अंतहीन : कौनसी अफवाह ने बदल दी गुंजन और उसके पिता की जिंदगी?

रामदयाल क्लब के लिए निकल ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी. उन के फोन पर ‘हेलो’ कहते ही दूसरी ओर से एक महिला स्वर ने पूछा, ‘‘आप गुंजन के पापा बोल रहे हैं न, फौरन मैत्री अस्पताल के आपात- कालीन विभाग में पहुंचिए. गुंजन गंभीर रूप से घायल हो गया है और वहां भरती है.’’

इस से पहले कि रामदयाल कुछ बोल पाते फोन कट गया. वे जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचना चाह रहे थे पर उन्हें यह शंका भी थी कि कोई बेवकूफ न बना रहा हो क्योंकि गुंजन तो इस समय आफिस में जरूरी मीटिंग में व्यस्त रहता है और मीटिंग में बैठा व्यक्ति भला कैसे घायल हो सकता है?

गुंजन के पास मोबाइल था, उस ने नंबर भी दिया था मगर मालूम नहीं उन्होंने कहां लिखा था. उन्हें इन नई चीजों में दिलचस्पी भी नहीं थी… तभी फिर फोन की घंटी बजी. इस बार गुंजन के दोस्त राघव का फोन था.

‘‘अंकल, आप अभी तक घर पर ही हैं…जल्दी अस्पताल पहुंचिए…पूछताछ का समय नहीं है अंकल…बस, आ जाइए,’’ इतना कह कर उस ने भी फोन रख दिया.

ड्राइवर गाड़ी के पास खड़ा रामदयाल का इंतजार कर रहा था. उन्होंने उसे मैत्री अस्पताल चलने को कहा. अस्पताल के गेट के बाहर ही राघव खड़ा था, उस ने हाथ दे कर गाड़ी रुकवाई और ड्राइवर की साथ वाली सीट पर बैठते हुए बोला, ‘‘सामने जा रही एंबुलैंस के पीछे चलो.’’

‘‘एम्बुलैंस कहां जा रही है?’’ रामदयाल ने पूछा.

‘‘ग्लोबल केयर अस्पताल,’’ राघव ने बताया, ‘‘मैत्री वालों ने गुंजन की सांसें चालू तो कर दी हैं पर उन्हें बरकरार रखने के साधन और उपकरण केवल ग्लोबल वालों के पास ही हैं.’’

‘‘गुंजन घायल कैसे हुआ राघव?’’ रामदयाल ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘नेहरू प्लैनेटोरियम में किसी ने बम होने की अफवाह उड़ा दी और लोग हड़बड़ा कर एकदूसरे को रौंदते हुए बाहर भागे. इसी हड़कंप में गुंजन कुचला गया.’’

‘‘गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम में क्या कर रहा था?’’ रामदयाल ने हैरानी से पूछा.

‘‘गुंजन तो रोज की तरह प्लैनेटोरियम वाली पहाड़ी पर टहल रहा था…’’

‘‘क्या कह रहे हो राघव? गुंजन रोज नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर टहलने जाता था?’’

अब चौंकने की बारी राघव की थी इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस का मोबाइल बजने लगा.

‘‘हां तनु… मैं गुंजन के पापा की गाड़ी में तुम्हारे पीछेपीछे आ रहा हूं…तुम गुंजन के साथ मेडिकल विंग में जाओ, काउंटर पर पैसे जमा करवा कर मैं भी वहीं आता हूं,’’ राघव रामदयाल की ओर मुड़ा, ‘‘अंकल, आप के पास क्रेडिट कार्ड तो है न?’’

‘‘है, चंद हजार नकद भी हैं…’’

‘‘चंद हजार नकद से कुछ नहीं होगा अंकल,’’ राघव ने बात काटी, ‘‘काउंटर पर कम से कम 25 हजार तो अभी जमा करवाने पड़ेंगे, फिर और न जाने कितना मांगें.’’

‘‘परवा नहीं, मेरा बेटा ठीक कर दें, बस. मेरे पास एटीएम कार्ड भी है, जरूरत पड़ी तो घर से चेकबुक भी ले आऊंगा,’’ रामदयाल राघव को आश्वस्त करते हुए बोले.

ग्लोबल केयर अस्पताल आ गया था, एंबुलैंस को तो सीधे अंदर जाने दिया गया लेकिन उन की गाड़ी को दूसरी ओर पार्किंग में जाने को कहा.

‘‘हमें यहीं उतार दो, ड्राइवर,’’ राघव बोला.

दोनों भागते हुए एंबुलैंस के पीछे गए लेकिन रामदयाल को केवल स्ट्रेचर पर पड़े गुंजन के बाल और मुंह पर लगा आक्सीजन मास्क ही दिखाई दिया. राघव उन्हें काउंटर पर पैसा जमा कराने के लिए ले गया और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों इमरजेंसी वार्ड की ओर चले गए.

इमरजेंसी के बाहर एक युवती डाक्टर से बात कर रही थी. राघव और रामदयाल को देख कर उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘गुंजन के पापा आ गए हैं, बे्रन सर्जरी के बारे में यही निर्णय लेंगे.’’

डाक्टर ने बताया कि गुंजन का बे्रन स्कैनिंग हो रहा है मगर उस की हालत से लगता है उस के सिर में अंदरूनी चोट आने की वजह से खून जम गया है और आपरेशन कर के ही गांठें निकालनी पड़ेंगी. मुश्किल आपरेशन है, जानलेवा भी हो सकता है और मरीज उम्र भर के लिए सोचनेसमझने और बोलने की शक्ति भी खो सकता है. जब तक स्कैनिंग की रिपोर्ट आती है तब तक आप लोग निर्णय ले लीजिए.

यह कह कर और आश्वासन में युवती का कंधा दबा कर वह अधेड़ डाक्टर चला गया. रामदयाल ने युवती की ओर देखा, सुंदर स्मार्ट लड़की थी. उस के महंगे सूट पर कई जगह खून और कीचड़ के धब्बे थे, चेहरा और दोनों हाथ छिले हुए थे, आंखें लाल और आंसुओं से भरी हुई थीं. तभी कुछ युवक और युवतियां बौखलाए हुए से आए. युवकों को रामदयाल पहचानते थे, गुंजन के सहकर्मी थे. उन में से एक प्रभव तो कल रात ही घर पर आया था और उन्होंने उसे आग्रह कर के खाने के लिए रोका था. लेकिन प्रभव उन्हें अनदेखा कर के युवती की ओर बढ़ गया.

‘‘यह सब कैसे हुआ, तनु?’’

‘‘मैं और गुंजन सूर्यास्त देख कर पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे कि अचानक चीखतेचिल्लाते लोग ‘भागो, बम फटने वाला है’ हमें धक्का देते हुए नीचे भागे. मैं किनारे की ओर थी सो रेलिंग पर जा कर गिरी लेकिन गुंजन को भीड़ की ठोकरों ने नीचे ढकेल दिया. उसे लुढ़कता देख कर मैं रेलिंग के सहारे नीचे भागी. एक सज्जन ने, जो हमारे साथ सूर्यास्त देख कर हम से आगे नीचे उतर रहे थे, गुंजन को देख लिया और लपक कर किसी तरह उस को भीड़ से बाहर खींचा. तब तक गुंजन बेहोश हो चुका था. उन्हीं सज्जन ने हम लोगों को अपनी गाड़ी में मैत्री अस्पताल पहुंचाया.’’

‘‘गुंजन की गाड़ी तो आफिस में खड़ी है, तेरी गाड़ी कहां है?’’ एक युवती ने पूछा.

‘‘प्लैनेटोरियम की पार्किंग में…’’

‘‘उसे वहां से तुरंत ले आ तनु, लावारिस गाड़ी समझ कर पुलिस जब्त कर सकती है,’’ एक युवक बोला.

‘‘अफवाह थी सो गाड़ी तो खैर जब्त नहीं होगी, फिर भी प्लैनेटोरियम बंद होने से पहले तो वहां से लानी ही पड़ेगी,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैत्री से गुंजन का कोट भी लेना है, उस में उस का पर्स, मोबाइल आदि सब हैं मगर मैं कैसे जाऊं?’’ तनु ने असहाय भाव से कहा, ‘‘तुम्हीं लोग ले आओ न, प्लीज.’’

‘‘लेकिन हमें तो कोई गुंजन का सामान नहीं देगा और हो सकता है गाड़ी के बारे में भी कुछ पूछताछ हो,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा, तनु.’’

‘‘गुंजन को इस हाल में छोड़ कर?’’ तनु ने आहत स्वर में पूछा.

‘‘गुंजन को तुम ने सही हाथों में सौंप दिया है तनु और फिलहाल सिवा डाक्टरों के उस के लिए कोई और कुछ नहीं कर सकता. तुम्हारी परेशानी और न बढ़े इसलिए तुम गुंजन का सामान और अपनी गाड़ी लेने में देर मत करो,’’ राघव ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं दोनों काम कर के 15-20 मिनट में आ जाऊंगी.’’

‘‘यहां आ कर क्या करोगी तनु? न तो तुम अभी गुंजन से मिल सकती हो और न उस के इलाज के बारे में कोई निर्णय ले सकती हो. अपनी चोटों पर भी दवा लगवा कर तुम घर जा कर आराम करो,’’ राघव ने कहा, ‘‘यहां मैं और प्रभव हैं ही. रजत, तू इन लड़कियों के साथ चला जा और सीमा, मिन्नी तुम में से कोई आज रात तनु के साथ रह लो न.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो राघव, मगर तनु को गुंजन के हाल से बराबर सूचित करते रहना,’’ कह कर दोनों युवतियां और रजत तनु को ले कर बगैर रामदयाल की ओर देखे चले गए.

गुंजन की चिंता में त्रस्त रामदयाल सोचे बिना न रह सके कि गुंजन के बाप का तो खयाल नहीं, मगर उस लड़की की चिंता में सब हलकान हुए जा रहे हैं. उन के दिल में तो आया कि वह राघव और प्रभव से भी जाने को कहें मगर इन हालात में न तो अकेले रहने की हिम्मत थी और फिलहाल न ही किसी रिश्तेदार या दोस्त को बुलाने की, क्योंकि सब का पहला सवाल यही होगा कि गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर शाम के समय क्या कर रहा था जबकि गुंजन ने सब को कह रखा था कि 6 बजे के बाद वह बौस के साथ व्यस्त होता है इसलिए कोई भी उसे फोन न किया करे.

रामदयाल तो समझ गए थे कि कहां किस बौस के साथ, वह व्यस्त होता था मगर लोगों को तो कोई माकूल वजह ही बतानी होगी जो सोचने की मनोस्थिति में वह अभी नहीं थे.

तभी उन्हें वरिष्ठ डाक्टर ने मिलने को बुलाया. रौंदे जाने और लुढ़कने के कारण गुंजन को गंभीर अंदरूनी चोटें आई थीं और उस की बे्रन सर्जरी फौरन होनी चाहिए थी. रामदयाल ने कहा कि डाक्टर, आप आपरेशन की तैयारी करें, वह अभी एटीएम से पैसे निकलवा कर काउंटर पर जमा करवा देते हैं.

प्रभव उन्हें अस्पताल के परिसर में बने एटीएम में ले गया. जब वह पैसे निकलवा कर बाहर आए तो प्रभव किसी से फोन पर बात कर रहा था… ‘‘आफिस के आसपास के रेस्तरां में कब तक जाते यार? उन दोनों को तो एक ऐसी सार्वजनिक मगर एकांत जगह चाहिए जहां वे कुछ देर शांति से बैठ कर एकदूसरे का हाल सुनसुना सकें. नेहरू प्लैनेटोरियम आफिस के नजदीक भी है और उस के बाहर रूमानी माहौल भी. शादी अभी तो मुमकिन नहीं है…गुंजन की मजबूरियों के कारण…विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है…हां, सीमा या मिन्नी से बात कर ले.’’

उन्हें देख कर प्रभव ने मोबाइल बंद कर दिया.

पैसे जमा करवाने के बाद राघव और प्रभव ने उन्हें हाल में पड़ी कुरसियों की ओर ले जा कर कहा, ‘‘अंकल, आप बैठिए. हम गुंजन के बारे में पता कर के आते हैं.’’

रामदयाल के कानों में प्रभव की बात गूंज रही थी, ‘शादी अभी तो मुमकिन नहीं है, गुंजन की मजबूरियों के कारण. विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है.’ लगाव वाली बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता था लेकिन प्रेमा की मृत्यु के बाद जब प्राय: सभी ने उस से कहा था कि पिता और घर की देखभाल अब उस की जिम्मेदारी है, इसलिए उसे शादी कर लेनी चाहिए तो गुंजन ने बड़ी दृढ़ता से कहा था कि घर संभालने के लिए तो मां से काम सीखे पुराने नौकर हैं ही और फिलहाल शादी करना पापा के साथ ज्यादती होगी क्योंकि फुरसत के चंद घंटे जो अभी सिर्फ पापा के लिए हैं फिर पत्नी के साथ बांटने पड़ेंगे और पापा बिलकुल अकेले पड़ जाएंगे. गुंजन का तर्क सब को समझ में आया था और सब ने उस से शादी करने के लिए कहना छोड़ दिया था.

तभी प्रभव और राघव आ गए.

‘‘अंकल, गुंजन को आपरेशन के लिए ले गए हैं,’’ राघव ने बताया. ‘‘आपरेशन में काफी समय लगेगा और मरीज को होश आने में कई घंटे. हम सब को आदेश है कि अस्पताल में भीड़ न लगाएं और घर जाएं, आपरेशन की सफलता की सूचना आप को फोन पर दे दी जाएगी.’’

‘‘तो फिर अंकल घर ही चलिए, आप को भी आराम की जरूरत है,’’ प्रभव बोला.

‘‘हां, चलो,’’ रामदयाल विवश भाव से उठ खड़े हुए, ‘‘तुम्हें कहां छोड़ना होगा, राघव?’’

‘‘अभी तो आप के साथ ही चल रहे हैं हम दोनों.’’

‘‘नहीं बेटे, अभी तो आस की किरण चमक रही है, उस के सहारे रात कट जाएगी. तुम दोनों भी अपनेअपने घर जा कर आराम करो,’’ रामदयाल ने राघव का कंधा थपथपाया.

हालांकि गुंजन हमेशा उन के लौटने के बाद ही घर आता था लेकिन न जाने क्यों आज घर में एक अजीब मनहूस सा सन्नाटा फैला हुआ था. वह गुंजन के कमरे में आए. वहां उन्हें कुछ अजीब सी राहत और सुकून महसूस हुआ. वह वहीं पलंग पर लेट गए.

तकिये के नीचे कुछ सख्त सा था, उन्होंने तकिया हटा कर देखा तो एक सुंदर सी डायरी थी. उत्सुकतावश रामदयाल ने पहला पन्ना पलट कर देखा तो लिखा था, ‘वह सब जो चाह कर भी कहा नहीं जाता.’ गुंजन की लिखावट वह पहचानते थे. उन्हें जानने की जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या है जो गुंजन जैसा वाचाल भी नहीं कह सकता?

किसी अन्य की डायरी पढ़ना उन की मान्यताआें में नहीं था लेकिन हो सकता है गुंजन ने इस में वह सब लिखा हो यानी उस मजबूरी के बारे में जिस का जिक्र प्रभव कर रहा था. उन्होंने डायरी के पन्ने पलटे. शुरू में तो तनूजा से मुलाकात और फिर उस की ओर अपने झुकाव का जिक्र था. उन्होंने वह सब पढ़ना मुनासिब नहीं समझा और सरसरी निगाह डालते हुए पन्ने पलटते रहे. एक जगह ‘मां’ शब्द देख कर वह चौंके. रामदयाल को गुंजन की मां यानी अपनी पत्नी प्रेमा के बारे में पढ़ना उचित लगा.

‘वैसे तो मुझे कभी मां के जीवन में कोई अभाव या तनाव नहीं लगा, हमेशा खुश व संतुष्ट रहती थीं. मालूम नहीं मां के जीवनकाल में पापा उन की कितनी इच्छाआें को सर्वाधिक महत्त्व देते थे लेकिन उन की मृत्यु के बाद तो वही करते हैं जो मां को पसंद था. जैसे बगीचे में सिर्फ सफेद फूलों के पौधे लगाना, कालीन को हर सप्ताह धूप दिखाना, सूर्यास्त होते ही कुछ देर को पूरे घर में बिजली जलाना आदि.

‘मुझे यकीन है कि मां की इच्छा की दुहाई दे कर पापा सर्वगुण संपन्न और मेरे रोमरोम में बसी तनु को नकार देंगे. उन से इस बारे में बात करना बेकार ही नहीं खतरनाक भी है. मेरा शादी का इरादा सुनते ही वह उत्तर प्रदेश की किसी अनजान लड़की को मेरे गले बांध देंगे. तनु मेरी परेशानी समझती है मगर मेरे साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है. उस के लिए समय निकालना कोई समस्या नहीं है लेकिन लोग हमें एकसाथ देख कर उस पर छींटाकशी करें यह मुझे गवारा नहीं है.’

रामदयाल को याद आया कि जब उन्होंने लखनऊ की जायदाद बेच कर यह कोठी बनवानी चाही थी तो प्रेमा ने कहा था कि यह शहर उसे भी बहुत पसंद है मगर वह उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ना नहीं चाहती. इसलिए वह गुंजन की शादी उत्तर प्रदेश की किसी लड़की से ही करेगी. उन्होंने प्रेमा को आश्वासन दिया था कि ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि उन के परिवार की संस्कृति और मान्यताएं तो उन की अपनी तरफ की लड़की ही समझ सकती है.

गुंजन का सोचना भी सही था, तनु से शादी की इजाजत वह आसानी से देने वाले तो नहीं थे. लेकिन अब सब जानने के बाद वह गुंजन के होश में आते ही उस से कहेंगे कि वह जल्दीजल्दी ठीक हो ताकि उस की शादी तनु से हो सके.

अगली सुबह अखबार में घायलों में गुंजन का नाम पढ़ कर सभी रिश्तेदार और दोस्त आने शुरू हो गए थे. अस्पताल से आपरेशन सफल होने की सूचना भी आ गई थी फिर वह अस्पताल जा कर वरिष्ठ डाक्टर से मिले थे.

‘‘मस्तिष्क में जितनी भी गांठें थीं वह सफलता के साथ निकाल दी गई हैं और खून का संचार सुचारुरूप से हो रहा है लेकिन गुंजन की पसलियां भी टूटी हुई हैं और उन्हें जोड़ना बेहद जरूरी है लेकिन दूसरा आपरेशन मरीज के होश में आने के बाद करेंगे. गुंजन को आज रात तक होश आ जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए, जब हम ने दिमाग का जटिल आपरेशन सफलतापूर्वक कर लिया है तो पसलियों को भी जोड़ देंगे.’’

शाम को अपने अन्य सहकर्मियों के साथ तनुजा भी आई थी. बेहद विचलित और त्रस्त लग रही थी. रामदयाल ने चाहा कि वह अपने पास बुला कर उसे दिलासा और आश्वासन दें कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन रिश्तेदारों की मौजूदगी में यह मुनासिब नहीं था.

पसलियों के टूटने के कारण गुंजन के फेफड़ों से खून रिसना शुरू हो गया था जिस के कारण उस की संभली हुई हालत फिर बिगड़ गई और होश में आ कर आंखें खोलने से पहले ही उस ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं.

अंत्येष्टि के दिन रामदयाल को आएगए को देखने की सुध नहीं थी लेकिन उठावनी के रोज तनु को देख कर वह सिहर उठे. वह तो उन से भी ज्यादा व्यथित और टूटी हुई लग रही थी. गुंजन के अन्य सहकर्मी और दोस्त भी विह्वल थे, उन्होंने सब को दिलासा दिया. जनममरण की अनिवार्यता पर सुनीसुनाई बातें दोहरा दीं.

सीमा के साथ खड़ी लगातार आंसू पोंछती तनु को उन्होंने चाहा था पास बुला कर गले से लगाएं और फूटफूट कर रोएं. उन की तरह उस का भी तो सबकुछ लुट गया था. वह उस की ओर बढ़े भी लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर दूसरी ओर मुड़ गए.

कुछ दिनों के बाद एक इतवार की सुबह राघव गुंजन का कोट ले कर आया.

‘‘इस की जेब में गुंजन की घड़ी और पर्स वगैरा हैं. अंकल, संभाल लीजिए,’’ कहते हुए राघव का स्वर रुंध गया.

कुछ देर के बाद संयत होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां मिला, राघव?’’

‘‘तनु ने दिया है.’’

‘‘तनु कैसी है?’’

‘‘कल ही उस की बहन उसे अपने साथ पुणे ले गई है, जगह और माहौल बदलने के लिए. यहां तो बम होने की अफवाहों को सुन कर वह बारबार उन्हीं यादों में चली जाती थी और यह सिलसिला यहां रुकने वाला नहीं है. तनु के बहनोई उस के लिए पुणे में ही नौकरी तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नौकरी ही नहीं कोई अच्छा सा लड़का भी उस के लिए तलाश करें. अभी उम्र नहीं है उस की गुुंजन के नाम पर रोने की?’’

राघव चौंक पड़ा.

‘‘आप को तनु और गुंजन के बारे में मालूम है, अंकल?’’

‘‘हां राघव, मैं उस के दुख को शिद्दत से महसूस कर रहा था, उसे गले लगा कर रोना भी चाहता था लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, अंकल? क्यों नहीं किया आप ने ऐसा? इस से तनु को अपने और गुंजन के रिश्ते की स्वीकृति का एहसास तो हो जाता.’’

‘‘मगर मेरे ऐसा करने से वह जरूर मुझ से कहीं न कहीं जुड़ जाती और मैं नहीं चाहता था कि मेरे जरिए गुंजन की यादों से जुड़ कर वह जीवन भर एक अंतहीन दुख में जीए.’’

अंकल शायद ठीक कहते हैं.

 

अधूरे जवाब: क्या अपने प्यार के बारे में बता पाएगी आकांक्षा?

कहानी- संदीप कुमरावत

कैफे की गैलरी में एक कोने में बैठे अभय का मन उदास था. उस के भीतर विचारों का चक्रवात उठ रहा था. वह खुद की बनाई कैद से आजाद होना चाहता था. इसी कैद से मुक्ति के लिए वह किसी का इंतजार कर रहा था. मगर क्या हो यदि जिस का अभय इंतजार कर रहा था वह आए ही न? उस ने वादा तो किया था वह आएगी. वह वादे तोड़ती नहीं है…

3 साल पहले आकांक्षा और अभय एक ही इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ते थे. आकांक्षा भी अभय के साथ मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, और यह बात असाधारण न हो कर भी असाधारण इसलिए थी क्योंकि वह उस बैच में इकलौती लड़की थी. हालांकि, अभय और आकांक्षा की आपस में कभी हायहैलो से ज्यादा बात नहीं हुई लेकिन अभय बात बढ़ाना चाहता था, बस, कभी हिम्मत नहीं कर पाया.

एक दिन किसी कार्यक्रम में औडिटोरियम में संयोगवश दोनों पासपास वाली चेयर पर बैठे. मानो कोई षड्यंत्र हो प्रकृति का, जो दोनों की उस मुलाकात को यादगार बनाने में लगी हो. दोनों ने आपस में कुछ देर बात की, थोड़ी क्लास के बारे में तो थोड़ी कालेज और कालेज के लोगों के बारे में.

फिर दोनों की मुलाकात सामान्य रूप से होने लगी थी. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. मगर फिर भी आकांक्षा की अपनी पढ़ाई को ले कर हमेशा चिंतित रहने और सिलेबस कम्पलीट करने के लिए हमेशा किताबों में घुसे रहने के चलते अभय को उस से मिलने के लिए समय निकालने या परिस्थितियां तैयार करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी. पर वह उस से थोड़ीबहुत बात कर के भी खुश था.

दोस्ती होते वक्त नारी सौंदर्य के प्रखर तेज पर अभय की दृष्टि ने भले गौर न किया हो पर अब आकांक्षा का सौंदर्य उसे दिखने लगा था. कैसी सुंदरसुंदर बड़ीबड़ी आंखें, सघन घुंघराले बाल और दिल लुभाती मुसकान थी उस की. वह उस पर मोहित होने लगा था.

शुरुआत में आकांक्षा की तारीफ करने में अभय को हिचक होती थी. उसे तारीफ करना ही नहीं आता था. मगर एक दिन बातों के दौरान उसे पता चला कि आकांक्षा स्वयं को सुंदर नहीं मानती. तब उसे आकांक्षा की तारीफ करने में कोई हिचक, डर नहीं रह गया.

आकांक्षा अकसर व्यस्त रहती, कभी किताबों में तो कभी लैब में पड़ी मशीनों में. हर समय कहीं न कहीं उलझी रहती थी. कभीकभी तो उसे उस के व्यवहार में ऐसी नजरअंदाजगी का भाव दिखता था कि अभय अपमानित सा महसूस करने लगता था. वह बातें भी ज्यादा नहीं करती थी, केवल सवालों के जवाब देती थी.

अपनी पढ़ाई के प्रति आकांक्षा की निष्ठा, समर्पण और प्रतिबद्धता देख कर अभय को उस पर गर्व होता था, पर वह यह भी चाहता था कि इस तकनीकी दुनिया से थोड़ा सा अवकाश ले कर प्रेम और सौहार्द के झरोखे में वह सुस्ता ले, तो दुनिया उस के लिए और सुंदर हो जाए. बहुत कम ऐसे मौके आए जब अभय को आकांक्षा में स्त्री चंचलता दिखी हो. वह स्त्रीसुलभ सब बातों, इठलाने, इतराने से कोसों दूर रहा करती थी. आकांक्षा कहती थी उसे मोह, प्रेम या आकर्षण जैसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं. उसे बस अपने काम से प्यार है, वह शादी भी नहीं करेगी.

अचानक ही अभय अपनी खयालों की दुनिया से बाहर निकला. अपनेआप में खोया अभय इस बात पर गौर ही नहीं कर पाया कि आसपास ठहाकों और बातचीतों का शोर कैफे में अब कम हो गया है.

अभय ने घड़ी की ओर नजर घुमाई तो देखा उस के आने का समय तो कब का निकल चुका है, मगर वह नहीं आई. अभय अपनी कुरसी से उठ कैफे की सीढि़यां उतर कर नीचे जाने लगा. जैसे ही अभय दरवाजे की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगा, उस की नजर पास वाली टेबल पर पड़ी. सामने एक कपल बैठा था. इस कपल की हंसीठिठोलियां अभय ने ऊपर गैलरी से भी देखी थीं, लेकिन चेहरा नहीं देख पाया था.

लड़कालड़की एकदूसरे के काफी करीब बैठे थे. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. लड़की ने आंखें बंद कर रखी थीं मानो अपने मधुरस लिप्त होंठों को लड़के के होंठों की शुष्कता मिटा वहां मधुस्त्रोत प्रतिष्ठित करने की स्वीकृति दे रही हो.

अभय यह नजारा देख स्तब्ध रह गया. उसे काटो तो खून नहीं, जैसे उस के मस्तिष्क ने शून्य ओढ़ लिया हो. उसे ध्यान नहीं रहा कब वह पास वाली अलमारी से टकरा गया और उस पर करीने से सजे कुछ बेशकीमती कांच के मर्तबान टूट कर बिखर गए.

इस जोर की आवाज से वह कपल चौंक गया. वह लड़की जो उस लड़के के साथ थी कोई और नहीं बल्कि आकांक्षा ही थी. आकांक्षा ने अभय को देखा तो अचानक सकते में आ गई. एकदम खड़ी हो गई. उसे अभय के यहां होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उसे समझ नहीं आया क्या करे. सारी समझ बेवक्त की बारिश में मिट्टी की तरह बह गई. बहुत मुश्किलों से उस के मुंह से सिर्फ एक अधमरा सा हैलो ही निकल पाया.

अभय ने जवाब नहीं दिया. वह जवाब दे ही नहीं सका. माहौल की असहजता मिटाने के आशय से आकांक्षा ने उस लड़के से अभय का परिचय करवाने की कोशिश की. ‘‘साहिल, यह अभय है, मेरा कालेज फ्रैंड और अभय, यह साहिल है, मेरा… बौयफ्रैंड.’’ उस ने अंतिम शब्द इतनी धीमी आवाज में कहा कि स्वयं उस के कान अपनी श्रवण क्षमता पर शंका करने लगे.  अभय ने क्रोधभरी आंखें आकांक्षा से फेर लीं और तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.

आकांक्षा को कुछ समझ नहीं आया. उस ने भौचक्के से बैठे साहिल को देखा. फिर दरवाजे से निकलते अभय को देखा और अगले ही पल साहिल से बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर दौड़ गई. बाहर आ कर अभय को आवाज लगाई. अभय न चाह कर भी पता नहीं क्यों रुक गया.

आधी रात को शहर की सुनसान सड़क पर हो रहे इस तमाशे के साक्षी सितारे थे. अभय पीछे मुड़ा और आकांक्षा के बोलने से पहले उस पर बरस पड़ा, ‘‘मैं ने हर पल तुम्हारी खुशियां चाहीं, आकांक्षा. दिनरात सिर्फ यही सोचता था कि क्या करूं कि तुम्हें हंसा सकूं. तमाम कोशिशें कीं कि गंभीरता, कठोरता, जिद्दीपन को कम कर के तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी शरारतभरी मासूमियत के लिए जगह बना सकूं. तुम्हें मझधार के थपेड़ों से बचाने के लिए मैं खुद तुम्हारे लिए किनारा चाहता था. मगर, मैं हार गया. तुम दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हो, बातें करती हो, फिर मेरे साथ यह भेदभाव क्यों? तकलीफ तो इस बात की है कि जब तुम्हें किनारा मिल गया तो मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा तुम ने. क्यों आकांक्षा?’’

आकांक्षा अपराधी भाव से कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हें सब बताने वाली थी. तुम्हें ढेर सारा थैंक्यू कहना चाहती थी. तुम्हारी वजह से मेरे जीवन में कई सारे सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हुई. तुम मुझे कितने अजीज हो, कैसे बताऊं तुम्हें. तुम तो जानते ही हो कि मैं ऐसी ही हूं.’’

आकांक्षा का बोलना जारी था, ‘‘तुम ने कहा, मैं दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हूं. खूब बातें करती हूं. मतलब, छिप कर मेरी जासूसी बड़ी देर से चल रही है. हां, बदलाव हुआ है. दरअसल, कई बदलाव हुए हैं. अब मैं पहले की तरह खड़ ूस नहीं रही. जिंदगी के हर पल को मुसकरा कर जीना सीख लिया है मैं ने. तुम्हारा बढ़ा हाथ है इस में, थैंक्यू फौर दैट. और तुम भी यह महसूस करोगे मुझ से अब बात कर के, अगर मूड ठीक हो गया हो तो.’’ अब वह मुसकराने लगी.

अभय बिलकुल शांत खड़ा था. कुछ नहीं बोला. अभय को कुछ न कहते देख आकांक्षा गंभीर हो गई. कहने लगी, ‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तुम मेरे नीरस जीवन में प्यार की मिठास घोलना चाहते थे तो अपनी ही इच्छा पूरी होने पर इतने परेशान क्यों हो गए? मुझे साहिल के साथ देख कर इतना असहज क्यों हो गए? मेरे खिलाफ खुद ही बेवजह की बेतुकी बातें बना लीं और मुझ से झगड़ रहे हो. कहीं…’’ आकांक्षा बोलतेबोलते चुप हो गई.

इतना सुन कर भी अभय चुप ही रहा. आकांक्षा ने अभय को चुप देख कर एक लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय.’’

यह सुन कर उस के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई. हृदय एक अजीब परंतु परिपूर्ण आनंद से भर गया. उस का मस्तिष्क सारे विपरीत खयालों की सफाई कर बिलकुल हलका हो गया. ‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय,’ इस बात से अब वह उम्मीद टूट चुकी थी जिसे उस ने कब से बांधे रखा था. लेकिन, जो आकांक्षा ने कहा वह सच भी तो था. वह न कभी कुछ साफसाफ बोल पाया न वह समझ पाई और अब जब उसे जो चाहिए था मिल ही गया है तो वह क्यों उस की खुशी के आड़े आए.

अभय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कम से कम मुझ से समय से मिलने तो आ जातीं.’’ यह सुन कर आकांक्षा हंसने लगी और बोली, ‘‘बुद्धू, हम कल मिलने वाले थे, आज नहीं.’’ अभय ने जल्दी से आकांक्षा का मैसेज देखा और खुद पर ही जोरजोर से हंसने लगा.

एक झटके में सबकुछ साफ हो गया और रह गया दोस्ती का विस्तृत खूबसूरत मैदान. आकांक्षा को वह जितना समझता है वह उतनी ही संपूर्ण और सुंदर है उस के लिए. उसे अब आज शाम से ले कर अब तक की सारी नादानियों और बेवकूफीभरे विचारों पर हंसी आने लगी. उतावलापन देखिए, वह एक दिन पहले ही उस रैस्टोरैंट में पहुंच गया था जबकि उन का मिलना अगले दिन के लिए तय था.

अभय ने कुछ मिनट लिए और फिर मुसकरा कर कहा, ‘‘जानबूझ कर मैं एक दिन पहले आया था, माहौल जानने के लिए आकांक्षा, यू डिजर्व बैटर.’’

Friendship Day Special: स्कूल के दिनों का प्यार

बारिश का मौसम पूरे शबाब पर था. पार्थ और पूर्वा स्कूल के लिए निकलने वाले थे. मां ने चेतावनी दी, ‘‘बारिश का मौसम है, स्कूल संभल कर जाना. पूरी रात जम कर बारिश हुई है. अगर बारिश ज्यादा हुई तो स्कूल में ही रुक जाना. हमेशा की तरह अकेले मत आना. मैं तुम्हें लेने आऊंगी.’’

‘‘अच्छा, मां, हम सावधानी बरतेंगे,’’ पार्थ और पूर्वा बोले. दोनों ने मां को अलविदा कहा. वे स्कूल जाने लगे.

शाम के 6 बजने वाले थे. स्कूल की छुट्टी का समय हो चुका था. पार्थ और पूर्वा ग्राउंड फ्लोर पर मिले. तेज हवा चलने लगी. अचानक तूफान आया और तेज बारिश होने लगी.

पार्थ और पूर्वा ने अपनेअपने रेनकोट पहने और छतरियां खोलीं, जो हवा में कभी दाएं तो कभी बाएं करने लगीं.

पूर्वा दीदी, बहुत तेज बारिश हो रही है. तूफान भी बहुत तेजी से आया है. पेड़ हिल रहे हैं. स्कूल परिसर में पहले ही इतना पानी भर गया है. हम अब घर कैसे जाएंगे?’’ चिंतित पार्थ ने पूछा.

‘‘हमें मां ने कहा था कि बारिश आई तो वे हमें स्कूल लेने आएंगी, लेकिन यहां भी हम सुरक्षित नहीं हैं. यहां बहुत पानी जमा हो रहा है, हमारी क्लास जल्दी भर जाएगी. बिजली भी चमक रही है. मुझे इस से डर लगता है. पेड़ भी गिर सकते हैं,’’ पूर्वा रोने लगी.

अचानक पार्थ को याद आया, ‘‘मेरी कक्षा का आर्य स्कूल के सामने वाली बिल्डिंग में ही रहता है, लेकिन हम उस के घर में नहीं ठहर सकते?’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ पूर्वा ने पूछा.

‘‘पिछले महीने जब स्कूल ग्राउंड में हम फुटबौल मैच खेल रहे थे, तब उस ने मुझे मैच के दौरान धक्का दिया था, जब मैं गोल करने वाला था और चीटिंग कर के मैच जीता था. तब मैच के बाद हम बहुत झगड़े. अब हम एकदूसरे से बात नहीं करते हैं,’’ उस खराब समय को याद करते हुए पार्थ ने कहा.

‘‘लेकिन अभी हम उस बारे में नहीं सोच सकते. हमारा इस समय किसी सुरक्षित जगह पर जाना जरूरी है. हमें जल्दी से उस के घर जाना चाहिए,’’ मौसम से डरते हुए पूर्वा ने कहा.

‘‘वह तीसरी मंजिल पर रहता है, चलो, हम दोनों चलते हैं,’’ पार्थ और पूर्वा दोनों आर्य के घर पहुंचे.

पूर्वा दीदी ने आर्य के घर का दरवाजा खटखटाया. आर्य की मां ने दरवाजा खोला. पूर्वा दीदी आर्य की मां से बोली, ‘‘आंटी, हम दोनों आर्य के स्कूल में पढ़ते हैं. मेरा भाई पार्थ आर्य की कक्षा में ही है और उस का सहपाठी है. हमारा घर बहुत दूर है. क्या हम बारिश रुकने तक आप के घर में ठहर सकते हैं?’’

आर्य की मां ने उन का स्वागत किया और आर्य को बुलाया. पार्थ और पूर्वा आर्य के घर पर आ कर बैठ गए. पूर्वा ने चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘‘आंटी, आप मां को फोन कर के बता सकती हैं कि हम आप के घर में सुरक्षित हैं, उन का नंबर ये है.’’

आर्य की मम्मी ने पूर्वा की मम्मी को फोन कर के सारी हकीकत बताई. मां से बात करने के बाद आंटी ने कहा, ‘‘बारिश और तूफान रुकने के बाद तुम्हारी मां हमारे घर तुम दोनों को लेने आएंगी, लेकिन आर्य, तुम पार्थ से बात क्यों नहीं कर रहे हो? वह तुम्हारी कक्षा में पढ़ता है न?’’ दोनों में से किसी ने भी कुछ नहीं कहा.

मां की बातें सुन कर पूर्वा ने आर्य और पार्थ में हुए झगड़े के बारे में बताया.

‘‘आर्य, तुम ने पार्थ को गिरा कर फुटबौल मैच जीता है,’’ उन्होंने पूछा.

आर्य शर्म से नीचे देखने लगा. वह जानता था कि उस ने गलत किया.

मां की बातें सुन कर आर्य ने पार्थ से कहा, ‘‘सौरी पार्थ, हम दोनों फिर से दोस्त हैं.’’

‘‘मैं भी तुम्हें सौरी कहता हूं. चलो, आज से मैं तुम्हारा दोस्त हूं,’’ पार्थ ने कहा.

आर्य की मां उन दोनों में फिर से दोस्ती को देख कर खुश थीं.

रात के 9 बजने को आए. बारिश थोड़ी रुक गई थी. पार्थ, आर्य और पूर्वा रात का खाना खाने लगे. कुछ ही देर में उन की मां भी वहां पहुंच गईं.

उन्होंने उन्हें खाते हुए देखा और कहा, ‘‘आर्य की मां, बच्चों की देखभाल के लिए मैं आप की आभारी हूं, आप ने बच्चों को सहारा दिया.’’

तब आर्य की मां बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, वास्तव में मौसम काफी खराब हो गया था. अच्छी बात यह है कि आर्य और पार्थ फिर से दोस्त बन गए हैं.’’

पार्थ की मां उलझन में थीं और बोलीं, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझी नहीं,’’ आर्य की मां ने उन्हें सारी बातें समझाईं.

पार्थ की मां ने जवाब दिया, ‘‘ इस स्थिति को हल करने के लिए धन्यवाद,’’ बच्चों ने खाना खत्म किया और दोबारा उन्हें धन्यवाद दिया.

अगले दिन स्कूल में आर्य और पार्थ एकसाथ बैठने लगे. वह एकसाथ टिफिन भी खाते थे और खेलते भी थे. इस बारिश की घटना से आर्य और पार्थ को एक नई सीख मिली थी.

डर : आखिर किस बात से डरती थी मंजू…

लेखक- पूनम (कतरियार)

मंजू और श्याम की शादी को 4 साल हो गए थे. जैसा नाम, वैसा रूप. लंबीचौड़ी कदकाठी, पक्के रंग का श्याम पुलिस महकमे की रोबदार नौकरी के चलते मंजू के मातापिता व परिवार को एक नजर में पसंद आ गया. इस तरह वह सुंदर, सुशील व शालीन मंजू का पति बन गया. आम भारतीय पत्नियों की तरह मंजू भी दिल की गहराई से श्याम से प्यार करती थी.

शादी के शुरुआती दिन कपूर की तरह उड़ गए. तकरीबन 2 साल गुजर गए, लेकिन मंजू की गोद हरी न हुई. अब तो घर-परिवार के लोग इशारों-इशारों में पूछने भी लगे. मंजू खुद भी चिंतित रहने लगी, पर श्याम बेफिक्र था.

मंजू ने जब कभी बात छेड़ी भी तो श्याम हंसी में टाल गया. एक दिन तो हद हो गई. उस ने बड़ी बेरहमी से कहा, ‘‘कहां बच्चे के झमेले में डालना चाहती हो? जिंदगी में ऐश करने दो.’’

मंजू को बुरा तो बहुत लगा, पर श्याम के कड़े तेवर देख वह डर गई और चुप हो गई.

शुरू से ही मंजू ने देखा कि श्याम के दफ्तर आनेजाने का कोई तय समय नहीं था. कभीकभी तो वह दूसरे दिन ही घर आता था. खैर, पुलिस की नौकरी में तो यह सब लगा रहता है. पर इधर कुछ अजीब बात हुई. एक दिन श्याम के बैग से ढेर सारी चौकलेट गिरीं. यह देख मंजू हैरान रह गई.

जब मंजू ने श्याम से पूछा तो पहले तो वह गुस्सा हो गया, फिर थोड़ा शांत होते ही बात बदल दी, ‘‘तुम्हारे लिए ही तो लाया हूं.’’

‘लेकिन मुझे तो चौकलेट पसंद ही नहीं हैं और फिर इतनी सारी…’ मन ही मन मंजू ने सोचा. कहीं श्याम गुस्सा न हो जाए, इस डर से वह कुछ नहीं बोली.

डोरबैल बजने से मंजू की नींद

टूटी. रात के ढाई बज रहे थे. नशे में धुत्त श्याम घर आया था. आते ही वह बिस्तर पर लुढ़क गया. शराब की बदबू पूरे घर में फैल गई. मंजू की नींद उचट गई. श्याम के मोबाइल फोन पर लगातार मैसेज आ रहे थे.

‘चलो, मैसेज की टोन औफ कर दूं,’ यह सोचते हुए मंजू ने हाथ में मोबाइल फोन लिया ही था कि उस की नजर एक मैसेज पर पड़ी. कोई तसवीर लग रही थी. उस ने मैसेज खोल लिया. किसी गरीब जवान होती लड़की की तसवीर थी. तसवीर के नीचे ‘40,000’ लिखा था.

मंजू का सिर भन्ना गया. वह खुद को रोक नहीं पाई, उस ने सारे मैसेज पढ़ डाले. जिस पति और उस की नौकरी को ले कर वह इतनी समर्पित थी, वह इतना गिरा हुआ निकला. वह अनाथालय की बच्चियों की दलाली करता था.

मंजू खुद को लुटा सा महसूस कर रही थी. उस का पति बड़ेबड़े नेताओं और अनाथालय संचालकों के साथ मिल कर गांवदेहात की गरीब बच्चियों को टौफीचौकलेट दे कर या फिर डराधमका कर शहर के अनाथालय में भरती कराता था और सैक्स रैकेट चलाता था.

प्रेम में अंधी मंजू पति के ऐब को नजरअंदाज करती रही. काश, उसी दिन चौकलेट वाली बात की तह में जाती, शराब पीने पर सवाल उठाती, उस के देरसवेर घर आने पर पूछताछ करती. नहीं, अब नहीं. अब वह अपनी गलती सुधारेगी.

रोजमर्रा की तरह जब श्याम नाश्ता कर के दफ्तर के लिए तैयार होने लगा, तो मंजू ने बात छेड़ी. पहले तो श्याम हैरान रह गया, फिर दरिंदे की तरह मंजू पर उबल पड़ा, ‘‘तुम ने मेरे मैसेज को पढ़ा क्यों? अब तुम सब

जान चुकी हो तो अपना मुंह बंद रखना. जैसा चल रहा है चलने दो, वरना तेरी छोटी बहन के साथ भी कुछ गंदा हो सकता है.’’

मंजू को पीटने के बाद धमकी दे कर श्याम घर से निकल गया.

डर, दर्द और बेइज्जती से मंजू बुरी तरह कांप रही थी. सिर से खून बह रहा था. चेहरा बुरी तरह सूजा हुआ था.

श्याम का भयावह चेहरा अभी भी मंजू के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. बारबार उसे अपनी छोटी बहन अंजू का खयाल आ रहा था जो दूसरे शहर के होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी.

गरमी और उमस से भरी वह रात भारी थी. बिजली भी कब से गायब थी. इनवर्टर की बैटरी भी जवाब देने लगी थी. इन बाहरी समस्याओं से ज्यादा मंजू अपने भीतर की उथलपुथल से बेचैन थी. क्या करे? औरतों की पहली प्राथमिकता घर की शांति होती है. घर की सुखशांति के लिए चुप रहना ही बेहतर होगा. जैसा चल रहा है, चलने दो… नहीं, दिल इस बात के लिए राजी नहीं था. जिंदगी में ऐसा बुरा दिन आएगा, सोचा न था. कहां तो औलाद की तड़प थी और अब पति से ही नफरत हो रही थी. अभी तक जालिम घर भी नहीं आया, फोन तक नहीं किया. जरूरत भी क्या है?

‘केयरिंग हसबैंड’ का मुलम्मा उतर चुका था. उस की कलई खुल चुकी थी. नहीं आए, वही अच्छा. कहीं फिर पीटा तो? एक बार फिर डर व दर्द से वह बिलबिला उठी. तभी बिजली आ गई. पंखाकूलर चलने लगे तो मंजू को थोड़ी राहत मिली. वह निढाल सी पड़ी सो गई.

सुबह जब नींद खुली तो मंजू का मन एकदम शांत था. एक बार फिर पिछले 24 घंटे के घटनाक्रम पर ध्यान गया. लगा कि अब तक वह जिस श्याम को जानती थी, जिस के प्यार को खो देने से डरती थी, वह तो कभी जिंदगी में था ही नहीं. वह एक शातिर अपराधी निकला, जो उसे और सारे समाज को वरदी की आड़ में धोखा दे रहा था.

एक नई हिम्मत के साथ मंजू ने अपना मोबाइल फोन उठाया. सामने ही श्याम का मैसेज था, ‘घर आने में मुझे 2-3 दिन लग जाएंगे.’

मंजू का मन नफरत से भर गया. वह मोबाइल फोन पर गूगल सर्च करने लगी. थोड़ी ही देर के बाद मंजू फोन पर कह रही थी, ‘‘हैलो, महिला आयोग…’’

बालू पर पड़ी लकीर

लेखक- रेणुका पालित

मैं अपने घर  के बरामदे में बैठा पढ़ने का मन बना रहा था, पर वहां शांति कहां थी. हमेशा की तरह हमारे पड़ोसी पंडित ओंकारनाथ और मौलाना करीमुद्दीन की जोरजोर से झगड़ने की आवाजें आ रही थीं. वह उन का तकरीबन रोज का नियम था. दोनों छोटी से छोटी बात पर भी लड़तेझगड़ते रहते थे, ‘‘देखो, मियां करीम, मैं तुम्हें आखिरी बार मना करता हूं, खबरदार जो मेरी कुरसी पर बैठे.’’

‘‘अमां पंडित, बैठने भर से क्या तुम्हारी कुरसी गल गई. बड़े आए मुझे धमकी देने, हूं.’’

‘नहाते तो हैं नहीं महीनों से और चले आते हैं कुरसी पर बैठने,’ पंडितजी ने बड़बड़ाते हुए अपनी कुरसी उठाई और अंदर रखने चले गए.

मुझे यह देख कर आश्चर्य होता था कि मौलाना और पंडित में हमेशा खींचातानी होती रहती थी, पर उन की बेगमों की उन में कोई भागीदारी नहीं थी. मानो दोनों अपनेअपने शौहरों को खब्ती या सनकी समझती थीं. अचार, मंगोड़ी से ले कर कसीदा, कढ़ाई तक में दोनों बेगमों का साझा था.

पंडित की बेटी गीता जब ससुराल से आती, तब सामान दहलीज पर रखते ही झट मौलाना की बेटी शाहिदा और बेटे रागिब से मिलने चली जाती. मौलाना भी गीता को देख कर बेहद खुश होते. घंटों पास बैठा कर ससुराल के हालचाल पूछते रहते. उन्हें चिढ़ थी तो सिर्फ  पंडित से.

कटाक्षों का सिलसिला यों ही अनवरत जारी रहता. पिछले दिन ही मौलाना का लड़का रागिब जब सब्जियां लाने बाजार जा रहा था, तब पंडिताइन ने पुकार कर कहा, ‘‘बेटे रागिब, बाजार जा रहा है न. जरा मेरा भी थैला लेता जा. दोचार गोभियां और एक पाव टमाटर लेते आना.’’

‘‘अच्छा चचीजान, जल्दी से पैसे दे दीजिए.’’

पंडित और मौलाना अपनेअपने बरामदे में कुरसियां डाले बैठे थे. भला ऐसे सुनहरे मौके पर मौलाना कटाक्ष करने से क्यों चूकते. छूटते ही उन्होंने व्यंग्यबाण चलाए, ‘‘बेटे रागिब, दोनों थैले अलग- अलग हाथों में पकड़ कर लाना, नहीं तो पंडित की सब्जियां नापाक हो जाएंगी.’’

मुसकराते हुए उन्होंने कनखियों से पंडित की ओर देखा और पान की एक गिलौरी गाल में दबा ली.

जब पंडित ने इत्मीनान कर लिया कि रागिब थोड़ी दूर निकल गया है, तब ताव दिखाते हुए बोले, ‘‘अरे, रख दे मेरे थैले. मेरे हाथपांव अभी सलामत हैं. मुझे किसी का एहसान नहीं लेना. पंडिताइन की बुद्धि जाने कहां घास चरने चली गई है. खुद चली जाती या मुझे ही कह देती.’’

भुनभुनाते हुए पंडित दूसरी ओर मुंह फेर कर बैठ जाते.

यों ही नोकझोंक चलती रहती पर एक दिन ऐसी गरम हवा चली कि सारी नोकझोंक गंभीरता में तबदील हो गई.

शहर शांत था, पर वह शांति किसी तूफान के आने से पूर्व जैसी भयानक थी. अब न पंडिताइन रागिब को सब्जियां लाने को आवाज देती, न ही मौलाना आ कर पंडित की कुरसी पर बैठते. एक अदृश्य दीवार दोनों घरों के मध्य उठ गई थी, जिस पर दहशत और अविश्वास का प्लास्टर दोनों ओर के लोग थोपते जा रहे थे. रिश्तेदार अपनी ‘बहुमूल्य राय’ दे जाते, ‘‘देखो मियां, माहौल ठीक नहीं है. यह महल्ला छोड़ कर कुछ दिन हमारे साथ रहो.’’

परंतु कुछ ऐसे भी घर थे जहां अविश्वास की परत अभी उतनी मोटी नहीं थी. इन दोनों परिवारों को भी अपना घर छोड़ना मंजूर नहीं था.

‘‘गीता के बापू, सो गए क्या?’’

‘‘नहीं सोया हूं,’’ पंडित खाट पर करवट बदलते हुए बोले.

‘‘मेरे मन में बड़ी चिंता होती है.’’

‘‘तुम क्यों चिंता में प्राण दिए दे रही हो. ख्वाहमख्वाह नींद खराब कर दी, हूंहं,’’ और पंडित बड़बड़ाते हुए बेफिक्री से करवट बदल कर सो गए.

पर एक रात ऐसा ही हुआ जिस की आशंका मन के किसी कोने में दबी हुई थी. दंगाई (जिन की न कोई जाति होती है, न धर्म) जोरजोर से पंडित का दरवाजा खटखटा रहे थे, ‘‘पंडितजी, बाहर आइए.’’

पंडित के दरवाजा खोलते ही लोग चीखते हुए पूछने लगे, ‘‘कहां छिपाया है आप ने मौलाना के परिवार को?’’

‘‘मैं…मैं ने छिपाया है, मौलाना को? अरे, मेरा तो उन से रोज ही झगड़ा होता है. नहीं विश्वास हो तो देख लो मेरा घर,’’ पंडित ने दरवाजे से हटते हुए कहा.

अभी दंगाइयों में इस बात पर बहस चल ही रही थी कि पंडित के घर की तलाशी ली जाए या नहीं कि शहर के दूसरे छोर से बच्चों और स्त्रियों की चीखपुकार सुनाई पड़ी. रात के सन्नाटे में वह हंगामा और भी भयावह प्रतीत हो रहा था. दरिंदे अपना खतरनाक खेल खेलने में मशगूल थे. बलवाइयों ने पंडित के घर की चिंता छोड़ दी और वे दूसरे दंगाइयों से निबटने के लिए नारे लगाते हुए तेजी से कोलाहल की दिशा की ओर झपट पड़े.

दंगाइयों के जाते ही पंडित ने दरवाजा बंद किया. तेजी से सीटी बजाते हुए एक ओर चले. वह कमरा जिसे पंडिताइन फालतू सामान और लकडि़यां रखने के काम में लाती थी, अब मौलाना के परिवार के लिए शरणस्थली था. सभी भयभीत कबूतरों जैसे सिमटे थे. बस, सुनाई पड़ रही थी तो अपनी सांसों की आवाजें.

पंडित ने कमरे में पहुंचते ही मौलाना को जोर से अंक में भींच कर गले लगा लिया. आंखों से अविरल बह रहे आंसुओं ने खामोशी के बावजूद सबकुछ कह दिया. मौलाना स्वयं भी हिचकियां लेते जाते और पंडित के गले लगे हुए सिर्फ ‘भाईजान, भाईजान’ कहते जा रहे थे.

गरम हवा शांत हो कर फिर बयार बहने लगी थी. सबकुछ सामान्य हो चला था. न तो किसी को किसी से कोई गिला था, न शिकवा. एक संतुष्टि मुझे भी हुई, अब मेरा महल्ला शांत रहेगा. पढ़ने के उपयुक्त वातावरण पर मेरा यह चिंतन मिथ्या ही साबित हुआ.

सुबह होते ही पंडित और मौलाना ने अखाड़े में अपनी जोरआजमाइश शुरू कर दी थी.

‘‘तुम ने मेरे दरवाजे की पीठ पर फिर थूक दिया, मौलाना, ’’ पंडित गरज रहे थे.

‘‘अरे, मैं क्यों थूकने लगा. तुझे तो लड़ने का बहाना चाहिए.’’

‘‘क्या कहा, मैं झगड़ालू हूं.’’

‘‘मैं तो गीता बिटिया के कारण तेरे घर आता हूं, वरना तेरीमेरी कैसी दोस्ती.’’

शिकायतों और इलजामों का कथोपकथन तब तक जारी रहा जब तक दोनों थक नहीं गए.

मैं ने सोचा, ‘यह समुद्र की लहरों द्वारा बालू पर खींची गई वह लकीर है, जो क्षण भर में ही मिट जाती है. समुद्र के किनारों ने लहरों के अनेक थपेड़ों को झेला है पर आखिर में तो वे समतल ही हो जाते हैं.’

अधूरापन : सुहागरात के दिन क्या हुआ सलीम के साथ?

राइटर: मो. मुबीन

घर के संस्कार और वातावरण आदमी की प्रकृति को इस हद तक प्रभावित करते हैं कि वह प्रकृति के विपरीत असामान्य आचरण करने लगता है. यहां तक कि उस के परिवार के सदस्यों को भी उस में अधूरेपन का एहसास होने लगता है. क्या सलीम भी इसी का शिकार था?

वह सन्न सी बैठी सलीम को घूर रही थी और सलीम दूसरे पलंग पर आराम से लेटा खर्राटे ले रहा था. कुछ ही क्षणों में उस के विचारों और सपनों की शृंखला कांच के समान टूट कर बिखर गई. कुछ देर पहले जब वह सुहाग की सेज पर बैठी सलीम की राह देख रही थी, उस के हृदय की स्थिति भी अजीब सी थी.

उस के मस्तिष्क में तरहतरह के विचार घूम रहे थे. उन बातों के बारे में सोचसोच कर उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आने वाले क्षणों की कल्पना से उसे पसीना छूट रहा था. उसी समय दरवाजा एक हलकी सी आवाज के साथ खुला और उस के दिल की धड़कनों की गति और भी तेज हो गई.

वह कुछ और सिकुड़ कर बैठ गई और स्वयं पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करती सोचने लगी कि किस तरह सलीम से बातें करे या उस की बातों का उत्तर दे.

कमरे में मौन छाया रहा. उस का सिर  झुका हुआ था. जब उस भयंकर मौन से उस का मन घबरा गया तो उस ने धीरे से नजरें उठा कर चोर नजरों से सलीम की ओर देखा.

वह अपने कपड़े बदल रहा था. कपड़े बदल कर वह सामने वाले पलंग पर बैठ गया.

‘‘इस लंबे समय में तुम काफी थक गई होगी?’’ सलीम ने धीरे से पूछा.

‘‘जी…’’ उस ने धीरे से जवाब दिया.

‘‘मैं भी काफी थक गया हूं,’’ कहते हुए वह पलंग पर लेट गया और बोला, ‘‘तुम भी सो जाओ.’’

उसे इस बात की कतई आशा नहीं थी कि सलीम उस से ये शब्द कहेगा और उससे ऐसा व्यवहार करेगा. बहुत देर तक तो वह कुछ भी नहीं सम झ सकी, अपनी ही उधेड़बुन में व्यस्त रही. फिर जब उस ने सलीम को देखा तो उस के मस्तिष्क को एक  झटका लगा. वह सो गया था. सलीम ऐसा होगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

उसे  झुंझलालट सी हो रही थी. फिर जब वह गंभीरता से सोचने लगी तो उसे अपनी मूर्खता पर क्रोध आया कि वह भी कितनी मूर्ख है, क्याक्या सोच रही है. सलीम की बात भी तो सच है. 2 दिन के विवाह के  झमेलों और फिर लंबी यात्रा ने उसे भी तो काफी थका दिया था. सलीम सचमुच थक गया होगा. ऐसी स्थिति में वह उस से क्या बातें कर सकता था? इन बातों के लिए तो जिंदगी पड़ी है. यह सोच कर वह पलंग पर लेट गई. थोड़ी देर यों ही लेटी रही. फिर थकान के कारण उसे जल्द ही नींद आ गई.

सवेरे आंख खुली तो सूरज काफी चढ़ आया था. वह घबरा कर उठी. उसे स्वयं पर लज्जा आने लगी कि यह आ इतनी देर कैसे नींद आती रही.

सलीम का पलंग खाली था. शायद वह काफी पहले उठ चुका था. लज्जित सी वह कमरे के बाहर आई.

‘‘नींद पूरी हो गई, बेटी?’’ अम्मी से सामना होने पर उन्होंने पूछा.

‘‘हां, अम्मी,’’ उस ने सिर  झुका कर जवाब दिया.

‘‘अच्छा देखो, मेरी किट्टी की 1-2 मैंबर्स आई हैं, उन से मिल लो.’’

वह दूसरे कमरे में आई तो उस ने देखा कि उस की उम्र की कई लड़कियां उस की राह देख रही हैं. उन्होंने उसे घेर लिया.

‘‘वाह, खालाजान सलीम ने क्या बहू चुनी.’’

‘‘अरे, चांद का टुकड़ा नजर आती है.’’

‘‘अच्छी पढ़ीलिखी भी है.’’

‘‘सुनाइए, भाभीजी, रात कैसी बीती? सलीम ने ज्यादा तंग तो नहीं किया?’’

‘‘अरे, तंग क्या करेंगे, मु झे तो लगता है उन्होेंने भाभी को छुआ भी नहीं,’’ एक शोख लड़की बोल उठी.

‘‘क्या मतलब?’’ सभी चौंक कर उसे देखने लगीं.

‘‘सुबूत हाजिर है,’’ उस ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘इन हाथों में सुहाग की ये कच्ची चंपई चूडि़यां बिलकुल साबूत हैं. अरे, ये तो जरा सा धक्का लगते ही टूट जाती हैं. अगर सलीम इन्हें छूते तो ये यों कैसे रहतीं?’’

‘‘बेचारी निकहत,’’ एक बोली, ‘‘हम तो सम झते थे सलीम हम से बात करते हुए इसलिए घबराते हैं कि शायद वे हम से शरमाते होंगे परंतु उन्होंने तो हमारी तरह निकहत की तरफ भी

आंख उठा कर नहीं देखा. हम तो खैर उन की बहनेंभाभियां हैं, परंतु निकहत तो उन की पत्नी है.’’

‘‘देखेंगे भी कैसे?’’ एक चंचल पड़ोसिन बोल उठी.

‘‘हमारे खयाल से तो गली के मर्द सलीम के बारे में जो कहते हैं वह सच ही है कि वे अधूरे हैं.’’

‘‘उफ, अब यह अधूरेपन का महारोग भाभी जैसी अप्सरा को लग गया.’’

यह सुनते ही उस के मस्तिष्क में धमाके होने लगे. उस के होंठों से चीख निकलतेनिकलते रह गई.

‘‘लड़कियों, अब उसे और अधिक तंग मत करो,’’ इस बीच अम्मी आ गईं, ‘‘उसे बाथ के लिए जाने दो.’’

‘‘बाथ…’’ 1-2 लड़कियां जोर से हंस पड़ीं, ‘‘अरे खालाजान, आज या आज के बाद भाभी को कभी बाशरूम की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ कहती हुई वे भाग गईं.

उन के कहकहे उस के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बरसने लगे. उस ने अम्मी की तरफ देखा. उन का चेहरा भी पीला था जैसे उन की कोई चोरी पकड़ ली गई हो. यह रिश्ता उस के पिता के एक जानकार ने कराया था. सलीम से 2 बार मिली भी थी पर आसपास सब लोग थे. सलीम चुप ही रहे थे. उसे थोड़ा सरप्राइज हुआ पर ऐसे लड़के होते हैं  जो लड़कियों के साथ बात करने से घबराते हैं, वह जानती थी.

उस ने आंखों से निकलने के लिए बेताब आंसुओं को किसी तरह रोका और दूसरे कमरे में आ गई. उस के मस्तिष्क में रात की घटनाएं और उन पड़ोसियों की बातें घूम रही थीं. रात की घटनाओं को तो संयोग सम झ कर उस ने अपना मन बहला लिया परंतु इन बातों को वह कैसे  झुठलाए, उस की सम झ में नहीं आ रहा था.

क्या सचमुच विवाह के साथ ही उसे अधूरापन जैसे महारोग लग गया है? यह सोच कर वह कांप उठी.

फिर किट्टी की कुछ और औरतें आ गईं. वे उस से बातें करने लगीं. उन के साथ बातों में वह सारी बातें भूल गई. परंतु जब वह किसी को खुसुरफुसुर करते पाती या किसी स्त्री की बात में व्यंग्य का अनुभव करती तो बेचैन हो उठती. वह एक अजीब सी दुविधा में फंसी हुई थी. दिन तो गुजर गया परंतु अगली रात फिर एक कड़ी परीक्षा लेने के लिए आ गई. वह पलंग पर बैठी सलीम की प्रतीक्षा करने लगी. सलीम बहुत देर से आया. उस की राह देखतेदेखते वह उकता गई थी.

आने के बाद सलीम बजाय उस के पास आने के पलंग पर लेट गया, ‘‘तुम अभी तक सोई नहीं? सो जाओ,’’ कह कर उस ने करवट बदल ली.

बिना कोई उत्तर दिए वह उठ कर उस के पास चली गई. उस की आहट सुन कर सलीम चौंक उठा. फिर उसे इतना समीप पा कर वह घबरा गया.

‘‘तुम… तुम यहां क्यों आई हो?’’ वह बोला.

‘‘क्यों? मैं आप की पत्नी हूं. मैं यहां नहीं आ सकती?’’

‘‘नहीं,’’ वह भयभीत स्वर में बोला, ‘‘मु झे लड़कियों को करीब पा कर घबराहट होने लगती है. पसीना छूटने लगता है.’’

उस ने सलीम की ओर देखा, सचमुच उस का चेहरा भय से पीला पड़ गया था और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं. वह जैसे ही उस के समीप गई, वह चीख उठा, ‘‘मेरे करीब मत आओ, निकहत, मु झे घबराहट होती है.’’

यह सुनते ही उस के मस्तिष्क को एक आघात लगा. आंखों से आंसू छलक पड़े. वह तेजी से मुड़ी और पलंग पर गिर कर सिसकने लगी. उस की सिसकियां कमरे के करुणामय मौन को भंग कर रही थीं और आंसू तकिए के गिलाफ को गीला कर रहे थे. दूसरी ओर सलीम बेखबर सोया हुआ था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मां और बहन की वीसियों कौल व्हाट्सऐप पर आ चुकी थीं पर वह उठा नहीं रही थी. न जाने कब मन का गुबार निकल जाए और शादी के 4 दिन में ही हंगामा मच जाए.

दूसरे दिन सो कर उठी तो वह बहुत उदास थी. वह स्वयं को टूटा हुआ अनुभव कर रही थी. अम्मी भी उस से कतरा रही थीं, जिस से साफ सिद्ध हो रहा था जैसे वह महसूस कर रही हैं कि उन्होंने उसे अपने घर की बहू बना कर उस से बहुत बड़ी ज्यादती की है. इस अपराधबोध के कारण वे उस का सामना नहीं कर पा रही हैं. वे अपने काम में व्यस्त हो गईं.

दोपहर में जो स्त्री उस से मिलने के लिए आई उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा, ‘‘अरे शब्बो, तू यहां है?’’ उस ने पूछा.

‘‘और तू यहां कैसे?’’

शब्बो आश्चर्य से बोली, ‘‘क्या सलीम का विवाह तेरे साथ हुआ है?’’

‘‘हां,’’ उस ने धीरे से जवाब दिया. उस का उत्तर सुन कर शब्बो सन्नाटे में आ गई. बहुत देर तक वह कुछ नहीं बोली. फिर बोली, ‘‘निक्की, विवाह से पहले लड़के को अच्छी तरह देख तो लिया होता.’’

‘‘अच्छी तरह देखा था, 2 बार साथ बैठ कर बात भी की थी,’’ वह दर्द भरे स्वर में बोली.

‘‘फिर इतनी बड़ी गलती क्यों की?’’

‘‘मु झे तो ऐसा अनुभव हो रहा था मैं कोई गलती नहीं कर रही हूं,’’ वह बोली, ‘‘परंतु तुम ही बताओ क्या सचमुच यह मेरी गलती है? मैं बहुत परेशान हूं.’’

‘‘मैं सलीम के बारे में अधिक नहीं जानती,’’ शब्बो बोली, ‘‘क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उन की बदली होने से यहां रहने आई हूं.

परंतु कालोनी के लोगों और औरतों का विचार है कि सलीम अधूरा है. वह लड़कियों से बात करते हुए घबराता है. मैं ने खुद कभी उसे किसी लड़की से बात करते नहीं देखा. कालोनी में

यह बात गरम है कि सलीम का विवाह एक बड़ी ही सुंदर लड़की से हुआ है. बेचारी का जीवन नष्ट हो गया. उस बेचारी को देखने ही मैं यहां आई थी परंतु मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह तू होगी.’’

शब्बो की बात सुन कर उस का मन भर आया और वह सिसकसिसक कर रोने लगी.

शब्बो ने उसे सांत्वना दी और सम झाया, ‘‘जो हो गया अब उस भूल का प्रायश्चित्त इसी तरह किया जा सकता है कि तुम इसी समय मायके वापस चली जाओ और सलीम से तलाक ले लो. यदि तुम यहां रही तो तुम्हें मानसिक यातना का तो सामना करना ही पड़ेगा, साथ ही लोग तुम्हारा मजाक भी उड़ाएंगे.’’

उसे क्या करना चाहिए, उस ने मन में तय कर लिया.

रात जैसे ही सलीम आया, उस ने सख्त स्वर में एक ही सवाल पूछा, ‘‘सचसच बताइए क्या आप सचमुच अधूरे हैं?’’

यह सुनते ही सलीम का चेहरा पीला पड़ गया. वह आश्चर्य से उसे देखने लगा. फिर धीरे से बोला, ‘‘नहीं.’’

सलीम की बात सुनते ही उस की सारी उत्तेजना गायब हो गई. उस ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘आप ने कभी खुद को किसी डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘हां,’’ सलीम बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘जांचने के बाद उस ने कहा था कि मु झ में कोई कमी नहीं है,’’ सलीम बोला, ‘‘लोग जब मेरे बारे में ऐसी बातें उड़ाते थे तो मैं भी जीवन से निराश हो गया था परंतु डाक्टर की रिपोर्ट के बाद मेरे मस्तिष्क में समाई हीनभावना दूर हो गई. उस के बाद मैं ने कभी लोगों की परवाह नहीं की. वे बकते हैं तो बकें.’’

उसे सलीम की बात सुन कर एक संतोष सा मिला. उसे लगा, उस की कई दिनों की उल झन एक क्षण में दूर हो गई.

‘‘ठीक है,’’ वह बोली, ‘‘कल मु झे उस डाक्टर के पास ले चलिए.’’

‘‘अच्छा,’’ सलीम ने धीरे से उत्तर दिया.

दूसरे दिन सलीम उसे उस डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर से कह कर उस ने कुछ देर के लिए सलीम को बाहर भेज दिया. वह डाक्टर से एकांत में कुछ बातें करना चाहती थी.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने उन का कभी मैडिकल चैकअप किया था?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ डाक्टर बोला, ‘‘अचानक लोगों की बातों से उन के मन में यह बात बैठ गई थी कि वे अधूरे हैं. उस समय मैं ने सलीम साहब का चैकअप किया था. चैकअप के बाद मु झे उन में कोई कमी अनुभव नहीं हुई. तब मैं ने उन्हें विश्वास दिलाया था कि वे संपूर्ण पुरुष हैं. अधूरे का विचार अपने दिमाग से निकाल दें. उन्होंने मेरी बात मान भी ली थी. उस के बाद वे फिर कभी मेरे पास नहीं आए.’’

‘‘डाक्टर साहब, आप विश्वास से कह रहे हैं कि उन में कोई कमी नहीं है?’’ उस ने पूछा.

‘‘ झूठ बोलने की कोई जरूरत ही नहीं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘उन में कोई कमी नहीं है.’’

‘‘फिर उन्होंने अभी तक मु झे छुआ क्यों नहीं?’’ वह उत्तेजित हो कर बोली,

‘‘डाक्टर साहब, अभी हमारे विवाह को कुछ ही दिन हुए हैं परंतु उन्होंने मेरे साथ जो व्यवहार किया है और मैं ने लोगों से जो कुछ सुना है उस से तो लगता है कि मैं ने उन से विवाह कर के बहुत

बड़ी गलती कर दी है. विवाह मेरी पसंद से हुआ है. वे विवाह से पहले मेरे घर आए थे. मैं ने उन

से ज्यादा बातें तो नहीं कीं परंतु उन्हें अच्छी तरह देखा था. वे थोड़े दुबले हैं परंतु मु झे लगा था कि वह मु झे एक पति के सारे सुख दे सकते हैं. उनका कारोबार भी अच्छा है. परंतु यहां अजीब मुसीबत में फंस गई हूं. जी चाहता है कि आत्महत्या कर लूं. मेरी एक सहेली ने तो कहा कि मैं तलाक ले लूं.’’

‘‘मैं आप की स्थिति को सम झ रहा हूं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘यह एक मनोवैज्ञानिक केस है. सलीम साहब का आप से दूरदूर रहना, आप के समीप जाते ही उन्हें पसीना छूटना या लड़कियों से कतराने का कारण एक ही हो सकता है और वे हैं उन के संस्कार, वह वातावरण जिस में उन की परवरिश हुई.’’

वह चुपचाप डाक्टर का चेहरा ताकती रही.

‘‘कुछ घरों में लड़कों को बहुत दबा कर रखा जाता है. कुछ घरों में लड़कों को मसजिदों, मौलाओं, दरगाहों पर ज्यादा ले जाया जाता है. उन्हें लड़कियों से घुलनेमिलने नहीं दिया जाता, दूरदूर रखा जाता है. फिर जैसेजैसे उम्र बढ़ती है लड़कियां उन के लिए हौआ बन जाती हैं और लोग उस लड़के को अधूरा सम झने लगते हैं और इस तरह की समस्या पैदा हो जाती है. बस, यही सलीम के साथ भी हुआ है.’’

‘‘इस का कोई हल?’’ उस ने पूछा.

‘‘आसान सा है,’’ डाक्टर बोला, ‘‘पहले उन के दिमाग से यह बात निकालनी है कि लड़कियां हौआ होती हैं. अभी तक लड़कियां अधिक देर तक उन के साथ

एकांत में नहीं रहीं. बस आप ज्यादा से ज्यादा उन के साथ एकांत में रहने का प्रयत्न करें. उन से दोस्तों की तरह बातें करें. आप को एकांत में देखने के वे आदी हो जाएंगे तो धीरेधीरे उन के समीप जाइए. आप देखेंगी कि उन्हें घबराहट नहीं हो रही है, पसीना नहीं छूट रहा है और

फिर आप अनुभव करेंगी कि वह रोग भी दूर हो गया है.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, डाक्टर साहब,’’ वह उठती हुई बोली, ‘‘आप ने मेरी एक  बहुत बड़ी उल झन दूर कर दी.’’

वापसी में उस ने अनुभव किया कि सलीम उस से दूरदूर चल रहा है और चुप भी है. उस खामोशी को तोड़ने के लिए वह उस से बातें करने लगी.

शुरूशुरू में सलीम उस की बात सुन कर चुप रहता था, फिर धीरेधीरे उस की बातों के जवाब देने लगा.

रात को सलीम सोने के लिए अपने पलंग पर लेटा तो उस ने उसे जल्दी सोने नहीं दिया, उस से बातें और हंसीमजाक करती रही.

सलीम भी उस का साथ दे रहा था. उस के साथ दिल खोल कर बातें कर रहा था, उस की बातों पर जोरजोर से हंस रहा था.

फिर सलीम कोई हंसी की बात कहता तो वह भी जोर से हंस पड़ती. उसे हंसता देख कर सलीम खुश होता.

दिन में भी वह सलीम के चारों तरफ ज्यादातर मंडराती रही. वजहबेवजह उस से बातें करती या छेड़ती.

सलीम का सारा संकोच खत्म हो गया था और वह भी उस से दोस्तों की तरह खुले मन से बात करने लगा था.

रात वह सलीम के पलंग पर उस के समीप जा बैठी और और उस से बातें करती रही.

सलीम के चेहरे पर घबराहट का कोई चिह्न नहीं उभरा, न माथे पर पसीने की बूंदें आईं.

बातें करतेकरते वह धीरे से सलीम के शरीर को छू लेती तो वह चौंक पड़ता परंतु वह तुरंत जल्दी से हाथ हटा कर इस तरह बातों में उस घटना को उड़ा देती कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

उस के बाद वह सलीम के अधिकाधिक समीप रहने लगी. कभी अपने शरीर का स्पर्श सलीम के शरीर से कर देती तो कभी बातों ही बातों में अपने शरीर का सारा बो झ सलीम पर डाल देती.

एक रात अचानक सलीम ने उसे बांहों में भर लिया. उस के शरीर में खुशी की लहरें

दौड़ने लगीं.

‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो न…’’ वह उस की बांहों में धीरे से कसमसाई.

‘‘क्यों छोड़ूं?’’ सलीम चंचल दृष्टि से उस की आंखों में  झांकते हुए बोला, ‘‘मैं कोई पराया हूं? तुम्हारा पति हूं पति.’’

‘‘कोई आ जाएगा?’’

‘‘रात के 12 बजे इस बंद कमरे में कौन आ सकता है? अम्मी तो आराम से खर्राटे ले रही होंगी,’’ कहते हुए उस ने उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के शरीर में बिजलियां सी दौड़ने लगीं. उस ने भी सलीम को अपनी बांहों में भर लिया. और उस रात के बाद सलीम उस के लिए ‘पूर्ण’ बन गया. उसी रात उस का अधूरापन हमेशा के लिए खत्म हो गया.

अगले दिन उस ने सब से पहले उन सारी कौल्स के जवाब दिए जिन्हें वह टाल रही थी. फिर प्रैगनैंसी पिल्स भी औनलाइन और्डर कर दीं शब्बों के पते पर.

जिस दिन स्त्री औकात पर आ गई तो…

‘‘रूही उठो बेटा वरना लेट हो जाओगी. अभी तो तुम्हें पैकिंग भी करनी है.

रात को पैकिंग क्यों नहीं की? मु?ो भी आज औफिस जल्दी जाना है वरना मैं तुम्हारी हैल्प कर देती. जल्दी से उठो.

‘‘ब्रेकफास्ट बना कर रख जाऊंगी खा लेना और समय से निकलना. मु?ो नहीं लगता आज तुम पहला लैक्चर अटैंड कर पाओ. और हां तुम्हारा साथ ले जाने का सामान भी मैं पैक कर रही हूं. आज का खाना तो घर का ही खा लेना. आज होस्टल से मत खाना. कम से कम एक दिन तो घर का खाना खाया जाएगा,’’ इस तरह बोलतेबोलते पूजा ?ाटपट किचन का काम भी निबटा रही थी और साथ में खुद का औफिस का बैग भी रैडी कर रही थी.

मगर जब थोड़ी देर तक पूजा ने देखा कि न तो रूही ने कोई जवाब दिया और न ही अभी उस ने बिस्तर छोड़ा.

‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. रूही तो एक आवाज पर ही उठ जाती है, आज क्यों नहीं उठ रही? देखूं तो कहीं तबीयत तो खराब नहीं इस की. आजकल वायरल भी तो बहुत फैला हुआ है,’’ ऐसा खुद से ही बड़बड़ाते हुए वह रूही के कमरे की तरफ चल दी.

रूही को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ बेटा तबीयत तो ठीक है? आज उठा क्यों नहीं मेरा बच्चा?’’

जब पूजा ने प्यार से रूही का गाल थपथपाया तो रूही उठ कर उस के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘मम्मा, मु?ो नहीं जाना उस कालेज, मैं यहीं आप के पास रह कर पत्राचार पढ़ लूंगी या फिर इसी शहर के कालेज में ही पढ़ लूंगी. मु?ो नहीं जाना आप से दूर.’’

पूजा ने उसे प्यार से चुप कराया, ‘‘रूही मेरा बच्चा इस में रोने वाली क्या बात है. अच्छा एक बात सचसच बताओ, तुम्हें मु?ा से दूर नहीं जाना या कोई और बात है?’’

‘‘नहीं मम्मा मु?ो आप से दूर नहीं जाना बस इसीलिए.’’

मगर जिस तरह रूही कहते हुए नजरें चुरा रही थी उस से पूजा का माथा ठनका कि अवश्य कोई बात है जिसे रूही शायद बताना नहीं चाहती.

आज औफिस में बहुत जरूरी मीटिंग थी इसलिए पूजा का औफिस जाना भी जरूरी था. इसलिए उस ने उसे ज्यादा कुछ न कहते हुए शाम को आ कर बात करने के लिए कह कर औफिस के लिए चली गई. पर पूजा को औफिस में भी चैन कहां. उस का किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था. मीटिंग में भी उस ने खास इंटरैस्ट नहीं लिया, बस चुपचाप सब के व्यूज सुनती रही क्योंकि उस का ध्यान तो रूही में था कि ऐसा क्या हो गया जो वह कालेज नहीं जाना चाहती.

पूजा अपने कैबिन में गुमसुम सी बैठी थी कि चपरासी ने आ कर कहा, ‘‘बौस ने बुलाया है.’’

पूजा चुपचाप उठ कर बौस के कैबिन की तरफ चल दी.

‘‘मैं आई कम इन सर?’’

‘‘पूजा, यस, यस, औफकोर्स कम इन.’’

पूजा अंदर आ कर, ‘‘यस सर.’’

‘‘आओ पूजा बैठो,’’ कुरसी की तरफ इशारा करते हुए सर ने कहा और पूजा के बैठने के बाद उसे टेबल पर रखा पानी का गिलास दिया, ‘‘लो पहले पानी पीयो और रिलैक्स हो जाओ, फिर आराम से बात करते हैं.’’

पूजा ने आराम से कुरसी पर बैठ कर पानी पी पिया.

‘‘अब बताओ पूजा क्या बात है? आज तक मैं ने तुम्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा, जबकि मैं तुम्हें 8-10 सालों से जानता हूं. जब से मैं ट्रांसफर हो कर इस ब्रांच में आया हूं तुम्हें बहादुर, निडर और साहसी देखा है. कभी न घबराने, हार न मानने या न ही डगमगाने वाली हो तुम. आज पहली बार मु?ो तुम्हारे माथे पर शिकन की लकीरें नजर आई हैं. ऐसा क्या हो गया है, किसी ने कुछ कहा तो बताओ?’’

‘‘नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं, किसी ने कुछ नहीं कहा, बस रूही को ले कर थोड़ा सा परेशान थी.’’

‘‘क्यों क्या हुआ रूही को? वह तो बहुत सम?ादार बच्ची है. 2-4 बार तुम्हारे साथ आई तो उस से बातचीत करने पर मैं ने महसूस किया कि वह तुम्हारी तरह बहुत हिम्मत वाली है. कोई परेशानी है तो तुम मु?ा से बे?ि?ाक शेयर कर सकती हो.’’

 

‘‘सर, आप को याद है जब रूही ने 12वीं कक्षा पास की थी, तब वह

मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहती थी और वह भी पीयूसे कहती थी मम्मा यहां जगाधरी जैसे छोटे शहर में नहीं पढ़ना मु?ो. मु?ो तो बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ना है बल्कि यहां तक भी कहा था कि वह कुछ न कुछ कर के अपना खर्चा भी स्वयं निकालेगी. तब आप से मैं ने सलाह ली तो आप ने भी यही कहा था कि उसे भेज दूं, वहां आगे बढ़ने का स्कोप है.’’

‘‘हांहां मु?ो अच्छे से याद है. तुम घबरा रही थी कि वह तुम्हारे बिना रह नहीं पाएगी.’’

‘‘जी सर और उस ने एक साल बड़े अच्छे से निकाला. वह खुद कहती थी मम्मा अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो मैं रह नहीं पाऊंगी. मु?ो अकेले रहना सीखना होगा. तभी तो मैं आप का बेटा बन कर आप का सहारा बन पाऊंगी. आज वही रूही कालेज न जाने के लिए रो रही है. उस ने मु?ा से कहा तो यही है कि वह मु?ा से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन मेरा मन कह रहा है कि यह बात नहीं है कुछ और बात है जिसे वह मु?ो बता नहीं पा रही.’’

‘‘पूजा तुम चिंता मत करो, मीटिंग हमारी सक्सैस रही. उम्मीद है टैंडर हमें ही मिलेगा. इस का फैसला तो अगले हफ्ते होगा. अब कोई खास काम नहीं है, तुम ऐसा करो अब घर चली जाओ और रूही के साथ 2 दिन बिताओ और प्यार से उस से पूछो कि क्या बात है. वह अवश्य तुम्हें बताएगी. बस उसे थोड़ा वक्त देना.’’

‘‘जी सर, धन्यवाद सर आप ने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया है. मैं अभी चली जाती हूं घर और कल तक मैं उस के साथ ही रहूंगी ताकि वह अपने मन की बात तसल्ली से मु?ो बताए.’’

पूजा ने घर आ कर रूही से सामान्य तरीके से बातचीत की. खाना खा कर दोनों मांबेटी टीवी चला कर बैठ गईं.

‘‘रूही क्या कहती है शाम को मूवी चलें? सुना है बहुत अच्छी मूवी है.’’ रूही ने चुपचाप सिर हिला दिया.

पूजा ने औनलाइन टिकट बुक कर लिए. शाम को दोनों मांबेटी मूवी देखने गईं. वहीं पर बर्गर और कौफी ले ली. घर आ कर खाने की इच्छा ही नहीं हुई.

‘‘रूही कुछ खाना है क्या? कहो तो बना दूं?’’

‘‘अरे नहीं मम्मा मेरा तो पेट फट जाएगा आज. एक तो मूवी में इतनी कौमेडी कि

हंसहंस कर पेट में बल पड़ गए उस पर इतना हैवी बर्गर था. लगता है बर्गर वाले ने इस मूवी को देखने वालों के लिए स्पैशल बर्गर बनाया था. वह मजा आ गया. जितना आज हंसे इतना तो कभी नहीं हंसे.’’

‘‘हां यह तो है और मेरी आंखों के सामने तो बारबार वही सीन आ रहा है जब दूल्हे का मामा गधे को…’’ आगे वह बात ही पूरी न कर सकी और दोनों खूब हंसी.

थोड़ी देर बाद रूही जब बिलकुल अच्छे से मां से बातें करने लगी तब…

‘‘रूही, बेटा अब खुल कर बता मु?ो. तु?ो वहां कालेज में क्या प्रौब्लम है? क्यों तू वहां से पढ़ाई बीच में छोड़ना चाहती है?’’

‘‘मम्मा मैं ने आप को लास्ट टाइम बताया था न कि अतुल सर क्लास में मु?ा से ही अधिकतर सवाल पूछते हैं और अच्छे से पढ़ने और सम?ाने पर मैं सारे जवाब सही देती हूं और वे हर वक्त क्लास में मेरा ही उदाहरण देते हैं कि रूही को देखो ट्यूशन ग्रुप भी पढ़ाती है और खुद भी पढ़ती है, तुम सब से बैस्ट स्टूडैंट है वह. तुम्हें रूही से कुछ सीखना चाहिए.

‘‘अब वे किसी न किसी बहाने मु?ो छूने लगते हैं. जैसे मैं ने किसी सवाल का जवाब दिया तो मेरे पास आ कर शाबाश रूही कहते हुए मेरी पीठ पर हाथ फिराते हैं, कभी मु?ो गले से लगाने की कोशिश करते हैं. 1-2 बार तो मु?ो औफिस में बिना वजह बुला कर अपने साथ लिपटा लिया और बोले कि तुम बहुत अच्छी लगती हो. तुम मेरी फेवरेट स्टूडैंट हो. मैं बड़ी मुश्किल से खुद को छुड़ा कर बाहर आई और संयोग से और लैक्चरार भी वहां आ गए.

‘‘और मम्मा उन्हें क्लास में ऐसा करते देख कर 3-4 लड़के भी कभीकभी मु?ो बहाने से टच करते हुए कहते हैं कि रूही तो सर की बैस्ट स्टूडैंट है. कीप इट अप रूही. ऐसा कहते हुए मेरी पीठ पर या गाल पर हाथ फिराते हैं.’’

पूजा सम?ा गई कि रूही के भोलेपन और अकेलेपन का सब नाजायज फायदा उठाने की फिराक में हैं. अब न तो पूजा नौकरी छोड़ कर रूही के साथ रह सकती थी और न ही रूही को इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी छोड़ कर यहां छोटे से कसबे में ला सकती थी. रूही के सिवा और है भी तो कोई नहीं कैसे करे, किसे रूही की निगरानी के लिए उस के पास भेजे. फिर उस ने सोचा ये सब तो रूही को अकेले ही हैंडल करना होगा.

‘‘रूही आज तुम्हें मैं एक कहानी सुनाती हूं,’’ और पूजा ने रूही को अपनी गोद में लिटाया और कहानी सुनाने लगी:

‘‘एक लड़की थी भोलीभाली सी. उसे एक कालेज में एक लड़के से प्यार हो गया. लड़की पंजाबी और लड़का पंडित. लड़की के मातापिता को कोई एतराज नहीं था. वे नए ख्यालात के लोग थे लेकिन लड़के के मातापिता को एतराज था इस शादी से. लेकिन आखिर इकलौता बेटा जिस की जान उस पंजाबी लड़की में है, अगर वही न रहा तो क्या करेंगे इस जिद्द और जीवन का. इसलिए शादी की रजामंदी तो दे दी लेकिन उसे अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने को कह दिया.

दोनों की शादी हो गई. दोनों अलग घर में रहने लगे. 1 साल बाद उन की एक प्यारी सी गुडि़या जैसी बेटी पैदा हुई. जब गुडि़या 3 साल की हो गई तब उन्होंने सोचा कि अब उस के लिए एक भाई लाना चाहिए. इस फैसले को लिए अभी एक ही दिन हुआ था कि लड़के का औफिस लौटते हुए ऐक्सीडैंट हो गया. ऐक्सीडैंट भी इतनी बुरी तरह कि औन द स्पौट ही लड़के की मृत्यु हो गई.

एक तो लड़के के मातापिता पहले से उसे पसंद नहीं करते थे अब तो बेटे की मौत का जिम्मेदार भी उसे ही ठहराने लगे. वह लड़की अकेली सहमी सी, छोटी सी बच्ची गोद में, पति की मृत्यु हो गई और सासससुर पहले से ही उसे नापसंद करते और अब तो बेटे की मौत भी उस के सिर मढ़ दी. दिनरात आंसू बहाती रहती. घर खर्च इत्यादि मातापिता देने लगे. गुडि़या को स्कूल में दाखिला भी दिलाना था. मातापिता ने करा दिया. लेकिन वह हर वक्त डरीसहमी, छुईमुई सी रहती. लेकिन उसी की कालोनी में उसी की हमउम्र उस की एक सहेली बन गई थी. किरण नाम था उस का. वह एक स्कूल में टीचर थी. उस ने उस लड़की को सम?ाया, ‘‘सुन तु इस तरह अगर दुनिया से डरेगी तो यह दुनिया तु?ो और डराएगी, तु?ो जीने नहीं देगी यह दुनियां और फिर सोचो इस छोटी सी जान का कौन है? इस की मां भी तुम हो और पिता भी तुम. तुम्हें इसे पढ़ानालिखाना है. इसे तुम्हीं तो पालोगी और आज अभी तुम्हारे भाई की शादी नहीं हुई कल को जब तेरे भाई की शादी हो गई तब? तू पढ़ीलिखी है अपने पैरों पर खड़ी हो कर दुनियां को दिखाओ, किरण ने उस लड़की को मोटिवेट किया, उसे हिम्मत बंधाई. उस के सारे सर्टिफिकेट निकालवाए. 1-2 जगह उस का सीवी बना कर भेजा. किरण के हौंसला देने पर उस लड़की ने सोचा कि बात तो सही है. यदि मैं ऐसे ही रही तो मेरी गुडि़या का क्या होगा? कब तक मैं दूसरों के सहारे जीऊंगी.

और वह खुद ही अपना सीवी ले कर चल पड़ी जमाने की पथरीली राहों पर. अच्छी पढ़ीलिखी होने पर नौकरी तो अच्छी मिल गई मगर हरकोई उस की काबिलियत से पहले उस के जिस्म का मुआयना करता. कब तक सहती वह. बेशक पति की मृत्यु के बाद उस ने बहुत सी मुश्किलों का सामना किया लेकिन उस ने अब सहना छोड़ दिया क्योंकि अब वह चंडी बन चुकी थी. जब भी कोई गलत हाथ उस की तरफ बढ़ता तोड़ देती उस हाथ को. जब भी कोई गंदी नजर उस की ओर उठती आंखें निकाल लेती उस की वह. सब को मुंहतोड़ जवाब देना सीख लिया. उस की हिम्मत, हौसले के आगे औफिस हो या घरबाहर कोई भी उसे छू नहीं सकता.

आज उस लड़की की हरकोई इज्जत करता है क्योंकि उस ने इस मतलबपरस्त दुनिया में जीना सीख लिया है. जब तक किसी दूसरे के सहारे जीओगे तब तक जिंदगी जिंदगी नहीं बल्कि भीख होगी. अगर इज्जत से जीना है तो बैसाखियों को छोड़ कर खुद के पैरों पर खड़ा होना होगा.

‘‘बस मम्मा मैं सब सम?ा गई और यह भी जान गई कि यह कहानी किस की है. अब आप देखना आप की बेटी कुछ बन कर ही आएगी वहां से. मैं अभी अपना सामान पैक करती हूं. कल सुबह मु?ो कालेज जाना है.’’

अगले दिन अतुल सर ने रूही को क्लास में प्यार से अपने साथ चिपकाते हुए

कहा, ‘‘रूही डियर कहां रह गई थी? कल क्लास में क्यों नहीं आई? तुम्हारे बिना तो हमारा मन ही नहीं लगा कल.’’ सर के ऐसा करते और कहते ही पूरी क्लास हंसने लगी.

‘‘चटाक,’’ यह क्या इतनी जोर से आवाज और पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया. रूही का जोरदार हाथ सर के गाल पर पड़ा था. सब लड़कियां क्लास में खड़ी हो कर तालियां बजा रही थीं. लड़के शर्म और घबराहट से सिर नीचा किए बैठे थे और अतुल सर महोदय गाल पर हाथ रखे चुपचाप क्लास से बाहर चले गए.

इधर पूजा सोचने लगी किसी औरत को बेसहारा देख कर हरकोई सहारा देने के बहाने उस के शरीर का सौदा क्यों करता है? क्या स्त्री की इतनी ही औकात है?

नहीं दोस्त स्त्री की औकात इतनी नहीं. स्त्री अपनी औकात दिखाती नहीं इसलिए पुरुष की नजर में उस की कोई औकात नहीं वरना जिस दिन स्त्री अपनी औकात पर आ गई तो पूरी सृष्टि को तहसनहस भी कर सकती है स्त्री. इसलिए हमेशा स्त्री का सम्मान करें.

सोलमेट : आखिर क्या हुआ था संवित के साथ ?

‘‘सोलमेट्स किसे कहते हैं मम्मा?’’ संवित ने बड़े प्यार से पूछा.

‘‘सोलमेट्स आत्मिक साथी होते हैं जो सामने न हो कर भी  साथसाथ होते हैं पर मेरे लाल के मन में यह जिज्ञासा कैसे जाग गई?’’ मैं ने हमेशा की तरह उसे छेड़ा.

‘‘मैगजीन में पढ़ा था तो सोचा आप से पूछ लूं. आप का सोलमेट कौन है मम्मा?’’

‘‘तुम हो बेटे.’’

‘‘सच्ची?’’

‘‘हांहां.’’

सुनते ही खुश हो कर मेरे गले लग गया. उस के नजरों से ओ?ाल होते ही ‘सोलमेट’ शब्द कानों से टकराता हुआ सीधे दिल और दिमाग की सैर करता पुरानी यादों को जगाने लगा…

मैं अपने सोलमेट ‘आकाश’ को भला कैसे भूल सकती थी. हमारी दोस्ती की उम्र कुल 2 साल थी पर लगता था जैसे बरसों का नाता था. इस की शुरुआत तब हुई थी जब हमारे विभाग की ओर से 5 दिवसीय ट्रेनिंग के लिए हमें बिनसर भेजा गया था. अपने औफिस से नेहा और मैं चुने गए थे. दूसरे सैंटर से आकाश और अन्य 5 औफिसर भी थे जिन में दो उम्रदराज महिलाएं भी थीं. वहां के मौसम, हरियाली सब में एक अद्भुत सा रस था, शांति में भी मधुर संगीत था. सूर्योदय जल्दी हुआ करता. हम सवेरे उठ कर सैर पर निकलते. लौटने के बाद तैयार हो कर ट्रेनिंग क्लास के लिए जाते. नई जगह व नए माहौल का असर था कि हम सबों में एक बचपना सा जग गया था. चौक से निशाना लगाना. कागजी हवाईजहाज भी उड़ाना… 1-1 कर हम ने बचपन वाली सारी हरकतें दोहरा ली थीं.

ट्रेनिंग के बाद लंच होता और उस के बाद बस में सवार होते. आसपास की सभी देखने योग्य जगहों को कम समय में ही कवर करना था. बस में हम अंत्याक्षरी खेलते, बातें करते और सफर का पता ही नहीं लगता. घूमफिर कर लौटने में रात हो जाती और डिनर कर अपने कमरों में आ जाते. नजदीकी सारी खूबसूरत जगहों की सैर कर आए थे. अल्मोड़ा, कौशानी से तो आने का दिल ही नहीं कर रहा था.

इन रोमांचक 5 दिनों को शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं. अच्छा वक्त जल्दी बीत जाता है सो यह भी बीत गया. हम दिल्लीवासियों ने लौटते समय एक वादे के साथ विदा ली कि जहां तक हो सकेगा हम मिलते रहेंगे. वादे के अनुसार जब भी कोई बुक फेयर या ऐग्जीबिशन में जाना होता हम इकट्ठे जाते. मिलनाजुलना भी हो जाता और काम भी. इसी बीच हमारे परिवार वालों की भी दोस्ती हो गई थी. हमारे बच्चे भी हमउम्र थे. सभी को कंपनी मिल जाती थी. कई बार अपनी पत्नी के साथ आकाश हमारे घर भी आया था.

सबकुछ सहज चल रहा था कि एक दिन आकाश का एक मेल आया, ‘‘धरा… हम आज के बाद बात न करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘यह क्या बेवकूफी है आकाश?’’ आंखें डबडबा गई थीं. गुस्सा भी आ रहा था. उस बेतुके मेल के बदले सवाल दाग दिया तो तुरंत ही फोन की घंटी बज उठी.

‘‘अरे, मजाक किया था. तारीख तो देख लेती. मैं तो बस इस तारीख (08.08.08)को यादगार बनाना चाहता था.’’

‘‘ऐसे कैसे? तुम ने तो डरा ही दिया था.’’

‘‘ओह तो मेरी बहादुर दोस्त डरती भी है?’’

‘‘तुम जैसे अच्छे दोस्त को खोना नहीं चाहती.’’

‘‘खोना तो मैं भी नहीं चाहता. खैर, छोड़ो वीकैंड पर पिकनिक के लिए चलें?’’

‘‘सारे दोस्तों से पूछ कर फोन करना.’’

मगर उस का कोई फोन नहीं आया. अगस्त के बाद सितंबर आया और एक लंबा सा मेल साथ लाया. ओह तो पहले वाला ट्रेलर था असली पिक्चर अब रिलीज हुई है. जाने क्याक्या लिख रखा था उस में. अभी आधा ही पढ़ा था कि भावनाओं का तूफान सा उमड़ा. अक्षर धुंधलाने लगे. औफिस में आंखें गीली कैसे करती? बमुश्किल खुद को संभाला और नयनों के कपाट बंद कर फिर उन्हीं दिनों की सैर करने लगी. ठीक से याद करने लगी. कुछ ऐसावैसा तो न घटा था? आखिर कोई तो बात हुई होगी? मेरी किस बात से उसे सिगनल मिला होगा. ध्यान आया कि आखिरी शाम एक पहाड़ी की चढ़ाई के वक्त हम अकेले थे.

‘‘मुझ से और न चढ़ा जाएगा आकाश.’’

‘‘कम औन धरा. तुम कर सकती हो.’’

‘‘ऊंची चढ़ाई है,’’ मैं ने घबराहट से उस की ओर देखा तो उस ने हाथ बढ़ा दिया. मैं ऊंचाई से इन वादियों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थी. मित्रता के उस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकारती मंजिल की ओर बढ़ती चली गई. थोड़ी ही देर की मशक्कत के बाद हम चोटी पर थे. बाकी के साथियों ने हमारा साथ छोड़ नीचे ही डेरा डाल दिया था. उन में वे महिलाएं भी थीं जिन्हें घुटनों में दर्द की शिकायत थी. ऊपर आसमान और अगलबगल हरेहरे पेड़ों से आच्छादित पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे थे. बड़ा ही मनोरम दृश्य था.

कुछ क्षणों के लिए यह भी भूल गई थी कि अपने पीछे पति व बेटे को छोड़ कर आई

हूं. ताजी हवा छूछू कर सिहरन जगा रही थी. प्रकृति के उस नरम स्पर्श ने मन को सहला दिया था. चेहरे पर एक विजयी मुसकान थी मानो किला फतह कर लिया हो. तापमान थोड़ा कम था जैसा अमूमन ऊंचाइयों पर होता है. आंखें बंद कर अपने अंदर उस खूबसूरती और शीतलता को आत्मसात कर जब आंखें खोलीं तो आकाश के नयनयुग्मों को खुद पर अटका पाया. फिर हंसते हुए ही टोका, ‘‘कहां खो गए?’’

‘‘कहां खो सकता हूं. यहां से सुरक्षित वापसी की चिंता हो रही है,’’ आकाश अनायास टोके जाने पर हड़बड़ा गया.

‘‘ऊपर जाने के लिए ही प्रयास की जरूरत है, नीचे तो गुरुत्वाकर्षण बल खींच लेगी हमें,’’ मेरे विज्ञान के ज्ञान पर उसे हंसी आ गई. दोनों के ठहाके वादियों से टकरा कर वापस आ रहे थे. सच, प्रकृति के उन अद्भुत नजारों की याद ने दिलोदिमाग को तरोताजा कर दिया. वापस मेल पढ़ने लगी.

‘‘डियर सोलमेट,

‘‘माफ करना अपनी मरजी से तुम्हें यह नाम दे रहा हूं. तुम दोस्त हो एक बहुत ही प्यारी दोस्त जिसे आजीवन सहेज कर रखना चाहता हूं पर मेरी विडंबना देखो कि तुम्हें अपने ही हाथों दूर कर रहा हूं. मु?ो पता है कि मैं तुम्हारे साथ गलत करने जा रहा हूं पर जब तक तुम मेरे मेल को पूरा न पढ़ लो, कृपया कोई राय न बनाना. याद है तुम्हें 2006 की अपने ट्रेनिंग के आखिरी दिन की वह पहाड़ी की चढ़ाई. कितना बोलती थी तुम. यहांवहां की, स्कूलकालेज की तमाम बातें और उस के बाद उस ऊंचाई पर जा कर तुम्हारा खामोश हो जाना मु?ो दुस्साहसी बना रहा था. मैं ही जानता हूं उस वक्त खुद को कैसे संभाल सका. सच कहूं तो तुम्हारी मासूमियत की ताकत ने ही मु?ो नियंत्रित किया. जी चाहता था कि वापस ही न लौटूं पर जैसा तुम ने कहा था कि गुरुत्वाकर्षण बल हम दोनों को वापस अपनी दुनिया में खींच कर ले आएगा, वही हुआ.

‘‘तुम वापसी के बाद अपनी दुनिया में मशगूल हो गई पर तुम्हारा एक हिस्सा मेरे साथ चला आया और जबतब मु?ो परेशान करने लगा. वादे के अनुसार हम मिलते रहे. तुम समान भाव से सभी मित्रों को बुलाती. मैं आने से खुद को न रोक पाता. तुम्हारे प्रति एक चाहत, एक ?ाकाव के साथ आता. वह चाहत मेरे अंदर बढ़ती ही जा रही थी. खुद को  सम?ाने की बहुत कोशिश की. अपनी पत्नी के साथ वक्त बिताना चाहा पर कुछ काम नहीं आया. तब जा कर मैं ने यह कठोर निर्णय लिया कि मेरे परिवार के हित के लिए मेरा तुम से कभी न मिलना ही श्रेयस्कर होगा.’’

मन बड़ा अजीब सा हो रहा था. हम दोनों 30 पार कर चुके थे. हंसतेखेलते परिवार व बच्चे होते हुए यह सब आखिर क्यों हुआ होगा? आंखें मूंद कर बहुत सोचा तो मन से यही जवाब आया. घर और जिम्मेदारियों से दूर खूबसूरत वादियों में बचपन जीते हुए, उन उन्मुक्त क्षणों में मन किशोर सा हो गया था. उसी हठ में कुछ चाह बैठा. चाहतों की उस मीठी दस्तक ने साथी का मन भरमा दिया होगा पर मु?ो ऐसा कुछ क्यों नहीं लगा था? शायद हम स्त्रियां संबंधों की सीमा रेखा में दक्ष आर्किटैक्ट इंजीनियर होती हैं जिन्हें अपनी हदों का भलीभांति भान होता है.

दुख, कोध,भावुकता और ठगे जाने का एहसास, सभी एकसाथ मन में घुमड़ रहे थे. पूरे

2 साल तक मन में रखा था उस ने. पहले कहता तो सम?ाती या सम?ाती पर उस ने तो अपने फैसले में शामिल होने का हक तक न दिया था. मैं घोर अचरज में थी कि जिस दोस्ती पर गर्व कर रही थी उस के टूटने का दूख कैसे मनाती. यह ऐसा दर्द था जिसे किसी से सा?ा भी नहीं कर सकती थी.

इसी बीच अगला मेल आया:

‘‘सुना था कि प्यार उम्र व सीमाओं के बंधन को नहीं मानता और अब सम?ा भी गया हूं. मैं खुद को सम?ाने का हर संभव प्रयास करता हुआ अब थक गया हूं. तुम सोच रही होगी कि अपनी पत्नी के साथ प्रेम विवाह होते हुए भी ऐसी कमजोर बातें क्यों कर रहा हूं. तो यहां एक और बात बताना चाहूंगा कि हमारे वैवाहिक संबंध मधुर होते हुए भी मानसिक तौर पर वैसा सामंजस्य नहीं बन सका जो तुम्हारे साथ उन 5 दिनों में बन गया. सच कहूं तो मु?ो भी नहीं पता कि मेरेतुम्हारे बीच क्या है. जब भी तुम से मिलता हूं, तुम्हारी बातों में खो सा जाता हूं. तुम और तुम्हारी निश्छल हंसी हमेशा मन को घेरे रहती है. तुम्हारी इजाजत के बगैर ही तुम से प्यार करने लगा हूं. एक ओर तुम्हारा निश्छल व्यक्तित्व और दूसरी ओर इन सब से अनजान अपनी पत्नी की ओर देखता हूं तो खुद को अपराधी पाता हूं. अपनी पत्नी और अपनी सोलमेट के बीच मैंने पत्नी को चुन लिया है. तुम से एक अनुरोध है कि मु?ा से संपर्क बनाने की कोशिश न करना. तुम्हारी आवाज कहीं मेरे निर्णय को डिगा न दे.’’

‘‘गलत है आकाश. हमारी इतनी प्यारी दोस्ती का ऐसा अंत? ऐसा क्यों किया आकाश? मु?ा से कह कर तो देखते? मैं तुम्हारा मन साफ कर देती. बात करने से राह निकल आती है. पर तुम ने तो कुछ कहा ही नहीं. दोस्त हो कर दोस्ती का हक छीन लिया. सोलमेट्स क्या होते हैं नहीं जानती. बस इतना जानती हूं कि अपने किसी फुतूर में तुम ने हमारी दोस्ती की बलि चढ़ा दी.’’

उस की एकतरफा सोच से तड़प कर मेल कर विरोध जताया पर उधर से कोई जवाब

नहीं आया. कुछ ही समय में मैं ने खुद को बखूबी संभाल लिया पर उस गुस्ताख को कैसे सम?ाती जिस ने स्वयं अपनी परेशानियां बढ़ाईं और समाधान भी कर लिया मानो मैं कोई बुत हूं. मेरी अपनी इच्छाओं का कोई वजूद नहीं. हालांकि मु?ा से कहता तो शायद मैं भी वही करती पर वह निर्णय एकतरफा न होता. उस में मेरी भी भागीदारी होती. हम एकदूसरे की राह को आसान करते. हम सोलमेट्स थे पर अपनी बातें कह नहीं सके. क्या इस खूबसूरत आत्मिक रिश्ते का यही हश्र होना था? मेरा सोलमेट अपने ही हाथों मेरी रूह को छलनी कर गया था और मैं अपने इस दुख का जिक्र तक नहीं कर सकी थी. मैं कतराकतरा टूट रही थी और वह भी टूट कर कहीं बिखर गया था.

खैर, अब इन बातों को भी सालों बीत गए. मेरा पुत्र अब सम?ादार किशोर हो चुका है पर आज भी जब किसी की सच्ची दोस्ती देखती हूं तो दोस्त याद आता है. सच कहूं तो आज भी इसी आस में बैठी हूं कि कभी तो उस के मन में घिर आए काले बादल किसी पहाड़ी से टकरा कर जरूर बरसेंगे. कहीं तो धरा और आकाश के बीच संवाद होगा जहां दोनों बोलबतिया कर मन हलका कर लेंगे. कभी तो मेरा संजीदा दोस्त, मेरी दोस्ती की कद्र कर पाएगा. उस दिन बीच के सारे फासले भुला कर खिलखिलाता हुआ वापस आएगा और सच्चा सोलमेट कहलाएगा.

 

औल इज वैल : आदिराज भोलीभाली लड़कियों को बनाता था अपना शिकार

Writer-  इंदु सिन्हा ‘इंदु’

गुलाबी शहर यानी पिंक सिटी जयपुर. रात का अंधियारा चारों तरफ अपने पंख पसार चुका था. लेकिन वह अंधकार को कायम रखने में सफल नहीं हो पाया था. पूरा शहर रोशनी से नहा रहा था. ऐसी ही एक खूबसूरत शाम थी. जयपुर के म्यूजियम के सामने ढेर सारी लड़कियों और लड़कों का ?ांड खड़ा था. खूबसूरत रोशनी से जगमगाते म्यूजियम के साथ सैल्फी का दौर चल रहा था.

‘‘काश, शाम को भी म्यूजियम में जाने की परमिशन होती तो मजा आ जाता,’’ शैली जोर

से बोली.

‘‘ओ डार्लिंग, नोनो तुम डर जातीं शाम को म्यूजियम के अंदर,’’ विराट ने शैली का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो शैली अपना हाथ छुड़ा दूर चली गई.

‘‘शैली यार, आओ 1-2 सैल्फी और लेते हैं.’’ फिर चलते है.

दूसरे फ्रैंड्स भी शैली और विराट की नोक?ांक देख रहे थे. वे सब जानते थे कि विराट और शैली एकदूसरे को पसंद करते हैं. दोनों क्लासमेट भी थे.

‘‘नहींनहीं बहुत सैल्फी हुईं अब चलें. आओ भी,’’ शैली बोली.

‘‘अच्छा,’’ कह तभी विराट ने दौड़ कर शैली को पकड़ लिया तो वह खिलखिला कर हंस दी.

दूसरे फ्रैंड्स करण, शर्लिन, स्वीटी, रोहन बोले, ‘‘अब चलो यार बहुत हो गई मस्ती.’’

‘‘हां चलोचलो. अरे सुनो,’’ अचानक शैली रुक गई.

‘‘क्यों क्या हुआ,’’ स्वीटी व रोहन बोले.

‘‘हम सब तो मसाला चौक चल रहे हैं न,’’ शैली ने पूछा.

‘‘हां, वहीं चल रहे हैं,’’ रोहन बोला.

‘‘तो देख लो अभी रात में तो वहां और भीड़ होगी, गाड़ी पार्किंग की समस्या भी होती है,’’ शैली बोली.

‘‘हां यार यह बात तो सही है. पिछली बार भी परेशानी हुई थी,’’ विराट बोला.

‘‘ऐसा करते हैं म्यूजियम की पार्किंग में रख देते हैं अपनी गाडि़यां,’’ रोहन ने सु?ाया.

‘‘हां फ्रैंडस यह ठीक रहेगा,’’ स्वीटी बोली.

तुरंत ही सब पार्किंग में पहुंच गए. पार्किंग के गार्ड को पता था म्यूजियम के सामने ही सड़क पार करते ही मसाला चौक पर शाम को बहुत भीड़ लगती. ये छोरेछोरियां जल्दी निकलने वाले नहीं हैं वहां से. उस ने देखा 6 लड़केलड़कियां हैं. गाडि़यां 3 हैं. अत: बोला, ‘‘9 बजे रात तक गाड़ी ले जाओ तभी खड़ी करना क्योंकि ज्यादा लेट होने पर समस्या आती है.’’

‘‘ओके अभी शाम के 8 बज रहे हैं. हम लोग तो घंटे भर में फ्री हो जाएंगे. क्यों फ्रैंड्स, विराट ने पूछा.

‘‘बिलकुलबिलकुल बस नाश्ता करना है… हम 9 के पहले ही आ जाएंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर गार्ड ने पार्किंग का बड़ा गेट खोल दिया. सब ने वहां अपनीअपनी गाड़ी खड़ी कर दी. फिर हंसतेखिलखिलाते हुए सड़क पर चल पड़े. मुश्किल से 10 मिनट में मसाला चौक के गेट पर खड़े थे.

रोहन टिकट की लाइन में खड़ा हो गया. ऐंट्री फीस क्व10 थी. रोहन ने 6 टिकट खरीदे. सब फ्रैंड्स मसाला चौक के अंदर दाखिल हो गए.

विराट बैठने की जगह देखने लगा लेकिन उसे नहीं दिखाई दी. भीड़ बहुत थी. ढेर सारे फूड स्टाल रंगबिरंगी रोशनी से नहा रहे थे. सभी उम्र के लोगों का अच्छाखासा जमावड़ा था. लोग टेबल खाली होने का इंतजार कर रहे थे.

मसाला चौक में चारों तरफ फूड स्नैक्स और जयपुर के प्रसिद्ध व स्थानीय खानों के स्टाल थे. स्टालों के बीचबीच ढेर सारी काले, गहरे रंग के पत्थर की टेबलें थीं, जिन के चारों और कुरसियां लगी थीं. व्यक्ति किसी भी स्टाल से और्डर दे कर किसी भी टेबल पर बैठ सकता था.

‘‘अब क्या करें विराट,’’ शैली बोली, ‘‘यहां टेबल ही खाली नहीं हो रही है. सब फ्रैंड्स बिखर कर अलगअलग टेबलों के सामने थे. जहां टेबल खाली हो, तुरंत फोन पर बताएं.

तभी रोहन ने करण को फोन किया कि उस की तरफ एक टेबल खाली हो रही है. सभी रोहन की ओर चले गए. जिस टेबल का वह बता रहा था उस टेबल के लोग खाना खाने के अंतिम दौर में थे. छोटे बच्चे हाथ में आइसक्रीम के कोन लिए थे. 5-7 मिनट में ही टेबल खाली हो गई. टेबल साफ करने वाला लड़का टेबल साफ कर गया. सब टेबल के चारों और कुरसियों पर जम गए.

‘‘जल्दी सोचो क्या खाना है स्टाल पर और्डर देने चलते हैं,’’ विराट ने कहा, ‘‘कोई भी 2 लोग चलेंगे और और्डर की चीजें ले आएंगे.’’

‘‘यह ठीक रहेगा,’’ रोहन बोला.

तय हुआ रोहन, विराट, स्वीटी जा कर और्डर भी करेंगे और ले के भी आएंगे. सभी अपने पसंद की चीजें बताने लगे. किसी को छोलेभठूरे चाहिए थे तो किसी को पनीर उत्तपम. शैली को यहां का लोकल फूड पसंद था. काठियावाड़ी थाली, उस के साथ ढेर सी चटनियां भी टेस्टी होती हैं.

ओकेओके,’’ विराट बोला, फिर वे तीनों और्डर देने चले गए.

करण बड़ी देर से देख रहा था, शैली सामने स्टाल पर बैठे एक लड़के को गौर से देख रही थी. लड़के का साइड फेस ही शैली के सामने था, पीठ पूरी दिख रही थी. जब खाता था तो इधरउधर सामने नजर घुमाता था. तब ही शैली और करण को नजर आता था. पूरा चेहरा नहीं दिख रहा था.

करण ने सोचा शायद शैली का पहचान वाला हो तभी इतनी गौर से देख रही है. आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘शैली क्या बात है इतना ध्यान से क्या देख रही हो?’’

‘‘शैली ने जवाब नहीं दिया. वह उसी तरह उसे देखती रही. फिर अचानक शैली खुश हो कर चिल्लाई, ‘‘करण आओ तो.’’

‘‘क्या हुआ?’’ करण चिल्लाया, ‘‘कुछ बोलो भी. खाना आने वाला है.’’

‘‘अरे रुको, मैं अभी आई,’’ शैली बोली.

शर्लिन भी उस का चेहरा देख रही थी. उसे पता था कि वह उठेगी. इसीलिए वह कुरसी छोड़ना नहीं चाहती थी.

शैली उस व्यक्ति के पास गई. करण ने रोकना चाहा लेकिन वह उस व्यक्ति की टेबल पर जा चुकी थी. शैली जब उस की टेबल पर पहुंची तो व्यक्ति अपना खाना खत्म कर चुका था.

‘‘आप आदिराज हैं?’’ शैली बोली.

‘‘जी.’’

आदिराज वे प्रसिद्ध यूट्यूबर जिन की पोस्ट पर लाखों व्यूज आते हैं.

‘‘मैं आप की बड़ी फैन हूं… आप को फौलो करती हूं. आप के डास के वीडियो बहुत सुंदर होते हैं,’’ शैली खुशी के मारे पागल हुए जा रही थी. ‘‘प्लीजप्लीज एक सैल्फी,’’ कहतेकहते शैली ने अपना मोबाइल निकाल लिया और आदिराज के नजदीक जा कर 1-2 सेल्फी ले ही लीं. फिर सैल्फी ले कर अपने फ्रैंड्स के पास पहुंची. विराट उस का इंतजार ही कर रहा था. वह और्डर की चीजें ले कर आ गया था.

‘‘शैली कहां चली गई थी?’’ विराट ने शिकायत की.

‘‘विराट आदिराज यहां मिल गए थे,’’ शैली खुश हो कर बोली.

‘‘आदिराज वे यूट्यूबर? विराट बोला.

‘‘हांहां वही आदिराज,’’ शैली ने बताया.

‘‘अरे, यह तो अच्छी बात है. बधाई हो,’’ सभी फ्रैंड्स बोले.

‘‘विजिटिंग कार्ड भी दिया है मु?ो… मैं ने सैल्फी भी ली है. अभी फेसबुक पर पोस्ट करती हूं,’’ शैली बोली.

‘‘पहले यहां से फ्री हो लो बाद में पोस्ट कर देना,’’ विराट बोला.

‘‘विराट प्लीज,’’ शैली बोली.

‘‘जरा समझने की कोशिश करो कि हमारी गाडि़यां म्यूजियम की पार्किंग में खड़ी हैं,’’ विराट ने सम?ाया.

‘‘ओके चलो खा लेते हैं,’’ शैली बोली.

सब ने अपनेअपने और्डर की डिश एकदूसरे से शेयर की.

शैली का लोकल फूड भी जायकेदार था. बड़ी सी रोटी, ढेर सारी चटनियां, कढ़ी, दाल, गार्लिक चटनी ज्यादा टेस्टी लगी सब को. उस के बाद आइसक्रीम का कोन ले कर सभी म्यूजियम की पार्किंग में आए. लेकिन शैली का मन आदिराज के साथ कुछ मिनट की हुई मुलाकात में उल?ा हुआ था.

परफ्यूम कितना प्यारा लगाया था. कितनी मीठी सी खुशबू आ रही थी उस के कपड़ों से. शैली को परफ्यूम की खुशबू बड़ी अच्छी लगी थी.

विराट बोला, ‘‘शैली अब बैठो भी,’’ लेकिन शैली खयालों में खोई थी.

‘‘शैली घर नहीं चलना है क्या?’’ विराट ने थोड़ा ऊंची आवाज में कहा.

‘‘ओ हां, चलो,’’ कह कर शैली विराट के पीछे बैठे गई. शैली व विराट एक ही कालोनी में रहते थे.

बाकी फ्रैंड्स दूसरे दिन का मिलने का प्रौमिस कर चल दिए.

सारे रास्ते विराट यह सोचता रहा कि शैली ने रास्ते में कहीं भी बात नहीं की है न ही जवाब दिया है किसी भी बात का. विराट ने घर से थोड़ी दूरी पर बाइक रोकी.

बाइक रुकते ही शैली बोली, ‘‘क्या हुआ बाइक क्यों रोकी? घर आ गया.’’

‘‘पहले यह बताओ जब से आदिराज से मिली हो कहां खोई हो?’’ विराट ने पूछा.

‘‘विराट तुम देखते तो तुम भी फैन हो जाते. कितना हैंडसम था. उस के परफ्यूम की खुशबू कितनी भीनीभीनी थी.’’

‘‘देखो शैली, वह पब्लिक फील्ड है… उस के न जाने कितने फैन होंगे तुम्हारे जैसे. घर चलो. कल मिलते हैं, फिर आराम से बात करेंगे. बाइक पर बैठो घर छोड़ देता हूं.’’

ओके बाबा चलो,’’ शैली बोली.

विराट ने बाइक शैली के पास घर के रोकी. बिना देखे शैली अंदर चली गई. हमेशा की तरह शैली ने विराट से गुडनाइट नहीं की, न ही देखा. विराट को थोड़ा अजीब लगा, ‘खैर, कल मिल ही रहे हैं न कल बात करूंगा,’ विराट ने सोचा.

डिनर के बाद शैली अपने रूम में गई तो भी उस का मन बेचैन था. उसे हर जगह आदिराज दिख रहा था. शैली की मौम भी परेशान थीं. शैली ने डिनर भी ठीक से नहीं किया.

क्या पता किन खयालों में खोई है. कहीं फ्रैंड्स के साथ कोई बात न हुई हो, कोई ?ागड़ा. सोच कर शैली की मौम प्रतिभा ने विराट को फोन किया.

विराट स्टडी कर रहा था. शैली की मौम का फोन देख तुरंत उठाया.

‘‘हैलो विराट कैसे हो?’’ प्रतिभा बोलीं.

‘‘ठीक हूं. आंटी आप बताएं कैसे फोन किया?’’

‘‘बेटा तुम्हारी क्या आपस में फ्रैंड्स की

कोई कहासुनी या बात हुई है क्या?’’ प्रतिभा ने सवाल किया.

‘‘नहीं आंटी ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ. पर आप यह क्यों पूछ रही हैं,’’ विराट आश्चर्य में था.

‘‘शैली ने ठीक से डिनर भी नहीं किया. चुपचुप सी है. मैं ने सोचा कहीं लड़ाई?ागड़ा न हुआ हो,’’ शैली की मौम ने शंका दूर करनी चाही.

‘‘नहीं, हम सब बड़े खुश थे. खूब ऐंजौय किया. शैली भी खुश थी,’’ विराट बोला. फिर विराट को अचानक ध्यान आया वह बोला, ‘‘आंटी एक बात जरूर हुई थी.’’

‘‘वह क्या?’’ प्रतिभा ने तुरंत पूछा.

वह यह कि जब हम 3 फ्रैंड्स मसाला चौक पर और्डर करने गए थे तब शैली को फेमस यूट्यूबर आदिराज मिले थे. तब शैली ने उन के साथ सैल्फी भी ली थी, उन से बात भी की थी. बस यही बात हुई थी,’’ विराट बोला.

‘‘हां विराट शैली आदिराज की फैन है. वह तो नौर्मल बात है,’’ प्रतिभा बोली.

‘‘आंटी कल संडे  है, हम ने घूमने का प्रोग्राम बनाया है, शैली भी चलेगी तब देखते हैं उस का मूड कैसा रहता है,’’ विराट बोला.

‘‘हां यह ठीक है. ओके गुडनाइट बेटा,’’ कह कर प्रतिभा ने फोन काट दिया.

संडे की सुबह, आराम की सुबह. शैली आराम से उठती थी. मौम ने भी डिस्टर्ब नहीं किया.

विराट के कितने मैसेज आ चुके थे पर शैली ने एक भी मैसेज नहीं देखा था.

विराट ने कौल की. बड़ी देर तक रिंग जाती रही पर कौल नहीं उठी. विराट परेशान हो गया. सुबह के 10 बज रहे थे पर शैली ने कोई कौल अटैंड नहीं की. सुबह 11 बजे तो निकलना था. मौसम भी खुशनुमा था. गरमी भी नहीं थी. आखिर दोपहर 12 बजे शैली ने विराट को कौल की.

विराट ने तुरंत कौल अटैंड की, ‘‘शैली क्या बात है तुम को नहीं चलना है क्या?

फ्रैंड्स इंतजार कर रहे हैं. न मैसेज का जवाब न कौल अटैंड कर रही हो. क्या बात है?’’ विराट थोड़ा चिढ़ गया था.

नहीं विराट आज मेरा मूड नहीं है. मैं नहीं जाऊंगी. तुम लोग जाओ,’’ कह कर शैली ने कौल काट दी.

तभी प्रतिभा आईं तो देखा शैली रैडी नहीं हुई है.

‘‘शैली फ्रैंड्स के साथ जा रही हो न… रैडी नहीं हुई?’’ प्रतिभा ने पूछा.

‘‘नहीं मौम मैं नहीं जा रही हूं. मैं फ्रैश हो कर आती हूं, तुम ब्रेकफास्ट बना दो कुछ भी,’’ कह कर शैली वाशरूम में चली गई.

प्रतिभा किचन में जा कर शैली का पसंदीदा नाश्ता बनाने लगीं. पनीर के परांठे और गार्लिक की चटनी शैली को पसंद थी. नाश्ता ले कर वे शैली के रूम में ही चली गईं. शैली वाशरूम से आ कर बैठी थी.

शैली ने नाश्ता किया. फिर बोली, ‘‘मौम, मैं स्टडी करूंगी.’’

‘‘ओकेओके,’’ कह कर मौम चली गईं.

शैली ने दरवाजा बंद कर अपने कपड़ों में से सब से अच्छी ड्रैस निकाल कर पहनी, अच्छे से मेकअप किया. फिर वीडियो बनाने लगी. डांस के इस बीच कई बार विराट की कौल आई पर उस ने अटैंड नहीं की. कुछ अच्छे वीडियो बना कर फिर उस ने आदिराज का विजिटिंग कार्ड निकाला. फिर सोच में पड़ गई शैली कि कौल करे या नहीं.

मु?ो भी वीडियो पर लाखों व्यूज चाहिए. वे आदिराज ही गाइड कर सकते हैं. उन के यूट्यूब चैनल पर मेरा वीडियो बन गया तो लोगों की आंखें खुली की खुली रह जाएंगी. वीडियो वायरल हो गया, लाखों व्यूज मिलने लगे तो मजा आ जाएगा. उस के लिए जरूरी है, कौल नहीं कर के सीधी मुलाकात की जाए आदिराज से. हां, यह ठीक रहेगा. आदिराज ने नहीं पहचाना तो? सैकड़ों लोग मिलते होंगे.

नहीं मुलाकात ठीक रहेगी एक सैल्फी भी ले लेगी. वह परफ्यूम की खुशबू. कितनी प्यारी थी. शैली ने विजिटिंग कार्ड देखा. स्टूडियो का भी पता था. ठीक मौम को बोल देगी फ्रैंड्स से मिलने जा रही है. शैली ने डिसीजन लेने के बाद शाम को स्टूडियो जाना तय किया.

 

शाम को प्यारी सी ड्रैस पहनी और मौम से बोली, ‘‘मौम मैं विराट और दूसरे फ्रैंड्स

से मिलने जा रही हूं,’’ और फिर एक्टिवा ले कर निकल गई.

स्टूडियो ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. लाल कोठी के नजदीक था स्टूडियो. बाहर रिसैप्शनिस्ट बैठी थी. क्या औफिस है वाह. शैली ने सोचा.

‘‘जी आदिराजजी से मिलना है,’’ शैली बोली.

‘‘क्या काम है?’’ उस ने रूखे अंदाज में पूछा.

‘‘वे अपने कुछ वीडियो दिखाने हैं.’’

‘‘अपौइंटमैंट लिया है आप ने?’’ युवती ने पूछा.

‘‘हां,’’ शैली ने ?ाठ बोला.

‘‘अच्छा मैं पूछती हूं,’’ कह कर उस ने मोबाइल हाथ में लिया ही था कि तब तक शैली स्टूडियो का दरवाजा खोल कर भीतर आ गई. वह लड़की तुरंत उस के पीछे गई. आदिराज कुछ वीडियो देखने में बिजी थे. शैली दौड़ कर आदिराज के सामने आ गई. आदिराज हड़बड़ा गए.

‘‘सर, यह लड़की जबरदस्ती घुस गई है.’’

आदिराज ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ मैं बात करता हूं.’’

‘‘आदिराजजी मैं आप की फैन हूं. अभी

2 दिन पहले मसाला चौक में मिली थी. सैल्फी भी ली थी.’’

आदिराज जोरजोर से हंसने लगे. फिर बोले, ‘‘तो उस से क्या हुआ? सैकड़ों लोग सैल्फिया लेते हैं.’’

‘‘मैं आप को बहुत पसंद करती हूं,’’ शैली बोली, ‘‘मैं ने भी अपने कुछ डांस के वीडियो बनाए हैं. प्लीज देखिए न,’’ शैली गिड़गिड़ाने लगी.

‘‘देखो प्लीज, तुम बाहर मेरी सैके्रटरी को दे दो. मैं बिजी हूं,’’ आदिराज ने कहा.

शैली ने वीडियो आदिराज की पीए को दे दिए. फिर बहुत देर तक स्टूडियो में ही घूमती रही, खुश होती रही.

जब घर पहुंची तो शाम के 7 बज रहे थे. मौम परेशान हो रही थीं. शैली को देखा तो उन की चिंता गुस्से मे बदल गई, ‘‘कहां थी शैली तुम इतनी देर से? फ्रैंड्स के तो मेरे पास फोन आ रहे थे?’’ मौम बोलीं.

‘‘मौम सौरी, आदिराज के पास गई थी,’’ शैली तुरंत मौम से बोली.

‘‘क्या काम था?’’ मौम ने पूछा.

‘‘मैं भी अपने वीडियो बना कर देखूंगी  कितनी सफलता मिलती है,’’ शैली बोली.

‘‘देखो शैली पढ़ाई पर फोकस करो समय बर्बाद मत करो,’’ कह कर मौम चली गईं.

शैली तो ख्वाबों में डूबी रहने लगी. वह एक ही सपना बारबार देखने लगी. उस के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं. लाखोंकरोड़ों व्यूज… रुपए ढेर सारे… फेमस हो रही है वह.

जिस दिन संडे को आदिराज से मिली थी उसी रात जब शैली डिनर कर रही थी विराट आ गया था. शैली की मौम विराट को देख बोलीं, ‘‘विराट तुम ही सम?ाओ शैली को आदिराज के चक्कर में वीडियो और व्यूज का भूत सवार है इस पर.’’

‘‘शैली ये सब फालतू की बातें हैं. ये

सब छोड़ो. ऐग्जाम नजदीक आ रहे हैं, ऐक्स्ट्रा क्लास लगेगी.’’

‘‘देखो विराट मु?ो शिक्षा मत दो, अपना भाषण अपने पास रखो. तुम जैलिसी रखते हो मु?ा से आदिराज के कारण,’’ शैली गुस्से में बोली.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है शैली,’’ विराट ने कहा.

‘‘ऐसा ही है,’’ कह कर शैली तुरंत अपने रूम में चली गई.

दूसरे दिन कालेज में भी शैली फैं्रड्स से दूरदूर ही रही. विराट ने कोशिश की कि शैली का मूड सही हो जाए. मगर दूसरे फ्रैंड्स भी आसपास थे इसलिए खुल कर नहीं बोल पाया.

घर आ कर शैली फिर रूम मे बंद हो कर डांस की प्रैक्टिस करने लगी और वीडियो बनाने लगी. एक दिन बाद वह शाम को आदिराज के पास जाएगी पहले वीडियो के बारे में पूछेगी.

दूसरे दिन कालेज से आते समय शैली ने आदिराज के स्टूडियो पर जाने का प्लान बनाया. स्टूडियो जाने के लिए उस को 2 पीरियड छोड़ने पडे़.

वह सीधी स्टूडियो पहुंची. बाहर रिसैप्शनिस्ट ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की क्योंकि शैली कई बार आ चुकी थी.

आज आदिराज के पास एक व्यक्ति और भी था जो आदिराज के साथ लैपटौप पर कुछ काम करने में बिजी था.

‘‘आओ शैली,’’ आदिराज ने कहा तो शैली बेहोश होतेहोते बची. आज समय साथ है. बोली, ‘‘जी आदिराजजी.’’

‘‘तुम कोशिश कर सकती हो. मेहनत तो तुम्हें करनी होगी. ठीक है न,’’ आदिराज ने कहा.

‘‘जी मैं तैयार हूं… मेहनत करूंगी,’’ शैली खुशी के मारे सपनों में उड़ने लगी.

‘‘तुम्हारे वीडियो मैं ने देखे हैं, इसलिए मैं

ने बोला.’’

तभी एक नौकर जूस से भरे गिलास सुंदर ट्रे में सजाए कर ले आया.

‘‘जूस लो फिर हम तुम्हारे डांस के वीडियो पर चर्चा करेंगे,’’ आदिराज बोले.

‘‘सर आप भी लीजिए न,’’ शैली बोली, ‘‘क्यों नहीं,’’ आदिराज ने कहा और फिर जूस का गिलास उठा लिया.

‘‘अरे हां शैली इन से मिलो ये हमारे साथ ही काम करते हैं… तुम ने देखा हो शायद. ये फर्नांडीज हैं.

‘‘हैलो सर,’’ शैली ने कहा.

‘‘बहुत आगे तक जाओगी शैली,’’

फर्नांडीज बोले.

शैली ने जूस का गिलास खत्म किया. जूस पीने के बाद उसे लगा उस का शरीर और दिमाग कहीं हवा में उड़ रहे हैं. अच्छा लगा उसे. हलकाहलका महसूस कर रही थी.

‘‘चलो डांस के कुछ स्टैप्स दिखाओ शैली.’’

‘‘जी,’’ शैली ने कहा.

आदिराज ने कैमरा चालू करवा दिया था.

तभी फर्नांडीज ने भी शैली के साथ डांस शुरू किया. डांस करतेकरते फर्नांडीज शैली को स्टूडियो में बने एक कमरे में ले गए. कैमरा वहां भी चालू था.

‘‘शैली कौपरेट करो,’’ फर्नांडीज बोले.

‘‘जी,’’ शैली बोली.

 

अब तक फर्नांडीज शैली के शरीर के कपडे़ हटा कर उसे लगभग नग्न कर चुके थे.

शैली कुछ सम?ा नहीं पाई कि क्या हो रहा है. अब तक फर्नांडीज ने शैली के साथ फिजिकल रिलेशन बनाना शुरू कर दिया था.

शैली चिल्ला पड़ी. कैमरा चलता रहा, शैली चिल्लाती रही. आदिराज मुसकराते रहे.

लगभग आधे घंटे बाद कैमरा रुका. शैली अस्तव्यस्त हालत में थी.

‘‘शैली उठो बढि़या काम किया है,’’ आदिराज ने उस की पीठ थपथपाई.

शैली ने कपडे़ पहने और बाहर के रूम में आ गई.

‘‘शैली ये लो क्व20 हजार वीडियो के,’’ आदिराज ने शैली को क्व20 हजार लिफाफे में रख कर देते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ शैली आश्चर्य से बोली.

‘‘यस तुम्हारी मेहनत,’’ आदिराज ने कहा.

‘‘देखो शरीर का क्या है? क्या गंदा हो गया शरीर… घर जा कर अच्छे से नहा लेना. तुम सोचो विदेश में कहां सोचते है ये बातें? नहीं न? गुड गर्ल,’’ कह कर आदिराज ने उस के बालों को सहला दिया.

शैली जाने लगी तो आदिराज ने आवाज लगाई, ‘‘सुनो शैली.’’

‘‘जी,’’ शैली ने आदिराज को देखा.

‘‘यह वीडियो कहीं भी इस्तेमाल नहीं होगा. होगा भी तो फेस इस पर तुम्हारा नहीं होगा, सिर्फ बौडी तुम्हारी होगी.’’

‘‘जी ठीक है,’’ शैली खुश हो गई. इतनी बड़ी रकम. शैली खुशीखुशी घर लौटी.

‘‘मौम, देखो क्व20 हजार मेरे वीडियो के,’’ शैली ने मौम से कहा.

‘‘कौन सा वीडियो है जिस की पहली बार में ही इतनी बड़ी रकम मिल गई है?’’ मौम ने पूछा.

‘‘मौम यूट्यूब में देखना जब आएगा,’’ कह शैली अपने रूम चली गई.

वाह, मैं तो फेमस हो जाऊंगी शैली सोचने लगी. लाखों व्यूज लाखों फौलोअर्स मजा आएगा.

विराट की कौल भी अटैंड नहीं की उस ने. आखिरकार विराट सुबह घर आ गया.

‘‘शैली कहां बिजी हो? कौल अटैंड

नहीं की?’’

‘‘विराट मैं सच में बिजी हूं. कालेज में मिलते हैं. तब बात करते हैं,’’ शैली ने इतराते हुए कहा.

विराट कुछ नहीं बोला. चायनाश्ता कर चला गया.

कालेज में शैली ने सब फ्रैंड्स को बताया, डांस का वीडियो जल्द ही यूट्यूब में आएगा. जबरदस्त हिट होगा. सभी फ्रैंड्स ने बधाई दी. लेकिन विराट सोच में डूबा था.

‘‘अब कब वीडियो बनेगा?’’ रोहन ने पूछा.

‘‘जल्दी ही,’’ शैली बोली.

फिर शैली सारा दिन कालेज में दिन में भी सपने देखती रही किउस के लाखों

फौलोअर्स हो रहे हैं. जब कालेज से घर पहुंची तो बहुत खुश थी. उसे लगा कालेज के फ्रैंड्स भी उस से जलने लगे हैं. अपने रूम में पहुंच कर उस ने आदिराज के यूट्यूब चैनल को देखा तो खुशी से उछल पड़ी. उस का डांस का वीडियो भी था. लेकिन उस के फौलोअर्स इतने ज्यादा नहीं थे. वह उदास हो गई.

इतने में मोबाइल पर मधुर आवाज गूंजी. देखा तो व्हाट्सऐप पर कुछ वीडियो थे. ये किस के वीडियो हैं. धीरेधीरे वीडियो खुलने लगे जब वीडियो खुले तो डर के मारे उस की चीखें निकल गईं. वे उसी के वीडियो थे. नग्न जब स्टूडियो में थी. ये तो फर्नांडिज हैं. उस की तेज आवाज सुन कर उस की मौम चौंक गईं. दौड़तीदौड़ती उस के रूम पर पहुंचीं दरवाजा बंद था. उन्होंने जोरजोर से दरवाजा खटखटाया, ‘‘शैलीशैली दरवाजा खोलो क्या हुआ?’’

शैली डर गई कि मौम को पता चल जाएगा. वह बोली, ‘‘मौम कुछ नहीं हुआ, चूहा आ गया था अचानक.’’

‘‘चूहे तो हैं ही नहीं,.. घर में कैसे चूहा आ गया?’’ मौम बोलीं.

‘‘आती हूं मैं चेंज कर के,’’ शैली बोली.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ मौम बोली.

शैली ने जल्दीजल्दी वे वीडियो डिलीट कर दिए. तभी मोबाइल की मधुर आवाज गूंज उठी. देखा तो आदिराज का नाम चमक रहा था.

‘‘हैलो,’’ शैली की आवाज कांप रही थी.

क्यों शैली विडियो कैसे लगे?’’ फिर आदिराज की जोरजोर से हंसने की आवाज.

‘‘शैली घबराने की जरूरत नहीं है ये पोर्न मूवी में इस्तेमाल होंगे, चिंता मत करो बौडी तुम्हारी रहेगी फेस किसी दूसरी लड़की का होगा. आज भी शाम को आ जाओ. पहले तो तुम को नशा देना पड़ा था. अब तो बिना नशे के काम करोगी आ जाओ. रुपए इंतजार कर रहे हैं,’’ कह कर आदिराज ने फोन काट दिया.

शैली ने मन ही मन डिसीजन लिया. आज वह बेवकूफ नहीं बनेगी. ऐसा क्यों किया आदिराज ने? क्या करे? विश्वास किस पर करे? हां, विराट पर विश्वास किया जा सकता है. उस ने तुरंत विराट को कौल की.

‘‘क्या हुआ?’’ विराट बोला.

‘‘मुझे तुम से अभी मिलना है अर्जैंट शैली बोली.

‘‘ठीक है घर आता हूं,’’ विराट बोला,

‘‘नहीं घर नहीं, मसाला चौक,’’ शैली ने कहा.

‘‘ठीक है वहीं आ जाता हूं,.. निकल रहा हूं घर से.’’

‘‘ओके,’’ शैली ने कहा और फिर मौम से बोल कर मसाला चौक के लिए निकल गई.

कुछ ही समय में दोनों मसाला चौक में बैठे थे.

‘‘क्या हुआ घबराई हुई क्यों हो?’’ विराट ने पूछा पर शैली जवाब नहीं दे पाई. उस की आंखों में आंसू भर आए और गला रुंध गया.

‘ख्शैली क्या हुआ यार? क्यों परेशान हो,’’ विराट घबरा गया.

शैली ने मोबाइल सामने कर दिया. विराट का गुस्से के मारे चेहरा लाल हो गया. वह चिल्ला पड़ा, ‘‘फेमस होने का भूत सवार था तुम पर… भुगतो अब. साले को पुलिस के डंडे पड़वाते हैं.’’

मगर फिर विराट यह सोच कर चुप हो गया कि पुलिस में मामला उल?ोगा… ऐग्जाम भी सिर पर हैं, फिर सोशल मीडिया पर भी बतंगड़ बनने लगती हैं बातें.

‘‘कुछ सोचते हैं,’’ विराट इतना ही बोला.

‘‘ठीक है,’’ शैली बोली, उस का चेहरा उदास था. आंखें आंसुओं से भरी थीं.

‘‘सुनो, अब चेहरे पर स्माइल रखो, घर पर भी मुसकराती हुई जाओ.’’

मगर शैली उल?ान में थी.

‘‘शैली टैंशन मत लो सब मु?ा पर छोड़ दो… अब जैसा में बोलूं वैसे करना… ठीक है? हम आदिराज को उसी के जाल में फंसाएंगे,’’ विराट बोला.

‘‘लेकिन कैसे?’’ शैली बोली.

‘‘तुम और मैं कल उस से उस के स्टूडियो में मिलते हैं. जैसा मै बोलूं वैसे ही करती रहना. ठीक है न,’’ विराट ने सम?ाया.

दूसरे ही दिन दोनों आदिराज के स्टूडियो पहुंच गए.

‘‘आओ शैली आओ,’’ आदिराज ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप ने चीटिंग की है मेरे साथ,’’ शैली ने गुस्से में कहा.

‘‘कैसी चीटिंग?’’ आदिराज ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप ने तो डांस के लिए कहा था,’’

शैली बोली.

‘‘डांस के वीडियो ही तो हैं चैनल पर,’’ आदिराज ने कहा.

‘‘लेकिन फौलोअर्स नहीं बढ़ रहे हैं,’’

शैली बोली.

‘‘तुम जैसी लड़कियां ही मेरी शिकार होती हैं, जो हथेली पर सरसों उगाने की सोचती हैं. मेहनत लगती हैं, पैशन बनाए रखना पड़ता है,’’ आदिराज ने कहा.

 

कुछ देर बाद विराट भी अंदर आ गया. उसे देख कर वह चुप हो गया. शैली को

देखने लगा.

विराट हंस दिया. फिर बोला, ‘‘आदिराज वीडियो तो शानदार, सुपर बने हैं लेकिन जबरदस्ती में वह मजा कहा.’’

‘‘मतलब?’’ आदिराज बोला.

‘‘तुम्हारी मेहनत थोड़ी कम करने आया हूं,’’ विराट बोला, ‘‘कोई बढि़या लोकेशन पर सेमी पोर्न वीडियो बनाएं मेरा और शैली का… औरिजनल दिखेगा और पसंद भी किया जाएगा, फिर सुहागरात वाला सीन. बोलिए तैयार हैं आप आदिराज जी?’’

‘‘क्या? सही बोल रहे हो?’’ आदिराज की शक्ल देखने लायक थी.

‘‘जी, शैली और मैं एकदूसरे को पसंद करते हैं. रुपए किस को बुरे लगते हैं? रुपए थोड़े ज्यादा हों तो अच्छा रहेगा,’’ विराट मुसकराया.

‘‘रजामंदी से वीडियो बने तो ज्यादा अच्छे बनेंगे और पसंद भी होंगे. जबरदस्ती में वह बात नहीं होती,’’ आदिराज बोले.

‘‘लोकेशन दूसरी हो, बढि़या हो. बंद स्टूडियो में वह मजा कहां?’’ विराट बोला.

‘‘क्यों नहीं जब रजामंदी है तो क्या परेशानी है. पोर्न वीडियो का तो कारोबार सब जगह फैला है,’’ आदिराज बोला.

‘‘देर से सही शैली को सम?ा आया कि रुपए कमाने का शौर्टकट रास्ता इस से बेहतर नहीं हो सकता. क्यों शैली?’’ आदिराज अपनी सफलता पर खुश था.

‘‘विराट को वीडियो दिखाए तो विराट ने कहा कि गोल्डन चांस है. आदिराज जैसे फेमस यूट्यूबर की डाइरैक्शन में वीडियो बनेगा… तो मैं तैयार हो गई,’’ शैली बोली.

‘‘गुड गर्ल,’’ आदिराज बोला.

‘‘यहां से कुछ दूरी पर चंपा विहार है जहां हरियाली भी है, छोटीछोटी पहाडि़याटीले भी हैं वहां कैसा रहेगा?’’ विराट बोला, ‘‘छोटा सा मंदिर भी है, वहां मेरी शैली की शादी वाला सीन फिल्माने के बाद सुहागरात वाला सीन भी हो जाएगा,’’ विराट बोला, ‘‘आप कहें तो… विराट ने बात अधूरी छोड़ी.

‘‘क्यों नहीं क्यों नहीं,’’ आदिराज बोला, ‘‘मेरा असिस्टैंट साथ रहेगा.’’

शादी के गवाह के रूप में 1-2 दोस्तों

को ऐक्टिंग का मौका मिल जाता… तो विराट गिडगिड़ाया.

‘‘ले आना, तुम भी क्या याद करोगे,’’ आदिराज बोला, ‘‘ठीक है कल मिलते हैं.’’

दूसरे दिन दोपहर में विराट शर्लिन और रोहन को पूरा प्लान सम?ा कर शैली को ले कर चंपा विहार पहुंच गया. वहां आदिराज पहले ही अपने असिटैंट के साथ रैडी था.

‘‘आदिराजजी की जय हो,’’ विराट बोला.

आदिराज खुश था कि रजामंदी से सब हो रहा है.

‘‘वीडियो शूट के पहले थोड़ा ऐंजौय हो जाए,’’ रोहन बोला और फिर उस ने वाइन की बोतलें निकालीं.

‘‘अरे वाह,’’ आदिराज बोला.

शर्लिन ने फटाफट गिलास निकाले,

नमकीन काजुओं से प्लेटें सजा दीं. चियर्स, गिलास टकराए और हवा में शराब और काजुओं की खुशबू तैरने लगी.

‘‘शैली,’’ आदिराज ने एक बड़ा घूंट भरा और फिर शैली को देखने लगा.

‘‘जी आदिराजजी,’’ शैली ने कातिल मुसकान आदिराज की ओर फेंकी.

‘‘1-2 पेग तुम भी ले लो शैली. ज्यादा नशीला हो जाएगा वीडियो में,’’ आदिराज बोला.

‘‘मेरे ऊपर तो विराट के प्रेम का नशा इतना है कि शराब की जरूरत नहीं है,’’ शैली इतराते हुए बोली.

जोरजोर से आदिराज हंसने लगा. तीसरा पैग था उस का. नशा होने लगा था उसे. बोला, ‘‘आदिराज दुनिया का सब से फेमस यूट्यूबर हूं. दुनिया मेरी मुट्ठी में होगी, दौलत के पहाड़ होंगे मेरे पास. पोर्न मूवी की दुनिया का किंग हूं मैं.’’

उस के असिस्टैंट को भी नशा हो रहा था. लेकिन वह फिर भी होश में था.

रोहन आदिराज का विडियो बनाने में लगा था.

‘‘चलो शैली रेडी हो जाओ विराट के साथ.’’ आदिराज लड़खड़ाती आवाज में बोल रहा था.

‘‘मैं रैडी हूं आदिराज,’’ कह कर शैली विराट के गले लग गई.

‘‘गुड गर्ल,’’ आदिराज बोला एक ओर अपना कैमरा सैट करने लगा, लेकिन उस के हाथ कांप रहे थे. असिस्टैंट जो थोड़ा होश में था वह उस की मदद करने लगा.

‘‘क्यों परेशान हो रहे हो भाई, हम लोग हैं मदद के लिए,’’ कह विराट ने शैली को अपने से दूर किया और असिस्टैंट के पास पहुंच गया.

रोहन ने भी विराट के साथ मिल कर आदिराज को नशे की हालत में मजबूर किया. उस के असिस्टैंट की मदद से शैली के सभी न्यूड वीडियो डिलीट करवाए. फिर शैली और शर्लिन को घर भेज दिया.

रोहन ने पुलिस को फोन कर दिया था क्योंकि  सैकड़ों न्यूड वीडियो और पोर्न मूवी थीं इसलिए जेल की हवा जरूरी थी. कुछ देर बाद आदिराज को गिरफ्तार कर लिया गया.

विराट और रोहन घर पहुंचे. शैली और उस का परिवार इंतजार कर रहा था.

‘‘लाखों फौलोअर्स चाहिए,’’ विराट बोला, ‘‘चलो वीडियो बनाते हैं.’’

‘‘नहीं चाहिए सौर’’ शैली बोली, ‘‘मैं भटक गई थी.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ मौम हंस दीं.

‘‘औल इज वैल,’’ सभी बोले और फिर वातावरणी में हंसी की गूंज फैल गई.

बीच बहस में : पति की समझदारी का श्रेय ले गई पत्नी

मुद्दा जरा टेढ़ा था लेकिन हम ने दिमाग के घोड़े ऐसे दौड़ाए कि अमीनाजी हमारी कायल हो गईं. ऐसे में पत्नीजी भी हमारी बुद्धिमानी पर नतमस्तक हुए बगैर न रह सकीं, पर तुर्रा देखो, हमारी समझदारी का श्रेय भी वे खुद ले गईं.

मैं जब अपने औफिस से लौट कर आया तो पत्नी के चेहरे पर अजीब सी खुशी नाच रही थी. मैं समझ गया कि शायद हमारी सासुजी आ रही हैं क्योंकि बरसात के मौसम में जब घने काले बादल छाए हों, बिजली चमके, मौसम में अजीब सी उमस हो तो जान लें कि तेज बरसात होने वाली है. उसी तर्ज पर पत्नीजी के चेहरे की मुसकान देख कर हम जान गए कि हमारी आफत (सासुजी) आने वाली होंगी और पता नहीं यह साढ़ेसाती कितने बरसों तक रहेगी? कब तक हम परेशान होते रहेंगे. लेकिन पत्नी ने हमारे भ्रम को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आज आप के पसंद के पकौड़े बनाए हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘एक खुशखबरी है…’’

‘‘अच्छा,’’ हम ने डरते हुए थूक निगलते हुए आगे कहा, ‘‘मम्मीजी आ रही होंगी?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘मैं मेरी मां की नहीं, तुम्हारी अम्मा की कह रहा हूं.’’

‘‘न मेरी मां, न तुम्हारी मम्मी.’’

पत्नी ने हमें संशय में डाल दिया था.

‘‘फिर क्या बात है?’’ हम ने अपने को संयत करते हुए प्रश्न किया.

‘‘मैं ने तुम्हें बताया था न, कि मेरी एक सहेली थी,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘कौन, वो मीनाटीना?’’

‘‘जी नहीं, अमीना,’’ पत्नी ने बताया.

‘‘अमीना के बारे में तो कभी नहीं बताया.’’

‘‘भूल गई शायद.’’

‘‘कौन, वो…?’’

‘‘जी नहीं, मैं बताना भूल गई.’’

‘‘तो क्या हो गया.’’

‘‘वह दिल्ली जा रही थी, तो उस ने खबर दी कि वह यहां रुकते हुए आगे जाएगी,’’ पत्नी ने बताया.

‘‘तो ठीक है न, आ जाने दो.’’

‘‘लेकिन…?’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘वह मुसलमान है.’’

‘‘तो क्या हो गया?’’

‘‘तुम ऐडजस्ट कर लोगे?’’

‘‘मुझे ऐसा क्या करना है. आए, शौक से,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम कितने अच्छे हो.’’

‘‘सो तो पहले से ही हूं.’’

‘‘जानती हूं इसलिए तो मैं ने तुम से शादी की,’’ पत्नी ने जवाब दिया, फिर मेरे सामने गोभी के पकौड़े रखते हुए वे कहने लगीं, ‘‘जानते हैं, अमीना और हमारा घर पासपास था. हम दोनों के बीच कभी भी धर्म दीवार नहीं बनी. हमारे त्योहार में वह भागीदारी करती थी और ईद पर हम सब उस के घर जाते थे. कभी किसी भी तरह का धर्म या जाति का भेदभाव नहीं था. उस के बाद वह स्थानीय चुनाव में खड़ी हो गई थी. उसे जिताने में हम ने एड़ीचोटी की ताकत लगा दी थी और वह जीत गई थी. क्या दिन थे वे…’’

पत्नीजी अपने में गुम मुझे पूरा किस्सा सुनाए जा रही थीं. मैं हूं हां करते जा रहा था.

‘‘तर्क देने में तो वह माहिर है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘अमीना, और कौन,’’ पत्नी समझ गई थी कि मेरा ध्यान उस ओर कम ही है, इसलिए वह नाराज हो कर किचन में चली गई. मैं न्यूज देखने लगा था. रात को भोजन किया तो पत्नी की आंखों में अपनी सहेली के आने की खुशी जाहिर हो रही थी. खरबूजे को तो कटना ही है, चाहे सासू के नाम पर, चाहे सहेली के नाम पर.

सुबह 8 बजे टैक्सी रुकी तो अमीनाजी ने हमारे गरीबखाने में प्रवेश किया. दोनों सहेलियां गलबहियां हुईं. हम से परिचय हुआ. हमारी शादी के समय वह कहीं विदेश गई हुई थी. इसलिए हम से माफी मांगी और मैरिज का गिफ्ट शादी के

7 बरसों बाद ला कर दिया. हम ने भी दांतों को निपोरते हुए स्वीकार कर लिया. इस में 2 मत नहीं थे कि अमीना वास्तव में बहुत सुंदर थी. बातचीत में तहजीब थी. उस की आवाज का सुर कम था, लय में था जबकि हमारी बेगम का तो बेसुर कभीकभी तो गधे को मात देने वाला हो जाता था. वह जब चीखती तो मैं शांत ही रहना पसंद करता था.

सुबह नाश्ते में इतने विभिन्न प्रकार के व्यंजन थे कि तबीयत खुश हो गई. नाश्ते के टेबल पर मैं ने प्रशंसा करते हुए अमीनाजी से कहा, ‘‘आप तो महीने में

4-6 बार आ जाया करें.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘ताकि हमारी बेगम इतने वैरायटी का नाश्ता रोज बना कर खिलाएं.’’ पत्नीजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘जनाब, यह मेहनत, मेरी नहीं, अमीना की है. यह खाना पकाने में भी मास्टर है.’’ अमीना थोड़ा शरमा गई थी.

‘‘भई अमीनाजी, कुछ प्रकार का नाश्ता इधर भी सिखा देना.’’

अमीना चुप हो गई, लेकिन अणुबम जैसे आग्नेय नेत्रों से पत्नी ने हमें देखा.

नाश्ते के बाद हम घूमने गए. अगले दिन अमीनाजी को रवाना होना था. एक समाचारपत्र वाहक सांध्य का समाचारपत्र ले कर चीखता हुआ निकला. वह हैडलाइन को देख कर चीख रहा था, ‘‘राज्य में गौमांस पर प्रतिबंध…’’

मैं ने पेपर लिया. उस को पढ़ा. उस में लिखा था, ‘पूरे देश में गौहत्या या बीफ के मांस पर रोक लगाने के लिए सरकार विचार कर रही है.’

पत्नीजी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, उन्होंने खुश हो कर कहा, ‘‘चलो, हमारी गौमाता अब मरने से बचेगी.’’

मुझ से नहीं रहा गया, मैं ने कहा, ‘‘बूढ़ी होने पर उसे सड़कों पर छोड़ देंगे मरने के लिए.’’

‘‘उस में तैंतीस करोड़ देवीदेवताओं का वास होता है,’’ पत्नी ने तर्क दिया.

‘‘एक बात बताओ, रेलगाड़ी से कट कर या ट्रक से टकरा कर जब

वह मरती है तो यह तैंतीस करोड़ देवीदेवता कहां चले जाते हैं? वे भी कटमरते होंगे?’’

‘‘चुप रहो, फालतू की बातें नहीं करते,’’ पत्नीजी ने तुनक कर कहा.

‘‘यार, जीजाजी सही ट्रैक पर हैं, तुम इस बात का जवाब दो. ये तर्क की बातें हैं,’’ अमीना ने बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘तुम ही बताओ, अरबों का मांस विदेश में निर्यात होता है, हजारों लोग इस व्यवसाय में लगे हैं, वे सब बेरोजगार हो जाएंगे. फिर सस्ता प्रोटीन जो मिलता है वह भी नहीं मिल पाएगा. यह तो किसी एक वर्ग एक जाति को संतुष्ट करने की राजनीतिभर है,’’ मैं ने अमीना के सामने खुद को बुद्धिमान साबित करते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ पत्नी लगभग दहाड़ीं.

‘‘तुम नाराज मत हो तो एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए न जीजाजी,’’ अमीनाजी ने मजे लेते हुए कहा.

‘‘देखो, हिंदुओं में गाय की पूजा होती है, इसलिए धर्म के खिलाफ है गौहत्या. कहो, सच है?’’

‘‘बिलकुल सच है.’’

‘‘धर्म में ऐसा उल्लेख है, ऐसा कहा जाता है.’’

‘‘बिलकुल,’’ पत्नीजी ने उछलते हुए कहा.

‘‘हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है.’’

‘‘हां, है,’’ पत्नी ने कहा.

‘फिर एक बात बताएं?’

‘‘कहिए?’’

‘‘अमीनाजी इसलाम में शराब को हराम माना गया है, उन के धर्म की चिंता करते हुए पूरे देश में शराबबंदी हो जानी चाहिए.’’

‘‘हां, यह तो सच है,’’ पत्नीजी ने कहा.

‘‘क्या सरकार कर पाएगी?’ बिलकुल नहीं. देश में कुछ राज्यों में चूहे को खाया जाता, कुछ राज्यों में कुत्तों को खाया जाता है और कुछ राज्यों में भैंसे को खाया जाता है. डियर, एक बात बताओ, इन में से कौन सा पशु हिंदू देवीदेवता का पूजनीय नहीं है? गणेश को ले कर दत्तात्रेय तक सब पशु देवताओं के नाम के साथ जुड़े हैं. क्या सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए इन जानवरों को मार कर खाने पर प्रतिबंध लगाएगी? बिलकुल नहीं.’’

‘‘यह बात बिलकुल सच है, जीजाजी,’’ अमीना ने खुश हो कर कहा.

‘‘अरे, हमारे धर्म में तो चींटी, चिडि़या, बरबूटे, मोर, सारस, तोता, उल्लू सब खाए जाते हैं और सब किसी न किसी देवीदेवता के वाहन हैं. फिर बताओ, क्या देश में सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए मांसाहार पर प्रतिबंध लगा सकती है? देश की 35 प्रतिशत आबादी मांसाहार पर निर्भर है. और तो और, कछुआ, सांप, अजगर, मछली तक खाए जाते हैं जो कि हमारे देवीदेवता के पूज्य वाहन हैं. मैं ऐसे किसी भी प्रतिबंध के खिलाफ हूं. जिसे नहीं खाना है वह न खाए. लेकिन झूठी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में, झूठी प्रसिद्धि पाने का प्रयास करना गलत है. क्यों अमीनाजी, सच है या गलत?’’

अमीनाजी खुश हो गईं और मेरी पत्नी को एक ओर खींच कर ले गईं. थोड़ी देर में पत्नी आईं और फिर हम लौट कर घर आ गए.

सुबह अमीनाजी गईं तो हम सब को बहुत दुख हो रहा था बिछुड़ने का. अमीनाजी चली गईं तो मैं ने पत्नीजी से प्रश्न किया, ‘‘बीच बहस में तुम उठ कर अमीना के साथ कहां चली गई थीं? और अमीना ने तुम से क्या कहा था जो तुम एकदम शांत हो कर लौटी थीं?’’

पत्नीजी थोड़ा मुसकराईं और कहने लगीं, ‘‘वह मुझे खींच कर एक ओर ले गई और मेरा हाथ जोरों से पकड़ कर कहा, ‘तुझे बधाई हो.’ मैं ने पूछा, ‘किस बात की बधाई?’ तो उस ने कहा, ‘मालिक ने तुझे इतना समझदार, तर्क में निपुण पति दिया है. सच में यहां आ कर धन्य हो गई. मेरी इच्छा तो उन्हें उस्ताद बनाने की हो रही है.’’

‘‘सच, यही कहा था अमीनाजी ने?’’ मैं ने खुश हो कर पूछा.

‘‘बिलकुल सच. उस के बोलने के बाद मुझे लगा कि अमीना जैसी तार्किक बात करने वाली यदि तुम्हारी इतनी प्रशंसा कर रही है, तो दम तो है तुम में,’’ पत्नीजी ने खुश हो कर कहा.

‘‘सो तो हम हैं ही,’’ मैं ने हंस कर कहा.

‘‘वो तो तुम शादी होने के बाद इतने बुद्धिमान हो गए, वरना मैं जानती हूं तुम कैसे थे?’’ पत्नी ने कहा और मेरे किसी तरह के उत्तर को सुने बिना अंदर किचन में चली गई थीं.

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