
विनय सर की बात सुन कर सासससुर को तो जैसे सांप सूंघ गया. उन्होंने ऐसी चुप्पी लगाई कि आधे घंटे तक इंतजार के बाद भी विनय सर कोई उत्तर न पा सके और चुपचाप उठ कर चले गए. उस के बाद घर का माहौल अजीब सा हो गया. सासससुर ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी. एक दिन जब ग्रीष्मा स्कूल से लौटी तो सासससुर का आपसी वार्त्तालाप उस के कानों में पड़ा. ‘‘देखो तो हम ने हमेशा इसे अपनी बेटी समझा और आज इस ने हमें ही बेसहारा करने की ठान ली. बेटे के जाते ही इस ने रंगरलियां मनानी शुरू कर दीं और ऊपर से लड़का भी छोटी जाति का. हम ब्राह्मण. क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी? कैसे सब को मुंह दिखाएंगे? इस ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा..सही ही कहा जाता है कि बहू कभी अपनी नहीं हो सकती,’’ कहते हुए सास ससुर के सामने रो रही थीं.
सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.
किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’
‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’
स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी. सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’
‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे…उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है…’’ ‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’
लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’ ‘‘वह अपनी मरजी की मालिक है. हम ने उसे कब रोका है? उस की जिंदगी उसे कैसे बितानी है, इस का निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है,’’ ससुर ने अपनी बात रखते हुए कठोर स्वर में कहा और कमरे में चल गए.
‘‘बहू और कुणाल के जाने से हम तो बिलकुल अकेले हो जाएंगे. इस बुढ़ापे में हमारा क्या होगा? बेटा तो पहले ही साथ छोड़ गया और अब बहू भी…’’ कह कर सासूमां तो सर के सामने ही फूटफूट कर रोने लगीं. विनय सर मां के पास जा कर बोले, ‘‘मां आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप की बहू और पोते को ले कर अलग रहूंगा. मैं तो यहीं आप सब के साथ इसी घर में रहूंगा. आप की बहू ने तो सर्वप्रथम यही शर्त रखी थी कि मांबाबूजी उस की जिम्मेदारी हैं और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं तो आप सब के जीवन का हिस्सा भर बनना चाहता हूं.
‘‘मैं सिर्फ आप की बेटी की जिम्मेदारियों में उस का हाथ बंटाना चाहता हूं. मुझ पर भरोसा रखिए. आजीवन आप को निराश नहीं करूंगा. यदि आप मुझे अपनाते हैं तो मुझे एकसाथ कई रिश्ते जीने को मिलेंगे. मेरा भी एक भरापूरा पूरिवार होगा. मेरा इस संसार में कोई नहीं है. कभीकभी अकेलापन काटने को दौड़ता है. मैं तो आप का बेटा बन कर रहना चाहता हूं. आप के जीवन की समस्त परेशानियों को अपने ऊपर ले कर आप का जीवन खुशियों से भर देना चाहता हूं. परंतु यह सब होगा तभी जब आप और बाबूजी की अनुमति होगी,’’ कह कर विनय सर बाहर चले गए. कुछ विचार करते हुए ससुर विश्वनाथ अपनी पत्नी से बोले, ‘‘मुझे लगता है हमें इन दोनों की शादी करा देनी चाहिए.’’
‘‘कैसी बातें करते हो? हम ब्राह्मण और वह नीची जाति का… नहीं, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा,’’ सास कुछ उत्तेजित स्वर में बोलीं.
‘‘जाति को खुद से चिपका कर क्या मिलेगा हमें? ऊंचीनीची जाति से क्या फर्क पड़ता है हमें? हमारा तो बुढ़ापा अच्छा कटना चाहिए. बेचारी बहू कब तक दे पाएगी हमारा साथ. दोनों कमाएंगे और मिल कर जिम्मेदारियां उठाएंगे तभी तो हम चैन से रह पाएंगे.’’
‘‘यह बात तो आप की सही है… हमें जाति से क्या करना. इंसान तो विनय अच्छा ही है. हमें मातापिता सा मान भी देता है,’’ सास ने भी अपने पति के सुर में सुर मिलाते हुए कहा. अगले दिन रविवार था, सुबहसुबह ही विश्वनाथ ने विनय को फोन कर के बुला लिया. जैसे ही विनय आए औपचारिक वार्त्तालाप के बाद वे बोले, ‘‘बेटा, हम ने तुम्हें गलत समझा. शायद हम स्वार्थी हो गए थे. क्या करें बेटा बुढ़ापा ऐसी चीज है जो आदमी को स्वार्थी बना देती है.
‘‘वृद्ध सब से पहले अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में सोचने लगते हैं. हम ने भी अपनी बेटे जैसी बहू के भविष्य के बारे में न सोच कर सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचा, जबकि उस ने सदा पहले हमारे बारे में सोचा. कौन कहता है कि बहू कभी बेटी नहीं हो सकती? मेरी बहू तो मिसाल है उन लोगों के लिए जो बहू और बेटी में फर्क करते हैं. ‘‘इस घर की बहू होने के बाद भी उस ने सदा बेटे की ही भांति सारे फर्ज निभाए हैं.
आज तक उस ने बस दुख ही दुख देखा है और आज जब तुम उस की झोली में खुशियां डालना चाहते हो, उस की जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो, तो हम उस के मातापिता ही उस के बैरी हो गए. बस मेरी बेटी को सदा खुश रखना,’’ कह कर विश्वनाथ जी ने विनय सर के आगे हाथ जोड़ दिए.
परदे की ओट में खड़ी ग्रीष्मा सासससुर का यह बदला रूप देख कर हैरान थी. पर अंत भला तो सब भला सोच दौड़ कर अपने सासससुर के गले लग गई. ‘‘हम आप को कभी निराश नहीं करेंगे,’’ कह कर विनय सर और ग्रीष्मा ने झुक कर दोनों के जब पैर छुए तो विश्वनाथ और उन की पत्नी ने खुश हो कर अपने आशीष भरे हाथ उन की पीठ पर रख दिए.
कृष्णा अपने घने व काले केश बालकनी में खड़ी हो कर सुलझा रही थी. उस की चायजैसी भूरी रंगत को उस के घने केश और अधिक मादक बनाते थे. शादी के 10 वर्षों बाद भी सत्या उतना ही दीवाना था जितना पहले वर्ष था. सत्या का प्यार उस की सहेलियों के बीच ईर्ष्या का विषय था. पर कभीकभी सत्या के व्यवहार से कृष्णा के मन में संशय भी होता था कि यह प्यार है या दिखावा.
कुल मिला कर जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. छोटा सा परिवार था कृष्णा का, पति सत्या और बेटी विहा. लेकिन कुछ माह से कृष्णा ने महसूस किया था कि सत्या देररात को घर आने लगा है. जब भी कृष्णा पूछती, तो सत्या यह ही बोलता, ‘तुम्हारे और विहा के लिए खट रहा हूं वरना मेरे लिए दो रोटी काफी हैं.’
पर कृष्णा के मन को फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं कुछ तो गलत हैं. बाल सुलझाते हुए कृष्णा के मन में यह सब चल रहा था कि बाहर दरवाज़े पर घंटी बजी. दरवाजा खोला, देखा सत्या खड़ा है. कृष्णा कुछ बोलती, सत्या बोल पड़ा, “अरे, उदयपुर जा रहा हूं 5 दिनों के लिए.
इसलिए सोचा कि आज पूरा दिन अपनी बेगम के साथ बिताया जाए.”
फिर सत्या ने 2 पैकेट पकड़ाए. कृष्णा ने खोल कर देखा, एक में बहुत सुंदर जैकेट थी और दूसरे में एक ट्रैक सूट. कृष्णा मुसकराते हुए बोली, “अच्छा, हर्जाना भर रहे हो नए साल पर यहां न होने के लिए?”
सत्या उदास होते हुए बोला, “कृष्णा, बस, 2 साल और, फिर मेरे सारे समय पर तुम्हारा ही हक होगा.”
कृष्णा रसोई में चाय बनाते हुए सोच रही थी कि सत्या आखिर परिवार के लिए सब कर रहा है और वह है कि शक करती रहती है. शाम को पूरा परिवार विहा के पसंदीदा होटल में डिनर करने गया था. सब ने लौंग ड्राइव की. डिनर के बाद कृष्णा का पसंदीदा पान और विहा की आइसक्रीम.
रात में कृष्णा ने सत्या के करीब जाना चाहा तो सत्या बोला, “कृष्णा, थक गया हूं, प्लीज आज नहीं.”
कृष्णा मन मसोस कर बोली, “यह तुम 7 महीनों से कह रहे हो?”
सत्या बोला, “यार, वर्कप्रैशर इतना है, क्या करूं. अच्छा, उदयपुर से वापस आ कर डाक्टर के पास चलते हैं, खुश, शायद काम की अधिकता के कारण मेरी पौरुषशक्ति कम हो गई है.” और सत्या गहरी नींद में डूब गया. कृष्ण सोच रही थी कि कहीं सत्या की क्षुधा कहीं और तो पूरी नहीं हो रही है. पर उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था.
सुबह सत्या एयरपोर्ट के लिए निकल गया और कृष्णा, विहा के साथ शौपिंग करने निकल गई. घर आ कर विहा अपनी चीज़ों में व्यस्त थी और कृष्णा ने अपना मोबाइल उठाया तो देखा, उस में सत्या के मैसेज थे कि वह एयरपोर्ट पहुंच गया है और उदयपुर पहुंच कर कौल करेगा.
कृष्णा फोन रख ही रही थी कि उस ने देखा कि किसी सिद्धार्थ के मैसेज भी थे. उस ने उत्सुकतावश मैसेंजर खोला, तो मैसेज पढ़ कर उस के होश उड़ गए.
सिद्धार्थ के हिसाब से सत्या उदयपुर नहीं, नोएडा के लेमन राइस होटल में पूजा नाम की महिला के साथ रंगरलियां मना रहा है.
कृष्णा को लगा कि कोई शायद उस के साथ घटिया मज़ाक कर रहा है, इसलिए उस ने लिखा, ‘कैसे विश्वास करूं कि तुम सच बोल रहे हो?”
उधर से जवाब आया, ‘रूम नंबर 204, सैक्टर 62, होटल लेमन राइस, नोएडा.’
पूरी रात कृष्णा अनमनी ही रही. सत्या का फ़ोन आया था, वह कृष्णा को बता रहा था कि उस ने कृष्णा के लिए लाल रंग की बंधेज खरीदी हैं और विहा के लिए जयपुरी घाघरा.
फ़ोन रखकर कृष्णा को लगा कि वह कितना गलत सोच रही थी सत्य के बारे में. दोपहर में कृष्णा मैसेंजर पर सिद्धार्थ को ब्लौक करने ही वाली थी कि उस ने देखा, 3 फ़ोटो थे जो सिद्धार्थ ने भेजे हुए थे. तीनों फ़ोटो में एक औरत, सत्या के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. तब कृष्णा सोचने लगी कि अच्छा तो इस का नाम पूजा है. कजरारी आंखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक और लाल बंधेज की साड़ी. क्या अपनी महबूबा की उतरन ही उसे सत्या पहनाता है.
सुबह कृष्णा, विहा को साथ ले कर मेरठ से नोएडा के लिए निकल गई. वह अब दुविधा में नहीं रहना चाहती थी. नोएडा में वह अपने मम्मीपापा के घर पहुंची. पता चला मम्मीपापा गांव गए हुए हैं. कृष्णा के भैया बोले, “अरे, एकदम से, अचानक और सत्य कहां है?”
कृष्णा बोली, “भैया, आप की बहुत याद आ रही थी. बस, चली आई. और कल मेरे कुछ पुराने दोस्तों का नोएडा में गेटटूगेदर है, सोचा, आप लोगों से मिल भी लूंगी और दोस्तों से भी.”
सुबह नाश्ता कर के कृष्णा धड़कते हुए दिल के साथ होटल पहुंची. वह रिसैप्शन पर पहुंची ही थी कि सामने से सत्या और पूजा दिखाई दे गए थे. सत्या का चेहरा सफेद पड़ गया था पर फिर भी बेशर्मी से बोला, “तुम यहां क्या कर रही हो?”
कृष्णा आंसू पीते हुए बोली, “तुम्हें लेने आई हूं.”
सत्या बोला, “मैं दूध पीता बच्चा नही हूं, घर का रास्ता पता हैं मुझे.”
कृष्णा पूजा की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली, “तो यह है आप का जरूरी काम जो तुम उदयपुर करने गए थे?”
सत्या भी बिना झिझक के बोला, “हां, यह पूजा मेरे साथ मेरे बिज़नैस में मदद करती है. कल ही हम उदयपुर से आए हैं और आज तो मैं मेरठ पहुंच कर तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.”
कृष्णा बिना कुछ कहे दनदनाते हुए वापस अपने घर चली गई. जब भैया और भाभी ने पूरी बात सुनी तो भाभी बोली, “अरे, ऐसी औरतों के लिए अपना घर छोड़ने की गलती मत करना. कल मैं तुम्हें गुरुजी के पास ले कर जाऊंगी, तुम चिंता मत करो.”
अगले दिन जब कृष्णा अपनी भाभी के साथ वहां पहुंची तो गुरुजी ने बिना कुछ कहे ही जैसे उस के मन का हाल जान लिया था. कृष्णा को भभूति देते हुए गुरुजी ने कहा, “अपने पति के खाने में मिला देना. कम से कम एक माह तक ऐसा करोगी तो उस औरत का काला जादू उतर जाएगा. उस औरत ने तुम्हारे पति पर वशीकरण कर रखा है. जब वे वापस आएं तो कुछ मत कहना. गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा करो और शुक्रवार को पूरी निष्ठा से उपवास करना.”
कृष्णा अगले दिन जब मेरठ जाने के लिए निकली तो भाभी बोली, “कृष्णा, मम्मीपापा से इस बात का जिक्र मत करना. तुम ये उपाय करोगी तो समस्या का समाधान अवश्य होगा, थोड़ा धीरज से काम लेना.”
कृष्णा वापस अपने घर आ गई और ठीक दूसरे दिन सत्या भी आ गया था. न सत्या ने कोई सफाई दी, न कृष्णा ने कोई सवाल किया. घर का माहौल थोड़ा घुटाघुटा सा था पर कृष्णा को विश्वास था कि वह पति को सही रास्ते पर ले आएगी.
रोज़ चाय या खाने में कृष्णा भभूति डाल कर देने लगी थी. सत्या अब समय पर घर आने लगा था. कृष्णा को लगा, शायद, गुरुजी के उपाय काम कर रहे हैं.
उधर सत्या एक पहुंचा हुआ खिलाड़ी था. वह शिकार तो अब भी कर रहा था पर अब उस ने खेलने का तरीका बदल दिया था. अब वह घर से ही अपनी महिलामित्रों को फ़ोन करने लगा था. जब कृष्णा कुछ कहती तो वह उसे अपनी बातों में उलझा लेता था. कृष्णा को अपनी बुद्धि से अधिक भभूति व व्रत पर विश्वास था. वह सबकुछ जान कर भी आंखें मूंदे हुए थी. पर एक रोज़ तो हद हो गई जब बड़ी बेशर्मी से सत्या कृष्णा के सामने ही पूजा से वीडियो कौल कर रहा था.
कृष्णा अपना आपा खो बैठी और गुस्से में उस के हाथ से फ़ोन छीनते हुए बोली, “तुम ने सारी हदें पार कर दीं हैं. मेरे नहीं, तो कम से कम विहा के बारे में तो सोचो. क्या कमी है मुझ में?”
सत्या खींसे निपोरते हुए बोला, “तुम्हारे अंदर अब न वह हुस्न है न वह मादकता रही है. एक ठंडी लाश के साथ मैं कैसे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करूं? शुक्र करो कि मैं तुम्हारे सारे ख़र्च उठा रहा हूं और अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ रखा है. और क्या चाहिए तुम्हें?”
कृष्णा गुस्से में बोली, “क्या तुम्हें लगता हैं मैं अनाथ हूं या सड़क पर पड़ी हुई लड़की हूं? मेरे पापा और भाई अभी जिंदा हैं. वे तो मैं तुम्हारी इज़्ज़त के कारण अब तक चुप थी. अब अगर तुम चाहोगे भी तो वे तुम्हें मेरे करीब फटकने नहीं देंगे.”
सत्या बोला, “अगर तुम्हारे करीब फटकना होता तो मैं क्या बाहर जाता,”
इस से अधिक कृष्णा बरदाश्त नहीं कर पाई और रात में ही विहा को ले कर मम्मीपापा के घर नोएडा आ गई.
अब कृष्णा के पास कोई उपाय नहीं था. उसे अपने मम्मी, पापा को सब बताना पड़ा. मम्मी और पापा सब सुन कर सन्नाटे में आ गए थे. पूरी बात सुन कर भैया आगबबूला हो गए थे, बोले, “कृष्णा, तुम ने बिलकुल ठीक किया. अब तुम वापस नहीं जाओगी. विहा और तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो.”
पर यह बात सुनते ही भाभी के चेहरे पर चिंता लक़ीर खिंच गई थी. एकाएक वह बोल उठी, “अरे, तुम कैसी पागलों जैसी बात कर रहे हो? कोई ऐसे अपना घर छोड़ सकता हैं क्या? फिर आज की नहीं, कल की सोचो. विहा और कृष्णा की पूरी ज़िंदगी का सवाल है. कृष्णा तो नौकरी भी नहीं करती कि अपना और विहा का ख़र्च उठा सके.”
भैया बोले, “अरे, तो इस घर पर उस का भी बराबरी का हक है.”
भाभी उस के आगे कुछ न बोल सकी पर वह भैया की इस बात से नाखुश थी, यह बात कृष्णा को पता थी.
दिन हफ़्तों में और हफ़्ते महीनों में परिवर्तित हो गए थे पर सत्या की तरफ से कोई पहल नहीं हुई थी. कृष्णा को समझ नहीं आ रहा था कि उस का फैसला सही हैं या ग़लत. विहा की बुझी आंखें और मम्मीपापा की ख़ामोशी सब कृष्णा को कचोटती थी. भैया ने कह तो दिया था कि वह भी इस घर की संपत्ति में बराबर की हकदार है पर कृष्णा में इतना हौसला नहीं था कि वह इस हक़ के लिए खड़ी हो पाए.
एक दिन कृष्णा अपने पापा से बुटीक खोलने के बारे में बात कर रही थी. तभी मम्मी दनदनाती आई और हाथ जोड़ते हुए बोली, “बेटा, क्यों हमारा बुढ़ापा खराब करने पर तुली हुई है? अगर तेरे पापा ने तुझे पैसा दिया तो बहू को अच्छा नहीं लगेगा और हमारे बुढ़ापे का सहारा तो वह ही है. मैं ने आज सत्या से बात की थी. वह बोल रहा है, तुम अपनी मरजी से घर छोड़ कर गई हो और अपनी मरजी से वापस जा सकती हो.”
कृष्णा बहुत ठसक से घर छोड़ कर आई थी पर किस मुंह से वापस जाए, वह समझ नहीं पा रही थी. पर भैया का तनाव, भाभी का अबोला सबकुछ कृष्णा को सोचने पर मजबूर कर रहा था.
पहले हफ़्ते जो विहा पूरे घर की आंखों का तारा थी, वह अब सब के लिए बेचारी बन कर रह गई थी.
एक दिन कृष्णा ने देखा कि भैया के बच्चे गोगी और टिम्सी, पिज़्ज़ा के लिए जिद कर रहे थे. विहा बोली, “टिम्सी मेरे लिए तो डबल चीज़ मंगवाना.”
गोगी बोला, “ये नखरे अपने पापा के घर करना, अब जो मंगवाया हैं उसी में काम चलाओ.”
कितनी बार कृष्णा ने गोगी और टिम्सी को छिपछिप कर बादाम, आइसक्रीम और चौकलेट खाते हुए देखा था. विहा एकदम बुझ गई थी, उस ने ज़िद करना छोड़ दिया था.
कृष्णा ने छोटीबड़ी जगह नौकरी के लिए आवदेन भी किया पर कहीं से भी सफलता नहीं मिली थी. हर तरफ से थकहार कर कृष्णा ने गुरुजी को फ़ोन किया. गुरुजी ने बोला, “इस अमावस्या पर अगर वह अपने पिया के घर जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.”
कृष्णा ने जब यह फैसला अपने परिवार को सुनाया तो भाभी एकदम से चहकने लगी, “अरे, कृष्णा, तुम ने बिलकुल सही किया, बच्चे को मम्मी और पापा दोनों की ज़रूरत होती है. तुम क्यों किसी तितली के लिए अपना घर छोड़ती हो. तुम रानी हो उस घर की और उसी सम्मान के साथ रहना.”
कृष्णा मन ही मन जानती थी कि वह रानी नहीं पर एक अनचाही मेहमान है इस घर की और एक अनचाहा सामाजिक रिश्ता है पिया के घर की. अगले दिन कृष्णा जब अपने सामान समेत घर पहुंची तो सत्या ने विहा को तो खूब दुलारा लेकिन कृष्णा को देख कर व्यंग्य से मुसकरा उठा.
अब सत्या को पूरी आज़ादी थी. उसे अच्छे से समझ आ गया था कि अब कृष्णा के पास पिया के घर के अलावा कोई और रास्ता नही हैं. वह जब चाहे आता और जब चाहे जाता. जो एक आंखों की शर्म थी, वह अब नहीं रही थी. खुलेआम वह कमरे में ही बैठ कर अपनी गर्लफ्रैंड्स से बात करता था जो कभीकभी अश्लीलता की सीमा भी लांघ जाता था.
कृष्णा से जब सत्या का व्यवहार सहन नहीं होता था तो वह बाहर आ कर बालकनी में खड़ी हो जाती थी.
कहीं दूर यह गाना चल रहा था- ‘पिया का घर, रानी हूं मैं…’ गाने के बोल के साथसाथ कृष्णा की आंखों से आंसू टपटप बह रहे थे.
अश्विन के तो मन में लड्डू फूट रहे थे. कैसी होगी वह, गोरी या गेहुआं रंग? फोटो में तो बहुत ही आकर्षक लग रही है. कितनी सुंदर मुसकान है. बाल भी एकदम काले. खैर, अब 2 घंटे ही तो बचे हैं इंतजार की घडि़यां खत्म होने में. दिल्ली से मुंबईर् मात्र 2 घंटे में ही तो पहुंच जाते हैं हवाईजहाज से.
अश्विन दिल्ली का निवासी है और 2 साल पहले ही उस ने अपना नया व्यवसाय शुरू किया है. उस की लगन व मेहनत से उस का काम आसमान की बुलंदियों को छूने लगा है.
अत: उस के मातपिता ने सोचा झट से सुंदर लड़की देख कर उस का विवाह कर दिया जाए और लड़की भी ऐसी, जो उस के कारोबार में हाथ बंटा सके. सो उन्होंने अखबार में इश्तिहार दे दिया- ‘‘आवश्यकता है सुंदर, पढ़ीलिखी, आकर्षक लड़की की.’’
बदले में जवाब आया सोहा के पिता का, जो अश्विन जैसा लड़का ही अपनी बेटी के लिए ढूंढ़ रहे थे. लड़का उन की बेटी की काबिलीयत को समझे और उस का परिवार भी खुले विचारों वाला हो. बड़े अरमानों से पाला था उन्होंने अपनी बेटी को. एमबीए करवाया था ताकि विवाह उपरांत वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके. इस के अलावा उस ने घुड़सवारी, तैराकी भी सीखी थी. एनसीसी में भी सी सर्टिफिकेट लिया था उस ने और ऐरो मौडलिंग में भी गोल्ड मैडल लिया था. सो सोहा के पिता ने अश्विन के पिता से अपनी बेटी के रिश्ते की बात चलाई और उस की शिक्षा व अन्य खूबियों की जानकारी अश्विन के पिता को दे दी.
अश्विन के पिता ने उसे सोहा के बारे में बताते हुए पूछा, ‘‘बेटा, यदि तुम्हें इस लड़की के गुण व शिक्षा पसंद हो तो आगे बात चलाऊं?’’
‘‘जी डैड, आप बात आगे बढ़ा सकते हैं,’’ अश्विन ने कहा.
अश्विन के पिता ने सोहा के पिता को फोन कर कहा, ‘‘विमलजी, मेरे बेटे को आप की बेटी की शिक्षा व खूबियां बड़ी पसंद आईं. अब आप जल्द से जल्द सोहा के और फोटो भेज दीजिए या फिर फेसबुक आईडी दे दीजिए ताकि एक बार दोनों एकदूसरे को देख लें और बात आगे बढ़ाई जा सके.’’
सोहा ने भी फेसबुक आईडी देना ही उचित समझा ताकि एकदूसरे से मिलने से पहले दोनों एकदूसरे को परख लें.
सोहा की फेसबुक आईडी पा कर अश्विन ने उसे फ्रैंड्स रिक्वैस्ट भेज दी. सोहा ने
भी उसे सहर्ष स्वीकार लिया.
जब अश्विन ने सोहा को फेसबुक पर देखा तो देखता ही रह गया. इतनी खूबसूरत और आकर्षक, उस का रहनसहन उस के पोस्ट देख कर तो वह उस पर लट्टू ही हो गया. दोनों ने 1-2 बार चैट किया. अश्विन तो उस की अंगरेजी लिखी पोस्ट पढ़ कर और भी ज्यादा प्रभावित हो गया. उत्तर भारतीय हो कर भी उस की अंगरेजी बहुत अच्छी थी. सो दोनों ने आपस में मिलने का फैसला किया और फिर अपनेअपने मातापिता को अपनाअपना फैसला सुना दिया.
उस के बाद दोनों के मातापिता ने दिन तय किया कि कब और कैसे मिलना है. आजकल पहले वाला जमाना तो रहा नहीं कि रिश्तेदारों को सूचना दो, परिवार के सब सदस्य इकट्ठे हों. अब तो सब से पहले घर के लोग व लड़कालड़की मिल लेते हैं. वह भी घर में नहीं होटल या रेस्तरां में ही देखनादिखाना हो जाता है. अब पहले जैसी औपचारिकता कौन निभाता है?
अब अश्विन और उस के मातापिता सोहा को देखने जयपुर जा रहे थे. अश्विन मन ही मन सोच रहा था यह देखनादिखाना तो मात्र एक औपचारिकता है. सोहा तो उस के मन में पूरी तरह बस गई है. तभी विमान परिचारिका की आवाज से उस के विचारों की शृंखला टूटी. वह कह रही थी, ‘‘आप क्या लेंगे सर शाकाहारी या मांसाहरी खाना?’’
जवाब में अश्विन ने कहा, ‘‘शाकाहारी ही लूंगा,’’ और फिर अश्विन ने तुरंत अपनी ट्रे टेबल खोली. परिचारिका ने अश्विन को शाकाहारी खाने की ट्रे देते हुए कहा, ‘‘सर, बाद में कौफी सर्व करती हूं.’’
अश्विन ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जी, बहुतबहुत धन्यवाद.’’
खाना व कौफी पूरी होतहोते ही विमान परिचारिका ने घोषणा की, ‘‘हम छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एअरपोर्ट पर उतरने वाले हैं. आप सभी से निवेदन है कि अपनीअपनी सीट बैल्ट बांध लें.’’
एअरपोर्ट से अश्विन ने प्री पेड टैक्सी बुक की और पहुंच गए उस होटल में जहां दोनों परिवारों का मिलना तय हुआ था. वहां सोहा के पिता ने उन के लिए पहले से ही टेबलें बुक की हुई थीं.
वहां पहुंचते ही मैनेजर अश्विन से बोला, ‘‘सर आप की टेबलें वहां बुक हैं और वहां मेहमान आप का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.’’
अश्विन धीरे से बुदबुदाया, ‘‘इंतजार तो हम भी बेसब्री से कर रहे हैं.’’
तभी सोहा के पिता उन्हें लेने होटल लौबी में आ पहुंचे. दोनों परिवारों ने एकदूसरे का अभिनंदन किया.
अश्विन ने सोहा की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय आई एम अश्विन.’’
सोहा ने भी वहीं खड़े हो कर कहा ‘‘हाय आई एम सोहा, नाइस टू मीट यू.’’
अश्विन ने सोहा को जितना सोचा था उस से भी ज्यादा आकर्षक पाया. उस की वह मनमोहक मुसकान, हलकी सी लजाई आंखें जिन में नीले रंग का आईलाइनर ऐसा लग रहा था मानो आसमान ने अपनी सुरमई छटा बिखेरी हो. फीरोजी रंग के टौप में वह बेहद सुंदर लग रही थी. हाथ में महंगी घड़ी थी सिल्वर चेन वाली और दूसरे हाथ में फीरोजी रंग का चौड़ा सा ब्रेसलेट. कानों में छोटेछोटे स्टड्स पहन रखे थे. फिर उस के काले एवं सीधे बाल कमर तक लहरा रहे थे. अश्विन की नजर तो उस के चेहरे पर टिक ही गई थी. जैसे ही सोहा उस की तरफ देखती वह मुसकरा देता. वेटर आ कर मौकटेल दे गया था. वह खत्म करते हुए अश्विन के पिता ने सोहा के मातापिता से कहा, ‘‘चलिए अब हम लौबी में चलते हैं ताकि ये दोनों भी अकेले में आपस में बातचीत कर सकें.’’
सभी लोग लौबी की तरफ चल दिए. तब अश्विन ने सोहा को अपने कारोबार के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘यदि तुम्हें मैं शादी के लिए पसंद हूं तो बात आगे बढ़ाएं अन्यथा तुम इस रिश्ते को अस्वीकार भी कर सकती हो.’’
जब सोहा ने नजरें झुकाए मूक स्वीकृति दे दी तो अश्विन ने कहा ऐसे नहीं, तुम्हें मुंह से हां या न में जवाब देना होगा.
सोहा ने ‘‘हां’’ कह दिया. फिर क्या था जैसे ही दोनों के मातापिता वहां आए सोहा व अश्विन ने अपना फैसला उन्हें सुना दिया था. दोनों परिवारों ने एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. फिर चट मंगनी और पट ब्याह. 1 ही महीने में दोनों पतिपत्नी बन गए.
दिल्ली में बहू की मुंह दिखाई बड़ी शानोशौकत से हुई. सभी रिश्तेदार व मित्र अश्विन व सोहा को अपनेअपने घर आने का न्योता दे कर चले गए.
सोहा जब अश्विन के घर में रहने लगी तो अश्विन को उस में एक कमी नजर आई, जिस पर अश्विन का ध्यान ही नहीं पड़ा था. वह थी सोहा की ऊंचाई. सोहा करीब 5 फुट 2 इंच लंबी थी. जबकि अश्विन 6 फुट. जब सोहा अश्विन के पास खड़ी होती तो उस के कंधे तक भी न पहुंचती. अश्विन को मन ही मन लगने लगा कि सोहा इतनी ठिगनी है? उस का पहले क्यों नहीं ध्यान पड़ा सोहा की लंबाई पर? वह सोचने लगा कि लोग क्या कहेंगे कि उस ने क्यों इतनी ठिगनी लड़की से शादी की? कितनी बेमेल सी जोड़ी है देखने में. लेकिन वह समझ ही नहीं पाया कि यह सब कैसे हो गया?
उस ने सोहा से पूछा, ‘‘सोहा, तुम्हारी लंबाई कितनी है?’’
‘‘5 फुट डेढ़ इंच.’’
‘‘तो फिर तुम बाहर जाती हो तब तो इतनी ठिगनी नहीं लगती,’’ अश्विन ने कहा.
सोहा गाते हुए बोली, ‘‘यह हाई हील्स का जादू है मितवा,’’ और फिर मुसकरा कर अश्विन से लिपट गई. अश्विन ने भी उस के होंठों को चूमना चाहा. किंतु वह तो उस के कंधे से भी नीचे थी. सो अश्विन को ही झुकना पड़ा उस के होंठों का रसास्वादन करने के लिए.
लेकिन जब सोहा ने बदले में उचक कर उस के होंठों को चूमा तो अश्विन उस के प्रेम में डूब गया और 5 फुट डेढ़ इंच को भूल गया.
अग दिन अश्विन और सोहा को दोस्तों से मिलने जाना था. सभी ने मिल
कर एक होटल में डिस्को पार्टी रखी थी. अश्विन को लगता कि कहीं उस के दोस्त न सोचें कि अश्विन ने सोहा में बाकी सब देखा तो उस की लंबाई पर क्यों ध्यान नहीं दिया? लेकिन जब सोहा लाल रंग का ईवनिंग गाउन, पैरों में पैंसिल हील्स पहन कर अश्विन के साथ गाड़ी में आगे की सीट पर बैठी तो अश्विन उसे देखता ही रह गया. वह बारबार मन में सोचता कि सब कुछ है सोहा में यदि कुदरत थोड़ी लंबाई और दे देती तो सोने पर सुहागा हो जाता. पर फिर मन ही मन सोचता कि हाई हील्स हैं न. जैसे ही सोहा और अश्विन होटल पहुंचे अश्विन के दोस्तों और उन की पत्नियों को अपना इंतजार करते पाया. जब सोहा ने बड़े ही आकर्षक तरीके से सब के हालचाल पूछे और चटपटी बातें कीं तो वह सब के दिलों पर छा गई. डिस्को में जब सब एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले नाच रहे थे तो अश्विन ने देखा सोहा तो हाई हील्स पहने ठीक उस के कान तक पहुंच गई है और उस ने भी डिस्को की मध्यम रोशनी में मौका पा कर उस के माथे को चूम लिया.
वापस जाते सभी कहने लगे, ‘‘अश्विन, सोहा को देख कर ऐसा लगता है कि तुम्हें गड़ा खजाना हाथ लगा है.’’
अश्विन मन में सोच रहा था कि वह कितना असहज हो रहा था, सोहा की लंबाई को ले कर, लेकिन आज की सोहा की पैंसिल हील्स ने तो सब समस्या ही खत्म कर दी.
हां, जब वह घर में होता तो उस का ध्यान जरूर सोहा की लंबाई पर जाता. एक दिन उस ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, क्या तुम्हारी नजर नहीं गई थी सोहा की लंबाई पर? यह कितनी ठिगनी है.’’
उस की मां ने कहा, ‘‘अश्विन, लेकिन उस के दूसरे गुण भी तो देखो, सर्वगुणसंपन्न है मेरी बहू. इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी कितना अच्छा व्यवहार है इस का.’’
‘‘हां, वह तो है,’’ अश्विन बोला.
‘‘तो फिर तुम इतना क्यों सोच रहे हो इस बारे में? आजकल तो इतनी अच्छी हाई हील्स मिलती हैं तो लंबाई कम होने की चिंता क्यों?’’ मम्मी ने कहा.
शादी को 1 महीना होने आया था. अब सोहा को दफ्तर का काम भी संभालना था. सो अश्विन की मामी ने फोन कर के कहा, ‘‘अश्विन बेटा, 1 बार तो ले आओ सोहा को हमारे घर. फिर दफ्तर जाने लगेगी तो कहां समय मिलेगा.’’
‘‘जी, मामीजी आते हैं हम दोनों,’’ अश्विन ने कहा.
अगले ही दिन मामीजी के घर जाने की तैयारी. सोहा ने काले रंग की क्रेप की साड़ी जिस पर सुनहरे रंग के धागों से बौर्डर पर कढ़ाई की थी पहन ली. साथ में पहनीं सुनहरी वेज हील्स.
जब सोहा गाड़ी तक जाने के लिए पैरों को संभालते हुए चल रही थी तो उस की कमर में जो बल पड़ रहा था, उसे देख अश्विन उसे छुए बिना न रह सका और फिर वह बोला, ‘‘वाह कमाल की हैं तुम्हारी हाई हील्स. जब इन्हें पहन कर चलती हो तो मोरनी सी लगती है तुम्हारी चाल.’’
सोहा बदले में बस मुसकरा दी. मामीजी के घर पहुंच कर सोहा ने पैर छू कर उन्हें प्रणाम किया और फिर मिठाई का डब्बा उन के हाथों में थमाते हुए बोली, ‘‘मामीजी, बहुत ही सुंदर है आप का घर और आप ने सजाया भी बहुत खूब है. कितना साफसुथरा है. कैसे कर लेती हैं आप इस उम्र में भी इतना मैंटेन?’’
मामीजी तारीफ सुन कर फूली न समाईं बोलीं, ‘‘तुम भी तो कितनी गुणी हो, कितनी होशियार…’’
एक बात तो अश्विन पूरी तरह समझ गया था कि सोहा को हर रिश्ते को निभाना बखूबी आता है. झट से किसी को भी शीशे में उतार लेती है वह. खैर, मामीजी के घर खापी कर दोनों जब रवाना होने लगे तो मामीजी बोलीं, ‘‘सोहा, तुम पर यह काली साड़ी बहुत फब रही है और तुम्हारी ये हाई हील्स भी मैचिंग की खूब जंच रही हैं… अलग ही निखार आ जाता है जब साड़ी के साथ हाई हील्स पहनो.. वैसे कहां से लेती हो तुम ये हील्स?’’
सोहा ने भी खूब खिलखिला कर जवाब दिया, ‘‘मामीजी, आजकल तो हर मार्केट में मिल जाती हैं.’’
मामीजी ने कहा, ‘‘मैं भी लाऊंगी अपनी बेटी के लिए.’’
‘‘अच्छा बाय मामीजी,’’ कह सोहा कार में बैठ गई.
उस की आंखों में देख कर अश्विन ने कहा, ‘‘तो चला ही दिया तुम ने अपनी हाई हील्स का जादू मामीजी पर भी.’’
खैर दोनों घर पहुंचे. अगले दिन से सोहा को दफ्तर जाने की तैयारी करनी थी. सोहा सुबहसुबह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी तो अश्विन ने कहा, ‘‘सोहा, आज दफ्तर में तुम्हारा पहला दिन है और मेरे नए क्लाइंट आने वाले हैं. तुम्हें मिलवाऊंगा उन से.’’
सोहा ने झट से हलके चौकलेटी रंग की पैंसिल स्कर्ट जिस में पीछे से स्लिट कटी थी पहना और उस के ऊपर कोटनुमा जैकेट पहन ली. बाल खुले छोड़े. न्यूड कलर की पीप टोज बैलीज पहनीं. उन में से उस के नेलपौलिश लगे अंगूठे और 1-1 उंगली झांकती सी नजर आ रही थी. हाथ में मैचिंग बैग ले कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘तो चलिए अश्विन, आज से आप के साथ मैं काम की शुरुआत करती हूं.’’
दोनों कार में बैठ कर दफ्तर चले गए. वहां जाते ही स्टाफ के लोग उन का ‘गुड मौर्निंग मैम’, ‘गुड मौर्निंग सर’ कह कर अभिवादन कर रहे थे. दफ्तर के सब लोगों से परिचय के बाद अश्विन ने उसे उस का कैबिन दिखा दिया. थोड़ी ही देर में जब नए क्लाइंट आए तो जिस तरीके से सोहा ने उन से बात की अश्विन देखता ही रह गया. घर में साधारण इनसान की तरह रहने वाली सोहा का दफ्तर में तो रुतबा देखते ही बनता था. जब वह अमेरिकन तरीके से अंगरेजी बोलती तो उस के होंठ देखने लायक होते और उस के बोलने का लहजा सुन कर कोई भी नहीं कह सकता था कि यह 5 फुट डेढ़ इंच वाली सोहा बोल रही है.
अश्विन मन में सोचता ही रह गया कि सोहा को कुदरत ने खूब फुरसत में बनाया है. लंबाई के सिवा कोई कमी नजर ही नहीं आती. वैसे वह भी कोई कमी नहीं क्योंकि मैं पूरा 6 फुट का हूं इसलिए मुझे उस की लंबाई कम लगती है. लेकिन चिंता की क्या बात है? हाई हील्स हैं न.
उस दिन अश्विन ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, सोहा बहुत इंप्रैसिव है. मैं फालतू में उस की लंबाई को ले कर चिंतित था. मैं ने जब सोहा को पहली बार देखा था यदि उस दिन मैं ने इस की लंबाई पर ध्यान दे कर इस से विवाह के लिए मना कर दिया होता तो क्या होता? शायद मैं ने एक हीरे को पाने का अवसर खो दिया होता. अच्छा ही हुआ कि उस दिन सोहा हाई हील्स पहन कर आई थी. मुझे तो उस की हील्स दिखाई भी नहीं दी थीं और लंबाई पर ध्यान नहीं गया था. हम ने यह रिश्ता पक्का कर दिया.’’
अश्विन कमरे में लेटी सोहा के पास जा कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘लव यू डार्लिंग…’’
सोहा उसे मुसकरा कर देखती रह गई.
मेन सड़क पार करने में सुमना की हालत बिगड़ जाती है. दूसरे लोग तो जल्दी से पार हो जाते हैं, पर वह जब सारी गाडि़यां निकल जाती हैं और दूर तक कोई गाड़ी आती नहीं दिखती, तभी झट से कुछ तेज चल कर आधी सड़क पार करती है. फिर दूसरी तरफ से गाडि़यां पार हो जाती हैं तब आधी सड़क पार करती है. पहले वह सड़क अकेले पार करती थी. पर अब उस के दोनों हाथ व्हीलचेयर पकड़े रहते हैं, जिस पर बैठे रहते हैं उस के पति सुहैल.
‘‘तुम सड़क पार करने में बहुत डरती हो,’’ सड़क पार होने के बाद सुहैल ने पीछे मुड़ कर कहा.
‘‘सच में बहुत डर लगता है. ऐसा लगता है जैसे गाड़ी मेरे शरीर पर ही चढ़ जाएगी और बड़ी गाडि़यों को देख तो मैं और डर जाती हूं. लेकिन आप साथ में रहते हैं तो हिम्मत बंधी रहती है कि चलो पार हो जाऊंगी.’’ दोनों बातें करतेकरते स्कूल गेट के पास आ गए. तभी सुमना के पर्स में रखा मोबाइल बजने लगा. कंधे से झूल रहे पर्स में से उस ने मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर आ रहे नाम को देख काटते हुए बोली, ‘‘पापा का फोन है. आप को क्लास में पहुंचा कर उन से बात करूंगी.’’
‘‘तुम्हारे पापा तुम्हें अपने पास बुला रहे हैं न…?’’ सुहैल का चेहरा उतर गया.
‘‘नहीं तो,’’ सुमना साफ झूठ बोल गई, ‘‘यह आप से किस ने कह दिया? वे तो ऐसे ही हालचाल जानने के लिए फोन करते हैं. आप क्लास में चलिए.’’ सुमना व्हीलचेयर पकड़े सुहैल को 9वीं कक्षा में ले गई और खुद पढ़ने स्कूल के बगल में कालेज में चली गई. वह बी.ए. फर्स्ट ईयर में थी. एक पीरियड खत्म होने के बाद वह आई और सुहैल को 10वीं कक्षा में ले गई. फिर अपनी क्लास में आई. वहां 45 मिनट पूरे होने के बाद भी मैडम इतिहास पढ़ाती ही रहीं तो वह खड़ी हो कर बोली, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैम, सुहैलजी को 8वीं कक्षा में छोड़ने जाना है और उन की दवा का भी समय हो गया है. मैं जाऊं?’’
‘‘हां, जाओ.’’ 5-7 मिनट बाद वह लौट कर आई तो मैडम उसी के इंतजार में अभी तक क्लास में थीं. उसे कुछ नोट्स दे कर उन्होंने कहा, ‘‘सुमना, तुम बुहत संघर्ष कर रही हो. मुझे तुम पर गर्व है.’’
‘‘मैम, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ वह हलके से मुसकराई.
‘‘विपरीत परिस्थितियों में हंस कर जीना कोई तुम से सीखे.’’ मैडम उस की पीठ थपथपा कर चली गईं और उन के पीछे सारे लड़केलड़कियां भी चले गए. अब क्लास में सिर्फ वही थी. वह नोट्स पढ़ने ही वाली थी कि तभी उस का मोबाइल बजा.
‘‘हां, पापा, बोलिए….’
‘‘बेटा, तुम ठीक हो न? अभी तो तुम कालेज में होगी और सुहैल को इस कक्षा से उस कक्षा में ले जा रही होगी?’’
‘‘जी…’’
‘‘बेटा, क्यों इतनी मेहनत कर रही हो? चली आओ हमारे पास. तुम्हें इतना संघर्ष करते देख मेरी आत्मा रोती है. ऐसा कब तक चलेगा? आजा बेटा, सब छोड़ कर हमारे पास. हम तुम्हारी दूसरी शादी करवा देंगे. भरत से तुम प्यार करती थीं न. वह तुम से शादी करने के लिए तैयार है.’’ सुमना ने बिना जवाब दिए फोन काट दिया. पर उस का दिल बहुत भारी हो गया था. तभी चौथे पीरियड की घंटी बजी. आंखों की कोर से आसूं पोंछ वह सुहैल को 7वीं कक्षा में पहुंचाने गई. उस की सूरत देख सुहैल ताड़ गए कि बात क्या हुई होगी तो बोले, ‘‘सुमना, तुम रो रही थीं न? अपने पापा की बात मान जाओ, चली जाओ उन के पास.’’ सुमना सुहैल की आंखों में देखती रह गई. उसे लगा कि कैसे इन्होंने मेरी चोरी पकड़ ली. पर वह कुछ बोली नहीं, चुपचाप उन्हें कक्षा में पहुंचा आई. उस के कालेज में हरेभरे मैदान में उस की सारी सहेलियां धूप में बैठी हंस, खिलखिला रही थीं. उन्होंने उसे पुकारा पर वह फीकी मुसकान के साथ हाथ हिला कर क्लास में आ गई. उस का मन कर रहा था कि वह खूब चीखचीख कर रोए लेकिन सुहैल ने उसे रोते देख लिया तो उन्हें कितना दुख होगा, यह सोच वह चुप रही. क्लास में अकेली वह खिड़की के पास बैठी थी. उस ने सिर को दीवार से टिका दिया और रोकतेरोकते भी उस की आंखों से आंसू गिरने लगे. आंसू गिर रहे थे और उस की पिछली जिंदगी के पन्ने फड़फड़ा रहे थे. पढ़ाई में कमजोर सुमना बस पापा की जिद की वजह से इंटर की देहरी लांघने के लिए कालेज जाती थी. लेकिन उस के ख्वाबों में बी.कौम में पढ़ने वाला हैडसम भरत ही घूमता रहता. आंखें बंद कर वह उस के साथ सपनों का महल सजातीसंवारती. भरत भी उस की खूबसूरती पर मर मिटा था.
एक दिन रास्ते में सुमना के पापा की मुलाकात उन के दोस्त की पत्नी और बेटे से हो गई. वे उन से 5-6 साल बाद मिल रहे थे. अभिवादन के बाद दोस्त की पत्नी को सादी साड़ी में देख अपने मास्टर दोस्त के हार्ट अटैक से गुजर जाने का उन्हें पता चला. उन्हें बहुत दुख हुआ. पर यह जान कर खुशी हुई कि अपने पापा की जगह पर उन के इकलौते बेटे सुहैल को नौकरी मिल गई. अब वह इसी शहर में नौकरी कर रहा है. सुहैल ने पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया और उन्हें उस में अपना भावी दामाद नजर आया. इसीलिए उन्होंने मांबेटे को अपने घर आमंत्रित किया. सुमना की मां को भी सुहैल पसंद आया और सुहैल तथा उस की मां को सुमना एक नजर में भा गई. लेकिन सुमना को सुहैल फूटी आंख भी पसंद नहीं आया. कहां वह रूपयौवन से भरपूर लंबी और तीखे नाकनक्श की लड़की और सुहैल थोड़े नाटे कद का और सांवला. ऊपर से उस के सिर के बीच के बाल उड़ गए थे और चांद दिख रहा था. सुमना पर तो जैसे वज्रपात हो गया. उस ने मां से कह सीधेसीधे शादी से इनकार कर दिया. मगर उस के पापा आपे से बाहर हो गए, ‘‘मैं ने तुम्हारी बहनों को जिस खूंटे से बांधा वे बंध गईं और तुम अपनी पसंद के लड़के से ब्याह रचाओगी. यह मेरे जीतेजी नहीं हो सकता. बाइक पर घुमाने वाले उस भरत के पास है ही क्या? बाप की दौलत पर मौज करता है. कल को उस का बाप उसे घर से निकाल देगा, तो वह कटोरा ले कर भीख मांगेगा. सुंदर चेहरे का क्या अचार डालना है? सुहैल मेरा देखासुना, अच्छा लड़का है. सरकारी नौकरी है उस की. घरद्वार सब है. ऊपर से इकलौता है. अब क्या चाहिए? इस घर का दामाद सुहैल बनेगा, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी.’’ मांबहनों ने सुमना को खूब समझाया और उस की शादी सुहैल से हो गई.
सुहैल सुमना को जीजान से चाहता था, पर वह मन ही मन उस पर खफा रहती. उस के साथ रास्ते में चलते हुए उसे बड़ी शर्म आती. ‘हूर के साथ लंगूर’ कहकह सहेलियों ने उस की खूब खिल्ली उड़ाई. वह मन ही मन सुहैल को ‘चंडूल’ कहती. सुहैल अपना नया नामकरण जान कर भी उस पर जान छिड़कता रहा. वह सुमना को आगे पढ़ाना चाहता था. जिस स्कूल में वह पढ़ाता था उस में कालेज भी था. उस ने उस का बी.ए. में ऐडमिशन करा दिया. वह पढ़ने में कमजोर थी, अत: उस की पढ़ाई में भरपूर मदद करता. सुमना के न चाहते हुए भी उस के पैर भारी हो गए. सास ने खूब धूमधाम से उस की गोदभराई करवाई. पर कुदरत से उन की ये खुशियां देखी नहीं गईं. एक रात 8-9 बजे सुहैल ट्यूशन पढ़ा कर बाइक से घर लौट रहा था कि अचानक बाइक की हैडलाइट खराब हो गई और अंधेरे में वह बिजली के एक खंभे से टकरा कर गिर गया. तभी तेज रफ्तार से सामने से आ रही जीप उस के दोनों पैरों पर चढ़ गई. उस के दोनों पैर कुचल गए और जीप वाला भाग खड़ा हुआ. डाक्टर ने सुहैल के दोनों पैर घुटने तक काट दिए. मां और सुमना पर तो दुखों का पहाड़ टूट गया. मां को जबरदस्त सदमा तो इस बात का लगा कि अब उन का बेटा अपने पैरों पर नहीं चल पाएगा. वह तो अपाहिज हो गया. अब दूसरे के रहमोकरम का मुहताज रहेगा. इसी सदमे के कारण वे खुद ही दुनिया छोड़ गईं. सुमना पर यह दूसरा पहाड़ टूटा. ममतामयी सास के चले जाने से उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. अपनी मां का इस तरह चले जाना सुहैल से भी बरदाश्त नहीं हो रहा था. बिस्तर पर पड़ेपड़े वह दिनरात आंसू बहाता. एक तरह से वह डिप्रैशन में डूबता जा रहा था. अपने लाचार पति को इस तरह रोतातड़पता देख सुमना को उस पर बड़ी दया आती. अब उस की स्थिति देख उस का कठोर हृदय मोम की तरह पिघलता जा रहा था. उसी समय उस के पापा ने एक विस्फोट किया कि वह सुहैल को छोड़ दे. सुमना पापा से पूछना चाहती थी कि वह किस के भरोसे अपने पति को छोड़ दे? सुहैल की जिंदगी में जबरदस्ती उन्होंने ही उसे भेजा. आज जब वह अपाहिज हो गया है तो उसे छोड़ने की सलाह दे रहे हैं. क्या मैं उन के हाथों की कठपुतली हूं? मेरा कोई अस्तित्व नहीं है? मुझ पर कब तक बस पापा की ही चलती रहेगी? मेरे पास क्या दिलदिमाग नहीं है? लेकिन ये सारी बातें उस के मन में ही सिमट कर रह गईं.
सुहैल को लगता था कि सुमना एक न एक दिन उसे छोड़ कर चली जाएगी. एक तो वह उसे पसंद नहीं करती फिर एक अपाहिज के साथ वह कैसे रहेगी? और वह अपाहिज शरीर से उस की देखभाल भी कैसे करेगा? हां, सुमना के पेट में उस का एक अंश पल रहा है, शायद अब वह उसे जन्म भी न दे. फिर तो उन दोनों का रिश्ता खत्म हो ही जाएगा. बस, एक नौकरी बची थी, लेकिन वह होगी कैसे? ये सारे सवाल सुहैल के सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े थे, जिन का वह समाधान ढूंढ़ता और उन में उलझ जाता. मात्र एक साल ही हुआ था इस शादी को. सुमना एक ऐसे सच का सामना कर रही थी, जिस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी. सुहैल को टूट कर बिखरते देख वह उस की शक्ति बन ढाल बनी हुई थी. पहली बार उस ने सुहैल का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘जो हो गया उसे तो हम नहीं बदल सकते. अब आगे जो जिंदगी बची है उसे तो हम हंस कर जीएं. आप बच्चों को हिम्मत से लड़ने की बात सिखाते रहे हैं और आज खुद हिम्मत छोड़ कर बैठे हैं. आप कल से स्कूल पढ़ाने जाइए और मैं कालेज पढ़ने जाया करूंगी. हमें अपने आने वाले बच्चे को एक बेहतर समाज और एक सुनहरा भविष्य देना है. इस तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा.’’
सुहैल नम आंखों से सुमना को देखे जा रहा था कि उसे नापसंद करने वाली आज उसे अपनी मां की तरह समझा रही है. ‘‘आप अगर मेरी बात नहीं मानेंगे तो फिर मैं आप को चंडूल महाराज बोलूंगी,’’ सुमना ने हंस कर कहा ताकि सुहैल को हंसी आ जाए. वह ठठा कर हंस दिया. फिर बोला, ‘‘मैं सोच रहा था कि इतने दिनों से कोई मुझे मेरे प्यारे नाम से बुलाता क्यों नहीं? हां, यह ठीक है. मैं एक नौकर रख लेता हूं. वह मुझे स्कूल ले जाएगा, लाएगा और तुम कालेज जाना. अरे हां, तुम पढ़ने के फेर में मेरे आने वाले बच्चे की देखभाल मत भूल जाना. वैसे अभी बच्चे के जन्म में तो समय है न?’’ ‘‘बहुत समय है. अभी तो साढ़े 3 महीने ही हुए हैं. 7वां महीना लगते ही मैं कालेज से छुट्टी ले लूंगी.’’
‘‘दीदी… सर आप को बुला रहे हैं,’’ एक छात्र ने आ कर कहा तो सुमना जैसे नींद से जागी.
‘‘तुम चलो मैं आती हूं,’’ कह कर वह आंसू पोंछ कर मैदान में आ गई. सुहैल व्हील चेयर पर बैठा उसी का इंतजार कर रहा था, लेकिन जब वह आई तब कुछ बोला नहीं. सुमना भी खामोशी से उसे घर ले कर आ गई. सुहैल ने फोन कर अपने नौकर को जल्दी से जल्दी आने को कहा. अपनी पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण वह गांव चला गया था. उस ने दूसरे दिन ही आने का वादा किया. सुमना आते ही रसोई में जुट गई. खाना बना कर उस ने सुहैल को दे दिया तो वह खाने लगा. सुमना को भी भूख लगी थी. वह खाने बैठी ही थी कि फिर पापा का फोन आ गया. वह दूसरे कमरे में जा कर उन से बातें करने लगी. इस बार फोन पर मां भी थीं. वे भी सुमना को सब छोड़छाड़ कर अपने पास बुला रही थीं. पापा ने एकदम खुल कर कहा, ‘‘एक अपाहिज के साथतुम इतनी बड़ी जिंदगी कैसे काटोगी? वह तुम्हें कोई सुख नहीं दे सकता, तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता. तुम भरत से शादी कर लो. मैं ने एक डाक्टर से अबौर्शन करवाने की बात कर ली है. वह तैयार…’’
सुमना को लगा कि उस के कान में पिता की आवाज नहीं गरमगरम सीसा जा रहा है. अबौर्शन की बात पर उस का पूरा वजूद हिल गया. उस की ममता जाग उठी. अपने अजन्मे बच्चे की गरदन पर अपने पिता के खूनी हाथ की कल्पना कर उस का सर्वांग कांप उठा. उस का वात्सल्य प्रेम खौलते हुए खून के साथ चिंघाड़ उठा, ‘‘वाह पापा वाह. आप जैसा पिता तो मैं ने देखा ही नहीं. जब मैं भरत को चाहती थी तो आप ने जबरदस्ती सुहैल से मेरी शादी करवाई और आज जब वे अपाहिज हो गए हैं तो उन्हें छोड़ने के लिए रोजरोज मुझ पर दबाव डाल रहे हैं. आप जैसा स्वार्थी और मौकापरस्त इनसान मैं पहली बार देख रही हूं. भरत से मेरी शादी होते ही अगर उस का भी ऐक्सीडैंट हो गया या वह मर गया, तो आप मेरी तीसरी शादी करवाएंगे? जिस बच्चे के आने की खुशी में मैं और सुहैल जी रहे हैं उसे आप खत्म करवाने की सोच बैठे. आप ने मेरे मासूम बच्चे की हत्या करवाने की बात कैसे कह दी?’’ सुमना अपने अजन्मे बच्चे की याद में रो पड़ी. उस के पापा ने उस की सिसकी सुनी तो उन के मुंह पर ताला लग गया.
वह आगे बोली, ‘‘आप ने जिस उम्मीद के बलबूते पर मेरी शादी सुहैल से करवाई है, मैं उसी उम्मीद पर खरी उतरना चाहती हूं. अगर मेरी जिंदगी में संघर्ष है, तो मुझे यह संघर्ष और सुहैल के साथ जीवन जीना पसंद है. मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ूंगी. मेरे सिवा उन का अब है ही कौन? आगे से इस विषय पर आप मुझ से कभी बात नहीं करेंगे,’’ कह कर सुमना ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया. तभी अचानक धड़ाम की आवाज आई तो वह दौड़ते हुए कमरे की तरफ गई. वहां देखा कि टेबल पर से पानी का गिलास लेने की कोशिश में सुहैल पलंग पर से नीचे गिर गया. ‘‘यह आप ने क्या किया? थोड़ा मेरा इंतजार नहीं कर सकते थे?’’ सुमना सुहैल को किसी तरह से उठाते हुए भर्राए गले से बोली.
‘‘अब तो सिर्फ नौकर का ही इंतजार करना पड़ेगा,’’ कहतेकहते सुहैल की आंखें छलछला आईं. ‘‘आप की जानकारी के लिए बता दूं कि मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. हमेशा आप की परछाईं बन कर रहूंगी. पापा को जो बोलना है बोलने दीजिए. यह मेरी जिंदगी है और मेरा फैसला है,’’ सुमना सुहैल को पलंग पर ठीक से बैठाते हुए बोलते जा रही थी. उस ने उस की भीगी पलकों को पोंछ दिया और बोली, ‘‘मर्दों को आंसू शोभा नहीं देते. मैं आप की धर्मपत्नी हूं, इसलिए अपना फर्ज निबाहूंगी. आज से मैं आप की मां की तरह आप को डांटूगी, समझाऊंगी, तो बहन की तरह दुलार और पत्नी की तरह प्यार करूंगी.’’ फिर उस ने सुहैल को गले से लगा लिया. ‘‘धन्यवाद सुमना, तुम्हारे साथ से मैं आबाद हो गया,’’ सुहैल भर्राए गले से बोला. उस को लगा कि सुमना ने उसे तीखी धूप से बचाते हुए उस पर अपनी शीतल छांव कर दी