दिल का तीसरा कोना: आरव की यादें क्यों छिपाए बैठी थी कुहू

3 बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो मोनिका चौंकी, ‘क्या बात है जो कुहू दरवाजा नहीं खोल रही. उसी ने तो फोन कर के कहा था. आज मैं फ्री हूं, उमंग कंपनी टूर पर गया है. कुछ देर बैठ कर गप्प मारेंगे, साथ में लंच करेंगे. बस तू आ जा.’

मोनिका ने एक लंबी सांस ली, कितनी बातें करती थी कुहू. मैं यहां असम में पति के औफिस में काम करने वाले सहकर्मियों की पत्नियों के अलावा किसी और को नहीं जानती थी और कुहू को देखो, उस के जानने वालों की कोई कमी नहीं थी. अपनी बातें कहने के लिए उस के पास दोस्त ही दोस्त थे.

मोनिका और कुहू ने बनारस में एक हौस्टल, एक कमरे में 3 साल साथ बिताए थे. इसलिए एकदूसरे पर पूरा विश्वास था. जो 3 साल एक कमरे में एक साथ रहेगा, वह बेस्ट फ्रैंड ही होगा. मोनिका और कुहू भी बेस्ट फ्रैंड थीं. शादी के बाद भी दोनों फोन और ईमेल से बराबर जुड़ी रहीं. बाद में जब मोनिका के पति की नियुक्ति भी असम के उसी नगर में हो गई, जहां कुहू उमंग के साथ रह रही थी. तो…

मोनिका इतना ही सोच पाई थी कि उस के विचारों पर विराम लगाते हुए कुहू ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर मुसकान खिली हुई थी. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘अरे कब आई तुम, लगता है कई बार बेल बजाना पड़ा. मैं बैडरूम में थी, इसलिए सुनाई नहीं दिया.’’

उस के चेहरे पर भले ही मुसकान खिली थी, पर उस की आवाज से मोनिका को समझते देर नहीं लगी कि वह खूब रोई थी. उस के चेहरे पर उदासी के भाव साफ दिख रहे थे. मोनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एक बात तो उमंग बिलकुल सच कहता है कि रोने के बाद तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हो जाती हैं.’’

बातें करते हुए दोनों ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गईं. मोनिका के चेहरे पर कुहू से मिलने की खुशी और उसे देख कर अंदर उठ रहे सवालों के जवाब की चाह नजर आ रही थी.

बातों के दौरान कुहू के चेहरे पर हल्की मुसकान के साथ उस की आंखों के कोर भीगे दिखाई दिए. उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘चलो मोनिका खाना खाते हैं.’’

खाने के लिए कह कर कुहू उठने लगी तो मोनिका ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है कुहू?’’

‘‘अरे कुछ नहीं यार, आज मैं ने एक वायरस को निपटा दिया है, जो मेरी जिंदगी की विंडो को खा रहा था.’’ कुहू ने बात तो मजबूरी के साथ शुरू की थी, पर पूरी करतेकरते उस का गला भर आया था.

मोनिका ने धीरे से पूछा, ‘‘कहीं तुम आरव की बात तो नहीं कर रही हो?’’

उस ने धीरे से स्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

आरव उस का कौन था या वह आरव की कौन थी. दोनों में से यह कोई नहीं जानता था. फिर भी दोनों एकदूसरे से सालों से जुड़े थे. और कुहू, उस की तो बात ही निराली थी. वह बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी, पर उस की कालीकाली बड़ीबड़ी आंखों में एक अनोखा आकर्षण था. कोई भी उसे एक बार देख लेता, वह उसी में खो जाता.

होंठों पर हमेशा मधुर मुसकान, कभी किसी से कोई लड़ाईगझगड़ा नहीं, वह एक अच्छी मददगार थी. उस के मन में दूसरों के लिए दया का विशाल सागर था.

वह कभी दूसरों के लिए गलत नहीं सोच सकती थी. वह चंचल और हमेशा खुश रहने वालों में थी, किसी को सताने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. वह हमेशा हंसती और दूसरों को हंसाती रहती थी.

और इसी तरह एक दिन उस का रौंग नंबर लग गया. दूसरी ओर से ऐसी आवाज आई, जो किसी के भी दिल को भा जाए. उस मनमोहक आवाज में मंत्रमुग्ध हो कर कुहू इस तरह बातें करने लगी जैसे वह उसे अच्छी तरह जानती हो. थोड़ी देर बातें करने के बाद उस ने खुश हो कर फोन डिसकनेक्ट करते हुए कहा, ‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा आरव, तुम से फिर बातें करूंगी.’’

फोन रख कर कुहू पलटी और मोनिका के गले में बांहें डाल कर कहने लगी, ‘‘आज तो बातें करने में मजा आ गया. आज पहली बार किसी ऐसे लड़के से बात की है, जिस से फिर बात करने का मन हो रहा है.’’

‘‘तुझे क्या पता, वह लड़का ही है, देखा है उसे?’’ मोनिका ने टोका.

‘‘उस ने बताया कि एलएलबी कर रहा है तो लड़का ही होगा न?’’

‘‘बस, छोड़ो मुझे जाने दो, मुझे पढ़ना है. मैं तुम्हारी तरह होशियार तो हूं नहीं.’’ मोनिका ने कहा और कमरे में आ गई.

उस के पीछेपीछे कुहू भी आ गई. वह इस तरह खुश थी मानो उस ने प्रशासनिक नौकरी की प्रीलिम पास कर ली हो. कुहू बहुत ज्यादा नहीं पढ़ती थी फिर भी उस के नंबर बहुत अच्छे आते थे. जबकि मोनिका खूब मेहनत करती थी, तब जा कर उस के अच्छे नंबर आ पाते थे.

उस दिन के बाद उस ने आरव से बातचीत शुरू कर दी थी. दिन में कभी एक बार तो कभी 2 बार उस से बात जरूर करती थी. उस दिन कुहू बहुत खुश थी, क्योंकि आरव उस से मिलने हौस्टल आ रहा था. खुश तो थी, पर मन ही मन घबरा भी रही थी.

क्योंकि इस के पहले वह किसी लड़के से इस तरह नहीं मिली थी और न आमनेसामने बात की थी. पर अब तो आरव को आना ही था. उस दिन वह काफी बेचैन दिखाई दे रही थी. 11 बजे के आसपास हौस्टल के गेट पर बैठने वाली सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी, आप से कोई मिलने आया है.’’

मोनिका भी कुहू के पीछेपीछे दौड़ी कि देखूं तो कुहू का बौयफ्रैंड कैसा है. क्योंकि वह अकसर मुंह टेढ़ा कर के उस के बारे में बताया करती थी.

आरव भी घबराया हुआ था. गोरा रंग, भूरी आंखें और तपे सोने जैसी आभा वाले बाल, वह काफी सुंदर नौजवान था. दोनों हौस्टल के पार्क में एकदूसरे के सामने बैठे थे. मोनिका ने देखा तो आरव शायद सोच रहा था कि वह क्या बात करे.

वैसे कुहू के बताए अनुसार वह कम बातूनी नहीं था, पर किसी लड़की से शायद उस की यह पहली मुलाकात थी,  वह भी गर्ल्स हौस्टल  में. शायद वह रिस्क ले कर वहां आया था.

बात करने के लिए कुहू भी उत्सुक थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आरव के हाथ में एक काला निशान देख कर उस के बारे  में पूछा, ‘‘यह क्या है? स्कूटर की ग्रीस लग गई है या जल गया है? क्या हुआ यहां?’’

एक साथ कुहू ने कई सवाल कर डाले.

आरव मुसकराया, अब उसे भी कुछ कहने यानी बातचीत करने का बहाना मिल गया था. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा बर्थ मार्क है.’’

थोड़ी देर दोनों ने यहांवहां की बातें कीं, इधरउधर की बातें कर के आरव चला गया. वह गीतसंगीत का बहुत शौकीन था. जबकि कुहू को गीतसंगीत पसंद नहीं था. उसे सोना अच्छा लगता था. एक दिन वह सो रही थी, तभी सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी का फोन आया है.’’

थोड़ी देर बाद कुहू बातचीत कर के लौटी, तो जोरजोर से हंसने लगी. मोनिका उस का मुंह ताक रही थी. हंस लेने के बाद कुहू ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आज तो आरव ने गाना गाया. उस की आवाज बहुत अच्छी है.’’

‘‘कौन सा गाना गाया?’’ मोनिका ने पूछा.

तो कुहू ने कहा, ‘‘बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां, ये रैना और तुम.’’

थोड़ा रुक कर आगे बोली, ‘‘यही नहीं, वह सिनेमा देखने को भी कह रहा था. मैं मना नहीं कर पाई यार वह कितना भोला है, थोड़ा बुद्धू भी है. यार मोनिका, तुम भी साथ चलना. मैं उस के साथ अकेली नहीं जाऊंगी, ठीक नहीं लगता.’’

कुहू एकदम से चल पड़ी तो उसे चुप कराने के लिए मोनिका ने कहा, ‘‘ठीक है बाबा, चलूंगी बस…’’

कुहू एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘क्यों? वह कोई डरावनी फिल्म तो नहीं थी जो अंधेरे में डर के मारे मेरा हाथ पकड़ लेता.’’

मोनिका को खूब हंसी आई, जबकि वह थोड़ाथोड़ा समझ गई थी. जब उस ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आरव की वकालत नहीं चली तो वह अच्छा गायक बन जाएगा. आज उस ने मुझे फिर एक गाना सुनाया, आप की आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं… आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं…’’

मोनिका ने हंसते हुए उसे हिला कर कहा, ‘‘कहीं, उसे तुम से प्यार तो नहीं हो गया?’’

कुहू थोड़ी ढीली पड़ गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘देख मोनिका, ये प्यारव्यार कुछ नहीं होता, बस एक कैमिकल लोचा होता है. तू छोड़ उस को…चल खाना खाने चलते हैं.’’

इस के बाद हम पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में लग गए, कुहू के पेपर पहले हो गए तो वह घर लौटने की तैयारी करने लगी. उस की सुबह 7 बजे की बस थी. मेरे साथ मेरी एक सहेली बिंदु भी उसे बस स्टौप पर छोड़ने आई थी. आरव भी उसे बस पर बिठाने आया था. जातेजाते उस का कुछ अलग ही अंदाज था. उस ने आरव से खुद तो हाथ मिलाया ही बिंदु का हाथ पकड़ कर उस से मिलवाया.

‘‘मोनिका, सही बात तो यह कि मैं वहां से जा नहीं सकी, अभी भी उस का हाथ पकड़े वहीं खड़ी हूं. जब मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए उस की आंखों में झांका तो उन में जो दिखाई दिया, उसे उस समय तो नहीं समझ सकी. उस की बातें, उस के सुनाए गीत कानों में गूंज रहे थे. उस ने मेरी सगाई की बात सुनी तो उस का चेहरा उतर गया था. मेरा शरीर कहीं भी रहा हो, आत्मा अभी भी वहीं है.’’ आंसू पोंछते हुए कुहू ने कहा और चाय बनाने के लिए किचन में चली गई.

उस के पीछेपीछे मोनिका भी गई. उस ने कहा, ‘‘उस के बाद तुम फेसबुक पर आरव के संपर्क में आई थीं क्या?’’

कुहू ने हां में सिर हिलाया और कहने लगी, ‘‘हौस्टल से घर आने के बाद कुछ ही दिनों में उमंग से मेरी शादी हो गई. उमंग बहुत ही अच्छा और नेक आदमी था. उस के जीवन का एक ही ध्येय था जियो और जीने दो. पार्टी के शौकीन उमंग को खूब घूमने और घुमाने का शौक था. वह जहां भी जाता, मुझे अपने साथ ले जाता. बेटे की पढ़ाई में नुकसान न हो, इस के लिए उसे हौस्टल में डाल दिया. पर मेरा साथ नहीं छोड़ा.’’

बात सच भी थी. कुहू जब भी मोनिका को फोन करती, यही कहती थी, ‘शादी के 15 साल बाद भी उमंग का हनीमून पूरा नहीं हुआ है.’

कभीकभी हंसती, मस्ती में डूबी कुहू की आंखों के सामने एक जोड़ी थोड़ी भूरी, थोड़ी काली आंखें आ जातीं तो वह खो जाती. ऐसे में ही एक रोज उमंग ने कहा, ‘‘चलो अपना फेसबुक पेज बनाते हैं और अपने पुराने मित्रों को खोजते हैं. अपने पुराने मित्र से मिलने का यह एक बढि़या रास्ता है.’’

इस के बाद दोनों ने अपनेअपने मोबाइल पर फेसबुक पेज बना लिए.

एक दिन कुहू अकेली थी और अपने मित्रों को खोज रही थी. अचानक उस के मन में आया हो सकता है आरव ने भी अपना फेसबुक पेज बनाया हो. वह आरव को खोजने लगी. पर वहां तो तमाम आरव थे उस का आरव कौन है, कैसे पता चले. तभी उस की नजर एक चेहरे पर पड़ी तो वह चौंकी. शायद यही है आरव.

उस के पास उस की कोई फोटो भी तो नहीं. बस, यादें ही थीं. उस ने उस की प्रोफाइल खोल कर देखी. उस की जन्मतिथि और शहर भी वही था. उस ने तुरंत उस के मैसेज बौक्स में अपना परिचय दे कर मैसेज भेज दिया. अंत में उस ने यह भी लिख दिया, ‘क्या अभी भी मैं तुम्हें याद हूं?’

बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस की प्रोफाइल चैक की और उस के फोटो देखने लगी तो उस के फोटो देख कर कुहू की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है.

फोटो में उस के हाथ पर वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ था. अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘हां’. अब इस ‘हां’ का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था. एक ‘हां’ का मतलब मैं आरव ही हूं. दूसरा यह कि तुम मुझे अभी भी याद हो. पर कुहू को दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दिया.

कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उन की जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू एक बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका था. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने कहा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की थी क्या?’’

आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों बातें करते हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे में बताया था तो उस की मां ने राहत की सांस ली थी. कुहू को यह बात आरव ने ही बताई थी. आरव पर इस का क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. और आरव सिर्फ उस का मुंह देखता रह गया था.

हां, तो जब कुहू ने आरव से  पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं? इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू में करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है और न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए मैं उस से कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं है और तुम जो जवाब दोगी, वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ, अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो नहीं करती. पर आज बात कुछ अलग है.’’

और सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था. और कोई भी…

एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू कोई समय घटाने का यंत्र होता तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’

‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो.’’ कुहू ने कहा.

‘‘अरे तुम मेरे पीछे खड़ी हो,’’ आरव ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने देखा ही नहीं. तुम बहुत झूठी हो.’’ इस के बाद उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’

कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत गई नहीं. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा?’’

दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है गलत है. फिर उस ने सब कुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सच्चाई उसे बता दी. अंत में कहा, ‘‘इस में सारी मेरी ही गलती है. मैं ने ही आरव को ढूंढा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब जो सोचना हो सोचिए.’’

पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, उस के बाद बोला, ‘‘कुहू तुम झूठ बोल रही हो, मजाक कर रही हो. सच बोलो, मेरे दिल की धड़कनें थम रही हैं.’’

‘‘नहीं उमंग, यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता ही दी थीं, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं हुई.

उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उस ने कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्राब्लम नहीं, यह सब तो होता रहता है.’’

अगले दिन कुहू ने आरव को सारी बात बताई तो उसे आश्चर्य हुआ. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘कुहू, तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है. जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’

‘‘इस में गलती तुम्हारी है, तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’ कुहू ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी वकील है. पर पता नहीं क्यों वह ऐसा करती है.’’ आरव ने कहा.

इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि को बता दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया. उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो, वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’

अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’

उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कई दिनों तक वह संताप में रही. फोन की भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि अंत में एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, जिस से मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.

इस के बाद आरव का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. 3 दिन हो गए हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी नि:स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही होगी. यह सब कहते हुए मुझे भी. विधि का विधान यही है. हम इस से बंधे हुए हैं.’’

कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल सकी, ‘‘कोई प्राब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’

‘‘ठीक है.’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.

कुहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया, अपनी फ्रैंड लिस्ट से उसे भी बाहर कर दिया.

कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका मैं ने उस का नंबर तो डिलीट कर दिया, पर जो नंबर मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी, उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह, मुझे पता नहीं, मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे भूल नहीं सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी है और अब मुझे यह भी पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? जब उसे पता था तो उस ने ऐसा क्यों किया? बस, जब तक उसे अच्छा लगता रहा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’

कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए तो अच्छा है.

वैसे भी मोनिका उस से कहती भी क्या? जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी, एक बार उस ने आरव से कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं. एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका होता है, और जो दिल का तीसरा कोना है, उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई होती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’

मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब भी वह कह रही थी कि आरव से प्यार नहीं है.

मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो भी मिला है, अच्छा ही मिला है. जिसे कोई भी विधि का विधान बदल नहीं सकता.

ढाई आखर प्रेम का: भाग 2- क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

घर में बैडरूम से अटैच बाथरूम को धोने के लिए ड्राइंगरूम को पार करते हुए बैडरूम में घुस कर ही बाथरूम जाया जा सकता था. 3 बैडरूम का मकान होने के कारण अलग से पूजाघर नहीं बना पाए थे. स्टोर में ही मंदिर रख कर पूजाघर बना लिया था पर स्टोर भी इतना बड़ा तथा हवादार नहीं था कि उस में कोई इंसान घंटे 2 घंटे बैठ कर पूजा कर पाए. वैसे भी सुबह कई बार उसे स्वयं ही कोई न कोई सामान निकालने स्टोर में जाना ही पड़ता था जिस से मांजी की पूजा में विघ्न पड़ता था. मांजी ऐसी ढकोसलेबाजी में कुछ ज्यादा ही विश्वास करती थी. इसलिए आरती कर के वे बैडरूम में ही कुरसी डाल कर पूजा किया करती थीं.

जिस समय रामू सफाई करने आता, वही उन का पूजा का समय रहता था. कई बार उस से उस समय आने के लिए मना किया पर उस का कहना था, 9 से 5 बजे तक मेरी नगरनिगम के औफिस में ड्यूटी रहती है, यदि इस समय सफाई नहीं कर पाया तो शाम के 5 बजे के बाद ही आ पाऊंगा.

मजबूरी के चलते उस का आना उसी समय होता था. उस के आते ही मांजी उसे हिकारत की नजर से देखते हुए अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी नाक ढक लेती थीं तथा उस के जाते ही जहांजहां से उस के गुजरने की संभावना होती, पोंछा लग जाने के बाद भी फिर पोंछा लगवातीं तथा गंगाजल छिड़क कर स्थान को पवित्र करने का प्रयास करते हुए यह कहने से बाज नहीं आती थीं कि इस ने तो मेरी पूजा ही भंग कर दी.

अनुज्ञा चाह कर भी नहीं कह पाती थी कि वह भी तो एक इंसान है. जैसे अन्य अपना काम करते हैं वैसे ही वह भी अपना काम कर रहा है. अब उस के आने से उन की पूजा कैसे भंग हो गई. उन्हें समझाना उस के क्या अमित के बस में भी नहीं था. वैसे भी 2 पुत्रियों के बाद फैमिली प्लानिंग का औपरेशन करवाने के कारण अनुज्ञा उन्हें फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी. दरअसल, मांजी को लगता था कि इस निर्णय के पीछे अनुज्ञा का हाथ है. किसी भी मां को अपना पुत्र कभी गलत लगता ही नहीं है, अगर कहीं कुछ गलत हो रहा है तो वह पुत्र नहीं, बहू के कारण हो रहा है. शायद, इसी मनोस्थिति के कारण सासबहू में सदा छत्तीस का आंकड़ा रहता है.

अपने इस आक्रोश को जबतब छोटीछोटी बात पर उसे जलीकटी सुना कर निकालती रहती थीं. वह तो अभ्यस्त हो चली थी लेकिन जब वे शीतल और शैलजा को अपने आक्रोश का निशाना बनातीं तब उस से सहन नहीं होता था लेकिन फिर भी घर में अशांति न हो या जैसी भी हैं, अमित की मां हैं, सोच कर वह अपने क्रोध को शांत करने का प्रयास करती थी लेकिन शीतल और शैलजा चुप नहीं रहती थीं. यही कारण था कि उन की अपनी पोतियों से भी नहीं बना करती थी.

रामू तो रामू, काम वाली कमली की 5 वर्षीय बेटी काजल भी यदि गलती से उन से छू जाती तो उसे भी वे कोसने से नहीं चूकती थीं, तुरंत साड़ी बदलतीं, काम वाली के धोए बरतन वे फिर पानी से इसलिए धुलवातीं कि कहीं उस ने प्राकृतिक मासिक चक्र के दौरान बरतन न धो दिए हों.

अनुज्ञा सोचती जिस चीज के कारण प्रकृति ने औरत को नारीत्व होने का सब से बड़ा गौरव दिया, भला उस के कारण वह ‘अपवित्र’ कैसे हो सकती है? वैसे काम वाली को सख्त हिदायत थी कि इन दिनों वह काम नहीं करेगी पर फिर भी उन्हें विश्वास नहीं था, उन के इस विचार के कारण कामवाली को 4 दिन की अतिरिक्त छुट्टी देनी पड़ती थी.

व्यर्थ के बढ़े इन कामों के कारण कभीकभी मन आक्रोश से भर उठता था पर घर की सुखशांति के लिए संयम बरतना उस की मजबूरी थी. वह जानती थी कि अमित को भी यह सब पसंद नहीं है पर मां के उग्र स्वभाव के कारण वे भी चुप रहते थे. कभी वे कुछ कहने का प्रयास करते तो तुरंत कहतीं, ‘हम सरयूपारीय ब्राह्मण हैं, तुम भूल सकते हो पर मैं नहीं. आज अगर तुम्हारे पिताजी होते, तुम्हारे घर का दानापानी भी ग्रहण नहीं करते. प्रकृति मुझे न जाने किन पापों की सजा दे रही है.’ इस के साथ ही उन का रोना प्रारंभ हो जाता.

अमित के पिताजी गांव के मंदिर में पुजारी थे, 4 पीढि़यों से चला आ रहा यह व्यवसाय उन्हें विरासत में मिला था. प्रकांड विद्वान होने के कारण आसपास के अनेक गांवों में उन की बेहद प्रतिष्ठा थी. दानस्वरूप प्रचुर मात्रा में मिले धन के कारण धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. पुरखों की जमीन अलग से धनवर्षा करती रहती थी. एक दिन वे ऐसे सोए कि उठ ही नहीं पाए. अमित परिवार में सब से बड़े थे. दोनों भाई बाहर होस्टल में रह कर पढ़ रहे थे. कोई भी भाई अपने परिवार का पुश्तैनी व्यवसाय यानी पंडिताई तथा खेतीबारी अपनाने को तैयार नहीं था. इसलिए सबकुछ बेच कर तथा खेती को बटाई में दे कर वे मां को ले कर चले आए.

उस समय शीतल 2 वर्ष की थी, उस के कारण सर्विस में भी समस्या आने लगी थी. मांजी के आने से उसे लगा कि अब शीतल को संभालने में आसानी होगी पर हुआ विपरीत. दंभी और उग्र स्वभाव की होने के साथ उन की टोकाटाकी तथा छुआछूत की आदत के कारण कभीकभी उसे लगता था कि उस का सांस लेना ही दूभर हो गया है. इस के साथ उन का एक ही जुमला दोहराना कि ‘हम सरयूपारीय ब्राह्मण हैं, तुम भूल सकते हो पर मैं नहीं,’ उसे अपराधबोध से जकड़ने लगा था. गलती शायद उन की भी नहीं थी, बचपन से जो जिस माहौल में पलाबढ़ा हो, उस के लिए इन सब को एकाएक छोड़ पाना संभव ही नहीं है. इन हालात में घर संभालना ही कठिन हो रहा था इसलिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.

3 दिन तक मांजी को आईसीयू में रखा गया. दवाओं के बावजूद वे स्टेबल नहीं हो पा रही थीं. डाक्टर इस चिंता में थे कि कहीं इस का कारण, उन को दिया गया खून तो नहीं है, शायद उन का शरीर उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है. रामू लगातार अनुज्ञा को देखने आता रहा था. जब वह घर जाती तब वह उस के पास बैठा रहता. शीतल और शैलजा की परीक्षाएं चल रही थीं. अंतिम 2 पेपर बाकी थे इसलिए वे भी उस के पास ज्यादा देर तक बैठ नहीं पा रही थीं. सच तो यह है कि रामू के कारण वह संकट की इस घड़ी को आसानी से पार कर गई थी.

अमित भी सूचना पा कर शीघ्र लौट आए थे. आखिर 5वें दिन उन की हालत में थोड़ा सुधार आना प्रारंभ हुआ, तब चैन आया. मांजी को आईसीयू से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. उसी दिन शीतल और शैलजा के पेपर समाप्त हुए थे. वे भी मांजी से मिलने आई थीं. उसी समय रामू भी मांजी का हालचाल लेने पहुंच गया. उसे देखते ही शीतल ने मांजी की ओर देखते हुए कहा, ‘दादी, रामू की सहायता से ही ममा आप को अस्पताल ले कर आ पाईं.’

‘क्या इस ने मुझे छूआ…?’ मांजी ने हकबका कर कहा.

‘दादी, रामू ने छुआ ही नहीं आप को अपना खून भी दिया,’ शैलजा ने कहा.

‘क्या कहा तू ने, इस का खून मुझे चढ़ाया गया?’

‘हां दादी, अगर यह नहीं होता तो आप को खून नहीं मिल पाता.’

‘इस का खून मुझे क्यों चढ़ाने दिया, इस से तो मुझे मर ही जाने देते,’ मांजी ने लगभग रोंआसे स्वर में कहा.

यह सुन कर रामू ने सिर झुका दिया तथा बिना कुछ कहे चला गया.

‘मां, मेरी अनुपस्थिति में इस ने तुम्हारी सेवा की, जो काम मुझे करना चाहिए वह इस ने किया. इस का हम से कोई संबंध नहीं है, है तो सिर्फ इंसानियत का और तुम इसे गलत समझ रही हो. तुम्हें इस के खून से परहेज है क्योंकि तुम्हारी नजरों में वह नीच जाति का है. पर मां खून तो खून ही है, इस का धर्म और जाति से भला क्या वास्ता. अगर ऐसा होता तो तुम्हारा खून इस से कैसे मेल खाता. मां, हर इंसान का खून एक जैसा है, हम इंसानों ने ही कभी कार्य, कभी जाति तो कभी धर्म के आधार पर एकदूसरे को बांट दिया है.’

‘मां, यह रामू का नहीं, उस के जैसे अनेक लोगों का दोष है कि उन्होंने एक सवर्ण के घर नहीं बल्कि तथाकथित निम्नवर्ण में जन्म लिया. मां, वह छोटा नहीं, हम से बड़ा है. जहां हम अपनी गंदगी स्वयं साफ करने में झिझकते हैं, वहीं इन्हें उसे साफ करने में कोई संकोच नहीं होता. जरा सोचो, मां, अगर यह भी हमारी तरह गंदगी को साफ करने से मना कर दे तो? क्या यह दुनिया रहने लायक रह पाएगी? अमित उन की बात सुन कर चुप न रह पाए तथा उन्हें समझाते हुए कहा.

अमित की बात सुन कर आशा के विपरीत वे कुछ नहीं बोलीं पर उन की मुखमुद्रा से स्पष्ट लग रहा था कि वे कुछ सोच रही हैं. शायद, पुत्र की बात आज उन्हें सही लग रही थी पर वे चाह कर भी दिल की बात जबां पर नहीं ला पा रही थीं. नहीं कह पा रही थीं कि तू ठीक कह रहा है बेटा, आज तक व्यर्थ ही मैं इन ढकोसलों में पड़ी रही. मैं भूल गई थी, कार्य ही इंसान को महान बनाते हैं.

‘कैसी हैं मांजी आप?’ डाक्टर ने अंदर प्रवेश करते हुए पूछा. ‘अब ठीक हूं, तुम ने बचा लिया, वरना…’ मांजी ने चौंकते हुए कहा.

‘मांजी, मुझे नहीं, अपनी बहू और रामू को धन्यवाद दीजिए. यदि ये समय पर आप को यहां नहीं ला पाते या रामू अपना खून न देता तो मैं कुछ भी नहीं कर पाता,’ डाक्टर विनय ने उन से कहा.

अपने चरित्र पर ही संदेह: भाग 1- क्यों खुद पर शक करने लगे रिटायर मानव भारद्वाज

अकसर बचपन में भी सुनते थे और अब भी सुनते हैं कि गांधीजी ने कहा था कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा भी आगे कर देना चाहिए. समय के उस दौर में शायद एक गाल पर चांटा मारने वाले का भी कोई ऐसा चरित्र होता होगा जिसे दूसरा गाल भी सामने पा कर शर्म आ जाती होगी.

आज का युग ऐसा नहीं है कि कोई लगातार वार सहता रहे क्योंकि वार करने वालों की बेशर्मी बढ़ती जा रही है. उस युग में सहते जाना एक गुण था, आज के युग में सहे जाना बीमारी बनता जा रहा है. ज्यादा सहने वाला अवसाद में जाने लगा है क्योंकि उस का कलेजा अब लक्कड़, पत्थर हजम करने वाला नहीं रहा, जो सामने वाले की ज्यादती पर ज्यादती सहता चला जाए.

पलट कर जवाब नहीं देगा तो अपनेआप को मारना शुरू कर देगा. पागलपन की हद तक चला जाएगा और फिर शुरू होगा उस के इलाज का दौर जिस में उस से कहा जाएगा कि आप के मन में जो भी है उसे बाहर निकाल दीजिए. जिस से भी लड़ना चाहते हैं लड़ लीजिए. बीमार जितना लड़ता जाएगा उतना ही ठीक होता जाएगा.

अब सवाल यही है कि इतना सब अपने भीतर जमा ही क्यों किया गया जिसे डाक्टर या मनोवैज्ञानिक की मदद से बाहर निकलना पड़े? पागल होना पड़ा सो अलग, बदनाम हुए वह अलग.

हर इनसान का अपनाअपना चरित्र है. किसी को सदा किसी न किसी का मन दुखा कर ही सुख मिलता है. जब तक वह जेब से माचिस निकाल कर कहीं आग न लगा दे उस के पेट का पानी हजम नहीं होता. इस तरह के इनसान के सामने अगर अपना दूसरा गाल भी कर दिया जाएगा तो क्या उसे शर्म आ जाएगी?

गलत को गलत कहना जरूरी है क्योंकि गलत जब हमें मारने लगेगा तो अपना बचाव करना गलत नहीं. अब प्रश्न यह भी उठता है कि कैसे पता चले कि गलत कौन है? कहीं हम ही तो गलत नहीं हैं? कहीं हम ने ही तो अपने दायरे इतने तंग नहीं बना लिए कि उन में आने वाला हर इनसान हमें गलत लगता है?

हमारे एक सहयोगी बड़ा अच्छा लिखते हैं. अकसर पत्रिकाओं में उन की रचनाओं के बारे में लिखा जाता है कि उन का लिखा अलग ही होता है और प्रेरणादायक भी होता है. सत्य तो यही है कि लेखक के भीतर की दुनिया उस ने स्वयं रची है जिस में हर चरित्र उस का अपना रचा हुआ है. यथार्थ से प्रेरित हो कर वह उन्हें तोड़तामरोड़ता है और समस्या का उचित समाधान भी करता है.

जाहिर है, उन का अपना चरित्र भी उन की लेखनी में शतप्रतिशत होता है क्योंकि काला चरित्र कागज पर चांदनी नहीं बिखेर सकता और न ही कभी संस्कारहीन चरित्र लेखनी में वह असर पैदा कर सकता है जिस में संस्कारों का बोध हो. जो स्वयं ईमानदार नहीं उस की रचना भी भला ईमानदार कैसे हो सकती है.

मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं ‘मानव भारद्वाज’. खुशमिजाज हैं और स्पष्टवादी भी. गले की किसी समस्या से जूझ रहे हैं. जूस, शीतल पेय और बाजार के डब्बाबंद हर सामान को खाने  से उन के गले में पीड़ा होने लगती है, जिस का खमियाजा उन्हें रातरात भर जाग कर भरना पड़ता है. कौफी पीने से भी उन्हें बेचैनी होती है. वे सिर्फ चाय पी सकते हैं. अकसर शादीब्याह में कभी हम साथसाथ जाएं तो मुझे उन्हें देख कर दुख भी होता है. चुपचाप शगुन का लिफाफा थमा कर खिसकने की सोचते हैं.

‘‘कुछ तो ले लीजिए, मानव.’’

‘‘नहीं यार, यहां मेरे लायक कुछ नहीं है. तुम खाओपिओ, मैं यहां रुका तो किसी न किसी की आंख में खटकने लगूंगा.’’

‘‘आप के तो नखरे ही बड़े हैं, चाय आप नहीं पीते, कौफी आप के पेट में लगती है, जूस से गला खराब होता है, इस में अंडा है… उस में यह है, उस में वह है. आप खाते क्या हैं साहब? हर चीज में आप कोई न कोई कमी क्यों निकालते रहते हैं.’’

मुसकरा कर टालना पड़ता है उन्हें, ‘‘पानी पी रहा हूं न मैं. आप चिंता न करें… मुझे जो चाहिए मैं ले लूंगा. आप बेफिक्र रहें. मेरा अपना घर है…मेरी जो इच्छा होगी मैं अपनेआप ले लूंगा.’’

‘‘अरे, मेरे सामने लीजिए न. जरा सा तो ले ही सकते हैं.’’

अब मेजबान को कोई कैसे समझाए कि एक घूंट भी उन्हें उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना गिलास भर कर.

‘‘मेरे घर पर कोई आता है तो मैं उस से पूछ लेता हूं कि वह क्या लेगा. जाहिर है, हर कोई अपने घर से खा कर ही आता है… हर पल हर कोई भूखा तो नहीं होता. आवभगत करना शिष्टाचार का एक हिस्सा है लेकिन कहां तक? वहां तक जहां तक अतिथि की जान पर न बन आए. वह न चाहे तो जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए.’’

‘‘तब तो आप अच्छे मेजबान नहीं हैं. अच्छा मेजबान तो वही है जो मना करने पर भी अतिथि की थाली भरता जाए.’’

इस विषय पर अकसर हम बात करते हैं और उन्हें मुझ से मिलना अच्छा लगता है क्योंकि मैं कोशिश करता हूं कि उन्हें समझ पाऊं. वे कुछ खाना न चाहें तो मेरा परिवार उन्हें खाने को मजबूर नहीं करता. वैसे वे स्वयं ही चाय का कप मांग लेते हैं तो हमें ज्यादा खुशी होती है.

‘‘मानव चाचा के लिए अच्छी सी चाय बना कर लाती हूं,’’ मेरी बहू भागीभागी चाय बनाने चली जाती है और मानव जम कर उस की चाय की तारीफ करते हैं.

‘‘आज मैं ने सोच रखा था कि चाय अपनी बच्ची के हाथ से ही पिऊंगा. मीना घर पर नहीं है न, कल आएगी. उस के पिता बीमार हैं.’’

‘‘चाचाजी, तब तो आप रात का खाना यहीं खाइए. मैं ने आज नईनई चीजें ट्राई की हैं.’’

‘‘क्याक्या बनाया है मेरी बहू ने?’’

मानव का इतना कहना था कि बहू ने ढेरों नाम गिनवा दिए.

‘‘चलो, अच्छा है, यहीं खा लेंगे,’’ मानव की स्वीकृति पर वसुधा उत्साह से भर उठी.

हम बाहर लौन में चले आए. बातचीत चलती रही.

‘‘पड़ोस का घर बिक गया है. सुना है कोई बुजुर्ग दंपती आने वाले हैं. उन की बेटी इसी शहर में हैं. उसी की देखरेख में रहेंगे,’’ मानव ने नई जानकारी दी.

‘‘चलो, अच्छा है. समझदार बुजुर्ग लोगोें के साथ रह कर आप को नए अनुभव होंगे.’’

‘‘आप को क्या लगता है, बुजुर्ग लोग ज्यादा समझदार होते हैं?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. लंबी उम्र का उन के पास अनुभव जो होता है.’’

‘‘अनुभव होता है यह सच है, लेकिन वे समझदारी से उस अनुभव का प्रयोग भी करते होंगे यह जरूरी नहीं. मैं ने 60-70 साल के ऐसेऐसे इनसान देखे हैं जो बहुत ज्यादा चापलूस और मीठे होते हैं और सामने वाले की भावनाओं का कैसे इस्तेमाल करना है…अच्छी तरह जानते हैं. वे ईमानदार भी होें जरूरी नहीं, उम्र भर का अनुभव उन्हें इतना ज्यादा सिखा देता है कि वे दुनिया को ही घुमाने लगते हैं. कौन जाने मेरे साथ उन की दोस्ती हो पाएगी कि नहीं.’’

ढाई आखर प्रेम का: भाग 1- क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

‘‘मांजी, देखिए तो कौन आया है,’’ अनुज्ञा ने अपनी सासूमां के कमरे में प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘कौन आया है, बहू…’’ उन्होंने उठ कर चश्मा लगाते हुए प्रतिप्रश्न किया.

‘‘पहचानिए तो,’’ अनुज्ञा ने एक युवक को उन के सामने खड़े करते हुए कहा.

‘‘दादीजी, प्रणाम,’’ वे कुछ कह पातीं इस से पूर्व ही उस युवक ने उन के चरणों में झुकते हुए कहा.

‘‘तू चंदू है?’’

‘‘हां दादीजी, मैं चंद्रशेखर.’’

‘‘अरे, वही तो, बहुत दिन बाद आया है. कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई?’’ उसे अपने पास बिठाते हुए मांजी ने कहा.

‘‘दादीमां, पढ़ाई अच्छी चल रही है, आप के आशीर्वाद से नौकरी भी मिल गई है, पढ़ाई समाप्त होते ही मैं नौकरी जौइन कर लूंगा. सैमेस्टर समाप्त होने पर हफ्तेभर की छुट्टी मिली थी, इसलिए आप सब से मिलने चला आया.’’

‘‘यह तो बहुत खुशी की बात है. सुना बहू, इसे नौकरी मिल गई है. इस का मुंह तो मीठा करा. और हां, चाय भी बना लाना.’’

मांजी के निर्देशानुसार अनुज्ञा रसोई में गई. चाय बनाने के लिए गैस पर पानी रखा पर मस्तिष्क में अनायास ही वर्षों पूर्व की वह घटना मंडराने लगी जिस के कारण उस की जिंदगी में एक सुखद परिवर्तन आ गया था.

दिसंबर की हाड़कंपाती ठंड वाला दिन था. अमित टूर पर गए थे, शीतल और शैलजा को स्कूल भेजने के बाद वह रसोई में सुबह का काम निबटा रही थी कि गिरने की आवाज के साथ ही कराहने की आवाज सुन कर वह गैस बंद कर अंदर भागी तो देखा उस की सासूमां नीचे गिरी पड़ी हैं. अलमारी से अपने कपड़े निकालने के क्रम में शायद उन का संतुलन बिगड़ गया था और उन का सिर लोहे की अलमारी में चूड़ी रखने के लिए बने भाग से टकरा गया था, उस का नुकीला सिरा माथे से कनपटी तक चीरता चला गया जिस के कारण खून की धार बह निकली थी. वे बुरी तरह तड़प रही थीं.

उस ने तुरंत एक कपड़ा उन के माथे से बांध दिया, हाथ से कस कर दबाने के बाद भी खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था तथा मांजी धीरेधीरे अचेत होती जा रही थीं. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

आसपास ऐसा कोई नहीं था जिस से वह सहायता ले पाती, अमित के स्थानांतरण के कारण वे 2 महीने पूर्व ही इस कसबे में आए थे, घर को व्यवस्थित करने तथा बच्चों के ऐडमिशन के कारण वह इतनी व्यस्त रही कि किसी से जानपहचान ही नहीं हो पाई. घर भी बस्ती से दूर ही मिला था, घर अच्छा लगा, इसलिए ले लिया था.

15 वर्ष बड़े शहर में नौकरी के बाद इस छोटे से कसबे कासिमपुर में पोस्टिंग से अमित बच्चों की पढ़ाई को ले कर परेशान थे. उन का कहना था कि तुम बच्चों को ले कर यहीं रहो पर अनुज्ञा का मानना था कि वहां भी तो स्कूल होंगे ही. अभी बच्चे छोटे हैं, सब मैनेज हो जाएगा. दरअसल, वह मांजी के उग्र स्वभाव के कारण छोटे बच्चों को ले कर अलग नहीं रहना चाहती थी. उन की चिंता का शीघ्र ही निवारण हो गया जब उन्हें पता चला कि यहां डीएवी स्कूल की एक ब्रांच है तथा उस का रिजल्ट भी अच्छा रहता है.

मांजी के कराहने की आवाज उसे बेचैन कर रही थी, सारी बातों से ध्यान हटा कर उस ने सोचा, टैलीफोन कर के एंबुलेंस को बुलवाए. टैलीफोन उठाया तो वह डैड था. उस समय मोबाइल तो क्या हर घर में टैलीफोन भी नहीं हुआ करते थे. अगर थे भी तो वे लाइन में गड़बड़ी के कारण अकसर बंद ही रहते थे. अगर चलते भी थे तो आवाज ठीक से सुनाई नहीं देती थी. एसटीडी करने के लिए कौल बुक करनी पड़ती थी. अर्जेंट कौल भी कभीकभी 1 से 2 घंटे का समय ले लिया करती थी.

मांजी की हालत देख कर उस दिन जिस तरह से वह स्वयं को लाचार व बेबस महसूस कर रही थी, वैसा उस ने कभी महसूस नहीं किया था. आत्मनिर्भरता उस में कूटकूट कर भरी थी. वह एक कंपनी में सोशल वैलफेयर औफिसर थी. विवाह के पूर्व तथा पश्चात भी उस ने कार्य जारी रखा था.

अभी सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी डोरबैल बजी, मांजी को वहीं लिटा कर उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने रामू को देख कर संतोष की सांस लेते हुए, उस से कहा, ‘तू जरा मांजी के पास बैठ कर उन के माथे को दबा कर रख. मैं तब तक गाड़ी निकालती हूं.’

‘क्या हुआ मांजी को?’ चिंतित स्वर में रामू ने पूछा.

‘वे गिर गई हैं, उन के माथे से खून बह रहा है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा. प्लीज, मेरी मदद कर.’

‘लेकिन मैं?’ वह उस का प्रस्ताव सुन कर हड़बड़ा गया था.

‘मैं तेरी हिचकिचाहट समझ सकती हूं पर इस समय इस के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं है, प्लीज मदद कर,’ अनुज्ञा की आवाज में दयनीयता आ गई थी.

वह मांजी की छुआछूत के बारे में जानती थी पर इस समय रामू की सहायता लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं था, यह तो गनीमत थी कि उसे कार चलानी आती थी.

अब वह अकेली नहीं थी. रामू भी साथ में था. उस ने रामू की सहायता से मांजी को गाड़ी में लिटाया तथा ताला बंद कर बच्चों के नाम एक स्लिप छोड़ कर ड्राइव करने ही वाली थी कि रामू ने स्वयं ही कहा, ‘मेमसाहब, हम भी चलें क्या?’

‘तुझे तो चलना ही होगा. यहां जो भी अच्छा अस्पताल हो, वहां ले कर चल. और हां, मांजी को पकड़ कर बैठना.’

हड़बड़ी में वह उसे बैठने के लिए कहना भूल गई थी. वैसे भी एक से भले दो, न जाने कब क्या जरूरत आ जाए. नई जगह भागदौड़ के लिए एक आदमी साथ रहेगा तो अच्छा है.

अत्यधिक खून बहने के कारण मांजी अचेत हो गई थीं, घबराहट में वह भूल ही गई थी कि यदि कहीं से खून निकल रहा हो तो उस स्थान पर बर्फ रख देने से खून के बहाव को रोका जा सकता है. मांजी अचेत थीं, ब्लडप्रैशर के साथ डायबिटीज की भी उन्हें शिकायत थी. शायद इसीलिए उस के पट्टी बांधने के बावजूद खून का बहना नहीं रुक पा रहा था.

अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था, पहुंचते ही उन्हें ऐडमिट कर लिया गया. घाव में टांके लगाने के लिए उन्हें औपरेशन थिएटर में ले जाया जाने लगा तब उस की घबराहट देख कर रामू उसे दिलासा देता हुआ बोला, ‘मेमसाहब, धीरज रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’

उस की बात सुन कर भी वह सहज नहीं हो पा रही थी, उस के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. तभी सिस्टर ने आ कर कहा, ‘चोट लगने से मरीज के माथे के पास की एक नस कट गई है जिस के कारण ब्लीडिंग काफी हो गई है. ब्लड देने की आवश्यकता पड़ेगी, यहां तो कोई ब्लडबैंक नहीं है, इस के लिए शहर जाना पड़ेगा पर इस में शायद देर हो जाए.’

‘सिस्टर, आप कुछ भी कीजिए पर मांजी को बचा लीजिए,’ अनुज्ञा की स्वर में विवशता आ गई थी. अमित की बहुत याद आ रही थी. काश, उन की बात मान कर यहां न आती तो शायद यह सब न झेलना पड़ता

‘आप डाक्टर साहब से बात कर लीजिए.’

डाक्टर साहब से बात की तो उन्होंने कहा, ‘स्थिति गंभीर है. अगर आप की स्वीकृति हो तो हम फ्रैश खून चढ़ा

देंगे वरना…’

‘आप मेरा खून चैक कर लीजिए डाक्टर साहब पर मांजी को बचा लीजिए.’

‘मेरा भी, डाक्टर साहब,’ रामू ने कहा.

आखिर रामू का खून मांजी के खून से मैच हो गया. अनुज्ञा से स्वीकृतिपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया. भरे मन से उस ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए क्योंकि इस के अलावा कोई चारा न था.

मांजी को जब रामू का खून चढ़ाया जा रहा था तब वह सोच रही थी, जिस आदमी को मांजी सदा हीन और अछूत समझ कर उस का तिरस्कार करती रही थीं वही आज उन के प्राणों का रक्षक बन गया है.

बिन तुम्हारे: क्या था नीपा का फैसला

‘‘ममा, लेकिन आप यह कैसे कह सकती हो कि आजकल के बच्चे पेरैंट्स के प्रति गैरजिम्मेदार हैं. किसी को चाहने का मतलब यह तो नहीं कि बच्चे पेरैंट्स के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं. लव अफेयर्स उन की जिंदगी का एक हिस्सा है, पेरैंट्स अपनी जगह हैं.

‘‘पेरैंट्स को जिन बातों से दुख पहुंचता है, बच्चे वही करें और कहें कि वे जिम्मेदार हैं.’’

‘‘ममा, पेरैंट्स की पसंदनापसंद पर बच्चे क्या खुद को वार दें? पेरैंट्स को भी हर वक्त अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए.’’

‘‘अभी तू ने अपनी जिस फ्रैंड की बात की, उसी की सोचो, 19 साल की लड़की और लड़का भी 19 साल का, पेरैंट्स ने उन्हें बड़ी उम्मीदों से होस्टल भेजा कि पढ़ कर वे कैरियर बनाएं. अब दोनों अपने पेरैंट्स से झूठ बोल कर अलग फ्लैट में साथ रह रहे हैं. कोर्स किसी तरह पूरा कर भी लें तो क्या दिलदिमाग के भटकाव की वजह से बढि़या कैरियर बन पाएगा उन का? उम्र का यह आकर्षण एक पड़ाव के बाद जिंदगी के कठिन संघर्ष के सामने हथियार डालेगा ही, उस वक्त बीते हुए ये साल उन्हें बरबाद ही लगेंगे.’’

‘‘लगे भी तो क्या ममा? अभी वे खुश हैं तो क्यों न खुश हो लें? आगे की जिंदगी किस ने देखी है ममा.’’

‘‘यानी जो लोग भविष्य को संवारने के लिए मेहनत करते हैं वे मूर्ख हैं.’’

‘‘हो सकते हैं या नहीं भी, सवाल है किसे क्या चाहिए.’’

नीपा अपनी बेटी रूबी की दलीलों के आगे पस्त पड़ गई थी. बेटी ने अपनी सहेली की घटना सुनाई तो उसे भी रूबी की चिंता सताने लगी. वह भी तो उसी पीजी में रहती है. उस के अनुसार अब ऐसा तो अकसर हो रहा है. जाने क्या इसे लिवइन कह रहे हैं सब. पेरैंट्स बिना जाने बच्चों की फीस, बिल सबकुछ चुकाते जा रहे हैं और बच्चे अपनी मरजी के मालिक हैं.

नीपा को इतना तनाव, इतना भय क्यों सताने लगा है. किस बात की आशंका है, क्यों दिल घबरा रहा है? रूबी अपनी अलग स्ट्रौंग सोच रखती है इसलिए? या इसलिए कि गरमी की छुट्टियों में घर आ कर रूबी ने ममा के दिमाग को भरपूर रिपेयर करने की कोशिश की. नीपा क्यों बेटी के चेहरे को बारबार पढ़ने की कोशिश कर रही है? अपने पति अनादि से वह कुछ कहना चाहती है पर चुप हो जाती है. कहीं रूबी ने खुद की सिचुएशन का ही सहेली के नाम से… नहींनहीं, उस ने अपनी बेटी को बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं, वह अपनी मां को इस तरह दुख नहीं दे सकती.

3-4 दिनों से रूबी से बात नहीं हो पा रही थी. वीडियो कौल तो उस ने बंद ही कर दी थी जाने कितने महीनों से. फोन में गड़बड़ी की बात कह कर टाल जाती. अब इतने दिन खोजखबर न मिलने पर नीपा की बेचैनी बढ़ गई. अनादि से सारी बातें कहनी पड़ीं उसे. उन्होंने पीजी की एक लड़की को फोन किया. पता चला, कालेज में 4 दिनों की छुट्टी देख रूबी दोस्तों के साथ कहीं घूमने गई है, इसलिए फोन पर बात नहीं हो सकती रूबी से.

मामला जटिल देख दोनों दूसरे शहर में रह रही बेटी के पीजी पहुंचे. पर बेटी वहां कहां. वह तो किसी लड़के के साथ एक फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. लड़का उसी की क्लास का है.

अनादि स्तब्ध थे और नीपा का सिर चकरा गया. धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गई. उबकाई से बेहोशी सी छाने लगी थी उस पर. दिल की धड़कनें चीख रही थीं बेसुध.

अब क्या? बेटी के पास उन्हें जाना था. बेटी के बिना या बेटी के इन कृत्यों के बिना? इकलौती बेटी के बिना जी पाना तो इन दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. बेटी की उमंगें अभी आजादी की दलीलों के बीच पंख झपट रही हैं, वह तो पीछे नहीं मुड़ेगी.

ममापापा बेटी के पास पहुंचे तो रूबी ने न ही उन की आंखों में देखा और न ही दिल ने दिल से बात करने की कोशिश की.

नीपा ने खुद को समझाया. वक्त की मांग थी, वरना उन की आंखों की ज्योति आज इस तरह आंखें फेर ले…लड़का निहार भी वहीं था. उन्हें तो उस में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो रूबी ने उस में देखा था. हो सकता है नीपा न देख पा रही हो. फिर समझाया खुद को उस ने. भविष्य क्या?

‘आगे चल कर शादी करोगे बेटा रूबी से? कुछ सोचा है?’’

‘‘ममा, आगे देखना बंद करें आप. आज में जीना सीखें यही काफी है. अभी हम पढ़ते हुए पार्टटाइम जौब भी करेंगे. आप अगर हमारी मदद करेंगे तो हम आप से जुड़े रहेंगे. निहार ने भी घर वालों को बता दिया है. मजबूरी हो गई तो पढ़ाई छोड़ देंगे. अभी हम साथ ही रहेंगे जब तक जमा. अब आप की मरजी.’’

नीपा की आंखों में धुंधलका सा छाने लगा. ये आंसू थे या दर्द का सैलाब? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. बस, इतना ही समझ पाई कि बेटी से दोनों को बेइंतहा प्यार है. और इस प्यार के लिए उन्हें किसी शर्त की जरूरत नहीं थी.

वक्त के धमाके

एक तरफ प्रशांत महासागर की अथाह गहराइयां और दूसरी ओर माउंट फूजी की बर्फ से ढकी गगनचुंबी चोटियों के बीच दूर तक फैली हरियाली का सीना चीरती हुई ‘शिनकानसेन’ (बुलेट ट्रेन का जापानी नाम) तेज रफ्तार से भागती जा रही थी. आरक्षित कोच की शानदार सीट पर सिर रखे, आंखें बंद किए रवि का मन उस से भी तेज गति से अतीत की ओर भाग रहा था. तकरीबन 1 साल हुआ जब उस से रवि की मुलाकात हुई थी. बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा परिणाम का अखबार हाथ में आते ही पिताजी ने आसमान सिर पर उठा लिया था. मां ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उन का फैसला पत्थर की लकीर जो था. चंद जरूरी कपड़े साथ में ले जाने की उसे इजाजत मिली थी. घर से निकलते समय अपने ही जन से नजरें मिलाने की भी उस में हिम्मत न थी. आखिर उन की तकलीफों से वह वाकिफ था.

सरकारी महकमे का एक ईमानदार बाबू किस प्रकार परिवार की गाड़ी खींचता था, उस से छिपा तो न था. बड़ा बेटा होने के नाते उस से उम्मीदें भी बहुत थीं. ‘पढ़ नहीं सकते हो तो महकमे से लोन ले कर एक छोटीमोटी दुकान खुलवा सकता हूं’, कहा था पिताजी ने, लेकिन वह जिंदगी जीना उस का ख्वाब होता तब न. बचपन से एक ही सपना पाल रखा था कि विदेश जाऊंगा, कुछ बनूंगा. जून की तपती दोपहरी में कुछ सुकून के पल तलाश करने के लिए वह दिल्ली स्थित ‘जापान कल्चरल सेंटर’ के बाहर एक पेड़ की छांव में बैठा ही था कि तभी गेट से एक जापानी बाला बाहर आई और फुटपाथ के पास खड़ी हो गई. उसे शायद किसी टैक्सी का इंतजार था. भीषण गरमी से उस का सफेद दूध सा दमकता चेहरा लाल हो गया था. उस जापानी युवती को परेशान देख कर रवि के मन में परमार्थ की भावना जागी. कुछ ठिठकते कदमों के साथ उस के थोड़ा नजदीक गया और धड़कते दिल से अंगरेजी में पूछा कि क्या तुम अंगरेजी में बातचीत कर सकती हो. उस ने बेहद पतली आवाज में अंगरेजी में जवाब दिया, ‘यस अफकोर्स.’ और इसी के साथ ही उस में साहस का संचार हुआ, बोला, ‘डू यू नीड ऐनी हेल्प?’ ‘नो थैंक्स, एक्चुली आई अराइव्ड हियर लास्ट नाइट एंड बाई टुमारो मार्निंग आई हैव टु फ्लाई फौर जयपुर, सो ड्यूरिंग दीज फ्यू आवर्स आई विश टू सी सम गुड प्लेसिज हियर.’

उस की बातें खत्म होने से पहले वह बोल उठा, ‘इफ यू डोंट माइंड एंड फील कंफर्टेबल, इट वुड बी माई प्लेजर टु शो यू सम ब्यूटीफुल एंड हिस्टोरिकल प्लेसिज?’ एक पल के लिए गहरी खामोशी छा गई थी, उस युवती के मुंह से निकलने वाली हां या ना पर रवि के पूरे सपने पल भर टिके रहे. ‘ओह श्योर,’ ने रवि की तंद्रा भंग की और वह सातवें आसमान पर जा पहुंचा था.

शाम होतेहोते दिल्ली की वे तमाम ऐतिहासिक चीजें रवि ने जापानी युवती को दिखाईं जिन से एक पर्यटक वाकई अभिभूत हो उठता है. रवि के लिए सब से महत्त्वपूर्ण था उस का सुखद सामीप्य. एक वाक्य बोलने से पहले उस के खूबसूरत होंठों से जो खिलखिलाहट उभरती थी और बातोंबातों में रवि की नाक को पकड़ कर हिला देने का जो उस का अंदाज था, उस ने उसे रवि के दिल के बेहद करीब पहुंचा दिया. दिल्ली के कई पर्यटन स्थलों को देखतेदेखते उन्हें शाम हो गई. दोनों को भूख लगी थी. एक अच्छे रेस्तरां में खाना खाने के बाद वे टहलते हुए इंडिया गेट की ओर निकल गए थे. चांदनी चारों ओर बिखरी थी, बोट क्लब की ओर से आती ठंडी हवाएं, माहौल को और भी खुशनुमा बना रही थीं. चलतेचलते मिकी ने उस की उंगलियों को अपनी हथेली में भर कर बहुत ही गंभीर स्वर में कहा था, ‘रवि, मैं दुनिया के बहुत से देशों में गई हूं और अनेक दोस्त भी बनाए हैं लेकिन तुम वास्तव में उन दोस्तों में एक बेहतरीन दोस्त हो. मैं तुम्हारे देश से मधुर यादों को ले कर जापान जाऊंगी. मेरी इच्छा है कि तुम जापान आओ. भविष्य में यदि तुम कभी अपने देश को छोड़ कर जापान आने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना तो मुझे लिखना, मैं तुम्हारे लिए टिकट और वीजा के लिए जरूरी पेपर भेज दूंगी. कल सुबह 8 बजे से पहले तुम मुझे पार्क होटल के रिसेप्शन पर आ कर मिलना. मैं तुम्हें अपना जापान का पता व टेलीफोन नंबर दे दूंगी.’

बहुत मुश्किल से रवि तब सिर्फ ‘यस’ बोल सका था. चेतना जा चुकी थी वह सिर्फ जड़वत सा खड़ा रह गया था. शायद इतनी बड़ी खुशी का बोझ उस से उठाया नहीं जा रहा था. बचपन का एक सपना शायद सच होने जा रहा था. तभी उस की नाक को पकड़ कर मिकी ने हिलाया तो मानो वह नींद से जाग गया. ‘रवि, अब तुम जाओ, उम्मीद करती हूं कि कल सुबह मुलाकात होगी.’ इतना कह कर मिकी चली गई थी और रवि उस के कदमों की आखिरी आवाज भी सुनने को बेचैन ठगा सा वहीं खड़ा रहा.

कुछ देर बाद रवि अपने ठिकाने पर जा कर सो गया. वह पास की एक बेंच पर लेट गया था. रात सरकती रही और वह मिकी और अपने भविष्य के बारे में सोचता ही जा रहा था. सोचतेसोचते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला और सुबह आंख खुली रवि ने सब से पहले घड़ी को देखा तो 8 बज चुके थे. वह हांफते हुए होटल के रिसेप्शन पर पहुंचा तो पता चला कि मिकी की फ्लाइट 8.45 बजे की थी और वह 8 बजे से पहले ही होटल से जा चुकी थी. जिस बेल ब्वाय ने उस का कमरा साफ किया था उस ने बताया कि मिकी काफी देर तक लौबी में बैठी थी. उस की मायूस निगाहें मानो किसी को तलाश रही थीं.

रवि को लगा कि उस का सबकुछ लुट चुका है. वह भीतर से बिलकुल टूट गया, फिर भी उसे जीना है क्योंकि अब तो उसे जिंदगी का मकसद मिल गया था. मिकी को पाने की एक अटूट चाहत ने उस के भीतर जन्म ले लिया था. हलके झटके के साथ ट्रेन रुकी तो रवि ने आंखें खोलीं और उस का मन अतीत से वर्तमान में आ गया. एक सहयात्री ने रवि के पूछने पर बताया कि यह हमामातसुचो स्टेशन है. लगभग आधा सफर खत्म हो चुका है. भारत के स्टेशनों से कितना भिन्न, जगमगाता प्लेटफार्म, कोई शोरशराबा नहीं, इतना साफसुथरा फर्श कि पैर भी रखने को दिल न करे. उतरने और चढ़ने वालों का अनुशासन देख जापान की सभ्यता से रवि थोड़ाबहुत परिचित हो रहा था. ट्रेन सरकने लगी और कुछ ही क्षणों में फिर तूफानी रफ्तार पकड़ ली. रवि एक बार फिर आंखें बंद कर अतीत में खो गया.

तब दोचार दिन तलाश करने पर रवि को पास ही के एक छोटे से रेस्तरां में काम मिल गया था जिस से पेट की भूख और छत की समस्या का हल हो गया. लगभग रोजाना समय निकाल कर एक उम्मीद दिल में लिए रवि उसी पेड़ के नीचे आ बैठता था. इस दौरान उस ने बहुत जापानी चेहरे देखे लेकिन वह चेहरा दोबारा देखने की चाहत लिए एक साल गुजर गया. ऐसे ही एक दिन शाम को रवि पेड़ के नीचे उदास बैठा था कि तभी एक आटोरिकशा ब्रेक की तेज आवाज के साथ आ कर रुका तो उस की तंद्रा भंग हुई. रवि ने देखा कि एक जापानी नौजवान आटो से उतरा और आटो वाले को किराया देने के बाद अपने मोटे से पर्स को तंग जींस की पिछली जेब में खोंस कर लापरवाह ढंग से सीढि़यों की तरफ बढ़ा. महज 2 सीढि़यां चढ़ते ही उस युवक का पर्स जेब से निकल कर वहीं गिर गया, लेकिन उस से अनजान वह जापानी नौजवान आगे बढ़ता गया. रवि ने आसपास किसी को न देख कर धीरे से जा कर पर्स उठाया और पेड़ के नीचे आ कर उसे खोल कर देखा तो उस में हजार के नोट भरे थे. धड़कते दिल से रवि ने उसे तुरंत बंद किया. उस के अनुमान से लगभग 40-50 नोट रहे होंगे. इस का मतलब भारतीय करेंसी में तो ये लाखों में होंगे. एक पल को उस के दिमाग में आया कि ये रुपए अगर वह पिताजी को जा कर दे दे तो उन की तमाम परेशानियां दूर हो सकती हैं, लेकिन दूसरे ही पल उस की आत्मा धिक्कार उठी कि रवि, यदि यह धन तुम ने अपने पास रखा तो शायद जीवन भर अपने को माफ न कर सकोगे. इस को वापस करना होगा. तभी बेचैनी की हालत में वह जापानी नौजवान बाहर आता दिखाई पड़ा. उस की निगाहें जमीन के भीतर से भी कुछ निकाल लेने को आतुर थीं. रवि हौले से उस के करीब आ कर बोला, ‘एक्सक्यूज मी, आई हैव योर वालेट. यू ड्राप्ड इट हियर,’ कह कर पर्स उस के हाथों में थमा दिया.

उस जापानी नौजवान के चेहरे पर जो खुशी और कृतज्ञता के भाव आए और धन्यवाद से संबंधित जितने भी शब्द उसे आते थे, कहे. उन्हें सुन कर रवि गौरवान्वित हो उठा था. पर्स निकाल कर युवक ने चंद नोट उसे थमाने चाहे थे, लेकिन उस ने जो किया था उस के बदले में कुछ पैसे ले कर खुद से शर्मिंदा नहीं होना चाहता था. रवि की ऐसी अभि- व्यक्ति को सुन कर जापानी नौजवान ने आश्चर्यमिश्रित ढंग से उस की ओर देखा और बोला, ‘आई एम वेरी मच इंप्रेस्ड, मे आई डू समथिंग फौर यू?’

इसी सवाल का तो रवि को इंतजार था और एक झटके में उस के मुंह से निकला, ‘आई विश टु कम टु जापान?’ एक पल को उन दोनों के बीच गहरी खामोशी छा गई. फिर उस जापानी नौजवान ने धीरे से रवि के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘डू यू नो एनी रेस्टोरेंट अराउंड दिस एरिया? आई एम हंग्री.’

करीब 5 मिनट पैदल चलते ही रवि का रेस्टोरेंट था, संयोग से कोने की एक मेज खाली थी. उस ने रवि को जबरदस्ती अपने पास बिठाया और भोजन के दौरान ही रवि ने अपनी जिंदगी के हर पहलू, हर सपने को खोल कर उस के सामने रख दिया. इस दौरान जापानी नौजवान कुछ भी नहीं बोला, सिर्फ खाता रहा और रवि की बातें सुनता रहा. भोजन समाप्त करने के बाद वह रवि को अपने बारे में बताने लगा. अभी हाल ही में उस की शादी हुई है और करीब एक बरस पहले उस के पिता प्लास्टिक के एक छोटेमोटे कारखाने को उस के कंधों पर छोड़ कर हार्टअटैक से चल बसे थे.

पिछले एक साल में उस के अथक परिश्रम से उस की ‘खायशा’ (कंपनी) की काफी तरक्की हुई. घूमनेफिरने का उसे बचपन से शौक है, इसलिए काम की जिम्मेदारी अपनी पत्नी को सौंप कर वह एक सप्ताह की भारत यात्रा पर निकल पड़ा था. एक पल रुक कर उस ने गिलास में रखा पानी पीया और आगे बताने लगा कि आने वाले दिनों में उस की कंपनी में काफी काम बढ़ने वाला है, लिहाजा उसे कुछ नए कर्मचारियों की जरूरत है. अगर तुम लंबे अरसे तक जापान में रहना चाहते हो और मेरे साथ काम करना पसंद करो तो मैं तुम्हें अपनी कंपनी में जगह दे सकता हूं, लेकिन जापान में बहुत मेहनत से काम करना होता है, जहां तक तुम्हारी ईमानदारी का सवाल है उस से तो मैं परिचित हो चुका हूं और तमाम नसीहतें देता चला गया.

रवि के कानों में सीटियां बज रही थीं. एक साल में दूसरी बार ऐसा अवसर आया था. वह अपनी सुध खो बैठा था ‘व्हाट डू यू डिसाइड?’ चौंक कर यथार्थ में आया रवि उस का हाथ थाम कर थरथराते होंठों से सिर्फ इतना बोल सका, ‘आई विल डू माई बेस्ट.’ मेरे ऐसे भाग्य होंगे, यह मैं ने सोचा न था. उस के रेस्तरां का पता नोट कर वह जापानी नौजवान बोला, ‘आई हैव टु फ्लाई फौर मुंबई टुनाइट एंड आफ्टर स्पेंडिंग 2 डेज ओवर दियर आई विल बी बैक टु जापान, सून आई विल सेंड औल द डाक्यूमेंट्स, सो जस्ट वेट फौर माई लेटर.’ उसे टैक्सी में बिठा कर एक उमंग मन में लिए रवि तब वापस रेस्तरां में आ गया था. भीड़ बढ़ने लगी थी.

उस जापानी नौजवान के जाने के बाद हरेक दिन रवि के लिए एक बरस की तरह गुजरा और ठीक 15वें दिन रेस्टोरेंट के काउंटर पर कैशियर ने उसे बड़ा सा लिफाफा पकड़ाया. एक कोने में जापान लिखा देख वह भागता हुआ अंदर गया और कांपती उंगलियों से लिफाफा खोला. वीजा से संबंधित सारे कागजात और एक ‘ओपन डेटेड’ एयर टिकट था. छोटे से पत्र में उस ने लिखा था कि शीघ्र आने की कोशिश करो. खुशी के मारे उस की आंखों में आंसू आ गए.

आगे के 10 दिन तूफान की सी तेजी से गुजरे. लगातार 5 दिन तक जापानी दूतावास के चक्कर काटने के बाद वीजा मिला और फिर जाने का समय आ गया था. पिताजी के स्नेहयुक्त नसीहत भरे अल्फाज ‘बेटा रवि, ईमानदारी का साथ मत छोड़ना तो खुशियां तुम से दूर नहीं रह पाएंगी,’ को रवि ने आत्मसात कर लिया था. छोटी बहन को सीने से लगा कर द्रवित हृदय से विदा ली थी.

ओसाका इंटरनेशनल एअरपोर्ट से क्लियरेंस की तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद उसे कार्यक्रम के अनुसार ओसाका स्टेशन से टोकियो के लिए बुलेट ट्रेन पर सफर करना था.

आंखें खुलीं तो रवि अतीत से बाहर आया. बाहर अंधेरा हो चला था. दूर टिमटिमाती रोशनियां दिखाई पड़ने लगी थीं. सहयात्री ने बताया कि टोकियो आने वाला है. फ्रेश होने की नीयत से रवि टायलेट गया. जब वह बाहर आया तो चारों तरफ जगमगाता शहर था. ट्रेन टोकियो में प्रवेश कर चुकी थी. आगामी कुछ ही मिनटों में ट्रेन रवि के अंतिम पड़ाव यानी वेनो स्टेशन पर पहुंचने वाली थी. पश्चिम के दरवाजे से बाहर निकलते ही आरक्षण काउंटर के पास वह जापानी नौजवान रवि का इंतजार कर रहा था. दोनों गले मिले. रवि को उस ने बताया कि महज 10 मिनट की दूरी पर उस का अपार्टमेंट है. जगमगाता शहर और उस पर से आतिशबाजियों का मंजर (कुछ ही दूर पर बहती सुमिदा नदी के तट पर हर साल इसी दिन आतिशबाजी का उत्सव होता है जिसे ‘हानाबी’ कहते हैं) किसी भी नए इनसान को भौंचक कर देने के लिए पर्याप्त था.

कार उस शानदार अपार्टमेंट के पोर्च में जा लगी थी. रवि अब कुछ थकान का अनुभव कर रहा था. ड्राइंगरूम से अटैच्ड बाथरूम में गरम पानी के बाथटब में नहा कर रवि ने थकान उतारी और जब फ्रेश हो कर बाहर निकला तो देखा वह जापानी नौजवान अपना पसंदीदा पेय ले कर बैठा था. रवि ने सिर्फ एक कप कौफी पीने की इच्छा जाहिर की. वह अंदर गया और रवि सोफे की पुश्त पर सिर टिका कर आंखें बंद कर दिल के उस हिस्से को छूने लगा जिस पर मिकी का नाम लिखा था. किसी भी सूरत में उसे ढूढ़ना होगा, रवि ने सोचा.

‘‘मि. रवि, प्लीज मीट टु माई वाइफ, मिकी,’’ और साथ में बेहद पतली आवाज में ‘हेलो’ के स्वर ने रवि की तंद्रा भंग की. झटके के साथ आंखें खोलीं और वह चेहरा जिसे रवि करोड़ों में भी पहचान सकता था, उस के सामने था. उस की मिकी उस के सामने खड़ी थी. नजरें मिलाते ही मिकी ने आंखें जमीन में गाड़ दी थीं. बहुत संयम के साथ वह सिर्फ ‘हेलो’ बोल सका था. दोस्त से मुखातिब हो कर बोला, ‘आई एम सौरी, ड्यू टु जेटलैक (टाइम जोन बदलने से होने वाली भारी थकान) आई एम फीलिंग अनवेल,’ इतना कह कर रवि सोफे में धंस सा गया. दूर सुमिदा नदी के तट पर हानाबी के धमाके कानों में गूंज रहे थे.

डर: सेना में सेवा करने के प्रति आखिर कैसा था डर

मैं सुबह की सैर पर था. अचानक मोबाइल की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है, मैं ने खुद से ही प्रश्न किया. देखा, यह तो अमृतसर से कौल आई है.

‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो फूफाजी, प्रणाम, मैं सुरेश

बोल रहा हूं?’’

‘‘जीते रहो बेटा. आज कैसे याद किया?’’

‘‘पिछली बार आप आए थे न. आप ने सेना में जाने की प्रेरणा दी थी. कहा था, जिंदगी बन जाएगी. सेना को अपना कैरियर बना लो. तो फूफाजी, मैं ने अपना मन बना लिया है.’’

‘‘वैरी गुड’’

‘‘यूपीएससी ने सेना के लिए इन्वैंट्री कंट्रोल अफसरों की वेकैंसी निकाली है. कौमर्स ग्रैजुएट मांगे हैं, 50 प्रतिशत अंकों वाले भी आवेदन कर सकते हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है.’’

‘‘फूफाजी, पापा तो मान गए हैं पर मम्मी नहीं मानतीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहती हैं, फौज से डर लगता है. मैं ने उन को समझाया भी कि सिविल में पहले तो कम नंबर वाले अप्लाई ही नहीं कर सकते. अगर किसी के ज्यादा नंबर हैं भी और वह अप्लाई करता भी है तो बड़ीबड़ी डिगरी वाले भी सिलैक्ट नहीं हो पाते. आरक्षण वाले आड़े आते हैं. कम पढ़ेलिखे और अयोग्य होने पर भी सारी सरकारी नौकरियां आरक्षण वाले पा जाते हैं. जो देश की असली क्रीम है, वे विदेशी कंपनियां मोटे पैसों का लालच दे कर कैंपस से ही उठा लेती हैं. बाकियों को आरक्षण मार जाता है.’’

‘‘तुम अपनी मम्मी से मेरी बात करवाओ.’’

थोड़ी देर बाद शकुन लाइन पर आई, ‘‘पैरी पैनाजी.’’

‘‘जीती रहो,’’ वह हमेशा फोन पर मुझे पैरी पैना ही कहती है.

‘‘क्या है शकुन, जाने दो न इसे

फौज में.’’

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात से?’’

‘‘लड़ाई में मारे जाने का.’’

‘‘क्या सिविल में लोग नहीं मरते? कीड़ेमकोड़ों की तरह मर जाते हैं. लड़ाई में तो शहीद होते हैं, तिरंगे में लिपट कर आते हैं. उन को मर जाना कह कर अपमानित मत करो, शकुन. फौज में तो मैं भी था. मैं तो अभी तक जिंदा हूं. 35 वर्ष सेना में नौकरी कर के आया हूं. जिस को मरना होता है, वह मरता है. अभी परसों की बात है, हिमाचल में एक स्कूल बस खाई में गिर गई. 35 बच्चों की मौत हो गई. क्या वे फौज में थे? वे तो स्कूल से घर जा रहे थे. मौत कहीं भी किसी को भी आ सकती है. दूसरे, तुम पढ़ीलिखी हो. तुम्हें पता है, पिछली लड़ाई कब हुई थी?’’

‘‘जी, कारगिल की लड़ाई.’’

‘‘वह 1999 में हुई थी. आज 2018 है. तब से अभी तक कोई लड़ाई नहीं हुई है.’’

‘‘जी, पर जम्मूकश्मीर में हर रोज जो जवान शहीद हो रहे हैं, उन का क्या?’’

‘‘बौर्डर पर तो छिटपुट घटनाएं होती  ही रहती हैं. इस डर से कोईर् फौज में ही नहीं जाएगा. यह सोच गलत है. अगर सेना और सुरक्षाबल न हों तो रातोंरात चीन और पाकिस्तान हमारे देश को खा जाएंगे. हम सब जो आराम से चैन की नींद सोते हैं या सो रहे हैं वह सेना और सुरक्षाबलों की वजह से है, वे दिनरात अपनी ड्यूटी पर डटे रहते हैं.’’

मैं थोड़ी देर के लिए रुका. ‘‘दूसरे, सुरेश इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के रूप में जाएगा. इन्वैंट्री का मतलब है, स्टोर यानी ऐसे अधिकारी जो स्टोर को कंट्रोल करेंगे. वह सेना की किसी सप्लाई कोर में जाएगा. ये विभाग सेना के मजबूत अंग होते हैं, जो लड़ने वाले जवानों के लिए हर तरह का सामान उपलब्ध करवाते हैं. लड़ाई में भी ये पीछे रह कर काम करते हैं. और फिर तुम जानती हो, जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु तक का रास्ता तय हो जाता है. जीवन उसी के अनुसार चलता है.

‘‘तो कोई डर नहीं है?

‘‘मौत से सब को डर लगता है, लेकिन इस डर से कोईर् फौज में न जाए यह एकदम गलत है. दूसरे, सुरेश के इतने नंबर नहीं हैं कि  वह हर जगह अप्लाई कर सके. कंपीटिशन इतना है कि अगर किसी को एमबीए मिल रहे हैं तो एमए पास को कोई नहीं पूछेगा. एकएक नंबर के चलते नौकरियां नहीं मिलती हैं. बीकौम 54 प्रतिशत नंबर वाले को तो बिलकुल नहीं. सुरेश अच्छी जगहों के लिए अप्लाई कर ही नहीं सकता. तुम्हें अब तक इस का अनुभव हो गया होगा शकुन, इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘जी, वहां नंबरों का चक्कर तो

नहीं पड़ेगा.’’

‘‘अच्छा एकेडैमिक कैरियर हर जगह देखा जाता है. परंतु सेना के अपने मापदंड हैं. उसी के अनुसार सिलैक्शन किया जाता है. वहां कोईर् आरक्षण का चक्कर नहीं होता. वहां उन को औलराउंडर चाहिए जो आत्मविश्वास से भरा हो, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता रखता हो, दिमाग और शरीर से स्वस्थ हो. और हर तरह का काम करने में समर्थ हो. फिर वे उन को अपनी ट्रेनिंग से सेना के अनुसार ढाल लेते हैं. मेरी सुरेश से बात करवाओ. मैं उसे बताऊंगा कि कैसे करना है,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, जी.’’

‘‘दिल्ली के एस एन दासगुप्ता कालेज ने अमृतसर में कोचिंग ब्रांच खोली है जो आईएएस, आईपीएस, सेना में अफसर बनने के लिए इच्छुक नौजवानों को कोचिंग देता है. वह यूपीएससी की अन्य परीक्षाओं की भी तैयारी करवाता है. तुम्हें पता है, आजकल सब औनलाइन होता है. वहां चले जाओ. वे इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के लिए औनलाइन अप्लाई करवा देंगे. वहीं तुम्हें इस की लिखित परीक्षा के लिए कोचिंग लेनी है. अगर लिखित परीक्षा पास कर लेते हो तो वहीं इंटरव्यू की तैयारी की कोचिंग भी लेनी है. वे तुम्हें इस प्रकार तैयारी करवाएंगे कि तुम्हारे 99 प्रतिशत सफल होने के चांस रहेंगे.’’

‘‘पर फूफाजी, मेरे पास उन का पता नहीं है.’’

‘‘यार, आजकल सारी सूचनाएं गूगल पर मिल जाती हैं. गूगल पर सर्च मारो, सब पता चल जाएगा. फिर मुझे बताना कि क्या हुआ.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

कुछ दिनों बाद सुरेश का फोन आया, ‘‘फूफाजी, मुझे पता चल गया था. मैं ने औनलाइन अप्लाई कर दिया है. कोचिंग सैंटर ने अप्लाई और लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए 10 हजार रुपए लिए हैं और साथ में यह गारंटी भी दी है कि लिखित परीक्षा वह अवश्य क्लीयर कर ले.’’

‘‘सुरेश, यह उन का व्यापार है. ऐसा वे सब से कहते होंगे जो उन के पास परीक्षा की तैयारी के लिए जाते हैं. यह औल इंडिया बेस की परीक्षा है. इस में सब से अधिक तुम्हारी खुद की मेहनत रंग लाएगी. तुम से अच्छे भी होंगे और खराब भी. बस, रातदिन तुम्हें मेहनत करनी है बिना यह सोचे कि तुम्हारा एकेडैमिक कैरियर कैसा था. यदि तुम ने लिखित परीक्षा पास कर ली तो समझो 50 प्रतिशत मोरचा फतेह कर लिया.’’

‘‘जी, फूफाजी. मैं ईमानदारी से मेहनत करूंगा. लो एक सैकंड पापा से बात करें.’’

‘‘नमस्कार, जीजाजी.’’

‘‘नमस्कार, कैसे हो विपिन?’’

‘‘ठीक हूं, जीजाजी. यह जो सुरेश के लिए सोचा गया है, क्या वह ठीक रहेगा.’’

‘‘बिलकुल ठीक रहेगा. अगर सुरेश सिलैक्ट हो जाता है तो उस की जिंदगी बन जाएगी. वह लैफ्टिनैंट बन कर निकलेगा. क्लास वन गैजेटेड अफसर. सेना की सारी सुविधाएं उसे प्राप्त होगी. उन सुविधाओं के प्रति आम आदमी सोच भी नहीं सकता. ट्रेनिंग के दौरान ही उसे 20 हजार रुपए भत्ता मिलेगा, रहनाखाना फ्री. पासिंगआटट के बाद इस की

55 हजार रुपए से ऊपर सैलरी होगी. वहीं साथ में कई तरह के भत्ते भी मिलेंगे. सारी उम्र न केवल आप को बल्कि पूरे परिवार के रहनेखाने की चिंता नहीं रहेगी, यानी रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता नहीं रहेगी.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, जीजाजी, बस एक ही डर है, बेमौत मारे जाने का.’’

‘‘मैं शकुन को सबकुछ समझा चुका हूं, मानता हूं, यह डर उस समय भी था जब मैं सेना में गया था. सेना की इस सेवा के दौरान मैं ने 2 लड़ाइयां भी लड़ीं. मुझे  कुछ नहीं हुआ. जिस की आई होती है, वही मरता है. मैं आप को अपने जीवन की एक घटना बताना चाहता हूं. 65 की लड़ाई में हम सियालकोट सैक्टर से पाकिस्तान में घुसे थे. सारा स्टोर 2 गाडि़यों में ले कर चल रहे थे. एक गाड़ी में मैं और मेरा ड्राइवर था. दूसरी गाड़ी में एक बंगाली लड़का और उस का ड्राइवर था. पाकिस्तान में हम आसानी से घुसते चले गए. लड़ाई हम से कोई 10 किलोमीटर आगे चल रही थी. हम लोगों को केवल हवाई हमलों का डर था और वही हुआ.

‘‘जैसे ही हम ने पाकिस्तान के चारवा गांव को क्रौस किया, हम पर हवाई हमला हुआ. गाडि़यों से निकल कर जिस को जहां जगह मिली लेट गया. मेरे बराबर में मेरा ड्राइवर और उस के बराबर में वह बंगाली लड़का लेटा था. ऊपर से गन का ब्रस्ट आया और गोलियां ड्राइवर के शरीर से इस प्रकार निकल गईं जैसे कपड़े की सिलाई की गई हो. उस ने चूं भी नहीं की. उसी वह मर गया. हम लोगों पर भी खून और मिट्टी पड़ी थी.

‘‘मैं ने आप को डराने के लिए यह घटना नहीं सुनाई है बल्कि यह बताने के लिए कि जिस की मौत आनी होती है, वही शहीद होता है और यह रिस्क हर जगह रहता है. आप यहां सिविल में भी घर से निकलो तो जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता. फिर भी सब अपनेअपने कामों पर घरों से निकलते हैं. इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘ठीक है जीजाजी, पर सुना है, सेना में वही लोग जाते हैं जो भूखे और गरीब हैं, जिन के पास सेना में जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.’’

‘‘यह बात सही है विपिन. जिन के घरों में गरीबी है, दालरोटी के लाले पड़े हैं, अकसर वही लोग सेना में जाते हैं और जब तक यह गरीबी रहेगी, दालरोटी के लाले रहेंगे, देश को सैनिकों की कमी नहीं रहेगी.

‘‘किसी नेता या अभिनेता के बच्चे कभी सेना में नहीं जाते हैं. यहां तक कि जम्मूकश्मीर के अलगांववादी नेताओं के बच्चे भी सेना में नहीं जाते. वे भी विदेशों में पढ़ते हैं. यह देश के लिए दुख की बात है. आज की ही खबर है कि 8वीं पास सिपाही चाहिए और उस के लिए दौड़ रहे हैं डाक्टर, इंजीनियर और एमबीए. पर तुम्हें सुरेश को ले कर यह बात नहीं सोचनी है. उस का भविष्य बनने दो. कुछ देर के लिए समझ लो, तुम भी गरीब हो. इस से अधिक और मैं कुछ नहीं कह सकता.’’

‘‘ठीक है, जीजाजी. अब मैं उसे नहीं रोकूंगा.’’

मैं भूल चुका था कि सुरेश किसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. मुझे कुछ देर पहले ही पता चला कि उस ने परीक्षा दे दी है. उस के भी कोई 4 महीने बाद सुरेश का फोन आया कि उस ने इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर की लिखित परीक्षा पास कर ली है. इस की  सूचना मुझे ईमेल और डाक द्वारा दी गई है. अब उसे एसएसबी क्लीयर करनी है.

‘‘बधाई हो, सुरेश, एसएसबी के लिए तुम्हें 2-3 महीने मिलेंगे. कोचिंग सैंटर में ऐडमिशन लो और तैयारी में जुट जाओ. उसे पूरा विश्वास है कि तुम एसएसबी भी क्लीयर कर लोगे.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

फिर 3 महीने बाद उस का फोन आया. वह बहुत खुश था. उस की आवाज में खुशी थी. ‘‘मैं ने एसएसबी क्लीयर कर ली है, फूफाजी. 25 में से 4 लड़के सिलैक्ट हुए थे. वहां भी सभी का मैडिकल हुआ था. सभी ने क्लीयर कर लिया था. अब क्या होगा, फूफाजी?’’

‘‘कुछ नहीं. मार्च में शुरू होगा यह कोर्स.’’

‘‘जी, मार्च के पहले सोमवार से.’’

‘‘ठीक है. देश के सभी एसएसबी केंद्रों से इस कोर्स के लिए चुने गए उम्मीदवारों की लिस्ट सेना मुख्यालय को भेजी जाएगी. वह इसे कंसौलिडेट करेगा. फिर सभी को दिसंबर के पहले हफ्ते तक इस की सूचना ईमेल और डाक द्वारा दी जाएगी. उस सूचना के अनुसार जो प्रमाणपत्र और डौक्युमैंट्स उन को चाहिए होंगे उन की फोटोकौपी अटैस्ट करवा कर जिस पते पर उन्होंने भेजने के लिए लिखा होगा, उस पर भेजनी होगी. ईमेल और डाक द्वारा फिर सारे डौक्युमैंट्स चैक करने के बाद आप का मिलिटरी अस्पताल में डिटेल्ड मैडिकल होगा, इस की सूचना समय रहते आ जाएगी. एक बात बताओ सुरेश, तुम ने अभी दाढ़ीमूंछ रखी हुई है?’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

‘‘मैं तुम्हें बता दूं, सेना के लोग, चाहे वे किसी भी विभाग के हों, मूंछें तो पसंद करते हैं परंतु दाढ़ी बिलकुल नहीं. इसलिए मैडिकल के लिए सेना अस्पताल जाओ तो मूंछें ट्रिम करवा कर जाना और दाढ़ी बिलकुल साफ होनी चाहिए. चिकना बन कर जाना. कटिंग करवा कर जाना. छोटेछोटे बाल होने चाहिए. ऊपर से ले कर नीचे तक साफसुथरा. तुम्हारे शरीर के एकएक अंग का निरीक्षण होगा. मेरे कहे अनुसार चलोगे तो मैडिकल में फेल होने के कम चांस रहेंगे. मैडिकल करने वाले डाक्टरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा. वे समझेंगे, लड़का सच में अफसर बनने लायक है.’’

एक महीने बाद सुरेश का फोन आया. ‘‘फूफाजी, आज मैं मिलिटरी अस्पताल, अमृतसर मैडिकल के लिए जा रहा हूं. आप के कहे अनुसार चिकना बन गया हूं. वहां से आ कर मैं आप को बताऊंगा.’’

रात को उस का फोन आया, ‘‘फूफाजी, सब ठीक हो गया है. एक अलग से मैडिकल प्रमाणपत्र दिया है जो सेना मुख्यालय के अनुसार है. पूरा दिन लग गया. शाम को 6 बजे तक सारा चैकअप पूरा हुआ. फिर कहीं जा कर उन्होंने प्रमाणपत्र दिया. मैं ने सब की फोटोकौपी ले कर फाइल बना ली है. केवल बीकौम के प्रमाणपत्र अटैस्ट होने बाकी हैं. पर फूफाजी, एक दिक्कत आ रही है. सारे प्रमाणपत्र सर्विंग मिलिटरी अफसर से अटैस्ट होने हैं. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसे होगा?’’

मैं ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘तुम्हारे कालेज में एनसीसी है?’’

‘‘है, फूफाजी.’’

‘‘फिर क्या दिक्कत है. अपने कालेज जाओ. एनसीसी के प्रोफैसर को पकड़ो, साथ लो और एनसीसी मुख्यालय पहुंच जाओ. वहां सारे सेना के सर्विंग अफसर मिल जाएंगे. अपने साथ सारी फाइल ले जाना. तुम्हारा काम एक मिनट में हो जाएगा.’’

‘‘यह सही कहा आप ने, एनसीसी के प्रोफैसर रमाकांतजी मेरे अच्छे जानकार भी हैं.’’

‘‘ठीक है फिर, शुभकामनाएं.’’

सुरेश ने फोन बंद कर दिया. 2 दिन बाद फोन आया, ‘‘फूफाजी, सारे प्रमाणपत्र अटैस्ट हो गए हैं. अब सेना मुख्यालय में डौक्युमैंट्स भेजने हैं.’’

‘‘सारे इंस्ट्रक्शन ध्यान से पढ़ना. जिस प्रकार उन्होंने कहा है या लिखा है, उसी के अनुसार भेजना. कोई डौक्युमैंट छूटना नहीं चाहिए और सब की फोटोकौपी लेना न भूलना. वहां स्पीडपोस्ट या कूरियर से आप डौक्युमैंट्स नहीं भेज सकते हैं. आप को रजिस्टर्ड डाक से ही भेजने होंगे और एक कौपी ईमेल से. आप सेना मुख्यालय के इंस्ट्रक्शन फौलो करना.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

एक महीने बाद सुरेश का फोन आया, ‘‘मुझे ट्रेनिंग के लिए आईएमए देहरादून में 5 मार्च को रिपोर्ट करनी है. लिफाफे में मेरा मूवमैंट और्डर और द्वितीय श्रेणी का रेलवे वारंट है और साथ में सामान की लिस्ट है जो साथ ले कर जाना है.’’

‘‘मुबारक हो. तुम्हारी जिंदगी बन गई. सेना में अफसर बनना गर्व की बात है.’’ थोड़ा रुक कर मैं ने कहा, ‘‘रेलवे वारंट और मूवमैंट और्डर के साथ रेलवे स्टेशन पर एमसीओ, मिलिटरी मूवमैंट कंट्रोल औफिस चले जाना. एक नंबर प्लेटफौर्म पर यह औफिस है, वह मिलिटरी कोटे से तुम्हारे रिजर्वेशन का प्रबंध करेगा. बाकी रही तुम्हारी सामान साथ ले जाने वाली बात, अमृतसर कैंट में मस्कटरी की दुकानें हैं. वहां तुम्हें सारा सामान मिल जाएगा. अगर कुछ रह भी जाता है तो वह आईएमए से मिल जाएगा.’’

‘‘जी, फूफाजी. लेकिन देहरादून पहुंच कर आईएमए तक कैसे पहुंचा जाएगा?’’

‘‘सेना का कोई काम पैंडिंग नहीं होता. उन को पहले ही इस की सूचना होगी. वे सुबह शनिवार से रेलवे स्टेशन पर एमसीओ के बाहर टेबलकुरसी ले कर बैठे होंगे और साथ में लिखा होगा कि इस कोर्स के कैंडिडेट यहां रिपोर्ट करें. और यह सिलसिला रविवार शाम तक चलता रहेगा.

‘‘गाडि़यां बाहर खड़ी रहेंगी जिन में बैठा कर वह सब को आईएमए पहुंचाती रहेगी. वहां सिर्फ तुम्हारा कोर्स ही नहीं चल रहा होगा, सभी के लिए अलगअलग टेबल लगी होंगी. तुम्हें अपने मूवमैंट और्डर लिखे कोर्स नंबर की टेबल पर रिपोर्ट करनी है. फिर उन का काम है कि कैसे करना है. तुम्हें उन के अनुसार करते रहना है.’’

4 मार्च की शाम को सुरेश का फोन आया. ‘‘आज रात मैं ट्रेन से आईएमए देहरादून जा रहा हूं. एमसीओ अमृतसर ने इस का रिजर्वेशन किया था. सुबह 10 बजे तक मैं वहां पहुंच जाऊंगा. शाम को 6 बजे तक वहां रिपोर्ट करनी है. मैं तो वहां 10 बजे ही पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. वहां आप को सैटल होने का समय मिल जाएगा. जिस में हेयरकट से ले कर वरदी लेने तक और सोमवार को शुरू होने वाली टे्रनिंग की तैयारी में सुविधा रहेगी. ट्रेनिंग काफी सख्त रहेगी.

‘‘आईएमए विश्व का सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग संस्थान है. अन्य देशों से भी अफसर यहां टे्रनिंग लेने आते हैं. सबकुछ व्यवस्थित ढंग से चलेगा. जब तुम वहां से पासआउट हो कर निकलोगे तो तुम भारतीय सशस्त्र सेना के अफसर होगे.

‘‘प्रथम श्रेणी के अफसर, जैसे आईएएस, आईपीएस अफसर होते हैं. तुम्हें लगेगा कि तुम औरों से बिलकुल अलग हो. तुम्हारे शरीर पर सेना की सुंदर वरदी होगी. दोनों कंधों पर 2-2 चमकते स्टार होंगे. हवाईजहाज या ट्रेन में प्रथम श्रेणी में सफर करोगे. तुम्हारे नाम के साथ लैफ्टिनैंट जुड़ जाएगा. तुम अपना परिचय लैफ्टिनैंट सुरेश कुमार के रूप में दोगे. उस समय जो तुम्हें गर्व महसूस होगा वह अनुभव जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव होगा. मेरी शुभकामनाएं हैं तुम्हें.’’

सिल्वर जुबली गिफ्ट: क्यों गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही सुगंधा

गहराता शक: भाग 3-आखिर कुमुद को पछतावा क्यों हुआ?

कुमुद कुछ नहीं बोली. बोलने को अब बचा ही क्या था. विवाह के बाद वर्षों तक प्रत्येक नारी के अचेतन मन में जिस स्थिति के आ धमकने का सतत भय समाया रहता है, वही शायद आ पहुंची है.

अपनी समस्त कुंठाओं और प्लावन के साथ, जिस में सबकुछ बह जाता है. उसे अपनी शक्तियां बटोरनी चाहिए. पर किस के विरुद्ध. रघु के? सोमेन के या स्वयं अपने? इस मूर्ख, बेहूदे छोकरे सोमेन को यह क्या सूझ. क्यों निरर्थक बकवास करने आ धमका? रत्तीभर अक्ल नहीं है उसे. पर उस का भी क्या दोष.

पासपड़ोस का कोई बचपन की मुंहबोला दोस्त अपनी बचपन के दोस्त की ससुराल जा कर मिले ही नहीं. खुल कर बचपन की बातें न करे. यह कैसी विकृति है कि इस संबंध को सदैव गलत ही समझ जाए. दोषी रघु है. वही अपने मन में विकृतियां पाले हुए है. उसे अपने पुरुष भाव का बड़ा अहंकार है. वह इतने संकीर्ण मन का है, यह कुमुद को पहले क्या पता था.

और तुम? महामूर्ख हो, कुमुद. जब कोई बात ही नहीं तो यह अपराधियों सा सहमना, बिना पूछे रघु को सफाई देने की चेष्टा, यह सब क्या है? क्या सचमुच तुम्हारे मन में भी चोर है? रघु ने चोर की दाढ़ी में तिनका देखा तो वह क्या करे? वह भी तो आदमी है, पति है.

हम लाख आधुनिक बनें, दोनों कमाऊ हों नरनारी का रिश्ता वही आदिम बना रहेगा. पुरुष अपनी जागीर में किसी का रत्तीभर हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकता, उसे भड़का देने में कैसीकैसी अजीब सी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, चाहे बात कुछ भी न हो, पर…

उसे विवशताजन्य क्रोध चढ़ आया. सब पर, अपने पर, रघु, सोमेन, नीता, सब पर. ग्लानि हुई अपनी कमजोरी पर, असुरक्षा पर. दैन्य दिखाने की जरूरत थी ही कहां.

रात की धुंधली ओस लान पर उतरने लगी. मलगजा सा प्रकाश फाटक के आसपास सड़क पर फैल गया.

तभी सामने गेट पर कोई भीतर आता देखा. रघु नहीं हो सकता. वह तो कार में आता है. कुमुद को बरामदे में बैठना ठीक नहीं लगा. वह ड्राइंगरूम में टीवी के पास आ बैठी जहां कोई बेकार सा सासबहू वाला सीरियल चल रहा था.

नीता के कमरे से हलकी, मीठी आवाज में टेपरिकौर्डर का संगीत आ रहा था, ‘‘नाहि आए घनश्याम घिर आई बदरी… हां… आ… आ. फिर आई बदरी…’’

कुमुद के होंठ विद्रूप से मुड़ गए. बड़ी व्याकुलता हो रही है, घनश्याम नहीं आए तो. आएंगे तो क्या यह पूछताछ नहीं करेंगे कि बोल, मेरे पीछे यहां कौन आया था? वह तेरा कौन लगता है? क्याक्या बातें हुईं? उस ने तुझे छुआ भी? यदि हां, तो कहां? कैसे?

एक हलकी हंसी की आवाज से वह चौंक पड़ी. देखा सामने सोमेन खड़ा था. उसे आघात सा लगा कि यह यहां कैसे आ टपका.

सोमेन सदा की तरह हंसता हुआ बोला, ‘‘किस के ध्यान में हैं, देवीजी?’’

कुमुद ने नीता के कमरे की ओर दृष्टिपात किया. गला दबा कर कटु स्वर में बोली, ‘‘सोमेन, तुम्हें मु?ा से क्या दुश्मनी है?’’

सोमेन की हंसी में एकाएक जैसे ब्रेक लग गया. सालभर पहले का दब्बू सोमेन जैसे फिर से सामने आ खड़ा हुआ. कुछ हकलाता सा बोला, ‘‘कैसी दुश्मनी? क्या कह रही हो?’’

‘‘तुम्हें जिंदगी में कभी भी अक्ल नहीं आएगी क्या?’’ कुमुद का सारा दबा क्षोभ अवसर पा कर उमड़ने लगा, ‘‘यहां क्यों आते हो. बाजार में एक बार भेंट होना काफी नहीं था क्या?’’

सोमेन अवाक खड़ा रहा.

कुमुद का दबा क्षोभ उफन कर निकलता रहा, ‘‘तुम्हें, मुझे यहां वाले नहीं जानतेसमझाते.

मैं ने तो तुम्हें सदैव अपना भाई सा समझ है. पर संसार ऐसी भावना को मान कर नहीं चलता. वह इसे भी अपने अनोखे चश्मे से देखता है.

क्या इतनी सी बात नहीं समझते तुम? यहां से चले जाओ और फिर कभी मत आना. अपनी बेकार की बातों से शंका के जो बीच बो गए हो देखूं रघु के मन से उन्हें दूर कर पाती हूं या नहीं.’’

सोमेन चुपचाप लौटने लगा. बोला, ‘‘ठीक कहती हो, मेरी गलती से तुम्हें कष्ट हुआ, माफ करना. मैं जाता हूं.’’

कुमुद ने जरा विगलित कंठ से कहा, ‘‘सुनो, सोमेन. इस में मेरा दोष न समझना. मेरे लिए तो तुम वही भाई के बराबर हो.’’

सोमेन बाहर निकल गया. थोड़ी देर बाद कुमुद बाहर आई. बरामदे में अंधेरा था. बल्ब कैसे बुझ गया. उस

ने स्विच दबाया. बत्ती जलते ही वह चौंक पड़ी. यह कौन है. देखा रेघु बरामदे की आरामकुरसी पर बैठा मोबाइल से खेल रहा था. कुमुद काठ हो गई.

रघु ने बिना आंखें उठाए जैसे मोबाइल से कहा, ‘‘हो गया डायलौग खत्म. संवाद तो बड़े शानदार, चुटीले और विश्वासजनक रहे. किस मुंबइया सीरियल से चुने? पर आश्चर्य है, तुम लोगों को कैसे पता लगा कि मैं यहां आ कर बाहर बैठ गया हूं?’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें