Cyber Cafe : नेहा और साइबर कैफे

Cyber Cafe : ये उन  दिनों की बात है जब देश में इंटरनेट का क्रेज बढ़ने लगा था. मोबाइल तो तब हर किसी की पहुंच में था ही नहीं. गिने चुने लोगों के पास पत्थर के से वजन के मोबाइल हुआ करते थे. सरकारी/निजी दफ्तरों और साइबर कैफे में ही इंटरनेट जोर पकड़ रहा था. नेहा (बदला हुआ नाम, न भी बदला हो तो कहना ऐसा ही पड़ता है, कोर्ट की रूलिंग आड़े आती है) ने तय किया कि वो भी इंटरनेट सीखे. जरूरी था. बाकि सहेलियां ईमेल का जिक्र किया करती थीं. एमएसएन, याहू के किस्से सुनाया करती थीं. जब भी कहीं उसके सर्किल में कोई याहू मैसेंजर या रैडिफ चैट की बातें करता, वो कोफ्त खाती. आखिर उसे ये सब क्यों नहीं पता.

नेहा ने तय किया वो भी इंटरनेट सीखेगी. उसका भी ऑरकुट पर अकाउंट होगा. सन् 2000 के शुरुआती समय में साईबर कैफे में जाकर एक बंद से कैबिन में 80 रुपए घंटा, 50 रुपए आधा घंटा के हिसाब से इंटरनेट सर्फिंग करना शगल हो चला था. नेहा ने कॉलेज के पास वाले साइबर कैफे में 50 रुपए दिए और आधे घंटे के लिए सिस्टम पर जा बैठी. इंटरनेट एक्सप्लोरर खुला हुआ था. पर करना क्या है उसे कुछ समझ नहीं आया. आज का बच्चा बच्चा कह सकता है कि जो न समझ आए, गूगल से पूछलो.. या यू ट्यूब पर देख लो कि हाऊ टू यूज इंटरनेट फर्स्ट टाइम. पर वो वक्त ऐसा न था. जिसने कभी इंटरनेट नहीं चलाया हो कम से कम एक बार तो कोई बताने वाला होना चाहिए न..

नेहा को लगा, 50 रुपए बर्बाद हो गए. उसे कुछ परेशान होता देख, साइबर कैफे मालिक ने कहा- ‘कोई दिक्कत तो नहीं?’ तकरीबन 24-25 साल के इस गुड लुकिंग गाय को नेहा ने बताया, ‘इंटरनेट सीखना है’. राहुल (सायबर कैफे ऑनर) ने कहा- ‘बस इतनी सी बात. दोपहर 2 से 2.30 नीचे बेसमेंट में आ जाओ. सात दिन की क्लास है. ‘और फीस’ नेहा ने सवाल किया. ‘3 हजार रुपए है, पर आपको 50 परसेंट डिस्काउंट.’

‘मतलब कि मुझे 1500 रुपए देने पड़ेंगे. और अगर सात दिन न आना हो, दो-तीन दिन ही…’ नेहा के ये कहते ही राहुल ने कहा- ‘आप 1000 रुपए दीजिए.. दो या तीन दिन, जब तक सीखना हो सीखो.’ नेहा ने कंप्यूटर स्क्रीन की विंडो मिनिमाइज की और चेयर से उठ खड़ी हुई. बोली- ‘थैंक्स. कल आती हूं 2 बजे. फीस कल ही दूंगी.’ ‘आराम से, कोई जल्दी नहीं है’ राहुल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

नेहा ठीक 1.55 पर साइबर कैफे के बेसमेंट में कॉपी पैन लेकर मोर्चा संभाल चुकी थी. उसके साथ कोई आठ दस लड़के लड़कियां उस बैच में थे. राहुल ने कंप्यूटर जेंटली ऑन करने, मॉनिटर ऑन करने से लेकर ब्रॉडबेंड आइकन को क्लिक कर मॉडम में नंबर डाइलिंग से शुरुआत की.. और इंटरनेट चलाने के बेसिक्स बताए. आधे घंटे की क्लास शानदार रही. जाते-जाते काउंटर पर राहुल को हजार रुपए दिए और कहा- ‘ये लीजिए फीस.’ राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘ऊं…. अभी नहीं. पहले सीख लो.. फिर दे देना.’ नेहा सरप्राइज थी. उसने मुस्कुरा कर पैसे जींस की जेब में रख लिए. पहले दिन की क्लास से वो उत्साहित थी. इंटरनेट एक्सप्लोरर नाम के नए दोस्त से हुए इंट्रो ने घर तक के पूरे रास्ते उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी.

सात दिन बीत चुके थे. नेहा इंटरनेट सर्फिंग का रोज आनंद ले रही थी, राहुल ने अब तक उससे फीस नहीं ली थी. बल्कि अब साइबर कैफे की आधे, एक घंटे की फीस भी वो उससे नहीं ले रहा था. नेहा दो नए दोस्त पाकर खुश थी. नेहा आज याहू मैसेंजर पर अकाउंट बनाकर चैट कर रही थी. ASL (एज, सेक्स, लोकेशन), LOLZ, OMG जैसे नए टर्म लिखे हुए मैसेज देख उत्साहित थी.

‘ओह तो चैटिंग शैटिंग चल रही है’, अचानक पीछे आए राहुल ने कहा. ‘हम्म.. सीख रही हूं.’ नेहा ने जवाब दिया. ‘कैरी ऑन कैरी ऑन.. अब एक घंटा नहीं पूरा दिन भी इंटरनेट पर कम लगने लगेगा. कुछ दिनों में तो घर पर भी सिस्टम लगवा ही लोगी. असल दोस्तों को भूल जाओगी और वर्चुअल दोस्त ही पसंद आएंगे.’ राहुल का तंज समझ नेहा मुस्कुराई और टेबल पर रखे उसके हाथ पर हाथ इस तरह मारा जैसे बिना कहे कह रही हो, ‘चल हट’. ‘अच्छा नेहा थोड़ी देर में नीचे क्लास में आ जाना, आज कुछ स्पेशल सैशन रखा है. नए स्टूडेंट्स भी हैं, बेसिक तो तुम्हीं बता देना सबको.’ ‘मैं’..मैं तो खुद ट्रेनी हूं, मैं क्या बताऊंगी.’ नेहा के जवाब को इग्नोर कर राहुल फुर्ती से नीचे की ओर रवाना हुआ, जाते-जाते सीढ़ी से उसकी आवाज़ जरूर आई, ‘सीयू इन नेक्स्ट 5 मिनट इन बेसमेंट’.

नेहा ने पांच मिनट बाद याहू मैसेंजर से लॉगआउट किया. सिस्टम शट डाउन कर नीचे बेसमेंट की ओर रवाना हो गई. उसे अजीब सा लग रहा था, कि वो कैसे पढ़ाएगी. नीचे जाकर ऐसा कुछ नहीं हुआ. राहुल ने वीपीएन सर्वर के बारे में बताया, कि कैसे आपके ऑफिस में कोई साइट ब्लॉक हो तो आप उसे वहां भी खोल सकते हो. आईटी टीम को बिना पता चले. फ्रैशर्स को सिखाने के लिए एक दूसरे लड़के को कह दिया, जो करीब 15 दिन से क्लास में आ रहा था. नेहा ने राहत की सांस ली. उसने आंखों ही आंखों में राहुल को थैंक्स भी कहा, लंबी सांस लेते हुए. बाकि स्टूडेंट्स अपने अपने टास्क में बिजी थे, नेहा जाने की तैयारी कर ही रही थी कि राहुल से फिर उसकी नजरें मिली, उसने उसकी तरफ आने का इशारा किया. नेहा पर्स वहीं छोड़ डायस पर टेबल के पीछे लगी कुर्सी पर बैठ गई, जो राहुल की कुर्सी के ठीक बराबर थी. सामने टेबल पर राहुल ने इंटरनेट खोल रखा था.  जैसे ही नेहा की नजर स्क्रीन पर गई, वो सकपका गई. राहुल स्क्रीन पर ही नजरें गड़ाए हुए बोला- ‘ये लो नेहा, आज की ये एक्सरसाइज, आगे भी तुम्हारे काम आएगी, ये न देखा तो इंटरनेट पर क्या देखा, तुम्हारे कॉलेज प्रोजेक्ट्स में भी तुम अब एडवांस हो जाओगी.’ राहुल की लैंग्वेज पूरी क्लास को भ्रमित करने के लिए काफी थी, इसीलिए किसी का ध्यान उस ओर गया भी नहीं कि अब तक नेहा पसीने-पसीने हो चुकी है.

स्क्रीन पर पॉर्न साइट खुली हुई थी. राहुल बिलकुल न्यूट्र्ल फेस किए हुए कुछ न कुछ बोले जा रहा था, नेहा अब तक समझ ही नहीं पा रही थी कि वो कैसे रिएक्ट करे. इतने में राहुल ने नेहा के पैर पर हाथ रखा, टेबल कवर होने के कारण उसकी इस हरकत को सामने क्लास में कोई समझ न पाया. नेहा का डर के मारे कलेजा कांप रहा था. उसने उठने की कोशिश की तो राहुल ने जोर से उसे बैठा दिया. ये मानते हुए कि नेहा अब कुछ बोलने वाली है, राहुल ने उसे टोका, ‘नेहा जी ये भी देख लो.’ ये कहते ही राहुल ने वीएलसी प्लेयर पर कर्सर क्लिक किया. वहां एक वीडियो पॉज्ड था. कुछ धुंधला-धुंधला दिखा, लेकिन तीन या चार सैकेंड के बाद ही नेहा को साफ दिख गया कि ये उसी का वीडियो है. नेहा की आंखों से आंसू टपके, लेकिन सामने क्लास को देखते हुए उसने उन्हें पौंछ लिया. उसने अब तक सिर्फ खबरों में ही पढ़ा था कि बाथरूम्स व्गैरह में हिडन कैमरे से लड़कियों के वीडियो बन रहे हैं. पर खुद को उसका शिकार होते देख वो अब स्तब्ध थी. सात दिन पहले बने दोस्त की मुस्कान के पीछे की दरिंदगी वो समझ ही नहीं पाई. नेहा को याद आ गया था कि तीन दिन पहले वो साइबर कैफे से अपनी फ्रेंड की पार्टी में सीधे गई थी. सुबह की घऱ से निकली हुई थी इसलिए ड्रेस साथ लाई थी. साइबर के वाशरूम में ही उसने ड्रेस चेंज की थी, जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी.

राहुल धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला- ‘शाम को सात बजे तुम्हारा इंतजार रहेगा, यहीं. बताने की जरूरत तो नहीं न कि न आई तो कल इंटरनेट पर तुम ही धमाल मचाती दिखोगी.’

नेहा झट से सामने अपनी सीट तक आई, टेबल पर रखा पर्स और स्कार्फ उठाया और अपनी स्कूटी की और दौड़ पड़ी.

दोपहर से शाम तक नेहा की हालत बिगड़ी रही, घर वाले सोच रहे थे कि लू लग गई. ‘बार-बार कहते हैं फिर भी ध्यान नहीं ऱखती, धूप में बाहर आती जाती है.’ सब उसे ऐसा कहकर टोक रहे थे. नेहा चाहकर भी किसी को बता न सकी. घबराहट में उसे दो बार वोमिट हुई. कभी राहुल की पोर्न वाली हरकत, तो कभी अपना वीडियो आंखों के सामने आ रहा था. और कभी ये सोचकर ही रूह कांप रही थी कि शाम को वो क्या करने वाला है. इसी बीच मम्मी एप्पल ले आईं. वहीं काटकर उसे खिलाने लगीं. मम्मी ये सोच रही थीं कि भूखे पेट गर्मी असर कर गईं और नेहा चाकू को देख रही थी.

शाम सवा सात बजे नेहा साइबर कैफे पहुंची. जैसा उसने सोचा था, ठीक वैसा ही नजर भी आया. राहुल कैफे में टेबल पर पैर रख कर बैठा था. बत्तियां बुझा रखी थी, बस एक कैबिन की लाइट चल रही थी, उसी से रौशनी बाहर आ रही थी. नेहा को आते देख राहुल ने कहा- ‘आओ जान आओ, तीन दिन से जब से तुम्हें वीडियो में बिना टॉपर के देखा है, इस ही लम्हे का इंतजार कर रहा हूं.’

राहुल ने ये कहते हुए सामने रखा डीओ अपनी पूरी शर्ट और बगलों के नीचे छिड़का. सहमी हुई नेहा कुछ धीमे कदमों से ही राहुल की ओर बढ़ी. राहुल ने होठ आगे कर दिए, इस जबरन हक को मानते हुए, कि जैसा वो पिछले पांच घंटों से इमेजन कर रहा है, अब बस वो होने को है.

एक तेज तमाचे ने राहुल को इमेजिनेशन से बाहर निकाला. उसका गाल पर हाथ पहुंचा ही था कि एक जोर का मुक्का उसकी नाक पर आकर लगा और तेजी से खून बहने लगे. अचानक सकपकाए राहुल ने होठों तक आए खून को हाथ से देखा फिर पागल सा होकर वो नेहा को मारने दौड़ा. वो नेहा की ओर बढ़ा ही था कि बाहर के गेट से दो लड़के दो लड़कियां अंदर आए और नेहा को पीछे कर राहुल को पीटने लगे. चंद मिनटों में राहुल अधमरा हुआ पड़ा था, माफी मांग रहा था. बेशर्मी से बार बार माफी मांग रहा था. नेहा के दोस्तों ने एक-एक कंप्यूटर को खंगाला. साइबर के बाकी सिस्टम्स में तो कुछ नहीं था, एक क्लास रूम और दूसरे ऊपर कैफे एरिया में राहुल के सिस्टम में वॉश रूम की कुछ क्लिप्स थी. क्लास रूम के सिस्टम में ऊपर का ही फोल्डर कॉपी किया हुआ था, जिसमें तकरीबन चार लड़कियों के वॉशरूम वीडियो थे. काफी मार पड़ी तो राहुल गिड़गिड़ाया कि नेहा उसका पहला शिकार ही थी. इंटरनेट पर साइबर कैम के लीक्ड वीडियो देख उसकी भी हिम्मत हुई वो ऐसा करे. नेहा के दोस्तों ने दोनों ही सिस्टम से फोल्डर ऑल्ट प्लस कंट्रोल दबाकर डिलीट किए और फिर गुस्से में दोनों सिस्टम भी तोड़ डाले.

फिर कभी उस साइबर कैफे का ताला खुला किसी ने न देखा. कुछ दिनों बाद वहां एक परचूनी की दुकान खुल गई. राहुल वहां कभी नहीं दिखा, हां, नेहा अक्सर गर्दन ऊंची कर स्कूटी पर वहां से गुजरते हुए नजर आती रही.

Best Husband Wife Comedy : तूतू, मैंमैं

Best Husband Wife Comedy : ‘‘क्यातुम ने प्रैस के कपड़ों में अंडरवियर भी डाल दिया था?’’ शिखा ने पति शेखर से पूछा.

‘‘शायद… गलती से कपड़ों के साथ चला गया होगा,’’ शेखर बोला.

‘‘प्रैस वाले ने उस के भी क्व5 लगा लिए

हैं. अब ऐसा करना कि कल अंडरवियर पहनो

तो उस पर पैंट मत पहनना क्व5 जो लगे हैं,’’

शिखा बोली.

‘‘तुम भी बस… हर समय मजाक के मूड में रहती हो. कभीकभी सीरियस भी हो जाया करो.’’

‘‘अरे, हम तो हैं ही ऐसे… इसीलिए तो आज भी 50 की उम्र में भी हम से कोई शादी

कर ले.’’

बेटी नेहा बोली, ‘‘तो पापा आप मेरे लिए बेकार में लड़का ढूंढ़ रहे हो… मम्मी की शादी करवा दो. वैसे भी मु झे शादी नहीं करनी.’’

शेखर ने पूछा, ‘‘क्यों बेटा?’’

‘‘पापा, मैं ने अब तक की जो जिंदगी जी है उस में ऐसा महसूस किया है… मैं शादी कर के अपनी आजादी को खो दूंगी… शादी एक बंधन है और मैं बंधन में नहीं बंध सकती. इस बारे में मैं मम्मी से सारी बात शेयरकर लूंगी,’’ नेहा ने स्पष्ट सा जवाब दिया.

तभी शेखर की नजर दरवाजे पर पड़ी. एक कुत्ता घुस आया था. शेखर ने शिखा से कहा, ‘‘तुम ने बाहर का दरवाजा भी ठीक से बंद नहीं किया. देखो कुत्ता घुस आया.’’

‘‘अरे, ठीक से तो देख लिया करो. यह कुत्ता नहीं कुतिया है. शायद तुम से मिलने आई है. मिल लो. फिर इसे बाहर का रास्ता दिखा देना,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम तो हर समय मेरे पीछे ही पड़ी रहती हो,’’ शेखर ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम्हारे पीछे नहीं तो क्या पड़ोसी के पीछे पड़ूंगी? वह भी तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा और ऐसा तो होता ही आया है कि पति आगेआगे और पत्नी पीछेपीछे,’’ शिखा ने झट जवाब दिया.

‘‘खैर, छोड़ो मै तुम से जीत नहीं सकता.’’

‘‘शादी भी एक जंग है. उस में जीत कर ही तो तुम मु झे लाए हो. यही सब से बड़ी जीत है…ऐसी पत्नी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा छोड़ो, अपने गुण बहुत बखान कर लिए तुम ने. अब मेरी सुनो,’’ शेखर ने कहा.

‘‘तुम्हारी ही तो सुन रही हूं अब तक.’’

‘‘अपनी नेहा के लिए रिश्ता आया है… नेहा ने मु झ से कहा था कि वह शादी नहीं करना चाहती. तुम जरा उस से बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है श्रीमानजी जो आप की आज्ञा… शादी की इस जंग में पत्नी को जीत लाए थे. तब से अब तक आप के ही इशारों पर नाच रही हूं,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा बहुत जोर की भूख लगी है. अब कुछ खिलाओपिलाओ,’’ शेखर ने कहा.

‘‘देखोजी, खिलानेपिलाने की नौकरी मैं ने नहीं बजाई. अब तुम नन्हे बच्चे तो हो नहीं… लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हो. वह उम्र तो तुम्हारी निकल चुकी.’’

‘‘ठीक है मेरी मां तू दे तो सही.’’

‘‘देखो मां शब्द का इस्तेमाल मत करो. घाटे में रहोगे. सोच लो फिर कुछ मिलने वाला नहीं. बस मां के प्यार पर ही आश्रित रहोगे.’’

‘‘अरे यार तेरे मांबाप ने तु झे क्या खा कर जना था?’’ शेखर के मुंह से निकला.

‘‘पूछूंगी जा कर उन से कि आप के दामाद को आप का राज पता करना है… इतने सालों बाद आज कुरेदन हो रही है उन को.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. बस अब बहुत हो गया,’’ शेखर बोला.

‘‘अरे नेहा, बेटी मेरा चश्मा कहां है?’’ शेखर ने बेटी को आवाज दी.

‘‘अरे पापा, चश्मा आप के सिर पर ही

रखा है. इधरउधर क्यों ढूंढ़ रहे हो?’’ नेहा हंसते हुए बोली.

‘‘इन का हिसाब तो यह है कि बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा,’’ शिखा बोली.

‘‘पूछूंगा बच्चू…’’ शेखर ने मुंह बनाते

हुए कहा.

‘‘वाहवाह, कभी बच्चू, कभी अम्मां, कभी मां. अरे जो रिश्ता है, उसी में रहो न?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगी… वैसे भी चिराग तले अंधेरा… पूरी दुनिया में भी ढूंढ़ती, तो ऐसा पति नहीं मिलता. कल की ही बात लो. चीनी का डब्बा फ्रिज में रख दिया और जमाने में ढूंढ़ते हुए परेशान हो रही थी… बात करती है कि मैं जवान हूं…ये बुढ़ापे के लक्षण नहीं हैं तो और क्या है?’’

‘‘चलो, छोड़ो अब. बहुत हो गया. 1 कप चाय मिलेगी?’’

‘‘1 कप नहीं, एक बालटी भर लो,’’ शिखा ने कहा.

‘‘बस बहुत हो गया. शेर जब जख्मी हो जाता है न, तो ज्यादा खूंख्वार हो जाता है,’’ मेरी सहनशक्ति का इम्तिहान मत लो. जबान में मिस्री है ही नहीं.’’

‘‘हांहां, मेरी जबान में तो जहर घुला है.

कुएं के मेढक की तरह टर्रटर्र किए जाएंगे,’’ शिखा बोली.

‘‘कभी नहीं सम झोगी तुम… ये शब्द ही हैं, जो जिंदगी  में उल झन पैदा करते हैं. मुसकराहट जिंदगी को सुल झाती है, सम झी?’’

‘‘अरे बेटी नेहा 1 कप चाय बना दे. 1 कप चाय मांगना गुनाह हो गया.’’

‘‘हांहां, चाय तो नेहा ही बनाएगी… सारी जिंदगी छाती पर बैठा कर रखना इसे… मेरे हाथों में तो जहर है,’’ शिखा हाथ नचाते हुए बोली.

‘‘न… न… तुम्हारे हाथों में नहीं, तुम्हारी जवान में जहर है,’’ शेखर ने कहा.

‘‘मेरे लिए तो प्यार के 2 बोल भी नहीं… अब क्या मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘मैं ने कब कहा? अरे पगली, तेरे से अच्छी तो दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती… बस थोड़ा सा ज्यादा नहीं चुप रहना सीख ले. हर बात पर पलट कर वार मत किया कर… पगली अब इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा?’’ शेखर बोला.

‘‘चाय पीयोगे?’’ शिखा ने दबे शब्दों में पूछा.

‘‘अरे, मैं तो कब से चाय के लिए तरस

रहा हूं.’’

‘‘अरे बेटी नेहा जरा आलू छीलना… सोच रही हूं चाय के साथ पकौड़े भी बना लेती. क्योंजी?’’ शिखा ने पूछा.

‘‘देर आए दुरुस्त आए,’’ शेखर ने हंसते

हुए कहा.

Family Issues : मैं अपनी ननद की आदतों से परेशान हो गई हूं? क्या करूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

Family Issues : मैं 27 साल की शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं. घर में हम अपने ससुर और सासूमां के साथ रहते हैं. एक ननद हैं जो मुझ से 2 साल बड़ी हैं और अभी हाल ही में परिवार सहित हमारे घर आई हैं. वे बहुत मिलनसार व समझदार हैं और हमारा आपस में कभी कोई विवाद नहीं हुआ है. मगर समस्या उन का हद से अधिक सामाजिक होना है. वे अकसर घर में अपनी स्थानीय सहेलियों को बुला लेती हैं और अकसर ही खानेपीने का दौर चलता रहता है.  मम्मीपापा (सासससुर) का बेटी के प्रति प्रेम है और मैं भी उन का सम्मान करती हूं, मगर कुछ कहते नहीं बनता. मैं क्या करूं..

जवाब

आप की चिंता जायज है. अगर आप की ननद जरूरत से  ज्यादा दोस्तों को घर बुलाती हैं अथवा उन के घर जाती हैं, तो. बेहतर होगा कि आप इस बारे में अपने पति से बात करें और उन्हें अपनी बहन को समझाने को कहें. जैसाकि आप ने बताया कि आप की ननद समझदार हैं, तो वे अपने भाई की बात को नजरअंदाज नहीं कर पाएंगी और वही करेंगी जिस में परिवार का हित हो.

इस दौरान आप भी उन्हें इशारोंइशारों में समझा सकती हैं. से उन्हें बुरा भी नहीं लगेगा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Best Political Satire : अदने आदमी का सूट

Best Political Satire : वाह,क्या किस्मत पाई है मोदीजी के सूट ने. बस 1 बार पहना और ओबामाजी के गले लगा और रातोंरात 10 लाख से साढ़े चार करोड़ रूपए का हो गया. वैसे ऐसा ही भाग्यशाली सूट हम सब के पास होता है. जी हां, वही शादी वाला सूट जिसे हम सहेज कर रखते हैं अच्छी या बुरी यादों की तरह. जितनी देखभाल उस सूट की एक आम आदमी करता है उतनी शायद मोदीजी ने भी न की होगी. असल में उन्हें टाइम कम मिला. हम ने तो अपनी इस फैमिली धरोहर को 20 सालों से संभाला हुआ है.

चलो, मोदीजी को क्वसाढ़े चार करोड़ मिल गए एक नेक काम के लिए. हमें तो कोई हमारे सूट की असल कीमत ही दे दे तो हम भी उस पैसे को दान में दे देंगे. सच्ची बिलकुल सच्ची. हम इतने में ही खुश हो जाएंगे. उस समय पूरे 5 हजार का था. 1 तोला सोने की कीमत के बराबर. चलो, आज सोना करीब क्व27 हजार है पर हमें इतना नहीं चाहिए. बस 5 हजार ही मिल जाएं तो काफी हैं. हम भी उन्हें नेक काम में लगा देंगे.

फिर दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे कि आखिर इसे खरीदेगा कौन? तो 1-1 कर उन सब के चेहरे आंखों के आगे से गुजरने लगे जिन के हम शादी में गले मिले थे. जब हम ने झुकझुक कर चाचा, मामा, फूफा आदि के पैर छुए थे तो कमर कितनी अकड़ गई थी. अब क्या उन में से कोई भी इसे न खरीदेगा?

अब छूने की बात से याद आई अपने 2 सालों की जो हमें घोड़ी से उतार कर स्टेज तक लाए थे. तब वे दोनों ही तो थे, जो इस सूट के अंगसंग रहे थे. अब उन से ज्यादा इस सूट की कीमत कौन जानता होगा? आखिरकार यह सूट उन के एकमेव जीजा का जो है.

मन ही मन संतुष्ट हो कर हम ने श्रीमतीजी को अपना खयाल ज्यों का त्यों कह सुनाया. उन्होंने पहले तो सारी बातें ध्यान से सुनीं और फिर हमें ऐसी खरीखरी सुनाई कि हम ने तोबा कर ली कि सूट तो क्या हम तो कभी रूमाल बेचने की भी नहीं सोचेंगे. श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘मेरे भाई क्या इतने गएगुजरे हैं, जो आप का उतारा हुआ सूट पहनेंगे? अगर गले लगने से कीमत बढ़ जाती है तो सब से ज्यादा तो हकदार इस के आप के जीजाजी हैं, जो शराब के नशे में शादी वाले दिन से ले कर रिसैप्शन तक आप को गले लगालगा कर नाच रहे थे. जैसे कह रहे हों कि बच्चू अब तुझे पता चलेगा शादी क्या होती है. अपनी ऐसी

बहन मेरे पल्ले बांधी है कि आज तक सांस नहीं आई है. ‘‘मेरे भाइयों ने तो सिर्फ 1 बार गले लगाया होगा और वह भी रीतिरिवाजों के चलते पर तुम्हारे जीजाजी तो सारी खुंदस इस सूट पर ही उतार रहे थे… उन्हें क्यों नहीं बेच देते यह सूट और फिर क्व5 हजार उन के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. वे भले ही इटैलियन सूट पहनते हों पर गले तो उन्हीं के लगा था न आप का यह पुश्तैनी सूट.’’

हम ने अपना थूक गिलते हुए जवाब दिया, ‘‘न बाबा न, जीजाजी के बारे में तो सोचना भी मत… उन के तो ड्राइवर तक इस से बढि़या सूट पहनते हैं.’’ यह सुनते ही श्रीमतीजी का गुस्सा कुकर की सीटी की तरह फट पड़ा. ‘‘तो क्या मेरे भाई उन के ड्राइवर से भी गएगुजरे हैं? क्या उन के पास सूटों का अकाल है, जो आप से खरीदें?’’

इतनी खरीखरी सुन कर हम ने सोच चलो जब इतने साल संभाला तो और कुछ साल संभाल लेते हैं. पर मोदीजी के सूट की नीलामी सोने नहीं देती थी. एक दिन श्रीमतीजी को पता नहीं कैसे दया आ गई. बोलीं, ‘‘अच्छा, चलो मैं बाई को दिखाती हूं. गरीब है पैसे नहीं दे पाएगी. पर अपनी तनख्वाह में से कटवाती रहेगी.’’ मुझे उन का सुझाव पसंद आ गया. चलो, कैश न सही ऐसे ही सही. पर यह क्या? श्रीमतीजी ने जैसे ही लक्ष्मी को सूट दिखाया तो वह नाकभौं सिकोड़ कर बोली, ‘‘बीबीजी, आजकल कौन पहनता है ऐसा सूट… यह तो कब का आउट औफ फैशन हो गया है. मेरा मर्द न पहने ऐसा सूट कभी…’’ श्रीमतीजी बड़बड़ाते हुए बोलीं, ‘‘ठीक है… ठीक है… नहीं लेना है तो मत ले पर कम से कम इतनी बेइज्जती भी तो न कर.’’

जाने क्या चोट लगी श्रीमतीजी के अहं को कि उन्होंने कमर कस ली हमारे अति प्रिय सूट से छुटकारा पाने की. दूसरा निशाना उन्होंने बरतन वाली को बनाया. हम खुश हो गए कि चलो एकाध डिनर सैट तो आ ही जाएगा. उसे बेटी को शादी में दे देंगे. चलो कैश न सही ढेर सारे बरतन ही सही. मगर बरतन वाली ने सूट देख कर कहा, ‘‘बीबीजी, यह कहां से लिया आप ने? क्या रघुवीर नगर में जहां पुराने कपड़ों को धोसाफ कर प्रैस कर के बेचा जाता है वहां से लाई हैं? इसे तो कोई भिखारी भी न लेगा.’’

हमें श्रीमती समेत गुस्सा तो बहुत आया पर हम ने उसे कुछ कहे बिना बाहर का रास्ता दिखाया. इतनी बेकदरी हमारे इतने अजीज सूट की. श्रीमतीजी का पारा 7वें आसमान पर पहुंच गया. वे गुस्से से बोलीं, ‘‘आइंदा इस घर में पैर भी मत रखना. रोज मेरा सिर खाती थी कि कोई पुराना कपड़ा हो तो दे दीजिए. और अब तुझे मैं ने इन की जिंदगी का सब से महंगा सूट दिखाया तो तू इसे भिखारियों वाला बोल रही है… दफा हो जा यहां से.’’

हम ने पूछा, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

‘‘आप दिल छोटा न करो… कोई बात नहीं हम जमादार को दे देंगे. वह पैसे तो नहीं देगा पर दुआ तो देगा और फिर दुआ की कोई कीमत नहीं होती है,’’ श्रीमतीजी बोलीं.

हम इतने में ही खुश थे कि चलो मोदीजी के सूट की तरह हमारा सूट भी शान से इस घर से निकलेगा. पर यह क्या? श्रीमतीजी सूट के साथ कुछ और भी जमादार को दे रही थीं और कह रही थीं कि इस मनहूस सूट को मेरी नजरों से दूर ले जा. मानों शादी का अभी तक का सारा गुस्सा/खुंदस इसी सूट पर निकाल रही थीं. और जमादार क5 सौ यह कहते हुए मांग रहा था कि बीबीजी इतना भारी सूट उठा कर नहीं ले जा पाऊंगा. घर तक औटो करना पड़ेगा और फिर घर जा कर बीवी की डांट सहनी पड़ेगी वह अलग.

श्रीमतीजी ने 2 सौ दे कर हमारे नीलामी वाले सपने को मटियामेट कर दिया. अब तक हम समझ गए थे कि बड़े लोगों की बड़ी बातें, हम तो अदना आदमी हैं और वह भी शादीशुदा. जमादार खुशीखुशी 2 सौ जेब में डाल कर सूट उठा कर चलता बना. सूट घर से बाहर जा रहा था और हमें हसरत भरी निगाहों से देख रहा था जैसे कह रहा हो कि बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले.

Storytelling : अतृप्त प्यास

“तूने क्या सोच कर अपनी मां से मेरी शादी कराई ? जब देखो मैडम साधू माता के चरणों में पड़ी रहती है. दिन भर काम कर के मैं थकामांदा घर लौटता हूं कि चलो अब बीवी के साथ समय बिताऊंगा पर नहीं. बीवी तो कभी फ्री मिलती ही नहीं. कभी बाबा के आश्रम में तो कभी साधू माता के साथ फोन पर, कभी अपनी आश्रम की सहेलियों के साथ गायब रहती है तो कभी तुझ से बातें करने में मगन. मेरे पास आने का तो कभी समय ही नहीं है उस के पास. फिर क्यों मुझ से शादी कर मेरी जिंदगी खराब की?” निशा का तथाकथित डैडी यानी सौतेला पिता गुस्सा में बोले जा रहा था.

निशा कोई जवाब देने में असमर्थ थी. क्या करती? बातें तो उस की सही ही थीं। अपने पापा के मरने के बाद निशा ने काफी समय तक मां को अकेला और उदास देखा था. कॉलेज से उस के लौटने के बाद ही मां के चेहरे पर खुशी की चमक दिखाई पड़ती थी. वह कॉलेज के बाद का अपना सारा समय इसी प्रयास में निकाल देती कि किसी तरह मां खुश रहे. उन के होठों पर मुस्कान आ सके.

निशा का प्रयास रंग लाता। मां उस के साथ दुनिया के गम भुला कर खिलखिलाने लगतीं। तब उसे लगता जैसे वह दुनिया की सब से खुशहाल बेटी है. आखिर मां को मिला ही क्या था जीवन में? दिनरात ताने सुनाने वाली सास, हुक्का गुड़गुड़ ने वाले बीमार ससुर ,किशोर बेटे की असामयिक मौत का गम और फिर कम उम्र में ही विधवा हो जाने का दंश. आज के समय में मां के पास उस के सिवा अपना कहने वाला कौन था? मायके में भी एक भाई के सिवा कोई नहीं था और उस भाई का होना न होना बराबर था. वह सिंगापुर में रहता था और सालों में कभी मुलाकात होती थी.

ऐसे में अपनी शादी के बाद मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए निशा ने उन से दूसरी शादी की बात छेड़ी थी,”मां मेरी मानो अब आप भी शादी कर लो. अकेले जिंदगी कैसे गुजरेगी आप की ?”

मां एकदम से नाराज हो गई थी,” यह क्या कह रही है तू ?होश में तो है? इस उम्र में शादी करूंगी मैं? रमेश क्या सोचेंगे? मैं उन के सिवा किसी और के साथ….  नहींनहीं। कभी नहीं। कल्पना भी मत करना ऐसी बातों की.”

मां के साफ इनकार करने पर निशा का मुंह उतर गया था. निशा ने उन्हें फिर से समझाने का प्रयास किया था,” जरा ध्यान से सुनो आप मेरी बात. आप अब 50 साल से ऊपर की हो. पूरे घर में अकेली हो. कल को अचानक कोई तकलीफ हुई तो मेरे पहुंचतेपहुंचते तो बहुत देर हो जायेगी न. और फिर मेरे सासससुर का मिजाज तो जानती ही हो आप। उन्हें तो यही डर लगा रहता है कि कहीं मैं अपनी मां को हमेशा के लिए उन के घर ले कर न पहुँच जाऊँ. मेरे हाथ बंधे हुए हैं मां। वैसे भी मेरे घर आप की कोई इज्जत नहीं होगी तो फिर अपना घर ही बसा लो न. यही उपाय सब से बेहतर है. बी प्रैक्टिकल मॉ और पापा क्या सोचेंगे इस की चिंता आप बिलकुल भी मत करो. एक तो पापा अब इस दुनिया में है नहीं और यदि रहते भी तो आप को दुखी तो नहीं ही देखना चाहते।”

” पर बेटी इस उम्र में कोई और पुरुष?”

“तो क्या हुआ मां ? अपने बारे में सोचो आप. कोई बहुत बड़ा बैंकबैलेंस नहीं है आप के पास. बड़ा सा बंगला भी नहीं है. अकेली रहती हैं आप इस छोटे से घर में. नौकरचाकर भी नहीं हैं. आगे आप की उम्र बढ़ेगी. उम्र के साथ बीमारियां भी आती है. मैं आप की जिम्मेदारी उठाना भी चाहूं तो भी पति की मर्जी के खिलाफ ऐसा नहीं कर सकती। इसलिए शादी ही सब से अच्छा उपाय है. आप हां बोल दो मां। आप का जीवन सुरक्षित हो जाएगा। मैं भी निश्चिंत हो सकूंगी आप की तरफ से.”

“ठीक है बेटा। तुझे सही लगता है तो ऐसा ही सही,” बुझे मन से मा ने स्वीकृति दी थी पर निशा बहुत खुश थी. जल्दी से जीवनसाथी मेट्रोमोनियल साइट में मां की प्रोफाइल बनाने लगी , ‘ 50 साल की स्वस्थ, खूबसूरत और संस्कारी बहू…. ‘

मां यह पढ़ कर बहुत हंसी थी. फिर दोनों ने मिल कर प्रोफाइल तैयार की। पहला इंटरेस्ट भेजा था निशा के प्रेजेंट डैडी यानी कमल कुमार सिंह ने. 55 साल के बिजनेसमैन। बेटाबहू लंदन में सेटलड। नोएडा में अपना बंगलागाड़ी। निशा ने पहली नजर में ही यह रिश्ता पसंद कर लिया था. मां ने भी ज्यादा आनाकानी नहीं की और उन की शादी हो गई.

मां की शादी करा कर निशा बड़ी खुश थी. अपनी जिम्मेदारियां किसी और के माथे सौंप कर निशा को सुकून मिल रहा था पर उसे कहां पता था कि यह सुकून कुछ पलों का साथी है.

अगले दिन ही कमल कुमार निशा के आगे उस की मां की शिकायत का पिटारा खोल कर बैठ गए,”कल रात तुम्हारी मां ने बड़ा अजीब व्यवहार किया. मुझे करीब भी नहीं आने दिया. बस कहने लगी कि थोड़ा समय दो. मैं रमेश के साथ ऐसा नहीं कर सकती. रमेश जो जिन्दा भी नहीं उसी के ख्यालों में खोई रही कि कहीं उसे बुरा न लग जाए. यदि ऐसा था तो मुझ से शादी ही क्यों की उस ने ?”

निशा ने किसी तरह कमल कुमार को समझाया,” आप बस थोड़ा समय दो. ममा नॉर्मल हो जाएंगी. धीरेधीरे इस नई जिंदगी की आदी बन जाएंगी. ”

मगर ऐसा हुआ नहीं. 2-3 माह गुजर गए मगर निशा की मा ने कमल कुमार को करीब नहीं आने दिया. उल्टा अब तो वह एक बाबा की शिष्या भी बन गई थी. जब देखो भजनकीर्तन के प्रोग्राम में चली जाती. वहां की सहेलियों के साथ बातों में लगी रहती. कमल कुमार इंतजार में ही रह जाता मगर निशा की मां अपना बहुत कम समय ही उसे देती. कमल कुमार को यही शिकायत रहती कि वह पत्नी की तरह व्यवहार नहीं करती और उस की शारीरिक आवश्यकता को सिरे से नकार देती है.

निशा की एक सहेली थी, कुसुम. कुसुम के 2 किशोर उम्र के बच्चे थे. पति से तलाक हो चुका था. वह अक्सर निशा के घर आतीजाती रहती थी. उस दिन भी निशा मां के पास आई हुई थी और कुसुम उस के साथ बैठी चाय पी रही थी. निशा उस से अपने सौतेले पिता कमल कुमार और मां के बीच की दूरियों का जिक्र कर रही थी. तभी कमल कुमार ने घर में प्रवेश किया. सामान्य अभिवादन के बाद भी उस की नजरें कुसुम पर टिकी रहीं. “तेरा बाप तो बड़ा ठरकी लग रहा है,” कुसुम ने आहिस्ते से कहा.

यह बात निशा को भी महसूस हुई कि वह कुसुम को ऐसे देख रहा था जैसे कोई कामुक व्यक्ति किसी खूबसूरत स्त्री को घूरता है. इस के बाद तो निशा ने और भी 2 -3 बार नोटिस किया कि कमल कुमार की नजरें कुसुम में वह स्त्री ढूंढ रही हैं जो उस की अतृप्त प्यास को बुझा सके.

एक दिन कमल कुमार के कहने पर निशा ने सब के साथ शिमला घूमने का प्रोग्राम बनाया. कुसुम और मां भी साथ थीं. निशा ने 2 कमरे बुक कराए. एक मां और कमल कुमार के लिए और दूसरा अपने और कुसुम के लिए.

शाम का समय था. निशा की मां कुछ शॉपिंग के लिए बाहर निकली हुई थी. आते समय उन्होंने खानेपीने की चीजें भी रख लीं. कमरे में निशा और कुसुम दोनों ही नहीं थे पर दरवाजा खुला हुआ था. मां ने बेटी को आवाज लगाई तो अंदर वॉशरूम से निशा चिल्ला कर बोली, “मां 2 मिनट में आ रही हूं.”

“अच्छा तू आराम से आ… ,” कहते हुए मां ने दूसरे कमरे की चाबी ली और दरवाजा खोलने लगी. दरवाज़ा खुलते ही एकदम सामने का दृश्य देख कर वह भौंचक्की रह गई.

सामने कमल कुमार बेड पर कुसुम के साथ थे. कुसुम कमल कुमार से लिपटी जा रही थी. कमल कुमार कुसुम के होंठों का चुंबन लेने में व्यस्त थे. उन दोनों को अहसास ही नहीं हुआ कि कब रीता देवी दरवाजा खोल कर सामने खड़ी हो गईं हैं. रीता देवी से यह दृश्य देखा नहीं गया और वह उलटे पांव निशा के कमरे में आ कर चीखचीख कर रोने लगी.

निशा घबराती हुई बाहर निकली और मां से वजह पूछने लगी. रीता देवी रोते हुए केवल यही कहे जा रही थी ,” मैं नहीं जानती थी कि तेरी सहेली मेरे घर में डाका डालेगी. हाय ! कितनी बेशर्मी से दोनों … मैं यह देखने से पहले मर क्यों नहीं गई…..  निशा मैं फिर अकेली हो गई….”

निशा लगातार मां को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी,” मां बात सुनो मेरी… ”

पर रीता देवी आप से बाहर हुए जा रही थी, ” तेरी सहेली ने मेरी खुशियां लूट लीं.. मैं ने सोचा भी नहीं था कि तेरी सहेली ऐसा करेगी… ”

हल्ला सुन कर कमल कुमार और कुसुम भी भी नजरें चुराते कमरे में आ कर खड़े हो गए. उन्हें देख कर रीता देवी दहाड़ उठीं, ” मुझे क्या पता था कि मेरे पीठ पीछे यह सब होता है? मेरी बेटी की सहेली मेरे पति के साथ….. ? हाय मैं मर क्यों नहीं गई यह सब देखने से पहले….. ” कहतेकहते वह जमीन पर गिर पड़ीं और फूटफूट कर रोने लगीं.

रोतेरोते भी वह कुसुम को भलाबुरा सुनाती रहीं ,”मैं ने सोचा था कि मेरी बेटी मेरी खुशियों की चिंता कर रही है इसलिए मेरी शादी कराई पर मुझे क्या पता था कि इस सब के पीछे वह अपनी सहेली की खुशियां ढूंढ रही थी. मेरी अपनी बेटी की सहेली मेरे पति के प्यार पर डाके डाल रही है. तुझे लाज नहीं आई कुसुम अपने बच्चों को छोड़ कर उस शख्स के साथ मुंह काला कर रही है जो रिश्ते में तेरे बाप जैसा है और लानत है ऐसे मर्द पर भी जिस ने एक विधवा से केवल इस लिए शादी की ताकि उस की जवान बेटी की सहेली को अपने झांसे में ले कर मजे उड़ा सके…”

“बस करो रीता। किन रिश्तो की बात कर रही हो तुम? मेरे साथ अपना रिश्ता भला कब निभाया तुम ने? हमारी शादी को 5 महीने बीत चुके हैं पर आज तक 1 दिन भी मुझे अपने करीब नहीं आने दिया। जब साथ में बैठती हो, रमेश की बातें करने लगती हो. जब मैं प्यार करना चाहता हूं तो भी रमेश बीच में आ जाता है. तुम आज भी रमेश के लिए जीती हो , रमेश के लिए सजती हो और रमेश के लिए ही रोतीहंसती हो. तो फिर मैं कहां हूं? जब तुम्हें मेरी खुशियों की परवाह नहीं तो फिर मैं तुम्हारी परवाह क्यों करूं ? हो कौन तुम मेरी जिंदगी में ? क्या दिया है तुम ने मुझे ? क्यों की थी मैं ने शादी ? एक ऐसी औरत को अपने घर में लाने के लिए जिस के पास मेरे लिए कभी समय ही नहीं? अपने बेटे को छोड़ कर मैं यहां आ कर क्यों बसा? अगर ऐसे ही रहना था तो उसी के साथ क्यों न रहूं? “कमल कुमार का गुस्सा भी भड़क उठा था.

अब तक निशा भी संभल चुकी थी. मां के कन्धों को झकझोरते हुए बोली, “मां यह पुरुष जो सामने खड़ा है, इस से मैं ने आप की शादी कराई थी ताकि आप को इस के जरिए सुरक्षा मिल सके.आप का भविष्य सुरक्षित हो जाए. आप का अपना घर हो, पति हो. जरूरत के वक्त आप को किसी अपने या पैसों के लिए मेरे मोहताज न रहना पड़े। जब कि मैं जानती थी कि मैं आप के लिए कुछ नहीं कर सकूंगी। पर आप ने इन्हें अपनाया ही नहीं। मिस्टर कमल कुमार ने कितनी दफा मुझ से अपने दुखड़े रोए. मैं ने आप को समझाया पर आप नहीं समझी और फिर धीरेधीरे मिस्टर कमल की नजरें कुसुम पर गईं . उन्हें लगा लगा कि कुसुम वह स्त्री बन सकती है जो उन्हें प्यार और साथ देगी. उन की शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगी. मैं चाहती तो साफ इंकार कर सकती थी. कुसुम को उन से दूर कर सकती थी. पर हर बार इन्होने यह धमकी दी कि वह तुम्हें छोड़ कर चले जाएंगे. यह बात मुझे बैचैन कर देती थी. मैं गिड़गिड़ ई। आप का साथ न छोड़ने की विनती की और तब बदले में उन्होंने कीमत के तौर पर कुसुम का साथ मांगा। कुसुम भी पहले तैयार नहीं थी पर बाद में उस ने इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी. ”

“तो क्या उस ने इस वजह से…. ” रीता देवी के शब्द गले में अटक कर रह गए.

“हां मां,  आप ही बताओ क्या करती मैं? आप इन के और अपने बीच से न तो दूरियां हटने दे रही थी और न पापा को बीच में लाने से रुकी. बहुत समय तक मैं कशमकश में रही. पर अंत में यह सोच कर कि शायद समय के साथ आप बदल जाओ मैं ने इन का कहा मान लिया. इन्हें आप की जिंदगी में रोके रखने के लिए वह सब किया जो इन्होंने कहा. मैं मानती हूं कि मैं गलत हूं. कुसुम भी गलत है और मिस्टर कुमार भी गलत हैं. पर क्या अपने सीने पर हाथ रख कर आप कह सकती है कि आप गलत नहीं? गलती की शुरुआत तो आप ने ही की थी न. तो फिर हमारी तरफ उंगली उठाने से पहले अपने अंदर झांक कर देखो. अब सब आप के सामने है. आप को मिस्टर कुमार से रिश्ता रखना है या नहीं और कितना रिश्ता रखना है यह सब आप के ऊपर छोड़ कर जा रही हूं मैं. कुसुम भी कभी आप की जिंदगी में दोबारा नहीं आएगी. अब मैं आप की जिंदगी में कोई दखल भी नहीं दूंगी. पर अपना कल आप को खुद देखना है. पापा लौट कर नहीं आएंगे आप को संभालने….. इस लिए फैसला आप का है कि आप मिस्टर कुमार को माफ कर नया जीवन शुरू करेगी या तलाक ले कर … ,” अपनी बात अधूरी छोड़ते हुए निशा ने बैग उठाया और कुसुम के साथ जाने लगी. रीता देवी ने हाथ बढ़ा कर निशा को रोका और निढाल सी सोफे पर बैठती हुई बोली, “सॉरी मिस्टर कुमार…”

Stories 2025 : यमदूत का चक्कर

राइटर- वंदना सिंह

सरला को कहां पता था कि आज उस के जीवन का यह आखिरी दिन है. पता होता तो क्या वह अचार के  दोनों बड़े मर्तबान भला धूप में न रख देती और छुटकी के स्वेटर का तो केवल गला ही बाकी बचा था, उसे न पूरा कर लेती. खैर, यह सब तो तब होता जब सरला को पता होता कि उसे बस, आज और अभी चल देना है.

पिछले 45 सालों से, इस 2 कमरे के छोटे से घर के अनंत कार्यों में वह इतनी व्यस्त थी कि सचमुच उसे मरने तक की फुरसत नहीं थी, लेकिन यह तो एक मुहावरा है. मरना तो उसे था ही. हर रोज की तरह आज भी जब मुंहअंधेरे उस की आंख खुली तो लगा कि उस का शरीर दर्द से जैसे जकड़ गया हो. बड़ी कोशिश के बाद भी न तो उस के मुंह से आवाज निकली न वह हिलडुल सकी. पंडित गिरजा शंकर शर्मा बगल के पलंग पर लेटे चैन से खर्राटे भर रहे थे. सरला को बहुत गुस्सा आया कि ऐसी भी क्या नींद कि बगल में लेटा इनसान मर जाए पर इस भले आदमी को खबर भी न हो. फिर पूरी शक्ति लगा कर उठने की दोबारा कोशिश की पर नाकामयाब रही.

सरला मन ही मन सोचने लगी, क्या करूं. अगर जल्दी उठ कर पानी नहीं भरा तो पूरे दिन घर में पानी की हायतौबा मचेगी. और तो और ऊपर वाली किरायेदारनी को तो मौका मिल जाएगा मुफ्त का पानी बहाने का.

वह झटके से उठ बैठी, लेकिन तभी उसे 4 बलशाली हाथों ने पुन: पकड़ कर लिटा दिया. सरला ने अचकचा कर देखा तो 2 अजीबोगरीब हुलिए के भयानक सी शक्लों वाले आदमी उसे पकडे़ हुए थे. वह पूरा जोर लगा कर चिल्लाई मगर उस की आवाज गले में घुट कर रह गई. वह आंखें फाड़फाड़ कर उन शक्लों को पहचानने की कोशिश करने लगी. तभी उस में से एक बोला, ‘‘श्रीमती सरला देवी, आप का समय पूरा हो गया है. हम यमदूत आप को लेने आए हैं.’’

पहले तो सरला को लगा कि शायद टीवी या रेडियो से आवाज आ रही है. जिंदगी भर छुटकी की मां, बहूजी, अम्मां और ऐसे कितने संबोधन सुनतेसुनते उसे याद ही नहीं रहा कि उसी का नाम ‘सरला’ है. इतने आदरपूर्वक श्रीमती सरला देवी तो आज तक किसी ने बुलाया नहीं. मारे खुशी के उस की आंखों में आंसू भर आए. हां, कभीकभी न्योते के कार्ड पर श्री एवं श्रीमती गिरजा शंकर शर्मा लिखा देख कर ही वह खुशी से गद्गद हो जाया करती है. पंडितजी से अलग उस का भी कोई नाम है यह वह भूल चुकी थी.

खैर, दिमाग पर जोर डालने पर याद आया कि श्रीमती सरला देवी उसी का नाम है. इस का मतलब उसी का बुलावा आ गया है पर पंडितजी के बगैर वह आज तक कहीं गई नहीं, अब क्या करे, यही सोच रही थी कि यमदूतों ने फिर कहा, ‘‘माताजी, चलिए. अभी हमें और भी बहुत काम हैं.’’

अब सरला रोंआसी हो कर कहने लगी, ‘‘भैया, जरा पंडितजी को उठ जाने दो. उन को घर की तालाकुंजी बता दूं फिर चलती हूं. तब तक तुम लोग कोई दूसरा काम कर आओ.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘माताजी, हमारे पास इतनी पावर नहीं होती, फिर भी हम आप को 5 मिनट का समय देते हैं. आप जो कुछ करना चाहती हैं, जल्दी कर लें.’’

सरला घुटनों का दर्द भूल कर फुर्ती से उठ बैठी और पंडितजी को झिंझोड़ कर जगाया. उनींदे से पंडितजी बोल पडे़, ‘‘क्या कर रही हो, नाहक ही मेरी नींद खराब कर दी. अब जाओ, अदरक वाली चाय जल्दी से बना लाओ.’’

‘‘अरे, आग लगे तुम्हारी नींद को, तुम्हें चाय की सूझ रही है…यहां यमदूत मुझे लेने के लिए खडे़ हैं.’’

‘‘तुम्हें तो रोज ही यमदूत लेने आते हैं, यह कौन सी नई बात है. जाओ, पहले चाय बना लाओ फिर चली जाना.’’

सरला ने सोचा इन से सर फोड़ने में ही 5 मिनट खर्च हो जाएंगे और कोई फायदा भी नहीं होगा. वह चाय बनाने गई ही थी कि इतनी देर में 5 मिनट खत्म. यमदूत फिर सर पर सवार. सरला ने कहा, ‘‘अब मैं क्या करूं? 5 मिनट तो पंडितजी की चाय बनाने में ही लग गए. घर का प्रबंध अभी कहां हुआ? भैया, आप लोगों का बड़ा पुण्य, मुझे थोड़ा समय और दे दो.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘अम्मां, यह नियम के विरुद्ध है. पर आप ने जिंदगी भर कोई बुराई नहीं की है इसलिए हम अपनी स्पेशल पावर से आप को 1 घंटा देते हैं. बस, इस के बाद कुछ मत कहना.’’

‘‘अरे बेटा, इतना बहुत है,’’ कह कर सरला देवी झटपट पिछले कमरे का दरवाजा खोल उस में रखे बडे़ बक्सों में से सामान निकालने लगी. अब क्या करूं. जब जाना ही है, तो सारे सामान का ठीक से बंटवारा करती चलूं. बक्सों में से निकालनिकाल कर पुरानी साडि़यां, कुछ बचेखुचे जेवर, चांदी के सिक्के, बड़के और छुटके के अन्नप्राशन के चांदी के छोटेछोटे बरतन, पायलें, पुराने कई जोड़ी बिछुए, शादी के समय के कुछ बरतन आदि जल्दीजल्दी निकाल कर उस की 4 ढेरियां बनाने बैठ गई.

सरला ने अपनी एक बनारसी साड़ी बड़के की बहू के नाम रखी तो दूसरी थोड़ी हलकी छुटके की बहू के नाम. इतने में याद आया कि अभी पिछली छुट्टी में जब बड़का आया था तो बड़ी बहू ने खुद तो कैसी बढि़याबढि़या साडि़यां पहनी थीं और उस के लिए लाई थी रद्दी साड़ी, जैसे कि वह इसी लायक है. सरला का मन फिर गया, तो उस ने वह भारी साड़ी उठा कर छुटके की बहू को रख दी, फिर सोचने लगी कि छुटके की बहू ने ही कब इस घर को अपना समझा है. न खुद आती है न छुटके को आने देती है. उसी ने कौन बड़ा सुख दिया है. सरला ने तत्काल वह साड़ी बड़की बिटिया शांति को देने का निर्णय कर लिया.

इसी तरह हर एक कपड़ा और गहना सभी बच्चों के गुणदोषों को परखते हुए अलगअलग ढेरी में रखते हुए कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला. यमदूत फिर आ कर खडे़ हो गए. सरला फिर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘अभी तो सारे बक्सों का सामान वैसे ही पड़ा है. पंडितजी को तो कुछ पता नहीं है. तमाम धराउठाई मेरे ही हाथों की है. 45 साल से जोड़ी गृहस्थी भला ऐसे ही छोड़ कर कैसे चल दूं. पिछला कमरा फिर इस के बाद और भी न जाने कितने काम, खटाई धूप में डालनी है. कांच का बढि़या वाला टी सेट पड़ोसी की लड़की नयना को देखने वाले  आए थे तब ही नयना की मां मांग कर ले गई, उसे अभी वापस लाना है.

‘‘गुल्लो महरी की बिटिया कब से कह रही थी, सरला अपनी पुरानी साड़ी से उस का फ्राक सिल रही थी, जो वहीं का वहीं सिलाई मशीन पर आधा सिला रखा है. रमुआ पिछली बार के कपड़ों में पंडितजी की एक कमीज कम लाया था, वह भी मंगानी है.

‘‘छुटके के बेटे का मुंडन नजदीक है, सो अनाज धोनेपछोरने के लिए काम वाली लगा रखी है. वह भी 2 दिन की मजदूरी पेशगी ले कर बैठ गई है, उसे बुलवाया है. और यह छुटकी सुशीला… इस के लच्छन भी ठीक नहीं दिख रहे हैं, जब देखो, सिंगार में ही लगी रहती है. पंडितजी से कह कर इस साल इस का ब्याह भी निबटाना है. अरे, मुझे तो सचमुच ही मरने की भी फुरसत नहीं है.’’

बोलतेबोलते अचानक सरला को कोई भारी चीज गिरने की आवाज सुनाई दी. उसे पता ही नहीं चला कि उस की बात सुनतेसुनते दोनों यमदूत चकरा कर वहीं गिर पडे़ हैं. ताजा खबर मिलने तक वे दयालु यमदूत उसे समय पर समय देते गए. यहां तक कि यमलोक के नियम तोड़ने के जुर्म में उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. दोनों यमदूत आज भी सरला के घर में उस के कामों को खत्म कराने में लगे हैं पर सरला के कामों का न कोई अंत होता है और न उस को मरने की फुरसत मिलती है.

Best Funny Story In Hindi : वीकली औफ

 Best Funny Story In Hindi : सप्ताह में एक दिन छुट्टी का होता है और उस दिन भी घरबाहर के इतने काम होते हैं कि आराम करने की फुरसत ही नहीं होती. और अगर पति महोदय घर पर हों तो उफ, उन की फरमाइशें खत्म होने का नाम नहीं लेतीं. पढि़ए, इंद्रप्रीत सिंह की कहानी.

साप्ताहिक छुट्टी के दिन खूब मजे करने के इरादे से सुबह उठते ही रवि ने किरण से   2-3 बढि़या चीजें बनाने को कहा और बताया कि उस के 2 दोस्त सपत्नीक हमारे घर लंच पर आ रहे हैं. इस से पहले कि किरण रवि से पूछ पाती कि नाश्ते में आज क्या बनाया जाए आंखें मलते हुए रवि के बेडरूम से आ रही रोजी और बंटी ने अपनी मम्मी को बताया कि वह इडली और डोसा खाना चाहते हैं.

पति और बच्चों की फरमाइशें सुन कर किरण रसोईघर में जाने के लिए उठी ही थी कि  उसे याद आया कि गैस तो खत्म होने को है.

‘‘रवि, स्कूटर पर जा कर गैस एजेंसी से सिलेंडर ले आओ, गैस खत्म होने वाली है. कहीं ऐसा न हो कि मेहमान घर आ जाएं और गैस खत्म हो जाए.’’

‘‘ओह, एक तो हफ्ते भर बाद एक छुट्टी मिलती है वह भी अब तुम्हारे घर के कामों में बरबाद कर दूं. तुम खुद ही रिकशे पर जा कर गैस ले आओ, मुझे अभी कुछ देर और सोने दो.’’

‘‘मैं कैसे ला सकती हूं, बच्चों के लिए अभी नाश्ता तैयार करना है और साढ़े 8 बज रहे हैं, अब और कितनी देर सोना है तुम्हें,’’ किरण ने अपनी मजबूरी जाहिर की.

‘‘जाओ यार यहां से, तंग मत करो, लाना है तो लाओ, नहीं तो खाना होटल से मंगवा लो, पर मुझे कुछ देर और सोने दो, वीकली रेस्ट का मजा खराब मत करो.’’

‘‘छुट्टी मनाने का तुम्हें इतना ही शौक है तो दोस्तों को दावत क्यों दी,’’ खीझते हुए किरण बोली और माथे    पर बल डालते हुए रसोई की तरफ बढ़ गई.

‘‘बहू, पानी गरम हो गया?’’ जैसे ही यह आवाज किरण के कानों में पड़ी उस का पारा और भी चढ़ गया, ‘‘पानी कहां से गरम करूं, पिताजी, गैस खत्म होने वाली है और रवि को छुट्टी मनाने की पड़ी है.’’

1 घंटे बाद रवि उठा और     गैस एजेंसी से गैस का सिलेंडर और मंडी से सब्जियां ला कर उस ने किरण के हवाले कर दीं.

‘‘स्नान कर के मैं तैयार हो जाता हूं,’’ रवि बोला, ‘‘कहीं पानी न चला जाए, बच्चे कहां हैं?’’

सिलेंडर आया देख किरण थोड़ी ठंडी हुई और फिर बोली, ‘‘बच्चे पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने गए हैं,’’

‘‘चलो, अच्छा हुआ, तुम शांति से काम कर सकोगी, नाश्ता तो कर गए हैं न,’’ कहते हुए रवि बाथरूम में घुस गया.

‘‘नाश्ता कहां कर गए हैं, गैस तो चाय रखते ही खत्म हो गई थी,’’ किरण की आवाज रवि के बाथरूम का दरवाजा बंद करते ही टकरा कर लौट आई.

‘10 बजने को हैं, यह शांति अभी तक क्यों नहीं आई? सारे बर्तन साफ करने को पड़े हैं, कपड़ों से मशीन भरी पड़ी है,’ किरण मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘रवि, जरा मीना के यहां फोन कर के पता करना, यह शांति की बच्ची अभी तक क्यों नहीं आई,’’ लेकिन बाथरूम में चल रहे पानी के शोर में किरण की आवाज दब कर रह गई.

स्नान कर के जैसे ही रवि बाथरूम से निकला तो देखा कि किरण बर्तन साफ करने में जुटी है. भूख ने उस के पारे को और बढ़ा दिया, ‘‘अब क्या खाना भी नहीं मिलेगा?’’

‘‘खाओगे किस में, एक भी बर्तन साफ नहीं है.’’

‘‘शांति कहां हैं, जब यह वक्त पर आ नहीं सकती तो किसी और को काम पर रख लो, कम से कम खाना तो वक्त पर मिले,’’ 2 अलगअलग बातों को एक ही वाक्य में समेटते हुए रवि बोला.

‘‘तुम से बोला तो था कि फोन कर के मीना के यहां से शांति के बारे में पूछ लो लेकिन तुम सुनते कब हो. अब छोड़ो, 5 मिनट इंतजार करो, मैं बना देती हूं तुम्हारे लिए कुछ खाने को.’’

‘‘बाबूजी ने नाश्ता कर लिया?’’ रवि ने पूछा.

‘‘हां, उन्हें दूध के साथ ब्रैड दे दी थी. वैसे भी वह हलका ही नाश्ता करते हैं.’’

नाश्ते से फ्री होते ही किरण बिना नहाएधोए रसोई में दोपहर का खाना बनाने में जुट गई.

‘‘आप के दोस्त आते ही होंगे, काम जल्दी निबटाना होगा. ऐसा करो, कम से कम तुम तो तैयार हो जाओ…और तुम ने यह क्या कुर्तापायजामा पहन रखा है, कम से कम कपड़े तो बदल लो.’’

‘‘अरे भई, कपड़े निकाल कर तो दो, और उन्हें आने में अभी 1 घंटा बाकी है.’’

‘‘अलमारी से कपड़े निकाल नहीं सकते. आप को तो हर चीज हाथ में चाहिए,’’ खीजती हुई किरण अलमारी से कपड़े भी निकालने लगी, ‘‘अभी सब्जियां काटनी हैं, आटा गूंधना है, कितना काम बाकी है.’’

सब्जियां गैस पर चढ़ा कर किरण नहाने चली गई. बच्चों को भी नहला कर किरण ने तैयार कर दिया.

थोड़ी देर बाद ही रवि के दोस्त अपने बीवीबच्चों के साथ घर आ गए. हाल में बैठा कर रवि उन की खातिरदारी में लग गया. किरण, पानी लाना, किरण, खाना लगा दो, किरण, ये ला दो, वो ला दो के बीच चक्कर लगातेलगाते किरण थक चुकी थी लेकिन रवि की फरमाइशें पूरी नहीं हो रही थीं.

शाम 4 बजे जब सारे मेहमान चले गए तब जा कर कहीं किरण ने चैन की सांस ली.

वह थोड़ी देर लेटना चाहती थी लेकिन तभी बाबूजी की आवाज ने उस के लेटने के अरमान पर पानी फेर दिया, ‘‘बहू, जरा चाय तो बना दो, सोचता हूं थोड़ी दूर टहल आऊं.’’

किरण ने चाय बना कर जैसे ही बाबूजी को दी कि बच्चे उठ गए, रवि सो चुका था. बच्चों को कुछ खिलापिला कर अभी उसे थोड़ी फुर्सत हुई थी कि काम वाली शांति बाई ने बेल बजा कर उस के चैन में खलल डाल दिया.

शांति को देखते ही किरण भड़क उठी, ‘‘क्या शांति, यह तुम्हारे आने का टाइम है. सारा काम मुझे खुद करना पड़ा. नहीं आना होता है तो कम से कम बता तो दिया करो, तुम्हें मालूम है कि कितनी परेशानी हुई आज,’’ एक ही सांस में किरण बोल गई.

‘‘क्या करूं बीबीजी, आज मेरे मर्द को काम पर नहीं जाना था, सो कहने लगा कि आज तू मेरे पास रह,’’ शांति ने अपनी रामकहानी सुनानी शुरू कर दी.

‘‘चल छोड़ अब रहने दे, जल्दी से कपड़े धो ले, पानी आ गया, सारे कपड़े गंदे हो गए हैं,’’ 2 घंटे शांति के साथ कपड़े धुलवाने और साफसफाई करवाने के बाद किरण डिनर बनाने में जुट गई. सब को खाना खिला कर जब रात को वह बिस्तर पर लेटी तो रवि अपनी रूमानियत पर उतर आया.

‘‘अब तंग मत करो, सो जाओ चुपचाप, मैं भी थक गई हूं.’’

‘‘क्या थक गई हूं, रोज तुम्हारा यही हाल है. कम से कम छुट्टी वाले दिन तो मान जाया करो.’’

‘‘छुट्टी, छुट्टी, छुट्टी, तुम्हारी तो छुट्टी है, पर मुझ से क्यों ट्रिपल शिफ्ट में काम करवा रहे हो?’’

Madhya Pradesh : मोहन यादव सरकार का प्रयास महिलाओं का हो चौतरफा विकास


Madhya Pradesh : बीती  एक दिसम्बर को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव जब विदेश यात्राओं से वापस लौटे तो उनके हाथों में 78 हजार करोड़ की भारीभरकम विदेशी निवेश राशि थी. इस एक और उल्लेखनीय उपलब्धि से उन्होंने साबित कर दिया है कि अब से एक साल पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय जो आशंकाएं प्रदेशवासियों के मन में थीं वे पूरी तरह निर्मूल सिद्ध हो चुकी हैं जो महिलाएं मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना को लेकर चिंतित थीं उनके चेहरे तो उस वक्त और खिल उठे जब साल 2024 की आखिरी किश्त उनके खातें में आना सुनिश्चित हो गई .

हर तबके की महिलाओं का रखा जा रहा ख्‍याल

लेकिन बात या तारीफ अकेले इस योजना की ही नही बल्कि उन योजनाओ की भी जरुरी है जिनके माध्यम से प्रदेश की महिलाओं को चौतरफा लाभ मिल रहा है . सरकार ने अपने वादे तो  पूरे किये ही लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे कदम भी उठाये ऐसे फैसले भी लिए जो सुखद रूप से चौंका देने बाले थे . महिलाओं के सम्मान स्वाभिमान और साशक्तिकरण की जो और जितनी योजनायें मध्यप्रदेश में अमल में आ रही हैं उनकी तारीफ अंतर्राष्ट्रीय एजेंसिया भी कर रही हैं .

 

 

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यह भी कम हैरत की बात नहीं कि जितने वादे सरकार ने किये नहीं उससे ज्यादा पूरे कर दिए . यह बात मुख्यमंत्री मोहन यादव को खासतौर से महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय बनाती है क्योंकि उन्होंने अपनी योजना में हर तबके की महिला पर तबज्जो दी है और यह सिलसिला और रफ़्तार अभी थमते नहीं दिख रहे हैं . जब एक साल में महिलाओं के लिए इतना कुछ हो गया तो आने बाले 4 सालों में तस्वीर क्या होगी इसका सहज अंदाजा इन चुनिन्दा योजनाओं को देख लगाया जा एकता है.

सरकारी नौकरियों में बढ़ेगी महिलाओं की भागीदारी

एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत मध्यप्रदेश के मुंख्यमंत्री मोहन यादव ने महिलाओं को एक और उपहार दिया है , सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का अब राज्य में उन्हें 33 के बजाय 35 फीसदी आरक्षण नौकरियों में मिलेगा . इससे उन लाखों महिलाओं को रोजगार की आस बंधी है जो शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी ढूंढ रही हैं . बड़ी तेजी से महिलाएं पढ़ लिखकर कामकाजी और नौकरीपेशा हो रही हैं यानी सशक्त हो रही हैं इस निर्णय से उनके स्वावलंबी और आत्मनिर्भर होने का सपना पूरा होगा .

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अमल में आ रही महिला फर्स्ट नीति 

मध्यप्रदेश में जिस तेजी से मेडिकल कालेजो की संख्या बढ़ रही है उसी अनुपात में प्रोफेसर्स की भी मांग बढ़ रही है . इस कमी को पूरा करने प्रदेश सरकार ने प्रोफेसर्स के पद की अधिकतम उम्र सीमा 40 से 50 साल कर दी है . इस महत्वपूर्ण निर्णय से मेडिकल कालेजों के प्रोफेसर्स के पद भरने में तो सुविधा होगी ही साथ ही महिला डाक्टरों को सुविधाजनक व  सम्मानजनक पद भी मिलेगा . जो लेडी डाक्टर्स अध्यापन कार्य की इच्छुक हैं उन्हें यह मौका देकर सरकार ने उनके व्यवसाय के प्रति आभार व सम्मान ही प्रदर्शित किया है . इसके भी  पहले सरकार महिलाओं को पुलिस विभाग में 33 फीसदी और निकाय चुनाव व शिक्षक भर्ती में 50 – 50 फीसदी आरक्षण देते महिला फर्स्ट की अपनी नीति पर अमल की राह में एक और कदम बढ़ा चुकी थी . 

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गर्भवती महिलाओं को 100 रु प्रतिदिन

 एक और अहम फैसले के तहत मध्यप्रदेश सरकार गर्भवती महिलाओं को 100 रु प्रतिदिन का आर्थिक लाभ देगी. गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 173 प्रति लाख है जो  राष्ट्रीय औसत 97 प्रति लाख से लगभग दोगुनी है . आदिवासी इलाकों में यह विसंगति ज्यादा है इसलिए प्रयोग के तौर पर 3 आदिवासी बाहुल्य जिलों झाबुआ , अलीराजपुर और बडवानी से इस  की शुरुआत की जा रही है .खासतौर से दूरस्थ अंचलों की श्रमिक महिलाओं के लिए यह फैसला   जोखिम से मुक्ति और राहत देने बाला है . क्योंकि गर्भवती महिलाएं आर्थिक कारणों से अस्पताल में भर्ती होने से कतराती हैं . महिलाओं में भी लोकप्रिय हो चुके मुख्यमंत्री मोहन यादव की संवेदनशीलता और दूरदर्शिता ही इससे प्रगट होती है . क्योंकि इससे शिशु मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर पर अंकुश लगेगा जो प्रदेश के स्वास्थ के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण कदम है .

सेनिटेशन व हाइजिन पर ध्यान

बात महिलाओं की हो तो मध्यप्रदेश सरकार किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं हटती . हर वर्ग की महिलाओं की जरूरतों का ख्याल रखने वाली प्रदेश सरकार ने महिला हित में एक और जरुरी कदम उठाते सेनिटेशन व हाइजीन योजना के अंतर्गत 19 लाख से भी ज्यादा बालिकाओं के बेंक खातों में 57 करोड़ 18 लाख रु डाले. देश का यह पहला राज्य है जहाँ इस जरूरत पर न केवल आर्थिक सहायता दी गई बल्कि किशोरियों को जागरूक करने आयोजन भी किये गए . अकेले राशि ही नहीं बल्कि महाविद्यालयीन छात्राओं को साफ़ सफाई की अहमियत और उनके तौर तरीकों के बारे में भी वैज्ञानिक जानकारी दी जा रही है . इस योजना का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यूनिसेफ ने भी इसकी तारीफ की है

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खेलकूद में भी अभूतपूर्व प्रोत्साहन

डबल इंजन की सरकार की रफ्तार का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि स्पोर्ट्स में भी महिलाओं को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिससे खेल गतिविधियों में युवतियों की रूचि बढ़ रही है . खेलकूद की अहमियत कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही इसमें सेहत भी है , मनोरंजन भी है और अब केरियर भी है . राज्य की जो युवतियां राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक हासिल कर रही हैं उन्हें सम्मान व राशि देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है .
आर्थिक व शारीरिक रूप से कमजोर खिलाडियों के लिए सरकार ने जो सराहनीय कदम उठाएं हैं उनमें प्रमुख हैं पैरालंपिक खेलों में प्रदेश व देश का नाम रोशन करने बाले यानी पदक विजेताओं को 1 – 1 करोड़ की नगद प्रोत्साहन राशि के साथ सरकारी नौकरी देना . इसी तरह खिलाडी प्रोत्साहन योजना के तहत श्रमिक वर्ग के बच्चों को 5 से लेकर 50 हजार तक की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है
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इन कुछ और ऐसे कई उदाहरणों से मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने साबित कर दिया है कि वह महिलाओं के सम्मान स्वाभिमान और सशक्तिकरण का कोई मौका नहीं चूकने बाली . अगर प्रदेश की महिलाएं सक्षम होगीं और उन्हें सरकारी प्रोत्साहन सम्मान व सहायता इसी तरह दी जाये तो तय है प्रदेश और देश के विकास में वे किसी से उन्नीस नहीं ठहरने बाली .

 

 

साउथ की फेमस डिश है Rava Idli, जानें आसान रेसिपी

Rava Idli : साउथ की फिल्में हो या हीरो सभी फेमस है और अगर साउथ के खाने की बात की जाए तो वह हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी होता है. आप इसे चाहे तो सुबह के ब्रेकफास्ट में फैमिली को खिला सकते हैं या रात के खाने में परोस सकते हैं. आज हम आपको साउथ के फेमस खाने के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

रवा (सूजी) —  250 ग्राम

दही – 300 ग्राम

पानी — 50 ग्राम

नमक —  स्वादानुसार

ईनो साल्ट — 3/4 छोटी चम्मच

तेल —  एक बड़ा चम्मच ( इडली स्टैन्ड को चिकना करने के लिये)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले दही को फैट लीजिये. अब एक बर्तन में सूजी लीजिये और उसमें दही डाल कर अच्छी तरह मिला लीजिये. इसमें पानी और नमक डाल कर और फैंट लीजिये. अब मिश्रण को 20 मिनट के लिये रख दीजिये. 20 मिनट बाद मिश्रण में सोडा डाल कर अच्छी तरह मिला लीजिये. मिश्रण अधिक गाढ़ा और अधिक पतला न हो.

– कुकर में 2 छोटे गिलास पानी डालकर गैस पर रख दीजिये पानी को गरम होने दीजिये. इडली स्टैन्ड को थोड़ा तेल लग कर चिकना कर लीजिये. मिश्रण को चमचे की सहायता से इडली के प्रत्येक खाने में भर दीजिये.

– एक बार में 12 या 18 इडली बन जाती है. यह इडली स्टैन्ड के साइज पर निर्भर है. इडली स्टैन्ड को जमा कर कुकर में रख दीजिये और ढक्कन लगा दीजिये लेकिन ढक्कन पर से सीटी हटा लीजिये.

– 8 या 10 मिनट में इडली पक जाती है. कुकर का ढक्कन खोलिये (देखने के लिये कि इडली बन गई है इडली के अन्दर चाकू गढ़ा कर देख लें यदि उससे मिश्रण नहीं चिपकता तब इडली बन चुकी है) इडली स्टैन्ड को कुकर से निकलिये, ठंडा होने पर चाकू की सहायता से स्टैन्ड से इडली निकाल कर प्लेट में रख लीजिये.

– अब अपनी फैमिली और दोस्तों को सुबह के नाश्ते या रात के खाने में टेस्टी और हेल्दी रवा इडली खिलाएं.

मैं सैक्स को लेकर जरा भी इंटरेस्टेड नहीं हूं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 साल की युवती हूं और एक कंपनी में काम करती हूं. मेरी सगाई हो चुकी है और 2-3 माह बाद शादी भी हो जाएगी. मेरी परेशानी मैं खुद हूं क्योंकि मुझ में सैक्स को ले कर जरा भी दिलचस्पी नहीं है. ऐसा इसलिए भी है कि काफी पहले दूर के एक रिश्तेदार ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी और तभी से मुझे इस से विरक्ति हो गई है. समझ नहीं आता क्या करूं? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

अपने साथ हुए जबरदस्ती को आप को छिपाना नहीं चाहिए था, क्योंकि इस से ऐसे लोगों को अपराध करने का बढ़ावा मिलता है.

रही बात उस घटना को याद कर सैक्स संबंध को ले कर विरक्ति होना, तो यह आप की मानसिक व्यथा को ले कर हुआ है. आप अंदर ही अंदर घुटती रही होंगी और मानसिक रोग जड़ें जमा चुका होगा.

अब जबकि आप की शादी होने वाली है तो बेहतर है कि इस मनोदशा से बाहर निकलें और अपने भविष्य को ले कर सजग रहें.

आप चाहें तो किसी मनोचिकित्सक से भी परामर्श ले सकती हैं. उचित सलाह व चिकित्सा के अभाव में व्यक्ति हीन भावना और डिप्रैशन का भी शिकार हो जाता है.

हां, शादी के बाद इस घटना का जिक्र पति से न करना ही अच्छा है. अगर आप चाहती हैं कि पिछली बातों को भूल कर नई जिंदगी की शुरूआत करी जाए तो मन से वहम निकाल दें.

शादी के बाद पति का सान्निध्य आप को अच्छा लगने लगेगा और आप भी आम महिलाओं की तरह सुखद दांपत्य जीवबिताने लगेंगी.

ये भी पढ़ें-

अगर आप अपने पार्टनर को काफी समय से सेक्‍स के लिए न कह रही हैं, तो यह चिंता का विषय हो सकता है. ये भी संभव है कि आपका पार्टनर सेक्‍स के प्रति आपका रुझान न होने की समस्‍या से परेशान हो. इसे  यौन अक्षमता भी कहा जाता है. इस शब्द का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो अपने साथी को सेक्‍स के दौरान सहयोग नहीं करता. महिलाओं में एफएसडी होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे सेक्स के दौरान दर्द या मनोवैज्ञानिक कारण. ज्यादातर मामलों में, हालांकि, एफएसडी को मनोवैज्ञानिक कारणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इस परिदृश्य में, महिलाओं के लिए किसी पेशेवर से मदद लेना महत्वपूर्ण होता है. डौ. अनुप धीर ने एफएसडी के निम्‍न  मुख्‍य कारण बताएं हैं-

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