‘‘हैलो...    हां सुनो.’’

‘‘हां बोलो.’’

‘‘बारात बड़ी धूमधाम से निकल गई है.’’

‘‘क्या? जरा जोर से कहो कुछ सुनाई नहीं दे रहा.’’

‘‘अरे मैं बोल रहा हूं कि बरात निकल

गई है.’’

‘‘अच्छा. इतने शोरशराबे में तुम्हारी अवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी.’’

‘‘यहां सब बहुत मस्ती कर रहे हैं. सब बैंड वाले से अपनीअपनी फरमाइश कर उसे परेशान कर रहे हैं.’’

तभी घोड़ी चढ़े दूल्हे राजा का किसी ने फोन झपटा.

‘‘हैलो मैं सविता भाभी बोल रही हूं. देवरानीजी. आज के लिए मेरे देवरजी को छोड़ दो, फिर कल से तो आप के ही हो कर रह जाएंगे. जल्दी मिलते हैं नमस्ते.’’

‘‘अरविंद भैया, यह संभालो अपने शरारती चीकू को और यह फोन अब अपने भैया से ही वापस लेना. हम सब को थोड़ा जश्न मनाते तो देख लो.. उस के बाद तो आप का ही ढोल बजना है,’’ सविता भाभी आज अलग ही मूड में थीं.

खुश वह भीतर से इसलिए भी थीं क्योंकि उन्हें अपनी शादी में पहना हुआ वह 9 किलोग्राम का जोड़ा आज भी बिना अल्टर किए फिट हो रहा था. वे सच में आज किसी दुलहन से कम नहीं लग रही है. वे अपने 4 साल के बेटे को उन की घोड़ी में चढ़ा इठलाते हुए उन का फोन ले उड़ीं.

अरविंद मुसकराता बच्चों से ले कर बूढ़ों तक सब का एकसाथ जबरदस्त उत्साह देख प्रफुल्लित होने लगा.

‘‘चीकू आज क्या है पता है?’’

‘‘आज मेरी शादी है,’’ चीकू अपने चाचा से कहने लगा.

‘‘चीकू, आज तेरी नहीं मेरी शादी है.’’

‘‘नहीं मेरी है... मम्मी से पूछ लो...’’ चीकू ये कह रोंआसा सा होने लगा.

‘‘अच्छा अच्छा ठीक है तेरी ही शादी है. अब तो खुश हो जा.’’

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