IIFA 2025 : एक्ट्रेस श्रेया चौधरी ने बंदिश बैंडिंटस सीजन 2 के लिए जीता आईफा अवार्ड

IIFA 2025 :  श्रेया चौधरी ने “बंदिश बैंडिट्स सीजन 2” के लिए IIFA डिजिटल अवार्ड्स 2025 में जीता बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड, जिस वजह से वह बेहद खुश है. श्रेया ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा ये अवार्ड पाकर मैं बेहद खुश हूं इसके बाद ‘यह पहचान मुझे और बेहतरीन काम दिलाएगी’.

युवा अभिनेत्री श्रेया चौधरी इन दिनों अपनी शानदार अदाकारी को लेकर चर्चा में हैं. “बंदिश बैंडिट्स सीजन 2” में उनके दमदार अभिनय ने सभी का दिल जीत लिया, और आज IIFA डिजिटल अवार्ड्स 2025 में उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (मुख्य भूमिका) – वेब सीरीज का पुरस्कार अपने नाम कर लिया.

श्रेया चौधरी ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “मैं इस पहचान के लिए बेहद आभारी और विनम्र महसूस कर रही हूं. इससे मुझे और भी अच्छे किरदार निभाने का मौका मिलेगा, जिससे मैं इस इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना सकूं . ‘बंदिश बैंडिट्स सीजन 2′ मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रहा है.”

संगीत, भावनाओं और कहानी को खूबसूरती से जोड़ने वाली इस सीरीज का हिस्सा बनना मेरे लिए हमेशा खास रहेगा.’तमन्ना’ के किरदार से मेरा एक गहरा जुड़ाव है और यह हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा . मैं इस शो के निर्माताओं – अमृतपाल सिंह बिंद्रा, आनंद तिवारी और साहिरा नायर का दिल से धन्यवाद करना चाहती हूं. यह अवार्ड मेरे मेहनत और समर्पण की बहुत बड़ी पुष्टि है. मैंने हमेशा अपनी एक्टिंग के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. मेरे लिए अभिनय केवल एक पेशा नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और शुद्ध जुड़ाव है, और मैं चाहती हूं कि मैं इस कला में और निखरती रहूं.”

यह श्रेया चौधरी का “बंदिश बैंडिट्स सीजन 2” के लिए दूसरा बेस्ट एक्टर अवार्ड है.उनकी शानदार अदाकारी लगातार दर्शकों का दिल जीत रही है. हाल ही में, श्रेया चौधरी ने बोमन ईरानी द्वारा निर्देशित फिल्म “द मेहता बौयज़” में अविनाश तिवारी के साथ स्क्रीन शेयर की, और उनके अभिनय को दर्शकों से खूब सराहना मिली.

कब कोई लङकी बन जाती है बिगड़ैल, यहां जानिए

मुंबई की बीच सड़क पर एक लड़के को एक लड़की चप्पलों से पीट रही थी और कह रही थी कि तूने मुझे छुआ क्यों? तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई? आज मैं तुझे बताती हूं. इसे देख आसपास के लोग भी उसे पीटने लग गए। उस के नाक और मुंह से खून निकल रहा था और वह हाथ जोड़े कह रहा था कि मुझे माफ कर दो, मत मारो मैं पांव पकड़ता हूं. तुम जो कहेगी मैं करने के लिए तैयार हूं.
लेकिन लड़की मान नहीं रही थी और लगातार लातघूंसे से मारे जा रही थी। पुलिस के आने से पहले उस की पहचान का एक बुजुर्ग व्यक्ति वहां आया, बीचबचाव कर उस लड़के को उस लड़की के चंगुल से बाहर निकाला है और अस्पताल ले कर गया.
बाद में पता चलता कि वह लड़की उस लड़के को पिछले 3 साल से डेट कर रही थी। लड़के को वह बौयफ्रैंड कहती है. लड़का थोड़ा सरल स्वभाव का है. इस का फायदा उठा कर लड़की उस के साथ होटलों और रेस्तरां में हमेशा जाती थी और खुद खाना खाने के बाद अपनी मां के लिए भी खाना पैक कर ले जाती थी. इस के अलावा उसे जब भी पैसे की जरूरत होती तो उस लड़के से पैसे मांगती और वह उसे दे भी देता था.
व्यवसायी परिवार का पैसे वाला यह लड़का उस लड़की की हर चाहत को पूरा करने की जीतोड़ कोशिश करता रहा, लेकिन गलती यह हुई कि लड़के ने उस लड़की को रेस्तरां में जबरदस्ती किस कर लिया, इस से उस का गुस्सा भड़क गया और रास्ते में उस ने उस की पिटाई कर दी.
दरअसल, कुछ लड़कियां बचपन से ही बिगड़ैल स्वभाव की होती हैं. रश्मि का स्वभाव भी बिगड़ैल है, क्योंकि स्कूल के समय से वह किसी न किसी लड़के या लड़की की टिफिन खा जाती थी। पूछने पर कुछ बहाना बना कर मना कर देती थी। लेकिन एक दिन एक लड़की ने उसे किसी लड़के का टिफिन उठाते देखा और टीचर से शिकायत की। उस के पेरैंट्स को बुलाया गया, तो उस ने भोली सूरत बना कर सब के सामने कह दिया कि उसे उस के पेरैंट्स टिफिन कम मात्रा में देते हैं, जिस से उस का पेट नहीं भरता, इसलिए वह दूसरे का टिफिन चुपके से ले कर खा जाती है. पेरैंट्स और टीचर सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे और रश्मि को डांट कर वहां से निकल जाने को कहा.
असल में रश्मि की झूठ बोलने की आदत बचपन से ही थी. इस के बाद बड़ी हो कर उस ने कई बौयफ्रैंड बना लिए, जिस के साथ वह मौजमस्ती करना पसंद करती थी. जब नौकरी करने लगी, तो औफिस के किसी लड़के से प्रेम कर उस ने अंत में शादी कर ली और एक बच्चे की मां बन सैटल हो गई.
रश्मि की अच्छी बात यह रही कि उसे अंत में समझ आ गया था कि उसे हर थोड़े दिनों बाद बौयफ्रैंड बदलने की आदत को सुधार लेनी चाहिए और इस के बाद उस ने खुद को संभाल लिया. मगर लड़कियां ऐसी नहीं होतीं. सुमन ने भी कई बौयफ्रैंड बनाए और सभी के साथसाथ लाइफ को ऐंजौय किया, लेकिन अंत में सभी लड़के उस की नियत समझ कर धीरेधीरे खिसक लिए और अब सुमन अकेली अपनी मां के साथ रहती है. उसे अब शादी करने की इच्छा नहीं है. वह आजाद रहना पसंद करने लगी है.
आजाद रहने की इच्छा
असल में अभी तक आप ने लड़कों के बिगड़ने की कहानी सुनी और देखी होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लड़कियां भी बिगड़ैल होती हैं और कई बार अपने पेरैंट्स और दोस्तों की नाक में दम कर देती हैं. अगर कोई उन्हें इस की वजह के बारे में जानना भी चाहते हैं, तो मुंह बना लेती हैं या फिर टका सा जवाब दे कर निकल लेती हैं.
दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में ऐसी मनमानी करने वाली लड़कियों की कमी नहीं है. ऐक्सपर्ट मानते हैं कि ऐसी लड़कियां अधिकतर परिवार की रोकटोक से परेशान हो कर आजाद खयालात अपना लेती हैं. कुछ हद तक इन्हें विद्रोही स्वभाव भी कहा जा सकता है, जबकि कुछ का स्वभाव बचपन से ही ऐसा होता है. कई बार किसी लड़के से धोखा खाने के बाद भी लड़कियां बिगड़ैल बन जाती हैं और कई लड़कों के साथ दोस्ती करतीं और अपना गुस्सा निकालती रहती हैं. इस के अलावा परिवार में कम उम्र में कुछ गलत हालात का सामना कर चुकी लड़कियां भी ऐसी हो सकती हैं.
परिवार है जिम्मेदार
मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाड़िया कहती हैं कि ऐसी बिगड़ैल लड़कियों की संख्या आज अधिक है, क्योंकि आजकल सभी के 1 या 2 बच्चे होते हैं, ऐसे में पेरैंट्स का ध्यान उन पर बहुत अधिक होता है. उन्हें किसी भी काम को करने की आजादी नहीं मिलती. पेरैंट्स भी बहुत प्रोटैक्टिव होते हैं. वे लड़कियों को कहीं आनेजाने, मन मुताबिक ड्रैस पहनने या दोस्त बनाने आदि किसी भी बात को करने से मना करते रहते हैं. जब ये लड़कियां टीनएज में होती हैं, तो पियर प्रेशर इन पर बनता है, दोस्त उन का मजाक उड़ाते हैं. ऐसे में वे खुद को प्रूव करने के लिए कई लड़कों से प्यार का नाटक करती हैं और बिगड़ैल जानबूझ कर बनती हैं.
बिगड़ैल लड़कियां बनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं :
● पेरैंट्स का अधिक स्ट्रिक्ट होना.
● गलत संगत में पड़ जाना.
● लड़की का खुद को इंफीरियर समझना.
● बौयफ्रैंड से धोखा मिलना आदि.
ऐसे में उन का मानसिक स्तर बिगड़ने लगता है. धोखा या खुद को इंफीरियर समझना अधिकतर लड़कियों के बिगड़ैल होने की वजह देखी जाती है. कुछ लड़कियां खुद को अधिक अट्रैक्टिव दिखाने के लिए भी बहुत सारे बौयफ्रैंड बनाती हैं, ताकि दोस्तों में उन की तारीफ हो. इसलिए जो भी लड़का उन्हें मिले, उस के साथ दोस्ती कर लेती हैं, साथ ही वे अधिक बातूनी भी होती हैं. लड़के भी इस का फायदा उठा कर दोस्ती कर लेते हैं.
राशिदा अपने अनुभव के बारे में कहती हैं कि एक सीधीसादी लड़की इसलिए बिगड़ैल बनी, क्योंकि वह बहुत अधिक सुंदर नहीं थी। उसे लगता था कि कोई लड़का उसे पसंद नहीं करेगा, इसलिए वह सभी लड़कों से बहुत बातें करती और दोस्ती करती थी. इसे देख बाकी लड़कियां उसे भलाबुरा कहने लगीं. धीरेधीरे लड़की में हीनभावना हीने लगी और उसे लगने लगा कि उस का यह व्यवहार ठीक नहीं। उस ने सब से दोस्ती तोड़ डाली और वह डिप्रैशन में चली गई.
एक दिन वह मेरे पास आई और कई सेशन के बाद उसे समझ में आया कि उसे क्या करना चाहिए और तब जा कर वह नौर्मल हुई.
सोशल मीडिया की पोपुलैरिटी
इतना ही नहीं ऐसी कई लड़कियों के रील्स भी सोशल मीडिया पर देखने को मिलते हैं, जहां वे कुछ भी उटपटांग हरकतें कर रील शेयर करती हैं और लोगों के लाइक्स उन्हें अच्छा फील कराती हैं और यह सब उन के लिए गलत नहीं होता. इसे वे ऐंजौय करती हैं.
अभिनेत्री उर्फी जावेद भी बिगड़ैल लड़की की श्रेणी में शामिल हैं, लेकिन इस का असर उन पर नहीं पड़ता. छोटे शहर में जन्मी और बड़ी हुई उर्फी परिवार की रोकटोक से तंग आ कर मुंबई भाग आई और ऐक्टिंग करने लगी. उस की अतरंगी पोशाक और रहनसहन को ले कर लोग तरहतरह की बातें करते हैं, पर इस का असर उर्फी पर कभी नहीं पड़ा. वह अपने लाइफ को ऐंजौय कर रही है. उस ने कहा भी है कि वह अटेंशन चाहती है और इसलिए इस तरह के कपड़े पहनती है. उसे पहचान और पैसा सब इस से मिल रहा है, जो टीवी से कभी नहीं मिला.
बिगड़ैल लड़की का कौंसेप्ट पसंद
बौलीवुड ऐक्ट्रैस हुमा कुरैशी ने भी एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें बिगड़ैल लड़कियों का कौंसेप्ट बहुत पसंद है और उन्होंने इस पर एक किताब भी लिख डाली है. वे खुद को भी एक बिगड़ैल और बदतमीज लड़की की श्रेणी में रखती हैं. वे कहती हैं कि मैं लड़कियों को इस बात के बताए जाने से थक चुकी हूं
कि लड़कियों को कैसे कपड़े पहनने चाहिए या फिर कैसे चलना चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए. बिगड़ैल लड़कियों वाला कौंसेप्ट मुझे हमेशा से पसंदीदा रहा है, क्योंकि मैं ने हमेशा अपने मन का किया है और मैं खुद एक बिगड़ैल लड़की हूं.
बिगड़ैल बन कमाया पैसा
पिछले दिनों ब्लेयर रिचर्ड्स नाम की एक विदेशी लड़की पेशेवर बिगड़ैल लड़की के रूप में वायरल हुई, क्योंकि उस ने अपनी खूबसूरती का उपयोग कर फिन सब में शामिल हुई, जिस में लोग स्वेच्छा से खुद पैसा देते हैं. उस ने लोगों को आकर्षित कर 4 सालों में लगभग ₹5 करोड़ कमाए हैं. फिन सब वह व्यक्ति होता है, जो किसी प्रभावशाली व्यक्ति को अपने खर्च पर नियंत्रण करने देना पसंद करता है. ब्लेयर का काम ऐसे अनुयायियों को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया पेज बनाना है. हाल ही में इंस्टाग्राम वीडियो में उन्होंने स्क्रीनशौट शेयर किए, जिस में दिखाया गया कि कैसे एक व्यक्ति ने उन्हें सिर्फ 1 घंटे में सैकड़ों डौलर भेजे. उन्होंने बताया है कि वह इन लोगों से डेट या मुलाकात नहीं करती हैं. ब्लेयर ने यह भी लिखा है कि इस काम की कोई सीमा नहीं, आप वास्तव में आजीविका के लिए एक पेशेवर बिगड़ैल लड़की की तरह
काम कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले 4 सालों में मैं ने एक उपनाम के तहत सोशल
मीडिया पेजों और फैन साइट्स से लगभग ₹5 करोड़ कमाए हैं.
फिल्म इंडस्ट्री की बिगड़ैल लड़कियां
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐसी बिगड़ैल लड़कियों की कमी नहीं. बहुत सारी लड़कियां अक्खड़ और बिगड़ैल स्वभाव की हैं, जिस में परिणिती चोपड़ा का नाम सब से पहले आता है. उन का व्यवहार अपने प्रसंशकों और क्रू टीम के साथ बहुत असभ्य रहता है. अभिनेत्री कंगना रनौत भी एक बिगड़ैल लड़की है.
कम उम्र में
घर से भाग कर अभिनय के क्षेत्र में आईं और अभिनय के बल पर खुद को स्टैब्लिश किया, लेकिन इस के बावजूद वे अपने बिगड़ैल स्वभाव की वजह से कई निर्माता निर्देशक की सूची से बाहर हैं.
सुंदर और आकर्षक अभिनेत्री कैटरीना कैफ को सभी जानते हैं कि अच्छी अभिनेत्री नहीं होने के बावजूद वे फिल्मों में टिकी हुई हैं क्योंकि वे दिखने में सुंदर हैं और उन के संबंध बड़े स्टार्स यानि सारे खान के साथ बहुत मधुर हैं. मगर उन पर भी अपने सहकर्मियों के साथ नखरे दिखाने के आरोप लगते रहते हैं और वे अपने प्रशंसकों और फिल्मों के कर्मचारियों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं करतीं.
अनुष्का शर्मा भी कम बिगड़ैल नहीं. उन को अपने प्रसंसकों और फिल्मी कर्मीदल के साथ असभ्य बरताव करते हुए कई बार कैमरे पर देखा गया है. उन को मीडिया के साथ भी अशिष्ट व्यवहार करते हुए देखा गया है. उन्होंने कुछ फैशन शो में भी बदतमीजी की है जहां पर उन का यह बरताव डिजाइनर को बहुत महंगा पड़ा.
फिल्म ‘आशिकी 2’ में सरल स्वभाव के रोल के लिए जानी जाने वाली श्रद्धा कपूर रियल लाइफ में ऐसी बिलकुल नहीं हैं. वे अपने प्रशंसकों के साथ अकसर असभ्य हो जाती हैं और उन को मीडिया और फोटोग्राफरों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा गया है. श्रद्धा के इस व्यवहार पर स्वयं उन के पिता शक्ति कपूर ने भी जिक्र किया है.
इस प्रकार बिगड़ैल लड़की कहलाना आज की तारीख में कोई गलत बात नहीं होती, क्योंकि हर लड़की आजादी और चर्चा में बने रहने के लिए ही ऐसा करती है और वह कामयाबी और पैसे भी कुछ हद तक इस के जरीए पा भी लेती है. लेकिन इस में हमेशा सावधानी बरतने की जरूरत लड़की को होती है, ताकि
किसी फ्रौड इंसान के पल्ले वह न पड़ जाए.

Holographic Eyeliner : टीनएजर्स का फेवरिट है यह आईलाइनर, आप भी जरूर करें ट्राई

Holographic Eyeliner : होलोग्राफिक आईलाइनर एक नया और ट्रैंडी मेकअप प्रोडक्ट है, जो खासतौर पर टीनएजर्स के बीच काफी पौपुलर हो रहा है. यह आईलाइनर आम आईलाइनर से बिलकुल अलग होता है क्योंकि इस में चमकदार, रंगबिरंगे शेड्स होते हैं जिस से आप की आंखों में एक शानदार और ग्लैमरस लुक आता है. अगर आप भी स्टाइलिश लुक चाहती हैं, तो होलोग्राफिक आईलाइनर को अपनी मेकअप किट में जरूर रखें.

क्या है होलोग्राफिक आईलाइनर

होलोग्राफिक आईलाइनर में शाइनी और मल्टी डाइमैंशनल पिगमैंट्स होते हैं, जो अलगअलग लाइट और एंगल के हिसाब से चमकते हैं. यह खासतौर पर नाइट पार्टीज और इवेंट्स के लिए परफैक्ट है, क्योंकि यह आप के लुक को एकदम अलग और यूनिक बना देता है.

टीनएजर्स के लिए है बैस्ट

क्रिएटिविटी दिखाए भरपूर : होलोग्राफिक आईलाइनर टीनएजर्स को अपनी क्रिएटिविटी दिखाने का एक बेहतरीन मौका देता है. आप इसे एक साधारण आईलाइनर के रूप में लगा सकती हैं या फिर इसे एक फंकी और स्टाइलिश लुक के लिए कस्टमाइज कर सकती हैं.

आसान ऐप्लिकेशन : होलोग्राफिक आईलाइनर को लगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती. इस के लिए आप को एक बुनियादी आईलाइनर की तरह सिर्फ अपनी आंखों के ऊपर एक पतली लाइन खींचनी होती है.

वैरायटी है बहुत सारी : होलोग्राफिक आईलाइनर में अलगअलग रंग और शेड्स होते हैं, जैसे- नीला, गुलाबी, हरा, बैंगनी, और गोल्डन. इन्हें आप अपनी पसंद और पर्सनैलिटी के हिसाब से चुन सकती हैं.

हाई स्कूल और कालेज लुक के लिए परफैक्ट : यह मेकअप लुक टीनएजर्स के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि यह उन्हें एक फैंसी और शानदार लुक देता है, बिना ज्यादा मेकअप किए. यह लुक स्कूल या कालेज के लिए एकदम सही है.

कैसे लगाएं होलोग्राफिक आईलाइनर

● सब से पहले अपनी आंखों के चारों ओर हलका बेस लगाएं.

● एक अच्छे क्वालिटी के होलोग्राफिक आईलाइनर से अपनी आंखों के ऊपर एक पतली लाइन खींचें.

● अगर आप चाहें, तो इसे और गहरा करने के लिए एक और लेयर लगा सकती हैं.

● अंत में, मस्कारा लगा कर अपनी आंखों को पूरा करें और आप का ग्लैम लुक तैयार हो जाएगा.

● रिफाइंड लुक के लिए ब्लेंड करें और अगर आप को ज्यादा शाइनी लुक चाहिए, तो आप इसे एक हलकी सी स्मजिंग के साथ और खूबसूरत बना सकती हैं.

होलोग्राफिक आईलाइनर ट्रैंड में क्यों है

नया और यूनिक लुक : होलोग्राफिक आईलाइनर एक नया और इनोवेटिव लुक देता है जो आप को भीड़ से अलग करता है. यह साधारण आईलाइनर से कहीं ज्यादा दिलचस्प और आकर्षक होता है.

मल्टी डाइमैंशनल इफैक्ट : इस की सब से खास बात है कि यह लाइट के अलगअलग एंगल्स पर रंग बदलता है, जिस से यह आईलाइनर 3D जैसा इफैक्ट देता है. यह आप के मेकअप को एक और डाइमैंशन में ले आता है.

पार्टी और इवेंट्स के लिए परफैक्ट : होलोग्राफिक आईलाइनर का सब से बड़ा फायदा यह है कि यह नाइट पार्टीज और इवेंट्स के लिए बिलकुल परफैक्ट है. इस की चमक और रंग आप के चेहरे को ग्लैमरस लुक देते हैं, जिस से आप किसी भी इवेंट में सैंटर औफ अट्रैक्शन बन सकती हैं.

स्मूद और लाइट ऐप्लिकेशन : होलोग्राफिक आईलाइनर का टैक्सचर बेहद स्मूद होता है और इसे लगाना भी आसान होता है. यह आईलाइनर जल्दी ड्राई हो जाता है और आंखों के आसपास कोई गड़बड़ी नहीं होती.

होलोग्राफिक आईलाइनर के फायदे :

स्टाइलिश और ट्रैंडी : यह एक ऐसा आईलाइनर है जो आप को इंस्टेंटली स्टाइलिश बना देता है और आप की आंखों को ध्यान आकर्षित करने वाला बनाता है.

लाइट और प्रिटी : यह आप के लुक को हलका और आकर्षक बनाता है, बिना ज्यादा मेकअप के.

मल्टीयूज : इसे आप दिन में हलका लगा कर या रात को पार्टी लुक के लिए गहरा और बोल्ड बना सकती हैं.

Health Tips : जानें गाउट की समस्या का क्या है कारण

Health Tips : कई बार ऐसा हुआ कि सुरेश रात को सोते सोते नींद से जाग जाते और अचानक से अंगूठे में असहनीय दर्द की तकलीफ के बारे में बोलने लगते. शुरुआत में तो जब दर्द होता तो आराम के लिए पैन किलर खा लेते थे लेकिन धीरेधीरे यह जब रोजरोज का दर्द होने लगा तब उन्होंने डाक्टर को दिखाया. पता चला की यह मामूली नहीं बल्कि गाउट का दर्द है.

क्या होता है गाउट

गाउट का दर्द शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है. इस से जोड़ों, तरल पदार्थो व उत्तकों में क्रिस्टल एकत्रित हो जाते हैं. यह दर्द शरीर के एक हिस्से से शुरू होता है. दर्द अधिकतर रात को सोते समय ही होता है. ऐसा इसलिए कि सोते समय शरीर का तापमान कम हो जाता है, शरीर में पानी की कमी व सांसों की गति में गिरावट आने के कारण फेफड़े पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऔक्साइड बाहर नहीं निकाल पाते, जिस कारण जोड़ों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो जाते हैं. यही दर्द गाउट का दर्द कहलाता है.

लक्षण जानें

यह आमतौर पर अंगूठे से शुरू होता है और यदि इलाज में देरी की जाए तो यह दर्द घुटने, टखने सहित पैरों के सभी जोड़ो में परेशानी होने लगती है. अचानक तेज दर्द, लालिमा, जलन और गांठ की समस्या होने लगती है.

कारण

● उच्च प्यूरिनयुक्त भोजन व शराब, मीठे पदार्थ, रैड मीट, सी फूड का अधिक सेवन.

● अगर परिवार में गाउट का इतिहास है, तो अनुवांशिक भी इस की संभावना होती है.

● मधुमेह के रोगियों में इस का खतरा ज्यादा होता है.

● शरीर में पानी की कमी से भी जोड़ो में क्रिस्टल जमा हो जाते हैं.

● हाई बीपी की दवाएं भी यूरिक स्तर को बढ़ाती हैं.

● किडनी द्वारा यूरिक एसिड का कम या अधिक निष्कासन होना.

निदान

बर्फ की सिंकाई, प्रोटीन, शराब व रैड मीट का सेवन कम करें. रोजाना व्यायाम करें, वजन नियंत्रित रखें.
समस्या होने पर रक्त जांच व अंगूठे का अल्ट्रासाउंड अवश्य कराएं व बिना डाक्टर से परामर्श लिए दवा के सेवन से बचें.

Breakup के कारण मैं पूरी तरह टूट चुका हूं, मैं क्या करूं?

Breakup : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवक हूं. कालेज में मैं एक लड़की से प्यार करता था. लगता था कि वह भी हमारे रिश्ते को ले कर गंभीर है. पर कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही उस ने अपने घर वालों की पसंद के लड़के से शादी कर ली. उस की बेवफाई से मैं पूरी तरह टूट गया. बहुत चाहता हूं कि उस की यादों को दिल से निकाल दूं पर ऐसा हो नहीं पा रहा. जब भी उस की याद आती है मेरा किसी काम में दिल नहीं लगता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

जब किसी से प्यार करते हैं, तो उस की यादों को एकाएक भुला पाना बहुत ही मुश्किल होता है. पर जैसेजैसे समय बीतता है यादें भी धूमिल पड़ने लगती हैं. किसी को दिल से निकालना कठिन जरूर है पर नामुमकिन नहीं खासकर उस स्थिति में जब दूसरा शख्स बेवफा हो.

अपने को व्यस्त रखेंगे तो ऐसा करना आसान होगा. फिर कल को आप की भी शादी होगी. तब अतीत की यादें स्वत: विस्मृत हो जाएंगी.

समझें इशारे ताकि न मिले धोखा

भले ही आप एक नया रिश्ता शुरू कर रही हैं या फिर पहले से ही किसी रिश्ते में हैं और अपने प्रेमी को बहुत प्यार करती हैं, उस पर भरोसा करती हैं तो उसी भरोसे, प्यार और विश्वास की अपेक्षा आप उस से भी अवश्य करती होंगी. जब दो लोग एकदूसरे को पूरी ईमानदारी से चाहें तो जिंदगी बहुत खुशनुमा हो जाती है, लेकिन अगर दोनों में से एक भी स्वार्थपूर्ति और धोखा देने की राह पर चल निकलता है तो दूसरे साथी को समझने में देर नहीं करनी चाहिए.

अगर आप को भी पिछले कुछ दिनों से अपने साथी पर शक हो रहा है तो इन इशारों को समझें और सही निर्णय लें :

इग्नोर करना

कालेज में नजर पड़ने पर भी जब वह आप को इग्नोर करे और खाली पीरियड में आप के साथ टाइम स्पैंड करने के बजाय अपने दोस्तों के साथ हंसीमजाक में व्यस्त रहने लगे. आप के बारबार पास आने पर चिपकू कहे, तो समझ लीजिए अब बात आप की सैल्फ रिस्पैक्ट पर आ गई है. अब आप उस के पीछे भागना छोड़ दें और साथी के इग्नोरैंस को समझने की कोशिश करें तथा उस से थोड़ी दूरी बना लें, तब खुद ब खुद यह पता चल जाएगा कि आप का रिश्ता कितना मजबूत है.

डेट पर इंतजार करवाना

डेट फिक्स होने पर जो पहले आप का घंटों इंतजार करता था, आज आप के एक मिनट भी लेट होने पर झल्लाना शुरू कर दे. सिर्फ यही नहीं बल्कि जब पूरी सिचुएशन ही बदलने लगे और वह आप का नहीं बल्कि आप उस का इंतजार करने लगें तो समझ जाएं कि मामला गड़बड़ है.

झूठ बोलना

सच्चा प्यार विश्वास की नींव पर टिका होता है और वहां झूठ का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन अगर आप का प्रेमी आप से छोटीछोटी बातों में झूठ बोलता है, तो समझ लीजिए कि वह आप के और अपने रिश्ते के बारे में भी झूठ बोल रहा है. इस बारे में उस से खुल कर बात करें ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.

फोन करना कम कर देना

जहां पहले प्रेमी आप को दिन में कई बार कौल करता था और मना करने पर भी उसे आप की चिंता या आप से बात करने का मन होता था, वह अब कौल ही नहीं करता या बहुत कम करता है और बिजी होने का बहाना बनाता है. अगर आप कौल करती हैं तो घंटों उस का फोन बिजी रहता है, तो समझ लीजिए कि दाल में कुछ काला है.

डिमांड पूरी न करना

अब यह डिमांड फिजिकली भी हो सकती है और जनरल किसी बात को ले कर भी जैसे कि मूवी दिखाना, कोई नई ड्रैस दिलाना, किसी रैस्टोरैंट में खाना खिलाना आदि. पहले मुंह से बात निकलते ही बौयफ्रैंड उसे पूरा करने की कोशिश करता था, लेकिन अब चिढ़ कर वह साफ इनकार कर देता है.

पैसे की तरफ भागना

अगर प्रेमी पैसे को प्यार से ज्यादा अहमियत देने लगे और बातबात पर पैसे की बात करे, यहां तक कि अमीर युवतियों पर लाइन मारने लगे तो समझ लीजिए कि आप का नाता ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है.

मिलने से कतराना

पहले आप से रोज मिलने की जिद करने वाला पार्टनर जब खुद से मिलने की बात करने से भी कतराने लगे और आप के कहने पर भी मिलने की इच्छा न जताए तो यह समझें कि उसे अब आप में इंट्रस्ट नहीं है.

किसी और युवती के साथ घूमना

अगर आप ने अपने बौयफ्रैंड को कई बार किसी और युवती के साथ घूमते देखा है, तो उसे हलके में न लें. भले ही वह लाख दलीलें दे कि वह सिर्फ उस की अच्छी दोस्त है और उस से किसी काम से मिला था, लेकिन आप उस पर पूरी तरह से विश्वास न करें, बल्कि उस पर नजर रखें. अगर शक सही निकले तो समय रहते बौयफ्रैंड के धोखे और उस की हरकतों से आप को सचेत होना होगा.

फोन हिस्टरी डिलीट होना

अगर प्रेमी के कौल रिकौर्ड, मैसेज रिकौर्ड आदि बिलकुल क्लीन रहते हैं और वह आप को अपना फोन देने से भी हिचकिचाने लगा है, तो समझ लें कुछ गड़बड़ जरूर है.

खर्च करने से बचें

पहले आप पर हजारों रुपए लुटा देने वाला प्रेमी अब हर बार छुट्टे न होने के बहाने बना कर बिल आप से भरवाए, आप पर खर्च करना भी बंद कर दे. तो समझ लें कि वह आप को अपनी लाइफ का इतना अहम हिस्सा नहीं समझता.

तारीफ करना बंद कर दे

क्या वह पहले हमेशा आप की तारीफ किया करता था और अब अचानक उस ने आप की तारीफ करना बंद कर दिया, बल्कि अब उसे आप के हर काम में नुक्स नजर आने लगा है? वह आप की किसी भी बात की तारीफ न करता हो, तो समझ लीजिए कि उस ने ये बातें किसी और के लिए बचा कर रख ली हैं.

शादी के बारे में बात करने से बचे

जब भी आप प्रेमी से अपनी और उस की शादी के बारे में बात करें तो उस का टालमटोल करना और नाराज होना यह दर्शाता है कि वह आप को सीरियसली नहीं ले रहा है.

धोखे की आशंका हो तो…

जैसे ही आप को पता चले कि आप का प्रेमी आप को धोखा दे रहा है या फिर चीटिंग कर रहा है तो उसे छोड़ने में ज्यादा वक्त न लगाएं. वह आप को छोड़े इस से पहले ही आप उसे छोड़ दें ताकि आप की सैल्फ  रिस्पैक्ट बनी रहे.

–       ऐसा करने से पहले अपने लव लैटर्स, कार्ड्स और जरूरी सामान उस से वापस ले लें.

–       प्रेमी का साथ छूटने पर डिप्रैशन में जाने के बजाय इस बात की खुशी मनाएं कि चलो, अच्छा है ऐसे गलत युवक से आप का पीछा जल्दी ही छूट गया.

–       अब अपना मन पढ़ाई में लगाएं और उसे भूलने की कोशिश करें. इस से अच्छे युवक आप को मिल जाएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Insurance में हो रहे बदलाव नई पीढ़ी की महिलाओं की जरूरतों को कैसे पूरा कर रहे हैं ?

Insurance : भारत में बीमा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसकी पहुंच अब भी काफी सीमित है, खासकर महिलाओं के बीच. भारत में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है, लेकिन पुरूषों की तुलना में इंश्योरर्ड महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है. हालांकि महिलाएं अब ज्यादा आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं, लेकिन उन्हें अभी भी पूरी वित्तीय सुरक्षा पाने के लिए लंबा सफर तय करना है. परंपरागत रूप से, बीमा क्षेत्र एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है, इसलिए महिलाओं के लिए खास योजनाओं की कमी, जागरूकता की कमी और महंगे प्रीमियम जैसी दिक्कतों ने उन्हें बीमा लेने से पीछे रखा है.

मैटरनिटी बेनिफिट और क्रिटिकल इलनेस कवर सुविधाए-

सिद्धार्थ सिंघल, हेड-हेल्थ इंश्योरेंस, पौलिसीबाजार डौट कौम का कहना है कि अब स्थिति बदल रही है क्योंकि इंश्योरेंस इंडस्ट्री अब ऐसे नए उत्पादों को पेश कर रही है जो महिला ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. इंश्योरेंस कंपनी द्वारा महिलाओं की खास स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए मैटरनिटी बेनिफिट और क्रिटिकल इलनेस कवर जैसी सुविधाओं को पेश किया जा रहा है. इन सुविधाओं से बीमा महिलाओं के लिए और अधिक सुलभ, फ्लेक्सिबल और फायदेमंद बन रहा है. यहां बताया गया है कि नए उत्पाद कैसे महिलाओं के लिए बीमा को और अधिक उपयोगी बना रहे हैं. होने वाले माता-पिता के लिए सबसे कम वेटिंग पीरियड वाला मैटरनिटी इंश्योरेंस अधिकांश उपभोक्ताओं के लिए मैटरनिटी इंश्योरेसं लंबे समय से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है. पहले, हेल्थ इंश्योरेंस में मैटरनिटी कवरेज 2-4 साल तक के वेटिंग पीरियड के साथ आता था. जिससे यह परिवार की योजना बना रहे जोड़ों के लिए उपयोगी नहीं था. पौलिसी बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि 60% से अधिक जोड़े गर्भवती होने के बाद ही मैटरनिटी कवरेज खरीदते हैं. जिससे लंबे वेटिंग पीरियड की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है. इसे ध्यान में रखते हुए, बीमाकर्ता अब कम से कम 3 महीने की वेटिंग पीरियड वाली मैटरनिटी पौलिसी पेश कर रहे हैं.

मैटरनिटी कवरेज का विकल्प-

इसका मतलब यह है कि गर्भवती जोड़े भी पता चलते ही मैटरनिटी कवरेज का विकल्प चुन सकते हैं. इन पॉलिसी में डिलीवरी के पहले और डिलीवरी के बाद का खर्च और नए बच्चे की देखभाल भी शामिल होती है, जिससे मां और बच्चे दोनों को पूरी सुरक्षा मिलती है. कम वेटिंग पीरियड होने से अब ज्यादा लोग अपने परिवार को आसानी से सुरक्षित कर सकते हैं, चाहे उन्होंने पहले इस बारे में न सोचा हो.

विशेष वित्तीय सुरक्षा 

महिलाओं की विशेष स्वास्थ्य जरूरतों के लिए क्रिटिकल इलनेस कवर महिलाओं को कई स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए विशेष वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता होती है. ब्रेस्ट, ओवेरियन और सर्वाइकल कैंसर की बढ़ती घटनाओं के साथ-साथ कई ऑटोइम्यून बीमारियां भी महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती हैं. इसे ध्यान में रखते हुए, बीमा कंपनियां अब अपनी गंभीर बीमारी कवर योजनाओं का विस्तार कर रही हैं, जिससे जेंडर स्पेसिफिक बीमारियों को कवर किया जा सके और सुनिश्चित किया जा सके की गंभीर बीमारियों के इलाज के स्थिति में भी महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो.

जरूरी मेडिकल टेस्ट और एक पर्सनल हेल्थकेयर मैनेजर जैसी सुविधाएं 

अब बीमा कंपनियां महिलाओं को खास फायदे दे रही हैं. वे महिला पौलिसी धारकों को विशेष छूट और पॉलिसी में गर्ल चाइल्ड को शामिल करने वालों को अतिरिक्त बचत का लाभ दे रही हैं.  कुछ योजनाएं सिर्फ सामान्य कवरेज तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें महिलाओं की सेहत से जुड़ी खास जरूरतों का भी ध्यान रखा गया है. इनमें गायनोकौलोजिस्ट कंसल्टेशन, कैंसर की जांच, जरूरी मेडिकल टेस्ट और एक पर्सनल हेल्थकेयर मैनेजर जैसी सुविधाएं शामिल हैं, ताकि महिलाओं को पूरी तरह से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें.

इलाज के लिए एकमुश्त राशि

भारतीय महिलाओं में होने वाले सभी कैंसरों में से 25% से अधिक का कारण ब्रेस्ट कैंसर हैं. बेस्ट कैंसर के स्टेज एवं परेशानी के आधार पर इलाज की लागत ₹5 लाख से ₹20 लाख तक हो सकती है. इसी तरह का वित्तीय बोझ का सामना ओवेरियन और सर्वाइकल  कैंसर होने पर भी होता है, जिसके लिए सर्जरी, कीमोथेरेपी और टार्गेटिड थेरेपी सहित लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है. क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी इन बीमारियों को कवर करती है, जिससे पॉलिसीधारकों को इलाज के लिए एकमुश्त राशि मिलती है. इससे वे बढ़ते मेडिकल खर्च की चिंता किए बिना अपनी सेहत पर ध्यान दे सकते हैं.

मौड्युलर प्लान्स और अधिक सामर्थ्य

हेल्थ इंश्योरेंस सभी के लिए एक जैसे नहीं हो सकता, खासकर जब बात महिलाओं की अलग-अलग जरूरतों की हो. आज की महिलाएं अपने निजी और प्रोफेशनल दोनो लाइफ को संभाल रही हैं, इसलिए उन्हें ऐसी इंश्योरेंस पौलिसी की आवश्यकता है जो उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करे. इन जरूरतों को पूरा करने के लिए मौड्यूलर इंश्योरेंस पौलिसी है- ये योजनाएं फ्लेक्सिबल हैं और महिलाओं को उनकी जीवनशैली और वित्तीय स्थिति के आधार पर बीमा कवरेज चुनने की सुविधा प्रदान करती है. इसमे कवरेज को व्यक्ति की प्रीमियम भुगतान क्षमता के अनुसार बदला जा सकता है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति शेयर्ड कमरे का विकल्प चुन सकता है या पसंदीदा नेटवर्क अस्पतालों को चुन सकता है या प्रीमियम को कम करने के अधिक डिडक्टिबल राशि का विकल्प भी चुन सकता है.

रिनुअल्स पर 100% तक का डिस्काउंट

मेडिकल खर्चो को कवर करने के अलावा, इंश्योरेंस पौलिसियां अब वेलनेस बेनिफिट भी प्रदान करती हैं जिससे रिनुअल्स पर 100% तक का डिस्काउंट मिल सकता है.  जो लोग अपने स्वास्थ्य का अच्छे से ध्यान रखते हैं, वे सिर्फ रिस्क कवरेज ही नहीं बल्कि लंबे समय तक कम प्रीमियम का लाभ भी उठा सकते हैं. यह न सिर्फ बीमाधारकों बल्कि बीमा कंपनियों के लिए भी फायदेमंद साबित होता है.

कस्टमाइज्ड कवरेज

बीमा तेजी से एक व्यक्तिगत वित्तीय सुरक्षा कवच के रूप में विकसित हो रहा है. महिलाओं के लिए, यह बदलाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे लंबी उम्र, मैटरिनिटी और अलगअलग स्वास्थ्य मुश्किलों का सामना करती हैं. बीमा कंपनियों द्वारा कस्टमाइज्ड कवरेज की पेशकश, महिलाओं की वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक अच्छा कदम है. जैसे-जैसे जागरूकता और नवाचार बढ़ रहा है, आने वाले समय में भारत में महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी, बल्कि पूरी तरह से वित्तीय रूप से सुरक्षित भी रहेंगी.

Hindi Kahaniyan : क्या यही प्यार है – क्यों दीपाली की खुशहाल गृहस्थी हुई बर्बाद?

Hindi Kahaniyan : दीपाली की शादी में कोई अड़चन नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह बहुत सुंदर थी. किंतु उस के मातापिता को न जाने क्यों कोई लड़का जाति, समाज में जंचता नहीं था. खूबसूरत दीपाली की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. पिता कालेज में प्रिंसिपल थे. किसी भी रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे थे. अंतत: हार कर दीपाली ने एक गुजराती युवक अरुण के साथ अपने प्रेम की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं. दीपाली और अरुण का प्रेम 3-4 साल चला. मृत्युशैया पर पड़े प्रिंसिपल साहब ने मजबूरन अपनी सुंदर बेटी को प्रेम विवाह की इजाजत दे दी.

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दीपाली के विवाह बाद उस के पिता की मौत हो गई. उधर अरुण एक सच्चे प्रेमी की तरह दीपाली को पत्नी का सम्मान देते हुए अपने परिवार में अपनी मां के पास ले गया. घर का व्यवसाय था. आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अरुण दीपाली को जीजान से चाहता था. किंतु दीपाली को अरुण की मां कांतिबेन का स्वभाव नहीं सुहाता था.  कांतिबेन अपनी पारिवारिक परंपराओं का पालन करती थीं जैसे सिर पर पल्लू डालना आदि. वे दीपाली को जबतब टोक देतीं कि वह हाथपांव ढक कर रखे, सिर पर आंचल डाले आदि. यह सब गुजराती परिवार में बहू का सामान्य आचरण था. किंतु दीपाली को यह कतई पसंद नहीं था.

इसी वजह से इस अंतर्जातीय विवाह में दरार पड़ने लगी. शुरू में अरुण ने दीपाली को समझाबुझा कर शांत रखने की मनुहार की. किंतु अरुण की मानमनौअल तब बेकार हो गई जब दीपाली इस टोकाटाकी से बेहद चिढ़ गई और अरुण के बहुत समझाने पर भी मायके चली गई. दीपाली मायके गई तो उस की मां माया ने उसे समझाने के बदले अपनी दूसरी बेटियों संग भड़काना शुरू कर दिया.

दीपाली की बहन राजश्री ने तो आग में घी डालने का काम कर दिया. वैसे भी राजश्री की आदत सब के घर मीनमेख निकाल कर कलह कराने की थी. दीपाली के विवाह को भी उस ने नहीं छोड़ा. सभी बहनों को वह सास के प्रति कठोरता बरतने की शिक्षा देने लगी.  मां और बहन के बहकावे में आ कर दीपाली ने अपने पति अरुण के प्यार से मुख मोड़ लिया. बेचारा अरुण कितनी बार आता, रूठी पत्नी को मनाता पर न तो दीपाली टस से मस हुई, न उस की मां माया. मायके में भाभी सारा काम कर लेती, दीपाली मां के साथ घूमतीफिरती रहती. रात को खापी कर सो जाती.

घरेलू कामकाज न होने तथा खाने और बेफिक्री से सोने से दीपाली का शरीर  काफी भर गया. अब वह सुकोमल की जगह मोटी सी बन गई. हालांकि आकर्षक वह अब भी थी. पर पति के प्रेम को ठुकराने से उस के सौंदर्य में वह मासूमियत नहीं छलकती.  दीपाली अपने मायके में खानेसोने में दिन गुजारने में मस्त थी तो दूसरी तरफ अरुण अपनी पत्नी के लिए हमेशा उदास रहता. कांतिबेन भी चाहती थीं कि उन की बहू घर लौट आए तो बेटे का परिवार आगे बढ़े और वे भी बच्चों को खेलाएं.  मगर फिर दीपाली अपनी ससुराल नहीं गई. अरुण उस से पहले मिलने आता रहा, पर बाद में फोन तक ही शादी सिमट गई. अकेले रहते हुए भी अरुण ने न कहीं चक्कर चलाया और न ही दीपाली ने उसे तलाक दिया. वह अरुण की जिंदगी को अधर में लटकाए रही.

अरुण मनातेमनाते थक गया. दिल में दीपाली के लिए सच्ची चाहत थी. जिंदगी ऐसे ही खाली व अकेले कटने लगी. वह नहीं सोच सका कि दीपाली से अलग भी दुनिया हो सकती है. पत्नी से दूर रह कर वह खोयाखोया सा रहता था. एक दिन न जाने बाइक चलाते किन खयालों में गुम था कि एक ट्रक से टकरा गया. माथे पर गहरी चोट लगी.  कांतिबेन व उस के पति ने दीपाली को खबर भेजी. मगर न दीपाली ने और न ही उसकी मां ने अस्पताल जा कर अरुण को देखना उचित समझा. उलटे इस नाजुक मौके पर दीपाली की मां ने अरुण के पिता से सौदेबाजी शुरू कर दी.  उधर अरुण अस्पताल में इलाज करा रहा था, इधर दीपाली की मां ने कहला भेजा कि दीपाली अब उस की सास के संग हरगिज नहीं रहेगी. उसे एक नई जगह, नए क्वार्टर में बसाया जाए.

अपने घायल बेटे के सुख के लिए उस के पिता नारायण ने यह शर्त भी कबूल कर ली. किंतु जख्मी बेटे की तीमारदारी में वे ऐसे व्यस्त रहे कि अलग से घरगृहस्थी से मुक्त सजासजाया कमरा बेटे के लिए अरेंज नहीं कर सके.  इसी तरह कुछ दिन और निकल गए, पर अपने कमजोर हो चुके जख्मी पति को देखने दीपाली अस्पताल नहीं आई. वह बस नए कमरे की मांग पर अड़ी रही. मानो उसे अपने पति से ज्यादा परवाह अपने लिए अलग कमरे की थी.  अरुण को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर उस के पिता घर ले आए. फिर बेटे की नई गृहस्थी बसाने के लिए नए कमरे की व्यवस्था में जुट गए.  किंतु घायल अरुण के दिल पर दीपाली की इस स्वार्थी शर्त का और बुरा प्रभाव पड़ा. वह अब और ज्यादा गुमसुम रहने लगा. पहले की भांति वह रूठी पत्नी को मनाने के लिए अब फोन भी नहीं करता. न ही दीपाली अपनी अकड़ छोड़ कर पति से बात करती.

इसी निराशा ने अरुण को भीतर से तोड़ दिया. वह जैसे समझ गया कि जिसे उस ने इतना जीजान से चाहा, वह गर ब्याहता हो कर भी उसे जख्मी हालत में देखने नहीं आई, तो उस के संग आगे की जिंदगी व्यतीत करने की क्या अपेक्षा करनी. अरुण के सारे स्वप्न झुलस गए. जो प्रेम का भाव उसे जीवन जीने की ऊर्जा देता था, वह अब लुप्त हो गया था. वह खाली सा महसूस करता.  इसी हालत में एक रात अरुण उठा. सिर पर अभी भी पट्टी बंधी थी. मां दूसरे कमरे में सोई थीं. पत्नी से फोन पर बात होती नहीं थी. दीपाली से अब उसे प्रेम की आशा नहीं थी. उस ने देख लिया था कि जिसे वह अभी तक चाह रहा था, वह तो पत्थर की एक मूर्त भर थी.  बेखयाली में, बेचैनी में अरुण उठा और जीने की तरफ बढ़ा और फिर चंद सैकंडों में सीढि़यां लुढ़कता चला गया. सीढि़यों के नीचे पहुंचने तक उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. जिस जख्मी पति को दीपाली देखने नहीं आई थी, वही पति की मौत पर उस के मांबाप से पति का हिस्सा मांगने अपनी मां, बहन, भाई व जीजा को ले कर आ गई.

जिस ने भी दीपाली को देखा वह समझ गया कि इस मतलबपरस्त लड़की ने एक विजातीय लड़के को झूठे प्रेमजाल में फंसा उस का जीवन बरबाद कर उसे मरने को मजबूर कर दिया. वही अब सासससुर से अपने पति का हिस्सा मांग रही है. तो क्या यही है प्यार? क्या यही विवाह का हश्र है?

Hindi Moral Tales : सिर्फ अफसोस – सीरत की जगह सूरत देखने वाले शैलेश का क्या हुआ अंजाम?

Hindi Moral Tales : शैलेश यही कुछ 4 दिन के लिए मसूरी में अपनी कंपनी के काम के लिए आया था. काम 3 दिन में ही निबट गया तो सोचा कि क्यों न आखिरी दिन मसूरी की हसीन वादियों को आंखों में समेट लिया जाए और निकल पड़ा अपने होटल से. होटल से निकल कर उस ने फोन से औनलाइन ही कैब बुक कर दी और निकल गया मसूरी की सुंदरता को निहारने. कैब का ड्राइवर मसूरी का ही निवासी था, ऐसा उस की भाषा से लग रहा था. शायद इसीलिए उसे शैलेश को मसूरी घुमाने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा था.

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वह उन रास्तों से अच्छी तरह परिचित था जो उस की यात्रा को तीव्र और आरामदायक बनाएंगे. कैब का ड्राइवर पहाड़ों में रहने वाला सीधासाधा पहाड़ी व्यक्ति था. वह बिना अपना फायदा या नुकसान देखे खुद भी शैलेश के साथ निकल पड़ा और शैलेश को हर जगह की जानकारी पूरे विस्तार से देने लगा था. अब शैलेश भी ड्राइवर के साथ खुल चुका था. शैलेश ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, आप का नाम क्या है?’’

‘‘मेरा नाम महिंदर,’’ ड्राइवर ने बताया.

अब दोनों मानो अच्छे मित्र बन गए हों. महिंदर ने शैलेश को सारी जानीमानी जगहों पर घुमाया. समय कम था, इसीलिए शैलेश हर जगह नहीं घूम सका. मौसम काफी खुशनुमा था पर शैलेश को नहीं पता था कि मसूरी में मौसम को करवट बदलते देर नहीं लगती. देखते ही देखते  झमा झम बारिश होने लगी. महिंदर को इन सब की आदत थी, उस ने शैलेश से कहा, ’’घबराइए मत साहब, यहां आइए इस होटल में.’’

शैलेश ने देखा कि महिंदर जिस को होटल बोल रहा था वह असल में एक ढाबा था. शैलेश को महिंदर के इस भोलेपन पर थोड़ी हंसी आई पर उस ने अपनी हंसी को होंठों पर नहीं आने दिया क्योंकि वह ढाबा भी प्रकृति की गोद में इतना सुंदर लग रहा था कि पूछो मत.

शैलेश ने महिंदर से कहा, ’’सच में भाईसाहब, इस के आगे तो हमारी दिल्ली के बड़ेबड़े पांचसितारा वाले होटल भी फीके हैं.’’

ठंडा मौसम था. शैलेश थोड़ा सिकुड़ सा रहा था. महिंदर सम झ गया था कि शैलेश को इस ठंड की आदत नहीं है. उस ने अपने और शैलेश के लिए 2 गरमागरम कौफी का आर्डर दे दिया.

महिंदर ने अब शैलेश की चुटकी लेना शुरू कर दिया, ‘‘और भाईसाहब, शादीवादी हुई कि नहीं अभी तक?’’

‘‘क्या लगता है?’’ शैलेश ने प्रश्न के बदले प्रश्न किया.

‘‘लगते तो धोखा खाए आशिक हो.’’

शैलेश ने महिंदर की बात का बुरा नहीं माना, बल्कि धीरे से हंस दिया.

शैलेश के चेहरे पर हंसी देख महिंदर तपाक से उस की तरफ उंगली दिखाता हुआ बोला, ‘‘है ना? सही बोला ना साब?’’

ढाबे के कर्मचारी ने उन के सामने उन की कौफियों के कप रख दिए और चलता बना.

महिंदर ने फिर उसी बात को छेड़ते हुए पूछा, ‘‘बताओ न साब, क्या किस्सा था वह.’’

शैलेश पहले तो थोड़ा  िझ झका, फिर अपना किस्सा सुनाने को तैयार हो गया.

शैलेश ने बताना शुरू किया, ‘‘उस वक्त मैं 11वीं जमात में दाखिल हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद 11वीं जमात में वह मेरा पहला दिन था. उस दिन कई न्यूकमर्स भी पहली बार स्कूल आए थे. उन्हीं में से एक थी रबीना. रबीना को पहली बार देख कर मेरे दिल में उस के लिए किसी प्रकार की कोई भावना तो नहीं उमड़ी पर धीरेधीरे हम दोनों में दोस्ती होनी शुरू हो गई और वह मु झे अपने बाकी दोस्तों से ज्यादा प्यारी भी हो गई. रबीना का बदन काफी गोरा था जो धूप में जाने से और गुलाबी हो उठता. उस के हाथों पर छोटेछोटे भूरे रंग के रोएं, बाल भी कहींकहीं से भूरे, भराकसा जिस्म, ऊपर से सजसंवर के उस का स्कूल में आना मु झे बड़ा आकर्षित करता था. रबीना के प्रति मेरी नजदीकियां बढ़ती चली जा रही थीं पर एक लड़की थी जो अकसर मेरे और रबीना के बीच आ जाती, वह थी संजना.’’

‘‘संजना कौन हैं साब?’’ जिज्ञासु महिंदर ने शैलेश से पूछा.

‘‘संजना तो वह थी जिस की बात मैं ने मानी होती तो आज पछताना नहीं पड़ता.’’

महिंदर अब और सतर्क हो कर किस्सा सुनने लगा.

‘‘रबीना तो अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी जिंदगी में आई थी पर संजना तो बचपन से ही मेरे दिल में बसती थी. संजना और मैं ने जब से पढ़ना शुरू किया तब से हम साथ ही थे. हमारे घर वाले भी एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. संजना मेरा पहला प्यार थी और मैं उस का. पर जब से रबीना मेरी जिंदगी में आई, मैं हर दिन रबीना के थोड़ा और पास आता गया और संजना से दूर होता गया. मु झे रबीना के नजदीक देख कक्षा के तमाम छात्र जलते थे. लड़कियों को रबीना से जलन होती और लड़कों को मु झ से. पर सब से ज्यादा कोई जलता था तो वह थी मेरी संजना. उस का जलना मु झे जब फुजूल का लगता था पर अब वाजिब लगता है. भला आप जिसे चाहते हों अगर वह आप के सामने ही किसी और का होने लगे तो इंसान का खून तो वैसे ही जल जाए. संजना मु झ से हमेशा कहती थी.’’

शैलेश की नजर बाहर गई, बारिश थम चुकी थी पर उस का किस्सा और उन की कौफी अभी आधी बची थी.

महिंदर ने पूछा, ‘‘क्या कहती थी?’’

शैलेश ने किस्सा चालू रखा, ‘‘संजना जब भी मु झ से ज्यादा चिढ़ जाती तो बोलती, ‘तुम भूलो मत वह एक मुसलमान है. तुम्हारा आगे एकसाथ कोई भविष्य नहीं है, काम तो मैं ही आऊंगी, इसीलिए संभल जाओ वरना बाद में बहुत पछताना पड़ेगा.’ पर रबीना के इश्क में मैं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, कुछ और दिखता ही नहीं था. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. मैं ने और रबीना ने एक ही कालेज में दाखिला लेने की पूरी तैयारी भी कर ली. पर 12वीं जमात के बाद संजना आगे क्या करेगी, न तो मैं ने कभी जानने की कोशिश की और न उस ने कभी बताने की.

देखते ही देखते समय बीतता गया. संजना का नंबर भी अब उस की यादों की तरह मेरे फोन से मिट गया. अब मेरी फोन की कौल हिस्ट्री में सिर्फ रबीना के नाम की ही एक लंबी लिस्ट होती और उस से घंटों बात करने का रिकौर्ड. हमारे इश्क के चर्चे पूरे कालेज में होने लगे और रबीना भी मु झे उतना ही पसंद करती थी जितना मैं उसे.

‘‘न तो मैं ने कभी सोचा कि वह पराए धर्म की है और न उस ने. स्कूल के समय में तो मैं रबीना के जिस्म की तरफ आकर्षित था. उस की खूबसूरती के लिए उसे चाहता था पर अब मैं उसे दिल से चाहने लगा था. मैं ने कालेज में होस्टल में रहने के बावजूद कभी रबीना से जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाना चाहा. अब मु झे पता चला दिल से प्यार करना किसे कहते हैं. मु झे अब रबीना कैसे भी स्वीकार थी. चाहे वह पराए धर्म की हो या कभी उस की सुंदरता चली भी जाए तो भी मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता था.’’

शैलेश किस्सा बीच में रोक बाहर देखने लगा. मौसम फिर करवट बदल रहा था. हलकीहलकी बूंदाबांदी फिर शुरू हो गई.

शैलेश फिर अपने अधूरे किस्से पर वापस आया और महिंदर से पूछा, ‘‘हां, तो मैं कहां पर था.’’

‘‘आप रबीना को दिल से चाहने लगे थे,’’ महिंदर ने याद दिलाया.

‘‘हां, अब हम एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते थे, पर अब एक सब से बड़ी अड़चन थी जिसे हम हमेशा से नजरअंदाज करते रहे थे. वह थी हमारी अलगअलग कौमें. चलो और कोई बिरादरी या जात होती तो चलता पर एक हिंदू और मुसलिम की जात को हमारा समाज हमेशा से एकदूसरे का दुश्मन सम झता है. हमें अच्छी तरह से मालूम था कि न तो मेरे घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे और न ही रबीना के. मैं ने रबीना से कहा था कि ‘तुम हिंदू हो जाओ न.’

‘‘तब उस ने मु झ से धीरे से कहा, ‘तुम मुसलमान हो जाओ. मैं अपने अम्मीअब्बा की इकलौती हूं. मैं हिंदू हो गई तो उन का क्या होगा.’

‘‘मैं ने कहा, ‘ऐसे तो मैं भी इकलौता हूं अपने मांबाप का और तुम सम झती क्यों नहीं, हिंदू धर्म एक शुद्ध और सात्विक धर्म है और तुम एक बार हिंदू बन गई तो मैं अपने मांबाप को मना ही लूंगा.’

‘‘‘और मेरे अम्मीअब्बा का क्या? अरे, इकलौती बेटी के लिए कितने सपने देखते हैं. उस के वालिद पता है? एक वालिद उस के लिए अच्छा शौहर ढूंढ़ने के सपने देखते हैं, उस के निकाह के सपने देखते हैं, उस के लिए अपनी सारी जमापूंजी लगा देते हैं और बदले में सिर्फ समाज के सामने इज्जत से उठी नाक चाहते हैं जो मेरे हिंदू बनने पर शर्म से कट जाएगी,’ रबीना ने भी अपना पक्ष साफसाफ मेरे सामने रख दिया.

‘‘‘और अगर मैं मुसलमान बन गया तो मेरे मांबाप का तो सिर गर्व से उठ जाएगा न?’ मैं ने भी गरम दिमाग में बोल दिया पर अगले ही पल लगा कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.

‘‘वह उठ कर चली गई. मु झे लगा कि अभी गुस्सा है, जब शांत हो जाएगी, फिर आ जाएगी मेरे पास. पर मु झे क्या पता था कि वह मु झ से वास्ता ही छोड़ देगी और इतनी आसानी से मु झे भुला देगी. स्कूल के समय में जिस तरह रबीना के पीछे मरने वालों की कोई कमी नहीं थी उसी प्रकार कालेज में भी लड़के रबीना के प्रति आकर्षित रहते. मु झ से मनमुटाव होने के बाद उस ने अपना नया साथी ढूंढ़ लिया जो उसी की कौम का था और हमारे ही कालेज का था. कालेज भी अब खत्म हो चुका था और हमारा एकदूसरे से वास्ता भी. मैं ने कई महीनों तक उस को सोशल मीडिया पर मैसेज करने की कोशिश की पर हर जगह से खुद को ब्लौक पाया. मेरा नंबर उस ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया. अब मेरे कानों में संजना की उस दिन वाली बात गूंजने लगी, ‘काम तो मैं ही आऊंगी.’ कुछ दिन उदास रहा और खुद को यही तसल्ली देता रहा कि वह तो वैसे भी मुसलिम थी, चली गई तो क्या हुआ, पर मैं ने अपने मांबाप को तो नहीं छोड़ा न.

‘‘मु झे आज सम झ में आया कि जिसे तुम चाहो अगर वह तुम्हारे सामने ही किसी और की हो जाए तो कैसा लगता है, और कुछ ऐसा ही लगता होगा मेरी संजना को उस वक्त. मैं ने तय किया कि फिर संजना का हाथ पकड़ं ूगा. पर मन में ही विचार किया कि किस मुहं से जाऊंगा उस के पास? क्या कहूंगा उस से कि क्या हुआ मेरे साथ और मान लो कह भी दिया तो क्या वह फिर से स्वीकार करेगी मु झे?

‘‘मैं ने अपना स्वाभिमान छोड़ कर सोच लिया कि जो कुछ हुआ सब बता दूंगा उसे, उसे ही जीत जाने दूंगा. अगर अपनेआप को गलत साबित कर के मैं फिर उस का हो जाऊं तो क्या बुराई है? पर उसे ढूंढ़ने पर पता चला कि अब वह दिल्ली में नहीं रहती. सारे सोशल मीडिया को छान मारा पर वह वहां पर भी कहीं नहीं मिली. फिर हताश हो कर अपनी जिंदगी को रुकने नहीं दिया बल्कि एक कंपनी में जौब कर लिया. और संजना का मिलना न मिलना प्रकृति के ऊपर छोड़ दिया.’’

‘‘फिर क्या हुआ साब?’’ महिंदर सुनना चाहता था कि आगे क्या हुआ.

‘‘फिर क्या होगा? जिंदगी चल ही रही है. आज नहीं तो कल वह मिल जाएगी, अगर न भी मिली तो भी सम झ लूंगा कि मेरी ही गलती की सजा है जो उस वक्त उस की कद्र नहीं कर पाया.’’

शैलेश ने बाहर देखा, मौसम की मार और जोर से पड़ने लगी और जिस तरह से वह और महिंदर मौसम की मार से बचने के लिए ढाबे में घुसे थे उसी तरह और पर्यटक भी ढाबे के अंदर पनाह लेने लगे. ढाबे का कर्मचारी फटाफट अपनी सारी टेबलों पर कपड़ा मारने लगा और उन से बैठने को कहने लगा.

तभी शैलेश की नजर एक नौजवान औरत पर पड़ी जो उसी बरसात से बचते हुए ढाबे में आई थी. उस औरत को देख शैलेश की आंखें उस पर गड़ी की गड़़ी रह गईं. मानो दिमाग पर जोर दे कर कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

शैलेश को पराई औरत को ऐसे घूरते देख महिंदर बोला, ‘‘अरे साब, ऐसे मत देखो वरना बिना बात में दोनों को खुराक मिल जाएगी अभी.’’

‘‘क्यों?’’ शैलेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘दिखता नहीं क्या, नईनई शादी हुई है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘अरे साब, आधे हाथ चूडि़यों से भरे हैं और माथे पे सिंदूर नहीं दिखता क्या?’’ महिंदर भोलेपन में फिर से बोला, ‘‘कोई बात नहीं साब, आप को कैसे पता होगा, पर मु झे सब पता है नईनई शादी के बाद लड़कियां ऐसे ही फैशन करती हैं. मेरी वाली भी करती थी न,’’ कह कर महिंदर शरमा गया.

शैलेश अनबना सा रह गया मानो महिंदर की बात वह मानना नहीं चाहता था.

‘‘अरे क्या हुआ साब? जानते हो क्या इसे?’’ महिंदर ने पूछा.

‘‘अरे यही तो मेरी संजना है. पर यह शादी और मसूरी का क्या चक्कर?’’ संजना अब पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. उस का जिस्म भी भर गया था, चेहरे पर ऐसी चमक मानो जिंदगी में कोई चिंता ही न हो. पर संजना के माथे का सिंदूर और कलाइयों पर चूडि़यां शैलेश को अंदर से खाए जा रही थीं. कुछ सम झ में भी नहीं आ रहा था कि वह यहां कैसे.

शैलेश अपनी टेबल से उठ खड़ा हुआ और जा कर संजना के सामने अचानक से प्रकट हो गया. दोनों एकदूसरे को मसूरी में देख चौंक गए. उन्होंने ऐसा इत्तफाक सिर्फ कहानियों और फिल्मों में ही देखा था.

संजना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम? और यहां?’’

‘‘मैं तो काम से आया था कल निकल जाऊंगा, लेकिन तुम यहां कैसे?’’ शैलेश ने पूछा.

‘‘मेरी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है,’’ संजना ने एक नौजवान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इन्होंने ही प्लान बनाया था हमारा हनीमून मसूरी में ही मनेगा.’’

संजना ने आगे बड़े ही मजाकिया लहजे में पूछा मानो उसे सब पता हो, ‘‘और अपना सुनाओ कैसी चल रही है तुम्हारी और रबीना की जिंदगी, शादीवादी हुई?’’ यह कह कर संजना मुसकरा गई.

बरसात फिर से थम गई. शैलेश इस से पहले कुछ बोलता, संजना के पति ने उसे इशारा कर जल्दी से चलने को कहा. संजना ने भी जवाब सुने बिना ही शैलेश को अलविदा कर दिया और आगे बढ़ गई. संजना ने पीछे मुड़ कर शैलेश को देखा और बड़ी ही बेरहमी से कहा, ‘‘क्यों, आना पड़ा न मेरे ही पास.’’

भोले महिंदर ने शैलेश को दिलासा दिलाते हुए उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘चलो साब, वरना फिर बारिश शुरू हो जाएगी, वापस भी तो जाना है न.’’

शैलेश दूर जाती संजना को देख रहा था. वक्त उस के हाथ से निकल चुका था. अब कभी वापस नहीं आएगा.

Latest Hindi Stories : अपने घर में – सास-बहू की जोड़ी

Latest Hindi Stories : लंच के समय स्कूल के गैस्टरूम में बैठा सागर बेसब्री से अपनी दोनों बेटियों का इंतजार कर रहा था. आज वह उन्हें अपनी होने वाली पत्नी श्वेता से मिलवाना चाहता था. कल वह श्वेता से शादी करने वाला था.

वह श्वेता की तरफ प्यारभरी नजरों से देखने लगा. उसे श्वेता बहुत ही सुलझी हुई और खूबसूरत लगती थी. श्वेता के लंबे स्ट्रेट बाल, आंखों में शरारत, दूध सा गोरा रंग और चालढाल तथा बातव्यवहार में झलकता आत्मविश्वास. श्वेता के आगे नीरजा उसे बहुत साधारण लगती थी. वह एक घरेलू महिला थी.

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नीरजा से सागर की अर्रेंज मैरिज हुई थी. शुरूशुरू में सागर नीरजा से भी प्यार करता था. पर सागर की महत्त्वाकांक्षाएं काफी ऊंची थीं. उस ने अपने कैरियर में तेजी से छलांग मारी. वह आगे बढ़ता गया और नीरजा पीछे छूटती गई.

सागर ने शहर बदला, नौकरी बदली और इस के साथ ही उस की पसंद भी बदल गई. नई कंपनी में उसे श्वेता का साथ मिला. तब उसे समझ आया कि उसे तो एक बला की खूबसूरत लड़की अपना जीवनसाथी बनाने को आतुर है और कहां वह गंवार( उस की नजरों में) नीरजा के साथ बंधा पड़ा है. बस, यहीं से उस का रवैया नीरजा के प्रति बदल गया था और एक साल के अंदर ही उस ने खुद को नीरजा से आजाद कर लिया था. पर वह अपनी दोनों बेटियों के मोह से आजाद नहीं हो सका था. दोनों बेटियों में अभी भी उस की जान बसती थी.

उस ने श्वेता को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था और अब दोनों कोर्ट मैरिज कर हमेशा के लिए एकदूसरे के होने वाले थे. पर इस से पहले श्वेता ने ही इच्छा जताई थी कि वह उस की बेटियों से मिलना चाहती है. इसलिए आज दोनों बच्चियों से मिलने उन के स्कूल आए थे. सागर अकसर स्कूल में ही अपनी बेटियों से मिला करता था.

तभी 4 नन्हीनन्ही आंखों ने दरवाजे से अंदर झांका, तो सागर दौड़ कर उन के पास पहुंचा और उन्हें सीने से लगा लिया. 10 साल की मिनी थोड़ी समझदार हो चुकी थी. जब कि 6 साल की गुड़िया अभी नादान थी. सागर ने उन दोनों को श्वेता से मिलवाते हुए कहा, “देखो बच्चो, आज मैं आप को किन से मिलवाने वाला हूं?”

“ये कौन हैं, इन के बाल कितने सुंदर है?” गुड़िया ने पूछा तो सागर ने गर्व से श्वेता की तरफ देखा और बोला, “बेटी, ये आप की मम्मी हैं. कल से यर आप की नई मम्मी कहलाएंगी. कल ये आप के पापा की पत्नी बन जाएंगी.”

श्वेता ने प्यार से बच्चों की तरफ हाथ बढ़ाया, तो थोड़ा पीछे हटती हुई गुड़िया ने पूछा, “पर पापा, हमारी मम्मी तो हमारे पास ही हैं. फिर नई मम्मी की क्या जरूरत?”

“पर बेटा, ये मम्मी ज्यादा अच्छी हैं. है न?”

“नो, नैवर. पापा, हमें नई मम्मी की कोई जरूरत नहीं. हमारी मम्मी बहुत अच्छी हैं. एंड यू नो पापा…” मिनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

“क्या बेटी, बताओ…”

“यू नो, आई हेट यू. आई हेट यू फौर दिस.” यह कह कर रोती हुई मिनी ने गुड़िया का हाथ थामा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.

श्वेता ने जल्दी से अपने बढ़े हुए हाथों को पीछे कर लिया. अपमान और क्षोभ से उस का चेहरा लाल हो उठा था. सागर की आंखें भी पलभर में उदास हो गईं. उसे लगा जैसे उस के दिल का एक बड़ा टुकड़ा आज टूट गया है. उस ने श्वेता की तरफ देखा और फिर आ कर निढाल सा कुरसी पर बैठ गया. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की अपनी बेटी उस से नफरत करने लगेगी.

श्वेता ने रूखी आवाज में कहा, “चलो सागर, यहां रुक कर कोई फायदा नहीं. तुम्हारी बेटियां मुझे नहीं अपनाएंगी. लगता है तुम्हारी पत्नी ने पहले से ही उन के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया है.”

सागर ने कुछ भी नहीं कहा. दोनों चुपचाप वापस चले गए.

इधर, नीरजा ने जब सुना कि उस का सागर दूसरी शादी करने वाला है तो वह और भी टूट गई. उस ने तुरंत अपनी सास कमला देवी को फोन लगाया, “मम्मी, कल आप का बेटा नई बहू ले कर आ रहा है. मुबारक हो, आप की जिंदगी में एक बार फिर बहू का सुख वापस आने वाला है.”

“चुप कर नीरजा, तेरे सिवा मेरी न कोई बहू है और न कभी होगी. मैं शरीर से भले ही यहां हूं पर मेरा दिल अब भी तेरे और तेरी दोनों बच्चियों के पास ही है. तू मेरी बेटी से बढ़ कर है. तेरी जगह कोई नहीं ले सकता, समझी पगली. और जानती है, तू मेरी बेटी कब बनी थी?”

“कब मम्मी?”

“उस रात जब मुझे तेज बुखार था. सागर ने मेरी तरफ देखा भी नहीं. पर तूने रातभर जाग कर मुझे ठंडी पट्टियां लगाई थीं. मेरी सेवा की थी. उसी रात मैं ने तुझे अपनी बेटी मान लिया था.”

“मम्मी, आप की जैसी मां पा कर मैं धन्य हो गई. आज मेरी मां जिंदा होतीं तो वे भी आप का प्यार देख कर…,” कहतेकहते वह रोने लगी तो सास ने टोका, “देख बेटी, मुझे मां कहा है न, फिर रोनेधोने की क्या जरूरत? हमेशा मुसकराती रह मेरी बच्ची. अपने बेटे पर तो मेरा काबू नहीं पर दुनिया की और किसी भी मुसीबत को तेरे पास भी नहीं फटकने दूंगी. जानती है यह बात?”

“जी मम्मी?”

“जब मेरे पति ने मुझे तलाक दिया था तब मेरे पास कोई नहीं था. मैं उन से कोई सवाल भी नहीं कर सकी थी. तेरे गम को मैं समझ सकती हूं. तलाक के बाद औरत मन से बिलकुल अकेली रह जाती है. पर तू जरा भी चिंता न कर. तेरे साथ हमेशा तेरी यह मां रहेगी तेरा मानसिक संबल बन कर.”

सास की बातें सुन रोतेरोते भी नीरजा के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. सास की बातों से उसे बहुत सुकून मिला. आज वह अकेली नहीं, बल्कि सास का सपोर्ट उस के साथ था.

नीरजा के अपने मांबाप पहले ही गुजर चुके थे. एक भाई था जो मुंबई में सैटल था. 3 बहने थीं जिन का घर इसी शहर में था. पर चारों भाईबहनों ने उस से कन्नी काट ली थी. ऐसे में तलाक के बाद उस का और उस की दोनों बच्चियों का संबल उस की सास ही थी और यह उस के लिए बहुत बड़ा सहारा था. जब भी वह परेशान होती या अकेला महसूस करती तो सास से बात कर लेती.

नीरजा ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली थी. सैटरडे, संडे उस की छुट्टी होती थी. उस दिन कमला देवी जरूर आतीं. उस के और अपनी पोतियों के साथ समय बितातीं. उन की हर समस्या का हल निकालतीं और फिर शाम तक अपने घर लौट जातीं.

इधर, दूसरी शादी के बाद जब भी सागर ने मिनी और गुड़िया से मिलना चाहा, तो मिनी ने साफ इनकार कर दिया. अब उसे अपने पापा से बात करना भी पसंद नहीं था. उस ने पापा के बिना जीना सीख लिया था और गुड़िया को भी सिखा दिया था. वह उस पापा को कभी माफ नहीं कर पाई जिस ने उस की सीधीसादी मां को छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ली थी.

वक्त इसी तरह निकलता गया. नई शादी से सागर को कोई संतान नहीं हुई थी. दिनोंदिन श्वेता के नखरे बढ़ते जा रहे थे. सागर का जीना मुहाल हो गया था. दोनों के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. श्वेता अकसर घर से बाहर निकल जाती. सागर भी देररात शराब पी कर घर लौटता.

कमला देवी यह सब देखसमझ रही थीं. पर वह अपने बेटे के स्वार्थी रवैये से भी अच्छी तरह परिचित थीं, इसलिए उन्हें बेटे पर तरस नहीं बल्कि गुस्सा आता था. कमला देवी को अकसर वह समय याद आता जब पति से तलाक के बाद उन की जिंदगी का एक ही मकसद था और वह था सागर को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना. इस के लिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगा दी थी. स्कूलटीचर की नौकरी करते हुए बेटे को ऊंची शिक्षा दिलाई, काबिल बनाया. मगर अब एहसास होने लगा था कि कितना भी काबिल बना लिया, वह रहा तो अपने बाप का बेटा ही जो बाप की तरह ही शराबी, स्वार्थी और बददिमाग निकला.

इधर कमला द्वारा नीरजा को अपनाने और हर जगह उस की तारीफ किए जाने की वजह से नातेरिश्तेदारों का व्यवहार भी नीरजा के प्रति काफी अच्छा बना रहा. सागर के चचेरेममेरे भाईबहनों के घर कोई भी आयोजन होता तो नीरजा और उस की बेटियों को परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य की तरह आमंत्रित किया जाता और उन की पूरी आवभगत की जाती. यही नहीं, सागर के विवाहित दोस्त भी नीरजा को अवश्य बुलाते. यह सब देख कर सागर और श्वेता भुनभुनाते हुए घर लौटते.

श्वेता चिढ़ कर कहती, “देख लो तुम्हारी रिश्तेदारी में हर जगह अभी भी मुझ से ज्यादा नीरजा की पूछ होती है. लगता है जैसे मैं जबर्दस्ती पहुंच गई हूं. तुम्हारी मां भी जब देखो, नीरजा और उस की बेटियों से ही चिपकी रहती हैं.”

सागर समझाने के लिहाज से कहता, “बुरा तो मुझे भी लगता है पर क्या करूं श्वेता? नीरजा के साथ मेरी बेटियां भी हैं न. बस, इसीलिए चुप रह जाता हूं.”

एक दिन तो हद ही हो गई. सागर के एक दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. आयोजन बहुत शानदार रखा गया था. सागर के सभी दोस्त वहां मौजूद थे. सागर ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. उसे नीरजा कहीं भी नजर नहीं आई. सागर ने चैन की सांस लेते हुए श्वेता को कुहनी मारी और बोला, “शुक्र है, आज नीरजा नहीं है.”

श्वेता मुसकरा कर बच्चे को गिफ्ट देने लगी. तभी दरवाजे से नीरजा और उस की दोनों बेटियों ने प्रवेश किया. नीरजा ने खूबसूरत सी बनारसी साड़ी पहन रखी थी और बाल खुले छोड़े थे. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. श्वेता जलभुन गई और सागर पर अपना गुस्सा निकालने लगी.

कुछ देर बाद जब पार्टी उफान पर थी तो सागर किनारे खड़े अपने दोस्तों के ग्रुप को जौन करता हुआ बोला, ‘यार, यह थोड़ा अजीब लगता है कि तुम लोग अब तक हर आयोजन में नीरजा को जरूर बुला लेते हो. तुम लोग जानते हो न, कि मैं नीरजा से अलग हो चुका हूं. अब उसे बुलाने की क्या जरूरत?”

एक दोस्त गुस्से में बोला, “क्या बात कह दी यार, तू अलग हुआ है भाभी से. पर हम तो अलग नहीं हुए न. उन से हमारा जो रिश्ता था वह तो रहेगा ही न.”

“पर क्यों रहेगा? जब वह मेरी पत्नी ही नहीं, तो तुम लोगों की भाभी कैसे हो गई?” सागर ने गुस्से में कहा तो एक दोस्त हंसता हुआ बोला, “ठीक है यार, भाभी नहीं तो दोस्त ही सही. यही मान ले कि अब एक दोस्त की हैसियत से हम सब उन्हें बुलाएंगे. रही बात तेरी, तो ठीक है. तेरी वर्तमान बीवी यानी श्वेता को भी हम न्योता भेज दिया करेंगे, मगर नीरजा को नहीं छोड़ेंगे. समझा?”

इस बात पर काफी देर तक उन के बीच तूतू मैंमैं होती रही. श्वेता पास खड़ी सबकुछ सुन रही थी. अंदर ही अंदर उसे नीरजा पर गुस्सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था जैसे नीरजा उस की खुशियों के आगे आ कर खड़ी हो जाती है. सागर और उस के बीच कहीं न कहीं नीरजा अब भी मौजूद है. घर लौटते समय भी पूरे रास्ते श्वेता हमेशा की तरह सागर से लड़तीझगड़ती रही.

एक दिन शनिवार को जब कमला देवी बहू और पोती के साथ थीं, तो दोपहर में उछलतीकूदती मिनी घर में घुसी. आते ही उस ने मां और दादी के पैर छुए. नीरजा ने खुशी की वजह पूछी, तो मिनी खुशी से चिल्लाई, “मम्मा मैडिकल एंट्रेंस टैस्ट में मेरे बहुत अच्छे नंबर आए हैं और मुझे यहां के सब से बेहतरीन मैडिकल कालेज में दाखिला मिल रहा है.”

“सच बेटी?” दादी ने खुशी से पोती को गले लगा लिया.

मगर नीरजा थोड़ी उदास स्वर में बोली, “बेटा, यहां दाखिले में और उस के बाद पढ़ाई में कुल खर्च लगभग कितना आएगा?”

अब मिनी भी सीरियस हो गई थी. सोचते हुए उस ने कहा, “मम्मा, मेरे खयाल से लगभग दोढाई लाख रुपए तो लग ही जाएंगे. इस से ज्यादा भी लग सकते हैं.”

“पर बेटा, इतने रुपए मैं कहां से लाऊंगी?”

“मम्मा, मेरी शादी वाली जो एफडी आप ने रखी है न, बस, उसे तोड़ दो.”

“पागल है क्या? नहीं नीरजा, तू वैसा कुछ नहीं करेगी. पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगी मिनी, ” कमला देवी ने कहा.

“पर कैसे मम्मी? आप के पास इतने रुपए कहां से आएंगे?”

“बेटा, मैं ने अपनी नौकरी के दौरान कुछ रुपए बचा कर अलग रखे थे. वे रुपए मैं ने कभी सागर को भी नहीं दिए. अब उन्हें अपनी मिनी के मैडिकल की पढ़ाई के लिए खर्च करूंगी. इस का अलग ही सुख होगा.”

“नहीं मम्मी, उन्हें आप न निकालें. वैसे भी, इस उम्र में आप को पैसे अपने पास रखने चाहिए. कल को सागर ने कुछ गलत व्यवहार किया या बिजनैस डुबो दिया तो आप…?”

“अरे नहीं बेटा. जिस के पास तेरे जैसी बेटी और इतनी प्यारी पोतियां हैं उसे क्या चिंता? और फिर मेरी पोती डाक्टर बनेगी. इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?

अगले दिन ही कमला देवी ने पोती की पढ़ाई के लिए रुपयों का इंतजाम कर दिया.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. सागर के जीवन में अब कुछ नहीं बचा था. श्वेता कई सालों से औफिस के किसी कलीग के साथ अफेयर चला रही थी. इधर सागर अब और भी ज्यादा शराब में डूबा रहने लगा था. छोटीछोटी बात पर वह मां पर भी बरस जाता. कमला देवी का दिल कई दफा करता कि सबकुछ छोड़ कर चली जाए. पर बेटे का मोह कहीं न कहीं आड़े आ जाता. जितनी देर श्वेता और सागर घर में रहते, झगड़े होते रहते. कमला देवी का घर में दम घुटता. उन की उम्र भी अब काफी हो चुकी थी. वे करीब 80 साल की थीं. उन से अब ज्यादा दौड़भाग नहीं हो पाती. नीरजा के पास भी वे कईकई दिन बाद जा पातीं.

एक दिन उन्हें अपने पेट में दर्द महसूस हुआ. यह दर्द बारबार होने लगा. एक दिन कमला देवी ने बेटे से इस का जिक्र किया तो बेटे ने उपेक्षा से कहा, “अरे मां, तुम ने कुछ उलटासीधा खा लिया होगा. वैसे भी, इस उम्र में खाना मुश्किल से ही पचता है.”

“पर बेटा, यह दर्द कई दिनों से हो रहा है.”

“कुछ नहीं मां, बस, गैस का दर्द होगा. तू अजवायन फांक ले,” कह कर सागर औफिस के लिए निकल गया.

अगले दिन भी दर्द की वजह से कमला देवी ने खाना नहीं खाया. पर सागर को कोई परवा न थी. दोतीन दिनों बाद जब कमला देवी से रहा नहीं गया तो उन्होंने फोन पर बहू नीरजा को यह बात बताई. नीरजा एकदम से घबरा गई. वह उस समय औफिस में थी, तुरंत बोली, “मम्मी, मैं अभी औफिस से छुट्टी ले कर आती हूं. आप को डाक्टर को दिखा दूंगी.”

“अरे बेटा, औफिस छोड़ कर क्यों आ रही है? कल दिखा देना.”

“नहीं मम्मी, कल शनिवार है और वे डाक्टर शनिवार को नहीं बैठते. मैं अभी आ रही हूं.”

एक घंटे के अंदर नीरजा आई और उन्हें हौस्पिटल ले कर गई. बेटे और बहू के व्यवहार में अंतर देख कर उन का दिल भर आया. डाक्टर ने ऊपरी जांच के बाद कुछ और टैस्ट कराने को लिख दिए. नीरजा ने फटाफट सारे टैस्ट कराए और जो बात निकल कर सामने आई वह किसी ने सोचा भी नहीं था. कमला देवी को पेट का कैंसर था. डाक्टर ने साफसाफ बताया कि कैंसर अभी ज्यादा फैला नहीं है. पर इस उम्र में औपरेशन कराना ठीक नहीं रहेगा. कीमोथेरैपी और रेडिएशन से इलाज किया जा सकता है.

नीरजा ने तुरंत अपने औफिस में 15 दिनों की छुट्टी की अरजी डाल दी और सास की तीमारदारी में जुट गई. मिनी ने भी अपने संपर्कों के द्वारा दादी का बेहतर इलाज कराना शुरू किया. कीमोथेरैपी लंबी चलनी थी, सो, नीरजा ने औफिस जौइन कर लिया. मगर उस ने कभी सास को अकेला नहीं छोड़ा. उस की दोनों बेटियों ने भी पूरा सहयोग दिया.

सागर एक दोबार मां से मिलने आया, पर कुछ मदद की इच्छा भी नहीं जताई. नीरजा सास को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले आई और दिल से सेवासुश्रुषा करती रही. अब कमला देवी की तबीयत में काफी सुधार था.

एक दिन उन्होंने नीरजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटी, मैं चाहती हूं कि तू उस घर में वापस चले.”

नीरजा ने हैरानी से सास की ओर देखते हुए कहा, “आप यह क्या कह रही हैं मम्मी? आप जानती हो न, अब मैं सागर के साथ कभी नहीं रह सकती. कुछ भी हो जाए, मैं उसे माफ नहीं कर सकती.”

“पर बेटा, मैं ने कब कहा कि तुझे सागर के साथ रहना होगा. मैं तो बस यही चाहती हूं कि तू अपने उस घर में वापस चले.”

“पर वह घर मेरा कहां है मम्मी? वह तो सागर और श्वेता का घर है. मैं उन के साथ… यह संभव नहीं मम्मी.”

“बेटा, वह घर सागर का नहीं. तू भूल रही है. वह घर तेरे ददिया ससुर ने मेरे नाम किया था. उस दोमंजिले, खूबसूरत, बड़े से घर को बहुत प्यार से बनवाया था उन्होंने और अब उस घर को मैं तेरे नाम करना चाहती हूं.”

“नहीं मम्मी, इस की कोई जरूरत नहीं है. सागर को रहने दो उस घर में. मैं अपने किराए के घर में ही खुश हूं.”

“तू खुश है, पर मैं खुश नहीं, बेटा. मुझे अपने घर में रहने की इच्छा हो रही है. पर अपने बेटे के साथ नहीं बल्कि तेरे साथ. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे उस घर में ले चल. वहीँ, मेरी सेवा करना. उसी घर में मेरी पोतियों की बरात आएगी. मेरा यह सपना सच हो जाने दे, बेटा.”

नीरजा की आंखें भीग गईं. वह सास के गले लग कर रोने लगी. सास ने उसे चुप कराया और सागर को फोन लगाया, “बेटा, तू अपना कोई और ठिकाना ढूंढ ले. मेरा घर खाली कर दे.”

“यह तू क्या कह रही है मां? घर खाली कर दूं? पर क्यों?”

“क्योंकि अब उस में मैं, नीरजा और अपनी पोतियों के साथ रहूंगी.”

“अच्छा, तो नीरजा ने कान भरे हैं. भड़काया है तुम्हें.”

“नहीं सागर, नीरजा ने कुछ नहीं कहा. यह तो मेरा कहना है. सालों तुझे उस घर में रखा, अब नीरजा को रखना चाहती हूं. तुझे बुरा क्यों लग रहा है? यह तो होना ही था. इंसान जैसा करता है वैसा ही भरता है न बेटे. तुम दोनों पतिपत्नी तब तक अपने लिए कोई किराए का घर ढूंढ लो. और हां, थोड़ा जल्दी करना. इस रविवार मुझे नीरजा और पोतियों के साथ अपने घर में शिफ्ट होना है बेटे. ”

अपना फैसला सुना कर कमला देवी ने फोन काट दिया और नीरजा की तरफ देख कर मुसकरा पड़ीं.

Inspirational Hindi Stories : हीरो – क्या समय रहते खतरे की सीमारेखा से बाहर निकल पाई वह?

Inspirational Hindi Stories :  बादलों की गड़गड़ाहट के साथ ही मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी. अपने घर की बालकनी में बैठी चाय की चुसकियों के साथ बारिश की बौछारों का मैं आनंद लेने लगी. आंखें अनायास ही सड़क पर तितरबितर होते भीड़ के रैले में किसी को तलाशने लगीं लेकिन उसे वहां न पा कर उदास हो गईं. आज ये फुहारें कितनी सुहानी लग रही हैं, जबकि यही गड़गड़ाहट, आसमान में चमकती बिजली की आंखमिचौली उस दिन कितना कहर बरपाती प्रतीत हो रही थी. समय और स्थान परिवर्तन के साथसाथ एक ही परिदृश्य के माने कितने बदल जाते हैं.

2 बरस पूर्व की यादें अभी भी जेहन में आते ही शरीर में झुरझुरी सी होने लगती है और इस के साथ ही आंखों के सामने उभर आता है एक रेखाचित्र, ‘हीरो’ का, जिस की मधुर स्मृति अनायास ही चेहरे पर मुसकान ला देती है.

उस दिन औफिस से निकलने में मुझे कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी. काफी अंधेरा घिर आया था. स्ट्रीट लाइट्स जल चुकी थीं. मैं ने घड़ी देखी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. मां चिंता करेंगी, सोच कर लिफ्ट से उतरते ही मैं ने मां को फोन लगा दिया.

‘हां, कहां तक पहुंची? आज तो बहुत तेज बारिश हो रही है. संभल कर आना,’ मां की चिंता उन की आवाज से साफ जाहिर हो रही थी.

‘बस, निकल गई हूं. अभी कैब पकड़ कर सीधे घर पहुंचती हूं और फिर मुंबई की बारिश से क्या घबराना, मां? हर साल ऐसे ही तो होती है. मेहमान और मुंबई की बारिश का कोई ठिकाना नहीं. कब, कहां टपक जाए कोई नहीं बता सकता,’ मैं बड़ी बेफिक्री से बोली.

‘अरे, आज साधारण बारिश नहीं है. पिछले 10 घंटे से लगातार हो रही मूसलाधार बारिश थमने या धीमे होने का नाम नहीं ले रही है. हैलो…हैलो…’ मां बोलती रह गईं.

मैं भी देर तक हैलो… हैलो… करती बिल्डिंग से बाहर आ गई थी. सिगनल जो उस वक्त आने बंद हुए तो फिर जुड़ ही नहीं पाए थे. बाहर का नजारा देख मैं अवाक रह गई थी. सड़कें स्विमिंग पूल में तबदील हो चुकी थीं. दूरदूर तक कैब क्या किसी भी चलती गाड़ी का नामोनिशान तक न था. घुटनों तक पानी में डूबे लोग अफरातफरी में इधरउधर जाते नजर आ रहे थे. महानगरीय जिंदगी में एक तो वैसे ही किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं होता और उस पर ऐसा तूफानी मंजर… हर किसी को बस घर पहुंचने की जल्दी मची थी.

अपने औफिस की पूर्णतया वातानुकूलित इमारत जिस पर हमेशा से मुझे गर्व रहा है, पहली बार रोष उमड़ पड़ा. ऐसी भी क्या वातानुकूलित इमारत जो बाकी दीनदुनिया से आप का संपर्क ही काट दे. अंदर हमेशा एक सा मौसम, बाहर भले ही पतझड़ गुजर कर बसंत छा जाए. खैर, अपनी दार्शनिकता को ठेंगा दिखाते हुए मैं तेज कदमों से सड़क पर आ गई और इधरउधर टैक्सी के लिए नजरें दौड़ाने लगी. लेकिन वहां पानी के अति बहाव के कारण वाहनों का रेला ही थम गया था. वहां टैक्सी की खोज करना बेहद मूर्खतापूर्ण लग रहा था. कुछ अधडूबी कारें मंजर को और भी भयावह बना रही थीं. मैं ने भैया से संपर्क साधने के लिए एक बार और मोबाइल फोन का सहारा लेना चाहा, लेकिन सिगनल के अभाव में वह मात्र एक खिलौना रह गया था. शायद आगे पानी इतना गहरा न हो, यह सोच कर मैं ने बैग गले से कमर में टांगा और पानी में उतर पड़ी. कुछ कदम चलने पर ही मुझे सैंडल असुविधाजनक लगने लगे. उन्हें उतार कर मैं ने बैग में डाला.

आगे चलते लोगों का अनुसरण करते हुए मैं सहमसहम कर कदम बढ़ाने लगी. कहीं किसी गड्ढे या नाले में पांव न पड़ जाए, मैं न जाने कितनी देर चलती रही और कहां पहुंच गई, मुझे कुछ होश नहीं था. लोकल ट्रेन में आनेजाने के कारण मैं सड़क मार्गों से नितांत अपरिचित थी. आगे चलने वाले राहगीर भी जाने कब इधरउधर हो गए थे मुझे कुछ मालूम नहीं. मुझे चक्कर आने लगे थे. सारे कपड़े पूरी तरह भीग कर शरीर से चिपक गए थे. ठंड भी लग रही थी. अर्धबेहोशी की सी हालत में मैं कहीं बैठने की जगह तलाश करने लगी तभी जोर से बिजली कड़की और आसपास की बत्तियां गुल हो गईं. मेरी दबी सी चीख निकल गई.

फुटपाथ पर बने एक इलैक्ट्रिक पोल के स्टैंड पर मैं सहारा ले कर बैठ गई. आंखें स्वत: ही मुंद गईं. किसी ने झटके से मुझे खींचा तो मैं चीख मार कर उठ खड़ी हुई. ‘छोड़ो मुझे, छोड़ो,’ दहशत के मारे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. अंधेरे में आंखें चौड़ी कर देखने का प्रयास करने पर मैं ने पाया कि एक युवक ने मेरी बांह पकड़ रखी थी. ‘करेंट खा कर मरना है क्या?’  कहते हुए उस ने मेरी बांह छोड़ दी. वस्तुस्थिति समझ कर मेरे चेहरे पर शर्मिंदगी उभर आई. फिर तुरंत ही अपनी असहाय अवस्था का बोझ मुझ पर हावी हो गया. ‘प्लीज, मुझे मेरे घर पहुंचा दीजिए. मैं पिछले 3 घंटे से भटक रही हूं.’

‘और मैं 5 घंटे से,’ उस ने बिना किसी सहानुभूति के सपाट सा उत्तर दिया.

‘ओह, फिर अब क्या होगा? मुझ से तो एक कदम भी नहीं चला जा रहा. मैं यहीं बैठ कर किसी मदद के आने का इंतजार करती हूं,’ मैं खंभे से थोड़ा हट कर

बैठ गई.

‘मदद आती नहीं, तलाश की जाती है.’

‘पर आगे कहीं बैठने की जगह भी न मिली तो?’ मैं किसी भी हाल में उठने को तैयार न थी.

‘ऐसी सोच के साथ तो सारी जिंदगी यहीं बैठी रह जाओगी.’

मेरी आंखें डबडबा आई थीं. शायद इतनी देर बाद किसी को अपने साथ पा कर दिल हमदर्दी पाने को मचल उठा था. पर वह शख्स तो किसी और ही मिट्टी का बना था.

‘आप को क्या लगता है कि मैं किसी फिल्मी हीरो की तरह आप को गोद में उठा कर इस पानी में से निकाल ले जाऊंगा? पिछले 5 घंटे से बरसते पानी में पैदल चलचल कर मेरी अपनी सांस फूल चुकी है. चलना है तो आगे चलो, वरना मरो यहीं पर.’

उस के सख्त रवैए से मैं सहम गई थी. डरतेडरते उस के पीछे फिर से चलने लगी. तभी मेरा पांव लड़खड़ाया. मैं गिरने ही वाली थी कि उस ने अपनी मजबूत बांहों से मुझे थाम लिया.

‘तुम आगे चलो. पीछे गिरगिरा कर बह गई तो मुझे पता भी नहीं चलेगा,’ आवाज की सख्ती थोड़ी कम हो गई थी और अनजाने ही वह आप से तुम पर आ गया था, पर मुझे अच्छा लगा. अपने साथ किसी को पा कर मेरी हिम्मत लौट आई थी. मैं दूने उत्साह से आगे बढ़ने लगी. तभी बिजली लौट आई. मेरे दिमाग में बिजली कौंधी, ‘आप के पास मोबाइल होगा न?’

‘हां, है.’

‘तो मुझे दीजिए प्लीज, मैं घर फोन कर के भैया को बुला लेती हूं.’

‘मैडम, आप को शायद स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं है. इस क्षेत्र की संचारव्यवस्था ठप हो गईर् है. सिगनल नहीं आ रहे हैं. पूरे इलाके में पानी भर जाने के कारण वाहनों का आवागमन भी रोक दिया गया है. हमारे परिजन चाह कर भी यहां तक नहीं आ सकते और न हम से संपर्क साध सकते हैं. स्थिति बदतर हो इस से पूर्व हमें ही किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचना होगा.’

‘लेकिन कैसे?’ मुझे एक बार फिर चारों ओर से निराशा ने घेर लिया था. बचने की कोईर् उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. लग रहा था आज यहीं हमारी जलसमाधि बन जाएगी. मुझे अपने हाथपांव शिथिल होते महसूस होने लगे. याद आया लंच के बाद से मैं ने कुछ खाया भी नहीं है. ‘मुझे तो बहुत जोर की भूख भी लग रही है. लंच के बाद से ही कुछ नहीं खाया है,’ बोलतेबोलते मेरा स्वर रोंआसा हो गया था.

‘अच्छा, मैं तो बराबर कुछ न कुछ उड़ा रहा हूं. कभी पावभाजी, कभी भेलपुरी, कभी बटाटाबड़ा… मुझे समझ नहीं आता तुम लड़कियां बारबार खुद को इतना निरीह साबित करने पर क्यों आमादा हो जाती हो? तुम्हें क्या लगता है मैं अभी सुपरहीरो की तरह उड़ कर जाऊंगा और पलक झपकते तुम्हारे लिए गरमागरम बटाटाबड़ा ले कर हाजिर हो जाऊंगा. फिर हम यहां पानी के बीच गरमागरम बड़े खाते हुए पिकनिक का लुत्फ उठाएंगे.’

‘जी नहीं, मैं ऐसी किसी काल्पनिकता में नहीं जी रही हूं. बटाटाबड़ा तो क्या, मुझे आप से सूखी रोटी की भी उम्मीद नहीं है.’ गुस्से में हाथपांव मारती मैं और भी तेजतेज चलने लगी. काफी आगे निकल जाने पर ही मेरी गति थोड़ी धीमी हुई. मैं चुपके से टोह लेने लगी, वह मेरे पीछे आ भी रहा है या नहीं?

‘मैं पीछे ही हूं. तुम चुपचाप चलती रहो और कृपया इसी गति से कदम बढ़ाती रहो.’

उस के व्यंग्य से मेरा गुस्सा और बढ़ गया. अब तो चाहे यहीं पानी में समाधि बन जाए, पर इस से किसी मदद की अपेक्षा नहीं रखूंगी. मेरी धीमी हुई गति ने फिर से रफ्तार पकड़ ली थी. अपनी सामर्थ्य पर खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था. औफिस से आ कर सीधे बिस्तर पर ढेर हो जाने वाली मैं कैसे पिछले 7-8 घंटे से बिना कुछ खाएपीए चलती जा रही हूं, वह भी घुटनों से ऊपर चढ़ चुके पानी में. शरीर से चिपकते पौलीथीन, कचरा और खाली बोतलें मन में लिजलिजा सा एहसास उत्पन्न कर रहे थे. आज वाकई पर्यावरण को साफ रखने की आवश्यकता महसूस हो रही थी. यदि पौलीथीन से नाले न भर जाते तो सड़कों पर इस तरह पानी नहीं भरता. पानी भरने की सोच के साथ मुझे एहसास हुआ कि सड़क पर पानी का स्तर काफी कम हो गया है.

‘वाह,’ मेरे मुंह से खुशी की चीख निकल गई. वाकई यहां पानी का स्तर घुटनों से भी नीचा था. तभी एक बड़े से पत्थर से मेरा पांव टकरा गया. ‘ओह,’ मैं जोर से चिल्ला कर लड़खड़ाई. पीछे आ रहे युवक ने आगे आ कर एक बार फिर मुझे संभाल लिया. अब वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे चलाने लगा क्योंकि मेरे पांव से खून बहने लगा था और मैं लंगड़ा रही थी. पानी में बहती खून की धार देख कर मैं दहशत के मारे बेहोश सी होने लगी थी कि उस युवक के उत्साहित स्वर से मेरी चेतना लौटी, ‘वह देखो, सामने बरिस्ता होटल. वहां काफी चहलपहल है. उधर इतना पानी भी नहीं है.

हम वहां से जरूर फोन कर सकेंगे. हमारे घर वाले आ कर तुरंत हमें ले जाएंगे. देखो, मंजिल के इतने करीब पहुंच कर हिम्मत नहीं हारते. आंखें खोलो, देखो, मुझे तो गरमागरम बड़ापाव की खुशबू भी आ रही है.’

मैं ने जबरदस्ती आंखें खोलने का प्रयास किया. बस, इतना ही देख सकी कि वह साथी युवक मुझे लगभग घसीटता हुआ उस चहलपहल की ओर ले चला था. कुछ लोग उस की सहायतार्थ दौड़ पड़े थे. इस के बाद मुझे कुछ याद नहीं रहा. चक्कर और थकान के मारे मैं बेहोश हो गई थी. होश आया तो देखा एक आदमी चम्मच से मेरे मुंह में कुनकुनी चाय डाल रहा था और मेरा साथी युवक फोन पर जोरजोर से किसी को अपनी लोकेशन बता रहा था. मैं उठ कर बैठ गई. चाय का गिलास मैं ने हाथों में थाम लिया और धीरेधीरे पीने लगी. किसी ने मुझे 2 बिस्कुट भी पकड़ा दिए थे, जिन्हें खा कर मेरी जान में जान आई.

‘तुम भी घर वालों से बात कर लो.’

मैं ने भैया को फोन लगाया तो पता चला वे जीजाजी के संग वहीं कहीं आसपास ही मुझे खोज रहे थे. तुरंत वे मुझे लेने निकल पड़े. रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी, लेकिन आसपास मौजूद भीड़ की आंखों में नींद का नामोनिशान न था. हर किसी की जबान पर प्रकृति के इस अनोखे तांडव की ही चर्चा थी.

‘मेरा साला मुझे लेने आ रहा है. तुम्हें कहां छोड़ना है बता दो… लो, वे आ गए.’अपनी गर्भवती पत्नी को भी गाड़ी से उतरते देख वह हैरत में पड़ गया, ‘अरे, तुम ऐसे में बाहर क्यों निकली? वह भी ऐसे मौसम में?’ बिना कोईर् जवाब दिए उस की पत्नी उस से बुरी तरह लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. वह उसे धीरज बंधाने लगा. मेरी भी आंखें भर आईं. पत्नी को अलग कर वह मुझ से मुखातिब हुआ, ‘पहली बार कोई हैल्प औफर कर रहा हूं. चलो, हम छोड़ देंगे.’

‘नहीं, थैंक्स, भैया और जीजाजी बस आ ही रहे हैं. लो, वे भी आ गए.’

‘अच्छा बाय,’ वह चला गया.

हम ने न एकदूसरे का नाम पूछा, न पता. उस की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए मैं ने उसे एक नाम दे दिया है, ‘हीरो’  वास्तविक हीरो की तरह बिना कोई हैरतअंगेज करतब दिखाए यदि कोई मुझे उस दिन मौत के दरिया से बाहर ला सकता था तो वही एक हीरो. उस समय तो मुझे उस पर गुस्सा आया ही था कि कैसा रफ आदमी है, लेकिन आज मैं आसानी से समझ सकती हूं उस का मुझे खिझाना, आक्रोशित करना, एक सोचीसमझी चालाकी के तहत था ताकि मैं उत्तेजित हो कर तेजतेज कदम बढ़ाऊं और समय रहते खतरे की सीमारेखा से बाहर निकल जाऊं. सड़क पर रेंगते अनजान चेहरों के काफिले में आज भी मेरी नजरें उसी ‘हीरो’ को तलाश रही हैं.

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