शिवानी ने औफिस से आ कर ड्राइंगरूम में अपना बैग रखा. उस की मम्मी राधा और छोटा भाई विपिन अपनेअपने मोबाइल में लगे थे. दोनों ने थकीहारी शिवानी पर नजर भी नहीं डाली.

राधा ने मोबाइल से नजरें हटाए बिना ही कहा, ‘‘शिवानी, वंदना से कहना चाय मेरे लिए भी बनाए.’’

शिवानी को कोफ्त सी हुई. वह किचन में गई, तो खाना बनाने वाली मेड वंदना ने पूछा, ‘‘दीदी, चाय बना लूं?’’

‘‘हां, मां के लिए भी. खाने में क्या बना

रही हो?’’

‘‘भैया ने छोलेभूठरे बनाने के लिए कहा है.’’

‘‘क्या? फिर?’’

तभी राधा उठ कर किचन में आ गई, ‘‘क्यों वंदना क्या चुगलखोरी कर रही है? खाना बनाना ही तेरा काम है... जो कहा जाएगा चुपचाप

बनाना पड़ेगा.’’

‘‘हां मांजी, बना तो रही हूं.’’

शिवानी ने विपिन के पास जा कर कहा, ‘‘रोज इतना हैवी खाना बनवाते हो, कुछ अपनी हैल्थ का ध्यान करो. पेट देखा है अपना, कितना बढ़ रहा है. यह नुकसानदायक है, 25 के भी नहीं हो... रोज इतना हैवी खाना मुझ से भी नहीं खाया जाता है. कभी तो हलकी दालसब्जी बन सकती है.’’

राधा गुर्राई, ‘‘शिवानी, सुनाने की जरूरत नहीं है, पता है तेरा घर है, तेरी कमाई से चलता है तो इस का मतलब यह नहीं है कि हम अपनी मरजी से खापी नहीं सकते.’’

‘‘मां, हर बात का गलत मतलब निकालती हो आप, उस के भले के लिए ही कह रही हूं.’’

‘‘तू अपना भला कर, हम अपना देख लेंगे,’’ कह कर पैर पटकती हुई राधा घर से बाहर सैर करने चली गई.

शिवानी जानती थी अब वे रोज की तरह

1 घंटा अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ गुप्पें मार कर आएंगी. आजकल जमघट तो जमता नहीं पर 1-2 तो मिल ही जाती हैं. थोड़ी देर बाद शिवानी का 7 साल का बेटा पार्थ खेल कर आ गया. शिवानी उसे फ्रैश होने के लिए कह कर उस का दूधनाश्ता अपने बैडरूम में ही ले गई. पार्थ को अपने पास ही बैठा कर वह अपनी कमर सीधी करने लेट गई, पार्थ से स्क्ूल और उस के दोस्तों की बातें करती रही.

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