जैसे को तैसा : कहीं लोग आपके भोलेपन का फायदा तो नहीं उठा रहे

मीता आज बेहद परेशान थी. इस की वजह थी उस की ननद. मीता की ननद जबतब घर आ जाती, तरहतरह की फरमाइशें करती, कभी कपड़े उठा ले जाती. मीता के अपने भी बच्चे हैं. वह कब तक सब की फरमाइशें पूरी करती रहती. एक दिन मीता ने यह बात अपनी मां को बताई.

मां ने मीता से कहा कि तू आज और अभी से अपनी ननद को इग्नोर करना शुरू कर दे. मीता ने यही किया. इस का असर यह हुआ कि कुछ दिनों बाद ही उस की ननद ने आनाजाना कम कर दिया. साथ ही, मीता के कपड़ों में हाथ मारना भी बंद कर दिया. बात छोटी सी है लेकिन बड़े काम की है. अकसर हम कई लोगों से परेशान होते हैं. इस की असल वजह हम ही होते हैं. अगर हम इग्नोर करना शुरू कर दें तो काफी समस्याओं का हल निकल आएगा.

एक कहावत है कि जो आप के साथ जैसा करे आप उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. कई बार यह जरूरी भी हो जाता है. सामने वाला जिस तरह का व्यवहार करे, यह भी जरूरी नहीं कि आप उस की तरह  ही नीचे गिर जाएं. कई बार हमें न चाहते हुए भी कुछ लोगों को इग्नोर करना पड़ता है. इन में से कुछ रिश्ते अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे. कुछ खट्टे होते हैं तो कुछ मीठे.

जरूरी है नजरअंदाज करना

कुछ लोग बिना बात के ही सिर पर बैठ जाते हैं. बातबात पर या तो रोकटोक करेंगे या कुछ न कुछ ऐसा करेंगे जिस से हमें कोफ्त होती है. अगर आप की जिंदगी में भी ऐसा कोई है जिस से आप बेहद परेशान हैं तो उसे आज से ही इग्नोर करना शुरू कर दें. अगर आप नजरअंदाज कर देंगे तो सामने वाला भी धीरेधीरे समझ जाएगा. नतीजा यह होगा कि वह आप से कन्नी काटना शुरू कर देगा जिस से आप को नजात मिल जाएगी.

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जिंदगी में हम रोज कई लोगों से मिलते हैं. कुछ लोग हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं तो कुछ नहीं बन पाते. लेकिन कई बार हिस्सा बन चुके ये लोग ही हमारी जिंदगी को नासूर बना देते हैं. अगर आप ऐसी ही किसी परेशानी से दोचार हो रहे हैं तो आप यह काम कर सकते हैं. अगर आप को बारबार फोन कर के सामने वाला परेशान कर रहा है तो आप फोन न उठाएं. लेकिन बात हद से ज्यादा हो जाए तो आप पुलिस का सहारा भी ले सकते हैं.

अगर बात इग्नोर करने से बन जाती है तो इस से अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती. अगर आप सामने वाले को फोन या फिर किसी तरह का कोई जवाब नहीं देंगे तो वह जल्दी ही समझ जाएगा और अगर वह शर्मदार हुआ तो आप से खुदबखुद किनारा कर लेगा.

आप को लग रहा है कि सामने वाला हद से ज्यादा नीचे गिर रहा है. बातबात पर आप को नीचा दिखा रहा है. बेमतलब आप को खरीखोटी सुना रहा है. तो, आप उस की तरह व्यवहार बिलकुल न करें. जरूरी नहीं है कि जैसा वह करे वैसा ही आप भी करें. आप में और उस में कुछ न कुछ फर्क तो रहना ही चाहिए. सामने वाला आप से गलत शब्दों में बात कर रहा है तो आप कतई वैसा न करें. उस को इग्नोर करना ही बेहतर होगा. कहते हैं फालतू की बातों और फालतू के लोगों पर ध्यान न देना  खुद के लिए अच्छा होता है.

इग्नोर करने से बात नहीं बन रही है तो आप सामने वाले को सख्ती से समझा दें. आप को कोई बात चुभ गई है या कोईर् हरकत पसंद नहीं है तो आप सख्ती से भी बता सकती हैं. आप के सख्ती दिखाने की देर है, वह शख्स अगली बार से आप के सामने फटकेगा ही नहीं.

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यह सख्ती सिर्फ किसी शख्स पर ही लागू नहीं होती. कई बार हमारे आसपास के रिश्ते भी हमें परेशान कर देते हैं. कई बार घर के ही किसी व्यक्ति से हम परेशान हो जाते हैं. औफिस में साथ में काम करने वाले लोग कई बार हमारी परेशानी को बढ़ा देते हैं. रिश्तेदार बिना मतलब खून पीना शुरू कर देते हैं. समाज में असमाजिक तत्त्व जान लेने को उतारू रहते हैं. ऐसे में व्यवहार में इग्नोर करने की प्रवृत्ति के साथसाथ सख्ती जरूरी हो जाती है.

सैकंड चांस: क्या मिल पाया शिवानी को दूसरा मौका

रोज की तरह ठीक 6 बजे अलार्म की तेज आवाज गूंज उठी. उनींदी सी शिवानी ने साइड टेबल पर रखे अलार्म क्लॉक को बंद किया और फिर से करवट बदल कर सो गई. बगल के कमरे में अवनीश भी गहरी नींद में सोया हुआ था. अलार्म की आवाज सुन कर वह कभी नहीं उठता. शिवानी ही उसे उठाती है. पर आजकल शिवानी को उठने या उठाने की कोई हड़बड़ी नहीं होती. पिछले सप्ताह ही देश में प्रधानमंत्री ने तेजी से फैलते कोरोना वायरस के मद्देनजर पूरे देश में 21 दिन के लौकडाउन की घोषणा जो कर दी थी. अब वह वर्क फ्रॉम होम कर रही थी.

शिवानी के लिए वर्क फ्रॉम होम का मतलब था आनेजाने में बर्बाद होने वाले समय को नींद पूरी करने में लगाना.

शिवानी करीब 8 बजे उठी और फ्रेश हो कर नाश्ता बनाने लगी. अवनीश अब तक टांग पसार कर सो रहा था. शिवानी दोतीन बार अवनीश के कमरे का चक्कर लगा आई थी. आज उसे सोता हुआ अवनीश बहुत ही प्यारा और सीधासाधा सा लग रहा था. अपनी सोच पर उसे खुद ही हंसी आ गई. सीधासाधा और अवनीश, हो ही नहीं सकता.

पुरानी बातें याद आते ही उस का मन कसैला हो उठा. पिछले दोतीन महीने से दोनों के बीच कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा था. शिवानी तो दिल से तलाक का फैसला भी ले चुकी थी. इसी वजह से उस ने अलग कमरे में सोना शुरू कर दिया था. मगर तलाक की बात उस ने अब तक अवनीश से कही नहीं थी. वह कहीं न कहीं खुद को पूरी तरह से श्योर कर लेना चाहती थी कि वाकई अवनीश बेवफा है.

नाश्ता बनाते समय शिवानी की सहेली प्रिया का फोन आ गया,

“हाय कैसी है शिवानी डार्लिंग?” प्रिया की चहकती हुई सी आवाज सुन कर शिवानी के चेहरे पर मुस्कान खिल गई.

“अच्छी हूं. तू बता.”

“बस अच्छी हूं ? इतना शानदार मौका है. पूरे दिन तुमदोनों को घर में साथ रहने का मौका मिल रहा है और यार तुम दोनों के मिलन की पहली सालगिरह भी तो है. पर तेरी आवाज में तो कोई तड़प, कोई जोश नहीं ?”

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“ओह सॉरी मैं तो भूल ही गई थी.” शिवानी सकपकाती हुई सी बोली.

“सॉरी ? अरे यार इस में सॉरी की क्या बात है? याद कर मेरे प्रमोशन की वह पार्टी. जब तुम दोनों ने पहली दफा एकदूसरे को देखा था और फिर देखते ही रह गए थे. कई महीने डेटिंग करने और एकदूसरे को अच्छी तरह समझने के बाद तुम दोनों ने शादी का फैसला लिया था. तुम्हारे इस फैसले पर सब से ज्यादा खुश मैं ही थी.”

“मगर यार आज मुझ को अपने इस फैसले पर ही अफसोस होने लगा है.” शिवानी की आवाज में दर्द उभर आया था.

“क्या ? यह क्या कह रही है शिवानी? कोई वजह ?” प्रिया भी गंभीर हो उठी थी.

“वजह बहुत बड़ी नहीं. दरअसल मुझे पता लगा कि अवनीश की जिंदगी में एक और लड़की है जिसे वह बहुत प्यार करता है. यह बात मुझे अवनीश के ही ऑफिस कूलीग और दोस्त पीयूष ने बताई. पीयूष एकदो बार अवनीश के साथ घर भी आ चुका है और अवनीश पियूष से अपनी हर बात शेयर भी करता है. ऐसे में मेरे लिए इस बात पर विश्वास न करने की कोई वजह नहीं थी.”

“अरे यार यह सब क्या कह रही है तू? अवनीश ऐसा नहीं हो सकता.”

“शायद ऐसा नहीं या फिर ऐसा हो. इसलिए कोई बड़ा फैसला लेने से बच रही हूं. बस दूरी बढ़ा ली है. अपने ही घर में हमदोनों अलगअलग कमरों में रहते हैं. अब तक अलगअलग समय पर ऑफिस जाते थे ताकि एकदूसरे के साथ कम से कम वक्त गुजारना पड़े. उस ने रात की शिफ्ट ज्वाइन की और मैं दिन में जाती थी. जरूरी बातचीत के अलावा हमारे बीच कोई कनेक्शन नहीं है. बस यही कहानी है फिलहाल मेरी जिंदगी की. पर अब इस लॉकडाउन में न चाहते हुए भी हमें पूरे दिन एकदूसरे को सहना पड़ेगा. एक ही छत के नीचे रहना होगा.”

“ऐसा क्यों कह रही है? हो सकता है लॉकडाउन के ये दिन तेरी जिंदगी को फिर से खूबसूरत बना जाएं. चल इसी विश के साथ अब फोन रख रही हूं. लगता है मेरे पति महोदय उठ गए हैं.”

“ओके बाय डियर.” प्रिया का फोन रख कर शिवानी मुड़ी तो देखा सामने अवनीश मास्क लगाए खड़ा है.

“जरा नीचे ग्राउंड में वाक कर के आता हूं. थोड़ी देर मनीष से बातें भी करनी हैं. कुछ ऑफिशियल काम है.”

“ओके” सपाट आवाज में जवाब दे कर शिवानी फिर से किचन के काम में लग गई.

नाश्ता बनाते हुए उसे याद आ रहा था वह दिन जब सब जानने के बाद भी उस ने दिल की तसल्ली के लिए अवनीश से पूछा था,” रागिनी नाम है न उस का, तुम्हारी फ्रेंड का, क्लोज फ्रेंड का जो हर समय तुम्हारे साथ रहती है?”

शिवानी के कहने के अंदाज से अवनीश समझ गया था कि उस मतलब क्या है. अपनी नजरें फेरता हुआ बोला था उस ने,” हां मेरी फ्रेंड है. क्लोज फ्रेंड. वैसे किस ने बताया तुम्हें?”

अवनीश की बेशर्मी से आहत शिवानी फूट पड़ी थी,”किसी ने भी बताया, मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं बस यह जानना चाहती हूं कि ऐसा है या नहीं?”

“ऐसा है मगर इस में क्या बात हो गई? तुम्हारे मेल फ्रेंड्स नहीं हैं क्या?”

“मेल फ्रेंड्स हैं पर कोई क्लोज नहीं.”

“अरे यार वह मेरी स्कूल फ्रेंड है. हम स्कूल से एकदूसरे के क्लोज हैं. चारपांच महीने हुए, उस ने ज्वाइन किया तो हमें एकदूसरे की कंपनी मिल गई.” अवनीश ने सफाई दी.

“कंपनी…. बहुत अच्छे. तुम उस के इतने ही क्लोज थे तो उसी से शादी कर लेते न. मेरी जिंदगी क्यों खराब की?” कहते हुए शिवानी ने गुस्से में अपने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास जमीन पर दे मारा.

शिवानी के तेवर देख कर अवनीश चिढ़ता हुआ बोला,” खबरदार मेरे ऊपर ऐसे गंदे इल्जाम लगाने की सोचना भी मत. आज के बाद तुम ने रागिनी और मुझे ले कर कोई कहानी गढ़ी तो अच्छा नहीं होगा.”

कह कर वह पैर पटकता हुआ बाहर चला गया और शिवानी देर तक सिसकसिसक कर रोती रही. वह दिन था और आज का दिन, दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई जिसे तोड़ने का प्रयास न तो अवनीश ने किया और न शिवानी ने.

दोनों छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगे. शिवानी को भी हर बात पर गुस्सा आ जाता. अवनीश भी चिल्लाचिल्ला कर जवाब देता. कितनी ही दफा दोनों के बीच भारी लड़ाई हो चुकी है. एकदूसरे के लिए दिल में कोई भाव नहीं रह गए हैं. बस अपने इस रिश्ते को किसी तरह ढोए जा रहे हैं .आपस में जरूरत की बातें करते हैं और अपनेअपने कमरे में अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं.

कई बार शिवानी ने अवनीश के फोन पर रागनी की कॉल आती देखी. काफी देर तक अवनीश को उस से हंसहंस कर बातें करते भी देखा.

नाश्ता बना कर शिवानी घर की सफाई करने लगी. अवनीश अब तक लौटा नहीं था. काफी समय से उस ने अवनीश के कमरे का रुख भी नहीं किया था. कामवाली ही सफाई कर के चली जाती थी. वैसे भी ऑफिस से थक कर आने के बाद उसे अपने कमरे और किचन के अलावा कहीं जाने की सुध नहीं रहती थी.

पर आज कुछ सोचकर शिवानी अवनीश के कमरे में घुस गई.

उम्मीद के अनुरूप अवनीश का कमरा बुरी तरह बिखरा हुआ मिला. कमरा साफ करते हुए शिवानी को वह दिन याद आ गया जब पहली दफा वह अवनीश के घर गई थी. अवनीश उस की खातिर किचन में कुछ बनाने घुसा और शिवानी ने पूरा कमरा साफ कर दिया. अवनीश को शिवानी की यह हरकत बहुत पसंद आई थी.

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आज अवनीश का कमरा साफ करते हुए शिवानी को निचले दराज में अपनी छोटी सी फोन डायरी पड़ी मिल गई जिसे वह रख कर भूल गई थी. वैसे भी मोबाइल के इस समय में सारे कांटेक्ट फोन में ही सेव रहते हैं.‌

वह यूं ही डायरी पलटने लगी कि उसे अपनी कॉलेज फ्रेंड निशा का नंबर दिखा. वह खुशी से चहक उठी. निशा से बात करना उसे शुरू से बहुत पसंद था. पर इन सालों में जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई थी कि निशा उस के दिमाग से निकल ही गई थी.

अब लौकडाउन के इन दिनों में समय की कमी नहीं तो क्यों न पुरानी सहेली से बातें हो जाए, सोचते हुए शिवानी अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर पसर कर निशा को फोन लगाने लगी.

“हाय शिवानी कैसी है डियर ? इतने साल बाद तेरी आवाज सुन कर मुझे कितनी खुशी हो रही है बता नहीं सकती.”

आई नो. हम दोनों की दोस्ती है ही इतनी प्यारी. यार तुझ से बात कर के दिल को बहुत सुकून मिलता है. तुझ से ज्यादा कोई नहीं समझता मुझे.”

कोई की बात न कर. तेरा मियां तो तुझे समझता ही होगा.” कहते हुए ठठा कर हंस पड़ी वह.

शिवानी की आवाज में थोड़ी सुस्ती आ गई,” अरे कहां यार, सहेली से बढ़ कर कोई नहीं होता. तू बता, तू कहां है आजकल ? कहां जॉब कर रही है?”

“मैं तो आजकल दिल्ली में हूं, एलजी मैं काम कर रही हूं.”

“क्या बात है यार, मैं भी दिल्ली में ही हूं और मेरे हसबैंड एलजी में ही तो काम करते हैं ”

“अच्छा क्या नाम है उन का ? किस पोजीशन पर हैं? मैं तो डेढ़ साल से यहां हूं.”

“मेरे हसबैंड 4 साल से एलजी में हैं. अवनीश नाम है उन का. अवनीश शेखर.”

ओ हो तो तू उस हैंडसम, डीसेंट और स्मार्टी अवनीश की बीवी है. यार मुझे तो जलन होने लगी तुझ से.”

“चुप कर. जलन की बात छोड़ और यह बता कि ऑफिस में वे किस वजह से मशहूर हैं? यार सच्चाई बताना. उन की कोई गर्लफ्रेंड भी है जिस के साथ वे घूमतेफिरते हैं?”

“यार गर्लफ्रेंड तो नहीं पर हां दोस्त जरूर है . रागिनी नाम है उस का. बहुत प्यारी दोस्ती है दोनों की. स्कूल के दोस्त हैं दोनों और हाल ही में रागिनी ने ऑफिस ज्वाइन किया तो उसे अवनीश की कंपनी मिल गई. करीब 10 साल बाद एकदूसरे से मिले थे वे. ज्यादा समय नहीं हुआ इस बात को.”

“पर क्या उन के बीच चक्कर नहीं चल रहा? शिवानी ने अपनी शंका जाहिर की तो निशा उबल पड़ी,

“क्या यार, शक्की बीवी वाली बातें मत कर. वह इतना डीसेंट बंदा है. उस के लिए कोई ऐसी बात सोच भी नहीं सकता. तूने कैसे सोच लिया?”

“मगर अवनीश का दोस्त पीयूष तो कुछ और ही कह रहा था. उसी ने बताया मुझे कि दोनों रिलेशनशिप में हैं. पीयूष गहरा दोस्त है अवनीश का तो मुझे लगा कि वह सच कह रहा होगा…”

“दोस्त ? यार 6 महीने हो चुके दोनों की दोस्ती टूटे. जितने गहरे दोस्त थे अब उतने ही गहरे दुश्मन है.”

सहेली की बातें सुन कर शिवानी को बहुत तसल्ली हुई. निशा ने आगे कहा,

“ऑफिस में पीयूष को छोड़ कर हर बंदा अवनीश की शराफत के गीत गाता है. कभी अवनीश ने रागिनी को उस तरह से टच भी नहीं किया. तू भी यार किस की बातों में आ गई.”

थोड़ा सोच कर निशा ने फिर कहा,

“तू रुक, मैं अभी कॉन्फ्रेंस कॉल कर के पियूष को भी इस में ऐड करती हूं. तुझे सब पता चल जाएगा. बात मैं करूंगी .. तू केवल सुनना.” निशा ने कहा तो शिवानी ने स्वीकृति दे दी,

निशा ने पीयूष का नंबर मिलाया, ” हाय पीयूष कैसे हो?”

“अच्छा हूं निशा तुम बताओ. आज हमें कैसे याद कर लिया?”

“हम तो सब को याद करते हैं. आप ही जरा उखड़ेउखड़े से रहते हैं.”

“क्या बात है आज बड़ी शायरी के मूड में हो.”

इसीतरह इधरउधर की कुछ बातें और ऑफिस से जुड़ी गॉसिप करते हुए निशा मेन मुद्दे पर आई,” यार पीयूष तुझे क्या लगता है, रागिनी कैसी लड़की है? उस पर विश्वास किया जा सकता है?”

“एक्चुअली रागिनी काफी फनी है. माहौल में रंग जमा देती है. ” उस ने जवाब दिया.

“…और यार यह रागिनी और अवनीश के बीच कुछ चल रहा है क्या ? हमेशा साथ ही दिखते हैं.”

“नहीं यार रागिनी और अवनीश के बीच कुछ हो ही नहीं सकता. बस दोस्त हैं दोनों. मैं जानता हूं अवनीश अपनी वाइफ से बहुत प्यार करता है.”

“मगर मैं ने सुना है कि तुम ने उस की वाइफ से कहा है कि इन दोनों के बीच कोई चक्कर चल रहा है.”

“अरे यार वह तो बस मस्ती में कहा था मैं ने ताकि उस के मन में अवनीश को ले कर शक पैदा हो जाए. अवनीश ज्यादा बनने लगा था न पर तुझे किस ने कहा?

अचानक पियूष चौंका तो निशा हंस पड़ी और बोली, अवनीश की बीवी  ने ही कहा. चल मैं तुझ से बाद में बात करती हूं. बट थैंक्स यार सच बताने के लिए.”

कह कर निशा ने कॉल काट दी और वापस शिवानी की तरफ मुखातिब हुई,” अब बता कैसा लग रहा है सच जान कर?”

शिवानी की आंखें भर आई थीं. रुंधे हुए कंठ से इतना ही कह पाई,” थैंक्स यार तूने आज मेरा बहुत बड़ा काम किया है. मुझे सच से वाकिफ कराया है.”

“तेरी तसल्ली के लिए रागिनी की पिक भी भेजती हूं. तू खुद समझ जाएगी कि उसे ले कर तेरे मन में इनसिक्योरिटी आने की जरूरत ही नहीं. बहुत फनी और प्यारी सी है रागिनी. गोलूमोलू टाइप. इसीलिए तो अवनीश को उस से बातें करने में मजा आता है. वह उस तरह की नहीं है जैसी तू सोच रही थी.” कहते हुए निशा ने शिवानी को रागिनी और अवनीश की ऑफिस ग्रुप वाली कुछ तस्वीरें भेजी.

शिवानी रागिनी की फोटो देख कर दंग रह गई. सांवली, खूब फैटी और थोड़ी कम हाइट वाली रागिनी हर फोटो में खिलखिला कर हंसती दिखी.

शिवानी देर तक बैठी रही. एक गलतफहमी ने किस कदर उस की जिंदगी नीरस और बोझिल बना दी थी. पीयूष की बात सुनने के बाद वह कितना शक करने लगी थी अवनीश पर. हर छोटीछोटी बात पर झगड़ने लगी थी. उस की केयर करनी छोड़ दी थी. नाहक ही कितनी दूरी बढ़ा ली थी उस ने. मगर अवनीश ने कभी भी उस से कड़ी शब्दों में बात नहीं की. न ही कभी कोई शिकायत किया या सफाई दी. बस खामोश हो गया था वह.

शिवानी ने अपने आंसू पोंछ लिए और उठ गई. आज वह अपने अवनीश के लिए कुछ उस की पसंद का बनाना चाहती थी. नहा कर उस की पसंद की ड्रेस पहनना चाहती थी. शरमा कर उस की बांहों में समा जाना चाहती थी. सच था कि वह अपने बिखर रहे रिश्ते को सेकंड चांस देना चाहती थी. समेट लेना चाहती थी खुशियां फिर से अपने दामन में.

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रिश्ता कागज का: क्या था पारुल और प्रिया का रिश्ता

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खुशियों का उजास: भाग 1- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

“मम्मा… मम्मा…,” नन्हे की घुटीघुटी चीखें सुन कर मां बानी दौड़ीदौड़ी ड्राइंगरूम में आई, जहां वह अपने 4 साल के बेटे को आया की निगरानी में छोड़ कर गई थी. उस ने वहां जो दृश्य देखा, सदमे से उस की खुद की चीख निकल गई.

उस के सगे बड़े भाई और पिता कमरे में थे. भाई ने एक तकिए से नन्हे के मुंह को दबाया हुआ था, साथ खड़े पिता क्रोध से जलती लाल अंगारा आंखों से दांत पीसते हुए उस से कह रहे थे, “ज़ोर से भींच, और जोर से कि इस संपोले का काम आज तमाम हो ही जाए.”

एक क्षण को तो बानी में समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे, लेकिन अगले ही पल वह भाई के हाथों से तकिया छीनते हुए जोर से चीखी, “बचाओ… बचाओ…” कि तभी बिजली की गति से एक लंबा व तगड़ा शख्स ड्राइंगरूम के खुले दरवाजे से कमरे में घुसा. उस ने भाई के हाथों से तकिया जबरन छीन कर एक ओर पटक दिया और नन्हे को उस के चंगुल से मुक्त करा बानी को थमा कर उस से बोला, “आप इसे ले कर भीतर जाइए. कमरे का दरवाजा बंद कर लीजिएगा. मैं इन से निबटता हूं.”

इस दौरान पिता उस की ओर मुखातिब हो चीख रहे थे, “पंडितजी ने कहा है, तूने हमारे घर पर अपने पाप की काली छाया डाल रखी है. तेरी वजह से हमारा घर फलफूल नहीं रहा. मेरी नौकरी नहीं रही. इस बड़के की नौकरी भी बारबार चली जाती है. छुटकी का रिश्ता नहीं हो रहा. तेरी और तेरे इस मनहूस की वजह से ही घर पर विपदा आई हुई है, कुलक्षणी.”

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वह खौफ़ और दहशत से थरथर कांपती हुई रोतेगर्राते नन्हे को अपने धड़कते सीने से चिपकाए अंदर के कमरे में जातेजाते थोड़ा ठहर कर पिता पर रोती हुई गरजी, “किस के कहने पर आप एक नन्हे से बच्चे की जान लेने चले आए? यह भी नहीं सोचा कि यह आप का अपना खून है. मैं ने अपनेआप अपनी ज़िंदगी बनाई है. खुद के दम पर पढ़लिख कर आज मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं कि मैं अपने बेटे को एक बढ़िया जिंदगी दे पा रही हूं. एक बेहतरीन ज़िंदगी जी रही हूं. और आप कहते हैं, मेरे पाप की काली छाया आप लोगों पर पड़ रही है.

“आप की परेशानियों का कारण मैं नहीं, आप खुद हैं. आप और भैया को अपने दोस्तों के साथ अड्डेबाजी और गांजे से फुरसत मिले, तब तो आप लोग किसी नौकरी में टिकेंगे. आप दोनों का काहिलपना आप की समस्या की वजह है, न कि इतनी दूर बैठी मैं.” यह कह कर उस ने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया, और नन्हे को बेहताशा चूमती हुई, अर्धविक्षिप्त सी आंसू बहाती, मुंह ही मुंह में बुदबुदाई, ‘मेरा बेटा… मेरा सोना… मेरा राजा… आज अगर वह लड़का समय पर नहीं आता तो क्या होता? तुझे कुछ हो जाता, तो मैं कहीं की न रहती.’

बाहर से उस युवक और भाई के बीच हाथापाई की आवाजें आ रही थीं. पिता गुस्से में उस युवक पर गरज रहे थे, “तू होता कौन है हमारे निजी मामलों में टांग अड़ाने वाला. यह मेरी बेटी है. मैं चाहे जो करूं.”

उधर शायद एक बार को उस का भाई उस युवक की गिरफ्त से छूट उस के बंद कमरे के दरवाजे को पीटने लगा, लेकिन शायद तभी उस युवक ने फिर से उसे काबू कर लिया. करीब दस मिनट तक पिता का चीखनाचिल्लाना जारी रहा.

बानी पत्ते की तरह थरथर कांपती, तेजी से धड़कते दिल के साथ नन्हे को कलेजे से चिपकाए बैठी थी, कि तभी उस ने सुना, वह युवक तेज आवाज में पापा को धमका रहा था, “आप दोनों यहां से फौरन नहीं गए, तो मुझे मजबूरन सौ नंबर डायल करना पड़ेगा. इसलिए बेहतर यही होगा कि आप दोनों यहां से फौरन चले जाएं. यह मत समझिए कि वे अकेली हैं. मैं यहां जस्ट बगल वाले फ्लैट में रहता हूं, इसलिए अगली बार यहां पैर रखने से पहले दस बार सोच लीजिएगा. अगर आप लोगों ने फिर से इन्हें या बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो मैं आप के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने में बिलकुल नहीं हिचकूंगा. आप इन के पिता हैं, उस का लिहाज कर मैं अभी कुछ नहीं कर रहा.”

कुछ ही देर में बाहर सन्नाटा छा गया. शायद पिता और भाई चले गए थे. तभी उस युवक ने उस का दरवाजा खटखटाया, “दरवाजा खोलिए, वे लोग चले गए हैं.”

डरीसहमी बैठी बानी ने अपनी गोद में सोए नन्हे को पलंग पर लिटा दिया और उठ कर दरवाजा खोला.

“आप ऐन समय पर नहीं आते तो आज अनर्थ हो जाता. मैं आप का किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं. थैंक यू, थैंक यू सो वैरी मच,” उस ने हाथ जोड़ते हुए उस युवक से कहा, “आप बगल वाले फ्लैट में रहते हैं, मैं ने आप को पहले तो कभी नहीं देखा.”

“जी, मैं पिछले हफ्ते ही मुंबई से ट्रांसफ़र हो कर यहां आया हूं. मैं उमंग हूं, एक डाक्टर हूं. आप का गुड नेम, प्लीज.”

“मैं बानी हूं.”

“आप क्या करती हैं बानीजी?”

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“जी, मैं अभिज्ञान यूनिवर्सिटी में मैथ्स की लैक्चरर हूं.”

“लैक्चरर, ओह, ओके.”

“चलिए बानीजी, मैं अपने बाहर के कमरे में खिड़की के पास ही बैठता हूं. रात को वहीं सोऊंगा भी. कभी भी आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो आप बेहिचक एक मिस्डकौल दे दीजिएगा. मैं हाजिर हो जाऊंगा. वैसे तो अब वे लोग दोबारा आने की ज़ुर्रत नहीं करेंगे, फिर भी आप मेरा नंबर ले लीजिए.”

“जी, एक बार फिर से आप का बहुतबहुतबहुत शुक्रिया, डाक्टर उमंग.”

“अरे, हम पड़ोसी हैं. इन शुक्रिया और थैंक्स के चक्कर में मत पड़िए. चलिए, दरवाजा ठीक से बंद कर लीजिएगा.”

“जी, बहुत अच्छा.”

उस रात बानी को बहुत देर तक नींद नहीं आई. नन्हे को सीने से लगाए हुए कब बरबस उस के जेहन में बीते दिनों की मीठीकसैली यादों की गिरहें एकएक कर खुलने लगीं, उसे एहसास तक न हुआ.

‘वह एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार में कट्टर, पुरातनपंथी मान्यताओं वाले अल्पशिक्षित मातापिता की बेटी थी. उस का एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी. पिता निठल्ले स्वाभाव के थे. कहीं टिक कर नौकरी नहीं करते. काम के बजाय यारीदोस्ती और गांजे का नशा करने में उन का मन ज्यादा रमता. आएदिन नौकरी छोड़ देते. घर में हर वक्त तंगी ही रहती. सो, घरखर्च चलाने के लिए मां लोगों के घरों में खाना बनातीं.

मां और पिता दोनों सुबह जल्दी घर से निकलते और देररात घर में घुसते. उपयुक्त नियंत्रण और मार्गदर्शन के अभाव में उन की बड़ी संतान, उन का एकमात्र बेटा ज्यादा नहीं पढ़ पाया. उस ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. वह साड़ियों के एक शोरूम में काम करने लगा.

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वह शुरू से ही कुशाग्रबुद्धि थी, हमेशा पढ़ाई में अच्छा परिणाम देती और सीढ़ीदरसीढ़ी आगे बढ़ती गई. अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उस ने मैथ्स जैसे कठिन विषय में एमएससी कर नैट की प्रतियोगी परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और पीएचडी पूरी कर स्थानीय यूनिवर्सिटी में लैक्चरर बन गई.

आगे पढ़ें- कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल…

खुशियों का उजास: भाग 2- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

नन्हे के पिता पार्थ से उस की मुलाकात उसी कालेज में हुई. वह उस से लगभग 3 साल सीनियर था. वह भी यूनिवर्सिटी के मैथ्स डिपार्टमैंट में ही लैक्चरर था.

कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल पार्थ की टेबल के साथ ही लगी हुई थी. सो, दिनभर साथ उठते बैठते दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए, इतने कि घर जा कर भी दोनों एकआध बार एकदूसरे से बात किए बिना न रहते. उन के प्रेम का बिरवा उन की प्रगाढ़ दोस्ती की माटी में फूटा.

वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर गली के चौकीदार के डंडे की खटखटाहट उसे सुनाई दी. उस के सीने से चिपका नन्हे कुनमुनाया. गले में उमड़ती रुलाई के साथ बानी ने सोचा, ‘उफ़, पार्थ तुम कहां चले गए अपनी बानी को छोड़ कर.’ और वह फिर से एक बार पार्थ के साथ बिताए हंसीं दिनों की मीठी यादों के प्रवाह में डूबनेउतराने लगी.

उस दिन वह और पार्थ कालेज की लाइब्रेरी के लिए मैथ्स की कुछ किताबें खरीदने एक बुक एग्ज़िबिशन में आए थे. किताबें खरीदने के बाद पार्थ उसे एग्ज़िबिशन ग्राउंड के साथ लगे पार्क में ले गया, जहां पार्क के एक सूने कोने में रंगबिरंगे गुलाब के पौधों के बीच लगी बैंच पर बैठ उसे एक सुर्ख गुलाब का खूबसूरत फूल तोड़ कर उसे थमाते हुए अनायास उस ने उस से कहा, ‘बानी, हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं. तुम्हारे बिना जीने की सोच ही मुझे घबराहट से भर देती है. घर पर भी तुम से बात करने की इच्छा होती रहती है. मन करता है, तुम हर लमहा मेरी आंखों के सामने रहो. अब मैं अपनी जिंदगी का हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं. जिंदगी की आखिरी सांस तक तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं. मुझे रोमांटिक फिल्मी बातें करना नहीं आता. सीधेसाधे शब्दों में तुम से पूछ रहा हूं, मुझ से शादी करोगी?’

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इतने दिनों की करीबी से बानी भी पार्थ को बेहद पसंद करने लगी थी. सो, उस ने एक सलज़्ज़ मुसकान के साथ उसे इस विवाह प्रस्ताव के जवाब में अपनी सहमति दे दी.

दोनों के प्यार की दास्तां रफ्तारफ्ता आगे बढ़ चली.

उसे आज तक अच्छी तरह से याद है, उस दिन उस ने अपनी मां और पिता को पार्थ से अपनी शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, लेकिन उस की अपेक्षा के विपरीत मां और पापा उस के एक विजातीय लड़के से विवाह की इच्छा पर बुरी तरह भड़क गए. उस के मातापिता दोनों ही बेहद पुराने रूढ़िवादी खयालों के थे. उन्हें अपनी बेटी का हाथ किसी अयोग्य, अल्पशिक्षित सजातीय पात्र के हाथ में देना मंजूर था, लेकिन पार्थ जैसे सुशिक्षित, सुयोग्य मगर विजातीय पात्र के हाथ में देना गवारा न था. बानी को एहसास था कि उस की जाति में उस जैसी निम्नमध्यवर्गीय व अल्पशिक्षित परिवार की लड़की को पार्थ जैसा योग्य और उच्चशिक्षित मैच मिलना मुश्किल ही नहीं, असंभव था.

सो, उस ने बहुत सोचविचार कर घर वालों की मरजी के खिलाफ़ जा कर पार्थ को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला ले लिया. एक दिन घर वालों को बिना बताए उस ने कुछ करीबी दोस्तों के समक्ष एकदूसरे को अंगूठी पहना कर सगाई कर ली. फिर 5 माह बाद कोर्ट मैरिज करने के लिए औपचारिक कार्यवाही भी कर डाली.

लेकिन, यदि कुदरती और इंसानी मंशाओं की मंजिल एक होती, तो दुर्भाग्य जैसी आपदा का वज़ूद न होता.

उन दिनों कोविड की बीमारी का प्रकोप चल रहा था. पार्थ को कोविड का भयंकर संक्रमण हुआ. पार्थ ने लापरवाही में शुरुआत में ही कोविड का इलाज किसी योग्य डाक्टर से नहीं करवाया. उस की बीमारी बिगड़ती गई और जब तक उस के घर वाले चेते, उस की बीमारी भयावह रूप लेते हुए उस के सभी अंगों को प्रभावित कर चुकी थी.

लगभग 20 दिनों तक कोविड से जूझने के बाद वह अपनी अंतिमयात्रा पर निकल पड़ा.

भाग्य का खेल, उस की मौत के बाद बानी को पता चला कि पार्थ का अंश उस की कोख में पल रहा था. बानी की दुनिया उलटपुलट हो गई. उस के पांवतले जमीन न रही.

कोविड के प्रकोप के बाद पूरे देश में कंप्लीट लौकडाउन चल रहा था. एक तरफ घर से निकलने की बंदिश, दूसरी ओर प्राइवेट क्लीनिकों के डाक्टरों ने मैडिको-लीगल कारणों से उस के अनमैरिड होने की वजह से अबौर्शन करने के लिए मना कर दिया और उसे उस के लिए उस से सरकारी अस्पताल में जाने को कहा. परंतु सरकारी अस्पताल में कोविड-19 के संक्रमण के खतरे को देखते हुए वह वहां नहीं गई. इन सब की वजह से उस का गर्भ 3 माह का होने को आया. सो, उसे विवश हो अपने गर्भ को रखने का फैसला लेना पड़ा.

इधर प्रैग्नैंसी के लक्षण जाहिर होते ही उस के मातापिता ने उस के खिलाफ़ मोरचाबंदी कर ली. वे दिनरात उसे बिनब्याही मां बनने पर कटु ताने और व्यंग्यबाण सुनाते. परेशान हो कर बानी ने एक दिन चुपचाप मांबाप का घर छोड़ दिया और अपनी यूनिवर्सिटी के पास किराए पर घर ले कर रहने लगी. यूनिवर्सिटी की बढ़िया नौकरी थी, आर्थिक रूप से वह ख़ासी मजबूत थी, तो उसे अकेले रहने में कोई खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा.

समय अपनी चाल से चलता गया. नियत समय पर बानी ने एक बेटे को जन्म दिया.

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बानी की नौकरी बदस्तूर जारी थी. नन्हे 4 बरस का होने आया. लेकिन इतना समय गुजर जाने पर भी उस के बिनब्याही मां बनने पर पिता और भाई का गुस्सा कम न हुआ. उन के खानदानी पंडितजी ने आग में घी डालते हुए उसे उन के लिए अपशगुनी करार दिया था. उस की छोटी बहन उस के संपर्क में थी. उस के माध्यम से उसे अपने घर की खबरें मिलती रहती थीं. कि तभी उसे अपने विचारों से नजात दिलाते हुए झपकी आ गई और उस का क्लांत तनमन नींद की आगोश में समा गया.

अगली सुबह जब बानी उठी, तो नन्हे तेज बुखार से तप रहा था. वह उसे ले कर डाक्टर के यहां ले जाने के लिए घर से निकल ही रही थी कि डाक्टर उमंग अपने घर के बाहर चहलकदमी करते हुए मिल गए.

“हैलो, गुडमौर्निंग, बानी. सुबहसवेरे कहां चल दीं?”

“नन्हे को बुखार आ रहा है. रातभर बुखार में भुना है. इसे डाक्टर के यहां ले जा रही हूं.”

“अगर आप चाहें तो मैं उसे एग्जामिन कर सकता हूं. मैं ने शायद आप को बताया नहीं, मैं यहां विनायक चिल्ड्रंस हौस्पिटल में पीडियाट्रिशियन हूं.”

“ओह, फिर तो आप प्लीज़ इसे एग्ज़ामिन कर लीजिए डाक्टर. आइए डाक्टर, प्लीज़, भीतर आ जाइए.”

डाक्टर उमंग ने नन्हे को एग्जामिन करने के बाद बानी से कहा, “चिंता की कोई बात नहीं है. कल की घटना से वह बेहद शाक में है. उसे कुछ मैडिसिन्स और इंजैक्शन लगाने पड़ेंगे.”

नन्हे को दवाई दे कर और इंजैक्शन लगाने के बाद वे जाने के लिए उठे ही थे कि बानी बोल पड़ी, “डाक्टर, चाय पी कर जाइएगा.”

चाय पी कर शाम को नन्हे का चैकअप करने के लिए घर आने का वादा कर के डाक्टर उमंग अपने घर चले गए.

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खुशियों का उजास: भाग 3- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

अगले एक माह तक डाक्टर उमंग नन्हे को एग्जामिन करने सुबहशाम उस के घर आते रहे. इस अवधि में डाक्टर उमंग और बानी के मध्य बहुत अच्छी फ्रैंडशिप हो गई.

करीब एक महीने बाद उस दिन भी डाक्टर उमंग बानी के यहां बैठे थे कि तभी बानी को अपनी यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं के लिए मैथ्स के प्रश्नपत्र बनाते देख वे तनिक मुसकराते हुए बोले, “बानी, आप ने इतने मुश्किल सब्जैक्ट में कैरियर कैसे बनाया? मुझे तो मैथ्स शब्द से अभी तक डर लगता है.”

बानी यह सुन कर खिलखिला कर हंस दी, बोली, “ओह डाक्टर उमंग, मुझे यह सब्जैक्ट इतना चैलेंजिंग लगता है कि क्या बताऊं, किसी मुश्किल सवाल को हल करने की खुशी अनोखी होती है, डाक्टर. आप को याद है, आप ने कैसा महसूस किया था जब आप ने पहली बार साइकिल चलानी सीखी थी. आप बिलकुल वही फ़ील करते हैं. और किसी डिफिकल्ट क्वेश्चन को सौल्व करने की खुशी आप को अपनी क्षमता में जबरदस्त सैल्फ कौन्फिडैंस देती है.”

“ओह, यह बात है. अपनी बात बताऊं तो क्या आप विश्वास करेंगी कि मैथ्स के टीचर की क्लास में घुसते ही उन के डर से मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाया करती थी. टैंथ क्लास तक हमारे मैथ्स टीचर मुझे मैथ्स का होमवर्क पूरा कर के नहीं लाने पर पूरी क्लास के सामने मुरगा बना दिया करते थे,” डाक्टर उमंग ने जोर से ठहाका लगाते हुए बताया.

“मुरगा और आप डाक्टर,” यह कहते हुए बानी भी खिलखिला कर हंस दी.

वक्त के साथ बानी और उमंग की दोस्ती गहराती गई.

डाक्टर उमंग को बानी के संपर्क में आए ढाईतीन साल बीत चले.

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इतने से समय में बानी ने उमंग के दिल में अपनी एक खास जगह बना ली थी. डाक्टर उमंग बानी से 2 साल छोटे थे. 33 वर्ष के होने को आए थे. उन के घरवाले उन से शादी के लिए कहकह कर हार गए थे. उन की मां उन्हें हर हफ्ते एक नई लड़की का फ़ोटो और बायोडाटा भेजती, लेकिन डाक्टर उमंग उन पर एक नजर तक न डालते. उन के अंतर्मन में तो बानी ने कब्ज़ा कर रखा था.

दिन बीतने के साथसाथ वे बानी की सहृदयता, शीशे जैसा साफ निश्छल दिल और मीठे स्वभाव के कायल हो उठे थे. जबजब दूसरे शहर में रहने वाली उन की मां फ़ोन पर उन से शादी की बात छेड़ती, बानी की सौम्य, गंभीर छवि उन के कल्पनाचक्षुओं के सामने आ जाती.

पिछली बार जब वे मां के पास गए थे और मां ने उन के विवाह की चर्चा छेड़ी, तो उन्होंने साफ़साफ़ लफ़्ज़ों में उन से कह दिया, “मां, मेरे लिए लड़की ढूंढना बंद करो. मेरी निगाह में एक लड़की है. मैं उसी से शादी करूंगा.”

मां के बहुत कुरेदने पर उन्होंने उन्हें बानी के बारे में खुल कर बताया.

उन की बात सुन कर मां जैसे आसमान से गिरीं. अपने इकलौते, सुयोग्य, कुंआरे डाक्टर बेटे की शादी एक बिनब्याही बच्चे वाली औरत से करने की बात उन के लिए सदमे से कम न थी. इस खबर से उन्हें गहन मानसिक आघात पहुंचा और उन का ब्लडप्रैशर शूट कर गया. वे पलंग पर आ गईं.

मां की यह हालत देख उमंग बेहद पसोपेश में थे. जिंदगी के इस मुकाम पर पहुंच वे बानी के बिना अपनी भावी जिंदगी की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. सो, उन्होंने सोचा कि वे अपने घर जा कर बानी से आर्य समाज में शादी कर उसे दुलहन बना कर अपने घर ले जाएंगे. एक बार बानी से शादी हो जाए, तो उसे देख कर मां के पास उसे स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा. बानी अपनी नर्मदिली और मृदु स्वभाव से देरसवेर उन का दिल जीत ही लेगी. और वे वापस अपने शहर आ गए.

अपने घर पहुंच कर उमंग शाम को बानी के घर गए और फ़रमाइश कर रात का डिनर उस के साथ किया.

रात के साढ़े 10 बजने को आए थे, लेकिन आज वे उठने का नाम नहीं ले रहे थे. थोड़ी ही देर में नन्हे भी सो गया.

उस के सोते ही उमंग ने बानी से कहा, “बानी, आज मैं बिना किसी लागलपेट के आप से एक खास बात कहना चाहता हूं. मैं आप को बेहद पसंद करता हूं और जिंदगी का बाकी का सफ़र आप के साथ काटना चाहता हूं. मेरी मां सख्त बीमार है. उन की वजह से ही मैं यह शादी इतनी जल्दी करना चाहता हूं. मैं कल या ज्यादा से ज्यादा परसों आर्य समाज में आप से शादी करना चाहता हूं. एक बार यह शादी हो जाए तो मां को हमारे इस रिश्ते को ऐक्सेप्ट करना ही होगा.”

उमंग के इस प्रस्ताव से हतप्रभ बानी उमंग से बोली, “यह आप क्या कह रहे हैं उमंग? शादी, आप से, और वह भी कल या परसों?”

“हां, कल या परसों. मां बिस्तर पर हैं, लेकिन मुझे पूरा पूरा यकीन है कि आप को बहू के रूप में देख कर वह फिर से हिरण हो उठेंगी.”

“उमंग, आप ने तो मुझे दुविधा में डाल दिया. मेरा पास्ट जान कर भी क्या वे मुझे ऐक्सेप्ट कर लेंगी? नहीं, नहीं, मैं आप से शादी करने की सोच भी नहीं सकती.”

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“चलिए, मैं आप की दुविधा आसान कर देता हूं. आप मुझे यह बताइए, क्या आप किसी भी वजह से मुझे नापसंद करती हैं?”

“नहींनहीं, उमंग, आप इतने अच्छे हैं, आप को नापसंद करने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता.”

“तो फिर दिक्कत क्या है?”

“मेरा पास्ट, आप से 2 साल बड़ी हूं, ऊपर से एक बच्चे की बिनब्याही मां भी.”

“तो क्या हुआ? आप दोनों की सगाई हो चुकी थी और आप दोनों शादी करने वाले थे. अब अगर आप के भावी पति की मौत हो गई तो इस में आप का क्या कुसूर?”

“नहींनहीं उमंग, अभी भावनाओं में बह कर आप मेरा हाथ थाम लेंगे, लेकिन वक्त के साथ जब हमारे अपने बच्चे होंगे तो शायद आप नन्हे को अपने बच्चे जैसा प्यार नहीं कर पाएंगे.”

“ओह बानी, इन फुजूल की आशंकाओं के चलते मेरा दिल मत तोड़िए.”

“उमंग, यह फुजूल की शंकाएं नहीं, वरन प्रैक्टिकल रियलिटी है जिस से आप मुंह मोड़ रहे हैं.”

“बानी, अब आप और नन्हे मेरी लाइफ़ का एक हिस्सा बन चुके हैं. मैं आप दोनों के बिना जीने की सोच तक नहीं सकता. चलिए, एक बात बताइए, क्या आप अब मेरे बिना जी सकती हैं? बताइए बानी, उधर मां का ब्लडप्रैशर खतरनाक तरीके से हाई हुआ पड़ा है. मुझे आप का निर्णय सुनना है. इतने वर्षों तक हम ने साथसाथ जिंदगी की हर परिस्थिति का मुकाबला साथ मिल कर किया है. क्या आप की जिंदगी में मेरी कोई अहमियत नहीं? बताइए बानी,” इस बार उमंग ने तनिक आवेश में आते हुए बानी के कंधों को झकझोरते हुए उस से पूछा.

“उमंग, मेरी जिंदगी में आप की बहुत अहमियत है. आप ने हर कदम पर मेरा बेशर्त साथ दिया है, लेकिन लोग तो यही कहेंगे न कि एक बिनब्याही मां ने अपने से छोटी उम्र के कुंआरे डाक्टर को फ़ांस लिया. दुनिया दस बातें बनाएगी.”

“अगर ऐसा है तो मुझ पर यकीन रखिए, मुझ से शादी के बाद कोई आप से कुछ भी उलटासीधा कहने की ज़ुर्रत न करेगा. चलिए तो बानी, हम कल ही आर्य समाज में शादी कर रहे हैं. ठीक है न,” उमंग ने बेहद अधीरता से बानी से कहा.

“मुझे थोड़ा वक्त चाहिए उमंग, मैं अपनी हां या न आप को मैसेज कर दूंगी.”

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‘ओ बानी, क्यों इतना सोच रही हैं? बिना बात के आप इतना परेशान हो रही हैं. आप को बस हां भर कहने की देर है. निश्चिंत रहिए. और सब बातें मैं संभाल लूंगा. मेरा यकीन करिए बानी, आप को कोई कुछ नहीं कहेगा.” यह कहते हुए उमंग ने बानी के दोनों हाथ थाम लिए और उस से बोले, “क्या आप को मुझ पर विश्वास नहीं है? मुझ पर भरोसा रखिए. मैं आप को बेहद चाहने लगा हूं. मैं किसी और के साथ जिंदगी गुज़ारने की सोच नहीं सकता. हां कह दीजिए बानी, प्लीज, आई बैग यू. आप ने हां नहीं की तो मैं मर जाऊंगा.” यह सुन बानी ने नम आंखों से उमंग के होठों पर अपना हाथ रख दिया.

उमंग ने बानी की हथेली हौले से चूम ली.

खुशियों के उजास से दोनों के चेहरे दमक उठे.

एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 1- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

बस की प्रतीक्षा में वह स्टौप के शेड में बैठी थी. गरमी के कारण पसीने से लथपथ…सामने की मुख्य सड़क से लगातार ट्रैफिक भर्राता गुजर रहा था, कारें, सामान से लदे वाहन, आटो, सिटी बसें…हाथ के बैग से उस ने मिनरल वाटर की छोटी बोतल निकाली और 3-4 घूंट पानी पी कर गला तर किया.

कुछ राहत मिली तो उसे सहसा मां के कहे वाक्य स्मरण हो आए :

‘बुरे से बुरे हालात में भी जीवन जीने के लिए कुछ न कुछ ऐसा संबल हमें मिल जाता है कि हम व्यर्थ हो गए जीवन में भी अर्थ खोज लेते हैं. हालांकि बुरे हालात का दिमाग पर इतना असर होता है कि जीने की सारी आशाएं ही जीवन से फिसल जाती हैं और आदमी हो या औरत, आत्महिंसा रूपी भावनाएं दिलोदिमाग पर हावी हो जाती हैं. जिंदगी को इसलिए हमें कस कर थामे रखने वाले साहस की जरूरत होती है. साहस बाहर से नहीं, हमें अपने भीतर ही पैदा करना होता है. वादा करो, निराशा में कोई ऐसा गलत कदम नहीं उठाओगी जो मुझे बहुत अखरे और तुम्हें अपनी बेटी कहनेमानने पर पछताना पड़े कि मैं एक कमजोर दिमाग की लड़की की मां थी. विषम स्थितियों में भी हमें अच्छी स्थितियों की तलाश करनी चाहिए. निराशा जीवन का लक्ष्य नहीं होती, आशा की डोर हमेशा हमें थामे रहना चाहिए.’

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इस महानगर के भर्राते ट्रैफिक के ही शिकार हो गए थे मनीष. अपनी मोटरसाइकिल पर सुबह दफ्तर के लिए निकले थे और आधे घंटे बाद ही अस्पताल से फोन आया था, ‘तुम्हारे पति मनीष की बस से टक्कर होने से मृत्यु हो गई है. अस्पताल में आइए, पुलिस से खानापूरी करवा कर पति का शव ले जाइए.’ विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रही है, वह वास्तव में सच है. हड़बड़ाई सुलभा अस्पताल के लिए निकल गई, निपट अकेली.

बेतहाशा भागते ट्रैफिक के पार, सड़क के उस तरफ बने गुलाबी रंग के अस्पताल में कुछ देर पहले वह डाक्टर शर्मा के पास बैठी थी. जांच करवाने आई थी. उसे पूर्ण विश्वास था कि वह गर्भवती है. वह सोचती थी बच्चे के सहारे वह अपनी सूनी और नीरस जिंदगी को शायद ठीक से समेटने में सफल हो जाए. जीने का संबल मिल जाएगा तो जीवन का अर्थ भी खोज लेगी वह. परंतु डा. शर्मा ने जांच करने के बाद उस से साफ कह दिया, ‘सौरी मिसेज मनीष, आप गर्भवती नहीं हैं. आप को गलतफहमी है.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है, डाक्टर?’ वह हताशा के बावजूद अविश्वास से बोली थी, ‘3 महीने से मुझे पीरियड नहीं आया है. ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ. आप के जांच में कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं, डाक्टर?’

‘नहीं. अपने पति मनीष की मौत के हादसे ने आप के दिलोदिमाग पर बहुत गहरा असर डाला है. हार्मोनल असंतुलन के कारण कभीकभी कुछ महिलाओं को पीरियड्स में इस तरह की गड़बडि़यां झेलनी पड़ती हैं. जब दिलोदिमाग संतुलित हो जाएंगे तो हार्मोनल साइकिल भी सही हो जाएगी और सबकुछ सामान्य हो जाएगा.’

‘लेकिन मेरे लिए यह सूचना मेरे पति की मौत से कम भयानक नहीं है, डाक्टर.’ वह आंसू भरी आंखों से डाक्टर की तरफ देख रही थी. उसे अस्पताल के उस कक्ष में सबकुछ डबडबाता व डगमगाता नजर आ रहा था. पानी में तैरता, डूबता और बहता सा. सिर को हलके हाथों थपक दिया था डाक्टर ने, ‘जो सच है, उसे तो स्वीकारना ही पड़ता है, मिसेज मनीष. मनीष की मृत्यु मेरे लिए भी एक बड़ा हादसा है और अपूर्णीय क्षति है. अकसर दफ्तर से लौटते वक्त मनीष हमारे पास अस्पताल में कुछ देर बैठता था. हमारा सहपाठी रहा था वह. यह दूसरी बात है कि मैं ने मैडिकल लाइन पकड़ी और उस ने कंप्यूटर विज्ञान की लाइन.’

अस्पताल से हताशनिराश निकली सुलभा. बाहर आते ही उस ने मां को फोन लगाया, ‘डाक्टर ने जांच कर के बताया कि मुझे भ्रम है. मां, कुछ नहीं है. अब क्या होगा? कैसे और किस के सहारे जीने का मन बनाऊंगी? सिवा अंधकार के अब मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा.’

मां फोन पर बिसूरती बेटी को तरहतरह से तसल्ली देती रही थीं. और कर भी क्या सकती थीं. हालांकि उन के दिमाग में यह बात भी आई थी कि बेटी मां नहीं बन रही तो इस के पीछे भी कुछ न कुछ अच्छा ही होगा. जब उस का गम कुछ हलका होगा और जिंदगी पटरी पर लौटेगी तो वह दूसरी शादी के बारे में सोच सकती है. पति के बीमे की रकम कितने दिनों तक उस के जीवन का आधार बनेगी? आखिर तो उसे कोई नौकरी पकड़नी पड़ेगी और बिखरे जीवन को फिर से समेटना पड़ेगा. बहुत संभव है कि उसे फिर कोई उपयुक्त जीवनसाथी मिल जाए. बच्चे वाली महिला से दूसरी शादी करने में लोग अकसर हिचकते हैं.

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मां ने भले कुछ ऐसा सोचा हो पर सुलभा के लिए डाक्टर द्वारा दी गई सूचना बेहद मारक थी और निराशा के गर्त में डूब जाने के लिए बहुत ज्यादा.

मनीष के मित्र डाक्टर ने सुलभा से कई बार कहा था, ‘घर पर दिनभर पड़ीपड़ी क्या करती हो? हमारा अस्पताल जौइन कर लो. नर्स की ट्रेनिंग ले रखी है तुम ने. किस दिन काम आएगी यह?’ परंतु मनीष ने ही डाक्टर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था तब, ‘क्या करेगी सुलभा वह मामूली नौकरी कर के? मेरी अच्छीखासी तनख्वाह है. घर संभालो. कुछ नई हौबीज के बारे में सोचो. किसी सामाजिक एनजीओ में अपने लिए उपयुक्त भूमिका तलाशो. नर्स के जौब में तुम्हें कोई आत्मसंतोष नहीं मिलेगा जिस की जरूरत हम मध्यवर्गीय लोगों को सब से ज्यादा रहती है.’

हालांकि आज जब वह डाक्टर के अस्पताल में गई तो डाक्टर ने उस के सामने वह पुराना प्रस्ताव नहीं दोहराया, परंतु सुलभा जानती है, जब चाहेगी, डाक्टर के उस अस्पताल को जौइन कर लेगी और अपना गम भुलाने में उसे सहूलियत हो जाएगी.

सहसा उस ने सामने दहाडे़ं मारते गुजरते टै्रफिक के बीच देखा कि एक सफेद रंग के बड़ेबड़े झबरीले बालों वाले पमेरियन ने सड़क पार करनी शुरू कर दी है. वह हालांकि काफी सावधान है परंतु जानवर आदमी जैसा सावधान कैसे हो सकता है? उसे लगा, अभी कुछ ही क्षणों में वह सफेद पमेरियन सड़क पर किसी वाहन के पहियों से कुचल जाएगा और उस का शव सफेद से लाल खूनी रंग में रंग जाएगा. एक दर्दभरी छोटी सी चीख निकलेगी और सबकुछ खत्म हो जाएगा. ऐसा ही हुआ होगा मनीष के साथ भी. हैलमैट के बावजूद सिर बुरी तरह कुचल गया था. पहचानने में नहीं आ रहे थे. मोटरसाइकिल की तरह ही उन के शरीर के भी परखचे उड़ गए थे. वही कुछ इस सफेद पमेरियन के साथ कुछ ही पलों में होने जा रहा है.

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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 2- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

एकदम उछल कर वह सड़क की तरफ दौड़ पड़ी और बिना अपनी जान की परवा किए वह उस पमेरियन को बचाने का जोखिम उठा बैठी.

दायीं तरफ से आती लंबी कार ने जोर से ब्रेक लगाई. चीखती गाड़ी थमतेथमते भी उस तक आ लगी. शीशा नीचा कर उस में बैठा अफसरनुमा व्यक्ति जोर से चिल्लाया, ‘‘क्या कर रही हैं आप? बेवकूफ हैं क्या? एक कुत्ते को बचाने के लिए अपनी जान झोंक दी. मरना है तो जा कर यमुना या रेलगाड़ी चुनिए. हम लोगों को क्यों आफत में डालती हैं? आप तो निबट जाएंगी पर हम पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो जाएंगे.’’

परंतु सुलभा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. उस ने सड़क पर से उस सफेद सुंदर पमेरियन को उठा लिया और गोद में लिए वापस बस स्टौप के उस शेड में आ बैठी. अब वह हांफ रही थी और उस कार वाले की बात को गंभीरता से ले रही थी. कह तो वह सही रहा था. एक कुत्ते के लिए उसे ऐसे अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए थी. पता नहीं, सड़क के इस पार की कालोनी में किस मकान का पालतू जानवर है यह. दुर्घटना जो अभी होतेहोते टली, उस के विषय में सोचते हुए उस के रोएं खड़े हो गए. सचमुच वह बालबाल बची. अगर उस कार चालक ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाया होते तो आज वह इस पमेरियन के साथ ही सड़क पर क्षतविक्षत लाश बनी पड़ी होती.

पमेरियन को गोद में उठाए सुलभा स्टौप के शेड के पास ही खोखे में रखी कोल्ड ड्रिंक और नमकीनों की दुकान की तरफ बढ़ गई. एक वृद्ध दुकानदार के रूप में वहां बैठा था, ‘‘आप ने जैसी बेवकूफी आज की है वैसी फिर कभी न करिएगा,’’ उस वृद्ध ने सुलभा को हिदायत दी, ‘‘इस शहर का टै्रफिक बहुत बेरहम है. वह तो कार वाला भला आदमी था जो उस ने ब्रैक लगा ली और आप बच गईं वरना जो होने जा रहा था वह बहुत बुरा होता. आप के पति और बच्चे आप को खो कर बहुत पछताते. अच्छीखासी युवती हैं आप. ऐसा कैसे कर बैठीं?’’

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उस वक्त इस नन्ही जान को बचाने के अलावा मैं और कुछ सोच ही नहीं पाई. अब उस सब को सोचती हूं तो भय से मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं. सचमुच मैं गलत कर बैठी थी, परंतु मुझे संतोष भी है कि मैं इस कुत्ते की जान बचाने में सफल हो गई. यह सब सोच कर हंस दी सुलभा.

एक बार को उसे लगा, उस ने अद्भुत साहस का परिचय दिया है आज. वह जीवन में जोखिम भी उठा सकती है, इस का भान हो गया उसे. अच्छा भी लगा, गर्व भी महसूस हुआ. क्या वह इस जानवर को बचा कर अपने पति को बचाने की कल्पना कर रही थी? या फिर इस नन्ही जान को बचाने के पीछे अपनी कोख में न आए नन्हे बच्चे को बचाने के लिए दौड़ी थी? अवचेतन में आखिर ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने उसे अचानक स्टौप की बैंच से उछाल कर सड़क के बीचोंबीच पहुंचा दिया?

‘‘क्या आप बता सकते हैं, बाबा कि इस पीछे वाली कालोनी में किस घर का यह पालतू कुत्ता है? सड़क के उस पार यह भटकता हुआ पहुंच गया होगा. इस पार आने की कोशिश यह इसीलिए कर रहा था कि यह इस पीछे वाली कालोनी में ही किसी घर में पला हुआ है.’’

‘‘ठीक कह रही हैं आप. मकान नंबर 301,’’ वृद्ध बोला, ‘‘एक वृद्धा इसे पाले हुए थी. पर 15-20 दिन हुए उस की मृत्यु हो गई. फिर इस कुत्ते की किसी ने सुध नहीं ली. वह अकेली रहती थी. जो लोग उस का मालमत्ता समेटने आए उन्होंने भी इस मासूम जानवर को ले जाना जरूरी नहीं समझा. यह बेचारा अकसर यों ही कालोनी में भटकता रहता है.’’

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‘‘क्यों? यह है तो बहुत प्यारा और भोलाभाला. कोई भी इसे पाल लेता,’’ सुलभा ने प्यार से उस के सिर को सहलाया, मानो अपने नए पैदा बच्चे के सिर को सहला रही हो, जिस के सिर पर रेशम जैसे नरम बाल हों.

‘‘मनहूस मान रहे हैं लोग इस मासूम जानवर को,’’ वृद्ध ने बताया, ‘‘वह वृद्धा 2 महीने पहले ही इसे कहीं से लाई थी. पहले भी उस के पास एक कुत्ता था, काले रंग का, वह उस का बहुत वफादार जानवर था. इस सड़क पर ही किसी वाहन के नीचे आ कर मर गया तो वह बहुत रोई, कलपी. जैसे उस का अपना कोई था, उस की मौत हो गई हो. आदमी जानवर को भी कितना चाहने लगता है,’’ कुछ सोच कर वह वृद्ध फिर बोला, ‘‘लोग इसे रोटियां दे देते हैं पर पाल नहीं रहे, क्योंकि यह उस दिन वृद्धा की लाश के पास बैठा रोता रहा था.’’

‘‘तब इसे मैं अपने साथ लिए जा रही हूं,’’ सुलभा ने प्यार से उस कुत्ते के रेशम बालों पर हाथ फिराया.

‘‘ले जाइए,’’ वृद्ध बोला, ‘‘इस महल्ले में इसे कोई नहीं पाल रहा. अच्छा रहेगा, इसे एक घर मिल जाएगा,’’ कुछ सोच कर वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आप इसे बाद में किसी कारण मनहूस मान कर छोड़ न दीजिएगा. महल्ले में मैं ही अकेला ऐसा आदमी हूं जो इसे अपने घर के बरामदे में रात को सोने देता है. जब इसे कहीं रोटी नहीं मिलती तो यह मेरे घर के दरवाजे पर अपने नन्हे पंजे मारने लगता है. मैं समझ जाता हूं, यह भूखा है और इसे किसी ने आज खाने को नहीं दिया है. बरामदे में एक तरफ मैं ने छोटा सा बरतन रख रखा है, उस में पानी हर दिन भरता रहता हूं. यह उसे पीता रहता है.’’

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‘‘आप इसे मनहूस नहीं मानते?’’ सुलभा ने उस वृद्ध से पूछा.

‘‘मानता तो हूं. डर भी लगता है कि कहीं उस वृद्धा की तरह मैं भी किसी दिन अकेला ही अपने मकान में मरा न पाया जाऊं. परंतु इस की भोली और अपनत्वभरी आंखों में जो अद्भुत चमक मुझे दिखाई देती है, उस के आगे मैं मनहूसियत की बात लगभग भूल ही जाता हूं. कभीकभी सोचता हूं, न कोई जानवर मनहूस होता है, न घर, न आदमी. मनहूसियत का खयाल हमारे मन का अपना भय होता है, वह उल्लू या घुग्घू का बोलना हो या कौए का किसी के सिर पर बैठना या फिर बिल्ली का रात को किसी घर के आसपास रोना.

‘‘हम अपने भीतर के भय को ही शायद इन बहानों से बाहर निकालते हैं वरना ये जानवर स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हैं और आवाजें निकालते हैं.’’

सुलभा बोली, ‘‘कोई अगर महल्ले में इसे खोजे तो आप बता दीजिएगा. आप चाहें तो मेरा फोन नंबर अपने फोन में सेव कर लें.’’

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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 3- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

फिर उस ने उस वृद्ध का नंबर पूछा और अपने फोन से मिला कर उसे फोन कर दिया. वृद्ध का फोन बजा तो उस ने उसे सेव कर लिया.

‘‘अगर किसी कारण मैं इसे रख न सकी तो आप को वापस दे जाऊंगी. कम से कम यह जीवित तो रहेगा.’’

‘‘आप इसे बस से तो ले जा नहीं सकेंगी. बस वाले इसे भीतर नहीं ले जाने देंगे,’’ वृद्ध ने पूछा, ‘‘तब?’’

‘‘आटो कर लूंगी,’’ संक्षेप में कह वह सड़क की तरफ पलटी और एक खाली आटो ले अपने घर चल दी.

रास्ते में सोचती भी रही, अगर कल को नौकरी पर जाने लगी तो यह अकेला फ्लैट में कैसे रहेगा? अपने खाने की तो उसे बहुत चिंता नहीं होती पर इस के लिए तो कुछ न कुछ बनाना ही पड़ेगा. किसी जानवर को घर लाना आसान है, पर उसे पालना, उस के खानेपीने का प्रबंधन, पूरे एक बच्चे का पालना और उस का खयाल रखना है. वह वृद्ध सही कह रहा था, अगर न पाल सकी तो इसे उसी महल्ले में छोड़ना पड़ेगा. कम से कम जिंदा तो रहेगा.

रास्ते में पडे़ बाजार से सुलभा ने उस कुत्ते के लिए गले का पट्टा और जंजीर खरीदी. पानी के लिए एक बड़ा बरतन खाने के लिए घर में कटोरा था ही. पौटी के लिए क्या करेगी, सुबह इसे ले कर सड़क पर जाना पड़ेगा, वह यह सोचतेसोचते अतीत में चली गई.

पिता जब मां को अकेला छोड़ कर दूसरी औरत के पास चले गए तो मां पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. कुल हाईस्कूल पास थीं. न कोई टे्रनिंग न हुनर. वे 2 बहनें और एक छोटा भाई, 3 बच्चों को अकेली मां कैसे पाले, कई दिनों तक मां कुछ सोच ही नहीं पाईं. परंतु उन्होंने जिंदगी का सामना बड़ी बहादुरी से किया.

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अपने गहने बेच कर मां ने अपने कसबाई क्षेत्र के शहर में एक नया काम शुरू किया था. जाति और परिवार वालों ने उन का बहुत विरोध किया था पर उन का स्पष्ट उत्तर होता था, ‘फिर क्या करूं मैं? 2 लड़कियां हैं और 1 लड़का. 3 बच्चों को कैसे पालूं? कल को उन के शादीब्याह, पढ़ाईलिखाई. बाप तो साथ छोड़ भागा. दूसरी औरत के पास चला गया. क्या मैं भी इन्हें बेसहारा छोड़ किसी के साथ भाग जाऊं?’

कुंआरे या अकेले रहने वाले नौकरी कर रहे लोगों को टिफिन में खाना पहुंचाने का काम शुरू किया. शुरू में मुश्किलें आईं. पर उन के हल भी मां ने सोचे. काम चल निकला. सागदाल वे खुद बनातीं. रोटी बनाने के लिए एक सहायक औरत रख ली. टिफिन लोगों को घर तक पहुंचाने के लिए एक विक्की चलाने वाले लड़के को रख लिया. कुछ हजार लगा कर यह धंधा शुरू किया था मां ने. न खास शिक्षा, न कोई तकनीकी ज्ञान. फिर क्या करतीं वे?

मां ने उसी धंधे की आमदनी से सुलभा को बीएससी कराया. फिर उसे नर्स की टे्रनिंग दिलवाई. उस की छोटी बहन को पढ़ाया. अब उस का भाई भी आगरा में इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है. यह सब मां ने अपने भीतर के साहस से कर के दिखाया. न डरीं, न हिचकीं, न अपनी आलोचनाओं की परवा की. बाद में टिफिन मांजने और किचन के खाना पकाने वाले बड़े बरतनों को मांजने के लिए अलग से एक महिला रख ली. अपने ग्राहकों को वे घर भी जबतब बुलाती थीं और उन्हें विश्वास दिलाती थीं कि जो वे टिफिन में खाने के रूप में भेजती हैं, उसे बहुत ही सफाई से बनाया जाता है. लोग प्रभावित होते. शुरू में मां का हाथ सुलभा, बहन और भाई ने भी बटाया. बाद में बहुतकुछ काम के लिए रखी गई औरतों ने संभाल लिया. खाना एकदम घर जैसा बनता, इसलिए लोगों को पसंद आता. फिर लोगों ने सुबह नाश्ता भी चाहा, जिस का मेन्यू मां ने नाश्ता चाहने वालों की राय से ही बनाया. काम और अधिक बढ़ गया.

मां इसीलिए सुलभा के साथ इस हादसे के बाद अधिक दिन नहीं रह सकीं. लोगों को अकसर अपने से मतलब होता है. दूसरों की क्या जरूरतें, विवशताएं और परेशानियां हैं, इन से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता. 250 से अधिक ग्राहक थे टिफिन और नाश्ते के, व्यक्तिगत रूप से कोई कुछ अलग चाहता था तो वह भी मां बना कर उसे भिजवाती थीं. संतोष और जिम्मेदारी का अच्छा नतीजा भी हुआ.

सुलभा का मनीष से परिचय एक दिन यों ही ट्रेन की यात्रा में हुआ था. मुरादाबाद में नर्स की ट्रेनिंग कर रही थी वह. छुट्टियों में घर आ रही थी कि ट्रेन

में अचानक लुटेरों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया. लुटेरों की अश्लील हरकतों से सुलभा को उस दिन मनीष ने ही बचाया था. फिर अगले स्टेशन पर सुलभा को अपने साथ उतार टे्रन के चेयरकार वाले डब्बे में बैठाया. ‘मेरे पास टिकट के इतने पैसे नहीं हैं,’ उस ने हिचकते हुए कहा था.

‘जब नौकरी करने लगो तो लौटा देना,’ मनीष मुसकराए थे. बस, वह मुसकान ही सुलभा को इतनी प्यारी लगी कि देर तक ठगी सी ताकती रही मनीष की तरफ. उसी दिन मनीष ने सुलभा का पूरा परिचय प्राप्त किया. सुलभा ने भी कुछ छिपाया नहीं. जो सच था, सब बता दिया.

सुन कर मनीष देर तक कुछ सोचते रहे. फिर पूछा, ‘अब आगे क्या इरादा है?’

‘नौकरी. किसी अच्छे अस्पताल में मिली तो तनख्वाह भी शायद इतनी मिले कि अपनी छोटी बहन को साथ रख कर पढ़ा सकूं.’

‘और अगर मैं तुम्हें नौकरी करने की इजाजत न दूं तो क्या करोगी?’ मनीष के होंठों पर सहज मुसकान थी.

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सुलभा पूछना चाहती थी, किस  अधिकार से आप रोकेंगे? पर वह संकोचवश पूछ न सकी. सिर झुकाए हुए बोली, ‘आप को अपने परिवार का इतिहास बता दिया. नौकरी करना मेरी मजबूरी नहीं लग रही आप को?’

‘इतिहास जान चुका हूं. भूगोल अपने सामने देख रहा हूं और सोच रहा हूं कि ऐसी आत्मविश्वास से भरी लड़की को अपना जीवनसाथी बना कर मैं कोई गलती नहीं करूंगा.’ मनीष हंसने लगे थे, ‘तुम्हारे शहर चल रहा हूं. तुम्हारी मां से बात करूंगा. अगर वे मान गईं तो अगले कुछ महीनों में ही तुम्हें मेरे साथ महानगर में रहना पड़ेगा. नौकरी मिल रही है वहां एक मल्टीनैशनल कंपनी में, अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो जल्दी हमारे पास रहने को अपना फ्लैट होगा और…’

‘आप को ऐसा नहीं लग रहा कि आप ने यह फैसला बहुत जल्दबाजी में ले लिया है? मां खाना बना कर खिलाने वाली एक परित्यक्ता हैं. बाप दूसरी औरत के साथ रहता है. यह सब जान कर भी आप को हिचक नहीं हो रही?’

‘कुछ फैसले दिमाग से नहीं, दिल से किए जाते हैं, सुलभा. और एक बार जो दिल कह दे उस में बहुत मीनमेख नहीं करना चाहिए,’ मनीष बोले थे.

मां से उस दिन सारी बातें कर लीं मनीष ने. घरद्वार भी देख लिया. कामधंधा भी. मां को आशा ही नहीं थी कि उस के लिए इस तरह अचानक कोई योग्य वर मिल जाएगा. अवसर को उन्होंने जाने नहीं दिया. हालांकि पिता ने जाना तो वे बाधक बनने के लिए आगे आए. मां ने उन्हें आड़े हाथों लिया, ‘हम लोगों से आप को क्या लेनादेना? जब हमारे जिंदा रहने, मरने की आप को कतई चिंता नहीं हुई तो बेटी के ब्याह में बाधक बनने का आप को क्या अधिकार है?’

गुस्से में पिता कह गए, ‘भाड़ में जाओ तुम सब, मेरे लिए मर गए तुम लोग.’

कुत्ते की भूंक के साथ वह वर्तमान में लौटी. घर ला कर सुलभा ने उसे दूध में रोटी मसल कर खिलाई तो वह खाने में ऐसे जुटा, मानो महीनों से कुछ खाने को न मिला हो. पानी के बरतन में पानी रखा. पूरे फ्लैट में वह घूमफिर कर निरीक्षण कर आया. फिर वह सुलभा के बैड के पास आ बैठा. एक झटका सा लगा सुलभा को. शायद इसी तरह उस मृत वृद्धा के पलंग के पास बैठा यह रोया होगा है. क्या रात को भी वह…? इस सवाल को आगे और सोचने का साहस नहीं जुटा पाई सुलभा.

रात को सोने से पहले उसे सचमुच एक अजीब भय ने जकड़ लिया. नहीं, यह सामान्य जंतु हरकत है. चूंकि यह उस वृद्धा के पलंग के पास ही रहता और सोता रहा होगा, इसलिए वही माहौल पा कर उसी तरह ये पसर कर बैठ गया है.

लेकिन सुलभा अब मौत के खयाल से डरने क्यों लगी है? अपनेआप से पूछा उस ने. पति की दुर्घटना में मौत और गर्भ में बच्चा न होने की मारक सूचनाएं सुलभा को जिंदगी से बेजार कर गई थीं, वही सुलभा अब जीना चाहती थी. क्यों? यह सवाल स्वयं उस के मन ने उस से पूछा.

आशा के विपरीत वह सुबह सचेत हुई. एक क्षण को भय भी लगा. कुत्ता सुबह एक विशेष आवाज में कुकियाने लगा था. कुकियाने के साथ वह अपने नन्हे पंजों से सुलभा के पलंग को खरोंचने लगा था. खरोंचने की आवाज से ही उस की आंख खुली थी और वह भय व आतंक से सहम सी गई थी.

कुछ ही पल में उस ने समझ लिया, कुत्ते को बाहर जाने की जरूरत है. वह उस के गले की बैल्ट में जंजीर बांध उसे ले कर बाहर सड़क पर आई तो कुत्ते ने मलमूत्र त्याग करने में देरी नहीं की. वृद्धा ने इसे सही शिक्षा दी है. वह उसे कुछ और देर तक टहलाती रही. वहां उस ने कुछ भागदौड़ की, अपने शरीर को खींचाताना. अचरज से देखती रही सुलभा. जानवर अपनी जिंदगी को कितनी सावधानी से जीने लायक बनाते हैं.

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अचानक एक जबर कुत्ता भौंकता हुआ उस नन्हे कुत्ते की तरफ दौड़ कर आया तो निहत्थी सुलभा सहम गई. कैसे इस हमले से अपने कुत्ते की रक्षा करे? कुछ सोच न पाई तो सड़क के किनारे पड़ा पत्थर का टुकड़ा उठा लिया उस ने और हमलावर कुत्ते को ललकारा. नन्हा कुत्ता भय से सिहर कर उस के पांवों के नीचे आ छिपा. कल से वह एक डंडा साथ रखेगी. सुलभा ने पमेरियन को हाथों में उठा, सीने से लगा लिया. अपनेआप को सुरक्षित समझ वह भी निश्चिंत हो गया.

फ्लैट में आ वह कुत्ते को उपयुक्त नाम व रिश्ता देने पर सोचने लगी, जब वह नौकरी पर जाने लगेगी, यह अकेला यहां कैसे रहेगा, यह समस्या उस का सिरदर्द बन रही थी, पर कोई न कोई तरीका उसे सोचना पड़ेगा. 2 उजड़े हुए साथी जैसे अनायास ही साथ हो गए हों एकदूसरे के सहारे को. आदमी हो या जानवर, बिना आपसी सहयोग के जीने में असमर्थ हैं. एक साथी चाहिए ही, चाहे साथी नन्हा ही हो.

विद्रोह: भाग 3- घर को छोड़ने को विवश क्यों हो गई कुसुम

लेखिका- निर्मला सिंह

अब वह आंखें बंद कर के सोचने लगी, ‘काश, मेरी बहू रीता जैसी होती, कितनी अच्छी है, कितना खयाल रखती है अपनी सासू मां का, जितनी बार भी इस की सास मुझ से मिली हैं, हमेशा अपनी बहू की तारीफों के पुल ही बांधती रही हैं, लेकिन मुझे दुष्ट बहू मिली. अरे बहू का क्या दोष है, नालायक तो अपना बेटा है. यदि बेटा ठीक होता तो बहू की क्या मजाल कि गलत काम करे?’

ज्योंज्यों कानपुर नजदीक आ रहा था, कुसुम घबरा रही थी कि भैयाभाभी पता नहीं क्या सोचेंगे. सोचें तो सोचें, उस के पास उस रास्ते के सिवा कोई रास्ता नहीं था. वह बोझ नहीं बनेगी भैयाभाभी पर, कुछ ही दिनों में अलग छोटा सा मकान ले कर रहेगी, एक नौकरानी रखेगी. एक विचार की लहर बारबार उठ रही थी कि घर छोड़ कर मैं ने गलत काम तो नहीं किया.

फिर दिमाग ने कहा, तो फिर क्या करती, हर रोज मार खाती. और वह मारता रहता जब तक जायदाद पूरी अपने नाम न लिखवा लेता. एक बार, दो बार, तीन बार…उस ने अपनी दोबारा बनाई वसीयत पढ़ी, जिस की एक प्रति उसे अपनी बेटी के पास भी भेजनी पड़ेगी, वकील के पास तो एक कौपी रख आई थी.

कुसुम अब सोचने लगी, ‘आज मैं ने जो कुछ भी किया वह पहले ही कर लेना चाहिए था. छि:छि:, मां बेटे से मार खाए, इस से अच्छा मर न जाए. मैं अकेली पड़ गई थी, वे दोनों पतिपत्नी एक हो गए थे. शुक्र है कि रीता जैसी पड़ोसिन मिल गई, जिस ने मेरी मृतप्राय जिंदगी को सांसें दे दीं. रीता न होती तो मैं वसीयत भी न बदल पाती और घर से भाग भी नहीं पाती.’

इन्हीं विचारों का तानाबाना बुनते हुए कानपुर आ गया. हड़बड़ाते हुए कुसुम ने अटैची और पर्स पकड़ा, फिर स्वरूपनगर के लिए रिकशा कर के चल दी.

कुसुम निश्चय कर के अपने भाई देवेंद्र के घर पहुंच गई. दरवाजे पर लगी कौल बैल बजाई. थोड़ी देर में एक भोलीभाली, सुंदर सी बालिका ने दरवाजा खोला.

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‘‘आप कौन, किस से मिलना है?’’ मीठी आवाज में बच्ची ने पूछा.

‘‘बेटी, मैं लखनऊ से आई हूं. तुम्हारे पापाजी की बहन हूं. मेरा नाम कुसुम है.’’

‘‘अंदर आइए, दादीजी, अंदर आइए.’’

बच्ची के पीछेपीछे कुसुम अपना पर्स और अटैची संभालती हुई चल दी. बरामदे के साथ जुड़ा हुआ ही ड्राइंगरूम था. उस घर में कुसुम 5 वर्षों बाद आई थी. पिछली बार अपने पति के साथ कुसुम कार से आई थी. घरपरिवार वालों ने खूब इज्जत, मानसम्मान दिया था. भैयाभाभी ने तो आंखों पर ही बिठा लिया था.

कुसुम के भाई के घर का वातावरण उस समय भी शांत था और अब भी लगता है सुखमय और शांत है. कुसुम की विचारतंद्रा उस के भाई ने ही तोड़ी, ‘‘अरे कुसुम, तू इस समय अकेली कैसे? कु़छ फोन वगैरह तो कर देती?’’

‘‘वह भैया, बस आना पड़ा,’’ सूखा चेहरा, मरियल आवाज में दिए उत्तर से भाई सशंकित हो गया.

‘‘आना पड़ा, मैं समझा नहीं. खैर, चल पहले चाय पी ले, कुछ खा ले फिर बताना.’’

कुसुम की आवाज सुन कर बरामदे में ही सब्जी काटती हुई भाभी दौड़ कर आईं, पांव छुए फिर बैठ गईं. थोड़ी देर बाद चायनाश्ता भी आ गया.

‘‘दीदी, आप तो बहुत दुबली हो गई हैं. 5 साल में चेहरा ही बदल गया. क्या हो गया है आप को?’’ कुसुम के पास आ कर भाभी ने आलिंगन किया और आश्चर्यचकित नजरों से उस की ओर देखती रहीं.

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कुसुम बारबार बांहों पर, गरदन पर पड़े जख्मों के निशान छिपा रही थी. लेकिन मेज पर रखी हुई चाय की प्याली उठाते समय गरदन से शाल हट गई और बांह का स्वेटर ऊपर को हो गया, देखते ही भैया दौड़ कर पास आए, घबरा कर पूछा, ‘‘यह सब क्या है, कुसुम? तुम्हारे शरीर पर ये जख्म कैसे हैं?’’

‘‘वह…वह भैया, रवि मारता था. पीटता था. एक बार तो उस ने इतनी जोर से मारा कि दांत तक टूट गया. बस, ये सब उसी के निशान हैं.’’

‘‘इतना सब होता रहा और तुम ने बताया तक नहीं. अरे हम कोई गैर हैं क्या? कभी फोन ही कर देतीं या कोई खत ही डाल देती. पता नहीं तुम ने कितने दुख झेले हैं जीजाजी की मृत्यु के बाद. छि:छि:, इतना कू्रर, बिगड़ा रवि बेटा हो जाएगा. सपने में भी नहीं सोचा था. खैर, कुसुम, तुम ने अच्छा किया जो आ गईं.’’

‘‘वह तो मुझे भूखा तक रखता था. बाहर दरवाजे पर ताला, टैलीफोन पर ताला, फ्रिज और सभी अलमारियों में ताला लगा रहता था. भैया, ऐसी दुर्दशा तो किसी कैदी की भी नहीं होगी जो उस ने मेरी की थी,’’ कहते ही कुसुम फूटफूट कर रोने लगी.

भैयाभाभी घबरा गए. आंसू पोंछे भाभी ने फिर कुसुम से वसीयत की योजना पूछी. थोड़ी देर बाद स्वयं पर काबू पा कर कुसुम ने अपनी नई वसीयत उन दोनों को दिखा दी. भैयाभाभी खुश हुए. बहन को भाई ने खूब प्यार कर के कहा, ‘‘बहन, घबराओ मत. जैसा तुम चाहती हो वैसे ही होगा. वैसे तो अलग रहने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर तुम चाहोगी तो स्वरूपनगर में ही तुम्हें अच्छा मकान मिल जाएगा. अभी तुम आराम करो, चिंता मत करो.’’

‘‘अच्छा भैया,’’ कह कर कुसुम सोफे पर ही लेट गई.

उधर, शाम को जब रवि औफिस से लौटा, पल्लवी ने रोनी सी सूरत ले कर दरवाजा खोला और वह वृक्ष से टूटी हुई डाली सी धम्म से सोफे पर बैठ गई. रवि ने उसे झकझोर कर पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात है? सब ठीक तो है.’’

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पल्लवी चीख पड़ी, ‘‘कुछ ठीक नहीं है, तुम्हारी मां धोखा दे कर भाग गईं और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘यह देखो, अपने पलंग पर यह चिट्ठी रख गई हैं. लिखा है : ‘मैं जा रही हूं. कुछ भी नहीं मिलेगा तुम्हें जायदाद में से. मैं ने वसीयत बदल दी है. आधी जायदाद बेटी मोनिका और आधी विकलांगों की संस्था के नाम कर दी है. मैं कपूत बेटे से विद्रोह करती हूं. जिस बेटे को पालपोस कर बड़ा किया वह मां पर हाथ उठाता है, वह भी जायदाद के लिए. मेरा सबकुछ तेरा ही तो था. लेकिन तू ने मांबेटे के रिश्ते का कोई लिहाज नहीं किया. तुझ से रिश्ता तोड़ने का मुझे कोई गम नहीं.’’’

कागज का टुकड़ा पढ़ कर रवि पागलों की तरह चिल्लाने लगा. कभी इधर कभी उधर चक्कर लगाने लगा. उधर पत्नी पल्लवी क्रोध में बड़बड़ाने लगी, ‘मैं ने पहले ही कहा था कि मांजी को मत सताओ, मत मारोपीटो, प्यार से उन्हें अपने वश में करो लेकिन तुम ने मेरी एक न सुनी. अब भुगतो. यह घर भी खाली करना पड़ेगा.’

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