीरिक बनावट स्पष्ट रूप से  झलक रही थी. उस का ढीलाढाला गाउन बेफिक्री दर्शा रहा था तो टाइट स्लैक्स और टौप ग्लैमर.

राजन ने बाइक का बैक ग्लास इस तरह सैट किया था कि शीबा उसे स्पष्ट नजर आ रही थी. शीबा की नजर उस पर पड़ी तो उस ने देखा कि राजन उसे टकटकी बांधे देख रहा था. शीबा की नजर ग्लास पर देख राजन ने नजरें घुमा लीं. उस की इस हरकत से शीबा को डर लगा.

उस समय शहर में सन्नाटा सा छा गया था. राजन की बाइक के बगल से इक्कादुक्का औटो या टैक्सी यदाकदा गुजर जाते थे. कहींकहीं कुछ कुत्ते भौंक रहे थे. उन की आवाज दूरदूर तक पहुंच कर वातावरण को डरावना बना रही थी. शीबा को याद आया कि प्रतियोगिता से लौटते

हुए अभी तक भैया ने उस से एक भी शब्द नहीं कहा है.

राजन सोच रहा था कि शीबा इतनी खूबसूरत है तो मेरी आंखें पहले क्यों न देख पाईं? शीबा और उस की मां को आश्रय देने की वजह से पड़ोसी जब उसे शक भरी निगाहों से देखते, दोस्त उस पर हंसते और उस पर पगला और सिरफिरा होने का आरोप लगाते तो उस के अंदर का मानव और जिद्दी हो जाता. शीबा को बहन स्वीकारने की इच्छा और बलवती हो जाती. अकसर मां की आंखों में उपजने वाली दुविधा राजन सहन न कर पाता. तब उस की आंखें उन को आश्वासन दिया करतीं. सिर्फ इतना ही नहीं दुनिया में फैली बुराइयों से लड़ने को उस के बाजू फड़क उठते.

 

पर आज यह सौंदर्य प्रतियोगिता का जादू है या रात की वीरानगी का? राजन, राजन न रहा.

वह उसे पागल कहने वाले दोस्तों में से एक बन गया. इतने दिनों से समेटा बल कहां गया? राजन के अंदर कुछ तड़क गया. कितनी मारक शक्ति है कामवासना में कि निर्जन शहर अपराध के लिए सुरक्षित महसूस होने लगा.

राजन के दिलोदिमाग में जैसे तूफान उठने लगा. शीबाशीबा हर ज्वारभाटे के साथ के साथ शीबा. राजन के लिए मानों अब शीबा, शीबा न रही. फैशन शो में वक्ष उघाड़ कर चलने वाली नागिन बन गई. क्या मालूम कौन सा पल उसे डस ले. फिर वह रात और उस का एकांत उसे डरावना सा लगने लगा. एकांत से डर कर ही तो राजन ने शीबा और उस की मां को शरण दी थी. मां और बहन? हांहां… राजन के अंदर जैसे कोई अट्टहास करने लगा. भरी जवानी और मांबहन का साथ.

राजन ने चारों ओर नजरें घुमा कर देखा. दूर रिकशा वाले स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठ कर ताश खेल रहे थे. राजन के अंदर का राक्षस तो हर उठती गिरती सांस के साथ विकराल रूप धारण करता जा रहा था. वह उस का विवेक निगलता जा रहा था.

राजन अकसर मां और बहन से छिप कर रंगीन पत्रिकाओं के पन्ने पलटा करता था. चिकनी नंगी टांगें और आकर्षक देह, सब कुछ तो है शीबा के पास. शीबा से मेरा खून का रिश्ता तो है नहीं. राजन के अंदर कुछ उफनने लगा. शरीर का सारा लहू निर्धारित दिशा की ओर प्रवाहित होने लगा.

 

राजन ने अपनेआप को संभालने के उद्देश्य से चारों ओर देखा. दूरदूर तक फैला

सन्नाटा, सड़क के दोनों ओर नींद के आगोश में ऊंची इमारतें और ठंडी हवा के  झोंके. बाइक के शीशे में राजन ने अपना चेहरा देखा. यह राजन नहीं कोई और था. शीशे में शीबा की हवा में उड़ती जुल्फें ऐसी दिख पड़ीं जैसे किसी नदी में बाढ़ आई हो. उस वेग में एक भाई, एक मुंहबोला बेटा, एक सहृदयी इंसान बहा जा रहा था.

फिल्मों में देखे प्रणय सीन, रंगीन पत्रिकाओं में देखे और पढ़े और दोस्तों द्वारा बताए गए अनुभवों से राजन के अंदर कुछ पा जाने की इच्छा बलवती होती जा रही थी.

राजन जैसे बाइक पर नहीं पशु जैसा पैरों पर चल रहा था. दबे पांव शिकार पर उछल कर दबोच लेने की चाह वाला. उस के मुंह से लार टपकने लगी. आंखों में खूंख्वार इरादे भाई राजन और इस राजन में जमीनआसमान का फर्क दिखा रहे थे. राजन ने निर्णय ले लिया कि शीबा पर मेरा अधिकार है. मैं मांबेटी को सहारा न देता तो अब तक ये इस महानगर में मिट चुकी होतीं. राजन जितना हो सका उतना शीबा से सट कर बैठ गया. उस के अंदर एक योजना काम करने लगी तो उस ने रास्ता बदल लिया.

शीबा ने महसूस किया कि यह रास्ता हमारे घर को नहीं जाता तो वह बहुत डर गई. मन ही मन खुद को कोसने लगी कि आखिर मैं ने इस प्रतियोगिता में भाग ही क्यों लिया? बाइक हवा से बातें कर रही थी. शीबा को कुछ नहीं सू झ रहा था.

शीबा ने आंखें मूंद कर सीट के पीछे की स्टील रौड को कस कर पकड़ लिया ताकि भैया से वह न टकराए. राजन आपा खो चुका था. गाड़ी की रफ्तार और तेज हो गई थी. राजन के दिल की धड़कनें राजन पर ही नहीं सारे माहौल पर हावी हो गई थीं. तेज रफ्तार से चलती बाइक आउट औफ कंट्रोल हो गई तो राजन सड़क पर गिर पड़ा और शीबा उछल गई.

फुटपाथ पर दिन में प्लास्टिक के सामान फैला कर बेचने वाला व्यापारी रात को सारे सामान समेट गठरी बांध उस गठरी के पास ही

सो रहा था. शीबा उस गठरी पर ही जा गिरी. व्यापारी घबरा कर उठ बैठा. राजन सड़क पर औंधा पड़ा हुआ था. बाइक के पीछे का चक्का अभी भी चल रहा था. शीबा को चोट नहीं लगी तो वह खड़ी हो गई.

व्यापारी सारी बातें सम झ, भाग कर गाड़ी बंद कर राजन की ओर लपका. राजन के सिर से खून रिस रहा था और वह बेहोश था. शीबा राजन को इस हाल में देख रो पड़ी और सहायता के लिए गुहार लगाने लगी. व्यापारी ने शीबा को पानी की बोतल ला कर दी. शीबा ने भैया का चेहरा धोया और अपना गाउन फाड़ उस की चोट पर पट्टी बांधी. व्यापारी टैक्सी बुला लाया. शीबा ने बाइक व्यापारी के हवाले कर, भैया को टैक्सी वाले और व्यापारी की सहायता से टैक्सी में लिटाया, ड्राइवर को घर का पता बताया और भैया के पास बैठ गई.

ठंडी हवा के  झोंकों से राजन को होश आ गया तो वह उठ कर बैठ गया. शीबा ने उसे पानी पिलाया, लेकिन वह अभी भी रो रही थी. राजन को अपने अंदर जागा जानवर याद आया तो वह पश्चात्ताप से भर गया पर शीबा को चुप कराने या आश्वस्त करने का साहस न जुटा पाया.

हालांकि रोती हुई शीबा राजन को फिर बच्ची सी नजर आ रही थी फिर भी उस के और शीबा के बीच थोड़ी देर मौन पसरा रहा. राजन ने शीबा की ओर ध्यान से देखा. शीबा के सिर पर ताज न था, उस का गाउन फटा हुआ था और केश बिखर गए थे.

दरअसल, शीबा जब गिरी थी तब उस का ताज टूट गया था. उस का गाउन फटा हुआ इसलिए था, क्योंकि उस ने गाउन फाड़ कर भैया को पट्टी जो बांधी थी. राजन के मन में शीबा के लिए फिर से वात्सल्य जाग उठा. उस ने मन ही मन कसम खाई कि आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा. शीबा मेरी बहन है और इस जन्म में बहन ही रहेगी.

राजन में असीम साहस का संचार हो गया. उस ने शीबा के सिर पर हाथ फेर कर पूछा, ‘‘शीबा, तुम्हारा ताज कहां है और तुम ने अपना गाउन क्यों फाड़ा?’’

शीबा ने उसे कुछ नहीं बताया. उस ने सिर्फ यही कहा, ‘‘भैया आप स्वस्थ हैं, इस से ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

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