Alia Bhatt के चेहरे पर दिखा प्रेगनेंसी ग्लो, फैंस कर रहे तारीफ

 बौलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट ( Alia Bhatt) इन दिनों अपनी प्रैग्नेंसी के चलते फैंस के बीच छाई हुई हैं. वहीं पति रणबीर कपूर के साथ उनकी पहली प्रैग्नेंसी के चलते वह मीडिया की सुर्खियों में हैं. इसी बीच एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने प्रैग्नेंसी अनाउंसमेंट के बाद पहली बार मीडिया के सामने पहुंची हैं, जिसे देखकर फैंस उनके लुक की तारीफ कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ट्रेलर लॉच पर पहुंची आलिया

 

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हाल ही में अपनी पहली प्रोडक्शन ‘डार्लिंग्स’ (Darlings) के ट्रेलर लौंच पर एक्ट्रेस आलिया भट्ट का लुक सुर्खियों में आ गया है. दरअसल, अपकमिंग फिल्म ‘डार्लिंग्स’ के ट्रेलर लौंच पर पहुंची आलिया भट्ट ने पीले रंग की ड्रेस पहनी थीं, जिसमें उनका बेबी बंप तो नहीं नजर आ रहा था. लेकिन प्रैग्नेंसी के कारण चेहरे का ग्लो देख फैंस उनकी तारीफें करते दिख रहे थे.

 

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रणवीर सिंह के सवाल पर कही ये बात

 

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फिल्म के ट्रेलर लौंच पर जहां अपनी ग्लोइंग स्किन के चलते एक्ट्रेस आलिया भट्ट सुर्खियों में हैं तो वहीं रणवीर सिंह के हाल ही में वायरल हुए बोल्ड फोटोशूट पर क्यूट रिएक्शन के चलते मीडिया में छाई हुई हैं. दरअसल, एक्ट्रेस ने एक्टर के सवाल पर क्यूट अंदाज में कहा कि वह रणवीर सिंह के फोटोशूट पर कुछ नहीं कहना चाहती हैं.

फोटोज क्लिक करवाती दिखीं आलिया

 

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पीले कलर की ड्रैस के अलावा एक्ट्रेस आलिया भट्ट शरारा पहने मीडिया के सामने पोज देती हुई भी नजर आईं. काले कलर के शरारा में जहां एक्ट्रेस चुन्नी से अपना बेबी बंप छिपाती दिखीं तो वहीं फोटोज क्लिक करवाने के लिए कभी गार्डन तो कभी बिल्डिंग के सामने पोज देती नजर आईं. आलिया भट्ट का ये क्यूट अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

बता दें डार्लिंग्स आलिया भट्ट के प्रौडक्शन में बनीं पहली फिल्म है, जो 5 अगस्त 2022 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली है, जिसके चलते वह सुर्खियों में हैं.

Photo And Video Credit- Viral Bhayani

REVIEW: जानें कैसी है Ranbir Kapoor की फिल्म Shamshera

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

निर्देशकः करण मल्होत्रा

लेखकः एकता पाठक मलहोत्रा,नीलेश मिश्रा,खिला बिस्ट,पियूष मिश्रा

कलाकारः रणबीर कपूर,संजय दत्त, वाणी कपूर, रोनित रौय,सौरभ शुक्ला,क्रेग मेक्गिनले व अन्य

 अवधिः दो घंटे 40 मिनट

सिनेमा एक कला का फार्म है. सिनेमा समाज का प्रतिबिंब होता है. सिनेमा आम दर्शक के लिए  मनोरंजन का साधन है. मगर इन सारी बातों को वर्तमान समय का फिल्म सर्जक भूल चुका है. वर्तमान समय का फिल्मकार तो महज किसी न किसी अजेंडे के तहत ही फिल्म बना रहा है. कुछ फिल्मकार तो वर्तमान सरकार को ख्ुाश करने या सरकार की ‘गुड बुक’ में खुद को लाने के ेलिए अजेंडे के ही चलते फिल्म बनाते हुए पूरी फिल्म का कबाड़ा करने के साथ ही दर्शकों को भी संदेश दे रहे हंै कि दर्शक उनकी फिल्म से दूरी बनाकर रहे. कुछ समय पहले फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज ’’ में इतिहास का बंटाधार करने के बाद अब फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा ने जाति गत व धर्म के अजेंडे के तहत पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ लेकर आए हैं,जिसमें न कहानी है, न अच्छा निर्देशन न कला है. जी हॉ! फिल्म ‘शमशेरा’ 1871 से 1896 तक नीची जाति व उंची जाति के संघर्ष की अजीबोगरीब कहानी है,जो पूरी तरह से बिखरी और भटकी हुई हैं. इतना ही नही फिल्म ‘शमशेरा’’ में नीची जाति यानीकि खमेरन जाति के लोगों को नेस्तानाबूद करने का बीड़ा उठाने वाल खलनायक का नाम है-शुद्धि सिंह. इससे भी फिल्मकार की मंशा का अंदाजा लगाया जा सकता है. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गयी है कि इस तरह अजेंडे के ेतहत फिल्म बनाने वाले कभी भी बेहतरीन कहानी युक्त मनोरंजक फिल्म नही बना सकते. वैसे इसी तरह आजादी से पहले चोर कही जाने वाली अति पिछड़ी जनजाति ‘क्षारा’  गुजरात के कुछ हिस्से मंे पायी जाती थी. इस जनजाति के लोगो ने अपने मान सम्मान के लिए काफी लड़ाई लड़ी. इनका संघर्ष आज भी जारी है.

आदित्य चोपड़ा की पिछले कुछ वर्षों से लगातार फिल्में बाक्स आफिस पर डब रही हैं. सिर्फ तीन माह के अंदर ही ‘जयेशभाई भाई जोरदार’ व ‘सम्राट पृथ्वीराज’ के बाद बाक्स आफिस पर दम तोड़ने वाली ‘शमशेरा’ तीसरी फिल्म साबित हो रही है. मजेदार बात यह है कि आदित्य चोपड़ा निर्मित यह तीनों फिल्में धर्म का भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. इसकी मूल वजह यह भी समझ में आ रही है कि अब फिल्म निर्माण नहीं बल्कि फैक्टरी का काम हो रहा है. मुझे उस वक्त बड़ा आश्चर्य हुआ जब एक बड़ी फिल्म प्रचारक ने कहा-‘‘अब क्वालिटी नही क्वांटीटी का काम हो रहा है,जिसकी सराहना की जानी चाहिए. ’ ’ वैसे फिल्म प्रचारक ने एकदम सच ही कहा. पर क्वांटीटी के नाम पर उलजलूल फिल्मों का सराहना तो नही की जा सकती. ऐसी पीआर टीम किसी फिल्म या निर्माता निर्देशक या कलाकारों को किस मुकाम पर ले जाएगी, इसका अहसास हर किसी को कर लेना चाहिए.

कहानी:

कहानी 1871 में शुरू होती है. उत्तर भारत के किसी कोने में एक खमेरन नामक बंजारी कौम थी,जिसने मुगलों के खिलाफ राजपूतों का साथ दिया.  लेकिन मुगल जीत गए और राजपूतों ने खमेरनों को नीची जाति बता कर हाशिये पर डाल दिया. इससे शमशेरा(रणबीर कपूर) के नेतृत्व में खमेरन बागी हो गए और वह हथियार उठाकर डाकू बन गए.  शमशेरा और उसके साथियों ने अमीरों की नाक में दम कर दिया. तब अमीरों ने अंग्रेज अफसरों से मदद की गुहार लगायी.  अंग्रेज पुलिस बल में नौकरी कर रहा दरोगा शुद्ध सिंह (संजय दत्त) अपने हुक्मनारों से कहता है कि वह शमशेरा को ठीक कर देगा. शुद्ध सिंह,शमशेरा को समझाता है कि सभी खमेरन के साथ वह सरकार के सामने आत्म समर्पण कर दें,जिसके बदले में अंग्रेज उन्हे अमीरो से दूर एक नए इलाके में बसाएंगे.  पैसा भी देंगे.  इससे वह और उसकी पूरी कौम सम्मान और इज्जत का जीवन फिर शुरू कर सकते हैं. शमशेरा समझौते को मंजूर कर लेता है. लेकिन आत्मसमर्पण करते ही शमशेरा को अहसास होता है कि उसके और खमेरन कौम को धोखा मिला है.  शुद्ध सिंह ने इन सभी को काजा नाम की जगह पर बनी विशाल किलेनुमा जेल में कैद कर देता है और फिर इनके साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है. इस किले के तीन तरफ से अति गहरी आजाद नदी बहती है. शमशेरा को शुद्ध सिंह समझाता है कि अंग्रेज लालची हैं. अमीरों ने पांच हजार करोड़ सोने के सिक्के दिए हैं,वह दस हजार करोड़ सोने के सिक्के दे,तो उसे व उसकी पूरी खमेरन कौम को आजादी मिल जाएगी. स्टैंप पेपर पर लिखा पढ़ी हो जाती है. सोना जमा करने के लिए किले से बाहर निकलना जरुरी है. इसी चक्कर में शुद्ध सिंह की चाल में फंसकर शमशेरा न सिर्फ मारा जाता है,बल्कि खमेरन कौम उसे भगोड़ा भी कहती है.

शमशेरा की मौत के वक्त उसकी पत्नी गर्भवती होती है,जो कि बेटे बल्ली (रणबीर कपूर) को जन्म देती है. बल्ली 25 वर्ष का हो गया है. मस्ती करना और जेल के अंदर डांस करने आने वाली सोना(वाणी कपूर ) के प्यार में पागल है. अब तक उसे किसी ने नहीं बताया कि उसे भगोड़े का बेटा क्यों कहा जाता है. बल्ली भी अंग्रेजों की पुलिस में अफसर बनना चाहता है. शुद्धसिंह उसे अफसर बनाने के लिए परीक्षा लेने के नाम पर बल्ली की जमकर पिटायी कर देता है. तब उसकी मां उसे सारा सच बाती है कि उसका पिता भगोड़ा नही था,बल्कि सभी खमेरन को आजाद करने की कोशिश में उन्हे मौत मिली थी. तब बल्ली भी अपने पिता की ही राह पकड़कर उस जेल से भागने का प्रयास करता है,जिसमें उसे कामयाबी मिलती है. वह काजा से निकलकर नगीना नामक जगह पहुॅचता है,जहां उसके पिता के खमेरन जाति के कई साथी रूप बदलकर शमशेरा के आने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद बल्ली उन सभी के साथ मिलकर सभी खमेरन को आजाद कराने के लिए संघर्ष शुरू करता है. सोना भी उसके साथ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः शुद्धसिंह मारा जाता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसके चार लेखक व निर्देशक करण मल्होत्रा खुद हैं. फिल्म में एक नहीं चार लेखक है और चारों ने मिलकर फिल्म का सत्यानाश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. इनचारों ने 2013 की असफल हौलीवुड फिल्म ‘‘द लोन रेंजर’’ की नकल करने के साथ ही डाकू सुल्ताना,फिल्म ‘नगीना’ व असफल फिल्म ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ का कचूमर बनाकर ‘शमशेरा’ पेश कर दिया. लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन की हद यह है कि इस जेल के अंदर सभी खमेरन मोटी मोटी लोहे की चैन से बंधे हुए हैं. इन्हे नहाने के लिए पानी नहीं मिलता. दरोगा शुद्ध सिंह इनसे क्या काम करवाता है,यह भी पता नही. सभी के पास ठीक से पहनने के लिए कपड़े नही है. इन सब के बावजूद बल्ली अच्छे कपड़े पहनता है. बल्ली ने अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई कहां व कैसे की. वह अंग्रेजों और शमशेरा के बीच हुआ अंग्रेजी में लिखा समझौता पढ़-समझ लेता है. वह नक्शा पढ़ लेता है. आसमान में देखकर दिशा समझ जाता है. सोना जैसी डंासर से इश्क भी कर लेता है.

हौलीवुड फिल्म ‘‘ द लोन रेंजर’’ में ट्ेन,सफेद घोड़ा व लाखों कौए,बाज पक्षी के साथ ही पिता की मृत्यू के बदले की कहानी भी है. यह सब आपको फिल्म ‘‘शमशेरा’’ में नजर आ जाएगा.  शमशेरा और बल्ली पर जब भी मुसीबत आती है,उनकी मदद करने लाखों कौवे अचानक पहुॅच जाते हैं,ऐसा क्यांे होता है,इस पर फिल्म कुछ नही कहती. लेकिन जब बल्ली किले से भाग कर एक नदी किनारे बेहोश पड़ा होता है, तो उसे होश में लाने के लिए कौवे की जगह अचानक एक बाज कैसे आ जाता है? मतलब पूरी फिल्म बेसिर पैर के घटनाक्रमों का जखीरा है. एक भी दृश्य ऐसा नही है जिससे दर्शकों का मनोरंजन हो. इंटरवल से पहले तो फिल्म कुछ ठीक चलती है,मगर इंटरवल के बाद केवल दृश्यों का दोहराव व पूरी फिल्म का विखराव ही है.

2012 में फिल्म ‘अग्निपथ’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने उम्मीद जतायी थी कि वह एक बेहतरीन निर्देशक बन सकते हैं. मगर 2015 में फिल्म ‘‘ब्रदर्स’’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने जता दिया था कि उन्हे निर्देशन करना नही आता. अब पूरे सात वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से जता दिया कि वह पिछले सात वर्ष निर्देशन की बारीकियां सीखने की बजाय निर्देशन के बारे में उन्हे जो कुछ आता था ,उसे भी भूलने का ही प्रयास करते रहे. तभी तो बतौर निर्देशक ‘शमशेरा’ में वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के कई दृश्य अति बचकाने हैं. निर्देशक को यह भी नही पता कि 25 वर्ष में हर इंसान की उम्र बढ़ती है,उसकी शारीरिक बनावट पर असर होता है. मगर यहां शुद्ध सिंह तो ‘शमशेरा’ और ‘बल्ली’ दोनो के वक्त एक जैसा ही नजर आता है.

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी पीयूष मिश्रा लिखित संवाद हैं. कहानी 1871 से 1896 के बीच की है. उस वक्त तक देश में खड़ी बोली का प्रचार प्रसार होना शुरू ही हुआ था.  अवधी और ब्रज बोलने वाला फिल्म में एक भी किरदार नहीं है जो उत्तर भारत की उन दिनों की अहम बोलियां थी.

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने इस फिल्म को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी की कहानी के रूप में प्रचार किया. जबकि यह पूरी फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है.  जी हॉ!यह स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. इस फिल्म में अंग्रेज शासक विलेन नही है. फिल्म में अंग्रेजांे यानी श्वेत व्यक्ति की बुराई नही दिखायी गयी है. बल्कि कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है,जिसका विलेन भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

फिल्म का वीएफएक्स भी काफी घटिया है. फिल्म का गीत व संगीत भी असरदार नही है. फिल्म के संगीतकार मिथुन ने पूरी तरह से निराश किया है. फिल्म का बैकग्राउंड संगीत कान के पर्दे फोड़ने पर आमादा है. यह संगीतकार की सबसे बड़ी असफलता ही है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो यह फिल्म और यह किरदार उनके लिए नही था. उन्हें फिलहाल रोमांस और डांस ही करना चाहिए. जितना काम यहां उन्होंने किया, उतना कोई भी कर सकता था. वैसे भी यह रणबीर कपूर वही है जो आज भी अपने कैरियर की पहली फिल्म का नाम नही बताते. उनकी इच्छा के अनुसार सभी को पता है कि रणबीर कपूर की पहली फिल्म ‘‘सांवरिया’’ थी,जिसके लिए उन्होने अपनी पहली फिल्म को कभी प्रदर्शित नही होने दिया. पर ‘सांवरिया’ असफल रही थी. वैसे रणबीर कपूर ने अपनी 2018 में प्रदर्शित अपनी पिछली फिल्म ‘‘संजू’’ में बेहतरीन अभिनय किया था. मगर चार वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से अभिनय में वापसी करते हुए वह निराश करते हैं.

वाणी कपूर ने 2013 में प्रदर्शित अपनी पहली ही फिल्म ‘‘शुद्ध देसी रोमांस’’ से जता दिया था कि उन्हे अभिनय नही आता. उनके पास दिखाने के लिए सिर्फ खूबसूरत जिस्म है. उसके बाद ‘बेफिक्रे’,‘वार’,‘बेलबॉटम’ और ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ में भी उनका अभिनय घटिया रहा. फिल्म ‘शमशेरा’ में भी वही हाल है.  उनके कपड़े डिजाइन और मेक-अप करने वाले भूल गए कि कहानी साल 1900 से भी पुरानी है. इस फिल्म में भी कई जगह उन्होने बेवजह अपने जिस्म की नुमाइश की है. देखना है इस तरह वह कब तक फिल्म इंडस्ट्ी मंे टिकी रहती हैं. इरावती हर्षे का अभिनय ठीक ठाक है.

कुछ मेकअप की कमियों को नजरंदाज कर दें तो संजय दत्त ने कमाल का अभिनय किया है. वैसे उनका किरदार काफी लाउड है.  संजय दत्त का किरदार फिल्म का खलनायक है,पर वह क्रूर कम और कॉमिक ज्यादा नजर आते हैं.  फिर भी उनका अभिनय शानदार है. पूरी फिल्म में सिर्फ संजय दत्त ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं. सौरभ शुक्ला जैसे शिक्षित कलाकार ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ से परे है. शायद रोनित राय ने भी महज पेसे के लिए फिल्म की है.

क्या होना चाहिएः

यश राज चोपड़ा की कंपनी ‘यशराज फिल्मस’’ की अपनी एक गरिमा रही है. यह प्रोडक्शन हाउस उत्कृष्ट सिनेमा की पहचान रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ‘यशराज फिल्मस’ की छवि काफी धूमिल हुई है. इस छवि को पुनः चमकाने और  अपने पिता यशराज चोपड़ा के यश को बरकरा रखने के लिए आवश्यक हो गया है कि अब आदित्य चोपड़ा गंभीरता से विचार करें. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है,जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय सिनेमा की तरह बनाएं.  माना कि ‘यशराज फिल्मस’ के पास बहुत बड़ा सेटअप है. पर आदित्य चोपड़ा को चाहिए कि वह अपनी वर्तमान टीम में से कईयों को बाहर का रास्ता दिखाकर सिनेमा की समझ रखने वाले नए लोगों को जगह दे, वह भी ऐसे नए लोग, जो उनके स्टूडियो में कार से स्ट्रगल करने न आएं.  जिनका दिमाग विदेशी सिनेमा के बोझ तले न दबा हो.  कम से कम इतनी असफल फिल्मों के बाद आदित्य को समझ लेना चाहिए कि एक अच्छी फिल्म सिर्फ पैसे से नहीं बनती.

चार लड़कियों की अनूठी रोड ट्रिप फिल्म ‘‘मियामी से न्यूयॉर्क’’ मे नए रिश्तों का जाल

जब भी ‘रोड ट्पि’ फिल्मों की बात होती है,तो लोगांे के जेहन में ‘‘हाईवे’’ ,‘‘दिल चाहता है’’ और ‘‘जिंदगी मिलेगी ना दोबारा’’ जैसी खूबसूरत व सफल फिल्मों का ख्याल सहज ही आ जाता है. अब इसी कड़ी में पांच अगस्त को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मियामी से न्यूयॉर्क’’ का नाम भी जुड़ने जा रहा है,जिसका निर्माण राकेश यू साकट ने किया है.

अनूठे किस्म की  रोड ट्पि वाली फिल्म ‘‘मियामी से न्यूयॉर्क’’ मेंें चार सहेलियों की कहानी है,जो एक दिन सड़क के रास्ते एक शहर (मियामी) से दूसरे शहर (न्यूयॉर्क) जाने का फैसला करती हैं. इसके लिए वह एक हैंडसम लड़के की मदद लेती हैं. इस रोड ट्पि फिल्म की खासियत यह है कि  इसमें एक खूबसूरत प्रेम कहानी को भी अनोखे अंदाज पिरोया गया है.

कॉमेडी व एडवेंचरस फिल्म में निहाना मिनाज (आंशु), निखर कृष्णानी (शायना), जैनेल लैक्ले (मिलि) और रोहिनी चंद्रा (आशा) यह चार सहेलियां जब एक दिन रोड ट्रिप पर निकलने के बारे में सोचती हैं तो वह सभी अपनी इस यात्रा के लिए अर्जुन आनंद (रवि) की मदद लेने का फैसला करती हैं. फिल्म की कहानी इन्हीं पांच मजेदार किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है. जैसे जैसे इनकी यात्रा सड़क के रास्ते तेजरफ्तार अंदाज में आगे बढ़ती है, फिल्म के सभी किरदारों के आपसी रिश्तों के विभिन्न पहलू सामने आने लगते हैं, जो इस फिल्म को एक अलग और रोमांचक मोड़ पर ले जाते हैं.

फिल्म ‘‘मियामी से न्यूयॉर्क’’ के निर्माता राकेश यू साकट ने कहा, ‘‘हालांकि इससे पहले भी रोड ट्रिप पर आधारित कुछ चुनिंदा फिल्में बन चुकी हैं, मगर हमारी फिल्म ‘मियामी से न्यूयॉर्क’ में रिश्तांे के ताने-बाने को एक अलग अंदाज में पेश करने की कोशिश की गयी है. हमें पूरी उम्मीद है कि नयी प्रतिभाओं के साथ बनाई गयी हमारी फिल्म की कहानी का नयापन और अंदाज-ए-बयां दोनों ही दर्शकों का खासा पसंद आएगा. ’’

‘‘प्रीशा फिल्म्स’’ के बैनर तले बनी फिल्म ‘‘मियामी से न्यूयॉर्क’’ का निर्देशन जाने-माने निर्देशन ‘‘तेरे मेरे सपने’ व ‘पागलपन’जैसी फिल्मों के निर्देशक जॉय अॉगस्टीन ने किया है. जबकि इसके कैमरामैन परीक्षित वॉरियर हैं.

30 साल से भी लम्बे समय से इंडस्ट्री से जुड़े रहे प्रतिष्ठित निर्देशक जॉय अॉगस्टीन की पहचान महज एक फिल्ममेकर के तौर पर नहीं होती, बल्कि उनकी पहचान एक निर्माता और एक अच्छे लेखक के तौर पर भी होती है. जॉय को बेहतरीन किस्म के विज्ञापन फिल्में बनाने के लिए भी जाना जाता है.

अब लंदन में संभावनाएं तलाश रहे हैं अक्षय कुमार?

अक्षय कुमार अभिनीत ‘लक्ष्मी’, ‘बच्चन पांडे’ और ‘सम्राट पृथ्वीराज ’ सहित लगभग छह फिल्मों के बाक्स आफिस पर बुरी तरह से असफल हो जाने के बाद उनके कैरियर पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. सूत्रांे पर यकीन किया जाए तो अक्षय कुमार की ‘गोरखा’ सहित पांच फिल्में बंद कर दी गयी हैं. इसलिए अब अक्षय कुमार की सारी उम्मीदंे 11 अगस्त को प्रदर्शित होने वाली आनंद एल राय निर्देशित फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ पर टिकी हुई हैं. अक्षय कुमार इस फिल्म के लिए विश्व स्तर पर संभावनाएं तलाश रहे हैं.

अक्षय कुमार इन दिनों लंदन में हैं,जहां वह वासु भगनानी की नई फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं. तो अक्षय कुमार ने फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ का भी प्रमोशनल इवेंट करने का विचार कर योजना बना डाली. और अब 18 जुलाई को  लंदन के ‘सिनेवल्र्ड फेलथम’ में  शाम छह बजे फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ का एक खास गाना रिलीज किया जाएगा. इसके पोस्टर लंदन में लग गए हैं. इस अवसर पर अक्षय कुमार,फिल्म की नायिका भूमि पेडणेकर और निर्देशक आनंद एल राय भी मौजूद रहेंगंें.

इस तरह लंदन में फिल्म ‘रक्षाबंधन’ का गाना रिलीज कर लंदन में रह रहे अप्रवासी भारतीयांंें को आकर्षित करना ही माना जा रहा है. वैसे भी लंदन के इस ‘सिनेवल्र्ड’ सिनेमाघर में ज्यादातर भारतीय फिल्में प्रदर्शित होती हैं. सूत्रों का दावा है कि अक्षय कुमार और आनंद एल राय अपनी फिल्म ‘रक्षाबंधन’’ को लंदन सहित विश्व के कई शहरांे में प्रदर्शित करने की योजना पर काम कर रहे हैं. वैसे भी फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ की सफलता या असफलता का सबसे बड़ा असर अक्षय कुमार पर ही पड़ने वाला है. पहली बात तो इस वक्त उनका कैरियर खतरे में पड़ा हुआ है. पिछले कुछ समय में उनकी कई फिल्में असफल हुई हैं.  और उनके हाथ से कई फिल्में चली गयी हैं. दूसरी बात इस फिल्म के निर्माण से भी अक्षय कुामर जुड़े हुए हैं.

अक्षय कुमार और आनंद एल राय अब तक भारत में फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के दो प्रमोशनल इवेंट कर चुके हैं. फिल्म का ट्ेलर दिल्ली में लांच किया गया था. जबकि फिल्म का एक गाना ‘‘तेरे साथ हॅूं मैं’’ मंुबई में लांच किया गया था. मगर अभी तक इस फिल्म को लेकर चर्चाओं का दौर उतना गर्म नही हो पाया है,जितना कि होना चाहिए. शायद लंदन में गाने के लांच इवेंट से फिल्म को कुछ फायदा मिल जाए.

REVIEW: जानें कैसी है फिल्म ‘जुदा होके भी’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः के सेरा सेरा, विक्रम भ्ज्ञट्ट प्रोडक्शन

लेखकः महेश भट्ट

निर्देशकः विक्रम भट्ट

कलाकारः अक्षय ओबेराय, एंद्रिता रे, मेहेरझान मझदा, जिया मुस्तफा,  रूशद राणा‘

अवधिः दो घंटे दो मिनट

गुलाम , राज सहित कई सफलतम फिल्मों के निर्देशक विक्रम भट्ट को सिनेमा जगत में नित नए सफल प्रयोग करने के लिए जाना जाता है. रामसे बंधुओं के बाद हॉरर फिल्मों को एक नई पहचान देने में विक्रम भट्ट का बढ़ा योगदान है. अब विक्रम भट्ट फिल्मों की शूटिंग की एक नई तकनीक ‘‘वच्र्युअल फार्मेट’’ लेकर आए हैं. इसी तकनीक वह पहली हॉरर के साथ प्रेम कहानी युक्त फिल्म ‘‘जुदा होके भी’’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होने वशीकरण का तड़का भी डाला है. वशीकरण एक ऐसी तांत्रिक क्रिया है, जिससे किसी भी इंसान व उसकी सोच को अपने वश में किया जा सकता है. मगर यह फिल्म कहीं से भी डराती नही है. विक्रम भट्ट का दावा है कि ‘वच्र्युअल तकनीक ही सिनेमा का भविष्य है. मगर फिल्म ‘जुदा हो के भी ’’ देखकर ऐसा नही लगता. विक्रम भट्ट के निर्देशन में बनी यह सबसे कमजोर फिल्म कही जाएगी.

कहानीः

कम उम्र में अपने बेटे राहुल की मृत्यु के बाद सफल गायक व संगीतकार अमन खन्ना (अक्षय ओबेरॉय) इस कदर टूट जाते हैं,  कि वह खुद को दिन रात शराब के नशे में डुबा कर अपना जीवन व कैरियर तहस नहस कर देते हैं. इस त्रासदी के परिणामस्वरूप मीरा (ऐंद्रिता रे) से उसकी शादी को भी नुकसान हुआ है. पिछले चार वर्षों से मीरा ही किताबें लिखकर या दूसरों की लिखी किताबांे का संपादन कर घर का खर्च चला रही है. पति अमन से मीरा की आए दिन तूतू में मैं होती रहती है. इसी बीच उत्तराखंड में बिनसार से सिद्धार्थ जयवर्धन (मेहरजान मज्दा) अपनी जीवनी लिखने के लिए मीरा को उत्तराखंड आने का निमंत्रण देते हैं. इसके एवज में वह मीरा को बीस लाख रूपए देने की बात कहते हैं. अमन नही चाहता कि मीरा उससे दूर जाए. मगर घर के आर्थिक हालात व पति के काम करने की बजाय दिन रात शराब मंे डूबे रहने के चलते मीरा कठोर मन से उत्तराखंड चली जाती है. उत्तराखंड के अति सुनसान इलाके बिनसार में पहुॅचने के बाद मीरा अपने आपको सिद्धार्थ जयवर्धन के मकड़जाल मे फंसी हुई पाती है. उधर उत्तराखंड में टैक्सी चलाने वाली रूही के अंधे पिता(रुशाद राणा),  अमन को सचेत करते है कि वह मीरा को बचा ले. अमन उत्तराखंड पहुॅचकर मीरा को अपने साथ ले जाना चाहता है. पर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.

लेखन व निर्देशनः

पिछले कुछ वर्षों से विक्रम भट्ट हॉरर फिल्में बनाते रहे हैं, जिनमें हॉरर में प्रेम कहानी हुआ करती थी. मगर इस बार उन्होने प्रेम कहानी में हॉरर को पिरोया है. इस फिल्म का निर्माण व निर्देशन विक्रम भट्ट ने महेश भट्ट के कहने पर किया है. ज्ञातब्य है कि बीस वर्ष पहले विक्रम भट्ट निर्देशित सफलतम सुपर नेच्युरल हॉरर फिल्म ‘‘राज’’ का लेखन महेश भट्ट ने किया था और अब ‘‘जुदा होके भी ’’ का लेखन महेश भट्ट ने किया है. मगर अफसोस  ‘जुदा होके भी ’’की कहानी व पटकथा काफी कमजोर ही नही बल्कि त्रुतिपूर्ण नजर आती है. फिल्म में टैक्सी चलाने वाली रूही व उसके अंधे पिता के किरदार ठीक से चित्रित ही नही किए गए. रूही के पिता अंधे होने के ेबावजूद सब कुछ कैसे देखे लेते हैं. उनके पास कौन सी शक्तियां हंै कि वह मंुबई में अमन के घर ही नहीं ट्ेन में भी अमन के पास पहुॅच जाते हैं? सब कुछ अस्पष्ट और अजीबो गरीब नजर आता है.  यह लेखक की कमजोर कड़ी है.

इस बार महेश भट्ट अपने लेखन से  प्रेम को वासना से अलग नही दिखा पाए. इसके अलावा फिल्म में जिन अलौकिक गतिविधियांे की बात की गयी है,  वह रोमांचक और डरावनी भी नहीं हैं. अजीबोगरीब फुसफुसाहट हर जगह गूंजती रहती है. मीरा कुछ भयानक चीजें जरुर देखती है,  लेकिन इससे दर्शक पर कोई असर नही पड़ता. कहानी में कोई ट्विस्ट भी नही है. कहानी एकदम सपाट धीरे धीरे चलती रहती है. यहां तक कि क्लायमेक्स में एक भयानक प्राणी के संग नायक अमन की लड़ाई भी प्रभाव पैदा करने मे विफल रहती है. दर्शक इस तरह के भयंकर प्राणी को इससे पहले विक्रम भट्ट की ही थ्री डी फिल्म ‘क्रिएचर’ मंे देख चुके हैं.

संवाद जरुर काफी भरी भरकम हैं. फिल्म वर्तमान में जीने की बात कहते हुए कहती है-‘‘जिंदगी बहुत सुंदर है, क्योंकि वह खत्म होती है. और हमें उन लोगों को छोड़ देना चाहिए, जो गुजर चुके हैं और वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. ’’

जहां तक निर्देशन का सवाल है तो जब पटकथा कमजोर हो , कुछ किरदार अस्पष्ट हों, तो निर्देशन कमजोर हो ही जाता है. इसके अलावा इस बार विक्रम भट्ट ने अपनी इस फिल्म को नई वच्र्युअल तकनीक पर फिल्माया है, जो कि जमी नही. इस तकनीक से फिल्म का बजट भी नही उभरता और बहुत कुछ बनावटी लगता है. इस हिसाब से ‘वच्र्युअल फार्मेट’ की तकनीक के भविष्य पर सवाल उठते हैं?उत्तराखंड की कड़ाके की ठंड में मीरा हमेशा शिफॉन  या नेट की ही साड़ी में नजर आती है, यह भी बड़ा अजीब सा लगता है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अमन के किरदार में अक्षय ओबेराय ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है. वह एक गम में डूबे इंसान की ज्वलंत भावनाओं और बेबसी को भी बहुत बेहतरीन तरीके से परदे पर उकेरा है. मीरा के किरदार में एंद्रिता रे काफी हद तक फिल्म को आगे ले जाती हैं. उनका अभिनय कई दृश्यों में काफी शानदार बन पड़ा है. सिद्धार्थ जयवर्धन के किरदार मेे महेरझान मझदा ने मेहनत काफी की है, मगर इस चरित्र को ठीक से लिखा नही गया. परिणामतः एक खूबसूरत चेहरे वाला विलेन उभरकर नही आ पाता. अंधे व्यक्ति के किरदार में रूशद राधा ने ठीक ठाक काम किया है, जबकि इस चरित्र को भी लेखक ठीक से उभार नही पाए. रूही के किरदार में जिया मुस्तफा के हिस्से करने को कुछ खास रहा ही नही.

विवादों के बारे में क्या कहते है Ram Gopal Varma, पढ़ें इंटरव्यू

निर्देशक राम गोपाल वर्मा हमेशा लीक से हटकर फिल्में बनाते है, उनकी फिल्मों में वायलेंस, रोमांस,एक्शन का भरपूर समावेश होता है. वे इसे आसपास की घटनाओं से प्रेरित फिल्में बनाते है. फिल्मों के निर्देशन के अलावा राम गोपाल स्क्रीन राइटर और प्रोड्यूसर भी है.हिंदी फिल्म शिवा, सत्या, रंगीला,भूत आदि उनकी चर्चित फिल्में है. हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने तेलगू सिनेमा और टीवी में भी नाम कमाया है. सिविल इंजिनीयरिंग की पढ़ाई कर चुके राम गोपाल वर्मा को कभी लगा नहीं था कि वे एक दिन इतने बड़े निर्देशक बन जायेंगे. अच्छी फिल्में बनाने की वजह से उन्हें कई फिल्मों में पुरस्कार भी मिला है.

घबराते नहीं

राम गोपाल वर्मा हमेशा विवादों में रहते है, पर ऐसे कंट्रोवर्सी से वे घबराते नहीं और जो भी बात उन्हें सही नहीं लगती, वे तुरंत कह देते है. उन्हें कई बारट्वीट की वजह से लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा, लेकिन वे पीछे नहीं हटे. वे कानून को सर्वोपरि मानते है, डेमोक्रेसी में कानून जिस चीज को करने की इजाजत देती है, उसे करना पसंद करते है, बाकी को वे पर्सनल सोच बताते है. किसी प्रकार की फाइट भी कानून के साथ करे, आपस में नहीं, क्योंकि इससे आपसी मतभेद बढती है.

राम गोपाल ने अपना करियर वीडियो लाइब्रेरी से शुरू किया है, क्योंकि ये उनका सपना था और इसे उन्होंने हैदराबाद में खोला था. बाद में उन्होंने वीडियो कैफे भी खोला और वही से उन्हें दक्षिण की फिल्मों में काम करने का अवसर मिला. धीरे-धीरे वे प्रसिद्ध होते गए. अभी वे नामचीन निर्देशकों की श्रेणी में माने जाते है. फिल्म ‘सत्या’उनके जीवन की टर्निंग पॉइंट थी. राम गोपाल वर्मा का रिश्ता पहले उर्मिला मातोंडकर, अंतरा माली, निशा कोठारी, जिया खान आदि के साथ जुड़ने की वजह से भी वे सुर्खियों में रहते है.अभी उनकी फिल्म ‘लड़की- enter the girl dragon’ रिलीज हो चुकी है, अब उन्हें दर्शकों की प्रतिक्रिया देखने की बारी है.

हुए प्रसिद्ध

प्रसिद्ध निर्देशक की कल्पना उन्होंने की थी या नहीं पूछे जाने पर वे कहते है कि हमेशा से मुझे एक फिल्म बनाने की बहुत इच्छा थी,जिसे मैं देखना चाहता हूँ, उससे अधिक मैंने कुछ भी नहीं सोचा था. आज की फिल्मों में माड़-धाड़, गली गलौज बहुत अधिक होती है, इस बारें में राम गोपाल वर्मा कहते है किफिल्म इंडस्ट्री एक बुक शॉप की तरह है, जहाँ कोई फॅमिली ड्रामा, कोई एक्शन तो कोई रोमांस की किताबें ले जाना पसंद करते है, इसलिए जिसे जो पसंद हो वे उसे देख सकते है. फिल्में जल्दी बनने की वजह तकनीक का अधिकतम विकास होना है. आज फिल्मों में VFX भी बहुत होता है. तकनीक की वजह से फिल्में भी जल्दी बनती  है.

मार्शल आर्ट सीखना है जरुरी

राम गोपाल कहते है कि मैंने WWCकार्यक्रम में महिलाओं की एक शो को देखा था, जिसमे लड़कियों की body को मसल्स के साथ स्ट्रोंग भी दिखाया जाता है, मुझेबहुत अच्छा लगा था.इस शो से प्रेरित होकर कई लड़कियों ने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेने मार्शल आर्ट स्कूल में जाने लगी थी. ब्रूस ली की भी हाइट बहुत कम है, लेकिन उसकी मार्शल आर्ट इतनी अच्छी है कि बड़े-बड़े लोग भी उससे डर जाते है. इसके अलावा हर लड़की के बारें में हमारे समाज और परिवार में ये अवधारणा है कि वह कमजोर है, इसलिए लड़के उनके साथ छेड-छाड़, रेप, गन्दी आचरण आदि कुछ भी करने या कहने से डरते नहीं और बेचारी लड़की चुप रहती है. उसे कहीं जाने या अपने मन की पोशाक पहनने की आज़ादी नहीं होती,सभी उनपर आरोप लगाते रहते है, लेकिन परिवार और समाज उनके लिए कुछ नहीं करती, उन्हें सेल्फ प्रोटेक्शन की ट्रेनिंग नहीं दी जाती, लड़की है कहकर उसके लिए पाबंदियां लगा देते है,उसकी रहन-सहन, पोशाक आदि पर भी आरोप लगते है. इसलिए मैंने सोचा अगर किसी लड़की में साहस और मार्शल आर्ट को मिलाकर डाल दिया जाता है तो वास्तव में वह लड़की स्ट्रोंग होगी. मेरी फिल्म की चरित्र पूजा भालेकर भी ऐसी ही लेडी है, जिसका कोई कुछ बिगड़ नहीं सकता. आज हर लड़की को फिट रहने के साथ-साथ मार्शल आर्ट भी सिखने की जरुरत है.

मनोरंजन है जरुरी

राम गोपाल कहते है कि ऐसी फिल्मों को मनोरंजन के साथ बनाना मुश्किल होता है. फिल्म चाहे थिएटर हो या ओटीटी बजट मुख्य होता है. उसके अनुसार ही मैंने फिल्मे बनाई है, कई बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउसेस बड़ी बजट की फिल्में बनाते है और ओटीटी पर ही रिलीज करते है और उनकी मार्केटिंग भी महँगी होती है, ऐसे में आपने कितनी बजट की फिल्म बनाई और फिल्म ने कितनी कमाई की, इसे देखने की जरुरत है. मैं बहुत साल से इस कांसेप्ट पर काम कर रहा हूँ.

नेचुरल एक्टिंग है मुश्किल

मार्शल आर्ट की रियल एक्सपर्ट पूजा भालेकर को राम गोपाल ने इस फिल्म में लिया और उनकी ये डेब्यू फिल्म है, कितना मुश्किल था उनके साथ काम करना पूछने पर उनका कहना है कि एक्टिंग दो तरह के होते है, एक वे जो एन एस डी से ट्रेनिंग लेकर आते है और एक वे जो नेचुरल एक्टिंग करते है. हर व्यक्ति के पास मिनिमम एक्टिंग का टैलेंट होता है, क्योंकि किसी भी परिस्थिति में हम जब किसी से बात करते है, तो एक्टिंग ही बाहर आती है. कैमरे के सामने आने पर कलाकार सचेत हो जाते है. मैं कैसी दिख रही हूँ, संवाद कैसे बोल रही हूँ आदि को लेकर मन में द्वन्द चलता रहता है.मन के भाव कोचेहरे पर दिखाना भी एक कला है. पूजा ने वर्कशॉप में ही सिद्ध कर दिया था कि वह एक अच्छी एक्ट्रेस है. आँखों में मार्शल आर्ट के साथ संवाद को सही तरह से बोलने की कोशिश की है, मैंने उन्हें समझाया है कि इमोशन को एक्शन के साथ चेहरे पर लाना है, जिसे उन्होंने बहुत अच्छी तरह से किया. मुझे अधिक ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ी.

राम गोपाल वर्मा आगे कहते है कि महिला सशक्तिकरण के ऊपर हमेशा फिल्में बनती है और इसमें एक लड़की पुरुष की तरह काम की है. हमारे देश में लड़कियों को समान अधिकार है, लेकिन लड़की को दबा कर रखने के लिए हमेशा पुरुष उसे कुछ करने से मना किया जाता है. जबकि लड़की भी अपने शरीर के हिसाब से सब कुछ कर सकती है. इसमें पहले मैं परिवार की जिम्मेदारी समझता हूँ.

फिल्मों में अंधविश्वास को लेकर क्या कहते हैं निर्देशक विक्रम भट्ट

‘जनम’, ‘मदहोश’, ‘गुलाम’, ‘राज’, ‘आवारा पागल दीवाना’,  ‘फुटपाथ’, ‘एतबार’, ‘जुर्म’, ‘हंटेड थ्री डी’ व ‘1921’सहित लगभग 36 फिल्मों का निर्देशन कर चुके विक्रम भट्ट सिनेमा जगत में अक्सर नए नए प्रयोग करते रहे हैं. अब वह एक नया प्रयोग करते हुए वच्र्युअल प्रोडक्शन तकनीक की पहली फिल्म ‘‘ जुदा हो के भी’’ लेकर आए हैं. अक्षय ओबेराय, एंद्रिता रे व मेहेरझान मझदा के अभिनय से सजी फिल्म 15 जुलाई को सिनेमाघरों में पहॅुच रही है. .

प्रस्तुत है विक्रम भट्ट से एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

अपने अब तक के कैरियर में आपने सिनेमा में कई प्रयोग किए हैं. अब आप भारत की पहली वच्र्युअल फिल्म ‘‘जुदा हो के भी ’’लेकर आ रहे हैं. इस वच्र्युअल फार्मेट का ख्याल कैसे आया?

-वच्र्युअल फार्मेट कोविड काल के लॉक डाउन की देन है. जब लॉक डाउन हुआ, तो सब कुछ बंद हो गया. फिल्मों की शूटिंग भी एकदम बंद हो गयी. जैसे ही लॉक डाउन में थोड़ी सी ढील मिली, तब भी काफी मुश्किलें थीं. क्यांेकि कई तरह की बंदिशे थीं. आप डांसर का उपयोग नही कर सकते. रात में शूटिंग नही कर सकते. . वगैरह वगैरह. . . तो यह चिंता की बात थी. सब कुछ थोड़ा सा सामान्य हुआ कि तभी कोविड की दूसरी लहर आ गयी. सब कुछ अनिश्चितता की स्थिति थी. कोई कह रहा था कि कोविड के हालात अगले तीन वर्ष तक रहेंगंे. . कोई छह साल तक रहने का दावा कर रहा था. कोई कह रहा था कि यह तो कई वर्षों तक चलेगा. तो मैं और मेरे बॉस यानी कि महेश भट्ट साहब सोचने पर मजबूर हो गए कि यदि यही हालात रहेंगे, तो हम फिल्में कैसे बनाएंगे. तभी हमें वच्र्युअल फार्मेट के बारे में पता चला. इसमें हम अपनी मर्जी से अपनी दुनिया बना सकते हैं.  इसकी दुनिया भी हमारी रोजमर्रा की दुनिया जैसी ही लगती है. लेकिन उस दुनिया में आप अपने किरदारों@ कलाकारों को रखकर फिल्म बना सकते हैं. तो मुझे यह बहुत रोचक लगा. लेकिन इसके लिए मुझे काफी सीखना पड़ा. पहले मैने बेसिक कोर्स किया. फिर मैने लाइटिंग का कोर्स किया. फिर आर्किटेक्चर का कोर्स किया. फिर हमने इस फार्मेट को थोड़ा थोड़ा वेब सीरीज में उपयोग करके देखा कि हम इस तकनीक पर फिल्म बना सकते हैं अथवा नहीं. . . . वेब सीरीज में हमें मन माफिक परिणाम मिले. तब हमने सोचा कि अब हम पूरी फिल्म को ही ‘वच्र्युअल फार्मेट’ पर बनाएंगे. उसी का परिणाम है मेरी नई फिल्म ‘‘जुदा हो के भी’’.

आपको पता होगा कि रिषि कपूर के अभिनय वाली फिल्म ‘कर्ज’ का एक गाना भी कुछ इसी तरह से फिल्माया गया था, जिसमें लोकेशन को ट्ाली के माध्यम से खींचा गया था.

-जी हॉ! आप फिल्म ‘कर्ज’ के गाने‘एक हसीना थी’ की बात कर रहे हैं. आप इसे एक उदाहरण तो कह सकते हैं. यह तो एक बैक प्रोजेक्शन है. हम वच्र्युअल फार्मेट में कुछ ऐसा ही करते हैं. लेकिन उसमें अलग अलग चीजे होती हैं. फिल्म ‘कर्ज’ में जो था, रिषि कपूर साहब स्क्रीन पर आ गए थे. मगर यदि आपको लांग शॉट लेना है, एकदम अंदर ले जाना हो तब तो आपको उनको परदे के अंदर डालना होगा. तो यह बहुत सारी चीजे हैं जो कि होती हैं. इसके लिए सीखना आवश्यक होता है. और मैं हूं ही ऐसा जो हमेशा कुछ नया सीखना चाहता है. मुझे हमेशा कुछ नया सीखने, नए नए प्रयोग करने मे मजा आता है. मैने ‘हंटेड’ नामक थ्री डी फिल्म भी बनायी. अब वच्र्युअल फार्मेट पर ‘जुदा होके भी’ बनायी. मैं तो यह कहॅंूगा कि हम लोग यह कर पाए. यह फिल्म जिस तरह से चाहते थे, उस तरह से बना पाए, उसी में हमारी बहुत बड़ी जीत है.

फिल्म ‘‘जुदा हो के भी’’ की कहानी या कॉसेप्ट का बीज कहां से मिला?

-मेरे दिमाग में इस फिल्म के बीज के आने की भी कहानी है. कुछ वर्ष पहले मेरी एक दोस्त थी, जो कि एक रिश्ते से गुजर रही थी. एक लड़का उसे परेशान कर रहा था. मेरी दोस्त को शक हुआ कि शायद यह लड़का उस पर काला जादू कर रहा है. और उसका इस्तेमाल कर रहा है. तो हम लोग एक बाबा के पास गए. बाबा ने हमें समझाया कि एक विद्या है ‘वशीकरण’. वशीकरण एक ऐसी विद्या या विधि कह लीजिए, जिसके जरिए आप किसी को भी वश में कर सकते हैं. इस विद्या के बल पर किसी की सोच को भी वश में किया जा सकता है. मेरे लिए यह मानना बहुत मुश्किल हुआ. मगर बाबा ने कहा कि ऐसा होता है. उनसे लंबी बातचीत चली. बातचीत के दौरान मैने उनसे सवाल किया कि वशीकरण को लेकर आपके पास किस तरह के केस आते हैं. उसने जो कुछ बताया उससे मेरे दिमाग की बत्ती जल गयी. उसने कहा कि नब्बे प्रतिशत केस लड़कियों, लड़कों व सेक्स के बारे में आते हैं. लोग उनके पास किसी लड़की या लड़के को वश में कराने या किसी महिला के पति  को वश में कराने के लिए जाते थे. या किसी पुरूष की पत्नी को वश में कराने. लोग किसी न किसी के साथ सोने@हमबिस्तर होने के लिए ही वशीकरण करवा रहे थे. बाबा ने बताया कि पैसे या धन दौलत के संबंध में लोग कम आते हैं, सबसे ज्यादा रूचि लोगों को इसी तरह की चीजों में रहती है.  लोग अपनी नौकरी लग जाए, इसके लिए भी उनके ेपास कम जाते थे. लोगों के दिमाग में यही सब ज्यादा था. उसी वक्त मैने सोचा कि यह तो फिल्म की रोचक कहानी है. अगर आपके प्यार को, आपके पति या पत्नी को या आपको किसी ने वश में कर लिया, और वह आपका कहाना छोड़कर उसका कहना मान रही है. तो ऐसे विलेन से आप अपने प्यार को बचाएंगे कैसे? यह अहम सवाल पैदा हुआ. मैने यही बात भट्ट साहब से कही. उन्होने मुढसे कहा कि अब सब कुछ मुझ पर छोड़ दो. कुछ दिनों बाद वह मेरे पास ‘जुदा होके भी’ की कहानी लेकर आए.

फिल्म ‘‘जुदा होके भी’’ में आपने ज्यादातर नए कलाकारों को ही चुना. कोई खास वजह?

-वास्तव में देखे तो फिल्म में अमन का किरदार निभा रहे अभिनेता अक्षय ओबेराय नए तो नही है. उन्हे फिल्म इंडस्ट्ी में काम करते हुए दस वर्ष हो चुके हैं. वह काफी फिल्में कर चुके हैं. एंद्रिता रे दक्षिण में काफी फिल्में कर चुकी हैं. वह कन्नड़ सुपर स्टार दिगंत की पत्नी है. मेहेरजान जरुर नए हैं. उन्होने बहुत ज्यादा काम नही किया है. लेकिन जब कहानी लिखी जाती है, तो एक चेहरा आपकी आॅंखांे के सामने नजर आने लगता है कि यह चेहरा मेरी कहानी के इस किरदार पर फिट बैठता है. इसे ही सही कास्टिंग कहा जाता है. अक्षय ओबेराय के साथ मैने एक वेब सीरीज ‘ईलीगल’ की थी. उसका काम देखकर मैंने उसके साथ दोबारा काम करने की बात कही थी. इसी तरह मेहेरजान के साथ भी मैने काम किया है. लेकिन एंद्रिता के साथ मैने काम नहीं किया था. पर मेरी बेटी कृष्णा ने एंद्रिता के साथ सीरियल ‘सनक’ में काम किया था. और मुझे उसका काम बहुत पसंद आया था. इसी तरह कड़ी से कड़ी जुड़ती गयी.

सुपर नेच्युरल पावर या आपने जैसे यह फिल्म ‘वशीकरण’ पर बनायी है तो लोग आरोप लगाते हैं कि आप अंधविश्वास फैला रहे हैं. इस पर क्या कहना चाहेंगें?

-बात विश्वास या अंधविश्वास की नही है. बात एकदम सरल है. यदि आप दिन में यकीन करते हैं, तो आप यह नही कह सकते कि रात नही होती. इसी तरह यदि आप ईश्वर में यकीन करते हैं तो आपको शैतान में ंभी विश्वास करना पड़ेगा. क्योंकि वही तो काउंटर प्वाइंट है. यदि आप कहते हंै कि मैं बहुत बड़ा कृष्ण भक्त हूॅं, तो कंस की मौजूदगी या दुर्याधन की मौजूदगी से कैसे इंकार कर सकते हैं. यदि कंस नही है तो फिर कृष्ण कैसे?तो इसमें अंधविश्वास क्या?यह दोनो ही बातें विश्वास की हैं. क्यांेकि मैं जानता हॅंू कि मेरा भगवान अंधेरे को मिटाएगा. वह काली शक्तियों कोमुझसे दूर रखेगा. यही तो मेरे भगवान हैं. उसी की शरण में मैं हॅूं. तो मेेरे हिसाब से यह अंधविश्वास नही है.

इसके अलावा कौन सी फिल्में कर रहे हैं?

-मैं एक फिल्म ‘खिलौने’ का निर्देशन कर रहा हॅूं. एक फिल्म ‘इंपॉसिबल है, शायद इसका नाम बदल जाए. . कई अन्य फिल्मों की भी योजना है. अपने लिए और दूसरों के लिए  वच्र्युअल प्रोडक्शन भी करना है.

सुष्मिता सेन को डेट कर रहे हैं ललित मोदी, रोमांटिक फोटोज की शेयर

बीते दिनों रोहमन शॉल संग अपने ब्रेकअप के चलते सुर्खियां बटोरने वाली एक्ट्रेस सुष्मिता सेन की डेटिंग और शादी की खबरें सोशलमीडिया पर छा गई हैं. दरअसल, हाल ही में बिजनेसमैन और क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर ललित मोदी ने एक्ट्रेस संग डेटिंग की खबर पर मोहर लगाई है. वहीं एक्ट्रेस के साथ रोमांटिक फोटोज भी शेयर की हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शेयर की डेटिंग की खबर

 

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बॉलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के साथ ललित मोदी ने सोशल मीडिया के एक पोस्ट के जरिए फैन्स को बताया है कि वह इन दिनों परिवार के साथ #मालदीव्स #सार्डिनिया घूम रहे हैं. वहीं सुष्मिता सेन को बैटर हाफ बताते हुए कहा कि वह इस जर्नी में उनके साथ हैं. हालांकि बाद में इसे बदल कर बैटर साथी लिखकर फैंस को बताया कि वह सुष्मिता सेन को डेट कर रहे हैं. हालांकि फैंस उनके इस नए सफर पर एक्ट्रेस को बधाई दे रहे हैं.

थ्रोबैक फोटोज की शेयर

 

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अपने रिश्ते का ऐलान करते हुए ललित मोदी ने सुष्मिता सेन के साथ कुछ थ्रोबैक फोटोज शेयर की, जिसमें वह सालों पुराने अपने रिश्ते को नया नाम देते दिख रहे हैं. वहीं इन फोटोज में कुछ रोमांटिक फोटोज भी शामिल हैं. इसके अलावा ललित मोदी ने अपनी प्रोफाइल फोटो में भी सुष्मिता सेन और अपनी फोटो लगाकर फैंस का दिल जीत लिया है.

बता दें कि 56 साल के आईपीएल के पहले चेयरमैन रह चुके ललित मोदी लगभग तीन साल तक आईपीएल कमिश्नर और चैंपियंस लीग टी20 के चेयरमैन पद पर रहे. इसके अलावा ललित मोदी करीब पांच साल तक BCCI के उपाध्यक्ष रहे. वहीं 46 साल की सुष्मिता सेन की लाइफ की बात करें तो उन्होंने मॉडल और एक्टर रोहमन शॉल को करीब तीन साल तक डेट किया था, जिसके बाद बीते दिनों एक्ट्रेस ने एक पोस्ट के जरिए अपने ब्रेकअप का ऐलान किया था. हालांकि ब्रेकअप के बाद भी दोनों काफी अच्छे दोस्त हैं.

अमिताभ बच्चन से लेकर शिल्पा शेट्टी तक, इतने अन्धविश्वासी हैं ये सेलेब्स

सफलता और स्वास्थ्य लाभ के लिए आम इंसान की तरह सेलेब्स भी अन्धविश्वासी होते है. अधिकतर कलाकार बॉक्सऑफिस पर सफलता पाने के लिए फिल्मों के रिलीज से पहलेकिसी टोटके या पूजा-अर्चना का सहारा लेते है और इस गुड लक के लिए उन्हें जो भी करने पड़े, वे करते रहते है.इसके अलावा फिल्मों में किसी खास रंग या सीन को भी जानबूझकर डाला जाता है. इन सबमें एकता कपूर सबसे आगे है,उसके बाद अमिताभ बच्चन, सलमान खान, शाहरुख़ खान, आमिर खान, दीपिका पादुकोण जैसे कई सितारें है, जो अन्धविश्वासी होने के साथ-साथ इसे फोलो करने मेंबहुत अधिक रिजिड है. हालाँकि इसका दर्शकों पर कोई असर नहीं पड़ता, उनके लिए सही कहानी, निर्देशन और एक्टिंग ही खास होती है,जिसके बलबूते पर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित होती है.

असल में जब व्यक्ति अपने जीवन में सफलता, स्वास्थ्यऔर रिश्ते की मजबूती को अपने बलबूते पर हल खोजमें असमर्थ होते है, तो तर्क छोड़कर अन्धविश्वास का सहारा लेते है, जिसमे कई बार जान-माल की क्षति भी होने पर व्यक्ति उसमे अपनी ही कुछ गलती निकालकर खुद को संतुष्ट कर लेते है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे कई सितारें है, जो तर्क को साइड में रख अंधविश्वासी है.इसमें कुछ सेलेब्स अपनी किस्मत को चमकानेके लिए गहनों के तौर पर लकी चार्म पहनते है, तो कुछ ऐसे है, जिनके पास कुछ अजीबोगरीब अन्धविश्वास है. आइये जानते है सेलेब्स के अन्धविशवासी होने की वजह क्या है?क्या आज भी वे इसे मानते है?

अमिताभ बच्चन –

अपने अंधविश्वास को लेकर मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि वह क्रिकेट खेल के प्रेमी है लेकिन वह कभी लाइव मैच नहीं देखते है, क्योंकि उनको लगता है कि वह मैच देखेंगे, तो विकेट गिरेंगे और भारत हार जाएगा. वहीं वह एक नीलम की अंगूठी भी पहनते है, जिसको लेकर वह मानते है कि इस अंगूठी को पहनने के बाद ही उनके जीवन से बुरा वक्त खत्म हुआ था और उनकी किस्मत चमकी थी.

सलमान खान 

अभिनेता सलमान खान अपना लकी चार्म सेफायर ब्रेसलेट को मानते है, इसे उनके पिता ने गिफ्ट के रूप में दिया है. एक बार एक पार्टी में सलमान की ब्रेसलेट खो गयी, तब इसे अस्मित पटेल ने खोज कर उसे दिया. सलमान ने ऐसी एक ब्रेसलेट गोविंदा को उनके कैरियर को ठीक करने के लिए गिफ्ट के रूप में दिया है. हालाँकि गोविंदा पहले से ही ब्लू ब्रेसलेट पहनते है, पर उन्हें सलमान का दिया हुआ ब्रेसलेट भी बहुत पसंद है. सूत्रों की माने तो सलमान ने रमजान के दौरान फिल्म ‘किक’ के लिए इस गुड लॉक को पहना था और उस फिल्म में भी इसे पहना हुआ ही दिखाया गया है, हालाँकि फिल्म फ्लॉप रही.

शाहरुख़ खान

बादशाह खान का लकी नंबर उनके कार की है. वे नंबर की शक्ति को मानते है, इसलिए उनके कार का स्पेशल सीरियल नंबर 555 है.उनके गाड़ी में इस नंबर प्लेट का होना अनिवार्य है. वे इस नंबर की कार के बिना कही जाना पसंद नहीं करते. फिल्म ‘’चेन्नई एक्सप्रेस’ की पोस्टर के लिए उन्होंने जिस बाइक की सवारी की थी, उसका नंबर प्लेट पर भी 555 ही था.

कैटरिना कैफ

अभिनेत्री कैटरिना कैफ अपनी सफलता का श्रेय अजमेर शरीफ को देती है. वह बहुत ही अन्धविश्वासी है. हर फिल्म की रिलीज से पहले दरगाह जाती है और वह इसे जरुरी भी मानती है. दरगाह जाते वक्त वह ट्रेडिशनल कपडे पहनती है और चेहरे को जितना हो सके ढककर जाती है. वहां कैटरिना भीड़ से बचने के लिए अपने गार्ड्स द्वारा बनाये गए सर्किल के बीच में घूमती है. फिल्मों में छोटे ड्रेस पहनने को लेकर वह कई बार कंट्रोवर्सी की शिकार हुई, लेकिन उन्हें दरगाह जाने से कोई रोक नहीं सका.

आमिरखान

परफेक्शनिस्ट आमिरखान खुद को अन्धविश्वासी नहीं कहते, लेकिन वे किसी भी फिल्म को क्रिसमस के अवसर पर रिलीज करना पसंद करते है. साल 2007 में फिल्म ‘तारे जमीन पर’ की अपार सफलता के बाद उन्होंने फिल्म गजनी, 3 इडियट्स, धूम 3 आदि को दिसम्बर के महीने में ही रिलीज किया है. इस बारें में पूछने पर उनका कहना है कि वे अपने फैन्स को क्रिसमस पर फिल्म के ज़रिये गिफ्ट देते है.

रणवीरसिंह

अभिनेता रणवीर सिंह एक सफल कलाकार है, उनकी प्रतिभा जग जाहिर है,जिसे उन्होंने मेहनत के बल पर पाया है, लेकिन वे भी अपने पैर पर एक काला धागा बांधते है. इसे वे अपना लकी चार्म मानते है. इसे उनकी माँ ने पहनाया था, क्योंकि उन दिनों रणवीर काफी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे.

 

एकता कपूर

एकता कपूर के ‘क’अक्षर के प्रति दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. उन्होंने कैरियर की शुरुआत‘क’ से शुरू होने वाली नामों से सीरियल बनाया, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कहानी घर घर की, कुंडली, कोई अपना सा आदि शोज किये,जो सफल रही. इसके अलावा एकता के हाथों में कई आध्यात्मिक धागे और अंगूठियां पहने देखा जा सकता है, जिसे वह अपने लिए शुभ मानती है. उनके इस अंधविश्वास के बारें में पूछने पर एकता इसे दुष्ट शक्ति बताती है, जिसे देखा नहीं, महसूस किया जाता है और उन सबसे खुद को दूर रखने के लिए ये सब पहनती है.

ऋत्विक रोशन

बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन अपने काम को लेकर हमेशा ही बहुत कमिटमेंट रखते हैं और  हमेशा पॉजिटिव माइंडसेट से रहते हैं. ऋतिक अपने एक्स्ट्रा अंगूठे को लकी मानते हैं और वो फिल्मों से लेकर इवेंट्स तक सभी में इसे एक बार अवश्य दिखाते हैं, क्योंकि वे इसे भाग्यशाली मानते है और इसकी सर्जरी करवाना नहीं चाहते.

रणवीर कपूर

रणबीर कपूर की बात करें तो नंबर 8 को वो अपने लिए लकी मानते है. आलिया भट्ट के शादी के कलीरे से लेकर गाड़ी के नंबर प्लेट तक 8 नंबर की बहुत ज्यादा अहमियत दिया गया है, इसे रणवीर इन्फिनिटी साइन के हिसाब से भी देखते हैं.

अक्षय कुमार

खिलाडियों के खिलाडी अक्षय कुमार वैसे तो खुद को अन्धविश्वासी नहीं कहते, लेकिन जब भी अपनी फीस तय करते है, उसका जोड़ 9 होना जरुरी है. साथ ही किसी खाली शीट पर ओम लिखकर दिन की शुरुआत करते है. इसके अलावा अक्षय कुमार को लगता है कि उनके यहाँ रहने पर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ठीक नहीं होगी, इसलिए रिलीज से पहले वह विदेश चले जाते है.

शिल्पा शेट्टी

फिटनेस फ्रिक सफल अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी क्रिकेट की फैन हैं और उनके पास अपनी क्रिकेट टीम भी है.वह जब भी क्रिकेट ग्राउंड पर जाती हैं, तो अपनी कलाई पर दो घड़ियां पहनती हैं. इतना ही नहीं जब दूसरी टीम बैटिंग कर रही होती है, तो वह बैठते समय अपने पैरों को क्रॉस कर लेती हैं और जब उनकी खुद की टीम होती है, तो वो अपने पैरों को खोल लेती है.

बिपाशा बासु

हॉट और टैलेंटेड एक्ट्रेस बिपाशा बसु को बुरी नजर से बचने के लिए ईवल आई का इस्तेमाल करना बहुत पसंद है.वह हर शनिवार के दिन अपनी गाड़ी में नींबू मिर्च लगाने का रिवाज  फॉलो करती हैं.

विद्या बालन

अभिनेत्री विद्या बालन की अन्धविश्वासी एक अलग तरीके की है, एक खास ब्रांड का काजल वह आँखों पर लगाती है, उसे लगाये बिना वह घर से नहीं जाती. इसे वह लकी मानती है.

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रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः मार्वल स्टूडियो

लेखकः जेनिफर केटिन रॉबिन्सन और टाइका वाइटीटी

निर्देशकः टाइका वाइटीटी

कलाकारः क्रिस हेम्सवर्थ, नताली पोर्टमैन, क्रिश्चियन बेल, टेसा थॉम्प्सन और क्रिस प्रैट

अवधिः लगभग दो घंटे

भारत में कॉमिक्स कमी नही है. सभी मानते हैं कि सिनेमा और साहित्य का अति गहरा व अटूट संबंध है. कॉमिक्स के किरदार हमेशा बच्चों से बूढों तक हर किसी को भाते रहे हैं. ‘नागराज’ से लेकर ‘दिल्ली प्रेस’ की पत्रिका ‘चंपक’ में भी कई लोकप्रिय कॉमिक्स किरदार हैं, जिन पर कई लंबी सीरीज की बेहतरीन फिल्में बन सकती हैं. मगर बौलीवुड के फिल्मकारों का ध्यान इस तरफ जाता ही नही है. जबकि ‘मार्वल स्टूडियोज’ अपनी ‘मार्वल कॉमिक्स’ पर लगातार फिल्में लेकर आता जा रहा है. मार्वल स्टूडियोज ने कॉमिक्स कहानियों के बलबूते पर ही व्यापार का एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया है. अब ‘मार्वल स्टूडियोज‘ की नई फिल्म ‘‘थॉरः लव एंड थंडर’’ आयी है, जो कि मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की कहानी की 29वीं फिल्म है. वास्तव में स्टैन ली ने कॉमिक्स के तौर पर एक काल्पनिक लोक असगार्ड के देवता थोर की कहानी सोची थी, उसे ही अब लैरी लीबर और जैक किर्बी जैसे लेखक विस्तार दे रहे हैं. यूं तो 1962 में ‘जर्नी इनटू मिस्ट्री’ नामक कॉमिक बुक से थोर नामक किरदार का जन्म हुआ था, जो कि 2011 में पहली बार ‘टीम एवेंजर्स’ का हिस्सा बनकर परदे पर अवतरित हुआ और गार्जियन्स अॉफ गैलेक्सी के साथ मिलकर कुछ अलग करने का वादा करके पिछली फिल्म में विदा लेने वाला थोर अब एक अलग रंग में ‘थौरः लव एंड थंडर’ में नजर आ रहा है. फिल्म में एक्शन के साथ हास्य भी है. मगर यह फिल्म प्यार पर सवाल उठाती है कि क्या ब्रम्हांड की सबसे बड़ी ताकत प्यार है?वहीं देवताओं के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया गया है.

फिल्म में थोर का किरदार  निभाने वाले अभिनेता क्रिस हेम्सवर्थ ने ग्यारह वर्ष पहले पहली बार इस किरदार को निभाया था. और अब तक वह आठ बार थोर का किरदार निभा चुके हैं. मगर बतौर सोलो हीरो ‘थोरः लव एंड थंडर’ उनकी चैथी फिल्म है. शुरूआत में थोर उद्दंड और मनमौजी था, लेकिन वक्त के साथ उसमंे बदलाव आता गया.

कहानीः

प्यार में बार बार दिल तुड़वाने और अपनों को खोने के बाद थोर अपना जीवन इस गैलेक्सी की रक्षा के लिए समर्पित कर देता है और ब्रह्मांड में जहां भी उसकी मदद की जरूरत पड़ती है,  वह हमेशा ‘गार्डियंस अॉफ गैलेक्सी’ के साथ निकल पड़ता है. इसी कड़ी में उसे पता चलता है कि गोर द गॉड बुचर (क्रिश्चियन बेल) ने प्यास से अपनी बेटी के मरने के बाद देवताओं का खात्मा करने के मिशन पर है और उसने बहुत से देवताओं की निर्मम हत्या कर दी है. वास्तव में भीषण सूखे व पानी के लिए तरसते लोग मौत के मुॅह में समा जाते है. पृथ्वी पर अब केवल गोर द गॉड बुचर व उसकी छोटी बेटी ही बची है और बिना पानी के वह भी मुत्यु के कगार पर है. गोर हर देवता से अपनी बेटी को जिंदा रखने के लिए पानी की गुहार लगाता है. मगर उसकी मदद करने के लिए कोई देवता सामने नही आता. अंततः गोर की बेटी काल के मुॅह में समा जाती है, तब गोर द गॉड बुचर सभी देवताओे के विनाश के मिशन पर निकल पड़ता है.  यही नहीं,  उसका अगला निशाना थोर का ऐशगार्ड है,  जहां के बच्चों को उसने किडनैप कर लिया है. अब थोर, ज्यूस (रसल क्रो) सहित बाकी देवताओं को एकजुट करके गोर को खत्म करने का निर्णय लेता है. मगर ज्यूस उसका मजाक बनाता है. पर थोर अपनी यात्रा पर निकल पड़ता है. इस यात्रा में थोर की मुलाकात एक बार फिर अपने आठ वर्ष पुराने प्यार जेन फोस्टर होती है,  जो कैंसर के चैथे स्टेज पर है,  पर थोर के हथौड़े की ताकत से खुद माइटी थोर बना चुकी है. तो वहीं वलकैरी (टेसा थॉम्पसन) और स्टोनी क्रॉल भी उसका साथ देते हैं. अब सवाल है कि क्या थोर अपने मकसद में कामयाब होता है? इसके लिए फिल्म देखनी ही पड़ेगी.

लेखन व निर्देशनः

यूं तो निर्देशक टाइका वाइटीटी ने अपने काम को बाखूबी अंजाम दिया है. लेकिन फिल्म हिचकाले लेकर ही आगे बढ़ती है. शुरूआत में जब एक भक्त गोर अपनी निजी नुकसान के बदले देवताओं से बदला लेने के तहत देवताओं के विनाश के मिशन पर निकलता है, तो शुरूआती दृश्य सिहरा देते है. मगर फिर फिल्म पटरी से उतर जाती है. फिल्म में एक्शन,  इमोशन के साथ- साथ कॉमिडी का भरपूर तड़का है. मगर इस बार थोर की एडवैंचर व रोमांच की जो पहचान है, वह इस फिल्म में गायब है. इसे लेखक व निर्देशक की कमजोरी ही कही जाएगी. तों वही थोर व जेन की प्रेम कहानी भी बहुत ही सपाट है. आठ वर्ष बाद मुलाकात होने पर दोनों के बीच जो गर्मजोशी होनी चाहिए, उसका घोर अभाव है. एक्शन दृश्य भी कमाल के ेनही बन पाए हैं. वास्तव में लेखको ने गोर के शैतानी दिमाग व उसकी शैतानी हरकतांे को ठीक से विस्तार ही नही दिया है.

अभिनयः

थोर के किरदार में क्रिस हेम्सवर्थ ने अपने अभिनय से आकर्षण कायम रखा है. मगर नताली उनसे इक्कीस साबित हुई है. जी हॉ!माइती थोर के किरदार में नताली पोर्टमैन का अभिनय काफी सशक्त हैं. उन्होंने क्रिस हेम्सवर्थ को भी मात दे दी है. यह क्रिस हेम्सवर्थ के लिए खतरे की घंटी है और उन्हे अपने अभिनय को निखारने के लिए नए सिरे से विचार करना होगा. गोर का किरदार निभाने वाले अभिनेता क्रिश्चियन बेल अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं, जबकि उनके किरदार को ठीक से विकसित नही किया गया. गोर का किरदार निभाने वाले अभिनेता क्रिश्चियन बेल अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं, जबकि उनके किरदार को ठीक से विकसित नही किया गया.

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