मैं ने मम्मी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या बुराई है इस में यदि कोई दंपती बच्चा पैदा करने में असक्षम हो और इस में दूसरे की मदद ले?’’ मम्मी ने भी मुझे करारा जवाब देते हुए कहा, ‘‘पर उस बच्चे की रगों में खून तो उस मां का ही दौड़ रहा है न जो कोख किराए पर देती है?’’
मैं समझ गई थी कि मम्मी से इस वक्त बहस करना ठीक नहीं. सो मैं ने कहा, ‘‘हां मम्मी, आप बात तो ठीक ही कह रही हैं.’’
वे धीरेधीरे बुदबुदाने लगीं, ‘‘हर इनसान अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकता है… न कोई समाज न ही कोई संस्कार… आने वाली पीढ़ी तो और भी न जाने क्या करेगी? अगर मातापिता ही ऐसे हैं तो…’’
मैं जानती थी कि मम्मी से इस विषय पर और बात करना उचित नहीं. लेकिन मेरे बच्चों को उन की बात बड़ी ही दकियानूसी लगतीं.
मेरी बेटी अकसर कहती, ‘‘मौम, दादी ऐसी बात क्यों करती हैं. यदि सब लोग अपने हिसाब से रहते हैं तो इस में क्या बुराई है?’’
मैं कहती, ‘‘बुराई तो कुछ नहीं पर मम्मी अभी यहां नईनई आई हैं न इसलिए उन्हें यह सब अजीब लगता है.’’
ये भी पढ़ें- गलतफहमी : शिखा अपने भाई के लिए रितु को दोषी क्यों मानती थी
ऐसा चलते कब 3 साल बीत गए पता ही न चला. मम्मी भी आशी दीदी से मिलने मुंबई जाना चाहती थीं. बच्चों की भी छुट्टियां थीं तो मैं ने बच्चों के भी टिकट ले लिए. हां, पापा नहीं जाना चाहते थे. उन के दोस्तों का यहां कुछ प्रोग्राम था.
आशी दीदी बहुत खुश थीं कि मम्मी आ रही हैं. इन 3 सालों में वे भी तो कितनी अकेली रह गई थीं. जब मम्मी और बच्चे वहां पहुंच गए तो आशी दीदी उन्हें रोज कहीं न कहीं घुमा लातीं. उन के लिए तरहतरह का खाना बनातीं. रात को दीदी की बेटियां और मेरे बच्चे एक ही कमरे में सो जाते. आशी दीदी के पति यानी मेरे ननदोई निशांत तो शिप पर ही थे. वे तो 6 महीने में मुंबई आते थे. आशी दीदी ने अपनी 2 बेटियों को पालने में जिंदगी अकेले ही बिता दी. निशांत भी आशी दीदी की इस बात की तारीफ करते नहीं थकते.
एक रात मम्मी को कुछ बेचैनी सी हुई तो लिविंगरूम में सोफे पर आ कर लेट गईं.
थोड़ी ही देर में देखती हैं कि कोई नौजवान दीदी के कमरे से बाहर निकल रहा है और दीदी अपना नाइट गाउन पहने उसे दरवाजे तक छोड़ने आईं.
जातेजाते उस नौजवान ने दीदी के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं कल फिर आऊंगा.’’
दीदी ने भी उसे स्वीकृति दे दी और कहा, ‘‘ओके बाय.’’
दीदी को तो मालूम भी न था कि मम्मी सोफे पर लेटीं यह सब देख रही हैं. उन्होंने उस शख्स के जाते ही लिविंगरूम की बत्ती जला कर पूछा, ‘‘कौन है यह? जंवाई बाबू की गैरहाजिरी में ये सब करते अच्छा लगता है तुम्हें? तुम्हारी 2 जवान बेटियां हैं. उन का तो लिहाज किया होता…’’
दीदी जवाब में सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘जाने दीजिए मम्मी… आप नहीं समझेंगी.’’
मम्मी का तो पारा हाई था. अत: कहने लगीं, ‘‘मैं नहीं समझूंगी? ये बाल मैं ने धूप में सफेद नहीं किए हैं… मुझे लगता है तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है,’’ और मम्मी ने झट से मेरे पति आकाश को फोन कर सब बता दिया.
एक पल को तो मेरे पति सकते में आ गए, फिर अगले ही पल बोले, ‘‘मम्मी, तुम आशी को कुछ न कहो. पहले मुझे मामले की तह तक जाने दो.’’
‘‘तुम सब जल्दी मुंबई आओ और देखो यहां आशी क्या कर रही है.’’
अगले ही दिन आकाश ने भारत की फ्लाइट के टिकट बुक कराए और हम भारत पहुंच गए. आकाश और मुझे देख कर आशी दीदी बहुत डर गई थीं. एक दिन तो आकाश ने आशी दीदी से कुछ न पूछा. लेकिन जब आकाश ने आशी दीदी से सब साफसाफ बताने को कहा तो जो आशी दीदी ने बताया वह वाकई चौंकाने वाला था. वे कह रही थीं और मैं और आकाश सुन रहे थे. वे बोलीं, ‘‘भैया, आप को तो मालूम ही है कि निशांत और मेरी शादी दोनों की मरजी से हुई थी… वे मर्चेंट नेवी में होने की वजह से साल में 6 महीने बाहर ही रहते हैं. लेकिन 6 महीने बाहर रहने से निशांत के वहां लड़कियों से संबंध हैं. जब वे यहां भी आते हैं तो भी उन की रुचि मेरे में नहीं होती है… वे घर के मुखिया का दायित्व तो निभा रहे हैं, लेकिन सिर्फ हमारी 2 बेटियों के कारण.
‘‘यदि मैं निशांत को कुछ कहती हूं तो वे कहते हैं कि तुम आजाद हो… चाहे तो तलाक ले लो या तुम भी किसी गैरमर्द से संबंध रख सकती हो. बस बात घर के बाहर न जाए, क्योंकि समाज के सामने तो यह रिश्ता निभाना ही है. हमारी यह शादी तो समाज के समाने सिर्फ एक दिखावा है. अब इन 2 जवान बेटियों को छोड़ कर मैं कहां जाऊं. तलाक भी तो नहीं ले सकती… मुझे भी तो प्यार चाहिए… तन की प्यास क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है, औरत को नहीं?’’
ये भी पढ़ें- तृष्णा: इरा को क्यों अपना जीवन बेमानी लगता था
इतना सुनते ही मम्मी ने दीदी के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया. वे चीख पड़ीं, ‘‘तुझे शर्म नहीं आई ये सब कहते?’’
आकाश ने मम्मी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप शांत हो जाएइ. मैं आशी से अकेले में बात करता हूं.’’
अब आशी दीदी, आकाश और मैं ही कमरे में थे. लेकिन उस के बाद जो आशी दीदी ने बताया वह तो और भी चौंकाने वाला था.
वे बोलीं, ‘‘यहां भी उन के पड़ोस की महिला से संबंध हैं और इस बारे में उस के पति को भी सब मालूम है. उस महिला ने अपने पति को भी कह दिया है कि वह आजाद है, चाहे जिस स्त्री से संबंध रखे. उस रात पड़ोस की उस महिला का पति ही यहां आया था और यह बात निशांत को भी मालूम है कि मेरे उस से संबंध हैं. उन्हें इस संबंध से कोई हरज नहीं. हां, उन्होंने इतना जरूर कहा है कि यह बात घर से बाहर न जाए, क्योंकि हमारा समाज इन रिश्तों को स्वीकार नहीं करेगा,’’ और फिर आशी दीदी रोने लगीं.
मैं ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप फिक्र न कीजिए सब ठीक हो जाएगा. आप हमें थोड़ा सोचने के लिए समय दें बस,’’ और फिर मैं और आकाश आशी दीदी के कमरे से बाहर आ कर लौन में सैर करने लगे.
मैं ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘यदि आशी दीदी जो बता रही हैं वह सत्य है, तो इस में दीदी का क्या दोष है? अपनी पत्नी के सिवा गैरस्त्री से संबंध रखने का हक मर्द को किस ने दिया और फिर यदि यह हक निशांत को है तो फिर आशी दीदी को भी है.’’
आकाश ने भी धीरे से कहा, ‘‘हां, तुम ठीक ही कहती हो, लेकिन मम्मी को कौन समझाए? वे तो आशी को कभी माफ नहीं करेंगी.’’
मैं मन ही मन सोच रही थी कि दीदी ने ठीक ही कहा कि तन की आग क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है? कुदरत ने औरत को भी तो शारीरिक उत्तेजना दी है और यदि उस का पति उस में रुचि न ले तो वह अपनी शारीरिक उत्तेजना कैसे शांत करे? सच तो यह है कि इस में दीदी की कोई गलती नहीं है. पर चूंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को नहीं स्वीकारते, इसलिए सब कुछ चोरीछिपे चल रहा है यहां. सिर्फ दीदी व निशांत ही क्यों उन के पड़ोसी दंपती को भी तो वही समस्या है. तब ही तो वह उस रात दीदी के पास आया था. उस की पत्नी को भी तो इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं. न जाने ऐसे कितने लोग होंगे जिन के ऐसे ही संबंध होंगे.
बात मेरे पति आकाश के दिमाग में ठीक बैठ रही थी. वे कहने लगे, ‘‘तुम ठीक ही कहती हो. लेकिन अब मम्मी को समझाना होगा, जोकि बहुत मुश्किल काम है.’’
आगे पढें- खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर…
ये भी पढ़ें- उपलब्धि: नई नवेली दुलहन कैसे समझ गई ससुरजी के मनोभाव
खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर वापस अमेरिका आ गए, लेकिन मेरे ननदोई निशांत के शिप से वापस आने पर हम फिर भारत आए और मम्मी को भी साथ ले आए. वहां आकाश ने निशांत से उन के दूसरी स्त्रियों से संबंध के बारे में पूछा तो निशांत ने उन संबंध को खुले शब्दों में स्वीकारते हुए कहा, ‘‘आकाश आप तो इतने सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. आप भी इन्हें बुरा समझते हैं? मेरे संबंधों के बारे में आशी को सब कुछ मालूम है और मैं ने भी आशी को पूरी छूट दी है कि वह भी अगर चाहे तो किसी से संबंध रख सकती है. बस हमारे परिवार पर उन संबंधों का बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए. आकाश आप तो पढ़ेलिखे हैं. आप को तो इन संबंधों से नाराज नहीं होना चाहिए.’’
आकाश ने कहा, ‘‘निशांत आप ठीक कहते हैं, किंतु मम्मी को कौन समझाए?’’
मैं ही समझाऊंगा मम्मी को भी. चलिए अभी बहुत रात हो गई है. कल सुबह बात करते हैं.
अगले दिन सुबह नाश्ता कर निशांत मम्मी के पास बैठ गए और बोले, ‘‘मम्मी, मुझे पता है आप बहुत नाराज हैं मुझ से और आशी से. आप का नाराज होना वाजिब भी है. आप को तो पता है आशी और मेरी शादी हमारे समाज के नियमों के अनुरूप हो गई, लेकिन हम दोनों ही कहीं एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे. हम दोनों ने कोशिश भी की कि हमारा रिश्ता अच्छा बना रहे, लेकिन कहीं कुछ तो कमी थी जिसे हम दोनों दूर करने में असमर्थ थे. शादी का मुख्य उद्देश्य तो शारीरिक संबंध और संतानोत्पत्ति ही होता है. अब बच्चे तो हम पैदा कर चुके हैं. लेकिन कहीं हमारे शारीरिक संबंधों में वह मधुरता नहीं है, जो एक पतिपत्नी के बीच होनी चाहिए. मैं तो वैसे भी 6 महीने शिप पर रहता हूं. ऐसे में आशी तो मेरे पास होती नहीं तो यदि वह सुख मुझे कहीं और से प्राप्त होता है तो उस में क्या बुराई है? मैं ने तो आशी को भी पूरी छूट दी है कि वह भी चाहे जिस से संबंध रख सकती है. उस की भी इच्छाएं हैं. मैं उन मर्दों में से नहीं जो स्वयं तो मौजमस्ती करें और पत्नी को समाज के नियमों की आड़ में तिलतिल मरने के लिए छोड़ दें. अगर आशी के पास वह पड़ोसी आता है तो क्या बुराई है उस में?’’
ये भी पढ़ें- साथी साथ निभाना: संजीव ने ऐसा क्या किया कि नेहा की सोच बदल गई
लेकिन मम्मी कहां यह सब समझने वाली थीं. मम्मी तो वैसे ही मुंह फुला कर बैठी थीं. निशांत भी समझ गए कि मम्मी को उन की बातें अच्छी नहीं लग रही हैं. अत: उन्होंने मम्मी का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं समझता हूं कि आप को इन सब बातों से बहुत दुख पहुंचा है, किंतु यदि कोई नियम किसी की खुशी के आड़े आए तो उस नियम को तोड़ देना अच्छा…फिर आज ही क्यों पहले जमाने में भी तो यह सब होता था, लेकिन पहले घरपरिवार के लोग उस में साथ देते थे और अब समाज के नियमों के डर से परिवार भी अपनों की खुशियों से मुंह मोड़ लेता है… यदि मैं और आशी एकदूसरे के आचरण से खुश हैं तो दूसरों को तकलीफ क्यों?
‘‘यदि आप को लगता है ये सब इस युग में ही हो रहा है तो लाइए आप को महाभारत जिस का पाठ आप रोज नियम से करती हैं उसी में दिखा देता हूं आप को पुराने युग की सचाई,’’ कह कर निशांत ने इंटरनैट से महाभारत डाउनलोड किया और उसी समय मम्मी को पढ़वाना शुरू कर दिया, जिस में पांडु और कुंती के बारे में साफसाफ लिखा है.
‘‘पांडु को एक ऋषि से श्राप मिला था जिस के कारण वे स्त्री सहवास नहीं कर सकते थे, लेकिन वे चाहते थे कि उन की पत्नी के गर्भ से संतानोत्पत्ति हो, क्योंकि वे अपने पिता के ऋण से मुक्त होना चाहते थे. अत: एक दिन पांडु ने अपनी पत्नी कुंती से कहा, ‘‘प्रिये, तुम पुत्रोत्पत्ति के लिए प्रयत्न करो.’’
ये भी पढ़ें- सफर कुछ थम सा गया: क्या जया के पतझड़ रूपी जीवन में फिर बहारें आ पाईं
तब कुंती ने कहा, ‘‘हे आर्यपुत्र जब मैं छोटी थी तब मेरे पिता ने मुझे अतिथियों के
स्वागतसत्कार का कार्य सौंप रखा था. मैं ने उस समय दुरवासा ऋषि को अपनी सेवा से प्रसन्न कर दिया था और बदले में उन्होंने मुझे वरदानस्वरूप एक मंत्र देते हुए कहा कि हे पुत्री, इस मंत्र का उच्चारण कर तुम जिस भी देवता का आह्वान करोगी वह चाहे अथवा न चाहे तुम्हारे अधीन हो जाएगा. अत: आप की आज्ञा होने पर मैं जिस देवता का आह्वान करूंगी, उसी से मुझे संतानोत्पत्ति होगी. इस प्रकार धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीमसेन, इंद्र से अर्जुन, अश्विन कुमार से जुड़वा पुत्र नकुल व सहदेव प्राप्त हुए.
‘‘मम्मी, यह तो बात हुई 5 पांडु पुत्रों की उत्पत्ति की. उस के बाद यह तो सर्वविदित है कि द्रौपदी के 5 पति थे, क्योंकि उन की माता कुंती अपने 5 बेटों को सदा कहती थीं कि कोई भी वस्तु पांचों बराबर बांट कर इस्तेमाल करो. अत: जब वे द्रौपदी को जीत कर लाए तो वही बात कुंती ने बिना द्रौपदी को देखे कह दी और तब से द्रौपदी के 5 पति थे. इस के अलावा भीम व हिडिंबा से घटोत्कच का जन्म हुआ और धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सू का जन्म एक वेश्या के गर्भ से हुआ था. तो मम्मी अब देखिए आप हमारे जिस धार्मिक ग्रंथ को रोज बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ती हैं, उस में हमारी पुरानी संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है, जिस में यह बताया गया है कि जीवन को स्वेच्छा से हंसीखुशी और मौजमस्ती के साथ जीओ. लेकिन यह भी ध्यान रखो कि आप की इस मौजमस्ती का नुकसान दूसरों को न उठाना पड़े और हम किसी के साथ कोई जबरदस्ती न करें.
‘‘तो मम्मी कहां बुराई है मेरे और आशी के गैरसंबंधों में? आप को बुराई दिखाई देती है, क्योंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को अस्वीकृत करते हैं. लेकिन ये समाज के नियम बनाए किस ने? समाज के चंद पहरेदारों ने. तो फिर क्यों रोक नहीं इन कोठों पर, वेश्यालयों पर, क्यों खुले हैं ये? सिर्फ उन पहरेदार मर्दों के लिए जो इन नियमों को बनाते तो हैं, किंतु स्वयं उन्हें नहीं मानते और उन मर्दों की औरतें उदासीन जिंदगी जीने के लिए मजबूर होती हैं. वे मर्द अपनी कामेच्छा की संतुष्टि तो कर लेते हैं, किंतु उन की औरतों का क्या जो उन मर्दों से विवाह कर सारी जिंदगी उन के बच्चे ही पालती रहती हैं या फिर उन पर आश्रित होती हैं कि कब उन के पति को उन पर प्यार आए जिस की बारिश में वह उन के तनमन को भिगो दे. उन्हें भी तो हक होना चाहिए अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का या फिर यदि समाज के निमय हैं तो मर्द व औरत के लिए समान रूप से होने चाहिए. मम्मी ये सब तो कल भी होता था आज भी हो रहा है और कल भी होगा. यदि समाज इन पर प्रतिबंध लगाएगा तो चोरीछिपे होगा पर होगा जरूर.’’
ये भी पढ़ें- क्या मैं गलत हूं: शादीशुदा मयंक को क्या अपना बना पाई मायरा?
मम्मी अपने जंवाई की बातें सुन कर नि:शब्द थीं. दीदी वहीं बैठ कर सुबकसुबक कर रो रही थीं. निशांत ने उन्हें गले से लगा कर चुप कराते हुए कहा, ‘‘मत रोओ आशी, इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. आगे भी तुम स्वेच्छा से अपनी जिंदगी जी सकती हो.’’
हालांकि मम्मी अभी भी इस तरह के संबंधों को मन से स्वीकार नहीं कर पा रही थीं, लेकिन निशांत व आशी दीदी के चेहरे पर मुसकान देख कर हम सब भी मुसकरा रहे थे.
तभी मम्मी दीदी से कहने लगी, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें बहुत भलाबुरा कहा. तुम मुझे माफ कर देना.’’
मम्मी को यह सब समझाने में निशांत ने जिस धैर्य से काम लिया वह काबिलेतारीफ था.
तभी आकाश बोल उठे, ‘‘भई, भूख लग रही है. आज खाना बाहर से ही और्डर कर देते हैं.’’
सभी मम्मी से पूछने लगे कि कहिए क्या और्डर किया जाए?
माहौल हलका हो गया था. आशी दीदी व निशांत अपने कमरे में चले गए. हम अमेरिका वापसी की तैयारी में लग गए. अब वापस लौट कर मम्मी को अमेरिका में उन की सहेलियों की बातों से कोई आश्चर्य न होता और अब उन्होंने इस देश को कोसना छोड़ दिया था. मेरे दोनों बच्चे भी कहने लगे थे, ‘‘मौम, अब दादी कुछ बदली बदली लगती हैं.’’
15 वर्षों से अमेरिका में नौकरी करते करते ऐसा लगने लगा जैसे अब हम यहीं के हो कर रह गए हैं. 3 साल में 1 बार अपनी मां के पास अपने देश भारत जाना होता है. बच्चे भी यहीं की बोली बोलने लगे हैं और यहीं का रहनसहन अपना चुके हैं. कई बार मैं अपने पति से कहती कि क्या हम यहीं के हो कर रह जाएंगे? पति कहते कि कर भी क्या सकते हैं? आजकल की नौकरियां हैं ही ऐसी. जहां नौकरी वहीं हम. पहले जमाने की तरह तो है नहीं कि सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की सरकारी नौकरी करो और आराम से जिंदगी जीयो और न ही वह जमाना रहा कि पति की नौकरी से ही घर खर्च चल जाए और बचत भी हो जाए. अत: मुझे तो नौकरी करनी ही थी.
मेरे पति आकाश के मांबाबूजी यानी अपने सासससुर को मैं मम्मीपापा ही पुकारती हूं. वे भारत में ही हैं और उन की बहन आशी यानी मेरी ननद भी मुंबई में ही रह रही हैं. उन के पति मर्चेंट नेवी में हैं और 2 सुंदर बेटियां हैं. मम्मीपापा कहने को तो अकेले रहते हैं अपने फ्लैट में, लेकिन उन की देखभाल तो आशी दीदी ही करती हैं. मगर मम्मीपापा को कहां अच्छा लगता है कि वे अपनी बेटी पर बोझ बनें. वे तो भारत में विवाह के बाद पराया धन मानी जाती हैं. लेकिन अब तो मम्मीपापा के अकेले रहने की उम्र भी नहीं रही. अत: हम लोग बारबार उन से आग्रह करते कि हमारे पास अमेरिका में ही रहें. पर वे तो अपने देश, अपने घर के मोह में ऐसे बंधे हैं कि उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहते.
ये भी पढ़ें- धुंधली तस्वीरें: क्या बेटे की खुशहाल जिंदगी देखने की उन की लालसा पूरी हुई
हर बार यही कहते हैं कि अमेरिका में मन नहीं लगेगा. भारतीय लोग भी तो नहीं हैं वहां. किस से बोलेंगे? भाषा की समस्या अलग से. लेकिन जब आशी दीदी ने उन्हें समझाया कि अब तो अमेरिका में बहुत भारतीय हैं, तो उन्होंने अमेरिका आने का मन बना लिया. फिर क्या था. आकाश भारत गए और वहां का फ्लैट बेचने की कारवाई शुरू कर दी. मम्मीपापा का तो रोमरोम घर में बसा था. बहुत प्यार था मम्मी को उस घर की हर चीज से. क्यों न हो. पापा की खूनपसीने की कमाई से बना था उन का यह घर.
मम्मी एक तरफ तो उदास थीं कि इतने वर्ष जिस घर में रहीं वह आज बिक रहा है, सब छूट रहा है, लेकिन दूसरी तरफ खुश भी थीं कि अपने बेटेपोते के साथ बुढ़ापे के बचेखुचे दिन गुजारेंगी. 2 महीने पूरे हुए. मम्मी आशी दीदी से विदाई ले कर अमेरिका के लिए रवाना हो गईं. आशी दीदी का मन भी बहुत दुखी था कि अब उन का भारत में कोई नहीं. एक मम्मी ही तो थीं जिन से वे दुखसुख की सारी बातें कह लेती थीं.
मम्मीपापा मेरे बच्चों अक्षय और अंशिका से मिल कर बहुत खुश हुए. पापा तो उन से अंगरेजी में बात करने की पूरी कोशिश करते, लेकिन मम्मी उन का अमेरिकी लहजा न समझ पातीं. आधी बातें इशारों में ही करतीं. मैं अच्छी तरह समझती थी कि शुरूशुरू में उन का यहां मन लगना बहुत मुश्किल है. अत: मैं ने उन के लिए औनलाइन हिंदी पत्रिकाएं और्डर कर दीं.
फिर एक दिन मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, शाम को कुछ भारतीय महिलाएं अपनी किट्टी पार्टी करती हैं, जिन में से कुछ आप की उम्र की भी हैं. आप रोज शाम को उन के पास चली जाया करें. आप की दोस्ती भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा.’’
एक दिन मैं ने उन महिलाओं से मम्मी का परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये हैं विनीता आंटी, ये कमला आंटी, ये रूपा आंटी और ये हमारी मम्मी.’’
सभी महिलाएं बड़ी खुश हुईं. रूपा आंटी कहने लगीं, ‘‘स्वागत है बहनजी हमारे समूह में आप का. बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. चलो, हमारे परिवार में एक सदस्य और बढ़ गया. अब हम इन्हें रोज नीचे बुला लिया करेंगी.’’
अब मम्मी शाम को 5 बजे अपनी सहेलियों के पास रोज पार्क में चली जातीं. वहां गपशप व थोड़ी इधरउधर की बातें करना उन्हें बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे 1 ही महीने में मम्मी का मन यहां लग गया. पापा तो रोज अपने नए मित्रों के साथ सुबहशाम सैर कर आते और बाकी खाली समय में हिंदी पत्रिकाएं पढ़ते. मम्मी सुबहशाम मेरा रसोई में हाथ बंटातीं. लेकिन अब मम्मी जब शाम को पार्क से लौटतीं, तो उन के पास हर दिन एक नया किस्सा होता, मुझे सुनाने के लिए.
फिर एक दिन मम्मी जब पार्क से लौटीं तो सेम की फलियां काटतेकाटते बोलीं, ‘‘आज मालूम है रूपा क्या बता रही थी? कह रही थी कि इधर एक हिंदुस्तानी पतिपत्नी रहते हैं. दोनों नौकरी करते हैं. उन के बच्चे नहीं हैं. सुना है पति नपुंसक है. उस की पत्नी का दफ्तर में एक अन्य आदमी से संबंध है.’’
‘‘मम्मी यहां सब चलता है और मैं भी पहचानती हूं उन्हें. अच्छे लोग हैं दोनों ही.’’
‘‘क्या खाक अच्छे लोग हैं… पति के रहते पत्नी गैरपुरुष से संबंध रखे तो क्या अच्छा लगता है?’’
मैं मम्मी के चेहरे को गौर से देख रही थी. उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. सही बात तो यह है कि उन के चेहरे पर ये भाव होने वाजिब ही थे, क्योंकि हमारे हिंदुस्तान में ऐसे संबंधों को कहां मान्यता दी है? हां यह बात अलग है कि वहां चोरीछिपे सब चलता है. यदि बात खुल जाए तो स्त्री और पुरुष दोनों ही बदनाम हो जाते हैं. लेकिन हिंदुस्तान में भी तो शुरू से ही रखैल और देवदासी प्रथा प्रचलित थी. उच्च वर्ग के लोग महिलाओं को बखूबी इस्तेमाल करते थे. लेकिन उच्च वर्ग यह करे तो शानशौकत और निम्न वर्ग तो बेचारा इस्तेमाल ही होता रहा. समाज में समानता कहां है. लेकिन यहां तो समाज इन रिश्तों को खुल कर स्वीकारता है. पर मम्मी को कौन समझाए? मैं उन से इस बारे में बहस नहीं करना चाहती थी. मैं जानती थी इन सब बातों से मम्मी का दिल दुखेगा. सो मैं ने सेम की फलियां हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मम्मी, मैं सब्जी छौंक देती हूं, आप थक गई होंगी. जाइए, आप थोड़ा आराम कर लीजिए.’’
ये भी पढ़ें- क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं : विदेश में क्या हुआ मार्गरेट के साथ
मम्मी भी मुसकरा कर बच्चों के पास चली गईं. मेरी बेटी अंशिका उन से बहुत खुश रहती. धीरेधीरे मम्मी अंगरेजी भी सीखने लगी थीं. अब मम्मीपापा बच्चों से अंगरेजी में ही बात करते. उन के यहां आने से मुझे बहुत सहारा मिल गया था वरना यहां तो सारा काम खुद ही करना पड़ता है, नौकरचाकर तो यहां मिलते नहीं और जिस तरह से मम्मी अपना घर समझ कर काम करती थीं, वे थोड़े ही न करेंगे?
अब मम्मी यहां पूरी तरह ऐडजस्ट हो गई थीं. महीने में 1 बार अपनी सहेलियों के साथ रेस्तरां में किट्टी पार्टी कर लेतीं. सभी महिलाओं में होड़ लगी रहती कि सब से अच्छी डिश कौन बना कर लाती है. सो मम्मी भी उस होड़ में शामिल हो नई सलवारकमीज, पर्स, मैचिंग चप्पलें आदि पहन कर बड़ी खुश होतीं. यही एक सब से अच्छा जरिया था यहां उन का मन लगाने का. सजधज कर चली जातीं. 1-2 गेम खेलतीं और एकदूसरे से अपने मन की बातें कर लेतीं.
इस बार जब वे किट्टी पार्टी से लौटीं तो सब सहेलियों से और भी नईनई बातें सुन कर आईं और बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थीं कि कब मैं दफ्तर से आऊं और कब वे अपने मन की बात मुझे बताएं.
मेरे घर आते ही वे 2 कप चाय बना कर ले आईं और फिर मेरे पास आ कर बैठ गईं.
मैं ने पूछा, ‘‘कैसी रही आप की किट्टी पार्टी?’’
वे तो जैसे तैयार ही बैठी थीं सब बताने को. कहने लगीं, ‘‘किट्टी तो बहुत अच्छी थी, किंतु यहां की कुछ बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं. आज तो सभी औरतें स्पर्म डोनेशन की बातें कर रही थीं. वे बता रही थीं कि यदि कोई मर्द बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो किसी और मर्द के स्पर्म (शुक्राणु) उस की पत्नी की कोख में स्थापित कर दिए जाते हैं और उस पत्नी को यह मालूम ही नहीं होता कि स्पर्म किस मर्द के हैं. ऐसे ही यदि महिला बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो दूसरी महिला की कोख में दंपती के शुक्राणु व अंडाणु निषेचित कर के स्थापित कर दिए जाते हैं और इस तरह दूसरी महिला 9 महीने के लिए अपनी कोख किराए पर दे देती है. जब बच्चा पैदा हो जाता है तो वह उस दंपती को सौंप देती है. छि…छि… कितना बुरा है ये सब?’’
आगे पढ़ें- मैं समझ गई थी कि मम्मी से…
ये भी पढ़ें- अधूरा प्यार: शादी के लिए क्या थी जुबेदा की शर्त
रेटिंग : 3 स्टार
निर्माता: सलमान खान निशांत कौशिक विकास मलु
लेखक व निर्देशक: सतीश कौशिक
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, मोनल गुर्जर ,अमर उपाध्याय , सतीश कौशिक,मीता वशिष्ठ, संदीपा धर व अन्य.
अवधि: एक घंटा 50 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी फाइB
इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक लकड़ी के साथ-साथ कागज की अनिवार्यता तय है. कम से कम हर सरकारी कामकाज में इंसान की मौजूदगी से कहीं ज्यादा अहमियत कागज की है. और यदि इंसान सरकारी कागजों में मृत पाए हो जाए, तो जीवित होते हुए भी उसे कोई जीवित नहीं मानता.ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के लाल बिहारी के साथ हुआ था, जिन्हें अपने आप को जीवित साबित करने के लिए 18 वर्ष का लंबा संघर्ष करना पड़ा था .उनके उसी संघर्ष और सत्य घटना करने को लेकर फिल्मकार सतीश कौशिक फिल्म ‘कागज ‘ लेकर आए हैं, जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म “जी5” पर देखा जा सकता है.
कहानी:
उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद के एक छोटे से गांव का रहने वाले भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) एक बैंड मास्टर हैं. जो अपनी पत्नी रुक्मणि ( मोनल गुज्जर) और बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.कुछ लोग भरत लाल को सलाह देते हैं कि वह बैंक से कर्जा लेकर अपने भरत बैंड के व्यापार को विस्तार दे दे. पर भरत लाल इसे अनसुना कर देते हैं .लेकिन जब भरत लाल की पत्नी रुक्मणि उनसे अपने काम को विस्तार देने के मकसद से बैंक से कर्ज़ लेने की सलाह देती है,तो भरत लाल सहकारी बैंक कर्ज लेने पहुंच जाते हैं. बैंक मैनेजर कहता है कि कर्ज के बदले गिरवी रखने के लिए अपनी जमीन के कागज लेकर आओ .जब भरत लाल अपनी पुश्तैनी जमीन के कागज लेने लेखपाल के पास पहुंचता है, तो पता चलता है कि उसके चाचा और चचेरे भाइयों ने लेखपाल भूरे को घूस खिलाकर सरकारी कागजों में भरत लाल को मृत घोषित करा दिया है और उसकी सारी जमीन अब चचेरे भाइयों के नाम पर है. यही से भरत लाल की जिंदगी बदल जाती है.खूब घटना अपने आप को जीवित साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाता है. वह लेखपाल से लेकर सरपंच, मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री और अदालत के चक्कर काटता रहता है. भरत लाल को बकरा बनाने के मकसद से मदद से वकील साधुराम केवट (सतीश कौशिक) आगे आते हैं, मगध भरत लाल जिस तरह से गतिविधियां करते हैं, उसके आगे वकील साधु राम केवट भी नतमस्तक हो जाते हैं और फिर अंत तक भरत लाल की मदद करते रहते हैं.भरत लाल हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं अपने आप को जीवित साबित करने के लिए. यहां तक की भरत लाल अपने नाम के आगे मृतक लगाने के साथ ही अखिल भारतीय मृतक संघ बनाते हैं और पूरे प्रदेश के ऐसे सभी लोग उनके साथ जुड़ जाते हैं, जिन्हें कागजों में मृत घोषित कर दिया गया है.इस लंबे संघर्ष में भरत लाल का काम-धंधा बंद हो जाता है, परिवार साथ छोड़ देता है, पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने मामा के घर रहने चली जाती है. पर उन्हें विधायक अशर्फी देवी (मीता वशिष्ट) का भरत लाल को साथ मिलता है, जबकि एक अन्य विधायक (अमर उपाध्याय) भरत लाल के खिलाफ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.लेकिन भरत लाल हार नहीं मानते हैं.18 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद अंततः भरत लाल को मुख्यमंत्री एक अध्यादेश जारी कर जीवित घोषित करते है.
लेखन व निर्देशन:
फिल्मकार सतीश कौशिक ने देश की शासन व्यवस्था और जड़ो तक व्याप्त भ्रष्टाचार की हकीकत को हास्य व्यंग के साथ इस फिल्म में पेश करने में सफल रहे हैं. बतौर लेखक सतीश कौशिक ने कई जगह बेहतरीन काम किया है . यह उनकी लिखावत का ही परिणाम है कि व्यंग वह विडंबना की धार उस वक्त तेज हो जाती है जब भरत लाल की पत्नी रुकमणी अपनी मांग में सिंदूर भरे मंगलसूत्र पहने विधवा पेंशन लेने सरकार के पास पहुंच जाती है. सतीश कौशिक, भरत लाल के नजरिए से पूरे सिस्टम का चित्रण करने में सफल रहे हैं. इतना ही नहीं कागज के साथ सतीश कौशिक एक बार फिर लोगों के दिलों को छूने में कामयाब रहे हैं . फिर भी फिल्म कई जगह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है .यदि पटकथा पर थोड़ी सी मेहनत की जाती, तो फिल्म ज्यादा बेहतर बन सकती थी. पूरी फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. यदि भरत लाल के किरदार में उनकी जगह कोई दूसरा कलाकार होता, तो शायद फिर मजेदार न बन पाती. मिता वशिष्ट व अमर उपाध्याय ठेकेदारों को सही ढंग से विस्तार नहीं दिया गया. इसके अलावा एडिटिंग में कसावत की जरूरत थी.
फिल्म में गांव के सरपंच का एक संवाद है- ”इस देश में राज्यपाल से भी बड़ा लेखपाल होता है और उसके लिखे को कोई नहीं मिटा सकता.”यह संवाद हमारे देश की शासन व्यवस्था पर करारी चोट करता है. इसके अलावा फ़िल्म में कुछ संवाद, मसलन-” हमारा सिस्टम आम आदमी के उत्पीड़न का हथियार बन गया है अथवा “कोर्ट कचहरी न्याय के वह देवता है जो समय और सपनों की बलि मांगते हैं”. हमारी शासन प्रणाली और न्याय प्रणाली दोनों पर चोट करते हैं.
ये भी पढ़ें- अनुपमा: वनराज को घर में देख भड़की किंजल, किया घर छोड़ने का ऐलान
अभिनय:
भरत लाल के किरदार में अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने लाल बिहारी को भी जीवंतता प्रदान की है. पंकज त्रिपाठी ने जिस अंदाज में इस किरदार को अपने अभिनय से संवारा है, वह बिरले कलाकार ही कर सकते हैं. इस फिल्म के माध्यम से पंकज त्रिपाठी ने साबित कर दिखाया कि वह किसी भी फिल्म को अपने बलबूते पर सफलता के पायदान पर ले जा सकते हैं. इस फिल्म की सबसे बड़ी सशक्त कड़ी हैं पंकज त्रिपाठी. पंकज त्रिपाठी 2020 में ओटीटी प्लेटफॉर्म के सर्वाधिक सफल व चमकते सितारे थे, 2021 में कागज से उन्होंने शानदार शुरुआत की है. भरत लाल की पत्नी रुक्मणी के किरदार में मोनल गुज्जर सुंदर दिखने के अलावा अपनी मुस्कान से लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं.मीता वशिष्ठ के हिस्से करने के लिए खास कुछ आया ही नहीं. अमर उपाध्याय कहीं से भी प्रभावित नहीं करते हैं, वैसे उनकी भूमिका भी काफी छोटी है.
स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. जहां नायरा-कार्तिक की जोड़ी फैंस के दिलों में राज करत है. लेकिन हाल ही में खबरे हैं कि शो के मेकर्स और नायरा के रोल में नजर आने वाली शिवांगी जोशी के बीच कुछ ठीक नही है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…
शिवांगी के रोल पर है सवाल
सीरियल के करेंट ट्रैक की बात करें तो हाल ही में नायरा के किरदार की मौत हुई थी, जिसके बाद शिवांगी के फैंस काफी नाराज है. दरअसल, शिवांगी जोशी और मोहसिन खान के रोमांस को हर कोई पसंद करता है. इसीलिए शो में दोनों की जोड़ी के बिना फैंस काफी दुखी हैं. इसी कारण दर्शक सोशल मीडिया पर लगातार राजन शाही से शिवांगी जोशी के किरदार (नायरा) को इस तरह से खत्म ना करने की गुजारिश कर रहे हैं.
View this post on Instagram
राजन शाही और शिवांगी के बीच नही हो रही बात
View this post on Instagram
ताजा रिपोर्ट्स की मानें तो शिवांगी जोशी और राजन शाही के बीच कुछ भी सही नहीं चल रहा है. दरअसल, खबरों में दावा किया जा रहा है कि शिवांगी जोशी और राजन शाही के बीच इस समय बातचीत भी नहीं हो रही है. हालांकि शिवांगी जोशी के किरदार को शो में ना मारने की बात की जा रही है. और कहा जा रहा है कि शिवांगी जोशी का किरदार वापस नए रोल में नजर आएगा. पर अभी कोई औफिशयल अनाउंसमेंट नही की गई है.
नए ट्रैक के बारे में राजन शाही ने कही ये बात
View this post on Instagram
हाल ही में एक इंटरव्यू में राजन शाही ने कहा है है कि साल 2020 उनके लिए काफी अलग रहा है. जहां उनका सीरियल ‘अनुपमा’ टीआरपी लिस्ट में धमाल मचा रहा है, वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में भी काफी अलग-अलग ट्विस्ट देखने को मिले हैं. लेकिन हिना खान के एग्जिट के बाद इस सीरियल में पहली बार कोई ऐसा बड़ा ट्विस्ट आने वाला है.
View this post on Instagram
बता दें, ये रिश्ता क्या कहलाता है कि टीआरपी इन दिनों कम हो रही है, जिस कारण शो के मेकर्स कहानी में नए ट्विस्ट लाए जा रहे हैं. हालांकि नायरा और कार्तिक के फैंस शो के नए ट्विस्ट को लेकर काफी एक्साइटेड हैं.
TRP चार्ट्स में कई हफ्तों से पहले नंबर पर चल रहा स्टार प्लस का ‘अनुपमा’ (Anupama) फैंस को काफी एंटरटेन कर रहा है. इसीलिए मेकर्स भी शो में नए-नए ट्विस्ट लाकर फैंस को खुश कर रहे हैं. वहीं मेकर्स ने सीरियल में वनराज को उसकी गलतियों का एहसास कराने का फैसला लिया है. इसीलिए एक्सीडेंट के बाद अब वनराज शाह निवास में वापस आ गया है.
घर पहुंचा वनराज
मौत के मुंह से वापस लौटे वनराज ने अब काव्या को छोड़कर शाह निवास यानी अपने परिवार के पास जाने का फैसला किया है. हालांकि डॉक्टर साफतौर पर कहा है कि वनराज को सख्त देखभाल की जरूरत है क्योंकि उनका दायां हाथ काम नहीं कर रहा है, जिसके चलते अगर उनका पूरा ख्याल नही किया गया तो वह पैरालाइज्ड भी हो सकता है.
View this post on Instagram
ये भी पढ़ें- Serious सीन के बीच मस्ती करते नजर आए अनुपमा और वनराज, Video Viral
काव्या करती वनराज को फोन
View this post on Instagram
अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या, वनराज से उसकी तबीयत के बारे में पूछने के लिए कॉल करती है. लेकिन वनराज उसकी बातों से बहुत गुस्से में है. इसीलिए वह वनराज को खरी खोटी सुनाकर कॉल काट देता है. हालांकि वनराज को उसकी गलती का एहसास हो रहा है, जिसके कारण वह अनुपमा की तरफ काफी दुखी नजर आ रहा है.
किंजल लेगी ये फैसला
View this post on Instagram
जहां बेटे के घर लौटन से बा बेहद खुश है और वहीं वह अनुपमा से वनराज के पूरी तरह ठीक होने तक डांस क्लास छोड़ने की बात कहती है. हालांकि वह वनराज की देखभाल करने के लिए हां तो कहती है. लेकिन डांस क्लास नहीं छोड़ने का फैसला करती है क्योंकि अभी पैसों की जरूरत है. दूसरी तरफ अपकमिंग एपिसोड में किंजल, अनुपमा की परेशानी को देखते हुए वनराज के घर में आने को लेकर भड़क जाएगी और कहेगी या तो वनराज शाह निवास में रहेगा या फिर वह. हालांकि अनुपमा उसे समझाने की कोशिश करेगी. लेकिन अब जानना होगा कि क्या फैसला लेगी किंजल.
ये भी पढे़ं- प्रैग्नेंसी फोटोशूट को लेकर ट्रोल हुई अनुष्का शर्मा, ट्रोलर्स ने पूछे ये सवाल
सवाल-
मैं अपनी सगाई में अपने नेल्स सुंदर और बड़े रखना चाहती हूं जबकि मेरे नेल्स बेहद छोटे हैं. मुझे बताइए कि मैं अपने नेल्स को खूबसूरत बनाने के लिए क्या करूं?
जवाब-
यदि नाखून छोटे हैं तो पहले नेल ऐक्सटैंशन करवा लें. ये कुछ ही घंटों में नाखूनों को बढ़ाने की प्रक्रिया है. ये उन सभी लोगों के लिए वरदान है जिन के नाखून बढ़ते नहीं या फिर जल्दीजल्दी टूट जाते हैं. इस तकनीक के तहत टूटे हुए नाखूनों को फिर नैचुरल शेप में लाया जा सकता है.
यदि आप के नाखून छोटे हैं तो नेल ऐक्सटैंशन करवा कर आप जितनी मरजी चाहे उतनी लंबाई पा सकती हैं. नेल ऐक्सटैंशन किए गए नाखून दिखने में और काम करने में बिलकुल नैचुरल नाखून की ही तरह नजर आते हैं. इन नाखूनों को एक्रिलिक पाउडर और कुछ तरल पदार्थों से बनाया जाता है. इस से आप के नेल्स को मनचाहा आकार व लंबाई मिल जाती है.
नेल ऐक्सटैंशन किए गए नाखून लगभग 1 महीने यानी आप के हनीमून तक अपनी शेप में बरकरार रहते हैं. इस के साथ आप सेमीपरमानैंट नेलआर्ट तकनीक से नाखूनों को विभिन्न रंगों और सामग्रियों से बेहद कलात्मक रूप से सजा सकती हैं. आप इसे भी आजमा कर देखिए, आप के नाखून लगभग 3 महीनों तक आकर्षक और मनभावन बने रहेंगे.
ये भी पढ़ें
सुंदर नाखून आपकी सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करते हैं. सुंदर नाखूनों के लिए आप अपने नाखून पर आर्ट बना सकती हैं. आप चाहें तो अपने नाखूनों को रंग, मौसम, थीम, मूड किसी के भी अनुसार, सजा सकती हैं. नाखूनों को आप हल्के या गहरे रंगों में रंग सकती हैं. अगर आप थोड़ी सी क्रिएटिव हैं तो नाखूनों पर ग्राफिक प्रिंट डिजायन भी बना सकती हैं. इसके लिए आपको कुछ सामानों जैसे – सेलो टेप, ट्रांसपेरेंट नेल एनमेल और नेल कलर की आवश्यकता होती है. इस आर्टिकल में हम आपको नेल आर्ट और उसकी केयर करने से संबंधित जानकारी दे रहे हैं.
पूरी खबर पढ़ने के लिए- जब सजाना हो नाखूनों को नेल आर्ट से
तलाक का दर्द किसी को भी तोड़ सकता है भले ही वह साधारण मध्यमवर्गीय इंसान हो या सुपरस्टार. हाल ही में सैफ अली खान ने भी अपने तलाक का दर्द बयां किया था. 2004 में तलाक के बाद वे डिप्रेशन का शिकार हो गए थे. पत्नी अमृता ने सालों तक उन्हें बच्चों से दूर रखा था. बकौल सैफ तलाक दुनिया की सब से बुरी चीज़ है. तलाक हर लिहाज से बुरा होता है. खास कर तब जब आप की फैमिली में बच्चे हों. सैफ के मुताबिक कुछ चीजें कभी ठीक नहीं हो सकतीं हैं. तलाक और उस के बाद का समय उन के जीवन का काफी बुरा दौर था. उस दौरान वे मानसिक रूप से बहुत परेशान रहे थे .
इसी तरह कुछ समय पहले बिग बॉस 13 की कंटेस्टेंट रही रश्मि देसाई जो टीवी इंडस्ट्री का बड़ा नाम हैं ने भी तलाक के दर्द को बयां किया था. उन्होंने स्वीकारा कि पति नंदीश संधू के साथ तलाक के दौरान वह डिप्रेशन का शिकार हो गईं थीं. बकौल रश्मि वह समय उन के लिए बहुत तनावपूर्ण था. वह तलाक के लिए तैयार नहीं थी और अपने रिश्ते को बचाने की लाख कोशिशें भी की लेकिन नाकामयाब रहीं. परिस्थितियां और खराब होने लगीं और आखिरकार दोनों को रिश्ता खत्म करना पड़ा. ऐसी भी खबरें थीं कि नंदीश ने रश्मि देसाई संग मारपीट की थी. रश्मि और नंदीश को अलग हुए चार साल से ज्यादा समय हो चुका है.
भदौड़ (बरनाला) में रहने वाली नवदीप कौर की ससुराल में किसी बात को ले कर पति से लड़ाई हो गई थी. इस के बाद वह मायके आ गई और पुलिस को शिकायत की. बाद में पंचायत में समझौता हो गया. समझौते के अनुसार दो दिन बाद नवदीप को लेने उस के पति को आना था. लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी वह नहीं आया बल्कि उस ने तलाक का नोटिस भेज दिया. इस से नवदीप गहरे डिप्रेशन में आ गई और कई दिनों तक बेहोश रही. उस का इलाज चलता रहा और इलाज के दौरान ही उस ने दम तोड़ दिया. पुलिस ने ससुराल पक्ष के 5 लोगों पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का केस दर्ज किया.
हरियाणा के अंबाला जिले में कर्ज में डूबने और पत्नी से तलाक होने पर 35 वर्षीय मनीष डिप्रेशन में आ गया. वह काफी परेशान रहने लगा और अंत में एक दिन घर की छत पर बने कमरे में पंखे से लटक कर उस ने अपनी जान दे दी.
ये भी पढ़ें- नई कार कैसे सहें ईर्ष्या का वार
दरअसल तलाक इंसान को अंदर से तोड़ देता है. वह परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता खो बैठता है. खुद को बहुत अकेला और असहाय महसूस करने लगता है. ऐसे में कुछ लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं तो कुछ खुद को दूसरों से काटने लगते हैं. वे घंटो अकेले बैठ कर यह सोचते रहते हैं कि उन के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. जब जवाब नहीं मिलता तो वे इन सब का जिम्मेदार खुद को मानने लगते हैं. ऐसे में जिन लोगों को परिवार और दोस्तों का सपोर्ट मिलता है वे इस तकलीफ़ से उबर जाते हैं पर कुछ लोग अकेले पड़ जाते हैं और इस दर्द को सह नहीं पाते.
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है तलाक
तलाक से गुजरना बेहद चुनौतीपूर्ण है और अब एक नए अध्ययन से भी पता चलता है कि यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों का हाल ही में तलाक हुआ है वे अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं.
अध्ययन के लिए तलाक लेने वाले 1,856 लोगों से उन की पृष्ठभूमि, स्वास्थ्य और तलाक से संबंधित तरहतरह के सवाल पूछे गए. इस अध्ययन से पता चला कि हाल में हुआ तलाक व्यक्ति के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है और यह प्रभाव नकारात्मक होता है.
दरअसल तलाक एक लंबी प्रक्रिया है. कई देशों में यह प्रावधान भी है कि तलाक के लिए आवेदन करने से पहले पतिपत्नी को कुछ समय दिया जाता है ताकि हमेशा के लिए अलग होने से पहले वे अपने फैसले पर पुनर्विचार कर लें. इस की अवधि विभिन्न देशों में अलगअलग है. तलाक न केवल दो रिश्तों को तोड़ता है बल्कि तलाक लेने की प्रक्रिया के दौरान एकदूसरे पर जिस तरह आरोपों का दौर चलता है वह दो दिलों को भी तोड़ देता है. आप जिस जीवनसाथी को कभी दिल से चाहते थे वही जब रिश्ता खराब होने पर तलाक के समय आप पर कीचड़ उछाले या प्यार को शर्मिंदा करे तो इंसान अंदर से बुरी तरह टूट जाता है. तलाक के बाद इंसान के दिल और दिमाग की हालत कुछ ऐसी हो जाती है—-
अविश्वास – किसी के साथ रिश्ता टूटने का असर दिल के साथ दिमाग पर भी पड़ता है. व्यक्ति का जब अपने जीवनसाथी पर से विश्वास टूटता है तो फिर दोबारा किसी पर आसानी से विश्वास जम नहीं पाता. इंसान सब को संदेह की नजरों से देखने लगता है. उस का सामाजिक दायरा भी घटने लगता है. वह अपने चारों तरफ एक अनजान लकीर खींच लेता है.
आत्मसम्मान पर चोट – जब आप को प्यार और समर्पण के बदले अपमान और परायापन मिले, जिन की ख़ुशी के लिए अपनी परवाह नहीं की उन्ही के द्वारा जब आप के ऊपर तरहतरह के इल्जाम लगाए जाएं, कोर्ट कचहरी में आप के रिश्ते और प्यार का मजाक बनाया जाए, लांछन लगाए जाएं तो आप के आत्मसम्मान के परखच्चे उड़ जाते हैं. आप दिमागी तौर पर काफी टूट जाते हैं. वापस नार्मल होने में काफी समय लगता है. आप के अंदर नकारात्मकता आ जाती है.
धोखा खाने का अहसास – कई बार तलाक की वजह जीवनसाथी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर भी होता है. जीवनसाथी द्वारा धोखा दिया जाना इंसान के दिल में गहरा दर्द पैदा करता है. किसी और से शादी की इच्छा में इंसान अपने वर्तमान जीवनसाथी के फीलिंग्स की कद्र भी नहीं करता. ऐसे में तलाक के बाद भी धोखा दिए जाने का दर्द दिल से नहीं जाता और यह दर्द डिप्रेशन की वजह भी बन जाता है.
अपने प्यार का अपमान – जब आप अपने रिश्ते को 100 प्रतिशत देते हैं मगर बदले में आप को धोखा और अपमान मिलता है तो इंसान अंदर से टूट जाता है और यह टूटन हजारों बीमारियों की वजह बनता है. स्वस्थ रहने के लिए मन में एक उत्साह और प्यार का होना जरुरी है. मगर जब प्यार ही न बचे तो शरीर पर सीधा असर पड़ता ही है.
मानसिक संताप – दिल का गम इंसान को गहरा मानसिक संताप देता है. शादी सफल रहे तो इंसान हर तकलीफ हंसतेहंसते झेल लेता है मगर जब घर ही टूट जाए तो कोई खुद को खुश कैसे रख सकता है. इंसान को रहरह कर पुराने दिन याद आते हैं. वह तलाक की वजह समझने के लिए बारबार जिंदगी के तकलीफ भरे पन्नो को पलटता है जिस से मन का संताप गहरा होता जाता है. तलाक वैसे भी एक लंबी प्रक्रिया है और इस से संताप भी लंबे समय तक इंसान को घेरे रहता है और व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार होने लगता है.
अकेलापन – जीवनसाथी यानी जीवन भर का साथी. मगर जब यही साथ बीच में छूट जाए तो दिल में अकेलेपन का घाव पैदा होता है. जीवन में लोग तो बहुत होते हैं मगर सब की अपनी दुनिया होती है, अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. शादी के बाद असली साथ जीवनसाथी का ही होता है और यह साथ छूट जाए तो अकेलेपन का दर्द इंसान की सेहत पर सीधा असर डालता है.
नकारात्मक सोच – तलाक के दौरान और उस के बाद न चाहते हुए भी इंसान के मन में नकारात्मकता भर जाती है. वह खुद को अजीब स्थिति में पाता है और इस की वजह उस का जीवनसाथी होता है. वह जीवनसाथी और तलाक की वजह बने लोगों के प्रति घृणा की भावना से भर उठता है. एक क्रोध और एक नफरत की आग इंसान को अंदर से जलाने लगती है और दिनोंदिन उस का स्वास्थ्य गिरने लगता है.
बच्चों पर असर
माता पिता के बीच हुए अलगाव का असर सब से ज्यादा उन के बच्चों पर ही होता है और कई बार यह प्रभाव बड़ा विध्वंसक होता है. छोटे बच्चों में मातापिता के प्रति खीज, गुस्सा और शक आने लगता है. छोटे बच्चों में भी एक डर समा जाता है. वे अपनी मां से चिपके रहना चाहते हैं. पीछेपीछे लगे रहना, चिपक कर सोना जैसी हरकतें करने लगते हैं जो पहले नहीं करते थे.
एक शोध में पाया गया है कि अपेक्षाकृत छोटे बच्चों की शिक्षा और उन की मानसिक स्थिति पर इस का अधिक असर पड़ता है. कनाडा के अल्बर्टा और मानितोबा विश्वविद्यालय की ओर से किए गए शोध में चेतावनी दी गई है कि दंपतियों को तलाक का निर्णय लेते समय अपने बच्चों की शिक्षा और उन के जीवन पर प्रभाव के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.
ये भी पढ़ें- जब प्रेमी हो बेहद खर्चीला
स्वास्थ्य पर भी बुरा असर
तलाक का असर आप के बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है. द प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस नाम की एक स्टडी के अनुसार शारीरिक स्वास्थ्य का बुरा असर बच्चों की युवावस्था पर भी पड़ सकता है. रिपोर्ट के अनुसार परिवार में अगर शुरुआत में झगड़े हो तो बच्चों के इम्यून सिस्टम पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.
कई बार रिश्ते में कड़वाहट और तलाक की नौबत आने के बावजूद महिलाएं तलाक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं और तलाक के बाद सहज नहीं रह पातीं क्योंकि हमारे देश में लड़की अगर तलाक ले ले तो इसे जीवन की बड़ी असफलता समझा जाता है. समाज तलाकशुदा होने के बाद महिला को शादीशुदा होने जितना सम्मान नहीं दे पाता. तलाक के बाद महिला मातापिता पर बोझ समझी जाती है. डिवोर्सी का टैग उस के नाम से जुड़ जाता है और तलाक के बाद दुख-परेशानियां खत्म हो जाएं ऐसा भी नहीं है. यही वजह है कि समाज के तानों से बचने के लिए महिलाएं अक्सर शादी में खुश न हो तो भी उसे निभाती जाती हैं और यदि मजबूरी में तलाक लेना ही पड़ा तो यह सोच कर मानसिक रूप से परेशान रहती हैं कि अब ज़माना क्या कहेगा.
रिश्तों में घुटन हो तो बेहतर है अलग हो जाना
समाज की सोच कर खुद को तकलीफ में रखना उचित नहीं. यदि किसी महिला को शादीशुदा जिंदगी में रोज अपमानित किया जा रहा हो, दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जा रहा हो, घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा हो या पति बेवफाई कर रहा हो तो सब सहने के बजाय अच्छा है अलग हो जाना.
जरूरी है कि ऐसे में महिलाएं घुटघुट कर जीने के बजाए अपने जीवन के लिए कठोर फैसला लें. तलाक के बाद भी इस का जिम्मेदार खुद को नहीं समझें. तलाक का फैसला एक बहुत बड़ा फैसला होता है लेकिन उसे यह सोच कर स्वीकार करना चाहिए कि खराब रिश्ते में घुटने से अच्छा रिश्ता तोड़ कर खुली हवा में सांस लेना है.
तलाक लेने के बाद कुछ लोग डिप्रेशन में आ जाते हैं तो कुछ खुद को संभाल नहीं पाते. ऐसे में कोई और आप की मदद नहीं कर सकता. आप को खुद को मजबूत बनाना होगा और जीवन में आगे बढ़ने के नए रास्ते तलाशने होंगे कुछ इस तरह,
तलाक से लें ये सबक
1. अपने तलाक से आप सब से बड़ी सीख यह ले सकते हैं कि किसी एक इंसान के आप के जीवन में नहीं होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती.
2. जिंदगी में हमेशा अपना एक सर्कल बना कर रखना चाहिए जिस में सिर्फ ऐसे लोग हों जिन से बात कर के और जिन के साथ रह कर खुशी मिले. जिन का साथ सुख में भी हो और दुख में भी.
3. तलाक के बाद यह सबक लीजिए कि जिस रिश्ते से तकलीफ मिले उस से जुड़ी सारी यादों को मिटा देना चाहिए. अपने पार्टनर से जुड़ी हर याद जैसे शादी की फोटोग्राफ्स, वीडियो मेमोरी, डिजीटल मेमोरी, गिफ्ट्स आदि सबकुछ नष्ट कर दें.
4 . खुद को कोसना छोड़ दें. अपनी गलती मान लेना अच्छी बात है लेकिन दूसरे की गलती को नजरअंदाज कर के खुद को दोषी मानना गलत है. जो हुआ उसे स्वीकार करें और आगे बढ़ जाएं.
5 . खुद को हमेशा प्राथमिकता दें. अपने लिए हमेशा समय होना चाहिए. शादी के बाद लड़कियां खुद को बिल्कुल ही भूल जाते हैं पर यह गलत है. क्योंकि इस से आप का ही नुकसान होता है.
6 . तलाक के बाद भी खुश रहना नहीं छोड़ें. खुश रहना आप का हक है जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता.
7 . चीजों और परिस्थितियों से भागना छोड़ दें. परिस्थितियों से भाग कर हम सिर्फ और सिर्फ अपना ही नुकसान करते हैं.
8 . सब से खास बात यह है कि तलाक को प्रतिष्ठा से जोड़ कर न देखें. खुद को छोड़ा हुआ मान कर हीनभावना कतई न पालें.
लाइफ को फिर से पटरी पर लाएं
करियर पर फोकस करें
अगर आप तलाक से पहले पूरी तरह अपने पार्टनर पर निर्भर थे तो अब समझ लें की आप के आत्मनिर्भर बनने का समय आ गया है. सब से पहले अपने करियर पर फोकस करें ताकि अपने खर्चे और अपनी जिम्मेदारियां खुद उठा सकें. आप के पास यह बेहतरीन मौका है खुद से कुछ करने का जो आप को पसंद हो.
ये भी पढ़ें- ब्रेकअप से उबरने के 5 उपाय
अपनों को पहचानें
जब बुरा वक्त आता ही तभी असली दोस्तों और अपनों की पहचान होती है. ऐसे समय में जब आप अकेले हैं और आप को इमोशनल सपॉर्ट की जरूरत है तो उन लोगों के साथ समय बिताएं जो सच में आप का भला चाहते हैं. इन के साथ बात कर आप को नए रास्ते दिखेंगे, आप का मनोबल बढ़ेगा और कठिन समय को पार कर आगे निकल जाने का हौसला मिलेगा.
बच्चों का रखें ध्यान
अगर आप के बच्चे हैं और तलाक के बाद वे आपके साथ रह रहे हैं तो जाहिर सी बात है अब आप को अकेले ही उन का ध्यान रखना है. इस का मतलब है कि आप की जिम्मेदारी अब और बढ़ जाएगी लेकिन इस वजह से परेशान और स्ट्रेस्ड होने की जरूरत नहीं. इस चैलेंज को स्वीकार करें और अच्छी तरह से निभाएं तभी आप के बच्चे आप को रोल मॉडल के तौर पर देखेंगे.
गुजरे कल को भूल जाएं और आज के लिए प्लान बनाएं.
अक्सर तलाक के बाद लोग मुड़ मुड़ कर अपना अतीत देखते हैं. पुरानी बातें याद करते हैं और दुखी होते हैं. उन लम्हों की यादों में गुम रहते हैं जब पार्टनर आप के बहुत करीब था या फिर वे लम्हे जब उस ने आप का दिल तोड़ा , बेइज्जती की. इन सब बातों से कुछ हासिल नहीं होता सिवा इस के कि आप कमजोर पड़ते हैं. कुछ लोग तो अपने एक्स पार्टनर का सोशल मीडिया पर या कहीं बाहर पीछा भी करते हैं. ऐसा कदापि न करें. बीते कल को भूल कर आज और आने वाले कल की प्लानिंग करें और खुद को मशगूल रखें. खाली न बैठें.
जीवन को फिर से मौका दें
कभीकभी जिंदगी आप को दूसरा मौका देती है. उस मौके को चूकें नहीं बल्कि हाथ बढ़ा कर अपना बना लें. तलाकशुदा होने का मतलब यह नहीं कि आप को अब हमेशा अकेला ही रहना होगा. यदि कोई शख्स आप की जिंदगी में आता है जिस के साथ आप फिर से हंसनेखिलखिलाने लगती हैं तो उसे हमेशा के लिए अपना बनाने की बात पर विचार जरूर करें.
क्या आप अपने घर में सुस्ती और थकान के बजाय ख़ुशी और सकारात्मता महसूस करना चाहते हैं? क्या हमारी रोज़मर्रा की लाइफ में लाइट महत्वपूर्ण है ? क्या हमें अपने घर में उचित लाइट अरैंजमेंट करना चाहिए, अगर है तो क्यों? आइए जानते हैं इस सम्बंध में सीईओ एंड फॉउन्डिंग पार्टनर, लाइट डौक्टर प्राची लौड से.
अक्सर शाम को अपने घरों में लाइट जलाते समय या अन्य घरों में चकाचौंध रोशनी को देखकर ये प्रश्न हम में से किसी न किसी के मन में आते ही हैं. उसी तरह घर के किसी कोने में जब आप भरपूर्ण सकारात्मता ऊर्जा अनुभव करते हैं तो आपका मूड अच्छा और आप खुद को रीफ्रेश भी महसूस करते हैं. तब मन में ये प्रश्न आना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों होता है. जब आप समझ नहीं पाते तब आप इस अनुभव को ‘सकारात्मक ऊर्जा’ से जोड़ देते हैं. लेकिन अब जब अगली बार आप ऐसा अनुभव करें तो कमरों की रोशनी के प्रकार का निरीक्षण जरूर करें.
हमारे स्वास्थ्य पर अच्छे और बुरे प्रकाश का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव
हम सभी जानते हैं कि अपर्याप्त लाइट में देखने की कोशिश करने का मतलब है, आँखों पर तनाव डालना और वहीं लाइट की अधिकता आँखों को नुकसान पहुंचाकर दृश्टिहीन कर सकती है. दोनों ही स्तिथियां हमारी दृश्टि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं और यदि इस तरह का दोषपूर्ण लाइट अरैंजमेंट डिजाइन , घरों में लम्बे समय तक बना रहता है, तो यह हमारी हैल्थ के लिए कभी न भरपाई करने वाला कारण बन सकता है. और यही कारण है कि हमारे घर व वर्क एरिया में सही लाइट की आवश्यकता होती है.
ये भी पढ़ें- घर को सजाने के लिए सही सोफा चुनना है जरूरी
एक घर में लाइट की कितनी आवश्यकता
लाइट की मात्रा को lux (लैक्स ) में मापा जाता है और एक घर में प्रत्येक कमरे में विशिट लैक्स स्तरों की आवश्यकता होती है. दिन या रात में विभिन समय सीमा में हम अपने घर पर जो कार्य करते हैं , उसके आधार पर विशिट कोने या क्षेत्र में सही मात्रा में लाइट अरैंजमेंट करने की आवश्यकता होती है.
क्या है लाइट अरैंजमेंट
जब हम लाइट अरैंजमेंट के बारे में बात करते हैं तो लाइट अरैंजमेंट के विभिन पहलू हमारे सामने होते हैं. जैसे लोग ज्यादा चकाचौंध करने को ही लाइट अरैंजमेंट मान बैठते हैं. जबकि हर समय इससे सही रिजल्ट मिले ऐसा जरूरी नहीं. बल्कि हम अक्सर महसूस ही नहीं करते हैं या अपने आसपास की गई लाइट अरैंजमेंट को पर्याप्त महत्व भी नहीं देते हैं लेकिन यकीन मानिये कि यह हमारी मनोदशा , स्वास्थय , दृश्टि और हमारे सामान्य जीवन पर जबरदस्त प्रभाव डालता है.
सही प्रकार का लाइट अरैंजमेंट डिजाइन यह सुनिश्चित करता है कि आप जिस कार्य को करना चाहते हैं , उसे करने के लिए आप हर समय प्राप्त लाइट अरैंजमेंट पा सकें.
लाइट अरैंजमेंट डिजाइन करना
घर के लिए लाइट अरैंजमेंट डिजाइन करना एक कला है. लाइट अरैंजमेंट डिजाइन सिर्फ घर के हर कोने में लाइट जोड़ने से संबंधित नहीं है, बल्कि यह शैडो और लाइट का एक खेल है. घर की लाइटिंग करने के लिए लाइटिंग की लेयरिंग सबसे कारगर होता है.
पहली परत एम्बिएंट लाइट कहलाती है, जिसे सामान्य या आसपास बिखेरने वाली लाइट भी कहा जाता है, इसे डाउनलाइट्स, लीनियर लाइट्स और कोव लाइट्स लगाकर हासिल किया जा सकता है. खाना पकाने , सफाई जैसे हमारे प्रतिदिन के कार्यों में सामान्य विसरित प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता होती है. यह हमें टेबल टॉप, दीवारों , छत और फर्श जैसी सतहों पर भी बिखेर कर रोशनी देने में मदद करता है.
दूसरी परत xcent लाइट की होती है. इसका उपयोग कलाकृति, दीवार की विशेष बनावट जैसी विशित विशेषता को उजागर करने के लिए किया जाता है.
टास्क लाइटिंग अधिक फोकस्ड अरैंजमेंट है, जो पढ़ना , लिखना और अन्य तरीकों को आसान बनती है. हममें से बहुत से लोगो को पसंदीदा जगहों पर पढ़ने या लिखने की आदत होती है. व्यसकों के लिए ये एक स्टडी कार्नर या बिस्तर हो सकते है, क्योंकि कुछ लोग सोने से पहले पढ़ना पसंद करते हैं. बच्चों के लिए यह उनका स्टडी डेस्क हो सकता है. हमारी स्वस्थ दृश्टि के लिए सही प्रकार की और सही मात्रा में लाइट अरैंजमेंट की आवश्यकता होती है. पढ़ने या लिखने के दौरान अपनी आँखों को तनाव से बचाने के लिए व्यक्ति को glare फ्री लाइटिंग अरैंजमेंट का उपयोग करना चाहिए.
वार्मर कलर्स और कूलर कलर्स का संयोजन
हमारे घर में वार्मर कलर्स और कूलर कलर्स की लाइटिंग का संयोजन होना चाहिए. हममें से ज्यादातर लोग पारम्परिक फ्लोरोसेंट tube लाइट की वजह से अपने घरों में कूलर कलर लाइटिंग fickchers देखने के आदि हैं. उन्हें लगता है कि यह उनके घरों के लिए पसंदीदा लाइटिंग कलर है. हर किसी की अपनी पसंद होती है. लेकिन सबसे अच्छा तरीका यह है कि वार्मर और कूलर कलर्स लाइटिंग fickchers दोनों का सही मिश्रण हो.
ये भी पढ़ें- किचन से लेकर बेडरूम तक, नई दुल्हन के लिए ऐसे सजाएं घर
हम अपने लिविंग रूम और बैडरूम में वार्मर कलर टोन डेकोरेटिव लाइटिंग फीचर्स लगाकर एक शांत वातावरण बना सकते है. रसोई जैसे उन्मुख जगहों के लिए कूलर रंगीन प्रकाश व्यवस्था पसंद की जाती है. बाथरूम में हमें मिक्स कलर टोन रखना चाहिए, बिस्तर पर लेटने से पहले कूलर कलर की लाइटिंग स्विच ओन करने से बचना चाहिए.
विभिन अध्ययनों के अनुसार कूलर कलर लाइटिंग हमारे मस्तिक में मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को दबाने में मदद करता है, जो हमें अधिक सक्रिय बनाता है , जो कि हमारे काम के दौरान पसंद किया जा सकता है लेकिन बिस्तर पर जाते समय अच्छा नहीं हो सकता.
इस तरह बड़े परिपेक्ष्य में देखा जाए तो अच्छी लाइटिंग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अच्छे स्वास्थय को बनाए रखने में हमारी मदद करती है.