Ira Singhal : इरा सिंघल अपनी यादों में जितना पीछे जा कर सोच सकती हैं, सोचती हैं और बताती हैं कि वे हमेशा से ऐसा कैरियर बनाना चाहती थीं जिस से वे लोगों की जिंदगियों को छू सकें. रीढ़ की हड्डी से जुड़ी एक बीमारी से पीडि़त होने के कारण उन की खुद की दैनिक गतिविधियों पर प्रतिबंध थे. इस वजह से वे लगभग हर दिन अस्पताल के चक्कर लगाती थीं. ‘‘मैं जब से जन्मी थी, उस समय से ही डाक्टरों के पास जा रही हूं’’, उन्होंने मुझ से कहा जब हम गुवाहाटी से अरुणाचल भवन में चाय पीते हुए बात कर रहे थे. तब मरीजों पर डाक्टरों के प्रभाव को देख कर इरा ने सोचा कि वे चिकित्सा क्षेत्र में अपना कैरियर बनाएंगी.

90 के दशक की शुरुआत में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ ने इरा को नए रास्ते पर ला खड़ा कर दिया. उस समय वे उत्तर प्रदेश के मेरठ में सोफिया गर्ल्स स्कूल में एक युवा छात्रा थीं. यह नागरिक अशांति का समय था जिस ने उन पर एक स्थाई और गहरी छाप छोड़ी.

इरा बताती हैं, ‘‘मेरी स्कूली शिक्षा के विशेषरूप से ये 2 साल ऐसे थे जब मैं केवल 6 महीने ही स्कूल गई क्योंकि बाकी के महीनों में मेरे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था.’’

इरा अपने स्कूली दिनों उन लोगों से प्रेरित थीं जिन के फैसले रोजमर्रा की हकीकतों को आकार देते थे. जब वे अपनी नागरिक शास्त्र की पाठ्यपुस्तक में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिकाओं के बारे में पढ़ रही थीं, तब वे सीधे तौर पर देख पा रही थीं कि वे किसी भी संकट के समय में कितनी जिम्मेदारियों को उठाते हैं.

इरा ने याद करते बताया, ‘‘जमीन पर जो हो रहा था और जो मैं किताबों में पढ़ रही थी, एकदूसरे को उस से जोड़ना आसान था. आप को लोगों के साथ काम करने को मिलता है और आप को सचमुच जमीन पर जा कर बदलाव लाने का मौका मिलता. यही 2 ऐसी चीजें थीं जिन्हें मैं करना चाहती थी.’’

खुद की राह बनाई

इरा ने साहस और संकल्प के साथ अपनी खुद की राह बनाई है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)  उन की सफल शुरुआत काफी चुनौतियों से भरी थी. इरा ने 2010 से 2014 के बीच बारबार प्रयास कर कठिन सिविल सेवा परीक्षा को सफलता से पार किया. लेकिन हर साल जिन सेवाओं के लिए वे योग्य थीं उन्होंने उन्हें पद देने से इनकार कर दिया क्योंकि वे विकलांगता के साथ जी रही थीं.

इरा को अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए कानूनी लड़ाई तक लड़नी पड़ी, जिस में उन्हें जीत भी हासिल हुई. 2015 में वे चौथी और आखिरी बार सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुईं. वे भारत की पहली विकलांगता के साथ जीने वाली व्यक्ति बनीं, जिन्होंने उच्चतम रैंक प्राप्त की. बाद में उन्होंने आईएएस प्रशिक्षण में भी टौप किया और राष्ट्रपति से स्वर्ण पदक प्राप्त किया. वे वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं.

लोकसेवक के रूप में अपने काम के साथसाथ इरा लैंगिक समानता और विकलांगता अधिकारों की भी मुखर समर्थक हैं. उन्होंने अपने बचपन के सपने को कभी भुलाया नहीं. अपनी पदवी का उपयोग समाज में बदलाव लाने के लिए किया. हालांकि यह सबकुछ बहुत आसान नहीं रहा.

इरा कहती हैं, ‘‘एक विकलांग लड़की के रूप में आप की समस्या यह होती है कि आप को हर बार अपनी काबिलीयत साबित करनी पड़ती है. आप को बारबार यह साबित करना पड़ता है कि आप एक मौका पाने की हकदार हैं.’’

एक ऐसे क्षेत्र में काम करते हुए जिस में आज भी पुरुषों का वर्चस्व है, इरा बिना डरे आगे बढ़ रही हैं. वे बताती हैं, ‘‘हमारे समाज में महिलाओं को लगातार बताया जाता है कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए. ऐसे कई ‘चाहिए’ होते हैं जैसेकि आप को कैसा व्यवहार करना चाहिए.’’ इरा ने कहा, ‘‘मेरा सुझाव है कि एक भी ऐसा ‘चाहिए’ मत सुनो जो सिर्फ आप के लिंग से जुड़ा हुआ हो.’’

इरा का बचपन एक संयुक्त परिवार में बीता. उन के रिश्तेदार, चचेरे भाईबहन और दादादादी सभी लोग पास में ही रहते थे. उन के पिता एक स्वतंत्र मूल्यांकन सलाहकार के तौर पर काम करते हैं और उन की मां भी पिता के साथ काम करती हैं.

इरा के परिवार ने उन की विकलांगता को कभी मुद्दा नहीं बनाया. इसे स्वीकार किया गया, लेकिन उन के हुनर पर इस का साया नहीं पड़ने दिया.

‘‘मेरी दिव्यांगता कभी छिपी हुई नहीं थी या फिर कोई ऐसी चीज नहीं थी जिस के बारे में कोई बात ही न करता हो. यह बात बस इतनी थी कि इसे ले कर शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह ऐसी चीज नहीं है जो आप की जिंदगी जीने के तरीके को बाधित नहीं करती,’’ इरा ने बताया.

इरा का मानना है कि बहुत सारे मातापिता यह गलती करते हैं कि वे अपने बच्चे की कमजोरियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं बजाय इस के कि वे बच्चे की क्षमताओं को बढ़ावा देने में मदद करें.

इरा कहती हैं, ‘‘अकसर ऐसा होता है कि विकलांगता ही आप की पहचान बना दी जाती है. लेकिन मेरे मामले में हमेशा यह मेरी पहचान का महज एक हिस्सा भर रही. मेरी पूरी पहचान नहीं, मेरे लिए जो मानदंड तय किए गए वे मेरी क्षमताओं के आधार पर थे न कि मेरी विकलांगता के आधार पर.’’

इरा खुशीखुशी बताती हैं कि उन के मातापिता ने हमेशा दूरदर्शी सोच को महत्त्व दिया. इरा कहती है, ‘‘मेरे पिता बेहद प्रगतिशील, संतुलित और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति हैं. आप अपने मातापिता नहीं चुन सकते. मैं किस्तम वाली थी.’’

इरा अपने मातापिता की वजह से खुद को किस्मत वाली मानती हैं. राजेन्द्र और अनिता सिंघल ने हमेशा आधुनिक सोच रखी. इरा का कहना है, ''आप अपने मातापिता नहीं चुन सकते. मैं भाग्यशाली हूं.' साभार :अरुण शर्मा/ एचटी फोटो
इरा अपने मातापिता की वजह से खुद को किस्मत वाली मानती हैं. राजेन्द्र और अनिता सिंघल ने हमेशा आधुनिक सोच रखी. इरा का कहना है, ”आप अपने मातापिता नहीं चुन सकते. मैं भाग्यशाली हूं.’ साभार :अरुण शर्मा/ एचटी फोटो

क्षमताओं के आधार पर पहचान

इरा कहती हैं, ‘‘मेरी विकलांगता ने क्या किया? मैं खेलों में अच्छी नहीं थी? तो ठीक है, खेलों में अच्छे मत बनो. किसी और चीज में अच्छे बन सकते हो, बनो. मैं एक बहुत अच्छी डांसर हूं.’’

इरा अपनी कक्षा के टौप रैंकर्स में शामिल रहती थीं. उन के शिक्षक उन्हें नियमित रूप से नेतृत्व की जिम्मेदारियां देते थे. इरा ने कहा, ‘‘हम अभी भी ऐसे देश में हैं जहां मातापिता ऐसे बच्चों को आदर्श मानते हैं जो परीक्षाओं में सब से ज्यादा नंबर लाते हैं. इसी वजह से मेरी भी परवरिश सामान्य रूप से हुई. यह माने नहीं रखता था कि क्लास में मेरी हाइट सब से कम थी या फिर मैं विकलांग थी.’’

इरा बताती हैं कि वित्तीय स्थिति मजबूत होने से उन्हें काफी लाभ मिला. जो बच्चे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं और विकलांग हैं उन के लिए मुश्किलें असहनीय रूप से ज्यादा होती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हमारा सिस्टम, हमारा पूरा बुनियादी ढांचा, बहुत ज्यादा चुनौतियों से भरा हुआ है. लोग इस के बारे में सोचते ही नहीं हैं. किसी भी विकलांग बच्चे के लिए स्कूल परिसर में प्रवेश करना ही बहुत कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा हुआ है.’’

एक दशक से ज्यादा समय तक मेरठ में रहने के बाद इरा का परिवार दिल्ली आ गया. इरा की जिंदगी में सिविल सेवा का सपना कुछ समय के लिए पीछे छूट गया. हालांकि बचपन का सपना कहीं न कहीं जेहन में बना रहा लेकिन अब वे इसे पूरा करने के लिए उतनी मुस्तैदी से इस के पीछे नहीं भाग रही थीं.

इरा जब 11वीं कक्षा में पहुंचीं और उन्हें आगे पढ़े जाने वाले विषयों का चयन करना था, तब वे जीव विज्ञान चुनना चाहती थीं ताकि वे चिकित्सा के क्षेत्र में कैरियर बना सकें. उन के इस निर्णय पर उन के पिता ने उन्हें पुनर्विचार करने के लिए राजी किया. उन का कहना था कि जबकि तुम खुद एक मरीज जैसी दिखती हो, कोई तुम्हारे पास अपना इलाज कराने नहीं आएगा.

इरा ने बताया कि उन के पिता की यह बात निर्दयी नहीं, बल्कि यथार्थवादी थी और उन्हें भी वह तर्क सही लगा.

आर्मी पब्लिक स्कूल, धौला कुंआ (दक्षिण पश्चिम दिल्ली) से स्नातक करने के बाद इरा ने इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल की.

इरा कहती हैं, ‘‘मैं शायद दुनिया की सब से खराब इंजीनियर हूं.’’

प्रगति के आधार पर लक्ष्य तय किए

इंजीनियरिंग के प्रति इरा की अनिच्छा ने उन्हें कई और रास्ते दिखाए. दिल्ली की नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी औफ टैक्नोलौजी जिसे पहले नेताजी सुभाष इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी के नाम से जाना जाता था में पढ़ाई के दौरान इरा को कालेज फेस्ट और कई समितियों में काम करने के बाद एहसास हुआ कि उन की रुचि और क्षमता प्रबंधन कार्यों में है. इस के चलते उन्होंने स्नातक पूरा करने के बाद फैकल्टी औफ मैनेजमैंट स्टडीज से एमबीए की डिगरी प्राप्त की.

इरा को पहली नौकरी मुंबई स्थित कैडबरी इंडिया के औफिस में मिली, जिसे अब मांडेलेज इंडिया फूड्स के नाम से जाना जाता है. उन्होंने वहां लगभग ढाई साल काम किया. हालांकि वे हर दिन 20 घंटे तक जुटी रहती थीं लेकिन काम में मजा आता था और साथ काम करने वालों से भी बनती थी.

मगर इरा अपनी आरामदायक कौरपोरेट लाइफ में बेचैनी महसूस कर रही थीं. वे कहती हैं, ‘‘मैं ने सोचना शुरू किया कि इतनी मेहनत का क्या फायदा जब दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो कहे कि मेरी मेहनत की वजह से उस की जिंदगी, उस के परिवार की जिंदगी या फिर उस का भविष्य बेहतर हुआ है.’’ और तभी इरा ने फैसला किया कि वे नौकरी छोड़ कर सिविल सेवा की परीक्षा देंगी.

इरा ने पूरी गंभीरता से संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की तैयारी में खुद को झोंक दिया. उन्होंने कभी यह नहीं गिना कि कितने घंटे पढ़ाई की. इस के बजाय उन्होंने अपने लिए पाठ्यक्रम की प्रगति के आधार पर लक्ष्य तय किए.

‘‘अगर आप तय कर लें कि मैं आज 10 चैप्टर खत्म करूंगी तो आप पढ़ाई के घंटों पर नहीं बल्कि अपनी वास्तविक उपलब्धि पर ध्यान देते हैं,’’ उन्होंने कहा, ‘‘वे 5 घंटे भी हो सकते हैं, 2 घंटे भी और 10 घंटे भी.’’

इरा कहती हैं कि जब छात्र अपनी पढ़ाई को समय के आधार पर मापते हैं तो इस का असर उलटा भी हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘आप एक ही पेज को घंटों तक घूर सकते हैं और ऐसा करने के बाद आप सोचेंगे कि मुझे यह विषय बिलकुल पसंद नहीं है, बहुत ज्यादा बोरिंग है. मुझे यह टीचर पसंद नहीं है, मुझे सब से नफरत है. आप जिंदगी से चिढ़ने लगेंगे.’’

इस का मतलब यह नहीं है कि इरा ने कभी टालमटोल नहीं की या फिर ध्यान भटकाने वाले मौके नहीं आए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं बेहद जिम्मेदार भी हूं और जबरदस्त टालमटोल करने वाली भी. मैं जिम्मेदारी की सीमा तक टालमटोल करती हूं.’’

भारत की सब से कठिन परीक्षाओं में से एक में टौप करने वाली इरा ने हैरान करने वाली बात कही. वे खुद को प्रतिस्पर्धी नहीं मानतीं और उन्हें पता है कि यह सुन कर लोग चौंक सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा एकमात्र उद्देश्य यह होता था कि क्या इतनी मेहनत मुझे अंदर ले जा सकती है?’’ अगर उन्हें उन की पसंद की नौकरी या फिर विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल जाता था जो उन्हें चाहिए होता था तो फिर वे अपने नंबरों या रैंक को ले कर बहुत ज्यादा परेशान नहीं होती थीं.

इस के बजाय इरा को जो मान्यता चाहिए थी वह बाहर नहीं बल्कि अंदर की थी. वे कहती हैं, ‘‘इस सब में सब से अहम व्यक्ति आप खुद होते हैं- क्या आप खुद पर गर्व करते हैं? क्या आप खुद के होने और अपने काम से खुश हैं? बस, यही वह चीज थी, मैं जिस की खोज में थी.’’

एक चुनौतीपूर्ण यात्रा

जिस सफर की शुरुआत खुशनुमा और उल्लासपूर्ण माहौल में होनी चाहिए थी, इरा के लिए वह एक चुनौतीपूर्ण यात्रा के तौर पर शुरू हुआ.

इरा ने अपने पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी. वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) या भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल होने के लिए उत्साहित थीं. लेकिन जब रिजल्ट आया तब वे भारतीय राजस्व सेवा (IRS) के लिए ही योग्य थीं. परिणाम से विचलित हुए बिना उन्होंने अपने अगले प्रयास की तैयारी शुरू कर दी.

अपने अगले प्रयास के लिए इरा जब पूरी तरह से पढ़ाई में डूबी हुई थीं, तभी उन्हें कुछ फोन कौल्स आई जिन्होंने उन्हें उलझन में डाल दिया.

इरा ने याद करते हुए बताया, ‘‘कुछ लोगों ने फोन कर के पूछा कि क्या आप को पता है आप के साथ क्या हुआ है? इस से मेरी जिज्ञासा बढ़ गई और मैं ने इस मामले की तह तक जाने का फैसला किया.’’

सिविल सेवा के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवार अपनी विकलांगता बताते हैं और यह भी बताते हैं कि वे कौनकौन सी योग्यताएं पूरी कर सकते हैं. इरा ने बताया कि उन्होंने साफ कहा कि वे लगभग सभी सेवाओं के लिए जरूरी योग्यताएं पूरी करने में सक्षम थीं. इरा ने भी अपने आवेदन में सभी सेवाओं के आवश्यक योग्यता मानदंडों को पूरा करने का जिक्र किया था. जल्द ही उन्हें पता चल गया कि उन की दिव्यांगता के आधार पर इस सर्विस से खारिज किया जा रहा है और यही कारण है कि भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में चयन के बाद भी उन्हें पदभार ग्रहण करने की अनुमति नहीं दी गई.

इरा के अनुसार, ‘‘दरअसल, इस स्थिति का मतलब था कि मैं यह काम कर सकती हूं क्योंकि मैं आवश्यक सभी योग्यताओं को पूरा कर रही थी.’’

‘‘मगर हमें आप की विकलांगता पसंद नहीं है, इसलिए हम आप को सेवा में नहीं लेंगे.’’

इरा के मुताबिक, इस में कोई लौजिक ही नहीं था. जब इरा ने इस बारे में दूसरे और लोगों से बात की तो उन्हें पता चला कि यह भेदभाव सिर्फ उन के साथ ही नहीं हो रहा कई अन्य उम्मीदवार भी इस तरह के व्यवहार का सामना कर रहे हैं.

2012 में इरा ने सैंट्रल ऐडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल (CAT) में एक मुकदमा दायर किया. यह सरकारी सेवाओं में भरती संबंधित शिकायतों का निबटारा करने वाली एक विशेष संस्था है. एक विकलांग होने के नाते, जिसे आर्थिक संसाधनों की पहुंच प्राप्त थी, इरा ने इस लड़ाई को सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि एक व्यापक जिम्मेदारी के रूप में लिया.

अपना पक्ष रखते हुए इरा ने कहा, ‘‘भारत में बीमारी भी गरीबी का एक पहलू है और जो लोग पहले से ही उस स्थिति से जूझ रहे हैं, उन्हें बारबार उसी वजह से नकारा जा रहा है, जबरन पीछे धकेला जा रहा है.’’

इरा का मामला लंबा खिंचता गया. इसी दौरान इरा ने परीक्षा के कई दौर पूरे किए लेकिन हर बार वही मुश्किल सामने आई. परीक्षा में पास होने के बाद उन की रैंक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के लिए पर्याप्त नहीं थी और बाकी सेवाएं उन्हें नियुक्ति देने से इनकार कर रही थीं.

अंतत: 2014 में ट्रिब्यूनल ने फैसला इरा के पक्ष में सुनाया. उस के कुछ समय बाद तक भी कोई बदलाव नहीं हुआ. जब इरा ने संबंधित कार्यालयों से अपनी नियुक्ति को ले कर पूछताछ की तो उन को फैसले की एक प्रति भेजने के लिए कहा गया. उन्होंने वह भी भेज दी. इस के जवाब में और अधिक गहरा सन्नाटा छा गया. उन्हें चिंता होने लगी कि सरकारी विभाग इस फैसले को चुनौती देने के लिए अपील दाखिल न कर दे.

एक दोस्त ने इरा को चौथी बार सिविल सेवा परीक्षा देने के लिए प्रोत्साहित किया. अब तक वे इस पूरी प्रक्रिया के चलते बुरी तरह से थक चुकी थीं. यह बात उन्होंने मजाक में लेकिन आधे सच के साथ कही, ‘‘अगर आप किसी की जिंदगी बरबाद करना चाहते हैं तो उसे बस इतना कह दीजिए कि तुम बहुत होशियार हो, सिविल सेवा की परीक्षा दो. यह मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक हर तरह से एक यातना है.’’

12 सितंबर, 2017 को नई दिल्ली में समावेशी भारत शिखर सम्मेलन- 2017 के उद्धाटन के अवसर पर इरा सिंघल संबोधित करती हुई. साभार : सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय/विकिमीडिया कामन्स
12 सितंबर, 2017 को नई दिल्ली में समावेशी भारत शिखर सम्मेलन- 2017 के उद्धाटन के अवसर पर इरा सिंघल संबोधित करती हुई. साभार : सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय/विकिमीडिया कामन्स

मेहनत का इनाम पहचान नहीं बल्कि एक मकसद था

अपनी बात को समझने के लिए इरा ने एक सिविल सेवा अभ्यर्थी के जीवन का उदाहरण दिया. वे कहती हैं, ‘‘जब आप 20 के दशक में एक कमरे में बंद होते हैं, जहां बारबार एक सी चीजें ही दोहराते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग सिविल सेवा के लिए एक से ज्यादा प्रयास करते हैं. उस दौरान बिलकुल भी समझ नहीं आता कि आप कहां गलती कर रहे हैं. सिविल सेवा एक ऐसा महासागर है, जिस में आप बस डूब रहे होते हैं. यही वह उम्र होती है जब आप के अधिकांश दोस्त अपने कैरियर और रिश्तों की नींव रख रहे होते हैं और अपनी जिंदगी को नया आकार दे रहे होते हैं. यह सचाई इस संघर्ष को और कठिन बनाती है.’’

इरा कहती हैं कि शुरुआत में हो रही हिचक के बाद भी वे डटी रहीं. मुख्य परीक्षा से 2 दिन पहले जो इस परीक्षा का दूसरा चरण है, इरा को एक पत्र मिला जिस में उन्हें परीक्षा खत्म होने के दूसरे दिन बाद अपने पद को जौइन करने का निर्देश दिया गया था.

लंबी लड़ाई के बाद इरा ने भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में कस्टम्स और ऐक्साइज विभाग में सहायक आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला. कुछ दिनों बाद जब सिविल सेवा के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा के परिणाम घोषित हुए तो वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गईं. उन्होंने देशभर में पहला स्थान (All India Rank One) प्राप्त किया, जिस के बाद उन्हें जल्द ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में नियुक्त कर दिया गया.

इरा के लिए उन की मेहनत का इनाम पहचान नहीं बल्कि एक मकसद था. उन्होंने कहा, ‘‘सिविल सेवा पास करने का पूरा इरादा किसी को कुछ साबित करना नहीं था बल्कि लोगों की मदद करना था. बस ऐसा कुछ करना जिस से मैं बदलाव ला सकूं.’’

प्राइवेट सैक्टर में किए काम के छोटे से कार्यकाल के दौरान इरा ने आज की तुलना में कहीं ज्यादा पैसा कमाया. उन्होंने बताया, ‘‘अगर मैं अभी तक कौरपोरेट सैक्टर में बनी रहती तो आज जितना कमा रही हूं उस से 15-20 गुना तो ज्यादा कमाती ही.’’

वे कहती हैं कि वहां काम के घंटे तय होते थे, छुट्टियां निश्चित थीं और निजी जीवन को पेशेवर जीवन से भी अलग रखा जा सकता था.

कौरपोरेट सैक्टर में चाहे जितनी भी सुखसुविधाएं हों, आईएएस बनने से जो संतोष होता है, उस की बात ही अलग होती है.

इरा कहती हैं, ‘‘यहां जो फैसले आप लेते हैं, उन का असर बड़े स्तर पर होता है. आप बहुत सारी चीजों को प्रभावित कर सकते हैं और भारत की विकास यात्रा में सहभागी बनने के लिए भी आप के पास कहीं ज्यादा मौके होते हैं. यहां तक कि छोटे स्तर पर भी सीखने, अनुभव करने और दुनिया की लगभग हर चीज को महसूस करने के जितने मौके यहां मिलते हैं वे बहुत ज्यादा और बड़े हैं.’’

एक आईएएस अधिकारी के तौर पर इरा की पहली पोस्टिंग उत्तरी दिल्ली के उप मंडल मजिस्ट्रेट (Sub-Divisional Magistrate, SDM) के रूप में हुई. इस दौरान कुछ एनजीओ ने उन से संपर्क कर अवैध फैक्टरियों में बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर किए जा रहे बच्चों से जुड़ी जानकारी दी. उन्होंने संबंधित कई विभागों और दूसरे हितधारकों के साथ मिल कर छापेमारी की योजना बनाई जिस से कि उन बच्चों को बचाया जा सके. न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, इरा की सक्रिय भूमिका से 300 से अधिक बच्चों को रिहा कराया गया.

ऐसा ही एक और मौका आया जब ट्रांसजैंडर समुदाय के साथ काम करने वाला एक गैरसरकारी संगठन उन से मिलने आया. इरा जब उस संगठन के पास पहुंचीं तो उन्होंने वहां 100-200 से अधिक ट्रांसजैंडर लोगों से मुलाकात की.

इस मुलाकात को याद करते हुए इरा ने कहा, ‘‘यह मेरी जिंदगी में अब तक का एकमात्र ऐसा वक्त था जब दर्शकों ने अपनी परेशानियां मु?ा से बताईं और मेरे पास उन के लिए कोई समाधान नहीं था. उन की जिंदगी में जो कुछ भी गलत था उस में उन की गलती नहीं थी और उसे सुधारने के लिए उन के पास कुछ भी नहीं था. मैं वहां से यह सोच कर निकली कि हम एक समाज के रूप में कितने क्रूर हैं.’’

इस मुलाकात के कुछ दिनों बाद बैठक में शामिल रहे कुछ ट्रांसजैंडर लोग इरा के कार्यालय पहुंचे और एक दुकान शुरू करने में उन से मदद मांगी. मांगी गई मदद के बदले में इरा ने उन्हें अपने दफ्तर में ही नौकरी देने का प्रस्ताव दिया. इस के तुरंत बाद 2 ट्रांस महिलाएं अनुबंध के आधार पर इरा के दफ्तर की रिसैप्शन पर काम करने लगीं.

चूंकि हर तरह के दस्तावेज बनवाने के लिए लोगों को एसडीएम कार्यालय आना ही होता है, इरा को लगा कि फ्रंट डैस्क की जिम्मेदारी ट्रांस महिलाओं को सौंपना लोगों को मजबूर करेगा कि वे उन से सम्मान के साथ पेश आएं. उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें लोगों को आ कर आप से मदद मांगनी होती है तो यह उन की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे आप को एक इंसान के रूप में और अपने बराबर का समझें तथा अच्छा व्यवहार करें. यही एक चीज वहां होने वाली उस बातचीत के तरीके को बदल देती है, उस शक्ति संतुलन को बदल देती है.’’

पिछले 2 वर्षों से इरा अरुणाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सचिव के पद पर तैनात हैं. वे इस से पहले भी उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North
Eastern Region)  में असिस्टैंट सैक्रेटरी के रूप में उत्तर पूर्वी राज्यों में काम कर चुकी हैं.

इरा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि लोग हर जगह एकजैसे ही होते हैं. सांस्कृतिक रूप से चीजें भिन्न हो सकती हैं लेकिन सब की जरूरतें एकजैसी ही होती हैं. दिल्ली की तुलना में अरुणाचल में चुनौतियां बहुत अलग हैं.’’

इरा का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश के लोगों को सरकार के सामने अधिक मुखरता से अपनी मांगें रखनी चाहिए साथ ही अपने अधिकारों को ले कर भी और अधिक जागरूक होना चाहिए. उन की मुख्य चिंताओं में से एक है बुनियादी ढांचे के विकास में बढ़ावा देना. उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली में आधारभूत संरचना पहले से मौजूद है. वहां आप को उसी पर आगे काम करना होता है. दिल्ली की समस्याएं ऐसी हैं, जिन के समाधान ही नहीं होते हैं, जबकि यहां यानी अरुणाचल में समस्याओं के समाधान हैं.’’

इरा अपने प्रशासनिक कार्यों के साथसाथ विकलांगजनों के लिए समान अवसरों को बढ़ावा देने के प्रयासों में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं. वे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगजन विभाग की ब्रैंड ऐंबेसेडर थीं, साथ ही मतदान प्रक्रिया को अधिक समावेशी और सुलभ बनाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग के राष्ट्रीय पैनल की सदस्य भी हैं.

2018 में वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की  विकलांग बच्चों के लिए परीक्षा नीति तैयार करने वाली टीम का हिस्सा थीं. इस के अलावा वे विकलांगजनों के लिए सरकारी नीतियों में सुधार के लिए भी व्यापक रूप से काम कर रही हैं.

विकलांग बच्चों के प्रति मातापिता के नजरिए में भी बदलाव आया है

इरा का कहना है कि उन के कानूनी मामले से मिली सार्वजनिक और मीडिया की जागरूकता ने सरकार को विकलांगजनों की भरती प्रक्रिया की दोबारा समीक्षा करने के लिए प्रेरित किया. इसी दौरान विकलांग बच्चों के प्रति मातापिता के नजरिए में भी सकारात्मक बदलाव आया है जो एक स्वागतयोग्य कदम है.

इरा को सिविल सेवा में आए हुए लगभग

1 दशक हो गया है. अब तक एक विकलांग महिला होने की वजह से उन के सामने चुनौतियां जरूर आईं लेकिन वे हर मुश्किल का डट कर सामना करती हैं.

इरा कहती हैं, ‘‘हमारी तरह की महिलाओं को सिस्टम से स्वीकार्यता पाने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता क्योंकि हमारे पहले भी काफी अधिकारी महिलाएं थीं जिन्होंने उस लड़ाई को झेला और हमारे लिए रास्ता आसान किया.’

यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में बैठने से पहले अभ्यर्थी नई दिल्ली के एक परीक्षा केन्द्र के बाहर इंतजार करते हुए. साभार : संचिता खन्ना/एचटी फोटो
यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में बैठने से पहले अभ्यर्थी नई दिल्ली के एक परीक्षा केन्द्र के बाहर इंतजार करते हुए. साभार : संचिता खन्ना/एचटी फोटो

आधिकारिक संस्थानों में भेदभाव अब भी बहुत आम है

फिर भी भारत में अब तक एक भी महिला को कैबिनेट सचिव के पद पर नियुक्त नहीं किया गया है जो देश की सब से वरिष्ठ सिविल सेवा की जिम्मेदारी होती है. यह बात इरा ने बहुत गौर से नोट की. उन्होंने बताया कि आधिकारिक संस्थानों में भेदभाव अब भी बहुत आम है. सरकार में जो लोग आते हैं वे भी इसी समाज से आते हैं. समाज की जैसी मानसिकता होती है, वही दफ्तरों में भी दिखाई देती है. लोग औफिस की सोच घर नहीं ले जाते, बल्कि घर की सोच औफिस ले कर आते हैं.

इरा के कुछ बहुत अच्छे वरिष्ठ रहे हैं लेकिन उन्हें ऐसे लोग भी मिले जो बहुत नकारात्मक हैं पर उन की उच्च पदवी के कारण उन की योग्यता को नजरअंदाज कर पाना मुश्किल होता है. लेकिन पूर्वाग्रह अब भी मौजूद हैं.

इरा कहती हैं, ‘‘मैं कई अन्य विकलांग महिलाओं को जानती हूं, जिन के साथ हालात बहुत मुश्किलों से भरे रहे हैं.’’

इरा अब घमंडी और तुच्छ दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं होती हैं. अकसर ऐसा होता है कि उन के कार्यालय में आने वाले लोग स्वाभाविक रूप से कमरे में मौजूद पुरुषों से बात करने लगते हैं. जिन से वे बात कर रहे होते हैं भले ही वे सभी उन के अधीनस्थ ही क्यों न हों. ऐसी स्थितियों में इरा पूरे अधिकार के साथ खुद को सामने रखती हैं, लेकिन इन बातों पर ज्यादा समय नहीं गंवातीं.

इरा कहती हैं, ‘‘ऐसे माइंडसैट से निबटने के 2 तरीके हैं- एक, आप उसे ध्यान में रखें और उस पर बवाल करें और फिर उसे अपने काम पर हावी होने दें, दूसरा, तरीका यह है कि आप उसे नजरअंदाज करें और जो आप का काम है वह करते रहें.’’

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