Financial Freedom : युवतियों की फाइनैंशियल फ्रीडम 

Financial Freedom : महिलाएं परिवार की धुरी होती हैं. आजकल वे बाहरी दुनिया में भी अपनी पैठ बना रही हैं. अपनी काबिलीयत के दम पर ऊंचे औहदों पर काबिज हो रही हैं. कई दफा उन की सैलरी पुरुष सहयोगियों से कहीं ज्यादा होती है. फिर भी उन्हें आर्थिक आजादी का एहसास नहीं होता. वे जौब कर रही हों या होममेकर हों बचत करने का हुनर उन्हें बखूबी आता है. लेकिन केवल कमाना और बचत करना ही काफी नहीं. उन के लिए बचत को इनवैस्टमैंट में तबदील करने का हुनर सीखना और फाइनैंशियल नौलेज होना भी बहुत जरूरी है. तभी वे हकीकत में आर्थिक आजादी का स्वाद चख सकेंगी.

मान लीजिए आप ने छोटीछोटी बचत कर के काफी पैसे इकट्ठे कर लिए पर अब आप को समझ ही नहीं आ रहा कि इस पैसे को कहां इनवैस्ट करें? इसी तरह यदि आप के पति अस्पताल में एडमिट हैं मगर आप को नहीं पता कि बैंक में पैसे कैसे जमा करें या उन की मैडिक्लेम पौलिसी का इस्तेमाल कैसे किया जाए? यह भी हो सकता है कि आप के पति का ऐक्सीडैंट हो गया और आप के ऊपर पूरा घर और व्यापार चलाने की जिम्मेदारी आ गई हो.

आप 2 बच्चों की मां हैं और आप को व्यापार या फाइनैंस की कोई भी जानकारी नहीं है. ऐसे हालात में आप क्या करेंगी दूसरों का मुंह ताकेंगी? ये तीनों ही उदाहरण हमें एहसास दिलाते हैं कि महिलाओं को फाइनैंशियल नौलेज होना कितना जरूरी है. परिवार में मुसीबत कभी भी आ सकती है. जरूरी है कि आप जिम्मेदारी उठाने को तैयार रहें. इसलिए महिलाओं का आर्थिक रूप से आजाद होना बेहद जरूरी है.

बेहतर इनवैस्टर बन सकती हैं महिलाएं

महिलाओं के मैनेजमैंट पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. उन्होंने परिवार, समाज, देश और दिग्गज कंपनियों की जिम्मेदारी बखूबी उठा कर खुद को हर मोरचे पर साबित किया है. मगर एक बात बहुत निराश करने वाली है कि ज्यादातर घरों में उन्हें पैसों या इनवैस्टमैंट के मैनेजमैंट से दूर ही रखा जाता है. पैसों को ले कर सारे फैसले पुरुष ही करना चाहते हैं. वे खुद को महिलाओं से बेहतर इनवैस्टर मानते हैं. एक सफल इनवैस्टर बनने के लिए अनुशासन, धैर्य, एकाग्रता और मेहनत जैसे गुणों की आवश्यकता होती है. ज्यादातर महिलाएं इन गुणों से संपन्न होती हैं इसलिए वे बेहतर इनवैस्टर बन सकती हैं.

अध्ययनों में पाया गया है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में औसतन 40त्न कम रकम इनवैस्ट करती हैं. जेंडर डिस्क्रीसिनेशन कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल 81त्न वेतन मिलता है  इनवैस्टमैंट न करने से पहले से मौजूद धन का अंतर और बढ़ सकता है.

महिलाओं को क्या रोक रहा है

महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम पैसे इनवैस्ट करती हैं. लेकिन इस के पीछे की वजहों को पहचानना मुश्किल है. कई महिलाओं को यह नहीं पता होता कि शुरुआत कैसे करें. ज्यादातर महिलाएं मनी मैनेजमैंट का जिम्मा घर के पुरुष सदस्यों पिता, भाई, पति या बौयफ्रैंड पर छोड़ देती हैं यह उचित नहीं. जोखिम से बचने के लिए प्रौफिटेबल इनवैस्टमैंट के बारे में नहीं सोचतीं. अपनी आय को ले कर खर्च न करें इसलिए क्रैडिट कार्ड्स पर ज्यादा जोर न दें और न ही यूपीआई पेमैंट की आदी बनें. इन दोनों का प्रयोग केवल इमरजैंसी में करें. बैंक से या एटीएम से पैसा निकाल कर कैश खर्च करने की आदत रखें क्यों पैसे हाथ से देते समय थोड़ा में सा प्रैशर बना रहता है.

इनवैस्टमैंट शुरू करें

जितना हो सके आप को जल्द से जल्द इनवैस्टमैंट करना शुरू कर देना चाहिए ताकि आप अपने रुपयों का पूरा लाभ उठा सकें. भले ही आप के पास कम पैसे हों मगर हर महीने इनवैस्ट करने का रूटीन जरूर बनाए रखें. अपने पैसे को लंबे समय तक के लिए इनवैस्ट कर के रखें और इस दौरान प्राप्त प्रौफिट को फिर से इनवैस्ट करें. अगर आप ने अभी तक इनवैस्ट नहीं किया है तो याद रखें कि शुरू करने में कभी देर नहीं होती, चाहे इनकम बड़ी हो या छोटी.

सिर्फ बचत ही नहीं इनवैस्टमैंट पर भी ध्यान दें

युवतियों का पूरा ध्यान बचत करने में लगा रहता है जबकि उन्हें इनवैस्टमैंट को भी सम?ाने और करने की जरूरत है. आप को जान लेना चाहिए कि महंगाई के चलते समय के साथ पैसों का मूल्य कम होता जाता है. इसलिए इनवैस्टमैंट कर ज्यादा रिटर्न बनाना बहुत जरूरी है.

कहां करें अपने पैसे का इनवैस्टमैंट

हाल ही में आई एक स्टडी बताती है कि भारतीय शहरी महिलाएं फिक्स्ड डिपौजिट में ज्यादा इनवैस्ट कर रही हैं. वे अपने कुल एसेट अलोकेशन का 50 फीसदी फिक्स्ड डिपौजिट और सेविंग अकाउंट में बनाए रखती हैं. केवल 7 फीसदी स्टौक्स में लगाती हैं. डीबीएस बैंक इंडिया ने क्रिसिल के साथ मिल कर महिला और वित्त (वूमन ऐंड फाइनैंस) पर एक स्टडी जारी की, जिस में 10 भारतीय शहरों में 800 हाई इनकम शहरी महिलाओं, सैलरी लेने वाली और सैल्फ ऐंप्लौयड दोनों को शामिल किया गया था. सर्वेक्षण में शामिल महिलाओं की आय 10 लाख रुपए से ले कर 55 लाख रुपए सालाना थी. यह नतीजा इस सर्वे से निकल कर आया.

मगर यहां गौर करने की बात है कि भले ही एफडी और सेविंग अकाउंट में आप थोड़ा पैसा रख सकती हैं लेकिन अपना बचाया हुआ पूरा पैसा केवल इन्हीं जगहों पर न रखें बल्कि अन्य औप्शन भी समझें. इस से न सिर्फ आप के पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन आएगा अपितु आप टैक्स बचा सकेंगी और हाई यील्ड भी प्राप्त कर सकेंगी.

इनवैस्टमैंट करते समय कदम फूंक कर चलें

जब भी अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को इनवैस्टमैंट करने की सोचें तो सब से पहले यह सोचें कि आप का गोल क्या है. इनवैस्टमैंट गोल पर आधारित होना चाहिए. यदि आप की आयु 25-27 से ले कर 30-32 साल है और रिटायरमैंट आप का गोल है तो इस का सीधा सा मतलब है कि आप के पास प्लानिंग का समय काफी होगा.

इस के बाद सब से अहम है अपनी और अपने पर निर्भर (मातापिता या बच्चे) की सुरक्षा. इनवैस्टमैंट से पहले सुरक्षा की बात आती है. भाई, बहन, बच्चे या मातापिता आप पर डिपैंड हैं तो लाइफ इंश्योरैंस जरूर करवाएं. वहीं अपने लिए ऐक्सीडैंट या मैडिकल कवरेज लेना भी एक अच्छा कदम होगा ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना या बीमारी में आप के परिवार पर अतिरिक्त भार न पड़े.

कम उम्र की महिलाएं ले रही हैं जोखिम

हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार 18 से 25 साल की महिला इनवैस्टर्स द्वारा सुरक्षित इनवैस्टमैंट विकल्प मसलन सावधि जमा (एफडी) के बजाय उच्च जोखिम वाले विकल्पों में इनवैस्टमैंट करने की संभावना 3 गुना अधिक रहती है. यह सर्वे ग्रो ने किया है. इस में 28 हजार लोगों से प्रतिक्रियाएं ली गईं. सर्वे में महिलाओं के इनवैस्टमैंट लक्ष्य के बारे में भी बताया गया है.

सर्वे के अनुसार 57त्न युवा महिलाएं अपने निजी लक्ष्य को हासिल करने के लिए इनवैस्टमैंट  करती हैं. वहीं 28त्न अपने यात्रा लक्ष्य को हासिल करने और 28त्न उच्च शिक्षा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इनवैस्टमैंट करती हैं. सर्वे में कहा गया है कि आय और उम्र के साथ इनवैस्टमैंट लक्ष्य बदल जाते हैं.

दरअसल, सिर्फ पैसे कमाना और बचत करना ही काफी नहीं है. पैसे को ऐसी जगह इनवैस्ट करना भी जरूरी है जहां आप की रकम तेजी से बढ़े और दीर्घकाल में अच्छी खासी रकम हाथ में आ जाए. इस के कई रास्ते हो सकते हैं लेकिन एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि इस का कोई शौर्टकट नहीं होता. इसलिए अपनी पहली नौकरी शुरू करने के साथ ही इनवैस्टमैंट के बारे में सोचना चाहिए. आप होम मेकर हों या जौब करती हों मगर शादी के बाद आप को बचत और इनवैस्टमैंट शुरू कर देना चाहिए क्योंकि यही वह वक्त होता है जब खर्च के बाद आप के हाथ में कुछ पैसे बचते हैं. इस वक्त शुरू की गई इनवैस्टमैंट आप के और आप के पार्टनर का भविष्य सुरक्षित बना सकती है. इसलिए हम यहां इनवैस्टमैंट के वे तरीके बता रहे हैं जो 20 से 35 साल की महिलाएं अपना सकती है. ये तरीके अनमैरिड को अपनाने भी चाहिए?क्योंकि उन के पास बचत का मौका ज्यादा होता है. वेतन या अन्य आय को फालतू में हरगिज खर्च न करें.

पब्लिक प्रौविडैंट फंड (पीपीएफ)

चाहे आप कामकाजी महिला हों या होम मेकर, पब्लिक प्रौविडैंट फंड आप के लिए इनवैस्टमैंट का अच्छा विकल्प हो सकता है. इस में 15 साल तक इनवैस्टमैंट करनी होती है जिस पर सरकार 7.1त्न ब्याज देती है. सालाना इनवैस्टमैंट की राशि 500 से 1.5 लाख रुपए तक हो सकती है. इसे किसी भी पोस्ट औफिस या बैंक में खोला जा सकता है. इतना ही नहीं इस में इनवैस्टमैंट की रकम पर टैक्स छूट भी ली जा सकती है. इस के अलावा इस में मिलने वाले ब्याज पर भी टैक्स छूट मिलती है.

एक उदाहरण के जरीए इस के फायदे सम?ाने की कोशिश करते हैं. अगर आप पीपीएफ खाते में हर महीने 5 हजार रुपए 15 साल तक जमा करती हैं तो कुल जमा राशि होगी 9 लाख रुपए. इस पर 7.1त्न की दर से 7.27 लाख रुपए ब्याज मिलेगा. इस तरह मैच्योरिटी के बाद आप को कुल 16.27 लाख रुपए मिलेंगे.

नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी)

नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट सब से सुरक्षित इनवैस्टमैंट की स्कीमों में से एक है.

इस में आप एक निश्चित रकम एक निश्चित समय के लिए इनवैस्टमेंट कर सकती हैं, जिस पर 8त्न की दर से ब्याज मिलता है. स्कीम मैच्योर होने के बाद आप को पूरा पैसा मिल जाता है. यह स्कीम महिलाओं के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि एक निश्चित समय में आप की बचत ब्याज समेत वापस मिल जाती है.

उदाहरण के लिए अगर आप ने 1 लाख रुपए का नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट 5 साल के लिए बनवाया तो मैच्योरिटी के बाद आप को 1.46 लाख रुपए मिलेंगे, साथ ही आप इनकम टैक्स सेविंग भी कर सकती हैं.

बैंक फिक्स्ड डिपौजिट स्कीम (एफडी)

फिक्स्ड डिपौजिट स्कीम इनवैस्टमैंट के साथसाथ सेविंग का भी एक अच्छा विकल्प है. इस में आप के खर्च के बाद जो भी रकम बचती है उस की आप एफडी करवा सकती हैं. अलगअलग बैंकों में अलगअलग दर से ब्याज मिलता है. जरूरत पड़ने पर मैच्योरिटी से पहले भी एफडी तोड़ी जा सकती है. इसे किसी भी बैंक में खोला जा सकता है.

उदाहरण के लिए अगर आप ने 5 साल के लिए 1 लाख रुपए की एफडी करवाई है तो 6.5त्न की सालाना ब्याज दर से आप को 5 साल बाद 1.38 लाख रुपए मिलेंगे. यह इनवैस्टमैंट  का सुरक्षित विकल्प है.

म्यूचुअल फंड्स

अब बात करते हैं इनवैस्टमैंट के एक ऐसे विकल्प की जिस में थोड़ा रिस्क है लेकिन रिटर्न भी ज्यादा है. म्यूचुअल फंड शेयर बाजार में सीधा इनवैस्टमैंट नहीं होता. इस में आप फंड मैनेजर के जरीए इनवैस्टमैंट करती हैं. आप सिस्टमैटेक इनवैस्टमैंट प्लान (एसआईपी) के जरीए थोड़ाथोड़ा पैसा भी म्यूचुअल फंड में डाल सकती हैं. आप अपने मोबाइल पर ऐप्लिकेशन डाउनलोड कर के म्यूचुअल फंड में इनवैस्टमैंट शुरू कर सकती हैं.

इस इनवैस्टमैंट पर होने वाले प्रौफिट में से म्यूचुअल फंड कंपनी अपनी फीस काट कर बाकी रकम आप को दे देती है. म्यूचुअल फंड्स की कई अलगअलग स्कीम्स मार्केट में उपलब्ध हैं जैसे डैब्ट फंड्स, इक्विटी फंड्स, बैलेंस्ड फंड्स आदि. इक्विटी फंड में रिस्क और रिटर्न की संभावना अधिक होती है. इस के बाद हाइब्रिड फंड और डेट फंड आते हैं. इक्विटी फंड लंबी अवधि के लिए होते हैं, जबकि डेट फंड छोटी अवधि के लिए होते हैं. महिलाएं म्यूचुअल फंड में इनवैस्टमैंट कर के अच्छा लाभ कमा सकती हैं. सिस्टमैटेक इनवैस्टमैंट प्लान (एसआईपी) सिर्फ 500 रुपए प्रति माह से शुरू किया जा सकता है. म्यूचुअल फंड में होने वाला लौंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स फ्री होता है. इस में आप को इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है.

सौवरेन गोल्ड बौंड

सोने में इनवैस्टमैंट के कई विकल्प हो सकते हैं. मसलन, गहने, सोने के सिक्के, गोल्ड बुलियंस वगैरह. लेकिन इन सब में सब से अच्छा विकल्प माना जाता है सौवरेन गोल्ड बौंड. इस सरकारी स्कीम में इनवैस्टमैंट से रिस्क बेहद कम हो जाता है और बेफिक्र हो कर रिटर्न हासिल कर सकती हैं. सौवरेन गोल्ड बौंड को रिजर्व बैंक जारी करता है इसलिए इस की शुद्धता को ले कर कोई झंझट नहीं होता.

गोल्ड बौंड पर आप को सालाना 2.50त्न ब्याज मिलता है. गोल्ड बौंड के मैच्योर होने पर उस वक्त बाजार में सोने की जो कीमत होती है उस पर आप बेच सकती हैं. इस की खासीयत यह है कि फिजिकल सोने की तरह इस के स्टोरेज की चिंता नहीं करनी होती.

कुछ अन्य विकल्प

बीमा: जीवन बीमा महिलाओं के लिए सब से पुराने इनवैस्टमैंट विकल्पों में से एक है. यह पौलिसीधारक की मृत्यु की स्थिति में पौलिसीधारक के लाभार्थियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है. यह पौलिसीधारक द्वारा अपने जीवनकाल में भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले लाभार्थियों को एकमुश्त राशि (मृत्यु लाभ) का भुगतान करता है. महिलाओं विशेष रूप से जिन के आश्रित हैं उन्हें अपने परिवार की भविष्य की वित्तीय जरूरतों की सुरक्षा के लिए जीवन बीमा पर विचार करना चाहिए.

कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ): ईपीएफ भारत में कर्मचारियों के लिए एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है. यह सरकार द्वारा सालाना घोषित एक निश्चित ब्याज दर प्रदान करता है. यह उन महिलाओं के लिए सब से उपयुक्त इनवैस्टमैंट विकल्पों में से एक है जो कम से कम जोखिम के साथ एक विश्वसनीय दीर्घकालिक इनवैस्टमैंट की तलाश में हैं.

निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं ईपीएफ योजना में अधिकतम 2.5 लाख रुपए तक का इनवैस्टमैंट कर सकती हैं जबकि सरकारी क्षेत्र में काम करने वाली महिला कर्मचारी 5 लाख रुपए तक की इनवैस्टमैंट कर सकती हैं.

महिलाओं के लिए भारत सरकार की इनवैस्टमैंट योजनाएं इन सब योजनाओं के साथसाथ भारत सरकार महिलाओं के लिए इनवैस्टमैंट विकल्पों की एक सूची प्रदान करती है जो उन के लिए फायदेमंद हैं:

सुकन्या समृद्धि योजना (एसएसवाई)

एसएसवाई महिलाओं के लिए सब से अच्छे इनवैस्टमैंट में से एक है. यह सरकार द्वारा समर्थित बचत योजना है जिसे विशेष रूप से बालिकाओं के लाभ के लिए डिजाइन किया गया है. इस का उद्देश्य बालिकाओं की वित्तीय सुरक्षा और शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक इनवैस्टमैंट विकल्प प्रदान करना है. मातापिता या अभिभावक 10 वर्ष से कम आयु की बालिका के नाम पर एसएसवाई खाता खोल सकते हैं. लड़की के 21 वर्ष की आयु तक पहुंचने तक खाते में योगदान दिया जा सकता है और उस की शिक्षा और विवाह खर्च के लिए निकालने की अनुमति है.

डाकघर महिला सम्मान बचत योजना

महिलाओं के लिए सब से अच्छे इनवैस्टमैंट  विकल्पों में से एक यह योजना भारतीय डाक सेवा द्वारा पेश की जाती है. यह विकल्प महिलाओं के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय इनवैस्टमैंट प्रदान करता है जिस से उन्हें अपनी बचत जमा करने और ब्याज कमाने की अनुमति मिलती है. यह प्रति वर्ष 7.5त्न की एक निश्चित ब्याज दर प्रदान करता है. आप इस योजना के तहत न्यूनतम क्व1,000 और अधिकतम क्व2 लाख का इनवैस्टमैंट कर सकते हैं.

मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना

मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना 2024 के दिल्ली बजट में विशेष रूप से महिला निवासियों के लिए घोषित एक पहल है. इस का उद्देश्य पात्र महिलाओं को क्व1 हजार की मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करना है. इस का उद्देश्य दिल्ली में महिलाओं, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं को सशक्त बनाना और उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है.

लखपति दीदी योजना

लखपति दीदी पहल भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महिलाओं के लिए शुरू किए गए नवीनतम इनवैस्टमैंट विकल्पों में से एक है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के बीच आर्थिक सशक्तीकरण और वित्तीय आत्मनिर्भरता पर केंद्र्रित है. लखपति दीदी एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य होती है जिस की वार्षिक घरेलू आय 1 लाख रुपए या उस से अधिक होती है.

Relationship Tips : कैसे निभाएं कम उम्र के लड़के से शादी

Relationship Tips : मध्य प्रदेश के पिपरिया की रहने वाली 30 साल की संजना बैंगलुरु की एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है. पिछले 2-3 सालों से शादी के लिए उसे बहुत से लड़कों के बायोडाटा आ रहे थे. संजना के मम्मीपापा को जो लड़के पसंद आते वे संजना को पसंद नहीं आते. इस वजह से मामला टलता रहा. 2024 की दीपावली के बाद एक शुभम नाम के लड़के का बायोडाटा जब उस के पापा ने संजना को भेजा तो उसे देख कर संजना की आंखों में चमक आ गई. शुभम भी पुणे की एक औटोमोबाइल कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है, परंतु उस की उम्र 26 साल है. संजना ने जब पहल कर के शुभम से बात की तो पाया कि वैचारिक रूप से उन में काफी समानता है.

रिश्ते की बात आगे बढ़ाई तो कुछ रिश्तेदारों ने लड़के की उम्र का हवाला दे कर रिश्ता न करने की सलाह दे डाली. संजना से जब उस के पापा ने इस संबंध में बात की तो संजना ने दो टूक जवाब देते हुए कहा, ‘‘पापा, शादी के लिए उम्र के बजाय लड़के की योग्यता और उस की आपसी समझ ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, यदि लड़के वालों को कोई आपत्ति न हो तो मुझे यह रिश्ता पसंद है.’’

संजना से हरी झंडी मिलते ही दोनों की शादी 15 दिसंबर, 2024 को धूमधाम से हो गई और समाज के लिए एक संदेश भी छोड़ गई कि शादी के लिए लड़के का लड़की से बड़ा होना जरूरी नहीं है. आज के दौर में संजना और शुभम की शादी कोई अकेली मिसाल नहीं है. अब इस तरह की शादियों का ट्रैंड चल निकला है.

काम आती है सूझबूझ

ऐसा नहीं है कि कम उम्र के लड़कों से शादी मौजूदा वक्त में ही हो रही है. वर्षों पहले भी कभीकभार इस तरह की शादियां समाज में होती रही हैं. रिटायरमैंट के करीब पहुंच रहीं स्कूल टीचर शहनाज बानों ने 36 साल पहले अपने से कम उम्र के जाफर खान से शादी की थी. जाफर की उस समय सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी लगी थी. ऐसे में घर वालों ने उम्र न देख कर दोनों के एक ही फील्ड और नौकरीपेशा होने की बजह से शादी कर दी थी. आपसी सूझबूझ से उन का जीवन आज भी खुशहाल है और उम्र का बंधन कभी रिश्ते में बाधा नहीं बन सका.

कहने का मतलब यही है कि लड़कालड़की के व्यवसाय, आपसी समन्वय और रुचियों को ध्यान में रखते हुए सुखद दांपत्य के लिए इस तरह की शादियां की जा सकती हैं.

लड़का भले ही अपने से कम उम्र का हो, यदि वह अच्छाखासा कमाने वाला है तो उम्र का बंधन कोई माने नहीं रखता. यदि नौकरी करने वाली लड़कियों को अपने से बड़ी उम्र का बेरोजगार लड़का मिला तो जीवनभर पत्नी की कमाई खाएगा. इस से अच्छा तो यही है कि कम उम्र के लड़के से शादी कर  लड़कियां अपना भविष्य सुखद बना सकती हैं. कम उम्र के लड़कों से शादी करने का एक फायदा लड़कियों को यह भी रहता है कि ऐसे लड़के उन पर रोब झाड़ने के बजाय उन का सम्मान करते हैं.

लोगों के लिए मिशाल

भारत के मशहूर क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की शादी 24 मई, 1995 को अंजलि से हुई थी. अंजलि अपने पति सचिन तेंदुलकर से 6 साल बड़ी हैं. शादी के पहले सचिन और अंजलि ने

5 साल तक एकदूसरे को डेट किया था, सचिन और अंजलि ने अपने रिश्तों का खुलासा 1994 में किया, जब उन्होंने न्यूजीलैंड में सगाई की. सगाई के कुछ समय बाद 1995 में दोनों ने शादी भी कर ली और आज 30 साल बाद भी यह खूबसूरत जोड़ा लोगों के लिए मिसाल बना हुआ है.

45 साल की अंजुलता जाति से ब्राह्मण हैं. 23 साल की उम्र में उन की शादी हुई और शादी के 1 साल बाद ही उन के पति का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया. 1-2 साल में ही उन्हें सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई. जब वे 35 साल की थीं, तभी समाज और परिवार के लोगों के विरोध के बावजूद उन्होंने 30 साल के लड़के समर्थ से शादी कर ली. एक लड़के की मां बन चुकी अंजुलता 10 सालों से सुखद दांपत्य जीवन जी रही हैं.

आमतौर पर ज्यादातर मामलों में लड़कियों की शादी अपने से बड़ी उम्र के लड़कों से की जाती है. इस के पीछे का कारण लड़कियों को लड़कों से कमतर समझने की पितृसत्तात्मक समाज सोच रही है. समाज में एक आम धारणा है कि शादी के वक्त महिला की उम्र पुरुष से कम होनी चाहिए. भारत में सरकार की तरफ से शादी की कानूनन उम्र लड़के के लिए 21 साल है तो लड़की के लिए 18 साल. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जब किसी शादी में लड़की की उम्र लड़के से ज्यादा हो जाती है तो क्या वे समाज के बनाए नियम के विपरीत जा रहे होते हैं? बड़ी उम्र की महिलाओं का कम उम्र के युवकों के साथ संबंध बनाना या शादी करना उन के पुराने अनुभवों के आधार पर होता है.

कितने काम के मैरिज काउंसर

कोई बड़ी उम्र की युवती अपने पुराने अनुभवों या गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ती है, वह अपने जीवन में काफी कुछ सीख चुकी होती है. उम्र के एक पड़ाव पर आने के बाद उसे लगता है कि अब उस के जीवन में जुड़ने वाला व्यक्ति उस पर अपना प्रभुत्व न जमाए, ऐसे में वह कम उम्र के लड़के के साथ अपनेआप को सहज पाती है. फिल्म ‘दिल चाहता है’ में अक्षय खन्ना ने जिस लड़के का किरदार निभाया है, उसे खुद से उम्र में बड़ी महिला से प्यार हो जाता है. यह बात वह अपने सब से जिगरी 2 दोस्तों को बताते हैं लेकिन उन के दोस्त उन के प्यार की गहराई को समझने की जगह उन का मजाक बनाने लगते हैं. इस फिल्म में दिखाए गए मजाकिया सीन दरअसल इस तरह के रिश्तों की हकीकत बयां करते हैं.

मैरिज काउंसलर के पास बहुत से ऐसे क्लाइंट आते हैं जिन के बीच अनबन की वजह दोस्तों का मजाक या रिश्तेदारों के ताने होते हैं. पतिपत्नी को चाहिए कि समाज के तानों की परवाह न करते हुए अपने रिश्ते को मजबूत बनाने पर ज्यादा ध्यान दें. वैसे तो कोई भी रिश्ता आम सहमति और पसंद के साथ ही शुरू होता है. खुद से कम उम्र के लड़कों को पसंद करते समय लड़कियों के दिमाग में एक ही बात चलती है- पुराने रिश्तों को भुलाना. दरअसल, युवा लड़कों के साथ रिश्ता बनाने पर लड़कियां खुद भी युवा महसूस करने लगती हैं. उन्हें महसूस होता है कि वे अभी भी खुद से युवा लड़कों को आकर्षित कर सकती हैं. इस के विपरीत एक लड़का खुद से बड़ी उम्र की लड़की के साथ रिश्ता कायम करता है तो उस के लिए यह रिश्ता एक तरह से कम जिम्मेदारी भरा होता है. वह एक अनुभवी साथी का साथ पा कर बहुत सी जिम्मेदारियों से बच जाता है.

अगर दोनों की आपसी समझ बेहतर है तो लड़का और लड़की एकदूसरे की जरूरतों को पूरा कर देते हैं. बड़ी उम्र की लड़कियां आत्मनिर्भर होती हैं. ऐसी लड़कियों के साथ लड़कों को बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती है.

ऐसे कई उदाहरण हैं जहां पत्नी के बड़ी उम्र के होने के बाद शादियां कामयाब रहीं जैसे प्रियंका चोपड़ा और निक जोन्स की शादी. मिस वर्ल्ड रही बौलीवुड ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने अमेरिकन सिंगर, ऐक्टर निक जोन्स से 2018 में शादी की थी. निक और प्रियंका की उम्र में 10 साल का फासला है. यह ऐज गैप उस वक्त चर्चा का विषय बन गया था. मगर आज भी उन की जोड़ी हिट है.

भारतीय क्रिकेटर की जोडि़यां भी हैं मिसाल

कम उम्र के लड़कों से शादी करने में केवल फिल्म ऐक्ट्रैस ही आगे नहीं हैं भारतीय क्रिकेटरों ने भी अपने से बड़ी उम्र की लड़कियों से शादी कर के मिसाल कायम की है. भारत के क्रिकेटर रौबिन उथप्पा अपनी पत्नी शीतल गौतम से 4 साल छोटे हैं. रौबिन उथप्पा ने 3 मार्च, 2016 को शीतल गौतम से शादी की थी. उथप्पा ने काफी लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी का फैसला किया था. उथप्पा और शीतल बैंगलुरु के एक ही कालेज में पढ़ाई करते थे.

शीतल इस कालेज में रौबिन उथप्पा की सीनियर थीं. 7 साल तक दोनों ने एकदूसरे को डेट किया था. रौबिन की वाइफ शीतल गौतम पूर्व में टेनिस खिलाड़ी रह चुकी हैं. उथप्पा क्रिश्चियन परिवार से आते हैं, जबकि शीतल गौतम का हिंदू धर्म से संबंध हैं. ऐसे में इन दोनों ने 3 मार्च, 2016 को पहले ईसाई धर्म के अनुसार शादी की और 1 हफ्ते बाद 11 मार्च, 2016 को दोनों ने हिंदू रीतिरिवाज से शादी की.

दिग्गज भारतीय लेग स्पिन गेंदबाज अनिल कुंबले और चेतना कुंबले की शादी 1 जुलाई, 1999 को हुई थी. चेतना कुंबले अपने पति अनिल कुंबले से 7 साल बड़ी हैं. अनिल कुंबले की पत्नी का भी अपने पहले पति के साथ तलाक हुआ था. अब यह कपल एकदूसरे के साथ लंबे समय से खुशी से रह रहा है.

हिट है जोड़ी

तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह और संजना गणेशन की शादी 15 मार्च, 2021 को हुई थी. संजना गणेशन अपने पति जसप्रीत बुमराह से 1 साल और 7 सात महीने बड़ी हैं. बुमराह और संजना ने गोवा में शादी की थी. शादी में इस जोड़े का परिवार और करीबी दोस्त ही शामिल हुए थे. संजना स्टार स्पोर्ट्स के लिए ऐंकरिंग करती हुई दिखती हैं. वे स्पोर्ट्स ऐंकर हैं और कई वर्ल्ड कप टूरनामैंट्स को कवर कर चुकी हैं. आईपीएल में भी संजना गणेशन काफी सक्रिय रहती हैं.

मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या राय ने भी अपने से 3 साल छोटे अभिनेता अभिषेक बच्चन के साथ शादी रचाई थी. 2007 में दोनों शादी के बंधन में बंधे. तब ऐश की उम्र 34 साल थी और अभिषेक की 31 साल. इस कपल की शादी को पूरे 15 साल हो चुके हैं. ये एक प्यारी सी बेटी आराध्या बच्चन के मातापिता भी बन चुके हैं.

बौलीवुड फिल्मों को बहुत पहले छोड़ चुकीं नम्रता शिरोडकर ने साउथ के सुपरस्टार महेश बाबू से शादी की है. नम्रता पति महेश से बड़ी हैं. दोनों की उम्र में 4 साल का अंतर है. महेश बाबू और नम्रता ने अपनी शादी का फैसला करने से पहले 5 साल तक डेट किया था. दोनों 10 फरवरी, 2005 को शादी के बंधन में बंधे थे और अब उन के 2 बच्चे हैं- गौतम और सितारा.

इस लिस्ट में बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर का नाम भी शुमार है. बिपाशा अपने पति करण सिंह ग्रोवर से उम्र में पूरे 6 साल बड़ी हैं. बिपाशा ने टीवी के मशहूर अभिनेता करण सिंह ग्रोवर से शादी रचाई थी. इस जोड़े ने 2016 में शादी की थी. बिपाशा और करण भी 1 बेटी देवी के मातापिता बन चुके हैं.

कैटरीना की समझारी

कैटरीना ने अपना हमसफर बस एक झटके में ही चुन लिया था. सभी ये कयास लगाते थे कि सलमान खान के साथ कैटरीना की शादी होगी. मगर सभी खबरें तब अफवाह बन कर रह गईं जब कैटरीना ने विक्की कौशल से शादी कर ली. कैटरीना की उम्र 40 साल और विक्की कौशल की उम्र 35 साल है. दोनों 2021 में शादी के बंधन में बंधे थे.

नेहा धूपिया ने भी खुद से 2 साल छोटे उम्र के अंगद बेदी से शादी की है. दोनों ने 2018 में शादी रचाई थी. आज दोनों नेहा और अंगद 2 बच्चों के मातापिता बन चुके हैं.

शादी तय करते समय मातापिता अपने बेटे के लिए उस से उम्र में छोटी लड़की को ही पसंद करते रहे हैं. हालांकि वक्त के साथ लड़कियों ने इस ट्रैंड को बदल कर रख दिया है. अब लड़कियां खुद से बड़े नहीं बल्कि छोटे लड़कों से शादी करना चाहती हैं, जिस के पीछे कारण भी बेहद दिलचस्प और ठोस हैं. छोटी उम्र के लड़के नेचर से काफी ऐक्टिव और स्पोर्टी होते हैं. उन्हें रोजाना नईनई चीजों के साथ ऐक्सपैरिमैंट करना पसंद होता है. इस के अलावा कम उम्र के लड़के के साथ रहने पर लड़कियों को अपनी असली उम्र का पता भी नहीं लगता. ऐसे लड़कों के साथ रहने पर लड़कियां खुद को यंग और चुस्त फील करती हैं.

कैरियर में मदद

छोटी उम्र के लड़कों से शादी करने पर लड़कियों की लाइफ में हमेशा रोमांस बना रहता है. समय के साथ आप का प्यार कभी बूढ़ा नहीं होगा. आपका पार्टनर आप की समझदारी से दूर अपनी चुलबुली बातों से आप को इंप्रैस करता रहेगा. अगर कोई लड़की खुद से कम उम्र के लड़के को लाइफ पार्टनर बनाती है तो उसे अपने पार्टनर से हर चीज का ज्यादा अनुभव होता है. इस के अलावा वह अपने कैरियर, लाइफ में भी सैटल होगी.अपने अनुभव अपने पार्टनर के साथ शेयर करते हुए वह उसे उस का कैरियर बनाने में भी मदद कर सकती है.

कम उम्र के लड़के के साथ शारीरिक संबंध बनाने से कोई नुकसान नहीं होता है. एक रिसर्च के अनुसार खुद से बड़ी उम्र की महिलाओं को देख कर लड़कों में टेस्टेस्टेरौन हारमोन का लैवल बढ़ जाता है. यही वजह है कि लड़के खुद से बड़ी उम्र की महिलाओं की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं.

भारतीय सामाजिक परिवेश की बात करें तो यहां मान्यता है कि पत्नी की उम्र पति से कम होनी चाहिए. मगर समाज की इस मान्यता को तोड़ कर की गई कई शादियां इसी समाज में  मिल जाएंगी. हालांकि इन सभी बातों के अलावा एक अच्छे रिश्ते के लिए सब से जरूरी है कि दोनों के बीच आपसी समझ होनी चाहिए. अगर आप दोनों हर स्थिति में एकदूसरे का साथ दे सकते हैं तो आप अपने हमउम्र से भी शादी कर सकते हैं और अपने से कम उम्र के पार्टनर के साथ भी.

New Look : बिना शौपिंग पाएं नया लुक, फौलो करें ये टिप्स

New Look : भूमिका ने जैसे ही तैयार होने के लिए अपनी कवर्ड खोली सारे कपड़े जमीन पर आ गिरे. काफी खोजने के बाद भी उसे वह जींसटौप नहीं मिले जो उसे पहनने थे. खैर, जैसेतैसे सारे कपड़ों को कवर्ड में ठूंसा और बेमन से सामने हैंगर पर टंगा अनारकली सूट पहन कर शौपिंग के लिए निकल गई.

यामिनी को कभी अपनी कवर्ड में मनचाहा आउटफिट नहीं मिलता. कभी किसी सूट के साथ का प्लाजो नहीं मिलता तो कभी जींस के साथ का टौप. नतीजतन, जो आउटफिट हाथ लगा पहन कर जाना पड़ता.

यह यामिनी या भूमिका की ही नहीं हम सब की समस्या है कि कवर्ड कपड़ों से भरी होने के बावजूद कहीं जाते समय उन के पास पहनने को कुछ नहीं होता. इस का सब से बड़ा कारण है आप के द्वारा की गई बेतरतीब खरीदारी. वास्तव में पिछले कुछ सालों में लोगों की आमदनी में बहुत वृद्धि हुई है जिस के कारण उन की शौपिंग में भी बहुत अधिक इजाफा हुआ है. जब भी हम अपने लुक में कुछ चेंज चाहती हैं मौल जा कर शौपिंग कर लाती हैं जबकि थोड़ी सी सूझबूझ से बिना शौपिंग के ही हम अपने लुक में बदलाव ला सकती हैं.

एक सर्वे के अनुसार एक आम आदमी सालभर में लगभग 2 लाख रुपए कपड़ों पर खर्च करता है परंतु आश्चर्य की बात है कि इतना खर्च करने के बाद भी उन के पास पहनने को कुछ नहीं होता. इस का कारण है उन के द्वारा बिना सोचेसमझे खरीदारी करना.

ऐसे में यदि शौपिंग करते समय आप कुछ बातों का ध्यान रखें तो काफी हद तक आप इस समस्या से बच सकते हैं, साथ ही अनावश्यक खर्च करने से भी.

प्लान कर के शौपिंग पर जाएं

मनीषा जब भी शौपिंग पर जाती है हमेशा दुकान पर पहुंच कर सोचती है कि उसे क्या खरीदना है. नतीजा, बिना कुछ सोचविचार किए कुछ भी खरीद लाती है और फिर सोचती है कि मैं ने इसे क्यों ख़रीदा, इसे कहां पहनूं. इस की अपेक्षा आप बाजार जाने से पहले ड्रैस को पहनने का औकेजन, फैब्रिक, बजट और डिजाइन घर से सोच कर जाएं ताकि आप अपनी रेंज और चौइस दुकानदार को बता सकें. इस से आप ओवर बजट होने और अनावश्यक कपड़े लेने से तो बच ही जाएंगी साथ ही कम समय में शौपिंग भी कर सकेंगी.

खरीदारी में हो समझदारी

आकांक्षा जब भी बाजार जाती है हर बार एक टौप या जींस यह सोच कर ही ले आती है कि सस्ता है तो ले लेती हूं. नतीजतन, एक ही पैटर्न के ढेर सारे टौप उस के पास इकट्ठे हो गए हैं. आप भले ही 200 रुपए के 4 टौप खरीदें परंतु उन 4 टौप पर आप ने कीमत तो 800 रुपए ही चुकाई परंतु सस्ता होने के कारण उन की क्वालिटी अच्छी नहीं होती और वे 1-2 बार धोने के बाद अपनी चमक खो देते हैं इसलिए 4 की जगह आप अच्छे फैब्रिक और क्वालिटी का एक ही क्लासी कपड़ा खरींदे ताकि उसे कहीं पर भी पहन कर जाया जा सके.

ट्रैंड को करें नजरअंदाज

राधिका की आदत है कि जो भी कलर और पैटर्न ट्रैंड में होता है वह एकसाथ कई ड्रैसेज यह सोच कर खरीद लेती है कि फैशन के कपड़े पहन कर वह स्टाइलिश लगेगी पर कुछ दिनों के बाद ही वह ड्रैस आउट औफ फैशन हो जाती है और उस के वे कपड़े कवर्ड में जगह घेरते रहते हैं. इस तरह की आदत से आप को हमेशा यही लगेगा कि आप के पास पहनने को कुछ नहीं है क्योंकि फैशन का ट्रैंड हर महीने बदलता रहता है. ट्रैंडी कपड़ों की जगह आप अपनी कवर्ड में बेसिक आल टाइम फैशन में रहने वाले आउटफिट रखें और फिर ट्रैंड के अनुसार उन्हें स्टाइल कर के पहनें. हां, आप चाहें तो एकाध ट्रैंडी ड्रैस खरीद सकती हैं.

वैराइटी को दें प्राथमिकता

वंशिका हर बार काले, सफेद और ग्रे रंग के कपड़े खरीद लाती है जिस से जब उसे कुछ अलग रंग का पहनना होता है तो हमेशा क्या पहनूं की समस्या उत्पन्न हो जाती है. एकजैसे पैटर्न, रंग और फैब्रिक की अपेक्षा विविधतापूर्ण ड्रैसेज खरींदे ताकि हर ओकेजन के लिए आप के पास कपड़े हों.

स्टाइलिंग करें

आजकल स्टाइलिंग बहुत माने रखती है. जरा सी सूझबूझ से आप साधारण सी ड्रैस को भी स्टाइलिश बना सकती हैं. उदाहरण के लिए सिंपल से जींसटौप पर आप एक सिल्क का स्टोल स्टाइल कर के डाल लें आप की ड्रैस पार्टी में पहनने के लिए तैयार हो जाएगी. प्लेन सूट पर बनारसी, महेश्वरी, चंदेरी और काथा वर्क की चुन्नी स्टाइल करने से आप का सूट किसी भी ओकेजन पर पहनने के लिए तैयार हो जाएगा.

डिक्ल्टरिंग करें

हमेशा अपनी कवर्ड और ड्रैसेज से संतुष्ट रहने वाली नवीना कहती है कि मैं ने अपनी शौपिंग का नियम बनाया हुआ है कि मैं जब भी कोई नया कपड़ा खरीदती हूं तो पहले कवर्ड में से वे कपड़े बाहर कर देती हूं जिन्हें मैं यूज नहीं कर रही होती हूं, इस से मेरी कवर्ड कभी ओवरवेट नहीं होती और कभी भी यह समस्या नहीं होती कि मैं क्या पहनूं क्योंकि मैं जो भी पहनना चाहती हूं वह चुटकियों में मिल जाता है.

मिक्स ऐंड मैच करें

जरूरी नहीं कि हर ओकेजन के लिए नए कपड़े ही खरीदे जाएं. किसी भी जींस को एक नए टौप के साथ, कुरते को पुरानी लैगिंग्स के साथ या फिर साड़ी को फैशनेबल ब्लाउज के साथ पहन कर एकदम नया लुक दिया जा सकता है. इस से आप कम खर्चे में ही नया लुक पा सकेंगी.

रिसाइक्लिंग देगी नया लुक

पुरानी और कम पहनी या आउट औफ फैशन साड़ी से गाउन, सूट और टौप बनवा कर आप साड़ी के साथसाथ ख़ुद को भी नया लुक दे सकती हैं. आजकल साड़ी के ऊपर जैकेट का फैशन ट्रैंड में है. आप साड़ी के पल्लू से जैकेट और शेष भाग से स्लीवलैस मैक्सी अथवा लौंग टौप और स्कर्ट बनवा कर खुद को नया लुक दे सकती हैं.

Domestic Abuse : पति की जबरदस्ती के कारण मेरा आत्महत्या करने का मन करता है?

Domestic Abuse : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है. दरअसल, पति सैक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सैक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभीकभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं. हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते.

अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं. सिर्फ इतना ही कहा कि धीरेधीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सैक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सैक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सैक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सैक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है. हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सैक्स के दौरान सब भूल जाते हैं.

आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी.

ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है. सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें.

बेहतर होगा कि किसी अच्छे सैक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Kahani : करो ना क्रांति – राजकुमारी को क्या मिला था सबक

Hindi Kahani :  आज़ादी का दिन जब पहली बार आयोजित किया गया होगा, कितना उल्लास रहा होगा हर भारतीय के मन में. परन्तु आज आज़ादी के ७० वर्ष बाद यह कोरोना का लौकडाउन महज़ छुट्टी का एक दिन भर रह गया हैं. पुरुष पूरा दिन आदेश देने में व्यतीत करते हैं और स्त्रियाँ उसे पूरा करने में. प्रकृति ने भी स्त्री और पुरुष की रचना करते समय अंतर किया था. सारी पीड़ा तो स्त्री के हिस्सें मे डाल दी और पुरुष को दे दिया कठोर संवेदनहीन दिल. स्त्रियाँ तो १५ अगस्त १९४७ के पूर्व भी पराधीन थीं, और आज भी हैं. स्त्रियाँ भी अपनी इस दशा के लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं क्योंकि पराधीनता को अपनी नियति मान स्वीकार भी तो उन्होंने ही किया है, शायद धर्म के धुरंधर प्रचार के कारण.

“भाभी हल्वे में चीनी कितनी डालूँ ?” विराज के तेज़ी से दोड़ते सोच के घोड़ों को अदिति की आवाज़ के चाबुक ने लगाम लगा कर रोक दिया था.जमीनी हकीकत जानते हुए भी, पता नहीं क्यों उसके मन के भीतर सोयी हुई एक्टिविस्ट गाहे-बगाहे जाग उठती थी.अमर की आदेशों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. घर के काम में उसकी सहायता के लिये आने वाली बाई विमला को भी संक्रमण के खतरे की वजह से उसने छुट्टी दे दी थी. पता नहीं वह कैसे गुजारा कर रही होगी. कहा भी था कि उसे घर पर ही रहने दें, कुछ आराम हो जाएगा और उसको वेतन भी दिया जा सकेगा.

इन्हें ही लगा थाकि न जाने कहां से कोरोना लें आई हो. मेरी एक नहीं चली. सब ने कहा कि वे खुद काम कर लेंगे. पर अब घर के सभी कामों की जिम्मेदारी विराज और उसकी ननद अदिति के ऊपर आ गयी थी. अदिति दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुवेशन कर रही थी. विराज का प्रयास था कि अदिति पर भी कम से कम काम का दबाव पड़े. इसलिये वो अधिकतर काम स्वयं ही निबटा ले रही थी. उसके दोनों बच्चें १० साल की आन्या और १२ साल का मानव अपने कमरे में वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. पति अमर अपने कमरे में अधलेटे हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थें.

अचानक वहीं से चीख कर बोलें,“सुनो आज नेटफलिक्स पर एक नयी फिल्म आयी है. सब साथ ही देखेंगे.” फिर थोड़ा रुककर बोलें, “ये तुम्हारे बच्चें इतना शोर क्यों कर रहे हैं? देखो जरा !”अन्य दिन तो वर्क फ्रौम होम होता था तो फिर भी अमर समय पर नहा लिया करते थें. लेकिन शनिवार होने के कारण महाशय छुट्टी मोड में चले गये थें. बच्चों की तो खैर, छुट्टियाँ ही थी. “बाबू साहेब सुबह से लेटे-लेटे हुक्म दे रहे हैं. मैं घर के रोजमर्या के कार्यों के साथ बढ़े हुये कामों को भी निबटाने में लगी हूँ, यह नहीं दिख रहा हैं जनाब को. जब कुछ गलत करे तो बच्चें मेरे, परन्तु जब यही बच्चें कुछ अच्छा करते हैं, तो इनके हो जाते हैं.”

सोच तो इतना कुछ लिया विराज ने परन्तु प्रत्यक्ष में इतना भर कह पाई, “जी, बस अभी देखती हूँ.”
सभी काम निबटाने में बारह बज गये थें. पूरा परिवार फिल्म देखने बैठ गया. विराज ने सोचा थोड़ा सुस्ता ले, तभी अमर की आवाज कानों में पड़ी. “अरे विराज कहाँ हो भई?”“थोड़ा थक गयी थी. सोचा लेट लेती हूँ !” विराज अनमनी सी हो गयी थी. “अरे इतनी मुश्किल से तो फैमिली टाइम मिला है. उसमें भी इन्हें सोना है !”
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अमर की बात सुनकर विराज को ऐसा मालूम हुआ जैसे गुस्से की एक लहर तनबदन में रेंग गयी हो. मन में आया कि कह दे, “फॅमिली टाइम या पैर फैलाकर ऑर्डर देने का टाइम.” वैसे आम दिनों में भी अमर घर का कोई काम नहीं करते थें. लेकिन विमला और अदिति की सहायता से काम हो जाता था. फिर विराज को थोड़ा मी टाइम भी तो मिल जाया करता था. लेकिन अब तो विराज के पास दो घड़ी बैठकर चाय पीने का भी समय नहीं था.

“अरे कहाँ रह गयी !?” अमर ने जब दुबारा बुलाया विराज को मन मारकर जाना ही पड़ा. फिल्म वाकई में अच्छी थी. विराज को भी अच्छा लग रहा था कि पूरा परिवार एक साथ बैठा था. तभी अचानक अमर ने फरमान सुनाया, “विराज पकोड़े बना लो. फिल्म के साथ सभी को मजा आ जायेगा.”“सभी को या तुम्हें !” विराज के इस अचानक पूछे गये प्रश्न पर अमर चौंक गया था. फिर थोड़ा गुस्से में बोला, “मैं तो सभी के लिये कह रहा था. तुम्हारा मन नहीं तो मत बनाओ.”

“मम्मी प्लीज” अब तो बच्चें भी चिल्लाने लगे थें. विराज उठ कर रसोई में चली गयी थी.
थोड़ी देर बाद अदिति को वहाँ बैठी देखकर, अमर बोल पड़े थे,” अरे तुम कहाँ  बैठ रही हो, अंदर रसोई में जाओ भाभी के साथ.”अदिति के चेहरे पर एक पल की झेंप को पहचान लिया था विराज ने. दोनों की नज़रें मिली और हालें दिल बयां हो गया था. विराज ने इशारे से अदिति को अंदर बुला लिया था.
अंदर रसोई में भी कुर्सियां लगी हुई थी, उनमें से एक पर अदिति को बैठने का इशारा करके विराज ने अपना सारा ध्यान गैस पर रखी हुई कढ़ाई पर लगा दिया था.

“कितनी गर्मी हैं आज!” अदिति ने बात शुरू करने के लिए यह जुमला कहा था शायद.
“हमम! चाहो तो वापस कमरे में जाकर बैठ जाओ, वहां तो ए सी लगा है.”
“नही-नहीं, मैं ठीक हूँ.”“भाभी आपको क्या लगता है, यह लॉकडाउन कब तक रहेगा?” अदिति फिर बोली थी.“देखो कब तक चलता है ! बस देश में सब ठीक रहें !” विराज ने दार्शनिक के अंदाज़ में कहा.
“भाभी मुझे आपके साथ बातें करना बहुत पसंद है.” अदिति ने बात बदल दी थी.

“आजकल हमें समय भी बहुत मिल रहा है. तुम्हारे साथ कितनी विषयों पर बातें हो जाती हैं” विराज ने उसकी बात का अनुमोदन किया था.“आप तो मेरी प्यारी भाभी है !” अदिति ने पीछे से विराज को अपने अंक में भर कर कहा था. “इसी बात पर मेरी तरफ से तुम्हें ट्रीट.” विराज ने मुस्कुराते हुए कहा.
“क्या मिलेगा ट्रीट में ?” अदिति ने पूछा था.“तुम पहले ये पकौड़े दे आओ. खाना तो तैयार ही है. तुम्हें अच्छी सी चाय पिलाती हूँ?”“भाभी आप चाय लेकर बालकोनी में चलो, मैं पकोड़े देकर आती हूँ.” अदिति ने बड़े प्यार से विराज को कहा था.

“लॉकडाउन में भी इन्हें पाँच दिन का काम और दो दिन की छुट्टी मिल रही है, परन्तु हमें कब मिलती हैं छुट्टी? यदि कुछ कहूँगी तो एक ही उत्तर मिलेगा, तुम तो सारा दिन घर में आराम ही करती हो. हमें तो बड़ी मुश्किल से छुट्टियाँ मिलती हैं. उस समय दिल करता हैं की कह दूँ, यह आराम एक दिन के लिए तुम भी लेकर देखो .” “तो कहती क्यों नहीं ?” विराज को पता ही नहीं चला था कि कब उसके मन की आवाज जबान से निकलने लगी थी. अदिति ने सब सुन लिया था. उसके प्रश्न का उत्तर सोचने में विराज को समय लगा. अदिति भी पास आकर बैठ गयी और अपना प्रश्न दोहरा दिया था. इस बार विराज बोली थी.
“अब बात तो उनकी भी पूरी तरह से गलत नहीं हैं. ऑफिस में परेशानी तो कई तरह की होती ही हैं.” अब विराज का स्वर बदल गया था.

“पुरुषों से अपने कार्य के लिए सम्मान की अपेक्षा हम तभी कर सकते हैं जब स्वयं हम अपने कार्य को सम्मानित महसूस करे.” अदिति की आँखों में चमक थी. “हमारे कार्य का कोई आर्थिक महत्व नहीं हैं, सम्मान इस दुनिया में द्रव्य सम्बन्धी हैं.” विराज ने एक आह भरकर अपनी बात रखी थी.
“मैं ऐसा नहीं मानती. कामकाजी स्त्रियों को कौन सा सम्मान ज्यादा मिल जाता हैं? घर आकर उन्हें भी चूल्हा-चौकी की इस आग में जलना ही पड़ता हैं. बाहर से थक कर दोनों ही आते हैं, परन्तु पुरुष के हिस्से आती हैं टीवी का रिमोट और सोफे का आराम. स्त्री के हिस्से आती हैं रसोई और बच्चों की पढाई.” अदिति ने उसकी इस बात का खंडन किया था.

विराज उनकी बातों को अनमने भाव से सुन रही थी कि अनायास ही नीचे की फ्लैट से आ रही एक स्त्री की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था. विराज उसे नहीं जानती थी. कभी मिलने का समय ही नहीं मिल पाया था. वो और उसके पति दोनों ही इंजीनियर थें. कभी-कभी बालकोनी से उनके मध्य एक मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाया करता था.

वो किसी से फोन पर बात कर रही थी-“मेरी राय में इसमें मर्दों से ज्यादा औरतों की गलती हैं. दोष पुरुष पर डाल कर औरत अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती. बचपन से मर्द को यह बताया जाता हैं की तेरे सारे काम करने के लिए घर में एक स्त्री हैं. उसकी परवरिश ही ऐसी होती हैं की वो स्वभाववश ही आराम पसंद हो जाता हैं. कभी माँ, कभी बहन, कभी बीवी बन कर हम औरतें ही उन्हें आलसी बना देती हैं. अब जब मर्द को यह पता हो की, घर में औरत हैं उसका काम करने को तो फिर वो क्यों अपने शरीर को कष्ट देगा. आराम किसे बुरा लगता हैं? इसलिए वो तो काम नहीं करेगा, तुझे काम करवाना पड़ेगा. उसे समझाने से पहले तुझे खुद समझना होगा की तू भी इन्सान हैं और तुझे भी आराम की उतनी ही जरुरत हैं. तुझे क्या लगता हैं रवि  हमेशा से घर के काम में मेरी मदद करता था ! नहीं, उसे खाना बनाना मैंने सिखाया हैं. अब देख मुझे से भी अच्छी खीर बनाता है. चल अब फ़ोन रखती हूं, रवि बुला रहा है.”

फ़ोन रख कर न मालूम किस भावना के वशीभूत होकर उसने ऊपर देखा. वहाँ दो जोड़ी आँखों को अपनी ओर घूरता पाया. उन आँखों में इर्ष्या और सम्मान का भाव एक साथ मौजूद था. इर्ष्या इसलिए कि जो बात वे अभी तक सोच भी नहीं पाई थी, उसे वो इतने अच्छे से समझ गयी थी. सम्मान इसलिए कि न केवल समझी थी अपितु अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी ले आई थी.उन दोनो की खामोशी ने एक दूसरे से संवाद कर लिया, और एक छोटी सी चिंगारी उसकी आँखों से विराज की आँखों में प्रवेश कर गयी थी. बिना किसी शोर के एक मूक क्रांति का जन्म हुआ था.वो अंदर चली गयी थी. अदिति और विराज दोनों चुप थें.

“मध्यम वर्ग की सोच में बदलाव एक क्रांति ही ला सकती हैं.” अदिति ने चुप्पी तोड़ी थी.“तब तक …” विराज ने प्रश्न ऐसे पूछा था जैसे उत्तर उसे पहले से पता हो.“जो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा.” अदिति जैसे स्वयं को समझा रही थी.उसकी बात सुनकर विराज एक मुस्कान के साथ बोली, “ बात किसी वर्ग की नहीं हैं. बात सिर्फ इतनी है कि, जो तू कहता है, बात सही लगती हैं; पर वो मेरे नहीं तेरे होठों पर सजती है.”“आप कहना क्या चाहती हैं !?” अदिति के स्वर में उत्सुकता थी.

“समाज में सकारात्मक परिवर्तन के हम सभी पक्षधर हैं. परन्तु पहला कदम उठाने से डरते हैं.  बदलाव केवल क्रांति ही ला सकती हैं, यह एक भ्रान्ति हैं. आत्मविश्वास के साथ बढे हुए छोटे-छोटे कदम भी परिवर्तन ला सकते हैं.” “जैसे की …” अदिति को विराज की बातों ने जैसे सम्मोहित कर लिया था.
“बच्चों को खाने के लिए बुला लेते हैं.” विराज ने अनायास ही बातों का रुख बदल दिया.
दोनों ही वर्तमान में लौट आये थें.“हाँ, मैं आन्या को बुला लाती हूँ. खाना लगाने में मदद कर देगी.”
“क्यों?” विराज ने अदिति की तरफ बिना देखे पूछ लिया था.??? अदिति के चेहरे पर प्रश्न था.
“मानव क्या करेगा ? पुरुष होने की उत्कृष्टता का लाभ लेगा ! बदलाव अपनी परवरिश में लाना होगा. अपने बेटों को हुक्म देने वाला नहीं, साथ देने वाला पुरुष बनाना होगा, और अपनी बेटियों को गलत का विरोध करना सिखाना होगा. तुम समझ रही हो ना !?”

विराज के इन शब्दों ने जैसे अदिति पर जादू कर दिया था. पहला कदम लेना उतना मुश्किल भी नहीं था.
“भाभी, मैं अभी मानव और आन्या को बुला कर लाती हूँ. आज उन्हें मेज़ पर खाना लगाना सिखाते हैं” लगभग उछलती हुई अदिति अंदर की तरफ चली गयी थी. कुछ सोचकर विराज भी उस तरफ चल दी थी, आखिर बड़े बच्चे को भी तो उसका नया पाठ समझाना था.

जब विराज बैठक में पहुंची तो अमर किसी से फोन पर बात कर रहे थें. टी वी बंद था. बच्चें भी अपने कमरे में जा चुके थें. अमर की स्त्री स्वतंत्रता और सशक्तिकरण पर चर्चा अभी-अभी समाप्त हुई थी. पुरुष बॉस और स्त्री बॉस में कौन ज्यादा प्रभावी होता हैं; इस प्रिय विषय पर वाद-विवाद कई घंटों तक चला था. स्त्रियों की मानसिक क्षमता का भी आंकलन हो चुका था. अभी शेरों-शायरी का दौर जारी था और श्रीमान अमर जी एक शेर सुना रहे थें.

“एक उम्र गुजार दी तेरे शहर में, अजनबी हम आज भी हैं.तेरी ख्वाहिशों के नीचे, मेरे दम तोड़तें ख्वाब आज भी हैं….”अमर ने अपनी पंक्तियाँ अभी समाप्त ही की थी की विराज ने उन्ही पंक्तियों के साथ अपने शब्द जोड़ दिए थें …. “तेरे दर्वाज़ाऐ क़ल्ब पर दस्तक देते मेरे हाँथों को देखा हैं कभी
तेरी गर्म रोटी की चाह में झुलसे मेरे हाथ तब भी थे और आज भी हैं …”

अमर चौंक कर पलट गये थें. अपने स्वप्न में भी विराज से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद उन्होंने नहीं की थी. उन्होंने कंधे उचका कर विराज से कारण पूछा. बेपरवाह विराज ने उनके कान पर से फोन हटाया और कॉल काट दी. कमरे में तूफान के बाद वाली शांति पसर गयी थी.अपनी दम्भी आवाज़ में अमर ने पूछा था, “यह क्या हो रहा है विराज !?

“कुछ नहीं! इस कोरोना फीवर ने मुझे दो बातें समझा दी हैं.”“अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूँ कौन-कौन सी !” अमर के स्वर में तल्खी थी. विराज सामने पड़े सोफ़े पर आराम से बैठकर बोली, “पहली तो ये कि सही शिक्षा किसी भी उम्र में दी जा सकती है; मात्र एक मंत्र पढ़ना है, तुम भी करो ना. दूसरी, फॅमिली टाइम घर की स्त्रियों के लिये भी होता है. घर सभी का तो घर के काम मात्र स्त्री के क्यों ! मुसीबत तो सब पर आयी है, तो उसका सामना भी तो सबको मिलकर ही करना होगा.”

इतना कहकर विराज ने पलट कर पीछे देखा. आन्या और अदिति मेज पर खाना लगा रहे थें और मानव ग्लासों में पानी भर रहा था. अमर की नजर भी विराज की नजर का पीछा करते हुये उधर ही चली गयी थी.
“सुनो !” विराज की आवाज पर अमर ने उसकी तरफ देखा.“खाना तैयार हैं, मेज़ पर लगा दिया हैं. अदिति अपना और मेरा खाना यहीं ले आयेगी.”

अमर चुपचाप अंदर की तरफ जाने लगा था कि विराज ने फिर पुकारा-“सुनो ! बड़े बर्तन तो मैंने धो दिये थें. अपने और बच्चों के बर्तन धोकर अलमारी में रख देना.” इतना कहकर बिना अमर की तरफ देखे, विराज टी वी खोलकर अपना धारावाहिक देखने में तल्लीन हो गयी थी. घर में करो ना क्रांति का बिगुल बज चुका था. टीवी से आवाज़ आ रही थी.

राजकुमार कुछ देर तक राजकुमारी के विचार परिवर्तन की राह देखता रहा. वह उनके कोमल ह्रदय को लेकर विश्वस्त था. परन्तु राजकुमारी की अनभिज्ञता उसे व्यग्र कर रही थी. उसकी निर्निमेष दृष्टि से अविचलित राजकुमारी अपनी सखियों के साथ आखेट में व्यस्त थी. राजकुमारी की ना को हाँ में बदलने का दम्भ जो उसने अपने मित्रों के सामने भरा था, वह दम तोड़ रहा था. थके क़दमों से वह आगे बढ़ गया था. इस परिवर्तन को उसने अनमने भाव से स्वीकार कर लिया था. अपनी गले में लटकती माला से खेलती हुयी राजकुमारी भी जानती थी कि यह पहला सबक था, पूरी शिक्षा अभी शेष थी.

Stories : अपरिमित – अमित और उसकी पत्नी के बीच क्या हुई थी गलतफहमी

Stories : ” दरवाज़ा खुलने की आवाज़ के साथ ही हवा के तेज़ झोंके के संग बरबैरी पर्फ़्यूम की परिचित ख़ुशबू के भभके ने मुझे नींद से जगा दिया .” तुम औफ़िस जाने के लिए तैयार भी हो गए और मुझे जगाया तक नहीं .” मैने मींची आँखों से अधलेटे ही अमित से कहा .” तुम्हें बंद आँखों से भी भनक लग गई की मैं तैयार हो गया हूँ .” अमित ने चाय का कप मेरी और बढ़ाते हुए कहा . भनक कैसे ना लगती ..यह ख़ुशबू मेरे दिलो दिमाग़ पर छा मेरे वजूद का हिस्सा बन गई है . मैंने मन ही मन कहा.

” थैंक्स डीयर !”

” अरे , इसमें थैंक्स की क्या बात है . रोज़ तुम मुझे बेड टी देती हो , एक दिन तो मैं भी अपनी परी की ख़िदमत में मॉर्निंग टी पेश कर ही सकता . “उसके इस अन्दाज़ से मेरे लबों पर मुस्कुराहट आ गई .
” बुद्धू चाय के लिए नहीं कह रही .. थैंक्स फौर एवरीथिंग .. जो कुछ आज तक तुमने मेरे लिए किया है .” कहते हुए सजल आँखों से मैं अमित के गले लग गई . चाय पीकर वो मुझे गुड बाय किस कर ऑफ़िस के लिए निकल गया . उसके जाने के बाद भी मैं उसकी ख़ुशबू को महसूस कर पा रही थी . मैंने एक मीठी सी अंगड़ाई ली और खिड़की से बाहर की ओंर देखने लगी .कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .

अगले हफ़्ते राजस्थान एम्पोरीयम में मेरी पैंटिंग्स और मेरे द्वारा बने हैंडीक्राफ़्ट्स की एग्ज़िबिशन थी . साथ में मैं अपनी पहली किताब भी लॉंच करने जा रही थी . कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .अमित ने मेरे स्टडी रूम के तौर पर गार्डन फ़ेसिंग रूम को चुना था . उसे पता है मुझे खिड़कियों से कितना लगाव है . ये खिड़कियां ही हैं जिनके द्वारा मैं अपनी दुनिया में सिमटी हुए भी बाहर की दुनिया से और मेरी प्रिय सखी प्रकृति से जुड़ी रहती हू . बादलों के झुरमुट से , डेट पाम की झूलती टहनियों से , अरावली की हरीभरी पहाड़ियों से मेरा एक अनजाना सा रिश्ता हो गया है . ‘अपरिमित ‘ ये ही तो नाम रखा है , मैंने अपनी पहली किताब का. अतीत की वो पगली सी स्मृतियां आज अरसे बाद मेरे ज़ेहन में सजीव होने लगी .

हम तीन भाई बहन है . अन्वेशा दीदी , अनुराग भैया और फिर सबसे छोटी मैं यानि परी . दीदी और भैया शाम को स्कूल से लौटने के बाद अपना बैग पटक आस – पड़ौस के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाते वहीं मुझे अपने रूम की खिड़की से उन सबको खेलते हुए निहारने में ही ख़ुशी मिलती . मैं हम तीनों का ख़याल रखने के लिए रखी गई लक्ष्मी दीदी के आगेपीछे घूमती रहती . कभी वो मेरे साथ लूडो , स्नेक्स एंड लैडर्स खेलती तो कभी हम दोनों मिलकर मेरी बार्बी को सजाते . अन्वेशा दीदी बहुत ही चुलबुली स्वभाव की थी और उसका सेन्स औफ ह्यूमर भी कमाल का था जिससे वह किसी को भी अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेती थी . स्कूल , घर और आस – पड़ौस में सबकी चहेती थी . अनुराग भैया और मैं ट्विन्स थे . वे खेल – कूद , पढ़ाई सब में अव्वल रहते. उन्होंने कभी नम्बर दो रहना नहीं सीखा था . उन्होंने जन्म के समय भी मुझसे बीस मिनट पहले इस दुनिया में क़दम रख मेरे बड़े भाई होने का ख़िताब हासिल कर लिया था . मैं उन दोनों के बीच मिस्मैच सी लगती . मैं उन्हें देखकर अक्सर सोचती मैं ऐसी क्यों नहीं हो सकती . मम्मी – डैडी मुझे भी उन दोनों के जैसा बनाने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते .” आज तो मेरी छोटी गुड़िया ही अंकल को वो नई वाली पोयम सुनाएगी .” डैडी आने वाले मेहमानों के सामने प्रस्तुति के लिए मुझे ही आगे करते . पर मेरा सॉफ़्टवेर विंडो ६ था जिससे मेरी प्रोग्रैमिंग बहुत स्लो थी .जबकि मेरे दोनों भाई – बहन विंडो टैन थे , बहुत ही फ़ास्ट आउट्पुट और मैं कुछ सोच पाती उससे पहले पोयम हाज़िर होती और मैं मुँह नीचा किए अपने नाख़ून कुरेदती रह जाती .

एक दिन मैंने मम्मा को टीचर से फ़ोन पर बात करते सुना ,” मैम इस बार इंडेपेंडेन्स डे की स्पीच अनामिका से बुलवाइए , मैं चाहती हूं उसका स्टेज फीयर ख़त्म हो .” टीचर के डर से मैंने स्पीच तो तैयार कर ली पर स्पीच देने से एक रात पहले मैं अपनी दोनों बग़ल में प्याज का टुकड़ा दबाए सो गई ( मैंने कहीं पर पढ़ रखा था कि प्याज़ को बग़ल में डालने से फ़ीवर हो जाता है. जिससे दूसरे दिन मैं स्कूल ना जा पाऊँ .पर मेरी युक्ति असफल रही और दूसरे दिन ना चाहते हुए भी मुझे स्कूल जाना पड़ा . जिस समय मैंने स्पीच बोल रही थी वातावरण में सर्दियों की गुलाबी धूप खिल रही थी . स्टेज पर चढ़ते ही मेरे हाथ – पैर काँपने लगे थे , सर्दी की वजह से नहीं भय और घबराहट के मारे .

शाम को टीचर का फ़ोन आया था , कह रही थी आपकी बेटी ने कमाल कर दिया .”सुनकर मम्मा ने मुझे गले से लगा लिया . प्याज़ के असर से तो नहीं पर स्टेज फीयर से मुझे तेज़ फ़ीवर ज़रूर हो गया था .
मम्मा लैक्चरार थी . दोपहर को घर आकर थोड़ी देर आराम कर दूसरे दिन के लैक्चर की तैयारी में लग जाती .रात में अक्सर मैंने डैडी को मम्मा से कहते सुना था ,” अनामिका दिन ब दिन डम्बो होती जा रही है जब देखो गुमसुम सी घर में घुसी रहती है . उन दोनों को देखो घर , स्कूल दोनों में नम्बर वन .”

मैं उन लोगों से कहना चाहती थी मैं गुमसुम नहीं रहती हूँ … मैं अपने आप में बहुत ख़ुश हूँ . बस मेरी दुनिया आप लोगों से थोड़ी अलग है .धीरे – धीरे मुझ पर ‘डम्बो ‘ का हैश टैग लगने लगा था . जाने अनजाने मेरी तुलना दीदी और भैया से हो ही जाती थी . पर डैडी भी हार मानने वालों में से नहीं थे . उन्होंने मुझे हॉस्टल भेजने का फ़ैसला कर लिया .माउंट आबू के सोफ़िया बोर्डिंग स्कूल में मेरा अड्मिशन करवा दिया गया . वहाँ मैं सबसे ज़्यादा लक्ष्मी दीदी को मिस करती थी पर अब मैंने छिपकर रोना भी सीख लिया था . अब वह लाल छत वाला हॉस्टल ही मेरा नया आशियाना बन गया था . मुझे एक बात की तसल्ली भी थी की अब मैं गाहे बगाहे दीदी भैया से मेरी तुलना से तो बची .

वहां रहते हुए मुझे पांच साल हो गए थे . मुझमें अंतर सिर्फ़ इतना आया था कि अब मेरा हैश टैग डंबो से बदलकर घमंडी और नकचढ़ी हो गया . जहाँ पहले मेरी अंगुलियां एकांत में किसी टेबल , किताब या अन्य किसी सतह पर टैप करती रहती थी वो अंगुलियाँ घंटों पीयानो पर चलने लगी . आराधना सिस्टर ने ही मुझे पीयानो बजाना सिखाया था . मुझे वो बहुत अच्छी लगती थी . जब कभी मै अकेले में बैठी अपने विचारों में डूबी रहती तो वे एक किताब मेरे आगे कर देती . उन्होंने ही मुझमे विश्वास जगाया था तुम जैसी हो , अपने आप को स्वीकार करो . मुझे अपनी ज़िंदगी में ‘कुछ’ करना था .. पर उस कुछ की क्या और कैसे शुरुआत करूँ और कैसे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाऊँ यह पहेली सुलझ ही नहीं पाती थी .

मेरे अंतर्मुखी स्वभाव के चलते मैं अपने द्वारा बुने कोकुन से बाहर आने की हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी । यही नहीं औरों के सामने स्वयं को अभिव्यक्त करना और अपनी बात रखना मेरे लिए लोहे के चने चबाने के बराबर था. इसी कश्मकश में मै स्कूल पूरी कर कॉलेज में आ गई . आगे की पढ़ाई के लिए मुझे बाहर जाना था पर मैं माउंट आबू छोड़कर नहीं जाना चाहती थी . सिस्टर की प्रेरणा से ही ,मैंने कॉरसपॉन्डन्स से ग्रैजूएशन कर लिया और स्कूल में ही लायब्रेरीयन की जॉब करने लगी थी .

इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला.

” क्या आप मेरे साथ कौफ़ी शौप चलेंगी ?” वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक – दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी – टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए.

“तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा .” एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ,” मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . ”

” नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो .” तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई.

मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में.

“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा . “ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा.

“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? ”

“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”

“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ?”

“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”

“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”

“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”

“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”

“ वहां सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूं कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद – नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहां तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था.

“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आंसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .
शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया.

“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहां बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया.

“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूं पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था.

राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही. फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा.

शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी. मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी.

“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .
“ हाँ .. कोई शक ?”

“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा.

” मम्मा का फ़ोन आया था वो दो – तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं .” एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा.

“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी . ” ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा.

” ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . .” उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुंचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लौन में खड़ा था .

मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही .

“ सरप्राइज़ कैसा लगा ?”

मैं निशब्द थी . समझ नहीं आ रहा था कैसे रीऐक्ट करूं. जब कभी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में ज़ुबान असक्षम हो जाती है तो आँखें इस काम को बखूबी अंजाम देती है . मेरी आंखें अविरल बहने लगी .
“ तो ये तुम्हारी और मम्मी की मिली भगत थी ना ? बट ऐनीवेज़ …! आई ऐम फ़ीलिंग ब्लेस्ड़ …”

बस उस दिन के बाद मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा . मैंने अपनी कला को अपने जुनून और करीयर में बदल दिया. मैंने हौबी क्लासेस शुरू कर दी . मेरी शुरुआत दो तीन बच्चों से हुई थी , बढ़ते – बढ़ते यह संख्या सौ के पास आ गई . ख़ाली समय में मैं पैंटिंग्स बनाने लगी और बरसों से घुमड़ती मेरी भावनाओं को शब्दों का रूप देने के लिए मैंने एक किताब लिखनी भी शुरू कर दी .

अगर आज मैं आत्मनिर्भर बन पाई ख़ुद की एक पहचान बना पाई तो उसका पूरा श्रेय अमित को जाता है . नहीं तो मैं ख़ुद अपने अंदर की खूबियों को कभी जान ही नहीं पाती. हम दोनो नितांत अलग व्यतित्व थे . वह आईफ़ोन टेन की तरह , स्मार्ट और फ़ास्ट जिसका कवरेज एरिया अनंत में फैला था . और मैं नब्बे के दशक का कॉर्डलेस फ़ोन जिसका सिमटा हुआ सा कवरेज एरिया है. मैं स्वयं ही अपनी डिजिटल उपमा पर मुस्कुरा उठी . यह अमित की सौहबत और मौहब्बत का ही तो असर था.

मैं जैसी भी थी उसने मुझे स्वीकार किया . हमेशा मेरी भावनाओं को समझा , ख़ुद को मुझमें ढालने की कोशिश की कभी मुझे बदलने की कोशिश नहीं की . बल्किं मेरी कमियों को मेरी ताक़त बनाया .
हवा के तेज झोंके से विंड चाइम की घंटियों की आवाज़ से मैं विचारों की दुनिया से बाहर लौट आई . एग्ज़िबिशन की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी . सारी आइटम्स को फ़िनिशिंग टच देने में मुझे समय का पता ही नहीं चला.

शाम घिरने को आई थी और अमित ऑफ़िस से लौटकर आ चुके थे . मैं बहुत खुश थी . उसे देखते ही मैं उसके गले से लग गई.

“ ये सब तुम्हारी वजह से ही मुमकिन हुआ है . तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरी हूं. अब हम अमित और परी नहीं रह गए हैं . एक दूसरे में गुंथ कर ‘अपरिमित’ बन गए हैं .” मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा .
अमित ने अपनी बांहों के घेरे को थोड़ा ओंर मज़बूत कर लिया . मुझे लग रहा था मैं उसमें , उसके अहसासों में , उसके प्यार में सरोबार हो उसमें समाती चली जा रही हूं.

किसी ने सच ही तो कहा है , विवाह की सफलता इसी में है कि शादी के बाद पति – पत्नी एक दूसरे की कमज़ोरियों को परे रख और एकदूसरे के लिए अपनेअपने कम्फर्ट ज़ोन से निकलकर ही तो मैं और तुम से हम बन जाते हैं.

Hindi Story : तोरण – गोयनकाजी की क्या थी कहानी

Hindi Story :  पाखी मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के विहंगम दृष्टि से पूरे परिवेश को निहारती है. होटल राजहंस का बाहरी प्रांगण कोलाहल के समंदर में गले तक डूबा हुआ है. बरातीगण आकर्षक व भव्य परिधान में बनठन कर एकएक कर के इकट्ठे हो रहे हैं. गोयनकाजी जरा शौकीन तबीयत के इंसान हैं. इलाके के किंग माने जाते हैं. पास के मिलिटरी कैंट से आई बढि़या नस्ल की घोड़ी को सलमासितारों व झालरलडि़यों के अलंकरण से सजाया जा रहा है. बाईं ओर सलीम बैंड के मुलाजिम खड़े हैं गोटाकिनारी लगी इंद्रधनुषी वरदियों में सज्जित अपनेअपने वाद्यों को फिटफाट करते. मकबूल की सिफारिश पर पाखी को सलीम बैंड में लाइट ढोने का काम मिल जाता है. इस के लाइट तंत्र में 2 फुट बाई 1 फुट के 20 बक्से रहते हैं. हर बक्से पर 5 ट्यूबलाइटों से उगते सूर्य की प्रतीकात्मक आकृति, दोनों ओर 10-10 बक्सों की कतारें. सभी बक्से लंबे तार द्वारा पीछे पहियों पर चल रहे जनरेटर से जुड़े रहते हैं.

मकबूल, इसलाम और शहारत तो पाखी की बस्ती में ही रहते हैं. मकबूल ड्रम को पीठ पर लटकाता है तो अचानक उस की कराह निकल जाती है. ‘‘क्या हुआ, मकबूल भाई?’’ पाखी पूछ बैठती है, ‘‘यह कराह कैसी?’’

‘‘हा…हा…हा…’’ मकबूल हंस पड़ता है, ‘‘बाएं कंधे पर एक फुंसी हो गई है. महीन हरी फुंसी…आसपास की जगह फूल कर पिरा रही है. ड्रम का फीता कम्बख्त उस से रगड़ा गया.’’

‘‘ओह,’’ पाखी बोलती है, ‘‘अब ड्रम कैसे उठाओगे? फीता फुंसी से रगड़ तो खाएगा.’’

‘‘दर्द सहने की आदत हो गई है रे अब तो. कोई उपाय भी तो नहीं है,’’ मकबूल फिर हंस पड़ता है, ‘‘तू बता, तेरी तबीयत कैसी है?’’

‘‘बुखार पूरी तरह नहीं उतरा है, भैया. कमजोरी भी लग रही है. पर हाजरी के सौ टका के लालच में आना पड़ा,’’ पाखी भी मुसकरा पड़ती है.

‘‘तेरा हीरो कहां है रे, दिखाई नहीं पड़ रहा?’’ मकबूल ने पाखी की आंखों में झांकते हुए ठिठोली की.

हीरो की बात पर पाखी के चेहरे पर लज्जा प्रकट हो जाती है और मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘धत्…’’ होटल से थोड़ी दूर पर ही झंडा चौक है, नगर का व्यस्ततम चौराहा. बाईं ओर बरगद के पेड़ के पास लखन की चायपान की गुमटी है. गुमटी की बाहरी दीवार पर एक पुराना आईना छिपकली की तरह चिपका हुआ है. आईने में आड़ेतिरछे 2-3 तरेड़ पड़े हैं. इसी तरेड़ वाले आईने के सामने खड़ा है गोबरा. गोबरा यानी पाखी का हीरो. वह खीज से भर उठता है, ‘‘ये लखन भी न… हुंह. नया आईना नहीं ले सकता?’’ फिर पैंट की पिछली पौकेट से कंघी निकाल कर देर तक बाल झाड़ता रहता है. कंघी के 2-3 दांते टूटे हुए हैं. आखिर जब उसे इत्मीनान हो जाता है कि बाल रणबीर कपूर स्टाइल में सैट हो गए तो कंघी को पिछवाड़े की जेब में ठूंसता हुआ तेजतेज कदमों से होटल राजहंस की ओर लपक जाता है.

गोयनकाजी की लड़की की शादी है. बरात को होटल राजहंस में ठहराया गया है. बींद यानी दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर व सभी बरातियों को रोशनियों के घेरे में नगर का परिभ्रमण कराते हुए ‘तोरण’ के लिए गोयनकाजी की कोठी पर ले जाया जाएगा. पूरा होटल किसी नवेली दुलहन की तरह मुसकरा रहा है. गोबरा पाखी के करीब आ जाता है. गोबरा बाईं आंख दबा कर पाखी को कनखी मारता हुआ मुसकरा देता है. गोबरा को देखते ही पाखी के चेहरे पर भी खिली धूप सी उजास फैल जाती है. गोबरा के और उस के बप्पा दोस्त हैं. गोबरा पास की बस्ती में रहता है. घरेलू संबंध रहने से एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है. मन ही मन दोनों का टांका भिड़ गया है. नगर के उत्तरी छोर पर जंगल के पास मिट्टी का एक टीला है. दोनों अकसर घनी झाडि़यों के बीच शाम के झुटपुटे में मिला करते हैं. गोबरा उसे बांहों में भर कर फुसफुसाता है, ‘तेरे सामने तो बंबई वाली सोनाक्षी भी पानी भरती है रे…’

‘‘अरे भाई मास्टर…जब तक बींद राजा बाहर नहीं आ जाते, एकाध गाने का धमाका ही क्यों न हो जाए,’’ बींद के पिता दूर से फटे बांस के सुर में चीख पड़ते हैं, ‘‘इस जानलेवा उमस का एहसास कुछ तो कम हो.’’ सलीम मास्टर एक नजर साथियों की ओर देखते हैं. सभी अपनेअपने वाद्यों के साथ चाकचौबंद हैं. आंखों में संतुष्टि के भाव लिए वे दायां हाथ ऊपर उठा कर चुटकी बजाते हुए पूरे लश्कर के पीछे खड़े जनरेटर वाले को संकेत देते हैं तो दूसरे ही पल जनरेटर चालक पूंछ फटकारता हरकत में आ जाता है. देखते ही देखते प्रकाश तंत्र का हर स्तंभ रोशनी से जगमगाने लगता है. पाखी भी आंचल कमर में खोंसती गमछे को सिर पर रखती है और ट्यूब वाले बक्से को ऊपर उठा लेती है. अन्य औरतें भी ऐसा ही करती हैं. सतह से ऊपर उठते ही ट्यूबों की दूधिया रोशनी में होटल राजहंस का प्रांगण जगमगा उठता है.

मास्टर के संकेत पर सुलेमान बेंजो पर ‘तू चीज बड़ी है मस्त…’ की धुन छेड़ देते हैं. मास्टर की उंगलियां क्लेरिनेट पर थिरकने लगती हैं. धुन की लय पर बरातियों के पावों में अदृश्य थिरकन शुरू हो जाती है. कुछ उत्साही युवक लोगों को ठेलठाल कर गोलवृत्त बना लेते हैं और वृत्त के भीतर गाने की धुन पर डांस शुरू कर देते हैं. उन के बदन का हर अंग कमर, बांह, कूल्हे, टांगें वगैरा बेतरतीब झटकों से हवा में मटकने लगते हैं. गोबरा हंस पड़ता है, बुदबुदाने लगता है, ‘ले हलुवा, ई भी कोई डांस है. इस से अच्छा डांस तो हम कर सकता है. डांस सीखने के लिए ही तो परभूदेवा का फिलिम वह 15 बार देखा था. पर मुसीबत है कि डांस करें कहां? घेरे के भीतर घुसना मुमकिन नहीं. शक्लसूरत और कपड़ालत्ता है ही ऐसा कि दूर से ही चीह्न लिया जाएगा.’ पर उस का उत्साही मन नहीं मानता. होटल की दाईं ओर पतली गली है, अंधेरी और सुनसान. अधिक आवाजाही नहीं है उधर. ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ की धुन हलकी हो कर मंडरा रही है उस जगह. गोबरा वहां आ जाता है और पूरी तन्मयता के संग धुन पर बदन थिरकाने लगता है. आत्ममुग्ध, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…’ जैसा ही उन्माद. नीम अंधेरे में नाचता हुआ वह ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल हवा में हाथपांव मार रहा हो. तभी गाना खत्म हो गया. बैंड की चीख एक झटके के साथ थम जाती है. चेहरे पर संतुष्टि की आभा लिए इठलाता हुआ गोबरा फिर पाखी के पास आ जाता है. पाखी उस के नाच के प्रति उन्माद को खूब समझ रही है. मुसकरा कर उस को प्रशंसात्मक बधाई देती है. थोड़ी देर में ही मुख्यद्वार पर दोस्तों से घिरा बींद यानी दूल्हा प्रकट होता है. बरातियों समेत सभी लोगों की नजरें उत्सुकता से बींद की ओर उठ जाती हैं. जरी की कामदार शेरवानी और रेशमी चूड़ीदार, माथे पर कलगी लगा साफा, कमर में लाल रेशम की कमरबंद, गले में मोतियों की कंठमाला, पीछे जरी की नक्काशी वाला बड़ा सा छत्र उठाए हुए है सांवर नाई. एक पल के लिए गोबरा की आंखें चुंधिया गईं, ई कौन है बाप, दूल्हा है…या रणबीर कपूर…या फिर श्रीमान गोबरा मुंडा. एकदूसरे को अतिक्रमित करते 3 साए गोबरा के जेहन में गड्डमड्ड होने लगते हैं.

इधर, पाखी की हसरतभरी नजरें भी बींद की ओर उठ जाती हैं. आह, प्रकृति ने कैसा लाललाल भराभरा चेहरा दिया सेठ लोगों को. दिमाग में एक चुहल कौंधती है. अगर इस दूल्हे के संयोग से उसे बच्चा हो जाए तो कैसा होगा उस का रूपरंग और नाकनक्श? उन के आदिवासियों में तो अधिकांश लोग सांवले होते हैं. उपलों जैसे होंठ और पकौड़े जैसी नाक वाले. गोबरा भी वैसा ही है. मन ही मन हंस पड़ती है वह. ट्रम्पेट थामे सुलेमान चचा बींद को देखते हैं तो एक झपाके से खुली आंखों में कुछ कोलाज कौंधने लगते हैं. रजिया 30वें वर्ष को छूने वाली है. काफी भागदौड़ के बावजूद कोई ढंग का लड़का नहीं मिल सका अब तक. एकाध जगह बात आगे बढ़ी तो मामला दहेज की ऊटपटांग मांग पर आ कर खारिज हो गया. चचा की तबीयत भी ठीक नहीं रहती इन दिनों. ट्रम्पेट में थोड़ी देर हवा फूंकते ही सांस उखड़ने लगती है. सलीम साहब कई बार उन्हें रिटायर कर देने की चेतावनी दे चुके हैं. चचा ने उन से वादा कर रखा है कि किसी तरह रजिया के हाथ पीले कर दें, फिर वे स्वयं बैंड से छुट्टी ले लेंगे. दहेज के लिए पैसे जुट जाएं, बस. बींद धीरेधीरे हाथी की चाल से चलता हुआ घोड़ी के पास आता है. घोड़ी उसे ‘टाइगर हिल्स’ की तरह लगती है, जिस पर चढ़ पाना टेढ़ी खीर है उस के लिए. बींद के पिता घोड़ी वाले साईस के कान में कुछ फुसफुसाते हैं. साईस घुटनों के बल नीचे झुक जाता है और फिर उस के कंधे पर पांव रखते हुए 3-4 प्रयासों के बाद आखिरकार बींद घोड़ी पर सवार हो जाने में सफल हो जाता है. उस के घोड़ी पर बैठते ही पिता, जिन के हाथ में सिक्कों से भरी थैली झूल रही थी, ने थैली से मुट्ठी भर सिक्के निकाले और बींद पर उछाल दिए.

जा…जिस पल का इतनी देर से इंतजार था, वह अचानक इस तरह आ जाएगा, यह बात गोबरा ने सोची भी न थी. वह उछाल भर कर सिक्कों पर चील की तरह झपट्टा मारता है. इसी बीच, पैसा लूटने वालों की छोटी सी भीड़ जमा हो जाती है वहां. टेपला, गोबिन, नरेन, सुक्खू इन सब को तो वह पहचानता है. और भी दूसरी बस्ती के कई नए चेहरे. एक हड़कंप सा मच जाता है घोड़ी के इर्दगिर्द. एकदूसरे को धकियातेठेलते सिक्कों को लूटने के लिए आतुर लड़के. फिर सबकुछ शांत हो जाता है. गोबरा पाखी के करीब आ कर मुट्ठी खोलता है. आंखों में चमक भर जाती है. 22 रुपए. छोटे सिक्के एक भी नहीं, सब 2 और 5 के सिक्के. बींद का पूरा लावलश्कर मंथर गति से आगे सरकने लगता है. पैसे लूटने वालों की भीड़ भी बरातियों के बीच में छिप जाती है.

झंडा चौक के पास आ कर बरात ठहर जाती है. बैंड पर इस समय ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बज रही है. नीचे घेरे के बीच नाचते युवकों की लोलुप नजरें अनायास ही घरों के कोटरों से निकल कर बरात देखने निकली युवतियों पर आ गिरती हैं. एक युवक सलीम मास्टर के कान के पास जा कर कुछ अबूझा सा संकेत देता है. आननफानन ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बीच में तोड़ दी जाती है और ‘सरकाय लो खटिया…’ पूरे धमाके के साथ बैंड पर थिरकने लगती है. गाने की सनसनाती लय पर घेरे के बीच खड़े युवकों का तथाकथित ब्रेक डांस शुरू हो जाता है. बेतरतीब लटकेझटके, हिचकोले खाते अंगप्रत्यंग. लगता है अभी सेठ को पैसा उछालने में देर है. गोबरा मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के सामने के पूरे नजारे का सिंहावलोकन करता है. लाइट ढोती औरतों के ब्लाउज पसीने से पारदर्शी हो उठे हैं. लगातार 2 घंटों से हाथ उठा कर लाइट के बक्सों को थामे रखने की पीड़ा उन के चेहरों पर छलकने लगी है. गोल घेरे के बीच जहां युवक उछलकूद मचाए हुए हैं, फनाफन कपड़े पहने एक बराती प्रकट होता है. शायद बींद का करीबी रिश्तेदार है. 10-10 रुपए के 5 नोट जेब से निकालता है और नाचते युवकों के सिर पर से उतारते हुए सलीम मास्टर को थमा देता है. क्षणांश में अन्य रिश्तेदारों में होड़ मच जाती है और वे भी एकएक कर के घेरे में आआ कर 10 व 20 रुपए के दसियों नोट हवा में लहरालहरा कर सलीम मास्टर को थमाने लगते हैं. इस तरह सलीम मास्टर पर नोट बरसते देख कर सुलेमान चचा का कलेजा मुंह को आने लगता है. अपने बेसुरे ट्रम्पेट को देखते उन की आंखें क्रोध से सुलगने लगती हैं. काश, कुछ रकम बतौर इनाम उन्हें भी मिल जाती.

तभी गोबरा की नजर उठती है, बींद का पिता थैली में हाथ डाल रहा है. वह चौकन्ना हो जाता है. भीतर गया हाथ मुट्ठी बन कर बाहर निकलता है और बींद के ऊपर झटके से खुल जाता है. गोबरा बिजली की फुरती से जमीन पर लोट कर हाथपांव चलाने लगता है. थैली में हाथ के घुसने और बाहर आ कर खुल जाने की यह क्रिया कई बार होती है. अचानक 5 रुपए का एक सिक्का घोड़ी की पिछली टांग के एकदम करीब आ कर गिरता है. गोबरा की आंखों में एकमुश्त जुगनुओं की चमक भर जाती है. सिक्के पर नजर गड़ाए वह कलाबाजी खाते हुए उछाल भरता है. सिक्का बेशक कब्जे में आ जाता है, पर उस के घुटने व कोहनी बुरी तरह छिल जाते हैं. लहरा कर तेजी से गिरने से असंतुलित बदन रोकतेरोकते भी घोड़ी की पिछली टांग से टकरा ही जाता है. कैंट की कद्दावर घोड़ी को भला यह अपमान कैसे बरदाश्त हो? एक ‘गधा’ तो पहले से ही उस पर लदा हुआ है, दूसरे ने टांग पर धक्का मार दिया. भड़क कर हिनहिनाती हुई पिछली टांग से वह जो दुलत्ती झाड़ती है तो सीधी गोबरा की आंख के पास लगती है. एक बारगी बदन सुन्न हो जाता है पीड़ा से. धमाचौकड़ी और होहल्ले के बीच किसी का ध्यान ही नहीं जाता उस की ओर. पूरी बरात ऊपर से गुजर जाती है और वह प्रसादजी के ‘विराम चिह्न’ की मानिंद पड़ा रहता. लेकिन थोड़ी देर में ही फिजिक्स की तरह स्वयं को संयत करता खड़ा हो जाता है वह. दर्द की लहर से बाईं आंख खुल नहीं रही. टटोल कर देखता है, आंख के पास गूमड़ उभर आया है, जिस की वजह से आंख सूज कर सिकुड़ जाती है. मुंह से भद्दी गाली बकता तेजी से वह बरात के पीछे लपक पड़ता है.

इसी बीच, बरात मंदिर चौक के पास पहुंच जाती है. गोबरा भीड़ में जगह बनाता पाखी के करीब आ जाता है. पाखी उस के गूमड़ को देख कर चिहुंक ही तो पड़ती है, ‘‘उफ, तू पईसा लूटने का काम काहे करता है रे? बस स्टैंड पर अच्छाखासा कमा तो रहा है.’ गोबरा हंस पड़ता है, ‘‘अरे, देश के नेता और अफसर लोग सरकारी खजाने से करोड़ोंकरोड़ लूट रहे हैं कि नहीं, अयं? हम फेंका हुआ 10-20 टका लूट लिए तो क्या हो गया?’’ पाखी सकपका जाती है, ‘‘ऊ बात तय है. हमरा मतलब, पईसा लूटने में केतना जोखिम है, सो देखते, एक सूत भी ऊपर लग जाता तो?’’ गोबरा छोटी आंख को और छोटी कर के कनखी मारता मुसकरा देता है, ‘‘जोखिम तो हर काम में है. तेरे लिए हम हर जोखिम उठा सकते हैं न.’’ बैंजो और क्लेरिनेट पर इस समय ‘चोली के पीछे…’ की धुन थिरक रही है और इस के मारक स्वर के सम्मोहन में बंधा हर छोटाबड़ा बराती अपनेअपने जेहन के खंडहरी एकांत में चोलियों की चीड़फाड़ में लग पड़ता है. लगातार श्रम की वजह से पाखी के चेहरे पर स्वेद कण उभर आए हैं. दोनों हाथ ऊपर उठे हैं, लाइट का बक्सा थामे हुए. दायां हाथ उतार कर पसीना पोंछना ही चाहती है कि बक्सा असंतुलित हो कर डगमगाने लगता है. पाखी झटके से हाथ ऊपर उठा लेती है. इस कवायद में बगल के पास ब्लाउज उधड़ जाता है. पाखी अकबका जाती है. चेहरा लज्जा से लाल हो उठता है. सांसें तेजतेज चलने लगती हैं.

‘‘लो यार,’’ उस के पीछे चल रहे युवा बरातियों की नजरें इस हादसे को कैच की तरह लपक लेती हैं, ‘‘चोली के पीछे के राज को दिखाने का इंतजाम भी कर रखा है गोयनका साहब ने. वाह…’’ इस टिप्पणी पर गोबरा के भीतर बैठा रणबीर कपूर पिनक कर खड़ा हो जाता है, ‘अभी इन ससुरों को हवा में उछाल कर ‘किरिस’ (कृष) वाला ऐक्शन दिखाते हैं, हूंह.’ पर पाखी आंखों के संकेत से उसे संयत रहने का अनुरोध करती है. वह सोचती है, ‘दू साल पहले जब मालती मैडम के यहां झाड़ूपोंछा का काम करती थी, यह ब्लाउज मिला था बख्शिश में. घिसा हुआ तो तभी था. कई बार सोचा कि नया ब्लाउज ले लेगी हाट से. पर ऐनवक्त पर कोई न कोई अड़चन आ खड़ी होती.’ युवकों की उत्तेजना आंच पर चढ़े दूध की तरह उफनती चली जाती है. एक के बाद दूसरा, अश्लील फिकरे गुगली से उछलते रहते हैं. बरात जगहजगह रुकती, नाचती, जश्न मनाती हुई नगर परिभ्रमण करने के बाद आखिरकार गोयनकाजी की कोठी पर आ पहुंचती है. सारी औरतें पंडाल के सुदूर बाएं कोने के नेपथ्य में अपनेअपने लाइटबौक्स जमा करा देती हैं. बैंड का मैनेजर सभी को हाजिरी थमा देता है. पाखी पैसे ले कर गेट की ओर बढ़ने को उद्यत होती ही है कि अचानक वे ही युवक जो सारी राह पाखी पर फिकरे कसते आए थे, वहां जिन्न की तरह प्रकट हो जाते हैं, ‘वाह फ्रैंड्स, लुक, दैट चोली गर्ल कमिंग.’ नशे के वरक में लिपटी उन की लरजती आवाज.

‘‘गर्ल?’’ सम्मिलित लिजलिजा ठहाका, ‘‘अरे विमेन बोलो यार, अ फुल फ्लैशी विमेन…’’ फिर एक ‘हवाई किस’ पाखी की ओर गुगली की तरह उछल आता है. पाखी के भीतर जैसे एक भट्ठी सी सुलग उठती है. आंखें हिंसक क्रोध से रक्ताभ हो जाती हैं. सधे कदमों से चल कर वह युवकों तक आती है, ‘‘तुम दिकू लोगों में यही तो खासीयत है. आते हो एगो धोती और एगो लोटा ले कर. पर देखतेदेखते खदान वाला और कोठी वाला बन जाते हो. अच्छा तनी बोलो तो. आज का जो एतना बड़ा जलसा कामयाब हुआ, इस कामयाबी का असली हीरो कौन है? तुमरा वह भड़ुवा दूल्हा? नहीं…नहीं? इस कामयाबी का असली हीरो हैं सांसों की मशक्कत करते बैंड पार्टी के मुलाजिम, 10-10 किलो वाला लाइट बक्सा ढोने वाली हम औरतें, सारी राह दूल्हा का चौकसी रखने वाला घोड़ी का बूढ़ा साईस, पैसा लूटने वाले ई लौंडे, बरातियों की खातिरदारी में लगे गरीब बैरे, जोकर शक्तिमान का मेकअप सजाए हमारी बिरादरी के मासूम कलाकार, हुंह. अगर ये हीरो न होते तो…तो साहेब, कैसा जश्न और कैसा जलसा? सबकुछ कफन की तरह सादा और बेनूर हो जाता. आप सेठ लोग सिरिफ दौलत खा सकते हैं सिरिफ दौलत ही बाहर कर सकते हैं. ये शोरशराबा और ये खुशियाली तो, विश्वास करें, इन्हीं हीरो लोगों की वजह से संभव हो सकी है.’’

पाखी की सांसें उत्तेजना से फूल जाती हैं. युवक ऐसे अपमान से तिलमिला उठते हैं, ‘‘दो कौड़ी की लेबर, जबान चलाती है. आउट. वी से, गैटआउट.’’ इस के पहले कि बात बिगड़ती, कुछ बुजुर्ग बराती बीचबचाव कर के मामला शांत करवा देते हैं. पाखी संयत कदमों से गेट की ओर बढ़ने लगती है कि अचानक भीतर से अजीब सी अफरातफरी और भयाकुल कोलाहल के छोटेछोटे टुकड़े रुई के फाहों की शक्ल में उड़उड़ कर गेट के आकाश तक चले आते हैं. जश्न का सारा कोलाहल थम गया है. पाखी के पांव भी थम जाते हैं. चौकन्नी निगाहें मुड़ कर स्थिति का जायजा लेना चाहती हैं. तभी पता चलता है, गोयनका साहब का ढाई वर्ष का दोहिता चिंटू काफी देर से लापता है. बेटीदामाद मुंबई से आए हैं. अपरिचित जगह, पूरे पंडाल में और कोठी के भीतर तलाश लिया गया. मामला संगीन हो उठा है. चिंटू की मां का रोरो कर बुरा हाल है. इस आकस्मिक हादसे की वजह से सारा उत्सव और सारा उत्साह तली जा चुकी साबुत मछली की तरह स्पंदनहीन हो गया है. सामने बने भव्य स्टेज पर वरवधू हाथों में माला लिए चुप खड़े हैं. आतिशबाजियों की रौनक और बैंड वालों की धमक भी हवा हो चुकती है.

पाखी मुंह बिचका देती है, उस की बला से. अब उसे न तो सेठ से ही कोई मतलब है, न उन के दोहिते से. ‘‘तेरा चेहरा इतना तमतमाया हुआ काहे है?’’ बाहर उस के इंतजार में खड़ा गोबरा बोलता है.

‘‘भीतर फिर वैसा ही गंदा बोल बोल रहा था ऊ लोग…’’ पाखी फनफनाती है.

‘‘तू न रोकती तो यहां बवाल पहले ही खड़ा कर देते हम, हुंह,’’ गोबरा भुने चने की तरह भड़क उठता है.

‘‘हम भी कम नहीं हैं,’’ पाखी अब संयत हो चुकती है, ‘‘ऐसा झाड़ पिलाए हैं कि वे जिनगी भर नहीं भूलेंगे.’’ पाखी के आंचल के छोर में गोबरा अपनी दोनों जेबों का सामान उलट देता है. 80 रुपए की रेजगारी, पानपराग के 2 पाउच और मुट्ठीभर काजूकिशमिश के दाने. देख कर पाखी हंस पड़ती है, ‘‘और ई सब में मेरे ये सौ टका.’’ धीरेधीरे चलते दोनों पहले मंदिर चौक, फिर झंडा चौक और फिर सुदूर इंद्रपुरी चौक के पास आ जाते हैं. ‘‘कल सब से पहले एक नया ब्लाउज खरीदना, ठीक? इसी के वजह से न एतना ताना और फिकरा सुनना पड़ा है,’’ गोबरा आदेशात्मक लहजे में कहता है. लहजे में मिश्रित प्यार की अदृश्य तासीर से पाखी रोमांच से सराबोर हो उठती है.

इंद्रपुरी चौक पर काफी चहलपहल है. पास ही इंद्रपुरी टाकीज जो है. अंतिम शो छूटने में अभी देर है. बस्ती की ओर जाने वाली गली के मुहाने पर चायपान की गुमटी है, गुमटी के बाहर ग्राहकों के लिए बैंच पड़ी है. दोनों वहां बैठ जाते हैं, ‘‘साहूजी…दु गिलास चा इधर भी.’’ तभी पाखी की नजरें कोने वाली बैंच की छोर पर गुमसुम बैठे एक बच्चे पर जाती हैं. गोरा, गदबदा बच्चा. तीखे नाकनक्श, आधुनिक फैशन के वस्त्र, लगातार रोते रहने से सूजीसूजी ललछौंह आंखें. पाखी का दिमाग ठनक जाता है. इस तरह के चेहरेमोहरे वाला बच्चा इस बस्ती का तो हो ही नहीं सकता.

‘‘बाबू, का नाम है आप का?’’ पाखी झट से बच्चे के पास आ जाती है. बच्चा सहमी आंखों से पाखी को निहारने लगता है. पाखी फिर पुचकारती है तो किसी तरह कंठ से फंसीफंसी किंकियाहट बाहर आती है, ‘‘चिंटू.’’

‘चिंटू?’ पंडाल से निकल रही थी तो यही नाम हवा में उड़ते हुए कान की खोह में उतरा था. पाखी चिंटू को गोद में उठा लेती है, ‘‘बाबू, कहां रहते हो आप?’’ औरत की गोद तो गोद ही होती है. चाहे कोई भी औरत हो. गोद की कैसी जाति और कैसा मजहब. गोद की वात्सल्यमयी ऊष्मा पा कर चिंटू के पस्त चेहरे पर आश्वस्ति की पुखराजी चमक खिल आती है.

‘‘सू…कर के प्लेन से आए हैं हम,’’ चिंटू नन्ही बांह हवा में लहरा कर उड़ते प्लेन की आकृति बनाने की चेष्टा करता है. अब शक की तनिक भी गुंजाइश नहीं. बेशक, यह वही बच्चा है जिस की तलाश वहां शादी वाले घर में हो रही है और जिस के न मिल पाने से सारा जलसा और जश्न थम सा गया है. पाखी चिंटू की पूरी रामकहानी गोबरा को बताती है.

‘‘ऊ सेठ लोग तेरे साथ इतना गंदा सुलूक किया…’’ गोबरा खीज उठता है, ‘‘फिर भी उन लोगों से हमदर्दी?’’

‘‘नहीं,’’ पाखी मासूमियत परंतु दृढ़ता से जवाब देती है, ‘‘हमदर्दी उन लोगों से नहीं, हमदर्दी इस मासूम बच्चे से है. गोबरा रे…औरत कोई भी हो, उस के लिए बच्चा तो बस बच्चा ही होता है. बच्चा का कैसा तो जात और कैसा तो मजहब?’’ गोबरा निरुत्तर हो जाता है, ‘‘तुम औरतों के दिल को तो कोई भी नहीं बूझ सकता. हमारा गोड़हाथ बहुते पिरा रहा है. पैदल चलना अब मुश्किल है,’’ गोबरा के बंद होंठों से छन कर हलका परिहास बाहर रिस आता है.

‘‘तो रिकशा कर लेंगे रे, मोरे राजा…’’ पाखी भी ठुनक पड़ती है.

‘‘यानी कि 20 टका का फुजूल का चूना. यानी कि ऊ कहावत है न, ‘फ्री में हाथ जलाना’…’’ गोबरा खीखी कर के खिलखिला पड़ता है. दोनों चिंटू को ले कर रिकशा पकड़ते हैं और रिकशा तेज गति से गोयनका साहब की कोठी की ओर दौड़ने लगता है. करीब 15 मिनट की बेचैन यात्रा. कोठी का माहौल अब पहले से भी ज्यादा गमगीन हो गया है. विवाह की सारी कार्यवाहियां स्थगित हैं. सारे लोगों के चित्त अशांत हैं. स्टेज पर वरवधू का वरमाला वाला कार्यक्रम भी रुका हुआ है. सिर्फ आतुर चहलकदमियों और चिंतातुर कानाफूसियों के टुकड़े कबूतर के नुचे पंखों की मानिंद पंडाल के आकाश में छितराए उड़ रहे हैं.पंडाल के गेट के पास अफरातफरी मची है, जैसे ही रिकशा दृष्टिक्षेत्र में आता है, सब से पहले चिंटू के पिता और गोयनका साहब की नजरें उस पर जाती हैं. दोनों बदहवास से उस ओर दौड़ पड़ते हैं. चिंटू को देखते ही दोनों की बेजान देह में नई जान भर आती है.

‘‘चिंटू, मेरे बेटे…’’ पाखी की गोद से चिंटू को झपट कर उस का पिता पागलों की तरह चूमने लगता है. पाखी चिंटू के पिता को देखती है तो हड़क जाती है, ‘अरे, यह तो वही मरदूद है जो अश्लील फिकरे कसने में सब से आगे था.’ पाखी से नजरें मिलते ही युवक का चेहरा भी सफेद पड़ जाता है. उस के जेहन में कुछ कोलाज चक्रवात की तरह घुमेरी घोलने लगते हैं…हवा में हाथ फटकारते हुए पाखी ललकार रही है- ‘आज के इस जलसे का असली हीरो कौन है? कौन? ये दूल्हा? गोयनका साहब की दौलत? नहीं. असली हीरो हैं ये बैंड वाले, ये लाइट वाले, पैसा लूटने वाले, साईस, बैरे, जोकर, शक्तिमान बने कलाकार…’ पाखी गोबरा की बांह थाम कर लौटने के लिए मुड़ जाती है. युवक हतप्रभ सा फटीफटी आंखों से उन्हें जाते हुए देखता रहता है. पर जेहन में अभिजात्य और संपन्नता का घमंड इतना सघन है कि चाह कर भी वह उन्हें रोक कर आभार के दो शब्द भी नहीं कह पाता.

Storytelling : सपने देखने वाली लड़की

Storytelling :  देवांश उसे दूर से एकटक देख रहा था. देख क्या रहा था,नजर पड़ गई और बस आंखें ही अटक गई उसपर !विश्वास नहीं होता – यह वही है या उस जैसी कोई दूसरी?

मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  स्टेशन पर पीठ पर एक बैग लादे वह अकेली खड़ी है !

देवांश का ध्यान अपने काम से भटक गया था.सवारी गई तेल लेने! पहले यह शंका तो निवारण कर ले! बिहार के समस्तीपुर से यहां मुंबई में अकेले! लग रहा है,अभी अभी ट्रेन से उतरी है.

चाहता है उसे अनदेखा कर सवारी ढूंढे, कहीं वह नहीं हुई तो थप्पड़ भी पड़ सकता है.

आजकल की स्टंटमैन लड़कियां! देवांश इनसे दूर ही रहता है!

लेकिन अगर वही हुई तो? यह जरूर उसका फिर नासमझी में उठाया  गया कदम होगा !

वह इसके घरवालों को जानता है, वे ऐसे बिलकुल नहीं कि बेटी को अकेले मुंबई आने दें! इसके पापा का साइकिल में हवा भरने, पंक्चर बनाने की एक छोटी सी दुकान है. एक बड़ा भाई है जो पहिए वाले ठेले पर माल ढुलाई करता है. इससे दो बड़ी बहनें हैं जिनकी जैसे तैसे शादी हुई थी.

आज से पांच साल पहले जब देवांश मुंबई भाग आया था तब यह शायद बारह साल के आसपास की रही होगी.उस वक्त देवांश बीस वर्ष का था. शिप्रा उस समय सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी .सजने का बड़ा शौक था  इसे. इस कारण हरदम इसकी मां इस पर टिक टिक करती रहती.दुकान से लगे छोटे से घर में ये अपने भाई, मां, पप्पा के साथ रहती थी .

अब तक वह इधर उधर देखती ,कुछ सोचती, थोड़ा थोड़ा चलती देवांश से अनजान उसकी ओर ही बढ़ी चली आ रही थी.

देवांश भी अब तक उसके नजदीक आ चुका था.

“तुम शिप्रा हो न? यहां कैसे?”

पहले शिप्रा ने खुद को छिपाने का प्रयत्न किया लेकिन देवांश का अपनी बात पर भरोसा देख उसे मानना पड़ा कि वह समस्तीपुर के फुलचौक की शिप्रा ही है.

अपनी बात को टालने की गरज से शिप्रा ने प्रतिप्रश्न किया – “तुम यहां कैसे?”

“बीस साल की उम्र में मुंबई भाग आया था. हीरो बनना था. सालभर खूब एड़ियां घिसी, फिल्मी स्टूडियो के बाहर कतारें लगाई, प्रोड्यूसर डायरेक्टर के पीछे भागता रहा, लेकिन रात ?

वह तो पिशाचिनी की तरह भूखी प्यासी मुझे निगलने को आती थी.

स्टूडियो के बाहर नए लड़के लड़कियों की इतनी भीड़ कि कौन किसे पूछे? उनमें जिनके पहचान के  निकल जाते, उन्हें  किसी तरह अन्दर जाने का मौका मिल जाता.लेकिन इतना तो काफी नहीं होता न! मंजे हुए कलाकारों के सामने खड़े होने की भी कुबत कम लोगों में ही होती है! फिर गिड़गिड़ाना भी आना चाहिए, इज्जत पर बाट लगाकर काम के लिए हाथ फैलाना भी आना चाहिए! मैंने तो साल भर में हाथ जोड़ लिए! मेरा औटो जिंदाबाद! पहले भाड़े पर लेकर चलाता था, अब अपना है, मीरा रोड पर अपनी खोली भी है!  मगर तुम यहां क्यों आ गई? बारहवीं बोर्ड दिया?” एक साथ इतनी बातें कहने के पीछे देवांश की एक ही मंशा थी कि वो मुंबई की जिंदगी और अपने सपनों की वास्तविकता को समझे!

“देकर ही आई हूं! मुझे एक हीरो से मिलना है, उसके साथ मुझे हीरोइन का रोल करना है! मै ठान कर आई हूं, हार नहीं मानूंगी.”

अब तक शिप्रा अपने नए स्मार्ट फोन पर किसी का नंबर ढूंढने में लगी थी.

देवांश ने कहा-” तुम्हारे पप्पा मेरी साइकिल कई बार ऐसे ही ठीक कर दिया करते थे .कुछ तो मेरा भी फर्ज बनता है, अपने जगह की हो, कहां मारी मारी फिरोगी! अच्छा हुआ जो मै तुम्हे मिल गया! चलो मेरे घर. वहीं रहकर काम ढूंढ़ लेना.”

इस बीच शिप्रा की उससे बात हो जाती है जहां वह फोन लगा रही थी. बात समाप्त होते ही शिप्रा का रुख थोड़ा बदल सा जाता है. वह अब जल्दी निकलना चाहती है.

“देवांश जी मुझे जल्दी निकलना होगा, हरदीप जी से बात हो गई, उन्हीं के कहने पर यहां आई हूं . वे मुझे अपने स्टूडियो में बुला रहे हैं, इंटरव्यू करेंगे, और फोटो शूट भी!”

“ये सब पक्का है? देखो, मुंबई है ,सही गलत की पहचान जरूरी है, ठगी न जाओ!”

“देवांश जी मुझे अभी जाना है, आपको बाद में बताऊंगी .

आप भैया के साथ स्कूल पढ़े हो, मेरे घरवालों को पहचानते हो, अभी कुछ बताना मत उन्हें, पता चला तो मेरी जबरदस्ती शादी कर देंगे. मै बड़ी स्टार बनना चाहती हूं, दीदियों की तरह गृहस्थी में अभी से नहीं पीसना मुझे!”

जाना कहां है? चलो छोड़ देता हूं तुम्हे.”

“करजत नाम की कोई जगह है- वहीं कहीं बता रहे हैं”

“मेरा फोन नंबर रख लो, रात को वापिस आ जाना, अपना नंबर दे दो, मै अपना पता तुम्हे लिख भेजूंगा. मुंबई अनजान नई लड़कियों के लिए ठीक नहीं, शोषण हो सकता है!”

“मुझे जल्द पहुंचाइए देवांश जी, कहीं देर न हो जाए!”

औटो भीड़ को काटते जैसे तैसे गंतव्य की ओर दौड़ रहा था.

शिप्रा को अपने सपनों के आगे जिंदगी की चुनौतियां तुच्छ नजर आ रही थी.देवांश समझ चुका कि यह चट्टानों से टकराए बिना नहीं मानेगी.

देवांश भी तो ऐसा ही था. कितनी रातें उसने आंखों में काटी, कितने दिन फाकों में! और जब काम मिलने को हुआ तो जैसे सर दीवार से जा टकराया! गीगोलो! अमीर औरतों के ऐश के लिए खरीदा गया गुलाम; उसे धोखा देकर ले जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी कि अचानक जैसे उसे दो कदम पीछे आकर फिर से सोच लेने की मति आई, उसके तो होश ही उड़ गए! किसी तरह बच कर निकला था वह! औटो दौड़ाते वह बेचैन हो गया.

लड़की को पता नहीं कहां पहुंचाने जा रहा है वह!

“हरदीप जी को कैसे जानती हो?”

“फेसबुक से, मेरी सुन्दरता देख उन्होंने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी. बाद में मुझे समझाया कि मै आसानी से हीरोइन बन सकती हूं अगर किसी तरह मुंबई पहुंच जाऊं!  वे मुझे स्टार बना देंगे. जोखिम तो लेना पड़ता है सपने पूरे करने के लिए!”

“पैसे हैं तुम्हारे पास?”

“घर में रखे दो हजार उठा लाई हूं, मां के चांदी के पायल भी,जब तक चले, फिर तो रुपए मिल ही जाएंगे.”

“कई बार नई लड़कियों का शोषण होता है, सावधान रहना!”

मतलब?”

“कोई तुम्हारा नाजायज फायदा उठा कर तुम्हे ठग सकता है,जैसे कोई कहे कि हम तो तुम्हे नाम पैसा सब देंगे, बदले में तुम क्या दोगी,तो -”

” जो कहेंगे वही करने का कहूंगी!”

“अरे! तुम्हारी उम्र कितनी है! तुम्हे समझ नहीं आती क्या बात!”

“अठारह साल!”

” छोड़ो, इससे आगे और क्या क्या समझाऊं तुम्हे! अगर रात को वापिस मेरे पास आने का मन हो तो फोन कर लेना मुझे.”

उस रात तो क्या महीने भर देवांश को शिप्रा का पता नहीं लग पाया.

और एक रात अभी वह अपने कमरों की बत्ती बुझाकर सोने चला ही था कि उसके दरवाजे पर किसी ने आवाज दी .

थोड़ा झल्लाया, दिन भर के खटे मरे, नींद से बोझिल आंखों में स्वागत सत्कार का आल्हाद कहां से लाए? झल्लाहट में दरवाजा खोला और सामने शिप्रा को देख अवाक रह गया.

सुंदर सजीली,एक ही नजर में भा जाने वाली लडकी जैसे अचानक कोयले के खदान से उठ आई हो! आंखों के नीचे गहरी कालिख!तनाव से चेहरा सूखा सा! विषाद के गहरे बादल जैसे अभी बरस पड़ेंगे!

“आओ आओ, फोन कर देती तो लेने चला आता! कहां रही अब तक?

“अंदर आ जाने दो देवांश जी! सब बताती हूं!”

पहले से  ज्यादा समझदार लगी शिप्रा.

रात के दस बज रहे थे, देवांश ने अपना डिनर ले लिया था.सो उस ने बिहारी स्टाईल में दाल भात आलू चोखा ,पापड़, सलाद लगाकर शिप्रा को खिलाया, और  अपने छोटे से पलंग पर उसका बिस्तर लगा दिया.

देवांश बगल वाले छोटे कमरे में अपनी खटिया बिछा कर अभी जाने को हुआ कि शिप्रा ने उसकी कलाई पकड़ ली.

“यहीं इसी कमरे में सो जाओ.अलग मत सोओ !”

“अरे क्यों ?” देवांश को आश्चर्य हुआ.

शिप्रा ने अपना सर झुका लिया.

“कहो!” देवांश ने जोर दिया.

रात कोई दूसरे कमरे से आकर मुझ पर सोते वक्त हमला न कर दे इसका डर लगता है, अच्छा है कोई साथ ही सो रहे, किसी के दरवाजे खोल कर अंदर आ जाने के डर से मै रात को सो ही नहीं पाती!”

“क्या हुआ था, मुझे बताओ, मै तुम्हारा हर डर दूर कर दूंगा .”

उसके स्नेह भरे स्वर में अपनेपन की ऐसी आश्वस्ति थी कि शिप्रा का तनाव कुछ कम होने लगा.

देवांश के पलंग पर दोनो आसपास बैठे थे, शिप्रा कहने लगी-”

उस दिन प्रोड्यूसर हरदीप जी के स्टूडियो के बाहर वेटिंग हौल में रात के आठ बजे तक बैठी मै इंतजार करती रही, आपने मुझे वहां करीब दोपहर के एक बजे छोड़ा था. सोच रही थी आपको फोन कर ही लूं, कि पियोन आकर मुझे बुला ले गया. मुझे एक आलीशान बड़े से कमरे में ले आया वह. यहां सोफे से लेकर पलंग तक सब कुछ मेरी कल्पना से परे की बेहतरीन चीजें थीं.सब कुछ अब जैसे जल्दी होने लगा था. मै घबराई भी थी और उत्सुक भी!

बाहर से मै लौक कर दी गई थी, मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर इंतजार करती रही.

कुछ देर बाद हरदीप जी आए.पचपन के आसपास की उम्र होगी उनकी .आराम से बात की, मुझे कुछ छोटे विकनी टाईप के कपड़े दिए और उसे पहन कर आने को कहा. मै झिझक गई, तो आंखें इस तरह तरेरी कि मुझे बदलने जाना पड़ा .बाथरूम से वापिस आई तो देखा तीन लोग शूट के लिए आ पहुंचे थे. जैसा कहा गया वैसा कर दिया, शूटिंग पूरी होने पर  हरदीप जी ने मुझसे कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करवाये. बाकी लोगों के जाने के बाद हरदीप जी ने मुझे नजदीक बिठा कर शाबासी दी और उनके साथ सहयोग करने पर जल्द मुझे स्टार बनाकर मेरे पसंद के हीरो के साथ रोल देने का वादा किया. डिनर आ गया था, और वो बहुत लाजवाब था. हरदीप जी को मैंने अनुरोध किया कि वे बाहर से दरवाजा मत लगाएं,”

“ये तुम्हारा मामला नहीं है” कहकर वे बाहर से बन्द कर चले गए.

फिर ये सिलसिला चल निकला . कभी बाहर भी शूट को ले जाते तो उनकी वैन में, काम ख़तम होते ही मुझ पर ताला जड़ दिया जाता. कितना भी समझा लूं,  वे मुझे सांस लेने की इजाजत नहीं देते!”

“सोते हुए तुम पर कभी हमला हुआ था? क्या वजह है तुम्हारे डर की?”

“यूं तो जैसे मै उनकी खरीदी गुलाम थी. कभी साज सज्जा के नाम पर, कभी दृश्य और संवाद के कारण वे सभी मेरी देह को खिलौना ही समझते. लेकिन इसके बाद की वो रात मेरे लिए बुरा सपना था! मुझे सपनों से डर लगने लगा है!”

“कहोगी क्या हुआ था?”अनायास ही अधिकार का स्वर मुखर हो गया था देवांश में, लेकिन वह तुरंत संभल गया.

“इस तरह उनके कहे पर उठते बैठते बीस दिन हो गए थे. थकी हारी रात को मै सो रही थी.मध्य रात्रि में जैसे मेरे कमरे को किसी ने बाहर से खोला, मुझे अंदर से बन्द करने की सख्त मनाही थी.

नींद में होने की वजह से जब तक संभल पाती किसी ने अजगर की तरह मुझ पर कब्जा कर लिया, मै उसके पंजो में छटपटाती सी शिथिल पड़ गई. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. लेकिन सुबह सब कुछ सामान्य रहता  जैसे किसी को कुछ मालूम ही न हो. मै पागल सी होने लगी. मै वहां से निकलना चाहती थी, हरदीप जी से कहा तो सबके सामने मेरा कांट्रैक्ट पेपर दिखा दिया. मुझे हस्ताक्षर करते वक़्त उसे पढ़ना चाहिए था. तीन महीने के मुझे पचास हजार मिलने थे,और एक दिन भी पहले छोड़ना चाहूं तो प्रति दिन दो सौ के हिसाब से जितना बने. मेरे सपनों पर काली स्याही फैल गई थी, मै स्टार बनने के लिए  तिल तिल कितना मरती! शायद पचास हजार का शिकंजा कसकर वे कई को रोक रखते थे और मनमानी करते थे, मुझे लगा आखिर तक शायद वे खुद ही ऐसे हालात पैदा कर दें कि मै तीन महीने से पहले ही छोड़ने को बाध्य हो जाऊं! फिर क्यों नहीं अभी ही निकल जाऊं! मैंने तय किया कि अब और नहीं!

मुझे उन्होंने छह हजार पकड़ा दिए, और मै अपना सबकुछ खो कर निकल आई.”

सब कुछ खोकर से क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम इज्जत की बात कर रही हो? तुमने आगे बढ़ने और सपनों को पूरा करने के लिए जोखिम उठाया, इस जोखिम उठाने को इसलिए गलत नहीं कह सकते क्योंकि तुम एक लड़की हो और सपने बेचने वाले लोग गिद्ध है ! वे जो गिद्घ बने बैठे हैं, उन्हें अपनी इज्जत बचाने के लिए सभ्य होना चाहिए! हां तुम्हारी गलती इतनी है कि जब तुम्हे मैंने आगाह किया, सतर्क होने को समझाया तुमने अपनी धुन में मेरे अनुभव को तवज्जो नहीं दी, सपने देखना और उसके पीछे दौड़ना फिर भी आसान है, लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जुनून के साथ धीरज की जरूरत होती है, और यह जरा कठिन है!”

“क्या मुझे वापिस समस्तीपुर जाना चाहिए?”

“क्यों? जीवन में कुछ अच्छा सोचने के लिए देहरी तो लांघना ही पड़ता है. मुझे सपने देखना पसंद है, और सपने देखने वाली लड़की भी! अब चलो शुरू से शुरू करते हैं. तुम्हे अब आगे बढ़ाने में मै मदद करूंगा. जिंदगी मसाला चाय नहीं – कि बना और पीया, सपने अच्छे हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने में समझदारी चाहिए! समझी !”देवांश ने उसकी आंखों में अपने नजर की मुस्कुराहट बिखेर कर हलके से शिप्रा की हथेली को दबाया. विश्वास और संवेदना से भरी लजाती सी मुस्कान शिप्रा के दिल का हाल बता रही थी.

“सपने पूरे हो जाएं और मुझे भी अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहो तो बन्दा हमेशा हाजिर है ! कभी बता नहीं पाया मगर हमेशा चाहता था कि तुमसे दोस्ती हो जाय!”देवांश मन को धीरे धीरे खोल रहा था.

“देवांश तुम जैसे प्यारे इंसान क्या सचमुच के होते हैं? क्या यह भी तो कोई सपना नहीं ! ”

शिप्रा ने देवांश के कंधे पर अपना सर टिका दिया था.मन का बोझ पिघलने लगा था.सपने देखने का अपराध बोध जाता रहा, शिप्रा फिर से हसीन सपनों को सच करने का सपना देखने लगी थी.

Short Story : नाक – रूपबाई के साथ आखिर क्या हुआ

Short Story :  मां की बात सुन कर रूपबाई ठगी सी खड़ी रह गई. उसे अपने पैरों के नीचे से धरती खिसकती नजर आई. उस के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. रूपबाई ने तो समझा था कि यह बात सुन कर मां उस की मदद करेगी, समाज में फैली गंदी बातों से, लोगों से लड़ने के लिए उस का हौसला बढ़ाएगी और जो एक नई परेशानी उस के पेट में पल रहे बच्चे की है, उस का कोई सही हल निकालेगी. पर मां ने तो उस से सीधे मुंह बात तक नहीं की. उलटे लाललाल आंखें निकाल कर वे चीखीं, ‘‘किसी कुएं में ही डूब मरती. बापदादा की नाक कटा कर इस पाप को पेट में ले आई है, नासपीटी.’’

मां की बातें सुन कर रूपबाई जमीन पर बैठ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. उसे केवल मां का ही सहारा था और मां ही उस से इस तरह नफरत करने लगेंगी, तो फिर कौन उस का अपना होगा इस घर में.

पिताजी तो उसी रामेश्वर के रिश्तेदार हैं, जिस ने जबरदस्ती रूपबाई की यह हालत कर दी. अगर पिताजी को पता चल गया, तो न जाने उस के साथ क्या सुलूक करेंगे. रूपबाई की मां सोनबाई जलावन लेने खेत में चली गई. रूपबाई अकेली घर के आंगन में बैठी आगे की बातों से डर रही थी. हर पल उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उस की आंखों में आंसू भर आए थे. मन हो रहा था कि वह आज जोरजोर से रो कर खुद को हलका कर ले.

रामेश्वर रूपबाई का चाचा था. वह और रामेश्वर चारा लाने रोज सरसों के खेत में जाते थे. रामेश्वर चाचा की नीयत अपनी भतीजी पर बिगड़ गई और वह मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सचमुच रामेश्वर को मौका मिल गया. उस दिन आसपास के खेतों में कोई नहीं था. रामेश्वर ने मौका देख कर सरसों के पत्ते तोड़ती रूपबाई को जबरदस्ती खेत में पटक दिया. वह गिड़गिड़ाती रही और सुबकती रही, पर वह नहीं माना और उसे अपनी हवस का शिकार बना कर ही छोड़ा. घर आने के बाद रूपबाई के मन में तो आया कि वह मां और पिताजी को साफसाफ सारी बातें बता दे, पर बदनामी के डर से चुप रह गई.

इस के बाद रामेश्वर रोज जबरदस्ती उस के साथ मुंह काला करने लगा. इस तरह चाचा का पाप रूपबाई के पेट में आ गया.

कुछ दिन बाद रूपबाई ने महसूस किया कि उस का पेट बढ़ने लगा है. मशीन से चारा काटते समय उस ने यह बात रामेश्वर को भी बताई, ‘‘तू ने जो किया सो किया, पर अब कुछ इलाज भी कर.’’

‘‘क्या हो गया?’’ रामेश्वर चौंका. ‘‘मेरे पेट में तेरा बच्चा है.’’

‘‘क्या…?’’ ‘‘हां…’’

‘‘मैं तो कोई दवा नहीं जानता, अपनी किसी सहेली से पूछ ले.’’ अपनी किसी सहेली को ऐसी बात बताना रूपबाई के लिए खतरे से खाली नहीं था. हार कर उस ने यह बात अपनी मां को ही बता दी, पर मां उसे हिम्मत देने के बजाय उलटा डांटने लगीं.

शाम को रूपबाई का पिता रतन सिंह काम से वापस आ गया. वह दूर पहाड़ी पर काम करने जाता था. आते ही वह चारपाई पर बैठ गया. उसे देख कर रूपबाई का पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था. खाना खाने के बाद सोनबाई ने सारी बातें अपने पति को बता दीं.

यह सुन कर रतन सिंह की आंखें अंगारों की तरह दहक उठीं. वह चिल्लाया, ‘‘किस का पाप है तेरे पेट में?’’

‘‘तुम्हारे भाई का.’’ ‘‘रामेश्वर का?’’

‘‘हां, रामेश्वर का. तुम्हारे सगे भाई का,’’ सोनबाई दबी जबान में बोली. ‘‘अब तक क्यों नहीं बताया?’’

‘‘शर्म से नहीं बताया होगा, पर अब तो बताना जरूरी हो गया है.’’ इस बात पर रतन सिंह का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ, फिर उस ने पूछा, ‘‘अब…?’’

‘‘अब क्या… किसी को पता चल गया, तो पुरखों की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’ ‘‘फिर…?’’

‘‘फिर क्या, इसे जहर दे कर मार डालो. गोली मेरे पास रखी हुई है.’’ ‘‘और रामेश्वर…’’

‘‘उस से कुछ मत कहो. वह तो मर्द है. लड़की मर जाए, तो क्या जाता है? ‘‘अगर दोनों को जहर दोगे, तो सब को पता चल जाएगा कि दाल में कुछ काला है.’’

‘‘तो बुला उसे.’’ सोनबाई उठी और दूसरे कमरे में सो रही रूपबाई को बुला लाई. वह आंखें झुकाए चुपचाप बाप की चारपाई के पास आ कर खड़ी हो गई.

रतन सिंह चारपाई पर बैठ गया. रूपबाई उस के पैरों पर गिर कर फफक कर रो पड़ी. रतन सिंह ने उस की कनपटी पर जोर से एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘अब घडि़याली आंसू मत बहा. एकदम चुप हो जा और चुपचाप जहर की इस गोली को खा ले.’’

यह सुन कर रूपबाई का गला सूख गया. उसे अपने पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह थरथर कांप उठी और अपने बाएं हाथ को कनपटी पर फेरती रह गई. झन्नाटेदार थप्पड़ से उस का सिर चकरा गया था. रात का समय था. सारा गांव सन्नाटे में डूबा हुआ था. अपनेअपने कामों से थकेहारे लोग नींद के आगोश में समाए हुए थे.

गांव में सिर्फ उन तीनों के अलावा एक रामेश्वर ही था, जो जाग रहा था. वह दूसरे कमरे में चुपचाप सारी बातें सुन रहा था. पिता की बात सुन कर कुछ देर तक तो रूपबाई चुप रही, फिर बोली, ‘‘जहर की गोली?’’

तभी उस की मां चीखी, ‘‘हां… और क्या कुंआरी ही बच्चा जनेगी? तू ने नाक काट कर रख दी हमारी. अगर ऐसा काम हो गया था, तो किसी कुएं में ही कूद जाती.’’ ‘‘मगर इस में मेरी क्या गलती है? गलती तो रामेश्वर चाचा की है. मैं उस के पैर पड़ी थी, खूब आंसू रोई थी, लेकिन वह कहां माना. उस ने तो जबरदस्ती…’’

‘‘अब ज्यादा बातें मत बना…’’ रतन सिंह गरजा, ‘‘ले पकड़ इस गोली को और खा जा चुपचाप, वरना गरदन दबा कर मार डालूंगा.’’ रूपबाई समझ गई कि अब उस का आखिरी समय नजदीक है. फिर शर्म या झिझक किस बात की? क्यों न हिम्मत से काम ले?

वह जी कड़ा कर के बोली, ‘‘मैं नहीं खाऊंगी जहर की गोली. खिलानी है, तो अपने भाई को खिलाओ. तुम्हारी नाक तो उसी ने काटी है. उस ने जबरदस्ती की थी मेरे साथ, फिर उस के किए की सजा मैं क्यों भुगतूं?’’ ‘‘अच्छा, तू हमारे सामने बोलना भी सीख गई है?’’ कह कर रतन सिंह ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर उसे चारपाई पर पटक दिया.

सोनबाई रस्सी से उस के हाथपैर बांधने लगी. रूपबाई ने इधरउधर भागने की कोशिश की, चीखीचिल्लाई, पर सब बेकार गया. उस बंद कोठरी में उस की कोई सुनने वाला नहीं था. जब रूपबाई के हाथपैर बंध गए, तो वह अपने पिता से गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे मत मारिए पिताजी, मैं आप के पैर पड़ती हूं. मेरी कोई गलती नहीं है.’’

मगर रतन सिंह पर इस का कोई असर नहीं हुआ. रूपबाई छटपटाती रही. रस्सी से छिल कर उस की कलाई लहूलुहान हो गई थी. वह भीगी आंखों से कभी मां की ओर देखती, तो कभी पिता की ओर.

अचानक रतन सिंह ने रूपबाई के मुंह में जहर की गोली डाल दी. लेकिन उस ने जोर लगा कर गोली मुंह से बाहर फेंक दी. गोली सीधी रतन सिंह की नाक से जा टकराई. वह गुस्से से तमतमा गया. उस ने रूपबाई के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रूपबाई के गाल पर हाथ का निशान छप गया. उस का सिर भन्ना उठा. वह सोचने लगी, ‘आदमी इतना निर्दयी क्यों हो जाता है? वहां मेरे साथ जबरदस्ती बलात्कार किया गया और यहां इस पाप को छिपाने के लिए जबरदस्ती मारा जा रहा है. अब तो मर जाना ही ठीक रहेगा.’

मरने की बात सोचते ही रूपबाई की आंखों में आंसू भर आए. आंसुओं पर काबू पाते हुए वह चिल्लाई, ‘‘पिताजी, डाल दो गोली मेरे मुंह में, ताकि मेरे मरने से तुम्हारी नाक तो बच जाए.’’ रतन सिंह ने उस के मुंह में गोली डाल दी. वह उसे तुरंत निगल गई. पहले उसे नशा सा आया और फिर जल्दी ही वह हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गई.

रतन सिंह और सोनबाई ने उस के हाथपैर खोले और उस की लाश को दूसरे कमरे में रख दिया. सारी रात खामोशी रही. रामेश्वर बगल के कमरे में अपने किए के लिए खुद से माफी मांगता रहा.

सुबह होते ही रतन सिंह और सोनबाई चुपके से रूपबाई के कमरे में गए और दहाड़ें मार कर रोने लगे. रामेश्वर भी अपने कमरे से निकल आया. फिर वे तीनों रोने लगे. रोनेधोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए कि क्या हो गया?

‘‘कोई सांप डस गया मेरी बच्ची को,’’ सोनबाई ने छाती पीटते हुए कहा और फिर वह दहाड़ें मार कर रो पड़ी.

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