लेखिका- डा. रंजना जायसवाल
अविनाश के मन में बारबार सवाल उठ रहे थे. इतने सालों बाद… वेदिका मेरी आंखों के सामने खड़ी थी. क्या मैं उस से सुचित्रा के बारे में पता करूं? हो सकता है उसे पता हो कि सुचित्रा कहां है, कैसी है…और किस हाल में…पर शब्द होंठों तक आतेआते रह गए. अविनाश आंख बंद कर शांति से कुरसी पर बैठ गया.
तभी एक जानीपहचानी सी खुशबू ने उसे फिर से बेचैन कर दिया. ऐसा परफ्यूम तो सुचित्रा लगाती थी. मगर उस ने आंखें नहीं खोलीं. परछाइयों के पीछे भागतेभागते वह थक गया था…
“अविनाशजी, इन से मिलिए आज के कार्यक्रम की कर्ताधर्ता मिस सुचित्रा. यह हमारे संगीत विभाग में शिक्षिका हैं.”
अविनाश को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. यह उस का भ्रम तो नहीं, जिस को इतने वर्षों तक न जाने कहांकहां ढूंढ़ा… वह यहां ऐसे मिलेगी? कितना कुछ कहना था शायद और कितना कुछ सुनना भी था उस को…पर इतने लोगों के बीच…
सुचित्रा… कुछ भी तो नहीं बदला. वैसी ही खूबसूरत… उस की हिरनी सी चंचल आंखें, कमर तक काले लंबे बाल, जिस की लटें आज भी उस के चेहरे से अठखेलियां कर रही थीं.
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अविनाश का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. सुचित्रा ने वेदिका का हाथ कस कर पकड़ रखा था. शायद उस की भी हालत अविनाश जैसी ही थी.
“मिस सुचित्रा, इतना अच्छा इंतजाम किया है आप ने, एकदम मेरी पसंद का. आप ने काफी रिसर्च की है मेरी पसंदनापसंद पर…”
अविनाश ने कनखियों से सुचित्रा की ओर देखा. दोनों की आंखे टकरा गईं. सुचित्रा का चेहरा शर्म से लाल हो गया. दोनों की एकजैसी स्थिति थी.ऐसा लग रहा था मानों उन की चोरी पकड़ी गई हो.
अविनाश को बहुत कुछ कहना और सुनना था… पर लोगों की भीड़ के सामने… उसे समझ में नहीं आ रहा था और ना ही उसे मौका मिल पा रहा था…
“मिस सुचित्रा, अपना कालेज तो दिखाइए…”
“आइए अविनाशजी… चलिए मैं आप को अपना कालेज दिखाती हूं.”
वेदिका ने शरारती नजरों से अविनाश को देखा.
“आप यहीं बैठिए वेदिका जी, मिस सुचित्रा मुझे कालेज दिखा देंगी. क्यों सुचित्रा जी, आप को कोई दिक्कत तो नहीं?”
सुचित्रा कुछ कहती इस से पहले वेदिका ही बोल पड़ी,”दिक्कत कैसी यह तो खुशी की बात है. मिस, आप सर को अपना कालेज दिखाइए.”
जिंदगी 2 मित्रों या फिर 2 प्रेमियों को ऐसे मिलाएगी यह तो कभी उन दोनों ने भी नहीं सोचा होगा.
एक लंबे से गलियारे को पार कर वे एक तरफ मुड़ गए. वहां थोड़ा अंधेरा था. दोनों के पांव वहीं जम गए. बहुत कुछ कहना था उन्हें एकदूसरे से… पर शुरुआत कौन करे? तब अविनाश ने ही हिम्मत दिखाई.
“कैसी हो सुचित्रा? कितने साल बीत गए. कभी सोचा भी नहीं था कि तुम से इस तरह मुलाकात होगी. एक बात पुछूं?”
सुचित्रा के चेहरे पर एक मासूम सी मुसकान खिल गई. बिलकुल नहीं बदला अविनाश. आज भी वैसा ही शरमीला और संकोची. कुछ भी कहने से पहले 10 बार सोचता है.
“सुचित्रा, तुम यों अचानक बिना कुछ कहेसुने कहां गायब हो गई थीं?कितना ढूढ़ा मैं ने… पर किसी को भी तुम्हारे बारे में कुछ भी पता नहीं था. तुम्हारा फोन नंबर तक नहीं था किसी के पास. कम से कम तुम एक बार… सिर्फ एक बार तो बात कर सकती थीं.
“एक बात बताओ, यह तो तुम भी जानती थीं कि तुम मुझ से बेहतर गाती थी… तुम चाहती तो तुम आसानी से प्रतियोगिता जीत जाती.तुम्हारी सहेलियों ने बाद में मुझे बताया कि तुम ने प्रतियोगिता से पहले बहुत सारी आइसक्रीम खाई थी जबकि तुम्हें पता था कि तुम्हें आइसक्रीम से ऐलर्जी है. फिर भी तुम ने ऐसा क्यों किया?”
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अविनाश का चेहरा क्रोध और हताशा से लाल हो गया. गलियारे में सन्नाटा पसर गया. अविनाश और सुचित्रा के सांसों के अलावा कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. सुचित्रा चुपचाप अविनाश की बातों को सुनती रही.
“माफ कीजिएगा अविनाशजी, मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई…” तभी अचानक वहां वेदिका आ गई थी.
“तुम सच जानना चाहते हो तो सुनो एक ऐसा सच जिसे तुम्हें छोड़ कर पूरा कालेज जानता था. एक ऐसा सच जो न तुम कभी कह सके और न ही सुचित्रा. सुचित्रा तुम्हें हारता हुआ नहीं देख सकती थी.
“याद है तुम्हें प्रतियोगिता से पहले जब सुचित्रा तुम से मिलने आई थी… बहुत कुछ कहना था उसे पर… सुचित्रा तुम्हारी प्रतिभा को पहचानती थी… लेकिन जब तुम ने कहा कि अगर तुम यह प्रतियोगिता नहीं जीत पाए तो संगीत छोड़ दोगे, तब उसी पल सुचित्रा ने यह निर्णय ले लिया कि तुम्हारे सपनो को यों टूटने नहीं देगी.एक दोस्त की उम्मीदों और सपनों को कुचल कर सफलता का महल खड़ा करना सुचित्रा को मंजूर नहीं था, इसलिए सुचित्रा…
“अविनाश, वह सुचित्रा की हार नहीं उस की जीत थी. आज तुम्हें इस जगह पर देख कर मैं और सुचित्रा बहुत खुश हूं. सुचित्रा हार कर भी जीत गई. अविनाश तुम सोच रहे होगे कि मैं सबकुछ जानती थी तब मैं ने तुम्हें सच क्यों नहीं बताया?
“अविनाश, सुचित्रा तुम से… सच में बहुत प्यार करती थी और वह तुम्हें टूटते हुए नहीं देख सकती थी. उस ने मुझे कुछ भी बताने को मना किया था… मैं मजबूर थी पर आज नहीं. मैं जानती थी कि आज भी सुचित्रा तुम से कुछ नहीं कह पाएगी,”वेदिका एक ही सांस में बोलती चली गई.
कितना कुछ भरा था उस के मन में.सबकुछ, हां सबकुछ कह देना चाहती थी वह. पर सुचित्रा आज भी चुप थी.वर्षों से भरा दिल का गुबार आंखों से छलकने लगा थि. कितना हलका महसूस कर रही थी वह.
सुचित्रा का चेहरा गर्व से चमक रहा था. अविनाश को बहुत कुछ कहना था… शायद. वह अल्हड़ और चंचल सी लड़की अपने अंदर कितना कुछ समेटे हुए थी.
“सुचित्रा….सुचित्रा जो बात मैं इतने वर्षों में न कह सका आज…”
“अविनाशजी… प्रिंसिपल साहब आप को ढूंढ़ रहे हैं. जनता बेकाबू हो रही है.”
अविनाश ने सुचित्रा की तरफ हाथ बढ़ाया .
“सुचित्रा इन बीते दिनों में सब कुछ तो पा लिया था मैं ने. रुपयापैसा, गाड़ी, बंगला… पर फिर भी… कहीं कुछ छूटा और अधूरा सा लगता था.
“सुचित्रा….तुम्हें याद है, तुम ने मुझे एक किताब भेंट की थी और उस के पहले पन्ने पर तुम ने कुछ लिखा भी था. आज मैं तुम्हारी उस बात का जवाब देना चाहता हूं.
“एक मशहूर शायर ने कहा है, ‘जिएं तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए…'”
सुचित्रा को मानों इतने वर्षों से दिल में दफन सवालों का जवाब मिल गया.अविनाश ने धीरे से उस के चेहरे पर लटकती लटों को संवारा और उस की नाजुक हथेलियों को अपने हाथ में ले कर बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से उसे देखा.
सुचित्रा अविनाश की आंखों की तपिश को झेल न पाई और उस ने अपनी पलकें झुका ली.
सुचित्रा की झुकी पलकों ने अविनाश के सवालों का जवाब दे दिया. सुचित्रा की मौन स्वीकृति ने अविनाश को मानों नया जीवन दे दिया. उस ने सुचित्रा के हाथों को कस कर पकड़ा और सभागार की ओर चल पड़ा.
सुचित्रा भी अविनाश के मोहपाश में बंधी बिना किसी नानुकुर के पीछेपीछे चलती चली गई. यही अधिकार हां बस यही अधिकार तो उसे अविनाश की आंखों में चाहिए था.
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अविनाश ने मंच पर माइक हाथ में ले कर कहा,”दोस्तो, यह शहर सिर्फ एक शहर नहीं…मेरे सपनों की जमीन है जिस ने मुझे फर्श से अर्श तक पहुंचाया. आप सभी के प्यार का मैं सदा आभारी रहूंगा.
“दोस्तो, आप ने अब तक मुझे सुना और मेरी आवाज को सराहा. आज मेरी आवाज को एक नया मुकाम देने के लिए, मेरे साथ देने के लिए मैं आमंत्रित करता हूं मिस सुचित्रा को…”
आसमान एक बार फिर बादलों से घिर रहा था…आज एक बार फिर प्रकृति अविनाश और सुचित्रा के प्रेम की साक्षी बन रही थी. सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. आज वर्षों से बिछुड़े प्यार को मंजिल जो मिल गई थी.
लेखिका- डा. रंजना जायसवाल
सुबह से ही बहुत व्यस्त कार्यक्रम था. अविनाश थक कर चूर हो चुका था. आज उस की रिकार्डिंग थी. रिकार्डिंग के बाद मैनेजर ने एक कार्ड अविनाश के हाथ में थमाया.
आज उस का अपना शहर उसे फिर से पुकार रहा था. गुलमोहर का पेड़, विद्यालय की सीढ़ियां, चाचा की चाय और न जाने क्याक्या…सबकुछ उस की आंखों से गुजरता चला गया.
कल सुबह ही निकलना था. परसों कार्यक्रम है और 8 घंटे का रास्ता. शाम तक पहुंच जाएगा.
एक अजीब सी बेचैनी थी. अविनाश समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इस बैचेनी की वजह क्या थी? कुछ न कुछ तो जरूर होने वाला है, पर क्या? इस सवाल ने उसे और भी बेचैन कर दिया.
आज वर्षों बाद फिर अनायास ही उस के हाथ किताबों की अलमारी की तरफ बढ़ गए. ऐसा लगा मानों आज अविनाश का अतीत बारबार उसे अपनी ओर खींच रहा था. सुचित्रा की भेंट की हुई किताब उसे बहुत प्रिय थी. किताब को सीने से लगाए वह कार में बैठ गया. खिड़की से आती हवा से मनमस्तिष्क एक गहरे सुकून में डूबता चला गया.
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क्या नहीं था उस के पास… फिर भी वह अधूरा था. चचंल हिरनी सी वे आंखें उस का हर जगह पीछा करती रहतीं.
शहर के शोरशराबे से दूर कार तेजी से आगे भागती जा रही थी और यादों का कारवां कहीं पीछे छूटता चला जा रहा था. यादें…किताब के पन्नों की तरह… परत दर परत खुलती चली गईं.
सुचित्रा की लिखावट में पहले पन्ने पर लिखी गुलजार साहब की पंक्तियां ‘गुलमोहर गर नाम तुम्हारा होता, मौसम ए गुल को हंसाना भी हमारा काम होता…’
न जाने क्या सोच कर अविनाश के हाथ उस लिखावट की ओर बढ़ गए. शायद अविनाश आज भी उस के आसपास होने को महसूस करता था. सुचित्रा का दिया हुआ सुर्ख गुलमोहर आज भी उस की यादों की तरह किताब में दफन था. एक हलके से झोंके ने सबकुछ हिला कर रख दिया. कितना बदल गया था शहर.
8 घंटे का लंबा सफर…शरीर थक कर चूर हो चुका था. कितने सालों बाद यहां आया था अविनाश…अब तो पहचानने में भी नहीं आता. सच में, कितना कुछ बदल गया था. ऊंचीऊंची इमारतें, बाजार की चहलपहल, हर तरफ भीड़ ही भीड़.अविनाश की नजर एक बड़े से बोर्ड पर गई…कितना बड़ा बोर्ड लगा है उस का…
अविनाश के चेहरे पर चमक आ गई. बस यही तो चाहिए था उसे. सबकुछ तो था, पर फिर भी उस की निगाहें तेजी से उसे ढूंढ़ रही थीं पर वह अब यहां कहां? वह तो सुरसंगीत प्रतियोगिता के बाद बिना किसी से कुछ कहे अपने पिता के साथ दिल्ली चली गई थी. उस ने एक झटके से अपना सिर झटका जैसे उस की यादों से पीछा छुड़ाना चाहता हो. हर महफिल में अविनाश की निगाहें सुचित्रा को ही ढूंढ़ती रहतीं.
अविनाश ने गाड़ी रुकवाई और ड्राइवर से होटल पहुंचने को कहा… आज इतने वर्षों बाद वह अपने शहर आया था. यादों की आंधी उसे किसी और ही दुनिया में ले जा रही थी.
अविनाश बारबार सोच रहा था कहीं कोई उसे पहचान न ले. एक हलकी सी मुसकान उस के चेहरे पर खिल गई.
कुछ भी नहीं बदला था… गुलमोहर का पेड़ चुपचाप जैसे अविनाश से न जाने कितने सवाल पूछ रहा था.
चाय के ढाबे वाले का दरवाजा और उस की वह सांकल आज भी अविनाश के आने का इंतजार कर रही थी. अविनाश इतने सालों बाद भी चाचा की अदरख वाली चाय की स्वाद को नहीं भूला था.
अविनाश ने जैकेट की टोपी और काला चश्मा चढ़ा लिया… कोई उसे पहचान न सके और कुल्हड़ को दोनों हाथों से दबाए गरमाहट का एहसास करता चाचा की अदरख वाली चाय का आनंद लेने लगा.
विद्यालय में बड़ी चहलपहल थी. कल उसे अपने ही कालेज में तो परफौरमेंस देनी थी. होस्टल के बच्चे खाना खा कर लौट रहे थे. उन की आवाजें अभी तक अविनाश के कानों में पड़ रही थीं,”बहुत बड़ा गायक आ रहा है मुंबई से….उसी की तैयारी चल रही है. हमारे ही कालेज में ही पढ़ता था. मजा आ जाएगा कल तो.”
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अविनाश के चेहरे पर मुसकान आ गई. कुछ भी तो नहीं बदला था. सबकुछ तो था, वैसा का वैसा ही.
लाल सुर्ख फूलों से लदा गुलमोहर का पेड़ अविनाश को हमेशा आकर्षित करता था. आज भी अविनाश उस के मोहपाश में बंधा खींचता चला गया. उसे देख कर उसे हमेशा लगता था कि हाथ पसारे अपनी आगोश में लेने को तत्पर उस का सुनहरा भविष्य खामोशी से उस का इंतजार कर रहा है. यादों के पन्ने 1-1 कर के खुलते चले गए…
वह अपने दोस्तों के साथ बैठा हुआ था. याद है आज भी उसे वह दिन… पीले रंग की सलवारकमीज पर लाल रंग की चुनरी, एक हाथ में घड़ी और एक हाथ में चांदी की चूड़ियां पहने उस ने विद्यालय में प्रवेश किया. उस की सादगी में भी गजब का जादू था.
बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और कमर तक लंबे बालों के साथ जब वह लहरा कर उस के पास आई तो मानों सांसें थम सी गईं.
“माफ कीजिएगा, म्यूजिक की क्लास…”
“हां जी, बस शुरू ही होने वाली है…”अविनाश के साथ पढ़ने वाली वेदिका ने तपाक से जवाब दिया.
अविनाश उस लड़की की खूबसूरती में कहीं खो सा गया. वेदिका ने अविनाश को कुहनी मारी.
“क्या बात है जनाब, सारा विद्यालय छोड़ कर मैडम हमारे तानसेन से पूछने आईं. वह भी संगीत में है. तानसेन जी को संगत देंगी क्या?”
‘तानसेन…’ अविनाश के मित्र उसे इसी नाम से प्यार से बुलाते थे.
“ऐसा कुछ नहीं वेदिका… मैं तो इसे जानता भी नहीं. मेरी टाइप की लड़की नहीं है.”
“सुचित्रा नाम है इस का…”
“तुम तो पूरा रिसर्च कर के बैठी हो…”
“मित्र के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है और हमारा जन्म तो जनकल्याण के लिए ही हुआ है,”वेदिका ने चुटकी ली.
अविनाश सोच में पड़ गया. कितना सुंदर नाम है… जितना सुंदर नाम… उतनी ही सुंदर है वह. कुदरत ने बड़ी फुरसत से बनाया था उसे. विद्यालय का कोई भी कार्यक्रम हो और सुचित्रा और अविनाश की जुगल जोड़ी गाना न गाए ऐसा हो ही नहीं सकता था. दोनों ने मिल कर जिले स्तर पर न जाने कितनी प्रतियोगिताएं जीती थीं.अविनाश जितना सौम्य और गंभीर था सुचित्रा उतनी ही चंचल और अल्हड़.एक बार उस की बातें शुरू होतीं तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती.
एक दिन अविनाश और सुचित्रा गुलमोहर के पेड़ के नीचे गाने का रियाज कर रहे थे. आसमान में काले बादल घुमड़ रहे थे. शीतल मंद बयार में सुचित्रा का मनमयूर नाच उठा और वह अपने सुंदर गोरे मुख पर बादल की तरह घिरघिर आ रहे जुल्फों को कभी अपने दांतों से दबाती तो कभी उंगलियों से खेलने लगती.
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“अविनाश मुझे बारिश बहुत पसंद है.बारिश की बूंदें जब मेरे चेहरे को छूती हैं तो… उफ्फ, क्या बताऊं मेरा रोमरोम नाच उठता है…ऐसा लगता है मानों प्रकृति भी सुरीले साज पर जिंदगी के गीत छेड़ रही हो. बारिश की 1-1 बूंद कणकण में एक नया जीवन भर रही हो. ऐसी जिंदगी के लिए तो मैं न जाने कितनी बार जन्म ले लूं.”
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लेखिका- डा. रंजना जायसवाल
“कितना बोलती हो तुम…और उस से भी ज्यादा बोलती हैं तुम्हारी आंखें.”
“सच में? अच्छा और क्याक्या बोलती हैं मेरी आंखें?”
“सुचित्रा, पता नहीं क्यों मुझे हमेशा से ऐसा लगता है जैसे इन अल्हड़ और शरारती आंखों के पीछे एक शांत और परिपक्व लड़की छिपी है. मगर तुम ने कहीं उसे दूर छिपा दिया है, उस मासूम बच्चे की तरह जो इम्तिहान के डर से अपनी किताबें छिपा देता है.”
सुचित्रा खिलखिला कर हंस पड़ी,”जनाब, इतना सोचते हैं मेरे बारे में, मुझे तो पता ही नहीं था. वैसे एक बात कहूं अविनाश… तुम्हारी आंखें भी बहुत कुछ बोलती हैं.”
“मेरी आंखें? अच्छा मेरी आंखें क्या बोलती हैं, मुझे भी तो पता चले…”
“तुम्हारी आंखें तुम्हारे दिल का हाल बयां करती हैं… तुम्हारे सुनहरे सपनों को जीती हैं और… बहुत कुछ कहना चाहती हैं जिसे कहने से तुम डरते हो… डरते हो कि तुम कहीं उसे खो न दो.
“अविनाश एक बात कहूं… रिहा कर के तो देखो उस डर को, शायद तुम्हारा वह डर बेमानी और बेमतलब हो…
“दिल की गिरहों को खोल कर तो देखो हो सकता है कोई तुम्हारे जवाब की प्रतिक्षा कर रहा हो.”
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“सुचित्रा, सच में… क्या सच में इतना कुछ बोलती हैं मेरी आंखें? ऐसा कुछ नहीं… तुम्हें गलतफहमी हो गई है… मेरा दिल तो कांच की तरह साफ है.कुछ भी नहीं छिपा किसी से…और छिपाना भी नहीं है मुझे किसी से. तुम भी न जाने क्याक्या सोचती हो.”
सुचित्रा अचानक से गंभीर हो गई,”काश, तुम्हारी कही बातें सच होतीं. काश, तुम्हारी बातों पर मुझे यकीन आ जाता. अविनाश, कांच के उस पार भी एक दुनिया होती है जिसे हरकोई नहीं देख पाता. जो दिखाई तो देती है पर वह नहीं दिखाती… जो उसे दिखाना चाहिए.
“एक बात बताओ अविनाश, तुम क्या बनना चाहते हो?”
“सुचित्रा मैं बहुत बड़ा गायक बनना चाहता हूं. देशविदेश में मेरा नाम हो.मैं जहां भी जाऊं लोगों की भीड़ उमङ पङें.”
“बाप रे…अविनाश, तुम्हारे कितने बङे सपने हैं…”
“ज्यादा नहीं बस…जितने इस गुलमोहर के पेड़ पर लगे फूल…बस.”
अविनाश और सुचित्रा ठहाके मार कर हंस पङे.
“मान लो तुम्हारे सपने पूरे नहीं हुए तब?”
अविनाश की आंखों में दर्द उभर आया. सुचित्रा ने उस के हाथों को धीरे से अपने हाथ में लिया और उसे सहलाते हुए कहा,”चिंता ना करो… तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी होंगी.
“अविनाश, तुम्हें पता है एक बहुत बड़ा चैनल एक म्यूजिकल कार्यक्रम कराने वाला है. शहर में बड़ा हल्ला है…क्यों ना हम भी उस कार्यक्रम में भाग लें…”
“अरे हम जैसे लोगों को कौन पूछता है…तुम भी न…”
सुचित्रा ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों को गोलगोल घुमाते हुए कहा,”ऐसा क्यों कहते हो… कोशिश करने में क्या हरज है. देखो मैं तो फौर्म भी ले आई हूं. अब कोई बहाना नहीं चलेगा. चलो फौर्म भरो और तैयारी शुरू करो…”
सुचित्रा की जिद के आगे अविनाश की एक न चली. उस सुरसंगीत के कार्यक्रम ने अविनाश की जिंदगी बदल दी. एक के बाद एक राउंड होते गए और अपने सुरीले गानों से अविनाश और सुचित्रा ने अपना लोहा मनवा दिया.
आखिर वह दिन भी आ गया जब सुर संगीत कार्यक्रम का फाइनल राउंड था. अविनाश के गाने ने जजों और दर्शकों का दिल जीत लिया.
चारों तरफ एक अजीब सी खामोशी और तनाव छाया हुआ था. वोटिंग लाइन शुरू हो चुकी थी… और फिर परिणाम भी घोषित कर दिए गए… अविनाश के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उस ने प्रतियोगिता जीत ली थी… पर अफसोस सुचित्रा को डिसक्वालीफाई कर दिया गया. गला खराब होने की वजह से सुचित्रा गाना नहीं गा पाई थी. अविनाश ने सुचित्रा के बारे में उस की सहेलियों से पता लगाने की कोशिश की पर किसी को भी कुछ भी पता नहीं था.
अविनाश ने प्रतियोगिता जीतने के बाद बड़ेबड़े शहरों में कई कार्यक्रम किए. कुछ ही दिनों बाद वह वापस उसी शहर में आया पर कोई भी सुचित्रा के बारे में कुछ भी नहीं बता पाया. दोस्तों ने बताया कि इम्तिहान देने के बाद वह अपने पापा के साथ दिल्ली चली गई. किसी के पास उस का नया पता और फोन नंबर नहीं था. संपर्क के सारे रास्ते बंद हो गए थे.
अविनाश ने बहुत हाथपांव मारे पर निराशा और हताशा के सिवा उस के हाथों में कुछ भी नहीं लगा.
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समय बीतता गया और अविनाश सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला गया. हर तरफ कैमरों की चकाचौंध, रंगबिरंगी लाइट्स और एक ही आवाज,”अविनाश… अविनाश…” कोई औटोग्राफ लेने कोई फोटो खिंचवाने को बेताब, तो कोई सिर्फ उसे एक बार छू लेना चाहता था.शोहरत है ही ऐसी चीज.
लड़के और लड़कियां खुशी से चीख रहे थे. अविनाश का अपना शहर पलकें बिछाए उस का इंतजार कर रहा था. एक बार फिर से उसे वे दिन याद आ रहे थे…
सुरसंगीत प्रतियोगिता के आखिरी दिन उस की सुचित्रा से आखिरी मुलाकात हुई थी. आज भी याद है उसे वह रात. हिरनी सी चंचल उस की आंखों में आज अजीब सा ठहराव उस ने महसूस किया था.
“अविनाश, शुभकामनाएं…” और उस ने एक सुर्ख गुलमोहर उस की ओर बढ़ा दिया.
“अविनाश यह प्रतियोगिता तुम्हारे लिए बहुत माने रखती है न?”
“हां सुचित्रा… मैं ने इस के लिए बहुत मेहनत की है. अगर आज मैं हार गया तो मैं कभी भी गाना नहीं गाऊंगा.”
सुचित्रा का चेहरा उतर गया.
“ऐसा ना कहो अविनाश… सब अच्छा होगा.”
“शुभकामनाएं सुचित्रा…”
अविनाश को आज भी उस की वह मुसकान याद है. अविनाश को आज तक अफसोस था कि सुचित्रा के चेहरे की 1-1 लकीर समझ लेने वाला अविनाश से उस दिन इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई?
स्टूडैंट्स अविनाश की एक झलक पाने के लिए बेचैन हो रहे हैं. प्रिंसिपल साहब के बारबार आग्रह करने पर अविनाश उन्हें मना नहीं कर पाया. अविनाश खुद भी आश्चर्य में था. यह तो उस के प्रोटोकाल के विरुद्ध था पर पता नहीं इस शहर में एक ऐसी कशिश थी कि वह उन को मना नहीं कर सका.
अविनाश ने जैकेट पहनी और बाल संवार कर स्टेज की तरफ चल पड़ा. अविनाश की शानदार ऐंट्री से छात्र खुशी से चीखने लगे.
अविनाश ने हिट गानों की झड़ी लगा दी. भीड़ खुशी से झूम रही थी. थोड़ी देर बाद अविनाश फिर उसी कमरे में लौट आया… प्रिंसिपल साहब कृतज्ञ भाव से उसे देख रहे थे. तभी एक लड़की ने कमरे ने प्रवेश किया.अविनाश को लगा चेहरा बहुत जानापहचाना है… उस ने दिमाग पर बहुत जोर दिया… कहां देखा है…कहां देखा है…अरे यह तो वेदिका है. साड़ी में कितनी अलग दिख रही थी…चेहरे पर चश्मा, शरीर भी पहले से कुछ अधिक भर गया था.
“सर, बहुतबहुत धन्यवाद, आजकल के बच्चों को तो आप जानते हैं. कितनी जल्दी बेकाबू हो जाते हैं. आप को थोड़ी असुविधा हुई. इस के लिए हम…”
“अरे ऐसा क्यों कह रही हैं आप. हम भी अपने समय में ऐसे ही थे, बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकता हूं?”
“जी बिलकुल…”
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“आप…आप वेदिका शर्मा हैं? 2010 बैच…”
“जी मैं वही वेदिका हूं… जिस की आप बात कर रहे हैं. मैं आप के साथ ही पढ़ती थी. आप थोड़ा आराम कर लीजिए… कार्यक्रम देर तक चलेगा.आप थक गए होंगे.”
आगे पढ़ें- अविनाश के मन में बारबार सवाल उठ रहे थे….
जिंदगी एक फलसफा है, इसकी तह तक पहुँच पाना हर किसी के बस में नहीं होता है, यहां तक वही पहुंच पाते हैं, जिनमें मेहनत करने का जूनून होता है. कला, शिक्षा, अभिनय, साहित्य, समाजसेवा और उदघोषणा के क्षेत्र में एक समान पकड़ रखने वाली डाक्टर अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’ एक ऐसा ही नाम है. अनीता सहगल का कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाते हुये पाँच सौ से अधिक वेस्ट मैटेरियल से पेंटिंग बनाई. इनकी पेंटिंग प्रदर्शनियाँ लग चुकी है. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री इसकी सराहना कर चुके है. पेटिंग के साथ ही साथ अनीता सहगल रंगोली, कलश सज्जा, मेंहदी, थाल डेकोरेशन, मंच सज्जा, कुकिंग, बागवानी, इंटीरियर डेकोरेशन, कढाई, बुनाई, ज्वैलरी डिजाइनिंग और साफ्ट टॅायस मेंकिग जैसे अनेकों हुनर में माहिर है.
शिक्षा के क्षेत्र में कमाया नाम:
शिक्षा के क्षेत्र में अनीता सहगल ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से एम० एस० सी० (आनर्स) गणित में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसके बाद अनीता का पढ़ाई का सिलसिला चलता गया और आज भी अनवरत चाल रहा है. अनीता ने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम०एड० की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. इसके साथ ही साथ उन्होंने मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, फ़िल्म प्रोडक्शन, फोटोग्राफी, एम०एस०डब्लू सहित लगभग 35 से अधिक डिग्री और डिप्लोमा , अलगअलग विश्वविद्यालयों से हासिल किये है. अनीता सहगल उत्तर प्रदेश की पहली महिला होंगी, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में इतनी अधिक डिग्रियां हासिल की हैं.
समाजसेवा बनी पहचानः
अनीता सहगल ने समाजसेवा के जरिये समाज में एक अलग पहचान बना ली है. वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘ग्लोबल क्रिएशंस’ की अध्यक्ष भी है. इसके माध्यम से वह गरीब बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और बेजुबान जानवरों की बेहतरी के लिये काम करती है. कला और संस्कृति के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर कला की अनेको विधाओं की कार्यशालाएं आयोजित करके समाज के प्रत्येक वर्ग को बहुत अधिक लाभाविंत किया है. निर्धन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना, महिलाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देकर उनकों आत्मनिर्भर बनाने का काम किया जाता है. अनीता सहगल बेजुबान और लाचार जानवरों की मदद करती है. ‘ग्लोबल क्रिएशंस’ बिना किसी सरकारी मदद के गाँव-गाँव और पिछडे इलाकों में जनसेवा का काम करती है.
समाजसेवा के क्षेत्र में बुजुर्गों और बच्चों के लिये एक साथ काम करने के कारण अनीता सहगल को ‘बुजुर्गो की बेटी और बच्चों की सेंटा‘ के नाम से भी जाना जाता है. अनीता ना केवल ऐसे लोगों की मदद करती है, बल्कि इनके जीवकोपार्जन के लिये भी प्रयास करती है. कुछ जानवरो को उन्होने अपने घर में ही पनाह दे दी है. अनीता सहगल ग्रेजुएट तक के बच्चों को सांइस और गणित पढ़ाती है. गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देती है. अनीता को खुद भी पढ़ने लिखने का बहुत शौक है और यही शौक इनको औरों से अलग खड़ा करता है.
कमाल की उद्घोषिकाः
अनीता सहगल कमाल की उद्घोषिका है. मंच से लेकर टीवी और रेडियो तक उनकी धाक है. लखनऊ दूरदर्शन की एप्रूव्ड कंपीयरर है. शैक्षिक दूरदर्शन एप्रूव्ड स्क्रीप्ट राइटर है. अनीता के बहुत से लेख, कविताएं, व्यंग, कहानियां प्रकाशित हो चुकी है. अनीता की सुरीली खनकदार आवाज के साथ ही साथ गहरा ज्ञान उनके मंच संचालन की खूबी है. मंच संचालन के दौरान ही उनकी स्वरचित शेरो-शायरी से संचालन और भी अधिक आकर्षक बन जाता है. अनीता ने लखनऊ महोत्सव, ताज महोत्सव, झांसी महोत्सव, हिडंन महोत्सव, देवरिया महोत्सव, फतेहपुर महोत्सव, देवा महोत्सव और मैनपुरी महोत्सव जैसे तमाम कार्यक्रमो में मंच संचालन कर चुकी है. इसके साथ ही साथ राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल के तमाम महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में वह संचालन कर चुकी है.
शासकीय और गैर शासकीय दोनों ही कार्यक्रमों में वह संचालन करती है. गणतंत्र दिवस परेड की लाइव कमेंटी करने का काम करती हैं. किसी महिला के रूप में यह काम करने वाली व पहली महिला हैं. वह कई सालों से लगातार यह काम करती आ रही है. टीवी और रेडियों के कई शो भी वह संचालित कर चुकी है. उदघोषक के रूप में उनकी पहचान पूरे उत्तर प्रदेश में तो है ही फिल्म नगरी मुम्बई में भी वह कई सफल कार्यक्रम कर चुकी है.
लाजवाब अदाकरीः
अनीता सहगल कमाल की अदाकारा भी है. वह कई फिल्मों, टेली सीरियलस, डॉक्यूमेंट्री एवं विज्ञापन फिल्मों में भी अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी हैं. अनीता कहती है ‘सभी तरह की फिल्मों, विज्ञापन फिल्मो और सीरियल में काम करने का अलग अलग अनुभव रहा. यह अनुभव खुद को बेहतर बनाने में काम देता है. कोई भी फिल्म, सीरियल या विज्ञापन के लिये काम करते समय मैं केवल यह देखती हूँ कि मेरा किरदार कितना माध्यय खास है. मैं उसके जरिये समाज को क्या संदेश दे सकती हूँ. मेरे लिये किसी भी किरदार का चुनाव करते समय यह सामने होता है.
डाक्टर अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’ को अलग-अलग संस्थाओं के द्वारा लखनऊ और देश के दूसरे शहरों में कई तरह के 1000 से अधिक एवार्ड, सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके है. पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया उत्तर प्रदेश का ‘बेस्ट एंकर अवार्ड’ प्रमुख है. पूर्व राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री के द्वारा ‘श्रेष्ठ कलाकार सम्मान‘, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के द्वारा ‘तुलसी सम्मान‘ और ‘उत्तर प्रदेश प्रगति रत्न सम्मान’ बॉलीवुड सिंगर उदित नारायण द्वारा ‘आधी आबादी वीमेन एचीवर्स अवार्ड’, ‘श्रेष्ठ कलाकार सम्मान’, ‘यंग एचीवर्स सम्मान’, इम्वा अवार्ड, यूनिक एचीवमेंट अवार्ड कला शिरोमणि सम्मान, सशक्त महिला सम्मान, बेस्ट सर्पोटिंग एक्ट्रेस एवार्ड, बहुमुखी प्रतिभा एवार्ड,कमलेश्वर स्तुति सम्मान, यू.पी. गौरव एवार्ड, नारी शक्ति सम्मान जैसे अनगिनत प्रमुख है. अनीता कहती है कि यह सम्मान और भी जिम्मेदारी से काम करने की प्रेरणा देते हैं.
एक महिला होते हुए हर क्षेत्र मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली अनीता सहगल आज समाज में हर वर्ग के लोगों के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं.
हुनर के साथ-साथ अपने शांत, मिलनसार, मुस्कुराती हुई मुस्कान के साथ सबको अपना बनाने वाली अनीता सहगल पर पूरे प्रदेशवासियों को उस पर नाज हैं, ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेती है.
फिल्म ‘83’कोविड 19 और लॉकडाउन की वजह से बंद बक्से में चली गयी है, क्योंकि निर्देशक कबीर खान उसे थिएटर में रिलीज करना चाहते है. इस प्रोजेक्ट को उन्होंने 20 साल पहले सोचा था, लेकिन फाइनेंसर न मिलने की वजह से उन्हें इतना समय लगा है. ये फिल्म उनकी एक ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे वे दर्शकों के बीच में अच्छी तरह से लाना चाहते है.
एक इंटरव्यू के दौरान निर्देशक कबीर खान कहते कि अभिनेता रणवीर सिंह ने क्रिकेटर कपिलदेव की एक-एक चीज को सामने बैठकर देखा है, हर संवाद को पहले कपिलदेव के कहने के बाद, रणवीर सिंह उसे दोहराते थे. अगर नोटिस किया जाय, तो रणवीर हमेशा खुद को किसी भी चरित्र में ढालने में माहिर है, क्योंकि यही एक्टर किसी में गलिबॉय, तो किसी में सिम्बा, तो किसी में अलाउद्दीन खिलजी आदि का अभिनय करता है. एक कलाकार के रूप में उसकी क्वालिटी आश्चर्यजनक है. वह एक गिरगिट की तरह है, क्योंकि गिरगिट भी अपने आसपास के माहौल के हिसाब से अपना रंग बदलती है. रणवीर सिंह भी किसी भूमिका में खुद को आसानी से ढाल लेते है. उनकी तक़रीबन सभी फिल्मों ने बहुत अच्छा काम किया है. इसलिए बहुत सोच समझकर रणवीरसिंह को लिया गया है, क्योंकि वे ही क्रिकेट प्लेयर कपिलदेव की भूमिका अच्छी तरह से निभा सकते है.वैसे कई कलाकारों के नाम मन में आये थे,बात भी किया जा चुका था, लेकिन अंत में रणवीर को ही फाइनल किया गया. अभिनेत्री दीपिका को भी लेने का मकसद यही है कि इन दोनों की जोड़ी को दर्शक शादी के बाद एक साथ देखना पसंद करेंगे. दीपिका इसमें कपिलदेव की पत्नी की भूमिका निभा रही है.
इसके आगे कबीर कहते है कि ये कहानी खिलाड़ियों के स्पिरिट की कहानी है. इसमें जब यहाँ की टीम लन्दन वर्ल्ड कप के लिए पहुंची थी तो सभी ने कहा था कि उन्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था, क्योंकि ये टीम वर्ल्डकप के स्तर को कम कर देगी, लेकिन सभी प्लेयर्स ने साथ मिलकर वर्ल्ड कप को जीता है. ये अविश्वसनीय ह्यूमन स्टोरी है. इस फिल्म की कहानी हीरो है और हमारे देश में हर बच्चा गली मोहल्ले में क्रिकेट खेलकर ही बड़ा होता है. इसमें क्रिकेट हटाकर अगर कबड्डी भी डाल दिया जाता, तो भी ये उतनी ही दमदार स्क्रिप्ट होती. ऐसे में इस जबरदस्त कहानी को सही ढंग से पर्दे पर लाना बहुत जरुरी था.
सभी जानते है कि फिल्मइंडस्ट्री के कबीर खान को हमेशा से ही कला और साहित्य से जुड़े विषयों पर काम करने का शौक था. उनका सपना मुंबई आकर एक फिल्म बनाने की थी. हालाँकि उनका शुरूआती दौर बहुत संघर्षमय था, पर उन्हें जो भी काम मिला करते गए. उनकी सबसे सफलतम फिल्म ‘एक था टाइगर’ रही, जिसकी वजह सेकबीर खान को इंडस्ट्री में पहचान मिली.उन्हें बड़ी फिल्मों से अधिक डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना पसंद है, क्योंकि कम समय में वे बहुत सारी बातें कह पाते है. ह्यूमन स्टोरी वाली कहानी, जिसे बहुत कम लोग जानते है, उन्हें लोगों तक लाने की कोशिश कबीर ने की है. ऐसी कहानी को लेकर उन्होंने काफी फिल्में बनाई है, जिसमें किसी कहानी में नेता, तो किसी में आर्मी तो किसी में क्रिकेट प्लेयर की कहानी होती है. किसी भीकहानी को कहने में वे पीछे नहीं हटते. फिल्म फॉरगॉटन आर्मी- आज़ादी के लिए’, ‘बजरंगी भाईजान’, न्यूयार्कआदि कई सफल फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने ‘’फैंटम’,‘काबुल एक्सप्रेस’, ‘ट्यूबलाइट’ जैसी असफल या एवरेज फिल्में भी बनाई, जिसे दर्शकों ने नहीं स्वीकारा. इस बारें में पूछे जाने पर उनका कहना है कि मैं असफलता को सीरियसली नहीं लेता न ही सफलता को अधिक महत्व देता हूं, क्योंकि असफलता से ही व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है, जबकि सफलता उसकी सोच को नष्ट कर देती है. प्रोसेस को मैं एन्जॉय करता हूं. मैने 15 साल की इस कैरियर में देखा है कि सफलता से व्यक्ति का दिमाग ख़राब हो जाता है और उसका कैरियर नष्ट हो जाता है. हर फिल्ममेकर की फिल्में सफल और असफल दोनों होती है. जो इसे समझ लेता है वही इंडस्ट्री में टिका रहता है.
ये बात कबीर खान जितनी संजीदगी से कह गए, उसे समझना मुश्किल था, क्योंकि हर फिल्म को बनाने में करोड़ों रूपये लगते है, ऐसे में फिल्मों का सफल न होना बहुत बड़ी बात होती है, क्योंकि निर्माता, निर्देशक और कलाकार सभी की जिंदगी दांव पर लग जाती है, जिसे आसानी से पचा जाना मुश्किल होता है. एक फिल्म के असफल होने पर निर्देशक से लेकर कलाकार सभी को आगे बड़ी फिल्म के मिलने में कठिनाइयाँ आती है, जिसे सभी स्वीकारते है.
कबीर खान का राजनीति से काफी गहरा सम्बन्ध रहा है, इसलिए उनकी हर फिल्म में राजनीति की झलक देखने को मिलती है. उनकी पत्नी उनके स्क्रिप्ट की आलोचक है, जिसका सहयोग हमेशा कबीर खान को मिलता है. उनका कहना है कि एक अच्छी सपोर्ट सिस्टम ही क्रिएटिविटी को बढ़ाने में समर्थ होती है. घर का सुकून भरा माहौल मुझे बहुत कुछ करने की आज़ादी देता है. आगे भी मैं ऐसी ही कुछ चुनौतीपूर्ण कहानियों को लेकर आने वाला हूं.
साल 2021 की शुरुआत होने के बाद से कई बौलीवुड सेलेब्स जैसे एक्टर वरुण धवन और नताशा दलाल की शादी की खबरें आ रही थीं. वहीं अब साल 2021 में सेलेब्स की शादी में एक और नाम जुड़ने जा रहा है. दरअसल, खबरे हैं कि प्रियंका चोपड़ा के एक्स बौयफ्रेंड और ‘वॉट्स यॉर राशि’ फेम एक्टर हरमन बावेजा (Harman Baweja) भी शादी करने वाले हैं. वहीं उनकी शादी की तारीख के चलते वह सुर्खियों में छा गए हैं. आइए आपको बताते हैं कब शादी के बंधन में बंधेंगे प्रियंका चोपड़ा के एक्स बौयफ्रेंड हरमन…
इस तारीख को होगी शादी
दरअसल, खबरें हैं कि हरमन बावेजा अपनी गर्लफ्रेंड और वेलनेस कोच साशा रामचंदानी (Sasha Ramchandani) के साथ शादी करने वाले हैं. खबरें हैं कि हरमन शादी प्राइवेट फंक्शन में 21 मार्च को होने वाली है. इनकी शादी कोलकाता में ही एक निजी समारोह में की जाएगी. जहां कोविड 19 के नियमों का ख्याल रखते हुए महज 50 करीबी रिश्तेदारों की मौजूदगी में सभी शादी की रस्में पूरी की जाएंगी.
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नही होगा कोई रिसेप्शन
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खबरों की मानें तो दूसरे सेलेब्स की तरह हरमन अपनी शादी का कोई भी ग्रैंड रिसेप्शन नही देंगे. हालांकि उनके फैंस और दोस्त इस खबर के बाद इस कपल को बधाई दे रहे हैं.
प्रियंका को कर चुके हैं डेट
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40 साल की उम्र में शादी कर रहे एक्टर हरमन बावेजा इससे पहले एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा के साथ 2008 में फिल्म ‘लव स्टोरी 2050’ के साथ डेब्यू कर चुके हैं, जिसके बाद से दोनों एक दूसरे को डेट करने लगे थे. लेकिन इस फिल्म के बाद से हरमन बावेजा लुक्स के मामले में एक्टर ऋतिक रोशन को टक्कर देते थे. हालांकि उनका फिल्मी करियर सही नही बन पाया.
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स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. सीरियल में इन दिनों वनराज, अनुपमा के लिए अपने दिल की बात करता हुआ नजर आता है, जिसके लिए अनुपमा से बात करने का वो कोई ना कोई नया बहाना ढूंढता रहता है. वहीं वनराज का बदला बिहेवियर देखकर काव्या गुस्से होती नजर आ रही है. इसी बीच अनुपमा की कहानी और नए धमाके होने वाले हैं आइए आपको बताते हैं क्या होगा…
वनराज देखता है सपना
बीते एपिसोड में आपने देखा कि परिवार के जाने के बाद वनराज, अनुपमा को रोक लेता है और दूसरा मौका मांगता है. वो कहता है कि उसे वो माफ कर दें औऱ उसे एक्सेप्ट कर ले. वनराज कहता है मुझे फिर से तुमसे प्यार हो गया है औऱ मैं चाहता हूं कि तुम इस हमारे रिश्ते को एक मौका दो. वहीं वनराज की बात सुनकर अनुपमा रोने लगती है और कहती है कि मैं पहले आपकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी, लेकिन जब उस दिन आपको गाड़ी के पास देखा तो मुझे समझ आया कि 25 सालों का रिश्ता इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकता. अनुपमा कहती है कि आप मेरे विश्वास को तोड़ तो नहीं देंगे ना. इसके जवाब में वनराज कहता है कि वो उसका यकीन फिर से नहीं तोड़ने वाला. हालांकि ये पूरा सीन वनराज का एक सपना होता है.
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काव्या का टूटेगा दिल
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एक्सीडेंट के बाद से वनराज के बदले व्यवहार को देखकर जहां काव्या का दिल टूट गया. इसी बीच आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल की मां अनुपमा के नीचा दिखाने के लिए वौशिंग मशीन खरीदने की बात कहती है. लेकिन इसी बीच वनराज कहता है कि आप हमारी संबंधी है इसीलिए मैं तब से चुप था और अपनी वाइफ अनुपमा की बेइज्जती सुन रहा था. वहीं ये भी कहता है कि अगर उसकी वाइफ को किसी चीज की जरुरत होगी तो वह खुद चीज लाकर देगा. वहीं इस बात को काव्या सुन लेगी, जिससे उसका दिल टूट जाएगा.
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अगर आप अपनी फैमिली के लिए हेल्दी टेस्टी डेजर्ट बनाना चाहते हैं तो ट्रिफल पुडिंग आपके लिए बेस्ट औप्शन है. ट्रिफल पुडिंग हेल्दी और टेस्टी डिश है, जिसे बच्चे काफी पसंद करते हैं.
हमें चाहिए
– थोड़ा सा स्पंज केक
– व्हिपिंग क्रीम
– 1 कप मिक्स फू्रट केला, अनार, बब्बूगोसा, सेब, अंगूर
– थोड़ा सा वैनिला कस्टर्ड पाउडर
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– थोड़ा सा पीला, लाल फूड कलर
– 1 गिलास दूध
– चीनी या शहद स्वादानुसार.
विधि
दूध में से 3-4 छोटे चम्मच दूध एक कटोरी में निकाल कर बाकी दूध एक फ्राइंगपैन में डाल कर उबलने रखें. जब दूध उबलने लगे तो आंच धीमी कर दें. कस्टर्ड पाउडर को निकाले दूध में घोल कर दूध को चलाते हुए उस में मिला दें. 5 मिनट पका कर आंच से उतार कर ठंडा होने दें. व्हिपिंग क्रीम बीट में क्रीम भर लें. अलगअलग कलर की तैयार कर लें. एक सर्विंग बाउल में स्पंज केक के टुकड़े कर के लगा लें. ऊपर से फू्रट्स सजा कस्टर्ड फैला दें. फिर अलगअलग कलर की क्रीम से सजा कर फ्रिज में चिल्ड कर सर्व करें.
दिल की धड़कनें तेज हो गईं. यह इंतजार बहुत असहनीय होने लगा. सारा दिन यों ही निकल गया. अब तो रात के खाने के बाद सोना और कल दोपहर में तो वे चले ही जाएंगे. कुछ गपशप भी नहीं हो पाएगी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. अर्चना आ गई.
अकसर औफिस से आ कर वह बेतहाशा घंटी बजाती थी. कितनी बार समझाया उसे कि इस समय मिली सोई होती है. इतनी जोर से घंटी न बजाया करे, लेकिन…सहसा मन भर आया, छोटी बहन को देखने को. उस ने नम आंखों से दरवाजा खोला. अर्चना ने अपनी दीदी को झुक कर प्रणाम किया.
‘‘सदा खुश रहो… फूलोफलो,’’ दिल भर आया आशीर्वाद देते हुए.
‘‘जी नहीं, तेरी तरह फूलने का कोई शौक नहीं है मुझे,’’ वही चंचल जवाब मिला.
गौर से अपनी ब्याहता बहन का चेहरा देखा. मांग में चमकता सिंदूर, लाल किनारी की पीली तांत साड़ी, दोनों हाथों में लाख की लाल चूडि़यां. सजीधजी प्रतिमा लग रही थी. वह लजा गई, ‘‘छोड़ दीदी, तंग मत कर. मिली कहां है?’’ और फिर मिली…मिली… पुकारती हुई वह बैडरूम में घुस गई.
मन ने टोकना चाहा कि अभी सो रही है. छोड़ दे. पर बोली नहीं. मौसी आई है. वह भी तो देखे अपनी सजीधजी मौसी को. बड़ी प्यारी लग रही है, अर्चना. सुंदर तो है ही और निखर गई है.
मौसी की गोद में उनींदी मिली आश्चर्य और कुतूहल से मौसी को निहारते हुए बोली, ‘‘मौसी, बहुत सुंदर लग रही हो, आप तो. एकदम मम्मी जैसे सजी हो.’’
उस के इस वाक्य ने सहज ही अर्चना को नई श्रेणी में ला खड़ा कर दिया. उसी एक पल में अनेक प्रतिक्रियाएं हुईं. अर्चना लजा गई. संजय ने प्यार से अपनी सुंदर पत्नी को निहारा. आकाश की नजर उन दोनों से फिसल कर सुमन पर स्थिर हो गई. सब के चेहरे पर खुशी और संतोष झलक रहा था. अर्चना के चेहरे पर लाली देख कर मन फूलों सा हलका हो गया.
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तभी अर्चना का अधिकार भरा स्वर गूंजा, ‘‘संजय, घर पर फोन कर दीजिए कि हम लोग पहुंच गए हैं और पूछिए बबलू की तबीयत अब कैसी है?’’
दोनों ही चौंके, अर्चना कब से लोकव्यवहार निभाने लगी. अभी 4 महीने
पहले की ही तो बात है. सुमन को बुखार हो गया था. किंतु घर में रह कर भी 3 दिन तक अर्चना को खबर नहीं हुई थी. नौकर के सहारे उस का काम चल रहा था. आकाश के हाथ में ब्लड रिपोर्ट और दवाओं को देख वह चौंकी थी. ‘‘किस की तबीयत खराब है… मिली की…’’
वही अर्चना आज चिंतातुर दिख रही थी. हमें लगा या तो यह चमत्कार है या फिर दिखावा. चाय पी कर दोनों फ्रैश होने अपने कमरे में चले गए थे. अर्चना के जाने के बाद से उस का कमरा वैसा ही था. ये दोनों भी अपने कमरे में आ गए.
आकाश अलमारी खोलते हुए बोले, ‘‘चलो तुम्हारी बहन गृहस्थी के दांवपेंच सीखने लगी है. अभी तक का परफौर्मैंस तो अच्छा है.’’
तभी अर्चना प्रकट हुई, ‘‘आप लोगों के पास मेरे अलावा और कोई बात नहीं है क्या?’’ वह इठलाते हुए बोली.
इन्होंने भी चुटकी ली, ‘‘है कैसे नहीं? अब इंटरवल के बाद का सिनेमा देखना बाकी है. फर्स्ट हाफ तो हम ने रोरो कर बहुत देखा. उम्मीद है अगला हाफ अच्छा होगा,’’ पहली बार आकाश ने प्यार से उस के सिर पर चपत लगाई और बाहर चले गए.
‘‘और बता तेरी ससुराल में सब कैसे हैं? सब से निभती है न तेरी? तू खुश तो है न?’’
अर्चना सिलसिलेवार बताती चली गई. इस 1 महीने में कब क्या हुआ? किस ने क्या कहा? उसे कैसा लगा? कैसे उस ने सहा? कैसे छिपछिप कर रोई? कैसे सिरदर्द और बुखार में न चाहते हुए भी काम करना पड़ा था. ननद के जिद्दी बच्चों की अनगिनत फरमाइशें. छोटी ननद के नखरे आदि.
वह मिली को चूमते हुए बोली, ‘‘अपनी मिली कितनी अच्छी है, जरा भी जिद नहीं करती.’’
अपनी प्रशंसा सुन मिली खुश हो गई. मौसी का लाया प्यारा सा लहंगा पहनने लगी.
एकाएक अर्चना दार्शनिक अंदाज में बोली, ‘‘दीदी, तुम ही कहती थी, न कि
कुछ बातें लोकव्यवहार और कुछ शालीनता या कहो फर्ज के दायरे में आ कर जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं. इन के परिवार का अधिकार है मेरे आज के जीवन पर उसी के एवज में तो पति का स्नेहमान पाती हूं. ये तमाम सुखसुविधाएं, गहनेजेवर, घूमनाफिरना, होटलों में खाना सब सासससुर की कृपा से ही तो है. उन्होंने ही मेरे पति पर अपना प्रेम, पैसा, मेहनत लुटाई तभी तो वे इस काबिल हुए कि मैं सुख भोग रही हूं…
‘‘तुम ठीक कहती थीं, दीदी. ससुराल वालों के लिए करने का कोई अंत नहीं है. बस चेहरे पर मुसकान लिए करते जाओ. पर सब अपनेआप हो गया. मैं तुम्हें कितना कमेंट करती थी कि बेकार अपना पैसा लुटाती हो, व्यर्थ सब के लिए मरती हो. किंतु, जब खुद पर पड़ी तो तुम्हारी स्थिति समझ आई…’’
इन चंद दिनों में ही वह कितना कुछ बटोर लाई थी कहनेसुनने को. फिर वह संजीदा हो कर बोली, ‘‘तुम्हारी बातों को अपना कर अब तक तो सब ठीक ही रहा है. मैं अपनी सारी बदतमीजियों के लिए दीदी माफी मांगती हूं.’’
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‘‘चल पगली कहीं की…मुझे तेरी किसी बात का दुख नहीं. बस तुम अच्छे से सामंजस्य बैठा कर चलना. तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है. और…बता…संजय अच्छे स्वभाव के तो हैं न…बेंगलुरु जा कर…फिर जौब ढूंढ़नी पड़ेगी तुझे,’’ आंसू छिपाते हुए सुमन ने बात बदली.
‘‘हां. नौकरी तो मिल जाएगी. लेकिन अभी नए घर की सारी व्यवस्था देखनी होगी. अब वे दिन लद गए जो कमाया उसे उड़ाया. तुम यही चाहती थीं न, दीदी. इसलिए मेरी शादी की इतनी जल्दी थी तुम्हें.’’
दोनों बहनों की आंखें सजल हो उठीं. तभी संजय ने पुकारा, ‘‘अर्चना…’’
अर्चना आंखें पोंछती हुई उठ खड़ी हुई. चंद ही महीनों में कितना बदलाव आ गया था उस में… उसे अपनी कमाई का कितना गर्व था.
एक बार उसे फुजूलखर्ची न करने की सलाह दी तो पलट कर यह टका सा जवाब दे कर मुंह बंद कर दिया था उस ने, ‘‘मेरा पैसा है मेरी मरजी जो करूं. मेरी मानो दीदी, तुम भी कोई नौकरी कर लो. नौकरी करोगी तो इन छोटीछोटी चिंताओं में नहीं पड़ोगी. जब देखो यही रोना. इस की क्या जरूरत है? कोई शौक नहीं. क्या सिर्फ जरूरत के लिए ही आदमी जीता है. इच्छाएं कुछ नहीं होती हैं जीवन में?’’
उस वक्त अर्चना की बातों ने अंदर तक चोट की थी. उसे लगा ठीक ही तो
कहती है. वह हर चीज जरूरत भर की ही तो खरीदती है… उसे कमी तो किसी बात की नहीं थी पर हां, अर्चना जैसी स्वतंत्र भी तो नहीं. तुरंत जो जब चाहती है वह तब ही कहां ले पाती है.
अर्चना नौकरी करती है तो उसे किसी के मशवरे की जरूरत नहीं रहती. उस के अंदर एक टीस सी उठी थी. वह उस दिन बिना बात ही आकाश से लड़ पड़ी थी.
वही अर्चना अब कह रही है कि नौकरी देखेगी. सच है. हर नारी स्वाभाविक रूप से ही परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेती है. अर्चना ने अपना कहा सच कर दिखाया था कि जब पड़ेगी न, तो तुम से बेहतर सब संभाल लूंगी. मन पर लदा बोझ पूरी तरह से हट गया.
आकाश ने आ कर टोका, ‘‘भई, घर में मेहमान हैं जरा, उन की तरफ ध्यान दो.
अर्चना की चिंता छोड़ो. उसे अपनी समझ से अपनी गृहस्थी बसाने दो. मुझे तो आशा है वह अच्छी पत्नी साबित होगी. शादी ऐसा बंधन है, जो, वक्त के साथ सब निभाना सिखा देता है.’’
तभी बगल वाले कमरे से चूडि़यों की खनखनाहट गूंजी. आकाश शरारत से होंठ दबा कर मुसकराए, ‘‘अब तो हम पर से भी धर्मपत्नीजी का सैंसर खत्म हो जाएगा वरना कैसे दूर भागती थीं. शर्म करो अर्चना घर में है. अब देखते हैं कैसे भगाती हैं,’’ कह कर वे बांहें फैला कर आगे बढ़े तो सुमन भी बिना किसी दुविधा के उन बांहों के घेरे में बंध गई.
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