Monsoon Special: स्किन केयर के लिए आजमाएं ये होममेड टिप्स

गरमी का मौसम खत्म होते ही बारिश आती है, जिस से गरमी से तो थोड़ी राहत मिलती है, पर साथ ही इस मौसम में स्किन संबंधी कई समस्याएं भी होने लगती हैं. स्किन अतिसंवेदनशील और शुष्क हो जाती है.

बरसात में आप की स्किन को सब से ज्यादा नुकसान प्रदूषण, धूल, गंदगी और नुकसानदेह यूवी किरणों से होता है. आप सोचती होंगी कि इस मौसम में सनस्क्रीन लगाने से बच जाएंगी, लेकिन इस से आप की स्किन क्षतिग्रस्त हो सकती है. इस मौसम में ज्यादा पसीना आने से चेहरे पर धूल की परत जम जाती है, जिस से फंगल संक्रमण होने का खतरा रहता है.

इस मौसम में स्किन की देखभाल करना कोई ज्यादा मुश्किल काम भी नहीं है. कुछ सरल उपायों पर अमल कर बारिश के मौसम में भी आप स्किन को स्वस्थ और कांतिमय बनाए रख सकती हैं.

घरेलू नुसखे

स्ट्राबैरी फेस मास्क

1/2 कप फ्रोजन या ताजा स्ट्राबैरी को पीस लें और इस में 1 कप दही, 11/2 चम्मच शहद मिला लें. इस लेप को नियमित रूप से चेहरे पर लगाने से स्किन मुलायम और चमकदार बनी रहेगी.

दूध व फलों का फेशियल

एक कस्टर्ड सेब का लेप बना कर उस में 1 चम्मच चीनी, 1/2 कप दूध और कुछ बूंदें कैमोमिल मिला कर चेहरे पर लगाएं. इस से स्किन नमीयुक्त और कांतिमय बनी रहेगी.

टोनिंग

दिन में 2 बार नौनअलकोहलिक टोनर से स्किन की टोनिंग करें. ताकि स्किन का पीएच संतुलन बना रहे.

ऐंटीफंगल क्रीम

रिंगवर्म या खुजली जैसे संक्रमणों से बचने के लिए स्किन को लंबे समय तक भीगे रहने से बचाएं. हलके कुनकुने पानी से नहाएं और इस के बाद फंगल संक्रमण से बचने के लिए ऐंटीफंगल क्रीम लगाएं. नहाने के बाद पंखे की हवा में शरीर के मुड़ने वाले हिस्सों को सुखा लें और ऐंटीफंगल पाउडर लगाएं ताकि ये हिस्से बारबार गीले न हों.

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सफाई

अपने चेहरे को नौनसोपी फेसवाश से दिन में 3-4 बार धोएं ताकि स्किन के रोमछिद्रों में जमी धूल और तेल अच्छी तरह साफ हो जाए.

स्क्रबिंग

स्किन की चमक बनाए रखने के लिए उस की मृत कोशिकाओं वाली परत को सौम्य तरीके से उतारने का उपाय आजमाएं.

फेसपैक

स्किन का तेल कम करने तथा उस की नमी बनाए रखने के लिए सिट्रिक (नीबू आधारित) फेसपैक का इस्तेमाल करें. इस से आप के ब्लैकहैड्स/व्हाइटहैड्स भी मिट जाएंगे.

मौइश्चराइजिंग

स्किन की कोमलता बनाए रखने के लिए जल आधारित मौइश्चराइजर या गुलाबजल अथवा बादाम का तेल इस्तेमाल करें.

सनस्क्रीन

सनस्क्रीन लगाना न भूलें और ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें, जिस में एसपीएफ ज्यादा हो ताकि स्किन को नुकसानदेह यूवी किरणों से बचाया जा सके.

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भरपूर पानी पीएं

स्किन की नमी बरकरार रखने के लिए दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं, क्योंकि इस मौसम में बहुत ज्यादा पसीना आने से स्किन की नमी खत्म हो जाती है.

भारी मेकअप से बचें

मौनसून के दौरान स्किन में खुजली से बचने के लिए वाटरप्रूफ और अच्छे ब्रैंड के सौंदर्य उत्पादों का इस्तेमाल करें.

डा. इंदु बल्लानी, डर्मेटोलौजिस्ट, दिल्ली

सास बहू दोनों के लिए जानना जरुरी है घरेलू हिंसा कानून

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

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उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:

हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

–       नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.

–       नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.

–       बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.

–       बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.

–       अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.

–       समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.

–       अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.

–       बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.

–       परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

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कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

Romantic Story In Hindi: चार मार्च- भाग 2- क्या परवान चढ़ा हर्ष और आभा का प्यार

लेखिका- आशा शर्मा

अब तो यह रोज का नियम ही बन गया. न जाने कितनी बातें थीं उन के पास जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कईर् बार तो यह होता था कि दोनों के ही पास कहने के लिए शब्द नहीं होते थे. मगर बस वे एकदूसरे से जुड़े हुए हैं यही सोच कर फोन थामे रहते. इसी चक्कर में दोनों के कई जरूरी काम भी छूटने लगे. मगर न जाने कैसा नशा सवार था दोनों ही पर कि यदि 1 घंटा भी फोन पर बात न हो तो दोनों को ही बेचैनी होने लगती.

ऐसी दीवानगी तो शायद उस कच्ची उम्र में भी नहीं थी जब उन के प्यार की शुरुआत हुई थी. आभा को लग रहा था जैसे खोया हुआ प्यार फिर से उस के जीवन में दस्तक दे रहा है. मगर हर्ष अब भी इस सचाई को जानते हुए भी यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि उसे आभा से प्यार है.

‘‘हर्ष, तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम्हें आज भी मुझ से प्यार है?’’ एक दिन आभा ने पूछा.

‘‘अगर मैं यह प्यार स्वीकार कर भी लूं तो क्या समाज इसे स्वीकार करने देगा? कौन इस बात का समर्थन करेगा कि मैं ने शादी किसी और से की है और प्यार तुम से करता हूं,’’ हर्ष ने तड़पते हुए जवाब दिया.

‘‘शादी करना और प्यार करना दोनों अलगअलग बातें हैं हर्ष… जिसे चाहें शादी भी उसी से हो जब यह जरूरी नहीं, तो फिर यह जरूरी क्यों है कि जिस से शादी हो उसी को चाहा भी जाए?’’ आभा ने अपना तर्क दिया. उस का दिल रो रहा था.

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‘‘चलो, माना कि यह जरूरी नहीं, मगर इस में हमारे जीवनसाथियों की क्या गलती है? उन्हें हमारी अधूरी चाहत की सजा क्यों मिले?’’ हर्ष ने फिर तर्क किया.

‘‘हर्ष, मैं किसी को सजा देने की बात नहीं कर रही… हम ने अपनी सारी जिंदगी उन की खुशी के लिए जी है… क्या हमारा अपनेआप के प्रति कोई कर्तव्य नहीं? क्या हमें अपनी खुशी के लिए जीने का अधिकार नहीं? वैसे भी अब हम उम्र की मध्यवय में आ चुके हैं. जीने लायक जिंदगी बची ही कितनी है हमारे पास… मैं कुछ लमहे अपने लिए जीना चाहती हूं. मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं… मैं महसूस करना चाहती हूं कि खुशी क्या होती है,’’ कहतेकहते आभा का स्वर भीग गया.

‘‘क्यों? क्या तुम अपनी लाइफ से अब तक खुश नहीं थीं? क्या कमी है तुम्हें? सबकुछ तो है तुम्हारे पास,’’ हर्ष ने उसे टटोला.

‘‘खुश दिखना और खुश होना दोनों में बहुत फर्क होता है हर्ष. तुम नहीं समझोगे.’’

आभा ने जब यह कहा तो उस की आवाज की तरलता हर्ष ने भी महसूस की. शायद वह भी उस में भीग गया था. मगर सच का सामना करने की हिम्मत फिर भी नहीं जुटा पाया.

लगभग 10 महीने दोनों इसी तरह सोशल मीडिया पर जुड़े रहे. रोज घंटों बातें करने पर भी उन की बातें खत्म नहीं होती थीं. आभा की तड़प इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब वह हर्ष से प्रत्यक्ष मिलने के लिए बेचैन होने लगी. लेकिन हर्ष का व्यवहार अभी भी उस के लिए एक पहेली बना हुआ था.

कभी तो उसे लगता जैसे हर्ष आज भी सिर्फ उसी का है और कभी वह एकदम बेगानों सा लगने लगता. वह 2 कदम आगे बढ़ता और अगले ही पल 4 कदम पीछे हो जाता. वह आभा का साथ तो चाहता था, मगर समाज में दोनों की ही प्रतिष्ठा को भी दांव पर नहीं लगाना चाहता था. उसे डर था कि कहीं ऐसा न हो वह एक बार मिलने के बाद आभा से दूर ही न रह पाए… फिर क्या करेगा वह? मगर आभा अब मन ही मन एक ठोस निर्णय ले चुकी थी.

‘4 मार्च’ आने वाला था. आभा ने हर्ष

को याद दिलाया कि पिछले साल इसी दिन वे

2 बिछड़े प्रेमी फिर से मिले थे. उस ने आखिर हर्ष को मना ही लिया था यह दिन एकसाथ मनाने के लिए और बहुत सोचविचार कर के दोनों ने उस दिन जयपुर में मिलना तय किया.

हर्ष दिल्ली से और आभा जोधपुर से सुबह ही जयपुर आई. होटल में पतिपत्नी की तरह रुके. पूरा दिन साथ बिताया… जीभर कर प्यार किया और दोपहर ठीक 12 बजे आभा ने हर्ष को ‘हैप्पी ऐनिवर्सरी’ विश किया और फिर उसी समय अपने मोबाइल में अगले साल के लिए यह रिमाइंडर डाल लिया.

रात को जब बिदा लेने लगे तो आभा ने हर्ष को एक बार फिर चूमते हुए कहा, ‘‘हर्ष,

खुशी क्या होती है, यह आज तुम ने मुझे महसूस करवाया है… थैंक्स… अब अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं.’’

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन… अभी तो हमारी जिंदगी से फिर से मुलाकात हुई है… सच आभा मैं तो मशीन ही बन चुका था. मेरे दिल को फिर से धड़काने के लिए शुक्रिया. और हां, खुशी और संतुष्टि में फर्क महसूस करवाने के लिए भी,’’ हर्ष ने उस के चेहरे पर से बाल हटाते हुए कहा और फिर से उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

‘‘अब आशिकी छोड़ो… मेरी टे्रन का टाइम हो रहा है,’’ आभा ने मुसकराते हुए हर्ष को

अपने से अलग किया.

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उसी शाम दोनों ने वादा किया था कि हर साल 4 मार्च को वे दोनों इसी तरह इसी जगह मिला करेंगे. इसी वादे के तहत आज भी दोनों यहां जयपुर आए थे और यह हादसा हो गया.

‘‘आभा, डाक्टर ने तुम्हारे डिस्चार्ज पेपर बना दिए. मैं टैक्सी ले कर आता हूं,’’ हर्ष ने धीरे से उसे जगाते हुए कहा तो आभा फिर से भयभीत हो गई कि कैसे वापस जाएगी अब वह जोधपुर? कैसे राहुल का सामना कर पाएगी? मगर फेस तो करना ही पड़ेगा. जो होगा, देखा जाएगा. सोचते हुए आभा जोधपुर जाने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार करने लगी.

आभा ने राहुल को फोन कर के अपने ऐक्सीडैंट के बारे में बता दिया. राहुल ने सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’

आभा के नहीं कहते ही राहुल ने अगला प्रश्न दागा, ‘‘सरकारी हौस्पिटल में ही दिखाया था न… ये प्राइवेट वाले तो बस लूटने के मौके ढूंढ़ते हैं.’’

सुन कर आभा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि उसे राहुल से ऐसी ही उम्मीद थी.

आभा ने बहुत कहा कि वह अकेली जोधपुर चली जाएगी, मगर हर्ष ने उस की एक न सुनी और टैक्सी में उस के साथ जोधपुर चल पड़ा.

आभा को हर्ष का सहारा ले कर उतरते देख राहुल का माथा ठनका. आभा ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे पुराने दोस्त हैं… जयपुर में मेरे साथ ही थे.’’

राहुल ने हर्ष में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘टैक्सी से आने की क्या जरूरत थी? ट्रेन से भी आ सकती थी.’’

आभा को जोधुपर छोड़ उसी टैक्सी से हर्ष लौट गया.

आभा 6 सप्ताह की बैड रैस्ट पर थी. दिनभर बिस्तर पर पड़ेपड़े उसे हर्ष से बातें करने के अलावा और कोई काम ही नहीं सूझता था. कभी जब हर्ष अपने प्रोजैक्ट में बिजी होता तो उस से बात नहीं कर पाता था. यह बात आभा को अखर जाती थी. वह फोन या व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी नाराजगी जताती. फिर हर्ष उसे मनुहार कर के मनाता. आभा को उस का यों मनाना बहुत सुहाता. वह मन ही मन अपने प्यार पर इतराती.

ऐसे ही एक दिन वह अपने बैड पर लेटीलेटी हर्ष से बातें कर रही थी और उस ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं. उसे पता ही नहीं चला कि राहुल कब से वहां खड़ा उस की बातें सुन रहा है.

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‘‘बाय… लव यू…’’ कहते हुए फोन रखने के साथ ही जब राहुल

पर उस की नजर पड़ी तो वह सकपका गई. राहुल की आंखों का गुस्सा उसे अंदर तक हिला गया. उसे लगा मानो आज उस की जिंदगी से खुशियों की बिदाई हो गई.

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REVIEW: एक मार्मिक व साहसी Short फिल्म ‘ट्रांजिस्टर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः विनय बरिगिदाद, विनुता बरिगिदाद और धीरज जिंदल

लेखक व निर्देशकः प्रेम सिंह

कलाकारः अहसास चानना,  मोहम्मद समद, अलका विवेक,  अजय प्रताप सिंह, संजीव भट्टाचार्य व अन्य

अवधिः 25 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन मिनी टीवी

1975 से 1977 के बीच जब पूरे देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगा हुआ था, उसी दौर में सरकार के आदेश पर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के लिए नसबंदी मुहीम लागू हुई थी. जिसके चलते उस दौर में लगभग छह करोड़ से अधिक 14 से 70 वर्ष के पुरूषों की नसबंदी कर दी गयी थी. उसी पृष्ठभूमि में फिल्मकार प्रेम सिंह एक किशोर वय के लड़के व लड़की की प्रेम कहानी को लघु फिल्म‘‘ट्रांजिस्टर’’में लेकर आए हैं. कैसे राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा और एक ट्रांजिस्टर ने उनके रिश्ते में सब कुछ बदल दिया था. इस लघु फिल्म को तीस जुलाई से ‘‘अमेजॉन मिनी टीवी’पर देखा जा सकता है.

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कहानीः

यह कहानी 1975 की पृष् ठभूमि में ग्रामीण भारत की है. जब पूरे देश में पुरूषों की जबरन नसबंदी की जा रही थी. एक गांव की किशोर वय लड़की उमा (अहसास चानना) अपने ट्रांजिस्टर के साथ बकरी चराने खेतों में आती है. वह एक पेड़ के नीचे बैठकर ट्रांजिस्टर पर जयामाला कार्यक्रम में पेश किए जाने वाले गीत सुना करती थी. नदी पार के गांव से एक किशोर वय लड़का पवन (मोहम्मद समद) नाव से नदी पारकर दूसरे पेड़ की ओट से उमा को देखता रहता है. उमा को भी इस बात का अहसास है. पवन बड़ी बेशर्मी से एक पेड़ के पीछे छिप जाता है,  लेकिन उसके लिए उसकी निगाहों को महसूस करने के लिए बस इतना ही काफी है. उमा एक पेड़ के नीचे बैठती है, जबकि उसका रेडियो उसे नवीनतम हिंदी फिल्मी गीतों से रूबरू कराता है.  यह उनकी दिनचर्या है. एक दिन उमा के पिता को बाजार में पकड़ कर उनकी जबरन नसबंदी करके उन्हे उपहार में ट्रांजिस्टर दिया जाता है. यह बात पवन भी जान जाता है. अब उमा के माता पिता उमा की शादी में दहेज में वही ट्रांजिस्टर देने का फैसला करते हैं. पवन व उमा हर दिन एक ही जगह आते हैं, एक दूसरे को देखते हैं, पर मन ही मन प्यार करने लगते हैं, मगर करीब नही आते. एक दिन पवन उसी पेड़ के उपर चढ़कर बैठ जाता है, जिसके नीचे उमा आकर बैठती है और पेड़ की डाली टूटने से डाली के साथ पवन भी ट्रांजिस्टर के उपर गिरता है, जिससे ट्रांजिस्टर टूट जाता है. इससे उमा को दुख होता है. पवन अपनी जबरन नसबंदी कराकर उमा को ट्रांजिस्टर लाकर देता है. ट्रांजिस्टर पाकर उमा खुश हो जाती है. दोनो पास बैठकर बातें करते हैं. दूसरे दिन उमा, पवन से पूछती है कि वह ट्रांजिस्टर कहां से लाया. पवन की खामोशी से उमा को जवाब मिल जाता है. और फिर उमा की शादी दूसरे युवक से कर दी जाती है, जिससे उसका परिवार व वंश बढ़ सके. अब पवन क्या करेगा, यह तो फिल्म देखने पर पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार प्रेम सिंह अपनी इस लघु फिल्म को उस वक्त लेकर आए हैं, जब उत्तर प्रदेश सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने जा रही है. फिल्मकार ने किशोर वय की प्रेम कहानी के माध्यम से नसबंदी और जनसंख्या नियंत्रण कानून पर कटाक्ष करते हुए जोरदार तमाचा जड़ा है. फिल्मकार ने आशा,  प्रेम,  भय,  खुशी और सहित इंसान की हर भावनाओं का सटीक निरूपण किया है. इतना ही नही फिल्मसर्जक ने प्रजनन क्षमता व नसबंदी इन दोहरे विषयों को मार्मिकता के साथ उठाया है।फिल्मकार ने फिल्म की लंबाइ बढ़ाने की बजाय कई रूपको का उपयोग किया है. फिल्म के मुख्य किरदारो के बीच विना संवाद के मौन प्यार की अभिव्यक्ति को काफी अच्छे ढंग से उकेरा गया है. फिल्मकार ने 1975 के माहौल को भी ठीक से गढ़ने मे सफल रहे हैं. मगर 25 मिनट की इस लघु फिल्म की गति काफी धीमी है. फिल्म में कुछ घटनाक्रम होने चाहिए थे.

अभिनयः   

किशोर वय ग्रामीण लड़की उमा के किरदार को ‘हॉस्टल डेज’ व ‘ गर्ल्स हॉस्टल’ फेम अहसास चानना ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. ट्रांजिस्टर के टूटने पर दुख, नया ट्रांजिस्टर मिलने पर खुशी, लेकिन दूसरे युवक से शादी होते समय उसकी आंखो से बहने वाले आंसू हो, हर जगह वह अपने चेहरे के भावो से विना संवाद काफी कुछ बयां कर जाती हैं. तो वहीं बचकानी नम्रता वाले पवन के किरदार में ‘छिछोरे’ व ‘तुम्बाड’ फेम अभिनेता मेाहम्मद समद का अभिनय भी कमाल का है. दोनो कलाकार अपनी बॉडी लैंगवेज के माध्यम से बहुत कुछ कह जाते हैं.

Shinchan बनीं पाखी तो भवानी ने ऐसे किया बुरा हाल, वीडियो वायरल

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों गंभीर माहौल देखने को मिल रहा है, जिसके चलते पाखी और भवानी भी परेशान हैं. लेकिन हाल ही में सीरियल की सीरियस माहौल से हटकर पाखी यानी एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा Shinchan  बनकर मस्ती करती नजर आईं. वहीं भवानी भी इस धमाल में उनका साथ देती दिखीं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

Shinchan  बनीं पाखी

 

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पत्रलेखा का किरदार अदा करने वाली ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) ने इंस्टाग्राम पर अपना एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह सिनचैन बनकर मस्ती करती नजर आ रहीं हैं तो वहीं इस वीडियो में भवानी यानी किशोरी सहाणे  (Kishori Shahane)  उनका साथ देती नजर आ रही हैं. वहीं वीडियो के अंत में वह पाखी के बाल खींचती भी नजर आ रही हैं. ऐश्वर्या की ये वीडियो देखकर फैंस मजेदार रिएक्शन दे रहे हैं.

 

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सेट पर छाया Shinchan का बुखार

 

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बीते दिनों वायरल हुए #baspankapyar गानें को Shinchan  की आवाज देते हुए ऐश्वर्या शर्मा ने भी एक वीडियो बनाई थी, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था. वहीं भवानी संग एक और वीडियो में पाखी मस्ती करती नजर आईं थीं, जिसका गाना भी Shinchan  का था. वीडियो देखकर फैंस यही कह रहे हैं कि पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा पर Shinchan  का बुखार चढ़ गया है.

रोका का मनाया सेलिब्रेशन

 

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हाल ही में ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के पाखी और विराट (Neil Bhatt) यानी ऐश्वर्या शर्मा और नील भट्ट ने अपने रोका को 6 महीने पूरे होने पर फैंस के साथ सेलिब्रेट किया है, जिसमें वह एक दूसरे के बारे में जुड़े सवालों का जवाब देते नजर आ रहे हैं.

 

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संगीत की बदलती दुनिया के बारें में क्या कहती है सिंगर प्रिया सरैया

सिर्फ 6 साल की उम्र से संगीत की क्षेत्र में कदम रखने वाली गायिका और गीतकार प्रिया सरैया मुंबई की है. उन्होंने गान्धर्व महाविद्यालय से हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की ट्रेनिंग ली है. इसके बाद लंदन, ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ़ म्यूजिक, मुंबई ब्रांच से वेस्टर्न म्यूजिक का  प्रशिक्षण लिया है.इसके बाद वह कल्यानजी आनंदजी के साथ कई वर्षो तक स्टेज शो की और तालीम ली. काम के दौरान उनकी मुलाकात संगीतकार, गायक जिगर सरैया से हुई और कई साल की परिचय के बाद शादी की और एक बेटे माहित की माँ बनी. उनकी इस जर्नी में उनके ससुर मुकुल सरैया ने काफी सहयोग दिया है. मृदुभाषी और शांत प्रिया सरैया ने संगीत क्षेत्र के बारें में बात की पेश है अंश.

सवाल- संगीत की क्षेत्र में कैसे आना हुआ, किससे आप प्रेरित हुई?

मैने छोटी उम्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना शुरू किया. आगे बढ़ने पर मेरी मुलाकात संगीतकार पद्मश्री कल्याण-आनंद जी से हुई. उनके साथ रहते हुए मैंने बहुत सारे स्टेज शो किये. उन्होंने ही स्टेज शो का दौर शुरू किया था. इस तरह से मेरा उनके साथ 16 साल का एसोसिएशन स्टेज शो के लिए रहा. आगे कुछ नया करने की सोच ने मुझे गीतकार बना दिया, क्योंकि बचपन से ही मुझे लिखने का शौक था, लेकिन उसे प्रोफेशनल तरीके से नहीं किया था. इसके अलावा कई नामी-गिरामी लोगों से मिलना, आई.पी.आर.एस. में काम करना, जहाँ बड़े-बड़े लेखक और कंपोजर आते है. उनके साथ मिलकर मैंने बहुत सारे काम सीखे और हिंदी सिनेमा में मैंने गीतकार के रूप में भी काम किया.

परिवार में कोई भी संगीत से जुड़े नहीं है, लेकिन संगीत सबको पसंद है. मेरे दादाजी रतिलाल पांचाल बहुत अच्छा गाते थे, प्रोफेशनली कोई जुड़ा नहीं था. मैं परिवार की पहली लड़की हूं ,जिसे संगीत में इतनी उपलब्धि मिली है. कल्याण जी से मेरी मुलाकात स्कूल की एक कम्पटीशन में हुई थी, वहां जज के रूप में वे आये थे और मुझे चुना था. उन्होंने ही मेरे परेंट्स से कहा था कि मुझे संगीत की तालीम देने पर मैं अच्छा कर सकती हूं. मेरे पेरेंट्स ने उनकी बात मानी और आज मैं यहाँ हूं. मेरे पिता जीतेन्द्र पांचाल इंजिनियर है और इंटीरियर डेकोरेटर का काम करते है, माँ हंसा पांचाल हाउसवाइफ है.

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सवाल- आपके साथ परिवार का सहयोग कितना था?

पूरे परिवार का ही सहयोग रहा है, आज से 25 साल पहले जब मैं स्टेज शो में जाती थी, आज की तरह टीवी रियलिटी शो नहीं थी. संगीत और नृत्य को हॉबी ही माना जाता था, ऐसे में लड़कियों का बाहर जाकर शो करने को लोग अच्छा नहीं मानते थे, कईयों ने यहाँ तक कहा कि बेटी को रात-रात भर आप बाहर क्यों रखते हो? ऐसी कई कमेंट्स पेरेंट्स को सुनने पड़ते थे, पर उन्होंने आगे की बात सोचकर तालीम दी. लड़की और लड़के में कभी फर्क नहीं समझा.

सवाल- जिगर सरैया से मिलना कैसे हुआ?

उनसे मैं फेसबुक के ज़रिये मिली थी. हिंदी फिल्म ‘फालतू’ का काम चल रहा था. उन्होंने फेसबुक के जरिये एक यंग राइटर चाहते थे, क्योंकि फिल्म कॉलेज बेस्ड थी और शब्द यंग बच्चों को ध्यान में रखकर लिखना था. मैं उनसे स्टूडियों में जाकर मिली और काम शुरू किया. वे जो भी धुन बनाते थे, मैं उसमे शब्द भरने का काम डमी में करती थी, जिसे निर्देशक और निर्माता सभी ने पसंद किया. इस तरह से मैंने करीब 20 फिल्मों के शब्द लिखे है.

सवाल- क्या दोनों एक क्षेत्र से होने की वजह से कभी किसी गीत को लेकर मतभेद हुई?

ये सामान्य है और बहुत बार होता है, क्योंकि ये ह्युमन एक्सप्रेशन है. कई बार लड़ाईयां भी होती है, लेकिन जब गाना तैयार होकर आता है और लोग पसंद करते है, तो सब भूल जाते है.

सवाल- आजकल फिल्मों में गाने कम रह गयी है, रियल कहानियों को लोग पसंद कर रहे है,जिसमे गाने कम होते है,ऐसे में प्ले बैक सिंगर की भूमिका हिंदी फिल्मों में कितनी रह जाती है?

फिल्मों में गाने भले ही कम हो, लेकिन इंडिपेंडेंट गानों का क्रेज़ बढ़ा है. सारे सिंगर्स इंडिपेंडेंटली अपनी टैलेंट को दिखा रहे है. सिंगर्स अभी कंपोज करने के अलावा गाने को लिख भी रहे है. कलाकार को बाँध कर नहीं रखा जा सकता.

सवाल- आज अभिनय करने वाले भी गाना गा रहे है और उनके स्वर में किसी प्रकार की कमी को तकनीक के सहारे ठीक कर लिया जाता है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

मेरा मानना है कि पुराने ज़माने में भी अभिनय करने वाले गाया भी करते थे, जिसमें किशोर कुमार, गीता दत्त,नूरजहाँ आदि थे, लेकिन उनकी आवाज अच्छी थी. आज तकनीक से कुछ गानों को ठीक भले ही कर लें, एक समय बाद सिंगर जरुरी है. सारे लोग अपने शौक पूरे कर रहे है और मंच मिलने पर ये करना सही भी है.

सवाल- गीत के बोल पहले जैसे खूबसूरत अब नहीं है, सुर बनाने के बाद उसमें बोल फिट कर दिये जाते है,इसे कैसे आप लेती है?

गानों में कवितायेँ कम हो रही है, इस बात से मैं सहमत हूं और एक लेखक होने की वजह से मैं इसकी महत्व को समझती हूं. इसमें मैं श्रोता जो गानों को सुनती और हिट बनाती है, उनके लिए वे जो सुनना चाहते है, उसे ही वे बनाते है, कविताओं के शौक़ीन लोग इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्या के गाने सुनते है. ये तो चलने वाला है.

सवाल- पहले संगीत के बोल कहानी के आधार पर लिखी जाती रही है, क्योंकि हिंदी फिल्मों में गीत भी कहानी को आगे बढाती है, अब गानों को पहले बनाकर फिल्मों में फिट कर दिया जाता है, क्या इसकी वजह से फिल्मो की कहानी और गानों का तालमेल सही हो पाता है?

पहले साल में 3 से 4 फिल्में बनती थी, अब साल में 250 से 300 फिल्में बनती है. अब प्रोड्यूसर को फटाफट गाने चाहिए, वे रुक नहीं सकते, समय नहीं है. पहले लिरिक्स लिखने वालो को काफी समय शब्दों को लिखने के लिए मिलता था. इससे वे कहानी को सुनकर उसके आधार पर एक फ्रेश कविता संगीतकार को दे पाते थे और गाने अच्छे बनते थे. मैंने तेरे नाल इश्क हो गया, बदलापुर आदि के गाने सिचुएशन के आधार पर लिखे है, कुछ निर्माता, निर्देशक बोल लिखने के लिए आज भी काफी समय देते है.

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सवाल- आगे की योजनायें क्या है?

पेंडेमिक ख़त्म होने के बाद खुलकर गानों का लिखना, गाना और शो करने की इच्छा है.

सवाल- नए सिंगर्स के लिए क्या मेसेज देना चाहती है?

रियलिटी शो की वजह से आज के गायकों को मंच मिलता है, लेकिन इसके बाद इंडस्ट्री में कायम रहने के लिए उन्हें आगे बढ़ने की भूख कम दिखाई पड़ती है, क्योंकि सबको काम मिल जाता है. शार्टटर्म प्रसिद्धी के बाद उन्हें उस ताज के ईगो को हटाकर अधिक मेहनत और सीखने की जरुरत होती है, ताकि वे आगे भी अच्छा काम कर सकें.

‘ये रिश्ता’ फेम Ashish Kapoor ने की प्रौड्यसर राजन शाही की एक्स वाइफ से सगाई, पढ़ें खबर

स्टार प्लस का टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) आए दिन सुर्खियों में रहता है. जहां सीरियल की कहानी फैंस का दिल जीतती है तो वहीं सीरियल से जुड़े सितारे खबरों में छाए रहते हैं. इसी बीच  ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में नजर आ चुके एक्टर आशीष कपूर (Ashish Kapoor) अपने सगाई की खबरों के चलते सुर्खियां बटोर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

एक्टर ने की सगाई

 

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दरअसल, टीवी एक्टर आशीष कपूर ने ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर राजन शाही की एक्स वाइफ पर्ल ग्रे (Pearl Grey) से सगाई कर ली है. आशीष कपूर और पर्ल ग्रे ने बीते 12 जुलाई को सगाई की है. हालांकि औफिशियली दोनों ने इस बात को लेकर कोई अनाउंसमेंट नही की है. हालांकि दोनों के सोशलमीडिया पोस्ट देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कपल कम समय में ही एक-दूसरे के करीब आ गया है.

 

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इस सीरियल में कर रहे हैं काम

 

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वर्क फ्रंट की बात करें तो आशीष इन दिनों स्टार भारत के शो ‘मन की आवाज प्रतिज्ञा 2’ (Mann Kee Awaaz Pratigya 2) में नजर आ रहे हैं, जिसे राजन शाही के प्रोडक्शन तले ही बनाया जा जा रहा है. वहीं खबरे हैं कि पूजा गौर का शो ‘मन की आवाज प्रतिज्ञा 2’ (Mann Kee Awaaz Pratigya 2) 2-3 हफ्तों में ही औफ एयर हो जाएगा, जिसके चलते फैंस काफी दुखी हैं.

बता दें, सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है दर्शकों के फेवरेट सीरियल्स में से एक हैं. वहीं इस सीरियल से जुड़े सितारे आज भी फैंस के दिल में जगह बनाए हुए हैं.

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परिवार के लिए राखी दवे के सामने झुकेंगे अनुपमा-वनराज! आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा (Anupamaa) बीते कई हफ्तों से टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर बना हुआ है. वहीं सीरियल में नए ट्विस्ट लाने के लिए मेकर्स कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इसी बीच सीरियल की कहानी में जल्द नया मोड़ दिखेगा, जिसके चलते अनुपमा और वनराज मुसीबत में नजर आएंगे. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज को आया काव्या पर गुस्सा

 

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अब तक आपने देखा कि वनराज के कैफे को चलाने के लिए अनुपमा (Rupali Ganguly) मदद करती हुई नजर आती है. वहीं इस दौरान वनराज के कैफे में फूड क्रिटिक आते हैं, जो कि उन्हें केवल 2 स्टार देती है. वहीं 2 स्टार मिलने पर जहां काव्या अनुपमा को खरी-खोटी सुनाती है. तो दूसरी तरफ वनराज, काव्या को बीच में चुप कराते हुए कहता है कि 2 स्टार की रेटिंग अनुपमा की वजह से नहीं बल्कि काव्या की वजह से मिली है. वहीं एक ब्लौगर अनुपमा की तारीफ करते हुए कैफे को 5 स्टार देती है, जिससे काव्या जलन के मारे गुस्से में नजर आती है.

 

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अनुपमा-वनराज को मिला झटका

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शाह परिवार को बड़ा झटका लगेगा. दरअसल, अनुपमा और वनराज को एक नोटिस मिलेगा, जिसमें 20 लाख रुपये का प्रॉपर्टी टैक्स चुकाने की बात लिखी होगी और इस कारण दोनों परेशान नजर आएंगे. क्योंकि प्रॉपर्टी टैक्स न चुका पाने की वजह से अनुपमा (Anupama) का परिवार बैंकरप्ट हो जाएगा, जिसके चलते अनुपमा और वनराज पैसों का इंतजाम करते नजर आएंगे.

राखी दवे कहेगी ये बात

 

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दूसरी तरफ काव्या को 20 लाख की बात पता चल जाएगी और वह शाह परिवार में बड़ा बवाल कर देगी. इसी बीच राखी दवे आग में घी डालने का काम करेगी. वह कहेगी कि बाहर भीख मांगने की बजाय उससे पैसे ले लें. लेकिन अनुपमा -वनराज कहेंगे कि वह इंतजाम कर लेंगे औऱ बैंक से लोन लेंगे, जिसके कारण शाह परिवार में बवाल देखने को मिलेगा.

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क्या मास्क के साथ मैं मेकअप नहीं कर सकती?

सवाल-

लौकडाउन में फेस मास्क के कारण मेकअप पूरी तरह बिगड़ जाता है. क्या मास्क के साथ मैं मेकअप नहीं कर सकती?

जवाब-

मास्क के साथ मेकअप टिकाने के लिए आप मैट फिनिश और लौंग वेयरिंग फाउंडेशन तथा कंसीलर यूज करें. इस से आप का मेकअप फैलेगा नहीं.

ये दोनों आप की स्किन में अच्छी तरह से मिक्स हो जाते हैं और सैटल हो कर ड्राई फिनिश लाते हैं. आप को बेस मेकअप करने से पहले लाइट वेट, हाइड्रेटिंग प्राइमर का इस्तेमाल करना होगा. इस से आप की स्किन क्लीयर और स्मूथ भी लगेगी.

मेकअप अप्लाई करने के बाद आप को अपने चेहरे पर मेकअप स्पंज या बड़े फ्लकी ब्रश की मदद से थोड़ा लूज पाउडर पूरे फेस और गरदन पर लगाना होगा. बहुत ही थोड़ा हलका पाउडर लगाने से आप की स्किन अच्छी लगेगी और आप का मेकअप भी पूरा दिन बरकरार रहेगा. इस के बाद आप पाउडर के ऊपर सैटिंग स्प्रे करें. इसे सूखने दें. इस के बाद ही मास्क लगाएं ताकि आप का मेकअप सही रहे.

लिपस्टिक के फैलने की गुंजाइश कम करने के लिए मैट फौर्मूला या फिर लिक्विड लिपस्टिक जिस में हाइड्रेटिंग इनग्रीडिऐंट्स हों यूज करें. यह आप के लिप्स को ड्राई होने से बचाता है.

एक विकल्प के रूप में आप परमानैंट लिपस्टिक भी लगवा सकती हैं. आप के चेहरे पर सिर्फ आप की आंखें ही होती हैं जो मास्क पहनने के बाद भी नजर आती हैं. इस के लिए आप कुछ भी ट्राई कर सकती हैं.

सौफ्ट स्मोकी आईज से ले कर कलरफुल आईशैडो, ग्राफिक आईलाइनर्स से कुछ भी ट्राई कर सकती हैं. अपनी आईब्रोज को फिल करना और लैशेज पर मसकारा लगाना न भूलें.

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-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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कोविड-19 के इस समय में मास्क हमारी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है. जिंदगी भले ही ढर्रे पर लौटने लगी है लेकिन मास्क ने हमारे आधे चेहरे को ढक रखा है. ऐसे में ऑफिस जाना हो, दोस्तों के साथ बाहर निकलना हो या किसी शादी की पार्टी वगैरह में जाना हो, मेकअप करते समय मास्क आड़े आने लगता है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि मास्क के साथ हमारा मेकअप कैसा होना चाहिए ताकि हम ऑलटाइम खूबसूरत भी दिखें और सावधानी के लिए मास्क का साथ भी न छूटे. आइए जानते हैं मास्क के साथ मेकअप करते समय किन बातों का ख्याल रखना चाहिए;

पूरी खबर पढ़ने के लिए- मास्क के साथ मेकअप में किन बातों का रखें ध्यान

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जानें मील प्लानिंग करने के 10 टिप्स

नाश्ता, लंच और डिनर में ऐसा क्या बनाया जाए जो सबको पसन्द आये यह हर महिला की एक आम परेशानी होती है जिससे उसे हर दिन दो चार होना पड़ता है क्योंकि परिवार के सभी सदस्यों की पसन्द अलग अलग होती है और हर एक की पसन्द का हर दिन बनाना सम्भव नहीं होता, इस समस्या का ही समाधान है ‘”मील प्लानिंग” हर दिन ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक बनाये जाने वाले भोजन की प्लानिंग कर लेना इससे जहां एक ओर घर के प्रत्येक सदस्य की पसन्द का ध्यान भी रखा जा सकता है वहीं आपके लिए भोजन बनाने में लगने वाली सामग्री को मैनेज करना भी आसान हो जाता है. यहां पर प्रस्तुत हैं मील प्लानिंग के लिए कुछ उपयोगी टिप्स-

-मील प्लानिंग के ऐसे दिन या समय को चुनें जब परिवार के सभी सदस्य उपस्थित हों ताकि सबकी पसन्द नापसन्द का ध्यान रखा जा सके.

-एक डायरी में चार कॉलम बनाएं, पहले कालम में खाद्य वस्तु का नाम, दूसरे में उससे बनने वाली डिशेज के नाम, तीसरे में दिन और चौथे में टाइम अर्थात लंच, डिनर या ब्रेकफास्ट जिसमें उसे बनाया जाना है.

-तैयार डे वाइज मेन्यू को एक प्लेन पेपर पर लिखकर किचन या ऐसी जगह पर लगाएं जहां पर सुगमता से आपकी नजर पड़ती रहे.

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-मील प्लानिंग करते समय पौष्टिकता पर विशेष ध्यान देने के साथ साथ  सप्ताह में एक दिन ही तले भुने को प्राथमिकता दें. पैक्ड और रेडी टू ईट के स्थान पर ताजे खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग करें.

-भोजन की प्लानिंग इस प्रकार से करें कि आप कम से कम समय में विविध अनाज, फाइबर और सब्जियों से भरपूर खाद्य पदार्थ परिवार के सदस्यों को खिला सकें.

-प्रतिदिन उतना ही भोजन बनाएं कि वह बचे न, एक दिन बनाकर चार पांच दिन फ्रिज में रखकर खाने से बचें क्योंकि फ्रिज में रखे भोजन की समस्त पौष्टिकता समाप्त हो जाती है.

-मील प्लानिंग करते समय घर के बुजुर्गों की पसन्द नापसन्द का भी विशेष ध्यान रखें.

-मील प्लानिंग सन्डे के स्थान पर फ्राइडे को करें ताकि आगामी सप्ताह में भोजन में प्रयोग होने वाली खाद्य सामग्री को आप रविवार को खरीद सकें.

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-यदि आप कामकाजी हैं तो रविवार को चटनी, सॉसेज, पेस्ट आदि को बनाकर फ्रिज में स्टोर कर लें.

-सब्जियों को भी धोकर साफ सूती कपड़े से पोंछकर बारीक काटकर फ्रिज में रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उनका उपयोग कर सकें.

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