Download Grihshobha App

New Year 2025 : नया सवेरा

New Year 2025 : सावन का महीना, स्कूल-कालेज के बच्चे सुबह 8.30 बजे सड़क के किनारे चले जा रहे थे, इतने में घनघोर घटाओं के साथ जोर से पानी बरसने लगा और सभी लड़के, लड़कियाँ पेड़ के नीचे, दुकानों के शेड के नीचे खड़े हो गये थे. उन्हें सबसे ज्यादा डर किताब, कापी भीगने का था. उन्हीं बच्चों में एक लड़की जिसका नाम व्याख्या था और वह कक्षा-6 में पढ़ती थी, वह एक मोटे आम के तने से सटकर खड़ी थी. पेड़ का तना थोड़ा झुका हुआ था जिससे वह पानी से बच भी रही थी. लगभग दस मिनट बाद पानी बन्द हो गया और धूप भी निकल आई.

एक लड़का जिसका नाम आलोक था, वह भी कक्षा-6 में ही व्याख्या के साथ पढ़ता था. वहाँ पर कोई कन्या पाठशाला न होने के कारण लड़के और लड़कियाँ उसी सर्वोदय काॅलेज में पढ़ते थे. आलोक बहुत गोरा व सुगठित शरीर का था लेकिन व्याख्या बहुत सांवली थी, व्याख्या संगीत विषय लेकर पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक जादू था, जो उसकी एक पहचान बन गयी थी. काॅलेज के कार्यक्रमों में वह अपने मधुर स्वर के कारण सभी की प्रिय थी. इसी तरह समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और व्याख्या ने संगीत में कक्षा-10 तक काफी ख्याति प्राप्त कर ली थी.

आलोक उसी की कक्षा में था और वह व्याख्या को देखता रहता था. कभी भी कोई भी दिक्कत, परेशानी किसी भी प्रकार की होती थी, तो आलोक उसे हल कर देता था. दोपहर इन्टरवल में लड़कियों की महफिल अलग रहती और लड़कों की मंडली अलग रहती थी. लेकिन आलोक की नजर व्याख्या पर ही होती थी.

हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर व्याख्या कक्षा-11 में पहुंच गयी थी और आलोक भी कक्षा-10 उत्तीर्ण कर कक्षा-11 में पहुंच गया था. शाम 3 बजे से 4 बजे तक संगीत की क्लास चलती थी तथा सभी बच्चों में सबसे होशियार और मेहनती व्याख्या ही मानी जाती थी. कक्षा ग्यारह के बाद यानि कि छः वर्ष में व्याख्या ने संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल कर ली थी, जिससे शहर और अन्य शहरों में स्टेज कार्यक्रम के लिए आमंत्रित की जाने लगी. माँ वीणादायिनी ने व्याख्या को बहुत उम्दा स्वर प्रदान किये थे, जिसके कारण गायन में व्याख्या का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाना लगा. व्याख्या को कई सम्मानों से सम्मानित किया जाने लगा. अब तो जहाँ कहीं भी संगीत-सम्मेलन होता, सबसे पहले व्याख्या आहूत की जाती. यदि शहर में कार्यक्रम होता तो आलोक वहाँ व्याख्या को सुनने पहुँच जाता और व्याख्या कार्यक्रम देते समय एक नजर आलोक को जरूर देख लेती थी मगर उसका अधिक सांवलापन उसके जेहन को हमेशा झझकोरता रहता था.

धीरे-धीरे समय बीतता गया और व्याख्या ने संगीत की प्रवीण परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन इतना होने पर भी वह हर समय यही सोचती रहती थी कि मेरे माता-पिता इतने सुन्दर है फिर मैं काली कैसे पैदा हो गयी. उसका रूप-रंग ना जाने किस पर चला गया.

आज व्याख्या संगीत के चरम पर विराजमान थी. शास्त्रीय संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़ियाँ चढ़ती चली जा रही थी और संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी-मानी गायिका कहलाने लगी थी. उसे आज भी याद है कि…..

घर के बाहर खूबसूरत लाॅन में बैठी धीरे-धीरे ना जाने क्या सोचते-सोचते वह चाय का प्याला हाथ में लिए अपनी आरामवाली कुर्सी पर बैठी थी. ‘‘मेम साहब, आपका पत्र आया है ? ‘अरे आप ने तो चाय पी नहीं, अब तो यह बहुत ठंडी हो गयी होगी, लाइये दूसरी बना लाऊँ. ‘‘ बिना उत्तर की प्रतीक्षा करे हरि काका ने मेरे हाथ से प्याला लिया और पत्र मेज पर रखकर चले गये. मैंने देखा आलोक का पत्र था. ‘‘व्याख्या, तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ बहुत लड़ चुका हूँ मैं अपने अहं से. अब थक गया हूँ, हार चुका हूँ…….. मुझे नहीं मालूम कि मैं किसके लिए जी रहा हूँ,? मैं नहीं जानता कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं, पर तुम्हारे वापस आने की उम्मीद ही मेरे जीवन का मकसद रह गया है, बस उसी क्षण का इन्तजार है, ना जाने क्यों…………….? आओगी न,…………..

पत्र पढ़ने के बाद व्याख्या की भाव शून्य आंखों में एक भाव लहरा कर रह गया. पत्र तहा कर उसने लिफाफे में रख दिया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आलोक जैसा जिद्दी, अभिमानी और कठोर दिल इंसान भी इस तरह की बातें कर सकता है. जरूर कोई मतलब होगा, मेज पर पड़ी किताब के पन्ने हवा के झोंके के कारण फड़फड़ाते हुये एक तरफ होने लगे. जिंदगी के पंद्रह वर्ष पीछे लौटना व्याख्या के लिए मुश्किल नहीं था क्योंकि उसके आज पर पन्द्रह वर्षों के यादों का अतीत कहीं न कहीं हावी हो जाता है.

सोचते-सोचते वह आज भी नहीं समझ पाई कि माँ-पापा तो खूबसूरत थे, पर उसकी शक्ल न जाने किस पर चली गयी, पर माँ उसे हमेशा हिम्मत बंधाती थी कि ‘‘कोई बात नहीं बेटी, ईश्वर ने तुझे रंग नहीं दिया तो क्या हुआ, तू अपने नाम को इतना विकसित कर ले कि सब तेरी व्याख्या करते ना थके.’’ बस व्याख्या ने सचमुच अपने नाम को एक पहचान देनी प्रारम्भ कर दी. उसने हुनर का कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा, साथ ही ईश्वर की दी गयी वो नियामत जिसे व्याख्या ने पायी थी., ‘सुरीली आवाज’ जिसके कारण वह संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़िया चढ़ती गयी और शास्त्रीय संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी मानी गायिका कहलाने लगी.

उसे आज भी याद है कि अहमदाबाद का वो खचाखच भरा सभागार और सामने बैठे जादू संगीतज्ञ पं0 राम शरन पाठक जी. सितार पर उंगलिया थिरकते ही, सधी हुई आवाज का जादू लगातार डेढ़ घंटे तक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया. दर्शकों की तालियाँ और पं0 जी के वो वचन कि ‘‘बेटी तुम बहुत दूर तक जाओगी. शायद आज उनकी वो बात सच हो गयी लेकिन उन दर्शकों में एक हस्ती, जो नामी-गिरामी लोगों में जानी जाती थी, देवाशीस जी, उनका खत एक दिन पिता के नाम पहुँचा कि ‘‘हमें अपने बेटे के लिए आपकी सुपुत्री चाहिए जो साक्षात सरस्वती का ही रूप है. ‘‘एक अंधा क्या मांगे दो आंखे. मेरे पिताजी ने बगैर कुछ सोचे समझे हाँ कर दी. शादी के समय मंडप पर बैठे उन्हें देखा था, एक संुदर राजकुमार की तरह लग रहे थे. सभी परिवार के लोग मुझे मेरी किस्मत पर बधाई दे रहे थे. पर खुदा को कुछ और मंजूर था. आलोक जिन्हें मैं बिल्कुल पसन्द नहीं थी. शादी के बाद क्या, उसी दिन ही अपने पिताजी से लड़ना कि ‘‘कहाँ फसा दिया’’ इस बदसूरत लड़की के साथ. आलोक घर पर नहीं रूके और पूरे आग बबूला होकर घर छोड़कर चले गये. मेरे सास-ससुर ने सचमुच दिलासा दी. सुबह उठकर नहा धोकर बहू के सारे कर्तव्य निभाते हुये मैं भगवान भजन भी गाती रही. सास ससुर तो अपनी बहू की कोयल सी आवाज पर मंत्र मुग्ध थे, पर मैं कहीं न कहीं अपनी किस्मत को रो रही थी. आलोक पन्द्रह-बीस दिन में कभी-कभार आते थे, लेकिन मेरी तरफ रूख भी नहीं करते थे, बस अपनी जरूरत की चीजें लेकर तुरन्त निकल जाते थे, अब तो यह नियम सा बन गया था. मैं भी अपनी किस्मत को ही निर्णय मान लिया लेकिन कहीं न कही आलोक का इंतजार भी था.

एक दिन मुझे चुपचाप बैठे देख ससुर जी ने कहा-कि ‘‘मैं तो एक बढ़िया सी खुशखबरी लाया हूँ, वो यह कि एक संगीत आयोजन में विशेष  प्रस्तुति के लिए तुम्हारे नाम का आमंत्रण आया है, ‘‘पर बाबूजी मुझे तो दो साल हो गये हैं स्टेज शो किये हुए. अब डर लगता है, पता नहीं क्यों ? में आत्मविश्वास खो सा गया है. नहीं-नहीं मैं नहीं गा पाऊँगी‘‘व्याख्या ने कहा. तुम गा सकती हो, मेरी बेटी जरूर गायेगी और जायेगी, पिता जी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा. ‘‘बाबूजी के विश्वास से ही मैंने अपना रियाज शुरू कर दिया. बाबूजी घंटो मेरे साथ रियाज में मेरा साथ देते. वो दिन आ गया. खचाखच भरा वही सभागार, अचानक उसे याद आया कि उसी मंच से तो उसके जीवन में अंधेरा आया लेकिन आज इसी मंच से तो उसके जीवन का नया सवेरा होने वाला है. कार्यक्रम के बाद दर्शकों की बेजोड़ तालियों ने एक बार फिर मुझे वो आत्मविश्वास भर दिया जो सालों पहले कहीं खो गया था.

दूसरे दिन मैं अपनी तस्वीर अखबार में देख रहीं थी कि बाबूजी अचानक घबराते हुए आये और कहने लगे बेटी ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, आलोक का एक्सीडंेट हो गया.’’ व्याख्या के चेहरे पर कोई शिकन न उभरी लेकिन अचानक हाथ सर की मांग में भरे सिंदूर पर गया कि यह तो आलोक के नाम का है.

मैं बाबूजी के साथ गाड़ी में बैठ गयी. अस्पताल में शरीर पर कई जगह पर गहरी चोटों को लिए आलोक बुरी हाल में डाक्टरों की निगरानी में था. पुलिस ने मुझसे आकर पूछा कि-‘‘आप जानती हैं, इसके साथ कार में कौन था ?‘‘मैं समझ नहीं पाई कि किसकी बात हो रही है, फिर थोड़ी देर में पता चला कि आलोक के गाड़ी में जो मैडम थी, उनको नहीं बचाया जा सका. पूरे एक हफ्ते बाद जब आलोक को होश आया तो आंखें खुलते ही उसने पूछा-‘‘मेघा कहाँ है’’? डाॅक्टर साहब, वह ठीक तो है न ? वह मेरी पत्नी है.‘‘ पुलिस की पूछ-ताछ से पता चला कि उन दोनों का एक पाँच महीने का बेटा भी है जो अभी नानी के यहां है ? व्याख्या के सब्र का बांध टूट गया और उसमें इससे ज्यादा कुछ सुनने की शक्ति न बची. 6-7 महीने का कम्पलीट बेड रेस्ट बताया था डाॅक्टर ने. आलोक घर आ चुका था. व्याख्या आलोक का पूरा ध्यान रखती, खाने-पीने का, दवाई का. पूरी दिनचर्या के हर काम वह एक पत्नी की अहमियत से नहीं, इंसानियत के रिश्ते से कर रही थी. चेहरे पर पूरा इत्मीनान, कोमल आवाज, सेवा-श्रद्धा, धैर्य, शालीनता ना जाने और कितने ही गुणों से परिपूर्ण व्याख्या का वह रूप देखकर खुद अपने व्यवहार के प्रति मन आलोक का मन आत्मग्लानि से भर जाता. इतना होने पर भी वही भावशून्य व्यवहार.

कितनी बार मन करा कि वो मेरे पास बैठे और मैं उससे बाते करूँ, लेकिन वह सिर्फ काम से काम रखती, सेवा करती और मेरे पास बोलने की हिम्मत न होने के कारण शब्द मुंह में रह जाते. व्याख्या अपने कार्यक्रम के लिए बाबूजी के साथ भोपाल गयी थी. आलोक ने सोचा लौटने पर अपने दिल की बात जरूर व्याख्या से कह देगा और मांफी मांग लेगा. भोपाल से लौटने पर बाबूजी ने खबर दी कि-‘‘मेरी बहू का दो साल तक विदेशों में कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है, अब मेरी बहू विदेशों में भी अपने स्वर से सबको आनन्दित करेगी. ‘‘एक दिन जब व्याख्या सुबह नहाकर निकली तो आलोक ने कहा-‘‘ मैं अपनी सारी गलतियों को स्वीकारता हूँ. मैं गुनहगार हूँ तुम्हारा………………….मुझे माफ कर दो………..’’ कितना आसान होता है न मांफी मांगना. पर सब कुछ इससे नहीं लौट सकता ना, जो मैंने खोया है, जितनी पीड़ा मैने महसूस की है, जितने आंसू मैनें बहाए हैं, जितने कटाक्ष मैनें झेले हैं. क्या सच है उसकी बिसात और फिर आलोक जो आपने किया यदि मैं करती तो क्या मुझे स्वीकारते ? नहीं, कभी नहीं बल्कि मुझे बदचलन होने का तमगा और तलाक का तोहफा मिलता. व्याख्या ने बिना कुछ कहे मन में सोचा. व्याख्या के कुछ न कहने पर उस समय तो आलोक को मानो काठ मार गया. वो अपनी जिंदगी की असलियत पर  पड़ा परदा हटते देख रहा था कि वह कैसा था…‘‘इतने दिनों तक मैनें आपकी सेवा की, आपका एहसान उतारने के लिए. मैं वास्तव में एहसान मंद हूँ. आपने जितना अपमानित किया उतना ही अधिक अपने लक्ष्य के प्रति मेरा निश्चय दृढ हुआ है.‘‘ अचानक व्याख्या की आवाज से आलोक अपनी सोच से बाहर आया. व्याख्या एक आर्कषक अनुबंध के अंतर्गत विदेश यात्रा पर निकल गयी और अब जब कभी वह लौटती तो, प्रायोजकों के द्वारा भेंट किये गये किराये के बंगले पर ठहरती, लेकिन कभी-कभार बाबूजी से मिलने जरूर आती. एक-एक दिन करके महीने और अब तो कई साल गुजर गये, सभी अपने आप में मस्त हैं. संगीत के अलावा कुछ नहीं सूझता व्याख्या को. अब तो वही उसके लिए प्यार, वही जीवनसाथी. कार्यक्रमों की धूम, प्रशंसकों की भीड़ पूरे दिन व्यस्त रहती, मगर फिर एक रिक्तता थी, जीवन में. रह रहकर आलोक का ख्याल आता, दुर्घटना के पहले और बाद में आलोक के साथ बिताए एक-एक पल उसकी स्मृति में उमड़ने-घूमड़ने लगे. लेकिन आज आलोक की यह छोटी सी चिट्ठी. पर इतने छोटे से कागज पर, कम मगर कितने स्पष्ट शब्दों में बरसों की पीड़ा को सहजता से उकेर कर रख दिया है उसने, आखिर कब तक अकेली रहेगी वह? सब कुछ है उसके पास, मगर वह तो नहीं है जिसकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है. व्याख्या सोच में पड़ गयी. बाबूजी भी बीमार चल रहे हैं, मिलने जाना होगा.

अगले ही दिन व्याख्या ससुराल पहुँची, चेहरे पर टांको के निशानों के साथ आलोक बहुत दुबला प्रतीत हो रहा था. बाबूजी को देखने के पश्चात जैसे ही व्याख्या दरवाजे के बाहर निकली, आलोक ने उसका हाथ थाम लिया. बरसों पहले कहा गया वाक्य फिर से लड़खड़ाती जुबान से निकल पड़ा-‘‘व्याख्या, क्या हम नई जिंदगी की शुरूआत नहीं कर सकते? ‘‘क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती? व्याख्या की निगाहें आलोक के चेहरे पर टिक गयी. घबरा कर आलोक व्याख्या का हाथ छोड़ने ही वाला था कि व्याख्या मुस्करा उठी. मजबूती से आलोक ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए ‘‘अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा. ‘‘व्याख्या शरमा कर आलोक के सीने से लग गयी. आज उसके दीप्तिमान तेजोमय मुखमंडल पर जो मुस्कान आई उसे लगा वास्तव में आज ही उसकी संगीत का रियाज पूरा हुआ और आत्म संगीत की वर्षा हुई है. क्योंकि कल उसके जीवन का नया सवेरा जो आने वाला था.

लेखिका- डाॅ0 अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’

Happy New Year 2025 : चलो एक बार फिर से

Happy New Year 2025 : समर्थको कविताओं का बहुत शौक था. कविताएं पढ़ता, कुछ लिखता, लेकिन एक कविता उसे खास पसंद थी. वह अकसर गोपालदास ‘नीरज’ की कविता मीनल को सुनाया करता-

‘‘छिपछिप अश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ बहाने वालो,

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है,

कुछ दीपों के बुझ जाने से आंगन नहीं मरा करता है…’’

उस के चले जाने के बाद मीनल ने इसी कविता को अपने जीवन का मंत्र बना लिया.

माना कि समर्थ उसे बीच जीवन की मझदार में अकेला छोड़ गया, ऊपर से उस की बुजुर्ग मां और 2 नन्हें बच्चों की जिम्मेदारी भी आन पड़ी. मगर कौन खुशी से इस दुनिया को अलविदा कहना चाहता है?

समर्थ भी नहीं चाहता था. जो हुआ उस पर किसी का जोर न था. समर्थ की मजबूरी थी. बिगड़ते स्वास्थ्य के आगे हार मानना और मीनल की मजबूरी थी अपनी एक मजबूरी छवि कायम रखना. यदि वह भी बिखर जाती तो इस अधूरी छूटी गृहस्थी को कौन पार लगाता? तब बच्चे केवल 8 व 10 साल के थे. कर्मठता और दृढ़निश्चय से लबरेज मीनल ने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा. बीए, बीएड, एनटीटी तो वह शादी से पहले ही कर चुकी थी. पहले नर्सरी टीचर, फिर सैंकडरी और फिर धीरेधीरे अपने अथक परिश्रम के बल पर वह आज वाइस प्रिंसिपल बन चुकी थी.

नौकरी करते हुए उस ने एमएड की शिक्षा उत्तीर्ण की. अध्यापन के अलावा प्रशासनिक कार्यभार संभालने के अवसर मिलने से उस की तरक्की का मार्ग प्रशस्त होता गया. कार्यकारी जीवन में परिश्रम करने से वह कभी पीछे नहीं हटी. उस की सास सुनयना देवी ने घर व बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई. बच्चों के प्रति उसे कभी कोई चिंता नहीं करनी पड़ी. सासबहू की ऐसी जोड़ी कम ही देखने को मिलती है.

अब बच्चे किशोरावस्था में आ चुके थे. बेटी अनिका 16 और बेटा विराट

14 साल हो चुका था. दादी को भी काफी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल चुकी थी. दोनों बच्चे अपने कार्य स्वयं ही संभाल लिया करते. कर्मठ और जीवट मां व दादी की जोड़ी ने बच्चों में भी उच्चाकांक्षा और आगे बढ़ने की प्रेरणा का संचार किया था. अपने परिवार में एकता और सहयोग देखने के कारण अनिका और विराट में भी संवेदना व प्रेमपूर्ण भावों की कमी न थी. वे मां और दादी दोनों का भरपूर खयाल रखना चाहते थे. दोनों ने जीवन में जिन कठिनाइयों का सामना किया था, उन से वे परिचित थे और यही चाहते थे कि बड़े हो कर उन्हें सुख प्रदान कर सकें. सकारात्मक वातावरण में पलने का प्रभाव पूर्णरूप से उन के व्यक्तित्व में झलकने लगा था.

‘‘मम्मा, कल हमारे स्कूल से जो ऐजुकेशनल ऐक्सकर्शन में जा रहे हैं, उन्हें पिकअप करने पेरैंट्स को म्यूजियम पहुंचना होगा. आप याद से आ आना,’’ रात को याद दिला कर सोए थे अनिका और विराट.

अगले जब मीनल म्यूजियम के गेट पर प्रतीक्षारत थी, तो उसे आभास हुआ

जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा हो. संशय में उस ने मुड़ कर देखा. एक बलिष्ठ पुरुष माथे पर कुछ बल लिए खड़ा उसी को ताक रहा था, ‘‘मीनल?’’

‘‘जी? पर आप?’’ मीनल के प्रश्न पर वह कुछ सकुचा गया.

‘‘पहचाना नहीं… मैं आहाद. हम दोनों एक ही क्लास में थे कालेज में.’’

‘‘ओह एय, आहाद, औफ कौर्स… अरे वाह, इतने सालों बाद… कैसे हो? यहां कैसे?’’ पुराने मित्र के यों अचानक मिल जाने से मीनल पुलकित हो उठी.

‘‘मेरी भतीजी यहां ऐजुकेशनल ऐक्सकर्शन के लिए आई है. उसी को लेने आया हूं. और तुम? कैसी हो? कहां हो आजकल?’’

आहाद के पूछने पर मीनल ने उसे अपनी स्थिति बताई और अपने घर आमंत्रित किया, ‘‘इसी वीकैंड आना होगा. कोई बहाना नहीं चलेगा. और परीजाद कैसी है? तुम दोनों ने तो शादी कर ली थी न…उसे जरूर ले कर आना…’’

वह आगे कहती तभी अनिका और विराट आ गए. उधर आहद की भतीजी भी आ गई, जो अनिका की क्लास में पढ़ती थी. बच्चों को यह जान कर बहुत खुशी हुई कि उन के बड़ी भी क्लासमेट थे. संडे की दुपहर को मिलना तय हो गया.

संडे की सुबह से ही मीनल काफी उल्लसित लग रही थी. खुशी से लंच की तैयारी की.

‘‘आज न जाने कितने समय बाद अपने किसी मित्र से मिलूंगी, मां,’’ सुनयना देवी द्वारा बहू को खुशदेख इस का कारण पूछने पर मीनल ने बताया.

अपनी बहू को खुश देख भी खुश थीं. तय समय पर आहाद पहुंच गया, हाथों में एक गुलदस्ता लिए. बच्चों के लिए चौकलेट और कुकीज भी लाया था.

‘‘अरे, लंच पर मैं ने बुलाया है और तुम इतना सामान ले आए… इस सब की क्या जरूरत थी?’’ उस के हाथ में उपहारों के पैकेट देख मीनल ने टोका, ‘‘और अकेले क्यों आए…परीजाद कहां रह गई?’’

‘‘अंदर तो आने दो, सब बताता हूं,’’ आहाद ने सुनयना देवी का अभिवादन किया और फिर लिविंगरूम में विराजमान हो गया. पानी पीने के बाद उस ने बताया कि परीजाद का उन की शादी के केवल 2 साल बाद एक कार ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. यह कहते हुए आहाद की नजरें शून्य में अटक कर रह गईं.

बिना किसी की ओर देखे, भावशून्य ढंग से कही इस बात ने कमरे में शोक बिखेर दिया. आहाद के चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह इतने सालों बाद भी परीजाद की यादों से बाहर नहीं आ सका है. कमरे में उपस्थित सभी चुप हो गए.

सुनयना देवी ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मीनल, चाय नहीं पिलाएगी अपने मेहमान को?’’

मीनल चायनाश्ता ले कर आई तब तक आहाद बच्चों से उन की क्लास, उन की रुचियां आदि पूछने लगा. माहौल थोड़ा लाइट हो चुका था. कैसी अजीब बात है, मीनल सोचने लगी, जीवनसाथी से कितनी उम्मीदों से जुड़ते हैं, किंतु जीवनसफर में वह भी कितनी जल्दी अकेली रह गई और उस का दोस्त भी. अकेलापन भी एक प्रकार का सहचर बन सकता है, यह बात इन दोनों से बेहतर कौन जान सकता था. इसी साझे तार ने मीनल और आहाद को पुन: जोड़ दिया. अनिका और विराट भी आहाद अंकल को बहुत पसंद करने लगे.

मीनल के घर में कोई पुरुष नहीं था और आहाद के घर में कोई स्त्री. गृहस्थी के ऐसे कार्य जो मर्दऔरत के हिस्सों में बंटे रहते हैं, अब ये एकदूसरे के लिए सहर्ष करने लगे. आहाद, मीनल की कई क्षेत्रों में सहायता करने लगा. मसलन, बिजलीपानी गैस जैसी छोटीछोटी मरम्मतें, कोई खास वस्तु किसी खास बाजार से खरीद लाना, मां के लिए किसी खास दवा का इंतजाम करना आदि.

इसी प्रकार मीनल भी आहद की किचन में जरूरी सामान भरवा देती, कभी उस के लिए मेड खोज कर उसे काम समझा देती, तो कभी उस की अलमारी ही संवार देती.

अनिका और विराट इस तालमेल से बेहद प्रसन्न थे. उन की याद में उन्होंने अपने पापा नहीं देखे थे. पापा का सुख, एक पुरुष की गृहस्थी में उपस्थिति उन्हें बहुत भा रही थी. एक रात सोने से पहले थोड़ी गपशप लगाते हुए विराट बोला पड़ा, ‘‘कितना अच्छा होता न अगर आहाद अंकल ही हमारे पापा होते. वैसे उन की फैमिली तो है नहीं.’’

‘‘क्या तू भी वही सोचता है जो मैं?’’ उस की बात सुन अनिका बोली और फिर दोनों ने गुपचुप योजना बनानी शुरू कर दी. जब भी घर में कुछ अच्छा पकता तो अनिका जिद करती कि वे उस डिश को आहाद तक पहुंचा कर आएं.

‘‘कम औन मम्मा, आहाद अंकल आपके फ्रैंड हैं और आप उन के लिए इतना भी नहीं कर सकतीं?’’

एक दिन खेलते समय विराट के पैर की हड्डी टूट गई. मीनल उस दिन अपने

स्कूल में थी, किंतु उसे फोन पर बताने के बजाय विराट ने झट आहाद को फोन मिला दिया. ‘‘अंकल, मेरे पैर में काफी चोट लग गई है, आप प्लीज आ जाओ न… मम्मी भी नहीं हैं घर पर.’’

आहाद फौरन उन के घर पहुंचा और अस्पताल ले जा कर विराट को पलस्तर चढ़वाया. जब बाद में मीनल को सारा प्रकरण पता चला तो विराट और अनिका दोनों ही आहाद अंकल के गुणगान करते नहीं थके, ‘‘देखा मम्मा, कितने ज्यादा अच्छे हैं आहाद अंकल.’’

‘‘हांहां, मुझे पता है कि तुम दोनों आजकल आहाद अंकल के फैन बने हुए हो,’’ हंसते हुए मीनल बोली.

‘‘काश, आहाद अंकल ही हमारे पापा होते,’’ विराट के मुंह से निकल गया. लेकिन मीनल ने ऐसे बरताव किया जैसे उस ने यह बात सुनी नहीं. विराट भी फौरन चुप हो गया.

मीनल समझने लगी थी कि बच्चों के मन में क्या चल रहा है, परंतु अपने मन में ऐसी किसी भावना को वह हवा नहीं देना चाहती थी. ऐसा नहीं है कि वह आहाद को पसंद नहीं करती थी. आहाद पहले से ही एक सुलझे हुए शांत व्यक्तित्व का स्वामी था. इतने वर्षोंपरांत पुन: मिलने पर मीनल ने पाया कि समय के अनुभवों ने उस के स्वभाव को और भी चमका दिया है.

आहाद भी मीनल के जीवट व्यक्तित्व, सकारात्मक स्वभाव व बौद्धिक क्षमता से प्रभावित था. कह सकते हैं कि पारस्परिक प्रशंसा दोनों में आकर्षण को जन्म देने लगी थी, किंतु यह बात अभी यहीं पर विराम थी. यह एक बेहद जटिल विषय था. न जाने कितने समय बाद मीनल की जिंदगी में एक मित्र का आगमन हुआ था. ऐसी किसी भी एकतरफा भावना से वह इस दोस्ती को खोना नहीं चाहती थी और फिर पुनर्विवाह, वह भी बच्चों के बाद… हमारे संस्कार ऐसी बात सोचते समय ही मनमस्तिष्क की लगाम कसने लगते हैं.

औरतों को शुरू से ही संस्कार के नाम पर कमजोर करने वाले विचार सौंपे जाते हैं जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है.

उस शाम आहाद मीनल के घर आया हुआ था, ‘‘इस फ्राइडे ईवनिंग को

मूवी का प्रोग्राम बनाएं तो कैसा रहे? बच्चों को पसंद आएगी ‘एमआईबी’ वह भी ‘थ्री डी’ में.’’ आहाद के पूछने पर दोनों बच्चे तालियां बजा कर अपना उल्लास दर्शाने लगे तो मीनल और सुनयना देवी भी हंस पड़ीं.

आहाद ने सभी के लिए टिकट बुक करवा दिए. तय हुआ कि आहाद और मीनल अपनेअपने कार्यस्थल से और बच्चे और उन की दादी घर से सीधा मूवीहौल पहुंचेंगे.

मगर हुआ कुछ और ही. जब मीनल और आहाद मूवीहौल के बाहर बच्चों की प्रतीक्षा करते हुए थक गए तब उन्होंने सुनयना देवी को फोन कर के पूछा कि आने में और कितनी देर लगेगी?

‘‘बच्चे कह रहे हैं कि तुम दोनों अंदर चल कर बैठो, कहीं पिक्चर न निकल जाए. हमारे पास अपने टिकट हैं, हम आ कर तुम्हें जौइन कर लेंगे,’’ सुनयना देवी के कहने पर मीनल और आहाद मूवीहौल के अंदर चले गए.

पिक्चर शुरू हो गई पर बच्चों का कोई अतापता न था. कुछ देर में दोबारा फोन करने पर पता चला कि अनिका का पेट खराब हो गया है, इसलिए थोड़ी देरी से आ पाएंगे.

‘‘न… न… तुम्हें वापस आने की कोई जरूरत नहीं है. तुम अपनी पिक्चर क्यों खराब करते हो, यहां मैं संभाल रही हूं,’’ दादी ने आश्वासन दिया.

इधर घर में अनिका को ले कर सुनयना देवी काफी परेशान हो रही थीं, ‘‘क्या डाक्टर के पास ले चलूं?’’

उन के प्रश्न पर अनिका और विराट का एकदूसरे की ओर देख कर आंखोंआंखों में की गई इशारेबाजी सुनयना देवी ने देख ली. बोली, ‘‘अब तुम दोनों यह बेकार की उलझन खत्म करो और असली मुद्दे पर आओ. आखिर मैं ने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए. क्या खिचड़ी पका रहे हो तुम दोनों.’’

दादी के वर्षों के अनुभव तथा पारखी नजर पर दोनों बच्चे हैरान रह गए. फिर खिसियानी हंसी के साथ उन्होंने बात आगे बढ़ाई, ‘‘दादी, हम जानबूझ कर आज मूवी देखने नहीं गए. हम चाहते थे कि मम्मी और आहाद अंकल को अकेले पिक्चर देखने भेजें,’’ फिर कुछ रुक कर बच्चे आगे कहने लगे, ‘‘दादी, हमें आहाद अंकल बहुत अच्छे लगते हैं. और हम सोच रहे हैं कि कितना अच्छा हो अगर अंकल हमारे पापा बन जाएं.’’

बच्चों का हर्षोल्लास देख दादी ने उन्हें टोका नहीं. नन्हें बच्चों के अबोध मन में अपने पिता के रिक्त स्थान में आहाद की छवि दिखने लगी थी.

‘‘बोलो न दादी, हम सही सोच रहे हैं न? ऐसा हो सकता है क्या?’’ अनिका पूछने लगी.

विराट भी उत्साहित था. बोला, ‘‘कितना मजा आएगा न. मम्मा की शादी… हमारे फ्रैंड्स की तरह हमारे भी पापा होंगे. व्हाट अ थ्रिल,’’ बच्चे अपनी मासूमियत में अपने मन की बात कहे जा रहे थे. न कोई झिझक, न कोई संकोच.

मूवी खत्म होने पर मीनल और आहाद घर की ओर निकलने को थे कि आहाद ने कौफी पीने की गुजारिश की, ‘‘मैं समझता हूं मीनल कि तुम्हें अनिका के पास जाने की जल्दी हो रही होगी पर आज हम दोनों अकेले हैं तो… दरअसल, कई दिनों से तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं पर हिम्मत साथ नहीं दे रही…’’

‘‘ऐसी क्या बता है, आहाद? चलो, पास के कैफे में कुछ देर बैठ लेते हैं,’’ कहते हुए मीनल ने अपने घर फोन कर निश्चित कर लिया कि अनिका की तबीयत अब ठीक है.

कैफे में आमनेसामने बैठ कर कुछ न बोल कर आहाद बस चुपचाप मीनल को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने मीनल को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया.

बात को सहज बनाने हेतु वह बोल पड़ी, ‘‘आहाद, परीजाद को गए इतना वक्त गुजर गया… इतने सालों में तुम ने पुनर्विवाह के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’

‘‘तुम से मुलाकात जो नहीं हुई थी.’’

आहाद के कहते ही मीनल अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे आहाद के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. संभवत: उस का मन यही बात आहाद से सुनना चाहता था. वह तो यह भी जानती थी कि उस के बच्चे भी ऐसा ही चाहते हैं. पर आज यों अचानक आहाद के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है. भला. आहाद की बात सुन कर मीनल के नयनों में लज्जा और अधरों पर मुसकराहट खेल गई. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया.

मीनल की हंसी के कारण आहाद की हिम्मत थोड़ी और बढ़ी, ‘‘मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं और लगता है कि अनिका और विराट भी मुझे स्वीकार लेंगे. वे मुझ से अच्छी तरह हिलमिल गए हैं. बस एक बात की टैंशन है कि हमारे धर्म अलग हैं. यह बात मेरे लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है… लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए हो. मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले… हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सभी बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी, जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं… मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि मीनल भी आहाद के व्यक्तित्व और आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. जीवन के इस पड़ाव पर आ कर मिली इस खुशी को वह खोना नहीं चाहती थी. खासकर यो जानने के बाद कि आहाद भी उसे पसंद करता है. मगर इतना बड़ा निर्णय वह अकेली नहीं ले सकती थी. सुनयना देवी से पूछने की बात कह मीनल घर लौट आई.

अगले दिन मीनल ने स्कूल से छुट्टी ले ली. जब बच्चे स्कूल चले

गए तब नाश्ते की टेबल पर मीनल ने सुनयना देवी से बात की. इतने सालों में इन दोनों का रिश्ता सासबहू से बढ़ कर हो गया था. मीनल ने जिस सरलता से आहाद के मन की बात बताई उसी रौ में अपने दिल क बात भी साझा की. आहाद द्वारा कही अंतरधर्म की शंका भी बांटी, ‘‘आप क्या सोचतीं इस विषय में मां?’’

कुछ क्षण दोनों के दरमियान चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति नहीं वरन दूसरे धर्म का प्रश्न था. कुछ सोच कर मां ने प्रतिउत्तर में प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम आहाद से प्यार करती हो?’’

मनील की चुप्पी में मां को उत्तर दे दिया. बोली, ‘‘देखो मीनल,समर्थ के जाने के बाद तुम ने किन परिस्थितियों का सामना किया यह मुझे भी पता है और तुम्हें भी. अब तक तुम अकेली ही जूझती आई. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन भी प्रेम से सराबोर हो, तुम एक बार फिर से गृहस्थी का सुख भोगो. तुम जो भी निर्णय लोगी, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

सुनयनादेवी के लिए मीनल के प्रति उन का प्यार हर मुद्दे से ऊपर आता था, ‘‘चलो, कल तुम्हारे मातापिता से मिल कर आगे की बात तय कर लेते हैं.’’

अगले दिन आहाद ने बच्चों को मूवी और मौल घुमाने का कार्यक्रम बनाया और मीनल व सुनयना देवी चल दीं उस के मायके.

‘‘भाईसाहब और बहनजी, हमारी मीनल के जीवन में एक बार फिर से बहार दस्तक दे रही है. इसी के कालेज में पढ़ा एक लड़का इस से शादी करना चाहता है. हम इस विषय में आप की राय चाहते हैं. मोहम्मद आहाद नाम है उस का. मुझे और बच्चों को भी वह लड़का बहुत पसंद आया. सब से अच्छी बात यह है कि धर्म की दीवार इन दोनों के प्यार के आढ़े नहीं आई. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा.’’

सुनयना देवी के कहते ही मीनल के मायके वालों ने हंगामा खड़ा कर डाला.

‘‘शर्म नहीं आई अपनी ही दूसरी शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से.’’ बस इतना ही प्यार था समर्थ जीजाजी से? अरे, डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने ही घर वालों को नहीं बख्शा, मीनल का भाई गरजने लगा.

भाभी भी कहां पीछे रहने वाली थीं, ‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी. उस की शादी कैसी होगी यह बात खुलने पर.’’

धम्म से जमीन पर गिरते हुए मां अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछने में व्यस्त हो गई. तभी मीनल की बड़ी विवाहित बहन पास के अपने घर से आ पहुंची. उसे भाई ने फोन कर बुलवाया था. बहन ने आ कर मां के आंसू पोंछने शुरू कर दिए,‘‘अरे, ऐसी कुलच्छनी के लिए क्यों रोती हो, मां? एक को खा कर इस का पेट नहीं भरा शायद… इस उम्र में ऐसी जवानी फूट रही है कि जो सामने आया उसी से शादी करने को मचलने लगी? यह भी नहीं सोचा कि एक मुसलमान लड़का है वह. ऐसे लोग ही लव जिहाद को हवा देते हैं’’, कहते हुए बहन ने घूणास्पद दृष्टि मीनल पर डाली.

उस का मन हुआ कि वह इसी क्षण यहां से कहीं लुप्त हो जाए.

‘‘सौ बात की एक बात मीनल कि यह शादी होगी तो मेरी लाख के ऊपर से होगी. अब तेरी इच्छा है. अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर’’, पिता की दोटूक बात पर मां का रुदन और बढ़ गया.

मीनल बेचारी सिर झुकाए चुपचाप रोती रही.

इतने कुहराम और कुठाराघात की मारी मीनल धम से सोफे पर गिर पड़ी. ठंड में भी उस के माथे से पसीना टपकने लगा. उस के पैर कंपकंपाने लगे, गला सूख गया, आंखें छलछला गईं. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है, ‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए’’, पता नहीं मीनल की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक गई. ‘‘गलती हो गई जो मैं ने ऐसा सोचा. मुझे कोई शादीवादी नहीं करनी है.’’

अपेक्षा विपरीत मीनल के पुनर्विवाह न करने का निर्णय उस के मायके वालों को स्वीकार्य था, लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अचानक सुनयना देवी खड़ी हो गईं, ‘‘मीनल एक शिक्षित, सुसंस्कारी, समझदार स्त्री है. जब से इस की शादी समर्थ से हुई, तब से यह मेरे परिवार का हिस्सा है. यह मेरी जिम्मेदारी है… हम कब तक अपनी मार्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’ फिर मीनल की ओर रुख करते हुए कहने लगीं, ‘‘मीनल, तुम मन में कोई चिंता मत रखो. तुम आज तक बहुत अच्छी बहूबेटी बन कर रहीं. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे. मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूं.’’

फिर कुछ देर रुक कर मीनल का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए सुनयना देवी बोली, ‘‘मीनल, याद है वह कविता जिसे समर्थ अकसर सुनाया करता था-’’

‘‘कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है,

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है.’’

मां के अडिग, अटल समर्थन ने सब को चुप करवा दिया.

5 साल छोटा एक लड़का मुझसे शादी करने को तैयार है, लेकिन समाज में बदनामी तो नहीं होगी ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 38 साल की कामकाजी अविवाहिता हूं. घर की परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि शादी नहीं कर पाई. इस का कुसूरवार भी मैं खुद को मानती हूं. मातापिता जब तक थे तब तक सहारा था अब भाईभाभी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं तो कई बार अकेलापन महसूस होता है. क्या शादी से मेरा अकेलापन दूर हो सकता है और मुझे जिंदगी जीने का मकसद मिल सकता है? मुझ से 5 साल छोटा एक लड़का शादी करने को तैयार है पर सोचती हूं कि न जाने परिवार और समाज क्या सोचेगा? बताएं क्या करूं?

जवाब-

पलपल बदलती दुनिया में कई बार अकेलापन महसूस होता है. आप के साथ इस की वजहें भी हैं. मातापिता के गुजर जाने के बाद जाहिर है आप अपना दुखदर्द शायद ही किसी के साथ बांट पा रही होंगी. कई ऐसी बातें होती हैं, जिन्हें आप किसी से भी फिर चाहे वे दोस्त हों या रिश्तेदार खुल कर नहीं कह सकतीं. यों तो अकेलापन दूर करने के कई साधन हैं पर चूंकि आप विवाह करने को उत्सुक हैं तो समाज व रिश्तेदारों की परवाह किए बगैर शादी कर सकती हैं. आप से 5 साल छोटा लड़का आप से विवाह करने को इच्छुक है तो बिना वक्त गंवाए शादी के लिए हामी भर दें. इस से न सिर्फ आप का अकेलापन दूर हो जाएगा, आप को जीने का मकसद भी मिल जाएगा. लड़का इतना भी छोटा नहीं है कि आप की जोड़ी बेमेल लगे. समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जो उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद अच्छा व खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रहे हैं. यदि बाद में कोई दिक्कत होगी तो देखा जाएगा. यह जोखिम वह लड़का ले रहा है, आप नहीं.

ये भी पढ़ें- 

रात 10 बजे माया के घर के आगे एक बड़ी सी कार आ कर रुकी. स्लीवलेस टॉप और जींस पहने माया अपने फ्लैट की सीढ़ियों से दनदनाती हुई नीचे उतर रही थी कि सामने रूना आंटी टकरा गई. रूना आंटी उस की मां की पक्की सहेली है. अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने माया को टोका,” बेटा इतनी रात गए कहां जा रही हो? जरा सोचो तो लोग क्या कहेंगे.”

माया ने हंसते हुए आंटी का कंधा थपथपाया और बोली,” आंटी मैं ऑफिस जा रही हूं अपने सपनों को पूरा करने, जर्नलिस्ट का दायित्व निभाने. मुझे इस बात से कभी कोई सरोकार नहीं रहा कि लोग क्या कहेंगे. मेरी अपनी जिंदगी है. मेरी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मेरे जीने का अपना तरीका है. इस में लोगों का क्या लेनादेना ? मैं क्या कभी लोगों से पूछती हूँ कि वे कब क्या कर रहे हैं?”

रूना आंटी को माया से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे चुपचाप खड़ी रह गई और माया जिंदगी को एक नया मकसद देने की ललक के साथ आगे बढ़ गई.

32  साल की माया दिल्ली में अकेली रहती है. रात में भी अक्सर काम के सिलसिले में उसे बाहर निकलना पड़ता है. रूना आंटी हाल ही में उस की सोसाइटी में शिफ्ट हुई है.

अक्सर बड़ेबुजुर्ग माया जैसी लड़कियों को तरहतरह की हिदायतें देते दिख जाते हैं. मसलन;

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

New Year Party look : नए साल की पार्टी में दिखना है स्टाइलिश, तो फौलो करें ये टिप्स

New Year Party look : नए साल की पार्टी में फैशन को लेकर आपके पास ढेर सारे विकल्प होते हैं. चाहे आप ग्लैमरस, कैज़ुअल या फौर्मल लुक चुनें, सबसे जरूरी बात यह है कि आप जो भी पहनें, उसमें खुद को कंफर्टेबल और आत्मविश्वास महसूस करें. नए साल की पार्टी के लिए फैशन टिप्स आपको खास और स्टाइलिश दिखने में मदद कर सकते हैं. यहां कुछ फैशन टिप्स दिए गए हैं जो आपकी पार्टी के लुक को शानदार बना सकते हैं:

1. ड्रेस कोड का फोलो करें

सबसे पहले, पार्टी के लिए ड्रेस कोड (अगर कोई हो) का ध्यान रखें. अगर पार्टी के लिए कोई थीम या ड्रेस कोड है जैसे “ग्लिटरी”, “ब्लैक एंड व्हाइट” या “कैज़ुअल”, तो उसी अनुसार अपनी ड्रेस चुनें.

2. क्लासिक ब्लैक ड्रेस (Little Black Dress)

“लिटिल ब्लैक ड्रेस” हर न्यू ईयर पार्टी के लिए एक बेहतरीन और क्लासिक विकल्प है. यह स्टाइलिश और एलीगेंट होती है, और आप इसे अच्छे एक्सेसरीज और हील्स के साथ पहन सकती हैं.

3. ग्लिटर और शिमर

नए साल की पार्टी में थोड़ी चमकदमक जरुरी है! शिमर, ग्लिटर या सीक्विन ड्रेस या टौप पहनकर आप पार्टी में सभी की नजरें आकर्षित कर सकती हैं. सिल्वर, गोल्ड या मैटलिक रंगों में चमकदार कपड़े पहनें.

4. फ्लोरल या स्टाइलिश कौकटेल ड्रेस

अगर आप कुछ अलग और स्टाइलिश चाहती हैं तो फ्लोरल या कौकटेल ड्रेस पर विचार कर सकती हैं. यह पार्टी में थोड़ा ग्लैम और जादू जोड़ता है. इसे एक अच्छा बेल्ट और स्टाइलिश फुटवियर के साथ पेयर करें.

5. मोनोक्रोमेटिक लुक

यदि आप एक सरल और चिक लुक चाहती हैं तो मोनोक्रोमेटिक आउटफिट चुनें. एक ही रंग में पूरी ड्रेस (जैसे काले या सफेद रंग में) पहनकर आप बहुत ही स्टाइलिश लग सकती हैं. इसे कंफर्टेबल और फैशनेबल लुक के लिए स्नीकर्स या हील्स के साथ पेयर करें.

6. लाउंज पार्टी लुक (Casual yet Trendy)

यदि पार्टी के लिए कैज़ुअल लुक है तो आप स्मार्ट जींस, टौप और एक स्टाइलिश जैकेट पहन सकती हैं. इसके साथ स्लिंग बैग और डेजी शूज या स्नीकर्स पहनकर आरामदायक और स्टाइलिश दोनों दिख सकती हैं.

7. विंटर पार्टी के लिए आउटरवियर

यदि आप सर्दी में पार्टी कर रही हैं तो विंटर फैशन भी जरूरी है. एक ट्रेंडी कोट या फौक्स फर्स जैकेट आपकी ड्रेस को और आकर्षक बना सकती है. इसे हौट स्टाइलिश बूट्स के साथ पेयर करें.

8. स्मोकिंग हौट लुक के लिए पैंटसूट

यदि आप कुछ अलग और फौर्मल चाहती हैं, तो पैंटसूट का चयन करें. यह एक स्मार्ट, स्टाइलिश और पावरफुल लुक देगा. इसके साथ हाई हील्स और मेटलिक क्लच बैग पेयर करें.

9. फ्लर्टी और फेमिनिन टौप्स

पार्टी के लिए आप एक फेमिनिन टौप पहन सकती हैं, जो या तो औफशोल्डर हो, या फ्लोई हो. इसे एक अच्छे फिटेड जींस के साथ पहनें, ताकि आपका लुक आकर्षक और स्टाइलिश दिखे.

10. एक्सेसरीजज चुनें सही

पार्टी में चमकने के लिए अच्छी एक्सेसरीज की जरूरत होती है. स्टेटमेंट नेकलेस, चंकी इयररिंग्स, क्रिस्टल एंकल स्ट्रैप्स, और क्लच बैग्स को ध्यान से चुनें. ये आपके लुक को और भी बेहतरीन बना सकते हैं.

11. परफेक्ट हेयरस्टाइल और मेकअप

हेयरस्टाइल और मेकअप भी आपके लुक का अहम हिस्सा होते हैं. न्यू ईयर पार्टी के लिए आप ग्लैम और फ्लोरल लुक के लिए वाल्यूमाइज्ड हेयर या सौफ्ट कर्ल्स रख सकती हैं. मेकअप में ग्लिटर आईशैडो, बोल्ड लिप्स और हाइलाइटर का इस्तेमाल करें.

12. कंफर्टेबल फुटवियर

पार्टी में लंबे समय तक डांस करने के लिए कंफर्टेबल फुटवियर चुनें. आपको स्टाइलिश दिखने के साथ आराम भी चाहिए. आप हील्स, स्टेटमेंट स्नीकर्स, या फ्लैट्स भी पहन सकती हैं.

Family Stories in Hindi : जौइंट लिविंग

Family Stories in Hindi : नूपुर बालकनी में बैठी डूबते सूरज को देख रही थी. उस के घुंघराले बाल हवा में फरफर उड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि उस का जीवन शून्य में डूबता जा रहा है. इस सूरज की ही तरह. तभी पीछे से आरना और ओजसी आ कर खड़ी हो गई थीं. नूपुर के बालों को पोनीटेल में बांधते हुए बड़ी बेटी आरना बोली, ‘‘क्या सोच रही हो मम्मी?’’

नूपुर डूबती आवाज में बोली, ‘‘तुम्हारे पापा ने डाइवोर्स देने के लिए मना कर दिया है.’’

छोटी बेटी ओजसी मुंह फुलाते हुए बोली, ‘‘वह क्यों भला?’’

नूपुर पनीली आंखों से बोली, ‘‘बेटा, तुम्हारे पापा के हिसाब से मैं तुम लोगों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाऊंगी.’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘हां वे तो हमारी बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं न. आज तक उन्हें यह भी नहीं पता कि हम किस क्लास में पढ़ते हैं. मम्मी, नाना, नानी ने क्या देख कर आप की शादी उन के साथ कर दी थी.’’

नूपुर बिना कोई जवाब दिए रसोई की तरफ चल दी.

ओजसी, आरना से बोली, ‘‘दीदी, क्या अब मम्मी और सक्षम अंकल की शादी नहीं होगी?’’

आरना बोली, ‘‘अरे मम्मी और सक्षम अंकल की शादी हो या न हो पर हम उन के साथ ही रहेंगे.’’

तभी गाड़ी की आवाज आई. सक्षम हमेशा की तरह सीटी बजाते हुए घर में घुसा.

आरना और ओजसी को उदास बैठा देख कर बोला, ‘‘आज मेरी तोता, मैना की जोड़ी शांत कैसे बैठी है?’’

आरना बोली, ‘‘अंकल, पापा ने मम्मी को डाइवोर्स देने से मना कर दिया है.’’

सक्षम के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं पर उन्हें ?ाटकते हुए बोला, ‘‘तो क्या हुआ बेटा, हम लोग फिर भी साथ ही रहेंगे. तुम दोनों अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ.’’

नूपुर ने सक्षम को कौफी दी और फिर बोली, ‘‘कब तक इंतजार करते रहोगे? सक्षम मेरे और बच्चों के लिए क्यों अपनी जिंदगी के अनमोल पल बरबाद कर रहे हो?’’

सक्षम बोला, ‘‘और अगर मैं कहूं तुम्हारे और बच्चों के साथ ही मु?ो ये अनमोल पल मुहैया होते हैं तो?’’

आरना और ओजसी भी वहीं आ कर बैठ गईं.

सक्षम फिर सब को बाहर डिनर पर ले गया. जब वापस आए तो सब के चेहरे पर मुसकान थिरक रही थी. अगले दिन रविवार है यह बात उन की खुशी को दोगुना कर रहा था.

आरना अचानक बोली, ‘‘अंकल, आप और मम्मी अगर एकसाथ जा कर नाना, नानी और दादादादी से बात करो तो वे लोग शायद पापा को समझ सकें.’’

नूपुर बोली, ‘‘अरे आरना पागल हैं क्या?’’

‘‘लोग क्या कहेंगे?’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘लोग कुछ नहीं कहेंगे मम्मी, आप को बस अपने परिवार से डर लगता है.’’

सक्षम बोला, ‘‘अरे आरना गुस्सा मत

करो बेटा.’’

‘‘नूपुर और मैं उस युग में जन्मे और बड़े हुए हैं जहां पर अपनी खुशी से ज्यादा मम्मीपापा की खुशी का ध्यान रखते हैं.’’

‘‘पर नूपुर तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हारी सुनने वाला हूं. आज रात जी भर कर बातें करेंगे और इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे.’’

नूपुर भी अंदर से यही चाहती थी. जिंदगी का बो?ा अकेले ढोतेढोते वह थक गई थी. पर

40 वर्ष में आज तक क्या उस ने अपनी मम्मी के खिलाफ जा कर कुछ किया था जो आज कर पाती.

आरना और ओजसी कपड़े बदलने चली गईं सक्षम चुपके से रसोई में आया और नूपुर को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘चोरीचोरी, चुपकेचुपके जो मजा है वह शादी के बाद बीवी के साथ कहां है? अच्छा है तुम्हारा पति तुम्हें तलाक नहीं दे रहा है, हम दोनों सदा प्रेमी ही रहेंगे.’’

नूपुर चिढ़ते हुए बोली, ‘‘हां, हर मर्द जिम्मेदारी से बचना ही चाहता है.’’

‘‘फ्री सैक्स, कंपेनियनशिप, फन ऐंड जीरो रिस्पौंसिबिलिटी ये सब तुम्हें जब इस रिश्ते से मिल ही रहा है तो क्यों शादी के लिए उत्सुक होंगे?’’

सक्षम नूपुर की बात से आहत हो उठा और नूपुर को अपने बंधन से आजाद करते हुए बोला, ‘‘कभी आज तक तुम्हारी मरजी के बिना कुछ किया है जो अब करूंगा?’’

उस के बाद सक्षम बाहर कमरे में जा कर बैठ गया. देर रात तक बातें होती रहीं. अपनी दोनों बेटियों को खुश देख कर नूपुर को लगता था कि सक्षम का साथ उसे खुशी और सुरक्षा दोनों देता जो उस का अपना पति प्रतीक कभी नहीं दे पाया.

नूपुर बस 22 वर्ष की थी जब उस का विवाह प्रतीक से हुआ था. नूपुर के लिए उस उम्र में विवाह का मतलब था कपड़े, मेकअप, गहने और डिनर. विवाह के बाद उसे ये सब भरपूर मिला. 1 वर्ष के भीतर ही आरना और उस के

2 वर्ष बाद ओजसी हो गई थी. 25 वर्ष में जब नूपुर के साथ की लड़कियों की शादी भी नहीं हुई थी या वे लोग रोमांस में व्यस्त थीं, नूपुर 2 बच्चों की मां बन गई थी. कम उम्र और अधिक जिम्मेदारी के कारण नूपुर पूरी तरह से अपनी बच्चियों में डूब गई थी. उसे होश तब आया जब उस के घर पर लेनदारों की भीड़ लग गई. प्रतीक की आमदनी अट्ठन्नी थी परंतु शौक राजा के थे. नूपुर ने भी जल्द ही घर पर ट्यूशन आरंभ कर दी और जैसे ही छोटी ओजसी ने स्कूल में कदम रखा, उस ने भी एक स्कूल में नौकरी करनी शुरू कर दी. नूपुर की नौकरी के बाद प्रतीक और अधिक गैरजिम्मेदार हो गया.

भावनात्मक, आर्थिक और शारीरक रूप से नूपुर शून्य हो गई थी. माह के अंत तक नूपुर का बैंक अकाउंट खाली हो जाता था. मगर घर की छत बनी रहे और बेटियों पर पिता का साया, यह सोच कर नूपुर सम?ाता करती चली गई. मगर हद तो तब हो गई जब नूपुर के मेहनत के पैसों पर सक्षम रंगरलियां मनाने लगा. जब नूपुर ने यह बात अपनी सब से खास सहेली जयति को बताई तो उस ने नूपुर को आढ़े हाथों लिया, ‘‘कैसी औरत हो यार तुम, जिस ने अपने जिंदगी का कंट्रोल पति को दे रखा है.’’

नूपुर सकपकाते हुए बोली, ‘‘तो क्या करूं, कैसे बच्चों को ले कर अकेली रहूं?’’

जयति बोली, ‘‘हमारे  फ्लैट में एक बैडरूम खाली है, तुम और आरना, ओजसी आराम से रह लोगी.’’

नूपुर को जयति पर विश्वास था और उसे पता था कि वह उस का अहित कभी नहीं चाहेगी. इसलिए उसी शनिवार को नूपुर ने अपना और दोनों बेटियों का सामान पैक कर के जब प्रतीक को अवगत कराया तो वह लापरवाही से बोला, ‘‘यह तुम्हारी उस आजाद खयाल सहेली जयति की संगत का नतीजा है. खुद तो अपना घर बसा नहीं और दूसरों का भी तोड़ने पर आमादा है. खैर, अगर तुम्हें लगता है कि मैं एक लापरवाह पिता और पति हूं तो शौक से जा सकती हो.’’

नूपुर को महसूस हुआ जैसे प्रतीक ने राहत की सांस ली हो.

नूपुर आरना और ओजसी को ले कर तो आ गई पर शुरुआत में नूपुर का उस फ्लैट में बिलकुल मन नहीं लगा. वहां पर चारों बैडरूम में अलगअलग लोग रहते थे.एक बैडरूम में जयति, दूसरे में उर्वशी, एक में नूपुर और एक में सक्षम रहता था.

नूपुर जयति से बोली, ‘‘जयति यह अरेंजमैंट कुछ अजीब है.’’

जयति बोली, ‘‘यार तुम्हें 10 हजार ही तो देने पड़ रहे हैं और यह जगह कितनी अच्छी है.’’

‘‘सक्षम और उर्वशी बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग हैं, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी.’’

जयति नूपुर की बहुत अच्छी दोस्त थी परंतु उस की शामें अकसर अपने बौयफ्रैंड के साथ व्यस्त रहती थीं. उर्वशी सुबह निकल कर रात में ही आती थी. ऐसे में धीरेधीरे सक्षम नूपुर, आरना और ओजसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया.

सक्षम 42 वर्ष का था. पहली पत्नी के साथ उस का अनुभव बेहद खराब था, इसलिए तलाक के 10 वर्ष बाद भी उस ने विवाह नहीं किया था. उसे बच्चे बेहद प्रिय थे. आरना और ओजसी में वह अपने उन अजन्मे बच्चों की छवि देखता था जो उस की बीवी ने अपनी जिद के कारण कोख में ही मार दिए थे.

सक्षम अंकल आरना और ओजसी के लिए हमेशा उन की जिद पूरा करने के लिए तत्पर रहते थे. नूपुर भी धीरेधीरे न चाहते हुए भी सक्षम की तरफ खिंचती गई. जो काम प्रतीक को उन के लिए करने होते थे उन्हें सक्षम कर देता था.

नूपुर और सक्षम के रिश्ते में एकदूसरे के लिए इतना सम्मान था कि चाह कर भी कोई उंगली नहीं उठा सकता था.

एक रात को अचानक नूपुर ने सक्षम को भरी हुई आवाज में बताया कि प्रतीक ने उसके अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए हैं और उस के पास बच्चों की फीस के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं. सक्षम ने उस रात तो नूपुर के अकाउंट में पैसे डाल दिए परंतु अगले दिन उस ने नूपुर को आड़े हाथों ले लिया, ‘‘पति से अलग रहने से नहीं परंतु जिंदगी की डोर अपनी हाथों में लेने पर तुम इंडिपैंडैंट कहलाओगी.’’

सक्षम के साहस देने पर ही नूपुर ने अपना सैलरी अकाउंट अलग खाते में खोल दिया. जिंदगी में थोड़ी असुविधा थी पर सुकून था.

अब सक्षम अकसर शाम को नूपुर और बच्चों के साथ समय बिताने आने लगा था. आरना, ओजसी, नूपुर और सक्षम के वे पल बेहद खूबसूरत होते थे. अपने और नूपुर के निजी पलों में भी सक्षम हमेशा ध्यान रखता था कि उस की किसी भी प्रकार की बात से दोनों बेटियां आहत न हों.

नूपुर के परिवार और ससुराल वालों को नूपुर के अलग रहने का फैसला सम?ा नहीं आ रहा था और वह भी ऐसे अजनबियों के साथ. मगर नूपुर को अब इस जौइंट लिविंग में मजा आने लगा था. जहां पर सक्षम का प्यार, जयति का बिंदासपन और उर्वशी का अपनापन था. माह में एक बार सारे सदस्य मिल कर डिनर बनाते थे और अपनी जिंदगी के खट्टेमीठे तजरबे साझ करते थे.

मगर नूपुर की मम्मी हर रोज नूपुर को फोन कर के आगाह करती कि उस ने जल्दबाजी में गलत फैसला ले लिया है. बच्चों को मां और पिता दोनों की जरूरत होती है.

वहीं नूपुर की सास के शब्दों में नूपुर ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. पति का घर पर होना ही काफी है. देरसवेर प्रतीक को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास अवश्य हो जाता.

फिर एक दिन जब रविवार को नूपुर की मां आईं तो सक्षम को नूपुर के साथ हंसतेबोलते हुए देख कर उन का माथा ठनक गया और जयति के खुलेपन को देख कर उन का खून खौल उठा. वहीं उर्वशी उन्हें बेहद चालाक लगी.

नूपुर को समझते हुए मम्मी बोली, ‘‘बेटा, तुम्हें क्या लगता है तुम्हारा इस तरह से रहना क्या ठीक है?’’

‘‘तुम्हें अपनी बेटियों की कुछ फिक्र है या नहीं,’’ नूपुर ने अपनी मां के सामने जीवन में पहली बार जबान खोली, ‘‘मम्मी, मुझे यहां अपने घर से ज्यादा अपनापन लगता है.’’

अगले हफ्ते नूपुर का पूरा परिवार वहां आया था. नूपुर को सब ऊंचनीच समझ रहे थे. नूपुर जैसे ही टूट कर अपने परिवार के सामने ?ाकने वाली थी, छोटी बेटी ओजसी आगे बढ़ कर बोली, ‘‘नानी, मामा यहां पर सब लोग हमारे अपने हैं और सक्षम अंकल तो हमारे लिए वह करते हैं जो आज तक पापा ने नहीं किया.’’

नूपुर के भाई और मां के अनुसार जब उन का ही सिक्का खोटा है तो प्रतीक को क्या कह सकते हैं और किस मुंह से.

उधर जब सक्षम नाम की सुगबुगाहट प्रतीक के कानों में पड़ी तो उस का पुरुषत्व ललकार उठा. जब प्यार और भावनाओं से नूपुर को अपने काबू में नहीं कर सका तो प्रतीक ने निश्चय कर लिया कि वह अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर जाएगा. नूपुर ने प्रतीक से साफ कह दिया था कि वह उस के साथ नहीं रह सकती है. वह बिना किसी शर्त के उसे डिवोर्स देना चाहती है. मगर प्रतीक का पतिमान इतना आहत हो गया कि उस ने डिवोर्स देने के लिए मना कर दिया था.

इसी बीच उर्वशी का ट्रांसफर नागपुर हो गया था. जयति भी अपनी पसंद के बंधन में बंध गई थी और पास ही में दूसरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई थी. नूपुर को घरपरिवार ने बदचलन औरत करार दिया था. समाज के अनुसार नूपुर अपनी बेटियों को गलत रास्ते पर धकेल रही है.

आज ऐसी ही एक शाम थी जब नूपुर कोर्ट के कागज मिलने पर उदास बैठी थी. उन कागजों में प्रतीक के वकील ने नूपुर के चरित्र की धज्जियां उड़ा रखी थीं. साथ ही साथ यह धमकी भी थी कि वह अपने चालचलन के कारण बेटियों और उन के भविष्य के लिए खतरा है.

नूपुर की जिंदगी एक ऐसे घुमावदार मोड़ पर खड़ी हो गई थी, वहां से आगे उसे किस रास्ते पर चलना है उसे खुद नहीं मालूम था. क्या उन का अब इस तरह से सक्षम के साथ एक फ्लैट में रहना ठीक रहेगा? जबकि अब जयति और उर्वशी नहीं है. बहुत सोचविचार कर नूपुर ने दबी जबान में सक्षम से कहा, ‘‘मैं घर वापस लौटना चाहती हूं. तुम जिंदगी में कोई और साथी तलाश लो. मेरा अपना परिवार, प्रतीक का परिवार और प्रतीक भी कभी भी यह होने नहीं देंगे और बिना शादी के अकेले मेरे और तुम्हारा साथ रहने को क्या कहते हैं यह हम भलीभांति जानते हैं. फिर बात केवल मेरी नहीं मेरी बेटियों की भी है. मेरा फैसला उन के भविष्य को अंधकार के गर्त में डाल सकता है.’’

सक्षम उदास हंसी से बोला, ‘‘तुम और वे लोग ही मेरा परिवार हो. हां, परिवार के कानून की मुहर अब भी प्रतीक के पास ही है. पर मैं तुम्हारे आरना और ओजसी के साथ हमेशा खड़ा रहूंगा. अगर नया साथी ढूंढ़ना होता तो मैं बहुत पहले तुम्हारी जिंदगी से चला गया होता.’’

नूपुर ने वापस आ कर अपने निर्णय से आरना और ओजसी को अवगत कराया. दोनों बेटियों को पास बैठा कर नूपुर बोली, ‘‘बेटी, तुम्हारी मां एक कमजोर औरत है. अपनी खुशी को मैं ने कभी प्राथमिकता नहीं दी थी और इस का नतीजा यह निकला कि मैं अंदर ही अंदर खोखली हो गई हूं. तुम अपने हिसाब से और अपनी खुशी के लिए जिंदगी जीना. आप की खुशी आप को अंदर से हिम्मत प्रदान करती है.’’

आरना बोली, ‘‘यह हमारा घर है जहां पर हम सब साथ रहेंगे.’’

नूपुर बोली, ‘‘मगर पहले जयति और उर्वशी भी थे, अब हम ऐसे रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे?’’

ओजसी बोली, ‘‘उफ मम्मी, अपनी खुशी का कभी तो सोच लिया करो.’’

तभी बगल के कमरे से सक्षम बाहर आया और बोला, ‘‘यह हमारा घर है. देरसवेर हमारे रिश्ते पर समाज और कानून की मुहर भी लग जाएगी.’’

नूपुर हकलाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो सक्षम, हम बिना शादी के कैसे साथ रह सकते हैं?’’

आरना बोली, ‘‘मम्मी, क्या जौइंट फैमिली में सब लोग साथ नहीं रहते हैं?’’

‘‘और आप ही तो कहती थीं कि दूर के रिश्तेदार भी जौइंट फैमिली में आराम से खप जाते हैं. यह भी तो हमारी जौइंट लिविंग है. इस फ्लैट का किराया आधाआधा बांट लेंगे.’’

बीच मे ही सक्षम बोल उठा, ‘‘सुख दोगुना कर लेंगे और दुख आधा कर लेंगे.’’

नूपुर तब भी डरते हुए बोली, ‘‘मगर लोग क्या सोचेंगे?’’

आरना दृढ़ता से बोली, ‘‘मम्मी, लोग कुछ भी सोचे मगर यह तो हमें पता है न कि समान विचारधारा के वयस्क लोग अपनी खुशी के लिए एकसाथ रह सकते है. इस के लिए हमें किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है. यह हमारा लिव इन नहीं बल्कि जौइंट लिविंग है.

New Year Special Story : कितने दूर कितने पास

New Year Special Story : सरकारी सेवा से मुक्त होने में बस, 2 महीने और थे. भविष्य की चिंता अभी से खाए जा रही थी. कैसे गुजारा होगा थोड़ी सी पेंशन में. सेवा से तो मुक्त हो गए परंतु कोई संसार से तो मुक्त नहीं हो गए. बुढ़ापा आ गया था. कोई न कोई बीमारी तो लगी ही रहती है. कहीं चारपाई पकड़नी पड़ गई तो क्या होगा, यह सोच कर ही दिल कांप उठता था. यही कामना थी कि जब संसार से उठें तो चलतेफिरते ही जाएं, खटिया रगड़ते हुए नहीं. सब ने समझाया और हम ने भी अपने अनुभव से समझ लिया था कि पैसा पास हो तो सब से प्रेमभाव और सुखद संबंध बने रहते हैं. इस भावना ने हमें इतना जकड़ लिया था कि पैसा बचाने की खातिर हम ने अपने ऊपर काफी कंजूसी करनी शुरू कर दी. पैसे का सुख चाहे न भोग सकें परंतु मरते दम तक एक मोटी थैली हाथ में अवश्य होनी चाहिए. बेटी का विवाह हो चुका था. वह पति और बच्चों के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी. जैसेजैसे समय निकलता गया हमारा लगाव कुछ कम होता चला गया था. हमारे रिश्तों में मोह तो था परंतु आकर्षण में कमी आ गई थी. कारण यह था कि न अब हम उन्हें अधिक बुला सकते थे और न उन की आशा के अनुसार उन पर खर्च कर सकते थे. पुत्र ने अवसर पाते ही दिल्ली में अपना मकान बना लिया था. इस मकान पर मैं ने भी काफी खर्च किया था.

आशा थी कि अवकाश प्राप्त करने के बाद इसी मकान में आ कर पतिपत्नी रहेंगे. कम से कम रहने की जगह तो हम ने सुरक्षित कर ली थी. एक दिन पत्नी के सीने में दर्द उठा. घर में जितनी दवाइयां थीं सब का इस्तेमाल कर लिया परंतु कुछ आराम न हुआ. सस्ते डाक्टरों से भी इलाज कराया और फिर बाद में पड़ोसियों की सलाह मान कर 1 रुपए की 3 पुडि़या देने वाले होमियोपैथी के डाक्टर की दवा भी ले आए. दर्द में कितनी कमी आई यह कहना तो बड़ा कठिन था परंतु पत्नी की बेचैनी बढ़ गई. एक ही बात कहती थी, ‘‘बेटी को बुला लो. देखने को बड़ा जी चाह रहा है. कुछ दिन रहेगी तो खानेपीने का सहारा भी हो जाएगा. बहू तो नौकरी करती है, वैसे भी न आ पाएगी.’’ ‘‘प्यारी बेटी,’’ मैं ने पत्र लिखा, ‘‘तुम्हारी मां की तबीयत बड़ी खराब चल रही है. चिंता की कोई बात नहीं. पर वह तुम्हें व बच्चों को देखना चाह रही है. हो सके तो तुम सब एक बार आ जाओ. कुछ देखभाल भी हो जाएगी. वैसे अब 2 महीने बाद तो यह घर छोड़ कर दिल्ली जाना ही है. अच्छा है कि तुम अंतिम बार इस घर में आ कर हम लोगों से मिल लो. यह वही घर है जहां तुम ने जन्म लिया, बड़ी हुईं और बाजेगाजे के साथ विदा हुईं…’’ पत्र कुछ अधिक ही भावुक हो गया था.

मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं थी, पर कलम ही तो है. जब चलने लगती है तो रुकती नहीं. इस पत्र का कुछ ऐसा असर हुआ कि बेटी अपने दोनों बच्चों के साथ अगले सप्ताह ही आ गई. दामाद ने 10 दिन बाद आने के लिए कहा था. न जाने क्यों मांबेटी दोनों एकदूसरे के गले मिल कर खूब रोईं. भला रोने की बात क्या थी? यह तो खुशी का अवसर था. मैं अपने नातियों से गपें लगाने लगा. रचना ने कहा, ‘‘बोलो, मां, तुम्हारे लिए क्या बनाऊं? तुम कितनी दुबली हो गई हो,’’ फिर मुझे संबोधित कर बोली, ‘‘पिताजी, बकरे के दोचार पाए रोज ले आया कीजिए. यखनी बना दिया करूंगी. बच्चों को भी बहुत पसंद है. रोज सूप पीते हैं. आप को भी पीना चाहिए,’’ फिर मेरी छाती को देखते हुए बोली, ‘‘क्या हो गया है पिताजी आप को? सारी हड्डियां दिखाई दे रही हैं. ठहरिए, मैं आप को खिलापिला कर खूब मोटा कर के जाऊंगी. और हां, आधा किलो कलेजी- गुर्दा भी ले आइएगा. बच्चे बहुत शौक से खाते हैं.’’ मैं मुसकराने का प्रयत्न कर रहा था, ‘‘कुछ भी तो नहीं हुआ. अरे, इनसान क्या कभी बुड्ढा नहीं होता? कब तक मोटा- ताजा सांड बना रहूंगा? तू तो अपनी मां की चिंता कर.’’ ‘‘मां को तो देख लूंगी, पर आप भी खाने के कम चोर नहीं हैं. आप को क्या चिंता है? लो, मैं तो भूल ही गई. आप तो रोज इस समय एक कप कौफी पीते हैं. बैठिए, मैं अभी कौफी बना कर लाती हूं. बच्चो, तुम भी कौफी पियोगे न?’’ मैं एक असफल विरोध करता रह गया. रचना कहां सुनने वाली थी. दरअसल, मैं ने कौफी पीना अरसे से बंद कर दिया था. यह घर के खर्चे कम करने का एक प्रयास था. कौफी, चीनी और दूध, सब की एकसाथ बचत. पत्नी को पान खाने का शौक था. अब वह बंद कर के 10 पैसे की खैनी की पुडि़या मंगा लेती थी, जो 4 दिन चलती थी. हमें तो आखिर भविष्य को देखना था न.

‘‘अरे, कौफी कहां है, मां?’’ रचना ने आवाज लगा कर पूछा, ‘‘यहां तो दूध भी दिखाई नहीं दे रहा है? लो, फ्रिज भी बंद पड़ा है. क्या खराब हो गया?’’ मां ने दबे स्वर में कहा, ‘‘अब फ्रिज का क्या काम है? कुछ रखने को तो है नहीं. बेकार में बिजली का खर्चा.’’ ‘‘पिताजी, ऐसे नहीं चलेगा,’’ रचना ने झुंझला कर कहा, ‘‘यह कोई रहने का तरीका है? क्या इसीलिए आप ने जिंदगी भर कमाया है? अरे ठाट से रहिए. मैं भी तो सिर उठा कर कह सकूं कि मेरे पिताजी कितनी शान से रहते हैं. ए बिट्टू, जा, नीचे वाली दुकान से दौड़ कर कौफी तो ले आ. हां, पास ही जो मिट्ठन हलवाई की दुकान है, उस से 1 किलो दूध भी ले आना. नानाजी का नाम ले देना, समझा? भाग जल्दी से, मैं पानी रख रही हूं.’’ किट्टू बोला, ‘‘मां, मैं भी जाऊं. फाइव स्टार चाकलेट खानी है.’’ ‘‘जा, तू भी जा, शांति तो हो घर में,’’ रचना ने हंस कर कहा, ‘‘चाकलेट खाने की तो ऐसी आदत पड़ गई है कि बस, पूछो मत. इन की तो नौकरी भी ऐसी है कि मुफ्त देने वालों की कमी नहीं है.’’ मैं मन ही मन गणित बिठा रहा था. 5 रुपए की चाकलेट, 6 रुपए का दूध, 15 रुपए की कौफी, 16 रुपए की आधा किलो कलेजी, ढाई रुपए के 2 पाए…’’ कौफी पी ही रहा था कि रचना का क्रुद्ध स्वर कानों में पड़ा, ‘‘मां, तुम ने घर को क्या कबाड़ बना रखा है. न दालें हैं न सब्जी है, न मसाले हैं. आप लोग खाते क्या हैं? बीमार नहीं होंगे तो क्या होंगे? छि:, मैं भाभी को लिख दूंगी. आप की खूब शिकायत करूंगी. दिल्ली में अगर आप को इस हालत में देखा तो समझ लेना कि भाभी से तो लड़ाई करूंगी ही, आप से भी कभी मिलने नहीं आऊंगी.’

रचना जल्दी से सामान की सूची बनाने लगी. मेरी पत्नी का खाना बनाने को मन नहीं करता था. उसे अपनी बीमारी की चिंता अधिक सताती थी. पासपड़ोस की औरतें भी उलटीसीधी सीख दे जाया करती थीं. मैं ने भी समझौता कर लिया था. जो एक समय बन जाता था वही दोनों समय खा लेते थे. आखिर इनसान जिंदा रहने के लिए ही तो खाता है. अब इस उम्र में चटोरापन किस काम का. यह बात अलग थी कि हमारा खर्च आधा रह गया था. बैंक में पैसे भी बढ़ रहे थे और सूद भी. पत्नी ने धीरे से कहा, ‘‘यह तो पराया समझ कर घर लुटा रही है. सामान तुम ही लाना और मुझे यखनीवखनी कुछ नहीं चाहिए. कलेजी भी कम लाना. अगर बच्चों को खिलाना है तो सीधी तरह से कह देती. लगता है मुझे ही रसोई में लगना पड़ेगा. हमें आगे का देखना है कि अभी का?’’ फिर सिर पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘अभी तो दामाद को भी आना है. उन्हें तो सारा दिन खानेपीने के सिवा कुछ सूझता ही नहीं.’’ ‘‘तुम ने ही तो कहा था बुलाने को.’’ ‘‘कहा था तो क्या तुम मना नहीं कर सकते थे. ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि जो मैं ने कहा वह पत्थर की लकीर हो गई,’’ पत्नी ने उलाहना दिया. ‘‘अब तो भुगतना ही पड़ेगा. अब देर हो गई. कल सुबह बैंक से पैसे निकालने जाना पड़ेगा,’’ मैं ने दुखी हो कर कहा. इतने में रचना आ गई, ‘‘मां, देसी घी कहां है? दाल किस में छौंकूंगी? रोटी पर क्या लगेगा?’’ मां ने ठंडे दिल से कहा, ‘‘डाक्टर ने देसी घी खाने को मना किया है न. चरबी वाली चीजें बंद हैं. तेरे लिए आधा किलो मंगवा दूंगी.’’ मैं ने खोखली हंसी से कहा, ‘‘कोलेस्टेराल बढ़ जाता है न, और रक्तचाप भी.’’ ‘‘भाड़ में गए ऐसे डाक्टर. हड्डी- पसली निकल रही है, सूख कर कांटा हो रहे हैं और कोलेस्टेराल की बात कर रहे हैं. आप अभी 5 किलोग्राम वाले डब्बे का आर्डर कर आइए. मेरे सामने आ जाना चाहिए,’’ रचना ने धमकी दी. मेरे और पत्नी के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, ‘कितना खर्च हो जाएगा इन के रहते. सेवा से अवकाश लेने वाला हूं. कम खर्च में काम चलाना होगा. बेटे के ऊपर भी तो बोझ बन कर नहीं रहना है.’ सुबह ही सुबह रचना दूध वाले से झगड़ा कर रही थी, ‘‘क्यों, पहलवान, मैं क्या चली गई, तुम ने तो दूध देना ही बंद कर दिया.’’ ‘‘बिटिया, हम क्यों दूध बंद करेंगे? मांजी ने ही कहा कि बस, आधा किलो दे जाया करो. चाय के लिए बहुत है. क्या इसी घर में हम ने 4-4 किलो दूध नहीं दिया है?’’ ‘‘देखो, जब तक मैं हूं, 3 किलो दूध रोज चाहिए. बच्चे दोनों समय दूध लेते हैं. जब मैं चली जाऊं तो 2 किलो देना, मां मना करें या पिताजी.

यह मेरा हुक्म है, समझे?’’ ‘‘समझा, बिटिया, हम भी तो कहें, क्यों मांजी और बाबूजी कमजोर हो रहे हैं. यही तो खानेपीने की उम्र है. अभी दूध नहीं पिएंगे तो कब पिएंगे?’’ 18 रुपए का दूध रोज. मैं मन ही मन सोच रहा था कि पत्नी इशारे से दूध वाले को कुछ कहने का असफल प्रयत्न कर रही थी. ‘‘अंडे भी नहीं हैं. न मक्खन न डबल रोटी,’’ रचना चिल्ला रही थी, ‘‘आप लोग बीमार नहीं पड़ेंगे तो क्या होगा. बिट्टू, जा दौड़ कर नीचे से एक दर्जन अंडे ले आ और 500 ग्राम वाली मक्खन की टिकिया, नानाजी का नाम ले देना.’’ ‘‘मां, मैं भी जाऊं,’’ किट्टू बोला, ‘‘टाफी लाऊंगा. तुम्हारे लिए भी ले आऊं न?’’ ‘‘जा बाबा, जा, सिर मत खा,’’ रचना ने हंसते हुए कहा. हाथ दबा कर खर्च करने के चक्कर में बहुत मना करने पर भी पत्नी ने रसोई का काम संभाल लिया. जब दामाद आए तब तो किसी को फुरसत ही कहां. रोज बाजार कुछ न कुछ खरीदने जाना और नहीं तो यों ही घूमने के लिए. रिश्तेदार भी कई थे. कोई मिलने आया तो किसी के यहां मिलने गए. परिणाम यह हुआ कि पत्नी के लिए रसोई लक्ष्मण रेखा बन गई. दामाद की सारी फरमाइशें रचना मां को पहुंचा देती थी, ‘‘सास के हाथ के कबाब तो बस, लाजवाब होते हैं. उफ, पिछली दफा जो कीमापनीर खाया था, आज तक याद है. मुर्गमुसल्लम तो जो मां के हाथ का खाया था अशोक होटल में भी क्या बनेगा.’’ जब तक रचना पति और बच्चों के साथ वापस गई, मेरी पत्नी के सीने का दर्द वापस आ गया था, लेकिन दर्द के बारे में सोचने की फुरसत कहां थी. घर छोड़ कर दिल्ली जाने में 1 महीना रह गया था. कुछ सामान बेचा तो कुछ सहेजा. एक दिन 20-25 बक्सों का कारवां ले कर जब दिल्ली पहुंचे तो चमचमाते मुंह से पुत्र ने स्वागत किया और बहू ने सिर पर औपचारिक रूप से साड़ी का पल्ला खींचते हुए सादर पैर छू कर हमारा आशीर्वाद प्राप्त किया. पोता दादी से चिपक गया तो नन्ही पोती मेरी गोदी में चढ़ गई. सुबह जल्दी उठने की आदत थी. पुत्र का स्वर कानों में पड़ा, ‘‘सुनो, दूध 1 किलो ज्यादा लेना. मां और पिताजी सुबह नाश्ते में दूध लेते हैं.’’ बहू ने उत्तर दिया, ‘‘दूध का बिल बढ़ जाएगा. इतने पैसे कहां से आएंगे? और फिर अकेला दूध थोड़े ही है. अंडे भी आएंगे. मक्खन भी ज्यादा लगेगा…’’ पुत्र ने झुंझला कर कहा, ‘‘ओहो, वह हिसाबकिताब बाद में करना. मांबाप हमारे पास रहने आए हैं. उन्हें ठीक तरह से रखना हमारा कर्तव्य है.’’ ‘‘तो मैं कोई रोक रही हूं? यही तो कह रही हूं कि खर्च बढ़ेगा तो कुछ पैसों का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा. बंधीबंधाई तनख्वाह के अलावा है क्या?’’ ‘‘देखो, समय से सब बंदोबस्त हो जाएगा. अभी तो तुम रोज दूध और अंडों का नाश्ता बना देना.’’ ‘‘ठीक है, बच्चों का दूध आधा कर दूंगी. एक समय ही पी लेंगे. अंडे रोज न बना कर 2-3 दिन में एक बार बना दूंगी.’’

‘‘अब जो ठीक समझो, करो,’’ बेटे ने कहा, ‘‘सेना के एक कप्तान से मैं ने दोस्ती की है. एक दिन बुला कर उसे दावत देनी है.’’ ‘‘वह किस खुशी में?’’ ‘‘अरे, जानती तो हो, आर्मी कैंटीन में सामान सस्ता मिलता है, एक दिन दावत देंगे तो साल भर सामान लाते रहेंगे.’’ ‘‘ठीक तो है, रंजना के यहां तो ढेर लगा है. जब पूछो, कहां से लिया है तो बस, इतरा कर कहती है कि मेजर साहब ने दिलवा दिया है.’’ जब नाश्ता करने बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह दूध मेरे लिए क्यों रख दिया. अब कोई हमारी उम्र दूध पीने की है. लो, बेटा, तुम पी लो,’’ मैं ने अपना आधा प्याला पोते के आधे प्याले में डाल दिया. पत्नी ने कहा, ‘‘यह अंडा तो मुझे अब हजम नहीं होता. बहू, इन बच्चों को ही दे दिया करो. बाबा, डबल रोटी में इतना मक्खन लगा दिया…मैं तो बस, नाम मात्र का लेती हूं.’’ बहू ने कहा, ‘‘मांजी, ऐसे कैसे होगा? बच्चे तो रोज ही खाते हैं. आप जब तक हमारे पास हैं अच्छी तरह खाइए. लीजिए, आप ने भी दूध छोड़ दिया.’’ ‘‘मेरी सोना को दे दो. बच्चों को तो खूब दूध पीना चाहिए.’’ ‘‘हां, बेटा, मैं तो भूल ही गया था. तुम्हारी मां के सीने में दर्द रहता है. काफी दवा की पर जाता ही नहीं. अच्छा होता किसी डाक्टर को दिखा देते. है कोई अच्छा डाक्टर तुम्हारी जानपहचान का?’’ बेटे ने सोच कर उत्तर दिया, ‘‘मेरी जानपहचान का तो कोई है नहीं पर दफ्तर में पता करूंगा. हो सकता है एक्सरे कराना पड़े.’’ बहू ने तुरंत कहा, ‘‘अरे, कहां डाक्टर के चक्कर में पड़ोगे, यहां कोने में सड़क के उस पार घोड़े की नाल बनाने वाला एक लोहार है. बड़ी तारीफ है उस की. उस के पास एक खास दवा है. बड़े से बड़े दर्द ठीक कर दिए हैं उस ने. अरे, तुम्हें तो मालूम है, वही, जिस ने चमनलाल का बरसों पुराना दर्द ठीक किया था.’’

‘‘हां,’’ बेटे ने याद करते हुए कहा, ‘‘ठीक तो है. वह पैसे भी नहीं लेता. बस, कबूतरों को दाना खिलाने का शौक है. सो वही कहता है कि पैसों की जगह आप आधा किलो दाना डाल दो, वही काफी है.’’ मैं ने गहरी सांस ली. पत्नी साड़ी के कोने से मेज पर पड़ा डबल रोटी का टुकड़ा साफ कर रही थी. मेरी मुट्ठी भिंच गईं. मुझे लगा मेरी मुट्ठी में इस समय अनगिनत रुपए हैं. सोचने की बात सिर्फ यह थी कि इन्हें आज खत्म करूं या कल, परसों या कभी नहीं. बेटा दफ्तर जा रहा था. ‘‘सुनो,’’ उस ने बहू से कहा, ‘‘जरा कुछ रुपए दे दो. लौटते हुए गोश्त लेता आऊंगा, और रबड़ी भी. पिताजी को बहुत पसंद है न.’’ बहू ने झिड़क कर कहा, ‘‘अरे, पिताजी कोई भागे जा रहे हैं जो आज ही रबड़ी लानी है? रहा गोश्त, सो पाव आध पाव से तो काम चलेगा नहीं. कम से कम 1 किलो लाना पड़ेगा. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं. अब खाना ही है तो अगले महीने खाना.’’ ‘‘ठीक है,’’ कह कर बेटा चला गया. मुझे एक बार फिर लगा कि मेरी मुट्ठी में बहुत से पैसे हैं. मैं ने मुट्ठी कस रखी है. प्रतीक्षा है सिर्फ इस बात की कि कब अपनी मुट्ठी ढीली करूं. पत्नी ने कराहा. शायद सीने में फिर दर्द उठा था.

New Year 2025 : ऐक्ट्रैस Kritika Kamra ने नए साल पर दिया ये मैसेज, पढ़ें खास इंटरव्यू

सुंदर, विनम्र और हंसमुख अभिनेत्री कृतिका कामरा ने अभिनय के क्षेत्र में एक लंबी पारी तय किया है, इस दौरान उन्होंने कई उतारचढ़ाव का सामना  किया और मंजिल तक पहुंची है. उन्होंने टीवी से कैरियर की शुरुआत की है, लेकिन फिल्मों और वेब सीरीज में भी काफी अच्छा काम कर रही है. उनके हिसाब से जीवन एक चुनौती है, इसे हमेशा स्वीकार करना पड़ता है, तभी आगे बढ़ा जा सकता है. साल 2024 उनके लिए काफी अच्छा रहा, इसे वह एंजौय करने वाली है. अभिनेत्री कृतिका कामरा के पास इसे सेलिब्रैट करने की कई वजह है, उनकी वेब सीरीज ग्यारह ग्यारह को सभी ने बहुत पसंद किया है और कई वेब सीरीज साल 2025 की शुरूआत में रिलीज के लिए तैयार है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की, आइए जानते है, उनकी जर्नी उनकी जुबानी.

रिस्क लेना जरूरी

ये साल काफी उतारचढ़ाव के बीच गुजरा है, लेकिन मेरी वेब सीरीज ग्यारह ग्यारह काफी सफल रही, इसे सबसे अधिक देखा जाने वाला शो बना, क्योंकि ऐसा शो पहले बना नहीं था, मैंने पुलिस वाली का रोल पहले कभी किया नहीं था, ऐसे में मुझे डर था कि किसी नई भूमिका में दर्शक मुझे पसंद करेंगे या नहीं, क्योंकि जब किसी एक भूमिका में दर्शक किसी आर्टिस्ट को बारबार देखते है, तो नई भूमिका को स्वीकार करने में उन्हे समय लगता है. मुझे भी डर लगा था कि ये शो सबको पसंद आएगी या नहीं, लेकिन शो बनने के बाद सबको पसंद आई है. दर्शकों ने मेरे बारें में अच्छीअच्छी कमेंट्स लिखे है. मैंने इससे सीखा है कि लाइफ में रिस्क और एक्सपेरिमेंट करते रहना चाहिए. इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. इस तरह से बीता साल अच्छा रहा है, लेकिन कुछ चीजों में वक्त भी लगा. मसलन मैं दो शो में एक साथ अभिनय कर रही थी, एक में काफी वक्त लगा. इस तरह से ये साल थोड़ा स्लो भी रहा है, लेकिन साल 2025 धमाकेदार शुरुआत होने वाली है, जिसे लेकर मैं बहुत खुश हूं.

नया साल नई सीरीज

कृतिका आगे कहती हैं कि आने वाली वेब सीरीज फौर योर आइस ओन्ली इसकी शूटिंग खत्म हो चुकी है, मटका किंग में अभिनेता विजय वर्मा के साथ अभिनय कर रही हूं, उसकी शूटिंग चल रही है, जो जनवरी में खत्म होगी. इन दोनों शो में मैंने अलगअलग भूमिका निभाई है, मैं बहुत ऐक्साइटेड हूं. मैं एक नई भूमिका से दर्शकों को चकित करने वाली हूं. शो मटका किंग 70 की दशक में शुरू होने वाली बेटिंग को लेकर कहानी है, जहां एक उद्यमी कपास व्यापारी है, जो सम्मान चाहता है. एक बेटिंग का खेल शुरू होता है, जिसे ‘मटका’ कहा जाता है. उसका यह खेल शहर में तूफान मचा देता है. इसमें मैं मुख्य भूमिका में हूं. दूसरी वेब सीरीज स्पाइ थ्रिलर ड्रामा है, वह भी 70 के दशक की कहानी है, इसमें स्पाइ, एक मिशन को पूरा करने के लिए क्याक्या करते है उसे दिखाया गया है.

खुश हूं जर्नी से

अब तक की जर्नी से कृतिका संतुष्ट नहीं, लेकिन खुश जरूर है, क्योंकि उन्होंने टीवी, फिल्म और वेब सीरीज सभी में काम किया है, वह कहती है कि मैं अगर अपने लिए खुद की स्टैन्डर्ड हाई न रखूं, तो कैसे चलेगा. मुझे खुशी इस बात से है कि मैंने सभी प्लेटफौर्म पर काम किया है, फिर चाहे टीवी, फिल्म हो या ओटीटी, मेरे लिए खुश होना जरूरी है, मैंने काफी अलगअलग तरीके का अभिनय किया है, मजा ओटीटी पर अधिक आ रहा है , क्योंकि जिस तरह की लाइकिंग, चुनौती और काम का स्टैन्डर्ड इंटरनेशनल लेवल का ओटीटी पर है, वह पहले नहीं मिला. इन सभी शो को दिखाने वाले इंटरनेशनल कम्पनियां है, इनका फॉर्मेट भी काफी मौडर्न होता है, क्योंकि 250 देशों में करोड़ों दर्शक देखते है, वह बड़ी बात होती है. इसके अलावा ओटीटी पर सबसे बढ़िया फ़ीमेल चरित्र देखने को मिलता है. पिछले कुछ सालों में ऐसे कई महिला प्रधान शो आई है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है और हीरोइनें काफी सफल रही है.

आज की कहानी है रिलेटेबले

कहानियों में आए परिवर्तन के बारें में कृतिका कहती हैं कि पिछले कुछ सालों में कहानियां रीयलिस्टिक हो गई है. मैंने जब से अभिनय को सीरीयसली लिया है, तब से देखा है कि फिल्मों की कहानियों में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मुझे मजा तब अधिक आता है, जब कोई कहानी का विषय सोचने पर मजबूर करें. वैसा काम अब शुरू हुआ हैं, यहां कहानियों के जरिए कुछ बात कहा जा रहा है. आज के दर्शक भी जागरूक हो चुके है, क्योंकि सबके पास एक फोन है, जिससे वे कभी भी अपनी मनपसंद चीजें देख सकते है  और उन्हे एक स्मार्ट चीज देखने की मांग होती है, पुरानी चीज को एक नए पैकेज बना कर परोसने से वह नहीं चलती.

दर्शक भी जिम्मेदार

एक जैसी कहानियों का ओटीटी पर दिखाए जाने को लेकर कृतिका कहती हैं कि मैं जब टीवी पर काम कर रही थी, तो सिर्फ सासबहू वाली या सुपर नैचुरल ड्रामा जैसे नागिन, सांप, बिच्छू, भूत, मक्खी आदि शो चल रही थी, इसमें कोई गलत बात नहीं है, क्योंकि जब एक चीज चल जाती है, तो सभी उसी को फौलो करने लगते है, भेड़ चाल शुरू हो जाती है, वैसा ही फिल्मों के साथ होने लगता है, इस साल सारे एक्शन फिल्में आई. ओटीटी पर क्राइम ड्रामा अधिक आई. असल में सबको प्रौफिट बनाना है, क्योंकि ये आर्ट के अलावा एक बिजनेस इंडस्ट्री भी है, जो चलेगी वही बनेगी. इसलिए इसकी जिम्मेदारी दर्शकों पर भी आती है, वे हर नई कहानी को चांस दे. दर्शकों ने मुंज्या, मडगांव, लापता लेडीस आदि जैसी फिल्मों को भी चांस दिया है, सिर्फ बड़ी फिल्में जैसे जवान, पठान, सिंघम जैसी फिल्मों को ही चांस न दे, सभी को स्वीकारें. तभी इन फिल्मों को भी प्लेटफौर्म मिलेगा.

काम्पिटिशन अधिक

साउथ फिल्म इंडस्ट्री का बौलीवुड पर हावी होने को लेकर कृतिका कहती हैं कि मुझे इस बात से कोई फर्क महसूस नहीं होता, क्योंकि देखा जाय तो ये इंडियन सिनेमा इंडस्ट्री है, जहां पहले टीवी और फिल्म की तुलना होती थी, जिसका असर नहीं पड़ा, लेकिन आज साउथ की फिल्में मैनस्ट्रीम होकर पैसे कमाने लगी है, अब सबका ध्यान जा रहा है, जबकि पहले भी साउथ में फिल्में बनती थी, सब पसंद करते थे. अब सबका ध्यान उधर जा रहा है, क्योंकि अब फिल्में डब होकर सभी जगह पर रिलीज हो रही है, इससे कौमपीटीशन बढ़ा है. मुझे कोई नॉर्थ साउथ डिवाइड समझ नहीं आता, जहां काम अच्छा हो, उसे तालियाँ और पैसे सब मिलने चाहिए. मुझे पर्सनली मलयालम फिल्में बहुत पसंद है. अगर एक जैसे लोग ही रूल करें, तो नया कभी होगा नहीं.

आपको बताते चलें कि धारावाहिक ‘कितनी मोहब्बत है’ से चर्चित होने वाली अभिनेत्री कृतिका कामरा टीवी इंडस्ट्री का एक जाना माना नाम है. टीवी शो के अलावा उसने कई फिक्शन धारावाहिक और रियलिटी शोज भी किये है. बचपन से ही डांस और संगीत की शौक रखने वाली कृतिका को यहाँ तक पहुँचने में उनके पेरेंट्स ने साथ दिया. ऐक्टिंग के अलावा कृतिका चंदेरी साड़ी की एक ब्रांड सिनेबार को भी चलाती है, क्योंकि उनका होमटाउन चंदेरी शहर के पास में है. वह इसे पूरे देश में इसे और इसकी कारीगरी को फैलाना चाहती है. नए साल के लिए उनका सबसे मेसेज है कि नए साल को पूरे जोश के साथ शुरू करें, जिसमें काइन्ड्नेस, प्यार और सकारात्मकता शामिल हो.

RJ Simran Singh : इंस्टाग्राम इंफ्लुन्सर सिमरन सिंह के सुसाइड की खबर से फैंस में शोक की लहर

RJ Simran Singh : साल 2024 खत्म होने की कगार पर है. साल के लास्ट वीक में जहां लोग मस्ती और एंजौय के मूड में सेलिब्रेशन की तैयारियों में बिजी है. वहीं ये साल जातेजाते कुछ ऐसे हादसे दे जाता है. जिसे सुन कर मन दुखी हो जाता है.

हाल ही में रेडियो जौकी और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर सिमरन सिंह का अपने ही घर में पंखे के फंदे पर बौडी लटकी हुई मिली. पुलिस के अनुसार उन्होंने सुसाइड किया है. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया है.

फ्रेंड ने दी सूचना

जम्मू के नानक नगर की रहने वाली 26 वर्षीय आरजे सिमरन का गुरुग्राम के सेक्टर 47 की कोठी नंबर 58 में रेंट के फ्लैट में पंखे से लटकता शव पाया गया. सिमरन दो साल से गुरुग्राम में अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ रह रही थी. बुधवार रात वह अपने कमरे में मृत पाई गईं. एक पुलिस औफिसर ने बताया कि उन्हें बुधवार रात लगभग साढ़े नौ बजे आरजे सिमरन सिंह के एक दोस्त से इंफौर्मेशन मिली, जो उसी घर में रहता था. हालांकि मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है.

आखिरी इंस्टाग्राम पोस्ट

सोशल मीडिया पर काफी फेमस सिमरन सिंह के इंस्टाग्राम पर करीब 6.82 लाख फौलोअर्स हैं. पुलिस जांच में पता चला है कि सिमरन ने 13 दिसंबर को इंस्टाग्राम पर लास्ट एक रील पोस्ट की थी. सुसाइड से 13 दिन पहले की लास्ट पोस्ट में उन्होंने समुद्र किनारे पर डांस करते हुए वीडियो डाला था. इसमें लिखा था- ‘अंतहीन खिलखिलाहट और अपने गाउन के साथ समुद्र तट पर बस एक लड़की.’ सिमरन अपने फैंस के साथ ऐसे फनी रील्स साझा करती थीं, जो उनके फैंस को खुश कर देती थी.

असामयिक मृत्यु पर दुख

रेडियो जौकी सिमरन की अचानक मृत्यु पर उनके फैंस को बहुत दुख पहुंचा है. सभी ने सोशल मीडिया पर दुख जाहिर किया है फैंस के अलावा जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दुख जाहिर किया है.
एक बयान में उन्होंने, उनकी फैमिली और फैंस के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की. जम्मू-कश्मीर नेशनल कौन्फ्रेंस के एक संयुक्त बयान में कहा गया कि सिमरन की आवाज और आकर्षण जम्मू-कश्मीर की भावना से मेल खाता था. हमारे क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. सोशल मीडिया पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. पुलिस ने सिमरन के शव को उनकी फैमिली को सौंप दिया है. पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है.

जम्मू की धड़कन

सिमरन के फैंस उन्हें “जम्मू की धड़कन” कहकर बुलाते थे. सिमरन सिंह एक फेमस रेडियो स्टेशन में RJ थीं, लेकिन बाद में उन्होंने वहां से अपनी जौब छोड़ कर फ्रीलांसिंग शुरू कर दी थीं. सिमरन का एक यूट्यूब चैनल भी है. जिसके काफी फौलोअर्स है. वे अक्सर अपनी फोटोज और वीडियोज इंस्टाग्राम पर शेयर करती रहती थीं. जिसे उनके फैंस काफी पसंद करते थे .

सुसाइड की वजह

रिपोर्ट के अनुसार सिमरन ने खुद को अंदर बंद कर लिया है और दरवाजा नहीं खोल रही है. जब पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची और किसी तरह उसके कमरे का दरवाजा खोला तो सामने सिमरन का शव फंदे से लटका हुआ था. पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर मोर्चरी भेज दिया. उनकी फैमिली को सूचित किया गया. परिजनों का कहना था कि पिछले कुछ समय से वह किसी बात को लेकर परेशान थी.

नई लाइफस्टाइल का नए साल में करें स्वागत, लें ऐक्सपर्ट की सलाह

नए साल की खुशियां हर किसी के लिए उमंग भरा होता है, ऐसे में इसकी सेलिब्रेशन भी अलगअलग तरीके से किया जाता है. मुंबई और आसपास के सभी क्षेत्रों में इन दिनों पार्टीज और आउट्डोर का दौर चल रहा है, जिसमें यूथ की भागीदारी सबसे अधिक है. नया साल 2025, नयी आशा, उमंग, नए आरंभ के साथ शुरू होने वाला है. इसमें युवाओं की जिंदगी के कई लक्ष्य होते हैं, जिसमें वे खुद को फिट रखने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं.

नयी डेडलाइन्स, नए काम और नई लाइफस्टाइल में नए बदलाव तय करने का यही सबसे सही अवसर उनके लिए होता है, ऐसे में कुछ तनाव भी उनकी जिंदगी में आ जाते हैं, मसलन पढ़ाई, जौब का प्रेशर, प्रोमोशन की चिंता, समाज की उम्मीदें आदि. नए साल को नई मानसिकता और नई स्टाइल के साथ मनाने की सलाह नवीं मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के कंसल्टेंट, साइकियाट्री, डा पार्थ नागदा ने दिया है. उनका कहना है कि कुछ आसान और प्रैक्टिकल सुझाव के साथ नए साल के उमंग को पूरे साल बनाये रखा जा सकता है, जो इस प्रकार है.

मानसिक स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता

मानसिक स्वास्थ्य ही आपकी पूरी खुशहाली की आधारशिला है. युवाओं को याद रखना चाहिए कि किसी भी समस्या से परेशान होने पर अपने कजिन्स, भरोसेमंद दोस्त, परिवार के सदस्य या मनोचिकित्सक से बात करने से कभी न हिचकिचाए. हर शाम को अपने जीवन की 3 ऐसी चीजें नोट करें, जिनके लिए आप आभारी हैं. मानसिक स्वास्थ्य की गाइडेंस के लिए हेडस्पेस, कैलम, ब्लैक लोटस जैसे ऐप का इस्तेमाल किया जा सकता है.

रीयलिस्टिक लक्ष्य करें तय

नए साल के संकल्प पूरे न हो पाने का सबसे आम कारण यह है कि लक्ष्य बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी या अस्पष्ट होते हैं, जो फ्रैंड्स या पीयर प्रेशर की वजह से लिए जाते हैं. परफैक्शन का लक्ष्य न रखें, सरल, पूरा करने जैसा लक्ष्य तय करें, जो स्पेसिफिक हो, मसलन मैं फिट या स्वस्थ रहना चाहता हूं के बजाय, एक स्पेसिफिक लक्ष्य, जो सरल तरीके से होगा, मैं सप्ताह में 3 बार हर दिन 20 मिनट वर्कआउट करूंगा, हर महीने यह अवधि बढ़ाऊंगा जैसे संकल्प को शामिल करें. आपके लक्ष्यों का फ्रेमवर्क विशिष्ट, पूरा करने योग्य, प्रासंगिक और समयबद्ध होना चाहिए, ताकि तनाव कम हो. खुद को प्रेरित के करने के लिए अपनी छोटी-छोटी जीत का जश्न अवश्य मनाए. जैसे-जैसे आप साल भर आगे बढ़ेंगे, लक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करते रहें और उससे खुद को एडजस्ट करते रहे.

अपनाएं शारीरिक गतिविधियां  

शारीरिक व्यायाम तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होता है. जैसे चलना, दौड़ना, जौगिंग, पावर योगा, डांस क्लास जैसे आसान प्रोसेस, एंडोर्फिन यानि शरीर द्वारा स्रावित रसायन, जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार करते हैं. इसके लिए कोई ऐसी गतिविधि खोजें, जो आपको पसंद हो और वीकेंड पर घर के बाहर निकल कर, खुले में गतिविधियों का आनंद लें. इन्स्पायर्ड रहने के लिए किसी स्थानीय फिटनेस क्लब, खेल टीम या क्लासेस में शामिल होना जरूरी होता है. पढ़ाई या काम में छोटेछोटे ब्रेक लें और आसान स्ट्रेचिंग करें या तेज चलें.

रिश्तों की मजबूती पर दें ध्यान

तनाव कम करने में रिश्ते मज़बूत और सहायक होते हैं, जो तनाव कम करने के साथसाथ खुशी को आसानी से बढ़ाते है. यही वजह है कि एक एमएनसी में काम करने वाली सुमन हमेशा किसी समस्या का समाधान अपने भाई से लेती है. इसके अलावा खुद को सकारात्मक लोगों के साथ हमेशा रखने की कोशिश करें, इससे आपको भावनात्मक समर्थन और प्रोत्साहन अधिक मिल सकता है. दोस्तों और परिवार के साथ मिलते-जुलते रहें, अगर परिवार दूर है, तो कम से कम वर्चुअली जरूर मिलें, उनकी बातों को अहमियत दें, ओवर कमिटमेंट से बचने के लिए ना कहना भी सीखें.

स्क्रीन टाइम को करें सीमित

सोशल मीडिया पर रहना, बहुत अधिक समय तक स्क्रीन टाइम से आपकी  जिंदगी बोरिंग हो जाती है, खासकर क्यूरेटेड सोशल मीडिया पोस्ट्स के साथ खुद की तुलना आपके आत्मसम्मान को कम कर सकता है. इतना ही नहीं अधिक स्क्रीन टाइम अन्य गतिविधियों के लिए भी समय को कम कर देता है. इसलिए सोशल मीडिया चेक करने के लिए विशिष्ट समय तय करें और सोने से 1 घंटे पहले फोन को दूर रखें. स्क्रीन टाइम के बजाय ड्राइंग, पेंटिंग, किताबें, मैगजीन पढ़ना, संगीत आदि जैसी गतिविधियों को अपने जीवन में शामिल करें.

अपनाएं खाने की स्वस्थ आदतें

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भोजन से प्राप्त पोषण बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अनाज, फल और सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार लें.  2 से 3 दिनों की मील की प्लानिंग पहले से ही करके रखें, ताकि अंतिम समय पर भागादौड़ी से बचा जा सकें. खाने में अच्छी सामग्री का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसे सुनिश्चित करने के लिए घर पर ही खाना पकाएं. बहुत अधिक कैफीन और शक्कर मिलाए गए स्नैक्स आपकी एनर्जी को कम करते हैं, इनसे बचें. मंचिंग के लिए स्नैकिंग के स्वस्थ विकल्प को ही चुने.

अपने शौक और जुनून को पीछे न छोड़ें

अपने आपको उन गतिविधियों में व्यस्त रखें, जो आपको पसंद हैं, इससे जिंदगी के उद्देश्य और खुशी दोनों महसूस हो सकती है. पेंटिंग, ड्राइंग, डांसिंग, स्केचिंग, साइकिल चलाना, खाना बनाना, बेकिंग, बागवानी, नई भाषा सीखना, संगीत वाद्ययंत्र सीखना आदि से खुशी और संतुष्टि सब मिल सकती है और तनाव भी कम होता है. अपनी हौबीज के लिए सप्ताह में कम से कम 1 घंटा अवश्य निकालें. आजकल औनलाइन भी कई सुविधाएं हैं, जिसमें क्लब या औनलाइन कम्युनिटी में शामिल होकर आप एक ही रुचि वाले, अलगअलग बैकग्राउंड के कई लोगों से जुड़ सकते हैं. खुद की पसंद जानने के लिए विभिन्न प्रकार के शौक के साथ एक्सपेरिमेंट करते रहे.

इस प्रकार डौक्टर आगे कहते हैं कि छोटे और लगातार प्रयास से मिली उपलब्धि, लंबे समय तक चलने वाले परिणाम दे सकते हैं, शौर्टकट जीवन में कुछ भी नहीं होता. विचारों में हमेशा सकारात्मक सोच रखें और आने वाले साल को स्वस्थ लाइफस्टाइल के साथ सेलिब्रेट करें.

नरेंद्र मोदी और प्रियंका चोपड़ा से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं ऐक्ट्रैस Shraddha Kapoor के…

Shraddha Kapoor : आजकल स्टार की शोहरत को उसके सोशल मीडिया फौलोअर्स के आधार पर आंका जाता है. जिसके जितने ज्यादा फौलोअर्स हैं वह पूरी दुनिया में उतना ही ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है. सोशल मीडिया पर इंस्टाग्राम इस मामले में सबसे आगे है क्योंकि इंस्टाग्राम पर जितने ज्यादा फौलोअर्स होते हैं सेलिब्रिटी के, वह उतना ही ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है.

दुनिया में कई ऐसे सितारे हैं जिनके करोड़ों में फैंस हैं. लेकिन भारत में खास तौर पर पांच ऐसे सेलिब्रिटी हैं जिन्हें पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फौलो किया जाता है. इसमें पहला नाम आता है क्रिकेटर विराट कोहली का जिनके 270 मिलियन फौलोअर्स पूरी दुनिया में है. विराट कोहली जो सिर्फ क्रिकेट में ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि वह सोशल मीडिया विज्ञापन और टीवी शोज में भी छाए रहते हैं. दूसरे नंबर पर आती है अभिनेत्री श्रद्धा कपूर जिनके 94.3 मिलियन फौलोअर्स पूरी दुनिया में है.

श्रद्धा कपूर उन हीरोइनों में से है जिन्होंने किसी ग्रुप का हिस्सा बनने के बजाय अपने अकेले दम पर फिल्मों में पहचान बनाई है. तीसरे नंबर पर नाम आता है प्रियंका चोपड़ा का जिनके 92.6 मिलियन फौलोअर्स है. प्रियंका चोपड़ा बतौर एक्ट्रेस और गायिका देश और विदेश में प्रसिद्ध है. चौथा नाम आता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिनके पूरी दुनिया में 92.1 फौलोअर्स है. पांचवा नाम आता है आलिया भट्ट का जिन्होंने छोटी उम्र में बड़ा नाम कमा लिया है और उनके पूरी दुनिया में 86 मिलीयन फौलोअर्स हैं.

इन आंकड़ो के हिसाब से श्रद्धा कपूर और विराट कोहली ने नाम और शोहरत के नाम पर बाजी मार ली है. जब कि श्रद्धा कपूर बहुत ज्यादा फिल्में नहीं करती लेकिन बावजूद इसके वह पूरी दुनिया में ज्यादा फौलोअर्स के कारण फेमस हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें