Latest Hindi Stories : स्मिता – क्या बेटी की बीमारी का इलाज ढूंढ पाए सारा और राजीव

Latest Hindi Stories : ‘‘यह कितनी कौंप्लिकेटेड प्रेग्नैंसी है,’’ राजीव ने तनाव भरे स्वर में कहा.

सारा ने प्रतिक्रिया में कुछ नहीं कहा. उस ने कौफी का मग कंप्यूटर के कीबोर्ड के पास रखा. राजीव इंटरनेट पर सर्फिंग कर रहा था. सारा ने एक बार उस की तरफ देखा, फिर उस ने मौनिटर पर निगाह डाली और वहां खडे़खडे़ राजीव के कंधे पर अपनी ठुड्डी रखी तो उस की घनी जुल्फें पति के सीने पर बिखर गईं.

नेट पर राजीव ने जो वेबसाइट खोल रखी थी वह हिंदी की वेबसाइट थी और नाम था : मातृशक्ति.

साइट का नाम देखने पर सारा उसे पढ़ने के लिए आतुर हो उठी. लिखा था, ‘प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने भी माना है कि आदमी को जीवन में सब से ज्यादा प्रेरणा मां से मिलती है. फिर दूसरी तरह की प्रेरणाओं की बारी आती है. महान चित्रकार लियोनार्डो दि विंची ने अपनी मां की धुंधली याद को ही मोनालिसा के रूप में चित्र में उकेरा था. इसलिए आज भी वह एक उत्कृष्ट कृति है. नेपोलियन ने अपने शासन के दौरान उसे अपने शयनकक्ष में लगा रखा था.’

वेबसाइट पढ़ने के बाद कुछ पल के लिए सारा का दिमाग शून्य हो गया. पहली बार वह मां बन रही थी इसीलिए भावुकता की रौ में बह कर वह बोली, ‘‘दैट्स फाइनल, राजीव, जो भी हो मेरा बच्चा दुनिया में आएगा. चाहे उस को दुनिया में लाने वाला चला जाए. आजकल के डाक्टर तो बस, यही चाहते हैं कि वे गर्भपात करकर के  अच्छाखासा धन बटोरें ताकि उन का क्लीनिक नर्सिंग होम बन सके. सारे के सारे डाक्टर भौतिकवादी होते हैं. उन के लिए एक मां की भावनाएं कोई माने नहीं रखतीं. चंद्रा आंटी को गर्भ ठहरने पर एक महिला डाक्टर ने कहा था कि यह प्रेग्नैंसी कौंप्लिकेटेड होगी या तो जच्चा बचेगा या बच्चा. देख लो, दोनों का बाल भी बांका नहीं हुआ.’’

‘‘यह जरूरी तो नहीं कि तुम्हारा केस भी चंद्रा आंटी जैसा हो. देखो, मैं अपनी इकलौती पत्नी को खोना नहीं चाहता. मैं संतान के बगैर तो काम चला लूंगा लेकिन पत्नी के बिना नहीं,’’ कहते हुए राजीव ने प्यार से अपना बायां हाथ सारा के सिर पर रख दिया.

‘‘राजीव, मुझे नर्वस न करो,’’ सारा बोली, ‘‘कल सुबह मुझे नियोनो- टोलाजिस्ट से मिलने जाना है. दोपहर को मैं एक जेनेटिसिस्ट से मिलूंगी. मैं तुम्हारी कार ले जाऊंगी क्योंकि मेरी कार की बेल्ट अब छोटी पड़ रही है. और हां, पापा को ईमेल कर दिया?’’

‘‘पापा बडे़ खुश हैं. उन को भी तुम्हारी तरह यकीन है कि पोती होगी. उन्होंने साढे़ 8 महीने पहले उस का नाम भी रख दिया, स्मिता. कह रहे थे कि स्मिता की स्मित यानी मुसकराहट दुनिया में सब से सुंदर होगी,’’ राजीव ने बताया तो सारा के गालों का रंग और भी सुर्ख हो गया.

‘‘मिस्टर राजीव बधाई हो, आप की पहली संतान लड़की हुई है,’’ नर्स ने बधाई देते हुए कहा.

पुलकित मन से राजीव ने नर्स का हाथ स्नेह से दबाया और बोला, ‘‘थैंक्स.’’

राजीव अपनी बेचैनी को दबा नहीं पा रहा था. वह सारा को देखने के लिए प्रसूति वार्ड की ओर चल दिया.

सारा आंखें मूंदे लेटी हुई थी. किसी के आने की आहट से सारा ने आंखें खोल दीं, फिर अपनी नवजात बेटी की तरफ देखा और मुसकरा दी.

‘‘मुझे पता नहीं था कि बेटियां इतनी सुंदर और प्यारी होती हैं,’’ यह कहते हुए राजीव ने बेटी को हाथों में लेने का जतन किया.

तभी बच्ची को जोर की हिचकी आई. फिर वह जोरजोर से सांसें लेने लगी. यह देख कर पतिपत्नी की सांस फूल गई. राजीव जोर से चिल्लाया, ‘‘डाक्टर…’’

आधे मिनट में लेडी डाक्टर वंदना जैन आ गईं. उन्होंने बच्ची को देख कर नर्स से कहा, ‘‘जल्दी से आक्सीजन मास्क लगाओ.’’

अगले 10 मिनट बाद राजीव और सारा की नवजात बेटी को अस्पताल के नियोनोटल इंटेसिव केयर यूनिट में भरती किया गया. उस बच्ची के मातापिता कांच के बाहर से बड़ी हसरत से अपनी बच्ची को देख रहे थे. तभी नर्स ने आ कर सारा से कहा कि उसे जच्चा वार्ड के अपने बेड पर जा कर आराम करना चाहिए.

सारा को उस के कमरे में छोड़ राजीव सीधा डा. अतुल जैन के चैंबर में पहुंचा, जो उस की बेटी का केस देख रहे थे.

‘‘मिस्टर राजीव, अब आप की बेटी को सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन वह कुछ चूस नहीं सकेगी. मां का स्तनपान नहीं कर पाएगी. उस का जबड़ा छोटा है, होंठों एवं गालों की मांसपेशियां काफी सख्त हैं. बाकी उस के जिनेटिक, ब्रेन टेस्ट इत्यादि सब सामान्य हैं,’’ डा. अतुल जैन ने बताया.

‘‘आखिर मेरी बेटी के साथ समस्या क्या है?’’

‘‘अभी आप की बेटी सिर्फ 5 दिन की है. अभी उस के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते. हो सकता है कि कल कुछ न हो. चिकित्सा के क्षेत्र में कभीकभी ऐसे केस आते हैं जिन के बारे में पहले से कुछ कहा नहीं जा सकता. वैसे आज आप की बेटी को हम डिस्चार्ज कर देंगे,’’ डा. अतुल ने कहा.

राजीव वार्ड में सारा का सामान समेट रहा था. स्मिता को नियोनोटल इंटेसिव केयर में सिर्फ 2 दिन रखा गया था. अब वह आराम से सांस ले रही थी.

‘‘आप ने बिल दे दिया?’’ नर्स ने पूछा.

‘‘हां, दे दिया,’’ सारा ने जवाब दिया.

नर्स ने नन्ही स्मिता के होंठों पर उंगली रखी और बोली, ‘‘मैडम, आप को इसे ट्यूब से दूध पिलाना पडे़गा. बोतल से काम नहीं चलेगा. यह बच्ची मानसिक रूप से कमजोर पैदा हुई है.’’

राजीव और सारा ने कुछ नहीं कहा. नर्स को धन्यवाद बोल कर पतिपत्नी कमरे से बाहर निकल गए.

घर आ कर सारा ने स्मिता के छोटे से मुखडे़ को गौर से देखा. फिर वह सोचने लगी, ‘आखिर इस के होंठों और गालों में कैसी सख्ती है?’

राजीव ने सारा को एकटक स्मिता को ताकते हुए देखा तो पूछा, ‘‘इतना गौर से क्या देख रही हो?’’

सारा कुछ नहीं बोली और स्मिता में खोई रही.

2 दिन बाद डा. अतुल जैन ने फोन कर राजीव व सारा को अपने नर्सिंग होम में बुलाया.

‘‘आप की बेटी की समस्या का पता चल गया. इसे ‘मोबियस सिंड्रोम’ कहते हैं,’’ डा. अतुल जैन ने राजीव और सारा को बताया.

‘‘यह क्या होता है?’’ सारा ने झट से पूछा.

‘‘इस में बच्चे का चेहरा एक स्थिर भाव वाले मुखौटे की तरह लगता है. इस सिंड्रोम में छठी व 7वीं के्रनिकल नर्व की कमी होती है या ये नर्व अविकसित रह जाती हैं. छठी क्रेनिकल नर्व जहां आंखों की गति को नियंत्रित करती है वहीं 7वीं नर्व चेहरे के भावों को सक्रिय करती है,’’ अतुल जैन ने विस्तार से स्मिता के सिंड्रोम के बारे में जानकारी दी.

‘‘इस से मेरी बेटी के साथ क्या होगा?’’ सारा ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आप की स्मिता कभी मुसकरा नहीं सकेगी.’’

‘‘क्या?’’  दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. हैरत से राजीव और सारा के मुंह खुले के खुले रह गए. किसी तरह हिम्मत बटोर कर सारा ने कहा, ‘‘क्या एक लड़की बगैर मुसकराए जिंदा रह सकती है?’’

डा. जैन ने कोई जवाब नहीं दिया. राजीव भी निरुत्तर हो गया था. वह सारा की गोद में लेटी स्मिता के नन्हे से होंठों को अपनी उंगलियों से छूने लगा. उस की बाईं आंख से एक बूंद आंसू का निकला. इस से पहले कि सारा उस की बेबसी को देखती, राजीव ने आंसू आधे में ही पोंछ लिया.

16 माह की स्मिता सिर्फ 2 शब्द बोलती थी. वह पापा को ‘काका’ और ‘मम्मी’ को ‘बबी’ उच्चारित करती. उस ने ‘प’ का विकल्प ‘क’ कर दिया और ‘म’ का विकल्प ‘ब’ को बना दिया. फिर भी राजीव और सारा हर समय अपनी नौकरी से फुरसत मिलते ही अपनी स्मिता के मुंह से काका और बबी सुनने को बेताब रहते थे.

6 साल की स्मिता अब स्कूल में पढ़ रही थी. लेकिन कक्षा में वह पीछे बैठती थी और हर समय सिर झुकाए रहती थी. उस की पलकों में हर समय आंसू भरे रहते थे. एक छोटी सी बच्ची, जो मन से मुसकराना जानती थी लेकिन  उस के होंठ शक्ल नहीं ले पाते थे. उस पर सितम यह कि उस के सहपाठी दबे मुंह उसे अंगरेजी में ‘स्माइललैस गर्ल’ कहते थे.

इस दौरान राजीव और सारा मुंबई विश्वविद्यालय छोड़ कर अपनी बेटी स्मिता को ले कर जोधपुर आ गए और विश्वविद्यालय परिसर में बने लेक्चरर कांप्लेक्स में रहने लगे. राजीव मूलत: नागपुर के अकोला शहर से थे और पहली बार राजस्थान आए थे.

स्मिता का दाखिला विश्वविद्यालय के करीब ही एक स्कूल में करा दिया गया. वह मानसिक रूप से एक औसत छात्रा थी.

उस दिन बड़ी तीज थी. विश्व- विद्यालय परिसर में तीज का उत्साह नजर आया. परिसर के लंबेचौडे़ लान में एक झूला लगाया गया. परिसर में रहने वालों की छोटीबड़ी सभी लड़कियां सावन के गीत गाते हुए एकदूसरे को झुलाने लगीं. स्मिता भी अपने पड़ोस की हमउम्र लड़कियों के साथ झूला झूलने पहुंची. लेकिन आधे घंटे बाद वह रोती हुई सारा के पास पहुंची.

‘‘क्या हुआ?’’ सारा ने पूछा.

‘‘मम्मी, पूजा कहती है कि मैं बदसूरत हूं क्योंकि मैं मुसकरा नहीं सकती,’’ स्मिता ने रोते हुए बताया.

‘‘किस ने कहा? मेरी बेटी की मुसकान दुनिया में सब से खूबसूरत होगी?’’

‘‘कब?’’

‘‘पहले तू रोना बंद कर, फिर बताऊंगी.’’

‘‘मम्मी, पूजा ने मेरे साथ चीटिंग भी की. पहले झूलने की उस की बारी थी, मैं ने उसे 20 मिनट तक झुलाया. जब मेरी बारी आई तो पूजा ने मना कर दिया और ऊपर से कहने लगी कि तू बदसूरत है इसलिए मैं तुझे झूला नहीं झुलाऊंगी,’’ स्मिता ने एक ही सांस में कह दिया और बड़ी हसरत से मम्मी की ओर देखने लगी.

बेटी के भावहीन चेहरे को देख कर सारा को समझ में नहीं आया कि वह हंसे या रोए. उस के मन में अचानक सवाल जागा कि क्या मेरी स्मिता का चेहरा हंसी की भाषा कभी नहीं बोल पाएगा. नहीं, ऐसा नहीं होगा. एक दिन जरूर आएगा और वह दिन जल्दी ही आएगा, क्योंकि एक पिता ऐसा चाहता है…एक मां ऐसा चाहती है और एक भाई भी ऐसा ही चाहता है.

एक दिन सुबह नहाते वक्त स्मिता की नजर बाथरूम में लगे शीशे पर पड़ी. शीशा थोड़ा ऊपर था. वह टब में बैठ कर या खड़े हो कर उसे नहीं देख सकती थी. सारा जब उसे नहलाती थी तब पूरी कोशिश करती थी कि स्मिता आईना न देखे. लेकिन आज सारा जैसे ही बेटी को नहलाने बैठी तो फोन आ गया. स्मिता को टब के पास छोड़ कर सारा फोन अटेंड करने चली गई.

स्मिता के मन में एक विचार आया. वह टब पर धीरे से चढ़ी. अब वह शीशे में साफ देख सकती थी. लेकिन अपना सपाट और भावहीन चेहरा शीशे में देख कर स्मिता भय से चिल्ला उठी, ‘‘मम्मी…’’

सारा बेटी की चीख सुन कर दौड़ी आई, बाथरूम में आ कर उस ने देखा तो शीशा टूटा हुआ था. स्मिता टब में सहमी बैठी हुई थी. उस ने गुस्से में नहाने के शावर को आईने पर दे मारा था.

‘‘मम्मी, मैं मुसकराना चाहती हूं. नहीं तो मैं मर जाऊंगी,’’ सारा को देखते ही स्मिता उस से लिपट कर रोने लगी. सारा भी अपने आंसू नहीं रोक पाई.

‘‘मेरी बेटी बहुत बहादुर है. वह एक दिन क्या थोडे़ दिनों में मुसकराएगी,’’ सारा ने उसे चुप कराने के लिए दिलासा दी.

स्मिता चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘मम्मी, मैं आप की तरह मुसकराना चाहती हूं क्योंकि आप की मुसकराहट से खूबसूरत दुनिया में किसी की मुसकराहट नहीं है.’’

राजीव शिमला से वापस आए तो सारा ने पूछा, ‘‘हमारी बचत कितनी होगी, राजीव?’’

‘‘क्या तुम प्लास्टिक सर्जरी के बारे में सोच रही हो,’’ राजीव ने बात को भांप कर कहा.

‘‘हां.’’

‘‘चिंता मत करो. कल हम स्मिता को सर्जन के पास ले जाएंगे,’’ राजीव ने कहा.

‘‘सिस्टर, तुम देखना मेरी मुसकराहट मम्मी जैसी होगी. जो मेरे लिए दुनिया में सब से खूबसूरत मुसकराहट है,’’ एनेस्थिसिया देने वाली नर्स से आपरेशन से पहले स्मिता ने कहा.

स्मिता का आपरेशन शुरू हो गया. सारा की सांस अटक गई. उस ने डरते हुए राजीव से पूछा, ‘‘सुनो, उसे आपरेशन के बाद होश आ जाएगा न? कभीकभी मरीज कोमा में चला जाता है.’’

‘‘चिंता मत करो. सब ठीक होगा,’’ राजीव ने मुसकराते हुए जवाब दिया ताकि सारा का मन हलका हो जाए.

डा. अतुल जैन ने स्मिता की जांघों की ‘5वीं नर्व’ की शाखा से त्वचा ली क्योंकि वही त्वचा प्रत्यारोपण के बाद सक्रिय रहती है. इस से ही काटने और चबाने की क्रिया संभव होती है. राजीव और सारा का बेटी के प्रति प्यार रंग लाया. आपरेशन के 1 घंटे बाद स्मिता को होश आ गया. लेकिन अभी एक हफ्ते तक वे अपनी बेटी का चेहरा नहीं देख सकते थे.

काफी दिनों तक राजीव पढ़ाने नहीं जा पाया था. आज सुबह 10 बजे वह पूरे 2 महीने बाद लाइफ साइंस के अपने विभाग गया था. आज ही सुबह 11 बजे स्मिता को अस्पताल से छुट्टी मिली. रास्ते में उस ने सारा से कहा, ‘‘मम्मी, मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा है.’’

यह सुन कर सारा ने स्मिता के चेहरे को गौर से देखा तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. स्मिता जब बोल रही थी तब उस के होंठों ने एक आकार लिया. सारा ने आवेश में स्मिता का चेहरा चूम लिया. उस ने तुरंत राजीव को मोबाइल पर फ ोन किया.

फोन लगते ही सारा चिल्लाई, ‘‘राजीव, स्मिता मुसकराई…तुम जल्दी आओ. आते वक्त हैंडीकैम लेते आना. हम उस की पहली मुसकान को कैमरे में कैद कर यादों के खजाने में सुरक्षित रखेंगे.’’

उधर राजीव इस बात की कल्पना में खो गया कि जब वह अपनी बेटी को स्मिता कह कर बुलाएगा तब वह किस तरह मुसकराएगी.

Hindi Kahaniyan : बदलते जमाने का सच

Hindi Kahaniyan: ‘‘हैलो,’’ प्रियांशु ने मुसकरा कर नैनी की ओर देखा.

‘‘हैलो,’’ नैनी भी उसे देख कर मुसकराई.

‘‘तुम्हारा प्रोजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा लैपटौप खराब हो गया है. ठीक होने के लिए दिया है. एक घंटे के लिए अपना लैपटौप दोगे मुझे?’’

‘‘क्यों नहीं, कब चाहिए?’’ प्रियांशु ने पूछा.

‘‘कल दोपहर में आ कर ले जाऊंगी. लंच भी तुम्हारे साथ करूंगी. संडे है न, कोई न कोई नौनवैज तो बनाओगे ही.’’

‘‘बिलकुल. क्या खाना पसंद करोगी, चिकन या मटन?

‘‘जो तुम्हें पसंद हो. वैसे, तुम्हारा प्राजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘हां, देखना चाहोगी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. कल आने के बाद,’’ नैनी ‘बायबाय’ कहते हुए चली गई. प्रियांशु भी अपने र्क्वाटर पर लौट आया.

प्रियांशु और नैनी एक कंपनी में साथसाथ काम करते थे. उन के क्वार्टर भी अगलबगल में थे. दोनों अभी कुंआरे थे. साथसाथ काम करने के चलते अकसर उन में बातचीत होती रहती थी. दोनों के विचार मिलते थे और दोस्ती के लिए इस से ज्यादा चाहिए भी क्या.

दूसरे दिन प्रियांशु मटन ले कर लौटा ही था कि नैनी आई.

‘‘बहुत जल्दी आ गई तुम नैनी?’’ प्रियांशु ने लान में रखी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और खुद मटन रखने रसोईघर में चला गया.

‘‘तुम्हारा हाथ बंटाने पहले आ गई,’’ कह कर नैनी मुसकराई.

नैनी की यही अदा प्रियांशु को उस का दीवाना बनाए हुई थी.

‘‘अभी चाय ले कर आता हूं, फिर इतमीनान से खाना बनाएंगे,’’ कह कर प्रियांशु रसोईघर में चला गया.

प्रियांशु के पिताजी किसान थे. उस से बड़ी एक बहन थी जिस की शादी हो चुकी थी. उस से एक छोटा भाई महीप था जो मैडिकल इम्तिहान की तैयारी कर रहा था. पिता के ऊपर काफी कर्ज हो गया था.

अब प्रियांशु कर्ज चुकाने और छोटे भाई महीप को पढ़ाने का खर्चा उठा रहा था. पिताजी उस की शादी में तिलक की एक मोटी रकम वसूलना चाहते थे. रिश्ते तो कई जगह से आए थे, पर उन की डिमांड ज्यादा होने के चलते कहीं शादी तय नहीं हो पा रही थी. इधर उस की बहन अपनी ननद के लिए लड़का ढूंढ़ रही थी. उस की ननद नाटे कद की थी और किसी तरह मैट्रिक पास हो गई थी. रंगरूप साधारण था, पर प्रियांशु के पिताजी की डिमांड को उस के समधी पूरा करने के लिए तैयार हो गए थे.

नैनी के पिताजी की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. कोई भाई नहीं था. मां ने उस की पढ़ाई के लिए कौनकौन से पापड़ न बेले थे. बाद में उस ने ऐजुकेशन लोन ले कर पढ़ाई पूरी की थी. अब लोन चुकाना और मां की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर थी.

प्रियांशु जब रसोईघर में गया था तब उस का मोबाइल फोन बाहर ही छूट गया था. अचानक फोन बजने लगा तो नैनी ने प्रियांशु को पुकारा, पर चाय बनाने में बिजी होने के चलते उस की आवाज प्रियांशु के कानों तक न पहुंची.

नैनी ने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज आई. कोई औरत थी.

‘‘हैलो, आप कौन बोल रही हैं?’’ नैनी ने पूछा.

‘प्रियांशु कहां है? मैं उन की बहन बोल रही हूं. आप कौन हैं?’

‘‘मैं प्रियांशु की कलीग हूं, बगल में ही रहती हूं.’’

‘अच्छा, तुम नैनी हो क्या?’

‘‘हां जी, आप मुझे कैसे जानती हैं?’’ नैनी ने हैरान हो कर पूछा.

‘प्रियांशु ने बताया था. अब तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उस की शादी मेरी ननद से तय हो गई है,’ उधर से एक तीखी आवाज आई.

‘‘अच्छा जी… प्रियांशु अभी रसोईघर में हैं. वे आ जाते हैं तो उन्हें आप को फोन करने के लिए कहती हूं,’’ नैनी ने अपनेआप को संभालते हुए कहा.

प्रियांशु ने अपनी बहन की ननद के बारे में कुछ दिनों पहले बताया था. वह कुछ परेशान सा लग रहा था. उस की बातों से लग रहा था कि उस की बहन अपनी ननद के लिए उस के पीछे पड़ी थी. कहती थी कि यह शादी हो जाती है तो उसे मुंहमांगा दहेज मिलेगा. साथ ही, उस की ननद हमेशा के लिए उस के साथ रहेगी, पर प्रियांशु को यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं था.

नैनी यह तो नहीं जानती थी कि प्रियांशु से उस का क्या रिश्ता है, पर उन दोनों को एकदूसरे का साथ बहुत भाता था. प्रियांशु जब कभी औफिस से गैरहाजिर होता था तो वह उसे बहुत याद करती. आज उसे पता चला कि प्रियांशु ने घर में उस की चर्चा की है, पर इस संबंध में उस ने कभी कुछ बताया न था. अभी वह इसी उधेड़बुन में थी कि प्रियांशु आ गया.

‘‘तुम्हारा फोन था. बधाई, तुम्हारी शादी तय हो गई,’’ नैनी ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा.

प्रियांशु चाय की ट्रे लिए खड़ा था. लगा, गिर जाएगा. किसी तरह अपनेआप को संभालते हुए वह बैठा. यह सुन कर उस का मन बैठता चला गया. तो क्या सच ही उस की शादी तय हो गई? क्या यह उस की बहन की चाल तो नहीं? अगर ऐसा है तो जरूर ही उस की ननद होगी. पर वे लोग उस से बिना पूछे ऐसा कैसे कर सकते हैं.

‘‘क्या सोच रहे हो? बहन से पूछ लो कि कब सगाई है. मुझे तो ले नहीं चलोगे. कहोगे तब भी मैं न चलूंगी. तुम्हारी बहन ने चेताया है, तुम्हारा पीछा छोड़ दूं,’’ नैनी बोल रही थी. वह सुन रहा था. लंच का सारा मजा किरकिरा हो गया था.

दूसरे दिन प्रियांशु गांव में था. उस ने पिताजी के पैर छुए.

‘‘अच्छा हुआ कि तू आ गया बेटा. अब हम कर्ज से जल्दी ही उबर जाएंगे. तुम्हारा रिश्ता तय हो गया है सरला से. वही तुम्हारी बहन की ननद. कद में तुम से थोड़ी छोटी जरूर है, पर घर के कामों में माहिर है. सुशील इतनी कि हर कोई उस के स्वभाव की तारीफ करता है. तुम्हारी बहन का भी काफी जोर था.’’

प्रियांशु ने कुछ न कहा. वह पिताजी की बहुत इज्जत करता था. उन के हर आदेश का पालन करना अपना फर्ज समझता था. वह उन की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था. उसे अपनी बहन से भी उतना ही लगाव था.

पर उसे क्या मालूम था कि जिन मातापिता और बहन की वह इतनी इज्जत करता था उन के लिए उस की भावनाओं का कोई मोल नहीं था. उस ने कई मौकों पर नैनी का जिक्र किया था. उस की तारीफ की थी.

एक समझदार मातापिता और बहन के लिए इतना इशारा कम न था. कई बार उस ने सरला से शादी न करने की इच्छा जाहिर की थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी सरला से तय कर दी थी. सच तो यह था कि कहीं उस की शादी तय नहीं हुई थी, उसे सरेबाजार बेचा गया था.

रात में पिताजी ने साथ खाने पर बुलाया. उन्होंने खबर भिजवा कर बेटी को भी बुलवा लिया था. उस का छोटा भाई महीप भी आ गया था. सब के सामने पिताजी सगाई की तारीख तय करना चाहते थे.

जब सभी इकट्ठा हुए तो पिताजी ने बात छेड़ी. अब तक गांव में कई लोगों से उन्होंने प्रियांशु की बात की थी. लायक बेटे की यही पहचान है. पिता ने जो फैसला ले लिया, उस पर बेटे ने कोई टिप्पणी नहीं की. गांव के लोग ऐसे ही उस के परिवार को आदर्श नहीं मानते.

‘‘तो प्रियांशु, तुम को कब छुट्टी मिलेगी? उसी समय सगाई की तारीख तय करूंगा,’’ पिता ने कहा.

‘‘लेकिन पिताजी, आप ने भैया से पूछ लिया है या खुद ही रिश्ता तय कर दिया,’’ छोटे भाई महीप ने पूछा.

‘‘प्रियांशु आजकल के लड़कों जैसा नहीं है जो हर बात पर मातापिता की बात का विरोध करते हैं. प्रियांशु जानता है कि उस के पिता जो भी करेंगे, उस के और परिवार के फायदे में करेंगे,’’ पिताजी अचानक महीप के बीच में पड़ने से खीज गए थे.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि भैया को आप बलि का बकरा समझते हैं. भैया ने कई बार सरला से शादी के प्रति अनिच्छा जाहिर की?है. क्या दीदी यह नहीं जानतीं? क्या मां को यह पता नहीं?

‘‘मां को तो आप ने कभी मान दिया ही नहीं. जिंदगीभर उन्हें दबा कर रखा. आप ने सब पर अनुशासन के नाम पर हिटलरशाही चलाई. लेकिन अब मैं ऐसा न होने दूंगा. शादीब्याह किसी सामान की खरीदफरोख्त नहीं है जिसे जब चाहे और जिस को चाहे खरीदबेच दो.’’

महीप की बात सुन कर पिताजी हैरान रह गए. आज पहली बार उन्हें महीप की नालायकी पर दुख हुआ.

पिताजी कुछ बोलते, इस के पहले ही मां ने कहा, ‘‘जिंदगीभर इन्होंने अपनी चलाई है… अब भी यही करना चाहते हैं. किसी ने प्रियांशु से पूछा कि उस की इच्छा क्या है.’’

‘‘अगर भैया को कोई एतराज नहीं है तो मैं अपनी कही बात वापस ले लूंगा,’’ महीप ने कहा.

‘‘दीदी, तुम से तो मैं ने अपनी इच्छा कई बार बताई. लेकिन तुम मेरी इच्छा का मान क्या रखोगी, उलटे नैनी को तुम ने धमकाया कि वह मेरा पीछा करना छोड़ दे,’’ यह कहते हुए प्रियांशु दुखी था. पर पिता दीनानाथ ने पासा पलटते देख बात को बदला. उन्हें लगा कि इतना बड़ा दहेज उन के हाथों से निकला जा रहा है.

पिता बोले, ‘‘पर बेटा, तुम ने तो बताया था कि नैनी हमारी बिरादरी की नहीं है. हम से छोटी जाति की है तो क्या हमारी बिरादरी में लड़कियों की कमी है, जो अपने से निचली बिरादरी में शादी कर के पूरे समाज में अपनी नाक कटाए?

‘‘यह भी तो सोचो कि छोटी जाति की बहू हमारे जैसी संस्कारवान होगी भला? फिर उस से पैदा हुई औलाद भी तो संस्कारहीन होगी.’’

‘‘आप कैसी बातें करते हैं बाबूजी… आप से किस ने कहा कि आप से छोटी जाति की लड़कियां संस्कारहीन होती हैं? आप ने यह कभी सोचा है कि ऐसा कह कर आप उस की जाति की बेइज्जती कर रहे हैं. यही सोच तो हमारे समाज में कोढ़ बनी हुई है. आप किसी के बारे में बिना कुछ जाने ऐसी बात कैसे कर सकते हैं?

‘‘मैं यह कहूं कि वे छोटी समझी जाने वाली जातियां नहीं, बल्कि हम खुद संस्कारहीन हैं तो बड़ी बात न होगी, क्योंकि वे लोग अपने से बड़ी जातियों की हमेशा इज्जत करते हैं, जबकि हम बिना किसी वजह के केवल जाति के आधार पर उन्हें नीच, संस्कारहीन और न जाने क्याक्या कहते रहते हैं.

‘‘मैं ने ऊंची जाति के कहे जाने वाले लोगों की करतूतें भी खूब देखी हैं. अब इस बात पर चर्चा न करें तो ही अच्छा.’’

जब दीनानाथ ने बात बनते न देखी तो उन्हें गांव के ज्योतिषी याद आए. वे बोले, ‘‘इस संबंध में ज्योतिषी से राय ले लेनी चाहिए. हमारे परिवार में आज तक कोई भी शादी बिना लड़केलड़की की कुंडली मिलाए नहीं हुई है. जब दोनों के गुण मिलते हैं तभी पतिपत्नी की जिंदगी सुख से भरी रहती है, वरना पूरी जिंदगी दुख में ही गुजर जाती है.’’

अभी रात ज्यादा नहीं हुई थी. गांव के गोवर्धन पांडे शादीब्याह में कुंडलियां मिलाते थे. गांव के लोग उन्हें अच्छा ज्योतिषी समझते थे. गांव वालों के हाथ देख कर और उन के ग्रह के नाम पर हवन करा कर उन की रोजीरोटी बिना कोई काम किए आराम से चलती थी. किसी की शादी करानी हो तो कुंडलियां मिलान करा देना और रोकनी हो तो

उन में कई अड़ंगे डाल देना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. जैसा जजमान वैसा काम.

बाबूजी की उन से खूब पटती थी. दोनों साथसाथ पढ़े भी थे. बचपन के दोस्त भी थे इसलिए राह से भटके बेटे को राह पर लाने का काम भी ज्योतिषी से बढि़या कौन कर सकता था.

दीनानाथ बोले, ‘‘मैं अभी ज्योतिषी को बुला लाता हूं. वे जो कहेंगे वही होगा,’’ फिर किसी से कुछ कहे बगैर वे ज्योतिषी को बुलाने चले गए.

गोवर्धन पांडे ने अभीअभी खाना खाया था और अब सोने की तैयारी कर रहे थे. जब इतनी रात को दीनानाथ को आते देखा तो उन्हें अहसास हो गया कि कोई ग्रहनक्षत्र का चक्कर हैं. वे खुश हो कर बोले, ‘‘आओ यार, इतनी रात में आने की कोई खास वजह लगती है. बताओ, क्या बात है?’’

दीनानाथ ने आपबीती सुनाई और किसी तरह बेटे को राह पर लाने को कहा.

ज्योतिषी ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, इतनी सी बात है. चिंता न करो. ऐसे बहके लड़कों को राह पर लाना तो मेरे लिए पलभर का काम है… अब बताओ, तुम्हारा काम हो जाएगा तो दक्षिणा में मुझे क्या मिलेगा.’’

‘‘जो तुम मांगोगे पांडे, दूंगा. बस, किसी तरह बेटे को मेरे समधी की बेटी से शादी के लिए राजी करा दो.’’

दीनानाथ जब घर से बाहर निकले तो ज्योतिषी गोवर्धन पांडे अपनी पत्नी से बोले, ‘‘अब चिंता मत करो पंडाइन, भगवान चाहेगा तो तुम्हारे कंगन बनने का जुगाड़ जल्दी ही हो जाएगा. किवाड़ बंद कर लो. आने में देर हो जाएगी.’’

ज्योतिषी गोवर्धन पांडे को देख कर प्रियांशु ने नाकभौं सिकोड़ ली. वह ज्योतिषी को बचपन से ही जानता था. इस ने कइयों के घर में झगड़ा कराया था. कितनों का घर उजाड़ा था. जरूरत पड़ने पर ओझागुनी होने का भी ढोंग रचता था. जब कोई बीमार पड़ता तो पड़ोसी द्वारा भूत चढ़ाने की बात बताता और उन्हें भगाने के नाम पर खूब पैसे वसूलता.

गोवर्धन पांडे ने जब दोनों की जन्मकुंडली मांगी तो प्रियांशु बोला कि नैनी की जन्मकुंडली नहीं बनी है और जन्मतिथि के नाम पर एक गलत तिथि बता दी.

ज्योतिषी बहुत देर तक पोथीपतरा देखते रहे और एक कागज पर कुछ लिखते रहे. आखिर में वे बोले, ‘‘लड़कालड़की के गुण बिलकुल उलटे हैं. शादी होते ही वरवूध में से किसी एक की मृत्यु का योग है.’’

‘‘आप ने अपनी कुंडली देखी है ज्योतिषी चाचा?’’ महीप ने पूछा, ‘‘अगर देखी होती तो चाची आप को रोज जलीकटी न सुनातीं.’’

गोवर्धन पांडे की पत्नी झगड़ालू थीं. किसी न किसी पड़ोसी से रोज ही बातबात पर लड़ जातीं. ज्योतिषी को तो बीच में पड़ते ही गालीगलौज करने लगतीं. सारा गांव यह बात जानता था.

‘‘महीप, तुम चुप रहो. अपने से बड़ों की इज्जत करो,’’ बाबूजी बोले तो वह चुप हो गया.

‘‘बोलने दो दीनानाथ, अभी बच्चा है… धीरेधीरे सब सीख जाएगा,’’ ज्योतिषी गोवर्धन पांडे बोले.

इसी बीच बहन बीच में आ गई. वह बोली, ‘‘प्रियांशु, तुम्हीं सोचो, क्या ऐसी शादी करोगे जिस में किसी की मौत होने का डर हो? मैं तो कहती हूं कि अपनी ऊंची जाति, पिता की भावनाओं और परिवार के रीतिरिवाज, और हम पर लदे कर्ज का ध्यान रखते हुए मेरी ननद से शादी कर लो.’’

‘‘बाबूजी, क्या आप को नहीं लगता कि ज्योतिषी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं? इन्होंने कुंडली नहीं, बल्कि शादी काटने की गणित बिठाई है. क्या आज तक कोई किसी का भविष्य जान पाया है? क्या राम की शादी के समय कुंडली का विचार नहीं किया गया था?

‘‘ज्योतिषी चाचा को तो मैं ने नैनी की गलत जन्मतिथि बताई थी. उस की कोई भी जन्मतिथि दी जाएगी, इन्हें अपशकुन का ही योग दिखाई पड़ेगा.

‘‘मैं सरला के बारे में नहीं जानता. मैं यह भी नहीं जानता कि वह मुझ से शादी करना चाहती भी है या नहीं. उसे भी मेरे साथ जबरन जोड़ने की कोशिश सभी लोग कर रहे हैं, पर मैं नैनी को बहुत दिनों से जानता हूं. वह एक समझदार और सुलझी हुई पढ़ीलिखी लड़की है. उस के विचार मुझ से मिलते हैं, मन मिलता है. हमारे दिल में एकदूसरे के लिए प्यार है.

‘‘मैं जानता हूं कि आप, दीदी और ज्योतिषी चाचा मिल कर साजिश रच रहे हैं. कम से कम बाबूजी आप से और दीदी से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी,’’ प्रियांशु कह कर चुप हुआ तो भाई महीप और मां ने उस का पक्ष लेते हुए कहा, ‘‘इस की शादी नैनी से ही होगी.’’

‘‘आप चिंता न करें बाबूजी, नैनी और मैं मिल कर कर्ज चुका देंगे,’’ प्रियांशु को अहसास हो गया कि पिताजी दहेज के लालच में यह सब कर रहे हैं.

अब दीनानाथ को समझ आ गया था कि उन से बड़ी भूल हुई है. उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया था. अपने बेटे के खिलाफ ही साजिश रची थी. अब वह वक्त नहीं रहा, जब धर्म, जाति और कुंडली के नाम पर बेमेल सोच वाले लोगों को जबरन शादी के बंधन में बांध दिया जाता है.

दीनानाथ बोले, ‘‘बेटा, बाप हो कर भी मैं तुम से माफी मांगता हूं. मुझ से गलती हुई है. शादीब्याह गुड्डेगुडि़या का खेल नहीं है. इस में 2 लोग एकदूसरे के साथ जिंदगीभर के लिए बंधते हैं. पतिपत्नी को जाति नहीं, बल्कि दिल और विचार एकदूसरे के साथ जोड़ते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा रिश्ता तय करते वक्त इस बात का खयाल रखना चाहिए था. दहेज के लालच ने मुझे अंधा बना दिया था. पहले तो लगा कि महीप उद्दंड है, पर उस पर मुझे अब गर्व हो रहा है. उस ने मेरी आंखें खोलने की कोशिश की थी, पर मेरी आंखें न खुलीं.

‘‘कल मैं नैनी की मां से तुम्हारे लिए उस का हाथ मांगने खुद जाऊंगा. साथ ही, तुम्हारी बहन की नादानी के लिए नैनी से भी माफी मांग लूंगा,’’ कहते हुए उन्होंने प्रियांशु को गले लगा लिया.

बहन ने कहा, ‘‘मेरी गलती के लिए आप क्यों माफी मांगेंगे बाबूजी? मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’

बदलते जमाने का यही सच था.

Hindi Moral Tales : तेरे-मेरे सपने – क्या बरकरार रह पाई नैना और रिया की दोस्ती

Hindi Moral Tales : रिया और नैना एक इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी में साथ काम करती थीं. दोनों ने जौइनिंग एकसाथ की थी. दोनों सिविल इंजीनियर थीं. रिया के मामा और नैना का नेटिव प्लेस एक था. इन समानताओं ने दोनों को बहुत जल्द दोस्त बना दिया. रिया सिविल इंजीनियरिंग ग्रैजुएशन में टौपर थी. उस के सपने ऊंचे थे. उसे लंबेलंबे पुल और ऊंची इमारतें बनानी थीं, कुछ ऐसा जो पहले न बना हो, सब से ऊंचा, सब से मुश्किल. वह आंखें बंद कर के, हाथ फैला कर जब अपने सपने सुनाने लगती तो सुनने वाला एक अलग ही स्वप्नलोक में पहुंच जाता और नैना उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे बांहों में भर लेती और कहती, ‘‘बैस्ट औफ लक, रिया. तुम्हारे सारे सपने पूरे हों,’’

नैना औसत छात्रा रही थी. उस के पेरैंट्स जल्द उस की शादी कर देना चाहते थे लेकिन उस ने अपनी जिद से बैंक से लोन ले कर अपनी पढ़ाई पूरी की क्योंकि वह अपनी शर्तों के अनुसार जीना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़े हो कर, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के पश्चात शादी कर के अपने पति और बच्चों के साथ शांतिपूर्ण जिंदगी बिताना चाहती थी.

रिया का स्वभाव मर्दाना था, बातबात में टैंपर होना, सभी की बुराई करना, कलीग और बौस पर हावी होने की कोशिश करना आदिआदि. दूसरी तरफ नैना बहुत ही घरेलू टाइप की महिला थी, तरहतरह की रैसिपी उसे आती थीं, दागधब्बे कैसे हटाए जाते हैं, घर को मेंटेन कैसे किया जाता है, फैशन में क्या चल रहा है उसे सब पता होता. देख कर कोई कह नहीं सकता था कि नैना सिविल इंजीनियर है और बहुराष्ट्रीय कंपनी में इतने बड़े पद पर कार्यरत है.

नैना की यह एडिशनल क्वालिटी थी जिस के कारण औरत मान कर उसे औफिस में अकसर हलके काम दिए जाते थे. हालांकि अब धीरेधीरे लोगों को नैना का पोटैंशियल समझ आने लगा था. किसी प्रोजैक्ट में खंबों के बीच दूरी कितनी होगी, बीम की मोटाई क्या रखनी होगी, लोहे के सरिए कितने चाहिए होंगे, नैना के ये एस्टीमेशन कभी गलत नहीं होते थे. रिया झट से इस एस्टीमेशन को थ्योरी और कैलकुलैटर से प्रूव कर देती थी. इस तरह दोनों की दोस्ती दिनोंदिन प्रगाढ़ होती जा रही थी. कलीग उन से जलते थे, उन्हें चिढ़ाते थे, उन्हें लड़ाने की कोशिशें करते थे.

रिया शौर्टटैंपर्ड थी, लेकिन नैना उसे समझाती कि गलत क्या है, समलैंगिकता अब भारत में गुनाह तो है नहीं, अगर मैं शिव के साथ इंगेज नहीं होती तो अभी तक तुम्हें प्रपोज कर चुकी होती. रिया हंस देती. रिया के पेरैंट्स के अलावा सिर्फ नैना वह शख्स है जिस की कोई भी बात रिया को बुरी नहीं लगती. सैकड़ों ऐसी हसीन शामें घटित हुईं जब दोनों दोस्त अपने सुखदुख को एकदूसरे से शेयर करती थीं. इस तरह रिया और नैना की दोस्ती की मिसाल दी जाने लगी.

नैना को बहुत जल्द औफिस में तरक्की मिलने लगी थी तो दूसरी ओर रिया को छोटेछोटे प्रोजैक्ट कठिन लगते थे. उस की टेबल पर पैंडिंग्स फाइलें बढ़ती चली जा रही थीं. करे तो करे क्या? रिया को किताबी नौलेज तो बहुत थी पर लेबर और सप्लायर्स से कैसे डील किया जाए, यह उसे नहीं पता था. रिया कितना भी बचने की कोशिश करे लेकिन कोई न कोई पंगा फंस ही जाता था. उसे नैना की तरक्की से ईर्ष्या होती थी जिस से अतिरिक्त प्रयास के कारण वह कोई न कोई गलती कर जाती थी.

एक दिन बेतवा नदी के पुल वाली साइट पर लेबर को बिना काम के 50 हजार रुपए पेमैंट करने पड़ गए क्योंकि सीमेंट की बोरियां समय पर नहीं पहुंची थीं. सीमेंट मंगाने का सुझाव रिया का था, क्योंकि इस तरह टैंपरेरी स्ट्रक्चर को बनाने के लिए जो सीमेंट मंगाई जानी थी उस से कुल 5 लाख रुपए की बचत होने वाली थी. रिया को औफिस आने से पहले ही पंगे का पता चल चुका था, रिया ने अभी अपना डैस्कटौप खोला ही था कि बौस यानी सदानंद का बुलावा आ गया.

‘‘रिया, तुम कब अपनी जिम्मेदारी समझोगी? बात 50 हजार या 5 लाख रुपए की नहीं है. यह देखो,’’ सदानंद ने ईमेल की कौपी रिया के हाथों में दी.

राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय से एक दिन के काम के डिले का कारण पूछा गया था. रिया की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘तुम जानती नहीं हो, झांसी-खजुराहो सिक्सलाइन हाईवे किस कदर सरकार की प्रायोरिटी में है और हम यहां बनने वाले डिफैंस कौरिडोर के कौंट्रैक्ट के भी दावेदार हैं, तुम कंपनी का भट्टा बैठा दोगी. अभी 3 दिन और काम नहीं लग पाएगा, लेबर तो एडजस्ट कर देंगे लेकिन डिले का क्या होगा, कौन है इस का जिम्मेदार? मुंबई औफिस को भी रिपोर्ट करनी होगी,’’ सदानंद बोले.

फिर नैना से आगे के प्लान पर चर्चा करते हुए सदानंद ने रिया को वहां से चले जाने के लिए कहा.

बहुत बड़ी इंसल्ट थी रिया के लिए यह. रिया को अपनी पढ़ाई पर बहुत घमंड था, अपने आगे नैना को उस ने कभी कुछ नहीं समझा था. बहुत देर अपने औफिस में रिया सुबकती रही और तब नैना ने उसे सांत्वना दी.

‘‘कैरियर पर जो दाग लग गया वह कैसे धुलेगा,’’ रिया ने कहा.

‘‘डौंट वरी. मैं हूं न,’’ और फिर नैना ने रिया को इस तरह बांहों में भर लिया जैसे गौरैया अपने बच्चों को अपने पंखों में समेट लेती है. नैना अकसर अमेरिकी लेखक लेस ब्राउन को कोट करते हुए कहती थी, ‘‘दूसरों को उन के सपने साकार करने में मदद करें, आप के सपने अपनेआप पूरे होने लगेंगे.’’

रिया और नैना आज एक अच्छी दोस्त थीं. एक के बाद एक, दोनों मिल कर प्रोजैक्ट पूरे करती चली जा रही थीं. नैना को काम कर के खुशी मिलती थी तो रिया को हर जगह अपना नाम चाहिए होता था.

झांसी से मऊरानीपुर तक 200 मीटर से छोटे सारे पुल बना लिए गए थे. रिया चहक कर बताती कि उस ने बनाए हैं. फाइलों पर रिया ने अपने नाम डलवा रखे थे, नैना सिर्फ हंस कर रह जाती थी.

बहुत ही मजबूत बने हैं सारे पुल, सुंदरता में ब्रिटिश आर्किटैक्चर को मात करते हैं, डायनैमिक लोड, लाइव लोड और डैड लोड तीनों में आगे हैं. रिया अपने कलीग्स को बताती और जब कलीग्स उसे बधाई देने लगते तो रिया इठला कर कहती, ‘‘ये चूहे जैसे काम, उस के स्टेटस के नहीं हैं, उसे कुछ बड़ा करना है, स्टैच्यू औफ यूनिटी, बांद्रा वर्ली सीलिंक, सिग्नेचर ब्रिज, चिनाब ब्रिज जैसा कुछ करना है मुझे.’’

ये बातें जब नैना के कानों में पड़ती थीं तो दुख होता था उसे. सत्य क्या है सिर्फ नैना या रिया जानते थे. सही है कि रिया ने बहुत से डिजाइन, कैलकुलेशन किए थे. सदर बाजार के एक कौफीहाउस में वे घंटों बैठा करती थीं. पर नैना ने क्रिटिसाइज कर के ठीक किया था, उन्हें व्यावहारिक बनाया था. नैना ने रात और दिन नहीं देखा था इस प्रोजैक्ट को पूरा करने में, रिया सिरदर्द का बहाना कर के पड़ी रहती थी. एसी की ठंडी हवा में इस प्रोजैक्ट को समय पर पूरा करने के लिए नैना को अनेक बार अकेले रात को 12 बजे तक खुद गाड़ी ड्राइव कर के साइट से घर लौटना पड़ता था.

इस प्रोजैक्ट में रिया और नैना की दोस्ती आर्किटैक्ट अंकित से हुई जोकि चारबाग बंदरगाह के लिए काम कर रहा था. रिया के दिल की घंटी बज उठी थी. यही उस का ड्रीम प्रोजैक्ट व ड्रीम बौय है. नैना तो पहले से शिव के साथ इंगेज थी. लेकिन फिर भी रिया को डर लगा रहता था कि नैना उस के दोस्त को हथिया न ले. नैना, रिया की इन कोशिशों को बचकानी हरकतें समझ कर माफ कर देती थी.

नैना पूरी कोशिश करती थी रिया को उस का प्यार मिल जाए, उस के हिस्से का काम निबटाती थी ताकि उसे अंकित से बात करने का समय मिल सके. एक बार रिया अंकित से मिलने दिल्ली गई और नैना ने उस के हिस्से का औफिस का काम निबटाया ताकि बौस उसे छुट्टी दे दें और इन एहसानों का बदला नैना को यह

मिला था.

इस प्रोजैक्ट के कारण शिव के साथ उस की इंगेजमैंट टूटने के कगार पर आ गई थी. शिव की शिकायत थी कि नैना उसे समय नहीं देती. आखिर नैना ने औफिस से एक लंबी छुट्टी ली शिव के साथ डेट करने के लिए. सिक्किम के झरनों और घाटियों में एक प्रीवैडिंग हनीमून उन्होंने प्लान किया था.

15 दिनों बाद, सिक्किम से लौट कर नैना ने देखा कि औफिस का दृश्य बदला हुआ था. रिया अपनी जगह नहीं थी. नैना रिया के लिए बहुत ही सुंदर स्वर्णिम पृष्ठभूमि के साथ पश्मीना सिल्क पर बना हुआ थांका ले कर आई थी. नैना को विश्वास था कि इस से रिया की जिंदगी में खुशियों की बहार आ जाएगी, उस के सारे सपने पूरे होंगे.

पता चला कि रिया को औफिस में डिवाइडिड केबिन की जगह व्यक्तिगत केबिन मिल गया था. रिया की सैलरी बढ़ा कर नैना से भी ज्यादा कर दी गई थी और उसे अब इस प्रोजैक्ट के सब से बड़े पुल ‘बेतवा’  का डायरैक्टर बना दिया गया था.

नैना ने कमरे में प्रवेश किया. रिया ने पेपर पर लाइन खींचते हुए उस का हालचाल लिया और फिर काम में व्यस्त हो गई.

रिया की टीम में नैना को कोई जगह नहीं दी गई थी. रिया की टीम में अभिषेक और सुमित थे जो कभी उन के दुश्मन और औफिस में मुख्य प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे. अपने नए प्रोजैक्ट पर रिया, नैना की छांव भी नहीं पड़ने देना चाहती थी. उसे लगता था कि नैना ने पिछले प्रोजैक्ट में जितनी हैल्प नहीं की उस से अधिक एहसान जमाती रही है.

आज केवल रिया की दोस्ती सदानंद से थी. हर काम में बौस सदानंद, रिया को ही पहले भेजते थे. नैना को धीरे से रिया ने व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी ब्लौक कर दिया था. रिया का आरोप था कि नैना उस की तरक्की से ईर्ष्या करने लगी है. नैना को बहुत ही बुरा लगता था. धीरेधीरे नैना डिप्रैशन में जाने लगी थी. आखिरकार शिव की सलाह पर नैना ने बहुराष्ट्रीय कंपनी की इस हाई प्रोफाइल जौब को छोड़ कर एक छोटी रीजनल लैवल की रियल स्टेट कंपनी में कम वेतन पर काम शुरू कर दिया.

नैना की कंपनी इन दिनों झांसी में कालोनियां डैवलप कर रही थी. देखते ही देखते 4 साल निकल गए. नैना की कंपनी और समाज में इज्जत थी. शहर की पावरफुल बिजनैस वुमेन थी वह. एक दिन अभिषेक नैना से मिलने आया. वह नैना की कंपनी से फ्लैट खरीद रहा था. रिया के बारे में पूछने पर उस ने बताया, ‘‘नैना के औफिस छोड़ने के 3 माह बाद ही उसे बेतवा साइट से हटा कर हाईवे के टोल बैरियर की साइट पर लगाना पड़ा लेकिन वहां भी वह असफल हुई.’’

Breastfeeding शिशु के लिए कितनी जरूरी, जानें यहां

Breastfeeding : स्तनों का संबंध केवल स्त्री से ही क्यों जोड़ा गया है? वह इसलिए कि बिना स्तन के स्त्री संपूर्ण नहीं. स्तनों के बिना स्त्री का व्यक्तित्व अधूरा है. बेशक महिला स्तन पुरुषों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं अर्थात यौन आकर्षण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं लेकिन जब कोई स्त्री मां बनती है तो उस की सारी ऊर्जा स्तनों तक जाती है. जब तक उस के स्तनों तक उस की उर्जा नहीं पहुंचती तब तक वह मां नहीं बनती. महिला के स्तन स्त्रीत्व और मातृत्व का प्रतीक होने के साथसाथ महिला के समग्र स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण अंग भी होते हैं.

स्त्री के स्तन धनात्मक ध्रुव एवं पुरुष के स्तन ऋणात्मक ध्रुव हैं. एक पुरुष स्त्री से विवाह करता है ताकि उसे पत्नी मिले लेकिन एक स्त्री पुरुष से विवाह करती है ताकि वह मां बन सके. उस का मौलिक रुझान बच्चा प्राप्त करना ही होता है. बिन मां बने उस का पूरा अस्तित्व ही खो जाता है.

प्रजनन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण अंग

पुरुष और महिला दोनों में ही स्तन होते हुए भी महिला स्तनों में उभार होता है. ये प्रजनन प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं जो शिशु के स्तनपान के लिए दूध का उत्पादन करते हैं. इन में दूध उत्पादन के लिए दूधग्रंथियां होती हैं. महिला स्तन प्रजनन तंत्र से जटिल रूप से जुड़े होते हैं.

मगर पश्चिमी देशों की देखादेखी हमारे देश में भी बच्चों को सीधे स्तनों से दूध न पिलाने का फैशन हो गया है जोकि बहुत खतरनाक है. इस का अर्थ मानें तो स्त्री कभी अपनी सृजनात्मकता के केंद्र पर नहीं पहुंच सकेगी. जब एक पुरुष किसी स्त्री से प्रेम करता है तो वह उस के स्तनों को प्रेम कर सकता है. लेकिन उन्हें मां नहीं कह सकता. मां तो केवल स्त्री का बच्चा ही कहेगा न.

प्रकृति ने स्त्री को स्तन दिए हैं मां बन कर बच्चे का भरणपोषण करने के लिए लेकिन आज की स्त्री किराए की कोख की सुविधा के चलते प्रथम तो स्वयं मां ही नहीं बनना चाहती और अगर मां बनती भी है तो बच्चे को स्तनपान कराने की इच्छा नहीं रखती क्योंकि अधिकतर स्त्रियां सोचती हैं कि स्तनपान कराने से उन की फिगर खराब हो जाएगी. ऐसी सोच रखने वाली मांएं न तो अपनी फिगर मैंनटेन कर पाती हैं और न ही बच्चे के साथ पूरी तरह भावनात्मक रूप से जुड़ पाती हैं. उस पर मां और बच्चे को बीमारियां होने की भी संभावना अधिक रहती है.

क्या आप जानते हैं कि स्तनपान बच्चे के लिए कितना आवश्यक है?

स्तनपान पहले 6 महीने तक बच्चे को आवश्यक भरपूर पोषक तत्त्व प्रदान करता है एवं उस के बाद जब बच्चे को ठोस आहार देना शुरू करते हैं तब भी स्तनपान से बच्चे को पूर्ण पोषण मिलता है.

स्तन के दूध में ऐंटीबौडी होते हैं जो रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और संक्रमण से बचाते हैं.

स्तन का दूध पचाने में आसान विकल्प है जिस से बच्चे को उलटी या दस्त नहीं लगते.

स्तनपान शिशु के दिमाग का विकास बहुत अच्छे से करता है.

स्तन का दूध अस्थमा, ऐलर्जी, मधुमेह तथा मोटापा जैसी अनेक बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. बीमारियों के कम होने के कारण शिशुओं के अस्पताल में भरती दर में कमी तथा शिशु मृत्यु दर में कमी.

मां का दूध विटामिन, खनिज और ऐंटीऔक्सिडैंट का अनूठा स्त्रोत है.

इस से कार्बोहाइड्रेट, लैक्टोज, प्रोटीन और विटामिन की सही मात्रा प्राप्त होती है

गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों का वजन बढ़ जाता है. ऐसे में स्तनपान स्त्री को फिर से गर्भावस्था के पहले के शारीरिक वजन पर लाने में मददगार साबित होता है.

स्तनपान से स्तन कैंसर दर कम होती है.

करण जौहर ला रहे हैं 20 सेलिब्रिटीज के साथ नया रियलिटी शो ”THE TRAITORS”

The Traitors show का फौर्मेट धोखा , भरोसा, रणनीति और गेम प्ले है. इस शो में बीस सेलिब्रिटी हिस्सा ले रहे है . जो दिमागी तौर पर दूसरे प्रतियोगी को पूरी तरह धोखा देकर मानसिक तौर पर उस प्रतियोगी का खून करेंगे और फिर वो शो से आउट हो जाएगा. इस शो में खिलाड़ियों को अपने दिमाग का इस्तेमाल करके सामाजिक गतिविधियों और चालाकी के साथ सामने वाले का दिमाग पढ़ कर सामने वाले प्रतियोगी को अपने फेवर में लेकर शक पैदा करना है और उसको हराना है.

शतरंज के खेल की तरह इसमें भी सारे प्रतियोगी एक दूसरे को मार देते नजर आएंगे. इस शो की शूटिंग राजस्थान के रॉयल सूर्यगढ़ पैलेस में हो रही है, जिसमें फिल्म इंडस्ट्री टी वी इंडस्ट्री और सोशल मीडिया से जुड़ी कई जानी मानी हस्तियां भाग ले रही हैं जैसे आशीष विद्यार्थी, राज कुंद्रा, करण कुंद्रा, जैस्मिन भसीन, अंशुला कपूर, महीप कपूर ,जन्नत जुबेर, रफ्तार रैपर, सुधांशु पांडे, मुकेश छाबरा कास्टिंग डायरेक्टर, ऊर्फी जावेद आदि कई सेलिब्रिटीज इस शो का हिस्सा बन रहे हैं.

इस शो का आखरी हिस्सा सबसे दिलचस्प होगा. जिसमें अगर वफादार खिलाड़ी सब गद्दारों को पकड़ लेगा तो इनाम की राशि उनमें आपस में बट जाएगी. लेकिन अगर कोई भी गद्दार अंत में बच जाता है तो वह पूरी रकम अकेले ही जीत जाएगा. अर्थात यह शो ईमानदारी पर नहीं बेईमानी पर केंद्रित है. जिसका विजेता वही होगा जो सबसे ज्यादा गद्दार और बेईमान है.

लिफ्ट में काम करके स्टार एक्टर बने Nawazuddin Siddiqui की बेटी ने की जब ढाई लाख के पर्स की मांग

Nawazuddin Siddiqui : प्रसिद्ध एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी जिनके अभिनय करियर की शुरुआत छोटे से रोल के साथ हुई थी. यहां तक कि संघर्ष के दिनों में जब उनको कमल हासन के साथ एक फिल्म मिली और उन्होंने खुशी खुशी सभी से अपनी इस फिल्म की चर्चा की, लेकिन उसी फिल्म की रिलीज के समय पता चला कि उस फिल्म में जो उनका छोटा सा सीन था वह भी एडिट हो गया है. जिसके बाद नवाजुद्दीन के अनुसार वह बहुत रोए थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और स्ट्रगल करते-करते आज यहां तक पहुंच गए की न सिर्फ उनकी अलग पहचान है बल्कि बतौर हीरो भी नवाज ने कई फिल्मे कर ली हैं.

एक समय ऐसा था जब वह लिफ्ट मेन की नौकरी करते थे और आमिर की फिल्म सरफरोश और राम गोपाल वर्मा की फिल्म जंगल में बहुत छोटा रोल किया था. आज उनका करोड़ों का घर है. आज उनकी इतनी शानो शौकत बढ़ गई है, की उनकी बेटी ने इतने महंगे पर्स की डिमांड कर दी जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकते थे.

नवाजुद्दीन के अनुसार मेरी बेटी इंडिया के बाहर पढ़ाई कर रही है, एक बार उसने मुझे कहा कि मुझे एक पर्स हैंड बैग बहुत पसंद आया है, क्या वह मुझे आप दिला देंगे, मुझे अपनी बेटी बहुत ज्यादा प्यारी है इसलिए मैं उसको किसी भी हालत में दुखी नहीं करना चाहता था , मैने सोचा कि होगा शायद थोड़ा महंगा दस बीस हजार तक , तो मैंने उसे हां कह दिया.  उसके बाद मेरी बेटी मुझे दुबई के एक मॉल में ले गई , जहां एक शॉप में हमने एंट्री की, वहां पर कई सारे खूबसूरत पर्स थे, लेकिन मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मेरी बेटी का पसंदीदा पर्स मेरे सामने आया वह एक छोटा सा हैंडबैग था, लेकिन मैने जब उसकी कीमत सुनी तो कुछ समय के लिए मेरा सिर चकरा गया, उस छोटे से पर्स की कीमत ढाई लाख थी.

मुझे बहुत हैरानी हुई लेकिन बेटी के प्यार के आगे पैसों की कीमत तो होती नहीं इसलिए मैंने उसे वह पर्स दिला दिया. लेकिन साथ में मन में यही ख्याल आया पैसे की कीमत उनको ही पता होती है जिन्हें पैसा कमाने के लिए बहुत तकलीफें झेलनी पड़ती है. जैसे मैने बतौर एक्टर यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया है.

Private School : जैसा नाम वैसा दाम

Private School : पेरैंट्स के लिए स्कूली ऐजुकेशन एक बड़ा चैलेंज है और ऐडमिशन से ले कर क्लास 12 तक पेरैंट्स स्ट्रैस में रहते हैं. मथुरा रोड, दिल्ली से शुरू हुआ दिल्ली पब्लिक स्कूल आज सैकड़ों स्कूल अपने ब्र्रैंड नाम से चला रहा है पर पिछले दिनों उस का दिल्ली के द्वारका का स्कूल न्यूज में आया क्योंकि उस ने 32 स्टूडैंट्स को फीस न देने की वजह से ऐक्सपैल कर दिया. स्कूल के 102 पेरैंट्स ने एक और मामले में हाई कोर्ट में फीस बढ़़ाने के फैसले को वापस लेने की पिटीशन दायर कर रखी है.

डिपार्टमैंट औफ ऐजुकेशन और हाई कोर्ट के कहने पर ये 32 स्टूडैंट्स तो वापस ले लिए गए पर यह सवाल खड़ा रहता है कि आखिर स्कूली ऐजुकेशन इतनी महंगी क्यों है कि पेरैंट्स जो ऐडमिशन कराते समय रातदिन सिफारिशें करते फिरते हैं और मोटी रकम देने को तैयार रहते हैं, बाद में फीस नहीं देते?

स्कूल ने हाई कोर्ट में कहा कि पिछले साल उसे क्व49 करोड़ का नुकसान हुआ जो सिर्फ फीस बढ़ा कर पूरा करा जा सकता है. जो स्टूडैंट्स बढ़ी फीस नहीं दे सकते उन्हें ऐक्सपैल करने के अलावा स्कूल कुछ नहीं कर सकता. 9.64 एकड़ में फैला हुआ स्कूल 2,096 स्क्वेयर मीटर पक्की बिल्डिंग में है. 25 हजार स्क्वेयर मीटर का प्लेग्राउंड है. वैबसाइट के अनुसार स्कूल को 1,95,096 फीस हर साल देनी होती है. जो फीस बढ़ाई गई है वह इस के बाद है यह स्पष्ट नहीं है. स्कूल से घर तक बस के चार्जेज क्व5,200 से क्व3,700 महीना डिस्टैंस के हिसाब से है.

यह स्कूल दक्षिणी दिल्ली के अमीर इलाके में नहीं, कंपैरेटिव थोड़े साधारण इलाके में है जिस में डाबड़ी, ककरोला, महावीर ऐन्क्लेव, राजापुरी, मंगलापुरी, लाजवंती गार्डन, नारायणा, मायापुरी, पालम गांव, उत्तम नगर जैसे इलाकों के स्टूडैंट्स आते हैं. स्टाफ 200-300 के बीच का है जिस में प्रिंसिपल का वेतन लाखों में है क्योंकि वाइस प्रिसिंपल सुषमा अंशवाल का सरकारी ग्रेड के हिसाब से वेतन क्व2 लाख के लगभग है. प्राइमरी टीचर्स का वेतन भी क्व75 हजार के लगभग है.

जब इतना तामझाम चाहोगे तो फीस तो देनी ही होगी. अगर स्कूल कहता है कि उसे 2 लाख की फीस लेने पर भी नुकसान है तो या तो पेरैंट्स अपने बच्चों को सस्ते प्राइवेट स्कूलों में ले जाएं या फिर सरकारी मुफ्त स्कूलों में. अगर अनएडेड स्कूल में भेजना है तो फीस तो देनी ही होगी और जब बजट इतना बड़ा होगा तो कौन सा पैसा कहां जाता है यह सवाल पेरैंट्स नहीं कर सकते. उन्हें डीपीएस के लेबल के भी पैसे देने ही होंगे. स्कूल के रिजल्ट अच्छे हैं. सभी स्टूडैंट्स पास होते हैं. 12वीं क्लास के ऐग्जाम में 95% की फर्स्ट डिवीजन आती है. 98.9% वाली स्टूडैंट टौपर्स 2025 में. क्लास 10 में 229 स्टूडैंट्स में से 83 स्टूडैंट्स के 90% से ज्यादा मार्क्स थे. 83 के ही 80 से 90% के बीच मार्क्स थे. 75 से 81% के बीच 31 स्टूडैंट्स थे. 229 में से 209 स्टूडैंट्स के मार्क्स 70% से ज्यादा थे.

अब जब बड़े स्कूल में जाओगे, अच्छे रिजल्ट वाले स्कूल में जाना हो, सोशल, स्पोर्ट्स कल्चरल ऐक्टिविटीज चाहिए हों तो फीस तो देनी ही होगी और वह फीस देनी होगी जो स्कूल मांगता है न कि वह जो सरकार कहती है. ऐजुकेशन अब एक बिजनैस है. लागत और उस पर प्रौफिट स्टूडैंट्स से वसूलना उस का असली ऐम है. जिसे महंगी ऐजुकेशन नहीं लेनी है वह अपने बच्चों को न पढ़ाए. यह समाज बेहद हार्टलैस हो गया है. यहां ऐजुकेशन देश या समाज के भविष्य के लिए नहीं ली जा रही, बड़े दान पर अच्छी नौकरी पाने के लिए खरीदी जा रही है. इस में रोनेधोने की बात नहीं. कोर्ट्स के दरवाजे खटखटाना भी बेकार है क्योंकि कोर्ट्स भी केवल महंगे वकीलों की सुनते हैं. जो पैसा पेरैंट्स के पास होगा ही नहीं और यदि कहीं कोई पेरैंट जीत भी गया तो स्कूल के पास उस के बेटीबेटे को तंग करने के हजार बहाने रहेंगे. स्टूडैंट, टीचर और स्कूल का प्रेम होगा तो पढ़ाई हो सकती है.

पेरैंट्स जिन के पास पैसा नहीं है अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में ऐडमिशन दिला तो देते हैं पर बाद में फीस न देने पर या अच्छी पौकेट मनी देने में असमर्थ रहने पर अपने बच्चों को बेहद स्ट्रैस में डाल देते हैं. बच्चों की कंपनी में अगर ज्यादा खर्च करने वाले हैं तो उन्हें जो ह्यूमिलेशन हलकी पौकेट ले कर जाने पर होती है, वह बस एस्टिमेट की जा सकती है. असल में ये पेरैंट्स अपने बच्चों की पूरी जिंदगी बरबाद कर देते हैं क्योंकि जो स्ट्रैस पैसों की वजह से स्टूडैंट्स को ?ोलना पड़ता है वह कोर्ट्स के कौरीडोरों से निकले जजमैंट्स से दूर नहीं हो सकता.

Health Issue : मुझे कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है, क्या करूं?

Health Issue : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

मुझे नैक फीमर फ्रैक्चर है, यह समस्या इतनी गंभीर है कि फरवरी के महीने से मैं चल भी नहीं पा रही हूं. मेरे फिजिशियन ने सलाह दी है कि मुझे जितनी जल्दी से जल्दी हो सके सर्जरी करा लेनी चाहिए. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

अगर फ्रैक्चर के कारण रक्त नलिकाओं में टूटफूट हो गई है तो फेमोरल हैड को रक्त की सप्लाई बंद हो जाएगी, जिस से अंतत: हड्डियों के ऊतक मरने लगेंगे, जिसे ऐस्क्युलर नैक्रोसिस कहते हैं. यह एक आपातकालीन स्थिति है, इसलिए आप को सर्जरी कराने में बिलकुल भी देरी नहीं करना चाहिए.

युवावस्था में मेरा ऐक्सीडैंट हो गया था, जिस से मेरे कूल्हे के साकेट में फ्रैक्चर हो गया था. उस समय औपरेशन नहीं किया गया. इतने वर्षों तक मुझे कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अब मुझे कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है. बताएं क्या करूं?

लगता है आप कूल्हे के जोड़ के पोस्ट ट्रामैटिक आर्थाइटिस के शिकार है. अपने कूल्हे का एक्सरे कराएं, बेहतर डायग्नोसिस के लिए एमआरआई और सीटी स्कैन भी कराएं. अगर समस्या गंभीर है तो हिप रिप्लेसमैंट सब से बेहतर समाधान है. हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी में हिप जौइंट के क्षतिग्रस्त भाग को सर्जरी के द्वारा निकाल कर धातु या अत्याधिक कड़े प्लास्टिक के इंप्लांट से बदल दिया जाता है. मिनिमली इनवैंसिव हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी ने सर्जरी को काफी आसान और सरल बना दिया है, परिणाम भी बहुत बेहतर आते हैं और औपरेशन के बाद ठीक होने में अधिक समय भी नहीं लगता है.

मेरी उम्र 58 वर्ष है. मुझे दोनों घुटनों के जोड़ों का औस्टियोआर्थ्राइटिस है. डाक्टर ने मुझे नीरिप्लेसमैंट की सलाह दी है, लेकिन कोविड-19 के कारण में सर्जरी कराने से डर रही हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान सर्जरी को थोड़ा समय रुक कर कराने की सलाह दी जा रही है खासकर बुजुर्गों को जो पहले से ही किसी स्वास्थ्य समस्या जैसे डायबिटीज और फेफड़ों से संबंधित किसी बीमारी के शिकार हैं, उन के लिए खतरा अधिक है. इन लोगों को संक्रमण से बचने के लिए जितना अधिक से अधिक समय तक हो सर्जरी से बचना चाहिए, क्योंकि अस्पताल में रहने के दौरान या सर्जरी के पश्चात रिकवरी के समय जैसे फिजियोथेरैपी या फोलोअप ड्रैसिंग संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बढ़ा सकती है. वैसे आप की उम्र बहुत अधिक नहीं है, अगर आप को कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या नहीं है और सर्जरी कराना बहुत जरूरी है तो आप अपने डाक्टर की सलाह से नीरिप्लेसमैंट सर्जरी का सही समय चुन सकती हैं.

क्या यह संभव है कि मैं अपने एक घुटने की नीरिप्लेसमैंट सर्जरी के लिए सुबह सर्जरी के लिए आऊं और सर्जरी कराने के बाद शाम तक घर वापस आऊं. कोरोना संक्रमण से खुद को बचाने के लिए मुझे रात को अस्पताल में न रुकना पड़े?

आप ऐसा कर सकती हैं, लेकिन ऐसा कर पाएं यह जरूरी नहीं है, क्योंकि अगर सर्जरी के बाद आप को दर्द होगा तो अस्पताल में रुकना जरूरी हो जाएगा. लेकिन अगर आप घर पर ही दर्द के प्रबंधन के लिए मैडिकल केयर की सुविधा जुटा सकती हैं, जरूरत पड़ने पर अपने सर्जन और ऐनेस्थीसिस्ट (सर्जरी के लिए बेहोश करने वाला डाक्टर) से आ कर मिल सकती हैं, तो आप रात में अस्पताल में न रुक कर घर जा सकती हैं. वैसे आंशिक घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी अधिक सुरक्षित है, इसे कराने के पश्चात मरीज उसी दिन घर जा सकता है, लेकिन इस के लिए औपरेशन से पहले काउंसलिंग और पूरी प्लानिंग की जरूरत होती है.

मैं 42 वर्षीय कंटैंट राइटर हूं. मुझे पिछले कुछ समय से बल्जिंग डिस्क की समस्या है. लौकडाउन के कारण पिछले 2-21/2 महीने घर से ही काम कर रहा हूं. लगातार कंप्यूटर पर काम करने और घर पर औफिस जैसा प्रोफैशनल सैटअप नहीं होने के कारण मेरी समस्या और बढ़ गई है. कृपया बताएं कि इस से बचने के लिए क्या करूं?

सब से पहले तो घर पर काम करने के लिए सही व्यवस्था करें. अपने ऐर्गोनामिक्स को सुधारें, ऐर्गोनामिक्स में आता है कि आप कैसे बैठें, कंप्यूटर की पोजीशन क्या हो. बोर्ड कहां हो, टेबल और कुरसी की हाइट कितनी हो. इस के अलावा एक ही जगह लगातार न बैठें, थोड़ीथोड़ी देर में बे्रक लें, उठें और चलें. बैठने और खड़े रहने के दौरान अपना पोस्चर ठीक रखें ताकि रीढ़ और डिस्क पर दबाव कम पड़े. हर दिन 20-30 मिनट ऐक्सरसाइज जरूर करें.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें :

गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Dark Spots : चेहरे के डार्क स्पौट्स से हैं परेशान, तो अपनाएं ये उपाय

Dark Spots :  आप कितनी भी खूबसूरत हो अगर चेहरे पर दाग-धब्बे है तो वह आपकी पूरी खूबसूरती बिगाड़ देते हैं. ऐसे में आपके चेहरे की खूबसूरती को निखारने के लिए डर्मेटोलौजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन आईएलएएमईडी के संस्थापक और निदेशक, डा. अजय राणा बता रहें हैं कुछ ऐसे उपाय जिसे अपना कर आप कुछ ही मिनटों में पाएंगी साफ और बेदाग रहित चेहरा.

1. एलोवेरा जेल –

एलोवेरा में अनेक तरह के आयुर्वेदिक और मेडिसिनल गुण होते है, जो स्किन के लिए बहुत फायदेमंद होते है. एलोवेरा का जूस या एलोवेरा जेल को स्किन पर हुए डार्क स्पौट्स या काले धब्बों पर लगा कर 30 मिनट तक रखने से आपके स्किन पर हुए काले धब्बें मिट सकते है. उसके बाद चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें और उसके बाद चेहरे पर अपने स्किन के हिसाब से सीरम और मोइस्चराइजर लगा लें.

2. एप्पल साइडर विनेगर 

स्किन पर हुए दाग धब्बों को कम करने के लिए एप्पल साइडर विनेगर को समान क्वांटिटी में पानी मिला कर मिक्स कर लें. इस घोल को अच्छे से चलाये और डार्क स्पौट्स पर लगाए. इसमें आप चाहें तो नींबू का रस भी मिला सकते है. आप चाहे तो एप्पल साइडर विनेगर में औरेंज जूस भी मिला कर उसको अपने स्किन पर उपयोग कर सकते है. इसे कुछ देर तक स्किन में रहने दें, फिर चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें.

3. OTC प्रोडक्ट्स

डार्क स्पौट्स को कम करने के लिए आप अनेक प्रकार के OTC प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल कर सकते है. यह प्रोडक्ट्स डार्क स्पौट्स में मिलेनिन के उत्पादन को रोक देते है, जिससे पुराने स्किन को निकलने से रोक देता है यह और नए स्किन को बढ़ावा देता है. OTC प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने से पहले हमेशा अपने डर्मोटोलौजिस्ट से संपर्क करें.

4. बटर मिल्क 

डार्क स्पौट्स को कम करने के लिए आप बटर मिल्क का भी उपयोग कर सकते है. बटर मिल्क को डार्क स्पौट्स पर लगा कर 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें और अपने स्किन के हिसाब से सीरम और मौइस्चराइजर लगा लें. अगर आपकी स्किन औयली है या आप एक्ने से जूझ रहे है तो आप इसमें नीबू का रस भी मिला सकते है.

5. सूरज की किरणों से बचना

स्किन को डार्क स्पौट्स से बचाने का सबसे आसान उपाय है स्किन को सूरज की किरणों से बचाना. सूरज में देर तक रहने से यह स्किन में मेलानिन के उत्पादन को बढ़ाता है. क्योंकि डार्क स्पौट्स होने के कारणों में सबसे महत्वपूर्ण कारण सूरज की हानिकारक युवी किरणें है. इसके लिए आप SPF 30 अधिक वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

6. दवाइयों का कम इस्तेमाल

बहुत सारी दवाइयों में भी अनेक तरह के केमिकल्स होते है जो स्किन में दाग धब्बों को बढ़ाने के कारक होते है. अगर आपकी स्किन में डार्क स्पौट्स अकसर होते रहते है या होने की संभावना ज्यादा होती है तो आप इस तरह की सभी दवाइयों को कम कर दें जिसमे इस प्रकार की केमिकल्स मौजूद होते है.

Monsoon Fashion : मौनसून में ऐसे दिखें फैशनेबल और स्टाइलिश

Monsoon Fashion : मौनसून तन और मन दोनों को ही सुकून देने वाला मौसम होता है, पर बारिश के मौसम में सब से बड़ी समस्या आउटफिट को ले कर होती है क्योंकि बारिश के कारण चारों तरफ कीचड़ और मिट्टी का बोलबाला रहता है, इस के अतिरिक्त भीग जाने की भी संभावना रहती है जिस के कारण लुक और महंगे कपड़े दोनों ही खराब हो जाते हैं.

निम्न टिप्स की मदद से आप बारिश में भी फैशनेबल और स्टाइलिश दिख सकते हैं :

ब्राइट ऐक्सैसरीज का करें प्रयोग : आउटफिट पहनने के बाद यदि आप को अपना लुक डल या म्यूटेड लग रहा है तो आप कलरफुल स्टौल, ग्लिटर स्कार्फ, कलरफुल हैट, एक स्टेटमैंट बैग या ब्राइट शूज को अपने आउटफिट का हिस्सा बनाएं. ये ऐक्सैसरीज आउटफिट की डलनैस को ओवरलैप कर देंगी और आप का लुक एकदम बदल जाएगा.

वाटरप्रूफ मैटीरियल चुनें : बारिश में अकसर भीग जाने की संभावना रहती है इसलिए मौनसून के मौसम में आप ऐसे फैब्रिक का आउटफिट चुनें जो वाटरप्रूफ हो. इस के लिए आप वाटरप्रूफ कौटन, नायलोन, पौलिएस्टर और सीक्वैंस जैसे फैब्रिक का चयन कर सकते हैं. ये भीगने के बाद भी बहुत जल्दी सूख जाते हैं और भीग जाने के बाद भी अपने वास्तविक रूप में ही रहते हैं.

पार्टी फंक्शन के लिए सीक्वैंस बहुत उपयुक्त रहता है क्योंकि यह दिखने में भी अच्छा लगता है और सूखता भी बहुत जल्दी है.

ब्रीदेबल हों कपड़े

कौटन, लिनेन, खादी और रेयान जैसे फैब्रिक से बने ड्रैसेज का चयन करें. ये भीग जाने पर जल्दी सूखते तो हैं ही साथ ही शरीर पर चिपकते भी नहीं हैं. इन दिनों ऐसे कपड़े पहनें जिन में हवा का आगमन हो सके ताकि भीग जाने पर आप इन के ऊपर से जैकेट आदि कैरी कर सकें ताकि आप का लुक भी न बिगड़े और आप स्टाइलिश भी दिख सकें.

डार्क कलर का चयन करें

लाइट कलर के स्थान पर डार्क कलर्स में एक तो कीचड़ के दागधब्बे नहीं दिखते दूसरा ये भीगने पर पारदर्शी भी नहीं होते जिस से आप की पर्सनैलिटी भद्दी नहीं दिखती. इसलिए मौनसून में मैरून, नेवी ब्लू, ग्रे, ब्लैक और डार्क ग्रीन जैसे रंगों का प्रयोग करें. इस से आप फैशनेबल भी दिखेंगी और स्टाइलिश भी.

व्हाइट, क्रीम, पीच, सी ग्रीन और पिंक जैसे हलके रंगों का प्रयोग करने से बचें क्योंकि इन रंगों के आउटफिट भीगने पर शरीर से चिपक जाते हैं, दूसरा दागधब्बे भी बहुत जल्दी लग जाते हैं जिन्हें साफ करना भी काफी मुश्किल होता है.

मोटे फैब्रिक हैं अनुकूल

शिफौन, जौर्जेट, और्गेंडी, वाइल जैसे पतले फैब्रिक और सिल्क जैसे महंगे फैब्रिक से बने आउटफिट के स्थान पर कौटन, नायलोन और हौजरी मैटीरियल से बने आउटफिट का चयन करें. ये भीगने पर आप के शरीर से चिपक कर आप के लुक को खराब नहीं करेंगे.

रखें इन बातों का भी ध्यान

● बहुत महंगी ड्रैसेज इन दिनों पहनने से बचें.

● कैपरी, शौर्ट्स, मिडी, वन पीस और को और्डसैट इस मौसम के लिए उपयुक्त रहते हैं. ये कम लंबाई वाले होते हैं जिस से इन में दागधब्बे लगने का डर नहीं रहता.

● यदि आप ने किसी फंक्शन में महंगी साड़ी या आउटफिट को पहना है तो उसे प्रयोग करने के बाद तुरंत ड्राईक्लीन करवा कर रखें ताकि मिट्टी के दागधब्बे साफ हो जाएं.

● प्योर लेदर के शूज और हैंड बैग को कैरी करने से बचें क्योंकि ये बहुत महंगे आते हैं और भीग जाने पर खराब हो जाते हैं.

● बाहर जाते समय अपने साथ छतरी या रेनकोट और एक छोटा तौलिया अवश्य रखें ताकि बारिश के समय इन का प्रयोग किया जा सके.

● प्योर सिल्क बनारसी साड़ी या लहंगे के स्थान पर सेमी बनारसी का प्रयोग करें ताकि भीगने पर भी ये खराब न हों.

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