Breakup के कारण मैं पूरी तरह टूट चुका हूं, मैं क्या करूं?

Breakup : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवक हूं. कालेज में मैं एक लड़की से प्यार करता था. लगता था कि वह भी हमारे रिश्ते को ले कर गंभीर है. पर कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही उस ने अपने घर वालों की पसंद के लड़के से शादी कर ली. उस की बेवफाई से मैं पूरी तरह टूट गया. बहुत चाहता हूं कि उस की यादों को दिल से निकाल दूं पर ऐसा हो नहीं पा रहा. जब भी उस की याद आती है मेरा किसी काम में दिल नहीं लगता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

जब किसी से प्यार करते हैं, तो उस की यादों को एकाएक भुला पाना बहुत ही मुश्किल होता है. पर जैसेजैसे समय बीतता है यादें भी धूमिल पड़ने लगती हैं. किसी को दिल से निकालना कठिन जरूर है पर नामुमकिन नहीं खासकर उस स्थिति में जब दूसरा शख्स बेवफा हो.

अपने को व्यस्त रखेंगे तो ऐसा करना आसान होगा. फिर कल को आप की भी शादी होगी. तब अतीत की यादें स्वत: विस्मृत हो जाएंगी.

समझें इशारे ताकि न मिले धोखा

भले ही आप एक नया रिश्ता शुरू कर रही हैं या फिर पहले से ही किसी रिश्ते में हैं और अपने प्रेमी को बहुत प्यार करती हैं, उस पर भरोसा करती हैं तो उसी भरोसे, प्यार और विश्वास की अपेक्षा आप उस से भी अवश्य करती होंगी. जब दो लोग एकदूसरे को पूरी ईमानदारी से चाहें तो जिंदगी बहुत खुशनुमा हो जाती है, लेकिन अगर दोनों में से एक भी स्वार्थपूर्ति और धोखा देने की राह पर चल निकलता है तो दूसरे साथी को समझने में देर नहीं करनी चाहिए.

अगर आप को भी पिछले कुछ दिनों से अपने साथी पर शक हो रहा है तो इन इशारों को समझें और सही निर्णय लें :

इग्नोर करना

कालेज में नजर पड़ने पर भी जब वह आप को इग्नोर करे और खाली पीरियड में आप के साथ टाइम स्पैंड करने के बजाय अपने दोस्तों के साथ हंसीमजाक में व्यस्त रहने लगे. आप के बारबार पास आने पर चिपकू कहे, तो समझ लीजिए अब बात आप की सैल्फ रिस्पैक्ट पर आ गई है. अब आप उस के पीछे भागना छोड़ दें और साथी के इग्नोरैंस को समझने की कोशिश करें तथा उस से थोड़ी दूरी बना लें, तब खुद ब खुद यह पता चल जाएगा कि आप का रिश्ता कितना मजबूत है.

डेट पर इंतजार करवाना

डेट फिक्स होने पर जो पहले आप का घंटों इंतजार करता था, आज आप के एक मिनट भी लेट होने पर झल्लाना शुरू कर दे. सिर्फ यही नहीं बल्कि जब पूरी सिचुएशन ही बदलने लगे और वह आप का नहीं बल्कि आप उस का इंतजार करने लगें तो समझ जाएं कि मामला गड़बड़ है.

झूठ बोलना

सच्चा प्यार विश्वास की नींव पर टिका होता है और वहां झूठ का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन अगर आप का प्रेमी आप से छोटीछोटी बातों में झूठ बोलता है, तो समझ लीजिए कि वह आप के और अपने रिश्ते के बारे में भी झूठ बोल रहा है. इस बारे में उस से खुल कर बात करें ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.

फोन करना कम कर देना

जहां पहले प्रेमी आप को दिन में कई बार कौल करता था और मना करने पर भी उसे आप की चिंता या आप से बात करने का मन होता था, वह अब कौल ही नहीं करता या बहुत कम करता है और बिजी होने का बहाना बनाता है. अगर आप कौल करती हैं तो घंटों उस का फोन बिजी रहता है, तो समझ लीजिए कि दाल में कुछ काला है.

डिमांड पूरी न करना

अब यह डिमांड फिजिकली भी हो सकती है और जनरल किसी बात को ले कर भी जैसे कि मूवी दिखाना, कोई नई ड्रैस दिलाना, किसी रैस्टोरैंट में खाना खिलाना आदि. पहले मुंह से बात निकलते ही बौयफ्रैंड उसे पूरा करने की कोशिश करता था, लेकिन अब चिढ़ कर वह साफ इनकार कर देता है.

पैसे की तरफ भागना

अगर प्रेमी पैसे को प्यार से ज्यादा अहमियत देने लगे और बातबात पर पैसे की बात करे, यहां तक कि अमीर युवतियों पर लाइन मारने लगे तो समझ लीजिए कि आप का नाता ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है.

मिलने से कतराना

पहले आप से रोज मिलने की जिद करने वाला पार्टनर जब खुद से मिलने की बात करने से भी कतराने लगे और आप के कहने पर भी मिलने की इच्छा न जताए तो यह समझें कि उसे अब आप में इंट्रस्ट नहीं है.

किसी और युवती के साथ घूमना

अगर आप ने अपने बौयफ्रैंड को कई बार किसी और युवती के साथ घूमते देखा है, तो उसे हलके में न लें. भले ही वह लाख दलीलें दे कि वह सिर्फ उस की अच्छी दोस्त है और उस से किसी काम से मिला था, लेकिन आप उस पर पूरी तरह से विश्वास न करें, बल्कि उस पर नजर रखें. अगर शक सही निकले तो समय रहते बौयफ्रैंड के धोखे और उस की हरकतों से आप को सचेत होना होगा.

फोन हिस्टरी डिलीट होना

अगर प्रेमी के कौल रिकौर्ड, मैसेज रिकौर्ड आदि बिलकुल क्लीन रहते हैं और वह आप को अपना फोन देने से भी हिचकिचाने लगा है, तो समझ लें कुछ गड़बड़ जरूर है.

खर्च करने से बचें

पहले आप पर हजारों रुपए लुटा देने वाला प्रेमी अब हर बार छुट्टे न होने के बहाने बना कर बिल आप से भरवाए, आप पर खर्च करना भी बंद कर दे. तो समझ लें कि वह आप को अपनी लाइफ का इतना अहम हिस्सा नहीं समझता.

तारीफ करना बंद कर दे

क्या वह पहले हमेशा आप की तारीफ किया करता था और अब अचानक उस ने आप की तारीफ करना बंद कर दिया, बल्कि अब उसे आप के हर काम में नुक्स नजर आने लगा है? वह आप की किसी भी बात की तारीफ न करता हो, तो समझ लीजिए कि उस ने ये बातें किसी और के लिए बचा कर रख ली हैं.

शादी के बारे में बात करने से बचे

जब भी आप प्रेमी से अपनी और उस की शादी के बारे में बात करें तो उस का टालमटोल करना और नाराज होना यह दर्शाता है कि वह आप को सीरियसली नहीं ले रहा है.

धोखे की आशंका हो तो…

जैसे ही आप को पता चले कि आप का प्रेमी आप को धोखा दे रहा है या फिर चीटिंग कर रहा है तो उसे छोड़ने में ज्यादा वक्त न लगाएं. वह आप को छोड़े इस से पहले ही आप उसे छोड़ दें ताकि आप की सैल्फ  रिस्पैक्ट बनी रहे.

–       ऐसा करने से पहले अपने लव लैटर्स, कार्ड्स और जरूरी सामान उस से वापस ले लें.

–       प्रेमी का साथ छूटने पर डिप्रैशन में जाने के बजाय इस बात की खुशी मनाएं कि चलो, अच्छा है ऐसे गलत युवक से आप का पीछा जल्दी ही छूट गया.

–       अब अपना मन पढ़ाई में लगाएं और उसे भूलने की कोशिश करें. इस से अच्छे युवक आप को मिल जाएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Insurance में हो रहे बदलाव नई पीढ़ी की महिलाओं की जरूरतों को कैसे पूरा कर रहे हैं ?

Insurance : भारत में बीमा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसकी पहुंच अब भी काफी सीमित है, खासकर महिलाओं के बीच. भारत में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है, लेकिन पुरूषों की तुलना में इंश्योरर्ड महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है. हालांकि महिलाएं अब ज्यादा आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं, लेकिन उन्हें अभी भी पूरी वित्तीय सुरक्षा पाने के लिए लंबा सफर तय करना है. परंपरागत रूप से, बीमा क्षेत्र एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है, इसलिए महिलाओं के लिए खास योजनाओं की कमी, जागरूकता की कमी और महंगे प्रीमियम जैसी दिक्कतों ने उन्हें बीमा लेने से पीछे रखा है.

मैटरनिटी बेनिफिट और क्रिटिकल इलनेस कवर सुविधाए-

सिद्धार्थ सिंघल, हेड-हेल्थ इंश्योरेंस, पौलिसीबाजार डौट कौम का कहना है कि अब स्थिति बदल रही है क्योंकि इंश्योरेंस इंडस्ट्री अब ऐसे नए उत्पादों को पेश कर रही है जो महिला ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. इंश्योरेंस कंपनी द्वारा महिलाओं की खास स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए मैटरनिटी बेनिफिट और क्रिटिकल इलनेस कवर जैसी सुविधाओं को पेश किया जा रहा है. इन सुविधाओं से बीमा महिलाओं के लिए और अधिक सुलभ, फ्लेक्सिबल और फायदेमंद बन रहा है. यहां बताया गया है कि नए उत्पाद कैसे महिलाओं के लिए बीमा को और अधिक उपयोगी बना रहे हैं. होने वाले माता-पिता के लिए सबसे कम वेटिंग पीरियड वाला मैटरनिटी इंश्योरेंस अधिकांश उपभोक्ताओं के लिए मैटरनिटी इंश्योरेसं लंबे समय से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है. पहले, हेल्थ इंश्योरेंस में मैटरनिटी कवरेज 2-4 साल तक के वेटिंग पीरियड के साथ आता था. जिससे यह परिवार की योजना बना रहे जोड़ों के लिए उपयोगी नहीं था. पौलिसी बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि 60% से अधिक जोड़े गर्भवती होने के बाद ही मैटरनिटी कवरेज खरीदते हैं. जिससे लंबे वेटिंग पीरियड की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है. इसे ध्यान में रखते हुए, बीमाकर्ता अब कम से कम 3 महीने की वेटिंग पीरियड वाली मैटरनिटी पौलिसी पेश कर रहे हैं.

मैटरनिटी कवरेज का विकल्प-

इसका मतलब यह है कि गर्भवती जोड़े भी पता चलते ही मैटरनिटी कवरेज का विकल्प चुन सकते हैं. इन पॉलिसी में डिलीवरी के पहले और डिलीवरी के बाद का खर्च और नए बच्चे की देखभाल भी शामिल होती है, जिससे मां और बच्चे दोनों को पूरी सुरक्षा मिलती है. कम वेटिंग पीरियड होने से अब ज्यादा लोग अपने परिवार को आसानी से सुरक्षित कर सकते हैं, चाहे उन्होंने पहले इस बारे में न सोचा हो.

विशेष वित्तीय सुरक्षा 

महिलाओं की विशेष स्वास्थ्य जरूरतों के लिए क्रिटिकल इलनेस कवर महिलाओं को कई स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए विशेष वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता होती है. ब्रेस्ट, ओवेरियन और सर्वाइकल कैंसर की बढ़ती घटनाओं के साथ-साथ कई ऑटोइम्यून बीमारियां भी महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती हैं. इसे ध्यान में रखते हुए, बीमा कंपनियां अब अपनी गंभीर बीमारी कवर योजनाओं का विस्तार कर रही हैं, जिससे जेंडर स्पेसिफिक बीमारियों को कवर किया जा सके और सुनिश्चित किया जा सके की गंभीर बीमारियों के इलाज के स्थिति में भी महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो.

जरूरी मेडिकल टेस्ट और एक पर्सनल हेल्थकेयर मैनेजर जैसी सुविधाएं 

अब बीमा कंपनियां महिलाओं को खास फायदे दे रही हैं. वे महिला पौलिसी धारकों को विशेष छूट और पॉलिसी में गर्ल चाइल्ड को शामिल करने वालों को अतिरिक्त बचत का लाभ दे रही हैं.  कुछ योजनाएं सिर्फ सामान्य कवरेज तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें महिलाओं की सेहत से जुड़ी खास जरूरतों का भी ध्यान रखा गया है. इनमें गायनोकौलोजिस्ट कंसल्टेशन, कैंसर की जांच, जरूरी मेडिकल टेस्ट और एक पर्सनल हेल्थकेयर मैनेजर जैसी सुविधाएं शामिल हैं, ताकि महिलाओं को पूरी तरह से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें.

इलाज के लिए एकमुश्त राशि

भारतीय महिलाओं में होने वाले सभी कैंसरों में से 25% से अधिक का कारण ब्रेस्ट कैंसर हैं. बेस्ट कैंसर के स्टेज एवं परेशानी के आधार पर इलाज की लागत ₹5 लाख से ₹20 लाख तक हो सकती है. इसी तरह का वित्तीय बोझ का सामना ओवेरियन और सर्वाइकल  कैंसर होने पर भी होता है, जिसके लिए सर्जरी, कीमोथेरेपी और टार्गेटिड थेरेपी सहित लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है. क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी इन बीमारियों को कवर करती है, जिससे पॉलिसीधारकों को इलाज के लिए एकमुश्त राशि मिलती है. इससे वे बढ़ते मेडिकल खर्च की चिंता किए बिना अपनी सेहत पर ध्यान दे सकते हैं.

मौड्युलर प्लान्स और अधिक सामर्थ्य

हेल्थ इंश्योरेंस सभी के लिए एक जैसे नहीं हो सकता, खासकर जब बात महिलाओं की अलग-अलग जरूरतों की हो. आज की महिलाएं अपने निजी और प्रोफेशनल दोनो लाइफ को संभाल रही हैं, इसलिए उन्हें ऐसी इंश्योरेंस पौलिसी की आवश्यकता है जो उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करे. इन जरूरतों को पूरा करने के लिए मौड्यूलर इंश्योरेंस पौलिसी है- ये योजनाएं फ्लेक्सिबल हैं और महिलाओं को उनकी जीवनशैली और वित्तीय स्थिति के आधार पर बीमा कवरेज चुनने की सुविधा प्रदान करती है. इसमे कवरेज को व्यक्ति की प्रीमियम भुगतान क्षमता के अनुसार बदला जा सकता है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति शेयर्ड कमरे का विकल्प चुन सकता है या पसंदीदा नेटवर्क अस्पतालों को चुन सकता है या प्रीमियम को कम करने के अधिक डिडक्टिबल राशि का विकल्प भी चुन सकता है.

रिनुअल्स पर 100% तक का डिस्काउंट

मेडिकल खर्चो को कवर करने के अलावा, इंश्योरेंस पौलिसियां अब वेलनेस बेनिफिट भी प्रदान करती हैं जिससे रिनुअल्स पर 100% तक का डिस्काउंट मिल सकता है.  जो लोग अपने स्वास्थ्य का अच्छे से ध्यान रखते हैं, वे सिर्फ रिस्क कवरेज ही नहीं बल्कि लंबे समय तक कम प्रीमियम का लाभ भी उठा सकते हैं. यह न सिर्फ बीमाधारकों बल्कि बीमा कंपनियों के लिए भी फायदेमंद साबित होता है.

कस्टमाइज्ड कवरेज

बीमा तेजी से एक व्यक्तिगत वित्तीय सुरक्षा कवच के रूप में विकसित हो रहा है. महिलाओं के लिए, यह बदलाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे लंबी उम्र, मैटरिनिटी और अलगअलग स्वास्थ्य मुश्किलों का सामना करती हैं. बीमा कंपनियों द्वारा कस्टमाइज्ड कवरेज की पेशकश, महिलाओं की वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक अच्छा कदम है. जैसे-जैसे जागरूकता और नवाचार बढ़ रहा है, आने वाले समय में भारत में महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी, बल्कि पूरी तरह से वित्तीय रूप से सुरक्षित भी रहेंगी.

Hindi Kahaniyan : क्या यही प्यार है – क्यों दीपाली की खुशहाल गृहस्थी हुई बर्बाद?

Hindi Kahaniyan : दीपाली की शादी में कोई अड़चन नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह बहुत सुंदर थी. किंतु उस के मातापिता को न जाने क्यों कोई लड़का जाति, समाज में जंचता नहीं था. खूबसूरत दीपाली की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. पिता कालेज में प्रिंसिपल थे. किसी भी रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे थे. अंतत: हार कर दीपाली ने एक गुजराती युवक अरुण के साथ अपने प्रेम की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं. दीपाली और अरुण का प्रेम 3-4 साल चला. मृत्युशैया पर पड़े प्रिंसिपल साहब ने मजबूरन अपनी सुंदर बेटी को प्रेम विवाह की इजाजत दे दी.

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दीपाली के विवाह बाद उस के पिता की मौत हो गई. उधर अरुण एक सच्चे प्रेमी की तरह दीपाली को पत्नी का सम्मान देते हुए अपने परिवार में अपनी मां के पास ले गया. घर का व्यवसाय था. आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अरुण दीपाली को जीजान से चाहता था. किंतु दीपाली को अरुण की मां कांतिबेन का स्वभाव नहीं सुहाता था.  कांतिबेन अपनी पारिवारिक परंपराओं का पालन करती थीं जैसे सिर पर पल्लू डालना आदि. वे दीपाली को जबतब टोक देतीं कि वह हाथपांव ढक कर रखे, सिर पर आंचल डाले आदि. यह सब गुजराती परिवार में बहू का सामान्य आचरण था. किंतु दीपाली को यह कतई पसंद नहीं था.

इसी वजह से इस अंतर्जातीय विवाह में दरार पड़ने लगी. शुरू में अरुण ने दीपाली को समझाबुझा कर शांत रखने की मनुहार की. किंतु अरुण की मानमनौअल तब बेकार हो गई जब दीपाली इस टोकाटाकी से बेहद चिढ़ गई और अरुण के बहुत समझाने पर भी मायके चली गई. दीपाली मायके गई तो उस की मां माया ने उसे समझाने के बदले अपनी दूसरी बेटियों संग भड़काना शुरू कर दिया.

दीपाली की बहन राजश्री ने तो आग में घी डालने का काम कर दिया. वैसे भी राजश्री की आदत सब के घर मीनमेख निकाल कर कलह कराने की थी. दीपाली के विवाह को भी उस ने नहीं छोड़ा. सभी बहनों को वह सास के प्रति कठोरता बरतने की शिक्षा देने लगी.  मां और बहन के बहकावे में आ कर दीपाली ने अपने पति अरुण के प्यार से मुख मोड़ लिया. बेचारा अरुण कितनी बार आता, रूठी पत्नी को मनाता पर न तो दीपाली टस से मस हुई, न उस की मां माया. मायके में भाभी सारा काम कर लेती, दीपाली मां के साथ घूमतीफिरती रहती. रात को खापी कर सो जाती.

घरेलू कामकाज न होने तथा खाने और बेफिक्री से सोने से दीपाली का शरीर  काफी भर गया. अब वह सुकोमल की जगह मोटी सी बन गई. हालांकि आकर्षक वह अब भी थी. पर पति के प्रेम को ठुकराने से उस के सौंदर्य में वह मासूमियत नहीं छलकती.  दीपाली अपने मायके में खानेसोने में दिन गुजारने में मस्त थी तो दूसरी तरफ अरुण अपनी पत्नी के लिए हमेशा उदास रहता. कांतिबेन भी चाहती थीं कि उन की बहू घर लौट आए तो बेटे का परिवार आगे बढ़े और वे भी बच्चों को खेलाएं.  मगर फिर दीपाली अपनी ससुराल नहीं गई. अरुण उस से पहले मिलने आता रहा, पर बाद में फोन तक ही शादी सिमट गई. अकेले रहते हुए भी अरुण ने न कहीं चक्कर चलाया और न ही दीपाली ने उसे तलाक दिया. वह अरुण की जिंदगी को अधर में लटकाए रही.

अरुण मनातेमनाते थक गया. दिल में दीपाली के लिए सच्ची चाहत थी. जिंदगी ऐसे ही खाली व अकेले कटने लगी. वह नहीं सोच सका कि दीपाली से अलग भी दुनिया हो सकती है. पत्नी से दूर रह कर वह खोयाखोया सा रहता था. एक दिन न जाने बाइक चलाते किन खयालों में गुम था कि एक ट्रक से टकरा गया. माथे पर गहरी चोट लगी.  कांतिबेन व उस के पति ने दीपाली को खबर भेजी. मगर न दीपाली ने और न ही उसकी मां ने अस्पताल जा कर अरुण को देखना उचित समझा. उलटे इस नाजुक मौके पर दीपाली की मां ने अरुण के पिता से सौदेबाजी शुरू कर दी.  उधर अरुण अस्पताल में इलाज करा रहा था, इधर दीपाली की मां ने कहला भेजा कि दीपाली अब उस की सास के संग हरगिज नहीं रहेगी. उसे एक नई जगह, नए क्वार्टर में बसाया जाए.

अपने घायल बेटे के सुख के लिए उस के पिता नारायण ने यह शर्त भी कबूल कर ली. किंतु जख्मी बेटे की तीमारदारी में वे ऐसे व्यस्त रहे कि अलग से घरगृहस्थी से मुक्त सजासजाया कमरा बेटे के लिए अरेंज नहीं कर सके.  इसी तरह कुछ दिन और निकल गए, पर अपने कमजोर हो चुके जख्मी पति को देखने दीपाली अस्पताल नहीं आई. वह बस नए कमरे की मांग पर अड़ी रही. मानो उसे अपने पति से ज्यादा परवाह अपने लिए अलग कमरे की थी.  अरुण को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर उस के पिता घर ले आए. फिर बेटे की नई गृहस्थी बसाने के लिए नए कमरे की व्यवस्था में जुट गए.  किंतु घायल अरुण के दिल पर दीपाली की इस स्वार्थी शर्त का और बुरा प्रभाव पड़ा. वह अब और ज्यादा गुमसुम रहने लगा. पहले की भांति वह रूठी पत्नी को मनाने के लिए अब फोन भी नहीं करता. न ही दीपाली अपनी अकड़ छोड़ कर पति से बात करती.

इसी निराशा ने अरुण को भीतर से तोड़ दिया. वह जैसे समझ गया कि जिसे उस ने इतना जीजान से चाहा, वह गर ब्याहता हो कर भी उसे जख्मी हालत में देखने नहीं आई, तो उस के संग आगे की जिंदगी व्यतीत करने की क्या अपेक्षा करनी. अरुण के सारे स्वप्न झुलस गए. जो प्रेम का भाव उसे जीवन जीने की ऊर्जा देता था, वह अब लुप्त हो गया था. वह खाली सा महसूस करता.  इसी हालत में एक रात अरुण उठा. सिर पर अभी भी पट्टी बंधी थी. मां दूसरे कमरे में सोई थीं. पत्नी से फोन पर बात होती नहीं थी. दीपाली से अब उसे प्रेम की आशा नहीं थी. उस ने देख लिया था कि जिसे वह अभी तक चाह रहा था, वह तो पत्थर की एक मूर्त भर थी.  बेखयाली में, बेचैनी में अरुण उठा और जीने की तरफ बढ़ा और फिर चंद सैकंडों में सीढि़यां लुढ़कता चला गया. सीढि़यों के नीचे पहुंचने तक उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. जिस जख्मी पति को दीपाली देखने नहीं आई थी, वही पति की मौत पर उस के मांबाप से पति का हिस्सा मांगने अपनी मां, बहन, भाई व जीजा को ले कर आ गई.

जिस ने भी दीपाली को देखा वह समझ गया कि इस मतलबपरस्त लड़की ने एक विजातीय लड़के को झूठे प्रेमजाल में फंसा उस का जीवन बरबाद कर उसे मरने को मजबूर कर दिया. वही अब सासससुर से अपने पति का हिस्सा मांग रही है. तो क्या यही है प्यार? क्या यही विवाह का हश्र है?

Hindi Moral Tales : सिर्फ अफसोस – सीरत की जगह सूरत देखने वाले शैलेश का क्या हुआ अंजाम?

Hindi Moral Tales : शैलेश यही कुछ 4 दिन के लिए मसूरी में अपनी कंपनी के काम के लिए आया था. काम 3 दिन में ही निबट गया तो सोचा कि क्यों न आखिरी दिन मसूरी की हसीन वादियों को आंखों में समेट लिया जाए और निकल पड़ा अपने होटल से. होटल से निकल कर उस ने फोन से औनलाइन ही कैब बुक कर दी और निकल गया मसूरी की सुंदरता को निहारने. कैब का ड्राइवर मसूरी का ही निवासी था, ऐसा उस की भाषा से लग रहा था. शायद इसीलिए उसे शैलेश को मसूरी घुमाने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा था.

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वह उन रास्तों से अच्छी तरह परिचित था जो उस की यात्रा को तीव्र और आरामदायक बनाएंगे. कैब का ड्राइवर पहाड़ों में रहने वाला सीधासाधा पहाड़ी व्यक्ति था. वह बिना अपना फायदा या नुकसान देखे खुद भी शैलेश के साथ निकल पड़ा और शैलेश को हर जगह की जानकारी पूरे विस्तार से देने लगा था. अब शैलेश भी ड्राइवर के साथ खुल चुका था. शैलेश ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, आप का नाम क्या है?’’

‘‘मेरा नाम महिंदर,’’ ड्राइवर ने बताया.

अब दोनों मानो अच्छे मित्र बन गए हों. महिंदर ने शैलेश को सारी जानीमानी जगहों पर घुमाया. समय कम था, इसीलिए शैलेश हर जगह नहीं घूम सका. मौसम काफी खुशनुमा था पर शैलेश को नहीं पता था कि मसूरी में मौसम को करवट बदलते देर नहीं लगती. देखते ही देखते  झमा झम बारिश होने लगी. महिंदर को इन सब की आदत थी, उस ने शैलेश से कहा, ’’घबराइए मत साहब, यहां आइए इस होटल में.’’

शैलेश ने देखा कि महिंदर जिस को होटल बोल रहा था वह असल में एक ढाबा था. शैलेश को महिंदर के इस भोलेपन पर थोड़ी हंसी आई पर उस ने अपनी हंसी को होंठों पर नहीं आने दिया क्योंकि वह ढाबा भी प्रकृति की गोद में इतना सुंदर लग रहा था कि पूछो मत.

शैलेश ने महिंदर से कहा, ’’सच में भाईसाहब, इस के आगे तो हमारी दिल्ली के बड़ेबड़े पांचसितारा वाले होटल भी फीके हैं.’’

ठंडा मौसम था. शैलेश थोड़ा सिकुड़ सा रहा था. महिंदर सम झ गया था कि शैलेश को इस ठंड की आदत नहीं है. उस ने अपने और शैलेश के लिए 2 गरमागरम कौफी का आर्डर दे दिया.

महिंदर ने अब शैलेश की चुटकी लेना शुरू कर दिया, ‘‘और भाईसाहब, शादीवादी हुई कि नहीं अभी तक?’’

‘‘क्या लगता है?’’ शैलेश ने प्रश्न के बदले प्रश्न किया.

‘‘लगते तो धोखा खाए आशिक हो.’’

शैलेश ने महिंदर की बात का बुरा नहीं माना, बल्कि धीरे से हंस दिया.

शैलेश के चेहरे पर हंसी देख महिंदर तपाक से उस की तरफ उंगली दिखाता हुआ बोला, ‘‘है ना? सही बोला ना साब?’’

ढाबे के कर्मचारी ने उन के सामने उन की कौफियों के कप रख दिए और चलता बना.

महिंदर ने फिर उसी बात को छेड़ते हुए पूछा, ‘‘बताओ न साब, क्या किस्सा था वह.’’

शैलेश पहले तो थोड़ा  िझ झका, फिर अपना किस्सा सुनाने को तैयार हो गया.

शैलेश ने बताना शुरू किया, ‘‘उस वक्त मैं 11वीं जमात में दाखिल हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद 11वीं जमात में वह मेरा पहला दिन था. उस दिन कई न्यूकमर्स भी पहली बार स्कूल आए थे. उन्हीं में से एक थी रबीना. रबीना को पहली बार देख कर मेरे दिल में उस के लिए किसी प्रकार की कोई भावना तो नहीं उमड़ी पर धीरेधीरे हम दोनों में दोस्ती होनी शुरू हो गई और वह मु झे अपने बाकी दोस्तों से ज्यादा प्यारी भी हो गई. रबीना का बदन काफी गोरा था जो धूप में जाने से और गुलाबी हो उठता. उस के हाथों पर छोटेछोटे भूरे रंग के रोएं, बाल भी कहींकहीं से भूरे, भराकसा जिस्म, ऊपर से सजसंवर के उस का स्कूल में आना मु झे बड़ा आकर्षित करता था. रबीना के प्रति मेरी नजदीकियां बढ़ती चली जा रही थीं पर एक लड़की थी जो अकसर मेरे और रबीना के बीच आ जाती, वह थी संजना.’’

‘‘संजना कौन हैं साब?’’ जिज्ञासु महिंदर ने शैलेश से पूछा.

‘‘संजना तो वह थी जिस की बात मैं ने मानी होती तो आज पछताना नहीं पड़ता.’’

महिंदर अब और सतर्क हो कर किस्सा सुनने लगा.

‘‘रबीना तो अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी जिंदगी में आई थी पर संजना तो बचपन से ही मेरे दिल में बसती थी. संजना और मैं ने जब से पढ़ना शुरू किया तब से हम साथ ही थे. हमारे घर वाले भी एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. संजना मेरा पहला प्यार थी और मैं उस का. पर जब से रबीना मेरी जिंदगी में आई, मैं हर दिन रबीना के थोड़ा और पास आता गया और संजना से दूर होता गया. मु झे रबीना के नजदीक देख कक्षा के तमाम छात्र जलते थे. लड़कियों को रबीना से जलन होती और लड़कों को मु झ से. पर सब से ज्यादा कोई जलता था तो वह थी मेरी संजना. उस का जलना मु झे जब फुजूल का लगता था पर अब वाजिब लगता है. भला आप जिसे चाहते हों अगर वह आप के सामने ही किसी और का होने लगे तो इंसान का खून तो वैसे ही जल जाए. संजना मु झ से हमेशा कहती थी.’’

शैलेश की नजर बाहर गई, बारिश थम चुकी थी पर उस का किस्सा और उन की कौफी अभी आधी बची थी.

महिंदर ने पूछा, ‘‘क्या कहती थी?’’

शैलेश ने किस्सा चालू रखा, ‘‘संजना जब भी मु झ से ज्यादा चिढ़ जाती तो बोलती, ‘तुम भूलो मत वह एक मुसलमान है. तुम्हारा आगे एकसाथ कोई भविष्य नहीं है, काम तो मैं ही आऊंगी, इसीलिए संभल जाओ वरना बाद में बहुत पछताना पड़ेगा.’ पर रबीना के इश्क में मैं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, कुछ और दिखता ही नहीं था. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. मैं ने और रबीना ने एक ही कालेज में दाखिला लेने की पूरी तैयारी भी कर ली. पर 12वीं जमात के बाद संजना आगे क्या करेगी, न तो मैं ने कभी जानने की कोशिश की और न उस ने कभी बताने की.

देखते ही देखते समय बीतता गया. संजना का नंबर भी अब उस की यादों की तरह मेरे फोन से मिट गया. अब मेरी फोन की कौल हिस्ट्री में सिर्फ रबीना के नाम की ही एक लंबी लिस्ट होती और उस से घंटों बात करने का रिकौर्ड. हमारे इश्क के चर्चे पूरे कालेज में होने लगे और रबीना भी मु झे उतना ही पसंद करती थी जितना मैं उसे.

‘‘न तो मैं ने कभी सोचा कि वह पराए धर्म की है और न उस ने. स्कूल के समय में तो मैं रबीना के जिस्म की तरफ आकर्षित था. उस की खूबसूरती के लिए उसे चाहता था पर अब मैं उसे दिल से चाहने लगा था. मैं ने कालेज में होस्टल में रहने के बावजूद कभी रबीना से जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाना चाहा. अब मु झे पता चला दिल से प्यार करना किसे कहते हैं. मु झे अब रबीना कैसे भी स्वीकार थी. चाहे वह पराए धर्म की हो या कभी उस की सुंदरता चली भी जाए तो भी मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता था.’’

शैलेश किस्सा बीच में रोक बाहर देखने लगा. मौसम फिर करवट बदल रहा था. हलकीहलकी बूंदाबांदी फिर शुरू हो गई.

शैलेश फिर अपने अधूरे किस्से पर वापस आया और महिंदर से पूछा, ‘‘हां, तो मैं कहां पर था.’’

‘‘आप रबीना को दिल से चाहने लगे थे,’’ महिंदर ने याद दिलाया.

‘‘हां, अब हम एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते थे, पर अब एक सब से बड़ी अड़चन थी जिसे हम हमेशा से नजरअंदाज करते रहे थे. वह थी हमारी अलगअलग कौमें. चलो और कोई बिरादरी या जात होती तो चलता पर एक हिंदू और मुसलिम की जात को हमारा समाज हमेशा से एकदूसरे का दुश्मन सम झता है. हमें अच्छी तरह से मालूम था कि न तो मेरे घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे और न ही रबीना के. मैं ने रबीना से कहा था कि ‘तुम हिंदू हो जाओ न.’

‘‘तब उस ने मु झ से धीरे से कहा, ‘तुम मुसलमान हो जाओ. मैं अपने अम्मीअब्बा की इकलौती हूं. मैं हिंदू हो गई तो उन का क्या होगा.’

‘‘मैं ने कहा, ‘ऐसे तो मैं भी इकलौता हूं अपने मांबाप का और तुम सम झती क्यों नहीं, हिंदू धर्म एक शुद्ध और सात्विक धर्म है और तुम एक बार हिंदू बन गई तो मैं अपने मांबाप को मना ही लूंगा.’

‘‘‘और मेरे अम्मीअब्बा का क्या? अरे, इकलौती बेटी के लिए कितने सपने देखते हैं. उस के वालिद पता है? एक वालिद उस के लिए अच्छा शौहर ढूंढ़ने के सपने देखते हैं, उस के निकाह के सपने देखते हैं, उस के लिए अपनी सारी जमापूंजी लगा देते हैं और बदले में सिर्फ समाज के सामने इज्जत से उठी नाक चाहते हैं जो मेरे हिंदू बनने पर शर्म से कट जाएगी,’ रबीना ने भी अपना पक्ष साफसाफ मेरे सामने रख दिया.

‘‘‘और अगर मैं मुसलमान बन गया तो मेरे मांबाप का तो सिर गर्व से उठ जाएगा न?’ मैं ने भी गरम दिमाग में बोल दिया पर अगले ही पल लगा कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.

‘‘वह उठ कर चली गई. मु झे लगा कि अभी गुस्सा है, जब शांत हो जाएगी, फिर आ जाएगी मेरे पास. पर मु झे क्या पता था कि वह मु झ से वास्ता ही छोड़ देगी और इतनी आसानी से मु झे भुला देगी. स्कूल के समय में जिस तरह रबीना के पीछे मरने वालों की कोई कमी नहीं थी उसी प्रकार कालेज में भी लड़के रबीना के प्रति आकर्षित रहते. मु झ से मनमुटाव होने के बाद उस ने अपना नया साथी ढूंढ़ लिया जो उसी की कौम का था और हमारे ही कालेज का था. कालेज भी अब खत्म हो चुका था और हमारा एकदूसरे से वास्ता भी. मैं ने कई महीनों तक उस को सोशल मीडिया पर मैसेज करने की कोशिश की पर हर जगह से खुद को ब्लौक पाया. मेरा नंबर उस ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया. अब मेरे कानों में संजना की उस दिन वाली बात गूंजने लगी, ‘काम तो मैं ही आऊंगी.’ कुछ दिन उदास रहा और खुद को यही तसल्ली देता रहा कि वह तो वैसे भी मुसलिम थी, चली गई तो क्या हुआ, पर मैं ने अपने मांबाप को तो नहीं छोड़ा न.

‘‘मु झे आज सम झ में आया कि जिसे तुम चाहो अगर वह तुम्हारे सामने ही किसी और की हो जाए तो कैसा लगता है, और कुछ ऐसा ही लगता होगा मेरी संजना को उस वक्त. मैं ने तय किया कि फिर संजना का हाथ पकड़ं ूगा. पर मन में ही विचार किया कि किस मुहं से जाऊंगा उस के पास? क्या कहूंगा उस से कि क्या हुआ मेरे साथ और मान लो कह भी दिया तो क्या वह फिर से स्वीकार करेगी मु झे?

‘‘मैं ने अपना स्वाभिमान छोड़ कर सोच लिया कि जो कुछ हुआ सब बता दूंगा उसे, उसे ही जीत जाने दूंगा. अगर अपनेआप को गलत साबित कर के मैं फिर उस का हो जाऊं तो क्या बुराई है? पर उसे ढूंढ़ने पर पता चला कि अब वह दिल्ली में नहीं रहती. सारे सोशल मीडिया को छान मारा पर वह वहां पर भी कहीं नहीं मिली. फिर हताश हो कर अपनी जिंदगी को रुकने नहीं दिया बल्कि एक कंपनी में जौब कर लिया. और संजना का मिलना न मिलना प्रकृति के ऊपर छोड़ दिया.’’

‘‘फिर क्या हुआ साब?’’ महिंदर सुनना चाहता था कि आगे क्या हुआ.

‘‘फिर क्या होगा? जिंदगी चल ही रही है. आज नहीं तो कल वह मिल जाएगी, अगर न भी मिली तो भी सम झ लूंगा कि मेरी ही गलती की सजा है जो उस वक्त उस की कद्र नहीं कर पाया.’’

शैलेश ने बाहर देखा, मौसम की मार और जोर से पड़ने लगी और जिस तरह से वह और महिंदर मौसम की मार से बचने के लिए ढाबे में घुसे थे उसी तरह और पर्यटक भी ढाबे के अंदर पनाह लेने लगे. ढाबे का कर्मचारी फटाफट अपनी सारी टेबलों पर कपड़ा मारने लगा और उन से बैठने को कहने लगा.

तभी शैलेश की नजर एक नौजवान औरत पर पड़ी जो उसी बरसात से बचते हुए ढाबे में आई थी. उस औरत को देख शैलेश की आंखें उस पर गड़ी की गड़़ी रह गईं. मानो दिमाग पर जोर दे कर कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

शैलेश को पराई औरत को ऐसे घूरते देख महिंदर बोला, ‘‘अरे साब, ऐसे मत देखो वरना बिना बात में दोनों को खुराक मिल जाएगी अभी.’’

‘‘क्यों?’’ शैलेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘दिखता नहीं क्या, नईनई शादी हुई है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘अरे साब, आधे हाथ चूडि़यों से भरे हैं और माथे पे सिंदूर नहीं दिखता क्या?’’ महिंदर भोलेपन में फिर से बोला, ‘‘कोई बात नहीं साब, आप को कैसे पता होगा, पर मु झे सब पता है नईनई शादी के बाद लड़कियां ऐसे ही फैशन करती हैं. मेरी वाली भी करती थी न,’’ कह कर महिंदर शरमा गया.

शैलेश अनबना सा रह गया मानो महिंदर की बात वह मानना नहीं चाहता था.

‘‘अरे क्या हुआ साब? जानते हो क्या इसे?’’ महिंदर ने पूछा.

‘‘अरे यही तो मेरी संजना है. पर यह शादी और मसूरी का क्या चक्कर?’’ संजना अब पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. उस का जिस्म भी भर गया था, चेहरे पर ऐसी चमक मानो जिंदगी में कोई चिंता ही न हो. पर संजना के माथे का सिंदूर और कलाइयों पर चूडि़यां शैलेश को अंदर से खाए जा रही थीं. कुछ सम झ में भी नहीं आ रहा था कि वह यहां कैसे.

शैलेश अपनी टेबल से उठ खड़ा हुआ और जा कर संजना के सामने अचानक से प्रकट हो गया. दोनों एकदूसरे को मसूरी में देख चौंक गए. उन्होंने ऐसा इत्तफाक सिर्फ कहानियों और फिल्मों में ही देखा था.

संजना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम? और यहां?’’

‘‘मैं तो काम से आया था कल निकल जाऊंगा, लेकिन तुम यहां कैसे?’’ शैलेश ने पूछा.

‘‘मेरी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है,’’ संजना ने एक नौजवान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इन्होंने ही प्लान बनाया था हमारा हनीमून मसूरी में ही मनेगा.’’

संजना ने आगे बड़े ही मजाकिया लहजे में पूछा मानो उसे सब पता हो, ‘‘और अपना सुनाओ कैसी चल रही है तुम्हारी और रबीना की जिंदगी, शादीवादी हुई?’’ यह कह कर संजना मुसकरा गई.

बरसात फिर से थम गई. शैलेश इस से पहले कुछ बोलता, संजना के पति ने उसे इशारा कर जल्दी से चलने को कहा. संजना ने भी जवाब सुने बिना ही शैलेश को अलविदा कर दिया और आगे बढ़ गई. संजना ने पीछे मुड़ कर शैलेश को देखा और बड़ी ही बेरहमी से कहा, ‘‘क्यों, आना पड़ा न मेरे ही पास.’’

भोले महिंदर ने शैलेश को दिलासा दिलाते हुए उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘चलो साब, वरना फिर बारिश शुरू हो जाएगी, वापस भी तो जाना है न.’’

शैलेश दूर जाती संजना को देख रहा था. वक्त उस के हाथ से निकल चुका था. अब कभी वापस नहीं आएगा.

Latest Hindi Stories : अपने घर में – सास-बहू की जोड़ी

Latest Hindi Stories : लंच के समय स्कूल के गैस्टरूम में बैठा सागर बेसब्री से अपनी दोनों बेटियों का इंतजार कर रहा था. आज वह उन्हें अपनी होने वाली पत्नी श्वेता से मिलवाना चाहता था. कल वह श्वेता से शादी करने वाला था.

वह श्वेता की तरफ प्यारभरी नजरों से देखने लगा. उसे श्वेता बहुत ही सुलझी हुई और खूबसूरत लगती थी. श्वेता के लंबे स्ट्रेट बाल, आंखों में शरारत, दूध सा गोरा रंग और चालढाल तथा बातव्यवहार में झलकता आत्मविश्वास. श्वेता के आगे नीरजा उसे बहुत साधारण लगती थी. वह एक घरेलू महिला थी.

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नीरजा से सागर की अर्रेंज मैरिज हुई थी. शुरूशुरू में सागर नीरजा से भी प्यार करता था. पर सागर की महत्त्वाकांक्षाएं काफी ऊंची थीं. उस ने अपने कैरियर में तेजी से छलांग मारी. वह आगे बढ़ता गया और नीरजा पीछे छूटती गई.

सागर ने शहर बदला, नौकरी बदली और इस के साथ ही उस की पसंद भी बदल गई. नई कंपनी में उसे श्वेता का साथ मिला. तब उसे समझ आया कि उसे तो एक बला की खूबसूरत लड़की अपना जीवनसाथी बनाने को आतुर है और कहां वह गंवार( उस की नजरों में) नीरजा के साथ बंधा पड़ा है. बस, यहीं से उस का रवैया नीरजा के प्रति बदल गया था और एक साल के अंदर ही उस ने खुद को नीरजा से आजाद कर लिया था. पर वह अपनी दोनों बेटियों के मोह से आजाद नहीं हो सका था. दोनों बेटियों में अभी भी उस की जान बसती थी.

उस ने श्वेता को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था और अब दोनों कोर्ट मैरिज कर हमेशा के लिए एकदूसरे के होने वाले थे. पर इस से पहले श्वेता ने ही इच्छा जताई थी कि वह उस की बेटियों से मिलना चाहती है. इसलिए आज दोनों बच्चियों से मिलने उन के स्कूल आए थे. सागर अकसर स्कूल में ही अपनी बेटियों से मिला करता था.

तभी 4 नन्हीनन्ही आंखों ने दरवाजे से अंदर झांका, तो सागर दौड़ कर उन के पास पहुंचा और उन्हें सीने से लगा लिया. 10 साल की मिनी थोड़ी समझदार हो चुकी थी. जब कि 6 साल की गुड़िया अभी नादान थी. सागर ने उन दोनों को श्वेता से मिलवाते हुए कहा, “देखो बच्चो, आज मैं आप को किन से मिलवाने वाला हूं?”

“ये कौन हैं, इन के बाल कितने सुंदर है?” गुड़िया ने पूछा तो सागर ने गर्व से श्वेता की तरफ देखा और बोला, “बेटी, ये आप की मम्मी हैं. कल से यर आप की नई मम्मी कहलाएंगी. कल ये आप के पापा की पत्नी बन जाएंगी.”

श्वेता ने प्यार से बच्चों की तरफ हाथ बढ़ाया, तो थोड़ा पीछे हटती हुई गुड़िया ने पूछा, “पर पापा, हमारी मम्मी तो हमारे पास ही हैं. फिर नई मम्मी की क्या जरूरत?”

“पर बेटा, ये मम्मी ज्यादा अच्छी हैं. है न?”

“नो, नैवर. पापा, हमें नई मम्मी की कोई जरूरत नहीं. हमारी मम्मी बहुत अच्छी हैं. एंड यू नो पापा…” मिनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

“क्या बेटी, बताओ…”

“यू नो, आई हेट यू. आई हेट यू फौर दिस.” यह कह कर रोती हुई मिनी ने गुड़िया का हाथ थामा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.

श्वेता ने जल्दी से अपने बढ़े हुए हाथों को पीछे कर लिया. अपमान और क्षोभ से उस का चेहरा लाल हो उठा था. सागर की आंखें भी पलभर में उदास हो गईं. उसे लगा जैसे उस के दिल का एक बड़ा टुकड़ा आज टूट गया है. उस ने श्वेता की तरफ देखा और फिर आ कर निढाल सा कुरसी पर बैठ गया. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की अपनी बेटी उस से नफरत करने लगेगी.

श्वेता ने रूखी आवाज में कहा, “चलो सागर, यहां रुक कर कोई फायदा नहीं. तुम्हारी बेटियां मुझे नहीं अपनाएंगी. लगता है तुम्हारी पत्नी ने पहले से ही उन के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया है.”

सागर ने कुछ भी नहीं कहा. दोनों चुपचाप वापस चले गए.

इधर, नीरजा ने जब सुना कि उस का सागर दूसरी शादी करने वाला है तो वह और भी टूट गई. उस ने तुरंत अपनी सास कमला देवी को फोन लगाया, “मम्मी, कल आप का बेटा नई बहू ले कर आ रहा है. मुबारक हो, आप की जिंदगी में एक बार फिर बहू का सुख वापस आने वाला है.”

“चुप कर नीरजा, तेरे सिवा मेरी न कोई बहू है और न कभी होगी. मैं शरीर से भले ही यहां हूं पर मेरा दिल अब भी तेरे और तेरी दोनों बच्चियों के पास ही है. तू मेरी बेटी से बढ़ कर है. तेरी जगह कोई नहीं ले सकता, समझी पगली. और जानती है, तू मेरी बेटी कब बनी थी?”

“कब मम्मी?”

“उस रात जब मुझे तेज बुखार था. सागर ने मेरी तरफ देखा भी नहीं. पर तूने रातभर जाग कर मुझे ठंडी पट्टियां लगाई थीं. मेरी सेवा की थी. उसी रात मैं ने तुझे अपनी बेटी मान लिया था.”

“मम्मी, आप की जैसी मां पा कर मैं धन्य हो गई. आज मेरी मां जिंदा होतीं तो वे भी आप का प्यार देख कर…,” कहतेकहते वह रोने लगी तो सास ने टोका, “देख बेटी, मुझे मां कहा है न, फिर रोनेधोने की क्या जरूरत? हमेशा मुसकराती रह मेरी बच्ची. अपने बेटे पर तो मेरा काबू नहीं पर दुनिया की और किसी भी मुसीबत को तेरे पास भी नहीं फटकने दूंगी. जानती है यह बात?”

“जी मम्मी?”

“जब मेरे पति ने मुझे तलाक दिया था तब मेरे पास कोई नहीं था. मैं उन से कोई सवाल भी नहीं कर सकी थी. तेरे गम को मैं समझ सकती हूं. तलाक के बाद औरत मन से बिलकुल अकेली रह जाती है. पर तू जरा भी चिंता न कर. तेरे साथ हमेशा तेरी यह मां रहेगी तेरा मानसिक संबल बन कर.”

सास की बातें सुन रोतेरोते भी नीरजा के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. सास की बातों से उसे बहुत सुकून मिला. आज वह अकेली नहीं, बल्कि सास का सपोर्ट उस के साथ था.

नीरजा के अपने मांबाप पहले ही गुजर चुके थे. एक भाई था जो मुंबई में सैटल था. 3 बहने थीं जिन का घर इसी शहर में था. पर चारों भाईबहनों ने उस से कन्नी काट ली थी. ऐसे में तलाक के बाद उस का और उस की दोनों बच्चियों का संबल उस की सास ही थी और यह उस के लिए बहुत बड़ा सहारा था. जब भी वह परेशान होती या अकेला महसूस करती तो सास से बात कर लेती.

नीरजा ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली थी. सैटरडे, संडे उस की छुट्टी होती थी. उस दिन कमला देवी जरूर आतीं. उस के और अपनी पोतियों के साथ समय बितातीं. उन की हर समस्या का हल निकालतीं और फिर शाम तक अपने घर लौट जातीं.

इधर, दूसरी शादी के बाद जब भी सागर ने मिनी और गुड़िया से मिलना चाहा, तो मिनी ने साफ इनकार कर दिया. अब उसे अपने पापा से बात करना भी पसंद नहीं था. उस ने पापा के बिना जीना सीख लिया था और गुड़िया को भी सिखा दिया था. वह उस पापा को कभी माफ नहीं कर पाई जिस ने उस की सीधीसादी मां को छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ली थी.

वक्त इसी तरह निकलता गया. नई शादी से सागर को कोई संतान नहीं हुई थी. दिनोंदिन श्वेता के नखरे बढ़ते जा रहे थे. सागर का जीना मुहाल हो गया था. दोनों के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. श्वेता अकसर घर से बाहर निकल जाती. सागर भी देररात शराब पी कर घर लौटता.

कमला देवी यह सब देखसमझ रही थीं. पर वह अपने बेटे के स्वार्थी रवैये से भी अच्छी तरह परिचित थीं, इसलिए उन्हें बेटे पर तरस नहीं बल्कि गुस्सा आता था. कमला देवी को अकसर वह समय याद आता जब पति से तलाक के बाद उन की जिंदगी का एक ही मकसद था और वह था सागर को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना. इस के लिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगा दी थी. स्कूलटीचर की नौकरी करते हुए बेटे को ऊंची शिक्षा दिलाई, काबिल बनाया. मगर अब एहसास होने लगा था कि कितना भी काबिल बना लिया, वह रहा तो अपने बाप का बेटा ही जो बाप की तरह ही शराबी, स्वार्थी और बददिमाग निकला.

इधर कमला द्वारा नीरजा को अपनाने और हर जगह उस की तारीफ किए जाने की वजह से नातेरिश्तेदारों का व्यवहार भी नीरजा के प्रति काफी अच्छा बना रहा. सागर के चचेरेममेरे भाईबहनों के घर कोई भी आयोजन होता तो नीरजा और उस की बेटियों को परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य की तरह आमंत्रित किया जाता और उन की पूरी आवभगत की जाती. यही नहीं, सागर के विवाहित दोस्त भी नीरजा को अवश्य बुलाते. यह सब देख कर सागर और श्वेता भुनभुनाते हुए घर लौटते.

श्वेता चिढ़ कर कहती, “देख लो तुम्हारी रिश्तेदारी में हर जगह अभी भी मुझ से ज्यादा नीरजा की पूछ होती है. लगता है जैसे मैं जबर्दस्ती पहुंच गई हूं. तुम्हारी मां भी जब देखो, नीरजा और उस की बेटियों से ही चिपकी रहती हैं.”

सागर समझाने के लिहाज से कहता, “बुरा तो मुझे भी लगता है पर क्या करूं श्वेता? नीरजा के साथ मेरी बेटियां भी हैं न. बस, इसीलिए चुप रह जाता हूं.”

एक दिन तो हद ही हो गई. सागर के एक दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. आयोजन बहुत शानदार रखा गया था. सागर के सभी दोस्त वहां मौजूद थे. सागर ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. उसे नीरजा कहीं भी नजर नहीं आई. सागर ने चैन की सांस लेते हुए श्वेता को कुहनी मारी और बोला, “शुक्र है, आज नीरजा नहीं है.”

श्वेता मुसकरा कर बच्चे को गिफ्ट देने लगी. तभी दरवाजे से नीरजा और उस की दोनों बेटियों ने प्रवेश किया. नीरजा ने खूबसूरत सी बनारसी साड़ी पहन रखी थी और बाल खुले छोड़े थे. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. श्वेता जलभुन गई और सागर पर अपना गुस्सा निकालने लगी.

कुछ देर बाद जब पार्टी उफान पर थी तो सागर किनारे खड़े अपने दोस्तों के ग्रुप को जौन करता हुआ बोला, ‘यार, यह थोड़ा अजीब लगता है कि तुम लोग अब तक हर आयोजन में नीरजा को जरूर बुला लेते हो. तुम लोग जानते हो न, कि मैं नीरजा से अलग हो चुका हूं. अब उसे बुलाने की क्या जरूरत?”

एक दोस्त गुस्से में बोला, “क्या बात कह दी यार, तू अलग हुआ है भाभी से. पर हम तो अलग नहीं हुए न. उन से हमारा जो रिश्ता था वह तो रहेगा ही न.”

“पर क्यों रहेगा? जब वह मेरी पत्नी ही नहीं, तो तुम लोगों की भाभी कैसे हो गई?” सागर ने गुस्से में कहा तो एक दोस्त हंसता हुआ बोला, “ठीक है यार, भाभी नहीं तो दोस्त ही सही. यही मान ले कि अब एक दोस्त की हैसियत से हम सब उन्हें बुलाएंगे. रही बात तेरी, तो ठीक है. तेरी वर्तमान बीवी यानी श्वेता को भी हम न्योता भेज दिया करेंगे, मगर नीरजा को नहीं छोड़ेंगे. समझा?”

इस बात पर काफी देर तक उन के बीच तूतू मैंमैं होती रही. श्वेता पास खड़ी सबकुछ सुन रही थी. अंदर ही अंदर उसे नीरजा पर गुस्सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था जैसे नीरजा उस की खुशियों के आगे आ कर खड़ी हो जाती है. सागर और उस के बीच कहीं न कहीं नीरजा अब भी मौजूद है. घर लौटते समय भी पूरे रास्ते श्वेता हमेशा की तरह सागर से लड़तीझगड़ती रही.

एक दिन शनिवार को जब कमला देवी बहू और पोती के साथ थीं, तो दोपहर में उछलतीकूदती मिनी घर में घुसी. आते ही उस ने मां और दादी के पैर छुए. नीरजा ने खुशी की वजह पूछी, तो मिनी खुशी से चिल्लाई, “मम्मा मैडिकल एंट्रेंस टैस्ट में मेरे बहुत अच्छे नंबर आए हैं और मुझे यहां के सब से बेहतरीन मैडिकल कालेज में दाखिला मिल रहा है.”

“सच बेटी?” दादी ने खुशी से पोती को गले लगा लिया.

मगर नीरजा थोड़ी उदास स्वर में बोली, “बेटा, यहां दाखिले में और उस के बाद पढ़ाई में कुल खर्च लगभग कितना आएगा?”

अब मिनी भी सीरियस हो गई थी. सोचते हुए उस ने कहा, “मम्मा, मेरे खयाल से लगभग दोढाई लाख रुपए तो लग ही जाएंगे. इस से ज्यादा भी लग सकते हैं.”

“पर बेटा, इतने रुपए मैं कहां से लाऊंगी?”

“मम्मा, मेरी शादी वाली जो एफडी आप ने रखी है न, बस, उसे तोड़ दो.”

“पागल है क्या? नहीं नीरजा, तू वैसा कुछ नहीं करेगी. पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगी मिनी, ” कमला देवी ने कहा.

“पर कैसे मम्मी? आप के पास इतने रुपए कहां से आएंगे?”

“बेटा, मैं ने अपनी नौकरी के दौरान कुछ रुपए बचा कर अलग रखे थे. वे रुपए मैं ने कभी सागर को भी नहीं दिए. अब उन्हें अपनी मिनी के मैडिकल की पढ़ाई के लिए खर्च करूंगी. इस का अलग ही सुख होगा.”

“नहीं मम्मी, उन्हें आप न निकालें. वैसे भी, इस उम्र में आप को पैसे अपने पास रखने चाहिए. कल को सागर ने कुछ गलत व्यवहार किया या बिजनैस डुबो दिया तो आप…?”

“अरे नहीं बेटा. जिस के पास तेरे जैसी बेटी और इतनी प्यारी पोतियां हैं उसे क्या चिंता? और फिर मेरी पोती डाक्टर बनेगी. इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?

अगले दिन ही कमला देवी ने पोती की पढ़ाई के लिए रुपयों का इंतजाम कर दिया.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. सागर के जीवन में अब कुछ नहीं बचा था. श्वेता कई सालों से औफिस के किसी कलीग के साथ अफेयर चला रही थी. इधर सागर अब और भी ज्यादा शराब में डूबा रहने लगा था. छोटीछोटी बात पर वह मां पर भी बरस जाता. कमला देवी का दिल कई दफा करता कि सबकुछ छोड़ कर चली जाए. पर बेटे का मोह कहीं न कहीं आड़े आ जाता. जितनी देर श्वेता और सागर घर में रहते, झगड़े होते रहते. कमला देवी का घर में दम घुटता. उन की उम्र भी अब काफी हो चुकी थी. वे करीब 80 साल की थीं. उन से अब ज्यादा दौड़भाग नहीं हो पाती. नीरजा के पास भी वे कईकई दिन बाद जा पातीं.

एक दिन उन्हें अपने पेट में दर्द महसूस हुआ. यह दर्द बारबार होने लगा. एक दिन कमला देवी ने बेटे से इस का जिक्र किया तो बेटे ने उपेक्षा से कहा, “अरे मां, तुम ने कुछ उलटासीधा खा लिया होगा. वैसे भी, इस उम्र में खाना मुश्किल से ही पचता है.”

“पर बेटा, यह दर्द कई दिनों से हो रहा है.”

“कुछ नहीं मां, बस, गैस का दर्द होगा. तू अजवायन फांक ले,” कह कर सागर औफिस के लिए निकल गया.

अगले दिन भी दर्द की वजह से कमला देवी ने खाना नहीं खाया. पर सागर को कोई परवा न थी. दोतीन दिनों बाद जब कमला देवी से रहा नहीं गया तो उन्होंने फोन पर बहू नीरजा को यह बात बताई. नीरजा एकदम से घबरा गई. वह उस समय औफिस में थी, तुरंत बोली, “मम्मी, मैं अभी औफिस से छुट्टी ले कर आती हूं. आप को डाक्टर को दिखा दूंगी.”

“अरे बेटा, औफिस छोड़ कर क्यों आ रही है? कल दिखा देना.”

“नहीं मम्मी, कल शनिवार है और वे डाक्टर शनिवार को नहीं बैठते. मैं अभी आ रही हूं.”

एक घंटे के अंदर नीरजा आई और उन्हें हौस्पिटल ले कर गई. बेटे और बहू के व्यवहार में अंतर देख कर उन का दिल भर आया. डाक्टर ने ऊपरी जांच के बाद कुछ और टैस्ट कराने को लिख दिए. नीरजा ने फटाफट सारे टैस्ट कराए और जो बात निकल कर सामने आई वह किसी ने सोचा भी नहीं था. कमला देवी को पेट का कैंसर था. डाक्टर ने साफसाफ बताया कि कैंसर अभी ज्यादा फैला नहीं है. पर इस उम्र में औपरेशन कराना ठीक नहीं रहेगा. कीमोथेरैपी और रेडिएशन से इलाज किया जा सकता है.

नीरजा ने तुरंत अपने औफिस में 15 दिनों की छुट्टी की अरजी डाल दी और सास की तीमारदारी में जुट गई. मिनी ने भी अपने संपर्कों के द्वारा दादी का बेहतर इलाज कराना शुरू किया. कीमोथेरैपी लंबी चलनी थी, सो, नीरजा ने औफिस जौइन कर लिया. मगर उस ने कभी सास को अकेला नहीं छोड़ा. उस की दोनों बेटियों ने भी पूरा सहयोग दिया.

सागर एक दोबार मां से मिलने आया, पर कुछ मदद की इच्छा भी नहीं जताई. नीरजा सास को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले आई और दिल से सेवासुश्रुषा करती रही. अब कमला देवी की तबीयत में काफी सुधार था.

एक दिन उन्होंने नीरजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटी, मैं चाहती हूं कि तू उस घर में वापस चले.”

नीरजा ने हैरानी से सास की ओर देखते हुए कहा, “आप यह क्या कह रही हैं मम्मी? आप जानती हो न, अब मैं सागर के साथ कभी नहीं रह सकती. कुछ भी हो जाए, मैं उसे माफ नहीं कर सकती.”

“पर बेटा, मैं ने कब कहा कि तुझे सागर के साथ रहना होगा. मैं तो बस यही चाहती हूं कि तू अपने उस घर में वापस चले.”

“पर वह घर मेरा कहां है मम्मी? वह तो सागर और श्वेता का घर है. मैं उन के साथ… यह संभव नहीं मम्मी.”

“बेटा, वह घर सागर का नहीं. तू भूल रही है. वह घर तेरे ददिया ससुर ने मेरे नाम किया था. उस दोमंजिले, खूबसूरत, बड़े से घर को बहुत प्यार से बनवाया था उन्होंने और अब उस घर को मैं तेरे नाम करना चाहती हूं.”

“नहीं मम्मी, इस की कोई जरूरत नहीं है. सागर को रहने दो उस घर में. मैं अपने किराए के घर में ही खुश हूं.”

“तू खुश है, पर मैं खुश नहीं, बेटा. मुझे अपने घर में रहने की इच्छा हो रही है. पर अपने बेटे के साथ नहीं बल्कि तेरे साथ. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे उस घर में ले चल. वहीँ, मेरी सेवा करना. उसी घर में मेरी पोतियों की बरात आएगी. मेरा यह सपना सच हो जाने दे, बेटा.”

नीरजा की आंखें भीग गईं. वह सास के गले लग कर रोने लगी. सास ने उसे चुप कराया और सागर को फोन लगाया, “बेटा, तू अपना कोई और ठिकाना ढूंढ ले. मेरा घर खाली कर दे.”

“यह तू क्या कह रही है मां? घर खाली कर दूं? पर क्यों?”

“क्योंकि अब उस में मैं, नीरजा और अपनी पोतियों के साथ रहूंगी.”

“अच्छा, तो नीरजा ने कान भरे हैं. भड़काया है तुम्हें.”

“नहीं सागर, नीरजा ने कुछ नहीं कहा. यह तो मेरा कहना है. सालों तुझे उस घर में रखा, अब नीरजा को रखना चाहती हूं. तुझे बुरा क्यों लग रहा है? यह तो होना ही था. इंसान जैसा करता है वैसा ही भरता है न बेटे. तुम दोनों पतिपत्नी तब तक अपने लिए कोई किराए का घर ढूंढ लो. और हां, थोड़ा जल्दी करना. इस रविवार मुझे नीरजा और पोतियों के साथ अपने घर में शिफ्ट होना है बेटे. ”

अपना फैसला सुना कर कमला देवी ने फोन काट दिया और नीरजा की तरफ देख कर मुसकरा पड़ीं.

Inspirational Hindi Stories : हीरो – क्या समय रहते खतरे की सीमारेखा से बाहर निकल पाई वह?

Inspirational Hindi Stories :  बादलों की गड़गड़ाहट के साथ ही मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी. अपने घर की बालकनी में बैठी चाय की चुसकियों के साथ बारिश की बौछारों का मैं आनंद लेने लगी. आंखें अनायास ही सड़क पर तितरबितर होते भीड़ के रैले में किसी को तलाशने लगीं लेकिन उसे वहां न पा कर उदास हो गईं. आज ये फुहारें कितनी सुहानी लग रही हैं, जबकि यही गड़गड़ाहट, आसमान में चमकती बिजली की आंखमिचौली उस दिन कितना कहर बरपाती प्रतीत हो रही थी. समय और स्थान परिवर्तन के साथसाथ एक ही परिदृश्य के माने कितने बदल जाते हैं.

2 बरस पूर्व की यादें अभी भी जेहन में आते ही शरीर में झुरझुरी सी होने लगती है और इस के साथ ही आंखों के सामने उभर आता है एक रेखाचित्र, ‘हीरो’ का, जिस की मधुर स्मृति अनायास ही चेहरे पर मुसकान ला देती है.

उस दिन औफिस से निकलने में मुझे कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी. काफी अंधेरा घिर आया था. स्ट्रीट लाइट्स जल चुकी थीं. मैं ने घड़ी देखी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. मां चिंता करेंगी, सोच कर लिफ्ट से उतरते ही मैं ने मां को फोन लगा दिया.

‘हां, कहां तक पहुंची? आज तो बहुत तेज बारिश हो रही है. संभल कर आना,’ मां की चिंता उन की आवाज से साफ जाहिर हो रही थी.

‘बस, निकल गई हूं. अभी कैब पकड़ कर सीधे घर पहुंचती हूं और फिर मुंबई की बारिश से क्या घबराना, मां? हर साल ऐसे ही तो होती है. मेहमान और मुंबई की बारिश का कोई ठिकाना नहीं. कब, कहां टपक जाए कोई नहीं बता सकता,’ मैं बड़ी बेफिक्री से बोली.

‘अरे, आज साधारण बारिश नहीं है. पिछले 10 घंटे से लगातार हो रही मूसलाधार बारिश थमने या धीमे होने का नाम नहीं ले रही है. हैलो…हैलो…’ मां बोलती रह गईं.

मैं भी देर तक हैलो… हैलो… करती बिल्डिंग से बाहर आ गई थी. सिगनल जो उस वक्त आने बंद हुए तो फिर जुड़ ही नहीं पाए थे. बाहर का नजारा देख मैं अवाक रह गई थी. सड़कें स्विमिंग पूल में तबदील हो चुकी थीं. दूरदूर तक कैब क्या किसी भी चलती गाड़ी का नामोनिशान तक न था. घुटनों तक पानी में डूबे लोग अफरातफरी में इधरउधर जाते नजर आ रहे थे. महानगरीय जिंदगी में एक तो वैसे ही किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं होता और उस पर ऐसा तूफानी मंजर… हर किसी को बस घर पहुंचने की जल्दी मची थी.

अपने औफिस की पूर्णतया वातानुकूलित इमारत जिस पर हमेशा से मुझे गर्व रहा है, पहली बार रोष उमड़ पड़ा. ऐसी भी क्या वातानुकूलित इमारत जो बाकी दीनदुनिया से आप का संपर्क ही काट दे. अंदर हमेशा एक सा मौसम, बाहर भले ही पतझड़ गुजर कर बसंत छा जाए. खैर, अपनी दार्शनिकता को ठेंगा दिखाते हुए मैं तेज कदमों से सड़क पर आ गई और इधरउधर टैक्सी के लिए नजरें दौड़ाने लगी. लेकिन वहां पानी के अति बहाव के कारण वाहनों का रेला ही थम गया था. वहां टैक्सी की खोज करना बेहद मूर्खतापूर्ण लग रहा था. कुछ अधडूबी कारें मंजर को और भी भयावह बना रही थीं. मैं ने भैया से संपर्क साधने के लिए एक बार और मोबाइल फोन का सहारा लेना चाहा, लेकिन सिगनल के अभाव में वह मात्र एक खिलौना रह गया था. शायद आगे पानी इतना गहरा न हो, यह सोच कर मैं ने बैग गले से कमर में टांगा और पानी में उतर पड़ी. कुछ कदम चलने पर ही मुझे सैंडल असुविधाजनक लगने लगे. उन्हें उतार कर मैं ने बैग में डाला.

आगे चलते लोगों का अनुसरण करते हुए मैं सहमसहम कर कदम बढ़ाने लगी. कहीं किसी गड्ढे या नाले में पांव न पड़ जाए, मैं न जाने कितनी देर चलती रही और कहां पहुंच गई, मुझे कुछ होश नहीं था. लोकल ट्रेन में आनेजाने के कारण मैं सड़क मार्गों से नितांत अपरिचित थी. आगे चलने वाले राहगीर भी जाने कब इधरउधर हो गए थे मुझे कुछ मालूम नहीं. मुझे चक्कर आने लगे थे. सारे कपड़े पूरी तरह भीग कर शरीर से चिपक गए थे. ठंड भी लग रही थी. अर्धबेहोशी की सी हालत में मैं कहीं बैठने की जगह तलाश करने लगी तभी जोर से बिजली कड़की और आसपास की बत्तियां गुल हो गईं. मेरी दबी सी चीख निकल गई.

फुटपाथ पर बने एक इलैक्ट्रिक पोल के स्टैंड पर मैं सहारा ले कर बैठ गई. आंखें स्वत: ही मुंद गईं. किसी ने झटके से मुझे खींचा तो मैं चीख मार कर उठ खड़ी हुई. ‘छोड़ो मुझे, छोड़ो,’ दहशत के मारे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. अंधेरे में आंखें चौड़ी कर देखने का प्रयास करने पर मैं ने पाया कि एक युवक ने मेरी बांह पकड़ रखी थी. ‘करेंट खा कर मरना है क्या?’  कहते हुए उस ने मेरी बांह छोड़ दी. वस्तुस्थिति समझ कर मेरे चेहरे पर शर्मिंदगी उभर आई. फिर तुरंत ही अपनी असहाय अवस्था का बोझ मुझ पर हावी हो गया. ‘प्लीज, मुझे मेरे घर पहुंचा दीजिए. मैं पिछले 3 घंटे से भटक रही हूं.’

‘और मैं 5 घंटे से,’ उस ने बिना किसी सहानुभूति के सपाट सा उत्तर दिया.

‘ओह, फिर अब क्या होगा? मुझ से तो एक कदम भी नहीं चला जा रहा. मैं यहीं बैठ कर किसी मदद के आने का इंतजार करती हूं,’ मैं खंभे से थोड़ा हट कर

बैठ गई.

‘मदद आती नहीं, तलाश की जाती है.’

‘पर आगे कहीं बैठने की जगह भी न मिली तो?’ मैं किसी भी हाल में उठने को तैयार न थी.

‘ऐसी सोच के साथ तो सारी जिंदगी यहीं बैठी रह जाओगी.’

मेरी आंखें डबडबा आई थीं. शायद इतनी देर बाद किसी को अपने साथ पा कर दिल हमदर्दी पाने को मचल उठा था. पर वह शख्स तो किसी और ही मिट्टी का बना था.

‘आप को क्या लगता है कि मैं किसी फिल्मी हीरो की तरह आप को गोद में उठा कर इस पानी में से निकाल ले जाऊंगा? पिछले 5 घंटे से बरसते पानी में पैदल चलचल कर मेरी अपनी सांस फूल चुकी है. चलना है तो आगे चलो, वरना मरो यहीं पर.’

उस के सख्त रवैए से मैं सहम गई थी. डरतेडरते उस के पीछे फिर से चलने लगी. तभी मेरा पांव लड़खड़ाया. मैं गिरने ही वाली थी कि उस ने अपनी मजबूत बांहों से मुझे थाम लिया.

‘तुम आगे चलो. पीछे गिरगिरा कर बह गई तो मुझे पता भी नहीं चलेगा,’ आवाज की सख्ती थोड़ी कम हो गई थी और अनजाने ही वह आप से तुम पर आ गया था, पर मुझे अच्छा लगा. अपने साथ किसी को पा कर मेरी हिम्मत लौट आई थी. मैं दूने उत्साह से आगे बढ़ने लगी. तभी बिजली लौट आई. मेरे दिमाग में बिजली कौंधी, ‘आप के पास मोबाइल होगा न?’

‘हां, है.’

‘तो मुझे दीजिए प्लीज, मैं घर फोन कर के भैया को बुला लेती हूं.’

‘मैडम, आप को शायद स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं है. इस क्षेत्र की संचारव्यवस्था ठप हो गईर् है. सिगनल नहीं आ रहे हैं. पूरे इलाके में पानी भर जाने के कारण वाहनों का आवागमन भी रोक दिया गया है. हमारे परिजन चाह कर भी यहां तक नहीं आ सकते और न हम से संपर्क साध सकते हैं. स्थिति बदतर हो इस से पूर्व हमें ही किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचना होगा.’

‘लेकिन कैसे?’ मुझे एक बार फिर चारों ओर से निराशा ने घेर लिया था. बचने की कोईर् उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. लग रहा था आज यहीं हमारी जलसमाधि बन जाएगी. मुझे अपने हाथपांव शिथिल होते महसूस होने लगे. याद आया लंच के बाद से मैं ने कुछ खाया भी नहीं है. ‘मुझे तो बहुत जोर की भूख भी लग रही है. लंच के बाद से ही कुछ नहीं खाया है,’ बोलतेबोलते मेरा स्वर रोंआसा हो गया था.

‘अच्छा, मैं तो बराबर कुछ न कुछ उड़ा रहा हूं. कभी पावभाजी, कभी भेलपुरी, कभी बटाटाबड़ा… मुझे समझ नहीं आता तुम लड़कियां बारबार खुद को इतना निरीह साबित करने पर क्यों आमादा हो जाती हो? तुम्हें क्या लगता है मैं अभी सुपरहीरो की तरह उड़ कर जाऊंगा और पलक झपकते तुम्हारे लिए गरमागरम बटाटाबड़ा ले कर हाजिर हो जाऊंगा. फिर हम यहां पानी के बीच गरमागरम बड़े खाते हुए पिकनिक का लुत्फ उठाएंगे.’

‘जी नहीं, मैं ऐसी किसी काल्पनिकता में नहीं जी रही हूं. बटाटाबड़ा तो क्या, मुझे आप से सूखी रोटी की भी उम्मीद नहीं है.’ गुस्से में हाथपांव मारती मैं और भी तेजतेज चलने लगी. काफी आगे निकल जाने पर ही मेरी गति थोड़ी धीमी हुई. मैं चुपके से टोह लेने लगी, वह मेरे पीछे आ भी रहा है या नहीं?

‘मैं पीछे ही हूं. तुम चुपचाप चलती रहो और कृपया इसी गति से कदम बढ़ाती रहो.’

उस के व्यंग्य से मेरा गुस्सा और बढ़ गया. अब तो चाहे यहीं पानी में समाधि बन जाए, पर इस से किसी मदद की अपेक्षा नहीं रखूंगी. मेरी धीमी हुई गति ने फिर से रफ्तार पकड़ ली थी. अपनी सामर्थ्य पर खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था. औफिस से आ कर सीधे बिस्तर पर ढेर हो जाने वाली मैं कैसे पिछले 7-8 घंटे से बिना कुछ खाएपीए चलती जा रही हूं, वह भी घुटनों से ऊपर चढ़ चुके पानी में. शरीर से चिपकते पौलीथीन, कचरा और खाली बोतलें मन में लिजलिजा सा एहसास उत्पन्न कर रहे थे. आज वाकई पर्यावरण को साफ रखने की आवश्यकता महसूस हो रही थी. यदि पौलीथीन से नाले न भर जाते तो सड़कों पर इस तरह पानी नहीं भरता. पानी भरने की सोच के साथ मुझे एहसास हुआ कि सड़क पर पानी का स्तर काफी कम हो गया है.

‘वाह,’ मेरे मुंह से खुशी की चीख निकल गई. वाकई यहां पानी का स्तर घुटनों से भी नीचा था. तभी एक बड़े से पत्थर से मेरा पांव टकरा गया. ‘ओह,’ मैं जोर से चिल्ला कर लड़खड़ाई. पीछे आ रहे युवक ने आगे आ कर एक बार फिर मुझे संभाल लिया. अब वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे चलाने लगा क्योंकि मेरे पांव से खून बहने लगा था और मैं लंगड़ा रही थी. पानी में बहती खून की धार देख कर मैं दहशत के मारे बेहोश सी होने लगी थी कि उस युवक के उत्साहित स्वर से मेरी चेतना लौटी, ‘वह देखो, सामने बरिस्ता होटल. वहां काफी चहलपहल है. उधर इतना पानी भी नहीं है.

हम वहां से जरूर फोन कर सकेंगे. हमारे घर वाले आ कर तुरंत हमें ले जाएंगे. देखो, मंजिल के इतने करीब पहुंच कर हिम्मत नहीं हारते. आंखें खोलो, देखो, मुझे तो गरमागरम बड़ापाव की खुशबू भी आ रही है.’

मैं ने जबरदस्ती आंखें खोलने का प्रयास किया. बस, इतना ही देख सकी कि वह साथी युवक मुझे लगभग घसीटता हुआ उस चहलपहल की ओर ले चला था. कुछ लोग उस की सहायतार्थ दौड़ पड़े थे. इस के बाद मुझे कुछ याद नहीं रहा. चक्कर और थकान के मारे मैं बेहोश हो गई थी. होश आया तो देखा एक आदमी चम्मच से मेरे मुंह में कुनकुनी चाय डाल रहा था और मेरा साथी युवक फोन पर जोरजोर से किसी को अपनी लोकेशन बता रहा था. मैं उठ कर बैठ गई. चाय का गिलास मैं ने हाथों में थाम लिया और धीरेधीरे पीने लगी. किसी ने मुझे 2 बिस्कुट भी पकड़ा दिए थे, जिन्हें खा कर मेरी जान में जान आई.

‘तुम भी घर वालों से बात कर लो.’

मैं ने भैया को फोन लगाया तो पता चला वे जीजाजी के संग वहीं कहीं आसपास ही मुझे खोज रहे थे. तुरंत वे मुझे लेने निकल पड़े. रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी, लेकिन आसपास मौजूद भीड़ की आंखों में नींद का नामोनिशान न था. हर किसी की जबान पर प्रकृति के इस अनोखे तांडव की ही चर्चा थी.

‘मेरा साला मुझे लेने आ रहा है. तुम्हें कहां छोड़ना है बता दो… लो, वे आ गए.’अपनी गर्भवती पत्नी को भी गाड़ी से उतरते देख वह हैरत में पड़ गया, ‘अरे, तुम ऐसे में बाहर क्यों निकली? वह भी ऐसे मौसम में?’ बिना कोईर् जवाब दिए उस की पत्नी उस से बुरी तरह लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. वह उसे धीरज बंधाने लगा. मेरी भी आंखें भर आईं. पत्नी को अलग कर वह मुझ से मुखातिब हुआ, ‘पहली बार कोई हैल्प औफर कर रहा हूं. चलो, हम छोड़ देंगे.’

‘नहीं, थैंक्स, भैया और जीजाजी बस आ ही रहे हैं. लो, वे भी आ गए.’

‘अच्छा बाय,’ वह चला गया.

हम ने न एकदूसरे का नाम पूछा, न पता. उस की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए मैं ने उसे एक नाम दे दिया है, ‘हीरो’  वास्तविक हीरो की तरह बिना कोई हैरतअंगेज करतब दिखाए यदि कोई मुझे उस दिन मौत के दरिया से बाहर ला सकता था तो वही एक हीरो. उस समय तो मुझे उस पर गुस्सा आया ही था कि कैसा रफ आदमी है, लेकिन आज मैं आसानी से समझ सकती हूं उस का मुझे खिझाना, आक्रोशित करना, एक सोचीसमझी चालाकी के तहत था ताकि मैं उत्तेजित हो कर तेजतेज कदम बढ़ाऊं और समय रहते खतरे की सीमारेखा से बाहर निकल जाऊं. सड़क पर रेंगते अनजान चेहरों के काफिले में आज भी मेरी नजरें उसी ‘हीरो’ को तलाश रही हैं.

Famous Hindi Stories : पापा जल्दी आ जाना

 Famous Hindi Stories : ‘‘पापा, कब तक आओगे?’’ मेरी 6 साल की बेटी निकिता ने बड़े भरे मन से अपने पापा से लिपटते हुए पूछा.

‘‘जल्दी आ जाऊंगा बेटा…बहुत जल्दी. मेरी अच्छी गुडि़या, तुम मम्मी को तंग बिलकुल नहीं करना,’’ संदीप ने निकिता को बांहों में भर कर उस के चेहरे पर घिर आई लटों को पीछे धकेलते हुए कहा, ‘‘अच्छा, क्या लाऊं तुम्हारे लिए? बार्बी स्टेफी, शैली, लाफिंग क्राइंग…कौन सी गुडि़या,’’ कहतेकहते उन्होंने निकिता को गोद में उठाया.

संदीप की फ्लाइट का समय हो रहा था और नीचे टैक्सी उन का इंतजार कर रही थी. निकिता उन की गोद से उतर कर बड़े बेमन से पास खड़ी हो गई, ‘‘पापा, स्टेफी ले आना,’’ निकिता ने रुंधे स्वर में धीरे से कहा.

उस की ऐसी हालत देख कर मैं भी भावुक हो गई. मुझे रोना उस के पापा से बिछुड़ने का नहीं, बल्कि अपना बीता बचपन और अपने पापा के साथ बिताए चंद लम्हों के लिए आ रहा था. मैं भी अपने पापा से बिछुड़ते हुए ऐसा ही कहा करती थी.

संदीप ने अपना सूटकेस उठाया और चले गए. टैक्सी पर बैठते ही संदीप ने हाथ उठा कर निकिता को बाय किया. वह अचानक बिफर पड़ी और धीरे से बोली, ‘‘स्टेफी न भी मिले तो कोई बात नहीं पर पापा, आप जल्दी आ जाना,’’ न जाने अपने मन पर कितने पत्थर रख कर उस ने याचना की होगी. मैं उस पल को सोचते हुए रो पड़ी. उस का यह एकएक क्षण और बोल मेरे बचपन से कितना मेल खाते थे.

मैं भी अपने पापा को बहुत प्यार करती थी. वह जब भी मुझ से कुछ दिनों के लिए बिछुड़ते, मैं घायल हिरनी की तरह इधरउधर सारे घर में चक्कर लगाती. मम्मी मेरी भावनाओं को समझ कर भी नहीं समझना चाहती थीं. पापा के बिना सबकुछ थम सा जाता था.

बरामदे से कमरे में आते ही निकिता जोरजोर से रोने लगी और पापा के साथ जाने की जिद करने लगी. मैं भी अपनी मां की तरह जोर का तमाचा मार कर निकिता को चुप करा सकती थी क्योंकि मैं बचपन में जब भी ऐसी जिद करती तो मम्मी जोर से तमाचा मार कर कहतीं, ‘मैं मर गई हूं क्या, जो पापा के साथ जाने की रट लगाए बैठी हो. पापा नहीं होंगे तो क्या कोई काम नहीं होगा, खाना नहीं मिलेगा.’

किंतु मैं जानती थी कि पापा के बिना जीने का क्या महत्त्व होता है. इसलिए मैं ने कस कर अपनी बेटी को अंक में भींच लिया और उस के साथ बेडरूम में आ गई. रोतेरोते वह तो सो गई पर मेरा रोना जैसे गले में ही अटक कर रह गया. मैं किस के सामने रोऊं, मुझे अब कौन बहलानेफुसलाने वाला है.

मेरे बचपन का सूर्यास्त तो सूर्योदय से पहले ही हो चुका था. उस को थपकियां देतेदेते मैं भी उस के साथ बिस्तर में लेट गई. मैं अपनी यादों से बचना चाहती थी. आज फिर पापा की धुंधली यादों के तार मेरे अतीत की स्मृतियों से जुड़ गए.

पिछले 15 वर्षों से ऐसा कोई दिन नहीं गया था जिस दिन मैं ने पापा को याद न किया हो. वह मेरे वजूद के निर्माता भी थे और मेरी यादों का सहारा भी. उन की गोद में पलीबढ़ी, प्यार में नहाई, उन की ठंडीमीठी छांव के नीचे खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती थी. मुझ से आज कोई जीवन की तमाम सुखसुविधाओं में अपनी इच्छा से कोई एक वस्तु चुनने का अवसर दे तो मैं अपने पापा को ही चुनूं. न जाने किन हालात में होंगे बेचारे, पता नहीं, हैं भी या…

7 वर्ष पहले अपनी विदाई पर पापा की कितनी कमी महसूस हो रही थी, यह मुझे ही पता है. लोग समझते थे कि मैं मम्मी से बिछुड़ने के गम में रो रही हूं पर अपने उन आंसुओं का रहस्य किस को बताती जो केवल पापा की याद में ही थे. मम्मी के सामने तो पापा के बारे में कुछ भी बोलने पर पाबंदियां थीं. मेरी उदासी का कारण किसी की समझ में नहीं आ सकता था. काश, कहीं से पापा आ जाएं और मुझे कस कर गले लगा लें. किंतु ऐसा केवल फिल्मों में होता है, वास्तविक दुनिया में नहीं.

उन का भोला, मायूस और बेबस चेहरा आज भी मेरे दिमाग में जैसा का तैसा समाया हुआ था. जब मैं ने उन्हें आखिरी बार कोर्ट में देखा था. मैं पापापापा चिल्लाती रह गई मगर मेरी पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मुझ से किसी ने पूछा तक नहीं कि मैं क्या चाहती हूं? किस के पास रहना चाहती हूं? शायद मुझे यह अधिकार ही नहीं था कि अपनी बात कह सकूं.

मम्मी मुझे जबरदस्ती वहां से कार में बिठा कर ले गईं. मैं पिछले शीशे से पापा को देखती रही, वह एकदम अकेले पार्किंग के पास नीम के पेड़ का सहारा लिए मुझे बेबसी से देखते रहे थे. उन की आंखों में लाचारी के आंसू थे.

मेरे दिल का वह कोना आज भी खाली पड़ा है जहां कभी पापा की तसवीर टंगा करती थी. न जाने क्यों मैं पथराई आंखों से आज भी उन से मिलने की अधूरी सी उम्मीद लगाए बैठी हूं. पापा से बिछुड़ते ही निकिता के दिल पर पड़े घाव फिर से ताजा हो गए.

जब से मैं ने होश संभाला, पापा को उदास और मायूस ही पाया था. जब भी वह आफिस से आते मैं सारे काम छोड़ कर उन से लिपट जाती. वह मुझे गोदी में उठा कर घुमाने ले जाते. वह अपना दुख छिपाने के लिए मुझ से बात करते, जिसे मैं कभी समझ ही न सकी. उन के साथ मुझे एक सुखद अनुभूति का एहसास होता था तथा मेरी मुसकराहट से उन की आंखों की चमक दोगुनी हो जाती. जब तक मैं उन के दिल का दर्द समझती, बहुत देर हो चुकी थी.

मम्मी स्वभाव से ही गरम एवं तीखी थीं. दोनों की बातें होतीं तो मम्मी का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज हो जाता और पापा का धीमा होतेहोते शांत हो जाता. फिर दोनों अलगअलग कमरों में चले जाते. सुबह तैयार हो कर मैं पापा के साथ बस स्टाप तक जाना चाहती थी पर मम्मी मुझे घसीटते हुए ले जातीं. मैं पापा को याचना भरी नजरों से देखती तो वह धीमे से हाथ हिला पाते, जबरन ओढ़ी हुई मुसकान के साथ.

मैं जब भी स्कूल से आती मम्मी अपनी सहेलियों के साथ ताश और किटी पार्टी में व्यस्त होतीं और कभी व्यस्त न होतीं तो टेलीफोन पर बात करने में लगी रहतीं. एक बार मैं होमवर्क करते हुए कुछ पूछने के लिए मम्मी के कमरे में चली गई थी तो मुझे देखते ही वह बरस पड़ीं और दरवाजे पर दस्तक दे कर आने की हिदायत दे डाली. अपने ही घर में मैं पराई हो कर रह गई थी.

एक दिन स्कूल से आई तो देखा मम्मी किसी अंकल से ड्राइंगरूम में बैठी हंसहंस कर बातें कर रही थीं. मेरे आते ही वे दोनों खामोश हो गए. मुझे बहुत अटपटा सा लगा. मैं अपने कमरे में जाने लगी तो मम्मी ने जोर से कहा, ‘निकी, कहां जा रही हो. हैलो कहो अंकल को. चाचाजी हैं तुम्हारे.’

मैं ने धीरे से हैलो कहा और अपने कमरे में चली गई. मैं ने उन को इस से पहले कभी नहीं देखा था. थोड़ी देर में मम्मी ने मुझे बुलाया.

‘निकी, जल्दी से फे्रश हो कर आओ. अंकल खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’

मैं टेबल पर आ गई. मुझे देखते ही मम्मी बोलीं, ‘निकी, कपड़े कौन बदलेगा?’

‘ममा, आया किचन से नहीं आई फिर मुझे पता नहीं कौन से…’

‘तुम कपड़े खुद नहीं बदल सकतीं क्या. अब तुम बड़ी हो गई हो. अपना काम खुद करना सीखो,’ मेरी समझ में नहीं आया कि एक दिन में मैं बड़ी कैसे हो गई हूं.

‘चलो, अब खाना खा लो.’

मम्मी अंकल की प्लेट में जबरदस्ती खाना डाल कर खाने का आग्रह करतीं और मुसकरा कर बातें भी कर रही थीं. मैं उन दोनों को भेद भरी नजरों से देखती रही तो मम्मी ने मेरी तरफ कठोर निगाहों से देखा. मैं समझ चुकी थी कि मुझे अपना खाना खुद ही परोसना पड़ेगा. मैं ने अपनी प्लेट में खाना डाला और अपने कमरे में जाने लगी. हमारे घर पर जब भी कोई आता था मुझे अपने कमरे में भेज दिया जाता था. मैं टीवी देखतेदेखते खाना खाती रहती थी.

‘वहां नहीं बेटा, अंकल वहां आराम करेंगे.’

‘मम्मी, प्लीज. बस एक कार्टून…’ मैं ने याचना भरी नजर से उन्हें देखा.

‘कहा न, नहीं,’ मम्मी ने डांटते हुए कहा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा.

खाने के बाद अंकल उस कमरे में चले गए तथा मैं और मम्मी दूसरे कमरे में. जब मैं सो कर उठी, मम्मी अंकल के पास चाय ले जा रही थीं. अंकल का इस तरह पापा के कमरे में सोना मुझे अच्छा नहीं लगा. जाने से पहले अंकल ने मुझे ढेर सारी मेरी मनपसंद चाकलेट दीं. मेरी पसंद की चाकलेट का अंकल को कैसे पता चला, यह एक भेद था.

वक्त बीतता गया. अंकल का हमारे घर आनाजाना अनवरत जारी रहा. जिस दिन भी अंकल हमारे घर आते मम्मी उन के ज्यादा करीब हो जातीं और मुझ से दूर. मैं अब तक इस बात को जान चुकी थी कि मम्मी और अंकल को मेरा उन के आसपास रहना अच्छा नहीं लगता था.

एक दिन पापा आफिस से जल्दी आ गए. मैं टीवी पर कार्टून देख रही थी. पापा को आफिस के काम से टूर पर जाना था. वह दवा बनाने वाली कंपनी में सेल्स मैनेजर थे. आते ही उन्होंने पूछा, ‘मम्मी कहां हैं.’

‘बाहर गई हैं, अंकल के साथ… थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

‘कौन अंकल, तुम्हारे मामाजी?’ उत्सुकतावश उन्होंने पूछा.

‘मामाजी नहीं, चाचाजी…’

‘चाचाजी? राहुल आया है क्या?’ पापा ने बाथरूम में फे्रश होते हुए पूछा.

‘नहीं. राहुल चाचाजी नहीं कोई और अंकल हैं…मैं नाम नहीं जानती पर कभी- कभी आते रहते हैं,’ मैं ने भोलेपन से कहा.

‘अच्छा,’ कह कर पापा चुप हो गए और अपने कमरे में जा कर तैयारी करने लगे. मैं पापा के पास पानी ले कर आ गई. जिस दिन पापा मेरे सामने जाते मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं उन के आसपास घूमती रहती थी.

‘पापा, कहां जा रहे हो,’ मैं उदास हो गई, ‘कब तक आओगे?’

‘कोलकाता जा रहा हूं मेरी गुडि़या. लगभग 10 दिन तो लग ही जाएंगे.’

‘मेरे लिए क्या लाओगे?’ मैं ने पापा के गले में पीछे से बांहें डालते हुए पूछा.

‘क्या चाहिए मेरी निकी को?’ पापा ने पैकिंग छोड़ कर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा. मैं क्या कहती. फिर उदास हो कर कहा, ‘आप जल्दी आ जाना पापा… रोज फोन करना.’

‘हां, बेटा. मैं रोज फोन करूंगा, तुम उदास नहीं होना,’ कहतेकहते मुझे गोदी में उठा कर वह ड्राइंगरूम में आ गए.

तब तक मम्मी भी आ चुकी थीं. आते ही उन्होंने पूछा, ‘कब आए?’

‘तुम कहां गई थीं?’ पापा ने सीधे सवाल पूछा.

‘क्यों, तुम से पूछे बिना कहीं नहीं जा सकती क्या?’ मम्मी ने तल्ख लहजे में कहा.

‘तुम्हारे साथ और कौन था? निकिता बता रही थी कि कोई चाचाजी आए हैं?’

‘हां, मनोज आया था,’ फिर मेरी तरफ देखती हुई बोलीं, ‘तुम जाओ यहां से,’ कह कर मेरी बांह पकड़ कर कमरे से निकाल दिया जैसे चाचाजी के बारे में बता कर मैं ने उन का कोई भेद खोल दिया हो.

‘कौन मनोज, मैं तो इस को नहीं जानता.’

‘तुम जानोगे भी तो कैसे. घर पर रहो तो तुम्हें पता चले.’

‘कमाल है,’ पापा तुनक कर बोले, ‘मैं ही अपने भाई को नहीं पहचानूंगा…यह मनोज पहले भी यहां आता था क्या? तुम ने तो कभी बताया नहीं.’

‘तुम मेरे सभी दोस्तों और घर वालों को जानते हो क्या?’

‘तुम्हारे घर वाले गुडि़या के चाचाजी कैसे हो गए. शायद चाचाजी कहने से तुम्हारे संबंधों पर आंच नहीं आएगी. निकिता अब बड़ी हो रही है, लोग पूछेंगे तो बात दबी रहेगी…क्यों?’

और तब तक उन के बेडरूम का दरवाजा बंद हो गया. उस दिन अंदर क्याक्या बातें होती रहीं, यह तो पता नहीं पर पापा कोलकाता नहीं गए.

धीरेधीरे उन के संबंध बद से बदतर होते गए. वे एकदूसरे से बात भी नहीं करते थे. मुझे पापा से सहानुभूति थी. पापा को अपने व्यक्तित्व का अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस दिन के बाद वह तिरस्कार सहतेसहते एकदम अंतर्मुखी हो गए. मम्मी का स्वभाव उन के प्रति और भी ज्यादा अन्यायपूर्ण हो गया. एक अनजान व्यक्ति की तरह वह घर में आते और चले जाते. अपने ही घर में वह उपेक्षित और दयनीय हो कर रह गए थे.

मुझे धीरेधीरे यह समझ में आने लगा कि पापा, मम्मी के तानों से परेशान थे और इन्हीं हालात में वह जीतेमरते रहे. किंतु मम्मी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का पहले की ही तरह किटी पार्टी, फोन पर घंटों बातें, सजसंवर कर आनाजाना बदस्तूर जारी रहा. किंतु शाम को पापा के आते ही माहौल एकदम गंभीर हो जाता.

एक दिन वही हुआ जिस का मुझे डर था. पापा शाम को दफ्तर से आए. चेहरे से परेशान और थोड़ा गुस्से में थे. पापा ने मुझे अपने कमरे में जाने के लिए कह कर मम्मी से पूछा, ‘तुम बाहर गई थीं क्या…मैं फोन करता रहा था?’

‘इतना परेशान क्यों होते हो. मैं ने तुम्हें पहले भी बताया था कि मैं आजाद विचारों की हूं. मुझे तुम से पूछ कर जाने की जरूरत नहीं है.’

‘तुम मेरी बात का उत्तर दो…’ पापा का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज था. पापा के गरम तेवर देख कर मम्मी बोलीं, ‘एक सहेली के साथ घूमने गई थी.’

‘यही है तुम्हारी सहेली,’ कहते हुए पापा ने एक फोटो निकाल कर दिखाया जिस में वह मनोज अंकल के साथ उन का हाथ पकड़े घूम रही थीं. मम्मी फोटो देखते ही बुरी तरह घबरा गईं पर बात बदलने में वह माहिर थीं.

‘तो तुम आफिस जाने के बाद मेरी जासूसी करते रहते हो.’

‘मुझे कोई शौक नहीं है. वह तो मेरा एक दोस्त वहां घूम रहा था. मुझे चिढ़ाने के लिए उस ने तुम्हारा फोटो खींच लिया…बस, यही दिन रह गया था देखने को…मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं यह सब नहीं होने दूंगा.’

‘तो क्या कर लोगे तुम…’

‘मैं क्या कर सकता हूं यह बात तुम छोड़ो पर तुम्हारी इन गतिविधियों और आजाद विचारों का निकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा कभी इस पर भी सोचा है. तुम्हें यही सब करना है तो कहीं और जा कर रहो, समझीं.’

‘क्यों, मैं क्यों जाऊं. यहां जो कुछ भी है मेरे घर वालों का दिया हुआ है. जाना है तो तुम जाओगे मैं नहीं. यहां रहना है तो ठीक से रहो.’

और उसी गरमागरमी में पापा ने अपना सूटकेस उठाया और बाहर जाने लगे. मैं पीछेपीछे पापा के पास भागी और धीरे से कहा, ‘पापा.’

वह एक क्षण के लिए रुके. मेरे सिर पर हाथ फेर कर मेरी तरफ देखा. उन की आंखों में आंसू थे. भारी मन और उदास चेहरा लिए वह वहां से चले गए. मैं उन्हें रोकना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव और आंखें देख कर मैं डर गई. मेरे बचपन की शोखी और नटखटपन भी उस दिन उन के साथ ही चला गया. मैं सारा समय उन के वियोग में तड़पती रही और कर भी क्या सकती थी. मेरे अपने पापा मुझ से दूर चले गए.

एक दिन मैं ने पापा को स्कूल की पार्किंग में इंतजार करते पाया. बस से उतरते ही मैं ने उन्हें देख लिया था. मैं उन से लिपट कर बहुत रोई और पापा से कहा कि मैं उन के बिना नहीं रह सकती. मम्मी को पता नहीं कैसे इस बात का पता चल गया. उस दिन के बाद वह ही स्कूल लेने और छोड़ने जातीं. बातोंबातों में मुझे उन्होंने कई बार जतला दिया कि मेरी सुरक्षा को ले कर वह चिंतित रहती हैं. सच यह था कि वह चाहती ही नहीं थीं कि पापा मुझ से मिलें.

मम्मी ने घर पर ही मुझे ट्यूटर लगवा दिया ताकि वह यह सिद्ध कर सकें कि पापा से बिछुड़ने का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा तो मम्मी ने मुझे होस्टल में डालने का फैसला किया.

इस से पहले कि मैं बोर्डिंग स्कूल में जाती, पता चला कि पापा से मिलवाने मम्मी मुझे कोर्ट ले जा रही हैं. मैं नहीं जानती थी कि वहां क्या होने वाला है, पर इतना अवश्य था कि मैं वहां पापा से मिल सकती हूं. मैं बहुत खुश हुई. मैं ने सोचा इस बार पापा से जरूर मम्मी की जी भर कर शिकायत करूंगी. मुझे क्या पता था कि पापा से यह मेरी आखिरी मुलाकात होगी.

मैं पापा को ठीक से देख भी न पाई कि अलग कर दी गई. मेरा छोटा सा हराभरा संसार उजड़ गया और एक बेनाम सा दर्द कलेजे में बर्फ बन कर जम गया. मम्मी के भीतर की मानवता और नैतिकता शायद दोनों ही मर चुकी थीं. इसीलिए वह कानूनन उन से अलग हो गईं.

धीरेधीरे मैं ने स्वयं को समझा लिया कि पापा अब मुझे कभी नहीं मिलेंगे. उन की यादें समय के साथ धुंधली तो पड़ गईं पर मिटी नहीं. मैं ने महसूस कर लिया कि मैं ने वह वस्तु हमेशा के लिए खो दी है जो मुझे प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी. रहरह कर मन में एक टीस सी उठती थी और मैं उसे भीतर ही भीतर दफन कर लेती.

पढ़ाई समाप्त होने के बाद मैं ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर ली. वहीं पर मेरी मुलाकात संदीप से हुई, जो जल्दी ही शादी में तबदील हो गई. संदीप मेरे अंत:स्थल में बैठे दुख को जानते थे. उन्होंने मेरे मन पर पड़े भावों को समझने की कोशिश की तथा आश्वासन भी दिया कि जो कुछ भी उन से बन पड़ेगा, करेंगे.

हम दोनों ने पापा को ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया पर उन का कुछ पता न चल सका. मेरे सोचने के सारे रास्ते आगे जा कर बंद हो चुके थे. मैं ने अब सबकुछ समय पर छोड़ दिया था कि शायद ऐसा कोई संयोग हो जाए कि मैं पापा को पुन: इस जन्म में देख सकूं.

घड़ी ने रात के 2 बजाए. मुझे लगा अब मुझे सो जाना चाहिए. मगर आंखों में नींद कहां. मैं ने अलमारी से पापा की तसवीर निकाली जिस में मैं मम्मीपापा के बीच शिमला के एक पार्क में बैठी थी. मेरे पास पापा की यही एक तसवीर थी. मैं ने उन के चेहरे पर अपनी कांपती उंगलियों को फेरा और फफक कर रो पड़ी, ‘पापा तुम कहां हो…जहां भी हो मेरे पास आ जाओ…देखो, तुम्हारी निकी तुम्हें कितना याद करती है.’

एक दिन सुबह संदीप अखबार पढ़तेपढ़ते कहने लगे, ‘जानती हो आज क्या है?’

‘मैं क्या जानूं…अखबार तो आप पढ़ते हैं,’ मैं ने कहा.

‘आज फादर्स डे है. पापा के लिए कोई अच्छा सा कार्ड खरीद लाना. कल भेज दूंगा.’

‘आप खुशनसीब हैं, जिस के सिर पर मांबाप दोनों का साया है,’ कहतेकहते मैं अपने पापा की यादों में खो गई और मायूस हो गई, ‘पता नहीं मेरे पापा जिंदा हैं भी या नहीं.’

‘हे, ऐसे उदास नहीं होते,’ कहतेकहते संदीप मेरे पास आ गए और मुझे अंक में भर कर बोले, ‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम ने उन्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. अखबारों में भी उन का विवरण छपवा दिया पर अब तक कुछ पता नहीं चला.’

मैं रोने लगी तो मेरे आंसू पोंछते हुए संदीप बोले थे, ‘‘अरे, एक बात तो मैं तुम को बताना भूल ही गया. जानती हो आज शाम को टेलीविजन पर एक नया प्रोग्राम शुरू हो रहा है ‘अपनों की तलाश में,’ जिसे एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेता होस्ट करेगा. मैं ने पापा का सारा विवरण और कुछ फोटो वहां भेज दिए हैं. देखो, शायद कुछ पता चल सके.’?

‘अब उन्हें ढूंढ़ पाना बहुत मुश्किल है…इतने सालों में हमारी फोटो और उन के चेहरे में बहुत अंतर आ गया होगा. मैं जानती हूं. मुझ पर जिंदगी कभी मेहरबान नहीं हो सकती,’ कह कर मैं वहां से चली गई.

मेरी आशाओं के विपरीत 2 दिन बाद ही मेरे मोबाइल पर फोन आया. फोन धर्मशाला के नजदीक तपोवन के एक आश्रम से था. कहने लगे कि हमारे बताए हुए विवरण से मिलताजुलता एक व्यक्ति उन के आश्रम में रहता है. यदि आप मिलना चाहते हैं तो जल्दी आ जाइए. अगर उन्हें पता चल गया कि कोई उन से मिलने आ रहा है तो फौरन ही वहां से चले जाएंगे. न जाने क्यों असुरक्षा की भावना उन के मन में घर कर गई है. मैं यहां का मैनेजर हूं. सोचा तुम्हें सूचित कर दूं, बेटी.

‘अंकल, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. बहुत एहसान किया मुझ पर आप ने फोन कर के.’

मैं ने उसी समय संदीप को फोन किया और सारी बात बताई. वह कहने लगे कि शाम को आ कर उन से बात करूंगा फिर वहां जाने का कार्यक्रम बनाएंगे.

‘नहीं संदीप, प्लीज मेरा दिल बैठा जा रहा है. क्या हम अभी नहीं चल सकते? मैं शाम तक इंतजार नहीं कर पाऊंगी.’

संदीप फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘ठीक है, आता हूं. तब तक तुम तैयार रहना.’

कुछ ही देर में हम लोग धर्मशाला के लिए प्रस्थान कर गए. पूरे 6 घंटे का सफर था. गाड़ी मेरे मन की गति के हिसाब से बहुत धीरे चल रही थी. मैं रोती रही और मन ही मन प्रार्थना करती रही कि वही मेरे पापा हों. देर तो बहुत हो गई थी.

हम जब वहां पहुंचे तो एक हालनुमा कमरे में प्रार्थना और भजन चल रहे थे. मैं पीछे जा कर बैठ गई. मैं ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं और उस व्यक्ति को तलाश करने लगी जो मेरे वजूद का निर्माता था, जिस का मैं अंश थी. जिस के कोमल स्पर्श और उदास आंखों की सदा मुझे तलाश रहती थी और जिस को हमेशा मैं ने घुटन भरी जिंदगी जीते देखा था. मैं एकएक? चेहरा देखती रही पर वह चेहरा कहीं नहीं मिला, जो अपना सा हो.

तभी लाठी के सहारे चलता एक व्यक्ति मेरे पास आ कर बैठ गया. मैं ने ध्यान से देखा. वही चेहरा, निस्तेज आंखें, बिखरे हुए बाल, न आकृति बदली न प्रकृति. वजन भी घट गया था. मुझे किसी से पूछने की जरूरत महसूस नहीं हुई. यही थे मेरे पापा. गुजरे कई बरसों की छाप उन के चेहरे पर दिखाई दे रही थी. मैं ने संदीप को इशारा किया. आज पहली बार मेरी आंखों में चमक देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए.

भजन समाप्त होते ही हम दोनों ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और सामने कुरसी पर बिठा दिया. मैं कैसे बताऊं उस समय मेरे होंठों के शब्द मूक हो गए. मैं ने उन के चेहरे और सूनी आंखों में इस उम्मीद से झांका कि शायद वह मुझे पहचान लें. मैं ने धीरेधीरे उन के हाथ अपने कांपते हाथों में लिए और फफक कर रो पड़ी.

‘पापा, मैं हूं आप की निकी…मुझे पहचानो पापा,’ कहतेकहते मैं ने उन की गर्दन के इर्दगिर्द अपनी बांहें कस दीं, जैसे बचपन में किया करती थी. प्रार्थना कक्ष के सभी व्यक्ति एकदम संज्ञाशून्य हो कर रह गए. वे सब हमारे पास जमा हो गए.

पापा ने धीरे से सिर उठाया और मुझे देखने लगे. उन की सूनी आंखों में जल भरने लगा और गालों पर बहने लगा. मैं ने अपनी साड़ी के कोने से उन के आंसू पोंछे, ‘पापा, मुझे पहचानो, कुछ तो बोलो. तरस गई हूं आप की जबान से अपना नाम सुनने के लिए…कितनी मुश्किलों से मैं ने आप को ढूंढ़ा है.’

‘यह बोल नहीं सकते बेटी, आंखों से भी अब धुंधला नजर आता है. पता नहीं तुम्हें पहचान भी पा रहे हैं या नहीं,’ वहीं पास खड़े एक व्यक्ति ने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘क्या?’ मैं एकदम घबरा गई, ‘अपनी बेटी को नहीं पहचान रहे हैं,’ मैं दहाड़ मार कर रो पड़ी.

पापा ने अपना हाथ अचानक धीरेधीरे मेरे सिर पर रखा जैसे कह रहे हों, ‘मैं पहचानता हूं तुम को बेटी…मेरी निकी… बस, पिता होने का फर्ज नहीं निभा पाया हूं. मुझे माफ कर दो बेटी.’

बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपना संतुलन बनाए रखा था. अपार स्नेह देखा मैं ने उन की आंखों में. मैं कस कर उन से लिपट गई और बोली, ‘अब घर चलो पापा. अपने से अलग नहीं होने दूंगी. 15 साल आप के बिना बिताए हैं और अब आप को 15 साल मेरे लिए जीना होगा. मुझ से जैसा बन पड़ेगा मैं करूंगी. चलेंगे न पापा…मेरी खुशी के लिए…अपनी निकी की खुशी के लिए.’

पापा अपनी सूनी आंखों से मुझे एकटक देखते रहे. पापा ने धीरे से सिर हिलाया. संदीप को अपने पास खींच कर बड़ी कातर निगाहों से देखते रहे जैसे धन्यवाद दे रहे हों.

उन्होंने फिर मेरे चेहरे को छुआ. मुझे लगा जैसे मेरा सारा वजूद सिमट कर उन की हथेली में सिमट गया हो. उन की समस्त वेदना आंखों से बह निकली. उन की अतिभावुकता ने मुझे और भी कमजोर बना दिया.

‘आप लाचार नहीं हैं पापा. मैं हूं आप के साथ…आप की माला का ही तो मनका हूं,’ मुझे एकाएक न जाने क्या हुआ कि मैं उन से चिपक गई. आंखें बंद करते ही मुझे एक पुराना भूला बिसरा गीत याद आने लगा :

‘सात समंदर पार से, गुडि़यों के बाजार से, गुडि़या चाहे ना? लाना…पापा जल्दी आ जाना.’

Short Stories in Hindi : वक्त का दोहराव

Short Stories in Hindi :  शशांक दबे पांव छत पर पहुंचा. पूरे महल्ले में निस्तब्धता छाई हुई थी. कहीं आग से झुलसे मकान, टूटी दुकानें, सड़कों पर टूटी लाठियां, ईंटपत्थर और कहींकहीं तो खून के धब्बे भी नजर आ रहे थे. कितना खौफनाक मंजर था. हिंदू-मुसलिम दंगे ने नफरत की ऐसी आग लगाई है कि इंसान सभ्यता की सभी हदों को लांघ कर दरिंदगी पर उतर आता है.

राजनीतिबाज न जाने कब बाज आएंगे अपनी रोटियां सेंकने से. शशांक के अंतर में अपने दादाजी के कहे वो शब्द याद आ रहे थे कि नेता लोग राजनीति खेल जाते हैं और कितने ही लोग अपनी जान से खेल जाते हैं…

भारत-पाकिस्तान का बंटवारा. मानो एक हंसतेखेलते परिवार का दोफाड़ कर दिया गया. कौन अपना, कौन पराया. हिंदू-मुसलमानों के मन में ऐसा जहर घोला कि देखते ही देखते कल तक एक ही थाली में साथसाथ खाते दोस्त एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे. अपने पिताजी के मुंह से सुनी थी उस ने उस वक्त की दास्तान. आज वही कहानी फिर से उस की आंखों के सामने पसरने लगी थी…

हवेलीनुमा दोमंजिला घर और बहुत बड़ा चौक, चौक को पार कर के एक बहुत बड़ा दरवाजा, दरवाजा क्या था, पूरा किले का दरवाजा था, बड़ीबड़ी सांकल, सेफ पोल, बड़ेबड़े ताले उस दरवाजे को खोलना व बंद करना हर एक के बस की बात नहीं थी. मास्टर जीवन लाल ही उसे अपने मुलाजिमों के साथ मिल कर खोलते व बंद करते थे.

लेकिन आज यह क्या, वही दरवाजा, ऐसे लगता था कि बस अब गिरा तब गिरा. लगता भी क्यों न, आज एक बहुत बड़ा झुंड उस दरवाजे को धकेल रहा था, पीट रहा था, यह कैसा झुंड था?

मास्टर जीवनलाल जिन का इस पूरे शहर में नाम था, इज्जत थी, रुतबा था, आज वही मास्टरजी अपने पूरे परिवार के साथ इस हवेली में सांस रोके बैठे हैं.

परिवार में पत्नी, 3 बेटे, 3 बेटियां, बहू, सालभर का एक पोता सभी तो हैं, हंसता खेलता परिवार है.

कुछ समय से चल रही हिंदू मुसलमानों की आपस की दूरियां दिख तो रही थीं पर हालात ऐसे हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी न था.

मुसलमान और हिंदू एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, आपस में इतनी नफरत होगी, कभी किसी ने सोचा भी न था. यह क्या हो गया भाइयो, जन्मजन्म से एकदूसरे के साथ रहते आए परिवार एकदूसरे से इतनी नफरत क्यों करने लगे.

हालात ऐसे हो गए थे कि जवान लड़कियों को उठा कर ले जाया जा रहा था.  बूढ़ों को मार दिया जा रहा था. मास्टर जीवन लाल अपनी तीनों जवान लड़कियों और बहू को हवेली की ऊपर वाली मंजिल पर पलंग के नीचे छिपाए हुए थे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देख रहे थे. कभी भी दरवाजा टूट सकता था.

मास्टर जीवन लाल का बड़ा बेटा, कटार लिए खड़ा था कि दरवाजा खुलते ही वह अपनी तीनों बहनों व पत्नी को इसलिए मार डालेगा कि कोई उन्हें उठा कर नहीं ले जा पाए. बहनें व पत्नी सामने मौत खड़ी देख ऐसे कांप रही थीं जैसे आंधी में डाल पर लगा पत्ता फड़फड़ा रहा हो.

पर यह क्या, दरवाजे के पीटने और धकेलते रहने के बीच एक आवाज उभरी. वह आवाज थी मास्टर जीवन लाल के किसी विद्यार्थी की. वह कह रहा था कि अरे, क्या कर रहे हो. यह तो मेरे मास्टरजी का घर है. इस घर को छोड़ दो. आगे चलो, और देखते ही देखते बाहर कुछ शांति हो गई.

रात का यह तूफान जब गुजर गया तो मास्टर जीवन लाल ने सोचा कि यहां से अपने पूरे परिवार को सहीसलामत कैसे बाहर निकाला जाए. इस सोच में वे दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो बाहर का भयानक दृश्य देख कर रो पड़े. लाशें पड़ी हैं, कोई तड़प रहा है, कोई पानी मांग रहा है. जिस गली में वे और उन का परिवार बड़ी शान से होली, दीवाली, ईद मनाते थे, पड़ोसियों के साथ हंसीमजाक, मौजमस्ती होती थी, वही गली आज खून से नहाई हुई है. सभी आज कितने बेबस व लाचार हैं, किस को पानी पिलाएं, किस को अस्पताल पहुंचाएं. रात आए तूफान से घबराए, आगे आने वाले तूफान से अपने परिवार को बचाने के लिए वे क्या करें. अपनी तीनों जवान बेटियों को आगे आने वाले तूफान से बचाने की गरज से सबकुछ अनदेखा कर के वे आगे बढ़ गए.

मास्टर जीवन लाल जब बाहर का जायजा लेने निकले तो उन्हें पता चला कि हिंदुओं से यह जगह खाली कराई जा रही है. हिंदुओं को किसी तरह लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है और वहां से आगे.

मास्टर जीवन लाल ने यह सुना तो वे जल्दी ही अपने परिवार की हिफाजत के लिए वापस मुड़े और घर पहुंच कर उन्होंने बीवी व बच्चों से कहा कि घर खाली करने की तैयारी करो. अब यहां से सबकुछ छोड़छाड़ कर जाना होगा.

इतना सुनते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया. ऐसा होना लाजिमी भी है. सालों से यहां रह रहे थे. यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, यहीं पढ़े और फिर उन से कहा जाए कि यहां तुम्हारा कुछ नहीं है, तुम यहां से जाओ, कैसा लगेगा. खैर, मास्टर जीवन लाल ने हिम्मत दिखाते हुए सब को तैयार किया और जरूरी कागजात व कुछ पैसे लिए. फिर उस आलीशान हवेली को हमेशा के लिए आंसुओं से अलविदा किया.

पैर हवेली के बाहर निकले तो इतने भारी थे कि उठ ही नहीं रहे थे. दिल हाहाकार कर रहा था. परंतु फिर भी उन्होंने अपने परिवार को देखा हिम्मत की और चल पड़े.

अब मास्टर जीवन लाल बिना छत, बेसहारा अपने परिवार के साथ खुले आसमान के नीचे खड़े थे. अब उन के पास कुछ न था. हाय समय का फेर देखो, कुछ समय पहले तो खुशियों की लहरें उठ रही थीं और अब यह क्या हो गया. यह कैसा तूफान था. इस तूफानी बवंडर में कैसे फंस गए. कब बाहर निकलेंगे इस तूफान से, पता नहीं.

अब मास्टर जीवन लाल के पास एक ही मकसद था कि अपने परिवार को सहीसलामत हिंदुस्तान पहुंचाया जाए. मास्टर जीवन लाल को पता चला कि ट्रक भर कर लोगों को लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है. बहुत कोशिश के बाद मास्टर जीवन लाल की बहू व पत्नी को एक ट्रक में जगह मिल गई. और पीछे रह गईं मास्टरजी की बेटियां व बेटे.

उफ्फ अब क्या करें अब जो रह गए उन्हें किस के सहारे छोड़ें और जो चले गए उन्हें आगे का कुछ पता नहीं. मास्टरजी इस कशमकश में खड़े थे कि फिर लोगों का जनून उभरा. मार डालो, काट डालो की आवाजें. मास्टरजी फिर से परेशान हो गए. अब वे बेटियों को कहां छिपाएं. मास्टरजी की आंखों से आंसू बह निकले.

इतने में मास्टरजी को एक फरिश्ते की आवाज सुनाई दी. सलाम अलैकम, भाईजान. मास्टरजी ने जब उस ओर देखा तो मास्टरजी के सामने चलचित्र की तरह पुरानी घटनाएं याद आ गईं. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे. दोनों परिवार एकसाथ सारे तीजत्योहार एकसाथ मनाते थे. फिर अचानक सलीम भाई को विदेश जाना पड़ गया. और अब मिले तो इस हाल में. न हवेली अपनी थी, न ही देश अपना रह गया था. सबकुछ खत्म हो चुका था. मास्टरजी लुटेपिटे खड़े थे.

सलीम भाई ने मास्टरजी को गले लगा लिया. मास्टरजी का हाल देख कर सलीम भाई भी रो पड़े. सलीम भाई ने मास्टरजी को एक बहुत बड़ी तसल्ली दी, कहा कि भाईजान, आप की बेटियां मेरी बेटियां. अब तुम इन की फिक्र छोड़ो और लाहौर जा कर भाभीजी और बहू को खोजो. मास्टरजी के पास अब कोई चारा भी नहीं था. सलीम भाई का विश्वास ही था, और वे आगे बढ़ गए.

कितना सहा होगा उस वक्त लोगों ने जब अपनी जड़ों से उखड़ कर रिफ्यूजी बन गए होंगे. धर्म क्या यही सिखाता है हमें, तोड़ दो रिश्तों को, मानवीय संवेदनाओं का खून कर दो.

बरसों पुरानी हिंदू, मुसलमान की वह नफरत आज भी बरकरार है तो इन नेताओं की वजह से, धर्म के ठेकेदारों की वजह से, अंधविश्वास की गठरी उठाए लोगों की अंधभक्ति की वजह से.

काश, जल्दी ही हमें समझ में आ जाए कि धर्म तो दिलों को मिलाता है, चोट पर मरहम लगाता है. खून की नदियां नहीं बहाता, बच्चों को रुलाता नहीं, औरतों की इज्जत नहीं उतारता, बसेबसाए घरों को उजाड़ता नहीं. काश, यह बात आने वाली हमारी पीढ़ी जल्दी ही समझ जाए.

Famous Hindi Stories : एक बार फिर से

Famous Hindi Stories : “हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

Hindi Stories Online : अनमोल रिश्ता – मदनलाल को किसने कहा विश्वासघाती

Hindi Stories Online :  खाना खा कर अभी हाथ धोए भी नहीं थे कि फोन की घंटी बज उठी. जरूर बच्चों का फोन होगा, यह सोचते ही मेरे चेहरे पर चमक आ गई. ‘हैलो, हां बेटा, कहां पर हो?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मम्मी, बस, अब आधे घंटे बाद ही हम एलप्पी के लिए रवाना हो रहे हैं, शाम तक वहां पहुंच जाएंगे,’’ राजीव खुशी के साथ अपना कार्यक्रम बता रहा था. ‘‘चलो, ठीक है, वहां पहुंच कर खबर देना…और हां बेटा, खूब मौजमस्ती करना. बारबार इतनी दूर जाना नहीं होता है.’’

एक गाना गुनगुनाती हुई मैं अपने बच्चों के लिए ही सोच रही थी. 2 साल तक सोचतेसोचते आखिर इस बार दक्षिण भारत का 1 महीने का ट्रिप बना ही लिया. राजीव, बहू सीमा और उन के दोनों बच्चे आयुषआरुषि गरमियों की छुट्टियां होते ही गाड़ी द्वारा अपनी केरल की यात्रा पर निकले थे. राजीव डाक्टर होने की वजह से कभी कहीं ज्यादा समय के लिए जा ही नहीं पाता था. बच्चे भी अब 12-14 साल के हो गए थे. उन्हें भी घूमनेफिरने का शौक हो गया था. बच्चों की फरमाइश पर राजीव ने आखिरकार अपना लंबा कार्यक्रम बना ही लिया.

हम ने तो 20 साल पहले, जब राजीव मनीपाल में पढ़ता था, पूरे केरल घूमने का कार्यक्रम बना लिया था. घूमने का घूमना हो गया और बेटे से मनीपाल में मिलना भी. एलप्पी शहर मुझे बहुत पसंद आया था. खासकर उस की मीठी झील और खारा समुद्र का मेल, एलप्पी से चलने वाली यह झील कोच्चि तक जाती है. इस झील में जगहजगह छोटेछोटे टापू झील का सौंदर्य दोगुना कर देते हैं.

7 बजे जैसे ही मेरे पति घर में घुसे, सीधा प्रश्न किया, ‘‘बच्चों की कोई खबर आई?’’ ‘‘हां, एलप्पी के लिए रवाना हो गए हैं, अब थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले होंगे,’’ मैं ने पानी का गिलास उन के हाथ में देते हुए कहा.

‘‘बच्चों को गए 15 दिन हो गए, उन के बिना घर कितना सूनासूना लगता है,’’ फिर कुछ क्षण रुक कर बोले, ‘‘याद है तुम्हें, एलप्पी में मोटरबोट में तुम कितना डर गई थीं, जब झील से हम समुद्र के हिलोरों के बीच पहुंचे थे. डर के मारे तुम ने तो मोटरबोट मोड़ने को ही कह दिया था,’’ कहते हुए वे होहो कर हंस पड़े. ‘‘अरे, बाप रे, आज भी याद करती हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं तो वैसे भी बहुत जल्दी घबरा जाती हूं. फोन पर राजीव को समझा दूंगी, नहीं तो बच्चे डर जाएंगे,’’ मैं ने उतावले हो कर कहा.

‘‘रहने दो, बच्चों को अपने हिसाब से, जो कर रहे हैं, करने दो, नसीहत देने की जरूरत नहीं है,’’ अपनी आदत के मुताबिक पति ने मुझे झिड़क दिया. मैं पलट कर कुछ कहती कि फोन की घंटी बज उठी. इन्होंने फोन उठाया, ‘‘हां, बेटी सीमा, तुम एलप्पी पहुंच गए?’’

न जाने उधर से क्या जवाब मिला कि इन का चेहरा एकदम फक पड़ गया. बुझी आवाज में बोले, ‘‘ऐसा कैसे हो गया, ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’ आगे बोले, ‘‘क्या आरुषि का हाथ बिलकुल मुड़ गया है और आयुष का क्या हाल है.’’ इन के चेहरे के भाव बदल रहे थे. मैं भी घबराती हुई इन से सट कर खड़ी हो गई.

फोन में से टूटेफूटे शब्द मुझे भी सुनाई दे रहे थे, ‘‘राजीव को चक्कर आ रहे हैं और कमर में तेज दर्द हो रहा है, उठा भी नहीं जा रहा है.’’ ये एकदम चिंतित हो कर बोले, ‘‘हां, ठीक है. एक बार पास ही के अस्पताल में दिखा दो. मैं कुछ सोचता हूं,’’ कह कर इन्होंने फोन धम्म से पटक दिया और वहीं बैठ गए.

मैं ने एकदम से प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘‘बच्चों के संग क्या हो गया? कैसे हो गया? कहां हो गया और अब क्या सोच रहे हैं?’’ मेरे प्रश्नों को अनसुना करते हुए खुद ही बुदबुदाने लगे, ‘यह क्या हो गया, अच्छाभला बच्चे का सफर चल रहा था, एक बच्चा और मोटरसाइकिल को बचाने के चक्कर में गाड़ी असंतुलित हो कर एक खड़ी कार से टकरा गई. यह तो अच्छा है कि एलप्पी बिलकुल पास है, कम से कम अस्पताल तो जल्दी से पहुंच जाएंगे,’ यह कहते हुए वे ऊपर शून्य में देखने लगे.

मेरा मन बहुत अशांत हो रहा था. राजीव को चक्कर आ रहे हैं. कहीं सिर में तो चोट नहीं लग गई, यह सोच कर ही मैं कांप गई. सब से ज्यादा तो ये हताश हो रहे थे, ‘‘एलप्पी में तो क्या, साउथ में भी अपना कोई रिश्तेदार या दोस्त नहीं है, जो उन्हें जा कर संभाल ले. यहां उदयपुर से पहुंचने में तो समय लग जाएगा.’’ अचानक मुझे याद आया, ‘‘5-6 साल पहले अपने यहां कैल्लूर से सलीम भाई आते थे. हर 2-3 महीने में उन का एक चक्कर लग जाता था. उन से संपर्क करो,’’ मैं ने सलाह दी.

‘‘पर 5 साल से तो उन की कोई खबर नहीं है,’’ फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘मेरे ब्रीफकेस में से पुरानी डायरी लाना. शायद कोई नंबर मिल जाए.’’ मैं झटपट दौड़ कर डायरी ले आई. पन्ने पलटते हुए एक जगह कैल्लूर का नंबर मिल गया.

फटाफट नंबर लगाया तो नंबर मिल गया, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? हां, मैं उदयपुर से मदन…मदनलाल बोल रहा हूं. क्या सलीम भाई से बात हो सकती है?’’ ‘‘अब यह फैक्टरी सलीम भाई की नहीं है, मैं ने खरीद ली है,’’ एक ठंडा स्वर सुनाई दिया.

‘‘ओह, देखिए, आप किसी तरह से सलीम भाई का नंबर दे सकते हैं, मुझे उन से बहुत जरूरी काम है,’’ इन की आवाज में लाचारी थी. उधर से आवाज आई, ‘‘हमारे यहां एक अकाउंटेंट संजीव रेड्डी पुराना है, मैं उस से बात करवा देता हूं.’’

हमें एकएक पल भारी लग रहा था, ‘‘हैलो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘हां, मैं रेड्डी बोल रहा हूं, हां जी, मैं सलीम भाई को जानता हूं. पर मुझे उन का नंबर नहीं मालूम है. हां, पर उन की लड़की कोच्चि में रहती है. उस का नंबर शायद मेरी लड़की के पास होगा. आप 5 मिनट बाद फोन मिलाएं. मैं पूछ कर बताता हूं.’’

रेड्डी साहब के सहयोग से हमें सलीम भाई की लड़की शमीमा का नंबर मिल गया. उस से फटाफट हमें उस के भाई अशरफ का नंबर मिल गया. नंबर मिलते ही हमारी आंखों में चमक आ गई, ‘‘हैलो, आप सलीम भाई के घर से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, जी, आप कहां से बोल रहे हैं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘जी, मैं उदयपुर से बोल रहा हूं. आप सलीम भाई से बात करवा दीजिए.’’

‘‘आदाब चाचाजान, मैं आप को पहचान गया. मैं सलीम भाई का लड़का अशरफ बोल रहा हूं, अब्बा अकसर आप की बातें करते हैं. आप मुझे हुक्म कीजिए,’’ अशरफ की आवाज नम्र थी. ये एकदम आतुरता से बोले, ‘‘असल में मैं आप को एक तकलीफ दे रहा हूं, मेरे बेटे राजीव का एलप्पी में एक्सीडेंट हो गया है. वहीं अस्पताल में है, आप उस की कुछ मदद कर सकते हैं क्या?’’

‘‘अरे, चाचाजान, आप बेफिक्र रहिए. मैं अभी एलप्पी के लिए गाड़ी से निकल जाता हूं. उन का पूरा खयाल रख लूंगा और आप को सूचना भी देता रहूंगा. आप उन का मोबाइल नंबर बता दीजिए.’’ इन्होंने जल्दी से सीमा का मोबाइल नंबर बता दिया और आगे कहा, ‘‘ऐसा है, हम जल्दी से जल्दी पहुंचने की कोशिश करेंगे, सो यदि उचित समझो तो उन को कोच्चि में भी दिखा देना.’’

‘‘आप मुझे शर्मिंदा न करें, चाचाजान, अच्छा अब मैं फोन रखता हूं.’’ अशरफ की बातें सुन कर तो हमें चैन आ गया, फटाफट प्लेन का पता किया. जल्दीजल्दी अटैची में सामान ठूंस रहे थे और जाने की व्यवस्था भी कर रहे थे. रात होने की वजह से हवाई जहाज से जाने का कार्यक्रम कुछ सही बैठ नहीं रहा था. सिर्फ सीमा से बात कर के तसल्ली कर रहे थे. मन में शंका भी हो रही थी कि अशरफ अभी रवाना होगा या सुबह?

खाने का मन न होते हुए भी इन की डायबिटीज का ध्यान कर हम ने दूध बे्रड ले लिया. मन में बहुत ज्यादा उथलपुथल हो रही थी. सलीम भाई से बात नहीं हुई थी, यहां आते थे तब तो बहुत बातें करते थे. क्या कारण हो सकता है? कितने ही विचार मन में घूम रहे थे.

6 साल पुरानी बातें आज जेहन में टकराने लगीं. मैं सब्जी बना चुकी थी कि इन का फोन आ गया, ‘सुधा, एक मेहमान खाना खाएंगे. जरा देख लेना.’

मेरा मूड एकदम बिगड़ गया, कितने दिनों बाद तो आज मूंग की दालपालक बनाया था, अब मेहमान के सामने नए सिरे से सोचना पड़ेगा. न मालूम कौन है? खाने की मेज पर इन्होंने मेरा परिचय दिया और बताया, ‘ये सलीम भाई हैं. सामने उदयपुर होटल में ही ठहरे हैं. इन का मार्बल और लोहे का व्यापार है. उसी सिलसिले में मुझ से मिलने आए हैं.’

फिर आगे बोले, ‘ये कैल्लूर के रहने वाले हैं, बहुत ही खुशमिजाज हैं.’ वास्तव में सलीम भाई बहुत ही खुशहाल स्वभाव के थे. उन के चेहरे पर हरदम एक मुसकान सी रहती थी, मार्बल के सिलसिले में इन से राय लेने आए थे.

धीरेधीरे इन का सलीम भाई के साथ अभिन्न मित्र की तरह संबंध हो गया. वह 2-3 महीने में अपने काम के सिलसिले में उदयपुर चक्कर लगाते थे. गरमी के दिन थे. सलीम भाई का सिर सुबह से ही दुख रहा था. दवा दी पर शाम तक तबीयत और खराब होने लगी. उलटियां और छाती में दर्द बढ़ता गया. अस्पताल में भरती कराया क्योंकि उन को एसीडीटी की समस्या हो गई थी. 1 दिन अस्पताल में रहे, तो इन्होंने उन्हें 4 दिन रोक लिया. घर की तरह रहते हुए उन की आंखें बारबार शुक्रिया कहतेकहते भर आती थीं.

सलीम भाई के स्वभाव से तो कोई तकलीफ नहीं थी पर मैं अकसर कुढ़ जाती थी, ‘आप भी बहुत भोले हो. अरे, दुनिया बहुत दोरंगी है, अभी तो आप के यहां आते हैं. परदेस में आप का जैसा जिंदादिल आदमी मिल गया है. कभी खुद को कुछ करना पड़ेगा तब देखेंगे.’ ‘बस, तुम्हारी यही आदत खराब है. सबकुछ करते हुए भी अपनी जबान को वश में नहीं रख सकतीं, वे अपना समझ कर यहां आते हैं. दोस्ती तो काम ही आती है,’ ये मुझे समझाते.

2 साल तक उन का आनाजाना रहा. एक बार वे हमारे यहां आए. एकाएक उन का मार्बल का ट्रक खराब हो गया. 2 दिन तक ठीक कराने की कोशिश की. पर ठीक नहीं हुआ. पता लगा कि इंजन फेल हो गया था इसलिए अब ज्यादा समय लगेगा.

सलीम भाई ने झिझकते हुए कहा, ‘भाई साहब, अब मेरा जाना भी जरूरी है और मैं आप को काम भी बता कर जा रहा हूं, कृपया इसे ठीक करा कर भेज दीजिएगा. अगले महीने मैं आऊंगा तब सारा पेमेंट कर दूंगा.’ पर सलीम भाई के आने की कोई खबर नहीं आई. न उन के पेमेंट के कोई आसार नजर आए.

इंतजार में दिन महीनों में और महीने सालों में बदलने लगे. पूरे 5 साल निकल गए. मैं अकसर इन को ताना मार देती थी, ‘और करो भलाई, एक अनजान आदमी पर भरोसा किया. मतलब भी निकाल लिया. 40 हजार का फटका भी लग गया.’

ये ठंडे स्वर में कहते, ‘भूलो भी, जो हो गया सो हो गया. उस की करनी उस के साथ.’ ‘‘क्या बात है? किन खयालों में खोई हुई हो,’’ इन की आवाज सुन कर मेरा ध्यान बंटा, घड़ी की ओर देखा पूरे 12 बज रहे थे. नींद आने का तो सवाल ही नहीं था, बेटे और पोतेपोती की चिंता हो रही थी. न जाने कहां कितनीकितनी चोटें लगी होंगी. शायद सीमा ज्यादा नहीं बता रही हो कि मम्मीपापा को चिंता हो जाएगी.

वहां एलप्पी में न जाने कैसा अस्पताल होगा. बस, बुराबुरा ही दिमाग में घूम रहा था. करीब 3 बजे फोन की घंटी बजी. हड़बड़ाहट में लपकते हुए मैं ने फोन उठाया. सीमा का ही था, ‘‘मम्मी, यहां एलप्पी अस्पताल में हम ने मरहमपट्टी करा ली है. अब अशरफ भाईजान आ गए हैं. हम सुबह उन के संग कोच्चि जा रहे हैं.’’

फिर एक क्षण रुक कर बोली, ‘‘अशरफ भाईजान से बात कर लो.’’ ‘‘आंटी, आप बिलकुल चिंता मत करना, मैं कोच्चि में बढि़या से बढि़या इलाज करवा दूंगा, आप बेफिक्र हो कर आराम से आओ.’’

फिर आगे बोला, ‘‘यदि आप की तबीयत ठीक न हो तो इतना लंबा सफर मत करना, मैं इन्हें सकुशल उदयपुर पहुंचा दूंगा.’’ ‘‘शुक्रिया बेटा, लो अपने अंकल से बात करो,’’ मेरा मन हलका हो गया था.

‘‘बेटा, हम परसों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. तुम्हें तकलीफ तो दे रहे हैं, पर सलीम भाई से बात नहीं हुई. वे कहां हैं?’’ इन्होंने संशय के साथ पूछा. ‘‘अंकल, वह कोच्चि में ही हैं. आजकल उन की भी तबीयत ठीक नहीं है. अच्छा मैं फोन रखता हूं.’’

‘‘चलो, मन को तसल्ली हो गई कि परदेस में भी कोई तो अपना मिला. यह कहते हुए मैं लेट गई. जल्दी से जल्दी टैक्सी से पहुंचने में भी हमें समय लग गया. अशरफ ने हमें अस्पताल और रूम नंबर बता दिया था, सो हम सीधे कोच्चि के अस्पताल में पहुंच गए. वाकई अशरफ वहां के एक बड़े अस्पताल में सब जांच करवा रहा था, आरुषि के 2-3 फ्रैक्चर हो गए थे, उस के प्लास्टर बंध गया था.

राजीव के दिमाग में तो कोई चोट नहीं आई थी. पर बैकबोन में लगने से वह हिलडुल नहीं पा रहा था. चक्कर भी पूरे बंद नहीं हुए थे. एक पांव की एड़ी में भी ज्यादा चोट लग गई थी.

डाक्टर ने 10 दिन कोच्चि में ही रहने की सलाह दी. ऐसी हालत में इतनी दूर का सफर ठीक नहीं है, सीमा ठीक थी और वही सब को संभाल रही थी. पोते आयुष को हम अपने साथ अस्पताल से बाहर ले आए और अशरफ से होटल में ठहरने की बात की.

‘‘अंकल, आप क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं. घर चलिए, अब्बाजान आप का इंतजार कर रहे हैं.’’ हमारी हिचक देख कर वह बोला, ‘‘अंकल, आप चिंता न करें. आप के धर्म को देख कर मैं ने इंतजाम कर दिया है.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में धर्म नहीं देखा जाता है,’’ ये शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे. अशरफ हमें सलीम भाई के कमरे में ले गया. सलीम भाई ने एक हाथ उठा कर अस्फुट शब्दों में बोल कर हमारा स्वागत किया. उन की आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. हमारे मुंह से बोल नहीं निकल रहा था. इन्होंने सलीम भाई का हाथ पकड़ कर हौले से दबा दिया. 10 मिनट तक हम बैठे रहे, सलीम भाई उसी टूटेफूटे शब्दों में हम से बात करने की कोशिश कर रहे थे. अशरफ ही उन की बात समझ रहा था.

खाना खाने के बाद अशरफ ने बताया, ‘‘अब्बाजान जब भी उदयपुर से आते थे आप की बहुत तारीफ करते थे. हमेशा कहते थे, ‘‘मुझे जिंदगी में इस से बढि़या आदमी नहीं मिला और चाचीजान के खाने की इतनी तारीफ करते थे कि पूछो मत.’’ उस के चेहरे पर उदासी आ गई. एक मिनट खामोश रह कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘आप के यहां से आने के चौथे दिन बाद ही अम्मीजान की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी. बे्रस्ट में ब्लड आ जाने से एकदम चिंता हो गई थी. कैल्लूर के डाक्टर ने तो सीधा मुंबई जाने की सलाह दी.

‘‘जांच होने पर पता चला कि उन्हें बे्रस्ट कैंसर है और वह भी सेकंडरी स्टेज पर. बस, सारा घर अम्मीजान की सेवा में और पूरा दिन अस्पताल, डाक्टरों के चक्कर लगाने में बीत जाता था. ‘‘इलाज करवातेकरवाते भी कैंसर उन के दिमाग में पहुंच गया. अब्बाजान तो अम्मीजान से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अम्मी 2 साल जिंदा रहीं पर अब्बाजान ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. मैं उस समय सिर्फ 20 साल का था.

‘‘ऐसी हालत में व्यापार बिलकुल चौपट हो गया. फैक्टरी बेचनी पड़ी. अम्मीजान घर से क्या गईं, लक्ष्मी भी हमारे घर का रास्ता भटक गई. ‘‘अकसर अब्बाजान आप का जिक्र करते थे और कहते थे, ‘एक बार मुझे उदयपुर जाना है और उन का हिसाब करना है, वे क्या सोचते होंगे कि दोस्ती के नाम पर एक मुसलमान धोखा दे गया.’?’’

हमारी आंखें नम हो रही थीं, इन्होंने एकदम से अशरफ को गले लगा लिया और बात बदलते हुए पूछा, ‘‘सलीम भाई की यह हालत कैसे हो गई?’’ अशरफ गुमसुम सा छत की ओर ताकने लगा, मन की वेदना छिपाते हुए आगे बोला, ‘‘अंकल, जब मुसीबत आती है, तो इनसान को चारों ओर से घेर लेती है. अभी 2 साल पहले अब्बाजान ने फिर से व्यापार में अच्छी तरह मन लगाना शुरू किया था. हमारा कैल्लूर छूट गया था. हम कोच्चि में ही रहने लगे. मैं भी अब उन के संग काम करना सीख रहा था.

‘‘पहले वाला मार्बल का काम बिलकुल ठप्प पड़ गया था. कर्जदारों का बोझ बढ़ गया था. व्यापार की हालत खराब हुई तो लेनदार आ कर दरवाजे पर खड़े हो गए. पर देने वालों ने तो पल्ला ही झाड़ लिया. आजकल मोबाइल नंबर होते हैं, बस, नंबर देखते ही लाइन काट देते थे. ‘‘जैसेतैसे थोड़ी हालत ठीक हुई तो अब्बाजान को लकवे ने आ दबोचा. चल- फिर नहीं पाते और जबान भी साफ नहीं हुई, इसलिए एक बार फिर व्यापार का वजन मेरे कंधों पर आ गया.’’

यों कहतेकहते अशरफ फूटफूट कर रो पड़ा. मेरी भी रुलाई फूट रही थी. मुझे आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी. कितनी संकीर्णता से मैं ने एकतरफा फैसला कर के किसी को मुजरिम करार दे दिया था. राजीव की सारी जांच की रिपोर्टें आने के बाद कोई बीमारी नहीं निकली थी. हम सब ने राहत की सांस ली. मन की दुविधा निकल गई थी. हमें देख कर आज भी सलीम भाई के चेहरे पर वही चिरपरिचित मुसकान आ जाती थी.

10 दिन रह कर हमारे उदयपुर लौटने का समय आ गया था. अशरफ के कई बार मना करने के बावजूद इन्होंने सारा पेमेंट चुकाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पिता के समान हूं. एक बाप अपने बेटे पर कर्तव्यों का बोझ डालता है पर खर्चे का नहीं. अभी तो मैं खर्च कर सकता हूं.’’

अशरफ इन के पांवों में झुक गया. इन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम ने जिस तरह से अपने पिताजी की शिक्षा ग्रहण की है और कर्तव्य की कसौटी निभाई है वह बेमिसाल है.’’ फिर एक बार सलीम भाई के गले मिले. दोनों की आंखें झिलमिला रही थीं.

चलते समय अशरफ ने झुक कर आदाब किया. इन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज से अपने इस चाचा को पराया मत समझना. तुम्हारे एक नहीं 2 घर हैं. हमारे बीच एक अनमोल रिश्ता है, जो सब रिश्तों से ऊपर है.’’

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