Social Story In Hindi: कसूर किस का था- भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था

राजन का फोन आते ही राधिका होटल जाने के लिए तैयार हो गई. गाड़ी में बैठते ही वह पुरानी यादों में खो गई. जब वह 19 साल की थी, तभी एक अमीर कारोबारी ने अपने बेटे के लिए उसे पसंद कर लिया था. पर उस का पति मेहुल देर रात की पार्टियों का दीवाना था. वह शराब भी पीता था.

अब पढ़िए आगे…

धीरेधीरे मेहुल बंटी के साथ शराब पीने लगा. वह उस की कोल्ड ड्रिंक के साथ ‘चीयर्स’ करता. ड्राइवर से शराब मंगवाता. नौकरों व बावर्ची से कह कर खाने में तरहतरह की चीजें बनवाता.

राधिका को यह सब बहुत अखरने लगा था. यही तो वह उम्र होती है, जब बच्चा अपने मांबाप को अपना रोल मौडल मान कर उन की नकल करता है, अच्छीबुरी आदतों को अपनाता है.

राधिका देखती कि जब मेहुल टाइम से घर नहीं आता, तब बंटी कोल्ड ड्रिंक से भरा गिलास अपने हाथों में ले कर कहता, ‘‘चलो मम्मी, आज दारू पार्टी हो जाए? रघु काका, आप मेरे लिए चीज ब्रैड और फ्रैंचफ्राई बनाओ.’’

राधिका खून का घूंट पी कर रह जाती. वह अपना दुखदर्द किस से बांटती? मायके में तो किसी की भी हिम्मत नहीं थी, जो मेहुल की आंखों में आंखें डाल कर बातें कर सके.

पर उस दिन राधिका ने भी कुछ सोच लिया था… रात 2 बजे मेहुल के मोबाइल फोन पर बात करनी चाही, तो वह स्विच औफ मिला. तकरीबन ढाई बजे मेहुल का फोन आया, ‘बैडरूम का दरवाजा खोलो.’

गुस्से में आ कर राधिका ने भी कह दिया, ‘मेहुलजी, आज यह दरवाजा नहीं खुलेगा. आप को जहां जाना है, चले जाइए… रोजरोज आप की देर से शराब पी कर आने की आदत से मैं तंग आ गई हूं… इस से बंटी पर भी गलत असर पड़ता है…’

पहले तो मेहुल प्लीजप्लीज करता रहा, फिर बोला, ‘मैं केवल बंटी से मिलना चाहता हूं. राधिका, एक बार दरवाजा खोलो… मैं उसे प्यार कर के चला जाऊंगा…’

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राधिका ने न जाने क्या सोच कर गेट खोल दिया. अब तो वह राधिका पर आंखें तरेरने लगा, ‘मेरे घर से मुझे ही निकालती है… मुझे पता था, तेरा बाप दलाल है. 50-50 रुपए के लिए तुम लोगों से धंधा कराता है.

‘‘तेरे बाप की औकात थी इतने बड़े घर में तेरी शादी कराने की… वह तो मेरे बाप की भलमनसाहत है, जो तू यहां पर आ गई, नहीं तो किसी कोठे पर…’

ये सारे शब्द पिघले सीसे की तरह राधिका के कानों में पड़ रहे थे. वह फटी आंखों से मेहुल को देखने लगी. अपनी बेबसी पर उस की आंखें छलक पड़ीं.

बंटी, जो अब 7 साल का हो गया था, कच्ची नींद से उठ गया था और देख रहा था कि पापा गुस्से से मम्मी पर बरस रहे थे. मम्मी रो रही थीं. वह डरासहमा सब देखसुन रहा था.

सुबह 7 बजे स्कूल जाना होता है, इसलिए राधिका ने किसी तरह अपने को संभाला. जैसेतैसे सबकुछ भुला कर उसे सुला दिया. वह खुद रातभर तकिया भिगोती रही. उस की आंखों से दूरदूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था. सोचती रही, ‘कैसे इस इनसान के साथ पूरी जिंदगी बिताऊं? जो मर्द अपनी औरत को इज्जत की निगाह से नहीं देखता, उस के बच्चे की नजर में भी उस औरत की कोई इज्जत नहीं रह जाती.’

चाहे पिता के घर में कुछ भी न था, शांति तो थी… रूखासूखा खा कर पढ़ाई करने में ही अपने 18 साल गुजार दिए थे. 19वें साल में उस के भावी ससुर ने उसे मेहुल के लिए पसंद कर लिया था. उस की बेमिसाल खूबसूरती ही आज उस के लिए शाप बन गई.

कालेज में बहुत से लड़के राधिका को अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहते थे, पर उसे सिर्फ पढ़ाई से ही सरोकार था. शायद इसलिए किसी लड़के की उस से बात करने की हिम्मत न होती थी. वह कालेज में ‘हार्टलैस’ के नाम से मशहूर थी.

घर में काम के सिलसिले से जुड़े कई लोग मेहुल से मिलने आते थे. एक सुबह डोरबैल की आवाज पर राधिका ने अनमनी सी हो कर खुद दरवाजा खोला. सामने एक 30-32 साला नौजवान को अपनी ओर एकटक निहारते पाया. आंखें चार हुईं. पता नहीं, राधिका को क्या हुआ… उस गरमाहट को वह सह न सकी और तुरंत वहां से हट गई.

कारोबार से जुड़े लोगों में से वह भी एक था. वह बुझीबुझी सी अपने काम में लग गई. अकसर लोग बाहर से भी आते ही रहते थे. कभी किसी से मिलना होता था, तो मेहुल खुद बुला कर मिला देता था.

इस बार भी मेहुल बोला, ‘‘राधिका, इन से मिलो, ये हैं रोलिंग मिल के मालिक राजन. दिल्ली से आते हैं… और राजनजी, इन से मिलिए… ये हमारी बैटर हाफ हैं.’’

दोनों ने एकदूसरे से हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. राजन ने गौर से राधिका को देखा, पर उस ने ध्यान नहीं दिया.

एक दिन राजन ऐसे ही किसी काम से आया था, पर जाते वक्त एक अपना विजिटिंग कार्ड थमा कर चला गया.

उस कार्ड के पीछे एक नोट लिखा था, ‘टाइम मिलने पर फोन कीजिएगा, मैं इंतजार करूंगा…’

पढ़ कर राधिका कुछ घबरा सी गई. न चाहते हुए भी उस ने शाम को डरतेडरते फोन किया, ‘हैलो, मैं राधिका… आप … राजनजी?’

‘हांहां, मैं राजन ही बोल रहा हूं. मैं कब से आप के फोन का इंतजार कर रहा था. आप बुरा मत मानिए… एक बात बोलूं… आप बहुत खूबसूरत हैं.’

‘थैंक्स…’ वह बोली.

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‘प्लीज, मना मत कीजिएगा. क्या कल हम शाम को एकएक कप कौफी पी सकते हैं?’

राधिका चाह कर भी मना न कर सकी.

कौफी पीते वक्त बारबार राजन की ओर नजरें उठतीं, तो उसे अपनी ओर ही देखता पाती. वह शरमा कर सिर झुका लेती.

‘राधिकाजी, जब से मैं ने आप को देखा है, मैं रातभर सो नहीं पाता. जी चाहता है कि बस आप को ही देखता रहूं… दिनरात… हर पल… आप की मुसकराहट बहुत दिलकश है.’

यह सुन कर राधिका का दिल झूम उठा. शर्म से पलकें झुक गईं. होंठों पर एक लुभावनी मुसकान आ गई.

उस दिन के बाद से ही वे एकदूसरे से मिलने लगे. कभी कोई रैस्टोरैंट, तो कभी कोई शौपिंग मौल. कभी मल्टीप्लैक्स सिनेमाहाल, कभी किसी पार्क में, ताकि मेहुल या किसी पर राज न खुले… इसलिए मिलने के लिए अलगअलग जगह तय कर लेते थे.

मिलने पर राधिका को अजीब सी घबराहट होती थी, पर उस की इस घबराहट में भी एक खुशी थी.

(क्रमश:)

राजन का राधिका से मिलने का क्या मकसद था? क्या मेहुल को इस बात का पता चला?  पढ़िए अगले अंक में…

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Social Story In Hindi: कसूर किस का था- भाग 3

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था
राधिका राजन से मिलने होटल गई. बीच रास्ते में वह पुरानी यादों में खो गई कि कैसे 19 साल की उम्र में उस की शादी अमीर मेहुल से हो गई. मेहुल शराब पीता था, कभीकभी तो अपने बेटे के साथ बैठ कर भी. राधिका को यह पसंद नहीं था. उस की नजदीकियां राजन के साथ बढ़ने लगीं.
अब पढि़ए आगे…

एक दिन दोपहर को बंटी राधिका के मोबाइल फोन पर गेम खेल रहा था, तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी.

राधिका बंटी के हाथ से मोबाइल फोन लेने गई, तो उस ने देने से मना कर दिया. प्यार से, फिर झल्ला कर छीनने गई, तो बोला, ‘‘आप एक नंबर की…’’

इस से आगे राधिका ने जो सुना, तो लगा जैसे किसी ने भरे बाजार में नंगा कर दिया. उस के सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो गई. वह बहुत ही दुखी हो गई. उन्हीं नाजुक व कमजोर लमहों में वह राजन के और करीब आ गई.

‘‘क्या बात है राधिका, तुम इतनी चुपचुप और खाईखोई सी क्यों लग रही हो? किसी ने तुम्हें कुछ कहा क्या?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ कहतेकहते भी राधिका का गला भर्रा गया. फिर वह हंसते हुए कहने लगी, ‘‘देखो, मैं एकदम ठीक तो हूं. मुझे क्या हुआ है?’’

‘‘मैं इस खोखली हंसी के पीछे के दर्द को साफसाफ महसूस कर रहा हूं. मुझे हैरानी होती है कि इतनी प्यारी और खूबसूरत आंखों में भी आंसुओं का इतना गहरा समंदर भी समा सकता है… क्या बात है? तुम्हारे इन आंसुओं से मुझे बहुत दर्द पहुंचता है. तुम मेरी जान हो, मेरी सबकुछ हो. मैं तुम्हें एक पल के लिए भी उदास नहीं देख सकता.’’

राधिका ने सुबकतेसुबकते राजन को दोपहर में घटी घटना के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘तो यह बात है… बच्चे जो देखतेसुनते हैं, वही सीखते हैं… दिल से मत लगाओ. बच्चा है यार…

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‘‘तुम्हें पता है कि आज मैं ने तुम्हारे लिए यह गिफ्ट लिया है. जरा खोल कर तो देखो, कैसा है?’’

‘‘इस की क्या जरूरत थी? तुम से दिल की बातें कर के मन हलका हो जाता है. बस…’’

‘‘बस… और कुछ नहीं?’’ टेढ़ी आंखों से राजन ने कहा, तो राधिका शरमा गई.

‘‘क्या तुम मेरी प्रेमिका बनोगी राधिका?’’

राधिका ने चौंक कर राजन की ओर देखा, तो उस की आंखों में सिर्फ प्यार और प्यार ही नजर आ रहा था. अब राधिका हैरत से अपनी आंखों में भर आए आंसू पोंछने लगी. होंठ लरजने लगे.

बहुत मिन्नतें करने पर राधिका ने गिफ्ट का रैपर खोला. हीरे के 2 टौप्स थे.

‘‘बहुत ही खूबसूरत हैं.’’

गिफ्ट तो मेहुल भी ढेरों लाता था, पर उस में गरूर था. वह खुश हो कर कह बैठी, ‘‘राजन, मुझे इस घुटन से कहीं दूर ले चलो…’’

राजन भी उसे दूसरे शहर ले जाने को तैयार था. वह तुरंत बोला, ‘‘हां चलो, कब चलोगी राधिका? मैं तुम्हें अपने साथ हमेशा के लिए ले जाऊंगा…’’ कह कर उस ने राधिका को अपनी बांहों में भर लिया.

राधिका अब भी खोईर् हुई थी. बाहर तेज बारिश हो गई थी. अचानक बिजली कड़की और उस ने दोनों हाथों से कस कर राजन को जकड़ लिया.

जब 2 जवां दिल मिल रहे हों, तो सभी जगह बहार ही बहार दिखाई देती है. बारिश की धुन में प्यार का संगीत था. राजन उसे अपने सीने से लगा कर दीवानों की तरह चूमने लगा. एक पल के लिए वह सकुचाई, पर जब वह दिल ही हार चुकी, तो इनकार कैसा…?

एक शाम राधिका चुपचाप राजन के साथ मुंबई चली आई. आते वक्त राधिका एक चिट्ठी लिख कर छोड़ आई थी. लिखा था, ‘मैं इस घुटनभरी जिंदगी को जीतेजीते तंग आ गई हूं. अब मुझे आजादी से जीना है. सांस लेना है.’

उस वक्त राधिका ने अपने बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. पर वह तो राजन के प्यार में पगलाई हुई थी. उसे उस वक्त जो ठीक लगा किया. यह भी नहीं सोचा कि मेहुल और घर वालों पर क्या बीतेगी.

राजन को पा कर राधिका को लगा कि सारे जहान की खुशियां मिल गई हों. उन लोगों ने 2-4 महीने विदेश में ही बिता दिए. वापस आ कर राजन अपना मुंबई का कारोबार संभालने में लग गया और राधिका अपने फ्लैट को सजानेसंवारने में जुट गई. दिनरात ख्वाबों जैसे बीत रहे थे.

राधिका को कभी बंटी की याद आती, तो दिल में कुछ चटक जाता, गले में कुछ फांस जैसा अटक जाता था, लेकिन वह अपने सिर को झटक देती और दिल को बच्चे की तरह झुनझुना पकड़ा कर समझा लेती थी.

राधिका व राजन अकसर होटलों में ही डिनर लेते थे. वहां जो भी राधिका को देखता, तो उसे बस देखता ही रह जाता.

राजन ने राधिका के लिए काफी मौडर्न कपड़े खरीदे थे. बहुत ही नानुकर के बाद वह उन्हें पहनती थी.

‘‘अरे बाबा, यही तो आजकल का फैशन है. चलो बेबी, पहनो. जल्दी से रैड ड्रैस पहन कर आओ. मैं बाहर कार में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. देखूं तो सही, मेरी जान इन कपड़ों में कैसी लगती है,’’ राजन कहता.

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थोड़ा घबराते हुए राधिका ने वह ड्रैस पहनी. जब उस ने खुद को आईने में देखा, तो अपने बदले लुक और जंचते कपड़ों के साथ बढ़ती दोगुनी खूबसूरती पर यकीन नहीं हुआ.

देर होने पर राजन खुद ही बैडरूम में चला आया. जब राधिका को लाल रंग की ड्रैस में देखा, तो देखता ही रह गया, ‘‘हाय, स्वीट हार्ट. क्या हौट लग रही हो? अब तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा.’’

राधिका के गाल शर्र्म से और भी गुलाबी हो गए.

डिनर करते वक्त कितने लोगों ने पलटपलट कर ललचाई नजरों से देखा, तो राधिका घबराई सी उस ड्रैस में असहज हो उठी थी. पर धीरेधीरे उसे ऐसे कपड़े पहनने की आदत हो गई.

कोलकाता की राधिका और मुंबई की राधिका में जमीनआसमान का फर्क हो गया. मजे से जिंदगी गुजर रही थी. तभी एक दिन राजन दफ्तर से बहुत घबराया सा घर वापस आया.

‘‘गजब हो गया,’’ राजन बोला.

‘‘क्या हुआ?’’ राधिका ने पूछा.

(क्रमश:)

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Social Story In Hindi: कसूर किस का था- भाग 4

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

मेहुल से शादी होने के बाद राधिका अमीर घराने की बहू तो बन गई, पर पति के शराब पीने की आदत से वह परेशान थी. मेहुल बेटे को भी बिगाड़ रहा था. इस तरह वह राजन के करीब आ गई और उस के साथ दूसरे शहर में रहने लगी. राजन ने उस को रानी बना कर रखा. एक दिन वह मुसीबत में फंस गया.

अब पढ़िए आगे…

‘‘मैं ने 10 करोड़ के प्रोजैक्ट के लिए बैंक से 5 करोड़ का लोन पास करवाया था, लेकिन पिछला टैंडर पास नहीं होने से बैंक का मैनेजर लोन पास नहीं कर रहा है. कोटेशन वगैरह सब भर दिए गए हैं… समझ में नहीं आता कि क्या करूं…?

‘‘अगर मेरा यह करोड़ों का प्रोजैक्ट इस बार क्लियर नहीं हुआ, तो हम सड़क पर आ जाएंगे. हमारा दफ्तर, घर, मिल सबकुछ चला जाएगा. प्लीज राधिका, कुछ सोचो… कुछ करो…’’

अब बेचारी राधिका क्या करे… वह तो सिर्फ दिलासा व हौसला ही देती रही, ‘‘सब ठीक हो जाएगा राजन, तुम जा कर एक बार मैनेजर से फिर मिल लो.’’

‘‘नहीं राधिका, अब मिलने से कुछ नहीं होगा. हां, अब ठीक केवल एक शर्त पर हो सकता है… सुना है कि वह मैनेजर राहुल थोड़ा शराब और शबाब का रसिया है. अगर एक चांस ले लें तो शायद.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अगर तुम राहुल को शीशे में उतार सको, तो…’’ राजन कहतेकहते नजरें नहीं मिला पा रहा था.

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो राजन? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? तुम अपनी राधिका को सिर्फ एक लोन पास करने के लिए किसी पराए मर्द के बिस्तर में परोस रहे हो?’’ तकरीबन चिल्लाते हुए राधिका गुस्से से बोली,  ‘‘मुंबई में तो सैकड़ों कार्लगर्ल्स हैं. किसी को भी वहां भेज दो.’’

‘‘राधिका, मुझे माफ कर दो,’’ कह कर राजन ने राधिका की ओर प्यार से हाथ बढ़ाया, तो उस ने हिकारत भरी नजरों से घूर कर हाथ को छिटक दिया.

राजन अपनी सफाई में कह रहा था, ‘‘राधिका, मुझे यह कहना तो नहीं चाहिए था, पर मैं किसी कार्लगर्ल पर एकदम से भरोसा नहीं कर सकता. कब किस के सामने किस का राज फाश कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता.

‘‘मुझे यह सब कहते हुए बहुत शर्म महसूस हो रही है कि मैं अपनी जिंदगी को किसी और के बिस्तर पर सोने को मजबूर कर रहा हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना…

‘‘मेरे पास अब खुदकुशी के सिवा कोई चारा नहीं है. मैं दिवालिया हो कर नहीं जी सकता.’’

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अब राधिका के सामने इधर कुआं उधर खाई वाली हालत हो गई. जिस्म का सौदा कर राजन के कारोबार को बचाए या फिर जिस्म को बचा कर उस को मरता देखे? फिर इतने बड़े मुंबई शहर में अकेली, कैसे और कहां रहेगी? सब गिद्धों की तरह नोच डालेंगे… मेहुल के पास वापस मैं लौट नहीं सकती. आखिरकार उस ने अपने जमीर को मार कर ही यह कदम उठाया.

बैंक मैनेजर राहुल तो राधिका का इतना मुरीद हुआ कि उस ने यहां तक कह दिया, ‘‘राजन, आज से आप मेरे फैमिली फ्रैंड हुए. अब आप को कभी भी कोई दिक्कत हो, तो बेहिचक मुझे कह दीजिएगा.’’

बस वहीं से राधिका का कालगर्ल बनने का सफर शुरू हो गया. हर रात लिपपुत कर किसकिस के गुलिस्तां को महकाती फिरती, अब उसे याद नहीं है. राजन तरक्की की सीढि़यों को पार करता रहा…

राधिका कभी नफरत से पूछती, ‘‘राजन, तुम ने ऐसा क्यों किया? किस जन्म का बैर निकाला है तुम ने?’’

राजन बड़ी बेशर्मी से हंसने लगता. राधिका कभी जाने को मना करती, तो वह हाथ भी उठा देता था. ऐसी दहशतभरी जिंदगी जीतेजीते… यों ही  15 साल बीत गए.

राधिका ने यह बात अब अच्छी तरह से समझ ली थी कि औरत केवल खिलौना है. कभी उसे पैरों तले रौंदा जाता है, तो कभी उसे हाथों द्वारा मसलाकुचला जाता रहा है. उस ने राजन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना बसाबसाया घर उजाड़ दिया. कभी तनहाई में अपने बच्चे और मेहुल का अक्स उभरता, तो वह सिसक पड़ती.

राधिका अपनी यादों के दायरे से बाहर निकल आई. आज भी बाहर से कोई डैलिगेशन ग्रुप आया है, जिस में से एक को ‘ताज’ होटल में ठहराया गया है, जहां राधिका को अभी पहुंचना है.

ड्राइवर ने होटल ताज के सामने कार रोक दी. इठलाती, लहराती राधिका मैनेजर से रूम नंबर पूछ कर चल पड़ी. उस ने 205 नंबर रूम खटखटाया. अंदर से आवाज आई, ‘कम इन.’

दरवाजा बंद नहीं था, केवल ढलका हुआ था. हाथ लगते ही खुल गया. सामने फोन पर झुका कोई नौजवान रिसैप्शन में बात कर रहा था और एक 40-45 का रसिया किस्म का आदमी साथ खड़ा उसे समझा रहा था. हाथ के इशारे से सामने पड़े सोफे पर राधिका को बैठने को कहा और बोला, ‘‘आप जरा बैठिए… बंटी, रिसैप्शन में कुछ और्डर देना मेरे व मैडम के लिए. तुम तो कोल्ड ड्रिंक लेते हो, पर मैं और मैडम पनीरपकौड़ा और वैज कबाब लेंगे और व्हिस्की लेंगे. थैंक्स…’’

तभी वह नौजवान राधिका की तरफ मुड़ा. उसे देख कर राधिका कांप उठी. वह वहां एक पल भी रुक नहीं पाई, उलटे पैरों लौट गई… और वह आदमी ‘हैलो… हैलो, मैडम…’ कहता ही रह गया. वह नौजवान भी हैरान खड़ा रह गया.

राधिका अपनी नजरों में तो गिर ही चुकी थी, आज वह सरेबाजार नंगी भी हो गई. उस के झूठे सपनों का महल तहसनहस हो गया. उस की ऐसी भयानक तसवीर देख राधिका ने अपने दोनों कानों पर हथेलियां रखीं.

राधिका बहुत जोर से चीखी, ‘‘नहीं…’’ उस की हिचकियां बंधने लगीं. घर पर आवाज सुन कर सभी नौकरनौकरानियां मैडम राधिका के कमरे में आ गए. देखा कि मैडम ने गुस्से में मेकअप का सारा सामान जमीन पर फेंक दिया है. ड्रैसिंग का आईना तोड़ दिया है. वे सब डर कर कमरे से बाहर चले गए.

राजन से उसे जितना प्यार था, आज… उस से भी ज्यादा नफरत हो रही थी.

उस के मासूम और खूबसूरत मुखड़े पर परेशानी की लकीरें खिंच गईं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली.

कभी सोचा न था कि उस का अतीत ऐसे शर्मनाक रूप से वर्तमान में सामने आएगा. उस ने अपना सिर बैड के किनारे पर जोर से दे मारा. वह 2 मर्दों द्वारा छली गई. एक ने उस के वजूद को पैरों तले रौंदा, तो दूसरे ने उस के जिस्म को इस्तेमाल करने का जरीया बनाया. पहले अपने लिए, फिर पैसों के लिए खुद ने भी नोचाखसोटा और दूसरो से भी नुचवा ही रहा है.

आज राधिका शौवर में घंटों खड़े हो कर अपने को भिगोती रही. बरसों से मन पर पड़े मैल की परतों को साबुन से रगड़रगड़ कर साफ करती रही… उसे आईने में अपनेआप को देखने में भी डर लग रहा था.

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राधिका ने उस रात अपनेआप को बैडरूम में कैद कर लिया. कितनी बार दरवाजे पर दस्तक हुई. राजन की आवाज आ रही थी, ‘‘जानू, दरवाजा खोलो… मैं तुम्हारा राजन… नींद आ गई होगी… शायद थकी हुई हो.’’

पर कोई आवाज न पा कर राजन ने सोचा, ‘लगता है, वह सो गई है. जब वह सुबह उठेगी, तब बात करूंगा.’

दरवाजे को जोरजोर से खटखटाने से राधिका की नींद टूटी. कब वह सोई, उसे उस का एहसास ही नहीं हुआ. हड़बड़ा कर वह उठी और दरवाजा खोला.

‘‘अरे, रात में कैसे बेसुध सो गई थीं तुम? तुम्हें मेरा भी खयाल नहीं आया? और तुम ने खाना भी नहीं खाया? डिनर के लिए कितना दरवाजा खटखटाया, पर तुम ने दरवाजा खोला ही नहीं…. क्या हुआ मेरी जान?’’

राजन ने राधिका को बांहों में लेने की कोशिश की, तो वह पीछे हट गई. नफरत भरी निगाहों से उसे घूरा, तो हंसते हुए राजन का चेहरा अचानक सफेद सा पड़ गया. उस के हिकारत भरे चेहरे को राजन बखूबी समझ रहा था, इसलिए शर्मिंदा व बौखलाया हुआ सा बगलें झांकने लगा.

तभी सिक्योरिटी गार्ड ने आ कर कहा, ‘‘कोई साहब आए हैं. मैडम को पूछ रहे हैं.’’

(क्रमश:)

 राधिका से मिलने कौन आया था? होटल में किसे देख कर राधिका डर कर भाग आई थी? पढ़िए अगले अंक में…

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Social Story In Hindi: कसूर किस का था- भाग 5

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
मेहुल की शराब पीने की लत के चलते राधिका राजन के नजदीक आ गई. वह अपने पति का घर छोड़ कर उस के साथ रहने लगी. थोड़े दिन तक तो सब ठीक रहा, पर बाद में राजन का असली रूप सामने आया. वह उसे अपने काम के लिए दूसरों को परोसना चाहता था. इस तरह वह धीरेधीरे कालगर्ल बन गई. एक दिन राधिका किसी से मिलने होटल गई. वहां उस के सामने उस का बेटा आ गया. वह घबरा कर वापस हो ली.
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‘‘ठीक है, उन्हें चाय वगैरह सर्व करो. मैडम अभी तैयार हो कर आ रही हैं,’’ कह कर राजन कमरे से बाहर आ गया.

राधिका ने जैसे ही ड्राइंगरूम में कदम रखा, सामने नजर पड़ते ही ऐसे तड़प उठी, जैसे भूल से जले तवे पर हाथ रख दिया हो.

वह घबरा कर वापस जाने लगी, तभी उस के कानों में अमृत घोलती

एक आवाज गूंजी, ‘‘मम्मी, मैं आप का बंटी… आप को कहांकहां नहीं ढूंढ़ा हम ने? आखिरकार आप मिल ही गईं,’’ इतना कह कर वह राधिका से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगा.

बंटी रोतेरोते ही कहने लगा, ‘‘मम्मी, आप के बगैर पापा ने भी अपनी कैसी हालत बना ली है, कितने साल बीत गए… आप के बगैर जीते हुए. अब मैं एक पल भी आप के बगैर नहीं रह सकता. प्लीज मम्मी, घर लौट चलो. आप को लिए बगैर मैं यहां से नहीं जाऊंगा.’’

जब होटल में राधिका ने बंटी को देखा, जो बिलकुल मेहुल की शक्ल पाए हुए था. उसे लगा कि उस ने ममता के रिश्ते में भी तेजाब घोल दिया. अगर उस की शक्ल हूबहू न होती, तो वह तो… उस के आगे वह नहीं सोच पाई.

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उधर राधिका जब मेहुल को छोड़ कर चली गई थी, तब वह एकदम टूट सा गया था. वह उसे बहुत प्यार करता था. निराशा व हताशा से बेहाल मेहुल ने सारा कारोबार समेटा और बेंगलुरु की किसी अनाम जगह पर चला गया. अब वह अपने बेटे बंटी के लिए जी रहा था. सुबह उसे तैयार कर के स्कूल भेजता, फिर अपने दफ्तर जाता, जल्दी काम निबटा कर वह फिर घर लौटता.

धीरेधीरे सारे काम घर में मोबाइल फोन से ही करने लगा. बंटी को भी पापा का ढेर सारा प्यार पा कर लगा कि जैसे अपनी मम्मी को भूलने लगा है, पर वह भूला नहीं था.

कभीकभी बंटी पूछ ही बैठता, ‘पापा, मम्मी कहां गई हैं?’

तब मेहुल की बेबसी से आंखें भर आतीं, फिर मासूम बंटी को सीने से लगा कर रो पड़ता. उस ने सोचा कि ढूंढ़ा तो उसे जाता है, जो खो जाता है. जो खुद ही छिप गया हो, उसे ढूंढ़ कर क्यों परेशान करूं?

जैसे ही बंटी बड़ा हुआ, उस का भी एमबीए का कोर्स अभीअभी पूरा हुआ था. वह अपनी मम्मी की तलाश में लगा. वह पापा मेहुल को सैमिनार है बोल कर कोलकाता गया, जहां पहले मम्मीपापा के साथ रहता था बचपन में. वहीं से पता चला कि मम्मी मुंबई में हैं. शायद तभी से वह मुंबई में आ कर तलाश करने लगा.

एक दिन एक होटल में उस ने राजन के साथ राधिका को देखा. वहां से सारी जानकारी हासिल की. फिर अपनी मम्मी से मिलने का प्लान बनाया. और कुछ तो समझ में नहीं आया कि कैसे मिले?

वह राधिका को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था. और कोई चारा भी तो नहीं था उस के पास, लेकिन अफसोस, मेहुल का हमशक्ल होने से बाजी पलट गई. उस की सूरत देखते ही राधिका लौट गई. वह तुरंत पहचान जो गई थी.

‘‘मम्मी, मेरी सूरत देख कर आप मुझे तुरंत पहचान गईं और आप लौट गईं. मम्मी, मेरा इरादा आप को परेशान करने का नहीं था. पापा भी आप के जाने के बाद एकदम टूट से गए हैं. वे तिलतिल कर मर रहे हैं.

‘‘मैं उन्हें ऐसे घुटतेतड़पते नहीं देख सकता था. उन्हें भी अपनी गलतियों का एहसास हो गया है. वैसे, वे मुझ पर जताते नहीं हैं कि वे दुखी हैं, मैं जानता हूं कि पापा आप को बहुत प्यार करते हैं और आप के बगैर अकेले जी रहे हैं. वे भी मेरे साथ आए हैं, बाहर खड़े हैं.’’

एक ही जगह मूर्ति सी खड़ी राधिका किस मुंह से मेहुल के सामने जाती? उस से नजरें मिलाती? उस ने बेजान, थके हाथों से बंटी को अपने से अलग किया. उस की आंखें पथरा सी गई थीं. लग रहा था कि उन आंखों में भावनाएं नहीं हैं.

इतने में मेहुल भी भीतर आ गया. कितना बीमार, थकाथका, लाचार सा लग रहा था. राधिका के दिल में कुछ टूटने, पिघलने लगा. मन दर्द से भर उठा. मेहुल का क्या कुसूर? पर वह इस कलंकित देह के साथ कैसे आगे बढ़ती?

राजन तो मेहुल को देख कर शर्म से पानीपानी हुए जा रहा था. दोस्त हो कर पीठ में छुरा घोंपने का अपराध जो किया था, इसलिए नजरें न मिला कर एक ओर सिर झुकाए खड़ा रहा.

मेहुल थके कदमों से राधिका के करीब आया और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए. मेहुल ने कहा, ‘‘सच राधिका, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. मेरी ही नादानी की वजह से हमारा बच्चा हम दोनों की परवरिश नहीं पा सका, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है.

‘‘हम दोनों मिल कर अब भी अपने बेटे बंटी को अच्छे संस्कार देंगे. उसे कारोबार में फलतफूलता देखेंगे. अभी तो उस की शादी करनी है. उन के प्यारेप्यारे बच्चों को गोद में खिलाना है.’’

‘‘नहीं मेहुल, यह अब कभी नहीं हो सकता… मैं चाह कर भी इस दलदल से बाहर नहीं आ सकती. मैं इस लायक ही नहीं रह गई हूं कि तुम्हारे साथ जा सकूं.’’

अपने भर आए गले को खंखारते हुए राधिका फिर बोली, ‘‘मेहुल, जब बदन का कोई अंग सड़ जाता है, तो उस को काट कर अलग कर दिया जाता है, नहीं तो पूरे जिस्म में जहर फैल जाता है. मैं अब वह दाग हूं, जिसे सिर्फ छिपाया और मिटाया जा सकता है, पर दिखाया नहीं जाता. प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ कहतेकहते वह बुरी तरह कांपने व रोने लगी थी.

तब मेहुल ने राधिका का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘राधिका, मैं ने कहा था कि मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मेरे ही रूखे बरताव के चलते तुम्हें घर छोड़ने जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. इस के लिए तुम अपनेआप को अकेले दोष मत दो. मुझे तुम मिल गईं, अब कोई मलाल नहीं.

‘‘मुझे समाज, रिश्तेदार किसी की कोई परवाह नहीं. देखो, तुम्हारे बेटे बंटी को, जिसे तुम ने 8 साल का नन्हे बंटी के रूप में देखा था, आज वह पूरा गबरू नौजवान बन गया है. एमबीए की डिगरी भी हासिल कर ली है.

‘‘मैं ने इस का तुम्हारी गैरहाजिरी में ठीक से तो लालनपालन किया है कि नहीं? कोई शिकायत हो तो बोलो?’’

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मेहुल का गला भर आया था. आंखें गीली हो गई थीं.

कितना बड़ा कलेजा था मेहुल का. राधिका, जो शर्म, अपराध के बोझ तले दबी जा रही थी, वह भी सारी लाज भूल कर मेहुल की बांहों में समा गई. कभी सोचा भी नहीं था कि मेहुल से नफरत की जगह माफी मिलेगी. उस के चेहरे पर एक दृढ़ विश्वास की चमक थी.

राजन लुटापिटा सा एक ओर खड़ा ताकता ही रह गया.

Social Story In Hindi: कसूर किस का था- भाग 1

‘हैलो राधिका, तुम ठीक 8 बजे होटल पहुंच जाना.’

‘‘ओके… राजन. आप भी टाइम से आ जाना.’’

‘जो हुक्म मेरी मलिका. बंदा समय पर हाजिर हो जाएगा.’

‘‘आप भी न, कुछ भी कह देते हो,’’ शरमा कर, मुसकराते हुए राधिका ने मोबाइल फोन काट दिया.

राधिका ने तैयार हो कर गुनगुनाते हुए, आईने में अपनेआप को गौर से ऊपर से नीचे तक देखा. उस का खूबसूरत बदन अभी तक सांचे में ढला हुआ था, तभी तो राजन उसे बांहों के घेरे में ले कर हमेशा कहते, ‘फिगर से आप की उम्र का पता ही नहीं चलता जानेमन…’ और शरारत से हंसने लगते.

तब राधिका थोड़ा शरमा कर रह जाती और कहती, ‘आप भी न…’

नीले रंग की खूबसूरत साड़ी में चांदी के रंग की कारीगरी का काम, नए जमाने का ब्लाउज, जिस का भार पीछे बंधी डोरी ने संभाल रखा था. बालों को हेयर ड्रैसर ने बड़े ही खूबसूरत ढंग से संवार कर 2 लटों को सामने निकाल दिया था.

राधिका के गोरगोरे रुई से भी नरम हाथों पर लोगों की नजर बरबस ही उठ जाती थी.

राधिका को याद है कि पिछली पार्टी में मेघना भटनागर ने कहा भी था, ‘राधिकाजी, आप को तो फिल्म इंडस्ट्री में होना चाहिए था. आप तो इतनी खूबसूरत हो कि आप को छूने से भी डर लगता है. एकदम कांच की गुडि़या सी लगती हो आप.’

ऐसी बातें पहले राधिका को अंदर तक गुदगुदा जाती थीं, लेकिन अब वह सुन कर केवल मुसकरा देती है.

राधिका ने साड़ी से मैच करती ज्वैलरी पहन कर फाइनल टच और फाइनल लुक दिया और मोबाइल फोन और मैचिंग पर्स ले कर बंगले से बाहर आ गई, जहां ड्राइवर पहले से ही हाथ बांधे अपनी ड्यूटी के लिए खड़ा था.

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राधिका मैडम को आते देख ड्राइवर ने गाड़ी का पिछला गेट खोला. राधिका ने बैठते ही कहा, ‘‘होटल ताज चलो.’’

‘‘जी मेम साहब,’’ कह कर ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी. गाड़ी अब बंगले से निकल कर खाली सड़क पर तेज रफ्तार से दौड़ने लगी.

राधिका का दिमाग भी उस दौड़ में शामिल हो गया. बस फर्क इतना था कि गाड़ी की रफ्तार आगे जा रही थी और राधिका का दिमाग पिछली यादों की ओर रफ्तार पकड़ रहा था. बात तब की है, जब राधिका का 12वीं जमात का रिजल्ट निकला था.

वह फर्स्ट क्लास से पास हुई थी. वह चाहती थी कि वह आगे और पढ़े. उस ने सीपीटी का फार्म भी ले लिया था, लेकिन घर की माली हालात ठीक नहीं थी. 5 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. उस के बाद पल्लव, जिस ने 10वीं जमात का बोर्ड इम्तिहान दिया था और पल्लवी ने 8वीं जमात का. फिर नकुल और तन्वी थे, जो छठी और चौथी क्लास में पढ़ते थे.

मां घरेलू थीं, सिर्फ कपड़े सीनेपिरोने का काम जानती थीं और पिताजी रेलवे में टीटी थे. जैसेतैसे घर का गुजारा और उन लोगों की पढ़ाई का खर्चा निकल पाता था.

पिताजी की इच्छा थी कि वे राधिका की शादी कर दें, क्योंकि वह तनी खूबसूरत थी कि जहां भी जाती, वहां कोई भी उस का दीवाना हो जाता था. दोनों पतिपत्नी को रातभर इसी चिंता में नींद नहीं आती थी.

राधिका की खूबसूरती पर फिदा हो कर 3 चावल मिलों के मालिक केतन सहाय ने अपने बेटे मेहुल के लिए बिना दानदहेज के शादी की बात चलाई.

राधिका के पिता ने उसे स्वीकार कर लिया और धूमधाम से शादी हो गई. पैसों की कमी में पलीबढ़ी राधिका इतने ऐशोआराम देख कर दंग रह गई. वह बहुत खुश थी. उस के मांबाप भी अपनी बेटी की खुशियों को सराहने लगे.

मेहुल चूंकि एक बड़ा कारोबारी का लड़का था, विदेश से एमबीए कर के आया था, उस का ज्यादा से ज्यादा समय कामकाज और यारदोस्तों में ही बीतता.

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मेहुल को राधिका पहली नजर में ही भा गई थी. जब मेहुल ने प्यार से राधिका को देखा, तो हलकी गुलाबी साड़ी में उस का रंग और भी गुलाबी हो उठा था. वह लाज से सिमटी जा रही थी. सभी दोस्त मेहुल से मानो जल रहे थे.

मेहुल भी स्मार्ट और अच्छे नैननक्श का था, पर राधिका के सामने उन्नीस ही था. पर वह राधिका से प्यार तो बहुत करता था, वह उस की खूबसूरती पर कुछ नहीं बोल पाता था. वह आएदिन पार्टी करता रहता था, जिस में सिगरेटशराब व शबाब का जोर होता था और पार्टियां भी देर रात तक चलती थीं.

हाई सोसाइटी में उठनेबैठने वाले मेहुल के यारदोस्त भी वैसे ही थे. हर समय पीनेपिलाने की ही बातें चलती थीं. शुरुआत में तो राधिका नईनवेली होने के नाते पसंद न होते हुए भी ऐसी पार्टियों में शामिल हो जाती थी, पर उसे ऐसी पार्टियां कभी भी अच्छी नहीं लगी थीं.

धीरेधीरे राधिका ने ऐसी हाई प्रोफाइल पार्टियों में जाना छोड़ दिया. घर की पार्टियों में 2-4 बार अपना चेहरा दिखा कर चली आती. बाहर की पार्टियों में केवल मेहुल जाता था. उसे लौटने में कभी सुबह के 2 बजते, तो कभी 3 या 4. पहले तो वह गुस्सा हो जाती थी, मेहुल से बोलचाल बंद कर देती थी या कुछ शिकायत कर देती थी.

एक बार फिर ऐसा ही हुआ. राधिका मेहुल से नाराज थी, तभी मेहुल ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा, तो एक पल के लिए वह सकुचाई, मुंह से एक भभका निकला, उस की गंध से उसे उलटी सी होने लगी. वह हटने लगी, तो मेहुल ने उसे झट से अपने बदन से सटा लिया. सीने से लगा कर वह दीवानों की तरह उसे चूमने लगा.

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राधिका उस की बांहों से निकलने के लिए छटपटा रही थी. मेहुल कह रहा था, ‘यार, माफ भी कर दो. कल से जल्दी आ जाऊंगा. राधिका, तुम बेहद खूबसूरत हो… मैं वादा करता हूं… कभी लेट नहीं होऊंगा.’

शराबी की जबान और कुत्ते की टेढ़ी पूंछ का जैसे कभी कोई भरोसा नहीं होता, वैसे ही पीनापिलाना मेहुल की आदत में शुमार हो गया था. जितनी नफरत राधिका को शराबसिगरेट, देर रात की पार्टियों से थी, उतनी ही नफरत उसे अपनेआप से भी होने लगी थी.

इधर बंटी के पैदा होने के बाद राधिका उस के पालनेपोसने में लग कर अपने को बिजी रखने लगी.

पहले तो मेहुल सिर्फ बाहर से ही शराब पी कर आता था, पार्टियां करता था, लेकिन सासससुर की मौत के बाद तो जैसे पूरा मैखाना घर में ही खोल लिया. अब वही मेहता ऐंड मेहता संस एकलौता मालिक जो हो गया था.

(क्रमश:)

बाल बाल बचीं ‘गुम है किसी के प्यार’ की ‘शिवानी बुआ’ यामिनी मल्होत्रा, जानें मामला

‘स्टार प्लस’’पर प्रसारित हो रहे सीरियल‘‘गुम है किसी के प्यार में’’ शिवानी चैहाण का किरदार निभा रही अदाकारा यामिनी मल्होत्रा के साथ बहुत ही खतरनाक हादसा हो गया और वह बामुश्किल अपनी जिंदगी बचा सकी।पर वह अपनी कार को बीच सड़क पर धू धू कर जलते हुए देखने के अलावा कुछ न कर सकी.

वास्तव में मंगलवार की देर रात यामिनी मल्होत्रा मुंबई में स्वयं अपनी कार चलाते हुए जुहू से लोखंडवाला की तरफ जा रही थीं. अचानक उन्होने देखा कि उनकी कार के बोनेट से धुंआं उठ रहा है,तो उन्होने कार रोक कर कार से बाहर आकर देखना चाहा कि क्या मसला है?वह कार से जब तक बाहर निकली तब तक तो आग पकड़ चुकी थी. यामिनी मलहोत्रा ने तुरंत पुलिस और फायर ब्रिगेड को फोन किया. यामिनी के अनुसार पुलिस तो देा मिनट के अंदर पहुॅच यगची थी,मगर फायर ब्रिगेड को आने मे पूरे चालिस मिनट लग गए. जबकि देर रात मंुबई में ट्ाफिक नहीं होता. कम से कम जुहू से लोखंडवाला का रास्ता तो सुनसान था. फायर ब्रिगेड के आने तक यामिनी मल्होत्रा की कार धू धू कर जलते हुए खाक हो गयी और पर यामिनी तथा मौके पर पहुॅची पुलिस महज मूक दर्शक बनी रही. यामिनी मल्होत्रा अपनी कार को पूर्णरूपेण जलकर खाक होने से बचाने के लिए चाहते हुए भी कुछ नही कर पायीं. कार का नुकसान होने के साथ ही इस हादसे का उन्हे गहरा सदमा लगा,जिससे वह अभी भी उबर नही पायी है. मजेदार बात यह है कि इस हादसे कुछ समय पहले ही यामिनी मल्होत्रा ने कार के बूट पर बैठकर पोज लेते हुए अपनी तस्वीरें अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट की थीं.

 

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इस हादसे के संबंध में यामिनी कहती हैं-‘‘जब मैंने अपनी कार के बोनट से आग निकलती हुए देखा,तो मैंने तुरंत अपनी कार से बाहर निकलकर पुलिस को फोन किया. कुछ ही मिनटों में पुलिस आ गई. पुलिस के अफसरो ने मेर साथ दयालुता दिखायी. लेकिन फायर ब्रिगेड पूरे चालिस मिनट देरी से आया. तब तक मेरी कार पूर्णरूपेण जल चुकी थी. यह सब देखते हुए मैं पूरी तरह अंदर से हिल गयी थी. उस वक्त मैं रोते हुए अपनी कार को जलते हुए असहाय सी देखती रही. क्योंकि मैं अपनी कार को जलने से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकती थी. फायर ब्रिगेड के देर से पहुंचने से मुझे घोर निराशा हुई. जबकि देर रात ट्राफिक नहीं होता है. फायर ब्रिगेड को  चंद मिनटों में पहुंच जाना चाहिए था,लेकिन 40 मिनट लग गए. अगर मैं कार के अंदर बंद होती,तो मेरा क्या होता?उनके आने तक मेरी भी मौत तय थी. इस दुःखद अनुभव के बाद मैं अपने देश की व्यवस्था से बहुत निराश हूं. इस हादसे ने जीवन की अनिश्चितता को सिद्ध कर दिया. मुझे अहसास हुआ कि बुरा वक्त कभी आपसे नहीं पूछेगा या आने से पहले आपको सूचित नहीं करेगा. यह अचानक आकर जीवन को बदल देगा. ‘‘

Anupamaa: आखिर क्यों काव्या ने दी वनराज को गाली, देखें वीडियो

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिलता है, जिसके चलते सीरियल की कहानी में तनाव का माहौल है. दरअसल, जहां अनुपमा अपने परिवार के टूटने से परेशान है तो वहीं काव्या अपना प्लान फेल होने से गुस्से में नजर आ रही है. इस दौरान सीरियल अनुपमा के सेट से एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें काव्या,  वनराज पर गुस्सा करती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

काव्या ने दी वनराज को गाली

हाल ही में मदालसा शर्मा ने अनुपमा के सेट से एक वीडियो शेयर की है, जिसमें वह गाना गाने की तैयारी करती नजर आ रही हैं. दरअसल, काव्या यानी मदालसा शर्मा को फनी वीडियो में वनराज यानी सुधांशू पांडे गाना गाने के लिए कहते नजर आ रहे हैं, जिसके जवाब में मदलासा कहती हैं कि वह लग जा गले गाना गाएंगे. लेकिन वनराज का जवाब सुनकर फैंस अपनी हंसी नही रोक पा रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया पर इस फनी वीडियो पर मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

बेइज्जती तो सासू मां ने भरी महफिल में लगाई क्लास, प्रोमो वायरल

सेट पर होती है मस्ती

सीरियल में भले ही सीरियस माहौल हो लेकिन मदालसा शर्मा की फनी वीडियो देखकर लगता है कि सेट पर काफी मस्ती होती है. हाल ही में एक वीडियो में मदालसा शर्मा और सुधांशू पांडे डिजनी कैरेक्टर के फेस एप शेयर करते नजर आए थे. वहीं मदालसा शर्मा ने एक वीडियो में समर यानी पारस कलनावत संग डांस भी किया था, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था.

बता दें, मदालसा शर्मा ने एक वीडियो के जरिए फैंस को अपने काव्या के रोल से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए थे, जिसे जानकर काफी फैंस खुश हुए थे. इसी के चलते सोशलमीडिया पर मदालसा शर्मा की फैन फौलोइंग काफी बढ़ भी गई है.

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एक बार फिर राशि ने गोपी की बेइज्जती तो सासू मां ने भरी महफिल में लगाई क्लास

पौपुलर टीवी सीरियल ‘साथ निभाना साथिया’ (Saath Nibhaana Saathiya) का प्रीक्वल ‘तेरा मेरा साथ रहे’ (Tera Mera Saath Rahe) बीते कुछ  दिनों से लगातार सुर्खियों में हैं. जहां हाल ही में शो के पहले प्रोमो में गोपी बहू लैपटौप धोती हुई नजर आई थीं. तो वहीं अब नए प्रोमो में कोकिला यानी मिथिला का गुस्सा देखने को मिला है. आइए आपको दिखाते हैं नए प्रोमो की झलक…

राशि की लगी क्लास

 

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गोपी बहू और कोकिला की जोड़ी जितनी फेमस है उतनी ही राशि की नई चालें दर्शकों को अच्छे से याद है. वहीं अब ‘तेरा मेरा साथ रहे’ (Tera Mera Saath Rahe) में भी यही साजिशें दिखने वाली है. दरअसल, हाल ही में मकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो में गोपिका बहू यानी जिया मानेक एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेती है. जहां मिथिला यानी रूपल पटेल अपनी बहू का सपोर्ट करती नजर आती हैं. लेकिन इ दौरान राशि हमेशा की तरह गोपिका की बेइज्जती करती है, जिसे देखकर मिथिला ने बिना देर किए राशि को सरेआम तमीज का पाठ पढ़ाती दिखती है. फैंस ये देखकर बेहद एक्साइटिड नजर आ रहे हैं, जिसके चलते सोशलमीडिया पर प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है.

 

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पुराना वीडियो हुआ वायरल

 

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पिछले दिनों साथ निभाना साथिया का एक सीन सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुआ था, जिसका नाम था रसोड़े में कौन था. दरअसल, वीडियो में प्रैशर कुकर फट जाता है, जिसके बाद कोकिला गोपी से पूछती नजर आती हैं कि रसोड़े में कौन था और गोपी बताती है कि रसोड़े में राशि थी. हालांकि इस बार भी राखी के कुछ ऐसे ही कारनामे दर्शकों को एंटरटेन करने वाले हैं, जिसे देखने के लिए फैंस काफी एक्साइटेड हैं.

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रोमांस का तड़का: भाग 1- क्यों गलत है पति-पत्नि का रोमांस करना

लेखिका- प्रेमलता यदु

पुलिस स्टेशन पर पांव धरते ही मेरी सांसें तेज हो गईं. रोना तो तभी से आ रहा था जब से पुलिस ने पकड़ा था लेकिन अब तो आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, उस पर जब इंस्पैक्टर साहब ने कहा-

“अपने पापा को फोन लगाओ और यहां आने को कहो.”

उन का यह कहना था कि मेरे हाथपांव कांपने लगे. अतुल के माथे पर भी पसीने की बूंदें दिखाई देने लगीं. अतुल ने इंस्पैक्टर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की कि वे कम से कम मुझे जाने दें. लेकिन इंस्पैक्टर साहब मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं थे, वे तो इस बात पर अड़े रहे कि वे मुझे परिवार वालों को ही सौंपेंगे और मेरा यह सोचसोच कर बुरा हाल हो रहा था कि यदि पापा और घर के अन्य सदस्यों को पता चलेगा कि मैं अतुल के साथ शहर से दूर एक लव स्पौट पर पकड़ी गई हूं तो सब के सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी. यही हाल अतुल का भी था. घर वाले हमें इस हाल में देखेंगे तो क्या सोचेंगे. अतुल ने जरूरी काम का बहाना बना कर औफिस से छुट्टी ली थी, इसलिए वह औफिस भी फोन नहीं कर सकता था. इस वक्त हमारे पास घर पर फोन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था.

मैं बारबार उस घड़ी को कोस रही थी जब मैं घर पर सब से झूठ बोल कर निकली थी कि ग्रुप स्टडीज और एग्जाम की तैयारी के लिए अपनी फ्रैंड शालिनी के घर जा रही हूं.

मैं अतुल से मिलने जा रही हूं, यह बात मेरे चाचा की बेटी भूमि के अलावा कोई नहीं जानता था. भूमि केवल मेरी बहन ही नहीं, मेरी सब से अच्छी दोस्त भी है. मेरे और अतुल के बीच की सेतु भी इस वक्त वही है. भूमि के साथ ही मैं घर से निकली थी और उस ने ही घर पर सब से कहा था कि वह मुझे शालिनी के घर पर ड्रौप करने जा रही है. अब हमारे साथसाथ भूमि भी घर वालों के रडार पर थी, यह सोच कर मैं और भी परेशान थी.

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तभी इंस्पैक्टर साहब ने फिर कहा-

“तुम दोनों अपने घरों पर फोन लगाते हो या मैं नंबर डायल करूं.”

यह सुन कर अतुल ने कहा- “नहीं सर, हम फ़ोन लगाते हैं.”

जब हम ने घर पर फ़ोन कर के बताया कि हम पुलिस स्टेशन पर हैं तो मेरे पापा और चाचा फौरन पुलिस स्टेशन आ पहुंचे. पापा की आंखों में गुस्सा तैर रहा था जिसे देख कर मैं और अतुल सहम से ग‌ए. पापा और चाचा अभी इंस्पैक्टर साहब से बात कर ही रहे थे कि अतुल के पापा और बड़े भैया भी वहां आ ग‌ए. उन्हें देख कर मैं शर्म से पानीपानी हो गई और जमीन पर नजरें गड़ाए, हाथों को बांधे खड़ी रही. हमारे परिजनों से मिलने के बाद इंस्पैक्टर साहब ने हमें जाने की आज्ञा दे दी.

पापा पुलिस स्टेशन पर तो मुझ से कुछ नहीं बोले लेकिन अतुल के पापा, बड़े भैया उस से न जाने क्या कह रहे थे. मैं दूर खड़ी चुपचाप सब देख रही थी क्योंकि सुनाई तो कुछ दे नहीं रहा था. डर इस बात का था अतुल पापा से सब सचसच न बता दे. वह कहीं उन से यह न कह दे कि मैं ने उसे मिलने को बुलाया था.

थोड़ी देर बाद हम घर आ गए. सारे रास्ते खामोशी छाई रही, ना तो पापा ने कुछ कहा और ना ही चाचा ने. घर पहुंची, तो सभी बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहे थे. मुझे देखते ही मां दौड़ती हुई मेरे करीब आ गईं. वे कुछ कहने वाली थीं कि दादी ने उन्हें रोक दिया और मुझे कमरे में जाने को कहा.

कमरे में जाते वक्त मैं ने देखा, भूमि मुंह लटकाए शांत कोने में खड़ी है. मैं बिना कोई सफाई दिए, सिर झुकाए अपने कमरे के भीतर आ गई. इस वक्त अतुल के घर पर क्या हो रहा होगा, यह बात मुझे सता रही थी लेकिन इस समय अतुल को फोन करना या वहां की जानकारी प्राप्त कर पाना संभव नहीं था. सो, मैं फोन एक ओर रख पलंग पर औंधेमुंह लेट गई और विचार करने लगी, यह मेरी कैसी नादानी है, यह जानते हुए कि एक महीने बाद मेरी शादी है, मैं बगैर कुछ सोचेसमझे अतुल से मिलने चली ग‌ई. अभी कुछ ही सप्ताह तो गुजरे हैं हमारी सगाई को और मैं… ऊफ… यह क्या पागलपन कर बैठी.

इस पागलपन का कारण यह था कि पीजी सोशल साइंस में यह मेरा फाइनल ईयर था और घर पर मेरी शादी की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. संयुक्त परिवार होने की वजह से और परिवार की बड़ी बेटी होने के कारण मम्मीपापा और चाचाचाची चाहते थे कि मेरी शादी जल्द से जल्द करा दें. अभी मेरा ग्रेजुएशन कम्पलीट हुआ ही कि रिश्ते आने लगे थे. लेकिन मैं पोस्टग्रेजुएशन कम्पलीट करना चाहती थी जिस के लिए पापा ने अनुमति भी दे दी थी.

जब से मैं ने यौवन की दहलीज पर कदम रखा था तब से मेरी यही चाह थी कि मैं उस लड़के से शादी करूंगी जिसे देखते ही मेरा दिल तेजी से धड़कने लगेगा, मनमयूर झूम उठेगा और मैं उसी के संग डेट पर जाऊंगी, रोमांस करूंगी. लेकिन ऐसा कुछ भी करने का मौका नहीं मिला.

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जिसे देख कर पहली बार मेरा दिल तेजी से धड़का वह कोई और नहीं, अतुल ही था जो मुझे अपने परिवार के साथ शादी के लिए देखने आया था. अतुल की अभीअभी बैंक में नौकरी लगी थी. वह बैंक में अधिकारी था. उस का घरपरिवार सब अच्छा है. यह देख कर पापा और चाचा ने मेरी शादी अतुल से फिक्स कर दी. फिर क्या था, मेरी अतुल से सगाई भी हो गई और एक महीने बाद एग्जाम के बाद हमारी शादी भी तय हो गई.

इस वजह से डेटिंग और रोमांस की चाह मन के अंदर ही दम तोड़ने लगी. लेकिन मैं ऐसा होने नहीं देना चाहती थी, मैं शादी से पहले रोमांस का आनंद हर हाल में उठाना चाहती थी, इसलिए मैं ने भूमि के सामने अपने दिल के पन्ने खोल दिए. मेरा हाल ए दिल जान कर भूमि ने कहा-

‘डोंट वरी मा‌ई डियर टीना, तुम डेट पर भी जाओगी और रोमांस भी कर पाओगी, तुम देखती जाओ मेरा कमाल.’

इतना कह कर भूमि अतुल के मोबाइल नंबर के जुगाड़ में लग ग‌ई. मोबाइल नंबर तो मिल गया लेकिन हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम अतुल को फोन कर के कहें तो क्या कहें. दो दिनों बाद 14 फरवरी वेलैंटाइन डे था. यह अच्छा अवसर था अतुल को फोन करने और उस से मिलने का.

भूमि और मैं ने मिल कर वेलैंटाइन डे का सारा प्लान बना लिया और फिर भूमि ने अतुल को फोन किया. काफी देर तक रिंग बजती रही, उस के बाद अतुल ने फोन उठाया. अतुल के फोन उठाते ही भूमि ने कहा-

‘आप से टीना बात करना चाहती है.’

यह सुनते ही अतुल ने अश्चर्य से कहा- ‘कौन टीना? मैं किसी टीना को नहीं जानता.’

अतुल के ऐसा कहते ही भूमि ने शरारती अंदाज में कहा-

‘अरे वाह जी, सगाई कर ली, एक महीने बाद शादी करने जा रहे हो और अपनी होने वाली बीवी को नहीं जानते जीजा जी, प्रीषा ऊर्फ टीना आप से बात करना चाहती है.’

मैं अतुल से बात करना चाहती हूं, यह सुनते ही अतुल ने फौरन भूमि से मुझे फोन देने को कहा.

सगाई के बाद आज पहली बार हम दोनों ने काफी देर तक बात की थी और यह डिसाइड किया कि हम वेलैंटाइन डे पर पूरा दिन साथ बिताएंगे.

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मैं ने और भूमि ने मिल कर वेलैंटाइन डे के एक दिन पहले अपनी पौकेट मनी से अतुल के लिए शौपिंग भी कर ली. उस के लिए वेलैंटाइन कार्ड, रैड रोज़ और एक गौगल भी पर्चेज किए. अब, बस, कल का इंतज़ार था. दूसरे दिन सुबह होते ही मैं और भूमि निर्धारित समय पर तैयार हो कर घर वालों से झूठ बोल कर निकल पड़े अतुल से मिलने. यह मेरी पहली डेट थी. मन में थोड़ी घबराहट और थोड़ा उत्साह भी था. भूमि मुझे हमारे दुर्ग शहर की लोकप्रिय कौफी शौप कैफिनो के बाहर छोड़ कर चली गई क्योंकि इसी कौफी शौप पर अतुल से मिलना तय हुआ था.

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रोमांस का तड़का: भाग 2- क्यों गलत है पति-पत्नि का रोमांस करना

लेखिका- प्रेमलता यदु

मैं तेज़ सांसों के साथ कौफी शौप के अंदर धीरेधीरे बढ़ने लगी. तभी मैं ने देखा, अतुल कौर्नर की एक टेबल पर मेरा इंतजार कर रहा है. उसे देखते ही मेरी आंखों में चमक आ गई और अतुल के चेहरे पर भी मुसकान की लहर दौड़ गई. टेबल के करीब पहुंचते ही अतुल ने मुझे बैठने का इशारा किया और मैं अतुल के सामने वाली चैयर पर बैठ गई. मेरे बैठने के थोड़ी ही देर बाद वेटर हमारी टेबल पर एक चौकलेट केक ले कर आया जिस पर लिखा था ‘हैप्पी वेलैंटाइन डे’. उस केक को देख मैं सरप्राइज्ड हो गई. केक काटने के बाद हमारी टेबल पर मेरा फेवरेट कैफेचिनो आ गया, जो कि अतुल ने पहले से ही और्डर कर रखा था. सरप्राइज यहीं पर खत्म नहीं हुआ. अतुल ने मुझे वेलैंटाइन कार्ड और रैड रोज़ भी दिया. उस के बाद हम लोग ड्राइव पर निकल ग‌ए.

अतुल की बाइक के पीछे बैठते ही मेरा मन रोमांचित हो उठा. बाइक हवा से बातें करने लगी और मैं अतुल के प्यार में खोने लगी. शहर से दूर एक लव स्पौट पर आ कर अतुल ने बाइक रोक दी और हम सब से नजरें बचाते हुए एक पेड़ के नीचे जा बैठे. तब मैं ने अपने बैग से कार्ड, रोज़ और गौगल निकाल कर अतुल की ओर बढ़ा दिया. उन्हें लेते हुए जब अतुल ने मेरा हाथ थामा तो शर्म से मेरे चेहरे का रंग गुलाबी हो गया और जब अतुल मेरे बालों पर अपनी उंगलियां फेरने लगा, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं और मैं उस से लिपट गई. उस के बाद अतुल के होंठों की छुअन से मेरे पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई. दुनिया से बेखबर हम एकदूजे की आंखों में कुछ इस तरह डूबने लगे कि हमें इस बात का भी ख़याल न रहा कि अभी हमारी शादी नहीं हुई है और हम अपने घर के रूम में नहीं, पब्लिक प्लेस में हैं. तभी न जाने कहां से गश्त लगाती पुलिस वहां आ पहुंची और हम लव स्पौट से सीधे पुलिस स्टेशन आ पहुंचे.

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अभी मैं यह सब स्मरण कर ही रही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा और मैं वर्तमान में आ पहुंची. फोन अतुल का था. मेरे फोन रिसीव करते ही अतुल ने कहा-

“टीना, मैं अभी घर नहीं आ पाऊंगा, बैंक में जरूरी काम है. तुम अकेले ही बंटी के स्कूल पेरैंट्स-टीचर्स मीटिंग के लिए चली जाना और शादी में जाने के लिए जो भी शौपिंग करनी हो, कर लेना.”

आज सुबह ही अतुल ने मुझ से प्रौमिस किया था कि वह बैंक के कुछ जरूरी काम निबटा कर जल्दी घर लौट आएगा लेकिन हर बार की तरह इस बार भी अतुल अपने काम में फंस गया. अतुल से यह सब सुन कर एक बार फिर मन उदास हो गया.

शादी के बाद न जाने अतुल के अंदर का रोमांस कहां गुम हो गया था और मैं भी घरगृहस्थी में कुछ ऐसी उलझी रहती कि अतुल के लिए कभी मेरे पास समय ही न होता. इस के अलावा एक और बात थी जो हमें एकदूसरे के प्रति बिंदास होने से रोकती थी. जब कभी भी हम रोमांटिक होने की सोचते या कोशिश करते, हमें मेरे पापा की घूरती निगाहें नज़र आने लगतीं. आज तक मैं और अतुल पापा की उन नज़रों को नहीं भुला पाए हैं जो हम ने पुलिस स्टेशन में देखा था और इस वजह से आज भी रोमांस के नाम पर हमारे हाथपांव फूलने लगते हैं.

जब भी मैं किसी कपल्स को रोमांस करते देखती या दुनिया से परे एकदूजे में खोए देखती तो मन में एक टीस सी उठती और ऐसा लगता इस दुनिया की बनाई रस्मोंरिवाज, लज्जा, स्त्री का गहना, परिवार की इज्जत, कुल की मर्यादा जैसे बड़ेबड़े शब्दों, जो पांव में बेड़ियां बन जकड़ी हुए हैं, को तोड़ कर, सबकुछ भूल कर मैं अपने अतुल की बांहों में समा जाऊं पर ऐसा कर पाना संभव न होता.

मैं सोचने लगी शादी को 5 साल बीत ग‌ए लेकिन फिर कभी मैं और अतुल डेट पर नहीं ग‌ए जैसा शादी से पहले उस रोज हम वेलैंटाइन डे पर गए थे. वही हमारी पहली और आख़री डेट थी क्योंकि उस दिन पुलिस स्टेशन से घर लौटने के बाद घर पर तो किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन उस दिन के बाद मैं ने कभी न तो अतुल को फोन किया और न ही कभी अतुल ने मुझे फोन किया या मिलने की कोशिश की और फिर मेरा पीजी का एग्जाम समाप्त होते ही हमारी शादी हो गई. उस के बाद फिर कभी हम डेट पर जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाए. जब कभी भी डेट के बारे में सोचते, पुलिस स्टेशन और परिवार वालों की तीखी, तिरछी नज़रें स्मरण हो आतीं और सारा रोमांस काफूर हो जाता. यहां तक कि क‌ई बार तो हम ऐसा व्यवहार करने लगते जैसे प्यार करना या रोमांस करना कोई गुनाह है. हम चाह कर भी अपने बैडरूम में भी एकदूसरे की आगोश में जाने से डरते. यों लगता जैसे किसी की नजरें हम पर गड़ी हुई हैं.

शादी के बाद सबकुछ बदल गया था. 23 साल की उम्र में मेरी शादी अतुल से हो गई. मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदी और हाथों में चूड़ियां पहनते ही मैं 23 साल की आंटी बन गई. मुझ से दोचार साल छोटे लड़केलड़कियां भी मुझे आंटी बुलाने लगे थे. पहले तो बहुत बुरा लगता था लेकिन फिर धीरेधीरे आंटी सुनने की आदत पड़ गई और फिर जब मैं ने अपने बेटे को जन्म दिया और मां बनी तो मुझे आंटी सुनना अच्छा लगने लगा.

इन्हीं सब बातों को सोचते हुए अचानक मुझे याद आया कि मुझे पेरैंट्स-टीचर मीटिंग में जाना है और रिश्तेदारी में जो शादी है उस के लिए भी तो अभी कुछ शौपिंग करनी बाकी है. घर के सभी लोग तो पहले ही शादी में जा चुके थे. मेरा 4 साल का बेटा भी घरवालों के साथ ही चला गया था. अतुल के बैंक में काम होने की वजह से हम 2 दिनों के बाद जाने वाले थे.

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मैं अपना वार्डरोब खोल कुरती और लैगिंग्स निकाल तैयार होने लगी. मौडर्न ड्रैस के नाम पर मेरे वार्डरोब में अब यही कुरतियां और लैगिंग्स ही रह गई थीं. लेटेस्ट डिजाइन के कपड़े और वैस्टर्न ड्रैस कब हटती चली गईं, मुझे पता ही न चला. मैं खुस यह मानने लगी थी कि एक संस्कारी बहू, अच्छी बीवी और अच्छी मां को लेटेस्ट मौडर्न डिजाइनर कपड़े पहनना शोभा नहीं देता.

मुझे अतुल पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन मैं इस वक्त क्या कर सकती थी. मुझे स्कूल तो जाना ही था और शौपिंग भी करनी ही थी, इसलिए मैं तैयार हो कर घर से निकल पड़ी. स्कूल में मीटिंग अटेंड करने और शौपिंग करने के बाद मैं घर आ ही रही थी कि रास्ते में कौफी शौप कैफिनो पर मेरी नज़र पड़ी. इस कौफी शौप के साथ मेरी बहुत ही खूबसूरत यादें जुड़ी हैं, इसलिए मैं ने सोचा क्यों न उन यादों को ताजा किया जाए और थोड़ा सा टाइम स्पैंड किया जाए. यही सोच कर मैं कौफ़ी शौप के अंदर आ गई. इन 5 सालों में कुछ भी नहीं बदला था. हां, मैं ज़रूर बदल गई थी.

मैं उसी कौर्नर की टेबल पर जा बैठी जहां शादी से पहले अतुल के साथ बैठी थी. मैं ने एक कैफेचिनो और्डर किया और वेटर के आने का इंतजार करने लगी तभी बेबाक, उन्मुक्त हंसी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. मेरी टेबल से थोड़ी ही दूरी पर एक जोड़ा दुनिया से बेखबर अपने में ही खोया हुआ था. देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन की न‌ईन‌ई शादी हुई हो. दोनों की उम्र करीब 32-33 साल की लग रही थी. आजकल कैरियर बनाने में इतना वक्त तो लग ही जाता है और लोग अब लेट मैरिज भी करने लगे हैं.

न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बारबार उन की ओर जा रहा था. तभी मेरे कानों में सुनाई पड़ा-

“तुम्हें पता है तुम से इस तरह मिलने के लिए मुझे अपने बौस से कितने झूठ बोलने पड़ते हैं, क्याक्या बहाने बनाने पड़ते हैं और आज तो हद ही हो गई, बौस तो मुझे छुट्टी देने के मूड में ही नहीं थे. मैं तबीयत ख़राब होने का बहाना बना कर तुम से मिलने आई हूं.”

“तुम मुझ से प्यार करती हो, तो इतना तो करना पड़ेगा. मैं तुम्हें जब भी बुलाऊंगा, तुम्हें मुझ से मिलने आना ही पड़ेगा.”

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