ओटीटी के आने से काम बढ़ा है- रूपाली सूरी

थिएटर से अभिनय की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री रूपाली सूरी ने इंटरनैशनल फीचर फिल्म ‘डैड होल्ड माई हैंड’ से की थी.  इस फिल्म में उन्हें रत्ना पाठक शाह के साथ काम करने का मौका मिला. निर्देशन के साथसाथ विक्रम गोखले ने खुद ही इस फिल्म को एडिट और कंपोज भी किया है. इस में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से लौकडाउन की कहानी को शूट किया है. रूपाली अभी कुछ वैब सीरीज और फिल्मों में काम कर रही है. व्यस्त समय के बीच उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात की. आइए, जानें उन की कहानी.

अभिनय की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरे परिवार में कोई भी इस इंडस्ट्री से नहीं है, लेकिन छोटी उम्र में मेरी फीचर मौडल की तरह होने की वजह से कई फैशन शोज में भाग लिया. इस के अलावा उस दौरान घर में कुछ तंगी होने की वजह से मां ने मुझे आए हुए प्रोजैक्ट को करने के लिए कहा. उस प्रोजैक्ट के पूरा होते ही दूसरा प्रोजैक्ट आ गया. इस तरह से काम छूटा नहीं. काम करने के बाद कालेज के बाद ही मैं ने निश्चय कर लिया कि मुझे ऐक्टिंग ही करनी है क्योंकि तब तक मैं काम सीख चुकी थी.

मौडलिंग का काम मैं ने दूसरी कक्षा से शुरू कर दिया था. स्कूल में काम कम था, लेकिन कालेज में इस की रफ्तार तेज हुई. मौडलिंग के अलावा मैं ने कई सीरियल्स में भी काम किया. फिर धीरेधीरे वैब सीरीज, फिल्में आदि मिलती गईं क्योंकि अभिनय को सम?ाने के लिए इफ्टा जौइन किया. उन के साथ कई शोज किए. मेरा वह शुरुआती दौर था, जिस में कला, अभिनय के साथ बहुत सारी बातों को सीखना था.

मुझे यह सम?ाना जरूरी था कि मैं खुद क्या और कितना काम कर सकती हूं. इसलिए मैं ने थिएटर के मंच पर कई ऐक्सपैरिमैंटल शोज किए. वहां तालियों की गड़गड़ाहट, दर्शकों का तुरंत रिएक्शन मिलता था. अभी भी मैं स्टेज की दुनिया को मिस करती हूं. मुझे कई बार ऐसा लगता है कि इंडस्ट्री ने मुझे चुन लिया है, मैं ने नहीं चुना है.

कितना संघर्ष रहा?

संघर्ष का स्तर हमेशा अलग होता है. पहले संघर्ष में मैं ने आर्थिक तंगी के कारण काम शुरू किया था, दूसरे स्तर के संघर्ष में मेरे पास बस, टैक्सी, औटो के पैसे नहीं थे. कैसे मैं आगे बढ़ी हूं, यह मैं ही जानती हूं. तीसरा संघर्ष फैशन शो में जाने के लिए मेरे पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे.

आज पीछे मुड़ कर देखने पर मुझे महसूस होता है कि इतनी स्ट्रगल के बाद ही मु?ा में आत्मविश्वास आ पाया और मैं ने जो अपनी छोटी एक सफल दुनिया बनाई है वह इसी के बल पर बनी है. मेरी बड़ी बहन भी अभिनय से जुड़ी हैं. दोनों का रास्ते एक है, लेकिन अप्रोच अलगअलग है.

क्या आप को बड़ी बहन का सहयोग मिला?

सहयोग से अधिक मैं उन से प्रेरित हुई हूं. उन्होंने अपने जीवन में मेहनत कर एक जगह बनाई है. उन के सही कदम और गलतियों से मैं ने बहुत कुछ सीखा है. वे मेरे लिए ‘लाइव लैसन’ हैं. मैं साधारण परिवार से हूं, मेरे पिता गारमेंट के व्यवसाय में थे. अब रिटायर्ड हैं और मां गुजर चुकी हैं. मेरी मां बहुत कम उम्र में बिछड़ गईं. इस वजह से हम दोनों बहनें बहुत ही हंबल बैकग्राउंड से हैं.

इंडस्ट्री में गौडफादर न होने पर काम मिलना मुश्किल होता है. क्या आप को भी काम मिलने में परेशानी हुई?

यह तो होता ही रहता है क्योंकि पेरैंट्स के काम से उन के बच्चों को लाभ मिलता है. यह केवल इस इंडस्ट्री में ही नहीं हर जगह लागू होता है. पहला मौका उन्हें जल्दी मिलता है, लेकिन काम के जरीए उन्हें भी प्रूव करना पड़ता है कि वे इस इंडस्ट्री के लिए सही हैं.

कई बार काम होतेहोते कलाकार रिजैक्ट हो जाते हैं, क्या आप को रिजैक्शन का सामना करना पड़ा?

बहुत बार मुझे इन चीजों का सामना करना पड़ा. कई बार मैं रात 10 बजे मैनेजर को जगा कर पूछती थी कि मैं ने क्या गलत किया. कई बार तो साइनिंग अमाउंट मिलने के बाद भी रिजैक्ट हुई. कई बार सैट पर पहुंचने के बाद मुझे अगले दिन नहीं बुलाया गया. इस की वजह सम?ाना मुश्किल होता है. कभी कोई कहता है कि इस रोल के लिए मैं ठीक नहीं, तो दूसरा कोई और बहाना बनाता है. सामने कोई कुछ अधिक नहीं कहता. एक बार मैं निर्देशक अनीस बज्मी की फिल्म में कास्ट हुई, लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि नए कलाकार के साथ वे काम नहीं करते, उन्हें एक अनुभवी कलाकार चाहिए.

स्ट्रैस होने पर रिलीज कैसे करती हैं?

मैं आधी रात को मैनेजर से घंटों बात करती हूं और वे मुझे सम?ाती हैं. अगर वे उपलब्ध न हों तो मैं कथक डांस कर सारा स्ट्रैस निकाल लेती हूं. मैं एक कलाकार हूं और हर इमोशन को फील करती हूं, लेकिन एक बार उस से निकलने पर वापस मैं उस में नहीं घुसती और आगे बड़ जाती हूं.

किस शो ने आप की जिंदगी बदली?

टीवी ने मुझे बहुत सहयोग दिया है. उस के शोज से मुझे आज भी लोग याद करते हैं. मेरी वैब सीरीज, फिल्मों की अलग और टीवी की एक अलग पहचान है. शो ‘शाका लाका बूमबूम’ में मेरे चरित्र, विज्ञापनों आदि को लोग आज भी याद रखते हैं. इस तरह बहुत सारे ऐसे टीवी शोज हैं, जिन से मैं सब के घरों तक पहुंच पाई.

ओटीटी आज बहुत अधिक दर्शकों के बीच में पौपुलर है, इस का फायदा नए कलाकारों को कितना मिल पाता है?

ओटीटी आने से इंडस्ट्री में लोगों का काम और वेतन काफी बढ़ गया है. जिस तरह टीवी ने आज से कुछ साल पहले कलाकारों को अभिनय करने का एक बड़ा मौका दिया था, वैसे ही ओटीटी के आने से काम बहुत बढ़ा है. काम और पैसे का बढ़ना ही इंडस्ट्री के लोगों के लिए निश्चित रूप से एक प्रोग्रैस है. इस से यह भी कलाकारों को पता चला है कि केवल फिल्म ही नहीं, आप ओटीटी पर अभिनय कर के भी संतुष्ट हो सकते है. यह एक प्रोग्रैसिव दौर है.

परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार के सहयोग के बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते. पहले दिन से ही मुझे यह आजादी मिली है, मुझे कभी रोका या टोका नहीं गया है. एक ट्रस्ट और कौन्फिडेंट दिया गया है, जो मेरे लिए जरूरी था.

आप के ड्रीम क्या हैं?

मेरे ड्रीम्स बहुत छोटेछोटे हैं. मैं छोटी चीजों को पा कर खुश हो जाती हूं. ये छोटी चीजें मिल कर एक दिन बड़ी हो जाती हैं. मैं हमेशा प्रेजैंट में रहती हूं. डांस मेरा पैशन है, लेकिन कब यह जरूरत बन गई पता नहीं चला. मैं अपनी सुविधा के लिए शो करती हूं, रियाज करती हूं, ये मुझे संतुलित रखते हैं. मेरे कथक गुरु राजेंद्र चतुर्वेदी हैं.

आप के जीवन जीने का अंदाज क्या है?

आसपास वालों को खुश रखना और वर्तमान में जीना.

क्या आप ऐनिमल लवर हैं?

मुझे जानवरों से बहुत प्यार है. मेरे निर्देशक भरतदाभोलकर भी ऐनिमल लवर हैं. मेरा उन से जुड़ाव भी जानवरों की वजह से हुआ है, मेरी डौगी डौन सूरी 15 साल साथ रहने के बाद मर गई. मुझे उस की बहुत याद आती है.

रिजैक्शन को लेकर क्या कहती हैं ‘दिया और बाती हम’ एक्ट्रेस दीपिका सिंह

दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी दीपिका सिंह को घर के आर्थिक हालात के चलते बीच में पढ़ाई छोड़ कर मातापिता की मदद के लिए नौकरी करते हुए पत्राचार से पढ़ाई पूरी करनी पड़ी. उन्होंने एक तरफ एमबीए की पढ़ाई पूरी की, तो दूसरी तरफ इवेंट का काम व थिएटर वगैरह करती रहीं. अंतत: उन्हें 2011 में टीवी सीरियल ‘दिया और बाती हम’ में अभिनय करने का अवसर मिला. पूरे 5 वर्ष तक यह सीरियल प्रसारित होता रहा. इस की शूटिंग के दौरान ही इसी सीरियल के निर्देशक रोहित राज गोयल से 2 मई, 2014 को विवाह रचा लिया.

शादी के बाद भी दीपिका सिंह अपने मातापिता की मदद करने के लिए तैयार रहती हैं. उस के बाद मई, 2017 में वे एक बेटे की मां भी बन गईं. 2018 में उन्होंने एक वैब सीरीज ‘द रीयल सोलमेट’ की. फिर 2019 में सीरियल ‘कवच’ में अभिनय किया और अब वह अपने पति रोहित राज गोयल के ही निर्देशन में एक संदेश देने वाली फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में मौसमी का किरदार निभाया है, जिस की सोच यह है कि शादी के बाद भी लड़की को अपने मातापिता की मदद करनी चाहिए. यह फिल्म 8 जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंच चुकी है. प्रस्तुत हैं, दीपिका सिंह से हुई बातचीत के अंश:

जब आप अभिनय में कैरियर बनाना चाहती थीं, तो फिर एमबीए करने की क्यों जरूरत महसूस की?

वास्तव में मैं एक इवेंट कंपनी में काम कर रही थी. इसी वजह से एक फैशन शो में हम गए थे, जहां एक लड़की के न आने से मुझे उस का हिस्सा बनना पड़ा और मैं विजेता भी बन गई. उस के बाद कुछ न कुछ काम मिलता गया और मैं करती रही. मैं ने दिल्ली में ही रहते हुए थिएटर भी किया और फिर सीरियल ‘दीया और बाती हम’ में अभिनय करने का अवसर मिला.

तो यह माना जाए कि आप को बिना संघर्ष किए ही सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का हिस्सा बनने का अवसर मिल गया था?

इस संसार में बिना संघर्ष किए कुछ नहीं मिलता पर औडिशन देने के बाद 1 माह के अंदर ही मेरा चयन संध्या राठी के किरदार के लिए हो गया. मैं इसे अपनी डैस्टिनी मानती हूं पर पहले मैं ने दिल्ली में इस सीरियल के लिए औडिशन दिया था. फिर मुंबई आ कर 1 माह तक औडिशन व लुक टैस्ट वगैरह होते रहे.

‘दिया और बाती हम’ के समय औडिशन की जो प्रक्रिया थी और अब औडिशन की जैसी प्रक्रिया है उस में कितना अंतर आ गया है?

कोई बदलाव नहीं आया. बाद में मैं ने ‘कवच’ के लिए भी औडिशन दिया था. पहले लोग जानते नहीं थे, अब लोग जानते हैं, इसलिए फर्क आ गया है क्योंकि किरदार के अनुरूप चेहरा होने पर ही चयन होता है.

अब लोग जानते हैं तो जब किरदार के अनुरूप मैं नजर आती हूं, तभी बुलाते हैं. पहले हम लाइन में लग कर हर औडिशन देते थे. अब लोग मेरे चेहरे व मेरी प्रतिभा से वाकिफ हैं, तो उपयुक्त किरदार के लिए ही बुलावा आता है. अब लाइन में लग कर औडिशन देने की जरूरत नहीं पड़ती. तब मुझे लोगों को बताना पड़ता था कि मैं अभिनय कर सकती हूं. पहले भी मेरे अंदर टैलेंट था, मगर तब आत्मविश्वास की कमी थी. अब आत्मविश्वास भी बढ़ चुका है. फिर भी औडिशन हमेशा टफ होते हैं.

औडिशन में रिजैक्शन को किस तरह से लेती रहीं?

मजे से. जिंदगी में स्वीकार्यता कम मिलती है, रिजैक्शन ज्यादा मिलते हैं. इसलिए मैं कभी निराश नहीं होती. मैं हमेशा मान लेती थी कि औडिशन अच्छा नहीं हुआ होगा, इसलिए रिजैक्शन आया.

सीरियल ‘दिया और बाती हम’ व इस के संध्या राठी के किरदार को जबरदस्त सफलता मिली. आप को स्टारडम मिला. पर फिर इसे आप भुना नहीं पाईं? कहां गड़बड़ी हुई?

गड़बड़ी कहीं नहीं हुई. मैं ने बहुत मेहनत की थी, तब जा कर वह स्टारडम मिला. देखिए, डैस्टिनी आप को एक दरवाजे पर ला कर खड़ा कर देती है. उस के बाद आप की कठिन मेहनत, आप का इंटैशन, आप की विलिंग पावर ही काम आती है. इसी आधार पर आप खुद को टिकाए रख पाते हैं. पर मुझे जो स्टारडम मिला, उसे मैं सिर्फ डैस्टिनी नहीं कहूंगी बल्कि मेरी कठिन मेहनत व लगन से मिला.

2016 के बाद कोई बड़ा सीरियल नहीं किया?

जी हां, मैं अपनी निजी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी. मैं ने विवाह रचाया. मेरा परिवार बना. पारिवारिक जीवन को ऐंजौय कर रही थी. मेरे परिवार का हर सदस्य बहुत ही ज्यादा सहयोगी है. इसलिए वहां से मुझे मेरे काम पर रुकावट डालने के बजाय हमेशा बढ़ावा ही मिला. पर मैं खुद को अपने दर्शकों के प्रति जिम्मेदार मानती हूं. ‘दीया और बाती हम’ के बाद मुझे बेहतरीन व चुनौतीपूर्ण पटकथा नहीं मिली. जब भी अच्छी पटकथा मिली, मैं ने की.

फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में क्या खास बात पसंद आई कि आप ने इसे करना चाहा?

इस की कई वजहें रहीं. इस में कई बड़ेबड़े कलाकार हैं. इस की पटकथा व कहानी जबरदस्त है. इस के संवाद हर किसी को मोह लेने वाले हैं. गीत भी अच्छे हैं. जब मैं ने पटकथा पढ़ी, तो जिस तरह से इस कहानी में एक अच्छा संदेश पिरोया गया है, उस ने मुझे फिल्म को करने के लिए उकसाया. यह फिल्म हंसते व गुदगुदाते हुए अपनी बात कह जाती है. इस में मैं ही एकमात्र टीवी की कलाकार है, बाकी सभी तो फिल्मों से जुड़े कलाकार हैं.

मुझे तो मौसमी का किरदार जीवंत करना था. फिल्म के निर्देशक रोहित को बहुत कुछ पता था. सभी सह कलाकार काफी सपोर्टिब रहे. बीच में कोविड के बढ़ने से हमें शूटिंग में जरूर कुछ तकलीफें हुईं. यह फिल्म महज नारीप्रधान फिल्म नहीं है. इस में एक लड़के यानी टीटू का अपना संघर्ष है. टीटू के भी अपने सपने व महत्त्वाकांक्षाएं हैं तो मौसमी के भी अपने सपने व महत्त्वाकांक्षाएं हैं.

अपने मौसमी के किरदार को ले कर क्या कहेंगी?

मौसमी बहुत ही ज्यादा जिम्मेदार लड़की है. वह अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाती है. मौसमी अपने मातापिता की इकलौटी बेटी है, तो वह उन के प्रति अपने कर्तव्य व जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वाह करती है. उस की सोच यह है कि जिस तरह लड़के से उस की शादी के बाद नहीं पूछा जाता कि वह अपने मातापिता की सेवा क्यों कर रहा है, उसी तरह उस से यानी लड़की से भी न पूछा जाए. मौसमी चाहती है कि वह अपने मातापिता की मदद करे और उन के मातापिता को डिग्नीफाइड रूप में देखा जाए. इस में टीटू किस तरह से मौसमी की मदद करता है या नहीं करता है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

समाज काफी बदला है. नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान को ले कर पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ कहा गया. इस का समाज में क्या असर पड़ा और यह मुद्दा आप की फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में किस तरह से है?

समाज में काफी बदलाव हुआ है. अभी भी मेरी राय में मानवीय रिश्तों में भी समानता होनी चाहिए. अब लगभग हर दूसरे परिवार में नारी कामकाजी है. पहले ऐसा नहीं था. पहले औरत की जिम्मेदारी घर में खाना पकाना, बच्चे पैदा करना और उन्हें पालना ही होती थी. जब बच्चे 8-10 साल की उम्र के हो जाएं, तब उन्हें अपने शौक को पूरा करने या काम करने की छूट मिलती थी. लेकिन उस उम्र में कामकाजी महिला के लिए पुन: वापसी करना मुश्किल हो जाता था. अब औरतें बराबरी पर चल रही हैं.

जब आप ने ‘दिया और बाती हम’ से कैरियर शुरू किया था, उस वक्त टीवी के कलाकारों को फिल्मों में काम नहीं मिल पाता था. पर अब ऐसा नही है. ऐसे में आप खुद को कहां पाती हैं?

मुझे प्राइम टाइम 9 बजे के सीरियल में अभिनय करने का मौका मिल गया था. वह भी लीड किरदार मिला था, जिस की मैं ने उम्मीद भी नहीं की थी. मैं तो सोचती थी कि मुझे बहन वगैरह के किरदार मिलेंगे पर लीड किरदार मिला. मैं ने इस सीरियल में अपने बालों में सफेदी पोत कर भी किरदार निभाया. मेरे लिए अभिनय करना अमेजिंग होता है. मैं अभिनेत्री इसीलिए बनी कि एक ही जिंदगी में कई अलगअलग जिंदगियां जीने का अवसर मिलेगा. मुझे अभिनय से प्यार है. जब तक सीरियल का प्रसारण शुरू नहीं हुआ, तब तक तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं लीड किरदार निभा रही हूं. तो मेरा सोचने का नजरिया अलग है.

लेकिन तब से अब तक टीवी व फिल्म इंडस्ट्री में काफी बड़ा बदलाव आ चुका है. इस बदलाव में अहम भूमिका ओटीटी ने निभाई है. आज यह बंदिश नहीं रही कि टीवी कर रहे हैं, तो फिल्म या वैब सीरीज नहीं कर पाएंगे. अब तो दिग्गज सुपर स्टार भी ओटीटी व टीवी पर आ रहे हैं. अब सिर्फ नाम का फर्क रह गया अन्यथा टीवी, ओटीटी व फिल्म सब एक ही हैं. मैं भी फिल्म का हिस्सा बन चुकी हूं. अब कलाकार को टाइप कास्ट नहीं किया जाता. दर्शक के लिए कलाकार सिर्फ कलाकार है.

दीपिका सिंह के कई रूप हैं. आप औरत, मां, पत्नी, बहू और अभिनेत्री हैं. किसे कितना समय देती हैं?

जिस वक्त जिसे जरूरत होती है, उसे उतना समय देने का प्रयास करती हूं. अपनी तरफ से पूरा तालमेल बैठाने का प्रयास करती हूं. सब से ज्यादा समय मैं खुद को देती हूं. मेरी ससुराल में सभी कोऔपरेटिव हैं, इसलिए सबकुछ आसानी से मैनेज हो जाता है.

Dia Mirza ने भतीजी के निधन पर शेयर किया ये इमोशनल पोस्ट

बीते दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को सुर्खियों में रहने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस दीया मिर्जा (Dia Mirza) मां बन गई हैं, जिसकी अपडेट वह फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हालांकि कुछ दिनों से वह सोशलमीडिया से दूर थीं. लेकिन अब एक्ट्रेस ने अपनी एक अपडेट शेयर की है, जिसके बाद फैंस पोस्ट पर अपना रिएक्शन देते दिख रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

भतीजी की फोटो की शेयर

 

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एक्ट्रेस दीया मिर्जा ने सोशलमीडिया पोस्ट के जरिए फैंस को बताया है कि उनकी भतीजी का निधन हो गया है. दरअसल, एक्ट्रेस ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘मेरी भतीजी.. मेरी बच्ची.. मेरी जान…अब इस दुनिया में नहीं हो. मेरी कामना है कि तुम जहां भी रहो, तुम्हें शांति और प्यार मिले. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी ओम शांति.’ वहीं इस पोस्ट के साथ एक्ट्रेस दिया मिर्जा ने अपनी भतीजी की फोटो भी शेयर की है, जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह उम्र में काफी कम थीं.

फैंस और सेलेब्स ने किया कमेंट

 

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एक्ट्रेस दीया मिर्जा का ये इमोशनल पोस्ट देखने के बाद जहां फैंस भी इमोशनल हो गए हैं तो वहीं सेलेब्स एक्ट्रेस की पोस्ट पर कमेंट करते हुए उन्हें सांत्वना दे रहे हैं. वहीं इन सितारों में ईशा गुप्ता जैसे कई सेलेब्स का नाम शामिल है.

बता दें, एक्ट्रेस दिया मिर्जा अपनी शादी और प्रैग्नेंसी को लेकर काफी सुर्खियों में रही हैं. दरअसल, शादी के कुछ महीने बाद ही एक्ट्रेस ने अपनी प्रैग्नेंसी की खबर सुनाकर फैंस को हैरान कर दिया था. हालांकि कई लोगों ने उन्हें सपोर्ट भी किया था. वहीं फिल्मी करियर की बात करें तो एक्ट्रेस दिया मिर्जा काफी समय से सिल्वर स्क्रीन से दूर हैं. हालांकि वह सोशलमीडिया के जरिए फैंस के साथ जुड़ी हुई रहती हैं.

REVIEW: जानें कैसी है जाह्नवी कपूर की ‘गुड लक जेरी’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः सुभास्करन अल्लिराजाह, आनंद एल राय और महावीर जैन

लेखकः पंकज मट्टा

निर्देशकः सिद्धार्थ सेन गुप्ता

कलाकारः जाह्नवी कपूर,दीपक डोबरियाल, मीता वशिष्ठ, नीरज सूद,समता सुदिक्षा,जसवंत सिंह दलाल,साहिल मेहता,सौरभ सचदेव,मोहन कंभोज और सुशांत सिंह व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी

एक लड़की के संघर्ष को दिखाने के लिए क्या उसका ड्ग्स के कारोबार से जुड़ा होना दिखाना आवश्यक है? क्या एक लड़की के संघर्ष को दिखाने के लिए उसका पंजाब में रहने वाली पंजाबी लड़की की बजाय मूलतः बिहार निवासी लड़की पंजाब में अपनी मां के इलाज के लिए ड्ग्स के कारोबार से जोड़ना उचित कहा जाएगा या इसे लेखक का दिमागी दिवालियापन कहा जाएगा. कुछ नया परोसने के नाम पर पर एक लड़की को ड्ग्स के कारोबार से जुड़ना दिखाना जरुरी तो नही कहा जाना चाहिए. भारत जैसे देश में हर लड़की को हर कदम पर कई तरह के संघर्ष से गुजरना पड़ता है. उन संघर्षों पर बात करने की जरुरत है. मगर ब्लैक कौमेडी अपराध कथा की श्रेणी वाली फिल्म ‘गुडलक जेरी’ के लेखक ने अपनी फिल्म में लड़की जेरी के संघर्ष को दिखाने के लिए उसे पंजाब में ड्ग्स के कारोबार से जुड़ा दिखा कर ख्ुाद को महान फिल्मकार साबित करने की कोशिश की है. मगर लेखक व निर्देशक फिल्म को संभाल नही पाए.

यॅूं तो यह मौलिक फिल्म नही है. बल्कि यह 17 अगस्त 2018 को सिनेमा घर में प्रदर्शित और इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर स्ट्रीम हो रही तमिल फिल्म ‘कोलामावू कोकिला’ की रीमेक है. हिंदी में इस फिल्म में कहानी के स्तर पर ज्यादा बदलाव नही किया गया है. सिर्फ बैकड्ाप को पंजाब करने के साथ ही किरदारों को थोड़ा सा हिंदी भाषी दर्शकों को ध्यान रखकर कुछ बदला गया है. इसके अलावा फिल्म का क्लायमेक्स बदल दिया गया है.

कहानीः

जेरी अपनी मां व छोटी बहन के साथ दरभ्ंागा,बिहार से पंजाब के लिए ट्रेन  पकड़कर पंजाब पहुॅचती है. पंजाब में जया कुमारी उर्फ जेरी (जान्हवी कपूर) एक मसाज पार्लर में नौकरी करती है,यह बात जेरी की मां शरबती (मीता वशिष्ठ ) को पसंद नही है.  जबकि जेरी की उसकी छोटी बहन छाया उर्फ चेरी(समता सुदिक्षा) पढ़ाई करती है. जेरी की मां मोमो बना व बेचकर परिवार चलाती है. घर में यह तीन महिलाएं हैं और इन्हें एकतरफा प्यार करने वाले प्रेमी भी मौजूद हैं. जेरी की मां सरबती से पड़ोसी (नीरज सूद) प्यार करते हैं और वह खुद को इस घर का सदस्य ही समझते हैं. जबकि जेरी को रिंकू (दीपक डोबरियाल) अपनी प्रेमिका मानकर चल रहा है और गाहे बगाहे घर में घुसता रहता है. तो वहीं छाया उर्फ चेरी से शादी रचाने का मन-मस्तिष्क में ख्याल लिए एक पगलैट प्रेमी अक्सर दूल्हे के कपड़े पहनकर घर के अंदर घुसता रहता है.

इसी बीच एक दिन पता चलता है कि जेरी की मां सरबती को सेकंड स्टेज लंग कैंसर है.  डॉक्टर उनके इलाज के लिए 20 लाख रुपए का खर्च बताते हैं. जेरी पहले मसाज पार्लर की मालकिन से मां के इलाज के बीस लाख रूपए उधार मांगती है. जो कि वह मना कर देती है.  अब जेरी व चेरी दोनों चिंता मग्न रहने लगते हैं. एक दिन जेरी व चेरी दोनों बहने शॉपिंग करने जाती है,जहां  एक ड्रग्स तस्कर का पीछा करते हुए पुलिस उस शॉपिंग कॉम्पलेक्स में पहुॅच जाती है. ड्ग्स तस्कर भागता है,जो कि अचानक एक दुकान से बाहर निकलने के लिए जेरी के दरवाजा खोलने से वह तस्कर दरवाजे से टकराकर गिर जाता है. पुलिस तस्कर को पकड़कर ले जाती है,लेकिन नाटकीय तरीके से जेरी ड्ग्स सप्लायर टिम्मी के संपर्क में आती है और मां को बचाने की मजबूरी में इस धंधे में शामिल हो जाती है. उसे मां का इलाज कराने के लिए पैसे मिल जाते हैं. इस बीच दो बार वह पुलिस के चंगुल से ख्ुाद को किसी तरह बचाने में कामयाब हो जाती है. मां का इलाज हो जाने के बाद हो जाने के बाद जेरी पुलिस के झंझटो से बचने के लिए खुद को ड्ग्स के ध्ंाधे से अलग करना चाहती है. तब कया होता है,यह जानने के लिए तो फिल्म देचानी पड़ेगी.

लेखन व निर्देशनः

कमजोर कहानी व पटकथा के चलते फिल्म दर्शकों को बांधकर नही रखती. ठोस कहानी न होने के चलते फिल्म में कई दृश्यों का दोहराव भी है. फिल्म की पटकथा के चलते दर्शक ख्ुाद को ही भ्ंावर में फंसा हुआ महसूस करने लगता है. फिल्म अचानक चलते चलते ठहर सी जाती है. कई किरदार ठीक से गढ़े ही नही गए. कहानी के अंदर हास्य दृश्य अपने आप में अच्छे हैं, मगर वह फिल्म के साथ फिट नही बैठते. जेरी,उसकी मां व बहन दरभ्ंागा, बिहार से पंजाब आकर क्यों रह रहे हैं,इस पर यह फिल्म कुछ नही कहती. फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया है. वैसे फिल्म में एक नही कई क्लायमेक्स हैं,शायद ख्ुाद लेखक व निर्देशक ही निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि फिल्म को किस मोड़ पर खत्म किया जाए. लेखक व निर्देशक दर्शकांे को एक नई सीख देते है कि जेरी बिहार से है,इसलिए वह ‘मै’ की जगह ‘हम ’बोलती है. वाह क्या कहने ? इससे लेखक का भारत देश के बारे में कितना ज्ञान है,वह सामने आता है. दूसरी बात जेरी के परिवार को बिहारी रखने के पीछे क्या सोच रही,यह तो लेखक व निर्देशक ही बेहतर जानते होंगे. क्या पंजाबी लड़कियां कभी किसी गलत ध्ंाधे से नही जुड़ती? पूरी फिल्म में जेरी व शरबती महज चंद संवाद ही बिहारी लहजे मे बोलती है अन्यथा बिहारी लहजे की भाषा का बंटाधार ही किया गया है.

पंजाब में ड्ग्स तस्करी बहुत बडा मुद्दा है,मगर लेखक व निर्देशक इस पर बहुत उपर उपर से ही अपनी कहानी ले जाते हैं. उन्होने साफ साफ कुछ भी कहने से बचने की कोशिश की है. वह एक तरफ एक पुलिस वाले को ड्ग तस्कर से मिला हुआ दिखाते हैं,तो वहीं दूसरे पुलिस वाले को ड्ग्स तस्कारों का सफाया  करने पर आमादा दिखाते हैं. इस तरह की बातें तो तमाम फिल्मों में आ चुकी हैं.  बहुत ही उथली सी फिल्म है.

एडीटिंग टेबल पर फिल्म को कसा जाना चाहिए था.

अभिनयः

जेरी के किरदार में जान्हवी कपूर हैं,जो अपने समय की मशहूर व सशक्त अदाकारा स्व. श्रीदेवी की बेटी हैं. जान्हवी कपूर ने फिल्म ‘धड़क’ से बौलीवुड में कदम रखा था,पर इस फिल्म को खास सफलता नही मिली थी. इसके बाद वह ‘गंुजन सक्सेना’ और ‘रूही’ में नजर आयीं, मगर इन फिल्मों में भी उनके अभिनय में बहुत अच्छा निखार नहीं आया था. अब इस फिल्म में भी जान्हवी कपूर अपने अभिनय से बहुत ज्यादा असर नही डाल पाती. उन्हे अपने चेहरे के भावों को घटनाक्रम के अनुरूप तेजी से बदलना सीखना पड़ेगा. जेरी के किरदार के लिए जिस तरह से उन्हे सशक्त इरादे वाली नजर आनी चाहिए,वैसी वह नही है. वह जिस तरह की सीख अपनी बहन व मां को देती है,ठीक उसके विपरीत उसके चेहरे पर भाव रहतेहैं. रोने वाले दृश्य जरुर अच्छे बन पड़े हैं. पर लंबी रेस का घोड़ा बनने के लिए जान्हवी कपूर को अभी बहुत मेहनत करने की जरुरत है. रिंकू के किरदार में दीपक डोबरियाल जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं,मगर लेखक व निर्देशक ने उनके किरदार को कुछ अजीब सा क्यों बनाया,यह समझ से परे है. शरबती के किरदार में मीता वशिष्ठ का अभिनय शानदार है. पड़ोसी के किरदार में नीरज सूद का अभिनय ठीक ठाक ही कहा जाएगा,अफसोस उन्हे पटकथा से कोई मदद नही मिली.  चेरी के छोटे किरदार में समता सुदिक्षा अपने स्वाभाविक अभिनय के कारण याद रह जाती हैं. टिम्मी के किरदार में जसवंत सिंह दलाल ने बहुत स्वाभाविक अभिनय किया है. जिगर के किरदार मे साहिल मेहता भी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अन्य कलाकार ठीक ठाक हैं.

निर्माता ने फिल्म ‘‘गुडलक जेरी’’ को सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी पर रिलीज करने का निर्णय कर अपने हक में फैसला किया है.

Bipasha Basu Pregnancy: शादी के 6 साल बाद माता-पिता बनेंगे बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर

बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री में इन दिनों प्रैग्नेंसी की खुशखबरी सुनने को मिल रही हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने अपनी प्रैग्नेंसी की खबर से फैंस को खुश कर दिया था तो वहीं खबरे हैं कि एक्ट्रेस बिपाशा बसु शादी के 6 साल बाद मां बनने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शादी के 6 साल बाद बनेंगी मां!

 

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खबरों की मानें तो एक्ट्रेस बिपाशा बसु और एक्टर करण सिंह ग्रोवर जल्द ही पेरेंट्स बनने वाले हैं, जिसकी गुड न्यूज जल्द ही वह फैंस के साथ शेयर कर सकती हैं. हालांकि अभी तक एक्ट्रेस की ओर से कोई खबर नहीं आई है. लेकिन प्रैग्नेंसी की खबरें मिलते ही फैंस उन्हें बधाई देते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.

 

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बिपाशा-करण की जोड़ी है फेमस

 

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शादी के 6 साल बाद बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर के घर आने वाली खुशी की खबरों के बीच फैंस दोनों की जोड़ी की तारीफें करते दिख रहे हैं. ‘मंकी लव’ के नाम से फैंस के बीच बिपाशा-करण का प्यार किसी से छिपा नही है. दोनों अक्सर डेट और वेकेशन की फोटोज फैंस के साथ शेयर करते रहते हैं. हॉरर फिल्म अलोन से पहली मुलाकात के बाद बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर ने 30 अप्रैल 2016 में शादी की थी. वहीं दोनों की ये जोड़ी फैंस के बीच पौपुलर कपल में से एक हैं.

बता दें, एक्टर करण सिंह ग्रोवर की एक्ट्रेस बिपाशा बसु से तीसरी शादी है. इससे पहले वह एक्ट्रेस श्रद्धा निगम (Shraddha Nigam) से 2008 में शादी कर चुके हैं. वहीं टीवी की पौपुलर एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट संग 2 साल की शादी के बाद 2014 में तलाक ले चुके हैं. वहीं ये करण सिंह ग्रोवर और बिपाशा बसु का पहला बच्चा होगा.

शादी के 5 साल बाद Deepika-Ranveer का पहला फोटोशूट

बीते दिनों अपने न्यूड फोटोशूट के कारण सुर्खियों में रहने वाले बौलीवुड एक्टर रणवीर सिंह (Ranveer Singh) हाल ही में अपनी वाइफ दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) संग एक फैशन शो में साथ पहुंचे, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर छाई गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं बौलीवुड के पावर कपल दीपिका-रणवीर की फोटोज…

शादी के बाद पहला फोटोशूट वायरल

 

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इंडस्ट्री के पावर कपल्स में से एक दीपिका और रणवीर की जोड़ी फैंस को बेहद पसंद है, जिसके चलते दोनों को साथ देखने के लिए फैन तरसते हैं. वहीं हाल ही में एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण पति रणवीर सिंह के साथ शादी के 5 साल बाद एक फैशनशो का हिस्सा बनती दिखीं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

एक बार फिर दिखा रॉयल अंदाज

 

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शादी के बाद दीपिका के कई अवतार सामने आए हैं. हालांकि एक्ट्रेस के रॉयल अवतार की झलक के लिए आज भी फैंस तरसते हैं. वहीं हाल ही में फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा (Manish Malhotra) के मिजवान फैशन शो 2022 (The Mijwan Couture Show 2022) में दीपिका रॉयल अंदाज में पति संग रैंप वॉक करती नजर आईं.

 

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कुछ ऐसा था लुक

 

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‘दीपवीर’ के लुक की बात करें तो रणवीर सिंह जहां ब्लैक एंड व्हाइट कौम्बिनेशन वाली शेरवानी में दिखे तो वहीं दीपिका रॉयल लहंगा पहने नजर आईं. वहीं मीडिया के सामने दोनों रोमांटिक अंदाज में नजर आए. इसी के साथ फैशन शो के दौरान रणवीर सिंह अपनी मां अंजू भवनानी के पैर छूते हुए दिखे, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है.

बता दें, दीपिका-रणवीर के अलावा मनीष मल्होत्रा के फैशन शो में कई बौलीवुड सितारे नजर आए, जिनमें गौरी खान, सारा खान समेत कई सेलेब्स हिस्सा लेते हुए दिखे. वहीं दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह शोज टॉपर बनते हुए सुर्खियों में रहे. हालांकि बीते दिनों रणवीर सिंह के न्यूड फोटोशूट के कारण वह चर्चा में बने हुए हैं. जहां सेलेब्स उनका सपोर्ट कर रहे हैं तो वहीं उन्हें खरी खोटी सुना रहे हैं.

photo and video credit-Viral Bhayani

REVIEW: फिल्म Vikrant Rona को दर्शक मिलना मुश्किल

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः शालिनी आर्ट्स और एसकेएफ फिल्मस

लेखक व  निर्देशकः अनूप भंडारी

कलाकारः सुदीप किच्चा,  निरूप भंडारी ,  नीता अशोक ,  जैकलीन फर्नांडीस ,  रविशंकर गौडा ,  मधुसूदन राव ,  वज्रधीर जैन और बेबी संहिता व अन्य

अवधिः दो घंटे 27 मिनट

पिछले कुछ समय से दक्षिण भारतीय भाषाओं में बनी फिल्में ‘पैन इंडिया सिनेमा’ के नाम पर डब होकर हिंदी में न सिर्फ प्रदर्शित हो रही हैं, बल्कि जबरदस्त सफलता भी हासिल कर रही है. कन्नड़ अभिनेता यश की फिल्म ‘‘केजीएफ 2’’ ने भी हिंदी में जबरदस्त सफलता हासिल की थी.  यह देखकर कन्नड़ के सुपर स्टार किच्चा सुदीप भी अपनी थ्री डी फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा ’’ को हिंदी में भी प्रदर्शित की है. जिसे उनका सबसे बड़ा गलत निर्णय माना जा रहा है.

कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार किच्चा सुदीप 1997 से 2008 तक केवल 25 कन्नड़ फिल्मों में अभिनय करते हुए वहां के सुपर स्टार बन गए. ‘किच्चा’ सुदीप के नाम का हिस्सा नही है. लेकिन 2003 में एक कन्नड़ फिल्म ‘किच्चा’’ में सुदीप ने किच्चा का ही किरदार निभाया था. इस फिल्म को इतनी सफलता मिली कि लेाग अब उन्हे ‘किच्चा सुदीप’ ही बुलाते हैं. 2008 में राम गोपाल वर्मा ने उन्हे अपनी हिंदी फिल्म ‘फूंक’ में अभिनय करने का अवसर दिया. लेकिन इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा. उसके बाद किच्चा सुदीप कन्नड़, तेलगू फिल्मों ही रम गए. 2010 में वह एक बार फिर ‘रक्तचरित्र 2’ में नजर आए. पर उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. 2018 में किच्चा सुदीप ने कन्नड़ फिल्म ‘पहलवान’ की, जिसे हिंदी में भी डब करके रिलीज किया गया. उसके बाद 2019 में वह सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग 3’ में नजर आए. और अब तीन वर्ष बाद किच्चा सुदीप थ्री डी फिल्म ‘विक्रांत रोना’ के माध्यम से एक बार फिर कन्नड़ के साथ ही हिंदी भाषी दर्शकों के सामने आए हैं. इस बार किच्चा सुदीप न कुछ ज्यादा ही निराश किया है. इस फिल्म में वह पूरी तरह से बौलीवुड अभिनेता सलमान खान की ही नकल करते हुए नजर आते हैं. शायद सलमान खान के साथ ‘दबंग 3’ में अभिनय करने के बाद उनके उपर सलमान खान हावी हो चुके हैं. उसी चक्कर में उन्होेने फिल्म ‘विक्रांत रोणा को डुबा दिया.

फिल्म का आधार जाति संघर्ष है.  सवर्णों और दलितों के बीच के छुआछूत को लेकर उपजे इस संघर्ष के नतीजे में ही फिल्म का असली रहस्य छुपा है. मगर इस जातिगत संघर्ष को भी लेखक व निर्देशक ठीक से उकेर नहीं पाए. ऐसा लगता है कि बहुत डर डर कर पटकथा लिखी गयी है. इसलिए यह फिल्म जातिगत संघर्ष को उंची जाति के लड़के द्वारा मंदिर से चोरी करने पर उसका आराप नीची जाति पर लगाकर उसे सजा देने के अलावा कुछ खास नही कहती.

कहानी

फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ उस जमाने की काल्पनिक कहानी है, जब देश में इतनी तरक्की नहीं हुई थी. जब देश में पेट्रोल की कीमत छह रूपए और डीजल की कीमत तीन रूपए प्रति लीटर थी. तथा जंगलों की बस्तियों के आसपास आदिवासियों का डेरा था. मोबाइल और टेलीविजन से दूर बच्चे समूह में बैठकर एक दूसरे को फंतासी कहानियां सुनाते थे और इंद्रजाल कॉमिक्स की ‘फैंटम’ सीरीज की किताबें बच्चे चाव से पढ़ते थे.  फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ का नाम भी पहले ‘फैंटम’ ही था. फैंटम के बारे में किवदंती है कि यह किरदार पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है. एक फैंटम मरता है, तो उसका बेटा फैंटम बन जाता है. यही किंवंदंती फिल्म ‘‘विक्रांत रोना’’ की कहानी का मूल आधार है.

फिल्म ‘विक्रांत रोना’’की कहानी पुलिस इंस्पेक्टर विक्रांत रोणा(  किच्चा सुदीप ) की है, जिसे अपनी लापता पत्नी और बेटी की तलाश है. वह उनकी तलाश में घने जंगलों में बसे उसी कुमारमट्टू गांव में आता है, जहां के स्कूल में वह कभी  पढ़ता था और अब जहां लगातार बच्चों का अपहरण और हत्याएं हो रही हैं. कुमारमट्टू एक ऐसा रहस्यमय गांव है, जहां अक्सर बारिश होती रहती है.  गांव में अक्सर छोटे बच्चे गायब हो जाते हैं और उनकी लाश पेड़ पर लटकी मिलती है. इसका इल्जाम गांववाले ब्रह्माराक्षस पर लगाते हैं.  एक दिन गांव के थाने के इंस्पेक्टर की सिरकटी लाश कुएं में लटकी मिलती है,  तो वहां सनसनी फैल जाती है और इसका इल्जाम भी ब्रह्माराक्षस पर लगता है.

जबकि उन्ही दिनों गांव के एक पुराने परिवार के सदस्य विश्वनाथ बल्लाल(रविशंकर गौड़ा )  का परिवार अपनी बेटी पन्ना(नीता अशोक )  की शादी अपने पैतृक गांव में करने आई हुई है. बल्लाल के ही परिवार से जुड़े दूसरे परिवार यानी कि जनार्दन गंभीर (मधुसूदन राव )का बेटा संजू(निरूप भंडारी )  भी अरसे बाद गांव लौटा है.  वह पन्ना से इश्क करने लगता है.  शादी की तैयारियों के बीच बच्चों की हत्या का सिलसिला जारी रहता है. अब संजू व पन्ना के इश्क का क्या अंजाम होगा? क्या विक्रात रोना, बच्चों के अपहरण व हत्या की गुत्थी सुलझा पाएगा?   फंतासी लोक में रची गई इस मर्डर मिस्ट्री की कहानी में कई किरदार हैं और हत्याएं करने का शक एक से दूसरे पर घूमता रहता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म के लेखक व निर्देशक अनूप भंडारी ने ही सलमान खान की फिल्म ‘दबंग 3’ के कन्नड़ संस्करण के गाने लिखे थे. वैसे ‘विक्रांत रोना’ के गाने उन्होने खुद नही लिखे हैं. लेकिन इस फैंतासी मर्उर मिस्ट्री वाली कहानी की पटकथा लिखने में वह मात खा गए. फिल्म मे मर्डर मिस्ट्री के साथ ही लोकेशन की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाने के लिए हॉरर के तत्व भी ठूंसे गए हैं, जबकि इनकी जरुरत नजर नही आती. इससे दर्शक भी कन्फ्यूज होता है. फिल्म में अविश्वसनीय घटनाक्रमों की भरमार है. फिल्म में संजू और पन्ना के प्यार को भी ठीक से उकेरा नहीं गया.

लेखक के दिमागी दिवालिएपन की हद की मिसाल के तौर पर छोटी बच्ची का सवंाद ही काफी है. यह संवाद, जिसमें वह कहती है कि उसका दोस्त भास्कर उससे कहता है-‘‘ भारत में तब बारिश होती है, जब सभी अमरीकन एक साथ पेशाब करते हैं और अमरीका में उस वक्त बारिश होती है जब यहां भारत में हम सभी एक साथ पेशाब करते हैं. ’’

फिल्म की कहानी 28 वर्ष की यात्रा तय करती है. मगर कहानी कहीं से भी विक्रांत रोना व खलनायक के बदले के रिश्ते को स्थापित नही कर पाती.  विक्रांत रोना की बेटी को लेकर क्लायमेक्स में जो खुलासा होता है, उसे देखकर दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है. इतना ही नही क्लायमेक्स में जब बच्चों के अपहरणकर्ता व हत्यारों का खुलासा होता है, तो भी आश्चर्य नही होता.

फिल्म के कैमरामैन विलियम डेविड का योगदान सराहनीय है. मगर गीत संगीतव निराश करते हैं.

अभिनयः

विक्रात रोणा के मुख्य किरदार निभाने में किच्चा सुदीप बुरी तरह से मात खा गए हैं. सलमान खान के अभिनय की की नकल करने के साथ ही वह ओवरएक्टिंग भी करते नजर आते हैं.  बुजुर्गों के सामने सिगार पीना,  बदतमीजी से पेश आना और अपने पूरे आभामंडल को एक देसी दारू के ठेके पर नाचने वाली के साथ ठुमके लगाकर तार तार कर देना विक्रांत रोणा के किरदार की कमजोरियां हैं.

मंदिर से देवताओं के गहने चुराकर भागे उंची जाति के संजू के किरदार में निर्देशक अनूप भंडारी के भाई निरूप भंडारी के अभिनय में कोई दम नजर नही आता. उनका चेहरा हर मौके पर एकदम सपाट ही नजर आता है.  पन्ना के किरदार में नीता अशोक सुंदर जरुर दिखायी देती हैं, मगर अभिनय के मामले मेें उन्हे अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है. यदि किसी फिल्म के साथ सलमान खान का जुड़ाव हो और उस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता. मगर रक्कम्मा के किरदार में जैकलीन फर्नाडिश सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. वह कहानी में कोई योगदान नही करती.  उनके किरदार की वजह से फिल्म की गति बाधित होती है.

क्या ये पब्लिसिटी स्टंट नहीं?

पिछले दिनों अभिनेता रणवीर सिंह ने एक मैगजीन की कवरका शूट किया,जिसमें वह न्यूड होकर स्टाइलिश अंदाज में पोज देते हुए दिखाई दे रहे है, इसकी सोशल मीडिया पर मिक्स प्रतिक्रियां मिल रही है, कुछ उनके जज्बे की तारीफ़, तो कुछ इसे मजाक बना रहे है. रणवीर सिंह के लिए ऐसी शूट करना पब्लिसिटी स्टंट है, क्योंकि उन्होंने कई बार ऐसी अतरंगी पोज दिए है, जिसे मीडिया ने काफी उछाला और रणवीरसिंह का काम बना. असल में कोविड के बाद थिएटर में आने वाले फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही है.

ख़बरों के मुताबिक, चेंबूर पुलिस ने अभिनेता रणवीर सिंह के खिलाफ अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर नग्न तस्वीरें पोस्ट करने के लिए मामला दर्ज किया है. रणवीर के खिलाफ धारा 292, 293 और 509 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के 67 (ए) सहित मामला दर्ज किया गया है.

हिंदी फिल्म जगत में न्यूड फोटो खिचवाना कोई नई बात नहीं है, इससे पहले भी कई एक्टर्स ने ऐसी फोटो शूट करवाएं है, लेकिन उसका गहन अर्थ समझा दिया गया. रणवीर सिंह की पिक्चर को लेकर हो-हल्ला करना आसान इसलिए है, क्योंकि ये इन्टरनेट की देन है. आइये जनते है किसने कब न्यूड पिक्स खिचवाया.

मिलिंद सुमन

 

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4 नवम्बर साल 2020 अभिनेता मिलिंद सुमन ने 55 साल की अपनी जन्मदिन पर इन्स्ताग्राम में एक मनमोहिनी पिक्चर डाला, जिसमे वह समुद्री किनारे पर न्यूड होकर दौड़ रहे है. इस पिक्चर के वायरल होने पर सोशल मीडिया के द्वारा उन्हें बहुत सारी प्रसंशा मिली. कुछ ने तो इसे बोल्ड मुव्स कहा और कुछ ने तो उनके फिट रहने की अंदाज को सराहा.

पूजा बेदी

 

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अभिनेत्री पूजा बेदी ने 90 के दशक में एक कंडोम की कंपनी के लिए शूट कर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सनसनी फैला दी, रातोरात उन्हें प्रसिद्धी मिली और इस विज्ञापन को सेक्सुअल रिवोल्यूशन कहा गया.

सपना भवानी

पॉपुलर सेलेब्रिटी हेयर स्टाइलिस्ट आर्टिस्ट सपना भवानी ने बोल्ड मुव्स के साथ उस दौर की स्टीरियोटाइप्स इमेज को तोडा. पेटा कैम्पेन के लिए न्यूड शूट करवाने पर उन्हें मीडिया की कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसमे जानवरों की संरक्षण के लिए उन्होंने जानवरों के चमड़े और फर के प्रयोग को ना कहा.

शर्लिन चोपड़ा

हिंदी सिनेमा जगत की एक बोल्ड अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा है, उन्होंने बोल्ड सीन देने में कभी पीछे नहीं हटी. कई फिल्मों में भी उन्होंने ऐसे दृश्य दिए है. इस एक्ट्रेस ने एडल्ट फिल्म कामसूत्र 3 D की सेट से न्यूड फोटो को डाउनलोड कर शेयर कर दिया. इसमें शर्लिन सारे बंधन को छोड़कर कैमरे के आगे आई और कुर्सी पर बैठकर सिगरेट पीने का पोज दिया. कुछ ही समय में सोशल मीडिया पर वह बहुत चर्चित हो गयी, लोगों ने उसके इस शूट को घटिया  और शर्मनाक बताया, लेकिन शर्लिन उस पर ध्यान न देकर फिल्म कामसूत्र 3 D पर फोकस किया.

आमिर खान

pk

हिंदी सिनेमा के परफेक्शनिस्ट अभिनेता आमिरखान ने भी फिल्म PK को ब्लॉकबस्टर बनाने के लिए न्यूड फोटो खिचवाए है और उसे ही उन्होंने फिल्म की ऑफिसियल पोस्ट के लिए चुना. ये पोस्टर दर्शकों को हॉल तक खीच लाने में काफी हद तक सफल रही. इसकी अधिकतर फीडबैक सकारात्मक रही, लेकिन ये तस्वीर आमिरखान और निर्देशक राजकुमार हिरानी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुई.

राहुल खन्ना

 

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चार्मिंग अभिनेता राहुल खन्ना ने भी कैमरे के आगे न्यूड पिक्स कुछ साल पहले खिचवायें है, जिसमे उन्होंने सोफे पर बैठकर चमड़े की शूज पहनकर पोज दिए है.इन्टरनेट पर इसकी भी चर्चा खूब फैली, लेकिन सभी ने उनके लुक्स की तारीफ की.

संगीत में मेलोडी का कम होने की वजह क्या बताते है Composer लेस्ली लुईस

परी हूं मैं……, जानम समझा करों…. जैसी एलबम बनाकर चर्चा में आने वाले सिंगर, कंपोजर, प्रोड्यूसर लेस्ली लुईस कहते है कि अबतक मैंने बहुत सारा काम दूसरों के लिए किया है, लेकिन अब मैं अपने लिये कुछ करना चाहता हूं. लेस्ली उस समय के रॉक & पॉप गानों से परिचय करवाने वाले पहले कंपोजर है. उनके पिता पी एल रॉय एक तबला वादक और कोरियोग्राफर थे, इससे उनके घर में संगीतकारों का आना-जाना होता था, जिससे उन्हें संगीत में रूचि बढ़ी और वे इस क्षेत्र में आ गए.

गजल गायक हरिहरन के साथ मिलकर कोलोनियल एलबम बनाने वाले लुईस ने आशा भोसले, केके समेत कई गायकों के साथ उन्होंने काम किया, लेकिन, अब वे खुद के गीतों को अपनी आवाज में संगीतबद्ध करना चाहता है. उन्हें लगता है कि अगर गायक और संगीतकार एक हो, तो वह गीत के संगीत के साथ ज्यादा न्याय कर सकता है, ऐसे में कोशिश है कि फिल्मों के लिए ज्यादा से ज्यादा गाऊं. आज एलबम का दौर खत्म हो रहा है और टेलीविजन गैर फिल्मों गीतों को ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करता.

सवाल –क्या नए जेनरेशन की शिष्या काव्या जोन्स के साथ गाना गाने में किसी प्रकार की परेशानी हुई?

जवाब – इसमें लगन और मेहनत करने की एक धुन है. वह सबके पास नहीं है. आज के जेनरेशन फ़ास्ट फ़ूड की तरह सब कुछ फ़ास्ट-फ़ास्ट करना चाहती है, एक जगह टिक कर धैर्य के साथ काम नहीं करती. यहाँ वहां भटकती है और किसी भी संगीत को पूर्ण रूप से सीख नहीं पाती. अगर मैं कभी नए बच्चों से उनके घराना, क्या सीखा, उनकी जड़े कहाँ की है, पूछता हूं, तो उन्हें समझ में नहीं आता, लेकिन काव्या हर दिन, वक्त, मीटिंग, शो में मेरे साथ रहने पर उसे मेरे घराने को समझने में आसानी रही और उसी के अनुसार वह सीख रही है.

सवाल – आज के यूथ रैप अधिक करते है, जिसमे न तो मेलोडी होती है और न ही धुन, इसे कैसे लेते है, जबकि आप भी वेस्टर्न संगीत के ही प्रसंशक है?

जवाब – संगीत की भाषा पूरे विश्व में हर जगह एक ही होती है, सुर सबमेंप्रधान होता है और मेलोडी संगीत में होना जरुरी है, क्योंकि भाषा कोई भी हो, सभी संगीत की शुरुआतओम से होती है, स्वर हमारे हृदय में है. पूरा यूनिवर्स ओम पर चलता है, उसी से ही मेलोडी बनती है, जो सुनने में अच्छा लगता है. इसी मेलोडी में अगर शब्द जोड़ दिए जाय, तो उस गाने को सुनने में और भी सुंदर लगता है. शब्द न समझने पर मेलोडी से उस गाने को सुना जा सकता है. मेरे नये गाने में पॉप के साथ-साथ मेलोडी भी है. रैप में अगर कुछ बोला जा रहा है, तो उसे सुनना पड़ता है, थोड़े दिन अच्छा लगता है, बाद में सुनना कोई पसंद नहीं करता. मेलोडी जीवन पर्यंत रहेगी. 1940, 50 60,70,80,90 की फिल्मों के गाने जिसे लता मंगेशकर,आशा भोसलें, किशोर कुमार आदि ने गाये है, उनके गाने आज भी सुने जाते है. सभी गाने आज रिमिक्स हो रही है, क्योंकि उनके पास मेलोडी है. रैप नहीं चल सकती, क्योंकि ये एटीट्यूड दिखाती हुई संगीत है, जो आगे चलकर नीरस लगती है.

सवाल –भारतीय संस्कृति में रॉक और पॉप को परिचय कराना कितना कठिन था?

जवाब – पॉप मीठा संगीत है, क्योंकि पोपुलर गाने को पॉप कहते है. पॉपुलैरिटी की वजह मेलोडी का होना है, हर व्यक्ति उसे सुनना चाहता है, जिसमें जानम समझा करों….. जैसे गाने है. रॉक में एक एटीट्यूड होती है, जो सुनने में थोड़ा हार्श लगता है. नई जेनरेशन एंटी एस्टाब्लिशमेंट को पसंद करती है. हमारे देश में गाने में मिठास सभी पसंद करते है. रॉक म्युजिक में एंग्री यंग मैन वाली फीलिंग होती है. के के सिंगर के लिए मैंने थोड़ा रॉक अपनाया था, जो सबको बहुत पसंद आया. 90 के दशक में लोग बहुत पसंद नहीं करते थे, लेकिन अब नई जेनरेशन इसे अधिक पसंद करने लगे है. इन्टरनेट होने की वजह से संगीत का विकास अधिक हुआ है.

सवाल –गानों में शब्दों का प्रयोग मनमर्जी तरीके से होता है, जिसका अर्थ नहीं निकलता, बेतुकी लगती है, आप की सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – इस जेनरेशन के बच्चे उर्दू नहीं समझते, इसलिए उन्हें केवल तुकबंदी कर ही लिरिक बनाना आता है. मेरी गानों में आम जनता की भाषा को प्राथमिकता दी गयी है. हिंदी फिल्मों के गानों में भी अब वही शुरू हो चुका है, मसलन क्या बोलती तू…..क्या मैं बोलूँ…. ऐसे शब्द आज के यूथ समझते है, लेकिन कुछ अच्छे शब्द के अर्थ उन्हें पता नहीं होता, मैंने कई गानों के साथ ऐसा महसूस किया है.

सवाल – आपने कई बड़े सिंगर और फिल्मों के लिए संगीत दिए है, आज के जेनरेशन के साथ कुछ करने की इच्छा रखते है क्या ?

जवाब – मैंने कई बड़े सिंगर्स के साथ काम किया है, लेकिन लेस्ली लुईस के लिए नहीं किया अब उनके लिए करूँगा (हँसते हुए). मैं शोज में गाना गाने पर मेरी आवाज को सुनकर चौक जाते है. मैंने सबके लिए गाने बनाई, पर अपने लिए नहीं बनाया.

सवाल – संगीत में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

जवाब – मेरे पिता कोरियोग्राफर के अलावा तबला बजाते थे, उन्हें संगीत का बहुत शौक था. घर पर जाकिर हुसैन, उनके पिता भी मेरे घर आते थे. संगीत का माहौल था. डांस और गायकों का हमेशा आना-जाना रहता था. इसके अलावा शास्त्रीय डांस के लिए शास्त्रीय गायक होना चाहिए, जिससे संगीत का मेल डांस के लिए ठीक हो. संगीत के इस माहौल में रहने पर मुझे धीरे-धीरे संगीत से प्यार होने लगा और इस क्षेत्र में आ गया. अच्छी बात यह रही कि मुझे अच्छे कलकारों का साथ मिला. अभी तकनीक का दौर है, इसमें सभी को वैसे ही जाना है. फिर चाहे, इन्स्टाग्राम हो या यू ट्यूब सभी पर यूथ कुछ न कुछ कर छोड़ते है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. संगीत को सिम्पल form में यूथ के पास लेकर आना है.

सवाल – आगे की योजनायें क्या है?

जवाब – अभी मैं स्वतंत्र आर्टिस्ट के रूप में काम कर रह हूं. मेरे गाने को खुद गाता और लिखता हूं.

सवाल – अपने जीवन की यादों को शेयर करें, जिसे अभी भी आप याद करते है?

जवाब – 17 साल की उम्र में मैं गिटार बजाना चाहता था, उन्होंने मुझे राहुल देव बर्मन के पास भेजा, वहां आशा भोसलें और आर डी बर्मन थे. वहां मेरे पिता ने मेरा परिचय बी कॉम फेल कहकर किया, इस पर आशा भोसले ने मुझे बहुत समझाया और अच्छी पढाई करने की सलाह दी, लेकिन अंत में मैंने ही उनकी एलबम ‘राहुल एंड आई” बाद में बनाई, जिसे सभी ने पसंद किया.

सवाल – 75 साल की इंडिपेंडेंट हुए देश के बारें में आपकी राय क्या है?

जवाब – पहले एक ड्रेस सालों तक पहनते थे, अब नहीं. संगीत भी पिछले कुछ वर्षों से घुलमिल गया है, जिसे सही कर मुझे सबके बीच में लेकर आना है. मधुर संगीत का माहौल फिर से आयेगा.

50th जयंती वर्ष में कौन Yashraj Films को डुबाने पर है आमादा?

मशहूर फिल्मकार यश चोपड़ा ने 1970 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘यशराज फिल्मस’’ की स्थापना की थी, जिसके तहत उन्होने पहली फिल्म ‘‘दागःए पोयम आफ लव’’ का निर्माण व निर्देशन किया था, जो कि 27 अप्रैल 1973 को प्रदर्शित हुई थी. तब से अब तक ‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले ‘कभी कभी ’, ‘नूरी’, ‘काला पत्थर’,  ‘सिलसिला’,  ‘मशाल’, ‘ चांदनी’, ‘ लम्हे’,  ‘दोस्ती’,  ‘वीरजारा’, ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’,  ‘मोहब्बतें’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’, ‘एक था टाइगर’,  ‘मर्दानी’,  ‘सुल्तान’ सहित लगभग अस्सी फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है.

‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी स्थापना के समय से ही लगातार उत्कृष्ट फिल्में बनाता आ रहा है. जिसके चलते लगभग सभी फिल्में बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज कराती रही हैं. लेकिन अब जबकि ‘‘यशराज फिल्मस’’ अपनी पचासवीं जयंती मना रहा है, तो लगातार इस बैनर की छवि धूमिल होती जा रही है. ‘मर्दानी 2’, ‘बंटी और बबली 2’, ‘जयेशभाई जोरदार’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और 22 जुलाई को प्रदर्शित फिल्म ‘‘शमशेरा’’ ने बाक्स ऑफिस पर बुरी तरह से दम तोड़ा है. ‘यशराज फिल्मस’’ जैसे बौलीवुड के बड़े बैनर की लगातार छह फिल्मों की बाक्स आफिस पर हुई दुर्गति से ‘यशराज फिल्मस’ के साथ ही बौलीवुड को पांच सौ करोड़़ का नुकसान हो चुका है. हर निर्माता पहली फिल्म की असफलता के बाद ही फिल्म की असफलता का पोस्टमार्तम कर गलतियों को सुधारना शुरू कर देता है. लेकिन यहां ‘यशराज फिल्मस’’ की एक दो नहीं बल्कि लगातार छह फिल्में असफल हो चुकी हैं, मगर कोई हलचल नही है. मजेदार बात यह है कि यह सब तब हो रहा है, जब इसकी बागडोर ‘यशराज फिल्मस’ के संस्थापक स्व.  यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने संभाल रखी है. आदित्य चोपड़ा कोई नौसीखिए नही हैं. आदित्य चोपड़ा को सिनेमा की बेहतरीन समझ है.  आदित्य चोपड़ा स्वयं अब तक ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’(1995),  ‘मोहब्बतें’(2000 ),  ‘रब ने बना दी जोड़ी’(2008) जैसी बेहतरीन व सफलतम फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं. लेकिन अब एक तरफ ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्में असफल होकर ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में लगी हुई हैं, तो वहीं आदित्य चोपड़ा चुप हैं. उनकी तरफ से कोई हरकत नजर नही आ रही है. बौलीवुड के एक तबके का मानना है कि भारतीय सिनेमा पर से आदित्य चोपड़ा की पकड़ खत्म हो चुकी हैं. कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा का 2012 के बाद दूसरी व्यस्तताओं के चलते आम लोगों से शायद संवाद कम हो गया है, जिसके चलते समाज व दर्शकों  की पसंद व नापसंद को वह ठीक से अहसास नही कर पा रहे हैं. जबकि तब से दर्शकों की रूचि में तेजी से बदलाव आया है. अब दर्शक सिर्फ भारतीय सिनेमा ही नहीं,  बल्कि हौलीवुड के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं में बन रहे सिनेमा को भी देख रहा है. बौलीवुड से ही जुड़े कुछ लोगों की राय में आदित्य चोपड़ा के इर्द गिर्द चंद चमचे इकट्ठे हो गए हैं, जिन्हे ‘यशराज फिल्मस’ के आगे बढ़ने से कोई मतलब नही है, उन्हें महज अपने स्वार्थ की चिंता है. कम से कम ऐसे लोगों से आदित्य चोपड़ा जितनी जल्दी दूरी बनाकर समाज व दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करेंगे, उतना ही ‘यशराज फिल्मस’ के लिए बेहतर होगा.

बहरहाल, ‘यशराज फिल्मस’ के पतन की शुरूआत तो 2017 में ही हो गयी थी. इस बैनर तले 2017 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ और ‘कैदी बैंड’’ ने भी बाक्स आफिस पर पानी नही मंागा था. पर 22 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ने जरुर सफलता दर्ज कराकर ‘यशराज फिल्मस’ की लाज बचा ली थी. उसके बाद 2018 में ‘हिचकी’, ‘सुई धागा’, ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ ने बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी थीं. 2019 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘वार’’ ने थोड़ी सी राहत दी थी. पर उसके बाद प्रदर्शित सभी फिल्में बाक्स आफिस मंुह के बल गिरती चली आ रही हैं.

क्यों डूबी ‘‘शमशेरा’’

बड़े बजट की मेगा पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को डुबाने में फिल्म के चार लेखक,  निर्देशक करणमल्होत्रा और कलाकारों के साथ ही फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. यह कितनी शर्मनाक बात है कि भव्यस्तर पर बनी फिल्म ‘शमशेरा’ रविवार के दिन महज ग्यारह करोड़(निर्माता के दावे के अनुसार,  अन्यथा सूत्र दावा कर रहे है कि ‘शमशेरा’ ने रवीवार को भी आठ करोड़ से ज्यादा नही कमाए. )़ ही कमा सकी. मजेदार बात यह है कि हिंदी, तमिल, तेलगू व मलयालम भाषा में फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को 22 जुलाई के दिन एक साथ भारत के 4300 सिनेमाघरों स्क्रीन्स और विदेशो में 1500 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया था. पर पहले ही दिन कुछ शो कैंसिल हुए. दूसरे दिन भी शो कैंसिल हुए. यानी कि हर दिन स्क्रीन्स की संखा घटती गयी. कई थिएटरों से इस फिल्म को उतार दिया गया. सिर्फ भारत ही नही विदेशों भी इसकी दुर्गति हो गयी. प्राप्त आंकड़ो के अनुसार आस्ट्ेलिया में ‘शमशेरा’ कुल तिहत्तर स्क्रीन में रिलीज हुई थी, जिससे महज 41 हजार डालर ही कमा सकी.  जबकि इस फिल्म में रणबीर कपूर,  संजय दत, रोनित रॉय,  वाणी कपूर,  सौरभ शुक्ला सहित कई दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया है. यह फिल्म रणबीर कपूर की पूरे चार वर्ष बाद अभिनय में वापसी है. मगर वह भी इस फिल्म को डूबने में योगदान देने में पीछे नहीं रहे. यॅूं भी जब फिल्म के कंटेंट मंे ही दम नही है, तो फिर दर्शक फिल्म देखने के लिए अपनी गाढ़ी कमायी क्यांे फुंकने लगा?लेखकों ने तो इतिहास के साथ भी छेड़खानी की. आदिवासियों के शौर्य का अपना इतिहास है, मगर लेखकांे ने तो उसे भी नकार कर सिर्फ गोरी चमड़ी यानी कि ब्रिटिश शासकों की मानवता व उनकी उदारता का गुणगान करते रहे. तो वहीं यह फिल्म धर्म को लेकर भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. बल्ली यानी कि रणबीर कपूर के किरदार को देखकर लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालिएपन का अहसास किया जा सकता है.

फिल्म का गलत प्रचार भी ले ‘‘शमशेरा’’ को ले डूबाः

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने फिल्म ‘‘शमशेरा’’ को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी के संघर्ष की कहानी के रूप में प्रचार किया था. जबकि यह फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है. जी हॉ!यह देश की स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है, जिसका विलेन एक भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

‘यशराज फिल्मसः कौन डुबाने पर उतारू

सबसे अहम सवाल यह है कि ‘‘यशराज फिल्मस’’ को कौन डुबाने पर उतारू है? ‘‘यशराज फिल्मस’’ की 2017 से ही लगातार बुरी तरह से डूबते जाने की एक नहीं कई वजहें हैं. यदि गंभीरता से विश्लेषण किया जाए, तो ‘यशराज फिल्मस’ को डुबाने में आदित्य राय के इर्दगिर्द जमा हो चुके कुछ चमचे, मार्केटिंग टीम, पीआर टीम,  रचनात्मक टीम, टैलेंट मनेजमेंट’के साथ ही आदित्य चोपड़ा का समाज व दर्शकों से पूरी तरह कट जाना ही जिम्मेदार है. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है, जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय दर्शकों की रूचि के अनुसार सिनेमा बनाएं.

टैलेंट मनेजमेंटः

2012 में ‘‘यशराज फिल्मस’’  का चेअरमैन का पद संभालने के साथ ही आदित्य चोपड़ा ने नए कलाकारों को आगे बढ़ाने के नेक इरादे से ‘टैलेंट मनेजमेंट’ की शुरूआत की थी.  और 2013 के बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने स्थापित व नए कलाकारों को मिलाकर फिल्में बनानी शुरू की. बौलीवुड से जुड़े अधिसंख्य सूत्र मानते हैं कि 2012 के बाद ‘यशराज फिल्मस ’ का रचनात्मकता से मोहभ्ंाग होने लगा था. सब कुछ एक फैक्टरी की तरह होेने लगा था. ‘टैलेंट मैनेजमेंट’ के तहत वाणी कपूर, परिणीत चोपड़ा सहित ऐसे कलाकारांे को जोड़ा गया जिनमें संुदरता के अलावा कोई गुण नही है. इन कलाकारों का अभिनय से कोई नाता ही नही है. बाक्स आफिस पर बुरी तरह से धराशाही हो चुकी फिल्म ‘शमशेरा’ के दो मुख्य कलाकार रणबीर कपूर व वाणी कपूर यशराज के ही टैलेट मैनेजमेंट का हिस्सा हैं. असफलतम फिल्म ‘‘बंटी और बबली’’ की अभिनेत्री शारवरी वाघ, ‘जयेशभाई जोरदार ’ की शालिनी पांडे व रणवीर सिंह और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की मानुषी छिल्लर भी टैलेंट मैनेजमंेट का हिस्सा हैं. तो क्या यह माना जाए कि टैलेंट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभाल रहे लोग अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में असमर्थ रहे हैं?इस पर आदित्य चोपड़ा को  गंभीरता से सोचना व विश्लेषण करना चाहिए.

मार्केटिंग टीमः

‘यशराज फिल्मस’ की मार्केटिंग टीम जिस तरह से कामकर रही है, उस पर वर्तमान हालात को देखते हुए विचार व विश्लेषण करना जरुरी है. वर्तमान समय में मार्केटिंग टीम फिल्म के लिए दर्शक बटोरने के लिए जिस तरह से सिटी टूर करती है और सोशल मीडिया पर पैसे खर्च करती है, वह वास्तव में ‘क्रिमिनल वेस्टेज आफ मनी’ के अलावा कुछ नही है. सिटी टूर के लिए कलाकार व उनकी टीम के अलावा कई लोग हवाई जहाज से यात्रा करते हैं, फाइव स्टार होटलो मंे ठहरते हैं और किसी माल या सिनेमाघर में हजारों लोगांे की भीड़ के बीच उटपटंाग हरकते करके वापस आ जाते हैं. इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि किसी भी सिटी मंे फिल्म के कलाकारों को देखने या सुनने आने वाले लोगों में से दस प्रतिशत लोग भी फिल्म देखने क्यों नहीं आते? आॅन ग्राउंड इवेंट में दस बीस हजार लोग जुड़ते हैं, जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किए जाते हैं. इसके बावजूद इनमें से हजार लोग भी फिल्म देखने थिएटर के अंदर नहीं आते? जबकि मार्केटिंग टीम के अनुसार इस तरह उस शहर के सभी लोग फिल्म देखने आएंगे. इसी तरह यह बात साबित हो चुकी है कि कलाकार के सोशल मीडिया के फालोवअर्स की संख्या बल पर फिल्म की सफलता का दावा नही किया जा सकता. महानायक अमिताभ बच्चन के सोशल मीडिया पर करोड़ों फालोवअर्स हैं, पर उनकी फिल्म को उनमें से कुछ लाख भी टिकट लेकर फिल्म देखने सिनेमाघर के अंदर नही जाते. तो मार्केटिंग टीम सोशल मीडिया पर फिल्म के टीजर, ट्ेलर व गानों को मिल रहे व्यूज के आधार पर फिल्म की सफलता को लेकर गलत आकलन पेश करती है. इससे फिल्म को सिर्फ नुकसान ही होता है.

पी आर टीम का  अधकचरा ज्ञान व कार्यशैलीः

कुछ दिन पहले हमने एक बड़े बैनर की फिल्म के पीआरओ को ‘‘गृहशोभा’’ और ‘‘सरिता’’ में छपे इंटरव्यू की फोटोकापी भेजी, तुरंत उसका फोन आया कि यह मैगजीन है या वेब साइट है और कब से निकलना शुरू हुई है. यह मैगजीन कहंा बिकती है? इससे हमारे दिमाग में सवाल उठा कि इस इंसान को फिल्म का प्रचारक कैसे नियुक्त कर दिया गया? फिल्म के प्रचारक का काम होता है कि वह फिल्म का प्रचार कर उसे एक ‘ब्रांड’ के रूप में स्थापित कर दे. मगर इस कसौटी पर सभी फिल्म प्रचारक बहुत पीछे हैं. इन प्रचारको @पीआरओ को खुद नहीं पता होता कि उनकी फिल्म का विषय क्या है? वह तो गलत ढंग से फिल्म का प्रचार कर फिल्म का बंटाधार करने में अहम भूमिका निभाते हैं. पीआरओ को इस बात की समझ होनी चाहिए कि वह कब किस पत्रकार को कलाकार या निर्देशक से इंटरव्यू करवाए? पर यहां तो फिल्म के प्रदर्र्शन से एक सप्ताह पहले सभी फिल्म पत्रकारों को बुलाकर एक साथ बैठा दिया जाता है. इस ग्रुप इंटरव्यू में 20 से 57 पत्रकार भी होते देखे हैं. इतना ही नहीं इसमें मैगजीन, दैनिक अखबार, वेब सहित सभी पत्रकार होते हैं. पीआरओ हमेशा एक ही रोना रोता रहता है कि क्या करंे कलाकार के पास समय नही है.  अथवा क्या करें हमें मार्केटिंग टीम की तरफ से कलाकार का सिर्फ एक दिन या दो घंटे का ही वक्त मिला है. सच तो प्रोडक्शन हाउस व कलाकार को ही पता होता है. यदि कलाकार सिटी टूर करने में वक्त बर्बाद करने की बजाय पत्रकारों के साथ अपनी फिल्म पर चर्चा करना शुरू करें, तो शायद फिल्म को लेकर सही बता दर्शक तक पहुॅचेगी,  जिससे स्थिति बदल सकती है.

वास्तव में जरुरत है कि बौलीवुड का हर फिल्म निर्माता दस बारह वर्ष पहले की तरह अपनी मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जवाब देही तय करे.  आज समय की सबसे बड़ी मांग यही है कि हर इंसान की जवाबदेही तय हो. कम से कम इस दिशा में ‘‘यशराज फिल्मस’’ के आदित्य चोपड़ा को गंभीरता से पहल करते हुए अपनी पूरी क्रिएटिब टीम, मार्केटिंग टीम व पीआर टीम की जांच परख कर आवश्यक कदम उठाने चाहिए, तभी वह ‘‘यशराज फिल्मस’’ की डूबती प्रतिष्ठा को वापस ला सकते हैं. अब वक्त आ गया है जब आदित्य चोपड़ा को स्वयं मंथन करने के बाद खुलकर सामने आना होगा. मंथन कर,  दूसरों पर यकीन करने की बजाय अपने अंदर नई उर्जा को जगाकर आदित्य चोपड़ा को स्वयं ऐसी फिल्म निर्देशित करनी चाहिए, जिसे दर्शक स्वीकार करें.

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