Sexual Guilt : कहीं आप भी सैक्स गिल्ट की शिकार तो नहीं? जानें इसके कारण

Sexual Guilt : पतिपत्नी के बीच यौन संबंधों के दौरान चिंता, अपराधबोध, शर्म या संकोच को सैक्स गिल्ट या यौन शर्म कहा जाता है. विकासशील देशों में यौन कुंठा एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है.

मनोचिकित्सक स्वाति के अनुसार इन दिनों उनके मानसिक रोगियों में 70% सैक्स गिल्ट के शिकार हैं. सैक्स गिल्ट के शिकार 90% मरीज महिलाएं हैं. भारत में 18 से 40 वर्ष की हर 1000 औरत में 1 औरत यौन कुंठा का शिकार है. यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं तथा युवाओं के लिए चिंता करने की आवश्यकता है.

सैक्स गिल्ट एक जीवनशैली से संबंधित मनोविकार है. जब देश धीरेधीरे तरक्की करता है तो लोगों को उपभोग में अन्य वस्तुओं की तरह सैक्स संबंधित मनोरंजन भी बढ़ जाता है. सैक्स का अधिक उपयोग कुछ युवाओं को यौनकुंठा का शिकार बना देता है.

डा. स्वाति बताती हैं कि यौन कुंठा के शिकार उन के अधिकांश मरीजों को पता ही नहीं होता कि वे यौन कुंठा के शिकार हैं. जब वे बहुत उम्र तक शादी या सैक्स के लिए तैयार नहीं होते या पुरुष को संतुष्ट न करने के कारण उन के तलाक की नौबत आ जाती है तब फैमिली काउंसलर या मनोचिकित्सकों द्वारा उन्हें उन की बीमारी बताई जाती है.

ऐसे में निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए-

क्या आप को अपने परिवार की महिलाओं के सामने कपड़े बदलने में शर्म महसूस होती है?

पति के साथ सैक्स करने के लिए अंधेरे कमरे की आवश्यकता होती है?

पति के जिद्द करने पर ही सैक्स के लिए तैयार होती हैं?

पति के साथ सैक्स से संबंधित वार्तालाप पसंद नहीं है?

पुरुषों के बीच असहज महसूस करती हैं?

किट्टी पार्टी में महिलाओं द्वारा अपने बेडरूम की कहानियां शेयर करना पसंद नहीं हैं?

अपनी बहनों या भाभियों से सैक्स रिलेटेड मुद्दों पर बातें करना पसंद नहीं है?

क्या आप को शादी करने में डर लगता है?

क्या आप पति को बिस्तर पर खुश नहीं रख पाती हैं?

क्या आप सैक्स करते समय दिन, समय या नैतिकअनैतिक का विचार करती हैं?

क्या सैक्स के पश्चात पति से बात करना पसंद नहीं है?

क्या पति की अपेक्षा हस्तमैथुन में सहज हैं?

क्या आप चोरीछिपे अत्यधिक पोर्न देखती हैं?

क्या आप के साथ बचपन में कोई यौन अपराध हुआ है?

क्या आप को अपनी शारीरिक बनावट अच्छी नहीं लगती?

यदि इन प्रश्नों में किन्हीं 3 प्रश्नों के उत्तर हां हैं तो आप भी यौन कुंठा की शिकार हो सकती हैं.

सैक्स गिल्ट के प्रकार

अव्यक्त कुंठा: इस में कुंठा की मात्रा कम होती है. व्यक्ति कुंठित तो है लेकिन उस ने सैक्स को पूरी तरह नहीं त्यागा है. वह सैक्स में शामिल होता है लेकिन पूरी तरह उस से आनंदित नहीं होता है. अव्यक्त कुंठा उस समय समस्या बन जाती है जब महिला अपने पुरुष साथी को संभोग के दौरान संपूर्ण संतुष्टि प्रदान नहीं करती. इस प्रकार की महिलाएं पति की सैक्स फेंटैसी का खुल कर विरोध करने के कारण विवाद का कारण बन जाती हैं.

प्रकट कुंठा: यह प्राय: गंभीर हादसे से गुजरे हुए वे लोग हैं जो सैक्स का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं. इन लोगों के लिए शारीरिक संबंध बनाना असंभव हो जाता है. जैसाकि इस के नाम से स्पष्ट है कि इन लोगों को अपनी सैक्स लाइफ को एडजस्ट करना लगभग असंभव हो जाता है.

सैक्स गिल्ट का कारण

सैक्स को धर्म तथा संस्कृति द्वारा नकारात्मक, प्रतिबंधित तथा अनैतिक बताने के कारण यौन कुंठा का जन्म होता है. 27 अप्रैल, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत की प्राचीन संस्कृति समावेशी थी, अनेक सैक्स कृत्यों को असामाजिक नहीं माना जाता था.

हमारे साहित्य में वात्स्यायन का कामसूत्र है तो उड़ीसा के कोणार्क और मध्य प्रदेश के खजुराहो के मंदिरों में देवीदेवताओं की नग्न मूर्तियां हमारी वैचारिक समृद्धि को बताती हैं. 325 ईस्वी में कैथोलिक चर्च ने अपने कायदेकानून बनाए जिन में शरीर को खराब वस्तु तथा शारीरिक सुख को फुजूल बताया गया. इसे विक्टोरियन नैतिकता कहते हैं जिस के प्रभाव में हम यौन स्वतंत्रता को असामाजिक मानने लगे हैं. इसी का परिणाम है यौन कुंठा.

यौन कुंठा महिलाओं में मुख्यत: हस्तमैथुन, समलैंगिकता, यौन अपराध, अत्यधिक धार्मिक विश्वास या शारीरिक अक्षमता के कारण जन्म लेती है. प्रकट कुंठा के अधिकतर मामलों में महिलाओं से उन की इच्छा के विपरीत शारीरिक संबंध बनाने के कारण उन में सैक्स गिल्ट पैदा होती है. विशेषज्ञों के अनुसार इन में से कोई भी कुंठा ऐसी नहीं है कि जिसे मैनेज नहीं किया जा सके.

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

मनोचिकित्सक डा. यशपाल के अनुसार, यौन कुंठा, मानवीय विकार है. जानवरों को कभी भी, कहीं भी, कैसे भी और किसी के साथ भी सैक्स करने की खुली छूट होती है. इस कारण उन्हें यौन कुंठा होने का प्रश्न ही नहीं उठता.

उच्च श्रेणी के स्तनपायी में भी सैक्स से संबंधित कोई रोक नहीं है. शेर, हाथी इत्यादि जानवरों में जनसंख्या वृद्धि के लिए खून के रिश्ते में भी सैक्स प्रतिबंधित नहीं है जबकि मानव जाति को जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उस ने जैविक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रजनन के लिए नियम बना रखे हैं.

कुछ देशों में सैक्स से संबंधित इतने उदार नियम हैं कि यौन कुंठा हो ही नहीं सकती है-

प्राचीन मिस्त्र के लोगों का विश्वास था कि नील नदी उन के देवता ऐटम के वीर्यपात से बनी है. इसी बात को आदर्श मानते हुए प्राचीन मिस्त्र निवासी नील नदी में जा कर हस्तमैथुन किया करते थे.

ऐसा ही एक नियम अमेरिका के गुआम में देखने को मिलता है. गुआम में पुरुषों का काम है कि वे पूरे देश में घूमें और कुंआरी युवतियों का कौमार्य भंग करते रहें. मजे कि बात तो यह है कि ये युवतियां उन्हें जीवन का पहला सैक्स अनुभव प्रदान करने के लिए धन भी देती हैं.

बोल्विया में सैक्स को ले कर अजीब कानून है कि यहां कोई पुरुष किसी महिला के साथ उस की बेटी से भी सैक्स कर सकता है.

दक्षिणी प्रशांत महासागर के मंगाई द्वीप में बूढ़ी औरतें 13 साल के युवकों के साथ सैक्स करती हैं ताकि उन्हें समझाया जा सके कि अपने पार्टनर को किस तरह खुश रखना है.

कोलंबिया में महिला को पहली बार अपने पति के साथ सैक्स करते समय गवाह के तौर पर अपनी मां को सामने खड़े रख कर प्रत्यक्षदर्शी बनाना पड़ता है.

लेबनान देश में आप जानवरों से सैक्स कर तो कर सकते हैं लेकिन उस का मादा होना आवश्यक है. अगर जानवर मादा नहीं है तो आप को मौत की सजा मिलती है.

इस के विपरीत कुछ समुदायों में ऐसे नियम हैं कि अपनी पत्नी के सामने निर्वस्त्र होने को भी कदाचार ठहरा दिया जाता है. जैसे- वर्जीनिया और बुडापोस्ट में अगर किसी ने सैक्स के दौरान कमरे की लाइट को जलाया तो वह एक अपराध के तौर पर माना जाता है और ऐसे में सैक्स करने वाले जोड़े के खिलाफ कानूनी काररवाई की जाती है.

मिडल ईस्ट के देशों में एक में बड़ा अजीब ही इसलामिक कानून है और उस के बारे में सुनने वाला हैरान हो जाता है. यहां के कानून के अनुसार अगर कोई व्यक्ति भेड़ के साथ सैक्स करता है तो उसे उसी भेड़ का मांस खाना पड़ता है.

चीन में महिलाएं अपने घर या बाथरूम में निर्वस्त्र नहीं घूम सकतीं.

बहरीन में स्त्रीरोग डाक्टर अपने महिला मरीज के निजी अंगों को केवल सीसे की सहायता से देख सकती हैं.

समाज में यौन कुंठा का बहुत बड़ा कारण समाजिक रीतिरिवाज हैं. अपने विकास के साथ लोकाचार संबंधित नियमों में बदलाव ला कर हम आसानी से युवाओं को यौन कुंठा से बचा सकते हैं.

सैक्स गिल्ट का उपचार

मनोचिकित्सक बताते हैं कि यौन कुंठा के शिकार व्यक्तियों को इस से बाहर निकालने के लिए उन्हें समझना होता है कि जो उन के साथ हुआ है उस के लिए वे कतई दोषी नहीं हैं. उन्हें सैक्स से आनंदित होने की प्रेरणा दी जाती है. उन्हें समझाया जाता है कि जिस प्रकार मलमूत्र का त्यागना एक आवश्यक शारीरिक प्रक्रिया है उसी प्रकार महिलाओं को अपनी सैक्स डिजीज को भी त्यागने में संकोच नहीं करना चाहिए.

डा. स्वाति अपनी महिला मरीजों को सैक्स के लिए 5 सिद्धांत का सुझाव देती हैं-

सैक्स में जल्दी न करें

आप का साथी मल्टिपल और्गेज्म महसूस कर सकता है. सैक्स को रेस बना कर जल्दी खत्म करने के बजाए 1-1 पल को अच्छी तरह से और अपने यौन साथी के हिसाब से ऐंजौय करें. अगर आप म्यूचुअल बैनिफिशल रिलेशनशिप में हैं तो आप को इस का फायदा जरूर देना चाहिए. यह पुरुष आप के लिए दीवान बन जाए यह सोच कर उस की हर फेंटैसी को पूरा करने की कोशिश करें.

शारीरिक जरूरतों को पूरा करने तक सीमित

पुरुष एवं महिलाओं दोनों को बगैर घबराहट या शर्मिंदगी महसूस किए अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने का हक है. डेटिंग ऐप्स और टिंडर के इस जमाने में कैजुअल सैक्स, वन नाइट स्टैंड और इमोशनलैस सैक्स आम बात हो गई है.

पार्टनर की खुशी के बारे में भी सोचें

सैक्स के दौरान हर बार एक जैसा सबकुछ करने की वजह से कई बार सैक्स से एक्साइटमैंट खत्म हो जाती है. लिहाजा, इंप्रूवमैंट की जरूरत होती है. आपको पूछना चाहिए कि आप का साथी और क्या चाहता है. आप जिस के साथ सैक्स कर रहे हैं उस के साथ अगर आप का कोई इमोशनल अटैचमैंट नहीं है तो भी उस की जरूरतों को प्रायौरिटी दें और ऐक्ट के दौरान किसी भी तरह का अपराधबोध मन में फील न करें. अगर आप का साथी ऐक्ट को ऐंजौय ही नहीं करेंगी तो उसे आप के साथ रहने का फायदा क्या होगा?

आप जैसी हैं वैसी न रहें

सैक्सुअल इंटरकोर्स के आखिर में हरकोई जो चाहता है वह है आत्मसंतुष्टि यानी और्गेज्म. हालांकि इन सब के बीच में हम फोरप्ले की अहमियत को कम नहीं आंक सकते. बहुत सी महिलाओं के मन में इस बात का डर रहता है कि अगर वे अपने यौन साथी से पूछेंगी कि कौन सी चीज है जिस के जरीए उन्हें और्गेज्म महसूस होता है तो उन्हें बहुत ज्यादा बोल्ड समझा जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है. उन्हें जो चीज संतुष्टि देती है उस के बारे में आप जरूर सोचें.

खुशी पाने से ज्यादा देने की कोशिश करें

सैक्स आप के साथी के लिए तभी आनंददायक होगा जब आप जरूरत से ज्यादा सोचने के बजाय इसे खुल कर ऐंजौय करेंगी और ऐंजौयमैंट तभी हो पाएगा जब आप सामने वाले को खुशी देंगी. इस तरह की फीलिंग को इमोशनल अटैचमैंट के लिए छोड़ दें.

लेखिका – पूर्णिमा अतुल गोयल

Saif Ali Khan Attack Footage : फूटेज में भागता दिखा हमलावर, Kareena ने फैंस की खास अपील

Saif Ali Khan Attack Footage : बौलीवुड के सुपरस्टार सैफ अली खान पर बुधवार को देर रात कुछ अनजान शख्स घर में घुस गए और हमला कर दिया. इस घटना से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है. जिसमें बताया जा रहा है कि बांद्रा पुलिस ने एक संदिग्ध को हिरासत में लिया है. जिससे पूछताछ की जा रही है.

क्या हमलावर हुआ गिरफ्तार?

दरअसल कहा जा रहा है कि यह वही शख्स है, जिसने हमला किया था. जिसकी फुटेज सीसीटीवी कैमरे में दिखाई दी थी. इस शख्स को बांद्रा पुलिस स्टेशन पूछताछ के लिए लाया गया. हालांकि अभी और भी सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं. पुलिस को शक है कि हमलावर पहले से बिल्डिंग और घर में घुसा था.

पुलिस को घर की मेड पर हुआ शक

आपको ये भी बता दें कि पहले शुरुआती जांच में पुलिस को सैफ अली खान के घर की मेड पर भी शक हुआ कि घर की मेड ने ही गुंडों को एंट्री दिलवाई हो. इन तमाम पहलुओं की जांच जारी है.

सैफ और गुंडों के बीच हुई हाथापाई

सैफ के फैंस के लिए अच्छी खबर ये है कि सर्जरी के बाद ऐक्टर फिलहाल खतरे से बाहर हैं लेकिन अभी उन्हें डौक्टर्स की निगरानी में ही रखा जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पटौदी मेंशन में सैफ और गुंडों के बीच हाथापाई भी हुई. इस दौरान ऐक्टर पर गुंडों ने चाकू से हमला कर दिया. जिसमें सैफ बुरी तरह घायल हो गए.

करीना कपूर ने फैंस से की खास अपील

Kareena Kapoor Post
Kareena Kapoor Post

इसी बीच करीना कपूर ने फैंस और पैपरा जी से खास अपील की हैं. ऐक्ट्रैस ने एक पोस्ट के जरिए अपना बयान जारी किया है, उन्होंने पति सैफ के शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा किया है. ऐक्ट्रैस ने अपने बयान में ये लिखा है कि ‘आज का दिन हमारे परिवार के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है और हम अभी भी इस घटना को समझने और संभालने की कोशिश कर रहे हैं. इस कठिन समय में मैं आप सभी से हंबली रिक्वेस्ट करती हूं कि मीडिया और पैपराजी अफवाहों और अटकलों से दूरी बनाकर रखें.

बेबो ने अपने बयान में ये भी लिखा कि ‘हम आपकी फिक्र और सपोर्ट की सराहना करते हैं, लेकिन लगातार मीडिया का फोकस और कवरेज हमारी सुरक्षा के खतरा पैदा कर रहा है. मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हूं कि हमारी बाउंड्रीज का सम्मान करें और हमें स्पेस दें, जिससे हमारा परिवार इस मुश्किल घड़ी से बाहर निकल सके. चीजों को समझ सकें.’

Best Kahani 2025 : पसंद का घर

Best Kahani 2025 : उम्मी को ससुराल माफिक नहीं पड़ी है, यह उस की बातों से ही नहीं चेहरे पर भी पढ़ा जा सकता है. ससुराल जैसे उस के लिए जेलखाना हो गई है और मायका आजादी का आंगन. महीना भर हो गया है उसे यहां आए. 2 बार उस का बुलावा आ चुका है पर उम्मी बारबार किसी न किसी बहाने से अपना जाना टालती रही है, वहां जाने से बचती रही है.

उम्मी की बुद्धि पर सोचती हूं तो तरस आता है. आखिर वह जाना क्यों नहीं चाहती अपनी ससुराल? क्या कमी है वहां? कितना बड़ा तो घर है और कितने मिलनसार हैं घर के सारे लोग. उम्मी की सास, उम्मी के ससुर, उम्मी के देवर, उम्मी की ननदें सब के मधुर व्यवहार के बाद भी उम्मी को इतना बड़ा घर काटने को क्यों दौड़ रहा है? अब क्या किया जाए यदि उम्मी की ससुराल में 10-12 लोगों का परिवार है. उम्मी के ससुर ने पहली पत्नी की अकाल मृत्यु के पश्चात पुन: शादी की थी. इसलिए घर में बच्चों की संख्या कुछ अधिक हो गई थी. उन्हीं से घर भरापूरा सा हो गया. साथ में दादा हैं, दादी हैं, बड़े भाई की पत्नी हैं, घर न हो जैसे मेला हो, दिनरात हल्लागुल्ला, शोरशराबा. उम्मी को तो सिरदर्द हो जाता है, सब की चीखपुकार से.

उम्मी पर तरस आने लगता है जब वह कठोर स्वर में कहती है, ‘‘यह मेरी पसंद का घर बिलकुल नहीं है. मैं वहां रहूंगी तो मर जाऊंगी. वहां सुख मुझे कभी न मिलेगा.’’

‘पसंद का घर’, सोचती हूं पसंद का घर किसे मिल पाता है, इतनी बड़ी उलझी पेचीदी दुनिया में.

मेरा भी ब्याह हुआ था तब कैसा घर मिला था मुझे. क्या दशा हुई थी मेरी. ससुराल अंधा कुआं लगने लगी थी. 3 भाइयों का घर था, दूसरी बहू थी मैं. सास, ससुर, उन के मातापिता, एक देवर, विधवा ताई. रोरो कर मैं तो माथा पटक रही थी…जाने क्यों ऐसा हो गया था कि ऐसा घर मिल गया.

शायद घर के सदस्यों को किसी ने गिनने की जरूरत ही न समझी हो. राजन जैसा वर, वह भी बिना दानदहेज के मिल जाना छोटी बात न थी. पर मैं ने ससुराल में पांव रखा तो सदस्यों की एक लंबी पांत देख मेरे हाथपांव फूल गए.

अपने घर में मैं ने देखा ही क्या था, एक अपनी बहन और एक मांबाप को. दादाजी थे, वह 6 माह हमारे घर रहते थे, 6 माह दुनिया की सैर करते थे. मां काम करती थीं इसलिए घर और भी छोटा हो जाता था, और भी सूना. दिन भर मां और पिताजी बाहर.

हम जब तक स्कूल नहीं गए थे, ताले में बंद हो कर घर में कैदियों की तरह रख छोड़े जाते थे. इसी बीच के वक्त में हमें कुछ भी परेशानी हो जाए, सब अकेले ही झेलना पड़ता था.

मुझे याद है. एक बार एक ठग साधु आ कर हमारी खुली खिड़की के नीचे बैठ हमें अकेला जान कर खूब अनापशनाप कोसता हम से घर की कीमती चीजों की मांग कर रहा था. मैं ने उसे कीमती चीजें तो न दीं मगर उस के डर से बेहोश सी हो गई थी. कई दिनों तक हमें ज्वर रहा था और ज्वर में हम बारबार उसी साधु का वर्णन करते रहते थे. मां इस घटना से बिलकुल घबरा गई थीं. इस के बाद ही उन्होंने एक आया रखी थी. उस के खर्च इतने लंबे होते थे कि उसे कभी हटा दिया जाता था, कभी रख लिया जाता था और एक दिन इस आया के चक्कर में काफी रुपए चोरी हो गए थे. तब से फिर आया कभी नहीं रखी गई. यों हमें अब भी घर में अकेला रहना खलता था मगर धीरेधीरे उम्र के साथ बढ़ती समझदारी को अकेलापन पसंद आता चला गया, कुछ इतना अधिक कि हमें कोई बाहरी प्राणी एकाध दिन से ज्यादा भाता ही न था.

इसी से ससुराल में चिडि़याघर की तरह से अनेक प्राणी देख मन हिल कर रह गया था.

बड़ीबड़ी मूंछों वाले जेठजी किसी जेलर से कम न लगे थे. दिन भर हाथ में माला फेरने वाली ताईसास के साथ गुजारा कठिन लगा था, मेरा अधार्मिक चित्त जाल में फंसी हिरनी सा तड़फड़ा गया. दिन भर ‘चायचाय’ की पुकार लगाने वाले ससुरजी मुझे कोल्हू का बैल न बना कर रख दें. लजीज खानों के शौकीन नखरेलू देवरजी के किस नखरे से घर में लड़ाई छिड़ जाए, पता ही न चलता था. सुबहसुबह तानपूरे पर आवाज उठाती छोटी ननद, लगा, कान फाड़ कर रख देंगी. इन सब के बीच घर भर की लाड़ली नन्ही भतीजी गोद में चढ़ कितना परेशान करेगी, कौन जानता था.

ताईसास से तो पहले ही दिन पाला पड़ गया था. मेरे देर तक सोते रहने पर उन्होंने कड़वे स्वर में मुझे सुना कर ही कहा था, ‘‘हद है इन आज की लड़कियों की. करेंगी एम.ए., बी.ए. पर यही नहीं पढ़ेंगी, जानेंगी कि ससुराल में कैसी आदतें ले कर आना चाहिए. अब यह सोने का वक्त है?’’

‘‘छी: ताईजी,’’ बड़े जेठजी का प्रतिवादी स्वर उभरा था, ‘‘सोने दो न. नईनई शादी हुई है. अभी तो मायके वाली आदत ही होगी न. जम कर सोना और मां के हाथ का कौर निगलना. कुछ दिनों में तुम्हारी तरह सब सीख लेगी.’’

‘‘हटो,’’ ताईजी झिड़क उठीं, ‘‘मुझे क्या वक्त लगा था ससुराल की आदतें सीखने में, सब मां ने सिखापढ़ा कर भेजा था.’’

‘‘पर ताईजी, तब और अब की लड़कियों में बड़ा अंतर है. पहले की लड़कियों का बचपना तो माएं हड़प जाती थीं और उन्हें तुरंत बच्ची से जवान कर देती थीं. अब वैसी बात कहां? अब तो लड़कियां बचपना, किशोरावस्था, तरुणाई सब का आनंद एकएक सीढ़ी उठाती हैं. अभी छोटी सी तो बच्ची है, धीरेधीरे सब सिखा लेना.’’

मैं तो जेठजी की बात सुनते ही हैरान रह गई. लंबीलंबी झब्बेदार मूंछों वाले जिन जेठजी को मैं अपने माथे पर बोझ समझ रही थी, उन्हें अपनी ओर से वकालत करते देख कर हैरान रह गई. उन के प्रति श्रद्धा से मन उमड़ आया. अपनी क्षुद्रता पर झेंप गई. फिर भी सब की ओर से मन शंकित ही रहा. अंदर के चोर ने यह भी कहा, ‘अभी तो सभी के लिए नईनई हूं, सारी सहानुभूति इस नएपन की वजह से ही होगी,’ ताईसास की इस पहली झिड़की को ही यात्रा का अपशकुन मान लिया.

उस घर में जब मेरी पाककला की परीक्षा ली गई थी तो मैं ने एकएक चीज कितनी लगन से बनाई थी पर मेरी बनाई हर चीज बस प्लेटों में ही घीमसालों से तर सुंदर लग रही थी. मुंह में रखते ही हर किसी को बेस्वाद लगी. किसी व्यंजन में मसाला नहीं भुना था. किसी में नमक कम था तो किसी में ज्यादा. मांजी को मेरी रसोई तो बिलकुल न रुची थी, वह तो प्लेट एक ओर सरका कर रसोई से भागने ही वाली थीं, तभी ससुरजी ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने बड़ी ही चालाकी से मांजी को बहलाया, ‘‘अरे, क्या हुआ, यह तो तुम्हारी बहू की रसोई का पहला दिन है. होमसाइंस में उसे पूरे नंबर न भी दो तो कम से कम गले से निगल कर तो उठो. खाली पेट उठना बहू का नहीं, खाने का अपमान है.’’

मिनटमिनट में ‘चायचाय’ चिल्लाने वाले ससुरजी से मुझे निर्वाह कितना कठिन लग रहा था मगर उन्होंने ही मेरी बेढंगी पाककला को धार में बहते देख अपने तिनके का सहारा दे कर बचा लिया. पूरे खाने के बीच वे बातों से, चुटकुलों से सब का मनोरंजन कर रहे थे. उन के इस काम में देवर और ननदें भी साथ थीं. वे सब ताई और मांजी को नाकभौं बनाने से बचा रहे थे और मैं तो उस पूरी पलटन की मूक कृतज्ञता से भरी गद्गद हो गई थी.

उसी शाम पुन: रात के खाने की मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई तो डर से पसीनेपसीने होने लगी थी. अपनी बनाई अष्टावक्री रोटियों की हास्यास्पद कल्पना से भयभीत ही हो रही थी कि देखा, जेठानी रसोई में चली आ रही हैं. उन्होंने बड़े प्यार से मेरा हाथ थाम लिया था, तसल्ली दी थी. कैसे आटा गूंधा जाए, तरकारियां काटी जाएं, मसाले भूने जाएं, पूडि़यां बेली जाएं, सब मुझे बारबार सिखा रही थीं, समझा रही थीं. मुझ से न बनता था तो पुन: बताती थीं. मेरी तो आंखें छलकी जा रही थीं. यह कैसा रूप था उन का? मैं ने तो सोचा था कड़ी मिजाज जेठानी ही शायद युद्ध की पहली ईंट छंटेगी. पर उन्हें मां की ममता से भरी देख कर मेरा अहं टूट कर रह गया.

अभी एक मुसीबत आसान हुई थी कि दूसरे दिन दूसरी मुसीबत आ खड़ी हुई. सासजी ने इतवार का व्रत रखा था, उन के साथ बड़ी जेठानी भी रखती थीं पर जब मुझे भी व्रत रखने को कहा गया तो मेरे तो हाथपांव फूल गए. अब क्या होगा? उपवास और मुझ में तो शुरू से 36 का आंकड़ा रहा है. न रखूं तो सासजी के नाराज होने का डर है और रखूं तो इसे निभा कैसे पाऊंगी पर मेरी इस समस्या को भी जेठानी ने चुपके से हल कर दिया. उन्होंने मेरा हाथ थाम कर अकेले में कहा, ‘‘छोटी, हां कर दो. जब सासजी मंदिर जाएंगी तब तुम खा लेना. मैं जानती हूं आदत धीरेधीरे ही पड़ेगी. अभी तो भले ही यह मुसीबत लगे, बाद में बड़ा उपयोगी लगेगा. व्रत के ही नाम पर सही, शरीर पर मोटापे का नियंत्रण रहता है. बाद में यह अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी लगेगी.’’

मैं तो उन्हें ताकती रह गई. वाकई उन्होंने गलत भी नहीं कहा था. पहले बच्चे के समय मुझे घर के एकएक सदस्य ने इतना आराम दिया कि मेरा वजन काफी बढ़ गया था. मैं तो परेशान होने लगी थी. ऐसे ही समय में मैं ने सास और जेठानी के साथ हफ्ते में एक दिन व्रत के नाम पर गरिष्ठ भोजन का त्याग करना शुरू कर दिया था. पर जेठानी की इस जरा सी समझदारी को मैं कभी न भूल पाई. ऐसा हो सकता था कि मेरे द्वारा व्रत करने का प्रस्ताव ‘ना’ होता तो वे मेरे प्रति कोई चिढ़ सी पाल लेतीं, पर जेठानी की मदद से ऐसा होने के बजाय सासजी का मन मेरे प्रति बर्फ सा पिघल उठा. वे गद्गद हो कर सब से कहतीं, ‘‘बहू हो तो छोटी जैसी. जो कहो, सिर झुका कर मानती है.’’

मेरी स्वादहीन पाककला में जैसे उस दिन से स्वाद बरस गया. खूब दुलार से कहतीं, ‘‘जाने दो, सब में सब बातें एक साथ नहीं मिलतीं.’’

मेरी तो आंखें भर आतीं. अपने मन में स्वयं को ही हजार गालियां देती. बिना जानेसमझे ही मैं ने इस घर के सारे सदस्यों को कितनी बद्दुआएं दी थीं. अब सिवा पश्चात्ताप के कुछ न होता था.

मुझे याद है जब मैं पहली बार ससुराल से मां के पास आई थी तो फिर यहां आने का नाम ही न लेती थी. मां को भी मुझे इस बड़े घर में दिए जाने का बड़ा दुख था पर वे भी क्या करतीं. असमय ही पिता के गुजर जाने से उन्हें हाथ में कुछ भी जोड़ कर रखने का मौका नहीं दिया. कुछ रखा भी था तो एक और बहन भी तो ब्याह के लिए तैयार थी. इसी से रोधो कर भी उस बड़े परिवार में मुझे भेज देना पड़ा था.

इसी बीच मैं गर्भवती हो गई थी. जैसे ही इस बात की जानकारी सब को मिली, जैसे घर का मौसम ही बदल गया. डाक्टर ने पता नहीं क्यों मुझे पूरे समय अतिरिक्त सावधानी और आराम की सलाह दे दी थी. मैं तो बस, अब दर्शक हो गई थी. मेरी थोड़ी सी सेवा, नम्रता के बदले घर के सारे सदस्य अपने स्नेह और प्यार से मुझे तोले दे रहे थे.

ताईसास ने तुरंत मेरा व्रत बंद करवा दिया. सासजी मुझे सुबहशाम अपने साथ मंदिर ले जाने के बहाने हवाखोरी करवाने लगीं. जो ससुरजी चाय के रसिया थे चाय बिलकुल बंद कर दी, कहते, ‘‘जिस दिन बहू मुझे खिलौना देगी, अब चाय उसी दिन शुरू करूंगा.’’

जेठजी तो मुझे मानते ही थे. वैसी बड़ी कमाई न थी उन की, फिर भी मैं कुछ कह दूं वह बात पूरी होते देर न लगती. ननद मेरा एकएक काम खुद करती. देवर ने कभी फिर खाने को ले कर किसी को परेशान नहीं किया. जेठानी अकेली रसोई में होतीं तो वह भी कभीकभी जुट जाता.

उन्हीं दिनों मैं ने महसूस किया था कि प्यार के बदले सिर्फ अदायगी में प्यार ही मिलता है. सासजी ने पहला उपहार पोता पाया था और रहीसही कसर पोती भी देते ही मैं सब की आंखों का तारा बन गई. सास तो मेरी मां बन गईं. वे मेरा इतना खयाल रखने लगीं जैसे मैं धरती की नहीं, कहीं और की जीव हूं. उन्होंने मेरे दोनों बच्चों को खुद संभाल लिया और मैं नौकरी करने लगी थी. मैं कहीं भी आतीजाती, मुझे इस बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही न पड़ती कि बच्चे क्या कर रहे होंगे? अपनी मां की तरह मुझे कोई परेशानी नहीं थी. यह बड़ा परिवार कैसे बच्चों के लिए सुरक्षागृह, मनोरंजन- शाला सबकुछ था, यह मैं ही देख कर अनुभव करती थी. न किसी अकेलेपन का भय, न किसी आकस्मिक संकट पर साथी की तलाश. सबकुछ तो घर में ही था. न कोई आया, न चपरासी, न पहरेदार. बच्चे कब खाएंगे, कब सोएंगे, कब नहाएंगे, सब का हिसाब मांजी के पास तय था.

एक हम थे, मां हमें समझा कर काम पर जाती थीं पर फिर भी कुछ ढंग से न होता था. कब खाया, कब नहाया, कई बार तो हम बिना खाएपीए ही बैठे होते थे. यहां तो अपने बच्चों के खानेपीने का ध्यान बस मैं छुट्टी के ही दिन सोचती. 6 दिन बड़ी ही निश्ंिचतता से मैं ने घर भर में बांट रखे थे.

फिर इसी के 4-5 वर्ष पश्चात मेरी जिंदगी को बड़ा झटका लगा था. पतिदेव बड़ी ही निर्ममता से कुछ बदमाशों की गोलियों का शिकार हो गए. बहुत ही बहादुरी से उन्होंने उन का सामना किया, इस एवज में उन्हें सामाजिक संगठनों, दफ्तर की ओर से, सरकार की ओर से इनाम मिले थे, वाहवाही मिली थी. पर जो सब से बड़ी चीज मुझे अपनी तपस्या, अपने प्रयत्नों से प्राप्त हुई थी, वह थी इस घर से मिली सुरक्षा और सुखी आश्रय. पूरे घर ने मुझे और मेरे बच्चों को अपनी बांहों में समेट लिया. मेरा एक बूंद आंसू न मेरे आंचल में टपका न जमीन पर. सारे के सारे परिवार के सदस्यों ने हथेलियों में बटोर लिए थे.

मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं बेसहारा हो गई हूं. बड़ा परिवार आदमियों का बोझ नहीं होता. यह मैं शिद्दत से जान पाई. सहयोग और समझदारी होने पर वटवृक्ष सा छाया देता है, बस जरूरत है उसे ढंग से सहेजने की.

2 जनों वाले परिवारों के सदस्यों को मैं ने ऐसे कठिन वक्त में अपने अकेलेपन से जूझते देखा था. हारते देखा था, बीमार मानसिक रोगियों की भांति हवा से बातें करते देखा था, लड़तेझगड़ते देखा था. पर मैं कुछ ही समय में अपने खालीपन से मुक्त हो कर कर्ममार्ग में लग गई थी.

दिन भर बच्चों को प्यार करने वाले बड़े चाचा, चाची, ताईजी, सासजी, छोटे देवर सब ही तो थे. छोटे देवर तो आज तक खुद को चाचा के बजाय बच्चों से पापा कहलवाते थे.b

यह अवश्य हुआ कि वक्त जैसेजैसे भागा, ताईजी, सासजी, ननद का साथ छूट गया. नौकरी के तबादले ने जेठजी, देवरजी दोनों को दूर कर दिया. पर जरूरत के उन दिनों में मेरे जख्मों पर उन्होंने अपनी आर्थिक सुरक्षा का जो मरहम लगाया था, वह उसी बड़े परिवार वाले घर की तो देन थी. अगर कहीं हठ और वर्तमान सुविधा के लालच में मैं ने वह घर छोड़ दिया होता या सदा अपने रोष का दामन थामे रहती तो उन अकेले पड़ गए दिनों में कौन काम आता. उस बड़े घर को कैसे भूल सकती हूं? मेरे लिए दुश्मनों का वह घर कब पसंद के घर में बदल गया, इस का मुझे एहसास ही नहीं हो पाया.

‘पसंद का घर क्या स्वयं मिल जाता है,’ ऐसा ही मेरी सासजी कहती थीं.

उम्मी की शिकायत भले ही आज न मिटे, कल को उस के व्यवहार से स्वयं मिट जाएगी, उसे किस तरह बताऊं.

यह तो तय है कि अंतत: मैं समझा कर उम्मी को उस के ससुराल भेज दूंगी पर सोचती हूं ये बच्चियां जाने कब समझ पाएंगी कि जिस तरह सीमेंट, गारा, ईंट, मजदूरों की बदौलत रहने को लोग अपनी ‘पसंद के घर’ का निर्माण करते हैं, उसी तरह रिश्तों के पसंद का घर धैर्य व विश्वास के द्वारा ही निर्माण किया जाता है.

Beautiful Story 2025 : जीवन की एकमात्र आशा

Beautiful Story 2025 : उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था.

इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी. देव को भी कंपनी ने शुरू से इसी प्रोजैक्ट में रखा था ताकि निर्माण पूरा होतेहोते नई मशीनों के बारे में पूरी जानकारी हो जाए. निप्पन स्टील ने कुछ टैक्निकल ऐक्सपर्ट्स भी टाटा भेजे थे जो यहां के वर्कर्स और इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे सकें. ऐक्सपर्ट्स के साथ दुभाषिए (इंटरप्रेटर) भी होते थे, जो जापानी भाषा के संवाद को अंगरेजी में अनुवाद करते थे. इन्हीं इंटरप्रेटर्स में एक लड़की थी अंजु. वह लगभग 20 साल की सुंदर युवती थी. उस की नाक आम जापानी की तरह चपटी नहीं थी. अंजु देव की टैक्निकल टीम में ही इंटरप्रेटर थी. वह लगभग 6 महीने टाटा में रही थी. इस बीच देव से उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. कभी वह जापानी व्यंजन देव को खिलाती थी तो कभी देव उसे इंडियन फूड खिलाता था. 6 महीने बाद वह जापान चली गई थी.

देव उसे छोड़ने कोलकाता एअरपोर्ट तक गया था. उस ने विदा होते समय 2 उपहार भी दिए थे. एक संगमरमर का ताजमहल और दूसरा बोधगया के बौद्ध मंदिर का बड़ा सा फोटो. उपहार पा कर वह बहुत खुश थी. जब वह एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश करने लगी तब देव ने उस से हाथ मिलाया और कहा, ‘‘बायबाय.’’

अंजु ने कहा, ‘‘सायोनारा,’’ और फिर हंसते हुए हाथ हिलाते हुए सुरक्षा जांच के लिए अंदर चली गई.

कुछ महीनों के बाद नई मशीनों का संचालन सीखने के लिए कंपनी ने देव को जापान स्थित निप्पन स्टील प्लांट भेजा. जापान के ओसाका स्थित प्लांट में उस की ट्रेनिंग थी. उस की भी 6 महीने की ट्रेनिंग थी. इत्तफाक से वहां भी इंटरप्रेटर अंजु ही मिली. वहां दोनों मिल कर काफी खुश थे. वीकेंड में दोनों अकसर मिलते और काफी समय साथ बिताते थे.

देखतेदेखते दोस्ती प्यार में बदलने लगी. देव की ट्रेनिंग खत्म होने में 1 महीना रह गया तो देव ने अंजु से पूछा, ‘‘यहां आसपास कुछ घूमने लायक जगह है तो बताओ.’’

हां, हिरोशिमा ज्यादा दूर नहीं है. बुलेट ट्रेन से 2 घंटे से कम समय में पहुंचा जा सकता है.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं वहां जाना चाहूंगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने पहला एटम बम वहीं गिराया था.’’

‘‘हां, 6 अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कोई जापानी, जापानी क्या पूरी दुनिया नहीं भूल सकती है. दादाजी ने कहा था कि करीब 80 हजार लोग तो उसी क्षण मर गए थे और आने वाले 4 महीनों के अंदर ही यह संख्या लगभग 1 करोड़ 49 लाख हो गई थी.’’

‘‘हां, यह तो बहुत बुरा हुआ था… दुनिया में ऐसा दिन फिर कभी न आए.’’

अंजु बोली, ‘‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. परसों ही तो 6 अगस्त है. वहां शांति के लिए जापानी लोग इस दिन हिरोशिमा में प्रार्थना करते हैं.’’

2 दिन बाद देव और अंजु हिरोशिमा गए. वहां 2 दिन रुके. 6 अगस्त को मैमोरियल पीस पार्क में जा कर दोनों ने प्रार्थना भी की. फिर दोनों होटल आ गए. लंच में अंजु ने अपने लिए जापानी लेडी ड्रिंक शोचूं और्डर किया तो देव की पसंद भी पूछी.

देव ने कहा, ‘‘आज मैं भी शोचूं ही टेस्ट कर लेता हूं.’’

दोनों खातेपीते सोफे पर बैठे एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकदूसरे की सांसें और दिल की धड़कनें भी सुन सकते थे.

अंजु ने ही पहले उसे किस किया और कहा, ‘‘ऐशिते इमासु.’’

देव इस का मतलब नहीं समझ सका था और उस का मुंह देखने लगा था.

तब वह बोली, ‘‘इस का मतलब आई लव यू.’’

इस के बाद तो दोनों दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए थे. दोनों कब 2 से 1 हो गए किसी को होश न था.

जब दोनों अलग हुए तब देव ने कहा, ‘‘अंजु, तुम ने आज मुझे सारे जहां की खुशियां दे दी हैं… मैं तो खुद तुम्हें प्रपोज करने वाला था.’’

‘‘तो अब कर दो न. शर्म तो मुझे करनी थी और शरमा तुम रहे थे.’’

‘‘लो, अभी किए देता हूं. अभी तो मेरे पास यही अंगूठी है, इसी से काम चल जाएगा.’’

इतना कह कर देव अपने दाहिने हाथ की अंगूठी निकालने लगा.

अंजू ने उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने कहा और मैं ने मान लिया. मुझे तुम्हारी अंगूठी नहीं चाहिए. इसे अपनी ही उंगली में रहने दो.’’

‘‘ठीक है, बस 1 महीने से भी कम समय बचा है ट्रेनिंग पूरी होने में. इंडिया जा कर मम्मीपापा को सब बताऊंगा और फिर तुम भी वहीं आ जाना. इंडियन रिवाज से ही शादी के फेरे लेंगे,’’ देव बोला.

अंजू बोली, ‘‘मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा.’’

ट्रेनिंग के बाद देव इंडिया लौट आया. इधर उस की गैरहाजिरी में उस के पापा ने उस के लिए एक लड़की पसंद कर ली थी. देव भी उस लड़की को जानता था. उस के पापा के अच्छे दोस्त की लड़की थी. घर में आनाजाना भी था. लड़की का नाम अजिंदर था. वह भी पंजाबिन थी. उस के पिता का भी टाटा में ही बिजनैस था. पर बिजनैस और सट्टा बाजार दोनों में बहुत घाटा होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

अजिंदर अपनी बिरादरी की अच्छी लड़की थी. उस के पिता की मौत के बाद देव के मातापिता ने उस की मां को वचन दिया था कि अजिंदर की शादी अपने बेटे से ही करेंगे. देव के लौटने के बाद जब उसे शादी की बात बताई गई तो उस ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया.

उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटे, अजिंदर की मां को उन की दुख की घड़ी में यह वचन दिया था ताकि बूढ़ी का कुछ बोझ हलका हो जाए. अभी भी उन पर बहुत कर्ज है… और फिर अजिंदर को तो तुम भी अच्छी तरह जानते हो. कितनी अच्छी है. वह ग्रैजुएट भी है.’’

‘‘पर मां, मैं किसी और को पसंद करता हूं… मैं ने अजिंदर को कभी इस नजर से नहीं देखा है.’’

इसी बीच उस के पापा भी वहां आ गए. मां ने पूछा, ‘‘पर हम लोगों को तो अजिंदर में कोई कमी नहीं दिखती है… अच्छा जरा अपनी पसंद तो बता?’’

‘‘मैं उस जापानी लड़की अंजु से प्यार

करता हूं… वह एक बार हमारे घर भी आई थी. याद है न?’’

देव के पिता ने नाराज हो कर कहा, ‘‘देख देव, उस विदेशी से तुम्हारी शादी हमें हरगिज मंजूर नहीं. आखिर अजिंदर में क्या कमी है? अपने देश में लड़कियों की कमी है क्या कि चल दिया विदेशी लड़की खोजने? हम ने उस बेचारी को वचन दे रखा है. बहुत आस लगाए बैठी हैं मांबेटी दोनों.’’

‘‘पर पापा, मैं ने भी…’’

उस के पापा ने बीच में ही उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘कोई परवर नहीं सुननी है हमें. अगर अपने मम्मीपापा को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें अजिंदर से शादी करनी ही होगी.’’

थोड़ी देर तक सभी खामोश थे. फिर देव के पापा ने आगे कहा, ‘‘देव, तू ठीक से सोच ले वरना मेरी भी मौत अजिंदर के पापा की तरह निश्चित है, और उस के जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे.’’

देव की मां बोलीं, ‘‘छि…छि… अच्छा बोलिए.’’

‘‘अब सबकुछ तुम्हारे लाड़ले पर है.’’ कह कर देव के पापा वहां से चले गए.

न चाहते हुए भी देव को अपने पापामम्मी की बात माननी पड़ी थी.

देव ने अपनी पूरी कहानी और मजबूरी अंजु को भी बताई तो अंजु ने कहा था कि ऐसी स्थिति में उसे अजिंदर से शादी कर लेनी चाहिए.

अंजु ने देव को इतनी आसानी से मुक्त तो कर दिया था, पर खुद विषम परिस्थिति में फंस चुकी थी. वह देव के बच्चे की मां बनने वाली थी. अभी तो दूसरा महीना ही चला था. पर देव को उस ने यह बात नहीं बताई थी. उसे लगा था कि यह सुन कर देव कहीं कमजोर न पड़ जाए.

अगले महीने देव की शादी थी. देव ने उसे भी सपरिवार आमंत्रित किया था. लिखा था कि हो सके तो अपने पापामम्मी के साथ आए. अंजु ने लिखा था कि वह आने की पुरजोर कोशिश करेगी. पर उस के पापामम्मी का तो बहुत पहले ही तलाक हो चुका था. वह नानी के यहां पली थी.

देव की शादी में अंजु आई, पर उस ने अपने को पूरी तरह नियंत्रित रखा. चेहरे पर कोई गिला या चिंता न थी. पर देव ने देखा कि अंजु को बारबार उलटियां आ रही थीं.

उस ने अंजु से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

अंजु बोली, ‘‘हां तबीयत तो ठीक है… कुछ यात्रा की थकान है और कुछ पार्टी के हैवी रिच फूड के असर से उलटियां आ रही हैं.’’

शादी के बाद उस ने कहा, ‘‘पिछली बार मैं बोधगया नहीं जा सकी थी, इस बार वहां जाना चाहती हूं. मेरे लिए एक कैब बुक करा दो.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बड़ी गाड़ी बुक कर लेता हूं. अजिंदर और मैं भी साथ चलते हैं.’’

अगले दिन सुबहसुबह देव, अजिंदर और अंजु तीनों गया के लिए निकल गए. अंजु ने पहले से ही दवा खा ली थी ताकि रास्ते में उलटियां न हों. दोपहर के कुछ पहले ही वे लोग वहां पहुंच गए. रात में होटल में एक ही कमरे में रुके थे तीनों हालांकि अंजु ने बारबार अलग कमरे के लिए कहा था. अजिंदर ने ही मना करते कहा था, ‘‘ऐसा मौका फिर मिले न मिले. हम लोग एक ही रूम में जी भर कर गप्प करेंगे.’’

अंजु गया से ही जापान लौट गई थी. देव और अजिंदर एअरपोर्ट पर विदा करने गए थे. एअरपोर्ट पर देव ने जब बायबाय कहा तो फिर अंजु ने हंस कर कहा, ‘‘सायोनारा, कौंटैक्ट में रहना.’’

समय बीतता गया. अजिंदर को बेटा हुआ था और उस के कुछ महीने पहले अंजु को बेटी हुई थी. उस की बेटी का रंग तो जापानियों जैसा बहुत गोरा था, पर चेहरा देव का डुप्लिकेट. इधर अजिंदर का बेटा भी देखने में देव जैसा ही था. देव, अजिंदर और अंजु का संपर्क इंटरनैट पर बना हुआ था. देव ने अपने बेटे की खबर अंजु को दे रखी थी पर अंजु ने कुछ नहीं बताया था. देव अपने बेटे शिवम का फोटो नैट पर अंजु को भेजता रहता था. अंजु भी शिवम के जन्मदिन पर और अजिंदर एवं देव की ऐनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजती थी.

देव जब उस से पूछता कि शादी कब करोगी तो कहती मेरे पसंद का लड़का नहीं मिल रहा या और किसी न किसी बहाने टाल देती थी.

एक बार देव ने अंजु से कहा, ‘‘जल्दी शादी करो, मुझे भी गिफ्ट भेजने का मौका दो. आखिर कब तक वेट करोगी आदर्श पति के लिए?’’

अंजु बोली, ‘‘मैं ने मम्मीपापा की लाइफ से सीख ली है. शादीवादी के झंझट में नहीं पड़ना है, इसलिए सिंगल मदर बनूंगी. एक बच्ची को कुछ साल हुए अपना लिया है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों किया? शादी कर अपना बच्चा पा सकती थी?’’

‘‘मैं इस का कोई और कारण नहीं बता सकती, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तुम जो ठीक समझो. बेबी का नाम बताओ?’’

‘‘किको नाम है उस का. इस का मतलब भी बता देती हूं होप यानी आशा. मेरे जीवन की एकमात्र आशा किको ही है.’’

‘‘ओके उस का फोटो भेजना.’’

‘‘ठीक है, बाद में भेज दूंगी.’’

‘‘समय बीतता रहा. देव और अंजु दोनों के बच्चे करीब 7 साल के हो चुके थे. एक दिन अंजु का ईमेल आया कि वह 2-3 सप्ताह के लिए टाटा आ रही है. वहां प्लांट में निप्पन द्वारा दी मशीन में कुछ तकनीकी खराबी है. उसी की जांच के लिए निप्पन एक ऐक्सपर्ट्स की टीम भेज रही है जिस में वह इंटरप्रेटर है.’’

अंजु टाटा आई थी. देव और अजिंदर से भी मिली थी. शिवम के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स लाई थी.

‘‘किको को क्यों नहीं लाई?’’ देव ने पूछा.

‘‘एक तो उतना समय नहीं था कि उस का वीजा लूं, दूसरे उस का स्कूल… उसे होस्टल में छोड़ दिया है… मेरी एक सहेली उस की देखभाल करेगी इस बीच.’’

अंजु की टीम का काम 2 हफ्ते में हो गया. अगले दिन उसे जापान लौटना था. देव ने उसे डिनर पर बुलाया था.

अगली सुबह वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थी, तो देव और अजिंदर दोनों स्टेशन पर छोड़ने आए थे. अंजु जब ट्रेन में बैठ गई तो उस ने अपने बैग से बड़ा सा गिफ्ट पैक निकाल कर देव को दिया.

‘‘यह क्या है? आज तो कोई बर्थडे या ऐनिवर्सरी भी नहीं है?’’ देव ने पूछा.

अंजु ने कहा, ‘‘इसे घर जा कर देखना.’’

ट्रेन चली तो अंजु हाथ हिला कर बोली, ‘‘सायोनारा.’’

अजिंदर और देव ने घर जा कर उस पैकेट को खोला. उस में एक बड़ा सा फ्रेम किया किको का फोटो था. फोटो के नीचे लिखा था, ‘‘हिरोशिमा का एक अंश.’’

देव और अजिंदर दोनों कभी फोटो को देखते तो कभी एकदूसरे को प्रश्नवाचक नजरों से. शिवम और किको बिलकुल जुड़वा लग रहे थे. फर्क सिर्फ चेहरे के रंग का था.

Sad Story In Hindi : दर्द का सफर

 Sad Story In Hindi : 

‘मन क्यों रोनेरोने को है
क्या जाने क्या होने को है
हृदय संजोए अनगिनत यादें तन तो बोझा ढोने को है
आहें दर्पण धुंधलाने को,
हर आंसू मुख धोने को है.
दिया जिंदगी ने बहुतेरा,
मिला सभी, पर खोने को है.
फूल समय ने सभी चुन लिए,
अब जाने क्या बोने को है.’

सैटेलाइट रोड पर स्थित सरदार पटेल हौल में अपने शो की शुरुआत मैं ने विश्व प्रकाश दीक्षित की इसी गजल के साथ शुरू की. गजल खत्म होते ही श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हौल गूंज उठा. इस से मुझे काफी संतोष हुआ, क्योंकि यह मेरा पहला सोलो परफौर्मेंस था. शो से पहले मैं काफी नर्वस थी. पर थैंक्स टू देव. उन के मोटिवेशन से मेरा हौसला सातवें आसमान पर था. गजल के बाद कुछ फिल्मी गीत और 2 घंटे की रजनी पंडित म्यूजिकल इवनिंग खत्म हुई. मेरा दर्द का सफर खुशी के मुकाम पर आखिरकार पहुंच ही गया.

मेरा अब तक का जीवन दर्द का ही सफर है. हर पहलू, हर हिस्से में दर्द ही दर्द है. इस से मुझे प्रेरणा भी मिलती है, क्योंकि हर गम की काली रात का अंत सुहानी सुबह से जरूर होता है. पहले अपना परिचय दे दूं. मेरा नाम रजनी है और उम्र 27 साल है. समाजशास्त्र में एमए हूं. फिलहाल अहमदाबाद में रहती हूं. इस शहर में आए कुछ महीने ही हुए. वैसे मैं मूलरूप से नडियाद जिले के एक गांव की रहने वाली हूं. मेरे पिताजी राजस्व विभाग में कार्यरत हैं और मां गृहिणी हैं. बाकी परिवार में भाई, बहन, भाभी, भतीजे सब हैं.

देखा जाए तो मेरा परिवार एक आदर्श परिवार है. पर मेरे बचपन की शुरुआत दर्द के सफर से शुरू हुई. मुझे एक बात जो धीरेधीरे समझ आने लगी वह थी बेटी की उपेक्षा. आज भले ही चारों तरफ ये नारे दिए जाते हों कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, लड़कालड़की एक समान, पढ़ीलिखी लड़की, रोशनी घर की, पर हकीकत अलग है. मेरे घर में ही मिलेंगे कुछ ऐसे निशान, जहां अरमानों ने खुदकुशी की है.

वास्तव में अपने ही घर वाले बेटियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते. चाहे मातापिता हों या भाईभाभी, उन का व्यवहार भी ठीक नहीं रहता. वे पगपग पर लड़कियों की उपेक्षा करते हैं. उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करते हैं. लड़कियों को बोझ समझा जाता है. हो सकता है कि हर घर में ऐसा नहीं होता हो, पर मेरे घर में ऐसा होता है. मैं ने इसे महसूस किया है और भोगा है.

मैं ने मांबेटी, बापबेटी, भाईबहन और भाभीननद के बीच रिश्तों की असलियत देखी है. उस का दुखद अनुभव किया है. आपसी रिश्तों में प्रेम के महत्त्व पर मुझे एक लघुकथा याद आ रही है. एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सब को दूध नापनाप कर दे रही थी. उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया.

वहीं थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला ले कर मनकों को फेर रहा था. उस की नजर ग्वालन पर पड़ी और उस ने यह सब देखा और पास बैठे व्यक्ति को सारी बात बता कर इस का कारण पूछा. उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नापे दूध दिया है वह उस से प्रेम करती है. यह बात साधु के दिल को छू गई और उस ने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिस से प्रेम करती है, उस का हिसाब नहीं रखती और मैं यहां बैठा सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेर रहा हूं. मुझ से तो अच्छी यह ग्वालन है और उस ने माला तोड़ कर फेंक दी.

जीवन ऐसा ही होना चाहिए. जहां प्रेम होता है, वहां हिसाबकिताब नहीं होता और जहां हिसाबकिताब होता है वहां प्यार नहीं, सिर्फ व्यापार होता है. हम कम से कम आपसी रिश्तों को तो स्वार्थ, उपेक्षा, नफरत, विरोध व व्यापार से दूर रखें.

मैं अपने घर के अनुभव को आज के समाज से जोड़ती हूं. पिछले 2 दिनों से लगातार अखबार में कुछ ऐसी ही खबरें आ रही हैं उन में एक खबर थी कि मुंबई में एक महिला का बेटा अमेरिका से जब घर आया तो उसे अपनी मां का कंकाल बंद घर में मिला, उस महिला के उसी बिल्डिंग में

2 फ्लैट थे जिन की कीमत करोड़ों में है और बेटा भी अमेरिका में अच्छा कमाता है. दूसरी खबर थी कि रेमंड्स कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया अब जिंदगी के आखिरी दिनों में मुंबई के एक छोटे से फ्लैट में मुफलिसी में जिंदगी बिता रहे हैं.

एक मामले में मां और बेटे के बीच रिश्ते असंवेदनशील हो गए तो दूसरी मिसाल में बापबेटे के बीच रिश्ते तल्ख हो गए. विजयपत का सगा बेटा गौतम ही उन्हें कुछ भी देने को राजी नहीं है, इसलिए विजयपत को अदालत का सहारा लेना पड़ा.

आज के रिश्ते स्वार्थी, क्रूर, निर्दयी और असंवेदनशील हो गए हैं. उन में नजदीक का स्नेह और अपनापन नहीं है. रिश्तों में गर्मजोशी नहीं है. प्रेम गायब हो चुका है. मैं ईश्वर दत्त अंजुम को याद करती हूं. तुम को रोना है तो महफिल सजा कर न रोना, दिल का हर दर्द जमाने से छिपा कर रोना.

रोनेधोने के भी दस्तूर हुआ करते हैं, अपने अश्कों में लहू दिल का मिला कर रोना. मेरी मां मेरे प्रति पता नहीं क्यों कुछ ज्यादा ही क्रूर नजर आई हैं. इसे मैं काफी पहले से महसूस कर रही हूं, लेकिन इस क्रूरता में इजाफा 2 साल पहले हुआ जब मेरे भाई की शादी हुई और भाभी का घर में प्रवेश हुआ. भाभी ने आते ही मेरा जीना हराम कर दिया. वह छोटीछोटी बातों को ले कर मेरे पीछे पड़ने लगी. मुझे ताना मारने लगी. जब गुस्सा आता तो पूरा आसमान सिर पर उठा लेती और चीखचीख कर बोलती, ‘रजनी ने मेरा जीना हराम कर दिया है.’ भाभी ने एक बार फांसी लगाने का भी नाटक किया. मेरी मां हमेशा उसी के पक्ष में रहतीं, क्योंकि घर में भाई ही कमाने वाला है.

मां भाभी का समर्थन करतीं और कहतीं, ‘रजनी, तुम चुप रहो, अपनी भाभी से जबान मत लड़ाओ. तुम्हारा क्या है, तुम्हें तो शादी कर दूसरे घर जाना है.

मैं अपनी मां की खूब इज्जत करती हूं. उन के लिए मेरे मन में अगाध सम्मान है. मेरी नजर में मेरी मां सरीखी दुनिया में कोई दूसरा नहीं है. वे बेमिसाल हैं, पर उन का एक और पक्ष आप के सामने रख चुकी हूं. वे कई बार तो यह भी कह चुकी हैं कि मुझे तुम से कोई मतलब नहीं. कहीं तुम्हारी वजह से मेरे दोनों बेटों का कत्ल न हो जाए. मेरे लिए अफसोस की बात है कि मेरा सगा भाई भी भाभी की हां में हां मिलाता.

भाई पैसे के घमंड में रहता है क्योंकि वह काफी पैसे कमाता है. वह भी कहता कि रजनी तुम जबान बहुत चलाती हो. तुम मेरी दुश्मन बन गई हो. अपनी भाभी का सम्मान किया करो. तुम भाभी का हमेशा अपमान करती हो. वे तुम से बड़ी हैं. मेरी भाभी एक बार तो मेरे ऊपर हाथ भी उठा चुकी है. मैं भी भाभी को मार कर उसे करारा जवाब दे सकती थी, पर मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं खून का घूंट पी कर रह गई.

भाई यह भी कहता कि रजनी, तुम जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगी. नौकरी कर के कितना कमाओगी? 5 हजार, 10 हजार, बस. इतनी मेरी एक दिन की कमाई और खर्च है.

मैं मांपिताजी का बहुत सम्मान करती हूं. कुल मिला कर मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है. पर मेरा दुख है कि चाहे मां हों या पिताजी दोनों ने मेरी भावनाओं को समझने का कोई प्रयास नहीं किया. लिहाजा, मेरा दर्द का सफर चलता रहा. ‘रात गम की बसर नहीं होती, उफ, सहर क्यों नहीं होती.’

मां को चाहिए कि वे बेटी की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझें, बेटी को कभी हर्ट न करें. कहते भी हैं कि एक बेटी का मनोविज्ञान उस की मां ही समझ सकती है. पर मेरी मां ने तो मुझे बिलकुल नहीं समझा. मां ने हमेशा मेरी उपेक्षा ही की है. मैं लड़की हूं, मां मुझे जिस खूंटे से बांध दें मैं वहीं चली जाऊं तो मैं बहुत अच्छी वरना खराब. मां ने खूब डरायाधमकाया, किसी से बात नहीं करने दी. सैकड़ों प्रतिबंध लगा दिए. ‘एक तपती दोपहर है अब हमारी जिंदगी. एक उजड़ा सा शहर है अब हमारी जिंदगी. हर दिशा में हाथ में पत्थर सजे छोटेबड़े एक सुंदर कांच का घर है अब हमारी जिंदगी.’ मां का ऐसा व्यवहार मुझे बराबर तोड़ता रहता. यह तो कोई बात नहीं हुई अपनी संतानों में से कि मां एक को दबाए और दूसरे को बाहुबली बना दे. यह बिलकुल भी उचित नहीं है, लेकिन मेरे साथ यह सबकुछ किया गया.

मैं ने अपनी जिंदगी संवारने की कोशिश की. सोचा, जाने दो, अब शौक से जिया जाए. बचपन से मुझे गायन का बड़ा शौक रहा है. मैं हमेशा से एक सिंगर बनने का सपना देखती रही. अहमदाबाद में इस का काफी स्कोप था लेकिन वहां शायद ही मेरा सपना पूरा हो पाए. यह सोच कर मैं अहमदाबाद चली आई. और यहां मैं ने एक संगीत विद्यालय में दाखिला ले लिया. इस में मेरी नई सहेली दीपाली ने काफी मदद की. दीपाली भी बहुत अच्छा गाती है. उस से पहले देव का प्रवेश मेरे जीवन में हो चुका था. देव ने मुझे भावनात्मक सहारा दिया. मैं गायन की दुनिया में आगे बढ़ने लगी. धीरधीरे मुझे गायिकी के मंच मिलने लगे और मेरी जिंदगी ढर्रे पर आ गई और आज मेरे पहले प्रोफैशनल शो की कामयाबी ने दर्द का सफर खत्म कर दिया.

Love Story In Hindi : फुरसतिया इश्क

Love Story In Hindi : बार बार बजती मोबाइल की घंटी से परेशान हो कर ममता ने स्कूटर रोक कर देखा. जैसा कि उसे अंदेशा था, दादी का ही फोन था. झुंझलाते हुए ममता ने फोन काट कर स्कूटर आगे बढ़ा दिया.

‘‘क्या घड़ीघड़ी फोन कर के परेशान करती रहतीं… आप तो सारा दिन खाली बैठी रहती हैं… लेकिन मुझे तो नौकरी करनी है न… बौस जब छोड़ेगा तभी आऊंगी… प्राइवेट जौब है… बाप की कंपनी नहीं कि मेरी मनमरजी चले…’’ आधे घंटे बाद दनदनाती हुई ममता घर में घुसी और घुसते ही अपनी दादी गायत्री पर बरस पड़ी.

‘‘घड़ी देखी है? रात के 10 बज रहे हैं… फिक्र नहीं होगी क्या?’’ गायत्री आपे से बाहर होते हुए उसे हाथ पकड़ कर घड़ी के सामने ले गई.

‘‘बच्ची नहीं हूं मैं जो घड़ी से बंध जाऊं… और आप? कब तक मैं आप का बोझ ढोती रहूंगी? मैं ने जिंदगीभर आप को पालने का ठेका नहीं ले रखा… बूआजी के पास क्यों नहीं चली जातीं ताकि मैं शांति से रह सकूं…’’ ममता गुस्से में चिल्लाई. उसे दादी की यह हरकत बहुत ही नागवार गुजरी. उस ने उन का हाथ झटक दिया. गायत्री दर्द से बिलबिला उठीं, आंखों में आंसू भर आए. वे चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गईं. उन्हें ममता से इस व्यवहार की जरा भी उम्मीद नहीं थी. शरीर से भी ज्यादा दर्द दिल में हो रहा था.

‘‘यह वही ममता है जिसे पिछले 10 सालों से मैं अपने दिल से लगाए जी रही हूं. बेटेबहू को दुर्घटना में खोने के बाद उन की इस आखिरी निशानी को सहेजने में मैं ने अपनी सारी उम्र झोंक दी और आज जवान होते ही मैं उसे बोझ लगने लगी…’’ गायत्री रातभर सोचती और सिसकती रहीं. आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया. ममता ने भी पूछा नहीं.

सुबह होते ही गायत्री ने अपनी बेटी रमा को फोन कर रात की सारी घटना कह सुनाई. रमा ने तुंरत फोन पर ममता को आड़े हाथों लिया. मगर ममता भी रात से भरी बैठी थी. उस ने भी बूआ को खरीखोटी सुना दी. गुस्साती हुई रमा दोपहर तक आईं और शाम होतेहोते गायत्री को अपने साथ ले गईं.

ममता यही तो चाहती थी. अब वह पूरी तरह आजाद थी. उस के और लोकेश के बीच अब कोई दीवार नहीं रहेगी. वह उस के साथ उन्मुक्त विचरण करेगी. लोकेश के साथ की कल्पना करते ही उस के गाल लाल हो गए.

लोकेश उस का बौस है. 40 साल के लोकेश और 25 साल की ममता की जोड़ी कहीं से भी मेल नहीं खाती, मगर इश्क उम्र कहां देखता है. वह तो बस हो जाता है… ममता को भी हो गया.

लोेकेश शादीशुदा है, मगर अपनी पत्नी को यहां शहर में अपने साथ नहीं रखता. वह गांव में उस के मांबाप की सेवा करती है. लोकेश के 2 बच्चे भी हैं, मगर ममता को इन सब से कोई लेनोदना नहीं. वह तो लोकेश की दीवानी है.

कितना प्यार आता है उसे लोकेश पर जब वह उस की बांह छुड़ा कर औफिस से घर के लिए रवाना होती है और वह उसे दीवानों की तरह अपलक ताकता रहता है. लोकेश ने कितनी ही बार इशारोंइशारों में ममता के साथ रात बिताने की इच्छा जाहिर की, मगर दादी के चलते वह उसे स्वीकार नहीं कर सकी थी. मगर अब वह दादी नाम की उस बेड़ी को उतार फेंक चुकी है. अब उस के पांवों को कोई नहीं रोक सकता लोेकेश के पास जाने से.

अभी परसों की ही तो बात है. जब वह औफिस से घर के लिए निकल रही थी. लोकेश ने रोमांटिक होते हुए उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और फिर गुनगुनाया, कि अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं. बस तभी से वह उस की बांहों में पूरी तरह सिमट जाने को बैचैन हो उठी थी.

‘‘लो, मैं आ गई… अब कर लो अपनी हसरतें पूरी…’’ सुबहसुबह ममता को आया देख कर लोकेश चौंक गया. उस के पीछेपीछे आती उस महिला को देख कर ममता भी सकपका गई. उस महिला ने अपनी प्रश्नवाचक नजरें लोकेश पर गड़ा दीं.

‘‘यह ममता हैं… दिल्ली से आई हैं…

आज यहां औफिस में मीटिंग है… मैं ने ही इन से कहा था कि सीधे घर आ जाएं, फिर साथ ही चलेंगे… ममता यह मालती है… मेरी पत्नी…’’ लोकेश ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन किसी आंतरिक डर के कारण उस की लड़खड़ाती जबान को साफसाफ महसूस किया जा सकता था.

ममता इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनेआप को बहुत अपमानित सा महसूस कर रही थी. उस ने किसी तरह वहां 2 घंटे बिताए और फिर लोकेश के साथ गाड़ी में बैठ गई. उस का मूड उखड़ा हुआ था.

‘‘अरे यार, तुम भी कमाल करती हो… इस तरह धमकने से पहले बता तो देती,’’ लोकेश ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की. ममता चुप रही.

‘‘यह तो मालती जरा सीधीसादी गांव की महिला है वरना बवाल मच जाता,’’ लोकेश ने फिर से बातचीत शुरू करने की कोशिश की.

ममता खिड़की से बाहर देखती रही. औफिस आ चुका था. लोकेश ने गाड़ी पार्किंग में लगा दी.

‘‘शाम को मेरा इंतजार करना, घर छोड़ दूंगा,’’ लोकेश ने उस के गाल थपथपाने चाहे, मगर ममता ने उस का हाथ झटक दिया. आज उस का काम में जरा भी मन नहीं लग रहा था. वह तय भी नहीं कर पा रही थी कि यह लोेकेश से सिर्फ नाराजगी है या उन के रिश्ते में दरार पड़ चुकी है. वह लोकेश को तो चाहती थी, मगर मालती की मौजूदगी को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. मालती की सचाईर् से भी वह वाकिफ थी तो फिर दिल में दर्द क्यों महसूस कर रही है?

‘‘आज यहीं रुकने का इरादा है क्या? कहो तो बिस्तर मंगवा लूं?’’ लोकेश की आवाज सुन कर ममता चौंकी. कोई और दिन रहा होता तो उस का प्रस्ताव सुन कर वह भी चुहल पर उतर आती, मगर आज उस का उत्साह बिलकुल फीका पड़ चुका था.

‘‘चलो, तुम्हें घर छोड़ दूं,’’ लोकेश ने कहा तो ममता उस के पीछेपीछे चल दी. घर पहुंचते ही दिनभर से रोका हुआ उस के आंसुओं का बांध टूट गया और वह जोरजोर से रोने लगी. लोकेश ने उसे कस कर जकड़ लिया. ममता के पास कहने को बहुत कुछ था, मगर शब्दों का जैसे अकाल सा पड़ गया था.

वह रोती रही, लोकेश उस की पीठ सहलाता रहा… उस के बालों में हाथ फिराता रहा. उसे चूमता रहा… दर्द और मानसिक पीड़ा से गुजरती हुई वह कब उसे समर्पित हो गई दोनों को ही पता नहीं चला.

‘‘सुनो ममता, प्रेम का रिश्ता बहुत नाजुक होता है.. जरा सी ठेस से टूट जाता है… मालती को किसी तरह का कोई शक नहीं होना चाहिए… हमें बहुत सावधानी रखनी होगी… तुम समझ रही हो न मेरी बात… जब तक वह यहां है, तुम मुझे मैसेज या कौल मत करना… व्हाट्सऐप पर भी जरूरी हो तो ही मैसेज करना…’’ कपड़े पहनते हुए लोेकेश ने उसे हिदायतें दीं और फिर गुनगुनाता हुआ चला गया.

ममता रातभर अपने रिश्ते के बारे में सोचती रही. कभी उसे लोकेश सही लगता तो कभी बहुरुपिया… कभी लोकेश के प्यार पर संशय उभरता तो कभी उस की वास्तविक स्थिति पर दया सी आती… कभी मालती पर तरस आता और खुद पर अभिमान… तो कभी अपनेआप को नितांत बेबस और लाचार समझ कर पलकें भीग जातीं. इसी उहापोह में रात बीत गई. सुबह होते ही आदतन उस का हाथ मोबाइल की तरफ बढ़ गया. रोज सुबह उठते ही पहला ‘गुड मौर्निंग’ का मैसेज लोकेश को भेजने की आदत जो ठहरी. लेकिन कल रात की बात याद आते ही उस के हाथ रुक गए. वह अपनेआप को बंधा हुआ सा महसूस करने लगी. फिर दिमाग को झटका और औफिस के लिए तैयार होने लगी.

जब तक मालती यहां शहर में रही तब तक ममता और लोकेश का रिश्ता कभी खुशी कभी गम वाली स्थिति में रहा. लोकेश का पत्नी को वक्त देना ममता को नागवार गुजरता… अपने प्रेम और समर्पण का अपमान लगता… वह नाराज हो जाती… कईकई दिनों तक  रूठी रहती… फिर किसी दिन लोकेश उस के फ्लैट पर आता… उस के साथ 2-4 घंटे बिताता… उसे मनाता… अपने प्यार का भरोसा दिलाता… ममता खुश हो जाती… मगर 5-6 दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात… कहानी जहां से शुरू होती, घूमफिर कर वहीं आ जाती.

आखिरकार 4 महीने बाद जब मालती वापस गांव लौट गई तब ममता ने राहत की सांस ली. अब लोकेश पर भी कोई बंधन नहीं था. वह पूरी तरह से ममता का हो गया. फिर से वही देर रात तक फोन और चैटिंग का सिलसिला चल निकला. अकसर दोनों की बातें रोमांटिक वीडियो चैट पर ही खत्म होती थीं. लोकेश पहले की ही तरह ममता के सारे नाज उठाने लगा. ममता अपनी जीत पर फूली न समाती थी.

आज ममता बहुत खुश नजर आ रही थी. इसी महीने के दूसरे शनिवार को उस का जन्मदिन था. ममता ने एक यादगार शाम लोकेश के साथ बिताने का पूरा प्लान बना लिया. उस ने तय भी कर लिया था कि इसी खास दिन वह लोकेश से अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगाने की बात करेगी. उसे यकीन था कि लोकेश मना नहीं करेगा. ममता बेसब्री से दूसरे शनिवार का इंतजार कर रही थी.

आखिर वह दिन आ ही गया. शुक्रवार की रात 12 बजते ही जैसा कि ममता को यकीन था, लोेकेश का फोन आ गया. ममता ने अदा से इठलाते हुए कौल रिसीव की.

‘‘हैलो ममता… मुझे अभी इसी वक्त गांव के लिए निकलना होगा, मालती सीढि़यों से गिर गई… शायद उसे पांव में गहरी चोट आई है… तुम औफिस संभाल लेना प्लीज…’’ कह कर लोकेश ने फोन रख दिया.

ममता सकते में थी. वह लगातार अपने मोबाइल को घूर रही थी जिस पर अभीअभी कौल कर के लोकेश ने उस के सारे सुनहरे सपने चकनाचूर कर दिए थे.

‘लोकेश मेरे प्यार को खेल समझता रहा या फिर मैं ही उस के खेल को प्यार समझती रही… मैं चाहे लोकेश के प्यार में खुद को खत्म भी कर लूं तब भी सामाजिक रूप से उसे नहीं पा सकती… हमारा रिश्ता भी फुरसत या जरूरत पर निर्भर हो गया… उस की पहली प्राथमिकता आज भी मालती ही है… यदि वह प्रैक्टिकल हो सकता है तो फिर मैं ही क्यों भावनाओं में बह रही हूं… मुझे भी दुनियादार होना चाहिए… अगर वह मुझे इस्तेमाल कर रहा है तो मैं भी क्यों न प्रैक्टिकल हो जाऊं…’ गुस्से और अपमान से जलती हुई ममता ने एक ठोस निर्णय ले लिया.

10 दिन के बाद गांव से लौटा लोकेश सीधा ममता के फ्लैट पर गया. ममता अभी औफिस से लौटी ही थी. उसे देखते ही एक बार तो ममता ने मुंह फेर लिया, मगर तत्काल उस के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘अब मालती की तबीयत कैसी है?’’ उस ने पूछा.

‘‘ठीक है… पांव में मोच आई है… तुम कहो क्या किया यहां अकेले?’’ लोकेश के हाथ उस के बालों से होते हुए उस की पीठ पर फिसलने लगे.

‘‘लोकेश, सुनो मुझे ऐप्पल का मोबाइल चाहिए… वैसे भी मेरे बर्थडे पर तुम मेरे साथ नहीं थे… सजा तो भुगतनी पड़ेगी न…’’ ममता इठलाई.

‘‘ओके बेबी… लाओ अभी और्डर करते हैं… लेकिन पहले केक तो खिला दो…’’ लोकेश ने रोमांटिक होते हुए कहा. वह ममता को पाने के लिए उतावला हुआ जा रहा था. उस ने ममता को और भी कस कर जकड़ लिया.

‘‘न… न… पहले गिफ्ट उस के बाद केक…’’ ममता ने उसे प्यार से झटक दिया.

‘‘जैसी मेरे हुजूर की मरजी. पहले मोबाइल ही और्डर करते हैं…’’ लोकेश ने जरा नाटकीय अंदाज में झुक कर कहा तो ममता खिलखिला दी.

धीरेधीरे ममता ने लोकेश के क्रैडिट कार्ड से नया स्कूटर, महंगे गैजेट्स, डायमंड के गहने एवं अन्य विलासिता का सामान इकट्ठा कर लिया. अब उस की चाह पौश इलाके में एक फ्लैट लेने की थी.

‘‘लोकेश, यार आजकल ये सोसाइटी वाले तुम्हारे आनेजाने पर सवाल करने लगे हैं… फ्लैट के मालिक ने अल्टीमेटम भी दे दिया है… प्लीज, ग्रीन हाउस सोसाइटी में एक फ्लैट दिलवा दो न…. डाउन पैमेंट तुम कर दो, किस्तें में चुका दूंगी… एक रात ममता ने लोकेश को शीशे में उतार ही लिया.

फ्लैट की चाबी हाथ में आते ही ममता अपनी जीत पर झूम उठी. 40 का लोकेश अब 45 की तरफ बढ़ने लगा था. मालती के कहने से लोकेश ने अपनेबेटे को शहर के कालेज में एडमिशन दिलवा दिया था. इस कारण ममता से उस का मिलनाजुलना थोड़ा कम हो गया था. आजकल वह ममता का झुकाव औफिस में आए विशाल की तरफ महसूस करने लगा था. ममता का उस से घुटघुट कर बातें करना लोकेश को फूटी आंख नहीं सुहाता था.

‘‘आजकल विशाल से कुछ ज्यादा ही दोस्ती हो रही है.’’ एक दिन आखिर चिढ़ कर लोकेश ने कह ही दिया.

‘‘मैं ने कभी मालती को ले कर तुम से कोई सवाल किया क्या?’’ ममता ने प्रश्न के बदले में प्रश्न दागा.

‘‘वह मेरी पत्नी है.’’

‘‘हो सकता कल को मैं भी विशाल की पत्नी बन जाऊं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? क्या तुम मेरे साथ फुरसत में टाइमपास कर रही थी.’’ लोकेश तिलमिला उठा.

‘‘तुम ने भी तो यही किया था… तुम्हारा इश्क भी तो फुरसतिया ही था न… फिर मुझ पर बेवफाई का इलजाम क्यों?’’

‘‘तुम्हें तो मेरे और मालती के बारे में सब पता था न… बात खुलने पर समाज में मेरी क्या इज्जत रह जाती… मेरा घर बरबाद नहीं हो जाता?’’

‘‘तुम करो तो अपनी गृहस्थी बचाने का नाम दे दो और मैं करूं तो टाइमपास? वाहजी वाह… तुम्हारे दोहरे मानदंड…’’ ममता ने नाटकीय अंदाज में ताली बजाते हुए कहा.

‘‘मैं विशाल को तुम्हारी सचाई बता दूंगा,’’ लोकेश ने अपना ट्रंप कार्ड फेंका.

‘‘जरूर बताओ… मगर क्या इस आग की लपटें मालती तक नहीं पहुंचेंगी. जिस गृहस्थी को बचाने की कोशिश तुम आज तक करते रहे, क्या वह बिखर नहीं जाएगी? मेरा क्या है… विशाल चला जाएगा तो कोई और आ जाएगा… मगर तुम मालती को कैसे लौटा कर लाओगे?’’ ममता ने ठहाका लगाया.

लोकेश हारे हुए जुआरी की तरह लौट गया. लोकेश के जाने के बाद ममता बहुत बेचैन हो गई. रहरह कर दुख और बेबसी से दिल में हूक सी उठ रही थी.

‘क्या करे? किस से बात कर के मन हलका करे? किस के सामने दिल खोल कर रखे.’ सोचते हुए उस ने विशाल को फोन लगाया. कौल मिस हो गई. 2-3 बार ट्राई करने के बाद भी विशाल ने फोन नहीं उठाया. तभी एसएमएस अलर्ट बजा, ‘घर वालों के साथ बैठा हूं… बारबार फोन कर के परेशान मत करो… फ्री हो कर कौल करता हूं.’ विशाल का मैसेज पढ़ कर ममता की रुलाई फूट गई.

‘‘फिर वही कड़वी सचाई… फुरसत…

या जरूरत… बस? विशाल का इश्क भी फुरसतिया ही निकला… वह भी जरूरत या फुरसत होने पर ही उसे याद करता है… लेकिन वही क्यों? मैं खुद भी तो यही कर रही थी… फुरसत का टाइमपास… दुनिया में तमाम रिश्ते इसी सूरत में ही तो निभाए जा रहे है.’’ ममता की आंखें भर आईं.

‘‘तुम तो दुनियादारी जान गई थी न… फिर यह शिकायत क्यों?’’ उस के भीतर से आवाज आई.

‘‘हां, जान गई थी… मगर भौतिकता के पीछे भागतेभागते मैं थक गई हूं… कुछ देर निस्वार्थ प्रेम की ठंडी छांव में बैठ कर सुस्ताना चाहती हूं… क्या यहां बिना स्वार्थ कोई रिश्ता नहीं निभाता?’’

‘‘दादी… हां, दादी ही हैं. जिन्होंने मुझे निस्वार्थ प्रेम किया था… मुझे इस लायक बनाने में उन्होंने अपना पूरा जीवन होम कर दिया था… मगर मैं ने क्या किया? अपनी जरूरत पूरी होते ही दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया… मैं किस मुंह से उन्हें फोन करूं?’’ ममता दादी से किए अपने व्यवहार को याद कर ग्लानि से भर गई.

‘‘नहीं, मुझे भरोसा है, दादी मुझे जरूर माफ कर देगी…’’ ममता ने दिल ने कहा.

‘‘भरोसा तो तुम्हें लोकेश और विशाल पर भी था न… भीतर से विरोधी स्वर उभरे.’’

‘‘वह प्यार नहीं बल्कि सौदा था… हम सभी एकदूसरे से प्यार के बदले कुछ उम्मीदें पाले हुए थे… मगर दादी ने मुझ से कभी कोई उम्मीद नहीं रखी… उन्होंने फुरसत या जरूरत न होते हुए भी सदा मेरा साथ दिया… मैं कल ही बूआ के घर जा कर उन्हें मना लाऊंगी.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो… कहीं अपमानित न होना पड़े… आखिर दादी भी तो इसी ग्रह की प्राणी हैं.’’ मन से उसे चेताया.

‘‘देखा जाएगा… कुछ और मिले न मिले, राज कपूर की फिलम ‘तीसरी कसम’ की तरह मिला एक सबक ही सही… मैं जरूर जाऊंगी…’’ ममता अपने अंतस के विरोध पर विजय पा चुकी थी. अब ममता रमा बूआ के घर जाने की तैयारी करने लगी थी.

Sachi Kahani 2025 : गुठली के दाम

Sachi Kahani 2025 : बाबा सनातन के सामने बैठा बद्दूराम अपने बाहर निकले दांतों से टपकती लार पोंछता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘हम तो धन्य हो गए बाबाजी. आप की उदारता और करुणा अनंत है, तभी तो हम कमेटी के मैंबर हैं और आप की छाया में बैठे हैं.’’

‘‘छाया तो हम पर महायोगी की है, जो 25 साल से लोगों की भलाई के लिए तप कर रहे हैं. साईं के सौ खेल हैं, भाई. उन्हीं की कृपा से यह महायज्ञ कराया जा रहा है और यह तुम्हारी किस्मत है कि तुम यज्ञ के कुंड में पवित्र लकडि़यां डालोगे.’’

‘‘इसी बात से तो आप का अपने भक्तों के प्रति लगाव साबित होता है.’’

यह सुन कर बाबा सनातन ने घमंड का शहद फिर चखा. ऐसे अंधभक्तों को अपने सामने इस तरह झुका देख कर बाबा सनातन का मन शहद से भरभर जाता है. इस शहद की डायबिटीज से घमंड का जन्म होता है, जो हमेशा के लिए उस के चेहरे से चिपका रहता है.

‘‘और हां, बद्दूराम, ‘एकता महायज्ञ’ की गंगा में हम महर्षि मिथ्यानंद के हाथों से तुम्हारा नाम शुद्ध कर के ‘दलित बंधु राम’ की उपाधि देंगे.’’

‘‘बैकुंठ पा लिया बाबाजी. मुक्ति का द्वार महायोगी परशुराम के जन्मदाता ही दिखा सकते हैं…मैं इस काबिल कहां कि आप को गुरुदक्षिणा दे सकूं, पर प्रभु, आप के लिए यह एकलव्य अपनी बीसों उंगलियां कटाने को तैयार है,’’ बद्दूराम शहद में केसर मिलाता हुआ बोला.

‘‘यज्ञ कामयाब हो तो मन की सभी मुरादें पूरी होती हैं. अगर चलोगे नहीं तो मंजिल तक कैसे पहुंचोगे. इस यज्ञ में तुम भी अपनी हिस्सेदारी दिखाओ. नीयत की बरकत से हो सकता है कि खुश हो कर महायोगी तुम्हारा भी भला कर दें.’’

बाबा की कलाई पर गुदे यज्ञकुंड और नीचे लिखे श्री सनातन शब्दों को देख कर बद्दूराम भक्ति से भरा होने की ऐक्ंिटग करता हुआ बोला, ‘‘बड़ा ही शानदार चित्र है. मैं भी ऐसा ही बनवाऊंगा.’’

यह सुन कर बाबा का वंशअभिमान जोश में आ गया, ‘‘कचौड़ी की बू अभी तक नहीं गई. तुम तो बेदाम की गुठली हो. अरे बेवकूफ, यह साधारण चित्र नहीं है. यह हमें हमारे यज्ञधर्म की याद कराता है और हमारे पवित्र गोत्र का निशान है. इस में छिपे संकेतों को कोई दूसरा कभी नहीं बना सकता.’’

पिछले 6 महीने से महायोगी परशुराम तप रजत जयंती के मौके पर ‘वर्ण एकता महायज्ञ’ कराने की तैयारियां बड़े हाई लैवल पर हो रही हैं और अखबारों की सुर्खियों में हैं. इसे कराने वाले बाबा सनातन खुद हैं.

दरअसल, दलित वोट के चांदी लगे लड्डुओं का अंबार देख कर ललचाई ‘कुटिल पंडा पार्टी’ ने पिछड़ों को पुचकारने का ठेका बाबा सनातन को दिया था. बाबा तकरीबन सभी प्रदेशों के छोटेबड़े दलित नेताओं को इकट्ठा कर, उन्हें पद देने के लालच में जकड़ कर इस भेड़ बाजार को महाहिंदू मेला बनाने में रातदिन जुटा था. इसी की एक कड़ी बद्दूराम था, जो गुजरात की सफाई कर्मचारी कालोनियों का उभरता नेता था और सालों से अपमान का जहर हजम करता हुआ अपनेआप को पंडा राजनीति में फिट करने की जुगत लगा रहा था.

‘‘तो ध्यान रहे कि जिस की बंदरिया वही नचावे…अभी भी बेटी बाप की है. ज्यादा से ज्यादा लोगों का इंतजाम हो. उस दिन पूरे हिंदू परिवार की सेवा के लिए रेल बुक कराई गई है…कहीं ऐसा न हो कि आसपास बरसे और दिल्ली बेचारी तरसे… सभी को यज्ञ में ले आना,’’ कहता हुआ बाबा अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और इशारा समझ कर बद्दूराम भी उठ गया.

‘‘जाने से पहले मठ की आरती के लिए जरूर रुकना…महाप्रसाद लेते जाना. देनहार समर्थ है सो देवे दिन रैन. महायोगी तुम्हारा भला करें.’

बद्दूराम ने जाते समय बाबा के पैर छुए. उस के जाने के बाद ‘खाइए मन भाता पहनिए जग भाता’ पर अमल करते हुए बाबा ने पास ही रखी सुराही मुंह से लगाई. ह्विस्की पीने से मठ की आरती और बाद में टैलीविजन पर आने वाले प्रवचन में माहौल जो जमेगा.

बाबा को मठ की दुकान लगाए 20 साल हो चुके हैं. महर्षि मिथ्यानंद ने जब से हिमालय पर दिव्य महायोगी परशुराम के दर्शन किए हैं तब से भक्तों में यह फैलाया गया है कि बाबा सनातन के छोटे बेटे महायोगी परशुराम 15 साल की उम्र से ही भक्तों की भलाई के लिए हिमालय की किसी अनदेखी गुफा में तप कर रहे हैं. इस बात को अब 25 साल गुजर चुके हैं.

महर्षि मिथ्यानंद, जो डीलडौल से भैंसे जैसा है, अपने गुस्से के लिए अखाड़ों में मशहूर है. तपस्वी है और हिमालय पर तप करता है, पर कब? यह मालूम नहीं. उसे ज्यादातर दिल्ली के आसपास ही देखा जा सकता है. जब बाबा सनातन अपनी दुकानदारी का प्रचार कराने के लिए मिथ्यानंद के पास गया था तब उस की बड़ीबड़ी लाल आंखें गुस्से से बाहर निकल आई थीं और उस ने बिगड़ कर फुफकारते हुए कहा था, ‘एक भगोड़े को तपस्वी बनाना चाहते हो.’

तब उसे भरी चिलम थमा कर शांत करते हुए सनातन बाबा ने कहा था, ‘महर्षि, कपूत बेटा तो मरा ही भला. वह तो 5 साल पहले ही मरखप गया. किसे क्या, सब अपनेअपने खयाल में मस्त हैं… और अगर कहीं से लौट भी आया, तो कहेंगे तपस्या से लौटा है.

‘ऋषिवर, आप खुद महाज्ञानी हैं. समझ सकते हैं कि अपनी गरज तो बावली होती है. हम ने तो ग्रंथों में देवीदेवताओं से न जाने कैसेकैसे काम करवाए हैं. धर्म की हिफाजत और उसे आगे बढ़ाने के लिए यह ठीक भी है. फिर मठ की माया में योगीराज आप का भी तो हिस्सा होगा, एक दम में हजार दम. आप को बस, जहांतहां महायोगी परशुराम से हिमालय पर मिलने की बात फैलानी है. आप के खोटे वचन से मेरा खोटा सिक्का चल पड़ेगा…इस के बाद हमें धनकुबेर बनने से खुद ब्रह्मा भी नहीं रोक पाएंगे.’

बाबा का बिजनेस औफर मिथ्यानंद ठुकरा नहीं पाया था और तभी से उस का मठ चल पड़ा. उस की तूती बोल रही है. अनेक भक्त उस के चक्कर में फंस चुके हैं. अब तो यह मठ करोड़ों रुपए की मिल्कीयत बन चुका है.

बाबा का बड़ा बेटा विष्णु पढ़ाई कर के जरमनी चला गया और एक ईरानी औरत से शादी कर के खुशहाल जिंदगी बिता रहा है. वक्त पर बाबा को मोटी रकम भी भेजता रहता है. यह बेटा बाबा के लिए रसीले आम की हैसियत रखता है. हां, पुरखों का बैठाबिठाया धर्म का धंधा नहीं करता, तो क्या हुआ, वहां कमोड का बड़ा कारोबारी है.

हां, मोटी अक्ल का छोटा बेटा परशुराम, जिसे पढ़ाई में कभी मजा नहीं आया था, एक दिन मास्टर को पत्थर से बुरी तरह घायल कर के घबराहट में गांव से नौ दो ग्यारह हो गया. यह बेटा गुठली था.

आम तो खा ही रहे थे, पर बेदाम गुठली का हाथों से निकल जाने का दुख बाबा को रातदिन खा रहा था. सोचा था, ‘किसी तरह कुछ पढ़ लेगा तो धर्म की दुकानदारी इसे सौंपेंगे, गुठली के दाम पाएंगे.’

पर सब बेकार साबित हुआ. बाबा ने अपने कुलकलंकी बेटे को ढूंढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी, आकाशपाताल, स्वर्गनरक सब एक कर दिया. इस चक्कर में काफी माल भी खर्च हो गया. 5 साल की निराशा के बाद बाबा को गुठली के दाम वसूलने की तरकीब सूझी.

मिथ्यानंद को चतुराई से इस्तेमाल कर के अनेक झूठे चमत्कारों और प्रवचनों से अपने भगोड़े बेटे परशुराम को महायोगी बना कर भावुक शिष्यों के मत्थे मढ़ दिया. आज अंधश्रद्धा की महिमा के चलते वही गुठली अब करोड़ों के दाम की है.

यज्ञ की सारी तैयारियां हो चुकी हैं. वीआईपी संतमहंतों से अपौइंटमैंट ले लिया गया है. अब सिर्फ यज्ञ कामयाब हो जाए, तब तो राजनीति में इस गुठली की कीमत इंटरनैशनल करंसी में होगी. सभी बाबा के आदेश का पालन करेंगे. वाह रे, गुठली के दाम.

रामलीला मैदान का विशाल मंच. पीछे बड़े अक्षरों में महायोगी परशुराम तप साधना रजत जयंती के पावन अवसर पर आयोजित ‘वर्ण एकता महायज्ञ’ लिखा था. मंच पर तथाकथित कई जानीमानी हस्तियों के अलावा जल्दी गुस्सा होने वाले सांड़ मिथ्यानंद समेत दूसरे संतमहंत भी मौजूद थे. भक्तों का इतना बड़ा जमावड़ा देख कर बाबा सनातन अपनेआप को संत सम्राट समझ कर इतरा रहा था.

देश के कोनेकोने से पिछड़ी जाति के लोगों को लाया गया था. उन के अपनेअपने मुखिया थे. हर मुखिया को मंच पर बुलाए जाने पर साधु द्वारा किसी उपाधि का सर्टिफिकेट ले कर, उस साधु के पैर लेट कर छूने थे और उन की तारीफ में दो शब्द कहने थे. बस, यही था ‘वर्ण एकता महायज्ञ’.

एकएक मुखिया यज्ञ में तिलजौ की तरह हवन हो रहा था. पंडा संस्कृति के तमाम लक्षणों वाले तामझाम के साथ चल रहा यह प्रोग्राम अपनी हद पर था. इधर टैलीविजन चैनल वाले इस मसालेदार यज्ञ को कवर करने की होड़ में लगे हुए थे.

बद्दूराम का जोश उस की बेचैनी को छलका रहा था. उसे शिद्दत से अपने नाम का इंतजार था कि तभी… ‘गुजरात के यजमान दलित बंधु राम यानी बद्दूराम का यज्ञ मंच पर स्वागत है…’ का ऐलान होते ही गिरतापड़ता बद्दूराम मंच पर किसी तरह पहुंचा और बाबा सनातन के पैरों पर लोट गया.

बाबा ने उसे पास बैठे मिथ्यानंद के पैरों की धूल लेने का इशारा किया. बद्दूराम ने वैसे ही किया. जवाब में मिथ्यानंद ने चिलम का जोरदार कश खींचा और प्रसाद के रूप में बद्दूराम पर धुएं का छोटा वाला बादल छोड़ा. बद्दूराम ने इसे उसी शिद्दत से स्वीकारा और बाकी सभी को प्रणाम कर बाबा के आदेश पर अपने मन की बात कहने के लिए माइक थामा और अपने मुंह का बांध फोड़ा.

वह बीचबीच में अपनी टपकती लार भी पोंछता रहा, ‘‘बाबाजी, आज का दिन बड़ा ही पावन है. हम सोचते थे कोई इतने सालों तक कैसे तप कर सकता है? माफ करें प्रभु, हम आप योगियों की चमत्कारी ताकत से अनजान थे. नहीं जानते थे कि हम पापियों के बीच रह कर भी योगी साधना करते हैं.

‘‘इस चमत्कार का बखान करने के लिए मैं ने आप से मिलने की बहुत कोशिश की, पर आप के बिजी रहने के चलते और आप की सेके्रटरी की चालाकी से ऐसा नहीं हो सका. शायद यह बखान यज्ञ की जगह पर ही हो, यही प्रभु इच्छा भी थी…

‘‘उस दिन कालोनी में मुझे यज्ञकुंड और नीचे लिखे श्री परशुराम गोदने के सभी गुण संकेतों के दर्शन हुए. मेरी तो आंखें खुल गईं. प्रभु, आप का महायज्ञ कामयाब हुआ. आप की मनचाही चीज आप को ब्याज के साथ हासिल हुई.

‘‘महायोगी परशुराम, जिन्हें आज तक हम अभागे ‘परसू’ कहते रहे, इस यज्ञधर्म को खुद साधारण इनसान बन कर, हमारे कंधे से कंधा, झाड़ू से झाड़ू मिला कर पिछले 25 साल से पाखानों की सफाई के रूप में करते आ रहे हैं.

‘‘हम कैसे जानते कि यह उन का सफाई योग चल रहा है.

‘‘इसी योग के चलते आखिरकार म्यूनिसिपैलिटी को उन्हें ‘कुशल कर्मचारी’ अवार्ड देना पड़ा. इतना ही नहीं, आप ने सच कहा था कि ‘साईं के सौ खेल हैं, वर्ण एकता को मजबूत करने के लिए उन्होंने मेरे समाज की अनाथ विधवा को अपनी छाया में ले कर एक बेटे को भी जन्म दिया, जो अब 15 साल का हो चुका है और आप का पवित्र गोत्र चिह्न, यज्ञकुंड गोदने का हकदार है.

‘‘प्रभु, वे जो सामने टैलीविजन वालों को इंटरव्यू दे रहे हैं, वही आप के बेटे सफाई महायोगी परशुराम हैं.’’

पूरा रामलीला मैदान भौचक्का सा आंखें फाड़े बद्दूराम को सुन रहा था. मंच पर नीले पड़ते बाबा सनातन को देखकर आगबबूला मिथ्यानंद गरजा, ‘सनातन…’ और ‘त्राहिमाम’ वाला पोज अपना कर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. बाबा सनातन पगला जाने की हालत में पहुंच गया. उस का सत्संगी चोला गल सा गया.

बद्दूराम इस से आगे और कुछ कहता, उस से पहले ही खुद फट पड़ा, ‘‘गोद में बैठ कर आंख में उंगली डालता है.’’

इतना कह कर आव देखा न ताव उस ने अपनी खड़ाऊं उठा कर बद्दूराम की ओर कस कर दे मारी. पूरे रामलीला मैदान में हड़कंप मच गया. इसी दौरान परशुराम और बद्दूराम लीला का दौर शुरू हो गया. सनसनीखेज खबर के भूखे पत्रकारों ने बद्दूराम और परशुराम के लंबे इंटरव्यू लिए और पूरी सचाई का टैलीविजन पर प्रसारण कर अगले कई दिनों तक इसी खबर की जुगाली करते रहे.

सभी पाखंडियों को जेल की बदबूदार हवा खानी पड़ी. दिमागी बैलेंस खो चुका बाबा सनातन आखिर तक अपने खोए बेटे को उस की गवाही और सुबूतों के साबित होने पर भी अपना मानने से इनकार करता रहा. वह बस इतना ही कहता रहा, ‘यह गुठली मेरी नहीं.’

मिथ्यानंद न जाने कितने समय तक के लिए समाधि में चला गया. डाक्टरी भाषा में कहें तो इस चोट से वह कोमा में चला गया.

बाबा सनातन की गुठली के दाम ‘चालाक पंडा पार्टी’ को काफी महंगे पड़े. वह उन की मौत की वजह बनी. ‘जो अपने बेटे को अपनाने से इनकार कर सकता है, वह भला जनता को क्या अपना समझेगा.’ इस वजह से उन्हें जिन लोगों का समर्थन हासिल भी था, अब वह भी जाता रहा. एक बेदाग गुठली विषवृक्ष को बरबाद करने वाली बनी.

Short Story 2025 : बिगड़ी बात बनानी है

Short Story 2025 : रातभर नंदना की आंखों में नींद नहीं थी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उस के साथ क्या हो रहा है. पूरा शरीर टूट रहा था. सुबह उठी तो ऐसे लगा चक्कर खा कर गिर जाएगी. गिरने से बचने के लिए बैड पर बैठ गई. नंदना चुपचाप अपने बैड पर बैठी थी कि तभी उसे अपनी भाभी तनुजा की आवाज सुनाई दी,’’ क्या बात है नंदू आज तुम्हें औफिस नहीं जाना है क्या?

नंदना ने किसी तरह भाभी को जवाब दिया कि हां भाभी जाना है… अभी तैयार हो रही हूं.

नंदना की आवाज की सुस्ती को महसूस कर तनुजा अपना काम छोड़ कर उस के कमरे में चली आई. पूछा, ‘‘क्या बात है नंदू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?

‘‘हां, भाभी,’’ नंदू ने जवाब दिया.

‘‘देखकर तो नहीं लगता,’’ तनुजा उस का माथा छूते हुए बोली, ‘‘अरे तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है.’’

‘‘हां भाभी,’’ कहते हुए नंदना बाथरूम की तरफ भागी, उसे बहुत तेज उबकाई आई. तनुजा भी उस के पीछेपीछे गई. नंदना उलटी कर रही थी.

तनुजा चिंतित हो गई कि पता नहीं क्या हो गया नंदू को. इस के भैया भी शहर से बाहर गए हुए हैं. समझ नहीं आ रहा क्या करे. तनुजा नंदना को सहारा दे कर बिस्तर तक ले आई और फिर बिस्तर पर लेटाते हुए सख्त आवाज में बोली, ‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें औफिस जाने की… तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

नंदना बिना कोई जवाब दिए चुपचाप लेट गई.

तनुजा नंदना के लिए चाय लेने किचन में चली गई. जब वह चाय ले कर आई, तो देखा कि नंदना की आंखों से आंसू टपक रहे हैं.

तनुजा उस के आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘रो क्यों रही है पगली. ठीक हो जाएगी.’’

‘‘आप मेरा कितना ध्यान रखती हो भाभी. आप ने कभी मुझे मां की कमी महसूस नहीं होने दी. हमेशा अपने स्नेह तले रखा. मेरी हर गलती को माफ किया… पता नहीं भाभी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘क्या हो गया है तुझे? चायनाश्ता कर ले, फिर डाक्टर के पास ले चलती हूं.’’

तनुजा के कहने पर नंदना डाक्टर के पास चलने को तैयार हो गई. तनुजा की सहेली माधवी बहुत अच्छी डाक्टर हैं. वह नंदना को उसी के पास ले गई.

माधवी ने नंदना का चैकअप करने के बाद तनुजा को अपने कैबिन में बुलाया और बोली, ‘‘तनुजा, नंदना की शादी हो गई है क्या?’’

‘‘नहीं माधवी, अभी तो नहीं हुई. हां, उस के रिश्ते की बात जरूर चल रही है. पर तू ये सब क्यों पूछ रही है? कुछ सीरियस है क्या?’’

‘‘हां तनुजा, बात तो सीरियस ही है. नंदना प्रैगनैंट है… लगभग 4 महीने हो चुके हैं.’’

माधवी की बात सुनते ही तनुजा के पैरों तले से जमीन ही निकल गई. वह मन ही मन बुदबुदाने लगी कि नंदना तूने यह क्या किया, 4 महीने हो गए और मुझे बताया तक नहीं.

और फिर तनुजा नंदना को ले कर घर आ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से इस बारे में कैसे पूछे.

तनुजा ने नंदना को दवा और खाना दे कर सुला दिया. फिर सोचा शाम तक इस की तबीयत ठीक हो जाएगी तब इस से तसल्ली से पूछेगी कि ये सब कैसे हुआ.

शाम को 5 बजे चाय ले कर तनुजा नंदना के कमरे में पहुंची तो देखा वह रो रही है.

नंदना के सिरहाने बैठते हुए तनुजा बोली, ‘‘नंदू उठो चाय पी लो. फिर मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं.’’

‘‘जी भाभी, मुझे भी आप से एक बात करनी है,’’ कह कर नंदना चाय पीने लगी.

चाय पीने के बाद दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगीं कि बात की शुरुआत कौन पहले करे.

आखिर मौन को तोड़ते हुए तनुजा बोली, ‘‘नंदना तुम्हें पता है कि तुम प्रैगनैंट हो?’’

‘‘नहीं भाभी, पर मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है.’’

नंदना की बात पर तनुजा को गुस्सा आ गया, तुम 30 साल की होने वाली हो नंदना और तुम्हें यह पता नहीं कि तुम प्रैगनैंट हो… 4 महीने हो चुके हैं.. कैसे इतनी बड़ी बात तुम ने मुझ से बताने की जरूरत नहीं समझी? तुम्हारे भैया को और पापाजी को क्या जवाब दूंगी मैं? दोनों ने तुम्हारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ी है और तुम ने ऐसा कर दिया कि मैं उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं रही.’’

नंदना रोते हुए बोली, ‘‘आप को तो पता है न भाभी मेरे पीरियड्स अनियमित हैं… मुझे नहीं पता चला कि  ये सब कैसे हो गया.’’

तनुजा अपने गुस्से पर काबू रखते हुए बोली, ‘‘कौन है वह जिसे तुम प्यार करती हो? किस के साथ रह कर तुम ने अपनी मर्यादा की सारी हदें लांघ दीं? अगर तुम्हें कोई पसंद था तो मुझे बताती न, मैं बात करती तुम्हारी शादी की.’’

‘‘भाभी, मैं और भैया के बौस वीरेंद्र,’’ इतना कह कर नंदना रोने लगी.

‘‘सत्यानाश नंदना… वीरेंद्र तो शादीशुदा है और उस के बच्चे भी हैं… वह तुम से शादी करेगा?’’

‘‘पता नहीं भाभी,’’ वंदना धीरे से बोली.

‘‘जब भैया ने मुझे उन से पार्टी में मिलाया था, तो मुझे नहीं पता था कि वह शादीशुदा हैं. उन्होंने तो मुझे अभी भी नहीं बताया.. यह आप बता रही हैं.’’

नंदना की बात सुन कर तनुजा गुस्से से पगला सी गई. फिर नंदना के कंधे झंझोड़ते हुए बोली, ‘‘अब मैं क्या करूं नंदना, तुम्हीं बताओ? मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है. 4 दिनों में पापाजी औैर तुम्हारे भैया आ जाएंगे… कैसे उन का सामना करोगी तुम?’’

‘‘मुझे बचा लो भाभी.. भैया और पापा को पता चल गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी… भैया तो मार ही डालेंगे मुझे.’’

‘‘कुछ सोचने दो मुझे,’’ कह कर तनुजा अपने कमरे में चली गई. सारी रात सोचते रहने के बाद उस ने यही तय किया कि उसे रजत को बताना ही होगा कि नंदना प्रैगनैंट है, भले ही गुस्सा होंगे, लेकिन कोई हल तो निकलेगा.’’

सुबह ही तनुजा ने पति रजत को फोन कर के सारी बात बता दी. सब कुछ सुनने के बाद रजत सन्न रह गया. फिर बोला, ‘‘मैं दोपहर की फ्लाइट से घर आ रहा हूं. तब तक तुम अपनी सहेली माधवी से बात कर लो. अगर अबौर्शन हो जाए तो अच्छा है… बाकी बातें बाद में देखेंगे. मुझे नहीं पता था कि वीरेंद्र मुझे इतना बड़ा धोखा देगा,’’ कह कर रजत ने फोन रख दिया.

घर का काम निबटाने के बाद तनुजा नंदना के कमरे में गई. वह घुटनों पर मुंह रखे रो रही थी.

तनुजा उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘अब रोने से कुछ नहीं होगा. नंदू चलो हम डाक्टर के पास चलते हैं, और दोनों तैयार हो कर माधवी के पास पहुंचीं.

तनुजा माधवी से बोली, ‘‘अबौर्शन कराना है नंदना का.’’

‘‘ठीक है, चैकअप करती हूं कि हो सकता है या नहीं.’’

नंदना का चैकअप करने के बाद माधवी बोली, ‘‘आईर्एम सौरी तनु यह अबौर्शन नहीं हो पाएगा. इस से नंदना की जिंदगी को खतरा हो सकता है. साढ़े 4 महीने हो चुके हैं.’’

माधवी की बात सुन कर तनुजा परेशान हो उठी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. थोड़े दिनों में तो सब को पता चल जाएगा नंदना के बारे में. फिर क्या होगा इस की जिंदगी का? कौन करेगा इस से शादी? अपनी नासमझी में नंदू ने इतनी बड़ी गलती कर दी है कि जिस की कीमत उसे जिंदगी भर चुकानी पड़ेगी. नंदू की हालत के बारे में सोच कर तनुजा की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘क्या करूं… कैसे संवारूं मैं नंदू की जिंदगी को,’’ तनुजा अपना सिर हाथों में दबाए सोच ही रही थी कि तभी रजत की आवाज सुनाई दी, ‘‘क्या हुआ तनु? सब ठीक है न?

रजत को देखते ही तनुजा उस से लिपट गई, ‘‘कुछ भी ठीक नहीं है रजत, इस बेवकूफ लड़की ने अपनी जिंदगी बरबाद कर ली… माधवी कह रही है अगर अबौर्र्शन हुआ, तो उस की जान चली जाएगी.’’

रजत झल्लाते हुए बोला, ‘‘चली जाए जान इस की… क्या मुंह दिखाएंगे हम लोगों को?

‘‘कैसी बातें कर रहे हो आप? आखिर नंदू हमारी बेटी जैसी है… उस ने गलती की है, तो उसे सुधारना हमारी जिम्मेदारी है न? आप हिम्मत न हारें कोई न कोई रास्ता निकलेगा ही… फिलहाल हम नंदू को घर ले चलते हैं.’’

रजत और तनुजा नंदना को ले कर घर आ गए. गुस्से की अधिकता के चलते रजत ने नंदना की तरफ न तो देखा न ही उस से एक शब्द बोला. उसे अपनेआप पर भी गुस्सा आ रहा था कि क्यों उस ने नंदू से वीरेंद्र का परिचय कराया.. उसे पता तो था ही कि साला एक नंबर का कमीना है. रजत ने कभी सोचा भी नहीं था कि वीरेंद्र उस की बहन के साथ ऐसा करेगा.

घर पहुंच कर नंदू रजत के पैरों पर गिर कर बोली, ‘‘भैया मुझे माफ कर दो… आप बचपन से मेरी गलतियां माफ करते आए हो.. भले ही आप मुझे पीट लो, लेकिन मुझ पर गुस्सा न करो.’’

रजत उस का माथा थपक कर अपने कमरे में चला गया.

उस दिन तीनों में से किसी ने भी खाना नहीं खाया. सब परेशान थे. किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

तनुजा बोली, ‘‘3-4 दिन में पापाजी आ जाएंगे, उन से क्या कहेंगे? नंदना के बारे में सुन कर तो उन्हें हार्टअटैक ही आ जाएगा.’’

रजत बोला, ‘‘मैं पापा से कह देता हूं कि वे अभी कुछ दिन और चाचा के यहां रह लें. तब तक हम कुछ सोच लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तनुजा अपने कमरे में चली गई औैर नंदना भी सोने चली गई.

जब रजत कमरे में आया तो तनुजा उन से बोली, ‘‘मैं सोच रही थी कि कुछ दिनों के लिए शिमला वाले भैया के पास चली जाऊं नंदना को ले कर.’’

‘‘वहां जा कर क्या करोगी? तुम्हारे भैया तो अकेले रहते हैं न,’’ रजत ने कहा.

‘‘हां,’’ तनुजा ने जवाब दिया, ‘‘शादी नहीं की है उन्होंने… सोच रही हूं उन से नंदना से शादी करने की बात कहूं. वे मेरी बात नहीं काटेंगे.’’

‘‘यह तो ठीक नहीं है तनुजा कि तुम नंदना को जबरदस्ती उन से बांध दो. वैसे उन्होंने शादी क्यों नहीं की अभी तक 37-38 साल के तो हो ही गए होंगे न?’’

‘‘दरअसल, वे जिस लड़की से प्यार करते थे उस ने उन्हीं के दोस्त के साथ अपना घर बसा लिया. तब से भैया का मन उचट गया. बहुत सारी लड़कियां बताईं पर उन्हें कोई भी नहीं जंची. मुझे लग रहा है नंदना और उन की जोड़ी ठीक रहेगी. मैं एक बार नंदना से भी पूछ लेती हूं.’’

‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो. अब तो दूसरा रास्ता भी नजर नहीं आ रहा… शहर में जा कर नंदना भी धीरेधीरे सब कुछ भूल जाएगी.’’

अगले ही दिन तनुजा नंदना को ले कर शिमला चली गई. रजत ने अपने पापा को कुछ दिनों तक मुंबई चाचा के पास ही रुकने को कह दिया.

शिमला पहुंच कर तनुजा ने अपने भैया विमलेश को सारी बात बताई, तो वे बोले, ‘‘तनु, मुझे कोई ऐतराज नहीं है. मुझे नंदना पसंद है, लेकिन तू पहले उस से पूछ ले.’’

तनुजा ने नंदना से इस बारे में पूछा तो उस ने अपनी स्वीकृति दे दी.

तनुजा ने रजत को फोन कर के सारी बात बताई. रजत बहुत खुश हुआ. बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा तुम्हें कैसे धन्यवाद दूं. तनुजा तुम सही मानों में मेरी जीवनसंगिनी हो… तुम्हारी जगह कोई और होती तो बात का बतंगड़ बना देती, लेकिन तुम ने बिगड़ी बात को अपनी समझ से बना दिया… मैं सारी जिंदगी तुम्हारा आभारी रहूंगा.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो आप? क्या नंदना मेरी कुछ नहीं है? उसे मैं ने हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह माना है.’’

रजत ने पापा को फोन कर के बुला लिया और उन्हें सारी बात बता दी, साथ ही यह भी बता दिया कि परेशान होने की जरूरत नहीं है. तनुजा के भैया विमलेश को नंदना बहुत पसंद है और उन्होंने उस से विवाह करने की इच्छा जताई है. फिर दोनों परिवारों की रजामंदी से नंदना का विमलेश के साथ विवाह हो गया. विदाई के समय नंदना अपनी भाभी तनुजा के गले लग कर खूब रोई. वह बस यही बोले जा रही थी कि आप ने मेरी जिंदगी फिर से संवार दी भाभी… आप जैसी भाभी सभी को मिले.

कुमार सानू से ऐक्ट्रैस Kunika Sadanand का रहा अफेयर, पर्सनल लाइफ को लेकर किए बड़े खुलासे

Kunika Sadanand : बौलीवुड फिल्मों से लेकर टीवी शोज में अपने बोल्ड और निगेटिव किरदार से पहचान बनाने वाली खूबसूरत ऐक्ट्रैस कुनिका सदानंद ने हाल ही में बौलीवुड इंडस्ट्री में अपनी जर्नी और पर्सनल लाइफ को लेकर कई खुलासे किए.

कास्टिंग काउच की शिकार

एक इंटरव्यू के दौरान कुनिका सदानंद ने बताया कि वह बौलीवुड में बड़ी हीरोइन बनने का सपना लेकर आयी थीं, लेकिन कास्टिंग काउच के चलते उन्हें फिल्मों से बाहर होना पड़ा. कुनिका ने कहा क्योंकि मैं कौम्प्रोमाइज करने के लिए तैयार नहीं थी. वो बहुत बड़ी फिल्म थी. मैं बहुत खुश थी. वह बहुत बड़े डायरेक्टर, एक्टर और काफी सीनियर थे. उन्हें मैं पिता की तरह देखती थी.’

‘मैं खुशी के मारे रो रही थी. मैंने बहुत बड़ी सी गाउन पहन रखी थी और बहुत ऐक्साइटेड थी. मुझे लग रहा था कि मैं कितनी खूबसूरत लग रही हूं. इतनी बड़ी फिल्म कर रही हूं. मैं अपनी फीस लेने के लिए औफिस गई थी, लेकिन मुझसे कहा गया ‘बेटा तुझे रिप्लेस करना पड़ रहा है. क्योंकि, तुम कौम्प्रोमाइज नहीं करोगी और मैं अपने साथ दो-दो (डायरेक्टर और सीनियर एक्टर) लेकर चल रही हूं. उनके सामने मांस का लोथड़ा तो डालना पड़ेगा ना.’ ये उनके एग्जैक्ट शब्द थे, जो उन्होंने मुझसे कहे थे.’

सोलह साल की उम्र में लव मैरिज

आप जान कर हैरान होंगे कि ऐक्ट्रैस कुनिका सदानंद ने केवल 16 साल की कम उम्र में अपने से 13 साल बड़े अभय कोठरी से लव मैरिज कर ली थी. मैरिज के एक साल बाद बेटे का जन्म हुआ. बेटा होने के ढाई साल बाद ही कुनिका और उनके पति अभय में जबरदस्त लड़ाई हो गई और कुनिका अपने बेटे को साथ लेकर पति का घर छोड़कर चली गई. इसके बाद दोनों का डिवोर्स हो गया. कुछ समय उनका बेटा उनके साथ रहा था. लेकिन बाद में, उनके पति ने बेटे की कस्टडी ले ली थी.

फेमस सिंगर से रहा रिलेशन

मैरिज टूटने के बाद कुनिका एक समय पर फेमस सिंगर कुमार सानू के साथ रिलेशनशिप में भी रही थीं, जिसके बारे में उन्होंने खुलकर बात की और बताया कि जब कुमार सानू से उनकी मुलाकात हुई तब सानू अपनी मैरिड लाइफ से खुश नही थे. वह बहुत बुरे वक्त से गुजर रहे थे. उस समय मै उनके साथ 6 साल रही, उसके बाद उनका बौलीवुड के फेमस विलेन प्राण के बेटे से अफेयर हो गया और वो जल्द ही साथ रहने लगे थे. उस समय दोनों की उम्र कम थी, इसलिए उनका रिलेशन जल्दी खत्म हो गया.

दूसरी शादी से पहले हो गई थीं प्रेग्नेंट

पहली मैरिज के टूटने और दो बार प्यार में पड़ने और असफल होने के बाद कुनिका को एक अमेरिकी आदमी के प्यार में पड़ी और मैरिज से पहले ही प्रेग्नेंट हो गई थीं और मैरिज नहीं करना चाहती थीं. वह नीना गुप्ता की तरह सिंगल मदर बनना चाहती थीं. इसके अलावा वह अपने दूसरे बेटे को खोना नहीं चाहती थीं. उन्हें डर था कि कही ये रिलेशन भी न टूट जाए.

नीना गुप्ता की सलाह और पिता की धमकी से की दूसरी मैरिज

कुनिका ने दूसरी मैरिज के लिए फेमस एक्ट्रेस नीना गुप्ता से जब सलाह मांगी तो उन्होंने कहा कि लड़का अच्छा है, मैरिज कर लो. वहीं दूसरी तरफ कुनिका के फादर ने भी यह धमकी दी थी कि जब तक वह मैरिज नहीं करेंगी वह उनके बेटे को अपनाएंगे नहीं, जिसके बाद उन्होंने दोबारा मैरिज करने का फैसला किया. कुनिका ने दूसरी मैरिज 35 साल की उम्र में अमेरिका में की. मैरिज के 4-5 महीने बाद ऐक्ट्रैस ने दूसरे बेटे को जन्म दिया.

दूसरी मैरिज भी रही असफल

कुनिका की दूसरी मैरिज भी ज्यादा नही चली. दूसरे पति से भी उनका 2006 में डिवोर्स हो गया. लेकिन इस बार बेटे की कस्टडी के लिए कुनिका को लड़ना नहीं पड़ा. वह रजामंदी से अपने बेटे को साथ ले गईं, उन्होंने अपने बेटे को उसके पिता से मिलने से कभी नहीं रोका. कुनिका ने बताया दोनों बेटों में 17 साल का फर्क है और दोनों के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग है.

लाइफ में मां और बहन का सपोर्ट

दूसरी मैरिज असफल होने के बाद मैंने खुद में कमियां ढूंढ़नी शुरू कर दी. मैं अमेरिका से लौटी और फिर से फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने और अपने बेटे की परवरिश में लग गई. बिना किसी आर्थिक सपोर्ट के बहुत मुश्किल था. उस समय मेरी मां और छोटी बहन ने बहुत सपोर्ट किया जिसकी वजह से लाइफ में आगे बढ़ पाई.

फेमस फिल्मे और टीवी शोज

कुनिका ने हम साथ- साथ हैं, बेटा’, ‘गुमराह’ ‘खिलाड़ी’ कोयला’, ‘गुमराह’, ‘फरेब’, ‘हेरा फेरी’, ‘शादी करके फंस गया यार’ और ‘पेज थ्री’ जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया है और इसी के साथ वह कई हिट टीवी शोज, जैसे स्वाभिमान, काल भैरवः रहस्य, ससुराल सिमर का, संजोग से बनी संगिनी और प्यार का दर्द है मीठा-मीठा प्यारा-प्यारा में भी नजर आयी थी.

Potato Snacks Recipe : घर पर कर रहे हैं पार्टी, तो आलू से बनाएं ये स्नैक्स

Potato Snacks Recipe : बर्थडे, एनिवर्सरी हो या फिर अन्य कोई खुशी का अवसर, उसे अपने परिचितों और फैमिली के साथ सेलिब्रेट करने के लिए पार्टी करना तो बनता ही है और पार्टी में हम ऐसी डिशेज बनाना चाहते हैं जो बनाने में तो बेहद आसान ही हो, साथ ही सभी मेहमानों को पसंद भी आए.

आलू एक ऐसी सब्जी है जो प्रत्येक घर में पायी तो जाती ही है साथ ही बच्चे बड़ों सभी को इसका स्वाद पसंद भी होता है. आलू में विटामिन बी, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम जैसे पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. आज हम आपको आलू से बनने वाले 2 ऐसे स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बहुत आसानी अपने घर में होने वाली किसी भी पार्टी में बना सकती हैं. आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

पोटैटो क्लस्टर

कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट

मिल टाइप वेज
सामग्री

सूजी 1 कप
बेसन 1 कप
मध्यम आकार के आलू 4
बारीक कटी हरी मिर्च 2
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून
नमक स्वादानुसार
अजवाइन ¼ टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर ¼ टीस्पून
गर्म मसाला ¼ टीस्पून
अदरक हरी मिर्च पेस्ट ¼ टीस्पून
कसूरी मैथी 1 टीस्पून
बेकिंग पाउडर 1 चुटकी
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

विधि

सूजी और बेसन को आधा कप पानी के साथ अच्छी तरह मिलाकर 10 मिनट के लिए ढककर रख दें. आलू को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब बेसन सूजी के घोल में सभी मसाले, अदरक, हरी मिर्च पेस्ट और कसूरी मैथी डालकर अच्छी तरह मिलाएं. अंत में बेकिंग पाउडर डालें इससे घोल एकदम फूल जाएगा. अब एक नानस्टिक पैन में शैलो फ्राइंग के लिए थोड़ा सा तेल पैन में डालें और एक मध्यम आकार के चम्मच से बैटर को डालें. चम्मच से हल्का सा फैला दें. मध्यम आंच पर दोनों तरफ़ से सुनहरा होने तक सेंकें. बटर पेपर पर निकालकर हरी चटनी के साथ सर्व करें.

-बेक्ड चीजी पोटैटो

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 20 मिनट

मील टाइप वेज
सामग्री

उबले आलू 4
चीज क्यूब्स 4
उबले कॉर्न 1 टीस्पून
चिली फ्लैक्स ¼ टीस्पून
ओरेगैनो ¼ टीस्पून
चाट मसाला ¼ टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून

विधि

उबले आलू को बीच से काटकर स्कूपर से स्कूप कर लें. अब इस आलू के इस होल में ½ टीस्पून कॉर्न डालकर ऊपर से 1 चीज क्यूब किस दें. ओरेगेनो और चिली फ्लैक्स डालकर माइक्रोवेब में 3 मिनट या चीज के मेल्ट होने तक बेक करें. माइक्रोवेब से निकालकर गर्म में ही चाट मसाला और हरा धनिया डालकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें