सास रोते हुए कहने लगीं कि उसे लगा था शादी के बाद उस का बेटा सही रास्ते पर आ जाएगा.
“एक मां हो कर जब आप अपने बेटे को सही राह पर नहीं ला पाईं, फिर मुझ से कैसे उम्मीद लगा लिया कि मैं उसे सही राह पर ला सकती हूं?”
सास के पास कोई जवाब नहीं था. बेटे के आदतों से त्रस्त सुमन की सास अपनी बेटी के पास रहने चली गईं. लेकिन सुमन कहां जाती?
रोजरोज शराब पीकर आधी रात को घर आना और कुछ पूछने पर उलटे सुमन को मारना, गंदीगंदी गालियां देना सूरज की आदत बन चुकी थी.
कभीकभी तो बिना बात के ही वह सुमन को मारने और गाली देने लगता था. सुमन को वह अपने पैरों की जूती के बराबर समझता था. सूरज यह सोच कर अपनी पत्नी पर जुल्म ढाता कि वह मर्द है और जो चाहे कर सकता है।
सुमन पर उस का अत्याचार रोजरोज बढ़ता ही चला जा रहा था. जब सुमन रोरो कर अपनाशदर्द मां को बताती, तो उलटे वह उसे ही समझाने लगतीं कि मर्द ऐसे ही होते हैं. औरतों को संभालना आना चाहिए.
एक रात एक महिला की बांहों में झूमतेहुए जब सूरज घर आया और कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया, तो सुमन अंदर तक सुलग उठी. कैसे एक पत्नी यह बात बरदाश्त कर सकती थी कि उस का पति उस के ही सामने, उस के ही बैडरूम में किसी गैर महिला के साथ….
‘इतना कैसे गिर सकता है यह इंसान’ सुमन बड़बड़ाई और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगी. गुस्से में सूरज बाहर आया और उस औरत के सामने ही मारतेमारते यह बोल कर सुमन को घर से बाहर निकाल दिया कि अब न तो उस की जिंदगी में और न ही इस घर में उस के लिए कोई जगह है. रोतीचीखती रही वह, दरवाजा पीटती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. आसपड़ोस वाले सब देख रहे थे. मगर उन्हें क्या जरूरत थी किसी के घरेलू मामलों में दखल देने की. सो सब तमाशा देख अपनेअपने घर चले गए.
घंटों वह दरवाजे के बाहर सिसकती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. फिर क्या करती वह?
फिर वह मायके आ गई लेकिन यहां भी उस का वास नहीं हुआ. मां बातबात पर समझाती रहतीं कि वह अपने घर लौट जाए, क्योंकि वे कब तक उस का बोझ उठा पाएंगे. भाई बढ़ते खर्चे को ले कर अलग सुनाता रहता था और भाभी तो उसे देखना तक नहीं चाहती थी. सोचती कब वह उस घर से निकल जाए.
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“आखिर हम औरतों की स्थिति इतनी बदतर क्यों है? हमें ही क्यों सब सहना पड़ता है?” सुमन बोली.
सुमन की दर्दभरी कहानी सुन कर किरण को बहुत दुख हुआ.
बोली,“लेकिन यह कौन सी नई बात है सुमन? मर्द तो शुरू से ही औरतों पर राज करते आए हैं, उसे अपना गुलाम समझते आए हैं. चाहे बाप हो, भाई हो या पति, सब ने औरतों को दबा कर रखना चाहा. जो दब कर रहीं वह सीता, सावित्री कहलाईं और जो नहीं दबीं वह बदचलन, बेहया बन गईं. लेकिन जरूरत आज इस बात पर भी अंडरलाइन करने की है कि खुद औरतें इस बात से इनकार करती हैं कि पति उस पर जुल्म करता है.
“पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि यह उन के घर का मामला है। आप रहने दो. चाहे पति मारेपीटे, जान ही क्यों न ले ले, पर कई औरतों के लिए उस का पति देवता है, परमेश्वर है।”
किरण बोली,”आज औरतों की स्थिति बदतर इसलिए है, क्योंकि वह सहना जानती है, लड़ना नहीं. जिस दिन औरतें अपने हक के लिए लड़ना शुरू कर देंगी न, सच कहती हूं सुमन, सही मानों में उस दिन औरतों को आजादी मिलेगी, गुलामी और बेचारगी जैसे शब्दों से. मगर औरतें खुद ऐसा चाहती हैं क्या? मैं तो कहती हूं कि तुम्हें उसी दिन पति का घर छोड़ देना चाहिए था, जब उस की करतूतों का तुम्हें पता चला था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम्हें लगा एक दिन वह सुधार जाएगा.”
“आपशकी एकएक बात सही है किरणजी, लेकिन दुख तो मुझे इस बात का है कि मेरे मांबाप ने भी मुझे नहीं समझा, वरना मुझे यों दरदर की ठोकरें न खानी पड़ती,” बोलतेबोलते सुमन सिसकने लगी.
“नहीं, रोना नहीं, रोते तो बुजदिल लोग हैं और तुम तो बहादुर लड़की हो. तुम कमजोर नहीं हो सुमन यह दिखा दो दुनिया वालों को और एक बात, तुम मुझे किरणजी नहीं, बल्कि दीदी कह कर बुलाओगी, तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा,” उस के सिर पर हाथ फेरते हुए जब किरण बोली तो उसे पकड़ कर सुमन फूटफूट कर रोने लगी.
आज पहली बार कोई ऐसा मिला था, जो उस के दर्द को समझ रहा था, वरना तो सब ने उसे ही कटघरे में खड़ा किया यह बोल कर कि गलती उसी की है.
“बसबस… अब रोना बंद करो,” सुमन के आंसू पोंछते हुए किरण बोली, “तुम ने कहा था तुम एमबीए करना चाहती थीं?”
“जी।”
“तो आगे क्या करने का सोचा है, एमबीए या सुसाइड?” बोल कर किरण हंसी तो सुमन भी हंस पड़ी,“देखो, तो हंसते हुए तुम कितनी प्यारी लग रही हो,” प्यार से सुमन को निहारते हुए किरण बोली.
“दी, मैं एमबीए करना चाहती हूं, सपना है मेरा. लेकिन मैं कोई छोटीमोटी नौकरी भी करना चाहती हूं ताकि अपना खर्चा उठा सकूं,”सुमन बोली.
सुमन नहीं चाहती थी कि वह किरण पर बोझ बन कर रहे. और किरण भी नहीं चाहती कि उसे लगे वह उस पर कोई एहसान कर रही है, इसलिए उस के नौकरी करने वाली बात पर उस ने हामी भर दी.
किरण अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाती थी. इस के अलावा वह जरूरतमंदों की भी मदद करती रहती थी. किरण का बड़े-बड़े लोगों से पहचान था, तो उनषसे बोल कर सुमन की नौकरी भी लगवा दी और उस का एमबीए में एडमिशन भी हो गया.
जो सुमन पहले हरदम उदास रहा करती थी, अब काफी खुश रहने लगी थी. उस की नाइट शिफ्ट ड्यूटी होती थी। वह सुबह उठ कर किरण के साथ घर के कामों में हाथ बंटा कर कालेज निकल जाती, फिर देर रात ही घर वापस आती थी. जिंदगी अब अच्छी लगने लगी थी उसे.
एमबीए की पढ़ाई पूरी होते ही एक बड़ी कंपनी में सुमन की नौकरी लग गई. कल तक यही सुमन थी जिस का कोई ठिकाना नहीं था. दरदर भटकने को मजबूर थी वह. लेकिन आज उस के पास सब कुछ है. सुमन और किरण छोटा सा घर छोड़ कर एक बड़े घर में आ गई थी. अब सुमन बस से नहीं, बल्कि अपनी गाड़ी से औफिस जाने लगी थी.
एक दिन यह सोच कर सुमन के आंखों में आंसू आ गए कि अगर किरण न आई होती उस की जिंदगी में या तो वह आत्महत्या कर चुकी होती या रोरो कर अपनी जिंदगी काट रही होती कहीं पर.शलेकिन आज उस की जिंदगी उमंगों से भरी हुई है.
लेकिन एक बात उसे बड़ा दर्द देता था, वह यह कि हरदम हंसनेमुसकराते और लोगों की मदद करने वाली किरण कभीकभी उदास क्यों हो जाती है? कई बार पूछना चाहा सुमन ने, पर यह सोच कर रुक जाती कि शायद उसे ठीक न लगे.
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उस रात बैड पर दोनों समांतर लेटी हुई थीं. बगल में कौफी का 2 मग रखा हुआ था और दोनों यहांवहां की बातें कर रही थीं.
“दी, आज भी यह सब सोच कर हंसी आती है कि कैसे आप ने उन तीनों गुंडों को पानी पिलापिला कर मारा था. कैसे आपषने उन्हें पस्त कर दिया था. आप में इतनी हिम्मत आई कहां से? मैं तो 1 को भी ना मार सकूं और आप ने 3-3 को धूल चटा दिया। कैसे दी?” सुमन ने पूछा.
उस की बात पर पहले तो किरण हंसी, फिर बोली, “वह इसलिए क्योंकि मैंने कराटे का कोर्स किया हुआ है. ब्लैक बैल्ट हूं मैं समझी।”
“ओह, तभी…” अपनी आंख नचाते हुए सुमन बोली,“दी, एक बात और पूछूं आप से? बुरा तो नहीं मानोगी?”
उस की बात पर किरण ने मुसकराते हुए न में सिर हिलाया.
“दी,आज तक आप ने शादी क्यों नहीं की?” बहुत दिन तक अपने आप को रोके रखने के बाद आज सुमन ने पूछ ही लिया.
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उस की बात पर पहले तो किरण चुप रह गई. फिर मीठे भाव से मुसकराई और फिर गंभीर हो गई.
“बोलो न दी, आज तक क्यों आप अकेली हो. पढ़ीलिखी हो, इतनी सुंदर भी हो, फिर भी क्यों आप अकेली हो आज तक?”
“क्योंकि मेरे लायक कोई मिला ही नहीं… और जो मिला वह मेरा हो नहीं पाया,” बोल कर वे चुप हो गईं.
“हो नहीं पाया मतलब…” सुमन आज जान लेना चाहती थी कि आखिर क्यों अब तक किरण दी अकेली हैं?
“क्योंकि जिस से मैं ने प्यार किया, वह इंसान दगाबाज निकला. फायदा उठाया उस ने मेरा सिर्फ. आज भी सोचती हूं, तो लगता है कितनी स्टुपेड थी मैं जो उसे जान नहीं पाई. जानती हो सुमन, मैं ने उस के लिए कितना त्याग किया? जब उस की नौकरी छूट गई थी तब मैं ने उस के सारे खर्चे हंसतेहंसते उठाए. अपने परिवार के खिलाफ जा कर मैं उस के साथ लिवइन में रहने लगी और वह मेरी आंखों में धूल झोंक कर कईकई लड़कियों से संबंध रखता रहा.
“एक दिन जब मैं ने अपनी इन्हीं आंखों से उसे उस लड़की के साथ हमबिस्तर होते हुए देखा, तो सन्न रह गई थी. पूछा उस से कि हम दोनों तो एकदूसरे से प्यार करते थे न, शादी कर के अपनी छोटी सी गृहस्थी बसाने का सपना देखा था न, फिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्यों धोखा दिया उस ने मुझे? तो बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोला कि उस का कई लड़कियों के साथ संबंध हैं तो क्या वह सब के साथ शादी कर ले।
“पागल थी मैं जो उस की बातों में आ कर अपने परिवार से रिश्ता खत्म कर लिया. गई थी मांपापा के पास अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने, पर उन्होंने मेरे मुंह पर ही दरवाजा दे मारा यह बोलशकर कि मैं उन के लिए मर चुकी हूं. झूठ नहीं कहूंगी, फिर कई पुरुष आए मेरे जीवन में, पर सब ने मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्यार किया. जैसे ही भूख मिटी मुझे छोड़ कर किसी और की बांहें तलाशने लग गए.
“अब तो सोच लिया है कि एकला ही चलूंगी अब।
“विकट मोड़ों वाली झाड़झंकर भरी जिंदगी में अटकाभटका आज मैं जीवन के ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हूं जहां अब मुझे किसी के साथ की जरूरत नहीं है. खुश हूं मैं उन बच्चों के साथ जो इस दुनिया में अनाथ हैं.”
आगे पढें- किरण की बातें सुन सुमन….
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