Hindi Stories Online : वो नीली आंखों वाला – वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

Hindi Stories Online : मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं.
वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’,
कोई परेशानी तो नहीं…?”
उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर.

वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…?

वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन…

शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बसरुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं…

यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…”

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो…
मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे,
तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो…
और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप…
इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा…
कभी नहीं मालिनी…
मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं.
जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है…

उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

“आप… आप हैं …मिस्टर वरुण शर्मा.”

वरुण बोला, “इफ आई एम नोट रौंग, यू आर छुटकी.”

“एंड… आप वो नीली आंखों वाले लड़के…”

यह बोलतेबोलते मालिनी की जबान पर ताला सा लग गया… उस की आंखों के नीले समुंदर में, वो फिर से ना खो जाए,

“हां, हां…”

मालिनी उन्हें पुष्पगुच्छ दे कर उन का स्वागत करने के साथसाथ दिल की गहराइयों से मन ही मन धन्यवाद ज्ञापन करती है, जो इतने बरसों में ना कर सकी.

जैसे आज भगवान उस पर मेहरबान हो गए हो और कोई बरसों पुराना काम आज पूरा हो गया हो.

आज उस के दिल से उस नीली आंखों वाले लड़के को धन्यवाद ना कर पाने का अपराधबोध समाप्त हो चुका था.

“क्या आप एकदूसरे को जानते हैं…?” शशांक ने पूछा.

“जी… मालिनी जी मेरी जूनियर थीं…”

आज मालिनी का “समय पर किसी का अधिकार नहीं, किंतु समय की दयालुता पर विश्वास” पेड़ की जड़ों की तरह गहरा हो गया था.

“ओह दैट्स ग्रेट…” इतना कह कर मिस्टर शशांक दूसरे कामों में व्यस्त हो गए, जैसे उन्होंने मन ही मन स्वीकार कर लिया था कि अब उन के मेहमान मालिनी के भी हैं, तो वह उन की बढ़िया आवभगत कर लेगी.

मालिनी और वरुण की आंखों में न जाने कितने मूक संवाद तैर रहे थे, जिन में अनेकों प्रश्न, उत्तर की नोक पर भटक रहे थे. जैसे नदी का बांध खोल देने पर सबकुछ प्रवाहित होने लगता है.

दोनों इतने वर्षों बाद भी औपचारिक बातों के अलावा और कुछ नहीं कह पा रहे थे. शायद वह माहौल उन के अंतर्मन में उठते प्रश्नों के जवाब के लिए उपयुक्त ना था, किंतु वर्षों बाद वरुण के मन की तपती बंजर भूमि पर आज मालिनी से मिलन एक बरखा समान बरस रहा था और साथ ही वरुण इस के विपरीत भाव मालिनी के चेहरे पर पढ़ रहा था.

पूरे कार्यक्रम के दौरान वरुण ने अनेकों बार चोर निगाहों से मालिनी को निहारा. उस के दिल का वायलिन जोरजोर से बज रहा था, किंतु उस की भनक सिर्फ शशांक को ही महसूस हो रही थी.

कार्यक्रम के उपरांत सभी ने रात्रिभोज एकसाथ किया और तभी बारिश होने लगी. वरुण की फ्लाइट खराब मौसम के कारण कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दी गई.

मिस्टर वरुण शशांक से एयरपोर्ट के लिए विदा लेने लगे, तो शशांक ने उन्हें कुछ देर घर पर ही चल कर आराम करने को कहा.

वरुण तो जैसे अपने प्रश्नों के जवाब हासिल करने को बेताब हुआ जा रहा था और ऐसे में शशांक के घर पर रुकने का न्योता…

पर, इस बात से मालिनी कुछ असहज सी होने लगी, जिसे वरुण ने भांप लिया.

खैर, सभी घर पहुंचे और वरुण को मेहमानों के कमरे में शशांक ही पहुंचा कर आया और यह भी कहा कि इसे अपना ही घर समझें. कुछ चीज की आवश्यकता हो तो मुझे या मालिनी को अवश्य बताएं.

“जी, जरूर… आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं.”

शशांक अपने कमरे में आते ही मालिनी से कहता है कि आज मैं सब देख रहा था…

“जी, क्या?”

“वही…”

“क्या..?”

“ज्यादा भोली न बनो. मिस्टर वरुण तुम्हें टुकुरटुकुर निहार रहे थे.
पर, मैं तो नहीं…”

“क्या इस का अंदाजा तुम्हें नहीं कि वह तुम्हें…”

“छी:.. छी:, कैसी बात करते हैं आप? मेरे जीवन में आप के सिवा कोई दूसरा नहीं.”

“अरे, मैं ने कब कहा ऐसा… मैं तो पहले की बात कर रहा हूं.”

मालिनी गुस्से से तमतमाते हुए…. “नहीं, हमारे बीच पहले भी कभी ऐसी कोई बात नहीं हुई.”

“तो फिर मिस्टर वरुण की आंखों में मैं ने जो देखा, वह क्या…?”

शशांक की इन बातों ने मालिनी के दिल में नश्तर चुभो दिए और वह चुपचाप जा कर सो गई.

वह सुबह उठी, तो मिस्टर वरुण जा चुके थे और शशांक अपने औफिस.
तभी हरिया चाय के साथ मालिनी के कमरे में दाखिल होता है.

“बीवीजी… वह साहब जो रात को यहां ठहरे थे, आप के लिए यह चिट्ठी छोड़ गए हैं. बोले, मैं आप को दे दूं…”

मालिनी की आंखों में छाई सुस्ती क्षणभर के लिए जिज्ञासा में परिवर्तित हो गई कि क्या है इस में… ऐसा क्या लिखा है…” मालिनी ने कांपते हाथों से वह चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी.

‘प्रिय छुटकी,

‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में अनगिनत सवाल उमड़ रहे होंगे कि मैं तुम्हें कभी कालेज के बाद क्यों नहीं मिला?

‘क्यों तुम से कभी अपने दिल की बात नहीं कही. जबकि मैं ने कई बार महसूस किया कि तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थी.

‘किंतु वह शब्द हमेशा तुम्हारे गले में ही अटके रहे. उन्हें कभी जबान का स्पर्श नसीब नहीं हुआ. मैं वह सुनना चाहता था, किंतु मेरी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मैं आशा करता हूं कि मेरे इस पत्र में तुम्हें अपने सभी सवालों के जवाब के साथसाथ मेरे दिल का हाल भी पता लग जाएगा.

‘मालिनी, मैं तुम्हारे काबिल ही नहीं था, इसलिए तुम से बाद में चाह कर भी नहीं मिला, क्योंकि मैं तुम्हें वह सारी खुशियां देने में शारीरिक रूप से पूर्ण नहीं था. मेरे साथ तुम तो क्या कोई भी लड़की खुश नहीं रह सकती.’

पढ़तेपढ़ते मालिनी की आंखों से गिरते आंसू इन अक्षरों को अपने साथ बहाव नहीं दे पा रहे थे. वह फिर पढ़ने लगी.

‘मेरी उस कमी ने मुझे तुम से दूर कर दिया, किंतु तुम आज भी मेरे मनमंदिर में विराजमान हो. तुम्हारे अलावा आज तक उस का स्थान कोई और नहीं पा सका है.

‘बचपन में क्रिकेट खेलते वक्त गेंद इतनी तेजी से मेरे अंग में लगी, जिस ने मेरे पौरूष को जबरदस्त चोट पहुंचाई और मेरे आत्मविश्वास को भी… किंतु मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें यों ही बेइंतहा चाहता रहूंगा और एक दिन तुम्हें भी अपने प्यार का एहसास करा कर रहूंगा….

‘तुम्हारा ना हो सका
वरुण.’

मालिनी कुछ पछताते हुए सोचने लगी, “तुम ने मुझ से कहा तो होता… क्या सैक्स ही एक खुशहाल जिंदगी की नींव होता है? क्या एकदूसरे का साथ और असीम प्यार जीवन के सफर को सुहाना नहीं बना सकता?”

आज फिर से वह सवालों के घेरे में खुद को खड़ा महसूस कर रही है.

मालिनी की नजर बगीचे में पड़ी तो देखा…

अनगिनत टेसू के फूल झड़े पड़े थे और संपूर्ण वातावरण केसरिया नजर रहा था.

Homemaker क्यों है बैस्ट जौब

Homemaker : सुबह से शाम फिर नया. दिन बस ऐसे ही यह जीवन बीतता रहता है. किंतु एक उम्र बीत जाने पर अधिकतर महिलाओं को लगने लगता है जिंदगी के दिन  यों ही निकल गए. घरगृहस्थी संभालने के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं कर सके. काश, अपनी सम झदारी, बुद्धिमत्ता के आधार पर बिजनैस या जौब कर काबिलीयत का परिचय दिया होता तब आत्मनिर्भर होने का एहसास हम कर पाते  बगैराबगैरा.

एक सर्वे से मालूम हुआ है कि यदि घरेलू कार्य व जिम्मेदारी की वजह से जौब या अन्य कोई कार्य नहीं कर पाती हैं तो कई महिलाओं को मानसिक तनाव होने लगता है, अव्यावहारिक, असहज व्यवहार होने से स्वभाव में चिड़चिड़ापन आने लगता है. इस से घर का वातावरण भी खुशनुमा व खुशहाल नहीं रह पाता.

अहम बात है हम महिलाएं ऐसा सोचती क्यों हैं? अपने परिवार, अपने बच्चों की हर जरूरत को निभाने में सक्षम होते हुए स्वयं में हीनभावना क्यों लाने लगती हैं? यदि आप के आसपास की महिलाएं घर से बाहर निकल नौकरी या बिजनैस कर भी रही हैं तो जरूरी नहीं कि वे आप से अधिक योग्य व होशियार हैं अथवा उन की गुणवत्ता या काबिलीयत का मानदंड उन के घर से बाहर निकलने से ही आंका जा सकता है.

यह तो व्यक्तिगत रूप से स्वयं पर ही निर्भर है कि घर या बाहर कहीं भी रह कर अपने फर्ज को किस तरह निभा रही हैं अथवा महिला होने के नाते प्राथमिक जिम्मेदारियों को किस हद तक पूरा कर रही हैं. यह सौ फीसदी सत्य है जब हम अपने मूलभूत कर्तव्यों को सही तथा सुचारु रूप से पूर्ण करते हैं, तभी एक आकर्षक व प्रभावशाली व्यक्ति के सही माने में हकदार हो पाते हैं.

कुदरती वरदान

इसे कुदरती वरदान ही कहा जाएगा कि साक्षर हो या निरक्षर हर महिला में प्रतिभावान, बुद्धिमान व गुणवान होने का परिचय मिल ही जाता है. कई बार घर की परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि घर के बाहर ज्यादा आनाजाना मुमकिन नहीं हो पाता क्योंकि आप की गैरमौजूदगी में घरगृहस्थी व बच्चों को देखने वाला कोई नहीं रहता न ही रोजमर्रा के घरेलू कार्य सुचारु रूप से हो पाते हैं.

ऐसे में घर की चिंताओं के साथ मानसिक दबाव में रहते हुए सिर्फ दिखावे और आधुनिक नारी साबित करने के लिए घर से बाहर जाजा कर कार्य करना कहां की सम झदारी है? स्वयं शारीरिक तथा मानसिक परेशानी, तनाव में रह कर ऐसे कौन से कार्य होते हैं जिन से आत्मिक संतुष्टि मिल सकती है? शायद कोई नहीं?

परेशानी का दामन छोड़ दें

आज की सक्षम नारी घर की चारदीवारी के भीतर रह कर भी खुश व संतुष्ट रह सकती है बशर्ते अपने परिवार की खुशियों को ध्यान में रखते हुए जो भी कार्य कर रही है उसे छोटा या कम न आंकते हुए सर्वोपरि मानते हुए सर्वश्रेष्ठ सम झे. ईंटसीमेंट के घर को पारिवारिक सदस्यों के स्नेह के रंग से सराबोर कर एक खुशनुमा घर सिर्फ एक होममेकर ही बना सकती है. सदैव प्रसन्न रहते हुए अपने मन को प्रफुल्लित रखें. आंतरिक तौर पर सदैव सुकून तथा खुशी का एहसास महसूस करें.

फिर समय व परिस्थितियां अनुकूल हों तो इन को मद्देनजर रखते हुए चाहे तो मनमुतािबक कार्य अवश्य किए जा सकते हैं. नई जानकारी प्राप्त कर अपने ज्ञान और कौशल को अधिक बढ़ाया जा सकता है. किंतु जरूरी है घर में रह कर या घर से बाहर जो भी कार्य कर रही हैं बस खुशीखुशी करें. चिंता व परेशानी का दामन छोड़ दें.

ऐसा नहीं आप के लिए आत्मिक सुख अथवा खुशी कहीं बाहर से दसतक देगी. सभी जानते हैं सुख अथवा संतुष्टि हमारे मन में है जिसे हम स्वयं महसूस कर सकते हैं. घरेलू कार्यों से निबटने के  बाद यदि कुछ नया सीखना चाहती हैं तो जब भी वक्त मिले अवश्य नया कार्य जैसे ड्राइविंग, नृत्य, गायन अथवा नई तकनीकी ज्ञान अपने शुभचिंतकों से सीखने का प्रयत्न करें.

इस से जहां आत्मविश्वास बढ़ता है वही आत्मनिर्भरता का एहसास होने से सुकून भी महसूस होता है. हां कुछ भी नया सीखनेसमझने में अपनी उम्र या अन्य किसी बारे में ज्यादा न सोचें न ही हिचकिचाएं क्योंकि हरकोई पहली बार ही सीखतासम झता है यही सोच निरंतर आगे बढ़ती जाएं.

टैंशन से दूर रहें

जीवन में आप क्या चाहती हैं, आप का उद्देश्य क्या है दो पल चैन से बैठ सोचें. जिंदगी के लिए जितने दिन शांति से बीत रहे हैं उन्हें हंसीखुशी बीतने दें. स्वयं सुखी रह कर पारिवारिक सदस्यों को भी खुश व संतुष्ट रखते हुए गृहस्थ जीवन बिताना भी काबिलेतारीफ ही है. बेवजह अन्य महिलाओं से तुलना कर जौब या बिजनैस का निर्णय कर मानसिक अंशाति व  झल्लाहट को तवज्जो न दें. जो कार्य दिल से करना चाहती हैं अवश्य करें परंतु उस के लिए किसी भी शारीरिकमानसिक थकान तथा टैंशन से सदैव दूर रहें.

घर में रहते हुए आप मानसिक शांति व संतुष्टि के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं क्योंकि जब आप घर में ही रहती है तो अपने आसपास के लोगों को व सामाजिक वातावरण को जानपहचान पाती हैं. अच्छा व्यवहार रखते हुए मधुर वाणी तो बोलें ही साथ ही सत्कार्य करते हुए जरूरत के वक्त दूसरों की हरसंभव मदद भी करें. इस से

जो भी बचपन की सीखसंस्कार हैं उन्हें साकार होते देख हार्दिक खुशी व आनंद प्राप्त होगा, साथ ही मनमुतािबक कार्य होने से अंदरूनी भावनाएं तथा संवेगों के माधम से भी आत्मिक संतुष्टि मिलती रहेगी.

हसीन पलों को भरपूर जीएं

घर के कार्यों के पूर्ण होने पर यदि कुछ समय मिलता है तो अवश्य अपने हुनर को बढ़ाने की कोशिश करें. जिस भी कला में आप की रुचि हो उसे सीखने की कोशिश करें. हां, ध्यान रखें, शुरुआत में जो भी थोड़ीबहुत दिक्कतें आएं उन का बिना किसी परेशानी निस्संकोच स्वागत करें. तब एक दिन कामयाबी अवश्य मिलेगी.

जिंदगी बहुत छोटी है. कब क्या समय आ जाए पता नहीं चलता. जिन बातों का कोई तर्क या वजूद नहीं होता उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सफर अपने अहम या दिखावे की वजह से ही जौब या अन्य कोई कार्य न करें वरना व्यर्थ ही दुखी व तनावग्रस्त रहेंगी. अत: आवश्यकता न हो तो बिना वजह परेशान न रहते हुए जीवन के सुखद, हसीन पलों को भरपूर जीएं और पारिवारिक सदस्यों, बच्चों के प्रति जो भी आप के फर्ज हैं. उन्हें पूर्णता से निभाते हुए हर हाल में तनावमुक्त रह खुश रहें.

ऐसा कतई नहीं है कि आप की सुघड़ता, योग्यता की पहचान तभी होगी जब आप घरेलू कार्यों के साथसाथ अन्य कोई कार्य भी करेंगी. अपने परिवार को स्वस्थ व फिट रख उन की आधारभूत जरूरतों को पूरा कर भी आप अपनी कुशलता, बुद्धिमता का परिचय दे सकती हैं. जो आप के फर्ज हैं उन्हें सही ढंग से निभा कर भी मनचाही खुशी, सुकून हासिल कर सकती हैं.

संक्षेप में सार यही है कि यदि आप घर व बच्चों की जिम्मेदारी पूर्ण निष्ठा से निभा रही हैं, गृहस्थी में शांत व मधुर वातावरण बना हुआ है तो अपने ऊपर गर्व महसूस कीजिए क्योंकि आप ही के कारण यह संभव हो सका है.

4 दिन की इस छोटी सी जिंदगी को हंसतेहंसाते बिना किसी से तुलना व शिकवेशिकायतें किए जीएं. इस का 1-1 पल जिंदादिली से बिताएं क्योंकि:

‘‘जिंदगी एक सफर है सुहाना,

यहां कल क्या हो किस ने जाना…’’

‘‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं

जो मुकाम,

वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते…’’

Balcony Decoration Ideas : बालकनी को चाहती हैं सजाना, तो बड़े काम के हैं ये टिप्स

Balcony Decoration Ideas :  कुछ आसान और किफायती तरीकों से आप अपनी छोटी सी बालकनी को ड्रीमी और आकर्षक तरीके से सजा सकते हैं. हाई राइज बिल्डिंग्स में आप के पड़ोसी आप को नहीं जानते न ही वे आप के घर की अंदरूनी खूबसूरती को देख पाते हैं. मगर बालकनी में जिस तरह से आप ने सामान को रखा होता है उसे देख कर लोग बाहर से ही आप की पर्सनैलिटी और आप के घर का आइडिया लगा लेते हैं.

बालकनी को सजाने का पहला रूल यही है कि आप अपने घर के साथसाथ बालकनी की खूबसूरती और साफसफाई का भी खास खयाल रखें.

फोल्डिंग फर्नीचर का इस्तेमाल करें

लकड़ी या मैटल की फोल्डेबल टेबल और चेयर्स कम जगह के लिए बेहतरीन होती हैं. आप इन्हें फोल्ड कर के साइड में लगा सकते हैं. एक दीवार पर छोटी सी स्टोरेज बना कर इन्हें हैंग या अलमारी में रख सकते हैं. इस से आप का फर्नीचर भी लंबे वक्त तक चलेगा साथ ही आप को जरूरत पड़ने पर ओपन स्पेस भी मिल जाएगी. आप डिफरैंट कलर्स के फर्नीचर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं जिस से आप की बालकनी में रखी चेयर सिर्फ चेयर्स नहीं बल्कि डैकोर ऐलीमैंट लगें.

फेयरी लाइट और कलरफुल हैंगिंग्स

फेयरी लाइट्स और कलरफुल हैंगिंग्स से बालकनी में एक जादुई और रोमांटिक माहौल बनाया जा सकता है. हलकी रोशनी बालकनी को और भी कोजी और वार्म फील देती है. आप इस के लिए सोलर लाइट्स भी मंगवा सकते हैं जो आप की जेब पर बिजली का बिल भी नहीं पड़ने देंगी और हलकी धूप में भी चार्ज हो कर रातभर आप की बालकनी को जगमग करेंगी.

लो मैंटेनैंस पौधों का करें इस्तेमाल

बालकनी को प्राकृतिक और फ्रैश लुक देने के लिए पौधों का इस्तेमाल करें. छोटे गमलों, वर्टिकल गार्डन और वाल हैंगिंग प्लांट्स से बालकनी हरियाली से भर जाएगी. मनी प्लांट, स्नेक प्लांट और एरेका पाम जैसे लो मैंटेनैंस पौधे लगाने से बालकनी को मैंटेन करना भी आसान रहेगा. ये पौधे कम सनलाइट या बिना सनलाइट के भी अच्छे से ग्रो करते हैं और सालभर हरेभरे रहते हैं. साथ ही, डीआईवाई डैकोर से इसे और भी पर्सनल टच दिया जा सकता है. पुराने टायर, लकड़ी के बौक्स या डब्बों को पेंट कर के स्टाइलिश डैकोरेशन के लिए इस्तेमाल करें. टूटेफूटे या बेरंग प्लांटर्स का इस्तेमाल न करें या उन्हें रिपेंट कर लें अथवा फिर दूसरे प्लांटर्स खरीद कर इस्तेमाल करें.

अगर आप थोड़ाबहुत प्लांटेशन का शौक रखते हैं तो आप हाइड्रोफोनिक गार्डनिंग भी कर सकते हैं. इस में आप पीवीसी पाइप से वर्टिकल गार्डिनिंग कर सकते हैं जिस में मिट्टी के बिना सिर्फ पानी से पौधे उगाए जाते हैं. इस में आप आसानी से उगने वाली पत्तियों वाली सब्जियां और हर्बस जैसे पुदीना, धनिया, पालक या फूल उगा सकते हैं. इस से आप की बालकनी गंदी भी नहीं होगी. आप मार्केट में उपलब्ध हाइड्रोफोनिक टावर खरीद कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

वालपेपर बढ़ाएंगे बालकनी की शान

बालकनी की वाल्स को आकर्षक बनाने के लिए ओल्ड ब्रिक स्टाइल वालपेपर लगाएं. यह न केवल बजटफ्रैंडली है बल्कि बालकनी को रस्टिक और विंटेज लुक भी देता है. यह वालपेपर लगाना आसान होता है और यह बालकनी के लुक को पूरी तरह से बदल सकता है. इस के साथ ही एक बड़े आकार का मिरर लगाने से बालकनी ज्यादा स्पेसियस और ब्राइट लगेगी. खासतौर पर अगर आप बौर्डर वाला स्टाइलिश मिरर चुनते हैं तो यह बालकनी के लुक में और निखार ला सकता है. मिरर को ऐसी जगह लगाएं जहां से रोशनी रिफ्लैक्ट हो या जहां पौधे लगे हों. ऐसा करने से बालकनी और भी खूबसूरत दिखेगी.

आरामदायक और स्टाइलिश बालकनी के लिए फ्लोर कुशन, बीन बैग या एक छोटा  झूला भी लगाया जा सकता है. इस से आप अपने छोटी सी स्पेस को रिलैक्सिंग और इनवाइटिंग बना सकते हैं. दीवारों का सही इस्तेमाल करने के लिए वर्टिकल शैल्व्स, वाल हुक्स और छोटे रैक्स लगाएं ताकि बालकनी में सजावट के साथसाथ स्टोरेज भी अच्छा हो. इस के अलावा रंगबिरंगे कुशन, मैक्रेमे वाल हैंगिंग और खूबसूरत परदे जोड़ कर इसे और भी आकर्षक बनाया जा सकता है.

इन छोटेछोटे बदलावों से आप की बालकनी न सिर्फ ड्रीमी और स्टाइलिश बनेगी बल्कि यह एक ऐसी जगह बन जाएगी जहां आप सुकून के पल बिता सकें. आप चाहे सुबह की चाय का आनंद लेना चाहें या रात के समय तारों की छांव में रिलैक्स करना चाहें, यह किफायती और सुंदर बदलाव आप की बालकनी को एक परफैक्ट ऐस्थेटिक स्पेस में बदल देगा.

ऐसे करें बालकनी लाइफ ऐंजौय

हर किसी का मन चाहता है कि कभी रिम िझम बारिश में तो कभी सर्दियों की धूप में या कभी दिनभर की गरम हवाओं के बाद ठंडक से भरी शाम अपनी बालकनी में गुजरे. कभी सूरज की पहली किरण को अपनी त्वचा पर महसूस करें तो कभी सनसैट में चाय का मजा लें. यही सब सोच कर तो घर खरीदते वक्त बालकनी से दिखने वाले नजारों को भी मद्देनजर रखा जाता है. मगर कुछ लोग बालकनी वाला घर ले तो लेते हैं लेकिन बालकनी में रहने का सलीका नहीं सीख पाते. या तो उन की बालकनी उन के खराब पड़े कूलर या सामान का अड्डा बन जाती है या फिर उस जगह को केवल कपड़े सुखाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

बालकनी सिर्फ एक ओपन स्पेस नहीं बल्कि आप का पर्सनल रिफ्रैशमैंट जोन भी होती है. इसे खूबसूरती से सजाने के साथसाथ सही तरीके से इस्तेमाल करना भी जरूरी है ताकि यह एक आरामदायक और सुकून भरी जगह बनी रहे.  अगर आप सच में बालकनी लाइफ का मजा लेना चाहते हैं तो पहले बालकनी ऐटीकेट्स को सम झना चाहिए.

मान लिजिए आप ने अपनी बालकनी को तो खूब बढि़या सजाया लेकिन जैसे ही चाय की प्याली ले कर आप बालकनी में पहुंचे तो नजारों में आप को किसी का फटा बदरंग जांघिया नजर आ रहा है तो कहीं रद्दी और कबाड़ तो कैसे आप अपनी बालकनी का आनंद ले पाएंगे? खुद के बारे में नहीं तो 1 परसैंट दूसरों के बारे में ही सोच कर बालकनी में रहने का सलीका जरूर सीखें.

बालकनी को कबाड़घर न बनाएं

सब से पहले बालकनी को स्टोरेजरूम न बनाएं. पुराने अखबार, रद्दी, बेकार फर्नीचर, टूटाफूटा सामान या खराब इलैक्ट्रौनिक आइटम्स को यहां जमा करने से बचें. यह न सिर्फ देखने में खराब लगता है बल्कि यह आप की बालकनी की पौजिटिव वाइब्स भी खत्म कर देता है. इस के बजाय, इसे एक साफसुथरा और और्गेनाइज्ड स्पेस बनाए रखें, जहां बैठ कर आप खुली हवा और नेचर का आनंद ले सकें. अगर आप को ऐक्स्ट्रा स्पेस की जरूरत है तो आप बालकनी में फाइबर या लकड़ी की हलकी अलमारी लगा लें. सामान को उस के अंदर ही रखें.

गंदे तरीके से कपड़े न सुखाएं

बालकनी में कपड़े सुखाना कोई गलत बात नहीं लेकिन अगर वे पुरानी और जर्जर रस्सियों पर टंगे हैं और पूरी स्पेस को अस्तव्यस्त बना रहे हैं तो यह बालकनी की खूबसूरती को बिगाड़ सकता है. अगर आप को कपड़े सुखाने ही हैं तो एक कौंपैक्ट ड्राइंग रैक या रिट्रैक्टेबल क्लोथ लाइन का इस्तेमाल करें जो जरूरत पड़ने पर खोली और बंद की जा सके.

इस से बालकनी का लुक भी अच्छा

रहेगा और यह ज्यादा व्यवस्थित भी लगेगा. कोशिश यह भी करें कि सूखे कपड़ों को समय रहते उतार लें. कई बार कईकई दिनों तक कपड़े बालकनी में टंगे रहते हैं और हम उन्हें जरूरत पड़ने पर ही उतारते हैं. इस आदत को न अपनाएं और पहले से ही आप इस प्रैक्टिस में हैं तो इसे तुरंत बदलें.

टपकने नहीं दें गमलों का पानी

ऊंची बिल्डिंगों में गमलों से पानी टपकना भी एक बड़ी समस्या है. जब आप बालकनी को ग्रीनरी से सजाते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि ज्यादा पानी डालने से वह नीचे के फ्लोर पर टपके नहीं. इस से न सिर्फ आप के नीचे रहने वालों को परेशानी होगी बल्कि आप की बालकनी भी गंदगी से भर सकती है. इस के लिए सैल्फवाटरिंग पौट्स या अंडरप्लेट्स का इस्तेमाल करें, जिस से अतिरिक्त पानी सही तरीके से स्टोर हो सके और नीचे गिरने से बचा जा सके. तो कोशिश करें आप की बागबानी का शौक दूसरों पर भारी न पड़े.

बालकनी को मिनिमलिस्ट लुक दें

बालकनी को ऐंजौय करने के लिए यह भी जरूरी है कि वहां आवश्यकता से अधिक सामान न रखें. बहुत ज्यादा फर्नीचर या बड़ीबड़ी डैकोरेशन आइटम्स बालकनी की ओपन स्पेस को खत्म कर देती हैं, जिस से वह भरीभरी और असुविधाजनक लगने लगती है. बेहतर होगा कि मिनिमलिस्ट अप्रोच अपनाएं और बालकनी को एक ऐसी जगह बनाएं जहां आप खुल कर सांस ले सकें.

Holi 2025 : घर पर ही बनाएं इंस्टेंट दही बड़ा मिक्स, मेहमान पूछेंगे रेसिपी

Holi 2025 : आजकल बाजार में इडली, डोसा, भजिया, पकोड़ा, केक, जैसे अनेकों खाद्य पदार्थों का इंस्टेंट मिक्स उपलब्ध है, इंस्टैंट अर्थात तुरन्त यानी ऐसा मिक्स जिससे आप जब सोचें तब मनचाही डिश बना लें. ऐसा ही इंस्टेंट मिक्स है दही भल्ला का. दही भल्ला अथवा दही बड़ा बनाने के लिए जहां एक दिन पहले से सोचकर दाल भिगोकर पीसनी पड़ती है वहीं इंस्टैंट मिक्स से आप चुटकियों में बिना दाल भिगोए चुटकियों में दही बड़ा बना लेतीं हैं. यही नहीं आप इस मिक्स को एयरटाइट जार में भरकर एक माह तक आसानी से प्रयोग कर सकतीं हैं.

यदि आप इसे फ्रिज में रखतीं हैं तो यह दो माह तक भी खराब नहीं होता. इस इंस्टेंट मिक्स से आप केवल दही भल्ला ही नहीं बल्कि मूंगलेट, मूंग चीला, मूंग उत्तपम, मूंग के कोफ्ते भी मिनटों में बना सकेंगी. बाजार में मिलने वाले इंस्टेंट मिक्स की अपेक्षा घर में बनाने से यह सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही बिना किसी प्रिजर्वेटिव के बनाये जाने से हैल्दी भी रहता है. आप होली के लिए अभी से दही भल्ला इंस्टेंट मिक्स बनाकर रखें और होली से एक दिन पूर्व झटपट बना लें. तो आइए जानते हैं कि आप इसे कैसे तैयार कर सकतीं हैं-

कितने लोंगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

धुली मूंग की दाल 3/4 कप
धुली उड़द दाल 1/4 कप
हींग चुटकी भर
जीरा 1/4 टीस्पून
दरदरी काली मिर्च 1/4 टीस्पून
नमक 1/2 टीस्पून

विधि

मूंग और उड़द दाल को साफ पानी से दो बार धोकर साफ सूती कपड़े पर 30 मिनट के लिए फैला दें ताकि पानी सूख जाए. अब दोनों दालों को एक पैन में मंदी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. जब दाल हल्की सुनहरे रंग की हो जाये तो गैस बंद कर दें. ठंडा हो जाने पर दोनों दालों को मिक्सी में फाइन पाउडर फॉर्म में पीस लें. तैयार पाउडर को एक बाउल में डालकर जीरा, हींग, नमक और काली मिर्च अच्छी तरह मिलाएं. तैयार इंस्टेंट मिक्स को एयरटाइट जार में भरकर रखें और इच्छानुसार प्रयोग करें.

कैसे बनाएं दही भल्ला

जब भी आप दही भल्ला बनाना चाहें तो एक कप इंस्टेंट मिक्स में 1 कप पानी धीरे धीरे मिलाकर गाढ़ा बैटर तैयार करें. 10 मिनट तक ढककर रखें. 1 छोटी गांठ किसा अदरक और 4 कटी हरी मिर्च मिलाकर एक ही दिशा में बैटर के हल्का होने तक फेंटे और गरम तेल में मद्धिम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर नमक मिले गरम पानी डालें. निचोड़कर दही और मनचाही चटनियां डालकर सर्व करें.
इसी प्रकार उत्तपम, मूंगलेट और चीला बनाने के लिए पानी में इंस्टैंट मिक्स और मनचाही सब्जियां और मसाले डालें और झटपट बनाएं.

Writer- Pratibha Agnihhotri

Vaginal Hygiene : वेजाइना की साफसफाई का रखें ख्याल, फौलो करें ये टिप्स

Vaginal Hygiene :  कभी आप ने सोचा है कि जिस तरह हम अपने शरीर की साफसफाई के लिए एक से एक साबुन और शैंपू का इस्तेमाल करते हैं, अपने चेहरे को चमकाने के लिए रैगुलर फेशियल, मसाज आदि का यूज करते हैं. लेकिन क्या हम उतना ही ध्यान अपनी वेजाइना का भी रखते हैं? नहीं न, जबकि हमारे शरीर के बाकि अंगों की तरह ही यह भी एक जरूरी बौडी पार्ट है.

12 साल की उम्र से ही अपने प्राइवेट पार्ट्स का ध्यान रखना जरूरी है. इस के लिए रैगुलर गाइनोकलौजिस्ट के पास चैकअप के लिए जाएं और उन से वेजाइना की हाइजीन के बारे में खुल कर बात करें.उन से समझें कि कैसे अपने प्राइवेट पार्ट की साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए.

यहां आप को कुछ जानकारियां दे रहें हैं, जिस से आप अपने प्राइवेट पार्ट का खयाल रख सकती हैं :

सैक्स के बाद वेजाइना को साफ करने के टिप्स

संबंध बनाने के बाद पुरुष और महिलाओं का सैक्सुअल ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन (एसटीआई) से बचाव करने के लिए हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी माना जाता है.अगर महिलाएं अपनी वेजाइनल हाइजीन का ध्यान न रखें तो इस से खुजली, दाद, दाने और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

वेजाइना को पोंछना भी जरूरी है

कई बार संबंध बनाने के बाद वेजाइना को क्लीन करने के बाद तुरंत कपड़े पहन लेते हैं, लेकिन जिस तरह नहाने के बाद शरीर को तोलिए से पोंछा जाता है उसी तरह वेजाइना को भी क्लीन करने के बाद उसे टौवेल की मदद से पोंछें और फिर पैंटी पहनें. वरना वेजाइना से बदबू आने लगेगी.

सैक्स के बाद कपड़े बदलें

कई लोगों की आदत होती है कि सैक्स करने के बाद फिर से वही कपड़े पहन कर सो जाते हैं लेकिन ऐसा करने से उन कपड़ों में बदबू आ जाती है और साथ ही इन्फैक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए सैक्स किसी भी समय किया जाए लेकिन उस के बाद कपड़े जरूर बदलें.

पीरियड्स में भी कुछ ऐसे रखें साफसफाई का खयाल

● सुगंधित टैंपौन, पैड और लाइनर से बचें.

● माहवारी के दौरान अपना टैंपौन या पैड दिन में 4 से 5 बार बदलें.

● मासिकधर्म के दौरान नियमित रूप से प्राइवेट पार्ट को धोएं.

● सैनेटरी नैपकिन को भी दिन में 4-5 बार जरूर बदलें, भले ही वह आप को साफ क्यों न लगें लेकिन फिर भी उसे चेंज करना जरूरी है वर्ना उस में से बदबू आने लगती है.

● पीरियड्स के समय में हर बार वाशरूम जाने पर प्राइवेट पार्ट को पानी से क्लीन करें ताकि अच्छे से साफसफाई हो सके.

हलके गरम पानी का इस्तेमाल करें.

प्राइवेट पार्ट की सफाई करने के लिए तेज गरम पानी न लें बल्कि हलके गरम पानी से वेजाइना की सफाई करें. इस से बैक्‍टीरिया भी दूर रहेंगे.

पीएच लेवल को मैटेंन करें

वेजाइना खुद को बैक्‍टीरिया और इन्फैक्शन से बचाने के लिए एक उचित तपमान, पीएच और नमी को बनाए रखने में मदद करती है.आमतौर पर वेजाइना का पीएच नौर्मल रहता है लेकिन कठोर साबुन या कैमिकलयुक्‍त प्रोडक्‍ट के इस्‍तेमाल से काफी बदल सकता है.इसलिए वेजाइना को साफ करने के लिए कैमिकलयुक्त प्रोडक्‍ट का इस्‍तेमाल न करें.इस में मौजूद कैमिकल से इन्फैक्‍शन होने की संभावना अधिक रहती है.

फोल्ड के अंदर की सफाई

वेजाइना की सफाई हलके हाथों और प्यार से लेबिया और फोल्ड के अंदर करना चाहिए.जल्दबाजी आप को चोट पहुंचा सकती है.अंदर और आसपास साफ करने के लिए अपनी लेबिया को धीरे से फैलाएं.कोशिश करें कि अंदर किसी तरह का साबुन या पानी न रह जाए.

पेरिनेम को भी क्लीन करें

वह हिस्सा जो आप के बट से लगता है, उसे भी साफ करें.यदि आप का हाथ या वौशक्लौथ एनस तक गया है, तो उन्हें साफ करने के बाद ही वेजाइना तक दोबारा आएं.वरना आप के एनस के पास मौजूद बैक्टीरिया वेजाइना तक आ सकते हैं, जो यूटीआई का सब से बड़ा कारण है.

वेजाइना में खुशबु वाले वाश, डीओ आदि से बचें

कई बार सैक्स में प्लेजर के लिए, पार्टनर को खुश करने के लिए या फिर वेजाइना की गंध से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं लोकल वेजाइना डीओ या परफ्यूम का यूज करती हैं. ये सभी चीजें कैमिकलयुक्त होती हैं जिन से कई तरह के इन्फैक्शन और परेशानी का सामना करना पङ सकता है.इसलिए ऐसा कभी न करें. याद रखें कि कोई भी प्रोडक्ट हो, नामी कंपनी यानि ब्रैंडेड ही यूज करें.

प्यूबिक हेयर को ट्रिम करें

प्यूबिक हेयर को रिमूव करने के लिए कई तरह के रिमूवर बाजार में आते हैं, लेकिन उन के प्रयोग से कई बार वेजाइना में जलन होना, छोटेछोटे दानें निकलना जैसी कई समस्याएं हो जाती हैं. इसलिए डाक्टरों का भी कहना है कि प्यूबिक हेयर को रिमूव करने के लिए सीजर का प्रयोग करें लेकिन पूरी सावधानी के साथ ताकि कोई कट न लगें.आप चाहें तो इस के लिए वूमेन रेजर का भी यूज कर सकती हैं. अगर आप की स्किन कुछ ज्यादा ही सैंसिटिव है तो डाक्टर से बात करें कि इस के लिए आप क्या कर सकती हैं.

वेजाइना को नैचुरली साफ करने के लिए बेकिंग सोडा यूज करें

वेजाइना को नैचुरली साफ करने का एक और तरीका हो सकता है कि नहाने के पानी में 1 बड़ा चम्मच बेकिंग सोडा मिलाना.इस से पीएच बैलेंस करने में मदद मिलेगी.हालांकि ऐसा करने के बाद नौर्मल और साफ पानी से नहाना बिलकुल न भूलें.

अंडरगार्मेंट्स को धूप में सुखाएं

कई लड़कियों की आदत होती है कि वे अपनी पैंटी को बहार धूप में सूखने देने में शर्म महसूस करती हैं और इसलिए उन्हें बाथरूम में डाल देती हैं जोकि बैक्टीरिया के पनपने का बहुत बड़ा कारण बनता है.ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन मे नमी रह जाती है जिस से बैक्टीरिया पनपने लगते हैं.इसलिए अपनी पैंटी को धूप में ही सुखाएं.

पैंटी कैसे पहनें

कौटन अंडरवियर ही पहनें खासतौर पर गरमी के मौसम में काफी पसीना आता है जिसे कौटन अंडरवियर आसानी से सोख लेता है. अंडरवियर बहुत टाइट नहीं होना चाहिए.सिंथेटिक पैंटी पहनने से बचें.अंडरवियर को भी गरम पानी और माइल्ड डिटर्जेंट से धोएं.

Holi 2025 : होली के मस्ती भरे रंग सितारों के संग, जानें किन ऐक्टर्स को नहीं पसंद है ये फेस्टिवल

Holi 2025 : होली का त्योहार एक बार फिर से लौट आया है. लिहाजा, बाजार में गुलाल से ले कर पिचकारी तक की बहार है. हर तरफ होली जश्न की तैयारी है. ऐसे में भला बौलीवुड कैसे अछूता रह सकता है, जहां हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है और यहां न कोई जातपात का भेदभाव है, न ही कोई उम्र की सीमा. अगर कुछ है तो वह है ढेर सारी मस्ती और मस्ती भरा माहौल. ऐसे में, होली ही ऐसा त्योहार है जहां रंगों के साथ मजा लेते हुए मस्ती करने का पूरा माहौल होता है.

शायद यही वजह है कि बौलीवुड में मशहूर हस्तियां अपने घरों में होली या यों कहिए होली पार्टी का आयोजन करते हैं, जिस में सारे फिल्मी सितारे होली खेलने के लिए शामिल होते हैं.

होली के दिन शूटिंग वगैरह बंद रहती है और सिर्फ होली पार्टी का धमाल होता है, जिस में नाचगाना और तरहतरह के रंगों से एकदूसरे का मुंह रंगना, ढेर सारी मिठाइयां खाना आदि सबकुछ शामिल होता है.

बौलीवुड स्टार्स और उन के घरों में होली का जश्न

अगर सार्वजनिक तौर पर होली मनाने की बात करें तो इस की शुरुआत शोमैन राज कपूर के आरके स्टूडियो से हुई थी जहां हर साल वे होली पार्टी का आयोजन जोरशोर से करते थे और वहां लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री होली की पार्टी में शामिल होती थी.

आरके स्टूडियो में राज कपूर की होली पार्टी में शामिल होना बौलीवुड कलाकारों के लिए गर्व की बात मानी जाती थी. सिर्फ देव आनंद ही थे जो राज कपूर की होली पार्टी में शामिल नहीं होते थे, क्योंकि देव आनंद को होली खेलना पसंद नहीं था.

इस के बाद धीरेधीरे कई और सितारों ने अपने घरों में होली पार्टी का आयोजन किया जिस में अमिताभ बच्चन के घर की होली पार्टी, सुभाष घई के घर की होली पार्टी, जावेद अख्तर व शबाना आजमी के घर की होली पार्टी में जम कर होली मनाई जाती थी. शाहरुख खान और सुभाष घई आदि बड़ीबड़ी हस्तियों ने अपने घरों में जोरदार होली पार्टी का आयोजन किया, जिस में लगभग पूरी इंडस्ट्री न सिर्फ शामिल होती थी बल्कि फूलों, धमाल, मस्ती, रंगबाजी का आनंद उठाया करते थे.

फिल्ममेकर यश चोपड़ा भी अपने घर में होली पार्टी का आयोजन करते थे जिस में एक बार मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर शमां बांध दिया था.

रंग बरसे भीगे चुनरवाली…

गौरतलब है कि अमिताभ बच्चन ने होली पर कई सारे गाने गए हैं, जैसे ‘रंग बरसे भीगे चुनरवाली…’ ‘होली खेले रघुवीरा अवध में…’ वगैरह. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अमिताभ बच्चन ने अपनी शुरुआती दौर में राज कपूर की होली पार्टी में पहली बार ‘रंग बरसे भीगे चुनरवाली…’ गीत गाया था जो सभी को बहुत पसंद आया था और उस के कुछ समय बाद ही यश चोपड़ा ने फिल्म ‘सिलसिला’ में अमिताभ बच्चन की आवाज में ‘रंग बरसे…’ गाना फिल्म में प्रस्तुत किया था जो आज भी लोकप्रिय है. आज तकरीबन हर होली पार्टी में अमिताभ बच्चन द्वारा गाए होली के गाने खूब धूम मचाते हैं.

होली से जुड़ी यादें

होली का त्योहार भले ही एक दिन का होता है, लेकिन इस से जुड़ी यादें बौलीवुड सितारों को हमेशा याद रहती हैं जैसेकि अभिषेक बच्चन को अपनी पहली होली अभी तक याद है जब उन्होंने अपने ही घर में हुई होली पार्टी में फिल्म ‘माचिस’ का लोकप्रिय गीत ‘चप्पाचप्पा चरखा चले…’ गाने पर डांस किया था.

इस के अलावा उन के घर में रंगों से भरा हुआ एक बड़ा सा टब रहता था जिस में उन के घर आए कलाकारों को सब से पहले उस रंगों से भरे टब में डुबकी लगानी पड़ती थी जोकि बहुत ही मजेदार होता था.

किस तरह मनाते हैं ये स्टार्स होली, जानिए खुद उन्हीं की जबानी :

शाहरुख खान : मुझे अपनी पहली होली याद है जब मैं ने अपनी पत्नी गौरी के साथ सुभाष घई की पार्टी में फुल मस्ती की थी. हम दोनों ने बहुत डांस भी किया था. इस होली पार्टी में एकदूसरे को बहुत रंग लगाया था और बहुत डांस व गाना भी हुआ था. जितना मजा मैं ने उस होली पार्टी में किया था, उतना मजा मैं ने आज तक नहीं किया. हालांकि मेरे भी घर में होली पार्टी का आयोजन हुआ है जिस में फैमिली और फ्रैंड्स शामिल हुए थे. उस दौरान भी हम ने बहुत मजे किए.

अर्चना पूरन सिंह : मुझे होली मनाना बहुत पसंद है, इसलिए मैं होली मनाने का एक भी मौका नहीं छोड़ती. मुझे आज भी याद है जब अभिषेक बच्चन बहुत छोटा था और अमिताभ बच्चनजी के यहां होली की पार्टी थी. उस वक्त जब मैं पार्टी में गई तो अभिषेक ने मुझे रंगों से भरे टब में धकेल दिया, क्योंकि उस वक्त मैं मैंटली इस बात को ले कर तैयार नहीं थी इसलिए मेरा बैलेंस भी बिगड़ गया और मेरे सारे कपड़े भीग गए. उस के बाद अभिषेक को डांट भी पड़ी थी मेरे साथ ऐसी मस्ती करने के लिए.

अर्चना बताती हैं कि इस के अलावा कपिल शर्मा के शो में भी हमेशा होली का त्योहार मनाया जाता है जिस में हम सभी लोग बहुत मस्ती करते हैं. भारती और कृष्णा तो इतने मजेदार हैं कि उन के साथ होली का मजा दोगुना हो जाता है.

माधुरी दीक्षित : मैं होली बहुत कम खेलती हूं, क्योंकि मुझे अचानक से जो रंग लगाने आते हैं या रंगों से भरे पानी के टब में धकेल देते हैं, यह सब मुझे बहुत डरावना लगता है. इसलिए मैं फिल्म वाली होली पार्टी में कम ही जाती हूं. मुझे बचपन की होली ज्यादा अच्छी लगती थी जिस में मैं फ्रैंड्स के साथ मिल कर लोगों पर पानी से भरे गुब्बारे मारा करती थी और पूरा दिन अपने फ्रैंड्स के साथ होली खेलती नहीं थकती थी. इस दौरान एक फ्रैंड ने मुझे पक्का रंग लगा दिया था, जो काफी दिनों तक मेरे चेहरे से नहीं हटा था.

स्टार्स जिन्हें होली खेलना पसंद नहीं

देव आनंद की तरह रणबीर कपूर भी होली नहीं खेलते क्योंकि उन को रंगों से ऐलर्जी है. रणबीर कपूर की तरह रणवीर सिंह भी होली नहीं खेलते क्योंकि उन को डर लगता है कि कहीं कोई गंदा पानी, गंदे कलर का इस्तेमाल कर के स्किन को खराब न कर दें. इसी तरह टाइगर श्रौफ, जौन अब्राहम और कृति सेनन को भी होली खेलना पसंद नहीं है.

सब से खास बात यह है कि बौलीवुड के परफैक्शनिस्ट आमिर खान का जन्म होली के दिन ही हुआ था और उन की दाईमां ने आमिर खान को पहली बार गुलाल लगाया था.

Relationship Hacks : मेरा 15 साल का बेटा प्यारमुहब्बत के फेर में पड़ गया है, मैं क्या करूं?

Relationship Hacks : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं अपने 15 वर्षीय बेटे को ले कर परेशान हूं. वह 10वीं कक्षा में पढ़ता है. मैं ने कुछ दिनों से नोटिस किया है कि वह अपने साथ ट्यूशन क्लास में पढ़ने वाली लड़की में खासी दिलचस्पी लेने लगा है. मुझ से भी उस की तारीफ करता है और फोन पर भी अकसर उस से बातें करता है. कहीं वह उस लड़की से प्यार तो नहीं करने लगा है? यदि वह इतनी छोटी उम्र में प्यारमुहब्बत के फेर में पड़ गया तो उस का कैरियर चौपट हो जाएगा. क्या करूं कि वह उस से दूर हो जाए?

जवाब-

आप का बेटा किशोरावस्था में है. इस उम्र में अपोजिट सैक्स की ओर इस प्रकार का आकर्षण स्वाभाविक है. यह प्यार नहीं, महज यौनाकर्षण है. यह जिस तेजी से किशोरों के दिलोदिमाग पर चढ़ता है. उसी वेग से उतर भी जाता है. आप का बेटा आप से अपनी बातें शेयर करता है, यह अच्छी बात है इस से वह भटकेगा नहीं. आप उसे उस लड़की से मिलने या बात करने से न रोकें. उसे बस समयसमय पर पढ़ाई के प्रति सचेत करती रहें. उसे समझाती रहें कि परीक्षा परिणाम अच्छा आने पर ही वह मनचाहा कैरियर चुन सकता है. वह आप की दोस्ताना सलाह को जरूर सुनेगा. वैसे भी आज की पीढ़ी के बच्चे अपने कैरियर के प्रति काफी सजग हैं. अत: आप बेवजह परेशान न हों.

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अलार्मकी आवाज से गीत की नींद खुल गई. कल की ड्रिंक का हैंगओवर था, इसलिए सिर भारी था. उन्होंने ग्रीन टी बना कर पी और फिर मौर्निंग वाक के लिए चली गईं. सुबह की ठंडी हवा और कुछ लोगों से हायहैलो कर के ताजगी आ जाएगी. फिर तो वही रोज का रूटीन कालेज, लैक्चर बस…

कल से नैना उन की सहेली उन के मनमस्तिष्क से हट ही नहीं रही थी. उन की कहानियों की आलोचना करतेकरते कैसे अपना आपा खो बैठती थी.

‘‘गीत, तुम्हारी कहानी की नायिका पुरुष के बिना अधूरी क्यों रहती है?’’

‘‘नैना, मेरे विचार से स्त्रीपुरुष दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. एकदूसरे के बिना अधूरे हैं.’’

वह नाराज हो कर बोली, ‘‘नहीं गीत, मैं नहीं मानती. स्त्री अपनी इच्छाशक्ति से आकाश को भी छू सकती है. सफल होने के लिए दृढ़इच्छा जरूरी है.’’

बड़ीबड़ी बातें करने वाली नैना पति का अवलंबन पाते ही सबकुछ भूल गई और पिया का घर प्यारा लगे कहती हुई चली गई.

नैना के निर्णय से गीत का मन खुश था. वे मन ही मन मुसकरा उठीं और फिर वहीं बैंच पर बैठ गईं. बच्चों को स्कैटिंग करता देखना उन्हें अच्छा लग रहा था. वे बच्चों में खोई हुई थीं, तभी बैंच पर एक आकर्षक युवक आ कर बैठ गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह जोर से मुसकराया. उस की उम्र 30-32 साल होगी.

वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘माई सैल्फ प्रत्यूष.’’

‘‘माई सैल्फ गीत.’’

‘‘वेरी म्यूजिकल नेम.’’

‘‘थैंक्यू.’’

उस का चेहरा और पर्सनैलिटी देख गीत चौंक उठी थीं, जिस पीयूष की यादों को वे अपने मन की स्लेट से धोपोंछ कर साफ कर चुकी थीं, उस व्यक्ति ने आज उन यादों को पुनर्जीवित कर दिया था.

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Famous Hindi Stories : पापाज बौय – ऐसे व्यक्ति पर क्या कोई युवती अपना प्यार लुटाएगी?

Famous Hindi Stories : फरवरी का बसंती मौसम था. धरती पीले फूलों की चादर में लिपटी हुई थी. बसंती बयार में रोमांस का शोर घुल चुका था. बयार जहांतहां दो चाहने वालों को गुदगुदा रही थी. मेरे लिए यह बड़ा मीठा अनुभव था. मैं उस समय 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही शरीर में बदलाव होने लगे थे. सैक्स की समझ बढ़ गई थी. दिल चाहता था कि कोई जिंदगी में आई लव यू कहने वाला आए और मेरा हो कर रह जाए. मैं शुरू से ही यह मानती आई थी कि प्रेम पजैसिव होता है इसीलिए यही सोचती आई थी कि जो जिंदगी में आए वह सिर्फ मेरा और मेरा हो.

शतांश से मेरी मुलाकात क्लास में ही हुई थी. वह गजब का हैंडसम था साथ ही अमीर बाप की एकलौती संतान था. पता नहीं मुझ में ऐसा क्या था जो वह मुझ पर एकदम आकर्षित हो गया. वैसे क्लास और स्कूल में अनेक लड़कियां थीं, जो उस पर हर समय डोरे डालने का प्रयास करती थीं. मैं एक मध्यवर्गीय युवती थी और वह आर्थिक स्थिति में मुझ से कई गुना बेहतर था.

पहली मुलाकात के बाद ही हमारी दोस्ती बढ़ने लगी थी. मुझे क्लासरूम में घुसते देख कर ही वह दरवाजा रोक कर खड़ा हो जाता और मुझे अपनी तरफ देखने को मजबूर करता. कभी वह मेरे बैग से लंच बौक्स निकाल कर पूरा खाना खा जाता तो कभी अपना टिफिन मेरे बैग में रख देता. वह मेरे से नितनई छेड़खानियां करता. अब उस की छोटीछोटी शरारतें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. शायद उस दौरान ही हमारे बीच प्रेम का पौधा पनपने लगा था.

मन की सुप्त इच्छाएं उस समय पूर्ण हुईं जब शतांश ने मुझे वैलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देते हुए कहा था, ‘आई लव यू.’

मेरे लिए वह पल सुरमई हो उठा था. हृदय में खुशी का सैलाब उमड़ने लगा था. मैं शतांश की हो जाने को बेताब हो उठी थी. कैसे उस के शब्दों के बदले अपने प्रेम का इजहार करूं, अचानक कुछ भी नहीं सूझा था. जिस हाथ से शतांश ने वह फूल दिया था, मैं ने उस हाथ को शरमाते हुए चूम लिया था, बस.

उस दिन के बाद से न ही उस ने कुछ किया और न ही मैं ने. जो कुछ किया रोमांस की हवा के झोंकों ने किया. हमारे बीच प्रेम निरंतर बढ़ता जा रहा था. हम एकदूसरे के और करीब आते गए थे.

रेस्तरां में शतांश के इंतजार में बैठी शायनी अपना अतीत उधेड़े जा रही थी. तभी वेटर आ कर उस के सामने कौफी का एक कप रख गया. कौफी का एक घूंट गले में उतारते हुए शायनी फिर अतीत में खो गई. रेस्तरां के शोरशराबे ने भी उस की सोच में कोई खलल नहीं डाला.

स्कूली शिक्षा समाप्त करते ही मैं ने मैडिकल में ऐडमिशन ले लिया था और शतांश ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए करने की चाह में आर्ट्स कालेज जौइन कर लिया था.

यह सत्य है कि प्रेम किसी सीमा का मुहताज नहीं होता. वह न जाति में बंधता है, न धर्म में. न ऊंचनीच उसे बांधती है और न ही रंगभेद. कालेज की दूरियां और समय का अभाव कभी भी हमारे प्रेम में कमी नहीं ला पाया. मेरे और शतांश के रिश्तों में रोमांस की खुशबू सदा बनी रही.

ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह मेरे साथ मैडिकल कालेज के लड़कों को देख कर चिढ़ा हो, उन्हें बरदाश्त न कर पाया हो और न ही कभी ऐसा हुआ कि उस के साथ लड़कियों को देख कर कभी किसी शंका ने मेरे मन में जन्म लिया हो. हम अपने प्रेम के लिए पजैसिव भी थे और प्रोटैक्टिव भी.

समय का अभाव जरूर हमें सालता था, पर हम अपने दायित्वों को समझते थे. हम हरसंभव प्रयास करते थे कि सप्ताहांत में मिलें और रोमांस को बरकरार रखें. उस सैक्स को जीवंत रखें, जो रोमांस के लिए जरूरी है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे.

एक डेट पर जब हम दोनों ने यह एहसास कर लिया कि हम एकदूसरे के लिए ही हैं तो हम ने विवाह बंधन में बंधने का निर्णय कर लिया. उस दिन पुलक कर मैं ने न जाने कितने चुंबन उस के गाल पर जड़ दिए थे और उस ने मुझे अपनी बांहों से बिलकुल भी छिटकने नहीं दिया था.

मोबाइल की घंटी बजते ही शायनी की सोच बिखर गई. फोन पर शतांश था. शायनी ने उसे लगभग डांट सा दिया. हलके से क्रोध भरे स्वर में वह बोली, ‘‘शतांश, आजकल क्या हो गया है तुम्हें? मैं आधे घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘सौरी डार्लिंग, मैं आज नहीं आ पाऊंगा,’’ शतांश बोला.

‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘मैं बिजी हूं. एक पल की भी फुरसत नहीं है मुझे.’’

‘‘मुझे पहले नहीं बता सकते थे,’’ शायनी ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘सौरी लव, मुझे ध्यान ही नहीं रहा.’’

गुस्से में शायनी ने फोन काट दिया. सोच का रथ फिर दौड़ने लगा. तेज और तेज. जीवन में कुछ परिवर्तन अचानक होते हैं. ऐसा ही परिवर्तन पिछले कुछ दिनों से मैं शतांश के व्यवहार में देख रही हूं. यद्यपि मेरा मन कई आशंकाओं और भय से इन दिनों लगातार घिरता रहा है पर मैं ने इन आशंकाओं को अब तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.

मैं ने हरसंभव प्रयास किया है कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. रोमांस बरकरार रहे. मेरा प्रेम मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण है.

मैं रोमानी रिश्तों में बोल्डनैस की पक्षधर हमेशा रही हूं. रिश्तों में दावंपेंच मुझे कतई पसंद नहीं रहे. शतांश का मुझ से कतराना मुझे आहत करने लगा है. यदि अब वह किन्हीं कारणों से मुझ से सामंजस्य नहीं बना पा रहा है, तो मैं चाहती हूं कि वह मेरे समक्ष आए और मेरे सामने अपना दोटूक पक्ष रखे. यदि हमारे संबंधों में एकदूसरे का सम्मान लगभग समाप्त होने लगा है, तो कम से कम हम बिछुड़ें तो मन में खटास ले कर दूर न हों.

एक लंबे अंतराल के बाद शतांश ने शायनी को फोन या. शायनी उस समय कालेज में थी. शतांश ने उसे बताया कि वह आज रेस्तरां में उस से मिलना चाहता है. शायनी उस समय अपने कई मित्रों से घिरी हुई थी. वह शतांश को अधिक समय नहीं दे पाई. उस से शाम को मिलने का वादा कर के वह अपनी क्लास में चली गई.

शाम को जब शायनी रेस्तरां पहुंची तो वहां शतांश पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. शायनी को देखते ही उस ने वेटर को 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया और शायनी के बैठते ही उस से पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘पहले जैसी नहीं,’’ शायनी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘मैं तुम्हारी नाराजगी समझ सकता हूं,’’ वह बड़ी गंभीरता से बोला, ‘‘सौरी लव, व्यस्तता इतनी अधिक थी कि तुम से मिलने का समय नहीं निकाल पाया,’’ शतांश ने कहा.

शायनी चुप रही. वह शतांश के चेहरे को पढ़ने का प्रयास करने लगी. उस की चुप्पी ने शतांश को असहज कर दिया. कुछ समय पश्चात चुप्पी शतांश ने ही तोड़ी, ‘‘डियर, जो सच मैं इन दिनों तुम से छिपाता रहा हूं, वह यह है कि मैं पापा के मित्र की लड़की खनक से विवाह करने जा रहा हूं. मैं समझता हूं कि तुम मेरा यह फैसला सुन कर आहत जरूर होगी, लेकिन सच यह भी है कि हम में से यह कोई नहीं जानता कि अगला पल हमारे लिए क्या लिए हुए खड़ा है.

‘‘यह पापा का फैसला है. वे हृदयरोगी हैं. उन के अंतिम समय में मैं उन्हें कोई आघात नहीं पहुंचाना चाहता.’’

शायनी ने शतांश को सुना पर वह उस के निर्णय से चकित नहीं हुई. वह पल उस के लिए बड़ा ही पीड़ादायक था. मन दरकदरक बिखरने लगा था. अपनेआप को संयत करते हुए वह बोली, ‘‘तुम पुरुष हो शतांश. कुछ भी कह सकते हो. मैं नारी हूं. मुझे तो सिर्फ सुनना है. गलत मैं ही थी जो तुम्हें समझ नहीं पाई. मैं तो यही समझती रही थी कि तुम भी मेरी तरह हमारे प्यार के लिए पजैसिव और प्रोटैक्टिव हो.’’

ठंडी सांस लेते हुए उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, मैं तुम से कुछ जवाब चाहती हूं. स्कूल में मुझे रिझाते समय, अपनी वैलेंटाइन बनाते समय, होटलों में मेरा शरीर भोगते समय और मुझ से विवाह करने का निर्णय लेते समय क्या तुम्हें यह पता नहीं था कि तुम पापाज बौय हो? उन की इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं जा पाओगे? यदि पता था तो मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का अर्थ क्या था?

‘‘सच क्यों नहीं कहते कि तुम्हारे पापा को मेरे पापा से बड़े दहेज की उम्मीद नहीं है. यह क्यों नहीं कहते कि वे नहीं चाहते कि कोई मध्यवर्गीय युवती उन के खानदान की बहू बने. इस में तुम्हारी भी सहमति है. तुम्हारा मुझ से प्यार तो केवल एक नाटक था,’’ कहते हुए एक दर्द उभर आया था शायनी की आवाज में. उस की आंखें डबडबा उठी थीं.

शतांश ने सिर्फ उस के दर्द भरे शब्द सुने. कहा कुछ नहीं. केवल शायनी की आंखों से निकल कर चेहरे पर फिसलते एकएक मोती को गौर से देखता रहा.

‘‘गो,’’ शतांश की चुप्पी पर शायनी लगभग चीख उठी. वह इन बोझिल पलों से शीघ्र ही उबर आना चाहती थी, ‘‘जाओ, शतांश जाओ. आई हेट यू,’’ वह फिर चीखी. पर जब शतांश कुरसी से नहीं उठा तो वह खुद उठ कर रेस्तरां से बाहर चली आई.

शायनी शतांश के निर्णय से हताश हो कर घर तो चली आई पर रातभर सो न सकी. मन में तूफान उठ रहा था, जो उसे विचलित किए जा रहा था. वह सोचे जा रही थी कि प्यार तो जिंदगी का संगीत होता है. उस के बिना जीवन सूना हो जाता है इसीलिए उस ने अंत समय तक यह भरसक प्रयास किया था कि उस के प्यार की खुशबू शतांश में बनी रहे.

शतांश उस से कहीं दूर न हो जाए. इसी संशय में मैडिकल की कठिन पढ़ाई के उपरांत उस के लिए लगातार समय निकाला था. सदैव उस की शारीरिक इच्छाएं पूरी की थीं. अपनी तरफ से प्रेम के प्रति ईमानदार बनी रही थी. कभी उसे शिकायत का कोई मौका ही नहीं दिया था. इस से ज्यादा और वह क्या कर सकती थी. अचानक शतांश की बेवफाई को वह क्या समझे? उस के साथ नियति का कू्रर मजाक या फिर शतांश द्वारा दिया गया धोखा.

सोचतेसोचते न जाने कब आंख लग गई. सवेरे शायनी को उस के पापा रविराय ने जगाया, ‘‘शायनी, आज कालेज नहीं जाएगी बेटा? देख सूरज सिर पर चढ़ आया है.’’

अलसाते हुए शायनी पलंग पर उठ बैठी. उस ने पापा को पास बैठाते हुए कहा, ‘‘आज कालेज जाने का मन नहीं है,’’  फिर उन की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पापा, मैं ने फैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूंगी.’’

रविराय उस की बात पर जरा भी नहीं चौंके. वे बात की गंभीरता को समझते हुए बोले, ‘‘साफ क्यों नहीं कहती कि शतांश अब तेरी जिंदगी से दूर जा चुका है. मैं कई दिन से महसूस कर रहा था कि अब न तो तेरे लिए उस के फोन आते हैं और न ही तू मुझ से उस के साथ देर रात तक रुकने के लिए अनुमति मांगती है. चल, जो भी हुआ, ठीक हुआ. शायद तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे.

‘‘बेटे, लाइफ एक बंपी राइड है. यह सपाट और सरल कभी नहीं होती इसलिए संभलो और आगे बढ़ो. नैवर रिग्रैट फौर एनीथिंग,’’ कहते हुए रविराय ने उसे बांहों में बांध कर उस के माथे को चूम लिया.

खनक की कार जब होटल ड्रीमलैंड की पार्किंग में रुकी तो शतांश अपनी कार लौक कर के उस के आने का इंतजार करने लगा. खनक ने कार से उतरते ही शतांश से कहा, ‘‘मैं समझती हूं, हमें अंदर रेस्तरां में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अपने विवाह के संबंध में हमें जो भी निर्णय लेना है, वह यहीं लिया जा सकता है. वैसे मैं तुम्हारे और शायनी के बारे में बहुतकुछ जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम ने मुझ से शादी करने के लिए उस से ब्रेकअप किया है.’’

थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, तुम में और मुझ में एक बड़ा अंतर यह है कि यू आर पापाज बौय. तुम वही करते हो जो वे तुम्हें करने के लिए कहते हैं. यहां तुम उन के कहने पर ही मुझे प्रपोज करने आए हो.

‘‘जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं अपने डैडी की इज्जत करती हूं. उन के कहने पर मैं यहां आई तो जरूर हूं, लेकिन अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार मैं किसी को नहीं देती, क्योंकि यह मेरी जिंदगी है, जो मुझे अपने ढंग से जीनी है, डैडी की इच्छा से नहीं.’’

अपनी बातों को समाप्त करते हुए वह बोली, ‘‘अब बेहतर यही है कि तुम लौट कर अपने पापा को यह बता दो कि खनक तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह न तो हमारे घर में निभ पाएगी और न ही आप की सेवा कर पाएगी. मुझे अपने डैडी से क्या कहना है, यह मैं भलीभांति जानती हूं.’’

शतांश मूक रह गया. वह चेहरे पर उभर आई फीकी सी मुसकान के पीछे छिपे दर्द को ढकने का प्रयास करने लगा. वह समझ नहीं पाया कि कैसे वह खनक को अपने मन के भाव दिखाए.

‘‘चलें,’’ अचानक खनक के शब्द ने उसे चौंका दिया. खनक उसे उसी अवस्था में छोड़ कर अपनी कार में बैठी और कार स्टार्ट कर पार्किंग से बाहर निकल गई. शतांश किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखता रह गया.

समय किसी के लिए नहीं रुकता. शतांश के लिए भी नहीं रुका और न ही शायनी के लिए. 4 साल बाद नैनीताल में एक दिन शायनी जैसे ही अपने क्लीनिक से बाहर निकली, उसे शतांश कार में सड़क से गुजरता हुआ दिखाई दिया. शायनी उसे नैनीताल में देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रही. उसी पल शतांश को भी वह सड़क के किनारे चलती हुई नजर आ गई. उसे नैनीताल में देख कर वह भी चकित रह गया. वह कार से उतरा और शायनी के पास आ पहुंचा.

उसे रोकने का प्रयास करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम यहां?’’

शतांश को अपने सामने देख कर शायनी के मन से नफरत का लावा भरभरा कर बह निकला. उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना शायनी ने अपनी गति तेज कर दी.

शतांश ने भी उस का पीछा नहीं छोड़ा. बढ़ कर फिर उस के समीप आ गया. बोला, ‘‘शायनी, सुनो तो. हम इतने भी अजनबी नहीं हैं कि तुम मुझ से कतरा कर भागने लगो. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि तुम यहां कैसे?’’

अब शायनी रुक गई. वह अपने को  संयमित करते हुए बोली, ‘‘मैं यहीं रहती हूं. यहां मेरा क्लीनिक है.’’

‘‘सरप्राइजिंग, मेरी यहां एक फैक्टरी है. मैं भी यहीं रहता हूं,’’ फिर कुछ सोचते हुए उस ने शायनी से अनुरोध किया, ‘‘क्या

हम थोड़े समय के लिए एकसाथ कहीं बैठ सकते हैं?’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली.

‘‘शायनी तुम्हें मेरे और अपने उन पलों की कसम, जो कभी हम ने साथ जिए थे.’’

‘‘जो कहना है यहीं कहो,’’ बड़ी असहज स्थिति में उस का अनुरोध स्वीकार करते हुए शायनी ने कहा.

शतांश वहीं एक लैंप पोस्ट के सहारे खड़ा हो गया. शायनी भी उस के पास खड़ी हो गई. अपने दिल के बोझ को हलका करने का प्रयास करते हुए शतांश बोला, ‘‘शायनी, मैं अब पापाज बौय नहीं रहा हूं. पापा से अलग हो कर मैं ने अपनी फैक्टरी यहां लगा ली है. फैक्टरी लगाने के बाद मैं ने तुम्हें हर जगह ढूंढ़ा.

’’तुम्हारे साथियों से भी पूछा कि तुम आजकल कहां हो, लेकिन जब कोई कुछ नहीं बता पाया तो मैं ने तुम्हारे पापा से बात की. उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया. हां, यह जरूर बताया कि तुम ने भविष्य में शादी करने से इनकार कर दिया है.’’

शायनी शतांश की बातें सुनती चली गई. उस की बातों पर उस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, सड़क पर चलती हुई भीड़ और सामने से गुजरते वाहनों को देखती रही.

थोड़ी चुप्पी के बाद शतांश ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘शायनी, सच मानो, अपने बे्रकअप के बाद से मैं पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं. वह बे्रकअप मेरे जीवन की एक बड़ी भूल थी. मैं तुम से क्षमा मांग कर उस भूल को सुधारना चाहता हूं. मेरी बाहें तुम्हें आज भी उसी गर्मजोशी से बांधने को तैयार हैं. प्लीज शायनी, फौरगैट एवरी थिंग.’’

शायनी ने शतांश को सिर से ले कर पैर तक देखा मानो किसी गिरगिट को रंग बदलते हुए देख रही हो. क्षितिज पर डूबा सूरज पल भर के लिए आग बरसाता हुआ सा लगा.

अपने मन के कष्ट को दबाते हुए वह फट पड़ी, ‘‘मिस्टर शतांश, जो उलझन, उथलपुथल, तनाव और दुख इस दौर में मैं ने झेले हैं, उन्हें सिर्फ वही युवती समझ सकती है जिस ने बे्रकअप झेला हो. मैं एक स्वाभिमानी युवती हूं. रिश्तों में इतनी कड़वाहट आने के बाद तुम से फिर रिश्ता कायम कर लूंगी, यह तुम्हारी समझ का एक बड़ा दोष है.

‘‘जरा सोचो, जिस इंसान के साथ बिताए पलों की याद आते ही मेरे मन में नफरत का एक तूफान उठने लगता है, उस के चेहरे को जिंदगी भर मैं अपने सामने कैसे देख पाऊंगी? कभी नहीं, सौरी.’’

तभी एक औटोरिक्शा शायनी के पास से गुजरा. शायनी ने हाथ दे कर उसे रोका. उस में बैठी और चली गई. औटो से निकले काले धुएं ने शतांश के सपनों पर गहरी कालिख बिछा दी.

Latest Hindi Stories : विराम – क्या महेश से मिल कर मोहिनी अपने पति श्याम को भुला बैठी?

Latest Hindi Stories : आज महेश सुबह बिना नहाएधोए ही उपन्यास पढ़ने बैठ गया. यकायक उस की नजर एक शब्द पर आ कर रुक गई और चेहरे का उजास उदासी में बदल गया. ‘उस का’ नाम उपन्यास की एक पंक्ति में लिखा हुआ था. उदास मन से वह सोचने लगा कि आज मोहिनी को उस से बिछड़े हुए एक अरसा हो गया और आज उस का नाम इस तरह से क्यों उस के मन में दस्तक दे रहा है? यह मात्र संयोग है या और कुछ? वैसे तो एक जैसे हजारों नाम होते हैं मगर महेश ने लंबे समय से उस का नाम कहीं पढ़ासुना नहीं था, तो इस प्रकार की बेचैनी स्वाभाविक थी.

 

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अचानक ही उस का बेचैन मन उस से मिलने की हूंक भरने लगा. मगर यह इतना आसान कहां था? उस ने दिल की इस अभिलाषा को पूरा करने का काम दिमाग को सौंप दिया. उस को अपने रणनीति विशेषज्ञ दिमाग पर पूरा भरोसा था.

महेश की एक कजिन थी विशाखा. विशाखा मोहिनी की पड़ोसिन थी. वह मोहिनी की खास सहेली थी मगर महेश कभी उस से मोहिनी के विषय में बात करने का साहस नहीं जुटा पाया. पर एक दिन बातोंबातों में ही उस ने विशाखा से मोहिनी के पति का नाम वगैरह जान लिया.

फिर महेश ने मोहिनी के पति शाम को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. श्याम ने उस की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. उस की हसरतों को एक खुशनुमा ठहराव मिला. यहां से महेश और श्याम फेसबुकफ्रैंड बन गए. अब मिशन शुरू हो चुका था.

महेश श्याम की फेसबुक पोस्ट्स पर कमैंट्स या लाइक्स जरूर देता. अब लाइक और कमैंट की वजह से महेश और श्याम में जानपहचान भी हो चुकी थी. वैचारिक रूप से भी काफी करीब आ चुके थे दोनों.

एक दिन महेश ने श्याम से उस का पर्सनल नंबर मांगा, ‘‘मेरे सभी फेसबुक फ्रैंड्स का नंबर मेरे पास है. आप भी दे दें. कभी न कभी मुलाकात भी होगी.’’

इस पर श्याम ने कहा, ‘‘कभी हमारे शहर आना हो तो जरूर मिलिएगा. मुझे खुशी होगी.’’ महेश तो इसी मौके की तलाश में था. अगले हफ्ते सैकेंड सैटरडे था. महेश को वह दिन उपयुक्त लगा और उस दिन महेश उस के शहर पहुंच गया. उस ने मोहिनी के पति को कौल किया कि मैं अपनी कंपनी के किसी काम से आया हुआ था. सोचा आप से भी मिलता चलूं. आप कृपया अपना पता बता दें.’’

‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ कह कर श्याम ने फोन रख दिया.

‘‘बस चंद मिनट का फासला है मेरे और मोहिनी के बीच,’’  महेश सोच रहा था. इसी मौके का तो बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह. एक सपना सच होने जा रहा था.

‘‘उसे करीब से देखूंगा तो कैसा महसूस होगा, वह अब कैसी दिखती होगी, उस ने क्या पहना होगा…?’’ ढेर सारी अटकलों में घिरा उस का बावरा मन व्याकुल हुआ जा रहा था.

तभी श्याम उसे लेने आ गए. दोनों ने एकदूसरे के हालचाल पूछे. फिर वे महेश को ले कर अपने साथ अपने घर पहुंचे और पानी लाने के लिए अपनी पत्नी को आवाज दी.

अपने दिल की धड़कनों पर काबू करते हुए महेश ने दरवाजे की ओर आंखें गड़ा दी थीं कि अब मोहिनी ही पानी ले कर आएगी. लेकिन पल भर में ही उम्मीदों पर पानी फिर गया. पानी नौकरानी ले कर आई. इतने में श्याम बोले, ‘‘मैं ने आप की फेसबुक प्रोफाइल देखी है. आप तो राजनीति पर अच्छाखासा लिख लेते हैं.’’

‘‘आप भी तो कहां कम हैं जनाब,’’ महेश ने हंसते हुए जवाब दिया.

फिर सिलसिला चल पड़ा चर्चाओं का… लोकल पौलिटिक्स, गांव और शहर की समस्या, आतंकवाद और न जाने क्याक्या.

बातों ही बातों में महेश का स्वर एकदम से रुक गया. आंखें पथरा गईं. चेहरे पर सन्नाटा छा गया. सोफे और कुरसी की हलचल थम सी गई. श्याम महेश की भावभंगिमा परख तो पा रहे थे, मगर समझ नहीं पा रहे थे.

यह क्या? अपने हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए वह महेश के सामने खड़ी थी. उस की आंखों में अनुराग की अकल्पनीय असीमता थी. उस का चेहरा चंचलता की स्वाभाविक आभा से अलौकित हो रहा था और उस के होंठों पर मधुरिमा मुसकान थी. महेश की रगों में उसे छूने की अतिउत्सुकता जाग उठी. उस का मन कर रहा था कि इसी पल उसे आलिंगनबद्ध कर ले. किंतु यह संभव नहीं था. वह ज्योंज्यों महेश के करीब आ रही थी त्योंत्यों महेश की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.

‘‘कैसे हो?’’ उस ने महेश को चाय का प्याला थमाते हुए पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं और आप कैसी हो?’’ महेश ने पूछा.

उस का जी और महेश का आप नाटकीयता का प्रकर्ष था.

मोहिनी ने कहा, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

मोहिनी के पति आश्चर्य से दोनों का चेहरा देख रहे थे. उन के मन में उठते हुए भावों को मोहिनी पढ़ चुकी थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं आप को बताना भूल गई, मैं इन को जानती हूं… मेरी जो सहेली है विशाखा, जिस से मैं ने आप को अपनी शादी में मिलवाया था, ये उस के कजिन हैं. इन से एकदो बार विशाखा के घर पर ही मुलाकात हुई थी. तभी से जानती हूं.’’

प्रेम अपने वास्तविक धरातल पर आ ही जाता है. महेश को यकीन नहीं हो रहा था और

शायद मोहिनी को भी. 2 प्रेमी आमनेसामने खड़े थे और महेश चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था. दोनों के बीच अब समाज की दीवार थी. महेश श्याम से बात कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि सब सही रहे. फिर भी महेश की आंखें उसी की चंदन सी काया को निहार रही थीं.

‘‘ढेर सारी बातें और किस्से हो गए. अब चलूंगा, आज्ञा दीजिए,’’ कह कर महेश जाने के लिए उठने लगा.

‘‘अरे, कहां जा रहे हो? खाना तैयार है. आप पता नहीं फिर कब आओगे,’’ श्याम ने कहा.

एक अजब सी कशमकश थी मन में. महेश आत्मीय निवेदन ठुकराने का दुस्साहस नहीं कर सका और बैठ गया. महेश को जब भोजन परोसा जा रहा था तब वह रसोई से आतीजाती मोहिनी को बड़े ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था, ‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है… वैसे ही तेज कदमों से चलना, हाल बदले थे पर चाल वैसी ही थी… उस के हाथ का बना खाना बहुत स्वादिष्ठ था.’’

भोजन किया और निकलने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप अपना नंबर दे दो. विशाखा को दे दूंगा. आप को बहुत मिस करती है.’’

मोहिनी ने पति की तरफ देखा और स्वीकृति मिलने पर नंबर दे दिया. इसी के साथ महेश की यह अंतिम इच्छा भी पूरी हो गई. पूरी रात मोहिनी सोचती रही कि महेश उस का नंबर ले कर गया है तो कौल भी जरूर करेगा. महेश से कैसे मिले और कैसे उस को समझाए कि अब हालात बदल गए हैं?

महेश उस को अगले दिन से ही फोन करने लगा. मोहिनी 4-5 दिन तक तो उस की कौल को अवौइड करती रही, पर बाद में महेश से बात करने का निश्चय किया.

महेश, ‘‘क्या इतनी पराई हो गई हो कि मिलने भी नहीं आ सकतीं?’’

मोहिनी, ‘‘अब मेरा नाम किसी और के नाम के साथ जुड़ चुका है.’’

महेश, ‘‘ये दूरियां जिंदगी भर की होंगी, ये सोचा न था.’’

मोहिनी, ‘‘तुम ही तो चाहते थे ऐसा. याद करो तुम ने ही कहा था कि यह मेरी गलतफहमी है. प्यार नहीं है तुम्हें मुझ से. और हो भी नहीं सकता. साथ ही यह भी कहा था कि मुझ से प्यार कर के कुछ नहीं पाओगी. क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रही हो. अच्छा लड़का देखो और शादी कर के जाओ यहां से. मेरा क्या है.’’

महेश, ‘‘सब याद है मुझे,’’ कई बार जिंदगी में कुछ ऐसे फैसले करने

पड़ते हैं कि आप चाह कर भी उन को बदल नहीं सकते. मेरे पास कुछ नहीं था उस समय तुम्हें देने के लिए, खोखला हो चुका था मैं.’’

मोहिनी, ‘‘ऐसा क्यों हुआ अब सोचने से कोई फायदा नहीं.’’

महेश, ‘‘तुम तो जानती हो मेरे मातापिता अपनी पसंद की लड़की से ही मेरा विवाह कराना चाहते थे. मां की जिद थी कि उन की सहेली की लड़की से ही मेरा विवाह हो.’’

मोहिनी, ‘‘तुम ने उन्हें मेरे बारे में नहीं बताया.’’

महेश, ‘‘बताना चाहता था, पर उन को अपनी जिद के आगे मेरी खुशी नहीं दिखाई दे रही थी. मुझे उन्हें समझाने के लिए कुछ वक्त चाहिए था. मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहता था.’’

मोहिनी, ‘‘और मेरे दिल का क्या होगा? मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा.’’

महेश, ‘‘सोचा था, बहुत सोचा था, लेकिन जिंदगी के भंवर में बुरी तरह फंस चुका था. जब तक वे मानते तब तक तुम्हारा विवाह हो चुका था. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. अब तो इस भंवर से बाहर आ कर मेरे साथ चल पड़ो. तुम भी अपने पति से प्यार नहीं करती हो, यह मैं जान गया हूं.’’

मोहिनी, ‘‘वे बहुत अच्छे हैं. अब मैं उन का साथ नहीं छोड़ सकती.’’

महेश, ‘‘क्यों बेनामी के रिश्ते को जी रही हो, घुटघुट के जीना मंजूर है तुम्हें?’’

मोहिनी, ‘‘समाज ने नाम दिया है इस रिश्ते को. तो बेनामी कैसे हुआ? मैं उन के साथ बहुत खुश हूं.’’

महेश, ‘‘प्लीज छोड़ दो सब कुछ और भाग चलो मेरे साथ. हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे. चले जाएंगे यहां से बहुत दूर. मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगा जितना किसी ने आज तक न किया हो.’’

मोहिनी, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. अब मेरे साथ मेरी ही नहीं, किसी और की भी जिंदगी जुड़ी है.’’

महेश, ‘‘इस का मतलब तुम मेरा प्यार भूल गई हो या फिर वह सब झूठ था.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार एक एहसास होता है उन ओस की बूंदों की तरह जो धरती में समा जाती हैं और फिर किसी को नजर नहीं आतीं. हमारा प्यार भी ओस की बूंदों की तरह था, जो हमेशा मेरे दिल की जमीन पर समाहित रहेगा. इस एहसास को किसी रिश्ते का नाम देना जरूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ कुछ पलों के लिए जिस राह पर चली थी. वह बहुत ही खुशगवार थी. उन राहों में लिखी कहानी शायद मैं कभी नहीं मिटा पाऊंगी. लेकिन अब और उन राहों पर नहीं चल पाऊंगी. मैं तुम से बहुत प्यार करती थी और शायद आज भी करती हूं और करती रहूंगी पर…’’

महेश, ‘‘पर क्या?’’

मोहिनी, ‘‘अब हम एक नहीं हो सकते. तुम्हारा प्यार हमेशा याद बन कर मेरे दिल में रहेगा. अब तुम कोई दूसरा हमसफर ढूंढ़ लो. मैं 4 कदम चली तो थी मंजिल पाने के लिए पर कुदरत ने मेरी राह ही बदल दी.’’

महेश, ‘‘तुम चाहो तो फिर से राह बदल सकती हो.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार का एहसास ही काफी है मेरे लिए. प्यार को प्यार ही रहने दो. कभीकभी जीवन में कुछ रिश्तों को नाम देना जरूरी नहीं होता. क्या हम दोनों के लिए इतना ही काफी नहीं कि हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया.’’

‘‘सब कह दिया है तुम ने. बस एक आखिरी सवाल का जवाब भी दे दो,’’ महेश ने कहा.

‘‘हां, पूछो,’’ मोहिनी बोली.

‘‘आज तक, कभी एक मिनट या एक सैकंड के लिए भी तुम मुझे भूल पाईं,’’ महेश ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ अपनी हिचकियों को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए मोहिनी बोली. महेश, ‘‘एक वादा चाहता हूं तुम से.’’

मोहिनी, ‘‘क्या?’’

महेश, ‘‘वादा करो जिंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत महसूस होगी, तुम मुझे फौरन याद करोगी. मैं दुनिया के किसी भी कोने में होऊंगा, तो भी जरूर आऊंगा. चलो खुश रहना. कोशिश करूंगा कि दोबारा कभी तुम्हें परेशान न करूं. लेकिन दोस्त बन कर तो तुम से मिलने आ ही सकता हूं?’’

मोहिनी, ‘‘नहीं अब हम कभी नहीं मिलेंगे. दोस्ती को प्यार में बदल सकते हैं पर प्यार दोस्ती में नहीं. मेरे जीवन की आखिरी सांस तक मैं तुम्हें नहीं भूलूंगी.’’

मोहिनी, इतने पर ही नहीं रुकी, ‘‘सवाल तो बहुत से थे, मन में. बस आज उन सवालों पर विराम लगाती हूं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि तुम मुझे प्यार करते हो.’’

महेश, ‘‘यह कैसा प्यार है. चाह कर भी मैं तुम्हें छू नहीं सकता. तुम्हें देख नहीं सकता. तुम से बात नहीं कर सकता.’’

मोहिनी, ‘‘यह फैसला तुम्हारा था. अब तुम्हें अपने फैसले का सम्मान करना चाहिए. बहुत देर हो गई. बस यही चाहूंगी कि तुम सदा खुश रहो और कामयाबी की ओर बढ़ते रहो, बाय.’’

महेश, ‘‘बाय.’’

महेश को दूर से आते एक गीत के बोल सुनाई दे रहे थे, ‘क्यों जिंदगी की राह में मजबूर हो गए इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए…’

Hindi Kahaniyan : आखिरी झूठ – जब सपना ने अपने ही आखिरी झूठ के बारे में किया खुलासा

Hindi Kahaniyan :  दिल्ली रेलवे स्टेशन से नंगलडैम शहर के लिए जैसे ही राहुल रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में चढ़ा, उस ने नजर खाली बर्थ की तरफ दौड़ाई, लेकिन स्लीपिंग कंपार्टमैंट में अधिकतर सीटें खाली पड़ी थीं. उस ने अपना सामान एक बर्थ पर रख कर देखा तो एक युवती खिड़की के पास वाली लंबी बर्थ पर अकेली बैठी थी. उस की उम्र यही कोई 22-23 के आसपास की रही होगी. वह गुलाबी रंग के सूट में थी. दिसंबर का महीना था. वह आकर्षण और रूपलावण्य से भरपूर इतनी सुंदर लग रही थी मानो जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. टिकट चैकर के पास जा कर राहुल ने उस लड़की के पास वाली सीट अपने लिए बुक करवा ली. राहुल एक कंपनी में जौइन करने के लिए नंगल जा रहा था. असिस्टैंट मैनेजर का पद था. गाड़ी रात को 10 बजे चल कर नंगल सवेरे 5 बजे पहुंचती थी. वह खुश था, ‘काफी समय के लिए यात्रा में इतनी सुंदर युवती का साथ रहेगा,’ ऐसा वह मन ही मन सोचने लगा.

राहुल लगभग 25 वर्ष के आसपास था. एक क्षण के लिए उस ने सोचा, ‘क्यों न वह अपना परिचय देते हुए, उस युवती के पास बैठ कर उस से नजदीकी बढ़ाए.’ ‘‘मेरा नाम राहुल है. मैं नंगल जौब जौइन करने जा रहा हूं. आप का क्या नाम है? आप कहां जा रही हैं?’’ पूछते हुए उस की बेसब्री जाहिर थी. वह उस के चेहरे को गौर से देख रहा था.

‘‘हम दोनों हमउम्र हैं, पहले तो मैं यह कहूंगी कि आप की जगह तुम शब्द का इस्तेमाल कीजिए. मेरा नाम सपना है. मैं नंगल डैम शहर में सिविल अस्पताल में इंटर्नशिप के लिए जा रही हूं. 3 महीने मैं नंगल शहर में ही रहूंगी.’’ राहुल को सपना का अनौपचारिक होना अच्छा लगा. उसे भी लड़कियों को तुम कह कर संबोधित करना अच्छा लगता था. सपना की सीट पर बैठ कर उस से बातें करना उसे बहुत अच्छा लगा. सपना ने बताया उस का परिवार दिल्ली में रहता है. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने परिवार के बारे में विस्तार से बताते हुए बातचीत शुरू की. दोनों के ही परिवार दिल्ली में रहते थे.

राहुल के पिता पुस्तक प्रकाशक थे, उन का अच्छाखासा व्यापार था. मां हाउसवाइफ थीं. सपना के पिता तलाकशुदा थे, मां झगड़ालू और क्लेश करने वाली थीं इसलिए मां और पिता का तलाक कई वर्ष पहले ही हो चुका था. बचपन से यौवनावस्था तक सपना का जीवन संघर्षमय रहा था. वह पिता के साथ दिल्ली में रहती थी. डाक्टरी की पढ़ाई भी उस ने दिल्ली में ही की और अब इंटर्नशिप के लिए नंगल जा रही थी. यह सब सुन कर राहुल का मन सपना के लिए सहानुभूति से भर उठा और भावविभोर हो कर उस ने कहा, ‘‘सपना, मुझे तुम्हारे संघर्षमय जीवन के बारे में जान कर बहुत दुख हुआ है. तुम बहुत बहादुर और सैल्फमेड लड़की हो. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम कैरियर बनाने के प्रति जागरूक और प्रयत्नशील हो. नंगल पहुंच कर अपनी इंटर्नशिप शुरू करो. मुझे तुम कभी भी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए बगैर हिचकिचाहट के कह सकती हो. हम अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे देते हैं,’’ राहुल ने जेब से एक कागज निकाल कर उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखा और सपना को दे दिया, ‘‘फील फ्री टू कौंटैक्ट मी.’’

सपना ‘थैंक्स’ कहते समय बहुत खुश दिखाई दी. सोने से पहले कानों में हैडफोन लगा कर उस ने अपना मनपसंद संगीत सुना. राहुल ने देखा सपना उनींदी आंखों से उस की ओर मुसकरा कर निहार रही थी. मधुर आवाज में ‘गुडनाइट’ कहते हुए उस ने कंबल ओढ़ लिया. यों तो एमबीए की पढ़ाई के दौरान कई युवतियों के संपर्क में रहने वाला राहुल आश्चर्यचकित था कि इतनी सुंदर युवती उस के जीवन में अब तक नहीं आई थी. अपनी बर्थ पर लेटे हुए टकटकी लगाए वह सपना को देख कर खुश हो रहा था. उसे इस बात की भी प्रसन्नता थी कि 3 महीने नंगल में सपना का साथ मिलेगा. भविष्य के विषय में सोचते हुए कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला.

सवेरे 4 बजे गाड़ी आनंदपुर साहब स्टेशन पर 15 मिनट के लिए रुकी. सपना अभी सो ही रही थी. राहुल 2 कप चाय ले आया. सपना गहरी नींद में थी. राहुल ने उस के गाल पर हलके स्पर्श के साथ उसे जगाया. सपना को अच्छा लगा. ‘‘गुडमौर्निंग,’’ कहते हुए सपना ने चाय का गिलास राहुल से ले लिया. राहुल का बरसों के इंतजार के बाद इतनी सुंदर युवती से जो सामना हुआ था. उस ने मन में सोचा, ‘पापा को फोन पर बताएगा कि उन के लिए बहू तलाश ली है,’ दूसरी तरफ मन में यह बात भी आई कि अभी बहुत जल्दी होगी. सब्र करना ठीक होगा. अभी एकदूसरे को जानना बाकी है. नंगल स्टेशन पर पहुंचने के बाद राहुल कंपनी के गैस्ट हाउस की ओर चला गया.

‘‘सपना, तुम अपने वूमन होस्टल पहुंच कर फोन करना,’’ राहुल ने कहा. ‘‘ठीक है, लैटअस विश ईच अदर बैस्ट औफ लक’’ सपना ने मुसकराते हुए कहा और अस्पताल से आई हुई वैन में बैठ गई. दोनों ने अपनीअपनी जौब जौइन कर ली. राहुल और सपना दोनों के लिए नए शहर में रहना एक अद्भुत अनुभव था. एकदूसरे से मिलना और साथसाथ समय बिताना उन्हें अच्छा लगने लगा. नंगल डैम पर एक रेस्तरां था. वहां से चारों ओर का बहुत ही सुहावना दृश्य दिखता था. रविवार के दिन इसी रेस्तरां में वे दोनों घंटों साथसाथ समय बिताते थे. लंच यहीं पर करते थे. कभीकभी सपना राहुल के साथ उस के गैस्ट हाउस में भी घंटों बैठी रहती थी. ज्योंज्यों नजदीकियां बढ़ रही थीं त्योंत्यों उन का रिश्ता स्वाभाविक रूप से गहरा होता जा रहा था.

एक दिन राहुल ने सपना से कहा, ‘‘तुम अपने पापा का पूरा पता मुझे दे दो ताकि मैं दिल्ली जा कर उन से मिल सकूं या फिर मैं अपने मातापिता को तुम्हारे पापा के पास भेज कर उन की जानपहचान करवा सकूं.’’ सपना बोली, ‘‘अभी पापा से मिलवाना या तुम्हारा दिल्ली जा कर उन से मिलना जल्दबाजी होगी. मैं अभी पता नहीं देना चाहती.’’

राहुल की समझ में नहीं आया कि ऐसी क्या बात है, जो वह अपने पापा का पता उसे नहीं दे रही है. समयसमय पर जब कभी मौका मिलता, राहुल अपना प्रेम व्यक्त करता रहता. वह सपना से कहा करता कि जब हम दोनों एकदूसरे के इतने नजदीक आ चुके हैं, तो समझ में नहीं आता कि क्यों तुम उन बातों से परहेज करती हो जो इस उम्र में नौजवान युवकयुवतियां करते हैं. राहुल ने अपनी जेब से सोने की एक अंगूठी निकाली और सपना को पहनाते हुए कहा, ‘‘यह मेरा तुम्हारे लिए पहला गिफ्ट है. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब तुम से प्यार करने लगा. मेरे जीवन में यह पहला अनुभव है,’’ उस ने भावुक हो कर सपना को गले लगाना चाहा, लेकिन सपना ने उसे मना करते हुए अनुरोध किया, ‘‘नहीं, राहुल अभी ऐसा कुछ मैं स्वीकार नहीं करूंगी. जब कभी हम विवाह के बंधन में बंध जाएंगे तो मैं प्रौमिस करती हूं कि तुम्हें जी भर कर प्यार करूंगी. अभी बस इतने से ही काम चलाना होगा,’’ कहते हुए उस ने राहुल का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाया और चूम लिया, ‘‘इन हाथों ने मुझे अंगूठी पहनानी चाही इसलिए इन्हें चूम कर मैं अपने प्यार का इजहार कर रही हूं.’’

एक दिन दोनों गैस्ट हाउस के लौन में बैठे चाय का आनंद ले रहे थे. दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों के बारे में विस्तार से बता रहे थे. सपना ने बताया कि कैसे लड़के उस के करीब आने का प्रयत्न करते थे, लेकिन वह किसी के प्रति आकर्षित नहीं होती थी. अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर के अपना टौप करने का उद्देश्य वह पूरा करना चाहती है. राहुल ने भी सपना को अपनी कालेज लाइफ के बारे में बताया कि कभी उस ने लड़कियों के साथ नजदीकी नहीं बनाई. बस, अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती की.

‘‘सपना, मैं एक बार फिर तुम से कह रहा हूं कि मुझे अपने डैडी का ऐड्रैस और मोबाइल नंबर दे दो. जैसा तुम ने बताया था कि डैडी बिलकुल अकेले हैं, तुम्हारी मां उन्हें छोड़ कर जा चुकी हैं. मेरा उन से मिलना जरूरी है, कहीं ऐसा न हो कि वे कोई और लड़का तुम्हारे लिए देख लें,’’ राहुल ने सपना को समझाते हुए कहा. ‘‘मुझे भी पापा की चिंता है कि कैसे वे मेरी अनुपस्थिति में समय गुजारते होंगे. उन्हें खाना भी बाहर से मंगाना पड़ता होगा. पहली बार उन से दूर आ कर मैं यहां रह रही हूं,’’ सपना ने कहा.

राहुल बोला, ‘‘मुझे तुम से पूरी सहानुभूति है. मैं जानता हूं कि मां के बिना तुम्हारा जीवन कितना कष्टमय रहा होगा. सपना, मैं तो यही कामना करता हूं कि तुम्हारी मां वापस तुम्हारे घर आ जाए. तुम्हारी शादी का इंतजाम वे संभाल लें.’’ सपना का उदास चेहरा राहुल से देखा नहीं जाता था. अपना प्यार, अपने हावभाव उस पर उडे़लता हुआ वह यही कहता था, ‘‘मैं तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दूंगा. यह मेरी दिली तमन्ना है.’’

सपना की इंटर्नशिप का 2 महीने का समय बीत चुका था और वह 2-3 दिन की छुट्टी ले कर दिल्ली अपने पापा के पास जा रही थी. राहुल ने जोर दे कर सपना को बताया कि वह भी उस के साथ दिल्ली जाएगा. बेशक सपना ने आनाकानी की लेकिन वह नहीं माना और दोनों ने टिकट बुक करा लिए. राहुल यह नहीं समझ पा रहा था कि हर बार सपना इस बात पर हिचकिचाती क्यों है कि राहुल उस के पापा से दिल्ली जा कर न मिलें. राहुल के दृढ़निश्चय का परिणाम यह हुआ कि दोनों दिल्ली सपना के पापा के पास पहुंच गए.

राहुल को इस बात का अनुमान था कि सपना अपने साथ राहुल को दिल्ली लाने के बारे में अपने पापा को फोन पर बता चुकी होगी. उस के घर पहुंचने पर राहुल आश्चर्यचकित था. सपना के पापा के साथ उस की मम्मी भी घर पर मौजूद थीं. राहुल ने प्रश्न किया, ‘‘सपना, तुम ने तो बताया था कि तुम्हारे मम्मीपापा का तलाक हो चुका है. मम्मी साथ नहीं रहती हैं.’’

सपना ने कहा, ‘‘मुझे भी सरप्राइज हुआ था जब पापा ने फोन पर बताया था कि तलाक की प्रक्रिया पूरी होने से पहले उन का मम्मी से समझौता हो गया है और वे खुशीखुशी उन के साथ रहने के लिए चली आई हैं. मैं इस बात से बहुत खुश हूं,’’ वह अपनी मां के गले लग कर बहुत रोई. सपना के पापा की आंखें भी आंसुओं से भर आई थीं. सब ने मिलबैठ कर एकसाथ नाश्ता किया. चाय पी कर माहौल को अनुकूल देख कर सपना ने शरारत भरी मुसकराहट के साथ राहुल से कहा, ‘‘मेरी पूरी बात धैर्य से सुन लो. प्रतिक्रिया बाद में देना. मम्मीपापा में कभी कोई मतभेद या तलाक हुआ ही नहीं था. मैं ने तुम से झूठ बोला था. तुम से सहानुभूति प्राप्त करने और प्यार पाने के लिए मैं ने ऐसा किया था. तुम से मिलते ही पहली नजर में ही मैं ने तुम्हें चुन लिया था. दुनिया में तुम से बेहतर जीवन साथी तो हो ही नहीं सकता,’’ क्षण भर को वह रुकी, फिर राहुल से पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे माफ कर सकोगे. मेरा तरीका गलत हो सकता है पर मेरा मकसद अपने लिए योग्यप्रेमी को पाना था. यह मेरा आखिरी झूठ था. भविष्य में कभी झूठ का सहारा नहीं लूंगी.’’ सपना के मातापिता हक्केबक्के हो कर अपनी पुत्री को निहार रहे थे. सपना ने कहा, ‘‘पापा, आई एम सौरी.’’

राहुल की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी. ‘‘तुम्हारे अब तक के मधुर व्यवहार और प्रगाढ़ प्रेम को देखते हुए यह गलती माफ करने योग्य है,’’ अपनी स्वीकृति व्यक्त करते हुए उस ने सपना के मातापिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.

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