किसी से नहीं कहना: भाग 4- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

डिनर के बाद महेश ने उर्मी को उस के घर छोड़ दिया. बिस्तर पर लेट कर उर्वशी अपनी योजना को सफल होता देख खुश हो रही थी, किंतु आगे अब क्या और कैसे करना है, यह उस के समक्ष चुनौतीभरा कठिन प्रश्न था.

दूसरे दिन उर्वशी ने महेश को फोन कर के कहा, ‘‘हैलो महेश मैं 1 सप्ताह के लिए अपने घर जा रही हूं…’’

महेश ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा, ‘‘उर्मी, 1 सप्ताह, मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे बिना?’’

‘‘महेश हमेशा साथ रहना है तो यह जुदाई तो सहन करनी ही होगी. मैं हमारी शादी की बात करने जा रही हूं, आखिर मुझे भी तो जल्दी है न.’’

उर्वशी के मुंह से यह बात सुन कर महेश खुश हो गया. उर्वशी अपने घर चली गई, महेश से यह कह कर कि उसे फोन नहीं करना.

1 सप्ताह का कह कर गई उर्वशी 15 दिनों तक भी वापस नहीं आई.

इधर महेश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उर्वशी यही तो चाहती थी, अभी तक

सबकुछ उस की योजना के मुताबिक ही हो रहा था. 15 दिनों बाद उर्वशी वापस आई और उस ने महेश को फोन लगा कर बोला, ‘‘महेश एक बहुत ही दुखद समाचार ले कर आई हूं, शाम को डिनर पर मिलो तो तुम्हें सब विस्तार से बताऊंगी.’’

शाम को डिनर पर उर्वशी को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ उर्मी? घर पर मना तो नहीं कर दिया न?’’

बहुत ही उदास मन से उर्वशी ने उसे बताया, ‘‘महेश मेरे पापा ने मेरी शादी तय कर दी है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो उर्मी? तुम से बिना पूछे वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’’

‘‘मुझे नहीं पता था महेश कि मेरे महल्ले में रहने वाला राकेश बचपन से मुझे प्यार करता है. मैं ने तो कभी उस के साथ बात भी नहीं करी. एक दिन उस ने मेरे पापा से मिल कर कहा मैं आप की बेटी से बहुत प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं. मैं उस के लिए कुछ भी कर सकता हूं.

‘‘मेरे पापा ने यों ही उस से पूछ लिया कि क्या कर सकते हो तुम उस के लिए?

‘‘राकेश ने कुछ देर सोच कर कहा कि मैं शादी से पहले ही अपना बंगला, सारी दौलत आप की बेटी के नाम कर सकता हूं.

‘‘मेरे पापा चौंक गए और उन्होंने कहा कि यह क्या कह रहे हो? कथनी और करनी में बहुत फर्क है.

‘‘तब महेश उस ने सच में अपना बंगला मेरे नाम पर लिख दिया हालांकि मेरे पापा ने उसे मना भी किया. पापा के मुंह से यह सब सुनने के बाद मैं कुछ कह ही नहीं पाई, क्योंकि मेरे मम्मीपापा दोनों बहुत ही खुश थे.

‘‘मुझे समझते हुए उन्होंने कहा कि उर्मी जो लड़का तुम्हें इतना प्यार करता है, सोचो तुम्हें कितना खुश रखेगा. मैं कुछ नहीं कह पाई महेश.

महेश ने बौखला कर कहा, ‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है उर्मी, मैं भी अपनी पूरी दौलत तुम्हारे नाम कर सकता हूं.

प्यार के आगे दौलत की औकात ही क्या और फिर तुम भी तो मेरी ही रहोगी न.’’

अपनी योजना को सफल होता देख उर्वशी ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं जानती हूं महेश, लेकिन राकेश ने तो अपनी सारी दौलत मेरे नाम कर दी है, उसे कैसे मना करें?’’

‘‘उर्वशी तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे पापा से मिल कर उन्हें समझऊंगा और जो कुछ भी राकेश ने दिया है उसे वापस कर देंगे.’’

इस तरह बातें करते हुए दोनों ने डिनर पूरा किया और फिर महेश ने उर्वशी को घर छोड़ दिया. महेश की पत्नी पूजा को उस के अफेयर के बारे में पता था. इसीलिए उन के घर में रोज झगड़ा होता रहता था.

महेश जैसे ही अपने घर पहुंचा पूजा ने गुस्से में पूछा, ‘‘इतनी देर कहां थे महेश? कोई फोन नहीं, कोई खबर नहीं, आखिर ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम्हें क्या लगता है, मुझे कुछ पता नहीं, धोखा देना और गलतियां करना तो तुम्हारी आदत ही है.’’

पूजा बहुत ही स्वाभिमानी लड़की थी. उस ने महेश की इस हरकत के लिए उसे धिक्कारते हुए कहा, ‘‘महेश तुम एकसाथ 2 लड़कियों को धोखा दे रहे हो. कौन है उस से मुझे कोई मतलब नहीं, मुझे मतलब है तुम से और यह धोखा तुम मुझे दे रहे हो. मैं तुम्हारे जैसे घटिया धोखेबाज इंसान के साथ नहीं रह सकती. मैं उन लड़कियों में से नहीं हूं, जो पति को परमेश्वर मान कर इस तरह के अत्याचार घूंघट में रह कर ही सहन कर लेती हैं. यदि तुम्हें मुझ से नहीं किसी और से प्यार है तो मैं तुम्हें आजाद करती हूं. इतने सालों में शायद मेरा प्यार तुम्हें कम पड़ गया. अच्छा ही हुआ हमें अभी तक कोई संतान नहीं हुई वरना शायद मेरे पैरों में बेडि़यां पड़ जातीं.’’

महेश पूजा की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाया. उस पर तो अभी केवल उर्मी के प्यार का नशा चढ़ा हुआ था. उर्वशी के मन में चल रहे षड्यंत्र से अनजान महेश उसी के साथ उस के मातापिता के पास गया. वहां पहुंच कर महेश ने उर्मी के पिता के समक्ष अपने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा.

किंतु उर्वशी के पिता विवेक ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह संभव नहीं है, मैं ने उर्मी का रिश्ता तय कर दिया है, वह लड़का राकेश उसे बहुत प्यार करता है. मेरे मना करने के बाद भी उस ने अपनी सारी दौलत इस के नाम कर दी है, मैं उसे कैसे मना कर सकता हूं महेश? ’’

‘‘लेकिन उर्मी तो मुझ से प्यार करती है न अंकल, राकेश से नहीं. यह तो उर्मी के साथ भी अन्याय ही होगा. यदि आप अपनी बेटी को खुश देखना चाहते हैं तो आप वह रिश्ता तोड़ दीजिए, मैं उर्मी से बहुत प्यार करता हूं और उस के बिना जी नहीं पाऊंगा. मैं भी अपनी पूरी दौलत उर्मी के नाम लिखने को तैयार हूं.’’

विवेक अब कुछ नहीं कह पाए और उन्होंने हां कह दी, क्योंकि इस षड्यंत्र में वे शुरू से ही उर्वशी के साथ थे.

महेश बहुत ही जोश में था, वह तुरंत ही वहां से जाने लगा और जातेजाते उस ने उर्मी से कहा, ‘‘उर्मी आई लव यू, तुम्हारे लिए मैं कुछ

भी कर सकता हूं कुछ भी. मैं कल ही अपने वकील को साथ ले कर वापस आऊंगा और अपनी पूरी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूंगा. फिर हमें विवाह के बंधन में बंधनेसे कोई भी रोक नहीं पाएगा.’’

1 दिन की कह कर गया महेश 3 दिन तक वापस नहीं आया और न ही उस का कोई फोन आया. इधर उर्वशी और उस के मातापिता बेचैन होने लगे, उन्हें लगने लगा कि महेश कहीं कुछ समझ तो नहीं गया.

उर्वशी बारबार उसे फोन कर रही थी, किंतु उस का फोन स्विच औफ ही आ रहा था. देखतेदेखते पूरा सप्ताह बीत गया, किंतु महेश नहीं आया तब उर्वशी घबरा कर वापस देवास आ गई और महेश से मिलने उस के शोरूम पहुंच गई.

सेल्समैन ने उसे देखते ही कहा, ‘‘उर्मी मैडम महेश सर के मातापिता  की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह समाचार मिलते ही वह जबलपुर चले गए और उन का मोबाइल भी बंद आ रहा है.’’

इतना सुन कर उर्वशी ने खेद व्यक्त किया और अपने घर चली गई. उस के मन में यह संतोष था कि जैसा वह सोच रही थी वैसा कुछ नहीं है. महेश को कुछ भी पता नहीं चला, उस की योजना असफल नहीं हुई.

1 सप्ताह और बीतने के बाद महेश देवास वापस आया और सब से पहले उर्मी से मिलने उस के घर पहुंच गया.

किसी से नहीं कहना: भाग 3- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

नौकरी जौइन करने का वक्त आ गया और उर्वशी घर में सभी का आशीर्वाद ले कर चली गई.

औफिस जौइन करने के बाद वह उस स्कूल में पहुंची, जहां उस के बचपन की खौफनाक यादें जुड़ी हुईर् थीं. शिक्षिका के पद के लिए आवेदन पत्र देने के बहाने से वह कुछ टीचर्स से मिली और बातों ही बातों में खेलकूद की बातें छेड़ते हुए महेश के विषय में पूछ लिया. तब उसे पता चला कि महेश अब एक बहुत बड़े स्पोर्ट्स शोरूम का मालिक है.

महेश के विषय में यह सुन कर उर्वशी का खून खौल उठा. वह सोचने लगी कि उस की जिंदगी बरबाद करने वाला मौज की जिंदगी जी रहा है, किंतु अपनी उस गलती पर अब उसे अवश्य ही पछताना होगा.

इतना बड़ा जानामाना शोरूम ढूंढ़ने में उर्वशी को समय नहीं लगा. शोरूम के अंदर जैसे ही वह पहुंची उसे सामने ही महेश शान से बैठा हुआ दिखाई दिया. उसे देखते ही वह पहचान गई, वह थोड़ा सहम गई, किंतु तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया.

एक साधारण सी ड्रैस में बिना मेकअप के भी वह बहुत सुंदर लग रही थी. उर्वशी को देखते ही महेश की आंखें उस पर जा टिकीं. महेश को अनदेखा कर अंदर जा कर उस ने सेल्स मैन से कहा, ‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए.’’

‘‘जी मैडम अभी दिखाता हूं.’’

तब तक महेश वहां आ गया और सेल्स मैन से बोला, ‘‘तुम बैंक जा कर चैक जमा कर के आओ, कस्टमर को मैं अटैंड करता हूं.’’

‘‘कहिए मैडम क्या चाहिए आप को?’’

‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए,’’ उर्वशी ने जवाब दिया.

‘‘जी जरूर, क्या मैं पूछ सकता हूं, आप किस स्कूल की तरफ से आई हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं किसी भी स्कूल से नहीं आई हूं, मुझे अनाथालय के बच्चों के लिए कुछ सामान चाहिए.’’

‘‘अरे वाह तो समाजसेविका हैं आप.’’

‘‘जी आप ऐसा समझ सकते हैं.’’

‘‘वाह आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं, मैं आप को 20% का डिस्काउंट भी दूंगा.’’

‘‘आप बस जल्दी से मेरा सामान पैक करवा दीजिए.’’

अपना सामान ले कर उर्वशी बाहर निकल गई और एक गहरी सांस लेते हुए सोचने लगी कि जिस सुंदरता के पीछे उस का बचपन, हंसनाखेलना इस इंसान ने छीना था, उसी सुंदरता से वह भी उस की सारी खुशियां छीन लेगी.

अब उर्वशी हर 3-4 दिन में महेश के शोरूम पर आने लगी तथा कुछनकुछ खरीद कर वह अनाथालय के बच्चों में बांट दिया करती थी. अपने शोरूम में उर्वशी को देखते ही महेश का चेहरा खिल जाता था.

अब तक 3 महीने बीत चुके थे और उर्वशी उस से बहुत अच्छी तरह बात करने लगी थी. वह जब भी कुछ खरीदने आती महेश तुरंत उसे अटैंड करने स्वयं चला आता.

धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ने लगा और दोस्ती में बदल गया. उर्वशी ने महेश को अपना नाम उर्मी बताया था. अब तक वे दोनों एकदूसरे का फोन नंबर भी ले चुके थे. महेश महसूस कर रहा था कि उसे उर्मी की तरफ से बराबर लिफ्ट मिल रही है. अत: उस की हिम्मत भी बढ़ रही थी. अब उसे उर्मी का बेसब्री से इंतजार रहता था जिसे उर्वशी समझ रही थी. इसलिए अपनी योजना को आगे बढ़ाते हुए उर्वशी ने शोरूम पर आना बंद कर दिया ताकि महेश की बेचैनी बढ़ती जाए, वह उस का इंतजार करता रहे.

1 सप्ताह तक उस के नहीं आने पर महेश ने उसे फोन कर ही लिया, ‘‘हैलो उर्मी क्या हो गया है. तुम कितने दिनों से शोरूम पर नहीं आई?’’

‘‘मेरी तबीयत थोड़ी खराब है, महेश.’’

‘‘अरे मुझे क्यों नहीं बताया तुम ने? डाक्टर को दिखाया या नहीं? मैं ले कर चलता हूं, तुम अपने घर का पता भेजा, मैं तुरंत आ जाऊंगा.’’

‘‘नहींनहीं महेश उस की जरूरत नहीं है, मैं ने डाक्टर को दिखा लिया है, अब मैं ठीक हूं कल मैं खुद शोरूम पर आऊंगी.’’

‘‘अच्छा ठीक है,’’ महेश ने जवाब दिया.

दूसरे दिन जब उर्वशी शोरूम पर आई, महेश का चेहरा खिल गया और उस ने कहा, ‘‘उर्मी, मैं रोज तुम्हारा रास्ता देख रहा था, तुम ने बहुत इंतजार करवाया… तुम्हें आज मेरे साथ डिनर पर चलना होगा.’’

उर्वशी ने पहले तो मना किया, किंतु महेश के ज्यादा आग्रह करने पर मान गई.

तब महेश ने कहा, ‘‘उर्मी, मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’

बचपन में सुना हुआ यही वाक्य उसे याद आ गया और उस ने महेश से कहा, ‘‘ठीक है मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

शाम को ठीक 7 बजे महेश उर्वशी को लेने आया. उर्वशी नीचे खड़ी उस का इंतजार कर रही थी और तब उसे बचपन की बीती घटना याद आने लगी.

नीली जींस, हलके गुलाबी रंग के कुरते और खुले हुए बालों में उर्वशी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी.

उसे देखते ही महेश ने कहा, ‘‘उर्मी, तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो.’’

‘‘थैंक यू महेश, तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो,’’ ऐसा बोतले हुए उर्वशी कार में बैठ गई और दोनों होटल के लिए निकल गए.

वहां महेश ने पहले से ही टेबल रिजर्व कर रखी थी. यह उन दोनों की साथ में पहली डिनर की शाम थी. डिनर के बाद महेश ने उर्वशी को उस के घर छोड़ दिया.

इस तरह डिनर पर जाना अब दोनों के लिए आम बात हो गई थी. महेश मन ही मन

सच में उर्वशी से प्यार करने लगा था. यदि वह 2 दिन भी नहीं दिखे तो महेश बेचैन हो जाता था. उस का तब किसी काम में मन नहीं लगता था. अब वह अपने प्यार का इजहार करना चाहता था.

अत: एक दिन उस ने उर्वशी से कहा, ‘‘उर्मी आज मैं ने कैंडल लाइट डिनर रखा है, तुम चलोगी न?’’

उर्वशी ने खुशीखुशी बिना संकोच के कहा, ‘‘क्यों नहीं? जरूर चलूंगी.’’

जब दोनों कैंडल लाइट डिनर पर गए, तब महेश ने पहली बार होटल में उर्वशी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘उर्मी, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं’’

उर्वशी बिलकुल भी चौंकी नहीं और बोली, ‘‘मैं जानती हूं महेश, तुम्हारी आंखों में मुझे मेरे लिए प्यार दिखाई देता है, प्यार तो मैं भी तुम से करने लगी हूं, किंतु तुम्हारी पत्नी? वह भी तो है न? मैं किसी का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती.’’

‘‘नहीं उर्मी मैं वैसे भी अपनी पत्नी से अलग होने वाला हूं, हमारे विचार बिलकुल नहीं मिलते. वह भी मेरे साथ नहीं रहना चाहती,’’ महेश ने झठ बोलते हुए सफाई दी.

उर्वशी कुछ देर सोचने के बाद बोली, ‘‘किंतु महेश मैं ने अपने भविष्य का फैसला अपने मम्मीपापा पर छोड़ा है.’’

‘‘हां तो ठीक है न, तुम कहो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करने आ सकता हूं. इतना बड़ा शोरूम, बंगला, गाड़ी सब कुछ है मेरे पास, आखिर वे मना क्यों करेंगे?’’

‘‘ठीक है महेश, मैं कुछ ही दिनों में घर जाने वाली हूं, तब मैं पापा से बात करूंगी.’’

उर्वशी के मुंह से प्यार का इकरार सुनने के बाद वह उसे किस करने की कोशिश करने लगा, किंतु उर्वशी ने उसे मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं महेश यह सब विवाह के बाद ही अच्छा लगता है, पता नहीं मेरे पापा तुम्हारे साथ विवाह के लिए हां बोलेंगे या नहीं और मैं किसी को भी धोखा नहीं दे सकती. यदि मेरी शादी किसी और के साथ होगी तो यह किस मुझे शर्मिंदा करेगी.’’

अपने आप को संभालते हुए महेश ने कहा, ‘‘हां तुम ठीक कह रही हो उर्मी, मैं बहक गया था पर शादी किसी और से, यह बात तुम सोच भी कैसे सकती हो. हम इतना प्यार करते हैं तो हमारा मिलन तो निश्चित ही है.’

किसी से नहीं कहना: भाग 2- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

अपनी हवस शांत कर लेने के बाद महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी, यह बात किसी को भी नहीं बताना, यह बात तुम अगर अपने घर पर बताओगी तो तुम्हारे मम्मीपापा तुम्हें बहुत मारेंगे.’’

महेश ने बारबार प्यार से कह कर उस के दिमाग में यह भर दिया कि यह बात किसी को भी नहीं बतानी है. कमजोर पड़ चुकी उर्वशी खुद से कपड़े भी नहीं पहन पा रही थी, वह लगातार रो रही थी, तब महेश ने खुद ही उसे कपड़े पहना दिए.

उर्वशी के कोमल होंठ नीले पड़ चुके थे, उस की ऐसी हालत देख कर महेश ने उसे समझया, ‘‘उर्वशी, अपने घर जा कर कहना कि रेस के समय तुम बहुत जोर से गिर गई थीं, इसलिए चोट लग गई है.’’

उर्वशी कितनी भी छोटी हो, किंतु वह यह तो समझ ही गई थी कि उस के साथ यह बहुत ही बुरा हुआ है. वहां से निकल कर महेश ने उर्वशी को उस के घर के पास ही छोड़ दिया और खुद तेजी से कार भगा कर चला गया.

उर्वशी किसी तरह से कराहती हुई घर पहुंची और बैल बजाई. विनीता दरवाजा खोलने आई और उर्वशी की ऐसी हालत देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘क्या हुआ मेरी बच्ची को?’’

विनीता की चीख सुनते ही विवेक भी वहां आ गया और अपनी बेटी को इस हालत में देख कर वह भी घबरा गया. उर्वशी को विनीता ने गले से लगा लिया, वह जोरजोर से रो रही थी.

विवेक और विनीता हैरान थे, डरे हुए थे, ‘‘क्या हो गया बेटा?’’ वे बारबार पूछ रहे थे, किंतु उर्वशी कुछ भी नहीं बोल रही थी, केवल रोती ही जा रही थी.

आखिरकार उर्वशी ने उन्हें बताया, ‘‘मम्मी, मैं रेस के समय बहुत ज्यादा जोर से गिर गई थी. मुझे बहुत चोट आई है, सब दुख रहा है, मुझे नींद भी आ रही है, मुझे सोने दो मम्मा.’’

‘‘नहीं बेटा चलो पहले मैं तुम्हें नहला देती हूं, कपड़े बदल कर डाक्टर को भी दिखा देते हैं, तुम्हारे होंठों पर कितनी चोट लगी है,’’ कहते हुए उर्वशी का हाथ पकड़ कर विनीता उसे नहलाने ले गई.

उर्वशी को बाथरूम में नहलाते समय उस के कपड़ों पर खून के निशान देख कर विनीता चौंक कर चीख उठी, ‘‘उर्वशी बेटा यह ब्लड कैसे निकला तुम्हें?’’

विनीता घबरा गई और टौवेल में लपेट कर उर्वशी को बाहर ले आई. उस ने विवेक को उर्वशी के कपड़े दिखा कर रोते हुए कहा, ‘‘विवेक, हमारी बच्ची के साथ…’’

विवेक ने बीच में ही उसे रोक कर उर्वशी से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारे साथ क्या हुआ? किसी ने तुम्हारे साथ गंदी बात की है क्या? किस ने किया, कौन था वह बताओ?’’

उर्वशी ने डरी हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं रेस के समय गिर गई थी इसलिए लग गई है पापा.’’

तभी विनीता ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा सच बताओ, गिरने से ऐसी जगह पर चोट नहीं लगती.’’

उर्वशी ने कहा, ‘‘आप मुझे मारोगी न मम्मा.’’

‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं मारूंगी बेटा, कोई नहीं मारेगा, सब सचसच बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ?’’

‘‘मम्मा महेश सर ने कहा था कि यह बात किसी को भी मत बताना वरना वे लोग तुम्हें मारेंगे.’’

विनीता ने बहुत प्यार से पटा कर उस से सारी बात पूछी. उर्वशी ने रोतेरोते सबकुछ बता दिया. मांबाप की तो मानो दुनिया ही लुट गई, अपनी बेटी की ऐसी दुर्दशा पर वे दोनों फूटफूट कर रोने लगे. वे खुद को दोषी समझने लगे कि उन्होंने उस इंसान पर भरोसा ही क्यों किया? उर्वशी के दादादादी भी अपनी पोती की ऐसी हालत देख कर रोने लगे.

तभी विवेक ने कहा, ‘‘विनीता, चलो पुलिस में शिकायत दर्ज करा देते हैं, उस पापी को इस कुकर्म की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

किंतु विनीता ने साफ इनकार कर दिया, ‘‘नहीं, विवेक हम मध्यवर्गीय लोग हैं, यदि एक बार हमारी बच्ची के विषय में यह पता चल जाएगा तो समाज में उस का जीना मुश्किल हो जाएगा. लोग उसे अलग नजरों से देखेंगे और जब वह बड़ी होगी तो कौन करेगा इस दाग के साथ उस से शादी?’’

तभी विनीता ने उर्वशी से कहा, ‘‘उर्वशी बेटा यह बात किसी को भी मत बताना, अपने होंठों पर ताला लगा लो और जितनी जल्दी हो सके इसे भूलने की कोशिश करना.’’

विवेक ने जब डाक्टर के पास चलने को कहा तो बदनामी के डर से विनीता ने मना कर दिया और कहा, ‘‘घर पर ही दवा लगा कर ठीक करेंगे.’’

उर्वशी सोचने लगी कि जो बात उसे सर ने कही थी कि किसी को भी नहीं बताना, वही बात मम्मी भी कह रही हैं

अपनी मम्मी की बात मान कर उर्वशी ने अपने होंठों को तो सिल लिया, लेकिन अपने मन का वह क्या करे, जिस से वह घटना निकलती ही नहीं? उस भयानक घटना का खौफ हर समय उस के दिल में साया बन कर मंडराने लगा.

विवेक और विनीता ने मिल कर यह निर्णय लिया कि वे देवास छोड़ कर कहीं और चले जाएंगे ताकि नए माहौल में उर्वशी यह सब भूल जाए. जल्द ही विवेक ने स्कूल जा कर उर्वशी का नाम वहां से कटवा लिया और अपना ट्रांसफर भोपाल करवा लिया. वे देवास छोड़ कर चले गए.

शारीरिक तौर पर उर्वशी धीरेधीरे स्वस्थ हो रही थी, किंतु मानसिक तौर पर वह सदमे में ही थी. भोपाल आ कर उर्वशी को स्कूल में दाखिला मिल गया. पूरा परिवार हर समय उर्वशी को खुश रखने की कोशिश में लगा रहता था. लाख कोशिश के बाद भी उर्वशी के चेहरे पर पहले की तरह मुसकान नहीं आ पा रही थी.

उधर कुछ दिनों तक महेश छुट्टी पर ही रहा. जब उसे विश्वास हो गया कि उस के खिलाफ कहीं कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है तभी उस ने पुन: स्कूल आना शुरू किया. तब उसे पता चला कि उर्वशी ने तो स्कूल छोड़ दिया है और वह लोग कहीं और चले गए हैं. अब महेश अपने द्वारा किए गए पाप के डर से मुक्त हो गया. ऐसे लोग शायद जानते हैं कि बदनामी के डर से पीडि़त लड़की का परिवार चुप्पी साध लेगा.

धीरेधीरे समय व्यतीत हो रहा था, उर्वशी अब बड़ी हो रही थी और बड़े होने के साथ ही वह यह भी समझ चुकी थी कि उस के साथ बलात्कार हुआ था. ‘किसी से भी कुछ नहीं कहना, अपने होंठों पर ताला लगा लो,’ ये शब्द उसे आज भी याद थे जो उसे परेशान कर देते थे, साथ ही उसे अपने पापा के शब्द भी याद थे कि उस पापी को इस कुकर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. अभी तक वह अपने साथ हुई जबरदस्ती को भूल नहीं पाई थी.

वक्त के साथसाथ उर्वशी की नफरत भी बढ़ती ही जा रही थी. वह अपने मन में अब तक यह दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि किसी भी कीमत पर उस चरित्रहीन इंसान से बदला लेना ही है. उर्वशी की ऐसी मनोदशा से उस का परिवार अनजान था. वे सब इस भ्रम में थे कि उर्वशी उस घटना को भूल चुकी है, लेकिन नफरत और बदले का ज्वालामुखी जो उर्वशी के अंदर धधक रहा था, उस का शांत होना इतना आसान नहीं था.

धीरेधीरे 12 वर्ष बीत गए अब तक उर्वशी की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. अपने कालेज के कैंपस में चयनित होने के उपरांत नौकरी के लिए उर्वशी ने देवास का चयन किया जहां वह इस खौफनाक घटना का शिकार हुई थी.

उर्वशी का यह निर्णय देख कर विवेक चिंताग्रस्त हो गए और फिर उर्वशी से पूछा, ‘‘बेटा उर्वशी देवास ही क्यों?’’

उर्वशी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘पापा वही तो सब से पास है, जब भी मन करेगा आसानी से यहां आप के पास आ सकूंगी.’’

उर्वशी से बात करने के बाद रात में विवेक ने विनीता से कहा, ‘‘उर्वशी ने वही शहर क्यों पसंद किया, उस के पास और भी चौइस थी? मुझे चिंता हो रही है.’’

‘‘नहीं विवेक ऐसी तो कोई बात नहीं है, 12 वर्ष बीत गए हैं, तब वह बहुत छोटी थी, तुम बेकार में चिंता कर रहे हो.’’

किसी से नहीं कहना: भाग 1- उर्वशी के साथ उसके टीचर ने क्या किया?

मध्यवर्ग के विवेक और विनीता अपनी इकलौती बेटी उर्वशी और वृद्ध मातापिता के साथ बहुत ही सुकून के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. परिवार छोटा ही था, घर में जरूरत की सभी सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. ज्यादा की लालसा उन के मन में बिलकुल नहीं थी. यदि कोई चाहत थी तो केवल इतनी कि अपनी बेटी को खूब पढ़ालिखा कर बहुत ही अच्छा भविष्य दे पाएं.

उर्वशी भी अपने मातापिता की इस चाह पर खरा उतरने की पूरी कोशिश कर रही थी. 10 वर्ष की उर्वशी पढ़ने में होशियार होने के साथ ही खेलकूद में भी बहुत अच्छी थी और जीत भी हासिल करती थी. वह स्कूल में सभी टीचर्स की चहेती बन गई थी.

विनीता अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ बहुत ध्यान देती थी. उसे रोज पढ़ाना उस की दिनचर्या का सब से महत्त्वपूर्ण कार्य था. विवेक औफिस से आने के बाद उसे खेलने बगीचे में ले जाते थे. रात को अपने दादादादी के साथ कहानियां सुन कर उस के दिन का अंत होता था. इस तरह से उस की इतने अच्छे संस्कारों के बीच परवरिश हो रही थी.

उर्वशी 5वीं कक्षा में थी, वह प्रतिदिन बस से ही स्कूल आतीजाती थी. विनीता रोज उसे बस में बैठाने और लेने आती थी. यदि किसी दिन बस आने में थोड़ी भी देर हो जाए तो विनीता बस के ड्राइवर को फोन लगा देती थी.

बस से उतरते ही उर्वशी अपनी मां को समझती, ‘‘अरे मम्मी कभीकभी किसी बच्चों की मांएं आने में देर कर देती हैं, इसलिए देर हो जाती है. जब तक बच्चों की मांएं नहीं आतीं तब तक छोटे बच्चों को बस से नीचे भी नहीं उतरने देते. आप क्यों चिंता करती हो? हमारी बस में और स्कूल में सब लोग बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘अच्छा मेरी मां मैं समझ गई.’’

उर्वशी के स्कूल में हफ्ते में 2 दिन खेलकूद का पीरियड होता था. इस पीरियड का बच्चे बहुत ही बेसब्री से इंतजार करते थे. उर्वशी को भी इंतजार रहता था. वह बहुत तेज दौड़ती थी. खेलकूद के टीचर महेश सर जिन की उम्र लगभग 26-27 वर्ष होगी, हमेशा उर्वशी की तरफ सब से ज्यादा ध्यान देते थे और उस की पीठ थपथपाना, उस की तारीफ करना सर की आदत में शामिल हो चुका था. छोटी उर्वशी भी उन के साथ बहुत घुलमिल गई थी.

महेश की नीयत इस बच्ची के लिए खराब हो चुकी थी. हवस दिनबदिन उस के ऊपर हावी होती जा रही थी. अब वह मौके की तलाश में था कि किस तरह अपनी हवस को शांत करे. चंचल और सुंदर उर्वशी को अपना शिकार बना कर स्वयं कैसे बच निकलना है, यह पूरी योजना एक षड्यंत्र के तहत महेश के मनमस्तिष्क में चल रही थी.

एक दिन उर्वशी को अपने पास बुला कर उस ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा अभी एक इंटर स्कूल कंपीटिशन होने वाला है और तुम तो कितना तेज दौड़ती हो. मैं ने उस के लिए तुम्हारा नाम लिखवा दिया है. अब तुम्हें और ज्यादा प्रैक्टिस करनी होगी. तुम यह बात अपने घर पर बता देना.’’

उर्वशी सर के मुंह से यह सुन कर बहुत खुश हो गई, ‘‘जी सर मैं बहुत मेहनत करूंगी और जीतूंगी भी. मैं आज ही मम्मीपापा को यह बता दूंगी. मेरे घर में सब बहुत खुश हो जाएंगे. सर हमें कब जाना है?’’

‘‘वह मैं तुम्हें बता दूंगा और यह बात अपनी क्लास में अभी किसी को भी मत बताना वरना सब ईर्ष्या करने लगेंगे.’’

‘‘ठीक है सर, मैं किसी को भी नहीं बताऊंगी… हम जीतने के बाद ही सब को बताएंगे.’’

‘‘हां बिलकुल,’’ महेश ने उत्तर दिया.

‘‘उर्वशी लो चौकलेट खाओगी?’’

‘‘नहीं सर मेरी मम्मी ने कहा है, किसी से भी खाने की कोई चीज नहीं लेना.’’

‘‘अरे लेकिन मैं तो तुम्हारा सर हूं, मुझ से लेने के लिए तुम्हारी मम्मी कभी मना नहीं करेंगी. अच्छा बोलो, तुम्हें क्या पसंद है, मैं तुम्हारे लिए वही चीज ले कर आऊंगा?’’

‘‘नहीं सर मुझे कुछ नहीं चाहिए,’’ उर्वशी इतना कह कर वहां से चली गई.

उर्वशी ने अपने घर जा कर जब इंटर स्कूल कंपीटिशन की बात बताई तो घर में सभी लोग बहुत खुश गए.

अब महेश की बेचैनी बढ़ने लगी थी, वह जल्दीसेजल्दी अपनी कामेच्छा पूरी करना चाहता था.

बुधवार को खेलकूद के पीरियड के दौरान महेश ने उर्वशी को बुला कर कहा, ‘‘उर्वशी, शनिवार को कंपीटिशन है. तुम सुबह 9 बजे स्कूल यूनिफौर्म पहन कर तैयार रहना. मेरे साथ2 बच्चे और भी होंगे, जो हमारे साथ ही चलेंगे.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर उर्वशी जाने लगी.

तभी महेश ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा जीतना है, अपने सर की इच्छा पूरी करोगी न?’’

‘‘जी सर मैं बहुत तेज दौड़ूंगी.’’

उर्वशी ने घर पहुंच कर अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी शनिवार को मेरी रेस है, मुझे यूनिफौर्म पहन कर जाना है, सुबह 9 बजे सर आएंगे और खेलकूद खत्म होने पर सर ही मुझे वापस भी छोड़ देंगे.’’

‘‘ठीक है उर्वशी बेटा, तुम हिम्मत से दौड़ना, डरना नहीं.’’

‘‘हां मम्मी.’’

आज शनिवार का दिन था, सुबह 9 बजे महेश कार में 2 बच्चों को बैठा कर उर्वशी को लेने उस के घर आ गया. उर्वशी के मम्मीपापा उसे नीचे ले कर खड़े महेश का इंतजार कर रहे थे. महेश ने कार में बैठेबैठे ही विवेक और विनीता को गुडमौर्निंग कहा.

वे कुछ पूछते उस से पहले ही महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी बेटा जल्दी चलो देर हो रही है.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर उर्वशी कार में बैठ गई.

तभी विनीता बोली, ‘‘सर ध्यान रखना उर्वशी का.’’

‘‘जी मैडम, आप चिंता न करें, मैं खुद उर्वशी को वापस छोड़ने भी आ जाऊंगा,’’ कह कर महेश ने कार चला दी.

कुछ दूर जा कर उस ने उन दोनों बच्चों को जो उस की पहचान के थे, उतार दिया.

इन बच्चों को वह यों ही घुमाने के लिए ले आया था ताकि उर्वशी के मातापिता ऐसा समझें कि दूसरे बच्चे भी साथ हैं.

अब कार में महेश और उर्वशी ही थे. उर्वशी ने पूछा, ‘‘सर वे दोनों बच्चे कहां गए?’’

‘‘उर्वशी, पहले कह रहे थे कि हमें भी चलना है खेलकूद देखने पर फिर पता नहीं क्यों कहने लगे हमें नहीं चलना, इसीलिए उन्हें छोड़ दिया.’’

महेश ने कार को काफी तेज रफ्तार से चला कर एक सुनसान रास्ते पर डाल दिया. नन्ही उर्वशी महेश के मन में चल रहे पाप से अनजान थी. इतना सोचनेसमझने की उस में बुद्धि ही नहीं थी. वह तो बाहर की तरफ देख कर खुश हो रही थी. उसे महेश सर पर विश्वास था, इसलिए डर का एहसास नहीं था. कुछ दूर जा कर महेश ने झडि़यों के बीच अपनी कार को रोक दिया.

यह देख उर्वशी ने कहा, ‘‘क्या हो गया सर? यहां तो जंगल जैसा दिख रहा है, हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘उर्वशी लगता है, कार खराब हो गई है, तुम पीछे की सीट पर बैठ जाओ, मैं कार ठीक करता हूं.’’

उर्वशी बात मान कर पीछे की सीट पर जा कर बैठ गई. महेश इसी मौके की तलाश में था. वह भी जल्दी से पीछे आ कर बैठ गया.

महेश ने कहा, ‘‘उर्वशी, तुम मुझे बहुत प्यारी लगती हो, आओ मेरे पास आओ, मेरी गोदी में आ कर बैठ जाओ.’’

‘‘नहीं सर मुझे गोदी में नहीं बैठना,’’ उर्वशी ने जवाब दिया.

‘‘क्यों उर्वशी, क्या तुम अपने सर से प्यार नहीं करती? आ जाओ, मैं तुम्हें आज एक नया खेल सिखाऊंगा.’’

‘‘नहीं मैं गोदी में नहीं आऊंगी, मेरी मम्मी मना करती हैं.’’

उर्वशी के इनकार करने पर महेश उसे जबरदस्ती अपनी बांहों में भरने लगा.

उर्वशी चिल्लाई, ‘‘सर, मेरी मम्मी मना करती हैं… आप ने मुझे किस क्यों किया?’’

‘‘उर्वशी वह तो तुम्हारी मम्मा गंदे लोगों के लिए बोलती हैं, मैं तो तुम्हारा सर हूं न.’’ इतना कहतेकहते महेश आवेश में आ गया, छोटी सी उर्वशी और कुछ भी न कर सके, इसलिए अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया. 6 फुट के ऊंचे पूरे जवान ने नन्ही सी बच्ची के कमजोर शरीर को अपने आगोश में भर लिया और जी भर कर उस के कमसिन नाजुक शरीर के साथ मनमानी कर अपनी महीनों की हवस को शांत करने लगा. उर्वशी दर्द से कराहती रही, छटपटाती रही, लेकिन कुछ कर नहीं पाई और कुछ कह भी नहीं पाई.

सच्चाई: आखिर क्यों मां नहीं बनना चाहती थी सिमरन?

पड़ोस में आते ही अशोक दंपती ने 9 वर्षीय सपना को अपने 5 वर्षीय बेटे सचिन की दीदी बना दिया था. ‘‘तुम सचिन की बड़ी दीदी हो. इसलिए तुम्हीं इस की आसपास के बच्चों से दोस्ती कराना और स्कूल में भी इस का ध्यान रखा करना.’’ सपना को भी गोलमटोल सचिन अच्छा लगा था. उस की मम्मी तो यह कह कर कि गिरा देगी, छोटे भाई को गोद में भी नहीं उठाने देती थीं.

समय बीतता रहा. दोनों परिवारों में और बच्चे भी आ गए. मगर सपना और सचिन का स्नेह एकदूसरे के प्रति वैसा ही रहा. सचिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मणिपाल चला गया. सपना को अपने ही शहर में मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया था. फिर एक सहपाठी से शादी के बाद वह स्थानीय अस्पताल में काम करने लगी थी. हालांकि सचिन के पापा का वहां से तबादला हो चुका था.

फिर भी वह मौका मिलते ही सपना से मिलने आ जाता था. सऊदी अरब में नौकरी पर जाने के बाद भी उस ने फोन और ईमेल द्वारा संपर्क बनाए रखा. इसी बीच सपना और उस के पति सलिल को भी विदेश जाने का मौका मिल गया. जब वे लौट कर आए तो सचिन भी सऊदी अरब से लौट कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रहा था.

‘‘बहुत दिन लगा दिए लौटने में दीदी? मैं तो यहां इस आस से आया था कि यहां आप अपनी मिल जाएंगी. मम्मीपापा तो जबलपुर में ही बस गए हैं और आप भी यहां से चली गईं. इतने साल सऊदी अरब में अकेला रहा और फिर यहां भी कोई अपना नहीं. बेजार हो गया हूं अकेलेपन से,’’ सचिन ने शिकायत की. ‘‘कुंआरों की तो साथिन ही बेजारी है साले साहब,’’ सलिल हंसा, ‘‘ढलती जवानी में अकेलेपन का स्थायी इलाज शादी है.’’

‘‘सलिल का कहना ठीक है सचिन. तूने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ सपना ने पूछा.

‘‘सऊदी अरब में और फिर यहां अकेले रहते हुए शादी कैसे करता दीदी? खैर, अब आप आ गई हैं तो लगता है शादी हो ही जाएगी.’’

‘‘लगने वाली क्या बात है, शादी तो अब होनी ही चाहिए… और यहां अकेले का क्या मतलब हुआ? शादी जबलपुर में करवा कर यहां आ कर रिसैप्शन दे देता किसी होटल में.’’

‘‘जबलपुर वाले मेरी उम्र की वजह से न अपनी पसंद का रिश्ता ढूंढ़ पा रहे हैं और न ही मेरी पसंद को पसंद कर रहे हैं,’’ सचिन ने हताश स्वर में कहा, ‘‘अब आप समझा सको तो मम्मीपापा को समझाओ या फिर स्वयं ही बड़ी बहन की तरह यह जिम्मेदारी निभा दो.’’ ‘‘मगर चाचीचाचाजी को ऐतराज क्यों है? तेरी पसंद विजातीय या पहले से शादीशुदा बालबच्चों वाली है?’’ सपना ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, स्वजातीय और अविवाहित है और उसे भविष्य में भी संतान नहीं चाहिए. यही बात मम्मीपापा को मंजूर नहीं है.’’

‘‘मगर उसे संतान क्यों नहीं चाहिए और अभी तक वह अविवाहित क्यों है?’’ सपना ने शंकित स्वर में पूछा. ‘‘क्योंकि सिमरन इकलौती संतान है. उस ने पढ़ाई पूरी की ही थी कि पिता को कैंसर हो गया और फिर मां को लकवा. बहुत इलाज के बाद भी दोनों को ही बचा नहीं सकी. मेरे साथ ही पढ़ती थी मणिपाल में और अब काम भी करती है. मुझ से शादी तो करना चाहती है, लेकिन अपनी संतान न होने वाली शर्त के साथ.’’

‘‘मगर उस की यह शर्त या जिद क्यों है?’’

‘‘यह मैं ने नहीं पूछा न पूछूंगा. वह बताना तो चाहती थी, मगर मुझे उस के अतीत में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो उसे सुखद भविष्य देना चाहता हूं. उस ने मुझे बताया था कि मातापिता के इलाज के लिए पैसा कमाने के लिए उस ने बहुत मेहनत की, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया, जिस के लिए कभी किसी से या स्वयं से लज्जित होना पड़े. शर्त की कोई अनैतिक वजह नहीं है और वैसे भी दीदी प्यार का यह मतलब यह तो नहीं है कि उस में आप की प्राइवेसी ही न रहे? मेरे बच्चे होने न होने से मम्मीपापा को क्या फर्क पड़ता है? जतिन और श्रेया ने बना तो दिया है उन्हें दादादादी और नानानानी. फूलफल तो रही है उन की वंशबेल,’’ फिर कुछ हिचकते हुए बोला, ‘‘और फिर गोद लेने या सैरोगेसी का विकल्प तो है ही.’’

‘‘इस विषय में बात की सिमरन से?’’ सलिल ने पूछा. ‘‘उसी ने यह सुझाव दिया था कि अगर घर वालों को तुम्हारा ही बच्चा चाहिए तो सैरोगेसी द्वारा दिलवा दो, मुझे ऐतराज नहीं होगा. इस के बावजूद मम्मीपापा नहीं मान रहे. आप कुछ करिए न,’’ सचिन ने कहा, ‘‘आप जानती हैं दीदी, प्यार अंधा होता है और खासकर बड़ी उम्र का प्यार पहला ही नहीं अंतिम भी होता है.’’

‘‘सिमरन का भी पहला प्यार ही है?’’ सपना ने पूछा. सचिन ने सहमति में सिर हिलाया, ‘‘हां दीदी, पसंद तो हम एकदूसरे को पहली नजर से ही करने लगे थे पर संयम और शालीनता से. सोचा था पढ़ाई खत्म करने के बाद सब को बताएंगे, लेकिन उस से पहले ही उस के पापा बीमार हो गए और सिमरन ने मुझ से संपर्क तक रखने से इनकार कर दिया. मगर यहां रहते हुए तो यह मुमकिन नहीं था. अत: मैं सऊदी अरब चला गया. एक दोस्त से सिमरन के मातापिता के न रहने की खबर सुन कर उसी की कंपनी में नौकरी लगने के बाद ही वापस आया हूं.’’ ‘‘ऐसी बात है तो फिर तो तुम्हारी मदद करनी ही होगी साले साहब. जब तक अपना नर्सिंगहोम नहीं खुलता तब तक तुम्हारे पास समय है सपना. उस समय का सदुपयोग तुम सचिन की शादी करवाने में करो,’’ सलिल ने कहा.

‘‘ठीक है, आज फोन पर बात करूंगी चाचीजी से और जरूरत पड़ी तो जबलपुर भी चली जाऊंगी, लेकिन उस से पहले सचिन मुझे सिमरन से तो मिलवा,’’ सपना ने कहा. ‘‘आज तो देर हो गई है, कल ले चलूंगा आप को उस के घर. मगर उस से पहले आप मम्मी से बात कर लेना,’’ कह कर सचिन चला गया. सपना ने अशोक दंपती को फोन किया. ‘‘कमाल है सपना, तुझे डाक्टर हो कर भी इस रिश्ते से ऐतराज नहीं है?  तुझे नहीं लगता ऐसी शर्त रखने वाली लड़की जरूर किसी मानसिक या शारीरिक रोग से ग्रस्त होगी?’’ चाची के इस प्रश्न से सपना सकते में आ गई.

‘‘हो सकता है चाची…कल मैं उस से मिल कर पता लगाने की कोशिश करती हूं,’’ उस ने खिसियाए स्वर में कह कर फोन रख दिया.

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा. ‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सुझाव दिया. अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली. चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए. ‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के सुझाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’ सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया. ‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’ ‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी. ‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’ सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’ ‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी. ‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी. सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

‘‘आप मिली हैं न, जीजाजी से भी तो मिलवाना है इसे,’’ सचिन बोला, ‘‘आप घर पर ही आराम करिए, मैं सिमरन को ले कर वहीं आ जाऊंगा.’’

‘‘इस से अच्छा और क्या होगा, जरूर आओ,’’ सपना मुसकराई, ‘‘खाना हमारे साथ ही खाना.’’ शाम को सचिन और सिमरन आ गए. सलिल की चुटकियों से शीघ्र ही वातावरण अनौपचारिक हो गया. जब किसी काम से सपना किचन में गई तो सचिन उस के पीछेपीछे आया.

‘‘आप ने मम्मी से बात की दीदी?’’

‘‘हां, हालचाल पूछ लिया सब का.’’

‘‘बस हालचाल ही पूछा? जो बात करनी थी वह नहीं की? आप को हो क्या गया है दीदी?’’ सचिन ने झल्ला कर पूछा. ‘‘तजरबा, सही समय पर सही बात करने का. सिमरन कहीं भागी नहीं जा रही है, शादी करेगी तो तेरे से ही. जहां इतने साल सब्र किया है थोड़ा और कर ले.’’ ‘‘इस के सिवा और कर भी क्या सकता हूं,’’ सचिन ने उसांस ले कर कहा. इस के बाद सपना ने सिमरन से और भी आत्मीयता से बातचीत शुरू कर दी. यह सुन कर कि सचिन औफिस के काम से मुंबई जा रहा है, सपना उस शाम सिमरन के घर चली गई. उस का घर बहुत ही सुंदर था. लगता था बनवाने वाले ने बहुत ही शौक से बनवाया था. ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने यह घर न बेच कर सिमरन. जाहिर है, शादी के बाद भी यहीं रहना चाहोगी. सचिन तैयार है इस के लिए?’’ ‘‘सचिन तो बगैर किसी शर्त के मेरी हर बात मानने को तैयार है, लेकिन मैं बगैर उस के मम्मीपापा की रजामंदी के शादी नहीं कर सकती. मांबाप से उन के बेटे को विमुख कभी नहीं करूंगी. प्रेम तो विवेकहीन और अव्यावहारिक होता है दीदी. उस के लिए सचिन को अपनों को नहीं छोड़ने दूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत ही अच्छी बात है सिमरन. चाचाचाचीजी यानी सचिन के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं. अगर उन्हें ठीक से समझाया जाए यानी तुम्हारी शर्त का कारण बताया जाए तो वे भी सहर्ष मान जाएंगे. लेकिन सचिन ने उन्हें कारण बताया ही नहीं है.’’ ‘‘बताता तो तब न जब उसे खुद मालूम होता. मैं ने उसे कई बार बताने की कोशिश की, लेकिन वह सुनना ही नहीं चाहता. कहता है कि जब मेरे साथ हो तो भविष्य के सुनहरे सपने देखो, अतीत की बात मत करो. मुझे भी अतीत याद रखने का कोई शौक नहीं है दीदी, मगर अतीत से या जीवन से जुड़े कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें चाह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, उन के साथ जीना मजबूरी होती है.’’ ‘‘अगर चाहो तो उस मजबूरी को मुझ से बांट सकती हो सिमरन,’’ सपना ने धीरे से कहा. ‘‘मैं भी यही सोच रही थी दीदी,’’ सिमरन ने जैसे राहत की सांस ली, ‘‘अकसर देर से जाने और बारबार छुट्टी लेने के कारण न नौकरी पर ध्यान दे पा रही थी न पापा के इलाज पर, अत: मैं नौकरी छोड़ कर पापा को इलाज के लिए मुंबई ले गई थी. वहां पैसा कमाने के लिए वैक्यूम क्लीनर बेचने से ले कर अस्पताल की कैंटीन, साफसफाई और बेबी सिटिंग तक के सभी काम लिए. फिर मम्मीपापा के ऐतराज के बावजूद पैसा कमाने के लिए 2 बार सैरोगेट मदर बनी. तब तो मैं ने एक मशीन की भांति बच्चों को जन्म दे कर पैसे देने वालों को पकड़ा दिया था, लेकिन अब सोचती हूं कि जब मेरे अपने बच्चे होंगे तो उन्हें पालते हुए मुझे जरूर उन बच्चों की याद आ सकती है, जिन्हें मैं ने अजनबियों पर छोड़ दिया था. हो सकता है कि विचलित या व्यथित भी हो जाऊं और ऐसा होना सचिन और उस के बच्चे के प्रति अन्याय होगा. अत: इस से बेहतर है कि यह स्थिति ही न आने दूं यानी बच्चा ही पैदा न करूं. वैसे भी मेरी उम्र अब इस के उपयुक्त नहीं है. आप चाहें तो यह सब सचिन और उस के परिवार को बता सकती हैं. उन की कोई भी प्रतिक्रिया मुझे स्वीकार होगी.’’

‘‘ठीक है सिमरन, मैं मौका देख कर सब से बात करूंगी,’’ सपना ने सिमरन को आश्वासन दिया. सिमरन ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था. उस की भावनाओं का खयाल रखना जरूरी था. सचिन के साथ तो खैर कोई समस्या नहीं थी, उसे तो सिमरन हर हाल में ही स्वीकार थी, लेकिन उस के घर वालों से आज की सचाई यानी सैरोगेट मदर बन चुकी बहू को स्वीकार करवाना आसान नहीं था. उन लोगों को तो सिमरन की बड़ी उम्र बच्चे पैदा करने के उपयुक्त नहीं है कि दलील दे कर समझाना होगा. सचिन के प्यार के लिए इतने से कपट का सहारा लेना तो बनता ही है.

आखिरी बिछोह: भाग-4

तुम्हें क्या पता है वह जिन दोस्तों की पत्नियों के साथ फ्लर्ट करने का मन बनाता था उन दोस्तों को व्यस्त करने के लिए वह मुझे उन के साथ फ्लर्ट करने के लिए उकसाता था. मैं आखिर कितना सैक्रीफाइस करती… डर्टी माइंड, रास्कल को छोड़ने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था.’’

नित्या की आवाज आवेश में इतनी ऊंची हो गई थी कि पूरा बाररूम उस की तरफ देखने लगा. अनुज के नशे और रोमांस पर बेचैनी हावी हो गई. वह उठ खड़ा हुआ. उस ने नित्या का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, कमरे में चल कर बात करते हैं.’’

‘‘मुझे और पीनी है.’’

‘‘हां, चलो कमरे में मंगवाते हैं,’’ कह वह नित्या का हाथ पकड़ कर कमरे की ओर चल दिया.

नित्या लड़खड़ा रही थी. अनुज उसे सहारा दे कर कमरे तक लाया. रास्ते में नित्या का प्रवाह जारी था, ‘‘मैं… अगर उसे नहीं छोड़ती तो वह मुझे स्वैपिंग तक ले जाता. रास्कल, हिप्पोक्रेट…’’

कमरे में आ कर अनुज को राहत महसूस हुई. आते ही नित्या पलंग पर लेट गई और बोली, ‘‘मेरी ड्रिंक कहां है?’’

अनुज इतनी पीनेका आदी नहीं था. यदाकदा पीता था. आज वह पहले ही ज्यादा पी चुका था, परंतु कमरे में आ कर उस के मन में नित्या के साथ होने के रोमांस ने नशे की तलब बढ़ा दी थी. बाररूम में तो जैसे वह एक अदृश्य तनाव की उपस्थिति में इस रोमांच को नहीं जी पाया था. अब यहां नित्या के साथ इस एकांत में अचानक मुलाकात के सुख को जीने की लालसा से भर गया. वहां तुरंत सहमत हो गया और बोला, ‘‘अभी व्यवस्था करता हूं.’’

‘‘मुझे भूख लगी है.’’

‘‘हां, तुम्हारे सैंडविच भी मंगवाता हूं.’’

नित्या जैसे हलकी नींद में हो गई थी. ड्रिंक आने के बाद अनुज ने नित्या को चैतन्य किया और दोनों फिर से पीने लगे. रोमांच व नशे की तपिश में अनुज की भावुकता आइस्क्रीम की तरह पिघल रही थी, ‘‘तुम्हारा साथ 2 बार मिला, भरपूर मिला. बीच में जो अंतराल आया उस समय मेरे मन में तुम्हारे साथ होने की इच्छा जैसे शिखर पर पहुंच गई थी. तुम ने हर बार मुझ से दूरी बना ली तो तुम्हें खोने का एहसास बहुत

तीव्र होता गया. कभीकभी मैं सोचता था कि मैं ने पाया ही कब था पर तुम्हें खोने का एहसास बढ़ता जाता था.’’

‘‘तुम्हारी इच्छा थी तो मैं तुम्हें मिल गई हूं न. बस ये लिजलिजे

इमोशन छोड़ो, इन में मुझे हमेशा हिप्पोक्रेसी नजर आती है. हर नैतिकतावादी कहता कुछ है पाना कुछ और चाहता है.’’

नित्या की आवाज अभी भी लड़खड़ा रही थी पर ऐसा लग रहा था कि वह अपने पूर्व पति के बारे में अपनी भड़ास निकाल कर बहुत कुछ सहज हो गई है. वह चुपचाप पीने लगी.

अनुज ने कहा, ‘‘तुम ने ही कहा था कि हम तर्कवितर्क में नहीं उलझेंगे. आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा साथ मिला है… फिर न जाने कब तुम्हारा साथ मिले… मैं चाहता हूं कि इस समय को हम अपनी पुरानी मित्रता को ताजा करने में बिताएं.’’

‘‘सच कहूं जब मैं कड़वी सचाई को जी रही थी तो मुझे कभीकभी तुम्हारी लिजलिजी भावुकता की याद आती थी.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच, पर उस समय की भावुकता एक सुंदर छरहरे बदन में रहती थी आज वही भावुकता एक स्थूल शरीर में ऐसे लग रही है जैसे कोई अच्छा प्रोडक्ट किसी भद्दे पैक में हो,’’ कह नित्या मुसकराई.

अनुज नित्या के इस व्यंग्यात्मक लहजे का आदी था. नित्या की मुसकराहट के साथ उसे लगा कि जैसे बरसों पुरानी नित्या उस से बातें कर रही है. वह जैसे पुराने दिनों में वक्त बिताने के अनुभव से गुजर रहा था. शायद कुछ देर पहले यदि नित्या ने यह व्यंग्य किया होता तो वह आत्महीनता से भर जाता पर अब कि मनोस्थिति अलग थी.

अनुज भी जैसे विनोद के मूड में आ गया था. बचाव करने के बजाय उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी मांसलता भी कम नहीं बढ़ी है.’’

कहने को तो वह कह गया पर एक पल में वह इस आशंका से भर गया कि कहीं इस उक्ति से नित्या आक्रामक तार्किक तेवरों में न आ जाए और फिर पहले जैसा माहौल न बन जाए. वह इस पल के सुखद एहसास को खोना नहीं चाहता था. उस ने संभलते हुए अपनी बात का भाव बदला, ‘‘वैसे तुम्हारी यह मांसलता तुम्हें और सुंदर बनाती है.’’

‘‘यह नशा है या मैच्योर होता ऐक्सपीरिएंस, पता नहीं पर अब तुम्हारी भावुकता प्रैक्टीकल हो गई है.’’

अनुज नित्या के सहज उत्तर से आश्वस्त हो गया. उसे नित्या का कमैंट रोमानी लगा. उस का रोमांच अब रोमानी हो गया. नित्या को उस ने इतना भावुकता से आत्मीय होते नहीं देखा था. आज लग रहा था जैसे 2 विरोधी जलधाराएं आपस में टकरा नहीं रही हैं वरन आपस में मिल कर आगे एक बड़े प्रवाह के रूप में बह रही हैं. अनुज ने नित्या से कुछ खाने का आग्रह किया पर उस पर शायद नशा ज्यादा हावी था. उस ने जैसेतैसे सैंडविच के 1-2 टुकड़े खाए और फिर कहा, ‘‘बस, तुम अभीअभी मुझे मेरी मांसलता के प्रति आगाह कर चुके हो.’’

आगे सब अप्रत्याशित था या सुनियोजित समझना मुश्किल था. 2 प्रवाह एकसाथ मिल कर किसी तेज धारा में बदल चुके थे. एक सागर तक पहुंच कर यह प्रवाह बिलकुल खत्म हो गया. रात पूरी तरह स्थिर हो गई थी.

सुबह जब अनुज उठा तो देखा नित्या सो रही है. अनुज को नित्या की मांसलता आकर्षणहीन लगी. वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया. वह बहुत बेचैन और असमंजस की स्थिति में था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अचानक वह वितृष्णा से भर गया और वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने लगा.

‘‘सच है तुम समय के अंतर को नहीं पाट पाए. यही फासला बढ़ता चला गया. तुम्हारी हिप्पोक्रेसी मुझे पसंद नहीं थी. परिपक्व होने के बाद मैं ने उस का प्रतिकार करना सीख लिया था. बस इसी बिंदु से फासला स्थाई होता गया…’’

आखिरी बिछोह: भाग-3

खातेखाते शायद तुम्हारा सवालों के जवाब देने का मूड बन जाए.’’

‘‘वह तो मैं वैसे भी दे दूंगी पर खाली स्नैक्स से मूड कैसे बनेगा? कुछ पीने के लिए मंगा लो.’’

‘‘मजाक कर रही हो? तुम कब से

पीने लगी?’’

‘‘जब से मेरी शादी हुई.’’

‘‘चलो ड्रिंक का और्डर दे देता हूं.’’

‘‘नहीं आज अजनबी शहर में हूं… बाररूम में चल कर पीएंगे.’’

अनुज तुरंत सहमत हो गया. एक सुंदर महिला मित्र के साथ पीने का उस का यह पहला मौका था. वह एक नाजुक रंगीन एहसास से जुड़ गया. उसे लगा कि वह बिना पंख उड़ गया.

बाररूम में दोनों कोने की सीट पर जा कर बैठ गए.

‘‘तुम्हें कैसे लगा कि मैं पी सकता हूं? तुम ने तो मुझे पीते देखा ही नहीं है?’’

‘‘मैं मर्दों की फितरत अच्छी तरह जानती हूं. न पीने वाला भी एक महिला के आमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकता. फिर मैं तो तुम्हें बहुत करीब से जानती हूं.’’

‘‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?’’

‘‘मैं तुम्हारे शब्दों में कहूं तो मैं ने तुम्हारे साथ एक ईमानदार मित्रता निभाई है.’’

‘‘तुम अपनी बातों में कितने भी विशेषण उपयोग करो मैं ने तो हर दम तुम्हारी लिजलिजी नैतिकता में वासना की गंध महसूस की है. खैर, छोड़ो यह वक्त ऐंजौय करने का है. अब हम तर्कवितर्क में नहीं उलझेंगे.’’

अनुज खुद को शर्मसार महसूस कर रहा था. उसे लग रहा था कि जिस महिला के सामने वह नैतिकता का लिबास पहने रहा वह महिला हमेशा उस के अंदर झांक कर उसे निर्वस्त्र देखती रही है. उसे यह राहत थी कि नित्या ने हर असहमति को त्याग कर इस वक्त का आनंद लेने का निमंत्रण दिया था.

उस ने ड्रिंक मंगा लीं. दोनों चुपचाप बियर पीने लगे. शायद अनुज कुछ कहने का

साहस नहीं कर पा रहा था और नित्या कुछ कहने के बजाय पीने का ज्यादा आनंद ले रही थी.

थोड़ी पीने के बाद अनुज को हलका सुरूर हो गया. उस का डर, संकोच पिघलने लगा. उस के अंदर बरसों से दबी भावनाएं अचानक बाहर फूट पड़ीं. बोला, ‘‘मैं तुम्हें पाने की अदम्य लालसा रखता था. जब हम साथ पढ़ते थे तब मुझे अपनी लालसा के फलीभूत होने की पूरी उम्मीद थी. फिर तुम एमबीए करने पुणे चली गईं. इस दौरान हमारी मित्रता निरंतर थी पर तुम्हारे न लौटने की संभावना के साथ मेरी उम्मीद धूमिल हो गई. फिर तुम लौट आईं और मुझे अपनी उम्मीद वापस मिल गई. मगर धीरेधीरे मैं ने पाया कि हमारे संबंधों के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण बदल चुका है. अब तुम एक प्रगतिशील प्रबुद्ध महिला के रूप में विकसित हो चुकी थीं… मैं पिछड़ रहा था.’’

‘‘सच है तुम समय के अंतर को नहीं पाट पाए. यही फासला बढ़ता चला गया. तुम्हारी हिप्पोक्रेसी मुझे पसंद नहीं थी. परिपक्व होने के बाद मैं ने उस का प्रतिकार करना सीख लिया था. बस इसी बिंदु से फासला स्थाई होता गया. परिपक्व होने के बाद मुझे फैसला लेना आ गया था. मुझे अब लगने लगा था कि मैं अगर तुम्हारे पक्ष में फैसला लेती हूं तो मुझे तुम्हारी लिजलिजी भावुकता के साथ या तो समझौता करना पड़ेगा या फिर विद्रोह. मैं किसी जोखिम की मनोस्थिति में नहीं थी. अत: मैं अपने रास्ते पर आगे चल दी.’’

जिस क्रूरता के साथ नित्या सचाई कह रही थी, साफ था कि वह नशे की गिरफ्त में है.

‘‘तुम्हारे फैसले से मैं दुखी हुआ था, पर उस से ज्यादा दुख मुझे तब हुआ जब तुम ने पिछले बरसों पूरी तरह किनारा कर लिया.’’

अब तक नित्या ड्रिंक खत्म कर चुकी थी. उस की आंखें नशे में लाल दिख रही थीं. नित्या के चेहरे पर लालिमा छा गई थी, जो अनुज को बहुत मादक लग रही थी. अनुज खुद भी कभीकभी ड्रिंक लेता था. उस ने आज नित्या के साथ पहली बार कंपनी की थी. उसे नहीं मालूम था कि नित्या की लिमिट क्या है, वह पीने के बाद कैसे रिएक्ट करती है. बाररूम में भीड़ बढ़ रही थी. उसे एक अनजाना डर सता रहा था. उस ने नित्या के सामने कमरे में चल कर डिनर लेने का प्रस्ताव रखा तो नित्या ने हंस कर पूछा, ‘‘डर लग रहा है?’’

‘‘शायद.’’

‘‘मुझ पर भरोसा रखो. खैर, डिनर छोड़ो. कुछ सैंडविच और्डर कर लो या कुछ ऐसा ही. पीने के बाद मैं डिनर नहीं लेती. मुझे अपनी फिगर की चिंता है. मैं तुम्हारी तरह नहीं दिखना चाहती,’’ कह नित्या इतनी जोर से हंसी कि पूरा बाररूम गूंज गया.

अनुज को लगा सब उस की और नित्या की तरफ देख रहे हैं. वह इस स्थिति में फंसा असहाय सा महसूस कर रहा था. अपने डर से बचने के लिए वह चुपचाप अपनी ड्रिंक पीने लगा. दोनों के बीच फिर चुप्पी पसर गई. अब ड्रिंक का असर हावी हो रहा था.

अनुज के दिमाग में फिर सवाल रेंगने लगे, ‘‘तुम ने बताया नहीं कि तुम ने शादी के बाद मुझ से दूरी क्यों बनाई?’’

नित्या भी नशे की तरलता में बह गई, ‘‘तुम्हें मालूम है कि वह आदमी जो

शादी के पहले बहुत ही प्रोग्रैसिव नजर आता था धीरेधीरे मुझे दकियानूसी लगने लगा. मैं उस हिप्पोक्रेट आदमी के साथ कैसे रह सकती थी? मैं क्या बताऊं पीना मुझे उस ने ही सिखाया. वह कहता था अगर पार्टी का हिस्सा बनना है तो उस के तौरतरीके सीखो. पार्टी के लिए बदन ऐक्सपोज करने वाली ड्रैसेज वही ला कर देता था.’’

नित्या की आवाज तेज थी, लड़खड़ा रही थी. अनुज ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. वह चाहता था कि नित्या का प्रवाह शांत हो जाए.

नित्या शांत नहीं हुई, ‘‘उस हिप्पोके्रट आदमी को मेरे मेल फ्रैंड्स पर बहुत आपत्ति थी. वह नहीं चाहता था कि मैं उन से संबंध रखूं, जिन्हें वह नहीं जानता. शादी के बाद के शुरुआती दिनों में टैंशन दूर करने के लिए मैं ने उस का मन रख लिया. अब तुम्हें सवाल का जवाब मिल गया होगा.’’

‘‘हिप्पोक्रेट तो थोड़ाबहुत सभी होते हैं और परिवार के लिए त्याग तो खैर सब को करना पड़ता है.’’

अनुज ने यह बात सामान्य रूप से तसल्ली देने के लिए कही थी पर नित्या बिफर गई, ‘‘उस आदमी के लिए सैक्रीफाइस कर के मैं पछता रही हूं.

आखिरी बिछोह: भाग-2

अपना दुख अपनी नाराजगी, अपनी हताशा में डूबा रहा और शादी में नहीं आया. वास्तव में छोड़े गए संबंधों को आगे खूबसूरती से निभाना आदमी के अंदर की ताकत, ईमानदारी, सचाई और पवित्रता पर निर्भर करता है. मैं मानता हूं कि तुम्हारे अंदर मुझ से ज्यादा आत्मविश्वास है.’’

अनुज ने अपनी शैली में ये सब सोचसमझ कर नित्या को खुश करने के लिए कहा था पर वह उस के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था. नित्या के चेहरे को देख कर उसे लगा कि वह उस के कथन खासतौर पर ‘पवित्रता’ शब्द को ले कर प्रतिक्रियात्मक हो सकती है. वह व्यग्र हो गया और फिर से खड़ा हो कर विदा मांगने लगा.

नित्या ने चेहरा सामान्य किया और उदारता बरतते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं भी थक गई हूं. आराम करती हूं… शाम को मिलते हैं.’’

‘‘ठीक है मैं शाम 6 बजे आता हूं.’’

‘‘हां, तुम्हारा कमरा नंबर क्या है?’’

‘‘350 यही बगल वाला,’’ कह वह चल पड़ा.

नित्या ने पीछे से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे कमरे में आती हूं.’’

अनुज थका था पर मस्तिष्क में उमड़ रहे खयालों ने सोने नहीं दिया. वह लेटा भी तो महज करवटें बदलता रहा. इस मनोस्थिति में वह समय से पहले तैयार हो कर नित्या की प्रतीक्षा करने लगा. नित्या आराम से आई. घड़ी पर नजर डाली तो 6 बज चुके थे. अब तक वह नित्या से आगे मुलाकात की कई बार रिहर्सल खयालों में कर चुका था. नित्या के आते ही उस ने औपचारिक रूप से चायकौफी के लिए पूछा तो नित्या ने इनकार कर दिया.

अनुज का अनुमान सही था. नित्या उस की बातों से आहत हुई थी खासतौर पर ‘पवित्रता’ को ले कर. उस ने बिना भूमिका के प्रतिक्रिया दी, ‘‘मन और देह की पवित्रता तुम्हारी लिजलिजी भावुकता और चिपचिपी मनोवृत्ति का हिस्सा है. मेरे जीने के तरीके को तुम अच्छी तरह जानते हो. मैं समाज और परंपराओं की विरोधी नहीं हूं पर बंधी मान्यताओं में भी मैं नहीं जी सकती हूं. तुम भले ही इस के लिए मुझे उलाहना दे सकते हो.’’

‘‘नहीं, मेरा ऐसा कोईर् आशय नहीं था. मैं ने तो बस यह कहने का प्रयास

किया था कि छूटे संबंधों को तभी निभाया जा सकता है जब मन में उन के लिए जगह बची हो. इस से भी ज्यादा मेरा यह कहना था कि छूटे संबंधों में अगर आगे निभाने का सिलसिला बनता है, तो इस का मतलब है कि हम ने संबंधों को जितनी ईमानदारी से निभाया है उतनी ही ईमानदारी से भी छोड़ा है.’’

अनुज अपनी सफाई में बोलते समय खुद ही भ्रमित हो गया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या कहा जाए, इसलिए वह चुप हो गया.

नित्या के चेहरे से साफ था वह इस सफाई से संतुष्ट नहीं है. उस ने अपनी आक्रामकता जारी रखी, ‘‘तुम हर चीज को फीमेल की ईमानदारी और पवित्रता से जोड़ने की मानसिकता से अभी तक बाहर नहीं आए हो. तुम्हें शायद अच्छी तरह मालूम है कि तुम्हारे और मेरे बीच जो फासला बना उस की सब से बड़ी वजह तुम्हारी यही लिजलिजी मानसिकता थी. अब तो तुम्हारे शरीर में थुलथुलापन भी आ गया है,’’ और फिर नित्या ने अनुज के पेट पर हलकी सी चपत लगा दी.

अनुज जैसे शर्मिंदगी में डूब गया. वह शुरू से ही नित्या के बिंदास व्यक्तित्व की चपेट में दबा सा रहा था. वह जानता था कि इस स्थिति से कैसे पार पाना है.

उस ने आत्मसमर्पण की मुद्रा में कहा, ‘‘तुम्हारी इस बेबाकी का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूं. तुम्हारे और रुचिर के संबंधों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए मैं ने अनजाने में जो टिप्पणी की उस के लिए मुझे खेद है. जहां तक तुम्हारे और मेरे बीच बने संबंधों के फासलों का प्रश्न है शायद मेरी कमी है. मैं कभी खुद को पूरी तरह समझा नहीं पाया वरना मेरी सोच किसी भी रूप में तुम्हारे जीने के तरीके के विरुद्ध नहीं है. बस अफसोस है तो यही कि हम ने संबंधों को फासलों के साथ जीया है.’’

‘‘इस में मैं ने छिपाया क्या है? तुम्हारी भाषा में कहा जाए तो मैं ने संबंधों को ईमानदारी के साथ निभाया है, भले ही तुम कन्फ्यूज्ड रहे हो… मैं हमेशा क्लियर रही हूं. मैं ने तुम्हें हमेशा दोस्त की तरह देखा है… कभी लाइफपार्टनर की तरह नहीं देखा है.’’

अनुज का दर्द छलक आया. उस के दिल का प्रवाह खुल गया, ‘‘हम दोस्त रहे हैं पर दोस्ती के प्रति हमारा नजरिया अलगअलग रहा है, हमारी परस्पर उम्मीदें अलगअलग रही हैं. मैं ने तुम्हें दोस्त के रूप में स्वीकार किया है. यह दोस्ती मैं बनाए रखना चाहता था. मैं मानता हूं तुम्हारी शादी में सम्मिलित नहीं हुआ पर अफसोस तुम ने शादी के बाद दोस्ती तोड़ दी और दूरी बना ली. तुम ने अपने फोन पर मुझे ब्लौक कर दिया. हो सकता है तुम ने अपना नंबर बदल दिया हो. लंबे समय से मैं तुम से बात भी नहीं कर पाया.’’

‘‘तुम जानते हो मैं खुली किताब की तरह हूं. तुम्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला तो गलती तुम्हारी है. खैर, आज हम साथ हैं. मौका आने दो तुम्हारे दिल में जो सवाल हैं उन के जवाब मिल जाएंगे… तुम आजकल क्या कर रहे हो?’’

‘‘क्या करता… खानदानी दुकान संभाल

रहा हूं.’’

‘‘तभी शक्ल भी बनिए की बना ली है.’’

नित्या का स्वभाव है कि वह बीचबीच में कड़े व्यंग्य जरूर करती है.

पर वह भी जैसे इन व्यंग्यात्मक टिप्पणियों का आदी हो चुका था. उस ने हमेशा की तरह व्यंग्य को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘तुम आजकल क्या कर रही हो?’’

‘‘मैं दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में एमबीए के छात्रों को पढ़ा रही हूं.’’

‘‘वैसे भी तुम्हारी आदत दूसरों को पढ़ाने की रही है,’’ अपने स्वभाव के विपरीत अनुज ने परिहास किया… शायद व्यंग्यात्मक टिप्पणी का प्रतिउत्तर दिया था.

नित्या ने पुअर जोक कह कर अनुज की टिप्पणी की हवा निकाल दी. इतनी चर्चा के बाद अभी केवल 7 बजे थे. डिनर के लिए काफी वक्त बचा था. अनुज ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, कहीं घूम आते हैं.’’

‘‘नहीं मैं थकी हूं. मेरी घूमने की इच्छा नहीं हो रही है.’’

‘‘कुछ स्नैक्स और्डर कर देता हूं…

आखिरी बिछोह: भाग-1

होटलकी लिफ्ट में नित्या दिखी, तो अचानक बरसों बाद नित्या से मिलने के रोमांच से वह घिर गया. नित्या के शरीर में उम्र का भराव आ गया था. देह मांसल हो गई थी. कालेज की छरहरी लड़की से परिपक्व नित्या का व्यक्तित्व तुलनात्मक रूप से ज्यादा आकर्षक लग रहा था. लिफ्ट में 6 लोग थे. नित्या ने या तो उसे पहचाना नहीं या फिर उसे देख नहीं पाई. उसे देखने के रोमांच में डूबा वह जैसे नित्या से बात करना ही भूल गया. उसे तीसरी मंजिल पर जाना था. जब तक वह कुछ कहने का मन बनाता, तीसरी मंजिल आई गई और लिफ्ट

रुक गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही वह बाहर आ गया.

इन पलों में उस के दिमाग में इतने प्रश्न उमड़े कि उन की गिनती करना मुश्किल था. इन पलों में उस के दिमाग में इतने दृश्य चलायमान हुए कि उन्हें ठीक से देख पाना भी मुश्किल था. लिफ्ट से बाहर निकलते समय वह मात्र यह सोच रहा था कि नित्या किस मंजिल पर जाएगी

वह सोच ही रहा था कि नित्या भी लिफ्ट से बाहर आ गई. उस ने सोचा कि नित्या उसे देख कर रुकेगी पर वह उस पर नजर डाल कर आगे बढ़ गई. अपनी उपेक्षा से वह बेचैन हो गया, फिर उस ने मन को समझाया कि हो सकता है वह उसे पहचान न पाई हो. आखिर कितना लंबा

समय बीत गया है दोनों की मुलाकात को हुए.

वह नित्या के पीछेपीछे चल दिया. नित्या जा कर उस के कमरे के ठीक बगल वाले कमरे के सामने रुकी और फिर पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजे का ताला खोलने लगी. नित्या उस के बगल वाले कमरे में रुकी है, यह जान कर उस के सवाल जैसे रुक गए. उस की बेचैनी कम हो गई. नित्या से मुलाकात का मौका अब बहुत करीब नजर आ रहा था. उस ने देखा कि नित्या दरवाजा नहीं खोल पा रही है.

उस का उतावलापन छलक गया. अत: उस ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘कैन आई हैल्प यू?’’

नित्या ने पलट कर उस की ओर गुस्से में ऐसे देखा जैसे आम लड़की फ्लर्ट करने वाले पुरुष को देखती है.

वह एक पल के लिए सकुचा गया. फिर हड़बड़ाहट में कहा, ‘‘तुम ने मुझे पहचाना नहीं?’’

नित्या ने उस की ओर देखा और फिर दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘अरे, अनुज… रियली सौरी. मेरे दिमाग में तो अभी तक तुम्हारी वही घुंघराले बालों वाले दुबलेपतले लड़के की छवि थी,’’ और फिर हंसने लगी.

अनुज ने दरवाजा खोला तो नित्या ने उसे कमरे के अंदर आने का निमंत्रण दिया. अनुज जैसे इस प्रतीक्षा में ही था. अत: चुपचाप नित्या के पीछेपीछे कमरे में आ गया.

नित्या आते ही पलंग पर पसर गई, ‘‘आज तो बहुत थक गई हूं. प्लीज, अनुज 2 कप चाय का और्डर दे दो.’’

अनुज ने रूम सर्विस पर चाय का और्डर दिया और फिर वह भी आराम से कुरसी पर बैठ गया. संवाद शुरू करने का कोई सिरा अनुज के हाथ नहीं आ रहा था. नित्या भी आंखें बंद कर पलंग पर थकान मिटा रही थी. कमरे में चाय आने तक चुप्पी छाई रही. चाय आते ही नित्या उठ कर पलंग पर बैठ गई. दोनों चाय पीने लगे.

अनुज ने यों ही संवाद शुरू करने की गरज से कहा, ‘‘मैं तो तुम से मुलाकात की उम्मीद ही खो चुका था.’’

नित्या ने जैसे उसे अनसुना करते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो यह कल्पना भी नहीं की थी कि तुम इतनी बदली हुई काया के साथ मिलोगे. तुम तो आधे गंजे हो चुके हो, पेट भी अधेड़ों की तरह बाहर आ गया है. इस उम्र में भी तुम 40-50 के लगने लगे हो,’’ और फिर हंसने लगी.

अनुज झेंप गया और फिर अपना ध्यान इस ओर से हटाने के लिए चुपचाप चाय पीने लगा. नित्या की हंसी रुकने के बाद कुछ पलों तक खामोशी छाई रही. अनुज नित्या के मजाक से आहत हो गया था. उस ने इस स्थिति से उबरने के लिए प्रश्न किया, ‘‘लगता है तुम मुझे केवल मेरे घुंघराले बालों और खूबसूरत शरीर के लिए ही पसंद करती थीं.’’

‘‘तुम तो बुरा मान गए. शारीरिक सुंदरता मानवीय पसंद का महत्त्वपूर्ण फैक्टर है. सब से पहले किसी व्यक्ति का शारीरिक सौंदर्य ही देखा जा सकता है. हां, हम जिसे जान जाते हैं उस के आंतरिक सौंदर्य को भी देख पाते हैं. तब पसंद में आंतरिक सौंदर्य का तत्त्व भी प्रधानता से जुड़ जाता है. तुम तो मेरे पुराने मित्र हो. मैं ने तो एक मित्र के नाते तुम्हारी ईमानदार समीक्षा की थी,’’ नित्या ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘चलो, तुम्हें यह तो याद है कि हम कभी मित्र थे.’’

नित्या को लगा कि अनुज ज्यादा आहत हो गया है, इसलिए उस ने आगे कुछ नहीं कहा. वह केवल मुसकरा दी. यों तो दोनों के पास चर्चा करने के लिए एक लंबा अतीत था, जो उन्होंने साथ गुजारा था, पर न जाने क्यों दोनों के बीच खामोशी पसरी थी. अनुज की अकुलाहट बढ़ रही थी. वह किसी भी हालत में इस मुलाकात को इतनी औपचारिक चुप्पी के साथ नहीं बिताना चाहता था. अत: उस ने चुप्पी में सेंध लगाते हुए कहा, ‘‘भोपाल कैसे आना हुआ?’’

‘‘अपने ऐक्स हसबैंड की शादी में आई थी,’’ नित्या ने बिंदास अंदाज में कहा.

‘‘मजाक कर रही हो?’’

‘‘इस में मजाक क्या है? रुचिर से मेरा तलाक शादी के 2 साल बाद ही हो गया था. तुम्हें शायद जानकारी नहीं है. हां, इस दौरान हमारा संवाद भी नहीं हुआ. अगर बात होती तो यह बात मैं तुम्हें जरूर बताती. रुचिर ने मेरी सहेली ऋचा से शादी की. मुझे निमंत्रण दोनों ने दिया था और आग्रह भी बहुत किया था, इसलिए चली आई.’’

अनुज अवाक सा नित्या की ओर देखता रह गया. नित्या के चेहरे पर न उदासी थी और न ही आक्रोश था. उस के चेहरे से लग रहा था जैसे वह किसी खास रिश्तेदार की शादी अटैंड करने के बाद बहुत उत्साह के साथ वापस आई है.

अनुज कुछ कहना चाहता था पर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. फिर उस ने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ने भी अपनी शादी पर आग्रह किया था पर शायद मैं कमजोर पड़ गया था.

देह से परे: क्या कामयाब हुई मोनिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी. इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई. वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी. इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह? आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है? आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है. वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी. निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’ मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई. बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा. आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी. नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा. कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था.

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