Famous Hindi Stories : पापा जल्दी आ जाना

 Famous Hindi Stories : ‘‘पापा, कब तक आओगे?’’ मेरी 6 साल की बेटी निकिता ने बड़े भरे मन से अपने पापा से लिपटते हुए पूछा.

‘‘जल्दी आ जाऊंगा बेटा…बहुत जल्दी. मेरी अच्छी गुडि़या, तुम मम्मी को तंग बिलकुल नहीं करना,’’ संदीप ने निकिता को बांहों में भर कर उस के चेहरे पर घिर आई लटों को पीछे धकेलते हुए कहा, ‘‘अच्छा, क्या लाऊं तुम्हारे लिए? बार्बी स्टेफी, शैली, लाफिंग क्राइंग…कौन सी गुडि़या,’’ कहतेकहते उन्होंने निकिता को गोद में उठाया.

संदीप की फ्लाइट का समय हो रहा था और नीचे टैक्सी उन का इंतजार कर रही थी. निकिता उन की गोद से उतर कर बड़े बेमन से पास खड़ी हो गई, ‘‘पापा, स्टेफी ले आना,’’ निकिता ने रुंधे स्वर में धीरे से कहा.

उस की ऐसी हालत देख कर मैं भी भावुक हो गई. मुझे रोना उस के पापा से बिछुड़ने का नहीं, बल्कि अपना बीता बचपन और अपने पापा के साथ बिताए चंद लम्हों के लिए आ रहा था. मैं भी अपने पापा से बिछुड़ते हुए ऐसा ही कहा करती थी.

संदीप ने अपना सूटकेस उठाया और चले गए. टैक्सी पर बैठते ही संदीप ने हाथ उठा कर निकिता को बाय किया. वह अचानक बिफर पड़ी और धीरे से बोली, ‘‘स्टेफी न भी मिले तो कोई बात नहीं पर पापा, आप जल्दी आ जाना,’’ न जाने अपने मन पर कितने पत्थर रख कर उस ने याचना की होगी. मैं उस पल को सोचते हुए रो पड़ी. उस का यह एकएक क्षण और बोल मेरे बचपन से कितना मेल खाते थे.

मैं भी अपने पापा को बहुत प्यार करती थी. वह जब भी मुझ से कुछ दिनों के लिए बिछुड़ते, मैं घायल हिरनी की तरह इधरउधर सारे घर में चक्कर लगाती. मम्मी मेरी भावनाओं को समझ कर भी नहीं समझना चाहती थीं. पापा के बिना सबकुछ थम सा जाता था.

बरामदे से कमरे में आते ही निकिता जोरजोर से रोने लगी और पापा के साथ जाने की जिद करने लगी. मैं भी अपनी मां की तरह जोर का तमाचा मार कर निकिता को चुप करा सकती थी क्योंकि मैं बचपन में जब भी ऐसी जिद करती तो मम्मी जोर से तमाचा मार कर कहतीं, ‘मैं मर गई हूं क्या, जो पापा के साथ जाने की रट लगाए बैठी हो. पापा नहीं होंगे तो क्या कोई काम नहीं होगा, खाना नहीं मिलेगा.’

किंतु मैं जानती थी कि पापा के बिना जीने का क्या महत्त्व होता है. इसलिए मैं ने कस कर अपनी बेटी को अंक में भींच लिया और उस के साथ बेडरूम में आ गई. रोतेरोते वह तो सो गई पर मेरा रोना जैसे गले में ही अटक कर रह गया. मैं किस के सामने रोऊं, मुझे अब कौन बहलानेफुसलाने वाला है.

मेरे बचपन का सूर्यास्त तो सूर्योदय से पहले ही हो चुका था. उस को थपकियां देतेदेते मैं भी उस के साथ बिस्तर में लेट गई. मैं अपनी यादों से बचना चाहती थी. आज फिर पापा की धुंधली यादों के तार मेरे अतीत की स्मृतियों से जुड़ गए.

पिछले 15 वर्षों से ऐसा कोई दिन नहीं गया था जिस दिन मैं ने पापा को याद न किया हो. वह मेरे वजूद के निर्माता भी थे और मेरी यादों का सहारा भी. उन की गोद में पलीबढ़ी, प्यार में नहाई, उन की ठंडीमीठी छांव के नीचे खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती थी. मुझ से आज कोई जीवन की तमाम सुखसुविधाओं में अपनी इच्छा से कोई एक वस्तु चुनने का अवसर दे तो मैं अपने पापा को ही चुनूं. न जाने किन हालात में होंगे बेचारे, पता नहीं, हैं भी या…

7 वर्ष पहले अपनी विदाई पर पापा की कितनी कमी महसूस हो रही थी, यह मुझे ही पता है. लोग समझते थे कि मैं मम्मी से बिछुड़ने के गम में रो रही हूं पर अपने उन आंसुओं का रहस्य किस को बताती जो केवल पापा की याद में ही थे. मम्मी के सामने तो पापा के बारे में कुछ भी बोलने पर पाबंदियां थीं. मेरी उदासी का कारण किसी की समझ में नहीं आ सकता था. काश, कहीं से पापा आ जाएं और मुझे कस कर गले लगा लें. किंतु ऐसा केवल फिल्मों में होता है, वास्तविक दुनिया में नहीं.

उन का भोला, मायूस और बेबस चेहरा आज भी मेरे दिमाग में जैसा का तैसा समाया हुआ था. जब मैं ने उन्हें आखिरी बार कोर्ट में देखा था. मैं पापापापा चिल्लाती रह गई मगर मेरी पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मुझ से किसी ने पूछा तक नहीं कि मैं क्या चाहती हूं? किस के पास रहना चाहती हूं? शायद मुझे यह अधिकार ही नहीं था कि अपनी बात कह सकूं.

मम्मी मुझे जबरदस्ती वहां से कार में बिठा कर ले गईं. मैं पिछले शीशे से पापा को देखती रही, वह एकदम अकेले पार्किंग के पास नीम के पेड़ का सहारा लिए मुझे बेबसी से देखते रहे थे. उन की आंखों में लाचारी के आंसू थे.

मेरे दिल का वह कोना आज भी खाली पड़ा है जहां कभी पापा की तसवीर टंगा करती थी. न जाने क्यों मैं पथराई आंखों से आज भी उन से मिलने की अधूरी सी उम्मीद लगाए बैठी हूं. पापा से बिछुड़ते ही निकिता के दिल पर पड़े घाव फिर से ताजा हो गए.

जब से मैं ने होश संभाला, पापा को उदास और मायूस ही पाया था. जब भी वह आफिस से आते मैं सारे काम छोड़ कर उन से लिपट जाती. वह मुझे गोदी में उठा कर घुमाने ले जाते. वह अपना दुख छिपाने के लिए मुझ से बात करते, जिसे मैं कभी समझ ही न सकी. उन के साथ मुझे एक सुखद अनुभूति का एहसास होता था तथा मेरी मुसकराहट से उन की आंखों की चमक दोगुनी हो जाती. जब तक मैं उन के दिल का दर्द समझती, बहुत देर हो चुकी थी.

मम्मी स्वभाव से ही गरम एवं तीखी थीं. दोनों की बातें होतीं तो मम्मी का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज हो जाता और पापा का धीमा होतेहोते शांत हो जाता. फिर दोनों अलगअलग कमरों में चले जाते. सुबह तैयार हो कर मैं पापा के साथ बस स्टाप तक जाना चाहती थी पर मम्मी मुझे घसीटते हुए ले जातीं. मैं पापा को याचना भरी नजरों से देखती तो वह धीमे से हाथ हिला पाते, जबरन ओढ़ी हुई मुसकान के साथ.

मैं जब भी स्कूल से आती मम्मी अपनी सहेलियों के साथ ताश और किटी पार्टी में व्यस्त होतीं और कभी व्यस्त न होतीं तो टेलीफोन पर बात करने में लगी रहतीं. एक बार मैं होमवर्क करते हुए कुछ पूछने के लिए मम्मी के कमरे में चली गई थी तो मुझे देखते ही वह बरस पड़ीं और दरवाजे पर दस्तक दे कर आने की हिदायत दे डाली. अपने ही घर में मैं पराई हो कर रह गई थी.

एक दिन स्कूल से आई तो देखा मम्मी किसी अंकल से ड्राइंगरूम में बैठी हंसहंस कर बातें कर रही थीं. मेरे आते ही वे दोनों खामोश हो गए. मुझे बहुत अटपटा सा लगा. मैं अपने कमरे में जाने लगी तो मम्मी ने जोर से कहा, ‘निकी, कहां जा रही हो. हैलो कहो अंकल को. चाचाजी हैं तुम्हारे.’

मैं ने धीरे से हैलो कहा और अपने कमरे में चली गई. मैं ने उन को इस से पहले कभी नहीं देखा था. थोड़ी देर में मम्मी ने मुझे बुलाया.

‘निकी, जल्दी से फे्रश हो कर आओ. अंकल खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’

मैं टेबल पर आ गई. मुझे देखते ही मम्मी बोलीं, ‘निकी, कपड़े कौन बदलेगा?’

‘ममा, आया किचन से नहीं आई फिर मुझे पता नहीं कौन से…’

‘तुम कपड़े खुद नहीं बदल सकतीं क्या. अब तुम बड़ी हो गई हो. अपना काम खुद करना सीखो,’ मेरी समझ में नहीं आया कि एक दिन में मैं बड़ी कैसे हो गई हूं.

‘चलो, अब खाना खा लो.’

मम्मी अंकल की प्लेट में जबरदस्ती खाना डाल कर खाने का आग्रह करतीं और मुसकरा कर बातें भी कर रही थीं. मैं उन दोनों को भेद भरी नजरों से देखती रही तो मम्मी ने मेरी तरफ कठोर निगाहों से देखा. मैं समझ चुकी थी कि मुझे अपना खाना खुद ही परोसना पड़ेगा. मैं ने अपनी प्लेट में खाना डाला और अपने कमरे में जाने लगी. हमारे घर पर जब भी कोई आता था मुझे अपने कमरे में भेज दिया जाता था. मैं टीवी देखतेदेखते खाना खाती रहती थी.

‘वहां नहीं बेटा, अंकल वहां आराम करेंगे.’

‘मम्मी, प्लीज. बस एक कार्टून…’ मैं ने याचना भरी नजर से उन्हें देखा.

‘कहा न, नहीं,’ मम्मी ने डांटते हुए कहा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा.

खाने के बाद अंकल उस कमरे में चले गए तथा मैं और मम्मी दूसरे कमरे में. जब मैं सो कर उठी, मम्मी अंकल के पास चाय ले जा रही थीं. अंकल का इस तरह पापा के कमरे में सोना मुझे अच्छा नहीं लगा. जाने से पहले अंकल ने मुझे ढेर सारी मेरी मनपसंद चाकलेट दीं. मेरी पसंद की चाकलेट का अंकल को कैसे पता चला, यह एक भेद था.

वक्त बीतता गया. अंकल का हमारे घर आनाजाना अनवरत जारी रहा. जिस दिन भी अंकल हमारे घर आते मम्मी उन के ज्यादा करीब हो जातीं और मुझ से दूर. मैं अब तक इस बात को जान चुकी थी कि मम्मी और अंकल को मेरा उन के आसपास रहना अच्छा नहीं लगता था.

एक दिन पापा आफिस से जल्दी आ गए. मैं टीवी पर कार्टून देख रही थी. पापा को आफिस के काम से टूर पर जाना था. वह दवा बनाने वाली कंपनी में सेल्स मैनेजर थे. आते ही उन्होंने पूछा, ‘मम्मी कहां हैं.’

‘बाहर गई हैं, अंकल के साथ… थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

‘कौन अंकल, तुम्हारे मामाजी?’ उत्सुकतावश उन्होंने पूछा.

‘मामाजी नहीं, चाचाजी…’

‘चाचाजी? राहुल आया है क्या?’ पापा ने बाथरूम में फे्रश होते हुए पूछा.

‘नहीं. राहुल चाचाजी नहीं कोई और अंकल हैं…मैं नाम नहीं जानती पर कभी- कभी आते रहते हैं,’ मैं ने भोलेपन से कहा.

‘अच्छा,’ कह कर पापा चुप हो गए और अपने कमरे में जा कर तैयारी करने लगे. मैं पापा के पास पानी ले कर आ गई. जिस दिन पापा मेरे सामने जाते मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं उन के आसपास घूमती रहती थी.

‘पापा, कहां जा रहे हो,’ मैं उदास हो गई, ‘कब तक आओगे?’

‘कोलकाता जा रहा हूं मेरी गुडि़या. लगभग 10 दिन तो लग ही जाएंगे.’

‘मेरे लिए क्या लाओगे?’ मैं ने पापा के गले में पीछे से बांहें डालते हुए पूछा.

‘क्या चाहिए मेरी निकी को?’ पापा ने पैकिंग छोड़ कर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा. मैं क्या कहती. फिर उदास हो कर कहा, ‘आप जल्दी आ जाना पापा… रोज फोन करना.’

‘हां, बेटा. मैं रोज फोन करूंगा, तुम उदास नहीं होना,’ कहतेकहते मुझे गोदी में उठा कर वह ड्राइंगरूम में आ गए.

तब तक मम्मी भी आ चुकी थीं. आते ही उन्होंने पूछा, ‘कब आए?’

‘तुम कहां गई थीं?’ पापा ने सीधे सवाल पूछा.

‘क्यों, तुम से पूछे बिना कहीं नहीं जा सकती क्या?’ मम्मी ने तल्ख लहजे में कहा.

‘तुम्हारे साथ और कौन था? निकिता बता रही थी कि कोई चाचाजी आए हैं?’

‘हां, मनोज आया था,’ फिर मेरी तरफ देखती हुई बोलीं, ‘तुम जाओ यहां से,’ कह कर मेरी बांह पकड़ कर कमरे से निकाल दिया जैसे चाचाजी के बारे में बता कर मैं ने उन का कोई भेद खोल दिया हो.

‘कौन मनोज, मैं तो इस को नहीं जानता.’

‘तुम जानोगे भी तो कैसे. घर पर रहो तो तुम्हें पता चले.’

‘कमाल है,’ पापा तुनक कर बोले, ‘मैं ही अपने भाई को नहीं पहचानूंगा…यह मनोज पहले भी यहां आता था क्या? तुम ने तो कभी बताया नहीं.’

‘तुम मेरे सभी दोस्तों और घर वालों को जानते हो क्या?’

‘तुम्हारे घर वाले गुडि़या के चाचाजी कैसे हो गए. शायद चाचाजी कहने से तुम्हारे संबंधों पर आंच नहीं आएगी. निकिता अब बड़ी हो रही है, लोग पूछेंगे तो बात दबी रहेगी…क्यों?’

और तब तक उन के बेडरूम का दरवाजा बंद हो गया. उस दिन अंदर क्याक्या बातें होती रहीं, यह तो पता नहीं पर पापा कोलकाता नहीं गए.

धीरेधीरे उन के संबंध बद से बदतर होते गए. वे एकदूसरे से बात भी नहीं करते थे. मुझे पापा से सहानुभूति थी. पापा को अपने व्यक्तित्व का अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस दिन के बाद वह तिरस्कार सहतेसहते एकदम अंतर्मुखी हो गए. मम्मी का स्वभाव उन के प्रति और भी ज्यादा अन्यायपूर्ण हो गया. एक अनजान व्यक्ति की तरह वह घर में आते और चले जाते. अपने ही घर में वह उपेक्षित और दयनीय हो कर रह गए थे.

मुझे धीरेधीरे यह समझ में आने लगा कि पापा, मम्मी के तानों से परेशान थे और इन्हीं हालात में वह जीतेमरते रहे. किंतु मम्मी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का पहले की ही तरह किटी पार्टी, फोन पर घंटों बातें, सजसंवर कर आनाजाना बदस्तूर जारी रहा. किंतु शाम को पापा के आते ही माहौल एकदम गंभीर हो जाता.

एक दिन वही हुआ जिस का मुझे डर था. पापा शाम को दफ्तर से आए. चेहरे से परेशान और थोड़ा गुस्से में थे. पापा ने मुझे अपने कमरे में जाने के लिए कह कर मम्मी से पूछा, ‘तुम बाहर गई थीं क्या…मैं फोन करता रहा था?’

‘इतना परेशान क्यों होते हो. मैं ने तुम्हें पहले भी बताया था कि मैं आजाद विचारों की हूं. मुझे तुम से पूछ कर जाने की जरूरत नहीं है.’

‘तुम मेरी बात का उत्तर दो…’ पापा का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज था. पापा के गरम तेवर देख कर मम्मी बोलीं, ‘एक सहेली के साथ घूमने गई थी.’

‘यही है तुम्हारी सहेली,’ कहते हुए पापा ने एक फोटो निकाल कर दिखाया जिस में वह मनोज अंकल के साथ उन का हाथ पकड़े घूम रही थीं. मम्मी फोटो देखते ही बुरी तरह घबरा गईं पर बात बदलने में वह माहिर थीं.

‘तो तुम आफिस जाने के बाद मेरी जासूसी करते रहते हो.’

‘मुझे कोई शौक नहीं है. वह तो मेरा एक दोस्त वहां घूम रहा था. मुझे चिढ़ाने के लिए उस ने तुम्हारा फोटो खींच लिया…बस, यही दिन रह गया था देखने को…मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं यह सब नहीं होने दूंगा.’

‘तो क्या कर लोगे तुम…’

‘मैं क्या कर सकता हूं यह बात तुम छोड़ो पर तुम्हारी इन गतिविधियों और आजाद विचारों का निकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा कभी इस पर भी सोचा है. तुम्हें यही सब करना है तो कहीं और जा कर रहो, समझीं.’

‘क्यों, मैं क्यों जाऊं. यहां जो कुछ भी है मेरे घर वालों का दिया हुआ है. जाना है तो तुम जाओगे मैं नहीं. यहां रहना है तो ठीक से रहो.’

और उसी गरमागरमी में पापा ने अपना सूटकेस उठाया और बाहर जाने लगे. मैं पीछेपीछे पापा के पास भागी और धीरे से कहा, ‘पापा.’

वह एक क्षण के लिए रुके. मेरे सिर पर हाथ फेर कर मेरी तरफ देखा. उन की आंखों में आंसू थे. भारी मन और उदास चेहरा लिए वह वहां से चले गए. मैं उन्हें रोकना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव और आंखें देख कर मैं डर गई. मेरे बचपन की शोखी और नटखटपन भी उस दिन उन के साथ ही चला गया. मैं सारा समय उन के वियोग में तड़पती रही और कर भी क्या सकती थी. मेरे अपने पापा मुझ से दूर चले गए.

एक दिन मैं ने पापा को स्कूल की पार्किंग में इंतजार करते पाया. बस से उतरते ही मैं ने उन्हें देख लिया था. मैं उन से लिपट कर बहुत रोई और पापा से कहा कि मैं उन के बिना नहीं रह सकती. मम्मी को पता नहीं कैसे इस बात का पता चल गया. उस दिन के बाद वह ही स्कूल लेने और छोड़ने जातीं. बातोंबातों में मुझे उन्होंने कई बार जतला दिया कि मेरी सुरक्षा को ले कर वह चिंतित रहती हैं. सच यह था कि वह चाहती ही नहीं थीं कि पापा मुझ से मिलें.

मम्मी ने घर पर ही मुझे ट्यूटर लगवा दिया ताकि वह यह सिद्ध कर सकें कि पापा से बिछुड़ने का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा तो मम्मी ने मुझे होस्टल में डालने का फैसला किया.

इस से पहले कि मैं बोर्डिंग स्कूल में जाती, पता चला कि पापा से मिलवाने मम्मी मुझे कोर्ट ले जा रही हैं. मैं नहीं जानती थी कि वहां क्या होने वाला है, पर इतना अवश्य था कि मैं वहां पापा से मिल सकती हूं. मैं बहुत खुश हुई. मैं ने सोचा इस बार पापा से जरूर मम्मी की जी भर कर शिकायत करूंगी. मुझे क्या पता था कि पापा से यह मेरी आखिरी मुलाकात होगी.

मैं पापा को ठीक से देख भी न पाई कि अलग कर दी गई. मेरा छोटा सा हराभरा संसार उजड़ गया और एक बेनाम सा दर्द कलेजे में बर्फ बन कर जम गया. मम्मी के भीतर की मानवता और नैतिकता शायद दोनों ही मर चुकी थीं. इसीलिए वह कानूनन उन से अलग हो गईं.

धीरेधीरे मैं ने स्वयं को समझा लिया कि पापा अब मुझे कभी नहीं मिलेंगे. उन की यादें समय के साथ धुंधली तो पड़ गईं पर मिटी नहीं. मैं ने महसूस कर लिया कि मैं ने वह वस्तु हमेशा के लिए खो दी है जो मुझे प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी. रहरह कर मन में एक टीस सी उठती थी और मैं उसे भीतर ही भीतर दफन कर लेती.

पढ़ाई समाप्त होने के बाद मैं ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर ली. वहीं पर मेरी मुलाकात संदीप से हुई, जो जल्दी ही शादी में तबदील हो गई. संदीप मेरे अंत:स्थल में बैठे दुख को जानते थे. उन्होंने मेरे मन पर पड़े भावों को समझने की कोशिश की तथा आश्वासन भी दिया कि जो कुछ भी उन से बन पड़ेगा, करेंगे.

हम दोनों ने पापा को ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया पर उन का कुछ पता न चल सका. मेरे सोचने के सारे रास्ते आगे जा कर बंद हो चुके थे. मैं ने अब सबकुछ समय पर छोड़ दिया था कि शायद ऐसा कोई संयोग हो जाए कि मैं पापा को पुन: इस जन्म में देख सकूं.

घड़ी ने रात के 2 बजाए. मुझे लगा अब मुझे सो जाना चाहिए. मगर आंखों में नींद कहां. मैं ने अलमारी से पापा की तसवीर निकाली जिस में मैं मम्मीपापा के बीच शिमला के एक पार्क में बैठी थी. मेरे पास पापा की यही एक तसवीर थी. मैं ने उन के चेहरे पर अपनी कांपती उंगलियों को फेरा और फफक कर रो पड़ी, ‘पापा तुम कहां हो…जहां भी हो मेरे पास आ जाओ…देखो, तुम्हारी निकी तुम्हें कितना याद करती है.’

एक दिन सुबह संदीप अखबार पढ़तेपढ़ते कहने लगे, ‘जानती हो आज क्या है?’

‘मैं क्या जानूं…अखबार तो आप पढ़ते हैं,’ मैं ने कहा.

‘आज फादर्स डे है. पापा के लिए कोई अच्छा सा कार्ड खरीद लाना. कल भेज दूंगा.’

‘आप खुशनसीब हैं, जिस के सिर पर मांबाप दोनों का साया है,’ कहतेकहते मैं अपने पापा की यादों में खो गई और मायूस हो गई, ‘पता नहीं मेरे पापा जिंदा हैं भी या नहीं.’

‘हे, ऐसे उदास नहीं होते,’ कहतेकहते संदीप मेरे पास आ गए और मुझे अंक में भर कर बोले, ‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम ने उन्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. अखबारों में भी उन का विवरण छपवा दिया पर अब तक कुछ पता नहीं चला.’

मैं रोने लगी तो मेरे आंसू पोंछते हुए संदीप बोले थे, ‘‘अरे, एक बात तो मैं तुम को बताना भूल ही गया. जानती हो आज शाम को टेलीविजन पर एक नया प्रोग्राम शुरू हो रहा है ‘अपनों की तलाश में,’ जिसे एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेता होस्ट करेगा. मैं ने पापा का सारा विवरण और कुछ फोटो वहां भेज दिए हैं. देखो, शायद कुछ पता चल सके.’?

‘अब उन्हें ढूंढ़ पाना बहुत मुश्किल है…इतने सालों में हमारी फोटो और उन के चेहरे में बहुत अंतर आ गया होगा. मैं जानती हूं. मुझ पर जिंदगी कभी मेहरबान नहीं हो सकती,’ कह कर मैं वहां से चली गई.

मेरी आशाओं के विपरीत 2 दिन बाद ही मेरे मोबाइल पर फोन आया. फोन धर्मशाला के नजदीक तपोवन के एक आश्रम से था. कहने लगे कि हमारे बताए हुए विवरण से मिलताजुलता एक व्यक्ति उन के आश्रम में रहता है. यदि आप मिलना चाहते हैं तो जल्दी आ जाइए. अगर उन्हें पता चल गया कि कोई उन से मिलने आ रहा है तो फौरन ही वहां से चले जाएंगे. न जाने क्यों असुरक्षा की भावना उन के मन में घर कर गई है. मैं यहां का मैनेजर हूं. सोचा तुम्हें सूचित कर दूं, बेटी.

‘अंकल, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. बहुत एहसान किया मुझ पर आप ने फोन कर के.’

मैं ने उसी समय संदीप को फोन किया और सारी बात बताई. वह कहने लगे कि शाम को आ कर उन से बात करूंगा फिर वहां जाने का कार्यक्रम बनाएंगे.

‘नहीं संदीप, प्लीज मेरा दिल बैठा जा रहा है. क्या हम अभी नहीं चल सकते? मैं शाम तक इंतजार नहीं कर पाऊंगी.’

संदीप फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘ठीक है, आता हूं. तब तक तुम तैयार रहना.’

कुछ ही देर में हम लोग धर्मशाला के लिए प्रस्थान कर गए. पूरे 6 घंटे का सफर था. गाड़ी मेरे मन की गति के हिसाब से बहुत धीरे चल रही थी. मैं रोती रही और मन ही मन प्रार्थना करती रही कि वही मेरे पापा हों. देर तो बहुत हो गई थी.

हम जब वहां पहुंचे तो एक हालनुमा कमरे में प्रार्थना और भजन चल रहे थे. मैं पीछे जा कर बैठ गई. मैं ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं और उस व्यक्ति को तलाश करने लगी जो मेरे वजूद का निर्माता था, जिस का मैं अंश थी. जिस के कोमल स्पर्श और उदास आंखों की सदा मुझे तलाश रहती थी और जिस को हमेशा मैं ने घुटन भरी जिंदगी जीते देखा था. मैं एकएक? चेहरा देखती रही पर वह चेहरा कहीं नहीं मिला, जो अपना सा हो.

तभी लाठी के सहारे चलता एक व्यक्ति मेरे पास आ कर बैठ गया. मैं ने ध्यान से देखा. वही चेहरा, निस्तेज आंखें, बिखरे हुए बाल, न आकृति बदली न प्रकृति. वजन भी घट गया था. मुझे किसी से पूछने की जरूरत महसूस नहीं हुई. यही थे मेरे पापा. गुजरे कई बरसों की छाप उन के चेहरे पर दिखाई दे रही थी. मैं ने संदीप को इशारा किया. आज पहली बार मेरी आंखों में चमक देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए.

भजन समाप्त होते ही हम दोनों ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और सामने कुरसी पर बिठा दिया. मैं कैसे बताऊं उस समय मेरे होंठों के शब्द मूक हो गए. मैं ने उन के चेहरे और सूनी आंखों में इस उम्मीद से झांका कि शायद वह मुझे पहचान लें. मैं ने धीरेधीरे उन के हाथ अपने कांपते हाथों में लिए और फफक कर रो पड़ी.

‘पापा, मैं हूं आप की निकी…मुझे पहचानो पापा,’ कहतेकहते मैं ने उन की गर्दन के इर्दगिर्द अपनी बांहें कस दीं, जैसे बचपन में किया करती थी. प्रार्थना कक्ष के सभी व्यक्ति एकदम संज्ञाशून्य हो कर रह गए. वे सब हमारे पास जमा हो गए.

पापा ने धीरे से सिर उठाया और मुझे देखने लगे. उन की सूनी आंखों में जल भरने लगा और गालों पर बहने लगा. मैं ने अपनी साड़ी के कोने से उन के आंसू पोंछे, ‘पापा, मुझे पहचानो, कुछ तो बोलो. तरस गई हूं आप की जबान से अपना नाम सुनने के लिए…कितनी मुश्किलों से मैं ने आप को ढूंढ़ा है.’

‘यह बोल नहीं सकते बेटी, आंखों से भी अब धुंधला नजर आता है. पता नहीं तुम्हें पहचान भी पा रहे हैं या नहीं,’ वहीं पास खड़े एक व्यक्ति ने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘क्या?’ मैं एकदम घबरा गई, ‘अपनी बेटी को नहीं पहचान रहे हैं,’ मैं दहाड़ मार कर रो पड़ी.

पापा ने अपना हाथ अचानक धीरेधीरे मेरे सिर पर रखा जैसे कह रहे हों, ‘मैं पहचानता हूं तुम को बेटी…मेरी निकी… बस, पिता होने का फर्ज नहीं निभा पाया हूं. मुझे माफ कर दो बेटी.’

बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपना संतुलन बनाए रखा था. अपार स्नेह देखा मैं ने उन की आंखों में. मैं कस कर उन से लिपट गई और बोली, ‘अब घर चलो पापा. अपने से अलग नहीं होने दूंगी. 15 साल आप के बिना बिताए हैं और अब आप को 15 साल मेरे लिए जीना होगा. मुझ से जैसा बन पड़ेगा मैं करूंगी. चलेंगे न पापा…मेरी खुशी के लिए…अपनी निकी की खुशी के लिए.’

पापा अपनी सूनी आंखों से मुझे एकटक देखते रहे. पापा ने धीरे से सिर हिलाया. संदीप को अपने पास खींच कर बड़ी कातर निगाहों से देखते रहे जैसे धन्यवाद दे रहे हों.

उन्होंने फिर मेरे चेहरे को छुआ. मुझे लगा जैसे मेरा सारा वजूद सिमट कर उन की हथेली में सिमट गया हो. उन की समस्त वेदना आंखों से बह निकली. उन की अतिभावुकता ने मुझे और भी कमजोर बना दिया.

‘आप लाचार नहीं हैं पापा. मैं हूं आप के साथ…आप की माला का ही तो मनका हूं,’ मुझे एकाएक न जाने क्या हुआ कि मैं उन से चिपक गई. आंखें बंद करते ही मुझे एक पुराना भूला बिसरा गीत याद आने लगा :

‘सात समंदर पार से, गुडि़यों के बाजार से, गुडि़या चाहे ना? लाना…पापा जल्दी आ जाना.’

Short Stories in Hindi : वक्त का दोहराव

Short Stories in Hindi :  शशांक दबे पांव छत पर पहुंचा. पूरे महल्ले में निस्तब्धता छाई हुई थी. कहीं आग से झुलसे मकान, टूटी दुकानें, सड़कों पर टूटी लाठियां, ईंटपत्थर और कहींकहीं तो खून के धब्बे भी नजर आ रहे थे. कितना खौफनाक मंजर था. हिंदू-मुसलिम दंगे ने नफरत की ऐसी आग लगाई है कि इंसान सभ्यता की सभी हदों को लांघ कर दरिंदगी पर उतर आता है.

राजनीतिबाज न जाने कब बाज आएंगे अपनी रोटियां सेंकने से. शशांक के अंतर में अपने दादाजी के कहे वो शब्द याद आ रहे थे कि नेता लोग राजनीति खेल जाते हैं और कितने ही लोग अपनी जान से खेल जाते हैं…

भारत-पाकिस्तान का बंटवारा. मानो एक हंसतेखेलते परिवार का दोफाड़ कर दिया गया. कौन अपना, कौन पराया. हिंदू-मुसलमानों के मन में ऐसा जहर घोला कि देखते ही देखते कल तक एक ही थाली में साथसाथ खाते दोस्त एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे. अपने पिताजी के मुंह से सुनी थी उस ने उस वक्त की दास्तान. आज वही कहानी फिर से उस की आंखों के सामने पसरने लगी थी…

हवेलीनुमा दोमंजिला घर और बहुत बड़ा चौक, चौक को पार कर के एक बहुत बड़ा दरवाजा, दरवाजा क्या था, पूरा किले का दरवाजा था, बड़ीबड़ी सांकल, सेफ पोल, बड़ेबड़े ताले उस दरवाजे को खोलना व बंद करना हर एक के बस की बात नहीं थी. मास्टर जीवन लाल ही उसे अपने मुलाजिमों के साथ मिल कर खोलते व बंद करते थे.

लेकिन आज यह क्या, वही दरवाजा, ऐसे लगता था कि बस अब गिरा तब गिरा. लगता भी क्यों न, आज एक बहुत बड़ा झुंड उस दरवाजे को धकेल रहा था, पीट रहा था, यह कैसा झुंड था?

मास्टर जीवनलाल जिन का इस पूरे शहर में नाम था, इज्जत थी, रुतबा था, आज वही मास्टरजी अपने पूरे परिवार के साथ इस हवेली में सांस रोके बैठे हैं.

परिवार में पत्नी, 3 बेटे, 3 बेटियां, बहू, सालभर का एक पोता सभी तो हैं, हंसता खेलता परिवार है.

कुछ समय से चल रही हिंदू मुसलमानों की आपस की दूरियां दिख तो रही थीं पर हालात ऐसे हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी न था.

मुसलमान और हिंदू एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, आपस में इतनी नफरत होगी, कभी किसी ने सोचा भी न था. यह क्या हो गया भाइयो, जन्मजन्म से एकदूसरे के साथ रहते आए परिवार एकदूसरे से इतनी नफरत क्यों करने लगे.

हालात ऐसे हो गए थे कि जवान लड़कियों को उठा कर ले जाया जा रहा था.  बूढ़ों को मार दिया जा रहा था. मास्टर जीवन लाल अपनी तीनों जवान लड़कियों और बहू को हवेली की ऊपर वाली मंजिल पर पलंग के नीचे छिपाए हुए थे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देख रहे थे. कभी भी दरवाजा टूट सकता था.

मास्टर जीवन लाल का बड़ा बेटा, कटार लिए खड़ा था कि दरवाजा खुलते ही वह अपनी तीनों बहनों व पत्नी को इसलिए मार डालेगा कि कोई उन्हें उठा कर नहीं ले जा पाए. बहनें व पत्नी सामने मौत खड़ी देख ऐसे कांप रही थीं जैसे आंधी में डाल पर लगा पत्ता फड़फड़ा रहा हो.

पर यह क्या, दरवाजे के पीटने और धकेलते रहने के बीच एक आवाज उभरी. वह आवाज थी मास्टर जीवन लाल के किसी विद्यार्थी की. वह कह रहा था कि अरे, क्या कर रहे हो. यह तो मेरे मास्टरजी का घर है. इस घर को छोड़ दो. आगे चलो, और देखते ही देखते बाहर कुछ शांति हो गई.

रात का यह तूफान जब गुजर गया तो मास्टर जीवन लाल ने सोचा कि यहां से अपने पूरे परिवार को सहीसलामत कैसे बाहर निकाला जाए. इस सोच में वे दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो बाहर का भयानक दृश्य देख कर रो पड़े. लाशें पड़ी हैं, कोई तड़प रहा है, कोई पानी मांग रहा है. जिस गली में वे और उन का परिवार बड़ी शान से होली, दीवाली, ईद मनाते थे, पड़ोसियों के साथ हंसीमजाक, मौजमस्ती होती थी, वही गली आज खून से नहाई हुई है. सभी आज कितने बेबस व लाचार हैं, किस को पानी पिलाएं, किस को अस्पताल पहुंचाएं. रात आए तूफान से घबराए, आगे आने वाले तूफान से अपने परिवार को बचाने के लिए वे क्या करें. अपनी तीनों जवान बेटियों को आगे आने वाले तूफान से बचाने की गरज से सबकुछ अनदेखा कर के वे आगे बढ़ गए.

मास्टर जीवन लाल जब बाहर का जायजा लेने निकले तो उन्हें पता चला कि हिंदुओं से यह जगह खाली कराई जा रही है. हिंदुओं को किसी तरह लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है और वहां से आगे.

मास्टर जीवन लाल ने यह सुना तो वे जल्दी ही अपने परिवार की हिफाजत के लिए वापस मुड़े और घर पहुंच कर उन्होंने बीवी व बच्चों से कहा कि घर खाली करने की तैयारी करो. अब यहां से सबकुछ छोड़छाड़ कर जाना होगा.

इतना सुनते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया. ऐसा होना लाजिमी भी है. सालों से यहां रह रहे थे. यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, यहीं पढ़े और फिर उन से कहा जाए कि यहां तुम्हारा कुछ नहीं है, तुम यहां से जाओ, कैसा लगेगा. खैर, मास्टर जीवन लाल ने हिम्मत दिखाते हुए सब को तैयार किया और जरूरी कागजात व कुछ पैसे लिए. फिर उस आलीशान हवेली को हमेशा के लिए आंसुओं से अलविदा किया.

पैर हवेली के बाहर निकले तो इतने भारी थे कि उठ ही नहीं रहे थे. दिल हाहाकार कर रहा था. परंतु फिर भी उन्होंने अपने परिवार को देखा हिम्मत की और चल पड़े.

अब मास्टर जीवन लाल बिना छत, बेसहारा अपने परिवार के साथ खुले आसमान के नीचे खड़े थे. अब उन के पास कुछ न था. हाय समय का फेर देखो, कुछ समय पहले तो खुशियों की लहरें उठ रही थीं और अब यह क्या हो गया. यह कैसा तूफान था. इस तूफानी बवंडर में कैसे फंस गए. कब बाहर निकलेंगे इस तूफान से, पता नहीं.

अब मास्टर जीवन लाल के पास एक ही मकसद था कि अपने परिवार को सहीसलामत हिंदुस्तान पहुंचाया जाए. मास्टर जीवन लाल को पता चला कि ट्रक भर कर लोगों को लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है. बहुत कोशिश के बाद मास्टर जीवन लाल की बहू व पत्नी को एक ट्रक में जगह मिल गई. और पीछे रह गईं मास्टरजी की बेटियां व बेटे.

उफ्फ अब क्या करें अब जो रह गए उन्हें किस के सहारे छोड़ें और जो चले गए उन्हें आगे का कुछ पता नहीं. मास्टरजी इस कशमकश में खड़े थे कि फिर लोगों का जनून उभरा. मार डालो, काट डालो की आवाजें. मास्टरजी फिर से परेशान हो गए. अब वे बेटियों को कहां छिपाएं. मास्टरजी की आंखों से आंसू बह निकले.

इतने में मास्टरजी को एक फरिश्ते की आवाज सुनाई दी. सलाम अलैकम, भाईजान. मास्टरजी ने जब उस ओर देखा तो मास्टरजी के सामने चलचित्र की तरह पुरानी घटनाएं याद आ गईं. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे. दोनों परिवार एकसाथ सारे तीजत्योहार एकसाथ मनाते थे. फिर अचानक सलीम भाई को विदेश जाना पड़ गया. और अब मिले तो इस हाल में. न हवेली अपनी थी, न ही देश अपना रह गया था. सबकुछ खत्म हो चुका था. मास्टरजी लुटेपिटे खड़े थे.

सलीम भाई ने मास्टरजी को गले लगा लिया. मास्टरजी का हाल देख कर सलीम भाई भी रो पड़े. सलीम भाई ने मास्टरजी को एक बहुत बड़ी तसल्ली दी, कहा कि भाईजान, आप की बेटियां मेरी बेटियां. अब तुम इन की फिक्र छोड़ो और लाहौर जा कर भाभीजी और बहू को खोजो. मास्टरजी के पास अब कोई चारा भी नहीं था. सलीम भाई का विश्वास ही था, और वे आगे बढ़ गए.

कितना सहा होगा उस वक्त लोगों ने जब अपनी जड़ों से उखड़ कर रिफ्यूजी बन गए होंगे. धर्म क्या यही सिखाता है हमें, तोड़ दो रिश्तों को, मानवीय संवेदनाओं का खून कर दो.

बरसों पुरानी हिंदू, मुसलमान की वह नफरत आज भी बरकरार है तो इन नेताओं की वजह से, धर्म के ठेकेदारों की वजह से, अंधविश्वास की गठरी उठाए लोगों की अंधभक्ति की वजह से.

काश, जल्दी ही हमें समझ में आ जाए कि धर्म तो दिलों को मिलाता है, चोट पर मरहम लगाता है. खून की नदियां नहीं बहाता, बच्चों को रुलाता नहीं, औरतों की इज्जत नहीं उतारता, बसेबसाए घरों को उजाड़ता नहीं. काश, यह बात आने वाली हमारी पीढ़ी जल्दी ही समझ जाए.

Famous Hindi Stories : एक बार फिर से

Famous Hindi Stories : “हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

Hindi Stories Online : अनमोल रिश्ता – मदनलाल को किसने कहा विश्वासघाती

Hindi Stories Online :  खाना खा कर अभी हाथ धोए भी नहीं थे कि फोन की घंटी बज उठी. जरूर बच्चों का फोन होगा, यह सोचते ही मेरे चेहरे पर चमक आ गई. ‘हैलो, हां बेटा, कहां पर हो?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मम्मी, बस, अब आधे घंटे बाद ही हम एलप्पी के लिए रवाना हो रहे हैं, शाम तक वहां पहुंच जाएंगे,’’ राजीव खुशी के साथ अपना कार्यक्रम बता रहा था. ‘‘चलो, ठीक है, वहां पहुंच कर खबर देना…और हां बेटा, खूब मौजमस्ती करना. बारबार इतनी दूर जाना नहीं होता है.’’

एक गाना गुनगुनाती हुई मैं अपने बच्चों के लिए ही सोच रही थी. 2 साल तक सोचतेसोचते आखिर इस बार दक्षिण भारत का 1 महीने का ट्रिप बना ही लिया. राजीव, बहू सीमा और उन के दोनों बच्चे आयुषआरुषि गरमियों की छुट्टियां होते ही गाड़ी द्वारा अपनी केरल की यात्रा पर निकले थे. राजीव डाक्टर होने की वजह से कभी कहीं ज्यादा समय के लिए जा ही नहीं पाता था. बच्चे भी अब 12-14 साल के हो गए थे. उन्हें भी घूमनेफिरने का शौक हो गया था. बच्चों की फरमाइश पर राजीव ने आखिरकार अपना लंबा कार्यक्रम बना ही लिया.

हम ने तो 20 साल पहले, जब राजीव मनीपाल में पढ़ता था, पूरे केरल घूमने का कार्यक्रम बना लिया था. घूमने का घूमना हो गया और बेटे से मनीपाल में मिलना भी. एलप्पी शहर मुझे बहुत पसंद आया था. खासकर उस की मीठी झील और खारा समुद्र का मेल, एलप्पी से चलने वाली यह झील कोच्चि तक जाती है. इस झील में जगहजगह छोटेछोटे टापू झील का सौंदर्य दोगुना कर देते हैं.

7 बजे जैसे ही मेरे पति घर में घुसे, सीधा प्रश्न किया, ‘‘बच्चों की कोई खबर आई?’’ ‘‘हां, एलप्पी के लिए रवाना हो गए हैं, अब थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले होंगे,’’ मैं ने पानी का गिलास उन के हाथ में देते हुए कहा.

‘‘बच्चों को गए 15 दिन हो गए, उन के बिना घर कितना सूनासूना लगता है,’’ फिर कुछ क्षण रुक कर बोले, ‘‘याद है तुम्हें, एलप्पी में मोटरबोट में तुम कितना डर गई थीं, जब झील से हम समुद्र के हिलोरों के बीच पहुंचे थे. डर के मारे तुम ने तो मोटरबोट मोड़ने को ही कह दिया था,’’ कहते हुए वे होहो कर हंस पड़े. ‘‘अरे, बाप रे, आज भी याद करती हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं तो वैसे भी बहुत जल्दी घबरा जाती हूं. फोन पर राजीव को समझा दूंगी, नहीं तो बच्चे डर जाएंगे,’’ मैं ने उतावले हो कर कहा.

‘‘रहने दो, बच्चों को अपने हिसाब से, जो कर रहे हैं, करने दो, नसीहत देने की जरूरत नहीं है,’’ अपनी आदत के मुताबिक पति ने मुझे झिड़क दिया. मैं पलट कर कुछ कहती कि फोन की घंटी बज उठी. इन्होंने फोन उठाया, ‘‘हां, बेटी सीमा, तुम एलप्पी पहुंच गए?’’

न जाने उधर से क्या जवाब मिला कि इन का चेहरा एकदम फक पड़ गया. बुझी आवाज में बोले, ‘‘ऐसा कैसे हो गया, ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’ आगे बोले, ‘‘क्या आरुषि का हाथ बिलकुल मुड़ गया है और आयुष का क्या हाल है.’’ इन के चेहरे के भाव बदल रहे थे. मैं भी घबराती हुई इन से सट कर खड़ी हो गई.

फोन में से टूटेफूटे शब्द मुझे भी सुनाई दे रहे थे, ‘‘राजीव को चक्कर आ रहे हैं और कमर में तेज दर्द हो रहा है, उठा भी नहीं जा रहा है.’’ ये एकदम चिंतित हो कर बोले, ‘‘हां, ठीक है. एक बार पास ही के अस्पताल में दिखा दो. मैं कुछ सोचता हूं,’’ कह कर इन्होंने फोन धम्म से पटक दिया और वहीं बैठ गए.

मैं ने एकदम से प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘‘बच्चों के संग क्या हो गया? कैसे हो गया? कहां हो गया और अब क्या सोच रहे हैं?’’ मेरे प्रश्नों को अनसुना करते हुए खुद ही बुदबुदाने लगे, ‘यह क्या हो गया, अच्छाभला बच्चे का सफर चल रहा था, एक बच्चा और मोटरसाइकिल को बचाने के चक्कर में गाड़ी असंतुलित हो कर एक खड़ी कार से टकरा गई. यह तो अच्छा है कि एलप्पी बिलकुल पास है, कम से कम अस्पताल तो जल्दी से पहुंच जाएंगे,’ यह कहते हुए वे ऊपर शून्य में देखने लगे.

मेरा मन बहुत अशांत हो रहा था. राजीव को चक्कर आ रहे हैं. कहीं सिर में तो चोट नहीं लग गई, यह सोच कर ही मैं कांप गई. सब से ज्यादा तो ये हताश हो रहे थे, ‘‘एलप्पी में तो क्या, साउथ में भी अपना कोई रिश्तेदार या दोस्त नहीं है, जो उन्हें जा कर संभाल ले. यहां उदयपुर से पहुंचने में तो समय लग जाएगा.’’ अचानक मुझे याद आया, ‘‘5-6 साल पहले अपने यहां कैल्लूर से सलीम भाई आते थे. हर 2-3 महीने में उन का एक चक्कर लग जाता था. उन से संपर्क करो,’’ मैं ने सलाह दी.

‘‘पर 5 साल से तो उन की कोई खबर नहीं है,’’ फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘मेरे ब्रीफकेस में से पुरानी डायरी लाना. शायद कोई नंबर मिल जाए.’’ मैं झटपट दौड़ कर डायरी ले आई. पन्ने पलटते हुए एक जगह कैल्लूर का नंबर मिल गया.

फटाफट नंबर लगाया तो नंबर मिल गया, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? हां, मैं उदयपुर से मदन…मदनलाल बोल रहा हूं. क्या सलीम भाई से बात हो सकती है?’’ ‘‘अब यह फैक्टरी सलीम भाई की नहीं है, मैं ने खरीद ली है,’’ एक ठंडा स्वर सुनाई दिया.

‘‘ओह, देखिए, आप किसी तरह से सलीम भाई का नंबर दे सकते हैं, मुझे उन से बहुत जरूरी काम है,’’ इन की आवाज में लाचारी थी. उधर से आवाज आई, ‘‘हमारे यहां एक अकाउंटेंट संजीव रेड्डी पुराना है, मैं उस से बात करवा देता हूं.’’

हमें एकएक पल भारी लग रहा था, ‘‘हैलो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘हां, मैं रेड्डी बोल रहा हूं, हां जी, मैं सलीम भाई को जानता हूं. पर मुझे उन का नंबर नहीं मालूम है. हां, पर उन की लड़की कोच्चि में रहती है. उस का नंबर शायद मेरी लड़की के पास होगा. आप 5 मिनट बाद फोन मिलाएं. मैं पूछ कर बताता हूं.’’

रेड्डी साहब के सहयोग से हमें सलीम भाई की लड़की शमीमा का नंबर मिल गया. उस से फटाफट हमें उस के भाई अशरफ का नंबर मिल गया. नंबर मिलते ही हमारी आंखों में चमक आ गई, ‘‘हैलो, आप सलीम भाई के घर से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, जी, आप कहां से बोल रहे हैं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘जी, मैं उदयपुर से बोल रहा हूं. आप सलीम भाई से बात करवा दीजिए.’’

‘‘आदाब चाचाजान, मैं आप को पहचान गया. मैं सलीम भाई का लड़का अशरफ बोल रहा हूं, अब्बा अकसर आप की बातें करते हैं. आप मुझे हुक्म कीजिए,’’ अशरफ की आवाज नम्र थी. ये एकदम आतुरता से बोले, ‘‘असल में मैं आप को एक तकलीफ दे रहा हूं, मेरे बेटे राजीव का एलप्पी में एक्सीडेंट हो गया है. वहीं अस्पताल में है, आप उस की कुछ मदद कर सकते हैं क्या?’’

‘‘अरे, चाचाजान, आप बेफिक्र रहिए. मैं अभी एलप्पी के लिए गाड़ी से निकल जाता हूं. उन का पूरा खयाल रख लूंगा और आप को सूचना भी देता रहूंगा. आप उन का मोबाइल नंबर बता दीजिए.’’ इन्होंने जल्दी से सीमा का मोबाइल नंबर बता दिया और आगे कहा, ‘‘ऐसा है, हम जल्दी से जल्दी पहुंचने की कोशिश करेंगे, सो यदि उचित समझो तो उन को कोच्चि में भी दिखा देना.’’

‘‘आप मुझे शर्मिंदा न करें, चाचाजान, अच्छा अब मैं फोन रखता हूं.’’ अशरफ की बातें सुन कर तो हमें चैन आ गया, फटाफट प्लेन का पता किया. जल्दीजल्दी अटैची में सामान ठूंस रहे थे और जाने की व्यवस्था भी कर रहे थे. रात होने की वजह से हवाई जहाज से जाने का कार्यक्रम कुछ सही बैठ नहीं रहा था. सिर्फ सीमा से बात कर के तसल्ली कर रहे थे. मन में शंका भी हो रही थी कि अशरफ अभी रवाना होगा या सुबह?

खाने का मन न होते हुए भी इन की डायबिटीज का ध्यान कर हम ने दूध बे्रड ले लिया. मन में बहुत ज्यादा उथलपुथल हो रही थी. सलीम भाई से बात नहीं हुई थी, यहां आते थे तब तो बहुत बातें करते थे. क्या कारण हो सकता है? कितने ही विचार मन में घूम रहे थे.

6 साल पुरानी बातें आज जेहन में टकराने लगीं. मैं सब्जी बना चुकी थी कि इन का फोन आ गया, ‘सुधा, एक मेहमान खाना खाएंगे. जरा देख लेना.’

मेरा मूड एकदम बिगड़ गया, कितने दिनों बाद तो आज मूंग की दालपालक बनाया था, अब मेहमान के सामने नए सिरे से सोचना पड़ेगा. न मालूम कौन है? खाने की मेज पर इन्होंने मेरा परिचय दिया और बताया, ‘ये सलीम भाई हैं. सामने उदयपुर होटल में ही ठहरे हैं. इन का मार्बल और लोहे का व्यापार है. उसी सिलसिले में मुझ से मिलने आए हैं.’

फिर आगे बोले, ‘ये कैल्लूर के रहने वाले हैं, बहुत ही खुशमिजाज हैं.’ वास्तव में सलीम भाई बहुत ही खुशहाल स्वभाव के थे. उन के चेहरे पर हरदम एक मुसकान सी रहती थी, मार्बल के सिलसिले में इन से राय लेने आए थे.

धीरेधीरे इन का सलीम भाई के साथ अभिन्न मित्र की तरह संबंध हो गया. वह 2-3 महीने में अपने काम के सिलसिले में उदयपुर चक्कर लगाते थे. गरमी के दिन थे. सलीम भाई का सिर सुबह से ही दुख रहा था. दवा दी पर शाम तक तबीयत और खराब होने लगी. उलटियां और छाती में दर्द बढ़ता गया. अस्पताल में भरती कराया क्योंकि उन को एसीडीटी की समस्या हो गई थी. 1 दिन अस्पताल में रहे, तो इन्होंने उन्हें 4 दिन रोक लिया. घर की तरह रहते हुए उन की आंखें बारबार शुक्रिया कहतेकहते भर आती थीं.

सलीम भाई के स्वभाव से तो कोई तकलीफ नहीं थी पर मैं अकसर कुढ़ जाती थी, ‘आप भी बहुत भोले हो. अरे, दुनिया बहुत दोरंगी है, अभी तो आप के यहां आते हैं. परदेस में आप का जैसा जिंदादिल आदमी मिल गया है. कभी खुद को कुछ करना पड़ेगा तब देखेंगे.’ ‘बस, तुम्हारी यही आदत खराब है. सबकुछ करते हुए भी अपनी जबान को वश में नहीं रख सकतीं, वे अपना समझ कर यहां आते हैं. दोस्ती तो काम ही आती है,’ ये मुझे समझाते.

2 साल तक उन का आनाजाना रहा. एक बार वे हमारे यहां आए. एकाएक उन का मार्बल का ट्रक खराब हो गया. 2 दिन तक ठीक कराने की कोशिश की. पर ठीक नहीं हुआ. पता लगा कि इंजन फेल हो गया था इसलिए अब ज्यादा समय लगेगा.

सलीम भाई ने झिझकते हुए कहा, ‘भाई साहब, अब मेरा जाना भी जरूरी है और मैं आप को काम भी बता कर जा रहा हूं, कृपया इसे ठीक करा कर भेज दीजिएगा. अगले महीने मैं आऊंगा तब सारा पेमेंट कर दूंगा.’ पर सलीम भाई के आने की कोई खबर नहीं आई. न उन के पेमेंट के कोई आसार नजर आए.

इंतजार में दिन महीनों में और महीने सालों में बदलने लगे. पूरे 5 साल निकल गए. मैं अकसर इन को ताना मार देती थी, ‘और करो भलाई, एक अनजान आदमी पर भरोसा किया. मतलब भी निकाल लिया. 40 हजार का फटका भी लग गया.’

ये ठंडे स्वर में कहते, ‘भूलो भी, जो हो गया सो हो गया. उस की करनी उस के साथ.’ ‘‘क्या बात है? किन खयालों में खोई हुई हो,’’ इन की आवाज सुन कर मेरा ध्यान बंटा, घड़ी की ओर देखा पूरे 12 बज रहे थे. नींद आने का तो सवाल ही नहीं था, बेटे और पोतेपोती की चिंता हो रही थी. न जाने कहां कितनीकितनी चोटें लगी होंगी. शायद सीमा ज्यादा नहीं बता रही हो कि मम्मीपापा को चिंता हो जाएगी.

वहां एलप्पी में न जाने कैसा अस्पताल होगा. बस, बुराबुरा ही दिमाग में घूम रहा था. करीब 3 बजे फोन की घंटी बजी. हड़बड़ाहट में लपकते हुए मैं ने फोन उठाया. सीमा का ही था, ‘‘मम्मी, यहां एलप्पी अस्पताल में हम ने मरहमपट्टी करा ली है. अब अशरफ भाईजान आ गए हैं. हम सुबह उन के संग कोच्चि जा रहे हैं.’’

फिर एक क्षण रुक कर बोली, ‘‘अशरफ भाईजान से बात कर लो.’’ ‘‘आंटी, आप बिलकुल चिंता मत करना, मैं कोच्चि में बढि़या से बढि़या इलाज करवा दूंगा, आप बेफिक्र हो कर आराम से आओ.’’

फिर आगे बोला, ‘‘यदि आप की तबीयत ठीक न हो तो इतना लंबा सफर मत करना, मैं इन्हें सकुशल उदयपुर पहुंचा दूंगा.’’ ‘‘शुक्रिया बेटा, लो अपने अंकल से बात करो,’’ मेरा मन हलका हो गया था.

‘‘बेटा, हम परसों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. तुम्हें तकलीफ तो दे रहे हैं, पर सलीम भाई से बात नहीं हुई. वे कहां हैं?’’ इन्होंने संशय के साथ पूछा. ‘‘अंकल, वह कोच्चि में ही हैं. आजकल उन की भी तबीयत ठीक नहीं है. अच्छा मैं फोन रखता हूं.’’

‘‘चलो, मन को तसल्ली हो गई कि परदेस में भी कोई तो अपना मिला. यह कहते हुए मैं लेट गई. जल्दी से जल्दी टैक्सी से पहुंचने में भी हमें समय लग गया. अशरफ ने हमें अस्पताल और रूम नंबर बता दिया था, सो हम सीधे कोच्चि के अस्पताल में पहुंच गए. वाकई अशरफ वहां के एक बड़े अस्पताल में सब जांच करवा रहा था, आरुषि के 2-3 फ्रैक्चर हो गए थे, उस के प्लास्टर बंध गया था.

राजीव के दिमाग में तो कोई चोट नहीं आई थी. पर बैकबोन में लगने से वह हिलडुल नहीं पा रहा था. चक्कर भी पूरे बंद नहीं हुए थे. एक पांव की एड़ी में भी ज्यादा चोट लग गई थी.

डाक्टर ने 10 दिन कोच्चि में ही रहने की सलाह दी. ऐसी हालत में इतनी दूर का सफर ठीक नहीं है, सीमा ठीक थी और वही सब को संभाल रही थी. पोते आयुष को हम अपने साथ अस्पताल से बाहर ले आए और अशरफ से होटल में ठहरने की बात की.

‘‘अंकल, आप क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं. घर चलिए, अब्बाजान आप का इंतजार कर रहे हैं.’’ हमारी हिचक देख कर वह बोला, ‘‘अंकल, आप चिंता न करें. आप के धर्म को देख कर मैं ने इंतजाम कर दिया है.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में धर्म नहीं देखा जाता है,’’ ये शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे. अशरफ हमें सलीम भाई के कमरे में ले गया. सलीम भाई ने एक हाथ उठा कर अस्फुट शब्दों में बोल कर हमारा स्वागत किया. उन की आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. हमारे मुंह से बोल नहीं निकल रहा था. इन्होंने सलीम भाई का हाथ पकड़ कर हौले से दबा दिया. 10 मिनट तक हम बैठे रहे, सलीम भाई उसी टूटेफूटे शब्दों में हम से बात करने की कोशिश कर रहे थे. अशरफ ही उन की बात समझ रहा था.

खाना खाने के बाद अशरफ ने बताया, ‘‘अब्बाजान जब भी उदयपुर से आते थे आप की बहुत तारीफ करते थे. हमेशा कहते थे, ‘‘मुझे जिंदगी में इस से बढि़या आदमी नहीं मिला और चाचीजान के खाने की इतनी तारीफ करते थे कि पूछो मत.’’ उस के चेहरे पर उदासी आ गई. एक मिनट खामोश रह कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘आप के यहां से आने के चौथे दिन बाद ही अम्मीजान की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी. बे्रस्ट में ब्लड आ जाने से एकदम चिंता हो गई थी. कैल्लूर के डाक्टर ने तो सीधा मुंबई जाने की सलाह दी.

‘‘जांच होने पर पता चला कि उन्हें बे्रस्ट कैंसर है और वह भी सेकंडरी स्टेज पर. बस, सारा घर अम्मीजान की सेवा में और पूरा दिन अस्पताल, डाक्टरों के चक्कर लगाने में बीत जाता था. ‘‘इलाज करवातेकरवाते भी कैंसर उन के दिमाग में पहुंच गया. अब्बाजान तो अम्मीजान से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अम्मी 2 साल जिंदा रहीं पर अब्बाजान ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. मैं उस समय सिर्फ 20 साल का था.

‘‘ऐसी हालत में व्यापार बिलकुल चौपट हो गया. फैक्टरी बेचनी पड़ी. अम्मीजान घर से क्या गईं, लक्ष्मी भी हमारे घर का रास्ता भटक गई. ‘‘अकसर अब्बाजान आप का जिक्र करते थे और कहते थे, ‘एक बार मुझे उदयपुर जाना है और उन का हिसाब करना है, वे क्या सोचते होंगे कि दोस्ती के नाम पर एक मुसलमान धोखा दे गया.’?’’

हमारी आंखें नम हो रही थीं, इन्होंने एकदम से अशरफ को गले लगा लिया और बात बदलते हुए पूछा, ‘‘सलीम भाई की यह हालत कैसे हो गई?’’ अशरफ गुमसुम सा छत की ओर ताकने लगा, मन की वेदना छिपाते हुए आगे बोला, ‘‘अंकल, जब मुसीबत आती है, तो इनसान को चारों ओर से घेर लेती है. अभी 2 साल पहले अब्बाजान ने फिर से व्यापार में अच्छी तरह मन लगाना शुरू किया था. हमारा कैल्लूर छूट गया था. हम कोच्चि में ही रहने लगे. मैं भी अब उन के संग काम करना सीख रहा था.

‘‘पहले वाला मार्बल का काम बिलकुल ठप्प पड़ गया था. कर्जदारों का बोझ बढ़ गया था. व्यापार की हालत खराब हुई तो लेनदार आ कर दरवाजे पर खड़े हो गए. पर देने वालों ने तो पल्ला ही झाड़ लिया. आजकल मोबाइल नंबर होते हैं, बस, नंबर देखते ही लाइन काट देते थे. ‘‘जैसेतैसे थोड़ी हालत ठीक हुई तो अब्बाजान को लकवे ने आ दबोचा. चल- फिर नहीं पाते और जबान भी साफ नहीं हुई, इसलिए एक बार फिर व्यापार का वजन मेरे कंधों पर आ गया.’’

यों कहतेकहते अशरफ फूटफूट कर रो पड़ा. मेरी भी रुलाई फूट रही थी. मुझे आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी. कितनी संकीर्णता से मैं ने एकतरफा फैसला कर के किसी को मुजरिम करार दे दिया था. राजीव की सारी जांच की रिपोर्टें आने के बाद कोई बीमारी नहीं निकली थी. हम सब ने राहत की सांस ली. मन की दुविधा निकल गई थी. हमें देख कर आज भी सलीम भाई के चेहरे पर वही चिरपरिचित मुसकान आ जाती थी.

10 दिन रह कर हमारे उदयपुर लौटने का समय आ गया था. अशरफ के कई बार मना करने के बावजूद इन्होंने सारा पेमेंट चुकाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पिता के समान हूं. एक बाप अपने बेटे पर कर्तव्यों का बोझ डालता है पर खर्चे का नहीं. अभी तो मैं खर्च कर सकता हूं.’’

अशरफ इन के पांवों में झुक गया. इन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम ने जिस तरह से अपने पिताजी की शिक्षा ग्रहण की है और कर्तव्य की कसौटी निभाई है वह बेमिसाल है.’’ फिर एक बार सलीम भाई के गले मिले. दोनों की आंखें झिलमिला रही थीं.

चलते समय अशरफ ने झुक कर आदाब किया. इन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज से अपने इस चाचा को पराया मत समझना. तुम्हारे एक नहीं 2 घर हैं. हमारे बीच एक अनमोल रिश्ता है, जो सब रिश्तों से ऊपर है.’’

Acid Attack : टैग नहीं सख्त कानून चाहिए

Acid Attack : जीवन में कभी न कभी हर किसी को रिजैक्शन का सामना करना पड़ता है. फिर चाहे बात शिक्षा की हो, नौकरी की या रिश्तों की. लेकिन कुछ लोग इस रिजैक्शन को बरदाश्त नहीं कर पाते. इसी वजह से बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं, तो कुछ गलत कदम उठा लेते हैं.

बात यदि रिश्तो में मिलने वाले रिजैक्शन की करें तो हम खुद की जिंदगी खत्म करने तक का सोच लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों को इस बात की तकलीफ होती है कि आखिर उन में ऐसी क्या कमी है, जिस की वजह से उन्हें रिजैक्शन का सामना करना पड़ा और वह व्यक्ति बदला लेने की सोचने लगता है. ऐसा ही एक मामला वैलेंटाइन डे पर सामने आया. जहां सिरफिरे आशिक ने लड़की से रिजैक्शन मिलने पर चाकू से वार कर उस पर तेजाब फेंक दिया। लेकिन सवाल यहां यह खबर देने का नहीं है, सवाल है कि आखिर कब तक लड़कियां इन दरिंदों के हाथों शिकार होती रहेंगी. इन सिरफिरों के बदला लेने की आग जाने कितने मासूमों के चेहरे ही नहीं बल्कि उन के मनोबल, आत्मविश्वास, सपने, उम्मीदों सब को अपने बदले की संतुष्टी पाने के लिए जलाते रहेंगे.

कब रुकेगा यह सिलसिला

क्या हमेशा लड़कियां इन सिरफिरों के हत्थे एसिड अटैक की शिकार होती रहेंगी? जिस तरह से दवाई के लिए कैमिस्ट को डाक्टर का प्रिस्क्रिप्शन दिखाना अनिवार्य होता है, उसी तरह तेजाब के लिए क्यों नहीं? जबकि यह तो जहर की दवा से भी बदतर मौत देता है. जहर खा कर मनुष्य कुछ देर तड़पता है और फिर मर जाता है लेकिन एसिड अटैक से तड़पती ये लड़कियां रोज तिलतिल मरती हैं। और हर रोज जिंदा होने का अफसोस मनाती हैं.

तबाह हो जाती है जिंदगी

माना कि कुछ लड़कियों ने अपना जज्बा न खो कर मिसाल गढ़ी हैं लेकिन सोचें तो उस को कितनी तकलीफों से गुजरना पड़ाता है क्योंकि हंसतीखेलती एक लङकी को यह घाव समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है. जहां वह जीवन को खूबसूरत बनाने के सपने संजोती है, वहीं उस की जगह उसे एसिड सर्वाइवर का टैग मिलता है.

आज जब भी वह खुद को आईने में देखती होगी तो वह दिल दहला देने वाला मंजर आंखों से दिखना बंद होने पर भी उसे साफ नजर आता होगा.

गंभीर समस्या

क्यों आएदिन ऐसे सिरफिरे आशिक खुलेआम इन वारदात को अंजाम देने की हिम्मत जुटा पाते हैं?

भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में यह बेहद गंभीर समस्या है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सर्वाइवल ट्रस्ट इंटरनैशनल (एएसटीआई) के अनुसार, दुनिया में सब से ज्यादा एसिड हमले ब्रिटेन में होते हैं, जिस का ज्यादा इस्तेमाल गैंगवार में होता है. ब्रिटेन के बाद भारत का नंबर आता है जहां हर साल 1 हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं.

क्या कहते हैं आंकङे

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, एसिड अटैक साल 2019 में 150 मामले, साल 2020 में 105 मामले, साल 2021 में 102 मामले आए। ऐसे मामलों में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर, दूसरे पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर दिल्ली रहा। 2021 के मामलों पर गौर करें तो देश में 107 पीड़ितों के साथ एसिड हमले की 102 घटनाएं और एसिड हमले के प्रयास के 48 मामले दर्ज किए गए थे, जहां चार्जशीट दर्ज करने की दर 89% रही जबकि दोषसिद्धि की दर 20% दर्ज की गई जोकि बेहद चिंताजनक आंकड़े हैं। इस में सजा का प्रावधान देखें तो एसिड अटैक के मामले आईपीसी की धारा 326 ए के तहत दर्ज किए जाते हैं, जबकि एसिड अटैक के प्रयास के मामले आईपीसी की धारा 326 बी के तहत दर्ज किए जाते हैं, जिस में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा से ले कर आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है।

पेरैंट्स की क्या हो भूमिका

मनोविज्ञान के अनुसार देखें तो ऐसे हमले अति आवेश भरे व्यवहार के कारण होते हैं जिन्हें इंपल्सिव डिसऔर्डर कहा जाता है. यह व्यवहार 1-2 दिन की नहीं, बल्कि बचपन में ही इस की नींव रखी जा चुकी होती है। जब मांबाप बच्चे को न सुनने का आदि ही नहीं रहने देते तो उस के व्यक्तित्व में इनकार सुनने जैसे शब्दों कि जगह होती ही नहीं। जिस कारण यदि कोई उस का कहा न माने तो आवेग में आ कर वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है.

देखा जाए तो आने वाले समय में ऐसे बच्चों की तादाद में और भी इजफा होगा क्योंकि आजकल एकल परिवार में रहने वाले बच्चे सिर्फ प्यार, समय से पहले मिलने वाली सुविधाओं की लत सी लग गई है.

इसलिए जरूरी है कि अपना कल अच्छा बनाना है तो अपने आज में न कहने की आदत डालें. आज जरूरत है कि बच्चों के प्रशिक्षण के साथ नए कानून बनाए जाएं जहां सजा का प्रावधान ऐसा हो कि तेजाब तो दूर वह पानी फेंकने तक की हिम्मत न जुटा पाए क्योंकि चोटिल काया तो सब को नजर आ जाती है लेकिन जेहन पर लगे घावों की पीड़ा एक सर्वाइवर ही जानती है जिस की जिंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक हो कर रह जाती है.

Relationship : सैक्सुअल लाइफ के कारण परेशान हूं, मैं क्या करूं?

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 साल की हूं और मेरे पति 25 साल के हैं. शादी के 10 महीने हो चुके हैं. हमबिस्तरी के दौरान मेरे पति बहुत जल्दी जोश में आ जाते हैं, जबकि मैं काफी देर बाद जोश में होती हूं. कोई उपाय बताएं, ताकि मैं भी जल्दी जोश में आ सकूं?

जवाब

तजरबा न होने के चलते आप लोगों के साथ ऐसा हो रहा है. अपने पति से कहें कि हमबिस्तर होने के दौरान पहले वे काफी देर तक आप के अंगों को  चूमें व सहलाएं. इस से आप पूरी तरह तैयार हो जाएंगी.

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दांपत्य में घटता सैक्स और बढ़ता अलगाव

वर्तमान में विवाहित जोड़ों के जीवन से सैक्स बाहर होता जा रहा है. यह समस्या दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है, जबकि बैस्ट सेलर उपन्यास ‘हाउ टु गैट द मोस्ट आउट औफ सैक्स’ के लेखक डैविड रूबेन का कहना है, ‘‘यदि सैक्स सही है तो सब कुछ सही है और यदि यह गलत है तो कुछ भी सही नहीं हो सकता. यही कारण है कि यह सहीगलत का समीकरण बहुतों के जीवन पर हावी हो रहा है.’’

27 वर्षीय माया त्यागी के जीवन पर भी यह समीकरण हावी हो रहा है. कुछ माह पहले हुए इस विवाह ने युवा मीडिया प्रोफैशनल के जीवन में सब गड़बड़ कर दिया, क्योंकि माया का पति कार्य के प्रति पूर्णतया समर्पित है, इसलिए उन के आपसी संबंधों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है. माया का पति हमेशा व्यस्त रहता है. शाम को भी घर देर से आता है और इतना थका होता है कि उस के लिए कुछ भी करना मुश्किल होता है. शादी के बाद भी उस का व्यस्त कार्यक्रम नहीं बदला.

माया कहती है,‘‘वैसे, शुरू में सैक्स ज्यादा बड़ी समस्या नहीं थी. जब भी हम साथ होते थे तो सैक्स होता था और मुझे यह जीवनशैली बुरी नहीं लगती थी. लेकिन धीरेधीरे हमारे यौन संबंधों में कुछ दिन का अंतराल आने लगा और फिर धीरेधीरे यह अंतराल बढ़ता चला गया. मेरे पति को इस बात से जैसे अब कोई मतलब नहीं रहा. अब हम मुश्किल से महीने में 1 बार सैक्स करते होंगे और वह भी आननफानन में.’’

पहली रात में अलगाव

बहुत सारे ऐसे केस हैं जहां शारीरिक समस्याएं पहली रात से ही शुरू हो जाती हैं. सुनील व रेशमा के साथ ऐसा ही हुआ. वे शादी के बंधन में बंधने से पहले ही अच्छे दोस्त बन चुके थे. उन के बीच से अजनबीपन पूरी तरह से मिट गया था. लेकिन पहली बार बिस्तर पर सैक्स करने के बाद ही उन की समस्या की शुरुआत हो गई.

29 वर्षीय सुनील उस रात प्यार की सारी सीमाएं तोड़ना चाहता था, जबकि उस की मित्र से पत्नी बनी रेशमा अपनी सुंदर दोस्ती को बरबाद नहीं होने देना चाहती थी. रेशमा के प्रतिकार की वजह से उस रात उन्होंने कुछ नहीं किया और फिर यही सामान्यतया रोज होने लगा. आदमी रोजाना जिद करे और पत्नी मना करे तो क्लेश होता ही है.

कुछ माह के बाद सुनील ने तलाक का केस दायर कर दिया. जब भी वह अलगाव का मुद्दा छेड़ता तो उस के विवाहित साथी उसे अलग होने को कहते जबकि अविवाहित साथी सुनील से कहते कि वह धैर्य रखे, उदास न हो, क्योंकि उस के पास पत्नी के रूप में एक बहुत अच्छी दोस्त है, जिस के साथ वह सब कुछ बांट सकता है और सैक्स तो वैसे भी कुछ सालों में हवा हो जाता है.

इन सब परेशानियों के होते हुए भी सुनील व रेशमा बाहर फिल्म, कला प्रदर्शनी देखने जाते, भोजन के लिए जाते. खास मौकों पर एकदूसरे को तोहफा भी देते. बल्कि रेशमा ने तो सुनील के जन्मदिन व विवाह की वर्षगांठ को भी बड़े अच्छे तरीके से मनाया. अब 3 साल बाद दोनों के रिश्ते में सैक्स भी है और प्यार भी.

सुनील का कहना है ,‘‘मैं रेशमा के साथ खुश हूं. वह एक बहुत अच्छी दोस्त है. मैं उसे औफिस में क्या हुआ से ले कर मां से लड़ाई तक सब कुछ बता सकता हूं. यद्यपि शुरू में हमारे बीच लड़ाई होती थी. मैं उस के साथ सैक्स करना चाहता था, परंतु वह कहती थी कि दोस्ती और सैक्स हमेशा साथ नहीं चल सकते. तब मेरी मरजी थी. हम में से किसी का विवाहेतर संबंध नहीं था, परंतु स्वयं आनंद भी अनदेखा नहीं किया जा सकता.’’

सैक्स में कमी क्यों

आज सैक्स शहरीकरण की बहुत बड़ी समस्या है. विशेषज्ञ शहरी जोड़ों में सैक्स से दूरी के अलगअलग कारण बताते हैं. कुछ जोड़ों की डबल इनकम, आलीशान जीवनशैली, उच्च वेतन वाली नौकरियां, ब्रैंड लेबल आदि सब सैक्स की कमी के लिए जिम्मेदार हैं. उच्च आय वाले कामकाजी जोड़े अपने बैडरूम से ज्यादा समय अपने औफिस में बिताते हैं. उन का व्यस्त जीवन सैक्स के लिए जगह नहीं छोड़ता और फिर वे कोशिश करने में भी पीछे रह जाते हैं. हर चीज से मिलने वाली तुरंत संतुष्टि एक आदत बन जाती है.

डा. मन्नु भोंसले का कहना है कि आज के युवा जोड़ों के पास अपने साथी को यौन संतुष्टि प्रदान करने के लिए समय का अभाव होता है तथा घंटों काम करने से होने वाली शारीरिक थकान उन्हें सैक्स से दूर करती है, नशा भी सैक्स से दूरी बढ़ाता है. पत्नी की सैक्स में रुचिहीनता भी एक कारण है, क्योंकि ज्यादातर पुरुष औनलाइन सैक्स व खुद आनंद के आदि हो जाते हैं. ध्यान रखें सैक्स पतिपत्नी के लिए एकदूसरे के करीब आने का जरूरी माध्यम है. इसे नजरअंदाज करना दोनों के अलगाव का कारण बन सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

तुम आ गए…

पाठक द्वारा लिखी गई रचना

Writer : Amita Bhandari

तुम आ गए मधुमास
नई उम्मीदें लिए
कि झर जाने दो
पुरानी पत्तियों को
और फूटने दो नई कोपलों को
कि अनवरत नवसृजन ही
प्रकृति का नियम है…

तुम आ गए मधुमास
प्रेम का अमृत बरसाने
कि मंडराते मंडराते
भंवरा जब छू जाता है
कोमल कलियों को
तो खिल उठते हैं फूल
और फूलों का रस पीने
मंडराती है उन पर
रंग बिरंगी तितलियां
कि प्रेम भी प्रकृति का
ही नियम है…

तुम आ गए मधुमास
मधुर संगीत सुनाने को
कि बागों में अब कोयल
छुप के बैठेगी
और कुहू कुहू का गीत
सुनाएगी
चलेगी जब बासंती हवा
तो गूंजेगी पत्तों की
सांय सांय
कि ध्वनियों का
मधुर गान भी
प्रकृति की ही अनुपम सौगात है..

Grihshobha Inspire : हिमानी ने कहा, भगत सिंह की मुंहबोली बहन मेरी दादी ही मेरा इंस्पिरेशन

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?  दिल्‍ली की हिमानी चोपड़ा ने अपने व्‍यूज को कुछ इस तरह शेयर किया –

मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की जर्नी
हिमानी चोपड़ा, जब केवल 20 साल की थीं, तो उनकी शादी हो गई.   21 साल की उम्र में उन्‍होंने अपने पहले बेटे को जन्‍म दिया और 30 साल की उम्र आने तक वो दोबारा मां बनी.  हिमानी ने कहा कि 30 साल की उम्र में मुझे यह महसूस हुआ कि मुझे अब अपने लिए कुछ करना चाहिए.  आज मैं एक मेकअप आर्टिस्‍ट हूं, मैंने इस फील्‍ड के कई बड़े लोगों से ट्रेनिंग ली है और आज ट्रेनिंग दे रही हूं.   

खुद को कमतर न समझें 
हिमानी का मानना है कि महिलाओं की राह की सबसे बड़ी बाधा खुद को कमतर समझने की उनकी अपनी सोच ही है.  खुद को काबिल बनाने के लिए उन्‍हें यह सोचना होगा कि वह आम नहीं खास है. मुझे भी ऐसा ही लगा था तभी मैंने अपने स्किल्‍स को डेवलप करना शुरू किया. आज इंस्‍टाग्राम पर मेरे 85 हजार से भी अधिक फौलोअर्स हैं.  कुछ इवेंट्स में मुझे सम्‍मानित भी किया गया है. 

मेरी दादी मेरी मोटिवेशन

हिमानी बताती हैं,  “जिस महिला ने मुझे सबसे अधिक मोटि‍वेट किया, वो मेरी दादी थीं. वह होम्‍योपैथ की डौक्‍टर थीं. उनके 10 बच्‍चे थे. उस जमाने में वह इंग्लिश नावेल पढ़ा करती थीं.  उन्‍होंने अभी सभी बेटियों को पोस्‍ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया.  मेरे पापा के नानाजी एक क्रांतिकारी थे, उन्‍हें भगत सिंह के साथ जेल भी हुई थी. मेरी दादी भगत सिंह की मुंहबोली बहन थी. शायद क्रांतिकारियों के परिवार से होने की वजह से ही वह बहादुर थी और कठिन परिस्थितियों से हार नहीं मानती थीं”.

समाज की सोच
हो सकता है आज के जमाने में खुद को ग्रुम करने को लेकर सभी महिलाओं के लिए एक जैसी स्थिति नहीं हो,  कुछ महिलाओं की राह में उनका अपना घर ही बाधा बन कर खड़ा हो जाता है . हिमानी ने कहा कि जब मैंने अपना काम करना शुरू किया, तो मेरी मां ने भी मुझे कहा था कि तुम काम करोगी, तो बच्‍चों की देखरेख कौन करेगा?

पहला कदम खुद बढ़ाना होगा  

मेरा मानना है कि आज महिलाओं को कई तरह की फैसिलिटि सरकार की ओर से मिल रही है लेकिन पहला कदम तो उन्‍हें ही बढ़ाना होगा.  मेरे पास आज कई कमजोर आर्थिक स्थिति वाले घरों से आने वाली लड़कियां मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की ट्रे‍निंग ले रही हैं, मैं उन्‍हें सिखाती हूं तो इस बात का इत्‍मीनान महसूस करती हूं कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने जीवन को किस तरह से जीना है इसका निर्णय ले सकेंगी.

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Women’s Day Special : आप की आजादी आप का पैसा

Women’s Day Special : अकसर हम सुनते हैं कि घर की बड़ीबुजुर्ग महिलाओं ने कोई आय न होने के बावजूद बुरे समय में अपनी पति की मदद की. मुश्किल समय से बाहर ले आई, वह भी घर खर्च से बचाए हुए थोड़ेबहुत पैसों से. दरअसल, ये सभी जानती थीं कि धैर्य के साथ छोटीछोटी बचत से भी बड़ी संपत्ति जोड़ी जा सकती है. दादीनानी की यह सीख आज भी उतनी ही कारगर है. सोना भारतीयों की परंपराओं का अभिन्न अंग है और भविष्य को सुरक्षित रखने का आधार भी. ऐसे में, आप भी थोड़ीबहुत बचत कर के सोना खरीद सकती हैं. आज हम आप को बता रहे हैं कुछ ऐसे कुछ तरीके जिन की मदद से आप छोटीछोटी रकम के साथ सोने को जोड़ सकती हैं :

अगर आप खुद कमाऊ न हों तब तो आप के हाथ में कुछ पैसा ऐसा जरूर होना चाहिए, जिस के बारे में घर वालों को बिलकुल मालूम न हो. न आप के भाई को, न बहन को, न पति और बेटे, बेटी को. ऐसा करने के पीछे की वजह साफ है क्योंकि यह पैसा बुरे वक्त में इस्तेमाल के लिए रखा जा रहा है, अपने बच्चों को बेवजह गिफ्ट करने के लिए नहीं.

इसलिए उसे सब से छिपा कर रखें. यह आप की इमरजैंसी का हो और आप उसे तब इस्तेमाल करें जब जान के लाले पङ रहे हों. नोट या पैसे रखने में खराब हो जाते हैं लेकिन यह गोल्ड के रूप में होगा तो उसे लंबे समय तक रखने में फायदा है.

अपनी बचत को गोल्ड या सिल्वर खरीद कर सेव करें। ₹20-25 हजार के 4-5 ग्राम के सिक्के आते हैं, उन्हें खरीदें. वे आराम से किसी जगह छिपा कर भी रख सकती हैं. यह वह संपत्ति है जिस के दाम यानी पैसा भी बढ़ जाता है. इसे अलमारी में छिपा कर रख दें और उस के आसपास सामान कुछ इस तरह रखें कि आसानी से किसी को पता न चलें.

अब कई महिलाओं के मन में सवाल आ रहा होगा कि अगर किसी को भी नहीं पता होगा कि हम ने गोल्ड कहां छिपाया है और अचानक से कुछ अनहोनी हो जाती है, तो जोड़ा हुआ गोल्ड बेकार हो जाएगा और मेरे परिवार के भी काम नहीं आ सकेगा। यह बात सही है लेकिन फिर भी आप किसी को न बताएं. घर में होगा तो आप के बच्चों और पति को कभी न कभी मिल ही जाएगा. आप उस पर ध्यान मत दें. आप को उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यह पैसा तब इस्तेमाल करें जब खाने को न हो या फिर कोई विषम परिस्थिति आ जाए ताकि इस समय किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें. इसलिए गोल्ड की कुछ ज्वैलरी खरीदें और उसे अपनी अलमारी के लौकर में छिपा कर भूल जाएं. घर के किसी ऊंचे टांङ पर छिपा कर रख दें। कोई चोर जगह घर में बनाएं जैसे बिजली के बोर्ड के पीछे, किचन में कोई खास जगह, अलमारी के पीछे छिपा हुआ कोई लौकर आदि. यह सब आप अपनी सुविधा के अनुसार बनवा सकती हैं.

सोने में निवेश के फायदे

सोने में निवेश करने के कई फायदे हैं. समय के साथ सोने की कीमत भी बढ़ रही है। ऐसे में यह आप को भविष्‍य में काफी अच्‍छा रिटर्न दे सकता है. मुश्किल समय में जब कहीं से पैसों का इंतजाम होता हुआ न दिखे तो आप सोने को गिरवी रख कर कर्ज उठा सकती हैं. गोल्‍ड लोन सुरक्षित कर्ज की श्रेणी में आता है. आपातस्थिति से निबटने के लिए आप सोना बेच कर इस के बदले में नकदी ले सकती हैं.

कितना सोना रख सकते हैं घर में

अविवाहित महिला घर में 250 ग्राम तक का सोना रख सकती हैं. अविवाहित पुरुष केवल 100 ग्राम गोल्ड ही रख सकता है. वहीं, विवाहित महिला घर में 500 ग्राम तक सोना रख सकती है. शादीशुदा आदमी/पुरुष के लिए घर में सोना रखने की लिमिट 100 ग्राम है.

इन तरीकों से भी निवेश कर सकती हैं

गोल्ड ईटीएफ : गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रैडेड फंड्स (ईटीएफ) ओपन ऐंडेड म्यूचुअल फंड है जिसे गोल्ड ईटीएफ को शेयर की तरह खरीद कर डीमैट अकाउंट में रखा जा सकता है. यह गोल्ड की बदलती कीमतों पर निर्भर करता है. इस में इनवैस्ट करने से आप को दोहरा लाभ मिल सकता है क्योंकि आप न केवल गोल्ड में इनवैस्ट कर रहे हैं बल्कि आप को स्टौक्स में ट्रैडिंग का मौका भी मिल रहा है.

दरअसल, यह एक म्यूचुअल फंड की स्कीम है, जो सोने में निवेश का सस्ता विकल्प है. इस सोने को स्‍टौक मार्केट में खरीदा और बेचा जा सकता है. ईटीएफ (ETF) को यूनिट्स में खरीदा जाता है. एक गोल्ड ईटीएफ यूनिट का मतलब है कि 1 ग्राम सोना. अगर आप के पास बहुत पैसे नहीं हैं, तो आप 1 या 2 यूनिट सोना खरीद सकती हैं.

डिजिटल गोल्‍ड

डिजिटल गोल्‍ड खरीदना भी एक अच्छा औप्शन हो सकता है. इस में 24 कैरेट प्योरिटी की शुद्धता, जीरो रिस्क और 100% लिक्विडिटी है. डिजिटल गोल्‍ड आप के पास फिजिकली न हो कर आप के डिजिटल वौलेट में रखा जाता है. आप डिजिटल वौलेट प्लेटफौर्म के माध्यम से अपने स्मार्टफोन पर आसानी से सोना खरीद सकती हैं. समय के साथ इस की कीमत भी बढ़ती जाती है. जरूरत पड़ने पर आप इस सोने को औनलाइन बेच भी सकती हैं. इस में ₹1 से भी निवेश किया जा सकता है.

गोल्‍ड म्‍यूचुअल फंड

आप निवेश के लिहाज से गोल्ड म्यूचुअल फंड में इन्वैस्‍टमेंट कर सकती हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड में मंथली एसआईपी (SIP) के जरीए मिनिमम ₹500 से निवेश की शुरुआत कर सकती हैं. इस में निवेश करने के लिए आप को डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है. आप किसी भी म्यूचुअल फंड हाउस के जरीए इस में निवेश शुरू कर सकती हैं.

तनिष्क की गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम

ज्वैलरी ब्रैंड टाटा ग्रुप के तनिष्क स्टोर पर आप को ‘गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम’ का औप्शन मिलता है. इस स्कीम में आप को हर महीने कम से कम ₹2,000 जमा करने होते हैं. उस के ऊपर आप ₹1,000 के मल्टीप्लाई में किस्त की रकम बढ़ा सकती हैं. यह किस्त आप को 10 महीने तक देनी होती है. इस में जितना पैसा जमा होगा उस के हिसाब से आप 13वें महीने में तनिष्क से उतने मूल्य की ज्वैलरी खरीद सकती हैं.

कई ज्वैलर्स की ज्वैलरी स्कीम

इस के अलावा देश के पौपुलर ज्वैलरी ब्रैंड के स्टोर्स पर आप को ‘गोल्ड रेट प्रोटेक्शन’ स्कीम का फायदा मिलता है. इस स्कीम में आप किसी ज्वैलरी को पसंद कर के उस के 10% के बराबर की राशि स्टोर में जमा करा देते हैं. इस के बाद आप 8वें महीने के बाद अपने परचेज को कंफर्म कर सकती हैं. इस में आप ₹500 से ले कर ₹30,000 महीने तक की किस्त जमा कर सकती हैं. 11वें महीने की किस्त जमा होने के बाद आप की स्कीम बंद हो जाती है और आप जमा राशि के बराबर की ज्वैलरी खरीद सकती हैं. इस स्कीम में फायदा यह होता है कि ज्वैलर्स आप को मेकिंग चार्जेस से छूट देता है.

Grihshobha Inspire : पहली महिला IPS किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड हैं फरीदाबाद की ऋतु

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?   फरीदाबाद की ऋतु बजाज से की गई बातचीत –

इंस्‍पिरेशन के सही मायने 
ऋतु बजाज से बेहतर कौन यह समझ सकता है कि इंस्‍पिरेशन के असली मायने क्‍या हैं ? ‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड’ के सर्वे के दौरान हुई बातचीत  में ऋतु ने बताया कि वह किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड है. किरण बेदी की बोल्‍डनेस, बातों को कहने का उनका अंदाज उन्‍हें बहुत पसंद है. औनलाइन हिंदी टीचर ऋतु का मानना है कि आज भी अशिक्षा महिलाओं के विकास की राह की सबसे बड़ी बाधा है.  अशिक्षा के बाद अलगअलग तरह के सोशल टैबू को भी वुमन इंपावरमेंट की राह की सबसे बड़ी बाधा मानती हैं.

हर महिला अचीवर
फरीदाबाद में रह कर बंगलोर, सिंगापुर, यूके के बच्‍चों को स्‍पोकन हिंदी का ट्यूशन दे रही ऋतु ने बताया कि महिलाओं अगर खुद पर संदेह करना छोड़ दें, तो वह अपने मुकाम को हासिल कर सकती हैं, खुद की क्षमता को जमाने के सामने ला सकती हैं.  मिसेज मूवी का जिक्र करते हुए ऋतु कहती हैं कि उसकी लीड वुमन कैरेक्‍टर ने कभी अपने डांस के पैशन को किसी के साथ शेयर नहीं किया जबकि स्‍त्री को अपने मन में अपनी इच्‍छाओं को दबा कर नहीं रखना चाहिए. कोविड के दिनों में ऋतु ने अपनी क्‍लासेज शुरू की थी, उन्‍होंने कहा कि महिलाएं हार न माने, तो वह अचीवर हो सकती हैं. 

फाइनेंस और स्किल ट्रेनिंग
ऋतु का मानना है कि जिस तरह से टेस्‍टी सब्‍जी बनाने के लिए उसमें कई तरह की सामग्री की जरूरत होती है उसी तरह से महिलाओं को अगर बढ़ावा देना है, तो सरकार को फाइनेंस की मदद करने के साथ ही स्किल्‍स से जुड़ी ट्रेनिंग भी देनी चाहिए साथ ही महिलाओं के हित के कानून बनाना चाहिए. इस सर्वे के बातचीत के तुरंत बाद ऋतु अपने औनलाइन क्‍लास से जुड़ गई.

‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड्स’ इवेंट में रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें
https://www.grihshobha.in/inspire/register

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