धन्यवाद भाग-3: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

मैं ने वंदना को बड़ी मुश्किल से पहचाना. उस का चेहरा और बदन सूजा सा नजर आ रहा था. उस की सांसें तेज चल रही थीं और उसे तकलीफ पहुंचा रही थीं.

‘‘शालू, तू ने बड़ा अच्छा किया जो मुझ

से मिलने आ गई. बड़ी याद आती थी तू कभीकभी. तुझ से बिना मिले मर जाती, तो मेरा मन बहुत तड़पता,’’ मेरा स्वागत यों तो उस ने मुसकरा कर किया, पर उस की आंखों से आंसू भी बहने लगे थे.

मैं उस के पलंग पर ही बैठ गई. बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मुंह से एक शब्द भी

नहीं निकला, तो उस की छाती पर सिर रख कर एकाएक बिलखने लगी.

‘‘इतनी दूर से यहां क्या सिर्फ रोने आई है, पगली. अरे, कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन. ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास गपशप करने का,’’ मुझे शांत करने का यों प्रयास करतेकरते वह खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.

‘‘तू कभी मिलने क्यों नहीं आई? अपना ठिकाना क्यों छिपा कर रखा? मैं तेरा दिल्ली

में इलाज कराती, तो तू बड़ी जल्दी ठीक हो जाती, वंदना,’’ मैं ने रोतेरोते उसे अपनी शिकायतें सुना डालीं.

‘‘यह अस्थमा की बीमारी कभी जड़ नहीं छोड़ती है, शालू. तू मेरी छोड़ और अपनी सुना. मैं ने सुना है कि अब तू शांत किस्म की टीचर हो गई है. बच्चों की पिटाई और उन्हें जोर से डाटना बंद कर दिया है तूने,’’ उस ने वार्त्तालाप का विषय बदलने का प्रयास किया.

‘‘किस से सुना है ये सब तुम ने वंदना?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछे और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाने लगी.

‘‘जीजाजी तुम्हारी और सोनूमोनू की ढेर सारी बातें मुझे हमेशा सुनाते रहते हैं,’’ जवाब देते हुए उस की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव बढ़ते हुए साफसाफ देखे.

‘‘वे यहां कई बार आ चुके हैं?’’

‘‘हां, कई बार. मेरा सारा इलाज वे ही…’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि उन्होंने मु?ो अपने यहां आने की, तुम्हारी बीमारी और इलाज कराने की बातें कभी नहीं बताई हैं?’’

‘‘हां, मुझे पता है.’’

‘‘क्यों किया उन्होंने ऐसा? मैं क्या तुम्हारा इलाज कराने से उन्हें रोक देती? मुझे अंधेरे में क्यों रखा उन्होंने?’’ ये सवाल पूछते हुए मैं बड़ी पीड़ा महसूस कर रही थी.

‘‘तुम्हें कुछ न बताने का फैसला जीजाजी ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर लिया था, शालू.’’

‘‘पर क्यों किया उन्होंने ऐसा फैसला?’’

‘‘उन का मत था कि तुम शायद उन के ऐक्शन को समझ नहीं पाओगी.’’

‘‘उन का विचार था कि तुम्हारे इलाज कराने के उन के कदम को क्या मैं नहीं समझ पाऊंगी?’’

‘‘हां, और मुझ से बारबार मिलने आने की बात को भी,’’ वंदना का स्वर बेहद धीमा और थका सा हो गया.

कुछ पलों तक सोचविचार करने के बाद मैं ने झटके से पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम जीजासाली कब से एकदूसरे से मिल रहे हो?’’

एक गहरी सांस छोड़ कर वंदना ने बताया, ‘‘करीब सालभर पहले वे टूर पर बनारस आए हुए थे. वहां से वे अपने एक सहयोगी के बेटे की शादी में बरात के साथ यहां कानपुर आए थे. यहीं अचानक इसी नर्सिंगहोम के बाहर हमारी मुलाकात हुई थी. वे अपने पुराने दोस्त डाक्टर सुभाष से मिलने आए थे.’’

‘‘और तब से लगातार यहां तुम से मिलने आते रहे हैं?’’

‘‘हां, वे सालभर में 8-10 चक्कर यहां

के लगा ही चुके होंगे. उन का भेजा कोई न

कोई आदमी तो मुझ से मिलने हर महीने जरूर आता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यहां का बिल चुकाने, मुझे जरूरत के रुपए देने. मैं कोई जौब करने में असमर्थ हूं न. मुझ बीमार का बोझ जीजाजी ही उठा रहे हैं शालू.’’

अचानक मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही  झटके में सारा माजरा मुझे समझ

आ गया.

‘‘तुम्हारा और तुम्हारे जीजाजी का अफेयर चल रहा है न… मुझ से छिपा कर तुम से मिलने का. तुम्हारी बड़ी आर्थिक सहायता करने का और कोई कारण हो ही नहीं सकता है, वंदना,’’ मारे उत्तेजना के मेरा दिल जोर से धड़कने लगा.

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और आंसूभरी आंखों से बस मेरा चेहरा निहारती रही.

‘‘मेरा अंदाजा ठीक है न?’’ मेरी शिकायत से भरी आवाज ऊंची हो उठी. पलभर में मेरी आंखों पर वर्षों से पड़ा परदा उठ गया है. मेरी सब से अच्छी सहेली का मेरे पति के साथ अफेयर तो तब से ही शुरू हो गया होगा जब मैं बीएड करने में व्यस्त थी और तुम मेरे हक पर चुपचाप डाका डाल रही थी. तुम ने शादी क्यों तोड़ी, अब तो यह भी मैं आसानी से समझ सकती हूं. तब कितनी आसानी से तुम दोनों ने मेरी आंखों में धूल झोंकी.’’

‘‘न रो और न गुस्सा कर शालू. तेरे अंदाज ठीक है, पर तेरे हक पर मैं ने कभी डाका नहीं डाला. कभी वैसी भयंकर भूल मैं न कर बैठूं, इसीलिए मैं ने दिल्ली छोड़ दी थी. हमेशा के लिए तुम दोनों की जिंदगियों में से निकलने का फैसला कर लिया था. मुझे गलत मत समझ, प्लीज.

‘‘जीजाजी बड़े अच्छे इंसान हैं. हमारे बीच जीजासाली का हंसीमजाक से भरा रिश्ता पहले अच्छी दोस्ती में बदला और फिर प्रेम में.

‘‘हम दोनों के बीच दुनिया के हर विषय पर खूब बातें होतीं. हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी बन गए थे. हमारे आपसी संबंधों की मिठास और गहराई ऐसी ही थी जैसी जीवनसाथियों के बीच होनी चाहिए.

‘‘फिर मेरा रिश्ता तय हुआ पर मैं ने अपने होने वाले पति की जीजाजी से तुलना करने की भूल कर दी. जीजाजी की तुलना में उस के व्यक्तित्व का आकर्षण कुछ भी न था.

‘‘मैं जीजाजी को दिल में बसा कर कैसे उस की जीवनसंगिनी बनने का ढोंग करती. अत: मैं ने शादी तोड़ना ही बेहतर समझ और तोड़ भी दी.

‘‘जीजाजी मुझे मिल नहीं सकते थे क्योंकि वे तो मेरी बड़ी

बहन के जीवनसाथी थे. तब मैं ने भावुक हो कर उन से खूबसूरत यादों के सहारे अकेले और तुम दोनों से दूर जीने का फैसला किया और दिल्ली छोड़ दी.’’

‘‘मैं तो कभी तुम दोनों से न मिलती पर कुदरत ने सालभर पहले मुझे जीजाजी से अचानक मिला दिया. तब तक अस्थमा ने मेरे स्वास्थ्य का नाश कर दिया था. मां के गुजर जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली ही आर्थिक तंगी और जानलेवा बीमारी का सामना कर रही थी.

‘‘जीजाजी के साथ मैं ने उन के प्रेम में

पड़ कर वर्षों पहले अपनी जिंदगी के सब से सुंदर 2 साल गुजारे थे. उन्हें भी वह खूबसूरत समय याद था. मु?ो धन्यवाद देने के लिए उन्होंने सालभर से मेरी सारी जिम्मेदारी उठाने का बोझ अपने ऊपर ले रखा है. मैं बदले में उन्हें हंसीखुशी के बजाय सिर्फ चिंता और परेशानियां ही दे सकती हूं.

‘‘यह सच है कि 15 साल पहले तेरे हिस्से से चुराए समय को जीजाजी के साथ बिता कर मैं ने सारी दुनिया की खुशियां और सुख पाए थे. अब भी तेरे हिस्से का समय ही तो वे मुझे दे कर मेरी देखभाल कर रहे हैं. तेरे इस एहसान को मैं इस जिंदगी में तो कभी नहीं चुका पाऊंगी, शालू. अगर मेरे प्रति तेरे मन में गुस्सा या नफरत हो, तो मुझे माफ कर दे. तुझे पीड़ा दे कर मैं मरना नहीं चाहती हूं,’’ देर तक बोलने के साथसाथ रो भी पड़ने के कारण उस की सांसें बुरी तरह से उखड़ गई थीं.

मैं ने उसे छाती से लगाया और रो पड़ी. मेरे इन आंसुओं के साथ ही मेरे मन में राजेश और उसे ले कर पैदा हुए शिकायत, नाराजगी और गुस्से के भाव जड़ें जमाने से पहले ही बह गए.

धन्यवाद भाग-2: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

लगभग 15 साल बीत गए थे वंदना को दिल्ली छोड़े हुए. वह अब

कानपुर में गंभीर रूप से बीमार पड़ कर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी. इतने लंबे समय में उस के जीवन में क्याक्या घटा है, इस की कोई जानकारी मेरे पास नहीं थी.

शनिवार को हम दोनों गाड़ी से चल दिए. सारे रास्ते में मैं ने वंदना को याद करते हुए कई बार आंसू बहाए. अपनी सीट पर बैठे हुए जिस अंदाज में राजेश बारबार करवट बदल रहे थे, उस से यह साफ जाहिर हो रहा था कि वे भी कुछ बेचैन हैं. स्टेशन से पहले ही उन्होंने किसी को मोबाइल से कहा, ‘‘5 मिनट में बाहर आते हैं.’’

कानपुर स्टेशन से बाहर आने के बाद जिस बात ने मु?ो बड़ा हैरान

किया, वह थी एक औटोरिकशेवाले का राजेश को सलाम करना और बिना हम से पूछे हमारा बैग उठा कर अपने रिकशा की तरफ बढ़ जाना.

‘‘यह औटो वाला आप को कैसे जानता है,’’ मैं ने अचंभित स्वर में पूछा, तो राजेश गंभीर अंदाज में मेरा चेहरा ध्यान से देखने लगे.

‘‘मेरे सवाल का जवाब दीजिए न?’’ उन्हें हिचकिचाते देख मैं ने उन पर दबाव डाला.

‘‘शालू, तुम वंदना से मिलना चाहती हो न,’’ उन्होंने संजीदा लहजे में मुझ से ये पूछा.

‘‘हम यहां इसीलिए तो आए हैं,’’ उन का सवाल सुन कर मेरे मन में अजीब सी उलझन के भाव उभरे.

‘‘हां, और अब तुम मेरी एक प्रार्थना पर ध्यान दो प्लीज. आगेआगे जो घटेगा, उसे ले

कर तुम्हारे मन में कई तरह की भावनाएं और सवाल उभरेंगे. तुम कृपा कर के उन्हें अपने मन

में ही रखना.’’

‘‘आप ऐसी अजीब सी बंदिश क्यों लगा रहे हैं मुझ पर?’’

‘‘क्योंकि कुछ सवालों के जवाब दिए नहीं जा सकते. शब्दों से मनोभावनाओं को व्यक्त करना हमेशा संभव नहीं होता है. उन्हें व्यक्त करने का प्रयास पीड़ादायक होता है और सुनने वाला कहीं अर्थ का अनर्थ लगा ले, तो स्थिति और बिगड़ जाती है, शालू.’’

‘‘मेरी सम?ा में तो आप की कोई बात नहीं आ रही है,’’ मैं परेशान हो उठी.

‘‘ध्यान रखना कि तुम्हें कोई सवाल नहीं पूछना है मु?ा से,’’ उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और औटो की तरफ चल पड़े.

औटो वाले ने 20 मिनट बाद हमें खन्ना नर्सिंगहोम की ऊंची सी इमारत तक अपनेआप पहुंचा दिया. फिर गेट पर खड़े वाचमैन ने राजेश को परिचित अंदाज में सलाम किया. रिसैप्शनिस्ट भी उन्हें पहचानती थी. उस नर्सिंगहोम के मालिक डाक्टर सुभाष ने मुझे अपना परिचय राजेश के बचपन के दोस्त के रूप में दिया. वहां की सिस्टर और आयाओं की मुसकान साफ दर्शा रही थी कि वे सब राजेश को अच्छी तरह जानतेपहचानते हैं.

मेरी जानकारी में राजेश कभी कानपुर नहीं आए थे, लेकिन इन सब बातों से मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि यहां मुझ से छिपा कर वे आते रहे हैं. उन्हें अपनी कंपनी के काम से अकसर टूर पर जाना पड़ता है. मेरी जानकारी में आए बिना उन का यहां आना कोई मुश्किल काम न था.

‘‘मु?ा से क्यों छिपाते रहे हो आप यहां अपना आना?’’ मैं राजेश से यह सवाल पूछना चाहती थी, पर उन्होंने तो पहले ही कोई सवाल पूछने पर बंदिश लगा दी थी.

मु?ो डाक्टर सुभाष के पास छोड़ कर राजेश बिना कुछ कहे कक्ष से बाहर चले गए. डाक्टर साहब ने मेरे लिए चाय मंगवाई और फिर मुझ से बातें करने लगे.

‘‘राजेश को मैं सालों से जानता हूं, पर वे ऐसा हीरा इंसान हैं, इस का अंदाजा मुझे पिछले

1 साल में ही हुआ, भाभीजी,’’ उन की आंखों

में अपने दोस्त के लिए गहरे सम्मान के भाव मौजूद थे.

मेरी सम?ा में नहीं आया कि वे क्यों राजेश को ‘हीरा’ कह रहे हैं, सो मैं खामोश

रही. वैसे मैं सारे मामले को समझने के लिए बड़ी उत्सुकता से उन के आगे बोलने का इंतजार कर रही थी.

‘‘आजकल कौन किसी के काम आता है, भाभीजी. सचमुच अपना राजेश अनूठा इंसान है. जरूर आप ने ही उसे इतना ज्यादा बदल दिया है,’’ मेरी प्रशंसा कर वे हंस पड़े तो मुझे भी मुसकराना पड़ा.

‘‘राजेश वंदना के इलाज का सारा खर्चा उठा कर बड़ी इंसानियत का काम रह रहा है. मैं भी जितनी रियायत कर सकता हूं, कर रहा हूं, पर फिर भी दवाइयां महंगी होती हैं. आप की सहेली के इलाज पर डेढ़दो लाख का खर्चा तो जरूर हो चुका होगा आप लोगों का. यहां का हर कर्मचारी और डाक्टर राजेश को बड़ी इज्जत की नजरों से देखता है, भाभीजी.’’

यह दर्शाए बिना कि मैं इस सारी जानकारी से अनजान हूं, मैं ने वार्त्तालाप को आगे बढ़ाने के लिए पूछा, ‘‘अब वंदना की तबीयत कैसी है?’’

‘‘ठीक नहीं है, भाभीजी. जो कुछ हो सकता है, हम कर रहे हैं, पर ज्यादा लंबी गाड़ी नहीं खिंचेगी उस की.’’

‘‘ऐसा मत कहिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों से आंसू बह चले.

‘‘मैं आप को  झूठी तसल्ली नहीं दूंगा. भाभीजी. अस्थमा ने उस के फेफड़ों को इतना कमजोर कर दिया है कि अब उस का हृदय भी फेल होने लगा है. उस ने बहुत कष्ट भोग लिया है. अब उसे छुटकारा मिल ही जाना चाहिए.’’

‘‘मुझे उस से मिलवा दीजिए, प्लीज.’’

डाक्टर सुभाष के आदेश पर एक वार्डबौय मुझे वंदना के कमरे तक छोड़ गया. मैं अंदर प्रवेश करती उस से पहले ही राजेश बाहर आए.

‘‘जाओ, मिल लो अपनी सहेली से,’’ उन्होंने थके से स्वर में मुझ से कहा और फिर मेरा माथा बड़े भावुक से अंदाज में चूम कर वहां से चले गए.

धन्यवाद भाग-1: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

‘‘क्या बात है शालू सुस्त क्यों नजर आ रही हो?’’ औफिस से लौटते राजेश को मेरी उदासी पहचानने में 1 मिनट का समय भी नहीं लगा.

‘‘आज एक बुरी खबर सुनने को मिली है,’’ मेरी आंखों में आंसू भर आए.

‘‘कैसी बुरी खबर?’’ वे फौरन चिंता से भर उठे.

‘‘आप को मेरी सहेली वंदना याद है?’’

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वह बहुत बीमार है. शायद ज्यादा दिन न जीए,’’ मैं ने उन्हें रुंधे गले से जानकारी दी.

‘‘वैरी सैड,’’ सिर्फ ये 2 शब्द बोल कर उन्होंने जब सतही सा अफसोस जताया और

जूतों के फीते खोलने में लग गए, तो मुझे गुस्सा आ गया.

‘‘आप इस बारे में और कुछ नहीं जानना चाहेंगे?’’ भावावेश के कारण मेरी आवाज कांप रही थी.

‘‘तुम बोलो मैं सुन रहा हूं.’’

‘‘लेकिन सुन कितने अजीब से ढंग से रहे हो. अरे, मैं उस वंदना की बात कर रही हूं जिस से आप शादी के बाद घंटों बतियाते थे, जो बिलकुल घर की सदस्य बन कर यहां सुबह से रात तक रहा करती थी. आज करीब 15 साल बाद मैं आप की उस लाडली साली की दुखभरी खबर सुना रही हूं और आप सिर्फ वेरी सैड कह रहे हो,’’ मैं गुस्से से फट पड़ी.

‘‘मैं और क्या कहूं शालू. जीनामरना तो इस दुनिया में चलता ही रहता है,’’ उन्होंने भावहीन से लहजे में जवाब दिया.

‘‘आप ऐसी दार्शनिकता किसी और मौके पर बघारना. मेरा मन वंदना से मिलने का कर रहा है. उस की इतने सालों से कोई खबर नहीं थी और आज मिली है तो कैसी बुरी खबर मिली है,’’ मेरा गला फिर से भर आया.

‘‘क्या करोगी उस से मिल कर?’’

‘‘यह आप कैसा अजीब सा सवाल पूछ रहे हो. अरे, वह मेरी सब से प्यारी सहेली है.’’

‘‘उस प्यारी सहेली ने पिछले 15 सालों में तुम्हें न कभी फोन किया, न चिट्ठी लिखी और न ही कभी मिलने आई.’’

‘‘इस कारण मेरे दिल में उस के लिए बसे प्यार और दोस्ती के भाव रत्तीभर कम नहीं हुए हैं.’’

‘‘मैं तो सिर्फ ये कहना चाह रहा हूं कि जो इंसान अब ज्यादा जीएगा ही नहीं, उस से मिल कर मन को दुखी करने का क्या फायदा है.’’

‘‘यह फायदेनुकसान की बात ही नहीं है. मेरा दिल उस से मिलना चाह रहा है और मैं जाऊंगी.’’

‘‘बच्चों के ऐग्जाम आने वाले…’’

‘‘ऐग्जाम अगले महीने हैं और आगामी सोम और मंगल को उन के स्कूल में छुट्टी है. हम शनिवार को निकलेंगे और मंगल तक लौट आएंगे.’’

‘‘लेकिन उन की देखभाल…’’

‘‘वे अपनी चाची के पास रहेंगे. मैं ने नीतू से मोबाइल पर बात कर ली है.’’

‘‘देखो, यों जिद…’’

‘‘प्लीज, राजेश मुझे वंदना से मिलना ही है.’’

मेरे आंसुओं के सामने उन्होंने हथियार डालते हुए कह दिया, ‘‘ओके. हम शनिवार की रात को निकलेंगे. मैं ट्रेन के टिकट बुक करा देता हूं,’’ कह वे मुझे ड्राइंगरूम में अकेला छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम में चले गए.

मेरे दोनों बेटों का ट्यूशन से लौटने में अभी वक्त था. मैं थकीहारी सी आंखें मूंद कर वहीं बैठीबैठी वंदना की यादों में खो गई…

वरना मेरी बचपन की सहेली थी. हमारे घर आसपास ही थे इसलिए हम साथसाथ खेल और पढ़ कर बड़े हुए थे.

राजेश को मेरे लिए मेरे मम्मीपापा ने ढूंढ़ा था. मेरी सास बीमारी रहती थी और घर का सारा काम करने की जिम्मेदारी मुझे ही बड़ी जल्दी संभालनी पड़ी थी.

मैं ने बीएड में प्रवेश पाने के लिए परीक्षा शादी के पहले दे रखी थी. शादी के बाद मुझे परीक्षा में सफल हो जाने का समाचार मिला, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

वंदना ने मेरा साथ न दिया होता, तो मैं कभी बीएड न कर पाती. मुझे पूरे सालभर तक रोज कालेज जाने के अलावा घर लौट कर भी बहुत पढ़नालिखना पड़ता था.

वंदना रोज मेरे घर आ जाती. मेरा घर के कार्यों में ही नहीं बल्कि कालेज से मिले असाइनमैंट पूरे करने में भी हाथ बंटाती. मेरी सास उस की बहुत तारीफ करती. राजेश से वह जल्द ही खूब खुल गई थी और जीजासाली की नोक?ोंक के चलते हमारे घर का माहौल बड़ा खुशनुमा रहता.

मेरा बीएड का रिजल्ट बड़ा अच्छा रहा. इस खुशी के मौके पर मैं ने वंदना को बड़ा सुंदर और कीमती सूट उपहार में दिया.

मैं ने बीएड के बाद एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. वंदना पहले की तरह रोज तो नहीं, पर सप्ताह में 2-3 बार तब भी हम से मिलने आ जाया करती थी. राजेश के साथ फोन पर किसी भी विजय पर लंबीलंबी चर्चा करती. वह तो शुक्र था कि इन दोनों के बीच फोन पर बातें मुफ्त में होती थीं क्योंकि राजेश ने एक खास स्कीम फोन कंपनी से ले रखी थी. वे ऐसा न करते, तो इन दोनों की गपशप का बिल हर महीने हजारों रुपए आता. उन दिनों मोबाइलों का रेट कुछ ज्यादा था. वह राजेश को लैंडलाइन पर नहीं, मोबाइल पर फोन करती थी.

मेरी शादी के करीब 2 साल बाद वंदना का रिश्ता उस की मम्मी ने तय किया. उस के पापा की हार्टअटैक से मौत हुए तब 6-7 साल का समय बीत चुका था.

लड़का अच्छा था, उस का घरबार भी ठीक था, पर उन दोनों की शादी तय करी गई तारीख से केवल 5 दिन पहले टूट गई.

वंदना और उस लड़के के बीच न जाने क्या घटा जो वह शादी नहीं हो सकी. दोनों तरफ के लोगों ने बहुत पूछा, पर शादी टूटने का सही कारण न वंदना ने किसी को बताया, न उस लड़के ने. वह इस विषय पर मेरे सामने भी चुप्पी साध लेती थी.

लोगों को तरहतरह की अफवाहें उड़ाने का मौका मिल गया. तब वंदना ने अपनी ननिहाल

के शहर मेरठ शिफ्ट करने का फैसला किया. अपनी शादी टूटने के करीब 3 महीने बाद वह अपनी मां के साथ मेरठ चली गई. फिर कानपुर शिफ्ट हो गई.

तब से उस के और हमारे बीच संपर्क खत्म होता गया. शुरूशुरू में 2-4 बार टैलीफोन पर बातें हुईं, पर मु?ो ऐेसे अवसरों पर साफ महसूस होता कि वह अनमनी हो कर ही मु?ा से बातें करती.

‘‘वंदना बदल गई है. उस के दिल पर शादी टूट जाने से गहरा जख्म लगा है. बहुत कटीकटी सी बोलती है फोन पर,’’ मैं उन दिनों राजेश से अकसर ऐसी शिकायत दुखी मन से किया करती, पर ये मु?ा पर ज्यादा ध्यान नहीं देते.

सिर्फ तुम: भाग 3- जब प्यार बन गया नासूर

गौरव का इंतजार करते करते बहुत देर हो गई, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था. पति और कल्पना में समाए हुए प्रेमी के बीच द्वंद्वात्मक स्थिति से हताश वह देर तक भीगी पलकों के साथ झूल को निहारती रही, फिर चल पड़ी घर की ओर. वह घर जो अब घर नहीं, बल्कि मकान का ढांचा भर रह गया था.

भावशून्यता एवं संवादहीनता के कारण अनुपम और मोनिका के लिए अवकाश के दिन भी बोझ बन गए थे. ऐसे ही अवकाश के एक दिन ब्रेकफास्ट के बाद मोनिका और अनुपम अपनेअपने मोबाइल पर चिपटे हुए थे, तभी उन के घनिष्ठ तुषार और नेहा उन से मिलने आ पहुंचे. दोनों नगर निगम में सेवारत थे. तुषार जूनियर इंजीनियर और नेहा वहीं हैड क्लर्क के पद पर. उन्होंने प्रेम विवाह किया था और बहुत खुश थे. चारों लौन में आ गए. बातों ही बातों में दोनों के टूटते संबंध के बारे में जान कर तुषार और नेहा दुखी हो उठे.

घर पहुंच कर दोनों ने आपसी मंत्रणा कर अनुपम और मोनिका के संबंधों को बचाने

की रूपरेखा तैयार की. इस के लिए अनुपम और मोनिका से अलगअलग बात करना जरूरी था.उसी शाम उन्होंने अनुपम को चाय पर बुलाया. चाय पीने के बीच बात शुरू की तुषार ने, ‘‘अनुपम, क्या बात है यों घुटघुट कर क्यों जी रहे हो? जीवन को क्यों नर्क बना रखा है? हम से कुछ छिपा नहीं है.’’

‘‘मोनिका ने मेरा जीवन बरबाद कर दिया है, अब साथ रहना मुश्किल है,’’ अनुपम ने अपने मन की बात कह दी. फिर और कुरेदने पर पूरी भड़ास निकाल दी.

‘‘अरे, हो जाती हैं ऐसी बातें. अभी कुछ नहीं बिगड़ा है. साथ रह रहे हो न,’’ नेहा ने समझाया.

‘‘कैसा साथ, नर्क बना रखा है घर को…’’

‘‘प्यार में बड़ी शक्ति होती है, तुम्हारे प्रेमपाश में बंध गई तो कहीं जाना नहीं चाहेगी. तुम परेशान मत हो, हम मोनिका को भी समझएंगे.’’

‘‘नहीं, अब और नहीं सहा जाता. दूसरा साथी तलाशना ही होगा,’’ अनुपम ने दो टूक कह दिया.

‘‘यह आसान नहीं है और उचित भी नहीं है. तुम्हारी पत्नी है न घर में,’’ तुषार ने समझाया.

‘‘वह जब मुझ से बात ही नहीं करती तो कैसी पत्नी? आखिर मैं इंसान हूं, मुझे भी तो प्रेमसुख चाहिए. कहां जाऊं?’’

‘‘इस के लिए घर में मोनिका है तो? जरा सोचो, बाहर वाली को प्रभावित कर के अपना बनाने में जितना प्रयास करोगे, धन और समय खर्च करोगे, उस से कम में तो मोनिका स्वयं ही तुम्हारी गोद में लुढ़क आएगी और फिर उसे भी तो तुम्हारी जरूरत होगी,’’ नेहा ने अनुपम को छेड़ते हुए कहा.

‘‘अरे, प्रेमिका तो घर में ही है. बाहर तो बेकार ही हाथपैर मार रहे हो. उस का क्या भरोसा? मरीचिका निकली तो? समाज और कानून की भी तो मर्यादाएं हैं. यार, घर में मोनिका नाम की जो लड़की है, उसी को प्रेमिका समझ कर क्यों नहीं फुसलाते? आखिर शादी से पहले भी तो उस के आगेपीछे डोलते रहते थे,’’ कहते हुए तुषार ने आंख मारी तो न चाहते हुए भी अनुपम के चेहरे पर हंसी आ ही गई, ‘‘और फिर घर वाली से प्रेमप्रदर्शन में न तो कोई रिस्क और न ही समाज और कानून का डर.’’

इस पर सभी जोर से हंस पड़े. तुषार ने आगे कहा, ‘‘अनुपम, इस तरह के उतारचढ़ाव

तो हर परिवार में आते ही रहते हैं. इस का अर्थ यह तो नहीं कि स्थिति को संभालने के बजाय दूसरा विकल्प तलाशा जाए.’’

‘‘अच्छा सुनो,’’ नेहा ने तुषार के साथ चुहलबाजी की, ‘‘अगर मैं ने मुंह फेर लिया तो क्या करोगे?’’

‘‘अरी मुहतरमा, आप की मिन्नतें करेंगे, मनाएंगे, फुसलाएंगे, बहकाएंगे, कुछ भी करेंगे, लेकिन तुम्हें अलग नहीं होने देंगे. तुम्हारे बिना हमारा जीवन ही कहां,’’ तुषार ने नेहा की बांह में चिकोटी काट ली.

‘‘ऐसे में किस की मजाल कि तुम्हारे प्रेमजाल से छूट सके,’’ नेहा ने मुसकराते हुए कहा.

तुषार और नेहा के घर से लौटते हुए अनुपम काफी हलका महसूस कर रहा था. उसे लगा जैसे एक बड़ा बोझ उतर गया हो.

दूसरे दिन तुषार और नेहा ने मोनिका को भी शाम की चाय पर अकेले बुलाया, लेकिन उसे अनुपम के साथ हुई बातचीत के बारे में नहीं बताया.

‘‘देखो मोनिका, तुम अंदर ही अंदर घुटघुट कर क्यों जी रही हो? बात क्या है?’’ चाय पीने और औपचारिक बातों के बाद नेहा ने पूछा.

‘‘अनुपम एकदम बदल गए हैं. पहले जैसे नहीं रहे,’’ मोनिका के स्वर में वेदना थी. उस ने भी जो भी मन में था, सब खोल कर रख दिया. उद्वेलित मन थोड़ी सी भी सहानुभूति पर फूट पड़ता है.

‘‘ऐसा नहीं है, तुम्हारी सोच बदल गई है. एक ग्रंथि पाल ली है तुम ने. क्या वह तुम्हें प्रताडि़त करता है, हिंसा करता है तुम्हारे साथ? घरगृहस्थी की खयाल नहीं रखता?’’ तुषार ने एकसाथ मोनिका के सामने कई सवाल रख दिए.

‘‘नहीं, ऐसा तो नहीं है. वे तो हर बात का खयाल रखते हैं. जोर से बोलते तक नहीं. लेकिन बस मेरे लिए उन का प्रेम समाप्त हो गया है. मेरे भी कुछ अरमान हैं… कभीकभी लगता है कि कोई तो हो, जिस के साथ अपना मन हलका कर सकूं,’’ कहते हुए मोनिका फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘देखो मोनिका, तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है. ईगो से जन्मा एक खालीपन है जो तुम दोनों को खाए जा रहा है. दूसरे साथी के लिए आकर्षण भी इसी खालीपन को भरने के लिए ही है. बस गलती यही है कि हम घर में प्रेम होते हुए भी उसे बाहर तलाशते हैं, यह जानते हुए भी कि उसे पाना बहुत मुश्किल होता है. उस के लिए घर में मिलने वाले प्रेम और खुशियों का गला मत घोटो, प्लीज.’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद नेहा ने समझाया, ‘‘यार, पतिपत्नी के बीच किस बात का ईगो. इस ईगो और चुप्पी ने ही कई हंसतेखेलते परिवारों की खुशियां छीन ली हैं. अनुपम अब भी तुम्हें ही चाहता है. मैं पक्के तौर पर कहती हूं वह भी तुम से मिलने को बेचैन होगा. तुम थोड़ी पहल तो करो,’’ नेहा ने भी समझाया.

‘‘मुझ से नहीं हो सकता अब,’’ मोनिका ने बुझे स्वर में कहा.

‘‘अरे यार समझ तो नारी के पास तो पुरुष को अपना बनाने के हजार गुण होते हैं. पराए पुरुष को अवैधरूप में रिझाने में लगी हो और घर का अपना पुरुष तुम्हारे कब्जे में नहीं आ रहा है, कमाल है, जरा प्रेम की बारिश तो करो, फिर देखना, अनुपम कैसे खुदबखुद तुम्हारे पास खिंचा चला आता है और वह भी खुशामद करता हुआ,’’ नेहा ने उस की कमर में चिकोटी काटी तो वह खिलखिला पड़ी और फिर काफी सहज हो गई.

‘‘मैं तो खुद बेबस हूं इन के सामने. थोड़ा सा भी दूर भागता हूं तो तुरंत इन की कातिल अदाएं अपने मोहपाश में बांध लेती हैं, क्यों देवीजी, ठीक कह रहा हूं न?’’ तुषार ने नेहा की आंखों में झांकते हुए कहा तो सभी खिलखिला पड़े.

तुषार और नेहा के चलाए तीर निशाने पर लगे. मोनिका घर पहुंची तो हिरणी जैसी प्रसन्नता के भाव से भरी हुई थी. कमरे में झंका तो बैड पर अनुपम करवट लिए लेटा था. तो क्या बिना खाए ही सो गया? करुणा से उस की आंखें द्रवित हो गईं. बहुत देर तक छिपती नजरों से उसे निहारती रही. वह उसे मासूम बच्चा सा लगा. भावविह्वलता के साथ वात्सल्य भी उमड़ पड़ा. कई दिनों बाद उस अनुपम को देख रही थी, जिसे पहले प्रेमी के रूप में हर पल अपनी आंखों में और अपने मन में समाए रखा था.

उस की नजरों के सामने प्यार होते समय की सारी यादें घूम गईं. क्या यह वही अनुपम है, जिस के बिना एक भी पल नहीं रह पाती थी, तो अब क्या हो गया? कुछ देर तक उस का चेहरा निहारा तो सारे गिलेशिकवे जाते रहे, सारी दूरियां तिरोहित होती गईं. ‘क्यों न मैं इस लड़के को ही अपना बनाऊं जो मेरे घर में ही है,’ अचानक उमड़े प्रेम से साहस पा कर पास चली गई. अनुपम सो रहा था. वह उस के पास लेट गई और बहुत देर तक उस के चेहरे को निहारती रही. आखिर छोटीछोटी बातों से उपजा ऐसा अहं किस काम का जो जीवन की खुशियां ही छीन ले. लगा जैसे समर्पण में ही जीत है, हार नहीं. पतिपत्नी में कैसा अहं. भावावेश में वह अनुपम के शरीर से बुरी तरह लिपट गई.

‘‘तुम? क्या हुआ?’’ जागने के बाद अनुपम ने पूछा तो मोनिका ने इठलाती भावभंगिमा और कंटीली मुसकान के साथ आंख मार दी. अनुपम के अंदर प्रेमपूरित रोमांस की लहर सी दौड़ गई. उस ने मोनिका को अपने बाहुपाश में जकड़ कर कस कर भींच लिया, ‘‘कहां थीं इतने दिनों से?’’

मोनिका उस की बांहों की जकड़ने में कसमसाती रही, एक अलौकिक

सुख के साथ. बहुत देर तक दोनों यों ही एकदूसरे की बांहों में समाए रहे.

फिर अनुपम ने कहा, ‘‘मेरी ही गलती थी मोना. तुम्हें छोड़ कर बाहर खुशियां तलाश रहा था, जबकि मेरी सब से बड़ी खुशी मेरे घर में ही थी. मुझे माफ…’’

मोनिका ने तुरंत अनुपमा के होंठों पर अपनी उंगलियां रख दीं, बोली, ‘‘जानेमन, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. अपनी जिद को पूरा कराने के लिए तुम्हें दुख पहुंचाती रही, फिर भी तुम ने कुछ नहीं कहा. अनु, मैं कुछ भी कहूं तो मुझे समझने का पूरा अधिकार है तुम्हें. तुम्हारी हर बात मानूंगी. अब इस घर को छोड़ कर सब के साथ उसी घर में रहेंगे.’’

‘‘भूल जाओ पुरानी बातों को. हम घर आतेजाते रहेंगे. मुझे विश्वास है कि परिवार के लोग हमारे अलग रहने की स्थिति को समझ सकेंगे,’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोला, ‘‘मोना, मैं तुम्हें एक सजा देना चाहता हूं.’’

‘‘क्या?’’ मोनिका चौंकी.

‘‘एक पल के लिए भी बातचीत बंद मत करना.’’

जवाब में मोनिका ने अनुपम के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उस के शरीर से कस कर चिपक गई. दिलों की तेज होती धड़कनों के साथ दोनों प्रेमरस में डूब गए. उन्हें लगा कि पतिपत्नी के बीच का प्रेम ही यथार्थ है, परिपूर्ण है. उसे दूसरों में तलाषने की जरूरत नहीं. दूसरों से प्रेम की चाह रखना एक मरीचिका के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं. प्रेम के विकल्प के दिवास्वप्न से अब उन का मोहभंग हो चुका था.

सिर्फ तुम: भाग 2- जब प्यार बन गया नासूर

यह स्थिति अकेले अनुपम के साथ ही हो, ऐसा नहीं था. मोनिका को भी प्रेम के अभाव ने विचलित करना शुरू कर दिया.बस यंत्रचालित जीवन रह गया था. सुबह उठना, ब्रेकफास्ट तैयार करना, दोपहर का खाना बना कर रख देना, अपनीअपनी सुविधा के अनुसार ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर अलगअलग करना, डिनर के बाद बैड पर अपनेअपने हिस्से में दुबक जाना. रोजाना का यही क्रम बन गया था, सबकुछ, भावविहीन क्रियाओं के साथ.

संवादहीनता से उपजी त्रासदी के बीच मोनिका का मन प्रेमभाव की संतुष्टि के लिए रातदिन छटपटा रहा था, उद्वेलित हो रहा था. कितना भी कृत्रिम बनो, मगर नैसर्गिक जरूरतों को मारना बहुत दुष्कर होता है. मोनिका के अंदर भी रहरह कर एक चाह उमड़ रही थी कि कोई ऐसा अपना हो जिस के कंधे पर सिर रख कर प्रेमसुख पा सके, अपनी भावनाओं को शेयर कर के जीवन में आई रिक्तता को भर सके. इस से वशीभूत उस का मन एक हमसफर को तलाशने लगा और सामने आ गया उस का अपना पीएचडी स्टूडैंट, उस से 2 वर्ष छोटा गौरव, जिस की ओर बढ़ते कदमों को वह रोक नहीं पा रही थी.

शनिवार को अवकाश था. घर के घुटनभरे परिवेश से मुक्त होने के लिए मोनिका नैनी ?ाल के किनारे ठंडी सड़क पर आ गई थी, गौरव से मिलने, पीएचडी पर डिस्कशन के बहाने. ?ाल के पास से गुजरती ठंडी सड़क किसी अकेले व्यक्ति, युवा प्रेमी जोड़ों एवं नवविवाहित पतिपत्नी के घूमने के लिए एकदम माफूल है. दुख के क्षणों में भी इस की धुंध में लिपटी नीरवता बहुत सुकून देती है. मोनिका के लिए भी यह सड़क कुछ ज्यादा ही जानीपहचानी हो गई थी. सड़क के किनारे गुलमोहर के पेड़ों के नीचे बेंत की लकड़ी से बनी बैंच पर बैठ कर उस ने दूर तक नजर डाली तो अनुपम के साथ बिताए कई पलों की यादें ताजा हो गईं…

अनुपम से मोनिका की पहली मुलाकात इसी ठंडी सड़क पर हुई थी. वह अनुपम, जो आज उस का पति है, पहले कभी उस का प्रेमी हुआ करता था.

बड़ा खूबसूरत शहर है नैनीताल. चारों तरफ पहाडि़यां और बीच में नैनीताल जिस

ने शहर को 2 भागों में बांट रखा है. इधर तल्लीताल और उधर मल्लीताल. मोनिका और अनुपम दोनों के घर तल्लीताल में थे और डिगरी कालेज, जहां वे पढ़ते थे, मल्लीताल में था. अनुपम के पिता सीनियर वकील थे और मोनिका के पिता उन के जूनियर. अनुपम और मोनिका के बीच प्रेम पनपने में दोनों के पिताओं के प्रोफैशनल कैरियर से ज्यादा ठंडी सड़क की खास भूमिका थी.

इसी सड़क पर आतेजाते ही तो उन के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं. फिर एक दिन इसी जगह घने कुहरे के बीच दोनों ने एकदूसरे को प्रेमपाश में बंधनेबांधने की स्वीकृति दी थी. दोनों निकले तो थे कालेज जाने के लिए, लेकिन चल पड़े प्रेम की राह पर. उस दिन कुहरे के बीच बैंच पर बैठे दोनों घंटों ओवरकोट और शाल में छिपे आपस में लिपटे रहे थे.

‘‘कहीं अलग न हो जाएं, पोस्ट ग्रैजुएशन का आखिरी साल है हमारा,’’ भीगी पलकों के साथ मोनिका अनुपम के सीने में सिमट गई.

‘‘आखिरी साल है तो क्या हुआ, हमें तो आखिरी सांस तक साथ रहना है,’’ अनुपम ने भी मोनिका को जोर से आलिंगन में भींच लिया, ‘‘तुम परेशान मत हो… देखो, ऐसा करते हैं, फिलहाल हम दोनों पीएचडी में एडमिशन ले लेते हैं. 3 साल तक तो मिलना पक्का, अब तो खु़श.’’

‘‘मु?ा से कभी अलग मत होना अनु. अपने जीवन में किसी और को जगह मत देना प्लीज,’’ मोनिका की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

‘‘मेरे लिए तो सबकुछ तुम्हीं हो मोना,’’ कहते हुए अनुपम ने उस के माथे पर चुंबन जड़ दिया.

अनुपम के पीएचडी के सु?ाव ने मोनिका को जैसे नया जीवन दे दिया हो. बहुत देर तक दोनों एकदूसरे के प्रेमपाश में बंधे आनंद के सागर में डूबे रहे.

समय के साथसाथ उन के बीच प्रेम बढ़ता ही गया. इस की भनक जब दोनों के परिवारों को लगी तो परिपक्वता और बाधारहित संबंधों को परिणयसूत्र में बांधने में उन्होंने भी खुले मन से सहमति दे दी. सुखद संयोग कुछ ऐसा बना कि पीएचडी की डिगरी पूरी होते ही उन के जीवन 2 उपहारों से खिल उठे. न केवल वे विवाह के अटूट बंधन मे बंध गए, बल्कि कुछ समय बाद दोनों को उसी कालेज में सहायक प्राध्यापक का जौब भी मिल गया.

मोनिका के ससुराल में सासससुर, छोटा देवर और छोटी ननद से मिल कर बना परिवार था. परेशानी बस यही थी कि घर बहुत छोटा था. मोनिका और अनुपम सुबह साथ ही कालेज निकल जाते और शाम को लौटते. उस के बाद थकीहारी मोनिका को घर के काम में जुटना पड़ता. घर वाले नौकरानी रखने को राजी नहीं हुए. तर्क दिया कि उन के परिवार में ऐसा कभी हुआ ही नहीं और फिर 2 बच्चों का विवाह भी तो करना है.

मोनिका ने सोचा था, नए घर में अनुपम के प्रेमांकुर को हरेभरे पौधे का रूप दे देगी, लेकिन उस के सपने बिखरते चले गए, जिन्हें समेटने के लिए अब उस की कल्पना में था गौरव… आखिर कोई तो हो, जो सूखते जीवन को प्रेमरस से तृप्त कर सके. इस के लिए उस ने गौरव का साथ पाना चाहा, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद गौरव अभी तक उस का अपना नहीं हो सका था. इस का कारण था गौरव स्वयं अपनी एक क्लासमेट के प्रेमसागर में डूबा हुआ था.

मोनिका को इस का पता नहीं था, सो गौरव की ओर से मिल रही उपेक्षा के उपरांत भी वह उस के साथ एकतरफा प्रेम के मोहपाश से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रही थी. भले ही ठंडी सड़क का रोमांसभरा परिवेश प्रेमियों और नवविवाहितों के प्रेमालाप का बरसों से गवाह रहा हो, उस की ही तरह, लेकिन अब वह अकेली थी न तो पति साथ में था और न ही प्रेमी.

सिर्फ तुम: भाग 1- जब प्यार बन गया नासूर

‘‘यह   भी कोई जीना है, न खुल कर बोल सकते हैं, न हंस सकते हैं और न ही कहीं घूम सकते हैं,’’ रोजरोज की घुटन से तंग आ कर आखिर मोनिका फट ही पड़ी.

‘‘यही तो परिवार है, जहां सब के लिए जगह है, प्यार है. जिन्होंने हमें योग्य बनाया, उन के लिए भी तो हमारे कुछ दायित्व हैं,’’ अनुपम ने उसे समझना चाहा.

‘‘अब वह जमाना नहीं रहा अनु, आज हर परिवार इस बात को अच्छी तरह समझता है कि पतिपत्नी को अपने मनमुताबिक जीवन जीने का अधिकार है और तुम हो कि अपनेआप बड़प्पन का बोझ ओड़े पड़े हो… इस घुटनभरे घर में तो सारे सपने बिखर गए मेरे…’’ मोनिका की भृकुटियां तन गईं.

‘‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इस तरह के सपने पाले बैठी थीं.’’

‘‘मुझे भी नहीं पता था कि तुम्हारे साथ अपना जीवन बरबाद करने जा रही हूं.’’

प्रेम विवाह से आह्लादित मोनिका पति के प्यार में खुल कर जीना चाहती थी, लेकिन परिवार में ऐसी स्वतंत्रता के लिए जगह नहीं थी. कुछ दिनों तक उस ने दबी आवाज में अपना दुख व्यक्त किया, लेकिन जब अनुपम ने उस की बात को गंभीरता से नहीं लिया तो उस के सब्र का बांध टूटना ही था, सो टूट गया. उस दिन से दोनों के बीच संबंधों में शिथिलता आ गई. दोनों बात तो करते लेकिन उस में औपचारिकता ने घर बना लिया था.

दीपावली की छुट्टियां पड़ीं तो मोनिका अपने मायके जाने की जिद करने लगी. घर वाले चाहते थे, बहू उन के पास रहे. अनुपम ने भी समझया, लेकिन वह नहीं मानी. इस से आगे बढ़ कर उस ने अनुपम को भी मायके में दीपावली मनाने को कहा. अनुपम को यह व्यवहार कांटे जैसा लगा, लेकिन विवाद से बचने के लिए थोड़ी नानुकुर के बाद उस ने समर्पण कर दिया. अपने घर वालों को उस ने यह सांत्वना दे कर मनाया कि एक दिन बाद आ जाएगा. अम्मांबाबूजी और छोटे भाईबहनों के चेहरों पर उपजी वेदना को महसूस कर के वह मर्माहत हो उठा था.

अनुपम मोनिका के साथ गया पर दुखी मन से. वह कुपित था उस के ढीठ व्यवहार पर. दूसरे दिन सासससुर ने भी उसे अघोषित रूप में समझना शुरू कर दिया, ‘‘बेटा, कुछ अपने होने वाले परिवार के बारे में भी सोचो, कल को बच्चे होंगे, उन की शिक्षा, कैरियर सब देखना होगा. बेहतर हो तो अलग घर ले लो. छोटे घर में कैसे गुजर होगी. दोनों कमाते हो, कोई आर्थिक परेशानी तो है नहीं…’’ आदिआदि.

अनुपम बुझे मन से हांहूं करता रहा. लेकिन यह बात उसे चुभ गई कि

मोनिका ने अपने मातापिता के माध्यम से यह नया जाल फेंका. वह लौटना चाहता था, मगर मोनिका ने कुछ प्यार की अल्हड़बाजी और कुछ रूठनेमनाने के बहाने कुछ दिन और रुकने का अड़ंगा लगा दिया. वह दोहरे तनाव में फंस गया. घर से अम्मांबाबूजी और बहनभाई के फोन पर फोन आ रहे थे और इधर मोनिका उसे अपने पल्लू से बांधे पड़ी थी. वह घर वालों से बहाने बनातेबनाते थक गया. पूरी छुट्टियां खत्म होने के बाद ही दोनों लौटे.

घर आते ही स्थिति पहले से ज्यादा तनावपूर्ण हो गई. घर वालों की कुपित मुखमुद्रा और अघोषित टीकाटिप्पणी ने मोनिका के माथे पर आक्रोश की रेखाएं खींच दीं. अनुपम तो पहले से ही खिन्नता से भरा हुआ था. मोनिका के घर वालों ने अलग होने के लिए जो पट्टी उसे पढ़ाई थी, उस का प्रभाव भी कुछ दिनों बाद दोनों पतिपत्नी के संबंधों पर पड़ने लगा. उस को ले कर दोनों के बीच हो रहे वाक्युद्ध की जानकारी जब अनुपम के घर वालों के कानों तक पहुंची तो रविवार की छुट्टी के दिन अच्छाखासा बखेड़ा हो गया.

‘‘हमारे यहां शुरू से ही सारी बहुएं घर में ही रहती आई हैं. अलग होने के संस्कार नहीं हैं हमारे,’’ अम्मां ने मोरचा संभाल लिया.

‘‘अब समय बदल गया है, पहले जैसी बातें नहीं थोपी जा सकतीं,’’ मोनिका ने अम्मां की बात को काटा तो अनुपम की भौंहें तन गईं. उस ने मोनिका को सम?ाना चाहा, लेकिन विवाद और तर्कों का सिलसिला थमने के बजाय और बढ़ता गया.

इस पर मोनिका ने अपने मायके में फोन कर के आग में घी डालने का काम कर डाला. कुछ देर में उस के मम्मीपापा भी आ धमके. जैसी मोनिका वैसे ही उस के घर वाले. पापा तो चुप रहे, लेकिन मम्मी ने अनुपम और उस के परिवार वालों को काफी खरीखोटी सुना डाली.

मामला शांत होने पर मोनिका के मम्मीपापा तो चले गए, लेकिन अनुपम के अंदर अपमान की ग्रंथि भर गए. इस घटना से अनुपम और मोनिका के बीच संबंधों में आई तनातनी एवं टूटन और बढ़ गई. इस से मुक्ति पाने और मोनिका के लगातार जिद पकड़े रहने पर अनुपम ने अलग रहने पर सहमति दे दी, हालांकि वह स्वयं और उस का परिवार इस के पक्ष में कतई नहीं था. कालेज के परिसर में कोई क्वार्टर खाली नहीं था, इसलिए पास में ही एक मकान किराए पर ले कर दोनों उस में शिफ्ट हो गए.

मोनिका अपनी इस जीत पर अंदर ही अंदर जश्न मना रही थी. उस ने सोचा, अब अपने लटकों झटकों से अनुपम की सारी नाराजगी दूर कर देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि अनुपम के अंदर मोनिका के सामने विवश हो कर झुकने और स्वयं एवं परिवार को अपमानित किए जाने का कांटा लगातार चुभ रहा था. इस के प्रतिकार में उस ने मोनिका के परिवार से संबंध औपचारिक स्तर तक सीमित कर लिए. जब कभी मोनिका के परिवार के लोग आते तो वह उन में कोई रुचि नहीं लेता. ऐसे अवसरों पर अकसर वह घर से बाहर चला जाता और बहुत देर बाद लौटता.

अनुपम के इस व्यवहार के कारण मोनिका के अंदर भी अपमान का जहर भरने लगा. इस की परिणति पहले हलकी बहस, फिर आरोपों के तीखे वाण और फिर कई दिनों के लिए संवादहीनता के रूप में होने लगी. उन के बीच ऐसा परिवेश निर्मित हो गया, जिस में 2 व्यक्ति साथ तो रह रहे थे, लेकिन दोनों अकेले. घरेलू जरूरतों के लिएज़्ज्यादातर अनुमान और आभास का सहारा, संवादहीनता से उपजी असहनीय त्रासदी.

दोनों के बीच चल रही तनातनी के बीच बच्चे की पैदाइश भी टाल दी गई. यह कैसी स्थिति आ गई थी घर में, इस की तो कल्पना तक नहीं की थी. धीरेधीरे दोनों के अंदर विवाह को ले कर पश्चात्ताप ने घर बनाना शुरू कर दिया. इस से मुक्ति पाने के लिए वे कल्पनाओं में वैकल्पिक दिवास्वप्न देखने लगे- काश, किसी और से विवाह करते तो यह त्रासदी नहीं सहनी पड़ती.

व्यक्ति के अंदर नैसर्गिक भावनाओं की पूर्ति का प्रवाह हमेशा बना रहता है. मोनिका और अनुपम भी इस से अलग नहीं थे. समय बीतने के साथ संवादहीनता की स्थिति ने अनुपम और मोनिका के अंदर अपनी भावनाओं को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ शेयर करने की भूख बढ़ा दी.

घर की नीरवता से दम घुटने लगा तो अनुपम अपनी साथी प्रोफैसर प्रेरणा की ओर आकर्षित होने लगा. कंचन काया और सौंदर्य से परिपूरित प्रेरणा ने कुछ माह पूर्व ही जौइन किया था. अनुपम उस की ओर खिंचा जा रहा था, लेकिन प्रेरणा को तो जैसे कोई मतलब ही नहीं था. वह सामान्य संबंधों तक ही सीमित रही. इस से अनुपम के अंदर प्रेरणा से प्रेम पाने के लिए बेचैनी और बढ़ती गई. वह उस के प्रेमसागर में डूब जाने के लिए तरहतरह के प्रयास करने लगा, लेकिन प्रेरणा ने उसे उपेक्षित ही बनाए रखा.कारण, वह पहले से ही किसी के प्रेमपाश में बंधी हुई थी. उसे छोड़ कर एक विवाहित आदमी से क्यों जुड़ती?

अनुपम इस से अनभिज्ञ था. ऐसे में वह दोहरी वेदना से भरे द्वंद्व में फंसा. पत्नी दूर हो चुकी थी और प्रेमिका पास नहीं आ रही थी. तो क्या सारा जीवन ऐसे ही रिक्तता में बीत जाएगा, यह प्रश्न रहरह कर उस के मन में उभरने लगा.

बर्फ पिघल गई- भाग 3: जब प्यार के बीच आ गई नफरत

अगले दिन गरिमा को कंपनी की नई ब्रांच में भेज दिया. बौस ने जतिन को भी मार्केटिंग देखने के लिए कह दिया. तनु आश्वस्त थी कि उस का विभाग भी जल्द ही बदलने वाला है.’’

‘‘तनु तुम रिलेशनशिप मैनेजर के रूप में बहुत अच्छा काम कर रही हो. तुम्हारे दायरे को मैं बढ़ा रहा हूं, तुम्हारा पद वही रहेगा और तुम इसी औफिस में रहोगी.’’

बौस के कैबिन से निकल कर तनु ने राहत की सांस ली. गरिमा को बौस ने क्या

कह कर दूसरे औफिस जाने के लिए मना लिया, तनु नहीं समझ पा रही थी. उस का बेबी भी अभी छोटा था और गरिमा तो लंबे समय से कंपनी में ही थी. उस ने अपनी जौब की वजह से ही इसी शहर में शादी की थी.

‘‘तनु, कल तेरे पास आ रही हूं औफिस के बाद. बहुत दिन हो गए साथ में बैठ कर कौफी पीए हुए.’’

गरिमा के फोन पर तनु चहक उठी. शाम को दोनों बैठ कर कंपनी में हुए बदलावों के बारे में चर्चा कर रही थीं, ‘‘तू ने बौस को बताया नहीं कि दूसरा औफिस तेरे घर से दूर है और बच्चा भी अभी छोटा है.’’

गरिमा तनु के सवाल की जैसे प्रतीक्षा ही कर रही थी. बोली, ‘‘हां, मुझे लगा था लेकिन अब सब ठीक है. ऐक्चुअली वह औफिस बौस के भतीजे का है. उन्हें एक अनुभवी कर्मचारी की जरूरत थी जिस पर विश्वास किया जा सके. तुम्हें बौस भेजना नहीं चाहते थे तो मुझे जाना पड़ा.’’

तनु हैरान थी यह सुन कर, ‘‘तुम मुझे बोल सकती थी मैं चली जाती. मुझे कौन सा घर देखना है या बच्चे को संभालना है औफिस के बाद.’’

गरिमा बात को खत्म करते हुए बोली, ‘‘थोड़ा टाइम निकलने देते हैं. नहीं मैनेज हुआ तो बौस से बात कर लेंगे.’’

गरिमा कुछ सोच रही थी.

‘‘क्या बात है? किस सोच में हो?’’ तनु ने पूछा तो गरिमा ने बताया, ‘‘अपने बौस के बारे में सोच रही थी. बेचारे ने घर वालों की मरजी के बिना लव मैरिज की. उस का भयंकर ऐक्सीडैंट हुआ और घरवाली छोड़ कर चली गई. बेचारे के सिर में भी चोट आई थी. अभी तक इलाज चल रहा है. अपने पुराने बौस का भतीजा है उस को वापस सैटल करने के लिए नया औफिस बनाया है. पुराने स्टाफ को उस के साथ लगाया है.’’

तनु को अचानक  झटका लगा. उस ने अपने सिर को झटका, ‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.’’ गरिमा कौफी खत्म कर चुकी थी, ‘‘सर में दर्द है क्या,’’ उस के सवाल पर तनु इतना ही बोल पाई, ‘‘नहीं, बस बुरा लगा तुम्हारे नए बौस के बारे में जान कर. कुछ मेरी जिंदगी से मिलताजुलता.’’

गरिमा जाने के लिए उठ गई. चलतेचलते बोली, ‘‘यार, मेरे मुंह से अचानक निकल गया. तेरे बारे में सोचा ही नहीं…’’

तनु ने आंखों में भर आए पानी को रोक कर कहा, ‘‘मैं, तुम्हारे बौस के जल्दी ठीक होने के लिए प्रार्थना करूंगी.’’

गरिमा के जाने के बाद एक ही प्रश्न तनु को कचोट रहा था कि कहीं रोहन का भी ऐक्सीडैंट तो नहीं हुआ था उस दिन. फोन पूरा दिन बंद था. गुस्से में अगले दिन मैं ने नंबर ब्लौक क्यों कर दिया था.

अब उसे लग रहा था कि कुछ छूट गया था जिसे वह पकड़ नहीं पाई थी. कुछ घट गया था जिसे वह जान नहीं पाई थी. तभी एक वीडियो ने उस के शक को सच में बदल दिया.

गरिमा ने अपने नए औफिस के दीवाली सैलिब्रेशन का वीडियो अपने फ्रैंड्स गु्रप में शेयर किया. हाथ में छड़ी ले कर लंगड़ाते हुए रोहन को चलते देख कर तनु फूटफूट कर रोई. नफरत की बर्फ आंसुओं से पिघल गई. सारा ऐटीट्यूड बदल गया उस प्यार में जो शादी से पहले तनु रोहन से किया करती थी.

तनु रोहन के औफिस में मिलने गई, ‘‘मेरी गलती के लिए मुझे माफ कर दो रोहन. मैं तुम से इतनी नफरत करने लगी थी कि ऐसा भी कुछ हो सकता है सोच ही नहीं पाई.’’

‘‘मेरी भी गलती कम नहीं है तनु. मैं ने भी तुम्हारे जाने के बाद तुम से संपर्क नहीं किया. उस दिन ऐक्सीडैंट के बाद बच गया, लेकिन तुम्हें फोन नहीं किया.’’

‘‘तुम्हारा फोन तो ऐक्सीडैंट में टूट गया था पर मैं ने तो तुम्हारा नंबर ही ब्लौक कर दिया था. पता नहीं क्या हो गया था मुझे,’’ तनु सबकुछ कह देना चाहती थी. दोनों हाथों में अपना मुंह छिपा कर आमनेसामने बैठे थे.

‘‘अब गिलेशिकवे हो गए हों तो हमें भी थोड़ा सा थैंक्स दे दो. पिछले 6 महीनों से हम लोग तुम दोनों को सामने लाने के लिए नौकरी कर रहे थे,’’ जतिन और गरिमा एकसाथ बोले.

‘‘भाभी मैं ने पापा को आप से हुई बात बताई तो उन्होंने ही मु?ो चुप रहने को कहा था.’’

तनु ने पीछे मुड़ कर देखा तो रोहन की बहन और तनु के बौस खड़े थे.

‘‘ओह सर, मुझे पता ही नहीं था कि आप रोहन के अंकल हैं. मु?ो माफ कर दीजिए,’’ तनु ने हाथ जोड़ कर आंखें बंद कर लीं.

‘‘बेटी तुम्हारी कोई गलती नहीं थी. वह समय ही ऐसा था कि तुम दोनों ही एकदूसरे को नुकसान पहुंचा रहे थे.’’

तनु और रोहन ने एकदूसरे की आंखों में देखा, ‘‘काश, नफरत प्यार पर हावी नहीं होती तो जिंदगी कुछ और ही होती,’’ यही आवाज दोनों के दिल से आ रही थी.

बर्फ पिघल गई- भाग 2: जब प्यार के बीच आ गई नफरत

गरिमा से बात कर के तनु का मन और भी परेशान हो गया. बस एक तसल्ली थी कि चलो कोई तो है जिस से बात कर के मन का बोझ थोड़ा हलका हो जाएगा. उस ने सिर को झटका और बाथरूम में चली गई.

अगले दिन गरिमा से मिल बातें कर के उस ने एक निश्चय किया और घर आ कर रोहन का फोन मिलाया. फोन नहीं लग रहा था. काफी देर तक मिलाती रही. एक बार दिल धड़का कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई है. फोन बंद ही आ रहा था लगातार. फिर अचानक जाने क्या सूझ कि उस की बहन का फोन मिला लिया, ‘‘घर छोड़ कर जा रही हूं. यही चाहते थे न तुम लोग. बता देना अपने भाई को. मैं बात कर के अपना मूड़ खराब नहीं करना चाहती हूं,’’ कहते ही फोन औफ कर दिया.

वही पहले वाला कंपनी का फ्लैट, वही औफिस और वही रूटीन फिर से शुरू हो गया.

हां हर दिन औफिस से लौट कर इंतजार रहता कि कोई मैसेज मिलेगा. कोई फोन आएगा पर रात होतेहोते सब निराशा में बदल जाता और वही अपनी पसंद के गाने सुन कर तनु सो जाती. कोई मैसेज, फोन, चिट्ठी, इंसान नहीं आया. महीने और फिर साल गुजर गया. मम्मीपापा से भी तनु ने संपर्क नहीं किया. बस खो गई अपने काम में फिर पहले की तरह, जब रोहन से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की बहुत सी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले कर.

कंपनी की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी. जोरदार तैयारियां चल रही थीं. गरिमा का बच्चा छोटा था, इसलिए तनु ही फंक्शन को और्गेनाइज करने में लगी थी. पुराने कर्मचारियों में सब से अधिक प्रतिभाशाली तनु और गरिमा ही थीं. दिनभर औफिस में काम चलता. शाम को वीडियोकौल कर के प्रोग्राम की तैयारी पर बात होती.

आखिर वह दिन आ ही गया जब तनु को एक बार फिर से अपनी काबलीयत साबित करने का मौका मिलने वाला था. मुख्य अतिथि के स्वागत से ले कर उन के जाने तक तनु ने एक पल के लिए भी खुद को कंपनी से अलग नहीं होने दिया. मन में डर भी था कि कहीं कोई चूक न हो जाए. सभी कुछ अपेक्षाओं के अनुरूप ही था. कंपनी में तनु की जोरदार वापसी हुई, रिलेशनशिप मैनेजर के रूप में. वेतन बढ़ गया और कंपनी के स्टाफ क्वार्टर्स में ही तनु को भी रहने की जगह मिल गई.

जिंदगी एक बार फिर से दौड़ने लगी. बस एक कसक दिल में बनी हुई थी कि रोहन ने पता भी नहीं किया मैं कहां हूं. किस हाल में हूं. क्या इसी बंधन को जन्मों का नाता कहते हैं लोग? ऐसे कई प्रश्न सुबह आंखें खुलने के साथ खड़े होते और रात में सोने के बाद भी सपनों में आते रहते. तनु अब वापस नहीं लौटना चाहती थी. इतनी मेहनत से जो कुछ हाथ आया था अब उसे संजो कर रखना चाहती थी.

‘‘क्या मेरी बात तनु से हो रही है?’’ सुबहसुबह औफिस पहुंची तो फोन पर एक सभ्य महिला की आवाज़ सुनाई दी.

‘‘जी मैं ही बोल रही हूं. बताइए आप की क्या सहायता कर सकती हूं?’’ तनु ने भी मधुर स्वर में उत्तर दिया.

‘‘मैम, ऐक्चुअली हमारी एक स्टार्टअप कंपनी है. शहर की सभी इंडस्ट्रीज को हम ने कल शाम को अपने प्रोडक्ट लौंच पर इन्वाइट किया है. आप की कंपनी भी हमारे प्रोडक्ट लौंच पर आएगी तो हमें मोटिवेशन मिलेगा.’’

तनु ने ध्यान से उस की बात सुनी और बौस को भी इन्फौर्म किया. अंदर ही अंदर उसे गर्व महसूस हो रहा था अपनी पोस्ट और बैस्ट कंपनी में काम करने पर. बौस ने जतिन और तनु 2 लोगों को जाने की अनुमति दे दी.

प्रोडक्ट लौंच के बाद स्टार्टअप कंपनी के सीईओ का भाषण भी था. जतिन को अचानक किसी काम से जाना पड़ा तो तनु को ही रुकना पड़ा. कंपनी के पहले फोन कौल से ले कर इवेंट मैनेजमैंट तक काफी प्रभावित थी तनु. यही

कारण था कि उस ने अंत तक रुकने का मन बना लिया था. बहुत देर से नाम की अनाउंसमैंट का इंतजार था, लेकिन सीधे ही सीईओ का भाषण शुरू हुआ.

जानीपहचानी आवाज सुन कर तनु ने सिर ऊपर उठाया, ‘‘रोहन. यह रोहन की कंपनी है?’’ अनायास ही मुंह से निकल गया.

‘‘यस मैम, एक्चुअली रोहन सर ही हमारे सीईओ हैं,’’ पीछे से उसी लड़की की आवाज सुनाई दी जिस से फोन पर बात हुई थी.

‘‘ग्रेट,’’ बस यों ही तनु के मुंह से निकल गया.

‘‘तनु मैं तुम्हारे घर की तरफ ही जा रहा हूं. इवेंट खत्म हो गया हो तो मेरे साथ ही आ जाओ. बाद में अकेले जाना पड़ेगा.’’

जतिन के फोन से पहले ही तनु जाने के लिए खड़ी हो चुकी थी. वह रोहन

के सामने नहीं जाना चाहती थी इसलिए जतिन के साथ ही निकल गई.

‘‘तनु कल का इवेंट कैसा रहा?’’ बौस ने पूछा.

तनु ने पहले से सोचा हुआ जवाब दिया, ‘‘सर मैं ने रिपोर्ट आप को मेल कर दी है,’’ स्वयं को व्यस्त दिखाने की कोशिश करते हुए तनु लैपटौप में टैब बदलने लगी.

‘‘रिपोर्ट मैं देख लूंगा परंतु तुम्हारा व्यक्तिगत अनुभव कैसा रहा?’’ बौस ने फिर से प्रश्न किया.

‘‘सर अच्छा ही रहा. एक स्टार्टअप कंपनी से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं लगा सकते हैं.’’

बौस चौंक कर बोले, ‘‘मतलब तुम्हें प्रभावित नहीं कर पाई है उन की कोशिश,’’ बौस ने फिर से एक और प्रश्न पूछा.

‘‘वह बात नहीं है सर. अच्छा होता कि प्रोडक्ट लौंच पर यह सेमिनार होता. हमारे

लिए आकलन आसान हो जाता,’’ तनु ने अपनी बात रखी.

बौस की आंखों में जाने क्यों खुशी की चमक आ गई. वे मुसकराते हुए अपने कैबिन में चले गए. तनु को कुछ अजीब सा लगा, लेकिन चुप रह गई. शादी की उथलपुथल ने उसे शांत औब्जर्वर बना दिया था.

बर्फ पिघल गई- भाग 1: जब प्यार के बीच आ गई नफरत

गरिमा रोहन से प्यार करती थी. मगर एक दिन उस के साथ एक ऐसी घटना घट गई कि वह रोहन से नफरत करने लगी. घटना के सालों बाद जब उस की मुलाकात रोहन से हुई तो वह अपने किए पर शर्मिंदा थी. आखिर क्या सच जान गई थी वह…

‘‘तुम ने अपने घर वालों के सामने मुझ से बिना पूछे ही घोषणा कर दी कि डायवोर्स ले रहे हो,’’ तनु ने लगभग चीखते हुए रोहन से सवाल किया. वह औफिस से आया ही था. तनु ने उस पर बरसना शुरू कर दिया, ‘‘जवाब क्यों नहीं दे रहे हो. मुझ से छुटकारा चाहिए तो मुझ बोलना था. अपने घर फोन क्यों किया?’’

रोहन ने बैग टेबल पर रखा और बहस से बचने के लिए वाशरूम में घुस गया.

तनु अब भी बड़बड़ा रही थी, ‘‘मेरी ही बुद्धि फिर गई थी जब शादी के लिए हां कह दी थी.

2 साल लिव इन में थी तो पैर पकड़ने को तैयार रहता था और अब देखो बात का जवाब दिए बिना वाशरूम में जा कर बंद हो गया.’’

थोड़ी देर तक रोहन नहीं आया तो तनु भी अंदर कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. रोहन बाहर आया तो न तो चाय ही बनी हुई थी न ही खाने को कुछ और था. उस ने रसोई में जा कर खुद ही चाय बनाई और तनु के कमरे का दरवाजा खटखटाया. बहुत देर तक खड़ा रहा? लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. उस ने चाय बाहर लौबी में मेज पर रख दी और लैपटौप खोल कर किसी काम में जुट गया.

‘‘मैं पुलिस में तुम्हारी शिकायत करूंगी,’’ तुम्हारी तरह घर वालों के कान नहीं भरूंगी… हिम्मत होनी चाहिए लड़ने की भी,’’ तनु दनदनाती हुई बाहर आई. लगातार बोल रही थी.

रोहन का सिर दर्द कर रहा था, लेकिन तनु तो आज ही सारे फैसले करने पर तुली हुई थी. वह लौबी से उठा. चाय कप में ही छोड़ दी. वाशरूम में जा कर बंद हो गया. कुछ देर जमीन पर ही बैठा रहा, फिर शावर औन कर दिया. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था बस उस घड़ी को कोस रहा था जब उस ने तनु से शादी करने का फैसला लिया था.

उधर तनु पहले तो बोलती जा रही थी, फिर रोने लगी. अंदर ही अंदर डर रही थी

कि कहीं रोहन कुछ गलत न कर बैठे. थोड़ी देर इधरउधर बिना किसी काम के घूमती रही, फिर अलबम ले कर बैठ गई. उस ने महसूस कर लिया था कि अब उस की शादी नहीं बचेगी

बस यादें ही रह जाएंगी. रोहन का फोन बज रहा था, लेकिन वह बाहर नहीं आया. शावर की आवाज में शायद सुना ही नहीं उस ने. 3 साल पहले का फोटो थी जब पहली बार दोनों के मातापिता ने इस अन मेलविवाह के लिए सहमति दी थी.

‘‘काश उन लोगों ने माना नहीं होता तो हम लोग अच्छे दोस्त तो बने रहते. शादी ही नहीं करते,’’ उस के मन में भावनाएं उमड़ रही थीं

और आंसू बह रहे थे. कई महीनों से यही सब चल रहा था. तनु और रोहन या तो एकदूसरे से बात ही नहीं करते थे या केवल झगड़ा ही करते थे. अपनेआप को सही सिद्ध करने की कोशिश से ज्यादा दूसरे को गलत साबित करने की कोशिश में लगे रहते. रोहन औफिस से आता तो तनु उस की कोई गलती बताने के लिए तैयार बैठी रहती. रोहन भी कभी सुलझने की कोशिश नहीं करता था, इसलिए जिंदगी पूरी तरह उलझ गई थी.

अलबम देखतेदेखते तनु सोफे पर लेट पर ही गई. रोहन कब वाशरूम से बाहर आया उसे पता ही नहीं चला.

रोहन सुबह जल्दी उठ कर औफिस के लिए निकल गया. तनु सो कर उठी तो वह घर में नहीं था. कामवाली भी आ गई थी. रसोई में बरतन धो रही थी. तनु को उठा देख कर उस ने पूछा, ‘‘क्या मैडम आज नाश्ता भी नहीं बनाया. तबीयत ठीक नहीं है क्या? भैया का टिफिन भी इधर ही रखा है?’’

तनु रसोई में आ गई थी. उस ने चाय बनाने के लिए आंच जलाई, ‘‘मेरी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है. रोहन को आज जल्दी जाना था इसलिए औफिस में ही नाश्ता करेंगे. तुम्हें चाय पीनी हो तो बोलो.’’

‘‘नहीं मैडम, नाश्ता कर के ही चली थी. वह मेरा घर वाला सवेरे ही खाना ले कर जाता है, मजदूरी करने. मेरी भी सुबह ही खाने की आदत हो गई है,’’ बाई ने अपने काम में लगेलगे ही जवाब दिया.

लेकिन तनु के दिल में कुछ खटक गया. रोहन तो रोज खुद ही चायनाश्ता बना कर जाता है. उस के लिए भी बना कर रख जाता है. किसी दिन ही वह उठ पाती है वरना सोती रहती है. रोहन ने कभी कुछ नहीं कहा. जब दोनों लिव इन में रह रहे थे तब भी रोहन ही सुबह जल्दी उठा करता था. तनु को भी औफिस जाना होता था इसलिए वह तैयार हो कर चली जाती थी. उस का टिफिन भी रोहन ही लगाता था.

रोहन से शादी करने के फैसले का बड़ा कारण यह भी था. पहले दिन से रोहन को बताया था कि वह खाना बनाना नहीं जानती है और बनाने में उस की कोई रुचि भी नहीं है.’’

‘‘खाना बनाएंगे तो होटल और रैस्टोरैंट

वाले क्या करेंगे? उन्हें भी रोजीरोटी कमानी है, इसलिए खाना नहीं बना कर तुम तो कुछ लोगों को रोजगार मिलने में मदद ही कर रही हो,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा था तो तनु भी हंस दी थी.

मां भी बहुत खुश हुई थीं दामाद के विचारों को सुन कर. उन्होंने भी इस शादी को अपनी मंजूरी दे दी थी.

‘‘जो मेरी अनुमति के लिए 3 साल शादी टाल सकता है उस से बेहतर इंसान मेरी बेटी को दूसरा नहीं मिल सकता है,’’ पापा ने भी यह कहते हुए खुशी से अपनी सहमति दे दी थी. इस के बाद तो तनु निश्चिंत हो गई थी रोहन को लेकर. लेकिन वर्तमान स्थिति उस के एकदम उलट थी. रोहन ने बात करना बंद ही कर दिया था. उस की बहन के फोन से तनु को पता चला था कि वह अब तनु के साथ नहीं रहना चाहता है. सुन कर तिलमिला गई थी तनु. साथ में नहीं रहना चाहता यह जानना उतना दुखद नहीं था जितना इस बात का उस की बहन से पता लगना.

‘‘तनु, मैं ने डिलिवरी के बाद फिर से औफिस जौइन कर लिया है. तुम ने कोई तरक्की की या अपने शानदार फ्लैट की बालकनी में ही उलझ हो अभी?’’ गरिमा औफिस से ही फोन कर रही थी.

तनु सोच में पड़ गई कि आज अचानक गरिमा ने फोन क्यों किया और उस से यह प्रश्न क्यों पूछा. क्या गरिमा उस और रोहन के बिगड़ते रिश्ते के बारे में जान गई है?

‘‘कुछ जवाब तो दो मैडम? औफिस से फोन कर रही हूं. ज्यादा देर बात नहीं कर पाऊंगी. औफिस आते ही तुम्हारी याद आई, इसलिए

फोन किया तुम्हें,’’ गरिमा के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, तुम जानती हो घर में रह कर रूटीन बदल गया है. अभी सो कर उठी हूं,’’ तनु ने अलसाते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो वापस जौइन कर ले. वह जो तेरी

जगह आई थी, उस की भी शादी हो गई है.

तेरी सीट खाली ही है. मेरे सामने ही है. सच

बोल रही हूं, फिर से आ जा. तुझे मिस कर रही हूं, यार.’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं सोचा है. कल लंच ब्रेक में तुझ से आ कर मिलती हूं. कैफेटेरिया में. अपनी पसंद की टेबल पर,’’ तनु ने कहा तो गरिमा का उत्साह उस के शब्दों में झलक पड़ा.

‘‘सच? मैं वेट करूंगी. बहुत सी बातें करनी हैं यार. एक साल से नहीं मिले हैं. चल फोन रखती हूं. किसी खबरी ने बौस को बता दिया है शायद. बौस का ही फोन आ रहा है.’’

एक लड़की की वजह से मैं जेल गया पर आज भी उससे प्यार करता हूं, मै क्या करूं?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवक हूं. मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता था और उस के साथ शादी करना चाहता था. लेकिन उस के दादाजी उस की शादी कहीं और करना चाहते थे. लड़की ने कहीं और शादी करने की बात पर खुदकुशी करने की धमकी दी तो उस की बूआ और दादी ने फोन कर के मुझ से कहा कि मैं उसे भगा कर ले जाऊं. दादी व बूआ के कहने पर मैं लड़की को जैसे ही ले कर उन के घर से निकला, पुलिस ने मुझे लड़की को भगाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, लड़की के दादाजी ने पहले से ही मुझ पर केस कर दिया था. कुछ समय बाद जब कोर्ट में केस के दौरान लड़की से बयान देने के लिए कहा गया तो उस ने उसे भगाने के लिए मुझे दोषी ठहराया जिस के परिणामस्वरूप मुझे 7 साल की सजा हो गई.

अब करीब 4 साल की सजा काट कर मैं जमानत पर बाहर निकला हूं. लेकिन मैं आज भी उस लड़की को उतना ही चाहता हूं जितना पहले चाहता था. वर्तमान स्थिति में मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं, उस से मिलूं या नहीं, सलाह दें.

जवाब

आप ने यह नहीं बताया कि लड़की और आप की उम्र क्या है? आप दोनों बालिग हैं या नाबालिग? और दूसरी बात लड़की ने अदालत में आप के खिलाफ बयान क्यों दिया था जिस की वजह से आप को 4 साल की सजा जेल में काटनी पड़ी.

एक संभावना यह भी हो सकती है कि लड़की ने उस समय अदालत में आप के खिलाफ बयान अपने परिवार वालों के दबाव में आ कर दिया हो. वर्तमान स्थिति में अगर आप उस लड़की को अभी भी चाहते हैं और सारी बात साफ करना चाहते हैं तो आप एक बार उस लड़की से मिल कर सारी बात साफ कर लें और उस के बाद ही निर्णय लें कि आप को उस के साथ कोई संबंध रखना है अथवा नहीं.

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