गली में घुसते ही शोरगुल के बीच लड़ाईझगड़े और गालीगलौज की आवाजें अर्चना के कानों में पड़ीं. सड़ांध भरी नालियों के बीच एक संकरी गली से गुजर कर उस का घर आता था, जहां बरसात में मारे बदबू के चलना मुश्किल हो जाता था.

दुपट्टे से नाक ढकते हुए अर्चना ने घर में कदम रखा, तो वहां का नजारा ही दूसरा था. आंगन के बीचोंबीच उस की मां और पड़ोस वाली शीला एकदूसरे पर नाक फुलाए खड़ी थीं. यह रोज की बात थी, जब किसी न किसी बात पर दोनों का टकराव हो जाता था.

मकान मालिक ने किराए के लालच में कई सारे कोठरीनुमा कमरे बनवा रखे थे, मगर सुविधा के नाम पर बस एक छोटा सा गुसलखाना और लैट्रिन थी, जिसे सब किराएदार इस्तेमाल करते थे.

वहां रहने वाले किराएदार आएदिन किसी न किसी बात को ले कर जाहिलों की तरह लड़ते रहते थे. पड़ोसन शीला तो भद्दी गालियां देने और मारपीट करने से भी बाज नहीं आती थी.

गुस्से में हांफती, जबान से जहर उगलती प्रेमा घर में दाखिल हुई. पानी का बरतन बड़ी जोर से वहीं जमीन पर पटक कर उस ने सिगड़ी जला कर उस पर चाय का भगौना रख दिया.

‘‘अम्मां, तुम शीला चाची के मुंह क्यों लगती हो? क्या तुम्हें तमा करके मजा आता है? काम से थकहार कर आओ, तो रोज यही सब देखने को मिलता है. कहीं भी शांति नहीं है,’’ अर्चना गुस्से से बोली.

‘‘हांहां, तमाशा तो बस मैं ही करती हूं न. वह तो जैसे दूध की धुली है. सब जानती हूं... उस की बेटी तो पूरे महल्ले में बदनाम है. मक्कार औरत नल में पानी आते ही कब्जा जमा कर बैठ जाती है. उस पर मुझे भलाबुरा कह रही थी.

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