Stories : खौफ – क्या था स्कूल टीचर अवनि और प्रिंसिपल मि. दास के रिश्ते का सच

Stories : प्रिंसिपल दास की नजरें आजकल अक्सर ही अवनि पर टिकी रहती थीं. अवनि स्कूल में नई आई थी और दूसरे टीचर्स से काफी अलग थी. लंबी, छरहरी, गोरी, घुंघराले बालों और आत्मविश्वास से भरपूर चाल वाली अवनि की उम्र 30- 32 साल से अधिक की नहीं थी. उधर 48 साल की उम्र में भी मिस्टर दास अकेले थे. बीवी का 10 साल पहले देहांत हो गया था. तब से वे स्कूल के कामों में खुद को व्यस्त रखते थे. मगर जब से स्कूल में टीचर के रूप में अवनि आई है उन के दिल में हलचल मची हुई है. वैसे अवनि विवाहिता है पर कहते हैं न कि दिल पर किसी का जोर नहीं चलता. प्रिंसिपल दास का दिल भी अवनि को देख बेकाबू रहता था.

” अवनि बैठो,” प्रिंसिपल दास ने अवनि को अपने केबिन में बुलाया था.

उन की नजरें अवनि के बालों में लगे गुलाब पर टिकी हुई थीं. अवनि के बालों में रोज एक छोटा सा गुलाब लगा होता था जो अलगअलग रंग का होता था. प्रिंसिपल दास ने आज पूछ ही लिया,” आप के बालों में रोज गुलाब कौन लगाता है?”

“कोई भी लगाता हो सर वह महत्वपूर्ण नहीं. महत्वपूर्ण यह है कि आप की नजरें मेरे गुलाब पर रहती हैं. जरा अपनी मंशा तो जाहिर कीजिए,”
शरारत से मुस्कुराते हुए अवनि ने पूछा तो प्रिंसिपल दास झेंप गए.

हकलाते हुए बोले,” नहीं ऐसा नहीं. दरअसल मेरी नजरें तो… आप पर ही रहती हैं.”

अवनि ने अचरज से प्रिंसिपल दास की तरफ देखा फिर मीठी मुस्कान के साथ बोली,” यह बात तो मुझे पता थी जनाब बस आप के मुंह से सुनना चाहती थी. वैसे मानना पड़ेगा आप हैं काफी दिलचस्प.”

“थैंक्स,” अवनि के कमेंट पर प्रिंसिपल दास थोड़े शरमा गए थे.

पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोले,” आप के लिए क्या मंगाऊं चाय या कॉफी?”

“नहीं नहीं पानी ही ठीक है. आज तो आप की बातों ने ही चायकॉफ़ी का सारा काम कर दिया,” कहते हुए अवनि हंस पड़ी.

ऐसी ही दोचार छोटीमोटी मुलाकातों के बाद आखिर प्रिंसिपल दास ने एक दिन हिम्मत कर के कह ही दिया,” आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. वैसे मैं जानता हूं एक विवाहित स्त्री से मेरा ऐसी बातें कहना उचित नहीं पर बस एक बार कह देना चाहता था.”

“मिस्टर दास हर बात जुबां से कहनी जरूरी तो नहीं होती. वैसे भी आप की नजरें यह बात कितनी ही दफा कह चुकी हैं.”

“तो क्या आप भी नजरों की भाषा पढ़ लेती हैं?”

“बिल्कुल. मैं हर भाषा पढ़ लेती हूं.”

“आप के पति भी आप से बहुत प्यार करते होंगे न,” प्रिंसिपल ने उस के चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए पूछा.

“देखिए मैं यह नहीं कहूंगी कि वह प्यार नहीं करते. प्यार तो करते हैं पर बहुत बोरिंग इंसान हैं. न कहीं घूमने जाना, न रोमांटिक बातें करना और न हंसनाखिलखिलाना. वैरी बोरिंग. घर में पति के अलावा केवल सास हैं जो बीमार हैं. ससुर हैं नहीं. पूरे दिन घर में बोर हो जाती थी इसलिए स्कूल जॉइन कर लिया. मुझे घूमनाफिरना, दिलचस्प बातें करना, दुनिया की खुशियों को अपनी बाहों में समेट लेना यह सब बहुत पसंद है. आप जैसे लोग भी पसंद हैं जिन के अंदर कुछ अट्रैक्शन हो. मेरे पति में कोई अट्रैक्शन नहीं है.”

प्रिंसिपल दास को अवनि की बातें सुन कर गुदगुदी हो रही थी. अवनि जैसी महिला उन्हें अट्रैक्टिव कह रही थी और क्या चाहिए था. उन्हें दिल कर रहा था अपनी महबूबा यानी अवनि को बाहों में भर लें पर कैसे? कोई पृष्ठभूमि तो बनानी पड़ेगी.

मिस्टर दास ने इस का भी उपाय निकाल लिया.

“अवनि क्यों न आप की क्लास के बच्चों को ले कर हम पिकनिक पर चलें. स्पोर्ट्स डे के दौरान आप की क्लास के बच्चों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी. उन के रिजल्ट भी काफी अच्छे आए हैं.”

“ग्रेट आइडिया सर. बताइए न कब चलना है और कहां जाना है?” खुश हो कर अवनि ने कहा.

अवनि क्लास 7 की क्लास टीचर थी. अगले संडे ही कक्षा 7 के बच्चों को शहर के सब से खूबसूरत पार्क में ले जाया गया. पूरे दिन बच्चे एक तरफ खेलते रहे और पार्क के दूसरे कोने में मिस्टर दास अवनि के साथ रोमांस की पींगे बढ़ाने में व्यस्त रहे.

अब तो अक्सर बहाने ढूंढे जाने लगे. प्रिंसिपल और अवनि कभी कोई मीटिंग अटैंड करने बाहर निकल जाते तो कभी किसी सेलिब्रेशन के नाम पर, कभी स्कूल के दूसरे बच्चे और टीचर की शामिल होते तो कभी दोनों अकेले ही जाने का प्रोग्राम बना लेते. प्रिंसिपल को हर समय अवनि का साथ पसंद था तो अवनि को इस बहाने घूमनाफिरना, खानापीना और मस्ती मारना. दोनों ही एकदूसरे की इच्छा पूरी कर अपना मतलब निकाल रहे थे. ऐसे ही वक्त गुजरता रहा. उन का यह अवैध रिश्ता वैध रास्तों से आगे बढ़ता रहा.

अब तो अवनि अक्सर अपने हाथ का बना खाना और पकवान आदि प्रिंसिपल के लिए ले कर आती. सब की नजरें बचा कर दोनों एकदूसरे में खो जाते. पर कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. धीरेधीरे स्टाफ रूम में दूसरे टीचर इन के रिश्ते पर कानाफूसी करने लगे. मगर अवनि इन बातों के लिए तैयार थी. वह बड़ी कुशलता से इन बातों को अफवाह बता कर आगे बढ़ जाती.

एक दिन अवनि स्कूल आई तो उसे खबर मिली कि साधारण टीचर के रूप में हाल ही में आई मिस श्वेता गुलाटी को प्रमोशन दे कर क्लास 10th की क्लास टीचर बना दिया गया है. इस बात से हर कोई अचंभित था. स्कूल के सब से सीनियर क्लास की क्लास टीचर बनना और वह भी इतने कम दिनों में, किसी को भी सहजता से कुबूल नहीं हो रहा था. अवनि तो बौखला ही गई.

वह पहले से ही यह बात गौर कर रही थी कि प्रिंसिपल दास आजकल श्वेता गुलाटी पर काफी मेहरबान रहने लगे हैं. 20 साल की श्वेता काफी खूबसूरत थी जैसे अभीअभी किसी कमसिन कली ने पंखुड़ियां खोली हों. वह जब इंग्लिश में गिटिरपिटिर करती तो दूसरे टीचर इनफीरियरिटी कंपलेक्स से ग्रस्त हो जाते. उस पर श्वेता के कपड़े भी काफी बोल्ड होते. कभी ऑफशोल्डर्ड ड्रेस तो कभी स्लीवलैस, कभी बैकलेस तो कभी शौर्ट स्कर्ट. वैसे तो उस की अदाओं के दीवाने स्कूल के ज्यादातर पुरुष थे मगर सब से ज्यादा पावरफुल प्रिंसिपल दास ही थे. सो श्वेता उन के केबिन के आसपास मंडराने लगी थी.

अवनि गुस्से में आगबबूला हो कर प्रिंसिपल के केबिन में पहुंची पर वे वहां नहीं थे. पूछने पर पता चला कि वे मिस गुलाटी के साथ लाइब्रेरी में हैं. अवनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने बैग उठाया और बिना किसी को इन्फॉर्म किए घर चली आई. बाद में उस के मोबाइल पर प्रिंसिपल का फोन आया तो अवनि ने फोन उठाया ही नहीं.

अगले दिन भी वह स्कूल नहीं पहुंची तो प्रिंसिपल ने उसे मैसेज किया,’ मैं तुम्हारे घर के सामने कार ले कर पहुँच रहा हूं. मुझ से नाराज हो तो भी एक बार हमें बात करनी चाहिए. आज हम बाहर ही लंच करेंगे. मैं 20 -25 मिनट में पहुंच जाऊँगा, तैयार रहना. ‘

अवनि तैयार हो कर बाहर निकली. तब तक प्रिंसिपल की कार पहुंच चुकी थी. वह कार में पीछे जा कर बैठ गई. दोनों शहर से दूर एक रेस्टोरेंट पहुंचे. कोने की एक खाली सीट पर बैठते हुए प्रिंसिपल ने बात शुरू की,” अब आप कुछ बताएंगी इस नाराज़गी की वजह क्या है?”

“वजह भी बतानी पड़ेगी? आप इतने नादान तो नहीं.”

“ओके बाबा मैं ने श्वेता को प्रमोशन दी इसी बात पर नाराज़ हो न?” प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी.

“मैं जान सकती हूं उस में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं जो मुझ में नहीं?” गुस्से में अवनि ने कहा.

“ऐसा कुछ नहीं है डार्लिंग…..मैं… ”

“डोंट टेल मी डार्लिंग. अब तो नई डार्लिंग मिल गई है जनाब को.”

“अरे ऐसी बात नहीं अवनि. ऐसा क्यों कह रही हो?”

“सच ही कह रही हूं. जरूर उस ने खुश कर दिया होगा आप को. तभी तो इतने कम समय में…, ” अवनि ने सीधा इल्जाम लगा दिया था.

“जुबान संभाल कर बात करो अवनि. मैं ऐसा नहीं कि हर किसी को इसी नजर से देखूं. खबरदार जो ऐसी बातें कीं. मैं प्रिंसिपल हूं, मेरे पास ऑथोरिटी है. जो मुझे काबिल लगेगा उसे प्रमोशन दूंगा. इस में तुम्हें बीच में आने का कोई हक नहीं.” प्रिंसिपल ने भी तेवर में कहा.

“हक तो वैसे भी कुछ डिसाइड नहीं हुए हैं मेरे. अब बता देना कि मैं कहां फेंक दी जाऊंगी? अब मेरी जरुरत तो रही नहीं आप को ”

“शट अप अवनि कैसी बातें कर रही हो? ”

“बातें ही नहीं काम भी करूंगी. आप खुद को सीनियर मोस्ट मत समझो. आप के ऊपर भी मैनेजमेंट है. मैं मैनेजमेंट से आप की शिकायत करूंगी.”

“अच्छा तो इतनी सी बात के लिए तुम मुझे धमकी दे रही हो? अवनि मेरे प्यार का यही बदला दोगी? ठीक है मैं भी देख लूंगा. तुम्हारे भी तो अमीर पति हैं न जिन्हें धोखा दे रही हो. मेरे पास भी बहुत से सबूत हैं अवनि जिन्हें तुम्हारे पति को दिखा दूं तो अभी हाथ में तलाक के कागजात मिल जाएंगे,” प्रिंसिपल ने धमकी दी.

“तो मिस्टर दास आप भी सावधान रहना. मेरे साथ आप की बहुत सी तस्वीरें, मैसेज और चैटिंग हैं जिन्हें मैनेजमेंट को दिखा कर अभी आप को नौकरी से निकलवा सकती हूं. आप को लूज करेक्टर साबित कर इज्जत पानी में मिला सकती हूं. पर मैं ऐसा करूंगी नहीं. मैं ने भी प्यार किया है आप को. भले ही आज कोई और पसंद आ गई हो.”

“ऐसा नहीं है अवनि. श्वेता पसंद नहीं आई बल्कि मेरे छोटे भाई की फ्रेंड है और फिर काबिल भी है. नॉलेज अच्छी है उस की. अगर तुम्हें बुरा लगा तो सॉरी पर मेरा मकसद तुम्हें हर्ट करना नहीं था,” प्रिंसिपल की आवाज नर्म पड़ गई थी.

“इट्स ओके सर. शायद मैं ने भी कुछ ज्यादा ही कह दिया आप को,”

अवनि ने भी झगड़ा बढ़ाना उचित नहीं समझा. झगड़ा बढ़ता इस से पहले ही दोनों ने पैचअप कर लिया. दोनों ही जानते थे कि उन के हाथ में एकदूसरे की कमजोर कड़ी है. नुकसान दोनों का ही होना था. बात आई गई हो गई. दोनों फिर से एकदूसरे के रोमांस में डूबते चले गए.

मगर इस बार दोनों की ही तरफ से सावधानी बरती जा रही थी. मिल कर तस्वीरें और सेल्फी लेने की परंपरा बंद कर दी गई. दोनों घूमने भी जाते तो साथ में तस्वीरें कम से कम लेते. चैटिंग के बजाय व्हाट्सएप कॉल करते और मैसेज करना भी बंद कर दिया गया. दोनों को ही डर था कि सामने वाला कभी भी उस की पोल पट्टी खोल कर उसे नंगा कर सकता है. उन के बीच पतिपत्नी का रिश्ता तो था नहीं जो हक के साथ रोमांस करें. यहां रोमांस भी छिपछिप कर करना था और एकदूसरे पर कोई हक भी नहीं था.

अवनि ने अपने मोबाइल ‘में से वे सारी तसवीरें निकाल कर लैपटॉप में एक जगह इकट्ठी कर लीं जिन तस्वीरों में दोनों एकदूसरे के बहुत करीब नजर आ रहे थे. यही नहीं सारी चैटिंग और मैसेज भी एक जगह स्टोर कर के रख लिए. वह कभी भी मौके पर चौका मारने के लिए तैयार थी. उसे पता था कि प्रिंसिपल भी ऐसा ही कुछ कर सकता है. इसलिए वह इस रिश्ते को खत्म कर उस की नाराजगी भी बढ़ाना नहीं चाहती थी.

अब उन के बीच जो रोमांस था उस में मजा तो था पर एकदूसरे से ही खौफ भी था. प्यार के साथ डर की यह भावना दोनों के लिए ही नई थी. मगर अब यही खौफ उन की जिंदगी का हिस्सा बन चूका था. दोनों ही एकदूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते थे पर दोनों के दिमाग का एक हिस्सा समझ रहा था कि एक शख्स मेरी तबाही की वजह बन सकता है.

Kofta Recipe : घर पर बनाएं टेस्टी मटर कोफ्ता

Kofta Recipe : कोफ्ता हर किसी को पसंद आता है, लेकिन लोगों को लगता है कि मटर कोफ्ता बनाना मुश्किल है. आज हम आपको टेस्टी मटर कोफ्ता की आसान रेसिपी बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को लंच या डिनर में खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– मटर के दाने (1 कप)

– पनीर (1/4 कप कद्दूकस किया)

– हरी मिर्चें (1-2)

– टमाटर (2 कटे हुए)

– 1 प्याज (कटा हुआ)

– 1 लालमिर्च साबूत

– 3 से 4 काजू भुने

– 1 टुकड़ा अदरक ( कटा हुआ)

– 1 बड़ा चम्मच (मलाई)

– तेल (तलने के लिए)

– नमक (स्वादानुसार)

– हल्दी (1/4 छोटा चम्मच)

– धनिया पाउडर (1 छोटा चम्मच)

– जीरा पाउडर (1/4 छोटा चम्मच)

– गरममसाला (1/4 छोटा चम्मच)

– कौर्न पाउडर (1 बड़ा चम्मच)

बनाने का तरीका

– मटर और हरीमिर्च एकसाथ मिक्सी में पीस लें.

– इस मिश्रण में पनीर, कौर्न पाउडर और नमक मिला कर छोटीछोटी बौल्स तैयार करें व गरम तेल में तल कर रख लें.

– एक पैन में घी गरम कर प्याज, अदरक, काजू, टमाटर, लालमिर्च व मसाले डाल कर भूनें.

– तैयार मिश्रण को मिक्सी में पीस कर पेस्ट बना लें.

– पेस्ट को कड़ाही में डालें और जरूरतानुसार पानी व नमक मिलाएं.

– पहले से तैयार कोफ्ते भी इस में मिलाएं और 2 मिनट तक धीमी आंच पर ढक कर पकाएं.

– अब क्रीम से फिनिश कर परोसें.

क्या Pregnancy में ज्यादा यूज कर रही हैं स्मार्टफोन, तो जान लें ये जरूरी बातें

Pregnancy  : 1 माह की गर्भवती स्वरा जब अपनी गाइनोकोलौजिस्ट से मंथली चैकअप कराने गई तो प्राइमरी चैकअप करने के बाद डाक्टर ने कहा,”स्वरा, इट इज योर फर्स्ट प्रैगनैंसी, इसलिए मैं तुम्हें वार्न करना चाहूंगी कि जितना हो सके मोबाइल का यूज कम से कम करने की कोशिश करो ताकि तुम खुद को और बच्चे को हैल्दी रख सको.”

दिनभर मोबाइल में स्क्रौलिंग करने वाली स्वरा यह सुन कर थोड़ी परेशान तो हुई पर अपने बच्चे के लिए उस ने डाक्टर की सलाह के अनुसार ही मोबाइल को यूज करना सुनिश्चित किया.

सोशल मीडिया के इस युग में जहां आम लोगों को ही मोबाइल का कम से कम प्रयोग करने की सलाह दी जाती है वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए यह सलाह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि गर्भवती महिलाएं अपने साथसाथ शिशु को भी अपने गर्भ में पाल रही होती हैं.

मोबाइल का अधिक उपयोग नींद और सेहत दोनों पर ही नकारात्मक प्रभाव डालता है. इसलिए डाक्टर्स आज गर्भवती महिलाओं को केवल बहुत जरूरी होने पर ही मोबाइल प्रयोग करने की सलाह देते हैं. मोबाइल, लैपटॉप और टैब से निकलने वाली इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित करती हैं. यदि आप भी प्रैगनैंट हैं तो मोबाइल प्रयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :

● डाक्टरों के अनुसार मोबाइल स्क्रीन का अधिक देर तक प्रयोग करने से उस से निकलने वाली इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रेज के प्रभाव से जन्म के बाद बच्चे में अटेंशन डेफिसिट हाइपर ऐक्टिविटी डिसऔर्डर(एडीएचडी) या हाइपर ऐक्टिविटी जैसी समस्यायों के होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए फोन का प्रयोग पूरे दिन में 1 घंटे से अधिक न करें.

● आजकल अधिकांश महिलाएं बाथरूम में भी अपने साथ मोबाइल ले कर जाती हैं पर बाथरूम में अनेक बैक्टीरिया होते हैं जो आप के फोन में चिपक कर आप के और बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त मोबाइल पर बात करते समय ध्यान भटकने से आप का पैर भी फिसल सकता है.

● आज के इस युग में फोन से दूरी बनाना तो असंभव ही है. इसलिए फोन का प्रयोग सीमित करने के साथसाथ फोन का प्रयोग करते समय उसे पेट से दूर रखें ताकि फोन से निकलने वाली हानिकारक तरंगें बच्चे के शारीरिक विकास को प्रभावित न कर पाएं.

● भोजन करते समय भी मोबाइल का प्रयोग करने से बचें क्योंकि इस स्थिति में आप का ध्यान भटकेगा और शरीर को सही और समुचित मात्रा में पोषण नहीं मिल पाएगा.

● यदि आप वर्किंग हैं तो फोन को हमेशा बैग में ही डाल कर रखें। साथ ही घर आने के बाद मोबाइल प्रयोग बिलकुल भी न करें क्योंकि आप का स्क्रीन टाइम औफिस में औलरेडी बहुत अधिक हो जाता है.

● बात करते समय स्पीकर औन कर के बात करने का प्रयास करें। यदि आप ईयरफोन लगा कर बात कर रहीं हैं तो भी ईयरफोन को कुरते की जेब में डालने की बजाय हाथ में पकड़ें ताकि यह पेट से दूर रहे.

● सोने से 1 घंटे पहले फोन का प्रयोग बंद कर दें ताकि आप की ब्रेन ऐक्टिविटी प्रभावित न हो और आप रात में अच्छी नींद सो सकें.

● इस दौरान आप मोबाइल, टैब और लैपटौप की अपेक्षा टीवी का प्रयोग करें क्योंकि टीवी आप एक निश्चित दूरी से देखती हैं जिस से रैडिएशन होने का खतरा नहीं होता.

● आजकल अधिकांश महिलाएं इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सऐप पर स्क्रोलिंग करती रहती हैं जो कई बार निगेटिविटी उत्पन्न कर देता है. बिना वजह स्क्रौलिंग करने के स्थान पर आप पत्रपत्रिकाओं को पढ़ने को तरजीह दें जिस से आप के साथसाथ बच्चे का भी मानसिक विकास ठीक रह सके.

● गर्भावस्था के शुरुआत में ही आप अपनी डाक्टर से मिल कर इस अवस्था में मोबाइल को कितना और कैसे प्रयोग करना है, इस की जानकारी अवश्य ले लें.

Vicky Kaushal की एक और बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्म छावा ने बरपाया कहर

Vicky Kaushal : 14 फरवरी के दिन देशभक्ति से भरपूर ऐतिहासिक फिल्म जो कि छत्रपति महाराज संभाजी के शौर्य वीरता पर आधारित है सिनेमाघर में रिलीज हो रही है. फिल्म की रिलीज से पहले ही दर्शकों के बीच इस फिल्म को लेकर उत्साह देखने लायक है. फिल्म रिलीज से पहले ही 3.90,014 टिकट की बिक्री हो चुकी है जिसने अब तक 11.09 करोड़ की कमाई कर ली है. इसकी वजह छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज पर आधारित फिल्म छावा की कहानी इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखी गई है.

जो कि निर्देशक लक्ष्मण उतेकर द्वारा सिल्वर स्क्रीन पर प्रस्तुत की गई है. फिल्म छावा की खास बात यह भी है कि इस फिल्म में संभाजी महाराज के किरदार को एक्टर विकी कौशल ने पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ जिया है. विकी कौशल उन एक्टरों में से हैं जिन्होंने स्टार और एक्टर के बीच का फर्क दर्शकों को समझाया है , स्टार वह होते हैं जो फिल्मों की सफलता के वजह से लोकप्रियता पाते हैं. और एक्टर वह होते हैं जो अपने फिल्मों के किरदारों की वजह से फिल्मी इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिख जाते हैं. इसी का जीता जागता उदाहरण एक्टर विकी कौशल है जिन्होंने उरी द सर्जिकल स्ट्राइक, सरदार उधम सिंह, और सेम बहादुर जैसी फिल्मों में यादगार किरदार निभाने के बाद अब ऐतिहासिक फिल्म छावा में अपने अभिनय का लोहा मनवा लिया है.

फिल्म के बारे में अगर एक शब्द में कहे तो तो यह एक शानदार और जानदार फिल्म है. फिल्म में इतिहास, जुनून, देश भक्ति और प्रेम की भावना, तलवारबाजी और एक्शन से भरे दृश्य, बेहतरीन तरीके से दिखाए गए हैं. फिल्म छावा में जबरदस्त परफौर्मेंस देकर विकी कौशल ने अपनी पीढ़ी के बेहतरीन एक्टर्स में से एक के रूप में अपनी पहचान मजबूत कर ली है. फिल्म का एकएक सीन देखने लायक है. एक्शन डायरेक्शन, संगीत, सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक लाजवाब है. छावा में जहां विकी कौशल का शेर के साथ युद्ध, युद्ध के दौरान युद्ध की अनेक नीतियों को अलग अलग तरीके से चतुरता के साथ अंजाम देना, महाराज संभाजी पर दिल दहलाने वाले अत्याचार दर्दनाक मौत,जैसे असरदार दृश्य, दमदार संवाद के साथ खूबसूरत तरीके से पेश किये गए है.

विकी कौशल के अलावा औरंगजेब के रोल में अक्षय खन्ना, संभाजी की पत्नी के रोल में रश्मिका मंदाना, औरंगजेब की पत्नी के रोल में डायना पेंटी, अन्य कलाकारो में दिव्या दत्ता, आशुतोष राणा, संतोष जुवेकर, आदि सभी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है . छावा फिल्म में एक खास बात यह भी बताई गई है की पौराणिक युग हो या ऐतिहासिक, दुश्मन या गद्दार घर के अंदर ही होता है, जिसे पहचानना मुश्किल होता है .क्योंकि वह अपना खुद का ही कोई रिश्तेदार होता है. बाहर के दुश्मनों से लड़ा जा सकता है क्योंकि हमें पता है कि वह हमारा दुश्मन है. लेकिन घर के दुश्मनों से लड़ना मुश्किल हो जाता है और वही घर का भेदी ओर गद्दार, मौत का कारण भी बन जाते हैं . छत्रपति संभाजी महाराज की दर्दनाक मौत के जिम्मेदार भी उनके अपने ही थे जिन्होंने मुगलों के साथ मिलकर एक महान शौर्य वीर को मौत के घाट उतार दिया.

बिन बालों की दुलहन बनी Neehar Sachdeva, ‘बाल्ड लुक’ हुआ वायरल

Neehar Sachdeva : लंबे, घने, लहराते बाल हर किसी लड़की की खूबसूरती में चार चांद तो लगाते ही हैं, साथ ही उसके सेल्फ कौन्फिडेंस को भी बढ़ाते हैं और ऐसे में अगर किसी लड़की को अपने बाल हमेशा के लिए खो देना पड़ें तो ये उसके लिए किसी शौकिंग से कम नही हो सकता है. जी हां मैं बात कर रही हूं एक ऐसी ब्राइड की जो अपनी ही मैरिज में बाल्ड लुक में नजर आयी.

बाल्ड लुक को किया एक्सेप्ट

सभी लड़कियां अपनी शादी से पहले ही अपने लुक, मेकअप और हेयरस्टाइल को लेकर बहुत कांसेस रहती हैं ताकि अपनी शादी के दिन ब्राइड के रूप में उनकी खूबसूरती में कोई कमी ना रह जाए . लेकिन एक ब्राइड ऐसी भी हैं. जिसने खूबसूरती की परिभाषा ही बदल दी और अपनी लाइफ के सबसे बड़े दिन यानि अपनी शादी के दिन अपने लुक के बारे में ज्यादा सोचने की बजाय, कौन्फिडेंस के साथ अपने बाल्ड लुक को एक्सेप्ट किया.

वायरल बाल्ड ब्राइड

हाल ही में सोशल मीडिया पर बाल्ड ब्राइड यानि बिना बालों वाली दुल्हन वायरल हो रही है. ट्रेडिशनल रेड ड्रेस में ब्राइड बनी निहार ने अपने बिना बालों वाले सिर पर टेप की हेल्प से मांग टीका भी पहना है. जो एक बोल्ड स्टेटमेंट था. उनके ग्रूम अरुण वी गणपति ने उन्हें आश्चर्य से देखा और राहत भरी सांस ली. इस बाल्ड ब्राइड को देख कर लोग हैरान होने के साथ उसकी प्रशंसा भी कर रहे हैं कौन हैं ये बाल्ड ब्राइड आइये जानते हैं.

खूबसूरती की नई मिशाल

भारत में जन्मी और यूएस में रहने वाली ये बाल्ड ब्राइड डिजिटल क्रिएटर निहार सचदेवा हैं. लंबे समय से लव रिलेशन में रह रहीं निहार ने पिछले दिनों थाईलैंड में अरुण गणपति से शादी की है. इसके बाद सोशल मीडिया पर शादी की तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं.क्योंकि वह अपनी मैरिज में बिना विग पहने ‘बाल्ड लुक’ में ब्राइड बनी नजर आ रही हैं.उन्होंने बिना बालों के खूबसूरती और कॉन्फिडेंस की ऐसी मिशाल दी हैं. जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. इसके साथ ही निहार ने अपनी शादी में उन लोगों को भी इनवाइट किया, जो कभी उनके बाल्ड लुक को देख कर हंसते और मजाक उड़ाते थे। निहार के इस फैसले ने ये बता दिया की किसी भी लड़की की खूबसूरती की परिभाषा उसका सेल्फीकौन्फिडेंस ही हैं ना की उसका ओवरआल लुक.

इस बीमारी से थी पीड़ित 

निहार बचपन से ही एलोपेसिया से पीड़ित थीं. एलोपेसिया एरीटा एक आम आटोइम्यून बीमारी है. जो सिर के स्माल राउंड एरिया में हेयर फौल का कारण बनती हैं. जिससे छोटी उम्र में ही उनके बाल उड़ गए थे. इस वजह से सालों तक उन्होंने विग पहनी. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी नेचुरल ब्यूटी को अपनाने का फैसला किया और अपने सिर के बाल पूरी तरह से हटा लिए. निहार  सचदेवा को एलोपेसिया होने का पता तब चला था जब वह सिर्फ छह महीने की थीं. इस स्थिति में बौडी के डिफरेंट पार्ट से हेयर लौस होने लगते हैं. जिनमें सिर के बाल भी शामिल होते हैं.

सालों तक छुपाया 

निहार की फैमली उनके गंजे सिर (bald head) को सीक्रटे रखना चाहते थे . इसलिए वे जब भी स्कूल या बाहर जाती थी. उस समय उन्हें विग पहननी होती थी. सालों तक उन्होंने अपनी इस स्थिति को छुपाया, फिर निहार ने अपना सिर मुंडवाने और इसका सेलिब्रेशन मनाने का फैसला किया. उन्होंने एक पार्टी आयोजित कर उन सभी लोगों को इन्वाइट किया जो उनके गंजेपन का मजाक उड़ाते थे. उनके इस जज़्बे को लोगों से बहुत सम्मान और समर्थन मिला.

मुहिम का हिस्सा भी रही

इससे पहले निहार ‘द बाल्ड ब्राउन ब्राइड’ नामक मुहिम में हिस्सा ले चुकी थीं, जिसका उद्देश्य महिलाओं को उनकी नेचुरल ब्यूटी को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना था.

Couple Goals : मेरा बौयफ्रैंड उम्र में बड़ा है, उससे रिलेशनशिप में कोई प्रौब्लम तो नहीं?

Couple Goals : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 26 साल की हूं और मेरा बौयफ्रैंड मुझ से 5 साल बड़ा है. क्या इस वजह से सैक्स संबंध में कोई परेशानी आ सकती है? मैं उस से सैक्स करना चाहती हूं पर कभीकभी लगता है कि वह मेरा साथ नहीं दे पाता, क्योंकि एक बार जब देर तक फोरप्ले करने के बाद वह अपना पैनिस इंसर्ट करने की कोशिश कर रहा था तो बारबार की कोशिशों के बावजूद वह कामयाब नहीं हो पा रहा था. क्या उसे कोई परेशानी है? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप के पार्टनर की उम्र इतनी भी नहीं है कि वह सैक्स करने में सक्षम नहीं हो. सच तो यह है कि अगर उचित आहार संबंधी निर्देशों का पालन करें और नियमित व्यायाम की आदत डालें तो सैक्स का आनंद लंबी आयु तक किया जा सकता है.

ऐसा आमतौर पर सैक्सुअल इंटरकोर्स की जानकारी के अभाव में होता है. हो सकता है हड़बड़ी में अथवा किसी भय की वजह से वह सैक्स संबंध बनाने में नाकामयाब रहा हो.

सैक्स आराम से निबटाने वाली प्रक्रिया है, जिस में दोनों का ही मन शांत हो और वातावरण भी शांत हो.

बेहतर होगा कि सैक्स से पहले आप दोनों फोरप्ले का आनंद लें. जब साथी पूरी तरह सैक्स के लिए तैयार हो जाए तभी पैनिस इंसर्ट करने को कहें. यकीनन, आप दोनों को ही इस में चरमसुख मिलेगा. पर ध्यान रहे, पुरुष साथी से इस दौरान कंडोम का इस्तेमाल करने को जरूर कहें.

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कोरोना काल में सेक्स सबसे बडी परेशानी का सबब बन गया है. बिना तैयारी के सेक्स से गर्भ ठहरने लगाहै. उम्रदराज लोगों के सामने ऐसी परेशानियां खडी हो गई है. स्कूल बंद होने से बच्चों के घर पर रहने से पति पत्नी को अपने लिये समय निकालना मुश्किल होने लगा. बाहर आना जाना बंद हो गया. कभी पति के पास समय है तो कभी पत्नी का मूड नहीं. कभी पत्नी का मूड बना तो पति को औनलाइन वर्क से समय नहीं. ऐसे में आपसी तनाव, झगडे और जल्दी सेक्स की आदत आम होने लगी है. जिस वजह से आपसी झगडे बढने लगे है. ऐसे में जरूरी है कि आपस में समय तय करके सेक्स करे. जिससे आपसी झगडे कम होगे तालमेल बढ़ेगा.

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Interesting Hindi Stories : बेटी के लिए – क्या वर ढूंढ पाए शिवचरण और उनकी पत्नी

Interesting Hindi Stories : शिवचरण अग्रवाल बाजार से लौटते ही कुरसी पर पसर गए. मलीन चेहरा, शिथिल शरीर देख पत्नी माया ने घबरा कर माथा छुआ, ‘‘क्या हुआ… क्या तबीयत खराब लग रही है. भलेचंगे बाजार गए थे…अचानक से यों…’’

कुछ देर मौन रख वह बोले, ‘‘लौटते हुए अजय की दुकान पर उस का हालचाल पूछने चला गया था. वहां उस ने जो बताया उसे सुन कर मन खट्टा हो गया.’’

‘‘ऐसा क्या बता दिया अजय ने जो आप की यह हालत हो गई?’’ माया ने पंखा झलते हुए पूछा.

‘‘वह बता रहा था कि कुछ दिन पहले उस की दुकान पर समधीजी का एक रिश्तेदार आया था…उसे यह पता नहीं था कि अजय मेरा भांजा है. बातोंबातों में मेरा जिक्र आ गया तो वह कहने लगा, ‘अरे, उन्हें तो मैं जानता हूं…बड़े चालाक और घटिया किस्म के इनसान हैं… दरअसल, मेरे एक दूर के जीजाजी के घर उन की लड़की ब्याही है…जीजाजी बता रहे थे कि शादी में जो तय हुआ था उसे तो दबा ही लिया, साथ ही बाद में लड़की के गहनेकपडे़ भी दाब लेने की पूरी कोशिश की…क्या जमाना आ गया है लड़की वाले भी चालू हो गए…’ रिश्तेदारी का मामला था सो अजय कुछ नहीं बोला मगर वह बेहद दुखी था…उसे तो पता ही है कि मैं ने मीनू की शादी में कैसे दिल खोल कर खर्च किया है, जो कुछ तय था उस से बढ़चढ़ कर ही दिया, फिर भी मीनू के ससुर मेरे बारे में ऐसी बातें उड़ाते फिरते हैं… लानत है….’’

तभी उन की छोटी बेटी मधु कालिज से वापस आ गई. उन की उतरी सूरत देख उस का मूड खराब न हो अत: दोनों ने खुद को संयत कर किसी दूसरे काम में उलझा लिया.

आज का मामला कोई नया नहीं था. साल भर ही हुआ था मीनू की शादी को मगर आएदिन कुछ न कुछ फेरबदल के साथ ऐसे मामले दोहराए जाते पर शिवचरण चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे…इन हालात के लिए वह स्वयं को ही दोषी मानते थे.

आज शिवचरण की आंखों के सामने बारबार वह दृश्य घूम रहा था जब कपूर साहब ने उन से अपने बड़े बेटे के लिए मीनू का हाथ मांगा था.

रजत कपूर उन के नजदीकी दोस्त एवं पड़ोसी दीनदयाल गुप्ता के बिजनेस पार्टनर थे. बेहद सरल, सहृदय और जिंदादिल. दीनदयाल के घर शिवचरण की उन से आएदिन मुलाकातें होती रहीं. जैसे वह थे वैसा ही उन का परिवार था. 2 बेटों में बड़ा बेटा कंप्यूटर इंजीनियर था और छोटा एम.बी.ए. पूरा कर अपने पिता का बिजनेस में हाथ बंटा रहा था. एक ऐसा हंसताखेलता परिवार था जिस में अपनी लड़की दे कर कोई भी पिता अपनी जिंदगी को सफल मानता. ऐसे परिवार से खुद रिश्ता आया था मीनू के लिए.

कपूर साहब भी अपने बड़े बेटे के लिए देखेभाले परिवार की लड़की चाह रहे थे और उन की नजर मीनू पर जा पड़ी. उन्होंने बड़ी विनम्रता से निवेदन किया था, ‘शिवचरण भाईसाहब, बेटी जैसे अब तक आप के घर रह रही है वैसे ही आगे हमारे घर रहेगी. बस, तन के कपड़ों में विदा कर दीजिए, मेरे घर में बेटी नहीं है, उसे ही बेटी समझ कर दुलार करूंगा.’

इतना अपनापन से भरा निवेदन सुन कर शिवचरण गद्गद हो उठे थे. कितनी धुकधुक रहती है पिता के मन में जब वह अपनी प्यारी बेटी को पराए हाथों में सौंपता है. मन आशंकाओं से भरा रहता है. रातदिन यही चिंता लगी रहती है कि पता नहीं बेटी सुखी रहेगी या नहीं, मानसम्मान मिलेगा या नहीं…मगर इस आग्रह में सबकुछ कितना पारदर्शी… शीशे की तरह साफ था.

शिवचरण ने जब इस बात पर अपनी पत्नी के साथ बैठ कर विचार किया तो धीरेधीरे कुछ प्रश्न मुखरित हो उठे. मसलन, ‘परिवार और लड़का तो वाकई लाखों में एक है मगर… हम वैश्य और वह पंजाबी…घर वालों को कैसे राजी करेंगे…’

यह सचमुच एक गंभीर समस्या थी. शिवचरण का भरापूरा कुटुंब था जिस में इस रिश्ते का जिक्र करने का मतलब था सांप की पूंछ पर पैर रखना. वैसे तो सभी तथाकथित पढे़लिखे समकालीन भद्रजन थे मगर जब किसी के शादीब्याह की बात आती तो एकएक पुरातन रीतिरिवाज खोजखोज कर निकाले जाते. मसलन, जाति, गोत्र, जन्मपत्री, मांगलिक-अमांगलिक…और यहां तो बात विजातीय रिश्ते की थी.

बेटी के सुखद भविष्य के लिए शिवचरण ने तो एक बार सब को दरकिनार करने की सोच भी ली थी मगर माया नहीं मानी.

‘शादीब्याह के मसले पर घरपरिवार को साथ ले कर चलना ही पड़ता है. अगर अभी नजरअंदाज कर दिया तो सारी उम्र ताने सुनते रहेंगे…तुम्हें कोई कुछ न बोले मगर मैं तो घर की बड़ी बहू हूं. तुम्हारी अम्मां मुझे नहीं बख्शेंगी.’

और अम्मां से पूछने पर जो कुछ सुनने को मिला वह अप्रत्याशित नहीं था.

‘क्या हमारी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का नहीं मिला जो दूसरी बिरादरी का देखने चल दिया.’

‘नहीं, अम्मां, खुद ही रिश्ता आया था. बेहद भले लोग हैं. कोई दानदहेज भी नहीं लेंगे.’

‘तो क्या पैसे बचाने को ब्याह रहा है वहां? तेरे पास न हों तो मुझ से ले लेना…अरे, बेटी के ब्याह पर तो खर्च होता ही है…और मीनू घर की बड़ी लड़की है, अगर उसे वहां ब्याह दिया तो सब यही समझेंगे कि लड़की तेज होगी, खुद से पसंद कर ब्याह कर बैठी. फिर छोटी को कहीं ब्याहना भी मुश्किल हो जाएगा.’

अम्मां ने तिवारीजी को भी बुलवा लिया. लंबा तिलक लगाए वह आए तो अम्मां ने खुद ही उन के पांव नहीं छुए, सब से छुआए. 4 कचौड़ी, 6 पूरी और 2 रसगुल्लों का नाश्ता करने के बाद समस्या पर विचार कर के वह बोले, ‘यजमान, यह आप की मरजी है कि आप विवाह कहां करें पर आप ने जाति के बाहर विवाह किया तो मैं आप के घर में पैर नहीं रखूंगा. आखिर सनातन प्रथा है यह जाति की. आप जैसे नए लोग तोड़ते हैं तभी तो तलाक होते हैं. न कुंडली मिली, न अपनी जाति का, न घर के रीतिरिवाज का पता. आप सोच भी कैसे सकते हैं.’

अम्मां और तिवारीजी के आगे शिवचरण के सभी तर्क विफल हो गए और उन्हें इस रिश्ते को भारी मन से मना करना पड़ा. दीनदयाल ने यह बात विफल होती देख वहां अपनी भतीजी की बात चला दी और आज वह कपूर साहब के घर बेहद सुखी थी.

जब शिवचरण मीनू के लिए सजातीय वर खोजने निकले तो उन्हें एहसास हुआ कि दूल्हामंडी में से एक अदद दूल्हा खरीदना कितना कठिन कार्य था. जो लड़का अच्छा लगता उस के दाम आसमान को छूते और जिस का दाम कम था वह मीनू के लायक नहीं था. कपूर साहब के रिश्ते पर चर्चा के समय जिन सगेसंबंधियों ने मीनू के लिए सुयोग्य वर खोज लाने और हर तरह का सहयोग देने की बात की थी इस

समय वे सभी पल्ला झाड़ कहीं गायब हो गए थे.

भागदौड़ कर के अंत में एक जगह बात पक्की हुई. रिश्ता तय होते समय लड़के के मातापिता का रवैया ऐसा था जैसे लड़की पसंद कर उन्होंने लड़की वालों पर एहसान किया है. उस समय शिवचरण को कपूर साहब का नम्र निवेदन बहुत याद आ रहा था. उस दिन जो उन के कंधे झुके तो आज तक सीधे नहीं हुए थे.

अतीत की यादों में खोए शिवचरण को तब झटका लगा जब पत्नी ने आ कर कहा कि दीनदयाल भाई साहब आए थे और आप के लिए एक निमंत्रण कार्ड दे गए हैं.

उस दिन दीनदयाल के घर एक पारिवारिक समारोह में शिवचरण की मुलाकात उन के बड़े भाई से हो गई जो अब कपूर साहब के समधी थे. उन की बात चलने पर वह गद्गद हो कर बोले, ‘‘बस, क्या कहें, हमारी बिटिया को तो बहुत अच्छा घरवर मिल गया. ऐसे सज्जन लोग कहां मिलते हैं आजकल…उसे हाथों पर उठा कर रखते हैं…बेटी ससुराल में खुश हो, एक बाप को और क्या चाहिए भला…’’ शिवचरण के चेहरे पर एक दर्द भरी मुसकान तैर आई.

घर आ कर मन और अधिक अपराधबोध से ग्रसित हो गया. वह खुद पर बेहद नाराज थे. बारबार स्वयं को कोस रहे थे कि क्यों मैं उस समय जातिवाद की ओछी मानसिकता से उबर नहीं पाया…क्यों सगेसंबंधियों और बिरादरी की कहावत से डर गया…अपनी बेटी का भला देखना मेरी अपनी जिम्मेदारी थी, बिरादरी की नहीं. दीनदयाल भी तो हमारी जाति के ही हैं. उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ा वहां रिश्ता करने से…उन का मानसम्मान उसी तरह बरकरार है…सच तो यह है कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में किसी के पास इतना समय नहीं कि रुक कर किसी दूसरे के बारे में सोचे…‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी बातें पुरानी हो चुकी हैं. जो इन्हें छोड़ आगे नहीं बढ़ते, आगे चल कर वे मेरी ही तरह रोते हैं.

शिवचरण अखबार पढ़ रहे थे तभी दीनदयाल उन से मिलने आए तो बातोंबातों में वह अपनी व्यथा कह बैठे, ‘‘क्या बताऊं भाईजी, कपूर साहब जैसा समधी खोने का दर्द अभी तक दिल में है…एक विचार आया है मन में…अगर उन के छोटे बेटे के लिए मधु का रिश्ता ले कर जाऊं तो…जब वह आए थे तो मैं ने इनकार कर दिया था, न जाने अब मेरे जाने पर कैसा बरताव करेंगे, यही सोच कर दिल घबरा रहा है.’’

‘‘नहीं, भाई साहब, उन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं, दिल में किसी के लिए मैल नहीं रखते…वह तो खुशीखुशी आप का रिश्ता स्वीकारते मगर आप ने यह फैसला लेने में जरा सी देर कर दी. अभी 2 दिन पहले ही उन के छोटे बेटे का रिश्ता तय हुआ है.’’

एक बार फिर शिवचरण खुद को पराजित महसूस कर रहे थे.

वह अपनी गलती का प्रायश्चित्त करना चाह रहे थे मगर उन्हें मौका न मिला. सच ही है, कुछ भूलें ऐसी होती हैं जिन को भुगतना ही पड़ता है.

‘‘फोन की घंटी बज रही थी. शिवचरण ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’

‘‘नमस्ते, मामाजी,’’ दूसरी ओर से अजय की आवाज आई, ‘‘वह जो आप ने मधु के लिए वैवाहिक विज्ञापन देने को कहा था, उसी का मैटर कनफर्म करने को फोन किया है…पढ़ता हूं…कोई सुधार करना हो तो बताइए :

‘‘अग्रवाल, उच्च शिक्षित, 23, 5 फुट 4 इंच, गृहकार्य दक्ष, संस्कारी कन्या हेतु सजातीय वर चाहिए.’’

‘‘बाकी सब ठीक है, अजय. बस, ‘अग्रवाल’ लिखना जरूरी नहीं और ‘सजातीय’ शब्द की जगह लिखो, ‘जातिधर्म बंधन नहीं.’’’

‘‘मगर मामाजी, क्या आप ने सगेसंबंधियों से इस बारे में…’’

‘‘सगेसंबंधी जाएं भाड़ में….’’ शिवचरण फोन पर चीख पडे़.

‘‘और मामीजी…’’

‘‘तेरी मामी जाए चूल्हे में…अब मैं वही करूंगा जो मेरी बेटी के लिए सही होगा.’’

शिवचरण ने फोन रख दिया…फोन रख कर उन्हें लगा जैसे आज वह खुल कर सांस ले पा रहे हैं और अपने चारों तरफ लिपटे धूल भरे मकड़जाल को उन्होंने उतार फेंक दिया.

Latest Hindi Stories : सीप में बंद मोती

Latest Hindi Stories : फोटो में अरुणा के सौंदर्य को देख कर आलोक बहुत खुश था. लेकिन शादी के बाद अरुणा के सांवले रंग को देख कर उस के भीतर हीनभावना घर कर गई. जब उसी सांवलीसलोनी अरुणा के गुणों का दूधिया उजाला फूटने लगा तो उस की आंखें चौंधिया सी गईं.

टन…टन…दफ्तर की घड़ी ने साढ़े 4 बजने की सूचना दी तो सब एकएक कर के उठने लगे. आलोक ने जैसे यह आवाज सुनी ही नहीं.

‘‘चलना नहीं है क्या, यार?’’ नरेश ने पीठ में एक धौल मारी तो वह चौंक गया, ‘‘5 बज गए क्या?’’

‘‘कमाल है,’’ नरेश बोला, ‘‘घर में नई ब्याही बीवी बैठी  है और पति को यह भी पता नहीं कि 5 कब बज गए. अरे मियां, तुम्हारे तो आजकल वे दिन हैं जब लगता है घड़ी की सुइयां खिसक ही नहीं रहीं और कमबख्त  5 बजने को ही नहीं आ रहे, पर एक तुम हो कि…’’

नरेश के व्यंग्य से आलोक के सीने में एक चोट सी लगी. फिर वह स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘मेरा कुछ काम अधूरा पड़ा है, उसे पूरा करना  है. तुम चलो.’’

नरेश चल पड़ा. आलोक गहरी सांस ले कर कुरसी से टिक गया और सोचने लगा. वह नरेश को कैसे बताता कि नईनवेली बीवी है तभी तो वह यहां बैठा है. उस  के अंदर की उमंग जैसे मर सी गई है. पिताजी को भी न जाने क्या सूझी कि उस के गले में ऐसी नकेल डाल दी जिसे न वह उतार सकता है और न खुश हो कर पहन सकता है. वह तो विवाह करना ही नहीं चाहता था. अकेले रहने का आदी हो गया था…विवाह की इच्छा ही नहीं होती थी.

उस ने कई शौक पाले हुए थे. शास्त्रीय संगीत  के महान गायकों के  कैसटों का  अनुपम खजाना था उस के पास जिन्हें सुनतेसुनते वह न जाने कहां खो जाता था. इस के अलावा अच्छा साहित्य पढ़ना, शहर में आयोजित सभी चित्रकला प्रदर्शनियां देखना, कवि सम्मेलनों आदि में भाग लेना उस के प्रिय शौक थे और इन सब में व्यस्त रह कर उस ने विवाह के बारे  में कभी सोचा भी न था.

ऐसे में पिताजी का पत्र आया था,  ‘आलोक, तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है. अच्छे खानदान की, प्रथम श्रेणी में  एम.ए. है. मेरे मित्र की बेटी है. फोटो साथ भेज रहा हूं. मैं तो उन्हें हां कर चुका हूं. तुम्हारी स्वीकृ ति का इंतजार है.’

अनमना सा हो कर उस ने फोटो उठाया और गौर से देखने लगा था. तीखे नाकनक्श की एक आकर्षक मुखाकृति थी. बड़ीबड़ी भावप्रवण आंखें जैसे उस के सारे वजूद पर छा गई थीं और जाने किस रौ में उस ने वापसी डाक से ही पिताजी को अपनी स्वीकृति  भेज  दी थी.

पिताजी ने 1 माह बाद ही विवाह की तारीख नियत कर दी थी. उस के दोस्त  नरेश, विपिन आदि हैरान थे और उसे सलाह दे रहे थे  कि सिर्फ फोटो देख कर ही वह विवाह को कैसे राजी हो गया. कम से कम एक बार लड़की से रूबरू तो हो लेता. पर जवाब में वह हंस कर बोला था, ‘फोटो तो मैं ने देख ही लिया है. अब पिताजी लंगड़ीलूली बहू तो चुनेंगे नहीं.’

पर कितना गलत सोचा था उस ने. विवाह की प्रथम रात्रि को ही उस ने अरुणा के चेहरे पर  प्रथम दृष्टि डाली तो सन्न रह गया था. अरुणा की रंगत काफी सांवली थी. फिर तो वे बड़ीबड़ी भावप्रवण आंखें, जिन में वह अकसर कल्पना में डूबा रहता था, वे तीखे नाकनक्श जो धार की तरह सीधे उस के हृदय में उतर जाते थे, सब जैसे कपूर से  उड़ गए थे और रह गया था अरुणा का सांवला रंग.

अरुणा से तो उस ने कुछ नहीं कहा, पर सुबह पिताजी से लड़ पड़ा था, ‘कैसी लड़की देखी है आप ने मेरे लिए? आप पर भरोसा कर  के मैं ने बिना देखे ही विवाह के लिए हां कर दी थी और आप ने…’

‘क्यों, क्या कमी है लड़की में? लंगड़ीलूली है क्या?’ पिताजी टेढ़ी  नजरों से उसे देख कर बोले थे.

‘आप ने तो बस, जानवरों की तरह सिर्फ हाथपैरों की सलामती का ही ध्यान रखा. यह नहीं देखा कि उस का रंग कितना काला है.’

‘बेटे,’ पिताजी समझाते हुए बोले थे, ‘अरुणा अच्छे घर की सुशील लड़की है.

प्रथम श्रेणी में एम.ए. है. चाहो तो नौकरी करवा लेना. रंग का सांवला होना कोई बहुत बड़ी कमी नहीं है. और फिर अरुणा सांवली अवश्य है, पर काली नहीं.’

पिताजी और मां दोनों ने उसे अपने- अपने ढंग से समझाया था पर उस का आक्रोश कम न हुआ था. अरुणा के कानों में भी शायद इस वार्तालाप के  अंश पड़ गए थे. रात को वह धीमे स्वर में बोली थी, ‘शायद यह विवाह आप की इच्छा के विरुद्ध हुआ है…’

वह खामोश रहा था. 15 दिन बाद ही वह काम पर वापस आ गया था. अरुणा भी उस के साथ थी. कानपुर आ कर अरुणा ने उस की अस्तव्यस्त गृहस्थी को सुचारु रूप से समेट लिया था.

‘‘साहब, घर नहीं जाना क्या?’’

चपरासी दीनानाथ का स्वर कान में पड़ा तो उस की विचारतंद्रा टूटी. 6 बज चुके थे. वह उठ खड़ा हुआ . घर जाने का भी जैसे कोई उत्साह नहीं था उस के अंदर. उसे आए 15 दिन हो गए हैं. अभी तक उस के दोस्तों ने अरुणा को नहीं देखा है. जब भी वे घर आने की बात करते हैं वह कोई  न कोई बहाना बना कर टाल जाता है.

आखिर वह करे भी क्या? नरेश की बीवी सोनिया कितनी सुंदर है और आकर्षक भी. और विपिन की पत्नी कौन सी कम है. राजेश की पत्नी लीना भी कितनी गोरी और सुंदर है. अरुणा तो इन सब के सामने कुछ भी नहीं. उस के दोस्त तो पत्नियों को बगल में सजावटी वस्तु की तरह लिए घूमते हैं. एक वह है कि दिन के समय भी अरुणा को साथ ले कर बाहर नहीं निकलता. न जाने कैसी हीन ग्रंथि पनप रही है उस के अंदर. कैसी बेमेल जोड़ी है उन की.

घर पहुंचा तो अरुणा ने बाहर कुरसियां निकाली हुई थीं. तुरंत ही वह चाय और पोहा बना कर ले आई. वह खामोश चाय की चुसकियां ले रहा था. अरुणा उस के मन का हाल काफी हद तक समझ रही थी. उस ने छोटे से घर को तो अपने कुशल हाथों और कल्पनाशक्ति से सजा  रखा था पर पति के मन की थाह वह नहीं ले पा सकी थी.

छोटे से बगीचे से फूलपत्तियां तोड़ कर वह रोज पुष्पसज्जा करती. कई बार तो आलोक भी सजे हुए सुंदर से घर को देख कर हैरान रह जाता. तारीफ के बोल  उस के मुंह से निकलने को ही होते पर वह उन्हें अंदर ही घुटक लेता.

पाक कला में निपुण अरुणा रोज नएनए व्यंजन बनाती. उस की तो भूख जैसे दोगुनी हो गई थी. नहाने जाता तो स्नानघर में कपड़े, तौलिया, साबुन सब करीने से सजे मिलते. यह सब देख कर  मन ही  मन अरुणा के प्रति प्यार और स्नेह के अंकुर से फूटने लगते, पर फिर उसी क्षण वही पुरानी कटुता उमड़ कर सामने आ जाती और वह सोचता, ये काम तो कोई नौकर भी कर सकता है.

एक दिन वह दफ्तर से आ कर बैठा ही था कि नरेश, विवेक, राजेश सजीधजी  पत्नियों के साथ उस के घर आ धमके. नरेश बोला, ‘‘आज पकड़े गए, जनाब.’’

उन सब के चेहरे देख कर एक बार तो आलोक सन्न सा रह गया. क्या सोचेंगे ये सब अरुणा को देख कर? क्या यही रूप की रानी थी, जिसे अब तक उस ने छिपा कर रखा हुआ था? पर मन के भाव छिपा कर वह चेहरे पर मुसकान ले आया और बोला, ‘‘आओआओ, यार, धन्यवाद जो तुम सब इकट्ठे आए.’’

‘‘आज तो खासतौर से भाभीजी से मिलने आए हैं,’’ विवेक  बोला और फिर सब बैठक में आ गए. सुघड़ता और कलात्मकता से सजी बैठक में आ कर सभी नजरें घुमा कर सजावट देखने लगे. राजेश बोला, ‘‘अरे वाह, तेरे घर का तो कायाकल्प हो गया है, यार.’’

तभी अंदर से अरुणा मुसकराती हुई आई और सब को नमस्ते कर के बोली, ‘‘बैठिए, मैं आप लोगों के लिए चाय लाती हूं.’’

‘‘आप भी क्या सोचती होंगी कि आप के पति के कैसे दोस्त हैं जो अब तक मिलने भी नहीं आए पर इस में हमारा कुसूर नहीं है. आलोक ही बहाने बनाबना कर हमें आने से रोकता रहा.’’

‘‘अरुणा, तुम्हारी पुष्पसज्जा तो गजब की है,’’ सोनिया प्रंशासात्मक स्वर में बोली, ‘‘हमारे बगीचे में भी फूल हैं पर   मुझे सजाने का तरीका ही नहीं आता. तुम सिखा देना मुझे.’’

‘‘इस में सिखाने जैसी तो कोई बात ही नहीं,’’ अरुणा संकुचित हो उठी. वह रसोई में चाय बनाने चली गई.  कुछ ही देर में प्लेटों में गरमागरम ब्रेडरोल और गुलाबजामुन ले आई.

‘‘आप इनसान हैं या मशीन?’’ विवेक हंसते हुए बोला, ‘‘कितनी जल्दी सबकुछ तैयार कर लिया.’’

‘‘अब आप लोग गरमागरम खाइए मैं ब्रेडरोल तलती जा रही हूं.’’

1 घंटे बाद जब सब जाने लगे तो नरेश आलोक को कोहनी मार कर बोला, ‘‘वाकई यार, तू ने बड़ी सुघड़ और अच्छी बीवी पाई है.’’

आलोक समझ नहीं पाया, नरेश सच बोल रहा है या मजाक कर रहा है. जाते समय सब आलोक और अरुणा को आमंत्रित करने लगे  तो आलोक बोला, ‘‘दिन तय मत करो, यार, जब फुरसत होगी आ जाएंगे और फिर  खाना खा कर ही आएंगे.’’

‘‘फिर तो तुम्हें फीकी मूंग की दाल और रोटी ही मिलेगी,’’ विवेक हंसता हुआ बोला, ‘‘हमारी पत्नी का तो लगभग रोज का यही घिसापिटा मीनू है.’’

‘‘और कहीं हमारे यहां खिचड़ी  ही न बनी हो. सोनिया जब भी थकी होती है खिचड़ी ही बनाती है. वैसे अकसर यह थकी ही रहती है,’’ नरेश टेढ़ी नजरों से सोनिया को देख कर बोला.

सब चले गए तो अरुणा बिखरा घर सहेजने लगी और आलोक आरामकुरसी पर पसर गया. उस ने कनखियों से अरुणा को देखा, क्या सचमुच उसे  सुघड़ और बहुत अच्छी पत्नी मिली है? क्या सचमुच उस के दोस्तों को उस के जीवन पर रश्क है? उस के मन में अंतर्द्वंद्व सा चल रहा था. उसे अरुणा पर दया सी आई. 2 माह होने को हैं. उस ने अरुणा को कहीं घुमाया भी नहीं है. कभी घूमने निकलते भी हैं तो रात को.

एक दिन शाम को आलोक दफ्तर  से आया तो बोला, ‘‘अरुणा, झटपट तैयार हो जाओ, आज नरेश के घर चलते हैं.’’

अरुणा ने हैरानी से उसे देखा और फिर खामोशी से तैयार होने चल पड़ी.  थोड़ी देर में ही वह तैयार हो कर आ गई. जब वे नरेश के घर पहुंचे तो अंदर से जोरजोेर से आती आवाज से चौंक कर दरवाजे पर ही रुक गए. नरेश चीख रहा था, ‘‘यह घर है या नरक, मेरे जरूरी कागज तक तुम संभाल कर नहीं रख सकतीं. मुन्ने ने सब फाड़ दिए हैं. कैसी जाहिल औरत हो, कौन तुम्हें पढ़ीलिखी कहेगा?’’

‘‘जाहिल हो तुम,’’ सोनिया का तीखा स्वर गूंजा, ‘‘मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूं जो तुम्हारा बिखरा सामान ही सारा दिन सहेजती रहूं.’’

बाहर खड़े अरुणा और आलोक संकुचित से हो उठे. ऐसे हालात में वे कैसे अंदर जाएं, समझ नहीं पा रहे थे. फिर आलोक ने  गला खंखार कर दरवाजे पर लगी घंटी बजाई. दरवाजा सोनिया ने खोला. बिखरे बाल, मटमैली सी सलवटों वाली साड़ी और  मेकअपविहीन चेहरे  में वह काफी फूहड़ और भद्दी लग रही थी. आलोक ने हैरानी से सोनिया को देखा. सोनिया संभल कर बोली, ‘‘आइए… आइए, आलोकजी,’’ और वह अरुणा का हाथ थाम कर अंदर ले आई.

उन्हें सामने देख नरेश झेंप सा गया और वह सोफे पर बिखरे कागजों  को समेट कर बोला, ‘‘आओ…आओ, आलोक, आज कैसे रास्ता भूल गए?’’

आलोक और अरुणा सोफे पर बैठ गए. आलोक ने नजरें घुमा कर देखा, सारी बैठक अस्तव्यस्त थी. बच्चों के खिलौने, पत्रिकाएं, अखबार, कपड़े इधरउधर पड़े थे. हालांकि नरेश के घर आलोक पहले भी आता था, पर अरुणा के आने के बाद वह पहली बार यहां आया था. इन 2 माह में ही अरुणा  के कारण व्यवस्थित रूप से सजेधजे घर में रहने से उसे नरेश का घर बड़ा ही बिखरा और अस्तव्यस्त लग रहा  था.

अनजाने ही वह सोनिया और अरुणा की तुलना करने लगा. सोनिया नरेश से किस तरह जबान लड़ा रही थी. घर भी कितना गंदा रखा हुआ है. स्वयं भी किस कदर फूहड़ सी बनी हुई है. क्या फायदा ऐसे मेकअप और लीपापोती का जिस के उतरते ही औरत कलईर् उतरे बरतन सी बेरंग, बेरौनक नजर आए.

इस  के विपरीत अरुणा कितनी सभ्य और सुसंस्कृत है. उस के साथ कितनी शालीनता से बात करती है. अपने सांवले रंग पर फबने वाले हलके रंग के कपड़े कितने सलीके से पहन कर जैसे हमेशा तैयार सी रहती है. घर भी कितना साफ रखती है. लोग जब उस के घर की तारीफ करते हैं तब गर्व से उस का सीना  भी फूल जाता है.

तभी सोनिया चाय और एक प्लेट में भुजिया लाई तो नरेश बोला, ‘‘अरे, आलोक और उस की पत्नी पहली बार घर आए हैं, कुछ खातिर करो.’’

‘‘अब घर में तो कुछ है नहीं. आप झटपट जा कर बाजार  से ले आओ.’’

‘‘नहीं…नहीं,’’ आलोक बोला, ‘‘इस समय कुछ खाने की इच्छा भी नहीं है,’’ मन ही मन वह सोच रहा था, अरुणा मेहमानों के सामने हमेशा कोई न कोई घर की बनी हुई चीज अवश्य रखती है. जो खाता है, तारीफ किए बिना नहीं रहता. कुछ देर बैठ कर आलोक और अरुणा ने उन से विदा ली. बाहर आ कर आलोक बोला, ‘‘रास्ते में विवेक का घर भी पड़ता है. जरा उस के यहां भी हाजिरी लगा लें.’’

चलतेचलते उस ने अरुणा का हाथ अपने हाथों में ले लिया. अरुणा हैरानी से उसे देखने लगी. सदा उस की उपेक्षा करने वाले पति का यह अप्रत्याशित व्यवहार उस की समझ में नहीं आया.

विवेक के घर जब वे पहुंचे तो दरवाजा खटखटाने पर तौलिए से हाथ पोंछता विवेक रसोई  से निकला और उन्हें  देख कर शर्मिंदा सा हो कर बोला, ‘‘अरे वाह, आज तो जाने सूरज कहां से निकला जो तुम  लोग हमारे घर आए हो.’’

विवेक  के घर का भी वही हाल था.  बैठक इस तरह से अस्तव्यस्त थी  जैसे  अभी तूफान आ कर गुजरा हो. विवेक पत्रिकाएं समेटता हुआ बोला, ‘‘आप लोग बैठो, मैं चाय बनाता हूं. नीलम तो लेडीज क्लब गई हुईर् है.’’

पत्नी क्लब में पति रसोई में. आलोक को मन ही मन हंसी आ गई. तभी अरुणा खड़े हो कर बोली, ‘‘आप बैठिए भाई साहब, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर अरुणा रसोई में चली गई.

तभी विवेक का 1 साल का बेटा भी उठ कर रोने लगा. विवेक उसे हिलाडुला कर चुप कराने का प्रयास करने लगा.

कुछ ही देर में अरुणा ट्रे में चाय और दूध की बोतल ले आई और बोली, ‘‘आप लोग चाय पीजिए, मैं मुन्ने  को दूध पिलाती हूं,’’ और विवेक के न न करते भी उस ने मुन्ने को अपनी गोद में लिटा लिया और बोतल से दूध पिलाने लगी. विवेक धीमे स्वर में आलोक से बोला, ‘‘यार, बीवी हो तो तुम्हारे जैसी, दूसरों  का घर भी कितनी अच्छी तरह संभाल लिया. एक हमारी मेम साहब हैं, अपना घर भी नहीं संभाल सकतीं. घर आओ तो पता चलता है किट्टी पार्टी  में गई हैं या क्लब में. मुन्ना आया के भरोसे रहता है.’’

उस दिन आलोक देर रात तक सो नहीं सका. वह सोच में निमग्न था. उसे तो अपनी पत्नी के सांवले रंग पर शिकायत थी पर यहां तो उस के दोस्तों को अपनी गोरीचिट्टी बीवियों से हर बात पर शिकायत है.

इतवार के दिन सभी दोस्तों ने आलोक की शादी की खुशी में पिकनिक का आयोजन  किया था. विवेक, राजेश, नरेश, विपिन सभी शरीक थे इस पिकनिक में.

खानेपीने का सामान आलोक के दोस्त लाए थे. आलोक को उन्होंने कुछ भी लाने से मना कर दिया था, पर फिर भी अरुणा ने मसालेदार छोले बना लिए  थे. सभी छोलों को  चटकारे लेले कर खा रहे थे. आलोक हैरानी से देख रहा था कि अरुणा ही सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. सोनिया उस से बुनाई डालना सीख रही थी तो नीलम उस  के घने लंबे बालों का राज पूछ रही थी. राजेश की पत्नी लीना उस से मसालेदार छोले बनाने की विधि पूछ रही थी. तभी विवेक बोला, ‘‘अरुणा भाभी, चाय तो आप के हाथ की ही पिएंगे. उस दिन आप की बनाई चाय का स्वाद अभी तक जबान पर है.’’

लीना, सोनिया, नीलम आदि ताश खेलने लगीं और अरुणा स्टोव जला कर चाय बनाने लगी. विवेक भी उस का हाथ बंटाने लगा. चाय की चुसकियों के साथ एक बार फिर  अरुणा की तारीफ शुरू हो गई. चाय खत्म होते ही विवेक बोला, ‘‘अब अरुणा भाभी एक गाना सुनाएंगी.’’

‘‘मैं…मैं…यह आप क्या कह रहे हैं, भाई साहब?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं,’’ विवेक बोला, ‘‘आप बेध्यानी में चाय बनाते समय गुनगुना रही थीं. मैं ने पीछे से सुन लिया था. अब कोईर् बहाना नहीं चलेगा. आप को गाना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां…हां…’’ सब समवेत स्वर में बोले. मजबूरन अरुणा को गाने के लिए हां भरनी पड़ी. उस ने एक गाना गाना शुरू कर दिया. झील का खामोश किनारा उस की मीठी आवाज से गूंज उठा. सभी मंत्रमुग्ध से उस का गाना सुन रहे थे. आलोक भी हैरान था. अरुणा इतना अच्छा गा लेती है, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. बड़े ही मीठे स्वर में वह गा रही थी. गाना खत्म हुआ तो सब ने तालियां बजाईं. अरुणा संकुचित हो उठी. आलोक गहराई से अरुणा को देख रहा था.

उसे लगा अरुणा इतनी सांवली नहीं  है जितनी वह सोचता है. उस की आंखें काफी बड़ी और भावपूर्ण हैं. गठा हुआ बदन, सदा मुसकराते से होंठ एक खास किस्म की शालीनता से भरा हुआ व्यक्तित्च. वह तो सब से अलग है. उस की आंखों पर अब तक जाने कौन सा परदा पड़ा हुआ था जिस के आरपार वह देख नहीं पा रहा था. उस की गहराई में तो गया ही नहीं था जहां अरुणा अपने इस रूपगुण के साथ मौजूद थी, सीप में बंद मोती की तरह.

एक उस के सांवले रंग की ही आड़ ले कर बाकी सभी गुणों को वह अब तक नजरअंदाज करता रहा था. अगर गोरा रंग ही खुशी और सुखमय वैवाहिक जीवन का आधार होता तो उस के दोस्त शायद खुशियों के सैलाब में डूबे होते, पर ऐसा कहां है?

पिकनिक के बाद थकेहारे शाम को वे  घर लौटे तो आलोक क ो अपेक्षाकृत प्रसन्न और मुखर देख कर अरुणा विस्मित सी थी. घर में खामोशी की चादर ओढ़ने  वाला आलोक  आज खुल कर बोल रहा था. कुछ हिम्मत कर के अरुणा बोली, ‘‘क्या बात है? आज आप काफी प्रसन्न नजर आ रहे हैं.’’

Famous Hindi Stories : लूडो की बाजी – जब एक खेल बना दो परिवारों के बीच लड़ाई की वजह

Famous Hindi Stories :  सुबीर और अनु लूडो खेल रहे थे. सुबीर की लाल गोटियां थीं और अनु की नीली. पर पता नहीं क्या बात थी कि सुबीर की गोटियां बारबार अनु की गोटियों से पिट रही थीं. जैसे ही कोई लाल गोटी जरा सा आगे बढ़ती, नीली गोटी झट से आ कर उसे काट देती. जब लगातार 5वीं बार ऐसा हुआ तो सुबीर चिढ़ गया, ‘‘तू हेराफेरी कर रहा है,’’ वह अनु से बोला.

‘‘वाह, मैं क्या कर रहा हूं…तुझे ठीक से खेलना ही नहीं आता, तभी तो हार रहा है. ले बच्चू, यह गई तेरी एक और गोटी,’’ अनु ताली बजाता हुआ बोला.

सुबीर का धैर्य अब समाप्त हो गया. लाख कोशिश करने पर भी उस की आंखों में आंसू आ ही गए.

‘‘रोंदू, रोंदू,’’ अनु उसे अंगूठा दिखाता हुआ बोला, ‘‘यह ले, मेरी दूसरी गोटी भी पार हो गई. यह ले, अब फिर से आ गए 6.’’

सुबीर उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं नहीं खेलता तेरे साथ, तू हेराफेरी करता है.’’

जीतती बाजी का ऐसा अंत होते देख कर अनु को भी क्रोध आ गया. उस ने सुबीर को एक घूंसा दे मारा.

अब घूंसा खा कर चुप रहने वाला सुबीर भी नहीं था. सो हो गई दोनों की जम कर हाथापाई. सुबीर ने अनु के बाल नोचे तो अनु ने उस की कमीज फाड़ दी. दोनों गुत्थमगुत्था होते हुए कोने में पड़ी हुई मेज से जा टकराए. सुबीर की तो पीठ थी मेज की ओर, सो उसे अधिक चोट नहीं आई, पर अनु का सिर मेज के नुकीले कोने पर जा लगा. उस के सिर में घाव हो गया और खून बहने लगा. खून देखते ही अनु चीखने लगा, ‘‘मां, मां, सुबीर मुझे मार रहा है.’’

खून देख कर अनु की मां घबरा गईं, ‘‘क्या हुआ मेरे बच्चे?’’

‘‘मां, सुबीर ने मेरी लूडो फाड़ दी और मुझे मारा भी है. मां, सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ अनु सिसकता हुआ बोला.

यह सब सुन कर अनु की मां सुबीर पर बरस पड़ीं, ‘‘जंगली कहीं का…मांबाप ने घर पर कुछ नहीं सिखाया क्या? खबरदार, इस ओर दोबारा कदम रखा तो…’’

सुबीर को बहुत गुस्सा आया कि अपने बेटे को तो कुछ कहा नहीं और मुझे डांट दिया. वह गुस्से से बोला, ‘‘आप का बेटा जंगली है. आप भी जंगली हैं. सारी कालोनी वाले कहते हैं कि आप झगड़ालू हैं.’’

‘‘बड़ों से बात करने तक की तमीज नहीं तुझे,’’ अनु की मां अपनी निंदा सुन कर चीखीं और उन्होंने सुबीर के गाल पर एक तमाचा दे मारा.

गाल पर हाथ रख कर सुबीर सीधा अपनी मां के पास गया. उस ने खूब बढ़ाचढ़ा कर सारा किस्सा सुनाया. सुन कर सुबीर की मां को भी क्रोध आ गया. उन्होंने भी अपने बेटे से कह दिया, ‘‘ऐसे लोगों के घर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

इस के बाद दोनों घरों की बोलचाल बंद हो गई.

वार्षिक परीक्षाएं आने वाली थीं, सो सुबीर और अनु ने सारा समय पढ़नेलिखने में लगा दिया. पर इस के बाद जब छुट्टियां आरंभ हुईं तो दोनों ऊबने लगे. अनु अपनी मां के साथ लूडो खेलने का प्रयत्न करता, पर वैसा मजा ही नहीं आता था जो सुबीर के साथ खेलने में आता था.

सुबीर अपने पिताजी के साथ क्रिकेट खेलता तो उसे भी बिलकुल आनंद नहीं आता था. वे स्वयं ही जानबूझ कर जल्दी ‘आउट’ हो जाते, परंतु सुबीर का शतक अवश्य बनवा देते.

सुबीर और अनु दोनों ही अब पछताने लगे कि नाहक बात बढ़ाई. एक दिन अनु ने देखा कि सुबीर दोनों घरों के बीच बनी बाड़ के पास बैठ कर कंचे खेल रहा है. अनु भी चुपचाप अपने कंचे ले कर अपनी बाड़ के पास बैठ कर खेलने लगा. कुछ देर दोनों चुपचाप खेलते रहे. फिर अनु ने देखा सुबीर का एक कंचा उस के बगीचे में आ गया है. उस ने कंचा उठा कर सुबीर को देते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारा है.’’

सुबीर भी बात करने का बहाना ढूंढ़ रहा था, तपाक से बोला, ‘‘कंचे खेलोगे?’’

अनु ने एक क्षण इधरउधर देखा. मैदान साफ पा कर वह बाड़ में से निकल कर सुबीर के बगीचे में पहुंच गया. थोड़ी देर बाद जब सुबीर की मां ने पुकारा तो वह चुपचाप वहां से खिसक कर अपने बगीचे में आ गया.

यह तरीका दोनों को ठीक लगा. अब जब भी अवसर मिलता, दोनों एकसाथ खेलते. मित्र के साथ खेलने का आनंद ही कुछ और होता है. अब बस, एक ही परेशानी थी कि उन्हें डरडर कर खेलना पड़ता था.

‘‘कितना अच्छा हो यदि हमारे माता- पिता भी फिर से मित्र बन जाएं,’’ एक दिन अनु बोला.

‘‘पर यह कैसे संभव होगा, समझ में नहीं आता. मैं तो अपने मातापिता के सामने तेरा नाम लेने से भी डरता हूं,’’ सुबीर उदास हो कर बोला.

एक दिन सुबह का समय था. सुबीर घर पर अकेला था. वह एक पुस्तक ले कर पेड़ पर चढ़ गया और पढ़ने लगा.

अचानक ‘धड़ाम’ की आवाज हुई. अनु ने आवाज सुनी तो वह तेजी से बाहर भागा. उस ने देखा कि सुबीर जमीन पर पड़ा कराह रहा है. वह तेजी से उस के पास गया और उसे खड़ा करने का प्रयत्न करने लगा.

‘‘अनु, मेरी पीठ में जोर की चोट लगी है. बहुत दर्द हो रहा है,’’ सुबीर दर्द से परेशान हो कर बोला.

अनु ने एक क्षण इधरउधर देखा, फिर जल्दी से बोला, ‘‘तुम हिलना मत, मैं सहायता के लिए अभी किसी को बुला कर लाता हूं.’’

अनु सीधा अपनी मां के पास गया और बोला, ‘‘मां, जल्दी चलो, सुबीर को बहुत चोट लगी है. उस की मां भी घर पर नहीं हैं…उसे बहुत दर्द हो रहा है.’’

अनु की मां सुबीर को गोद में उठा कर अंदर ले गईं. फिर उस की टांगों और बांहों की खरोंचों को साफ कर उन पर दवा लगा दी. अभी वे उस की पीठ पर मरहम लगा ही रही थीं कि सुबीर की मां बाजार से लौट आईं.

सुबीर के इर्दगिर्द कई लोगों को देख कर वे घबरा गईं. अनु उन को देखते ही बोला, ‘‘चाचीजी, सुबीर को बहुत दर्द हो रहा है, इसे जल्दी से अस्पताल ले चलिए,’’ उस की आंखों में आंसू तैर रहे थे.

सुबीर की मां अनु के सिर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘अरे, बेटा, रोते नहीं…सुबीर दोचार दिन में बिलकुल ठीक हो जाएगा. तुम इसे देखने आया करोगे न?’’

अनु की आंखों में चमक आ गई. वह उत्सुकता से मां की ओर देखने लगा.

‘‘हां, यह अवश्य आएगा. अनु पास रहेगा तो सुबीर भी अपना दर्द भूल जाएगा,’’ अनु की मां बोलीं.

सुबीर की मां अनु की मां की बात सुन कर बहुत प्रसन्न हुईं. फिर बोलीं, ‘‘आप ने सुबीर की इतनी देखभाल की. उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘सुबीर भी तो मेरा ही बेटा है…जैसा अनु वैसा सुबीर. अपने बेटे के लिए कुछ करने के लिए धन्यवाद कैसा,’’ अनु की मां ने उत्तर दिया. थोड़ी देर बाद अनु और सुबीर जब अकेले रह गए तो अनु बोला, ‘‘तू पुस्तक पढ़तापढ़ता सो गया था क्या, एकदम से गिर कैसे गया?’’

‘‘जानबूझ कर गिरा था.’’

‘‘क्या?’’ अनु की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘जानता है, हड्डीपसली भी टूट सकती थी.’’

‘‘जानता हूं,’’ सुबीर गंभीरता से बोला, ‘‘पर मुझे उस का भी दुख न होता. अब हम सब फिर से मित्र बन गए हैं. तेरी मां ने मुझे कितना प्यार किया…’’

‘‘और तेरी मां ने मुझे…अब हम कभी झगड़ा नहीं करेंगे,’’ अनु भी गंभीर हो कर बोला.

‘‘हां, और क्या…खेल में हारजीत तो लगी ही रहती है. वास्तव में जीतने का मजा आता ही हारने के बाद है,’’ सुबीर बोला.

अनु को अब हंसी आ गई, ‘‘बड़ी बुद्धिमानी की बातें कर रहा है. अब कभी हारने पर रोएगा तो नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ सुबीर भी हंसने लगा, ‘‘और न ही जीतने पर तुम्हें चिढ़ाऊंगा.’’

दोनों मित्र एक बार फिर मिल कर लूडो खेलने लगे.

Stories : कर्मफल – क्या हुआ था मुनीम के साथ

Stories :  गांव की एक कच्ची सड़क पर धूल उड़ाती सूरज की गाड़ी ईंटभट्ठे पर पहुंची. मुनीम उसे दफ्तर में ले आया. कुछ समय तक सूरज ने फाइलें देखीं, फिर मुनीम उसे भट्ठे का मुआयना कराने लगा, ताकि वह भट्ठे के काम को समझ सके और सभी मजदूर भी अपने छोटे ठाकुर से परिचित हो जाएं.

चलतेचलते सूरज और मुनीम एक ओर गए, जहां कई औरतें मिट्टी गूंधने में मसरूफ थीं. सूरज की नजर खूबसूरत चेहरे, गदराए जिस्म, नशीली आंखों और संतरे की फांकों जैसे होंठों वाली एक लड़की पर जा टिकी.

‘‘मुनीमजी, हम पहली बार मिट्टी में गुलाब खिला हुआ देख रहे हैं,’’ सूरज ने उस लड़की के बदन का बारीकी से मुआयना करते हुए कहा.

‘‘हुजूर, यहां हर रोज आप को ऐसे ही गुलाब खिले मिलेंगे…’’ मुनीम ने भी चुटकी ली.

‘‘मुनीमजी, उस लड़की को कितनी तनख्वाह मिलती है?’’ सूरज ने पूछा.

‘‘हुजूर, वह तनख्वाह पर नहीं,

60 रुपए की दिहाड़ी पर काम करती है,’’ मुनीम ने बताया.

‘‘बस, 60 रुपए हर रोज… आप इतनी कम दिहाड़ी दे कर उस के हुस्न की तौहीन कर रहे हैं,’’ सूरज ने शिकायती अंदाज में कहा.

‘‘सभी मजदूरों की दिहाड़ी दीवाली पर बढ़ाई जाती है. पिछली दीवाली पर उस की दिहाड़ी 50 रुपए से 60 रुपए हो गई थी. अगली दीवाली पर 70 रुपए कर देंगे,’’ मुनीम ने कहा.

‘‘वह लड़की कितने दिनों से यहां काम कर रही है?’’ सूरज ने पूछा.

‘‘हुजूर, तकरीबन 3 साल से,’’ मुनीम ने जवाब दिया.

‘‘3 साल में हर मजदूर को तरक्की मिल जाती है, पर अब तक उस लड़की की तरक्की क्यों नहीं हुई?’’ सूरज ने नाराजगी जताई.

‘‘हुजूर, दीवाली पर उस का प्रमोशन कर देंगे,’’ मुनीम तुरंत बोला.

अगले पड़ाव पर काम में मसरूफ दूसरी लड़कियों पर नजर डालते हुए सूरज बोला, ‘‘मुनीमजी, ईंटों का यह बगीचा खूबसूरत फूलों से भरा पड़ा है.’’

‘‘हुजूर, यह बगीचा आप का ही है. मैं तो सिर्फ माली हूं. इस बगीचे का जो फूल आप के मन को भाया करे, तो गुलाम को हुक्म कर दें. उसे आप की सेवा के लिए हाजिर कर दिया जाएगा,’’ मुनीम बेहिचक बोला.

पहले तो सूरज ने तीखी नजरों से मुनीम को देखा, फिर एक आजाद कहकहा मार कर बोला, ‘‘आप का बड़ा पारखी दिमाग है. इतनी सी देर में आप हमारी इच्छाओं से वाकिफ हो गए.’’

सूरज के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुनीम के चेहरे पर मुसकान उभर आई.

सूरज बोला, ‘‘मुनीमजी, हम सब से पहले उस लड़की का प्रमोशन करना चाहते हैं, जिस की मदमस्त जवानी ने हमारे अंदर हलचल सी मचा दी है.’’

अगले दिन मुनीम ने उस लड़की को सूरज की हवेली में पहुंचा दिया.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ सूरज ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सुमन…’’ उस लड़की ने शरमाते हुए अपना नाम बताया.

‘‘सुमन का मतलब जानती हो?’’ सूरज ने उस की तरफ बारीकी से नजर डालते हुए पूछा.

‘‘फूल…’’ सुमन बोली.

‘‘तुम भी फूल जैसी कोमल, खूबसूरत और महक वाली हो. तुम्हारे रूप के मुताबिक ही तुम्हारा काम होना चाहिए, इसीलिए तुम्हारे काम में बदलाव कर के तुम्हें तरक्की दे दी है. अब तुम भट्ठे पर काम करने के बजाय यहां का काम देखोगी,’’ सूरज ने उस को बताया.

सुमन अपने काम में मसरूफ हो गई और कुछ ही देर में सूरज के लिए कौफी बना लाई. कौफी का प्याला मेज पर रखने के लिए वह झुकी, तो उस के उभार बाहर झांकने लगे.

सुमन जैसे ही सीधी हुई, सूरज ने आ कर उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

‘‘छोटे ठाकुर, यह क्या कर रहे हैं आप? मैं गांव की लड़की हूं और यह सब नहीं करती,’’ सुमन सूरज की पकड़ से निकलने की कोशिश करने लगी.

सूरज ने बांहों का घेरा कस लिया और बोला, ‘‘शहर में यह सब आम बात है. तुम्हारी जवानी उफनती नदी की तरह है. मैं तुम्हारी जवानी के समंदर में डूब जाना चाहता हूं.’’

अगले ही पल सूरज की उंगलियां सुमन की छाती पर रेंगने लगीं.

‘‘ऐसा मत करो. गुदगुदी होती है,’’ सुमन ने एक अनोखी सी आह भरी. जब सूरज की छुअन से सुमन को मजा आने लगा, तो उस ने खुद को सूरज के हवाले कर दिया.

सूरज सुमन को बिस्तर पर ले गया. अगले ही पल एकएक कर के सुमन की देह से सारे कपड़े अलग होते चले गए. 2 जवान देहों के टकराने से उठा तूफान तब थमा, जब दोनों जिस्म थक कर निढाल पड़ गए.

मुनीम की मदद से सूरज की इन हरकतों को बढ़ावा मिलता रहा.

एक दिन मुनीम के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई, जब सूरज की नजर उस की जवान बेटी पर रुकी. वह किसी काम के सिलसिले में मुनीम के पास आई थी.

‘‘मुनीमजी, इस भट्ठे पर हम पहली बार इस लड़की को देख रहे हैं. अब तक उसे कहां छिपा कर रखा था?’’ सूरज ने बेहिचक पूछा.

‘‘छोटे ठाकुर, यह मेरी बेटी पुष्पा है,’’ मुनीम के चेहरे का रंग उतर गया.

‘‘मुनीमजी, पुष्पा हो या सुमन, एक ही बात है. दोनों का मतलब एक ही होता है… फूल. और तुम यह बात अच्छी तरह जानते हो कि हम खूबसूरत फूलों के बहुत शौकीन हैं. जो फूल हमें अच्छा लगता है, उसे सूंघते जरूर हैं,’’ सूरज ने कहा.

मुनीम का दिल धक से रह गया. उस ने एक बार फिर से याद कराया, ‘‘छोटे ठाकुर, पुष्पा मेरी बेटी है.’’

‘‘सुमन भी किसी की बेटी थी,’’ सूरज ने ताना कसा.

मुनीम को वहां से खिसकने में देर न लगी. लेकिन उस के कानों में सूरज के बोलने की आवाज आती रही, ‘‘मुनीमजी, मेरी बातों की टैंशन मत लेना. आज मुझे शराब कुछ ज्यादा चढ़ गई है, इसलिए जबान काबू में नहीं है.’’

मुनीम तेज कदमों से अपनी बेटी के साथ दफ्तर से बाहर निकल आया.

एक दिन अनहोनी घटना घट गई. उस दिन मुनीम ईंटभट्ठे से घर लौटा, तो चौंक पड़ा. मुनीम ने सूरज को घर से बाहर निकलते देखा.

मुनीम के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए. उस के कदम घर में घुसने के लिए तेजी से बढ़े.

पुष्पा दीवार से टेक लगाए बैठी सुबक रही थी. यह नागवार नजारा देख कर मुनीम गश खा कर कटे पेड़ की तरह धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ा.

लेखक- अंसारी एम. जाकिर

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