Mobile : आज का युवावर्ग इंटरनैट और मोबाइल प्रेम के चलते दिमागी तौर पर इतना ज्यादा कुंद होता जा रहा है कि उसे पता ही नहीं चल रहा कि उस का पूरा शरीर स्थिर होता जा रहा है. सिर्फ उंगलियां ही वर्किंग हैं अर्थात चल रही हैं, वे भी सिर्फ मोबाइल पर क्योंकि मोबाइल चलाने के लिए उंगलियों का इस्तेमाल करना ही जरूरी होता है. फिर भले पूरा शरीर एक जगह स्थिर ही क्यों न पड़ा रहे.

क्या है कारण

वैसे तो गलती आज के युवावर्ग की भी उतनी नहीं है क्योंकि आज के युवावर्ग को बचपन से ही हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया गया है. बचपन में मां कुछ समय के लिए ही सही अपनी जान बचाने के लिए 2-3 साल के बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देती है ताकि वह छोटा बच्चा कार्टून देख कर या वीडियो गेम खेल कर कुछ समय के लिए ही सही शांत रहे और मां अपना घर का कुछ काम कर पाए या शांति से कुछ समय के लिए खुद भी मोबाइल पर रील या कुछ और मनोरंजन वाली चीजें देख पाए.

उस के बाद वही बच्चा जब स्कूल जाता है तो स्कूल की टीचर अपनी जान छुड़ाने के लिए बच्चों का सारा होमवर्क और स्कूल से संबंधित बाकी सारे कार्य मोबाइल के व्हाट्सऐप के जरीए पेरैंट्स को दे देती है ताकि टीचर को खुद 1-1 बच्चे के मांबाप को बुला कर या बच्चे को खुद से होमवर्क सम?ाना न पड़े.

स्कूल दे रहे बढ़ावा

आजकल नामीगिरामी स्कूलों ने बच्चों के लिए मोबाइल अनिवार्य कर दिया है ताकि उस का सहारा ले कर स्कूल वाले अपना काम आसानी से कर पाएं. एक समय था जब स्कूल में मोबाइल लाने की बिलकुल अनुमति नहीं थी लेकिन अब बड़ेबड़े स्कूलों में मोबाइल लाना अनिवार्य हो गया है क्योंकि स्कूल के टीचर मेहनत नहीं करना चाहते बल्कि मोबाइल के जरीए अपना काम आसानी से करना चाहते हैं.

कई नामीगिरामी स्कूलों में तो एआई अर्थात आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का इस्तेमाल विषय के तौर पर किया जा रहा है. कोई भी उम्र का बच्चा, बूढ़ा, जवान बिना किसी कानूनी रोकटोक के इस टैक्नोलौजी को इस्तेमाल कर सकता है.

स्कूल वालों ने इस टैक्नोलौजी का फायदा उठाने के चक्कर में स्कूलों में एआई को विषय बना कर शामिल कर दिया लेकिन उन को नहीं पता आज के समय में एआई का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों वाले मामलों के लिए ज्यादा किया जा रहा है. आजकल आए दिन ऐसी सनसनी खेज घटनाएं सामने आ रही हैं जिन में एआई का इस्तेमाल कर के कम उम्र लड़कियों को, व्यवसाय से जुड़े लोगों को एआई का सहारा ले कर अपना  शिकार बनाया जा रहा है.

बच्चे करते गलत इस्तेमाल

क्या स्कूल के टीचर्स और मांबाप इस बात से आगाह हैं कि बच्चे एआई का गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं या मोबाइल पर ऐसी चीजे भी देख सकते हैं जो उन के दिमाग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती हैं क्योंकि स्कूल में हर तरह के बच्चे होते हैं कई शैतान बच्चे होते हैं तो कुछ ज्यादा ही तेज दिमाग के होते हैं, कई बहुत भोलेभाले भी होते हैं, जिन को एआई का इस्तेमाल कर के आराम से परेशान किया जा सकता है. कई ऐसे शैतान बच्चे भी स्कूलों में होते हैं जो बिना सोचेसम?ो अंजाम की परवाह किए बिना एआई का गलत इस्तेमाल कर सकते है, जो सिर्फ उन बच्चों के लिए ही नहीं दूसरे बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है जो इस का शिकार हो कर बर्बाद भी हो सकते हैं.

बचपन से जवानी तक आतेआते युवावर्ग कब इंटरनैट मोबाइल का गुलाम बन जाता है यह खुद उस को ही पता नहीं चलता. हालत तो यहां तक है कि अगर 1 घंटे के लिए या आधे घंटे के लिए इंटरनैट और मोबाइल बंद हो जाए तो सब ऐसे घबरा जाते हैं, बेचैन हो जाते जैसे मोबाइल के बिना अब वे सांस ही नहीं ले पाएंगे अब इंसान अपने दिमाग से ज्यादा, अपनी शारीरिक मेहनत से ज्यादा मोबाइल पर निर्भर हो गया है, इसलिए अगर कुछ समय के लिए भी मोबाइल बंद हो जाए तो इंसान अपनेआप को अपाहिज महसूस करने लगता है.

इस के अलावा मोबाइल में कई सारी ऐसी नैतिकअनैतिक सैक्सी नग्नता से भरी चीजें लड़केलड़कियों के मोबाइल में रहती हैं कि भूलेभटके अगर किसी लड़के या लड़की से उन का मोबाइल खोलने के लिए पासवर्ड मांग लें तो उन की सांस ही रुक जाती है.

देश में वैसे ही बेरोजगारी, बेकारी का माहौल चल रहा है, करोना के चलते कई सारे नवयुवक पढ़ाई में भी पीछे हो गए हैं, जिन के पास नौकरी है वे भी खतरे में ही हैं. ऐसे में देश का युवावर्ग जो भारत का भविष्य है वह आधे से ज्यादा समय मोबाइल में मनोरंजनपूर्ण सामग्री देखने में बिता देता है. जब से व्हाट्सऐप और फेसबुक की शुरुआत हुई है तभी से हमारे देश की नई पीढ़ी इसी में अपना टाइम बरबाद करने में जुटी है. अब तो ऐसे कई और ऐप आ गए है.

कोई कमा रहा कोई गंवा रहा

लड़कियां कम से कम खूबसूरत दिखने के लिए पैसे कमाने के लिए जतन करती हैं भले ही वे फिर इंस्टाग्राम के लिए रील बनाएं या अपनी किसी और खूबी को इंटरनैट के जरीए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें, लड़कियां पैसा कमाने के लिए कम से कम इतनी मेहनत तो करती हैं और मोबाइल भी कम समय तक ही इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि संघर्ष से गुजरती इन लड़कियों में अपनेआप को साबित करने की और पैसा कमा कर अच्छी जिंदगी जीने की ललक होती है.

तभी ग्लैमर वर्ल्ड हो या मिलिट्री और एअरफोर्स हो, कई जगहों पर औरते मर्दों से आगे चल रही हैं क्योंकि जहां कई सारे लड़के मनोरंजन के लिए मोबाइल में घुसे रहते हैं, वहीं लड़कियां मेहनत कर के संघर्ष कर के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं.

सच बात तो यह है कि कोई भी टैक्नोलौजी जो देश के विकास के लिए बनाई गई है वह बुरी नहीं होती बशर्ते आप उस का इस्तेमाल सही तरीके से और सही कामों में करें. एक तरफ चाइना जहां हमारे देश में कोविड जैसी खतरनाक बीमारी फैला कर अपने देश में दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, वहीं हमारे देश के नवयुवक हिंदूमुसलमान जैसी नकारात्मक बातों का सोशल मीडिया पर प्रचार कर के देश को और खुद को कई साल पीछे ले जा रहे हैं और नकारात्मक विचारों का हिस्सा बन कर अपनेआप को भी बरबादी की ओर ले जा रहे हैं.

कहने का मतलब यही है कि आप मशीन और टैक्नोलौजी का फायदा उठाते हुए उसे अपना गुलाम बनाएं, उस का इस्तेमाल करें अपने फायदे के लिए न कि खुद मोबाइल और टैक्नोलौजी नामक मशीन का गुलाम बन जाएं, ऐसी टैक्नोलौजी पर निर्भर हो कर खुद ही जिंदा लाश बन के रह जाए.

अभी भी वक्त है मोबाइल और इंटरनैट की दुनिया से बाहर निकले और अपना भविष्य संवारने का औरआगे बढ़ने का.

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